उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी एवं देवभूमि विज्ञान समिति, उत्तराखंड के संयुक्त तत्वावधान में 9 सितम्बर 2025 को विश्वविद्यालय परिसर में हिमालय दिवस का अयोजन किया गया। संगोष्ठी में हिमालयन क्षेत्र के संरक्षण पर विचार मंथन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ प्रो.पी.डी पन्त,निदेशक अकादमिक द्वारा तथा बाह्य विषय विशेषज्ञों, डा. नरेन्द्र सिंह, वैज्ञानिक, आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान(एरीज) तथा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिक डा. गौतम रावत के स्वागत के साथ किया गया. उन्होंने बताया कि कैसे हिमनदों के पीछे हटने, वनों की कटाई, अनियमित पर्यटन और जलवायु परिवर्तन ने बाढ़, भूस्खलन और जैव विविधता के नुकसान के खतरों को बढ़ा दिया है।
कार्यक्रम के सह-संयोजक, प्रो. कमल देवलाल, भौतिकी विभाग, यूओयू, हल्द्वानी ने इस आयोजन का विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की तथा हिमालय के महत्व पर ज़ोर दिया। जिसमें कार्यक्रम के उद्देश्यों, महत्त्व, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चुनौतियों और स्थायी समाधानों तथा कार्यक्रम के अपेक्षित परिणामों पर चर्चा की. यह भी बताया की मुक्त विश्वविद्यालय की पहुच समूचे उत्तराखंड में होने से विश्वविद्यालय इस क्षेत्र में बेहतर भूमिका निभा सकता है.
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी के कुलपति प्रो. नवीन चंद्र लोहनी वर्चुअल माध्यम से इस सत्र में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि हिमालय गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल भी है, जो लाखों लोगों का जीवन-यापन करता है। इसके अतिरिक्त, यह जैव विविधता से समृद्ध है और कई समुदायों के लिए सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पारिस्थितिक महत्व रखता है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और पारिस्थितिक संतुलन तथा सामाजिक-आर्थिक विकास दोनों के अनुरूप ब्यवहारिक संरक्षण रणनीतियों की सामूहिक रूप से खोज करने पर केंद्रित हैं। कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से प्रदेश व देश के विभिन्न हिस्सों से 200 से अधिक छात्रों तथा शिक्षकों ने नामांकन तथा प्रतिभाग किया ।
डॉ. नरेंद्र सिंह, वैज्ञानिक-एफ, आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), नैनीताल (उत्तराखंड) ने हिमालय और उसकी चुनौतियाँ: एक जलवायु परिप्रेक्ष्य" विषय पर व्याख्यान दिया। अपने व्याख्यान में उन्होंने घोषणा की कि हिमालय दुनिया की सबसे युवा और सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है, जो दक्षिण एशिया की जलवायु को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हालाँकि, बदलते जलवायु पैटर्न इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहे हैं। बढ़ते तापमान के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं, जिससे नदियों को खतरा है। बादल फटने और भूस्खलन जैसी चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति ने इस क्षेत्र को और अधिक संवेदनशील बना दिया है। पिघलते पर्माफ्रॉस्ट पर्वतीय ढलानों को अस्थिर कर रहे हैं, जिससे ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (GLOF) का खतरा बढ़ रहा है।
डॉ. गौतम रावत, वैज्ञानिक-ई, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून ने अपने व्याख्यान में जोर देकर कहा कहा कि हिमालय में हो रहा विकास क्षेत्र की पारिस्थितिकी और समुदायों पर गहरे प्रभाव डाल रहा है, जो अवसरों के साथ-साथ गंभीर चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कर रहा है। सड़क, बांध और जलविद्युत परियोजनाओं जैसे तीव्र बुनियादी ढांचा विकास ने जहाँ आर्थिक संपर्क और रोजगार के नए विकल्प प्रदान किए हैं, वहीं इसने क्षेत्र की पारिस्थितिक नाजुकता को भी और अधिक बढ़ा दिया है। विकास गतिविधियों ने वन्यजीवों के आवास को खंडित कर जैव विविधता, विशेषकर विलुप्तप्राय प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है। पारंपरिक निर्माण सामग्री के स्थान पर कंक्रीट के उपयोग से ‘हीट आइलैंड’ प्रभाव पैदा हुआ है, जिससे स्थानीय तापमान में वृद्धि हो रही है। हिमालय में हो रहा विकास क्षेत्र की पारिस्थितिकी और समुदायों पर गहरे प्रभाव डाल रहा है,
परिचर्चा के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि हिमालयन संरक्षण के क्षेत्र में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय इस क्षेत्र के शोध सस्थान, आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान(एरीज) तथा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के साथ मिलकर शिक्षा, शोध, जागरूकता हेतु कार्य कर सकता है तथा एमओयू भी कर सकता है.
कार्यक्रम में विज्ञान भारती व देवभूमि विज्ञान समिति के समन्वयक श्री आशुतोष सिंह भी उपस्थित रहे तथा उन्होंने हिमालय के इतिहास और धार्मिक महत्व पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.गिरिजा पाण्डेय, निदेशक मानवीकी विद्याशाखा द्वारा की गई. प्रो. गिरिजा पांडे ने अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, जैव विविधता के संरक्षण तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत विकास सुनिश्चित करने हेतु सामूहिक जिम्मेदारी निभाने पर विशेष बल दिया। उन्ह्नोने बताया किस प्रकार कुछ अन्य देश अपनी जैव विविधता क्षेत्रो के संरक्षण के लिए अत्यधिक कठोर अनुशासन तथा नियमो का पालन करते है. कार्यक्रम का संचलन डॉ. मीनाक्षी राणा तथा डॉ. बिना फुलारा द्वारा किया गया । कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. खेमराज भट्ट जी द्वारा आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम में सह-संयोजक डॉ एच सी जोशी, प्रो. जितेंद्र पांडे, प्रो. आशुतोष भट्ट, प्रो. गगन सिंह डॉ. वीरेंद्र सिंह, डॉ. श्याम सिंह कुंजवाल डॉ.राजेश मठपाल, डा.प्रदीप पन्त, डा.कृतिका, एवं विश्वविद्यालय के सभी अध्यापकों ने प्रतिभाग किया।