Kavita Sansar
एक दाना दो वो अनेक दाने देगी अन्न के, एक बीज दो वह विशाल वृक्ष सृजेगी घनी छाया और फल के, एक कुंआ खोदो वो जल देगी शीतल अनेक समय तक अनेक लोगों को तृप्त करती धरती को कुछ भी दो वह और बड़ा दोहरा तिहरा करके लौटाएगी, धरती ने बनाया जीवन सरस रहने सहने और प्रेम करने लायक स्त्रियां क्या धरती जैसी होती हैं ..ये बानगी है राकेश रेणु की कविताओं की...