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उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में ‘थर्ड जेंडर : नए विमर्श की खोज’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में ‘थर्ड जेंडर : नए विमर्श की खोज’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

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“एक बेहतर समाज का निर्माण समाज के समावेशी दृष्टि से ही संभव है।”- प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के समान अवसर प्रकोष्ठ द्वारा “थर्ड जेंडर : नए विमर्श की खोज” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी के माननीय कुलपति प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी जी ने कहा कि किसी भी समाज के बेहतर निर्माण के लिए समावेशी दृष्टि की जरूरत होती है। उनमें सबके लिए पर्याप्त जगह और स्वीकार्यता होनी चाहिए। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हाशिए के समाज और थर्ड जेंडर समाज के प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है और उन्हें सभी आवश्यक सुविधा देने के लिए कृत संकल्प है। माननीय कुलपति जी ने पूर्व में ही थर्ड जेंडर के लिए विश्वविद्यालय के सभी कोर्स में शुल्क माफ़ी का प्रावधान कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि शोषण के बहुत तरीके हैं और शोषित हो जाने के भी, ऐसे में हमारी सजगता ही हमें संवेदनशील बनाती है। तमाम बायनरी की स्वीकार्यता ही पहचान और सामाजिक जागरूकता को निर्मित करती है। उन्होंने कहा कि हमें पूर्वग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए और समय समय पर अपना आत्मावलोकन भी करते रहना चाहिए। 
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि पंजाब विश्वविद्यालय की पहली महिला ट्रांस जेंडर छात्र एवं सक्षम प्रकृति वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रीमती धनंजय चौहान ने अपने हृदय विदारक अनुभवों और संघर्षों को रेखांकित कर ट्रांस जेंडर समाज की समस्याएं और उनके प्रति हमारे सामान्य सामाजिक व्यवहार की समस्याओं को रेखांकित किया। उनके त्रासद अनुभवों से उपस्थित श्रोता समुदाय वेध्य हो गया। उन्होंने ‘ट्रांस जेंडर : अनुभव, संघर्ष और आशाएँ’ विषय पर अपनी बात रखते हुए सबसे पहले तृतीय लिंगी समाज का इतिहास बताया और कहा कि हम भी इसी समाज की निर्मिति हैं। हमारा अच्छा बुरा होना भी इसी समाज पर निर्भर है। हम स्वाभाविकता के पक्षधर हैं। हमारा अस्तित्व ही संधि काल पर टिका हुआ है। हम संध्या हैं। जेंडर शरीर और समाज की दी हुई पहचान हैं और हम इस पहचान को अतिक्रमित करते हैं। उन्होंने कहा कि तृतीय लिंग की पहचान एवं उनकी स्वीकार्यता से ही हमारा समाज समावेशी हो सकेगा। हमारे लिए सहानुभूति से अधिक स्वीकार्यता का प्रश्न महत्वपूर्ण है। 
परिचर्चा सत्र का परिचय देते हुए हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ राजेंद्र क़ैड़ा ने कहा कि थर्ड जेंडर पर बात अथवा विमर्श करने से अधिक उनके प्रति अपनी संवेदना को विकसित करने की अधिक जरूरत है। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश विश्वविद्यालय के अकादमिक निदेशक प्रो पी डी पंत ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ कुमार मंगलम ने किया। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन,  कार्यक्रम की संयोजक डॉ सीता ने दिया। डॉ. ममता कुमारी, डॉ. भूपेन सिंह, डॉ. कुमार मंगलम,  डॉ. जितेश कुमार, सुनिता भास्कर आदि ने कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किये।

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