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Plagiarism Detector v. 2867 - Originality Report 5/22/2025 1:32:32 PM


Analyzed document: CPS-6.pdf Licensed to: Pitamber Dutt Pant
Comparison Preset: Rewrite Detected language: Hi
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BED II- CPS 6 सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) ृ ं Pedagogy of Sanskrit (Part I) शिक्षक शिक्षा शिभाग, शिक्षािास्त्र शिद्यािाखा उत्तराखण्ड मक्त शिश्वशिद्यालय, हल्द्वानी ु ISBN: 13-978-93-85740-73-2 BED II- CPS 6 (BAR CODE) BED II- CPS 6 स का िश%णशा' (भाग I) #कत ृ ं िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ
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"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह"
#ानी ु अ
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"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ"
य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ
id: 3
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"य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* ु ु उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर मह$मद िमयाँ (बा# िवशषे )- सद#य), पव$ अिध(ाता, िश#ा सकाय, !ोफे सर सी० बी० शमा$ (बा# िवशषे $- सद#य), अ&य', रा*+ीय ु ू ं जािमया िमि&लया इ)लािमया व पव- कलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद 0 म# िव&ालयी िश,ा स/थान, नोएडा ू ु ु ं ू िव#िव$ालय, हदै राबाद !ोफे सर पवन कमार शमा/ (बा# िवशषे )- सद#य), अिध(ाता, ु !ोफे सर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशषे )- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा सकाय व सामािजक िव,ान सकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी ं ं एम० जे० पी० !हले ख&ड िव*िव+ालय, बरेली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफे सर के ० बी० बधोरी (बा# िवशषे )- सद#य), पव( अिध,ाता, िश0ा सकाय, !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ु ू ं ं एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा# िव&ाशाखा, !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ं ं उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ं म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ु उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा एव सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु ु ं िव#िव$ालय स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एव सह- ु ु ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं ं ु िश#ाशा% िव'ाशाखा एव सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद!य एव सयोजक), सहायक ,ोफे सर, िश2ाशा3 ु ं ं म# िव&िव'ालय ु िव#ाशाखा एव सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं िदशाबोध: (ोफे सर जे० के ० जोशी, पव$ िनदशे क, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 िव8िव.ालय, ह =ानी ू ु काय$!म सम$वयक: काय$%म सह-सम#वयक: पाठय&म सम)वयक: पाठय&म सह सम*वयक: ् ् डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी डॉ० िगरीश कमार ितवारी डॉ० !वीण कमार ितवारी ु ु ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, सम!वयक, िश'क िश'ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ$राख&ड मिहला महािव'ालय, काशी िह'द िश#ाशा% िव'ाशाखा, ू उ
id: 4
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"राख&ड म* िव-िव.ालय, म# िव&िव'ालय, ह,-ानी, नैनीताल, िव#िव$ालय, वाराणसी, उ(र)दशे उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, ु ु ु ह
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"#ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ"
राख&ड नैनीताल, उ(राख+ड !धान स&पादक उप स$पादक डॉ० !वीण कमार ितवारी डॉ० िगरीश कमार ितवारी ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, मिहला महािव'ालय, काशी िह,द ू उ
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"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ"
राख&ड िव#िव$ालय, वाराणसी, उ(र)दशे ु िवषयव%त स)पादक भाषा स%पादक !ा#प स&पादक !फ़ सशोधक ु ू ं डॉ० िगरीश कमार ितवारी डॉ० िगरीश कमार ितवारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. मिहला महािव'ालय, काशी िह,द मिहला महािव'ालय, काशी िह,द िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु ु ू ू िव#िव$ालय, वाराणसी, उ(र)दशे िव#िव$ालय, वाराणसी, उ(र)दशे िव#िव$ालय िव#िव$ालय साम$ी िनमा(ण !ोफे सर एच० पी० श#ल !ोफे सर आर० सी० िम# ु िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख!ड म% िव(िव)ालय िनदशे क, एम० पी० डी० डी०, उ
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"राख&ड म* िव-िव.ालय ु ु © उ"
राख&ड म# िव&िव'ालय, 2017 ु ISBN-13-978-93-85740-73-2 !थम स&करण: 2017 (पाठय&म का नाम: स#कत का िश%णशा', पाठय&म कोड- BED II- CPS 6) ् ृ ् ं ं सवा$िधकार सरि%त। इस प%तक के िकसी भी अश को !ान के िकसी भी मा+यम म - .योग करने से पव5 उ7राख9ड म िव=िव ालय से िलिखत अनमित लेना आवCयक ह।ै इकाई ु ु ं ू ु ु लेखन से सबिधत िकसी भी िववाद के िलए पण65 पेण लेखक िज8मदे ार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ
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"राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म 2 होगा। ं ं ू िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय 8ारा िनदशे क, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ िव2िव3ालय के िलए मि6त व 8कािशत। ु ु ु !काशक: उ"
राख&ड म* िव-िव!ालय; म#क: उ"राख&ड म* िव-िव.ालय। ु ु ु काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठय&म का नाम: स#कत का िश%णशा', पाठय&म कोड- BED II- CPS 6 ् ृ ् ं ख"ड इकाई स#या स#या इकाई लेखक ं ं 1 1, 4 व डॉ० िगरीश कमार ितवारी ु 5 अितिथ %या(याता, िश!ा िवभाग, मिहला महािव'ालय, काशी िह,द िव/िव'ालय, वाराणसी ू 2 1 1 2 व 3 !ी कालीशकर िम! ं !ोजे%ट फे लो, एन० सी० ई० आर० टी०, नई िद%ली 2 2 व 4 स#ी अ&िणमा ु िश#ा िवभाग, (ी लालबहादर शा0ी रा12ीय स6कत िव:ापीठ, नई िद#ली ृ ं ु 2 3 डॉ० आरती शमा( सहायक &ोफे सर, िश-ा िवभाग, 1ी लालबहादर शा7ी रा89ीय स;कत िव ापीठ, नई िद#ली ृ ं ु 2 5 डॉ० िशवद% आय# सहायक &ोफे सर, िश-ा िवभाग, 1ी लालबहादर शा7ी रा89ीय स;कत िव ापीठ, नई िदCली ृ ं ु BED II- CPS 6 स#क का िश%णशा' (भाग I) त ृ ं ख"ड 1 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 2-14 1 स#कत भाषा : एक प,रचय ृ ं 15-35 2 स#कत भाषा िश#ण के सै#ाि&तक प" ृ ं 36-53 3 भारत म & स)कत भाषा एव स(कत भाषा िश#ण क" प$रि'थित ृ ृ ं ं ं 54-67 4 स#कत भाषा िश#ण के कछ अनछए पहल ृ ु ु ू ं 68-80 5 पाठय&म एव स#कत भाषा ृ ् ं ं ख"ड 2 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 82-95 1 स#कत िश)ण क+ िविभ.न िविधयाँ ृ ं 96-121 2 भाषा एव सािह*य का सबध तथा स1कत भाषा िश4ण म 7 स1कत सािह*य क8 भिमका ृ ृ ू ं ं ं ं ं 122-161 3 स#कत भाषा तथा स%कत सािह+य क- िविभ0न िवधाओ का िश5ण ृ ृ ं ं ं 162-175 4 िश#ण म & सचना एव तकनीक2 का उपयोग- स#कत भाषा ृ ू ं ं 176-188 5 भाषा-िश#क स'कत भाषा के िवशषे स/दभ 1 म 3 ृ ं सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 1 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई 1: संस्कत भाषा : एक परिचय 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 विश्व के प्रमख भाषा पररिार एि सस्कत भाषा ृ ु ं ं 1.4 भारत में पाए जानेिाले भाषा पररिार 1.5 सस्कत भाषा का सामावजक, सास्कवतक एि ऐवतहावसक महत्ि ृ ृ ं ं ं 1.6 आधवनक भारतीय भाषा के रुप में सस्कत ृ ु ं 1.7 सस्कत सावहत्य ृ ं 1.7.1 िैविक सावहत्य एि लौवकक सावहत्य ं 1.8 साराश ं 1.9 अभ्यास प्रश्न 1.10 बोध
प्रश्नों के उत्तर 1.11 सिभभ एि सहयोगी ग्रथ ं ं ं 1.1 प्रस्तावना ििे भाषा के रूप म ें प्रवसद्ध सस्कत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषाओ म ें से एक ह।ै यह एक शास्त्रीय भाष
ा ृ ं ं ह।ै यह प्राचीन काल म ें जन समान्य एि विवशष्ट जन िोनों के सप्रेषण की भाषा थी। यह सावहत्य की भी ं ं भाषा थी। इस भाषा के सावहत्य म ें भारत िष भ के सभ्यता एि सस्कवत की समग्र झलक वमलती ह।ै सस्कत ृ ृ ं ं ं भाषा का सबसे प्राचीन ग्रथ ऋग्ििे ह ै वजसकी रचना लगभग ढाई हजार इसिी पि भ
मानी जाती ह।ै इसके ू ं िो रूप ह ैं - िवै िक सस्कत एि लौवकक सस्कत। िवै िक सस्कत को छािस भी कहा जाता ह ै और इसकी ृ ृ ृ ं ं ं ं ं सीमा चारों ििे ों तक ह।ै इसके बाि के सस्कत को लौवकक सस्कत कहा जाता ह।ै यद
्यवप सस्कत एक ृ ृ ृ ं ं ं प्राचीन भाषा ह ै एि प्राचीन काल म ें इसका अध्ययन-अध्यापन व्यापक स्तर पर होता था। इसका ं अध्ययन-अध्यापन न वसर्भ ज्ञान की एक शाखा के रुप म ें वकया जाता था बवकक यह अन्य विषयों के अध्ययन-अध्यापन का माध्यम भी था। कालातर म ें राजनैवतक कारणों एि वििशे ी आक्रमण के कारण ं ं भारत म ें अन्य भाषाओ का प्रभत्ि हआ एि सस्कत के महत्ि म ें कमी आने लगी। भारत म ें अग्रेजों के ु ृ ु ं ं ं ं आगमन के कारण अग्रेजी भाषा का बहत प्रचार-प्रसार हआ। वहिी एि उि भ का उिभि पहले ही हो चका ु ु ु ं ं ं ू था। अग्रेजी शासकों की भाषा थी। शासकों द्वारा सपोवषत होने तथा राजकाज की भाषा होने के कारण ं ं इसका प्रभाि व्यापक हो गया तथा सस्कत का महत्ि कम होता गया। कालतर म ें इसका वलवखत एि ृ ं ं ं मौवखक प्रयोग न के बराबर हो गया। स्ितत्रता प्रावि के बाि भारत सरकार द्वारा सस्कत भाषाके उत्थानके ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 2 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वलए प्रयास वकए गए। इसे ज्ञान की एक शाखा के रुप म ें विद्यालयी वशक्षा म ें स्थान विया गया। कालातर म ें ं इसकी प्रवस्थवत में वर्र पररितभन हआ। इसका स्थान पाठयक्रम म ें िकै वकपक भाषा का हो गया। अग्रेजी ु ् ं एि तकनीकी के बढ़ते प्रभाि के कारण सस्कत भाषा में रोजगार के अिसर कम हो गए एि इसकी ृ ं ं ं सामावजक प्रवतष्ठा म ें ह्रास हआ। जन
सामान्य म ें इस भाषा के प्रवत अरुवच उत्पन्न हो गई। धीरे -धीरे अरुवच ु की मात्रा बढ़ती गई और ितभमान पररिशे म ें सस्कत भाषा के प्रवत जन सामान्य म ें व्यापक अरुवच ह।ै ृ ं पाठयक्रम म ें इसका स्थान िकै वकपक विषय के रूप म ें होने के कारण विद्याथच चाह े तो इसे पढ़ सकते ह ैं ् और चाह े तो नहीं। वसर्भ कछ पारपररक सस्कत विद्यालयों म
ें ही सस्कत को अवनिायभ रूप से पढ़ाया जा ृ ृ ु ं ं ं रहा ह।ै पाठयक्रम म ें अवनिायभ स्थान नहीं होने के कारण विद्यावथभयों का इस भाषा के प्रवत बचा-खचा ् ु आकषभण भी समाि होता गया। पीछले िो-तीन िशकों म ें इसके उत्थान के वलए सरकारी एि गरै सरकारी ं सस्थानों द्वारा वनरतर प्रयास वकए जा रही ह।ैं इन प्रयासों को सर्लता भी वमली ह।ै लेवकन अभी इस क्षेत्र ं ं म ें और कायभ करने की आिश्यकता ह।ै ितभमान म ें इसकी वस्थवत वद्वतीय भारतीय भाषा की ह ै और यह िवै नक कायभकलाप की भाषा भी नहीं ह।ै इसका पररणाम यह हो रहा ह ै वक अवधकाश विद्यावथभयों ने वसर्भ ं सस्कत भाषा का नाम ही सन रखा ह।ै अतः, सस्कत भाषा के प्रवशक्ष वशक्षकों को सस्कत भाषा का ृ ृ ृ ु ं ं ं ु पररचय कराना आिश्यक ह।ै प्रस्तत इकाई की रचना इसी उद्दश्े य से की गई ह।ै ु 1.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के उपरात विद्याथच इस योग्य हो जाएगँ े वक - ं 1. सस्कत सावहत्य का पररचय ि े सकें ग े । ृ ं 2. विश्व के विवभन्न भाषा पररिारों का उकलेख कर सकें गे । 3. भारत म ें पाए जानेिाले भाषा पररिार को नामावकत कर सकें गे । ं 4. सस्कत भाषा के महत्ि की चचाभ कर सकें ग े । ृ ं 5. आधवनक भारतीय भाषा के रूप म ें सस्कत की प्रवस्थवत का िणनभ कर सकें ग े । ृ ु ं 6. सस्कत सावहत्य का सवक्षि पररचय ि े सकें ग े । ृ ं ं 7. िवै िक एि लौवकक सावहत्य में अतर स्थावपत कर सकें ग।े ं ं 1.3 ववश्व के प्रमुख भाषा पविवाि एवं सस्ं कृ त भाषा वजस प्रकार विवभन्न रक्त सबवधत सिस्यों के समह को पररिार की सज्ञा िी जाती ह ै उसी प्रकार आपस में ू ं ं ं सबवधत भाषाओ को भाषा पररिार की सज्ञा िी जाती ह।ै प्रत्येक भाषा की अपनी विशषे ता होती ह ै और ं ं ं ं अपनी विशषे ताओ के आधार पर िो अन्य भाषाओ से साम्य और िह िषै म्य रखता ह।ै यह साम्य और ं ं िषै म्य मख्यतः िो आधारों पर िखे ा जाता ह।ै प्रथम आकवत मलक आधार और वद्वतीय अथभ तत्ि सबधी ृ ु ू ं ं आधार। आकवत मलक आधार म ें शब्िों और िाक्यों की रचना शलै ी के आधार पर विवभन्न भाषाओ में ृ ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 3 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं समानता एि असमानता ि
खे ी जाती ह।ै अथभ तत्ि सबधी आधार पर िगचकरण करते समय अथभ के ं ं ं आधार पर विवभन्न भाषाओ म ें समानता एि असमानता िेखी जाती ह।ै 19 िीं सिी म ें विद्वानों ने इस क्षेत्र ं ं म ें कायभ करना प्रारभ वकया। उस समय से लेकर आज तक इस क्षेत्र म
ें वनरतर कायभ हो रह े ह।ैं लेवकन ं ं विडबना यह ह ै वक अभी तक कोई सिमभ ान्य िगचकरण प्रस्तत नहीं वकया जा सका ह।ै विद्वानों म ें बहत ु ु ं मतभिे ह।ै इस मतभिे का अनमान इस बात से लगाया जा सकता ह ै वक एक ओर जहाँ फ्रे विक मलर ने ु ू भाषा पररिारों की सख्या 100 के आसपास बताई ह ै िहीं िसरी ओर राइस विश्व के समस्त भाषाओ के ं ं ू वलए एक ही भाषा पररिार मानाते ह।ैं विश्व भर म ें बोली जाने िाली लगभग 7000 भाषाओ को विद्वानों ं द्वारा वनम्नवलवखत भाषा-पररिारों म ें विभावजत वकया गया ह।ै उनम ें से कछ प्रमख भाषा पररिार ु ु वनम्नवलवखत ह:ैं i. भारोपीय भाषा पररिार ii. चीनी-वतब्बती भाषा पररिार iii. सामी-हामी भाषा पररिार iv. द्रविड़ भाषा पररिार v. यराल-अकताई भाषा पररिार ु vi. ऑस्रोनेवशयन भाषा पररिार vii. एवशयन भाषा पररिार viii. ऑवस्रक भाषा पररिार ix. कागो भाषा पररिार ं x. ताइ-किाई भाषा पररिार xi. सडानी भाषा पररिार ू xii. बट भाषा पररिार ू ं xiii. अत्यत िश्मनी भाषा पररिार ं ु xiv. मलय-पामवे शयन भाषा पररिार xv. ऑस्रेवलयाई भाषा पररिार xvi. अमररकी भाषा पररिार xvii. िवक्षण पि भ एवशयाई भाषा पररिार ू सस्कत भारोपीय पररिार की के भाषा ह ै वजसके विषय म ें हम भारत के भाषा पररिार िाले खड म ें पढ़ेंग।े ृ ं ं 1.4 भाित म पाए जाने वाले भाषा पविवाि ें भारत विविधताओ का िशे ह।ै ये विविधाता बहपक्षीय ह।ै यहाँ धम,भ जावत, सस्कवत, भाषा सभी स्तरों पर ु ृ ं ं पाई जाती ह।ै यहाँ 100 से भी अवधक भाषाए ँ बोली जाती ह।ैं इन भाषाओ को यवि भाषा पररिार म ें ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 4 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िगचकत वकया जाए तो विश्व के प्रमख भाषा पररिारों में से भारत म ें 5 भाषा पररिार की भाषाए ँ बोली ृ ु जाती ह।ैं ये पाँच भाषा पररिार वनम्नवलवखत ह:ैं i. भारोपीय पररिार ii. द्रविड़ भाषा पररिार iii. एस्रोएवशयावटक भाषा पररिार iv. चीनी-वतब्बती भाषा पररिार v. ताइ-किाई भाषा पररिार भारत
म ें बोले जाने िाले इन भाषा पररिारों म ें सबसे ज्यािा लोगों द्वारा भारोपीय पररिार की भाषाएँ बोली जाती ह|ै सस्कत भी भारोपीय पररिार की एक भाषा ह।ै भारोपीय पररिार की भाषाओ को िो ृ ं ं भागों म ें बाँटा जाता ह।ै ये िो िग भ ह ैं – सतम िग भ एि कें टम िग।भ वनम्नवलवखत तावलका म ें भारतीय पररिार ु ं की भाषाओ के िगचकरण का स्पष्ट वचत्रण वकया गया ह:ै ं ताशिका 1: भारोपीय पररवार की भाषाओ क
ा वगीकरण ं भारोपीय पररिार सतम िगभ कें टम िग भ ु सस्कत लैवटन ृ ं वहिी ग्रीक ं अिेस्ता जमभनी र्ारसी के वकटक स्लाविक तोखारी बावकटक आयररश वलथआवनयन अग्रेजी ु ं सस्कत भारोपीय पररिार के सतम िग भ की एक भाषा ह।ै यह विश्व की प्राचीनतम भाषाओ म ें से एक ह।ै ृ ं ं सस्कत शब्ि का वनमाभण
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‘क’
धात म ें
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‘सम’
उपसग भ के योग से हआ ह।ै इसका मल अथभ ह ै सस्कार की हई ु ु ृ ृ ु ू ं ं भाषा। भाषा विज्ञानी भी इस बात को मानते ह ैं वक विश्व की समस्त भाषाओ म ें से के िल िो ही भाषाएँ ं ऐसी ह ैं वजनके बोलने िालों ने सस्कवत अथिा सभ्यता के विकास म ें अपना योगिान विया ह।ै प्रथम आयभ ृ ं भाषा तथा वद्वतीय सीमवें टक। आयभ भाषा की िो शाखाए ँ मानी
जाती ह ै – प्रथम पविमी शाखा एि वद्वतीय ं पिच शाखा। पविमी शाखा के अतगतभ यरोप की सभी प्राचीन तथा आधवनक भाषाओ को स्थान विया ू ू ु ं ं गया ह।ै पिच शाखा के िो मख्य भाग ह ै - ईरानी एि भारतीय। भारतीय शाखा की मख्य भाषा सस्कत ह।ै ृ ू ु ु ं ं अतः, सस्कत उन प्राचीन भाषाओ म ें से एक ह ै वजनके बोलने िालों ने सभ्यता का विकास
वकया ह।ै ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 5 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भाषा के अथभ म ें
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‘सस्कत’
शब्ि का प्रयोग पहली बार िाकमीवक कत
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‘रामायण’
म ें वमलता ह।ै
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‘सिर ृ ृ ु ं ं काड’
म ें सीता जी से वकस भाषा म ें िाताभलाप वकया जाए , इस प्रश्न पर विचार करते हए हनमान जी न े ु ु ं कहा ह ै वक यवि वद्वज के समान म ैं सस्कत िाणी बोलँगा तो सीता मझ े रािण समझकर डर जाएगी। ृ ू ु ं यास्क और पावणवन के ग्रथों म ें लोक व्यिहार म ें आने िाली बोली का नाम भाषा ह।ै जब भाषा का ं सिसभ ाधारण म ें प्रयोग कम होने लगा और पाली तथा प्राकत भाषाए ँ बोल-चाल की भाषा बन गई तब ृ ं प्राकत भाषा से भिे विखाने के वलए विद्वानों ने इसका नाम सस्कत ि े विया। िडी (सिम शतक) ने प्राकत ृ ृ ृ ं ं भाषा से भिे विखाने के अिसर पर सस्कत का प्रयोग भाषा के वलए वकया ह ै - ृ ं
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‘सस्कतनाम ििे ी िािनव्याख्याता महवषवभ भ:’
(काव्यािश,भ 133)। ृ ं इसके िो रूप थे िवै िक सस्कत एि लौवकक सस्कत। िवै िक-सस्कत चारों ििे ों, ििे ाग, पराण, ब्राह्मण, ृ ृ ृ ु ं ं ं ं ं आवि की भाषा थी। इसके इतर वजतने भी ग्रथ ह ैं उन सब की भाषा लौवकक सस्कत ह।ै िवै िक सस्कत तो ृ ृ ं ं ं पहले ही लि हो चका था। कालातर म ें पाली और प्राकत के विकास के कारण लौवकक सस्कत का प्रयोग ृ ृ ु ु ं ं जन सामान्य की भाषा के रुप म ें कम हो गया। लौवकक सस्कत वसर्भ सावहत्य की भाषा बनकर रहा गई थी। ृ ं सावहत्यकार भी इसी समाज के सिस्य होते ह।ैं उनकी सावहत्य सजनभ की योग्यता का विकास समाज म ें ही होता ह ै और समाज के वलए ही ि े सावहत्य की रचना करते ह।ैं लौवकक सस्कत का प्रयोग कम होने का ृ ं कारण इस भाषा के सावहत्यकार भी समाि होने लग े और पाठक भी समाि होने लग।े धीरे –धीरे यह भाषा ज्ञान की एक शाखा के रुप म ें विद्यालयी पाठयक्रम म ें अपना स्थान बनाकर सीवमत हो गई। कछ समय तक ् ु इसका स्थान विद्यालयी पाठयक्रम म ें वद्वतीय अवनिायभ भारतीय भाषा का था। कालातर म ें यह ऐवछछक हो ् ं गई। ऐवछछक होने एक कारण विद्यावथभयों ने इस भाषा का अध्ययन करना वबककल समाि कर विया। आज ु यह भाषा अपने उत्थान की प्रवतक्षा कर रही ह।ै इसके उत्थान के वलए विगत तीन-चार िशकों से वनरतर ं प्रयास वकए जा रह े ह।ैं सरकारी एि गरै सरकारी िोनों प्रकार के प्रयास इसा भाषा के उत्थान के वलए वकए ं जा रह े ह।ैं इन प्रयासों को सर्लता भी वमल रही ह।ै लेवकन ये प्रयास अभी पयाभि नहीं ह।ै अभी और प्रयास की आिश्यकता ह।ै अभ्यास प्रश्न 1. विश्व म ें लगभग वकतनी भाषाएँ बोली जाती ह।ैं 2. विश्व के प्रमख भाषा पररिारों को सचीबद्ध करें। ु ू 3. भारत के प्रमख भाषा पररिारों को सचीबद्ध करें। ु ू 4. सस्कत वकस भाषा पररिार से सबध रखती ह।ै ृ ं ं ं 5. विवभन्न
भाषाओ म ें साम्य एि िषै म्य ______आधार और अथभ तत्ि सबधी आधार पर िखे ा ं ं ं ं जाता ह।ै 6. अथभ तत्ि सबधी आधार पर िगचकरण करते समय ______ के आधार पर विवभन्न भाषाओ ं ं ं म
ें समानता एि असमानता िखे ी जाती ह।ै ं 7. फ्रे विक मलर ने भाषा पररिारों की सख्या ______ के आसपास बताई ह।ै ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 6 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 8. ______ विश्व के समस्त
भाषाओ के वलए एक ही भाषा पररिार की बात की ह।ै ं 9. भारत म ें सिाभवधक लोगों द्वारा ______भाषा पररिार की भाषा बोली जाती ह।ै 10. भारोपीय पररिार की भाषाओ को िो भागों ______एि ______म ें बाँटा जाता ह।ै ं ं 1.5 संस्कृ त भाषा का सामावजक सांस्कृ वतक एवं ऐवतहावसक महत्व सस्कत भाषा व्यिहाररक रूप से बहत कम व्यवक्तयों द्वारा प्रयोग म ें लाई जाती ह।ै लेवकन इसका आशय ु ृ ं यह किावप नहीं ह ै वक यह एक मत भाषा ह।ै इसे विद्यालयी पाठयक्रम म ें ज्ञान की एक शाखा के रूप म
ें ृ ् स्थान विया गया ह ै और इसका वशक्षण कायभ वकया जाता ह।ै इस दृवष्ट से यह भाषा आज भी महत्िपण भ ह।ै ू इसके महत्ि को वनन्नवलवखत वबिओ के माध्यम से और भी स्पष्ट वकया जा सकता ह:ै ं ं ु i. प्राचीनतम भाषा- सस्कत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषाओ म ें से एक ह।ै सभ्यता के आरभ में ृ ं ं ं अन्य िशे ों म ें जब लोगों का आचरण पशित था और ि े सप्रेषण के वलए साके वतक भाषा का ु ं ं प्रयोग करते थे तब भारतीय वनिासी एक ऐसी सम्मद्ध भाषा का प्रयोग कर रह े थे जो अत्यत ही ृ ं िज्ञै ावनक थी और वजसका सावहत्य अवद्वतीय था। इतना
प्राचीन सावहत्य अन्य वकसी भी भाषा में उपलब्ध नहीं ह।ै इसकी प्राचीनता इसके महत्ि को स्थावपत करती ह।ै ii. िास्त्रों की भाषा - सस्कत शास्त्रों की भाषा ह।ै प्राचीन
भारतीय िागमय की भाषा सस्कत ही ह।ै ृ ृ ं ं ं इस िागमय का क्षेत्र अत्यत ही व्यापक ह।ै इसम ें मानि जीिन के चारों परषाथ-भ धम,भ अथभ, काम ु ं ं और मोक्ष से सबवधत सावहत्य शावमल ह।ैं समस्त प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान सस्कत म ें ही ृ ं ं ं वलख े गए ह।ैं आयभभट्ट के समस्त कायभ सस्कत म ें ही ह।ै ब्रह्मगि ने गवणत विषय की अपनी ृ ु ं पस्तक
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‘लीलािती’
की रचना सस्कत म ें ही की थी। यहाँ तक वक 20 िीं सिी म ें सगीत शास्त्र के ृ ु ं ं प्राचीन विद्वान भातखडे ने सगीत शास्त्र पर आधाररत एक ग्रथ की रचना सस्कत भाषा म ें की थी। ृ ं ं ं ं इस प्रकार सस्कत ज्ञान-विज्ञान की भाषा ह।ै सस्कत भाषा के ज्ञान के वबना भारतीय ज्ञान-विज्ञान ृ ृ ं ं को समझना सभि नहीं ह।ै अतः, भारतीय ज्ञान-विज्ञान को समझने के वलए या यँ कह े वक ू ं भारतीय सस्कवत को समझने के वलए सस्कत भाषा महत्िपण भ ह।ै ृ ृ ू ं ं iii. वैज्ञाशनक व्याकरण- सस्कत भाषा का व्याकरण अत्यत ही िज्ञै वनक ह।ै इसके जो वनयम प्राचीन ृ ं ं काल म ें पावणनी जसै े महान ियै ाकरण द्वारा प्रवतपावित वकया गया था िो आज भी प्रासवगक ह।ै ं उनम ें कभी वकसी प्रकार का कोई भी पररितभन करने की आिश्यकता नहीं पड़ी। व्याकरण वकसी भी भाषा की आत्मा होती ह।ै इसकी िज्ञै वनकता भाषा के महत्ि को प्रमावणत करती ह।ै iv. अन्य आधशनक
भारतीय भाषाओ की जननी- सस्कत को लगभग सभी आधवनक भारतीय ृ ु ु ं ं भाषाओ की जननी मानी जाती ह।ै इसका कारण यह ह ै वक लगभग सभी भारतीय भाषाओ में ं ं सस्कत भाषा के शब्ि पाए जाते ह।ैं यहाँ तक वक िवक्षण भारतीय भाषाओ या द्रविड़ पररिार की ृ ं ं भाषाओ म ें भी सस्कत भाषा के शब्ि बहतायत म ें पाए जाते ह।ैं अनेक भाषाओ की जननी होने ु ृ ं ं ं के कारण यह इसका स्थान विवभन्न भारतीय भाषाओ म
ें अग्रणी ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 7 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं v. सस्कारों की भाषा- भारतीय परपरा म ें जन्म से लेकर मत्य तक 16 मख्य सस्कार बताए गए ह।ैं ृ ु ु ं ं ं इसके इतर भी कछ सस्कार ह।ैं प्रत्येक सस्कार शास्त्र सम्मत ह ै अथाभत प्रत्येक सस्कार का िणनभ ु ं ं ं शास्त्रों म ें ह ैं और इनके सपािन के वलए शास्त्रों म ें विवध-विधान का िणनभ भी वकया गया ह।ै शास्त्रों ं की भाषा सस्कत ह।ै अतः, सस्कारों की भाषा भी सस्कत ह ै और इस भाषा के ज्ञान के अभाि म ें ृ ृ ं ं ं हम अपने सस्कारों का समवचत ढग से ना समझ सकते ह ैं और न ही उनका वनिहभ न कर सकते ह।ैं ु ं ं अतः सस्कारों की दृवष्ट से भी सस्कत भाषा महत्िपण भ ह।ै ृ ू ं ं vi. प्राचीन भारतीय इशतहास का ज्ञान स्रोत - सस्कत सावहत्य से हम ें प्राचीन भारतीय इवतहास ृ ं का पता चलता ह।ै इवतहास के अध्ययन के वलए िवै िक कालीन ग्रथों, पराणों, स्मवतयों एि अन्य ृ ु ं ं ग्रथों को प्रामावणक स्रोत माना
जाता ह।ै इन ग्रथों के अध्ययन से हम ें उस समय के भारत का पता ं ं चलता ह।ै तत्कालीन भारतीय सामावजक, राजनैवतक एि आवथभक जीिन की जानकारी हम ें इन ं सावहत्य के माध्यम स
े वमलती ह।ै यथा, मत्स्य पराण से गि िश के समय का इवतहास जानने को ु ु ं वमलता ह।ै इस प्रकार, सस्कत भाषा भारतीय इवतहास की जानकारी के वलए भी महत्िपण भ ह।ै ृ ू ं इसके साथ ही साथ भारत की सास्कवतक विरासत को जानने के वलए भी यह महत्िपण भ ह।ै ृ ू ं vii. कप्यटर प्रोग्राशमग हेत - विश्व के लगभग सभी विद्वानों ने इस बात को स्िीकार वकया ह ै वक ू ु ं ं कप्यटर प्रोग्रावमग हते सिश्रभ ेष्ठ भाषा सस्कत ह ै और आगामी 20-25 िषों के बाि सस्कत ही ृ ृ ू ु ं ं ं ं कम्प्यटर की भाषा होगी। कप्यटर के कायभ करन े हते एकगोररिम की आिश्यकता पड़ती ह।ै विश्व ु ू ु ं के सिश्रभ ेष्ठ एकगोररिम का वनमाभण सस्कत भाषा म ें हआ ह।ै कम्प्यटर प्रोग्रावमग के वलए सस्कत ु ृ ृ ु ं ं ं भाषा इस वलए सिश्रभ ेष्ठ ह ै वक इसका व्याकरण अत्यत ही िैज्ञावनक ह।ै इस प्रकार सस्कत भाषा ृ ं ं
का ज्ञान कप्यटर के वलए भी महत्िपण भ ह ै ू ू ं viii. आधशनक यरोपीय भाषाओ के ज्ञान हेत - सस्कत ऐसी भाषा ह ै वजससे न वसर्भ विवभन्न ृ ु ू ु ं ं भारतीय भाषाओ का जन्म हआ ह ै बवकक विवभन्न यरोपीय भाषाओ क
ा भी जन्म हआ ह।ै ु ु ू ं ं उिाहरणाथभ, फ्रें च भाषा को ही ले लीवजए। इस भाषा का विकास सस्कत पर आधाररत ह।ै वजस ृ ं प्रकार सस्कत म ें शब्ि रुप एि धात रुप होते ह ैं उसी प्रकार फ्रें च भाषा म ें भी शब्ि रूप एि धात ृ ु ु ं ं ं रूप ह।ैं लगभग 50 यरोपीय भाषाए ँ ऐसी ह ैं वजनका जन्म सस्कत से हआ ह।ै सस्कत भाषा का ु ृ ृ ू ं ं ज्ञान इन भाषाओ को सीखने में उपयोगी वसद्ध होता ह।ै ं इस प्रकार हम यह कह सकते ह ैं वक सस्कत अत्यत महत्िपण भ भाषा ह।ै यह अत्यत ही प्राचीन ृ ू ं ं ं भाषा ह ै औरा इसका सावहत्य भी अत्यत प्राचीन ह।ै इस भाषा का सावहत्य अत्यत ही व्यापक ह।ै ं ं इसम ें मानि जीिन के प्रत्येक पक्ष से सबवधत सावहत्य उपलब्ध ह।ैं इसम ें आचार शास्त्र, ं ं व्याकरण, राजनीवत शास्त्र, समाज शास्त्र, नाटय शास्त्र, वचवकत्सा, गवणत आवि का विपल भडार ् ु ं प्राि होता ह।ै िसरे शब्िों म ें हम यह भी कह सकत े ह ैं वक इस भाषा का सावहत्य हमारे समाज एि ं ू सस्कवत का िपभण ह।ै यह भाषा एि सावहत्य िाशवभ नक दृवष्ट से भी महत्िपण भ ह।ै हमारा परा िशनभ ृ ू ू ं ं तो सस्कत भाषा म ें ही ह।ै राजनीवतक दृवष्ट से भी यह भाषा महत्िपण भ ह।ै प्राचीन काल म ें ृ ू ं राजकाज की भाषा भी सस्कत थी। इस भाषा के सावहत्य म ें राष्ट्रीय एकता को भी महत्िपण भ म ें ृ ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 8 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं स्थान विया गया ह।ै यह विश्व के अनेक प्राचीन एि आधवनक भाषाओ की जननी ह ै और सम्पकभ ु ं ं भाषा के रुप म ें भी यह महत्िपण भ ह।ै िसरे शब्िों म ें यवि यह कहा जाए वक सस्कत एक भाषा ृ ू ं ू नहीं ह ै बवकक यह एक समग्र जीिन पद्धवत है, व्यवक्तत्ि के सिाांगीण विकास का माध्यम ह ै तो यह अवतशयोवक्त नहीं होगी। 1.6 आधुवनक भाितीय भाषा के रूप म संस्कृ त ें आधवनक भारतीय भाषा के रूप म ें सस्कत की प्रवस्थवत पर यवि दृवष्टपात वकया जाए तो वनम्नवलवखत ृ ु ं तथ्य उभरकर सामने आते ह:ैं i. भारतीय सविधान की आठिीं अनसची म ें भारत की विवभन्
न भाषाओ को अनसवचत वकया गया ु ू ु ू ं ं ह।ै ितभमान म ें इस अनसची म ें 22 भाषाए ँ ह।ैं लेवकन सविधान के लाग होने के समय यह वस्थवत ु ू ू ं नहीं थी। मल सविधान म ें इस सची म ें 14 भाषाओ को ही स्थान विया गया था। कालातरा म ें इसा ू ू ं ं ं सची म ें कई सशोधन हए और इसमें शावमल भाषाओ की सख्या बढ़कर 22 हो गई। सस्कत को ु ृ ू ं ं ं ं भारतीय
सविधान की इस अनसची म ें स्थान प्राि ह।ै सस्कत का यह स्थान वकसी सविधान ृ ु ू ं ं ं सशोधन का पररणाम नहीं ह ै अवपत यह मल सविधान म ें ही था। । ु ू ं ं ii. यह उत्तराखड राज्य की वद्वतीय राजभाषा ह।ै ं iii. विद्यालयी वशक्षा म ें इसका स्थान वद्वतीय भारतीय भाषा का ह।ै पहले यह अवनियभ वद्वतीय भारतीय भाषा थी अथाभत इस भाषा को विद्यावथभयों को अिश्य पढ़ना पढ़ता था। कालतर म ें इस ं भाषा का पाठयक्रम म ें स्थान िकै वकपक भाषा का हो गया अथाभत इस भाषा को पढ़ना विद्यावथभयों ् के वलए अवनिायभ नहीं रह गया। विद्याथच चाह े तो इसका अध्ययन कर भी सकते ह ैं एि चाह े तो ं नहीं भी कर सकते ह।ैं लेवकन इस भाषा की पाठयक्रम म ें वस्थवत अवनिायभ वद्वतीय भारतीय भाषा ् के रुप म ें होनी चावहए। iv. इस भाषा को बोलने िाले व्यवक्तयों की सख्या बहत कम ह।ै हाँलावक इस सख्या म ें वनरतर िवद्ध ु ृ ं ं ं हो रही ह ै और इस िवद्ध की िर भी तीव्र ह।ै 2001 की जनगणना के अनसार - ृ ु  सस्कत
भाषा को प्रथम भाषा के रूप म ें बोलने िाले व्यवक्तयों की सख्या 14,135 व्यवक्त ृ ं ं  सस्कत भाषा को वद्वतीय भारतीय भाषा के रूप म ें बोलने िाले व्यवक्तयों की सख्या 12,34,931 ृ ं ं व्यवक्त  सस्कत भाषा को ततीय भारतीय भाषा के रूप म
ें बोलने िाले व्यवक्तयों की सख्या 35,42,223 ृ ृ ं ं व्यवक्त v. यह एक बहत ही सशक्त भाषा ह।ै ज्ञान के वकसी भी शाखा का अध्ययन- अध्यापन इस भाषा के ु माध्यम से वकया जा सकता ह।ै vi. कप्यटर विज्ञान के वलए सस्कत सिश्रभ ेष्ठ भाषा के रुप म ें समस्त विश्व के कम्प्यटर विज्ञावनयों द्वारा ृ ू ु ं ं इसे मान्यता प्राि ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 9 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं vii. नासा म ें प्रवशक्ष िज्ञै ावनकों को एक अकपकालीन पाठयक्रम के माध्यम से सस्कत भाषा वसखाई ृ ् ं ु जाती ह ै तावक िो सस्कत सावहत्य म ें िवणतभ अतररक्ष सबधी ज्ञान का अध्ययन कर अपने ृ ं ं ं ं व्यािसावयक जीिन म ें उसका लाभा उठा सके । viii. सस्कत भाषा के उत्थान के वलए विवभन्न सरकारी एि गरै सरकारी सस्थानों द्वारा प्रयास वकए जा ृ ं ं ं रह े ह।ैं सस्कत भारती जसै े कई सस्थान कायभरत ह ै जो अकपकालीन पाठयक्रमों की सहायता स े ृ ् ं ं सस्कत का प्रवशक्षण ि े रह े ह।ैं इवडयन ऑयल कापोरेशन जसै ी सस्थाए ँ सस्कत भाषा म ें उछच ृ ृ ं ं ं ं अध्ययन हते छात्रिवत प्रिान कर सस्कत भाषा के अध्ययन को प्रोत्सावहत कर रही ह।ै ृ ृ ु ं ix. ितभमान प्रधानमत्री श्री नरेंद्र मोिी जी ने सस्कत भाषा को अवनिायभ बनाने की जो घोषणा की ह ै ृ ं ं िह इस विशा म ें सराहनीय प्रयास ह।ै x. विश्व के विवभन्न िशे ों म ें सस्कत का अध्ययन-अध्यापन वकया जा रहा ह।ै ृ ं उपरोक्त वििचे न के आधार पर हम यह कह सकते ह ैं वक सस्कत भाषा जो वक अपना महत्ि खो चकी थी ृ ु ं और लगभग मत हो चकी थी ने अपनी प्रवतष्ठा पनः प्राि कर ली ह।ै इसका अध्यन-अध्यापन का पनः ृ ु ु ु आरभ हो चका ह।ै जन सामान्य म ें इस भाषा के प्रवत रुवच का विकास होने लगा ह।ै िशे म ें ही नहीं वििशे ों ु ं म ें भी लोग इस भाषा का अध्ययन-अध्यापन कर रह े ह।ैं हालाँवक इतना पयाभि नहीं ह।ै इस विशा म ें अभी और कायभ करने की आिश्यकता ह।ै लेवकन सस्कत भाषा के महत्ि एि जन सामान्य म ें इस भाषा के प्रवत ृ ं ं रुवच म ें िवद्ध सबधी जो आकँ ड़े प्राि हो रह े ह ैं उनका विश्लेषण करने पर यह बात प्रतीत होती ह ै वक िवद्ध ृ ृ ं ं हो रही ह ै और िवद्ध की िर म ें तीव्रता ह।ै अगर यँ ही यह िवद्ध होती रही तो सस्कत भाषा शीघ्र ही प्राचीन ृ ृ ृ ू ं समय की भाँवत ही प्रवतवष्ठत हो जाएगी। िशे म ें बोली जानेिाली समस्त भाषाओ म ें इसका स्थान अग्रणी ं होगा। रोज्गार के अिसरों म ें भी पयाभि िवद्ध होगी। सचना एि सचार तकनीकी
के क्षेत्र म ें इस भाषा को ृ ू ं ं जानने िाले व्यवक्तयों की व्यापक माँग बढ़ेगी। वििशे ों म ें इस भाषा के वशक्षक ढँढे जाएगँ े। इतना ही नहीं ू रोजगार के अन्य क्षेत्र म ें भी इस भाषा को जानने िाले लोगों की आिश्यकता बढ़ेगी। अनिाि के क्षेत्र में ु भी रोजगार के अिसर सवजत होंग।े इस प्रकार हम यह भी कह सकते ह ै वक सस्कत का अध्ययन करने ृ ृ ं िाले विद्यावथभयों के वलए रोजगार के क्षेत्र का विस्तार
वसर्भ कमकभ ाड तक न रहकर मानि जीिन के समस्त ं आयामों को छएगा। सस्कत का अध्ययन करा हम एक बार वर्र से गौरिावन्ित होंग।े ृ ू ं अभ्यास प्रश्न 11. सस्कत एक मत भाषा ह ै । (सत्य/असत्य) ृ ृ ं 12. सस्कत शास्त्रों की एक भाषा ह ै । (सत्य/असत्य) ृ ं 13. वहि सस्कवत म ें िवणतभ चार परुषाथभ – धम,भ अथभ, काम, मोक्ष ह ैं । (सत्य/असत्य) ृ ु ं ं ू 14.
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‘लीलािती’
आयभभट्ट द्वारा रवचत एक पस्तक ह ै । (सत्य/असत्य) ु 15. सस्कत कम्प्यटर प्रोग्रावमग हते सिश्रभ ेष्ठ भाषा ह ै । (सत्य/असत्य)। ृ ु ु ं ं 16. ______ ने 20 िीं सिी म ें सगीत शास्त्र पर आधाररत एका ग्रथा की रचना सस्कत म ें की थी। ृ ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 10 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 17. लगभग______यरोपीय भाषाए ँ ऐसी ह ैं वजनका जन्म सस्कत से हआ ह।ै ु ृ ू ं 18. सस्कत ______राज्य की वद्वतीय राजभाषा ह।ै ृ ं 19. 2001 की जनगणना के अनसार, सस्कत का प्रथम भाषा
के रुप म ें बोलने िाले व्यवक्तयों की ृ ु ं सख्या______ह।ै ं 20. सस्कत भारती______पाठयक्रमों की सहायता से सस्कत का प्रवशक्षण ि े रही ह।ै ृ ृ ् ं ं 1.7 संस्कृ त
सावहत्य सावहत्य वकसी भी भाषा का हो िह समाज को प्रवतवबवम्बत करता ह ै एि सस्कवत का िहन करता ह।ै ृ ं ं सस्कत भाषा म ें रवचत सावहत्य भी भारतीय सामावजक जीिन का वचत्रण करते ह।ैं भारतीय सामावजक ृ ं जीिन का मख्य तत्ि ह ै गहस्थ आश्रम इसवलए सस्कत सावहत्य म ें गहस्थ आश्रम एि ग्राहस्थ्य धम भ का ृ ृ ृ ु ं ं वचत्रण सागोपाग वमलता ह।ै सस्कत सावहत्य का विषय वसर्भ सामावजक जीिन एि सास्कवतक जीिन ही ृ ृ ं ं ं ं ं नहीं ह ै अवपत धम,भ िशनभ , ज्ञान एि विज्ञान आवि को भी इसम ें स्थान प्राि ह।ै यवि यह कहा जाए वक ु ं सस्कत सावहत्य सिाांगीण ह ै तो यह अवतशयोवक्त नहीं होगी। मानि जीिन के वलए िवणतभ चार परुषाथभ ह ैं ृ ु ं – धम,भ अथभ, काम और मोक्ष। सस्कत सावहत्य म ें इनका पयाभि समािशे पाया
जाता ह।ै इस प्रकार सस्कत ृ ृ ं ं सावहत्य म ें मानि जीिन का समग्र वनवहत ह।ै यह अवत प्राचीन ह।ै सस्कत सावहत्य का प्रथम वलवखत ग्रथ ृ ं ं ऋग्ििे माना जाता ह।ै सस्कत सावहत्य के प्रथम काल को स्रोत काल कहा जाता ह।ै इस काल के सावहत्य ृ ं म ें िवै िक सवहता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपवनषि आवि की रचना हई। िसरा काल स्मवत काल कहा जाता ु ृ ं ू ह।ै इस क
ाल म ें रामायण, महाभारत, पराण, तथा ििे ागों की रचना हई। तीसरा काल लौवकक सस्कत का ु ृ ु ं ं काल ह।ै इस काल म ें पावणनी द्वारा व्याकरण के वनयमों का प्रवतपािन वकया गया तथा भाषा व्याकरण के वनयमों
के प्रयोग द्वारा एकिम पररवनवष्ठत हो गई। इस काल म ें काव्य नाटकों की रचना शरू हो गई थी। ु काल विभाजन के आधार पर सस्कत सावहत्य के िगचकरण के अवतररक्त विषय, भाि, भाषा शलै ी आवि ृ ं के आधार पर भी सस्कत सावहत्य का िगचकरण वकया गया ह।ै इस आधार पर सस्कत सावहत्य को िो ृ ृ ं ं िगों म ें बाँटा गया ह
ै - िवै िक सावहत्य एि लौवकक सावहत्य। ं 1.7.1 वैशिक साशहत्य एव िौशकक साशहत्य ं िवै िक सावहत्य के अतगभत मख्यतः ऋगििे , सामििे , यजििे एि अथिभििे को शावमल वकया जाता ह।ै ु ु ं ं इसके इतर ििे ाग, ब्राह्मण, आरण्यक, उपवनषि, गह्यसत्र, शकि सत्र, स्रौत सत्र, पराण आवि भी िवै िक ृ ू ु ू ू ु ं सावहत्य के अग ह।ै िवै िक सावहत्य का प्रवतपाद्य विषय मख्यतः धम भ ह।ै िवै िक सावहत्य में ििे पद्यात्मक ु ं ह।ै वसर्भ यजििे का एक भाग शक्ल यजििे गद्यात्मक ह।ै पराणों की रचना भी पद्य म ें की गई ह।ै ििे एि ु ु ु ु ं पराण के इतर अवधकाश िवै िक सावहत्य गद्य रूप म ें वलखा गया ह।ै तैत्तरीय सवहता से िवै िक सावहत्य में ु ं ं गद्य सावहत्य की शरुआत मानी जाती ह।ै ब्राह्मण ग्रथ तो गद्य रूप म ें ही वलख े गए ह।ैं िवै िक सावहत्य की ु ं भाषा व्याकरण के वनयमों से प्रवत पररवनवष्ठत नहीं थी तथा इसम ें रूपक की प्रधानता थी। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 11 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं लौवकक सावहत्य का प्रवतपाद्य विषय मख्यतः लोकजीिन था। यह पद्यात्मक एि गद्यात्मक िोनों शलै ी म ें ु ं रचे गए थे। लौवकक सावहत्य की भाषा व्याकरण के वनयमों से पररवनवष्ठत थी और अवतशयोवक्त का भरपर ू प्रयोग हआ था। इस प्रकार िवै िक और लौवकक सावहत्य एक िसरे से सिथभ ा वभन्न ह।ै ु ू समय-समय के साथ-साथ लौवकक सावहत्य बहत पकलवित-पवष्ट्पत हआ लेवकन कालतर म ें जब सस्कत ु ु ृ ु ं ं वसर्भ सावहत्य की भाषा बनकर रह गई और पाली एि प्राकत ने जन सामान्य की भाषा का स्थान ले वलया ृ ं तब सस्कत भाषा का प्रचार-प्रसार कम हो गया। इस भाषा के सजकभ एि पाठक िोनों कम हो गए और ृ ं ं धीरे-धीरे सावहत्य की रचना सस्कत भाषा म ें कम होने लगी। ितभमान म ें सस्कत सवहत्य की रचना लगभग ृ ृ ं ं न के बराबर हो गई ह।ै अभ्यास प्रश्न 21. सस्कत सावहत्य के प्रथम वलवखत ग्रथ का क्या नाम ह?ै ृ ं ं 22. स्रोत काल के सावहत्य म ें वकन-वकन चीजों की रचना हई? ु 23. स्मवत काल के सावहत्य म ें वकन-वकन चीजों की रचना हई? ु ृ 24. पावणनी द्वारा व्याकरण के वनयमों का प्रवतपािन वकस काल म ें वकया गया? 25. विषय, भाि एि भाषा शलै ी के आधार पर सस्कत सावहत्य को वकतने िगों म ें बाँटा गया? ृ ं ं उनके नाम वलख।ें 26. यजििे का एक भाग _________यजििे गद्यात्मक ह।ै ु ु 27. िवै िक सावहत्य में_________की प्रधानता थी। 28. _________ सावहत्य म ें अवतशयोवक्त का भरपर प्रयोगा हआ था। ु ू 29. पराणों की रचना_________ म ें की गई। ु 30. लौवकक सावहत्य _________ एि _________ िोनों शलै ी म ें रचे गए थे। ं 31. सस्कत सावहत्य म ें मानि जीिन का समग्र वनवहत ह ै । (सत्य/असत्य) ृ ं 32. अष्टाध्यायी िवै िक सावहत्य की रचना ह ै । (सत्य/असत्य) 33. लौवकक सावहत्य का प्रवतपाद्य विषय लोक जीिन था । (सत्य/असत्य) 1.7 सािांश प्रस्तत इकाई म ें सस्कत भाषा एि सावहत्य का सवक्षि पररचय प्रस्तत वकया गया ह।ै सस्कत भाषा का विश्व ृ ृ ु ु ं ं ं ं के भाषा पररिारों म ें स्थान की चचाभ से सस्कत भाषा के पररचय को और सिर बनाया गया ह।ै सस्कत ृ ृ ु ं ं ं भाषा के महत्ि से भी विद्यावथभयों को अिगत कराया गया ह।ै एक आधवनक भारती
य भाषा के रूप में ु इसकी प्रकवत की जानकारी भी विद्यावथभयों को प्रिान की गई ह।ै इकाई के अत म ें सस्कत सावहत्य का भी ृ ृ ं ं सवक्षि पररचय विया गया ह।ै वकसी भी भाषा के वशक्षण विवध का ज्ञान
प्रिान करने से पहले उस भाषा एि ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 12 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सावहत्य की जानकारी प्रिान करना श्रेयस्कर होता ह।ै प्रस्तत इकाई के अत म ें इसीवलए सस्कत सावहत्य ृ ु ं ं का सवक्षि पररचय भी विया गया ह।ै इस प्रकार यह इकाई सस्कत भाषा वशक्षण कायभ म ें लग े हए व्यवक्तयों ु ृ ं ं के वलए बहत उपयोगी ह।ै ु 1.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्ति 1. 7000 2. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाईका खड 1.3 िखे ।े ं 3. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 1.4 िखे ।ें ं 4. भारोपीय पररिार 5. आकवत मलक ृ ू 6. अथभ 7. 100 8. राइस 9. भारोपीय 10. सतम एि कें टम ु ं 11. असत्य 12. सत्य 13. सत्य 14. असत्य 15. सत्य 16. भातखण्डे 17. 50 18. उत्तराखड ं 19. 14,135 20. अकपकालीन 21. ऋग्ििे 22. िवै िक सवहता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपवनषि की रचना हई। ु ं 23. रामायण, महाभारत, पराण, तथा ििे ागों की रचना हई। ु ु ं 24. लौवकक सावहत्य काल 25. िो िगों म ें विभावजत वकया गया। ये िो िग भ िवै िक सावहत्य एि लौवकक सावहत्य ह।ै ं 26. शक्ल ु 27. रुपक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 13 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 28. लौवकक 29. पद्य 30. गद्यात्मक, पद्यात्मक 31. सत्य 32. असत्य 33. सत्य 1.9 सदं भ भएवं सहयोगी ग्रंथ 1. आप्टे, डी० जी० (1960). टीवचग ऑर्ा सस्कत इन सेके ण्िी स्ककस, आचायभ बक वडपो, ृ ू ु ं ं बड़ोिा। 2. चौबे, नारायाण विजय, (1985). सस्कत वशक्षण विवध, लखनऊ, उत्तर प्रिशे वहिी सस्थान। ृ ं ं ं 3. वत्रपाठी, राधाबकलभ (1999). सस्कत सावहत्य, 20िीं शताब्िी, राष्ट्रीय-सस्कत-सस्थानम, नई ृ ृ ् ं ं ं विकली। 4. बोवकल, िी० पी० (1956). ए न्य एप्रोच ट सस्कत, वचत्रशाला प्रकाशन, पना। ृ ू ू ू ं 5. वमत्तल, सतोष (2000). सस्कत वशक्षण, आर० लाल० बक वडपो, मरे ठ। ृ ु ं ं 6. शमाभ, ििे ीित्त (n.d.) सस्कत का ऐवतहावसक एि सरचनात्मक पररचय, हररयाणा ग्रथ अकािमी। ृ ं ं ं ं 7. उपाध्याय, बलििे (2009). सस्कत सावहत्य का इवतहास, शारिा वनके तन, िाराणसी। ृ ं 8. सक्सेना, बाबराम (2015). सस्कत व्याकरण प्रिवे शका, रामनारायण लाल प्रह्लाििास, ृ ू ं इलाहाबाि। 9. वतिारी, भोलानाथ (2002). भाषा विज्ञान, वकताब महल, इलाहाबाि। 1.10 वनबधात्मक ं 1. अपने सज्ञान के आधार पर पाँच सस्कत ग्रथों के नाम वलख ें एि उनम ें वकस राज िश के समय के ृ ं ं ं ं ं इवतहास की जानकारी वमलती ह,ै बताए।ँ 2.
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‘सस्कत भाषा का महत्ि विषय’
पर एक वनबध वलख।ें ृ ं ं 3. आधवनक भारतीय भाषा के रूप म ें सस्कत भाषा की प्रकवत का िणनभ करें। ृ ृ ु ं 4. िवै िक एि लौवकक सस्कत सावहत्य म ें अतर स्थावपत करें। ृ ं ं ं 5. भाषा पररिार के सिभ भ म ें िवै िक सावहत्य की प्रवस्थवत का िणनभ करें। ं 6.
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“सस्कत सावहत्य ितभमान समय म ें भी उतना ही महत्िपण भ ह ै वजतना वक िह पहले था”
। इस ृ ू ं कथन की वििचे ना करें। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 14 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई-2 संस्कत भाषा रिक्षण के सैद्धान्ततक पक्ष 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 सस्कत भाषा वशक्षण एक पररचय ृ ं 2.3.1 सस्कत भाषा-पररचय ृ ं 2.3.2 सस्कत भाषा वशक्षण की अिधारणा ृ ं 2.4 सस्कत भाषा वशक्षण के लक्ष्य एि उद्दश्े य ृ ं ं 2.4.1 प्राथवमक स्तर पर सस्कत भाषा वशक्षण के उद्दश्े य ृ ं 2.4.2 माध्यवमक स्तर पर सस्कत भाषा वशक्षण के उद्दश्े य ृ ं 2.4.3 उछच स्तर पर सस्कत भाषा वशक्षण के उद्दश्े य ृ ं 2.4.4 सस्कत-वशक्षण एि मातभाषा वशक्षण के उद्दश्े य ृ ृ ं ं 2.4.5 सस्कत-वशक्षण एि अग्रेजी वशक्षण के उद्दश्े य ृ ं ं ं 2.4.6 सस्कत वशक्षण के उद्दश्े यों का विश्लेषण ृ ं 2.5 भाषा
विज्ञान तथा सस्कत वशक्षण ृ ं 2.5.1 भाषा विज्ञान के विवभन्न तत्त्ि 2.5.2 सस्कत भाषा वशक्षक के वलए भाषा विज्ञान की आिश्यकता ृ ं 2.6 भारत में सस्कत वशक्षण का महत्ि ृ ं 2.6.1 प्राचीनतम भाषा के रूप में सस्कत का महत्ि ृ ं 2.6.2 सास्कवतक भाषा के रूप में सस्कत का महत्ि ृ ृ ं ं 2.6.3 राष्ट्रीय एि अन्तराभष्ट्रीय एकता की भाषा के रूप म
ें सस्कत का महत्ि ृ ं ं 2.7 समस्याए एि चनौवतयाँ ु ं ं 2.7.1 सस्कत वशक्षण के प्रसार में समस्याएँ एि चनौवतयाँ ृ ु ं ं 2.7.2 सस्कत वशक्षण के चनौवतयों के उपाय ृ ु ं 2.8 साराश ं 2.9 शब्िािली 2.10 सन्िभभ ग्रन्थ सची ू 2.11 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 15 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2.1 प्रस्तावना भाषा विचारों, भािों एि अनभिों को साझा करने का माध्यम ह।ै भाषा का प्रयोग के िल मानि जावत ही ु ं नहीं अवपत जीि-जन्त एि पश- पवक्षयों के द्वारा भी वकया जाता ह।ै भाषा म ें भािावभव्यवक्त के वलए न ु ु ु ं के िल शब्िों बवकक उसके साथ-साथ विवभन्न साके वतक प्रयोग भी वकए जात े ह ैं परन्त स्पष्ट कर ि ें वक ु ं भाषा विज्ञान म ें वजस भाषा को ग्रहण वकया जाता ह ै िह पश- पवक्षयों एि साके वतक भाषा से वभन्न ु ं ं मानि द्वारा व्यक्त िाणी ह।ै 2.2 उद्दश्े य इस इकाई क अध्ययन करने के पिात आप- 1. सस्कत भाषा वशक्षण से पररवचत हो सकें ग।े ृ ं 2. सस्कत भाषा वशक्षण के लक्ष्य एि उद्दश्े यों को जान सकें ग।े ृ ं ं 3. सस्कत वशक्षण म ें भाषा – विज्ञान के महत्ि को समझ सकें ग।े ृ ं 4. भारत म ें सस्कत वशक्षण के महत्त्ि, समस्या, चनौवतयाँ एि उनके समाधान को समझ सकें गे। ृ ु ं ं 2.3 सस्ं कृ त भाषा वशक्षण एक पविचय भाषा शब्ि सस्कत के
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‘भाष’
धात से वनष्ट्पन्न हआ ह।ै वजसका अथभ ह ै -
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‘भाष व्यक्तया िावच’
प्रवसद्ध ु ृ ् ् ु ं ं भाषा विज्ञानी आचायभ भतभहरर का कथन ह ै वक
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‘भाषा ही ज्ञान को प्रकावशत करती ह ै उसके वबना ृ सविककप ज्ञान सम्भि नहीं ह’
ै । िावन्द्रए के अनसार ‘‘भाषा एक
प्रकार का वचन्ह ह।ै वचन्ह से तात्पयभ उन ु प्रतीकों से ह ै वजसके द्वारा मनष्ट्य अपना विचार िसरों को प्रकट करता ह।ै ये प्रतीक भी कई प्रकार के होते ु ू ह
।ैं जसै े - नेत्रग्राह्य, श्रोतग्राह्य एि स्पशग्रभ ाह्य। िस्ततः भाषा की दृवष्ट स े श्रोतग्राह्य प्रतीक ही सिश्रभ ेष्ठ ह।ै ु ं भाषा एक सास्कवतक िस्त ह,ै वजसे हम परम्परा से प्राि करते ह।ैं वकसी भी सास्कवतक उपलवब्ध के ृ ृ ु ं ं समान मातभाषा अथिा जातीय भाषा का सरक्षण करना, हम सब का कतभव्य ह।ै सास्कवतक उपलवब्ध ृ ृ ं ं होने के कारण हमारी सस्कवत म ें यिा-किा बिलाि होते रहते ह।ैं उसी प्रकार भाषा भी पररिवतभत होती ृ ं रहती ह।ै अतः कह सकते ह ैं वक भाषा कोई वस्थर िस्त नहीं अवपत सस्कवत के समान गवतशील तत्ि ह।ै ृ ु ु ं भाष्ट्यते व्यक्तिाग-रुपेण अवभव्यज्यत े इवत भाषा अथाभत व्यक्त िाणी के रूप में वजसकी अवभव्यवक्त की ् ् ं जाती ह ै उसे भाषा कहते ह।ैं भाषा के सन्िभ भ में कहा गया ह ै वक - ‘‘भाषा म ें वनरन्तर सशोधन और पररष्ट्करण की प्रवक्रया चलती रहती ं ह,ै अतएि भाषा परानी होने पर भी निीन, कालातीत होने पर भी अद्यततनीन (up-to-date) और िद्ध ृ ु होने पर भी नियिती बनी रहती ह।ै ु महान भाषा शास्त्री पतजवल ने कहा ह ै - प्रतीत पिाथभ लोके ध्िवनः शब्िः वजस ध्िवन से पिों के अथभ ं प्रतीत हों िह साथभक ध्िवन शब्ि और भाषा ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 16 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं मानि को ििे ताओ के द्वारा प्राि सबसे बड़ा िरिान भाषा ह ै ऋग्ििे ने इसे अमत की नावभ (के न्द्र) और ृ ं ििे ों ने वजह्वा कहा ह-ै " वजह्वा ििे ानाममतस्य नावभः।" ऋग्ििे (4-58-1) ृ 2.3.1 सस्कत भाषा-पररचय ृ ं सावहत्य ही समाज का िपभण ह ै यवि हम वकसी िशे या समाज से पररवचत होना चाहते ह ैं तो हम ें उस िशे के सावहत्य से पररवचत होना पड़ेगा । भारतीय समाज की जड़ें बहत गहरी ह।ैं इसे समझने के वलए हम ें ु सस्कत सावहत्य का अध्ययन करना होगा । यह जानना अवतआिश्यक ह ै वक सस्कत के िल कमकभ ाण्ड या ृ ृ ं ं पजा-पाठ की भाषा नही ह ैं अवपत इसम ें सपण भ विश्
व ज्ञान समावहत ह ै सस्कत में ििे , व्याकरण, सावहत्य, ृ ू ु ू ं ं ज्योवतष, आयििे , िशनभ , न्याय, एि विज्ञान भी सवम्मवलत ह।ै ु ं i. ििशन- िशनभ की दृवष्ट से सस्कत का स्थान
सिोपरर ह।ै पािात्य िाशवभ नक सहस्रों िषों के ृ ं प्रत्यत्नस्िरूप आज वजस आध्यावत्मकता की ओर मड़ रह े ह,ैं भारतीय महवषयभ ों ने उसका ु साक्षात्कार ईसा से कई हजार िषभ पि भ ही कर वलया था। पािात्य िशनभ में ऐसे बहत से उिाहरण ु ू वमल जाएगे वजसे भारतीय िशनभ का प्रकारान्तर कर वलखा गया ह।ै ं ऋग्ििे में ‘एक सि विप्रा बहधा ििवन्त’ के द्वारा अनमान लगाया जा सकता ह ै वक पिभ िवै िक ु ु ू ं ् काल में ही भारत म ें एक ििे की प्रवतष्ठा हो चकी थी। परुष सक्त में परुष से सवष्ट के विकास की ृ ु ु ू ु योजना प्रस्तत ह।ै आरण्यक उपवनषि में जहा ँ िशनभ की उछचता विद्यमान ह ै िहीं षडिशनभ भारत ् ु ् को गौरिावन्ित करता ह।ै जनै , बौद्ध िशनभ के भी अनेक ग्रथ सस्कत में रचे गय े ह।ैं ृ ं ं श्रीमद्भगित-गीता को नीवत एि आचार का सिोत्कष्ट ग्रन्थ कहा जाता ह।ै न्याय एि ृ ् ं ं तकभ में भी सस्कत शास्त्र के महत्ि को कम नहीं आकँ ा जा सकता। ृ ं ii. भगोि एव खगोि - भगोल एि खगोल शास्त्र म ें सय भ एि मय का सिाि ह ै वजस े आज भी नास ू ू ू ं ं ं ं के िज्ञै ावनक अध्ययन करते ह ैं िहीं आयभभट्ट का आयभभट्टीयम एक प्रमावणक ग्रन्थ ह।ै ् कापरवनकस और गलै ेवलयो के पि भ 1150 में भास्कराचायभ के ग्रन्थ वसद्धान्त वशरोमणी में पथ्िी ृ ू के गोल होने एि सयभ के चारों ओर चक्कर लगान े की चचा भ की ह।ै ू ं भपजरः वस्थरो भििे ाित्यानत्योियास्तमयो ककपयवत नक्षत्र-ग्रहाणाम। ृ ृ ् ू ं iii. शचशकत्सा शवज्ञान- अवश्वनी कमार, िरूण, भारद्वाज, चरक इत्यावि ऋवषयों को वचवकत्सा के ु
क्षेत्र में महारथ हावसल थी। इसी प्रकार रसायन विज्ञान, िनस्पवत विज्ञान, जीि विज्ञान, यन्त्र विज्ञान, भाषा विज्ञान, सामावजक विज्ञान, कामशास्त्र इत्यावि विवभन्न ज्ञान क
ा भडार ह ै सस्कत शास्त्र। अतः सस्कत का अध्ययन ृ ृ ं ं ं सस्कतानरावगयों के वलए अमत-तकय ह।ै ृ ु ु ं 2.3.2 सस्कत भाषा शिक्षण की अवधारणा ृ ं प्राचीन-काल म ें भारत म ें वशक्षा गरुकलों म ें िी जाती थी तभी वशक्षा का स्िरूप सम्पण भ रूप से सस्कत में ृ ु ु ू ं ही समावहत था। परन्त ितभमान म ें वस्थवत वभन्न ह।ै अभी हम िवै श्वक स्तर पर विवभन्न विधािों का अध्ययन ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 17 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं कर रह े ह ै अतःसस्कत का व्यापक वशक्षण अथाभत ििे , ििे ाग, व्याकरण, सावहत्य, ज्योवतष, एि उनके ृ ं ं ं तमाम उपागों का अध्ययन न कर अन्य विषयों की ही भावत कक्षािार अध्ययन करते ह।ैं अभी भारत के ं ं अत्यवधक राज्यों म ें सस्कत को वद्वतीय अथिा ततीय भाषा के रूप म ें पढ़ा जाता ह।ै एि कहीं-कहीं इसकी ृ ृ ं ं पारम्पररक विधा भी विद्यमान ह ै वजसम े छात्र विवभन्न विषयों का अध्ययन सस्कत भाषा में करता ह।ै ृ ं वजसमें प्रथमा, प्रिवे शका(10िीं), मध्यमा(उपाध्याय), शास्त्री(B.A.), आचायभ(M.A.) परीक्षाओ को ं उत्तीणभ करता ह।ै 2.4 सस्ं कृ त भाषा वशक्षण के लक्ष्य एवं उद्दश्े य सस्कत भाषा शिक्षण के िक्ष्य ृ ं सस्कत भाषा के लक्ष्य एि उद्दश्े य एक समान ही प्रतीत होते ह।ै इन्ह ें समझना जवटल कायभ ह।ै उनमें से कछ ृ ु ं ं लक्ष्य ज्ञानात्मक ह ैं तो कछ कौशलात्मक, कछ रसात्मक एि सजनात्मक ह ैं तो कछ का सम्बन्ध ृ ु ु ु ं अवभिवत्तयों से ह।ै इस प्रकार इन लक्ष्यों को वनम्नवलवखत पाचँ िगों म ें रख सकते ह।ैं ृ क. ज्ञानात्मक ख. कौशलात्मक ग. रसात्मक घ. सजनात्मक ृ ङ. अवभित्यात्मक ृ 1. ज्ञानात्मक िक्ष्य- ज्ञानात्मक लक्ष्य का तात्पयभ ह ै छात्रों को भाषा एि सावहत्य की कछ बातों ु ं
का ज्ञान िने ा। प्रायः वनम्नवलवखत बातों की जानकारी िने ा ज्ञानात्मक लक्ष्य के अन्तगतभ ह।ै i. ध्िवन, शब्ि एि िाक्य-रचना का ज्ञान िने ा। ं ii. उछच माध्यवमक स्तर पर वनबन्ध, कहानी, उपन्यास, नाटक, काव्यगीत, गद्यगीत आवि सावहवत्यक विधाओ का ज्ञान िने ा। ं iii. सास्कवतक, पौरावणक, व्यािहाररक एि जीिनगत अनभवतयों, गाथाओ, तथ्यों, घटनाओ ृ ु ू ं ं ं ं आवि का ज्ञान
िने ा तथा लेखक की जीिनगत, रचनागत विशषे ताओ एि समीक्षा-वसद्धान्तों ं ं का उछच माध्यवमक स्तर पर ज्ञान िने ा। यह विषय-िस्त से सम्बवन्धत ह।ै ु iv. रचना-कायभ के मौवखक एि वलवखत रूपों का ज्ञान िने ा, वजनमें िाताभलाप, सस्िरिाचन, ं अन्त्याक्षरी, भाषण, िाि-वििाि, सिाि, साक्षात्कार, वनबन्ध, साराशीकरण, कहानी, ं ं आत्मकथा, पत्र आवि सवम्मवलत ह।ैं 2. कौििात्मक िक्ष्य- इन उद्दश्े यों का सम्बन्ध भाषा के कौशलों से ह ै वजनमें पढ़ना-वलखना, सनना, अथभ ग्रहण करना आवि सवम्मवलत ह।ै कौशलात्मक उद्दश्े यों के अन्तगतभ प्रायः ु वनम्नवलवखत बातें आती ह-ैं सनकर अथभ ग्रहण करना, शद्ध एि स्पष्ट िाचन करना, गद्य-पद्य ु ु ं पढ़कर अथभ ग्रहण करना, बोलकर भािावभव्यवक्त करना, वलखकर भािावभव्यवक्त करना, इत्यावि। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 18 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3. रसात्मक एव समीक्षात्मक िक्ष्य- इन लक्ष्य म ें िो िस्तए समावहत ह ैं – सावहत्य का ु ं ं रसास्िािन, सावहत्य की सामान्य समालोचना। 4. सजनात्मक िक्ष्य- सजनात्मक लक्ष्य का तात्पयभ ह ै छात्रों को सावहत्य-सजन की प्रेरणा िने ा। ृ ृ ृ उन्ह ें रचना म ें मौवलकता लाने की योग्यता
का विकास करने के वलए प्रेररत करना। कायभ के वलए वनबन्ध, कहानी, सिाि, पत्र, उपन्यास एि कविता को माध्यम बनाया जा सकता ह।ै इसके ं ं वशक्षण के समय छात्रों की मौवलकता लाने की प्रेरणा िी जा सकती ह।ै 5. अशभवत्यात्मक िक्ष्य- इस लक्ष्य का तात्पयभ यह ह ै वक छात्रों में उपयक्त दृवष्टकोण एि ृ ु ं अवभिवत्तयों का विकास वकया जाए । सस्कत-वशक्षण के माध्यम से इस सम्बन्ध में भाषा और ृ ृ ं सावहत्य म ें रुवच, सि-िवत्तयों का विकास होना चावहए। ृ ् सस्कत भाषा शिक्षण के सामान्य उद्देश्य ृ ं सस्कत-वशक्षण के सामान्य
उद्दश्े यों की चचाभ करते समय इसके प्राचीन भाषा रूप को ही िहाँ पर विशषे ृ ं ध्यान रखा जा रहा ह।ै सस्कत-वशक्षण के उद्दश्े य वनम्नवलवखत ह ैं - ृ ं 1. शद्ध, सरल, स्पष्ट एि प्रभािशाली भाषा में छात्र अपने भािों, विचारों, अनभवतयों की ु ु ू ं अवभव्यवक्त कर सकें । 2. छात्रों को इस योग्य बनाना वक िे उवचत भाि-भवगमाओ के साथ िाचन का काव्य-कला एि ं ं ं अवभनय-कला का आनन्ि प्राि कर सकें और साथ ही, अपने मानवसक सख-िखात्मक ु ु भािनाओ के प्रवत सन्तवष्ट प्राि कर सकें । ु ं 3. ज्ञान प्राि करने और मनोरजन के वलए पढ़ना-वलखना, वसखाना, गद्य-पद्य म ें वनवहत आनन्ि स े ं पररचय हो पाना, पस्तकों म ें वनवहत ज्ञान-भडार का अिलोकन कराना तथा बालक की ु ं स्िाध्यायशीलता के प्रवत रुवच उत्पन्न करना आवि भाषा वशक्षण के महत्िपणभ उद्दश्े य ह।ैं ू 4. क्रमबद्ध विचार-प्रणाली और भािावभव्यजन म ें िक्ष बनाना। ं 5. बालकों के शब्िों, िाक्याशों तथा लोकोवक्तयों आवि के म ें कोष में िवद्ध करना। ृ ं 6. उनको शद्धता एि गवत का वनरन्तर विकास करते हए िाचन का अभ्यास कराना। ु ु ं 7. ज्ञान-क्षेत्र तथा वििके का वनरन्तर विकास करते हए चररत्र-वनमाभण कराना। ु 8. विवभन्न शवै लयों का पररचय कराकर अपनी उपयक्त शलै ी के विकास में सहायता करना। ु 9. उन्ह ें सवहत्य के सजन की प्रेरणा िने ा, वजसस े िे अपने अिकाश के समय के सिपयोग द्वारा अपन े ृ ु व्यवक्तगत तथा सामावजक जीिन को ससस्कत कर सकें । ृ ु ं 10. बालकों को मानि-स्िभाि एि चररत्र के अध्ययन का अिसर प्रिान करना। ं 11. उन्ह ें भािानकल, भाषा-प्रयोग, स्िर-वनमाभण एि अग-सचालन की कला का अभ्यास कराना। ु ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 19 ु सस्कत
का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भाषा वशक्षण का लक्ष्य एि उद्देश्य उस समाज एि विद्यालय के प्रकवत पर वनभरभ करता ह,ै जहा ँ पर वशक्षण ृ ं ं कराया जाता ह।ै भारतीय पररप्रेक्ष्य की बात करें तो यहाँ पर सस्कत वशक्षण के वलए िो प्रकार के ृ ं विद्यालयों क
ी व्यिस्था ह।ै a. परम्परागत (Traditional) - इस व्यिस्था म ें मातभाषा वशक्षण के पिात छात्र विवभन्न विषयों का ृ ् अध्ययन सस्कत भाषा में करता ह।ै वजसमें प्रथमा, प्रिवे शका (10िीं), मध्यमा(उपाध्याय), शास्त्री ृ ं (B.A.), आचायभ (M.A.) परीक्षाओ को उत्तीणभ करता ह।ै ं b. आधशनक (Modern) - इस व्यिस्था म ें छात्र एक िकै वकपक भाषा के रूप म ें सस्कत का चयन ृ ु ं करता ह ै और िशिीं, बारहिीं, स्नातक एि परास्नातक कक्षाओ को उत्तीणभ करता ह।ै ं ं उपरोक्त िोनों विधाए ँ समकक्ष ही होती ह ैं परन्त सस्कत के ज्ञान की दृवष्ट से पारम्पररक छात्रों में ृ ु ं अत्यवधक िक्षता होती ह।ै 2.4.1 प्राथशमक स्तर पर सस्कत भाषा शिक्षण के उद्देश्य ृ ं सस्कत शिक्षण के तीन स्तर ृ ं आधवनक विद्यालयों में सस्कत-वशक्षण की दृवष्ट से शवै क्षक-स्तरों को तीन िगों में रख सकत े ह ैं - ृ ु ं i. प्रारवम्भक स्तर ii. मध्य स्तर iii. उछच स्तर प्रारवम्भक स्तर का तात्पयभ सस्कत-वशक्षण के प्रारवम्भक स्तर से ह ै वजसमें सामान्यतः 6, 7 और 8 ृ ं कक्षाओ को रख सकते ह।ैं ं मध्य स्तर म ें माध्यवमक कक्षाएँ अथाभत 9, 10, 11, 12 आ सकतीं ह।ै तथा उसके पिात उछच स्तर आता ् ् ह ै और इस स्तर पर विश्वविद्यालय की अवन्तम परीक्षा तक हो सकती ह।ै उपयभक्त तीनों स्तरों पर सस्कत ृ ु ं वशक्षण के उद्दश्े य अलग-अलग होंग े वजनका िणनभ नीचे विया जा रहा ह।ै प्रारवम्भक स्तर अथाभत कक्षा 6, 7 और 8 के छात्र बाकयािस्था के अवन्तम भाग या वकशोरािस्था म ें ् पिाभपण करने की तैयारी म ें रहते ह।ैं जहा पर मानवसक दृवष्ट से उसके मन म ें बड़ी उथल-पथल मची रहती ु ं ह,ै जहा पर उन्ह ें उपयक्त आिशों की आिश्यकता भी पड़ती ह।ै सस्कत सावहत्य ऐसे आिशों से भरा पड़ा ृ ु ं ं ह।ै अतः यवि छात्रों को उवचत प्रेरणा प्रिान कर िी जाए तो सस्कत भाषा को िे रुवचपण भ ढ़ग से पढ़ सकें गें, ृ ू ं ं वकत यहा पर यह ध्यान रखने की बात ह ै वक छात्र इस समय सस्कत को प्रारम्भ करते ह,ैं अतः उनसे बहत ु ृ ु ं ं ं अवधक आशा नहीं करनी चावहए। इस स्तर पर तो इतने से ही सन्तष्ट हो जाना चावहए वक छात्र सरल ु सस्कत को पढ़ सकें ि उसे समझ सकें । इस स्तर पर सस्कत-वशक्षण के उद्दश्े य सक्षेप में इस प्रकार ह ैं - ृ ृ ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 20 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 1. छात्रों को इस योग्य बनाना वक ि े सस्कत भाषा म ें वलखे हए सरल गद्य-खण्डों को शद्ध-शद्ध पढ़ ु ृ ु ु ं सकें । 2. उन्ह ें इस योग्य बनाना वक ि े सरल सस्कत
श्लोकों का शद्ध उछचारण करते हए पाठ कर सकें । ु ृ ु ं 3. उन्ह ें कछ महत्िपण भ श्लोकों को कठस्थ करने की प्रेरणा िने ा। ु ू ं 4. उन्ह ें इस योग्य बनाना वक ि े सस्कत के गद्य-खण्डों एि श्लोकों के मवद्रत रूप को िखे कर उन्ह ें ृ ु ं ं ठीक-ठीक अपनी पवस्तकाओ में वलख सकें । ु ं 5. छात्रों म ें यह योग्यता भी उत्पन्न करना वक िे कण्ठस्थ वकए हए श्लोकों क
ो उनके मवद्रत रूप के ु ु शद्ध-शद्ध वलख सकें । ु ु 6. उन्ह ें श्रवतलेख वलखने का अभ्यास कराना। ु 7. उन्ह ें इस योग्य बनाना वक ि े मातभाषा के सरल िाक्यों का सस्कत में अनिाि कर सकें । ृ ृ ु ं 8. सस्कत के सरल गद्य-खण्डों एि सरल श्लोकों को समझने की योग्यता प्रिान करना। ृ ं ं 9. छात्रों को यह योग्यता प्रिान करना वक ि े आिश्यकतानसार सरल सस्कत िाक्यों एि श्लोकों का ृ ु ं ं मातभाषा म ें अनिाि कर सकें । ृ ु 2.4.2 माध्यशमक स्तर पर सस्कत भाषा शिक्षण के उद्देश्य ृ ं मध्य स्तर पर आने िाल े छात्र प्रारवम्भक स्तर पर कक्षा 6, 7 ि 8 में सस्कत को पढ़ चके होते ह।ैं उनमें यह ृ ु ं योग्यता आ जाती ह ै वक ि े सस्कत के सरल गद्य-खण्डों एि श्लोकों को शद्ध-शद्ध पढ़ सकें । इस स्तर पर ृ ु ु ं ं छात्रों को सस्कत सावहत्य का भी पररचय िने ा चावहए, वकन्त भाषा की वशक्षा इस स्तर पर भी महत्िपण भ ृ ु ू ं रहगे ी। इस स्तर पर सस्कत-वशक्षण के उद्दश्े य इस प्रकार ह ैं - ृ ं 1. सस्कत के सरल ही नहीं, कवठन गद्य-खण्डों को उवचत विराम एि शद्ध उछचारण के साथ पढ़ने ृ ु ं ं की क्षमता प्रिान करना वजससे छात्र सस्कत भाषा में वलखे हए बड़े-से बड़े िाक्यों को भी उवचत ु ृ ं अवन्िवतयों म ें विभक्त करके पढ़ सकें । 2. सस्कत श्लोकों को उवचत लय, मात्रा एि विराम का ध्यान रखकर पढ़न े की योग्यता प्रिान करना ृ ं ं वजससे ि े मावलनी, वशखररणी, द्रत-विलवम्बत, इन्द्रिज्रा, भजगप्रयात आवि छन्िों के पाठ म ें ु ं ु अन्तर कर सकें । 3. सस्कत के सरल सावहत्य से छात्रों को पररवचत कराया जाए वजससे ि े सस्कत सावहत्य के ृ ृ ं ं आनन्ि की अनभवत कर सकें । ु ू 4. सस्कत के महत्िपणभ श्लोकों को कण्ठस्थ करने की प्रेरणा इस स्तर पर भी िी जाए , तावक ृ ू ं मातभाषा के माध्यम से अपने िाताभलाप में आिश्यकता पड़ने पर अपनी बात की सम्पवष्ट में ृ ु िाणी को प्रभािोत्पािक बनाने की दृवष्ट से सस्कत के श्लोकों का उद्धरण ि े सकें । ृ ं 5. सस्कत सावहत्य के सरल अशों को मातभाषा में अनवित करने की क्षमता प्रिान करना वजसस े ि े ृ ृ ू ं ं जन-समिाय को सस्कत-सावहत्य के अमत का पान कर सकें । ृ ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 21 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 6. मातभाषा के सरल अनछछेिों एि सामान्य िाक्यों की सस्कत म ें अनवित करने की योग्यता प्रिान ृ ृ ु ू ं ं करना। 7. सरल विषयों पर सस्कत भाषा में सवक्षि वनबन्ध के रूप म ें कछ िाक्य वलखने की क्षमता प्रिान ृ ु ं ं करना। 8. यवि सभि हो तो सस्कत में कछ सरल िाक्यों में बोलन े की क्षमता प्रिान करना वजससे ि े अभीष्ट ृ ु ं ं अिसरों पर सरल रीवत से सस्कत भाषा में कछ िाक्य शद्ध रूप में बोल सकें । ृ ु ु ं यहा पर यह ध्यान िने े की बात ह ै वक सस्कत म ें बोलने की क्षमता प्रिान करना सस्कत-वशक्षण का मध्य ृ ृ ं ं ं स्तर पर उद्दश्े य नहीं बनाया गया। ितभमान पररवस्थवतयों में यह सम्भि भी नहीं ह।ै अनेकानेक विषयों के जाल में र्ँ से हए छात्र से यह आशा करना वक िह सस्कत में ‘शद्ध, प्रभािोत्पािक, मधर एि रमणीय ढग ु ृ ु ु ं ं ं से बोल सके गा ठीक नहीं ह।ै इसकी कोई आिश्यकता भी नहीं ह।ै आज सस्कत जन-साधारण की ृ ं बोलचाल की भाषा नहीं ह ै और वकसी को भी समाज म ें प्रत्येक अिसर पर सस्कत बोलने की ृ ं आिश्यकता प्रतीत नहीं होती। तीसरे तथा पाँचि ें उद्दश्े यों म ें सस्कत के सरल, सावहत्य का उकलेख वकया ृ ं गया ह।ै इस दृवष्ट से पचतत्र, वहतोपिशे , िाकमीवक रामायण, महाभारत तथा कावलिास की रचनाए ँ अवधक ं ं महत्िपण भ समझ पड़ती ह।ैं भारवि, माघ आवि को तो इस स्तर पर समझना भी कवठन ह।ै ू 2.4.3 उच्च स्तर पर सस्कत भाषा शिक्षण के उद्देश्य ृ ं उछच स्तर पर सस्कत-वशक्षण के उद्दश्े य वनम्नवलवखत होने चावहए- ृ ं 1. सरल एि कवठन सभी प्रकार के गद्य खण्डों को उवचत विराम एि उछचारण सवहत पढ़न े की ं ं योग्यता उत्पन्न करना। 2. सभी प्रकार के श्लोकों का अभीष्ट लय के अनसार पाठ करने की योग्यता उत्पन्न करना। ु 3. सस्कत के अगाध सावहत्य का अिगाहन करने की क्षमता प्रिान करना। ृ ं 4. भाषा एि सावहत्य के प्रवत अनसन्धानात्मक दृवष्टकोण प्रिान करना। ु ं 5. सस्कत सावहत्य का मातभाषा में अनिाि करने की क्षमता प्रिान करना। ृ ृ ु ं 6. मातभाषा के सभी प्रकार के िाक्य-साचों को सस्कत म ें अनवित करने की योग्यता उत्पन्न ृ ृ ु ं ं करना। 7. आिश्यकतानसार उवचत अिसरों पर सस्कत भाषा में बोलने की क्षमता प्रिान करना। ृ ु ं 8. सस्कत भाषा म ें पत्र-लेखन, वनबन्ध-लेखन, सिाि-प्रेषण आवि की योग्यता उत्पन्न करना। ृ ं ं उपयभक्त वििरण को ध्यान से िखे ने पर पता लगता ह ै वक सस्कत भाषा को पढ़ाने के उद्दश्े य वनम्न स्तरों पर ृ ु ं वभन्न अिश्य ह,ैं वकन्त मल रूप म ें सभी भाषा के कौशलों और सावहत्य के आनन्ि से सम्बवन्धत ह।ैं ु ू वकसी भी भाषा को पढ़ाने के वनम्नवलवखत मल उद्दश्े य होते ह ैं - ू a. बोलना b. पढ़ना उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 22 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं c. सनना ु d. वलखना िस्ततः हम वकसी भी भाषा को इसवलए पढ़त े ह ैं वजससे वक हम अपने भािों को िसरों तक पहचँ ा सकें ु ु ू और िसरों के भािों को ग्रहण कर सकें । इस दृवष्ट से भाषा के मल रूप म ें के िल िो उद्दश्े य ह ैं - ू ू i. विचारों की अवभव्यवक्त ii. विचारों को समझना भािावभव्यवक्त िो
प्रकार से हो सकती ह ै - i. बोलकर ii. वलखकर इसी प्रकार विचार-ग्रहण भी िो प्रकार से हो सकता ह ै - i. मौवखक रूप से व्यक्त विचारों को सनकर। ु ii. वलवखत रूप से व
्यक्त विचारों को पढ़कर। इसवलए ऊपर भाषा के चार उद्दश्े यों का उकलेख वकया गया ह ैं इन चारों उद्दश्े यों के अतगभत भाषा सबधी ं ं ं अनेक वक्रयाओ का ज्ञान कराना आिश्यक हो जाता ह।ै इनमें कछ वक्रयाएँ पहले आनी चावहए कछ बाि ु ु ं म।ें इसवलए विवभन्न स्तरों पर सस्कत-वशक्षा के उद्दश्े य वभन्न बनाये गये ह।ैं इन चारों मल उद्दश्े यों को भाषा ृ ू ं सम्बन्धी चार कौशल भी कहा जाता ह।ै भाषा-वशक्षण के उद्दश्े यों पर विचार करते समय आधवनक विद्वान इन उद्दश्े यों को ज्ञानपरक, कौशलपरक ु और अवभिवत्तपरक रूपों में िगचकत करते ह।ैं सस्कत वशक्षक के उद्दश्े यों से भी वनम्नवलवखत रूपों में ृ ृ ृ ं िगचकत वकया जा रहा ह-ै ृ (क) ज्ञानपरक 1. छात्राध्यापकों को सस्कत भाषा के महत्त्ि तथा भाषा वशक्षण के उद्दश्े यों से अिगत कराना। ृ ं 2. अद्यतन ििे नागरी वलवप और सस्कत ितभनी के मानक रूप से अिगत कराना तथा उनकी त्रवटयों ृ ु ं से सम्बवन्धत समस्याओ एि समाधान के उपायों की जानकारी िने ा। ं ं 3. सस्कत वशक्षण के लक्ष्यों की सम्प्रावि के वलए प्रभािी साधनों, विवधयों एि उद्दश्े य मलक ृ ू ं ं उपागमों से अिगत कराना। 4. सस्कत वशक्षण के स्तर को समन्नत करने की दृवष्ट से छात्राध्यापकों की भाषा तथा सावहत्य ृ ु ं सम्बन्धी योग्यताओ का समन्नयन करना। ु ं 5. कक्षा नौ से बारह तक के सस्कत पाठय वििरण तथा पाठों का विश्लेषण करना वसखाना और ृ ् ं तिनसार वशक्षण वबन्िओ के चयन की योग्यता विकवसत करना। ु ं ु 6. सस्कत सावहत्य की अधनातन प्रिवत्तयों से अिगत कराना। ृ ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 23 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं (ख) कौििपरक 1. सस्कत के प्रभािी वशक्षण के वलए भाषा कौशलों एि विवभन्न सावहवत्यक विधाओ की वशक्षण ृ ं ं ं विवधयों एि तकनीकों के प्रयोग की क्षमता विकवसत करना। ं 2. छात्राध्यापकों में स्िाध्याय एि अध्ययन कशलताओ को विकवसत करना। ु ं ं 3. भाषा वशक्षण से सम्बद्ध सह-शैक्षवणक वक्रयाओ के आयोजन की क्षमता विकवसत करना। ं 4. भाषा वशक्षण के वलए अकपव्ययी श्रव्य-दृश्य शक्षै वणक उपकरणों का वनमाभण करने और जन सचार माध्यमों तथा आधवनक शवै क्षक उपकरणों का अपने वशक्षण में उपयोग करने की योग्यता ु ं विकवसत करना। 5. मकयाकन तकनीकों के प्रयोग की योग्यता विकवसत करना तावक मकयाकन के वनष्ट्कषों के ू ू ं ं आधार पर छात्राध्यापक अपनी वशक्षण प्रणाली को सधार सकें । ु 6. छात्राध्यापकों में छात्रों की भावषक त्रवटयों के वनिान तथा उपचारात्मक वशक्षण की क्षमता ु विकवसत करना (ग) अशभव्यशिपरक 1. सस्कत वशक्षण सम्बन्धी चनौवतयों के प्रवत जागरूकता विकवसत करना। ृ ु ं 2. सस्कत वशक्षण ि अवधगम से सम्बवन्धत ज्ञान और कौशलों को अद्यतन बनाये रखना और ृ ं उनके समन्नयन की मनोिवत्त को विकवसत करना। ृ ु 3. कें वद्रक पाठयचयाभ के कछ प्रमख तत्िों से सम्बवन्धत मकयों एि सद्ववत्तयों के प्रवत चेतना ् ु ु ू ं ृ विकवसत करना तावक पाठों को पढ़ाते समय ि े अपने छात्रों म ें उन्ह ें विकवसत कर सकें । सस्कत वशक्षण की दृवष्ट से आरम्भ में भाषा के चारों उद्दश्े यों के अन्तगतभ सरल वक्रयाएँ रखी गयी ह।ैं बाि म ें ृ ं कछ कवठन वक्रयाओ का समािशे वकया गया ह।ै इस स्थल पर सस्कत वशक्षण के उद्दश्े यों एि मात्रभाषा ृ ु ं ं ं तथा वििशे ी भाषा के उद्दश्े यों में अन्तर भी िखे लेना उवचत होगा। 2.4.4 सस्कत-शिक्षण एव मातभाषा शिक्षण के उद्देश्य ृ ृ ं ं वजस भाषा को बालक अपने माता-वपता से सनता ह ै और वजसे िह अनायास ही सीख लेता ह,ै उसे ु मातभाषा कहा जाता ह।ै उिहारणस्िरूप उत्तर प्रिशे में बालक अपने माँ-बाप से ब्रज, अिधी आवि ृ जनपिीय भाषाएँ सीखता ह,ै वकन्त अब इन भाषाओ में सावहत्य-सजन की धारा मन्ि ि रूद्ध हो गयी ह।ै ृ ु ं उत्तर भारत की सिमभ ान्य, सावहत्य एि सिप्रभ यक्त भाषा अब वहन्िी हो चकी ह।ै अतः उपयभक्त बोवलयों की ु ु ु ं उसे वशक्षा न िके र वहन्िी की वशक्षा िी जाती ह ै और वहन्िी ही उसकी मातभाषा कही जाती ह।ै जनपिीय ृ भाषाओ ने वहन्िी को समद्ध वकया ह।ै इस प्रकार हररयाणा, विकली, वहमाचल प्रिशे , राजस्थान, उत्तर ृ ं प्रिशे , मध्य प्रिशे एि वबहार की जनता की मातभाषा वहन्िी ह ै और इन प्रिशे ों को वहन्िी-भाषी प्रिशे कहा ृ ं जाता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 24 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं मातभाषा को बालक घर पर सीखता ह ै और जब िह कक्षा 1 म ें प्रविष्ट होता ह ै तब तक उसे मातभाषा का ृ ृ पयाभि ज्ञान हो जाता ह।ै प्रारवम्भक विद्यालय म ें िह पाँच िषभ तक मातभाषा का अध्ययन करता ह ै और ृ माध्यवमक विद्यालय तक आत-े आते िह मातभाषा का बहत ज्ञान प्राि कर लेता ह,ै वकन्त सस्कत के ु ृ ृ ु ं विषय म ें यह नहीं कहा जा सकता ह।ै सस्कत-वशक्षण की दृवष्ट से जवनयर हाईस्कल की कक्षाए ँ प्रारवम्भक ृ ू ू ं स्तर की ही कक्षाए ँ ह ैं और छात्र को इस स्तर पर सस्कत को िसरी भाषा के रूप म ें सीखना होता ह।ै ृ ं ू माध्यवमक विद्यालयों में वशक्षा का माध्यम मातभाषा ह,ै अतः बालक को मातभाषा का वजतना ृ ृ ज्ञान हो सके गा, उतना ही ज्ञान सस्कत विषय म ें नहीं हो पायेगा। इस प्रकार की आशा भी नहीं करनी ृ ं चावहए। इसवलए तो सस्कत के बोलने एि वलखने को सस्कत-वशक्षा का प्रमख उद्दश्े य मध्य स्तर पर नहीं ृ ृ ु ं ं ं माना गया ह।ै मातभाषा एव सस्कत - िोनों के वशक्षण म ें पठन की योग्यता महत्िपणभ ह।ै पठन के कौशल का विकास ृ ृ ू ं ं िोनों भाषाओ के वशक्षण से होगा। मातभाषा-वशक्षण म ें व्यापक अध्ययन या द्रत पठन का वजतना महत्ि ृ ं ु होगा, उतना महत्ि सस्कत वशक्षण में नहीं होगा, वकन्त गहन अध्ययन के वलए पठन का महत्ि सस्कत- ृ ृ ु ं ं वशक्षण में अपेक्षाकत अवधक होगा। ृ सस्कत वशक्षण में बोध का विशषे महत्ि ह।ै पढ़कर अथभग्रहण करना िोनों भाषाओ में महत्िपणभ ृ ू ं ं ह,ै वकन्त मातभाषा में के िल अथभग्रहण को ही महत्ि नहीं विया जा सकता। उसमें अवभव्यवक्त या ृ ु भािप्रकाशन का भी विशषे महत्ि ह।ै वलखकर या बोलकर आत्मप्रकाशन की क्षमता प्रिान करना मातभाषा-वशक्षण का महत्िपण भ उद्दश्े य ह,ै जबवक सस्कत-वशक्षण में अवभव्यवक्त की क्षमता का विकास ृ ृ ू ं उतना महत्िपण भ नहीं ह ै वजतना अथभग्रहण की योग्यता का विकास। ू बालक के जीिन में मातभाषा का अवधक महत्ि ह ै और सस्कत के वशक्षण से उसका मातभाषा- ृ ृ ृ ं विषयक ज्ञान सम्पष्ट होगा, अतः सस्कत-वशक्षण के उद्दश्े यों में अनिाि को महत्िपण भ स्थान विया गया ह।ै ृ ु ु ू ं 2.4.5 सस्कत-शिक्षण एव अग्रेजी शिक्षण के उद्देश्य ृ ं ं ं प्रारवम्भक विद्यालयों म ें बालकों को आजकल अग्रेजी अवनिाय भ रूप से पढ़नी पड़ती ह।ै अग्रेजी भारतिष भ ं ं में अनेक कारणों से अभी भी विद्यमान ह।ै इसीवलए वकसी अन्य वििशे ी भाषा को यहाँ प्रोत्साहन नहीं वमल पाता ह।ै अग्रेजी एि सस्कत, िोनों को माध्यवमक विद्यालयों म ें बालक िसरी भाषा के रूप म ें पढ़ता ह ै ृ ं ं ं ू वकन्त अग्रेजी वििशे ी भाषा ह,ै अतः इसके उद्दश्े यों की तलना सस्कत के उद्दश्े यों से नहीं की जा सकती ह।ै ृ ु ु ं ं अग्रेजी की प्रकवत ही वभन्न ह।ै इसमें कताभ के पिात तरन्त ही वक्रया आ जाती ह ै और कमभ बाि म ें रखा ृ ु ं जाता ह ै तथा क्रम म ें अन्तर आने पर अथभ का अनथभ हो जाता ह,ै जबवक सस्कत के विषय म ें ऐसी बात ृ ं नहीं। सस्कत में प्रत्येक पि विभवक्तयक्त होता ह।ै अतः क्रम-भिे से अनथभ हो सकता ह।ै अग्रेजी ृ ु ं ं विश्लेषणात्मक भाषा ह,ै जबवक सस्कत सश्लेषणात्मक। ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 25 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं विश्लेषण भाषा में प्रत्यय तथा विभवक्त शब्ि के साथ सयक्त न होकर पथक वलखे जाते ह।ैं उिाहरणाथ भ ृ ् ु ं अग्रेजी में हम वलखते ह ैं
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“There was a tall Shalmali tree on the bank of Godavari”
इस ं िाक्य में tall Shalmali, tree, bank, Godavari मख्य शब्ि ह।ैं और a, on, the वक्रयात्मक शब्ि ह।ैं ु मख्य शब्ि का स्ितन्त्र अवस्तत्ि
होता ह ै और उनका स्ितन्त्ररूपेण कछ अथभ हो सकता ह,ै वकन्त ु ु ु वक्रयात्मक शब्िों का न तो स्ितन्त्र अवस्तत्ि होता ह ै और न ही उनका स्ितन्त्ररूपेण कोई अथभ होता ह।ै इन शब्िों का अथभ मख्य शब्िों के सन्िभ भ में होता ह।ै Of का अथभ, जसै ा प्रायः बताया जाता ह ै ‘का, की, ु के .’ सब जगह नहीं हो सकता। He died of cholera म ें of का अथभ
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‘से हो गया ह।ै To का अथभ प्रायः ‘को बताया जाता ह,ै वकन्त Friend to me या P.A. to Minister में to शब्ि ‘का’ का अथभ ि े रहा ह।ै ु तो 10 to 15 O’
Clockमें (पाँच बजने में िस वमनट बाकी ह)ैं कम या शषे का अथभ ि े रहा ह ै और From Agra to Delhi म ें
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‘तक’
का अथभ ि े रहा ह।ै ि े वक्रयात्मक शब्ि अग्रेजी म ें पथक रूप से वलखे ृ ् ं
जाते ह ैं और वजस वस्थवत म ें होते ह ैं िसै ा ही अथभ िते े ह।ैं ऊपर के िाक्य म ें यवि हम वकवचन्मात्र हरे -र्े र करें ं तो अथभ का अनथभ हो जायेगा। सस्कत में इस प्रकार क
े अनथभ की गजाइश नहीं ह।ै यह सश्लेषणात्मक भाषा होने के कारण अपने ृ ु ं ं ं वक्रयात्मक विकारों को साथ ही रखती ह।ै प्रत्येक मख्य शब्ि वक्रयात्मक शब्ि को अपने अवभव्यक्त रूप ु के वलए रहता ह।ै वक्रयात्मक शब्ि एि मख्य शब्ि वमलकर एक नया रूप ले लेते ह ैं और उस नय े रूप को ु ं
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‘पि’
कहा जाता ह।ै पि को िाक्य म ें इधर-उधर रखन े पर अथभ म ें कोई पररितभन नहीं होता ह।ै उिाहरण के वलए वनम्न िाक्य िवे खए -
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‘अशस्त गोिावरी तीरे शविािः िाल्मिी तरः’
उपयभक्त वििचे न से यह वनष्ट्कषभ वनकलता ह ै वक िोनों भाषाओ की प्रकवत वभन्न ह।ै िोनों की प्रकवत का ृ ृ ु ं ध्यान रखते हए अध्यापक को आगे बढ़ना ह।ै एक में आिरसचक शब्ि अनेक वमल सकत े ह ैं (यथा - ु ू भिान, अत्रभिान, तत्रभिान, भगिन आवि) तो िसरे में इनकी कमी हो सकती ह।ै यथा - अग्रेजी में सबके ं ू वलए You से ही काम चलाना पड़ेगा। एक म ें शब्ि-शवक्त अवधक हो सकती ह,ै यथा - आचायभ शब्ि तो िसरे म ें (यथा – Teacher) शब्ि। ू अग्रेजी वििशे ी भाषा होने के कारण हमारी सस्कवत
से सम्बन्ध नहीं रखती, जबवक सस्कत म ें हमारी ृ ृ ं ं ं सस्कवत ही वनवहत ह।ै अग्रेजी के अध्ययन से क्षेत्रीय भाषाओ की उन्नवत तो िर रही, उनकी प्रगवत म ें बाधा ृ ं ं ं ू और पड़ती ह,ै जबवक सस्कत से क्षेत्रीय भाषाओ क
ी उन्नवत होती ह।ै अग्रेजी हमारी परतन्त्रता की द्योतक ृ ं ं ं ह,ै सस्कत-स्ितत्रता की। अतः सस्कत वशक्षण के उद्दश्े य अग्रेजी वशक्षा के उद्दश्े यों से वभन्न हो जात े ह।ैं ृ ृ ं ं ं ं अग्रेजी मातभाषा से पथक एि निीन भाषा
के रूप में आती ह,ै जबवक सस्कत बालक की पररवचत भाषा ृ ृ ृ ् ं ं ं के रूप म ें उसके समक्ष आती ह ै और इसके अनेक शब्िों से िह पहले से ही पररवचत रहता ह।ै आजकल विद्यालयों में अग्रेजी का स्थान िकै वकपक विषय के रूप म
ें होना चावहए। सस्कत की भी यही ृ ं ं वस्थवत होगी, वकन्त इसका कछ भाग अवनिायभ भी होना चावहए। ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 26 ु सस्कत
का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2.4.6 सस्कत शिक्षण के उद्देश्यों का शवश्ले षण ृ ं राष्ट्र के पनवनभमाभण के कायभ म ें भाषा की वशक्षा का विशषे महत्ि ह।ै भाषा के माध्यम से छात्र ज्ञान-विज्ञान ु के अनेकानेक विषयों का अध्ययन करता ह।ै यवि छात्र का अवधकार भाषा पर नहीं होता तो िह ज्ञान के अन्य क्षेत्र
ों म ें भी प्रगवत नहीं कर पाता। भाषा ही हमारे वचन्तन का आधार ह।ै वकसी भी जनतत्र की ं सर्लता उसके नागररकों के वचतन पर वनभरभ करती ह ै और इस वचतन म ें भाषा की सबल भवमका रहती ह।ै ू ं ं अन्य वकसी भी विषय के पढ़ाने की तलना में सस्कत का पढ़ाना बहत अवधक जवटल कायभ ह।ै ु ृ ु ं इसकी वशक्षा में इतने विवभन्न प्रकार की योग्यताओ का समािशे रहता ह ै वक उन्ह ें विश्लेवषत करके अलग- ं अलग िखे पाना सम्भि नहीं ह।ै िास्ति म ें सस्कत की वशक्षा के उद्दश्े यों को स्पष्ट रूप में सामन े रख सकना ृ ं बहत कवठन ह।ै नीचे सस्कत-वशक्षण के कछ ऐसे सामान्य सत्र विए गए ह ैं वजनको ध्यान म ें रखन े से हमें ु ृ ु ू ं सस्कत के प्रवत छात्रों की रूवच
के विकास म ें सहायता वमल सके गी। ृ ं i. भाषा मानि जीिन की एक बहत ही सहज प्रवक्रया ह।ै इसे बछचा अनायास खले -खले में सीखने ु लगता ह ै और समय ि पररवस्थवत के अनसार उसकी भाषा का विकास होता चला जाता ह।ै ु स
ीखने िाले पर कोई भाषा थोपी नही जा सकती। इसका विकास उसके अन्िर से स्िय होना ं चावहए। अध्यापक उस विकास म ें सहायता पहचँ ा सकत े ह।ैं ु ii. भाषा का वशक्षण यथा सम्भि अनौपचाररक होना चावहए। पढ़ाने म ें बहत अवधक औपचाररकता ु आ जाने से पढ़ाई जाने िाली भाषा का स्िरूप कवत्रम हो जाने की सम्भािना रहती ह।ै भाषा को ृ सीखते और वसखाते समय छात्र और अध्यापक िोनों को ही आनन्िानभवत होनी चावहए। यवि ु ू ऐसा नहीं ह ै तो भाषा विकास में अिश्य ही कहीं कमी ह।ै iii. बाह्य जगत के प्रवत प्रत्येक व्यवक्त की प्रवतवक्रया वभन्न-वभन्न होती ह ै और प्रवतवक्रया की विवभन्नता भाषा के प्रयोग म ें सहज रूप से अवभव्यक्त होती ह।ै छठी कक्षा के छात्रों म ें व्यवक्तत्ि की वभन्नता के लक्षण प्रकट होने लगते ह।ैं iv. वकसी भी भाषा की सत्ता शन्य में नहीं रहती। इसके माध्यम से जहा ँ छात्रों की भाषा सम्बन्धी ू योग्यता बढ़ेगी िहीं सामावजक, राजनैवतक, आवथभक, पाररिाररक, ऐवतहावसक, िज्ञै ावनक, सास्कवतक, सावहवत्यक आवि विषयों म ें उनकी जानकारी और रूवच बढ़ेगी। भाषा पढ़त े हए ु ृ ं छात्रों को ऐसा लगना चावहए मानो ि े सभी विषय एक साथ पढ़ रह े ह।ैं िास्ति म ें भाषा के माध्यम से पढ़ाए जाने िाले विषयों की रुवच वजतनी अवधक होगी उनका भाषा ज्ञान उतना ही विकवसत होगा। v. भाषा सम्बन्धी सभी योग्यताओ का िगचकरण मोटेतौर पर सनने बोलने, पिों को वलखने और ु ं सोचने की योग्यताओ म ें वकया जा सकता ह।ै भाषा की अछछी वशक्षा म ें चारों प्रकार की ं योग्यताओ का विकास वकया जायेगा। इसके वलए आिश्यक होगा वक छात्रों को सनन,े बोलन,े ु ं पढ़ने, वलखने और विचार करने के अवधक से अवधक अिसर विए जायें। कक्षा में वनवष्ट्क्रय श्रोता बने रहकर छात्र भाषा के अगों पर अवधकार प्राि नहीं कर सकते। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 27 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं vi. भाषा के विश्लेषण की योग्यता उपरोक्त सभी योग्यताओ का विकास करने में सहायक होती ह।ै ं इसवलए भाषा के विश्लेषण की क्षमता छात्रों में प्रारम्भ
से उत्पन्न करनी चावहए। भाषा के उपयोगी विश्लेषण को ही व्यािहाररक व्याकरण का नाम विया जाता ह।ै 2.5 भाषा ववज्ञान तथा सस्ं कृ त वशक्षण भाषा मानि-व्यिहार क
ी आधारवशला ह।ै मानि-जीिन एक अखण्ड धारा ह ै वजस म ें उस के अगवणत व्यिहार वनरन्तर प्रिहमान जलरावश म ें उत्पन्न लहररयाँ कह े जा सकते ह।ैं मानि-व्यिहार प्रेरणा तथा उत्तर का वक्रयात्मक रूप ह।ै प्रत्येक प्रेरणा की कोई न कोई (सकारात्मक/नकारात्मक/उिासीन) प्रवतवक्रया अिश्य होती ह।ै प्रेरणा तथा प्रवतवक्रया प्रत्यक्षतः या परोक्षतः भाषा से सम्बद्ध ह।ै अतः भाषा वशक्षक विशेष रूप से सस्कत भाषा वशक्षण के पररप्रेक्ष्य म ें भाषा विज्ञान वशक्षण म ें सैधावन्तक एि गणात्मक ृ ु ं ं पररितभन लाता ह।ै 2.5.1 भाषा शवज्ञान के शवशभन्न तत्त्व वजस प्रकार आँख, नाक, कान, पैर, वसर, पेट, पीठ आवि अगों-उपागों का समवन्ित तथा अखण्ड रूप ं ं शरीर ह।ै उसी प्रकार ध्िवन, शब्ि, पि, िाक्य, अथभ आवि का समवन्ित तथा अखण्ड रूप भाषा ह।ै वजस प्रकार आखँ , कान, नाक, हाथ, पैर आवि को शरीर से काट कर अलग करके न तो शरीर का अवस्तत्ि रहा पाता ह ै और न कटे हए अगो -उपागों को हम शरीर कह सकते ह।ैं उसी प्रकार ध्िवन, शब्ि, पि, िाक्य, ु ं ं अथभ तथा वलवप-वचन् हों का असम्बद्ध अवस्तत्ि भाषा नहीं कहा जा सकता। भाषा के ये छह तत्ि परस्पर सम्बद्ध ह ैं तथा भाषा-वशक्षण की दृवष्ट से महत्िपण भ ह।ैं अग्रवलवखत आरेख म ें इन छह तत्िों का सम्बद्ध ू रूप प्रिवशतभ वकया जा रहा ह।ै स्व-तत्वों (अगों) के परस्पर सम्बद्ध रप में भाषा ं 'kC n उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 28 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भाषा के इन तत्िों/अगों का विश्ल षे णात्मक तथा सरचनात्मक ज्ञान प्राि वकया हआ भाषा-वशक्षक भाषा- ु ं ं वशक्षण म ें गहराई तथा सरलता ला सकता ह।ै यद्यवप भाषा (वहिी/अग्रेजी/अन्य) का वशक्षक भाषा के इन ं ं 1 तत्िों के ज्ञान का भाषा-वशक्षण म ें बहत अवधक लाभ नहीं उठा पाता, वकन्त विशषे रूप से भाषा ु ु 2 (वहिी/सस्कत) के वशक्षक के वलये तो इन तत्िों की अछछी जानकारी अपररहायभ ह।ै भाषा के वशक्षण के ृ ं ं 2 समय के िल भाषा के नहीं िरन भाषा के भी इन तत्िों के ज्ञान की समय-समय पर आिश्यकता आ ् 2 1 पड़ती ह।ै कछ भारतीय तथा पािात्य मनीवषयों ने भाषा के मख्य िो तत्ि/अग स्िीकार वकए ह-ैं ु ु ं i. शब्ि ii. अथभ शब्ि को भाषा का शरीर तथा अथभ को भाषा की आत्मा कहा जाता ह।ै शब्ि तत्ि के अन्तगतभ भाषा की बाह्य रचना के तत्िों/अगों (ध्िवन-योग, शब्ि, पि, पिबन्ध, उपिाक्य, िाक्य, छन्ि, वलवप-वचन् ह, इन सब ं का क्रम-वनयोजन तथा व्यिस्था) की गणना की जाती ह ै तथा अथभ तत्ि के अन्तगतभ भाषा की आन्तररक रचना के तत्िों/अगों (अवभधा, लक्षण, व्यजना, आसवत्त, योग्यता, आकाक्षा, अवभशासन) की गणना की ं ं ं जाती ह।ै शब्ि तथा अथभ को
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‘जल-बीवच सम’
सम्पक्त कहा गया ह ै जो अधभनारीश्वर या प्रकवत-परूष की ृ ृ ु एकरूपता के समान ह।ै भाषा के शब्ि प्रतीक मात्र ह ैं वजन का अथभ-बोध उन प्रतीकों का वबम्ब-ग्रहण ह ै - अतः भाषा-सम्प्रेषण या विचार-विवनमय की प्रवक्रया एक प्रकार से वबम्ब-ग्रहण की प्रवक्रया का ही िसरा ू नाम ह।ै भाषा-सम्प्रेषण की यह प्रवक्रया िक् ता/लेखक तथा श्रोता/पाठक के मध्य परस्पर सम्बद्ध रहती ह।ै 2.5.2 सस्कत भाषा शिक्षक के शिए भाषा शवज्ञान की आवश्यकता ृ ं भाषाविज्ञान भाषा-वशक्षक की वनम्नवलवखत दृवष्ट से सहायता करता ह-ै 1. भाषा तथा भाषा के विश्ल ेषण के माध्यम से उस के विवभन्न भाषागों एि उन की सगठना का ं ं ं 1 2 पण भ ज्ञान प्रिान करना। ू 2. भाषा तथा भाषा के सम तथा विषम तत्िों की तलना तथा व्यवतरेकी अध्ययन द्वारा व्याघातीय ु 1 2 स्थलों का पता लगा कर वद्वभाषीयता की समस्या का समाधान खोजना। 3. भाषा के सन्िभ भ म ें भाषा के वशक्षण के वलए आिश्यक तथा उपयोगी पाठय सामग्री-वनमाभण में ् 1 2 सहयोग प्रिान करना। यह सहयोग पाठय शब्िों, पिबन्धों, िाक्य-सरचनाओ, प्रयोगों आवि की ् ं ं आिवत्त-गणना, उन के अनक्रमण तथा अनस्तरण आवि के माध्यम से वमलता ह।ै ृ ु ु 4. मनोभाषाविज्ञान के वसद्धान्तों की सहायता से भाषा अवधगम मकयाकन के वलए अनकल सामग्री- ू ु ू ं 2 वनमाभण म ें सहयोग वमलना। 5. भाषागों के विश्ल ेषण तथा उपयक्त पाठय सामग्री-उपलवब्ध के आधार पर भाषा -वशक्षण के वलए ् ु ं 2 उपयक्त विवध के वनधाभरण म ें परोक्षतः सहयोग वमलना। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 29 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 6. भाषा तथा भाषा के भाषा-ज्ञान तथा भाषा-व्यिहार म ें िक्षता प्राि कराने के वलए आिश्यक 1 2 सामग्री-चयन की पष्ठभवम तैयार करना। ृ ू 2.6 भाित म संस्कृ त वशक्षण का महत्व ें वकसी भी राष्ट्र की अखण्डता के वलए सास्कवतक भाषा एक आिश्यक िचै ाररक अवधष्ठान होती ह।ै ृ ं सस्कत सभी भाषाओ की जननी होने के कारण सभी िशे िावसयों को एकत्र करने की भवमका बहत ु ृ ू ं ं प्रभािी ढग से वनभा सकती ह।ै सस्कत िशनभ , सावहत्य, भौवतक, रसायन, ज्योवतष, िास्तकला, औषवध ृ ु ं ं विज्ञान, गवणत, सगीत आवि जीिन के प्रत्येक क्षेत्र के ज्ञानकोश की चाभी ह ै । यवि इन क्षेत्रों के विशषे ज्ञों ं को सस्कत भाषा का ज्ञान होगा तो अपने अतीत के सवचत ज्ञानकोश का अध्ययन कर उसके प्रकाश म ें ृ ं ं निीनतम िैज्ञावनक आविष्ट्कार करने म ें समथभ हो सकें ग।े 2.6.1 प्राचीनतम भाषा के रप में सस्कत का महत्व ृ ं सस्कत भारत की ही नहीं, विश्व की प्राचीनतम भाषा ह।ै विश्व के अन्य िशे ों में लोग वजस समय साके वतक ृ ं ं भाषा से काम चला रह े थे। उस समय भारत में सस्कत भाषा द्वारा ब्रह्म ज्ञान का प्रसार वकया जा रहा था। ृ ं यह धारणा वनमभल ह ै वक सस्कत के िल ग्रथ रचना तक ही सीवमत थी अवपत रामायण तथा महाभारत ृ ू ु ं ं काल में यह जन साधारण की भाषा भी थी। भाषा इस अथभ म ें सस्कत का प्रयोग िाकमीवक रामायण में ृ ं सिप्रभ थम वमलता ह।ै िाकमीवक रामायण के सन्िरकाण्ड में सीता के साथ वकस भाषा में बात करनी ु चावहए? यह सोचते हए हनमान जी ने कहा था - ु ु यशि वाच प्रिास्याशम शिजाशतररव सस्कताम। ृ ् ं ं रावण मन्यमाना मा सीता भीता भशवष्यशत।। ं ं इससे सस्कत के प्रयोग की महत्ता प्रिवशतभ होती ह ै अमनष्ट्य हनमान भी सस्कत बोलने म ें समथभ थे। ईसा ृ ृ ु ु ं ं पि भ वद्वतीय शताब्िी म ें सस्कत वहमालय ि विन्ध्य प्रिशे के बीच म ें व्यिहार की भाषा थी। ब्राह्मण के ृ ू ं अवतररक्त अन्य िणों के लोग भी इनका प्रयोग करते थे। जो बोलन े म ें असमथभ थे इस भाषा को समझ अिश्य जात े थे। प्राचीन वशलालेखों पर भी सस्कत भाषा अवकत ह।ै महवषभ यास्क तथा पावणनी आवि ृ ं ं विद्वानों ने भी सस्कत के वलए भाषा शब्ि का प्रयोग वकया ह।ै इससे स्पष्ट होता ह ै वक ईसा पि भ की शताब्िी ृ ू ं में भी सस्कत जनसाधारण की भाषा थी। धीरे-धीरे पावल तथा प्राकत भाषाए बोलचाल की भाषाए बन ृ ृ ं ं ं गयीं तथा विद्वानों ने प्राकत भाषा में भिे विखलाने के वलए िसरा नाम सस्कत भाषा में ि े विया। ृ ृ ं ू सस्कत भाषा म ें वलवखत अवद्वतीय सावहत्य िो रूपों में वमलता ह ै - िवै िक तथा लौवकक। िवै िक सावहत्य ृ ं की दृवष्ट से भी सस्कत भाषा का विवशष्ट महत्ि ह ै - ििे का महत्ि इस प्रकार िवणतभ ह।ै ृ ं प्रत्यक्षेणानशमत्या वा यस्तपायो न बध्यते। ु ू ु एत शविशन्त वेिेन तस्माि वेिस्य वेिता।। ं ् ऋग्ििे सस्कत भाषा की ही नहीं अवपत विश्व की प्राचीन रचना ह।ै ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 30 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सस्कत ररसचभ इन्स्टीटयट िरभगा के वशलान्यास के अिसर पर प्रित्त भाषण म ें 21 निम्बर 1951 को ृ ् ू ं ं डॉ०राजन्े द्र प्रसाि ने कहा था - ‘‘सस्कत िाङ-मय भारत की ही क्यों सारी मनष्ट्य जावत के वलए अमकय ृ ् ु ू ं वनवध ह।ै उसकी प्राचीनता, उसकी व्यापकता, उसकी विशिता, उसकी सौन्ियभ और मधरता सभी तो ऐसी ु ह ै वजनसे न के िल मानि की आज तक की सस्कवत का सारा इवतहास ज्योवतमयभ हो उठता ह ै िरन मानि ृ ् ं का हृिय आनन्ि विभोर हो जाता ह ै और उसको एक ऐसे नय े आिश भ लोक की झाँकी वमल जाती ह ै वजसमें पहचँ न े पर ही उसका जीिन साथभक हो सकता ह ै और उसे भिबाधा से मवक्त वमल सकती ह।ै ” ु ु 2.6.2 सास्कशतक भाषा के रप में सस्कत का महत्व ृ ृ ं ं सस्कत भाषा भारतीय सस्कवत का आवि स्रोत ह।ै िशे की भाषा के माध्यम से भारतीय सस्कवत अमर ह।ै ृ ृ ृ ं ं ं यह भाषा सस्काररत, पररष्ट्कत तथा पररमावजतभ ह।ै जसै ा वक इसकी इसकी शावब्िक उत्पवत्त से भी स्पष्ट ृ ं होता ह।ै ‘सस्कत’ यह शब्ि सम उपसगभ पिकभ धात से बना ह ै वजसका मौवलक अथभ ह ै ‘सस्कार की गई ृ ् ू ु ं ं भाषा’। हमारे सोलह सस्कार इस सस्काररत भाषा में ही कराए जात े ह।ैं जो जन्म से मत्यपयभन्त जड़े ह।ै इन ृ ु ु ं ं सस्कारों से आत्मा तथा अन्तःकरण की शवद्ध होती ह।ै भारत के उछच कोवट के सास्कवतक विचार, ृ ु ं ं आाध्यावत्मक भाि, उछच नैवतक मकय सस्कत भाषा में ही सरवक्षत ह।ै
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‘सिे भिन्त सवखन’,
ृ ू ु ु ू ं
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‘उिारचररताना त िसधैि कटम्बकम’,
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‘कमण्भ यिावधकारस्ते मा र्लेष कािाचन’,
जसै े उत्प्रेरणात्मक ु ु ु ु ु ं सभावषत िाक्य ि श्लोक हमें इस भाषा म ें ही वमलते ह।ैं भारतीय सस्कवत म ें वनवहत उछच आध्यावत्मक ृ ु ं भाि ही हमारे िशे को विश्व का गरू बनाने में समथभ हो सके । मनस्मवत म ें कहा गया ह ै - ृ ु ु एतद्देि प्रसतस्य सकािािपजन्मनः। ू स्व स्व चररत्र शिक्षरेन पशथव्या सवशमानवा।। ृ ं ं ं ‘‘विश्व के प्रत्येक भभाग से ज्ञान के वजज्ञास इस िशे में आए ँ और यहाँ के प्रवतभाशाली तत्ििते ाओ द्वारा ू ु ं नीवत की वशक्षा ग्रहण करेंग।े ” 2.6.3 राष्रीय एव अन्तराशष्रीय एकता की भाषा के रप में सस्कत का महत्व ृ ं ं राष्ट्रीय एकता- सस्कत सावहत्य ने सम्पणभ भारत को एकता के सत्र म ें बाधने का कायभ वकया ह।ै ृ ू ू ं ं बहभाषाभाषी तथा अनेक प्रान्तों में विभक्त भारत िाह्य भिे अिश्य ह ैं तथावप उसकी सस्कवत एक ही ह।ै ु ृ ं श्री नरहरर विष्ट्ण गाडवगल के शब्िों में- ‘‘सस्कत भाषा का लावलत्य, सौंियभ, शलै ी, ृ ु ं शब्िसम्पवत्त, गवतशीलता, सस्कत िाङ-मय म ें प्रवतपावित विचार, ज्ञान और अध्यात्मविद्या जब मन और ृ ् ं आखँ ों म ें आती ह,ै तब यह सारी सम्पवत्त लोगों के वलए उपयोगी हो, यह इछछा स्िाभाविक ही ह।ै 19िीं शताब्िी में वजतने भी व्यवक्त विकास के वलए आग े बढ़े, उनमें सभी सस्कत के पवण्डत थे। उन्होंने सस्कत ृ ृ ं ं विद्या से ही प्रेरणा प्राि की थी, जसै े - राजाराममोहन राय, ियानन्ि सरस्िती, लोकमान्य वतलक और महामना मालिीय जी। भारत में बोली जाने िाली सभी भाषायें सस्कत रूपी महािक्ष की लताये ह,ैं यह ृ ृ ं कहना अनवचत नहीं होगा। महाभारत और रामायण में जो नीवत तत्ि ह,ैं उन्हीं के आश्रय से भारतीयों के ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 31 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ियै वक्तक तथा सामावजक जीिन का वनमाभण हआ ह।ै ििे ों और उपवनषिों में प्रवतपावित तत्ि ज्ञान ही यहाँ ु के जीिन का मख्य आधार ह।ै इसी कारण से भारत में रहने िाले प्रत्येक व्यवक्त के वलए सस्कत का ृ ु ं सामान्य ज्ञान आिश्यक सा हो जाता ह।ै ” अपनत्ि तथा आत्मीयता का उिाहरण अथथभििे के भवमसक्त म ें वमलता ह-ै ‘‘मातभवमः पत्रोऽहम ृ ् ू ू ू ु पवथव्याः” यह भवम मरे ी माँ ह,ै मैं इसका पत्र ह।ँ प्राचीनतम द्योतमान ििे िो ही ह ैं एक- हमारे ऊपर ृ ू ु विद्यमान प्रकाशमान आकाश जो वपतरूप ह ै तथा िसरा-प्रावणयों को आश्रय िने े िाले पथ्िी जो मातरूपा ृ ृ ृ ू ह।ै इस उिात्त ककपना का प्रथम िशनभ हमें ऋग्ििे म ें वमलता ह।ै कछ मन्त्र प्रस्तत ह-ैं ु ु द्यौमवे पता जवनता (ऋग्ििे 1/164/33) धौनभः वपता जवनता (अथभि. 9/10/12) धौम े वपता वपवथिी म े ृ माता (काठक स. 7/15/16)। ं प्राचीन आचायभ एि कवि परे भारतिषभ का प्रवतवबम्ब अपने हृिय में तथा सम्पण भ भारत में अपना प्रवतवबम्ब ू ू ं िखे ते हए ग्रथों की रचना करते थे। ु ं वनम्न श्लोक म ें तीथ भ स्थानों और पवित्र-नवियों का िणनभ उनके एकात्म भाि का द्योतक ह-ै अयोध्या-मथरा-माया-कािी-काची-अवशन्तका। ु ं परी िारावती ज्ञेया स्तैते मोक्षिाशयकाः।।1।। ु गगे च यमने चैव गोिावरर सरस्वती। ु ं नमशिे शसन्धकावेरर जिेऽशस्मन, सशन्नशध कर।।2।। ् ु ु ं अन्तराभष्ट्रीय एकता- सस्कत भाषा का महत्ि के िल राष्ट्र को एकता के सत्र म ें बाधने तक ही सीवमत नहीं ृ ू ं ं ह,ै अवपत इसका भाि अन्तराभष्ट्रीय स्तर पर भी स्पष्ट विखाई िते ा ह।ै डॉ०रघिीर तथा राहल साकत्यायन ु ृ ु ु ं की आधवनक खोजों द्वारा वसद्ध हो चका ह,ै वक आज भी एवशयाई िशे ों में सस्कत सावहत्य को आिर और ृ ु ु ं सत्कार की दृवष्ट से िखे ा जाता ह।ै सस्कत के नाम तथा शब्ि आज भी इन िशे ों में प्रचवलत ह।ैं बाली ृ ं प्रायद्वीप में सरस्िती पजा आज भी की जाती ह।ै इनमें से कवतपय िशे ों में भारतीय कलैण्डर का ही ू अनकरण वकया जाता ह।ै कछ िशे ों म ें तो िास्तविक रूप म ें भारतीय रीवत-ररिाज प्रचवलत ह।ैं िहाँ सस्कत ृ ु ु ं सावहत्य की आज भी चचाभ होती ह।ै डॉ०रघिीर के अनसार मगोवलया के भीतर भागों में िण्डी के ु ु ं काव्यािशभ का पठन-पाठन होता ह।ै आज हम राजनैवतक िातािरण के प्रवत वकतने भी मक बने रह े वकन्त हमें यह मानना ही होगा वक ू ु सस्कत भाषा से परे िशे को एकता के सत्र में बाधा जा सकता ह ै और भाषा विषयक िशे व्यापी आन्तररक ृ ू ू ं ं कलह को समाि वकया जा सकता ह।ै तवमल, तेलग, मराठी, गजराती आवि सभी भारतीय भाषाए सस्कत ृ ु ु ु ं ं से अनप्रावणत ह।ैं सस्कत को न के िल भारत में बवकक अन्तराभष्ट्रीय स्तर पर भी महत्ि प्राि ह।ै रूस के ृ ु ं मास्को, लेवननग्राि आवि विश्वविद्यालयों म ें सस्कत को ऊँ चा स्थान प्राि ह।ै इन विश्वविद्यालयों म ें ृ ं ‘‘भारतीय भाषा भवमका” नामक पाठयक्रम म ें िहाँ के छात्र विषय में अनसधान करते ह।ैं रूसी भाषा के ् ू ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 32 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं माध्यम से सस्कत व्याकरण और सस्कत की प्रारवम्भक पस्तकें भी िहाँ पयाभि प्रकावशत हो चकी ह।ैं बहत ु ृ ृ ु ु ं ं िषों पहले रूस से आय े हए डॉ०लई रेण ने कहा था वक ‘‘विश्व की सभी भाषाएँ सस्कत से प्रभावित ह।ैं ु ृ ु ु ं एवशया के अनेक िशे ों की भाषा तो सस्कत शब्िों से भरी ह।ैं ” ृ ं अमरीका में भी सस्कत को अत्यवधक महत्ि प्राि ह-ै ‘अमरे ीकी काग्रेस पस्तकालय’ में करीब ृ ु ं ं 7000 सस्कत की हस्तवलवखत पस्तकें सलभ ह।ैं अमरीका के पीरू प्रान्त की कईचआ भाषा सस्कत ृ ृ ु ु ु ु ं ं शब्िों से भरी ह,ै इसवलए िहाँ अनेक विश्वविद्यालयों में सस्कत पढ़ाई जा रही ह।ै अमरीका के भाषा ृ ं शावस्त्रयों का कहना ह ै वक - ‘‘न के िल एवशया के ही िरन यरोप भर के भाषावििों के वलए सस्कत ृ ् ू ं अध्ययन अत्यन्त आिश्यक ह,ै क्योंवक सस्कत भाषा के साथ सबका वनकटतम सम्बन्ध ह।ै ” ृ ं सस्कत भाषा म ें ‘सिे भिन्त सवखनः सि े सन्त वनरामायाः ‘उिारचररताना त िसतधैि कटम्बकम’ जसै े ृ ु ु ु ु ु ु ु ं ं वकतने ही सिशे विश्व प्रेम तथा विश्व शावन्त का सिशे िते े ह।ैं शतम ता कण्टमिगभ के लोग मलतः एक ही ् ु ू ं ं आयभ जावत से सबवन्धत थे। यह ज्ञान इन िगों की भाषाओ के तलनात्मक अध्ययन से प्राि होता ह।ै ु ं ं सस्कत भाषा इन भाषाओ में प्रमख ह।ै ृ ु ं ं डॉ०राधाकष्ट्णन के शब्िों म ें - ‘‘आधा ससार उन स्ितत्र तथा मौवलक आधारवशलाओ पर वस्थत ह ै जो ृ ं ं ं वहन्ि धमभ की िने ह।ै चीन, जापान, वतब्बत, बमाभ तथा लका, भारत को ही अपने आध्यावत्मकता का कें द्र ं ू मानते ह।ैं ” डॉ०राधाकष्ट्णन के उक्त शब्ि भी अप्रत्यक्ष रूप से सस्कत भाषा के अतराभष्ट्रीय महत्ि को ृ ृ ं ं मानते ह,ैं क्योंवक वहन्ि धम भ का आधार सस्कत भाषा ही ह।ै ृ ं ू 2.7 समस्याए ँ एवं चुनौवतया ँ ितभमान समय म ें भाषा की समस्या बहत बड़ी
ह।ै भाषा की यह समस्या न के िल सस्कत भाषा को ु ृ ं प्रभावित कर रहा ह।ै अवपत सभी क्षेत्रीय भाषाओ के सामने यही पररवस्थवत ह।ै अग्रेजी भाषा के ु ं ं अिज्ञै ावनक होने पर भी उसका बढ़ता महत्ि सभी भारतीय भाषाओ क
ो क्षवत पहचा रहा ह।ै ु ं 2.7.1 सस्कत शिक्षण के प्रसार में समस्याए एव चनौशतयााँ ृ ु ं ं ं  रोजगार का आभाि होना  योग्य वशक्षकों की भारी मात्रा म ें कमी  विद्यालयों, महाविद्यालयों म ें ररक्त पिों की पवतभ न होना ू  यिा पीढ़ी का सस्कत भाषा के प्रवत रुवच का कम होना या रुवच का न होना ृ ु ं  अवभभािकों का भी लोक-लभािन विषयों से प्रभावित होना ु  राजनीवत का प्रभाि एि सकरात्मक पनबभलन नही वमलना ु ं  सस्कत भाषा के बारे म ें प्राि भ्रावन्तया (यह पजा-पाठ की भाषा ह,ै एि अवधक कवठन ह)ै ृ ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 33 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं  जागरूकता का आभाि , इत्यावि 2.7.2 सस्कत शिक्षण के समस्याओ के उपाय ृ ं ं  रोजगार के अिसर उपलब्ध कराये जाए ँ  सस्कत के प्रश्नों को प्रवतयोगी परीक्षाओ म ें सवम्मवलत वकया जाए ृ ं ं  ररक्त पिों की यथाशीघ्र पतच की जाए ू  सेिापि भ वशक्षकों का प्रवशक्षण वकए जाए ु  सेिारत अध्यापकों को वनवित समयान्तराल पर प्रवशक्षण कायभक्रमों का आयोजन वकए जाए  अन्य विषयों की भावत सस्कत वशक्षण म ें तकनीकी का प्रयोग कर छात्रों म ें रुवच उत्पन्न वकया ृ ं ं जाए  सस्कत के प्रवत जागरूकता बढ़ाई जाए ृ ं  सरकार के द्वारा विविध प्रकार के सहयोग वकए जाए ँ 2.8 सािांश इस इकाई को पढ़कर आप समझ गए होंग े सस्कत न के िल एक भाषा ह,ै अवपत एक सम्पण-भ शास्त्र ह।ै ृ ु ू ं सस्कत- शास्त्र म ें समावहत विविध ज्ञान के श्रोत के रूप म ें ििे , िशनभ , पराण, धमशभ ास्त्र, राजनीवतशास्त्र, ृ ु ं न्याय, मीमासा, आयििे , रसायनशास्त्र इत्यावि ज्ञान का यह भडार सभितःविश्व के वकसी अन्य विषयों में ु ं ं ं नहीं वमलेगा यही कारण ह,ै वक विश्व के तमाम िशे सस्कत एि भारतीय सस्कवत से आियभ-चवकत एि ृ ृ ं ं ं ं हमशे ा से प्रभावित रह े ह।ै और आज भी कई िशे ों म ें सस्कत शोध का विषय बना ह।ै एि स्कलों म ें ृ ू ं ं अध्यापन भी कराया जा रहा ह।ै सस्कत िशे एि विश्व को जोड़ने एि स्िय म ें समावहत करने िाली भाषा ृ ं ं ं ं ह।ै सस्कत के इस विविध पक्षों एि आिश्यकता को िखे -समझकर सभी आिश्यकताओ के अनरूप हमें ृ ु ं ं ं एक योग्य वशक्षक बनने की जरूरत ह।ै 2.9 शब्दावली 1. प्राथशमक स्तर- प्रारवम्भक स्तर का तात्पयभ सस्कत-वशक्षण के प्रारवम्भक स्तर से ह ै वजसमें ृ ं सामान्यतः 6, 7 और 8 रख सकत े ह।ैं 2. माध्यशमक स्तर- मध्य स्तर में माध्यवमक कक्षाएँ अथाभत 9, 10, 11, 12 आ सकतीं ह ै ् 3. उच्च स्तर- उछच स्तर पर विश्वविद्यालय की अवन्तम परीक्षा तक हो सकती ह।ै 4. भाषा शवज्ञान- भाषा का आतररक एि बाह्य विज्ञान ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 34 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2.11 सन्दभ भ ग्रन्थ सची ू 1. झा, डॉ- नागन्े द्र, प्राचीन एि अिाभचीन वशक्षा-पद्धवत, अवभषेक प्रकाशन, विकली, 2013 ं 2. शमाभ, डॉ. लक्ष्मीनारायण, भाषा 1, 2 की वशक्षण विवधयाँ एि पाठ वनयोजन, 1994 ं 3. शमाभ, डॉ- उषा, सस्कत वशक्षण, स्िावत पवब्लके शन्स, जयपर ृ ू ं 4. शमाभ, डॉ- नन्िराम, सस्कत वशक्षण, सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन, 2007 ृ ं 5. वमत्तल, डॉ. सतोष, सस्कत वशक्षण, आर. लाल. बक वडपो, 2010 ृ ु ं ं 2.12 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. सस्कत भाषा वशक्षण की अिधारणा स्पष्ट कीवजए । सस्कत वशक्षण के उद्दश्े यों का उकलेख ृ ृ ं ं कीवजए । 2. सस्कत भाषा वशक्षण, मातभाषा वशक्षण तथा अग्रेजी वशक्षण के उद्दश्े यों के मध्य अतर स्पष्ट ृ ृ ं ं ं कीवजए । 3. सस्कत वशक्षण म ें भाषा विज्ञान के तत्िों की अिधारणा को स्पष्ट कीवजए । ृ ं 4. राष्ट्रीय एि अन्तराभष्ट्रीय एकता की भाषा के रूप म ें सस्कत का क्या महत्ि ह?ै ृ ं ं 5. सस्कत वशक्षण के प्रसार म ें आने िाली चनौवतयों का िणनभ कीवजए । ृ ु ं 6. ितभमान यग म ें सस्कत वशक्षण के प्रसार की चनौवतयों एि समस्याओ के क्या उपाय ह ै ? ृ ु ु ं ं ं 7. सस्कत भाषा वशक्षण के सामान्य उद्दश्े यों का उकलेख कीवजए । ृ ं 8. सस्कत भाषा के महत्ि का िणनभ कीवजए । ृ ं 9. माध्यवमक स्तर पर सस्कत वशक्षण के क्या उद्दश्े य ह ै ? ृ ं 10. सस्कत भाषा का सास्कवतक महत्ि स्पष्ट कीवजए । ृ ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 35 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ ृ इकाई 3 -भाित में संस्कत भाषा एवं संस्कत भाषा रिक्षण की परिन्स्िरत 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 स्ितन्त्र भारत के विवभन्न वशक्षा आयोगों में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.3.1 विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.3.2 माध्यवमक वशक्षा आयोग में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.3.3 सस्कत वशक्षा आयोग में सस्कत वशक्षण ृ ृ ं ं 3.3.4 वशक्षा आयोग (कोठारी आयोग) में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.4 स्ितन्त्र भारत के विवभन्न वशक्षा नीवतयों में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.4.1 वशक्षा नीवत (1968) में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.4.2 नई वशक्षा नीवत (1986) में सस्कत वशक्षण ृ ं 3.4.3 नई वशक्षा नीवत (1986) में सस्कत का स्थान ृ ं 3.5
राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 1975, 1988, 2000, 2005 तथा सस्कत वशक्षण ृ ् ं 3.5.1 राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 1975 ् 3.5.2 राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 1988 ् 3.5.3 राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 2000 ् 3.5.4 राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 2005 ् 3.6 सस्कत अध्ययन-अध्ययापन में निाचार ृ ं 3.6.1 राष्ट्रीय
सस्कत सस्थान के प्रयास ृ ं ं 3.6.2 श्री अरविि आश्रम के प्रयास ं 3.6.3 सस्कत भारती के प्रयास ृ ं 3.7 साराश ं 3.8 शब्िािली 3.9 सन्िभभ ग्रन्थ सची ू 3.10 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 36 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.1 प्रस्तावना वशक्षा समाज का िपभण होता ह ै या ऐसा कह सकते ह ै वक समाज की आिश्यकताओ की पवतभ का माध्यम ू ं ह ै वशक्षा । प्रत्यक्ष रूप म ें हम िखे सकते ह ै वक सामावजक बिलाि से वशक्षा हमेशा प्रभावित रही ह ै चाह े िवै िककाल की वशक्षा व्यिस्था, मवस्लम काल की वशक्षा व्यिस्था या आधवनक काल की वशक्षा ु ु व्यिस्था हो । स्ितत्रता के पिात भारतीय समाज अनेक पररितभन हए वजसके अनरूप भारत ने वशक्षा ु ् ु ं व्यिस्था म ें व्यापक स्तर पर पररितभन वकए । वजससे की िेश समाज की जरूरतों को परा कर सके तथा ू िवै श्वक स्तर पर प्रवतवष्ठत हो सके । वजसके वलए समय-समय पर विवभन्न वशक्षा आयोगों का गठन हआ । ु 3.2 उद्दश्े य इस इकाई क अध्ययन करने के पिात आप- 1. भारतीय वशक्षा व्यिस्था से पररवचत हो सकें ग।े 2. भारतीय वशक्षा व्यिस्था म ें समय-समय पर हए विकास को समझ सकें ग।े ु 3. विवभन्न वशक्षा आयोगों के द्वारा हए पररितभन को समझ सकें गे। ु 4. विवभन्न वशक्षा नीवतयों के द्वारा सस्कत के विकास की वस्थवत को समझ सकें ग।े ृ ं 5. सस्कत के सरक्षण एि विकास के वलए समवपभत विवभन्न सस्थाओ के योगिान से पररवचत होंग।े ृ ं ं ं ं ं 3.3 स्वतन्र भाित के वववभन्न वशक्षा आयोगों म संस्कृ त वशक्षण ें 3.3.1 शवश्वशवद्याि
य शिक्षा आयोग में सस्कत शिक्षण ृ ं शवश् वशवद्यािय शिक्षा आयोग- (डॉ. राधाकष्ट् णन कमीश्न सन 1948-49) स् ितत्रोपरान् त ृ ् ं विश्ि विद्यालय स् तर की वशक्षा म ें सधार हते डॉ.राधाकष्ट्ण न की अध् यक्षता म ें विश्ि विद्यालय वशक्षा ृ ् ु ु आयोग का गठन वकया गया। आयोग ने अपने प्रवतििे न के 131ि ें पष्ट् ठ पर माध् यवमक विद्यालयों तथा ृ महाविद्यालयों के पाठयक्रम में सस् कत तथा अन् य प्राचीन भाषाओ के स् थान की भी चचा भ की ह।ै आयोग ृ ् ं ं th th ने कक्षा 9 एि 10 के पाठयक्रम म ें शास् त्रीय भाषा के रूप म ें सस् कत को स् थान विया। आयोग द्वारा ृ ् ं ं वनधाभररत मख् य विषय ह-ैं (i) मातभाषा (ii) सघीय भाषा या एक शास् त्रीय भाष
ा या आधवनक भारतीय ृ ु ु ं भाषा, (iii) अग्रेजी, (iv) प्रारवम्भक गवणत, (v) सामान् य विज्ञान, (vi) सामावजक अध् ययन ( 7 एि 8) में ं ं अनेक विकक पों म ें से वकन् हीं िो का चयन, वजसम ें िरीयता क्रमानसार सख् या एक पर एक शास् त्
रीय भाषा ु ं th th हो। कक्षा 11 एि 12 तथा प्रथम वडग्री कोसभ के पाठयक्रम म ें भी शास् त्रीय भाषाओ को स् थान विया ् ं ं गया। इन प्रकार आयोग ने सघीय भाषा क
े विकक प म ें सस् कत विषय को अवनिायभ करने की वसर्ाररश ृ ं ं की। आयोग के प. 131 पर कहा गया ह-ै ‘‘उपावध पाठयक्रम म ें हमारे छात्रों को अब सस् कत के अध् ययन ृ ृ ् ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 37 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं म ें प्रोत्स ावहत वकया जायेगा।’’ आयोग ने यह भी कहा वक सस् कत भाषा तथा हमारा सास् कवतक ृ ृ ं ं उत्तरावधकार ह।ै इसम ें अनसधान के विस् तत क्षेत्र विद्यमान ह।ैं ृ ु ं 3.2.2 माध्यशमक शिक्षा आयोग में सस्कत शिक्षण ृ ं माध् यशमक शिक्षा आयोग- (मिावलयर कमीशन 1952-53) माध् यवमक वशक्षा के स् तर के उन् नयन हते ु ु वनवमतभ इस आयोग म ें वद्वभाषा सत्र प्रस् तत वकया गया। इस सत्र के िोनों विकक पों म ें शास् त्रीय भाषा को भी ू ु ू स् थान विया गया- प्रथम शवकल् प– वनम् नवलवखत म ें से कोई एक भाषा- i. मातभाषा ृ ii.
क्षेत्रीय भाषा iii. मातभाषा ि शास् त्रीय भाषा का वमवश्रत पाठयक्रम ृ ् शितीय शवकल् प–वनम् नवलवखत म ें से कोई एक भाषा i. वहिी (अवहन् िी भाषा क्षेत्रों क
े वलए) ं ii. प्रारवम्भक अग्रेजी (वजन छात्रों ने पि भ माध् यवमक स् तर पर अग्रेजी नही पढ़ी हो) ू ं ं iii. उछ च अग्रेजी (वजन् होंने पि भ माध् यवमक स् तर पर अग्रेजी पढ़ी हो) ू ं ं iv. कोई एक आधवनक
भारतीय भाषा (वहन् िी तथा सख् या 1 पर ली गई भाषा को छोड़कर) ु ं v. कोई एक आधवनक वििशे ी भाषा (अग्रेजी को छोड़कर) ु ं vi. कोई एक भारतीय भाषा/शास् त्रीय भाषा। उपयभक् त िोनों विकक पों से स् पष्ट् ट ह ै वक मिावलयार आयोग ने मातभाषा एि क्षेत्रीय भाषा के वमवश्रत ृ ु ु ं पाठयक्रम म ें सस् कत को स् थान विया ह।ै साथ ही सस् कत आधवनक भारतीय भाषा म ें सवम्मवल त की ह,ै ृ ृ ् ु ं ं वकन् त स् पष्ट् टत: सस् कत पाठयक्रम की घोषणा नहीं की ह।ै ृ ् ु ं सिोशधत शिभाषा सत्र- ू ं 1. मातभाषा अथिा क्षेत्रीय भाषा। ृ (क) आधवनक भारतीय भाषा (वहिी क्षेत्रों के वलए) ु ं (ख) सघीय भाषा वहिी (अवहिी क्षेत्रों के वलए) ं ं ं सख् या 2 पर आधवनक भारतीय भाष
ा म ें वहिी प्रिशे ों म ें सस् कत को महत्त्ि विया जा सकता ह।ै आयोग ने ृ ु ं ं ं सास् कवतक तथा धावमकभ िोनों ही पक्षों स े सस् कत की महत्ता तथा हृियग्राह्यता की स् िीकार वकया ह।ै ृ ृ ं ं सस् कत के ितभमान ह्रास पर खेि प्रकट करतेहए आयोग ने इस तथ् य की ओर हमारा ध् यान आकष्ट् ट वकया ु ृ ृ ं ह ै वक यवि यही वस्थवत बनी रही तो भय ह ै वक कहीं अन् ततोगत् िा इस भाषा के पठन-पाठन का लोप न हो जाए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 38 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.3.3 सस्कत शिक्षा आयोग में सस्कत शिक्षण ृ ृ ं ं यह आयोग स्ितत्र भारत म ें सस्कत की वस्थवत एि विकास की सभािनाओ पर वचतन करने के वलए ृ ं ं ं ं ं ं गवठत वकया गया था । आयोग ने अपने प्रवतििे न म ें स्पष्टतः कहा ह वक माध्यवमक विद्यालयों के पाठयक्रम म ें सस्कत को अवनिायभ स्थान वमलना चावहए । इसके वलए वत्रभाषा सत्र म ें पररितभन करना ृ ् ू ं अपेवक्षत हो तो पररितभन भी अिश्य वकया जाए । सस्कत आयोग ने माध्यवमक
विद्यालयों म ें भाषाओ के अध्ययन के विषय म ें 4 योजनाओ का उकलेख ृ ं ं ं वकया ह ै – i. प्रथम योजना – (i) मातभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) अग्रेजी अथिा वहिी (अवहन्िी प्रिशे ों म ें ) ृ ं ं या आधवनक भाषा (वहिी प्रिेशों म ें ), (iii) सस्कत या कोई अन्य भाषा । ृ ु ं ं ii. शितीय योजना a. मातभाषा या क्षेत्रीय भाषा ृ b. अग्रेजी ं c. वहिी या अन्य भारतीय भाषा ं d. सस्कत ृ ं iii. ततीय योजना- वद्वतीय योजना की भाँवत हो, वकन् त सस् कत माध् यम स
े परीक्षा न हो तथा सस् कत ृ ृ ृ ु ं ं विषय के अकों का परीक्षार्ल पर प्रभाि न पड़े। ं आयोग ने इस योजना की अवभशसा नहीं की, क् योवक अक न जड़ने पर सस् कत की उपेक्षा हो ृ ु ं ं ं जायेगी iv. चतथश योजना- (i) मातभाषा या क्षेत्रीय भाषा/मातभाषा एि सस् कत का वमवश्रत पाठयक्रम। (ii) ृ ृ ृ ् ु ं ं अग्रेजी, (iii) वहिी या अन् य भारतीय भाषा या वहिी एि सस् कत का वमवश्रत पाठयक्रम। ृ ् ं ं ं ं ं आयोग ने विद्यालयों म ें सस् कत के पठन-पाठन की व् यिस् था के सम् बनध म ें वनम् न सझाि विए - ृ ु ं (i) कक्षा एक से पाँच तक के िल मातभाषा तथा पठन-पाठन सहगामी वक्रया के रूप म ें सस् कत ृ ृ ं सभावषतों के स् िछे छा से सचाचावलत पाठ। ु (ii) कक्षा छ: म ें मातभाषा तथा अग्रेजी। सस् कत सभावषत आवि के पाठ प्रचवलत रहगें ।े ृ ृ ु ं ं (iii) कक्षा सात से ग् यारह तक मातभाषा की मात्रा कम करते हए अग्रेजी तथा सस् कत का विशेष ु ृ ृ ं ं अध् ययन। (iv) आयोग ने
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‘सस् कत को स् कल के अवतररक्त समय म ें पढ़ाया जाये तथा उसे परीक्षा का विषय ृ ू ं न रखा जाए’
इस सझाि का पणतभ : विरोध वकया। ु ू (v) महाविद्यालय स् तर पर सस् कत के विस् तत अध् ययन की जड़ मजबत बनाने की दृवष्ट् ट से ृ ृ ू ं माध् यवमक स् तर पर सस् कत का पाँच िगों से कम या पाठयक्रम उपयक् त नहीं होगा। ृ ् ु ं (vi) जहाँ सस् कत का विवशष्ट् टीकत अध् ययन वकया जाता ह,ै िहाँ प्राकत को भी सस् कत के साथ ृ ृ ृ ृ ं ं अवनिायभ अध् ययन का विषय रखा जाना चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 39 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं (vii) भाषा अध् यापन की व् यिस् था म ें माध् यवमक विद्यालयों के पाठयक्रम म ें सस् कत का प्रािधान ृ ् ं अिश् य वकया जाना चावहए । इसके साथ ही साथ इस पाठयक्रम को सामावजक अध् ययन के ् पाठयक्रम के अन् तगतभ भी अिश्य सवम्मवलत करना चावहए । ् आयोग यह सस् तवत करता ह ै वक विषयों के िगों को इस प्रकार बनाया जाये वक जो छात्र सस् कत पढ़ना ृ ु ं ं चाह,ें ि े इससे िवचत न रह।ें ं 3.3.4 शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) में सस्कत शिक्षण ृ ं शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग1964-66)- 14 जलाई, 1964 को विश्ि विद्यालय अनिान आयोग के ु ु प्रधान प्रोर्े सर िौलत वसह कोठारी की अध् यक्षता म ें गवठत वकया गया आयोग ने कक्षा 1-4 तक के वलए ं एक भाषा- मातभाषा या क्षेत्रीय या प्रािवे शक भाषा, कक्षा 5-7 तक िो भाषाएँ- (अ) मातभाषा या ृ ृ प्रािवे शक भाषा (ब) वहिी या अग्रेजी, तक एक तीसरी भाषा (अग्रेजी, वहिी या प्रािवे शक भाषा) का ं ं ं ं अध् ययन िकै वकपक आधार पर वकया जा सकता है, यह प्रािधान रखा। कक्षा 8-10 तक तीन भाषाएँ- अवहिी भाषी क्षेत्रों म ें सामान् यरूप से वनम् नवलवखत भाषाए ँ होनी चावहए-(क) मातभाषा या प्रािवे शक भाषा ृ ं ं (ख) उछच स् तर या वनम् न स् तर की वहिी (ग) उछ च या वनम् न स्त र की अग्रेजी। ं ं वहिी भाषी क्षेत्रों म ें सामान् यत: वनम् न भाषाए ँ होनी चावहए- ं ं (क) मातभाषा या प्रािवे शक भाषा ृ (ख) अग्रेजी (या वहिी यवि अग्रेजी मातभाषा के रूप म ें ले ली गई ह)ै ृ ं ं ं (ग) वहिी के अवतररक् त एक अन् य आधवनक
भारतीय भाषा। ु ं नोट- शास् त्रीय भाषा का अध् ययन िकै वकपक आधार पर उपयभक् त भाषाओ के अवतररक् त वकया जा सकता ु ं ह।ै कक्षा 11-12 के वलए कोई िो भाषाए ँ वजनम ें कोई आधवनक भारतीय भाषा, कोई आधवनक वििशे ी भाषा ु ु या कोई शास् त्रीय भाषा सवम्मवलत हो तथा एक अवतररक् त भाषा ली जाए। कोठारी आयोग ने सस् कत या अन् य वकसी शास् त्रीय भाषा क
ो वत्रभाषा सत्र म ें स् थान नहीं विया ह,ै अवपत ृ ू ु ं आधवनक भारतीय भाषाओ को स् थान विया ह।ै आयोग का मानना ह ै वक मातभाषा तथा सस् कत का एक ृ ृ ु ं ं वमवश्रत पाठयक्रम होना चावहए , परन् त जनमत इसके पक्ष म ें नहीं ह।ै ् ु 3.4 स्वतन्र भाित की वववभन्न वशक्षा नीवतयों म संस्कृ त वशक्षण ें 3.4.1 शिक्षा नीशत (1968) में सस्कत शिक्षण ृ ं शहिी प्रिेिों में- 1. मातभाष, 2. वहिी, 3. अग्रेजी ृ ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 40 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वहिी, अग्रेजी इनके अवतररक् त िसरी एक आधवनक भारतीय भाषा (प्रधानत: कोई द्रविड़ पररिार की ु ं ं ू भाषा)। अशहिी प्रिेिों में- 1. मातभाषा, 2. वहिी, 3. अग्रेजी ृ ं ं ं विश्ि विद्यालय स् तर पर वहिी ि अग्रेजी भाषा के अवतररक् त कोई एक अन्य भाषा वजस पर भलीभाँवत ं ं अवधकार प्राप् त करने के वलए विश्ि विद्यालय तथा महाविद्यालय म ें समवचत पाठयक्रम व् यिस् था होनी ् ु चावहए । इसके वलए 1968 की राष्ट् रीय वशक्षा नीवत म ें यह सस् तवत की गई वक सस् कत भाषा भारतीय ृ ु ं ं भाषाओ की जननी ह,ै अत: विद्यालय तथा विश् िविद्यालय स् तर पर सस् कत अध् ययन की समवचत ृ ु ं ं व्यिस् था होनी चावहए । 3.4.2 नई शिक्षा नीशत (1986) में सस्कत शिक्षण ृ ं इस नीवत म ें वत्रभाषासत्र को महत्त् ि विया गया। ू 5+3+2 इस सरचना के अनसार भाषा अध् ययन की व् यिस् था की सस् तवत की गई- ु ु ं ं कक्षा का क्रम शत्रभाषा सत्र ू 1. प्रथम, वद्वतीय, ततीय कक्षाओ म ें 1. मातभाषा ृ ृ ं 2. तीसरी कक्षा से पाँचिीं कक्षा तक 2. (1) मातभाषा (2) अग्रेजी ृ ं 3. छठी कक्षा से आठिीं कक्षा तक 3. (1) मातभाषा (2) अग्रेजी (3) ृ ं सस् कत भाषा ृ ं (अथिा अन्य श्रेष्ट् ठ भाषा) 4. निीं तथा िसिीं कक्षा में 4. (1) मातभाषा (2) अग्रेजी (3) वहिी ृ ं ं 3.4.3 नई शिक्षा नीशत (1986) में सस्कत का स्थान ृ ं राष्ट्रीय वशक्षा नीवत म ें भी प्राथवमक स्तर पर एक भाषा-मातभाषा अथिा प्रािवे शक भाषा को पाठयक्रम म ें ृ ् स्थान िने े की बात कही गई ि कोठारी आयोग द्वारा भाषा सम्बन्धी सस्तवत का ही अनकरण वकया गया। ु ु ं 17 माचभ, 1989 को िशे के सिोछच न्यायालय ने के न्द्रीय माध्यवमक वशक्षा बोडभ के विनाक 16 ं वसतम्बर, 1988 के आिशे के उस अश को लाग वकये जाने से रोक विया, वजसके तहत सस्कत को नई ृ ू ं ं पाठयक्रम योजना से प्रायः वनष्ट्कावसत कर विया गया था। 1964 म ें वशक्षा आयोग ने भारतीय भाषाओ के ् ं साथ
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‘आधवनक’
शब्ि लगाकर सस्कत को भारतीय भाषाओ की सची से बवहष्ट्कत कर विया था। वशक्षा ृ ृ ु ू ं ं आयोग की इस असगत ररपोटभ को कायाभवन्ित नहीं वकया गया तथा वत्रभाषा सत्र म ें सस्कत की वस्थवत ृ ू ं ं यथाित बनी रही। इस समय तक यद्यवप वत्रभाषा सत्र की चचाभ और पररभाषा होती रही पर इसे परी तरह ् ू ू कायाभवन्ित नहीं वकया जा सका। 24 जलाई 1968 को वशक्षा मत्रालय के वशक्षा नीवत के सम्बन्ध म ें एक ु ं महत्िपण भ प्रस्ताि पाररत वकया। इस वशक्षा नीवत प्रस्ताि का सहारा लेकर राष्ट्रीय वशक्षा नीवत 1986 के ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 41 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िस्तािजे म ें माध्यवमक स्तर पर पढ़ाई जाने िाली भाषाओ के सिभ भ म ें कहा गया वक 1968 की वशक्षा ं ं नीवत म ें भाषाओ के विकास के सम्बन्ध म ें विस्तार से चचाभ की गई। इसम ें वनवहत मल मद्दा आज भी उतना ू ु ं ही प्रासवगक ह ै वजतना तब था। विषमताओ के बािजि इसम ें सधार की कोई गजाइश नहीं ह।ै इसे अवधक ू ु ु ं ं ं उत्साह और सोद्दश्े य तरीके से कायाभवन्ित वकया जाना चावहए । इसी राष्ट्रीय वशक्षा नीवत 1986 के पैरा 5, 33 म ें कहा गया ह ै वक
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‘‘परातत्ि, मानिता और समाज विज्ञान को समवचत आधार िने े के वलए ज्ञान के ु ु समन्िय तथा विवभन्न विषयों म ें गिेषणा को उत्सावहत करने के वलए प्राचीन भारतीय ज्ञान भण्डार की खोज एि ितभमान यग की िास्तविकताओ के साथ इसकी सम्बद्धता के वलए सस्कत भाषा के अध्ययन ृ ु ं ं ं की प्रचर सविधाए ँ िी जाएगँ ी।’’
ु ु इस प्रकार राष्ट्रीय वशक्षा नीवत के िस्तािजे म ें एक ओर सस्कत के अध्ययन को पनपाने की बात ृ ं कही गई तो िसरी ओर 1968 की वशक्षा नीवत के अनसार सस्कत को नजर-अिाज करने पर बल विया ृ ु ं ं ू गया। उछच स्तर पर उपज े इस अन्तविरभ ोध की पष्ठभवम म ें के न्द्रीय माध्यवमक वशक्षा बोडभ ने वत्रभाषा सत्र की ृ ू ू वक्रयावन्िवत के सम्बन्ध म ें 16 अगस्त 1988 का िस्तािजे तैयार वकया। इसम ें यह प्रयत्न वकया ह ै वक सस्कत का नाम भी रह जाए तथा 1968 के वशक्षा मत्रालय के वशक्षा नीवत विषयक उस महत्िपण भ प्रस्ताि ृ ू ं ं का मल मद्दा भी सरवक्षत रह जाए वजसका अनमोिन
राष्ट्रीय वशक्षा नीवत 1986 के िस्तािजे म ें वकया गया ू ु ु ं ह।ै सत्र 1988 तक के न्द्रीय माध्यवमक वशक्षा बोडभ से सम्बद्ध सभी वि द्यालयों म ें सस्कत कक्षा छः से ृ ं आठ तक तीसरी भाषा के रूप म ें तथा निीं ि िसिीं कक्षा म ें िसरी भाषा के रूप म
ें पढ़ाई जाती थी। ू सस्कत का यह प्रसार कछ लोगों की आखँ की वकरवकरी बना हआ था। र्लतः सस्कत को समाि करन े ु ृ ृ ु ं ं के वलए के न्द्रीय वशक्षा परामशिभ ात्री सवमवत ने 1 माचभ 1988 म ें एक सभा म ें महत्िपणभ वनणयभ वलया। ू सत्ताईस भाषाओ की लम्बी सची म ें सभी वििशे ी भाषाओ और सस्कत को बाहर वनकाल विया गया। ृ ू ं ं ं उछचतम न्यायालय ने सविधान के अनछछेि 351 का भी उकलेख वकया ह ै और कहा ह ै वक ु ं सविधान म ें यह स्पष्ट प्रािधान ह ै वक वहन्िी को बढ़ािा िने ा के न्द्रीय सरकार का िावयत्ि ह।ै अनछछेि 351 ु ं म ें यह भी कहा गया ह ै वक आिश्यकता पड़ने पर वहन्िी अपने शब्ि भण्डार म ें अवभिवद्ध के वलए सस्कत ृ ृ ं का सहारा लेगी, इसीवलए सस्कत को बढ़ािा िने ा भी बहत आिश्यक ह ै क्योंवक सस्कत को सविधान की ु ृ ृ ं ं ं आठिीं अनसची म ें भी स्थान विया गया ह।ै यह एक सखि वस्थवत ह।ै ु ू ु सस्कत को वहन्िी
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‘अ’
के साथ 20% के अनपात म ें सयक्त वकया गया ह।ै वकन्त सिोछच ृ ु ु ु ं ं न्यायालय ने यह आिेश विया वक
के न्द्रीय विद्यालयों म ें सस्कत की वस्थवत पििभ त बनी रहगे ी। र्लतः ृ ् ू ं आधवनक काल म ें सभी राजकीय ि के न्द्रीय विद्यालयों म ें माध्यवमक स्तर तक यह अवनिायभ ह।ै उछचतर ु माध्यवमक ि उछच स्तर पर िकै वकपक विषय के रूप म ें पढ़ाई जाती ह।ै तथावप अध्याय 4 म ें िवणतभ
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‘राष्ट्रीय सस्कतसस्थानम’,
नई विकली तथा सस्कत विश्वविद्यालयों की वस्थवत को िखे कर यह प्रतीत होता ृ ृ ् ं ं ं ह ै वक अब भी सस्कत के विविध पाठयक्रम बखबी चलाए जा रह े ह।ैं के न्द्र सरकार न े 1999 स े 2000 तक ृ ् ू ं इस िष भ को
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‘सस्कत िषभ’
घोवषत वकया। ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 42 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.5 िा
ष्ट्रीय पाठ्यचया प्रारूप 1975, 1988, 2000, 2005 तथा सस्ं कृ त वशक्षण वकसी भी िशे का स्कल पाठयक्रम उसके सविधान की भावत उसकी आत्मा का प्रवतवनवधत्ि करता ह ै । ् ू ं ं हमारे राष्ट्र
नेताओ न े बार बार इस बात की ओर सके त वकया ह ै वक भारत की वशक्षा व्यिस्था इसकी ं ं ऐवतहावसक पररप्रेक्ष्य को ध्यान म ें रखकर वकया जाना चावहए । 3.5.1 राष्रीय पाठयचयाश प्रारप 1975 ् पाठयक्रम सशमशत- 1973 में वशक्षा एि समाज ककयाण मत्रालय ने 10+2 प्रणाली का तैयार करने के ् ं ं वलए एक विशेषज्ञ िल का गठन वकया । 1974 म ें इस िल को बढ़ा कर राष्ट्रीय शवै क्षक अनसधान और ु ं प्रवशक्षण पररषि कछ विशषे ज्ञों को भी इसम ें सवम्मवलत वकया वजन्होंने 1972 म ें पाठयक्रम का एक प्रारूप ् ु ् तैयार वकया था । अगस्त 1975 म ें विकली म ें पाठयक्रम प्रारूप पर विचार करन े के वलय एक
राष्ट्रीय ् सम्मलेन बलाया गया । इस सवमवत के अध्यक्ष प्रो. रईस अहमि थे तथा 40 अन्य सिस्य थे । ु उद्देश्य- वशक्षा आयोग (1964-65) की ररपोटभ में बेवसक वशक्षा के श्रेष्ठतम तत्िों को सवम्मवलत करते हए ु वशक्षा को राष्ट्र क
े जीिन, आिश्यकताओ तथा आकाक्षाओ से सम्बद्ध करने के वलए उसके आतररक ं ं ं पररितभन पर बल विया गया ह ै । अतः इस प्रारूप म ें सिस्यों ने स्कल म ें प्रथम िस िषों- प्रथम कक्षा स े ू िसिीं कक्षा तक – के पाठयक्रम वनमाभण के के िल प्रमख पक्षों पर दृवष्टपात वकया । ् ु प्रमख शसफाररिें - ु i. स्िीकत वसद्धातो और मकयों की रूपरेखा के अतगभत लचक हो। ृ ू ं ं ii. पाठयक्रम जन-जीिन की आिश्यकताओ और आकाक्षाओ के अनरूप हो। ् ु ं ं ं iii. विज्ञान और गवणत : उत्पािन एि तकभ शील दृवष्टकोण के वलए। ं iv. कायाभनभि : सीखने के श्रोत के रूप म।ें ु v. वत्र-भाषा र्ामभला ू vi. कालात्मक अनभि और अवभव्यवक्त। ु vii. शारीररक वशक्षा viii. चररत्र-वनमाभण और मानि मकय। ू प्रारप में भाषाओ का स्थान ं वत्र-भाषा र्ामभला राष्ट्रीय नीवत के रूप म ें स्िीकार वकया जा चका ह ै । स्कल म ें िस िष भ व्यतीत करने के ू ु ू पिात बछचों को प्रथम भाषा म ें प्रिीण, िसरी भाषा समझने और उसे स्िय अवभव्यक्त करने म ें समथभ, तथा ् ं ू ततीय भाषा के सामान्य रूप को समझने म ें समथभ हो जाना चावहए । ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 43 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं प्राथवमक स्तर के अत तक
छात्रों को मातभाषा के मानक रूप के माध्यम से सामान्य रूप म ें अपेवक्षत गठन ृ ं और शब्िािली का प्रयोग करके मौवखक और वलवखत रूप समथभ हो जाना चावहए। छात्रों क
ो शद्ध ु उछचारण, ध्िवन के उतार-चढ़ाि, मद्रा, आिश्यक गवत और अथभ ग्रहण के साथ बोल बोल कर पढ़ना ु आना चावहए । माध्यवमक स्तर पर भाषा की गहनता और विचारात्मक विषय-िस्त के माध्यम से सभी ु विशेषताओ म ें बहत्तर प्रिीणता अपेवक्षत ह।ै वद्वतीय एि ततीय भाषा के भी यही लक्ष्य ह।ै वद्वतीय भाषा ृ ृ ं ं प्राथवमक स्तर अथिा वमवडल स्तर पर प्रारम्भ की जाती ह ै तथा ततीय भाषा छठी कक्षा से प्रारम्भ की ृ जाती ह।ै 3.5.2 राष्रीय पाठयचयाश प्रारप 1988 ्
राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप के विकास हते एन. सी. आर. टी. ने 1984-85 म ें एक राष्ट्रीय सगोष्ठी एि चार ् ु ं ं क्षेत्रीय सगोवष्ठयाँ की । इसके आधार पर प्रारूप
की योजना बनाई गई वजसम ें प्राथवमक एि माध्यवमक स्तर ं ं के पाठयचयाभ म ें वनम्नवलवखत ससोधन वकया गया । ् ं उद्देश्य  प्राथवमक स्तर पर बछचों के शारीररक मानवसक एि बौवद्धक विकास को ध्यान म ें पाठयचयाभ का ् ं वनमाभण होना चावहए ।  इसका मख्य उद्दश्े य विवभन्न शैवक्षक सस्थाओ के बीच असमानता को कम करना । ु ं ं  शवै क्षक सस्थाओ म ें प्रत्येक स्तर पर जावतगत भिे को कम करना । ं ं  प्रत्येक स्तर पर पाठयचयाभ म ें लचीलापन लाना वजससे छात्रों एि वशक्षकों के बीच की िरी को कम ् ं ू वकया जा सके । 2.5.3 राष्रीय पाठयचयाश प्रारप 2000 ् एन. सी. आर. टी. न े राष्ट्रीय सककपों को मान्य करके सम्पण भ विद्यालय वशक्षा के वलए निीन पाठयचया भ ् ू ं रूपरेखा विकवसत करने का िावयत्ि वलया। वसतम्बर 1999 म ें पररषि ने अपने आतररक सकायों के ं ं ् सिस्यों का एक पाठयचयाभ समह गवठत करके यह कायभ शरू वकया । इस समह ने पररषि मख्यालय के ् ू ु ू ु सकाय के प्रत्येक सिस्य और सभी क्षेत्रीय वशक्षा सस्थानों से परामश भ करके और वसद्धान्तों एि शोध पर ं ं ं आधाररत सामग्री का अध्ययन करके
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“विद्यालयी वशक्षा के वलएराष्ट्रीय पाठयचया भ की रूपरेखा : ् पाठयचयाभ िस्तािजे ”
तैयार वकया । ् शवषय-वस्त ु 1988 म ें वजन मख्य सरोकारों एि वचताओ को व्यक्त वकया गया था, उन पर इस िस्तािज़े ने पनः जोर ु ु ं ं ं विया। भाषा वशक्षण एि भाषा के माध्यम से जड़े मद्द,े सभी स्तरों के वलए एक समान स्कल सरचना की ु ु ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 44 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं आिश्यकता, सामावजक समरसता से जड़े के वन्द्रत मद्द,े पथवनरपेक्षता एि राष्ट्रीय एकता और इन सबकी ु ु ं ं शवै क्षक प्रवक्रया से जड़े मद्द े को भी इस िस्तािज़े म ें शावमल वकया गया । ु ु 2.5.4 राष्रीय पाठयचयाश प्रारप 2005 ् शवषय प्रवेि 1. यह विद्यालयी वशक्षा का अब तक का निीनतम राष्ट्रीय िस्तािजे ह ै । 2. इसे अन्तराभष्ट्रीय स्तर के वशक्षावििों, िज्ञै ावनकों, विषय विशेषज्ञों ि अध्यापकों ने वमलकर तैयार वकया ह।ै 3. मानि ससाधन विकास मत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में िशे के चन े हए 23 ु ु ं ं विद्वानों ने वशक्षा को नई राष्ट्रीय चनौवतयों के रूप म ें िखे ा । ु मागशििी शसद्धान्त 1. ज्ञान को स्कल के बाहरी जीिन से जोड़ा जाए । ू 2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मक्त वकया जाए । ु 3. पाठयचया भ पाठयपस्तक के वन्द्रत न रह जाए । ् ् ु 4. कक्षाकक्ष को गवतविवधयों से जोडा जाए । 5. राष्ट्रीय मकयों के प्रवत आस्थािान विद्याथच तैयार हो। ू प्रमख सझाव ु ु 1. वशक्षण सत्रों जसै े-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मतभ से अमतभ की ओर,आवि का अवधकतम प्रयोग ू ू ू हो। 2. सचना को ज्ञान मानन े से बचा जाए । ू 3. विशाल पाठयक्रम ि मोटी वकताबें वशक्षा प्रणाली की असर्लता का प्रतीक ह ै । ् 4. मकयों को उपिशे िके र नहीं िातािरण िके र स्थावपत वकया जाए। ू 5. अछछे विद्याथच की धारणा में बिलाि आिश्यक ह ै अथाभत अछछा विद्याथच िह ह ै जो तकभ पण भ ् ू बहस के द्वारा अपने मौवलक विचार वशक्षक के सामने प्रस्तत करता ह ै । ु 6. अवभभािकों को सख्त सन्िशे विया जाए वक बछचों को छोटी उम्र म ें वनपण बनाने की आकाक्षा ु ं रखना गलत ह ै । 7. बछचों को स्कल से बाहरी जीिन में तनािमक्त िातािरण प्रिान करना । ू ु 8.
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“कक्षा म ें शावन्त”
का वनयम बार-बार ठीक नहीं अथाभत जीिन्त कक्षागत िातािरण को ् प्रोत्सावहत वकया जाना चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 45 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 9. सहशवै क्षक गवतविवधयों म ें बछचों के अवभभािकों को भी जोड़ा जाए । 10. समिाय को मानिीय ससाधन के रूप म ें प्रयक्त होने का अिसर ि ें । ु ु ं 11. खले आनन्ि ि सामवहकता की भािना के वलए ह,ै ररकाडभ बनाने ि तोड़ने की भािना को प्रश्रय ू न ि ें । 12. बछचों की अवभव्यवक्त में मातभाषा महत्िपणभ स्थान रखती ह ै । वशक्षक अवधगम पररवस्थवतयों म ें ृ ू इसका उपयोग करें । 13. पस्तकालय में बछचों को स्िय पस्तक चनन े का अिसर ि ें । ु ु ु ं 14. ि े पाठयपस्तकें महत्िपणभ होती ह ै जो अन्तःवक्रया का मौका ि ें । ् ु ू 15. ककपना ि मौवलक लेखन के अवधकावधक अिसर प्रिान कराि ें । 16. सजा ि परस्कार की भािना को सीवमत रूप म ें प्रयोग करना चावहए । ु 17. बछचों के अनभि और स्िर को प्राथवमकता िते े हए बाल के वन्द्रत वशक्षा प्रिान की जाए । ु ु 18. सास्कवतक कायभक्रमों में मनोरजन के स्थान पर सौन्ियभबोध को प्रश्रय ि ें । ृ ं ं 19. वशक्षक प्रवशक्षण ि विद्यावथभयों के मकयाकन को सतत प्रवक्रया के रूप म ें अपनाया जाए । ू ं 20. वशक्षकों को अकािवमक ससाधन ि निाचार आवि समय पर पहचाय े जाए । ु ं ं 3.6 सस्ं कृ त अध्ययन-अध्यापन म नवाचाि ें निाचार से तात्पयभ वशक्षा या वशक्षण म ें निीनता से ह ै । चाह े िह प्रौद्योवगकी यक्त पररितभन हो या शवै क्षक ु विवधयों का पररितभन हो। वशक्षण को रुवचपण भ बनान े के वलए समयानरूप प्रौद्योवगकी का प्रयोग वकया ू ु जाता रहा ह।ै वजसम ें कम्प्यटर सहायक वशक्षा या इण्टरनेट सहायक वशक्षा ह,ै वजसके अन्तगतभ कम्प्यटर ू ू की कायभप्रणाली तथा विद्याथच विशेष के बीच अनिशे न के िौरान एक ऐसी प्रयोजनपण भ अतःवक्रया चलती ु ू ं रहती ह ै वजसके माध्यम से विद्याथच को अपनी क्षमताओ तथा अवधगम गवत का अनसरण करते हए ु ु ं वनधाभररत-अनिशे नात्मक उद्दश्यों की प्रावि म ें यथेष्ट सहयोग वमलता रहता ह।ै वशक्षा के क्षेत्र म ें कम्प्यटर ु ू विविध प्रकार की ऐसी अमकय भवमका वनभा सकते ह ै वजसके माध्सम से वशक्षा जगत विविध प्रकार की ू ू गवतविवधयों का अछछी विषयों का अध्ययन-अभ्यापन वकया जा सकता ह ै चाह े िह विज्ञान हो, अग्रेजी ं हो या सस्कत। शवै क्षक विवधयों म ें पररितभन कर रुवचपण भ बनाने के वलए राष्ट्रीय सस्कत सस्थान ने सस्कत ृ ृ ृ ू ं ं ं ं वशक्षा को सामावजक एि िवै श्वक रूप विलाने के वलए नए-नए शोध एि विकास वकए एि सस्कत भारती ने ृ ं ं ं ं अपने प्रयास के द्वारा सस्कत को सामान्य बोलचाल ई भाषा म ें प्रवतवष्ठत वकया ह।ै इसी प्रकार अन्य ृ ं सस्थाए ँ भी सस्कत के विकास के वलए प्रयासरत ह ै । ृ ं ं 3.6.1 राष्रीय सस्कत सस्थान के प्रयास ृ ं ं राष्रीय सस्कत सस्थान, नई विकली म ें वस्थत एक शक्षै वणक सस्थान ह।ै यह भारत सरकार द्वारा पणतभ ः ृ ू ं ं ं वित्तपोवषत मावनत विश्वविद्यालय ह।ै भारत सरकार ने सस्कत आयोग (1956-1957) की अनशसा के ृ ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 46 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं आधार पर सस्कत के विकास तथा प्रचार-प्रसार हते सस्कत सम्बद्ध के न्द्र सरकार की नीवतयों एि ृ ृ ु ं ं ं कायभक्रमों के वक्रयान्ियन के उद्दश्े य से 15 अक्टबर 1970 को एक स्िायत्त सगठन
के रूप म ें इसकी ू ं स्थापना की। 7 मई 2002 को मानि ससाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकार ने इसे बहपररसरीय मावनत ु ं विश्वविद्यालय के रूप म ें घोवषत वकया। उद्देश्य- सस्थान की स्थापना के उद्दश्े य पारम्पररक सस्कत विद्या ि शोध का प्रचार, विकास ि प्रोत्साहन ह ै ृ ं ं और उनका पालन करते हए सस्कत विद्या की सभी विधाओ म ें शोध का आरम्भ, अनिान, प्रोत्साहन ु ृ ु ं ं तथा सयोजन करना ह,ै साथ-साथ
वशक्षक-प्रवशक्षण तथा पाण्डवलवप विज्ञान आवि को भी सरक्षण िने ा ु ं ं वजससे पाठमलक प्रासवगक विषयों म ें आधवनक शोध के वनष्ट्कष भ के साथ सम्बन्ध स्पष्ट वकया जा सके ू ु ं तथा इनका प्रकाशन हो सके । गशतशवशधयााँ - राष्ट्रीय सस्कत सस्थान वनम्नवलवखत कायभक्रमों के गवतविवधयाँ के सचालन हते ृ ु ं ं ं कतसककप ह।ै ृ ं  िशे के विवभन्न राज्यों म ें के न्द्रीय सस्कत पररसरों की स्थापना करना । ृ ं  प्राथवमक स्तर से स्नातकोत्तर स्तर तक परम्परागत पद्धवत से सस्कत के अध्ययन, अध्यापन को ृ ं सचावलत करना एि विद्यािाररवध उपावध प्रावि हते शोधकायभ का प्रबन्ध करना। ु ं ं  स्नातक एि स्नातकोत्तर छात्रों के वलए सेिापण भ वशक्षण प्रवशक्षण कायभक्रम का सचालन करना। ू ं ं  स्िवै छछक एि सयक्त पररयोजनाओ को लाग करने म ें अन्य महत्िपण भ सस्थाओ के साथ सहयोग ु ू ू ं ं ं ं ं स्थावपत करना।  पाण्डवलवप सग्रहालय की स्थापना के साथ-साथ अप्राप्य एि िलभभ पाण्डवलवपयों एि महत्िपण भ ु ु ू ं ं ं ु ग्रन्थों का सम्पािन और प्रकाशन आवि की व्यिस्था करना।  सस्कत के मौवलक ग्रन्थों के प्रकाशन करना एि सस्कत म ें प्रकावशत पत्र पवत्रकाओ को अनिान ृ ृ ु ं ं ं ं िके र प्रोत्सावहत करना।  अगीभत पररसरों एि िशे के विवभन्न शवै क्षक सस्थाओ म ें अध्ययनरत छात्र-छात्राओ को सस्कत ृ ू ं ं ं ं ं ं पढने के वलए छात्रिवत्त प्रिान करना। ृ  सस्कत के प्रकावशत उपयोगी ग्रन्थों को खरीिकर विवभन्न सस्थाओ म ें वनःशकक वितरण करना। ृ ु ं ं ं  पारम्पररक पद्धवत से प्राथवमक (प्रथम) स्तर से स्नातकोतर (आचायभ) स्तर पयभन्त परीक्षाओ का ं आयोजन करना।  पारम्पररक पद्धवत से सस्कत वशक्षणरत सस्थाओ को सबद्धता प्रिान करना। ृ ं ं ं ं  िशे की सस्कत सेिी सस्थाओ को लाभ पहचाने के वलए अिकाश प्राि अनभिी सस्कत ु ृ ृ ु ं ं ं ं ं विद्वानों की शास्त्रचडामवण योजना के अन्तगभत वनयक्त कर, विवभन्न सस्थाओ म ें पिस्थावपत ू ु ं ं करना।  कायभरत सस्कत प्राध्यापकों के ज्ञानिधभन हते पनियाभ पाठयक्रम का आयोजन करना। ृ ् ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 47 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं  समय समय पर िशे एि वििशे स्तर पर विश्व सस्कत सम्मले न जसै े बहत कायभक्रमों का आयोजन ृ ृ ् ं ं करना। राष्रीय सस्कत सस्थान वतशमान में सचाशित कायशक्रम शनम्नशिशखत हैं :- ृ ं ं ं  पत्राचार एि अनौपचाररक रीवत से सस्कत वशक्षण ृ ं ं  वशक्षक-प्रवशक्षण तथा स्िाध्याय सामग्री का वनमाभण  अनौपचाररक सस्कत वशक्षण ृ ं  सस्कत भाषा वशक्षक प्रवशक्षण ृ ं  शास्त्रीय ग्रन्थों का उन्नत वशक्षण  स्िाध्याय सामग्री का वनमाभण  इलेक्रावनक माध्यमों से सस्कत कायभक्रमों का प्रसारण ृ ं  पारम्पररक पद्धवत से सस्कत वशक्षण हते पाठयक्रम-वनधाभरण ृ ् ु ं  सस्थान एि सम्बद्ध सस्थाओ द्वारा सचावलत समस्त पाठयक्रमों के वलए परीक्षाओ का आयोजन ् ं ं ं ं ं ं  पररसरों की स्थापना  सयोग्य छात्रों को छात्रिवत्तयाँ प्रिान करना ृ ु  सस्कत सिधभन तथा प्रचार हते भारत सरकार के विविध योजनाओ का कायाभन्ियन ृ ु ं ं ं  भारत के राष्ट्रपवत द्वारा सम्मावनत विद्वानों को मानिये रावश  अवखल भारतीय िाक्स्पधाभ प्रवतयोवगता  स्िवै छछक सस्कत सगठनों को वित्तीय सहायता ृ ं ं 3.6.2 श्री अरशवन्ि आश्रम के प्रयास रुए डे ला मरीन (Rue de la Marine) पर वस्थत श्री अरवबिो आश्रम (Sri Aurobindo Ashram), ं भारत के सबसे प्रवसद्ध और धनी आश्रमों में से एक ह,ै जहा िशे -वििशे से श्रद्धाल आत े ह।ैं आश्रम के ु ं आध्यावत्मक वसद्धात योग (Yoga) और आधवनक विज्ञान (Modern Science) के अद्भत मले को ु ं ु िशाभते ह।ैं आश्रम में कई विभाग ह,ैं वजनमें कायाभलय, सस्कत कायाभलय, पस्तकालय, भोजन कक्ष, ृ ु ं पस्तक/ र्ोटोग्रार् वप्रवटग, कायभशाला, खले का मिै ान, आटभ गलै री, नवसांग होम आवि शावमल ह।ैं यहा ु ं ं ं कई विशषे अिसर पर िशनभ (Darshan or Message) उत्सि का आयोजन वकया जाता ह,ै वजसमें श्री अरवबिो घोष और 'मीरा अकर्ासा' (Mirra Alfassa), माँ (The Mother) के आध्यावत्मक विचारों ं का प्रचार-प्रसार वकया जाता ह।ै आश्रम म ें एक पस्तकालय भी ह,ै जहा पयभटक आध्यावत्मक और योग ु ं सबधी पस्तकें और योग के नए अनभि ले सकते ह।ैं ु ु ं ं पररचय - श्री अरविन्ि आश्रम के मल म ें भारत के प्रवसद्ध कवि और िाशवभ नक, श्री अरवबिो घोष थे, ू ं वजन्होंने 24 निम्बर 1926 को (वसवद्ध वििस) अरवबिो आश्रम की स्थापना की थी। उसी िषभ के विसम्बर ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 48 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं माह में श्री अरविन्ि ने वनिय वकया वक ि े जनता से िर रहगें |े उस समय आश्रम म ें लगभग 20-25 साधक ू ही थे। वजनमें से एक वििशे ी मल की वचत्रकार और सगीतकार 'मीरा अकर्ासा' (Mirra Alfassa) थी। ू ं श्री घोष ने सहकमच मीरा अलर्सा को आश्रम की वजम्मिे ारी सौंप िी। वजन्ह ें माँ (The Mother) नाम से जाना जाता ह।ै अरवबिो घोष की मत्य के बाि सन 1950 म ें मीरा अकर्ासा ने श्री अरवबिो आश्रम रस्
ट ृ ् ु ं ं की स्थापना की थी और 1973 तक सचालन वकया। ं सस्कत के उत्थान में श्री अरशवन्ि आश्रम के प्रयास - 'मीरा अकर्ासा' माँ वजन्होंने श्री अरवबिो ृ ं ं आश्रम रस्ट की स्थ
ापना की जो की एक वचत्रकार और सगीतकार भी थीं। सस्कत के प्रवत उनकी रुवच ृ ं ं और वनष्ठा अत्यवधक थी माँ के इछछा थी की सस्कत एक साधारण रूप म ें भारत की राष्ट्रीय भाषा घोवषत ृ ं होनी चावहए। इस शास्त्रीय भाषा से मा गहराई से प्रभावित थी, और भाषा के प्रचवलत भय की यह एक ं मवश्कल और विद्वानों के वलए ही प्रासवगक भाषा ह ै को िर कर सामान्य जन के उपयोग के वलए सस्कत ृ ु ं ं ू का एक सरल रूप चाहतीं थीं। वजसे सरलता से वलखा जा सके , आपस म ें बात-चीत की जा सके और आसानी से समझा जा सके | आश्रम म ें वस्थत सस्कत कायाभलय माँ की सस्कत के प्रवत इसी वनष्ठा का ृ ृ ं ं पररणाम ह।ै सस्कत के सरल रूप को बढ़ािा िने े और लोकवप्रय बनाने में श्री अरवबिो आश्रम का सस्कत ृ ृ ं ं ं कायाभलय कई िषों से सवक्रय एि सस्कत के वलए समवपभत ह।ैं इस विशा में आश्रम के सस्कत कायाभलय के ृ ृ ं ं ं अनसधान कायभ ने अब तक एक अलग तरीके से अपनाने के वलए सस्कत को अध्यापन और सीखने के ृ ु ं ं वलए कई निीन पस्तकों का सपािन वकया ह।ै शरुआती िौर म ें ये पस्तकें विशषे रूप से बहत आसानी से ु ु ु ु ं भाषा सीखने में मििगार सावबत हो पाएगी, जो वक मवश्कल माना जाता ह।ै ु इनके कछ विशेष प्रकाशनों म ें :- ु  Learn Sanskrit: The Natural Way,  Speak Sanskrit: The Easy way,  सस्कत कै से पढ़ायें, सरभारती (1-4), ृ ु ं  सरलसस्कतसरवणः (1-2), ृ ं  सस्कतस्य-व्यािहाररक स्िरुपम, ृ ् ं  छन्िोिकलरी, जो शरुआती समय में सस्कत भाषा सीखने और लोकवप्रय बनाने म ें बेहि सहायक ह।ैं ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 49 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.6.2 सस्कत भारती के प्रयास ृ ं सस्कत भारती एक सास्कवतक सस्था ह ै जो सस्कत को पनः बोलचाल की भाषा बनाने में सलग्न ह।ै चम ृ ृ ृ ु ु ं ं ं ं ं कष्ट्ण शास्त्री ने समस्त विश्व म ें सस्कतभाषा को पनजचवित करने के वलये इस सस्था स्थापना की। ृ ृ ु ं ं पररचय- सस्कत भारत की अवत प्राचीन भाषा ह ै वकन्त िभाभग्य से आधवनक काल म ें इसकी उपेक्षा की ृ ु ु ं ु जा रही ह।ै स्ि. बाबासाहब आप्टे सस्कत के परम आग्रही थे और स्ियसेिकों को सस्कत सीखने तथा ृ ृ ं ं ं इसका प्रचार करने के वलए प्रेररत करते थे। इस कारण अनेक स्ियसेिक इस विशा म ें कायभरत हए और ु ं प्रान्तीय तथा स्थानीय स्तर पर भारत सस्कत पररषि, स्िाध्याय मडलम , विश्व सस्कत प्रवतष्ठान इत्यावि ृ ृ ् ं ं ं ् अनेक कायभ प्रारम्भ वकए गए। र्रिरी, १९९६ म ें सस्कत के क्षेत्र म ें काय भ करने िाल े िशे के सभी ृ ं कायभकताभ विकली म ें एकवत्रत हए जहा उपरोक्त सस्थाओ का विलय करके अवखल भारतीय स्तर पर ु ं ं ं
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"सस्कत भारती' की स्थापना हई। ु ृ ं उद्देश्य - सस्कत का प्रचार-प्रसार करना और सस्कत-सभाषण वसखाकर इसे वर्र से व्यािहाररक भाषा ृ ृ ं ं ं बनाना। जब लोगों के मन म ें सस्कत के प्रवत प्रेम जागगे ा तो सस्कवत के प्रवत भी स्िाभाविक प्रेम उत्पन्न ृ ृ ं ं होगा।"
सस्कत भारती' का मल उद्दश्े य ह ै सस्कत बोलना, सीखना और सम्भाषण
के माध्यम से सस्कत का ृ ृ ृ ू ं ं ं प्रचार करना, सस्कत को वर्र से व्यािहाररक भाषा बनाना और सस्कत के विकास के वलए साथभक प्रयास ृ ृ ं ं करना। सस्कत को सस्कत के माध्यम स
े ही पढ़ाने के वलए विविध उपक्रम। सस्कत से जावत, मत, पथ, ृ ृ ृ ं ं ं ं भाषा, ऊच-नीच आवि सभी भिे -भािों को वमटाकर सामावजक समरसता लाना, भारत का सास्कवतक ृ ं ं पनरुत्थान करना। ु सस्कत भारती के प्रयास ृ ं सस्कत भारती द्वारा
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"सस्कत-सभाषण वशविर"
आयोवजत वकये जाते ह।ैं इनम ें िस विन तक प्रवतविन िो ृ ृ ं ं ं घटे के प्रवशक्षण द्वारा बालक-बावलकाए सस्कत में सभाषण करने योग्य
हो जाते ह।ैं सस्कत सभाषण ृ ृ ं ं ं ं ं ं वसखाने के वलए सस्कत के आचायों को प्रवशक्षण विया जाता ह।ै अब तक ऐसे हजारों आचायों द्वारा ृ ं लाखों लोगों को सस्कत-सभाषण वसखाया जा चका ह।ै पत्राचार द्वार
ा सस्कत अध्ययन की योजना चार ृ ृ ु ं ं ं भाषाओ म ें ितभमान म ें सचावलत ह ै । सस्कत भारती द्वारा कछ अन्य प्रयास भी वकए जा रह े ह ैं वजनम ें प्रमख ृ ु ु ं ं ं ह-ैं
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"सस्कत पररिार योजना"
और
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"सस्कत ग्राम योजना'। "
सस्कत बालके न्द्रम"' योजना के द्वारा बछचों ृ ृ ृ ् ं ं ं को खले ों के माध्यम से सस्कत ि सस्कवत का ज्ञान विया जाता ह।ै सस्कत भारती के प्रयासों ृ ृ ृ ं ं ं से कनाभटक के मत्तर वजले के एक ग्राम म ें सस्कत आम बोल-चाल की भाषा बन गई ह।ै ृ ू ं मख्य कायशक्रम ु  िस विन के सस्कत सम्भाषण वशविर म ें प्रवतविन िो घटे की कक्षा। ृ ं ं  सस्कत आचायों का प्रवशक्षण। ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 50 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं  समवपभत पणकभ ावलक कायभकताभओ का वनमाभण। ू ं  सेिा (उपेवक्षत) बवस्तयों म ें सस्कत कक्षाए। ृ ं ं  पस्तकों का प्रकाशन। ु  पत्राचार द्वारा सस्कत वशक्षा (वहन्िी, गजराती, मराठी, तवमल, आग्ल, कन्नड, मलयालम) ृ ु ं ं उपिशधधयााँ आज तक 80 लाख लोगों का सस्कत सम्भाषण वशक्षण, 18,000 आचायों का प्रवशक्षण, 65 पस्तकों ृ ु ं का प्रकाशन, 2000 सस्कतगहम, 2 सस्कतग्राम:। सस्कत-सम्भाषण को सरलता से वसखाने की एक ृ ृ ृ ृ ् ं ं ं अपि भ पद्धवत का विकास। अमरीका, इग्लैण्ड आवि कई िेशों म ें "सस्कत भारती' का काम चल रहा ह।ै ृ ू ं ं अतरताना पर भी
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"सस्कत भारती' का अत:क्षेत्र ह।ै इस शताब्िी की समावि से पहले भारत म ें सस्कत का ृ ृ ं ं ं ं वचत्र बिलने के वलए व्यापक कायभ योजना तय और उसके अनसार "
सस्कत भारती' ने अपना कायभ शरू ृ ु ु ं वकया। सस्कत को वर्र से भारत की बोलचाल की भाषा बनाने की दृवष्ट से 1981 म ें
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"सस्कत भारती' द्वारा ृ ृ ं ं स्थानीय समवपभत वशक्षकों के साथ-साथ वजन्होंने सस्कत के माध्यम से अपने सास्कवतक उत्तरावधकार की ृ ृ ं ं रक्षाथभ अपने महत्िपण भ यौिन का समपभण वकया ह,ै ऐसे सेिाव्रवतयों तथा पणकभ ावलक कायभकताभओ का ू ू ं िशे व्यापी ढाचा भी खड़ा वकया जा रहा ह।ै इसके वलए "
सस्कत भारती' समाज जीिन के विवभन्न क्षेत्रों के ृ ं ं महत्िपण भ लोगों का योगिान प्राि कर रही ह।ै ू 3.7 सािांश भारतीय वशक्षा व्यिस्था म ें गरुकल प्रणाली से लेकर स्कली प्रणाली तक बहत सारे पररितभन हए। कभी ु ु ु ु ू वशक्षा व्यिस्था वशक्षक-के वन्द्रत हआ करती थी एि वशक्षक अपनी समझ के अनरूप छात्रों म ें ज्ञान को ु ु ं आरोवपत करता था। उस वशक्षा व्यिस्था में समस्या यह थी वक बछचों की िास्तविक जरूरतों एि ं मानवसक वस्थवत को समझना सभी वशक्षकों के वलए सभि नहीं था एि धीरे-धीरे वशक्षा व्यिस्था जब ं ं परानी होती जाती ह ै और सामावजक आिश्यकताए बढती जाती ह ै उस समय वशक्षा व्यिस्था म ें पररितभन ु ं की आिश्यकता होती ह।ै इसी को ध्यान म ें रखकर सरकार समय-समय पर वशक्षा आयोगों का गठन कर शवै क्षक विकास करती रही ह।ै उपरोक्त विषय-िस्त को पढ़कर भारतीय वशक्षा व्यिस्था एि सस्कत वशक्षा व्यिस्था म ें विवभन्न आयोगों ृ ु ं ं एि नीवतयों ने सस्कत को वकस रूप म ें समझा एि पररितभन वकया ह।ै यह स्पष्ट होता ह ै वक भारतीय वशक्षा ृ ं ं ं व्यिस्था कहीं न कहीं पािात्य से प्रभावित रही ह।ै भाषाओ के सन्िभ भ म ें यह िखे ा गया ह ै वक हम अपने ं सस्कत एि क्षेत्रीय भाषाओ को उवचत स्थान नहीं विला सकें जो स्थान भारत म ें वििशे ी भाषाओ को प्राि ृ ं ं ं ं हआ। विशषे रूप से सस्कत को िखे ें तो सस्कत भारती जैसी सस्थाओ ने सस्कत को आम जन की भाषा ु ृ ृ ृ ं ं ं ं ं बनाने के वलए बहत अछछा कायभ वकया ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 51 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.8 शब्दावली 1. विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग- (डॉ. राधाकष्ट् णन कमीश् न सन 1948-49) स् ितत्रोपरान् त ृ ् ं विश्ि विद्यालय स् तर की वशक्षा म ें सधार हते डॉ.राधाकष्ट् णन की अध् यक्षता म ें विश् िविद्यालय वशक्षा ृ ् ु ु आयोग का गठन वकया गया। 2. माध्यवमक वशक्षा आयोग- माध् यशमक शिक्षा आयोग- (मिवलयर कमीशन 1952-53) माध् यवमक ु वशक्षा के स् तर के उन् नयन हते वनवमतभ इस आयोग म ें वद्वभाषा सत्र प्रस् तत वकया गया। ु ू ु 3. सस्कत वशक्षा आयोग- यह आयोग स्ितत्र भारत म ें सस्कत की वस्थवत एि विकास की सभािनाओ ृ ृ ं ं ं ं ं ं पर वचतन करने के वलए गवठत वकया गया था । आयोग ने अपने प्रवतििे न म ें स्पष्टतः कहा ह वक ं माध्यवमक विद्यालयों के पाठयक्रम म ें सस्कत को अवनिायभ स्थान वमलना चावहए । इसके वलए ृ ् ं वत्रभाषा सत्र म ें पररितभन करना अपेवक्षत हो तो पररितभन भी अिश्य वकया जाए । ू 4. वशक्षा आयोग (कोठारी आयोग)- शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग1964-66)- 14 जलाई, ु 1964 को विश्ि विद्यालय अनिान आयोग के प्रधान प्रोर्े सर िौलत वसह कोठारीकी अध् यक्षता म ें ु ं गवठत वकया गया 5. राष्ट्रीय सस्कत सस्थान- राष्रीय सस्कत सस्थान, नई विकली म ें वस्थत एक बहपररसरीय मावनत ु ृ ृ ं ं ं ं विश्वविद्यालय शैक्षवणक सस्थान ह।ै वजसकी स्थापना सस्कत आयोग (1956-1957) की अनशसा ृ ु ं ं ं के आधार पर सस्कत के विकास तथा प्रचार-प्रसार हते सस्कत सम्बद्ध के न्द्र सरकार की नीवतयों एि ृ ृ ु ं ं ं कायभक्रमों के वक्रयान्ियन के उद्दश्े य से 15 अक्टबर 1970 को एक स्िायत्त सगठन के रूप म ें इसकी ू ं स्थापना की गई । 6. श्री अरविि आश्रम- रुए डे ला मरीन (Rue de la Marine) पर वस्थत श्री अरवबिो आश्रम (Sri ं ं Aurobindo Ashram), भारत के सबसे प्रवसद्ध और धनी आश्रमों में से एक ह,ै जहा िशे -वििशे स े ं श्रद्धाल आते ह।ैं आश्रम के आध्यावत्मक वसद्धात योग (Yoga) और आधवनक विज्ञान (Modern ु ु ं Science) के अद्भत मले को िशाभते ह।ैं ु 7. सस्कत भारती- सस्कत भारती एक सास्कवतक सस्था ह ै जो सस्कत को पनः बोलचाल की भाषा ृ ृ ृ ृ ु ं ं ं ं ं बनाने म ें सलग्न ह।ै चम कष्ट्ण शास्त्री ने समस्त विश्व म ें सस्कतभाषा को पनजचवित करने के वलये इस ृ ृ ु ु ं ं सस्था स्थापना की। ं 3.9 सन्दभ भ ग्रन्थ सची ू 1. झा, डॉ- नागन्े द्र, प्राचीन एि अिाभचीन वशक्षा-पद्धवत, अवभषेक प्रकाशन, विकली, 2013 ं 2. शमाभ, डॉ- उषा, सस्कत वशक्षण, स्िावत पवब्लके शन्स, जयपर ृ ू ं 3. शमाभ, डॉ- नन्िराम, सस्कत वशक्षण, सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन, 2007 ृ ं 4. वमत्तल, डॉ. सतोष, सस्कत वशक्षण, आर. लाल. बक वडपो, 2010 ृ ु ं ं 5. पाण्डेय, डा. रामशकल, विनोि पस्तक मविर, 2005 ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 52 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. स्ितन्त्र भारत के विवभन्न वशक्षा आयोगों म ें सस्कत भाषा वशक्षण के वस्थवत को स्पष्ट कीवजए | ृ ं 2. सस्कत आयोग तथा वशक्षा आयोग के विवभन्न योजनाओ म ें अतर स्पष्ट कीवजए | ृ ं ं ं 3. नई वशक्षा नीवत म ें सस्कत के स्थान का विस्तत िणनभ कीवजए | ृ ृ ं 4. राष्ट्रीय पाठयचयाभ प्रारूप 2000 एि 2005 म ें सस्कत विषय तथा अन्य विषय का क्या महत्ि ृ ् ं ं प्रस्तत वकया गया ह?ै ु 5. ितभमान यग म ें सस्कत अध्ययन-अध्यापन म ें वकन वकन निाचार का उपयोग वकया जाता ह?ै ृ ु ं विस्तत रूप िणनभ कीवजए ? ृ 6. राष्ट्रीय सस्कत सस्थान का पररचय िते े हए उसके सस्कत के प्रचार एि प्रसार म ें योगिान का ु ृ ृ ं ं ं ं िणनभ कीवजए? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 53 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ ु इकाई 4 - संस्कत भाषा रिक्षण के कछ अनछु ए पहलू 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 सस्कत सावहत्य की विवभन्न विधाओ के वशक्षण की प्रयोजनमलकता ृ ू ं ं 4.3.1 कथा सावहत्य के वशक्षण की प्रयोजनमलकता ू 4.3.2 नाटय सावहत्य के वशक्षण की प्रयोजनमलकता ् ू 4.3.3 काव्य सावहत्य के वशक्षण की प्रयोजनमलकता ू 4.4 सचना के यग में सस्कत का भविष्ट्य ृ ू ु ं 4.5 तकनीकी पर आधाररत सस्कत वशक्षण सबधी ितभमान कायभक्रम ृ ं ं ं 4.6 सचना एि तकनीकी के उपयोग से सस्कत सावहत्य वशक्षण को जीित बनाना ृ ू ं ं ं 4.6.1 काव्य सावहत्य का वशक्षण 4.6.2 नाटय सावहत्य का वशक्षण ् 4.6.3 कथा सावहत्य का वशक्षण 4.7 साराश ं 4.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 4.9 सिभभ एि सहयोगी ग्रथ ं ं ं 4.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्तावना
ज्ञान की प्रत्येक शाखा के विविध पक्ष होते ह ैं एि ज्ञान की प्रत्येक शाखा गवतशील भी होती ह।ै समय के ं साथ इनके स्िरुप म ें पररितभन होते रहता ह ै अथाभत जसै े-जसै े समय व्यतीत होते जाता ह,ै िैसे-िसै े ज्ञान की शाखा के विविध पक्षों, जो की ज्ञान क
ी शाखा के स्िरुप का वनमाभण करते ह,ैं म ें भी पररितभन होते जाता ह।ै कछ पराने पक्ष अप्रासवगक हो जाते ह ैं तो कछ नए पक्ष शावमल हो जाते ह।ैं वशक्षण-अवधगम प्रणाली म ें ु ु ु ं शावमल व्यवक्तयों को ज्ञान की प्रत्येक शाखा म ें शावमल हए इन निीन तथ्यों एि अप्रासवगक हए प्राचीन ु ु ं ं तथ्यों स े स्िय को अद्यतन करना पड़ता ह।ै लेवकन सामान्यत: ऐसा होता नहीं ह।ै ि े अपररहायभ कारणों से ं स्िय को अद्यतन नहीं कर पात े ह।ैं वजसके र्लस्िरुप ज्ञान की शाखा के अप्रासवगक हो चके पक्षों को ु ं ं वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया से हटा नहीं पाते ह ैं एि ज्ञान की शाखा के रुप में शावमल हए निीन पक्षों को ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 54 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें शावमल नहीं कर पाते ह।ैं ऐसे ही निीन पक्ष, जो वक समय के साथ उभरकर सामने आए ह ैं और वजन्ह ें वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया में शावमल वकया जाना चावहए उन्ह ें शावमल नहीं कर पाते ह,ैं को ज्ञान की शाखा के अनछए पहल की सज्ञा िी जाती ह।ै अनछआ इसवलए क्योंवक विद्वानों द्वारा ु ू ु ं उसे छआ नहीं जाता ह ै अथाभत इस पर ध्यान नहीं विया जाता ह।ै प्रस्तत इकाई में सस्कत भाषा के कछ ऐस े ृ ु ु ु ं ही अनछए पहलओ की चचा भ की गई ह।ै ु ु ं 4.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के उपरात आप इस योग्य हो जायेंग े वक – ं 1. सस्कत सावहत्य के विवभन्न विधाओ के वशक्षण की प्रयोजनमलकता िणनभ कर सकें ग;े ृ ू ं ं 2. सचना के यग म ें सस्कत के भविष्ट्य की व्याख्या कर सकें ग;े ृ ू ु ं 3. सस्कत वशक्षा के वलए तकनीकी आधाररत ितभमान शवै क्षक कायभक्रमों का उकलेख कर सकें ग;े ृ ं तथा 4. सस्कत सावहत्य वशक्षण को प्रभािी बनाने हते सचना एि सचार तकनीकी के उपयोग की विस्तत ृ ृ ु ू ं ं ं व्याख्या कर सकें गे 4.3 सस्ं कृ त सावहत्य की वववभन्न ववधाओ ं के वशक्षण की प्रयोजनमूलकता प्रयोजनमलकता का स्पष्ट अथभ उपािये ता या उपयोवगता ह।ै सस्कत सावहत्य की विवभन्न विधाओ के ृ ू ं ं वशक्षण की ितभमान में क्या उपयोवगता ह ै इस बात की चचा भ इस खड म ें की गई ह।ै ं सावहत्य चाह े वकसी भी भाषा का हो उसका समाज से घवनष्ठ सबध होता ह ै वर्र सस्कत सावहत्य म ें तो ृ ं ं ं भारत की समस्त सस्कवत ही वनवहत ह।ै धम,भ िशनभ , कला, सगीत, सस्कवत, सामावजक जीिन, ज्ञान- ृ ृ ं ं ं विज्ञान या य ँ कह ें वक मनष्ट्य के सपण भ जीिन शलै ी का व्यापक वचत्रण सस्कत सावहत्य में वकया गया ह।ै ृ ू ु ू ं ं सावहत्य के वशक्षण का मख्य उद्दश्े य होता ह ै वक िह अपने सस्कवत के इन विविध तत्िों को आने िाली ृ ु ं पीढ़ी को वकस सीमा तक हस्तातररत कर पाता ह।ै िसरे शब्िों में हम यह कह सकते ह ैं वक िह विद्यावथभयों ं ू में वकस सीमा तक मानिीय मकयों एि सििे नाओ को प्रत्यारोवपत कर पाता ह ै एि उन्ह ें भारतीय सस्कवत ृ ू ं ं ं ं ं के विवभन्न तत्िों, यथा - धमभ, िशनभ , कला आवि से वकतना पररवचत करा पाता ह।ै इस कायभ के वलए कभी कहानी का तो कभी उपन्यास का, कभी कविता का तो कभी नाटक आवि का सहारा वलया जाता ह।ै अथाभत सावहत्य वशक्षण के उपरोक्त उद्दश्े य की प्रावि के वलए सावहत्य के विविध रुपों का प्रयोग वकया जाता ह।ै अतः, जब हम सस्कत सावहत्य की विवभन्न विधाओ के वशक्षण के प्रयोजनमलकता की चचा भ ृ ू ं ं करते ह ैं तब हम उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर ही मकयाकन करते ह।ैं ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 55 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 4.3.1 कथा साशहत्य के शिक्षण की प्रयोजनमिकता ू कथा सावहत्य का वशक्षण
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‘वकस्सागोई’
अथाभत
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‘कहानी कथन’
विवध से वकया जाता था। इसमें वशक्षक अपनी कशलता से कहानी के विवभन्न कवड़यों को एक साथ जोड़कर इस तरह प्रस्तत करता ह ै वक ु ु विद्यावथभयों के सामन े िह वचवत्रत हो जाता ह।ै ऐसा प्रतीत होने लगता ह ै वक कहानी अभी-अभी तरत उनके ु ं समक्ष ही घवटत हो रही ह।ै इससे विद्याथच में रोचकता उत्पन्न होती ह ै एि अवधगम में उनका सहभाग ं बढ़ता ह।ै विद्याथच स्िय को कहानी के पा
त्र के रुप म ें िखे ने लगते ह ैं एि उसकी चाररवत्रक विशेषताओ को ं ं ं स्िय की चाररवत्रक विशषे ताओ को रुप म ें समझने लगता ह।ै इस प्रकार वशक्षक द्वारा विद्यावथभयों में ं ं मानिीय मकय एि सििे ना का विकास
वकया जाता था। ू ं ं ितभमान समय म ें कथा सावहत्य के वशक्षण के वलए सचना एि सचार तकनीकी का प्रयोग वकया ू ं ं जान े लगा ह।ै लेवकन इसमें िह जीितता नहीं ह।ै यह वसर्भ कथा सावहत्य का टवकत रुप ह।ै इसका वसर्भ ं ं एक लाभ ह ै वक विद्याथच विन भर में वकसी भी समय कथा के उस तकनीकी रुप से अपनी सविधा के ु अनसार कभी भी जड़ सकता ह।ै लेवकन कहानी कथन का यह तकनीकी रुप या कथा सावहत्य वशक्षण का ु ु यह तकनीकी रुप मनष्ट्य में मानिीय मकय एि सििे ना को उत्पन्न करने में अक्षम ह।ै इस प्रकार कहानी ु ू ं ं वशक्षण या कथा सावहत्य वशक्षण का उद्दश्े य परा नहीं हो पाता ह।ै अतः, यह कहा जा सकता ह ै वक यद्यवप ू कथा सावहत्य वशक्षण की प्रयोजनमलकता का स्ियवसद्ध ह ै लेवकन ितभमान पररिशे में वजस प्रकार से ू ं कथा सावहत्य का वशक्षण वकया जा रहा ह ै इसकी कोई प्रयोजनमलकता नहीं ह।ै ु 4.3.2 नाटय साशहत्य के शिक्षण की प्रयोजनमिकता ् ू नाटय सावहत्य सस्कत सावहत्य की एक अवद्वतीय विधा ह|ै इससे अकप समय म ें वकसी भी प्रकार के सिशे ृ ् ं ं को व्यापकता के साथ प्रसाररत वकया जा सकता ह।ै यह तीव्रता के साथ िशकभ ों पर अपना प्रभाि डालता ह।ै अथाभत नाटय सावहत्य का वशक्षण अगर उपयक्त विवध से वकया जाए तो यह पयाभि प्रयोजनमलक ह।ै ् ु ू लेवकन आजकल कथा सावहत्य और नाटय सावहत्य िोनों को एक मान कर एक ही विवध से उनका ् वशक्षण वकया जा रहा ह।ै अब यह कै से सभि ह ै वक िो वभन्न चीजों को एक मानकर एक जसै ा व्यिहार ं उनके साथ वकया जाए और उनका प्रभाि भी िही बना रह े जो उन्ह ें िो वभन्न-वभन्न चीज मानकर वभन्न- वभन्न तरी
के से व्यिहार करने पर होगा। कथा सावहत्य के कथ्य की गवतशीलता नाटय सावहत्य के कथ्य ् की गवतशीलता की तलना म ें तीव्र होती ह।ै नाटय सावहत्य में पात्र, दृश्य, सिाि, पररवस्थवत आवि को ् ु ं एक-िसरे के परक के रुप म
ें एक साथ प्रस्तत वकया जाता ह।ै नाटय सावहत्य का वशक्षण करते समय पहले ् ू ु ू पात्र पररचय प्रस्तत वकया जाता ह।ै यही पर उनके सामावजक सबधों से भी विद्यावथभयों को अिगत कराया ु ं ं जाता ह।ै वशक्षण करते समय छात्र को यह भी बताया जाना चावहए वक एक नाटक कई दृश्यों म ें विभावजत होता ह ै और प्रत्येक दृश्य के अनसार ही कथ्य का सजन वकया जाता ह।ै पात्रों का वनधाभरण, सिाि की ृ ु ं रचना, सब दृश्य के अनसार ही वकए जाते ह।ैं वशक्षण करते समय विद्यावथभयों को ऐसा प्रतीत होना चावहए ु वक उनके समक्ष नाटक का मचन हो रहा ह।ै लेवकन नाटय सावहत्य के वशक्षण म ें सचना एि सचार ् ू ं ं ं तकनीकी के प्रयोग द्वारा एि कथा सावहत्य की भाँवत ही इसका वशक्षण कर इसकी प्रयोजनमलकता को ू ं समाि वकया जा रहा ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 56 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 4.3.3 काव्य शिक्षण की प्रयोजनमिकता ू काव्य सस्कत सावहत्य की सबसे प्राचीन विधा ह ै एि इसका वशक्षण सबसे िष्ट्कर। कविता को विद्याथच ृ ं ं ु तभी हृियगम कर पाता ह ै जब यह सस्िर हो, उसमें छिबद्धता एि लयात्मकता हो। कविता में व्यवक्त के ं ं ं मनोभािों को सिर ढग से प्रस्तत वकया जाता ह।ै अगर विद्याथच उसको पणभ रुप से हृियगम करते ह ैं तो ु ु ू ं ं ं उनके व्यिहार म ें िावछत पररितभन होता ह।ै अतीत म ें कविताओ के माध्यम से कई आिोलनों म ें लोगों की ं ं ं भवमका को सकारात्मक विशा िी गई ह।ै ऋतओ के गीत, विवभन्न उत्सिों के गीत इन्हीं कारणों स े ू ु ं जनसामान्य के मानस पटल पर अपना गहरा प्रभाि छोड़ पाते ह।ैं यह मनष्ट्य में अवत तीव्र गवत से मनोिगे ों ु को उत्पन्न करता ह।ै नीवत वशक्षा एि मकय वशक्षा के वलए इसी कारण से प्राचीन काल म ें सस्कत के ृ ू ं ं श्लोकों का सहारा वलया जाता था। इस प्रकार काव्य सावहत्य वशक्षण की प्रयोजनमलकता तो स्पष्ट ह।ै ू लेवकन ितभमान पररिेश म ें इसकी प्रयोजनमलकता पर सकट मडरा रहा ह।ै वशक्षण में सचना एि सचार ू ू ं ं ं ं तकनीकी को शावमल कर इस सकट को और बढ़ा विया गया ह।ै यह बात अब स्पष्ट हो गई ह ै वक सचना ू ं एि सचार तकनीकी के प्रयोग द्वारा इसके वशक्षण की प्रयोजनमलकता को बचाया नहीं जा सकता ह।ै ू ं ं अतः, काव्य सावहत्य के वशक्षण की प्रयोजनमलकता को बनाए रखने के वलए यह आिश्यक ह ै वक इसका ू वशक्षण उपयक्त विवध से वकया जाए। ु उपरोक्त वििचे न से स्पष्ट ह ै वक सस्कत सावहत्य के विवभन्न विधाओ की प्रयोजनमलकता ह ै और रहगे ी। ृ ू ं ं हाँ यह अिश्य ह ै वक वशक्षण विवधयों में आए बिलाि के कारण ितभमान समय में उनकी प्रयोजनमलकता ू लगभग समाि हो गई ह।ै एक ओर जहाँ पाठयक्रम म ें िकै वकपक स्थान प्राि होने के कारण इसका ् अध्ययन-अध्यापन भी भली-भाँवत नहीं वकया जा रहा ह ै िहीं िसरी ओर उपयक्त वशक्षण विवधयों का ु ू प्रयोग भी नहीं वकया जा रहा ह।ै यवि इन समस्याओ का समाधान कर विया जाए तो सस्कत सावहत्य की ृ ं ं विवभन्न विधाओ के वशक्षण की प्रयोजनमलकता स्िय वसद्ध ह।ै ू ं ं अभ्यास प्रश्न 1. प्रयोजनमलकता का स्पष्ट अथभ ह_ै _______ या________। ू 2. कथा सावहत्य का वशक्षण________ या ________ विवध से वकया जाता था। 3. नाटय सावहत्य के कथ्य की गवतशीलता कथा सावहत्य के कथ्य की गवतशीलता की तलना म ें ् ु ________ होती ह।ै 4. एक नाटक कई ________ म ें विभावजत होता ह।ै 5. सस्कत सावहत्य की सबसे प्राचीन विधा________ ह।ै ृ ं 6. सावहत्य वशक्षण का मख्य उद्दश्े य क्या ह?ै ु 7. नाटय सावहत्य कथा सावहत्य म ें िो अतर वलख।ें ् ं 8. काव्य को हृियगम करने के वलए उनमें वकन तत्िों का होना आिश्यक ह?ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 57 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 4.4 सचना के युग म सस्ं कृ त का भववष्ट्य ू ें भविष्ट्य से आशय आनेिाले समय
से होता ह।ै भाषा के भविष्ट्य की यवि बात की जाए तो इसका अथभ आनेिाले समय म ें वकसी भाषा की प्रवस्थवत से होता ह।ै भाषा की प्रवस्थवत से आशय उस भाषा के विकास,
उसके प्रयोक्ताओ की सख्या, उसम ें उपलब्ध रोजगार के अिसर, उस भाषा विषेष के प्रवत व्यवक्त ं ं के रुझान आवि से होता ह।ै अतः, िसरे शब्िों में हम यह भी कह सकते ह ैं वक भाषा के भविष्ट्य से आशय ू आनेिाले समय के सिभ भ म ें कछ प्रश्नों यथा - कोई भी भाषा आने िाले समय म ें वकतनी पवष्ट्पत-पकलवित ु ु ं होगी? इसके प्रयोक्ता वकतने होंग?े इसके अध्ययन-अध्यापन की क्या प्रवस्थवत होगी? रोजगार के अिसर की क्या वस्थवत होगी? आवि के उत्तर
से होता ह।ै जब सस्कत के भविष्ट्य की बात की जाती ह ै तो इसका ृ ं भी आशय इन्हीं प्रश्नों के उत्तरों से होता ह।ै बस अतर वसर्भ इतना ह ै वक इन्ह ें सस्कत भाषा के सिभ भ म ें ृ ं ं ं िखे ा जाता ह।ै यह
बात सिवभ िवित ह ै वक ितभमान यग सचना एि सचार तकनीकी का ह।ै अब सचना एि ु ू ू ं ं ं सचार तकनीकी के इस यग में सस्कत भाषा वकतनी पवष्ट्पत-पकलवित होगी? इसके वकतने प्रयोक्ता होंगे? ृ ु ु ं ं इसके अध्ययन-अध्यापन की क्या प्रकवत होगी? रोजगार के क्या अिसर होंग?े आवि तत्िों की चचाभ ही ृ सस्कत भाषा का भविष्ट्य वनधाभररत करेगी। ृ ं सस्कत एक अवत प्राचीन एि उन्नत भाषा ह।ै इसके साथ ही यह एक िज्ञै ावनक भाषा भी ह।ै िश्वै ीकरण का ृ ं ं प्रभाि सभी क्षेत्रों पर पड़ा ह।ै भाषा का क्षेत्र भी इससे अछता नहीं रहा ह।ै ऊपर से बाज़ारिाि ने और भी ू नकारात्मक प्रभाि डाला ह।ै िश्वै ीकरण एि बाज़ारिाि के वमवश्रत प्रभाि के कारण भाषाओ के मरने का ं ं क्रम सा शरु हो गया ह।ै यनेस्को द्वारा िषभ 2009 म ें प्रकावशत एक प्रवतििे न के अनसार भारत की 9 ु ू ु भाषाएँ मर चकी ह ैं और 196 भाषाएँ मतप्राय हो चकी ह ैं अथाभत मरणासन्न ह।ैं अमरे रका की 53 भाषाएँ ृ ु ु मर चकी ह ैं और 71 भाषाएँ मरणासन्न ह।ैं इस प्रकार विश्व की लगभग 7000 भाषाओ पर खतरा मडरा ु ं ं रहा ह।ै जहाँ तक सस्कत भाषा का प्रश्न ह ै यह एक अवत प्राचीन एि उन्नत भाषा ह।ै यह एक िैज्ञावनक भाषा ह।ै ृ ं ं प्राचीन काल म ें इस भाषा का बहत महत्ि था और यह लोक भाषा थी। कालातर म ें वििशे ी आक्राताओ ु ं ं ं के प्रभाि में आकर इसका महत्ि कम हआ और बीसिीं सिी के प्रारभ तक इसका प्रचलन लगभग न के ु ं बराबर हो गया। यह कहा जान े लगा था वक यह भाषा लगभग मतप्राय हो चकी ह।ै लेवकन लोगों म ें थोड़ी ृ ु सी चेतना इस भाषा को लेकर बाकी थी। अतः, एक बार वर्र इस भाषा के उत्थान के वलए कायभ शरु कर ु विए गए। इसका पररणाम सकारात्मक हआ और आज सस्कत भाषा के प्रयोक्ताओ की सख्या बढ़ी ह।ै ु ृ ं ं ं प्राथवमक, वद्वतीयक एि ततीयक भाषा के रुप म ें इसका प्रयोग विन-प्रवतविन बढ़ता जा रहा ह।ै सचना और ृ ू ं प्रौद्योवगकी के विस्र्ोट के कारण जहा ँ अन्य भाषाओ पर नकारात्मक प्रभाि पड़ा ह ै िहीं सस्कत भाषा को ृ ं ं यह सकारात्मक रुप से प्रभावित कर रही ह।ै ऐसा इस भाषा की िज्ञै ावनकता के कारण हो रहा ह।ै ितभमान म ें विश्व के विवभन्न िशे ों में सस्कत भाषा का अध्ययन-अध्यापन वकया जा रहा ह।ै नासा में प्रवशक्ष िज्ञै ावनकों ृ ं ु को सस्कत पढ़ाया जा रहा ह।ै विश्व के समस्त कप्यटर िज्ञै ावनकों ने इस बात को समिते स्िर में स्िीकार ृ ू ं ं वकया ह ै वक कप्यटर एकगोररिम के वलए सस्कत सिश्रभ ेष्ठ भाषा ह ै और आनेिाले समय म ें कप्यटर के क्षेत्र ृ ू ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 58 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं में वसर्भ
इसी भाषा का प्रयोग वकया जाएगा। विश्व के सिश्रभ ेष्ठ एकगोररिम का वनमाभण सस्कत भाषा म ें ही ृ ं हआ ह।ै इस भाषा के जानकारों के वलए रोजगार के अिसरों में भी िवद्ध हई ह।ै वििशे ों में सस्कत ु ु ृ ृ ं अध्यापक के रुप में रोजगार के अिसर सवजत हए ह।ैं इस भाषा का सावहत्य भडार विपल ह।ै इसम ें समस्त ु ृ ु ं भारतीय सस्कवत, ज्ञान-विज्ञान, सावहत्य एि िशनभ की झलक वमलती ह।ै भारतीय सस्कवत को जानने के ृ ृ ं ं ं वलए इस भाषा के स
ावहत्य को जानना अवत आिश्यक ह।ै अतः, इस भाषा से सबवधत अनिाि कायभ के ु ं ं क्षेत्र म ें भी रोजगार के अिसरों में िवद्ध हई ह।ै कप्यटर के क्षेत्र म ें भी आने िाले समय में इस भाषा के ु ृ ू ं जानकारों के वलए रोजगार के अिसर में िवद्ध होगी। भारतीय सस्कवत के प्रवत लोगों के मन म ें एक बार ृ ृ ं वर्र से रुझान जग रहा ह।ै लोगों म ें सस्कत भाषा सीखने की इछछा जागत हो रही ह।ै इस प्रकार इस भाषा ृ ृ ं की सामावजक प्रवस्थवत म ें भी उन्नवत हो रही ह।ै अतः, इस भाषा का भविष्ट्य बड़ा उज्जिल प्रतीत हो रहा ह ै और अगर इस विशा में सरकार द्वारा थोड़ा और प्रयास वकए जाए तो यह भाषा वर्र से एक बार सारी ं भाषाओ की वसरमौर हो जाएगी। ं अभ्यास प्रश्न 9. भाषा के भविष्ट्य का क्या अथभ ह?ै 10. यनेस्को के द्वारा िषभ 2009 में प्रकावशत प्रवतििे न के अनसार अमरे रका की वकतनी भाषाए ँ मर ू ु चकी ह।ैं ु 11. यनेस्को के द्वारा िषभ 2002 में प्रकावशत प्रवतििे न के अनसार भारत की वकतनी भाषाएँ मर ू ु चकी ह।ैं ु 12. सस्कत एक िज्ञै ावनक भाषा ह ै (सत्य/असत्य) । ृ ं 13. वििशे ी आक्राताओ के प्रभाि म ें आकर सस्कत भाषा और विकवसत हो गई थी । ( ृ ं ं ं सत्य/असत्य)। 14. नासा म ें प्रवशक्ष िज्ञै ावनकों को सस्कत पढ़ाया जाता ह ै ( सत्य/असत्य)। ृ ं ु 15. सचार प्रौद्योवगकी का सस्कत भाषा पर नकारात्मक प्रभाि पड़ा ह ै (सत्य/ असत्य) । ृ ं ं 16. कप्यटर एकगोररिम के वलए सस्कत सिश्रभ ेष्ठ भाषा ह ै (सत्य/असत्य)। ृ ू ं ं 4.5 तकनीकी पि आधावित सस्ं कृ त वशक्षण संबधी वतमभ ान कायभक्रम ं ितभमान म ें सस्कत वशक्षण सबधी तकनीकी आधाररत प्रमख कायभक्रम वनम्नवलवखत ह:ैं ृ ु ं ं ं i. आईआईटी मद्रास द्वारा अक्टबर1997 म ें
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‘आचायभ’
नाम का एक िबे पेज बनाया गया ह ै जो ू स्िाध्याय कर सस्कत सीखने में सहायता करता ह।ै इस िबे पेज को आप इस ृ ं www.acharya.gen.in:8080/sanskrit/lessons/php िबे साइट से सर्भ कर सकत े ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 59 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ii. www.learnsanskrit.org इसी प्रकार का एक िसरा िबे साइट ह।ै ू iii. www.learnsanskritonline.com एक िबे साइट ह ै जो विद्यावथभयों को स्िगवत से ऑनलाइन सस्कत सीखने का अिसर प्रिान करता ह।ै ृ ं iv.
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‘वचन्मय इटरनेशनल र्ाउडेशन’
ने
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‘ईजी सस्कत कोसभ’
नामक एक कायभक्रम की शरुआत अपनी ृ ु ं ं ं िबे साइट www.chinfo.org पर की ह।ै यह सस्कत विषय के वलए एक ऑनलाइन पाठयक्र्म ृ ् ं ह।ै इस िबे साइट पर स्िअध्ययन हते
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‘ईजी सस्कत सेकर् स्टडी वकट’
भी उपलब्ध ह ै वजसे आप ृ ु ं अधोहाररत (डाउनलोड) करके भी पढ़ सकते ह।ै v. राष्ट्रीय सस्कत सस्थान द्वारा सस्कत वशक्षण हते कछ दृश्य-श्रव्य व्याख्यान यटयब पर ृ ृ ् ु ु ु ु ं ं ं अवधहाररत (अपलोड) कर रखा गया ह ै वजनके माध्यम से सस्कत भाषा अध्ययन के इछछक ृ ु ं विद्याथच सस्कत सीख सकते ह।ैं ृ ं vi. 6. श्री चद्रशखे रेद्र सरस्िती विश्व
महाविद्यालय के सस्कत एि भारतीय सस्कवत विभाग द्वारा ृ ृ ं ं ं ं ऑनलाइन सस्कत पाठयक्रम विकवसत वकए गए ह ैं जो वनःशकक ह।ै इसे कोई भी व्यवक्त ृ ् ु ं विश्वविद्यालय क
ी िबे साइट www.kaanchiuniv.ac.in पर जाकर रवजस्रेशन करके पढ़ सकता ह।ै vii. श्री वचत्रापर मठ द्वारा सस्कत वशक्षण हते ऑनलाइन पाठयक्रम सचावलत वकया जाता ह।ै मठ ने ृ ् ु ु ं ं इन पाठयक्रम के अध्ययन की सविधा अपने िबे साइट पर ि े रखी ह।ै इन पाठयक्रमों को आप ् ् ु उनके िबे साइट www.chitrapurmath.net/sanskrit/sanskrit.asp पर पढ़ सकत े ह।ैं viii. ओपेन पाठशाला - यह एक ऑनलाइन मच ह।ै जहाँ आप सस्कत के साथ-साथ अन्य भारतीय ृ ं ं भाषाओ को भी सीख सकत े ह।ैं इसके वलए िबे साइट ह ै - https://openpathshala.com ं ix. सस्कत प्राइमर - यह एक एण्िॉयड आधाररत मोबाइल एप्लीके शन ह ै जो गगल प्ल े स्टोर म ें ृ ू ं उपलब्ध ह।ै इस ऐप के द्वारा विद्याथच सस्कत भाषा का जब चाह े तब अपनी गवत से अध्ययन कर ृ ं सकता ह।ै x. www.101languages.net/sanskrit एक िबे साइट ह ै जो सस्कत सीखने के वलए वनशकक ृ ु ं ससाधन एि सचना प्रिान करती ह।ै ू ं ं xi. सी डैक पण े ने सस्कत वशक्षण के वलए पैन सी-डैक इ-लवनांग सॉकयशन नाम से एक प्रोजक्े ट ृ ु ु ं चला रहा ह।ै यहाँ यह सस्कत की वशक्षा वनःशकक प्रिान करता ह।ै यह ऑनलाइन ह ै एि इसका ृ ु ं ं िबे साइट ह ै https://cdas.in/index.aspxi/d=esiksh.ak. xii. www.sanskritfromhome.in एक ऐसा ही अन्य िबे साइट ह।ै इस िबे साइट पर अधोहाररत (डाउनलोड) करने के वलए भी सामग्री उपलब्ध रहती ह।ै उपरोक्त िबे साइटस तकनीकी पर आधाररत सस्कत वशक्षण सबवधत कछ महत्िपणभ कायभक्रम के सचालन ृ ् ु ू ं ं ं ं से सबवधत ह।ै इसके इतर भी कछ अन्य िबे साइटस ह ैं जो ऑनलाइन सस्कत वशक्षण प्रिान करते ह।ैं ृ ् ु ं ं ं इसके अलािा रेवडयो पर प्रसाररत होने िाले समाचार को भी सस्कत वशक्षण के वलए प्रयक्त वकया जा ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 60 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सकता ह।ै समाचार का प्रसारण उछचारण वशक्षण एि श्रिण कौशल के वशक्षण के वलए महत्िपणभ ू ं ससाधन हो सकता ह।ै ं अभ्यास प्रश्न 17. वमलान करें। स्तभ
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‘अ’
स्तभ
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‘ब’
ं ं (अ) आचायभ (1) वचन्मय इटरनेशनल र्ाउडेशन ं ं (ब) सस्कत सेकर् स्टडी वकट (2) आईआईटी मद्रास ृ ं (स) सस्कत प्राइमर (3) पैन सी डैक इ-लवनांग सॉकयशन प्रोजक्े ट ृ ु ं (ि) सी-डैक पण े (4) एिॉयड आधाररत मोबाइल ऐप ू ं 18. ऑनलाइन सस्कत वशक्षण हते इस पाठय पस्तक में विए गए िबे साइटस को सचीबद्ध करें। ृ ् ् ु ु ू ं 4.6 सचना एवं तकनीकी के उपयोग से सस्ं कृत सावहत्य वशक्षण को जीवंत ू बनाना अवत प्राचीन भाषा होने के कारण सस्कत भाषा में सावहत्य का विशाल भडार िखे न े को वमलता ह।ै ृ ं ं सस्कत सावहत्य के भडार म ें सावहत्य के विविध रुपों की झलक िखे ने को वमलती ह।ै सस्कत सावहत्य के ृ ृ ं ं ं मख्य विधाओ म ें काव्य, नाटय एि कथा सावहत्य को शावमल वकया जाता ह ै और विद्यालय और ् ु ं ं महाविद्यालय स्तर के पाठयक्रमों में सस्कत सावहत्य की इन्हीं विधाओ के अध्ययन-अध्यापन को शावमल ृ ् ं ं वकया जाता ह।ै सस्कत सावहत्य की इन विधाओ का वशक्षण पारपररक वशक्षण विवधयों द्वारा भी वकया जा सकता ह ै ृ ं ं ं लेवकन यवि इस म ें सचना एि सचार तकनीकी को शावमल कर विया जाए तो सावहत्य की विवभन्न ू ं ं विधाओ के वशक्षण को और भी जीित बना
या जा सकता ह।ै आइए िखे ते ह ैं वक कै से सचना एि सचार ू ं ं ं ं तकनीकी के साधनों का प्रयोग कर सस्कत सावहत्य के विवभन्न विधाओ को कै से जीित बनाया जा ृ ं ं ं सकता ह।ै 4.6.1 काव्य साशहत्य का शिक्षण काव्य वशक्षण म ें कवि का पररचय बहत महत्िपणभ होता ह।ै कवि के पररचय को सचना एि सचार ु ू ू ं ं तकनीकी के माध्यम से प्रस्तत वकया जा सकता ह।ै कवि के वचत्र, उसके जीिन पररवस्थवतयों से सबवधत ु ं ं उपलब्ध सामग्री को पािर प्िायट के माध्यम से प्रस्तत वकया जा सकता ह।ै काव्य के रचवयता पर ु ं आधाररत कोई ित्त वचत्र विखाया जा सकता ह
।ै इससे विद्यावथभयों को कविता एि कवि के भािों को ृ ं समझने में बहत सहायता वमलती ह।ै काव्य के िाचन को भी प्रस्तत वकया जा सकता ह।ै इससे काव्य से ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 61 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं विद्याथच का एक ररश्ता कायम हो जाता ह ै और उनके मानस पटल पर इसका गहरा एि स्थाई प्रभाि ं पड़ता ह।ै यही कारण ह ै वक वर्कमों के गाने विद्यावथभयों को लबे समय तक याि रहते ह।ैं काव्य म ें प्रयक्त ु ं शब्िों को स्पष्ट रुप से समझने के वलए ऑनलाइन शब्िकोश एि वथसारस
का प्रयोग वकया जा सकता ह।ै ं काव्य पर आधाररत यवि कोई ित्तवचत्र हो तो उसे भी प्रिवशतभ वकया जा सकता ह।ै इस प्रकार सचना एि ृ ू ं सचार तकनीकी के प्रयोग कर वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया को प्रभािशाली बनाया जा सकता ह ै एि इससे ं ं वशक्षण-अवधगम कायभ में विद्यावथभयों की सहभावगता बढ़ जाती ह ै और
वशक्षण-अवधगम कायभ जीित हो ं उठता ह।ै 4.6.2 नाटय साशहत्य का शिक्षण ् सावहत्य के विवभन्न विधाओ के वशक्षण म ें कछ समानता होती ह ै जसै े- रचनाकार का पररचय। अब चाह े ु ं काव्य सावहत्य हो या नाटय सावहत्य या वर्र अन्य कोई विधा रचनाकार का पररचय प्रिान करने के वलए ् सचना एि सचार सबधी उपरोक्त तकनीकी
का प्रयोग वकया जा सकता ह।ै नाटक के मचन को टेलीविजन ू ं ं ं ं ं या इटरनेट के माध्यम से विखाया जा सकता ह।ै नाटक के ररहसभल के ररकॉवडांग को कम्प्यटर या सी० डी० ु ं प्लेयर के माध्यम से विद्यावथभयों को विखाया जा सकता ह।ै नाटक के रेवडयो रुपातरण को भी विद्यावथभयों ं को सनाया जा सकता ह।ै इसी प्रकार नाटय सावहत्य में प्रयक्त कवठन शब्िों एि भाषाई विशषे ताओ के ् ु ु ं ं वलए ऑनलाइन शब्िकोश एि वथसारस का प्रयोग वकया जा सकता ह।ै नाटक के मचन को विखाया जा ं ं सकता ह।ै एक ही नाटक के अलग-अलग वनिशे कों द्वारा वनिवे शत मचन को भी विखाया जा सकता ह।ै ं इससे विद्याथच नाटय सावहत्य के वशकपगत विशेषताओ का साक्षत्कार कर सकता ह।ै रगकमभ की ् ं ं सैद्धावतक जानकारी क
ो जब विद्याथच प्रत्यक्ष रुप से अनभत करता ह ै तो विद्याथच स्िय को उससे जड़ा ु ू ु ं ं हआ मानने लगता ह ै और नाटय सावहत्य का वशक्षण अवधक जीित हो उठता ह।ै ु ् ं 4.6.3 कथा साशहत्य का शिक्षण काव्य एि नाटय सावहत्य की भाँवत कथा सावहत्य के वशक्षण म ें भी कथाकार का पररचय महत्िपण भ होता ् ू ं ह।ै कथाकार के जीिन पररचय एि उससे सबवधत अन्य सामवग्रयों को पािर प्िायट की सहायता से ं ं ं ं विद्यावथभयों को विखा
या जा सकता ह।ै शब्ि एि भाषागत विशषे ताओ को समझने के वलए ऑनलाइन ं ं शब्िकोष तथा वथसारस का प्रयोग वकया जाता ह।ै सस्कत कथा सावहत्य पर आधाररत वर्कमों के कछ ृ ु ं दृश्य क
ो या परी वर्कम को कथा सावहत्य के वशक्षण के समय प्रिवशतभ वकया जा सकता ह।ै यथा – शद्रक ू ू द्वारा रवचत
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‘मछछकवटकम’
पर वहिी भाषा में उत्सि नामक वर्कम का वनमाभण वकया गया ह।ै ृ ् ं मछछकवटकम पढ़ाते समय इस वर्कम को प्रिवशतभ वकया जा सकता ह।ै इन सब तकनीकों
का प्रयोग ृ ् करके वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें विद्याथच की सहभावगता को बढ़ाया जाता ह।ै विद्याथच अवधक सवक्रय होकर कथा सावहत्य का वशक्षण-अवधगम करते ह।ैं पररणामस्िरुप जीितता म ें िवद्ध हो जाती ह
।ै ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 62 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सचना एि सचार तकनीकी के माध्यम से सावहत्य की एक विधा का िसरी विधा म ें रुपातरण को भी ू ं ं ं ू समझाया जा सकता ह।ै जसै े वकसी कथा सावहत्य के रेवडयो नाटय रुपातरण को सना
या जा सकता ह।ै इन ् ु ं सबके साथ इ-कटेंट का प्रयोग वकया जा सकता ह।ै हर एक शीषकभ पर इ-कटेंट उपलब्ध कराकर भी इसे ं ं जीित बनाया जा सकता ह।ै ं सचना एि सचार तकनीकी सबधी उपरोक्त ससाधनों के माध्यम से सस्कत सावहत्य के विवभन्न ृ ू ं ं ं ं ं ं विधाओ के वशक्षण को जीित तो बनाया जा सकता ह ै लेवकन सचना एि सचार तकनीकी का प्रयोग ू ं ं ं ं करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चावहए वक इसका प्रयोग परक या सहायक सामग्री के रुप म ें हो, ू मख्य विवध के रुप म ें नहीं। अथाभत इनका प्रयोग विश्व क
ी विवभन्न विधाओ का पारपररक वशक्षण विवध से ु ं ं वशक्षण करन े के बाि या उसके साथ वकया जाना चावहए। अके ले इसका प्रयोग लाभिायक होने के बजाए हावनकारक हो सकता ह।ै ऐसा भी हो सकता ह ै वक विद्याथच का ध्यान मख्य विषय िस्त पर न कें वद्रत ु ु होकर सचना एि सचार तकनीकी सबधी ससाधनों पर ही कें वद्रत रह जाए। यवि ऐसा होगा तो वशक्षण के ू ं ं ं ं ं उद्दश्े य प्राि नहीं हो पाएगँ ।े अभ्यास प्रश्न 19. विद्यालय एि महाविद्यालय स्तर पर पढ़ाए जान े िाली सस्कत सावहत्य की मख्य विधाए ँ कौन- ृ ु ं ं कौन सी ह।ैं 20. पािर प्िाइट का प्रयोग काव्य वशक्षण में कै से वकया जा सकता ह?ै ं 21. नाटय सावहत्य वशक्षण में सचना एि सचार सबधी वकन-वकन तकनीकों का प्रयोग वकया जा ् ू ं ं ं ं सकता ह।ै 4.7 सािांश प्रस्तत इकाई का शीषभक ह ै
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‘सस्कत वशक्षण के कछ अनछए पहल’
। इकाई के आरभ म ें विद्यावथभयों को ृ ु ु ु ू ं ं अनछआ शब्ि के अथभ स े अिगत कराया गया ह ै तथा यह बताया गया ह ै वक सस्कत वशक्षण के सबध म ें ृ ु ं ं ं अनछआ से क्या अथभ ह।ै इसके पिता बारी-बारी से सस्कत वशक्षण के प्रमख अछए पहलओ की चचाभ ृ ु ु ू ु ं ं ं की गई ह।ै सबसे पहले सस्कत सावहत्य के विवभन्न विधाओ के वशक्षण की प्रयोजनमलकता की चचा भ की ृ ू ं ं गई ह।ै अथाभत विद्यावथभयों को इस बात से अिगत कराया गया ह ै वक वक सस्कत सावहत्य के विवभन्न ृ ं विधाओ के वशक्षण की क्या उपयोवगता ह ै तावक सस्कत वशक्षण के कायभ म ें लगे हए व्यवक्त अपन े ु ृ ं ं विद्यावथभयों को सस्कत के अध्ययन एि अध्यापन के वलए अवभप्रेररत कर सकें । इसके पिात सचना एि ृ ू ं ं ं सचार तकनीकी के इस यग म ें जहाँ वक आग्ल भाषा का अवतशय प्रचलन ह,ै सस्कत भाषा के भविष्ट्य की ृ ु ं ं ं चचा भ की गई ह।ै इस चचाभ के द्वारा विद्यावथभयों के समक्ष इस बात को प्रवतस्थावपत करने का प्रयास वकया उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 63 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं गया ह ै वक भले ही आज समस्त विश्व म ें आग्ल भाषा का बोल बाला ह ै और इसके प्रभाि म ें आकर अन्य ं भाषाए ँ मतप्राय हो रही ह ैं लेवकन आने िाल े समय में सस्कत ही विश्व की प्रमख भाषा होगी। इससे सस्कत ृ ृ ृ ु ं ं वशक्षण-अवधगम के कायभ म ें लगे हए व्यवक्त प्रोत्सावहत होंगे और ि े अन्य लोगों को भी सस्कत पढ़ने एि ु ृ ं ं पढ़ाने के वलए प्रोत्सावहत करेंग।े पारपररक पाठशालाओ के अवतररक्त सस्कत वशक्षण के वलए सचना एि ृ ू ं ं ं ं सचार तकनीकी पर आधाररत कौन-कौन से कायभक्रम चलाए जा रह े ह ैं इस बात पर भी रौशनी डाली गई ं ह।ै विवभन्न ऑनलाइन पाठयक्रमों चाह े िो सशकक हो या वनःशकक का उकलेख इस इकाई म ें वकया गया ् ु ु ह ै । इसका उपयोग प्रवशक्ष वशक्षक अपने ज्ञान िद्धभन के वलए कर सकते ह ैं तथा विद्यावथभयों को भी इसका ु लाभ उठाने के वलए अवभप्रेररत कर सकते ह।ैं अत म ें सचना एि सचार तकनीकी का प्रयोग सस्कत ृ ू ं ं ं ं सावहत्य के वशक्षकों को जीित बनाने के वलए वकस प्रकार वकया जा सकता ह ै इस बात पर भी चचाभ की ं गई ह।ै इस प्रकार प्रस्तत इकाई में इसके शीषकभ के अनरुप सस्कत वशक्षण के महत्िपणभ अनछए पहलओ ृ ु ु ू ु ु ं ं को समाविष्ट वकया गया ह ै जो वनिय ही प्रवशक्ष सस्कत वशक्षकों के वलए उपयोगी होगा। ृ ं ु 4.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्ति 1. उपािये ता या उपयोवगता 2. वकस्सागोई या कहानी कथन 3. तीव्र 4. दृश्यों म ें 5. काव्य 6. सावहत्य के वशक्षण का मख्य उद्दश्े य होता ह ै वक िह अपने सस्कवत के विवभन्न तत्िों को आने ृ ु ं िाली पीढ़ी को हस्तातररत करें। िसरे शब्िों में हम यह कह सकते ह ैं वक सावहत्य वशक्षण का ं ू उद्दश्े
य विद्यावथभयों म ें मानिीय मकयों एि सििे नाओ को विकवसत करना होता ह ै एि उन्ह ें ू ं ं ं ं भारतीय सस्कवत के विवभन्न तत्िों, यथा - धम,भ िशनभ , कला आवि से पररवचत कराना होता ह
।ै ृ ं 7. नाटय सावहत्य एि कथा सावहत्य म ें वनम्नवलवखत िो अतर ह:ै ् ं ं a. नाटय सावहत्य के कथ्य की गवतशीलता कथा सावहत्य के कथ्य की गवतशीलता की ् तलना म ें तीव्र होती ह।ै ु b. नाटय सावहत्य कई दृश्यों म ें विभावजत होता ह ै जबकी कथा सावहत्य के साथ ऐसी कोई ् बात नहीं ह।ै 8. काव्य को हृियगम करने के वलए उसम ें स्िरबद्धता, लयात्मकता, छिबद्धता होनी चावहए। ं ं 9. भाषा के भविष्ट्य का अथभ कछ प्रश्नों यथा - कोई भी भाषा आने िाले समय में वकतनी पवष्ट्पत- ु ु पकलवित होगी? इसके प्रयोक्ता वकतने होंग?े इसके अध्ययन-अध्यापन की क्या प्रवस्थवत होगी? आवि के उत्तर से होता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 64 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 10. 53 11. 9 12. सत्य 13. असत्य 14. सत्य 15. असत्य 16. सत्य 17. (अ) – (2) (ब) – (1) (स) – (4) (ि) - (3) 18. www.acharya.gen.in:8080/sanskrit/lessons/php www.learnsanskrit.org www.learnsanskritonline.com www.chinfo.org www.kaanchiuniv.ac.in www.chitrapurmath.net/sanskrit/sanskrit.asp https://openpathshala.com www.101languages.net/sanskrit https://cdas.in/index.aspxi/d=esiksh.ak. www.sanskritfromhome.in 19. काव्य सावहत्य, नाटय सावहत्य एि कथा सावहत्य ् ं 20. कवि के वचत्र, उसके जीिन पररवस्थवतयों से सबवधत उपलब्ध सामग्री को पािर पॉइट के माध्यम ं ं ं से प्रस्तत वकया जा सकता ह।ै ु 21. वसनेमा, पािर प्िाइट, नाटक का सजीि मचन, रेवडयो, इटरनेट आवि । ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 65 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 4.9 सदं भ भग्रंथ सची एवं सहयोगी ग्रंथ ू 1. झा, उियशकर. सस्कत वशक्षण. () सरभारती प्रकाशन, चौखम्बा, िाराणसी। ृ ु ं ं 2. िबे वद्वििे ी एि वमश्र. () सस्कत वशक्षण के नये आयाम. राधा प्रकाशन मवन्िर, आगरा। ृ ं ं ु 3. पाण्डेय, रामशकल. (2008). सस्कत वशक्षण. विनोि पस्तक मविर, आगरा। ृ ु ं ं 4. वमत्तल, सतोष. सस्कत वशक्षण. () आर. लालबक वडपो, मरे ठ। ृ ु ं ं 5. शमाभ, आर. ए. (2008). वशक्षा के तकनीकी आधार. आर. लाल. बक वडपो, मरे ठ। ु 6. सर्ाया, रघनाथ. () सस्कत वशक्षण. हररयाणा सावहत्य अकािमी: पचकला, हररयाणा। ृ ु ु ं ं 7. सस्कत वशक्षक सिवशकभ ा. (2012). राष्ट्रीय शवै क्षक अनसन्धान एि प्रवशक्षण पररषि, नई ृ ु ं ं ं ् विकली। 8. वसह, सिशे एि सक्सेना, ििना (2005). शवै क्षक तकनीकी के मलधार,सावहत्य प्रकाशन, ु ू ं ं ं आगरा। 9. www.acharya.gen.in:8080/sanskrit/lessons/php 10. www.learnsanskrit.org 11. www.learnsanskritonline.com 12. www.chinfo.org 13. www.kaanchiuniv.ac.in 14. www.chitrapurmath.net/sanskrit/sanskrit.asp 15. https://openpathshala.com 16. www.101languages.net/sanskrit 17. https://cdas.in/index.aspxi/d=esiksh.ak. 18. www.sanskritfromhome.in 4.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. सस्कत सावहत्य के विवभन्न विधाओ के वशक्षण की प्रयोजनमलकता पर वनबध वलख।ें ृ ू ं ं ं 2. सचना एि सचार तकनीकी के रुप म ें सस्कत भाषा के भविष्ट्य की चचा भ करें। ृ ू ं ं ं 3. सस्कत वशक्षण के वलए इस पाठय पस्तक में उवकलवखत तकनीकी आधाररत कायभक्रमों के ृ ् ु ं अवतररक्त कम से कम 10 अन्य कायभक्रमों का उकलेख करें। 4. काव्य सावहत्य के वशक्षण के वलए सचना एि सचार तकनीकी पर आधाररत एक पाठ योजना ू ं ं बनाए।ँ 5. नाटय सावहत्य के वशक्षण के वलए सचना एि सचार तकनीकी पर आधाररत एक पाठ योजना ् ू ं ं बनाए।ँ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 66 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 6. क्या सचना एि सचार तकनीकी का प्रयोग कर सस्कत सावहत्य की विवभन्न विधाओ के वशक्षण ृ ू ं ं ं ं को जीित बनाया जा सकता ह?ै यवि हाँ तो अपने उत्तर के पक्ष म ें तकभ ि।ें ं 7. सस्कत भाषा के विद्वानों के वलए सवजत हो रह े रोजगार के निीन अिसरों एि वनकट भविष्ट्य म ें ृ ृ ं ं सवजत होनेिाले रोज्गार के अिसरों का उकलेख करें। ृ 8. नाटय सावहत्य का वशक्षण करते समय एक ही एक ही नाटक के विवभन्न वनिशभ कों द्वारा वनिवे शत ् रुप को विखाने, नाटक के ररहसभल की ररकॉवडांग को विखाने एि नाटक के सजीि मचन को ं ं विद्यावथभयों को विखाने के क्या लाभ ह।ैं 9. कथा सावहत्य वकस प्रकार नाटय सावहत्य से वभन्न ह।ैं ् 10. यवि आपको सस्कत वशक्षण सबधी कोई एक कायभक्रम ऑनलाइन बनाना हो तो आप वकस ृ ं ं ं प्रकार बनाएगँ ।े अपनी योजना का विस्तत िणनभ करें। ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 67 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई 5 - पाठ्यक्रम एवं संस्कत भाषा 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 विद्यालयी वशक्षा के पाठयक्रम में सस्कत भा
षा का स्थान ृ ् ं 5.4 पाठयक्रम में सस्कत के स्थान के सबध में सस्कत आयोग के विचार ृ ृ ् ं ं ं ं 5.5 वत्रभाषा सत्र एि सस्कत ृ ू ं ं 5.6 सस्कत पाठशालाओ में सस्कत का स्थान ृ ृ ं ं ं 5.7 विद्यालय स
्तर पर सस्कत पाठयक्रम एि पाठयपस्तक ृ ् ् ु ं ं 5.8 साराश ं 5.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 5.10 सिभभ ग्रथ सची एि सहयोगी ग्रथ ू ं ं ं ं 5.11 वनबधात्मक प्रश्न ं 5.1 प्रस्तावना खड 1 के विवभन्न इकाइयों म ें आपने सस्कत भाषा एि सस्कत वशक्षण के विवभन्न पक्षों की चचाभ की। ृ ृ ं ं ं ं प्रस्तत इकाई में हम विद्यालयी वशक्षा के वलए विकवसत पाठयक्रमों में सस्कत भाषा के स्थान की चचाभ ृ ् ु ं करेंग।े पाठयक्रम वशक्षण प्रवक्रया का एक महत्िपणभ अग ह।ै यह िह राजमाग भ ह ै वजस पर चल कर ् ू ं वशक्षक और वशक्षाथच िोनों शवै क्षक उद्दश्े य रुपी मवजल को प्राि करते ह।ैं क्या पढ़ाना ह,ै कब पढ़ाना ह,ै ं वकतना पढ़ना ह,ै वकसे पढ़ना ह ै आवि प्रश्नों के उत्तर पाठयक्रम के माध्यम से ही वशक्षण व्यिसाय से जड़े ् ु व्यवक्तयों को प्राि होता ह।ै अथाभत पाठयक्रम में विशेष विद्यालयी स्तर की वशक्षा का परा लेखा-जोखा ् ू रहता ह।ै अतः, विद्यालयी वशक्षा के प्रत्येक स्तर पर पाठयक्रम म ें प्रत्येक विषय का अपना एक वनवित ् स्थान होता ह।ै सस्कत विषय का भी अपना एक वनवित स्थान ह।ै वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया के प्रभािपण भ ृ ू ं सपािन के वलए वशक्षक एि विद्याथच िोनों को उस स्थान को आिश्यक रुप से समझना होता ह।ै प्रस्तत ु ं ं इकाई की रचना का उद्दश्े य यही ह ै वक सस्कत वशक्षण के कायभ म ें लग े हए वशक्षकों, अवधगम के कायभ म ें ु ृ ं लग े हए विद्यावथभयों एि प्रवशक्ष सस्कत वशक्षकों को ितभमान पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा का क्या स्थान ह ै ु ृ ृ ् ं ं ं ु एि क्या स्थान होना चावहए इस तथ्य की जानकारी हो जाए। इसके साथ ही उन्ह ें इस बात की भी ं जानकारी हो जए वक विवभन्न वशक्षा नीवतयों एि आयोगों म ें पाठयक्रम म ें सस्कत विषय के स्थान के ृ ् ं ं सबध म ें क्या कहा गया ह।ै सरकार द्वारा क्या प्रयास वकए गए ह ैं और क्या प्रयास वकए जा रह े ह ैं इससे भी ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 68 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं उन्ह ें अिगत कराया जा सके । इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हए प्रस्तत इकाई की रचना की गई ह।ै प्रस्तत ु ु ु इकाई सस्कत भाषा वशक्षण एि अवधगम के कायभ म ें लगे हए व्यवक्तयों के वलए अवत लाभिायक वसद्ध ु ृ ं ं होगी। 5.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पिात आप - 1. ितभमान पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को क्या स्थान प्राि ह ै इस बात की चचाभ कर सकें गे। ृ ् ं 2. पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को क्या स्थान प्राि होना चावहए इस बात पर पररचचाभ कर सकें ग।े ृ ् ं 3. वत्रभाषा सत्र का िणनभ कर सकें गे। ू 4. वत्रभाषा सत्र म ें सस्कत के स्थान का िणनभ कर सकें ग।े ृ ू ं 5. सस्कत पाठशालाओ म ें सस्कत के स्थान का िणनभ कर सकें ग।े ृ ृ ं ं ं 6. सस्कत आयोग की चचा भ कर सकें ग।े ृ ं 7. पाठयक्रम म ें सस्कत को अवनिायभ स्थान िने े के सबध म ें की गई वसर्ाररशों का उकलेख कर ृ ् ं ं ं सकें ग।े 8. सस्कत पाठयक्रम एि पाठयपस्तकों की समीक्षा कर सकें ग।े ृ ् ् ु ं ं 5.3 ववद्यालयी वशक्षा के पाठ्यक्रम म संस्कृ त भाषा का स्थान ें यह बात तो सज्ञात ह ै वक वशक्षण एक वत्रध्रिीय प्रवक्रया ह ै एि इसके तीन ध्रि वशक्षक, वशक्षाथच और ु ु ु ं पाठयक्रम ह।ैं यह बात भी उतनी ही महत्िपण भ ह ै वक वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें इसके तीनों ध्रि ् ू ु (वशक्षक, वशक्षाथच एि पाठयक्रम) की भवमका बराबर ह।ै वकसी एक म ें भी कमी परी वशक्षण-अवधगम ् ू ू ं प्रवक्रया को प्रभावित करती ह।ै अतः, पाठयक्रम म ें विवभन्न विषयों का क्या स्थान होगा? वकस विषय को ् शावमल करना ह?ै वकस विषय को शावमल नहीं करना ह?ै आवि विचारणीय प्रश्न ह।ैं सस्कत भाषा का ृ ं अपना एक लबा इवतहास रहा ह।ै एक समय म ें यह मख्य भाषा थी। यह लोक व्यिहार की भाषा थी। यह ु ं सावहत्य की भाषा थी। यह प्रवशक्षण का माध्यम था। कालातर म ें िशे की राजनीवतक वस्थवत म ें पररितभन ं आया। इस पर अनेक वििशे ी आक्रमण हए। िशे लबे समय तक मग़लों एि अग्रेजों के अधीन रहा। मगल ु ु ु ं ं ं एि वब्रवटश सस्कवत का भारतीय सस्कवत पर परा प्रभाि पड़ा। सस्कवत का प्रत्येक पक्ष उनसे प्रभावित ृ ृ ृ ू ं ं ं ं हआ। भाषा भी इस प्रभाि से अछती नहीं रह सकी। अतः, सस्कत भाषा पर वििशे ी आक्राताओ का बहत ु ु ृ ू ं ं ं प्रभाि पड़ा। पररणामस्िरुप इसकी प्रवस्थवत में पररितभन आया। धीरे-धीरे इसका प्रयोग कम हो गया और बीसिीं सिी के अत तक इसका प्रयोग लगभग न के बराबर हो गया। जनमानस म ें राष्ट्रीय चेतना के ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 69 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं जागरण के कारण इस भाषा की प्रवस्थवत म ें एक बार पनः पररितभन का िौर प्रारभ हो चका ह।ै विवभन्न ु ु ं सरकारी एि गरै -सरकारी सस्थानों द्वारा इस भाषा के उत्थान के वलए प्रयास शरू कर विए गए ह।ैं अब ु ं ं ितभमान पररदृश्य में विद्यालयी वशक्षा के पाठयक्रम म ें इसका क्या स्थान ह ै और क्या होना चावहए यह एक ् महत्िपण भ एि विचारणीय प्रश्न ह।ै इस सिभ भ म ें वनम्नवलवखत 2 धाराए ँ प्रचवलत ह:ैं ू ं ं पहली विचारधारा के समथभकों का यह मानना ह ै वक इस भाषा का अध्ययन तो आिश्यक नहीं ह ै लेवकन इस भाषा का प्रचार-प्रसार आिश्यक ह।ै ये लोग सस्कत को पाठयक्रम में िकै वकपक स्थान िने ा ृ ् ं चाहते ह।ैं इस विचारधारा के समथभक अपने पक्ष में वनम्नवलवखत तकभ िते े ह ैं : i. मातभाषा का अध्ययन - इस विचारधारा के समथभकों का यह मानना ह ै वक मातभाषा का ृ ृ अध्ययन सस्कत भाषा का अध्ययन न करने की क्षवत पवतभ कर सकता ह।ै लेवकन यह सोचना ृ ू ं वनरथभक ह।ै जो भाषा मल भाषा ह,ै वजसने अनेक भाषाओ को जन्म विया ह,ै उसकी क्षवत पवतभ ू ू ं उससे व्यत्पन्न भाषाओ के अध्ययन द्वारा किावप नहीं की जा सकती ह।ै ु ं ii. अनवाि एक वैकशल्पक व््वस्था- इस विचारधारा के समथभकों का मानना ह ै वक सस्कत भाषा ृ ु ं के ग्रथों के आधवनक भारतीय भाषाओ में अनिाि को हम सस्कत भाषा के विककप के रूप म ें ृ ु ु ं ं ं िखे सकते ह।ैं लेवकन अनिाि का अध्ययन वकसी भाषा म ें रवचत ग्रथों के अध्ययन का विककप ु ं हो सकता ह,ै वकसी भाषा के अध्ययन के वलए एक विवध हो सकती ह ै लेवकन वकसी भाषा के समग्र अध्ययन का विककप कभी भी नहीं हो सकता ह।ै iii. मातभाषा के िधिों की व्यत्पशि का शविि ज्ञान - इस विचारधारा के समथभक अपने पक्ष म ें ृ ु एक और तकभ िते े ह।ैं उनका यह कहना ह ै वक मातभाषा के शब्िों की व्यत्पवत का विशि ज्ञान ृ ु सस्कत के अध्ययन को अनािश्यक बनाता ह।ै यवि पाठयक्रम म ें मातभाषा के क्षेत्र का विस्तार ृ ृ ् ं कर विया जाए और शब्ि विज्ञान को विस्तत रुप ि े विया जाए तो सस्कत भाषा के अध्ययन की ृ ृ ं कोई आिश्यकता नहीं होगी। अब यह बात तो सिवभ िवित ह ै वक भारत की अनेक भाषाओ की ं जननी तो सस्कत ही ह।ै इसके अध्ययन के वबना हम अन्य भाषाओ की व्यापक समझ बना ृ ं ं सकते ह,ैं यह बात असभि प्रतीत होती ह।ै ं iv.
प्राचीन एव अप्रासशगक भाषा - इस विचारधारा के समथभक यह भी कहते ह ैं वक सस्कत एक ृ ं ं ं अवत प्राचीन भाषा ह ै और ितभमान में प्रासवगक नहीं ह।ै अतः, पाठयक्रम म ें इसे गौण स्थान एि ् ं ं िज्ञै ावनक विषयों को प्रमख स्थान िने ा चावहए। यह प्राचीन
भाषा ह,ै इसमें कोई शक नहीं ह ै ु लेवकन यह प्रासवगक नहीं ह ै यह कहना इस भाषा के साथ सरासर अन्यायपण भ व्यिहार ह।ै इस ू ं भाषा का क्षेत्र अवत व्यापक ह।ै ज्ञान की कोई भी शाखा इस भाषा के क्षेत्र से बाहर नहीं ह ै वर्र भी यह भाषा प्रासवगक क्यों नहीं ह,ै यह बात समझ म ें नहीं आती ह।ै यह भाषा प्रासवगक थी, ह ै और ं ं रहगे ी। इसकी प्रासवगकता पर प्रश्न वचन्ह उठाया ही नहीं जा सकता ह।ै ं v. सस्कत के वि कमशकाड की भाषा - इस विचारधारा के समथभकों ने सस्कत को के िल ृ ृ ं ं ं कमकभ ाड की भाषा कहा ह।ै ि े कहते ह ैं वक इसमें धमभ-कमभ के इतर कछ ह ै ही नहीं। लेवकन ि े लोग ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 70 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं शायि यह भल गए ह ैं वक राजनीवत शास्त्र, अथभशास्त्र, गवणत, ज्योवतष, वचवकत्सा शास्त्र, ू सावहत्य, आवि जसै े विषयों पर महत्िपणभ ग्रथों की रचना भी इस भाषा में की गई ह।ै ू ं इस प्रकार यह कहा जा सकता ह ै वक यह विचारधारा वक सस्कत भाषा को पाठयक्रम म ें गौण या ृ ् ं िकै वकपक स्थान विया जाए , महत्िहीन ह।ै िसरी विचारधा
रा विद्यालयी वशक्षा के पाठयक्रम में सस्कत भाषा को अवनिायभ स्थान िने े का पक्षधर ह।ै ृ ् ं ू इस विचारधारा के समथभकों का यह मानना ह ै वक सस्कत भाषा को माध्यवमक विद्यालयों के प
ाठयक्रम म ें ृ ् ं अवनिायभ स्थान वमलना चावहए। इस विचारधारा के समथभक अपने पक्ष म ें वनम्नवलवखत तकभ िते े ह:ैं i. आधशनक यग की भाषा- इस विचाधाभरा के समथभकों का यह कहना ह ै वक सस्कत अब वसर्भ ृ ु ु ं प्राचीन यग की भाषा नहीं ह।ै अब यह आधवनक यग की भाषा ह।ै यह वसर्भ भारत की ही नहीं ु ु ु िरन समस्त विश्व की भाषा ह।ै आज विश्व के विवभन्न िशे ों में इसका अध्ययन-अध्यापन वकया जा रहा ह।ै ii.
ज्ञान के समस्त िाखाओ का अध्ययन-अध्यापन सभव- सस्कत वसर्भ धमभ-कमभ की ही ृ ं ं ं भाषा नहीं ह।ै अवपत इसका सावहत्य कार्ी विस्तत ह ै और इसके विस्तार में ज्ञान की सभी ृ ु शाखाएँ समावहत ह।ै प्राचीन काल म ें यह वशक्षा प्रिान करने या यँ कह ले वकए अनिशे न का ू ु माध्यम थी। ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओ का वशक्षण इसी भाषा के माध्यम स
े वकया जाता ं था। अतः, इसे वसर्भ धमभ-कम भ की भाषा कहना अपनी अज्ञानता का पररचय िने ा से अवधक और कछ भी नहीं ह।ै ु iii. अन्य
भाषाओ का ज्ञान प्रात करने में सहायक- सस्कत अनेक आधवनक भारतीय तथा ृ ु ं ं यरोपीय भाषाओ की जननी ह।ै इस तथ्य को लगभग समस्त विश्व मानता ह।ै अतः, इस ू ं विचारधारा के समथभकों का यह मानना ह ै वक सस्कत भाषा का ज्ञान इन भाषाओ क
ा ज्ञान प्राि ृ ं ं करन े म ें सहयोगी ह।ै iv. सस्कशत को समझने के शिए आवश्यक- भारतीय सस्कवत सस्कत भाषा में वनबद्ध विपल ृ ृ ृ ु ं ं ं सावहत्य भडार में सरवक्षत ह।ै इसको समझने के वलए इन सावहवत्यक रचनाओ का अध्ययन ु ं ं आिश्यक ह ै और इन सावहवत्यक रचनाओ के अध्ययन के वलए सस्कत भाषा का ज्ञान ृ ं ं आिश्यक ह।ै इस आधार पर भी इस विचारधारा के समथभक सस्कत को पाठयक्रम में अवनिाय भ ृ ् ं स्थान िने े की बात करते ह।ैं v. कप्यटर प्रोग्राशमग के क्षेत्र में शनपणता हाशसि करने के शिए- आने िाला समय कप्यटर का ू ु ू ं ं ं ह ै और कप्यटर के क्षेत्र के विश्व के सभी विद्वान इस बात पर एकमत ह ैं वक सस्कत कप्यटर ृ ू ू ं ं ं प्रोग्रावमग के वलए सिश्रभ ेष्ठ भाषा ह ै और आने िाले समय म ें वसर्भ इसी भाषा का प्रयोग कप्यटर ू ं ं प्रोग्रावमग के वलए वकया जाएगा। इस दृवष्टकोण से भी सस्कत भाषा को पाठयक्रम म ें अवनिायभ ृ ् ं ं स्थान विया जाना चावहए ऐसा इस विचारधारा के समथभकों का मानना ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 71 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं उपरोक्त वििचे न के आधार पर हम यह कह सकते ह ैं वक ितभमान पररदृश्य में सस्कत भाषा की प्रवस्थवत में ृ ं उन्नवत हई ह।ै इसको और उन्नत बनाने के वलए विवभन्न सरकारी एि गरै सरकारी प्रयास वकए जा रह े ह।ैं ु ं सरकार द्वारा सस्कत का अध्ययन करने िाल े विद्यावथभयों को छात्रिवत्त िी जा रही ह।ै सस्कत भाषा एि ृ ृ ृ ं ं ं सावहत्य म ें शोधकायभ को प्रोत्साहन विया जा रहा ह।ै पाठयक्रम में इसको अवनिायभ स्थान िके र हम इस ् भाषा के प्रोन्नवत में महत्िपणभ योगिान ि े सकत े ह।ैं मानिीय मकयों म ें जो पतन आज दृवष्टगोचर हो रहा ह ै ू ू िह ितभमान वशक्षा प्रणाली का उत्पाि ह।ै ितभमान वशक्षण प्रणाली में वशक्षा प्रिान करने का माध्यम वजस भाषा को बनाया गया ह,ै िह हमारे सास्कवतक एि आध्यावत्मक मकय, वजनके सवम्मवलत रूप से मानिीय ृ ू ं ं मकयों का वनमाभण होता ह,ै को विद्यावथभयों तक पहचँ ान े में अक्षम ह।ै पररणामस्िरुप विद्याथच वसर्भ ु ू भौवतकिािी वशक्षा प्राि कर रह े ह।ैं इस भौवतकिािी वशक्षा का कोई मकय नहीं ह।ै ितभमान वशक्षा मनष्ट्य ू ु नहीं मशीन का वनमाभण कर रही ह।ै जब तक भौवतकिािी वशक्षा को आध्यावत्मक वशक्षा के साथ सबवधत ं ं कर वशक्षण प्रवक्रया सपन्न नहीं की जाएगी तब तक वशक्षा द्वारा मनष्ट्य का वनमाभण नहीं हो सकता ह।ै ु ं अतः, पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को अवनिाय भ स्थान प्रिान वकया जाना चावहए। इस सबध म ें हमारे िशे ृ ् ं ं ं के भतपि भ राष्ट्रपवत डॉक्टर राजद्रें प्रसाि ने सस्कत विश्व पररषि के िाराणसी अवधिेशन के अिसर पर ृ ू ू ं अपने अध्यक्षीय भाषण म ें कहा था वक
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“भौवतक एि आध्यावत्मक वशक्षा समन्िय आिश्यक ह ै और यह ं समन्िय सस्कत के अध्ययन के अवतररक्त वकसी अन्य कायभ से अवधक नहीं हो सकता ह”
ै । ृ ं सस्कत भाषा को पाठयक्रम में िकै वकपक स्थान िने े के सबध म ें अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार विए ह।ैं ृ ् ं ं ं कछ महत्िपण भ विचारों को नीचे विया गया ह:ै ु ू  विजय नारायाण चौबे जी ने अपनी पस्तक सस्कत वशक्षण विवध म ें भारत के भतपिभ राष्ट्रपवत डॉ० ृ ु ू ू ं सिपभ कली राधाकष्ट्णन जी के विचारों का उकलेख करते हए कहा ह ै वक ु ृ “सस्कत अनेक
भारतीय भाषाओ की जन्मिात्री ह।ै द्रविड़ भाषाओ पर भी इसका प्रभाि ह।ै ृ ं ं ं यह आज भी इस िशे के विवभन्न क्षेत्रों के पवण्डतों के मध्य एक सामान्य भाषा के रुप म ें कायभ कर रही ह।ै इसवलए यह नहीं कहा जा सकता ह ै वक यह एक जीवित भाषा नहीं ह
।ै सस्कत ृ ं सावहत्य का अत्यवधक प्रभाि के िल हमारे िशे पर ही नहीं अवपत्य एवशया के िसरे भागों पर ू भी ह।ै सस्कत ने हमलोगों के मवस्तष्ट्क को इस सीमा तक प्रभावित वकया ह ै वक इसका हमें ृ ं ज्ञान ही नहीं ह।ै एक अथभ म ें सस्कत सावहत्य राष्ट्रीय ह ै वकन्त इसका उद्दश्े य विश्वव्यापी ह।ै यही ृ ु ं कारण था वक इसाने उनलोगों के ध्यान को भी आकवषतभ वकया जो वक एक सस्कवत विशषे के ृ ं अनयायी थे” (सस्कत वशक्षण विवध, 1985, प० – 33)। ृ ृ ु ं  श्री सब्रह्म्म्ण्यिवे शकाचायभ जी के द्वारा इस सिभ भ म ें विए गए विचारों को भी विजय नारायण चौबे जी न े ु ं अपनी उसी पस्तक म ें कछ इन शब्िों म ें उवकलवखत वकया ह ै – ु ु “सस्कत भाषा उत्तर भारत म ें वहिी म ें तथा िवक्षण भारत म ें द्रविड़ भाषा म ें व्यिहार म ें लाए ृ ं ं जानेिाले शब्िों की जननी ह।ै द्रविड़ कल म ें उत्पन्न आध्रावि के बहत स े शब्ि सस्कत वमवश्रत ु ृ ु ं ं विखाई िते े ह।ैं इसवलए सस्कत का अध्ययन भारत िशे म ें चारों ओर पहले स े ही अभ्यास की ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 72 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं जानेिाली मातभाषा एि राष्ट्रभाषा के वलए बड़ा ही उपकारी वसद्ध होगा। िह लेशमात्र भी ृ ं बाधक नहीं होगा । इसवलए पाँचिीं कक्षा से आरभ कर आठिीं कक्षा तक वनवित रुप से पढ़नी ं चावहए” (सस्कत वशक्षण विवध, 1985, प० – 34)। ृ ृ ं  डॉ हरे कष्ट्ण महे ताब के अनसार -
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“म ैं इस विचारधारा से पणरुभ प से सहमत ह ँ वक विद्यालयों ृ ु ू और महाविद्यालयों म ें सस्कत अवनिायभ हो। यह मरे ा विश्वास ह ै वक जब तक वक कोई व्यवक्त ृ ं सस्कत अवछछ तरह नहीं जान लेता ह ै तब तक िह अपनी क्षेत्रीय भाषा म ें भी िक्ष नहीं हो ृ ं सकता ह।ै यह सस्कत भाषा ही ह,ै जो यगों से सास्कवतक दृवष्ट से भारत को एकता के सत्र म ें ृ ृ ु ू ं ं बाँधने म ें सक्षम रही ह”
ै (सस्कत वशक्षण विवध, 1985, प० – 39)। ृ ृ ं  श्री राम प्रसाि मखजच, भतपिभ न्यायधीश, कलकत्ता हाईकोटभ के भी इस सिभ भ म ें कछ ऐसे ही ु ू ू ु ं विचार ह।ै उनके अनसार -
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“भारत में के िल तीस या चालीस िषभ पि भ सस्कत अवनिायभ थी ृ ु ू ं और अब हम ें िेखना ह ै वक हमारे प्रयत्नों से यह पनः अवनिायभ कर िी जाए । इतना ही नहीं ु इसकी वस्थवत पहले से भी दृढ़ हो क्योंवक अब हम स्ितत्र हो चके ह ैं और हम ें अपने िशे का ु ं पवनभमाभण करना ह”
ै (सस्कत वशक्षण विवध, 1985, प० – 39-40)। ृ ृ ुं ं  स्िामी वििके ानन्ि ने सस्कत वशक्षा को अवनिायभ बताते हए कहा वक
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“ सस्कत की ु ृ ृ ं ं अवनिायभ वशक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन ह ै जो वहि समाज को एकता के सत्र म ें बाँधने में ू ं ू सक्षम ह”
ै (सस्कत वशक्षण विवध, 1985, प० – 34)। ृ ृ ं उपरोक्त विचारों पर यवि दृवष्टपात वकया जाए तो यह बात वबककल स्पष्ट हो जाती ह ै वक सस्कत ृ ु ं भाषा को पाठयक्रम में अवनिायभ स्थान वमलना चावहए। सस्कत वसर्भ एक भाषा ही नहीं ह ै िरन ृ ् ं समस्त जीिन शैली ह।ै वशक्षा का अवतम उद्दश्े य जो वक विद्याथच को राष्ट्र के सिश्रभ ेष्ठ नागररक के ं रुप म ें विकवसत करना ह,ै को प्राि करन े के वलए सस्कत भाषा का अवनिायभ अध्ययन आिश्यक ह।ै ृ ं वबना सस्कत भाषा के अध्ययन के इस उद्दश्े य को प्राि ही नहीं वकया जा सकता ह।ै वशक्षा के जो ृ ं निीन आयाम यथा नैवतक वशक्षा, मकय वशक्षा, शावत वशक्षा आवि विकवसत हए ह ैं िो इवसवलए हए ु ु ू ं ह ैं क्योंवक सस्कत भाषा की वशक्षा को महत्ि नहीं विया गया ह।ै आज हम इन निीन आयामों की ृ ं वशक्षा तो ि े रह े ह ैं लेवकन विद्यावथभयों म ें इन सब चीजों की पयाभि कमी विखायी पड़ती ह।ै हमारी प्राचीन वशक्षा पद्धवत, वजसम ें वक सस्कत की वशक्षा अवनिायभ थी, म ें इन सब आयामों की वशक्षा तो ृ ं नहीं िी जाती थी लेवकन विद्यावथभयों म ें ये सब मकय विद्यमान होते थे। ू अभ्यास प्रश्न 1. वशक्षण एक__________ध्रिीय प्रवक्रया ह।ै ु 2. _________ सिी के अत तक सस्कत का प्रयोग लगभग न के बराबर हो गया। ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 73 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3. पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा के स्थान को लेकर ितभमान में______ धाराए ँ प्रचवलत ह।ैं ृ ् ं 4. पाठयक्रम म ें सस्कत को िकै वकपक स्थान विए जान े के पक्ष म ें विए गए तकों को सचीबद्ध करें। ृ ् ू ं 5. पाठयक्रम म ें सस्कत को अवनिाय भ स्थान विए जान े के पक्ष में विए गए तकों को सचीबद्ध करें। ृ ् ू ं 5.4 पाठ्यक्रम म संस्कृ त के स्थान के संबध म सस्ं कृ त आयोग के ववचाि ें ं ें भारत सरकार द्वारा डॉक्टर सनीवत कमार चटजच की अध्यक्षता म ें सस्कत के अध्ययन-अध्यापन सबवधत ृ ु ु ं ं ं जानकारी प्राि करने के वलए एक आयोग का गठन वकया गया वजसे सस्कत आयोग कहा जाता ह।ै इस ृ ं आयोग की स्थापना िष भ 1956 ई० म ें की गई थी। आयोग ने इस सबध म ें कायभ वकया और सरकार को ं ं अपना प्रवतििे न, वजसका शीषकभ
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‘सावहत्य तथा कलाकवत’
था, प्रस्तत वकया। सरकार को प्रस्तत अपने ृ ु ु प्रवतििे न म ें आयोग ने स्पष्ट शब्िों में इस बात का उकलेख वकया ह ै वक सस्कत भाषा इतनी महत्िपण भ ह ै ृ ू ं वक इसे माध्यवमक विद्यालयों के पाठयक्रम म ें अवनिायभ स्थान वमलना चावहए वजससे वक भारत िषभ का ् बछचा-बछचा इसका अध्ययन कर सके । आयोग ने मातभाषा, अग्रेजी, राष्ट्रभाषा वहिी या अन्य भारतीय ृ ं ं भाषा तथा सस्कत को अवनिायभ करने के वलए वसर्ाररश की तथा उनके वक्रयान्ियन के वलए 4 योजनाए ँ ृ ं भी सझाई। ये 4 योजनाए ँ वनम्नवलवखत ह:ैं ु 1. प्रथम योजना- इस योजना म ें वनम्नवलवखत तीन भाषाए ँ सवम्मवलत ह:ैं i. मातभाषा (या क्षेत्रीय भाषा); ृ ii. अग्रेजी (या वहिी या वहिी भाषी प्रिशे ों के वलए अन्य आधवनक भाषा) ; तथा ु ं ं ं iii. सस्कत या कोई अन्य प्राचीन भाषा ृ ं 2. शितीय योजना- इस योजना म ें आयोग द्वारा चार भाषाए ँ सवम्मवलत की गई: ं i. मातभाषा (या क्षेत्रीय भाषा); ृ ii. अग्रेजी; ं iii. वहिी या अन्य भारतीय भाषा; तथा ं iv. सस्कत ृ ं 3. ततीय योजना- इस योजना का प्रारूप वद्वतीय योजना के प्रारुप की ही भाँवत ह।ै अथाभत इसम ें भी ृ उपरोक्त चार भाषाए ँ सवम्मवलत की गई ह ैं लेवकन इस योजना में सस्कत के परीक्षण की बात नहीं ृ ं की गई ह।ै सस्कत भाषा को विशषे योग्यता एि छात्रिवत्त के वलए मापिड बनाने की वसर्ाररश ृ ृ ं ं ं की गई ह।ै परीक्षण का विषय न होने के कारण इस की उपेक्षा हो जान े की सभािना से आयोग ं द्वारा इसकी सस्तवत नहीं की गई। ु ं 4. चतथश योजना- इस योजना म ें वनम्नवलवखत तीन भाषाओ को सवम्मवलत वकया गया ह:ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 74 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं i. मातभाषा (या क्षेत्रीय भाषा); ृ ii. अग्रेजी; ं iii. वहिी या अन्य भारतीय भाषा ं इसके अतगतभ मातभाषा या वहिी अथिा इन िोनों के साथ सस्कत को अवनिायभ रूप से पढ़ाने की बात की ृ ृ ं ं ं गई ह।ै इस प्रकार का पाठयक्रम 5 िषों के वलए हो। इसके पिात सस्कत पर अवधक ध्यान िने े की बात ृ ् ं की गई। साथ ही यह भी कहा गया वक परीक्षाथच को इस विषय की परीक्षा में उत्तीणभ होना अवनिायभ कर विया जाए। सस्कत को पाठयक्रम में अवनिायभ स्थान िने े के सबध म ें आयोग द्वारा जो वसर्ाररश की गई ृ ् ं ं ं िह वनम्नवलवखत ह:ै सस्कत को पाठयक्रम में अवनिायभ स्थान िने े की व्यिस्था ऐसी होनी चावहए वक समस्त समस्याओ के ृ ् ं ं बािजि भी विद्याथच स्िय सस्कत का अध्ययन करना प्रारभ करें कर ि।े इसके वलए िशे के सभी ृ ू ं ं ं विद्यालयों म ें सस्कत के अध्यापक की अवनिायभ व्यिस्था होनी चावहए तथा इस व्यिस्था पर, सस्कत ृ ृ ं ं पढ़ने िाले छात्रों की सख्या एि उस पर व्यय होने िाले धन के पक्ष म ें जो तकभ विए जाते ह,ैं उसका कोई ं ं प्रभाि नहीं पढ़ना चावहए। विषयों का िगचकरण भी इस तरह होना चावहए वक सस्कत पढ़ने के इछछक ृ ु ं छात्र इस अिसर से िवचत ना रह जाए । ं वद्वतीय सस्कत आयोग – प्रथम सस्कत आयोग के 55 िषभ बाि य० पी० ए० सरकार ने वद्वतीय सस्कत ृ ृ ृ ू ं ं ं आयोग की स्थापना की। इस आयोग के अध्यक्ष पद्मभषण सत्यव्रत शास्त्री थे। वद्वतीय सस्कत आयोग की ृ ू ं वसर्ाररश वनम्नवलवखत ह:ै i. विद्यालय वशक्षा म ें 4 भाषा सत्र लाग वकया जाए ; ू ू ii. कक्षा 6 से 10 तक सस्कत भाषा के अध्ययन-अध्यापन को अवनिायभ वकया जाए ; ृ ं iii. प्रत्येक प्रौद्योवगकी सस्थान म ें सस्कत विषय को अवनिायभ वकया जाए ; तथा ृ ं ं iv. सभी सकायों म ें सस्कत अध्यापकों की वनयवक्त की जाए ृ ु ं ं अभ्यास प्रश्न 6. प्रथम सस्कत आयोग का गठन िषभ_________ में हआ था। ु ृ ं 7. प्रथम सस्कत आयोग के अध्यक्ष_________थे। ृ ं 8. वद्वतीय सस्कत आयोग का गठन प्रथम सस्कत आयोग के _________ िषभ बाि हआ था। ु ृ ृ ं ं 9. वद्वतीय सस्कत आयोग के अध्यक्ष _________ थे। ृ ं 10. प्रथम सस्कत आयोग ने_________ योजनाएँ सझाई ृ ु ं 11. प्रथम सस्कत आयोग द्वारा सझाई गई वद्वतीय योजना का सवक्षि िणनभ करें। ृ ु ं ं 12. प्रथम सस्कत आयोग द्वारा सझाई गई चतथभ योजना का सवक्षि िणनभ करें। ृ ु ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 75 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 5.5 वरभाषा सर एवं सस्ं कृ त ू वत्रभाषा सत्र से आशय भारत में भाषा वशक्षण सबधी उस नीवत से ह ै जो भारत सरकार द्वारा विवभन्न राज्यों ू ं ं की सरकारों से विचार-विमशभ करके बनाई गई ह।ै सन 1956 में अवखल भारतीय वशक्षा पररषि द्वारा इस सत्र को मख्यमवत्रयों के सम्मले न में अपनी सस्तवत के रुप म ें प्रस्तत वकया गया। 1968 की राष्ट्रीय वशक्षा ू ु ु ु ं ं नीवत में इसका जोरिार समथभन हआ और 1968 म ें ही इसका पनः अनमोिन हआ। मख्यमवत्रयों द्वारा भी ु ु ु ु ु ं इसे अनमोवित कर विया गया था। ससि द्वारा सन 1992 में इसे कायाभन्ियन के वलए सस्तत कर विया ु ु ं ं गया। वत्रभाषा सत्र म ें विवभन्न भाषाओ के तीन समह बनाए गए ह।ैं इन समहों म ें शावमल भाषाओ में से ू ू ू ं ं विद्यावथभयों को प्रत्येक समह म ें से कोई एक भाषा लेकर पढ़ना था। ये तीन समह वनम्नवलवखत ह:ैं ू ू i. शास्त्रीय भाषाएँ जसै े सस्कत, अरबी, र्ारसी आवि; ृ ं ii. राष्ट्रीय भाषाएँ वजसमें सविधान की आठिीं अनसची में शावमल 22 भाषाएँ ह;ैं तथा ु ू ं iii. आधवनक यरोपीय भाषाएँ ु ू सस्तवत इस बात की थी गई थी वक इन तीनों समहों में से प्रत्येक म ें से एक भाषा लेकर कोई तीन भाषा ु ू ं पढ़ना ह।ै लेवकन यह सस्तवत बाध्यकारी या अवनिायभ नहीं थी। वशक्षा राज्य सची का विषय होने के ु ू ं कारण यह राज्यों की इछछा पर वनभरभ था। सस्तवत में यह बात भी कही गई थी वक वहिी भाषी राज्यों म ें ु ं ं िवक्षण की कोई भाषा पढ़ाई जाए। अब यवि वत्रभाषा सत्र म ें सस्कत के स्थान की बात की जाए तो सस्कत को इसमें स्थान तो वमला लेवकन ृ ृ ू ं ं यह स्थान अवनिायभ नहीं था। िकै वकपक स्थान वमलने के कारण इसके अध्ययन-अध्यापन में कछ विवशष्ट ु प्रगवत नहीं हई। सन 2000 में यह पाया गया वक कछ राज्य वहिी और अग्रेजी के अवतररक्त अपनी इछछा ु ु ं ं के अनसार सस्कत, अरबी, फ्रें च तथा पतभगीज पढ़ाते ह।ैं ृ ु ु ं जहा ँ तक ितभमान पाठयक्रम का प्रश्न ह ै
राष्ट्रीय शवै क्षक शोध एि प्रवशक्षण पररषि में विद्यालयी वशक्षा के ् ं वकसी भी स्तर के पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को अवनिायभ स्थान नहीं विया ह।ै राष्ट्रीय
शवै क्षक शोध एि ृ ् ं ं प्रवशक्षण पररषि पाठयक्रम वनमाभण हते कें द्र सरकार की एक सस्था ह।ै िसरे शब्िों में यह भी कहा जा ् ु ं ू सकता ह ै वक कें द्र सरकार ने इसे अवनिायभ स्थान नहीं विया ह।ै जहा ँ तक राज्य वशक्षा पररषिों का प्रश्न ह ै विवभन्न राज्यों म ें वस्थवत वभन्न-वभन्न ह।ै लेवकन अवधकाश राज्यों म ें इसे िकै वकपक स्थान विया गया ह।ै ं अभ्यास प्रश्न 13. वत्रभाषा सत्र वकस िषभ प्रस्तावित वकया गया? ू 14. वत्रभाषा सत्र का अनमोिन वकस वशक्षा नीवत म ें वकया गया? ू ु 15. वत्रभाषा सत्र की कायाभन्ियन के वलए सस्तवत वकस िषभ की गई? ू ु ं 16. वत्रभाषा सत्र में भाषाओ के वकतने समह बनाए गए थे? ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 76 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 17. वत्रभाषा सत्र में सस्कत को क्या स्थान प्राि ह?ै ृ ू ं 5.6 सस्ं कृ त पाठशालाओ ं म सस्ं कृ त का स्थान ें सस्कत भाषा को जीवित रखने एि इसको पनः प्रवतवष्ठत करने का श्रेय इन सस्कत पाठशालाओ को ही ृ ृ ु ं ं ं ं जाता ह।ै ये सस्कत पाठशालाएँ धावमकभ सस्थाओ यथा - शकराचायभ द्वारा िशे के चार विशाओ में ृ ं ं ं ं ं स्थावपत चार मठ के द्वारा, राज्य सरका
र द्वारा तथा कें द्र सरकार द्वारा सचावलत वकए जात े ह।ैं िाराणसी ं वस्थत सपणाभनि सस्कत विश्वविद्यालय के अगीभत इकाई के रूप म ें विवभन्न सस्कत महाविद्यालय एि ृ ृ ू ू ं ं ं ं ं ं विद्यालय कायभरत ह।ैं कें द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सस्कत सस्थान सचावलत वकए जा रह े ह।ैं इन सस्कत ृ ृ ं ं ं ं पाठशालाओ में व्याकरण, ििे , िशनभ , छि, ज्योवतष, आयििे के अवतररक्त अन्य विषयों यथा गवणत, ु ं ं विज्ञान एि भाषा विज्ञान की वशक्षा भी िी जाती ह।ै इसके अलािा कमकभ ाड, िास्तशास्त्र आवि विषयों की ु ं ं वशक्षा भी िी जाती ह।ै ज्ञान-विज्ञान क
ी इन विवभन्न शाखाओ के अध्ययन-अध्यापन के इतर सस्कत भाषा ृ ं ं के वशक्षकों को तैयार करने हते प्रवशक्षण पाठयक्रम यथा – बी०एड० कायभक्रम भी सचावलत वकए जा रह े ् ् ु ं ह।ैं इस प्रकार ये सस्कत पाठशालाएँ सस्कत भाषा की गररमा को पनः प्रवतवष्ठत करने के वलए प्रयासरत ह।ैं ृ ृ ु ं ं 5.7 ववद्यालय स्ति पि सस्ं कृ त पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक पाठयपस्तक वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया के सपािन के वलए एक महत्िपण भ सामग्री ह।ै वशक्षक
द्वारा ् ु ू ं पाठयक्रम का विद्यावथभयों तक प्रसारण पाठयपस्तकों के माध्यम से ही वकया जाता ह।ै विद्याथच भी ् ् ु पाठयक्रम का स्िअध्ययन पाठयपस्तक के माध्यम स
े ही करता ह।ै अतः, पाठयपस्तक का गणित्तापण भ या ् ् ् ु ु ु ू स्तरीय होना आिश्यक ह।ै पाठयपस्तकों की गणित्ता से आशय इस बात से होता ह ै वक पाठयपस्तक ् ् ु ु ु पाठयक्रम म ें शावमल पाठयिस्त का भली-भाँवत ज्ञान प्रिान करें। इस प्रकार पाठयक्रम एि पाठयपस्तकों ् ् ् ् ु ु ं के मध्य प्रत्यक्ष सबध होता ह।ै पाठयक्रम में वजस विषय को वजतना महत्ि प्राि होता ह ै उस विषय के ् ं ं वलए िसै े ही पाठयपस्तकों का वनमाभण वकया जाता ह।ै सस्कत भाषा को पाठयक्रम म ें िकै वकपक स्थान ृ ् ् ु ं प्राि होने के कारण इस विषय के वलए स्तरीय पाठय पस्तकों का सिथभ ा अभाि विखता ह।ै जो ् ु पाठयपस्तक उपलब्ध ह ै ि े भी बस खाना पवतभ के वलए ह।ैं पाठयपस्तकों म ें व्याकरण के सप्रत्ययों को ् ् ु ू ु ं सरल ढग से प्रस्तत करने के प्रयास में इतना सरल कर विया गया ह ै वक विद्याथच उस सप्रत्य को समझ ही ु ं ं नहीं पाता ह।ै अवधकाश पस्तकों की रचना सिाि शलै ी के आधार पर
की जा रही ह ै जो वक सस्कत भाषा ृ ु ं ं ं का ज्ञान प्रिान करने के वलए अपयाभि ह।ै सस्कत भाषा के विद्वान इस क्षेत्र म ें कायभ नहीं कर रह े ह ैं क्योंवक ृ ं लेखन कायभ में वकए गए श्रम के अनरूप उन्ह ें धन प्रावि क
ी आशा नहीं ह ै और लेखन कायभ अब ु स्िातःसखाय नहीं रह गया ह।ै अतः, इस बात की आिश्यकता ह ै वक पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को ृ ् ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 77 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं अवनिायभ स्थान प्रिान वकया जाए। एक बार यवि इसे अवनिायभ स्थान प्राि हो गया तो स्िय स्तरीय पाठय ् ं पस्तकों का सजन होने लगगे ा। ृ ु अभ्यास प्रश्न 18. बनारस वस्थत सस्कत विश्वविद्यालय का क्या नाम ह?ै ृ ं 19. सस्कत पाठशालाओ म ें वकन-वकन विषयों की वशक्षा िी जाती ह?ै ृ ं ं 5.8 सािांश विद्यालयी वशक्षा में पाठयक्रम एि उसमें वकसी भी विषय को विए गए स्थान का वशक्षा प्रणाली में ् ं उकलेखनीय योगिान होता ह।ै अतः, वशक्षण व्यिसाय में शावमल व्यवक्तयों को इस तथ्य से अिगत होना चावहए वक पाठयक्रम में वकसी विषय को क्या स्थान विया गया ह ै और क्या विया जाना चावहए? इस तथ्य ् को ध्यान में रखकर प्रस्तत इकाई में पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा के स्थान की चचाभ की गई ह।ै पाठयक्रम म ें ृ ् ् ु ं सस्कत भाषा का का स्थान िकै वकपक होना चावहए या अवनिाय भ इस पर बड़ा ही सिर वििचे न प्रस्तत ृ ु ु ं ं वकया गया ह।ै इस सिभ भ म ें प्रचवलत िोनों मख्य विचारधाराओ के समथभकों द्वारा विए गए तकों के उकलेख ु ं ं से प्रवशक्ष-वशक्षक को अिगत कराने की कोवशश की गई ह।ै इसके साथ ही साथ इस वििचे न को समथभन ु प्रिान करने के वलए सस्कत आयोग के वसर्ाररशों की भी चचा भ की गई ह।ै िोनों सस्कत आयोग की मख्य ृ ृ ु ं ं वसर्ाररशों को इस इकाई म ें स्थान विया गया ह।ै वत्रभाषा सत्र म ें सस्कत विए गए स्थान का भी िणनभ ृ ू ं वकया गया ह।ै सस्कत पाठशालाओ म ें सस्कत की वस्थवत एि सस्कत भाषा के उपलब्ध पाठयपस्तकों पर ृ ृ ृ ् ु ं ं ं ं ं सवक्षि चचा भ के साथ इस इकाई का समापन वकया गया ह।ै इस प्रकार प्रस्तत इकाई सस्कत भाषा के ृ ु ं ं वशक्षण अवधगम कायभ में शावमल व्यवक्तयों को पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा का क्या स्थान ह ै और क्या होना ृ ् ं चावहए वक जानकारी प्रिान करता ह ै जो उनके कायभ को प्रभािी बनाने म ें वनिय ही सहयोग करेगा और उनके वलए लाभिायी वसद्ध होगा| 5.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्ति 1. त्री ध्रिीय ु 2. 20 िीं 3. 2 4. मातभाषा के अध्ययन द्वारा क्षवतपवतभ ृ ू अनिाि एक विककप के रुप में ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 78 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं मातभाषा के शब्िों का विशि ज्ञान ृ प्राचीन एि अप्रासवगक भाषा तथा ं ं सस्कत के िल कमकभ ाड की भाषा ृ ं ं 5. आधवनक यग की भाषा ु ु
ज्ञान के समस्त शाखाओ का अध््यन-अध्यापन सभि ं ं अन्य भाषाओ का ज्ञान प्राि करने म ें सहायक ं भारतीय सस्कवत को समझने के वलए आिश्यक तथा ृ ं कम्प्यटर के क्षेत्र म ें वनपणता हावसल करने के वलए ु ु 6. 1956 7. सनीवत कमार चटजच ु ु 8. 55 9. पद्यमभषण सत्यव्रत शास्त्री ू 10. चार 11. वद्वतीय योजना- 1. मातभाषा (या क्षेत्रीय भाषा) 2. अग्रेजी 3. वहिी या अन्य भारतीय भाषा 4. ृ ं ं सस्कत ृ ं 12. चतथ भ योजना- 1. मातभाषा (या क्षेत्रीय भाषा); 2. अग्रेजी; 3. वहिी या अन्य भारतीय भाष
ा इसके ृ ु ं ं अतगतभ मातभाषा या वहिी अथिा इन िोनों के साथ सस्कत को अवनिाय भ रूप से 5 िष भ तक ृ ृ ं ं ं पढ़ाने की बात की गई। इसके पिात सस्कत पर अवधक ध्यान िने े की बात की गई। साथ ही यह ृ ं भी कहा गया वक परीक्षाथच को इस विषय की परीक्षा म ें उत्तीण भ होना अवनिायभ कर विया जाए। 13. 1956 14. 1968 15. 1992 16. 3 17. िकै वकपक 18. सम्पणाभनि सस्कत विश्वविद्यालय ृ ू ं ं 19. सस्कत पाठशालाओ में व्याकरण, ििे , िशनभ , छि, ज्योवतष, आयििे , गवणत, विज्ञान, भाषा- ृ ु ं ं ं विज्ञान, कमकभ ाड, िास्तशास्त्र आवि विषयों की वशक्षा के साथ-साथ सस्कत भाषा के वशक्षकों ृ ु ं ं को तैयार करने हते प्रवशक्षण पाठयक्रम यथा – बी०एड० कायभक्रम की भी वशक्षा िी जाती ह।ै ् ् ु 5.10 सदं भ भ एवं सहयोगी ग्रंथ 1. चौबे, विजय नारायण. (1985). सस्कत वशक्षण विवध, उत्तर प्रिशे वहिी सस्थान, आगरा। ृ ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 79 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2. झा, उियशकर. सस्कत वशक्षण. () सरभारती प्रकाशन, चौखम्बा, िाराणसी। ृ ु ं ं 3. झा, नागन्े द्र. (2013). प्राचीन एि अिाभचीन वशक्षा-पद्धवत. अवभषके प्रकाशन: विकली । ं 4. िबे वद्वििे ी एि वमश्र. () सस्कत वशक्षण के नये आयाम. राधा प्रकाशन मवन्िर, आगरा। ृ ं ं ु 5. पाण्डेय, रामशकल. (2008). सस्कत वशक्षण. विनोि पस्तक मविर, आगरा। ृ ु ं ं 6. वमत्तल, सतोष. सस्कत वशक्षण. () आर. लालबक वडपो, मरे ठ। ृ ु ं ं 7. शमाभ , उमाशकर. (2008). सस्कत सावहत्य का इवतहास, चौखम्बा बक्स, बनारस। ृ ु ं ं 8. शमाभ, उषा. (). सस्कत वशक्षण. स्िावत पवब्लके शन्स. जयपर। ृ ु ं 9. शमाभ, नन्िराम. (2007). सस्कत वशक्षण. सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन। ृ ं 10. सर्ाया, रघनाथ. .() सस्कत वशक्षण. हररयाणा सावहत्य अकािमी: पचकला, हररयाणा। ृ ु ु ं ं 11. सस्कत वशक्षक सिवशकभ ा. (2012). राष्ट्रीय शवै क्षक अनसन्धान एि प्रवशक्षण पररषि, नई ृ ु ं ं ं ् विकली। 5.11 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. विद्यालयी वशक्षा के पाठयक्रम म ें सस्कत के स्थान वनधाभरण पर वनबध वलख।ें ृ ् ं ं 2. प्रथम एि वद्वतीय िोनों सस्कत आयोग का पररचय ि ें एि पाठयक्रम म ें सस्कत को स्थान प्रिान ृ ृ ् ं ं ं ं करने सबधी उनकी वसर्ाररशों को वलख।ें ं ं 3. वत्रभाषा सत्र की व्याख्या करें। ू 4. सस्कत भाषा के उत्थान में सस्कत पाठशालाओ की क्या भवमका ह?ै वििचे ना करें। ृ ृ ू ं ं ं 5. क्या विद्यालयी वशक्षा के पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा को प्राि स्थान विद्यालयी वशक्षा के वलए ृ ् ं वनवमतभ सस्कत विषय के पाठयपस्तकों की गणित्ता में ह्रास का कारण ह?ै यवि हाँ तो अपने उत्तर ृ ् ु ु ं के पक्ष म ें तकभ ि।ें 6. पाठयक्रम म ें सस्कत भाषा का आपके विचार से क्या स्थान होना चावहए? ृ ् ं 7. क्या सस्कत आयोग की वसर्ाररशों को लाग वकया जाना चावहए? हाँ या नहीं। अपने उत्तर के ृ ू ं पक्ष म ें तकभ ि।ें उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 80 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं खण्ड 2 Block 2 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 81 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई 1- संस्कत रिक्षण की रवरभन्न रवरिया ाँ 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयाँ ृ ं 1.3.1 पारपररक विवध ं 1.3.2 पाठयपस्तक विवध ् ु 1.3.3 सगम पद्धवत अथिा वनबाभध विवध ु 1.3.4 व्याकरण-अनिाि विवध ु 1.3.5 िातभलाप विवध या सिाि विवध या सप्रेषणात्मक विवध ं ं 1.3.6 आगमन-वनगमन विवध 1.4 साराश ं 1.5 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1.6 शब्िािली 1.7 सिभभ एि सहयोगी ग्रथ ं ं ं 1.8 वनबधात्मक प्रश्न ं 1.1 प्रस्तावना भाषा व्यवक्तत्ि का सिाांगीण विकास करती ह।ै यह मनष्ट्य को अपने विचारों को सप्रेवषत करने के योग्य ु ं बनाती ह।ै अतः, इसका वशक्षण अत्यत ही प्रभािपण भ होना चावहए। सस्कत भाषा वशक्षण के वलए तो यह ृ ू ं ं बात और भी आिश्यक हो जाती ह ै क्योंवक सस्कत भाषा तो भारतीय पररदृश्य म ें अत्यत ही महत्िपण भ ह।ै ृ ू ं ं यह सपण भ ज्ञान-विज्ञान की भाषा ह।ै यह सावहत्य, सस्कवत एि सस्कार की भाषा ह।ै यह योग की भाषा ह।ै ृ ू ं ं ं ं अतः, इस भाषा का प्रभािी वशक्षण होना आिश्यक ह।ै यह भाषा इतनी महत्िपण भ ह ै वर्र भी आज अपने ू उत्थान की प्रतीक्षा कर रही ह।ै यह हमारी सबस े बड़ी विडबना ह।ै विद्यावथभयों एि अवभभािकों म ें इसके ं ं प्रवत सिथभ ा अरुवच ह।ै इस अरुवच को समाि कर इस भाषा को अपनी खोई हई प्रवतष्ठा को िापस विलान े ु के वलए भी ितभमान पररिशे में इसका प्रभािी वशक्षण आिश्यक ह।ै वकसी
भी भाषा के प्रभािी वशक्षण के वलए आिश्यक ह ै वक उस भाषा के विद्वानों द्वारा तय की गई वशक्षण विवधयों का प्रयोग वकया जाय। यवि सस्कत को विज्ञान की तरह से पढ़ाया जाय तो शायि वशक्षण कायभ उतना प्रभािी न हो। प्रस्तत इकाई की ृ ु ं रचना सस्कत भाषा के प
्रवशवक्षत वशक्षकों को सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयों का ज्ञान प्रिान करने के ृ ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 82 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वलए की गई ह।ै प्रवशक्ष वशक्षकों से यह आशा की जाती ह ै वक िह इन वशक्षण विवधयों का समवचत प्रयोग ु ु अपने वशक्षण कायभ म ें करेंग े एि सस्कत भाषा के उत्थान म ें अपना सिश्रभ ेष्ठ योगिान िगें ।े ृ ं ं 1.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के उपरात आप इस योग्य हो जाएगँ े वक- ं 1. सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयों को सचीबद्ध कर सकें ग े ृ ू ं 2. सस्कत वशक्षण की पारपररक विवधयों का िणनभ कर सकें गे ृ ं ं 3. सस्कत वशक्षण की पाठयपस्तक विवध की चचाभ कर सकें ग े ृ ् ु ं 4. सस्कत वशक्षण की सगम या वनबाभध विवध की वििचे ना कर सकें गे ृ ु ं 5. व्याकरण-अनिाि विवध की इसकी विशेषताओ एि सीमाओ सवहत व्याख्या कर सकें गे ु ं ं ं 6. सस्कत वशक्षण के सिाि विवध या िाताभलाप विवध या सप्रेषणात्मक विवध का िणनभ कर सकें ग े ृ ं ं ं 7. आगमन एि वनगमन विवध का उकलेख कर सकें गे ं 1.3 संस्कृ त वशक्षण की वववभन्न वववधया ँ प्रत्येक विषय का चाह े िह भाषा हो या विज्ञान अपना अलग महत्ि होता ह।ै उनके अपने शक्षै वणक उद्दश्े य
होते ह ैं तथा उन शक्षै वणक उद्दश्े य को प्राि करन े के वलए कछ वनवित विषयिस्त होते ह ैं या यँ कहले वक ु ु ू एक वनवित पाठयक्रम होता ह।ै प्रत्येक विषय के अवधगम पररणाम वभन्न-वभन्न होते ह।ैं अथाभत ज्ञान की ् एक इकाई या शाखा िसरी इकाई या शाखा से आिश्यकता, शक्षै वणक उद्दश्े य, विषयिस्त, अवधगम ु ू पररणाम आवि के आधार पर वभन्न होते ह।ैं जब वभन्नता के इतने सारे आधार ह ैं तो वर्र समस्त विषयों के वलए एक ही वशक्षण विवध का प्रयोग समीचीन नहीं ह।ै प्रत्येक विषय म ें वशक्षण विवध के आधार पर विवभन्नता होनी चावहए। इस तथ्य को ध्यान म ें रखकर प्रत्येक विषय के विद्व
ानों ने अपने-अपने विषय के वलए वशक्षण विवध या विवधयों को वनवित वकया और आज भी इस विशा म ें प्रयास कर रह े ह ैं तावक उस विषय का प्रभाि- पण भ वशक्षण अवधगम हो सके । यहाँ हम सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयों की चचाभ ृ ू ं करेंग।े 3.1 पारपररक शवशध ं सस्कत एक अवत प्राचीन भाषा ह।ै इसका वशक्षण भी अवत प्राचीन काल से चला आ रहा ह।ै िसरे शब्िों ृ ं ू म ें हम यह कह सकते ह ैं वक जब से भारत म ें वशक्षा की शरुआत हई तब से सस्कत भाषा का अध्ययन- ु ृ ु ं अध्यापन वकया जा रहा ह।ै भारत म ें वशक्षा की शरुआत िवै िक काल से मानी जाती ह।ै गरुकलों का ु ु ु जन्म िवै िक काल म ें वशक्षा प्रिाना करन े की वलए हआ इस बात के पयाभि साक्ष्य उपलब्ध ह।ैं इस प्रकार ु हम यह भी कहा सकते ह ैं वक िवै िका काल से ही या गरुकल के समय से ही भारत में सस्कत का वशक्षण ृ ु ु ं वकया जा रहा ह।ै उसा समय वशक्षण का कायभ हमारे ऋवषयों द्वारा वकया जाता था। ि े सारे ऋवष मत्रद्रष्टा थे। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 83 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं उन्होंने वशक्षण की विविधा विवधयों की खोजा की एि उनकाअपने वशक्षण-अवधगम कायभ में प्रयोग वकया। ं गरुकलों म ें सस्कत वशक्षण के वलए प्रयोग म ें लाए जाने िाली विवधयों के समह को ितभमान पररदृश्य म ें ृ ु ु ू ं सस्कत वशक्षण की पारपररक विवध की सज्ञा िी जाती ह।ै उपनयन सस्कार के साथ छात्र का गरुकल म ें ृ ु ु ं ं ं ं प्रिशे होता था। गरु प्रारवभक वशक्षा के रुप म ें छात्र को गायत्री मत्र की िीक्षा िते ा था। छात्र उसी विन स े ु ं ं गरुकल का अतेिासी हो जाता था एि प्रवतविन वनत्यकम भ के बाि गरु के समीप बैठ कर उनकी आज्ञा से ु ु ु ं ं ििे ाध्ययन करता था। अध्ययन-अध्यापन कायभ का आरभ एि समापन िोनों ऊँ के उछचारण के साथ होता ं ं था। गरु एि वशष्ट्य द्वारा अध्ययन-अध्यापन के वलए वजन विवधयों को प्रयोग म ें लाया जाता था उनमें से ु ं कछ विवधयों का िणनभ वनम्नवलवखत ह:ै ु 1. मौशखक एव व्यशिगत शिक्षण पद्धशत- इस विवध म ें गरु पहले ििे मत्रों का उछचारण करते थे ु ं ं तथा वशष्ट्य उनका अनकरण करते थे। उछचारण म ें आने िाले प्रत्येक कवठनाई का गरु द्वारा ु ु समाधान वकया जाता था। वशष्ट्य पनः उनका उछचारण करते थे। यहा चक्र तब तक चलता रहता ु था जबा तक वक वशष्ट्य शद्ध-शद्ध उछचारण करना नहीं सीखा लेता ह।ै गरु प्रत्येक विद्याथच की ु ु ु समस्या का व्यवक्तगत रुप से समाधान करता था। इस प्रकार व्यवक्तगत वशक्षा पर भी बल विया जाता था। 2. वाि-शववाि शवशध- इस विवध म ें पढ़ाए जाने िाले पाठ के पक्ष तथा विपक्ष म ें बातें कही जाती थी, तकभ विए जाते थ,े उिाहरण प्रस्तत वकए जाते थ े और इस प्रकार प्रस्तावित विषय पर प्रकाश ु डाला जाता था। इससे विद्याथच म ें अपने विचारों को अवभव्यक्त करने की योग्यता आती थी। इस विवध के सिभ भ म ें ऋग्ििे म ें जानकारी िी गई ह।ै ं 3. प्रश्नोिर प्रणािी- इस विवध म ें पाठ को प्रश्नोत्तर
के रूप म ें पढ़ाया जाता था। प्रत्येक प्रश्न म ें िो या तीन पद्य होते थे तथा प्रत्येक व्याख्यान म ें 60 प्रश्न होते थे। प्रत्येक प्रश्न के बाि विद्याथच उसे िोहराता था और इस प्रकार क्रवमक रूप से सपण भ व्याख्य
ान समाि हो जाता था। इस विवध का ू ं िणनभ उपवनषिों म ें िेखने को वमलता ह।ै गभीर विषयों को उपवनषिों
म ें प्रश्न विवध के माध्यम से ं बताया गया ह।ै प्रश्न का उत्तर िते े समय गरु, कथा, कहानी, उिाहरण आवि का भी प्रयोग वकया ु करते थे और कभी-कभी प्रश्न का विस्तत उत्तर िने े के बजाय वसर्भ सके त िते े थे और विद्याथच ृ ं उस सके त के आधार पर प्रश्न का उत्तर
ढँढने का प्रयास करते थे। बौद्ध ग्रथों म ें भी प्रश्न विवध का ू ं ं वजक्र वमलता ह।ै वमवलिपन्हो नामक ग्रथ म ें यनानी राजा वमनाडर बौद्ध वभक्ष नागसेन से बौद्ध धम भ ू ं ं ं ु के सबध म ें अनेक प्रश्न करते ह ैं एि नागसेन उनका उत्तर िते े ह।ैं ं ं ं 4. सत्र पद्धशत- गभीर तथ्यों को सक्ष्म रूप से रूप म ें बताना ही सत्र कहलाता ह।ै व्याकरण एि ू ू ू ं ं िशनभ के गभीर तथ्यों को सत्र विवध से ही पढ़ाया जाता था, यथा-
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‘अकहविसजवभ नयनाकठः’
ू ु ं ं ं अथाभत किगभ, विसग भ और ह कठ से बोले जाते ह।ैं
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‘पावणवन’
के सत्र तो इस विवध के सिश्रभ ेष्ठ ू ं उिाहरण ह।ैं आज भी कछ अध्यापक इसका प्रयोग करते ह।ैं इस विवध से अध्ययन-अध्यापन ु करने से विद्याथच के स्मरण शवक्त सशक्त होती थी। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 84 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 5. कहानी कथन शवशध- इस विवध म ें कथा
के माध्यम से वशक्षा िी जाती थी। यह बाल मनोविज्ञान पर आधाररत थी। बालक स्िभाि से ही कहानी प्रेमी होता ह।ै अतः, कहानी के माध्यम से पढ़ने म ें अवधक रुवच प्रिवशतभ करते थे। इस माध्यम से छात्रों को नैवतक वशक्षा िी जाती थी। विष्ट्ण शमाभ ु ने राजकमारों की कहावनयों के माध्यम स
े ही नीवतयों की वशक्षा िी थी। पचतत्र एि वहतोपिशे ु ं ं ं ऐसी ही कहावनयों का सग्रह ह।ै कहानी कथन विवध के अध्य्न से एका बात स्पष्ट होती ह ै वक ं हमारे पिजभ ों को बाल मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान था। ि े बालक को अपने वशक्षण के कें द्र म ें रखते ू थे। उस समय के कें द्र म ें वसर्भ पाठयिस्त ही नहीं थी। ् ु 6. भाषण शवशध- पावणनी ने अपने ने अष्टाध्यायी म ें भाषण शब्ि का कई बार प्रयोग वकया ह।ै इससे अनमान लगाया जाता ह ै वक प्राचीन काल म ें सस्कत वशक्षण के वलए भाषण विवध का भी प्रयोग ृ ु ं वकया जाता था। इस विवध म ें गरु प्रस्तावित पाठ पर भाषण िते ा था। भाषण के अत म ें विद्याथच ु ं अपने शकाओ को गरु के समक्ष रखते थे और गरु उन समस्याओ का समाधान करते थे। नालिा ु ु ं ं ं ं विश्वविद्यालय म ें इस प्रकार के साथ बड़े-बड़े कक्षों के अिशषे वमले ह ैं वजनम ें सामवहक वशक्षण ू भाषण या िाि-वििाि के माध्यम से वकया जाता था। यह विवध ितभमान समय के व्याख्यान विवध स े वमलती-जलती ह।ै ु 7. मॉशनटोररयि मेथड – पि
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‘मॉवनटोररयल’
आग्ल भाषा के शब्ि मॉवनटर से बना ह ै वजसका ं अथभ होता ह ै वनरीक्षण करना या वनरीक्षण करने िाला। ितभमान समय म ें विद्यालयों म ें प्रत्येक कक्षा म ें एक मॉवनटर होता ह ै जो कक्षा म ें अनशासन बनाए रखने का कायभ करता ह।ै प्राचीन ु काल म ें गरुकलों म ें िररष्ठ विद्यावथभयों द्वारा कवनष्ठ विद्यावथभयों को पढ़ान े की परपरा थी। गरुकल म ें ु ु ु ु ं विद्यावथभयों की सख्या अवधक होने पर िररष्ठ छात्र गरु की सहायता हते कवनष्ठ छात्रों को पढ़ाया ु ु ं करते थे। इसी को मॉवनटोररयल पद्धवत कहते थे। यह पद्धवत ितभमान समय म ें भी थोड़े बिले स्िरुप के साथ प्रचवलत ह।ै ितभमान पररिशे म ें महा
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विद्यालयों एि विश्वविद्यालयों म ें वशक्षण कायभ ं भार अवधक हो जाने के कारण शोध छात्रों की सहायता से कवनष्ठ छात्रों को अध्यावपत करिाया जाता ह।ै इसा प्रकार, यह विवध आज भी प्रासवगक ह।ै ं अभ्यास प्रश्न 1. छात्र क
ा गरुकल म ें प्रिशे उपनयन सस्कार के बाि होता था । (सत्य/असत्य) ु ु ं 2. मौवखक वशक्षण पद्धवत म ें पह्ले वशष्ट्य द्वारा ििे मत्रों का उछचारण वकया जाता था वर्र गरु द्वारा । ु ं (सत्य/असत्य) 3. िाि-वििाि विवध म ें वसर्भ पढ़ाए जाने िाले पाठ के पक्ष म ें तकभ विए जाते थे । (सत्य/असत्य) 4. प्रश्नोत्तर विवध से पढ़ाए जानेिाले प्रत्येक पाठ म ें कल 60 प्रश्न होते थे । (सत्य/असत्य) ु 5. प्रश्नोत्तर विवध का िणनभ उपवनषिों म ें वमलता ह ै । (सत्य/असत्य) 6. ______नामक बौद्ध ग्रथ म ें यनानी राजा वमनाडर एि बौद्ध वभक्ष ______के मध्य प्रश्नोत्तर का ू ं ं ं ु वज़क्र ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 85 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 7. पावणनी ने अपने पस्तक अष्टाध्यायी म ें ______का प्रयोग वकया ह।ै ु 8. कहानी कथन विवध से सामान्यतः______वशक्षा िी जाती थी। 9. भाषण विवध के प्रयोग का िणभन______के ग्रथ______ म ें वमलता ह।ै ं 1.3.2 पाठयपस्तक शवशध ् ु पाठयपस्तक विवध का सामान्य अथभ ह,ै पाठयपस्तकों के माध्यम से वशक्षा। यह विवध अग्रेजों की िने ह।ै ् ् ु ु ं इस विवध के पीछे यह मान्यता करती ह ै वक मनष्ट्य स्मरण के साथ-साथ विस्मरण भी करता ह।ै विस्मरण ु की वस्थवत म ें पनस्मरभ ण करने के वलए ज्ञान को पस्तकों के रुप म ें सरवक्षत करना चावहए। भारत में इस ु ु ं विवध के प्रबल समथभक डॉक्टर िस्ै ट थे। डॉक्टर िस्ै ट की यह मान्यता थी की पढ़ने म ें िक्षता प्राि करना, वलखने और बोलने म ें िक्षता प्राि करने की तलना म ें अवधक सरल एि लाभिायी ह।ै अतः, इसका ग्राह्य ु ं मकय भी अवधक होता ह।ै ग्राह्य मकय से आशय विद्याथच को अपने पाठयक्रम को अपण भ छोड़ने पर प्राि ् ू ू ू होने िाले लाभ से ह।ै िास्ति म ें यह विवध भारत म ें अग्रेजों के साथ आई। मकै ाले ने वशक्षा नीवत िी ं वजसके पररणाम स्िरुप भारत म ें अग्रेजी का बहत प्रचार-प्रसार हआ। आग्ल भाषा के प्रचार-प्रसार म ें ु ु ं ं पाठयपस्तकों ने महती भवमका वनभाई। डॉक्टर िस्ै ट के अनसार, वशक्षण को इस ढग से वनयोवजत वकया ् ु ू ु ं जाना चावहए वक छात्र जब भी विद्यालय छोड़े अपने पवठत अश का अवधकतम लाभ उठाने म ें सक्षम हो ं क्योंवक इसी लाभ का सिाभवधक महत्ि ह।ै इस विवध के महत्ि को िखे कर इसका प्रयोग सस्कत वशक्षण में ृ ं भी वकया जाने लगा तावक छात्रों को अवधकतम ग्राह्य मकय वमल सके । ू इस विवध म ें सिप्रभ थम विद्याथच के पररिशे तथा उसकी कक्षा के अनकल विषय सामग्री और शब्िािली ु ू का िगचकरण कर उसे पस्तक के रूप म ें विकवसत वकया जाता ह।ै विषयिस्त के रुप म ें क्रमशः िणभमाला, ु ु शब्ि, िाक्य, अनछछेि आवि का ज्ञान कराया जाता ह।ै सस्कत भाषा वशक्षण के वलए सस्कत के विद्वानों ृ ृ ु ं ं द्वारा ऐसी अनेक पस्तकें तैयार की गई। ईश्वरचि विद्यासागर कत
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‘सस्कत पाठयपस्तक’,
जीिानि ृ ृ ् ु ु ं ं ं विद्यासागर की
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‘सस्कत वशक्षा मजरी’
बी० बी० कमल की ‘सबोध सस्कतम ‘ एस० डी० सातिले कर ृ ृ ् ु ं ं ं की ‘सस्कत टीचर’ आवि इस क्षेत्र म ें विशषे रूप से उकलेखनीय ह।ैं इन पस्तकों के माध्यम से छात्रों को ृ ु ं सस्कत भाषा की ध्िवनयों, िणों, श्लोकों, अनछछेिों आवि का ज्ञान प्रिान वकया जाता ह।ै इन ृ ु ं पाठयपस्तकों का प्रयोग विद्याथच भी स्िअध्ययन के वलए करते ह ैं और वशक्षक भी अपन े वशक्षण कायभ के ् ु वलए करते ह।ैं इस विवध से वशक्षण करते समय पाठय पस्तक म ें िवणतभ पाठ को
ही कें द्र म ें रखा जाता ह।ै ् ु वशक्षण प्रवक्रया सामान्यतः वनम्नवलवखत चरणों म ें सपन्न की जाती ह।ै ं 1. पहले वशक्षक द्वारा पाठ का आिश भ सस्कत िाचन वकया जाता ह।ै ृ ं 2. इसके पिात छात्र द्वारा पाठ का अनकरण िाचन वकया जाता ह।ै ु 3. वशक्षक द्वारा प
ाठ म ें आए कवठन शब्िों का विद्याथच की मातभाषा म ें अथभ वनरूपण वकया जाता ृ ह।ै 4. इसके बाि विद्यावथभयों को मौन िाचन करने के वलए कहा जाता ह ै लेवकन यह आिश्यक नहीं ह।ै यह वशक्षक वनधाभररत करता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 86 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं इस प्रकार सपण भ पाठ का वशक्षण कायभ कर लेने के बाि
छात्रों को अभ्यास का अिसर विया जाता ह।ै ू ं व्याकरण के वनयम एि अनिाि कायभ का भी अभ्यास कराया जाता ह।ै ु ं पाठयपस्तक शवशध की शविेषताए ाँ ् ु इस विवध की वनम्नवलवखत विशषे ताए ँ ह-ैं i. विद्याथच को सस्कत िाचन का अभ्यास करने क
ा पयाभि अिसर वमलता ह ै ृ ं ii. विद्याथच के शब्ि भडार म ें िवद्ध होती ह ै ृ ं iii. विद्याथच म ें सस्कत भाषा एि सावहत्य के प्रवत रुवच उत्पन्न होती ह ै ृ ं ं iv. उछचस्तरीय कक्षाओ को पढ़ाने के वलए यह सिोत्तम विवध ह;ै ं v. यह आिश्यक शवै क्षक सामवग्रयों के अभाि को कम करता ह।ै पाठयपस्तक शवशध की सीमाए-ाँ ् ु इस विवध की वनवम्न्लवखत सीमाए ँ ह-ैं i. इस विवध म ें मौवखक अवभव्यवक्त को महत्ि नहीं विया जाता ह।ै ii. इस विवध से सस्कत भाषा का वशक्षण करने पर विद्यावथभयों को अपने उछचारण िोष को सधारने ृ ु ं के कम अिसर वमलते ह।ैं iii. इस विवध म ें व्याकरण को विशेष महत्ि नहीं वमल पाता ह।ै iv. यह विवध छात्रों म ें नीरसता उत्पन्न करती ह।ै 1.3.3 सगम पद्धशत अथवा शनबाशध शवशध ु इस विवध का विकास अग्रेजी भाषा को वििशे ी भाषा के रूप म ें वसखाने के वलए वकया गया था। इस ं विवध के तीन मख्य तत्ि होते ह:ैं ु i. मौवखक कायभ की बहलता ु ii. मातभाषा की पण भ रूपेण उपेक्षा ृ ू iii. िस्त और शब्ि के मध्य सबध की स्थापना। ु ं ं यहा विवध िाकटर एनर्ीकड के ‘मिसभ मथे ड’ पर आधाररत ह।ै इस विवध का प्रयोग परसा विद्यालय में ग्रीक एि लैवटन पढ़ाने के वलए वकया गया। यह प्रयोग अत्यत सर्ल हआ था। इसका उकलेख इग्लैंड की ु ं ं ं वशक्षा पररषि म ें वकया गया था। वशक्षा पररषि के सिस्यों के अनसार इस विवध द्वारा कशल और वसद्धहस्त ु ु व्यवक्त छात्रों को अवधक ित्तवचत्त बना सकते ह।ैं इस विवध के अनसार पाठ को तैयार करते ही छात्र भाषा ु का पयाभि ज्ञान प्राि कर लेते ह।ैं र्लतः उनका मवस्तष्ट्क बड़ा ही आत्मवनभरभ एि सजनात्मक बन जाता ह।ै ृ ं सस्कत वशक्षण के वलए इस विवध का सिप्रभ थम िणनभ प्रोफे सर बी० पी० बोवकल ने अपनी पस्तक न्य ृ ु ू ं अप्रोच ट सस्कत म ें वकया ह।ै इस विवध का व्यिहाररक प्रयोग भी सिप्रभ थम प्रोर्े सर बोवकल ने ही ृ ू ं एवलर्ें ट टयन हाई स्कल मबई म ें वकया था। इस विवध से वशक्षण कायभ करते समय वकसी अन्य भाषा का ् ू ू ुं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 87 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सहारा नहीं वलया जाता ह।ै छात्र को सस्कत भाषा म ें ही सीखना होता ह ै और अपने भािों की अवभव्यवक्त ृ ं सस्कत भाषा म ें ही करनी होती ह।ै तावक सस्कत म ें उनका परा अवधकार हो जाए और छात्र सस्कत भाषा ृ ृ ृ ू ं ं ं म ें भी अपनी मातभाषा वजतना ही िक्ष हो जाए। इस विवध म ें वशक्षक छात्र से प्रश्न पछता ह ै और छात्र ृ ू उसका उत्तर िते े
ह।ैं इस प्रकार, वशक्षक छात्र को सरल िाक्य के वनमाभण हते प्रोत्सावहत करता ह।ै इस ु प्रणाली म ें िाक्य को भाषा की सबसे छोटी इकाई मानी जाती ह।ै इस प्रणाली म ें मातभाषा की पण भ रुप से ृ ू उपेक्षा होती ह।ै विद्याथच सस्कत म ें ही बोलता ह,ै सस्कत ही सनता ह।ै इस प्रकार, उसके आसपास के ृ ृ ु ं ं िातािरण को सस्कतमय कर विया जाता ह।ै विद्याथच पहले चार िाक्य बोलता ह,ै वर्र एक अनछछेि और ृ ु ं वर्र धीरे -धीर
े इस भाषा म ें िक्षता प्राि कर लेता ह।ै सगम पद्धशत या शनबाशध शवशध की शविेषताए ाँ ु इस विवध की वनम्नवलवखत विशषे ताए ँ ह-ैं 1. इस विवध से सस्कत वशक्षण विद्यावथभयों म ें भाषा विशेष के प्रवत रुवच उत्पन्न करता ह।ै ृ ं 2. यह विवध छात्र को वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया म ें सवक्रय बनाए रखती ह।ै 3. इस विवध म ें बोलने पर अत्यवधक बल प्रिान वकया जाता ह ै इसवलए इसम ें उछचारण की शद्धता ु
का अभ्यास होता ह।ै 4. इस विवध से वशक्षण करने पर छात्रों को सनकर अथभ को समझने का अभ्यास करने का पयाभि ु अिसर वमलता ह।ै अभ्यास के कारण श्रिण कौशल का भी पयाभि विकास होता ह
।ै सगम पद्धशत या शनबाशध शवशध की सीमाए ाँ ु इस विवध की वनम्नवलवखत सीमाए ँ ह-ैं 1. इस विवध की उपयोवगता के िल मधे ािी छात्रों के वलए मानी गई ह।ै 2. इग्लैंड की वशक्षा पररषि म ें तो इस विवध की सर्लता के सबध म ें जो आशका व्यक्त की गई थी ं ं ं ं उसके अनसार तो यह विवध मेधािी छात्रों के वलए भी उपयोगी होगी वक नहीं, यह सिहे ास्पि ह।ै ु ं 3. यह विवध समय साध्य ह।ै 4. इस विवध म ें प्रत्येक विद्याथच पर व्यवक्तगत रुप से ध्यान िने ा पड़ेगा जो वक विद्यालय की समय सारणी को ध्यान म ें रखते हए सभि नहीं ह।ै ु ं 5. सस्कत अध्यापकों का मातभाषा म ें उपयोग करने की योग्यता का न होना भी इस विवध की एक ृ ृ ं सीमा ह।ै अभ्यास प्रश्न 10. भारत म ें पाठयपस्तक विवध के प्रबल समथभक कौन थे? ् ु 11.
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‘ग्राह्य मकय’
से आप क्या समझते ह?ैं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 88 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 12. पाठयपस्तक विवध द्वारा सस्कता वशक्षण करने के वलए ईश्वरा चि विद्यासागरा ने वकस पस्तक की ृ ् ु ु ं ं रचना की थी। 13. सगम या वनबाभध विवध का प्रयोग कहाँ अत्यत सर्ल हआ था? ु ु ं 14. भारत म ें सगम अथिा वनबाभध विवध के जनक कौन माने जाते ह?ैं ु 15. आग्ल भाषा के प्रचार-प्रसार म ें पाठ्पस्तकों की महती भवमका वनभाई । (सत्य/असत्य)। ् ु ू ं 16.
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‘सबोध सस्कतम’
पस्तक एस० डी० सातिले कर की रचना ह ै । (सत्य/असत्य)। ृ ् ु ु ं 17.
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‘पाठयपस्तक विवध’
से वशक्षण म ें विद्याथच के शब्ि-भडार म ें िवद्ध होती ह ै । (सत्य/असत्य)। ृ ् ु ं 18. वनबाभध विवध म ें मौवखक कायभ को अवत अकप मात्रा म ें स्थान विया जाता ह ै । (सत्य/असत्य) 19.
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‘न्य एप्रोच ट सस्कत’
म ें िी० पी० बोवकल द्वारा वलवखत पस्तक का नाम ह ै । (सत्य/असत्य) ृ ु ू ु ं 1.3.4 व्याकरण-अनवाि शवशध ु जसै ा वक नाम से ही स्प्ष्ट ह ै इस विवध से वशक्षण करने के वलए व्याकरण एि अनिाि पद्धवत का सहारा ु ं वलया जाता ह।ै वजस भाषा का वशक्षण करना होता ह ै उस भाषा के व्याकरण का प्रयोग वकया जाता ह।ै अनिाि म ें िो भाषाओ की आिश्यकता होती ह।ै एक को स्रोत भाषा कहते ह ैं तथा िसरे को लक्ष्य भाषा। ु ं ू वजस भाषा के पाठ का अनिाि वकया
जाता ह ै उसे स्रोत भाषा एि वजस भाषा म ें अनिाि वकया जाता ह ै ु ु ं उसे लक्ष्य भाषा कहते ह।ैं वजस भाषा का वशक्षण करना होता ह ै उस भाषा से विद्याथच की मातभाषा एि ृ ं विद्याथच की मातभाषा से वजसा भाषा का वशक्षण वकया जा रहा ह,ै उस भाषा म ें अनिाि वकया जाता ह ै ृ ु और करिाया जाता ह।ै सस्कत भाषा के सिभ भ म ें सस्कत व्याकरण की सहायता ली जाती ह।ै सस्कत ृ ृ ृ ं ं ं ं भाषा से वहिी या विद्याथच की मातभाषा म ें तथा वहिी या विद्याथच की मातभाषा से सस्कत म ें अनिाि ृ ृ ृ ु ं ं ं वकया जाता ह ै एि करिाया जाता ह।ै इस
विवध का भारत िष भ म ें पहली बार प्रयोग डॉक्टर रामकष्ट्ण ृ ं गोपाल भडारकर ने वकया था। उनके सम्मान म ें इसे डॉक्टर भडारकर विवध भी कहा जा सकता ह।ै डॉक्टर ं ं भडारकर ने सस्कत भाषा की िो पस्तकें तैयार की थी। इन पस्तकों म ें उन्होंने व्याकरण- अनिाि पद्धवत का ृ ु ु ु ं ं अनसरण वकया था। कालातर म ें िामन वशिराम आप्टे, मोरेश्वर रामचद्र काले आवि विद्वानों ने भी इस ु ं ं पद्धवत पर आधाररत सस्कत वशक्षण की पस्तकों का विकास वकया। इस पद्धवत म ें विद्यावथभयों को पहले ृ ु ं व्याकरण का ज्ञान कराया जाता ह।ै वर्र व्याकराण के वनयमों के अभ्यास के वलए अनिाि एि अन्य ु ं अभ्यास कायों द्वारा सस्कत भाषा का ज्ञान प्रिान वकया जाता ह।ै इस पद्धवत वक विद्वानों द्वारा अक्सर इस ृ ं बात को लेकर आलोचना की जाती ह ै वक यह प्रारभ म ें ही विद्यावथभयों को व्याकरण के भारी-भरकम ं वनयमों को पढ़ाकर उनमनें ीरसताको जन्म िते ा ह ै लेवकन यहा बात सत्य नहीं ह।ै यह पद्धवत मख्यतः ु सस्कत भाषा को छात्रों के समक्ष मनोिज्ञै ावनक एि सरल ढग से प्रस्तत करने के वलए समवपभत ह।ै यह ृ ु ं ं ं विवध विद्यावथभयों को व्याकरण के भारी-भरकम वनयमों को रटिाने के बजाय उसके सरल वनयमों को आधवनकतम ढग से
छात्रों के समक्ष प्रस्तत कर उनके अिबोध शवक्त को जागत करने पर बल िते ा ह।ै इन ृ ु ु ं वनयमों का बोध हो जाने पर सस्कत का वहिी अथिा छात्र की मातभाषा म ें तथा वहिी अथिा छात्र की ृ ृ ं ं ं मातभाषा से सस्कत म ें अनिाि के माध्यम से छात्रों को सस्कत सावहत्य का पररचय कराया जाता ह
।ै ृ ृ ृ ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 89 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं व्याकरण-अनिाि विवध की विशषे ताए ँ - इस विवध की वनवम्न्लवखत विशषे ताए ँ ह:ैं ु i. स्िाध्याय के माध्यम स े सस्कत का ज्ञान प्राि करन े िाले छात्रों के वलए यह विवध बहत उपयोगी ु ृ ं ह ै ii. यह विवध आधवनक विद्यालयों के अनकल ह ै ु ु ू व्याकरण-अनिाि विवध की सीमाए ँ – इस विवध की सबसे बड़ी सीमा यह ह ै वक यह छात्रों म ें नीरसता ु उत्पन्न करती ह।ै 1.3.5 वाताशिाप शवशध या सवाि शवशध या सप्रेषणात्मक शवशध ं ं जसै ा वक नाम से ही स्पष्ट ह ै इस विवध म ें िो या अवधक व्यवक्तयों के मध्य सिाि
के माध्यम से वशक्षा िी ं जाती ह।ै पाठ को िाताभलाप के रुप म ें तैयार वकया जाता ह।ै छात्र उसका अध्ययन करते हैं, उसे समझते ह ैं तथा उसका अवभनय करते ह।ैं इस प्रकार छात्र उस भाषा म ें अपने भािों की अवभव्यवक्त करना सीख लेते ह,ैं विवभन्न अिसरों पर बोली जाने िाली भाषा के प्रयोग म ें िक्षता प्राि कर लेते हैं, ध्िवन के विविध तत्ि, यथा- अनतान, स्िराघात आवि का प्रयोग भी सीख लेते ह।ैं इसके साथ ही साथ भाषा के साथ आनन ु अवभव्यवक्त का प्रयोग भ
ी विद्याथच सीख लेता ह।ै इस विवध से सस्कत वशक्षण करने के वलए विशषे प्रकार ृ ं के पाठयपस्तकों का वनमाभण करना पड़ता ह ै वजनम ें अवभनय वकए जाने योग्य सिाि का प्रचर मात्रा म ें ् ु ु ं समािशे रहता ह।ै इस प्रकार के पाठ का एक उिाहरण वनम्नित ह:ै अथ िातलभ ापम ् शवद्याियस्य सस्कशतमहोत्सवः ृ ं मोहनः - भो वमत्र ! कतः आगछछवस? ु सोहनः -
विद्यालयात आगछछन अवस्म। ् ् मोहनः - इिानीं षडिािने? सोहनः - आम, अद्य विद्यालये कायभक्रमः आसीत। अतः, अद्य विलम्बो ् जातः। मोहनः - कः कायभक्रमः आसीत विद्यालये? ् सोहनः - विद्यालये सस्कवतमहोत्सिः आसीत, महोत्सि े अवस्मन बहिः ृ ् ं जनाः आगतिन्तः आसन। ् मोहनः - िाह्य जनाः अवप विद्यालये अद
्य गतिन्तः वकम? ् सोहनः - आम, अद्य समेषा कते आयोजनम आसीत, अहमवप प्रवतभागी ृ ् ् ् ं रुपेण तत्र आसम। ् मोहनः - त्ि त िाचालः नावस्त चेत कथ तत्र प्रवतभावगता गहीतिान। ृ ् ् ु ं ं सोहन: - आम, अह िाचालः नावस्म पर गरुमहोियानाम आिशे ः आसीत। ् ् ् ु ं ं यत सि े छात्रा: महोत्सि े भाग ग्रवहष्ट्यवन्त। ् ं मोहनः - महोत्सि े का का प्रवतयोवगता आयोवजता आसीत। ् सोहनः - वमत्र ! िाि-वििािः, सम्भाषण, काव्यपाठः, वनबधलेखनावि ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 90 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं प्रवतयोवगता आयोवजता आसीत। ् मोहनः - तवह भ त्ि कस्या प्रतोयोवगतायामासीत? ् ं ं सोहनः – अह त सम्भाषण प्रवतयोवगतायामासम एिच प्रथमस्थानमवप ् ु ं ं ं अप्राप्निम। ् ु मोहनः - सम्भाषणस्य कः विषयः आसीत? ् सोहनः -
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“भारतस्य सस्कवत-सभ्यता च”
अयमिे विषयः आसीत। ृ ् ं मोहनः - बहशोभनम। ु ् सोहनः - धन्यिािः। मोहनः - धन्यिािने कायां न चवलष्ट्यवत, चलत वमष्ठान खािािः। ु ं सोहनः - अिश्यम। चलत परतः एि वमष्ठान्न भडार: अवस्त। ् ु ु ं इवत िाताभलापः पाठ के अत म ें या बीच-बीच म ें वशक्षक छात्र से प्रश्न पछता रहता ह ै वजससे वशक्षक एि छात्रों के मध्य ू ं ं िाताभलाप होता रहता ह।ै पाठ में, व्याकरण के विवभन्न वनयमों के हए प्रयोग की व्याख्या, वशक्षक पाठ ु के अत म ें िाताभलाप के माध्यम से ही करता ह।ै इस प्रकार, छात्रों को व्याकरण के वनयमों की भी ं जानकारी हो जाती ह।ै वातशिाप शवशध या सवाि शवशध या सप्रेषणात्मक शवशध की शविेषताए ाँ ं ं इस विवध की वनम्नवलवखत विशषे ताए ँ ह-ैं i. इस विवध से वशक्षण करने पर छात्रों को मौवखक अवभव्यवक्त के पयाभि अिसर वमलते ह ैं । ii. विद्यावथभयों को उछचारण की शद्धता के अभ्यास का पयाभि अिसर वमलता ह ै । ु iii. विद्यावथभयों को स्िरों के उवचत प्रयोग, अनत्तान, स्िराघात आवि का भी ज्ञान हो जाता ह ै । ु वाताशिाप शवशध या सवाि शवशध या सप्रेषणात्मक शवशध की सीमाए ाँ ं ं इस विवध की वनम्नवलवखत सीमाए ँ ह:ैं i. इस विवध से वशक्षण करने पर विद्यावथभयों म ें लेखन एि पठन कौशल का विकास नहीं हो पाता ह;ै ं तथा ii. ऐसे प्रवशवक्षत वशक्षक, जो वक सस्कत म ें िातभलाप कर सके , की कमी भी इसा विवधकी एक ृ ं सीमा ह।ै 1.3.6 आगमन-शनगमन शवशध सस्कत म ें व्याकरण वशक्षण की सिाभवधक प्राचीन एि प्रचवलत विवध आगमन-वनगमन विवध ह।ै िास्ति में ृ ं ं यह िो विवधयों आगमन विवध एि वनगमन विवध का समछचय ह।ै इन िोनों विवधयों का अलग-अलग एि ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 91 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सयक्त
रूप म ें भी प्रयोग वकया जाता ह।ै आगमन विवध म ें पहले उिाहरणों को बताया जाता ह ै वर्र ु ं तत्सबधी व्याकरण के वनयमों की वशक्षा िी जाती ह।ै इसके विपरीत वनगमन विवध म ें पाली व्याकरण के ं ं वनयमों को बताया जाता ह ै वर्र उससे सबवधत उिाहरण विए जाते ह ैं और उन वनयमों का अभ्यास कराया ं ं जाता ह
।ै िसरे शब्िों म,ें यह भी कहा जा सकता ह ै वक वनगमन विवध आगमन विवध के ठीक विपरीत ू विवध ह।ै जब इन िोनों विवधयों का साथ-साथ प्रयोग वकया जाता ह ै तब आगमन विवध द्वारा वनयमों को प्रवतपावित कर वनगमन विवध द्वारा वनयमों का अभ्यास करा
या जाता ह।ै अभ्यास के पिात उन वनयमों की पवष्ट उिाहरण द्वारा की जाती ह।ै उिाहरणाथभ, यवि छात्रों को सवध पढ़या जा रहा ह ै तो पहले सवध का ु ं ं वनयम बताया जाता ह ै वर्र उसके बाि छात्रों से सवध का अभ्यास कराया जाता ह।ै तत्पिात कछ शब्ि ु ं िके र सवध के भिे पहचानने के वलए कहा जाता ह।ै ं  आगमन-शनगमन शवशध की शविेषताए ाँ - आगमन विवध का प्रयोग
वशक्षण को रुवचकर बना िते ा ह।ै  शनगमन शवशध की सीमाए ाँ - वनगमन विवध का पथक प्रयोग वशक्षण को नीरस एि ृ ं अमनोिैज्ञावनक बना िते ा ह।ै सस्कत वशक्षण की उपरोक्त िवणतभ विवधयों के इतर एक श्रव्य-भावषक विवध की चचाभ की जाती ह ै लेवकन ृ ं मरे े विचारानसार यह सिाि विवध का ही रूप ह।ै इन विवधयों के वििचे न के उपरात यह बात स्पष्ट हो जाती ु ं ं ह ै वक कोई भी विवध पण भ नहीं ह।ै यह सभी अपयाभि ह।ै अतः, इन सभी विवधयों को वमलाकर एक वमश्र ू विवध का प्रयोग सस्कत वशक्षण के वलए वकया जाना चावहए। इस विवध का एकमात्र उद्दश्े य सस्कत भाषा ृ ृ ं ं के सभी पक्षों का विकास करना होना चावहए अभ्यास प्रश्न 20. सस्कत वशक्षण के वलए व्याकरण अनिाि विवध
का प्रयोग भारता िष भ म ें पहली बार वकसने ृ ु ं वकया? 21. िाताभलाप विवध को अन्य वकन नामों से जाना जाता है? 22. व्याकरण-अनिाि विवध को डॉ० भडारकर विवध भी कहा जाता ह ै (सत्य/असत्य)। ु ं 23. वनगमन विवध का प्रयोग वशक्षण को रुवचकर बना िते ा ह ै (सत्य/असत्य)। 24. सस्कत वशक्षण की प्रत्येक विवध अपणाभ ह ै । (सत्य/असत्य) ृ ू ं 25. आगमन विवध का प्रयोग
वशक्षण को नीरस बना िते ा ह ै । (सत्य/असत्य) 26. प्रभािी सस्कत वशक्षण के वलए सभी विवधयों का वमवश्रत प्रयोग वकया जाना चावहए । ृ ं (सत्य/असत्य) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 92 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 1.4 सािांश प्रस्तत इकाई म ें सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयों का िणनभ वकया गया ह।ै इकाई के आरभ म ें सस्कत ृ ृ ु ं ं ं वशक्षण की पारपररक विवधयों, वजनका प्रचलन गरुकलों म ें बहतायत म ें होता था, का सवक्षि िणनभ वकया ु ु ु ं ं गया ह।ै इन विवधयों म ें मौवखक विवध, िाि-वििाि विवध, भाषण विवध, सत्र विवध, मॉवनटररग विवध ू ं मॉवनटोररयल पद्धवत को स्थान विया गया ह।ै हालाँवक य े अब बहत अवधक प्रचलन म ें नहीं ह ै लेवकन कछ ु ु लोग अभी भी आिश्यकता पड़ने पर इसका प्रयोग करते हैं। इसके बाि सस्कत वशक्षण हते महत्िपणभ ृ ु ू ं विवधयों यथा व्याकरण-अनिाि विवध, िाताभलाप विवध, पाठयपस्तक विवध, आवि की सारगवभतभ चचा भ ् ु ु की गई ह।ै इन विवधयों के अध्ययन से प्रवशक्ष वशक्षक को सस्कत वशक्षण के वलए वकस विवध का प्रयोग ृ ं ु करना ह ै इसका वनणयभ करने में सहायता वमलती ह।ै इकाई के अत म ें इस बात की भी चचाभ की गई ह ै वक ं सस्कत वशक्षण की कोई भी एक विवध पण भ नहीं ह।ै अतः, वशक्षक को विवभन्न विवधयों के वमवश्रत रूप का ृ ू ं प्रयोग करना चावहए। इस प्रकार, यह इकाई सस्कत वशक्षण के विद्यावथभयों एि वशक्षकों को सस्कत वशक्षण ृ ृ ं ं ं विवधयों की सारगवभतभ जानकारी प्रस्तत करता ह।ै ु 1.5 अभ्यास प्रश्नों के उत्ति 1. सत्य 2. असत्य 3. असत्य 4. सत्य 5. सत्य 6. वमवलिपनहो, नागसेन ं 7. सत्र विवध ू 8. नैवतक 9. पावणनी , अष्टाध्यायी 10. डॉ० िस्ै ट 11. विद्याथच को अपने पाठयक्रम को अपण भ छोड़ने पर प्राि होनिे ाले लाभ को ग्राह्यमकय कहते ह।ैं ् ू ू 12. सस्कत पाठयपस्तक ृ ् ु ं 13. परसा विद्यालय म ें ग्रीक एि लैवटन पढ़ाने के वलए इसका प्रयोगा वकया गया था। िह प्रयोग ं बहत सर्ल हआ था। ु ु 14. बी० पी० बोवकल 15. सत्य 16. असत्य 17. सत्य उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 93 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 18. असत्य 19. सत्य 20. डॉ० रामकष्ट्ण भडारकर ृ ं 21. सिाि विवध या सप्रेषणात्मक विवध ं ं 22. सत्य 23. असत्य 24. सत्य 25. असत्य 26. सत्य 1.7 सदं भ भएवं उपयोगी ग्रंथ 1. आप्टे, डी० जी० (1960). टीवचग ऑर्ा सस्कत इन सेके ण्िी स्ककस, आचायभ बक वडपो, ृ ू ु ं ं बड़ोिा। 2. चौबे, नारायाण विजय, (1985). सस्कत वशक्षण विवध, लखनऊ, उत्तर प्रिशे वहिी सस्थान। ृ ं ं ं 3. वत्रपाठी, राधाबकलभ (1999). सस्कत सावहत्य, 20िीं शताब्िी, राष्ट्रीय-सस्कत-सस्थानम, नई ृ ृ ् ं ं ं विकली। 4. बोवकल, िी० पी० (1956). ए न्य एप्रोच ट सस्कत, वचत्रशाला प्रकाशन, पना। ृ ू ू ू ं 5. मनस्मवत, अध्याय 2, श्लोक 70, 71, 72। ृ ु 6. वमत्तल, सतोष (2000). सस्कत वशक्षण, आर० लाल० बक वडपो, मरे ठ। ृ ु ं ं 7. राउस ऐण्ड एप्पलेटन, (n.d.). लैवटन ऑन ि डाइरेक्ट मथे ड| 8. शमाभ, ििे ीित्त (n.d.) सस्कत का ऐवतहावसक एि सरचनात्मक पररचय, हररयाणा ग्रथ अकािमी। ृ ं ं ं ं 1.8 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. सस्कत वशक्षण की विवभन्न विवधयों को सचीबद्ध करें। ृ ू ं 2. सस्कत वशक्षण की पारपररक विवधयों पर एक लघ वनबध वलख।ें ृ ु ं ं ं 3. सस्कत वशक्षण के िाताभलाप विवध की सवक्षि चचाभ करें तथा िाताभलाप का कम से कम 20 िाक्यों में ृ ं ं एक उिाहरण ि।ें 4. अपने द्वारा विए गए िाताभलाप के उिाहरण म ें प्रयक्त व्याकरण के िो वनयमों की व्याख्या करें। ु 5. सस्कत वशक्षण के पाठय पस्तक विवध की विशषे ताओ एि सीमाओ का उकलेख करें। ृ ् ु ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 94 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 6. वनम्नवलवखत पर सवक्षि वटप्पणी वलख:ें ं i. पाठयपस्तक विवध ् ु ii. सगम अथिा वनबाभध विवध ु iii. आगमन-वनगमन विवध iv. व्याकरण-अनिाि विवध ु 7. पाठयपस्तक विवध से सस्कत वशक्षण करने के वलए वनवमभत पस्तकों, वजनका िणनभ इस इकाई म ें वकया ृ ् ु ु ं गया ह,ै म ें से वकसी एक के विशषे ताओ का िणनभ करें। ं 8. व्याकरण-अनिाि विवध पर आधाररत एक सस्कत पाठ योजना का वनमाभण करें। ृ ु ं 9. सस्कत व्याकरण वशक्षण के वलए आगमन-वनगमन विवध पर आधाररत एक पाठ योजना का वनमाभण ृ ं करें। 10. सस्कत वशक्षण के वलए सगम पद्धवत या वनबाभध विवध पर आधाररत एक पाठ योजना के वलए वनमाभण ृ ु ं करें। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 95 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई 2- भाषा एवं सारहत्य का संबंि तिा संस्कत भाषा ृ रिक्षण में संस्कत सारहत्य की भूरमका 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 सावहत्य का अथभ 2.3.1 सावहत्य की अिधारणा 2.3.2 सावहत्य का िास्तविक स्िरूप 2.4 भाषा एि सावहत्य का सबध ं ं 2.4.1 भाषा का अवभप्राय एि पररभाषा ं 2.4.2 सस्कत भाषा और सावहत्य ृ ं 2.4.3 भारत की सास्कवतक भाषा ृ ं 2.4.4 सस्कत सावहत्य ृ ं 2.5 भाषा एि सावहत्य में अन्तर ं 2.5.1 सस् कत सावहत्य का पररचय ृ ं 2.5.2 भाषा अध्ययन 2.5.3 सस् कत भाषा का पररचय ृ ं 2.6 भाषा एि सावहत्य की विवभन्न विधाओ के माध्यम से सजनात्मकता एि जीिन ृ ं ं ं कौशलों का विकास 2.6.1 भाषा एि सावहत्य की विवभन्न विधाओ के माध्यम से सजनात्मकता एि ृ ं ं ं कौशलों का विकास 2.7 साराश ं 2.8 शब्िािली 2.9 सन्िभभ ग्रन्थ सची ू 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 96 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2.1 प्रस्तावना
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“ध्यान्यात्मक शब्िों द्वारा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा ह ै ।”-
स्िीट भाषा साथभक ध्िवन प्रतीकों की िह व्यिस्था ह ै वजसके द्विारा इसके प्रयोक्ता या श्रोता आपस म ें विचारों का आिान-प्रिान करते ह।ै प्रायः विश्व में पाए जाने िाले सभी जड़ और चेतन प्रावणयों के भािावभव्यवक्त के सभी साधनों को सामान्य रूप से भाषा कह विया जाता है; वकन्त भाषा विज्ञान म ें वजस भाषा को ग्रहण ु वकया जाता ह ै िह साके वतक आवि से वभन्न मानिीय व्यक्त िाणी ह।ै ं 2.2 उद्दश्े य वकसी भाषा के िावचक और वलवखत (शास्त्रसमह) को सावहत्य कह सकते ह।ैं िवनया में सबसे पराना ू ु ु िावचक सावहत्य हम ें आवििासी भाषाओ म ें वमलता ह।ै इस दृवष्ट स े आवििासीसावहत्य सभी सावहत्य का ं मल स्रोत ह।ै ू भारत का सस्कत सावहत्य ऋग्ििे से आरम्भ होता ह।ै व्यास, िाकमीवक जसै े पौरावणक ऋवषयों ने ृ ं महाभारत एि रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की। भास, कावलिास एि अन्य कवियों ने सस्कत म ें ृ ं ं ं नाटक वलख।े भवक्त सावहत्य म ें अिधी म ें गोस्िामी तलसीिास, ब्रज भाषा म ें सरिास, मारिाड़ी म ें मीराबाई, खड़ीबोली ु ू म ें कबीर, रसखान, मवै थली म ें विद्यापवत आवि प्रमख ह।ैं अिधी के प्रमख कवियों म ें रमई काका सप्रवसद्ध ु ु ु कवि ह।ैं वहन्िी सावहत्य म ें कथा, कहानी और उपन्यास के लेखन म ें प्रेमचन्ि का महान योगिान ह।ै ग्रीक सावहत्य म ें होमर के इवलयड और ऑडसी विश्वप्रवसद्ध ह।ैं अग्रेज़ी सावहत्य म ें शवे क्स्पयर का नाम कौन नहीं ं जानता। सस्कत भाषा म ें ही हमारी सस्कवत के तत्ि विद्यमान ह।ैं अवनिायभ सस्कत भाषा वशक्षण म ें िह के िल ृ ृ ृ ं ं ं सस्कत का ही अध्ययन कर पाता ह।ै उसम ें सवन्नवहत सस्कवत को नहीं ग्रहण कर पाता। िकै वकपक सस्कत ृ ृ ृ ं ं ं भाषा वशक्षण म ें उसके अध्ययन का एक विककप यह भी होती ह ै वक उस भाषा में वनवहत सस्कवतपणभ ृ ू ं पररचय करे। इस इकाई से आप जानेंगे-  सावहत्य की अिधारणा  सावहत्य की पररभाषा  भाषा का अवभप्राय एि पररभाषा ं  सस्कतभाषाऔरसावहत्य ृ ं  भारतकीसास्कवतकभाषा ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 97 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं  भाषा एि सावहत्य म ें अन्तर ं  भाषा एि सावहत्य की विवभन्न विधाओ के माध्यम से सजनात्मकता एि जीिन कौशलों का ृ ं ं ं विकास  भाषा एि सावहत्य से जड़े अन्य तथ्य ु ं 2.3 सावहत्य का अथभ सावहत्य का सहज अथभ ह ै अपनी सभ्यता-सस्कवत,अपने पररिशे को अपने शब्िों म ें अपने दृवष्टकोण के ृ ं साथ पाठकों, श्रोताओ के मध्य प्रस्तत करना, पर यवि दृवष्टकोण,शब्ि कवत्रम आधवनकता या आिेश से ृ ु ु ं बावधत हो तो उसे सावहत्य का िजाभ नहीं ि े सकते। सावहत्य, जो सोचने पर मजबर कर ि,े उत्कठा से भर ि।े ू ं जब तक सावहत्य के िास्तविक रूप का यथाथभ ज्ञान नहीं होगा, तब तक इस बात की उवचत मीमासा एन ं हो सके गी वक उसके विषय म ें अब तक वहन्िी ससार के कवियों और महाकवियों ने समवचत पथ ु ं अिलबन वकया या नहीं और सावहत्य विषयक अपने कतभव्य को उसी रीवत से पालन वकया या नहीं, जो ं वकसी सावहत्य को समन्न्त और उपयोगी बनाने म ें सहायक होती ह।ै ु 2.3.1. साशहत्य की अवधारणा सावहत्य शब्ि को पररभावषत करना कवठन ह।ै जसै े पानी की आकवत नहीं, वजस साँचे म ें डालो िह ढ़ल ृ जाताह,ै उसी तरहका तरल ह ै यहशब्ि। कविता, कहानी, नाटक, वनबध, ररपोताभज, जीिनी, रेखावचत्र, ं यात्रा-ितात, समालोचना बहत से साँचेह।ैं पररभाषा इसवलये भी कवठन हो जाती ह ै वक ु ृ ं धम,भ राजनीवत,समाज, समसामवयक आलेखों, भगोल, विज्ञान जसै े विषयों पर जो लेखन ह ै उसकी क्या ू श्रेणी हो? क्या सावहत्य की पररवध इतनी व्यापक ह?ै सस्कत म ें एक शब्ि ह ै िाडमय। भाषा के माध्यम से जो कछभी कहा गया, िह िाडमय ह।ै सावहत्य के ृ ् ् ु ं ं ं सिभ भ म ें सस्कत कीइस पररभाषा म ें मम भ ह ै –
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“शब्िाथो सवहतौ काव्यम”
। ृ ् ं ं यहाँ शब्िऔर अथभ के साथ भाि की आिश्यकता मानी गयी ह।ै इसीपररभाषा को व्यापक करते हए ु सस्कत के ही एक आचयभविश्वनाथ महापात्र नें
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“सावहत्य िपणभ ”
नामक ग्रथ वलख कर
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“सावहत्य”
शब्ि को ृ ं ं व्यिहार म ें प्रचवलतवकया। सस्कत के हीएक आचायभ कतक व्याख्या करते ह ैं वक जब शब्ि और अथभ ृ ु ं ं के बीच सन्िरता के वलये स्पधाभ लगी हो, तो सावहत्य कीसवष्ट होती ह।ै िहभािविहीन रचना जो छि और ृ ु ं मीटर के अनमापों मेंशतप्रवतशत सही भी बैठती हो, िसै ी ही कावतहीन ह ैं जसै ेअपरान्ह म ें जगन। अथाभत, ु ु ू ं भाि वकसी सजन को िह गहरायीप्रिान करते ह ैं जो वकसी रचना को सावहत्य की पररवध म ें लाताह।ै ृ वकतनी सािगी से वनिा फाज़ली कह जाते ह ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 98 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं म ैं रोया परदसे में, भीगा मााँ का प्यार दख नें दख से बात की, बबन बिट्ठी बबन तार। ु ु रामधारी वसह
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‘विनकर’
की वनम्नवलवखत अमर पवक्तयाँ, सावहत्य के इस आयाम का अनपम उिाहरण ह:ैं ु ं ं आरती बिये त बकसे ढढता ह ै मरख, ू ू ू ूं मबददरों, राजप्रासादों में, तहखानों म?ें दवे ता कहीं सड़कों पर बगट्टी तोड़ रह,े दवे ता बमिेंग े खते ों में, खबिहानों म।ें फावड़े और हि राजदण्ड बनने को ह,ैं धसरता सोने से श्गार सजाती ह;ै र ू ूं दो राह,समय के रथ का घघरघ -नाद सनो, ु बसहासन खािी करो बक जनता आती ह ै ूं सक्षेप म ें
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“सावहत्य”
शब्ि, अथभ और भािनाओ की िह वत्रिेणीह ै जो जनवहत की धारा के साथ उछचािशों ं ं की विशा म ें प्रिावहत ह।ै 2.3.2. साशहत्य का वास्तशवक स्वरप सावहत्य का िास्तविक रूप िखे ते ह ैं वक सावहत्य वकसे कहते ह।ै इस कोवट म ें कौन सा सावहत्य माना जा सकता ह।ै िसै े तो लघ कथा, कहानी, उपन्यास, आत्म चररत्र, वनबन्ध आवि सभी िाँगमय या सावहत्य के ु अतगतभ आते ह,ैं वकन्त िास्तविक सावहत्य के विद्वानों ने 3 भेि वकये ह ैं - ु ं i. क्षवणक ii. अक्षर iii. प्रासाविक अन्य प्रकार का वलवखत ब्योरा (धोबी की डायरी, वहसाब की बही) आवि सावहत्य नहीं कहलाये जा कहते। वजस िाँगमय म ें सत्य, वशि, सन्िर की मात्रा समान तथा पण भ रूप से वनवहत होती ह ै िही सावहत्य सावहत्य ु ू ं ं ं की कोवट म ें आ सकता ह।ै क्षवणक िाँगमय म ें आकषभण होता ह।ैं उसम ें सिरम का गण विशषे रूप से व्याि रहता ह,ै इसीवलए उसमें ् ु ु ं आकषभण होते हए उसका अवस्तत्ि भी क्षवणक रहता
ह।ै इस प्रकार का सावहत्य समाज म ें सककप-विककप ु ं की प्रिवत्त वनमाभण करके चचलत्ि उत्पन्न करता ह।ै अतएि सावहवत्यक दृवष्ट से इस प्रकार के सावहत्य का ृ ं कोई मकय नहीं ह।ैं ू िास्तविक सावहत्य िही ह ैं जो समाज को उन्नत अिस्था म ें ले जािे। इस प्रकार क
ा सावहत्य अक्षर िाँगमय हो सकता ह।ै अक्षर िाँगमय आिश भ होता ह।ै आिश भ होने के कारण ही िह अक्षर, अवमट या उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 99 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वस्थर कहलाता ह।ै वजस िाँगमय म ें सत्यता का गण अवधकाँश म ें हो, िही अक्षर या आिश भ सावहत्य ु कहलाता ह।ै वजस सावहत्य का प्रभाि पाठक पर एक माग भ प्रिशनभ के रूप म ें कायभ करता है, तथा अनेक भ्रमोत्पािक आकषकभ साधनों से पाठक सत्य से िर हो जाता ह,ैं ऐसी अिस्था म ें नायक के सहारे , उसके ू चररत्र वचत्रण
के आधार पर िह सत्यता की खोज करके उसके अवधक समकक्ष पहचँ ने का प्रयास करता ु ह।ै इसे हम उछचतर सावहत्य की कोवट म ें रख सकते ह।ैं इस प्रकार के सावहत्य के भण्डार से पशता से मानिता तथा मानिता से ििे ता के कोवट तक पहचँ ने की ु ु क्षमता प्रिान करने का समथभ इसी प्रकार क
े सावहत्य म ें हो सकती ह।ै इसके अवतररक्त एक प्रासाविक िाँगमय होता ह ै वजसम ें यह ििै ी शवक्त रहती ह ै वक पाठक को सहज ही अपनी ओर आकवषतभ करके उसको उन्नत अिस्था म ें पहचँ ाती ह।ै इसे हम उछचतम सावहत्य कहते ह।ैं ु पाठक स्िय का विकास वजन अनभि वसद्ध, ििै ी स्र्वतभ स े सवजत िाँगमय को आधाररत करके अपना ृ ु ू ं जीिन लक्ष्य वसद्ध करता ह,ै िही ह ै प्रासाविक िाँगमय। जसै े-मीरा, कबीर, तकाराम, एकनाथ आवि ु अवशवक्षत वकन्त वसद्ध-सन्तों का सावहत्य मानि को वबना प्रयास के ही साधक से वसद्ध बना िते ा ह।ै इसी ु प्रकार का आध्यावत्मक सावहत्य अन्य, महापरुषों का प्रासाविक सावहत्य कहलाता ह।ै ु वकन्त आधवनक यग म ें प्रायः िखे ने म ें यह आता ह ै वक सावहत्यक के िल ऐसे ही सावहत्य का सजन करते ृ ु ु ु ह ैं जसै ी लोगों की अवभरुवच होती ह।ै यह के िल धनोपाजनभ की दृवष्ट स े वहतकर हो सकता है, वकन्त ु िास्तविक सछचे सावहत्यकारों का कतभव्य यह नहीं कहलाता वक जसै ी रुवच हो िसै ा सावहत्य वनमाभण करें। यह तो इसी प्रकार हआ वक वजस प्रकार रोगी जो चाह े िही ििा डॉक्टर ििे ें वकन्त प्रायः ऐसा नहीं हआ ु ु ु करता। डॉक्टर जो चाहता ह ै िही ििा रोगी को िी जाती ह।ै उसी प्रकार सावहत्यकारों को वजस प्रकार का समाज वनमाभण करना ह ै उसी प्रकार का सावहत्य सजन उन्ह ें ृ करना चावहये। एक ही बात को कलात्मक पणभ ढग से प्रिवशतभ करना यह चतर सावहत्य कलाकार की चतरता ह।ै ू ु ु ं गढ़ विषय को सरलता से प्रवतपािन करके पाठक के हृिय म ें बैठने की कला कछ इने-वगने व्यवक्तयों को ही ू ु साध्य होती ह।ै कला पण भ तथा रसप्लािन यक्त सावहत्य का तर-तम रूप ही मानिीय समाज का भविष्ट्य उज्ज्िल तथा ू ु उछच धरातल पर पहचँ ने का रहस्य हो सकता ह।ै ु हम ें उछच कोवट के सावहत्य से ही प्रेम करना चावहये, न वक के िल मनोरजन के वलये लघकथा ि उपन्यास ु ं पढ़ कर अपना विल बहला वलया। इस प्रकार के सावहत्य से अथभ तथा समय की हावन के अवतररक्त बहमोल जीिन का भी नाश होने की पण भ ु ू सभािना होती ह।ै ं 2.4 भाषा एवं सावहत्य का सबध ं भाषा और सावहत्य एक ही वसक्के के िो पहल ह।ैं भाषा ह ै तो सावहत्य ह ै और जब सावहत्य होता ह ै तब ू भाषा स्ितः ही विकासमान होती ह।ै भाषा िह साधन ह ै वजसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते ह ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 100 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं और इसके वलये हम िावचक ध्िवनयों का उपयोग करते ह।ैं भाषा मख से उछचाररत होने िाले शब्िों और ु िाक्यों आवि का िह समह ह ै वजनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती ह।ै वकसी भाषा की सभी ध्िवनयों ू के प्रवतवनवध स्िन एक व्यिस्था म ें वमलकर एक सम्पण भ भाषा की अिधारणा बनाते ह।ैं व्यक्त नाि की िह ू समवष्ट वजसकी सहायता से वकसी एक समाज या िशे के लोग अपने मनोगत भाि तथा विचार एक िसरे ू पर प्रकट करते ह।ैं मख से उछचाररत होने िाले शब्िों और िाक्यों आवि का िह समह वजनके द्वारा मन की ु ू बात बतलाई जाती ह।ै इस समय सारे ससार म ें प्रायः हजारों प्रकार की भाषाए ँ बोली जाती ह ैं जो साधारणतः अपने भावषयों को ं छोड़ और लोगों की समझ म ें नहीं आतीं। अपने समाज या िेश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अछछी तरह जानते हैं, पर िसरे िशे ों या समाजों की भाषा वबना अछछी तरह सीखे नहीं ू ी़ आती। भाषा विज्ञान के ज्ञाताओ ने भाषाओ के आयभ, सेमवे टक, हमे वे टक आवि कई िग भ स्थावपत करके ं ं उनम ें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाए ँ स्थावपत की ह ैं और उन शाखा कों के भी अनेक िग भ उपिगभ बनाकर उनम ें बड़ी बड़ी भाषाओ और उनके प्रातीय भिे ों, उपभाषाओ अथिा बोवलयों को रखा ह।ै जसै े ं ं ं हमारी वहिीभाषा भाषा विज्ञान की दृवष्ट से भाषाओ के आयभिग भ की भारतीय आयभ शाखा की एक भाषा ह;ै ं ं और ब्रजभाषा, अिधी, बिले खडी आवि इसकी उपभाषाएँ या बोवलयाँ ह।ैं पास पास बोली जाने िाली ुं ं अनेक उपभाषाओ या बोवलयों म ें बहत कछ साम्य होता ह;ै और उसी साम्य के आधार पर उनके िग भ या ु ु ं कल स्थावपत वकए जाते ह।ैं यही बात बड़ी बड़ी भाषाओ म ें भी ह ै वजनका पारस्पररक साम्य उतना अवधक ु ं तो नहीं, पर वर्र भी बहत कछ होता ह।ै ससार की सभी बातों की भाँवत भाषा का भी मनष्ट्य की आविम ु ु ु ं अिस्था के अव्यक्त नाि से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओ म ें सिा पररितभन होता रहता ह।ै भारतीय आयों की िवै िक भाषा से सस्कत और प्राकतों का, ृ ृ ं ं प्राकतों से अपभ्रशों का और अपभ्रशों से आधवनक भारतीय भाषाओ का विकास हआ ह।ै ु ृ ु ं ं ं 2.4.1. भाषा का अशभप्राय एव पररभाषा ं भाषा कोइ भ अमतभ सककपना नहीं अवपत सामावजक व्यिहार की िस्त ह।ै समाज म ें इसके प्रयोग म ें आने से ू ु ु ं कइ भ रूप उभरने लगते ह,ैं वजससे भाषा भिे या भाषा प्रकार झलकने लगते ह।ैं िास्ति म ें भाषा अपने आप म ें समरूपी होती ह,ै वकत प्रयोग म ें आने से िह विषम रूपी हो जाती ह।ै भाषा की यह समरूपता प्रारभ में ु ं ं रहती ह,ै वकत इसके विकास के समय इसे विवभन्न सिभों और वस्थवतयों से गजरना पड़ता ह ै तो िह बाह्य ु ु ं ं रूप से विषम रूप कारण करने लगती है, हालावक आतररक सरचना की से यह समरूपी ही होती ह।ै ं ं ं इसका कारण यह ह ै वक मनष्ट्य का मवस्तष्ट्क इतना सजनशील ह ै वक िह विवभन्न सिभों, वस्थवतयों, प्रसगों, ृ ु ं ं प्रयोजनों और उद्दश्े यों म ें अत्यवधक भाषा-रूपों का प्रस्पर्टन करता ह।ै यही विवभन्न भाषा-रूप अपने ु आप म ें िवै िध्यपण भ होते ह।ैं ू यह विविधता और विषमता भाषा के विकास-क्रम के अतगभत वकसी काल-विशषे , स्थान-विशषे , व्यवक्त- ं विशेष, प्रयवक्त-विशषे आवि आयामों या सिभो म ें विखाइ भ िते ी ह।ै कइ भ बार भाषा-भाषी समिायों का एक ु ु ं िग भ वकसी एक स्थान से िसरे स्थान पर जाकर बस जाता ह ै तो उस स्थान पर कइ भ भाषाओ का प्रयोग होने ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 101 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं लगता ह।ै इससे व्यवक्त और समाज वद्वभाषी अथिा बहभाषी हो जाता ह।ै इसी आधार पर यहाँ भाषा का ु विकास, भाषा के विविध प्रयोग और वद्वभावषकता अथिा बहभावषकता के पररप्रेक्ष्य म ें वििचे न वकया ु जा रहा ह।ै भाषा को प्राचीन काल स े ही पररभावषत करने की कोवशश की जाती रही ह।ै इसकी कछ मख्य पररभाषाए ु ु ं वनम्नवलवखत ह-ैं  भाषा शब्ि सस्कत के भाष धात से बना ह ै वजसका अथभ ह ै बोलना या कहना अथाभत भाषा िह ह ै ृ ् ् ु ं वजसे बोला जाय।  (प्लेटो ने सोवर्स्ट म ें विचार और भाषा के सबध म ें वलखते हए कहा ह ै वक विचार और भाषआ ु ं ं म ें थोड़ा ही अतर ह।ै विचार आत्मा की मक या अध्िन्यात्मक बातचीत ह ै पर िही जब ू ं ध्िन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती ह ै तो उसे भाषा की सज्ञा िते े ह।ैं ं  स्िीट के अनसार ध्िन्यात्मक शब्िों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा ह।ै ु  िद्रें ीय कहते ह ैं वक भाषा एक तरह का वचह्न ह।ै वचह्न से आशय उन प्रतीकों से ह ै वजनके द्वारा मानि अपना विचार िसरों पर प्रकट करता ह।ै ये प्रतीक कई प्रकार के होते ह ैं जसै े नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ू ग्राह्य और स्पश भ ग्राह्य। िस्ततः भाषा की दृवष्ट से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ही सिश्रभ ेष्ठ ह।ै ु  ब्लाक तथा रेगर- भाषा यादृवछछक भाष प्रवतकों का तत्र ह ै वजसके द्वारा एक सामावजक समह ् ू ं सहयोग करता ह।ै  स्त्रत्िा – भाषा यादृवछछक भाष प्रतीकों का तत्र ह ै वजसके द्वारा एक सामावजक समह के सिस्य ् ु ू ं सहयोग एि सपकभ करते ह।ैं ं ं  इनसाइक्लोपीवडया वब्रटैवनका - भाषा को यादृवछछक भाष प्रवतकों का तत्र ह ै वजसके द्वारा मानि ् ं प्रावण एक सामावजक समह के सिस्य और सास्कवतक साझीिार के रूप म ें एक सामावजक समह ृ ू ू ं के सिस्य सपकभ एि सप्रेषण करते ह।ैं ं ं ं 
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‘‘भाषा यादृवछछक िावचक ध्िवन-सके तों की िह पद्धवत ह,ै वजसके द्वारा मानि परम्परा विचारों ं का आिान-प्रिान करता ह।ै ’’
स्पष्ट ही इस कथन म ें भाषा के वलए चार बातों पर ध्यान विया गया ह-ै i. भाषा एक पद्धवत ह,ै यानी एक ससम्बद्ध और सव्यिवस्थत योजना या सघटन ह,ै वजसमें कताभ, ु ु ं कमभ, वक्रया, आवि व्यिवस्थवत रूप म ें आ सकते ह।ैं ii. भाषा सके तात्कम ह ै अथाभत इसम े जो ध्िवनयाँ उछचाररत होती ह,ैं उनका वकसी िस्त या कायभ स े ् ु ं सम्बन्ध होता ह।ै ये ध्िवनयाँ सके तात्मक या प्रतीकात्मक होती ह।ैं ं iii. भाषा िावचक ध्िवन-सके त ह,ै अथाभत मनष्ट्य अपनी िावगवन्द्रय की सहायता से सके तों का ् ु ं ं उछचारण करता ह,ै ि े ही भाषा के अतगतभ आते ह।ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 102 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं iv. भाषा यादृवछछक सके त ह।ै यादृवछछक से तात्पयभ ह ै - ऐवछछक, अथाभत वकसी भी विशेष ध्िवन ् ं का वकसी विशषे अथभ से मौवलक अथिा िाशवभ नक सम्बन्ध नहीं होता। प्रत्येक भाषा म ें वकसी विशेष ध्िवन को वकसी विशषे अथभ का िाचक
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‘मान वलया जाता’
ह।ै वर्र िह उसी अथभ के वलए रूढ़ हो जाता ह।ै कहने का अथभ यह ह ै वक िह परम्परानसार उसी अथभ का िाचक हो जाता ह।ै ु िसरी भाषा म ें उस अथभ का िाचक कोई िसरा शब्ि होगा। ू ू हम व्यिहार म ें यह िखे ते ह ैं वक भाषा का सम्बन्ध एक व्यवक्त से लेकर सम्पण भ विश्व-सवष्ट तक ह।ै व्यवक्त ृ ू और समाज के बीच व्यिहार म ें आने िाली इस परम्परा से अवजतभ सम्पवत्त के अनेक रूप ह।ैं समाज सापेक्षता भाषा के वलए अवनिायभ ह,ै ठीक िसै े ही जसै े व्यवक्त सापेक्षता। और भाषा सके तात्मक होती ह ै ं अथाभत िह एक ‘प्रतीक-वस्थवत' ह।ै इसकी प्रतीकात्मक गवतविवध के चार प्रमख सयोजक हःै िो व्यवक्त- ् ु ं एक िह जो सबोवधत करता ह,ै िसरा िह वजसे सबोवधत वकया जाता ह,ै तीसरी सके वतत िस्त और ु ं ं ं ू चौथी-प्रतीकात्मक सिाहक जो सके वतत िस्त की ओर प्रवतवनवध भवगमा के साथ सके त करता ह।ै ु ं ं ं ं 2.4.2 सस्कत भाषा और साशहत्य ृ ं सस्कत भाषा और सावहत्य का विश्व म ें अपना एक विवशष्ट स्थान ह।ै विश्व की समस्त प्राचीन भाषाओ ृ ं ं और उनके सावहत्य (िाङम य) म ें सस्कत का खास महत्ि ह।ै यह महत्ि अनेक कारणों और दृवष्टयों से ह।ै ृ ् ं भारत के सास्कवतक, ऐवतहावसक, धावमकभ , अध्यावत्मक, िशवभ नक, सामावजक और राजनीवतक जीिन एि ृ ं ं विकास के सोपानों की सपण भ व्याख्या सस्कत िाङ मय के माध्यम से आज उपलब्ध ह।ै ृ ् ू ं ं 2.4.3. भारत की सास्कशतक भाषा ृ ं सहस्रावब्ियों से सस्कत भाषा और इसके िाङ मय की भारत म ें सिाभवधक प्रवतष्ठा प्राि रही ह।ै भारत की यह ृ ् ं सास्कवतक भाषा रही ह।ै सहस्रावब्ियों तक समग्र भारत को सास्कवतक और भािात्मक एकता म ें आबद्ध ृ ृ ं ं रखने को इस भाषा ने महत्िपण भ कायभ वकया ह।ै इसी कारण भारतीय मनीषा ने इस भाषा को 'अमरभाषा' ू या 'ििे िाणी' के नाम से सम्मावनत वकया ह।ै साशहत्य शनमाशण ऋग्ििे काल से लेकर आज तक इस भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के िाङ मय का वनमाभण होता आ रहा ् ह।ै वहमालय से लेकर कन्याकमारी के छोर तक वकसी न वकसी रूप म ें सस्कत का अध्ययन-अध्यापन अब ृ ु ं तक होता चला आ रहा ह।ै भारतीय सस्कवत और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक ृ ं दृवष्टयों से धमवभ नरपेक्ष रही ह।ै धावमकभ , सावहवत्यक, आध्यावत्मक, िाशवभ नक, िज्ञै ावनक और मानविकी आवि प्राय: समस्त प्रकार के िाङम य की रचना इस भाषा म ें हई ह।ै ु ् ऋग्वेिसशहता ं ऋग्ििे सवहता के कवतपय मडलों की भाषा सस्कत िाणी का सिप्रभ ाचीन उपलब्ध स्िरूप ह।ै ऋग्ििे सवहता ृ ं ं ं ं इस भाषा का परातनतम ग्रथ ह।ै यहाँ यह भी स्मरण रखना चावहए वक ऋग्ििे सवहता के िल सस्कत भाषा ृ ु ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 103 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं का प्राचीनतम ग्रथ नहीं ह,ै -वपत िह आयभ जावत की सपण भ ग्रथरावश म ें भी प्राचीनतम ग्रथ ह।ै िसरे शब्िों ु ू ं ं ं ं ू में, समस्त विश्व िाङ मय का िह (ऋक्सवहता) सबसे परातन उपलब्ध ग्रथ ह।ै िस मडलों के इस ग्रथ का ् ु ं ं ं ं वद्वतीय से सिम मडल तक का अश प्राचीनतम और प्रथम तथा िशम मडल अपेक्षाकत अिाभचीन ह।ै ृ ं ं ं ऋग्ििे काल से लेकर आज तक उस भाषा की अखड और अविवछछन्न परपरा चली आ रही ह।ै ं ं ऋक्सवहता के िल भारतीय िाङ मय की ही अमकय वनवध नहीं ह,ै िह समग्र आयभ जावत की, समस्त विश्व ् ू ं िाङम य की सिाभवधक महत्िपण भ विरासत ह।ै ् ू विश्व की प्राचीन प्रागवै तहावसक सस्कवतयों का जो अध्ययन हआ ह,ै उसम ें किावचत आयभ जावत से सबद्ध ु ृ ् ं ं अनशीलन का विवशष्ट स्थान ह।ै इस िवै शष्टय का कारण यही ऋग्ििे सवहता ह।ै आयभ जावत की आद्यतम ु ं ् वनिास भवम, उनकी सस्कवत, सभ्यता, सामावजक जीिन आवि के विषय म ें अनशीलन हए ह।ैं ऋक्सवहता ु ृ ू ु ं ं उन सबका सिाभवधक महत्िपण भ और प्रामावणक स्रोत रहा ह।ै पविम के विद्वानों ने सस्कत भाषा औरै ृ ू ं ऋक्सवहता से पररचय पाने के कारण ही तलनात्मक भाषा-विज्ञान के अध्ययन को सही विशा िी तथा ु ं आयभ भाषाओ के भाषाशास्त्रीय वििचे न म ें प्रौवढ़ एि शास्त्रीयता का विकास हआ। भारत के िवै िक ु ं ं ऋवषयों और विद्वानों ने अपने िवै िक िाङ मय को मौवखक और श्रवतपरपरा द्वारा प्राचीनतम रूप म ें अत्यत ् ु ं ं सािधानी के साथ सरवक्षत और अवधकत अनाए रखा। वकसी प्रकार के ध्िवनपरक, मात्रापरक यहाँ तक ृ ु वक स्िरपरक पररितभन से पणतभ : बचाते रहने का वन:स्िाथभ भाि म ें िवै िक ििे पाठी सहस्रवब्ियों तक अथक ू प्रयास करते रह।े शवकशसत स्वरप ऋक्सवहताकालीन साध भाषा तथा 'ब्राह्मण', 'आरण्यक' और 'िशोपवनषि' की सावहवत्यक िवै िक भाषा ु ं ् के अनतर उसी का विकवसत स्िरूप लौवकक सस्कत' या 'पावणनीय सस्कत' हआ। इसे ही 'सस्कत' या ु ृ ृ ृ ं ं ं ं सस्कत भाषा कहा गया। पर आज के कछ भाषाविि सस्कत को सस्कार द्वारा बनाई गई कवत्रम भाषा ृ ृ ृ ु ं ं ं मानते ह।ैं ऐसा मानते ह ैं वक इन सस्कत का मलाधार पितभ र काल को उिीछय, मध्यिशे ीय या आयाभितचय ृ ू ू ं विभाषाए ँ थीं। 'विभाषा' या 'उिीचाम ' शब्ि से पावणवन सत्रों म ें इनका उकलेख उपलब्ध ह।ै इनके अवतररक्त ् ू भी 'प्राछय' आवि बोवलयाँ थीं। परत 'पावणवन' ने भाषा का एक साििभ वे शक और सिभभारतीय पररष्ट्कत रूप ृ ु ं वस्थर कर विया। धीरे धीरे पावणवन समत भाषा का प्रयोग रूप और विकास प्राय: स्थायी हो गया। पतजवल ं ं के समय तक 'आयाभितभ' (आयभवनिास) के वशष्ट जनों म ें सस्कत बोलचाल की भाषा थी। पर शीघ्र ही िह ृ ं समग्र भारत के वद्वजावतिग भ और विद्वत्समाज की सास्कवतक और आकर भाषा हो गई। ृ ं आयशभाषा पररवार ऐवतहावसक भाषा विज्ञान की दृवष्ट से सस्कत भाषा आयभ भाषा पररिार के अतगतभ रखी गई ह।ै आयभ जावत ृ ं ं भारत म ें बाहर से आई या यहाँ इसका वनिास था, इत्यावि विचार अनािश्यक होने से यहाँ नहीं वकया जा रहा ह,ै पर आधवनक भाषा विज्ञान के पवडतों की मान्यता के अनसार भारत यरोपीय भाषा-भावषयों की जो ु ु ू ं नाना प्राचीन भाषाए ँ थीं, ि े िस्तत: एक मलभाषा की िशे कालानसारी विवभन्न शाखाए ँ थीं। उन सबकी ु ू ु उद्गमभाषा या मलभाषा को आद्य आयभ भाषा कहते ह।ैं कछ विद्वानों के मत म-ें िीरा-मल वनिास स्थान के ू ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 104 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िासी ससगवठत आयों को ही 'िीरोस' या िीरास (िीरा:) कहते थे। िीरोस (िीरो) शब्ि द्वारा वजन पिोक्त ् ् ु ू ं प्राचीन आयभ भाषा समह भावषयों का द्योतन होता ह,ै उन विविध प्राचीन भाषा-भावषयों को विरास ू (सिीरा:) कहा गया ह।ै अथाभत समस्त भाषाए ँ पाररिाररक दृवष्ट से आयभ पररिार की भाषाए ँ ह।ैं सस्कत का ृ ् ं ं इनम ें अन्यतम स्थान ह।ै उक्त पररिार की 'कें तम ' और 'शतम ' िो प्रमख शाखाए ँ ह।ैं प्रथम के अतगतभ ग्रीक, ् ् ु ु ं लावतन आवि आती ह।ैं सस्कत का स्थान 'शतम ' के अतगभत भारत-ईरानी शाखा म ें माना गया ह।ै ृ ् ं ं आयभ पररिार म ें कौन प्राचीन, प्राचीनतर और प्राचीनतम ह,ै यह पणतभ : वनवित नहीं ह।ै वर्र भी आधवनक ू ु अवधकाश भाषाविि ग्रीक, लावतन आवि को आद्य आयभ भाषा की ज्येष्ठ सतवत और सस्कत को उनकी ृ ं ं ं छोटी बवहन मानते ह।ैं इतना ही नहीं भारत-ईरानी-शाखा की प्राचीनतम अिस्ता को भी सस्कत से प्राचीन ृ ं मानते ह।ैं परत अनेक भारतीय विद्वान समझते ह ैं वक 'वजि-अिस्ता' की अिस्ता का स्िरूप ऋक्भाषा की ् ु ं अपेक्षा नव्य ह।ै जो भी हो, इतना वनवित ह ै वक ग्रथ रूप म ें स्मवत रूप से अिवशष्ट िाङ मय म ें ऋक्सवहता ृ ् ं ं प्राचीनतम ह ै और इसी कारण िह भाषा भी अपनी उपलवब्ध म ें प्राचीनतम ह।ै उसकी िवै िक सवहताओ ं ं की बड़ी विशेषता यह ह ै वक हजारों िषों तक जब वलवप कला का भी प्रािभाभि नहीं था, िवै िक सवहताएँ ं ु मौवखक और श्रवत परपरा द्वारा गरु-वशष्ट्यों के समाज म ें अखड रूप से प्रिहमान थीं। उछचारण की शद्धता ु ु ु ं ं को इतना सरवक्षत रखा गया वक ध्िवन ओर मात्राए,ँ ही नहीं, सहस्रों िषों पि भ से आज तक िवै िक मत्रों म ें ु ू ं कहीं पाटभिे नहीं हआ। उिात्त अनिात्तावि स्िरों का उछचारण शद्ध रूप म ें पणतभ : अविकत रहा। ु ृ ु ु ू आधवनक भाषा िज्ञै ावनक यह मानते ह ैं वक स्िरों की दृवष्ट से ग्रीक, लावतन आवि के 'कें तम ' िग भ की भाषाएँ ् ु ु अवधक सपन्न भी ह ैं और मल या आद्य आयभ भाषा के अवधक समीप भी। उनम ें उक्त
भाषा की स्िर सपवत्त ू ं ं अवधक सरवक्षत ह।ैं सस्कत म ें व्यजन सपवत्त अवधक सरवक्षत ह।ै भाषा के सघटनात्मक अथिा रूपात्मक ृ ु ु ं ं ं ं विचार की दृवष्ट से सस्कत भाषा को विभवक्त प्रधान अथिा 'वश्लष्टभाषा' कहा जाता ह।ै ृ ं सवश प्राचीन उपिधध व्याकरण प्रामावणकता के विचार
से इस भाषा का सिप्रभ ाचीन उपलब्ध व्याकरण पावणवन की अष्टाध्यायी ह।ै कम से कम 600 ई. प. का यह ग्रथ आज भी समस्त विश्व म ें अतलनीय व्याकरण ह।ै विश्व के और मख्यत: ू ु ु ं अमरीका के भाषाशास्त्री सघटनात्मक भाषा विज्ञान की दृवष्ट से अष्टाध्यायी को आज भी विश्व का सिोत्तम ं ग्रथ मानते ह।ैं 'ब्रमर्ीकड' ने अपने 'लैंग्िजे ' तथा अन्य कवतयों म ें इस तथ्य की पष्ट स्थापना की ह।ै पावणवन ृ ू ु ं के पि भ सस्कत भाषा वनिय ही वशष्ट एि िवै िक जनों की व्यिहार भाषा थी। असस्कत जनों म ें भी बहत सी ु ृ ृ ू ं ं ं बोवलयाँ उस समय प्रचवलत रही होंगी। पर यह मत आधवनक भाषाविज्ञों को मान्य नहीं ह।ै ि े कहते ह ैं वक ु सस्कत कभी भी व्यिहार भाषा नहीं थी। जनता की भाषाओ को तत्कालीन प्राकत कहा जा सकता ह।ै ृ ृ ं ं ििे भाषा तत्ित: कवत्रम या सस्कार द्वारा वनवमतभ ब्राह्मण पवडतों की भाषा थी, लोकभाषा नहीं। परत यह ृ ु ं ं ं मत सिभमान्य नहीं ह।ै पावणवन से लेकर पतजवल तक सभी ने सस्कत का लोक की भाषा कहा ह,ै लौवकक भाषा बताया ह।ै अन्य ृ ं ं सैकड़ों प्रमाण वसद्ध करते ह ैं वक 'सस्कत' िवै िक और िवै िकोत्तर पि भ पावणवनकाल म ें लोकभाषा और ृ ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 105 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं व्यिहार भाषा थी। यह अिश्य रहा होगा वक िशे , काल और समाज के सिभ भ म ें उसकी अपनी सीमा रही ं होगी। बाि म ें चलकर िह पवठत समाज की सावहवत्यक और सास्कवतक भाषा बन गई। तिनतर यह ृ ं ं समस्त भारत म ें सभी पवडतों की, चाह े ि े आयभ रह ें हों या आयेतर जावत के , सभी की, सिमभ ान्य ं सास्कवतक भाषा हो गई और आसेत वहमाचल इसका प्रसार, समािर और प्रचार रहा एि आज भी बना ृ ु ं ं हआ ह।ै ु शवश्वभाषा लगभग सत्रहिीं शताब्िी के पिाभधभ से यरोप और पविमी िशे ों के वमशनरी एि अन्य विद्याप्रेवमयों को ू ू ं सस्कत का पररचय प्राि हआ। धीरे -धीरे पविम म ें ही नहीं, समस्त विश्व म ें सस्कत का प्रचार हआ। जमनभ , ु ु ृ ृ ं ं अग्रेज़, फ़्ाँसीसी, अमरीकी तथा यरोप के अनेक छोटे बड़े िशे के वनिासी विद्वानों ने विशषे रूप से ू ं सस्कत के अध्ययन अनशीलन को आधवनक विद्वानों म ें प्रजावप्रय बनाया। आधवनक विद्वानों और ृ ु ु ु ं अनशीलकों के मत से विश्व की पराभाषाओ म ें सस्कत सिाभवधक व्यिवस्थत, िज्ञै ावनक और सपन्न भाषा ृ ु ु ं ं ं ह।ै िह आज के िल भारतीय भाषा ही नहीं, एक रूप से विश्वभाषा भी ह।ै यह कहा जा सकता ह ै वक भमडल के प्रयत्न-भाषा-सावहत्यों म ें किावचत सस्कत का िाङ मय सिाभवधक विशाल, व्यापक, चतमखभ ी ृ ् ् ू ु ु ं ं और सपन्न ह।ै ससार के प्राय: सभी विकवसत और ससार के प्राय: सभी विकासमान िशे ों म ें सस्कत भाषा ृ ं ं ं ं और सावहत्य का आज अध्ययन-अध्यापन हो रहा ह।ै आयश भाषाओ के शवकास में योगिान ं सस्कत का पररचय होने से ही आयभ जावत, उसकी सस्कवत, जीिन और तथाकवथत मल आद्य आयभ भाषा ृ ृ ू ं ं से सबद्ध विषयों के अध्ययन का पविमी विद्वानों को ठोस आधार प्राि हआ। प्राचीन ग्रीक, लावतन, ु ं अिस्ता और ऋक्सस्कत आवि के आधार पर मल आद्य आयभ भाषा की ध्िवन, व्याकरण और स्िरूप की ृ ू ं पररककपना की जा सकी, वजससे ऋक्सस्कत का अििान सबसे अवधक महत्ि का ह।ै ग्रीक, लावतन ृ ं आवि
भाषाओ के साथ सस्कत का पाररिाररक और वनकट सबध ह,ै पर भारत-ईरानी-िग भ की भाषाओ के ृ ं ं ं ं ं साथ[6] सस्कत की सिाभवधक वनकटता ह।ै भारत की सभी आद्य, मध्यकालीन एि आधवनक आय भ ृ ु ं ं भाषाओ क
े विकास म ें मलत: ऋग्ििे एि तित्तरकालीन सस्कत का आधाररक एि औपािावनक योगिान ृ ू ं ं ं ं ु रहा ह।ै आधवनक भाषा िज्ञै ावनक मानते ह ैं वक ऋग्ििे काल से ही जन सामान्य म ें बोलचाल की तथाभत प्राकत ृ ु ू भाषाए ँ अिश्य प्रचवलत रही होंगी। उन्हीं से पावल, प्राकत, अपभ्रश तथा तित्तरकालीन आयभ भाषाओ का ृ ं ं ु विकास हआ। परत इस विकास म ें सस्कत भाषा का सिाभवधक और सिवभ िध योगिान रहा ह।ै यहीं पर यह ु ृ ु ं ं भी याि रखना चावहए वक सस्कत भाषा ने भारत के विवभन्न प्रिशे ों और अचलों की आयेतर भाषाओ को ृ ं ं ं भी कार्ी प्रभावित वकया तथा स्िय उनसे प्रभावित हई; उन भाषाओ और उनके भाषणकताभओ की ु ं ं ं सस्कवत और सावहत्य को तो प्रभावित वकया ही, उनकी भाषाओ, शब्िकोश उनकी ध्िवनमाला और ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 106 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वलवपकला को भी अपने योगिान से लाभावन्ित वकया। भारत की िो प्राचीन वलवपया-ँ ब्राह्मी (बाए ँ से वलखी जानेिाली) और खरोष्ठी (िाए ँ से लेख्य) थीं। इनम ें ब्राह्मी को सस्कत ने मख्यत: अपनाया। ृ ु ं सपन्नध्वशनमािा ं भाषा की दृवष्ट से सस्कत की ध्िवनमाला पयाभि सपन्न ह।ै स्िरों की दृवष्ट से यद्यवप ग्रीक, लावतन आवि का ृ ं ं विवशष्ट स्थान ह,ै तथावप अपने क्षेत्र के विचार से सस्कत की स्िरमाला पयाभि और भाषानरूप ह।ै ृ ु ं व्यजनमाला अत्यत सपन्न ह।ै सहस्रों िषों तक भारतीय आयों के आद्यषवतसावहत्य का अध्यनाध्यापन गरु ु ु ं ं ं वशष्ट्यों द्वारा मौवखक परपरा के रूप म ें प्रितभमान रहा, क्योंवक किावचत उस यग म[ें 7] वलवपकला का उद्भि ु ं और विकास नहीं हो पाया था। सभित: पावणवन के कछ पि भ या कछ बाि से वलवप का भारत म ें प्रयोग ु ू ु ं चल पड़ा और मख्यत: 'ब्राह्मी' को सस्कत भाषा का िाहन बनाया गया। इसी ब्राह्मी ने आयभ और आयभतर ृ ु ं अवधकाश वलवपयों की िणमभ ला और िणभक्रम को भी प्रभावित वकया। मध्यकालीन नाना भारतीय द्रविड़ ं भाषाओ तथा तवमल, तेलग आवि की िणमभ ाला पर भी सस्कत भाषा और ब्राह्मी वलवप का पयाभि प्रभाि ु ं ं ह।ै ध्िवनमाला और ध्िवनक्रम की दृवष्ट से पावणवन काल से प्रचवलत सस्कत िणमभ ाला आज भी किावचत ृ ् ं विश्व की सिाभवधक िज्ञै ावनक एि शास्त्रीय िणमभ ाला ह।ै सस्कत भाषा के साथ-साथ समस्त विश्व म ें प्रत्यक्ष ृ ं ं या रोमन अकारातक के रूप में आज समस्त ससार म ें इसका प्रचार हो गया ह।ै ं ं 2.4.4 सस्कत साशहत्य ृ ं यहाँ सावहत्य शब्ि का प्रयोग 'िाङ्मय' के वलए ह।ै ऊपर ििे सवहताओ का उकलेख हआ ह।ै ििे चार ह-ैं ु ं ं ऋग्ििे , यजििे , सामििे और अथििभ िे । इनकी अनेक शाखाए ँ थीं, वजनमें बहत-सी लि हो चकी ह ैं और ु ु ु ु कछ सरवक्षत बच गई ह,ैं वजनके सवहता ग्रथ हम ें आज उपलब्ध ह।ैं इन्हीं की शाखाओ से सबद्ध ब्राह्मण, ु ु ं ं ं ं आरण्यक और उपवनषि नामक ग्रथों का विशाल िाङ्मय प्राि ह।ै ििे ागों म ें सिप्रभ मख 'ककपसत्र' ह,ैं वजनके ु ू ं ं अिातर िगों के रूप म ें और सत्र, गह्यसत्र और धमसभ त्र (शकब सत्र भी ह,ैं का भी व्यापक सावहत्य बचा ृ ू ू ू ु ू ं हआ ह।ै इन्हीं की व्याख्या के रूप म ें समयानसार धम भ सवहताओ और स्मवतग्रथों का जो प्रचर िाङ्मय बना, ु ृ ु ु ं ं ं मनस्मवत का उनम ें प्रमख स्थान ह।ै ििे ागों म ें वशक्षा-प्रावतशाख्य, व्याकरण, वनरुक्त, ज्योवतष, छि शास्त्र से ृ ु ु ं ं सबद्ध ग्रथों का िवै िकोत्तर काल से वनमाभण होता रहा ह।ै अब तक इन सबका विशाल सावहत्य उपलब्ध ं ं ह।ै ऋग्ििे से लेकर आज तक सस्कत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के िाङ्मय का वनमाभण होता आ रहा ृ ं ह।ै वहमालय से लेकर कन्याकमारी के छोर तक वकसी न वकसी रूप म ें सस्कत का अध्ययन अध्यापन अब ृ ु ं तक होता चल रहा ह।ै भारतीय सस्कवत और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृवष्टयों स े ृ ं धमवभ नरपेक्ष (सेक्यलर) रही ह।ै इस भाषा म ें धावमकभ , सावहवत्यक, आध्यावत्मक, िाशवभ नक, िज्ञै ावनक और ू मानविकी (ह्यमवै नटी) आवि प्राय: समस्त प्रकार के िाङ्मय की रचना हई। ु ू सस्कत भाषा का सावहत्य अनेक अमकय ग्रथरत्नों का सागर ह,ै इतना समद्ध सावहत्य वकसी भी िसरी ृ ृ ू ं ं ू प्राचीन भाषा का नहीं ह ै और न ही वकसी अन्य भाषा की परम्परा अविवछछन्न प्रिाह के रूप म ें इतने िीघ भ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 107 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं काल तक रहने पाई ह।ै अवत प्राचीन होन े पर भी इस भाषा की सजन-शवक्त कवण्ठत नहीं हई, इसका ु ृ ु धातपाठ वनत्य नये शब्िों को गढ़ने म ें समथभ रहा ह।ै ु आज ज्योवतष की तीन शाखाए-ँ गवणत, वसद्धात और र्वलत विकवसत हो चकी ह ैं और भारतीय गवणतज्ञों ु ं की विश्व की बहत सी मौवलक िने ह।ैं पावणवन और उनसे पिकभ ालीन तथा परितच ियै ाकरणों द्वारा जाने ु ू वकतने
व्याकरणों की रचना हई वजनम ें पावणवन का व्याकरण-सप्रिाय 2500 िषों से प्रवतवष्ठत माना गया ु ं और आज विश्व भर म ें उसकी मवहमा मान्य हो चकी ह।ै पावणनीय व्याकरण क
ो वत्रमवन व्याकरण भी कहते ु ु ह,ैं क्योंवक पावणवन, कात्यायन और पतचाजवल इन तीन मवनयों के सत्प्रयास से यह व्याकरण पणतभ ा को ु ू प्राि वकया। यास्क का वनरुक्त पावणवन से पिकभ ाल का ग्रथ ह ै और उससे भी पहले वनरुवक्तविद्या के अनेक ू ं आचायभ प्रवसद्ध हो चके थे। वशक्षाप्रावतशाख्य ग्रथों म ें किावचत ध्िवनविज्ञान, शास्त्र आवि का वजतना ् ु ं प्राचीन और िज्ञै ावनक वििचे न भारत की सस्कत भाषा म ें हआ ह-ै िह अतलनीय और आियभकारी ह।ै ु ृ ु ं उपििे के रूप म ें वचवकत्साविज्ञान के रूप म ें आयििे विद्या का िवै िकाल स े ही प्रचार था और उसके ु पवडताग्रथ (चरकसवहता, सश्रतसवहता, भडे सवहता आवि) प्राचीन भारतीय मनीषा के िज्ञै ावनक अध्ययन ु ु ं ं ं ं ं की विस्मयकारी वनवध ह।ै इस विद्या के भी विशाल िाङ्मय का कालातर म ें वनमाभण हआ। इसी प्रकार ु ं धनििे और राज, गाधििभ िे आवि को उपििे कहा गया ह ै तथा इनके विषय को लेकर ग्रथ के रूप में ु ं ं अथिा प्रसगवतगतभ सन्िभों म ें पयाभि विचार वमलता ह।ै ं 2.5 भाषा एवं सावहत्य म अन्ति ें भाषा िैज्ञावनक हम ें शब्ि िते े ह,ैं लेवकन सावहत्यकार उन शब्िों को चनकर एक रचना को जन्म िते े ह।ैं ु भाषा िैज्ञावनक िाक्य सरचना का ज्ञान कराते ह,ैं लेवकन सावहत्यकार िाक्य का अथभ सरवक्षत रखते हए ु ु ं रचना म ें लावलत्य पैिा करते ह।ैं भाषा िैज्ञावनक लेखन म ें भाषा अनशासन का पाठ पढाते ह ैं लेवकन ु सावहत्यकार वकसी भी भाषायी अनशासन से परे शब्िों के जोड-तोड के जाि से पाठक के विलों म ें समा ु ू जाते ह।ैं 2.5.1 सस् कत साशहत्य का पररचय ृ ं सस् कत ससार की प्राचीनतम पररष्ट् कत भाषा ह।ै भारतीय मनीवषयों का समसत वचतन-मनन, शोध और ृ ृ ं ं ं उसका विश्ल ेषण सस् कत भाषा म ें ही ह।ै भारत के सावहवत्यक, सास् कवतक, धावमकभ , आध् यावत्मक, नैवतक, ृ ृ ं ं राजनैवतक और ऐवतहावसक जीिन की व् यिस् था भी इसी भाषा म ें प्राप् त होती ह।ै सस् कत भाषा का सावहत्य ृ ं अत् यत विस् तत एि समद्ध ह।ै सावहत् य शब् ि का अथभ ह ै शब् ि और अथभ का समन् िय। ‘सवहतयो: ृ ृ ं ं शब् िाथभयो: भाि सावहत् यम’। व् यापक अथभ म ें सावहत्य से अवभप्राय उन ग्रथों से ह ै जो वकसी भाषा विशेष में ् ं ं रचे गए ह।ैं अग्रेजी भाषा म ें ‘वलटरेचर’ शब् ि से भी यही अथभ ग्रहण वकया जाता ह।ै लेवकन यवि हम उसका ं सकवचत अथभ लें तो सावहत् य शब् िका प्रयोग काियावि के वलए भी वकया जाता ह।ै काव् य आवि के िल ु ं मनोरजन के साधन नहीं ह।ै मानि समाज एि जीिन के वलए काव् य की बहत उपािये ता ह।ै ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 108 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िाहक सस् कत सावहत्य की अपनी कछ विवशष्ट् ट विशषे ताएँ ह,ैं वजनके कारण िह आज भी गौरिावन्ित ृ ु ं ह।ै प्राचीनता, व् यापकता, विशालता धावमकभ ता, सास् कवतक तत् ि रसोन् मेषकाररणी कला इन सभी दृवष्ट् टयों ृ ं से सस् कत सावहत्य अनपम रहा ह।ै प्राचीनता की दृवष्ट् ट से िखे ने से यह पता चलता ह ै वक पाश्च ात्य एि ृ ु ं ं पििभ तच सम् पण भ विद्वत जगत
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‘ॠग् ििे ’
को विश्ि का सिप्रभ ाचीन ग्रथ स् िीकार करता ह।ै सामान् यतया ् ू ू ं सस् कत सावहत्य म ें धावमकभ ग्रथों का बाहक य माना जाता ह।ै मनष्ट् य के प्राप् तव् य चार लक्ष् यों धमभ, अथभ, काम ु ृ ु ं ं और मोक्ष का सन् िर समवन्ित विकास सस् कत सावहत् य म ें उपलब् ध होता ह।ैं ृ ु ं सस् कत सावहत्य जीिन के के िल आध् यावत्मक पक्ष को ही वचवत्रत नहीं करता, बवकक लौवकक अथिा ृ ं भौवतक पक्ष को भी समान रूप से वचवत्रत करता ह।ै सस् कत सावहत्य म ें
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‘सत् य वशि सिरम’
का अि भत ृ ् ु ु ं ं ं ं ् एि प्रीवतकर समन् िय एि सामजस् य उपलब् ध होता ह।ै
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‘िाक् य रसात्म कम काव् यम’
के रूप म ें भी सस् कत ृ ् ् ं ं ं ं ं सावहत्य ने औवचत् स तथा आनि को एक साथ स् थावपत वकया। ं इतने प्राचीन व् यापक तथा विशाल सस् कत सावहत्य के स् िरूप तथा समय आवि की दृवष्ट् ट से इसे िो भागों ृ ं म ें विभक् त वकया जा सकता ह।ै i. िवै िक सस् कत ृ ं ii. लौवकक सस् कत ृ ं वैशिक साशहत्य यह सिवभ िवित तथ् य ह ै वक सस् कत विश्ि की प्राचीनतम भाषा मानी जाती ह ै और िवै िक सस् कवत ससार ृ ृ ं ं ं की प्राचीनतम सस् कवत ससार की प्राचीनतम सस् कवत। िवै िक सावहत्य के सिप्रभ थम ग्रथ ििे ह।ैं भारतीय ृ ृ ं ं ं ं सस् कवत के इवतहास म ें इसका अत् यत महत्ि पण भ एि गौरिपण भ स् थान ह।ै ििे शब् ि विि-ज्ञान सत्ताया लाम े ृ ू ू ं ं ं ं ् च विचारण े विि धात म ें घञ प्रत् यय जोड़कर बनाया गया ह ै वजसका अथभ ज्ञान ह।ै स् िामी ियानि सरस् िती ् ु ं ् ने अपनी ॠग् ििे भाप् य भवमका म ें ििे शब् ि को
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‘वि िवत्त जानवन्त, विद्यते भिवन्त’,
आवि इस प्रकार ू
व् याख् या की ह।ै अथाभत वजनके द्वारा या वजनम ें सारी सत् य विधाए ँ जानी जाती ह,ैं विद्यमान, ह ैं या प्राप् त की ् जाती ह,ैं िही ििे ह।ै सायणाचायभ ने ििे की व् याख् या करते हए बताया ह ै वक इष्ट् ट की प्रावि तथा अनवष्ट पररहार के अलौवकक ु उपाय को बतलाने िाला ग्रथ ििे ह।ै ििे ों को सवहता भी कहा जाता ह।ै ििे की व् यत्प वत्तयों से यह वसद्ध ु ं ं होता ह ै वक ििे ज्ञान क
े ि े अक्षय कोष है, वजनम ें सभी विषयों का समािशे ह।ै मनसमवत म ें कहा गया ह ै ृ ु वक ििे समस् त धम भ का मल ह।ै ििे -परमात् मा के वन:श्ि ास माने जाते ह।ैं ििे ों का सावहवत्यक महत्त्ि भी ू कछ कम नहीं ह।ै महाकाव् य, गीवतकाव् य, ऐवतहावसककाव् य, गद्य, नाटय, आख् यान सावहत्य इत् यावि काव् य ् ु की सभी विधाओ की उत् पवत्त म ें ििे ों का सवक्रय योगिान रहा ह।ै सभी प्रकार का ज्ञान विज्ञान ििे ों म ें ही ं वनवहत ह।ै इहलौकवक और पारलौवकक िोनों प्रकार के सखों की प्रावि के स् थान ििे ही ह।ैं ु िवै िक सावहत्य के चार ििे ों के अलािा ब्राह्मण, आरणयक और ििे ाग भी िवै िनक सावहत् य म ें समाविष्ट् ट ं ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 109 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं i. ॠग् ििे ii. सामििे iii. यजििे ु iv. अथििभ िे सामििे म ें ॠग् ििे के मत्रों को स् िर सवहत उछ च ध् िवन स े गाने की विवध िी गई ह।ै इसम ें ििे ताओ की ं ं स् तवत की जाती ह।ै यजििे म ें इस बात का वििरण ह ै वक ॠचाओ यानी ॠग् ििे के अगों का यज्ञों म ें वकस ु ु ं ं प्रकार और वकस प्रयोजन से विवधित प्रयोग वकया जाए। अथभििे म ें जीिन के भौवतक तत्ि ों का िणनभ ह।ै ब्राह्मण ग्रथ ििे ों की रचना के बाि वलख े गए और इनके रचना काल के बारे म ें भी वनवश् चत रूप से कछ ु ं कहा नहीं जा सकता। ब्राह्मण ग्रथ ििे ों के िव् यभ को बढ़ाते ह ैं और व् याख् या द्वारा उनका विस् तार करते ह।ैं ं चारों ििे ों के नौ ब्राह्मण ग्रथ ह।ैं ं आरण् यक ग्रथों म ें यज्ञ की आध् यावत्मकता का िणनभ ह।ै आज आठ आरण् यक ग्रथ उपलब्ध ह।ै उपवनषिों ं ं को ििे ों का वनचोड़ कहा जाता ह,ै जो आत् मतत्त् ि और ब्रहमज्ञान का वििचे न करते ह।ैं ििे ाग िवै िक सावहत् य की अवतम कड़ी ह।ैं कल छह ििे ाग ह ैं वजनके कण् यभ का आग े उक लेख वकया जा रहा ु ं ं ं ह।ै i. वशक्षा - ििे पाठ के उछ चारण की वशक्षा ii. ककप - यज्ञ के विवध-विधान, कमाभनष्ट् ठान का ज्ञान ु iii. व् याकरण - ििे की भाषा का रचना और अथभ सबधी वििचे न ं ं iv. वनरूक्त - शब् ि ज्ञान और शब् ि की व् यत्प वत्त ु v. ज् योवतष - यज्ञ की सर्लता के वलए अनकल वतवथ, समय की गणना ु ू vi. छान् ि - िवै िक छान् िों का िणनभ । िौशकक साशहत् य लौवकक सावहत्य के बाि लगभग ई.प. 500 से लौवकक सावहत्य का समय शरू होता ह।ै लौवकक सावहत् य ू ु म ें वनम् नवलवखत शावमल ह-ैं इवतहास ग्रथ- िाक मीवककत रामायण और व् यासकत महाभारत को इवतहास ग्रथ माना जाता ह ै ये िोनों ृ ृ ं ं लौवकक सस् कत की िो प्रथम कवतयाँ ह ै और रामायण को सस् कत का
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‘आवि काव् य’
कहा जाता ह।ै ृ ृ ृ ं ं रामायण का रचना काल भी पयाभप् त वििाि का विपय रहा ह।ै भारतीय तथा पश् चात्य विद्वानों ने रामायण के रचना काल को वनधाभररत करने का पयाभप् त प्रयत्न वकया, लेवकन वकसी एक समय को मानने म ें सभी एकमत नहीं ह।ैं परम् परागत विश्ि ासों से परे यवि हम तावकभ क बवद्ध का आश्रय ल,ें तो रामायण का ितभमान ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 110 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं पररवनवष्ठत स् िरूप ईसा पि भ 5िीं शत तक वस्थर होने के पयाभप् त प्रमाण वमलते ह ैं अथाभत बद्ध से पहले ् ू ु िाक मीवक रामायण का ितभमान रूप वस्थर हो चका था। ु भारतीय जनमानस की धावमभक आस् था का मख् य आधार यह रामायण तत् कालीन राजनीवतक, धावमकभ , ु सामावजक, आवथभक, पररवस्थवतयों पर विशि प्रकाश डालता ह।ै भारत म ें राष रीय जीिन के वनमाभण में ् रामायण का बहत बड़ा योगिान ह।ै ु महाभारत म ें तत्क ालीन सावहवत्यक, सास् कवतक, धावमकभ , राजनीवतक आवि विषयों का समािेश ह।ै ृ ं
महाभारत एक अत् यत श्रेष्ट् ठ आचार सवहता का भी वनिशनभ उपवस्थत करता ह।ै महाभारत के रचवयता ं ं परम् परा से व् यास मवन माने जाते ह।ैं इनका परानाम कष्ट् ण द्वपै ायन व् यास था। महाभारत क
े अत:साक्ष् य से ृ ु ू ं प्रमावणत ह ै वक व् यास कौरिों और पाडिों के जीिन की सभी प्रमख घटनाओ से प्रत् यक्षत: पररवचत रह।े ु ं ं ितभमान महाभारत म ें एक लाख श्ल ोक प्राप् त होते ह ैं इसवलए इसका नाम
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‘शतसाहस्री सवहता’
भी ह।ै ं ं महाभारत का रचना काव् य अत् यत वििािास् पि रहा ह।ै य े श्ल ोक सभित: एक ही बार नहीं वकये गय े ं ं बवकक सैकड़ों िषों की अिवध म ें इसके श्ल ोक जड़ते गये, वजस कारण इसके तीन रूप बने। प्रारवभक लघ ु ु ं रूप (जय), विस् तत रूप (भारत) और ितभमान रूप (महाभारत)। ृ पराण- इवतहास ग्रथों के बाि लौवकक सावहत् य में महत्ि पण भ ग्रथ पराण ह।ैं पराण धावमभक ग्रथ ह।ैं ये ु ू ु ु ं ं ं अितारों और धावमकभ कथाओ के काव् य ह।ैं
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‘पराण’
का तात्प यभ ह ै
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‘प्राचीन’
। इससे इनकों रचना काव् य ु ं का थोड़ा सके त वमलता ह।ै ई.प. 300 से लेकर ई 15िीं सिी तक पराण वलख े गये और इनके कलेिर म ें ू ु ं प्रक्षेपण (परितच लेखकों द्वारा अश जोड़ा जाना) के कारण विस् तार, पररितभन भी होता गया। आज 18 ं पराण प्राप् त ह-ैं मत् स् य, कम,भ िराह, िामन, भागित, ब्रह्माड, ब्रह्ममिै तभ, विष्ट् ण, नारि, गरुड, िाय, अवग्न, ु ू ु ु ं पद्म, वलग, स् कि और भविष्ट् यत। इनम ें भागित सबसे महत् िपण भ ग्रथ ह,ै जो परितच कष्ट् ण भवक् त सावहतय ृ ् ू ं ं ं का प्रेरणा स्रोत ह।ै विष्ट् ण और नारि पराण म ें भवक् त के िाशवभ नक पक्ष का वििचे न ह।ै ु ु सस् कत काव् य- सवहत्य शावस्त्रयों ने रस को काव् य की आत् मा स् िीकार वकया ह।ै इस काव् य के मख् यता िो ृ ु ं भिे वकए गए ह।ैं दृश्य काव् य तथा श्रव् य काव् य वजसका वििरण नीचे विया गया ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 111 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं काव् य दृश्य श्रव् य नाटक आवि रस रूपक, एि बीस रूपक पद्य चम् प गद्य ू ं ी़ महाकाव् य खडकाव् य मक् तक ु ं कथा आख् यावयका वनबध ं सस् कत के सावहत यकारों म ें कावलिास का नाम अग्रगण्य ह।ै इनका समय वििािसपि ह ै और अनमानत: ृ ् ु ं ि े ई.पहली सिी से छठी सिी के बीच रह े होंग।े कमार सभि और रघिश इनके महाकाव् य ह।ैं
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‘अवभज्ञान ु ु ं ं शाकतलम’,‘मालविकावग्न वमत्रम’
और
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‘विक्रमोिभशीयम’
इनके नाटक ह ैं और
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‘मघे ित’
और
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‘ॠत ु ु ं ू सहार’
इनकी काव् य कवतयाँ ह।ैं अन् य प्रमख सावहत् यकार ह ैं भारवि (वकराताजनभ ीयम) माघ (वशशपाल ृ ् ु ु ु ं िधम)। ् कवि बाणभट्ट ने गद्य म ें
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‘कािम् बरी’
नामक कथा वलखी, जो विश्ि का पहला उपनयास माना जा सकता ह।ैं उन् हीं का
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‘हष भ चररत’
ससार की पहली जीिनी भी ह।ै ं ज् योवतष, गवणत, वचवकत्स ा शास् त्र आवि क्षेत्रों म ें लौवकक सस् कत म ें मौवलक और विपल सावहत् य प्राप् त ृ ु ं होता ह।ै 2.5.2 भाषा अध्ययन भारतीय िाङ्मय के अध् ययन-अनशीलन से विवित होता ह ै वक ॠवष मवनयों के समय तक व्य ाकरण शास्त्र ु ु की अनेक विधाए ँ प्रकाश म ें आ चकी थीं। गाग् यभ, गालि, शाकटायन, शाकक य आवि भाषा शावस्त्रयों द्वारा ु प्रिवतभत व् याकरण शास् त्र की यह महान थाती पावणवन, कात् यायन और पतजवल के हाथों म ें आयी। भाषा ् ं का जो विस् तत स् िरूप तत् कालीन भारत की करोड़ो जनता द्वारा बोला जाता था, उसे इस मवनत्रय ने अपनी ृ ु महान कवतयों म ें बाँधा। उनके बाि सस् कत के सैकड़ों ियै ाकरणों ने िावतभक, िवत्त, व् याख् या और टीकाओ ृ ृ ृ ् ं ं द्वारा व्य ाकरण ज्ञान की इस परपरा को आग े बढ़ाया। िावतकभ , िवत्त आवि मल व्य ाकरण ग्रथों की व्य ाख्य ा ृ ू ं ं करते ह ैं और व् याकरण के िाशभवनक वचतन के पक्ष को उभारते ह।ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 112 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं पावणवन और उनकी कवत्त अष्ट् टाध् यायी- ििे ों की सस् कत भाषा म ें काल गवत के कारण पररितभन हए और ु ृ ृ ं विविध प्रयोगों के स् थान पर मानकीकरण की आिश् यकता पड़ी। पावणवन ने इसी पररप्रक्षे ण म ें प्रख् यात सस् कत व् याकरण
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‘अष्ट् टाध् यायी’
का प्रणयन वकया, जो लौवकक सस् कत का अत् यत सवक्षप् त, सत्रबद्ध, ृ ृ ू ं ं ं ं िज्ञै ावनक व् याकरण ह।ै इसकी िज्ञै ावनकता ने विश्ि भर के भाषािज्ञै ावनकों को चमत् कत कर विया। यह
माना ृ जाता ह ै वक पावणवन के व् याकरण के सत्र सीधे कप् यटर के प्रोग्राम के रूप म ें व् यिहार म ें लाये जा सकते ह।ैं ू ू ं कात्य ायन महाभारत म ें कात् यायन को एक िवतभकार के रूप म ें स् मरण वकया जाता ह ैं वकत कात् यायन क
ा नाम ु ं व् याकरणशास् त्र के महान प्रवतभाशाली आचायभ पावणवन और महाभाप् यकार पतजवल के साथ वलया जाता ् ं ह।ै इस मवनत्रय की व् यावि और ख् यावि व् याकरण शास् त्र के चारों ओर वबखरी पड़ी ह।ै
कात् यायन ने पावणवन ु व् याकरण की पवतभ के वलए िावतभकों की रचना की थी। इन िावतभकों की मानयता पावणवन के सत्रों जसै ी ही ू ू ह।ै इनका परा नाम िररुवच था। कात् यायन शाखा का अध् ययन महाराष्ट् र म ें प्रचवलत ह,ै इसवलए लगता ह ै ू वक कात्य ायन
िावक्षणात् य थे। इनका समय 2700 िष भ वि. रखा गया ह।ै इन् होंने काव् य, नाटक, व् याकरण, धमशभ ास् त्र आवि कई विषयों पर ग्रथ वलख ह ैं वजनम ें प्रमख िावतभक पाठ, ु ं स् िगाभरोहण काव् य, भ्राज सज्ञक श् लोक, स् मवत कात्य ायन और उभय साररका भाज। ृ ं पतजशि ं पतजवल एक महान विचारक मनस् िी विद्वान थे। व् याकरण के क्षेत्र में नए यग का आरभ कर अपनी ् ु ं ं असामान् य प्रवतभा की छाप िे आग े की पी वढ़यों पर छोड़ गये। उनको पावणनीय व् याकरण का अवद्धतीय व् याखाता कहा जाता ह।ै पावणवन के ि े कट आलोचक थे। इस प्रकार की वनभचकता और स्ि छ छ आचरण ु ही पवडत् य का अलकरण होता ह।ै पावणवन के वििके , व् यवक् तत्ि और विचारों ने पतजवल को इतना ऊँ चा ं ं ं उठाया, इसकी अपेक्षा यह कहना अवधक उपयक्त ह ै वक उन् होंने पावणवन को चमकाया। ु इन ियै ाकरणों के अवतररक् त िररुवच, शिरस् िामी, हषिभ धभन, शातनिाचायभ और शन् तन आवि ियै ाकरणों ने ु ं वलगानशासन, गणपाठ, उणावि सत्र, वर्ट सत्र और धात पाठ आवि विवभन् न ग्रथों को वलखकर व् याकरण ् ु ू ू ु ं ं शास् त्र का सिाांगीण विकास वकया। 2.5.3 सस् कत भाषा का पररचय ृ ं वाक् य सरचना- वहिी की तरह सस् कत म ें भी िाक् य कताभ, कमभ, वक्रया आवि पिबधों से वमलकर बनता ह।ै ृ ं ं ं ं राम: फि खािशत। ं राम फि खाता है (या) खा रहा है। ं (सस् कत में फि कमश तथा शितीया शवभशक् त है) ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 113 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सस् कत म ें पिक्रम बहत लचीला ह।ै इसे वबना अथभ म ें पररितभन वकए हम अग्रेजी Mohan killed ु ृ ं ं कोSohan Sohan killed Mohan के पिक्रम से नहीं बिल सकते, क् योंवक कताभ और कम भ बिल जाते ह।ैं सस् कत म ें हम पिक्रम बिलकर िाक् य बना सकते ह ैं और उनके अथभ म ें कोई पररितभन नहीं होता ह ै ृ ं जसै े: रामेण रावण: हत:। रामेण हत: रावण:। रावण रामेण: हत:। अथाभत रािण राम से मारा गया (या) राम ने रािण को मारा। सस् कत के इन िाक् यों म ें राम कताभ ह ै तथा िाछ य के कारण ततीया विभवक् त म ें ह।ै
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‘रािण’
कम भ ह ै तथा ृ ृ ं प्रथमा म ें ह।ै इसका एक प्रमख कारण ह ै सस् कत का हर सज्ञा शब् ि अपने कारकीय सबध के साथ प्रकट होता ह।ै ृ ु ं ं ं ं
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‘बालक:’
कताभ कारक ह,ै
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‘बालकम’
कम भ कारक है। इसवलए िाक् य म ें पि िाक् य म ें कहीं भी आएँ, अपने ् कारकीय सबध प्रकट करते ह ैं और अथभ की अवभव् यवक् त म ें कोई कवठनाई नहीं होती। ं ं सस्कत के सज्ञा रप ृ ं ं सस् कत भाषा के सभी शब् िों का वनमाभण धात (root) याने शब् ि के मल रूप तथा प्रत् ययों के जोड़
से होता ृ ु ू ं ह।ै सज्ञा पिों का वनमाभण सप प्रत् यय (सबत) जोड़ने से होता ह ै और वक्रया पिों का वनमाभण वतङ प्रत् यय ् ् ु ु ं ं (वतड़त) जोड़ने से। धात रूप की अवतम ध् िवन के आधार पर अलग-अलग प्रत्य य जड़ते ह।ैं ु ु ं ं सज्ञा पि और कारक ं सस् कत के सज्ञा शब् ि सभी तीन िचनों म ें प्रयक् त होते ह
।ैं ृ ु ं ं कताश एकवचन - बािक: एक िड़का शिवचन - बािकौ िो िड़के बहवचन - बािका: कई िड़के (तीन या अशधक) ु हर िचन के आठ कारक ह।ैं यहाँ हम
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‘राम’
शब् ि के तीन िचनों म ें आठ कारकों के रूप िखे गें ।े मल ू रूप/राम/मानकर हम उन कारक वचह्नों को भी विखा रह े ह,ैं वजन् ह े हम विभवक् त कहते ह।ैं ् अकारान् त पवकलग शब् ि रूप –
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‘राम’
शब् ि ु ं कारक विभवक् त एकिचन वद्विचन बहिचन विभवक् त वचह्न ु कताभ प्रथमा राम: रामौ रामा: अ: औ आ: कमभ वद्वतीया रामम रामौ रामान अम औ आन: ् ् ् ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 114 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं करण ततीया रामणे रामाभ्य ाम राम:ै एन आभ्य ाम ऐ: ृ ् ् सपिान चतथच रामाय रामाभ्य ाम रामभ्े य : आय आभ्य ाम एभ्य : ् ् ु ं अपािान पचमी रामात रामाभ्य ाम रामभ्े य : आत आभ्य ाम एभ्य : ् ् ् ं सबध षष्ट् ठी रामस् य रामयो: रामाणात अस् य अयो: आनाम ् ् ं ं अवधकरण सप् तमी राम े रामयो: रामषे ए अयो: एस ु ु सबोधन अष्ट् टमी ह े राम! ह े रामौ! ह े रामा:! अ औ आ: ं नोट: र के कारण ।न। का ।ण। बनता ह,ै ।स। का ।प। बनता ह।ै इस तरह हर सज्ञा शब् ि के तीन िचनों और आठ कारकों म ें कल 24 रूप बनते ह।ैं ु ं सज्ञा शब् िों की तरह सिनभ ामों के भी 24 रूप बनते ह।ै पवकलग स: (िह) के रूप िवे खए। ु ं ं कताश स: तौ ते कमश तम तौ तान ् ् करण तेन ताभ्य ाम तै: ् िाक् य म ें सिनभ ाम और विशेषण की सज्ञा से अवन्िवत होती ह।ै अथाभत वनम् नवलवखत िाक् यों म ें समान वलग ् ं ं और िचन के सिनभ ाम और सज्ञा शब् ि ही प्रयक् त हो सकते ह।ैं उिाहरण के वलए- ु ं पशल्िग स: ज् येष्ट् ठ: बाल: िह बड़ा लड़का ह।ै ु ं तौ ज् यष्ट्े ठौ बालौ: ि े िो बड़े लड़के ह।ैं ते ज् यष्ट्े ठा: बाला: ि े बड़े लड़के ह।ैं स्त्र ीशिग सा ज् येष्ट् ठा बाला िह बड़ी लड़की ह।ै ं ते ज् यष्ट्े ठे बाले ि े (िो) बड़ी लड़वकयाँ ह।ैं ता: ज् येष्ट् ठा: बाला: ि े बड़ी लड़वकयाँ ह।ै इसी तरह तक बाल (उस लड़के को), तेन बालेन (उस लड़के ने) आवि
रूपों म ें भी इस वश्ल ष्ट् टा को िखे ं सकते ह।ैं सस् कत के शक्रया रप ृ ं वश्ल ष्ट् टता के लक्षण सस् कत म ें सब से अवधक वक्रया म ें प्रकट होते ह।ैं वहिी जैसी आधवनक भाषाए ँ वक्रया ृ ु ं ं रचना दृवष्ट् ट से अवश्ल ष्ट् ट (analytic) कही जाती ह,ैं क
् योंवक यहाँ वक्रया रचना बहत आसान ह।ै उिाहरण ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 115 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं के वलए वहिी म ें वक्रया के मल रूप (धात) में काल के वलग िचन के रूप जोड़ने पर वक्रया की वनष्ट् पवत्त हो ू ु ं ं जाती ह।ै जसै े धात काि (शिग, वचन िध िों के साथ) ु ं कर, शिख, पढ़, सन पशल्िग स्त्र ीशिग ु ु ं ं जा, आ, बता एक, ता है ती है सी, खे, खो, बो बह तो हैं ती हैं ु वहिी म ें काल के रूप भी सीवमत ह।ै प्रमखकाल ह ै वनत् य ितभमान (करता ह)ै , सामान् य ितभमान (कर रहा ु ं ह)ै , भविष्ट् यत (करेगा), सामान् य भत (वकया)। इसके साथ कछ काल िवत्त सचक रूप ह ैं करता था, करता ृ ृ ु ू हो, करता होगा, करता होता आवि। स: (बाल:) पठवत- लड़का पढ़ता ह ै का उिाहरण लें। इसके नौ रूप इस तरह बनेंग।े एकवचन शिवचन बहवचन ु III Person अन्य पुष पठशत पठत: पठशन्त ु II Person मध् य पुष पठशत पठथ: पठथ: ु I Person उिम पुष पठाशम पठाव: पठाम: ु क धात से हर वक्रया 3 िाक् यों म ें आ सकती ह।ै जैसे िह के सिभ भ म ें िो िाक् यों का अिलोकन कीवजए। ृ ु ं पवकलग, तीन िचनों म ें ु ं कतशवाच् य (वह करता है) करोशत कुत: कवशशन्त ृ ु ु कमश वाच् य (शकया जाता है) कयशते कयेते कयशन् ते ु ु ु सस् कत म ें िो पि ह-ैं परस् मपै ि, जहाँ िसरों के सिभ भ म ें चचाभ की जाए और आत् मने पि, जहाँ अपने सिभ भ ृ ं ं ं ू म ें चचाभ की जाए। काि वशि और प्रयोग ृ
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‘स: पठवन्त’-
िह पढ़ता ह ै सामान् य ितभमान की वक्रया ह।ै अगर इसी को हम भतकाल म ें कहना चाह ें तो ू रूप बनेंग।े अपठत अपठताम अपठन ् ् ् भविष्ट् यत काल के भी 9 रूप इसी तरह बनेंगे पशठष् यशत पशठष् यत: पशठयशन्त उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 116 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं हर काल या िवत्त के इन नौ रूपों कोलेकर कहा जाता ह।ै ितभमान काल लट लकार ह,ै भविष्ट् यत काल लट ृ ृ ् ् ् लकार
ह ै सामान् य भतकाल लड लकार ह।ै लोट लकार आज्ञाथभ ह।ै इस तरह हर वक्रया के िस लकार ह ै ् ् ू और सामान् य धात, प्रेरणाथभक, इछ छाथभक, अवतशयता एि पनरुवक् त ये पाँच प्रयोग ह
।ैं ु ु ं इस तरह 9 परुष-िचन रूपों, 15 काल आवि रूपों, 3 िाछ यों और 2 पिों के सयोजन से सस् कत ृ ु ं ं म ें हर वक्रया धात के लगभग 540 बन सकते ह।ैं इसकी तलना म ें वहिी म ें करता, वक्रया, करेगा, करे आवि ु ु ं के विवभन् न वलग-िचन-परुष भेिों के लगभग 27 ही रूप बनते ह।ैं ु ं अत म ें सस् कत की वक्रया रचना की एक और विशषे ता की चचाभ करेंगे, जो विभिे ीकरण प्राकत में ृ ृ ं ं ही समाप् त हो गया। सस् कत के वक्रया धात लगभग 200 ह,ैं वजन् ह ें िस अलग िगों म ें बाँटा गया ह।ै ये गण ृ ु ं कहलाते ह।ैं भ (होना) धात स े भ् िावि गण, अि (खाना) धात से अिावि गण आवि। इसकी रूपािवलयाँ ू ु ु ् वभन् न ह।ैं इस कारण छात्र को हर गण के अनसार सारे रूप जानना आिश् यक हो जाता ह।ै पावल भाषा म ें ु 10 की जगह 6 गण रह गये और प्राकत, अपभ्रश तथा वहिी म ें वसफभ एक ही धात रूप रह गया। अथाभत ृ ु ं ं वहिी म ें धात रूप जो भी हो (कर, लड, हो, खो, खो आवि) उनके वक्रया रूप हर जगह एक जसै े बनते ह।ैं ् ु ं 2.6 भाषा एवं सावहत्य की वववभन्न ववधाओं के माध्यम से सजनात्मकता ृ एवं जीवन कौशलों का ववकास 2.6.1 भाषा एव साशहत्य की शवशभन्न शवधाओ के माध्यम से सजनात्मकता का शवकास ृ ं ं भाषा एि सावहत्य के वशक्षण का परम उद्दश्े य ह ै छात्रों म ें सावहवत्यक सजनात्मक का विकास करना। ृ ं िस्ततः इसी उद्दश्े य की पवतभ म ें भाषा एि सावहत्य वशक्षण की सछची सर्लता ह।ै सामान्यतः वलखी एि ु ू ं ं बोली गई भाषा को समझ लेना तथा अपने विचारों को वलखकर एि बोलकर िसरे तक पहचा िने ा- भाषा ु ं ं ू वशक्षण के उद्दश्े य ह।ैं वकन्त, छात्रों की सजनात्मतक प्रवतभा तथा शवक्त को विकवसत कर िने ा भाषा एि ृ ु ं सावहत्य वशक्षण को पणतभ ा एि साथभकता प्रिान करना ह।ै छात्रों के अिर ससि सावहत्य-सजन की प्रवतभा ृ ू ु ु ं ं एि सभािनाए अनकल पररिेश तथा मागिभ शभन पाकर विकवसत एि सवक्रय हो उठती ह।ै ु ू ं ं ं ं योग्य एि ककपनाशील वशक्षक अपनी प्रवतभा, लगनशीलता तथा सििे ना के बल पर छात्रों की ं ं सजनात्मक प्रवतभा को विकवसत एि पररष्ट्कत कर पाने म ें सर्ल होता ह।ै इतना ही नहीं, िह कवतपय ृ ृ ं सावहवत्यक वक्रयाशील को भी प्रोत्सावहत करता ह ै तथा उनके माध्यम से छात्रों म ें सावहत्य-सजन की शवक्त ृ का सम्यक रूप से विकास करता ह।ै स्पष्ट ह ै वक इस काम म ें वशक्षक की प्रवतभा, योग्यता, सवक्रयता तथा ् सावहत्य-सजन में उसकी िक्षता ही सबसे अवधक काम करती ह।ै सििे नशील, सावहवत्यक तथा योग्य ृ ं वशक्षक को इस विशा में अवधक सर्लता वमलती ह।ै वशक्षक का भाषा पर अवधकार होना इस काम के वलए अवत आिश्यक ह।ै सावहवत्यक रुवच रखनेिाला तथा सावहत्य-सजन म ें प्रिीन वशक्षक छात्रों म ें ृ सावहवत्यक सजनात्मकता का प्रेरणा स्रोत होता ह।ै ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 117 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं यहा हम कवपपय वक्रयाशील के सबध म ें विशषे रूप से विचार रखते ह।ैं इन वक्रयाशीलनों के माध्यम से ं ं ं छात्रों म ें सावहवत्यक सजनात्मकता का विकास वकया जा सकता ह।ै ृ i. शनबध िेखन तथा प्रशतयोशगता - छात्रों को स्ितत्र रूप से वनबध-लेखन के वलए प्रोत्सावहत ं ं ं करना बहत ही उपयोगी होता ह।ै इस वक्रया म ें भाषा एि सावहत्य के वशक्षक का मागभिशनभ ु ं आिश्यक ह।ै प्रारभ म ें वशक्षक अपनी िखे रेख म ें वनबध तैयार करिाता ह।ै और बाि म ें छात्रों को ं ं स्ितत्र रूप से वलखने के वलए अनप्रेररत करता ह।ै उनके वलख े वनबधों का िह सशोधन तथा ु ं ं ं पररष्ट्कार भी कर िते ा ह।ै इसके अवतररक्त छात्रों के बीच वनबध प्रवतयोवगता का आयोजन ं सजनात्मकता के विकास म ें बहत ही सहायक होता ह।ै ु ृ ii. मागशििशन-यि पस्तकािय का उपयोग - विद्यालय के पस्तकालयों के सही उपयोग से भी ु ु ु छात्रों म ें सजनात्मक को िवद्ध होती ह।ै वशक्षक के सही मागिभ शनभ म ें छात्र अपेवक्षत काव्य, वनबध ृ ृ ं अथिा कथा-सावहत्य का अध्ययन जब करते ह,ैं तब उनम ें सावहत्य के प्रवत रुवच उत्पन्न होती ह ै एि ि े सावहत्य सजन की ओर प्रित्त होते ह।ैं ृ ृ ं iii. कशवता-िेखन तथा प्रशतयोशगता - योग्य एि सजनशील वशक्षक के मागिभ शनभ म ें कविता- ृ ं लेखन तथा प्रवतयोवगता का आयोजन छात्रों म ें सजनात्मकता का वनवि
त रूप से विकास करता ृ ह।ै इससे छात्रों म ें कविता-सजन की शवक्त का विकास होता ह।ै ृ iv. कहानी-प्रशतयोशगता- कहानी-प्रवतयोवगता का भी अपना महत्ि ह।ै विषय अथिा कथा-िस्त ु का आवशक रूप ि े विया जाता ह ै तथा छात्रों स े कहानी वलखने या पण भ करन े को कहा जाता ह।ै ू ं वर
्र उनके बीच प्रवतयोवगता का भी आयोजन वकया जाता ह।ै परस्कार एि प्रशसा के द्वारा उन्ह ें ु ं ं इस विशा म ें प्रोत्सावहत वकया जाता ह।ै v. नाटक-प्रशतयोशगता- छात्रों के बीच नाटक-लेखन-प्रवतयोवगता का आयोजन बहत ही उपोिय ु होता ह।ै योग्य वशक्षक छात्रों को सिप्रभ थम िवै नक जीिन म ें होने िाली बातचीत को लखनीब़द्ध करने को कहता ह।ै आग े चलकर वकसी कहानी के पात्रों के बीच की बातों को कथोपकथन के रूप म े वलखने को कहता ह।ै अत म ें काकपवनक कथानक को कथोपकथन के रूप म ें प्रस्तत ु ं करिाता ह।ै इसके उपरात नाटक-लेखन-प्रवतयोवगता कर आयोजन कर छात्रों म ें नाटक-लेखन- ं क्षमता को विकवसत एि पररष्ट्कत वकया जाता ह।ै ृ ं vi. साशहत्य-महारशथयों की जयशतया- तलसी, कबीर, सरिास, मीरा, वबहारी, प्रसाि, भारतेंि, ु ू ं ं ु माखनलाल चतििे ी, मवै थलीशरण गि, पत, विनकर, बछचन प्रभवत सावहत्य-महारवथयों की ृ ु ु ं जयवतया विद्यालय म ें मनाई जाए। इससे छात्रों को उनके सावहत्य पढ़ने, उनसे पररवचत होने तथा ं ं ं उनसे अनप्रमावणत होने का अिसर प्राि होता ह।ै सावहत्य-सजन की शवक्त का इन आयोजन के ृ ु द्वारा भी विकास होता ह।ै vii. भाषण-प्रशतयोशगता- छात्रों के बीच योग्य एि ककपनाशील वशक्षक के मागिभ शनभ म ें भाषण- ं प्रवतयोवगता बहत ही उपयोगी होती ह।ै इसम ें ध्यान यह रखना होता ह ै वक भाषण अथिा िाि- ु वििाि का विषय सावहवत्यक हो। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 118 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं viii. कशव-सम्मेिन- कवि-सम्मले नों का आयोजन कर छात्रों को
अपनी कविताओ के पाठ का ं अिसर िने ा बहत ही लाभिायक होता ह।ै िे एक ओर जहा बड़े कवियों की कविताओ से ु ं ं प्रभावित अनप्रेररत होते ह,ैं िहीं िसरी ओर अपनी कविताओ का पाठ कर प्रोत्सावहत तथा ु ं ू आत्मविश्वास से पण भ होते ह
।ैं उनम ें सावहत्य-सजन की शवक्त का वनवित रूप से विकास होता ह।ै ृ ू ix. कशव-िरबार- कवि-िरबार म ें मत अथिा जीवित महान कवियों की िशे भषा म ें छात्र और ृ ू वशक्षक ही भाग लेते ह।ैं इन अनकत करने िाले छात्रों तथा वशक्षकों म ें से जो वजस कवि का ृ ु अवभनय करता ह,ै िह उसकी प्रवसद्ध कविता का यथा-साध्य उसी के अिाज में पाठ करता ह।ै ं इससे छात्रों में आत्मविश्वास तथा कविता के प्रवत रुवच की िवद्ध होती ह ै जो सजनात्मकता के ृ ृ विकास म ें सहायक ह।ै x. प्रशसद्ध कशवयों की कशवताओ का अध्ययन तथा उनके पर कशवता की रचना- प्रवसद्ध ं कवियों की कविताओ का अध्ययन अपने आप म ें एक महत्िपण भ कायभ ह।ै इस प्रवक्रया म ें छात्रों ू ं को काव्यानि तो प्राि होता ही ह,ै उन्ह ें सावहत्य-सजन की प्रेरणा भी प्राि होती ह।ै इससे उनमें ृ ं भािोद्रक भी होता ह ै तथा मानक छि का भी पररचय प्राि होता ह।ै ं xi. समस्या-पशतश- समस्या पवतभ की वक्रया म ें समस्या को छि के एक चरण अथिा अश म ें प्रस्तत ू ू ु ं ं वकया
जाता ह।ै जो लोग इसमें भाग लेनेिाले होते ह,ैं ि े ऐसे छि अथिा कविता की रचना करते ं ह ैं वजसम ें समस्या की पवतभ तो होती ही ह,ै साथ ही िह प्रस्तत छि चरण अथिा अश भी ू ु ं ं सवम्मवलत रहता ह।ै छात्रों के बीच
समस्यापवतभ की वक्रया को चलाकर हम उनम ें ककपना-शवक्त ू तथा सजनात्मकता का विकास वनवित रूप से कर सकते ह।ैं ृ xii. शविेष अवसरों के अनकि कशवता, कहानी, नाटक तथा शनबध का िेखन - स्ितत्रता- ु ू ं ं वििस, गणतत्र-वििस, गाधी जयती, होली, वििाली, आवि विशेष अिसरों पर छात्रों को अपनी ं ं ं रुवच के अनरूप कविता, कहानी, नाटक तथा वनबध वलखने को प्रोत्सावहत वकया जाए। इससे भी ु ं उनम ें स्ितत्र सजनात्मकता का विकास सभि ह।ै ृ ं ं xiii. यात्रा तथा प्रकशत-वणशन- छात्रों को िशनभ ीय तथा प्राकवतक सौंियभपण भ स्थानों का भ्रमण कराया ृ ृ ू जाए। यात्रा के उपरात उनसे यात्रा-िणनभ वलखने को कहा जाए। साथ-साथ प्राकवतक सौंिय भ का ृ ं िणनभ भी उनसे करिाया तथा वलखिाया जाए। इससे उनकी भाषा तो पररष्ट्कत होगी ही, उनकी ृ पयभिक्षे ण शवक्त तथा सजन-क्षमता का भी विकास हो सके गा। इस वक्रया म ें सामवहक प्रयास भी ृ ू बहत उपािये होगा। ु xiv. कहानी, शनबध एव कशवता-िेख किा का अध्ययन - आधवनक यग म ें कहानी, वनबध तथा ु ु ं ं ं कविता-लेखन की सिर, सबोध एि िज्ञै ावनक कला का विकास हो गया ह।ै इस विशा म ें अनेक ु ु ं ं पस्तकें भी प्रकावशत हो चकी ह।ैं योग्य वशक्षक के वनिशे न में इन पस्तकों का अध्ययन छात्रों की ु ु ु सजनात्मक शवक्त का सही विशा म ें विकास कर सकता ह।ै ृ xv. रेशडयो एव टेिीशवजन का श्रवण-ििशन - रेवडयो तथा टेलीविजन से अनेक सावहवत्यक ं कायभक्रम प्रवतविन सनाए एि विखाए जाते ह।ैं वशक्षक के सही मागिभ शनभ म ें यवि इन कायभक्रमों को ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 119 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं लगातार कछ बड़ी अिवध तक छात्र सनें-िखे ें तो वनिय ही उनकी सजनात्मक-शवक्त का विकास ृ ु ु होगा। उक्त सभी ससाधनों तथा उपायों की सर्लता वशक्षक की योग्यता, सििे नशीलता, पररश्रमशीलता, ं ं ककपनाशीलता तथा सावहवत्यक प्रिवत्त पर वनभरभ करती ह।ै सही मागिभ शनभ म ें यवि उक्त वक्रयाशीलन ृ विद्यालय म ें चलाए जाए तो छात्रों म ें सावहवत्यक सजनात्मक-शवक्त एि प्रवतभा का विकास वनियपिकभ ृ ू ं ं वकया जा सकता ह।ै अभ्यास प्रश्न 1. सावहत्य का क्या अवभप्राय ह?ै 2. सस्कत सावहत्य का िणनभ करें। ृ ं 3. भाषा और सावहत्य म ें क्या सम्बन्ध ह?ैं 4. सस्कत भाषा का पररचय िीवजए? ृ ं 5. भाषा अध्ययन से आप क्या समझते है? 6. भाषा एि सावहत्य द्वारा वकस प्रकार सजनात्मक कौशल की िवद्ध होती ह?ै ृ ृ ं 2.7 सािांश वकसी भी भाषा म ें सावहत्य का विकास उस भाषा की पररवनवष्ठत अिस्था का सचक होता ह।ै एक बार जब ू कोई सावहवत्यक रचना उस भाषा म ें हो जाती ह ै तब अन्यान्य रचनाए ँ भी परक, समितच या प्रवतस्पधा भ के ू रूप म ें होने लगती ह।ै भाषा-वशक्षण करने िाले प्रत्येक व्यवक्त को भाषा की विविध सककपनाओ से ं ं पररवचत होना अत्यािश्यक ह।ै भारतीय िाङ्मय के अध् ययन-अनशीलन से विवित होता ह ै वक ॠवष मवनयों के समय तक व्य ाकरण शास्त्र ु ु की अनेक विधाए ँ प्रकाश म ें आ चकी थीं। गाग् यभ, गालि, शाकटायन, शाकक य आवि भाषा शावस्त्रयों द्वारा ु प्रिवतभत व् याकरण शास् त्र की यह महान थाती पावणवन, कात् यायन और पतजवल के हाथों म ें आयी। ् ं भाषा का जो विस् तत स् िरूप तत्क ालीन भारत की करोड़ो जनता द्वारा बोला जाता था, उसे इस मवनत्रय ने ृ ु अपनी महान कवतयों म ें बाँधा। उनके बाि सस् कत के सैकड़ों ियै ाकरणों ने िावतभक, िवत्त, व् याख् या और ृ ृ ृ ् ं टीकाओ द्वारा व् याकरण ज्ञान की इस परपरा को आग े बढ़ाया। िावतभक, िवत्त आवि मल व् याकरण ग्रथों की ृ ू ं ं ं व् याख् या करते ह ैं और व् याकरण के िाशवभ नक वचतन के पक्ष को उभारते ह।ैं यह सिवभ िवित तथ् य ह ै वक ं सस् कत विश्ि की प्राचीनतम भाषा मानी जाती ह ै और िवै िक सस् कवत ससार की प्राचीनतम सस् कवत ृ ृ ृ ं ं ं ं ससार की प्राचीनतम सस् कवत। िवै िक सावहत् य के सिप्रभ थम ग्रथ ििे ह।ैं भारतीय सस् कवत के इवतहास में ृ ृ ं ं ं ं इसका अत् यत महत् िपण भ एि गौरिपण भ स् थान ह।ै ू ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 120 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भाषा एि सावहत्य के वशक्षण का परम उद्दश्े य ह ै छात्रों म ें सावहवत्यक सजनात्मक का विकास करना। ृ ं िस्ततः इसी उद्दश्े य की पवतभ म ें भाषा एि सावहत्य वशक्षण की सछची सर्लता ह।ै सामान्यतः वलखी एि ु ू ं ं बोली गई भाषा को समझ लेना तथा अपने विचारों को वलखकर एि बोलकर िसरे तक पहचा िने ा- भाषा ु ं ं ू वशक्षण के उद्दश्े य ह।ैं वकन्त, छात्रों की सजनात्मतक प्रवतभा तथा शवक्त को विकवसत कर िने ा भाषा एि सावहत्य वशक्षण को ृ ु ं पणतभ ा एि साथभकता प्रिान करना ह।ै छात्रों के अिर ससि सावहत्य-सजन की प्रवतभा एि सभािनाए ृ ू ु ु ं ं ं ं ं अनकल पररिशे तथा मागिभ शभन पाकर विकवसत एि सवक्रय हो उठती ह।ै योग्य एि ककपनाशील वशक्षक ु ू ं ं अपनी प्रवतभा, लगनशीलता तथा सििे ना के बल पर छात्रों की सजनात्मक प्रवतभा को विकवसत एि ृ ं ं पररष्ट्कत कर पाने म ें सर्ल होता ह।ै ृ 2.8 शब्दावली 1. साशहत्य - सावहत्य का सहज अथभ ह ै अपनी सभ्यता-सस्कवत,अपने पररिशे को अपने शब्िों म ें ृ ं अपने दृवष्टकोण के साथ पाठकों, श्रोताओ के मध्य प्रस्तत करना . पर यवि दृवष्टकोण,शब्ि ु ं कवत्रम आधवनकता या आिेश से बावधत हो तो उसे सावहत्य का िजाभ नहीं ि े सकते। ृ ु 2. भाषा - भाषा िह साधन ह ै वजसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते ह ै और इसके वलये हम िावचक ध्िवनयों का उपयोग करते ह ैं 2.9 सन्दभ भ ग्रन्थ सची ू 1. झा, डॉ- नागन्े द्र, प्राचीन एि अिाभचीन वशक्षा-पद्धवत, अवभषेक प्रकाशन, विकली, 2013 ं 2. शमाभ, डॉ- उषा, सस्कत वशक्षण, स्िावत पवब्लके शन्स, जयपर ृ ू ं 3. शमाभ, डॉ- नन्िराम, सस्कत वशक्षण, सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन, 2007 ृ ं 4. शमाभ , डॉ- उमाशकर, सस्कत सावहत्य का इवतहास, चौखम्बा बक्स, 2008 ृ ु ं ं 2.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. सावहत्य की अिधारणा स्पष्ट करते हए सस्कत सावहत्य का िणनभ करें। ु ृ ं 2. सस्कत भाषा एि सस्कत सावहत्य का विस्तारपिकभ व्याख्या करें। ृ ृ ू ं ं ं 3.
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‘‘भाषा एि सावहत्य एक ही वसक्के के िो पहल ह’ै ’
इस तकभ से क्या आप सहमत है? व्याख्या ु ं करें। 4. सस्कत भाषा के िाक्य सरचना एि पि-वक्रयाका उिाहरण स्िरूप िणनभ करें। ृ ं ं ं 5. भाषा की विधाओ द्वारा सजनात्मक कौशल का विकास होता ह?ै उिाहरण िके र स्पष्ट करें। ृ ं 6. सावहत्य द्वारा जीिन कौशल का वकस प्रकार विकास सभि ह?ै विस्तत व्याख्या करें। ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 121 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ ृ इकाई 3- संस्कत भाषा तिा संस्कत सारहत्य की रवरभन्न रविाओ ं का रिक्षण 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 पद्य वशक्षण 3.3.1 पद्य वशक्षण के प्रमख उद्दश्े य ु 3.3.2 पद्य वशक्षण की विवधयाँ 3.3.3 पद्य पाठ योजना 3.4 गद्य वशक्षण 3.4.1 गद्य शब्ि की व्यत्पवत्त ु 3.4.2 गद्य पाठ के प्रकार 3.4.3 गद्य-वशक्षण अध्ययन की पद्धवतयाँ 3.4.4 गद्य पाठयोजना 3.5 व्याकरण वशक्षण 3.5.1 व्याकरण वशक्षण के उद्दश्े य 3.5.2 व्याकरण वशक्षण की विवधयाँ 3.5.3 व्याकरण पाठ योजना 3.6 नाटक वशक्षण 3.6.1 नाटक वशक्षण के उद्दश्े य 3.6.2 नाटक वशक्षण की विवधयाँ 3.6.3 नाटक पाठ योजना 3.7 साराश ं 3.8 शब्िािली 3.9 सिभभ ग्रथ सची ू ं ं 3.10 वनबधात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 122 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.1 प्रस्तावना सस्कत भाषा को राष्ट्रीय एकता की रीढ की हडडी कहा जा सकता ह ै क्योंकी तकनीकी तथा ृ ् ं आध्यावत्मक वशक्षा के मध्य खाई को जोड़ने रूपी मनोरथ वसवद्ध के वलए सस्कत भाषा के समद्ध सावहत्य ृ ृ ं म ें चार ििे ों से यात्रा आरम्भ होते अनेक रत्न प्राि हये ह ैं जसै े- षटिशनभ ों पर आधाररत उपवनषि, ु ् ् भगिद्गीता, रामायण, महाभारत, अठारह पराण। सावहत्य क्षेत्र म ें रघिश, वकराताजनभ ीयम, वशशपालिध ् ु ु ु ु ं जसै े महाकाव्य पद्य सावहत्य के अनमोल रत्न ह ैं तो कािम्बरी की समकक्षता करने िाला गद्य सावहत्य म ें कोई अन्य ग्रन्थ नहीं ह।ैं वहतोपिशे और पचतन्त्र की वशक्षात्मक कहावनयाँ सिप्रभ थम सस्कत म ें वलखी ृ ं ं गयी। नाटक-कला के आविष्ट्कार का श्रेय भी इसी
भाषा को विया गया ह।ै भास के तेरह नाटक उत्कष्ट ृ नाटक कला के ज्िलन्त उिाहरण ह।ै इसी भाषा म ें पावणनी का 'अष्टाध्यायी' के रूप म ें सस्कत भाषा का ृ ं व्याकरण के क्षेत्र म ें वििेचन एक आियभजनक बौवद्धक चमत्कार ह।ै कोषकायभ के क्षेत्र म ें अमरवसह का ं 'अमर कोष' एक कीवतभ स्तम्भ के रूप म ें विद्यमान ह।ै भाषा के क्षेत्र म ें अनसन्धान 'वनघन्ट' के आने के साथ ु ु प्रारम्भ हआ। ऐवतहाररक क्षेत्र म ें ककहण का 'राजतरवगणी' बाणभट्ट का 'हषचभ ररतम' आवि रचनाए ँ प्राि ु ् ं होती ह।ै तो साथ ही साथ विवध एि राजनीवत के क्षेत्र म ें 'मनस्मवत एि अथभशास्त्र' जसै े ग्रन्थ प्राि होते ह।ैं ृ ु ं ं इसक
े अलािा सस्कत भाषा का समद्ध सावहत्य भारतीयिशनभ शास्त्र, भौगोवलक एि खगोलशास्त्र, गवणत, ृ ृ ं ं ज्योवतषशास्त्र, आयििे , वचवकत्साशास्त्र, सामाजशास्त्र, कामशास्त्र, सगीत शास्त्र जसै े अमकय रत्नों से ु ू ं ििै ीप्यमान ह।ै छात्रों। अब आप समझ ही गये होग ें वक सस्कत भाषा का अध्ययन-अध्यापन क्यों जरूरी ह।ै ृ ं इतना समद्ध सावहत्य विश्व की वकसी भी भाषा म ें नहीं वमलता ह।ै सस्कतभाषा के अध्ययन से न के िल ृ ृ ं बौवद्धक ि आध्यावत्मक विकास अवपत चाररवत्रक ि नैवतक विकास भी सिोपरर ह।ै इसी भाषा म ें 'तन्म े ु मनः वशि सककपमस्त', 'सत्यमिे जयते नानतम' इत्यावि सवक्तयाँ कई सारगवभतभ सभावषत वमलते ह ैं वजनम ें ृ ् ु ू ु ं हमशे ा लोगों के ककयाण की कामना की जाती ह।ै यथा- ''सवे भवन्त सशखनः सवे सन्त शनरामया। ु ु ु सवे भद्राशण पश्यन्त मा कशिि िःखभाग्भवेत।।'' ् ु ् ु इस प्रकार इस सस्कत भाषा के सावहत्य म ें गद्यात्मक-पद्यात्मक-रचनात्मक-व्याकरण-नाटकावि ृ ं विविध रूपों म ें कवतयाँ विद्यमान म ें ह।ैं और प्रत्येक को पढ़ान े के वलए अलग-अलग तरीके ह।ैं प्रत्येक का ृ स्िरूप अलग ह,ै विशेषताए ँ पथक ह,ै उद्दश्े य वभन्न ह,ैं पढ़ाने की विवधयाँ भी समान नहीं ह।ैं इसवलए इस ृ इकाई
के माध्यम से हम ें इनका विस्तत रूप जानने का अिसर वमलेगा ृ वप्रय छात्रों! इस इकाई के माध्यम से हम पद्य वशक्षण, गद्य वशक्षण, व्याकरण वशक्षण एि नाटक ं वशक्षण के बारे म
ें विस्तत ज्ञान प्राि कर सके ग।ें ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 123 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.2 उद्दश्े य 1. इस इकाई के द्वारा आप पद्य के स्िरूप सस्कत पद्य वशक्षण के उद्दश्े य, पद्यवशक्षण की विवधयों ि ृ ं पाठयोजना से अिगत हो सके ग।ें 2. इस इकाई के द्वारा छात्र गद्य के स्िरूप सस्कत गद्य वशक्षण के उद्दश्े य, गद्य वशक्षण की ृ ं विशेषताओ, प्रकारों, विवधयों ि पाठयोजना आवि से अिगत होग ें ं 3. इस इकाई के माध्यम से छात्र व्याकरण का सामान्य स्िरूप, व्याकरण वशक्षण के उद्दश्े य, विवधयों ि पाठयोजना से अिगत होगें। 4. इस इकाई द्वारा छात्र नाटक का स्िरूप समझ सके ग।ें सस्कत नाटक वशक्षण के उद्दश्े यों, विवधयों ृ ं ि पाठयोजना आवि का ज्ञान प्राि कर सके ग।ें ् 5. प्रत्येक विधा की पाठयोजना विये गये उिाहरण को अनसरण करते हये बनाना सीख सके ग।ें ु ु 6. पाठयोजना के सभी सोपानों से अिगत होग।ें 3.3 पद्य वशक्षण सभी विधाओ म ें सबसे पहले हम पद्य वशक्षण का ज्ञान प्राि करेग ें और इसके वलए हम ें इस चाटभ के माध्यम ं से पहले काव्य के स्िरूप को समझना होगा- उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 124 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िस्ततः 'छन्िोबध्ि पि पद्यम' अथाभत छन्िवनयमों का पररपालन की गई श्लोक रूप रचनाएँ पद्य कहलाती ् ् ु ं ह।ैं िस्ततः पद्य का आविभाभि िाकमीवक ऋवष के मख से वनकले हये उस श्लोक से मानी जाती ह ै जो ु ु ु क्रौचाची के विलाप को सनकर अनायास ही बोल विया गया- ु ''मा शनषाि! प्रशतष्ा त्वमगमः िाश्वतीः समाः। ं यत्क्रौञ्चशमथनािेकमवधीः काममोशहतम।।'' ् ु रमणीय पिों को छन्िवनयमानसार समचत क्रम म ें योवजत करना ही पद्य ह।ै पद्य वशक्षण का प्रधान लक्ष्य ु ु ु रसास्िािन होता ह।ै 3.3.1 पद्य शिक्षण के प्रमख उद्देश्य ु पद्य वशक्षण के प्रमख उद्दश्े य इस प्रकार ह-ैं ु a. सस्कत पद्य सावहत्य के प्रवत अवभरुवच जाग्रत करना। ृ ं b. गवत-यावत-लय-भािावभनय द्वारा श्लोक पढ़ने म ें िक्षता प्राि करना। c. श्रिणिाचनपठनलेखनावि कौशलों का विकास करना। d. उछचारणज्ञान म ें िक्षता उत्पािन करना। e. छात्रों म ें ककपना शवक्त एि तकभ शवक्त का विकास करना। ं f. छन्ि सम्बन्धी ज्ञान प्राि करना g. अलङकार सम्बन्धी ज्ञान प्राि करना ् h. सजनभ ान्मक शवक्त का सिधभन करना ं i. श्लोकों को कण्ठस्थ करने के वलए प्रेरणा िने ा पद्य वशक्षण की विशषे ताओ के िारे म ें यवि िखे ा जाये तो पद्यों म ें वनवहत रस की अनभवत छात्रों को कराना ु ू ं साथ ही नैवतक मकय एि आचरण सम्बन्धी व्याख्यान, महानभािों के चररत्र का ज्ञान कराना। िनै वन्िन ू ु ं जीिन से पद्यों को जोड़ना। बोध-शवक्त की दृवष्ट से विषय सामग्री का चयन सरल से जवटल के क्रम की ओर करना। 3.3.2 पद्य शिक्षण की कई शवशधयााँ पद्य वशक्षण को पढ़ाने की कई विवधयाँ ह ैं वजनम ें कछ प्रमख विवधयाँ इस प्रकार ह-ैं ु ु i. परम्परागतविवध ii. िण्डान्ियविवध iii. खण्डान्ियविवध iv. गीतनाटयविवध ् v. व्याख्याविवध vi. आधवनकविवध ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 125 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं परम्परागत पद्धवत का ही िसरा नाम भाषाऽनिाि विवध भी ह।ै इसम ें अध्यापक स्िय आिश भ िाचन करता ु ं ू ह,ै पिविभागअन्ियावि करके उसका भािाथभ छात्रों को समझाता ह।ै िण्डान्िय विवध म ें सिप्रभ थम विशषे ण का अन्िषे ण वकया जाता ह ै वर्र विशष्ट्े यके साथ सयोजन ं वकया जाता ह।ै उसके बाि क्त्िा, ष्ट्िल, कयप आवि प्रत्ययों का अन्िषे ण वकया जाता ह।ै इस प्रकार प्रधान ् ु िाक्य का अन्िषे ण करके आवश्रत्यिाक्य को प्राि करते ह।ै अन्ियप्रबोध म ें िण्डान्िय की पररभाषा इस प्रकार ह-ै ''आद्ये शविेषण योज्य शविेष्य तिनन्तरम। ् ं ं ं क्त्वाणमल्ल्यप्प्रभत्येव पवं िण्डान्वये भवेत।।'' ृ ् ु ू ं िण्डान्ियविवध म ें प्रधान िाक्य के अन्िषे ण के वलए विभवक्त, प्रत्ययावि का ज्ञान होना जरूरी ह।ै प्रधानवक्रयापि से सम्बवन्धत किन्तवक्रयापिों को पि भ म ें जोड़कर प्रधानवक्रयापि को अन्त म ें स्थावपत ृ ू करते ह।ैं लक्षण म ें विये गये प्रत्ययों का िाक्य म ें प्रयोग इस प्रकार होता ह-ै क्त्वान्तम-गह गत्वा पश्यवत (घर जाकर के िखे ता ह)ै ृ ् ं ल्यबन्तम-नेत्रे शनमील्य वनत्र्िावत(नेत्र बन्ि करके सोता ह)ै ् ण्मिन्तम- कथा स्मार स्मार हसवत (कथा को याि कर -करके हसँ ता ह)ै ् ु ं ं ं उिाहरण- आिीशभशरभ्यच्यश मशनः शक्षतीन््ि प्रीनः प्रतस्थे पनराश्रमाय। ु ु ं त पष्तः प्रष्शमयाय नम्रो शहस्त्रेषिीतात धनः कमारः।। ृ ु ु ु ं ं शविेषण शविेष्य किन्तशक्रयापि प्रधानशक्रयापि ृ प्रीतः मशनः पनः ु ु शक्षतीन््िम ् आिीशभशः अभ्यच्यश प्रतस्थे आश्रमाय शहस्त्रेषिीतातधनः ु ु ं नम्र कमारः ु प्रष् त पष्तः इयाय ृ ं ं खण्डान्िय विवध म ें सज्ञा एि सिनभ ाम को पहचानने के वलए पहले कौन वकसको, वकसके द्वारा वकस के ं ं वलए (कः, कम, के न, कस्म)ै इन्यावि पिों के प्रयोग द्वारा प्रश्न पछे जाते ह।ैं विशेषणों के सज्ञान के वलए ् ू ं आवि पिों का प्रयोग वकया जाता ह।ै वक्रया (कीदृशः, वकम्भतः, कथम्भतः) कथ, किा, कत्र, कतः) वलए ू ू ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 126 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं तथा वक्रया विशषे णों के ज्ञान के (वक करोवत) ज्ञान के वलए इत्यावि पिों का प्रयोग करते हये प्रश्न पछे जात े ु ू ं ह।ैं इस विवध का िसरा नाम आ (वकमथभम्काक्षा विवध भी ह।ै इसका लक्षण वनम्नवलवखत ह-ै ं ू
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“कतशकमशशक्रयास्तावत श्लोके योज्यास्ततः परम, ् ् ु शकमो रप परस्कत्य ततीयाशि शनयोजयेत। ृ ृ ् ु ं ल्यवन्तञ्च तमन्तञ्च क्त्वान्त कमशशवभशषतम , ् ु ू ं खण्डान्वये पनः प्रश्नपवशयमन्ते प्रयोजयेत”
। ् ु ू छात्रों इस लक्षण का अथभ आपको ऊपर सन्िभाभनसार बतला विया गया ह।ै अब इसका एक उिाहरण ु समझते ह-ैं रामो राजमशणः सिा शवजयते,राम रमेि भजे , ं ं रोमोणाशभहता शनिाचरचम रामाय तस्मै नमः। ् रामान्नाशस्त परायण परतर, रामस्य िारोऽस्म्यहम, ् ं ं रामे शचिियः सिा भवत मे हे राम,! मामद्धर।। ु ु i. प्रथमपाि े वक्रयापि वकम?(विजयते) ् ं (प्रथमपाि म ें वक्रयापि क्या ह?ै ) ii. कः विजयते? (रामः विजयते) (कौन विजयी होता ह)ै ? iii. रामः किा विजयते? (रामः सिा विजयते) (राम कब विजयी होते ह)ैं ? iv. कीदृशः रामः सिा विजयते? (राजमवणः रामः सिा विजयते) कौन से राम सिा विजयी होते ह?ैं v. भजके ः भजे? (अह भजे) ं (कौन भजन कर?) vi. अह क भज?े (अह राम भजे) ं ं ं ं (म ैं वकसको भज)ँ ू vii. अह कीदृश रामभज?े (अह रमशे राम भजे) ं ं ं ं ं ं (म ैं कौनसे राम का भजन करूँ ?) अशभहता i. के न अवभहता? (रामणे अवभहता) (वकसके द्वारा मारे गये?) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 127 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ii. रामणे का अवभहता? (रामणे वनशाचरचम अवभहता)? ् (राम के द्वारा कौन मारे गये?) नमः i. कस्म ै नमः? (तस्म ै नमः) (वकसको नमस्कार ह?ै ) ii. तस्म ै कस्म ै नमः? (तस्म ै रामाय नमः) (उसको वकसको नमस्कार ह?ै ) नशस्त i. वकम नावस्त? (परतर नावस्त) ् ं (क्या नहीं ह?ै ) ii. कीदृश परतर नावस्त? (परायण परतर नावस्त) ं ं ं ं वकस प्रकार का परतर नहीं ह?ै iii. कस्मान परायण परतर नावस्त (रामान परायण परतर नावस्त) ् ् ं ं ं ं वकसके परायण से परतर नहीं ह?ै आशस्म i. कः आवस्म? (िासः अवस्म) (कौन ह)ँ ii. कस्य िासः अवस्म?(रामस्य िासः अवस्म) (वकसका िास ह)ँ भवत ु i. किा भित? (सिा भित) ु ु (कब हो?) ii. कः सिा भित? (वचत्तलयः सिा भित) ु ु (क्या सिा हो?) iii. कस्य वचत्तलयः सिा भित? (म े वचत्तलयः सिा भित) ु ु वकसका वचत्त सिा लीन हो? iv. कवस्मन मवे चत्तलयः सिा भित?(राम े म े वचत्तलयः सिा भित) ् ु ु (वकसम ें मरे ा वचत्त सिा लीन हो?) उद्धार i. कः उद्धर? (भो राम! उद्धर) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 128 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं कौन उद्धार करे? ii. भो राम! कम उद्धर? (भो राम! माम उद्धर) ् ् (ह े राम! वकसका उद्धार करो) वप्रय छत्रों! िण्डान्िय ि खण्डान्िय विवध
का प्रयोग पद्य पढाते समय कै से करना ह?ै यह आप उिाहरणों से भलीभाँवत समझ जायेग।ें गीतनाटयविवध में गीत कविता या पद्य को अवभनय सवहत ् गाकर पढ़ाया जाता ह।ै व्य
ाख्या विवध म ें श्लोक का पिविभाग, अन्िय, वक्रयापिज्ञान, प्रवतपाविकाथभज्ञान, शब्िज्ञान, धातज्ञान, िचनज्ञान, वलङगज्ञान, व्यत्पवत्त, कोषज्ञान आवि के बारे म ें ् ु ु चचाभ की जाती ह।ै व्याख्या का लक्षण इस प्रकार ह-ै ''पिच्छेिः पिाथोशि शवग्रहो वाक्ययोजना। आक्षेपोऽथ समाधान व्याख्यान पञ्चधा स्मतम।।'' ृ ् ं ं आजकल विवशष्ट प्रवशक्षण
महाविद्यालयों म ें आधवनक प्रणाली का आश्रय वलया जाता ह।ै आधवनक ु ु प्रणाली म ें हबभट महोिय की पचाचपिी प्रणाली पर आधाररत ह।ै इसम ें वनम्न सोपान होते हैं- सामान्य पररचय-विद्यालय का नाम, कक्षा, िग,भ छात्रसख्या,विनाङक, विषय, प्रकरण, छात्राध्यापक ् ं का नाम 1. सामान्य
ोद्दश्े य 2. विवशष्टोद्दश्े य 3. सहायक समाग्री 4. पिज्ञभ ान विवशष्ट सामग्री ू 5. प्रस्तािना 6. उद्दश्े यकथन 7. प्रस्ततीकरण ु i. आिशिभ ाचन ii. अनिाचन ु iii. अशवद्धसशोधन ु ं 8. पाठ विकास i. शब्िाथभ ii. भाषानिाि ु iii. अन्िय(िण्डान्िय/खण्डान्िय) iv. िस्तविश्लेषणात्मकप्रश्न ु v. अध्यापककथन और तलना ु 9. सौन्ियाभनभत्यात्मक प्रश्न ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 129 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 10. सस्िरिाचन 11. कक्ष्याकायभ 12. गहकायभ ृ छात्रों! अब हम पद्य पाठयोजना का वनमाभण करना सीखगे ।ें इसके वलए हम वकसी भी पद्य का चयन कर उपरर वलवखत सोपानानसत्य पाठयोजना बना सकते ह।ैं उिाहरण के वलए एक पाठयोजना ृ ु प्रस्तत ह।ै ु 3.3.3 पद्य पाठ योजना विद्यालय का नामः िगाभः कक्षाः मध्यायः ु छात्रसख्याः अिवधः ं कालाशः विनाङकः ् ं विषयः प्रकरणः छात्राध्यापक/छात्राध्यावपका का नामः ........................................................................ सामान्य उद्देश्य 1. गवत,यवत, लय एि भार के अनसार छन्ि पाठ करने की योग्यता उत्पन्न करना। ु ं 2. कविता के मख्य भािों को ग्रहण करने की योग्यता प्रिान करना। ु 3. काव्य-सौन्ियभ की अनभवत करने की क्षमता प्रिान करना। ु ू 4.
छात्रों को कविता की विवभन्न शवै लयों से पररवचत कराना। 5. स्िय काव्य-रचना करने के वलए छात्रों को प्रोत्सावहत करना। ं 6. छात्रों की ककपना शवक्त का विकास करते हए उन्ह ें काव्यगत रस एि भाि का आनन्ि लेने ु ं के योग्य बनाना। शवशिष्ट उद्देश्य- छात्रों के समस्त कौशलों का विकास करना। यथा- 1. आिशिभ ाचन के माध्यम से श्रिणकौशल का विकास। 2. अनिाचन के माध्यम से पठनकौशल का विकास। ु 3. प्रश्नोत्तर के माध्यम से कथनकौशल का विकास। 4. कक्ष्याकायभ- गहकायभ के माध्यम से लेखनकौशल का विकास। ृ 5. छात्रों क
ो विषयगत विवशष्टज्ञान प्रिान करना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 130 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सहायक सामग्री- लपेटश्यामर्लक, सके वतका, चॉक, माजभनी आवि। ं 2. शवशिष्ट सामग्री- पाठ से सम्बवन्धत वचत्र, मॉडल (प्रवतकवत) आवि। ृ पवशज्ञान - छात्र जानते ह ैं वक राम और कष्ट्ण अवधकाश भारतीयों द्वारा भगिान के रूप म ें पज े जाते ह।ैं ृ ू ू ं ि े रामनिमी एि जन्माष्टमी का महत्ि जानते ह।ैं ि े यह भी जानते ह ैं वक महाभारत का यद्ध कौरिों ु ं तथा पाण्डिों म ें हआ एि श्रीकष्ट्ण ने अजनभ को गीता का उपिेश विया। ु ृ ु ं िशक्षताशधगम छात्राध्यापक शक्रया छात्र शक्रया शिक्षणप्रशतफि प्रस्तावना 1.छात्रों म ें पाठ के प्र.1. हम रामनिमी क्यों मानते ह ैं ? उ. राम का जन्मविन छात्र विषय के वन्द्रत प्रवत रुवच जागत प्र.2. जन्माष्टमी मनाने का क्या कारण ह?ै ह।ै होते ह।ैं ृ करना। प्र.3. महाभारत का यध्ि वकस-वकसके बीच उ. कष्ट्ण का ृ ु 2. छात्रों के पण भ ज्ञान हआ? जन्मविन ह।ै ु ू का निीन ज्ञान स े प्र.4. भगिान कष्ट्ण ने अजभन को क्या उपिशे ृ ु सम्बन्ध स्थावपत विया था? उ. कौरि एि ं करना। प्र.5. यह उपिशे क्या था? पाण्डिों के बीच। उ. गीता का उपिशे विया था। उ. समस्यात्मक प्रश्न उद्देश्यकथन पाठ की जानकारी आज हम गीता के िो श्लोकों का अध्ययन करेग ें छात्र विवशष्टज्ञान छात्रों को उद्दश्े य का िने ा जो भगिान कष्ट्ण के द्वारा अजभन को विए गए। प्रावि के वलए उत्सक ज्ञान होता ह।ै ृ ु ु होते ह।ैं प्रस्ततीकरण ु यिा यिा वह धमभस्य, छात्र श्लोकों को पाठयिस्त का ज्ञान ् ु ग्लावनभभिवत भारत। ध्यानपिभक सनते ह।ैं होता ह।ै ू ु अभ्यत्थानमधमभस्य. ु तिात्मान सजाम्यहम।। ृ ् ं पररत्राणाय साधना, ू ं विनाशाय च िष्ट्कताम। ृ ् ु धमभसस्थापनाथाभय, ं सभािावम यगे यगे।। ु ु ं आििशवाचन श्रिण-िाचन छात्राध्यापक िोनों श्लोकों का उवचत लय एि छात्र ध्यानपिभक छात्रों को िोनों ू ं कौशल का विकास भािपण भ मद्रा म ें आिश-भ िाचन करता ह।ै सनते ह।ै कौशलों की ू ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 131 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं जानकारी प्राि होती ह।ै िोअताशधगम छात्राध्यापशक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि अनवाचन ु पठन कौशल का कवतपथ छात्रों द्वारा व्यवक्तगत रूप से एक- एक छात्रक्रम से छात्र िाचन म ें प्रिीण विकास करके श्लोकों का सस्िरिाचन छात्राध्यापक अनिाचन करते ह।ै होते ह।ैं ु द्वारा करिाया जाता ह।ै अिशद्ध सिोधन ु ं छात्रा अशवद्धयों को ु सशोधन क्षमता का छात्रों के द्वारा अनिाचन म ें होन े िाली शद्ध करते ह ैं तथा ु ु ं विकास अशवद्धयों का सशोधन छात्राध्यापक श्यामपट्ट शद्ध उछचारण करते शद्धोछचारण का ु ु ु ं के माध्यम से करता ह।ै ह।ै विकास होता ह।ै िधिाथं छात्र कावठन्य नतन पिों का वनिारण को समझते ू पररचय ह ैं और अपनी उत्तरपवस्तका म ें ु वलखते ह।ैं िधि अथश ग्लावन ह्रास,अिनवत भारत अजभन ु अभ्यत्थानम उन्नवत ् ु आत्मानम स्िय को ् ं पररत्राणाय रक्षा के वलए साधना सज्जनों को ू ं िष्ट्कताम पावपयों को ृ ् ु विनाशाय नाश के वलए सस्थापनाथाभय स्थापना करने के ं वलए भाषानवाि ु भाषानिाि क्षमता अध्यापक छात्रों के सहयोग से िोनों श्लोकों छात्र अनिाि म ें अनिािकौशल स े ु ु ु का विकास का अनिाि करता ह।ै सहयोग करके छात्रों का पररचत ु ध्यानपिभक सनते ह।ै होना ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 132 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं अन्वय खण्डान्िय विवध स े खण्डान्िय विवध द्वारा छात्राध्यापक छात्र छात्राध्यापक पद्य की विवधयों स े पररचय सरलता से श्लोंकों का अन्िय करता ह।ै द्वारा पछे गए प्रश्नों छात्रों का पररचय ू को ध्यानपिभक उत्तर होना। ू िते े ह।ैं िशक्षताशधम छात्राध्यापकशक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि वस्तशवश्ले षणात्मकप्रश्न ु प्र.1. इन श्लोकों का िक्ता (i) अधीतज्ञान का परीक्षण छात्र प्रश्नों का सोच- अधीतज्ञान परीक्षण (ii) विषय के प्रवत कौन ह?ै समझकर एि ं ध्यानाकषभण प्र.2. भगिान श्रीकष्ट्ण वकसस े ध्यानपिभक िते े ह।ैं ृ ू कहते ह?ै प्र.3. भगिान श्रीकष्ट्ण अजभन ृ ु को वकस नाम स े सम्बोवधत करते ह?ैं अध्यापककथन एव तिना ु ं (i) श्रिणकौशल छात्राध्यापक िोनों
श्लोकों का छात्र एकाग्र होकर श्लोकों की तलना कै स े की ु (ii) विकास अथभ सम्पण भ भािात्मक तरीके श्लोकों का अथ भ समझते जाती ह ै इसकी जानकारी ू तलनात्मक विकास से एि िसरे श्लोकों के साथ ह ैं एि तलना के द्वारा होना। ु ु ं ं ू तलना करके बताता ह।ै िसरे श्लोक के बारे म
ें ु ू ज्ञान प्राि करते ह।ैं सौन्ियाशनभत्यात्मक प्रश्न ु ू अधीतज्ञान का दृढ़ीकरण प्र.1. िोनों श्लोक कहाँ स े वलए गए ह?ैं छात्रों के ज्ञान म ें प्र.2. श्लोकों के िक्ता एि छात्र प्रश्नों का उत्तर िते े पररपक्िता ं श्रोता कौन ह?ैं ह।ैं प्र.3. 'अभ्यत्थानम' इसका ् ु अथभ क्या ह?ै प्र.4. भगिान वकसकी रक्षा के वलए जन्म लेते ह?ै प्र.5. भगिान वकसके नाश के वलए उत्पन्न होते ह?ैं प्र.6. भगिान के अितार का और क्या कारण ह?ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 133 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधम छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि द्रतपठनकौशल का छात्राध्यापक सम्पण भ यवत छात्र छात्राध्यापक के सस्िरिाचन की क्षमता ू ु विकास गवत एि लय के साथ िोनों साथ सस्िर िाचन करते ं श्लोकों का िाचन छात्रों के ह।ै सवहत करता ह।ै कक्ष्याकायश छात्रों की अभ्यास प्रिवत्त ृ अभ्यासप्रिवत्त का 1. छात्राध्यापक कछ छात्र अभ्यासकायाभ विकवसत होती ह।ै ृ ु विकास और अवधगमज्ञान िस्तवनष्ठ प्रश्न पछता ह।ै विचार करके करते ह।ैं ु ू का परीक्षण 2. उपसग भ सवन्ध, समास से सम्बवन्धत कछ प्रश्न पछता अिकाश का सिपयोग ु ू ु ह।ै गहकायश ृ स्िाध्यायप्रिवत्त का सभी छात्र घर पर ृ विकास अिकाश का 1. श्लोकों का अथभ अपनी गहकाय भ करते ह ैं तथा ृ सिपयोग भाषा म ें वलखकर लायें। अिकाश का सिपयोग ु ु 2. िोनों श्लोकों को करते ह।ैं कण्ठस्थ करकर लायें। 3.4 गद्य वशक्षण सस्कत वशक्षण की विविध विधाओ म ें गद्य वशक्षण भी प्रमख ह।ै गद्य म ें कवि को अपनी शलै ी के विकास ृ ु ं ं म ें व्यवक्तगत गणों का ही आश्रय लेना पड़ता ह ै इसवलए गद्य को कवियों की कसौटी कहा जाता ह-ै 'गद्य ु ं किीना वनकष ििवन्त'। गद्य वशक्षण द्वरा कथाओ, आख्यावयकाओ, उपन्यासों, वनबन्धों, सस्मरणों, ं ं ं ं ं आत्मकथाओ को वशक्षक सरल भाषाशलै ी द्वारा छात्रों तक सप्रेवषत करने म ें सक्षम होते ह।ैं छात्र भी ं ं आसानी से भािग्रहण कर लेते ह।ै सस्कत भाषा म ें कई गद्य कथायें भाषा के उत्कष्टतम अलकत रूप म ें भी ृ ृ ृ ं ं झलकती ह।ै अतएि 'कािम्बरी रसास्िाि विना? आहारोऽवप न रोचते' यह सवक्त सस्कत जगत म ें गद्य ृ ू ं ं विधा के वलए ििै ीप्यमान ह।ै इन रसाप्लावित हृियाह्लािकारी गद्यों को निपीढी तक सप्रेवषत करने के वलए ं सस्कत भाषा में गद्यवशक्षण का ज्ञान अवनिायभ ह।ै अतः इस पाठयक्रम म ें 'गद्यवशक्षण' भी चयवनत वबन्िओ ृ ् ं ं ु म ें अग्रगण्य ह।ै 3.4.1 गद्य िधि की व्यत्पशि ु गद्य शब्ि की व्यत्पवत्त सस्कत की 'गि' धात से हई ह ै वजसका अथभ ह-ै 'स्पष्ट कहना। आचायभ विश्वनाथ के ु ृ ु ु ं ् अनसार 'ित्तबन्धोवचाझत गद्यम' अथाभत 'छन्ि बन्धहीन' शब्िाथभ योजना गद्य ह।ै गद्य की पररभाषा िते े हए ु ृ ् ् ु ं िण्डी ने 'अपाि' शब्ि का उकलेख वकया ह ै अथाभत वजस रचना म ें छन्िशास्त्र के गण, मात्राओ आवि का ् ं बन्धन न हो िह गद्य ह।ै सस्कत गद्य सावहत्य का उद्भि भी िवै िक काल से हआ ह।ै कष्ट्ण यजििे ब्राह्मण ु ृ ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 134 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ग्रन्थों तथा उपवनषिों म ें गद्य वमलते ह।ैं वनरुक्त तथा महाभारत म ें भी गद्य की रचना वमलती ह।ै पतचाजवल मवन का विश्व विख्यात व्याकरण ग्रन्थ महाभाष्ट्य भी गद्य म ें ही वलखा गया ह।ै सस्कत भाषा का गद्य ृ ु ं सावहत्य वनम्न िगों म ें बाँटा गया ह-ै सस्कत गद्य काव्य के तीन उन्नायक माने जाते ह।ैं िण्डी, सबन्ध तथा बाणभट्ट। इस काल म ें गद्य का ृ ु ु ं चरम विकास हआ। िशकमारचररत, िासिित्ता, कािम्बरी जसै ी गद्य रचनायें गद्य सावहत्य की ु ु अमकय वनवधयाँ ह।ैं ू वप्रय छात्रों, यह तो सिवभ िवित ह ै ही वक प्रत्येक विधा वक अपनी कछ विशेषताए ँ होती ह।ैं गद्य वशक्षण ु की भी कछ विशेषताए ँ ह।ैं जैसे- ु 1. सस्कत सावहत्य म ें गद्य के अन्तगतभ हम कथाओ तथा आख्यावयकाओ को रख सकते ह।ैं ृ ं ं ं 2. सस्कत गद्य के माध्यम से शब्िों की सरचना, उपसग,भ प्रत्यय, सवध, समास आवि का ज्ञान ृ ं ं ं सरलता से हो जाता ह।ै 3. सस्कत गद्य द्वारा सभी प्रकार के विचारों, कोमलभािों, िाशवभ नक तत्त्िों और उपिशे ात्मक ृ ं वशक्षाप्रि मकयों को आवभव्यक्त वकया जा सकता ह।ै ू 4. सस्कत गद्य की सबसे बड़ी विशषे ता उसकी सवक्षिता ह।ै जसै े- 'अवत सित्रभ िजयभ ेत' इस ृ ् ं ं छोटी सी सवक्त का कार्ी विस्तार वकया जा सकता ह।ै ू 5. वप्रय छात्रों, अब तक आप गद्य के सामान्य स्िरूप, िग भ ि विशेषताओ से अिगत हो चके ु ं होग।ें अब जानना ह ै वक वकस स्तर पर गद्य वशक्षण पढ़ाने से वकन उद्दश्े यों की पवतभ की जा ू सकती ह।ै गद्य वशक्षण के उद्दश्े य शवै क्षक स्तरों के अनसार वनवित वकये गये ह।ैं ु प्राथवमक स्तर (कक्षा 6, 7 ि 8) i. छात्रों के शब्ि भण्डार में िवद्ध हो, तावक ि े नये शब्िों का अथभ समझकर उनका उवचत प्रयोग ृ कर सकें । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 135 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ii. छात्र पाठगत ध्िवनयों, शब्िों एि िाक्यों का शद्ध उछचारण कर सकें । ु ं iii. उन्ह ें ि े सस्कत भाषा का पररचय प्राि कर सकें । ृ ं iv. छात्र पाठगत भािों एि विचारों को ग्रहण कर सकें । ं माध्यवमक स्तर (कक्षा 9, 10, 11 ि 12) i. छात्रों को विविध गद्य शवै लयों से पररवचत कराना। ii. छात्रों के शब्ि भण्डार और सवक्त भण्डार म ें िवद्ध करना ृ ू iii. छात्रों को पाठयगत आिशों से प्रेरणा लेकर अपने चररत्र का वनमाभण कर सकने की योग्यता ् प्रिान करना iv. छात्रों म ें लेखक के भाि के अनसार गद्य- पाठ का िाचन करने की क्षमता का विकास ु करना। v. छात्रों म ें सस्कत भाषा के प्रवत अनराग उत्पन्न करना, व्यािहाररक ज्ञान प्राि करने म ें ृ ु ं सहायता िने ा ि उनम ें ककपनात्मक शवक्त का विकास करना। उछचस्तर (स्नातक कक्षाएँ) i. ककपना, तकभ , वनरीक्षण ि समीक्षा शवक्त का उछचस्तरीय विकास करना। ii. सस्कत गद्य की विवभन्न शवै लयों का ज्ञान पररषष्ट करना ृ ु ं iii. सस्कत म ें भािावभव्यवक्त की क्षमता को सदृढ़ करना। ृ ु ं iv. सजनभ ात्मक शवक्त का विकास करना। v. सस्कत सावहत्य की िसरे सावहत्य से तलनात्मक अध्ययन की क्षमता का विकास करना। ृ ु ं ू vi. निीन सावहवत्यक प्रिवत्तयों से पररवचत करिाना। ृ 3.4.2 गद्य पाठ
के प्रकार सस्कत गद्य वशक्षण पढ़ाने से स्तरानसार छात्र वकन-वकन उद्दश्े यों म ें सर्लता प्राि कर सके ग,ें इससे आप ृ ु ं सभी पररवचत हो चके ह।ैं अब गद्य पाठ के प्रकारों ि गद्य पाठ िो प्रकार के होते ह
।ैं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 136 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं गहनाध्ययन म ें िणनभ , जीिनी, वनबन्ध, यात्रा, िणनभ , सस्मरण आवि विधाओ के पाठ होते ह।ैं ये पाठ ं ं अथभग्रहण, विषयिस्त का ज्ञान, भाषा तत्त्िों का ज्ञान, िाचन, रुवच, अवभव्यवक्त अवधिवत्त आवि उद्दश्े यों ृ ु की पवतभ करते ह।ैं ू सरलध्ययन म ें कहानी, सिाि, एकाकी आवि विधाओ के पाठ होते ह।ैं इसकी भाषा सरल होती ह।ै बालक ं ं ं की पढ़ने म ें रुवच का विकास करना, द्रतगवत से मौन िाचन के योग्य बनाना, अथभग्रहण,साराश ग्रहण, ं ु के न्द्रीय भाि बोध, चाररवत्रक विकास करना आवि मख्य उद्दश्े य ह।ैं ु गहनाध्ययन म ें प्रस्तत सामग्री का सक्ष्म रूप स े अध्ययन करिाया जाता ह ै जबवक सरलाध्ययन म ें प्रस्तत ु ू ु सामाग्री का शीघ्रता से अध्ययन करके तद्गत भािों को ग्रहण करने की योग्यता उत्पन्न करना ह।ै गद्याश म ें कवठन शब्िों का अथभ विविध विवधयों के माध्यम से छात्रों द्वारा वनकलिा सकते ह-ैं ं गद्य पढ़ाते समय वप्रय छात्रों! यवि आप गद्य पढते समय कवठन शब्िों का अथभ छात्रों को सरल ढग से समझाना चाहते ह ै तो ं उपयभक्त विवधयचों का सहारा ले सकते ह।ैं वकसी शब्ि का अथभ प्रत्यक्ष िस्त विखाकर जैसे 'इय नावसका, ु ु ं इिम उिरम, इिपत्रम' समझा सकते ह।ै 'आगछछवत, गछछवत, हसवत' आवि वक्रयाओ को प्रत्यक्ष अवभनय ् ् ् ं ं द्वारा स्पष्ट वकया जा सकता ह।ैं वजनके साक्षात िशनभ करिाना िलभभ ह.ै उनको प्रवतकवत बनाकर ृ ् ु 'ताजमहलम, बद्धः'समझा सकते ह।ैं वजनके वचत्र हम बना सकते ह ैं अथिा रेखाओ द्वारा वचत्रावकत कर ् ु ं ं सकते ह,ैं उन्ह ें वचत्र ि रेखावचत्र बनाकर समझाया जा सकता ह।ै इस प्रकार निीन शब्िों का अथभ समझान े के वलए दृश्य-श्रव्य या अवभनय द्वारा अथाभिगमन कराने म ें उद्बोधन विवध सहायक ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 137 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं प्रिचन विवध म ें वशक्षक वकसी न वकसी रीवत से स्िय अथभ बता सकता ह।ै जसै े- सस्कत भाषा का ृ ं ं मातभाषा म ें अनिाि करके समझा सकता ह।ै शब्ि कोष बढाने ि पयाभयिाची शब्िों का ज्ञान कराने के ृ ु वलए कोष विवध का प्रयोग वकया जा सकता ह।ै जसै े- 1. अणिभ - सागरः, 'समन्द्रोऽवब्धरकपारः पारािरः सररत्पवत्तः' ु ू उिन्िान, उिवधः वसन्धः सरस्िान सागरोऽणिभ ः इत्यमरः। ् ् ु पाररभावषक शब्िों का अथभ स्पष्ट करने के वलए शब्ि की पररभाषा बताना आिश्यक होता ह ै जसै े- जातकम,भ उपिास उछच स्तर पर गद्य वशक्षण म ें शब्िों की व्याख्या करने, उनका भाि बताने के वलए टीका विवध का प्रयोग वकया जाता ह।ै इसम ें प्रसगिश कोष विवध, व्यत्पवत्त विवध, प्रसग विवध, प्रयोग विवध का ु ं ं यथास्थान आिश्यकतानसार समािशे रहता ह।ै ु जहाँ पर अन्य विवधयाँ काम नहीं करतीं, िहाँ कवठन शब्िों का अथभ व्यत्पवत्त, तलना, िाक्य ु ु प्रयोग और प्रसग द्वारा स्पष्ट वकया जा सकता ह।ै इसम ें शब्ि की गहराई पर विचार वकया जाता ह.ै अमक ु ं शब्ि म ें कौनसा उपसगभ ह?ै धात क्या ह?ै प्रत्यय क्या ह?ै इन सब का अलग-अलग अथभ क्या ह?ै इस पर ु विचार वकया जाता ह।ै 3.4.3 गद्य-शिक्षण की पद्धशतयााँ गद्य-वशक्षण का अध्ययन वकन-वकन पद्धवतयों के माध्यम कराया जा सकता ह,ै इस विषय पर वचन्तन के र्लस्िरूप अधोवलवखत पद्धवतयाँ उभरती ह-ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 138 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं परम्परागत पद्धवत म ें अध्यापक स्िय एक-एक िाक्य को पढ़ते हये कवठन पिों का अथभ समझाते हये ु ं व्याख्या करते ह।ैं प्रश्नोिर पद्धशतम ें प्रत्येक िाक्यानसार प्रश्न पछते हये, छात्रों से उत्तर प्राि हये अध्यापक ु ु ु ू पाठ प्रिधभन करते ह।ैं कथा कथन पद्धशत म ें पाठनीय कथा से सम्बवन्धत एक कथा पहले अध्यापक द्वारा सनाई जाती ह ै और छात्रों म ें कथा के प्रवत रुवच उत्पन्न की जाती ह।ै आधवनक हबशटपञ्चपिी प्रणािी ु ु पर आधाररत ह।ै पाठ पढाने से पहले पि भ ज्ञान पर आधाररत प्रस्तािना की जाती ह।ै उसके बाि आिश भ ू िाचन, अनकरण िाचन, त्रवट सशोधन वकया जाता ह।ै वर्र पाठ विकास वकया जाता ह ै वजसम ें छात्र वक्रया ु ु ं प्रधान होती ह।ै वर्र सारकथन, मौनिाचन, पनरािवत्त प्रश्न, कक्षाकायभ, गहकायभ, मकयाङकन आवि ृ ृ ् ु ू सोपानों का पररपालन वकया जाता ह।ै अब हम सस्कत गद्य वशक्षण के सोपानों के विषय म ें जानेग।ें सबसे पहले छात्राध्यापक का नाम, वजस ृ ं
विद्यालय म ें पढ़ाते ह,ैं उस विद्यालय का नाम, पढ़ायी जाने कक्षा, छात्रसख्या, िग भ इत्यावि सामान्य ं आिश्यक वििरण वलखा जाता ह।ै वर्र पढ़ायी जाने िाली गद्य के उद्दश्े य- (1) सामान्य
उद्दश्े य (2) विवशष्ट उद्दश्े य (3) सहायकसामाग्री (4) पिभज्ञान ू (5) प्रस्तािना (6) उद्दश्े य-कथन (7) शवषयोपस्थापन- (क) पाठय-सामग्री (अवन्िवत का उकलेख) ् (ख) वशक्षक द्वारा आिश भ िाचन (ग) छात्रों द्वारा अनिाचन ु (घ) अशवद्धसशोधन ु ं (8) शवस्तत व्याख्या ृ (क) कावठन्य वनिारण (ख) बोध प्रश्न (9) मौनिाचन (10) कक्षाकायभ (11) पनरािवत्त प्रश्न ृ ु (12) गहकायभ ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 139 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं गद्य वशक्षण के सोपानों तक अब आप जानकारी प्राि कर चके ह।ैं अब इन सोपानों को क्रमबद्ध तरीके से ु व्यिवस्थत करते हये हम एक गद्य पाठयोजना आपके वलए उिाहरण के तौर पर प्रस्तत कर रह े ह-ैं ु ु 3.4.4 गद्य पाठयोजना विद्यालय का नामः िगःभ कक्षाः मध्यायः ु छात्रसख्याः अिवधः ं कालाशः विनाङकः ् ं विषयः प्रकरनः छात्राध्यापक/छात्राध्याशपका का नामः वगशः सामान्य उद्देश्यः- i. छात्रों को इस योग्य बनाना वक ि े पाठगत ध्िवनयों, शब्िों एि िाक्यों का शद्ध उछचारण कर सकें । ु ं ii. ि े पाठगत भािों एि विचारों को ग्रहण कर सकें । ं iii. नतनपिों का पररचय प्राि कर सकें । ू iv. पाठ के प्रवत उनम ें अनराग उत्पन्न हो सके । ु v. उन्ह ें इस योग्य बनाना वक ि े पाठगत आिशों से प्रेरणा लेकर अपने चररत्र का वनमाभण कर सकें । शवशिष्ट
उद्देश्य- 1. छात्रों के समस्त कौशलों का विकास करना यथा- i. आिशिभ ाचन के माध्यम से श्रिणकौशल का विकास। ii. अनिाचन के माध्यम से पठनकौशल का विकास। ु iii. प्रश्नोत्तर के माध्यम से कथनकौशल का विकास। iv. कक्ष्याकायभ- गहकायभ के माध्यम से लेखनकौशल का विकास। ृ 2. छात्रों क
ो विषयगत विवशष्टज्ञान प्रिान करना। सहायक सामग्री- (i)
सामान्य- लपेटश्यामर्लक, सके वतका, चॉक, माजनभ ी आवि। ं शवशिष्ट- पाठ से सम्बवन्धत वचत्र, मॉडल (प्रवतकवत) आवि। ृ पिज्ञभ ान- छात्र सयोिय के विषय म ें सामान्य रूप से प
िपभ ररवचत ह।ैं ू ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 140 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधगम छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि प्रस्तावना (1) छात्रों में पाठ के प्रवत प्र1. सयभ अस्त कब होता उ. सायकाल को छात्र विषय के वन्द्रत होते ह।ैं ू ं रुवच जाग्रत होती ह।ै ह?ै (2) छात्रों को पिज्ञभ ान का प्र2 सयभ उिय कब होता ह?ै उ. प्रातः काल को ू ू निीन ज्ञान से सम्बन्ध प्र3. प्रातः काल वकसका स्थावपत होता ह।ै प्रकाश होता ह?ै सयभ का प्रकाश ू प्र4. सयभ के उिय होने पर ू क्या- क्या होता ह?ै समस्यात्मक प्रश्न उद्देश्यकथन आज हम 'सयोिय' इस ू पाठ की जानकारी िने ा। पाठ के विषय म ें विस्तत छात्रों को उद्दश्े य का ज्ञान ृ रूप से अध्ययन करेगें। छात्र विवशष्ट ज्ञान प्रावि के होता ह।ै वलए उत्सक होते ह।ैं ु प्रस्ततीकरण ु प्रातः काल सयोिय होता ू ह।ै सयोिय से पहले शवश पाठयिस्त का ज्ञान होता ह।ै ् ू ु आकाश म ें शीतल रवश्म स े छात्र पाठ को सािधानी ससार को आनवन्ित करती से/ध्यानपिभक सनते ह।ैं ू ु ं ह।ै धीरे-धीरे उषाकाल होता ह।ै उसके बाि सयभ आकाश ू में अन्धकार को िर करके ू उिय होता ह।ै पक्षी कलरि मचाते ह।ैं सभी व्यवक्त जाग कर अपन-ें अपनें कामों म ें लग जाते ह।ैं बालक विद्यालय जाने के वलए, कई लोग घमन े के वलए, ू भक्त पजा के वलए जाते ह।ैं ू एि सभी लोग सयोिय स े ू ं उपकाररत होते ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 141 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधगम छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षण प्रशतफि आििशवाचन श्रिण, िाचन कौशल का छात्राध्यापक आरोह-अिरोह छात्रध्यानपिभक सनते ह।ैं छात्रों को िोनों कौशलों ू ु विकास पिभक विरामावि वचन्हों का की जानकारी प्राि होती ह।ै ू प्रयोग करके गद्य का आिशभिाचन करते ह।ैं अनवाचन ु छात्राध्यापक अनकरणिाचन छात्र क्रम से अनिाचन छात्र िाचन में प्रिीण होते ु ु पठन कौशल का विकास के वलए कवतपय छात्रों को करते ह।ैं ह।ैं आिशे िते ा ह।ै अिशद्ध सिोधन ु ं छात्रों के द्वारा अनिाचन म ें ु सशोधन क्षमता का होने िाली अशवद्धयों का छात्र अशवद्धयों को शद्ध सशोधन क्षमता ु ु ु ं ं विकास। सशोधन छात्राध्यापक करते ह ैं तथा शद्ध ु ं श्यामपट्ट के माध्यम से करता उछचारण करते ह।ैं ह।ै काशठन्यशनवारण यशि ु सयभ+उिय(गण सवन्ध) ू ु िधि अथश सवन्धविछछेि वहमाश, शाशङक, ् ु ं वनशाकर सयोिय भानिय ू ू नतनपिों का पररचय कोष ू शवश चन्द्र (प्र.प.ए.िचन) अध्यापक ु उषाकाल सयोियकाल ू वचत्रयवक्त शब्िप्रकवत वचत्र स्थावपत करता ह।ै ृ ु कलख शब्िविशेष ज्ञापन अनिािकौशल से छात्रों ु का पररवचत होना। भाषानवाि ु भाषानिाि क्षमता का छात्र अनिाि म ें सहयोग ु ु अध्यापक छात्रों के सहयोग स े विकास करके ध्यानपिभक सनते ह।ैं ू ु भाषानिाि करता ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 142 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधगमः छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षण प्रशतफि बोधात्मकप्रश्न (i) अधीतज्ञान का परीक्षण। 1. सयभ कब उि
य होता ह?ै छात्र प्रश्नों का उत्तर िते े ह।ैं अधीतज्ञान परीक्षण। ू (ii) विषय के प्रवत 2. शवश शीतलरश्म से क्या ध्यानाकषभण करती ह?ै 3. सयभ वकसको िर करके ू ू उिय होता ह?
ै 4. सभी कायों म ें कौन लग जाते ह?ैं छात्राध्यापक कथन/सारकथन सक्षेपीकरण छात्राध्यापक पाठ का सक्षेप प्रस्तत गद्याश का सार ु ं ं ं सरल सस्कतभाषा मे करता छात्र सनते ह।ैं सक्षेपरूप स े पाठ के ृ ु ं ं ह।ै आशय का ज्ञान। मौनवाचन द्रतपठनकौशल का विकास छात्राध्यापक मौनिाचन के ु वलए छात्रों को आिशे िते ा सभी छात्र वबना बोले मौनपठन की क्षमता। ह।ै कक्षा का वनरीक्षण गद्यखण्ड का कौन िाचक अनशासन के वलए करता करते ह।ैं ु ह।ै पनरावशि प्रश्न ृ ु अधीतज्ञान का दृढीकरण 1. धीरे-धीरे कौन आता ह?ै छात्र उत्तर िते े ह।ैं 2. सयभ आकाश म ें क्या छात्रों के ज्ञान म ें पररपक्िता ू करके उिय होता ह?ै 3. सभी लोग सबह जागकर ु क्या करते ह?ै 4. सयोिय से सभी लोग ू कै से उपकाररत होते ह?ै कक्ष्याकायश 1. रवश्म इसके अभ्यासप्रिवत्तका विकास ततीयाविशवक्त के रूपों को ृ ृ और अवधगमपरीक्षण का बोवलये। ज्ञान 2. कछ िस्तवनष्ठप्रश्न पछता छात्र अभ्यासकायभ विचार अभ्यासप्रिवत्त विकवसत ृ ु ु ू ह।ै करके करते ह।ैं होती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 143 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं गहकायश ृ स्िाध्याय प्रिवत्त का 1. सयोिय के ऊपर पाँच ृ ू विकास। िाक्यों की रचना करो। अिकाश का सिपयोग। 2. ररक्तस्थानपवतभ, सभी छात्र गह में अिकाश अिकाश सिपयोग ृ ू ु ु िस्तवनष्ठप्रश्न, का सिपयोग करते ह।ैं ु ु शद्धाशद्धप्रयोग, ु ु शब्िसवम्मलन 3.5 व्याकिण वशक्षण वप्रय छात्रों! सस्कत वशक्षण की विविध विधाओ म ें से आप गद्यवशक्षण एि पद्यवशक्षण
के बारे म ें अध्ययन ृ ं ं ं करेग।े व्याकरण के विषय म ें कहा गया ह-ै 'मख व्याकरण स्मतम'। अथाभत छः ििे ाङगों म ें व्याकरण को ृ ् ् ् ु ं ं ििे ों के मख की उपमा िी गई ह।ै वजस प्रकार मानि शरीर वबना मख के वनरथभक ह,ै उसी प्रकार वबना ु ु व्याकरण क
े सारे शास्त्र वनरथभक ह।ैं भाषा चाह े वलवखत हो या मौवखक िोनों म ें ही शद्ध भाषा का अत्यवधक महत्ि ह।ै भाषा विचार- ु विनमय का सर्ल साधन तभी बन सकती ह,ै जब िह शद्ध हो। भाषा को शद्ध रखने के वलए विशषे ु ु वनयमों का अनसरण करना पड़ता ह।ै अतः भाषा सीखने िालो की सविधा के वलए ऐसे वनयमों का ु ु समािशे आिश्यक ह।ै सस्कत सावहत्य
म ें व्याकरण के अनेकग्रन्थ वमलते ह।ैं िास्ति म ें कहा जाए तो ृ ं भाषा पर पण भ अवधकार प्राि करने के वलए व्याकरण का ज्ञान प्राि करना अत्यन्त आिश्यक ह।ै ू व्याकरण क
ी पररभाषा विवभन्न विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से िी ह ै जो वनम्न ह-ै i. महवष भ पावणवन के मतानसार व्याकरण शब्िानशासन ह।ै इसम ें भाषा का रूप व्यवस्थत होता ह।ै ु ु ii. महवष भ पतचाजवल ने भी अपने महाभाष्ट्य म ें इसे 'शब्िानशासन' कहा ह।ै ु ं iii. डॉ. स्िीट के मतानसार व्याकरण, भाषा का विश्लेषण अथिा उसका विज्ञान ह।ै ु सार रूप व्याकरणशास्त्र को पररभावषत करें तो- ''िह विधा या शास्त्र वजसम ें वकसी भाषा के शब्िों के शद्ध ु रूपो और िाक्यों के प्रयोग के वनयमों आवि का वनरूपण होता, उसे व्याकरण कहते ह।ै '' छात्रों! व्याकरणशास्त्र का विस्तत अध्ययन करने के वलए व्याकरणशब्ि की व्यत्पवत्त, व्याकरणवशक्षण के ृ ु उद्दश्े य, व्याकरणवशक्षण की आिश्यकता, व्याकरण वशक्षण की विवधयाँ एि व्याकरण वशक्षण के सोपान ं आवि वबन्िओ पर विस्तत रूप से चचाभ करेग।ें ृ ं ु व्याकरण िधि की व्यत्पशि- ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 144 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं छात्रों! व्याकरण शब्ि की व्यत्पवत्त बताई गयी ह-ै वि+आ+क+कयट। अथाभत वि एि आ उपसग भ पिकभ ृ ् ् ु ु ू ं 'क' धात से कयट प्रत्यय करके व्याकरण शब्ि वनष्ट्पन्न होता ह,ै वजसका अथभ होता ह-ै ''व्यावक्रयन्ते ृ ् ु ु व्यत्पाद्यन्ते शब्िाः येन इवत व्याकरणम'' अथाभत ऐसा शास्त्र वजसम ें शब्िों की व्यत्पवत्त तथा विश्लेषण का ् ् ु ु वििचे न वकया जाए, िह व्याकरण ह।ै शब्ि रचना एि िाक्य रचना विना व्याकरण ज्ञान के सम्भि नही ह।ै ं 3.5.1 व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य वप्रय छात्रों! जसै ा वक आप जानते ह ैं वक वबना उद्दश्े य के सस्कत शक्षण की वकसी भी विधा की रचना नही ृ ं की गयी ह।ै इसी प्रकार व्याकरण वशक्षण के भी कछ उद्दश्े य होते ह,ैं जो वनम्नित ह-ैं ् ु i. सस्कत भाषा के ध्िवन तत्त्िों से छात्रों को पररवचत कराना। ृ ं ii. शब्ि तथा धातओ के विवभन्न रूपों ज्ञान प्रिान करना। ु ं iii. शद्ध िाक्यों का वनमाभण करने की योग्यता प्रिान करना। ु iv. छात्रों की सस्कत- रचना-शवक्त का विकास करना। ृ ं v. भाषा के गण- िोषों को समझने की क्षमता प्रिान करना। ु vi. भाषा के शद्ध लेखन तथा उछचारण
का अभ्यास कराना। ु vii. व्याकरण के वसद्धान्तों का ज्ञान कराना तथा भाषा के क्षेत्र म ें उनका प्रयोग वसखाना। viii. व्याकरण अध्ययन क्षेत्र म ें छात्रों क
ी तकभ शवक्त जागत करना। ृ ix. सस्कत गद्य-पद्य के अथभग्रहण की क्षमता प्रिान करना। ृ ं x. भाषा-ज्ञान सम्बन्धी कवठनाइयों को िर करना। ू व्याकरण शिक्षण की आवश्यकता- छात्रों! यह तो आप जान चके होग ें वक यह सत्य ह े वक भाषा के ु वनमाभण म ें व्याकरण का महत्िपण भ योगिान ह।ै व्याकरणवशक्षण की आिश्यकता को तीन भागों म ें ू िगचकत वकया जा सकता ह-ै ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 145 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 1. व्याकरण का शसद्धान्त- इस वसद्धान्त के अनसार- ु i. व्याकरण का वशक्षण मानवसक अनशासन प्रिान कर सकता ह।ै सत्रों को याि करने से बालक ु ू मानवसक अभ्यास तो करता ही ह ै उसकी स्मरण शवक्त, तकभ शवक्त, सक्ष्म वचन्तन शवक्त का ू विकास होता ह।ै ii. व्याकरण भाषा पर सम्पण भ अवधकार प्रिान करता ह।ै ू iii. व्याकरण वशक्षण से जो प्रवशक्षण वमलता ह ै उसका स्थानान्तरण जीिन के अन्य पक्षों म ें भी हो सकता ह।ै जो स्मवत की िवद्ध व्याकरण से होती ह ै उसका प्रयोग अन्य विषयों म ें भी हो सकता ह।ै ृ ृ 2. अव्याकत शसद्धान्त-इस वसद्धान्त के अनसार ृ ु i. यवि भाषा को मौवखक विवध या सरचनात्मक उपागम से पढ़ाया जाये और इसकी रचना का ं अभ्यास कराया जाए तो व्याकरण वशक्षण की आिश्यकता ही नही रहगे ी। अतः के िल शद्ध ु भाषा का बार-बार अभ्यास वकया जाना चावहए। ii. भाषा व्याकरण से पहले सीखी जाती ह।ै अतः उत्तरािस्था म ें व्याकरण वशक्षण के िल एक बौवद्धक विकास समझना चावहए। iii. व्याकरण बड़ा िरूह, नीरस और शष्ट्क विषय ह।ै सस्कत
के छात्रों को जब आरम्भ म ें ही वनयमों ृ ु ं ु और विभवक्त रूपों को कण्ठस्थ कराया जाता ह,ै तो ि े सस्कत पढ़ने म ें वनरूत्सावहत होते जाते ह।ैं ृ ं छोटी कक्षाओ म ें व्याकरण भाषा सीखने म ें एक व्यिधान बन जाता ह
।ै ं (3) समन्वयात्मक शसद्धान्त- इस वसद्धान्त म ें वनम्न विन्िओ पर ध्यान िने ा आिश्यक ह-ै ं ु i. आरम्भ से ही व्याकरण वसखाना नीरसतापण भ होगा। व्याकरण से पण भ भाषा वसखाना वनतान्त ू ू आिश्यक
ह।ै भाषा का आधारभत ज्ञान हए वबना उसके शद्ध प्रयोग का प्रश्न ही नहीं उठता। ु ू ु ii. सैद्धावन्तक व्याकरण के स्थान पर व्यािहाररक व्याकरण वसखाने पर बल िने ा चावहए। iii. मातभाषा म ें बहत सारी शब्िािली का प्रयोग ह
ोता ह,ै अतः मातभाषा से तलना कराते हए ु ु ृ ृ ु सस्कत का ज्ञान िने ा उपयोगी होगा। ृ ं 3.5.2 व्याकरण
शिक्षण की शवशधयााँ व्याकरण शिक्षण की शवशधयााँ- छात्रों! व्याकरणवशक्षण को सदृढ तरीके से पढ़ने के वलए अनेक ु विवधयों का प्रयोग वकया जाता ह।ै यथा- उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 146 ु सस्कत का शिक्षण
िास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 1. कण्ठस्थीकरण अथिा सत्र विवध द्वारा अष्टाध्यायी, वसद्धान्त कौमिी आवि व्याकरण की पस्तकों ू ु म ें विए गए सत्रों को अध्यापक कण्ठस्थ करिाने के बाि स्पष्ट करता ह।ै इस प्रकार सत्रम ें कण्ठस्त ू ू की गई सवक्षि विषयिस्त से छात्र उसम ें वनवहत बहत विस्तत ज्ञान सविधा से प्राि कर लेता ह।ै ु ृ ु ु ं 2. अव्याकशत अथवा भाषा ससगश शवशध- ससग भ भाषा-भावषयों के ससग भ से, सस्कत पस्तकों के ृ ृ ु ं ं ं ं वनरन्तर पढ़ते रहने से सस्कत िाक्यों का प्रयोग करते-करते बालक कछ समय बाि स्ितः ही ृ ु ं सस्कत भाषा सीख लेता ह।ै ृ ं 3. व्याख्यशवशध- प्राचीनकाल म ें पावणवन व्याकरण प्राथवमक स्तर से ही पढ़ाया जाता था। उस समय सत्रों के स्पष्टीकरण के वलए व्याख्या पद्धवत का अनसरण वकया जाता था। इसके अन्तगतभ ू ु सत्रों के स्पष्टीकरण के वलए उनकी व्याख्या प्रस्तत की जाती ह ै तथा उिाहरणों की सहायता से ू ु उसे पष्ट वकया जाता ह।ै ु 4. आगमन शवशध- इस विवध म ें ’उिाहरण से वनयम की ओर’ इस वशक्षण सत्र का अनसरण वकया ू ु जाता ह।ै इस विवध म ें पहले उिाहरण प्रस्तत वकए जाते ह ैं वर्र छात्रों को वनयम तक ले जाया ु जाता ह ै तथा अन्त म ें वनयम या सत्र को स्पष्ट करन े के बाि अभ्यास के प्रयोग द्वारा उसे पररपष्ट ू ु वकया जाता ह।ै 5. शनगमन शवशध- इस विवध के द्वारा पहले वनयम या सत्र प्रस्तत वकया जाता ह ै तत्पिात उिाहरणों ् ू ु की सहायता से उसे स्पष्ट वकया जाता ह।ै जसै े-
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‘इकोयणवच’
इस सत्र से यवि ह्रस्ि या िीघ भ ू इ,उ,ऋ,ल इन स्िरों के बाि कोई वभन्न स्िर आये तो क्रमशः य, ि, र, ल हो जाते ह।ैं जसै े- ृ ् ् ् ् यद्यवप- यवि+अवप,इ+अ=य ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 147 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं स्िागतम-स+आगतम,उ+आ=ि ् ् ु 6. पाठयपस्तक शवशध- पाठयपस्तक विवध से वशक्षण सरल ि प्रभािी हो जाता ह।ै बालक वनयम ें ् ् ु ु की सत्यता का प्रत्यक्षीकरण कर लेते ह।ैं इस विवध से
व्याकरण का स्थायी ज्ञान होता ह।ै इसमें रटने की कोई समस्या नही ह।ै अतः यह मनोिज्ञै ावनक विवध ह।ै 7. समवाय शवशध- इस विवध को सहयोग विवध बी करते ह।ैं इसके अन्तगभत व्याकरण की वशक्षा पथक से न िके र गद्य, पद्य, रचना, कथा, अनिाि आवि पढ़ाते समय आिस्यकतानसार व्याकरण ृ ् ु ु के शब्िों, सत्रों आवि को समझा विया जाता ह।ै अभ्यासकायभ के वलए पाठ के अन्त म ें विए गए ू प्रश्नों को करिाया जाता ह।ै व्याकरण
शिक्षण के सोपान- 1. सामान्य उद्दश्े य 2. विवशष्ट उद्दश्े य 3. सहायक सामग्री 4. विवशष्ट सामग्री 5. पिज्ञभ ान ू 6. प्रस्तािना 7. उद्दश्े यकथन 8. प्रस्ततीकरण- (i)सामान्यीकरण (ii) वनयमीकरण (iii) प्रयोग (iv) श्यामपट्ट साराश ु ं 9. पनरािवत्त प्रश्न/मकयाङकन प्रश्न ृ ् ु ू 10. कक्ष्याकायभ 11. गहकायभ ृ छात्रों! अब हम यह सीखेंग े वक इन सोपानों से कै से व्याकरण वशक्षण की पाठयोजना तैयार की जाती ह।ै इसके वलए उिाहरण स्िरूप एक पाठयोजना नीचे िशाभयी गयी है- 3.5.3 व्याकरण पाठ योजना विद्यालय का नामः िगःभ कक्षाः मध्यायः ु छात्ररसख्याः अिवधः ं कालाशः विनाङक ् ं विषयः प्रकरणः छात्रधायपक/छात्ररध्यावपका का नामः.......................................................... उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 148 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं
सामान्य उद्देश्य- i. छात्रों को सस्कत भाषा के ध्िवन तल से पररवचत कराना। ृ ं ii. शब्ि ें के विवभन्न रूपों का ज्ञान प्रिान करना। iii. शद्ध िाक्य रचना का ज्ञान प्रिान करना। ु iv. छात्रों क
ी तकभ शवक्त एि रचनात्मक िवत्त का विकास करना। ृ ं v. उनकी भाषा के गण-िोषों को परखने की क्षमता प्रिान करना, वजससे ि े शद्ध वलख सकें । ु ु vi. सैद्धावन्तक व्याकरण
का ज्ञान प्रिान करते हए वसद्धान्तों के प्रयोग करने का अिसर प्रिान करना। ु शवशिष्ट उद्देश्य- i. छात्रों के समस्त कौशलों का विकास यथा-श्रिण-पठन-कथन-लेखन कौशलों का विकास करना। ii. छात्रों क
ो स्िरसवन्ध के वद्वतीय भिे
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‘गण-सवन्ध’
अथाभत अ या आ के परे वकसी वभन्न स्िर इ, ई, ् ु उ, ऊ या ऋ के होने पर िोनों को वमलकर क्रमशः ए, ओ या अर हो जाता ह-ै इसका सम्यक ज्ञान ् ् एि अभ्यास कराना। ं सहायक सामग्री- लपेटश्यामर्लक, सके वतका, चॉक, माजभनी आवि। ं शवशिष्ट सामग्री- (1) गणसवन्ध का उिाहरण सवहत चाटभ। ु (2) गणसवन्ध का वििरणात्मक िणवभ चत्र। ु पवशज्ञान- ू 1. छात्र सवन्ध के सामान्य अथभ और महत्ि से पररवचत ह।ैं 2. छात्र स्िरसवन्ध का प्रथम भिे
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‘िीघ भ सवन्ध’
का अध्ययन और अभ्यास कर चके ह।ैं ु िशक्षताशधगम छात्रध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि प्रस्तावना [छात्राध्यापक कक्षा के 1. छात्रो म ें पाठ के छात्र विषय के वन्द्रत होते ह।ैं प्रवत रुवच जागत श्यामपट्ट पर वनम्नवलवखत ृ करना। पिों को वलखकर छात्रों स े प्रश्न करता ह।ै ] 2. छात्रों के पिज्ञभ ान ू शवद्यािय निीि सत्येन्द्र का निीनज्ञान स े सम्बन्ध स्थावपत प्र.1 प्रथमपि का उ. विद्या+आलय करना। सवन्धविछछेि करो? प्र.2 इन शब्िों में वकन- उ. आ+आस्िरों की। वकन िणों की सवन्ध हई ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 149 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ह?ै प्र.3 ये िोनों स्िर समान ह ैं उ. िोनों समान या असमान? प्र.4 निीश का सवन्ध उ. निी+ईश विछछेि करो? प्र.5 'सत्येन्द्र' इसका उ. सत्य+इन्द्र सवन्धविछछेि क्या ह?ै प्र.6 यहाँ कौनसी सवन्ध होगी? उ. समस्यात्मक प्रश्न छात्रों को उद्दश्े य का ज्ञान उद्दश्े यकथन िने ा। सवन्ध की जानकारी आज हम गणसवन्ध के ु िने ा। विषय म ें विस्तत रूप स े छात्र गणसवन्ध के विषय म ें ृ ु पढ़ेगें। जानन े के वलए उत्सक होते ु ह।ैं गण सवन्ध का ज्ञान होता ह।ै ु अिबोधन कौशल का प्रस्ततीकरण ु विकास छात्राध्यापक छात्रों स े प्रश्न छात्र श्यामपट्ट पर करता जायेगा और ध्यानपिभक िखे ते ह ैं और ू श्यामपट्ट पर वलखता प्रश्नों का उत्तर िते े ह-ैं जायेगा यथा- 1 सरेश पस्तक पढ़ता ह।ै ु ु 2 रमशे विद्यालय जाता ह।ै 3 अध्यापक अिधेश को आिशे िते ा ह।ै प्र.1 प्रथम िाक्य म ें उ. सरेश ु गणसवन्ध यक्त पर कौनसा ु ु ह?ै प्र.2 इसका सवन्धविछछेि उ. सर+ईश। ु करो? प्र.3 प्रथम पि का अवन्तम उ. 'अ' यह िण भ क्या ह?ै प्र.4 'अ+इ' इसके स्थान उ. 'ए' यह िण भ पर कौनसा िण भ आया ह?ै [छात्रध्यापक और भी उिाहरण श्यामपट्ट पर वलखता ह।ै ] उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 150 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधगम छात्रध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि ििे ेन्द्र=ििे +इन्द्र=अ+इ=ए महन्े द्र=महा+इन्द्र=आ+इ=ए भिनेश=भिन+ईश=अ+ई=ए ु ु अथेवत=अथ+इवत=अ+इ=ए सामान्यीकरण छात्राध्यापक इसी तरह के छात्र प्रस्तत उिाहरणों का ु उिाहरण श्यामपट्ट पर वलखकर ध्यानपिभक अिलोकन ू छात्रों से पछता ह।ै करते ह।ैं एि पररितभन के ू ं विषय में सोचते ह।ैं छात्र ध्यानपिभक वनयमों ू शनयमीकरण को समझते ह।ैं छात्राध्यापक वनयम करता ह ै वक यवि अ या आ के बाि इ या ई, उ या ऊ अथिा ऋ आय े तो उन िोनों स्िरों के मले स े क्रमशः ए, ओ और अर हो ् जाते ह।ै यथा- अ/आ+इ/ई=ए अ/आ+उ/ऊ=ओ अ/आ+ऋ=अर ् प्रयोग छात्राध्यापक प्रयोग के वलए श्यामपट्ट पर कछ सवन्धयक्त ु ु पि एि सवन्ध विछछेि यक्त पि ु ं वलखगे ा और छात्रों से प्रश्न करेगा। यथा- 1 नरेन्द्र 2.महशे 3. महोिया 4. ििे ावष 5. सयोिय ू ं सशन्ध करो- 1.सि+भ ईश 2. पर+उपकार 3. राजा+ऋवष 4. ग्रीष्ट्म+ऋत ु 5. तीथ+भ उिकम उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 151 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िशक्षताशधगम छात्रध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि श्यामपट्ट साराि ं छात्राध्यापक श्यामपट्ट पर सभी छात्र वनधाभररत वलखे सभी प्रयोगों एि वनयमों का परीक्षण करते ं वनयमों का साराश छात्रों को ह।ैं ं बताता ह।ै पनरावशि/मल्याङकन प्रश्न ृ ् ु ू अधीतज्ञान का दृढ़ीकरण प्र.1 'लोके छछा' इसका छात्रों म ें पररपक्िता का सवन्धविछछेि करो? लोक +इछछा आना। प्र.2 'महवष'भ इसका सवन्धविछछेि करो? महा+ऋवष प्र.3 'महोिवध' इसका सवन्धविछछेि करो? महा+ऊिवध प्र.4 अ/आ+ऋ िणों के मेलन से कौनसा शब्ि 'अर' यह। ् बनेगा? प्र.5 'कनक+इवष्ट' के मले न से कौनसा शब्ि बनेगा? उ. 'कनके वष्ट' यह। कक्ष्याकायश आभ्यासप्रिवत्त का विकास गज+इन्द्र, अथ+इिानीम, ृ और अवधगम ज्ञान का िगाभ+ईश इनका समस्तपि छात्र अभ्यासकाय भ विचार छात्रों की अभ्यास प्रिवत्त ृ ु परीक्षण बनाओ। करके करते ह।ैं विकवसत होती ह।ै गहकायश ृ 1 अपनी पाठयपस्तक के ् ु स्िाध्याय प्रिवत्त का प्रथम गद्य पाठ से इस सवन्ध अिकाश का सिपयोग ृ ु विकास अिकाश का के िस उिाहरण छावटए एि सभी छात्र गहकायभ करते ृ ं ं सिपयोग उनका सवन्धविछछेि कीवजए। ह ैं तथा अिकाश का ु 2 गण सवन्ध के वनयमों को सिपयोग करते ह।ैं ु ु कण्ठस्थ करके आइए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 152 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.6 नाटक वशक्षण वप्रय छात्रों सस्कत वशक्षण की विविध विधाओ म ें से गद्य-पद्य- व्याकरण वशक्षण का ज्ञान अब तक आप ृ ं ं प्राि कर चकें ह।ैं अब इस खण्ड म ें हम नाटकवशक्षण के बारे म ें चचाभ करेग।ें िस्ततः रसास्िािन का मख्य ु ु ु साधन ह ै नाटक। नाटक म ें अनकताभ नट म ें मख्य पात्र का समानावधकरण करके सामावजक रसास्िािन ु ु करते ह ैं और नट स्िय भी स्िय म ें पात्रविशषे (वजसकी भवमका अिा करत े ह)ै का आरोप करके रसानभि ू ु ं ं करता ह।ै
इस प्रकार कथोपकथन के द्वारा नाटक का प्रारम्भ माना जाता ह।ै कहा जाता ह ै वक ब्रह्मा न े ऋग्ििे से सम्बाि, सामििे से गान, यजििे से अवभनय, अथििभ िे से ु रसग्रहण करके पचाचमििे के रूप म ें न
ाटयििे की रचना की। धनचाजय ने िशरूपक नामक ग्रन्थ म ें नाटक ् की पररभाषा इस प्रकार िी ह-ै ''अवस्थानकशतनाशटय रप दृश्यतयोच्यते। ृ ् ु ं ं रपक तत्समारोपात ििधैव रसाश्रयम।।'' ् ् ं अथाभत अिस्था का अनकरण नाटय कहलाता ह।ै काव्य म ें िवणतभ (नायक की) धीरोिात्त आवि ् ् ु अिस्थाओ का अनकरण अथाभत चार प्रकार के अवभनय (अनकायभ के साथ) एकरूपता प्राि कर लेना ही ् ु ु ं नाटय ह।ै दृश्य
होने के कारण यह 'नाटय' भी कहलाता ह।ै भाि यह ह े वक वजस प्रकार दृश्य (चाक्षष ज्ञान ् ् ं ु का विषय )होने के कारण नील इत्यावि रूप कहलाते ह ैं उसी प्रकार दृश्य होन े के कारण नाटय भी 'रूप' ् कहलाता ह।ै आरोप वकया जाने के कारण िह (तत) नाटय रूपक कहलाता ह।ै वजस प्रकार मख में चन्द्रमा ् ् ु का आरोप वकया जाने के कारण 'मख-चन्द्र' म ें रूपक (अलङकार) कहलाता ह,ै इसी प्रकार नट म ें राम ् ु आवि की अिस्था (रूप) का आरोप होने के कारण नाटय को भी 'रूपक' कहते ह।ैं इस प्रकार रस पर ् आवश्रत होने िाला यह रूपक िस प्रकार क
े होते ह ैं वजनके नामक नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समिकार, वडम, ईहामग, िीथी, अङक, प्रहसन आवि ह।ैं ृ ् नाटक शब्ि की व्यत्पवत्त 'नट' धात से हई ह ै वजसका अथभ ह-ै अवभनय, अनकरण। भरतमवन ने ु ् ु ु ु ु नाटयशास्त्र म ें नाटक का उद्दश्े य इस प्रकार बताया ह-ै ् ''उिमाधममध्याना नराणा कमशसश्रयम। ् ं ं ं शितोपिेिजनन धशतक्रीडासखाशिकत।। ृ ृ ् ु ं िःखाताशना श्रमाताशना िोकाताशना तपशस्वनाम। ् ं ं ं ु शवश्राशन्तजनने कािे नाटयमेति भशवष्यशत।। ् ् िोकोपिेिजनन नाटयमेति भशवष्यशत।।'' ् ं ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 153 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भरतमवन जी को नाटक के क्षत्रे म ें प्रमख स्थान प्राि ह।ै उन्होंने बताया सभी श्रेवणयों के मनष्ट्यों के वलए ु ु ु वहतकारी उपिशे िने े म ें नाटक सहायक होगा। िःखी, श्रमी, तपस्िी लोगों को आराम विलाने म ें अरथात ु मनोरचाजन करने म ें नाटक सहायक होगा। धम भ को बढ़ािा िने े, यश प्रसाररत करने ि व्यािहाररक ज्ञान प्रिान करने म ें नाटक उपकारी होगा। इसवलए छात्रों के पाठयक्रम म ें नाटकों का सयोजन भी वकया जाता ह ै और उन नाटकों का वशक्षण आपको ् ं कै से करना ह ै इसके वलए कछ उद्दश्े य वनधाभररत वकये गये ह-ै ु 3.6.1 नाटक शिक्षण के उद्देश्य i. छात्रों म ें उवचत आरोह- अिरोह तथा उवचतभािभङवगमा के साथ नाटक अवभनय की योग्यता ् विकवसत करना। ii. उन्ह ें अवभनय कला का पररचय प्रिान करना। iii.
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छात्रों को भािावभव्यवक्त के अिसर प्रिान करना। iv. छात्रों को मानिीय स्िभाि ि मानिचररत्र से पररवचत कराना। v. छात्रों के भाषा ज्ञान म ें िवद्ध करना ृ vi. उन्ह ें स्िय की प्रवतभा प्रिवशतभ करने के अिसर प्रिान करना ं vii. छात्रों क
ो अनकरण करने के अिसर प्रिान करना ु नाटक वशक्षण के महत्त्ि के बारे म े चचाभ करें तो वप्रय छात्र तो नाटयशास्त्र का यह श्लोक याि आता ह-ै ् न तच्छास्त्र न तशत्छल्प न सा शवद्या न सा किा। ं ं न स योगो न तत्कमश नाटयेशस्मन यन्नदृश्यते।। (1/116) ् ् अथाभत ऐसा कोई शास्त्र, वशकप, विद्या, कला योग या कम भ नहीं ह ै जो नाटक म ें विद्यमान न हो/ इसवलए नाटक वशक्षण अवनिायभ ह।ै नाटक वशक्षण द्वारा छात्रों का शारीररक-मानवसक-सामावजक-चाररवत्रक-नैवतक विकास होता ह।ै इसके द्वारा छात्र वकसी भी घटना को सरलता से समझ सकते ह।ैं मनोिज्ञै ावनक दृवष्ट से अन्यविधाओ की अपेक्षा नाटक वशक्षण अत्यन्त महत्िपण भ ह,ै क्योंवक ज्ञानेवन्द्रयों की सवक्रयता के कारण ू ं इसका प्रभाि मानसपटल पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता ह।ै इससे छात्र मौवखकावभव्यवक्त म े सक्षम होते ह।ैं नाटक शिक्षण की शविेषताए ाँ i. नाटकों म ें लोकवहत िा लोकनरचाजन की भािना अवधक होते ह।ै ु ii. नाटक को गद्य-पद्य के वमवश्रत रूप म ें वलखा जा सकता ह।ै iii. नाटक म ें ककपना ि िास्तविकता िोनों को स्थान प्राि होता ह।ै iv. नाटक म ें मानिजीिन की विवभन्न अिस्थाओ का िणनभ होता ह।ै ं v. नाटक वभन्नरूवच िाले लोगों की सन्तवष्ट का भी एकमात्र साधन ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 154 ु सस्कत
का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं vi. इससे मानवसक शावन्त वमलती ह।ै vii. नाटक म ें कथािस्त अथिा इवतित्त प्रधान होता ह।ै ृ ु 3.6.2 हम नाटक शिक्षण की शवशधया ं नाटक वशक्षण के सामान्य स्िरूप, उद्दश्े य, महत्त्ि, विशेषत
ाओ को जानने के बाि अब हम नाटक वशक्षण ं की विवधयों को जानेग।ें नाटक वशक्षण की प्रमख विवधयाँ ह-ैं ु (i) आिशनभ ाटयविवध 2. व्याख्याविवध ् (ii) रङगमचाचावभनयविवध 4. कक्षाऽवभनयविवध ् आििशनाटयशवशध म ें अध्यापक स्िय नाटक के सभी पात्रों का िावचक अवभनय करता ह।ै अध्यापक ् ं नाटक के सिािों को इस प्रकार से पढ़ता ह ै वक प्रत्येक पात्र म ें छात्रों की रूवच जाग्रत हो। अध्यापक का ं स्िर पात्रानकल एि भािानकल होता ह।ै यह विवध प्राथवमक स्तर के वलए उपयक्त होती ह ै क्योंवक नाटक ु ू ु ू ु ं बोधगम्य ि आकषकभ होते ह।ैं आिशनभ ाटयविवध म ें नाटके तत्त्िों की व्याख्या के वलए अध्यापक को पण भ समय नहीं वमल पाता ् ू ह ै और छात्र मकश्रोता के समान वनवष्ट्क्रय होते ह।ैं यह इस विवध का सबसे बड़ा िोष ह।ै ू
व्याख्या शवशध म ें अध्यापक के द्वारा नाटक की कथा िस्त-पात्र-कथोपकथन-भाषा-शलै ी इत्यावि की ु व्याख्या की जाती ह।ैं व्याख्या कथन ि प्रश्नोत्तर िोनों रूपों म ें की जाती ह।ै यह
विवध उछचकक्षाओ के ं वलए उपयोगी ह।ै इसम ें छात्र प्रायः वनवष्ट्क्रय रहते ह,ैं यह इस विवध का भी सबसे बड़ा िोष ह।ै रङगमञ्चाशभनय शवशध म ें छात्र सम्पण भ नाटक को रङगमचाच पर प्रस्तत करते ह।ैं वजस उद्दश्े य की प्रावि ् ् ू ु के वलए नाटक वलखा जाता ह।ै उनकी प्रावि पणतभ ः इस विवध म ें की जा सकती ह।ै इस विवध म ें छात्र ू रङगमचाचसज्जा, नाटकसचाचालन आवि के अिसर प्राि करते ह।ैं इस विवध म ें समय-धन ि शवक्त तीनों ् की आिश्यकता होती ह।ै कक्षा अशभनय शवशध म ें कक्षा म ें ही अध्यापक छात्रों को पात्र वितरण करता ह ै और छात्र स्ि-स्ि पात्रानसार नाटक म ें िावचकावभनय करते ह।ैं इस विवध से नाटकवशक्षण रुवचकर होती ह।ै िस्ततः यह ु ु विवध रङगमचाचावभनयविवध की बराबर प्रभािशाली नहीं होती ह ै क्योंवक नाटक िास्तविक रूप से प्रस्तत ् ु नहीं वकया जाता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 155 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सभी विवधयों कछ गण ह ैं एि कछ िोष ह,ैं ऐसी पररवस्थवत म ें छात्रों सभी विवधयों का समिाय करके यवि ु ु ु ं नाटकवशक्षण वकया जाये तो हम नाटकवशक्षण के सभी उद्दश्े यों को प्राि कर सके ग।ें आधवनक विवध से पढ़ाने के वलए नाटक वशक्षण के सोपानों को जानना जरूरी ह।ै ु i. सामान्य उद्दश्े य ii. विवशष्ट उद्दश्े य iii. सहायक सामग्री iv. विवशष्ट सामग्री v. पिज्ञभ ान ू vi. प्रस्तािना vii. उद्दश्े यकथन viii. आिशिभ ाचन ix. अनिाचन ु x. भािविश्लेषणात्मक प्रश्न xi. सम्पण भ नाटक का अवभनय ू xii. गहकायभ ृ अब हम नाटक की पाठ योजना के उिाहरणद्वारा नाटक पाठयोजना का वनमाभण करना सीखेगें। 3.6.3 नाटक पाठ योजना छात्राध्यापक/छात्रध्यावपका का नाम
सामान्य उद्देश्य- i. छात्रों को उवचत आरोह-अिरोह तथा उवचत भािभवगमा के साथ सिाि करने का ज्ञान िने ा। ं ं ii. छात्रों को अवभनय की कला का ज्ञान िने ा। iii. विविध पररवस्थवतयों के अनकल मानिीय व्यिहार से छात्रों को पररवचत कराना। ु ू iv. मानि-प्रकवत एि मानि-चररत्र से उन्ह ें पररवचत होने का अिसर िने ा। ृ ं v. छात्रों क
े भाषा-ज्ञान की िवद्ध करना। ृ vi.
छात्रों की वचन्तन, प्रश्नोत्तर, िाताभलाप, भाषण, कथोपकथन आवि अिसरों पर प्रभािोत्पािक ढग ं से अपने भािों को व्यक्त करने की कला का ज्ञान िने ा। शवशिष्ट उद्देश्य- i. 'श्रिण-पठन-कथन-लेखन' छात्रों के समस्त कौशलों का विकास करना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 156 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ii. छात्रों क
ो पन्ना धात्री के चररत्र से अिगत कराते हए साहस, शरता और स्िावमभवक्त के भािों से ु ू ओतप्रोत करना। iii. उन्ह ें िशे भवक्त के वलए आत्मोत्सग भ करने की प्रेरणा िने ा। iv. उन्ह ें क्रोध एि करुणा के प्रसगों म ें सिाि करने का ढग बताना। ं ं ं ं सहायक सामग्री- लेपटश्यामर्लक, सके वतका, चॉक, माजभनी आवि। ं शवशिष्ट सामग्री- चेतक पर आरूढ़ महाराणा प्रताप का एक वचत्र एि अन्य कथोपयोगी सामान्य ं उपकरण। पवशज्ञान- छात्र भारतीय इवतहार के ख्यातनामा िशे भक्तों और स्िावमभक्तों की कथाओ से पररवचत ह।ैं ू ं िशक्षताशधगम छात्रध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि [छात्राध्यापक 1. छात्रों में पाठ के छात्र सािधानीपिभक कथा छात्र विषय के वन्द्रत होते ह।ैं ू प्रवत रुवच जागत करना। महाराणाप्रताप और चते क को सनते ह।ैं ृ ु 2. छात्रों के पण भ का वचत्र विखाते हए उनकी ु ू कथा सनायगे ा]... ु ज्ञान का निीन ज्ञान स े ''मगल सम्राट अकबर के ु सम्बन्ध स्थावपत करना। अवधकार से.........िास्ति में ऐसे स्िावमभक्त िन्िनीय ह।ैं '' प्र.1 तम वकसी स्िावमभक्त ु मनष्ट्य का नाम बताओ? उ. बीरबल आवि। ु प्र.2 वकसी स्िावमभक्त नारी का नाम बताओ? प्र.3 पन्नाधाय के विषय म ें उ. पन्नाधाय आवि। और आप क्या जानते हो? उद्देश्यकथन आज हम पन्नाधाय के समस्यात्मक प्रश्न विषय म ें 'स्िावमभक्त पन्ना पाठ का अिबोधन कराना धात्री' इस प्रकरण को छात्रों को उद्दश्े य का ज्ञान नाटक के रूप में पढ़ेग।ें छात्र विवशष्टज्ञानप्रावि के होता ह।ै वलए उत्सक होते ह।ैं ु आििशवाचन छात्राध्यापक द्वारा सम्पण भ ू नाटक का उवचत आरोह- उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 157 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं श्रिण-िाचन कौशल का अिरोह यक्त स्िर एि छात्र सम्पण भ नाटक को छात्रों को िोनों कौशलों की ु ू ं विकास समवचत भाि-भवगमा के ध्यानपिभक सनते ह।ैं जानकारी प्राि होती ह।ै ु ू ु ं साथ िाचन वकया जायेगा अनवाचन ु कवतपय छात्रों द्वारा छात्राध्यापक पथक-पथक ृ ृ ् ् पात्र िके र नाटक का छात्र पात्रानसार अनिाचन ु ु पठन कौशल का विकास अनिाचन कराता ह।ै करते ह।ैं ु िशक्षताशधगम छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि बोध प्रश्न अधीतज्ञान का अधीतज्ञान परीक्षण परीक्षण विषय के 1. पन्ना वकसका लालन-पालन करती ह?ै छात्र प्रश्नो का प्रवत ध्यानाकषभण 2. उिय के स्थान पर वकसका बवलिान कर विया उत्तर िते े ह।ैं गया? नतन पिों का 3. बनिीर उिय की हत्या क्यों करना चाहता था? ू काशठन्य शनवारण या व्याख्या पररचय [छात्राध्यापक वनम्नवलवखत पिों का अथभ पछेगा तथा ू व्याख्या करेगा] छात्र अपनी पि अथश प्रणािी उत्तरपवस्तका म ें ु अधीतज्ञान का कवठन शब्िों वकमद्यजातमम क्या हो वकम+अद्यजातम ् ् ् दृढ़ीकरण का अथभ वलखते गया (सवन्धविछछेि) ह।ैं आज त्ियभताम शीघ्रता शीघ्रता करु ् ु कीवजए (पयाभयकथन) रक्षा रक्षोपायः का रक्षा+उपाय(सन्धविछछेि) उपाय अथभकथन द्वारा वनविशभ बताओ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 158 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भावशवश्लेषण एव चररत्र-शचत्रण सम्बनधी प्रश्न ं छात्रों के ज्ञान म ें अधीतज्ञान का (1) रामल कौन थी? छात्र सभी प्रश्नों पररपक्िता। दृढ़ीकरण (2) उसने पन्नाधाय को क्या सचना िी? का उत्तर ू (3) पन्ना न े क्या यवक्त सोच ली थी? ध्यानपिभक िते े ु ू (4) िह उिय के स्थान पर वकसको सलायेगी। ह।ैं ु (5) पन्नाधाय का हृिय अपने वनणयभ के प्रवत कै सा था? (6) बनिीर वकस रूप में पन्ना के समीप आया? (7) बनिीर कै से स्िभाि का व्यवक्त था? (8) वकसके प्रवत घणा का भाि उत्पन्न होता ह?ै ृ िशक्षताशधगम छात्राध्यापक शक्रया छात्रशक्रया शिक्षणप्रशतफि सम्पणश नाटक का ू अशभनय िावचक-आवगक कौशलों छात्र उत्सक्ता पिभक नाटक िावचका के साथ आवगक ु ू ं ं का विकास नाटक के पात्रानसार िावचक का अवभनय करते ह।ैं कौशल की प्रावि होती ह।ै ु अवभनयपिभक छात्रों द्वारा ू सम्पण भ नाटक का अवभनय ू कक्षा में वकया जायेगा। गहकायश ृ पन्ना एि बनिीर के चररत्र छात्र गहकाय भ घर पर करते अपनी रचना कौशल का ृ ं स्िाध्याय प्रिवत्त का विकास की विशेषताएँ बताते हए ह।ै और समय का सिपयोग विकास होता ह।ै ृ ु ु समय का सिपयोग िोनों के चररत्र की रचना करते ह।ैं ु कीवजए। 3.7 सािांश इस इकाई को पढने के बाि आप यह जान चकें ह ैं वक सस्कत भाषा तथा सस्कत सावहत्य की विवभन्न ृ ृ ु ं ं विधाओ का वशक्षण कै से वकया जाता ह।ै वकस विधा म ें वकन-वकन विवधयों
के माध्यम से अध्यापन वकया ं जा सकता ह।ै प्रत्येक विधा वशक्षण के उद्दश्े य क्या हैं? प्रत्येक विधा का स्िरूप क्या है? और सबसे महत्िपण भ बात प्रत्येक विधा की पाठयोजना कै से बनानी ह।ै ू छात्रों! आप प्रत्येक विधा की पाठयोजना म ें अन्तभतभ सोपानों को इस इकाई के माध्यम स
े समझ चके ह ै ू ु और उिाहरण के तौर पर एक-एक आिश भ पाठयोजना का प्रवतरूप भी पढ़ चके ह।ैं अब आपको ु वशक्षणाभ्यास अिवध में विधा अनरूप सोपानों को याि रखते हये पाठयोजनाओ का वनमाभण करना ह।ै ु ु ं प्रत्येक विधा के महत्त्िपण भ अशों का अध्ययन कर उनके सक्ष्म तत्त्िों से अिगत होना ह।ै ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 159 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 3.8 शब्दावली 1. विधा-प्रकार 2. ित्त-छन्ि ृ 3. कौशल-चार भाषायी कौशल ह ैं (श्रिण-भाषण-पठन-लेखन) 4. स्मतम- माना गया ह।ै जाना जाता ह।ै ृ ् 5. अनकवत- अनकरण करना ृ ु ु 6. उवज्झत- मक्त/रवहत ु 7. आगमन- उिाहरण से सत्र की ओर ू 8. वनगमन- वनयम से उिाहरण की ओर अभ्यास प्रश्न 1. सही उत्तर का चयन कीवजए- (i) छन्िोबद्ध_______। (गद्यम/पद्यम) ् ् (ii) ित्तबन्धोवज्झत_______। (पद्यम/गद्यम) ृ ् ् ं (iii) मख_______स्मतम। (नाटकम/नाटकरणम) ृ ् ् ् ु ं (iv) अिस्थानकवतः_______। (गद्यम/नाटकम) ृ ् ् ु 2. समले न कीवजए ु 1. गद्य वशक्षण A. सस्िर िाचन 2. पद्य वशक्षण B. आगमन विवध 3. व्याकरण वशक्षण C. खण्डान्िय विवध 4. नाटक वशक्षण D. मौन िाचन 3. भरतमवन जी वकस विधा से सम्बवन्धत ह ै ु a. गद्य वशक्षणम ् b. पद्य वशक्षणम ् c. नाटक वशक्षणम ् d. व्याकरण वशक्षणम ् 4. अनकरण िाचन वकस सोपान के बाि आता ह ै ु a. उद्दश्े य कथन b. आिशभ िाचन c. प्रस्तािना d. गहकायभ ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 160 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 5. पद्यवशक्षण म ें वकस सोपान का प्रयोग नहीं वकया जाता ह ै a. मौनिाचन b. गहकायभ ृ c. अशवद्धसशोधन ु ं d. विवशष्ट उद्दश्े य 6. पचमििे वकसको माना गया ह ै ं a. सावहत्य b. रस c. नाटक d. ध्िवन 3.9 संदभ भग्रंथ सची ू 1. पाण्डेय, डॉ रामकल, (2007) सस्कत वशक्षण, अग्रिाल पवब्लके शन्स, आगरा। ृ ं 2. सर्ाया, डॉ. रघनाथ,(1997) सस्कत वशक्षण, हररयाणा सावहत्य अकािमी, पचकला। ृ ु ू ं ं 3. शमाभ, डॉ. नन्िराम, (2007) सस्कत वशक्षण, सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन, जयपर ृ ु ं 4. शमाभ रीटा, जनै अवमता (2005) सस्कत वशक्षण, आविष्ट्कार पवब्लशसभ, वडस्रीब्यटसभ, जयपर ृ ू ु ं 5. ित्स,डॉ बी एल, (2009) सस्कत वशक्षण, विनोि पस्तक मवन्िर, आगरा ृ ु ं 6. शमाभ, डॉ. च. ल. ना, डॉ र्लेहवसह (1996) सस्कतवशक्षणम, आवित्यप्रकाशनम, जयपरम। ृ ् ् ् ु ं ं 7. वमत्तल, डॉ. (श्रीमती) सन्तोष, (2006)सस्कतवशक्षणम सस्कतवशक्षणम, निचेतना ृ ृ ् ् ं ं पवब्लके शन्स, जयपरम। ् ु 8. झा, डॉ. उियशकर (2011) सस्कतवशक्षणम चौखम्बा सरभारती प्रकाशन, िाराणसी ृ ् ु ं ं 9. एन., डॉ. लता, (2007) सावहत्यवशक्षणविद्ययः सस्कतवशक्षणम सावष्ट्रयसस्कतविद्यापीठम, ृ ृ ् ् ् ं ं वतरुपवतः। 10. वमश्र, प्रो. लोकमान्य, (2013) सावहत्यवशक्षणविवधः, मगाक्षी प्रकाशनम, लखनऊ ृ ् 3.10 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. पद्य वशक्षण की विवधयों का िणनभ कीवजए। 2. नाटक वशक्षण की विवधयों का िणनभ कीवजए। 3. गद्य वशक्षण के उद्दश्े य वलवखए। 4. नाटक वशक्षण की विवधयों का उकलेख कीवजए। 5. सस्कत की इकाई म ें पवठत प्रत्येक विधा पर एक-एक पाठयोजना बनाइए। ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 161 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं इकाई 4- रिक्षण में सूचना एवं तकनीकी का उपयोग- ृ संस्कत भाषा 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 सस्कत भाषा वशक्षण एि कम्प्यटर ृ ु ं ं 4.3.1 कम्प्यटर तथा वशक्षण प्रवक्रया ु 4.3.2 कम्प्यटर की उपयोवगता ु 4.3.3 कम्प्यटर के उपयोग के क्षेत्र ु 4.3.4 कम्प्यटर के लाभ ु 4.3.5 कम्प्यटर की साक्षरता एि सस्कत वशक्षण में कम्प्यटर ृ ु ु ं ं 4.4 सस्कत भाषा वशक्षण एि इटेरनेट ृ ं ं ं 4.4.1 इटेरनेट का अवभप्राय ं 4.4.2 वशक्षा में इटेरनेट का योगिान एि सस्कत वशक्षण में इटेरनेट की भवमका ृ ू ं ं ं ं 4.5 साराश ं 4.6 शब्िािली 4.7 सन्िभभ ग्रन्थ सची ू 4.8 वनबधात्मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्तावना वशक्षा का एक व्यापक अध्ययन क्षेत्र ह।ै इसका सम्बन्ध मख्य तीन प्रवक्रयाओ-वशक्षण, प्रवशक्षण तथा ु ं अनिशे न से ह।ै वशक्षा की विषयिस्त इन प्रवक्रयाओ अन्तःविषयक आयाम का उपयोग करके सही उत्तर ु ु ं ज्ञात करने का प्रयास करती ह।ैं इसका ही पररणाम वशखा के विवभन्न आधार ह ैं - िाशवभ नक सामावजक, मनोिैज्ञावनक आवि। वशक्षा के आधार उपरोक्त मल प्रश्नों का उत्तर िने े म ें सहायक होते ह।ैं यह उत्तर ही वशक्षा विषय का अध्ययन क्षेत्र ह ै ू तथा विषयिस्त ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 162 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वशक्षा की आज की आिश्यकता ह ै वक इसकी प्रवक्रयाओ को प्रभािशाली एि िक्ष बनाया जा सकता ह।ै ं ं िक्षता का अथभ होता ह-ै वक वशक्षा प्रवक्रया प्रभािशाली होने के साथ समय, धन एि ऊजाभ की दृवष्ट से ं वमतव्ययी हो। आधवनक यग तकनीकी के विकास एि क्रावन्त का यग ह।ै प्रवतविन नई-नई तकनीवकयों ु ु ु ं तथा माध्यमों का विकास वकया जा रहा ह।ै माध्यमों के विकास ने विश्व की भौवतक िरी को कम कर विया ू अथिा विश्व को बहत विश्व को बहत छोटा कर विया ह।ै इसम ें िहि तकनीकी प्रिवत्तयों का विशषे ु ु ृ ृ ् योगिान ह।ै शिक्षण का अशभप्राय वशक्षण एक सामावजक प्रवक्रया ह ै इसवलए वशक्षण की व्यापक पररभाषा िने ा कवठन ह।ै जो भी पररभाषाएँ िी गई ह,ैं ि े वकसी न वकसी सन्िभ भ म े िी गई ह।ै यहाँ वशक्षण की पररभाषाओ को वशक्षण वक्रयाओ तथा ं ं अनभि के सन्िभ भ म ें विया जा रहा ह।ै वशक्षण म ें वशक्षणशास्त्र के उपयोग तथा वशक्षक के िो प्रमख ु ु योगिानों को सवम्मवलत वकया जाता ह।ै वशक्षक के िो योगिान इस प्रकार ह-ैं 1. अवधगम का स्िरूप- इसम ें छात्र के कायों एि वक्रयाओ को व्यक्त वकया जाता ह ै वशक्षक इनका ं ं सजन करता ह।ै ृ 2. मध्यस्थता - इसम ें छात्रें के अनभिों सम्बन्धी वशक्षक की मध्यस्थता की साथभकता होती ह।ै (प-स- ृ ु ं 337, वशक्षा के तकनीकी आधार) सचना एव तकनीकी ू ं प्रित्तों के विश्ल ेषण म ें विवशष्ट उद्दश्े यों की प्रावि के वलए वकसी मशीन या हाडभिये र उपकरण अथिा कम्प्यटर द्वारा विश् लेषण करके जो सम्प्रेषण वकया जाता ह,ै उसे सचना तकनीकी कहते ह।ैं ू ू 4.2 उद्दश्े य सस्कत भाषा-वशक्षण के व्यािहाररक उद्दश्े य वनम्नवलवखत ह-ैं ृ ं 1. भावाशभव्यशि करना – मानि की भािावभव्यवक्त का मल आधार भाषा ह।ै भाषा वशक्षण में ू भािावभव्यवक्त वबककल व्यािहाररक विषय ह ै इसवलए व्यािहाररक दृवष्ट से इस तत्ि की उपेक्षा ु नहीं की जा सकती ह।ै इसकी सन्तवष्ट हते छात्रों म ें सरल िाक्य वनमाभण, शद्ध गठन, शब्ि प्रयोग, ु ु ु प्रासवगकता का ध्यान, प्रिावहकता का समािशे , विषयिस्त क्रमबद्धता एि अभीष्ट सामग्री का ु ं ं प्रस्ततीकरण व्यिहारगत पररितभन अपेवक्षत होते ह।ैं इसवलए सस्कत वशक्षण से छात्रों के मन म ें ृ ु ं सस्कत के प्रवत भािावभव्यवक्त व्याि होती ह।ै ृ ं 2. मानव जीवन मल्यों की प्राशत – सस्कत भाषा-वशक्षण के माध्यम से अनेक जीिन मकयों की ृ ू ू ं प्रावि हते अपेक्षा की जाती ह।ै अवनिायभ सस्कत वशक्षण के माध्यम से भी छात्र मानि जीिन ृ ु ं मकयों को ग्रहरण करता ह।ै वजनके अन्तगतभ छात्र सभ्यता एि सस्कवत से सम्बवन्धत, समाज से ृ ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 163 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं सम्बवन्धत राष्ट्रभािना से सम्बवन्धत निीन मकयों से समािवे शत होता ह।ै छात्र इन मानि जीिन ू मकयों को ग्रहण करके अपने जीिन के व्यिहार के रूप म ें पररवणत कर सकता ह।ै ू 3. साशहत्य के प्रशत सवेिनिीि अशभुशच – सस्कत वशक्षण के माध्यम से छात्र के मन म ें भाषा ृ ं ं के प्रवत रुवच भािना जाग्रत होती ह।ै िह विषयिस्त की विशेषता के आधार पर सावहत्य म ें रुवच ु उत्पन्न करता ह।ै अपनी अवभरुवच के आधार पर ही व्यािहाररक ज्ञान की िवद्ध करता ह ै और ृ समज के प्रवत सििे नशील होता ह ै क्योंवक इसी कारण से ही विद्याथच म ें सद्ववत्तयों का विकास ं ृ होता ह,ै उसी के अन्तगतभ वक्रयाकलाप करता ह ै तथा समाज के िातािरण के अनसार ु सििे नशील या सहृियी बनता ह।ै ं 4. पाठयेिर सहगामी प्रवशिया और अशभवशिया – अवनिायभ सस्कत भाषा वशक्षण विवध के ृ ् ृ ृ ं ं ं कारण सहगामी पाठयेतर प्रिवत्तयों एि अवभिवत्तयों का विशषे महत्ि व्यािहाररक दृवष्टकोण से ृ ृ ् ं मकयाकन का सापेक्षी कहा जा सकता ह।ै इन विचारधाराओ एि अवभिवत्तयों के अनसार छात्रों ृ ू ु ं ं ं म ें मौवखक िाताभलाप, सिाि, प्रश्नोत्तर, िाि-वििाि, भाषण, प्रिचन आवि का व्यािहाररक ं उपयोग आिश्यक ह।ै 5. िद्ध वाचन एव िद्ध िेखन – अवनिायभ सस्कत भाषा वशक्षण के माध्यम से का प्रथम उद्दश्े य ृ ु ु ं ं यह ह ै वक शद्ध पढ़ा जाये क्योंवक जसै ा पढ़ेगा िैसा ही वलखेगा। यवि छात्र का उछचारण अशद्ध ह ै ु ु तो अशद्ध ही वलखगे ा। पढ़ने वलखने के कायभ म ें व्यािहाररक दृवष्ट स े धैय,भ मनोयोग एि ु ं ग्रहणशीलता की आिश्यकता ह,ै क्योंवक पठन ि लेखन िोनों का ही व्यिहार म ें महत्ि होता ह।ै इस प्रकार विवभन्न स्तरों पर सस्कत वशक्षण के विवभन्न उद्दश्े य ह।ैं सस्कत भारत की धरोहर ह ै इसकी रक्षा ृ ृ ं ं करना, सस्कत सावहत्य की रक्षा करना हमारा उद्दश्े य ह।ै सस्कत के प्रवत बालकों म ें रुवच उत्पन्न करना, ृ ृ ं ं सावहत्यकारों ि लेखकों के प्रवत सम्मान ि आिर भाि उत्पन्न करना, सस्कत सावहत्य के प्रवत ृ ं अनसधानात्मक दृवष्टकोण अपनाना सस्कत म ें पत्र, वनबन्ध, सिाि प्रश्नोत्तर लेखन की योग्यता का विकास ृ ु ं ं ं करना आवि। सस्कत भाषा के विद्यावथभयों से यह अपेक्षा की जाती ह ै वक ि े इस भाषा से पररवचत होकर ृ ं सस्कत म ें शद्ध वलवखत ि मौवखक अवभव्यवक्त म ें सक्षम हो जायें। ृ ु ं सस्कत
भाषा शिक्षण के उद्देश्य ृ ं 1. भाषा तत्वों का ज्ञान – िकै वकपक सस्कत भाषा के अन्तगतभ भाषा का तावत्िक ज्ञान प्राथवमक ृ ं उद्दश्े य होता ह।ै चवक अवनिायभ सस्कत भाषा-वशक्षण के माध्यम स
े माध्यवमक स्तर पर वशक्षाथच ृ ूं ं जो भाषा अध्ययन करता है, उससे िह भाषा का के िल स्िरूपगत ज्ञान ही कर सकता ह।ै उसको यह समझने की अपेक्षा बची रहती ह ै वक िस्ततः मरे े द्वारा वकया गया भाषा अध्ययन सामान्य ह,ै ु इसको गहनता क्या ह?ै उछच स्तर पर पहचँ कर अध्येता अपने इस उद्दश्े य ही प्रथम आिश्यकता ु समझता ह ै अतः इस उद्दश्े य का सिाभवधक महत्ि भी सस्पष्ट ही ह।ै ु 2. शवषय वस्त के तत्वों का मल्याकन – विषय िस्त का मकयाकन िकै वकपक सस्कत भाषा ृ ु ू ु ू ं ं ं वशक्षण का उद्दश्े य ह।ै अवनिायभ स्तर पर सस्कत की विषयिस्त का सामान्य ज्ञान ही पाता ह।ै ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 164 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं उछच स्तर पर जब िह िकै वकपक अध्ययन करता ह ै तो उस विककप या विधा के अन्तगतभ पाठ विशेष की विषयिस्त का और मलतः िण्यभ का सािभवत्रक मकयाकन वजसम ें विषय विशेष की ु ू ू ं उपयोवगता भी एक वचन्तनीय तथ्य ह।ै इस प्रकार िह स्िय अध्ययन के महत्िपण भ विषयों को ू ं समझ पाता ह।ै विषयिस्त का मकयाकन इस दृवष्ट से भी आिश्यक ह ै वक इसके वबना छात्र ु ू ं पाठयक्रम को एक जजाल समझगे ा िह अपने परीक्षणीय विषयों को तय नहीं कर पायेगा। ् ं 3. िद्ध वाचन एव िेखन क्षमता – अवनिायभ सस्कत भाषा वशक्षण के अन्तगभत वशक्षाथच शद्ध ृ ु ु ं ं िाचन एि शद्ध लेखन का अभ्यास करता ह।ै उछच स्तर पर पहचँ कर िह िाचवनक एि लेख्य ु ु ं ं शद्धता की दृवष्ट से इतना अभ्यस्त हो जाता ह ै वक िह वकसी भी िाक्य को पढ़ने-सनने या वलखते ु ु समय अशवद्ध सशोधन कर सकता ह।ै इस उद्दश्े य का महत्ि इसवलए ह ै वक इससे भविष्ट्य म ें ु ं सम्भाव्य अशवद्धयों से िह बच सके गा। इसका एक लाभ यह भी ह ै वक रचना कायभ म ें िह ु अवधकावधक सर्लता हावसल कर पायेगा। 4. अशभवशियों एव अशभुशचयों की क्षमता – यद्यवप अवनिायभ सस्कत, भाषा वशक्षण के स्तर ृ ृ ं ं पर भी वशक्षाथच को सम्बवन्धत सहगामी पाठयेतर प्रिवत्तयों ि अवभिवत्तयों म ें प्रिशे का अिसर ृ ृ ् वमलता ह ै तथा िहा के िल इनम ें सामान्य विद्यावथभयों के रूप म ें इसकी भवमका होती ह।ै इस स्तर ू ं पर वशक्षाथच इस विषय म ें िक्षता की अपेक्षा करता ह ै तथा िह अपने को सामान्य विद्याथच न समझकर प्रवतयोगी समझता ह।ै 5. शहन्िी व सस्कत भाषा में अनवाि की क्षमता – िकै वकपक सस्कत भाषा वशक्षण अनिाि ृ ृ ु ु ं ं जसै े विषयों के सम्बन्ध म ें एकावधकार का पक्षपाती कहा जा सकता ह ै चवक अवनिायभ सस्कत ृ ूं ं भाषा वशक्षण के अन्तगतभ िह सामान्य िाक्यों का ही अनिाि सीखता ह,ै िहाँ उसका उद्दश्े य ु सीखना मात्र होता ह ै जबवक यहाँ सीखने की अपेक्षा अवधकाररक चेतना मख्य उद्दश्े य होता ह।ै ु 6. सिभश ग्रन्थों एव शवषयवस्त की सहायक पस्तकों का अध्ययन – िकै वकपक सस्कत भाषा ृ ु ु ं ं ं वशक्षण म ें वशक्षाथच को एक ही विषय की पण भ वििचे ना का अिसर प्राि होता ह।ै अतएि उस ू विषय विशषे की पण भ जानकारी हते उसका जो मल उद्दश्े य होता ह ै सस्कत ग्रन्थों एि विषयिस्त ृ ू ु ू ु ं ं की सहायक पस्तकों का अध्ययन इस उद्दश्े य का महत्ि वशक्षाथच के ज्ञान िवद्ध की दृवष्ट स े ृ ु अपेवक्षत बढ़ जाता ह।ै 7. सामशयक शवचारधारा एव शनरन्तर वैचाररक शवकास का प्रयास – िकै वकपक सस्कत भाषा ृ ं ं वशक्षण के स्तर पर विषय का विशषे अध्ययन वशक्षाथच को सामवयक विचारधारा बनान े हते ु प्रेररत करता ह।ै अपने इस विशषे महत्िपण भ उद्दश्े य के अनिद्धभन उद्दश्े यों के रूप म ें िह अपने ू ु विचारों को वनरन्तर विकवसत करने का प्रयास करेगा। इस उद्दश्े य से व्यवक्तत्ि विकास की सम्पवतभ ू हो जाती ह।ै 8. भाषा तत्वों का िोधन कायश करना – िकै वकपक सस्कत भाषा वशक्षण के अन्तगतभ विद्याथच ृ ं िषै वयक तथ्यों के पण भ ज्ञान हते शोधकायभ की ओर प्रित्त होता ह ै तथा उसे ज्ञान वपपास बनाने का ृ ू ु ु अिसर भी वमलता ह ै तथा िह अपने ज्ञान को प्रामावणक बनाने के सभी सम्भि प्रयास करता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 165 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 9. सस्कशत को ग्रहण करने की योग्यता – सस्कत भाषा म ें ही हमारी सस्कवत के तत्ि विद्यमान ृ ृ ृ ं ं ं ह।ैं अवनिायभ सस्कत भाषा वशक्षण म ें िह के िल सस्कत का ही अध्ययन कर पाता ह।ै उसमें ृ ृ ं ं सवनवहत सस्कवत को नहीं ग्रहण कर पाता। िकै वकपक सस्कत भाषा वशक्षण म ें उसके अध्ययन ृ ृ ं ं का एक विककप यह भी होती ह ै वक उस भाषा म ें वनवहत सस्कवतपण भ पररचय करे। ृ ू ं इस प्रकार िकै वकपक सस्कत भाषा वशक्षण के मख्य उद्दश्े यों के बारे म ें बताया गया ह।ै अब इसके अन्तगतभ ृ ु ं अपेवक्षत व्यिहारगत पररितभनों का उद्दश्े य स्पष्ट वकया ह ै वक हमम ें िकै वकपक सस्कत म ें अपेवक्षत ृ ं व्यिहारगत पररितभन होंगे। 4.3 सस्ं कृ त भाषा वशक्षण एवं कम्प्युटि आधवनक यग की महत्िपण भ िने कम्प्यटर ह।ै ितभमान यग कम्प्यटर का यग कहा जाता ह।ै इसका उपयोग ु ु ू ू ु ू ु अवधक व्यापक ह।ै कम्प्यटर के उपयोग ने मानि जीिन को अवधक तीव्र तथा शद्ध बना विया ह।ै विश्व का ू ु रूप भी छोटा कर विया ह।ै कम्प्यटर समय, शवक्त एि धन की दृवष्ट से अवधक वमतव्ययी आविष्ट्कार ह।ै ू ं इसम ें मानि की सक्षमता की िवद्ध हई ह।ै ु ृ 4.3.1 कम्प्यटर तथा शिक्षण प्रशक्रया (Computer and Teaching Process) ु लारेंस स्टोलरो तथा डेवनयल डेविज (1965) ने सबसे जवटल वशक्षण प्रवतमान का विकास वकया ह,ै उसमें ु वशक्षक के स्थान पर कम्प्यटर को अनिशे न के प्रस्ततीकरण के वलये प्रयोग वकया गया ह।ै स्टोलरो तथा ू ु ु ु डेविज ने कम्प्यटर की वशक्षण प्रवक्रया को िो पक्षों म ें विभावजत वकया ह ै – ू i. पि-भ अनिग भ वशक्षण पक्ष (Pre-Tutorial Phase) तथा ू ु ii. अनिग भ वशक्षण पक्ष (Tutorial Phase) । ु पहले पक्ष म ें कम्प्यटर अनिशे न के विवशष्ट उद्दश्े यों को प्राि करने के वलये विवशष्ट छात्र का चयन करता ह।ै ू ु यह चयन छात्र के पि भ व्यिहार के आधार पर वकया जाता ह।ै िसरे पक्ष म ें कम्प्यटर अनिशे न का ू ू ु ू प्रस्ततीकरण करता ह ै और अनिशे न के बाि छात्रों की वनष्ट्पवत्तयों का मापन करता ह।ै ु ु 4.3.2 कम्प्यटर की उपयोशगता ु कम्प्यटर का उपयोग उद्योग, व्यापार, सेना तथा वशक्षा म ें वकया जाता ह।ै कम्प्यटर ने मनष्ट्य की जवटल ू ू ु समस्याओ को सरल एि सगम बना विया ह।ै वशक्षा के क्षेत्र ने कम्प्यटर का प्रयोग प्रमख रूप से चार क्षेत्रों ु ू ु ं ं म ें अवधक वकया जाता ह-ै (1) वशक्षण तथा अनिशे न में, (2) वशक्षा के शोध कायों में, ु (3) वशक्षा वनिशे न ि परामश भ में (4) परीक्षा प्रणाली में उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 166 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं i. शिक्षण तथा अनिेिन में - व्यवक्तगत अनिेशन के वलये इसका प्रयोग वकया जाता ह।ै एक ु ु कम्प्यटर पर एक समय म ें कई प्रकार के छात्र एक पाठयिस्त के कई अनिशे नों का अध्ययन करते ् ू ु ु ह।ैं इस प्रकार कम्प्यटर अनिशे न की व्यिस्था करता ह।ै वशक्षक अपने कक्षा-वशक्षण म ें अनिशे न ू ु ु के समवचत रूप म ें चयन के वलये कम्प्यटर की सहायता ल े सकता ह।ै प्रस्ततीकरण के साथ-साथ ु ू ु इसके द्वारा
छात्रों की अनवक्रयाओ का भी अिलोकन वकया जाता ह।ै कम्प्यटर वशक्षण के उद्दश्े यों, ु ू ं छात्रों के पि-भ ज्ञान तथा प्रस्ततीकरण के सबध म ें वनणयभ लेता ह।ै ् ू ु ं ं ii. िोध कायश- कम्प्यटर का प्रयोग अनिशे न के प्रस्ततीकरण की अपेक्षा शोध कायों में अवधक ू ु ु वकया जाता ह।ै भारतीय पररवस्थवतयों म ें भी कम्प्यटर का प्रयोग शोध कायों म ें वकया जाने लगा ह ै ू परन्त यहाँ पर इसका प्रयोग
अनिशे न के वलये सभि नहीं हो पाया ह।ै इसके
द्वारा विशाल प्रित्तों के ु ु ं सकलन के पिात प्रित्तों के विश्लेषण के वलये कम्प्यटर का प्रयोग वकया जाता ह।ै इसके द्वारा ू ं विशाल प्रित्तों का विश्लेषण छः घण्टों म ें हो जाता ह।ै कम्प्यटर द्वारा प्राि पररणाम शद्ध होते ह
।ैं ू ु iii. िैशक्षक शनिेिन तथा परामिश - कम्प्यटर
का प्रयोग अन्तःवनिशे न तथा परामशभ के वलये भी ू वकया जाता ह।ै शवै क्षक वनिेशन के वलये छात्रों का वनिान वकया जाता ह ै और उनकी कमजोररयों के उपचार के वलये अनिशे न विया जाता ह।ै इसके अवतररक्त व्यािसावयक वनिशे न के वलये छात्र ु की क्षमताओ तथा योग्यताओ को काडभ पर अवकत करके कम्प्यटर को ि े विया जाता ह।ै कम्प्यटर ू ू ं ं ं उनकी क्षमताओ के आधार पर
वनिशे न तथा परामश भ का सम्प्रेषण विद्यत टकन मशीन द्वारा करता ु ं ं ह।ै इस प्रकार कम्प्यटर की सेिायें अब भारतिष भ म ें उपलब्ध की जा रही ह।ैं ू iv. परीक्षा प्रणािी - वशक्षा की प्रमख िो वक्रयायें होती ह ैं – वशक्षण तथा परीक्षण। इन िोनों वक्रयाओ ु ं के वलयेकम्प्यटर का प्रयोग वकया जाता ह।ै परीक्षार्ल तैयार करने म ें अवधक समय लगता था। ू अतः अब भारतिष भ म ें भी विश्वविद्यालय तथा परीक्षा-पररषि ें अपने परीक्षार्लों को तैयार करने म ें कम्प्यटर की सहायता लेने लगी
ह।ैं ू इस प्रकार भारतिष भ म ें परीक्षा तथा शोध के प्रित्तों के विश्लेषण म ें कम्प्यटर का प्रयोग वकया जाने ू लगा ह।ै वशक्षण तथा वनिशे न म ें इसका प्रयोग
अभी पविमी िशे ों तक ही सीवमत ह।ै इसके अवतररक्त भारतिष भ म ें कम्प्यटर की सेिाओ का उपयोग अन्य उद्योग, व्यापार, प्रशासन तथा सेिा ू ं आवि म ें भी वकया जाने लगा ह।ै 4.3.3 कम्प्यटर
के उपयोग के क्षेत्र ु िरितच अवधगम के वलये कम्प्यटर की पारस्पररक वक्रया की कछ मख्य विशेषतायें ह,ैं कछ विशषे तायें ू ु ु ु ू वनम्नवलवखत ह,ैं जो कम्प्यटर के उपयोग के क्षेत्र क
ो प्रगट करती ह-ैं ू i. विशेषज्ञों द्वारा अवधगम की प्रशसा करना। ं ii. एकाकी एि बहमखी सम्प्रेषण करना। ु ु ं ं iii. वशक्षाथच का वक्रयात्मक योगिान रहता ह।ै iv. कायभक्रम की समस्याओ से सम्बवन्ध्त करना। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 167 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं v. सिस्यों एि विशषे ज्ञों द्वारा अनसरण, पष्ठपोषण एि वक्रयान्ियन करना। ृ ु ं ं vi. स्िःवनिवे शत आवि एि अन्त पर वनयन्त्रण समय, स्थान एि गवत के अनसार सम्प्रेषण करना। ु ं ं 4.3.4 कम्प्यटर के िाभ ु यहाँ पर विये गये वििरण म ें कम्प्यटर के लाभ तथा कछ उपयोग पारम्पररक मवद्रत अनिशे नात्मक माध्यम ू ु ु ु के ह।ैं इन लाभों का यहाँ पर उकलेख वकया गया ह-ै i. निीन कम्प्यटर के साथ काम करने के कछ उपयोग प्रेरणा प्रिान करते ह।ैं ू ु ii. सजीि रगीन वचत्रण
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छात्रों को अभ्यास करने के वलए िास्तविक प्रेरणा प्रिान करता ह।ै ं iii. उछच कोवट की व्यवक्तत्ि की वक्रयायें छात्रों की प्रवतवक्रयाओ को उछच कोवट का पनबलभ न प्रिान ु ं करती ह।ैं iv. छात्रों क
ी स्मरण-शवक्त उनके अतीत के ज्ञान को अवभलेवखत करने के वलए परितच पिों को प्रिान करती ह।ै v. वनम्न कोवट के वशक्षाथच को व्यवक्तगत प्रकार के अनिशे नात्मक कायभक्रम द्वारा धनात्मक एि ु ं प्रभािी िातािरण तैयार वकया जाता ह।ै उसके वलए इसको विवभन्न पिों म ें व्यक्त वकया जाता ह।ै vi. अवभलेखों को सरवक्षत रखने की क्षमता कम्प्यटर के द्वारा सरल बनाई जा सकती ह।ै इसके द्वारा ु ू छात्रों को विशा-वनिवे शत वकया जा सकता ह ै एि उनके द्वारा व्यवक्तगत प्रकार के अनिेशन भी विए ु ं जा सकते ह।ैं vii. वशक्षक के वनयन्त्रण के क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता ह ै और अवधक सचनाप्रि बनाया जा सकता ह।ै ू इससे वशक्षक की व्यिस्था के अनसार छात्रों के मध्य सीधा सम्पकभ बनाया जा सकता ह।ै ु 4.3.5 कम्प्यटर की साक्षरता एव सस्कत शिक्षण में कम्प्यटर ृ ु ु ं ं इस प्रकार की योजना (1983-84) म ें भारत म ें मानि ससाधन विकास मन्त्रालय द्वारा आरम्भ वकया गया। ं इस प्रकार का मख्य उद्दश्े य छात्रों एि वशक्षकों को कम्प्यटर की प्रणाली से पररवचत करना तथा इसके ु ू ं माध्यम से अवधगम की प्रवक्रया को सम्पावित करना ह।ै इस कायभक्रम को 248 चने हए माध्यवमक एि उछच माध्यवमक विद्यालयों म ें प्रयोग वकया गया। प्राथवमक ु ु ं रूप से इसको राजकीय विद्यालयों के वलए प्रयोग वकया गया, वजसम ें सामावजक एि आवथभक दृवष्ट से ं गरीब छात्रों को सवम्मवलत वकया गया, ऐसे सस्थान सीवमत साधनों से यक्त थे। इसके बाि (1987-88) के ु ं मध्य 500 विद्यालयों को और सवम्मवलत करने का प्रस्ताि वकया गया। इस पररयोजना के वलए हाडभिेयर एि सॉर्टिेयर आयामों को वब्रटेन से प्राि वकया गया ह।ै इस ं पररयोजना के वलए विवभन्
न के न्द्रों पर 3180 अध्यापकों को प्रवशक्षण विया गया था। अहमिाबाि के स्पेस एप्लीके शन के न्द्र ने 250 विद्यालयों म ें एक अध्ययन वकया, वजसके द्वारा इस कायभक्रम म ें प्रभािशीलता के वलये नये िातािरण की तैयारी की गई। राष्ट्रीय
वशक्षा पररषि ने भी यह पाया ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 168 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं वक इस प्रकार का कायभक्रम छात्रों एि वशक्षकों में अवधक उत्सकता उत्पन्न करता ह ै तथा उन्ह ें उत्सावहत ु ं करता ह।ै 4.4 संस्कृ त भाषा वशक्षण एवं इटं िनेट े आधवनक यग म ें कप्यटर के साथ- साथ इटेरनेट की भी प्रासवगकता हो गयी ह ै ु ु ू ं ं ं आजकल विद्यालयों म ें इटेरनेट का अध्ययन-अध्यापन वकया जाता ह ै । अन्य विषयों की भावत सस्कत ृ ं ं ं विषय म ें भी इटेरनेट अत्यवधक योगिान रहा ह ै । ं 4.4.1 इटेरनेट का अशभप्राय ं भारत म ें इटरनेट का प्रिशे अभी हाल के ही िषों म ें हआ ह।ै इस दृवष्ट से अभी भारत म ें इटरनेट के विस्तार ु ं ं की कार्ी सम्भािनाए ँ ह।ैं हमारे िशे म ें इटरनेट की उपलब्ध सविधाओ को प्रचवलत करन े के वलए वनत्य ु ं ं नई िबे साइटें आ रही ह।ैं भारत म ें कई हजार डॉटकाम कम्पवनयाँ रवजस्टडभ ह।ैं इन कम्पवनयों की सख्या म ें ं अभी कार्ी िवद्ध होने का अनमान ह।ै ृ ु निम्बर 1998 म ें भारत म ें वनजी इटरनेट सविसभ प्रोिाइडर (ISP) के आने से पि भ िशे म ें 1,70,000 ू ं इटरनेट उपभोक्ता थे। िष भ 1999 मई तक उपभोक्ताओ की सख्या में 1,30,000 की िवद्ध हई। मई (1999) ु ृ ं ं ं म ें ही 5,00,000 अन्य लोग इटरनेट से जड़ने के वलए प्रतीक्षारत थे। इन्ह ें ढाँचागत सविधाओ की कमी के ु ु ं ं कारण कनेक्शन नहीं विया गया। नासकाम (National Association of Software and Service Companies–NASSCOM) द्वारा कराये गये सिेक्षण के अनसार िशे म ें ितभमान म ें इटरनेट कनेक्शनों ु ं की कल सख्या 6.10 लाख ह,ै वजसके माचभ 2012 तक बढ़कर एक करोड़ हो जाने की सम्भािना ह।ै ु ं 4.4.2 शिक्षा में इटेरनेट का योगिान एव सस्कत शिक्षण में इटेरनेट की भशमका ृ ू ं ं ं ं इटरनेट विवभन्न तकनीकी के सयक्त रूप के काय भ (Convergence) का उिाहरण ह।ै इटरनेट का आधार, ु ं ं ं राष्ट्रीय सचना स्िरूप (National Information Infrastructure) होता ह,ै यहाँ विवभन्न सम्पकभ ू लाइनें, कम्प्यटरों को जोड़ती ह,ैं वजन्ह ें गह कम्प्यटर कहते ह।ैं ये (Host Computer) विश्वविद्यालयों या ृ ू ू अन्य सस्थानों से जड़े रहते ह ैं और उन्ह ें इटरनेट सविसभ प्रोिाइडर (Internet Service Provider ु ं ं {I.S.P.}) कहा जाता ह।ै ये कम्प्यटसभ विशेष सचार लाइनों या इटरनेट कनेक्शन (Internet ू ं ं Connection) द्वारा साधारण टेलीर्ोन या मॉडम के जररए उपभोक्ता व्यवक्त के गह कम्प्यटर (PC) स े ृ ू जड़े रहते ह।ैं यह सम्पकभ डायलअप कनेक्शन कहलाता ह।ै एक सामान्य उपभोक्ता वनवित रावश का ु भगतान करके (I.S.P.) इटरनेट से जड़ा रहता ह।ै ु ु ं इटरनेट द्वारा वशक्षा की गणित्ता म ें सधार के साथ-साथ कक्षाओ के वलए श्रेष्ठ तथा अत्याधवनक ु ु ु ं ं शवै क्षक सामग्री की उपलब्धता भी सवनवित हो रही ह।ै यवि कोई छात्र वशक्षा का सिश्रभ ष्ठे लाभ उठाना ु चाहता ह ै तो साइबर-कै र्े म ें जाकर इटरनेट द्वारा ज्ञान की विविधता प्राि करता ह।ै सचना प्रौद्योवगकी द्वारा ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 169 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 21िीं शताब्िी म ें बौवद्धक, गत्यात्मक, यगान्तकारी पररितभन हो रह े ह।ैं छात्र इटरनेट से प्रत्येक विषय से ु ं सम्बवन्धत निीनतम घटना के बारे म ें जानकारी प्राि कर सकता ह।ै अवधगम म ें आने िाले समय एि स्थान और सामावजक आवथभक बाधाओ को इटरनेट समाि कर िते ा ह।ै ं ं ं उस पर िवनया के वकसी भी पक्ष से िावछत विषय पर निीनतम सचना उपलब्ध रहती ह।ै भारत म ें इग्न ू ू ं ु (IGNOU) विश्वविद्यालय एि आई.आई.टी. (IIT) जसै े सस्थानों ने इटरनेट आधाररत कायभक्रम शरू कर ु ं ं ं विये ह।ैं इटरनेट से वनम्नवलवखत सविधाए ँ प्राि की जा रही ह-ैं ु ं i. ई-मेि (Electronic Mail) – ई-मले सचना सम्प्रेषण का एक रूप ह।ै इस प्रणाली म ें नेटिकभ ू द्वारा एक कम्प्यटर को िसरे कम्प्यटर स े जोड़कर तत्काल सचना को सम्प्रेवषत करने की सविधा ू ू ू ु ू प्राि की जाती ह।ै एक कम्प्यटर से भजे ी गयी सचना को िसरे कम्प्यटर पर पढ़ा जा सकता ह।ै ई- ू ू ू ू मले प्रणाली म ें मॉडम का महत्िपण भ स्थान होता ह।ै जब एक कम्प्यटर सिरितच भण्डाररत ू ू ु ू वडजीटल सचना को टेलीर्ोन लाइन द्वारा एनलॉग रूप म ें पररिवतभत कर िसरे कम्प्यटर तक ू ू ू भजे ता ह।ै िसरी ओर िसरे कम्प्यटर से सलग्न मॉडम इस सचना को अपन े से सलग्न टेलीर्ोन स े ू ू ं ं ू ू प्राि कर िसरे कम्प्यटर म ें वडजीटल रूप म ें बिल कर भण्डाररत करता ह।ै इस प्रणाली में एक ् ू ू कम्प्यटर से िसरे कम्प्यटर म ें सिशे भजे ने के वलए िसरे कम्प्यटर तक प्रेवषत करता ह,ै तो उनके ू ू ू ं ू ू पते की जानकारी होनी जरूरी ह।ै ई-मले का महत्ि व्यािसावयक एि औद्योवगक क्षेत्रों म ें ं सिाभवधक ह।ै इसके प्रयोग से कम व्यय म ें ही सिेशों का आिान-प्रिान हो जाता ह।ै एक पष्ठ ई- ृ ं मले का व्यय लगभग 5 रुपया आता ह,ै जो र्ै क्स, टेलेक्स, एस.टी.डी. अथिा कोररयर से सस्ता ह।ै भारत म ें ई-मले का सिाभवधक प्रयोग ऑटोमोबाइल, इजीवनयररग के
क्षेत्र म ें होता ह।ै भारत म ें ई- ं ं मले से अवधक तीव्रगवत से सिशे पहचँ ाने िाली ितभमान म ें कोई सेिा नहीं ह।ै ई-मले माध्यम से ु ं ध्िवन रूप म ें सिशे भजे ने की सविधा िने े िाले
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‘टाओटाक’
नामक सॉर्टिये र का विकास वब्रटेन ु ं की एशपल टेलीकॉम कम्पनी द्वारा वकया गया ह।ै इसे सॉर्टिये र के साथ एक साउण्ड काडभ ू माइक्रोर्ोन तथा स्पीकसभ की आिश्यकता होती ह।ै भारत म ें ितभमान म ें 8 कम्पवनयाँ ई-मले सविधा उपलब्ध करा रही ह।ैं इनम ें विप्रो, तिीटीमेल, एक्ससेस, ग्लोबमले , एक्स ई-मले तथा ु वस्प्रट मले प्रमख ह।ैं ु ं ii. वेबसाइट (WEBSITE) – िबे साइट का सम्बन्ध विश्व र्ाइलों के सकलन से होता ह।ै वजसे ं WWW = World Wide Web कहते ह।ैं इसे आरम्भ की र्ाइल अथिा होम पेज कहते ह।ैं एक सस्थान या व्यवक्त यह कहता ह ै वक उनके िबे साइट को वकस प्रकार प्राि वकया जाए, उनके ं पते का होम पेज िते े ह।ैं होम पेज से तम्ह ें उसके सभी अन्य पेजों की साइट प्राि हो जायेगी। ु उिाहरण के वलए IBM के वलए िबे साइट के होम पेज का पता http:/www.ibm.com के रूप म ें विया जाता ह ै होम पेज के अन्तगतभ िास्ति म ें विवशष्ट र्ाइलों का नाम एक इडेक्स के रूप म ें ं html के रूप म ें सवम्मवलत वकया जाता ह।ै IBM के होम पेज के पते के अन्तगतभ हजारों पष्ठ ृ सवम्मवलत होते ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 170 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं साइट का अथभ भौगोवलक स्थान होता ह।ै िबे साइट और िबे सिरभ म ें अन्तर होता ह।ै एक विशाल िबे साइट का विस्तार अवधक होता ह ै उसम ें अनेक सिरभ विवभन्न भौगोवलक स्थानों स े जड़े रहते ह।ैं IBM का एक उत्तम उिाहरण ह।ै इसकी िबे साइट म ें हजारों र्ाइलें वनवहत ह ैं तथा ु विश्वव्यापी स्थानों के सिरभ कायभशील रहते ह।ैं िबे साइट का पयाभय
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‘िबे प्रजन्ै स’
(Web Presence) कहलाता ह।ै इस शब्ि का अथभ अवधक साथभक ह,ै क्योंवक भौगोवलक स्थानों से सम्बवन्धत न होकर कम्प्यटर म ें स्थान ह।ै परन्त िबे साइट पि का उपयोग अवधक वकया जाता ह।ै ू ु वेबसाइट की उपिधधता एव शवश्वसनीयता (Website Availability and Reliability) – इन ं शब्िों के अथभ से प्रगट होता ह ै वक उपलब्धता से तात्पयभ िबे साइट म ें प्रिशे करना और उससे अपेवक्षत सचना प्राि करना ह।ै इस अथभ म ें िबे का उपयोग करना ह।ै आिश्यकता के समय िबे साइट से सचना ू ू उपलब्ध हो जाना ह।ै िबे साइट को र्ाइल से जो सचनाए ँ उपलब्ध होती ह ैं ि े विश्वसनीय होती ह।ैं र्ाइलों ू म ें अवधकत स्रोतों का भी उकलेख वकया जाता ह।ै अवधकत सचनाओ का ही भण्डारण वकया जाता ह।ै ृ ृ ू ं इसम ें सिरभ प्रित्तों पर आधाररत होते ह।ैं िबे सिरभ अन्य सिभर पर वनभरभ होते ह।ैं सिरभ ही व्यिहाररकता रूप प्रिान करते ह।ैं वेबसाइट की उपयोशगता एव शविेषताए ाँ (Uses & Features of Website) – िबे साइट की ं विशेषताए ँ तथा उपयोवगताए ँ इस
प्रकार ह-ैं i. िबे साइट की विशषे तायें होती ह,ैं परन्त िबे साइट का पता तथा इडेक्स (Index) ज्ञान होना चावहए। ु ं ii. िबे साइट से प्राि/उपलब्ध सचनाए ँ विश्वसनीय होती ह
।ैं ू iii. िबे साइट की र्ाइलों म ें प्रित्तों/सचनाओ को अवधकत स्रोतों से प्राि वकया जाता ह।ै ृ ू ं iv. िबे साइट में सिरभ द्वारा प्रस्तत सचनाए ँ प्रित्तों पर आधाररत होती ह ैं और उन्ह ें व्यिहाररक रूप विया ु ू जाता ह।ै v. होस्ट व्यापाररक िबे साइट तकनीकी की सहायता ली जाती ह ै और इटरनेट की सेिाए ँ प्रिान करता ं ह।ै vi. सचनाओ की विश्वसनीयता और उपलब्धता की साथभकता सिरभ पर वनभरभ करती ह।ै ू ं vii. िबे साइट की र्ाइलों म ें प्रित्तों, सचनाओ का भण्डारण अवधकत स्रोतों स े वकया जाता ह ै तथा िबे ृ ू ं सिरभ इन्हीं र्ाइलों को प्रिान करते ह।ैं िबे साइट को वडजाइन करना भी महत्िपण भ ह।ै वनवित िबे साइटें डेटा एरी म ें सहयोग के वलए र्ॉम भ के साथ ू ं शहर ि राज्यों की सची भी िते ी ह।ै इससे डेटा एरी का कायभ आसान
हो जाता ह ै और अवधक सचना स्टोर ू ू ं होती ह।ैं कछ िबे साइटें ककी का इस्तेमाल करती ह ैं जो वक इन्र्ॉरमशे न और काडभ के वबटस होते ह ैं जो ् ु ु ब्राउजर द्वारा आिान-प्रिान होकर कस्टमर के कम्प्यटर म ें स्टोर होते ह
।ैं जब अगली बार कस्टमर उस ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 171 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं साइट पर विवजट करता ह ै तो िोनों मशीनों के बीच आिान-प्रिान होता ह ै और कस्टमर का पराना डेटा ु िबे साइट पर आ जाता ह।ै जो सचना कस्टमर द्वारा एण्टडभ होती ह ै अथिा भीतरी वसस्टम द्वारा पकड़ी जाती ह,ै आमतौर पर ू सम्बवन्धत डेटाबेस म ें स्टोर हो जाती ह।ै इटरनेट पर अपने सबसे महत्िपण भ विज्ञापन के बारे म ें जानकारी प्राि कर सकते ह ैं तथा इस ू ं जानकारी को अपनी िेब साइट पर एड भी कर सकते ह।ैं यवि भविष्ट्य म ें आप भले तो यह जानकारी ू अपनी िबे साइट से प्राि कर सकते ह।ैं यह िह स्थान ह ै जहाँ सिरभ आपकी कम्पनी, उत्पािन या एप्लीके शन के बारे म ें जानने के वलए विवजट करते ह।ैं इसकी रचना सािधानी से विशेषतः इटरनेट को ं ध्यान म ें रखकर करनी चावहए। िबे पेज को एक आकषकभ विज्ञापन बनाने के वलए सभी पहलओ पर ु ं विशेषज्ञों की राय लेनी आिश्यक ह।ै प्रथम आपका विज्ञापन लवक्षत मावकभ ट को र्ौरन ही अपनी ओर आकवषतभ करने िाला हो। गहरे िबे पेज परुषों की अपेक्षा वस्त्रयों को कम आकवषभत करते ह।ैं ज्यािा ु एवनमशे न पेज को समझने म ें कवठनाई पैिा करते ह।ैं अव्यिसावयक वडजाइन मन को नहीं भाता और ढेर सारी सचना अथभव्यिस्था और भ्रम पैिा करती ह।ै िस्ततः िबे पेज की वडजाइवनग पत्र-पवत्रकाओ के ू ु ं ं विज्ञापनों से सिथभ ा पथक वचतन की माग करती ह।ै ृ ं ं िबे पेज बनाने से िसरी महत्िपण भ बात ह ै पेज की लोवडग तथा ऑपरेशन की गवत। िशभक प्रायः ू ं ू कम गवत िाली िबे साइटों की ओर कम ध्यान िते े ह।ैं ि े तो जकिी से जकिी तीव्र गवतशीलता की ओर बढ़ने को उतािले होते ह।ैं िबे पेज के तकनीकी पहलओ जैसे ग्रॉवर्क म ें कलर की विविधता, िबे पेज ु ं की गवत एप्लीके शन आवि के बारे म ें वडजाइवनग के समय सािधानीपिकभ विचार करना आिश्यक ह।ै ू ं प्रिशनभ से पि भ विवभन्न ब्राउजरों से िबे साइट को चलाकर िेख लेना चावहए। सर्लता की गवत कछ अन्य ू ु बातों पर भी वनभरभ करेगी जसै े वक इटरनेट रेवर्क का लेिल, जो वक आपके वनयन्त्रण से बाहर की बात ह।ै ं िबे साइट के वनमाभण म ें सचना की सची का वनधाभरण करना भी एक महत्िपण भ तथ्य ह।ै सची म ें यह स्पष्ट ू ू ू ू होना चावहए वक साइट पर सचना कहा िी गई ह।ै आमतौर पर उपयोगी सचना साइट के होम पेज पर ही िी ू ू ं जाती ह ै जबवक वनिेशक सम्बन्धी कम उपयोगी सचना पीछे के पेजों पर। सची इस दृवष्ट से भी महत्िपणभ ू ू ू होती ह ै वक िही कस्टमरों तक सही सिशे पहचँ ाने िाली होती ह।ै कल वमलाकर िबे साइट की सची एक ु ु ू ं छपी पवस्तका की भाँवत होनी चावहए, जो वक कस्टमरों को सीधे-सीधे आपकी ओर आकवषतभ कर सके । ु सभी सवचयों की ध्यानपिकभ प्रर् रीवडग हो, क्योंवक त्रवटयाँ आकषभण कम करती ह।ैं ू ू ू ु ं अन्य िबे साइटों से जड़ना क्रय-विक्रय विज्ञापन िने े िालों के वलए लाभिायक ि प्रभािकारी मागभ ु ह।ै ये छोटे-छोटे वलक, बॉक्स बैनर एड के समान ही आकषकभ होते ह।ैं जब GIF या अन्य तरह की कोई ं इमजे िबे पेज पर लोड की जाती ह,ै िह उसी िबे साइट पर पहचँ जाता ह।ै जो कम्पवनयाँ िबे पेजों पर ु स्थान बेचती ह,ैं बिले म ें माइक्रोपेमटें या कमीशन म ें वहस्सेिारी पाती ह।ै विज्ञापनिाता को बिले म ें एक डाइरेक्ट वलक वमलता ह ै जो रैवर्क उसकी ओर मोड़ने म ें योगिान करता ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 172 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं iii. साइट माध्यम (Site Media) – भारत म ें उपग्रह टेक्नोलॉजी से सम्बवन्धत पहला प्रयोग था – सेटेलाइट इस्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेररमटें , (साइट) जो (1975-76) म ें वकया गया। सयोग से ं ं सामावजक वशक्षा के वलए इस प्रकार की आधवनक प्रौद्योवगकी उपयोग करने का विश्व में यह ु पहला प्रयास था। िष भ 1982 म ें विकली और अन्य रासमीटरों के बीच उपग्रह द्वारा वनयवमत ं सम्पकभ के साथ राष्ट्रीय प्रसारण शरू हआ तथा िरिशनभ का रगीन प्रसारण शरू वकया। इन ु ु ु ं ू पररितभनों को जकिी लाग करने की मख्य प्रेरणा उस िष भ विकली म ें आयोवजत एवशयाई खेलों से ू ु वमली थी। iv. ई-कॉमसश (Electronic Commerce) – ई-कॉमसभ इटरनेट आधाररत उपभोक्ता बाजार की ं एक नई कायभ-प्रणाली ह,ै वजसके अन्तगतभ इटरनेट पर ठीक उसी प्रकार िस्तओ का क्रय-विक्रय ु ं ं वकया जाता ह।ै भारत म ें ई-कॉमसभ अभी प्रारवम्भक अिस्था म ें ह।ै वर् र भी इस िष भ ई-कॉमसभ द्वारा भारत म ें वकया जाने िाला कल व्यापार 500 करोड़ रुपये तक पहचँ जाने की आशा ह।ै ई-कॉमसभ ु ु के माध्यम से सेिाए ँ िने े िाली भारतीय कम्पवनयों म ें मख्य ह ैं – अमल, आई.सी.आई. तथा ृ ु
राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज। भारत म ें ई-कॉमसभ से सम्बवन्धत विवनयमों तथा काननों का अत्यवधक ू अभाि ह ै वजसके कारण इस माध्यम का विस्तार नहीं हो पा रहा ह।ै हाल ही में के न्द्र सरकार द्वारा ई-कॉमसभ को विस्तार िने े की विशा म ें कछ ठोस पहल की गयी ह ै तथा प्रयास वकये जा रह े ह।ैं ु ई-कॉमसभ प्रणाली का मख्य आधार इलेक्रॉवनक डाटा-इटरचेंज ह,ै वजसके अन्तगतभ आकँ ड़ों को ु ं पररिवतभत करने तथा स्थानान्तररत करने की सविध होती ह।ै इस प्रणाली क
े अन्तगतभ ग्राहक जब ु िबे साइट पर उपलब्ध सामान को पसि करके क्रय करता ह,ै तो उसे भगतान के वलए कम्प्यटर ु ू ं पर उपलब्ध एक र्ॉम भ भरना होता ह।ै इस र्ॉम भ में अपना क्रे वडत काडभ नम्बर, िये रावश, पाने िाली र्म भ का नाम इत्यावि सचनाए ँ अवकत करनी होती ह।ैं र्ॉम भ के भरते ही ग्राहक के खाते से ू ं धनरावश वनकलकर विक्रे ता के खाते म ें स्थानान्तररत हो जाती ह।ै इलेक्रॉवनक डाटा इटरचेंज के ं अन्तगतभ अभी हाल म ें एक नई प्रणाली का सत्रपात हआ ह।ै इस प्रणाली के अन्तगतभ क्रे ता ु ू कम्प्यटर पर अपन े वडवजटल हस्ताक्षर द्वारा चेक काट सकता ह।ै यह प्रणाली उन्हीं िशे ों म ें लाग ू ू ह,ै जहाँ वडवजटल हस्ताक्षर को काननी मान्यता वमली हई ह।ै ु ू 4.5 सािांश कम्प्यटर सहायक वशक्षा या इण्टरनेट सहायक वशक्षा का अवभप्राय यह ह ै वक वजसके अन्तगतभ कम्प्यटर ू ू की कायभप्रणाली तथा विद्याथच विशेष के बीच अनिशे न के िौरान एक ऐसी प्रयोजनपण भ अतःवक्रया चलती ु ू ं रहती ह ै वजसके माध्यम से विद्याथच को अपनी क्षमताओ तथा अवधगम गवत का अनसरण करते हए ु ु ं वनधाभररत-अनिशे नात्मक उद्दश्यों की प्रावि म ें यथेष्ट सहयोग वमलता रहता ह।ै वशक्ष के क्षेत्र म ें कम्प्यटर ु ू विविध प्रकार की ऐसी अमकय भवमका वनभा सकते ह ै वजसके माध्सम से वशक्षा जगत विविध प्रकार की ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 173 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं गवतविवधयों का अछछी विषयों का अध्ययन-अभ्यापन वकया जा सकता ह ै चाह े िह विज्ञान हो, अग्रेजी ं हो या सस्कत। वशक्षण म ें भी अन्य विषयों की भावत सगणक एि इण्टरनेट का अत्यवधक योगिान रहा ह।ै ृ ं ं ं ं जसै े- वशक्षण कायों की सची, विषय-िस्त का प्रस्ततीकरण, सस्कत पाठों को आकषकभ एि रुवचपण भ ृ ू ु ु ू ं ं बनाना, सभी कौशलों का विस्तारपिकभ पािरपॉइन्ट (P.P.T) द्वारा विश्ल ेवषत करना इत्यावि। इण्टरनेट, ई- ू मले की सविधा से भी सस्कत वशक्षण को लाभ प्राि हआ ह।ै इण्टरनेट, ई-मले , टेलीकाफ्रे वसग, कम्प्यटर ु ृ ु ू ं ं ं सहाय अनिशे न, भाषा प्रयोगशाला ि वशक्षण के माध्यम के रूप म ें कम्प्यटर का उपयोग वशक्षण म ें वकया ु ू जा सकता ह।ै 4.6 शब्दावली 1. सस्कत भाषा वशक्षण- मानि की भािावभव्यवक्त का मल आधार भाषा ह।ै भाषा वशक्षण में ृ ू ं भािावभव्यवक्त वबककल व्यािहाररक विषय ह ै इसवलए व्यािहाररक दृवष्ट से इस तत्ि की उपेक्षा ु नहीं की जा सकती ह।ै इसकी सन्तवष्ट हते छात्रों म ें सरल िाक्य वनमाभण, शद्ध गठन, शब्ि प्रयोग, ु ु ु प्रासवगकता का ध्यान, प्रिावहकता का समािशे , विषयिस्त क्रमबद्धता एि अभीष्ट सामग्री का ु ं ं प्रस्ततीकरण व्यिहारगत पररितभन अपेवक्षत होते ह।ैं इसवलए सस्कत वशक्षण से छात्रों के मन म ें ृ ु ं सस्कत के प्रवत भािावभव्यवक्त व्याि होती ह।ै ृ ं 2. कम्प्यटर- कम्प्यटर के उपयोग ने मानि जीिन को अवधक तीव्र तथा शद्ध बना विया ह।ै विश्व ु ू ु का रूप भी छोटा कर विया ह।ै कम्प्यटर समय, शवक्त एि धन की दृवष्ट से अवधक वमतव्ययी ू ं आविष्ट्कार ह।ै इसम ें मानि की सक्षमता की िवद्ध हई ह।ै ु ृ 3. इटेरनेट- इटरनेट विवभन्न तकनीकी के सयक्त रूप के काय भ (Convergence) का उिाहरण ह।ै ु ं ं ं इटरनेट का आधार, राष्ट्रीय सचना स्िरूप (National Information Infrastructure) होता ू ं ह,ै यहाँ विवभन्न सम्पकभ लाइनें, कम्प्यटरों को जोड़ती ह,ैं वजन्ह ें गह कम्प्यटर कहते ह।ैं ृ ू ू अभ्यास प्रश्न 1. वशक्षण का क्या अवभप्राय ह?ै 2. सस्कत वशक्षण के व्यिहाररक पक्ष का विश् लेषण करें। ृ ं 3. कम्प्यटर की अिधारणा से आप क्या समझते ह?ैं ू 4. वशक्षा म ें कम्प्यटर की उपयोवगता क्या ह?ै ू 5. इण्टरनेट से आप क्या समझते ह?ै 6. सस्कत वशक्षण म ें इण्टरनेट की आिश्यकता क्यों ह?ै ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 174 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 4.7 सन्दभ भ ग्रन्थ सची ू 1. शमाभ, आर-ए-, वशक्षा के तकनीकी आधार, आर-लाल बक वडपो, ु 2. मगल, एस-के - एि मगल, उषा, वशक्षा तकनीकी, विनोि पस्तक, (2013) ु ं ं ं 3. कलक्षेष्ठ, एस-पी- शवै क्षक तकनीकी के मलाधार, विनोि पस्तक मवन्िर, आगरा ु ू ु 4. यािि, डी-एस-वशक्षण तकनीकी के मल तत्ि, नेहा पवब्लशसभ एण्ड वडस्रीब्यटसभ (2008) ू ू 5. झा, डॉ- नागन्े द्र, प्राचीन एि अिाभचीन वशक्षा-पद्धवत, अवभषेक प्रकाशन, विकली, 2013 ं 6. शमाभ, डॉ- उषा, सस्कत वशक्षण, स्िावत पवब्लके शन्स, जयपर ृ ू ं 7. शमाभ, डॉ- नन्िराम, सस्कत वशक्षण, सावहत्य चवन्द्रका प्रकाशन, 2007 ृ ं 4.8 वनबधात्मक प्रश्न ं 1. वशक्षा एि वशक्षण की अिधारणा बताते हए सस्कत वशक्षण के व्यिहाररक उद्दश्े यों का उकलेख ु ृ ं ं करें। 2. सचना एि तकनीकी के सम्प्रत्यय का विस्तारपिकभ व्याख्या करें। ू ू ं 3.
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‘‘ितभमान म ें सस्कत भाषा की प्रासवगकता’’
इस तकभ से क्या आप सहमत ह?ै व्याख्या करें। ृ ं ं 4. कम्प्यटर की व्याख्या करते हए सस्कत वशक्षण म ें कम्प्यटर की उपयोवगता का उकलेख करें। ु ृ ू ू ं 5. इण्टरनेट से आप क्या समझते ह।ै सस्कत वशक्षण म ें इण्टरनेट की क्या भवमका ह?ै ितभमान ृ ू ं पररप्रेक्ष्य म ें इण्टरनेट की प्रासवगकता को िशाभए। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 175 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं ृ इकाई 5 - भाषा-रिक्षक संस्कत भाषा के रविेष सतदभ में भ 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 भाषा वशक्षक से आशय 5.3.1 भाषा वशक्षक का महत्ि 5.3.2 सस्कत भाषा वशक्षक ृ ं 5.4 सस्कत भाषा वशक्षक के गण ृ ु ं 5.5 भाषा वशक्षक की योग्यता 5.6 सस्कत भाषा वशक्षक तथा भाषायी कौशल ृ ं 5.7 साराश ं 5.8 शब्िािली 5.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 5.10 सिभभ ग्रन्थ सची ू ं 5.11 वनबन्धात्मक प्रश्न 5.1 प्रस्तावना प्रस्तत इकाई म ें आप भाषा वशक्षक के रुप म ें सस्कत भाषा वशक्षक के विषय म ें अध्ययन करेंग।े भाषा ृ ु ं वशक्षक से आशय, विविध भाषा के वशक्षक/भाषा वशक्षक ि अन्य वशक्षक । प्रथमभाषा (मातभाषा) ृ वशक्षक तथा अन्य भाषा (सस्कत भाषा) वशक्षक । ृ ं सस्कत भाषा वशक्षक के गणों के विषय म ें विशषे रुप से ियै वक्तक गण, सामावजक गण, ृ ु ु ु ं मनोिज्ञै ावनक गण, नैवतक गण एि अन्य गण वकस प्रकार भाषा वशक्षक के व्यवक्तत्ि को एक प्रभािी भाषा ु ु ु ं वशक्षक के रुप म ें स्थावपत करता ह,ै के विषय म ें अध्ययन कर एक सर्ल भाषा वशक्षक के रुप अपने-आप को स्थावपत कर सकें ग।े भाषा वशक्षक की अपेवक्षत योग्यताओ के अन्तगतभ सस्कत भाषा ि सावहत्य
का ज्ञान तथा वशक्षणशास्त्र ृ ं ं का ज्ञान, वशक्षण सम्बन्धी अन्य वक्रया-कलापों का ज्ञान वकस तरह वशक्षावथभयों को सस्कतभाषा के प्रवत ृ ं रुवच उत्पन्न कर सस्कत भाषा को सीखने क
े प्रवत अवभप्रेररत करता ह ै । ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 176 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं विवभन्न भाषा कौशलों यथा-श्रिण-िाचन-पठन ि लेखन के साथ-साथ वनिानात्मक ि उपचारात्मक वशक्षण एि वक्रयात्मक अनसधान सम्बवन्धत ज्ञान वशक्षावथभयों को पहचानने एि उनके िोषो को िर करने ु ं ं ं ू म ें भाषा वशक्षक के वलए वकस प्रकार मििगार वसद्ध होता ह ै । 5.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पिात आप- 1. भाषा वशक्षक का आशय बता सकें ग।े 2. भाषा वशक्षक तथा अन्य विषय वशक्षक म ें अन्तर कर सकें ग।े 3. मातभाषा-वशक्षक एि अन्य भाषा वशक्षक म ें अन्तर स्पष्ट कर सकें ग।े ृ ं 4. सस्कत भाषा वशक्षक के गणों का उकलेख कर सकें ग।े ृ ु ं 5. सस्कत भाषा वशक्षक के शवै क्षक एि वशक्षणशास्त्रीय योग्यताओ का िणनभ कर सकें ग।े ृ ं ं ं 6. भाषा वशक्षण के विविध कौशलों का ज्ञान प्राि कर, अपने वशक्षण कौशलों का सिधभन कर ं सकें ग।े 7. भाषा वशक्षक के अन्य कायों का मकयाकन कर सकें ग।े ू ं 5.3 भाषा वशक्षक स े आशय वशक्षक का स्थान भारत म ें ही नहीं सम्पण भ विश्व म ें सिोपरर ह।ै वशक्षक को भारतीय समाज म ें उपाध्याय, ू शास्त्री, आचायभ एि गरू
कहा जाता ह।ै भारतीय शास्त्रों म ें वशक्षक को साक्षात परम ब्रह्म के रुप म ें स्िीकार ् ् ु ं वकया गया । ितभमान पररदृश्य म ें वशक्षक को राष्ट्र वनमाभता कहा जाता ह।ै समाज की सभी आिश्यकताओ की ं पवतभ म ें सबसे बड़ा योगिान वशक्षक का होता ह।ै एक वशक्षक राष्ट्र के नागररक से राष्ट्र प्रमख तक का ू ु वनमाभण करता ह।ै विद्यालय में कायभ के आधार पर वशक्षकों के कई प्रकार ह-ैं कक्षा वशक्षक एि विषय ं वशक्षक । विषय वशक्षक यथा- विज्ञान वशक्षक, समावजक वशक्षक, गवणत वशक्षक, वहन्िी वशक्षक, अग्रेजी ं वशक्षक, सस्कत वशक्षक आवि। विद्यालय क
े स्तर के आधार पर- प्राथावमक वशक्षक-माध्यवमक वशक्षक ृ ं तथा उछचतर माध्यवमक वशक्षक। आप माध्यवमक वशक्षक के रुप म ें भाषा वशक्षक के अन्तगतभ अन्य भाषा(सस्कत भाषा) वशक्षक के रुप म ें कायभ कर रह ें ह।ैं ृ ं भारती
य विद्यालयों म ें माध्यवमक स्तर तक प्रायः िो या तीन भाषाए ँ पढ़ाने का प्रिाधान ह।ैं जहाँ प्रथम भाषा के रुप में मातभाषा तथा वद्वतीय भाषा या अन्य भाषा के रुप म
ें सस्कत पढने-पढ़ाने की ृ ृ ं व्यिस्था ह।ै वशक्षा व्यिस्था म ें सम्प्रेषण का मख्य साधन भाषा ह।ै वशक्षण-अवधगम प्रवक्रया सचालन का मख्य ु ु ं आधार भी भाषा ह।ै इस दृवष्ट से भी भाषा वशक्षक का िावयत्ि और बढ़ जाता ह।ै जसै ा वक ऊपर कहा गया ह ै भाषा का वशक्षण िो रुपों म ें वकया जाता ह।ै सस्कत भाषा, वद्वतीय अथिा अन्य भाषा के रुप म ें पढ़ान े ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 177 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं की व्यिस्था ह।ै जो प्रायः पाँचिीं ि छठी कक्षा से प्रारम्भ होती ह।ै सस्कत को प्राचीनतम एि शास्त्रीय ृ ं ं भाषा का िजाभ प्राि ह,ै जो विशषे रुप से व्यवक्त को सस्कारिान बनाती ह।ै अतः सस्कत भाषा वशक्षक के ृ ् ं ं गण, योग्यता तथा कशलता के प्रवत आम लोगों की धारणा पथक ह।ै ृ ् ु ु भाषा वशक्षक होने के नाते सस्कत भाषा वशक्षक से समाज की अपेक्षा और बढ़ जाती ह।ै उनका ृ ं व्यवक्तत्ि, आकषकभ , धमपभ रायण, चररत्रिान, समन्ियिािी, स्पष्टिािी ि वशक्षाथच तथा समाज के वलए एक आिश भ होता ह ै । अभ्यास प्रश्न 1. वशक्षक के वकन्हीं तीन नामों का उकलेख करें? 2. मातभाषा वशक्षक एि सस्कत भाषा वशक्षक म ें अन्तर स्पष्ट करें। ृ ृ ं ं 5.3.1 भाषा शिक्षक का महत्त्व विचार का सचार भाषा
के माध्यम से होता ह।ै सामान्य बोलचाल की भाषा बछचे माता से पररिार तथा ं समाज से सीखता ह।ै जबवक मानक भाषा का ज्ञान एक सयोग्य भाषा वशक्षक ही करा सकता ह,ै वजन्ह ें ु सम्बद्ध भाषा पर अवधकार तथा उस भाषा के सावहत्य म ें रूवच तथा उसका ज्ञान पयाभि हो। एक भाषा वशक्षक मख्य रुप स
े भावषक क्षमता जसै े-श्रिण-िाचन-पाठन ि लेखन म ें वनष्ट्णात हों, ु तभी िह एक वशक्षाथच म ें उवचत भाषा कौशलों का विकास करने के साथ-साथ उसके सावहत्य में भी विविध भाषायी वक्रयाकलापों के माध्यम से रुवच जागत कर सकता ह।ै अपनी भाषा की कशलता के ृ ु आधार पर ही कोई व्यवक्त या वशक्षाथच अपने भािों ि विचारों को भलीभाँवत अवभव्यक्त करने म ें समथभ होता ह।ै िसरे के भािों ि विचारों को सहजतापिकभ ग्रहण करने म ें समथभ होता ह।ै अतः विद्यालय पररिशे ू ू म ें वशक्षण अवधगम का मख्य साधन भाषा होने से भाषा वशक्षक का महत्त्ि सिाभवधक ह।ै क्योंवक गवणत, ु विज्ञान, सामावजक ि अन्य विषयों को भाषा के अभाि म ें सीखना-वसखना सभि ही नहीं ह।ै अतः ं ज्ञानाजनभ का मख्य माध्यम भाषा ही ह।ै ु 5.3.2 सस्कत भाषा शिक्षक ृ ं सस्कत भाषा भारोपीय पररिार के शतम िग भ की प्रवतवनवध भाषा ह ै । यह वश्लष्टावत्मका अथाभत योगवत्मका ृ ् ् ं भाषा ह।ै भारतीय भाषायों की जननी ह।ै इसका स्िरूप पणभतः िैज्ञावनक ह ै तथा इसका सावहत्य समद्ध ि ृ ू निीन प्राचीन िज्ञै ावनक ज्ञान का अक्षण भण्डार ह।ै ु सस्कत भाषा वशक्षक का स्थान भारतीय प्राचीन परम्परा में-
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“आचायभ ििे ो भि”
के रुप म ें मान्य था। ृ ं सस्कत भाषा वशक्षक को सस्कत भाषा पर पण भ अवधकार अथाभत सनने, पढने, बोलने ि वलखने म ें समथभ ृ ृ ् ू ु ं ं होना चावहए। िणों का शद्ध ि स्पष्ट उछचारण कौशल म ें वनपणता होने से वशक्षावथभयों के वलए आिश भ होता ु ु ह।ै श्लोक के छन्िबद्ध गायन द्वारा वशक्षावथभयों ि श्रोताओ म ें अनराग उत्पन्न करता ह,ै शास्त्रीय सवक्तयों के ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 178 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िवै नक प्रयोग द्वारा लोगों म ें नैवतक
ज्ञान के साथ-साथ वशक्षावथभयों म ें सस्कत भाषा सावहत्य के प्रवत ृ ं अवभप्रेररत करता ह।ै इस प्रकार सस्कत भाषा वशक्षक सस्कत भाषा का तथा इसम ें वनवहत ज्ञान क
ा सरक्षण ृ ृ ं ं ं एि सम्िद्धभन करता ह।ै समाज को अपने ज्ञान से प्रकावशत करता ह।ै ं अभ्यास प्रश्न 3. विद्यालय म ें सस्कत भाषा वशक्षक का स्थान वनधाभररत करें। चार िाक्यों म ें उत्तर वलख।ें ृ ं 5.4 संस्कृ त भाषा वशक्षक के गुण वशक्षक के गणों का िणनभ महाकवि कावलिास ने
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‘मािाशवकाशग्नशमत्रम’
नाटक म ें इस प्रकार वकया ह-ै ् ु
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“शश्लष्टा शक्रया कस्यशचिात्मसस्था, ं सक्राशन्तरन्यस्य शविेषयिा। ु ं यस्योभय साध स शिक्षकाणा, ु ं ं धरी प्रशतष्ापाशयतव्य एव।।”
ु अथाभत कछ विद्याग्रहण म ें प्रिी
ण होते ह ैं तथा अन्य विद्यावथभयों को विद्याप्रिान करने म ें कशल होते ह।ैं ् ु ु वजन वशक्षकों म ें ये िोनों ही गण होते ह,ैं िही कशल वशक्षक होते ह।ैं ु ु सस्कत वशक्षक म ें वशक्षकों के सभी सामान्य गण होना अपेवक्षत ह ै वजसकी समाज प्रत्येक
वशक्षक से ृ ु ं आशा करता ह ै यथा- आकषकभ एि अवभप्ररेक व्यवक्तत्ि, आिश भ िशे भषा, उत्तम स्िास्थ्य, मिभाषी, ृ ू ं ु कशाग्रबवद्ध, सािवे गक सतलन, सामावजक व्यिहार कशलता, उत्तमचररत्र, सकारात्मकता, दृढ़सककपी, ु ु ु ु ं ं ं कशल नेतत्ि, हसँ मख, वमत्रता एि सहानभवतपण भ व्यिहार आवि। इन गणों को ियै वक्त, सामावजक, ृ ु ु ु ू ू ु ं मनोिज्ञै ावनक, नैवतक एि अन्य गणों के रुप म ें विभक्त कर विवशष्ट रुप से आग े पढ़ेंग।े ु ं वैयशिक गण ु वशक्षक को प्रभािी और कायभकशल होने म े उनका ियै वक्तक गण तथा वशक्षणशास्त्री गणों की अह भवमका ु ु ु ू ं होती ह।ै आइए प्रभािी वशक्षक वनमाभण के कछ प्रमख ियै वक्तक गणों पर दृवष्टपात करें। ु ु ु वशक्षक का शारीररक एि मानवसक गण उत्तम हो । िह वजतना बाहर से (शारीररका रुप से) सन्िर हो उतना ु ु ं मानवसक (आन्तररक) रुप से भी स्िस्थ्य हो। सािा जीिन उछच विचार को चररताथभ करता हो। प्रत्येक व्यवक्त अपेक्षा करता ह ै वक वशक्षक का अपना सदृढ़ मकयतत्र हो। यवि वशक्षक आलसी ु ू ं ह,ै उसम ें उत्साह और पररश्रम करने की इछछा का अभाि ह,ै तो िह अपने विद्यावथभयों के मन म ें इन मकयों ू को नहीं स्थावपत कर पाएगा। विद्यावथभयों की प्रेक्षण दृवष्ट तीव्र होती ह।ै उनम ें इतनी समझिारी होती ह ै वक वशक्षक की कथनी और करनी म े अन्तर को पहचान सकें । यवि वशक्षक स्िय अशद्ध ि अशोभनीय भाषा ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 179 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं का प्रयोग करता ह ै तो उन्ह ें अपने विद्यावथभयों को शद्ध ि शोभनीय भाषा बोलने के वलए कहने का ु अवधरकार नहीं ह।ै इसी तरह िह स्िय कक्षा म ें विलम्ब से आये और विद्यावथभयों को कह े वक समय से ं आओ तो इसका प्रभाि नहीं पड़ता। ईमानिारी, सछचाई, वनष्ठा, स्िछछता, समपभण भािना, स्नेह आवि मकय िसरों के व्यिहार के अिलोकन से आत्मसात होते ह ैं न वक पढ़ाए जाने स े । तात्पयभ यह ह ै वक ू ू विद्यावथभयों के चररत्र ि व्यवक्तत्ि म ें इन गणों को उतारने के वलए वशक्षक स्ितः अपने विद्यावथभयों के समक्ष ु ऐसे आिश भ व्यवक्त के रुप म ें प्रस्तत करना होगा जो उनके वलए सििै प्ररेणा का स्त्रोत बना रह।े ु यवि िभाभग्य से वशक्षक के व्यवक्तत्ि म ें ऐसा कोई िगणभ हो भी तो उसे स्िीकार करते हए ु ु ु ु विद्यावथभयों म ें उसके िोषों के प्रवत सािधान रहने की प्ररेणा भी िने ी होगी। सस्कत भाषा वशक्षक के रुप में ृ ं आप म ें भाषाज्ञान के साथ-साथ स्नेह, िया, प्रेम, लगाि, सहानभवत, सत्यवनष्ठा, सहयोग, समपभण भािना, ु ू विनोि वप्रयता आवि गणों का होना आपको प्रवतवष्ठत अध्यापक के रुप म ें स्थावपत करेगा । ु सामाशजक गण ु वशक्षक सस्कवत को सशोवधत कर सिवधभत करता ह।ै इस प्रकार िह एक सामावजक अवभयन्ता अथिा ृ ं ं ं वचवकत्सक होता ह ै जो समाज म ें व्याि बराईयों को िर कर समाज की पनरभचना म ें सहायक होता ह।ै उन्ह ें ु ु ू विद्यावथभयों के साथ-साथ सम्पण भ समाज के धावमकभ अन्धविश्वासों, कप्रथाओ के िगणभ ों से पररवचत कराकर ू ु ु ं ु उससे छटकारा विलाने के वलए स्िय आग े बढ़ना चावहए। ु ं जावतय, धावमकभ कट्टरता, िहजे , जनसख्या िवद्ध, जाि-टोना, अवशक्षा आवि के िष्ट्पररणाम से पररवचत ृ ं ू ु करा कर वशक्षक समाज म ें समानता, समरसता,भाईचारा, वशक्षा, स्िछछता आवि के वलए लोगों को अवभप्रेररत कर सकता ह।ै वशक्षक कक्षा-कक्ष म ें तथा कक्षा-कक्ष से बाहर भी उक्त सामावजक गणों
का विकास करने का बीजा-रोपण ु कर सकता ह।ै वजससे उनकी छवि विद्यावथभयों एि लोगों के मन म े एक आिशभ वशक्षक के रुप म ें स्थावपत ं हो सकें ग।े मनोवैज्ञाशनक गण ु वशक्षण पहले जन्मजात गण माना जाता था। परन्त ितभमान म ें सम्पण भ विश्व म ें वशक्षक, वशक्षण-अवधगम ु ु ू प्रवक्रया के सशक्त कड़ी के रुप म
ें स्थावपत हो चके ह।ैं एक वशक्षक के समक्ष अनके कक्षा-कक्ष म ें विवभन्न ु सामावजक िगों के तथा विवभन्न बौवद्धक ि सािवे गक स्तर के विद्यावथभयों का समह होता ह।ै ऐसे म ें वशक्षक ू ं को अपने-आपको सािवे गक रुप से सबल बनाने की आिश्यकता ह।ै इसके वलए उन्ह ें बालमनोविज्ञान ं (वशक्षा मनोविज्ञान) का ज्ञान होना अवनिायभ ह।ै वशक्षक का मानवसक स्िास्थ्य ठीक हो वजससे वक वशक्षावथभयों के मानवसक स्िास्थ्य का ध्यान रख सकें । वशक्षक म ें बालक के िवद्ध-विकास,आय के अनरूप भाषायी विकास, शारीररक, बौवद्धक ि ृ ु ु सािवे गक विकास के क्रमों को समझने तथा बालक के व्यिहार को समझकर अपने सकारात्मक सोच के ं अनरूप अपने वशक्षण प्रवक्रया वनवित करनी चावहए। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 180 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं कक्षा-कक्ष म ें कछ विद्याथच प्रवतभा सम्पन्न, कछ मन्ि बवद्ध के भी हो सकते ह,ैं प्रायः िेखा गया ह ै वक ु ु ु 60% वशक्षाथच औसत बवद्ध िाले होते ह।ैं ऐसे म ें वशक्षक का उन सबकों साथ लेकर चलना वकसी चनौती ु ु से कम नहीं ह।ै इस वस्थवत म ें िह वशक्षक जो मनोविज्ञान के ज्ञाता ह ै अथाभत वजसम ें क्रोध, भय आवि पर ् वनयन्त्रण कर अपने सािवे गक सतलन द्वारा विविध प्रकार के आिश्यकता िाले वशक्षावथभयों, अवभभािकों ु ं ं तथा अवधकाररयों ि सहकवमयभ ों से अपनी सझ-बझ से व्यिहार करने म ें समथभ हो सकता ह।ै ू ू नैशतक गण ु भाषा वशक्षक ही नहीं वकसी भी वशक्षक म ें नैवतक गणों का होना अवनिायभ ह।ै क्योंवक एक बालक माता- ु वपता के बाि वशक्षक के सावन्नध्य म ें सिप्रभ थम आता ह।ै बालक सिाभवधक अनकरण से सीखता ह।ै अतः ु वशक्षक विविध नैवतक गणों जसै े-वनयवमतता, समयबद्धता, सत्य भाषण. ईमानिारी, सछचररत्रता, बधता ु ु ं आवि का उिाहरण प्रस्तत कर बालाकों के वलए प्ररेणा स्त्रोत हो सकता ह।ै ु आप माध्यवमक स्तर के वशक्षावथभयों के सस्कत भाषा वशक्षक ह।ैं आप का प्रथम कत्तव्भ य ह ै शद्ध ृ ु ं उछचारण करना, सस्कत सावहत्य के सवक्तयों, सभावषतों का सकलन करना, जो नैवतक गणों से यक्त हो, ृ ू ु ु ु ं ं अपने बोलचाल म ें उसका प्रयोग करना, वभवत्त पत्रों के रुप म ें विद्यालय कक्ष म ें लगाना, छोटी-छोटी पचाचतन्त्र की कहावनयों के माध्यम से छात्रों म ें सस्कत भाषा ि सावहत्य म ें रुवच जगाने के साथ नैवतक गणों ृ ु ं की वशक्षा प्रिान करना, इस से पहले सभी गण आप म ें हों। ु अभ्यास प्रश्न 4. वशक्षक के ियै वक्तक गण वकतने प्रकार के ह ैं ? एक िाक्य म ें उत्तर ि।ें ु 5. आप अपने छात्र जीिन के समय आपके सस्कत वशक्षक के गणों की सची तैयार करें। पाँच ृ ु ू ं िाक्यों म ें उत्तर ि।ें 5.5 भाषा वशक्षक की योग्यता
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‘भाषा वशक्षक’
का िावयत्ि अन्य वशक्षकों की अपेक्षा अवधक होता ह।ै भाषा वशक्षक अथाभत भाषा और ् वशक्षक ये िो शब्िों का सयोग ह।ै भाषा अथाभत वशक्षण म ें सशक्त/भाषा म ें वनष्ट्णात के साथ ही वशक्षण के ् ं विविध कलाओ से सम्पन्न व्यवक्त ही भाषा वशक्षक के योग्य होते ह।ैं यहाँ मख्य रुप से िो प्रकार की ु ं योग्यताओ की चचाभ की गयी ह-ैं 1. भाषा(वशक्षा) एि 2. व्यािसावयक (वशक्षणशास्त्रीय) । यहाँ क्रमशः ं ं िोनों का विशषे रुप से अध्ययन करेंग।े उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 181 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं िैशक्षक योग्यता भाषा वशक्षक से सबसे पहली अपेक्षा समाज को रहती ह ै वक उनका व्यवक्तत्ि कै सा है? व्यवक्तत्ि शारीररक एि मानवसक रुप से सतवलत हों, िोनों रुप से सतवलत व्यवक्त ही उत्कष्ट प्रवतभा का पयाभय होता ह।ै उत्कष्ट ृ ृ ु ु ं ं ं प्रवतभा सम्पन्न व्यवक्त होने के साथ-साथ उनम ें आिश्यक शवै क्षक योग्यता हो। माध्यवमक स्तरीय विद्यालय म ें वशक्षण के वलए अवनिायभ शवै क्षक योग्यता सम्बद्ध भाषा अथिा विषय म ें कम से कम मख्य ु रुप से स्नातक हो। विशेषकर भाषा वशक्षक से अपेक्षा की जाती ह ै वक सम्बद्ध भाषा के साथ मातभाषा का ृ भी ज्ञान हो। सस्कत भाषा वशक्षक की शवै क्षक योग्यता न्यनतम स्नातक अथिा शास्त्री उत्तीणतभ ा की वडग्री तथा ृ ू ं प्रवशक्षण(बी.एड./वशक्षाशास्त्री) वनधाभररत ह।ै वजससे वक विषय
ज्ञान को सही तरीके से वशक्षावथभयों को सम्प्रेवषत कर सके । ितभमान म ें उपावध तथा योग्यता िोनो का समवे कत रुप से होना वनवित वकया जाता ह।ै  सस्कत भाषा का ज्ञान- सस्कत भाषा वशक्षक म ें उपावध तो हो साथ ही उसकी भाषा पर पणभ ृ ृ ू ं ं अवधकार भी हो। उन्ह ें भाषा के सभी तत्िों का ज्ञान हो।  सस्कत व्याकरण का ज्ञान- मानक भाषा का मख्य आधार व्याकरण होता ह।ै इसवलए सस्कत ृ ृ ु ं ं भाषा वशक्षक को व्याकरण का पण भ ज्ञान हो, वजससे वक भाषा के शद्ध रुप का प्रयोग कशलता ू ु ु पिकभ कर सकें । ू  सस्कत साशहत्य का ज्ञान- भावषक पक्ष के साथ-साथ सस्कत वशक्षक को सस्कत के सावहत्य ृ ृ ृ ं ं ं का भी ज्ञान होन
ा चावहए, वजससे िह छात्रों को पाठयपस्तक म ें वनधाभररत लेखकों ि कवियों के ् ु सम्बन्ध म ें पढ़ाते समय उनके व्यवक्तत्ि ि कवतत्ि की जानकारी प्रिान कर सस्कत म ें रुवच उत्पन्न ृ ृ ं कर सके । सस्कत के छ्नन्ि ि अलकार का सामान्य ज्ञान की अपेक्षा वशक्षक से रहती ह।ै आप से आशा की ृ ं ं जाती ह ै वक आप सस्कत से सम्बद्ध विवभन्न पाठय सहगामी वक्रयाओ के आयोजन द्वारा वशक्षावथभयों ृ ् ं ं के भाषा सिधभन म ें योगिान करेंग।े ं व्यावसाशयक योग्यता वशक्षण एक सेिा ह,ै जो अन्य सेिा ि व्यिसाय से वभन्न ह।ै पि भ म ें वशक्षक प्रायः उससे कहा जाता था, ू वजस की िाक चातयभ अछछी होती थी। भले ही उसम ें विषय का गम्भीर
ज्ञान हो या नहीं । पर ितभमान ् ु पररदृश्य इसके विपरीत ह ै सिप्रभ थम उसम ें विषय का गम्भीर ज्ञान हो साथ ही व्यिसावयक कशलता ु अथाभत वशक्षण विज्ञान के ज्ञान
ि उपावध िोनों अवनिायभ ह।ै वजससे वक कशलता पिकभ , अकप समय म ें ् ु ू गम्भीर विषय को भी वशक्षावथभयों को बोध कराया जा सके । सस्कत अध्यापक के वलए व्यिसावयक ृ ं कशलता प्रिान करने हते सस्कत वशक्षण विज्ञान ( शास्त्र) म ें उपावध विवभन्न विश्वविद्यालयों के ृ ु ु ं वशक्षाशास्त्र विभाग द्वारा वशक्षा स्नातक(बी.एड.) तथा मानि ससाधन विकास मत्रालय ( ं ं एम.एच.आर.डी.)भाषा विभाग, भारत सरकार द्वारा स्थावपत श्रीलाल बहािर शास्त्री रावष्ट्रय सस्कत ृ ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 182 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं विद्यापीठ, नई विकली, रावष्ट्रय सस्कत सस्थान, नई विकली तथा रावष्ट्रय सस्कत विद्यापीठ, वतरुपवत, ृ ृ ं ं ं सस्कत अध्यापकों के वलए व्यिसावयक प्रवशक्षण प्रिान करती ह ै । ृ ं वशक्षण के तीन चरण होते ह-ै वशक्षण पि,भ सपािन तथा वशक्षणोत्तर। एक प्रवशवक्षत वशक्षक को उन तीनों ू ं चरणों का पण भ ज्ञान होने से िह पाठ तथा वशक्षाथच िोनों के साथ न्याय करता ह।ै वशक्षण पिभ की प्रवक्रया में ू ू वशक्षक सोच समझकर पाठ को वनयोवजत करता ह।ै सम्पािन म ें पाठ को प्रस्तत करता ह,ै व्याख्या करता ु ह ै एि बोध कराने के वलए उवचत उिाहरण का सहारा लेता ह।ै वशक्षणोत्तर वक्रया(चरण) म ें वशक्षक ं वशक्षावथभयों से अवधगम प्रवतर्ल की अपेक्षा रखता ह।ै इसके वलए कई प्रविविधयों जसै े-प्रश्नोत्तर, भाषण, लेखन आवि का उपयोग करता ह ै । एक ओर जहाँ वशक्षक म ें अपने विषय पर पण भ अवधकार होना आिश्यक ह ै िहीं िसरी ओर ू ू वशक्षण कौशल का ज्ञान एि प्रयोग िोनों ही वशक्षण अवधगम प्रवक्रया को सगम एि सरल बनाता ह ै । ु ं ं अन्य योग्यताए ाँ अन्य अपेवक्षत योग्यताओ म ें वशक्षक म ें वशक्षण प्रवक्रया को प्रभािी बनाने के वलए वनम्नावकत सहायक ं ं वशक्षण कौशलों तथा सहायक सामावग्रयों के प्रयोग की योग्यता भी अन्यतम ह,ैं यथा – (क) प्रस्तािना (ख) प्रश्न पछना ू (ग) सक्ष्म रुप से जाँच करना ू (घ) पनबभलन करना ु (ङ) स्पष्ट करना (च) उिाहरण िके र समझाना (छ) अध्येताओ के अिधानात्मक व्यिहार को पहचाना ं (ज) दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग करना। (झ) श्यामपट्ट उपयोग करना (ञ) मौन तथा अशावब्िक सके त िने ा। ं (ट) उद्दीपन म ें विविधता लाना। (ठ) समापन करना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 183 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं अभ्यास प्रश्न 6. माध्यवमक स्तर के सस्कत वशक्षक की अवनिायभ योग्यता क्या ह?ै ृ ं 7. व्यािसावयक योग्यता का अथभ वलख।ें 5.6 सस्ं कृ त वशक्षक एवं भाषायी कौशल सस्कत वशक्षक एक भाषा वशक्षक होता ह।ै सस्कत शास्त्
रीय भाषा ह ै जो आम लोगो के बोलचाल से िर ृ ृ ं ं ू ह।ै यहाँ तक की सस्कत जानने िाले या उपावध धारकों का एक िग भ ऐसा ह ै जो सस्कत को अन्य भाषा के ृ ृ ं ं माध्यम से पढ़त-े वलखते ह।ैं ऐसे िग भ सस्कत म ें वनवहत ज्ञान क
ो ही ग्रहण करत े ह ैं ना वक सस्कत भाषा को। ृ ृ ं ं आपको सस्कत वशक्षक होने के कारण सस्कत भाषा पर पण भ अवधकार होना चावहए तावक आपने ृ ृ ू ं ं वशक्षावथभयों, भाषा के विविध तत्त्िों को विविध भाषाई कौशल के माध्यम से विकवसत कर सके । सस्कत ृ ं वशक्षक को श्रिण-िाचन-पठन तथा लेखन कौशल के साथ-साथ
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‘वनिानात्मक एि उपचारात्मक’
तथा ं वक्रयात्मक अनसधान का पयाभि ज्ञान हो। वजससे वक भाषा अवधगम म ें आने िाली कवठनाईयों को िर कर ु ं ू वशक्षण को बोधगम्य बना सकें । श्रवण कौिि भाषा अवधगम वसद्धान्त का प्रथम चरण ह ै श्रिण करना। श्रिण से अवभप्राय ह ै सनना तथा समझना, ु मौवखक भाषा म ें श्रिण का सिाभवधक महत्त्ि ह ै । श्रिण तथा िाचन म ें अन्योन्यावश्रत सम्बन्ध ह।ै श्रिण के वलए श्रिणवे न्द्रय का ठीक होना शारीररक कारण ह ै िहीं मानवसक कारण वचत्त का एकाग्र होना अथाभत अिधान का िसरा स्थान ह,ै तीसरा उद्दश्े य के वन्द्रत ् ू होना। एक भाषा वशक्षक म ें उक्त वक्रयाविवधयों का ज्ञान जरूरी ह।ै क्योंवक जसै ा सनता ह ै व्यवक्त ठीक िसै ा ु ही बोलता ह।ै अतः क्या, वकतना और कै से? सने इस बात का विशषे ध्यान रखना चावहए। भारतीय श्रवत ु ु परम्परा प्राचीन एि समद्ध ह ै । ृ ं वाचन कौिि िाचन अथिा बोलना वशक्षक का प्रमख कौशल ह।ै कहा भी गया ह-ै
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“ऐसी िाणी बोवलए मन का आपा ु खोय औरन कौ शीतल करे आपह शीतल होय।”
अथाभत आपकी िाणी श्रोता को प्रभावित करने िाली ु ् हो। इसम ें भाषा-वशक्षक की सबसे बड़ी भवमका ह।ै सि भ प्रथम भाषा वशक्षक उछचारण पर ध्यान िके र, शद्ध ू ु उछचारण का अभ्यास करें। क्योंवक भाषा वशक्षक का सिश्रभ ेष्ठ गण उनका शद्धोछचारण ह।ै आप समझ चके ु ु ु ह ैं वक सस्कत एक सवश्लष्टावत्मका भाषा ह।ै इसमें शब्िों के अशद्ध उछचारण से अथभ का अनथभ हो जाता ह।ै ृ ु ं ं सवध तथा समावसक पिों के विछछेि ि विग्रह गलत होने से उसका अथभ भी विपरीत हो सकता ह।ै इस ं तरह अशद्ध उछचारण के िो कारण हो सकते ह-ै उछचारण स्थान का िवषत होना तथा अशद्ध अनकरण । ु ु ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 184 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं आपने िखे ा वक शद्ध उछचारण के वलए प्रथम उत्तरिायी पक्ष ह ै -उछचारण स्थान से सम्बवन्धत अियि ु जसै े-नाक, कान, वजह्वा, ओष्ठ, कण्ठ, िन्त आवि का िोष रवहत होना। िसरा पक्ष ह-ै अशद्ध तथा अपण भ ु ू ू अनकरण। इसके वलए शैवक्षक िाता िरण का न होना एि क्षेवत्रय प्रभाि। इन सभी िोषों को िर करने का ु ं ू िावयत्ि एक भाषा वशक्षक का होता ह ै । अतः उवचत पयिभ क्षे ण, भाषा प्रयोगशाला, िणवभ िछछेि तथा वनिवे शत अभ्यास के माध्यम से शद्ध उछचारण का अभ्यास कर, अपने विनचयाभ तथा कक्षा-कक्ष म ें उसका ु उपयोग कर वशक्षाथच म ें उछचारण/शद्ध िाचन कौशल का विकास कर सकते ह ैं । ु पठन कौिि पठन तो सभी वशक्षकों का कतभव्य ह,ै अवपत भाषा वशक्षक का इस वक्रया म ें वनष्ट्णात होना अवनिायभ ह।ै ु पठन वक्रया लेखक ि श्रोता(बोद्धा) के अन्तःकरण को जोड़ता ह।ै लेखक के भािों तथा विचारों से श्रोता(बोद्धा) को अिगत करता ह ै । पठन वक्रया के सम्पािन म ें आवगक अियि यथा- आखँ , नाक,ओष्ठ, वजह्वा, िन्त आवि का सब ं से बड़ा योगिान ह।ै साथ ही शद्ध ि सस्िर पाठ के वलए उवचत प्रवशक्षण की आिश्यकता पड़ती ह,ै ु वजससे वक विविध विराम वचह्नों, गवत तथा लय के अनरुप पाठ वकया जा सके । विराम वचह्नों का पण भ ज्ञान ु ू ही लेखक के विचारों को अवभव्यवक्त का प्रमख साधन ह,ै िहीं गवत तथा लय कवि के भािों, सौन्ियभ तथा ु रसानभवत म ें सहायक होता ह।ै अतः सस्कत भाषा वशक्षक को सस्कत के ध्िवन-वचह्नों, विरामवचह्नों एि ृ ृ ु ू ं ं ं छन्िों का ज्ञान योग्य वशक्षक से प्राि कर अपने पठन कौशल को कशल बनाना चावहए। तावक वशक्षाथच ु को विवभन्न प्रकार के पठन म ें िक्ष बनाया जा सके । िेखन कौिि वलवखत भाषा म ें लेखन का महत्त्ि सिाभवधक ह।ै लेखन से अवभप्राय वलवप ज्ञान से सजनात्मक लेखन ृ पयभन्त ह।ै इसके वलए सिाभवधक िावयत्िपण भ व्यवक्त भाषा वशक्षक ह।ै जो वशक्षाथच को वलवप ज्ञान (ध्िवन ू सके त), शब्ि वनमाभण, िाक्य वनमाभण तथा सजनात्मक लेखन
का ज्ञान प्रायःअनलेख, सलेख, श्रतलेखक ृ ु ु ु ं तथा रचना (पत्र एि अनिाि) के माध्यम से कराता ह ै । ु ं अनलेख ि सलेख द्वारा शद्ध ितभनी ि मात्राओ का ज्ञान
दृढ़ होता ह,ै आखँ और हाथ का समन्िय ु ु ु ं होता ह।ै िहीं श्रतलेख द्वारा लेखन म ें गवत तथा कान और हाथ म ें समन्िय होता ह।ै जबवक रचनात्मक ु (पत्र, वनबध ि कविता) लेखन(रचना) द्वारा मन के विचार, वचन्तन ि अनभि को एक सकारात्मक ु ं आकार/स्िरूप प्रिान वकया जाता ह।ै अथाभत सस्कत वशक्षक उक्त लेखन वक्रयाओ द्वारा वशक्षावथभयों को ृ ् ं ं लेखन कौशल म ें िक्ष बनाने का प्रयत्न करेंग े । शनिानात्मक एव उपचारात्मक शिक्षण एव शक्रयात्मक अनसधान का ज्ञान ु ं ं ं वशक्षण अवधगम प्रवक्रया म ें वशक्षक का स्थान एक वचवकत्सक का होता ह।ै वसखाना सरल कायभ ह ै परन्त ु सीखने म ें आने िाली कवठनायों तथा अशद्ध अवधगम को बतलाना कवठन कायभ ह।ै वशक्षक िही सर्ल ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 185 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं माना जाता ह ै जो उक्त वक्रया सम्पािन में समथभ हो। विशेष रुप से सस्कत भाषा वशक्षक के वलए यह ृ ं िावयत्िपण भ कायभ ह,ै क्योंवक वशक्षावथभयों म ें िण भ तथा शब्िों का सम्प्रत्यय पाँचिी कक्षा तक मातभाषा के ृ ू माध्यम से बन चका होता ह ै जो सही तथा गलत िोनो हो सकते ह।ैं सही तो सही ह ै परन्त वजन गलत ु ु सम्प्रत्ययों का विकास हो चका होता ह ै उसे ठीक कराना, नाकों चने चबाने से कम नहीं ह।ै इसके वलए ु भाषा वशक्षक म ें वनिानात्मक एि उपचारात्मक वशक्षण के साथ वक्रयात्मक अनसधान का ज्ञान अपेवक्षत ु ं ं ह।ै िखे ा गया ह ै वक वशक्षाथच -विसग(भ :) का उछचारण अह के जगह एह अथिा अहा करता ह।ै इसी प्रकार से- . (अ), ँाँ (अननावसक), ऋ का रर, रु/र,
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‘न’
का ण तथा ण का न, र का ड़ तथा ड़ का र, ि का ब तथा ु ं ब का ि, ि य(द्य) का ध, श, ष, स का ष, श, स एि स, ष, श, क्ष का छ अथिा छछ आवि िोषों के साथ ं ् मात्राओ की गलवतयाँ ह्रस्ि शँ,ँु के जगह िीघ भ ँी, ँू तथा िीघ भ के जगह ह्रस्ि तथा विरामवचह्नों का ं भी िोषपण भ ज्ञान होता ह।ै अतः सस्कत वशक्षकों के पास इन िोषों का पता लगाना तथा उसका उपचार ृ ू ं करने के वलए वक्रयात्मक अनसधान ही कारगर उपाय ह।ै वजनके प्रयोग द्वारा भाषा वशक्षक वशक्षावथभयों के ु ं भाषा िोषों को िर करने का प्रयत्न करता ह ै । ू अभ्यास प्रश्न 8. प्रमख भाषायी कौशलों के नाम वलख।ें ु 9. भाषा िोषों को िर करने के वलए प्रमख साधनों का उकलेख करें। ु ू 5.7. सािांश आप ने प्रस्तत इकाई म ें वशक्षक के विवभन्न नाम-वशक्षक, शास्त्री, उपाध्याय, आचायभ, गरू इत्यावि का ु ु पररचय प्राि वकया ह।ै विद्यालय म ें अथभ के आधार पर कक्षा वशक्षक तथा विषय वशक्षक एि भाषा वशक्षक ं पनः प्रथम(मात) भाषा वशक्षक एि वद्वतीय(अन्य) भाषा वशक्षक म ें अन्तर करना सीखा ह ै । ृ ु ं भाषा वशक्षक के रुप म ें सस्कत भाषा वशक्षक का आशय़ एि भाषा अवधगम म ें भाषा वशक्षक की ृ ं ं भवमका एि महत्ि तथा कत्तव्भ य का अध्ययन वकया ह ै । ू ं सस्कत भाषा वशक्षक के गणों को जसै े- व्यवक्तत्ि अथाभत िैयवक्तक गण के अन्तगभत वशक्षक का स्िभाि, ृ ् ु ु ं कत्तव्भ य, सस्कत भाषा पर अवधकार, वशक्षावथभ के प्रवत व्यिहार, सामावजक गण, वशक्षक सिप्रभ थम एक ृ ु ं सामावजक प्राणी ह।ै अतः समाज की उनसे आशा तथा समाज के प्रवत उनके िावयत्ि, मनोिज्ञै ावनक गण, ु भय, क्रोध, वचन्तन, स्मवत तथा सििे ना तथा नैवतक गणों के रुप म ें वनयमबद्धता,समयबद्धता, ईमानिारी, ृ ु ं कत्तव्भ यवनष्ठता जसै े गण भाषा वशक्षक को वकस तरह एक आिश भ वशक्षक के रुप म ें प्रवतवष्ठत करता ह ै । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 186 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं भाषा वशक्षक की योग्यता के अन्तगतभ शवै क्षक तथा व्यािसावयक योग्यता पनः उपावध एि
भाषा एि ु ं ं सावहत्य िोनो पक्षों के ज्ञान का वििचे न वकया गया ह।ै व्यािसावयक योग्यता के अन्तगतभ अवनिायभ प्रवशक्षण तथा वशक्षणशास्त्र की अवनिायभता को स्पष्ट वकया गया ह ै साथ ही अन्य भाषा का ज्ञान
एि अन्य ं योग्यता का भी पररचय कराया गया ह ै । सस्कत भाषा वशक्षक में उपयभक्त गणों के अवतररक्त तथा अवनिायभ भाषायी कौशल श्रिण-िाचन- ृ ु ु ं पठन एि लेखन कौशल के महत्ि के साथ-साथ वनिानात्मक ि उपचारात्मक वशक्षण म ें सहायक ं वक्रयात्मक अनसधान वकस तरह वशक्षावथभयों के भाषायी िोषों के िर करन े म ें सहायक हो सकता ह ै का ु ं ू िणनभ वकया गया ह ै । 5.8.अभ्यास प्रश्नों के उत्ति 1. उपाध्याय, शास्त्री, आचायभ 2. मातभाषा वशक्षक प्रारवम्भक अथाभत बोलचाल
की भाषा के मानक रुप का वशक्षण करता ह।ै ृ ् जहाँ वशक्षावथभयों म ें मौवखक भाषा का विकास हो चका होता ह।ै मातभाषा वशक्षण म ें वशक्षक के ृ ु अवतररक्त, पररिार तथा वमत्रमण्डली से भी सीखता ह।ै जबवक सस्कत भाषा अन्य भाषा के रूप ृ ं म ें कक्षा छठी से पढ़ाई जाती ह ै तथा यह वशक्षक तथा पाठयपस्तक पर आधाररत ह ै । ् ु 3. विद्यालय म ें कक्षा वशक्षक तथा विषय वशक्षक होते ह।ैं विषय वशक्षक, गवणत, विज्ञान,
सामावजक तथा भाषावशक्षक होते ह।ैं भाषावशक्षक म ें मातभाषा तथा अग्रेजी भाषा के बाि ृ ं सस्कत भाषा वशक्षक का स्थान होता ह।ै कहीं िकै वकपक रुप म ें तो कहीं एक भाषा के रूप म ें ृ ं कछ छात्रों द्वारा सीख े जाने से सस्कत भाषा वशक्षक का स्थान सम्मान जनक ह ै । ृ ु ं 4. ियै वक्तक, सामावजक, मनोिज्ञै ावनक तथा नैवतक । 5. समय से कक्ष म ें आते थे। प्रत्येक विन एक छोटे सस्कत िाक्य वसखाते थे। अनिाि करने का ृ ु ं कायभ िते े थे तथा अगले विन सशोधन करते थे। श्लोक को छन्ि म ें गाने का अभ्यास कराते थे। ं शब्ि रुप या धातरुप प्रयोग के आधार पर वसखाते थे । ु 6. सस्कत स्नातक तथा बी.एड. या वशक्षाशास्त्री । ृ ं 7. वशक्षणशास्त्र का ज्ञान । 8. श्रिण कौशल, िाचन कौशल, पठन कौशल एि लेखन कौशल । ं 9. भाषािोषों को िर करने के वलए वनिानात्मक तथा उपचारात्मक वशक्षण तथा वक्रयात्मक ू अनसधान के वक्रयाविवधयों के साथ-साथ वशक्षक की भाषायी अवभरूवच प्रमख साधन ह ै । ु ु ं 5.9 उपयोगी पुस्तकें 1. वशक्षण और अवधगम की सजनात्मक पद्धवतयाँ, सन्तोष शमाभ, एन.सी.ई.आर.टी, नई विकली। ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 187 ु सस्कत का शिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 6 ृ ं 2. वशक्षण कौशल- प्रो. कष्ट्ण कमार- एजके शन मीरर । ृ ु ु 3. Models of the Knowledge Base of Second language Teacher Education- Richard Day, University of Hawai. 4. Language Teacher Education: An Integrated Program for ELT Teacher Training- Roger Bowens. CFILTR London-1987. 5. सस्कत वशक्षण-डा. रामशकल पाण्डेय-विनोि पस्तक मवन्िर, आगरा । ृ ु ं 6. सस्कत वशक्षण- डा. सतोष वमत्तल- आर.लाल.बक. वडपो, मेरठ । ृ ु ं ं 7. वहन्िी वशक्षण- प्रो. रमन वबहारी लाल- रस्तोगी बक, मरे ठ । ु 8. Teaching of Social Science: Dr. R.A Sharma, R. Lal B.D. Meerut. 5.10 वनबन्धात्मक प्रश्न 1. भाषा वशक्षण म ें वशक्षक की भवमका की समीक्षा करें। ू 2. सस्कत भाषा वशक्षक के कत्तव्भ यों का िणनभ करें। ृ ं 3. सस्कत भाषा वशक्षक के विवभन्न गणों को उिाहरण िके र समझाए।ँ ृ ु ं 4. सस्कत भाषा वशक्षण क्रम म ें आने िाले कवठनाईयों का उकलेख करें। ृ ं 5. सस्कत वशक्षण म ें रुवच उत्पन्न करने िाले वक्रयाकलापों की उपयोवगता का िणनभ करें। ृ ं 6. वशक्षावथभयों के भाषाई िोषों को पता लगाने िाले वक्रयाविवधयों का उकलेख करें। 7. वशक्षक के वलए वक्रयात्मक अनसधान के महत्त्ि का िणनभ करें। ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 188 ु

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