जहाँ ज्ञान श्रद्धा से जुड़ता, जहाँ ज्ञान चेतना बसे;
जहाँ ज्ञान का योग निरन्तर, जहाँ ज्ञान से मुक्ति मिले,
जहाँ ज्ञान से बिछुड़ों की भी आशाओं के दीप जले;
जहाँ सभी को ज्ञान-यज्ञ में आहुति का अधिकार मिले।
पीठ ज्ञान की मुक्त लिये रोली-कुंकुम।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं।।
पर्वत की श्रृंखला यहाँ दृढ़ता के पाठ पढ़ाती;
निर्मल जल-धारायें निसि-दिन कल-कल गीत सुनातीं,
भाँति-भाँति की औषधियाँ, फल-फूल, प्रकृति मुसुकाती;
देवभूमि की सुन्दरता से अमरावती लजाती।
पीठ ज्ञान की मुक्त लिये रोली-कुंकुम।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं।।
परम्परायें यहाँ ज्ञान की, तपोभूमि भारत की;
ज्ञानभूमि है यही विवेकानन्द, आदि-शंकर की,
धरा यही ऋषियों-मुनियों की, योग-ध्यान साधन की;
बहीं शारदा, सरयू, यमुना, कोख यही सुरसरि की।
पीठ ज्ञान की मुक्त लिये रोली-कुंकुम।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं।।
विद्या देती विनय-पात्रता, शुभ प्रसाद धन-सुख का;
ज्ञान मोक्ष का द्वार, यही उद्घोष देव-संस्कृति का,
नई विधायें, नई दिशायें, पथ नवीन आशा का;
मुक्त विश्वविद्यालय अपना, है अभियान प्रगति का।।
पीठ ज्ञान की मुक्त लिये रोली-कुंकुम।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं। श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं।।
विद्या परिषद एवं कार्य परिषद की बैठक दिनांक 23.04.2011 एवं 21.05.2011 में अनुमोदित।
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उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय परिसर के शिलान्यास के अवसर पर दिनांक 23.05.2011 को प्रथम बार गाया गया।कुलगीत के रचियिता:- प्रोफेसर आर0सी0 मिश्र, निदेशक वाणिज्य एवं प्रबंध, पर्यटन आतिथ्य सेवा एवं होटल मैनेजमेन्ट तथा कुलसचिव, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय।