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"उत्तराखंड की भाषाएँ: संरक्षण की चुनौतियाँ और संभावनाएँ" विषयक द्वि-द्विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह पुस्तक मेला

हिमालयी भाषा सन्दर्भ में भाषाओं के संवर्धन और उनकी जीवन्तता बनाएं रखने के लिए हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएँ विभाग, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय प्रतिबद्ध है। भारतीय संस्कृति एवं सांस्कृतिक एकता को रेखांकित करने में विविध भारतीय भाषाएँ और विविध भारतीय क्षेत्रीयताएँ व लोक को एक महत्वपूर्ण सोपान के रूप में हमारा संविधान भी भाषाई विविधताओं के सामंजस्य और एका को संदर्भित करता रहा है। हम सभी जानते हैं, भारत एक बहुभाषिक देश है। यहाँ भारोपीय, द्रविड, आस्ट्रो-एशियाटिक, चीनी-तिब्बती, अंडमानी, भाषा परिवार की भाषाएँ मौजूद है, जो अपनी भाषाई संरचना में एक दूसरे से भिन्न होकर भी अनेकता में एकता का संदेश देती हैं, जो कि भारतीयता का मूल गुणसूत्र है। यह भी सच है कि इस बहुभाषिक और भाषाई रूप से समृद्ध देश में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को समुचित प्रोत्साहन न मिलने कारण पिछले 50 वर्षों में हमने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्त होने की कगार पर खड़ा कर दिया है। आज किसी भी शैक्षिक संस्थान का यह नैतिक दायित्व है कि वह क्षेत्रीय भाषाओं को उचित सम्मान के साथ उस भाषा के लेखकों, साहित्य और पांडुलिपियों के साथ ही उनके लहजे और अनुभवों का संरक्षण और संवर्धन पर बल दे और इनमें ज्ञान के अनुशासन पैदा करे। उपर्युक्त सन्दर्भों के आलोक में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय "उत्तराखंड की भाषाएँ, संरक्षण की चुनौतियाँ और संभावनाएँ विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने जा रहा है। 'हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषा विभाग यह नाम इस बात को दर्शाता है कि उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय भारतीय भाषाओं को लेकर अपने स्थापना-काल से ही संवेदनशील रहा है। उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय पूर्व से ही विषय के रूप में उर्दू, हिंदी के अलावा कुमाउनी, गढ़वाली और नेपाली भाषाओं के संवर्धन को लेकर अकादमिक रूप से संकल्परत है। इस दिशा में विश्वविद्यालय सर्टिफिकेट कार्यक्रम संचालित कर रहा है। उत्तराखण्ड राज्य भाषाई रूप से बहुभाषीय है। इनके अलावा राजी, रंवाई, थारु, र. जाड़, जौनसारी महत्वपूर्ण आदिम भाषाएँ भी यहाँ बोली जाती है। भाषाओं के बहुरंगी आकाशगंगा में हर भाषा एक तारा है। अपनी मातृभाषा के साथ अधिक-से-अधिक भारतीय भाषाओं को सीखने, देश की एकता व अखंडता के अनुकूल बातावरण बनाने के लिए हमें अपने साथ-साथ पड़ोसी भाषा के प्रति प्रेम और आनन्द की अनुभूति करनी भी आवश्यक है। हम केवल प्रादेशिक भाषा ही नहीं, अपितु इस भाषा के साथ ही अन्य पड़ोसी भाषाओं के साथ आपसी मधुर सबंध विकसित करने तथा इन भाषाओं के संवर्धन व गंभीर शोध के लिए अकादमिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। यह द्वि-दिवसीय आयोजन हिंदी एवं उत्तराखण्ड के क्षेत्रीय और मातृ भाषाओं को समर्पित है।

आप सब सुधीजनों की उपस्थिति हमें बल प्रदान करेगी |

 
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