BED I- PE 2 समकालीन भारत एव शिक्षा ं Contemporary India and Education शिक्षक शिक्षा शवभाग, शिक्षािास्त्र शवद्यािाखा उत्तराखण्ड मक्त शवश्वशवद्यालय, हल्द्वानी ु ISBN: 13-978-93-85740-65-7 BED I- PE 2 (BAR CODE) BED I- PE 2 समकालीन भारत एव िश0ा ं Contemporary India and Education िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ #ानी ु अ
"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ"
य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ
"य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* ु ु उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर मह$मद िमयाँ (बा# िवशषे )- सद#य), पव$ अिध(ाता, िश#ा सकाय, !ोफे सर सी० बी० शमा$ (बा# िवशषे )- सद#य), अ&य', रा*+ीय ु ू ं जािमया िमि&लया इ)लािमया व पव- कलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद 0 म# िव&ालयी िश,ा स/थान, नोएडा ू ु ु ं ू िव#िव$ालय, हदै राबाद !ोफे सर पवन कमार शमा/ (बा# िवशषे )- सद#य), अिध(ाता, ु !ोफे सर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशषे )- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा सकाय व सामािजक िव,ान सकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी ं ं एम० जे० पी० !हले ख&ड िव*िव+ालय, बरेली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफे सर के ० बी० बधोरी (बा# िवशषे )- सद#य), पव( अिध,ाता, िश0ा सकाय, !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ु ू ं ं एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश#ाशा% ं ं उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ं म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स!ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ु उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा एव सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु ु ं िव#िव$ालय स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एव सह- ु ु ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं ं ु िश#ाशा% िव'ाशाखा एव सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख!ड ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, िश3ाशा4 ु ं ं म# िव&िव'ालय ु िव#ाशाखा एव सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव!ालय ु ं िदशाबोध: (ोफे सर जे० के ० जोशी, पव$ िनदशे क, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 िव8िव.ालय, ह =ानी ू ु काय$%म सम(वयक: काय$%म सह-सम#वयक: पाठय&म सम)वयक: पाठय&म सह सम*वयक: ् ् डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड उ
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"राख&ड !धान स&पादक उप स$पादक डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ"राख&ड ु ु िवषयव%त स)पादक भाषा स%पादक !ा#प स&पादक !फ़ सशोधक ु ू ं स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु ु ु सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म# िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु ु ु ु िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय साम$ी िनमा(ण !ोफे सर एच० पी० श#ल !ोफे सर आर० सी० िम# ु िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय िनदशे क, एम० पी० डी० डी०, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय ु ु © उ
"राख&ड म# िव&िव'ालय, 2017 ु ISBN-13-978-93-85740-65-7 !थम स&करण: 2017 (पाठय&म का नाम: समकालीन भारत एव िश0ा, पाठय&म कोड- BED I- PE 2) ् ् ं ं सवा$िधकार सरि%त। इस प%तक के िकसी भी अश को !ान के िकसी भी मा+यम म - .योग करने से पव5 उ7राख9ड म# िव&िव'ालय से िलिखत अनमित लेना आव2यक ह।ै इकाई ु ु ं ू ु ु लेखन से सबिधत िकसी भी िववाद के िलए पण65 पेण लेखक िज8मदे ार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ"
राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म 2 होगा। ं ं ू िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय #ारा िनदशे क, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ िव2िव3ालय के िलए मि6त व 8कािशत। ु ु ु !काशक: उ"राख&ड म* िव-िव.ालय; म#क: उ"राख&ड म* िव-िव.ालय। ु ु ु काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठय&म का नाम: समकालीन भारत एव िश0ा, पाठय&म कोड- BED I- PE 2 ् ् ं ख"ड इकाई स#या स#या इकाई लेखक ं ं 1 2 डॉ० !वेता ि'वेदी सहायक &ोफे सर, िश#ा सकाय, िमजोरम के ()ीय िव-िव.ालय, आइजोल, िमजोरम ं 1 3 डॉ० सभाष िम( ु सहायक &ोफे सर, िश-ा िवभाग, िसि#कम िव'िव(ालय, गगटोक, िसि#कम ं 1 4 !ी रि#म रजन िसह ं ं सहायक &ोफे सर, िश-ा िवभाग, बैकठ टीचस+ ,ेिनग कॉलेज, अमलोरी, िसवान, िबहार ंु ं 1 5 डॉ० बजेश कमार राय ृ ु सहायक &ोफे सर, िविश. िश/ा सकाय, शक2तला िम6ा रा78ीय पनवा स िव#िव$ालय, लखनऊ ं ु ु 2 2 !ी बीरे&' िसह रावत ं िश#ा िवभाग, के #$ीय िश)ा स-थान, िद#ली िव'िव(ालय, नई िद#ली ं 2 3 !ीमती मनीषा प)त अकादिमक परामशद* ाता, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, उ"राख&ड ु 2 4 डॉ० िदनेश कमार ु सहायक &ोफे सर, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, उ"राख&ड ु 3 1 डॉ० भावना पलिड़या 4 3 सहायक &ोफे सर, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, उ"राख&ड ु 3 2 डॉ० आशीष %ीवा(तव 4 1 सह !ोफे सर, िश#ा िवभाग, िवनय भवन, िव(भारती, शाितिनके तन, वीरभिम, पि3म बगाल ं ू ं 3 4 डॉ० पतजिल िम# ं सहायक &ोफे सर, िश#ा िव&ापीठ, वधम# ान महावीर खला िव.िव/ालय, कोटा, राज5थान ु 4 4 डॉ० उपासना रे सहायक &ोफे सर, िश#क िश#ा िवभाग, !े#ीय िश!ा स+थान, NCERT, भवने&र, उड़ीसा ं ु BED I- PE 2 समकालीन भारत एव िश0ा ं Contemporary India and Education ख"ड 1 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 2-19 2 िविभ$न &तर) पर िविविधता - वैयि%क, !े#ीय, भाषा, जाित और समह, इन िविवधताओ ू ं के कारण उ"प$न सम(याओ का सामना करना, साथ ही साथ समदाय* और वैयि0क ु ं िभ#नता पर आधा+रत िविवधतापण / 0ान और अनभव से 6ा7 लाभ को उपयोग म ? लाना ू ु 20-36 3 समाज म % िविवधता, असमानता एव सीमा/तता – इन समदाय' एव !यि$य% क" िश#ा से ु ं ं माग को समझना साथ ही उनक$ पित% हते सामािजक-श#ै िणक रणनीितय( का िवकास ू ु ं 37-58 4 िविवधता के सदभ , म . ब0च2 को िवकिसत करने म . िश7ा क8 भिमका ू ं 59-74 5 िश#ािथ&य( को म " समथ% बनाने के िलए िश/ा क0 भिमका; ू सामिहक जीवन का लाभ; शाितपण 3 और उिचत 8कार से वाता3 एव आपसी समझौते के ू ू ं ं मा#यम से तनाव के समाधान हते शिै 1क आगत ु ख"ड 2 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 76-85 2 िश#ा के उ"$े य& से सबिधत क" आलोचना'मक समझ ू ं ं ं 86-103 3 असमानता, भदे भाव एव अपवचन वग- क/ पहचान तथा इनके उ5मलन हते सवैधािनक ू ु ं ं ं !ावधान 104-119 4 िश#ा के साव)भौिमकरण के मा/यम से 1वत34ता, 3याय, समानता और बध%व के ु ं सवैधािनक वायद% क" पित' ू ं ख"ड 3 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 121-136 1 म# े एव नीितयाँ ु ं 137-150 2 आधिनक िश(ा तथा इसके /ित /िति0याए ँ ु 3 इकाई: तीन - 151-163 4 बहभािषक िश*ा पर वत/मान दौर म 4 बढ़ता शोध, !किलग के मा+यम पर िट0पणी, भाषा # ू ं नीितय& के स$दभ ' म ) सवैधािनक 1ावधान ं ख"ड 4 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 165-180 1 सिनयोिजत औ*ोिगक-करण के स1दभ 4 म 6 कोठारी आयोग क- मह वपण 4 अनशसाए ँ एव ु ू ु ं ं काया$%वयन 2 इकाई: दो - 181-193 2 म"या%ह भोजन योजना काय$%म क' समी*ा 194-211 4 म"या%ह िश#ा का सव(साधारणीकरण, -तरीकरण एव िनजीकरण ं समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 1 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 2- विविन्न स्तरों पर विविविता -िैयविक, क्षत्रे ीय, िाषा, जावत और समूह , इन विवििताओ ं के कारण उत्पन्न समस्याओ ं का सामना करना ,साथ ही साथ समुदायों और िैयविक विन्नता पर आिावरत विविितापूणण ज्ञान और अनिु ि से प्राप्त लाि को उपयोग में लाना Existence of Diversity at Various Levels- Individual, Regions, Languages, Religious Castes and Tribes. Tackling the Problem Arising because of These Diversities as well as harnessing the Benefits of Diverse Knowledge and Experience Based of the Diverse Communities and Individuals 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 भारत में विविधता 2.4 विवभन्न स्तरों पर विविधताओ के कारण उत्पन्न समस्याए ं ं 2.5 विविधता के कारण कक्षा में उत्पन्न होने िाली समस्याए ं 2.6 समदायों और व्यवक्तक वभन्नता पर आधाररत विविधतापणण ज्ञान और अनभि से प्राप्त ु ू ु लाभ 2.7 कक्षा में व्याप्त विविधता का शैवक्षक उपयोग 2.8 साराश ं 2.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.10 शब्दािली 2.11 सन्दभण ग्रथ सची ू ं 2.12 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 2 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2.1 प्रस्तावना भारत एक विशाल दशे ह ै । इसका भौगोवलक विस्तार और विस्तत क्षेत्रफल उसे और भी विशालता ृ प्रदान करते ह ैं । यहा प्राकवतक विविधता, जावतगत , भाषा, धम ण सबधी विविधता स्पष्ट रूप से दखे ने को ृ ं ं ं वमलती ह।ै इसके साथ ही भारतीय सस्कवत के मलभत तत्िों की तरफ ध्यान द ें तो हम ें पाते ह ैं वक यह ृ ू ू ं बवहमखण ी होने की अपेक्षा अतमखण ी अवधक ह ै ।यवद इसके मल स्िप प को दखे ा जाए तो भौवतकता की ु ु ू ं अपेक्षा आध्यावत्मकता पर अवधक बल दते ी ह ै । भारत के सभी 10 दशनण म ें हम ें भारतीय सस्कवत की ृ ं झलक वमल जाती ह ै । कश्मीर से लेकर कन्याकमारी तक राजस्थान से अप णाचल प्रदशे तक विविधताओ ु ं से भरे होने के पश्चात भी इसमें अतवनणवहत एकता को आप महसस कर सकते ह ैं । ितणमान पररपेक्ष्य म ें ू ं आधवनक समाज बहत ही तेजी से बदलता जा रहा ह।ै इसके वलए बहत सारे कारक एक साथ कायण कर ु ु ु रह े ह,ैं इन सभी कारकों के सदभ ण म ें ज्ञान प्राप्त करना ि उन समस्याओ का हल ढढने का प्रयास होना ू ं ं ं चावहए । भारत म ें अन्तवनणवहत विविध स्तरों पर विद्यमान इन्हीं विविधताओ, उनसे उत्पन्न समस्याओ और ं ं इन विविधताओ से प्राप्त ज्ञान और अनभिों के प्रयोग का अध्ययन इस अध्याय के अतगतण वकया जाएगा । ु ं ं 2.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप - 1. भारतीय समाज म ें विवभन्न स्तरों पर पायी जाने िाली विविधता को विश्लेवषत कर सकें ग े । 2. भारतीय समाज के आधवनक स्िरूप को स्पष्ट कर सकें ग े । ु 3. ितणमान म ें हो रह े सामावजक,आवथणक, सास्कवतक पररितणनों पर अपने विचार व्यक्त कर सकें ग े । ृ ं 4. भारतीय समाज म ें उत्पन्न विवभन्न समस्याओ के कारकों की व्याख्या अपने शब्दों म ें कर सकें ग े । ं 5. भारतीय समाज म ें वनवहत समस्याओ का विश्लेषण कर सकें ग े । ं 6. भारतीय समाज म ें वनवहत समस्याओ का गहन अध्ययन कर स्िय समाधान ढढने का प्रयास ू ं ं ं करेंग े । 2.3 भारत म ववववधता ें विविधता की दृवष्ट से भारत जसै ा सम्पन्न दशे विरले ही कोई होगा जहााँ पि ण पवश्चम से एकदम वभन्न ह ै ू और उत्तर दवक्षण से परी तरह से वभन्न ह ै । भारत जहााँ सास्कवतक सम्पन्नता और विविधता हर तरफ ृ ू ं दखे ने को वमलती ह,ै जहााँ 8 से भी अवधक धमों को मानने िाले लोग हैं, 200 भाषाओ ाँऔर 1600 से भी अवधक बोवलयों को बोलने िाले ह,ैं 29 राज्य और 7 के न्रशावसत प्रदशे ह,ैं लगभग 3000 जावतयााँ और 25000 उपजावतयों से सम्बवधत लोग भारत म ें वनिास करती ह ैं । भौगोवलक दृवष्ट से भारत की विविधता ं के विषय म ें डॉ. राजरें प्रसाद ने कहा ह ै वक “यवद कोई विदशे ी, वजसे भारतीय पररवस्थवतयों का ज्ञान नहीं ह,ै सारे दशे की यात्रा करे तो, िह िहााँ की वभन्नताओ को देखकर यही समझगे ा वक, यह एक दशे नहीं, ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 3 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं बवकक छोटे-छोटे दशे ों का समह ह ै और ये दशे एक-दसरे से अत्यवधक वभन्न ह।ै वजतनी अवधक प्राकवतक ृ ू ू वभन्नताए ाँ यहााँ ह,ैं उतनी अन्यत्र कहीं पर नहीं ह।ैं दशे के एक छोर पर उसे वहम मवडत वहमालय वदखाई दगे ा ं और दवक्षण की ओर बढ़ने पर गगा, यमना एि ब्रह्मपत्र की घावटयााँ, वफर विन्ध्य, अरािली,सतपड़ा तथा ु ु ु ं ं नीलवगरी पितण श्रेवणयों का पठार। इस प्रकार अगर िह पवश्चम से पि ण की ओर जायेगा तो उसे िसै ी ही ू विविधता और विवभन्नता वमलेगी। उसे विवभन्न प्रकार की जलिाय वमलेगी। वहमालय की अत्यवधक ु ठण्ड, मदै ानों की ग्रीष्मकाल की अत्यवधक गमी वमलेगी। एक तरफ़ असम का समिषाण िाला प्रदशे है, तो दसरी ओर जसै लमरे का सखा
8%
4%
3%
2%
2%
1%
1%
0.9%
0.8%
0.8%
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क्षेत्र, जहााँ बहत कम िषाण होती ह।ै इस प्रकार भौगोवलक दृवष्ट से भारत म ें ु ू ू सित्रण विविधता वदखाई पड़ती ह"ै । भारत के अनेक क्षेत्रों म ें सास्कवतक विविधता दृवष्टगोचर होती ह।ै यहााँ अलग-अलग क्षेत्रों के व्यवक्तयों म ें ृ ं पयाणप्त रूप म ें सास्कवतक वभन्नता वमलती ह।ै क्षेत्रों क
े अनसार लोगों की शारीररक बनािट, खान-पान, ृ ु ं रहन-सहन, िशे -भषा, यहााँ तक की उनकी मानवसकता भी अलग-अलग होती ह।ै ू 1. वैयशिक पक्ष- प्राचीन भारत म ें मानि जीिन को चार अिस्थाओ म ें बाटा गया था- ब्रम्हचायण , ं ं गहस्थ ,िानप्रस्थ ि सन्यास। , पहली अिस्था म ें एि ज्ञान का अजनण वकया करता था दसरी अिस्था ृ ं ू म ें इस ज्ञान का अनप्रयोग ि उपयोग, अत म ें जीिन मवक्त के अिस्था म ें मोक्ष की प्रावप्त की लालसा ु ु ं होती थी। पाररिाररक ि सामावजक व्यिस्था को सचाप प प से चलाने के वलए यह सारी व्यिस्था ु व्यिस्थाए की गई थी। िणण व्यिस्था उस समय िण ण व्यिस्था का आधार गण, कम ण के आधार पर ु ं वकया जाता था। श्रम का विभाजन अथणव्यिस्था को सदृढ़ बनाने के वलए वकया गया था। इसके ु अतगतण ब्राह्मण ,क्षवत्रय, िश्ै य, शर इन चार िणों म ें कायण का विभाजन हआ था। योग्यतम व्यवक्तयों ु ू ं को उनकी प वच, अवभिवत्त ि योग्यता के अनसार कायण प्रदान वकया जाता था ना की जन्म के आधार ृ ु पर। अपने कम ण के अधर पर व्यवक्त एक िण ण से दसरे िण ण म ें जा सकता था । पर कालातर म ें िणण ं ू जन्म के साथ जड़ गया और यहीं से समस्याए ाँ उत्पन्न होनी शरू हो गयीं । ु ु वभन्नता का दसरा आधार धमण ह ै । धावमकण आस्थाओ और मान्यताओ के आधार पर भी हम एक- ं ं ू दसरे से अलग ह ैं । प्राचीन समय म ें एकही धम ण से जड़े अलग-अलग मतािलबी थे पर कालातर में ु ं ं ू कछ नए धमों का उदय हआ और कछ अन्य धमाणिलम्बी बहार से आए । ितणमान समय म ें भारत में ु ु ु 8 से अवधक धमों को मानने िाले ह ैं और धावमकण आधार पर एक दसरे से वभन्न ह ैं । ु ियै वक्तक वभन्नता का सबसे मख्य आधार मनोिैज्ञावनक आधार ह ै । इसके अनसार हम सभी एक जसै े ु ु होकर भी बवि, व्यवक्तत्ि, रूवच, अवभिवत्त, अवभक्षमता, दक्षता आवद आधारों पर एक-दसरे से बहत ु ृ ु ू ही वभन्न ह ैं और अपनी वभन्नताओ के आधार पर हमारी आिश्यकता भी वभन्न ह ै । ं वभन्नता का एक अन्य आधार लैंवगक आधार भी ह ै । इस आधार पर विश्व और भारत की सम्पण ण ू आबादी दो भागों म ें बटी हई ह ै । हालावक कछ उभयवलगी भी ह ैं जो अपनी शारीररक विशषे ताओ ु ु ं ं ं ं के आधार पर विऔर पप ष स े अलग ह ैं । इसके अवतररक्त लैंवगक चयन जसै े सिदे नशील मद्दों पर ु ु ं भी वभन्नता दखे ी जा सकती ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 4 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं धम ण शब्द को अग्रेजी भाषा म ें कहते ह ैं वजसका अथण ह-ै सबध स्थावपत करना अथाणत उस ं ं ं शवक्त से मानि ह ै जो एक व्यवक्त को दसरे व्यवक्त के साथ सद्भािना, प्रेम के साथ पवित्रता ,दया, ू वनष्पक्षता ,नमता जसै े गणों का सकवचत अथण म ें धम ण का अथण ह ै वकसी अमक धम ण के प्रवत श्रिा ृ ् ु ु ु ं रखना । जबवक व्यापक अथों म ें धम ण का अथण ह ै , हृदय ि चररत्र की पवित्रता, जन सेिा ,आध्यावत्मक विकास। धम ण का क्षेत्र मानि का जीिन क्षेत्र ह।ै इस सबध म ें िाइट हडे का कहना ह-ै ं ं “ धम ण एक ऐसे तत्ि का दशणन ह ै जो हमारे परे( बाहर) पीछे तथा भीतर ह।ै ” धम ण के द्वारा मानि सहनशील ि नम्र बनता ह,ै उसकी अदर समाज सेिा की भािना विकवसत होती ह।ै धम ण सस्कवत ृ ं ं का िह पक्ष ह ै जोवक मानि म ें विकास म ें मदद करता ह।ै धम ण के द्वारा नैवतक मकयों का विकास ू वकया जा सकता ह।ै जीिन के प्रवत सही दृवष्टकोण का वनमाणण और साथ ही साथ सस्कवत ि सरक्षण ृ ं ं का विकास करने म ें भी धावमणक वशक्षा मख्य भवमका वनभाती ह ै । भारत म ें धारा 19 के अनसार ु ू ु प्रत्येक नागररक को आध्यावत्मक स्ितत्रता दी गई ह ै इसके अनसार सभी व्यवक्त वकसी भी धम ण को ु ं मानने के वलए स्ितत्र ह।ै हमारे
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राज्य का अपना वनजी धम ण नहीं ह,ै यहा जनतत्र अथिा लोकतत्र ही ं ं ं ं सत्य ह।ै 2. क्षेत्रीय पक्ष- वकसी क्षेत्र विशेष से सबवधत भािनाओ के एकीकरण ि अलग पहचान बनाए जाने को ं ं ं हम क्षेत्रीयता के प प म ें जानते ह।ैं स्िाधीन भारत म ें 1947 के बाद से क्षेत्र विशषे के आधार पर अलग-अलग राज्यों का गठन हआ ह।ै दखे ा जाए तो भारत बहभाषी, धमवण नरपेक्ष, शावत वप्रय राष्र ु ु ं के रूप म ें जाना जाता ह ै परत आतररक दृवष्टकोण से हम ें यह ज्ञात होता ह ै वक क्षेत्र विशषे को लेकर ु ं ं कछ लोगों का दृवष्टकोण वभन्न हो सकता ह।ै आज जी हम भी नए क्षेत्रों प्रदशे की स्थापना क
ो ु लेकर उठ रह े आदोलनों ि मागों का समथणन करते हए लोगों को दखे सकते ह।ैं भारत के उत्तर- ु ं ं दवक्षण पि ण पवश्चम सभी जगह पर इस तरह की माग उठते हए हम दखे सकते
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ह।ैं क्षेत्रीयता के आधार ु ू ं पर अगर हम नजर डालें तो हम पाते ह ैं भौगोवलक वस्थवत, विशषे भाषा सबधी विषय क्षेत्र अथिा एक ं ं समान होने के वकसी भी मद्द े को लेकर क्षेत्रीयता के समस्याओ को उठाया जा सकता ह ै ु ं 3. भाषा- भारत के विवभन्न प्रान
्तों म ें अनेक भाषाए ाँ बोली जाती ह ैं । यह विशेषता भाषायी आधार पर इन प्रान्तों को दसरे प्रान्त से अलग करती ह ै । ितणमान समय म ें 22 भाषाओ को अवधकाररक ं ू भाषाओ ाँ के रूप म ें मान्यता प्राप्त ह ैं । कछ अन्य भाषाओ को भी इस सची म ें सवम्मवलत करने की ु ू ं मााँग की जा रही ह।ै इसम ें वहदी हमारी राष्रभाषा, राजभाषा, सपकण भाषा ,सास्कवतक भाषा के रूप म ें ृ ं ं ं स्थावपत ह।ै इसके अवतररक्त सविधान म ें अनच्छेद 343 स े 351 तक वहदी भाषा से सबवधत ु ं ं ं ं प्रािधानों का िणनण वकया गया ह।ै इसके अवतररक्त सविधान की आठिीं अनसची म ें ितणमान म ें वजन ु ू ं 22 भाषाओ को स्थान प्रदान वकया गया ह।ै यह वनम्नवलवखत ह-ै ं 1.आसामी 2. बगाली 3. गजराती 4. वहदी 5. कन्नड़ 6. कश्मीरी 7. कोंकणी 8. मलयालम 9. ु ं ं मवणपरी 10.मराठी 11. नेपाली 12.उवड़या 13. पजाबी 14.सस्कत 15. वसधी 16. ृ ु ं ं ं तवमल 17.तेलग 18. उद ण 19.बोडो 20.सथाली 21. मवै थली और 22. डोगरी ु ु ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 5 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं राजभाषा के रूप म ें वहदी भारत को एक सत्र म ें बाधने का कायण करती ह ै इसकी एकता ि अखडता ू ं ं ं को ध्यान म ें रखते हए वहदी को यह दजा ण प्रदान वकया गया भारत एक बहभाषी दशे ह ै , वजसम ें वहदी ु ु ं ं के अलािा अन्य प्रादवे शक भाषाओ का उपयोग होता ह ै परत वहदी भाषी प्रदशे ों म ें अथाणत उत्तर भारत ु ं ं ं के अवधका
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र क्षेत्र म ें वहदी ही बोली जाती ह।ै प्रमख वहदी भाषी क्षेत्रों के अतगतण उत्तर प्रदशे , ु ं ं ं उत्तराचल, वबहार, झारखड, मध्य प्रदशे , छत्तीसगढ़, राजस्थान, हररयाणा, वहमाचल प्रदशे ि वदकली ं ं का नाम शावमल ह\ै वहदी ि क्षेत्रों म ें इन क्षेत्रों म ें वहदी ि उससे सबवधत बोवलयों के बीच म ें इतनी ं ं ं ं तारतम्यता ह ै वक वहदी के स्िरूप का सही सही आकलन करना मवश्कल हो जाता ह\ै भारत के सदभ ण ु ं ं म ें मातभाषा म ें क्षेत्र
ीय भाषाए भी ह ै इसके अलािा अग्रेजी भाषा को भी महत्िपण ण स्थान वदया गया ृ ू ं ं ह,ै प्रशासवनक कायों ि अन्य कायों म ें प्रमख रूप से प्रयोग म ें लाई जाती ह ै \ उदारीकरण के बाद ु विवभन्न बहराष्रीय कपवनयों के आने के बाद इसका प्रयोग तेजी से बढा ह ै इसके अलािा वशक्षा के ु ं माध्यम के प प म ें आज बहत से विद्यालय अग्रेजी को मख्यतः प्रयोग म ें लाते ह ैं भारत की वशक्षा ु ु ं व्यिस्था को ध्यान म ें रखते हए यहा वत्रभाषा सत्र पर विशषे बल वदया गया ह ै वजसके अतगतण ु ू ं ं मातभाषा, प्रथम भाषा ि वद्वतीय भाषा सीखने पर ध्यान कें वरत वकया गया ह ै स्ितत्रता के बाद ृ ं विवभन्न आयोगों ने भी वशक्षा म ें भाषा के माध्यम के प्रयोगों पर अपनी अपनी वसफाररश ें प्रस्तत की ह ै ु 4. जाशत- जावत उस िगण को कहते ह ैं वजसम ें सदस्यों की सदस्यता और कतणव्य उनके जन्म से ही वनवश्चत हो जाते ह ैं । एक बद िग ण ह ै वजसके कारण एक जावत का व्यवक्त दसरी जावत म ें स्थान प्राप्त नहीं कर ं ू सकता । प्रत्येक जावत का अपना खानपान, वििाह व्यिस्था ,आजीविका, परपरा का आचार विचार ं होते ह ैं जो वक इस एकता प्रदान करते ह ैं । हमारे दशे म ें प्राचीन भारत म ें कम ण के आधार पर ब्राह्मण, क्षवत्रय ,िश्ै य, शर चार िण ण अथिा जावतयों का वनमाणण हआ था । ब्राह्मण कमकण ाड, मत्रो का जाप, ु ु ं ं विद्या का पठन-पाठन करते थे। क्षवत्रय दशे ि राज्य की सरक्षा वकया करते थे। िश्ै य िावणज्य एि ु ं व्यापार का सचालन करते थे और शर उपरोक्त तीनों िणों की सेिा करते थे । यह जावत व्यिस्था ू ं सामदावयक एकता के साथ व्यवक्तयों को मानवसक सरक्षा भी प्रदान करती थी ।आज ितणमान म ें जावत ु ु व्यिस्था सपण ण समाज म ें छआछत, ऊच- नीच, भदे भाि भी बढ़ते जा रहा ह।ै प्राचीन भारत म ें ू ु ू ं ं जातीयता के अनसार व्यिसाय को वनवश्चत करना ह ै , बाद म ें पैतकता की िजह स े सामावजक ृ ु गवतशीलता भी खत्म की कम हो गई ह।ै जातीयता के दोष को दखे ते हए पवडत नेहरू ने वलखा ह ै – ु ं “भारत में जावत प्राचीन काल म ें वकतनी ही उपयोगी क्यों ना रही हो ,पर इस समय यह सब प्रकार की उन्नवत के माग ण म ें बड़ी भारी बाधा और प कािट बन रही ह।ैं आज यह हमारी दया के पात्र नहीं है, और वकसी की भािना के अधीन ना होकर अधीन ना होकर हमें इसके साथ मोह नहीं करना चावहए। हम ें इसे जड़ से उखाड़ कर अपनी सामावजक रचना दसरे ही ढग से करनी होगी । ” ं ू सविधान म ें अनसवचत जावतयों, अनसवचत जनजावतयों , अन्य कमजोर िग ण की सामावजक कवमयों, ु ू ु ू ं आवथणक वहतों को बढ़ािा दने े , सरक्षा ि सरक्षण वदए दने े की व्यिस्था की गई ह।ै भारत सरकार के ु ं द्वारा राष्रीय अनसवचत जावत और अनसवचत जनजावत आयोग का वनमाणण वकया गया ह।ै इसके ु ू ु ू अलािा 19 निबर 1976 अस्पश्यता (अपराध )अवधवनयम म ें कठोर दड का प्रािधान रखा गया ह।ै ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 6 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विधानमडल , राज्य से सबवधत सरकारी नौकरी म ें उवचत आरक्षण ि प्रवतवनवधत्ि प्राप्त रहगे ा। ं ं ं इसके अवतररक्त आय सीमा म ें छट, उपयक्तता सबधी मानकों म ें छट अयोग्य ना होन े पर पदों के वलए ु ू ु ू ं ं चयन , सीधी भती मामलों म ें अनभि सबधी छट प्रदान की गई ह ै । राज्यों म ें ककयाण विभाग, ु ू ं ं स्ियसेिी सगठन ककयाण को बढ़ािा दने े म ें लग े हए ह ैं । सविधान के अनच्छेद 244 और पाचिी ु ु ं ं ं ं अनसची के अनसार आध्र प्रदशे , वबहार, गजरात, वहमाचल प्रदशे , मध्य प्रदशे , महाराष्र, उड़ीसा, ु ू ु ु ं राजस्थान के कछ इलाकों को अनसवचत क्षेत्र माना गया ह ै और इन राज्यों के राज्यपाल को क्षेत्रों के ु ु ू प्रशासन के बारे म ें राष्रपवत को 1 िष ण म ें िावषकण ररपोटण भजे नी होती ह।ै अनसवचत जावतयों ि ु ू जनजावतयों के वलए प्रवतयोगी परीक्षाओ म ें परीक्षा पि ण प्रवशक्षण की व्यिस्था की गई ह ैं । उनके ू ं वलए दसिीं कक्षा के पास छात्रिवत योजना,बावलका छात्रािास योजना, पस्तक बैंक योजना, राष्रीय ृ ु स्तर की छात्र िवत्तया की योजना बनाई ह ै । अकपसख्यकों के ककयाण के वलए अकपसख्यक आयोग ृ ं ं ं 1978 स्थापना की गई । आयोग के अध्यक्ष के अलािा म ें विवभन्न अकपसख्यक समदाय के सदस्य ु ं भी होते ह ैं । इसम ें सविधान में उपलब्ध कराई गई सभी सरक्षा का मकयाकन कायणक्रम -उसके वलए ु ू ं ं सझाि, कें र ि राज्य सरकार की नीवतयों की समीक्षा अवधकारों का सरक्षा से िवचत वकए गए खास ु ु ं वशकायतों की जाच करना, सिक्षे ण और अनसधान कायण, अकपसख्यक समदाय के बारे म ें कानन ि ु ु ू ं ं ं ककयाण सबधी उपाय सझाना और सरकार को ररपोटण भेजना। आयोग इन मद्दों पर अपना ध्यान ु ु ं ं कें वरत करता ह।ै इसके अलािा प्रधानमत्री द्वारा घोवषत 15 सत्री कायणक्रम के अतगणत( 1993) म ें ू ं ं कें र सरकार ने अकपसख्यक सेल नामक एक विशषे प्रकोष्ठ वक स्थापना भी की है । यह कायणक्रम ं साप्रदावयक सौहाद ण को बढ़ान े ,साप्रदावयक वहसा को रोकन े ,अकपसख्यकों की शवै क्षक आिश्यकता ं ं ं ं पर बल दने े के वलए, सेिाओ, कें रीय और राज्य पवलस म ें भती के वलए अकपसख्यको पर अवधक ु ं ं ध्यान कें वरत करते हए अन्य विकासात्मक कायणक्रम को ढग से लाग करने पर बल दते ी ह ै ु ू ं ितणमान समय म ें भारत म ें लगभग 3000 से अवधक जावतयााँ, 25000 उपजावतया और 700 ं जनजावतयााँ ह ैं । 5. सामाशजक समह - सामावजक समह का वनमाणण दो या दो से अवधक व्यवक्तयों से होता ह।ै बच्च े ू ू का मलभत समह उसका पररिार ह।ै यह एकाकी अथिा सयक्त हो सकता ह।ै िह अपने पररिार ू ू ू ु ं ं के साथ बड़ा होता ह ै और अन्य समस्त समहों की सदस्यता को प्राप्त करता चला जाता ह ै । बड़े ू होने के पश्चात उसके समह म ें स्कल, क्लब, खले कद के समह, व्यिसावयक सगठन आवद जड़ जाते ू ू ू ू ु ं ह।ैं इस प्रकार हम कह सकते ह ैं वक सामावजक िातािरण में रहते हए सामावजक जीिन के गणों की ु ु वशक्षा प्राप्त करता ह।ै i. व्यावसाशयक समह- व्यिसावयक समह म ें प्रत्येक सदस्य वकसी व्यिसाय म ें लगा रहता ह,ै ू ू लोह े के काम को करन े िाले लोहार के समह, बाल काटने िाला नहीं नाई। इस तरह स े ू विवभन्न उपिगो, स्थानों, व्यिसाय से जावत व्यिस्था की उत्पवत्त हई। परत इसका एक और ु ु ं पक्ष ह ै की सभी व्यिसावयक समह अपने-अपने सदस्यों की प्रवशक्षण ि कशलता की िवि ृ ू ु के वलए प्रयास करते ह ैं वजससे िह अपने समह की उन्नवत के वलए हर सभि प्रयास करते ह।ैं ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 7 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ii. धाशमिक समह- भारत म ें अनेक भाषा ि धम ण के लोग रहते ह।ैं धावमकण समह म ें प्रमख वहद ू ू ु ं ू ,मसलमान ,वसख, इसाई, पारसी, जनै ि बौि शावमल ह।ै इसके अलािा इन सभी में ु अलग-अलग उपसमह भी ह।ै भारतीय सामावजक जीिन में धावमकण समहों का भी विशेष ू ू महत्ि ह।ै एक ही धम ण म ें आस्था रखने िाले लोग आपसी सहयोग िह सहानभवत की ु ू भािना से जड़े होते ह,ैं उनम ें घवनष्ठता बढ़ती ह ै िह िह िह सामावजक एकता को स्थावपत ु रखने म ें भी कायण करते ह।ैं प्रत्येक धावमकण समह नैवतकता को ध्यान म ें रखते हए सामावजक ु ू समाज ककयाण की कायण करने का प्रयास करता रहता ह ै । iii. आशथिक समह- भारत म ें आवथणक दृवष्ट से भी विविधता व्याप्त ह।ै यहााँ धन का असमान ू वितरण ह।ै एक तरफ़ एक बड़ा िग ण ऐसा है, जो गरीबी रेखा के नीचे जीिन-यापन कर रहा ह,ै िहीं दसरी तरफ़ ऐसा भी िग ण ह,ै वजसकी आवथणक वस्थवत इतनी सदृढ़ तथा आय इतनी ु ू अवधक ह ै वक िह विश्व के सबसे धनी व्यवक्तयों की श्रेणी म ें आते ह ैं । अन्य िग ण उपरोक्त सभी समहों के अलािा विवभन्न आय ,वलग, जावत, उद्योग के आधार पर भी ू ु ं अलग-अलग सामावजक िग ण ह।ै अभ्यास प्रश्न 1. सविधान के वकन अनच्छेदों में भाषा सबधी प्रािधान का िणणन वकया गया ह?ै ु ं ं ं 2. मनस्मवत म ें वकन िणों का उकलेख वकया गया ह ै ? ृ ु 3. अकपसख्यक आयोग की स्थापना कब की गई ? ं 4. विवभन्न स्तरों पर विविधताओ के कारण उत्पन्न समस्याओ को सचीबि करें । ू ं ं 5. भारत म ें कल वकतनी जावतयााँ और उपजावतयााँ ह?ैं ु 2.4 वववभन्न स्तरों पर ववववधताओ ं के कारण उत्पन्न ममस्यां ं भारत म ें पायी जाने विविधता के कारण विवभन्न स्तरों पर कई समस्याए दखे ी जा सकती ह ैं । भारत म ें ं अग्रेजी शासन व्यिस्था की समावप्त के पश्चात तेजी से पररितणन दखे ा जा सकता ह।ै आधवनक भारत म ें ु ं दाशवण नक, सामावजक ि िचै ाररक सभी क्षेत्रों म ें पररितणन आया ह।ै पाश्चात्य दशे ों के सपकण म ें आने के ं पश्चात आधवनकीकरण ि पवश्चमीकरण दोनों का प्रभाि एक साथ दखे ा जा सकता ह।ै इन पररितणनों के ु वलए वजम्मदे ार कारको का वििचे न इस
प्रकार है- 1. जनसख्या शवस्फोट- क्षेत्रफल के आधार पर भले ही हमारा दशे विश्व म ें सााँतिा स्थान रखता ह ै ं परन्तजनसख्या की दृवष्ट से यह दसरे स्थान पर ह ै और तेज़ी से पहले स्थान क
ी ओर बढ़ रहा ह ै । ु ं ू दशे म ें जहााँ वकसी शासन या ताकत का आधार बहसख्यक या अकपसख्यक के आधार पर होता ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 8 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह;ै वभन्न-वभन्न धमों के लोग सत्ता और ताकत अपने हाथ म ें लेने के वलए तेज़ी से अपनी सख्या ं को बढ़ाते जा रह े ह ैं वजससे बड़ी जनसख्या के दष्प्रभािों से हमारा दशे जझ रहा ह ै । ू ं ु 2. आशिम समहों का अशस्तत्व शवलोपन- कछ जीि-जतओ की तरह कछ आवदम जनजावतयााँ ू ु ु ु ं ं और उनकी सस्कवत भी विलोप के कगार पर ह ैं ।उनकी विविधता का सम्मान न करते हए उनको ु ृ ं या तो पररिवतणत वकया जा रहा ह ै या वफर नष्ट वकया जा रहा ह ै जो वक गलत ह ै ।
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सरकार द्वारा इसको रोकने के वलए वनयम और नीवतया भी बनायीं गयी ह ैं परन्त िह पण ण तौर पर सफल नहीं ह।ैं ु ू ं 3. क्षेत्रवाि और क्षेत्रीय शववाि- भाषा के आधार पर प्रदशे ों के बनने के कारण क्षेत्र
ीयता का प्रभाि बढ़ा ह ै । वकसी विशषे प्रदशे के वनिासी भाषायी या अन्य आधारों पर अन्य प्रदशे के वनिावसयों से स्िय को अलग मानते ह ैं और उनके प्रवत विद्वेष रखते ह ैं और समय-समय पर वहसा ं ं का प्रदशनण एक-दसरे के वखलाफ करते रहते ह ैं जो राष्रीय प्रगवत और राष्र बधत्ि के वखलाफ ह।ै ु ं ू 4. िेि में एक भाषा की समस्या- दशे म ें इतनी अवधक भाषाओ ाँऔर बोवलयों के होने से कई बार लोगों को एक-दसरे से वमलने-जलने और सिाद स्थावपत करने म ें कवतनाई होती ह ै वजससे ु ं ू सिादहीनता की वस्थवत उत्पन्न होती ह ै । अलग-अलग भाषा होने के कारण हमारी कोई ं राष्रभाषा नहीं ह ै और वहदी को जो राजभाषा की सज्ञा दी गयी ह ै िह
मात्र कागजों पर ही रह गयी ं ं ह ै । राष्र भाषा के रूप में वहदी को स्थावपत न होने का कारण क्षेत्रीय भाषाए ाँ ही ह ैं । और वस्थवत ं यह ह ै वक विवभन्न राज्यों क
े व्यवक्तयों को आपस म ें सिाद स्थावपत करने हते विदशे ी भाषा ु ं अग्रेजी का सहारा लेना पड़ता ह ै । वजन लोगों को अग्रेजी का ज्ञान नहीं ह ै उन लोगों को नीची ं ं नज़रों से दखे ा जाता ह ै वजससे िह उन सािणजवनक जगहों पर कछ बोलने से बचते ह ैं जहााँ अग्रेजी ु ं का बोलबाला हो । कछ राज्यों म ें प्राथवमक वशक्षा मातभाषा के स्थान पर अग्रेजी म ें देने की ृ ु ं योजना बनायीं गयी ह ै । विदशे ी भाषा का ज्ञान अच्छा ह ै परन्त यह ज्ञान मातभाषा को वतलाजवल ृ ु ं दके र नहीं लेना चावहए । 5. शनधिनता- यह एक बहत बड़ी परेशानी के रूप म ें हमारे समक्ष उपवस्थत ह ै । वजसकी िजह से ु लोग रोटी ,कपड़ा मकान जैसी मलभत सविधाओ से िवचत हो जाते ह।ैं उनम ें असरक्षा की ू ू ु ु ं ं भािना विकवसत होती ह,ै वजसकी िजह से चररत्र म ें भी वगरािट दखे ी जाती ह ै । 6. वर्ि व्यवस्था- भारतीय समाज िणण व्यिस्था के आधार पर बद समाज बन गया था। वजसम ें ं गवतशीलता का अभाि हो गया था इसके अतगणत वपछड़े िग ण के लोगों के साथ अस्पश्यता का ृ ं व्यिहार वकया जाने लगा था। उच्च िग ण के लोग अवधक से अवधक सामावजक ससाधनों पर ं अपना अवधकार कर के बैठे हए थे और उसके अलािा वनम्न िग ण का शोषण बहत अवधक होने ु ु लगा था । 7. भेिभाव की शस्थशत- अपने ही दशे म ें विवभन अतरों के कारण दशे के वनिावसयों को भेदभाि ं की वस्थवत का सामना करना पड़ता ह ै । धावमकण , प्रजावत, जावत, नस्ल, भाषा, वलग आवद के ं आधार पर विवभन्न स्थानों पर भदे भाि वकया जाता ह ै । एक उदाहरण पिोत्तर राज्यों के ू वनिावसयों रूप म ें वलया जा सकता ह ै । पिोत्तर को भारत का एक अवभन्न भाग होने के बािजद ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 9 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं यहााँ के नागररक अन्य प्रदशे ों म ें भदे भाि के वशकार होते ह ैं और भारत के वनिासी होने के बािजद शारीररक बनािट के कारण दशे म ें ही विदवे शयों सा व्यिहार उनसे वकया जाता ह ै । ू 8. छआछत की समस्या- धम ण और जावत के आधार पर छआछत की भािना हमारे देश म ें कोई ु ू ु ू नई नहीं ह ै । भारतीय सविधान और भारतीय कानन के अनसार यह एक दडनीय अपराध ह ै और ू ु ं ं बदलते समय के साथ लोगों की मानवसकता म ें पररितणन आया ह ै पर वफर भी यह समस्या परी ू तरह से हल नहीं हई गई ह ै । आज भी कम पढ़-े वलख े और गााँिों म ें छआछत की भािना दखे ी जा ु ु ू सकती ह ै । 9. समाज में शियों के प्रशत हीन भावना और अपराध- भारत म ें पप ष को समाज म ें वियों की ु तलना म ें श्रेष्ठ माना जाता ह ै और उन्ह ें तरजीह दी जाती ह ै ।आज भी पररिारों म ें पत्रजन्म पर लोग ु ु उकलास मनाते ह ैं और पत्री होने पर दखी होते ह ैं । इसके पीछे कारण वियों की समाज म ें वस्थवत ु ु ही ह ै । या दोनों कारण एक-दसरे को परस्पर प्रभावित करते ह ैं । लोगों की मानवसकता बदल तो ू रही ह ै पर लोग इस मानवसकता से परी तरह मक्त नहीं हए ह ैं । दसरी ओर औद्योगीकरण ु ू ु ू िश्वै ीकरण और नगरीकरण के कारण सास्कवतक अतराल (cultural lag) की वस्थवत उत्पन्न हो ृ ं ं गयी ह ै और वजसके कारण वियों के वदन प्रवतवदन अपराध बढ़ रह े ह ैं । 10. राजनैशतक पतन- वकसी दशे की राजनीवत उस देश को प्रगवत के पथ पर ले जावत ह ै बशते िह स्िस्थ राजनीवत हो । कोई भी राजनीवत दल विकास के वलए योजनायें बनाता ह ै और वजसके आधार पर दशे की जनता उस दल को चनकर शासन उसके हाथ म ें दते ी ह ै । परन्त हमारे दशे म ें ु ु राजनीवत का आधार विकास योजनायें नहीं बवकक जावतगत राजनीवत ह।ै एक विशेष जावत के लोग अपनी जावत के लोगों को चनकर सत्ता म ें भजे ना चाहते ह ैं जो राजनीवत का पतन ह ै । और ु राजनीवतक दल भी यह समझते हए जावतगत समीकरण बनाते और भनाते ह ैं । ु ु लोकतावत्रक प्रवक्रया के बनाया जाने के पश्चात राजनीवतक शवक्त नेताओ के हाथ म ें ह ै राजनीवतक कारणों ं ं से ही जावतिाद सप्रदाय िाद वििाद भाषािाद धावमकण विघटन जसै ी घटनाए बढ़ी ह ैं चनाि जीतने के वलए ु ं ं िह अपनी सत्ता बनाए रखने के वलए राजनीवत सभी तरह के प्रयास वकए जाते ह।ैं जहा छोटे गाि से ं लेकर बड़े शहरों म ें आज ज्यादातर गवतविवधया राजनीवतक कारणों से कारकों से वनधाणररत होती ह।ैं ं विविधता की िजह से दशे को अन्य वजन समस्याओ का सामना करना पड़ रहा ह ै उनमें, आतकिाद, ं ं आपसी वहसा, अधाधध नगरीकरण, अपराध, आरक्षण के वलए की गयी वहसा इत्यावद ह ैं वजनका जकदी से ु ं ं ं ं जकदी वनिारण वकया जाना आिश्यक ह ै । प्राचीन व्यिस्था के अतगतण व्यिसाय को उत्पवत्त आधार बनाकर बहत सी जावतया बनाई गई थी, परत ु ु ं ं ं ितणमान म ें यह जावत व्यिस्था बहत ही कठोर होती चली गई। इसके आधार पर ही लोगों के साथ ु भदे भाि का व्यिहार और अवधक बढ़ गया विवभन्न सस्कारों, सामावजक कायों म ें भी इस जावत व्यिस्था ं को बहत महत्ि वदया जाता था। जावत के वनमाणण का जो उद्दश्े य प्राचीन भारत म ें था िह पि ण वनधाणररत ु ू सबध अब इस समय नहीं रहा ह।ै ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 10 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सामावजक व्यिस्था को ध्यान म ें रखते हए हम ें पाते ह ैं वक वियों को चारदीिारी तक सीवमत कर ु अवधकारों से िवचत कर वदया गया था । िह एक उपभोग की िस्त मात्र बनकर रह गई थी। इसवलए ु ं वशक्षा के प्रयासों के द्वारा पनजाणगरण काल म ें सामावजक पनप त्थान आदोलनों के द्वारा नारी को उवचत ु ु ं स्थान दने े का प्रयास वकया जाने लगा। उन्ह ें वशक्षा का अवधकार दने े के वलए विवभन्न समाज सधारको न े ु प्रयास जारी कर वदए ि मवहला सशवक्तकरण की तरफ आगे बढ़ने के वलए प्रेररत वकया गया। वििाह नामक सस्था के स्िरूप म ें आमल पररितणन आना शरू हो गया वजसम ें सबधों की मधरता िा प्रगाढ़ता ू ु ु ं ं ं कम होती चली गई ह ै और इसके साथ ही तलाक के मामलों म ें िवि हो रही ह ै सरवक्षत स्िच्छदता ि ृ ु ं सघष ण दोनों ही आवथणक कारणों से बड़ा ह ै इसवलए पवत पत्नी के सबध प्रभावित हए ह ैं इसके अलािा ु ं ं ं अतरजातीय वििाह ि पाररिाररक सबधों म ें भी बदलाि आए ह ैं इसका एक प्रमख असर रूप हम एकल ु ं ं ं पररिार के प प म ें दखे सकते ह ैं अब सयक्त पररिार की व्यिस्था खत्म होती चली गई ह ै वजससे वजससे ु ं पररिार म ें प्रेम सौहाद ण ि बच्चों की दखे भाल सबधी परेशावनयों को स्पष्ट दखे ा जा सकता ह।ै ं ं 2.5 ववववधता के कारण कक्षा म उत्पन्न होने वाली ममस्यां ं ें विविधता सम्बन्धी समस्याए ाँ वसफण बाहर समाज म ें ही प्रभावित नहीं करती ह ैं बवकक कक्षा म ें वशक्षण अवधगम म ें भी बाधक हो सकती ह ैं । आज जब समािशे ी वशक्षा को बढ़ािा वदया जा रहा ह ै तब एक ही कक्षा म ें विवभन्न प्रकार की वभन्नता वलए हए विद्याथी एक साथ अध्ययन करते ह ैं । ऐसे म ें उनकी ु समस्याओ को जानना आिश्यक ह ै । ं कक्षा म ें कछ विद्याथी यह अनभि कर सकते ह ैं वक ि े कक्षा के िातािरण से सम्बवधत नहीं ह ैं ु ु ं और छात्रों की यह भािना वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें उनकी भागीदारी को कम कर सकती ह ै इसके साथ ही छात्रों म ें अपयाणप्तता की भािना और अन्य विकषणण उत्पन्न हो सकते ह।ैं विद्यालयों म ें भी विद्याथी की पष्ठभवम के कारण या वकसी अन्य आधार पर उससे भदे भाि वकया ृ ू जाता ह ै । एक अध्यापक के रूप म ें वकसी भी आधार पर नकारात्मक भदे भाि से बचना चावहए क्योंवक यह विद्याथी को मानवसक रूप से प्रभावित करता ह ै और िह शक्षै वणक या सामावजक रूप से समायोजन नहीं कर पाते ह ैं । यवद कक्षा का कोई विद्याथी या कोई वशक्षक या वफर कोई कमचण ारी वकसी भी विद्याथी से वकसी वभन्नता के कारण कोई भदे भाि करता ह ै तो उस भेदभाि के वलए कायणिाही करना चावहए । अध्यापक के रूप म ें आप वजस भाषा का प्रयोग विद्यालय म ें करते ह ैं या जो विद्यालयी भाषा ह ै उससे अलग भाषा का प्रयोग यवद करते ह ैं यवद उस भाषा सकारात्मक भाषा और प्रशसा का ं उपयोग करें , और छात्रों का वतरस्कार न करें। अभ्यास प्रश्न उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 11 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 6. राजनैवतक पतन के क्या दष्पररणाम हए ह?ैं ु ु 7. यवद विद्यालय का कोई स्टाफ वकसी विद्याथी से भदे भाि कर रहा ह ै तो ऐसे म ें आप क्या करेंगे? 2.6 ममुदायों और व्यविक वभन्नता पर आधावरत ववववधतापूणण ज्ञान और अनुभव मे प्राप्त लाभ विविधता पण ण िातािरण सभी के वलए एक सरवक्षत और सहयोगात्मक िातािरण तैयार करने म ें मदद ू ु करता ह ै । हम समाज के लोगों के अलग-अलग अनभिों, विश्वासों और बातों के माध्यम से सीखते ह।ैं ु "विविधता व्यवक्तगत विकास और एक स्िस्थ समाज को बढ़ािा दते ा ह"ै विवभन्न सास्कवतक पररदृश्य से जड़े होने के बािजद जब लोग एक दसरे के साथ वमलकर रहते ह,ैं तो ृ ु ू ं ू प्रगाढ़ सबधों का वनमाणण करते ह,ैं साथ ही उनके दखे ने का का नजररया काफी विस्तत हो जाता ह।ै इस ृ ं ं के अतगतण हम लोगों यह जानना बहत ही आिश्यक ह ै वक सस्कती ि समाज तेजी से बदल रह े ह।ैं इस ु ृ ं ं बदलते पररदृश्य म ें लोगों की जीिनशैली विचारधाराए, सास्कवतक समस्याए बहत अन्य आिश्यक चीजों ु ृ ं ं ं के हमारे जीिन को प्रभावित करती ह।ैं विचार धाराओ मकयों अिधारणाओ आशाओ सभी से अिगत ू ं ं ं होने का प्रयास करते ह।ैं विवभन्न सास्कवतक से होते हए भी लोगों का जीिन जीने, सीखने ि अनभिों ु ृ ु ं का आदान प्रदान होता रहता ह ै । आज परा विश्व तेजी से बदल रहा ह ै वजसम ें विवभन्न धमों के लोग, ू जावत, भाषाए बोलने िाले व्यवक्त ,आवथणक सामावजक ि सास्कवतक समहों से जड़े लोगों आपसी ृ ू ु ं ं आदान-प्रदान की भािना बढ़ी ह ै । इन पररवस्थवतयों को आज के सदभ ण म ें समझना ि सराहना वमलना ं बहत ही आिश्यक ह ै क्योंवक इस तरह विवभन्न सस्कवतयों के बीच म ें हम बहत से सामावजक ि ु ु ृ ं सास्कवतक समस्याओ को सलझा सकते ह ैं । अलग-अलग समह ि समाजों से लोगों के वमलकर काम ृ ु ू ं ं करने से आपसी समझ का विस्तार हआ ह ै । जहा जाती अथिा िशिाद से जड़े हए भािनाओ को कम से ु ु ु ं ं ं कम करने की कोवशश की जाती है, इनसे वहसा को रोकने में भी मदद वमलती ह ै । प्रत्येक समह , जावत ू ं अपनी अलग विशषे ता होती ह ै उनके धावमकण विचार, परपराए, भौवतक विज्ञान उनके जीिन को समि ृ ं ं बनाने का प्रयास करता है । जब हम सभी तरह के सास्कवतक ि सामावजक समह को एक साथ मख्यधारा ृ ू ु ं म ें लाने का प्रयास करते ह ैं तो इस तरह से सभी के वमले जले गणों के द्वारा नए दृवष्टकोण का विकास होता ु ु ह ै वजससे समाज बड़े मद्दों पर अथिा मानि विकास के वलए नए आयामों की खोज कर सकता ह।ै इसके ु माध्यम से समाज से जड़े हए मद्दों के प्रवत सजग ि सफल कायणक्रमों का वनमाणण वकया जा सकता ह ै ु ु ु क्योंवक इस तरह के कायणक्रमों म ें सभी समहों की भागीदारी अथिा सहभावगता होती ह ै तो लोकतावत्रक ू ं तरीकों न्याय पर आधाररत समाज के वनमाणण म ें सभी की साझदे ारी होती है, क्योंवक इस तरह के पररदृश्य म ें वशक्षक छात्र अवभभािक सभी अलग-अलग समह से होते हए भी समाज के मख्यधारा से जड़े होते ह ैं ु ू ु ु ि े सभी इसी उद्दश्े य की प्रावप्त के वलए , उनका सफल वनदान ढढने का प्रयास करते ह ैं । आपसी मले जोल ूं से समह जावत धम ण से इस तरह के घमने का प्रयास वमलजल कर काम करन े की भािना का विकास होता ू ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 12 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह ै हम ें इस से धावमकण सवहष्णता की भािना एक दसरे के धम ण के प्रवत आदर भाि का विकास करने की ु ू क्षमता भी बढ़ती ह ै गीता का एक श्लोक ह ै – प्रकवत के अतगतण चलने िाले चक्र को अगर हम ृ ं सचाप प प स े चलने द ें और इसम ें प्रकवत और उसके अतगणत चलने िाले चक्र को अविरल रूप से चलन े ृ ु ं वदया जाए प्रकवत स्िय सतत सामजस्य के साथ जीिन की उत्पवत्त ,पोषण ि उसके विकास का काय ण ृ ं ं करती ह ै विवभन्न जीि-जतओ जल वमट्टी हिा सभी का सबध वजतना जवटल होगा जिै विविधता उतनी ु ं ं ं ं ही अवधक विविधतापण ण की जलिाय पररितणन औद्योवगक विकास, मानिीय गवतविवधयों से हो रह े ू ु नकसान की भरपाई जीि-जत पेड़ पौधों के विनाश से हो रहा ह ै सन 2000 म ें लदन म ें अतराणष्रीय बीज ु ु ं ं ं बैंक की स्थापना की गई ह ै वजसम ें 10 फ़ीसदी जगली पौधों के बीजों को सग्रवहत कर के रखा जा चका ह ै ु ं ं इसके अलािा नॉि े म ें सीड िाकट म ें 11 लाख बीजों का सरक्षण वकया जा चका ह ै िैवश्वक स्तर पर ु ं पयाणिरण एि िन्य जीिन से सबवधत वनयमों और काननों का वनमाणण वकया जा रहा ह ै और साथ ही ू ं ं ं सरवक्षत ि विलप्त होने के कगार पर पहचे हए जीि जत ि पादप के जीिन को बचाने का प्रयास जारी ह ै ु ु ु ु ं ं ं भारतीय पररपेक्ष्य म ें के अतगतण वजयो और जीने दो जसै ी विचारधाराओ को अगर ु ु ुं ं ं हम बल दगें े तभी प्रकवत के सामजस्य के साथ जीिन को सचाप प प से चलाया जा सकता ह ै । ृ ु ं 2.7 कक्षा म व्याप्त ववववधता का शैवक्षक उपयोग ें भारत की विविधता को िश, िणण, वलग, भाषा, धम,ण जावत, सप्रदाय, समदाय, सामावजक समह, आवथणक ु ू ं ं ं वस्थवत, योग्यता के स्तर, स्िास््य, पेशों, भौगोवलक क्षेत्र, जलिाय और राजनीवतक झकाि के स्तर पर ु ु दखे ा जा सकता ह।ै दशे म ें पायी जाने िाली विविधता को हम सास्कवतक समवि के रूप म ें न लेकर अतर ृ ृ ं ं के रूप म ें और इससे उत्पन्न – को सीखने हते ससाधन न मानकर बवकक बाधा, के रूप म ें मानते ु ं ह ैं । विद्यालय या कक्षा म ें विद्यमान विविधता को एक सकारात्मक के रूप म ें लेना विद्यालय के शवै क्षक िातािरण को समि बनाने और ितणमान शक्षै वणक िातािरण म ें सधार करने के वलए महत्िपण ण ह।ै ृ ु ू एक वशक्षक के वलए कक्षा म ें विविधता का प्रबधन और अपनी कक्षा म ें प्रत्येक विद्याथी को उवचत ं अिसर और साथणक गणित्तापण ण वशक्षा प्रदान करना सबसे बड़ी चनौती होती ह।ै राष्रीय पाठयचयाण की ् ु ू ु रूपरेखा-2005 और वशक्षा का अवधकार-2009 के लाग होने के साथ, अनेकता को स्पष्ट रूप से ू अपनाया गया ह।ै विद्यालयों से यह अपेक्षा की जाती ह ै वक विविधता को विद्यालय और हर कक्षा के भीतर सीखने के एक ससाधन के रूप म ें सवनवश्चत करे । ु ं ितणमान समय म ें सम्पण ण विश्व म ें समािेशी वशक्षा को महत्ि वदया जा रहा ह ै । कई बार समािशे ी ू वशक्षा के अथण को बहत सकीण ण रूप से लेते हए समाज के एक विशषे िग ण को वशक्षा म ें शावमल करने से ु ु ं जोड़ कर दखे ा जाता ह ै जबवक ऐसा नहीं ह ै । समािेशी वशक्षा सभी के समािेशन से सम्बवधत ह ै । राष्रीय ं पाठयचयाण की प परेखा (2005) म ें समािशे ी वशक्षा के विषय म ें यह उवकलवखत ह ै वक समािशे ी वशक्षा ् गणित्तापण ण वशक्षा और वनष्पक्षता से उसके सबध की आिश्यकता के वलए औवचत्य का दृष्टात दते ी ह।ै ु ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 13 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षण प्रणाली उस समाज से अलग होकर काम नहीं करती ह ै वजसका िह वहस्सा ह।ै भारतीय समाज म ें मौजद जावत के अनक्रम, आवथणक वस्थवत और लैंवगक सबध, सास्कवतक विविधता तथा असमान ृ ू ु ं ं ं आवथणक विकास वशक्षा की सलभता और विद्यालय म ें बच्चों की भागीदारी पर भी गहरा प्रभाि डालते ह।ैं ु यह अलग अलग सामावजक और आवथणक समहों के बीच तीव्र असमानताओ म ें प्रवतवबवबत होता ह,ै ू ं ं और विद्यालय म ें दावखले और परा करने की दर म ें वदखता ह।ै इस प्रकार, ग्रामीण और शहरी गरीबों के ू अनसवचत जावत और अनसवचत जनजावत समदायों की लड़वकयााँ तथा धावमकण और अन्य अकपसख्यकों ु ू ु ू ु ं के असविधाग्रस्त भाग शक्षै वणक रूप से सबसे अवधक खतरे म ें होते ह।ैं शहरी स्थलों और कई गााँिों में, ु विद्यालय प्रणाली कई स्तरों म ें विभावजत ह।ै और छात्रों को असाधारण रूप से अलग अलग अनभि ु प्रदान करती ह।ै लैंवगक सबन्धों म ें असमानता, शासन करने की प्रिवत को बढ़ािा दने े के साथ, ृ ं वचन्ताजनक भी होने ह।ै और लड़कों और लड़वकयों दोनों की मानिीय क्षमताओ को परी तरह से ू ं विकवसत नही होने दते े ह।ै वलग की मौजदा असमानताओ से व्यवक्त को आजाद करना सभी के वहत म ें ह।ै ू ं ं भारत म ें भी सरकार ने विविधता का महत्ि समझने िाले समािशे ी समाज के वनमाणण म ें वशक्षा की अहम भवमका को पहचाना ह।ै एक वशक्षक को इन विविधताओ को, जो उनके विद्यालय म ें उपवस्थत ह,ै उनकी ू ं पहचान करनी होगी और वकस प्रकार स े इस विविधता का उपयोग शवै क्षक ससाधन
के रूप म ें वकया जा ं सकता ह ै यह सीखना होगा। इसके साथ ही एक वशक्षक को इस बात की भी पहचान होनी चावहए वक वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें यह विविधता कब बाधक के रूप म
ें उपवस्थत हो सकती ह ै तथा वकस प्रकास से इन बाधाओ का वनिारण वकया जा सकता ह ै । ं भारत एक ऐसा देश ह ै जहााँ पर इसके अवधकतर प्रदशे ों या क्षेत्रों के विद्यालयों म ें मातभाषा और ृ विद्यालय की भाषा समान नहीं ह ै । ऐसी पररवस्थवतयों को अक्सर चनौतीपण ण माना जाता ह।ै भारत ु ू सवहत अवधकाश विश्व म ें बहभाषी विद्याथी अपिाद नहीं बवकक आदश ण ह।ैं एक से अवधक भाषा ज्ञान ु ं के सज्ञानात्मक और व्यािहाररक लाभ के कई शोध और प्रमाण ह।ैं कक्षा म ें बहभाषािाद की शवक्तयों ु ं के प्रयोग से मात्र विद्यावथणयों की पहचान ही नहीं वमलती बवकक िह अपनी बातों को दृढ़ता से कह पाते ह ैं । इसके माध्यम से शवै क्षक उपलवब्ध, वभन्न सोच, सज्ञानात्मक लचीलेपन और सामावजक ं सवहष्णता के साथ सकारात्मक रूप से प्रभावित होती ह ै । ु एक विद्यालय म ें जहााँ दो या दो से अवधक भाषाओ ाँ और बोवलयों से सम्बवधत विद्याथी या वशक्षक ं हों िहााँ वशक्षकों और विद्यावथणयों के सहयोग से एक शब्दकोष का वनमाणण वकया जा सकता ह ै जहााँ अलग-अलग भाषाओ ाँ या बोवलयों म ें वकसी िस्त विशषे के वलए प्रयक्त वकए जाने िाले शब्द वलख े ु ु हों । इससे विद्याथी को अलग अलग भाषाओ ाँ और बोवलयों की जानकारी होगी और िह धीरे -धीरे उन भाषाओ ाँ म ें सिाद करने में सफल होंग े । शोधों के द्वारा यह स्पष्ट ह ै वक कई भाषाओ ाँ का प्रयोग ं विद्यावथणयों के स्नाग्यनात्मक विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता ह ै । इसके साथ ही विद्याथी अन्य भाषाओ ाँऔर बोवलयों की समिता से पररवचत होते ह ैं । ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 14 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वजन सस्थाओ म ें मवहला वशवक्षकाए होती ह ैं ि े सस्था की अन्य मवहला विद्यावथणयों को सकारात्मक ं ं ं ं रूप से उनके वशक्षा म ें प्रभावित करती ह ैं तथा उनकी सफलता म ें भी महत्िपण ण भवमका अदा करती ू ू ह ैं । यवद वकसी समह म ें विजातीय सदस्य हों तो समह की उत्पादकता और रचनात्मकता बढ़ती ह ै । छात्र ू ू हमशे ा कछ सीखते ह ैं और जब िह वभन्नतापण ण िातािरण म ें सीखते ह ैं तो यह सीखना और भी समग्र ु ू रूप म ें होता ह ै जसै ा वक उपरोक्त म ें उवकलवखत ह ै । समस्या-समाधान के साथ बच्चों की सजनात्मकता बढ़ती ह ै । सज्ञानात्मक और और सजनात्मक स्कल से सम्बवधत मनोिज्ञै ावनक यह ृ ृ ू ं ं मानते ह ैं वक विद्याथी समाज और सस्कवत के माध्यम स े सीखते ह ैं । नई समस्यायें जो उन्ह ें ृ ं विविधतापण ण कक्षा छात्रों को रचनात्मक होने के वलए प्रेररत करती ह ै । ू शोधों के द्वारा भी यह प्रमावणत होता ह ै वक सजातीय समहों की तलना म ें विजातीय समहों की ू ु ू उत्पादकता रचनात्मकता और निाचाररता अवधक होती ह ै (Herring,2009) । अवधकतर निाचारी कम्पवनया बेहतर पररणामों के वलए विषम प्रकार समहों के गठन पर बल दते ी ह ै (Kanter, 1986)। ू ं तो कक्षा म ें विजातीय समह होने से विद्यावथणयों की उत्पादकता रचनात्मकता और निाचाररता बढ़ती ू ह ै । विद्यावथणयों के पररणाम म ें सकारात्मक पररितणन लाने हते कक्षा म ें पायी जाने िाली विविधता सहयोग ु करती ह ै । शोध यह दशाणते ह ै वक ि े छात्र जो अन्य प्रजावत या नस्ल के लोगों के साथ कक्षा म ें या अनौपचाररक िातािरण म ें पारस्पररक वक्रया करते ह ै उनम ें सवक्रय वचतन, बौविक सलग्नता, ं ं अवभप्रेरणा का उच्च स्तर एि बौविक तथा अकादवमक वनपणता म ें िवि तलनात्मक रूप से अवधक ृ ु ु ं होती ह ै (Gurin e. al 1999, Gurin e. al 2002, ) । एक और अध्ययन (Espenshade and Radford,2009) म ें पाया गया वक विविध प्रकार के प्रजावत से सम्बवधत सहयोवगयों के मध्य ं अनौपचाररक और सतही बातचीत के बजाय साथणक बातचीत और सम्बन्ध अवधक लाभप्रद ह ै । कक्षाओ म ें विविधता का होना विद्यावथणयों के विकास के वलए अत्यन्त आिश्यक ह ै । यवद दखे ा ं जाए तो वभन्न प्रकार के समहों से सम्बवधत विद्याथी जब कक्षा म ें इकठ्ठे होते ह ैं यह मात्र उनके ू ं भािात्मक पक्ष के विकास म ें ही मात्र सहयोगी नहीं होता बवकक सज्ञानात्मक विकास म ें भी महत्िपण ण ू ं योगदान करता ह ै । Astin (1993) ने अपने शोध म ें पाया वक उन सस्थाओ म ें जो सस्थाए अपनी ं ं ं ं नीवतयों म ें विविधता को पोषण दते ी ह,ै इसका सकारात्मक प्रभाि विद्यावथणयों के सज्ञानात्मक ं विकास, सस्था से सम्बवधत अनभिों और नेतत्ि सम्बन्धी योग्यताओ पर पड़ता ह ै । ये नीवतया ृ ु ं ं ं ं वशक्षकों को भी अपने वशक्षण एि शोधों के अतगतण विविधता को शावमल करने को प्रोत्सावहत करती ं ं ह ैं । इसके साथ ही छात्रों को कक्षा म ें तथा कक्षेत्तर गवतविवधयों म ें नस्लीय और बहसास्कवतक मद्दों ु ृ ु ं का सामना करने का अिसर प्रदान करता ह ै । विविधता के सम्बन्ध म ें यवद आकड़ो को दखे ा जाए तो आकड़े यह इवगत करते ह ैं वक कक्षा म ें तथा ं ं ं कक्षा से बाहर ऐसा समह जो विविधता वलए हए हो, उनका आपस म ें अनवक्रया और भागीदारी सक्ष्म ु ू ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 15 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं तथा समीक्षात्मक वचतन को बढ़ािा दते ा ह ै । आकड़े यह भी इवगत करते ह ैं वक कोई सस्था वजस हद ं ं ं ं तक एक अपने पयाणिरण को नस्लीय रूप से गरै -भदे भािपण ण पण ण बनाती ह ै उस सस्था से सम्बवधत ू ू ं ं छात्र भी विविधता और बौविक चनौवतयों दोनों को स्िीकार करने की इच्छा रखते ह ैं (Pascarella ु et al, 1996) । इस प्रकार वभन्न्तापण ण िातािरण विद्यावथणयों के बौविक, मानवसक, सामावजक, ू सािवे गक और नैवतक विकास म ें अत्यत सहायक ह ै । ं ं यवद वभन्नता वलए हए समह में कायण करना विद्यावथणयों को सोचने, सिाद कायम करने, समझने और ु ू ं विचारों का आदान–प्रदान करने और वनणयण लेने के वलए प्रेररत करने का प्रभािी तरीका ह।ै छात्र दसरों को सीखा भी सकते ह ैं और उनसे सीख भी सकते ह ैं । यह सीखने का एक सशक्त और सवक्रय ू तरीका ह।ै कक्षा म ें विवभन्न प्रकार के बच्चे जब होते ह ैं तो िह अपनी पाररिाररक, धावमकण , सास्कवतक, ियै वक्तक, प्रादवे शक पष्ठभवम के आधार पर अलग-अलग त्यों पर पर बल दते े ह ैं और ृ ृ ू ं अलग-अलग ढग से सीखते ह ैं । समह कायण म ें यवद अलग-अलग पष्ठभवम िाले विद्याथी हों तो ृ ू ू ं सीखना और भी समग्र होगा क्योंवक िह वकसी त्य के अलग-अलग पहलओ पर ध्यान के वन्रत ू ं करेंग े । विवभन्न िगों और समहों से जड़े व्यवक्तयों को सेवमनार इत्यावद म ें विचारों को रखने हते आमवत्रत ू ु ु ं वकया जा सकता ह ै । इससे विद्याथी विविधता से पररवचत होते ह ैं । यह विद्यावथणयों को राष्रीय एकता के साथ अतराणष्रीय समझ की भािना जगाता ह ै । ं पाआलो फ्रे रे अपनी पस्तक
‘आलोचनात्मक चेतना के वलए वशक्षा’
म ें कहते ह ैं वक
“मानि होने का ु मतलब अन्यों और दवनया के साथ ररश्ता रखना ह।ै इससे व्यवक्त यह अनभि करता ह ै वक दवनया व्यवक्त ु ु ु से अलग, समझ े जाने योग्य िस्तपरक िास्तविकता ह।ै िास्तविकता के भीतर डबे जानिर इससे ररश्ते नहीं ु ू रख सकते; ि े के िल सपकण रखने िाले प्राणी ह।ैं लेवकन मनष्य की दवनया से विलगता और खलापन उसे ु ु ं ु ररश्ते रखने िाले प्राणी के रूप म ें अलगाती है”
। अतः एक मानि के रूप म ें उसे स्िय से आग े की भी ं जानकारी रखनी चावहए । मानि को सम्पण ण दवनया स े सम्बन्ध रखने की इस आिश्यकता का आरम्भ ू ु उसके विद्यालयी जीिन से करा दने ा चावहए और ऐसा हो भी जाता ह ै । एक विद्याथी मात्र स्िय से ही ं सम्बन्ध नहीं रखता बवकक वशक्षकों और कक्षा के अन्य छात्रों से भी िह सपकण रखता ह ै । इस कारण से ं छात्र को विवभन्न छात्रों की पष्ठभवम और उससे जड़े अन्य त्यों से पररवचत होना आिश्यक ह ै । ृ ू ु विद्यालयों म ें पायी जाने िाली विविधता उसे एक आधार प्रदान करती ह ै वक िह वकस प्रकार से एक मनष्य के रूप म ें उन विविधताओ से पररवचत हो सके । ु ं अभ्यास प्रश्न 8. कक्षा म ें व्याप्त विविधता को वशक्षक को वकस रूप म ें दखे ना चावहए ? 9. विविधता व्यवक्तगत विकास और _______समाज को बढ़ािा दते ा ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 16 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 10. पाआलो फ्रे रे की पस्तक का क्या नाम ह ै ? ु 2.8 मारांश इस इकाई के अध्ययन के पश्चात हम यह कह सकते ह ैं वक भारतीय समाज एक परपरागत बद समाज ह ैं ं ं जो वक काफी स्तरों म ें विभावजत ह।ै शासन व्यिस्था में जावत, िगण, िश, पद आवद के आधार पर ं सामावजक प्रवतमानों का वनधाणरण वकया गया ह।ै मध्यकालीन, आधवनक भारतीय इवतहास में कई ु शासकों के आने और जाने के बाद भारत म ें राजनीवतक, आवथणक ि सामावजक- सस्कवतक सरचना म ें ृ ं ं काफी बदलाि आए ह।ैं इसम ें प्रमख ह ैं िण ण व्यिस्था म ें पररितणन, जावत व्यिस्था म ें पररितणन, अस्पश्यता ृ ु का अत , वियों को सम्मान, लोकतत्र व्यिस्था की स्थापना ,सयक्त पररिार का विघटन ,पजीिादी ु ू ं ं ं ं समाज व्यिस्था का वनमाणण ि भारतीय समाज का आधवनकीकरण हआ ह।ै इन सभी सामावजक ु ु पररितणनों की िजह से समाज पर पड़ने िाले प्रभाि िह उनके वनदान के वलए उठाए जाने िाले आिश्यक कदमों के विषय म ें आपको जानकारी प्राप्त हई होगी । ु 2.9 शब्दावली 1. राष्ट्रीयता - वकसी समाज के व्यवक्तयों जब वकसी सीमा के अतर अतगतण वबना वकसी भदे भाि ं ं के समह की भािना से ओतप्रोत हो जाते ह ैं उसे राष्रीयता कहते ह।ैं ू 2. भावात्मक एकता- भािना ,वजसके अतगणत विवभन्न जावतयों धमों ि समहों के लोग िह समह ू ू ं के वलए सिगे ात्मक रूप से एकता के सत्र म ें बध जाते ह।ैं ू ं ं 3. जाशत- जावत उस िग ण को कहते ह ैं वजसम ें सदस्यों की सदस्यता और कतणव्य उनके जन्म से ही वनवश्चत हो जाते ह ैं । 4. समावेिी शिक्षा- समािशे ी वशक्षा कक्षा म ें विविधताओ को स्िीकार करने की एक मनोिवत्त ह ै ृ ं वजसके अन्तगतण विविध क्षमताओ िाले बालक सामान्य वशक्षा प्रणाली म ें एक साथ अध्ययन ं करते ह ै । समािवे शत वशक्षा के दशनण के अन्तगतण प्रत्येक बालक अवद्वतीय ह ै और उसे अपने सहपावठयों की भााँवत विकवसत करने के वलए कक्षा म ें विविध प्रकार के वशक्षण की आिश्यकता हो सकती ह ै । 2.10 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. अनच्छेद 343 स े 351 ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 17 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2. चार िण-ण ब्राहमण, क्षवत्रय, िश्ै य ,शर ू 3. 1978 4. औद्योवगकरण, नगरीकरण, बेरोजगारी,, पवश्चमीकरण, राजनीवतक पररितणन, वनधणनता, िणण व्यिस्था ,जावत, वियों की दशा, सयक्त पररिार का विघटन आवद। ु ं 5. 3000 जावतयााँ 25000 उपजावतयााँ। 6. राजनैवतक पतन से जावतिाद सप्रदाय िाद वििाद भाषािाद धावमकण विघटन जैसी घटनाए बढ़ी ह ैं ं ं 7. उस व्यवक्त के विप ि उवचत कारिाई की जानी चावहए । 8. ससाधन ं 9. स्िस्थ 10. आलोचनात्मक चेतना के वलए वशक्षा 2.11 मंदभ ण ग्रंथ मची ू 1. Agnihotri, R.K. (2006). Identity and multilinguality: the case of India. Cited in Tsui, A. and Tollefson, J.W. (eds) Language Policy, Culture and Identity in Asian Contexts. Mahwah, NJ: Lawrence Erlbaum Associates. 2. Alison, W. (1996). Diversity in the Classroom. Retrieved from http://googleweblight.com/i?u=http://ematusov.soe.udel.edu/final.paper.pub/ pwfsfp/00000026.htm&grqid=Uer6P6Tz&hl=en-IN 3. Astin, A. W. (1993) Diversity and Multiculturalism on the Campus: How are Students Affected? Change 25; 2 44-49. 4. Astin, A. W. (1993). What Matters in College: Four Critical Years Revisited. San Francisco: Jossey-Bass, 3 5. Delpit, L. (1995). Other People's Children: Cultural Conflict in the Classroom. New York: The New Press. 6. Gurin, P. (1999). Selections from the Compelling Need for Diversity in Higher Education, Expert Reports in Defense of the University of Michigan. Equity & Excellence in Education. 32, 36-62. 7. Gurin, P., Dey,E.L., Hurtado, S. & Gurin, G. (2002) . "Diversity and Higher Education: Theory and Impact on Educational Outcomes. Harvard Educational Review. 72, 330-366. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 18 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 8. Herring, C. (2009). Does Diversity Pay: Race, Gender, and the Business Case for Diversity? American Sociological Review. 74, 208-224. 9. Kanter, R. M. (1983). The Change Masters: Innovations for Productivity in the American Corporation. New York: Simon and Schuster. 10. Mehan, H. (1991). Sociological Foundations Supporting the Study of Cultural Diversity. national Center for Research on Cultural Diversity and Second Language Learning. Retrieved from gopher://Imrinet.gse.ucsb.edu 11. National Council of Educational Research and Training (2006)
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में विविधता 3.3.2 सामावजक विविधता के विविध रूप 3.3.3 भारतीय समाज में विविधता के स्िप प एि स्रोत ं 3.4 सीमान्त समदाय के व्यवक्त एि िग ण तथा वशक्षा ु ं 3.4.1 वशक्षा से इन समदायों और व्यवक्तयों की विवभन्न मााँगों को समझना ु 3.4.2 मागों की पवतण के वलए उवचत सामावजक शैक्षवणक रणनीवत ू ं 3.5 साराश ं 3.6 शब्दािली 3.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 3.8 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 3.9 वनबधात्मक प्रश्न ं 3.1 प्रस्तावना इस एकाश म ें आप भारतीय समाज की विविधता का पररचय प्राप्त कर सकें ग े तथा भारतीय समाज में ं असमानता एि सीमान्तता के वशकार समदायों के सामावजक यथाथण से अिगत हो सकें गे । इस इकाई के ु ं अध्ययन से आप यह समझ सकें ग े वक इन समदायों एि व्यवक्तयों की वशक्षा से क्या माग ह ै साथ ही ु ं ं उनकी पवतण हते आप सामावजक-शक्षै वणक रणनीवतयों का विकास कर सकें ग।े ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 20 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- 1. भारतीय समाज म ें विविधता को जान सकें ग।े 2. भारतीय समाज म ें व्याप्त असमानता का बोध कर सकें गे। 3. भारतीय समाज म ें उपेवक्षत िग ण की समस्याओ को जान सकें ग।े ं 4. इन िगों एि व्यवक्तयों की वशक्षा म ें विवभन्न मााँगों को समझ सकें ग।े ं 5. मागों की पवतण हते उपयक्त सामावजक-शक्षै वणक रणनीवतयों का विकास कर सकें ग।े ू ु ु ं 3.3 भारतीय ममाज का स्वरुप भारत विश्व की सबसे बड़ी बहलिादी सामावजक ियिस्था ह ै वजसम ें विवभन्न नजातीयता के लोग वभन्न- ु ृ वभन्न क्षेत्रों म ें एि वभन्न-वभन्न धमों का अनपालन करते हए विवभन्न जावतयों एि उपजावतयों म ें विभक्त ु ु ं ं होकर समाज म ें अपनी-अपनी अवस्मता बनाए रखते ह।ै भारत की वििधता का अदाज़ा इसी से लगाया ं जा सकता ह ै वक भारत म ें लगभग 5000 वभन्न-वभन्न समदाय 325 से भी अवधक भाषाओ एि विवभन्न ु ं ं बोवलयों तथा वलवपयों का उपयोग करते ह।ै विविधता से यक्त इस भारतीय समाज का वनयमन एक लम्बे ु समय से असमानता पर आधाररत रहा ह।ै यह असमानता प्रकवत जवनत एि समाज जवनत दोनों ही रही ह।ै ृ ं समाज के भीतर उपजी असमानता का मख्य कारण रहा ह ै प्राकवतक ससाधनों का असमान वितरण ि ृ ु ं क्षेत्र-विशषे का उन पर प्रभत्ि। इनके अवतररक्त अनेकों असमानताए मानिीय उपज ह।ै जावत ि िगण ु ं आधाररत असमानता इनम ें से सिमण ख ह।ै विविधता एि असमानता के कारण समाज में कई िगों का ु ं जन्म हआ वजसमे से कछ िग ण एि व्यवक्त समाज की मख्य धारा में रह कर समाज के ससाधनों का उपयोग ु ु ु ं ं करने म ें सफल रह े िहीं कछ िग ण एि व्यवक्त समाज की मख्य धारा से कट कर हावशए पर चल े गए। ु ु ं स्ितन्त्रता के पश्चात भारतीय सविधान द्वारा सभी िगों के वहतों का सरक्षण एि सिधणन करते हए राष्र को ु ् ं ं ं ं एक धमवण नरपेक्ष सम्प्रभता सम्पन्न राष्र के रूप म ें विकवसत करने का प्रयास वकया गया वजसम ें विविधता ु के सरक्षण एि असमानता के वनषधे का परा उपबध वकय गया ह,ै साथ ही हावशए पर चल े गए उपेवक्षत ू ं ं ं एि िवचत िगों के वहतों के सरक्षण ि सिधणन का परा प्रयास वकया गया ह।ै ू ं ं ं ं सविधान द्वारा भारतीय समाज को एक समतामलक लोकतावत्रक समाज के रूप म ें प्रवतवष्ठत करने के वलए ू ं ं चार आधारभत मकयों पर बल वदया गया ह-ै ू ू i. न्यायः- सामीवजक, आवथणक, और राजनैवतक। ii. स्ितन्त्रताः- विचार, अवभव्यवक्त, विश्वाश, धम ण और उपासना की। iii. समानताः- प्रवतष्ठा एि अिसरों की। ं iv. बन्धत्िः- व्यवक्त की गररमा और राष्र की बन्धता। ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 21 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं यह आधारभत मकय ही हमारी वशक्षा के मख्य उद्दश्े य ह ै और यही उद्दश्े य भारतीय समाज के लक्ष्य ह ै वजन्ह ें ू ू ु प्राप्त करना राज्य का प्रमख दावयत्ि ह ै और इनकी सम्प्रावप्त के द्वारा ही विविधता से यक्त भारतीय समाज म ें ु ु असमानता एि सीमातता की समस्या को सलझाया जा सकता ह ै । सामावजक न्याय एि समानता के ु ं ं ं सिधै ावनक मकयों पर आधाररत धमवण नरपेक्ष, समतामलक और बहलिादी समाज हमारा सिधै ावनक ु ू ू ं ं आदशण ह ै वजसके सरक्षण एि सिधणन का दावयत्ि वशक्षा पर भी ह।ै सविधान द्वारा इन मकयों की प्रावप्त हते ू ु ं ं ं ं एि व्यवक्त के व्यवक्तत्ि के विकास हते मौवलक अवधकारों तथा नीवत-वनदशे क तत्िों का स्पष्ट उकलेख ु ं वकया गया ह।ै सविधान के अनच्छेद 12-35 म ें मल अवधकारों का उकलेख ह ै जो हर नागररक को ु ू ं समानता एि स्ितन्त्रता का अवधकार दते ा ह ै तथा धम,ण जावत, नस्ल, वलग या जन्मस्थान के आधार पर ं ं भदे भाि से रक्षा करता ह ै साथ ही शोषण के विरूि अवधकार दके र सम्मावनत नागररक के रूप म ें जीिन जीने का अिसर प्रदान करता ह।ै सविधान का अनच्छेद 46 स्पष्ट रूप से प्रािधान करता ह ै वक राज्य ु ं कमजोर िगों, विशेष रूप से अनसवचत जावत, जनजावत के शवै क्षक एि आवथणक वहतों का विशेष ध्यान ु ू ं रखगे ा एि हर प्रकार से सामावजक अन्याय एि वकसी भी प्रकार के शोषण से रक्षा करेगा। अनच्छेद 330, ु ं ं 332. 335, 338 से लेकर 342 एि सविधान की 5िीं तथा 6िीं अनसची , अनच्छेद 46 म ें वनवहत ु ू ु ं ं उद्दश्े यों के अनपालन के वलए विशषे प्रािधान की व्यिस्था करती ह।ै इसके साथ ही अनच्छेद 29 तथा ु ु 30 अकपसख्यकों के वहतों का सरक्षण ि सिधणन करता ह ै जो क्रमशः उन्ह े अपनी भाषा, वलवप, ि ं ं ं सस्कवत के सरक्षण तथा धम ण ि भाषा पर आधाररत सभी अकपसखयकों को अपनी रूवच की वशक्षा सस्था ृ ं ं ं ं की स्थापना ि प्रशासन का अवधकार दके र उन्ह े राष्र की मख्य धारा म ें लाने का प्रािधान करती ह।ै इस ु प्रकार भारतीय सविधान सभी नागररकों को विशेष रूप से असमानता एि उपेक्षा के वशकार लोगों के वहतों ं ं का विशषे सिधणन कर उन्ह ें समवचत अिसर उपलब्ध कराने का उपबध करता ह।ै ु ं ं 3.3.1 भारतीय समाज में शवशवधता समाज म ें विविधता से आशय ह-ै वकसी भौगोवलक-राजनैवतक क्षेत्र के अन्तगणत रहने िाले विवभन्न सामावजक समहों का अपनी विवशष्टता के साथ सह-अवस्तत्ि। भारतीय पररप्रेक्ष्य म ें यह विविधता विवभन्न ू रूपो म ें पायी जाती ह।ै भारत जो वक एक समि सयक्त एि बहल सस्कवत का के न्र ह ै जहााँ विवभन्न ु ृ ृ ु ं ं ं शारीररक सरचना, क्षेत्र, बोली, भाषा, जावत, धम,ण सस्कवत के लोग अपनी सास्कवतक विवशष्टता के साथ ृ ृ ं ं ं जीिन यापन करते ह।ै इस विविधता के विविध रूप ह ैं , आईए हम दखे ें वक भारतीय समाज म ें यह विविधता वकस प्रकार ह ै एि उसका स्िप प तथा स्रोत क्या ह ै – ं 3.3.2 सामाशजक शवशवधता के शवशवध रूप i. सरचनात्मक विविधता – शारीरक बनािट ि सरचना के आधार पर पायी जाने िाली विविधता ं ं प्राकवतक विविधता ह।ै वलग भेद आधाररत विविधता इसका उदाहरण ह।ै ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 22 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ii. पयाणिरवणक विविधता- यह दो प्रकार की ह-ै भौगोवलक विविधता एि मनो-सामावजक ं विविधता। भौगोवलक विविधता म ें शहरी-ग्रामीण, मदै ान-पहाड़ी आवद विविधता आती ह ै जबवक मनो-सामावजक विविधता म ें जावत, धम,ण भाषा, आवद आधाररत विविधता आती ह।ै iii. प्राकवतक एि मानिजवनत विविधता- भौगोवलक विविधता, जिै -विविधता, वलग विविधता, ृ ं ं आवद जहा प्राकवतक विविधता ह ै िहीं राजनैवतक विविधता (वकसी विशेष विचारधारा के प्रवत ृ ं प्रवतबिता), सास्कवतक विविधता , धावमकण विविधता, आवथणक एि सामावजक विविधता जसै े - ृ ं ं अमीर -गरीब , शहरी -ग्रामीण, उच्च -वनम्न आवद मानि जवनत विविधता के उदाहरण ह।ै प्राकवतक विविधता जहा एक ओर प्रकवत की दने ह ै िहीं मानि जवनत विविधता समाज के कछ ृ ृ ु ं लोगो द्वारा लाभ विशेष के वलए जवनत विविधता ह ै जो प्रायः शोषण के अि के रूप म ें प्रयक्त ु होती ह।ै चाह े िह प्राकवतक विविधता हो या मानि जवनत सामावजक- सास्कवतक एि आवथणक ृ ृ ं ं विविधता, विविधता का सरक्षण एि उसका पण ण दोहन राष्र के विकास के वलए करना तथा ू ं ं विविधता को शोषण का अि न बनने दने ा राष्र ि समाज की सबसे बड़ी वजम्मदे ारी ह ै जो वशक्षा का मख्य लक्ष्य ह।ै जसै ा की राष्रीय पाठयचया ण की प परेखा 2005 म ें भी इसे इवगत करते हए कहा ु ् ु ं गया ह ै वक
“विवशष्टताओ से फकण पड़ता ह;ै बच्चों को उनके अपने ज्ञान सजन म ें सक्षम बनाने में ृ ं सामावजक, आवथणक और जातीय पष्ष्ठभवम का महत्िपणण स्थान होता ह”
ै । इसे और स्पष्ट करते हए ु ृ ू ू यह अवभलेख कहता ह ै वक
“ सभी समदायों को सह-अवस्तत्ि ि समान रूप से समि होने का ृ ु अवधकार ह ै और वशक्षा व्यिस्था को भी हमारे समाज म ें वनवहत इस सास्कवतक विविधता के ृ ं अनरूप होना चावहए”
ु आईए हम समझने का प्रयास करें की भारतीय समाज में व्याप्त इस विविधता के विविध रूप क्या ह ैं तथा वकस प्रकार यह असमानता एि सीमातता के जन्म के वलए उत्तरदायी ह ै तथा वशक्षा के द्वारा वकस प्रकार ं ं विविधता को समस्या के रूप म ें नहीं अवपत एक ससाधन के रूप में प्रयक्त वकया जा सकता ह ै तथा ु ु ं उसका सरक्षण वकया जा सकता ह।ै ं 3.3.3 भारतीय समाज में शवशवधता के स्वरुप एव स्रोत ं 1. नजातीय शववधता - भारतीय समाज की विविधता का सबसे प्रमख स्रोत ह ै नजातीयता। ृ ृ ु भारतीय समाज म ें विवभन्न प्रकार के नजातीय समह अपनी अपनी अवस्मता एि पहचान के ृ ू ं साथ-साथ सह-अवस्तत्ि म ें वनिास करते ह।ै हरबडण ररसले ने भारतीय पररप्रेक्ष्य म ें नजातीय ृ जनसख्या को सात िगों म ें विभावजत वकया ह ै ं a. टकों-इरावनयन मख्यतः बलवचस्तान एि अफगावनस्तान म ें पायी जान े िाली नजातीय ृ ु ू ं जनसख्या। ं b. इण्डो-आयणन-मख्यतः पिी पजाब, राजस्थान एि कश्मीर में पायी जाने िाली नजातीय ृ ु ू ं ं जनसख्या। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 23 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं c. साइथो-रविवणयन- मख्यतः सौराष्र , कग ण एि मध्य प्रदशे के पहाड़ी क्षेत्रों म ें पाये जाने ु ु ं िाली नजातीय जनसख्या। ृ ं d. आय-ण रविवणयन- मख्यतः इण्डो-आयणन एि रविवणयन का वमश्रण ह ै जो मख्यतः उ.प्र. ु ु ं एि वबहार म ें पायी जाती ह।ै ं e. मगोवलयन-रविवणयन-जो रविवणयन एि मगोवलयन प्रजावत का वमश्रण ह ै और बगाल ं ं ं ं तथा उड़ीसा म ें पाये जाते ह।ै f. मगोलायड- उत्तर पि ण क्षेत्र एि आसाम की आवदिासी जनसख्या म ें पाये जाने िाले ू ं ं ं नजातीय समह। ृ ू g. रविवणयन – दवक्षण भारत एि मध्य प्रदशे म ें पाये जाने िाले नजातीय समह । ृ ू ं इन सातों िगों को मख्यतः तीन भागों म ें िगीकत वकया जा सकता ह-ै 1- रविवणयन 2- ृ ु मगोवलयन 3- इण्डो-आयणन। ं इस प्रकार आप स्िय दखे सकते ह ैं वक भारतीय भवम विवभन्न नजातीय समहों को पकलवित ि ृ ू ू ं पवष्पत करके विशाल विषमता की धरोहर को सजोये हए ह।ै इतनी विषमतापणण विविधता से यक्त ु ु ू ु जवटल एि सशवलस्ट भारतीय समाज म ें कछ नजातीय समह विकास वक पवक्त में आगे बढ़ गए ृ ु ू ं ं ं तथा कछ अभी भी सीमान्त रह गए ह।ैं भारत के उत्तर-पि ण क्षेत्र के अनेक नजातीय समह इस ृ ु ू ू सीमातता के ज्िलत उदहारण ह ैं । ये सीमान्त िग ण एि इनके व्यवक्त वशक्षा के द्वारा समानता एि ं ं ं ं समता की माग करते ह ैं । वशक्षा का प्रमख दावयत्ि ह ै वक इन विविधताओ म ें वनवहत शवक्तयों ु ं ं का समाज के उत्थान के वलए विकास करे तथा यह विविधतायें समाज की रचनात्मक शवक्त बन ें न वक अिरोध। वशक्षा के द्वारा समाज के विवभन्न नजातीय समहों को समानता का अिसर वमले ृ ू तथा समाज के सभी िग ण समाज के विकास म ें अपनी भवमका वनभा सकें इसकी साम्यण हो सके । ू समाज के सभी सस्कवतयों को समन्नत एि स्िािलम्बी बनाना वशक्षा का मख्य दावयत्ि ह।ै ृ ु ु ं ं 2. जाशत आधाररत शवशवधता - भारत म ें जावत व्यिस्था काफी प्राचीन समय से अपनी जड़े जमाए रही ह ै जो वक प्रारम्भ में समाज म ें वनष्पावदत कायण या व्यिसाय पर आधाररत थी। समाज ं म ें वनभायें जाने िाली भवमका ि श्रम-विभाजन के आधार पर वभन्न-वभन्न िगों का गठन वकया ू गया था। इस प्रकार प्राचीन भारतीय समाज चार िगों म ें विभक्त था- ब्राह्मम्ण, क्षवत्रय, िश्ै य, एि ं शर। ब्राह्मम्ण अध्ययन-अध्यापन, क्षवत्रय –शासन तथा सरक्षा, िश्ै य-िावणज्य एि व्यापार तथा ू ु ं शर-सेिाकायण के आधार पर विभावजत थे । कालान्तर म ें यह व्यिस्था कमणगत न होकर जन्म ू आधाररत हो गयी तथा उच्च िग ण द्वारा वनम्न िग ण के शोषण के रूप म ें समाज म ें भीषण समस्या के रूप म ें स्थावपत हो गयी। जातीय विभाजन तथा जावत के भीतर उपजावत तथा िग ण तथा उनके आधार पर भदे भाि सभी धमों के अन्दर पाया जाने लगा। ऐसा माना जाता ह ै वक लगभग 300 से भी अवधक जावतया भारत म ें विद्यमान ह ै जो विशाल जातीय विविधता का बोध कराती ह।ै इन ं जावतयों म ें कछ जावतया विकास के पथ पर अग्रसर हो कर उच्च जावत
के रूप म ें स्थावपत हो ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 24 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं गयीं तथा कछ समाज में सीमान्त रह कर वनम्न जावतिग ण के रूप म ें दवमत एि शोवषत होती रहीं ु ं वजसकी पररणवत अस्पश्यता जसै ी सामावजक कप्रथा के रूप म ें हई वजसका एक लबे समय ु ृ ु ं तक समाज पर कप्रभाि रहा। उच्च जावतयों द्वारा वनम्न जावत के लोगों का शोषण एि असमान ु ं व्यिहार समाज म ें सीमात िग ण के रूप में एक नए िगण को जन्म दके र एक विशाल सामावजक ं समस्या के रूप में पनपने लगा। अनसवचत जावत एि अनसवचत जावत के लोग इसी जावत ु ू ु ू ं आधाररत विविधता से उपजी असमानता के कारण समाज में सीमान्त िग ण के रूप म ें एक
लबे ं समय तक उपेवक्षत रह े समाज का यह सीमान्त िगण समाज की मख्य धारा म ें अपनी जगह बनाने ु के वलए वशक्षा की ओर दखे ता ह।ै 3. वर्ि आधाररत शवशवधता- सामावजक स्तरीकरण के आधार पर विभावजत समह को सामावजक ू िग ण कहा जाता ह ै वजसम ें सामावजक स्तर के अनरूप पदानक्रवमक क्रम म ें समाज को विभावजत ु ु वकया जाता ह।ै सबसे प्रचवलत विभाजन ह ै – उच्च िग,ण मध्यम िग ण एि वनम्न िग ण जो समाज में ं सामावजक-आवथणक स्तर के आधार पर वनधाणररत होता ह।ै मख्यतः उद्योगपवत नीवत वनमाणता, ु शासक िग,ण राजनेता एि अवधकारी, आवद उच्च िग ण म ें आते ह।ै मध्यम िगण, जो सख्याबल में ं ं काफी अवधक ह ै दो िगों म ें विभावजत ह-ै उच्च मध्यम िग ण तथा वनम्न मध्यम िग।ण उच्च मध्यम िग ण के अन्तगतण उच्च पदस्थ कमचण ारी िग ण तथा मझोले स्तर के व्यापारी ि उद्यमी आते ह ै तथा वनम्न मध्यम िग ण म ें दवै नक भोगी कमचण ारी, लघ स्तर के व्यापारी ि व्यिसायी आते ह ै जो ु प्रवतवदन अपनी जीविका वनिाणह के वलए अवजतण ि खचण करते ह।ै समाज के ये वनचल े िग ण सामावजक वचन्ता के विषय ह ैं तथा सरकारी योजनाओ का सबसे कम लाभ प्राप्त कर पान े िाले ं िग ण ह ैं वजन पर सरकार ि समाज को अवधक ध्यान दने े की आिश्यकता ह।ै समाज के ये वनचल े िग ण प्रायः असगवठत होने के कारण राज्य ि समाज का ध्यान कम आकवषतण कर पाते ह।ै समाज ं के यह उपेवक्षत िग ण सामावजक विषमता के कारण विकास के माग ण म ें हावशये पर चले जाते ह।ै वशक्षा का दावयत्ि ह ै वक िह ऐसे िग ण को स्िािलम्बी बनाये तथा सामावजक विषमता को दर ू करने म ें सहायक हो। 4. धाशमिक शवशवधता - भारत धावमकण दृवष्ट से भी विविधता से पररपण ण ह ै जहााँ विश्व के विवभन्न ू धमों के अनयायी वनिास करते ह।ै भारत एक धमवण नरपेक्ष राष्र होन े के कारण सभी धमों का ु आदर करता ह।ै यहा ाँ वहन्द, इस्लाम, वसख, ईसाई, बौि, जनै , पारसी, यहदी आवद विवभन्न धमों ू ू के मतािलम्बी अपन-अपने धम ण के अनरूप आचार, विचार एि व्यिहार करते ह ै जो भारत की ु ं सास्कवतक एि अध्यावत्मक विविधता का एक बहत बड़ कारण ह।ै यद्यवप धमण के आधार पर ु ृ ं ं वकसी प्रकार का भदे भाि या असमानता भारतीय सविधान द्वारा पणतण या वनवषि ह ै वफर भी कछ ू ु ं धावमकण समह अपने कम सख्या बल एि समाज में अपनी सक्ष्म भवमका के कारण अकपसख्यक ू ू ू ं ं ं िगण के रूप में अपनी पहचान एि अवस्मता के वलए समाज में सघषरण त ह ैं । ये समह भी वशक्षा के ू ं ं द्वारा अपनी सस्कवत एि धम ण के सरक्षण एि सिधणन की माग करते ह ैं ृ ं ं ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 25 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5. भाषायी शवशवधता - भारत दशे भाषायी दृवष्ट से अत्यन्त विविधता से पररपण ण ह।ै भारत म ें 122 ू भाषाएाँ तथा 234 मात भाषाए ाँ ह ैं जो दशे भर म ें बोलने िालों की सख्या 10,00000 या अवधक ृ ं के आधार पर सगवठत की गयी ह ै वजनमसें े 22 भाषाए ाँ – 8िीं अनसची म ें सचीबि की गयी ह।ै ु ू ू ं इतने विशाल भाषा भण्डार की विविधता को सजोए हए भारतीय समाज भाषा के प्रश्न पर उलझा ु ं हआ वदखायी दते ा ह।ै हर क्षेत्र विशेष के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रवत विशषे लगाि रखते ह ैं ु जो वक उनकी मातभाषा ि सिाद की भाषा होती ह ै वजसके कारण िे दसरी भाषा को आसानी से ृ ं ू स्िीकार नहीं कर पाते दसरी तरफ िह भाषा ह ै जो सामावजक एि राजनैवतक कारणों से समाज म ें ं ू अपनी जगह बनाये हए ह ै , तीसरी तरफ िह भाषा ह ै जो परे राष्र को एकता के सत्र म ें बाध कर ु ू ू ं राष्रीयता अवस्मता का बोध कराती ह।ै इस भाषायी विविधता के कारण दशे भर में भाषायी आधार पर विभाजन एि मातभाषा के रूप में भाषा का चयन, वशक्षण के माध्यम के रूप में भाषा ृ ं का चयन एक बहत बड़ी समस्या रही ह ै । ु यवद आप व्यािहाररक दृवष्ट से दखे े तो पाएगे वक भारत के विद्यालयों की सबसे बड़ी समस्या यह ं भावषक विविधता ही ह।ै बच्चा जब स्कल म ें प्रिेश करता ह ै तो िह वकसी अन्य भावषक पष्ठभवम ृ ू ू के साथ विद्यालय आता ह ै और विद्यालयी पररिेश वकसी अऩ्य दसरी भावषक पष्ठभवम को ृ ू ू पोवषत करता ह ै जबवक पाठयक्रम तथा वशक्षण विवध वकसी दसरे भावषक पष्ठभवम को। इस प्रकार ृ ् ू ू बालक की समस्या यह होती ह ै वक िह अपने को अपनी वनजी भाषा तथा स्कल की भाषा एि ू ं पाठय पस्तक की भाषा से अलग-थलग पाता ह ै जो उसकी ककपना शवक्त एि सजन शवक्त के ृ ् ु ं माग ण म ें बहत बड़ी बाधा बनकर खड़ा हो जाता ह।ै जसै ा की राष्रीय पाठयचया ण की प परेखा ु ् २००५ इसे रेखावकत करते हए कहती ह ै वक " बहभावषकतािाद भारतीय अवस्मता का अवभन्न ु ु ं अग ह ै हमारी वशक्षा व्यिस्था को इसे दबाने के बजाए बनाये रखन े और प्रोत्सावहत करने का ं भरपर प्रयास करना चावहए जैसा वक ईवलच (१९८१) ने कहा ह ै वक हमें हावशये पर अिवस्थत , ू आवदिासी और विलप्त प्राय भाषाओ को बचान े और उनके शसक्तीकरण का भरपर प्रयास करना ु ू ं होगा हमें वत्रभाषा सत्र को यथाथण के धरातल पर वक्रयावन्ित करना होगा तभी हम भाषायी ू वििधता की समस्या से न के िल समाधान प्राप्त कर सकें ग े अवपत भाषायी विविधता को अपनी ु ताकत
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के रूप म ें प्रयक्त कर सकें ग।े वत्रभाषा सत्र का प्रयोग कर वहन्दी भाषी राज्यों के वलए वहन्दी, ु ू अग्रेजी और भारतीय भाषाओ (विशेष रूप से दवक्षण भारतीय भाषा) तथा वहन्दीतर राज्यों म ें ं ं वहन्दी, अग्रेजी ि क्षेत्रीय भाषा का प्रािधान कर भाषायी वििधता का सरक्षण हमारी वशक्षा की ं ं प्रमख वजम्मेिारी होनी चावहए। ु 6. क्षेत्रीय शवशवधता- क्षेत्रीय विविधता भारतीय समाज का एक विवशष्ट तत्ि ह ै । भौगोवलक एि ं पयाणिरणीय दृवष्ट से सम्पण ण भारत विवभन्न क्षेत्रीय इकाइयों म ें विभावजत ह ै ।ये भौगोवलक क्षेत्र ू अपनी सहअवस्तत्ि की भािना तथा राजनैवतक सामावजक ि सास्कवतक कारणों से एक इकाई ृ ं के रूप म ें सगवठत होकर सामवहक पहचान स्थावपत कर अपने सामवहक वहतों की रक्षा करतें ह।ै ू ू ं भारत में क्षेत्रीयता की इस भािना के कारण जहा इन क्षेत्रों म
ें सह अवस्तत्ि ि समरसता का भाि ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 26 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं रहा ह ै िही कवतपय राजनैवतक स्िाथण के कारण इसका दरूपयोग भी होता रहा ह।ै कई बार कछ ु ु
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क्षेत्र विकास के माग ण म ें हावशये पर रह गये वजसके कारण क्षेत्रीय विषमता ने जन्म वलया जो राष्र की बहत बड़ी समस्या ह।ै वशक्षा के द्वारा क्षेत्रीय विकास को प्रोत्सावहत कर क्षेत्र विशषे के ु ससाधनों का उवचत दोहन करके राष्र के विकास म ें सभी क्षेत्रों क
ी भागीदारी सवनवश्चत करना ु ं मख्य लक्ष्य ह।ै ु 7. शलर् भेि आधाररत शवशवधता- वलग भदे आधाररत विषमता भारतीय समाज की एक प्रमख ु ं ं समस्या रही ह।ै तीव्र सामावजक विकास के इस दौर म ें जबवक मवहलाओ का समानता का दजा ण ं वदये जाने की बात विवधक एि सामावजक रूप से सािभण ौम रूप से स्िीकार कर लगी गयी ह,ै ं मवहलाए आज भी वलगभदे का वशकार बन रही ह।ै मवहला सशक्तीतरण आज भी एक चनौती ह।ै ु ं ं यह बात के िल सामावजक जीिन म ें ही नहीं अपत कक्षीय िातािरण में भी लाग होती ह ै जहााँ ु ू अनपयक्त पाठयक्रम एि वशक्षण पिवत न के िल नकारात्मक िातािरण उत्पन्न करती ह ै अवपत ् ु ु ु ं उनके आत्मप्रत्यय को भी नीचे वगरा दते ी ह ै मवहलाओ की समानता के वलए वशक्षा की ओर इवगत करते हए राष्रीय वशक्षा नीवत 1986 ु ं ं वशक्षा को मवहलाओ की वस्थवत म ें आधारभत पररितणन लाने के एक साधन के रूप म ें रेखावकत ू ं ं वकया। अतीत की विसगवतयों को पररमावजतण करने के वलए एि निीन मकयों को स्थावपत करने ू ं ं के वलए राष्रीय स्तर पर वशक्षा-व्यिस्था म ें आमल-चल पररितणन की आिश्यकता ह ै जो ू ू पाठयचचा,ण पाठय-पस्तक एि वशक्षण प्रविवध म ें आधारभत पररितणन की माग करती ह।ै परी ् ् ु ू ू ं ं जन-शवक्त का लगभग आधा वहस्सा होते हए भी अनेकों सामावजक-सास्कवतक कारणों से ु ृ ं मवहलाए एक लम्बे समय तक हावशये पर रही ह।ै मवहलाओ का विकास न के िल उनके ं ियै वक्तक विकास अवपत राष्रीय विकास म ें उनकी सवक्रय भागीदारी द्वारा सम्पण ण मानिीय शवक्त ु ू के उपयोग के वलए भी अत्यन्त आिश्यक ह।ै अभ्यास प्रश्न 1. इनमे से कौन नजातीय समह ह ै : ृ ू a. मगोवलयन b .रविवणयन c. इडोआयणन d. उपयणक्त सभी ु ं ं 2. भारतीय सविधान का कौन सा अनच्छेद प्रिधान करता ह ै वक- " राज्य कमजोर िगों, विशषे रूप ु ं से अनसवचत जावत, जनजावत के शवै क्षक एि आवथणक वहतों का विशषे ध्यान रखगे ा एि हर ु ू ं ं प्रकार से सामावजक अन्याय एि वकसी भी प्रकार के शोषण से रक्षा करेगा" ं a. अनच्छेद 46 b .अनच्छेद 68 c. अनच्छेद 164 d.उपयणक्त में से कोई नहीं ु ु ु ु 3. भारतीय समाज म ें पाई जान े िाली विविधता के रूप ह ैं : a. नजातीयता b. क्षेत्रीयता c. भाषायी d. उपयणक्त सभी ृ ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 27 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.4 मीमान्त ममुदाय के व्यवि ंवं वगण तथा वशक्षा वशक्षा समाज म ें व्यवक्त को बेहतर जीिन जीने की कला वसखाती ह।ै मनष्य को समाज म ें उपलब्ध ु सविधान प्रदत्त नागररक अवधकारों जसै े – न्याय समता, स्ितन्त्रता, एि बन्धत्ि का उपभोग करते हए ु ु ं ं जीिन को आग े बढ़ाना होता ह ै जहा उसे एक तरफ सविधान प्रदत्त सरक्षा प्राप्त ह ै तो दसरी तरफ वभन्न- ु ं ं ू वभन्न समदायों के साथ तालमेल रखते हए कतणव्यों का पालन करना भी सवनवश्चत करता होता ह।ै भारत ु ु ु जसै े बहलिादी दशे म ें जहा विवभन्न धमों, भाषाओ एि सस्कवतयों तथा विवभन्न प्रकार की विविधता से ु ृ ं ं ं ं यक्त क्षेत्रीय वभन्नता को रखने िाले वभन्न-वभन्न समदाय वनिास करते ह ै ; सामावजक समरसता एि ु ु ं भाईचारा की भािना के साथ राष्र को एक धम ण वनरपेक्ष राष्र के रूप म ें सगवठत रखना अपने आप में एक ं बहत बड़ी चनौती ह।ै ु ु अनेक सिधै ावनक प्रािधानों के बािजद समाज के कछ िगण मलभत सविधाओ से भी िवचत ह।ै ू ु ू ू ु ं ं ं ितणमान भारतीय समाज म ें शवै क्षक एि सामावजक विकास के बािजद कवतपय बाधक तत्िों के कारण ू ं समाज के कछ िग ण विषमता के वशकार ह ैं तथा अभी भी विकास के मापदण्डों पर हावशये पर ह।ै इनमें ु प्रमख ह ै – जावत, नजातीयता, िग,ण धम,ण क्षेत्रिाद इत्यावद आधाररत विषमता से उत्पन्न विसगवतया जो ृ ु ं ं समाज एि व्यवक्त के विकास म ें बहत बड़ी बाधा ह,ै वजनका अभी हमने अिलोकन एि विश्लेषण वकया ह ै ु ं ं । समाज की ये विषगवतया ही असमानता एि सीमातता को जन्म दके र असन्तोष ि अराजकता का ं ं ं ं िातािरण बनाती ह ै जो कई बार कछ व्यवक्तयों एि समदायों को समाज का असामावजक तत्ि बना दते ी ु ु ं ह।ै अतः इन विसगवतयों को दर करना तथा व्यवक्त के व्यवक्तत्ि का समग्र विकास करना ही वशक्षा ं ू का मख्य लक्ष्य ह ै ।आईए यह समझने का प्रयास करें वक इन विवभन्न विविधता एि असमानता से यक्त ु ु ं एि सीमातता के वशकार विवभन समदायों एि उनके व्यवक्तयों की वशक्षा से अपेक्षा एि माग क्या ह।ै ु ं ं ं ं ं 3.4.1 शिक्षा से इन समिायों और व्यशियों की शवशभन्न मार्ों को समझना ु ं समाज के हर व्यवक्त का सिाांगीण ण विकास ही वशक्षा का मख्य लक्ष्य ह।ै समाज का िह समदाय जो वकन्ही ु ु कारणों, चाह े िह प्राकवतक कारण हो या मानि जवनत कारण, से विकास की प्रवक्रया म ें मख्यधारा से पीछे ृ ु ं रह गया ह,ै वशक्षा से अपेक्षा रखता ह ै वक उसे सामथणिान बनाकर राष्र के विकास की मख्य धारा में ु शावमल होने म ें सहायक हो। जब हम भारतीय समाज के स्िप प,उसकी विविधता , सिधैं ावनक एि ं शवै क्षक उपबध पर दृवष्टपात करते ह ैं तो हम पाते ह ैं वक वशक्षा को समाज के हर व्यवक्त वक क्षमता का ं विकास करके समाज वक मख्य धारा में लाने का प्रमख साधन स्िीकार वकया गया ह ै जो विवभन प्रकार से ु ु अपनी भवमका का वनिहण न करती ह।ै ू आईए दखे े वक वशक्षा अपनी इस भवमका का वकस प्रकार एि वकन क्षेत्रों म ें वनिहण न करती ह।ै ू ं 1. प्राकशतक क्षमताओ का शवकास - हर व्यवक्त जन्म से कछ प्राकवतक शवक्तयों एि क्षमताओ ृ ृ ु ं ं ं को लेकर जन्म लेता ह ै जो उपयक्त िातािरण म ें पकलवित-पवष्पत होती ह।ै समाज जवनत ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 28 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं िातािरणीय कारणों से उपयक्त अिसर न वमलने के कारण समाज के अनेक िगण विशेष रूप से ु अनसवचत जावत, अनसवचत जनजावत, अकपसख्यक एि मवहलाए विकास की दौड़ म ें हावशये ु ू ु ू ं ं ं पर चले गये। वशक्षा ही िह साधन ह ै जो इन हावशयें पर चल े गये िगों की अन्तवनणवहत शवक्तयों का विकास कर उन्ह े राष्र के उत्थान म ें अपना योगदान दने े म ें समथण बना सकती ह।ै 2. जीशवकोपाजिन की क्षमता का शवकास - इन सीमान्त एि उपेवक्षत व्यवक्तयों एि िगों की ं ं वशक्षा से दसरी महत्िपण ण माग ह ै – जीविकोपाजनण की क्षमता का विकास । समाज के सीमान्त ू ं ू िग ण के समक्ष सबसे बड़ी समस्या जीविकोपाजनण की ह।ै समाज म ें उत्पादन के साधनों पर समाज के उच्च ि मध्यम िग ण का आवधपत्य होने के कारण सीमान्त िग ण उपेक्षा एि शोषण के वशकार ं बन कर रह गये वजसके कारण उन्ह ें जीविकोपाजनण हते ससाधनों ि जीविकोपाजनण के साधनों के ु ं ज्ञान का अभाि रहा ह।ै वशक्षा ही िह साधन ह ै जो समाज के सीमान्त िग ण को जीविकोपाजनण की कला म ें प्रिीण बनाकर उन्ह ें आवथणक रूप से स्िािलम्बी बना सकती ह।ै वशक्षा से इन व्यवक्तयों तथा िगों वक यह माग ह ै वक िह उन्ह ें जीविकोपाजनण के साधनों एि कौशलों का विकास कर ं ं आवथणक विकास म ें योगदान दने े म ें सक्षम बनाये। 3. नार्ररक जीवन का प्रशिक्षर्- समाज के सीमान्त िग ण शोषण ि दमन के कारण समाज म ें
प्राप्त सिधै ावनक अवधकारों का उपयोग करने म ें भी असमथण रहते ह ैं । बहध दखे ा गया ह ै वक समाज के ु ं वपछड़े ि दवलत िग ण अपनी वनयवत को ईश्वर की दने मानकर एक नागररक के रूप म ें प्राप्त
सिधै ावनक ि काननी अवधकारों का भी उपयोग नहीं कर पाते। अतः इन समदायों की वशक्षा स े ू ु ं यह अपेक्षा ह ै वक वशक्षा द्वारा उन्ह ें नागररकता का प्रवशक्षण वमले वजससे िह समाज के सवक्रय नागररक के रूप म ें लोकतावन्त्रक प्रवक्रया म ें भागीदारी लेकर नई वस्थवतयों का सामना करने म ें सक्षम हो सकें तथा स्िय के एि राष्र के विकास म ें अपना योगदा द े सकें । ं ं 4. चररत्र शनमािर् - समाज के सीमान्त िग ण अपनी उपेक्षा से त्रस्त होकर अनेक बार असमावजक कायों म े वलप्त हो जाते ह ैं या कई बार सवक्रय सामावजक जीिन से पलायन कर एकाकी जीिन जीने लगते ह।ै समाज के सीमान्त िग ण वशक्षा से आशा करते हैं वक िह समाज म ें व्याप्त असमानता ि भदे भाि की दीिार को वगराने म ें सहायक हो तथा उनके आत्मबल का इस प्रकार विकास करे वक िह समाज म ें सम्मान पिकण जीिनयापन करने म ें समथण हो सके । इस प्रकार ू वशक्षा से अपेक्षा ह ै वक िह चाररवत्रक विकास म ें सहायक हो सके तथा समाज के सीमान्त िग ण को राष्र की मख्य धारा म ें शावमल कर सके । ु 5. व्यशित्व का सवाांर्ीर् शवकास - समाज का सीमान्त िग,ण समाज के शवक्तशाली िग ण द्वारा दवमत ि उत्पीवड़त होने के कारण व्यवक्तत्ि के सिाांगीण ण विकास से उपेवक्षत रहा ह।ै अतः समाज का सीमान्त िग ण वशक्षा से शारीररक, मानवसक, नैवतक, सामावजक, सास्कवतक एि अध्यावत्मक ृ ं ं विकास की अपेक्षा रखता ह।ै वशक्षा का दावयत्ि ह ै वक िह समाज के उपेवक्षत िग ण के व्यवक्तत्ि विकास म ें मख्य भवमका वनभाये। इस के वलए पाठयचयाण म ें आमलचल पररितणन की ् ु ू ू ू आिश्यकता ह।ै पाठयचयाण में पररितणन के साथ-साथ वशक्षण पिवत म ें भी बदलाि जरूरी ह ै ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 29 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षण पिवत सहभावगता तथा जनतावत्रक मकयों पर आधाररत होनी चावहए तभी सीमान्त िग ण ू ं के व्यवक्तयों के व्यवक्तत्ि का सिाांगीण ण विकास सम्भि होगा। 6. सामाशजक कौिलों का शवकास - समाज म ें हर व्यवक्त अपनी भवमका का वनिहण न कर समाज ू का उपयोगी नागररक बन सके यह वशक्षा की सबसे महत्िपण ण वजम्मदे ारी ह।ै सामावजक
कौशलों ू के विकास के वबना यह सम्भि नही ह।ै अतः वशक्षा के द्वारा सामावजक कौशलों का विकास वकया जाना चावहए। समाज का उपेवक्षत ि िवचत िग ण समाज के अन्य लोगों के साथ सामजस्य ं ं स्थावपत कर सके तथा समाज म ें स्िस्थ सामावजक िातािरण का विकास हो सके यह वशक्षा का एक महत्िपण ण दावयत्ि ह।ै अतः सामावजक कौशलों का विकास
हमारी पाठयचयाण का मख्य ् ू ु के न्र हो यह इन सीमान्त िगण के व्यवक्तयों एि समदायों की वशक्षा से अपेक्षा ह ै । ु ं 7. समाजोपयोर्ी नार्ररक का शनमािर् - मानि पजी वकसी भी समाज के विकास का मख्य ू ु ं आधार होती ह ै अतः वशक्षा के द्वारा समाज के वलए उपयोगी नागररक का वनमाणण हमारी प्राथवमकता होनी चावहए। समाज का हर व्यवक्त मानि पाँजी ह ै वजसके सम्यक विकास के वबना ू समाज का विकास सम्भि नहीं ह।ै वशक्षा के द्वारा समाज की माग के अनरूप मानिीय शवक्त का ु ं विकास वकया जाना चावहए तभी हर नागररक समाज के उत्थान म ें अपना योगदान द े सके गा। 8. राष्ट्रीयता की भावना का शवकास - समाज का सीमात िग ण एक लम्बे समय से उपेवक्षत रहने ं के कारण अपने आप को राष्र की मख्य धारा से कटा हआ महसस करता ह ै वजसके कारण ु ु ू अलगाििाद ि परायेपन की भािना ि कण्ठा जन्म लेने लगती ह।ै वशक्षा की यह वजम्मदे ारी ु बनती ह ै वक हर नागररक अपने आपको राष्र का समान नागररक समझ े तथा राष्रीयता की भािना से ओत-प्रोत होकर राष्र के पनवनणमाणण म ें अपनी सहभावगता द।े हमारी पाठयचयाण म ें ् ु राष्रीयता के तत्िों को और समि वकया जाना चावहए वजससे समाज का हर िग ण अपने आप को ृ राष्र का अवभन्न एि अवनिायण अग समझे। ं ं 9. शवश्व-बन्धत्व की भावना का शवकास- के िल राष्रीयता की भािना ही नहीं अवपत विश्व ु ु बन्धत्ि का भी बोध हर नागररक को कराना वशक्षा का प्रमख कायण ह।ै विश्व बन्धत्ि से ही शावत ु ु ु ं एि प्रगवत सम्भि ह।ै ं इस प्रकार आप दखे सकत े ह ैं वक वशक्षा ही िह अवभकरण ह ै वजससे समाज का सीमान्त िगण बड़ी ही आशा भरी दृवष्ट से दखे ता ह ै तथा अपेक्षा रखता ह ै वक वशक्षा उसे आत्मवनभरण बनाकर उसे लोकतावन्त्रक तरीके से आवथणक एि सामावजक विकास में योगदान दने े म ें समथण बनाये। ं 3.4.2 मार्ों की पशति के शलए उशचत सामाशजक िैक्षशर्क रर्नीशत ू ं अब आप यह बात तो समझ ही गए होंग े वक समाज की विविधता से उत्पन्न जवटलताओ एि समाज में ं ं प्रकवत या मानि जवनत विषमताओ ि विसगवतयों को दर करने के वलए वशक्षा एक महत्िपण ण साधन ह।ै ृ ू ं ं ू सामावजक समता एि समानता की स्थापना तथा समाज के हर िग ण को राष्र की विकास की मख्य धारा म ें ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 30 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं लाना ही राष्र का मख्य लक्ष्य ह ै वजसकी सप्रावप्त वशक्षा द्वारा ही सभि ह।ै समाज का सीमान्त िगण जो ु ं एक लबे समय से राष्र की मख्य धारा से अलग थलग रहा ह ै बदली पररवस्थवतयों में अपनी भवमका के ु ू ं वनिहण न के वलए विवभन मागे रखता ह ै वजसका आपने अभी अिलोकन वकया । सीमान्त िग ण की इन ं विवभन्न मागों की पवतण के वलए उवचत सामावजक तथा शक्षै वणक रणनीवतयों को तैयार करने की ू ं आिश्यकता ह।ै आईए यह जानने का प्रयास करें वक सीमान्त िग ण के इन व्यवक्तयों एि समदायों की मागों वक पवतण के ु ू ं वलए विवभन्न सामावजक एि शवै क्षक रणनीवतया क्या हो सकती ह ैं ? सबसे पहले बात करते ह ैं ं ं सामावजक रणनीवतयों की। सामाशजक रर्नीशतयााँ 1. समाज को मख्य धारा में जोड़ना - सामावजक विविधता एि विषमता के कारण समाज का जो ु ं िग ण सीमान्त रह गया उसे समाज एि राष्र की मख्य धारा म ें लाना समाज की प्रमख सामावजक ु ु ं रणनीवत होनी चावहए। समाज के सीमान्त िग ण के हर व्यवक्त एि समदाय को समाज के नीवत ु ं वनमाणण से लेकर वक्रयान्ियन, शासन-प्रशासन इत्यावद हर जगह समान अिसर वमलना चावहए। सरकार की ककयाणकारी योजनाए समाज के हर अवतम व्यवक्त तक पहचाँ सकें , इसका प्रयास ु ं ं होना चावहए। 2. समान नार्ररक एव राजनैशतक अशधकार उपलब्ध कराना- सीमान्त िगण को राष्र की मख्या ु ं धारा म ें लाने के वलए दसरी प्रमख सामावजक रणनीवत ह-ै समान नागररक एि राजनैवतक ु ं ू अवधकारों की उपलब्धता। समाज के उपेवक्षत िग ण को व्यवक्तगत स्ितन्त्रता , सरक्षा, जीिन ु जीने का समान अवधकार वमल सके , सभी कानन के समक्ष समान हों तथा कानन का समान ू ू सरक्षण सभी को हो। इस प्रकार समाज के हर िग ण एि व्यवक्त को सभी प्रकार के नागररक तथा ं ं राजनैवतक अवधकारों का वबना वकसी भय के समान रूप स े उपयोग करने का अिसर उपलब्ध करान े का प्रयास होना चावहए । 3. आशथिक स्वावलम्बन- समाज के सीमान्त िग ण को आवथणकप प से स्िािलम्बी बनाकर शोषण के चक्र स े मवक्त वदलाना तथा राष्र की आवथणक विकास की मख्या धारा में ले आना सबसे ु ु महत्िपण ण सामावजक रणनीवत ह ै वजसके द्वारा सीमातता की विरप समस्या को समाप्त वकया जा ू ं ू सकता ह ै । इसके वलए आिश्यक ह ै वक वशक्षा द्वारा कौशलों का विकास वकया जाए तथा तथा रोजगारोन्मखी पाठयक्रम के द्वारा समाज के सीमान्त िग ण को कशल मानि पजी के रूप म ें ् ु ु ूं स्थावपत करके आवथणक रूप से पण ण स्िािलम्बी बनाया जाए। ू ं 4. सामाशजक सरक्षा तथा सम्मान - समाज के सीमान्त िगण लम्बे समय तक उपेवक्षत ि िवचत ु ं होने के कारण समाज से जड़ाि नहीं महसस कर पाते। समाज का यह दावयत्ि ह े वक िह समाज ु ू के सीमान्त िग ण को सामावजक सरक्षा उपलब्ध कराये तथा समाज म ें उन्ह े सम्मावनत स्थान प्रदान ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 31 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं करे । अतः सामावजक सरक्षा तथा सम्मान सीमान्त िग ण के व्यवक्तयों एि समदायों को समाज की ु ु ं मख्या धारा म ें लान े की एक महत्िपणण सामावजक रणनीवत के रूप म ें प्रयक्त वकया जाना चावहए । ु ू ु 5. समतामलक समाज की स्थापना- समाज के िवचत ि उपेवक्षत सीमान्त िग ण को समता
के ू ं आधार पर सरकारी सेिाओ तथा शवै क्षक सस्थाओ म ें आरक्षण प्रदान कर उन्ह ें राज्य की मख्य ु ं ं ं धारा म ें लाने का प्रयास वकया जाये। भारत म ें इस आधार पर आरक्षण की व्यिस्था की गयी ह ै वकन्त इसे हर सीमान्त व्यवक्त तक पहचाने का प्रयास
होना चावहए। ु ु उपयणक्त सामावजक रणनीवतयों के साथ साथ इन सीमान्त िग ण के व्यवक्तयों एि समदायों को राष्र ु ु ं की मख्य धारा म ें लान े के वलए शवै क्षक रणनीवतयों की भी आिश्यकता ह।ै आईए इनका भी एक ु विश्लेषण करें । िैशक्षक रर्नीशतयााँ 1. शिक्षा के अवसरों की समानता - समाज का यह दावयत्ि है वक समाज में विशषे अवधकार िाला िग ण न रह े और सबको उन्नवत के समान अिसर वमले । सभी व्यवक्तयों को उनके शारीररक, मानवसक, नैवतक विकास का समान अिसर वमले वजसके वलए आिश्यकता ह ै वक सभी व्यवक्तयों को वबना वकसी भदे भाि के शक्षै क अिसरों की समानता वमले अथाणत सामावजक, सास्कवतक ि आवथणक स्तर , वशक्षा के अिसरों की समानता म ें बाधक न हो। ृ ं 2. छात्रवशि की व्यवस्था - समाज के सीमान्त िग ण के लोगों का शवै क्षक स्तर उठाने के वलए ृ सरकार द्वारा छात्रिवत्त की योजना वक्रयावन्ित की गई ह।ै सरकार का प्रयास होना चावहए वक धन ृ के अभाि म ें कोई भी सीमान्त समदाय का विद्याथी वशक्षा से िवचत न हो। ु ं 3. प्रशतयोर्ी परीक्षाओ के शलए शनिःिल्क कोशचर् - सरकार द्वारा वपछड़े िग ण एि सीमान्त ु ं ं ं समदाय के लोगों के वलए प्रवतयोगी परीक्षाओ म ें उनकी सहभावगता बढ़ाने तथा उन्ह ें प्रेररत एि ु ं ं प्रवशवक्षत करने के वलए वनःशकक कोवचग की व्यिस्था की जाती ह।ै इसके द्वारा विवभन्न ु ं प्रशासकीय सेिाओ, बैंक, रेलि,े वनगमों आवद सरकारी नौकररयों म ें अवधक से अवधक ं सहभावगता बढ़ाने के वलए पिण-प्रवशक्षण के न्र की स्थापना की गयी ह।ै ऐसे के न्रों के माध्यम से ू समाज के सीमान्त िग ण के सदस्यों को अवभमखीकरण एि प्रवशक्षण दके र और अवधक ु ं प्रोत्सावहत वकया जाना चावहए। 4. व्यावसाशयक एव तकनीकी पाठयक्रमों में प्रवेि- सीमान्त िग ण के विद्यावथणयों को ् ं व्यािसावयक एि तकनीकी पाठयक्रमों म ें प्रिेश के वलए प्रोत्सावहत वकया जाना चावहए वजससे ि े ् ं स्िािलम्बी बनकर राष्र के विकास म ें अपना योगदान द े सकें । 5. छात्रावास की सशवधा - सीमान्त िग ण के विद्यावथणयों को वनःशकक छात्रािास की सविधा ु ु ु उपलब्ध करायी जाये वजससे िह वबना वकसी बाधा के अध्ययन कर सकें । 6. शविीय सहायता- सीमान्त िग ण के विद्यावथणयों को के िल अध्ययन हते ही वित्तीय सहायता नहीं ु वमलनी चावहए अवपत कौशल विकास करके उन्ह ें उद्यम स्थावपत करने हते भी आवथणक सहायता ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 32 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं उपलब्ध करायी जानी चावहये वजससे िह अध्ययन के उपरान्त अपने कौशल का उपयोग स्िय ं के तथा राष्र के विकास के वलए कर सकें । 7. शवद्यालयी पाठयचचाि सधार - सीमान्त िग ण के विद्यावथणयों की आिश्यकताओ को ध्यान म ें ् ु ं रखकर पाठयचया ण का पनवनणमाणण वकया जाना चावहए वजसम ें इस बात का परा ध्यान रखा जाना ् ु ू चावहए वक सीमान्त िग ण के लोग अपनी क्षमताओ के विकास का परा अिसर पा सकें । ू ं पाठयचया ण का वनधाणरण इस प्रकार होना चावहए वक िह उनके व्यवक्तत्ि का विकास कर सके ् साथ ही रोजगार के अिसर भी उपलब्ध करा सके । पाठयचचाण का वनधाणरण इस प्रकार हो वक ् सीमान्त िग ण के लोग पाठयचयाण से जड़ाि महसस कर सकें तथा उनके व्यवक्तत्ि एि सामावजक ् ु ू ं कौशलों का विकास हो सके वजससे िह समाजोपयोगी नागररक बन कर राष्र के विकास म ें योगदान द े सकें । पाठयचया ण म ें राष्रीय एकता एि विश्व बन्धत्ि की भािना का भी समािेश होना ् ु ं चावहए। इस प्रकार आप पाते ह ैं वक उपयणक्त सामावजक एि शवै क्षक रणनीवतयों का विकास कर समाज म ें व्याप्त ु ं विविधता को एक समस्या नहीं अवपत ससाधन के रूप दखे ा जा सकता ह ै और इस विविधता का ु ं उपयोग सजनात्मकता के विकास के वलए वकया जा सकता ह ै तथा विविधता जवनत विषमता या ृ असमानता को दर करके समाज के द्वारा सबी व्यवक्तयों , विशषे रूप से अब तक सीमान्त रह े ू व्यवक्तयों एि समदायों को राष्र के विकास की मख्य धारा से जोड़ा जा सकता ह ै ु ु ं अभ्यास प्रश्न 4. वशक्षा का मख्य लक्ष्य ह ै ु a. समाज के हर व्यवक्त का सिाांगीण विकास b. रोजगार सजन ृ c. आवथणक स्िािलबन d. उपयणक्त में से कोई नहीं ु ं 5. सीमान्त िगण के व्यवक्तयों की मागों की पवतण हते उपयक्त सामावजक सामावजक रणनीवत ह ै : ू ु ु ं a. समान नागररक एि राजनैवतक अवधकारों की उपलब्धता ं b. आवथणक रूप से स्िािलम्बी बनाना c. सामावजक सरक्षा तथा सम्मान ु d. उपयणक्त सभी ु 6. सीमान्त िगण के व्यवक्तयों की मागों की पवतण हते उपयक्त शवै क्षक रणनीवत ह ै : ू ु ु ं a. वशक्षा के अिसरों की समानता b. व्यािसावयक एि तकनीकी पाठयक्रमों के वलए प्रोत्साहन ् ं c. विद्यालयी पाठयचयाण में सधार ् ु d. उपयणक्त सभी ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 33 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.5 मारांश भारत के भौगोवलक एिम सास्कवतक विविधता से यक्त िवै िध्यपण ण िातािरण को दृवष्टगत रखत े हए ु ृ ु ू ं भारतीय सविधान द्वारा समतामलक लोकतावन्त्रक समाज की स्थापना करने के वलए न्याय, स्ितत्रता , ू ं ं समानता तथा बधत्ि के चार आधारभत मकयों पर बल वदया गया ह ै जो समाज के सभी िगों एि व्यवक्तयों ु ू ू ं ं को विकास का सामान अिसर एि सरक्षा उपलब्ध कराने के वलए सककपबि ह ै भारतीय समाज में पायी ु ं ं जान े िाली विविध हम ें अनेक रूपों म ें वदखाई दते ी ह ै जसै े नजातीयता,जावत , िगण, धम,ण क्षेत्र , वलग भदे ृ ं आधाररत विविधता इत्यावद। विविधता का सरक्षण करना तथा उसे असमानता एि शोषण का अि न ं ं बनने दने ा वशक्षा का मख्य कायण ह ै । समाज में कछ िगण एि व्यवक्त समाज के ससाधनों का दोहन करके ु ु ं ं विकास के पथ पर अग्रस हो गए तथा कछ शोवषत ि दवमत हो कर सीमान्त रह गए । वशक्षा का प्रमख ु ु दावयत्ि ह ै की समाज के इन सीमान्त ि उपेवक्षत िगों एि व्यवक्तयों की आिश्यकताओ को समझ कर ं ं उन्ह ें ऐसे अिसर उपलब्ध कराए वजससे िह सभी राष्र की मख धारा में शावमल हो सकें । इन सीमान्त ु समदाय के सभी िगों एि व्यवक्तयों की वशक्षा से अपेक्षा ह ै वक िह उनकी नैसवगकण क्षमता का विकास करे ु ं तथा जीविकोपाजनण की क्षमता का विकास करके उन्ह ें आवथणक रूप से स्िािलबी बनाये साथ ही ं सामावजक कौशलों का विकास करके एि नागरवक जीिन का प्रवशक्षण दके र उन्ह ें समाज का सम्मावनत ं नागररक बनने म ें सहायक हो । इन िगों एि व्यवक्तयों को सीमातता से हटा कर समाज की मख्य मख्य ु ु ं ं धारा म ें लान े के वलए विवभन सामावजक एि शवै क्षक रणनीवतयों के वक्रयान्ियन की आिश्यकता ह ै वजनमे ं नीवत वनमाणण से वक्रयान्ियन तक सहभावगता, समान नागररक एि राजनैवतक अवधकारों वक उलब्धता , ं आवथणक स्िािलबन, सामावजक सरक्षा तथा सम्मान आवद सामावजक रणनीवतयों के अवतररक्त वशक्षा के ु ं अिसरों की समानता , छात्रिवत्त की व्यिस्था, प्रवतयोगी परीक्षाओ के वलए वनःशकक कोवचग , वनःशकक ृ ु ु ं ं छात्रािास, वित्तीय सहायता , विदद्यालयीय पाठयचया ण में सधार इत्यावद शवै क्षक रणनीवतयों के ् ु ् वक्रयान्ियन की आिश्यकता ह।ै 3.6 शब्द ावली 1. अस्पश्य: वजस े नीच जावत का होने के कारन स्पश ण योग्य न माना जाता हो ृ 2. नजातीयता : विशेष मानि जावत या प्रजावत से सम्बवधत ृ ं 3. समतािाद : सभी िगों तथा उनके सदस्यों के प्रवत समान व्यिहार करने की नीवत या वसिात ं 3.7 अभ्य ाम प्रश् नों के उत्त र 1. d 2. a 3. d उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 34 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4. a 5. d 6. d 3.8 मंदभ णग्रंथ मची ू 1. गोरे, ऍम० एस० एि दसे ाई आई० पी० , (1967) . पेपसण इन सोवशयोलॉजी ऑफ़ एजके शन इन ु ं इवडया , वदकली , एन० सी ० ई ० आर० टी ० । ं 2. चरा, एस० एस० एि शमाण आर ० के ० (2012), सोवशयोलॉजी ऑफ़ एजके शन , वदकली , ु ं ं अटलावटक पवब्लशसण एि वडस्रीब्यटसण। ू ं ं 3. तनेजा , िी ० आर ० (2005) , सोवसओ-वफलोसोवफकल अप्प्रोच ट एजके शन , वदकली , ू ु अटलावटक पवब्लशसण एि वडस्रीब्यटसण। ू ं ं 4. राष्रीय पाठयचया ण की प परेखा (2005) वदकली , एन० सी ० ई ० आर० टी ० । ् 5. िमाण , आचायण रामचर (2012) . लोकभारती िहत प्रमावणक वहदी कोष , इलाहबाद ,लोकभारती ृ ं ं प्रकाशन 6. शमाण योगरें के ० (2012).फाउडेशन इन सोवशयोलॉजी ऑफ़ एजके शन , कवनष्का पवब्लके शन्स। ु ं 7. शाह बी ० िी ० एि शाह के ० बी ० (2014) . सोवशयोलॉजी ऑफ़ एजके शन , राित ु ं पवब्लके शन्स। 8. शक्ला , ऍस० एि कमार कष्ण ( सपा० ) (1985 ) . सोवशयोलॉवजकल पसणपेवक्टि इन एजके शन ृ ु ु ु ं ं , वदकली , चाणक्य प्रकाशन । 3.9 वनबधात्म क प्रश्न ं 1. भारतीय सविधान द्वारा भारत को एक समतामलक लोकतावत्रक समाज के रूप म ें प्रवतवष्ठत करने ू ं ं के वलए वकन आधारभत मकयों पर बल वदया गया ह?ै ू ू 2. भारतीय सविधान द्वारा विषमता को दर करने एि समानता स्थावपत करने के वलए वकन ं ं ू सिधै ावनक उपबधों का प्रािधान वकया गया ह ै ? सीमान्त िगों एि व्यवक्तयों के वहतों के सरक्षण ं ं ं ं एि सिधणन में इनकी क्या भवमका ह ै ? ू ं ं 3. सीमान्त िगों एि व्यवक्तयों की वशक्षा से प्रमख माग े क्या ह?ैं इन मागों की पवतण हते आप उवचत ु ू ु ं ं ं सामावजक एि शवै क्षक रणनीवतयों का विकास कीवजये? ं 4. भारतीय समाज म ें व्याप्त असमानताओ को सचीबि कीवजये आपके आस-पास उनमें से वकस ू ं प्रकार की असमानता बहलता में वदखाई दते ी ह ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 35 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5. आपकी कक्षा म ें पढ़ने िाले विद्यावथणयों की मातभाषा एि कक्षीय सिाद की भाषा क्या ? इसकी ृ ं ं एक सची बनाइय े तथा भाषायी विविधता का विश्लेषण कीवजये ।आपकी राय में विद्यालयों म ें ू वकतनी भाषाएाँ पढ़ाई जाए । ं 6. ''सीमातता समाज की एक बहत बड़ी समस्या ह ै '' इस कथन पर अपना दृवष्टकोण स्पस्ट कीवजये ु ं तथा समाज म ें व्याप्त सीमातता को दर करने के उपाय सझाइय।े ु ं ू 7. सीमान्त िगों एि व्यवक्तयों के वहतों के सरक्षण एि सिधणन हते विद्यालयी पाठयचयाण में आप ् ु ं ं ं ं वकस प्रकार के सधारों की अपेक्षा रखते ह?ैं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 36 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं Unit 4- विवििता के सन्दि में बच्चों को विकवसत करने में ण विक्षा की िूवमका Role of Education in grooming children to respect the diversities – designing effective educational institution through the creation of appropriate learning experiences in and outside the classroom situation, Curricular Co- curricular and Extra – Curricular Activities . 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 वशक्षा का अथण 4.4 बालकों के विकास में वशक्षा की भवमका ू 4.5 बालकों को सिारने (Grooming) म ें वशक्षा का कायण ं 4.6 सामावजक विविधता, िैयवक्तक विवभन्नता एि अनभि शक ु ु ं ं 4.7 शैवक्षक पाठयक्रम के द्वारा विकास ् 4.8 पाठय सहगामी वक्रयाए एि पाठयेतर गवतविवधयााँ का अथण ् ् ं ं 4.9 पाठय सहगामी वक्रयाओ का उद्दश्े य ् ं 4.10 सह पाठयक्रम गवतविवधओ के उदाहरण ं 4.11 छात्र और सह पाठयक्रम गवतविवधओ का महत्ि ं 4.12 सह पाठयक्रम गवतविवधओ के लाभ ं 4.13 साराश ं 4.14 शब्दािली 4.15 सन्दभण ग्रन्थ सची ू 4.16 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 37 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.1 प्रस्तावना हमारी प्िी विविधताओ से पररपण ण ह ै । यहााँ पर विविध प्रकार के जीि-जत, पश –पक्षी एि िस्त ृ ू ु ु ु ं ं ं उपवस्थत ह ै। इन विविधताओ म ेंप्िी पर मानि की उपवस्थवत और चार चााँद लगाता ह ै । यह माना जाता ृ ं ह ै वक प्िी पर सबसे समझदार, वक्रयात्मक, सजनशील, एि वचतनशील प्राणी मानि ही ह ै । मानि प्िी ृ ृ ृ ं ं पर प्रकवत का एक ऐसी अनपम दने ह ै जो अपनी योग्यता एि क्षमताओ के कारण वकसी भी िस्त एि ृ ु ु ं ं ं पररवस्थवत को अपने आिश्यकता के अनरूप पररितणन कर सकता ह ै । यहााँ पर मानि एि अन्य प्राणी में ु ं एक महत्िपण ण अतर यह ह ै की मानि वचन्तनशील प्राणी ह ै । मानि का वचन्तनशील प्राणी होने का ही ू ं नतीजा ह ै वक िह सम्पण ण पररवस्थवत को अपने आिश्यकता अनसार वनयवत्रत कर लेता ह ै । वजसके ू ु ं फलस्िरूप मानि नये-नये िज्ञै ावनक अविष्कार, अपने आिश्यकताओ की पवतण के वलए मशीन, कप्यटर ू ू ं ं इत्यावद का वनमाणण वकया ह ै । अब प्रश्न उठता ह ै वक कौन ऐसी प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा मानि अपने आप को इस प्िी के एक सिश्रण ेष्ट मानि के रूप म ें स्थावपत वकया ह ै । इस प्रश्न का यवद गहनता से वचतन वकया ृ ं जाय तो हम सभी इस वनष्कषण पर पहचेंग े की वशक्षा ही िह प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा मानि यहााँ के एक ु सिश्रण ेष्ट प्राणी के रूप म ें अपने आप को स्थावपत वकया ह ै । वशक्षा एक ऐसी प्रवक्रया है वजसके द्वारा मानि अपने आतररक योग्यताओ एि क्षमताओ को विकवसत करने का प्रयास करता ह ै । मानि विकास के वलए ं ं ं ं वशक्षा एक ऐसी उपकरण ह ै वजसके सहायता से ि े अपने योग्यताओ को पणरूण प से विकवसत करने का ू ं प्रयास करता ह ै । वशक्षा शािी एि मनोिैज्ञावनक के अनसार मानि में कई तरह की ियै वक्तक विवभन्नता ु ं पाई जाती ह ै । यह िैयवक्तक विवभन्नता मानि के अवधगम क्षमता, वचतन शीलता एि तकण करने की ं ं क्षमता को प्रभावित करता ह ै । मनोिज्ञै ावनक के अनसार अपने ियै वक्तक विवभन्नता िाले गण के कारण ही ु ु मानि अपने िातािरण अपिण रूप से समायोजन करता एि अपि ण रूप से वशक्षा ग्रहण करता ह ै । ब्लम ू ू ू ं महोदय के अनसार वशक्षा के द्वारा मानि अपने मानवसक विकास, भािनात्मक विकास, मनोग्त्यात्मक ु विकास करता ह,ै यवद कोई भी व्यवक्त इन सभी आयामों को विकवसत करने पर बल दते ा ह ै तो यह माना जाता ह ै वक उस व्यवक्त का सम्पण ण विकास हो रहा ह ै । मानि के सम्पण ण विकास के वलए के िल विद्यालयी ू ू पाठयक्रम की वशक्षा ही आिश्यक नही ह,ै उनकी सम्पण ण विकास के वलए सस्थागत वशक्षा के साथ –साथ ् ू ं पाठयेतर एि पाठयक्रम से अवतररक्त वशक्षा की भी आिश्यकता होती ह ै । ित्तमण ान अध्याय म ें हमलोग ् ् ं वशक्षा एि वशक्षा का महत्ि, पाठयक्रम, पाठयेतर एि अवतररक्त पाठयक्रम कै से बालक के व्यवक्तत्ि को ् ् ् ं ं सिारने म ें सहायक होता ह ै का अध्ययन करेंग े । 4.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात, आप- ् 1. वशक्षा के अथण को समझ पाएगे । ं 2. बालकों के विकास म ें वशक्षा के महत्ि को समझ पायेंग े । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 38 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3. बालकों की ियै वक्तक विवभन्नता एि उनके वशक्षा की आिश्यकता को समझ पायेंग े । ं 4. बालकों के विकास पर पाठयक्रम, पाठय सहगामी वक्रयायें एि पाठयेतर वक्रयाओ के प्रभाि को ् ् ् ं ं समझ पायेग ें । 5. बालकों के विकास के आयामों को समझ पायेंग े । 6. 4.3 वशक्षा का अथण वशक्षा म ें ज्ञान, उवचत आचरण और तकनीकी दक्षता, वशक्षण और विद्या प्रावप्त आवद समाविष्ट ह ैं । इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यिसायों एि मानवसक, नैवतक और सौन्दयण विषयक के ं उत्कष ण पर कें वरत ह ै । वशक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से वनचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तातरण का प्रयास ं ह ै । इस विचार से वशक्षा एक सस्था के रूप म ें काम करती ह,ै जो व्यवक्त विशषे को समाज से जोड़ने में ं महत्त्िपण ण भवमका वनभाती ह ै तथा समाज की सस्कवत की वनरतरता को बनाए रखती ह ै । बच्चा वशक्षा ृ ू ू ं ं द्वारा समाज के आधारभत वनयमों, व्यिस्थाओ, समाज के प्रवतमानों एि मकयों को सीखता ह ै । बच्चा ू ू ं ं समाज से तभी जड़ पाता ह ै जब िह उस समाज विशेष के इवतहास से रूबरू होता ह ै । ु वशक्षा व्यवक्त की अतवनणवहत क्षमता तथा उसके व्यवक्तत्त्ि का विकवसत करने िाली प्रवक्रया ह।ै ं यही प्रवक्रया उसे समाज में एक ियस्क की भवमका वनभाने के वलए समाजीकत करती ह ै तथा समाज के ृ ू सदस्य एि एक वजम्मदे ार नागररक बनने के वलए व्यवक्त को आिश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती ं ह ै । वशक्षा शब्द सस्कतभाषा की धात म ें प्रत्यय लगाने से बना ह ै । का अथण ह ै ृ ु ं ् ् सीखना और वसखाना । शब्द का अथण हआ सीखने-वसखाने की वक्रया । ु जब हम वशक्षा शब्द के प्रयोग को दखे ते ह ैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों म ें प्रयोग म ें लाया जाता ह,ै व्यापक रूप में तथा सकवचत रूप म ें । व्यापक अथण में वशक्षा वकसी समाज म ें सदिै चलने िाली ु ं सोद्दश्े य सामावजक प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा मनष्य की जन्मजात शवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एि ु ं कौशल म ें िवि एि व्यिहार म ें पररितणन वकया
जाता ह ै और इस प्रकार उसे सभ्य, ससस्कत एि योग्य ृ ृ ु ं ं ं नागररक बनाया जाता ह ै । मनष्य क्षण-प्रवतक्षण नए-नए अनभि प्राप्त करता ह ै ि करिाता ह ै वजससे उसका ु ु वदन-प्रवतदन का व्यिहार प्रभावित होता ह
ै । उसका यह सीखना-वसखाना विवभन्न समहों, उत्सिों, पत्र- ू पवत्रकाओ, दरदशनण आवद स े अनौपचाररक रूप से होता ह ै । यही सीखना-वसखाना वशक्षा के व्यापक तथा ं ू विस्तत रूप म ें आते ह ैं । सकवचत अथण म ें वशक्षा वकसी समाज म ें एक वनवश्चत समय तथा वनवश्चत स्थानों ृ ु ं (विद्यालय, महाविद्यालय) म ें सवनयोवजत ढग से चलने िाली एक सोद्दश्े य सामावजक प्रवक्रया ह ै वजसके ु ं द्वारा छात्र वनवश्चत पाठयक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओ को उत्तीण ण करना सीखता ह।ै ् ं वशक्षा पर विद्वानों के विचार उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 39 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विवभन्न दाशवण नकों, समाजशावियों, मनोिज्ञै ावनकों ि नीवतयों ने वशक्षा के सम्बन्ध म ें अपने विचार वदए ह।ैं वशक्षा के अथण को समझने म ें ये विचार भी हमारी सहायता करते ह।ैं कछ वशक्षा सम्बन्धी मख्य विचार ु ु यहााँ प्रस्तत वकए जा रह े ह ैं - ु वशक्षा से मरे ा तात्पयण बालक और मनष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सिाांगीण एि सिोत्कष्ट ृ ु ं विकास से ह ै । (महात्मा गाधी) ं मनष्य की अन्तवनणवहत पणणता को अवभव्यक्त करना ही वशक्षा ह ै । (स्िामी वििके ानन्द) ु ू वशक्षा व्यवक्त की उन सभी भीतरी शवक्तयों का विकास ह ै वजससे िह अपने िातािरण पर वनयत्रण ं रखकर अपने उत्तरदावयत्त्िों का वनिाणह कर सके । (जॉन डयिी) ् ू प्राचीन भारत म ें वशक्षा का मख्य उद्दश्े य की चाह रही ह ै ( सा विद्या या विमक्तये / विद्या उसे कहते ु ु ु ह ैं जो विमक्त कर द े ) बाद म ें समय के रूप बदलने से वशक्षा ने भी उसी तरह उद्दश्े य बदल वलए। ु अभ्यास प्रश्न 1. वशक्षा का अथण क्या ह ै ? 2. वशक्षा को पररभावषत करें । 4.4 बालकों के ववकाम म वशक्षा की भूवमका ें निजात वशश असहाय तथा असामावजक
होता ह ै । िह न बोलना जनता ह ै न चलना-वफरना । उसका न ु कोई वमत्र होता ह ै और न शत्र । यही नहीं, उसे समाज के रीवत-ररिाजों तथा परम्पराओ का ज्ञान भी नहीं ु ं होता ह ै और न ही उसम ें वकसी आदश ण तथा मकय को प्राप्त करन
े की वजज्ञासा पाई जाती ह ै । परन्त जसै े ू ु जसै े िह बड़ा होता जाता ह ै िैसे-िसै े उस पैर वशक्षा के औपचाररक तथा अनौपचाररक साधनों का प्रभाि पड़ता जाता ह ै । इस प्रभाि के कारण उसका जहााँ एक ओर शारीररक, मानवसक तथा सिेगात्मक विकास ं होता जाता ह ै िहााँ दसरी ओर उसम ें सामावजक भािना भी विकवसत होती जाती ह ै । पररणामस्िप प िह ू शनै े-शनै े: प्रौढ़ व्यवक्तओ के उतदवण यत्िों को सफलतापिकण वनभाने के करने के योग्य बन जाता ह ै । इस ू ं प्रकार हम दखे ते ह ैं वक बालक के व्यिहार म ें िाछनीय पररितणन करने के वलए व्यिवस्थत वशक्षा की परम ं आिश्यकता ह ै । सच तो यह ह ै वक वशक्षा से इतने लाभ ह ैं वक उनका िणनण करना कवठन ह ै । इस सदभ ण म ें ं यहााँ के िल इतना कह दने ा ही पयाणप्त होगा की वशक्षा माता के सामान पालन-पोषण करती ह,ै वपता के समान उवचत मागण-दशनण द्वारा अपने कायों में लगाती ह ै तथा पत्नी की भावत सासाररक वचन्ताओ को दर ं ं ं ू करके प्रसन्नता प्रदान करती ह ै । वशक्षा के ही द्वारा हमारी कीवतण का प्रकाश चारों ओर फै लता ह ै तथा वशक्षा ही हमारी समस्याओ को सलझाती ह ै एि हमारे जीिन को ससस्कत करती ह ै । हम दशे म ें रह ें ृ ु ु ं ं ं अथिा विदशे म ें वशक्षा हमारे वलए क्या-क्या नहीं करती । कहने का तात्पयण यह ह ै वक वजस प्रकार सयण का ू प्रकाश पाकर कमल का फल वखल उठता ह ै तथा सयण अस्त होने पर कम्हला जाता ह,ै ठीक उसी प्रकार ू ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 40 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षा के प्रकाश को पाकर प्रत्येक व्यवक्त कमल के फल की भावत वखल उठता ह ै तथा अवशवक्षत रहने पर ू ं दरररता, शोक एि कष्ट के अधकार म ें डबा रहता ह ै । सक्षेप म,ें वशक्षा िह प्रकाश ह ै वजसके द्वारा बालक ू ं ं ं की समस्त शारीररक, मानवसक, सामावजक तथा अध्यावत्मक शवक्तयों का विकास होता ह ै । इससे िह समाज का एक उतरदायी घटक एि राष्र का प्रखर चररत्र-सपन्न नागररक बनकर समाज की सिाांगीण ं ं उन्नवत म ें अपनी शवक्त का उतरोतर प्रयोग करने की भािना से ओत-प्रोत होकर सस्कवत तथा सभ्यता को ृ ं पनजीवित एि पनणस्थावपत करने के वलए प्रेररत हो जाता ह ै । वजस प्रकार एक ओर वशक्षा बालक का ु ु ं सिाांगीण विकास करके उसे तेजस्िी, बविमान, चररत्रिान, विद्वान, तथा िीर बनती ह,ै उसी प्रकार दसरी ् ु ू ओर वशक्षा समाज की उन्नवत के वलए भी एक आिश्यक तथा शवक्तशाली साधन ह ै । दसरे शब्दों म,ें ु व्यवक्त की भावत समाज भी वशक्षा के चमत्कार स े लाभावन्ित होता ह ै । वशक्षा के द्वारा समाज भािी पीढ़ी ं के बालकों को उच्च आदशों, आशाओ, आकाक्षाओ, विश्वासों तथा परमपराओ आवद सास्कवतक ृ ं ं ं ं ं सम्पवत्त को इस प्रकार स े हस्तातररत करता ह ै वक उनके ह्रदय म ें दशे -प्रेम तथा त्याग की भािना प्रज्िवलत ं हो जाती ह ै । जब ऐसी भािनाओ तथा आदशों से भरे हए बालक तैयार होकर समाज अथिा दशे की सेिा ु ं का व्रत धारण करके मदै ान म ें वनकलेंग े तथा अपने वशखर पर चढ़ता ही रहगे ा । इस प्रकार व्यवक्त तथा समाज दोनों ही के विकास म ें वशक्षा परम आिश्यक ह ै । अभ्यास प्रश्न 3. बालकों के वलए वशक्षा का क्या महत्ि ह ै ? 4. वशक्षा के द्वारा बालकों का शारीररक, मानवसक, सास्कवतक विकास होता ह ै ? कै से ृ ं 4.5 बालकों को मवं ारने (Grooming) म वशक्षा का कायण ें राष्र तथा उसके नागररकों का एक-दसरे से घवनष्ट सम्बन्ध होता ह ै । वकसी भी राष्र की प्रगवत के िल उसी ु समय हो सकती ह ै जब उसके नागररक उत्तम सचररत्र तथा उतरदावयत्िपण ण हों । यवद नागररक अयोग्य, ू चररत्रहीन तथा वनबणल होंग े तो राष्र-वनवश्चत रूप से रसातल को चला जायेगा । इस दृवष्ट से राष्र की उन्नवत के वलए सचररत्र एि श्रेष्ट नागररकों का होना परम आिश्यक ह ै । ऐसे नागररकों का वनमाणण करना ही ं राष्रीय जीिन में वशक्षा का कायण ह।ै भारतीय समाज के जनतत्रीय समाजिादी आदशों को दृवष्ट म ें रखते ं हए वशक्षा नागररकों को वनम्नवलवखत बातों म ें प्रवशवक्षत करके इस महान कायण को परा कर सकती ह ै – ु ू 1. तत्ि के वलए प्रवशक्षण - जनतत्र और नेतत्ि का घवनष्ट सम्बन्ध होता ह ै इस दृष्टी से जनतत्र म ें योग्य, ृ ृ ं ं अनभिी, तथा कशल नेताओ का होना परम आिश्यक ह ै । दसरे शब्दों में, जनतत्र की सफलता के ु ु ं ं ु वलए राजवनवतक, सामावजक, औधोवगक तथा सास्कवतक आवद सभी
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क्षेत्रों के वलए प्राईमरी, ृ ं माध्यवमक तथा उच्च तीनों स्तरों पर उतरदावयत्ि नेताओ की आिश्यकता होती ह ै । प्रत्येक क्षेत्र म ें ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय
41 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं उच्चस्तरीय नेता नीवत का वनमाणण करते ह ैं । इस नीवत को माध्यवमक तथा प्राईमरी स्तरों के नेता काय ण रूप म ें पररणत करते ह ैं । अत: जनतत्रीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र म ें विवभन्न स्तरों के वलए अवधक से ं अवधक नेतत्ि का प्रवशक्षण आिश्यक ह ै । भारत भी एक सिसण त्ता सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य ृ ह ै । हम ें भी राष्रीय जीिन के प्रत्येक क्षेत्र म ें सभी स्तरों के वलए योग्य, अनभिी तथा कशल नेताओ ु ु ं की आिश्यकता ह ै । वशक्षा इस महत्िपण ण कायण को परा करे। ू ू 2. राष्रीय विकास – वशक्षा राष्रीय विकास की आधारवशला होती ह ै । अत: वशक्षा का कायण प्रत्येक नागररक को एक वनवश्चत स्तर तक अवनिायण रूप म ें वशवक्षत करना ह ै । यवद वशक्षा इस महान कायण को परा करने म ें सफल हो गई तो राष्र के सभी नागररक मतदान द्वारा योग्य, सचररत्र तथा कशल नेताओ ू ु ं का चनाि करके ऐसी सव्यिवस्थत सरकार का वनमाणण कर सकें ग े वजसके द्वारा राष्र का विकास होना ु ु वनवश्चत ह ै । अत: भारतीय वशक्षा इस ओर विशेष ध्यान द े । राष्रीय विकास के वलए राष्रीय एकता परम आिश्यक ह ै । अत: राष्रीय जीिन म ें वशक्षा का कायण राष्रीय एकता की स्थापना करना ह ै । खदे का विषय ह ै वक भारत जसै े महान राष्र म ें वशक्षा इस कायण के प्रवत अभी तक उदासीन ह ै । पररणामस्िरूप हमारे अन्दर विचरों की सकीणतण ा, ं स्िाथणतता तथा कटता आवद दोष उत्पन्न हो गये ह ै । इन दोषों के कारण हम जातीयता, ु प्रान्तीयता, साम्प्रदावयकता तथा क्षेत्रीयता म ें विश्वास करने कभी भाषा के प्रश्न पर लड़ पड़ते ह ैं तो कभी जनसख्या के आधार पर राष्र का बटिारा करना चाहते ह ैं । िास्तविकता यह ह ै वक इन ं ं दोषों ने अपनी शत्रता को इतना बढ़ा वदया ह ै वक राष्रीय एकता खतरे म ें पड़ गई ह ै । यवद राष्र को ु खतरे से बचाना ह ै तो व्यवक्त से इन भयकर दोषों को दर हटाना होगा । ऐसी दशा म ें के िल वशक्षा ं ू ही ऐसा साधन ह ै वजसके द्वारा सकीणतण ा को दर करके विशाल ह्रदयता की भािना को विकवसत ं ू करके शत्रता के स्थान पर प्रेम का पाठ पढ़ाया जा सकता ह ै । स्िगीय जिाहरलाल नेहप का मत ु ह ै – “ राष्रीय एकता के प्रश्न म ें जीिन की प्रत्येक िस्त आ जाती ह ै । वशक्षा का स्थान इन सबसे ु उपर ह ै और यही आधार ह ै ।“ 3. भािनात्मक एकता – वजस प्रकार राष्रीय विकास के वलए राष्रीय एकता की आिश्यकता है, उसी प्रकार राष्रीय एकता के वलए भािनात्मक एकता की आिश्यकता ह ै । भारत विवभन्नताओ का दशे ह ै ं । यहााँ पर विवभन्न भाषायें परम्परायें, धमण, तथा रहन-सहन पाये जाते ह ैं । हम म ें से प्राय: प्रत्येक व्यवक्त दसरों को तलना म ें के िल अपनी भाषा तथा रीवत-ररिाज एि धम ण को सबस े अच्छा समझता ह।ै इस ु ं ू सकीण ण दृवष्टकोण के कारण हम सब म ें इतना मन-मटाि हो जाता ह ै वक कभी-कभी लडाई-झगडे भी ु ं हो जाते ह ैं । ऐसे समय पर वशक्षा हम ें उस राष्रीय-सम्पवत का ध्यान वदलाती ह ै वजसके विषय म ें हम सब एक मत ह ैं तथा जो हम सब को एकता के सत्र म ें बाधती ह ै । यही राष्रीय सम्पवत का आदशण ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 42 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं राष्र म ें भािनात्मक एकता को विकवसत म ें सहायता दते ा ह ै । स्पष्ट ह ै भािनात्मक वशक्षा के िल वशक्षा के द्वारा ही विकवसत वकया जा सकता ह ै । अत: वशक्षा का कायण राष्रीय जीिन म ें भािनात्मक एकता को विकवसत करना ह ै । 4. राष्रीय अनशासन – वकसी भी राष्र को एकता के सत्र म ें बाधकर उसे पणरूण पेण विकवसत करने के ु ू ू ं वलए राष्रीय अनशासन परम आिश्यक ह ै । अत: वशक्षा का कायण राष्रीय अनशासन को विकवसत ु ु करना ह ै । भारत अब स्ितत्र ह ै । इस महान राष्र की स्ितत्रता को बनाये रखने के लये पररश्रम तथा ं ं सतकण ता के साथ-साथ सगठन, कशलता, एि बवलदान आवद गणों की भी आिश्यकता ह ै । इसका ु ु ं ं एकमात्र कारण यह ह ै वक उक्त गणों के विकवसत होने से ही राष्रीय अनशासन का जन्म होता ह ै । ु ु अत: भारतीय वशक्षा को रष्रीय अनशासन के कायण म ें सहयोग दने ा चावहये । माध्यवमक वशक्षा ु आयोग ने इसी त्य की पवष्ट करते हए वलखा ह ै –“ जनतत्र सफलतापिकण कायण नहीं कर सकता जब ु ु ू ं तक सभी आदमी, के िल एक विशषे िग ण के ही नहीं अपने-अपने उत्तरदायीत्ि को वनभाने के वलए प्रवशवक्षत नहीं वकये जाते और इसके वलए अनशासन प्रवशक्षण की आिश्यकता ह ै ।” ु 5. नागररक तथा सामावजक कतणव्यों की भािना का समािेश – भारत एक धमण-वनरपेक्ष गणराज्य ह ै इसको सफल बनाने के वलए यह आिश्यक ह ै वक प्रत्येक व्यवक्त नागररक के रूप म ें राष्र के प्रवत तथा व्यवक्त के रूप म ें समाज के प्रवत अपने कतणव्यों का पालन करता रह े । अत: वशक्षा का कायण बालक म ें नागररक तथा सामावजक कतणव्यों की भािनाओ को विकवसत करना ह ै वजससे आज का बालक कल ं के नागररक के रूप म ें अपने कतणव्यों का पालन करके राष्रीय विकास म ें यथाशवक्त योगदान द े सके । 6. नैवतकता का प्रवशक्षण – नैवतकता प्रत्येक राष्र की बहमकय सम्म्पवत ह ै । अत: वशक्षा का काय ण ु ू बालक को नैवतकता का प्रवशक्षण दने ा ह ै प्रसन्नता की बात ह ै की हमारा दशे नैवतकता की दौड़ म ें विश्व के सभी दशे ों से सदिै आग े ही रहा ह,ै परन्त खदे की बात ह ै वक स्ितत्रता प्रावप्त के पश्चात अब ु ं राष्रीय जीिन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अनैवतकता का साम्राज्य वदखाई पड़ रहा ह ै । ऐसी दशा म ें राष्र के विकास को दृष्टी म ें रखते हए भारत के नागररकों के वलए नैवतक प्रवशक्षण और भी आिश्यक ु हो जाता ह ै । वशक्षा बालक के अन्दर सत्य, प्रेम , त्याग आवद अनेक िाछनीय गणों को विकवसत ु ं करके नैवतक विकास करती ह ै । अत: भारतीय वशक्षा को चावहये वक िह राष्र को विकवसत करने के वलए पहले सबका नैवतक विकास करे। 7. कशल श्रवमकों की पवतण – आज के भौवतकिादी यग म ें प्रत्येक राष्र की श्रष्ठे ता का मकयाकन उसकी ु ू ु ु ं राष्रीय सम्म्पवत से वकया जाता ह ै । आवद राष्रीय सम्म्पवत सतोषजनक ह ै तो िहााँ के नागररकों का ं रहन-सहन भी सतोषजनक होगा, अन्यथा नहीं । इसीवलए प्रत्येक राष्र अपनी राष्रीय सम्म्पवत बढ़ाने ं के वलए अपने व्यापारों तथा उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास करता ह ै । इस महान कायण को परा करने के ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 43 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वलए कशल श्रवमकों का होना परम आिश्यक ह ै । अत: हमारी वशक्षा का आठिााँ कायण कशल ु ु श्रवमकों की पवतण करना ह ै वजससे राष्रीय सम्पवत म ें िवध होती रह े तथा राष्र समवधशाली बन जाये । ृ ृ ू 8. राष्रीय वहत को प्राथवमकता – प्रत्येक राष्र को जीवित रहने के वलए यह आिशयक ह ै वक िहााँ के नागररक अपने वहतों की अपेक्षा राष्र वहत को प्राथवमकता द ें । अत: राष्रीय जीिन में वशक्षा का कायण नागररकों को इस प्रकार स े प्रवशवक्षत करना ह ै वक ि े अपने वनजी वहतों की अपेक्षा राष्रवहत को प्राथवमकता दते े रह ें । अन्य राष्रों अपेक्षा भारत म ें वशक्षा को इस ओर विशेष ध्यान देना ह ै । इसका कारण यह ह ै वक भारतीय समाज ऐसे अनके िगों तथा राजनीवतक दलों में बटा हआ ह ै जो राष्रीय ु ं की आड़ म ें सदिै अपने-अपने वहतो को परा कनरे के वलए एक-दसरे से टकरात े रहते ह ैं । के िल ू ु वशक्षा ही एक ऐसा साधन ह ै वजसके द्वारा इन सभी िगों तथा दलों को राष्र ककयाण के वलए तैयार वकया जा सकता ह ै । 9. सामावजक कशलता की उन्नवत – प्रत्येक राष्र का ककयाण इस बात म ें वहया की िहााँ के नागररक ु सामावजक दृवष्ट से कशल एि उन्नवतशील हों । अमररका के प्रोफे सर बागले के अनसार सामावजक ु ु ं दृवष्ट से कशल िह व्यवक्त होता ह ै जो राष्र के वलए भार न हो, दसरों के कायण म ें हस्तक्षेप न करे तथा ु ू जो समाज की उन्नवत म ें यथाशवक्त योग दते ा रह े । इस दृवष्ट से भारत म ें राष्रीय जीिन म ें वशक्षा का कायण बालकों म ें सामावजक कशलता की उन्नवत करना ह ै । इस महान कायण को वशक्षा उन व्यापारों ु तथा उधोगों म ें बालक को प्रवशवक्षत करके परा कर सकती ह ै जो समाज अथिा राष्र के वलए ू उपयोगी हों । 4.6 मामावजक ववववधता, वैयविक वववभन्नता ंवं अनुभव शंकु हमारी सम्पण ण प्रकवत तमाम विविधताओ से भरी पड़ी ह ै । वभन्न-वभन्न प्रकार के जीिों, पेड़-पौधों, नदी ृ ू ं नालों, स्थलाकवतयों आवद के रूप म ें यह विविधता ही प्रकवत का सौंदयण ह ै । हमारा समाज भी वभन्न-वभन्न ृ ृ रग, रूप, क्षमता, प्रकवत, भाषा, िशे भषा, खान-पान, आचार-व्यिहार, आस्था-मान्यता, धम-ण सप्रदाय ृ ू ं ं आवद से सबवधत विविध व्यवक्तयों ि समदायों से समि ह ै । यही विविधता हमारे समाज की खबसरती ह ै ृ ु ू ू ं ं । हमारे समाज म ें विद्यमान विवभन्न समदाय ि लोगों की क्षमताए ाँ ि खावसयत अलग-अलग ह ैं । एक ु लोकतावत्रक सत्ता ि व्यिस्था की यह भवमका होनी चावहए वक इन विविध जनों ि समदायों के विकसने ि ू ु ं एक बेहतर जीिन जीने की व्यिस्थाओ को वबना भदे -भाि के सलभ कराए । परन्त हमारे समाज ने मानि ु ु ं सभ्यता के विकास क्रम म ें सत्ता ि व्यिस्था के वभन्न वभन्न रूपों को दखे ा ि उन िचणस्ििादी ताकतों के अनरूप जीने को बाध्य हआ । सहिावब्दयों तक सविधाविहीन, धन, प्रवतष्ठा ि ताकत से महरूम एक बड़े ु ु ु िग ण को सविधायक्त, बेहतर ि सम्मावनत जीिन जीने की व्यिस्थाओ से दर रखा गया, सविधाओ से ु ु ु ं ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 44 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं िवचत वकए जाने का आधार बना जन्म का कल, वलग, वनिास स्थान, भाषा, आस्था ि मान्यताए,ाँ धम ण ि ु ं ं सम्प्रदाय आवद । ये आधार जो मल रूप म ें विविधताए ाँ ह ैं के कारण वकसी िग ण ि व्यवक्त विशषे को ू विकास के वलए जप री मौवलक सविधाओ से िवचत वकए जाने से ही असमानता जन्म लेती ह ै । इस प्रकार ु ं ं असमानता सत्ता ि िचणस्ििादी ताकतों के प्रत्यक्ष या परोक्ष व्यिहार द्वारा विकास के साधनों के असमान वितरण से उत्पन्न हई िह वस्थवत ह ै वजसम ें एक ही समाज म ें वभन्न-वभन्न जन ि समदाय विकास की ु ु वभन्न-वभन्न अिस्थाओ म ें रहने को बाध्य होते ह ैं । दसरे ढग से दखे ा जाय तो सत्ता ि ं ं ू िचणस्ििादी ताकतों का व्यिहार भी ह ै और समाज की वस्थवत भी । विकास हते आिश्यक सविधाओ से ु ु ं िवचत होने तथा इस असमानता के व्यिहार के कारण व्यवक्त ि समदाय के अदर िचन का भाि जन्म ु ं ं ं लेता ह ै और िह वस्थवत वजसमें िवचत व्यवक्त जीता ह ै के रूप म ें जाना जाता ह ै । सक्ष्मता से दखे ा ू ं ं जाए तो िचन, व्यवक्त तथा समदाय दोनों के स्तर पर दो प्रकार से हो सकता ह ै । व्यवक्त तथा समह के ु ू ं अन्दर िचन का भाि इस कारण से भी हो सकता ह ै वक िह जीिन की मलभत आिश्यकताओ के वलए ू ू ं ं सघष ण कर रहा हो और इस सघष ण के बािजद भी उनसे िवचत हो; या शारीररक तथा मानवसक रूप स े इतना ू ं ं ं अक्षम हो वक सामान्य सविधाओ के उपलब्ध रहन े के बािजद भी उसका उपयोग न कर पाए । इस प्रकार ु ू ं के िचन को िास्तविक िचन (Absolute Deprivation) कहा जा सकता ह।ै िचन का दसरा भाि इस ं ं ं ू कारण से भी उत्पन्न हो सकता ह ै वक व्यवक्त या समह वकसी दसरे व्यवक्त या समह की अपेक्षा भौवतक ू ू ू ससाधनों, सामावजक प्रवतष्ठा तथा अन्य वकसी भी कारण से अपने आपको िवचत महसस कर रहा हो । ू ं ं िचन के इस भाि को सापेविक िचन (Relative Deprivation) कहा जाता ह ै । इस प्रकार िचन को ं ं ं मोटे तौर पर चार प्रकार से दखे ा जा सकता ह ै - िास्तविक ियै वक्तक िचन (Absolute Individual ं Deprivation), सापेवक्षक ियै वक्तक िचन (Relative Individual Deprivation), िास्तविक ं सामदावयक िचन (Absolute Fraternal Deprivation), सापेवक्षक सामदावयक िचन (Relative ु ु ं ं Fraternal Deprivation) । अब आइए विविधता, असमानता तथा िचना की शवै क्षक सन्दभों म ें पड़ताल करें । हमारे दशे में ं विविधताओ की भरमार ह ै । यह विविधता प्रकवत के साथ-साथ वनिास कर रह े लोगों म ें भी ज्यादा ह।ै कई ृ ं मान्यताओ, विश्वासों, लोक-परम्पराओ, पिवतयों, रहन-सहन, खान-पान, िशे -भषा तथा अन्य कई ू ं ं सामावजक-सास्कवतक परम्पराओ िाले लोग इस दशे म ें वनिास करते ह ैं । वशक्षा के सस्थानों म ें मौजद ृ ू ं ं ं लोग भी इसी विविधता को धारण वकए होते ह।ैं अतः हम ें वशक्षायी िातािरण म ें अिश्य इन विविधताओ ं का सम्मान करना चावहए । क्योंवक विविधता इस समाज की पाँजी ह,ै इसका सौंदयण ह ै वजसको साँजोना ू वशक्षा का दावयत्ि होना चावहए । आप अपने विद्यालय म ें वनरतर इस प्रकार की विविधताओ का अनभि ु ं ं करते होंग ें । ककपना कीवजए वक दो वभन्न आवथणक वस्थवत, िशे -भषा, खान-पान या लोक-परम्परा िाले ू विद्यावथणयों म ें कोई वशक्षक भेद-भाि करना ि असमान व्यिहार करना शरू कर द े तो वकस प्रकार की ु वस्थवत उत्पन्न होगी ? क्या यह वस्थवत वकसी विद्याथी के विकास ि उसके आत्म-सप्रत्यय के वनमाणण को ं प्रभावित नहीं करेगी ? आपका उत्तर वनवश्चत ही हााँ होगा । आप सभितः यह उत्तर दगें ें वक असमान ि ं भदे -भाि पण ण व्यिहार से विद्यावथणयों के अदर िचना का भाि आएगा, तथा यह भाि अिश्य ही उनके ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 45 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विकास को प्रभावित करेगा । सभितः उन विद्यावथणयों म ें तत्र के वखलाफ़ विद्वषे पैदा होगा जो आगे ं ं चलकर उनके व्यवक्तत्ि की प्रकवत को वनधाणररत करेगा । अतः एक वशक्षक का दावयत्ि बनता ह ै वक िह ृ एक ऐसे वशक्षायी माहौल का वनमाणण करे वजसम ें विविधताओ का सम्मान हो, वकसी भी प्रकार की ं असमानता का व्यिहार न हो तथा एक समािशे ी िातािरण म ें बच्चों को विकसने का अिसर वमले । अलग –अलग व्यवक्तयों की आदत, शीलगण, बवि, आकर –प्रकार, सीखने सीखने का ढग, ु ु ं शारीररक गण, मानवसक गण अलग होता ह ै । बालकों की इन ियै वक्तक विवभन्ताओ के आधार पर सीखने ु ु ं के वलए अलग –अलग तरह से अनभि दने े की आिश्यकता होती ह ै । इन सभी बालकों के वशक्षा के ु वलए समहीकरण, िगीकरण, अलग अलग पाठयक्रम, अध्यापन विवधयों म ें पररितणन की आिश्यकता ् ू होती ह ै । एडगर डेल ने अपने बह चवचणत अनभि शक के माध्यम से इन सामावजक विविधता एि ु ु ु ं ं ियै वक्तक विवभन्नता के आधार पर वशक्षा के वलए म ें आधवनक तकनीवकयों के प्रयोग को बहत ही ठोस ु ु मनोिज्ञै ावनक आधार प्रदान करण की कोवशश की ह ै । उनका यह अनभि वत्रकोण यह प्रदवशतण करता ह ै ु वक साफ्टिये र और हाडणिये र तकनीवकयों द्वारा प्रदत्त विवभन्न प्रकार के वशक्षण अवधगम विवधयों सामवग्रयों तथा उपकरण व्यवक्त विशेष को विवभन्न प्रकार के अवधगम अनभि अवजणत करने म ें वकस प्रकार ु वकस प्रकार सहयोगी वसि हो सकता ह ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 46 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं शाब्दिक प्रतीक दृश्यात्मक प्रतीक रेडियो प्रसारण ब्थिर चित्र िल चित्र प्रिर्शति सामग्री भ्रमण प्रिशनि अर्िनयात्मक िागीिारी ननयोब्ित कत्रत्रम अनिव ु ृ वाथतववक प्रत्यक्ष अनिव ु जसै ा वक उपरोक्त वचत्रात्मक प्रस्तवत से विवदत हो सकता ह,ै एडगर डेल ने अपने इस अनभि शक में ु ु ु ं अनभिों को ठोस प्रत्यक्ष से विशि अमतण वचतन तक की ऊचाई दने े की कोवशश की ह ै और यह बताया ु ु ू ं ं ह ै वक वकस श्रेणी या
प्रकार के अनभिों के अजनण म ें वकस प्रकार के सहायक साधन अवधक उपयोगी हो ु सकते ह ैं हम इस शक आकवत के शीष ण से जैसे ही नीचे आधार की ओर बढ़ते ह,ैं यह पाते ह ैं वक वजस ृ ु ं प्रकार क
े अनभि हम ें विवभन उपकरण सामग्री के माध्यमों को उपभोग से हो रह े ह ैं ि े क्रमशः जवटल से ु सरल, सक्ष्म से स्थल तथा अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष होते चले जाते ह ैं । यथा जसै े ही आधार तल पर पहचते ह ैं ु ू ू ं हम ें वशक्षण अवधगम को सबसे अवधक प्रभािशाली बनाने िाले िास्तविक प्रत्यक्ष अनभिों की प्रावप्त ु होती ह ै । वशक्षण अवधगम का प्रारवभक चरण ऐसे ही िास्तविक एि प्रत्यक्ष अनभिों से शरू होता ह,ै ु ु ं ं जसै े – जसै े आग े बढ़ते जाते ह ैं प्रत्यक्ष अनभिों का स्थान अप्रत्यक्ष अनभि तथा अमतण वचतन लेता जाता ु ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 47 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह ै और विचार एि बोध प्रवक्रया का अवतम शीष ण पड़ाि विशि मतण वचतन यक्त अनभिों का स्थान ु ू ु ु ं ं ं अप्रत्यक्ष अनभि पर जाकर ठहरता ह ै और इस तरह अवधगमकताण मात्र शव्दों एि मौवखक प्रतीकों द्वारा ु ं अवधगम अजणन करने म ें सक्षम हो जाता ह ै । इस तरह जहााँ शब्द मौवखक प्रतीक वशक्षण अवधगम हते ु सबसे अवधक प्रत्यक्ष और अमतण अनभि एि काकपवनक वचतन भवम प्रदान करता ह ै िही िास्तविक ाँ ू ु ू ं ं पदाथों, वक्रयाओ तथा पररवस्थवतयों के सपकण से होने िाले प्रत्यक्ष अनभि हम ें ठोस और प्रत्यक्ष ज्ञान के ु ं ं अिबोध में सहायक होती ह ै । अपनी इस वत्रकोणात्मक प्रस्तवत के माध्यम से एडगर डेल ने विवभन्न प्रकार ु की वशक्षण अवधगम सामग्री, उपकरण एि माध्यमों का एक क्रवमक िगीकरण भी प्रस्तत करने का प्रयास ु ं वकया ह ै । अभ्यास प्रश्न 5. एडगर डेल का अनभि कोण क्या ह ै ? ु 6. ियै वक्तक विवभन्नता के आधार पर वशक्षा दने े म ें अनभि कोण सहायक ह ै । कै से ? ु 4.7 शैवक्षक पाठ्यक्रम के द्वारा ववकाम हम बच्चों को क्या पढ़ाते है, क्या सीखाना चाहते ह ै और उन्ह ें वकस वदशा म ें ले जाना चाहते है, इसमें स्कली वशक्षा नीवत और पाठयक्रम अहम भवमका वनभाते ह ै । इसवलए जप री ह ै वक वशक्षा नीवत और ् ू ू पाठयक्रम बच्चों के सिालात और उनकी उत्सकता पर वनभरण हो । NCF-2005 म ें हमने असली वशक्षा ् ु उसे माना जो के िल पढ़ने का न होकर बच्चों के अनभि-
क्षेत्र और उसकी समझ को विस्तत करे क्योंवक ृ ु वशक्षा सचना दने ा नहीं ह ै । िह तभी साथणक ह ै जब िह बच्चे के व्यवक्तत्त्ि और उसके पररिशे के साथ ू एकाकार हो जाए और वजसम ें ज्ञान का वनमाणण ि े स्िय करें , अपने पररिशे को साथ
लेकर । बच्चे काली ं स्लेट की तरह नहीं होते ह ै वजसपर आप कछ भी वलख द!ें यहााँ हम ें और ् ु ु म ें अतर करना बहत जप री ह.ै यावन पढ़ाना ह ै और ु ् ु यावन पढ़ाना ह.ै अलग-अलग पररिशे म ें अलग-अलग उदाहरणों पर आधाररत हो सकता ह.ै इसपर वजस गहराई से हमारे NCF-2005 म ें काम वकया गया ह ै ऐसा दवनया के बहत कम दशे ों ु ु म ें हआ ह।ै जप री ह ै वक पस्तकों की जबान और उसके उदाहरण ऐसे हो वजसम ें बच्चें ज्ञान का वनमाणण ु ु अपने अनभि-क्षेत्र (पररिशे ) के माध्यम से विकवसत कर सकें । ु पाठयक्रम ऐसा हो जो वशक्षा-वसिातों और बच्चों के अनभिों के बीच ररश्ता बनाए । सबसे पहले वसिात ् ु ं ं ह ै वजन्ह ें हम ें समझ में आने चावहए और यह तभी सभि ह ै जब पाठयक्रम म ें बच्चों की वजदगी से जड़ी ् ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 48 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं चीज ें हो. हमारे यहााँ लाग होना चावहए. सभी स्कल कम-से-कम कें रीय- ू ू ू विद्यालय-स्तर के तो हो ही, लेवकन विडबना दवे खए वक ऐसा हो नहीं रहा ह।ै दरअसल वपछले 50-60 ं सालों म ें हमारे दशे म ें हआ यह वक अमीरों की सख्या अवधक हई ह ै और उन्ह ें अपन े बच्चों को सरकारी ु ु ं स्कलों म ें पढ़ाने म ें शम ण आती ह ै । ू सचना’ और म ें अतर करना बहत जरूरी ह.ै के िल सचना प्रौद्योवगकी या कम्प्यटर का इस्तेमाल ही ु ू ू ु ं नही ह.ै म ें जोर पर होता ह ै जबवक म ें पर. अतः सचना प्रौद्योवगकी ू ू या कम्प्यटर का सही इस्तेमाल जरूरी ह.ै पाठयक्रम ऐसा हो जो िास्तविक जीिन से भी जड़े और ् ु ु इवम्तहान इतने कवठन न हो वक रटने के वलए प्रेररत करे. रटन े की प्रिवत बच्च े की मौवलकता और ृ रचनात्मकता की अद्भत क्षमता को हमशे ा के वलए खत्म कर दते ी ह।ै पाठयक्रम वनधाणरण के समय बच्चों ् ु के स्तर को ध्यान म ें जरूर रखा जाए। आरटीई म ें यह स्पष्ट उकलेख ह ै वक बच्चों पर होमिकण का बोझ वकसी हालत म ें न थोपा जाए। एनसीएफ 2005 म ें भी स्पष्ट उकलेख ह ै वक बच्चों को रटने की प्रिवत्त से भी ृ दर रखा जाए। ऐसे म ें कोसण ऐसा हो वजसे बच्चा आसानी के साथ अपने अदर आत्मसात कर सके । ं ू पाठयक्रम ऐसा हो वजसम ें बच्चों को बौविक जानकारी का बोझ ढोने के बजाय जीिन से सीखने का ् अिसर वमलें । बस्ते के बोझ को हकका करना चावहए। पाठयक्रम ऐसा हो वजसम ें बौविक ज्ञान, मकयवनष्ठा ् ू के साथ-साथ जीविकाजनण की क्षमता को बढ़ाने का भी ध्यान रखना चावहए । िावषणक परीक्षा को ही बच्चे की सफलता-असफलता का वनष्कष ण नहीं बनाना चावहए। यह परीक्षा मात्र बौविक जानकारी और स्मरणशवक्त की होती ह,ै न वक छात्र के सम्पण ण व्यवक्तत्ि की। इस िावषकण परीक्षा के आतक से बच्चा ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 49 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भयभीत रहता ह,ै उसम ें उत्तीण ण होने के वलए अनैवतक उपायों का सहारा लेता है, अनत्तीण ण हो जाने पर ु आत्महत्या के वलए भी प्रित्त हो जाता ह ै । अत: िकै वकपक मकयाकन प्रणाली की खोज का प्रयास ृ ू ं ितणमान पाठयक्रम म ें विद्यमान ह।ै “हमारी मनोिवत्त का वनमाणण हमारे जीिन, हमारे आचरण के अनरूप ही ृ ् ु होता ह।ै हमारे जीिन तथा आचरण का मल आधार ह ै हमारी वशक्षा।” वकसी दशे का विकास उस दशे की ू वशक्षा प्रणाली पर वनभरण होता ह,ै क्योंवक दशे की उन्नवत के वलए हर व्यवक्त वजम्मदे ार ह ै और िो ही दशे को अपने ज्ञान, सस्कार और अच्छे आचरण के जररये दशे को बलवदयों पर पहचा सकता ह!ै आज का ु ु ं ं ं वशवक्षत िग ण ही दशे की अथणव्यिस्था को सचारू रूप से चला सकता ह ै वकन्त अगर वशक्षा प्रणाली ही ु ु ठीक न हई तो उस दशे का भविष्य अधकारमय हो सकता ह,ै आज जप रत ह ै एक अच्छी वशक्षा प्रणाली ु ं की वजससे ज्ञानिान और एक अच्छे आचरण िाला व्यवक्त बन सके ! आजकल हर जगह वशक्षा प्रसार की नई-नई योजनाए बन रही ह।ैं हमारी राष्रीय सरकार इस बात की घोषणा कर चकी ह ै वक िह शीघ्र ही दशे ु ं से वनरक्षरता को वमटा दगे ी। परन्त विचार यह करना ह ै वक हमारी ितणमान वशक्षा प्रणाली कै सी ह ै और िह ु वकस प्रकार के जीिन का वनमाणण कर रही ह ै तथा हमारी वशक्षा िास्ति म ें कै सी होनी चावहए। आजकल हमारी वशक्षा की व्यिस्था िास्ति म ें बहत दोषयक्त हो गई ह।ै इसको वमटाकर हम ें ऐसी वशक्षा- ु ु दीक्षा का विधान करना होगा जो हम ें स्िय अपने ऊपर विजय प्राप्त कर सकने म ें समथण बना सके । ज्ञान का ं अवन्तम लक्ष्य चररत्र वनमाणण ही होना चावहये। जब तक वशक्षा के कछ उद्दश्े य वनधाणररत नहीं होंग े तब तक ु वशक्षा प्रणाली म ें कोई सधार नहीं हो सकता ह।ै इसवलए वशक्षा के कछ उद्दश्े य ह:ै - ु ु जनताशत्रक नार्ररकता का शवकास- इस दशे के जनतत्र को सफल बनाने के वलए प्रत्येक ं ं बालक को सच्चा, ईमानदार तथा कमठण नावगरक बनाना परम आिश्यक ह ै । अत: वशक्षा का परम उद्दश्े य बालक को जनतावत्रक नागररकता की वशक्षा दने ा ह ै । इसके वलए बालकों को स्ितत्र ं ं तथा स्पष्ट रूप से वचन्तन करने एि वनणयण लेने को योग्यता का विकास परम आिश्यक ह,ै वजससे ं ि े नागररक के रूप म ें दशे की राजनीवतक, सामावजक, आवथणक तथा सास्कवतक सभी प्रकार की ृ ं समस्याओ पर स्ितत्रतापिकण वचन्तन और मनन करके अपना वनजी वनमाणण लेते हए स्पष्ट विचार ु ू ं ं व्यक्त कर सकें । किल जीवन-यापन कला की िीक्षा – वशक्षा का दसरा उद्दश्े य बालक को समाज म ें रहने ु ू अथिा जीिन-यापन की कला म ें दीवक्षत करना ह ै । एकात म ें रहकर न तो व्यवक्त जीिन-यापन ं कर सकता ह ै और न ही पणतण : विकवसत हो सकता ह ै । उसके स्िय के विकास तथा समाज के ू ं ककयाण के वलए यह आिश्यक ह ै वक िह सहअवस्तत्ि की आिश्यकता को समझते हए ु व्यिहाररक अनभिों द्वारा सहयोग के महत्ि का मकयाकन करना सीख े । इस दृवष्ट म ें चेतना तथा ु ू ं अनशासन एि दशे भवक्त आवद अनेक सामावजक गणों का विकास वकया जाना चावहये वजससे ु ु ं प्रत्येक बालक इस विशाल दशे के विवभन्न व्यवक्तयों का आदर करते हए एक-दसरे के साथ ु ू घलवमल कर रहना सीख जायें । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 50 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं व्यवसाशयक किलता की उन्नशत – वशक्षा का तीसरा उद्दश्े य बालकों म ें व्यिसावयक ु कशलता की उन्नवत करना ह ै इस उद्दश्े य को प्राप्त करन े के लये व्यासावयक प्रवशक्षण की ु आिश्यकता ह ै । अत: बालकों के मन म ें श्रम के प्रवत आदर तथा रूवच उत्पन्न करना एि ं हस्तकला के कायण पर बल दने ा परम आिश्यक ह ै । यही नहीं, पाठयक्रम म ें विवभन्न व्यिसायों ् को भी उवचत स्थान वमलना चावहये वजससे प्रत्येक बालक अपनी रूवच के अनसार उस ु व्यिसायों को चन सकें वजसे वशक्षा समाप्त करने के पश्चात अपनाना चाहता हो । ु व्यशित्व का शवकास – वशक्षा का चौथा उद्दश्े य बालक के व्यवक्तत्ि का सम्पण ण विकास करना ू ह ै । व्यवक्त के विकास का तात्पयण बालक के बौविक विकास, शारीररक, सामावजक तथा व्यिसावयक आवद सभी पक्षों एि रचनात्मक वशवक्तयों के विकास से ह ै । इस उद्दश्े य के अनसार ु ं बालकों को वक्रयात्मक तथा रचनात्मक कायों को करन े के वलए प्रेररत करना चावहये वजससे उनम ें सावहवत्यक, कलात्मक एि सास्कवतक आवद नाना प्रकार की प वचयों का वनमाणण हो जाये । ृ ं ं 4.8 पाठ्य महगामी वक्रयां ं ंवं पाठ्येतर गवतवववधया ाँ का अथ ण पहले सह पाठयक्रम गवतविवधओ को पाठयेतर गवतविवधयााँ के रूप म ें जाना जाता था जो गरै शक्षै वणक ् ं पाठयक्रम का एक वहस्सा था। यह बच्चे और छात्रों के व्यवक्तत्ि विकास के विवभन्न पहलओ को ् ु ं विकवसत करने म ें मदद करता ह।ै बच्चों के सिाांगीण विकास के वलए भािनात्मक, शारीररक, आध्यावत्मक और नैवतक विकास जरूरी ह ै जहााँ सह पाठयक्रम गवतविवधयााँ परक के रूप म ें काम करता ू ह।ै सह पाठयक्रम गवतविवधयााँ आपके पाठयक्रम का ही नहीं बवकक आपके वजदगी एक महत्िपण ण वहस्सा ू ं ह ै । यह एक ऐसी गवतविवधयााँ ह ै जो आपके के विवभन्न विकास जसै े बौविक विकास, भािनात्मक विकास, सामावजक विकास, नैवतक विकास और सौंदयण विकास म ें अहम भवमका वनभाता ह ै । ् ू सह पाठयक्रम गवतविवधयााँ एक ऐसा पाठयक्रम ह ै जो मख्य पाठयक्रम के परक के रूप म ें काम ् ु ू करता ह ै । ये पाठयक्रम का बहत ही महत्िपण ण वहस्सा ह ै जो छात्रों के व्यवक्तत्ि का विकास करने के साथ ु ् ू ही कक्षा वशक्षा को मजबत करने म ें सहायक ह।ै इस तरह की कायणक्रम स्कल के वनयवमत समय के बाद ू ू आयोवजत वकया जाता ह ै इसवलए इसे पाठयेतर गवतविवधया के रूप म ें जाना जाता ह ै । ् ं 4.9 पाठ्य महगामी वक्रयाओ ं का उद्दश्े य छात्रों म ें नागररक के गणों के विकास हते अिसर प्रदान करना । ु ु छात्रों म ें नेतत्ि के गणों का विकास करना । ृ ु छात्रों म ें निीन प्रकार की अवभप वचयों का विकास करना । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 51 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं पाठय सहगामी वक्रयाओ के अतगतण छात्रों म ें समाजीकरण करना । ् ं ं गवतविवधयों के माध्यम से बच्चों का सिाांगीण विकास करना । विद्यावथणयों म ें आत्मविश्वास का विकास करना । उनम ें पारस्पाररक सहभावगता का विकास करना । उनम े सीखने की रूवच उत्पन्न करना। समह अवधगम के वलए प्रेररत करना । ू पाठय सहगामी गवतविवधओ के उदाहरण ् ं खले सगीत ं बहस कला नाटक बहस और चचाण भाषण प्रवतयोवगता कहानी लेखन प्रवतयोवगता वनबध लेखन प्रवतयोवगता ं कला वशकप प्रवतयोवगता सजािट स्कल पवत्रका म ें लेख ू लोक सगीत ं लोक नत्य ृ फलों की सजािट ू स्कल सजािट ू मवतण वनमाणण ू फैं सी ड्रेस प्रवतयोवगता चाटण और मॉडल की तैयारी उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 52 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं एकबम बनाना फोटोग्राफी क्ले मॉडवलग ं वखलौना बनाना साबन बनाना ु टोकरी बनाना त्योहार के उत्सि मानना पाठययेतर गवतविवधओ की सची ् ू ं सामवहक परेड ू सामवहक वड्रल ू योग व्यायाम साइवकल चलाना बागिानी वक्रके ट फ़टबॉल ु बास्के टबाल िालीबाल कबडडी ् खो-खो हाथ गदें लबी पैदल यात्रा ं सामवहक प्राथणना ू सबह की सभा ु पड़ोस म ें समाज सेिा गाि सिक्षे ण ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 53 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इडोर पाठययेतर गवतविवधओ की सची ् ू ं ं नाटक सगीत और नत्य ृ ं वचत्राकन और रगाई ं ं सजािट क्ले मॉडवलग ं प्राथवमक वचवकत्सा वसलाई रगोली ं बक बाइवडग ु ं ं काडण बोडण काम चमड़े का काम आयोजन स्कल पचायत ू ं कला और वशकप 4.10 छात्र और पाठ्य महगामी गवतवववधओ ं का महत्व सह पाठयक्रम गवतविवधओ द्वारा छात्र व्यािहाररक ज्ञान के अनभि को जान पाता ह।ै बहत हद तक यह ु ु ं क्लास वशक्षण और प्रवशक्षण को मजबत करता ह।ै बौविक व्यवक्तत्ि के वलए क्लास रूम टीवचग जरूरी ह ै ू ं जबवक सौंदयण विकास ,चररत्र वनमाणण, आध्यावत्मक विकास इत्यावद म ें सह पाठयक्रम गवतविवधओ का ं होना जरूरी ह।ै यह स्कल तथा कॉलेज के छात्रों के बीच समन्िय, समायोजन , भाषण प्रिाह आवद ू विकवसत करने के वलए मदद करता ह।ै इनके साथ ही ये अनशासन एि नेतत्ि के सहयोगी गणों में ृ ु ु ं बालकों को प्रवशक्षण दते ी ह ै इन वक्रयाओ के महत्ि का वििेचन वनम्नवलवखत ह ै – ं i. ियै वक्तक आिश्यकताओ की पवतण म ें सहायक – प्रत्येक व्यवक्त दसरों के द्वारा अवभस्िीकार वकय े ू ं ू जाने की एक मलभत आिश्यकता रखता ह ै । इसके साथ ही िह सरक्षा भी चाहता ह ै । सरक्षा की ू ू ु ु भािना यह अपेक्षा करती ह ै की समाज द्वारा उसको आश्वासन प्राप्त हो । छात्र वक्रयाओ का ं कायणक्रम इन मलभत आिश्यकताओ के पवतण म ें बहत सहायता प्रदान करता ह ै । िह कायणक्रम ु ू ू ू ं इन आिश्यकताओ के अवतररक्त आत्मावभव्यवक्त, स्िय को तथा दसरों को जानने की समझदारी, ं ं ू स्िय की की प वचयों को व्यापक बनाने, स्िय के कायों को वनयवत्रत करने की शवक्त तथा नविन ं ं ं पररवस्थवतयों म ें व्यिवस्थत होने की आिश्यकताओ की पवतण भी करता ह ै । ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 54 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ii. सामावजक आिश्यकताओ की पवतण म ें सहायक – सामावजक आिश्यकताए इन ियै वक्तक ू ं ं आिश्यकताओ से घवनष्ठ रूप से सम्बवधत ह ै । प्रत्येक व्यवक्त दसरों के साथ कायण करने तथा ं ं ू सम्बन्ध स्थावपत करने की क्षमता को विकवसत करने की तीव्र भािना को अनभि करता ह ै । यह ु आिश्यकता उसको कछ आचार –विचार समझदारी, दसरों के साथ अच्छा व्यिहार करने की ु ू स्िीकत ढगों को सीखने के वलए बाध्य करती ह ै । छात्र वक्रयाए इन सामावजक वनयमों एि ृ ं ं ं सदाचरण के स्िीकत अगों को सीखने म ें बहत सहायता प्रदान करती ह ै । इन वक्रयाओ के द्वारा ु ृ ं ं बालक व्यिहार रूप म ें इन सबका ज्ञान प्राप्त करत े ह ैं इसके अवतररक्त ये वक्रयाए व्यवक्त को ं नेतत्ि करने एि अनशासन में रहने की शवक्त तथा विवभन्न सामावजक सघषों को दर करने की ृ ु ं ं ू योग्यता भी प्रदान करती ह ै । iii. वकशोरिस्था की आिश्यकताओ की पवतण – यह अिस्था बहत ही नाजक होती ह ै । इस अिस्था ु ू ु ं म ें बालक म ें बालक म ें अवतररक्त शवक्त का अवधक्य पाया जाता ह ै । इन वक्रयाओ के द्वारा ं उसकी अवतररक्त शवक्त एि मकप्रिवतयों को विवभन्न उपयोगी धाराओ म ें प्रिावहत वकया जाता ह।ै ृ ु ं ं इनके द्वारा वकशोर बालकों की नैशावगकण प्रिवतयों को उनके सामावजक व्यवक्तत्ि के विकास एि ृ ं समवध के वलए विवभन्न कायों म ें सलग्न वकया जाता ह ै । ृ ं iv. शारीररक विकास – विवभन्न प्रकार की शारीररक वक्रयाओ द्वारा बालक सवक्रय एि शवक्तशाली ं ं बनता ह ै । खले -कद , वड्रल, व्यायाम आवद से उसका शरीर हृष्ट –पष्ट होता ह ै । ू ु v. नैवतक गणों का विकास – इन वक्रयाओ म ें भाग लेने से सत्यता, ईमानदारी, आत्मविश्वास, न्याय ु ं वप्रयता, धैयण, दृढ़ता, विनय, आज्ञापालन आवद गणों का विकास होता ह ै जो अच्छे चररत्र का ु वनमाणण करता ह ै । vi. अनशासन स्थावपत करने म ें सहायक – छात्र वक्रयाओ से विद्यालय म ें अनशासन स्थावपत करने ु ु ं म ें बहत सहायता वमलती ह ै । इनके माध्यम से बालकों की ियै वक्तक विवभन्ताओ ि गणों की ु ् ु ं अवभस्िीकवत, विद्यालय अनशासन की समस्या का बहत महत्िपण ण समाधान ह ै । कायण की ु ृ ु ू सलग्नता उनको विवभन्न बरी आदतों एि कचक्रों म ें फसने से बचाती ह ै । ु ु ं ं ं 4.11 मह पाठयक्रम गवतवववधओं के लाभ िसै े तो सह पाठयक्रम गवतविवधओ के बहत सारे फायद े ह।ैं लेवकन यहा पर कछ महत्िपणण लाभ के बारे म ें ु ु ू ं ं बताया ह।ै i. सह पाठयक्रम गवतविवधयााँ खेल, अवभनय, गायन एि कविता पाठ को प्रोत्सावहत करता ह।ै ं ii. गवतविवधयााँ जसै े खले , बहस म ें भागीदारी, सगीत, नाटक, आवद वशक्षा को पण ण करने में मदद ू ं करता ह।ै iii. यह बहस के माध्यम से स्ितत्र रूप से खद को अवभव्यक्त करने के वलए छात्रों को सक्षम बनाता ु ं ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 55 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं iv. खले बच्चों को वफट और ऊजाणिान बनने म ें मदद करता ह।ै v. स्िस्थ प्रवतस्पधाण की भािना विकवसत करने के वलए मदद करता ह।ै vi. यह गवतविवधयााँ बताता ह ै वक वकसी भी काम को सगवठत रूप म ें कै से करना चावहए, कौशल ं विकवसत कै से वकया जाये, सहयोग और विवभन्न प्रवस्थवथओ म ें समन्िय कै से रखा जाये। ं vii. यह समाजीकरण, आत्म-पहचान और आत्म मकयाकन का अिसर प्रदान करता ह।ै ू ं viii. यह वनणयण लेने म ें आप को एकदम सही बनाता ह।ै ix. यह अपनेपन की भािना विकवसत करने म ें मदद करता ह।ै पाठयक्रम गवतविवधयााँ के आयोजन म ें वशक्षक की भवमका ू i. वशक्षक को एक अच्छा योजनाकार होना चावहए तावक विवभन्न गवतविवधयों को व्यिवस्थत ढग से परा वकया जा सके । ू ं ii. वशक्षक का कतणव्य होना चावहए वक िह पाठयक्रम गवतविवधयों प्रदशनण करते हए बच्चों को ु अवधक से अवधक अिसर द।े iii. वशक्षक को एक अच्छा आयोजक होना चावहए तावक छात्रों को इसके बारे म ें अवधक से अवधक फायदा उठा सके । अभ्यास प्रश्न 7. पाठय सहगामी गवतविवध क्या ह ै ? ् 8. पाठय सहगामी गवतविवध का क्या महत्ि ह ै ? ् 9. पाठय सहगामी गवतविवध का क्या लाभ ह ै ? ् 4.12 मारांश वशक्षा म ें ज्ञान, उवचत आचरण और तकनीकी दक्षता, वशक्षण और विद्या प्रावप्त आवद समाविष्ट ह ैं । इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यिसायों एि मानवसक, नैवतक और सौन्दयण विषयक के ं उत्कष ण पर कें वरत ह ै । वशक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से वनचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तातरण का प्रयास ह ै । इस ं विचार से वशक्षा एक सस्था के रूप म ें काम करती ह,ै जो व्यवक्त विशषे को समाज से जोड़ने म ें महत्त्िपणण ू ं भवमका वनभाती ह ै तथा समाज की सस्कवत की वनरतरता को बनाए रखती ह ै । बच्चा वशक्षा द्वारा समाज ृ ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 56 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं के आधारभत वनयमों, व्यिस्थाओ, समाज के प्रवतमानों एि मकयों को सीखता ह ै । बच्चा समाज से तभी ू ू ं ं जड़ पाता ह ै जब िह उस समाज विशेष के इवतहास से रूबरू होता ह ै । ु राष्र तथा उसके नागररकों का एक-दसरे से घवनष्ट सम्बन्ध होता ह ै । वकसी भी राष्र की प्रगवत के िल उसी ु समय हो सकती ह ै जब उसके नागररक उत्तम सचररत्र तथा उतरदावयत्िपण ण हों । यवद नागररक अयोग्य, ू चररत्रहीन तथा वनबणल होंग े तो राष्र-वनवश्चत रूप से रसातल को चला जायेगा । इस दृवष्ट से राष्र की उन्नवत के वलए सचररत्र एि श्रेष्ट नागररकों का होना परम आिश्यक ह ै । ऐसे नागररकों का वनमाणण करना ही ं राष्रीय जीिन म ें वशक्षा का कायण ह।ै एडगर डेल ने अपने बह चवचणत अनभि शक के माध्यम से इन सामावजक विविधता एि ियै वक्तक ु ु ु ं ं विवभन्नता के आधार पर वशक्षा के वलए म ें आधवनक तकनीवकयों के प्रयोग को बहत ही ठोस ु ु मनोिज्ञै ावनक आधार प्रदान करण की कोवशश की ह ै । उनका यह अनभि वत्रकोण यह प्रदवशतण करता ह ै ु वक साफ्टिये र और हाडणिये र तकनीवकयों द्वारा प्रदत्त विवभन्न प्रकार के वशक्षण अवधगम विवधयों सामवग्रयों तथा उपकरण व्यवक्त विशेष को विवभन्न प्रकार के अवधगम अनभि अवजणत करने म ें वकस प्रकार ु वकस प्रकार सहयोगी वसि हो सकता ह ै । 4.13 शब्दावली 1. पाठयक्रम- विषय िस्त की िह प परेखा वजसके सहायता से बालक अपने उद्दश्े य को परा करता ु ू ह।ै 2. सह पाठयक्रम – शवै क्षक वक्रयाकलाप के अलािा होने िाले विद्यालयी कायणक्रम । 3. सिारना – बालकों के योग्यता एि क्षमताओ का विकास करना । ं ं ं 4. सामावजक विविधता- सामाज म ें पायी जाने िाली अतर ं 4.14 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 1. अग्रिाल ज.े सी. एि गप्ता एस. (2011)- उदयीमान भारतीय समाज म ें वशक्षा, वशप्रा प्रकाशन, ु ं नई वदकली 2. सवखया एस. पी. एि सईद एन. (2015)- विद्यालय प्रशासन सगठन एि स्िास््य वशक्षा, श्री ु ं ं ं विनोद पस्तक मवन्दर, आगरा । ु 3. मगल एस.के . एि मगल उमा (2013) – वशक्षा तकनीकी, पी.एच.आई., वदकली । ं ं ं 4. वसह ज.े पी. (2013) – समाज शाि – अिधारणा एि वसधान्त, पी.एच.आई., वदकली । ं ं उत्तराखण्ड मक्त
विश्वविद्यालय 57 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5. वसह ए. के . (2014) – वशक्षा मनोविज्ञान , भारती भिन प्रकाशन , पटना । ं 6. कलश्रेष्ठ एस.पी. (2015) – शवै क्षक तकनीक के मल आधार, अग्रिाल प्रकाशन, आगरा । ु ू 7. मगल एस.के ., (2013) – वशक्षा मनोविज्ञान,
पी.एच.आई., वदकली । ं 4.15 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. वशक्षा से आप क्या समझते ह ैं ? बालकों के सम्पण ण विकास म ें वशक्षा वकस प्रकार सहायक ह ै ? ू 2. ियै वक्तक विवभन्नता एि सामावजक विविधता के आधार पर वशक्षा का आधार क्या होना चावहए ं ? 3. पाठय सहगामी वक्रया एि पाठययेतर गवतविवध बालकों के सम्पण ण विकास म ें सहायक ह ै । िणनण ् ् ू ं करें । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 58 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 5 - विक्षार्तथयों को में समथ बनाने के वलए विक्षा की िूवमका; सामूवहक जीिन का ण लाि; िांवतपूणण और उवित प्रकार से िाता एिं आपसी समझौते के माध्यम से तनाि के समािान हेत ु िैवक्षक आगत Role of Education in Enabling the Learners to
‘learn to live together’,
Benefits of Collective Living, Educational Inputs for the Resolution of Tensions Peacefully and Justly through Negotiations and Mutual Agreement 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 अवधगम के चार स्तम्भ 5.4 बच्चों को एक साथ जीना सीखाने में वशक्षा की भवमका ू 5.5 सामवहक जीिन ू 5.6 शावतपणण और उवचत प्रकार से िाताण एि आपसी समझौते के माध्यम से तनाि के ू ं ं समाधान हते शैवक्षक आगत ु 5.7 साराश ं 5.8 शब्द ािली 5.9 अभ् यास प्रश् नों के उत् तर 5.10 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 5.11 वनबधात् मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 59 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5.1 प्रस्तावना आप लोग वशक्षा की पररभाषा एि इसके उद्दश्े यों को वपछले अध्यायों म ें पढ़ चके होंग ें । वशक्षा की ु ं पररभाषा विवभन्न विद्वानों ने विवभन्न प्रकार स े दी ह,ै परन्त सबका सार दखे ा जाय तो यही वनकलता ह ै वक ु वशक्षा से तात्पयण के िल विद्यालयी पढ़ाई-वलखाई से नहीं ह ै अवपत यह एक जीिन प्रयत्न चलने िाली ु प्रवक्रया ह ै वजसका उद्दश्े य बालक का सिाांगीण विकास करना ह ै । ऐसा नहीं ह ै वक वशक्षा की विवभन्न पररभाषायें एि वशक्षा का उद्देश्य सभी वशक्षाशावियों ने एक ही समय म ें वदया हो, समय के साथ-साथ ं समाज की आिश्यकताओ को दखे ते हए इसके उद्दश्े यों म ें पररितणन होता रहा ह ै । ितणमान समय म ें हम ु ं सभी के वलए गणात्मक वशक्षा की बात कर रह े ह,ैं अतः वशक्षा के उद्दश्े य भी उसके अनसार पररिवतणत हए ु ु ु ह ैं । इस सचना प्रिाह के यग म ें वशक्षा का उद्दश्े य एक तरफ यह हो गया ह ै वक ज्ञान के विशाल भण्डार को ू ु कै से बच्चों तक पहचाँ ाया जाय तो िहीं दसरी तरफ यह ह ै वक यह ज्ञान के िल सचना के भण्डार के रूप म ें ु ू ू ही सीवमत ना रह े बवकक बच्चे उसका अपने जीिन म ें कै से प्रयोग कर सकें , इसका भी समझ हो । वशक्षा के उद्दश्े यों म ें पररितणन के साथ यह बहत आिश्यक हो जाता ह ै वक पाठयक्रम म ें भी पररितणन वकया जाय ु ् तावक बच्चे को जो पढ़ाया जाय िह उसके ितणमान एि भविष्य के वलए व्यवक्तगत एि समाज के सदस्य के ं ं रूप म ें भी उपयोगी हो । समाज के बदलते सन्दभ ण म ें वशक्षा की यह भवमका महत्िपण ण हो जाती ह ै वक ू ू बच्चा के िल विद्यालय म ें ही सफल ना हो बवकक समाज म ें एक उत्तरदायी नागररक, एक अच्छे कायणकत्ताण, समदाय म ें सवक्रय सदस्य के विवभन्न रूपों म ें सफल हो सके । इस इकाई में हम चचाण करेंग ें वक ु बच्चे को इस समाज म ें सभी के साथ रहना सीखाने के साथ-साथ वकसी भी तनाि को शावतपण ण ढग एि ू ं ं ं उवचत प्रकार से हल करने म ें वशक्षा कै से मदद करती ह ै । 5.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप- 1. अवधगम के चार स्तम्भों की व्याख्या कर सकें ग े । 2. बच्चों को एक साथ जीना सीखाने म ें वशक्षा की भवमका का विश्लेष्ण कर सकें ग े । ू 3. सामवहक जीिन का अथण बता सकें ग े । ू 4. ितणमान समय म ें एक साथ रहने के फ़ायद े वगना सकें ग े । 5. शावत के वलए वशक्षा को पररभावषत कर सकें ग े । ं 6. वकसी तनाि के शावतपण ण वनिारण म ें वशक्षा के योगदान की चचाण कर सकें ग े । ू ं 5.3 अवधगम के चार स्तम्भ (Four Pillars of Learning) बदलते समाज एि भविष्य म ें वशक्षा के समक्ष आने िाले चनौवतयों एि उसके वलए सझाि दने े के वलए ु ु ं ं यनेस्को ने िष ण 1993 म ें
“21 िीं शताब्दी के वलए वशक्षा पर अन्तराणष्रीय आयोग”
का गठन जकै डेलोसण ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 60 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं की अध्यक्षता म ें वकया । इस आयोग ने अपनी ररपोटण
“लवनांग: दी वरजर विवदन (Learning: The Treauser Within)”
नाम से यनेस्को को 11 अप्रैल, 1996 को सौंपा था । जकै डेलोसण कहते ह ैं वक ू वशक्षा व्यवक्तगत एि सामदावयक विकास के हृदय म ें होती ह;ै वशक्षा का उद्दश्े य प्रत्येक व्यवक्त को इस ु ं योग्य बनाना ह ै वक सभी अपने प्रवतभा को पण ण रूप से अपने सजनात्मक क्षमता के साथ विकवसत करने के ृ ू साथ-साथ अपने व्यवक्तगत लक्ष्यों तथा अपने जीिन के उत्तरदावयत्िों को भी समझ सके (डेलोसण ररपोटण, 1996, पेज 17) । इस ररपोटण की मख्य दने ह ै अथाणत वशक्षा रूपी विशाल ु भिन के वनमाणण हते चार मजबत स्तम्भों की आिश्यकता होती वजनको अवधगम के चार स्तम्भ कहते ह ैं । ु ू अवधगम के ये चार स्तम्भ ह:ैं जानने के वलए अवधगम (Learning to Know), करने के वलए अवधगम (Learning to Do), एक साथ जीने के वलए अवधगम (Learning to Live Together), तथा होने के वलए अवधगम (Learning to Be), इनको वशक्षा का आधारभत वसिात माना जाता ह।ै अब हम ू ं अवधगम के इन चारों स्तम्भों की चचाण सक्षेप म ें करेंग ें । ं 1. जानने के शलए अशधर्म (Learning to Know)- जानने के वलए अवधगम को हम दसरे ू शब्दों म ें भी कह सकते ह ैं वजसका तात्पयण ह ै वक अच्छे विचार एि ज्ञान जहााँ से भी ं वमले ग्रहण करना चावहए । जानने के वलए अवधगम यह भी कहता ह ै वक अवधगम के िल एक वनवश्चत अिवध म ें ही नहीं समाप्त हो जाती ह ै यह एक जीिन पयणन्त चलने िाली प्रवक्रया ह,ै अथाणत ऐसा नहीं ह ै वक आपने विद्यालय एि विश्वविद्यालय वशक्षा प्राप्त करने के बाद आपका ं अवधगम समाप्त हो गया, अवधगम आपके परे जीिन भर चलता रहता ह ै चाह े आप कहीं नौकरी ू करते हों अथिा अपना स्िय का कोई कायण करते ह ैं । यह ज्यादा महत्िपण ण नहीं होता ह ै वक हमन े ू ं ने क्या सीखा, ज्यादा महत्िपण ण यह होता ह ै वक हम म ें सीखने की क्षमता विकवसत हई वक नहीं, ु ू क्योंवक जो हम सीखते ह ैं हो सकता ह ै वक कछ वदनों बाद हम भल जाए परन्त अगर हम म ें ु ू ु ं सीखने की क्षमता ह ै तो हम दोबारा से सीख सकते ह ैं । जानने के वलए अवधगम म ें ज्ञान और कौशल (साक्षरता, गणना एि गहन सोच) का विकास भी सवम्मवलत ह ै जो वक समाज म ें कायण ं करने हते आिश्यक ह ै । व्यवक्त को अपने समाज एि आस-पास के िातािरण को समझने के ु ं वलए भी ज्ञान आिश्यक होता ह ै । व्यवक्त म ें जब ज्ञान की िवि होती ह ै तो उसम ें पररितणन होने ृ लगता ह,ै िह सशक्त, ऊजाणिान, सस्कारी, एि सलझा हआ व्यवक्तत्ि िाला हो जाता ह ै । ु ु ं ं 2. करने के शलए अशधर्म (Learning to Do)- करने के वलए अवधगम को हम दसरे शब्दों म ें ू भी कह सकते ह ैं वजसका तात्पयण ह ै वक वशक्षा िसै ी होनी चावहए जो हमको इस योग्य बना सके तावक हम अपन े जीिन म ें कछ काय ण कर सकें । दसरे शब्दों म ें कह ें तो अगर व्यवक्त कछ ु ु ू सीखता ह ै तो िह उसका प्रयोग भी कर सके ना वक उस ज्ञान को के िल सचना के रूप म ें अपन े ू वदमाग में रख,े अथाणत वशक्षा ऐसी होनी चावहए वक व्यवक्त को इस योग्य बना सके वक िह प्राप्त ज्ञान का भविष्य म ें प्रयोग कर सके । अतः जानने के वलए अवधगम एि करने के वलए अवधगम में ं एक सयोजन होगा तभी वशक्षा का उद्दश्े य परा होगा, उदाहरण के तौर पर एक व्यवक्त को यह पता ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 61 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह ै वक कम्प्यटर के भाग कौन-कौन से ह,ैं इसके क्या फ़ायद े ह,ैं इसके द्वारा क्या-क्या वकया जा ू सकता ह,ै परन्त अगर उस व्यवक्त को व्यिहाररक रूप म ें कम्प्यटर चलाना आता ही नहीं तो ु ू उसके ज्ञान का कोई फ़ायदा नहीं ह ै । अवधगम ऐसा होना चावहए वजसको प्रमावणत कौशल स े व्यवक्तगत क्षमता म ें आहररत वकया जा सके । 3. एक साथ जीने के शलए अशधर्म (Learning to Live Together) - जो बात हमारे यहााँ िषो से कही जा रही ह ै वक अथाणत परी दवनया एक ही पररिार ह,ै िही बात ् ु ु ु ू ु आज के ितणमान समय म ें विश्व के सभी लोग कर रह े ह ैं । अतः इसके वलए आिश्यक ह ै वक वशक्षा ऐसी होनी चावहए जो बच्चों को यह सीखा सके वक कै से विवभन्न प्रकार के लोगों के साथ वजनका रग-रूप, रहन-सहन, खान-पान अलग-अलग हो, के साथ वमत्रतापिकण रहा जा सके ; ू ं यही एक साथ जीने के वलए अवधगम ह ै । डेलोसण ररपोटण के एक मात्र भारतीय सदस्य डॉ. कण ण वसह ने 28 अगस्त, 2004 को श्री रामाभाई पटेल के ततीय यादगार व्याख्यान म ें कहा था वक ृ ं एक साथ जीने के वलए अवधगम वशक्षा के सबसे महत्िपण ण स्तम्भों म ें से एक ह,ै जो इस विश्व म ें ू रहने के वलए अत्यत आिश्यक ह ै । इस व्याख्यान म ें ि े कहते ह ैं वक इसके वलए आिश्यक ह ै वक ं बच्चों म ें मकयों को बढ़ािा वदया जाय । ि े पााँच प्रकार के मकयों की बात करते ह ैं जो एक साथ ू ू जीने के वलए अवधगम हते आिश्यक ह ै । पहला ह ै पररिार का मकय, यवद बच्चे को पररिार म ें ु ू मकय नहीं बताया जाय तो उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती ह ै वक िह मकयों को बाहर से ू ू सीख,े जसै े बड़ो का सम्मान करना, दया करना इत्यावद । पररिार के बजगण सदस्यों को चावहए वक ु ु पररिार म ें पवत-पत्नी को समान अवधकार एि सम्मान द ें तथा समय के साथ-साथ अपने विचारों ं म ें भी पररितणन लायें । दसरा ह ै सामावजक मकय, जसै े समय, सफाई, ग्रप कायण इत्यावद । बच्चों ू ु ू को समय का महत्ि बताना चावहए, उदाहारण के तौर पर विद्यालय म ें 3:15 अपरान्ह से विज्ञान विषय पढ़ाना ह ै तो, वशक्षक को वनवश्चत रूप से कक्षा म ें अपरान्ह 3:15 पर पहचाँ ाना चावहए तावक ु बच्चे म ें समय का मकय पता चल सके िहीं उन्ह ें बताना चावहए वक अपने आस-पास सफ़ाई रखें ू एि कड़े को वनवश्चत स्थान पर ही फें कें । बच्चों को भारतीय सविधान म ें वदए गये मौवलक कतणव्यों ू ं ं को भी बताना एि समझाना चावहए । तीसरा ह ै आपसी मकय (Interfaith Value) अथाणत ू ं सिधण म ण समभाि, बच्चों को शरू से ही बताना चावहए वक इस ससार म ें विवभन्न प्रकार के धम ण के ु ं मानने िाले लोग ह ैं वजनका विचार अलग-अलग हो सकता ह,ै सभी के विचारों का सम्मान करना चावहए । चौथा मकय ह ै िातािरणीय मकय, बच्चों को पेड़-पौधों, पश-पवक्षयों की ू ू ु उपयोवगता बतानी चावहए, उन्ह ें बाग़-बगीचों, वचवड़याघर के घमाना चावहए तथा उन्ह ें समझाना ु चावहए वक इनके न होने से हमारे िातािरण पर क्या प्रभाि पड़ सकता ह ै जो हमारे वलए वकतना हावनकारक हो सकता ह ै । अतः बच्चों को शरू से ही िातािरण की वशक्षा दने ी चावहए एि ु ं प्रकवत से लगाि रखना चावहए । अवतम एि पााँचिा मकय ह ै िवै श्वक समाज का मकय, बच्चों को ृ ू ू ं ं समझाना चावहए वक भारत एक अलग देश तो परन्त यह िैवश्वक समाज का एक भाग ह ै । परा ु ू विश्व एक इकाई के रूप म ें ह ै इसको अलग-अलग नहीं बााँट सकते ह ैं । यरोप के विवभन्न दशे ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 62 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं आपस म ें िषों तक लड़ते रह े परन्त अब परा यरोप यरोवपयन सघ बन गया सभी की मरा एक हो ु ू ू ू ु ं गयी ह,ै यह िवै श्वक समाज का एक उदाहरण ह ै । 4. होने के शलए अशधर्म (Learning to Be) - होने के वलए अवधगम से तात्पयण अपनी आतररक प्रवतभा को पहचानना तथा उस प्रवतभा को विकवसत करना । होने के वलए अवधगम ं व्यवक्त के शरीर, मवष्तष्क एि आत्मा के व्यवक्तगत विकास पर बल दते ा ह,ै दसरे शब्दों म ें कह े तो ं ू यह व्यवक्त के सिगां ीण विकास की बात करता ह ै । प्रत्येक व्यवक्त के पास कछ ना कछ क्षमता ु ु होती ह ै जरूरी होता ह ै वक उस क्षमता को पहचानना एि उसको विकवसत करना । ितणमान समय ं म ें यह जप री हो गया ह ै वक विद्यालय म ें पढ़ाई-वलखाई के साथ खले -कद एि सास्कवतक ृ ू ं ं कायणक्रम भी हो तावक बच्चे म ें जो भी प्रवतभा हो उभर कर सामने आये । वशक्षा का उद्दश्े य भी यही ह ै वक बच्चे का सिगां ीण विकास वकया जाय वजसके वलए आिश्यक ह ै वक उसके बौविक विकास के साथ-साथ शारीररक एि सजनात्मक विकास भी वकया जाय तावक वजसम ें भी उसकी ृ ं प्रवतभा छपी हो िह वनकलकर बाहर आए । ु वशक्षा के ये चार आधारभत स्तम्भ ह ैं वजसपर वशक्षा रूपी भिन का वनमाणण होना ह,ै इनम ें से ू अगर एक भी ना हो तो वशक्षा रूपी भिन नहीं बन सकती ह,ै अतः यह आिश्यक ह ै वक बच्चों को वशक्षा दते े समय हम ध्यान रख ें वक उनम ें उपयणक्त चारों स्तम्भों का साथ-साथ वनमाणण होता रह े तभी िह अपने ु एि समाज हते फलदायी हो सकता ह ै । अगले खड म ें हम चचाण करेंग ें वक बच्चों को एक साथ जीना ु ं ं सीखाने म ें वशक्षा की क्या भवमका ह?ै ू अभ्यास प्रश्न 1. यनेस्को द्वारा िष ण 1993 म ें गवठत
“21 िीं शताब्दी के वलए वशक्षा पर अन्तराणष्रीय आयोग”
के ू अध्यक्ष ________ थे । 2. अवधगम के चार स्तम्भों की बात वकस ररपोटण म ें की गयी ह?ै 3. जानने के वलए अवधगम को ज्ञान योग भी कहते ह ैं । (सत्य/असत्य) 5.4 बच्चों को ंक माथ जीना मीखाने म वशक्षा की भूवमका Role of ें education in enabling the learners to जसै ा वक आप पढ़ चके ह ैं वक एक साथ जीने के वलए अवधगम से तात्पयण ह ै वक अवधगम ऐसी हो जो ु बच्चों को एक समाज म ें एक साथ भाईचारे के साथ रहना सीखा सके । इसके वलए आिश्यक ह ै वक बच्चों को बचपन से ही ऐसी वशक्षा दी जाय जो उनको विवभन्न प्रकार के लोगों वजनका खान-पान, रहन- सहन, पहनािा इत्यावद अलग-अलग हों के साथ भाईचारे पिकण रहा जा सके । जान डीिी कहते ह ैं वक ू विद्यालय समाज का लघ रूप ह ै अथाणत समाज म ें वजतने भी प्रकार के लोग होते ह ैं िह विद्यालय म ें ही ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 63 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं पाए जाते ह,ैं अतः यवद बच्चा बचपन स े ही अपने सहपावठयों के साथ अच्छी प्रकार से रहने लग े तो िह बड़ा होकर अपने समाज में भी अच्छी प्रकार से रहने लगगे ा। बच्चों को एक साथ जीना सीखाने म ें वशक्षा एक अहम भवमका वनभाती ह,ै वशक्षा ही िह यत्र ह ै वजसके माध्यम से हम बच्चों के व्यवक्तगत व्यिहार, ू ं मनोिवत एि मकयों म ें ऐसा पररितणन ला सकते ह ैं वजससे िह अपने विविधताओ से पण ण समाज में ृ ू ू ं ं शातीपण ण रह सके , इस हते वशक्षा की कछ प्रमख भवमका वनम्नवलवखत ह:ै ू ु ु ु ू ं बच्चों को बचपन से ही कहानी, कविता इत्यावद के माध्यम से मकयों की वशक्षा दी जाय । ू सहयोग की भािना विकवसत वकया जाय । अवहसा की भािना विकवसत वकया जाय । ं मानि विवभन्नताओ को समझना एि उसको स्िीकार करना सीखाया जाय । ं ं अपनी स्ितत्रता के साथ-साथ दसरों की स्ितत्रता को भी समझा जाय । ं ं ू सभी धमो का सम्मान करने की वशक्षा दी जाय । वनःस्िाथण रियै ा विकवसत वकया जाय । मानिावधकार की वशक्षा वदया जाय । वकसी भी वििाद को शावतपिणक वनपटाने हते वशक्षा वदया जाय । ू ु ं नागररक कतणव्यों को बताया जाय । नैवतकता की वशक्षा वदया जाय । अगर बच्चे को इस तरह से वशक्षा दी जाय वक उसम ें मकय, अवहसा, सहयोग, इत्यावद के गण बचपन से ू ु ं समावहत हो जाए तो िह बच्चा बड़ा होकर समाज म ें सबके साथ वमलजलकर शावतपिकण रह सकता ह ै । ु ू ं ं अतः समाज म ें लोगों को सद्भािना पिकण एक साथ जीिन जीने म ें समथण बनाने हते वशक्षा एक महत्िपण ण ू ु ू भवमका वनभाती ह ै । ू अभ्यास प्रश्न 4. विद्यालय समाज का लघ रूप ह ै । (सत्य/असत्य) ु 5. एक साथ जीना सीखाने म ें वशक्षा की कोई भवमका नहीं होती ह ै । (सत्य/असत्य) ू 6. बच्चों को मकयों की वशक्षा के िल वकताब से ही वदया जा सकता ह ै । (सत्य/असत्य) ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 64 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5.5 मामूवहक जीवन (Collective Living) वपछले खड म ें हमने पढ़ा वक बच्चों को इस विवभन्नता िाले समाज म ें एक साथ जीिन जीने को सीखाने ं म ें वशक्षा कै से अपना योगदान दते ी ह ै । इस खड म ें हम चचाण करेंग ें वक एक साथ जीिन व्यतीत करन े ं अथिा सामवहक जीिन से क्या तात्पयण ह ै तथा ऐसे जीिन जीने से क्या लाभ ह?ै ू सामशहक जीवन से तात्पयि (Meaning of Collective living) ू फ्रें च समाजशािी एवमल दखीम (Emile Durkheim) कहते ह ैं वक आवदकाल से ही मानि दो प्रकार का ु जीिन व्यतीत करता रहा ह ै पहला व्यवक्तगत तथा एकान्त जीिन एि दसरा सामवहक जीिन । व्यवक्तगत ू ं ू जीिन म ें न कोई आमोद-प्रमोद था और न वकसी प्रकार का आकषणण ही था । परन्त सामवहक जीिन ु ू उत्साह, आमोद-प्रमोद और आकषणण से पररपण ण था । जब कभी एक ही कल और पररिार समह के लोग ू ु ू एकत्र होते थे तो ि े बड़े ही सख का अनभि करते थे । यह सख सामवहक जीिन का पररणाम था वजसके ु ु ु ू कारण मनष्य के एकात जीिन की नीरसता वमट जाती थी । ु ं व्यवक्त समह अथाणत समाज म ें रहकर अपने सावथयों के साथ जीिन यापन करता ह ै । इसी कारण ू व्यवक्त को समावजक प्राणी भी कहा जाता ह ै । दो या दो से अवधक व्यवक्त वमलकर समह का वनमाणण करते ू ह ैं । समह की प्राथवमक इकाई पररिार होता ह ै वजसका वनमाणण माता-वपता एि बच्चों से होता ह ै । समान ू ं विचार एि समान पिणजों िाले पररिार से वमलकर कल या गोत्र का वनमाणण होता ह,ै व्यवक्त अपना ू ु ं सामवहक जीिन इसी म ें व्यतीत करता ह ै । समह म ें ही व्यवक्त अपने व्यवक्तत्ि का वनमाणण एि विकास ू ू ं करता ह,ै समह म ें रहकर ही व्यवक्त समह के प्रवत अपने कतव्ण यों को समझता ह ै । समाज में कई समह होने ू ू ू के कारण व्यवक्त कई समहों का सदस्य भी होता ह ै । समाज म ें पाये जाने िाले विवभन्न समहों म ें से कछ ू ू ु समह रक्त से सम्बवन्धत होत े ह,ैं तो कछ व्यापार, व्यािसाय या अन्य उद्दश्े यों के आधार पर बन जाते ह ैं । ू ु इन समहों का प्रभाि व्यवक्त के व्यिहार पर तथा व्यवक्त के व्यिहार का प्रभाि इन समहों पर पढ़ता ह ै । ू ू विद्यालय भी एक समह ह ै जहााँ पर छात्र सामवहक जीिन के विषय म ें ज्ञान प्राप्त करते ह ैं िहााँ का ू ू सामावजक िातािरण छात्रों के व्यवक्तत्ि विकास म ें सहायक होता ह ै । सामशहक जीवन से लाभ (Benefits of Collective living) ू सामवहक जीिन व्यवक्तगत रूप से व्यवक्त के साथ-साथ समाज की उन्नवत हते बहत लाभदायक होता ह.ै ु ू ु कछ प्रमख लाभ वनम्नवलवखत ह:ैं ु ु सामवहक जीिन से बालक म ें एकात की नीरसता नहीं रहती ह ै । ू ं सामवहक जीिन से बालक म ें सहयोग की भािना विकवसत होती ह ै । ू सामवहक जीिन से बालक म ें भाईचारे की भािना का विकास होता ह ै । ू सामवहक जीिन म ें ही बालक अनकरण करना सीखता ह ै । ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 65 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सामवहक जीिन से बालक को भविष्य म ें आग े बढ़ने की प्रवतद्ववदता की भािना विकवसत होती ू ं ह ै । सामवहक जीिन म ें ही रहकर बालक प्रेम करना एि दया करना भी सीखता ह ै । ू ं सामवहक जीिन से ही बालक नैवतकता का पाठ सीखता ह ै । ू सामवहक जीिन म ें ही रहकर बालक पररिार की सस्कवत एि मकयों को समझ सकता ह ै । ृ ू ू ं ं सामवहक जीिन से बालक म ें साझा करने की आदत विकवसत होती ह ै । ू सामवहक जीिन से बालक म ें धैयण क्षमता विकवसत होती ह ै । ू सामवहक जीिन म ें बालक ज्यादा सरवक्षत रहते ह ैं । ू ु सामवहक जीिन म ें रहकर बालक सामवजक कौशल जसै े- बड़ो एि छोटों से िाताणलाप करना, ू ं बड़े-बजगों का सम्मान करना, सबके साथ वमलजलकर खेलना इत्यावद आसानी से सीख जाता ु ु ह ै । सामवहक जीिन म ें रहकर बालक उत्तरदायीत्िों को समझ जाता ह ै । ू सामवहक जीिन से बालक म ें अनशासन की भािना विकवसत होती ह ै । ू ु सामवहक जीिन म ें बालक खाली समय का सदपयोग अन्य सदस्यों के साथ खले कद कर ू ू ु अच्छी प्रकार से कर लेता ह ै । सामवहक जीिन से बालक कतणव्यों को सीखता ह ै । ू ितणमान समय में ज्यादातर लोग एकल पररिार म ें रहते ह ैं वजनम े से कछ लोग अपनी इच्छा से रहते ह ैं तो ु कछ लोग रोजी-रोटी हते मज़बरी बस रहते ह ैं । एकल पररिार म ें रहने पर ज्यादातर माता-वपता समय की ु ु ू कमी के चलते बालक को अपने मकय, सस्कार, सस्कवत का ज्ञान नहीं करा पाते ह ैं अतः विद्यालय के ृ ू ं ं आधवनक पाठयक्रम म ें मकय वशक्षा को सवम्मवलत करके बच्चों को उनके मकय, सस्कार, अनशासन ् ु ू ू ु ं इत्यावद सीखाया जा रहा ह,ै जो सयक्त पररिार म ें रहने िाला बालक इसको वबना विषय के रूप म ें पढ़े ही ु ं अपने रोजमराण के जीिन को दखे ते एि उसका पालन करते हए आसानी के साथ सीख जाता था । अतः ु ं उपरोक्त वबन्दओ के आधार पर हम कह सकते ह ैं वक बालक के सिगां ीण विकास हते सामवहक जीिन में ु ू ं ु रहना भी आिश्यक । अभ्यास प्रश्न 7. एवमल दखीम के अनसार आवदकाल से ही मानि दो प्रकार का जीिन व्यतीत करता रहा ह ै ु ु पहला व्यवक्तगत तथा एकान्त जीिन एि दसरा सामवहक जीिन । (सत्य/असत्य) ू ं ू 8. समह की प्राथवमक इकाई समाज होता ह ै । (सत्य/असत्य) ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 66 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5.6 शावं तपूणण और उवचत प्रकार म े वाता ंवं आपमी ममझौते के माध्यम मे तनाव के ममाधान हते ु शैवक्षक आगत Educational inputs for the resolution of tensions peacefully and justly through negotiations and mutual agreement जसै ा वक हम ऊपर के खडो में पढ़ चके ह ैं वक डेलोसण ने अपनी ररपोटण म ें कहा ह ै वक वशक्षा का यह एक ु ं मख्य उद्दश्े य होना चावहए वक बालक यह सीख सके वक इस समाज म ें विवभन्न प्रकार के लोगों के साथ ु वमलकर कै से सामवहक जीिन व्यतीत वकया जाय । चाँवक समाज म ें विवभन्न विचारों, धमों, मान्यताओ को ू ू ं मानने िाले लोग रहते ह ैं अतः सामवहक जीिन एि समाज म ें एक साथ जीिन व्यतीत करने म ें कछ ना ू ु ं कछ तनाि जप र होता ह,ै अतः बालक को विद्यालय से ही वशक्षा के माध्यम से यह सीखाना चावहए वक ु वकसी भी तनाि को कै से शावतपण ण एि आपसी समझौते के माध्यम सामाधान वकया जाय, परन्त यह कायण ू ु ं ं एक वदन या एक महीने या एक िष ण म ें नहीं परा हो सकता यह िषों चलने िाली प्रवक्रया ह ै तथा बालकों म ें ू यह पररितणन धीरे -धीरे ही आएगा । इस खण्ड म ें हम चचाण करेंग े वक वकसी भी तनाि के शावतपण ण वनिारण ू ं हते शवै क्षक आगत क्या ह?ै ु एक साथ जीना सीखना एक बहत क्षेत्र ह,ै इसको वसखाने के वलए वशक्षा को कई छोटे-छोटे विवभन्न बातों ृ को सीखाना पड़ता ह,ै जसै े: मकय वशक्षा (Value Education) ू जीिन कौशल वशक्षा (Life Skills Education) शावत के वलए वशक्षा वशक्षा (Education for Peace) ं मानिावधकार वशक्षा (Human Rights Education) नागररक वशक्षा (Civic Education) ऐसे अनेक छोटे-छोटे बातों के माध्यम से हम बालक को एक साथ जीना वसखाते ह ैं । यनेस्को (1974) के ू ररपोटण के अनसार अवहसा, आपसी समझौते एि दसरे व्यवक्तयों के सम्मान हते बालक को शावत एि ु ु ं ं ं ं ू मानिावधकार की वशक्षा दने ा आिश्यक ह ै । शावत वशक्षा समाज एि व्यवक्त को पररिवतणत करने के वलए ं ं होती ह ैं तावक ि े वकसी भी तनाि का वनिारण शावतपण ण ढग से कर सकें । आइए अब हम जानने की ू ं ं कोवशश करते ह ैं वक शावत के वलए वशक्षा क्या ह?ै ं िाशत के शलए शिक्षा से तात्पयि (Meaning of Education for Peace) ं महात्मा गाधी का कहना ह ै वक,
“अगर हम विश्व को िास्तविक शावत का पाठ पढ़ाना चाहते ह ैं तो हम ें ं ं शप आत बच्चों से ही करनी होगी ।”
िहीं माररया माटेसरी कहती ह ैं वक,
“सारी वशक्षा शावत के वलए ही ह ै ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 67 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ।”
इन दो वशक्षाशावत्रयो के कथन से यह पता चलता ह ै वक शावत के वलए वशक्षा एक महत्िपण ण घटक ह ै । ू ं यवनसेफ (1999) के अनसार शावत वशक्षा से तात्पयण बच्चों, यिाओ एि ियस्कों म ें आिश्यक व्यिहार ू ु ु ं ं ं पररितणन हते ज्ञान, कौशल, मनोिवत एि मकयों को विकवसत करने की प्रवक्रया से ह ै तावक ि े व्यवक्तगत, ृ ु ू ं राष्रीय अथिा अन्तराष्रीय स्तर पर तनाि एि वहसा को रोक सकें , तनाि का वनिारण शावतपण ण कर ू ं ं ं सके , तथा शावत हते सहायक वस्थवत बना सके । राष्रीय शवै क्षक अनसधान और प्रवशक्षण पररषद ने िष ण ु ु ं ं 2010 म ें शावत के वलए वशक्षा: राष्रीय फ़ोकस समह का आधार पत्र म ें शावत के वलए वशक्षा के मख्य ू ु ं ं कायणक्षेत्र बताए ह ैं जो ह:ैं वशक्षा के द्वारा विद्यावथणयों म ें शावत के प्रवत झकाि पैदा करना । ं ु विद्यावथणयों के भीतर उन सामावजक कौशलों और अवभप वचयों का पोषण, जो दसरों के साथ ू सामजस्यपिकण जीने के वलए जप री ह ै । ू ं सविधान म ें सविचाररत सामावजक न्याय की अिधारणा पर बल दने ा । ु ं धमवण नरपेक्ष सस्कवत को प्रचाररत करने की जप रत और कतणव्य । ृ ं लोकतावत्रक सस्कवत को प्रेररत करनेिाले उत्प्रेरक के रूप म ें वशक्षा । ृ ं ं वशक्षा के द्वारा राष्रीय अखडता को बढ़ािा दने े के प्रयास । ं जीिनशैली सम्बन्धी एक आन्दोलन के रूप म ें शावत के वलए वशक्षा । ं शावत के वलए वशक्षा म ें मकय वशक्षा भी समावहत ह,ै लेवकन दोनों एक ही नहीं ह ैं शावत मकयों की सगवत के ू ू ं ं ं वलए प्रासवगक तौर पर उपयक्त और लाभदायक वशक्षाशात्रीय वबद ह ै । शावत मकयों के उद्दश्े यों को ठोस ु ू ं ं ं ु रूप दते ी ह ै । शावत के वलए वशक्षा सीखने की प्रवक्रया को कक्षा की सीमा से मक्त करने और उसे खोज के ु ं आनद से अनप्रावणत जागरूकता के उत्सि म ें बदलने की मााँग करती ह ै । शावत वशक्षा जीने के आनन्द को ु ं ं मतण रूप प्रदान करना चाहती ह,ै इसका मानना ह ै वक सीखना आनदायक अनभि होना चावहए । ू ु ं अभ्यास प्रश्न 9. सारी वशक्षा शावत के वलए ह?ै यह कथन वकसका ह?ै ं 10. राष्रीय शवै क्षक अनसधान और प्रवशक्षण पररषद ने वकस िष ण म ें शावत के वलए वशक्षा: राष्रीय ु ं ं फ़ोकस समह का आधार पत्र प्रकावशत वकया था? ू िाशत के शलए शिक्षा में शिक्षक की भशमका (Role of Teacher in Education for Peace) ू ं विद्यावथणयों के वलए वशक्षक आदश ण होते ह ैं । अगर वशक्षक का शावत के प्रवत प झान नहीं ह,ै तो िह ं अनजाने म ें वहसा का दष्प्रचार करने म ें भवमका वनभाते ह ैं । एक कथन ह ै वक
“जो म ैं जानता ह ाँ िही पढ़ाता ू ू ं ु ह ाँ और जो म ैं ह ाँ िही वसखाता ह ाँ ।”
वशक्षक का पहला उत्तरदावयत्ि विद्यावथणयों को एक अच्छा व्यवक्त ू ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 68 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं बनने म ें सहायता करना ह ै और अपनी क्षमताओ का सम्पण ण प्रयोग करने के वलए उत्सावहत करना ह ै । ऐसा ू ं वसफण उसके वहत म ें ही नहीं बवकक समाज की भलाई के वलए भी ह ै । वशक्षक की तलना माली से की ु जाती ह ै क्योंवक िह माली की भावत ही ज्ञान और अच्छे सस्कारों रूपी बीज बोता ह,ै उसे ममत्ि और ं ं कप णा रूपी पानी से सींचता ह ै और अज्ञानता रूपी खरपतिार को हटाता ह ै । अच्छे वशक्षक शावत मकयों ू ं के आदश ण होते ह,ैं जसै े इनम ें सनने की कला, गलती को पहचानने और उसे सही करने की विनम्रता होती ु ह,ै ये अपने द्वारा वकये गये कायो की वजम्मदे ारी लेते ह,ैं वचताओ को साझा करते ह ैं और मतभदे ों से परे ं ं एक-दसरे की समस्याओ को हल करते ह ैं । ऐसे वशक्षक यवद शावत का उपदशे ना भी द े तों अपने हाि- ं ं ू भाि से शावत के वलए वशक्षा दते े प्रतीत होते ह ैं (राष्रीय शवै क्षक अनसधान और प्रवशक्षण पररषद ने िष ण ु ं ं 2010) । जो वशक्षक कक्षा म ें बच्चों पर मार-वपटाई के जररए थोपता ह ै िह समस्या को हल करने की ु रणनीवत के रूप म ें वहसा को ही अनकरणीय बना दते ा ह ै । कक्षा म ें सकरात्मक िातािरण कायम करने म ें ु ं वशक्षक की भवमका सिोच्च होती ह ै । समाज म ें वशक्षक को ज्ञान एि बविमत्ता का श्रोत माना जाता ह ै । ू ु ं बच्चे तभी शावत एि सस्कारों को सीख पायेंग े जब उनके वशक्षक व्यिहारतः आदश ण के रूप म ें इनको पेश ं ं ं करें । अगर वशक्षक के कथनी एि करनी म ें अतर बेमेल वनकली तो विद्याथी उसी का अनकरण करेंग ें जो ु ं ं व्यिहारतः वकया गया ह ै । वशक्षक को विद्यावथणयों को शावत के वलए वशक्षा दते े समय वनम्नवलवखत बातों ं का ध्यान रखना चावहए: वशक्षक स्िय के व्यिहार म ें आदश ण एि सस्कार लाए । ं ं ं वशक्षक कक्षा म ें अनशासन हते बच्चों पर दमनात्मक कायणिाही ना करे । ु ु वशक्षक अपनी कथनी एि करनी म ें अन्तर ना करे । ं वशक्षक को बच्चों के ऊपर अपने व्यिहार के प्रभाि के प्रवत सचेत रहना चावहए । वशक्षक को िसै ा ही व्यिहार करना चावहए जसै ा िह अपने विद्यावथणयों म ें दखे ना चाहता ह ै । वशक्षक को बच्चों म ें साकारात्मक भािनाए एि अनभि जगाने चावहए । ु ं ं वशक्षक को बच्चों म ें सस्कारों को प्रयोग म ें लाने के अिसर उपलब्ध कराने चावहए । ं वशक्षक उवचत शब्दों एि मराओ की सहायता से यह प्रदवशणत करे वक द्वदों का हल शावतपण ण ु ू ं ं ं ं ढग से कै से वकया जाय । ं शावत की सस्कवत को बढ़ािा दने े िाली वशक्षा म ें वशक्षक की भवमका अहम होती ह ै । शावत के वलए ृ ू ं ं ं वशक्षा म ें काफ़ी कछ इस पर वनभरण करता ह ै वक वशक्षक खद शावत के वलए वकतना प्रेररत एि उत्सावहत ह।ै ु ु ं ं वशक्षक को शावत के अिसरों के प्रवत सजग रहना होगा और रचनात्मक तरीके से उनका परी पाठचयाण म ें ू ं विवनयोग करना होगा । जो वशक्षक या तो आक्रामक ह ैं या वफर वजन्ह ें शावत की सस्कवत से कोई मतलब ृ ं ं नहीं और जो अध्यापन को वसफ़ण सचना के गोदाम के रूप म ें दखे ते ह,ैं ि े उस अिसर से िवचत रहगें ें जो ू ं प्रत्येक अध्याय और अनभि स्कल म ें शावत के वलए वशक्षा के सन्दभ ण म ें उपलब्ध करता ह ै । ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 69 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं बच्चों में िाशत की सस्कशत को शवकशसत करने के उपाय (Strategies to develop Peace in ृ ं ं Children) जसै ा वक गााँधी जी का कहना ह ै वक अगर हम विश्व को िास्तविक शावत का पाठ पढ़ाना चाहते ह ैं तो हमें ं शप आत बच्चों से ही करनी होगी, क्योंवक बच्चों को ही भविष्य म ें राष्र का वनमाणण करना ह ै अतः अगर ु उनम ें बचपन से ही शावत वप्रय एि अवहसािादी रहने की आदत पड़ जाती ह ै तो ि े अपने समाज एि राष्र ं ं ं ं को िसै ा दखे ना चाहगें े । इसके वलए आिश्यक ह ै वक बच्चों को बचपन से शावत एि अवहसा का के िल ं ं ं पाठ ही ना पढ़ाया जाय बवकक उनसे शावत एि अवहसा से सम्बवन्धत वक्रयाओ को करिाया जाय क्योंवक ं ं ं ं बच्चों की आदत ह ै वक सलाह या उपदशे पर ध्यान नहीं दते े ह ै लेवकन वक्रयाओ को आनन्द पिकण करत े ू ं ह।ैं प्रश्न, कहावनयााँ, दतकथाए, खले , प्रयोगात्मक चचाणए, सम्िादों, मकय स्पष्टीकरण, उदाहरण, समानपात, ू ु ं ं ं रूपक और स्िाग सरीखे उपकरण वशक्षण-अवधगम के जररए बच्चों म ें शावत सस्कवत को विकवसत वकया ृ ं ं ं जा सकता ह ै । बच्चों म ें शावत सस्कवत विकवसत करने हते कछ वक्रयाओ को राष्रीय शवै क्षक अनसधान ृ ु ु ु ं ं ं ं और प्रवशक्षण पररषद ने िष ण 2010 म ें प्रकावशत
“शावत के वलए वशक्षा: राष्रीय फ़ोकस समह का आधार ू ं पत्र”
म ें वदया ह,ै जो वनम्नवलवखत ह:ैं बच्चों से उन विवभन्न तरीकों का प्रदशनण करने को कहना जो कोई घर या विद्यालय म ें बजगों का ु ु सम्मान दने ें के वलए करता ह ै । बच्चों से शब्द का अथण विवभन्न तरीकों से व्यक्त करिाना । बच्चों को यह बतलाना की गस्से से दसरों के साथ खद का नकसान कै से होता ह ै । ु ु ु ू बच्चों के समक्ष विरोधाभास को व्यावख्यत करना, जसै े हर कोई शावतपण ण ससार चाहता ह,ै ू ं ं लेवकन ससार ऐसा नहीं ह ै । क्यों ? उन कारकों/बाधाओ का िणनण करें जो शावत की राह म ें आते ं ं ं ह ैं । शावत सदशे के साथ अधरी कहानी को विवभन्न तरीकों से पण ण करना । ू ू ं ं विकलाग व्यवक्त के प्रवत मदद करने िाले और ख्याल रखने िाले भाि, तरीके , मराओ का ु ं ं प्रदशनण बच्चों के समक्ष करना । तस्िीर पर आधाररत कहानी, कविता, विचार को चाटण पर प्रदवशतण करना वजससे बच्चों को नैवतक सके त वदया जा सके । ं दसरों के प्रवत सम्िदे नशील, सहनशील होने पर बालकों से कहानी या कविता वलखने को कहना ू । टीमिकण म ें कायण करने हते प्रोत्सावहत करना । ु कछ वनयत अक्षरों की मदद से विवभन्न मकय सम्बन्धी शब्दों का वनमाणण करिाना, जसै े- ु ू ईमानदारी और सत्यवनष्ठा जैसी विशषे ताए, उनके बीच नया सम्बन्ध बनाना । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 70 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं दो दोस्तों के बीच गलतफहमी को लेकर पत्र वलखिाना । वकसी को नीचा वदखाए वबना समस्या का समाधान प्रस्तत करना । ु वहसा के वशकार लोगों की ददणशा म ें अपने होने की ककपना करना । उदाहरण के तौर पर आप ं ु वकसी को ररश्वत द े रह े ह,ैं आपको शमसण ार वकया गया, वकसी का जीिन खतरे म ें ह ै इस भय म ें जीना आवद । बच्चों को पीवड़त होने का अथण उदाहरण के माध्यम से समझाना । समदाय या इलाकों की कछ समस्याओ को बता कर उसको शावतपण ण हल करने का उपाय ु ु ू ं ं बताना । अनाथ अथिा गरीब बच्चों की मदद के वलए विवभन्न उपायों को सोचने के वलए प्रेररत करना । अनाथालय एि ििाश्रम का भ्रमण करिाना वजससे बालक समाज की इस तबके के अके लेपन, ृ ं दद ण और मज़बरी को महसस कर सके । ू ू उन टीिी कायणक्रमों, वफकम शो को वदखाना वजनम े मानि जावत के वलए प्यार और वचता ं समावहत हो चवनन्दा विषयों पर टकराि-समाधान सत्र का आयोजन करिाना । ु वहसा से जड़ी समस्याओ से बालक को अिगत करिाना वजससे कक्षा के अन्य विद्याथी भी भय ु ं ं और वचता से वनपटने की रणनीवत समझ सकें । ं अभ्यास प्रश्न 11. अगर वशक्षक का शावत के प्रवत प झान नहीं ह,ै तो िह अनजाने म ें वहसा का दष्प्रचार करने म ें ं ं ु भवमका वनभाते ह ैं । (सत्य/असत्य) ू 12. बच्चों को कहानी के माध्यम से शावत सस्कत विकवसत नहीं वकया जा सकता ह ै । ृ ं ं (सत्य/असत्य) 5. 7 मारांश इस इकाई में हमने “लवनांग: दी वरजर विवदन " ररपोटण म ें दी गयी अवधगम के चार स्तम्भों जो ह ैं जानने के वलए अवधगम, करने के वलए अवधगम, एक साथ जीने के वलए अवधगम, एि होने के वलए अवधगम की ं चचाण की, सक्षेप म ें इन चारों स्तम्भों का मल भाि ह ै : जानने के वलए अवधगम को हम दसरे शब्दों म ें कहते ह ैं वजसका तात्पयण ह ै वक अच्छे विचार एि ज्ञान जहााँ से भी वमले ग्रहण करना चावहए । करने ं के वलए अवधगम को हम दसरे शब्दों म ें भी कहते ह ैं वजसका तात्पयण ह ै वक वशक्षा िसै ी होनी ू चावहए जो हमको इस योग्य बना सके तावक हम अपने जीिन म ें कछ कायण कर सकें । वशक्षा ऐसी होनी ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 71 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं चावहए जो बच्चों को यह सीखा सके वक कै से विवभन्न
प्रकार के लोगों के साथ वजनका रग-रूप, रहन- ं सहन, खान-पान अलग-अलग हो, के साथ वमत्रतापिकण रहा जा सके ; यही एक साथ जीने के वलए ू अवधगम ह ै । आवदकाल से ही मानि दो प्रकार का जीिन व्यतीत करता रहा ह ै पहला व्यवक्तगत तथा एकान्त जीिन एि ं दसरा सामवहक जीिन। व्यवक्तगत जीिन म ें न कोई आमोद-प्रमोद था और न वकसी प्रकार क
ा आकषणण ही ू ू था । परन्त सामवहक जीिन उत्साह, आमोद-प्रमोद और आकषणण से पररपण ण था । विद्यालय भी एक समह ु ू ू ू ह ै जहााँ पर छात्र सामवहक जीिन के विषय म ें ज्ञान प्राप्त करते ह ैं िहााँ का सामावजक िातािरण छात्रों के ू व्यवक्तत्ि विकास म ें सहायक होता ह ै । यनेस्को (1974) के ररपोटण के अनसार अवहसा, आपसी समझौते एि दसरे व्यवक्तयों के सम्मान हते बालक ू ु ु ं ं ू को शावत एि मानिावधकार की वशक्षा दने ा आिश्यक ह ै । शावत वशक्षा समाज एि व्यवक्त को पररिवतणत ं ं ं ं करने के वलए होती ह ैं तावक िे वकसी भी तनाि का वनिारण शावतपण ण ढग से कर सकें । यवनसेफ (1999) ू ू ं ं के अनसार शावत वशक्षा से तात्पयण बच्चों, यिाओ एि ियस्कों म ें आिश्यक व्यिहार पररितणन हते ज्ञान, ु ु ु ं ं ं कौशल, मनोिवत एि मकयों को विकवसत करने की प्रवक्रया से ह ै तावक िे व्यवक्तगत, राष्रीय अथिा ृ ू ं अन्तराष्रीय स्तर पर तनाि एि वहसा को रोक सकें , तनाि का वनिारण शावतपण ण कर सके , तथा शावत ू ं ं ं ं हते सहायक वस्थवत बना सके । शावत की सस्कवत को बढ़ािा दने े िाली वशक्षा म ें वशक्षक की भवमका ृ ु ू ं ं अहम होती ह ै । शावत के वलए वशक्षा म ें काफ़ी कछ इस पर वनभरण करता ह ै वक वशक्षक खद शावत के वलए ु ु ं ं वकतना प्रेररत एि उत्सावहत ह ै । ं 5.6 शब्द ावली 1. अशधर्म के चार स्तम्भ: जानने के वलए अवधगम (Learning to Know), करने के वलए अवधगम (Learning to Do), एक साथ जीने के वलए अवधगम (Learning to Live Together), तथा होने के वलए अवधगम (Learning to Be) 2. सामशहक जीवन: दो या दो से अवधक व्यवक्त वमलकर समह का वनमाणण करते ह ैं । समह की ू ू ू प्राथवमक इकाई पररिार होता ह ै वजसका वनमाणण माता-वपता एि बच्चों से होता ह ै । समान विचार एि ं ं समान पिजण ों िाले पररिार से वमलकर कल या गोत्र का वनमाणण होता ह,ै व्यवक्त अपना सामवहक ू ु ू जीिन इसी म ें व्यतीत करता ह ै । 3. िाशत शिक्षा: शावत वशक्षा से तात्पयण बच्चों, यिाओ एि ियस्कों म ें आिश्यक व्यिहार पररितणन ु ं ं ं ं हते ज्ञान, कौशल, मनोिवत एि मकयों को विकवसत करने की प्रवक्रया से ह ै तावक िे व्यवक्तगत, ृ ु ू ं राष्रीय अथिा अन्तराष्रीय स्तर पर तनाि एि वहसा को रोक सकें , तनाि का वनिारण शावतपण ण कर ू ं ं ं सके , तथा शावत हते सहायक वस्थवत बना सके । ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 72 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5.8 अभ्य ाम प्रश् नों के उत्त र 1. जकै डेलोसण 2. लवनांग: दी वरजर विवदन 3. सत्य 4. सत्य 5. असत्य 6. असत्य 7. सत्य 8. असत्य 9. माररया माटेसरी ं 10. 2010 11. सत्य 12. असत्य 5.9 मंदभ ण ग्रंथ मची ू 1. दखीम, ए. (1912). दी एविमेंटरी फॉर्मसस ऑफ़ वद ररिीवजयस िाइफ. आनलाइन ु 15/12/2016 को वलया गया 2. डीिी, ज.े (1916). डेमोक्रे सी एड एजके शन. लन्दन: वद फ्री प्रेस ु ं 3. भारत सरकार (1993). लवनांग विदाउट बडणन. नई वदकली: मानि ससाधन विकास मत्रालय ं ं 4. डेलोसण, ज.े (1996). लवनांग वद रेजर विवदन: ररपोटण ऑफ़ इटरनेशनल कमीशन ऑन एजके शन ु ं st फॉर वद 21 सेंचरी. पेररस: यनेस्को ु ू 5. यवनसेफ (1999). पीस एजके शन इन यवनसेफ. न्ययाकण : यवनसेफ ू ु ू ू ू 6. यनेस्को (2001). लवनांग वद ि े ऑफ़ पीस: ए टीचसण गाइड तो एजके शन फ़ॉर पीस. नई वदकली: ू ु यनेस्को ू 7. राष्रीय शवै क्षक अनसधान और प्रवशक्षण पररषद (2010). शावत के विए वशिा: राष्ट्रीय फ़ोकस ु ं ं समह का आधार पत्र. नई वदकली: राष्रीय शवै क्षक अनसधान और प्रवशक्षण पररषद ू ु ं 5.10 वनबधात्म क प्रश्न ं 1. अवधगम के चार स्तम्भों की व्याख्या कीवजए । 2. बच्चों को एक साथ जीना सीखाने म ें वशक्षा की भवमका का विश्लेषण कीवजए । ू 3. सामवहक जीिन से आप क्या समझते ह?ैं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 73 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4. एक साथ जीिन व्यतीत करने म ें व्यवक्त को क्या लाभ होता ह?ै 5. शावत के वलए वशक्षा से आप क्या समझते ह?ैं ं 6. वकसी तनाि के शावतपण ण वनिारण म ें वशक्षा के योगदान की चचाण उदाहरण के माध्यम से कीवजए। ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 74 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं खण्ड 2 Block 2 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 75 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 2- विक्षा के उद्दश्यों से संबंवित “संिैिावनक मूल्यों” े की आलोिनात्मक समझ 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 वशक्षा सबधी उद्दश्े य ं ं 2.4 वशक्षा के उद्दश्े यों का िणणन और व्याख्या 2.4.1 वशक्षा के उद्दश्े यों के सदभण में सिैधावनक मकयों की पहचान ू ं ं 2.4.2 वशक्षा के उद्दश्े यों से सबवधत, सविधान में दजण कछ मकयों की सची ु ू ू ं ं ं 2.5 सिैधावनक मकयों के पररप्रेक्ष्य में वशक्षा के उद्दश्े यों का आलोचनात्मक विश्लेषण ू ं 2.6 साराश ं 2.7 शब्दािली 2.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.9 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना इस इकाई का उद्दश्े य भारत के सविधान में िवणतण उन मकयों के बारे में आलोचनात्मक समझ का विकास ू ं करना ह,ै वजनका सबध वशक्षा के उद्दश्े यों से ह ै । इसके वलए सबसे पहले तो उन कछ उद्दश्े यों की पहचान ु ं ं करनी होगी वजन्ह ें वशक्षा के उद्देश्य कहा जा सकता ह ै । हर दशे की जरूरतों के अनसार उस दशे की वशक्षा ु के उद्दश्े यों को सवजत वकया जाता ह ै । इस प्रकार उद्दश्े य मानि द्वारा सवजत होते ह ैं । क्योंवक मानिों का ृ ृ एक समह नहीं, अनेक समह होते ह,ैं इसवलए उनकी जरूरतों में भी अतर होता ह ै । एक ही समह के भीतर ू ू ू ं अनेक समह होते ह ैं और उनकी जरूरतें अलग-अलग हो सकती ह ैं । सिाल यह उठता ह ै वक वकस समह ू ू और उस समह के भीतर वकन व्यवक्तयों की जरूरतों की पवतण के वलए वशक्षा का उपयोग वकया जाएगा ? ू ू भारत म ें वशक्षा के द्वारा वकन मकयों का पोषण, और सिधणन वकया जाएगा ? उन मकयों के स्रोत कहा ाँ पर ू ू ं जाकर ढढ े जाए ाँ ? क्योंवक वशक्षा मानि वनवमतण होती ह,ै इस कारण से इसके अनेक उद्दश्े य हो सकत े ह ैं । ूं उनमें से कौन से उद्दश्े य भारत के वलए उपयक्त होंगे, इस बात का फै सला इस बात से होगा वक ि े भारत के ु सविधान के अनकल ह ै या नहीं । ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 76 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- 1. वशक्षा सबधी उदश्े यों को बता सकें ग।े ं ं 2. वशक्षा के उद्दशे यों का िणनण और उनकी व्याख्या कर सकें गे। ् 3. वशक्षा के उद्दश्े यों के सदभ ण में सिधै ावनक मकयों की पहचान कर सकें ग े । ू ं ं 4. सिधै ावनक मकयों के पररप्रेक्ष्य में वशक्षा के उद्दश्े यों का आलोचनात्मक विश्लेषण कर सकें ग े । ू ं 2.3 वशक्षा मंबधी उद्दश्े य ं वशक्षा मनष्य द्वारा सवजत ऐसी सककपना ह ै वजसको विवभन्न लोगों ने अपनी समझ के अनसार पररभावषत ृ ु ु ं करने का प्रयास वकया ह ै । नीचे वशक्षा के सबध में कछ लोगों के विचार वदए गये ह ैं । ु ं ं 1. फ्राबेल के अनसार, “वशक्षा एक प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा एक बालक अपनी शवक्तयों का ु विकास करता ह।ै ” 2. स्वामी शववेकानि के अनसार,
“मनष्य म ें अतवनणवहत पणतण ा को अवभव्यक्त करना ही वशक्षा ु ु ू ं ं ह।ै ”
3. महात्मा र्ााँधी के अनसार,
“वशक्षा से मरे ा अवभप्राय बालक के शरीर, मवस्तष्क या आत्मा में ु विद्यमान श्रेष्ट तत्िों के पणण विकास से ह ै ।”
ू 4. हरबटि स्पेंसर के अनसार,
“ वशक्षा से तात्पयण ह ै अतवनणवहत शवक्तयों तथा बाह्य जगत के मध्य ु ं समन्िय स्थावपत करना ह।ै ”
5. फ्रे रे के अनसार, वशक्षा का काम मनष्य और उनके समहों म ें वििके ीकरण की प्रवक्रया को ु ु ू जगाना और तेज करना ह ै । का अथण ह ै सामावजक, राजनीवतक तथा आवथणक अतविरण ोधों को समझना और यथाथण के उत्पीड़क तत्िों के विप ि, कम ण करना ।” ( फ्रे रे . ं उत्पीवड़तों का वशक्षाशाि.1997:6) । 6. वशक्षा व्यवक्त को दरदशी, साहसी, बविमान बनाने का साधन ह ै । (विवश्वद्यालय वशक्षा आयोग, ु ू 1948-49) । 7. वशक्षा बच्चों को व्यािहाररक जीिन जीन े की कला वसखाने की प्रवक्रया ह ै । (माध्यवमक वशक्षा आयोग, 1952-53) 8. वशक्षा राष्र के आवथणक, सामावजक विकास का शवक्तशाली साधन ह ै । वशक्षा राष्रीय सपन्नता ं एि राष्र ककयाण की कजी ह ै । (राष्रीय वशक्षा आयोग, 1964-66) । ु ं ं 9. वशक्षा गवतहीन समाज को जीित बनाने वक प्रवक्रया ह ै । (वशक्षा की चनौती, नीवत सबधी ु ं ं ं पररप्रेक्ष्य, 1985, भारत सरकार ) 10. वशक्षा बच्चे के अनभिों तथा सोचने के तरीकों म ें सशोधन करने की कोवशश ह ै तावक उसमें ु ं िज्ञै ावनक दृवष्टकोण का विकास हो सके तथा राष्र के विवभन्न प्रकार के लक्ष्यों, जसै े समाजिाद, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 77 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं पथवनरपेक्षता, प्रजातत्र आवद को परा करने में योगदान द े सके । (राष्रीय वशक्षा नीवत, सशोवधत, ू ं ं ं 1992) । 11. वशक्षा विशाल जानकारी दने े की बजाय वसिात वनमाणण तथा अिधारणाओ के विकास के वलए ं ं क्षमता के विकास की प्रवक्रया ह ै । (राष्रीय सलाहकार सवमवत, जलाई 1993) । ु 12. वशक्षा बच्चे की बवनयादी आिश्यकताओ की पवत ण का साधन ह ै । (सभी के वलए वशक्षा पर ु ू ं विश्वव्यापी घोषणा, 1990) । 2.4 वशक्षा के उद्दश्े यों का वणणन और व्याख्या ऊपर भाग 2 में आपने अनेक व्यवक्तयों और सवमवतयों और आयोगों के द्वारा दी गयी वशक्षा की पररभाषाओ को पढ़ा । इकाई के इस भाग म ें आप उन पररभाषाओ के बारे में अपनी समझ को पैना ं ं करोगी/करोग,े तावक इकाई के अगले भाग में उनसे वनकलने िाले उद्दश्े यों को आप सिधै ावनक मकयों के ू ं सदभ ण म ें समझ सकें । ऐसा नहीं ह ै वक हमारे पास पररभाषाओ का आभाि ह ै । ये पररभाषाएाँ उदाहरण मात्र ं ं ह ैं । आप और भी अनेक पररभाषाओ की तलाश कर सकती/सकते ह ैं । ं इन पाच पररभाषाओ के सहारे आप पररभाषाओ का िणनण करना और उनकी व्याख्या करना ं ं ं सीखगें ी/सीखगें े । इन पाच पररभाषाओ के साथ अभ्यास करके आप अन्य पररभाषाओ के बारे में अपनी ं ं ं समझ को इस तरह से बढ़ा सकती/सकते ह ै वक उस समझ का उपयोग सिधै ावनक मकयों को समझने म ें ू ं कर सकें । उपयणक्त पााँचों पररभाषाओ म ें वशक्षा के सबध म ें जो उद्दश्े य अतवनणवहत ह,ैं उन्ह ें रखावकत करने का ु ं ं ं ं ं प्रयास कीवजए । पहली तीन पररभाषाएाँ एक तो व्यवक्त के वन्रत ह ैं और दसरा इनमें कोई वदशा स्पष्ट नहीं ू वदख ह ै । जसै े फ्रोबेल, वशक्षा को ऐसी प्रवक्रया मान रह े ह ैं वजसके द्वारा व्यवक्त अपनी शवक्तयों का विकास करती या करता ह ै । लेवकन उसकी शवक्तयााँ उसे वकस वदशा म ें ले जाए,ाँ यह बात इस पररभाषा म ें साफ़ नहीं ह ै । इसी प्रकार दसरी और तीसरी पररभाषाएाँ स्व्य में स्पष्ट नहीं ह ैं । जसै े वक पणतण ा का क्या मतलब होता ह ै ? ू ं ू व्यवक्त कब पण ण होती या होता ह ै ? या सिाांगीण विकास का अथण क्या क्या ह ै ? पणतण ा हावसल करके या ू ू सिाांगीण रूप से विकवसत होकर करना क्या ह ै ? चौथी परीभास में मनष्य म ें अतवनणवहत शवक्तयों और बाहर की दवनया के बीच समन्िय स्थावपत करने ु ं ु की बात की गयी ह ै । इसमें एक वदशा ह ै । इसके अनसार वशक्षा का काम मनष्य को मवस्तष्क में उठने िाल े ु ु विचारों और मन म ें उठने िाल े भािों तथा दवनया के कायण-व्यापारों के साथ तालमले स्थावपत करने म ें ु समथण बनाना ह ै । इसके अनसार वशक्षा मनष्य को इस योग्य बनाए वक िह खद का दसरे लोगों तथा बाहर ु ु ु ू की पररवस्थतयों के साथ तालमले बैठा सके । लेवकन वकन लोगों के साथ तालमले बैठना ह ै और वकनसे नहीं बैठाना, इस सबध में वदशा इस पररभाषा म ें नहीं ह ै । ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 78 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं पााँचिीं पररभाषा म ें वशक्षा का जो अथण बताया गया ह ै िह ह ै मनष्य और उसके समहों म ें वििके ीकरण की ु ू प्रवक्रया को जगाना और तेज करना । इस पररभाषा म ें वशक्षा के कें र म ें मनष्य के साथ ही उसके समह भी ु ू शावमल ह ैं । साथ ही मनष्य और उनके समह में वििके ीकरण की प्रवक्रया को जगाना ही नहीं बवकक ु ू उसको बढ़ाने की भी बात कही गयी ह ै । इस पररभाषा में वििके ीकरण को भी समझाया गया ह ै । वििके ीकरण का अथण ह ै
“..सामावजक, राजनीवतक तथा आवथणक अतविरण ोधों को समझना और यथाथण के ं उत्पीड़क तत्िों के विप ि, कमण करना ।”
इसमें स्पष्ट ह ै वक वशक्षा का काम अतविरण ोधों को समझने की ं क्षमता पैदा करना मात्र नहीं ह,ै बवकक उस समझ का उपयोग उत्पीड़न करने िाल/े िाली व्यवक्तयों, सरचनाओ, और समहों के वखलाफ करने के तैयार करना ह ै । इस पररभाषा म ें वशक्षा के उद्दश्े य और ू ं ं वशवक्षत व्यवक्त की वजम्मदे ारी के सदभ ण में वदशा ह ै । ं उपरोक्त चचा ण से यह समझ म ें आ जाना चावहए वक विवभन्न पररभाषाओ म ें से वशक्षा के अलग-अलग ं उद्दश्े य वनकलते ह ैं । अब सिाल यह उठता ह ै वक वशक्षा के द्वारा शरीर, बवि आवद का विकास करने के ु प्रस्तािों को सिधै ावनक मकयों से सदभ ण में वकस तरह से समझा जाए ? ू ं ं 2.4.1 शिक्षा के उद्देश्यों के सिभि में सवैधाशनक मल्यों की पहचान ू ं ं आजाद भारत में वशक्षा के विवभन्न उद्दश्े यों को परखन े का पररप्रेक्ष्य भारत के सविधान ने उपलब्ध ं करिाया ह ै । सविधान में वनवहत मकय, वशक्षा को साधने और वदशा दने े का पररप्रेक्ष्य प्रस्तत करते ह ैं । ू ु ं मकयों के सख्या बहत अवधक होती ह ै । मकयों के स्रोत अनेक हो सकते ह ैं । वकन स्रोतों से वकन मकयों को ु ू ू ू ं वलए जाना ह,ै इस बात की परख सविधान म ें दजण मकयों के आधार पर की जानी चावहए । भारत के ू ं सविधान की उद्दवे शका उन व्यापकतर मकयों को व्यक्त करती ह ै जो भारती
य राज्य-व्यिस्था और समाज ू ं का आधार ह ैं । उद्दवे शका के अवतररक्त सविधान का खड तीन, वजसमें मौवलक अवधकार से सबवधत अनच्छेद ह,ैं खड ु ं ं ं ं ं चार, वजसमें राज्य क
ी नीवत के वनदशे क तत्ि वदये गय े ह,ैं खड चार क, वजसमें नागररकों के मल कतणव्य ू ं वदये गय े ह,ैं ऐसे मकयों की चचाण करते ह ैं वजनका वशक्षा की रूपरेखा तैयार करने तथा उसके उद्दश्े यों को ू वदशा दने े म ें के न्रीय भवमका ह ै । ू 2.4.2 शिक्षा के उद्देश्यों से सबशधत, सशवधान में िजि कछ मल्यों की सची ु ू ू ं ं ं लोकतावन्त्रक सोच पथवनरपेक्षता की समझ ं न्याय स्ितत्रता ं समानता व्यवक्त की गररमा को महत्िपणण मानना ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 79 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ऐसी बधता का विकास करना जो राष्र की एकता और अखण्डता को सवनवश्चत करने िाली हो ु ु ं विकास में कमजोर और वपछड़ों को प्राथवमकता दने ा के विचार को स्िीकार करना सामावजक अन्याय तथा शोषण के विवभन्न रूपों का विरोध करना दशे की भाषाओ,ाँ वलवपयों, तथा सस्कवतयों का सम्मान करना ृ ं सविधान और सिधै ावनक सस्थाओ का आदर करना ं ं ं ं राष्र ध्िज और राष्र गान का आदर करना िज्ञै ावनक दृवष्टकोण का विकास करना प्राकवतक पयाणिरण का सरक्षण एि सिधणन करना ृ ं ं ं राष्रीय ससाधनों का वितरण इस प्रकार करना, वजससे सिोतम रूप में सािजण ावनक वहत सधता हो ं 2.5 मवं ैधावनक मूल्यों के पवरप्रेक्ष्य म वशक्षा के उद्दश्े यों का आलोचनात्मक ें ववश्लषे ण राष्रीय वशक्षा नीवत 1986 का पेरा 3.4 कहता ह ै वक –
“वजन वसिााँतों पर राष्रीय वशक्षा व्यिस्था की पररककपना की गई ह ै ि े हमारे सविधान म ें ही वनवहत ह।ैं ”
यावन भारत म ें वशक्षा के तमाम उद्दश्े यों को ं सिधै ावनक होना होगा । जो उद्दश्े य सविधान में दज ण मकयों की कसौटी पर खरे न उतरें उन्ह ें नहीं अपनाया ू ं ं जा सकता । वफर चाह े उन उद्दश्े यों की परपरा वकतनी ही परानी क्यों न हो । ु ं सविधान का अनच्छेद 15 कहता ह ै वक
“राज्य वकसी नागररक के विप ि के िल धम,ण मलिश, जावत, ु ू ं ं वलग, जन्मस्थान या इनमें से वकसी के आधार पर कोई विभदे नहीं करेगा।”
इस अनच्छेद से यह पता ु ं चलता ह ै वक भारत में वजन भी लोगों ने या समहों ने शासन वकया ि े भदे भाि करते रह े ह ैं । क्योंवक भारत ू में भदे भाि का इवतहास बहत पराना और विस्तार बहत ज्यादा ह ै इसवलए सविधान म ें यह प्रािधान भी ु ु ु ं वकया गया वक जो भदे भाि के कारण सामावजक और शवै क्षवणक दृवष्ट से वपछड़े रह गय े ह ैं उन्ह ें आगे बढ़ने के विशषे अिसर वदये जा सकत े ह ैं । भारत में वशक्षा के वलए जो उद्दश्े य अपनाया जाए िह अनच्छेद 15 के विवभन्न प्रािधानों के वखलाफ न ु हो। लेवकन बात यहीं नहीं प कती वक वशक्षा के जररए भदे भाि को न बढ़ाया जाए, बवकक उद्दवे शका से यह मकय वनकलता ह ै वक वशक्षा को सामावजक अन्याय और असमानता के वखलाफ काम करने िाले और ू िाली नागररक तैयार करने/करनी ह।ै इसवलए वशक्षा का उद्दश्े य भदे भाि करने िाला तो नहीं ही हो, लेवकन उसे भदे भाि करने के तरीकों, समहों, तथा सरचनाओ को समझने और उनके वखलाफ काम करने म ें सक्षम ू ं ं बनाने िाला होना चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 80 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं मान लीवजए वक वशक्षा का उद्दश्े य विद्यावथणयों का बौविक विकास करना ह ै । लेवकन उसकी बवि वकस ु वदशा म ें सोचेगी ? यह सिाल इसवलए उठाना जरूरी ह,ै क्योंवक भारत के समावजक-सास्कवतक इवतहास ृ ं में वजन भी लोगों या समहों ने भदे भाि को रचा िे भी बवि िाल/े िाली थे/थीं । इस बात को इस तरह ू ु समझा जाए वक यवद कोई व्यवक्त वकसी दसरे व्यवक्त को नकसान पहचाँ ाने के वलए गडढा खोदता ह ै तो ु ् ु ु उसमें नकसान पहचाँ ान े के तरीकों के सदभण में बवि ह।ै िह अपनी बवि का विकास नकसान पहचाँ ान े िाले ु ु ु ु ु ु ं तरीकों की खोज की वदशा म ें भी कर सकता/सकती ह ै । इसवलए बवि का विकास स्िय में अपेवक्षत नहीं ु ं हो सकता । इस उद्दश्े य को सिधै ावनक मकयों के पररप्रेक्ष्य म ें परखना होगा । ू ं भारतीय समाज में एक ओर जहा ाँ झठ और अधविश्वासों को फ़ै लाने के वलए सावहत्य और सस्कवत के ृ ं ं ू विवभन्न रूपों का उपयोग वकया जाता ह,ै िही दसरी और हमारे पास झठ और अधविश्वास से लड़ने की ाँ ं ू ू भी परम्पराए ाँ ह ैं । ह,ैं दोनों ही हमारी विरासतें । सिाल यह ह ै वक वकसके विकास को वशक्षा का उद्दश्े य बनाया जाए ? इस सिाल का उत्तर ढढने में सविधान के विवभन्न अनच्छेदों सवहत अनच्छेद 51 हमारी ू ु ु ं ं मदद करता ह ै । अनच्छेद 51, हर नागररक द्वारा, िज्ञै ावनक वचन्तन के विकास को उसका मौवलक कतणव्य ु बनाता ह ै । हमारी उपयणक्त दो तरह की विरासतों म ें से ठीक को चनने के सदभण म ें राष्रीय माध्यवमक आयोग 1952 की ु ु ं वनम्नवलवखत सलाह हमें हमशे ा ध्यान में रखनी होगी । “लोकतत्र म ें नागररकता की पररभाषा में कई बौविक, सामावजक ि नैवतक गण शावमल होते ह:ैं ु ं एक लोकतावत्रक नागररक म ें सच को झठ से अलग छााँटने, प्रचार से त्य अलग करने, धमाांधता ं ू और पिग्रण हों के खतरनाक आकषणण को अस्िीकार करने की समझ ि बौविक क्षमता होनी ू चावहए ... िह न तो पराने को इसवलए नकारे क्योंवक िह पराना ह,ै न ही नए को इसवलए स्िीकार ु ु करे क्योंवक िह नया ह ै बवकक उसे वनष्पक्ष रूप से दोनों को परखना चावहए और साहस से उसको नकार दने ा चावहए जो न्याय ि प्रगवत के बलों को अिप ि करता हो ...।“ ( राष्रीय पाठयचया ण ् की रूपरेखा- 2005. एन.सी.ई.आर.टी. नयी वदकलीः 7-8 पर उद्वररत ह ै )। राष्रीय वशक्षा आयोग, 1964-66 के अनसार वशक्षा राष्र के आवथणक, सामावजक विकास का ु शवक्तशाली साधन ह ै । वशक्षा राष्रीय सपन्नता एि राष्र ककयाण की कजी ह ै । यवद वशक्षा राष्र के ु ं ं ं आवथणक विकास का साधन ह ै तो यह बात समझ म ें आनी चावहए वक वकसका विकास होगा वक कहा जा सके वक राष्र का विकास हआ ह ै । यवद दशे की जीडीपी (सकल घरेल उत्पाद ) म ें िवि हो जाती ह ै तो ु ृ ू क्या यह मान लेना चावहए वक राष्र का आवथणक विकास हो रहा ह ै । “स्िीस ग्लोबल िके थ डाटाबक ु (Suisse Global Wealth Databooks) की हावलया ररपोटण के अनसार भारत म ें गरीब और अमीर के ु बीच खाई बढ़ती ही जा रही ह ै । ररपोटण के अनसार सन 2000 में भारत म ें 1% सबसे अमीर लोगों के पास ु भारत की सम्पवत का 36.8% यावन लगभग 37% था। यावन 100 म ें से 1 व्यवक्त के पास 100 म ें से 37 ं रूपये थे । 2010 में उस एक व्यवक्त के पास 100 म ें से 40 प पये पहचाँ ा वदए । 2012 म ें उस एक के पास ु 49 प पये पहचाँ ा वदए गये । जोवक 2015 म ें बढ़कर 53 और 2016 म ें बढ़कर साढ़ े अठािन प पये हो गये । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 81 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भारत म ें सन 2000 में सबसे अमीर 1% के पास 37% पाँजी थी । 2015 में उनके पास 53% हो गयी । ू 2016 में उन्हीं के पास 58.4% हो गयी । ...ितणमान म ें भारत के 90% लोगों के पास भारत की पाँजी का ू मात्र 19% ह ै ।" (राित, बीरेंर वसह. यथ की आिाज़) । ू ं यवद भारत सकल घरेल उत्पाद में बढ़ोतरी होती ह,ै तो क्या इतने भर से मान लेना चावहए वक राष्र का ू आवथणक विकास हो गया ह ै ? सविधान की उद्दवे शका में समानता और सामावजक न्याय दो महत्िपण ण मकय ू ू ं वदये गय े ह ैं । ऊपर वदये गय े आकड़ों पर एक बार वफर से नजर डाली जाए तो समझ में आएगा वक वशक्षा ं के माध्यम से वजस आवथणक विकास की बात कही जा रही ह ै िह तब तक अधरी ह ै जब तक वक िह ू सविधान के मकयों के अनकल ना हो । इसी सदभ ण म ें इस बात को भी समझना होगा जब यह कहा जा रहा ू ु ू ं ं ह ै वक " वशक्षा राष्रीय सपन्नता एि राष्र ककयाण की कजी ह ै ।” क्या वशक्षा के माध्यम से हम ऐसे प्रश्न ु ं ं ं उठा सकते ह ैं वक वकनके ककयाण में राष्र का ककयाण दखे ा जाएगा ? वकनकी सपन्नता को राष्रीय ं सपन्नता माना जाएगा ? ं राष्रीय वशक्षा नीवत 1986 (सशोवधत 1992) में कहा गया ह ै वक वशक्षा, बच्चे के अनभिों तथा सोचन े के ु ं तरीकों में सशोधन करने की कोवशश ह ै तावक उसमें िज्ञै ावनक दृवष्टकोण का विकास हो सके तथा राष्र के ं विवभन्न प्रकार के लक्ष्यों, जसै े समाजिाद, पथवनरपेक्षता, प्रजातत्र आवद को परा करने में योगदान द े सके । ू ं ं यह भारत की ससद द्वारा भारत म ें दी जाने िाली वशक्षा का घोवषत उद्दश्े य ह ै । इसके अनसार वशक्षा,बच्चे ु ं और बवच्चयों के सोचने के तरीकों म ें ऐसे सशोधन करने की कोवशश ह ै तावक ि े उनमें िज्ञै ावनक दृवष्टकोण ं का विकास हो सके । वशक्षा के इस उद्दश्े य का सबध भारत के सविधान के अनच्छेद 51 A (h) के साथ ह ै ु ं ं ं । इस अनच्छेद में कहा गया ह ै की भारत के हर नागररक का यह कतणव्य ह ै वक िह अपने आप में िज्ञै ावनक ु चेतना का विकास करे । िज्ञै ावनक चेतना से लेस व्यवक्त के सोचने में एक खावसयत यह होती ह ै वक िह भािनाओ के आधार पर नहीं, वदखाये जा सकने िाले त्यों के आधार पर योजना बनाता या बनाती ह ै ं और उन्हीं के आधार पर वनणणय लेती या लेता ह ै । यह गण लोकतावन्त्रक राष्र के नागररकों म ें जरूरी तौर ु पर होना चावहए , क्योंवक लोकतत्र का एक मतलब ह ै बहस, सिाद । और सिाद त्यों की ठोस जमीन ं ं ं पर ही वकया जा सकता ह ै । इस प्रकार राष्रीय वशक्षा नीवत का यह उद्दश्े य सीधे-सीधे सविधान से वनकलता ं ह ै और हम सबको इस वदशा में सवक्रयता से कमशण ील होने की जरूरत ह ै । वकसी भी उद्दश्े य को, भले ही िह सनने-पढ़न े म ें वकतना ही आकषणक लग रहा हो, सिधै ावनक ु ं मकयों की कसौटी पर परखना बेहद जरूरी ह ै । ू एक और उदाहरण से इस बात को समझने का प्रयास करते ह ैं । मान लीवजए वक कोई कह े वक वशक्षा का “राष्र वनमाणण” में सवक्रय भवमका वनभाने िाले और िाली नागररक तैयार करना ह ै । ू क्योंवक दवनया और भारत में की कई सककपनाए ाँ ह,ैं इसवलए यह सिाल पछा जाना ु ं ु चावहए वक वनमाणण को वशक्षा का उद्दश्े य बताने िाल े और िावलयों के राष्र की क्या विशेषताएाँ ह ैं ? क्या ि े विशषे ताए ाँ भारत के सविधान में दजण मकयों के अनकल ह ैं या प्रवतकल ? ू ु ू ू ं इसी प्रकार दसरा सिाल यह उठाया जाना चावहए वक म ें वकन चीजों का वकनके ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 82 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वलए वकया जाएगा ? उस से दशे के नागररकों के वकस तबके को फ़ायदा होगा और वकस तबके को नकसान ? वजस भी चीज का वनमाणण होगा िह बाजार के वहतों को ु साधेगा या बहसख्य नागररकों के वहतों की रक्षा करेगा ? यहााँ पर हमें सविधान के अनच्छेद ु ु ं ं 39(ख) को याद करना चावहए, वजसमें कहा गया ह ै वक दशे के ससाधनों का इस प्रकार उपयोग ं वकया जाए
“वजसस े सािजण वनक वहत का सिोतम रूप से साधन को”
और साथ ही हम ें सविधान ं के अनच्छेद 39(ग) को याद करना भी जरूरी ह ै वक
“आवथणक व्यिस्था इस प्रकार चले वजससे ु धन और उत्पादन साधनों का सिसण ाधारण के वलए अवहतकारी सके न्रण न हो”
। ं हम वशक्षा के जररये वजस राष्र के वनमाणण का वजम्मा वशक्षा को दने ा चाहते ह ैं उस राष्र को भारत के सविधान के अनसार होना होगा । ु ं अभ्यास प्रश्न 1. वशक्षा के कोई तीन उद्दश्े य बताइए । 2. वकन्हीं पाच सिधै ावनक मकयों के नाम बताइए । ू ं ं 3. सविधान का अनच्छेद _______ कहता ह ै वक
“राज्य वकसी नागररक के विप ि के िल धमण, ु ं मलिश, जावत, वलग, जन्मस्थान या इनमें से वकसी के आधार पर कोई विभदे नहीं करेगा।”
ू ं ं 4. _____________के अनसार,
“वशक्षा से मरे ा अवभप्राय बालक के शरीर, मवस्तष्क या आत्मा म ें ु विद्यमान श्रेष्ट तत्िों के पणण विकास से ह ै ।”
ू 5. माध्यवमक वशक्षा आयोग के अनसार –
“वशक्षा बच्चों को व्यािहाररक जीिन जीन े की कला ु वसखाने की प्रवक्रया ह”
ै । (सत्य/ असत्य) 2.6 मारांश वशक्षा के उद्दश्े यों से सबवधत की आलोचनात्मक समझ नाम की इस इकाई में में ू ं ं ं आपने यह पढ़ा वक वशक्षा के उद्दश्े यों को चनते समय इस बात का ध्यान रखा जाना हमारी वजम्मदे ारी ह ै ु वक िे सिधै ावनक मकयों के अनकल हों । आपने यह पढ़ा वक वशक्षा के उद्दश्े य अनेक हो सकते ह ैं । उन ू ु ू ं उद्दश्े यों के स्रोत अनेक हो सकत े ह ैं । उन उद्दश्े यों का इवतहास बहत पराना हो सकता ह,ै लेवकन भारत में ु ु वकसी स्तर की वशक्षा के वलए व्यिस्था करते समय हमें उनके परानेपन को महत्त्ि न दके र, उनके ु सिधै ावनक होने को महत्त्ि दने ा होगा । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 83 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2.7 शब्दावली 1. सशवधान:
“वकसी दशे का सविधान उसकी राजनीवतक व्यिस्था का िह बवनयादी साचा-ढाचा ु ं ं ं ं वनधाणररत करता ह ै वजसके अतगतण उसकी जनता शावसत होती ह।ै ”
(सभाष काश्यप. हमारा ु ं सविधान:1 ) ं 2.8 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. वशक्षा के तीन उद्दश्े य वनम्नवलवखत हो सकते ह:ैं i. वशक्षा दशे प्रेमी, चररत्रिान, और विद्वान नियिक (नियिती भी) बनाने की प्रवक्रया ह ै ् ु ु – स्िामी श्रिानद । ं ii. वशक्षा का अथण ह,ै बच्चे को इस योग्य बना दने ा वक िह समझ सके वक सत्य क्या ह ै और इसकी खोज कै से की जाती ह ै - रिीन्र नाथ टैगोर । iii. वशक्षा व्यवक्त की उन सभी भीतरी शवक्तयों का विकास ह ै वजससे िह अपने िातािरण पर वनयत्रण रखकर अपने उत्तरदावयत्िों का वनिाणह कर सके । ं 2. समानता, स्ितत्रता, सामावजक न्याय, पथवनरपेक्षता, और ऐसी बधता जो राष्र की एकता और ु ं ं ं अखण्डता को सवनवश्चत करने िाली हो । ु 3. अनच्छेद 15 ु 4. महात्मा गााँधी 5. सत्य 2.9 मदं भ ण ग्रंथ मची ू 1. भारत का सविधान ं 2. राष्रीय पाठयचया ण की रूपरेखा- 2005. एन.सी.ई.आर.टी. नयी वदकली । ् 3. फ्रे रे ,पाउलो. उत्पीवड़तों का वशक्षाशाि. ग्रन्थ वशकपी प्रा. वल. नयी-वदकली.1997 4. राित, बीरेंर वसह(2014). सिालों की वशक्षा. यश पवब्लके शनस. वदकली. ं 5. राित, बीरेंर वसह(2014). समाज, बच्चे-बवच्चयााँ, और वशक्षा. यश पवब्लके शनस. वदकली. ं 6. राित, बीरेंर वसह (मई, 2015). राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 में वनवहत अन्तविरण ोध और ं सामावजक बवहष्करण: एक विश्लेषण. अन्िवे षका. खड 16 (2). राष्रीय अध्यापक वशक्षा ं पररषद. नयी वदकली । ् 7. राित, बीरेंर वसह (वदसबर, 2016). Youth Ki Awaaz. ं ं http://www.youthkiawaaz.com/ 8. सभाष काश्यप (2014). हमारा सविधान. राष्रीय पस्तक न्यास, भारत. नयी-वदकली. ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 84 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 9. चााँद वकरण. वशक्षा: दाशवण नक पररप्रेक्ष्य, वहदी माध्यम कायाणन्िय वनदशे ालय. वदकली ं विश्वविद्यालय, वदकली । 10. टैगोर, रिीन्र नाथ (2013), रिीन्रनाथ टैगोर रचनािली, खड-36, वशक्षा का विस्तार तथा अन्य ं वनबध. सस्ता सावहत्य मडल प्रकाशन, नयी वदकली । ं ं 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. अपने द्वारा पढ़े गय े शवै क्षक उद्दश्े यों का सिधै ावनक मकयों के पररप्रेक्ष्य म ें आलोचनात्मक ू ं विश्लेषण कीवजए । 2. अपने द्वारा पढ़े गये शवै क्षक उद्दश्े यों में से वकसी एक का चनाि करके बताइए वक उस उद्दश्े य की ु मशा का सबध सिधै ावनक मकयों के साथ समझाने के वलए आप कौन-कौन से उदाहरण दगें ी या ू ं ं ं ं दगें े ? 3. वकन्हीं दो सिधै ावनक मकयों का चयन कीवजए और उन मकयों पर खरे उतरने िाले वकन्हीं तीन ू ू ं शवै क्षक उद्दश्े यों की व्याख्या कीवजए । 4. वकन्हीं तीन शवै क्षक उद्दश्े य का सिधै ावनक मकयों के साथ सबध समझाइए । ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 85 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 3 - असमानता ,िदिाि एिं अपिंिन िगण की पहिान े तथा इनके उन्मूलन हेत ु संिैिावनक प्राििान Identification and Detailed Discussion of the Land Mark Attempts Made to Eradicate Inequality,Discrimination,and Marginalization through the various Constitutional Provisions 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 असमानता 3.4 भेदभाि 3.5 असमानता तथा भेदभाि दर करने हते सिैधावनक प्रािधान ु ं ू 3.6 अपिचन िगण ं 3.6.1 मवहला 3.6.2 लैंवगक असमानता दर करने हते सिैधावनक प्रािधान ु ं ू 3.6.3 अनसवचत जावत ु ू 3.6.4 अनसवचत जनजावत ु ू 3.6.5 अनसवचत जावत एि जनजावतयों की सरक्षा हते सिैधावनक प्रािधान ु ू ु ु ं ं 3.6.6 वपछड़ा या अकपसख्यक िगण ं 3.6.7 सिैधावनक प्रािधान ं 3.6.8 वदव्याग ,िि तथा बच्चे ृ ं 3.6.9 सिैधावनक प्रािधान ं 3.7 साराश ं 3.8 शब्दािली 3.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 3.10 सन्दभण ग्रन्थ सची ू 3.11 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 86 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.1 प्रस्तावना भारत सरकार ने समानता, सामावजक न्याय एि वलग, जावत, सप्रदाय भाषा या धम ण के आधार पर गरै , ं ं ं भदे भाि पणण नीवत की सिधै ावनक मान्यता को चररताथण करने के वलए इस वदशा म ें कायण करने की ओर ू ं अपनी िचनबिता की पनः पवष्ट की ह ै । िास्ति म ें आज की सबसे बड़ी जप रत ह ै वक हम भारत के लोग, ु ु सविधान को पढ़े, जाने और उसम ें अपना विश्वास प्रगाढ़ करें । ं कै वबनेट वमशन योजना 1946 के अतगतण सविधान सभा की स्थापना की गई थी । डाo राजन्े र प्रसाद ं ं सिसण म्मवत से सविधान सभा के अध्यक्ष चने गए । तथा डाo बीo आर अम्बेडकर प्रारूप सवमवत के ु ं अध्यक्ष थे । उन्होंने सविधान वनमाणण के समय इस बात का परा ध्यान रखा वक दशे को ऐसी शासन ू ं व्यिस्था की आिश्यकता ह,ै वजसम ें सभी िगों को आग े बढाने के समान अिसर वमल पाए तथा जो लोग ं सामावजक, आवथणक, शक्षै वणक, राजनैवतक दृवष्ट से वपछड़े हए ह ैं उन्ह ें विशषे सविधाए ाँ दके र उनका जीिन ु ु स्तर ऊचा उठाया जा सके तावक ि े सभी ससम्मान जीिन यापन कर सकें । उनके अनसार मौवलक ु ं अवधकारों का सरक्षण कशल शासन द्वारा होना चावहए । वजसम ें सभी व्यवक्तयों को वबना वकसी भदे भाि ु ं के अपने सामावजक, आवथणक, शक्षै वणक लक्ष्यों की प्रावप्त सिधै ावनक ढग से करनी चावहए , वहसात्मक ं ं ं तरीकों से नहीं । भारतीय सविधान म ें सभी िगों को सामावजक और राजनीवतक न्याय वदलाने तथा आवथणक लोकतत्र की ं ं स्थापना के उद्दश्े य को ध्यान म ें रखते हए समाज के उपेवक्षत और शोवषत लोगों के वलए कछ विशेष ु ु उपबध अवधकत वकए गए ह ैं । साथ साथ अकपसख्यकों के वलए भी कछ विशेष प्रािधान वकए गए ह ै । ृ ु ं ं सविधान के भाग- 16 म ें अनच्छेद- 330 से लेकर -342 तक कछ िगों के सबध म ें विशेष उपबध वकए ु ु ं ं ं ं गए ह ैं । प्रस्तत इकाई म ें हम समाज के विवभन्न िगों के समान अवधकारों के विषय म ें वदए गए सिधै ावनक ु ं अवधकारों के विषय म ें पढ़ेग।ें 3.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- 1. असमानता का अथण समझ सकें ग े तथा उसे कम करने हते सिधै ावनक प्रािधानों का िणनण कर ु ं सकें ग।े 2. भदे भाि के कारणों को जान पाएग े । ं 3. अपिचन िग ण तथा उसके अतगतण आने िाले िगों को समझ सकें ग े । तथा उनकी सरक्षा हते वकए ु ु ं ं गए सिधै ावनक प्रािधानों का िणनण कर सकें ग े । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 87 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.3 अममानता प्रत्येक राष्र का यह नैवतक दावयत्ि ह ै वक िह वबना वकसी भेदभाि के अपने नागररकों को वशक्षा के समान अिसर प्रदान करें । प्रत्येक व्यवक्त को जीिन म ें विकास के समान मौके वमलने चावहए । भारत म ें असमानता के कई कारण ह ैं । व्यवक्तयों की वभन्न –वभन्न भाषा ,जावत, जीिन यापन करन े का तरीका, आवथणक स्तर, सामावजक स्तर आवद असमानता उत्पन्न करते ह ैं जसै े -वशक्षा म ें असमानता कई कारणों से पैदा होती ह ै । दसरे शब्दों म,ें इसका तात्पयण राज्य द्वारा व्यवक्तयों की वशक्षा के सन्दभ ण म ें जावत, रूप, रग, ं ू प्रान्तीयता एि भाषा, धम ण आवद के बीच भदे भाि करने से ह।ै शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र म ें ं अवधक असमानता वदखाई दते ी ह ै । शवै क्षक असमानता के कछ मख्य कारक वनम्न ह ै – ु ु 1. शनधिनता – वशक्षा म ें असमानता का एक मख्य कारण यह ह,ै वक जनसख्या का बहत बड़ा भाग ु ु ं गरीब ह ै और बहत थोडा भाग धनी । वकसी वशक्षा सस्था के समीप होते हए भी गरीब पररिारों के ु ु ं बच्चों को यह अिसर नहीं वमलता जो धनी पररिारों के बच्चों को वमल जाता ह ै । 2. अवसर का अभाव – वजन स्थानों पर प्राथवमक, माध्यवमक या क ालेज की वशक्षा दने े िाली सस्थाए नही ह ै । िहा के बच्चों को िसै ा अिसर नहीं वमल पाता जसै ा उन बच्चों को वमल पाता ं ं ं ह ै वजनके शहर म ें या गाि म ें विद्यालय या क ालेज ह ैं । ं 3. वातावरर् – बालकों के पररिारों म ें वभन्न-वभन्न जीिन स्तर होता ह।ै लड़वकयों के साथ भदे भाि की वस्थवत, नगरीय ि ग्रामीण िातािरण भी वशक्षा म ें असमानता पैदा करता ह ै । ग्रामीण या दहे ात के घर या शहर की गन्दी बवस्तयों म ें रहने िाले तथा अनपढ़ माता- वपता की सतान को वशक्षा पाने का िह अिसर नहीं वमलता जो उच्च वशक्षा पाए हए माता -वपता के साथ ु ं रहने िाली उनकी सतान को वमलता ह ै । ं 4. सामाशजक स्तरीकरर् – भारतीय समाज बेहद स्तरीकत ह ै । जावत प्रणाली इसका ढाचा ह ै । ृ ं अलग –अलग जावत होने के कारण समाज म ें असमानता उत्पन्न होती ह ै । 5. भारतीय पररिशे ने शवै क्षक विषमता के दो रूपों को और जन्म वदया ह ै - i. वशक्षा के प्रत्येक स्तर पर और क्षेत्रों म ें बालक और बावलकाओ की वशक्षा म ें भारी ं अतर होना । ं ii. उन्नत िगों और वपछड़े िगों, अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जन जावतयों के ु ू ु ू बीच शवै क्षक विकास का अतर । ं शवै क्षक असमानता को दर करने के वलए वशक्षा के क्षेत्र म ें समानता की अिधारणा को स्थावपत करने के ू वलए वनवम्लवखत प्रयास वकए गए ह ैं - i. एक वनवश्चत अिवध तक भदे भाि रवहत वनःशकक एि अवनिायण वशक्षा की व्यिस्था । ु ं ii. माध्यवमक स्तर पर विवभन्नीकत पाठयक्रम व्यिस्था । ृ ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 88 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं iii. उच्च स्तर पर सभी के वलए अपेवक्षत शवै क्षत उन्नवत की व्यिस्था तावक ि े उवचत योगदान दने े म ें सक्षम हो सकें । 3.4 भदे भाव वकसी व्यवक्त या अन्य चीज के पक्ष म ें या उसके विप ि उसके व्यवक्तगत गणों अिगणों को न दखे ते हए ु ु ु उसके वकसी िगण श्रेणी या समह का सदस्य होने के आधार पर भदे करने की प्रवक्रया को भेदभाि कहते ह ैं ू । भदे भाि से तात्पयण ह,ै असमान एि विवभन्न प्रकार के कायण वजससे वनचले या वपछड़े िग ण को शोवषत ं वकया जा सके । भदे भाि से तात्पयण वकसी व्यवक्त के साथ दव्यणिहार करना होता ह।ै इस आधार पर वक ु िो दसरों से वभन्न ह,ै या उनम ें कछ ऐसे अवभलक्षवणक गण ह ै जो उन्ह ें बाकी आम लोगो से अलग करते ु ु ू ह ैं । भदे भाि वनम्न अवभलक्षवणक गणों के कारण होता ह।ै इन अवभलक्षवणक गणों को समानता अवधवनयम ु ु 2010 के तहत भदे भाि का मख्य कारण माना गया ह ै । जो वनम्न ह ैं - ु उम्र वलग ं रेस वदव्यागता ं धम ण भदे भाि के प्रकार :- भदे भाि मख्यतः वनम्न प्रकार का होता ह ै । ु प्रत्यक्ष भेिभाव – यवद वकसी व्यवक्त को वदए गए कायों के आधार पर दसरों के तलना म ें उनके स्तर ु ू को सम्मान नहीं वदया जाता ह,ै तो इसे प्रत्यक्ष भदे भाि कहते ह ैं । जसै े – यवद आप वकसी कायण के वलए पणतण ः अनकल ह ैं लेवकन आपको वकसी भी कारण से जो वबलकल महत्िपण ण नहीं ह ै । उसकी ू ु ू ु ू िजह से उस कायण से िवचत कर वदया जाय तब कह सकते ह ैं वक आपके साथ प्रत्यक्ष भदे भाि हआ ु ं ह ै ।जसै े- कछ ज्यादा ही जिान या ज्यादा ही उम्र दराज होने की िजह से । ु अप्रत्यक्ष भेिभाव – यवद वकसी वनयम या पॉवलसी को वकसी सस्थान म ें लाग करने से यवद उस ू ं सस्थान के वकसी िग ण विशषे को नकसान होता ह,ै तो उसे अप्रत्यक्ष भदे भाि कहते ह।ैं जसै े- यवद ु ं वकसी वनयम के अतगतण एक िग ण को रवििार म ें कायण करना अवनिायण कर वदया जाए यह जानते हए ु ं वक ईसाई समदाय के अनसार रवििार को उनकी पजा करने का वदन ह,ै तो यह अप्रत्यक्ष भदे भाि ह ै । ु ु ू शमत्रता या सबध के कारर् भेिभाव – यवद वकसी व्यवक्त के साथ इस आधार पर भदे भाि वकया ं ं जा रहा ह,ै वक उसके सबध या वमत्रता उस व्यवक्त के साथ ह ै जो समानता अवधवनयम 2010 के तहत ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 89 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भदे भाि के अतगतण आते ह ैं । जसै े यवद वकसी व्यवक्त के साथ कायणस्थल पर भदे भाि इस आधार पर ं वकया जा रहा हो, वक उसकी वमत्रता वनचली जावत के व्यवक्त से ह ै । धारर्ा के कारर् भेिभाव – कभी-कभी वकसी व्यवक्त के वलए दसरे लोग वकसी तरह की गलत ू धारणा बना लेते ह,ैं वजस कारण से भदे भाि होता ह ै । जसै े- यवद वकसी व्यवक्त का पहनािा आम व्यवक्तयों के अनसार न हो तो उसके बारे गलत धारणाए बन जाती ह,ैं और लोगों के द्वारा उसके साथ ु ं भदे भाि होता ह ै । िोषर् – शोषण का तात्पयण ऐसे अनचाह े व्यिहार से होता ह ै वजससे व्यवक्त शवमदां गी महसस करे । ू जसै े- वकसी िी के साथ पप ष प्रधान सस्थान म ें अपमानजनक व्यिहार वकया जाना शोषण का ु ं उदाहरण ह ै । जब कोई व्यवक्त वकसी सस्थान म ें या काय ण स्थल पर वकसी अन्य व्यवक्त के साथ दव्यणिहार वकए ं ु जाने का विरोध करता ह,ै या उसके वखलाफ आिाज उठता ह ै तो उस व्यवक्त के साथ भदे भाि होना । जसै े- योग्यता म ें सम्पण ण होने पर भी कायणस्थल म ें तरक्की का न वमलना वसफण इसवलए की उसने िहााँ ू होने िाले भदे भाि के वखलाफ आिाज उठाई ह ै । भदे भाि म ें अक्सर वकसी व्यवक्त को के िल उसके िग ण के आधार पर अिसरों, स्थानों, अवधकारों और अन्य चीजों से िवचत कर वदया जाता ह ै । भदे भािी परम्पराए,ाँ नीवतयााँ, विचार, कानन और रीवतया ू ं ं बहत से समाजों, दशे ों और सस्थाओ म ें ह ैं और अक्सर यह िहााँ भी वमलती ह ै जहााँ औपचाररक रूप ु ं ं से भदे भाि को न्यावयक रूप से िवजतण या औवचत्य समझा जाता ह ै । भारतीय सविधान म ें समता, ं स्ितत्रता, सामावजक न्याय एि व्यवक्त की गररमा को प्राप्य मकयों के रूप म ें दशाणया गया ह ै । हमारा ू ं ं सविधान जावत, िग,ण धम,ण आय एि लैंवगक आधार पर वकसी भी प्रकार के भदे भाि का वनषधे करता ं ं ह ै । 3.5 अममानता तथा भदे भाव को दरू करने हते ु मंवैधावनक प्रावधान भारतीय सविधान के मौवलक अवधकारों के अतगतण वनम्न बातें नागररकों को प्रदान की गई ह ैं – ं ं 1. सविधान ऐसी व्यिस्था को जन्म दगे ा वजसम ें सभी लोगों को सामावजक, आवथणक तथा ं राजनीवतक न्याय प्राप्त होगा । 2. सविधान सभी व्यवक्तयों को प्रवतष्ठा एि अिसर की समानता प्रदान करेगा । ं ं उपयणक्त को प्राप्त करने हते सविधान म ें वनम्न प्रािधान वदए गए ह ैं - ु ु ं 1. सभी व्यस्कों को मतावधकार प्रदान वकया गया ह ै । 2. विवध के समक्ष समता (अनच्छेद -14) प्रदान की गई ह ै । ु 3. सािजण वनक नौकररयों के सम्बन्ध म ें अिसर की समानता (अनo-16) म ें प्रदान की गई ह ै । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 90 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4. अनच्छेद-15 धम,ण मलिश, जावत, वलग ि जन्म स्थान के आधार पर कोई भदे भाि वकसी भी ु ू ं ं भारतीय नागररक के साथ नहीं बरता जाएगा । 5. अनच्छेद-16 सरकारी नौकररयााँ सभी के वलए खली होंगी तथा अनसवचत जावत ि जनजावत के ु ु ु ू वलए विशेष सविधाए ाँ सरवक्षत स्थानों के रूप म ें होंगी । ु ु 6. अनच्छेद-14 प्रत्येक भारतीय नागररक को व्यिसाय या धधा करने का अवधकार होगा। ु ं 7. अनच्छेद-28 वशक्षा सस्थाओ म ें प्रिशे के मामले म ें कोई भदे भाि वकसी के साथ नहीं बरता ु ं ं जाएगा । सविधान के चौथ े भाग म ें अनo -36 से लेकर अनo -51 तक कछ वसिान्तों का उकलेख वकया ु ु ु ं गया ह ै । ये ि े वसिात ह ैं वजन पर भारत की भािी आवथणक, सामावजक तथा राजनीवतक वनवत ं वनधाणररत होगी । सविधान के इस भाग म ें वदए गए उपबधों को वकसी भी न्यायालय द्वारा बाध्यता ं ं नहीं दी जा सके गी वफर भी कानन वनमाणण म ें इन वसिान्तों का प्रयोग राज्य का कतणव्य होगा । इन ू वसिान्तों म ें कछ प्रमख इस प्रकार ह ैं जो समता की ओर बढ़ाने म ें सहायक ह।ैं ु ु अनच्छेद 25-वहन्दओ की सािजण वनक धावमकण सस्थाओ को समस्त वहन्दओ के वलए खोलना । ु ं ं ं ं ु ु अनच्छेद 29- राज्य द्वारा पोवषत अथिा राज्य वनवध से सहायता पाने िाली वकसी वशक्षा सस्था ु ं म ें या वित्तपोवषत शवै क्षक सस्थाओ को, प्रिशे दते े समय वकसी भी नागररक के साथ के िल धमण, ं ं मलिश, जावत, भाषा या इनम ें से वकसी के आधार पर भदे भाि करने से भी रोकता है। ू ं अनच्छेद 46- इन जावतयों के शवै क्षक और आवथणक वहतों की रक्षा और उनका सभी प्रकार के ु शोषण और सामावजक अन्याय से बचाि । अनच्छेद 146- कें र ि राज्यों म ें अछतों के ककयाण हते समाज ककयाण एि अशासकीय ु ू ु ं सस्थाओ को खोलने पर बल वदया जाता ह ै । ं ं अनच्छेद 244- अनसवचत जावतयों के वलए प्रशासन सम्बन्धी विशषे व्यिस्था की गई ह ै । ु ु ू अनच्छेद 45- राज्य सविधान के लाग होने स े 10 िष ण की अिवध के भीतर 6 से 14 िष ण के सभी ु ू ं बालक बावलकाओ के वलए वनःशकक ि अवनिायण वशक्षा का प्रबध करन े का प्रयास करेगा । ु ं ं अनच्छेद -45 म ें प्रािधान ह ै वक लोकतत्र को सफल बनाने तथा उसकी सरक्षा के वलए सभी ु ु ं नागररकों का वशवक्षत होना अवत आिश्यक ह ै । अभ्यास प्रश्न 1. सविधान की वकस धारा के अतगतण राज्य द्वारा सचावलत वकसी वशक्षा सस्था म ें धम,ण मलिश, जावत, ू ं ं ं ं ं वलग ि जन्म स्थान के आधार पर कोई भदे भाि वकसी भी भारतीय नागररक के साथ नहीं बरता ं जाएगा । 2. सािजण वनक नौकररयों के सम्बन्ध म ें अिसर की समानता ________म ें प्रदान की गई ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 91 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3. समानता अवधवनयम 2010 के तहत भदे भाि के मख्य कारण वकन्ह ें माना गया ह ै । ु 4. सविधान की वकस धारा के अतगतण राज्य सविधान के लाग होने से 10 िष ण की अिवध के भीतर 6 से ू ं ं ं 14 िष ण के सभी बालक बावलकाओ के वलए वनःशकक ि अवनिायण वशक्षा का प्रबध करने का प्रयास ु ं ं करेगा । 3.6 अपवंचन वगण अपिचन िग ण से तात्पयण ऐसे िग ण से ह ै । वजसे मख्य धारा से अलग कर वदया जाता ह ै । समाज का एक ु ं िग ण आज भी हावसए पर ह ै । इसका वनवहताथण उस िग ण से ह,ै जो दबा कचला ह,ै और सवदयों से अभाि ु का जीिन व्यतीत कर रहा ह ै । इसी िजह से यह िग ण ितणमान समाज म ें अन्य िगों की बराबरी नहीं कर सकता । इन्ह ें सामावजक, आवथणक एि राजनीवतक अवधकारों से िवचत रखा गया । यही कारण ह ै वक ं ं आजादी के इतने िषों बाद भी जबवक दशे विकास के मागण म ें उन्मख ह,ै यह िग ण बहत ही दयनीय वस्थवत ु ु म ें ह।ै लम्बे समय से सामावजक, आवथणक और राजवनवतक रूप से अभािग्रस्त रहने के कारण समाज की मख्य धारा से अलग हटकर यह िग ण हावसए पर चला गया ह ै । इसवलए सविधान म ें ऐसे लोगों के वलए ु ं कानन बना तावक ये लोग भी समाज की मख्य धारा से जड़ सकें । हमारे समाज म ें कछ अपिवचत िग ण ह ैं । ू ु ु ु ं वजनका िणनण वनम्न ह ै । 1. मवहला 2. अनसवचत जावत, जनजावत एि वपछड़ा िग ण ु ू ं 3. अक्षम व्यवक्त, बच्चे एि िि ृ ं 3.6.1 मशहला यद्यवप भारतीय सविधान सभी नागररकों को कानन के समक्ष समानता की गारटी प्रदान करता ह,ै तथावप ू ं ं सवदयों से मवहलाए वनम्न वस्थवत का वशकार होती आई ह,ैं भारत सरकार ने समानता, सामावजक न्याय एि ं ं वलग, जावत, सम्प्रदाय, भाषा या धम ण के आधार पर गरै भदे भािपण ण नीवत की सिधै ावनक मान्यता को ू ं ं चररताथण करने के वलए इस वदशा म ें कायण करने की ओर अपनी िचनबिता की पनः पवष्ट की ह ै । िवै श्वक ु ु विकास के पररदृश्य म ें मवहलाओ की वनम्न वस्थवत, वपतसत्तात्मक समाज, सामती प्रथाओ एि मकयों, ृ ू ं ं ं ं जावतगत रेखाओ के साथ-साथ सामावजक ध्रिीकरण उच्च वनरक्षरता दर एि व्यापक वनधनण ता का भारत ु ं ं लगभग सामानातर रहा ह ै । परन्त िास्ति म ें सच्चाई यह ह ै वक भारतीय समाज म ें लड़वकयों एि वियों को ु ं ं एक बोझ माना जाता ह ै । मवहलाओ के इवतहास की सबसे विशाल क्रावत मध्य काल म ें हई ह।ै आज ु ं ं ितणमान म ें मवहलाओ की पहच ससद, न्यायालयों तथा प्रत्येक गवलयों म ें ह।ै ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 92 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.6.2 लैंशर्क असमानता िर करने हेत सवैधाशनक प्रावधान ु ं ू लैंवगक असमानता को दर करने के वलए भारतीय सविधान ने अनेक सकारात्मक कदम उठाए ह ैं । ं ू सविधान की प्रस्तािना हर वकसी के वलए सामावजक, राजवनवतक न्याय प्राप्त करने के लक्ष्यों के साथ ही ं अपने सभी नागररकों के वलए स्तर की समानता और अिसर प्राप्त करने के बारे म ें कहते ह ै । भारतीय सविधान ने नारी को समकक्षता प्रदान करते हए घोवषत वकया ह ै
“राज्य वकसी नागररक के विप ि धम,ण ु ं प्रजावत, जावत, वलग, जन्म स्थान या इनम ें से वकसी के आधार पर कोई विभदे नहीं करेगा”
। ं अनछेद 14 – सविधान के अनच्छेद-14 म ें िी पप ष के बीच भदे भाि समाप्त करने और ु ु ु ं मवहलाओ को भी पप षों के बराबर अिसर वदलाने की बात कही गई ह ै । इसके अनसार सरकार ु ु ं वकसी भी व्यवक्त को कानन के समक्ष समानता या विवध के समान सरक्षण से िवचत नहीं करेगी । ू ं ं भारतीय सविधान वलग की समानता की गारटी दते ा ह,ै और िह िास्ति म ें मवहलाओ के वलए ं ं ं ं विशेष ररयायतें भी प्रदान करता ह ै । अनच्छेद 15 - अनच्छेद 15 म ें वलग के आधार पर वकसी भी तरह के भदे भाि को रोकने की ु ु ं व्यिस्था की गई ह ै । सविधान के अनच्छेद -15 म ें राज्य को मवहलाओ और बच्चों के वलए ु ं ं विशेष प्रािधान करने की छट दी गई ह ै । ू अनच्छेद 16- म ें सरकारी नौकररयों म ें मवहलाओ को भी परूषों के बराबर अिसर वदलाने की ु ु ं बात कही गई ह ै । इसके अनसार कोई भी नागररक िश, जावत, जन्म स्थान या वनिास स्थान के ु ं आधार पर सरकारी वनयवक्तयों के वलए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा । राज्य के अन्तगतण रोजगार ु अथिा सरकारी वनयवक्तयों के वलए सभी नागररकों को बराबर के मौके वमलेंग े । ु अनच्छेद 39 (1) - अनच्छेद 39 (1) म ें राज्य से अपेक्षा की गई ह,ै वक िह वियों और पप षों को ु ु ु आजीविका के पयाणप्त साधन उपलब्ध कराएगा । अथाणत सरकार ऐसी योजनाए बनाए वजससे ं मवहलाओ को भी रोजगार प्राप्त हो । ं अनच्छेद 39 (4) - अनच्छेद 39 (4) के अनसार सरकार को ऐसी योजनाए बनानी होगी वजससे ु ु ु ं की पप ष और मवहलाओ दोनों को समान काम के वलए समान िते न वमले । ु ं अनच्छेद 39(5) – इस नीवत वनदशे क तत्ि के अनसार सरकार को ऐसी योजनाए बनानी चावहए ु ु ं वजससे की काम करने िाले मजदरों, श्रवमकों, पप ष तथा मवहलाओ के सेहत और साम्यण का ु ं ू तथा बच्चों के कोमल बचपन का शोषण न हो और नागररकों को अपनी गरीबी के कारण ऐसे काम न चनने पड़े की, उनके उम्र और सेहत के अनकल न हो । ु ु ू अनच्छेद 51ए(ई) म ें प्रत्येक नागररक को यह दावयत्ि सौपा ह,ै वक िह मवहलाओ की मान ु ं मयाणदा को कम करने िाला कोई कायण न करें । अनच्छेद 44 – का सबध भारत के सभी नागररकों से ह ै । सविधान जावत, पथ,वलग या धम ण के ु ं ं ं ं ं आधार पर नहीं, अवपत जन्म, वनिास स्थान, चयन आवद के आधार पर नागररकता प्रदान करता ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 93 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह ै । अतः यह सभी नागररकों और विशेषकर मवहलाओ का अवधकार ह ै वक उनके साथ वबना ं वकसी भदे भाि के समान व्यिहार वकया जाए और इस लक्ष्य को प्राप्त करने म ें राज्य के प्रयास सतत एि सिोपरी होने चावहए । ं 3.6.3 अनसशचत जाशत ु ू भारतीय समाज म ें दवलत या अनसवचत जावत सबसे बड़ा िग ण ह ै । भारतीय सामावजक ढाचे म ें जावत ु ू ं अिश्य ही एक वनणाणयक मानदण्ड रही ह ै । जावत प्रथा, परातन समय की िण ण व्यिस्था का एक पररष्कत ृ ु रूप ह ै । धीरे-धीरे यह समाज म ें कई तरह के विभाजन का कारण बनी और महज भारतीय सभ्यता के सबसे क्रर और अमानिीय लक्षण के रूप म ें सामने आई । सवदयों से भारतीय समाज सैकड़ों जावत और ू उपजावतयों म ें क्रमानसार उच्चतर से वनम्नतर प्रणाली म ें विभावजत ह ै । दवलत हजारों िषों तक अस्पश्य या ृ ु अछत समझी जाने िाली उन तमाम शोवषत जावतयों के वलए सामवहक रूप से प्रयक्त होता ह ै जो वहन्द धम ण ू ू ु ू शािों द्वारा वहन्द समाज व्यिस्था म ें सबसे नीचे ह ै । सिधै ावनक भाषा म ें इन्ह ें ही अनसवचत जावत कहा ु ू ं ू गया ह ै । भारतीय जनगणना 2011 के अनसार भारत की जनसाँख्या म ें लगभग 16.6 % या 20.14 ु करोड़ आबादी दवलतों की ह ै । भारत म ें दवलत आदोलनों का सत्रपात ज्योवतराि गोविन्द राि फले ने ू ू ं वकया था । लेवकन इसे समाज की मख्य धारा से जोड़ने का काम बाबा साहबे भीम राि अम्बेडकर ने ु वकया । बाबा साहब अम्बेडकर ने सबसे पहल े दशे म ें दवलतों के वलए सामावजक, राजनीवतक और आवथणक अवधकारों की पैरिी की । अम्बेडकर के प्रयासों का ही ये पररणाम ह,ै वक दवलतों के अवधकारों को भारतीय सविधान म ें जगह दी गई तथा सविधान के मौवलक अवधकारों के जररए भी दवलतों के ं ं अवधकारों की रक्षा करने की कोवशश की गई । हमारे सविधान म ें अनसवचत जावत की पररभाषा के िल ु ू ं और के िल धम ण पर आधाररत ह ै । इसवलए इस्लाम, ईसाई ि अन्य धम ण मानने िाले इससे बाहर ह ै । यद्यवप भारत धमवण नरपेक्ष राज्य ह ै और सविधान का अनच्छेद यह भी कहता ह ै वक इस अनच्छेद की कोई बात, ु ु ं राज्य को सामावजक और शवै क्षक दृष्टी से वपछड़े हए नागररकों के वकन्ही िगों की उन्नवत के वलए या ु अनसवचत जावतयों या अनसवचत जन जावतयों के वलए कोई विशेष उपबध करने से नहीं रोके गी । ु ू ु ू ं 3.6.4 अनसशचत जन जाशत या आशिवासी समिाय ु ू ु आवदिासी शब्द दो शब्दों आवद और िासी से वमल कर बना ह,ै इसका अथण मल वनिासी होता ह ै । ू भारत की जनसख्या का 8.6% (10 करोड़) वजतना एक बड़ा वहस्सा आवदिावसयों का ह ै । परातन लेखों ु ं म ें आवदिावसयों को अवत्िका और िनिासी भी कहा गया ह ै । सविधान म ें आवदिावसयों के वलए ं अनसवचत जनजावत पद का उपयोग वकया गया ह ै । भारत के प्रमख आवदिासी समदायों म ें सथाल , ु ू ु ु ं गोंडा, मडा, खवड़या हो, बोडो, भील, खासी, सहरीया, गरावसया, मीणा, उराि, बीरहोर आवद ह ैं । ुं ं प्रजातीय आधार पर भारतीय कबीलों को तीन श्रेवणयों म ें विभावजत वकया जा सकता ह ै । प्रथम श्रेणी म ें मगोलीय मल के नागा, ककी, गारो तथा असमी कबीले या अकमोड़ा वजले के भोवटया आवद ू ू ं कावबले आते ह।ैं दसरी क्षेणी के अतगतण मडा, सथाल, कोरिा आवद परा आस्टेलीय कबीले और तीसरी ु ू ं ं ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 94 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं श्रेणी म ें विशि आयण मल के वनचले वहमालय िासी खस कावबले या वहद आयण रक्त की प्रधानता वलए ु ू ं वकन्त वमवश्रत
प्रकार के भील आवद आते ह ैं । ु आमतौर पर आवदिावसयों को भारत म ें जनजातीय लोगों के रूप म ें जाना जाता ह ै । आवदिासी मख्य ु रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदशे , छत्तीसगढ़, राजस्थान,
गजरात, महाराष्र, आध्र प्रदशे , वबहार, ु ं झारखण्ड, पवश्चम बगाल म ें अकपसख्यक ह ै जबवक भारतीय पिोतर राज्यों म ें यह बहसख्यक ह,ैं जसै े- ु ू ं ं ं वमजोरम । भारत सरकार ने इन्ह ें भारत के सविधान की पााँचिी अनसची म ें के ु ू ु ू ं रूप म ें मान्यता दी ह ै । अक्सर इन्ह ें अनसवचत जावतयों के साथ एक ही सकारात्मक कारिाही के उपायों ु ू के वलए पात्र ह ै । 3.6.5 अनसशचत जाशत तथा जनजाशतयों की सरक्षा हेत सवैधाशनक प्रावधान ु ू ु ु ं सविधान में अनसवचत जावतयों, अनसवचत जनजावतयों और अन्य कमजोर िगों के शैवक्षक और आवथणक ु ू ु ू ं वहतों को बढ़ािा दने े और सामावजक कवमयों को दर करने के वलए सरक्षा और सरक्षण की व्यिस्था की ु ं ू गई ह ै । इसके वलए इन िगों के वलए विशेष व्यिस्था की गई ह,ै या वफर नागररक के रूप म ें उनके सामान्य अवधकारों पर बल वदया गया ह,ै और उन्ह ें सरक्षाए प्रदान की गई ह ैं । ु ं अनच्छेद 15 के खड (3) तथा (4) के अनसार राज्य को क्रमशः वियों तथा बच्चों के वलए और ु ु ं सामावजक तथा शवै क्षक दृवष्ट से वपछड़े हए नागररकों के कछ िगों की उन्नवत के वलए या अनसवचत ु ु ु ू जावतयों तथा अनसवचत जनजावतयों के वलए विशेष प्रािधान करने का अवधकार होगा । ु ू अनच्छेद 46- के अनसार “राज्य जनता के वनबणल िगों के विशषे तया अनसवचत जावतयों तथा ु ु ु ू अनसवचत जनजावतयों के वशक्षा तथा अथण सम्बन्धी वहतों की विशषे सािधानी से उन्नवत करेगा। ु ू तथा सामावजक अन्याय तथा सब प्रकार के शोषण से उनका सरक्षण करेगा । ं अनच्छेद 330 – के अनसार “लोकसभा म ें अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जनजावतयों के वलए ु ु ु ू ु ू
स्थानों का आरक्षण होगा” । अनच्छेद 332 – के अनसार “प्रत्येक राज्य की विधान सभा म ें अनसवचत जावतयों और असम के ु ु ु ू स्िशासी वजलों की अनसवचत जनजावतयों को छोड़कर अन्य अनसवचत जनजावतयों के वलए स्थान ु ू ु ू आरवक्षत रहगें े । असम राज्य की विधान सभा म ें स्िशासी वजलों के वलए भी स्थान आरवक्षत रहगें े । अनच्छेद 335 – के अनसार “सघ या वकसी राज्य क
े कायणकलाप से सम्बवधत सेिाओ और पदों के ु ु ं ं ं वलए वनयवक्तया करने म ें अनसवचत जावतया तथा अनसवचत जनजावतयों के सदस्यों के दािों का ु ु ू ु ू ं ं प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की सगवत के अनसार ध्यान रखा जाएगा” । ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 95 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अनछेद 338 – के अनसार अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जन जावतयों के वलए एक आयोग ु ु ु ू ु ू होगा जो
“राष्रीय अनसवचत जावत और अनसवचत जनजावत आयोग के नाम स े जाना जाएगा”
। ु ू ु ू आयोग का यह कतणव्य होगा वक िह – क. अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जनजावतयों के वलए इस सविधान या तत्समय प्रित वकसी ृ ु ू ु ू ं अन्य विवध या सरकार के वकसी आदशे के अधीन उपबवधत सेिाओ के कायणकाल का ं ं मकयाकन करें । ू ं ख. अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जन जावतयों को उनके अवधकार तथा रक्षा के उपायों से ु ू ु ू िवचत करने की बाबत विवनवदणष्ट वशकायतों की जााँच करें । ं ग. अनसवचत जावतया तथा अनसवचत जनजावतयों के सामावजक आवथणक विकास की योजना ु ू ु ू ं प्रवक्रया म ें भाग लें तथा उन पर सलाह द ें तथा सघ एि राज्यों म ें उनके विकास की प्रगवत की ं ं समीक्षा करें । घ. सरक्षा के उपायों के वक्रयान्ियन के सबध म ें राष्रपवत को िावषकण प्रवतिदे न प्रदान करें । ु ं ं ङ. प्रवतिदे नों म ें ऐसे उपाय सझाए ाँ वजन्ह ें अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जन जावतयों के ु ु ू ु ू सरक्षण, ककयाण एि सामावजक आवथणक विकास के वक्रयान्ियन के वलए सघ या राज्यों द्वारा ं ं ं लाग वकया जा सके । ू च. अनसवचत जावतया तथा अनसवचत जन जावतयों के सरक्षण ककयाण विकास एि उन्नयन के ु ू ु ू ं ं ं सबध म ें अन्य ऐसे कत्यों का वनिहण न करें जो राष्रपवत, ससद द्वारा बनाई गई वकसी विवध के ृ ं ं ं उपबधों के अधीन रहते हए वनयम द्वारा विवनवदष्टण करे । ु ं अनछेद 339 – के अनसार “राष्रपवत राज्यों के अनसवचत क्षेत्रों के प्रशासन तथा अनसवचत ु ु ु ू ु ू जनजावतयों के ककयाण के बारे म ें प्रवतिदे न के वलए आयोग की वनयवक्त, आदशे द्वारा वकसी भी ु समय कर सके गा और इस सविधान के प्रारभ से दस िष ण की समावप्त पर करेगा । ं ं अनछेद 340 (1) – राष्रपवत भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर सामावजक तथा शवै क्षक दृवष्ट स े ु वपछड़े िगों की दशाओ के , वजन कवठनाइयों को ि े झले रह े ह ैं ,उनके अन्िषे ण के वलए और इन ं कवठनाइयों को दर करन े तथा उनकी दशा को सधारन े के वलए सघ या वकसी राज्य द्वारा जो ु ं ू अनदान वकए जाने चावहए और वजन शतों के अधीन ि े अनदान वकए जाने चावहए उनके बारे म ें ु ु वसफाररश करने के वलए आदशे द्वारा एक आयोग वनयक्त कर सके गा जो ऐसे व्यवक्तयों स े ु वमलकर बनेगा जो िह ठीक समझ े और ऐसे आयोग को वनयक्त करने िाले आदशे म ें आयोग ु द्वारा अनसरण की जाने िाली प्रवक्रया सवनवश्चत की जाएगी । ु ु अनच्छेद 341 (1) – के अनसार “राष्रपवत वकसी राज्य या सघ राज्य के क्षेत्र के सबध में और ु ु ं ं ं जहााँ िह राज्य ह ै िहा उसके राज्यपाल से परामश ण करने के पश्चात लोक अवधसचना के द्वारा उन ू जावतयों, मलिशों या जनजावतयों अथिा जावतयों के भागों या उनम ें के यथों को विवनवदष्टण ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 96 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सके गा, वजन्ह ें इस सविधान के प्रयोजनों के वलए यथावस्थवत, उस राज्य या सघीय क्षेत्र के सबध ं ं ं ं म ें अनसवचत जावतया समझा जाएगा । ु ू ं (2) ससद, विवध द्वारा वकसी जावत या मलिश या जनजावत के भाग या उसम ें के यथ को खड (1) के ू ू ं ं ं अधीन वनकाली गई अवधसचना म ें विवनवदष्टण अनसवचत जावतयों की सची म ें सवम्मवलत कर सके गी ू ु ू ू या उसम ें से अपिवजणत कर सके गी, वकन्त जसै ा ऊपर कहा गया ह ै उसके वसिाय उक्त खड के अधीन ु ं वनकली गई अवधसचना म ें वकसी पश्चातिती अवधसचना द्वारा पररितणन नही वकया जाएगा । ू ू अनच्छेद 342(1) के अनसार- “राष्रपवत वकसी राज्य या सघ राज्य क्षेत्र के सबध म ें और जहााँ ु ु ं ं ं िह राज्य ह ै िहााँ उसके राज्यपाल से परामश ण करने के पश्चात लोक अवधसचना द्वारा उन ू जनजावतयों या जनजावत समदायों अथिा जनजावतयों या जनजावत समदायों के भागों या उनमें ु ु के यथों को विवनवदष्टण कर सके गा, वजन्ह ें इस सविधान के प्रयोजनों के वलए (यथावस्थवत ) उस ू ं राज्य या सघ राज्य क्षेत्र के सबध म ें अनसवचत जनजावतयााँ समझा जाएगा । ु ू ं ं ं (2) ससद विवध द्वारा वकसी जनजावत या जनजावत समदाय को अथिा वकसी जनजावत या जनजावत ु ं समदाय के भाग या उसम ें के यथ को ( खड 1) के अधीन वनकाली गई अवधसचना म ें विवनवदष्टण ु ू ू ं अनसवचत जनजावतयों की सची म ें सवम्मवलत कर सके गी या उनम ें से अपिवतणत कर सके गी वकन्त ु ू ू ु जसै ा ऊपर कहा गया ह ै उसके वसिाय उक्त खड के अधीन वनकाली गई अवधसचना म ें वकसी ू ं पश्चातिती अवधसचना द्वारा पररितणन नही वकया जाएगा । ू अनसवचत जावत तथा जनजावत - ु ू 1. अनच्छेद 17- छआछत दर करना और वकसी भी रूप म ें इस कप्रथा पर प्रवतबन्ध लगाना । ु ु ू ु ू 2. अनच्छेद 46- शवै क्षक और आवथणक वहतों को बढ़ािा दने ा तथा सामावजक अन्याय और ु हर तरह के शोषण से उनकी सरक्षा करना । ु 3. अनच्छेद 15(2) – दकानों सािजण ावनक भोजनालयों, होटलों तथा सािजण वनक मनोरजन ु ं ु स्थलों म ें प्रिशे अथिा पण ण या आवशक रूप से राज्य वनवध से पोवषत अथिा आम जनता ू ं के वलए कओ, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों सािजण ावनक स्थलों के उपयोग के बारे म ें वकसी ु ं भी प्रकार के प्रवतबन्ध, शतण अयोग्यता या दावयत्ि को हटाना । 4. अनच्छेद 19(5) – अनसवचत जनजावतयों के वहतों की दृवष्ट से सभी नागररकों के स्ितत्रता ु ु ू ं पिकण आने-जाने बसने और सपवत्त अवजतण करने के आम अवधकारों म ें कमी करने की ू ं क़ाननी व्यिस्था करना । ू 5. अनच्छेद 29(2) – राज्य द्वारा चलाई जा रही या राज्य वनवध से सहायता प्राप्त करने िाली ु वकसी भी वशक्षण सस्थान म ें प्रिशे पर वकसी भी तरह के प्रवतबन्ध का वनषधे । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 97 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 6. अनच्छेद (16) और 335– सरकारी सेिाओ म ें वपछड़े िगों एि अपयाणप्त प्रवतवनवधत्ि की ु ं ं वस्थवत म ें राज्य को आरक्षण का अवधकार दने ा तथा राज्य को सरकारी सेिाओ म ें वनयवक्त ु ं के मामलों म ें अनसवचत जावतयों और अनसवचत जनजावतयों के दािों पर ध्यान दने े की ु ू ु ू वजम्मदे ारी सौपना । 7. अनच्छेद- 244 और पााँचिी तथा छठी अनसची अनसवचत और जनजातीय इलाकों के ु ु ू ु ू प्रशासन और वनयत्रण के वलए विशेष व्यिस्था करना । ं 3.6.6 शपछड़ा या अल्पसख्यक वर्ि ं अकपसख्यक समदाय वकसी राज्य की जनसख्या का एक छोटा वहस्सा होता ह ै । वजसका जातीय,धावमकण ु ं ं या भाषाई चररत्र राज्य की शषे जनसख्या से वभन्न होता ह।ै और यह अपनी सस्कवत, परम्परा, धम ण एि ृ ं ं ं भाषा को बनाए रखने के वलए एक जव्ता का पररचय दते ा ह ै । इस प्रकार भारतीय सन्दभ ण म ें धावमकण ु अकपसख्यक विवभन्न गरै वहन्द समदाय के रूप म ें पाए जाते ह ै ।असम और पवश्चम बगाल जसै े–राज्यों म ें ु ं ं ू जातीय अकपसख्यक होते ह ैं तथा पजाब, जम्म कश्मीर और विवभन्न दवक्षण भारतीय राज्यों म ें वहदी भाषी ू ं ं ं समदाय भाषाई अकपसख्यक ह ै । तथा भारत के वहदी भाषी क्षेत्रों म ें गरै वहदी भाषी समदाय भाषाई ु ु ं ं ं अकपसख्यक माने जाते ह ै । ं सैिावतक रूप से समानता का अवधकार अकपसख्यक समदाय का सबसे महत्िपण ण अवधकार ह ै वजसके ु ू ं ं द्वारा यह सवनवश्चत वकया जाता ह ै वक जातीय, धावमकण या भाषाई वभन्नता अकपसख्यकों के विरूि ु ं भदे भाि का आधार नहीं बन सकता । साथ ही साथ अपने जातीय, धावमकण एि भाषाई चररत्र को बचान े ं एि उसके विकास के वलए अकपसख्यक समदाय को विशेष अवधकार की आिश्यकता ह ै । अकपसख्यक ु ं ं ं समदाय अपनी सस्कवत, धम ण और भाषा का पालन करने हते पण ण रूप से स्ितत्र ह ै । ृ ु ु ू ं ं 3.6.7 सवैधाशनक प्रावधान ं अनच्छेद 29(1) - इसके अनसार दशे के वकसी भी वहस्से म ें रह रह े वकसी भी नागररक को ु ु अपनी भाषा, वलवप या सस्कवत को बचाकर रखने का अवधकार ह ै । ृ ं अनच्छेद 29 (2) - सरकारी धन से सचावलत वकसी भी शक्षै वणक सस्थान म ें के िल धम,ण ु ं ं प्रजावत जावत भाषा या इनमें से वकसी के आधार पर भदे भाि करने से राज्य को प्रवतबवधत ं करता ह ै । अनच्छेद 30(1) - के अनसार धावमकण या भाषाई, सभी अकपसख्यकों को अपनी इच्छानसार ु ु ु ं शक्षै वणक सस्थाओ की स्थापना एि प्रशासन का अवधकार ह ै । ं ं ं अनच्छेद 30 (2) - के अनसार वकसी भी शक्षै वणक सस्था को आवथणक मदद दने े म ें राज्य इस ु ु ं कारण से कोई भदे भाि नहीं करेगा वक िह वकसी धावमणक या भाषाई अकपसख्यक द्वारा ं सचावलत ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 98 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भारतीय सविधान वनमाणण के समय चार आधारभत मकय शावमल वकए गए थे- ू ू ं 1. सामावजक 2. आवथणक और राजनैवतक न्याय विचार, अवभव्यवक्त, श्रिा और उपासना का स्िातन््य 3. सामावजक वस्थवत और अिसर की समानता 4. सभी भारतीयों के प्रवत बधत्ि भाि । ु ं भारतीय सविधान म ें धम ण के आधार पर राज्य द्वारा भदे भाि का वनषधे वकया गया सविधान की धारा 15.1 ं ं म ें कहा गया ह ै वक “के िल धम,ण जावत, प्रजावत, वलग और जन्म स्थान के आधारों अथिा इनम े से वकसी ं भी आधार पर राज्य वकसी नागररक के विप ि भदे भाि का व्यिहार नहीं करेगा । ” धारा 15.4 म ें वपछड़ी तथा अनसवचत जावतयों के लाभ के वलए विशषे सविधाओ की व्यिस्था की गई ह।ै ु ू ु ं सामावजक या शवै क्षक रूप से वपछड़े िगों के नागररकों अथिा अनसवचत जावतयों और अनसवचत ु ू ु ू जनजावतयों की उन्नवत के वलए विशेष विधानों के वनमाणण में,यह अनच्छेद अथिा अनच्छेद 29.2 वनषधे ु ु नहीं करेगा । 3.6.8 शिव्यार् ,वद्ध तथा बच्चे ृ ं िि तथा बच्चे वकसी भी सामावजक एि शवै क्षक प्रणाली की पररपक्िता की महत्िपण ण कसौटी ह ै वक िह ृ ू ं समाज अपने वदव्याग सदस्यों की ओर वकतना ध्यान दते ा ह ै । यही कारण ह ै वक शवै क्षक निाचारों के ं माध्यम से वशक्षा जगत म ें सधार लाया जा रहा ह ै । वजसके वलए वदव्याग बच्चों के वलए सहायताओ, ु ं ं निीन उपकरणों ि यत्रों ि निीन प्रणावलयों को विकवसत रूप प्रदान वकया जा रहा ह ै । सामावजक ं पररितणन, राष्रीय पनप त्थान और विकास की सबसे पहली आिश्यकता ह ै वशक्षा का समवचत प्रचार ि ु ु प्रसार एि मानि ससाधन का विकास । ससार के सभी दशे ों म ें वदव्याग बालकों के प्रवत लोगों के ं ं ं ं दृवष्टकोण म ें पररितणन हआ ह ै । भारत का सविधान अपने सभी नागररकों के वलए समानता, न्याय ि ु ं गररमा सवनवश्चत करता ह ै । और स्पष्ट रूप से यह वदव्याग व्यवक्तयोंसमते एक सयक्त समाज बनाने पर जोर ु ु ं ं डालता ह ै ।हाल के िषों म ें वदव्यागों के प्रवत समाज का नजररया तेजी से बदला ह ै । यह माना जाता ह ै वक ं यवद वदव्याग व्यवक्तयों को समान अिसर तथा प्रभािी पनिाणस की सविधा वमले तो ि े बेहतर गणित्तापण ण ु ु ु ू ं जीिन व्यतीत कर सकते ह ैं । 3.6.9 सवैधाशनक प्रावधान ं धारा -1 सभी मानि स्ितत्र जन्म लेते ह ैं और अवधकार तथा प्रवतष्ठा की दृवष्ट से समान होते ह ैं । सभी को ं एक दसरे के प्रवत भाईचारे की भािना रखनी चावहए । ू वदव्यागता मनष्य म ें शारीररक कमी तो लाती ह ै वजससे मनष्य के मन म ें इसका प्रभाि पड़ता ह ै लेवकन ु ु ं के िल वदव्यागता के आधार पर हम वकसी व्यवक्त या बालक को कमजोर मानना या उन्ह ें उनके ं अवधकारों से िवचत कर दने ा अन्यायपण ण ह ै । इस प्रकार वदव्याग या वदव्याग व्यवक्तयों को भी समान भाि ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 99 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वदया जाना आिश्यक ह ै । भारत का सविधान सभी नागररकों पर एक सा लाग होता ह ै चाह े िो सामान्य ू ं हो या वदव्याग । भारतीय सविधान के अतगतण जावत धम,ण वलग, सम्प्रदाय आवद के आधार पर वकसी ं ं ं ं वकस्म का भदे भाि नहीं होता । मल सविधान म ें ििों, वदव्यागों तथा बच्चों आवद के वलए अलग से प्रािधान नहीं वकए गए ह ैं । ृ ू ं ं सविधान म ें वदव्यागों को वनम्न अवधका
र प्राप्त ह ै :- ं ं 1. सामान्य लोगों की तरह वदव्यागों को भी सोचने, विचार करने अवभव्यवक्त करने धावमकण मान्यता ं रखने आवद का अवधकार समान अिसर का अवधकार प्राप्त
ह ै । 2. सविधान की धारा 15(1) के अनसार वदव्यागों सवहत वकसी भी नागररक के साथ जावत, धम,ण ु ं ं वलग, मल, जन्मस्थान आवद के आधार पर भदे भाि नहीं कर सकती ह ै । ू ं 3. सविधान की धारा 15(2) के तहत वकसी भी व्यवक्त (चाह े िह वदव्याग क्यों ना हो) को वकसी ं ं सािजण ावनक स्थल, दकान, होटल, रेस्तरा, मनोरजन स्थल पर प्रिशे से नहीं रोका जा सकता ह ै । ं ं ु उसे कआ,ाँ स्नानघर, सड़क या वकसी भी सािजण वनक सविधा के प्रयोग से िवचत नहीं वकया जा ु ु ं सकता ह ै । 4. धारा -17 के अनसार वदव्यागों सवहत कोई भी व्यवक्त अस्पश्य नहीं माना जाएगा । छआछत ृ ु ु ू ं अपराध माना जाएगा । 5. धारा -21 के अनसार प्रत्येक व्यवक्त को जीने का और स्ितत्रता का अवधकार ह ै । ु ं 6. धारा -24 के तहत बालकों से काम लेना चाह े िह स्िस्थ हो या वदव्याग वनवषि ह ै । 14 िष ण से ं काम आय का बालक वकसी फै क्री खान या वकसी खतरनाक काम म ें नहीं लगाया जा सकता ह ै ु । कोई वनवज ठेके दार भी वकसी 14 िष ण से कम उम्र के बालक को काम पर नहीं रख सकता ह ै । 7. सविधान की धारा -29(2) के अनसार सरकार द्वारा स्थावपत या प्रबवधत या सरकारी सहायता ु ं ं प्राप्त वकसी भी वशक्षण सस्थान म ें जावत धम,ण भाषा, सम्प्रदाय आवद के आधार पर प्रिशे म ें वकसी ं वकस्म का कोई भदे भाि नहीं वकया जाएगा । इस प्रकार वकसी वदव्याग को वदव्यागता के ं ं कारण प्रिशे से िवचत नहीं वकया जाएगा । ं 8. सविधान की धारा -45 के अनसार सरकार का दावयत्ि ह ै वक िह 14 िष ण तक की आय के ु ु ं बच्चों को वनःशकक और अवनिायण वशक्षा उपलब्ध कराए । कोई भी वशक्षण सस्थान वदव्यागों ु ं ं को प्रिशे दने े म ें भदे भाि नहीं कर सकते ह ैं और वदव्यागों को प्रिशे से िवचत भी नहीं कर सकते ं ं । 9. सविधान की धारा- 41 के अनसार सरकार अपनी आवथणक सीमाओ और विकास को ध्यान में ु ं ं रखते हए लोगों को काम करने का अवधकार, वशक्षा का अवधकार, बेरोजगारी, ििािस्था, ु ृ बीमारी और वदव्यागता के क्षेत्र म ें सहायता आवद सवनवश्चत कराएगी । ु ं बाल श्रम के शखलाफ सवैधाशनक प्रावधान ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 100 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अनच्छेद 24- 14 िष ण से काम आय के बच्चों को वकसी भी फै क्री या खान म ें नौकरी नहीं दी ु ु जाएगी। अनच्छेद 39(ड़) – पप ष तथा िी कमकण ारों के स्िास््य और शवक्त तथा बालकों की सकमार ु ु ु ु अिस्था का दरूपयोग न हो, और आवथणक आिश्यकता से वििश होकर नागररकों को ऐसे रोजगारों ु म ें न जाना पड़े जो उनकी आय या शवक्त के अनकल न हो । ु ु ू अनच्छेद 39 (च) – के अनसार बालकों को स्ितत्र और गररमामय िातािरण म ें स्िस्थ विकास के ु ु ं अिसर और सविधाए दी जाए और बालकों और कमजोर व्यवक्तयों की शोषण से तथा नैवतक और ु ं ं आवथणक पररत्याग से रक्षा की जाए । अनच्छेद 45 –अवनिायण तथा वनःशकक वशक्षा । ु ु भारतीय सविधान के अनच्छेद 39 म ें राज्यों से बालकों के सदभ ण म ें की गई वनवतगन अपेक्षाओ के क्रम म ें ु ं ं ं कछ विशषे कानन अवधवनयवमत हए । जसै े – बालक वनयोजक अवधवनयम, 1938 कारखाना अवधवनयम ु ु ू 1948 खान अवधवनयम 1952, िावणज्य पत पररिहन अवधवनयम, 1938 बीडी तथा वसगार कमकण ार ू अवधवनयम 1966 आवद । अभ्यास प्रश्न 5. सविधान के वकस अनच्छेद के अनसार “लोकसभा में अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत ु ु ु ू ु ू ं जनजावतयों के वलए स्थानों का आरक्षण होगा” । 6. सविधान के वकस अनच्छेद के अनसार अनसवचत जावतयों तथा अनसवचत जन जावतयों के वलए एक ु ु ु ू ु ू ं आयोग होगा जो
“राष्रीय अनसवचत जावत और अनसवचत जनजावत आयोग के नाम से जाना ु ू ु ू जाएगा”
। 7. सविधान के वकस अनच्छेद के अनसार छआछत दर करना और वकसी भी रूप म ें इस कप्रथा पर ु ु ु ू ु ं ू प्रवतबन्ध लगाना । 8. अनच्छेद __________के अनसार 14 िष ण से कम आय के बच्चों को वकसी भी फै क्री या खान म ें ु ु ु नौकरी नहीं दी जाएगी । 9. सविधान की __________के अनसार सरकार अपनी आवथणक सीमाओ और विकास को ध्यान म ें ु ं ं रखते हए लोगों को काम करने का अवधकार, वशक्षा का अवधकार, बेरोजगारी, ििािस्था, बीमारी ु ृ और वदव्यागता के क्षेत्र म ें सहायता आवद सवनवश्चत कराएगी । ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 101 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.7 मारांश भारतीय सविधान म ें सभी िगों को सामावजक और राजनीवतक न्याय वदलाने तथा आवथणक लोकतत्र की ं ं स्थापना के उद्दश्े य को ध्यान म ें रखते हए समाज के उपेवक्षत और शोवषत लोगों के वलए कछ विशेष ु ु उपबध अवधकत वकए गए ह ैं । हमारे सविधान म ें भदे भाि ,तथा असमानता को दर करने तथा तथा ृ ं ं ू अपिवचत िग ण की सरक्षा हते कई प्रािधान बनाए गए ह।ैं प्रस्तत इकाई म ें अपिवचत िग ण के अतगतण ु ु ु ं ं ं मवहलाओ ,अनसवचत जावत तथा जनजावत एि वदव्यागों तथा ििों को समाज म ें समान अवधकार वदलाने ृ ु ू ं ं ं हते एि वशक्षा ,रोजगार आवद के प्रािधान ह ैं ,िहीं वदव्यागों के वलए वशक्षा तथा वदव्यागों की दखे रेख ु ं ं ं करने एि उनका पनिाणस कराने आवद का भी प्रािधान ह ै । सविधान के अतगतण बालकों के सन्दभ ण म ें भी ु ं ं ं कछ कानन बनाए गए । जसै -े बालक वनयोजक अवधवनयम 1938, कारखाना अवधवनयम 1948, खान ु ू अवधवनयम 1952, िावणज्य पत पररिहन अवधवनयम 1938, बीडी तथा वसगार कमणकार अवधवनयम ू 1966 आवद । 3.8 शब्दावली 1. भेिभाव – वकसी व्यवक्त या अन्य चीज के पक्ष म ें या उसके विप ि उसके व्यवक्तगत गणों अिगणों ु ु को न दखे ते हए उसके वकसी िग ण श्रेणी या समह का सदस्य होने
के आधार पर भदे करने की प्रवक्रया ु ू को भदे भाि कहते ह ैं । 2. अल्पसख्यक - अकपसख्यक समदाय वकसी राज्य की जनसख्या का एक छोटा वहस्सा होता ह।ै ु ं ं ं वजसका जातीय,धावमकण या भाषाई चररत्र राज्य क
ी शषे जनसख्या से वभन्न होता ह।ै ं 3. अपवचन- वजसे मख्य धारा से अलग कर वदया जाता ह ै । ु ं 3.9 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. अनच्छेद-15 ु 2. अनच्छेद-16 ु 3. समानता अवधवनयम 2010 के तहत भदे भाि के मख्य कारण ु a) उम्र b) वलग ं c) रेस d) वदव्यागता ं e) धमण उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 102 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4. अनच्छेद-45 ु 5. अनच्छेद -330 ु 6. अनछेद -338 ु 7. अनच्छेद -17 ु 8. अनच्छेद- 24 ु 9. सविधान की धारा- 41 ं 3.10 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 1. पाठक ,पी.डी (2011):भारतीय वशक्षा और उसकी समस्याए , आगरा,अग्रिाल ं पवब्लके शन । 2. सक्सेना ,एन.आर.स्िरूप एि वशखा चतिदे ी (2012):उदीयमान भारतीय समाज म ें वशक्षक ु ं ,मरे ठ ,आर .लाल .बक. वडपो । ु 3. पाण्डेय ,रामाशकल(2008):उदीयमान भारतीय समाज म ें वशक्षक,आगरा, अग्रिाल पवब्लके शन्स । 4. वमश्र ,विनोद कमार (2003):विकलागों के अवधकार ,नई वदकली ,अजीत वप्रटसण । ु ं ं 5. www.google.INDIAN CONSTITUTION 3.11 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. अकपसख्यकों को सविधान म ें क्या सविधाए दी गई ह ैं ? ु ं ं ं 2. भदे भाि से आप क्या समझते ह ैं ? यह वकतने प्रकार का होता ह ै िणनण कीवजए । 3. असमानता का क्या अथण ह ै ? असमानता दर करने के वलए सिधै ावनक प्रािधानों का िणनण कीवजए । ं ू 4. अनसवचत जावत तथा अनसवचत जन जावत की सरक्षा हते क्या सिधै ावनक प्रयास वकए गए ह ैं ? ु ू ु ू ु ु ं िणनण कीवजए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 103 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 4 - विक्षा के सािणिौवमकरण के माध्यम से स्ितन्त्रता, न्याय, समानता और िन्ित्िता के संिैिावनक ु िायदों को पूणण Fulfillment of the Constitutional Promise of Freedom, Justice, Equality and Fraternity Through Universalsation of Education 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 स्ितत्रता एि वशक्षा ं ं 4.3.1 अनसवचत जावतयों और जनजावतयों के वलय वशक्षा ि विशेष उपबध ु ू ं 4.4 समानता का अवधकार एि वशक्षा ं 4.4.1 सविधान में समानता के सम्बन्ध में प्रािधान ं 4.5 न्याय व्यिस्था एि वशक्षा ं 4.5.1 िन्धत्िता ु 4.6 वशक्षा का सािणभौमीकरण 4.6.1 वशक्षा के सािणभौवमकरण हते सरकार प्रयास ु 4.6.2 सािणभौवमकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के वलय उपाय 4.6.3 आाँपरेशन ब्लेक बोडण योजना 4.7 साराश ं 4.8 शब्दािली 4.9 अभ्या स प्रश्नों के उत्तर 4.10 सन्दभण ग्रथ सची ू ं 4.11 सहायक उपयोगी पाठय सामग्री ् 4.12 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 104 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.1 प्रस्तावना भारत के लोगो ने एक प्रभत्िसपन्न सविधान सभा म ें अपन े प्रवतवनवधयों के माध्यम से अवधकवथत वकया ु ं ं था। यह सभा अपने दशे के राजनैवतक भविष्य को अिधाररत करने के वलय सक्षम थी। सविधान की ं उद्दवे शका म ें 1976 म ें यथासशोवधत सविधान के ध्येय और उद्दश्े यों को इस प्रकार स्पष्ट वकया गया ह ै “ ं ं हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पण ण प्रभत्िसपन समाजिादी पथ वनरपेक्ष लोकतत्रात्मक गणराज्य ू ु ं ं ं बनाने के वलय, तथा उसके समस्त नागररकों को सामावजक, आवथणक और राजनैवतक न्याय, विचार, अवभव्यवक्त, विश्वास, धम ण और उपासना की स्ितन्त्रता, प्रवतष्ठा और अिसर की समता प्राप्त करने के वलय तथा उन सब म ें व्यवक्त की गररमा और राष्र की एकता और अखडता सवनवश्चत करने िाली बधता बढ़ाने ु ु ं ं के वलय दृढसककप होकर अपनी इस सविधान सभा म ें आज वदनााँक 26-11-1949 ई० को एतद्द द्वारा ं ं इस सविधान को अगीकत,अवधवनयवमत और आत्मावपणत करते ह।ै ये शब्द भारत के लोगों की सिोच्च ृ ं ं प्रभता की घोषणा करते ह ै अथाणत राज्य को वकसी भी विषय पर विधायन करने की शवक्त ह।ै िह वकसी ु राज्य या बवहय शवक्त के वनयत्रण के अधीन नहीं ह।ै ं डॉ भीमराि अम्बेडकर जी ने अपने सविधान सभा म ें अपने समापन भाषण में कहा था “ यवद ं राजनीवतक लोकतत्र का आधार सामावजक लोकतत्र नहीं ह ै तो िह नष्ट हो जायगा। सामावजक लोकतत्र ं ं ं का अथण िह जीिन पिवत ह ै जो स्ितन्त्रता,समानता और बधता को मान्यता दते ी ह,ै वजसम े ये दोनों ु ं अलग-अलग न मानें जाकर वत्रमवतण के रूप म ें जाने जाते ह।ै इस अथण म ें हम एक दसरे को एक दसरे स े ू ु ु अलग नहीं कर सकते ह।ै ” सविधान के द्वारा भारत के सभी िगों के बच्चों के वलय वशक्षा की व्यिस्था ं सविधान म ें की गयी ह।ै वजनके आधार पर वशक्षा सभी के वलय सलभ होगी। वशक्षा प्रदान करने म ें राज्य ु ं वकसी प्रकार का भदे भाि नहीं कर सकता है। लेवकन राज्य अनसवचत जावत/अनसवचत जनजावत के ु ू ु ू बच्चों के वलय प्राथवमक वशक्षा से लेकर उच्च वशक्षा तक वनशकक प्रदान करेगा। इसके अवतररक्त िह इन ु िगों (अनसवचत जावत/अनसवचत जनजावत) के अवभभािकों की आय को जाने वबना के सभी बालकों ु ू ु ू के वलय छात्रिवतया भी प्रदान करना राज्य का आिश्यक कतणव्य होगा। तभी सच्चे लोकतत्र की स्थापना ृ ं ं हो सकती ह।ै 4.2 उद्दश्े य 1. स्ितत्रता एि वशक्षा के सम्बन्ध म ें अध्ययन कर सके ग ें ं ं 2. समानता का अवधकार एि वशक्षा के सम्बन्ध म ें अध्ययन कर सके ग ें ं 3. न्याय व्यिस्था, िन्धत्िता एि वशक्षा के सम्बन्ध म ें अध्ययन कर सके ग ें ु ं 4. वशक्षा का सािभण ौमीकरण के सम्बन्ध म ें अध्ययन कर सके ग ें 5. आपाँ रेशन ब्लेक बोडण योजना के सम्बन्ध म ें अध्ययन कर सके ग ें उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 105 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.3 स्वतत्रं ता ंवं वशक्षा (Freedom and Education) सविधान म ें यह वनदशे वदया गया ह ै वक प्रत्येक राज्य भाषाई, अकपसख्यक िगों के बालकों को वशक्षा के ं ं प्राथवमक स्तर पर मात्रभाषा म ें वशक्षा की पयाणप्त सविधाओ की व्यिस्था करने का प्रयास करेगा और ु ं राष्रपवत को यह शवक्त दी गयी ह ै वक िह इस वनवमतण राज्य को उवचत वनदशे दे। राज्य द्वारा पोवषत या राज्य वनवध से सहायता पाने िाली वकसी वशक्षा सस्था म ें प्रिशे प्रिशे से वकसी भी नागररक को के िल ं धम,ण मलिश, जावत, भाषा या इनम े से वकसी के आधार पर वशक्षा से िवचत नहीं वकया जायगा ू ं ं (अनच्छेद 29(2))। इसका अथण यह हआ वकसी नागररक के विप ि राज्य द्वारा वित्तपोवषत या सहायता ु ु पाने िाली वकसी वशक्षा सस्था म ें प्रिशे के विषय म ें धम,ण मलिश, जावत, भाषा के आधार पर कोई विभदे ू ं ं नहीं जा सकता। 4.3.1 अनसशचत जाशतयों और जनजाशतयों के शलय शिक्षा व शविेष उपबध ु ू ं सविधान म ें अनसवचत जावतयों और जनजावतयों के वहतों की सरक्षा के वलय विशेष उपबध वकए गए ह ै ु ू ु ं ं जसै े अनसवचत जावतयों और जनजावतयों की उन्नवत के वलय वकय गए उपबधों पर (अनच्छेद 15(4)) ु ू ु ं अनच्छेद 15 म ें अन्तवव्रष्ट मलिश और इसी प्रकार के अन्य आधारों पर विभदे करने के विप ि साधारण ु ू ं प्रवतबन्ध लाग नहीं होता ह ै । इसका अथण यह हआ वक यवद राज्य इन जावतयों और जनजावतयों के सदस्यों ु ू के पक्ष म ें विशषे उपबध वकए जाते ह ै तो अन्य नागररक ऐसे उपबधों वक विवधमान्यता पर इस आधार पर ं ं आक्षेप नहीं लगा सकते ह ै वक ि े उनके विप ि विभधे कारी है। दसरी ओर भारत के राज्यक्षेत्र म ें अबाध ू सचरण ओर वनिास करने का अवधकार प्रत्येक नागररक को प्राप्त ह ै लेवकन अनसवचत जावतयों और ु ू ं जनजावतयों के सदस्यों की दशा म ें राज्य उनके वहतों की सरक्षा के वलय विशषे वनबणन्धन अवधरोवपत कर ु सकता ह।ै उदाहरण के वलय उनकी सम्पवत के अन्यसक्रामण या विभाजन को रोकने के वलय िह उपबध ं ं कर सकता ह।ै अनच्छेद 46 म ें यह वनदेश ह ै वक राज्य जनता के दबणल िगों के , विवशष्टतया अनसवचतजावतयों और ु ु ू ु अनसवचत जनजावतयों के वशक्षा और अथण सम्बन्धी वहतों की विशषे सािधानी से अवभिवि करेगा। ृ ु सामावजक अन्याय और सभी प्रकार से रक्षा करेगा। सविधान के अनसार भारत म ें इन जावतयों की वशक्षा ु ं के वलय राज्य सरकार विशषे प्रािधान करेगी। उनके वलय सभी स्तर वक वशक्षा (प्राथवमक से उच्च,तकनीवक आवद) के वलय जावत के आधार पर वशक्षा वक व्यिस्था राज्य सरकार वक वजम्मदें ारी होगी। क्योवक इन िगों को अभी विकास के ऊपरी पायदान तक लाने के वलय वबना वकसी भदे भाि या आय को ध्यान म ें रख े वबना अपने स्तर से सभी प्रयास करने होग े तभी भारत एक विकास वक ओर बढ़त े हये कदम की ओर उन्मख होगा। क्योवक सभी िगों वक वशक्षा के साथ इनके वलय विशेष स्कल, सस्थान ु ु ू ं ि वनशकक प्रवशक्षण के न्र स्थावपत करने होग े । वजन सस्थानों म ें अभी तक इन िगों के बालक नौकरी प्राप्त ु ं नहीं कर पाय े ह ै िहा ाँ के सरकारों को विशषे प्रयास करन े होगे। क्योवक इन िगों वक वशक्षा पर विशषे बल वदया जाना आिश्यक ह।ै जब तक ये िग ण विकास वक धारा म ें सही रूप म ें नहीं आ जाते ह ै तब तक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 106 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सरकार द्वारा इन्ह े वशक्षण सस्थाओ ि नौकररयों म ें आरक्षण ि प्रमोशन म ें आरक्षण का लाभ वदया जाना ं ं चावहय। क्योवक आज भी इन िगों का सभी क्षेत्रों म ें भागीदारी जनसाँख्या के आधार पर पण ण नहीं हयी ह।ै ु ू अवधकतर विभागों म ें इनके पदों को ररक्त रखा जाता है। इस पर सरकार का ध्यान आकवषतण होना चावहय। तभी सही अथो म ें स्िन्त्रता होगी। 4.4 ममानता का अवधकार ंवं वशक्षा (Education and Right of Equality) समानता का अवधकार एक महत्िपण ण अवधकार ह ै जो सविधान के भाग तीन म ें अनच्छेद ू ु ं 14,15,16,17, और 18 द्वारा प्रदान वकए गए ह।ै विवध के समक्ष समान समानता और विवधयों का समान सरक्षण - ये दोनों पद राज्य द्वारा समान व्यिहार का सककपना की सचरना करते ह ै और विभदे का ं ं ं प्रवतषधे करते ह ै ।विश्व के वकसी अन्य सिधै ावनक दस्तािेज ने समानता के अवधकार का उतने प्रकार से ं वनरूपण नहीं वकया ह ै वजतना वक भारतीय सविधान न े वकया ह ै ।विश्व म ें जहा ाँ वक सामावजक, आवथणक, ं और राजनैवतक असमानताए ाँ भरी पड़ी ह,ै समानता के मल अवधकार का सहारा कभी विभदे को रोकने के ू वलय वकया जाता ह ै तो कभी विभदे को मान्य ठहरानें के वलय। विवधयों का समान सरक्षण का अथण ह ै वक समान पररवस्थवतयों िाले व्यवक्तयों को समान विवधयों के ं अधीन रखना तथा समान रूप से लाग करना चाह े ि े विशषे ावधकार हो या दावयत्ि हो। इस पदािली का ू वनदशे ह ै वक समान पाररवस्थवत िाले व्यवक्तयों म ें कोई विभदे नहीं करना चावहय और उन पर एक ही विवध लाग करनी चावहय अथाणत यवद विधान वक विषय िस्त समान ह ै तो विवध भी एक ही तरह वक होनी ू ु चावहय न वक असमानों के साथ समान विवध लाग करना चावहय। राष्रपवत से लेकर देश का वनधणन व्यवक्त ु समान विवध के अधीन ह ै और वबना औवचत्य के वकसी कत्य के वलय समान रूप से उत्तरदायी ह।ै इस ृ सम्बन्ध म ें सरकारी अवधकाररयों और साधारण नागररकों म ें विभदे नहीं वकया जा सकता ह।ै 4.4.1 सशवधान में समानता के सम्बन्ध में प्रावधान ं i. कानन के समक्ष समानता - अनच्छेद 14 गारटी दते ा ह ै वक सभी नागररकों को समान रूप से ू ु ं दशे के कानन द्वारा सरवक्षत वकया जायगा। इसका अथण यह हआ वक राज्य जावत, पथ, रग, वलग, ु ू ं ं ं ं धम ण या जन्म के आधार पर भारतीयों नागररकों से कोई भदे भाि नहीं कर सकते ह।ै िह वकसी भी वशक्षा सस्था म ें प्रिशे ि ं अध्ययन के वलय स्ितत्र ह।ै ं ii. सामाशजक समानता और साविजशनक क्षेत्रों के बराबर के उपयोर् का अशधकार - सविधान का अनच्छेद 15 यह अवधकार प्रदान करता ह ै वक वकसी भी व्यवक्त से जावत, भाषा, ु ं रग आवद के आधार पर भदे भाि नहीं वकया जा सकता ह ै । प्रत्येक व्यवक्त को सािणजवनक पाको, ं सग्रहालयों, कओ जसै े सािजण वनक स्थानों के बराबर का अवधकार ह।ै यदवप राज्य मवहलाओ ु ं ं ं ,अनसवचत जावत , जनजावत के विकास के वलय विशषे उपबध कर सकता ह।ै इस प्रकार सभी ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 107 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं व्यवक्तओ का ध्यान रखना राज्य वक वजम्मदे ारीं होगी। उनकी वशक्षा ि सामावजक स्तर को बढ़ाने ं के वलय राज्य को विशषे छट का भी प्रािधान वकया जायगा। ु iii. सामाशजक रोजर्ार के मामलों में समानता का अशधकार- सविधान का अनच्छेद 16 ु ं यह अवधकार प्रदान करता ह ै वक सभी नागररक सरकारी नौकररयों के वलय आिदे न कर सकते ह।ै लेवकन राज्य वपछडे िग,ण अनसवचत जावत, अनसवचत जनजावत िग ण ि समाज के कमजोर ु ू ु ू िगों को आग े लाने के वलय पद आरवक्षत कर सकता ह ै । क्योवक इन िगों की आवथणक वस्थवत कमजोर होती ह ै ि े वशक्षा का खचण उठाने म ें सक्षम नहीं होते ह।ै अध्यापकों द्वारा भी इन िगों के साथ भदे भाि वकया जाता ह ै वजसके कारण आतररक परीक्षा म ें इनको कम अक प्रदान वकए ं ं जाते ह।ै अत: इनको अको ि मरे रट म ें छट प्रदान करना सामावजक विकास के वलय आिश्यक ु ं ह।ै iv. अस्पश्यता का उन्मलन- सविधान का अनच्छेद 17 के अनसार अस्पश्यता को बढ़ािा दने ा ृ ृ ू ु ु ं दडनीय अपराध ह ै । वकसी भी वशक्षा सस्थान, पजा स्थल, सामावजक स्थल या ऐसे स्थान पर ू ं ं जाने से रोकने पर कानन द्वारा दवडत वकया जायगा। विधालयों, कॉलेज, सस्थानों म ें जावत के ू ं ं आधार पर वकसी भी प्रकार का वनषधे ह।ै इनके साथ सम्मानजनक तरीका ही अपनाया जाना चावहय। साथी, अध्यापकों, प्रशासवनकों के द्वारा वकसी भी प्रकार भी वभभदे या जावत सचक ू शब्दों का प्रयोग नहीं वकया सकता ह।ै न ही इनको वशक्षा स े पढ़न े वक वलय रोका जा सकता ह।ै बवकक सभी को एक साथ रहना, उठना, बैठना, खाना, बस या रेन में वकसी भी प्रकार का भदे वकया जा सकता ह।ै v. उपाशधयों का उन्नमलन- सविधान का अनच्छेद 18 के अनसार भारत के नागररक विदशे ी ू ु ु ं राज्य स े वकसी भी प्रकार वक उपावध स्िीकार नहीं कर सकते ह ै पहल े वब्रवटश सरकार द्वारा राय बहादर, खान बहादर की उपावध प्रदान कर एक अवभजात्य िग ण बनाया जाता था। यदवप सन्ै य ि ु ु शवै क्षक उपावधयााँ प्रदान वक जा सकती ह।ै भारत रत्न और पद्दम विभषण परस्कार एक उपावध ू ु के रूप म ें प्राप्तकताण के रूप म ें उपयोग म ें स्िीकार नहीं वकया जा सकता। vi. शियों और बालकों के पक्ष में शविेष उपबध - सविधान का अनच्छेद 15(3) के अनसार ु ु ं ं मवहलाओ ि बालकों के वलय विशषे उपबध करने से वनिाररत नहीं करेगी। ससद ने मवहलाओ ं ं ं ं के वलय सन 1990 म ें राष्रीय मवहला आयोग का वनमाणण वकया ह ै जो मवहलाओ के वहतों वक ् ं रक्षा करेगा। साथ ही वशक्षा के विकास ि उनकी उन्नवत में आने िाली बाधाओ को दर करेगा। ं ू बालको की वशक्षा वक व्यिस्था वक भी वजम्मदे ारीं राज्य की ह ै । आधवनक वशक्षा प्रदान करने, ु रोजगारपरक वशक्षा प्रदान करना भी राज्य सरकार का दावयत्ि ह।ै vii. आरक्षर्- भारतीय सविधान वनमाणतों ने सविधान म ें अनसवचत जावतयों ि जनजावतयों के ु ू ं ं वलय नौकररयों म ें आरक्षण का प्रािधान वकया ह।ै इसके वलय राज्यों को सामावजक और शवै क्षक रूप से वपछड़े िग,ण अनसवचत जावतयों ि जनजावतयों के वलय की उन्नवत के वलय विशेष ु ू प्रािधान बनाने के वलय सशक्त वकया जाना आिश्यक था। साथ ही वनजी क्षेत्र म ें अनसवचत ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 108 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं जावतयों ि जनजावतयों के व्यवक्तयों के वलय रोजगार से इनकार नहीं वकया जा सकता ह।ै सरकार को अनसवचत जावतयों ि जनजावतयों के वलय वनजी क्षेत्र म ें आरक्षण लाग करने के वलय ससद म ें ु ू ू ं कानन लाग करना होगा , तभी समाज म ें सामवजक समानता को लाया जा सकता ह ै । क्योवक ू ू आरक्षण का लाभ अभी इन समाज के एक छोटे से प्रवतशत तक ही पहचाँ पाया ह।ै यदवप ु आरक्षण का 50% से अवधक नहीं वकया जा सकता ह ै लेवकन विशषे पररस्थवतयों म ें िह दर- ू दराज के राज्यों म ें जहााँ विवशष्ट पररवस्थवतयााँ ह ै िहााँ पर आरक्षण अवधक वकया जा सकता ह ै । आज सामावजक वपछडापन को दर करने ि सामावजक समानता को बढ़ाने के वलय यह बहत ही ु ू आिश्यक ह।ै viii. समान कायि के शलय समान वेतन - सविधान का अनच्छेद 14 समान कायण के वलय समान ु ं िते न का प्रािधान करता ह।ै यवद वबना यवक्तयक्त आधार के दो कमचण ाररयों के बीच इस आधार ु ु पर विभदे वकया जाता ह ै तो यह अनच्छेद 14 उकलघन होगा। समान कायण के वलय समान िते न ु ं सभी व्यवक्तयों पर लाग होगा। सरकारी सहायता प्राप्त और गरै सरकारी सहायता प्राप्त ू अकपसख्यक स्कलों के अध्यापकों के िते न अन्य सेिा शतों म ें यह विभदे नहीं वकया जा सकता ू ं ह ै । यह वसिान्त दवै नक मजदरी पर कायण करने िाले व्यवक्तयों पर भी लाग होता ह।ै इसम े मवहला, ु ू अनसवचत जावत , जनजावत के व्यवक्तयों के िते न को अन्य व्यवक्तयों से कम नहीं जा सकता ह।ै ु ू बवकक इन िगों के िेतन म ें वकसी अन्य प्रकार की कटोती नहीं जा सकती ह ै जो अन्य व्यवक्तयों के िते न से नहीं की जा रही हो। उपरोक्त त्यों के आधार पर हम कह सकते ह ै वक स्ित्रता ि समानता दोनों को समाज के सभी ं व्यवक्तयों पर लाग वकया जाना होगा तभी स्ित्रता ि समानता का सही अथण समझ पाएगें। जब तक ु ं समानता का व्यिहार नहीं होगा तब तक समाज सही रूप म ें अपना विकास नहीं कर पायगा। वबना वकसी भदे भाि के सभी के वलय वशक्षा के प्रािधान वकए जाए । अनसवचत जावत, जनजावत के ु ू बालकों के वलय वशक्षा के वलय विशषे प्रािधान वकए जाने चावहए। उनके वलय छात्रिवतयों वक ृ व्यिस्था प्राथवमक से लेकर उच्च स्तर तक प्रदान वक जानी चावहय। क्योवक वशक्षा का विकास वकए वबना हम उच्च स्तर को प्राप्त नहीं कर सकते ह।ै वशक्षा प्राप्त करने के वलय प्रयास वनरतर वकए जाते ं रहने चावहए। आज वशक्षा के द्वार सभी आय िग ण के व्यवक्तयों के वलय खले हये ह।ै आज दरस्थ वशक्षा ु ु ु ू के माध्यम से हम अपन े प्रोफे सन म ें वनरन्तर उन्नवत्त कर सकते ह।ै वबना वकसी विद्यालय या कॉलेज में उपवस्थत हय हम अपनी परीक्षा जारी रख सकते ह,ै हम ें प्रिशे ि परीक्षा के समय म ें परीक्षा के न्द म ें ु जाना होगा । यवद आप इस देश ि अपना विकास करना चाहते ह ै तो आपको वनरतर वशक्षा के वलय ं प्रयास करते रहना चावहय। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 109 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अभ्यास प्रश्न 1. वकसी भी नागररक को वकस अनच्छेद के अन्तरगत के िल धम,ण मलिश, जावत, भाषा के आधार ु ू ं पर वशक्षा से िवचत नहीं वकया जायगा? ं 2. अस्पश्यता का उन्मलन सविधान के वकस अनच्छेद से सम्बवधत ह?ै ृ ू ु ं ं 4.5 न्याय व्यवस्था ंवं वशक्षा (Justice System and Education) न्याय का अथ ण उन सभी मान्यताओ तथा प्रवतवक्रयायों से माना जाता ह ै वजनके माध्यम से प्रत्येक व्यवक्त ं को िह सभी अवधकार तथा सविधाय प्रदान की जाती ह ै । वजन्ह ें समाज के द्वारा स्िीकवत प्रदान की जाती ृ ु ं ह।ै वकसी भी दशे की उन्नवत उस दशे की न्याय व्यिस्था आधाररत होती है।न्याय
के आधारों पर ही राज्य नागररकों म ें सामावजकता ि सिाणगीण विकास की बात की जा सकती है। न्यायालय को सविधान के ं सरक्षक की सज्ञा प्रदान की गयी ह ै सविधान का अनच्छेद 13 न्यायालयों क
ो न्यावयक पनविलण ोकन की ु ु ं ं ं शवक्त प्रदान की गयी। वजस शवक्त के माध्यम से उच्चत्तम न्यायालय अनच्छेद 32 एि उच्च न्यायालय ु ं अनच्छेद 226 विधान मडलों द्वारा पाररत वकसी विवध की सविधान की दृवष्ट से समीक्षा करके उस े ु ं ं असिधैं ावनक भी घोवषत कर सकता ह।ै भारतीय सविधान द्वारा एक लोकककयाणकारी राज्य की स्थापना ं की गयी ह।ै वजसके अतगतण प्रत्येक नागररक को मलभत सविधाए उपलब्ध करिाना सरकार का प्रथम ू ू ु ं ं कतणव्य ह,ै परन्त विधावयका और कायणपावलका द्वारा अपना यह कतणव्य ठीक से न वनभा पाने के कारण ु न्यायालय जनवहत के मामलों म ें सरकार और प्रावधकाररयों को सविधान के अनसार कायण करने के वलय ु ं वििश करेगा। भारत म ें न्यायपावलका, विधावयका एि कायणपावलका म ें शवक्त प्रथाक्करण वसिात को ं ं अपनाया गया ह ै । राष्रपवत को न्यावयक काय ण करने के वलय अनच्छेद 72 के अधीन क्षमादान की शवक्त ु भी प्राप्त ह ै िही अनच्छेद 123 के अतगतण अध्यादशे की शवक्त प्राप्त ह ै । ु ं जब ितणमान विधावयका दशे की मौजदा समस्यायों का सामना करने म ें असफल होती ह ै ऐसे म ें ू न्यायपावलका का कतणव्य होता ह ै वक िह स्िम सामने आये और समस्याओ को हल करने का रास्ता ं ं वनकाले। सामावजक बदलािों म ें न्यावयक सवक्रयता की महत्िपण ण भवमका होती ह ै यवद कोई व्यवक्त या ू ू समाज का िग,ण वजसको विवधक क्षवत पहचायी गयी ह ै या विवधक अवधकारों का अवतक्रमण हआ ह,ै ु ु ं अपने वनधणनता के कारण या वकसी अन्य कारण से न्यायालय जाने म ें असमथण ह ै तो समाज का कोई भी व्यवक्त न्यायालय जा सकता ह।ै उच्चतम न्यायालय ने 21 मई 2007 को अपने एक महत्िपण ण वनणयण ू के रल विश्वविद्यालय बनाम कौंवसल वप्रवसपल आफ कालेजज के रल एि अन्य म ें दशे वक वशक्षण ं ं सस्
थानो म ें रैवगग पर रोक लगा दी। सरकार को इस मामले म ें विवध बनाने का वनदशे वदया। ं न्यावयक व्यिस्था न के िल सविधान वक रक्षा करती ह ै बवकक िह वशक्षा सस्थाओ को समय समय पर ् ं ं ं छात्रों के वहतों के वलय भी कदम भी उठाता रहता है। वजससे हम अपनी वशक्षा को ठीक प्रकार से प्राप्त करते रहते ह।ै भ्रष्टाचारी सरकारों, प्रबधकों पर नके ल के रूप म ें काम करता ह।ै न्यायालय के भय से ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय
110 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सस्थान छात्रों से मोटी फीस नहीं ले पाते ह।ै न ही फजी वडग्री प्रदान करते ह।ै इससे समाज के सभी ं व्यवक्तयों को न्याय व्यिस्था पर परा भरोसा ह।ै वजससे हमारी वशक्षा व्यिस्था सचारू रूप से सचावलत हो ू ु ं रही ह ै । 4.5.1 वन्धत्वता (Fraternity) ु सविधान के द्वारा सभी नागररको को समान अवधकार प्रदान वकए गए ह ै वजनके आधार पर समाज के ं सभी व्यवक्त अपने अवधकारों ि कतणव्यों का प्रयोग करते हए आपस म ें भाईचारा बनाकर रहगे ।े समाज म ें ु यह व्यिस्था करनी होगी वक समाज समतामलक तथा मानितामलक समाज वजसम े कमजोर का शोषण ू ु न हो। वमत्रता यााँ दोस्ती बराबर िालों के साथ होती ह ै यवद आप बड़ों के साथ सम्बन्ध बनाने चहाते ह ै तो वशक्षा के माध्यम से ही भाईचारा पैदा वकया जा सकता ह ै । वशक्षा का अवधकार एक मौवलक अवधकार ह ै व्यवक्त को इस अवधकार से जावत, रग, धम,ण प्रजावत आवद के आधार पर िवचत नहीं वकया जाना चावहय। ं ं व्यवक्त को सामावजक, आवथणक, उन्नवत के वलय अवधक से अवधक व्यवक्तयों को उत्तम वशक्षा वक आिश्यकता ह।ै क्योवक वशक्षा ही िह सीढ़ी ह ै वजस पर चढ़कर व्यवक्त अपने आवथणक स्तर को उच्च बना सकता ह ै । के िल शवै क्षक अिसर बढ़ाने से कायण नहीं चलता ह ै िरन उसकरे समान वितरण से ही िावस्तिकता यााँ सामावजक न्याय को
प्राप्त वकया जा सकता ह।ै आज वशक्षा के अिसरों को प्राप्त करने के वलय सभी दशे ों म ें माग की जा रही ह।ै यवद िन्धत्िता वक भािना को बढ़ाना ह ै तो वशक्षा के द्वार
सभी ु ं स्तर के व्यवक्तयों के वलय खोलने होगें। अभ्यास प्रश्न 3. उच्चत्तम न्यायालयों को न्यावयक पनविलण ोकन की शवक्त वकस अनच्छेद द्वारा प्रदान की गयी? ु ु 4. उच्च न्यायालय विधान मडलों द्वारा पाररत वकसी विवध को सविधान की दृवष्ट से समीक्षा करके ं ं उसे वकस अनच्छेद के अन्तरगत असिधैं ावनक भी घोवषत कर सकता ह?ै ु 5. न्यावयक कायण करने के वलय अनच्छेद 72 के अधीन क्षमादान की शवक्त भी वकसे प्राप्त ह?ै ु 4.6 वशक्षा का मावणभौमीकरण (Universalization of Education) भारतीय सविधानवनमाणताओ ने दशे की वशक्षा व्यिस्था पर अपनी नजर बनाये रखी, इसी कारण उन्होंन े ं ं सविधान का प्रारूप तैयार करते समय वनशकक एि अवनिायण वशक्षा को राज्य का एक नीवत वनदशे क ु ं ं वसिान्त घोवषत वकया । वक राज्य इस सविधान के लाग वकए जाने के समय से दस िष ण के अन्दर सब ू ं बच्चों के वलय, जब तक ि े 14 िष ण की आय पण ण नहीं कर लेग,ें वनशकक एि अवनिायण वशक्षा प्रदान ु ू ु ं करने की चेष्टा करेगा । क्योवक लोकत्रत्र के सफल सचालन के वलय वशवक्षत ि प्रिि नागररको की ु ं ं आिश्यकता ह ै । सभी लोक्त्रन्तीय दशे ों म ें प्राथवमक वशक्षा वनशकक ि अवनिायण की गयी ह।ै अनेक दशे ों ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 111 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं म ें समाज के वनबणल िगों के वलय उच्च वशक्षा तक वनशकक प्रदान वकए जाने का प्रािधान वकए गए ह।ै ु लोक्त्रन्तीय दशे ों म ें प्रत्येक व्यवक्तयों को वशक्षा प्रदान करना आिश्यक ह ै । जब भारत सन 1947 म ें ् आजाद हआ था तब भारत की 85% जन्सख्यााँ वनरक्षर थी । इस वस्थवत को दखे ते हये सविधान ु ु ं वनमाणताओ ने राज्य को 14 िष ण तक के सभी बालको के वनशकक ि अवनिायण वशक्षा की व्यिस्था की ु ं गयी। लेवकन यह अवभयान सफल नहीं हआ क्योवक जन्सख्यााँ म ें वनरन्तर िवध हो रही थी। कमजोर िगों ु ृ के पास धनका अभाि था ि े अपने बालको को सरक्षा के वहसाब से दर नहीं भजे ना चाहतें थे। क्योवक ु ू विधालय एक विशषे िग ण के क्षेत्र म ें बने हये थे। य े विशषे िग ण दसरे की बावलकों को सही दृवष्ट से नहीं ु ु दखे ते थे । लेवकन भारत सरकार वशक्षा के विकास के वलय अनेक योजनाओ को चलाया, इसम े ं सिवण शक्षा अवभयान ने वशक्षा के विकास ने महत्तिपण ण भवमका वनभाई। यह अवभयान िष ण 2000 से ू ू 2005 तक चलाया गया। इसके द्वारा प्राथवमक स्कल प्रत्येक एक वकलोमीटर की दरी पर स्थावपत वकए ू ू गए , तथा जवनयर स्कलों को प्रत्येक तीन वकलोमीटर की दरी पर स्थावपत वकया गया। प्रत्येक विद्यालय में ू ू ू दो अध्यापक की व्यिस्था अवनिायण की गयी। सरकार न े
स्थानीय यिकों को वशक्षावमत्र के नाम से वनयवक्त ु ु प्रदान की। इन्होने बालकों को अपना गााँि ि अपना मानकर वशक्षा के विकास को हिा प्रदान की । सरकार ने आपरेशन ब्लेक बोडण के नाम स
े प्रत्येक विद्यालय म ें दो अध्यापक के साथ बालकों के वलय दो कमरें ि टाट पट्टी की व्यिस्था की । के न्र सरकार से सहयोग से बावलकाओ के वलय अलग शोचालय की ं व्यिस्था की गयी, विद्यालय म ें मवहलााँ वशक्षकों की भारती की गयी। वशक्षा के विकास म ें तेजी लेन के वलए भारत सरकार ने प्रत्येक राज्यों को वनदशे वदये की वशक्षकों की पवतण के वलय बी० एड० प्रवशवक्षत ू को छ: महा का प्रवशक्षण प्रदान कर प्राथवमक स्कलों म ें वशक्षकों की तैनाती की गयी। एक लाख वशक्षक ू उत्तरप्रदशे म ें ही भरती वकए गए । सरकार के इस प्रयास से प्राथवमक वशक्षा का विकास तेजी से होने लगा। 9 निम्बर सन 2000 को एक नए राज्य के रूप उत्तराखण्ड की स्थापना की गयी। उत्तराखण्ड ने सबसे ् पहले वशक्षा के विकास के वलय प्रयास वकए गए , यवद देखा जाए तो के रल के बाद उत्तराखण्ड वशक्षा के विकास के वलय दसरा राज्य बना। ू 4.6.1 शिक्षा के साविभौशमकरर् हेत सरकार प्रयास (Some Steps for Globalization by ु Government) भारत सरकार ि राज्य सरकार द्वारा वशक्षा के विकास हते कछ ठोस नीवतयााँ बनाई गई वजनके आधार पर ु ु वशक्षा वक वस्थवत म ें बहत सधार हआ ह ै । इनम े से कछ प्रमख वनम्नवलवखत ह ै । ु ु ु ु ु 1. सविशिक्षा अशभयान (एस०एस०ए०)- प्राथवमक वशक्षा सभी को प्रदान करने के वलय भारत में सिवण शक्षा अवभयान ने एक ऐवतहावसक पहल की, यह कायक्रण म राज्यों के सहयोग से चलाया गया। वजसके अन्तरगत दशे की प्राथवमक वशक्षा क्षेत्र की चनौवतयों का सामना करने हते िषण 2001 स े ु ु 2010 तक के सभी बच्चों को उपयोगी एि स्तरीय वशक्षा उपलब्ध प्रदान करना था । इस कायणक्रम ं की विशषे तया इस प्रकार ह।ै i. वशक्षा के समान अिसर को बढ़ािा दने े हते वशक्षक जागप कता कायणक्रम । ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 112 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ii. 50% मवहला वशक्षकों की वनयवक्त की गयी। ु iii. बावलकाओ पर विशेषत: अनसवचत जावत/ जनजावत और अकपसख्यक िग ण की ु ू ं बावलकाओ पर विशेष ध्यान। ं iv. विद्यालय छोड़कर जा चकी बावलकाओ को िापस लाने हते अवभयान चलाना। ु ु ं v. लड़वकयों के वलय वनशकक पाठय पस्तके । ् ु ु vi. बावलकाओ हते विशषे प्रवशक्षण (कोवचग) और तैयारी कक्षाओ का आयोजन और ु ं ं ं सीखने के वलय सौहादपण ण ण िातािरण बनाना। ू 2. शजला प्राथशमक शिक्षा कायिक्रम (सीपीईपी)- इस योजना का प्रमख बल बावलकाओ, ु ं अनसवचत जावत, जनजावत, कामकाजी, शहरी िवचत बच्चों , इन्क्लग आवद की वशक्षा के वलय ु ू ं ं विशेष सहयोग उपलब्ध कराना ह ै । बावलकाओ एि अनसवचत जावत/ जनजावत के वलय विशेष ु ू ं ं रणनीवतयााँ ह,ै तथावप इन समहों को शावमल करने के वलय समवे कत रूप से िावस्तिक लक्ष्य भी ू वनधाणररत वकए गए ह ै । डी०पी०ई०पी० वजलों के स्कलों म ें 60% से अवधक बच्चे अनसवचत ू ु ू जावत/ जनजावत से सम्बवधत ह।ै ं 3. मशहला समाख्या (एम.एस.) – मवहला समाख्या शवै क्षक पहचाँ एि उपलवब्ध के क्षेत्र म ें लैवगक ु ं अन्तर का वनराकरण करती ह।ै इसम े मवहलाओ को ऐसे सशवक्तकरण के योग्य बनाना शावमल ह।ै ं तावक ि े अलग-अलग पड़ने और आत्मविश्वास की कमी जसै े समस्यायों से जझ सके ि उनका ू डटकर मकाबला कर सके । और ि े अपने आत्मसम्मान ि अपनी सरक्षा के वलय स्िम तैयार हो सके । ु ु ं 4. कस्तरबा र्ााँधी बाशलका शवधालय – कस्तरबा गााँधी बावलका विद्यालय योजना के अतगतण ू ू ं मख्य रूप से प्राथवमक स्तर पर अनसवचत जावत/ अनसवचत जनजावत, अन्य वपछड़े िग ण और ु ु ू ु ू अकपसख्यक िगण की बावलकाओ के वलय दगमण क्षेत्रों म ें आिासीय सविधाओ के साथ 750 ु ं ं ं ु विद्यालय खोले गए । यह योजना शवै क्षक रूप से वपछड़े हए के िल ऐसे विकास खडों में लाग की ु ू ं जायगी, जहााँ िष ण 2001 की जनगणना के अनसार मवहला साक्षरता की दर राष्रीय स्तर से कम ु और राष्रीय औसत से ज्यादा ह।ै 5. िोपहर का भोजन योजना- भारत सरकार द्वारा वशक्षा के विकास हते दोपहर भोजन योजना शरू ु ु की गयी। यह एक प्रेरणाप्रद कायणक्रम था। इससे दशे के सरकारी, स्थानीय वनकायण और सरकार स े मान्यता प्राप्त स्कलों के प्राथवमक स्तर के बच्चों को शावमल वकया जाता ह।ै इस कायणक्रम का मख्य ू ु उद्दश्े य स्कलों म ें विद्यावथणयों का नामाकन और उपवस्थवत को बढ़ािा दने ा था। इसके अलािा बच्चों ू ं को पोषणयक्त भोजन प्रदान कर उनको स्िस्थ बनाना था। ु 6. के न्रीय शवद्यालय सघठन (के .वी.एस.) – इसम ें नये छात्रों के दावखले म ें क्रमश: 15% एि 7.5% ं ं सीटें अनसवचत जावत/ जनजावत के छात्रों के वलय आरवक्षत ह।ै इन िगों के छात्रों से 12िी. कक्षा ु ू तक वकसी भी प्रकार का वशक्षण शकक नहीं वलया जाता । इससे इन िगों के बालको ने वशक्षा के प्रवत ु रूवच वदखाई, लेवकन इन िगों के वलय अभी सधार की बहत आिश्यकता ह।ै आज भी अनेक ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 113 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अवभभािक इन म ें प्रिशे प्रवक्रया को नहीं जानते थे। इसके वलय भी विशषे अवभयान चलाकर उनके बच्चों को वशक्षा प्रदान करनी चावहय। 7. नवोिय शवद्यालय सघटन(एन.वी.एस.) – वशक्षा के विकास हते निोदय विद्यालय की स्थापना ु ं की गयी। तावक गााँि के होनहार बच्चों को अच्छी वशक्षा प्राप्त हो सके । इसके वलय सरकारी स्कलों में ू अध्ययन करने िाले बच्चों से भरिाये जातें ह।ै कक्षा पाच म ें अध्ययनरत छात्रों से भरिाए जाते ह।ै ं प्रिशे परीक्षा पास करने िाले बालकों को कक्षा 6 म ें प्रिेश वदया जाता ह।ै इसम े अनसवचत जावत ु ू ि जनजावत के बालको के वलय क्रमश: 15 प्रवतशत ि 7.5 प्रवतशत पद आरवक्षत की गयी ह।ै लेवकन जागरूकता ि प्रचार कम होने के कारण इन िगों के बच्चों के द्वारा कम आिदे न वकए जाते ह।ै 8. एस.सी./एस.टी. छात्रों को िल्क में छट – माध्यवमक स्तर पर प्रिशे के समय अनसवचत जावत ि ु ु ु ू जनजावत के छात्रों को शकक प्रदान की जाती ह।ै यह काफी समय तक रही, लेवकन सरकार द्वारा अब ु छट म ें बहत अवधक अतर नहीं रह गया ह।ै यह सविधा एकदम गरीब बच्चों को ही प्रदान की जा रही ु ु ु ं ह ै जबवक होना यह चावहय की अनसवचत जावत ि जनजावत के सभी बच्चों को वशक्षा के प्रत्येक ु ू स्तर पर छट प्रदान की जानी चावहय ह।ै आज भी इन िगों के बालको को सरक्षा ि सविधाओ की ू ु ु ं बहत आिश्यकता ह।ै ु 4.6.2 साविभौशमकरर् के लक्ष्य को प्राप्त करने के शलय उपाय (Measures to Achieve the Target of Universalization) भारत सरकार द्वारा वशक्षा के विकास ि वशक्षा के सािभण ौवमकरण सरकार द्वारा कछ प्रयास वकए गए ह।ै ु जो वनम्नवलवखत ह ै । 1. ऐसे सभी बालक जो वकसी कारण से अभी तक वकसी विद्यालय म ें प्रिशे नहीं ले पाये ह ै उनको पास के वकसी विद्यालय म ें प्रिेश कराया जाए , उनका नामाकन करने की वजम्मदे ारी नजदीक के ं अध्यापको पर डाली गयी ह ै । साथ ही नामाकन म ें आगनबाडी कायणकत्री ि सहायका का भी ं ं सहयोग वलया जाए । वजससे कोई भी बालक प्रिेश से िवचत न रह सके । ं 2. स्िवे च्छक एजवें सयों के माध्यम से प्राथवमक वशक्षा / उच्च प्राथवमक वशक्षा के विकास के वलय स्कल सचावलत करेगी तथ समदाय द्वारा इनका सहयोग वकया जायगा । ू ु ं 3. स्कल चलाने के वलय पात्र एजवें सयों को के न्रीय सहायता दी जायगी। ू 4. अनौपचाररक वशक्षा के न्रों के माध्यम से वशक्षा का विकास वकया जायगा इसम े बालक स े लेकर बजग ण तक अपनी वशक्षा प्राप्त कर सकते ह।ै साथ म ें वशक्षा अनदशे कों के रूप वशक्षकों की ु ु वनयवक्त की जायगी।
सरकार द्वारा उनकों उवचत मानदये प्रदान वकया जायगा। ु 5. खले स्कल (Open School) के साथ अनौपचाररक पाठयक्रमों को जोड़ने का प्रयास वकया ् ु ू जायगा। उच्च वशक्षा प्रदान करने के वलय सरकार द्वार
ा प्रत्येक राज्य म ें मक्त विश्वविद्यालय की ु स्थापन की गयी। वजनम े प्रिशे लेकर वकसी भी उम्र का व्यवक्त अपना अध्ययन जारी रख सकता उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 114 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ह।ै इसम े न तो प्रिशे के समय की कोई सीमा रहती ह ै न ही परीक्षा के समय की। आप अपनी सविधा के अनसार अपनी वशक्षा परी कर सकते ह ै । ु ु ू 6. अनौपचाररक वशक्षा कायणक्रम को सािजण वनक पस्तकालयों, जन-वशक्षण के न्रों क के रूप म ें ु जोड़ा जायगा। 7. प्राथवमक वशक्षा के विकास के के न्रीय स्तर पर राष्रीय शवै क्षक अनसधान तथा प्रवशक्षण ु ं पररषद (NCERT) राज्य स्तर पर राज्य शवै क्षक अनसधान तथा प्रवशक्षण पररषद (SCERT) ु ं तथा वजला स्तर पर वजला वशक्षा एि प्रवशक्षण सस्थान (DIET) के माध्यम से वशक्षकों को ं ं प्रवशक्षण प्रदान वकया जाता ह।ै 8. वशक्षा के सािभण ौवमकरण के वलय पचायत स्तर पर क्लस्टर ररसोसण परसन CRC) एि ब्लाक ं ं स्तर पर बी.आर.सी. की न्यवक्त की गयी ह ै । जो प्राथवमक वशक्षकों के विद्यालय म ें उपवस्थवत ि ु छात्रों के ज्ञान पर भी नजर रखगे ी। 9. छात्रों को दोपहर का भोजन उपलब्ध करने के वलय मध्यान भोजन की व्यिस्था की गयी है। तावक ि े सन्दर, हष्ट-पष्ट बनकर भारत के अच्छें नागररक बन सके । ु ु 10. प्रावथमक स्तर पर अध्यापकों द्वारा वशक्षण कायण नहीं कराया जा रहा ह ै बवकक ि े अपना समय आपसी बातचीत म ें गजर रह े ह।ै यवद उन्ह ें पढान े के वलय कहा जाता तो ि े विभागीय कायण का ु ं बहाना बनाकर अपना पाला झाड़ लेते ह।ै यवद वशक्षा का विकास करना चाहता ह ै तो वशक्षकों ं को स्िम ही वशक्षण के प्रवत अपनी अवभिवत्त को बदलना होगा। ृ ं 11. अनसवचत जावत /जनजावत के प्रत्येक स्कल म ें अध्यापक ि अध्यावपकाओ की न्यवक्त करनी ु ू ू ु ं होगी। आज इस िग ण के व्यवक्त बेरोजगारी के कारण सडको पर घम रह े ह ै । उनकों तत्काल ू के न्रीय ि राज्य सरकार वनयवक्तया प्रदान करे। ु ं 12. वशक्षकों को समय समय पर अवभविन्यास कायणक्रमों म ें भेजा जाना चावहय तावक ि े वशक्षा प्रदान करने म ें अपने को तरोताजा महसस कर सके । उनके अन्दर वशक्षा ि वशक्षावथणयों के प्रवत आदर ू का भाि बढ़ सके । 13. वशक्षक स्िम अपनी वजम्मदे ाररयों को समझ सके ि े वशक्षण कायण के उद्दश्े य न भटके । बवकक ं वशक्षण को अपना धम ण मानकर ईश्वर की अराधना की तरह वशक्षण का कायण करे। तभी वशक्षा समाज म ें अपना सम्मान पन: प्राप्त कर सकता ह।ै ु 4.6.3 आपाँ रेिन ब्लेक बोडि योजना (Operation Black Board Scheme) आपरेशन ब्लैकबोडण योजना अिरोधन को कम करने ि उसम े सधार करने के उद्दश्े य से प्राथवमक स्कलों ु ू म ें सविधाओ म ें सधार करने के वलय िष ण 1987-88 म ें आरम्भ की गयी थी। इस योजना के तीन परस्पर ु ु ं वनणाणयक तत्ि थे। उनम े कछ प्रमख वनम्न प्रकार ह ै । ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 115 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1. प्रत्येक स्कल म ें कम से कम दो वशक्षक हो वजनम े से एक मवहला वशक्षक की व्यिस्था की जानी ू चावहए। तावक बच्चों को विद्यालय म ें भी अपने घर जसै ा िातािरण प्राप्त हो सके । बच्चें विद्यालय म ें रहकर अपने माता वपता जसै े प्यार पा सके । 2. लडकें एि लड़वकयों के वलय अलग अलग शौचघर सविधाओ तथा एक बरामद े सवहत सभी ु ं ं मौसम के वलय उपयक्त कम से कम दो पयाणप्त बड़े कमरों की व्यिस्था । ु 3. छात्रों को सही वशक्षा प्रदान करने के वलय बालकों के वलय चाटण, मॉडल , वखलौनों, आटण ि विज्ञान वकट का प्रयोग वकया जाए । इसके द्वारा छात्रों को ज्ञान प्रदान करने म ें आसानी रहती ह ै तथा बालक ज्ञान को लम्बें समय तक याद रखते ह।ै 4. प्रत्येक विद्यालय म ें टीवचग लवनांग मटेररअल (टी.एल.एम.) की व्यिस्था की जानी चावहए। इसके ं वलय सरकार द्वारा प्रत्येक िषण 5000/ पाच हजार रूपये प्रत्येक विद्यालय को प्रदान वकए जाते ं ह ै । 5. वजन प्राथवमक स्कलों म ें छात्रों की सख्या 100 से अवधक हो जाती ह ै िहााँ तीन वशक्षक और ू ं तीन कक्षा-कक्ष उपलब्ध कराने के वलय इस योजना का विस्तार करना राज्य की वजम्मदे ारी होगी। 6. सातिी योजना म ें वनधाणररत शषे स्कलों को शावमल करने के वलय चल रह े आपरेशन ब्लेक ू बोडण को जार रखना। 7. विशेष रूप से तैयार वकए गए वशक्षक प्रवशक्षण कायणक्रम के तहत वशक्षकों को आपरेशन ब्लेक बोडण वशक्षण सामग्री प्रयोग करने के वलय प्रवशवक्षत वकया जायगा। 8. राज्य सरकारे उपकरनों के टटने पर उनके बदलने का प्रबधान करेगी। तथा वबना विलम्ब वकए ू उनको साम्रगी उपलब्ध करायगी। तावक वशक्षा म ें वकसी प्रकार की बाधा का बहाना न बनाया ं जाय । 9. अपर प्राथवमक स्कलों म ें इस
योजना के कायणक्षेत्र का विस्तार करना –जसै े प्रत्येक कक्षा को कम ू से कम एक कमरा , एक प्रधानाध्यापक सह-कायाणलय कक्ष , लड़वकयों ि लड़कों के प्रथक शौचालय सम्बन्धी सविधाए ाँ , प्रत्येक कक्ष म ें एक अध्यापक अिश्य वशक्षण का कायण करे । ु 10. भारत सरकार द्वारा सभी क्षेत्र म ें विद्यालय की स्थापना करना तावक प्रत्येक
बालक अपने घर के पास ही वशक्षा प्राप्त कर सके । इसके वलय एक वकलोमीटर पर प्राथवमक स्कल ि तीन ू वकलोमीटर पर उच्च प्राथवमक स्कल की व्यिस्था की गयी ह ै । सरकार द्वारा वशक्षा की वस्थवत ु सधारने के वलय ि बालकों की सरक्षा को ध्यान म ें रखते हए चाहर दीिारी की व्यिस्था की गयी ु ु ु ह ै । 11. वशक्षा की गणित्ता को बनाये रखने के वलय उन्ह ें निाचार के माध्यम से बच्चों को आसानी स े ु वशक्षा प्रदान करने ि नई चीजों के बारे म ें सीखने ि सीखाने के वलय प्रयास वकया गया है। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 116 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 12. अपव्यय एि अिरोधन को कम करने आपरेशन ब्लेक बोडण का महत्िपण ण योगदान रहा ह ै । ू ं क्योवक बालक विद्यालय प्रवतवदन आया ह ै तथा अिरोधन को सरकार द्वारा भी कम वकया गया ह ै । अब वकसी भी बालक को कक्षा दस तक पास अिश्य वकया जायगा । 13. वशक्षा के के न्र म ें सभी अवभिािकों के बच्चें अध्ययन करते थे, ि े वनरन्तर वशक्षा व्यिस्था पर ध्यान दते े थे लेवकन आज कलीन िग ण अपने बालकों को प्राइिटे ि कान्िटें स्कलों म ें वशक्षा ु ू प्रदान करा रह े ह ै । वजसके कारण आज अवभभािक स्कलों पर ध्यान नहीं डे पा रह े ह।ै वशक्षा ू प्रदान करना ि कराना हमारा नैवतक अवधकार ि कतणव्य ह।ै अभ्यास प्रश्न 6. निोदय विद्यालय म ें अनसवचत जावत ि जनजावत के बालको के वलय क्रमश: वकतने पद ु ू आरवक्षत वकए गए ? 4.7 मारांश भारत में वशक्षा ि सामावजक व्यिस्था समय के अनसार बदलती रही ह ै लेवकन बदलना तो ठीक ह ै लेवकन ु वकसी भी िग ण को वशक्षा से िवचत करना ठीक नहीं ह ै ऐसा कछ भारत म ें दखे ने को भी वमलता ह ै । भारत ु ं म ें कछ जातीय वजनम े रविड़, नागा, खस आवद जावतया वनिास करती थी। जो सम्पण ण ससार म ें शावत ि ु ू ं ं ं उन्नवत के वलय जानी जाती थी। भारत का ज्ञान के आधार पर ही भारत को विश्वगप का दजा ण प्राप्त था। यहा ाँ ु पर अन्य दशे ों के व्यापारी व्यापार करन े के वलय आते रहते थे। ि े भारत म ें दाल ि मसालों का व्यापार करते थे। लेवकन भारत की भोली-भाली जनता पर यरोप के व्यवक्तयों वजनम े इरान, इराक, अफगावनस्तान ू आवद के नागररकों ने भारत पर आक्रमण कर वदया। इन आक्रमणकारी ने भारत की जनता का धन लट ु वलया, भारवतयों को अपना दास बनाया। उन्ह ें वशक्षा ि ज्ञान से िवचत कर उनके ज्ञान के भडार को नष्ट कर ं ं वदया । बाद म ें वशक्षण सस्थानों पर आक्रमण कर उन पर अपना अवधकार कर वलया। बाद म ें ये ं आक्रमणकारी, आयण वहद के रूप म ें ि यहााँ के मल भारतीय अनसवचत जावत ि जनजावत के रूप में जाने ू ु ू ं ु जाने लग।े आयो ने यहााँ की सस्कवत को नष्ट कर प्रत्येक अच्छी सस्कवत को अपनाकर उन्ह ें अपने नाम ृ ृ ं ं कर वलया। इस प्रकार मल भारतीय को लगभग 4000 हजार िष ण तक वशक्षा ि धनदौलत से भी िवचत ू ं कर वदए गया। िवै दक काल म ें ही वशक्षा के दरिाज े इनके वलय बद कर वदये गए थ े लेवकन बौि काल ं ं म ें बौि मठों म ें दवलत िग ण ि मवहलाओ के वलय वशक्षा के द्वार खोले गए । लेवकन िह िहााँ पर भी ं ब्राहमण िग ण का ही अवधपत्य रहा ह।ै इस प्रकार एक िग ण वशक्षा ि सामावजक प्रवतष्ठा स े वनरतर िवचत रहा। ं ं इन िवन्चत िग ण को उसका अवधकार वदलाने के वलय सविधान के माध्यम से आरक्षण की व्यिस्था की ं गयी। जो जब तक जारी रहनी जप री ह ै जब तक समाज में सामावजक एि आवथणक समानता स्थावपत न हो ं जाए । साथ ही सविधान के अनसार सभी िगों के बच्चों को 6 स े 14 तक वनशकक वशक्षा का प्रािधान ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 117 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वकया गया । जो िष ण 2009 म ें एक अवधवनयम बना। यह िष ण 2010 से सम्पण ण दशे म ें लाग हो गया। लेवकन ू ू आज भी अनसवचत जावत ि अनसवचत जनजावत िग ण के बालक वशक्षा से आज भी कोसो दर ह।ै आज ु ू ु ू ू भी भारत के अनेक राज्य जसै े मध्यप्रदशे , झारखण्ड, वबहार, नागालैंड, छत्तीसगढ़, आवद राज्यों म ें वशक्षा का प्रसार इन िगों से बहत दर ह।ै भारत सरकार को भारत में इन िगों के विशेष वशक्षा ि उच्च वशक्षा ि ु ू नौकरी के वनशकक कौवचग के न्द खोलने चावहए। इन िगों के अवभभािकों की आय अवधक होने का ु ं बहाना बनाकर उनको सविधाओ से रोका जाता ह।ै सरकारी नौकरी के आलािा इनके पास कवष ि ृ ु उधोगों के मावलकाना हक का अभाि ह,ै अत; अवभिािकों की आय के बधन को हटाकर दवलत िगों के ं सभी बालकों ि व्यवक्तयों को वशक्षा ि अन्य सविधाओ का लाभ प्राप्त होना चावहय। इन िगों के सभी ु ं बालकों के उत्थान के वलय सरकार के साथ स्िम सेिी सस्थाओ को भी आग े आना चावहए। आजादी ं ं ं म ें अपने पिजण ो की क़रबानी दने े के बाद भी भारत म ें दवलतों को आज भी सम्मान ि वशक्षा से िवचत ह।ै ू ु ं आज वशक्षा का प्रसार से तेजी से वकया जाना चावहय, वशक्षा पर होने िाले बजट म ें बढ़ोतरी की जा चावहए। एक आदश ण नागररक बननें के वलय वशक्षा की महिपण ण भवमका ह।ै ू ू 4.8 शब्दावली 1. खले स्कल (Open School) - खले स्कल (Open School) के साथ अनौपचाररक ु ू ु ू पाठयक्रमों को जोड़ने का प्रयास वकया जायगा। उच्च वशक्षा प्रदान करने के वलय सरकार द्वारा ् प्रत्येक राज्य म ें मक्त विश्वविद्यालय की स्थापन की गयी। वजनम े प्रिशे लेकर वकसी भी उम्र का ु व्यवक्त अपना अध्ययन जारी रख सकता ह।ै इसम े न तो प्रिशे के समय की कोई सीमा रहती ह ै न ही परीक्षा के समय की। आप अपनी सविधा के अनसार अपनी वशक्षा परी कर सकते ह ै । ु ु ू 4.9 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. अनच्छेद 29(2) ु 2. अनच्छेद 17 ु 3. अनच्छेद 32 ु 4. अनच्छेद 226 ु 5. राष्रपवत को 6. 15 प्रवतशत ि 7.5 प्रवतशत उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 118 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.10 मन्दभ ण ग्रंथ मची ंवं महायक उपयोगी पाठ्य मामग्री ू 1. बस, दगाणदास.(2009) भारत का सविधान.नई वदकली: लेवक्स्सस नेवक्सस पवब्लवशगप, कै नाट ् ु ं ं ु पैलेश. 2. शमाण, लाल ि िस. (2009) भारतीय वशिा का इवतहास, विकास एि समस्याए, मरे ठ: लाल ु ं ं बक वडपो. ु 3. उत्तराखण्ड मक्त विवश्वद्यालय. (2012) भारतीय सविधान ि चनौती, हकद्वानी: विवध विभाग. ु ु ं 4. पाठक,पी.डी.(2011) भारतीय वशिा और उसकी समस्याए, आगरा: अग्रिाल पवब्लके शन. ु ं 4.11 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. भारत के सविधान द्वारा स्िन्त्रता एि समानता एि से सम्बवधत क्या प्रािधान वकए गए ह?ै ं ं ं विस्तार से वलवखए । 2. भारत के सविधान द्वारा अनवचत जावत एि जनजावतयों हते वशक्षा के सम्बन्ध के प्रािधान वकए ु ु ं ं गए ह?ै विस्तार से वलवखए । 3. वशक्षा के सािभण ोवमकरण से आप क्या समझते ह?ै भारत सरकार द्वारा वशक्षा के विकास हते क्या ु प्रयास वकए गए ह ै ? विस्तार से वलवखए। 4. वशक्षा से आप क्या समझते ह?ै भारतीय वशक्षा व्यिस्था म ें सधार हते अपने सझािों को ु ु ु विस्तार से वलवखए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 119 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं खण्ड 3 Block 3 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 120 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 1 - मुद्द एिं नीवतया ाँ े Issues and Policies 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 सिण वशक्षा अवभयान 1.3.1 अपिवचत िगण ं 1.4 समािेशी वशक्षा 1.4.1 सािणभौवमक एि समािेशी वशक्षा में वशक्षक की भवमका ू ं 1.5 प्राथवमक वशक्षा की सािणभौमीकरण की नीवतयााँ 1.5.1 नई वशक्षा नीवत 1.5.2 ऑपरेशन ब्लैकबोडण 1.5.3 वजला प्राथवमक वशक्षा कायणक्रम 1.5.4 राष्रीय साक्षरता वमशन: (N.L.M) 1.5.5 सिण वशक्षा अवभयान 1.5.6 वशक्षा का अवधकार अवधवनयम (2009) 1.5.7 मध्यान्ह भोजन योजना 1.6 साराश ं 1.7 शब्दािली 1.8 स्िमकयाकन हते प्रश्नों के उत्तर ू ु ं 1.9 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 1.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1.1 प्रस्तावना वजस प्रकार एक ओर वशक्षा बालक का सिाांगीण विकास करके उसे तेजस्िी, बवद्दमान, चररत्रिान, विद्वान ु तथा िीर बनाती ह,ै उसी प्रकार दसरी ओर वशक्षा समाज की उन्नवत के वलए भी आिश्यक तथा ू शवक्तशाली साधन ह ै । दसरे शब्दों म,ें व्यवक्त की भावत समाज भी वशक्षा के चमत्कार से लाभावन्ित होता ं ू ह।ै वशक्षा के द्वारा समाज भािी पीवढ़यों को उच्च आदशों, आशाओ, आकाशाओ, विश्वासों तथा ं ं ं परम्पराओ आवद सास्कवतक सपवत्त को इस प्रकार हस्तातररत करता ह ै वक उनके ह्रदय म ें दशे -प्रेम तथा ृ ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 121 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं त्याग की भािना प्रज्जिवलत हो जाती है। इस प्रकार व्यवक्त तथा समाज दोनों ही के विकास म ें वशक्षा परम आिश्यक ह ै । सत्तर के दशक तक हमारी सपण ण जनसख्या का के िल एक चौथाई वहस्सा ही वशवक्षत िगण ू ं ं म ें आता था । वकसी भी लोकतावत्रक शासन प्रणाली के वलए यह सबसे दष्कर समस्या ह ै क्योंवक इस ं ु अिस्था म ें शासन पद्यवत का सचारू रूप से चलना सभि नहीं होता ह ै । इसीवलए भारत म ें वशक्षा के ु ं सधार के वलए समय-समय पर कई आयोग तथा नीवतयााँ बनी, वजनके वक्रयाियन के आधार पर ही आज ु साक्षरता दर बढ़ती वदख रही ह ै । स्ितत्रता से पि ण बढ़ती हई वनरक्षरता को दखे कर ही वशक्षा के क्षेत्र म ें कई ु ू ं ठोस कदम उठाए गए, वजसम ें 1986 की राष्रीय वशक्षा नीवत प्रमख ह।ै प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण ु के वलए भी सरकार द्वारा कई नीवतयााँ बनाई गई ह,ैं वजससे अपिवचत िगों को वशक्षा की मख्य धारा स े ु ं जोड़ा जा सके । जसै े SSA,NCF-2005,RTE-2009, RAMSA आवद । इस इकाई म ें आप सिण वशक्षा अवभयान, समािशे ी वशक्षा तथा प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण की नीवतयों का विस्तत ृ अध्ययन करेंग े । 1.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप: 1. सिवण शक्षा अवभयान को समझ सकें ग े । 2. अपिवचत िग ण को समझ सकें ग े । ं 3. सािभण ौवमक एि समािशे ी वशक्षा म ें वशक्षक की भवमका को समझ सकें ग े । ू ं 4. प्राथवमक वशक्षा की सािणभौमीकरण की नीवतयों को समझ सकें गे। 1 .3 मवण वशक्षा अवभयान उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 122 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए UNESCO एि UN।SEF के तत्िाधान म ें उन दशे ों में ं वजनम ें वनरक्षरता दर काफी ऊाँ ची थी तथा शवै क्षक वपछड़ापन बड़ी मात्रा में था, सि ण वशक्षा नामक पररयोजना सन 2000 म ें आरभ की गई । सि ण वशक्षा अवभयान परे दशे म ें राज्य सरकार की सहभावगता से ् ू ं चलाया गया तावक देश के 11 लाख गााँिों के 19.2 लाख बच्चों की जरूरतों को परा वकया जा सके । ू SSA के वनम्नवलवखत उद्दश्े य वनधाणररत वकए गए : 2005 तक सभी बच्चों का विद्यालयों, वशक्षा गारन्टी के न्रों, िकै वकपक वशक्षा के न्रों म ें नामाकन। ं 2007 तक सभी बच्चे कक्षा 5 तक की प्राथवमक वशक्षा परी कर लें। ू 2010 तक सभी बच्चें कक्षा 8 तक की प्रारवम्भक वशक्षा परी कर लें। ू जीिनोपयोगी गणित्तापरक प्रारवम्भक वशक्षा पर बल। ु 2007 तक प्राथवमक स्तर पर तथा 2010 तक प्रारवम्भक वशक्षा के स्तर पर बालक - बावलका एि सामावजक असमानताओ को समाप्त करना। ं ं 2010 तक शत-प्रवतशत ठहराि। ् सि ण वशक्षा के अतगतण उत्तम विद्यालयों (qual। ty schools) की ककपना की गई ह,ै विद्यावथणयों को ं पाठयक्रम समावप्त तक विद्यालय म ें रख सके और ि े न्यनतम अवधगम स्तरों को प्राप्त कर ही लें (M। n। ् ू mum Level of Learn। ng-MLL) । सिवण शक्षा अवभयान की शरूआत से वदसबर 2006 तक ु ं लगभग 1.81 लाख नए विद्यालय खोले जा चके थे । 1,49,683 लाख नई विद्यालय इमारतें तथा ु 6,50,442 लाख अवतररक्त कमरे या तो परे हो चके थे या और 31.3.2007 तक एसएसए के अतगतण ू ु ं 8.14 लाख नए वशक्षक वनयक्त वकए गए । सरकार ने एसएसए के वलए ग्यारहिीं योजना म ें 576.45 करोड़ ु रूपये महयै ा कराए थे। ु सिवण शक्षा अवभयान के तहत स्कल छोड़ने िाले बच्चों की सख्या म ें भारी कमी लाने म ें सफलता प्राप्त हई ु ू ं ह।ै 2001-02 म ें स्कल छोड़ने िाले 3.20 करोड़ बच्चों के मकाबले माचण, 2007 म ें यह सख्या लगभग ू ु ं 70 लाख रही। इसी अिवध के दौरान प्राथवमक स्तर पर लड़वकयों के नामाकन म ें 19.2 प्रवतशत की तथा ं उच्च प्राथवमक स्तर पर 15 प्रवतशत की बढ़ोतरी हई। ितणमान म ें 67 लाख बच्चे उन िकै वकपक स्कलों म ें ु ू नामावकत ह ैं जो छोटे और दर-दराज की ररहायशों म ें खोले गए ह ैं और कामकाजी बच्चों, पररिारों के साथ ं ू दसरी जगहों से आए बच्चे और शहरी िवचत बच्चों को वशक्षा महयै ा कराते ह ैं । एसएसए में बावलकाओ ु ं ं ू एि समाज के कमजोर िगों के बच्चों पर विशषे ध्यान दने े का प्रािधान ह।ै इसके तहत ऐसे बच्चों के वलए ं वनःशकक पाठय पस्तकों की व्यिस्था सवहत कई अन्य कायणक्रम चलाए जा रह े ह।ैं वशक्षा के अतर को ् ु ु ं समाप्त करने के वलए एसएसए के अतगतण ग्रामीण क्षेत्रों तक में कप्यटर वशक्षा वदलाने का भी प्रािधान ह।ै ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 123 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1.3.1 अपवशचत वर्ि ं अपिवचत िग ण िह िग ण ह ै जो समाज की मख्य धारा से नहीं जड़ पाया अथिा वजसे समाज के लोगों न े ु ु ं अपनी शवक्त का प्रयोग करते हए ऊपर उठने नहीं वदया । इसवलए सविधान म ें ऐसे लोगों के वलए कानन ु ू ं बना, तावक ये लोग भी समाज की मख्य धारा से जड़ सकें । ु ु सि ण वशक्षा अवभयान म ें अपिवचत िग ण के बच्चों के वलए विशषे प्रयास वकए गए : ं नामाकन : 2010-11 म ें अन० जावत के छात्रों का नामाकन 19.06% था, जो 2014-15 म ें 19.80 हो ु ं ं गया । 2014-15 तक अन० जन जावत के छात्रों का 10.47% नामाकन हआ । ु ु ं अकपसख्यकों का 2010-11 म ें 12.50 नामाकन था, जो 2014-15 म ें 13.77% हो गया । ं ं इस अवभयान से लड़वकयों (अन० जावत,जनजावत,तथा अकपसख्यक) के नामाकन म ें िवद्द हई । ु ृ ु ं ं सामावजकसमह प्राथवमक उच्च प्राथवमक ू 2009-10 2014-15 2009-10 2014-15 लड़वकयााँ 48.46% 48.19% 48.12% 48.63% अन० जावत 20,07% 19.93% 19.17% 19.55% ु जनजावत 11.54% 10.83% 9.4% 9.76% मवस्लम 13.48% 14.37% 11.89% 12.60% ु ( स्रोत-MHRD) 2016 विद्यालय म ें इन बच्चों की उपशस्थशत तथा ठहराव बना रह े इसके वलए सरकार द्वारा विशषे हस्तक्षेप वकए गए : अन० जावत ि जन जावत के छात्र- छात्राओ के वलए वनःशकक पाठय पस्तकें (ओ०बी०सी०, ् ु ु ु ं अकपसख्यकों एि सामान्य जावत के बच्चों के वलए राज्य सरकार इसकी व्यिस्था करती ह ै ।) ं ं विशेष आिश्यकता िाले बच्चों (CWSN) के वलए प्रवतिष ण खले पाठय सहगामी वक्रयाकलाप और ् अन्य सहगामी कायणकलापों की प्रवतयोवगताओ का ब्लाक स्तर से राज्य स्तर तक आयोजन। ं अन० जावत, जन जावत ि अकपसख्यकों िगण के छात्र- छात्राओ के वलए विशषे उपचारात्मक ु ं ं (Remedial) वशक्षण कायणक्रम । विशेष आिश्यकता िाले बच्चों (CWSN) के वलए घर पर वशक्षा की व्यिस्था, वशक्षण सविधा ु तथा विशेष सदवभतण अध्यापकों की व्यिस्था । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 124 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विशेष आिश्यकता िाले बच्चों (CWSN) के कायणक्रमों म ें गरै सरकारी सगठनों एि सस्थाओ जसै े- ं ं ं ं NASEOH,NIVH, NIOH, Raphael Sharp Memorial Partners की सहभावगता। राज्य म ें विशषे आिश्यकता िाले बच्चों को वचवन्हत करके उनकी प्रोफाइल तैयार करना । विशेष आिश्यकता िाले बच्चों (CWSN) के वलए आिासीय विद्यालयों
की स्थापना की गई । दरस्थ क्षेत्रों म ें बक्स जनजावत के वलए वशक्षा गारटी योजना (EGS)ततः िकै वकपक तथा निाचारी ु ं ू वशक्षा के न्रों (AIE) की स्थापना । सचल विद्यालय, वनमाणण कायों म ें लग े श्रवमकों के बच्चों के वलए वनमाणण क्षेत्रों म ें विद्यालय, कवष ृ श्रवमकों के वलए फाम ण विद्यालयों की स्थापन
ा । अभ्यास प्रश्न 1. SSA के मख्य तीन उद्दश्े य क्या ह?ैं ु 2. SSA योजना िष ण _________में आरम्भ की गई । 3. अपिवचत िग ण क्या ह?ै ं 1.4 ममावेशी वशक्षा समािशे न एक ऐसी अिधारणा ह ै जो अक्षम बच्चों को अपने पड़ोस के विद्यालयों और समदायों म ें पणण ु ू प्रवतभावगयों और सदस्य के रूप म ें दखे ता ह ै । (नाईट1999) Inclusion ia a concept that sees children with disabilities as full time participants in and as members of their neighborhood schools and communities. (Knight 1999) समािशे ी वशक्षा का अथण ह ै सभी बच्चों के वलए वशक्षा ।
प्रत्येक कक्षा म ें जहााँ 40-60 बच्चे होते ह,ैं प्रत्येक बच्चे की अलग अलग आिश्यकताए ाँ होती ह ैं । समािशे ी वशक्षा दशनण के अनसार प्रत्येक बालक ु विवशष्ट ह ै और उसे कक्षा म ें विविध प्रकार के वशक्षण की आिश्यकता हो सकती ह ै । बच्चों की योग्यताए ाँ भी अलग अलग हो सकती ह ैं । इस प्रकार प्रत्येक
कक्षा म ें विवभन्नता का होना आम बात ह ै । भारत म ें कई विद्यालय ऐसे ह,ैं जहााँ एक ही वशक्षक विवभन्न विषयों को पढाता ह ै । तब प्रश्न ये उठता ह ै वक क्या हम विवशष्ट आिश्यकता िाले बच्चों को विवशष्ट सामग्री, विवध, विषय िस्त प्रदान कर रह े ह?ैं समािशे ी ु वशक्षा का वसिात भी यही ह ै वक एक सामान्य वशक्षक अपनी कक्षा म ें सभी प्रकार के बच्चों के वलए एक ं मागदण शकण बने । उसका उत्तरदावयत्ि न वसफण कक्षा के भीतर हो बवकक बाहर भी अनत तक हो । समािशे ी ं वशक्षा इस बात को भी लाग करती ह ै वक सामान्य विद्यालयों म ें प्रत्येक बच्चे की आिश्यकता परी हो । ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 125 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं कक्षा म ें प्रत्येक छात्र की विवशष्ट आिश्यकता की पवतण करना ही समािशे ी वशक्षा ह ै । वजस प्रकार हमारे ू सविधान म ें सभी को समानता का अवधकार प्राप्त ह,ै उसी प्रकार समािशे ी दशनण म ें भी सभी छात्रों को एक ं समान माना जाता ह,ै उनके साथ कोई भदे भाि नहीं वकया जाता ह ै । NCF-2005- “समािशे न शब्द का अपने आप म ें कछ खास अथण नहीं होता ह ै । समािशे न के चारों ओर ु जो िचै ाररक, दाशवण नक,सामावजक और शवै क्षक ढााँचा होता ह,ै िही समािशे न को पररभावषत करता ह ै ।समािेशन की प्रवक्रया म ें बच्चे को न के िल लोकतत्र की भागीदारी के वलए सक्षम बनाया जा सकता ह,ै ं बवकक यह सीखने एि विश्वास करने के वलए भी सक्षम बनाया जा सकता वक लोकतत्र को बनाए रखने के ं ं वलए दसरों के साथ ररश्ते बनाना, अतवक्रण या करना भी सामान रूप से महत्िपण ण ह”ै । ू ं ू समािशे ी वशक्षा, समािवे शत कक्षा म ें विविधताओ को स्िीकार करने की मनोिवत्त ह,ै वजसके अतगणत ृ ं ं वशक्षा से िवचत बच्चों को वशक्षा की मख्य धारा से जोड़ा जाता ह,ै तावक ि े भी समाज का एक वहस्सा बन ु ं सकें और राष्र के वनमाणण म ें अपना योगदान द े सकें । समािशे ी वशक्षा का उद्दश्े य प्रत्येक बच्चे की आिश्यकता को बाल कें वरत विवधयों द्वारा विकवसत वकया जाना ह ै और विद्यालय, घर ि समाज में अच्छा सम्बन्ध स्थावपत करना ह ै । समािेशी वशक्षा की पररककपना इस सककपना पर आधाररत ह ै वक ं सभी बच्चों को विद्यालयी वशक्षा म ें पहचाँ की इस कदर आिश्यकता ह ै वक उन्ह ें क्षेत्रीय, ु सास्कवतक,सामावजक पररिशे और विस्तत सामावजक,आवथणक एि राजनीवतक प्रवक्रयाओ म ें सदवभतण ृ ृ ं ं ं ं करके समझा जाय । क्योंवक भारतीय सविधान म ें समता, स्ितत्रता,सामावजक न्याय एि व्यवक्त की गररमा ं ं ं को प्राप्य मकयों के रूप म ें वनप वपत वकया गया ह ै । वजसका इशारा समािेशी वशक्षा की तरफ ही ह ै । ू 1.4.1 साविभौशमक एव समावेिी शिक्षा में शिक्षक की भशमका ू ं वपछले दो या तीन दशकों म ें दवनया भार की सरकारों न े भारत सवहत गणित्तापण ण वशक्षा म ें अपनी ु ू ु प्रवतबद्दता की घोषणा की ह।ै आज जब समािशे ी वशक्षा की बात की जा रही ह ै तो सभी सरकारों न े उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 126 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वमलकर कछ आमलचल पररितणन वकए । वशक्षा को सािभण ौवमक एि समािेशी बनाने के वलए कछ ु ू ू ु ं बदलते हए प झानों को वनम्न प्रकार व्यक्त वकया जा सकता ह ै : ु असमताओ को दर करने पर अवधक जोर ं ू सभी के वलए न्यायोवचत वशक्षा बच्चे पर कें वरत, जरूरत पर आधाररत वशक्षा सीखने की प्रवक्रया म ें हर बच्चे की प्रवतभावगता को अवधकावधक करना। एक अध्यापक वकस प्रकार विद्यालय को समािेशी ि सािणभौवमक बना सकता ह?ै वशक्षक की व्यवक्त के जीिन तथा विद्यालय में महत्त्िपण ण भवमका होती ह ै । वशक्षा ही िह माध्यम ह ै वजसके द्वारा व्यवक्त बड़ी ू ू सफलताए ाँ प्राप्त करता ह ै और वशक्षा प्रदान करने िाला वशक्षक ही होता ह ै । वशक्षक का नाम सनते ही ु हमारे सामने साधारण सा वदखने िाला बविमान व्यवक्त नजर आने लगता ह.ै वशक्षक अपने ज्ञान से ु बेिकफ छात्रों को भी श्रेष्ठ बना दते ा ह,ै उनके जीिन को एक नयी वदशा दते ा ह ै जो उनको सफलता की ू राह की ओर ले जाता ह ै । इसी को ध्यान म ें रखकर एक अध्यापक का उत्तरदावयत्ि बनता ह ै वक ि े अपने बच्चों को सही वशक्षा,प्रेरणा, सहनशीलता,व्यिहार म ें पररितणन तथा मागदण शकण प्रदान करें , उनके भविष्य को उज्जिल बनाने के साथ ही उन्ह ें एक बेहतर इसान बनाए । एक वशक्षक द्वारा वशक्षा को समािशे ी ि ं सािभण ौवमक बनाने के वलए वनम्न उपाय वकए जा सकते ह ैं : i. शवद्यालयी वातावरर् : प्रत्येक वशक्षक द्वारा विद्यालय के िातािरण को सकारात्मक बनाना आिश्यक होगा । एक ऐसा विद्यालय वजसकी नींि प्यार और और विश्वास की हो, विद्यालयी भिन से समानता प्रदवशतण होती हो तथा विद्यालय की छत से सकारात्मकता, अवभप्रेरणा, सहयोग प्रदवशतण होता हो । उस विद्यालय के छात्र एक नागररक बनकर िहााँ से वनकलें । ii. बच्चे को समझना: बच्चा विद्यालय वसफण वशक्षा प्राप्त करने नहीं आता ह ै । बवकक िह तो एक नागररक बनने विद्यालय आता ह ै । बहत सारी वजज्ञासाए और एक नई उम्मीद की वकरण लेकर ु ं बच्चा प्रवतवदन विद्यालय आता ह।ै िह नहीं समझता वक वशक्षक क्या
होता ह ै ? ऐसे म ें वशक्षक का कतणव्य ह ै वक िह बच्चे को समझ े । iii. बालकों के अनरूप पाठयक्रम : वशक्षक को यह पता होना चावहए वक बच्चा क्या चाहता ह ै ? ् ु बच्चे क
े अनकल ही पाठयक्रम का वनमाणण वकया जाना चावहए । ् ु ू iv. मार्ििििन एव शनिेिन : समािशे ी वशक्षा म ें जब सब िग ण के बच्चे वशक्षा प्राप्त करेंग े तो वशक्षक ं की भवमका मागदण शनण तथा वनदशे न दने े िाली होनी चावहए । वकशोरािस्था म ें होन े िाले ू पररितणनों के समय छात्र का सही मागदण शनण करे तथा भविष्य म ें छात्र को विषय चनने के वलए ु सही- सही वनदवे शत करे । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 127 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं v. सबके शलए शवद्यालय : विद्यालय तक सबकी पहचाँ हो । वशक्षक द्वारा अपन े स्तर पर कोई ु अवभयान चलाकर भी विद्यालय म ें सबकी पहचाँ सवनवश्चत कराई जा सकती ह ै । जसै े आवद vi. छात्रों को स्वय से अशभव्यशि की अनमशत : विद्यालय म ें आकर छात्र को आनद की ु ं ं अनभवत होनी चावहए । इसवलए NCF 2005 म ें की बात कही गई । ु ू ं वशक्षक को अपनी बात छात्र के ऊपर थोपने के बजाय छात्र को उसकी अवभव्यवक्त की अनमवत ु दने ी चावहए । स्िय अवभव्यवक्त करने से छात्र म ें आत्मविश्वास की िवद्द होती ह ै । ृ ं अभ्यास प्रश्न 4. समािशे ी का क्या अथण ह?ै 5. वशक्षा को समािेशी बनाने के वलए अध्यापक द्वारा वकए जाने िाले दो उपायों को वलवखए । 1.5 प्राथवमक वशक्षा की मावणभौमीकरण की नीवतया ाँ प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए स्ितत्रता के पश्चात वनम्नवलवखत उपाय अपनाए गए : ं 1.5.1 नई शिक्षा नीशत भारतीय सविधान के चौथे भाग म ें उवकलवखत नीवत वनदेशक तत्िों म ें कहा गया ह ै वक प्राथवमक स्तर तक ं के सभी बच्चों को अवनिायण एि वनःशकक वशक्षा की व्यिस्था की जाय। 1948 में ड ा राधाकष्णन की ृ ु ं अध्यक्षता म ें विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में वशक्षा-प्रणाली को व्यिवस्थत करने का काम शरू हो गया था । 1952 म ें लक्ष्मीस्िामी मदावलयर की अध्यक्षता म ें गवठत माध्यवमक ु ु वशक्षा आयोग, तथा 1964 में दौलत वसह कोठारी की अध्यक्षता म ें गवठत वशक्षा आयोग की अनशशाओ ु ं ं ं के आधार पर 1968 म ें वशक्षा नीवत पर एक प्रस्ताि प्रकावशत वकया गया, वजसम ें
‘राष्रीय विकास के प्रवत िचनबि, चररत्रिान तथा कायणकशल’
यिक-यिवतयों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। मई 1986 में ु ु ु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीशत लाग की गई, जो अब तक चल रही ह।ै राष्रीय वशक्षा के कछ महत्िपण ण वबद ू ु ू ं ु वनम्नवलवखत ह ैं : हमारे राष्रीय पररप्रेक्ष्य म ें हमारे भौवतक और आध्यावत्मक विकास की बवनयादी आिश्यकता ह।ै (भाग 2) ु वशक्षा ससस्कत बनाने का माध्यम ह।ै यह हमारी सिदे नशीलता और दृवष्ट को प्रखर करती ह,ै ृ ु ं ं वजससे राष्रीय एकता पनपती ह,ै िज्ञै ावनक तरीके के अमल की सभािना बढ़ती ह ै और समझ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 128 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं और वचतन म ें स्ितन्त्रता आती ह।ै साथ ही वशक्षा हमारे सविधान म ें प्रवतवष्ठत समाजिाद, ं ं धमवण नरपेक्षता और लोकतत्र के लक्ष्यों की प्रावप्त म ें अग्रसर होने म ें हमारी सहायता करती ह।ै ं (भाग 2) राष्रीय वशक्षा व्यिस्था का मल मत्र यह ह ै वक एक वनवश्चत स्तर तक हर वशक्षाथी को वबना वकसी ू ं जात-पात, धम ण स्थान या वलग भदे के , लगभगएक जसै ी अच्छी वशक्षा उपलब्ध हो। इस लक्ष्य ं को हावसल करने के वलये सरकार उपयक्त रूप से वित्तपोवषत कायणक्रमों की शरूआत करेगी। ु ु 1968 की नीवत म ें अनशवसत सामान्य स्कल प्रणाली को वक्रयावन्ित करने की वशक्षा म ें प्रभािी ु ू ं कदम उठाये जाएगे।(भाग 3) ं प्रारवम्भक वशक्षा की नई वदशा म ें दो बातों पर विशषे बल वदया जाएगा – (क) 14 िष ण की अिस्था तक के सब बच्चों की विद्यालयों में भती और उनका विद्यालय म ें वटके रहना, और ;(ख) वशक्षा की गणित्ता म ें सधार।(भाग 5) ु ु सबसे बड़ा काम ह ै शवै क्षक बवनयाद को सदृढ़ बनाना । उस बवनयाद को, वजसम ें उस शताब्दी के ु ु ु अन्त तक लगभग सौ करोड़ लोग होंग े । यह सवनवश्चत करना भी उतना ही महत्िपण ण ह ै वक जो ु ू वपरावमड के वशखर पर हों, ि े विश्व म ें सिोत्तम स्तर के हों । अतीत म ें इन दोनों छोरों को हमारी सस्कत के मल स्रोतों ने भलीभााँवत वसवचत रखा, लेवकन विदशे ी अवधपत्य और प्रभाि के कारण ृ ू ं ं इस प्रवक्रया म ें विकार पैदा हों गया । अब मानि ससाधन विकास का एक राष्रव्यापी प्रयास ं पनःशप होना चावहए, वजसम े वशक्षा अपनी बहमखी भवमका पण ण रूप से वनभाए । ु ु ु ु ू ू 1.5.2 ऑपरेिन ब्लैकबोडि वशक्षा के अिरोधन म ें सधार लाने के वलए ऑपरेशन ब्लैकबोडण योजना 1987 -88 म ें शप की गई । इस ु ु योजना की तीन मख्य विशेषताए ह ैं : ु ं लड़कों और लड़कों के वलए अलग अलग शौचालय तथा सभी मौसमों के वलए उपयक्त दो बड़े कमरे ु वजसम े बरामदा भी शावमल ह ै । प्रत्येक विद्यालय म ें दो अध्यापक अिश्य ही हों, वजनम े से एक मवहला हो । TLM (ब्लेकबोडण,मानवचत्र,नक़्श,े चाटण,वखलौने,आवद) के द्वारा पठान कायण करिाया जाय । िष ण 1987 -88 स े 1992 -93 की अिवध म ें यह योजना दशे के 91.5% ब्लॉकों म ें लाग की गई, वजसमे ू 91%प्राथवमक विद्यालय शावमल थे । इस योजना के तहत ही 1.52 लाख एकल वशक्षक विद्यालयों म ें लगभग 70 हजार वशक्षक वनयक्त वकये गए और 1 लाख कक्षों का वनमाणण वकया गया । अन्य बस हए ु ु विद्यालयों म ें यह योजना लाग करे के वलए 1992 म ें सशोवधत ऑपरेशन ब्लैकबोडण योजना तैयार की गई, ू ं वजसम ें तीन नई उपयोजनाओ को शावमल वकया गया । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 129 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1. पि ण म ें चल रही ऑपरेशन ब्लैकबोडण योजना को जारी रखना । ू 2. वजन प्राथवमक विद्यालयों म ें छात्र सख्या 100 से अवधक हो जाती ह,ै उन विद्यालयों में तीन ं वशक्षक और तीन कक्षा कक्ष उपलब्ध करना । 3. अपर प्राथवमक विद्यालयों म ें इस योजना के कायण क्षेत्र का विस्तार करना जसै े- a) प्रत्येक कक्षा या सेक्शन को कम से कम एक कमरा और एक वशक्षक। b) एक प्रधानाध्यापक सह- कायाणलय कक्ष । c) लड़कों और लड़कों के वलए अलग अलग शौचालय। d) एक पस्तकालय सवहत अवनिायण अध्यापन वशक्षण उपकरण ु e) छोटी – मोटी टट फट के वलए तथा िस्तओ को बदलने के वलए आकवस्मक अनदान प्रदान ू ू ु ु ं करना । ऑपरेशन ब्लैकबोडण का सफलतापण ण वक्रयान्ियन के वलए वनम्नवलवखत उपाय वकए गए: ू a) उपकरण की टट फट के वलए तथा िस्तओ को बदलने के वलए राज्य सरकार को आकवस्मक ू ू ु ं अनदान प्रदान करने के वलए अवधकत वकया गया । ृ ु b) वशक्षकों को ऑपरेशन ब्लैकबोडण सामग्री प्रयोग करने के वलए विशषे रूप से प्रवशवक्षत वकया गया । c) बावलकाओ के नामाकन एि विद्यालय म ें ठहराि के वलए वनयक्त वकए जाने िाले वशक्षकों म ें 50% ु ं ं ं मवहला वशवक्षकाओ को वनयवक्त दी गई । ु ं इस योजना म ें 1993-94 तक सभी विद्यालयों को शावमल कर वलया गया । इस योजना के कारण ही सविधा से िवचत विद्यालयों में भौवतक ससाधनों की पवतण करने का प्रयास वकया गया। ु ू ं ं 1.5.3 शजला प्राथशमक शिक्षा कायिक्रम प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए D.P.E.P योजना िष ण 1993 म ें शप की गई । डीपीईपी बाहरी ु सहायता से चलने िाला कायणकम ह।ै पररयोजना व्यय का 85 प्रवतशत कें र सरकार द्वारा एि शषे 15 ं प्रवतशत सबवधत राज्य सरकारों द्वारा िहन वकया जाता ह।ै इसका लक्ष्य था:कछ चने हए वजलों में ु ु ु ं ं एकीकत तरीके से प्राथवमक वशक्षा का पनवनणमाणण । ृ ु सिप्रण थम सात राज्यों (असम, कनाणटक,के रल,मध्य प्रदशे , महाराष्र, उड़ीसा, तवमलनाड ) के 42 वजलों म ें ु यह कायणक्रम शप वकया गया और यह लक्ष्य वनधाणररत वकया गया वक 1993-98 तक इस कायणक्रम को ु 110 वजलों तक पहचाँ ा वदया जाए वफर इसका विस्तार सारे दशे म ें वकया जाए । वजन राज्यों म ें D.P.E.P ु कायणकम चल रहा था िहााँ D.P.E.P की उप्लवब्धयााँ वनम्नवलवखत ह:ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 130 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विद्यालय 1,60,000 से अवधक खोले गए । िैकवकपक वशक्षण के न्र 84,000, वजसमें 35 लाख बच्च े वशक्षा प्राप्त कर रह े ह ैं । स्कल भिन 52,778 का वनमाणण वकया गया । ू अवतररक्त कक्षाएाँ 58,604 ससाधन कें र 16,619 ं मरम्मत कायण 29,307 शौचालय 64,592 पेयजल 24,909 1.5.4 राष्ट्रीय साक्षरता शमिन: (N.L.M) इसकी शप आत 1988 म ें हई ।इसका मख्य उद्दश्े य 15 -35 आय िग ण के करीब 8 करोड़ लोगों तक ु ु ु ु प्रयोजन मलक साक्षरता पहचाँ ाना, यावन उन्ह ें कामकाज चलाने लायक साक्षर बनाना। ु ू इसके वलए राष्रीय प्रौढ़ वशक्षा सस्थान (National ।nstitute of Adult Education) की स्थापना की ं गई । दशे म ें कछ अन्य कायक्रण म भी चलाये गए जसै े – और विद्यावथणयों का प्रौढ़ वशक्षा कायणक्रम म ें सहयोग दने ा । 1.5.5 सवि शिक्षा अशभयान इसका विस्तत अध्ययन आप पि ण म ें कर चके ह ैं । ृ ू ु 1.5.6 शिक्षा का अशधकार अशधशनयम (2009) जब हम वशक्षा को घर घर पहचाने की बात कर रह े ह ैं तो वशक्षा के आकडे हम ें बता दते े ह ैं वक हम वकतने ु ं कदम दर ह।ैं भारत म ें 11 स े 17 िष ण के करोड़ों बच्चे ह ैं जो के िल आवथणक कमाई का साधन ह ैं । भारत की ू जनगणना के अनसार 9.1% बच्चे ग्रामीण क्षेत्र म ें कायण कर रह े ह ैं । ये विवभन्न स्थानों पर कायण करते हए ु ु दखे े जा सकते ह,ैं जसै े : जते पॉवलश,ढाबे म,ें रोड के वकनारे ,मशीनों को ठीक करते हए, होटलों म ें िटे र ु ू के रूप म ें तथा कड़ा बीनते वदख जाते ह ैं । लड़वकयााँ अवधकतर घरों का कम करती ह,ैं ि े अपने छोटे भाई ू बहनों की दखे भाल, खाना बनाना, कपड़े धोना, पानी लाना तथा बतणन धोने म ें व्यस्त रहती ह ैं । इस प्रकार उनके माता वपता को आवथणक रूप से वचता नहीं होती ह ै । ं सन 2000 म ें डकार सम्मलेन म ें अन्तराणष्रीय समदाय के सदस्य इस वनष्कष ण पर पहचाँ े वक अनेक दशे पि ण ु ् ु ू सम्मलेन म ें वनधाणररत लक्ष्यों तक नहीं पहचाँ पाए तथा इस त्य पर सहमत हए वक िषण 2015 तक वशक्षा ु ु हते वनधाणररत लक्ष्यों की पती हो पाएगी। इसम ें छः लक्ष्य वनधाणररत वकये गए वजससे सबको वशक्षा वमल ु ू सके । 1. पि ण बाकयकाल एि वशक्षा ू ं 2. प्राथवमक वशक्षा का सािभण ौवमकरण उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 131 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3. यिा ि प्रौढ़ो की शवै क्षक आिश्यकताओ की पवतण ु ू ं 4. प्रौढ़ साक्षरता 5. लैंवगक समानता 6. गणित्ता परक वशक्षा ु 1948 म ें मौलाना अबल कलम आजाद ने एक वशक्षा सम्मलेन कहा था – बवनयादी वशक्षा प्रत्येक व्यवक्त ु ु का जन्मवसि अवधकार ह,ै क्योंवक उसके बगरै िह बतौर नागररक वजम्मदे ाररयााँ बखबी वनभा सकता ह ै । ू भारतीय सविधान म ें बहत सी ऐसी महत्िपण ण धाराए ाँ ि उपबध ह,ैं वजनका वशक्षा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ु ू ं ं सम्बन्ध ह ै । धारा 45 म ें अवनिायण ि वनःशकक वशक्षा का प्रािधान ह ै । अनच्छेद 21 म ें स्ितत्रता (प्राण ु ु ं एि दवे हक स्ितत्रता का सरक्षण) का अवधकार ह ै । इसी अवधकार को बनाए रखने के वलए 86 ि े सविधान ं ं ं ं सशोधन म ें अन० 21 ए को शावमल वकया गया ह,ै वजसे वशक्षा का अवधकार अवधनयम कहते ह ैं । यह परे ु ू ं दशे म ें 1 अप्रैल 2010 से ( जम्म कश्मीर को छोड़कर ) लाग हो गया ह ै । इस अवधवनयम म ें मख्य रूप से ू ू ु सात अध्याय ह,ैं जो विवभन्न सेक्शनों म ें बााँटे गए ह ैं | मख्य शविेषताए ाँ ु 6 स े 14 तक की आय तक के प्रत्येक बच्चे को वनःशकक और अवनिायण वशक्षा का अवधकार ु ु ह।ै सविधान के 86 ि ें सशोधन द्वारा वशक्षा के अवधकार को प्रभािी बनाया गया ह ै । ं ं सरकारी विद्यालय सभी बच्चों को वनःशकक वशक्षा उपलब्ध कराएगाँ े और विद्यालयों का प्रबधन ु ं विद्यालय प्रबधन समीवतयो द्वारा वकया जाएगा | वनजी विद्यालय 25% बच्चे का नामाकन वबना ं ं वकसी शकक के करेंग े । ु गणित्ता सवहत प्रावम्भक वशक्षा के सभी पहलओ पर वनगरानी के वलए राष्रीय आयोग बनाया ु ु ं जाएगा । प्राथवमक वशक्षा समाप्त वहने से पहले वकसी भी बच्चे को रोका नहीं जाएगा,वनकाला नाह जाएगा या बोडण परीक्षा पास करने की आिश्यकता नहीं होगी । ऐसा बच्चा वजसकी आय छह िष ण से ऊपर ह,ै जो वकसी भी विद्यालय म ें नहीं गया अथिा गया ह ै ु और अपनी प्राथवमक वशक्षा परी नहीं कर पाया ह,ै तब उसे उसकी आय के अनसार उवचत कक्षा ू ु ु म ें प्रिशे वदया जाएगा । वशक्षक छात्र अनपात 1:3 का होगा । ु वशक्षा की गणित्ता म ें अवनिायण सधार। ु ु स्कल वशक्षक को पाच िषों के भीतर समवचत प्रवशक्षण वडग्री
प्राप्त करनी होगी । ू ु ं स्कल का बवनयादी ढााँचा 3 िषों के अतगतण सधारा जाय अन्यथा उसकी मान्यता रद्द कर दी ू ु ु ं जाएगी। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय
132 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वित्तीय बोझ म ें राज्य तथा कें र सरकार के बीच समझौता वकया जाएगा । 1.5.7 मध्यान्ह भोजन योजना : विद्यालय म ें नामाकन, ठहराि और छात्रों की वनयवमत उपवस् थवत के साथ-साथ बच् चों के बीच पोषण ं स् तर सधारने के दृवष् टकोण स े प्राथवमक वशक्षा के वलए राष् रीय पोषण सहयोग कायणक्रम 15 अगस् त, 1995 ु से शरू वकया गया। कें र द्वारा प्रायोवजत इस योजना को पहले दशे के 2408 ब् लॉकों म ें शरू वकया गया। ु ु िष ण 1997-98 के अत तक एनपी-एनएसपीई को देश के सभी ब् लॉकों म ें लाग कर वदया गया। 2002 में ू ं इसे बढ़ाकर न के िल सरकारी, सरकारी सहायता प्राप् त और स् थानीय वनकायों के स् कलों के कक्षा एक स े ू पाच तक के बच् चों तक वकया गया बवकक ईजीएस और एआईई कें रों म ें पढ़ रह े बच् चों को भी इसके ं अतगतण शावमल कर वलया गया। ितणमान म ें इस योजना का लाभ कक्षा आठ तक के छात्रों को वमल रहा ं ह।ै इस योजना के मख्य उद्दश्े य ह:ैं ु बच्चों को अच्छा पोषण ि स्िास््य दने ा । बच्चों को अच्छी वशक्षा दने ा । बच्चों म ें स्िच््ता एि सफाई का गण विकवसत करना । ु ं सब िग ण के बच्चे एक साथ भोजन करते ह,ैं वजससे उनमें समानता की भािना का विकास होता ह।ै मध्यान्ह भोजन योजना का विस्तत अध्ययन आप ब्लाक 4 की इकाई 3 म ें करेंग े । ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 133 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1.6 मारांश विद्यालय िह स्थान ह ै जहााँ बालक का सिाांगीण विकास होता ह ै । अभी भी वशक्षा तक सबकी पहचाँ नहीं ु हो पाई ह ै क्योंवक अभी भी विवभन्न स्थानों पर हम ें कड़ा बीनने िाले बच्चे, होटलों म ें काम करने िाले ू बच्चे, अखबार बााँटने िाले बच्चे तथा अन्य स्थानों पर कायण करने िाले बच्चे वमल जाते हैं। वशक्षा तभी समािशे ी होगी जब सभी बच्चों तक वशक्षा की पहचाँ होगी, इसके वलए वशक्षक को बड़ी भवमका वनभानी ु ू होगी। एक वशक्षक ही ह ै जो वशक्षा को सािभण ौवमक और समािशे ी बनाने म ें अपना योगदान द े सकता ह ै । समािशे ी वशक्षा का उद्दश्े य प्रत्येक बच्चे की आिश्यकता को बाल कें वरत विवधयों द्वारा विकवसत वकया जाना ह ै और विद्यालय, घर ि समाज म ें अच्छा सम्बन्ध स्थावपत करना ह ै । समािशे ी वशक्षा की पररककपना इस सककपना पर आधाररत ह ै वक सभी बच्चों को विद्यालयी वशक्षा में पहचाँ की इस कदर ु ं आिश्यकता ह ै वक उन्ह ें क्षेत्रीय, सास्कवतक,सामावजक पररिशे और विस्तत सामावजक,आवथणक एि ृ ृ ं ं राजनीवतक प्रवक्रयाओ म ें सदवभतण करके समझा जाय । क्योंवक भारतीय सविधान म ें समता, ं ं ं स्ितत्रता,सामावजक न्याय एि व्यवक्त की गररमा को प्राप्य मकयों के रूप म ें वनप वपत वकया गया ह ै । ू ं ं सािभण ौमीकरण के वलए सरकार द्वारा कई योजनाए चलाई जा रही ह ैं , वजनका विस्तत अध्ययन आपने इस ृ ं इकाई म ें वकया । 1.7 शब्दावली 1. समावेिन :समािशे न एक ऐसी अिधारणा ह,ै वजससे सब िग ण एक साथ समानता के साथ चलें । 2. NCF 2005: (राष्रीय पाठयचयाण फ्रे मिकण ) मानि विकास ससाधन मत्रालय की पहल पर प्रो0 ् ं ं यशपाल की अध्यक्षता म ें दशे के चने हए 23 विद्वानों ने वशक्षा को नई राष्रीय चनौवतयों के रूप ु ु ु म ें दखे ा । यह विद्यालयी वशक्षा का अब तक का निीनतम राष्रीय दस्तािजे ह ै और इस े अन्तराणष्रीय स्तर के के वशक्षाविदों, िज्ञै ावनकों, विषय विशेषज्ञों ि अध्यापकों ने वमलकर तैयार वकया ह।ै अभ्यास प्रश्न 6. मध्यान्ह भोजन योजना का आरम्भ _________ म ें वकया गया । 7. RTE-2009 की कोई दो विशषे ताए वलवखए । ं 8. DPEP का परा नाम _________ह ै । ू 9. नई वशक्षा नीवत िषण_________म ें लाग हई । ु ू 10. महात्मा गााँधी द्वारा बवनयादी वशक्षा िषण_________म ें दी गई । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 134 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 11. वनःशकक एि अवनिायण वशक्षा का प्रािधान सविधान के अन०_________म ें ह ै । ु ु ं ं 12. RTE एक्ट िष ण 2010 म ें परे दशे म ें लाग हो गया ह ै । (सत्य/असत्य) ू ू 13. वशक्षा के अिरोधन म ें सधार लाने के वलए ऑपरेशन ब्लैकबोडण योजना 1987 -88 म ें शप की ु ु गई ।(सत्य/असत्य) 1.8 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. SSA के मख्य तीन उद्दश्े य- नामाकन, गणित्ता तथा ठहराि ु ु ं 2. 2000 म ें 3. अपिवचत िग ण िह िग ण ह ै जो समाज की मख्य धारा से नहीं जड़ पाया अथिा वजसे समाज के लोगों ु ु ं ने अपनी शवक्त का प्रयोग करते हए ऊपर उठने नहीं वदया । ु 4. समािशे ी वशक्षा का अथण ह ै सभी बच्चों के वलए वशक्षा । 5. वशक्षा को समािेशी बनाने के वलए अध्यापक द्वारा वकए जाने िाले दो उपाय: बच्चे को समझना: बच्चा विद्यालय वसफण वशक्षा प्राप्त करने नहीं आता ह ै । बवकक िह तो एक नागररक बनने विद्यालय आता ह ै । बहत सारी वजज्ञासाए और एक नई उम्मीद की वकरण लेकर ु ं बच्चा प्रवतवदन विद्यालय आता ह।ै िह नहीं समझता वक वशक्षक क्या
होता ह ै ? ऐसे म ें वशक्षक का कतणव्य ह ै वक िह बच्चे को समझ े । बालकों के अनरूप पाठयक्रम : वशक्षक को यह पता होना चावहए वक बच्चा क्या चाहता ह?ै ् ु बच्चे क
े अनकल ही पाठयक्रम का वनमाणण वकया जाना चावहए । ् ु ू 6. 1995 7. RTE-2009 की कोई दो विशषे ताए: ं 1. वशक्षक छात्र अनपात 1:3 का होगा । ु 2. वशक्षा की गणित्ता म ें अवनिायण सधार। ु ु 8. DPEP का परा नाम- वजला प्राथवमक वशक्षा कायणक्रम ू 9. 1986 10. 1937 11. अन० 45 ु 12. असत्य 13. सत्य उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 135 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1.9 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 1. Mohant , J, (1994): Education for all (EFA), Deep & Deep Publications, New Dehli . 2. Tyagi , P.N,(1991): Education for all,Graphic presentation, NEPA, New Dehli 3. Saiyida। n, K.G,(1970), Facts of Indian Education, NCERT, New Dehli . 4. डा. जायसिाल, सीताराम- वशक्षा का सामावजक आधार, डालीगज रेलि े क्रोवसग, सीतापर रोड, ु ं ं लखनऊ 5. प्रवतयोवगता दपणण,मई 2007, पष्ठ सख्या 1874 ृ ं 6. www.google.com- RTE-2009, universalisation of school education 1.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. प्राथवमक वशक्षा के सािणभौमीकरण से क्या समझते ह ैं ? सािभण ौमीकरण के वलए चलाई जा रही विवभन्न नीवतयों का विस्तत िणनण कीवजए । ृ 2. समािशे ी वशक्षा से आप क्या समझते ह ैं ? एक अध्यापक के रूप म ें आप अपन े विद्यालय को समािशे ी बनाने के वलए क्या उपाय करेंग े ? विस्तार से समझाइये । 3. वशक्षा का अवधकार अवधवनयम क्या ह?ै आपन े इस अवधवनयम की कौन सी विशषे ता को अपन े विद्यालय म ें लाग वकया ह ै ? सविस्तार व्याख्या कीवजए । ू 4. सि ण वशक्षा अवभयान क्या ह?ै क्या इसके उद्दश्े यों को 2015 तक प्राप्त कर वलया गया ह ै ? इस योजना से अपिवचत िग ण वकस प्रकार लाभावन्ित हए ह ैं ? वििचे ना कीवजए । ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 136 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 2 - आिवनक विक्षा तथा इसके प्रवत प्रवतवियाए ाँ ु 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 स्ितत्रता पिण से ितणमान तक आधवनक वशक्षा का विस्तार ू ु ं 2.4 बीसिीं शती के आरम्भ से भारत की स्ितत्रता तक वशक्षा व्यिस्था ं 2.5 स्ितत्रता पश्चात आधवनक वशक्षा का विस्तार ् ु ं 2.6 विवभन्न सामावजक समहों की आधवनक वशक्षा के प्रवत प्रवतवक्रया ू ु 2.6.1 स्ितत्र भारत में िी वशक्षा ं 2.6.2 अकपसख्यक ं 2.6.3 वनबणल िगण, अनसवचत जावत तथा जनजावत ु ू 2.7 औपवनिेशक वशक्षा की समीक्षा और उनके विककप की तलाश:- 2.8 साराश ं 2.9 सन्दभण ग्रन्थ 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना भारतिष ण की ितणमान आधवनक वशक्षा की आधारवशला के रूप म ें आप वब्रवटश शासन के दौरान शवै क्षक ु तथा सामावजक नीवतयों को देख सकते ह।ैं यह सिणविवदत सत्य है, वक स्ितत्रता के पश्चात भारतिष ण में ् ं वब्रवटश शवै क्षक नीवतयों की तीव्र आलोचना हई तथा आधवनक भारत के वलए आधवनक वशक्षा व्यिस्था ु ु ु की नींि रखी गयी। यह नींि रूपी वशक्षा का आधार वकतना साथणक या असाथणक वसि हआ, यह चचा ण ु और शोध का विषय ह,ै लेवकन सामावजक सरचना म ें वदखाई दने े िाली शवै क्षक व्यिस्था तथा उसका ं कायाणन्ियन वनवश्चत रूप से सतोषजनक या सराहनीय नहीं कहा जा सकता। आजाद भारत में हमारे ं सविधान वनमाणता, शवै क्षक नीवतयााँ वनधाणरण करने िाले तथा वशक्षाशािी न के िल सजग थे, अवपत ु ं शवै क्षक व्यिस्था के वलए बहत गम्भीर भी थे, इन लोगों की यह गम्भीरता सविधान के मौवलक अनच्छेद ु ु ं 45 से भलीभााँवत समझी जा सकती ह।ै सविधान का मौवलक अनच्छेद 45 ही एकमात्र ऐसा अनच्छेद था, ु ु ं वजसम ें समय सीमा का वनधाणरण कर अवत आिश्यकता या शीघ्रता की भािना साफ झलकती थी। इस भािना तथा सविधान म ें स्पष्टता के साथ वदया गया अनच्छेद 45 मात्र सविधान के भाग-4 (नीवत वनदशे क ु ं ं वसिात) म ें स्थावपत कर दने े के कारण, राज्य सरकारों न े चार से ज्यादा दशकों तक इस महत्िपण ण ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 137 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अनच्छेद की उपेक्षा कर, शवै क्षक सरचना को कमजोर वकया। ितणमान इकाई म ें आप आधवनक वशक्षा के ु ु ं आधार के रूप म ें सन 1835 स े 1947 तक वब्रवटश शवै क्षक नीवतयों तथा भारतीय आधवनक वशक्षा के ् ु आधार रूप म ें 1947 से अब तक की शवै क्षक नीवतयों तथा उनके प्रवत प्रवतवक्रयाओ का अध्ययन करेंग े ं तथा साथ ही साथ सार रूप म ें कछ स्ितत्र शवै क्षक प्रवतमानों पर भी चचाण करेंग।े ु ं 2.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- ् 1. वब्रवटश शासन की प्रमख शवै क्षक नीवतयों की आलोचना कर सकें ग।े ु 2. स्ितत्रता पश्चात आधवनक भारतीय वशक्षा व्यिस्था का विश्लेषण कर सकें गे। ् ु ं 3. आधवनक वशक्षा तथा समाज के वभन्न-वभन्न समहों से इनके प्रवत होने िाली प्रवतवक्रयाओ का ु ू ं विश्लेषण कर सकें ग।े 4. विवभन्न समहों जसै े- मवहला, दवलत तथा जनजावतयों के वलए प्रस्तत वशक्षा व्यिस्था पर वटप्पणी कर ू ु सकें ग।े 5. आजादी पि ण तथा आजादी के पश्चात के कछ प्रमख शवै क्षक प्रवतमानों की व्याख्या कर सकें ग।े ् ू ु ु 2.3 स्वतत्रं ता पूवण मे वतमण ान तक आधुवनक वशक्षा का ववस्तार उन्नीसवीं िताब्िी में शिशटि शिक्षा वब्रवटश शासन के प्रारवम्भक िषों म ें आप चाकसण ग्राण्ट की पचसत्रीय योजना से भारत म ें वशक्षा व्यिस्था ू ं के स्थापत्य को समझ सकते ह।ैं यह पचसत्री योजना वनम्नित थी- ू ं i. भारत म ें विद्यालयों की स्थापना। ii. वशक्षा का माध्यम अग्रेजी भाषा होना। ं iii. पाश्चात्य ज्ञान और विज्ञान का विकास करना। iv. ईसाई धम ण का प्रचार करना। चाकसण अपनी पचसत्रीय योजना के माध्यम से भारतीयों की विचारधारा म ें पररितणन तथा उन्ह ें ईसाईयत म ें ू ं विश्वास कराना चाहते थ,े उनकी इस योजना को सरकार की मान्यता भी प्राप्त हो गई तथा उन्ह ें भारत म ें आधवनक वशक्षा का जन्मदाता भी माना जाने लगा। चाकसण ग्राण्ट के पश्चात दसरा महत्िपण ण कदम आप ् ु ू ू सन 1813 के आज्ञा पत्र को मान सकते ह।ैं इस आज्ञा पत्र म ें भारतीयों की वशक्षा के वलए कम से कम एक ् लाख रूपये के प्रािधान स े एक उत्साहजनक माहौल का वनमाणण हआ, हालावक यह उत्साह शीघ्र ही ु ं समाप्त हो गया क्योंवक एक लाख रूपये के व्यय का कोई भी प्रारूप विकवसत न हो सका था। इस आज्ञा पत्र के पश्चात भारतीय वशक्षा के पररदृश्य म ें एक ऐसा वब्रवटश नाम आता है, वजसे आप भलीभााँवत समय- समय पर सनते रहते होंगे, िह नाम था मकै ॉले। सन 1935 म ें मकै ॉले ने पाश्चात्य वशक्षा के पक्ष म ें अपना ् ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 138 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विचार वब्रवटश शासन के समक्ष रखा और तत्पश्चात 1913 के आज्ञा पत्र के गहन अध्ययन तथा प्राच्य ् पाश्चात्य के समथणकों के विचारों को सनन े के पश्चात बड़े ही तकण पण ण ढग से अपनी सलाह को लॉडण बैंवटक ् ु ू ं के पास भजे वदया, इसे ही आप के नाम से जानते ह।ैं लॉडण मकै ॉले ने अपने वििरण पत्र म ें प्राच्य वशक्षा और सावहत्य का जोरदार खडन वकया तथा पाश्चातय ं वशक्षा और विज्ञान की वशक्षा की अनशसा की। मकै ॉले का यह वनम्नवलवखत कथन उसकी प्राच्य वशक्षा ु ं के प्रवत पिाणग्रह को भलीभााँवत दशाणता ह-ै
‘‘एक अच्छे यरोपीय पस्तकालय की एक अलमारी का ू ू ु सावहत्य भारत ि अरब के सम्पण ण सावहत्य के समान महत्ि रखता ह।ै ’’
मकै ॉले ने वशक्षा का माध्यम ू अग्रेजी भाषा को माना तथा उसके पक्ष म ें परजोर िकालत की। मकै ॉले का उद्दश्े य ऐसे भारतीय तैयार ु ं करना था जो रूप ि रग म ें तो भारतीय हो, परन्त विचार से अग्रेज। वब्रवटश शासनकाल म ें मकै ॉले की ु ं ं वशक्षा नीवत का महत्िपण ण स्थान ह ै तथा यह लम्बे समय तक प्रभािी रही। इसकी प्रभाविता के बािजद ू ू प्राच्य पाश्चात्य वििाद न थमा और यह वििाद भी साथ ही साथ सवक्रय रहा। सन 1853 को आप अन्य ् महत्िपण ण िष ण के रूप म ें वब्रवटश वशक्षा के सन्दभ ण म ें दखे सकते ह,ैं जब वब्रवटश ससद ने एक ससदीय ू ं ं सवमवत की वनयवक्त की तथा इसके अध्यक्ष के रूप म ें सर चाकसण िड को वनयक्त वकया। भारतीय वशक्षा ु ु ु नीवत के पररितणन के वलए बनायी गयी इस सवमवत के घोषणा पत्र को आप के नाम ु से जानते ह।ैं िड के इस घोषणा पत्र ने परी भारतीय वशक्षा को सवनवश्चत करने, बहआयामी बनाने तथा ु ु ू ु दीघकण ालीन प्रभाि िाला बनाने का प्रयास वकया। इस घोषणा पत्र म ें वनम्नवलवखत वबन्दओ को समावहत ं ु करने का प्रयास हआ- ु i. वशक्षा नीवत के सगठन के उद्दश्े य क्या हो? ं ii. वशक्षा का माध्यम क्या हो? iii. सहायता अनदान प्रणाली की साथणकता कै से हो? ु iv. सरकारी सस्थाओ म ें धावमकण वशक्षा का स्िरूप क्या हो? ं ं v. अध्यापकों का प्रवशक्षण का स्िरूप कै सा हो? vi. मवहलाओ की वशक्षा का स्िरूप कै सा हो? ं vii. विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा जनवशक्षा का प्रसार कै से हो? िड के घोषणा पत्र ने भारतीय वशक्षा को एक नया साथणक आयाम वदया। इसकी विशालता के आधार पर ु ही, हम इसे ‘भारत म ें अग्रेजी वशक्षा का मग्ै नाकाटाण भी कहते ह।ैं िड के घोषणा पत्र म ें वनदवे शत जन वशक्षा ु ं के प्रसार पर सवक्रय कदम न उठाने के कारण भारतिष ण तथा इग्लैण्ड दोनों जगहों पर भारी असतोष उत्पन्न ं ं हआ और यह असतोष इनका अवधक था वक वब्रवटश शासन को ‘भारतीय वशक्षा आयोग’ (हन्टर ु ं आयोग) की वनयवक्त 1882 म ें करनी पड़ी। आयोग ने सम्पण ण दशे का सिक्षे ण करके , वशक्षाविदों से विचार ु ू विमश ण करके तथा महत्िपणण सम्बवन्धत दस्तािजे ों का अध्ययन करके माचण 1883 म ें वनम्नवलवखत ू वसफाररशों के साथ अपना प्रवतिदे न सरकार के समक्ष प्रस्तत कर वदया। इसकी प्रमख वसफाररशों म ें देशी ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 139 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षा को प्रोत्साहन, प्राथवमक वशक्षा पर बल, माध्यवमक वशक्षा तथा उच्च वशक्षा का उवचत स्थान, नारी वशक्षा, वशक्षा म ें सरकार तथा वमश्नररयों की भवमका, धावमकण वशक्षा तथा सहायता अनदान प्रणाली ू ु शावमल थे। इस आयोग ने भी भारतीय वशक्षा व्यिस्था पर व्यापक प्रभाि डाला। हमने अभी तक की चचाण म ें 19िीं शताब्दी के दौरान प्रमख ि महत्िपण ण कदमों की चचाण की, आइये अब ु ू 20िीं शती के प्रारम्भ से भारत की आजादी तक वब्रवटश शासन के दौरान मख्य शवै क्षक नीवतयों का ु अिलोकन करें और इस दौरान भारतीयों की सजगता से होने िाले प्रभाि तथा फलस्िरूप वशक्षा नीवत को समझने की कोवशश करें। अभ्यास प्रश्न 1. अनच्छेद-45 पद के असफल होने के क्या कारण थे? ु 2. 19िीं शती की वब्रवटश वशक्षा की प्रमख विशेषताए ाँ क्या थीं? ु 2.4 बीमवीं शती के आरम्भ मे भारत की स्वतत्रं ता तक वशक्षा व्यवस्था हमने अभी दखे ा वक उन्नीसिीं शती म ें चाकसण ग्राण्ट, मकै ॉले, िड तथा हटर आवद आयोग की वसफाररशों ु ं के अनरूप वशक्षा व्यिस्था थी लेवकन 20िीं शती का भारत तलनात्मक रूप से अवधक सजग और ु ु सवक्रय हो रहा था और इसवलए भारत का जनसाधारण इन तमाम उपरोक्त िवणतण नीवतयों से सतष्ट नहीं हो ु ं पा रहा था और उसके असतोष का सबसे मख्य कारण भारतीय सस्कवत का तेजी से होता हआ पतन था ु ृ ु ं ं और िहीं दसरी ओर पाश्चात्य वशक्षा जनसाधारण के वलए सलभ न थी। भारत की ऐसी बदलती हयी ु ु ू पररवस्थवत म ें लॉडण कजनण 1899 म ें भारत आयें और वशक्षा व्यिस्था म ें सधार से, प्रशासन म ें सधार का ु ु दशनण रखने के कारण भारतीय वशक्षा जगत म ें एक बार पनः हलचल शरू हो गयी। इस हलचल की ु ु शरूआत ‘भारतीय विश्वविद्यालय आयोग 1902’ की स्थापना से हई, वजसम ें दो भारतीय को साथ लेकर ु ु सर थॉमस रैले को इसका अध्यक्ष वनयक्त वकया गया। इस आयोग का कोई अवतररक्त विशषे प्रभाि न था ु यद्यवप इसने वशक्षा प्रणाली को पनणगवठत तथा शवक्तशाली बनाने की सस्तवतयााँ की। रैले के सझािों के ु ु ु ं आधार पर तमाम आलोचनाओ को दर-वकनार करते हए लॉडण कजनण ने माचण 1904 म ें भारतीय ु ं विश्वविद्यालय अवधवनयम पाररत करिा वलया। इस अवधवनयम के प्रािधानों से यह स्पष्ट ह ै वक उच्च वशक्षा को सरकारी वनयत्रण म ें लाना तथा प्रोत्सावहत करना था। हालावक इस अवधवनयम का एक साथणक पररणाम ं ं यह हआ वक भारतीय विश्वविद्यालय के िल परीक्षा सस्थाए ाँ न होकर वशक्षण सस्थाए ाँ भी बन गयीं वजससे ु ं ं कालान्तर म ें उच्च वशक्षा का स्तर बढ़ा। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 140 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भारतीय जनमानस की तेजी से बदलती हई आकाक्षा और राष्रीय आन्दोलनों का वशक्षा पर प्रभाि पड़ना ु ं शरू हो गया और इसके फलस्िरूप राष्रीय वशक्षा की माग जोर-शोर से उठने लगी। राष्रीय वशक्षा के ु ं वनम्नवलवखत वसिात वचवन्हत वकये गये- ं i. भारतीय वनयत्रण ं ii. राष्रीय चररत्र का विकास iii. भारतीय आयामों पर बल iv. व्यािसावयक वशक्षा पर बल v. भारतीय आदशों पर बल राष्रीय आन्दोलन के दौरान वशक्षा सस्थाओ का बवहष्कार वकया गया तथा बगाल म ें श्री गरूदास बनजी ु ं ं ं की अध्यक्षता म ें
‘राष्रीय वशक्षा प्रसार सवमवत’
का गठन वकया गया। भारतीय आदशों को समावहत करते हए सन 1901 म ें रिीन्रनाथ टैगोर ने शावतवनके तन म ें ब्रह्मचयण आश्रम की स्थापना की, जो 1921 म ें ु ् ं विश्वभारती बना। हररद्वार, िन्दािन, काशी और अन्य जगहों पर वशक्षण सस्थाए ाँ स्थावपत की गयी, ृ ं पररणामस्िरूप राष्रीय वशक्षा के वनमाणण म ें अप्रत्यावशत प्रगवत हयी। सन 1910 म ें अवनिायण प्राथवमक ु ् वशक्षा हते गोपाल कष्ण गोखले का प्रस्ताि भारतीय पररदृश्य म ें एक नयी ऊजाण लेकर आया। गोखले जी ृ ु का यह प्रस्ताि तो अस्िीकार हो गया लेवकन इस प्रस्ताि ने भारतीय जनमानस पर गहरा प्रभाि डाला। सरकार भी बहत लम्बे समय तक वस्थवत की उपेक्षा नहीं कर सकी तथा सन 1913 म ें वशक्षा नीवत ु ् सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताि लके र आयी वजसम ें प्राथवमक वशक्षा, माध्यवमक वशक्षा तथा उच्च वशक्षा की प्रगवत के वलए कई महत्िपण ण वबन्द शावमल वकये गये। इसी प्रस्ताि म ें प्रत्येक प्रात ने एक विश्वविद्यालय ू ं ु खोलने तथा विश्वविद्यालयों में वशक्षण कायण को प्रोत्सावहत करने के सझाि भी वदये गये। प्रथम विश्व यि ु ु की िजह से इसम ें कोई विशषे प्रगवत नहीं हो पायी तत्पश्चात 1917 म ें
‘कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग’
् डॉ0 माइकल सैडलर की अध्यक्षता म ें गवठत वकया गया तथा इस आयोग को कलकत्ता विश्वविद्यालय के अलािा अन्य विश्वविद्यालयों ि वशक्षा के अन्य अगों की जााँच करने का भी अवधकार वदया गया। इस ं आयोग ने अपनी सस्तवतयााँ 1919 म ें प्रस्तत कर दी। इसके तरन्त पश्चात राष्रीय वशक्षा आन्दोलन ् ु ु ु ं (1920-22) ने तीव्र गवत पकड़ ली और महात्मा गााँधी के असहयोग आन्दोलन के साथ-साथ राष्रीय वशक्षा आन्दोलन भी समस्त राष्र म ें फै ल गया। सन 1919 म ें पाररत भारत सरकार अवधवनयम ने 1921 म ें ् द्वधै शासन की स्थापना की लेवकन भारतिासी इससे वबककल सतष्ट नहीं थे और अवधकारों की माग के ु ु ं ं कारण निम्बर 1927 म ें सर जॉन साईमन की अध्यक्षता में एक आयोग की वनयवक्त की तथा इसी प्रवक्रया ु म ें भारतीय वशक्षा की वस्थवत की जााँच करने के वलए एक सहायक सवमवत सर वफवलप हटाांग की अध्यक्षता म ें गवठत की तथा इसी हटाांग सवमवत ने सन 1929 म ें अपनी ररपोटण प्रस्तत की। सवमवत को इस ् ु ररपोटण पर भारतीयों का विरोध, साईमन आयोग के प्रवतिदे न, सिदण लीय कॉन्फ्रें स की ररपोटण, गोलमेज सम्मले न के िाद-वििाद, श्वेत पत्र, सयक्त प्रिर सवमवत ररपोटण तथा लोवथया ररपोटण के आधार पर सन ् ु ं ं 1935 म ें वब्रवटश सरकार ने पाररत वकया और फलस्िरूप प्रान्तों को प्रान्तीय उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 141 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं स्ितत्रता द े दी गयी। हटाांग सवमवत की अनशसा के पररणामस्िरूप भारत सरकार ने सन 1921 म ें स्थावपत ् ु ं ं के न्रीय वशक्षा सलाहकार बोडण को पनः 1935 म ें गवठत वकया। इस बोडण के आग्रह पर 1937 म ें एि और ु ं िड दो विद्वान भारत आये और वशक्षा प्रणाली पर तमाम अध्ययन के पश्चात अपनी ररपोटण प्रस्तत की। ् ु ु इसके पश्चात 1944 म ें के न्रीय वशक्षा सलाहकार बोडण ने शवै क्षक विकास के सम्बन्ध म ें एक विस्तत ृ ् योजना बनायी वजसे हम के नाम से जानते ह।ैं सर जॉन साजण्े ट ने
‘भारत म ें शवै क्षक विकास पर एक स्मवत पत्र’
1944 म ें बोडण के सम्मख प्रस्तत वकया, इसम ें वशक्षा के सभी स्तरों पर विचार ृ ु ु विमश ण हआ और पररणामस्िरूप यह योजना राष्रीय वशक्षा प्रणाली की स्थापना करने की वदशा म ें प्रथम ु राजकीय प्रयास हआ। भारतीय वशक्षा के इवतहास म ें साजण्े ट योजना का अत्यन्त महत्िपण ण स्थान ह।ैं ु ू अभ्यास प्रश्न 3. लॉडण कजनण के शासन काल म ें वब्रवटश सरकार की वशक्षा के क्षेत्र म ें क्या भवमका थी? ू 4. गोखले के प्रस्ताि के वशक्षा के वलए क्या वनवहताथण थे? 2.5 स्वतत्रं ता पश्चात आधुवनक वशक्षा का ववस्तार लगभग दो सौ िष ण के वब्रवटश शासन के उपरान्त 15 अगस्त 1947 से वशक्षा व्यिस्था की वदशा ि दशा तय करने का अवधकार अब भारतिष ण के पास था। सविधान वनमाणताओ ने इस वदशा म ें बहत ही सवक्रय ु ं ं कदम उठाते हए 26 जनिरी 1950 को लाग होने िाले सविधान म ें अनच्छेद 45 की अिधारणा दी ु ू ु ं वजसम ें यह कहा गया वक
‘सविधान लाग होने के दस िषों के अन्दर सभी राज्य अपन े क्षेत्र के सभी बच्चों ू ं को 14 िष ण की आय होने तक वनःशकक तथा अवनिायण वशक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।’
सम्पण ण ु ु ू सविधान म ें यह एक मात्र ऐसा अनच्छेद था वजसे समय सीमाबिता से जोड़ा गया था, बािजद इसके ु ू ं राज्य इस महत्िपण ण अनच्छेद की चार दशकों तक अिहले ना कर सके क्योंवक इस महत्िपण ण अनच्छेद ू ु ू ु का अनस्थापन सविधान के भाग-4 नीवत वनदशे क वसिात म ें करने के कारण यह न्यायालय के अधीन ु ं ं नहीं आता था। आजाद भारत म ें कछ अत्यवधक धीमी गवत से ही वशक्षा व्यिस्था को चस्त दरूस्त करने का ु ु ु कायण हआ और इस वदशा म ें वनणयण लेने की क्षमता ने भी प्रगवत को अिरोवधत वकया। राधाकष्णन आयोग ु ृ (1948-49), मदावलयर आयोग (1952-53), कोठारी आयोग (1964-66) के रास्ते भारतिष ण को अपनी ु पहली का वनमाणण करने म ें 21 िषों का लम्बा समय लग गया। 1968 की यह कई सन्दभों म ें पणण नहीं थी अतः सतोषजनक अथों म ें भारतिष ण को अपनी लगभग ू ं पण ण 1986 म ें प्राप्त हई, लेवकन इसे प्राप्त करने म ें आजाद भारत को 39 िषों का ु ू बहत लम्बा सफर तय करना पड़ा। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 142 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं दभाणग्यिश सरकारी कदमों तथा विवभन्न आयोगों ि वशक्षा नीवतयों की अनशसाओ के वक्रयान्ियन म ें ु ं ं ु विसगवतयों से भारतीय वशक्षा की सरचना को मजबत आधार वमलने के बजाये गणात्मक अिमकयन को ू ु ू ं ं आधार वमला। उदाहरण स्िरूप आप एक छोटे से दृष्टान्त से इन विसगवतयों को भलीभााँवत समझ सकते ं ह-ैं ‘कोठारी वशक्षा आयोग (1964-66) ने समान स्कल व्
यिस्था (कॉमन स्कल वसस्टम) की अनशसा ू ू ु ं करते हए कहा था वक यह एक ऐसी व्यिस्था होगी जो सभी बच्चों को वबना वकसी भेदभाि के समान ु गणित्ता िाली वशक्षा सलभ कर पायेगी। इस व्यिस्था क
ी ओर बढ़ने के वलए आयोग ने पड़ोसी स्कल को ु ु ू एक ऐसे औजार के रूप म ें प्रस्तत वकया था जो सामावजक अलगाि को कम करने म ें मददगार होगा। इस ु अनशसा की ससद द्वारा पाररत पहली राष्रीय वशक्षा नीवत (1968), दसरी वशक्षा नीवत (1986) और ु ं ं ू सशोवधत वशक्षा नीवत (1992) म ें तीन बार स्िीकारा गया लेवकन सरकार द्वारा उठाये गये कई कदम ं अलग-अलग सामावजक तबकों के वलए अलग-अलग प्रकार की स्कल व्यिस्थाए ाँ खड़ी करके समान ू स्कल व्यिस्था का उकलघन करते रह’े । ू ं स्ितत्रता के पश्चात आधवनक वशक्षा को विस्तार दने े का प्रयास करते हए, भारतीय सविधान के ु ु ं ं खण्ड तीन और चार म ें वशक्षा सम्बन्धी अनेक प्रािधान वकये गये। इन तमाम प्रािधानों को आप वनम्नवलवखत अनच्छेदों के विस्तत िणनण से स्िय ही समझ सकते ह।ैं आपके तात्कावलक सज्ञान के वलए ृ ु ं ं यहााँ पर के िल सम्बवन्धत अनच्छेदों का उकलेखन मात्र वकया जा रहा ह।ै ये अनच्छेद ह-ैं 13, 15, 21A, ु ु 28, 30, 37, 38. 39, 41, 45, 46, 47, 51A. इन अनच्छेदों के माध्यम से वशक्षा का अवधकार, वनःशकक तथा अवनिायण प्राथवमक वशक्षा, ु ु अकपसख्यकों की वशक्षा, समान शवै क्षक अवधकार, अनसवचत जावत, जनजावत ि कमजोर िगों की ु ू ं वशक्षा, धावमकण वशक्षा की स्ितत्रता, मातभाषा म ें वशक्षा सविधाए,ाँ वियों तथा वपछड़े िगों की वशक्षा ृ ु ं इत्यावद को सगवठत तथा मजबत करने का प्रयास वकया गया। ू ं अभ्यास प्रश्न 5. भारतीय वशक्षा नीवत के उद्भि म ें विलम्ब के कारण क्या थे? 6. आजाद भारतीय वशक्षा व्यिस्था की प्रमख विशेषताए ाँ क्या ह?ैं ु 2.6 वववभन्न मामावजक ममूहों की आधुवनक वशक्षा के प्रवत प्रवतवक्रया वद्वतीय विश्व यि के पश्चात दवनया के बहत सारे दशे ों ने अपने-अपने दशे ों म े पनणवनमाणण का कायण शरू ु ् ु ु ु ु वकया और इसके साथ ही अपनी गलामी से मक्त होने का प्रयास तथा एक सप्रभ दशे के रूप म ें उदय होन े ु ु ु ं की वदशा म ें कायण करना प्रारम्भ वकया। इस वदशा म ें उनका एक मख्य मद्दा था तथा भारत जसै े ु ु दशे म ें के आधारों में मख्य आधार वशक्षा को वदया गया। जसै ा वक आप समझते ह ैं वक वशक्षा ही ु आवथणक प्रगवत, सामावजक न्याय और विवभन्न सामावजक वस्थवतयों का एक महत्िपण ण आधार ह।ै वशक्षा ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 143 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं के स्िरूप तथा इसकी व्यिस्था पर आजादी से पि ण तथा आजादी के पश्चात विवभन्न समहों जसै े- िी, ् ू ू अकपसख्यक, वनबणल िगण, अनसवचत जावत ि जनजावत इत्यावद की प्रवतवक्रयाओ तथा उनके सन्दभों का ु ू ं ं अध्ययन हम इस इकाई म ें करेंग।े 2.6.1 स्वतत्र भारत में िी शिक्षा ं िी वशक्षा की वस्थवत का मकयाकन अगर हम स्ितत्र भारत के सन्दभ ण म ें करें तो औपवनिशे क काल की ू ं ं तलना म ें हम अपने आपको बेहतर वस्थवत म ें पाते ह।ैं मगलकालीन शासन व्यिस्था और औपवनिशे क ु ु काल म ें जो िी वशक्षा मख्य धारा म ें शावमल नहीं थी, स्ितत्र भारत म ें अवनिायण रूप से प्रदान की जा रही ु ं ह ैं शक्षै वणक सस्थानों के अभतपि ण प्रसार, शक्षै वणक अिसरों की उपलब्धता तथा साक्षरता से सम्बवन्धत ू ू ं नीवतयों को कायणवन्ित करने का ही नतीजा ह ै वक 1947 म ें जो िी साक्षरता 6 प्रवतशत थी िह आज 65 प्रवतशत हो चकी ह।ै भारत म ें 1948 के बाद की अिवध म ें मवहलाओ की वशक्षा को सिोच्च प्राथवमकता ु ं दते े हए उनकी सामावजक वस्थवत म ें सधार हते विवभन्न विकास कायणक्रम और नीवतयााँ शरू की गई। आज ु ु ु ु ं उन नीवतयों का ही नतीजा ह ै वक भारतीय समाज में मवहलाओ की वस्थवत म ें हम जबरदस्त बदलाि को ं पाते ह।ैं सविधान ने वलगों की समानता को मौवलक अवधकार के रूप म ें वनधाणररत वकया ह ै परन्त इस ु ं ं समानता को सही मायने म ें वसफण िी वशक्षा द्वारा ही प्राप्त वकया जा सकता ह।ै भारत के समग्र विकास के वलए यह जरूरी ह ै वक िी वशक्षा से जड़े तमाम वशक्षा कायणक्रमों को कायणवन्ित वकया जाये। चाह े दशे के ु आवथणक विकास और समवि की बात हो; िी के आवथणक सशक्तीकरण की बात हो या वफर वियों के ृ बेहतर स्िास््य और स्िस्थ जीिन शलै ी की बात हो; िी वशक्षा के वबना कछ भी सभि नहीं ह।ै आवथणक ु ं सशक्तीकरण और स्ितत्रता के िल मवहलाओ के उवचत वशक्षा और रोजगार के माध्यम से ही सभि ह।ै ं ं ं इकस्िीं सदी के भारत म ें आज प्रत्येक स्तर पर अपनी भागीदारी सवनवश्चत कर रही ह ै परन्त आज ु ु भी बहत कछ वकया जाना बाकी ह।ै जिाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था वक यवद आप एक व्यवक्त को ु ु वशवक्षत करते ह ैं तो आप वकसी व्यवक्त को वशवक्षत करते ह ैं परन्त अगर आप वकसी औरत को वशवक्षत ु करते ह ैं तो आप परे पररिार को वशवक्षत करते ह।ैं के रल और वमजोरम भारत म ें दो ऐसे राज्य ह ैं वजन्होंन े ू सािभण ौवमक रूप से मवहला साक्षरता दर प्राप्त की ह।ै वबहार और झारखण्ड जसै े राज्यों म ें मवहला साक्षरता दर की वस्थवत आज भी अच्छी नहीं ह।ै वशक्षा के मामले म ें मवहलाओ की ददशण ा के पीछे उनके माता- ं ु वपता का नकारात्मक रियै ा भी कछ हद तक वजम्मदे ार होता ह।ै आज भी उच्च वशक्षा म ें वियों की ु भागीदारी बहत कम ह।ै सयक्त राष्र सघ द्वारा 1975 म ें मवहलाओ का दशक की घोषणा के बाद से बहत ु ु ु ं ं ं सारी चीजों म ें बदलाि आये ह ैं और बहत सारी चीजों म ें आमलचल पररितणन की जरूरत ह ैं वबहार में ु ू ू मवहला जनसख्या लगभग पााँच करोड़ ह ै परन्त साक्षर मवहलाओ की सख्या वसफण लगभग दो करोड़ ही ह ै ु ं ं ं उसी प्रकार झारखण्ड म ें मवहला जनसख्या लगभग 1.5 करोड़ ह ै परन्त साक्षर मवहलाओ की सख्या वसफण ु ं ं ं लगभग 75 लाख रही ह।ै इस प्रकार हम पाते ह ैं वक आज भी दशे की आधी मवहला आबादी अनपढ़ ह।ै इस बात को िी वशक्षा से जड़े तमाम वहतधारकों को समझना होगा की िी सशक्तीकरण द्वारा ही दशे को ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 144 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं मजबती प्रदान की जा सकती ह।ै राष्रीय मवहला नीवत 2016 िी वशखा को मख्य धारा म ें लाने का बहत ु ू ु सारे उपायों का उकलेख करती ह ै वजसम े से कछ इस प्रकार ह ैं - ु i. आगाँ नबाड़ी के न्रों को मजबती प्रदान कर। ू ii. वशक्षा का अवधकार कानन, 2009 को कायणवन्ित कर। ू iii. वलग आधाररत सविधाओ को उपलब्ध करा कर। ु ं ं iv. विद्यालयों तथा महाविद्यालयों म ें सहयोगात्मक व्यिहार द्वारा। v. दरस्थ वशक्षा द्वारा। ू आज िी वशक्षा की अच्छी वस्थवत नहीं होन े के कारण ही वलगानपात 1000 लड़कों पर 918 लड़वकयों ु ं का हो चका ह।ै इन वस्थवतयों का ही नतीजा था की भारत सरकार द्वारा 2015 के जनिरी महीने म ें अथाणत लड़वकयों को बचाना और वशवक्षत करना िाली योजना की शरूआत हई। ु ् ु ं इस योजना का मकसद भारतीय समाज म ें लड़वकयों और मवहलाओ के वलए ककयाणकारी कायों की ं कशलता को बढ़ाने के साथ-साथ लोगों के बीच वशक्षा के प्रवत जागरूकता उत्पन्न करने के वलए भी ह।ै ु लड़वकयों के प्रवत लोगों की विचारधारा म ें सकारात्मक बदलाि लाने के साथ ही ये योजना भारतीय समाज म ें लड़वकयों की महत्ता की ओर भी इवगत करता ह।ै भारतीय समाज म ें लड़वकयों के प्रवत लोगों की ं मानवसकता आज भी कमोिेश पहले जसै ी ही ह।ै इसवलए उन्ह ें गणित्तापण ण वशक्षा प्रदान कराने के साथ ु ू छोटी बच्ची की सरक्षा को पक्का करना, लड़वकयों को बचाना, कन्या भ्रण हत्या रोकने के वलए इस ु ू योजना की शरूआत की गयी ह।ै वशक्षा, स्िास््य, सरक्षा, खान-पान अवधकार को समान रूप स े ु ु उपलब्धता लड़वकयों को तभी प्राप्त होगी जब उनके शवै क्षक स्तर म ें सधार होगा। नैपोवलयन को एक बार ु पछा गया था वक फ्रास के वलए सबसे महत्िपण ण क्या ह?ै उन्होंने उत्तर दते े हए कहा था वक राष्र की ु ू ू ं प्रवशवक्षत और वशवक्षत माताओ के वबना प्रगवत असभि ह ै वशवक्षत मवहलाओ के अभाि म ें इस दशे के ं ं ं लगभग आधे लोग अज्ञानी होंग।े यह सिवण िवदत ह ै वक अगर सभी प्रकार की असमानताओ पर विजय ं प्राप्त करनी ह ै तो वफर हम ें िी वशक्षा द्वारा वियों के सामावजक, आवथणक और शवै क्षवणक पररिशे को बदलने का प्रयास करना होगा और तभी हम एक मजबत भारत के वनमाणण का सपना दखे पायेंग।े ू आजादी के पि ण के कछ चवनदा उदाहरणों को यवद छोड़ वदया जाये तो वियों की प्रवतवक्रया तथा उनका ू ु ु ं वशक्षा के क्षेत्र म ें योगदान तथा उनके अनभि को बहत उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता ह।ै आजादी के ु ु पश्चात और विशेष रूप से राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 के पश्चात ही आज मात्रात्मक तथा गणात्मक दोनों ् ् ु तरह के पररितणनों को स्पष्टतया दखे सकते ह।ैं हालावक 1958 म ें दगाणबाई दशे मख की अध्यक्षता में गवठत ु ं ु
‘राष्रीय मवहला वशक्षा सवमवत’,
1962 म ें राष्रीय मवहला वशक्षा पररषद ने विद्यालय स्तर पर बालक तथा बावलकाओ के पाठयक्रम म ें अतर होने अथिा नहीं होने की महत्िपण ण समस्या पर विचार करने हते ् ू ु ं ं श्रीमती हसा महे ता की अध्यक्षता में गवठत सवमवत तथा 1964 म ें कोठारी आयोग की महत्िपणण ू ं अनशसाओ का सज्ञान आपके वलए अत्यत आिश्यक ह ै लेवकन जसै ा वक ऊपर कहा गया ह ै वक िी ु ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 145 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षा तथा उनके अनभि राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 के उपरान्त ही पररलवक्षत होता ह।ै राष्रीय वशक्षा ु नीवत-1986 के सम्बवन्धत अश में वलखा ह ै वक, ‘वशक्षा का उपयोग मवहलाओ के सामावजक दज े में ं ं बवनयादी पररितणन लाने के वलए एक साधन के रूप म ें वकया जायेगा। अतीत से चली आ रही विकवतयों ृ ु को खत्म करने के वलए मवहलाओ के पक्ष म ें एक स्पष्ट तयशदा झकाि होगा। राष्रीय वशक्षा व्यिस्था ु ं ु मवहलाओ को सशक्तीकरण हते एक सकारात्मक हस्तक्षेप की भवमका वनभायेगी.....इस काम को कत ृ ु ू ं सककप होकर सामावजक ‘इजीवनयररग’ के रूप म ें वकया जायेगा.....। ं ं 2.6.2 अल्पसख्यक ं भारत विविधताओ से यक्त देश ह ै और इस विविधता के कई आयाम ह ै वजनम ें से एक मख्य घटक ु ु ं विवभन्न धम ण ह।ैं भारत दशे म ें बहसख्यक वहन्द धम ण के अवतररक्त अन्य कई धमों के लोग ह,ैं आजादी के ु ं ू पि ण धम ण के आधार पर भारतीय जनमानस के सज्ञान म ें वकसी भी तरह की विभाजन या अलगाििादी सोच ू ं की ककपना नहीं वदखायी पड़ती ह।ै अतः आजादी पि ण इस तरह की सककपना पर विचार समीचीन नहीं ू ं होगा। आजादी के पश्चात भी कमोिशे यही मानवसकता पररलवक्षत होती ह ै लेवकन 1947 के दभाणग्यपण ण ् ू ु विभाजन से तत्कालीन वचतक ि नीवत वनमाणता भविष्य के भारत को एक रखने तथा उसम ें रहने िाले ं लोगों को समान ि समवचत अिसर प्रदान करने हते तथा अकपसख्यक िग ण की धावमकण , भाषाई अथिा ु ु ं सास्कवतक पहचान अक्षण्ण रखने के वलए भारतीय सविधान म ें समवचत प्रयास वकये ह।ै वशक्षा इस ृ ु ं ं ु पहचान को बनाये रखने का एक महत्िपण ण साधन ह ै इसवलए अकपसख्यकों को अपनी पसद की वशक्षा ू ं ं व्यिस्था करके अपनी आने िाली पीवढयों को अपनी सास्कवतक विरासत के स्थानान्तरण की स्ितत्रता ृ ं ं दी गई। भारतीय सविधान के अनच्छेद 24, 30, 350 तथा राष्रीय वशक्षा नीवत के प्रयास अकपसख्यकों ु ं ं की वशक्षा तथा विकास सवनवश्चत वकया गया ह।ै ु 2.6.3 शनबिल वर्ि, अनसशचत जाशत तथा जनजाशत ु ू आजादी पि ण वनबणल िगण, अनसवचत जावत तथा जनजावत का शवै क्षक विकास कई सामावजक, आवथणक, ू ु ू राजनैवतक तथा धावमकण पररवस्थवतयों के कारण बहत ही वपछड़ा रहा। स्ितत्रता सग्राम के दौरान ु ं ं सामावजक, राजनीवतक चेतना ने वनबणल िगों की वस्थवत को काफी प्रभावित वकया। सामावजक रूवढयों में पररतिनण तथा प्रगवतशीलता के कारण, समाज की मख्यधारा से कटे दवलतों तथा वनबणल िगों के शवै क्षक ु विकास के वलए प्रयास वकये गये। आजादी के पश्चात इस प्रयास तथा इन िगों के विकास को सवनवश्चत ् ु करने के वलए भारतीय सविधान के अनच्छेद 15(4), 46, 335, 338, 339, 340, 341 तथा 342 म ें इन ु ं िगों के वलए विशषे प्रािधान वकये गये। स्ितत्रता के पश्चात कछ विशषे प्रयास वनम्नवलवखत ह-ैं ् ु ं i. वनःशकक वशक्षा तथा पस्तकीय सहायता। ु ु ii. प्रिशे हते आरक्षण व्यिस्था। ु iii. अह ण होने के वलए प्राप्ताकों म ें छट। ू ं iv. रोजगार म ें आरक्षण व्यिस्था। v. छात्रिवत्तयों की व्यिस्था। ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 146 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं vi. आश्रम स्कलों की स्थापना। ू vii. सामावजक, सास्कवतक विशषे ताओ का सरक्षण, इत्यावद। ृ ं ं ं वशक्षा को विकास की प्रवक्रया म ें एक प्रमख घटक मानते हए आजाद भारत म ें अनसधानकताणओ ने ु ु ु ं ं वनबणल िगण, अनसवचत जावत एि जनजावत की वशक्षा व्यिस्था पर ध्यान के वन्रत करना शरू वकया और ु ू ु ं पररणामस्िरूप वशक्षा व्यिस्था की वदशा ि दशा के स्िरूप पर भााँवत-भााँवत के आकड़े वमलने शरू हो गयें, ु ं वजसके आधार पर वशक्षा नीवतयों तथा उनके कायाणन्ियन में सन्दभ ण के अनरूप सझाि प्रस्तत वकये गये। ु ु ु राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 में यह कहा गया वक ‘‘शवै क्षक दृवष्ट से वपछड़े समाज के सभी िगों को विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों म ें उपयक्त प्रोत्साहन वदये जायेंग।े पहाड़ी ि रेवगस्तानी वजलों, दर दराज ि दगणम ु ू ु क्षेत्रों तथा द्वीपो पर उपयक्त सस्थागत अवधसरचना प्रदान की जायेगी’’। ु ं ं अभ्यास प्रश्न 7. आजाद भारत म ें वियों की वशक्षा व्यिस्था पर आपकी क्या राय है? 8. आजाद भारत म ें भारतीय सविधान के द्वारा अकपसख्यकों, वनबणल िगों, अनसवचत जावत तथा ु ू ं ं जनजावत को वकस प्रकार सरवक्षत वकया गया ह?ै ु 2.7 औपवनवेशक वशक्षा की ममीक्षा और उनके ववकल्प की तलाश वब्रतानी हकमत के दो सौ साल से अवधक समय के शासन काल में उन्नीसिीं शताब्दी का उत्तराधण एक ु ू ऐसे िक्त को इवगत करता ह ै वजसम ें न वसफण 1857 का गदर शावमल ह ै बवकक उन अनवगनत चैतन्य ं इवतहास परूषों के अितरण का भी साक्षी रहा ह ै वजन्होंने उस सामावजक पररतितणन का नेतत्ि वकया ृ ु वजसने समाज को अपने मल की ओर लौटने का उधत वकया। भारतीय समाज सेिकों, सावहत्यकारों और ृ ू वचन्तकों को यह बात बड़ी जकद समझ म ें आ गयी थी वक अग्रेजी हकमत के रहते भारतीय कभी भी ु ू ं अपनी भारतीयता को हावसल नहीं कर पायेंग।े यही िह सोच थी वजसने भारतीय समाज को अपने दशे ज तत्िों की खोज की ओर अग्रसर वकया उन्हीं दशे ज तत्िों म ें अपनी वशक्षा व्यिस्था को स्थावपत करना भी शावमल था। औपवनिवे शक वशक्षा की समीक्षा और उनके विककप की तलाश उस माहौल का एक महत्िपण ण सदभ ण वबन्द था वजसने वशक्षा म ें नये-नये प्रयोगों को जन्म वदया था। ईश्वर चन्र विद्यासागर, ू ं ु स्िामी दयानन्द सरस्िती, स्िामी श्रिानन्द, रवबन्रनाथ टैगोर, महात्मा गााँधी और आग े चल कर वजद्द ु कष्णमवतण जसै े महान लोगों ने न के िल औपवनिेशक वशक्षा के फलस्िरूप उत्पन्न होने िाले दष्पररणाम ृ ू ु के प्रवत लोगों को आगाह वकया था बवकक विककप स्िरूप अपने स्थानीय पररिशे और जीिन व्यिहार से जड़ी वशक्षा व्यिस्था को स्थावपत भी वकया था। ईश्वर चन्र विद्यासागर ने बगाल की वशक्षा प्रणाली म ें एक ु ं क्रावत लायी उन्होंने गााँि के पाठशाला म ें प्राथवमक वशक्षा शरू की। एक स्िदशे ी भारतीय स्कल जहााँ ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 147 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भाषा, व्याकरण, अकगवणत और अन्य शाि यिाओ को वसखाया जाता था। विद्यासागर की योजनाओ ु ं ं ं के मख्य उद्दश्े य म ें से लड़वकयों की वशक्षा एक थी। वहन्द शािों के सच्चे अथण को समझाते हए वशक्षा के ु ु ू अवधकारों का समथणन करने और सच्चे लोगों के बीच इस सच्चाई का प्रचार करने का श्रेय विद्यासागर को जाता ह।ै लड़वकयों के 35 स्कल खोलने का श्रेय विद्यासागर हो जाता ह।ै स्िामी श्रिानन्द ने लाला ू मशीराम गरूकल की स्थापना कागरी म ें 1902 म ें की। यह टैगोर के ब्रह्मचयाणश्रम की तरह ही था जहााँ ु ु ु ं ं भारतीय दशनण के आलोक म ें वशक्षा दी जाती थी। वशक्षा का जो उद्दश्े य होना चावहए उनकी प्रावप्त म ें अपन े समय के अक्षम विद्यालयों ने ही कष्णमवतण और टैगोर दोनों को अलग तरह के विद्यालयों की स्थापना के ृ ू वलए प्रेररत वकया। ि े सस्थाए ाँ आज भी अपनी प्रासवगकता सावबत कर रहीं ह।ैं टैगोर के उत्कष्ट योगदान पर ृ ं ं कष्ण कमार कहते ह-ैं ठाकर ने जहााँ एक ओर ज्ञान की औपवनिवे शक अिधारणाओ को वमटाने की ृ ु ु ं कोवशश की िहीं वशक्षा से उत्पीवडत बच्चे की मवक्त के वलए ब्रह्मचयाणश्रम की आधारवशला रखी। टैगोर ने ु वजस िकै वकपक वशक्षा व्यिस्था की शरूआत की उसके पीछे वसफण बचपन के अनभि का ही योगदान ु ु नहीं था उस समय की सामावजक-राजनीवतक पररवस्थवतयों ने भी कछ अलग से करन े को प्रेररत वकया। ु ऐसा प्रतीत होता ह ै वक विवभन्न दशे काल म ें वकये गये वशक्षा से सम्बवन्धत प्रयोगों और प्रयासों से टैगोर परी तरह िावकफ थे। मकै ॉले की नीवतयों को कायाणवन्ित करने के बाद दशे ज वशक्षा की दयनीय वस्थवत ू तथा स्थानीय भाषा म ें उपलब्ध ज्ञान को वनम्न स्तर का बताते हए खत्म करने की सावजश- ये दो ऐसे मल ु ू कारण थे वजसने टैगोर का ध्यान मल की महत्ता की ओर आकष्ट वकया तथा उसे सरवक्षत करने सम्बवन्धत ृ ू ं विचारों का बीजारोपण वकया। सामावजक करीवतयों तथा िी वशक्षा से जड़ी हई कई समस्याओ के ु ु ु ं वनिारण म ें उन्नीसिीं सदी के अत तक आते-आते उपलब्ध सस्थाओ की असमथणता से टैगोर पररवचत हो ं ं ं चके थे। जो भी सस्थाए ाँ वशक्षण कायण से सम्बि थी ि े सभी वब्रवटश हकमत को लाभ पहचाँ ाने िाली ु ु ु ू ं नीवतयों के अनकरण म ें व्यस्त थीं। स्िाभाविक था वक उस समकालीन वशक्षा व्यिस्था से भारतिष ण का ु भला नहीं होने िाला था। टैगोर ने 1901 म ें ब्रह्मचयाणश्रम की स्थापना की थी। अपने समय की समकालीन औपचाररक वशक्षा व्यिस्था को असगत तथा वशक्षा के उद्दश्े य को पाने म ें असफल बताने िाले कष्णमवतण ृ ू ं की कै वलफोवनणया यात्रा ने एक ऐसे वशक्षण सस्थान की नींि रखने सम्बवन्धत बीज-विचार को रोवपत वकया ं जो सरकारी सस्थानों की असफलता के एिज म ें एक बेहतरीन विककप के रूप म ें 1931 म ें ऋवष िलै ी के ं रूप म ें वदखा। लगभग नौ दशकों के लम्बे समयािवध म ें इस विद्यालय ने अपने अवद्वतीय छवि को आज भी बनाये रखा ह।ै आज भी हमारी वशक्षा व्यिस्था पर मकै ॉले की नीवतयों का असर साफ तौर पर दखे ा जा सकता ह ै और उसी का नतीजा ह ै वक हमारी सजन क्षमता सकट म ें ह।ै अतः अपनी वशक्षा व्यिस्था को ृ ं हमारे महान वशक्षाविदों के द्वारा सझाये गये िकै वकपक व्यिस्था के सन्दभ ण म ें पनणपररभावषत करने की ु ु जरूरत ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 148 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2.8 मारांश यह सिवण िवदत त्य ह ै वक वशक्षा का एक बड़ा स्तर सामावजक न्याय को प्राप्त करन े म ें महत्िपण ण भवमका ू ू वनभाता ह ैं शवै क्षक सस्थानों स े उम्मीद की जाती ह े वक ि े बच्चों को समाज म ें साथणक जगह हावसल करने ं के वलए आिश्यक योग्यता से लैस कर पायेंग े जो एक समतािादी समाज की स्थापना के वलए जरूरी ह।ै हालावक आज भी भारत म ें बड़ी सख्या म ें बच्चों को शक्षै वणक व्यिस्था से बाहर रखा जाता ह ै और ं ं इसवलए ि े अपने समदायों के आवथणक, सामावजक, राजनीवतक और सास्कवतक जीिन म ें साथणक रूप से ृ ु ं से भाग नहीं ले पाते ह।ैं हावशए पर जीिनयापन करने िाला समदाय िह समह ह ै जो समाज के वनचल े ु ू तबके से आता ह,ै जो समह आज भी मख्यधारा के आवथणक, राजनीवतक, सास्कवतक और सामावजक ृ ू ु ं गवतविवधयों म ें शावमल होने से िवचत ह।ै आज भी मवहलाओ, आवदिासी समहों और अनसवचत जावत ू ु ू ं ं तथा जनजावत तबकों म ें एक बड़ा िगण अनपढ़ लोगों का ह।ै मौजदा शक्षै वणक कायणक्रम उन बच्चों तथा ू उन लोगों वजनम ें की समाज में हावशए पर धके ल वदये गये लोग मख्य रूप से शावमल ह,ै की जरूरतों को ु परा करने म ें विफल रहा ह।ै कछ शक्षै वणक कायणक्रम जरूर ऐसे ह ैं वजन्ह ें समाज के उस तबके को मख्य रूप ू ु ु से ध्यान म ें रख कर बनाया गया ह े जो आज भी अपने आप को मख्य धारा म ें शावमल नहीं कर पायें ह ैं ु परन्त ि े कायणक्रम भी अपयाणप्त सेिाए ाँ ही प्रदान कर पा रही ह।ैं वशक्षा का अवधकार सािणभौवमक ह ै और ु वकसी भी प्रकार के बवहष्कार या भदे भाि की अनमवत नहीं दते ा ह।ै हालावक, आज भी भारत जसै े ु ं विकासशील दशे को समान रूप से वशक्षा प्राप्त करने के अिसर को सभी के वलए उपलब्ध करिाने म ें चनौवतयों का सामना करना पड़ रहा ह।ै आवदिासी समहों को अक्सर राष्रीय शवै क्षक नीवतयों म ें कोई ु ू स्थान नहीं वदया जाता ह।ै गरै भदे भाि और समानता प्रमख मानि अवधकार वसिात ह ै जो वशक्षा के ु ं अवधकार पर लाग होते ह।ैं राज्यों का यह दावयत्ि ह ै वक राष्रीय स्तर पर इन वसिातों को लाग करें और ू ू ं वशक्षा म ें मौजदा असमानताओ को खत्म करने के वलए सकारात्मक कारणिाई करते हए नये कायणक्रमों को ु ू ं कायाणवन्ित करें। 2.9 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 1. Chauhan,C.P.S.: Modern Indian Education: Policies, Progress & Problems. Kanishka Publishers, New Delhi, 2004 2. Khanna,S.D. (et.al.): History of Indian Education and its Contemporary Problems. Doaba House, Delhi, 2002 3. Mukherji,S.N.: Education in India Today and Tomorrow. Vinod Pushtak Mandir, Agra, 1992. 4. Kumar Krishna: Raj, Samaj aur Shiksha. Raj Kamal Prakashan, New Delhi, 2001 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 149 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5. Vaidya, N. & Vaidya, S.; Encyclopedia of Educational Foundations and Development. Deep & Deep Publications, New Delhi, 2002. 6. The Report of University Education Commission, 1948-49. Published by Govt. of India Press. 7. The Report of Secondary Education Commission, 1952-53. Published by Govt. of India Press. 8. The Report of Indian Education Commission, 1964-66. Published by Govt. of India Press. 9. Challenges of Education: A Policy Perspective. Published by Ministry of Education, 1985. 10. National Policy on Education, 1986. Published by MHRD, 1986. 11. National Curriculum Framework-2005, Published by NCERT, 2005. 12. Programme of Action, 1986 & 1992. Published by MHRD, 1986 & 1992. 13. India Vision 2020: The Report, Planning Commission, Govt. of India. Published by Academic Foundation, New Delhi, 2004. 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. स्ितत्रता के सग्राम ने भारत म ें वशक्षा की प्रगवत को वकस प्रकार प्रभावित वकया। ं ं 2. अनच्छेद 45 के असफल होने के पीछे , राज्य तथा समाज की वजम्मदे ाररयााँ कै से सवनवश्चत की जानी ु ु चावहए। 3. इक्कीसिीं सदी के भारत म ें सभी िगों को समान, समवचत अिसर के वलए कै से प्रयास होने चावहए। ु 4. ितणमान म ें उपवस्थत, शावत वनके तन एि िनस्थली विद्यापीठ का इक्कीसिीं शती के वलए योगदान पर ं ं कै सा स्िरूप होना चावहए? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 150 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 4- बहिावषक विक्षा पर ितणमान दौर में बढ़ता िोि , ु ू स्कललग के माध्यम पर विप्पणी, िाषा नीवतयों के सन्दि में ण संिैिावनक प्रािािान Spanning Current Research on Multilingual Education, Comments on the Debate of Medium of Schooling, Language Policy the Constitutional Provision 4.1 प्रस्त ािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 बहभावषक वशक्षा पर शोध का दायरा ु 4.4 स्कवलग का माध्यम ू ं 4.5 भाषा नीवतयों के सन्दभण में सिैधावनक प्रािाधान ं 4.6 साराश ं 4.7 शब्द ािली 4.8 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 4.9 वनबधात् मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्त ावना भाषा सदिै वशक्षा नीवतयों के कें र म ें रहा ह।ै नीवत वनमाणताओ के वलए भाषा सम्बवधत नीवतयों का वनधाणरण ं ं करना दष्कर कायण रहा ह।ै वशक्षा सम्बवधत वजन मद्दों पर सविधान सभा म ें चचाण एि विमश ण हआ ह ै उसम ें ु ु ं ं ं ु भाषा पर विमश ण सिोपरर रहा ह।ै प्रस्तत इकाई म ें हम बहभावषक वशक्षा पर शोध का दायरा , स्कवलग का ु ु ू ं माध्यम एि भाषा नीवतयों के सन्दभ ण म ें सिधै ावनक प्रािाधानों पर चचा ण कर इसके विवभन्न आयामों को ं ं जानने एि समझने का प्रयास करेंग े । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 151 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप- 1. बहभावषकता के विवभन्न आयामों को जान पाएग।े ु ं 2. बहभावषकता के शोध के दायरों/आयामों को समझ एि जान पाएग । ु ं ं 3. स्कवलग के माध्यम सम्बवधत अिधारणाओ को जान पाएगे। ू ं ं ं ं 4. भाषा नीवतयों के सन्दभ ण म ें सिैधावनक प्रािाधानों को जान पाएग।े ं ं 4.3 बहभावषक वशक्षा पर शोध का दायरा (Spanning Current Research ु on Multilingual Education) इसम ें कोई सदहे नहीं ह ै वक हमारा दशे भाषायी विविधताओ (linguistic diversity) िाला दशे ह।ै इस ं ं भाषायी विविधता का सम्बन्ध औपवनिशे ीकरण, पर राजनैवतक प्रभाि, अलग-अलग धावमणक ि नजातीय ृ अकपसख्यकों की उपवस्थवत से ह ै । इसी के फलस्िरूप दशे के विवभन्न भागों म ें अलग-अलग भाषाएाँ ं मौजद ह ैं जो वशक्षा तत्र की जवटलता म ें िवि करते ह ैं । कछ लोग तो के िल यह समझते ह ैं वक सविधान ृ ू ु ं ं की आठिीं अनसची म ें चवक 22 भाषाए ाँ ह ैं के िल इसवलए हमारा दशे बहभाषी ह ै । कछ अन्य लोगों का ु ु ू ू ु ं यह मानना ह ै वक हमारे दशे म ें के िल 22 नहीं बवकक 1700-1800 भाषाए ाँ ह ैं क्योंवक जनगणना का आवफस यही बात कहता ह ै । अतः अलग- अलग लोगों के वलए बहभावषकता का वभन्न- वभन्न अथण ह ै । ु कछ लोग वद्वभावषकता को भी बहभावषकता का ही एक रूप मानते ह ैं । आजकल वद्वभाषी ु ु कक्षाए ाँ दशे म ें अपिाद स्िरूप नहीं ह ैं क्योंवक एक तरह से लगभग हर कक्षा ही वद्वभाषी ह।ै हालावक ं वद्वभाषा क्या ह ै इसे पररभावषत करना आसान नहीं ह।ै वद्वभाषा के सन्दभ ण म ें दो वबककल विपरीत मत मौजद ु ू ह।ैं एक तरफ एडिडण महोदय कहते ह ैं जो यह कहत े ह ैं वक
‘‘प्रत्येक व्यवक्त वद्वभाषी होता ह’ै ’
उनके अनसार दवनया म ें कोई व्यवक्त ऐसा नहीं ह ै जो अपनी मल भाषा के अलािा वकसी अन्य भाषा के शब्द न ु ू ु जानता हो, कम से कम कछ शब्द तो िह जरूर जानता होगा। दसरी तरफ ह ैं ब्लमफीकड जो बहभावषकता ु ु ू ू को कछ इस तरह पररभावषत करते ह ैं
‘‘दो भाषाओ पर मल भाषा जसै ा अवधकार’’
ु ू ं बहभावषकता भारतीय अवस्मता का अवभन्न अग ह ै । यहा तक वक दर- दराज वस्थत गााँि म ें ु ं ं ू तथाकवथत बोलने िाला एक ऐसे शावब्दक भण्डार (Verbal Repertoire) कों वनयवत्रत ं करता ह ै , जो उसम ें कई तरह की सिादात्मक पररवस्थवतयों का सामना करने की योग्यता प्रदान करता ह ै । ं िस्ततः भारतीय भावषक ि सामावजक भावषक मवै रक्स म ें भारतीय भावषक स्िरों की बहलता एक दसरे से ु ु ू सिाद करती ह ै , जो वक कई तरह से साझ े भावषक ि सामवजक भावषक खावसयतों पर खड़ी होती ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 152 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं दसरी तरफ हाल के कई अध्ययनों ने वदखलाया ह ै वक वद्वभावषकता का सज्ञानात्मक विकास ि विद्वत- ं ू उपलवब्ध से गहरा सकरात्मक सम्बन्ध(Positive relationship) ह ै । भाषाओ की बहलता और कई महत्िपण ण कायों म ें अग्रेज़ी की बढ़ती जा रही उपयोवगता ने यह सावबत कर ु ू ं ं वदया ह ै वक बहभाषी समाज में भागीदारी सवनवश्चत कराने िाली और जनतावत्रक व्यिस्था के बने रहने के ु ु ं वलए भाषा के मामले म ें कोई सीधा सरल समाधान प्रस्तत नहीं वकया जा सकता ह ै । औपवनिवे शक शासन ु की अिवध के दौरान प्रयक्त अग्रेज़ी ने इतना लबा सफर तय कर वलया ह ै वक इससे आती ु ं ं औपवनिवे शकता की गध अब खत्म हो गयी ह ै और इसके प्रवत प्रवतवक्रयािादी प ख भी तेज़ी से लप्त होत े ु ं गए । अब रोजगार के अिसर प्रदान कराने एि अतराणष्रीय स्तर पर सपकण भाषा के रूप म ें बढ़ रह े इसके ं ं ं प्रयोग ने इसकी महत्ता को और बढ़ा वदया ह ै । दसरी तरफ , दशे के शक्षै वणक और सत्ता सरचना म ें अनेक ं ू अकपसख्यक एि आवदिासी भाषाए ाँ अपनी प्रबल दािदे ारी के साथ शावमल होने के वलए उभरकर सामने ं ं आ रहीं ह ैं । साथ ही राष्रीय स्तर पर सपकण भाषा के रूप म ें भी वहन्दी लगातार फ़ै ल रही ह ै । ं बहभावषकता पर हए अध्ययनों से यह स्पष्ट ह ै वक हमारी वशक्षा – व्यिस्था कों इसे दबाने के बजाय बनाए ु ु रखने और प्रोत्सावहत करने का भरपर प्रयास करना चावहए । पटनायक (1981) ने वदखलाया ह ै वक कै से ू हमारी वशक्षा व्यिस्था ने हमारे समाज की सबसे बड़ी खावसयत बहभावषकतािाद से वमलते आ रह े ु फायदों को दबाने एि कमजोर करने का कायण वकया ह ै । इिान इलीच (1981) ने भी कहा ह ै वक हमें ं हावशए पर अिवस्थत , आवदिासी और विलप्तप्राय भाषाओ कों बचाने के वलए और उनका सशवक्तकरण ु ं का भरपर प्रयास करना चावहए । ू भारत जैसे दशे म ें सामावजक सौहारतण ा तभी सभि ह ै जब लोग एक दसरे की भाषा और सस्कवत कों ृ ं ं ू सम्मान द ें । इस प्रकार का सम्मान ज्ञान के वबना सभि नहीं ह ै । अज्ञानता , भय, घणा और असवहष्णता ृ ु ं को जन्म दते ी ह ै और राष्रीय अवस्मता की अखण्डता के रास्ते म ें रोड़ा अटकाने का कायण करती ह ै । प्रत्येक राज्य म ें एक िचणस्ि प्राप्त भाषा के साथ ही नस्लगत (समदायगत) रूख एि वनष्ठा का पनपना ु ं स्िाभाविक ही ह ै । यह लोगों एि विचारों के स्ितत्र आिागमन को तो रोकता ही ह ै , साथ ही रचनात्मक , ं ं निाचार आवद को दबाता ह ै और समाज के आधवनकीकरण की धार कों कद करता ह ै । अब जब वक हम ु ुं पाते ह ैं बहभावषकता , सज्ञानात्मक विकास ि शक्षै वणक सम्प्रावप्त के बीच सकारात्मक जडाि ह-ै तो यह ु ु ं अत्यत ज़रूरी ह ै वक स्कलों म ें बहभाषी वशक्षण कों प्रोत्सावहत वकया जाय । ु ू ं शोध ने बहभावषकता के बहतेरे आयाम उजागर वकये ह ै हम बहभावषकता के विवभन्न आयामों ु ु ु कों भारतीय सन्दभों म ें देखने एि समझने की कोवशश करेगे । साथ म ें हम ें यह भी जानना एि समझाना ं होगा वक यह एक दरूह एि कवठन कायण ह ै इसवलए इसम ें पयाणप्त सािधान भी रखना आिश्यक ह।ै विवभन्न ं ु शोध कायों ने यह उजागर वकया ह ै वक भारत के सन्दभ ण म ें बहभाषी होना व्यवक्तगत या सामावजक स्तर ु कभी भी समस्याप्रधान नहीं रहा ह।ै यवद एक उदाहरण के माध्यम से हम इसे समझने का प्रयत्न करें तो यह बात उभर कर सामने आती ह ै वक एक यिक अपने घर पर अपने माता-वपता के साथ कमायाँनी या ु ु ू गढिाली बोलता ह,ै जबवक स्कल/कॉलेज म ें वहन्दी और िही यिक अपने व्यिसाय के समस्त कायण ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 153 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं आग्लभाषा म ें सम्पावदत करता ह।ै ध्यान रह े भावषक शिता के परोधा इससे भावषक -वखचडी होने िाले ु ु ं खतरे के प्रवत आगाह करते रहते ह ैं वकन्त िास्ति म ें ऐसा ह ै नहीं इस प्रवक्रया से भाषाए ाँ समि होती ह ै न ृ ु वक वखचडी । ऐसा इसवलए भी ह ै क्योंवक हमारे दशे म ें सामान्यतः भाषाओ की मत्य नहीं होती ह,ै िो ृ ु ं अपना स्िरूप जरूर बदलती रहती ह।ै हमारे यहााँ भाषा के सन्दभ ण म ें जो भी शोध कायण वकये जाते ह ैं उसके साथ एक बडी गडबडी ह।ै यह गडबडी कछ इस प्रकार वक ह ै वक शोध कायों का के न्र वबन्द भाषा की सरचना ही होती ह ै इस प्रकार ु ं ु के बहतेरे शोध पवश्चमी दशे ों में भी हए ह।ैं भारतीय सन्दभ ण म ें अब िह समय आ गया ह ै वक हम भाषा के ु ु सामावजक दावयत्ि को के न्रीय भवमका प्रदान करें एि यह प्रमावणक तौर पर कह सकें वक भाषा-विज्ञान ू ं एक सामावजक विज्ञान भी ह ै और भाषाविदो को स्िय से सामावजक सदभों के सिाल भी पछने चावहए ू ं ं वजससे वक उनके शोधों का जडाि उन सिालों से सभि हो पाए । ु ं ं कक्षा-कक्ष पररशस्थशतयों में बहभाशषकता के िोध सिशभित आयामिः- कक्षा-कक्ष म ें एक वशक्षक के ु ं समक्ष एकभाषी विद्याथी न होकर विवभन्न भाषाओ को बोलने िाले छात्र-छात्राए ाँ होते ह।ैं दशे के ं राजधानी नई वदकली म ें एक ही कक्षा म ें वहन्दी,भोजपरी,मराठी,तवमल एि बगाली बोलने िाले विद्याथी ु ं ं आसानी से वमल सकते ह।ै ऐसी पररवस्थवतयााँ वशक्षक के वलए बहत चनौतीपण ण हो सकती ह।ै ऐसी ु ु ू पररवस्थवतयों म ें वशक्षक को पयाणप्त सिदे नशील होने के साथ िज्ञै ावनक तरीकों के इस्तेमाल की ं आिश्यकता महसस हो सकती ह।ै भाषाविदों के साथ-साथ वशक्षाविदों को शोध के दायरे को बढाया ू चावहए। बौशद्धक शवकास एव बहभाशषकता एव सिशभित िोध-आयाम:- उपवनिशे िादी दशे ों ने बहत िषों ु ु ं ं ं तक यह भ्रम बनाकर रखा वक जसै े-जसै े कोई भी बहभाषी (अपने मातभाषा के अवतररक्त अन्य भाषाएाँ) ु ृ सीखता ह ै िसै े-िसै े ही उसका बौविक स्तर घटता जाता ह।ै लेवकन आज यह बात प्रमावणत हो चका ह ै ु वक बहभावषकता ि बौविक स्तर म ें सीधा सबध ह ै अथाणत जसै े-जसै े बहभावषकता म ें िवि होगी, बौविक ु ु ृ ं ं स्तर म ें भी िवि होती जायेगी। अतः हम ें एकभाषीय कक्षाओ के तौर-तरीकों को बहभाषी कक्षाओ में ु ृ ं ं कतई इस्तेमाल नहीं करना चावहए। अभ यास प्रश्न ् 1. बहभावषकता से आप क्या समझते ह ैं ? ु 2. बहभावषकता के विवभन्न आयामों को स्पष्ट करें । ु 3. बहभावषकता के क्षेत्र म ें आजकल वकस प्रकार के शोध अध्ययनों की आिश्यकता ह?ै स्पष्ट करें। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 154 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.4 स्कू ललग का माध्यम (The Medium of Schooling) यवद हम सामान्य अथों म ें वशक्षा के माध्यम की भाषा या स्कवलग की भाषा के सन्दभ ण वचतन प्रारम्भ करते ू ं ं ह ैं तो सहजतः यह बात उभर कर सामने आती ह ै वक विद्याथी को उस भाषा म ें ही वशक्षा प्रदान की जानी चावहए वजस भाषा म ें िह सहज अनभि करे या वजस भाषा म ें िह अपनी बात को स्पष्टता के साथ ु अवभव्यक्त कर सके । विगत कछ दशकों से हमारे मानस म ें एक धारणा म ें बैठ गयी ह ै वक अग्रेज़ी ही ु ं वकसी प्रकार की वशक्षा का उत्तम माध्यम ह,ै एि अग्रेज़ी की पढ़ाई बाकयकाल से ही शरू होनी चावहए ु ं ं ।यवद इस त्य को दखे ें तो ऐसी धारणा वनराधार ह।ै कोई भी भाषा जो बच्चे को आसानी से समझ म ें आती ह ै िह वशक्षा का उत्तम माध्यम होगी। अक्सर को ही आरवभक वशक्षा का श्रेष्ठ माध्यम ृ ं माना गया ह।ै धारणा यह ह ै वक जो भाषा बच्चे के इदण-वगद ण बोली-सनी जाती ह,ै वजसे बोलते सनते हए ु ु ु बच्चे बड़े हए ह,ैं िह भाषा उनके वलए सरल होगी। उसमें कही गयी, पढ़ाई गयी कोई भी विषयिस्त ु ु अपेक्षाकत अवधक सरलता से समझी जा सके गी। इसी धारणा के आधार पर वपछले डेढ़ सौ िषों म ें भारत ृ म ें वजतने भी वशक्षा आयोग आये हैं, उन्होंने मातभाषा म ें हो वशक्षा दने े की बात को स्िीकारा ह ै । िषण ृ 1854 के चाकसण- िड वडस्पैच से लेकर आज तक इसम ें कोई भी अपिाद नहीं हआ ह।ै सबने मातभाषा ु ृ ु को ही वशक्षा का श्रेष्ठ माध्यम माना ह।ै प्राय: सभी विकवसत दशे ों म ें स्थानीय भाषा ही आरवभक वशक्षा का ं माध्यम ह।ै अन्य भाषाए ाँ आिश्यकतानसार बाद म ें सीखी जा सकती ह ै एि उनका उपयोग वनधाणररत उद्दश्े य ु ं के वलए वकया जा सकता ह।ै हम ें यह ध्यान म ें रखना चावहए वक अवधकााँश बच्चे ऐस े पररिशे आते ह ैं , जहा उनकी मातभाषा ृ ं के अवतररक्त अन्य वकसी भाषा म ें वशक्षा वदया जाना वबलकल उद्दश्े यहीन नज़र आता ह ै क्योंवक इन बच्चों ु की अवभव्यवक्त का माध्यम तो स्थानीय बोली
ही होती ह।ै ऐसे बच्चों को तो उनकी स्थानीय बोली से दसरी मानक भाषा तक लाना ही अत्यत दष्कर कायण होता ह।ै मानक भाषा म ें कही गयी बात भी समझना ं ू ु उनके वलए मवश्कल होता ह,ै ऐस
ी पररवस्थवतयों म ें तो वबलकल ही विदशे ी भाषा( अग्रेज़ी) को वशक्षा का ु ु ं माध्यम बनाना समझ से परे ही प्रतीत होता ह।ै जब ऐसे ऐसे बच्चे अपने स्थानीय भाषा के अवतररक्त वकसी अन्य भाषा म ें पढाए जायेंग े तो दखे ने िाली बात यह होगी वक उनका वकतना मन अध्ययन म ें लगगे ा। उस भाषा म ें क्या िह अपने ज्ञान की रचना कर पाएग े या कछ नया पैदा करने या कर गजरने की अवभलाषा ु ु ं से ओत प्रोत हो पायेगा। अपने पररिशे से वबलकल वभन्न भाषा को अध्ययन का माध्यम बनाए जाने से तो ु विद्याथी त्यों एि सचनाओ को रटने म ें भले ही सफल हो जाए वकन्त उसम ें ज्ञान का वनमाणण एि ू ु ं ं ं रचनात्मकता का आभाि ही रहगे ा। एक वशक्षक के नाते आपने यह अनभि अिश्य ही वकया होगा वक कक्षा म ें अध्यापन के समय ु जब कभी आप पढ़ाते समय बच्चे की अपनी भाषा म ें बातचीत करना प्रारम्भ करते ह ैं तब बच्चे का चेहरा चमक उठता ह ै और चेहरे पर मस्कान तैर जाती ह।ै ऐसा इसवलए होता ह ै क्योंवक बच्चे को यह लगता ह ै ु वक अध्यापक उसके अपने बीच का है। बच्चे का भय जाता रहता ह ै और कक्षा म ें चप रहने िाला बच्चा ु भी बोल पड़ता ह।ै विषयिस्त के साथ बच्चा अपन े आप को जोडने लगता ह।ै आज हमारे यहााँ के अग्रेज़ी ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 155 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं माध्यमों के विद्यालयों अपनी भाषा बोलने से भी बच्चों को िवचत वकया जाता ह ै वजससे बच्चे कठा ग्रस्त ु ं ं हो जाते ह।ैं इसम ें समझने िाली बात यह ह ै वक यवद विद्यावथणयों को लबे समय तक अग्रेज़ी माध्यम म ें ही ं ं पढ़ाया जाय तो बच्चे अग्रेज़ी तो सीख जाते ह ैं वकन्त विषयिस्त पर उनकी पकड़ उतनी गहरी नहीं बन ु ु ं पाती ह ै वजतनी वक यवद उनको उनकी पररिशे की भाषा म ें पढ़ाया जाता तो बन जाती। यवद बच्चों को अपनी भाषा म ें पढ़ाया जाता तो बच्चे का बहत सारा श्रम बच जाता वजसे िह अपनी विषयिस्त को ु ु सीखने म ें लगा सकता ह ै । बच्चों म ें भाषा के विकास के सन्दभ ण म ें यह अवनिायण माना जाता ह ै वक उनको सनने- बोलने का पयाणप्त ु समय वमले। इस प्रवक्रया से बच्चा भाषा बहत सरलता से सीख
जाता ह।ै जब बच्चे को उसकी पररिशे की ु भाषा से अलग रखा जाता ह ै तो यह जावहर सी बात ह ै वक उसकी वचतन प्रवक्रया बावधत होगी ही होगी। ं इसवलए यह आिश्यक हो जाता ह ै वक वशक्षा का माध्यम बच्चे की पररिशे की भाषा हो तो ही बेहतर तरीके से ज्ञ
ान अजनण करने की प्रवक्रया को सपावदत कर पायगे ा । इस परे सन्दभ ण को कहीं से भी अग्रेज़ी ू ं ं भाषा के विरोध के रूप म ें नहीं दखे ा जाना चावहए क्योंवक अग्रेज़ी को वकसी प्रकार से वशक्षण का माध्यम ं बनाने से बेहतर ह ै वक अग्रेज़ी वशक्षण के तरीके को िज्ञै ावनक रूप प्रदान वकया जाय। टाइम टेबल में ं अग्रेजी को पयाणप्त स्थान वदया जाय। अग्रेज़ी को इस तरह से पढ़ाया जाय वक बच्चा वबना वकसी दबाि का ं ं अनभि वकये , सहजता के साथ उसे सीख पाए । बहत से लोग्गों को यह भ्रम ह ै वक अग्रेज़ी सफलता की ु ु ं भाषा ह ै और यह बात आज हमारे समाज के मन मवस्तष्क म ें गहरे तक बैठ गयी ह,ै बाजारीकरण ने इस बात को और पख्ता करने का ही काम वकया ह।ै इस सनारभ म ें यह ध्यान रखना आिश्यक ह ै वक ु ् सफलता का सत्र भाषा म ें नहीं बवकक वकसी भी व्यवक्त के बौविक क्षमता म ें होता ह।ै ू अभ् यास प्रश्न 4. क्या मातभाषा को वशक्षा का माध्यम बनाया जाना चावहए ? अपने उत्तर के समथणन में तकण ृ दीवजए। 5. स्कवलग का माध्यम कौन सी भाषा होनी चावहए? तकण द्वारा स्पष्ट करें। ू ं 4.5 भाषा नीवतयों के मन्दभ ण म मंवैधावनक प्रावाधान (Constitutional ें provision with reference to language) भारत के सविधान में राजभाषा से सबवधत भाग-17 का प्रािाधान ह,ै आप भाषा सम्बवधत प्रािाधानों को ं ं ं ं ठीक तरह से समझ सकें इसवलए इसकी सामान्य व्याख्या वनम्नित दी जा रही ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 156 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अध्याय 1-सघ की भाषा ं अनच्छेि 120. ससि में प्रयोर् की जाने वाली भाषा - ु ं 1. भाग 17 म ें वकसी बात के होते हए भी, वकत अनच्छेद 348 के उपबधों के अधीन रहते हए, ु ु ु ु ं ं ससद म ें कायण वहदी म ें या अग्रेजी म ें वकया जाएगा परत, यथावस्थवत, राज्य सभा का सभापवत या ु ं ं ं ं लोक सभा का अध्यक्ष अथिा उस रूप म ें कायण करने िाला व्यवक्त वकसी सदस्य को, जो वहदी म ें ं या अग्रेजी म ें अपनी पयाणप्त अवभव्यवक्त नहीं कर सकता ह,ै अपनी मात-भाषा म ें सदन को ृ ं सबोवधत करने की अनज्ञा द े सके गा । ु ं 2. जब तक ससद विवध द्वारा अन्यथा उपबध न करे तब तक इस सविधान के प्रारभ से परह िष ण की ं ं ं ं ं अिवध की समावप्त के पश्चात यह अनच्छेद ऐसे प्रभािी होगा मानो ें शब्दों का ु ं उसम ें से लोप कर वदया गया हो । अनच्छेि 210: शवधान-मडल में प्रयोर् की जाने वाली भाषा - ु ं 1. भाग 17 म ें वकसी बात के होते हए भी, वकत अनच्छेद 348 के उपबधों के अधीन रहते हए, ु ु ु ु ं ं राज्य के विधान-मडल म ें कायण राज्य की राजभाषा या राजभाषाओ म ें या वहदी म ें या अग्रेजी म ें ं ं ं ं वकया जाएगा परत, यथावस्थवत, विधान सभा का अध्यक्ष या विधान पररषद का सभापवत अथिा उस रूप म ें ु ं कायण करने िाला व्यवक्त वकसी सदस्य को, जो पिोक्त भाषाओ म ें से वकसी भाषा म ें अपनी पयाणप्त ू ं अवभव्यवक्त नहीं कर सकता ह,ै अपनी मातभाषा म ें सदन को सबोवधत करन े की अनज्ञा द े ृ ु ं सके गा। 2. जब तक राज्य का विधान-मडल विवध द्वारा अन्यथा उपबध न करे तब तक इस सविधान के ं ं ं प्रारभ से परह िष ण की अिवध की समावप्त के पश्चात यह अनच्छेद ऐसे प्रभािी होगा मानो
“ या ु ं ं अग्रेजी म ें ”
शब्दों का उसम ें से लोप कर वदया गया हो : ं परत वहमाचल प्रदशे , मवणपर, मघे ालय और वत्रपरा राज्यों के विधान-मडलों के सबध में, यह खड इस ु ु ु ं ं ं ं ं प्रकार प्रभािी होगा मानो इसम ें आने िाले ण शब्दों के स्थान पर ण शब्द रख वदए ं गए हों : परत यह और वक अरूणाचल प्रदशे , गोिा और वमजोरम राज्यों के विधान-मडलों के सबध म ें यह खड ु ं ं ं ं ं इस प्रकार प्रभािी होगा मानो इसम ें आने िाले शब्दों के स्थान पर शब्द ं रख वदए गए हों । अनच्छेि 343. सघ की राजभाषा-- ु ं 1. सघ की राजभाषा वहदी और वलवप दिे नागरी होगी, सघ के शासकीय प्रयोजनों के वलए प्रयोग ं ं ं होने िाले अकों का रूप भारतीय अकों का अतराणष्रीय रूप होगा। ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 157 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 2. खड (1) म ें वकसी बात के होते हए भी, इस सविधान के प्रारभ से परह िष ण की अिवध तक सघ ु ं ं ं ं ं के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के वलए अग्रेजी भाषा का प्रयोग वकया जाता रहगे ा वजनके वलए ं उसका ऐसे प्रारभ से ठीक पहले प्रयोग वकया जा रहा था : ं परन्त राष्रपवत उक्त अिवध के दौरान, आदशे द्वारा, सघ के शासकीय प्रयोजनों म ें से वकसी के वलए ु ं अग्रेजी भाषा के अवतररक्त वहदी भाषा का और भारतीय अकों के अतराणष्रीय रूप के अवतररक्त दिे नागरी ं ं ं ं रूप का प्रयोग प्रावधकत कर सके गा। ृ 3. इस अनच्छेद में वकसी बात के होते हए भी, ससद उक्त पन्रह िषण की अिवध के पश्चात, विवध ु ु ं द्वारा a. अग्रेजी भाषा का, या ं b. अकों के दिे नागरी रूप का, ं ऐसे प्रयोजनों के वलए प्रयोग उपबवधत कर सके गी जो ऐसी विवध म ें विवनवदष्टण वकए जाए। ं ं अनच्छेि 344. राजभाषा के सबध में आयोर् और ससि की सशमशत-- ु ं ं ं 1. राष्रपवत, इस सविधान के प्रारभ से पाच िष ण की समावप्त पर और तत्पश्चात ऐसे प्रारभ से दस िषण ं ं ं ं की समावप्त पर, आदशे द्वारा, एक आयोग गवठत करेगा जो एक अध्यक्ष और आठिीं अनसची म ें ु ू विवनवदष्टण विवभन्न भाषाओ का प्रवतवनवधत्ि करने िाले ऐसे अन्य सदस्यों से वमलकर बनेगा ं वजनको राष्रपवत वनयक्त करे और आदशे म ें आयोग द्वारा अनसरण की जाने िाली प्रवक्रया ु ु पररवनवश्चत की जाएगी। 2. आयोग का यह कतणव्य होगा वक िह राष्रपवत को-- a. सघ के शासकीय प्रयोजनों के वलए वहदी भाषा के अवधकावधक प्रयोग, ं ं b. सघ के सभी या वकन्हीं शासकीय प्रयोजनों के वलए अग्रेजी भाषा के प्रयोग पर वनबांधनों, ं ं c. अनच्छेद 348 म ें उवकलवखत सभी या वकन्हीं प्रयोजनों के वलए प्रयोग की जाने िाली ु भाषा, d. सघ के वकसी एक या अवधक विवनवदष्टण प्रयोजनों के वलए प्रयोग वकए जाने िाले अकों ं ं के रूप, e. सघ की राजभाषा तथा सघ और वकसी राज्य के बीच या एक राज्य और दसरे राज्य के ं ं ू बीच पत्रावद की भाषा और उनके प्रयोग के सबध म ें राष्रपवत द्वारा आयोग को वनदवे शत ं ं वकए गए वकसी अन्य विषय, के बारे म ें वसफाररश करे। 3. खड (2) के अधीन अपनी वसफाररश ें करने में, आयोग भारत की औद्योवगक, सास्कवतक और ृ ं ं िज्ञै ावनक उन्नवत का और लोक सेिाओ के सबध म ें अवहदी भाषी क्षेत्रों के व्यवक्तयों के ं ं ं ं न्यायसगत दािों और वहतों का सम्यक ध्यान रखगे ा। ं 4. एक सवमवत गवठत की जाएगी जो तीस सदस्यों से वमलकर बनेगी वजनम ें से बीस लोक सभा के सदस्य होंग े और दस राज्य सभा के सदस्य होंग े जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों और राज्य उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 158 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सभा के सदस्यों द्वारा आनपावतक प्रवतवनवधत्ि पिवत के अनसार एकल सक्रमणीय मत द्वारा ु ु ं वनिाणवचत होंग।े 5. सवमवत का यह कतणव्य होगा वक िह खड (1)के अधीन गवठत आयोग की वसफाररशों की परीक्षा ं करे और राष्रपवत को उन पर अपनी राय के बारे म ें प्रवतिदे न द।े 6. अनच्छेद 343 म ें वकसी बात के होते हए भी, राष्रपवत खड (5) म ें वनवदष्टण प्रवतिदे न पर विचार ु ु ं करने के पश्चात उस सपण ण प्रवतिदे न के या उसके वकसी भाग के अनसार वनदशे द े सके गा। ् ू ु ं अध्याय 2- प्रािेशिक भाषाए ं अनच्छेि 345
राज्य की राजभाषा या राजभाषाए : ु ं अनच्छेद 346 और अनच्छेद 347 के उपबधों के अधीन रहते हए, वकसी राज्य का विधान-मडल, विवध ु ु ु ं ं द्वारा, उस राज्य म ें प्रयोग होने िाली भाषाओ म ें से वकसी एक या अवधक भाषाओ को या वहदी को उस ं ं ं राज्य के सभी या वकन्हीं शासकीय प्रयोजनों के वलए प्रयोग की जाने िाली भाषा या भाषाओ के रूप में ं अगीकार कर सके गाः ं परत जब तक राज्य का विधान-मडल, विवध द्वारा, अन्यथा उपबध न करे तब तक राज्य के भीतर उन ु ं ं ं शासकीय प्रयोजनों के वलए अग्रेजी भाषा का प्रयोग
वकया जाता रहगे ा वजनके वलए उसका इस सविधान ं ं के प्रारभ से ठीक पहले प्रयोग वकया जा रहा था। ं अनच्छेद 346 एक राज्य और दसरे राज्य के बीच या वकसी राज्य और सघ के बीच पत्रावद की राजभाषा- ु ं ू - सघ म ें शासकीय प्रयोजनों के वलए प्रयोग वकए जाने के वलए तत्समय प्रावधकत भाषा, एक
राज्य और ृ ं दसरे राज्य के बीच तथा वकसी राज्य और सघ के बीच पत्रावद की राजभाषा होगी : ं ू परत यवद दो या अवधक राज्य यह करार करते ह ैं वक उन राज्यों के बीच पत्रावद की राजभाषा वहदी भाषा ु ं ं होगी तो ऐसे पत्रावद के वलए उस भाषा का प्रयोग वकया जा सके गा। अनच्छेद 347. वकसी राज्य की जनसख्या के वकसी भाग द्वारा बोली जाने िाली भाषा के सबध म ें विशषे ु ं ं ं उपबध-- ं यवद इस वनवमत्त माग वकए जाने पर राष्रपवत का यह समाधान हो जाता ह ै वक वकसी राज्य की जनसख्या ं ं का पयाणप्त भाग यह चाहता ह ै वक उसके द्वारा बोली जाने िाली भाषा को राज्य
द्वारा मान्यता दी जाए तो िह वनदशे द े सके गा वक ऐसी भाषा को भी उस राज्य म ें सित्रण या उसके वकसी भाग म ें ऐसे प्रयोजन के वलए, जो िह विवनवदष्टण करे , शासकीय मान्यता दी जाए। अध्याय 3 - उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आशि की भाषा अनच्छेद 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अवधवनयमों, विधेयकों आवद के वलए ु प्रयोग की जाने िाली भाषा-- उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 159 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1. इस भाग के पिगण ामी उपबधों म ें वकसी बात के होते हए भी, जब तक ससद विवध द्वारा अन्यथा ु ू ं ं ् उपबध न करे तब तक-- ं a. उच्चतम न्यायालय
और प्रत्येक उच्च न्यायालय म ें सभी कायणिावहया अग्रेजी भाषा में ं ं होंगी, b. ससद के प्रत्येक सदन या वकसी राज्य के विधान-मडल के सदन या प्रत्येक सदन म ें ं ं ् परःस्थावपत वकए जाने िाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित वकए जाने िाले उनके ु सशोधनों के , ं c. ससद या वकसी राज्य के विधान-मडल द्वारा पाररत सभी अवधवनयमों के और राष्रपवत ं ं या वकसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यावपत सभी अध्यादशे ों के ,और d. इस सविधान के अधीन अथिा ससद या वकसी राज्य क
े विधान-मडल द्वारा बनाई गई ं ं ं वकसी विवध के अधीन वनकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, वनयमों, विवनयमों और उपविवधयों के , प्रावधकत पाठ अग्रेजी भाषा म ें होंग।े ृ ं 2. खड (1) के उपखड (क) म ें वकसी बात के होते हए भी, वकसी राज्य का राज्यपाल राष्रपवत की ु ं ं पि ण सहमवत से उस उच्च न्यायालय की कायणिावहयों में, वजसका मख्य स्थान उस राज्य म ें ह,ै ू ु वहन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के वलए प्रयोग होने िाली वकसी अन्य भाषा का प्रयोग प्रावधकत कर सके गाः ृ 3. परत इस खड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा वदए गए वकसी वनणयण , वडक्री या आदशे ु ं ं को लाग नहीं होगी।खड (1) के उपखड (ख) म ें वकसी बात के होते हए भी, जहा वकसी राज्य के ु ू ं ं ं विधान-मडल ने,उस विधान-मडल म ें परःस्थावपत विधेयकों या उसके द्वारा पाररत अवधवनयमों में ु ं ं अथिा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यावपत अध्यादशे ों म ें अथिा उस उपखड के पैरा (iv) में ं वनवदष्टण वकसी आदशे , वनयम, विवनयम या उपविवध म ें प्रयोग के वलए अग्रेजी भाषा से वभन्न कोई ं भाषा विवहत की ह ै िहा उस राज्य के राजपत्र म ें उस राज्य के राज्यपाल के प्रावधकार से प्रकावशत ं अग्रेजी भाषा म ें उसका अनिाद इस अनच्छेद के अधीन उसका अग्रेजी भाषा म ें प्रावधकत पाठ ृ ु ु ं ं समझा जाएगा। अनच्छेि 349 भाषा से सबशधत कछ शवशधया अशधशनयशमत करने के शलए शविेष प्रशक्रया : ु ु ं ं ं इस सविधान के प्रारभ से परह िष ण की अिवध के दौरान, अनच्छेद 348 के खड (1) म ें उवकलवखत वकसी ु ं ं ं ं प्रयोजन के वलए प्रयोग की जाने िाली भाषा के वलए उपबध करने िाला कोई विधेयक या सशोधन ससद ं ं ं के वकसी सदन म ें राष्रपवत की पि ण मजरी के वबना परःस्थावपत या प्रस्तावित नहीं वकया जाएगा और ू ू ु ं राष्रपवत वकसी ऐसे विधेयक को परःस्थावपत या वकसी ऐसे सशोधन को प्रस्तावित वकए जाने की मजरी ु ू ं ं अनच्छेद 344 के खड (1) के अधीन गवठत आयोग की वसफाररशों पर और उस अनच्छेद के खड (4) के ु ु ं ं अधीन गवठत सवमवत के प्रवतिेदन पर विचार करने के पश्चात ही दगे ा, अन्यथा नहीं। ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 160 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अध्याय 4-शविेष शनिेि अनच्छेि 350 व्यथा के शनवारर् के शलए अभ्यावेिन में प्रयोर् की जाने वाली भाषा- ु प्रत्येक व्यवक्त वकसी व्यथा के वनिारण के वलए सघ या राज्य के वकसी अवधकारी या प्रावधकारी को, ं यथावस्थवत, सघ म ें या राज्य में प्रयोग होने िाली वकसी भाषा म ें अभ्यािदे न दने े का हकदार होगा। ं अनच्छेि 350 क. प्राथशमक स्तर पर मातभाषा में शिक्षा की सशवधाए- ृ ु ु ं प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्रावधकारी भाषाई अकपसख्यक-िगों के बालकों को ं वशक्षा के प्राथवमक स्तर पर मातभाषा म ें वशक्षा की पयाणप्त सविधाओ की व्यिस्था करने का प्रयास करेगा ृ ु ं और राष्रपवत वकसी राज्य को ऐसे वनदशे द े सके गा जो िह ऐसी सविधाओ का उपबध सवनवश्चत कराने के ु ु ं ं वलए आिश्यक या उवचत समझता ह।ै अनच्छेि 350 ख. भाषाई अल्पसख्यक-वर्ों के शलए शविेष अशधकारी- ु ं 1. भाषाई अकपसख्यक-िगों के वलए एक विशेष अवधकारी होगा वजसे राष्रपवत वनयक्त करेगा। ु ं 2. विशेष अवधकारी का यह कतव्ण य होगा वक िह इस सविधान के अधीन भाषाई अकपसख्यक- ं ं िगों के वलए उपबवधत रक्षोपायों से सबवधत सभी विषयों का अन्िषे ण करे और उन विषयों के ं ं ं सबध म ें ऐसे अतरालों पर जो राष्रपवत वनवदष्टण करे,राष्रपवत को प्रवतिदे न द े और राष्रपवत ऐसे ं ं ं सभी प्रवतिदे नों को ससद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखिाएगा और सबवधत राज्यों की सरकारों ं ं ं ् को वभजिाएगा। अनच्छेि 351 शहिी भाषा के शवकास के शलए शनिेि ु ं सघ का यह कतणव्य होगा वक िह वहदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे वजससे िह भारत की ं ं सामावसक सस्कवत के सभी तत्िों की अवभव्यवक्त का माध्यम बन सके और उसकी प्रकवत म ें हस्तक्षेप ृ ृ ं वकए वबना वहदस्थानी म ें और आठिीं अनसची म ें विवनवदष्टण भारत की अन्
य भाषाओ म ें प्रयक्त रूप, शलै ी ु ू ु ं ं ु और पदों को आत्मसात करते हए और जहा आिश्यक या िाछनीय हो िहा उसके शब्द-भडार के वलए ु ं ं ं ं मख्यतः सस्कत से और गौणतः अन्य भाषाओ स
े शब्द ग्रहण करते हए उसकी समवि सवनवश्चत करे। ु ृ ृ ु ु ं ं अभ् यास प्रश्न 6. अनच्छेद 343 की व्याख्या करें । ु 7. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आवद की भाषा हते क्या प्रािाधान ह ैं ? ु 8. अनच्छेद 351 म ें वहदी भाषा के विकास के वलए क्या वनदशे वदए गए ह ैं ? ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 161 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.6 मारांश वकसी भी भाषा का ज्ञान , बोध एि उपयोग के िल कक्षागत पररवस्थवतयों म ें पाठयिस्त के घटकों और ् ु ं भाषा तत्िों के ज्ञान और अभ्यास से पररपण ण नहीं होता । भाषा सजीि और सिदे नशील परम्परा ह।ै िह ू ं िक्त समाज और पररवस्थवतयों के साथ जीती ह ै और उन्ह ें गवत प्रदान करती ह ै । इसवलए भाषा का पण ण ू व्यािहाररक ज्ञान के िल पाठयपस्तकों के अध्ययन से , व्याकरण के अभ्यास से और परीक्षाए प्राप्त कर के ् ु ं नहीं पाया जा सकता । भाषा सीखने के वलए विवभन्न प्रकार के उपागमों का प्रयोग करना चावहए । इन उपागमों म ें पररचचाण एक अवत महत्िपण ण उपागम ह ै । विद्यावथणयों को ठीक प्रकार का ज्ञान हआ ह ै या नहीं ु ू इसका पता लगाने के वलए सबसे सरल एि सीधा माध्यम कक्षा म ें पछा जाने िाला प्रश्न ह ै । इन प्रश्नों की ू ं सहायता से वशक्षक कक्षा म ें अपना वनयत्रण भी स्थावपत करता ह ै । प्रश्नों की सहायता से वशक्षक कक्षा म ें ं अनशासन के साथ ज्ञान िधणन का कायण भी करता ह ै । ु 4.7 शब्द ावली 1. बहभाशषकता: बहभाषी का अथण ऐसे व्यवक्त स े ह ै जो दो या अवधक भाषाओ का प्रयोग करता ु ु ं ह।ै 4.8 मंदभ ण ग्रंथ मची ंवं महयोगी पुस्तकें ू 1. अग्रिाल, पी. और सजय कमार 2000 (सपादक), वहदी दशे काल में ु ं ं ं 2. चॉम्स्की, एन. 1957, वसनटेवक्टक स्रक्चस,ण दी हगे : मौटेन क.। ं 3. चॉम्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑफ वस्कनसण िबणल वबहवे ियर. लैंग्िजे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्स्की, एन. 1972, लैंग्िजे एड माइड, न्ययाकण : हारकोटण ब्रास जोिानोविच। ू ं ं 5. चॉम्स्की, एन. 1996, पॉिसण एड प्रोस्पेक्टस: ररफलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल आडणर, ् ं ं ं ू वदकली: माध्यम बक्स। ु 6. चॉम्स्की, एन. 1965, आस्पेक्टस ऑप़फ द ्योरी ऑफ वसनटेक्स, कैं वब्रज : एम. आइ.ण टी. प्रेस। ् 7. चॉम्स्की, एन. 1986, नॉलेज ऑफ लैंग्िजे , न्ययाकण : प्रागर। ू 8. चॉम्स्की, एन. 1988, लैंग्िजे एड प्रॉब्लम्स ऑप़फ नॉलेज, िफैं वब्रज, मास: एम. आइ.ण टी.। ं 9. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेज प्लावनग इन इवडया, वदकली: हरनाम पवब्लशसण। ं ं ु 10. हबै रमास, ज.े 1998, ऑन द प्रागमवै टक्स ऑफ कम्यवनिेफशन, कैं वब्रज, मास: एम. आइ.ण टी. ु प्रेस। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 162 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 11. हबै रमास, ज.े 1998, दी वफलॉवस्फकल वडसकोसण ऑप़फ मॉडवनणटी, कैं वब्रज, मास: एम. आइ.ण टी. प्रेस। 12. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पटना: राजकमल। ु ू ं 13. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, भारत सरकार 1966 ं 14. नेशनल पॉवलसी ऑन एजके शन, 1986, मानि ससाधन विकास मत्रालय, वशक्षा विभाग, नयी ु ं ं वदकली। 15. पटनायक, डी. पी. 1981, मकटीवलगएवलज्म एड मदर-टग एजिफे शन, ऑक्सपफोडण यवनिवसणटी ु ु ू ं ं ं प्रेस। 16. पटनायक, डी. पी. 1986, स्टडी ऑफ लैंग्िजे ेज, ए ररपोटण, नयी वदकली: एन.सी.इ.ण आर.टी। 17. ररचड्रस, ज.े सी. 1990, दी लैंग्िजे टीवचग मवै रक्स, कै वब्रज :कै वब्रज यवनिवसणटी प्रेस। ू ं ् 18. सायर, डी. 1924, दी इपैफक्ट ऑप़फ बाइवलगवलज्मम ऑन इटेवलजसें , वब्रवटश जनणल ऑप़फ ु ं ं साइकोलॉजी 14:25-38 19. श्रीधर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदकल ी, मनोहर। ु ं ं ं 20. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगणद), भारतीय भाषा विज्ञान ु ं ं ् की भवमका, वदकली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 21. यनेस्को, 2003, एजिफे शन इन ए मकटीवलगएल िकडण, यनेस्को एजके शन पोवजशन पेपर, पेररस। ू ु ु ू ु ं 22. िायगोत्सकी , एल. एस. 1978, माइड इन सोसायटी: दी डेिलपमटें ऑप़फ हायर ं साइकोलॉवजकल प्रोसेस, िफैं वब्रज, मॉस: हािडण यवनिवसणटी प्रेस। ू 23. जमील, िी. 1985, रेस्पोंवडग ट स्टडेंट राइवटग, टी. इ.ण एस. ओ. एल. त्रौमावसक, 19.1 ू ू ं ं 24. इस िबे साइट को जरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 4.9 वनबधात्म क प्रश्न ं 1. क्या मातभाषा को वशक्षा का माध्यम बनाया जाना चावहए ? अपने उत्तर के समथणन म ें तकण दीवजए। ृ 2. स्कवलग का माध्यम कौन सी भाषा होनी चावहए? तकण द्वारा स्पष्ट करें। ू ं 3. बहभावषकता के क्षेत्र म ें आजकल वकस प्रकार के शोध अध्ययनों की आिश्यकता ह?ै स्पष्ट ु कीवजए । 4. भाषा के सन्दभ ण म ें विवभन्न सिधै ावनक प्रािाधानों की चचाण कीवजए । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 163 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं खण्ड 4 Block 4 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 164 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 1 – सुवनयोवजत औद्योवगकीकरण के सन्दि में कोठारी ण आयोग की महत्िपूणण अनिु ंसाए ाँ एिं कायान्ियन 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 कोठारी आयोग के महत्िपणण वबन्द ू ु 1.4 सवनयोवजत औद्योवगकीकरण के सन्दभण में कोठारी आयोग तथा महत्िपणण अनशसाएाँ ु ू ु ं 1.4.1 वशक्षा और उत्पावदता 1.4.2 वशक्षा और आधवनकीकरण ु 1.4.3 सवनयोवजत औद्योवगकीकरण तथा महत्िपणण अनशसाएाँ ु ू ु ं 1.4.4 कोठारी आयोग: सम्पणण प्रवतिेदन का साराश ू ं 1.5 राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 (पष्ठभवम) ृ ू 1.5.1 राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 (समीक्षा 1992) 1.5.2 कायाणन्ियन कायणक्रम (1992) 1.6 कायाणन्ियन कायणक्रमों के मख्य वबन्दओ का एक तलनात्मक विश्लेषण ु ु ं ु 1.7 साराश ं 1.8 सन्दभण ग्रन्थ सची ू 1.9 वनबधात्मक प्रश्न ं 1.1 प्रस्तावना वशक्षा आयोग (1964-66) आधवनक भारतीय वशक्षा के इवतहास का छठिा तथा आजाद भारत का ु ं तीसरा आयोग था। आजाद भारत म ें वशक्षा आयोग (1964-66) से पि ण विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग ू (1948-49) तथा माध्यवमक वशक्षा आयोग (1952-53) अपनी सस्तवत भारत सरकार को प्रस्तत कर ु ु ं चके थे। हालावक वशक्षा आयोग (1964-66) आजाद भारत का पहला ऐसा आयोग था वजसने वशक्षा के ु ं सभी स्तरों तथा वशक्षा
8%
4%
3%
2%
2%
1%
0.9%
0.8%
0.8%
0.8%
0.5%
के क्षेत्र की सभी समस्याओ का समवे कत रूप से िहद अध्ययन कर अपनी सस्तवत ृ ु ं ं भारत सरकार के समक्ष प्रस्तत की। इसके पि ण के दोनों आयोगों का क्षेत्र क्रमशः विश्वविद्यालय
अथिा ु ू उच्च वशक्षा तथा माध्यवमक वशक्षा था। यथाथणतः भारतीय वशक्षा आयोग (1882-83) से लेकर वशक्षा आयोग (1964-66) के पहले तक के पााँच आयोगों न े वशक्षा के इतने िहद स्तर पर काय ण नहीं वकया था। ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 165 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वशक्षा आयोग (1964-66) के अध्यक्ष प्रो0 डी0एस0 कोठारी थे। इस आयोग की सस्तवत जमा करने के ु ं पश्चात ही, आजाद भारत की पहली राष्रीय वशक्षा नीवत-1968, आजादी के इक्कीस िषों के पश्चात ् ् सवनवश्चत हो सकी। वशक्षा आयोग (1964-66) को हम के नाम स े भी जानते ह।ैं वशक्षा ु आयोग (1964-66) का अवद्वतीय रूप, इस कारण भी था क्योंवक इस आयोग ने वशक्षा के वकसी विशेष पक्ष या पक्षों तक स्िय को सीवमत नहीं वकया, अवपत सम्पण ण वशक्षा का िहदात्मक तथा समवे कत ृ ु ू ं अध्ययन वकया तथा सस्तवत दी। ितणमान इकाई म ें आप का तथा राष्रीय वशक्षा नीवत ु ं (1986) ि (1992) का अध्ययन करेंग।े 1.2 उद्दश्े य इस के इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - 1. कोठारी आयोग की बवनयादी अनशसाओ को समझ सकें गे। ु ु ं ं 2. सवनयोवजत औद्योवगकीकरण म ें कोठारी आयोग की भवमका ि महत्ि समझ सकें गे। ु ू 3. कोठारी आयोग के वक्रयान्ियन से सम्बवन्धत तत्िों को समझ सकें ग।े 4. राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 तथा 1992 की सरचना को समझ सकें ग।े ं 5. राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 तथा 1992 के वक्रयान्ियन से सम्बवन्धत तत्िों को समझ सकें ग।े 1.3 कोठारी आयोग के महत्वपूणण वबन्द ु कोठारी आयोग का यह दृढ़ विश्वास वक,
‘राष्रीय विकास म ें वशक्षा एक अत्यवधक सशक्त उपकरण है’,
इस आयोग को एक अवतविवशष्ट स्थान प्रदान करता ह।ै राष्र के विकास म ें वशक्षा की अवत महत्िपणण ू भवमका इस आयोग के प्रवतिेदन के प्रत्येक पष्ठ पर वदखायी पड़ती ह,ै वजसे बहत ही सन्दर ढग से
‘वशक्षा ु ृ ू ु ं एि राष्रीय लक्ष्य’
नामक उपशीषकण म ें उदघोवषत वकया गया ह।ै आयोग के समक्ष उपवस्थत कायण बहत ही ु ं विशाल पररमाण का तथा जवटल था, इसीवलए एक बहत बड़े पैमाने पर सवनयोवजत ढग से कायण वकये ु ु ं जाने की आिश्यकता थी, वजसे आयोग ने बहत ही उम्दा तरह से सम्पन्न वकया। आयोग अपने प्रवतिदे न ु के आमख म ें वलखता ह ै वक, ‘‘भारतीय वशक्षा के आमल पनणवनमाणण, लगभग क्रावत की आिश्यकता ह।ै ु ू ु ं हम ें प्राथवमक वशक्षा की वसवि के वलए उसम ें मख्य सधार करने ह;ैं कायाणनभि को सामान्य वशक्षा के ु ु ु समवे कत अियि की तरह लाग करना ह;ै माध्यवमक वशक्षा को व्यािसायाश्रयी बनाना ह;ै सभी स्तरों के ू अध्यापकों की गणित्ता को बढ़ाना ह,ै काफी सख्या म ें अध्यापक उपलब्ध कराने ह;ैं वनरक्षरता का ु ं उन्मलन करना ह;ै उच्चतर वशक्षा के न्रों को मजबत बनाना ह ै और अपने कछ विश्वविद्यालयों म ें कम-से- ू ू ु कम उच्च अतराणष्रीय स्तर लाने का यत्न करना ह;ै अध्यापन और अनसधान के योग पर विवशष्ट बल दने ा ु ं ं ह;ै कवष और सम्बि विज्ञानों के क्षेत्र म ें वशक्षा और अनसधान की ओर विवशष्ट ध्यान दने ा ह।ै यह सारा ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 166 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सककप और भी बड़े पैमाने पर कायण करने की ओर इवगत करता ह।ै आयोग ने अपने इस सककप को पण ण ू ं ं ं करने हते , शवै क्षक पनणवनमाणण का जो कायणक्रम वदया उसे तीन श्रेवणयों म ें बाटा जा सकता ह-ै ु ु ं i. शवै क्षक पिवत के अतरग का रूपान्तरण, तावक िह राष्र के जीिन, उसकी आिश्यकताओ और ं ं ं महत्िाकाक्षाओ से सम्बि की जा सके । ं ं ii. वशक्षा के क्षेत्र म ें गणात्मक सधार, तावक उससे जो स्तर प्राप्त वकये जायें, ि े पयाणप्त हों; प्राप्त स्तर ु ु वनरन्तर उन्नत होते रह,ें तावक कम-से-कम कछ पक्षों म ें उनकी तलना अन्तराणष्रीय स्तरों से की ु ु जा सके । iii. जनशवक्त की आिश्यकताओ के आधार पर शवै क्षक सविधाओ का विस्तार तथा शवै क्षक ु ं ं सविधाओ की समानता पर जोर। ु ं आयोग ने उपरोक्त िवणणत वशक्षा की व्यिस्था म ें आतररक रूपान्तरण हते वनम्नवलवखत कायणक्रमों को ु ं उच्च प्राथवमकता दी- i. कायाणनभि का सामान्य वशक्षा के एक समवे कत रूप म ें वनष्पादन, माध्यवमक स्तर पर वशक्षा ु व्यािसायीकरण, व्यािसावयक वशक्षा ि शोध म ें सधार तथा राष्रीय चेतना को बढ़ाना। ु ii. समान स्कल प्रणाली का प्रारम्भ, सामावजक तथा राष्रीय सेिा को सेिा अवनिायण करना तथा ू सभी आधवनक भाषाओ का विकास करना। ु ं iii. विज्ञान वशक्षा को स्कली वशक्षा का समवे कत भाग बनाना तथा िज्ञै ावनक शोधों को बढ़ािा दने ा। ू iv. उच्च स्तर के सामावजक, नैवतक तथा अध्यावत्मक मकयों को वशक्षा के सभी स्तरों पर अभ्यास ू करना। आयोग ने चारों राष्रीय उद्दश्े यों (उत्पावदता को बढ़ाना, राष्रीय एकीकरण, आधवनकीकरण को को तेज ु करना तथा सामावजक, नैवतक ि आध्यावत्मक मकयों को विकवसत करना) की प्रावप्त हते , उपरोक्त िवणतण ू ु रूपान्तरण को अत्यािश्यक माना। 1.4 मवनयोवजत औद्योवगकीकरण के मन्दभ ण म कोठारी आयोग तथा ु ें महत्वपूणण अनुशंमांाँ सवनयोवजत औद्योवगकीकरण के दौरान, आजाद भारत की वशक्षा व्यिस्था म ें कछ महत्िपण ण तथ सोची ु ु ू समझी छेड़छाड़ की गयी तथा कोई भी विमश ण गणात्मक रूप से, वशक्षा के क्षेत्र म ें आग े नहीं बढ़ पाया। इस ु तरह के दमन का सबसे उपयक्त उदाहरण महात्मा गााँधी द्वारा प्रस्तावित ‘नई तालीम’ का ह।ै ‘नई तालीम ु के तहत यह प्रस्तावित था वक उत्पादक कामों को वशक्षा के के न्र म ें रखकर उनके जररये ज्ञान प्रावप्त एि ं ज्ञान सजन का क्रावतकारी वशक्षा शाि स्कली वशक्षा की मख्य धारा बने, लेवकन ‘नई तालीम के इस ृ ू ु ं स्िरूप को विवभन्न सवमवतयों तथा आयोगों ने कभी व्यािसावयक वशक्षा, कभी कायणनभि तो कभी ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 167 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ‘समाजोपयोगी उत्पादक कायण’ का रूप दके र वनरथणक कर वदया तथा अप्रत्यक्ष रूप से सवनयोवजत ु औद्योवगकीकरण के नाम पर बड़े ि महत्िपण ण घरानों को पोवषत वकया तथा भारतीय समाज के जनमानस ू के मध्य चेतना, विकास इत्यावद कागजों पर ही ज्यादा वदखाई वदया। आजादी के बाद जब वशक्षा म ें जन अपेक्षाओ के अनरूप पररितणन नहीं हये तो धारणा यह भी बनी वक सभी आयोगों और सवमवतयों की ु ु ं अनशसाए ाँ तो ठीक ही होती ह,ै गड़बड़ के िल उनके वक्रयान्ियन म ें ह ैं लेवकन यहा ाँ समझने की बात यह ु ं भी ह ै वक विवभन्न आयोगों और सवमवतयों की सस्तवतयों म ें गहरे अतर रह े ह ैं तथा उनके पररप्रेक्ष्य ि ु ं ं बवनयादी मान्यताए ाँ भी विरोधाभासी रहीं ह।ैं कोठारी आयोग भी इसी कड़ी म ें कोई अपिाद नहीं रहा ह।ै ु समतामलक गणित्ता की वशक्षा दने े िाली कोठारी आयोग द्वारा अनशवसत
‘समान स्कल ू ु ु ू ं प्रणाली’
और की बहत ही सन्दर अिधारणा को सिाल उठाकर तथा गरै व्यािहाररक की ु ू सज्ञा दके र टाल वदया गया। औद्योवगकीकरण के उस दौर म ें आम मान्यता यह रही वक ितणमान वशक्षा की ं मख्य धारा का सामावजक चररत्र सभी प्रश्नों के परे ह।ै यवद कोई विद्याथी इस प्रणाली म ें वपछड़ जाता ह ै तो ु गड़बड़ी विद्याथी म ें ह ै न वक वशक्षा प्रणाली म।ें इसी आम मान्यता के चलते कोठारी आयोग की बहत ु सारी महत्िपण ण सस्तवतयााँ वनरथणक ही रही और महज कागजों म ें शोभा बढ़ाई। इन तमाम मवश्कलों तथा ू ु ु ं विपरीत पररवस्थवतयों के बािजद कोठारी आयोग के वनम्नवलवखत वबन्द विज्ञान, विज्ञान वशक्षा, विज्ञान के ू ु अनसधान तथा औद्योवगकीकरण के सन्दभ ण म ें महत्िपण ण रह े ह-ैं ु ू ं 1.4.1 शिक्षा और उत्पाशिता वशक्षा और उत्पावदता के बीच सम्बन्ध तभी स्थावपत वकया जा सकता है, जबवक वशक्षा के पनणवनमाणण से ु सम्बवन्धत योजनाओ म ें वनम्नवलवखत कायणक्रमों को उच्च प्राथवमकता दके र उनका विकास वकया जाये- ं i. वशक्षा और सस्कवत के मल अग के रूप म ें विज्ञान। ृ ू ं ं ii. सामान्य वशक्षा के एक अवभन्न अग के रूप म ें कायाणनभि। ु ं iii. उद्योग, कवष और व्यापार की आिश्यकताओ की पवतण के वलए वशक्षा का व्यािसावयकरण ृ ू ं विशेषकर माध्यवमक स्कल स्तर पर। ू iv.
विश्वविद्यालय स्तर पर िज्ञै ावनक और वशकप िैज्ञावनक वशक्षा एि अनसधान में सधार वकन्त कवष ृ ु ु ु ं ं और सम्बि विज्ञानों पर विशेष जोर। 1.4.2 शिक्षा और आधशनकीकरर् ु आयोग वलखता ह ै वक परम्परागत समाज के मकाबले आधवनक समाज की सबसे बड़ी विशषे ता उसके ु ु द्वारा अपनाया गया विज्ञान आधाररत वशकप विज्ञान ह ैं विज्ञान ने ही इस प्रकार के समाजों को अपना उत्पादन चमत्काररक ढग से बढ़ा सकने म ें समथण बनाया ह ै वकन्त यहााँ इस बात का भी उकलेख कर वदया ु ं जाये वक विज्ञान आधाररत वशकप विज्ञान
के अन्य महत्िपणण पररणाम सामावजक और सास्कवतक जीिन ृ ू ं पर होते ह ैं और उसके कारण ऐसे मलभत सामावजक और सास्कवतक पररितणन आते ह ैं वजन्ह ें मोटे तौर पर ृ ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 168 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं कहा जाता ह।ै वशक्षा के पनणवनमाणण सम्बन्धी कायणक्रमों पर इस आधवनकीकरण के ु ु ु प्रभाि को हम वनम्नवलवखत वबन्दओ को समझने का प्रयास करेंग।े ं ु i. ज्ञान का विस्फोट ii. जकदी-जकदी होने िाला सामावजक पररितणन iii. शीघ्र उन्नवत की आिश्यकता iv. आधवनकीकरण और वशक्षा की प्रगवत ु 1.4.3 सशनयोशजत औद्योशर्कीकरर् तथा महत्वपर्ि अनिसाए ाँ ु ू ु ं कोठारी आयोग वलखता ह ै वक,
‘‘औद्योवगकीकरण म ें सफलता काफी हद तक पयाणप्त कशल जनशवक्त ु होने पर वनभरण करती ह।ै ’’
भारत सरकार ने िज्ञै ावनक नीवत प्रस्ताि (4 माचण, 1958) में कहा था वक ‘‘वकसी राष्र का धन ि समवि औद्योगीकरण द्वारा उसके मानि तथा भौवतक साधनों के समवचत उपयोग ृ ु पर वनभरण करता ह।ै मनष्य का औद्योगीकरण म ें उपयोग करने के वलए यह जरूरी ह ै उसे विज्ञान की वशक्षा ु तथा तकनीकी कौशलों का प्रवशक्षण वदया जाये। उद्योग द्वारा प्रत्येक व्यवक्त के वलए अवधक सम्पन्नता की सम्भािनाए ाँ उत्पन्न हो जाती ह।ैं भारत की जनशवक्त का पयाणप्त साधन प्रवशवक्षत तथा वशवक्षत होने पर ही आधवनक ससार म ें उपयोगी बन सकता ह।ै ’’ इस बात की सफलता वनम्नवलवखत स्तर की योग्यताओ से ु ं ं ह-ै i. अिणकशल तथा कशल कामगरों का प्रवशक्षण। ु ु ii. तकनीवशयन का प्रवशक्षण। iii. अन्य व्यािसावयक वशक्षा। iv. लघ उद्योग तथा स्िय वनयोजन के वलए वशक्षा। ु ं v. इजीवनयरी की वशक्षा। ं इनके साथ-साथ आयोग ने विज्ञान की वशक्षा और अनसधान को सदृढ़ बनाने के वलए कई महत्िपणण ु ु ू ं अनशसाए ाँ की ह ै वजसे आप विस्तार से आयोग के प्रवतिदे न म ें सोलहि ें अध्याय म ें दखे सकते ह।ैं ु ं 1.4.4 कोठारी आयोर्: सम्पर्ि प्रशतवेिन का साराि ू ं कोठारी आयोगी की िहत्तर प्रवतिदे न (लगभग 673 पष्ठ) पर एक सरसरी नजर आपको इस आयोग को ृ ृ सम्पण ण रूप से समझने म ें सहायक होगी। आयोग ने अपने प्रवतिदे न म ें वशक्षा के विवभन्न पक्षों पर सघन ू प्रकाश डाला तथा राष्रीय उत्थान म ें वशक्षा को एक महत्िपण ण साधन के रूप म ें विकवसत करने की दृवष्ट स े ू अनके महत्िपण ण सझाि वदये, जो वक वनम्नवलवखत ह-ैं ू ु i. शिक्षा के राष्ट्रीय उद्देश्य- राष्र की उत्पादकता म ें िवि, सामावजक ि राष्रीय एकता म ें ृ िवि, आधवनकीकरण म ें गवतशीलता तथा सामावजक, नैवतक ि आध्यावत्मक मकयों का ृ ु ू विकास। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 169 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ii. शिक्षा की सरचना- एक स े तीन िष ण तक की पि ण प्राथवमक वशक्षा, दस िष ण की सामान्य ू ं वनविकण कप वशक्षा, दो िष ण की उच्चतर माध्यवमक वशक्षा तथा प्रथम उपावध के वलए वत्रिषीय उच्च वशक्षा का सझाि। ु iii. अध्यापकों की ििा - अध्यापकों की दशा को सधारने के वलए कई प्रकार के ु सझाि तथा पाररतोवषक प्रस्तावित वकये गये। ु iv. अध्यापक प्रशिक्षर्- अध्यापक प्रवशक्षण को उन्नत करने के वलए कई प्रकार के सझाि वदये गये वजसम ें राष्रीय आिश्यकताओ के अनरूप पररितणन भी प्रस्तावित वकये ु ु ं गये। v. नामाकन तथा मानव सिाधन - राष्र के पनणवनमाणण के मानि ससाधन के विकास को ु ं ं ं महत्ि दते े हए कम से कम 7 िष ण की वनःशकक तथा अवनिायण वशक्षा प्रदान करन े तथा वशक्षा ु ु के स्तरों तथा विवभन्न स्तरों पर पहचाँ बनाने के वलए सझाि वदये गये। ु ु vi. िैशक्षक समानता - वकसी भी आधार पर वकसी भी तरह की असमानता का विरोध करते हए आयोग ने शवै क्षक समानता को भारतीय समाज की एक विशषे ता के रूप म ें स्थावपत ु करने के वलए अपने सझाि वदये। ु vii. स्कल शिक्षा का शवस्तार - स्कल वशक्षा के विस्तार पर कोठारी आयोग ने बहत बल वदया ु ू ू तथा इसे सम्पण ण विकास का आधार मानते हए, इसे विकवसत करने के वलए सझाि वदये। ु ू ु viii. स्कल पाठयक्रम - आधवनक समय म ें को ध्यान म ें रखते हए स्कल ु ् ू ु ू पाठयक्रम म ें आमल पररितणन के वलए आयोग ने सझाि वदया। ् ू ु ix. स्कल शिक्षा पद्धशत- उत्कष्ट पाठयपस्तक, वनदशे न ि विचार-विमश ण तथा मकयाकन वशक्षा ृ ् ू ु ू ं के अतवनणवहत अग होने चावहए। ं ं x. स्कल शनरीक्षर्- सहानभवतपण ण तथा वक्रयाशील प्रशासवनक तथा वनरीक्षण प्रणाली की ू ु ू ू आिश्यकता पर बल। xi. उच्च शिक्षा के उद्देश्य- निीन ज्ञान की खोज, नेतत्ि प्रदान करना, विवभन्न व्यािसायों में ृ दक्षता, समानता ि सामावजक न्याय को बढ़ाना, िावछत मकयों का विकास करना तथा विश्व ू ं के सिश्रण ेष्ठ
विश्वविद्यालयों के समकक्ष िहद विश्वविद्यालयों की स्थापना। ृ xii. उच्च शिक्षा में प्रवेि व कायिक्रम - मानि ससाधन की आिश्यकताओ के अनरूप ु ं ं चयवनत प्रिशे नीवत तथा इस हते
‘के न्रीय परीक्षण सस्थान’
की स्थापना, पाठयक्रमों के ् ु ं पनगठण न तथा शवै क्षक अनसधान की आिश्यकता पर बल। ु ु ं xiii. शवश्वशवद्यालयों की व्यवस्था - पण ण स्िायत्तता पर बल। ू xiv. कशष शिक्षा- प्रत्येक राज्य म ें कम से कम एक कवष विश्वविद्यालय, कवष पॉवलटेवक्नकों की ृ ृ ृ स्थापना को िरीयता, कवष वशक्षा का सामान्य वशक्षा का एक अग बनाने पर बल। ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 170 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं xv. व्यावसाशयक, तकनीकी तथा इजीशनयररर् शिक्षा - आयोग ने व्यािसावयक पाठयक्रमों ् ं ं को रोजगार उन्नमख बनाने, तकनीकी पाठयक्रमों में सधार करने तथा इजीवनयररग ् ु ु ं ं पाठयक्रमों म ें प्रत्यक्ष तथा प्रायोवगक कायण को अवधक महत्ि दने े का सझाि। ् ु xvi. शवज्ञान शिक्षा तथा अनसधान - गवणत ि
विज्ञान के उच्च अध्ययन के न्र खोलने, ु ं पाठयक्रम म ें पररितणन करने, प्रायोवगक तथा सैिावतक पक्षो के बीच सतलन, राष्रीय स्तर ् ु ं ं पर विज्ञान अनसधान को समि करना तथा प्रवतभाशाली छात्रों को विदशे म ें अध्ययन के ृ ु ं वलए छात्रिवत्त, विज्ञान की राष्रीय नीवत बनाना, िज्ञै ावनकों की समस्याए ाँ हल करने, विज्ञान
ृ अकादमी के पनगठण न के सझाि। ु ु xvii. प्रौढ़ शिक्षा - राष्रीय वशक्षा पररषद का स्थापना करके प्रौढ़ वशक्षा का सगठन तथा प्रशासन ं करने का सझाि। ु xviii. िैशक्षक योजना तथा प्रिासन - स्थानीय तथा राज्य स्तर के शवै क्षक प्रशासन म ें सधार के ु सझाि। ु xix. िैशक्षक अथिव्यवस्था- वशक्षा के आवथणक स्रोतों तथा शवै क्षक व्यय पर सझाि। ु अभ्यास प्रश्न 1. भारतीय वशक्षा के इवतहास म ें भारतीय वशक्षा आयोग 1964-66 को महत्िपण ण क्यों माना जाता ह?ै ू 2. भारतीय वशक्षा आयोग (1964-66) के समक्ष मख्य विचारणीय मद्द े क्या थे? ु ु 1.5 राष्ट्रीय वशक्षा नीवत-1986 (पृष्ट्ठभूवम) भारत म ें राष्रीय शवै क्षक पररदृश्य, जसै ा वक विवभन्न शवै क्षक नीवतयों द्वारा कवकपत वकया गया, एक महत्िपण ण कजी ह ै जो भारत की राष्रीय वशक्षा नीवत के द्वारा पहचाँ , समता, समानता, प्रासवगकता तथा ु ू ुं ं गणित्ता को वशक्षा के सभी स्तरों पर सवनवश्चत करती ह।ै राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 का उद्भि शन्यता से ु ु ू नहीं िरन इसकी पष्ठभवम म ें आधवनक भारतीय वशक्षा व्यिस्था को व्यिवस्थत वकये जाने िाले प्रयासों के ृ ् ू ु तहत आने िाली सवमवतयों तथा आयोगों (आजादी पि ण तथा पश्चात दोनों) विशषे कर आजाद भारत के , ने ् ू महत्िपण ण योगदान वदया। जसै ा वक आप जानते ह ैं वक मख्य रूप से विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग (1948- ू ु 49), माध्यवमक वशक्षा आयोग (1952-53), भारतीय वशक्षा आयोग (1964-66), राष्रीय वशक्षा नीवत- 1968, वशक्षा की चनौती: नीवत सम्बन्धी पररप्रेक्ष्य (1985) तथा अन्य कई छोटी बड़ी सवमवतयों ने ु राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 के वलए वदशा ि दशा सवनवश्चत की। सन 1985 म ें राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 ् ु के वनमाणण हते भारत सरकार द्वारा एक नई शरूआत करते हए बहत बड़े पैमाने पर पि ण की सस्तवतयों तथा ु ु ु ु ू ु ं ितणमान सन्दभ ण के तहत विश्लेषण करते हए, ‘वशक्षा की चनौती: नीवत सम्बन्धी पररप्रेक्ष्य- नामक 68 ु ु पष्ठीय दस्तािजे तैयार वकया गया जो वक राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 के वलए आधार बना। राष्रीय वशक्षा ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 171 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं नीवत-1986 को कल बारह खण्डों म ें बाटा गया वजनम ें कल 157 वबन्दओ के तहत नई वशक्षा नीवत को ु ु ं ं ु वलवपबि वकया गया ह ै जो वक वबन्दिार वनम्नवलवखत ह-ैं ु i. प्रस्तािना ii. वशक्षा का सार तथा भवमका ू iii. वशक्षा की राष्रीय प्रणाली iv. समानता के वलए वशक्षा v. विवभन्न स्तरों पर शवै क्षक पनगणठन ु vi. तकनीकी तथा प्रबन्ध वशक्षा vii. वशक्षा प्रणाली का वक्रयान्ियन viii. वशक्षा के पाठयक्रम तथा प्रवक्रया का अवभनिीकरण ् ix. अध्यापक x. वशक्षा का प्रबन्ध xi. ससाधन तथा समीक्षा ं xii. भािी स्िरूप नई वशक्षा नीवत (1986) को 21िीं सदी के छात्रों को तैयार करने की मशा से विकवसत वकया गया था, ं ऐसे छात्र जो िवै श्वक विकास, उभरती हई तकनीकी तथा अतर-सास्कवतक जवटलताओ का सामना कर ु ृ ं ं ं सकें तथा दशे को विकास के पथ पर आग े ले जा सके । आजाद भारत म ें आजदी के लगभग 40 िषों के पश्चात नीवत वनमाणताओ ने पहली बार एक विस्तत कायाणन्ियन कायणक्रम-1986 भी विकवसत वकया, तावक ृ ् ं वशक्षा नीवत की सभी सस्तवतयों को समयबि तरीके स े कायाणवन्ित वकया जा सके । इसके वलए 23 ु ं कायणदल वनवमतण वकये गये वजनम ें वशक्षाशािी, विषय के विद्वान, योजनाकार, प्रशासक तथा अन्य नीवत वनधाणरक लोग शावमल थे। प्रत्येक कायणदल ने अपने वलए आिवटत क्षेत्र का विस्तत कायण योजना तैयार की ृ ं तथा इस कायण योजना म ें सभी उपवस्थत सदवभतण तत्िों का ध्यान रखा गया। इस तरह एक बहत ही विस्तत ु ृ ं आख्या, वजसे ‘कायाणन्ियन कायणक्रम’ कहा गया, भारत सरकार के समक्ष प्रस्तत की गई। इस ‘कायाणन्ियन ु कायणक्रम’ के 23 कायणदल वनम्नवलवखत थे- i. वशक्षा प्रणाली को वक्रयाशील बनाना। ii. स्कल वशक्षा की पाठयपस्तक तथा प्रवक्रयाए।ाँ ् ू ु iii. नारी समानता के वलए वशक्षा। iv. अनसवचत जावत, जनजावत तथा अन्य वपछड़ा िगों की वशक्षा। ु ू v. अकपसख्यकों की वशक्षा। ं vi. विकलागों की वशक्षा। ं vii. प्रौढ़ एि सतत वशक्षा। ं viii. पि ण बाकयािस्था पररचयाण तथा वशक्षा। ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 172 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं ix. अनौपचाररक वशक्षा तथा ऑपरेशन ब्लैक बोडण सवहत प्रारवम्भक वशक्षा। x. माध्यवमक वशक्षा तथा निोदय विद्यालय। xi. व्यािसायीकरण। xii. उच्च वशक्षा। xiii. मक्त विश्वविद्यालय तथा दर अवधगम। ु ू xiv. तकनीकी तथा प्रबन्ध वशक्षा। xv. अनसधान एि विकास। ु ं ं xvi. वशक्षा म ें सगणक का उपयोग सवहत सचार साधन तथा शवै क्षक तकनीकी। ं ं xvii. उपवब्धयों को रोजगार से विलग करना तथा मानि शवक्त वनयोजन। xviii. सास्कवतक पररप्रेक्ष्य तथा भाषा नीवत को लाग करना। ृ ू ं xix. खले शारीररक वशक्षा तथा यिा। ु xx. मकयाकन प्रवक्रया तथा परीक्षा सधार। ू ु ं xxi. अध्यापक तथा उनका प्रवशक्षण। xxii. वशक्षा का प्रबन्ध। xxiii. ग्रामीण विश्वविद्यालय/सस्थान। ं सीवमत समयसीमा के बािजद कायणदलों ने अपना कायण पण ण करके अपनी-अपनी आख्याए ाँ प्रस्तत कर दी, ू ू ु पररणामस्िरूप कायाणन्ियन कायणक्रम को अवतम रूप द े वदया। ं 1.5.1 राष्ट्रीय शिक्षा नीशत-1986 (समीक्षा 1992) 1989 म ें सत्ता पररितणन के साथ-साथ वशक्षा नीवत म ें भी पररितणन की माग के चलते नई सरकार ने 7 मई ं 1990 को आचायण राममवतण की अध्यक्षता म ें एक समीक्षा सवमवत गवठत कर दी। इस सवमवत के समक्ष ू वनम्नवलवखत विषय विचाराथण थे- i. राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 तथा इसके कायणन्ियन की समीक्षा। ii. नीवत के सशोधन के सम्बन्ध म ें सस्तवत करना। ु ं ं iii. सशोवधत नीवत के समयबि कायाणन्ियन के वलए आिश्यक कायणयोजना सझाना। ु ं इस सवमवत के अध्यक्ष आचायण राममवतण ने उपरोक्त िवणतण विषय पर विचार करने के वलए वनम्नवलवखत ू छः उपसवमवतयों का गठन वकया।- i. उपसवमवत 1 पहचाँ , समता तथा सिीकरण ु ii. उपसवमवत 2 वशक्षा और काम का अवधकार iii. उपसवमवत 3 वशक्षा की कोवट और मानदड ं iv. उपसवमवत 4 राष्रीय एकता, मकय वशक्षा और चररत्र वनमाणण ू v. उपसवमवत 5 ससाधन और प्रबन्ध ं vi. उपसवमवत 6 ग्राम वशक्षा उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 173 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इन सवमवतयों की अनशसाओ के आधार पर आचायण राममवतण ने अपने प्रवतिदे न को सोलह अध्यायों म ें ु ू ं ं बाटा तथा सम्पण ण प्रवतिदे न को
‘प्रबि एि मानिीय समाज की ओर’
नामक शीषकण से प्रस्तत वकया ू ु ु ं ं सोलह अध्याय वनम्नवलवखत ह-ैं i. कायणविवध तथा प्रवक्रया ii. दृवष्टकोण iii. वशक्षा की भवमका: उद्दश्े य एि मकय ू ू ं iv. समता, सामावजक न्याय और वशक्षा a. वशक्षा और नारी समानता b. अनसवचत जावतयों, जनजावतयों तथा अन्य शवै क्षक रूप से वपछड़े िगों के वलए वशक्षा ु ू c. विकलागों के वलए वशक्षा ं d. सािजण वनक स्कल प्रणाली ू e. निोदय विद्यालय v. वशश दखे भाल और वशक्षा ु vi. प्रारवम्भक वशक्षा का सिीकरण vii. प्रौढ़ और अनिती वशक्षा ु viii. वशक्षा और काम का अवधकार ix. उच्च वशक्षा x. तकनीकी और प्रबन्ध वशक्षा xi. वशक्षा म ें भाषाओ का स्थान ं xii. वशक्षा की विषयािस्त तथा प्रवक्रया ु xiii. वशक्षक और छात्र xiv. विके न्रीकरण और सहभागी प्रबन्ध xv. वशक्षा के वलए ससाधन ं xvi. उपसहार ं 1.5.2 कायािन्वयन कायिक्रम (1992) कायाणन्ियन कायणक्रम-1992 भी समान सहमवत प्रवक्रयाओ की पररणवत थी। 22 कायणदल इस कायण म ें भी ं बनाये गय,े वजनम ें वशक्षाशािी, विषय के विद्वान, योजनाकार, प्रशासक तथा अन्य नीवत वनधाणरक लोग शावमल थे। समीक्षा सवमवत ने यह साफ कर वदया वक राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 बहत ही सशक्त थी तथा ु वकसी भी दशे के शवै क्षक विकास को बहत लम्बे समय तक वनदवे शत करने म ें सक्षम थी। इसी प्रकार ु
‘कायाणन्ियन कायणक्रम-1986’
म ें रेखावकत बहत सारी यवक्तयााँ उवचत थी और उपयक्त भी थी वजन्ह ें आग े ु ु ु ं भी जारी रखा गया। हालावक कायणदलों के सतत प्रयासों से
‘कायाणन्ियन कायणक्रम-1992’
बहत अवधक ु ं व्यािहाररक तथा वक्रयान्तख बना तथा इस कायाणन्ियन कायणक्रम की छाप आठिीं तथा निीं पचिषीय ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 174 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं योजना पर साफ वदखलायी पड़ा। उपयक्त कायाणन्ियन तथा लक्ष्यों की प्रावप्त हते दोनों ही योजनाओ म ें धन ु ु ं की व्यिस्था की गयी। यहााँ इस बात का उकलेख बहत ही आिश्यक ह ै वक नयी वशक्षा नीवतयों ने कोठारी ु आयोग की कछ अनशसाओ को बहत अवधक महत्ि वदया जसै े- शवै क्षक अिसरों की समानता, वशक्षा म ें ु ु ु ं ं सामावजक न्याय तथा वशक्षा और विकास का अतसणम्बन्ध तथा ये अनशसाए ाँ दोनों ही शैवक्षक नीवतयो- ु ं ं 1986, 1992 तथा उनके कायाणन्ियन म ें आधार रही। 1.6 कायािन्वयन कायिक्रमों के मख्य शबन्िओ का एक तलनात्मक शवश्ले षर् ु ु ं ु ितणमान कायणक्रम के क्षेत्र को ध्यान म ें रखते हए यह तलनात्मक विश्लेषण के िल कछ ही चयवनत वबन्दओ ु ु ु ं ु पर वकया जायेगा। आप अपनी विस्तत समझ के वलए सदवभतण सामग्री की सहायता ले सकते ह।ैं ये ृ ं चयवनत वबन्द वनम्नवलवखत ह-ैं ु i. प्राथवमक वशक्षा ii. माध्यवमक एि उच्च-माध्यवमक वशक्षा ं iii. वशक्षक वशक्षा प्राथशमक शिक्षा कायािन्वयन कायि - 1986 कायािन्वयन कायिक्रम-1992 प्राथवमक वशक्षा के सिीकरण में सभी वजला-विशेष जनसख्या-विशेष कायण योजना ं सम्बवन्धत लोगों तथा स्थानीय समदाय ि सक्ष्म स्तर पर ु ू वशक्षक को वनयोजन में सवम्मवलत करना 300 की आबादी पर राज्य सरकारें एक प्राथवमक वशक्षा के सिीकरण हते जनसख्या- ु ं प्राथवमक विद्यालय सवनवश्चत करें विशेष योजना ु विस्तत स्कल तलरूपवमवत (mapping) अवधगम का न्यनतम स्तर की शरूआत ृ ू ू ु विकवसत करने की शरूआत ु आश्रम स्कलों में सधार तथा फै लाि वजला स्तर योजना में विसमहन उपागम की ू ु ू भवमका वजसमें स्कलों में िैकवकपक प्रणाली ू ू का अवभग्रहण कमजोर िगण के वलए छात्रािास प्राथवमक वशक्षा कायणक्रम, सिीकरण कायणक्रम, साक्षरता कायणक्रम तथा सम्पण ण साक्षरता में ू तारतम्यता छात्रों के स्कल में धारण तथा सम्पणनण पर स्कली सविधाओ में आपरेशन ब्लैक बोडण से ू ू ू ु ं विशेष बल सधार ु वशक्षकों के पनबणलन के वलए विस्तत कायण शैवक्षक प्रबन्धन का विके न्रीकरण सतत एि ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 175 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं प्रणाली का विकास विस्तत मकयाकन की शरूआत ृ ू ु ं 11-14 आय समह के बच्चों के नामाकन बल वशक्षक के प्रवशक्षण में सधार ु ू ु ं पर बच्चों के वनयोक्ता को उनकी अशकावलक जााँच प्रणाली में सधार ु ं वशक्षा की वजम्मेदारी समदाय का कायणक्रमों में भवमका राष्रीय वमशन की शरूआत ु ू ु 5 + 3 + 2 के ढााँचे पर पहचाँ ना 35000 नये प्राथवमक विद्यालय का शभारम्भ ु ु कम से कम आिश्यक सविधाओ को सवनवश्चत प्राथवमक तथा उच्च प्राथवमक का अनपात 2: ु ु ु ं करने हते ऑपरेशन ब्लैक बोडण 1 ु छात्रिवत्तयों की व्यिस्था। प्राथवमक स्कलों का उच्च प्राथवमक स्कलों में ृ ू ू उन्नयन व्यािसावयक और तकनीकी कायणक्रमों की स्िैवच्छक स्कलों की योजना कम से कम 30 ू व्यिस्था बच्चों के साथ दगणम स्थानों पर ु छात्रों के मकयाकन के वलए एक सव्यिवस्थत ू ु ं प्रणाली का वनमाणण छात्र के नामाकन, धारण, वनयवमतता तथा ं उपलवब्ध के आकड़ों का सग्रहण ं ं माध्यशमक एव उच्च माध्यशमक शिक्षा ं कायािन्वयन कायि - 1986 कायािन्वयन कायिक्रम-1992 बवनयादी उभयवनष्ठ मकयों के साथ राष्रीय माध्यवमक वशक्षा में पहचाँ के वलए फै लाि- ु ु ू पाठयचयाण की रूपरेखा की अिधारणा ् वपछड़े और अनपावलत इलाकों में माध्यवमक ु (क) पाठयक्रम में विविधता के सविधाएाँ दने ा ् ु वशक्षा हते स्के ल की स्थापना ु प्रत्येक
राज्य के स्के लों के तलरूपवमवत के वलए (ख) वपछड़े और अनपावलत इलाकों में माध्यवमक ु कायणक्रम स्कलों का वनमाणण ू स्रिण क्षेत्रों में स्कल समह गच्छों की स्थापना ू ू ु (ग) अनसवचत जावत एि जनजावत के नामाकन में ु ू ं ं वजसमें माध्यवमक स्कल मख्य भवमका में हो ू ु ू िवि हते सफल कायण योजना ृ ु चरणबि तरीके से मक्त स्कलों की स्थापना, हर ु ू उभयशनष्ठ िैशक्षक ढााँचा वजले में एक ससाधन के न्र के साथ,
1990 तक ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 176 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं प्रत्येक वनवमणत विद्यालय 10 + 2 कायणक्रम का स्कलों को शनम्नशलशखत जरूरतें हैं- ू अनपालन करेंगे। एक कायणदल का वनमाणण इस ु अनपालन में होने िाली कवठनाइयों को दर ु ू करने हते । ु माध्यशमक शिक्षा के बोडि का सिशिकरर् (क) पयाणप्त खेल के मैदान वशक्षा की गणित्ता तथा मानकों को ु (ख) कक्षाओ तथा प्रयोगशालाओ का वनमाणण ं ं वनयमतीकरण में भवमका ू प्रभािी पररणाम हते कायणदल का गठन 1993 ु (ग) उच्च वशवक्षत अध्यापक तथा सेिा में रत तक अपनी आख्या दने ा अध्यापकों का प्रवशक्षण उच्च तथा उच्चतर माध्यवमक विद्यालयों के (घ) पाठयक्रम एक मानक पाठयचया ण के अनसार ् ् ु प्रधानों के वलए उवचत कायणक्रम का वनमाणण प्राथवमक तथा माध्यवमक वशक्षा के वलए (ङ) उच्चतर माध्यवमक विद्यालय तथा माध्यवमक राष्रीय पाठयचयाण रूपरेखा तथा इसी पर ् विद्यालय का अनपात 1: 3 ु आधाररत विषयािस्त ि पस्तकें ु ु नवोिय शवद्यालय उच्चतर माध्यशमक शिक्षा प्रवतभाशाली बच्चों के वलए विषयिस्त पर उन्मखीकरण ु ु ग्रामीण बच्चों के वलए 75 प्रवतशत आरक्षण सतत एि विस्तत मकयाकन ृ ू ं ं अनसवचत जावत तथा जनजावत के वलए भी राष्रीय नीवत (स्िीकत) से कोई विचलन नहीं ृ ु ू आरक्षण 11 लड़वकयााँ भी कम से कम राष्रीय रूपरेखा का कायाणन्ियन सी0बी0एस0ई0 से सम्बिता पाठयपस्तकों का वनधाणररत मानकों पर ् ु मकयाकन ू ं अत्यवधक छोटे समह सभी राज्यों के सभी वजलों में आठिीं पचिषीय ू ं योजना के पण ण होने से पिण निोदय विद्यालय ू प्रिेश परीक्षा की व्यिस्था व्यािसावयक परामशण की व्यिस्था उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 177 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं शिक्षक शिक्षा कायािन्वयन कायि - 1986 कायािन्वयन कायिक्रम-1992 पिण सेिा प्रवशक्षण तथा उन्मवखकरण की ऑपरेशन ब्लैक बोडण की सामग्री के इस्तेमाल ू ु व्यिस्था पर बल तथा एम.एल.एल. नीवत का उपयोग निाचार के वलए स्ितत्रता के न्र सहायता नीवतयों की समीक्षा ं वशकायतों के वनपटारे के वलए उवचत व्यिस्था पिण सेिा वशक्षक प्रवशक्षण प्रदान करना ू कायण के वलए अनकल िातािरण जैसे पााँच िष ण के अन्दर सभी सेिारत वशक्षकों का ु ू सेिावनिवत्त लाभ, अध्ययन अिकाश, सेिा प्रवशक्षण ृ शतों में समानता तथा वशक्षकों के स्थानान्तरण प्रदान करना वशक्षकों की प्रबन्धन में भवमका विशेष उन्मखीकरण कायणक्रम की शरूआत ू ु ु अशकावलक वनयवक्तयों में कमी करना सहायक कायणक्रम प्रणाली का उन्नयन ु ं एन.सी.टी.ई. को स्िायत्त रूप दने ा वशक्षण-अवधगम सामग्री के वनमाणण तथा उत्पादन हते विशेष कायणक्रम ु डी.आई.ई.टी. प्राथवमक वशक्षकों के प्रवशक्षण एस.सी.ई.आर.टी. का सशवक्तकरण के वलए वशक्षा व्यिस्था के माध्यम से प्रवशक्षण एन.सी.टी.ई. की स्िायत्ता के वलए वबल राज्यों के खद के पी.ओ.ए. का वनमाणण ु जिाबदहे ी के वलए मानकों का वनमाणण अभ्यास प्रश्न 1. राष्रीय वशक्षा नीवत-1986 की मख्य विशषे ताए ाँ क्या थीं? ु 2. कायाणन्ियन कायणक्रम-1992, 1986 के कायाणन्ियन कायणक्रम से कहााँ-कहााँ अलग था? 1.7 मारांश वशक्षा क्षेत्र की प्राथवमकता स्ितत्रता के पश्चात से ही भारत के शीष ण एजडें े म ें रही तथा इसम ें आिश्यक ् ं गणित्ता के सधार हते विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग (1948-49), माध्यवमक वशक्षा आयोग (1952-53), ु ु ु भारतीय वशक्षा आयोग (1964-66), राष्रीय वशक्षा नीवत (1968), राष्रीय वशक्षा नीवत (1986, 92) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 178 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं तथा कायाणन्ियन कायणक्रम (1986, 92) इत्यावद प्रमख रूप से रेखावकत वकये जा सकते ह।ै राष्रीय वशक्षा ु ं नीवत 1986 (1992 म ें सशोवधत) म ें एक ऐसी राष्रीय प्रणाली की पररककपना की गयी ह।ै वजसका तात्पयण ं था वक,
‘‘जावत, पथ, स्थान या मवहला परूष म ें भदे भाि वकये वबना एक स्तर तक सभी विद्यावथणयों की ु ं एक गणित्तापण ण वशक्षा व्यिस्था तक पहचाँ हो’’
। राष्रीय वशक्षा नीवत 1968 से लेकर 92 तक सभी के ु ु ू द्वारा भारतीय वशक्षा व्यिस्था म ें आमल चल पररितणन का सककप वलया गया। भारतीय वशक्षा प्रणाली के ू ू ं सभी स्तरों पर गणित्ता सधार करने, विज्ञान और प्रौद्योवगकी का विकास करने, नैवतक और सामावजक ु ु मकयों को बढ़ाने तथा वशक्षा और लोगों के जीिन के मध्य घवनष्ठ सम्बन्ध स्थावपत करन े पर जोर वदया ू गया ह।ै वपछले लगभग दो दशकों म ें आये क्रावतकारी पररितणनों के सन्दभ ण म ें ितणमान में 21िीं सदी की ं वशक्षा हते नयी वशक्षा पर पनः विमश ण चल रहा ह ै तथा 1986 और 1992 की नीवतयों पर आपकी समझ, ु ु नयी नीवत को वदशा ि दशा दने े म ें सहायक वसि हो सकती ह।ै 1.8 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 14. Kumar Krishna: Raj, Samaj aur Shiksha. Raj Kamal Prakashan, New Delhi, 2001 15. Vaidya, N. & Vaidya, S.; Encyclopedia of Educational Foundations and Development. Deep & Deep Publications, New Delhi, 2002. 16. The Report of University Education Commission, 1948-49. Published by Govt. of India Press. 17. The Report of Secondary Education Commission, 1952-53. Published by Govt. of India Press. 18. The Report of Indian Education Commission, 1964-66. Published by Govt. of India Press. 19. Challenges of Education: A Policy Perspective. Published by Ministry of Education, 1985. 20. National Policy on Education, 1986. Published by MHRD, 1986. 21. National Curriculum Framework-2005, Published by NCERT, 2005. 22. Programme of Action, 1986 & 1992. Published by MHRD, 1986 & 1992. 23. India Vision 2020: The Report, Planning Commission, Govt. of India. Published by Academic Foundation, New Delhi, 2004. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 179 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 1.9 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. भारतीय वशक्षा आयोग (1964-66), राष्रीय वशक्षा नीवत 1968 का आधार क्यों बना? 2. सवनयोवजत औद्योवगकीकरण का भारतीय वशक्षा के आयोग 1964-66 की वसफाररशों पर क्या असर ु पड़ा? 3. राष्रीय वशक्षा की नीवत-1986 के उद्भि की महत्िपण ण पष्ठभवम क्या रही? ृ ू ू 4. राष्रीय वशक्षा नीवत 1992, 1986 से वकन-वकन वबन्दओ पर वभन्न हई? ु ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 180 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई- 3 मध्यान्ह िोजन योजना कायणिम की समीक्षा Review of Mid Day Meal Program 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 मध्यान्ह भोजन योजना 3.3.1 मध्यान्ह भोजन योजना का इवतहास 3.3.2 कायणक्रम के उद्दश्े य 3.3.3 के न्रीय सहायता के सघटक ं 3.3.4 MDMके वलए सरकार द्वारा जारी वदशावनदशे 3.3.5 मध्यान्ह भोजन योजना में विद्यालय प्रबधन सवमवत की भवमका ू ं 3.4 मध्यान्ह भोजन योजना का विवधक वनणणय 3.5 मध्यान्ह भोजन योजना के लाभ 3.6 मध्यान्ह भोजन योजना के दोष 3.7 साराश ं 3.8 शब्दािली 3.9 स्िमकयाकन हते प्रश्नों के उत्तर ू ु ं 3.10 सदभण ग्रथ सची ू ं ं 3.11 वनबधात्मक प्रश्न ं 3.1 प्रस्तावना
“शकसी राष्ट्र का स्वास््य उसकी सम्पिा से ज्यािा महत्वपर्ि है”
(हरबटि स्पेंसर) । प्राथवमक ू विद्यालयों म ें सबसे बड़ी समस्या ह ै वक बच्चे नामाकन तो करा लेते ह ैं लेवकन विद्यालयों में उनका ठहराि ं तथा उपवस्थवत वनयवमत नहीं बनी रहती । इसका मख्य कारण ह ै उनकी आजीविका । ये छात्र अत्यत ु ं वनधणन पररिार के होते ह ैं और पररिार को आवथणक रूप से सक्षम बनाने के वलए मदद करते ह।ैं उनके माता वपता भी अवशवक्षत होते ह ैं औए वशक्षा का महत्त्ि नहीं समझते ह ैं । माता वपता भी यही चाहते ह ैं वक बच्चा आवथणक रूप से उनकी सहायता करे । एक कहाित ह ै वक भख े पेट तो भजन भी नहीं होते ह,ैं तो बच्च े ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 181 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं भख े पेट पढ़ेंग े कै से? अवधकाश बच्चे भख े ही विद्यालय आते ह ैं और कोई सबह भोजन करके आते भी ह ैं ू ू ु ं तो वदन तक उनको भख लग जाती ह ै । इसवलए ि े विद्यालय आना पसद नहीं करते ह ैं । गरीबी के कारण ू ं अवधकाश बच्चे कपोषण का वशकार रहते ह ैं । जब स्िास््य ही ठीक नहीं रहगे ा तो विद्यालय की वकसी ु ं भी गवतविवध म ें उनका मन नहीं लगगे ा । इन गरीब िग ण के बच्चों के वलए पहले रोटी ह ै वफर अन्य चीज ें । अतः इस समस्या को दखे ते हए भारत सरकार ने विद्यालय म ें नामाकन बढ़ाने तथा बच्चों की उपवस्थवत ु ं वनयवमत करने के वलए मध्यान्ह भोजन योजना का आरम्भ वकया । प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए यह अत्यत महत्िपण ण योजना ह,ै वजससे विद्यालय म ें नामाकन बढ़ सके , छात्रों को सतवलत आहार ू ु ं ं ं वमल सके तथा उनके मध्य सामावजक सौहाद,ण एकता,एि परस्पर भाईचारे की भािना का विकास हो सके । ं इस इकाई म ें आप MDM के बारे म ें विस्तार से अध्ययन करेंगे । 3.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप: 5. मध्यान्ह भोजन योजना को समझ सकें ग े । 6. मध्यान्ह भोजन योजना का विवधक वनणयण समझ सकें ग े । 7. मध्यान्ह भोजन योजना के लाभों को समझ सकें ग े । 8. मध्यान्ह भोजन योजना के दोषों को समझ सकें ग।े 3.3 मध्यान्ह भोजन योजना स्ितत्रता के पश्चात के न्रीय ि राज्य स्तर पर सरकारों द्वारा वशक्षा पर अवधक ध्यान वदया गया। प्राथवमक ं वशक्षा विश्व की दसरी सबसे बड़ी वशक्षा ह ै । प्राथवमक वशक्षा की गणित्ता को सधारने के वलए दशे म ें कई ु ु ू सवमवतयााँ, आयोग ि योजनाए बनाई गई । जसै े DPEP, ओपरेशन ब्लैकबोडण, सिवण शक्षा अवभयान आवद ं । इन सभी योजनाओ का विस्तत अध्ययन आप ब्लाक 1 की इकाई 1 म ें कर चके ह ैं । 1986 की राष्रीय ृ ु ं वशक्षा नीवत म ें 14 िष ण तक के बच्चों का विद्यालय म ें नामाकन और ठहराि तथा गणित्ता पण ण वशक्षा की ु ू ं बात कही गई। सन 2000 म ें डकार सम्मलेन म ें अन्तराणष्रीय समदाय के सदस्य इस वनष्कष ण पर पहचाँ े वक ु ् ु अनेक दशे पि ण सम्मलेन म ें वनधाणररत लक्ष्यों तक नहीं पहचाँ पाए तथा इस त्य पर सहमत हए वक िषण ु ु ू 2015 तक वशक्षा हते वनधाणररत लक्ष्यों की पती हो पाएगी। इसम ें छः लक्ष्य वनधाणररत वकये गए वजससे ु ू सबको वशक्षा वमल सके । 7. पि ण बाकयकाल एि वशक्षा ू ं 8. प्राथवमक वशक्षा का सािभण ौवमकरण उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 182 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 9. यिा ि प्रौढ़ो की शवै क्षक आिश्यकताओ की पवतण ु ू ं 10. प्रौढ़ साक्षरता 11. लैंवगक समानता 12. गणित्ता परक वशक्षा ु प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए मध्यान्ह भोजन योजना एक महत्िाकाक्षी योजना ह ै । वजससे ं बच्चों का विद्यालय म ें नामाकन बढ़ाया जा सके , उनका ठहराि वकया जा सके तथा उनम ें समानता के ं भाि विकवसत वकए जा सके । 3.3.1 मध्यान्ह भोजन योजना का इशतहास MDM का इवतहास काफी पराना ह।ै आज से करीब 400 िष ण पि ण मौलाना चक के मदरसा शहबावजया ु ू म ें हजरत मखदम शहबाज महम्मद द्वारा स्थावपत मदरसे म ें मध्याह्न भोजन योजना लाग थी। तब मदरसा म ें ु ू ू वहद बच्चे भी वशक्षा ग्रहण करते थे। डा एसएम रावफक ने शहबाज ज्योवत म ें वलखा ह ै वक हजरत मखदम ं ू ू शहबाज महम्मद का 986 वहजरी (1578 ई) को भागलपर आगमन हआ था। यहा उन्होंने एक मदरसा की ु ु ु ं स्थापना की थी। झारखडी झा द्वारा वलवखत भागलपर दपणण म ें उकलेख ह ै वक हजरत मखदम शहबाज ु ं ू महम्मद द्वारा स्थावपत मदरसे म ें करीब 200 मवस्लम और वहन्द छात्र वशक्षा ग्रहण करते थे। छात्रों को ु ु ू दोपहर का भोजन और िि भी वदया जाता था। उस समय तक मदरसा शहबावजया वजले का पहला था। मगल शासकों ने मदरसे के खचण के वलए कहलगाि परगने की 500 बीघा जमीन दी। तब कई प्रवसध्द ु ं मौलवियों ने यहा से वनकल प्रात म ें विद्या का प्रचार वकया। जहागीर से लेकर अवतम मगल शासक तक ु ं ं ं ं मदरसे की काफी ख्यावत रही। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 183 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं राबटण मोन्टोगमरे ी मावटणन ने 1838 म ें वलखी अपनी पस्तक म ें मदरसे की चचाण करते हए कहा वक ु ु 100 िष ण पि ण भागलपर वहद-मवस्लम वशक्षा का कें र था। उस समय हजरत मखदम शहबाज महम्मद के ू ु ु ु ं ू ू िशज काजी फायक अरबी के प्रकाड विद्वान थे। उनके घराने म ें उस समय 20 मौलिी जीवित थे। मौलाना ं ं चक विद्या प्रचार का कें र था। 18िीं शताब्दी म ें खजरपर और भोजआ (गोगरी, खगवड़या) म ें भी मौलाना ु ु ं हयात के समय मदरसा म ें भोजन िि मफ्त दके र बच्चों को वशक्षा दी जाती थी। पीसी राय चौधरी के ु वजला गजवे टयर के अलािा कयाम उद्दीन अहमद, फ्रावसस बकानन और एसएच अस्करी ने भी अपनी ु ं वकताबों म ें शहबावजया मदरसे का विस्तारपिकण वििरण वकया ह।ै वजला गजवे टयर म ें यह भी वलखा ह ै वक ू मगल शासक के फौजदार वमजाण गलाम हसैन खान ने मदरसा का पक्कीकरण बादशाह के हक्म पर ु ु ु ु कराया। अब भी मदरसा म ें वबहार और झारखड के अवधकाश वजलों के बच्चे वशक्षा ग्रहण करने आते ह।ैं ं ं स्ितत्र भारत म ें MDM की शप आत 1995 म ें राष् रीय पौषवणक सहायता कायणक्रम (एनपी-एनएसपीई) ु ं शरू वकया गया था। हई । उस समय प्रत्येक छात्र को 80% की उपवस्थवत म ें हर माह तीन वकलो चािल ु ु या गहे ाँ उपलब्ध कराया जाता था । लेवकन यह तीन वकलो राशन उसके पररिार के अन्य सदस्यों म ें बट ू ं जाता था और उस तक तो पहचाँ ता भी नहीं था । तवमलनाड म ें दशे की सबसे परानी MDM योजना ु ु ु सचावलत हई । िहााँ पर सिप्रण थम पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया गया था । वजसके सकारात्मक ु ं पररणाम दखे ने को वमले । छात्रों के स्िास््य म ें िवद्द हई, ड्रॉप आउट की समस्या समाधान हआ तथा छात्र ु ु ृ मन लगाकर वशक्षा प्राप्त कार रह े थे । अतः माननीय सप्रीम कोटण के आदशे ानसार दशे के सभी विद्यालयों ु ु म ें MDM योजना म ें पका-पकाया भोजन वदया जाने लगा। िष ण 2001 म ें एमडीएमएस पका हआ मध् याह्न भोजन योजना बन गई, वजसके तहत प्रत्य ेक सरकारी और ु सरकारी सहायता प्राप् त प्राथवमक स् कल के प्रत्य ेक बच् चे को न्य नतम 200 वदनों के वलए 8-12 ग्राम ू ू प्रवतवदन प्रोटीन और ऊजाण के न् यनतम 300 कै लोरी अश के साथ मध् याह्न भोजन परोसा जाना था। स् कीम ू ं का िष ण 2002 म ें न के िल सरकारी, सरकारी सहायता प्राप् त और स् थानीय वनकायों के स् कलों को किर ू करने के वलए अवपत वशक्षा गारटी स् कीम (ईजीएस) और िकै वकपक तथा अवभनि वशक्षा (एआईई) के न् रों ु ं म ें पढ़ने िाले बच् चों तक भी विस् तार वकया गया था। वसतम् बर, 2004 म ें स् कीम को दालों, िनस् पवत खाने के तेल, मसालों, ईधन की लागत और खाना पकाने ं के वलए वजम् मदे ार एजसें ी के कावमकण ों को दये मजदरी और पाररश्रवमक या दये रावश को किर करने के ू वलए 1 प . प्रवत बच्च ा प्रवत स् कल वदन की दर से खाना पकाने के लागत के वलए के न् रीय सहायता के वलए ू प्रािधान करने के वलए सशोवधत वकया गया था। पररिहन आवथणक सहायता को विशेष श्रेणी के राज् यों के ं वलए पहले के अवधकतम 50 प . प्रवत वक्िटल से 100 प . और अन् य राज् यों के वलए 75 प . प्रवत वक्िटल ं ं तक भी बढ़ाया गया था। खाद्यान् नों की लागत, पररिहन आवथणक सहायता और खाना पकाने म ें सहायता की लागत के 2 प्रवतशत की दर से स् कीम के प्रबध, मॉनीटररग और मक याकन के वलए पहली बार के न् रीय ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 184 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं सहायता प्रदान की गई थी। सखा प्रभावि
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त क्षेत्रों म ें गमी की छरट्टयों के दौरान मध् याह्न भोजन दने े के वलए ू ु भी प्रािधान वकया गया था। जलाई, 2006 म ें स् कीम को पिोत् तर क्षेत्र म ें राज् यों के वलए 1.80 प . प्रवत बच्च ा/स् कल वदन और अन् य ु ू ू राज् यों और सघ शावसत क्षेत्रों के वलए 1.50 प . प्रवत बच्च ा/स्क ल वदन की खाना पकाने की लागत को ू ं बढ़ाने के वलए और सशोवधत वकया गया था। पौषवणक मानदण् ड को 450 कै लोरी और 12 ग्राम प
्रोटीन के ं वलए सशोवधत वकया गया था। रसोई-सह-भडार के वनमाणण और स् कलों म ें रसोई उपकरणों की खरीद म ें ू ं ं सविधा दने े के उद्दश्े य से चरणबि ढग से 60,000 प . प्रवत यवनट की दर से के न् रीय सहायता का प्रािधान ु ू ं वकया गया था। अक् तबर 2007 म,ें स् कीम का 3,479 शवै क्षक रूप से वपछड़े ब् लॉकों (ईबीबी) म ें अपर प्राइमरी स् कलों ू ू (अथाणत कक्षा VI स े VIII) में पढ़न े िाले बच् चों को किर करने के वलए विस् तार वकया गया था और स् कीम का नाम 'राष् रीय प्राथवमक वशक्षा पौषवणक सहायता कायणक्रम' से बदल कर 'स् कलों में मध् याह्न ू भोजन का राष् रीय कायणक्रम' कर वदया गया था। अपर प्राथवमक अिस् था के वलए पौषवणक मानदण् ड 700 कै लोरी और 20 ग्राम प्रोटीन वनवश्चत वकया गया था। वदनाक 01.04.2008 से स् कीम को दशे भर म ें सभी ं क्षेत्रों के वलए विस् तार वदया गया था। 3.3.2 MDM के उद्देश्य इस योजना का मख्य उद्दश्े य प्राथवमक वशक्षा का सािणभौमीकरण करना ह ै । अन्य उद्दश्े य वनम्नावकत ह:ैं ु ं प्राथवमक कक्षाओ की नामाकन म ें िवि। ृ ं ं छात्रों को स्कल म ें परे समय रोके रखना तथा विद्यालय छोड़ने की प्रिवत्त (ड्राप आउट) म ें कमी। ृ ू ू वनबणल आय िग ण के बच्चों म ें वशक्षा ग्रहण करने की क्षमता विकवसत करना। छात्रों को पौवष्टक आहार प्रदान करना। विद्यालय म ें सभी जावत एि धम ण के छात्र-छात्राओ को एक स्थान पर भोजन उपलब्ध करा कर ं ं उनके मध्य सामावजक सौहादण, एकता एि परस्पर भाई-चारे की भािना जागत करना। ृ ं वलग भदे भाि को खत्म करना । ं गरीब एि िवचत िग ण के लोगों को अपने बच्चों को विद्यालय भजे ने के वलए प्रोत्सावहत करना । ं ं 3.3.3 के न्रीय सहायता के सघटक ं कें र तथा राज्य सरकार दोनों ही वमलकर MDM योजना म ें वित्तीय रूप से सहायता करते ह ैं । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 185 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं i. प्राथवमक कक्षाओ के बच्चों के वलए 100 ग्राम प्रवत बच्चा प्रवत स्कल वदिस की दर स े और ू ं उच् च प्राथवमक कक्षाओ के बच्चों के वलए 150 ग्राम प्रवत बच्चा प्रवत स्कल वदिस की दर से ू ं भारतीय खाध वनगम के वनकटस्थ गोदाम से वनःशकक खाद्यान्न (गहे /चािल) की आपवतण। के न्र ू ु ू ं सरकार भारतीय खाद्य वनगम को खाद्यान्न की लागत की प्रवतपवतण करती ह।ै ू ii. 11 विशेष श्रेणी िाले राज्यों (अथाणत-अरूणाचल प्रदशे , असम, मघे ालय, वमजोरम, मवणपर, ु नागालैंड, वसवक्कम, जम्म ि कश्मीर, वहमाचल प्रदशे उत्तराखण्ड और वत्रपरा) के वलए वदनाक ू ु ं 1.12.2009 से इनमें प्रचवलत पी.डी.सी. दरों के अनसार पररिहन सहायता। अन्य राज्यों तथा ु सघ राज्य क्षेत्रों के वलए 75/-रू. प्रवत वक्िटल की अवधकतम सीमा के अधीन भारतीय खाद्य ं ं वनगम से प्राथवमक स्कल तक खाद्यान्न के पररिहन म ें हई िास्तविक लागत की प्रवतपवतण। ु ू ू iii. वदनाक 1.12.2009 से भोजन पकाने की लागत (श्रम और प्रशासवनक प्रभार को छोङ़कर) ं प्राथवमक बच्चों के वलए 2.50 रूपए की दर से और उच्च प्राथवमक बच्चों के वलए 3.75 रूपए की दर से प्रदान की जाती ह ै और वदनाक 1.4.2010 तथा वदनाक 1.4.2011 को इसे पनः 7.5 ु ं ं प्रवतशत तक बढ़ाया गया। 1 जलाई 2016 से इन दरों म ें वफर से पररितणन वकया गया ह।ै और ु पररिवतणत दरें नीचे सारणी म ें दी गई ह।ैं भोजन पकाने की लागत की के न्र और पिोत्तर राज्यों के ू मध्य वहस्सेदारी 90:10 के आधार पर ह ै और अन्य राज्यों/सघ राज्यों के साथ 60:40 के आधार ं पर िहन की जाएगी। िष ण 2016 -17 के वलए खाद्यान्य मानक वनम्न सारणी म ें वदए गए ह:ैं खाद्य पिाथि खाद्यान्य मानक कशकर् मल्य स्तर कशकर् मल्य ु ू ु ू ं ं प्रशतछात्र प्रशतशिन का शववरर् प्रशतशिन शनधािररत मात्रा प्रशतछात्र प्राथवमक उच्चप्राथवमक 1जलाई 2016 प्राथवमक प . 4.13 ु से प्रभािी दर उच्च प्राथवमक प . 6.18 अनाज (चािल) 100 ग्राम 150 ग्राम दाल 20 ग्राम 30 ग्राम सब्जी 50 ग्राम 75 ग्राम तेल तथा घी 5 ग्राम 7.5ग्राम नमक तथा आिश्यकतानसार ु मसाले भोजन पकाने की लागत म ें दालों, सवब्जयों, भोजन पकाने के तेल और वमचण-मसालों, ईधन इत्यावद की ं लागत शावमल ह।ै ितणमान म ें वदसम्बर 2016 से अवतररक्त पोषण के तहत प्रत्येक बच्चे के वलए एक हफ्ते म ें प .5 प्रदान वकया जा रहा ह ै । वजससे हफ्ते म ें एक वदन प्रत्येक बच्चे को पोषणयक्त खाद्य सामग्री दी ु जानी ह ै । जसै े अडा, अवतररक्त फल या वजसम ें भी अवधक पोषण हो । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 186 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं iv. परे दशे म ें वकचन-कम-स्टोर के वनमाणण की प्रवत विद्यालय 60,000 रूपएकी एक समान दर
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के ू स्थान पर वदनाक 1.12.2009 से वनमाणण लागत को करसी क्षेत्र मानदण्डों और राज्य/सघ राज्य ु ं ं क्षेत्रों म ें प्रचवलत राज्य अनसची दरों के आधार पर वनधाणररत वकया गया ह।ै वकचन-कम-स्टोर ु ू की वनमाणण लागत की वहस्सेदारी के न्र और पिोत्तर राज्यों के मध्य 90:10 आधार पर तथा ू अन् य राज् यों के साथ 60:40 के आधार पर
की गई । इस विभाग ने वदनाक 31.12.2009 के ं अपने पत्र सख्या 1-1/2009-डेस्क (एम.डी.एम.) के जररए 100 बच्चों तक स्कलों म ें वकचन- ू ं कम-स्टोर के वनमाणण हते 20 िग ण मी०
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का क्षेत्र वनधाणररत वकया ह।ै यह वनधाणररत वकया गया वक ु प्रत्येक अवतररक्त 100 बच् चों तक के वलए 4 िग ण मीटर अवतररक्त करसी क्षेत्र जोड़ा जाएगा। ु राज्यों/सघ राज्य क्षेत्रों को अपनी स्थानीय दशाओ के आधार पर 100 बच्चों के स्लैब को ं ं सशोवधत करने का अवधकार होगा। ं v. 5000 रूपए प्रवत विद्यालय की औसत लागत के आधार पर
वकचन के सामान प्राप्त करने के वलए सहायता दी जाती ह।ै वकचन के सामान म ें वनम्नवलवखत शावमल ह:ैं - भोजन पकाने का सामान (स्टोि, चकहा इत्यावद) ू खाद्यान्न और अन्य सामान को स्टोर करने के वलए कटेनर ं भोजन पकाने और वितररत करने के बतणन। vi. वदनाक 1.12.2009 से रसोइये-कम-सहायक को प्रदान वकए जाने िाले मानदये को 1000 रूपए ं प्रवतमाह करना और 25 विद्यावथणयों िाले विद्यालयों म ें एक रसोइये-कम-सहायक, 26 स े 100 विद्याथी िाले विद्यालयों म ें दो रसोइये-कम-सहायक और अवतररक्त प्रत्येक 100 विद्यावथणयों तक के वलए एक अवतररक्त रसोइये-कम-सहायक की वनयवक्त की गई । िष ण 2012 से रसोइये कम ु सहायक को 1500 रूपया प्रवतमाह वकया गया । वसतम्बर 2016 से प .1500 से बढ़ाकर प . 2000 कर वदया गया ह ै । रसोइये-कम-सहायक को प्रदान वकए जाने िाले मानदये के वलए के न्र सरकार और
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राज्यों के मध्य वहस्सेदारी पिोत्तर राज्यों के वलए 90:10 तथा अन्य राज्यों/सघ ू ं राज्य क्षेत्रों के वलए 75:25 के आधार पर होगी। vii. राज् यों/सघ राज य क्षेत्रों के वलए
इस स्कीम के प्रबधन, अनिीक्षण तथा मकयाकन (एम.एम.ई.) के ् ु ू ं ं ं वलए सहायता (क) खाद्यान्न, (ख) पररिहन लागत और (ग) भोजन पकाने की लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक को मानदये के वलए कल सहायता का 1.8 प्रवतशत, (क) खाद्यान्न, (ख) ु पररिहन लागत और (ग) भोजन पकाने की लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक को मानदये की कल सहायता के 0.2 प्रवतशत का उपयोग राष्रीय स्तर पर प्रबधन, अनिीक्षण तथा मकयाकन ु ु ू ं ं उदद श्े यों के वलए वकया जाता ह।ै ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 187 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.3.4 MDMके शलए सरकार द्वारा जारी शििाशनिेि 1. इस योजना के अतगतण MDM का खाना विद्यालय के वकसी एक अध्यापक को चखना ह।ै ं इसके अलािा विद्यालय प्रबधन सवमवत का सदस्य या कोई भी अवभभािक हो सकता ह ै । ं प्रत्येक विद्यालय द्वारा एक रवजस्टर म ें अवकत करना होता ह ै वक वकस वदिस को वकसने भोजन ं चखा और उसकी प्रवतवक्रया क्या रही ? 2. खाद्य पदाथों के भण्डारण हते भारत सरकार ने रसोईघर के साथ-साथ एक भण्डारण गह का भी ृ ु उकलेख वकया ह ै । इसवलए खाद्य पदाथों का भण्डारण गह (store) म ें ही वकया जाना आिश्यक ृ ह ै । वकसी प्रधानाचायण के घर या वफर ग्राम प्रधान के घर नहीं । 3. भोजन म ें प्रयोग वकया जाने िाले नमक म ें आयोडीन और आयरन की प्रचर मात्र होनी आिश्यक ु ह।ै 4. MDM खाने से यवद वकसी बच्चे की तवबयत खराब हो जाती ह ै तो विद्यालय के प्रधानाध्यापक की पहली वजम्मदे ारी ह ै वक िह वजला वशक्षा अवधकारी/ वजला स्िास््य अवधकारी या वजला मवजस्रेट को इसकी सचना अिश्य द े । ू 5. विद्यालय म ें पहले प्रवतवदन एक ही प्रकार का भोजन वदया जा रहा था, वजससे बच्चे एक सा भोजन करते- करते ऊब गए थे । अतः सरकार द्वारा प्रवतवदन भोजन का मीन वनधणररत वकया गया ू । यहााँ मीन वनम्न सारणी म ें वदया जा रहा ह ै । (निीनतम मीन -2016) ू ू क्रम सख्या शिन ं 1 सोमिार रोटी-सोयाबीन/दाल की बड़ी यक्त सब्जी एि मौसमी फल ु ं 2 मगलिार दाल चािल ं 3 बधिार तहरी एि दध(उबला हआ) प्रा.वि.हते 150 वमली उ.प्रा. हते 200 ु ु ु ु ं ू वमली 4 गप िार रोटी दाल ु 5 शक्रिार तहरी ु 6 शवनिार चािल सोयाबीन यक्त सब्जी ु 3.3.5 मध्यान्ह भोजन योजना में शवद्यालय प्रबधन सशमशत की भशमका ू ं 1. MDM योजना के बैंक खाते का सयक्त सचालन करना । ु ं ं 2. प्रत्येक माह SMC की बैठक आहत करना, बैठक म ें MDM के एजडें ा वबदओ पर कायणिाही ू ं ं ु कर स्थानीय कवठनाइयों के वनराकरण का प्रयास करना । 3. साप्तावहक भोजन मीन की सची तैयार करना तथा इसके अनरूप विद्यालय म ें भोजन बनाने की ू ू ु प्रवक्रया म ें अपना सहयोग दने ा । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 188 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4. भोजन माता का वनष्पक्ष, वबना भदे भाि, पारदशी रूप से चयन करना तथा उसके अनपवस्थत होन े ु पर भोजन के वलए िकै वकपक व्यिस्था कराना । 5. वकचन कम स्टोर अक नक़्श े के अनसार गणित्ता वनमाणण करने म ें अपना सहयोग दने ा । ु ु 6. खाद्य पदाथों की अच्छी तरह से जााँच करना । दआक खाद्य सरक्षा एि मानक अवधवनय 2011 ं ं ं ु के अनसार पजीकत हो । ृ ु ं 7. विशेष पिों पर बच्चों के वलए विशेष व्यजन की व्यिस्था करना । ं 8. भोजन की स्िछता, गणित्ता तथा पौवष्टकता की जााँच करन े हते रोस्टर तैयार करना, वजससे कम ु ु से कम एक माता प्रवतवदन भोजन को चख सके । 9. योजना का सामावजक आवडट करना । 10. योजना म ें वकसी प्रकार की समस्या ि सझाि के वलए विभाग के टाल फ्री नम्बर 1800-180- ु 4132 के माध्यम से अिगत कराना । इस प्रकार विद्यालय प्रबधन सवमवत की MDM से सम्बवधत अन्य वजम्मदे ाररया भी ह ैं । ं ं ं अभ्यास प्रश्न 1. आज से करीब 400 िष ण पि ण मौलाना चक के मदरसा शहबावजया म ें ________द्वारा स्थावपत ू मदरसे म ें मध्याह्न भोजन योजना लाग थी। ू 2. स्ितत्र भारत म ें MDM की शप आत 1995 म ें हई । (सत्य/असत्य) ु ु ं 3. उत्तर प्रदशे म ें दशे की सबसे परानी MDM योजना सचावलत हई ।(सत्य/असत्य) ु ु ं 4. इस योजना का मख्य उद्दश्े य प्राथवमक वशक्षा का_________करना ह ै । ु 5. खाद्य पदाथों के भण्डारण वलए _______ होना आिश्यक ह ै । 6. भोजन पकाने की लागत म ें दालों, सवब्जयों, भोजन पकाने के तेल और वमचण-मसालों, ईधन इत्यावद ं की लागत शावमल ह।ै (सत्य/ असत्य) 7. वकचन- कम स्टोर म ें शावमल ह ै : i. भोजन पकाने का सामान (स्टोि, चकहा इत्यावद) ू ii. खाद्यान्न और अन्य सामान को स्टोर करने के वलए कटेनर ं iii. भोजन पकाने और वितररत करने के बतणन। iv. उपयणक्त सभी ु 3.4 मध्यान्ह भोजन योजना का वववधक वनणणय विद्यालयों म ें पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने के सबध म ें मा0 सवोच्च न्यायालय ने यावचका ं ं सख्या 196/2001 पीपकस यवनयन फार वसविल वलबटीजबनाम यवनयन आफ इवण्डया एि अन्य म ें ु ू ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 189 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं वदनाक 28-11-2001 को भारत सरकार को वनदवे शत वकया था वक 3 माह के अन्दर सरकार प्रत्येक ं राजकीय एि राज्य सरकार से सहायता प्राप्त प्राइमरी विद्यालयों म ें पका पकाया भोजन उपलब्ध कराए । ं इस भोजन म ें 300 कै लोरी ऊजाण तथा 8-12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होगा और यह भोजन िष ण म ें कम से कम 200 वदनों तक उपलब्ध कराया जाएगा । माननीय न्यायालय ने यह भी वनदवे शत वकया वक योजना के अतगतण औसतन अच्छी गणित्ता का खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा। अतः माननीय सप्रीम कोटण के ु ु ं आदशे ानसार 2004 से प्राथवमक विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ ु कर दी गयी । ितणमान म ें भारत सरकार द्वारा मानकों में पररितनण करते हए यह वनधाणररत वकया गया ह ै वक ु उपलब्ध कराये जा रह े भोजन म ें कम से कम 450 कै लोरी ऊजाण 12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध हो। 3.5 MDM के लाभ शवद्यालय में भार्ीिारी बढ़ाना -MDM से विद्यालय म ें नामाकन सख्या बढ़ी ह ै ।पहले ं ं अवधकतर अध्यापकों की वशक्षायत रहती थी वक बच्चे भोजन के वलए घर चले जाते ह ैं वफर िापस नहीं आते ह ैं । लेवकन जब से MDM योजना लाग हई तब से बच्चे विद्यालय म ें वनयवमत ु ू रहते ह ैं । छात्रों को पोषर् प्रिान कार सेहतमि बनाना- मध्यान्ह भोजन योजना के द्वारा पोषण यक्त ु ं भोजन वखलाया जाता ह,ै वजससे छात्रों की सेहत म ें सधार दखे ने को वमलता ह।ै ु र्रीब बच्चों को भखमरी से बचाना-गरीब बच्चे जो दो जन की रोटी कमने के वलए विद्यालय ु ू नहीं आ पा रह े थे, ि े अब खशी-खशी विद्यालय आते ह।ैं और पढ़ने म ें भी मन लगाते ह।ैं ु ु िैशक्षक मल्य- MDM के कई शवै क्षक मकय ह।ैं जसै े बच्चों को स्िास््य सबधी कई जानकारी ू ू ं ं दी जा सकती ह।ै उदाहरण- हाथ धोने के लाभ,स्िच्छ पानी या सतवलत आहार तथा बीमाररयों ु ं से सम्बवधत जानकारी दी जा सकती ह।ै ं सामाशजक समानता को बढ़ाना- मध्यािकाश के समय जा सभी िगों के लोग एक साथ भोजन करते ह ैं तो एक प्रकार से सामावजक समानता बढ़ती ह ै ।वकसी छात्र के मन म ें यह भािना नहीं आती वक िह उच्च या वनम्न िग ण का ह ै । विद्यालय प्रबधन सवमवत को MDM म ें सलग्न ं ं करके भी विद्यालय को समदाय से जोड़ने का कायण वकया गया ह ै । ु लैंशर्क भेिभाव को कम करना - MDM के कारण विद्यालयों म ें लड़वकयों की सख्या बढ़ी ं ह।ै ि े लड़वकयााँ वजन्ह ें छोटे भाई बहनों के वलए खाना बनाने के वलए घर पर ही प कना पड़ता था ि े भी अब विद्यालय आने लगी ह।ैं विद्यालयों म ें भोजन माता को रखकर एक तरह से लैंवगक भदे भाि को कम ही वकया ह।ै उन भोजन माताओ का सशवक्तकरण भी बढ़ा ह ै क्योंवक ि े घर के कायण के अवतररक्त विद्यालय में खाना बनाती ह,ैं वजसके वलए उन्ह ें उवचत मानदये वमलता ह ै । इस प्रकार उनके स्तर म ें सधार हआ ह।ै ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 190 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.5 MDM के दोष अवधकतर प्रधानाध्यापकों की यही वशकायत रहती ह ै वक उन्ह ें कक्षा म ें पढ़ाने का समय नहीं वमल पता ह ै और ि े वसफण खाना बनिाने तथा भण्डारण म ें ही लगी रहती ह ैं । कई लोगों का मानना ह ै वक सरकारी विद्यालयों म ें बच्चे वसफण खाना खाने जाते ह ैं अन्य कछ ु नहीं। विद्यालयों म ें नामाकन म ें िवद्द तो हई ह,ै लेवकन अवधगम स्तर नहीं सधरा ह ै । आज भी कक्षा ु ृ ु ं पाच पास करने के पश्चात छात्र अपना नाम तक नहीं वलख पाते ह ैं । ं मीवडया के माध्यम से पता चल जाता ह ै वक दगमण स्थानों म ें बच्चे लकवडयााँ तथा पानी लाने म ें ु व्यस्त रहते ह ैं । कई जगह यह वशकायत सनने को वमलती ह ै वक छात्रों को परा पोषण नहीं वमल रहा ह ै । अथाणत ु ू मीन के अनसार खाना नहीं बनाया जा रहा ह ै । ू ु कई जगह अभी भी भोजन के समय जावतगत वभन्नता दखे ने को वमलती ह ै । अभ्यास प्रश्न 8. मा0 सिोच्च न्यायालय ने पका पकाया भोजन दने े का आदशे िष ण ______ म ें वदया । 9. MDM के कोई दो लाभ वलवखए । 3.6 मारांश बच्चे के विकास की प्रवक्रया म ें प्रारवभक वशक्षा सबसे महत्िपण ण कड़ी ह ै । प्रारवभक स्तर पर प्रत्येक बच्च े ू ं ं को वनःशकक एि गणित्तापरक वशक्षा दने ा हमारी सैिावतक प्रवतबिता ह ै । वजस हते विद्यालयी वशक्षा ु ु ु ं ं पररिार की समस्त महत्िपण ण इकाइयााँ ि समदाय के सम्मावनत सदस्य वशक्षा के उद्दश्े यों की प्रावप्त हते ू ु ु वनरतर समवन्ित रूप से प्रयासरत ह ैं । समदाय के सहयोग के वबना वकसी भी शवै क्षक उद्दश्े य की प्रावप्त एक ु ं कोरी ककपना के समान ह ै । समदाय के सम्मावनत सदस्यों के सहयोग से वशक्षा पररिार अपने उद्दश्े यों की ु प्रावप्त की ओर अग्रसर ह ै । प्रारवभक वशक्षा के सािणभौमीकरण ि गणित्तायक्त वशक्षा में समदाय, पचायती ु ु ु ं ं राज, सस्थाओ, गरै सरकारी सगठनों औए विद्यालय प्रबधन सवमवतयों का सहयोग अवनिायणतः अपेवक्षत ं ं ं ं ह ै । वशक्षा के अवधकार अवधवनयम के अतगणत गवठत विद्यालय प्रबधन सवमवत ही MDM का सचालन ं ं ं करती ह ै । वजससे अवभभािकों को भी जानकारी रहती ह ै वक उनके बच्चे कै सा खाना खा रह े ह ैं ? एक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 191 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अध्यापक होने के नाते हम ें समाज म ें फ़ै ली इस भ्रावन्त को वमटाना होगा वक
‘बच्चे वसफण खाना खाने विद्यालय जाते ह’
ैं । MDM के सकारात्मक पररणामों को हम ें सबके सामने ले जाना होगा और विद्यालय म ें अवधगम स्तर को सधारना होगा । इस इकाई म ें आप MDM के बारे म ें विस्तत अध्ययन कर चके ह ैं । ृ ु ु 3.7 शब्दावली 1. शवद्यालय प्रबधन सशमशत : विद्यालय म ें अच्छी वशक्षा सवनवश्चत करने का दावयत्ि के िल एक ु ं व्यवक्त का न होकर सामवहक उत्तरदावयत्ि ह ै इस हते प्रत्येक विद्यालय म ें SMC का गठन वकया ू ु गया ह ै । 2. भण्डारर् र्ह : MDM की खाद्य सामग्री अन्य स्थानों म ें न रखकर भण्डारण गह म ें रखी जाती ृ ृ ह ै । 3. साविभौमीकरर् : वशक्षा की पहचाँ सब तक हो, अपिवचत िगों को वशक्षा की मख्य धारा से ु ु ं जोड़ने के वलए सराकर द्वारा कई योजनाए चलाई जा रही ह ैं । अपिवचत िगों म ें शावमल ह:ैं ं ं अनसवचत जावत, जनजावत, राज्य सरकार द्वारा घोवषत अन्य वपछड़ा िग(ण क्रीमीलेयर को ु ू छोड़कर) अनाथ, शारीररक रूप से वदव्याग अथिा अत्यवधक वनःशक्त बच्चे जो PWDएक्ट के ं अतगतण आते हों,विधिा/ तलाकशदा माता पर आवश्रत बच्च े वजनकी िावषकण आय 80,000 स े ु ं कम हो, HIV+ माता वपता तथा वनःशक्त माता वपता(कोढ़ से ग्रवसत व्यवक्तयों सवहत) के बच्चे वजनकी िावषकण आय प . 4.5 से कम हो । 3.8 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 14. हजरत मखदम शहबाज महम्मद ु ू 15. सत्य 16. असत्य 17. सािभण ौमीकरण 18. भण्डारण गह । ृ 19. सत्य 20. उपयणक्त सभी ु 21. 2001 22. MDM के कोई दो लाभ: i. विद्यालय म ें नामाकन बढ़ाना ं ii. छात्रों को पोषण प्रदान कर सेहतमद बनाना ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 192 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 3.9 मन्दभ ण ग्रन्थ मची ू 7. Mohanti , J, (1994): Education for all(EFA), Deep & Deep Publications, New Dehli . 8. Tyag। , P.N,(1991): Educat। on for all,Graphic presentation, N। EPA, New Dehli . 9. Saiyida। n, K.G,(1970), Facts of Indian Education, NCERT, New Dehli . 10. जाग्रवत,सामदावयक सहभावगता प्रवशक्षण, 2016-17, वजला पररयोजना कायाणलय, सि ण वशक्षा ु अवभयान, उधमवसहनगर ं 11. प्रवतयोवगता दपणण,मई 2007, पष्ठ सख्या 1874 ृ ं 12. www.google.com- RTE-2009, universalisation of school education 13. www.google.com- Mid Day Meal 14. Pathania,Anita,Kulwant,(2006),Primary Education and Mid day Meal Scheme, Results,Challenges and Recommendations, Deep and Deep Publications PVT. LTD. New Delhi 110027 3.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. मध्यान्ह भोजन योजना क्या ह?ै इसके ऐवतहावसक स्िप प की व्याख्या कीवजए । 2. मध्यान्ह भोजन योजना के क्या उद्दश्े य ह ैं ? आपने अपने विद्यालय म ें मध्यान्ह भोजन योजना को वकस प्रकार वक्रयावन्ित वकया ह?ै विस्तापिकण व्याख्या कीवजए । ू 3. मध्यान्ह भोजन योजना को अच्छी तरह वक्रयावन्ित करने के वलए विद्यालय प्रबधन सवमवत की ं क्या भवमका ह ै ? सविस्तार व्याख्या कीवजए । ू 4. प्राथवमक वशक्षा के सािभण ौमीकरण के वलए सरकार द्वारा इतनी योजनाए चलाने के बािजद भी ू ं प्राथवमक स्तर के छात्र न्यनतम अवधगम स्तर तक भी नहीं पहचाँ पा रह े ह ै । क्यों? सविस्तार ु ू व्याख्या कीवजए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 193 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं इकाई 4 - विक्षा का सिणसािारणीकरण, स्तरीकरण एिं वनजीकरण 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 वशक्षा का सिणसाधारणीकरण 4.4 वशक्षा में स्तरीकरण 4.5 वशक्षा का वनजीकरण 4.6 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण में सबध ं ं ं 4.7 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए हो रह े िैवश्वक ं प्रयास 4.7.1 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए भारत में ं वकए जा रह े प्रयास 4.7.2 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए इगलैंड में ं ं वकए जा रह े प्रयास 4.7.3 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए अमेररका ं में वकए जा रह े प्रयास 4.7.4 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए जापान में ं वकए जा रह े प्रयास 4.7.5 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए रवसया में ं वकए जा रह े प्रयास 4.7.6 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए हो रह े कछ ु ं अन्य प्रयास 4.7.7 क्या नहीं हो रहा ह ै 4.8 वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए वकए जा रह े ं प्रयासों का प्रभाि 4.9 साराश ं 4.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 194 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.11 सदभण ग्रथ सची एि सहयोगी ग्रथ ू ं ं ं ं 4.12 वनबधात्मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्तावना वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण ये तीनों ितणमान पररदृश्य म ें महत्िपण ण सप्रत्य ह।ैं ू ं ं ये सप्रत्यय िास्ति म ें वशक्षा के समान अिसर प्रदान कर सामावजक समानता लाने से सबवधत ह।ैं वशक्षा ं ं ं समाज म ें समानता लाने का एक सशक्त साधन ह।ै लेवकन इसके साथ ही िह समाज म ें असमानता फै लाने म ें भी महत्िपण ण भवमका वनभाती ह।ै अतः, वशक्षा व्यिस्था का झकाि वकस ओर अवधक ह,ै उयह जानना ू ू ु आिश्यक ह।ै दसरे शब्दों म ें यह कहा जा सकता ह ै वक प्रचवलत वशक्षा व्यिस्था सामावजक समानता लाने ू के वलए कायण कर रही ह ै या सामावजक असमानता को बढ़ािा द े रही है यह जानना एि समझना बहत ु ं आिश्यक ह।ै वशक्षण-अवधगम के कायण म ें जड़े हए व्यवक्तयों के वलए तो यह और भी आिश्यक होता ह।ै ु ु वशक्षा की प्रकवत को समझ कर नीवत वनमाणताओ को इस सदभ ण म ें सझाि वदया जा सके , इस उद्दश्े य को ृ ु ं ं ध्यान म ें रखकर प्रस्तत इकाई की रचना की गई ह।ै यह इकाई, उपरोक्त तीनों सप्रत्ययों के सदभ ण म ें विश्व के ु ं ं प्रमख दशे ों म ें क्या कायण हो रह े ह,ैं पर प्रकाश डालता ह।ै ु 4.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के उपरात आप इस योग्य हो जायेंग े वक ं 1.
‘वशक्षा के सिणसाधारणीकरण’
के सप्रत्यय का िणनण कर सकें ग;े ं 2. के सप्रत्यय की व्याख्या कर सकें गे; ं 3. के सप्रत्यय पर चचाण कर सकें ग;े ं 4. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के सप्रत्ययों के मध्य सबध स्थावपत कर ं ं ं ं सकें गे; 5. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए हो रह े िवै श्वक प्रयासों की विस्तत ृ ं व्याख्या कर सकें गे; 6. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए हो रह े िवै श्वक प्रयासों के प्रभािों पर ं विचार-विमश ण कर सकें गे; 7. वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए क्या नहीं वकया जा रहा ह(ै जो होना ं चावहए) का िणनण कर सकें गे; उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 195 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.3 वशक्षा का मवणमाधारणीकरण सिसण ाधारणीकरण पद का आशय ह ै वकसी चीज को साधारण बनाना। दसरे शब्दों में, यह भी कहा जा ू सकता ह ै वक वकसी चीज को इस स्तर तक सलभ कर दने े की प्रवक्रया, वक अवधकाश साधारण लोग भी ु ं उसका लाभ उठा सके , सिसण ाधारणीकरण कहलाता ह।ै वशक्षा के सदभ ण म ें इसका अथण, वशक्षा को इतना ं सलभ बना दने े से ह ै वक गरीब से गरीब लोग भी वशक्षा ग्रहण कर सके । अतः, सामान्य शब्दों म ें वशक्षा के ु सिसण ाधारणीकरण से आशय वशक्षा को सबके वलए सलभ बनाने से ह।ै ु वशक्षा समाज म ें प्रवतष्ठा प्राप्त करने एि उच्चस्तरीय व्यिसायों म ें प्रिशे के माध्यम के रूप म ें दखे ी जाती ह।ै ं अतः, आज समस्त विश्व म ें वशक्षा को सलभ करने के प्रयास वकए जा रह े ह ैं तावक समस्त लोगों को ु वशक्षा ग्रहण कर सामावजक प्रवतष्ठा प्राप्त करने एि उच्चस्तरीय व्यिसायों म ें प्रिशे करने के समान अिसर ं प्राप्त हो सके और इस प्रकार, समाज से सामावजक असमानता या याँ कह ें वक सामावजक स्तरीकरण को ू कम वकया जा सके । वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण में मख्यतः पााँच बातें सवम्मवलत होती ह:ैं ु i. प्रावधानों का सविसाधारर्ीकरर्- इसका अथण ह ै 6 स े 14 िष ण आयिग ण के सभी विद्यावथणयों ु को उवचत विद्यालयी सविधा प्रदान करन े से ह।ै इसके तहत यह प्रािधान वकया जाता ह ै वक ु प्राथवमक विद्यालय विद्यावथणयों के घर से 1 वकलोमीटर की दरी के पररवध म ें होना चावहए। ू ii. नामाकन का सविसाधारर्ीकरर् - 6 स े 14 िष ण की आय िग ण के सभी बच्चों को विद्यालय ु ं तक लाया जाए अथाणत उनका नामाकन कराया जाए। ं iii. 3. धारर् का सविसाधारर्ीकरर् – धारण का आशय विद्यावथणयों को विद्यालय म ें रोके रखने से ह।ै प्रािधान एि नामाकन के सिसण ाधारणीकरण से विद्यावथणयों को विद्यालय तक लाया जाता ं ं ह ै लेवकन वसफण विद्यावथणयों का नामाकन ही पयाणप्त नहीं ह ै बवकक वशक्षा समाप्त होने तक उन्ह ें ं विद्यालय म ें रोके रखना भी आिश्यक ह।ै इसे ही धारण का सिसण ाधारणीकरण कहते हैं| iv. सहभाशर्ता का सविसाधारर्ीकरर् – सहभवगता से आशय सिसण ाधारणीकरण की प्रवक्रया में समाज की सहभावगता से ह।ै वशक्षा के सिणसाधारणीकरण के वलए सहभावगता का सिसण ाधारणीकरण आिश्यक ह।ै समदाय को अपनी आिश्यकताओ को पहचानने, तत्सबधी ु ं ं ं उत्तरदावयत्ि ग्रहण करने तथा वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण में अपनी वनणाणयक भवमका सवनवश्चत ू ु करने के वलए अवभप्रेररत करना होगा। इसके वलए शवै क्षक प्रशासन का विकें रीकरण आिश्यक ह।ै v. उपलशब्ध का सविसाधारर्ीकरर् – उपलवब्ध से आशय विद्यावथणयों के विद्यलयगत उपलवब्धयों से ह।ै वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण इन पााँच स्तभों पर आधाररत ह।ै अतः, वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के लक्ष्य ं को प्राप्त करने के वलए इसके इन पााँच स्तभों का साधारणीकरण आिश्यक ह।ै विश्व के प्रमख दशे ों म ें इस ु ं सबध म ें क्या-क्या प्रािधान अपनाए जा रह े ह ैं इस बात की चचाण इस इकाई के विवभन्न खडों म ें की गई ह।ै ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 196 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.4 वशक्षा म स्तरीकरण ें स्तरीकरण शब्द की उत्पवत्त स्तर शब्द से हई ह।ै वकसी भी िस्त, त्य, आवद को विवभन्न स्तरों म ें बाटन े ु ु ं की प्रवक्रया को स्तरीकरण कहते ह।ैं स्तरीकरण के वलए अग्रेजी भाषा म ें स्रेवटवफके शन शब्द का प्रयोग ं वकया जाता ह ै जो एक भौगोवलक सप्रत्यय स्रेटा, वजसका अथण पत्थरों म ें प्राकवतक प्रवक्रया द्वारा बने स्तर ृ ं ह,ैं से बना ह।ै समाजशाि म ें इसका आशय समाज के सदस्यों को प्राप्त पदों के अनक्रम से होता ह ै जो उन ु पदों की सामावजक प्रवतष्ठा को प्रभावित करता ह।ै रेमड डब्कय. मरे के अनसार, सामावजक स्तरीकरण ु ू ु ं समाज का वनम्न और उच्च सामावजक इकाइयों म ें उदग्र विभाजन ह।ै वगलबटण के अनसार, सामावजक स्तरीकरण का अथण समाज का उदग्र समहों म,ें जो एक-दसरे से श्रेष्ठता ु ू ू एि अवधकता के सबध स े सबवधत होते ह,ैं विभाजन ह।ै उपरोक्त पररभाषाओ के आधार पर यह कहा जा ं ं ं ं ं ं सकता ह ै वक मनष्यों को विवभन्न श्रेवणयों म ें बााँटा जाता ह ै और उन श्रेवणयों को उच्च से शरू करके वनम्न ु ु का तक का क्रम प्रदान वकया जाता ह।ै ऐसे श्रेवणयों को पररभावषत करने की प्रवक्रया को सामावजक स्तरीकरण कहते ह ैं तथा इन श्रेवणयों को स्रेटा या स्तर। इन पररभाषाओ का अगर विशद वििचे न वकया जाए तो यह बात स्पष्ट होती ह ै वक सामावजक स्तरीकरण ं ससाधनों, शवक्त या सत्ता, के विवभन्न सामावजक समहों के मध्य प्रयोग करने के विवभन्न अिसरों को ू ं बताता ह।ै इस प्रकार, सामावजक स्तरीकरण सामावजक असमानता को बताता ह।ै यवद कछ सामावजक ु समह अन्य सामावजक समहों की तलना म ें ससाधनों का अवधक प्रयोग करते ह ैं तो साधनों का वितरण ू ू ु ं आिश्यक रूप से असमान ह ै जो सामावजक असमानता को जन्म दते ा ह ै एि इसके पररणामस्िप प ं सामावजक स्तरीकरण को जन्म वमलता ह।ै सामावजक स्तरीकरण को अन्य शब्दों म ें वनम्नवलवखत प प म ें समझा जा सकता है- प्रत्येक मानि समाज म ें कछ अतर अिश्य होता ह।ै यह अतर उस समाज के सदस्यों को प्राप्त सामावजक ु ं ं पद स े सबवधत होता ह ै एि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प प स े कायण विभाजन से जड़ा होता ह।ै इस अतर के कारण ु ं ं ं ं समाज म ें पदों का एक अनक्रम बन जाता ह ै और इसी पदानक्रम को सामावजक स्तरीकरण कहते ह।ैं ु ु वशक्षा म ें स्तरीकरण से आशय शवै क्षक ससाधनों के असमान वितरण या शवै क्षक अिसरों की समानता के ं कारण उत्पन्न विवभन्न सामावजक समहों या सामावजक स्तरीकरण से ह।ै आधवनक समाज म ें वशक्षा को ू ु एक ससाधन के रूप म ें सम्मान
प्राप्त ह।ै इसे सामावजक प्रवतष्ठा को उन्नत करने का साधन भी माना जाता ं ह।ै अगर सबको वशक्षा का समान अिसर प्राप्त होता ह ै तो सबकी सामावजक प्रवस्थवत एक जसै ी होती ह ै और
सामावजक स्तरीकरण में कमी आती ह।ै वपछड़े और िवचत िग ण के लोग वशक्षा का प्रयोग अपनी ं प्रवस्थवत को सधारने के वलए करते ह।ैं लेवकन ितणमान वशक्षा प्रणाली के कारण यह सभि नहीं हो पाता ह।ै ु ं ितणमान वशक्षा प्रणाली म ें विवभन्न स्तर दखे ने को वमलते ह।ैं यह सामावजक स्तरीकरण को कम करने के बजाय और प्रोत्साहन दते े ह।ैं वशक्षा प्रणाली के इन्हीं स्तरों को वशक्षा म ें स्तरीकरण की सज्ञा दी जाती ह।ै ं इसी को शवै क्षक स्तरीकरण और वशक्षा का स्तरीकरण भी कहते ह।ैं यह वनम्न रूपों म ें देखने को वमलता है : उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 197 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं i. िैशक्षक सस्थानों के शवशभन्न स्तर- शवै क्षक सस्थानों के विवभन्न स्तर दखे ने को वमलते ह।ैं ं ं गरीब पररिार के बच्चे, वनम्नस्तरीय विद्यालयों वजनम ें वक वशक्षक, वशक्षण-सामग्री एि उपकरण ं नहीं होते ह,ैं म ें अध्ययन करते ह।ैं शहरी क्षेत्र म ें वस्थत विद्यालयों की गणित्ता ग्रामीण क्षेत्र में ु वस्थत विद्यालयों की तलना में उच्च होती ह।ै विद्यालयों के स्तर म ें अतर विद्यावथणयों के स्तर में ु ं अतर को जन्म दते ा ह ै और पररणामस्िप प समाज म ें शवै क्षक स्तरीकरण दृवष्टगोचर होने लगता ह।ै ं ii. शवद्यालय की उपलब्धता – विद्यालयों का असमान वितरण एक बड़ी समस्या ह।ै िह स्थान जहााँ वक प्राथवमक माध्यवमक एि उच्च स्तरीय शवै क्षक सस्थान नहीं होते ह ैं के बच्च,े िह स्थान ं ं जहााँ पर वक सारे प्रकार के शवै क्षक सस्थान उपलब्ध होते ह ैं की तलना म ें वशक्षा ग्रहण करने के ु ं समान अिसर नहीं पाते ह।ैं विद्यालय की अनपलब्धता शवै क्षक अिसरों की असमानता को जन्म ु दते ी ह।ै इस प्रकार, विद्यालय की अनपलब्धता के कारण वशक्षा म ें स्तरीकरण उत्पन्न होता ह।ै ु iii. घर का वातावरर् - बालक के घर का िातािरण भी वशक्षा म ें स्तरीकरण को बढ़ािा दते ा ह।ै झग्गी-झोपवड़यों म ें रहने िाला बालक एक उच्च िगीय पररिार म ें रहने िाले बालक के समान ु वशक्षा ग्रहण करने का अिसर नहीं प्राप्त कर पाता ह।ै iv. शलर् भेि भी वशक्षा म ें स्तरीकरण का एक कारण ह।ै ं v. आरक्षर् की नीशत- ितणमान पररदृश्य म ें आरक्षण की नीवत भी वशक्षा के स्तरीकरण का एक कारण ह ै या स्िप प ह।ै वशक्षा म ें स्तरीकरण की यह समस्या अके ले वकसी एक राष्र की समस्या नहीं ह।ै यह समस्त विश्व की समस्या ह।ै अतः, इसका समाधान आिश्यक ह।ै अन्यथा यह सामावजक स्तरीकरण की प्रवक्रया की गवत को और तीव्र कर दगे ा। यह बात भी ध्रि सत्य ह ै वक इस समस्या का परी तरह समाधान नहीं वकया जा ु ू सकता ह।ै हााँ इसे एक सीमा तक कम अिश्य वकया जा सकता ह।ै विश्व के विवभन्न दशे ों ने इसके वलए प्रयास शरू कर वदए ह।ैं इन प्रयासों को इस इकाई के विवभन्न खडों म ें िवणतण वकया गया ह ै । ु ं 4.5 वशक्षा का वनजीकरण वशक्षा का वनजीकरण एक जवटल एि वनरतर विकवसत होने िाला सप्रत्यय ह।ै वनजीकरण िास्ति म ें एक ं ं ं प्रवक्रया ह ै वजसे राज्य के स्िावमत्ि म ें रह े या राज्य द्वारा सचावलत वकए जानेिाली सपवत्त, प्रबधन, प्रकाय ण ं ं ं एि दावयत्िों का वनजी
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0.8%
क्षेत्र म ें हस्तातरण के रूप म ें पररभावषत वकया जा सकता ह।ै जब इसे वशक्षा के ं ं सदभ ण म ें पररभावषत वकया जाता ह ै तब इसका आशय राज्य के स्िावमत्ि म ें रह े या राज्य द्वारा सचावलत ं ं वकए जानेिाले शवै क्षक ससथानों की सपवत्त, उसके प्रबधन, प्रकायण एि दावयत्िों का वनजी क्षेत्र म ें ं ं ं ं हस्तातरण की प्रवक्रया से होता ह।ै कमार एड हले ो द िकडण प्राइिटे ाइजेशन ऑफ़ एजके शन एड राइट ट ु ु ू ं ं ं एजके शन इन द फ्यचर एड होम ु ू ं वनजी क्षेत्र म ें कपनी, धावमणक सस्थाओ, गरै सरकारी सस्थाओ आवद को शावमल वकया जाता ह।ै ं ं ं ं ं वनजीकरण कई रूपों म ें वकया जाता ह।ै उदाहरण के तौर पर सािजण वनक एि वनजी क्षेत्रों के मध्य ं सहभावगता। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय
198 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 21िीं सदी म ें वशक्षा का वनजीकरण एक महत्िपण ण घटना ह ै क्योंवक दशे की जनसख्या का एक बड़े भाग ू ं की पहचाँ से अभी भी वशक्षा बाहर ह।ै वनजीकरण का सीधा आशय वकसी कायण को वबना वकसी सरकारी ु वनयत्रण के स्िय करने से ह।ै यह व्यवक्तगत एि सस्थागत दोनों स्तरों पर हो सकता ह।ै वनजीकरण िास्ति ं ं ं ं म ें एक प्रवक्रया ह ै वजसम ें एक व्यवक्त या सस्था का सरकार द्वारा वित्त प्राप्त एि प्रदत्त सेिाओ से वनजी वित्त ं ं ं एि प्रदत्त सेिाओ की ओर गमन ह।ै ं ं वनजी क्षेत्र के उपक्रमों को विद्यालय की स्थापना एि सचालन करने की स्ितत्रता होती ह ै लेवकन ं ं ं अतराणष्रीय मानिावधकार वनयमों के तहत वनजी उपक्रमों को सरकार द्वारा तय वकए गए न्यनतम मानकों ू ं को परा करना पड़ता ह।ै राज्य को वनजी विद्यालयों का वनरीक्षण अिश्य करना चावहए। ू 4.6 वशक्षा का मवणमाधारणीकरण, स्तरीकरण ंवं वनजीकरण म मंबध ें ं वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण, वशक्षा का स्तरीकरण एि वशक्षा का वनजीकरण ये तीनों तीन वभन्न सप्रत्यय ं ं माने जाते ह।ैं अपने सामन्य अथों म ें ये तीनों ह ै भी वभन्न लेवकन यवद इन तीनों सप्रत्ययों का सक्ष्म वििचे न ू ं वकया जाय तो ये तीनों सप्रत्यय वभन्न होते हए भी एक-दसरे से सबवधत प्रतीत होते ह।ैं ये सबध निीन नहीं ु ं ं ं ं ं ू ह।ै इसका प्रारभ वशक्षा म ें स्तरीकरण के साथ माना जा सकता ह।ै वशक्षा म ें स्तरीकरण वशक्षा प्रणाली के ं प्रारभ से ही मानी जा सकती ह।ै स्तरीकरण का आशय असमानता से ह ै और वशक्षा प्रणाली म ें असमानता ं या शवै क्षक अिसरों की असमानता प्रारभ से ही व्याप्त ह।ै प्रारभ म ें लोग इसके प्रवत चैतन्य नहीं थे। ं ं कालातर म ें जसै े-जसै े जन सामान्य म ें शवै क्षक चेतना का विकास हआ वशक्षा प्रणली म ें विद्यमान ु ं असमानता या स्तरीकरण लोगों के मन म ें खटकने लगा और इसको कम करने या समाप्त करने के प्रयास शप हए। इन्हीं पररणामों के प्रयासस्िप प वशक्षा के सािभण ौमीकरण की शप आत हई। सािभण ौम वशक्षा ु ु ु ु अथाणत सित्रण वशक्षा या सब जगह वशक्षा। शवै क्षक सस्थानों के असमान वितरण (कई स्थान पर तो ं विद्यालय थे ही नहीं) को कम करने के वलए इस सप्रत्यय को अपनाया गया। लेवकन सित्रण वशक्षा ही पयाणप्त ं नहीं था इसवलए वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के सप्रत्यय को जन्म वमला। इसका आशय ह ै सबके वलए ं वशक्षा। इस प्रकार सबके वशक्षा का लक्ष्य सामने आया। अब यह बात भी सिवण िवदत ह ै वक वशक्षा प्रदान करने का दावयत्ि राष्र के प्रशासन अथाणत सरकार का (भारतीय पररदृश्य म ें यह कें र एि राज्य दोनों ं सरकारों का उत्तरदावयत्ि ह)ै होता ह ै । सरकार इस दावयत्ि का िहन करने म ें स्िय को असमथण पाने के ं बाद वशक्षा के वनजीकरण को प्रोत्साहन वदया। हााँलावक वशक्षा का वनजीकरण वशक्षा प्रणाली म ें पहले से ही विद्यमान था। सािजण वनक एि वनवज क्षेत्र के सहयोग से वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के लक्ष्य को प्राप्त ं करने का प्रयास वकया जा रहा ह ै तावक शवै क्षक अिसरों की असमानता या वशक्षा म ें स्तरीकरण को समाप्त या एक सीमा तक कम वकया जा सके । इस प्रकार, वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण वशक्षा म ें स्तरीकरण एि वशक्षा का वनजीकरण ये तीनों एक-दसरे ं ू से सबवधत ह।ै अब समस्त विश्व म ें इन तीनों सप्रत्ययों के वलए जो शवै क्षक योजनाए ाँ वक्रयावन्ित की जा रही ं ं ं ह,ै य जो नीवतयााँ वनवमतण की गई ह,ैं उन्ह ें सप्रत्यय विशषे के सदभ ण म ें अलग-अलग पररभावषत करना सभि ं ं ं नहीं ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 199 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अभ्यास प्रश्न 1. पद का क्या आशय ह?ै 2. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण में शावमल मख्य 5 बात ें कौन सी ह?ैं ु 3. सहभावगता के सिणसाधारणीकरण से आप क्या समझत े ह?ैं 4. वगलबटण के अनसार, सामावजक स्तरीकरण को पररभावषत करें। ु 5. वनजीकरण क्या ह?ै 6. स्तरीकरण के वलए अग्रेजी में____________पद का प्रयोग वकया जाता ह।ै ं 7. विद्यालयों का__________वितरण वशक्षा म ें स्तरीकरण का एक कारण ह।ै 8. ____________की नीवत भी वशक्षा म ें स्तरीकरण को बढ़ािा वमलता ह।ै 9. वशक्षा का वनजीकरण एक ________ एि_________विकवसत होने िाला सप्रत्यय ह।ै ं ं 4.7 वशक्षा के मवणमाधारणीकरण, स्तरीकरण ंवं वनजीकरण के वलं हो रहे वैविक प्रयाम इकाई के इस खड म ें हम इन तीनों सप्रत्ययों के सदभ ण म ें हो रह े िवै श्वक प्रयासों की सामवहक चचाण करेंग।े ू ं ं ं 4.7.1 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए भारत में शकए जा रहे ं प्रयास भारत म ें इन तीनों सप्रत्ययों के वलए वनम्नवलवखत प्रमख कायण हो रह े ह:ैं ु ं 1. शनिःिल्क एव अशनवायि शिक्षा शवधेयक 2009 -भारतीय ससद द्वारा सन 2009 में पाररत वशक्षा ु ं ं सबधी एक विधेयक, वजसके द्वारा बच्चों को वनःशकक एि अवनिायण वशक्षा का मौवलक अवधकार प्राप्त हो ु ं ं ं गया, को वशक्षा का अवधकार अवधवनयम 2009 कहते ह।ैं सविधान के अनच्छेद 21 म ें 86 ि ें सविधान ु ं सशोधन द्वारा एक भाग 21 (क) जोड़ा गया वजसके द्वारा प्राथवमक वशक्षा सभी नागररकों का मल ू ं अवधकार हो गया। यह 1 अप्रैल, 2010 से जम्म-कश्मीर को छोड़कर परे भारत म ें लाग ह।ै इसके अलािा ु ू ू ् राज्य के नीवत-वनदशे क वसिातों के तहत अन० 45 म ें 6 से 14 िष ण के बच्चों के वलए अवनिायण एि ु ं ं वनःशकक वशक्षा की व्यिस्था की गई ह।ै ु इस विधेयक के मख्य प्रािधान वनम्नवलवखत ह:ैं ु 6-14 साल के बच्चों को वनःशकक वशक्षा; ु वनजी विद्यालयों म ें उनकी कल नामाकन क्षमता के 25% उन बच्चों को, जो 6 से 14 िष ण की ु ं आय समह के ह ैं एि गरीब ह,ैं वनःशकक वशक्षा; ु ू ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 200 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं विकलाग बच्चों के वलए वनःशकक वशक्षा की उम्र 18 िषण; ु ं बच्चों को वनःशकक वशक्षा उपलब्ध कराने का उत्तरदावयत्ि राज्य और कें र सरकार का ह;ै तथा ु वशक्षक टयशन नहीं लेंग े ् ु 2. सवि शिक्षा अशभयान -यह योजना भारत सरकार द्वारा सन 2001 म ें प्राथवमक वशक्षा को सब तक पहचाँ ाने के वलए आरभ की गई थी। ु ं इस योजना के मख्य उद्दश्े य वनम्नवलवखत थे: ु सािभण ौम अिसर एि धारण; ं यौन भदे समाप्त करना; सामावजक श्रेणी भदे समाप्त करना; विद्यावथणयों के अवधगम स्तर म ें िवि; ृ राज्य सरकार के भागीदारी के साथ; इस योजना के वक्रयान्ियन के पररणामस्िप प 6-14 िष ण के लगभग सभी बच्चों को विद्यालयों म ें लाने म ें सफलता वमली। 3. कस्तरबा र्ााँधी बाशलका शवद्यालय-ये अनसचीत जावत एि जनजावत, अन्य पीछड़ा िग ण तथा ु ु ू ं मवस्लम
बावलकाओ के वलए आिासीय उच्च विद्यालय ह।ैं ये िसै े स्थानों पर स्थावपत वकए गए ह ैं जहााँ पर ु ं विद्यालय बावलकाओ के वनिास स्थान से बहत दर ह ैं और बावलकाओ क
ी सरक्षा, वजसके कारण अक्सर ु ु ं ं ू बावलकाए ाँ अपनी पढ़ाई छोड़ दते ी ह,ैं एक बड़ा मसला ह।ै इसम ें 25% स्थान गरीबी रेखा के नीचे जीिन गजार रह े लोगों के वलए आरवक्षत होता ह।ै ु 4. एन पी ई जी ई एल -इस कायणक्रम को शवै क्षक प प से पीछड़े प्रखडों म ें लाग वकया गया ह।ै यह योजना ू ं विद्यालय म ें नामावकत एि गरै नामावकत दोनों तरह के छात्राओ की आिाश्यकताओ को ध्यान म ें रखता ं ं ं ं ं ह।ै 5. मध्याह्न भोजन योजना -इस योजना को कें र सरकार द्वारा 1995 म ें लाग वकया गया। इसका उद्दश्े य ू नामाकन म ें िवि करना, धारण म ें िवि करना, विद्यावथणयों की उपवस्थवत बढ़ाना एि विद्यावथणयों के पोषण ृ ृ ं ं म ें िवि करना था। यह योजना कें र सरकार एि राज्य सरकार के सहयोग से चलायी जाती ह।ै ृ ं 6. राष्ट्रीय माध्यशमक शिक्षा अशभयान -कें र सरकार द्वारा प्रायोवजत एक पररयोजना वजसम ें के र एि ं राज्य सरकार की भागीदारी क्रमश: 75 एि 25 % की ह।ै इस योजना को 2009-10 म ें शप वकया गया। ु ं इस योजना के प्रमख उद्दश्े य वनम्नवलवखत ह:ैं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 201 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं माध्यवमक वशक्षा का सािभण ौमीकरण करना; नामकन म ें यौन, सामावजक एि धावमकण भदे को कम करना; ं ं विद्यालय छोड़ने की दर को कम करना; तथा धारण को उन्नत करना। इस योजना के वनम्नवलवखत कायण सवनवश्चत वकए गए ाँ : ु उच्च प्राथवमक विद्यालयों को माध्यवमक विद्यालयों म ें उन्नत करना; उपलब्ध माध्यवमक विद्यालयों को सशक्त करना; सेिारत वशक्षकों को प्रवशक्षण प्रदान करना; तथा 6000 मॉडल विद्यालयों को प्रखड स्तर पर प्रवत प्रखड 1 विद्यालय की दर से स्थावपत करना । ं ं यह कायण िष ण 2008-09 से शप ह।ै ु 7. आइ ई डी एस एस -इस योजना को िष ण 2009-10 म ें आइ ई डी सी के बदले आरभ वकया गया। यह ं योजना कें र सरकार द्वारा प्रायोवजत ह।ै इसका उद्देश्य 8 िष ण की प्राथवमक वशक्षा परी करने के बाद सभी ू अक्षम बालकों को सशक्त करने के आग े के चार िषों, कक्षा 9 से 12 तक की वशक्षा परी करने के वलए ू तैयार हो सके । 8. 1990 की नई आशथिक नीशत -इस नीवत ने भी वशक्षा के वनजीकरण पर बल वदया। यह शवै क्षक सेिाओ के प्रशासन विवनयमन एि वित्त प्रदान करने से सरकारी तत्र को अलग करता ह।ै सरकार उच्च ं ं ं वशक्षा म ें वनजी क्षेत्रों के सहभावगता को बढ़ाने को ध्यान म ें रखते हए ससद में एक विधेयक वनजी ु ं विश्वविद्याकयों की स्थापना सबधी प्रस्तत वकया वजसे राज्य सभा द्वारा 1995 म ें पाररत कर वदया गया। ु ं ं 9. मके ि अबानी एव कमार मर्लम शबड़ला ने सन 2000 म ें भारत के तत्कालीन प्रधानमत्री को ु ु ं ं ं ं ् शवै क्षक सधार विषय पर एक प्रवतिदे न प्रस्तत वकया था। इसी प्रवतिदे ान को अगस्त 2001 में सफदर ु ु हाश्मी स्मवत न्यास द्वारा आयोवजत एक सभा म ें उित करते हए प्रो0 के 0 एम0 पवनक्कर ने वशक्षा का ु ृ ृ वनजीकरण करने की िहत योजना पर रौशनी डाली। इस ररपोटण म ें वन:शकक एि अवनिायण प्राथवमक वशक्षा ृ ु ं तथा अवनिायण माध्यवमक वशक्षा के साथ-साथ यह भी कहा गया था वक भारत सरकार को प्रत्येक तालका ु म ें उच्च गणित्ता िाले माध्यवमक विद्यालयों की स्थापना करने के वलए वनजी क्षेत्रों को सहायता प्रदान ु करनी चावहए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 202 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं अभ्यास प्रश्न 10. वमलान करें। स्तभ (अ) स्तभ (ब) ं ं 1. वनःशकक एि अवनिायण वशक्षा विधेयक (अ) 18 िष ण ु ं 2. विकलाग बच्चों के वलए वनःशकक वशक्षा की उम्र (ब) 2001 ु ं 3. सि ण वशक्षा अवभयान (स) 1995 4. मध्याह्न भोजन योजना (द) 2009-10 5. राष्रीय माध्यवमक वशक्षा अवभयान (य) 2009 11. भारतीय सविधान के अन०____________वशक्षा के अवधकार का िणनण ह।ै ु ं 12. सि ण वशक्षा अवभयान ____________सरकार की योजना ह।ै 13. कस्तरबा गााँधी बावलका विद्यालय अनसचीत जावत, जन जावत, अन्य पीछड़ा िगण एि ु ु ू ं __________ िग ण के लड़वकयों के वलए ह।ैं 14. मध्याह्न भोजन योजना के उद्दश्े यों म ें से एक विद्यावथणयों के _________म ें िवि करना ह।ै ृ 15. आइ ई डी एस एस की शप आत िषण_________ म ें की गई। ु 16. मके श अबानी एि कमार मगलम वबड़ला ने सन 2000 म ें ततकालीन भारतीय सरकार को ु ु ं ं ं शवै क्षक सधार विषय पर सौपें गए प्रवतिदे न की मख्य बात क्या ह?ै ु ु 4.7.2 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए इर्लैण्ड में शकए जा रहे ं ं प्रयास इगलैण्ड म ें इन सप्रत्ययों के सबध म ें वनम्नवलवखत कायण वकए जा रह े ह:ैं ं ं ं ं i. पवपल वप्रवमयम कायणक्रम - इस योजना की शप आत 2011 म ें की गई थी। इसका उद्दश्े य िवचत ु ु ं िग ण के विद्यावथणयों को अवतररक्त कोष प्रदान कर विद्यावथणयों के मध्य असमानता समाप्त करने के वलए एि उपलवब्ध के मध्य के अतर को खत्म करने के वलए सहायता करना ह।ै ये उन्हीं छात्रों ं ं को वदया जाता ह ै वजन्होंने अवतम 6 िषों म ें वकसी भी समय वनःशकक विद्यालय भोजन प्राप्त ु ं वकया ह।ै ii. उत्तरी आयरलैंड म ें 2009 से नाम से एक कायणक्रम चलाया जा रहा ू ु ू ह ै जो विद्यालयों को अपनी गणित्ता को उठाने म ें एि विद्यावथणयों की अवधगम म ें होनेिाले ु ं समस्याओ को दर करने के वलए ह।ै ं ू खलाए ाँ जसै े वक एके डमी इटरप्राइसेस आवद iii. अकादमी की स्थापाना – कछ निीन विद्यालय शृ ु ं ं वनजी क्षेत्र के कम्पवनयों द्वारा सचावलत वकए जा रह े ह ैं और इसका प्रबधन ऐसे लोगों द्वारा वकया ं ं जा रहा ह ै जो व्यापाररक पष्ठभवम के ह ै न वक शवै क्षक पष्ठभवम के । । ृ ृ ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 203 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं iv. नई लेबर सरकार के तहत विद्यालयों के वलए भिन के वनमाणण को प्राइिटे फाइनेंस इवनवसएवटि के तहत वित्तपोवषत वकया गया। वनजी कम्पवनयों ने विद्यालयों के भिन बनाए वजनके बदले उन्ह ें 25-35 िषॉां के वलए विदविद्यालय भिन के रख-रखाि का सविदा वदया जाता ह।ै महाविद्यालय, ं विद्यालय एि वशक्षा के स्थानीय अवधकारी या प्रावधकरण को इसका खचण दने ा पड़ता ह।ै ं v. परीक्षा प्रणाली का सचालान – यनाइटेड वकगडम म ें परीक्षाओ को सचावलत करने िाली सबसे ु ं ं ं ं बड़ी वनकाय ग्लोबल कापोरेशन वपयसणन द्वारा सचावलत की जाती ह।ै वपयसणन 70 ं दशे ों म ें परीक्षा बोडो को सचावलत करता ह।ै अथाणत यह परीक्षाए ाँ आयोवजत करता ह।ै परीक्षकों ं का भगतान करता ह।ै यह मकयाकन के वनकषों को समझने के वलए आिश्यक प्रवशक्षण कयणक्रम ु ू ं सचावलत करता ह ै एि यह पाठयपस्तकों की रचना भी करता ह।ै ् ु ं ं 4.7.3 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए अमेररका में शकए जा रहे ं प्रयास i. नो चाइल्ड लेफ्ट शबहाइड ऐक्ट – यह िष ण 2001 म ें शप वकया गया था। इसका उद्दश्े य वशक्षा ु ं म ें वित्तीय अनदान को बढ़ाना तथा मानक आधाररत परीक्षण सधार को लाग करना था। ु ु ू ii. रेस ट ि टॉप प्रोग्राम – यह योजना 2010 म ें शप की गई थी। यह योजना वशक्षा म ें फे डरल ु ु अनदान को प्राप्त करने के वलए राज्यों को प्रवतस्पिाण करने के वलए प्रोत्सावहत करती ह।ैं ु iii. 2013 में सेंटर फॉर अमेररकन प्रॉग्रेस ने अपने प्रस्ताि म ें कहा वक अमरे रका का प्रत्येक पररिार अपने 2 िष ण के बच्चों को स्िवै च्छक प प से उच्च गणित्ता िाले विद्यालय पि ण वशक्षा के ु ू वलए प्रीस्ककस म ें भेज।ें कॉन्ग्रेस ने 40 राज्यों म ें चलाए। ू ू iv. ि एवरी स्टडेंट सक्सेस ऐक्ट – इस योजना का आरभ 2015 म ें वकया गया वजसका उद्दश्े य ु ं फे डरल सरकार का वशक्षा म ें अपनी भवमका का विस्तार करना था। ू v. चाटिर शवद्यालय – सयक्त राज्य अमरे रका में चाटणर विद्यालयों की स्थापना की गई। चाटणर ु ं विद्यालय अवभभािकों के समह वशक्षक, विद्यालय, प्रबधक समदाय के प्रवतवनवध की ओर से ू ु ं वज़ला के सदस्यों एि वनजी
8%
4%
3%
2%
2%
2%
1%
1%
0.9%
0.8%
0.8%
0.8%
0.1%
क्षेत्र के प्रवतष्ठानों के साथ एक सविदा के तहत चलाया जाता ह।ै ं ं इसकी सख्या अमेररका म ें वदन-प्रवतवदन बढ़ रही ह।ै इनको वित्त सािजण वनक क्षेत्र अथाणत सरकार ं द्वारा प्रदान वकया जाता ह ै (जो वक पहले सािजण वनक क्षेत्र के विद्यालयों को जाता था) लेवकन इनका सचालन वनजी क्षेत्र द्वारा वकया जाता ह
।ै अक्सर ये लाभ कमाने िाली या लाभ नहीं कमाने ं िाली राष्रीय कम्पवनयों दव्रारा सचावलत वकए जाते ह।ैं ं ् vi. शनजीकरर् का एक-िसरा रुप भी अमरे रका म ें देखने को वमलता ह।ै इसम ें सािजण वनक
क्षेत्र के ू विश्वविद्यालय अपने टयशन फी को इतना अवधक बढ़ा द े रह े ह ैं वक विद्याथी स्िय ही अनदान दने े ् ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 204 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं लग।े ब्रेकले के कै वलफोवनणया विश्वविद्यालय
म ें विद्याथी अपनी वशक्षा के वलए राज्य की तलना म ें ु अवधक योगदान द े रह े ह।ैं 4.7.4 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए जापान में शकए जा रहे ं प्रयास जापान म ें वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के वलए प्रयास मेजी पनस्थाणपन के समय सन 1868 म ें शप वकया ु ु गया था। इस को परी तरह से उनलोगों ने 130 िषॉां की अिवध म ें प्राप्त कर वलया था। इस परी अिवध को ू ू तीन चरणों म ें बााँटा जा सकता ह:ै चरर् 1: मजे ी पनस्थाणपन स े लेकर प्रथम विश्वयि तक लगभग 40 िषॉण का समय इस चरण म ें आता ह।ै ु ु इस चरण म ें प्राथवमक वशक्षा का तीव्र गवत स े विस्तार हआ। विद्यालय म ें नामाकन लगभग 95% तक हो ु ं गया था। इस चरण के अवतम िषॉां म ें माध्यवमक वशक्षा म ें विस्तार भी शप हो गया था। और इस चरण में ु ं प्राथवमक वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण लगभग समाप्त हो गया था चरर् 2: प्रथम विश्वयि से शप होकर लगभग 40 िषों तक चला था। इस चरण म ें माध्यवमक वशक्षा का ु ु विस्तार हआ था और नामाकन दर लगभग 70% तक पहचाँ गया था। इसके साथ ही साथ उच्च वशक्षा में ु ु ं भी विस्तर शप हो गया था। ु चरर् 3: लगभग 20िीं सदी के अत तक चला। इस चरण म ें लगभग 50 िष ण आते ह।ैं माध्यवमक वशक्षा ं म ें विस्तार हो रहा था। नामाकन की दर म ें तीव्र िवि हई थी। ु ृ ं 4.7.5 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए रशसया में शकए जा रहे ं प्रयास रवसया म ें वनजीकरण की शप आत विगत 15-20 िषों म ें लगभग 100 से भी अवधक ऐसे शवै क्षक सस्थानों ु ं की स्थापना वजनके वित्त के स्रोत पणतण ः वनजी एि गरै सरकारी ह ैं की स्थापना के साथ शप हई। इन ु ू ु ं सस्थानों की स्थापना राज्य द्वारा स्थावपत एि सचावलत विश्वविद्यालयों को प्रवतस्थावपत करने के वलए नहीं ं ं ं बवकक इनके परक के प प म ें की गई थी तावक प सी जनसख्या के प्रत्येक सदस्य तक शवै क्षक सेिाए ाँ पहचाँ ु ू ं सके । इनकी शप आत 1990 से मानी जा सकती ह।ै रवसया म ें 2012 के सिक्षे ण के अनसार वसफण 3% ु ु विद्यालय वनजी स्िावमत्ि म ें थे इन्ह ें विशेष उद्दश्े य के वलए स्थावपत विशेष विद्यालय तथा लेवसवजयम थे। सोवियत विश्वयि के दौरान विद्यालय पणणतः, कें रीय सकाणर के अधीन थे। (रवसयन फे डरेशन, 2012) । ु ू उच्च वशक्षा म ें वस्थवत इसके ठीक विपरीत थी। उच्च वशक्षा के लगभग 60% सस्थान वनजी क्षेत्र म ें थे। ं अवधकाश िसै े क्षेत्रों म ें जहााँ वक सरकारी ससस्थान नहीं थ े या कम थे उच्च वशक्षा के वनजी सस्थान पयाणप्त ं ं ं ं मात्रा म ें उपलब्ध थे। जैसे वक प्रबधन, पयणटन. एि मानविवक आवद की वशक्षा के सस्थान। अतः, रवसया ं ं ं विद्यालयी वशक्षा म ें वनजीकरण की अनमवत नहीं देता ह।ै हालााँवक इसने उच्च वशक्षा के वनजीकरण की ु अनमवत कछ सीमा तक दी ह।ै ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 205 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.7.5 शिक्षा के सविसाधारर्ीकरर्, स्तरीकरर् एव शनजीकरर् के शलए हो रहे कछ अन्य प्रयास ु ं िाउचर (रसीद ) दने े की प्रवक्रया वनजीकरण का एक दसरा प प ह।ै अवभभािकों को अपने पसद के ं ू विद्यालय म ें अपने बच्चों को भजे ने के वलए रसीद दी जाती ह।ै सरकार द्वारा विद्यालयों को जो अनदान ु वदए जाते ह ैं िो उन रसीदों की सख्या पर वनभरण करते ह ै जो अवभिािकों द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाने के ं बदले म ें विद्यालयों को दी जाती ह।ै इससे विवभन्न विद्यालयों के मध्य अपने विद्यालय के वलए विद्यावथणयों की सख्या बढ़ाने के वलए एक प्रवतयोवगता होती ह।ै इस प्रतोयोवगता से विद्यालयों के ऊपर स्िय को ं ं शवै क्षक बाज़ार म ें अवधक प्रभािी एि उत्तरदायी सावबत करने के वलए दबाि डाला जाता ह।ै इससे वशक्षक ं एि प्रबधन विद्यालय को श्रेष्ठ प्रमावणत करने के वलए वनत निाचार करते ह।ैं बाज़ार की शवक्तयााँ वशक्षकों ं ं की गणित्ता एि वशक्षण की गणिता दोनों को सकारात्मक वदशा म ें प्रभावित करती ह ै पररणमस्िप प ु ु ं विद्यावथणयों की उपलवब्ध म ें सकारात्मक पररितणन होता ह।ै इसे सभितः वचली म ें बड़े ही सवनयोवजत ढग ु ं ं से सवनयोवजत वकया गया। वमलीटरी शासन के दौरान वचली म ें प्रचवलत वशक्षा को अनदान दने े की ु ु तत्कालीन व्यिस्था पर िाउचसण (रसीदों) का बहत प्रभाि था। स्िीडेन म ें भी ण को ु अपनाया गया था। इसके इतर आवद वनजीकरण के सािाणवधक प्रयक्त वकए ् ु ु जानेिाले प प ह।ैं ब्रे (1999) के अनसार, सािजण वनक क्षेत्र के पारपररक विद्यालयों के साथ-साथ स्कवलग ु ू ं ं के पैरलल शडै ो प्रणाली का भी विकास हआ ह।ै इससे लाभ कमाने के उद्दश्े य से सचावलत वकए जा रह े ु ं टयशन सेंटर शावमल ह ैं वजसम ें विद्याथी अपने वनयवमत कक्षाओ के बाद पढ़ने के वलए जाते ह।ैं इसके ् ु ं अलािा इसमें ऐसे भी सस्थान शावमल ह ैं जो विद्यावथणयों को विवभन्न प्रवतवष्टत महाविद्यालयों एि ं ं विश्वविद्यालयों म ें प्रिशे हते विवभन्न सरकारी सेिाओ म ें चयवनत होने हते तैयार करते ह।ैं ु ु ं वनजीकरण का एक और प प सामने आता ह।ै इसम ें सािजण वनक क्षेत्र अथाणत सरकार द्वारा वित्त प्रदत्त एि ं सचावलत विश्वविद्यालय वनजी क्षेत्र के विद्यालयों से िावणवज्यक सस्कवत ग्रहण करता ृ ं ं ह।ै उदाहरण के तौर पर बहत सारे विश्वविद्यालय अपने वशक्षकों को प्रशासवनक पदों पर प्रोन्नत करने के ु बजाय तथा पहले की तलना में थोड़ा अवधक िते न दने े की बजाय वनजी क्षेत्रों से प्रशासकों को वनयक्त कर ु ु रह े ह ैं एि उन्ह ें अत्यवधक िते न का भगतान कर रह े ह।ैं ऐसे म ें इन सस्थानों मे जो प्रजातावत्रक प्रशासन ु ं ं ं दखे ने को वमलता था िो खत्म हो जाता ह ै और प्रशासवनक शवक्तयााँ शीषस्ण थ अवधकाररयों के हाथों म ें कें वरत हो जाती ह।ैं 4.7.7 क्या नहीं हो रहा है इकाई के इस खड म ें हम इस बात पर चचाण करेंग े वक वशक्षा के सिणसाधारणीकरण, वनजीकरण एि ं ं स्तरीकरण के वलए ऐसे कौन से आिश्यक कायण ह,ैं जो होने चावहए लेवकन नहीं हो रह े ह।ैं i. शवशवधतापर्ि पाठयक्रम -माध्यवमक वशक्षा की अिस्था तक आते-आते विद्यावथणयों म ें ् ू व्यवक्तगत विवभन्नता प्रबल हो जाती ह।ै उनकी आिश्यकताओ, प वचयों, क्षमताओ आवद म ें ं ं विवभन्नता दृवष्टगोचर होने लगती ह।ै इस व्यवक्तगत विवभन्नता का पोषण एि सििणन करना अवत ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 206 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं महत्िपण ण होता ह।ै अतः, इस स्तर पर विद्यावथणयों की प वच, आिश्यकताओ, क्षमताओ, आवद ू ं ं को ध्यान म ें रखकर पाठयक्रम म ें विविधता लायी जानी चावहए। विविधतापण ण पाठयक्रम सबको ् ् ू वशक्षा का समान अिसर प्रदान करने म ें सहायक वसि होगा और वशक्षा म ें स्तरीकरण को कम करेगा। लेवकन अभी तक इस ओर ध्यान नहीं वदया जा रहा ह।ै जो अभ्यास प्रचलन म ें ह ै उसमें सबके वलए एक समान पाठयक्रम की व्यिस्था ह।ै य्ह व्यिस्था विद्यावथणयों म ें नीरसता को जन्म ् दते ी ह ै और िो वशक्षा व्यिस्था से विमख होने लगते ह।ैं फलस्िप प वशक्षा म ें स्तरीकरण को ु बढ़ािा वमलता ह।ै ii. रुशच एव योग्यता के अनसार उच्च एव व्यावसाशयकक़ शिक्षा -सबको उच्च वशक्षा वमलनी ु ं ं चावहए तभी शवै क्षक अिसरों की समानता दृवष्टगोचर होगी लेवकन यहााँ हम ें एक बात का ध्यान रखना चावहए वक सबको एक जसै ी उच्च एि व्यािसावयक वशक्षा न वमले। अथाणत सब इजीवनयर ं ं या डॉक्टर ही न बनें क्योंवक यवद ऐसा होगा तो कायण विवशष्टीकरण समाप्त होने लगगे ा और समाज का अवस्तत्ि ही सकट म ें आ जाएगा। स्तरीकरण को तो बढ़िा वमलेगा ही। उच्च वशक्षा ं प्राप्त एि उच्च वशक्षा से िवचत दो ऐसे िग ण तैयार होंग े वजनके मध्य की खाई बहत गहरी होगी। ु ं ं और उसे पाटना बहत मवश्कल। ितणमान म ें भारतीय पररदृश्य म ें इसी प्रिवत्त का अभ्यास चल रहा ु ृ ु ह।ै उच्च एि व्यािसावयक वशक्षा के अिसर प्रत्येक व्यवक्त को उनकी प वच क्षमता एि योग्यता के ं ं अनसार वमलनी चावहए तथा गणित्ता एि मानक को बनाए रखना चावहए। ु ु ं iii. 3. शभन्न-शभन्न र्र्विा एव मानक यि शवद्यालयों की समाशप्त -भारतीय पररदृश्य म ें अभी ु ु ं वभन्न-वभन्न स्थानों के विद्यालयों की गणिता वभन्न-वभन्न ह।ैं ग्रामीण क्षेत्रों म ें वस्थत विद्यालयों ु एि शहरी क्षेत्रों म ें वस्थत विद्यालयों की गणित्ता में बहत अतर ह।ै सरकारी एि वनजी विद्यालयों ु ु ं ं ं की गणित्ता एि मानकों म ें भी बहत अवधक अतर दखे ने को वमलता ह।ै इन विद्यालयों की ु ु ं ं गणिता एि मानकों म ें अतर होने के कारण इन विद्यालयों म ें पढ़ रह े या पढ़ चके विद्यावथयण ों की ु ु ं ं गणित्ता म ें भी अतर होता ह।ै ये अतर वनम्न गणिता एि मानक िाले विद्यालय म ें वशक्षा प्राप्त ु ु ं ं ं कर रह े या प्राप्त कर चके विद्यावथणयों म ें हीन भािना उत्पन्न कर दते ा ह।ै उन्ह ें ऐसा प्रतीत होने ु लगता ह ै वक अगर उन्ह ें भी उच्च गणिता एि मानक िाले विद्यालय म ें अध्ययन का अिसर ु ं प्राप्त हआ होता तो ि े भी अच्छा कर सकते थे । इस प्रकार विद्यालयों की गणिता के कारण ु ु वशक्षा म ें स्तरीकरण को बढ़ािा वमलता ह।ै अमरे रका म ें भी विद्यालयों की गणित्ता वभन्न-वभन्न ु ह।ै iv. उच्च र्र्विा वाले पवि शवद्यालयी शिक्षा के अवसरों में वशद्ध करना -बच्चों के विद्यालयी ृ ु ू वशक्षा के पिण के अनभि, उनके विद्यालयी वशक्षा में बहत बड़ी भवमका वनभाते ह।ैं अमरे रका म ें ु ू ु ू शोधकताणओ द्वारा यह अनमान लगाया ह ै वक माध्यवमक विद्यालयों के विद्यावथणयों म ें जो अतर ु ं ं वदखता ह ै उसका एक मख्य कारण विद्यावथणयों के विद्यालय पि ण अनभि (5 िष ण की आय से ु ू ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 207 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं पहले के अनभि) ह।ैं वजन बच्चों के विद्यालय पि ण अनभि उच्च स्तरीय होते ह ैं या वजन बच्चों ु ू ु ने उच्च गणित्ता िाली पि ण विद्यालयी वशक्षा ग्रहण की होती ह ै ि े आजीिन अच्छा प्रदशनण करते ु ू ह।ैं इस प्रकार हमनें विश्व के कछ प्रमख दशे ों म ें वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि ु ु ं वनजीकरण के ,इए हो रह े प्रयासों को दखे ा। विश्व के अन्य देशों म ें भी यही उपाय या इसी प्रकार के उपाय अपनाए जा रह े ह।ैं 4.8 वशक्षा के मवणमाधारणीकरण, स्तरीकरण ंवं वनजीकरण के वलं वकं जा रह े प्रयामों का प्रभाव उपरोक्त वििचे न में हमने वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए वकए जा रह े ं प्रयासों की चचा ण की। इस खड म ें हम इनके प्रभािों की चचाण कर रह े ह।ैं इन प्रयासों के पररणामस्िप प ं विद्यालयों की सख्या म ें िवि हई ह।ै उन स्थानों पर जहााँ विद्यालय नहीं थे िहााँ भी विद्यालयों की स्थापना ु ृ ं हई। नामाकन म ें भी िवि हई। धारण भी बढ़ा ह ै लेवकन वशक्षा की गणित्ता म ें िवि होने के बजाय वगरािट ु ु ृ ृ ु ं आई ह।ै विद्यालयों की सख्या म ें िवि होन े के साथ-साथ उनके स्तर म ें अतर भी बढ़ा ह।ै विविधस्तरीय ृ ं ं विद्यालयों के कारण वशक्षा में स्तरीकरण को बडः आिा वमलता ह।ै वनजीकरण के फलस्िप प विद्यालयों की सख्या म ें िवि हई ह।ै वनजी क्षेत्र के उद्यवमयों के द्वारा अनेक शवै क्षक सस्थानों का सचालन वकया जा ु ृ ं ं ं रहा ह।ै लेवकन इन सभी विद्यालयों की गणित्ता एक जसै ी नहीं ह।ै उच्च गणित्ता िाले विद्यालयों म ें वशक्षा ु ु इतनी महगाँ ी ह ै वक िह आज भी सिणसाधारण की पहचाँ से बाहर ह।ै इस प्रकार इन प्रयासों का प्रभाि ु िास्तविकता के धरताल पर नगण्य ह ै और अभी इस वदशा में और साथणक प्रयास करने की आिश्यकता ह ै अभ्यास प्रश्न 17. की शप आत िष ण 2011 म ें की गई थी (सत्य/असत्य) ु ु 18. अमरे रकी सरकार की एक योजना ह ै (सत्य/असत्य)। ू ु ू 19.
‘नो चाइकड लेफ्ट वबहाइड ऐक्ट’
की शप आत िष ण 2005 म ें इगलैंड म ें श्गप की गई थी ु ु ं ं (सत्य/असत्य) । 20.
‘द एिरी स्टडेंट सक्सेस ऐक्ट’
की शप आत िष ण 2015 म ें फे डरल सरकार द्वारा की गई थी ु ु (सत्य/असत्य)। 21. चाटणर विद्यालयों की शप आत वचली म ें हई थी (सत्य/असत्य)। ु ु 22. जापान म ें वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के वलए प्रयास मेजी पनस्थाणपान के समय हई थी ु ु (सत्य/असत्य)। 23. रवसया म ें वनजीकरण की शप आत 1990 से मानी जाती ह ै (सत्य/असत्य)। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 208 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 4.9 मारांश प्रस्तत इकाई का शीषकण ह ै वशक्षा का सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण ह।ै इसवलए इस इकाई ु ं का प्रारभ सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के सप्रत्ययों के सरल एि स्पष्ट व्याख्या के साथ ं ं ं ं वकया गया ह।ै इन सप्रत्ययों के पारस्पररक सबध को भी स्पष्ट वकया गया ह।ै इसके पश्चात वशक्षा के ं ं ं सिसण ाधरणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के वलए वकए ज रह े विश्वव्यापी प्रयासों की चचाण भी की गई ं ह।ै इन प्रयासों के प्रभाि का भी उकलेख वकया गया ह।ै वशक्षा को जन साधारण तक पहचाँ ा कर शवै क्षक ु अिसरों की असमानता को समाप्त करने के वलए इन सप्रत्ययों के अथण एि इनके वलए वकए जा रह े प्रयासों ं ं एि उनके प्रभािों को समझना वशक्षाशाि के विद्यावथणयों के वलए अत्यत आिश्यक ह।ै अतः, यह इकाई ं ं वशक्षाशाि के विद्यावथणयों एि वशक्षकों के वलए लाभप्रद ह।ै ं 4.10 अभ्याम प्रश्नों के उत्तर 1. सिसण ाधारणीकरण पद का आशय ह ै वकसी चीज को साधारण बनाना। 2. 5 मख्य बातें ह:ैं ु i. प्रािधानों का सिसण ाधरणीकरण; ii. नामाकन का सिसण ाधारणीकरण; ं iii. धाण ण का सिसण ाधारणीकरण; iv. सहभावगता का सिणसाधारणीकरण; तथा v. उपलवब्ध का सिसण ाधारणीकरण 3. सहभावगता के सिणसाधारणीकरण का आशय समदाय को अपनी आिश्यकताओ को पहचानने, ु ं तत्सबधी उत्तरदावयत्ि ग्रहण करने तथा वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण म ें अपनी वनणाणयक भवमका ू ं ं सवनवश्चत करने के वलए अवभप्रेररत करना होगा। ु 4. वगलबटण के अनसार, सामावजक स्तरीकरण समाज का उदग्र समहों में, जो एक-दसरे से श्रेष्ठता एि ु ू ं ू अधीनता के सबध से सबवधत होते ह,ैं विभाजन ह।ै ं ं ं ं 5. वनजीकरण िास्ति म ें एक प्रवक्रया ह ै वजसे राज्य के स्िावमत्ि म ें रह े या राज्य द्वारा सचावलत वकए ं जानेिाली सपवत्त, प्रबधन, प्रकायण एि दावयत्िों का वनजी क्षेत्र म ें हस्तातरण के प प म ें पररभावषत ं ं ं ं वकया जा सकता ह।ै 6. स्रेवटवफके शन 7. असमान 8. आरक्षण 9. जवटल, वनरतर ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 209 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 10. (1) - य (2) - अ (3) - ब (4) - स (5) – द 11. (अ) 21 12. (ब) भारत 13. (स) मवस्लम ु 14. (द) पोषण 15. (य) 2009-10 16. वनःशकक एि अवनिायण प्राथवमक वशक्षा तथा अवनिायण माध्यवमक वशक्षा के साथ-साथ यह भी ु ं कहा गया था वक भारत सरकार के प्रत्येक तालका म ें उच्च गणित्ता िाले माध्यवमक विद्यालयों ु ु की स्थापना करने के वलए वनजी क्षेत्रों के सहायता प्रदान करनी चावहए। 17. सत्य 18. असत्य 19. असत्य 20. सत्य 21. असत्य 22. सत्य 23. सत्य 4.11 मदं भ ण ग्रंथ मची ंवं महयोगी ग्रंथ ू 1. Coomans & Hallo de Wolf,
‘Privatisation of Education and the Right to Education’
in de Feyter & Gomez (eds.), Privatisation and Human Rights in the Age of Globalisation, 2005. 2. Dennis Gilbert (2002). The American Class Structure: In An Age of Growing Inequality. Pine Forge Press. Retrieved from www. Wikipedia.org/wiki_Gilbert. 3. Education at a glance in 2012: Russian Federation 4. Furze, B. and Healy, P. (1997) Understanding society and change in Stafford, C. and Furze, B. (eds.) Society and Change (2nd Ed), Macmillan Education Australia, Melbourne उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 210 ु समकालीन भारत एव शिक्षा PE 2 ं 5. Gordon Marshall (ed.) (1998). A Dictionary of Sociology (Article: Sociology of Education), Oxford University Press. 6. Hayek, Friedrich A. (1960). The Constitution of Liberty. London: Routledge and Kegan Paul 7. Henry, M., Knight, J., Lingard, R. and Taylor, S. (1988) Understanding Schooling: An Introductory Sociology of Australian Education, Routledge, Sydney Industry. London: Routledge. 8. Murray, W. R. (1944). Introductory Sociology. F. S. Crofts & Co. 9. Soros, G. (1998). The Crisis of Global Capitalism: Open Society Endangered. New York: Public Affairs. 10. Srivastava, P. (2016). Questioning the Global Scaling-Up of Low-fee Private Schooling: The Nexus between. 4.12 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. वशक्षा के सिसण ाधरीकरण को अपने शब्दों म ें पररभावषत करें। 2. वशक्षा म ें स्तरीकरण से आप क्या समझते ह?ैं 3. वशक्षा के वनजीकरण का अथण स्पष्ट करें। 4. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण, स्तरीकरण एि वनजीकरण के मध्य सबध स्थावपत करें। ं ं ं 5. वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण के वलए भारत सरकार की मख्य योजनाओ का विस्तत िणनण करें। ृ ु ं 6. जापान म ें वशक्षा के सिसण ाधारणीकरण पर एक वनबध वलखें। ं 7. अमरे रका म ें वशक्षा के वनजीकरण के सदभ ण म ें जो प्रयास वकए गए ह,ैं उनका िणनण करें। ं 8. भारतीय सरकार द्वारा वकए जा रह े अनेक प्रयासों के बाद भी अब तक वशक्षा म ें स्तरीकरण को भारत से समाप्त नहीं वकया जा सका ह।ै आपके विचार म ें इसके क्या कारण हो सकते ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 211 ु