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इतिहास विभाग व आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ(सीका) द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान एवं डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन में नृविज्ञानी प्रो. अंजली चौहान ने की शिरकत

इतिहास विभाग व आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ(सीका) द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान एवं डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन में नृविज्ञानी प्रो. अंजली चौहान ने की शिरकत

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इतिहास विभाग व आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ(सीका) द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान एवं डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन में नृविज्ञानी प्रो. अंजली चौहान ने की शिरकत
बृहस्पतिवार को उत्तराखंड मुक्त विवि के इतिहास विभाग व आंतरिक आश्वासन गुणवत्ता प्रकोष्ठ (सीका) प्रो. चौहान ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जौनसार क्षेत्र के परंपरागत उत्सव और खेल जैसे बिस्सू और थोड़ा द गेम ऑफ़ द वारियर्स केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं, बल्कि ये स्थानीय समाज की जीवन-शैली, कृषि परंपरा और सामाजिक संरचना की गहरी समझ प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि बिस्सू पर्व फसल उत्सव के रूप में बैसाखी के समय पांच दिनों तक मनाया जाता है और इसमें स्थानीय रीति-रिवाजों, पारंपरिक भोजन और औपचारिक समारोहों के माध्यम से क्षेत्रीय संस्कृति का संरक्षण होता है।
उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक समय में क्लाइमेट चेंज, शहरी दबाव और पर्यटन जैसे मुद्दों के मद्देनज़र इन परंपराओं का दस्तावेज़ीकरण और डिजिटल संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्थानीय कला, वास्तुकला और पारंपरिक सामाजिक प्रथाओं को बढ़ावा देना और एथनो-टूरिज़्म के माध्यम से उनकी रक्षा करना भी आवश्यक है। मुख्य वक्ता प्रोफेसर अंजलि चौहान एक प्रतिष्ठित नृविज्ञानी, शोधकर्ता और लेखिका हैं। वे श्री जय नारायण पी.जी. कॉलेज, लखनऊ विश्वविद्यालय में नृविज्ञान विभाग की अध्यक्ष हैं और डी.एन. मजूमदार मेमोरियल म्यूज़ियम की निदेशक भी रह चुकी हैं। प्रो. चौहान ने अमेरिका, कनाडा, यूके, चीन, भूटान और श्रीलंका में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और भारतीय संस्कृति, परंपराओं तथा जनजातीय जीवन पर कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं। इस अवसर पर कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि भारत और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता के विभिन्न पहलुओं को छात्रों तक पहुंचाना और पाठ्यक्रमों में शामिल करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता है। उन्होंने विशेष रूप से जौनसार और हिमालयी क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रो. गिरिजा प्रसाद पांडे निदेशक, आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ और इतिहास विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा कि पाठ्यक्रम में स्थानीय समाज और संस्कृति को शामिल करना आवश्यक है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि एंथ्रोपोलॉजी के माध्यम से क्षेत्रीय विविधताओं, लोक देवताओं और परंपराओं को समझने में शोधकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।कार्यक्रम का संचालन प्रो. एम.एम. जोशी ने किया। उन्होंने बताया कि डॉक्यूमेंट्री प्रस्तुति में थोड़ा खेल और बिस्सू पर्व के साथ-साथ यमुना नदी के किनारे स्थित कालसी और चकराता क्षेत्रों के सांस्कृतिक जीवन को प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया। इस अवसर पर अन्य उपस्थित गणमान्य व्यक्ति थे: प्रो. रेनू प्रकाश, राकेश रायाल, प्रो. शशांक शुक्ला, प्रो. मंजरी अग्रवाल, डॉ. लता जोशी, डॉ. आरुषि, डॉ. भाग्यश्री जोशी, डॉ. भूपेन सिंह समेत विवि परिवार मौजूद रहे।

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