BED I- CPS 3 अधिगम के धिए आकँ िन Assessment for Learning धिक्षक धिक्षा धिभाग, धिक्षािास्त्र धिद्यािाखा उत्तराखण्ड मक्त धिश्वधिद्यािय, हल्द्वानी ु ISBN: 13-978-93-85740-68-8 BED I- CPS 3 (BAR CODE) BED I- CPS 3 अिधगम के िलए आकँ लन Assessment for Learning िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ #ानी ु अ
"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ"
य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ
"य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* ु ु उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर मह$मद िमयाँ (बा# िवशषे )- सद#य), पव$ अिध(ाता, िश#ा सकाय, !ोफे सर सी० बी० शमा$ (बा# िवशषे )- सद#य), अ&य', रा*+ीय ु ू ं जािमया िमि&लया इ)लािमया व पव- कलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद 0 म# िव&ालयी िश,ा स/थान, नोएडा ू ु ु ं ू िव#िव$ालय, हदै राबाद !ोफे सर पवन कमार शमा/ (बा# िवशषे )- सद#य), अिध(ाता, ु !ोफे सर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशषे )- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा सकाय व सामािजक िव,ान सकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी ं ं एम० जे० पी० !हले ख&ड िव*िव+ालय, बरेली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफे सर के ० बी० बधोरी (बा# िवशषे )- सद#य), पव( अिध,ाता, िश0ा सकाय, !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ु ू ं ं एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश#ाशा% ं ं उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ं म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स!ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ु उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा एव सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु ु ं िव#िव$ालय स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एव सह- ु ु ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं ं ु िश#ाशा% िव'ाशाखा एव सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख!ड ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, िश3ाशा4 ु ं ं म# िव&िव'ालय ु िव#ाशाखा एव सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव!ालय ु ं िदशाबोध: (ोफे सर जे० के ० जोशी, पव$ िनदशे क, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 िव8िव.ालय, ह =ानी ू ु काय$%म सम(वयक: काय$%म सह-सम#वयक: पाठय&म सम)वयक: पाठय&म सह सम*वयक: ् ् डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड उ
"राख&ड म* िव#िव$ालय, म# िव&िव'ालय, ह,-ानी, नैनीताल, उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, म# िव&िव'ालय, ह
"#ानी, नैनीताल, ु ु ु ु ह"
#ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ #ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ
"राख&ड !धान स&पादक उप स$पादक डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ"राख&ड ु ु िवषयव%त स)पादक भाषा स%पादक !ा#प स&पादक !फ़ सशोधक ु ू ं स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु ु ु सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म# िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु ु ु ु िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय साम$ी िनमा(ण !ोफे सर एच० पी० श#ल !ोफे सर आर० सी० िम# ु िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय िनदशे क, एम० पी० डी० डी०, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय ु ु © उ
"राख&ड म# िव&िव'ालय, 2017 ु ISBN-13-978-93-85740-68-8 !थम स&करण: 2017 (पाठय&म का नाम: अिधगम के िलए आकँ लन, पाठय&म कोड- BED I- CPS 3) ् ् ं सवा$िधकार सरि%त। इस प%तक के िकसी भी अश को !ान के िकसी भी मा+यम म - .योग करने से पव5 उ7राख9ड म िव#िव$ालय से िलिखत अनमित लेना आव1यक ह।ै इकाई ु ु ं ू ु ु लेखन से सबिधत िकसी भी िववाद के िलए पण65 पेण लेखक िज8मदे ार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ"
राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म 2 होगा। ं ं ू िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय 8ारा िनदशे क, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ िव2िव3ालय के िलए मि6त व 8कािशत। ु ु ु !काशक: उ
"राख&ड म* िव-िव.ालय; म#क: उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय। ु ु ु काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठय&म का नाम: अिधगम के िलए आकँ लन, पाठय&म कोड- BED I- CPS 3 ् ् ख"ड इकाई स#या स#या इकाई लेखक ं ं 1 2 व 3 डॉ० अिखलेश कमार ु सहायक &ोफे सर, िश#ा िव&ापीठ, वधम# ान महावीर खला िव.िव/ालय, कोटा, राज5थान 2 5 ु 1 4 डॉ० सज$दय भ(ाचाया+ ु सहायक &ोफे सर, िश#ा िवभाग, राजक%य महािव+ालय, मगरउरा, /तापगढ़, उ3र/दशे 1 5 डॉ० आशीष %ीवा(तव सह !ोफे सर, िश#ा िवभाग, िवनय भवन, िव#भारती, शाितिनके तन, वीरभिम, पि1म बगाल ं ू ं 2 2 डॉ० सोम िसह ू ं 4 4 व 5 सहायक &ोफे सर, िश#ा सकाय, काशी िह'द िव+िव,ालय, वाराणसी, उ"र$दशे ं ू 2 3 डॉ० पकज कमार ं ु 3 2 सहायक &ोफे सर, एन० आई० ई० पी० वी० डी०, दहे रादन, उ)राख+ड ू 2 4 डॉ० िगरीश कमार ितवारी ु अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, मिहला महािव'ालय, काशी िह,द िव/िव'ालय, वाराणसी ू 3 3 स#ी ममता कमारी ु ु सहायक !ोफे सर, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ
"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, उ"
राख&ड ु 3 4 व 5 !ोफे सर रजनी रजन िसह ं ं अिध$ाता, िविश) िश*ा सकाय, शक0तला िम3ा रा56ीय पनवा:स िव;िव ालय, लखनऊ ं ु ु BED I- CPS 3 अिधगम के िलए आकँ लन Assessment for Learning ख
"ड 1 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 2-15 2 आकलन के &ित िविभ+न ,ि-कोण 16-29 3 आकलन क% पारप*रक मा,यता (अिधगम का आकलन एव अिधगम के िलए आकलन) ं ं 30-51 4 शिै $क म(याकन एव अिधगम ू ं ं 52-66 5 रचना%मक !ितमान म ' आकलन और म.याकन ू ं ख"
ड 2 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 68-86 2 भाषाई बि(, सगीत बि) और तािक. क बि$ के सदभ + म - सीखने के प"रणाम' का आकलन ु ु ु ं ं 87-101 3 !थािनक तथा दिै हक-गित सवेदी बि* आधा.रत अिधगम का आकलन ु ं 102-118 4 अिधगम के प)रणाम का म.याकन अतःवैयि6क, अतव%यि(क एव +कितवादी बि2 के ृ ू ु ं ं ं ं सदभ % म ' ं 119-137 5 आकलन के िविभ$न उपकरण ख"ड 3 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 139-151 2 म#याकन के प+रणाम तथा आ1म-स"मान िवकास ू ं 152-164 3 अिधगम म & अिभ(ेरणा का मह/व तथा आकलन के प*रणाम. के /भाव का इससे स4 ब!ध 165-182 4 यो#यता और उपलि,ध का आकलन: िफ2सड माइडसेट उपागम बनाम ोथ माइडसेट ं ं उपागम, एव िवकलागता और असफलता के स01यय3 को यो5यता और उपलि8ध के ं ं ं स#$यय& के दसरे पहल के /प म 1 दखे ने क4 #वित ृ ू ं ू 183-195 5 शिै $क आकलन क) उन !णािलय' का अवैधानीकरण करना जो परपरागत आकलन के ं मा#यम से 'ितयोगी-चयन पर आधा)रत ह,, जो समाज म 1 स2ा-वच$# व के समीकरण को बनाये रखने क) िदशा म . काम करती ह 2 एव ऐसे दशे $ के अनभव$ का िसहावलोकन ु ं ं िज#ह%ने सभी ब,च% क/ अिधगम गणव7ा को बढ़ाया तथा परी@ा म A Bितयोिगता को Cेड ु !णाली से !ित*थािपत करके समा0 िकया ख"ड 4 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 2 इकाई: दो - 3 इकाई: तीन - 197-207 4 िश#क% क& उ(च *वाय.ता के आलोक म 5 सहभागी आकलन एव सामदाियक िनगरानी ु ं से स#बि&धत के स अ+ययन. का िसहावलोकन ं 208-226 5 आकलन: चनौितय( एव म#$ क" आलोचना'मक समझ; वा#तिवक, !यापक, गितशील ु ु ं आकलन %ि'या क* समझ एव इसको क3ा म 4 लाग करने हते उपय! रणनीितयाँ; भावी ू ु ु ं िश#क% क& तैयारी हते िनिहताथ2 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 1 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 2- आकलन के प्रति तितिन्न दष्टिकोण ृ Perspectives of Assessment in Different Paradigms 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 आकलन का व्यिहारिादी दृविकोण 2.3.1 व्यिहारिाद की मान्यताए ं 2.3.2 व्यिहारिाद एि आकलन ं 2.4 रचनािाद का सविप्त पररचय ं 2.4.1 रचनािाद की मान्यताए एि रचनािाद के अनसार वििण, अविगम, वििक ु ं ं एि विद्यार्थी ं 2.4.2 आकलन के प्रवत रचनािादी दृविकोण 2.5 आकलन का सज्ञानात्मक रचनािादी दृविकोण ं 2.5.1 सज्ञानात्मक रचनािाद एि आकलन ं ं 2.6 आकलन का सामाविक सस्कवतिादी दृविकोण ृ ं 2.6.1 रचनािादी सामाविक सस्कवतिाद की मान्यताए ृ ं ं 2.6.2 रचनािादी सामाविक सस्कवतिाद एि अविगम ृ ं ं 2.6.3 सज्ञानात्मक रचनािाद (वपयािे) एि सामाविक सस्कवतिाद (िायगोत्सकी) ृ ं ं ं की तलना ु 2.6.4 सामाविक सस्कवतिाद एि आकलन ृ ं ं 2.7 साराि ं 2.8 सन्दर्भ ग्रन्र्थ सची / अन्य अध्ययन ू 2.9 वनबिात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना आकलन वििा का एक महत्िपण भ अग ह ै सामान्य अर्थों म ें आकलन का अर्थभ ह।ै वकसी व्यवक्त या समह ू ू ं से सबवित सचना सग्रहण की प्रविया से ह ै तावक व्यवक्त या समह वििषे के सन्दर् भ म ें कोई वनणयभ वलया ू ू ं ं िा सके । ितभमान समय म ें िवै िक आकलन के िेत्र म ें िहत पररितभन आये ह ैं विसका एक उदहारण ह ै ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 2 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आवकक वसस्टम को िे वडट आिाररत ग्रेवडग वसस्टम म ें पररिवतभत कर वदया गया ह।ै िवै श्वक स्तर पर हए ु ं ं अनसिानों म ें योगात्मक आकलन की बिाय रचनात्मक आकलन पर िोर वदया िाने लगा ह ै प्रस्तत ु ु ं इअकई म ें आप आकलन के प्रवत विवर्न्न दृविकोण यर्था व्यिहार िादी दृविकोण, रचनािादी दृविकोण, सज्ञानात्मक रचनािादी दृविकोण एि सामाविक सस्कवतिादी दृविकोणों का अध्ययन करेंग े और यह ृ ं ं ं िानेंग े वक आकलन के िेत्र में आ रह े िवै श्वक पररितभन के वलए वििण अविगम की वकस विचारिारा के प्रर्ाि के कारण ह।ै 2.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - 1. आकलन का पारपररक व्यिहार िादी दृविकोण एि उसके अनसार आकलन का िणनभ कर ु ं ं सकें ग े 2. आकलन का रचना िादी दृविकोण एि उसके अनसार आकलन का िणनभ कर सकें ग े ु ं 3. सज्ञानात्मक रचनािाद की व्याख्या कर सकें ग े ं 4. सामाविक-सस्कवतिाद एि आकलन का वििरण द े सकें ग े ृ ं ं 5. िायगोत्सकी के समाि- सास्कवतक वसद्ात की चचाभ कर सकें ग े ृ ं ं 2.3 आकलन का पारंपररक व्यवहारवादी दष्ृ टिकोण आकलन के पारपररक व्यिहारिादी दृविकोण विसे अविगम का आकलन की सज्ञा र्ी दी िाती ह ै का ं ं मख्य उद्दश्े य (Summative) ह ै िो सामान्यतः वकसी कायभ या कायभ की, इकाइ भ की समावप्त ु पर वकया िाता ह।ै िस्तत: विद्यार्थी की सप्रावप्त के प्रमाण उसके माता वपता, ु ं ं वििक, विद्यार्थी स्िय अर्थिा अन्य व्यवक्तयों के वलए प्रस्तत करता ह ै । अविगम का आकलन िस्ततः ु ु ं ं व्यिहारिाद की दने ह।ै व्यिहारिाद मनोविज्ञान का एक महत्िपण भ दृविकोण ह ै िो मानि के सर्ी प्रत्यि ू व्यिहारों का अध्ययन करता ह।ै व्यिहारिाद का िनक प्रवसद् मनोिज्ञै ावनक ि.े बी. िाटसन को माना िाता ह।ै व्यिहारिाद पर आिाररत अविगम वसद्ान्तों म ें सबसे प्रमख योगदान बी.ए.. वस्कनर का ह।ै ु व्यिहारिाद, अविगम को, अविगम हते प्रेररत उद्दीपक एि अनविया के मध्य एक सबिन के रूप म ें ु ु ं ं ं दखे ता ह ै िो परस्कार एि दण्ड के द्वारा सचावलत होता ह।ै मनोविज्ञान पर व्यिहारिादी दृविकोण ने गहरा ु ं ं प्रर्ाि डाला ह।ै वििण अविगम की प्रविया पर र्ी अविकाि अनसन्िान एि वसद्ातों का विकास ु ं ं ं व्यिहारिादी मनोिज्ञै ावनकों द्वारा वकये गए। वििण एि अविगम की सम्पणभ प्रविया पर 1990 के दिक ू ं तक सिाभविक प्रर्ाि व्यिहारिाद का रहा और तदनसार िवै िक आकलन एि मल्याङकन की रूप रेखा ् ु ू ं पर र्ी इनका गहन प्रर्ाि दृविगोचर होता ह।ै व्यिहार िादी मनोिज्ञै ावनक अवतिातािरण िादी (Extreme Environmentalist) र्थे। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 3 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.3.1 व्यवहार वाधियों की मान्यताए ं व्यिहार िावदयों की मान्यता र्थी वक i. मानि का सम्पण भ अविगम मानि एि िातािरण के पारस्पररक अनविया के कारण विवर्न्न ू ु ं उद्दीपक एि उनके प्रवत अनविया के सबिन का पररणाम ह।ै ु ं ं ं ii. बालक िब पैदा होता ह ै तब टेबला रसा (tabula rusa) अर्थाभत एक खाली स्लेट के समान ु होता ह।ै व्यव्हारिावदयों ने वचतन, समस्या समािान, स्मवत िसै ी मानवसक प्रविया की ृ ं ं िन्मिात उपवस्र्थवत की उपेिा की। iii. मानि व्यिहार मापनीय एि वनररिणीय होते ह।ैं ं iv. व्यिहारिाद के अनसार अविगम उद्दीपक एि अनविया के बीच विवर्न्न पनबभलनों की सहायता ु ु ु ं से वकये गए अनबिन का पररणाम ह।ै ु ं v. वदए गए उद्दीपक पर सीखी गयी अनविया
बार बार प्रदान करना अविगम का सचक ह।ै ु ू vi. वििक का प्रयास वििण के दौरान उद्दीपक एि अनविया के मध्य के सबिन विसे वििक ु ं ं ं उपयक्त समझता ह,ै पनबभलन के द्वारा म
िबत करना ह ै ु ु ू 2.3.2 व्यवहार वाि एव आकिन ं इस प्रकार व्यिहारिादी मनोिज्ञै ावनकों ने वििण अविगम की सम्पण भ प्रविया म ें मानि सज्ञान यर्था सोचन े ू ं की िमता, तकभ करने की िमता, समस्या समािान की िमता, व्यवक्त का सामाविक एि सास्कवतक ृ ं ं पररप्रेक्ष्य आवद सर्ी की उपेिा करते हए विद्यार्थी को एक वनवरिय ग्रहण कताभ के रूप म ें दखे ते हए ु ु वििण अविगम हते विवर्न्न विवियों एि तदनसार आकलन के मानक तय कर वदए। व्यिहारिादी ु ु ं मनोिज्ञै ावनकों ने अपनी विवर्न्न मान्यता के आिार पर आकलन के िो मानक तय वकये उनके ं अनसार आकलन का उद्दश्े य वदए गए उद्दीपक पर विद्यार्थी से अपेवित अनविया प्राप्त करना ह ै (िो उसे ु ु अनबिन के दौरान वसखाई गयी ह)ै एि आकलन मख्यतः सीखी गयी अनविया के प्रत्यास्मरण पर ु ु ु ं ं आिाररत होना चावहए। अपनी विवर्न्न मान्यता के आिार पर व्यिहारिावदयों ने िो आकलन के उपकरण सझाये ि े ु ं प्रत्यास्मरण पर आिाररत र्थे विनम े वलवखत परीिा अर्थिा पेपर पेंवसल टेस्ट प्रमख र्थे । सार्थ ही ु व्यिहारिावदयों ने आकलन के आिार पर विद्यावर्थभयों की रैंवकग एि उनके सप्रावप्त के मात्रात्मक आकलन ं ं ं को बढ़ािा वदया। पररणामतः िीरे िीरे योगात्मक आकलन की महत्ता बढती चली गयी। आकलन का उद्दश्े य विद्यावर्थभयों के कवर्थत अविगम स्तर म ें विर्दे करना एि तदनसार उन्ह ें विर्ीन्न श्रेवणयों म ें रखना ु ं मात्र हो गया। इस कारण विद्यावर्थभयों पर विवर्न्न प्रकार के प्रत्यास्मरण पर आिाररत परीिणों का बोझ बढ़ता चला गया और उनकी रचनात्मकता की उपेिा होती गयी। ियिहार िावदयों द्वारा सझाये गए ु आकलन एि आकलन के उपकरण मख्यतः विद्यार्थी के वन्ित न होकर पाठयिस्त के वन्ित र्थे। सार्थ ही ् ु ु ं व्यिहार िावदयों ने अविगम के सज्ञानात्मक, सामाविक एि सास्कवतक पिों की र्ी उपेिा की और ृ ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 4 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सस्कवत मक्त (Culture Free or Culture Fair) परीिणों के विकास पर ध्यान कें वित रखा .लतः ृ ु ं अविगम का उद्दश्े य पाठयिम की समावप्त पर म ें उच्च अक प्राप्त करना मात्र रह ् ं ं गया। 2.4 रचनावाद / संरचनावाद (Constructivism) का सरं िप्त पररचय रचनािादी विचार िारा के प्रितभक के रूप म ें सप्रवसद् मनोिज्ञै ावनक िीन वपयाि े (Jean Piaget) को ु माना िाता ह ै विनके सज्ञानात्मक विकास के वसद्ात ने मनोविज्ञान एि अविगम के प्रवत व्यिहारिादी ं ं ं विचारिारा को चनौती दी और व्यिहारिादी विचारिारा से इतर मनोविज्ञान म ें सज्ञान िादी ु ं (Cognitive) विचारिारा की नींि रखी । िस्ततः िीन वपयाि े ने व्यिहारिादी मान्यता वक
‘बालक वस.भ ु िातािरण से सीखता ह’
ै की बिाय यह माना वक बालक के अविगम म ें िातािरण के सार्थ सार्थ उसकी सज्ञानात्मक प्रविया का योगदान र्ी ह ै और िातािरण एि मानवसक सरचना की पारस्पररक अन्तः ं ं ं ं ं विया बालक के अविगम म ें महिपण भ र्वमका वनर्ाती ह ै । बाद म ें दसरे महत्िपण भ रचनािादी ू ू ू ू मनोिज्ञै ावनक लेि िाईगोत्सकी (Lev Vygotsky) ने इस मान्यता को ख़ाररि वकया वक बालक वस.भ मानवसक प्रविया एि िातािरण की अन्तःविया से सीखता ह ै । वपयाि े से अलग िाईगोत्सकी ने ं ं बताया की अविगम हमिे ा सामाविक सास्कवतक िातािरण म ें होता ह,ै अतः अविगम को हमिे ा ृ ं सास्कवतक एि सामाविक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ा िाना चावहए । सार्थ ही उन्होंने यह र्ी बताया वक बालक के ृ ं ं अविगम म ें उसके समाि एि सस्कवत की महिपण भ र्वमका होती ह ै । इस प्रकार रचनािादी दृविकोण दो ृ ू ू ं ं अलग विचारिारा म ें बट गया: पहला ज्ञान रचनावाि (Cognitive Constructivism) विसके ं ं प्रवसद् विद्वान िीन वपयाि े (Jean Piaget) , ब्रनर (Jerome Bruner), गनै े (Gagne) आवद रह े और ू दसरा सामाधिक सस्कधतवाि (Socio-Culturist Perspective) धिसके प्रवततक एव प्रबि ृ ं ं ू समर्तक िाईगोत्सकी (Lev Vygotsky) रह े । रचनािाद के अनसार प्रत्येक वििार्थी अपने स्िय के वलए ज्ञान का वनमाभण करता ह।ै रचनािादी पररप्रेक्ष्य ु ं के अन्तगतभ छात्र एक कोरी स्लेट नहीं होता ह ै बवल्क िह अपने सार्थ पि भ अनर्ि लाता ह,ै िह वकसी ू ु पररवस्र्थवत के सास्कवतक तत्ि और पि भ ज्ञान के आिार पर ज्ञान का वनमाभण करता ह।ै रचनािाद पररप्रेक्ष्य ृ ू ं म ें छात्रों की समालोचनात्मक वचतन ि अवर्प्रेरणा को विकवसत कर उन्ह ें स्ितत्र अविगमकताभ के रूप में ं ं ढाला िाता ह।ै रचनािादी पररप्रेक्ष्य म ें वििण यवक्तया ि गवतविविया अविगम प्रविया पर आिाररत होती ु ं ं ह।ैं रचनािादी पररप्रेक्ष्य का के न्ि ह ै छात्र सिक्तीकरण। िसै े अवर्र्ािक बालक के िन्म के बाद उसके स्ितत्र िीिन यापन के वलए हर सर्ि आिश्यकता की पवतभ करते ह,ैं ऐसे ही रचनािादी पररप्रेक्ष्य का ू ं ं ं उद्दश्े य अविगमकताभ का वनमाभण होता ह ै और वििक उसी के वलए प्रयासरत रहता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 5 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.4.1 रचनावाि की मान्यताए, रचनावाि के अनसार धिक्षण, अधिगम, धिक्षक एव धवद्यार्ी ु ं ं रचनािाद की वििण अविगम से सम्बवित प्रमख मान्यताए वनम्नावकत ह:ैं ु ं ं ं अविगमकताभ ज्ञान की रचना म ें अपने सिदे ी अगों को इनपट की तरह उपयोग करता ह।ै ु ं ं अविगम एक सामाविक प्रविया ह।ै अविगमकताभ वितना अविक िानता ह ै उतना अविक सीखता ह।ै अविगम की प्रविया म ें समय लगता ह ै यह अचानक नहीं होती। अविगम प्रविया में अविगमकताभ सचना को ग्रहण करता ह ै उन पर विचार करता ह,ै उनका ू ं उपयोग करता ह ै ि अभ्यास करता ह।ै अविगम म ें प्रेरणा एक आिश्यक तत्ि ह ै विससे अविगमकताभ के सिदे ी सरचनाए सविय रहती ं ं ं ह।ैं अविगमकताभ दसरे अविगमकताभ ि वििक से सीखता ह।ै ं ू रचनावाि की धविेषताए: ं 1. रचनािाद के .लस्िरूप कई सारी वििण विवियों का विकास हआ ह ै िो रचनािाद के ु वसद्ान्तों के अनरूप ह।ैं ु 2. छात्रों को अपने अविगम के वलए उत्तरदावयत्ि दने ा। 3. छात्रों को अविगम की तैयारी से अविगम के मल्याकन तक सविय रूप से सवम्मवलत रखना। ू ं 4. छात्रों को सामवहक गवतविवियों क वलए अवर्प्रेररत करना। ू 5. छात्रों म ें विज्ञासा को प्रोत्सावहत करना ि उसकी तवप्त हते प्रयास करिाना। ृ ु रचनावाि की सीमायें 1. रचनािाद प्रत्येक अविगमकताभ को विविि मानता ह ै विसके अनरूप उसके अविगम अनर्िों ु ु का वनयोिन होना चावहए, परन्त एक किा म ें एक समय म ें एक से अविक छात्र होते ह ैं विनके ु अनसार अविगम अनर्िाे का वनयोिन िास्तविक म ें सर्ि प्रतीत नहीं होता। ु ु ं ं 2. पाठयिम के विस्तार और विवििता के चलते इस पररप्रेक्ष्य के अनसार पाठयिम समय से पण भ ् ् ु ू करना र्ी एक चनौती ह ै क्योंवक इस पररप्रेक्ष्य म ें अविगम म ें समय ज्यादा लगता ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 6 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रचनावािी धिक्षक की धविेषतायें एक सरचनािादी वििक विद्यावर्थभयों की स्चच्छदता एि आरर् प्रिवत्त को स्िीकार एि प्रोत्सावहत ृ ं ं ं ं करता ह।ै एक रचनािादी वििक पार्थवमक स्रोतों से प्राप्त सचना , अत: वियात्मक वििण सामवग्रयों का ू ं ं प्रयोग करता ह।ै रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों की अनविया के आिार पर अध्यापन, अनदिे नात्मक यवक्तयों के ु ु ु पररितभन अपना पाठय सामग्री म ें पररितभन करता ह।ै ् रचनािादी वििक अपनी िानकारी विद्यावर्थभयों से साझा करने से पहले विवर्न्न सकल्पना पर ं ं विद्यार्थी की समझ को िानने का प्रयास करता ह।ै ं रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों को वििक एि एक दसरे के सार्थ सिाद स्र्थावपत करने के वलए प्रेररत ं ं ू करता ह।ै रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों की विज्ञासा को विचारोंत्तिे क, मक्त, प्रश्नों के माध्यम से एि एक दसरे ु ं ू से प्रश्न पछने के माध्यम से प्रोत्सावहत करते ह।ै ू रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों के आरवर्क अनविया को आग े ले िाता ह।ै ु ं ं रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों को उन अनर्िों के वलए प्रेररत करता ह ै िो उनकी आरवर्क ु ं पररकल्पना के विपरीत हो सकते ह ैं और तब पररचचाभ को प्रोत्साहन दने ा ह।ै रचनािादी वििक विद्यावर्थभयों को (प्रश्न पछने के बाद) उत्तर देने के वलए पयाभप्त समय दते ा ह।ैं ू सबि वनमाभण एि मटे ा.ोर वनमाभण के वलए समय दते ा ह।ै ं ं ं अविगम चि प्रवतमान का प्रयोग करते हए विद्यावर्थभयों की प्राकवतक विज्ञासा को सपोवषत करता ह।ै ु ृ ं 2.4.2 आकिन के प्रधत रचनावािी दृधिकोण (Constructivist Views on Assessment) रचनािादी विद्वान आकलन को एक सिीय प्रविया के रूप म ें दखे ते ह ैं िो अविगम के सार्थ सार्थ चलती ह ै और उसका उद्दश्े य विद्यावर्थभयों को सतत प्रवतपवि दते े हए, आकलन की प्रविया में विद्यार्थी को ु ु सहर्ागी बनाते हए उसे आग े के अविगम के वलए तैयार करना ह।ै इस मान्यता ने आकलन म ें रचनािादी ु आकलन अर्थिा अविगम के वलए आकलन को लोकवप्रय बनाया। अविगम के वलए आकलन िस्तत: ु आकलन का निीन उपागम ह ै िो वििण एि अविगम प्रविया के सार्थ समवे कत ह ै िो विद्यावर्थभयों के ं अविगम उन्नवत के वलए प्रवतपवि प्रदान करता ह।ै िस्तत: अविगम के वलए आकलन 1990 के दिक से ु ु िीरे िीरे लोकवप्रय होने लगा िब यह देखा गया वक आकलन के नाम पर विद्यार्थी िीरे िीरे अवत ं आकलन एि बहत सारे परीिण की समस्या से विर गए ह ै तावक उन्ह ें िमिार रैंक म ें रखा िा सके और ु ं विद्यावर्थभयों की आपस म ें तलना की िा सके । प्राप्ताकों के वनमाभण एि सवचत करने की प्रविया िो ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 7 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विद्यावर्थभयों के अविगम का वनणयभ करती र्थी उसे अविगम का आकलन की सज्ञा दी गयी ह।ै अविगम के ं वलए आकलन का आिार अविगम की समाि-रचनािादी दृविकोण ह ै विसकी मान्यता ह ै वक वकसी र्ी विषय के अविगम के वलए िो मावसक प्रवतमान का प्रयोग करते ह ैं िह अत्यत िवटल पि भ अनर्िों एि ू ु ं ं सामाविक व्यवक्तक से अत: विया पर आिाररत होती ह।ै इन िवटल प्रविया को विद्यार्थी एि ं ं ं ं ं वििक दोनों के वलए समझने की अिस्र्था उन अविगम सामवग्रयों की प्रकवत समझने में मददगार ह।ै ृ इसकी यह र्ी मान्यता ह ै वक वििक एि अविगम को उसकी गहराइ भ के मध्य के सिाद एि प्रवतपवि की ु ं ं ं गणित्ता वििण अविगम की प्रविया म ें अत्यन्त महत्िपण भ ह।ै ु ू रचनािावदयों के अनसार वििा का तात्पयभ बालक का सिाांगीण विकास (बौवद्क, िारीररक, ु सामाविक-र्ािनात्मक आवद) ह,ै अतः आकलन का र्ी उद्दश्े य सिाांगींण विकास को आकलन करने िाला होना चावहए। रचनािाद के अनसार आकलन के मख्य उद्दश्े य ह ै विद्यार्थी के अविगम को प्रेररत करना एि उनकी ु ु ं ं िवै िक सप्रावप्त को उन्नत करना। अत: अविगम से पि भ विद्यावर्थभयों के वलए यह िानना आिश्यक ह ै वक ू ं अविगम
का लक्ष्य क्या है? उन्ह ें यह क्यों सीखना चावहए? अविगम लक्ष्यों की प्रावप्त म ें ि े कहा ह?ै ं अविगम लक्ष्यों की प्रावप्त कै से की िा सकती ह?ै िस्ततः अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों के अविगम से सबवित सचना प्राप्त करके एि उनका ु ू ं ं ं विस्तत विश्लेषण करने की प्रविया ह ै विसके द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी एि वििक दोनों यह िानने का प्रयत्न ृ ं ं करते ह ैं विद्यार्थी अविगम उद्देश्यों की प्र
ावप्त म ें कहााँ ह ैं एि उन्ह ें अपेवित स्तर तक ले िाने का सिोत्तम ं तरीका क्या ह।ै अविगम के वलए आकलन, अविगम के सार्थ सार्थ चलने िाली प्रविया ह ै अत: इसके द्वारा विद्यार्थी यह िान पाते ह ै वक उन्ह ें क्या सीखना ह,ै उनसे क्या अपेवित ह,ै और वििक आकलन
के ं द्वारा उसके आिार पर उन्ह ें प्रवतपवि एि सलाह प्रदान करता ह ै वक ि े अपने अविगम को और उन्नत ु ं कै से बना सकते ह।ै अविगम के वलए आकलन म ें वििक के द्वार
ा यह िानने का प्रयास वकया िाता ह ै वक उनके विद्यार्थी क्या िानते ह,ैं क्या कर सकते ह ैं एि उनकी अविगम कवठनाइयों क्या क्या ह।ैं ं ं 2.5 आकलन का सज्ञं ानात्मक रचनावादी दष्ृ टिकोण (Cognitive Constructivist Approach) सज्ञानात्मक रचनािाद के अनसार अविगम एक सविय प्रविया ह ै िो प्रत्येक अविगमकताभ के वलए ु ं विविि होती ह ै विसमें अविगमकताभ अपने पिभ अनर्िों ि ज्ञान के आिार पर प्रत्ययों म ें सबि स्र्थावपत ू ु ं ं करे उनके अर्थों की रचना करता ह।ै रचनािावदयों का मत ह ै वक प्रत्येक अविगमकताभ ज्ञान की रचना ियै वक्तक और सामाविक सन्दर् भ में करता ह।ै रचनािाद इस मान्यता पर आिाररत ह ै वक मानि, ज्ञान एि ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 8 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 उसके अर्थभ की रचना अनर्िों के आिार पर करता ह।ै रचनािाद के िेत्र म ें वपयाि े ि िाइगोत्सकी का ु नाम उल्लेखनीय ह।ै रचनािाद का मल िीन प्याि े द्वारा वकये गये अध्ययन ह।ैं वपयाि े ने रचनािाद के ू सज्ञानात्मक रचनािाद का विचार रखा विसके अनसार
ज्ञान की रचना सविय रूप से अविगमकताभ द्वारा ु ं की िाती ह।ै ज्ञान को वनवरिय रूप म ें बाह्य िातािरण से ग्रहण नहीं वकया िाता। वपयाि े के अनसार ु प्रत्येक
अविगम के .लस्िरूप अविगमकताभ की मानवसक सरचना (स्कीमा) का वनमाभण होता ह ै ि ं ं िब नई पररवस्र्थवत म ें अविगमकताभ पहचता ह ै तो उसके अनसार ि अपनी इन सरचना म ें सिोिन कर ु ु ं ं ं ं पररवस्र्थवत के सार्थ समायोिन स्र्थावपत करता ह।ै िाइगोत्सकी ने सामाविक रचनािाद का विचार वदया विसके अनसार अविगम प्रविया म ें अविगमकताभ द्वारा अन्य सहपावठयों, वििकों तर्था िातािरण के ु सार्थ अतःविया प्रमख होती ह।ै अविगम अतःविया पर आिाररत होता ह।ै रचनािाद पररप्रेक्ष्य र्ी ु ं ं अविगम की प्रविया के के न्ि म ें बालक को रखता ह ै ि वििक की र्वमका अविगम के सगमकताभ के रूप ू ु म ें होती ह।ै वपयाि े ने अपने सज्ञानात्मक विकास के वसद्ान्त को बताया वक व्यवक्त का अविगम सवम्मलन ं (Assimilation) और आत्मसातीकरण (Accomodation) की प्रविया द्वारा होता ह।ै व्यवक्त नय े अनर्ि को मवस्तरक म ें उपवस्र्थत परानी रचना (Scheme) से वमलान करता ह ै (Assimilation) और ु ु ं यवद यह परानी रचना से वमलता नहीं ह ै तब व्यवक्त एक नयी सरचना विकवसत करता ह ै और इस प्रकार ु ं ं विवर्न्न रचना का वमलान एि वनमाभण करते हए व्यवक्त का िातािरण से मानवक अनकलन ु ु ू ं ं (Adaptation) होता ह ै िो उसे साम्यािस्र्था म ें बनाये रखने म ें मदद करता ह।ै िवै िक आदोलन यर्था: ं पछताछ आिाररत अविगम (Inquiry-based learning), सविय अविगम (Active learning), ू अनर्ि आिाररत (Eexperiential learning, अविगम ज्ञान रचना (Knowledge Building) आवद ु सर्ी िस्तत: रचनािाद से व्यत्पन्न ह।ै रचनािाद के अनसार वििक ज्ञान के स्रोत के रूप म ें नहीं बवल्क ु ु ज्ञान प्रावप्त के सहयोगी की र्वमका अदा करता ह।ै ू 2.5.1 सज्ञानात्मक रचनावाि एव आकिन ं ं सज्ञानात्मक रचनािाद आकलन को एक रचनात्मक प्रविया के रूप म ें दखे ता ह।ै ं इसके अनसार चकी विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना करता ह ै अतः उसके आकलन म ें र्ी विद्यार्थी ु ू की सहर्ावगता होनी चावहए। सज्ञानात्मक रचनािाद आकलन की प्रविया म ें योगात्मक आकलन (Summative ं Assessment) की बिाय सतत रचनात्मक आकलन (Formative Assessment) को ज्यादा महत्िपण भ माना। ू सज्ञानात्मक रचनािाद के अनसार आकलन का उद्दश्े य िष भ के अत म ें विद्यार्थी ने अन्य विद्यार्थी ु ं ं की तलना म ें वकतना सीखा की बिाये विद्यार्थी की अविगम समस्या को िानना एि तदनसार ु ु ं ं नैदावनक वििण प्रदान करना ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 9 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सज्ञानात्मक रचनािाद व्यवक्तगत सज्ञानात्मक वर्न्नता के अनसार आकलन म ें लचीलापन ु ं ं ं रखने की बात करता ह।ै इस प्रकार आपने दखे ा वक सज्ञानात्मक रचनािाद आकलन को विद्यार्थी के विकास के व्यापक उपकरण ं के रूप में दखे ता ह ै परन्त सज्ञानात्मक रचनािाद ने आकलन एि अविगम में समाि एि सस्कवत की ृ ु ं ं ं ं र्वमका की उपेिा की । ू 2.6 आकलन का समारिक - सस्ं कृ रतवादी दष्ृ टिकोण (Socio-Culturist Approach) सरचनािादी विचारिारा के समाि-सस्कवतिादी दृविकोण (Socio-Culturist Approach) के ृ ं ं महत्िपण भ मनोिैज्ञावनकों म ें लेि िाईगोत्सकी ह ैं विन्होंने सज्ञानात्मक विकास को र्ाषा और सामाविक ू ं एि सास्कवतक अन्तःविया का प्रवत.ल माना ह।ै सज्ञानात्मक विकास के सन्दर् भ म ें रूसी मनोिज्ञै ावनक ृ ं ं ं लेि िाईगोत्सकी (Lev Vygotsky) ने िीन प्याि े स े अलग एक अन्य दृविकोण सामने रखा िो महत्िपण भ ह।ै िाईगोत्सकी का मानना र्था वक बालक के सज्ञानात्मक विकास म ें उसके समाि एि सस्कवत ृ ू ं ं ं की र्ी महत्िपण भ र्वमका होती ह ै और इसी ििह से िाईगोत्सकी के वसद्ात को समाि – सास्कवतक ृ ू ू ं ं वसद्ात (Socio-Cultural Theory) के नाम से र्ी िाना िाता ह।ै हालााँवक लेि िाईगोत्सकी का यह ं वसद्ात िीन प्याि े के वसद्ात की तरह लोकवप्रयता नहीं प्राप्त कर सका परन्त वििा पर बढ़ते रचनािादी ु ं ं प्रर्ाि ने ितभमान वििाविदों को लेि िाईगोत्सकी के वसद्ात की र आकवषभत वकया ह।ै लेि ं िाईगोत्सकी के वसद्ात के ज्यादा लोकवप्रय न हो पाने के कारणों म ें से एक ह ै उनका मात्र व िष भ की ं अिस्र्था म ें असामवयक वनिन। िाईगोत्सकी के अनसार बच्चे के पास अन्य िीिों के सामान ही मौवलक ु ध्यान, प्रत्यिण एि स्मरण िमता होती ह ै विसका विकास प्रारवर्क दो िषों म ें िातािरण के सार्थ उनके ं ं सीिे सपकभ के कारण होता ह।ै इसके बाद र्ाषा का ती्र गवत से विकास उनकी वचतन प्रविया पर गहरा ं ं प्रर्ाि डालता ह।ै िाईगोत्सकी ने सज्ञानात्मक विकास म ें बच्चों की र्ाषा एि वचन्तन को र्ी महत्िपणभ ू ं ं सािन बतलाया ह।ै इनका मत ह ै वक छोटे बच्चों द्वारा र्ाषा का उपयोग वस.भ सामाविक सचार के वलये ं ही नहीं वकया िाता ह ै बवल्क इसका उपयोग ि े अपने व्यिहार को वनयोवित एि वनदवे ित करने के वलए ं र्ी करते ह।ैं बच्चे प्रायः आत्म वनयमन के वलये र्ी र्ाषा का उपयोग करते ह ैं विसे तो इसे आतररक ं सम्र्ाषण या वनिी सम्र्ाषण का नाम वदया िा सकता ह।ै यवद हम िीन प्याि े के वसद्ात पर निर डालें ं तो इस वबन्द पर िाईगोत्सकी का मत वपयाि े से वर्न्न ह।ै वपयाि े के अनसार यह वनिी सम्र्ाषण ु ु आत्मके वन्ित व्यिहार (Egocentrism) ह ै िबवक िाईगोत्सकी अनसार यह आरवम्र्क िाल्यािस्र्था में ु वचन्तन का एक महत्िपण भ सािन ह।ै ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 10 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.5.1 समाि-सस्कधतवािी दृधिकोण की मान्यताए ृ ं ं समाि-सस्कवतिादी दृविकोण की मान्यताए वनम्नावकत ह:ैं ृ ं ं ं वबना वकसी सन्दर् भ के अविगम सर्ि नहीं हो सकता अर्थाभत सन्दर्गभ त अविगम ही मौवलक ं अविगम ह।ै अविगम म ें परासज्ञान (Meta Cognition) की र्वमका महत्िपण भ होती ह।ै ू ू ं अविगम उत्पाद से ज्यादा महत्िपण भ अविगम प्रविया होती ह ै अर्थाभत अविगम प्रविया को ू रुवचकर बनाकर इसे प्रर्ाििाली बनाया िा सकता ह।ै मानि विकास के वलए सामाविक सन्दर् भ बहत ही आिश्यक ह,ै इसवलए बायगोत्सकी को ु सामाविक सिनिाद का िनक र्ी माना िाता ह।ै ृ बच्चों द्वारा ज्ञान का सिन वकया िाता ह ै न वक उनके द्वारा प्राप्त वकया िाता ह।ै ृ वकसी र्ी बच्चे का विकास सामाविक पररवस्र्थवत म ें ही सर्ि ह।ै ं बच्चों का सज्ञानात्मक विकास सामवहक प्रविया द्वारा सर्ि हो पाता ह।ै ू ं ं बच्चे सामाविक अतःविया द्वारा ही सीखते ह।ैं ं विकास एक आिीिन प्रविया ह ै िो सामाविक अतःविया पर वनर्रभ करता ह ै तर्था इस ं सामाविक अविगम के .लस्िरूप सज्ञानात्मक विकास सर्ि होता ह।ै ं ं 2.5.2 रचनावािी सामाधिक सस्कधतवाि एव अधिगम ृ ं ं र्ाषा बच्चों को विवर्न्न मानवसक विया एि व्यिहार एि तदनसार उपयक्त कायभ विवि को सोचने म ें ु ु ं ं ं म ें मदद करता ह,ै अतः िाईगोत्सकी ने र्ाषा को समस्त उच्च स्तरीय सज्ञानात्मक प्रविया यर्था ं ं वनयवत्रत अििान, ऐवच्छक स्मरण, योिना बनाना, समस्या समािान एि अमतभ वचतन एि तकभ का ू ं ं ं ं आिार माना ह।ै िाईगोत्सकी का मत र्था वक बच्चों म ें उत्तम परन्त अिमबद्, असगवठत तर्था स्ित: ु ं प्रिवतभत, सम्प्रत्यय होते ह ैं और िब ऐसे बच्चों का सिाद या िाताभलाप अविक वनपण एि प्रिीण ु ं ं सम्प्रत्यय िाले व्यवक्त से होता ह ै तब उनके बीच के सिाद के .लस्िरूप उनका सम्प्रत्यय एक िमबद्, ं तावकभ क एि तकभ सगत सम्प्रत्यय म ें बदल िाता ह।ै ं ं लेि िाईगोत्सकी के वसद्ात का कें ि ह:ै सस्कवत: मल्य,विश्वास, रीवतररिाि एि वकसी सामाविक समह के ृ ू ू ं ं ं कौिल कै से उसकी अगली पीवढ़यों म ें स्र्थानातररत होते ह।ैं लेि िाईगोत्सकी के अनसार सामविक ु ं अतःविया वििषे कर बच्चों एि उनसे अपेिाकत ज्यादा ज्ञान रखनेिाले समाि के सदस्यों के मध्य का ृ ं ं सहयोगात्मक सिाद बच्चों के वचतन एि उनके सस्कवत वििेष म ें व्यिहार के विकास म ें महत्िपणभ ृ ू ं ं ं ं र्वमका अदा करता ह।ै िाईगोत्सकी का मानना र्था वक चाँवक ियस्क एि अपेिाकत अविक ज्ञान ृ ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 11 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रखनेिाले सहपाठी बच्चों को सास्कवतक रूप से सार्थभक वियाकलापों पर दिता हावसल करने म ें मदद ृ ं करते ह,ैं अतः उनका आपसी सिाद बच्चों के वचतन का एक र्ाग बन िाता ह।ै बच्चे इन सिादों की ं ं ं वििेषता को आत्मसात कर लेते ह ैं अतः ि े र्ाषा का प्रयोग अपने विचारों एि कायों के वनदिे न और ं ं नए कौिल सीखने म ें करते ह।ैं िीन प्याि े की तरह ही िाईगोत्सकी का यह मानना ह ै वक बच्चे सविय एि रचनात्मक िीि ह ैं परन्त वपयाि े का मानना वक
‘बच्चे स्ितत्र रूप स े अपने प्रयासों से ससार का ु ं ं ं अनर्ि करते ह’
ैं के विपरीत िाईगोत्सकी मानते ह ैं वक
‘सज्ञानात्मक विकास एक समाि सपोवषत ु ं ं प्रविया ह ै विसम े बच्चे नए ज्ञान की प्रावप्त के वलए ियस्कों एि अपेिाकत अविक ज्ञान िाले सहपावठयों ृ ं / वमत्रों की सहायता पर वनर्रभ रहते ह’
ैं । िाईगोत्सकी का यह र्ी मानना ह ै वक वििषे ज्ञों के सार्थ सिाद के ं कारण बच्चों के सज्ञान म ें सतत पररितभन होते रहते ह ैं विसम े का.ी सास्कवतक विवर्न्नताए पाई िाती ह।ैं ृ ं ं ं समीपस्र्थ
विकास का िेत्र (Zone of Proximal Development or ZPD) िाईगोत्सकी के अनसार ु बच्चों का अविगम उनके समीपस्र्थ विकास के िेत्र म ें होता ह।ै समीपस्र्थ विकास क
ा िेत्र िह िेत्र ह ै विसम े कोई बच्चा विवर्न्न कायों को स्ितत्र रूप से नहीं कर पाता परन्त ियस्कों एि अपिे ाकत अविक ृ ु ं ं किल सहपावठयों के सहयोग से कर सकता ह।ै िाईगोत्सकी अनसार सज्ञानात्मक विकास को प्रोत्सावहत ु ु ं करने के वलए सामाविक अतःविया म ें अतियै वक्तकता (Inter-subjectivity) (अर्थाभत दो व्यवक्त दो ं ं वर्न्न समझ से कोई कायभ आरम्र् करें और आवखर में एक सहर्ागी समझ तक पहचें) का होना ु ं आिश्यक ह।ै सार्थ ही सामाविक अतःविया म ें ढाचा / मच वनमाभण (Scaffolding) र्ी होना चावहए। ं ं ं ढाचा / मच वनमाभण (Scaffolding) से तात्पयभ वििण के दौरान वििक के द्वारा वदए िा रह े सहयोग के ं ं उपयक्त समायोिन से ह ै तावक नया ज्ञान बच्चे की ितभमान दिता म े समावहत हो सके । िब बच्चे को ु इसकी कम िानकारी होती ह ै वक आग े क्या करना ह ै तब उसे प्रत्यि वनदिे दने ा, कायभ को छोटे छोटे र्ागों म ें बाटकर समझाना, कायभ करने के विवर्न्न तरीके एि उनके पीछे का तकभ बताना और बच्चा िसै े ं ं िसै े उस कायभ म ें दिता हावसल करले िसै े िसै े सहयोग को कम करते िाना और अततः बच्चे को स्ितत्र ं ं रूप से उस कायभ म े दि बना दने ा ढाचा वनमाभण (Scaffolding) ह।ै आिकल ढाचा वनमाभण/ मच वनमाभण ं ं ं की बिाय िहत अर्थों म ें इस प्रविया के वलए वनदवे ित सहर्ावगता (Guided Participation) िब्द ृ ज्यादा लोकवप्रय हो रहा ह।ै मान वलया िाए वक एक ही आय के दो बालक A और B वपयाि े द्वारा वदय े ु गये सरिण समस्या का समािान स्ितत्र रूप से नहीं कर पाते ह,ैं परन्त माता वपता, वििक या अन्य ु ं ं ं अपने से बडे उम्र के बच्चों से वनदिे पाकर A तो इन समस्या का समािान कर लेता ह ै परन्त B ु ं उसका समािान इस प्रकार की सहायता वदए िाने पर र्ी नहीं कर पाता ह।ै ऐसे म ें क्या Aऔर B दोनों एक ही सज्ञानात्मक स्तर पर ह?ैं वपयाि े का उत्तर होगा हााँ िबवक िाईगोत्सकी का उत्तर होगा नहीं ं क्योंवक दोनों के
‘समीपस्र्थ विकास का िेत्र’
अर्थाभत बच्चे स्ितत्र रूप से क्या कर सकते ह ैं तर्था व्यस्कों से ं सहायता प्राप्त करके ि े क्या और कर सकते ह,ै म ें अतर ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 12 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.6.3 सज्ञानात्मक रचनावाि (धियािे) एव सामाधिक सस्कधतवाि (वायगोत्सकी) की तिना ृ ु ं ं ं वपयाि े ने यह स्पि वकया र्था वक बच्चों के सज्ञानात्मक विकास म ें सस्कवत तर्था वििा की र्वमका ृ ू ं ं महत्िपण भ नहीं ह।ै िायगोत्सकी ने इसे अस्िीकत करते हए कहा वक बच्चे वकसी र्ी उम्र म ें र्ी ु ृ ू सज्ञानात्मक कौिल को सीखते ह,ैं उन पर इस बात का अविक प्रर्ाि पडता ह ै वक सस्कवत से उन्ह ें सगत ृ ं ं ं सचना तर्था वनदिे प्राप्त हो रह े ह ैं या नहीं। अब प्रश्न उठता ह ै वक िायगोत्सकी के वसद्ान्त म ें समीपस्र्थ ू विकास का िेत्र इतना क्यों महत्िपण भ ह?ै इसके दो कारण बतलाये गए ह ैं : ू इससे यह पहचान करने म ें मदद वमलती ह ै वक बच्चे क्या िल्द ही अपने स्तर से कछ कर सकते ु ह।ैं इससे यह र्ी पता चलता ह ै वक हमलोग बच्चों के िवै िक पररपक्िता के आलोक म ें एक सीमा या िेत्र के र्ीतर बच्चों को सज्ञानात्मक विकास को आग े बढ़ा सकते ह।ैं ं िस्ततः िाईगोत्सकी का वसद्ात, प्याि े से वर्न्न वििण एि अविगम के प्रवत एक नयी दृवि प्रदान करता ु ं ं ह ै िो वििण अविगम की प्रविया म े सामविक सन्दर् भ एि सहयोग को महत्िपण भ मानता ह।ै िीन प्यािे ू ं की रचनािादी किा के सामान ही िाईगोत्सकी की किा व्यवक्तगत वर्न्नता को तो स्िीकार करता ह ै ं एि बच्चों की सविय र्ागीदारी का समर्थभन करता ह ै परन्त िाईगोत्सकी की रचनािादी किा वपयाि े के ु ं स्ितत्र खोि से आग े बढ़ कर सहयोगात्मक अन्िेषण को बढ़ािा दते ा ह ै विसम े वििक का वनदवे ित ं सहयोग एि सहपाठी सहयोग दोनों िावमल ह।ैं ं 2.6.4 सामाधिक सस्कधतवाि और आकिन ृ ं सामाविक सस्कवतिाद समस्त अविगम को सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ता ह ै ृ ृ ं ं ं अतः आकलन को र्ी विद्यार्थी के सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ा िाना चावहए ृ ं ं आकलन के ररपोटभ को र्ी सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ा िाना चावहए। ृ ं ं आकलन छोटे समह बनाकर वदए गए कायभ के द्वारा वकया िा सकता ह।ै ू सामाविक सस्कवतिाद आकलन की प्रविया म ें योगात्मक आकलन (Summative ृ ं Assessment) की बिाय सतत रचनात्मक आकलन (Formative Assessment) को ज्यादा महत्िपण भ माना। ू सामाविक सस्कवतिाद व्यवक्तगत सज्ञानात्मक वर्न्नता के अनसार आकलन म ें लचीलापन ृ ु ं ं ं रखने की बात करता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 13 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.7 सारांश आकलन के पारपररक व्यिहारिादी दृविकोण विसे अविगम का आकलन की सज्ञा र्ी दी िाती ह ै का ं ं मख्य उद्दश्े य योगात्मक’ (Summative) ह ै िो सामान्यतः वकसी कायभ या कायभ की, इकाइ भ की समावप्त ु पर वकया िाता ह।ै िस्तत: विद्यार्थी की सप्रावप्त के प्रमाण उसके माता वपता, ु ं ं वििक, विद्यार्थी स्िय अर्थिा अन्य व्यवक्तयों के वलए प्रस्तत करता ह ै । अविगम का आकलन ु ं ं व्यिहारिाद की दने ह।ै व्यिहारिादी मनोिैज्ञावनकों ने अपनी विवर्न्न मान्यता के आिार पर आकलन ं के िो मानक तय वकये उनके अनसार आकलन का उद्दश्े य वदए गए उद्दीपक पर विद्यार्थी से अपेवित ु अनविया प्राप्त करना ह।ै व्यिहारिावदयों ने िो आकलन के उपकरण सझाये ि े प्रत्यास्मरण पर आिाररत ु ु र्थे विनम े वलवखत परीिा अर्थिा पेपर पेंवसल टेस्ट प्रमख र्थे। सार्थ ही व्यिहारिावदयों ने आकलन के ु आिार पर विद्यावर्थभयों की रैंवकग एि उनके सप्रावप्त के मात्रात्मक आकलन को बढ़ािा वदया .लतः ं ं ं अविगम का उद्दश्े य पाठयिम की समावप्त पर म ें उच्च अक प्राप्त करना मात्र रह ् ं ं गया।रचनािादी विचार िारा के प्रितभक के रूप म ें सप्रवसद् मनोिज्ञै ावनक िीन वपयाि े (Jean Piaget) ु को माना िाता ह ै । वपयािे ने माना वक बालक के अविगम म ें िातािरण के सार्थ सार्थ उसकी सज्ञानात्मक प्रविया का योगदान र्ी ह ै और िातािरण एि मानवसक सरचना की पारस्पररक अन्तः ं ं ं ं ं विया बालक के अविगम में महिपण भ र्वमका वनर्ाती ह ै बाद म ें रचनािादी दृविकोण दो अलग ू ू विचारिारा म ें बट गया: पहला ज्ञान रचनािाद (Cognitive Constructivism) विसके प्रवसद् ं ं विद्वान िीन वपयाि े (Jean Piajet) , ब्रनर (Jerome Bruner), गनै े (Gagne) आवद रह े और दसरा ू ू सामाविक सस्कवतिाद (Socio-Culturist Perspective) विसके प्रितभक एि प्रबल समर्थभक ृ ं ं िाईगोत्सकी (Lev Vygotsky) रह े । रचनािावदयों के अनसार वििा का तात्पयभ बालक का सिाांगीण ु विकास (बौवद्क, िारीररक, सामाविक-र्ािनात्मक आवद) ह,ै अतः आकलन का र्ी उद्दश्े य सिाांगींण विकास को आकलन करने िाला होना चावहए। सज्ञानात्मक रचनािाद के अनसार आकलन का उद्दश्े य ु ं िष भ के अत म ें विद्यार्थी ने अन्य विद्यार्थी की तलना म ें वकतना सीखा की बिाये विद्यार्थी की अविगम ु ं समस्या को िानना एि तदनसार नैदावनक वििण प्रदान करना ह।ै सामाविक सस्कवतिाद समस्त ृ ु ं ं ं अविगम को सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ता ह ै अतः आकलन को र्ी विद्यार्थी के ृ ं ं सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ा िाना चावहए। ृ ं ं 2.8 सन्दर् भ ग्रन्थ सची एवं सहायक उपयोगी पुस्तकें ू 1. CBSE (2014)
“रचनात्मक मल्याकन हते वििक सदविकभ ा”
C.B.S.E. ू ु ं ं 2. CIE(2016) Assessment for Learning: Cambridge International Examination 3. Gardner, J., (2016) Assessment for Learning: A practicalGuide, The northern Ireland Curriculum, retrieved from उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 14 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 http://ccea.org.uk/sites/default/files/docs/curriculum/assessment/assessment _for_learning/afl_practical_guide.pdf 4. NCA (2016) Assessment for Learning Leaflet, Retrieved from http://www.ncca.ie/ga/Foilseach%C3%A1n/Foilseach%C3%A1in_Eile/Asse ssment_for_Learning.pdf 5. NCERT (2005) National Curriculum Framework, 2005, NCERT. 6. NCTE (2009) National Curriculum Framework for Teacher Education, N.C.F. 2005 की ररपोटभ. 7. http://www.hkeaa.edu.hk/DocLibrary/SBA/HKDSE/Eng_DVD/doc/Afl_pri nciples.pdf 8. रमण वबहारी लाल (2016) अविगम के वलए आकलन 9. वबवपन अस्र्थाना (2016) अविगम के वलए आकलन 2.9 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. वििण अविगम एि आकलन के प्रवत व्यिहार िादी दृविकोण का िणनभ करें। ं 2. वििण अविगम एि आकलन के प्रवत रचनािादी दृविकोण का िणनभ करें। ं 3. सज्ञानात्मक रचनािाद एि आकलन पर सविप्त वटप्पणी वलख।ें / ं ं ं 4. िायगोत्सकी के समाि-सास्कवतक वसद्ात का िणनभ करें । ृ ं ं 5. सामाविक सस्कवतिाद की प्रमख मान्यता एि वििण अविगम के प्रवत उसका दृविकोण स्पि ृ ु ं ं ं करें। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 15 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 3 - आकलन की पारंपतरक मान्यिा (अतिगम का आकलन एिं अतिगम के तलए आकलन ) Traditional Notion of Assessment, Assessment of Learning vs Assessment for Learning 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 आकलन की पररर्ाषा एि उद्दश्े य ं 3.3.1 आकलन एि मल्याकन में अतर ू ं ं ं 3.3.2 आकलन की आिश्यकता एि महत्ि ं 3.4 अविगम का आकलन 3.5 अविगम के वलए आकलन 3.6 अविगम का आकलन एि अविगम के वलए आकलन में अतर ं ं 3.7 साराि ं 3.8 अभ्यास प्रश्न 3.9 सन्दर्भ ग्रन्र्थ/ अन्य अध्ययन 3.1 प्रस्तावना वििण अविगम की प्रविया म ें आकलन एक अवर्न्न अग ह ै आकलन विद्यार्थी की िमता एि ं ं ं सीमा की विस्तत िानकारी प्रदान करता ह ै उनकी सम्पणतभ ा म ें समझने म ें सहायक ह ै एि सम्पण भ ृ ू ू ं ं वििण अविगम की गणित्ता को उन्नत बनाने के वलए आिश्यक ह ै । ितभमान र्ारतीय वििा व्यिस्र्था म ें ु सिाभविक िोर आकलन की प्रविया म ें व्यापक पररितभन पर ह ै । िस्ततः व्यिहारिाद से प्रर्ावित िवै श्वक ु वििा व्यिस्र्था, रचनािादी वििण की और उन्मख हई क्योंवक विवर्न्न अनसिानों में रचनािादी वििा ु ु ु ं व्यिस्र्था को विद्यावर्थभयों के सिाांगीण विकास म ें ज्यादा प्रर्ािी पाया गया । वििा तत्र के इस पररितभन के ं कारण तदनसार आकलन की सम्पण भ प्रविया म ें पररितभन आिियक हो गया । ितभमान अविगम का ु ू आकलन का सप्रत्यय अविगम के वलए आकलन म ें पररिवतभत हो रहा ह ै । र्ारत म ें राररीय पाठयचचाभ की ् ं रूपरेखा (N.C.F.) 2005 ने विद्यार्थी के आकलन एि ितभमान परीिा व्यिस्र्था म ें व्यापक बदलाि की ं आिश्यकता पर बल वदया ह ै । वििण- अविगम एि तदनसार आकलन का उदश्े य र्ी एक सिनात्मक ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 16 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विद्यार्थी िो अपने समाि एि सास्कवतक मल्यों के प्रवत सिदे निील हो, तैयार करना हो गया ह ै राररीय ृ ू ं ं ं पाठयचचाभ की रूपरेखा 2005 ने िो अपेवित पररितभन सझाये ह:ैं उनम े ज्ञान को स्कल के बाहर के ् ु ू िीिन, विद्यार्थी के समाि एि सस्कवत से िोडना, तोतारटत ज्ञान प्रदान करने एि पाठयचचाभ के ृ ् ं ं ं ं पाठयपस्तक पर के वन्ित रहन े के की बिाए विद्यावर्थभयों के समग्र विकास की र उन्मख बनाना, ् ु ु परीिा को व्यापक एि अविक लचीला बनाना आवद प्रमख ह ैं । इस इकाई का उद्दश्े य िवै िक ु ं ं पररितभनों के इस दौर म ें चवचभत एि के सप्रत्यय, ं ं दोनों म ें अतर आवद से पररवचत कराना ह ै । ं 3.2 इकाई के उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - 1. आकलन की पररर्ाषा एि उसके उदश्े यों की व्याख्या कर सकें ग े । ं 2. आकलन एि मल्याकन म ें अतर स्पि कर सकें ग े । ू ं ं ं 3. अविगम का आकलन का िणभन कर पाने म ें एि उसकी वििेषता का िणनभ कर पाने म ें सिम होंग।े ं ं 4. अविगम के वलए आकलन का िणनभ कर सकें ग े । 5. अविगम का आकलन एि अविगम के वलए आकलन म ें अतर स्पि कर पाएग े । ं ं ं 3.3 आकलन: पररर्ाषा, अथभ एवं रवशेषताएं मलतः िब्द Assessment की व्यत्पवत्त लैवटन र्ाषा के िब्द (to sit beside) से मानी ू ु िाती ह ै विसका अर्थभ ह ै । िस्ततः मध्यकालीन लैवटन समदाय म ें िि के सहायक का ु ु कायभ टैक्स वनिाभररत करने के उद्दश्े य से वकसी की सपवत्त का अनमान लगाना होता र्था। बाद म ें इस िब्द ु ं का अर्थभ पररिवतभत होकर
‘वकसी व्यवक्त विचार आवद के बारे म ें वनणयभ लेना’
हो गया। सामान्य अर्थों में आकलन का अर्थभ ह ै वकसी व्यवक्त या समह से सबवित सचना सग्रहण की प्रविया से ह ै तावक व्यवक्त या ू ू ं ं समह वििेष के सन्दर् भ म ें कोई वनणयभ वलया िा सके । ू िब्दकोष के अनसार आकलन का तात्पयभ वकसी चीि की कीमत, िल्ै य, गणित्ता या महत्ि का वनणयभ ु ू ु अर्थिा वनिाभरण करना ह ै (the act of judging or deciding the amount, value, quality, or importance of something) िालेस, लासभन एि एल्क्सनीन, 1992, के अनसार
“आकलन का तात्पयभ वकसी व्यवक्त या समह के बारे ु ू ं म ें सचना सग्रहण, विश्लेषण एि उनका अर्थभ वनकालने की प्रविया से ह ै विस से वकसी व्यवक्त के बारे में ू ं ं अनदिे नात्मक, वनदिे नात्मक अर्थिा प्रिासवनक वनणयभ वलये िा सकें ।”
ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 17 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 (Assessment refers to the process of gathering, analyzing and interpreting information in order to make instructional, administrative and / or guidance decisions about or for an individual (Wallace, Larsen and Elksnin, 1992)) आकलन का अर्थभ उदश्े यपणभ विया द्वारा सचना सग्रहण एि व्यिस्र्थापन की प्रविया से ह ै तावक ू ू ं ं ं वििण, अविगम एि विवर्न्न व्यवक्तयों के सन्दर् भ म ें उनका अर्थभ वनकला िा सके और प्रायः पि भ वनिाभररत ू ं मानदडों से उसकी तलना की िा सके । ु ं Assessment is the process of collecting and organising information from purposeful activities (e.g., tests on performance or learning) with a view to drawing inferences about teaching and learning, as well as about persons, often making comparisons against established criteria. (Lampriyanou & Athanasou, 2009) यदि हम आकलन की उपरोक्त पररभाषा का दिश्लेषण करें तो यह पात े ह ैं दक आकलन के मख्यतः पाच ु ां पहल ह:ैं ू उद्दश्े य पण भ कायभ (Purposeful Activity) ू सचना सग्रहण (Collection of Information) ू ं सचना का विश्लेषण (Analysis of Information) ू ं सचना का अर्थभ वनकलना (Interpretation of Information) ू अनदिे नात्मक, प्रिासवनक अर्थिा वनदिे नात्मक वनणभय (Instructional, Administrative ु or Guidance related decision making) आकिन के उद्देश्य (Purpose of Assessment) a. धिक्षण िवत उद्देश्य: ू अनदिे न से पि भ विद्यार्थी के पि भ ज्ञान को िानने के वलए ु ू ू अविगम की कवठनाई अर्थिा अवग्रम ज्ञान को िानने के वलए अनदिे न की योिना बनाने के वलए ु b. धिक्षण के िौरान के उद्देश्य अनदिे न की प्रर्ाविता को िानने के वलए ु अविगम के दौरान विद्यार्थी की समस्या को िानने के वलए ं अनदिे न के बारे म े प्रवतपवि के वलए ु ु नैदवनक अनदिे न के वलए ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 18 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 c. धिक्षण के उिरात के उद्देश्य ं िवै िक सप्रावप्त के प्रमाणन के वलए ं विद्यावर्थभयों के िवै िक सप्रावप्त के आिार प्र ग्रेड प्रदान करन े के वलए ं सम्पण भ वििण की प्रर्ाविता िानने के वलए ू वििक के स्िमल्याकन के वलए ू ं 3.3.1 आकिन एव मलयाकन में अतर ू ं ं ं मल्याकन वनिाभररत करता ह ै वक पि भ वनिाभररत मानदड के अनसार विद्यार्थी ने सीखा या नहीं (स.ल/ ू ू ु ं ं अस.ल) आकलन विद्यार्थी के दृढ़ विन्द , उन िेत्रों विनमे सिार आिश्यक ह ै एि अतदृवभ ि के वलए प्रवतपवि ु ु ं ं ं ु प्रदान करता ह ै क्रम अतर का मानिड आकिन मलयाकन ू ं ं ं स. ं 1 विषयिस्त रचनात्मक, अविगम की उन्नवत योगात्मक, विद्यार्थी सप्रावप्त को िानना ु ं 2 कें ि प्रविया उन्मख: वििण अविगम की उत्पाद उन्मख: क्या सीखा गया ु ु प्रविया उपयोवगता नैदावनक: उन िेत्रों की पहचान िहााँ पर वनणयभ ात्मक: ग्रेड एि अक के रूप में ं ं विद्यार्थी को समस्या ह ै विद्यार्थी द्वारा क्या सीखा गया का वनणयभ 4 मख्य र्वमका विद्यार्थी एि मल्याकनकताभ दोनों की मल्याकनकताभ की ु ू ू ू ं ं ं 5 प्रवतपवि का आिार व्यापक, वनरीिण पर आिाररत पिभ वनिाभररत मानक पर आिाररत गणित्ता ु ू ु के स्तर के रूप में मिबत एि कमिोर (Strength and ू ं Weaknesses) पिों के रूप में 6 ररपोटभ म ें िणनभ विद्यार्थी के मिबत विन्द और वकस प्रकार प्रदिभन की गणित्ता पिभ वनिाभररत मानदडों ू ु ू ं ु
विद्यार्थी अपने प्रदिभन को उन्नत कर पर आिाररत एि किा के अन्य विद्यावर्थभयों ं सकता ह ै अर्थाभत रचनात्मक आलोचना की तलना में ु (Constructive Criticism) व ररपोटभ का मख्यतः विद्यार्थ
ी (अपने प्रदिभन में सिार के अन्य लोग यर्था माता वपता, रोिगार प्रदाता ु ु उपयोगकताभ वलए) एि वििक (नैदावनक वििण की अर्थिा अन्य सस्र्थाए ं ं ं योिना बनाने के वलए) 8 ररपोटभ का उपयोग विद्यार्थी के प्रदिभन म ें सिार विद्यार्थी के सम्बन्ि म ें वनणयभ लेने के वलए ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 19 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3.3.2 आकिन की आवश्यकता एव महत्व (Need and Importance of Assessment) ं आकलन वििा प्रविया का एक महत्िपण भ अग ह।ैं आकलन एक वििक को अपने वििण के उद्दश्े य एि ू ं ं एि उनके सन्दर् भ में विद्यावर्थभयों की सप्रावप्त को िानने म,ें अविगम म ें विद्यार्थी को हो रही कवठनाई और ं ं उसके कारणों का विश्लेषण करने म ें एि तदनसार नैदावनक वििण की योिना बनाने म ें मदद करता ह।ै ु ं वििण अविगम प्रविया म ें आकलन का महत्ि वनम्नावकत ह:ै ं i. आकिन धवद्याधर्तयों में आत्म समझ धवकधसत करने एव अिनी क्षमताओ को अच्छे से ं ं समझने में सहायक है- आकलन विद्यार्थी की िमता एि सीमा की विस्तत िानकारी प्रदान ृ ं ं ं करता ह ै िो विद्यावर्थभयों म ें आत्म समझ र्ी विकवसत करता ह ै और सार्थ ही वििक द्वारा दी गयी प्रवतपवि उन्ह ें अपने आप को पररमावितभ (Improve) करने म ें सहायता करता ह।ै सार्थ ही यह ु विद्यावर्थभयों को उनकी रूवच को समझने एि तदनसार आग े के अध्ययन के वलए र्ी तैयार करता ह।ै ु ं अतः यह कहा िा सकता ह ै वक आकलन विद्यार्थी में स्ि-समझ विकवसत करता ह ै और उनकी उन्नवत म ें सहायक होता ह।ै ii. आकिन धिक्षक को धवद्याधर्तयों को उनकी सम्िणतता में समझने में सहायता करता है- ू आकलन विद्यावर्थभयों को उनकी सम्पणतभ ा म ें समझने म ें सहायक ह ै क्योंवक आकलन वििक को ू विद्यावर्थभयों के विवर्न्न पिों के वनरीिण म ें सहायता करता ह ै और विद्यार्थी के व्यवक्तत्ि की सम्पणभ ू िानका
री प्रदान करता ह।ै आकलन के द्वारा वििक को विद्यावर्थभयों की िवक्तयों ि सीमा सम्पणभ ू ं िानकारी प्राप्त हो सकती ह।ै प्रर्ािी वििण हते विद्यार्थी के सर्ी पहल की िानकारी वििक के ु ु ं वलए आिश्यक ह ै क्योंवक िब तक िह बालक की िमता एि सीमा को नहीं िानेगा, िह ं ं ं विद्यार्थ
ी को उपयक्त मागदभ िनभ नहीं द े सकता ह ै और न ही उसकी समस्या का समािान कर सकता ु ं ह।ै इस कायभ म ें आकलन की र्वमका अत्यत महत्िपण भ ह ै क्योंवक वििक विवर्न्न प्रकार के ू ू ं उपकरणों एि प्रविवियों की सहायता से विद्यार्थी के सम्बन्ि म ें सचनाए प्राप्त करने म ें सहायक ह ै ू ं ं तावक वििण अविगम प्रर्ािी हो सके । iii. आकिन धवद्याधर्तयों के धिए अधिप्रेरणा का काम करता है- एक व्यापक आकलन विद्यावर्थभयों के वलए अवर्प्रेरणा का काम करता ह।ै िब विद्यावर्थभयों को उनकी सप्रावप्त की व्यापक िानकारी दी ं िाती ह,ै उन्ह ें उनके मिबत विन्द एि उन विन्द िहााँ पर उन्ह ें अविक महे नत की आिश्यकता ू ं ं ं ु ु ह ै इसकी िानकारी हो िाती ह ै तब ि े अपन े प्रदिनभ म ें सिार के वलए सही वदिा म ें श्रम कर पाते ह।ैं ु सार्थ ही उनके मिबत पिों की िानकारी उनका
आत्मविश्वास र्ी बढाती ह।ै उदाहरणार्थभ यवद कोई ू विद्यार्थी छात्र के परीिा म ें किा म ें उच्च स्र्थान प्राप्त करता ह ै तब उसका आत्मविश्वास बढ़ता ह ै और आग े की किा म ें र्ी िह किा म ें अव्िल आने का प्रयास करता ह।ै ं iv. अधिगम उद्देश्यों की प्र
ाधि की िानकारी एव उनके मलयाकन में- वििण प्रविया म ें वििक ू ं ं सिप्रभ र्थम अपने वििण के वनिाभररत करता ह ै और व.र इन्ही उद्दश्े यों के आिार पर िह छात्रों को विवित करता ह।ै आकलन एक वििक को अिसर प्रदान करता ह ै वक िह िान सके वक विद्यावर्थभयों उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 20 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 म ें िावछत व्यिहार पररितभन हए ह ैं या नहीं अर्थाभत वििण के वलए अपने विन उदश्े यों का वनिाभरण ु ् ं वकया गया र्था उन उद्दश्े यों की प्रावप्त हो रही ह ै या नहीं। वििण अविगम की प्रविया सही वदिा में आग े िा रही ह ै या नहीं? यवद नहीं तो इसके कारण क्या ह ैं और उन्ह ें दर कै से वकया िा सकता ह?ै या ू व.र कही वििण उदश्े यों की समीिा करने की आिश्यकता तो नहीं ह?ै इस प्रकार आकलन के द्वारा एक र तो वििक विद्यावर्थभयों के िावछत वदिा म ें अविगम की िानकारी तो प्राप्त करता ही ह ै सार्थ ं ही यह अविगम उदश्े यों के मल्याकन एि आिश्यतानसार पररितभन करने म ें र्ी मददगार ह ै । ू ु ं ं v. आकिन प्रिावी धिक्षण अधिगम के धिए उियक्त धिक्षण सामग्री एव धवधि के चयन में ु ं सहायक है- उपरोक्त कायो के अलािा आकलन के आिार पर दखे ा िा सकता ह ै वक अविगम अनर्ि के रूप म ें प्रयक्त की गई विषय सामग्री वकतनी उपयक्त ह ै अर्थाभत अविगम सामग्री को प्रस्तत ु ु ु ु करने के वलए प्रयक्त वििण विविया विषय िस्त की प्रकवत एि विद्यावर्थभयों के स्तर के अनकल ह ै ृ ु ु ु ू ं ं अर्थिा नही। वििण को सरल एि प्रर्ाििाली बनाने की दृवि से उपयक्त सहायक सामग्री का प्रयोग ु ं वकया गया ह ै अर्थिा नही। vi. सम्िणत धिक्षण अधिगम की गणवत्ता को उन्नत बनाने में- मल्याकन, वििण अविगम प्रविया ू ु ू ं की स.लता का अध्ययन करने के सार्थ-सार्थ उसमें सिार करने म ें सहायता प्रदान करता ह।ै मापन ु एि मल्याकन के आिार पर वििण विवियों को प्रर्ाििाली बनाने, सहायक सामग्री की उपयक्तता ू ु ं ं िानने म ें सहायता वमलती ह।ै वििण कायभ को सिारने एि प्रर्ािी बनाने म ें र्ी सहायक ह ै अर्थाभत ु ं उपयक्त आकलन सम्पण भ वििण अविगम की गणित्ता को सिरने म ें र्ी सहायक ह।ै ु ू ु ु vii. छात्रों की रूधच, योग्यता एव उनकी छिी प्रधतिा का अध्ययन करने में - आकलन वस.भ ु ं िवै िक वनरपवत का ही अध्ययन कने म े सहायक नहीं ह ै बवल्क यह विद्यावर्थभयों की रूवच, अवर्िवत, ृ योग्यता एि उनके अन्दर छपी प्रवतर्ा को उिागर कर पाने र्ी सहायक ह।ै आकलन की प्रविया म ें ु ं विवर्न्न उपकरणों की सहायता से विवर्न्न पररस्र्थवतयों म ें
विद्यार्थी का व्यापक वनरीिण एि प्राप्त ं सचना का विश्लेषण विद्यार्थी की छपी हई प्रवतर्ा को सामने लाने म,ें उसकी रूवच को समझने म,ें ु ू ं उसकी अवर्िमता को समझने म ें अत्यत सहायक ह ै । ं viii. नैिाधनक धिक्षण की योिना बनाने में- प्रयेक विद्यार्थ
ी की वकसी विषय वििेष को समझने में कवठनाई के अकी आयाम एि कई कारन हो सकते ह ैं िो एक दसरे से वर्न्न हो सकत े ह ैं ऐसे म ें ं ू आकलन वििक को विद्यावर्थभयों के अविगम की समस्या को गहरे से समझने एि तदनसार ु ं ं नैदावनक वििण की योिना बनाने म ें महत्िपण भ र्वमका वनर्ाता ह ै ू ू ix. धवद्याधर्तयों के मागतिितन एव िरामित में- विद्यावर्थभयों का उपयक्त मागदभ िनभ एि परामि भ वििक ु ं ं की नैवतक विम्मेिारी ह।ै आकलन के द्वा
रा प्राप्त सचना के आिार पर वििक विद्यावर्थभयों को ू ं उपयक्त मागदभ िनभ एि परामिभ प्रदान करने म ें र्ी सहायक ह।ै वििक प्राप्त सचना के आिार पर ु ू ं ं विद्यार्थ
ी की िमता एि रूवच के आिार पर उन्ह ें उच्च अध्ययन के वलए उपयक्त विषय चनने ु ु ं ं अर्थिा उनके वलए कै ररयर विकल्प सझाने या आग े के व्यिसाय के चयन म ें सहायता प्रदान करने म ें ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 21 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 र्ी सहायक ह।ै इस प्रकार यवद दखे ें तो आकलन अपने व्यापक उपयोवगता म ें विद्यार्थी के मागदभ िनभ एि परामि भ म ें अत्यत कारगर ह।ै ं ं 3.4 अरधगम का आकलन (Assessment of Learning) िसै ा वक आपने वपछली इकाई म ें आकलन के प्रवत विवर्न्न दािवभ नक उपागमों के बारे म ें पढ़ा और िाना वक िस्ततः आकलन पर बीसिीं सदी के अत तक मख्यतः व्यिहार िावदयों का प्रर्ाि रहा व्यिहार ु ु ं िावदयों ने अविगम से सबवित विवर्न्न अध्ययनों को बढ़ािा वदया सार्थ ही उनकी रूवच यह िानने म ें र्ी ं र्थी वक विद्यार्थी की सप्रावप्त का िस्तवनष्ठ मापन कै से वकया िाय? व्यिहारिाद मनोविज्ञान का एक ु ं महत्िपण भ दृविकोण ह ै िो मानि के सर्ी प्रत्यि व्यिहारों का अध्ययन करता ह।ै व्यिहारिाद का िनक ू प्रवसद् मनोिज्ञै ावनक ि.े बी. िाटसन को माना िाता ह।ै व्यिहारिाद पर आिाररत अविगम वसद्ान्तों म ें सबसे प्रमख योगदान बी.ए.. वस्कनर का ह।ै व्यिहारिाद, अविगम को अविगम हते प्रेररत उद्दीपक एि ु ु ं अनविया के मध्य एक सबिन के रूप म ें दखे ता ह ै िो परस्कार एि दण्ड के द्वारा सचावलत होता ह।ै ु ु ं ं ं ं मनोविज्ञान पर व्यिहारिादी दृविकोण ने गहरा प्रर्ाि डाला ह।ै वििण अविगम की प्रविया पर र्ी अविकाि अनसन्िान एि वसद्ातों का विकास व्यिहारिादी मनोिज्ञै ावनकों द्वारा वकये गए। वििण एि ु ं ं ं ं अविगम की सम्पण भ प्रविया पर 1990 के दिक तक सिाभविक प्रर्ाि व्यिहारिाद का रहा और तदनसार ू ु िवै िक आकलन एि मल्याङकन की रूप रेखा पर र्ी इनका गहन प्रर्ाि दृविगोचर होता ह।ै व्यिहार ् ू ं िादी मनोिज्ञै ावनक अवतिातािरण िादी (Extreme Environmentalist) र्थे। व्यिहार िावदयों की मान्यता र्थी वक i. मानि का सम्पण भ अविगम मानि एि िातािरण के पारस्पररक अनविया के कारण विवर्न्न ू ु ं उद्दीपक एि उनके प्रवत अनविया के सबिन का पररणाम ह।ै ु ं ं ं ii. बालक िब पैदा होता ह ै तब टेबला रसा (tabula rasa) अर्थाभत एक खाली स्लेट के समान ु होता ह ै व्यव्हारिावदयों न े वचतन, समस्या समािान, स्मवत िसै ी मानवसक प्रविया की ृ ं ं िन्मिात उपवस्र्थवत की उपेिा की। iii. मानि व्यिहार मापनीय एि वनररिणीय होते ह।ैं ं iv. व्यिहार िाद के अनसार अविगम उद्दीपक एि अनविया के बीच विवर्न्न पनबभलनों की ु ु ु ं सहायता से वकये गए अनबिन का पररणाम ह।ै ु ं v. वदए गए उद्दीपक पर सीखी गयी अनविया
बार बार प्रदान करना अविगम का सचक ह।ै ु ू vi. वििक का प्रयास वििण के दौरान उद्दीपक एि अनविया के मध्य के सबिन विसे वििक ु ं ं ं उपयक्त समझता ह,ै पनबभलन के द्वारा म
िबत करना ह।ै ु ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 22 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अपने आरवर्क दौर म ें र्थोनभडाइक, िाटसन, वस्कनर आवद सर्ी ने मानि अविगम पर िहत अध्ययन वकये ृ ं परन्त बाद म ें अविगम के िस्तवनष्ठ अध्ययन के िम म ें उनकी रूवच िस्तवनष्ठ मापन में र्ी बढ़ी और ु ु ु पररणामस्िरूप उन्होंने आकलन के वलए विवर्न्न प्रविवियों को विकवसत वकया आकलन को िस्तवनष्ठ ु बनाने के िम म ें व्यव्हारिावदयों ने मानि वचतन की उपेिा की और स्मवत पर आिाररत प्रश्नों एि ृ ं ं आकलन प्रविवियों को बढ़ािा वदया । सार्थ ही उनका सारा िोर विद्यावर्थभयों की आपसी तलना करके ु उत्तम
विद्यार्थी एि वनम्न मानवसक स्तर िाले विद्यावर्थभयों में विर्दे न करने िसै े मिीनी प्रविया पर ं ं कें वदत हो गए । उनका आकलन का मख्य के न्ि विद्यार्थी के अविगम म ें िवद् की बिाय िष भ के अत म ें ृ ु ं विद्यार्थ
ी की सप्रावप्त को आवकक रूप म ें व्यक्त करने तक सीवमत रह गया । बाद म ें व्यिहारिाद के प्रवत ं ं लोगों का मोहर्ग एि वििण अविगम की प्रविया पर रचनािाद के बढ़त े प्रर्ाि न े वििा िगत का ध्यान ं ं आकलन के रचनात्मक उदश्े यों की र गया और िीरे िीरे रचनात्मक आकलन का प्रर्ाि बढ़ता गया । व्यिहारिादी मान्यता आर आिाररत आकलन को ही अविगम का आकलन की सज्ञा दी िाती ह ै । ं आकलन के पारपररक व्यिहारिादी दृविकोण विसे अविगम का आकलन की सज्ञा र्ी दी िाती ह ै का ं ं मख्य उद्दश्े य ह ै िो सामान्यतः वकसी काय भ या कायभ की, इकाइ भ की समावप्त पर वकया िाता ह।ै ु िस्तत: विद्यार्थी की सप्रावप्त के प्रमाण उसके माता वपता, वििक, विद्यार्थी स्िय ु ं ं ं ं अर्थिा अन्य व्यवक्तयों के वलए प्रस्तत करता ह ै । इस प्रकार व्यिहारिादी मनोिैज्ञावनकों ने वििण ु अविगम की सम्पण भ प्रविया म ें मानि सज्ञान यर्था सोचने की िमता, तकभ करने की िमता, समस्या ू ं समािान की िमता, व्यवक्त का सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य आवद सर्ी की उपेिा करते हए ु ृ ं ं विद्यार्थी को एक वनवरिय ग्रहण कताभ के रूप म ें दखे ते हए वििण अविगम हते विवर्न्न विवियों एि ु ु ं तदनसार आकलन के मानक तय कर वदए। व्यिहारिादी मनोिज्ञै ावनकों ने अपनी विवर्न्न मान्यता के ु ं आिार पर आकलन के िो मानक तय वकये उनके अनसार आकलन का उद्दश्े य वदए गए उद्दीपक पर ु विद्यार्थी से अपेवित अनविया प्राप्त करना ह ै (िो उसे अनबिन के दौरान वसखाई गयी ह)ै एि आकलन ु ु ं ं मख्यतः सीखी गयी अनविया के प्रत्यास्मरण पर आिाररत होना चावहए। ु ु अपनी विवर्न्न मान्यता के आिार पर व्यिहारिावदयों ने िो आकलन के उपकरण सझाये ि े ु ं प्रत्यास्मरण पर आिाररत र्थ े विनम े वलवखत परीिा अर्थिा पेपर पेंवसल टेस्ट प्रमख र्थे। सार्थ ही ु व्यिहारिावदयों ने आकलन के आिार पर विद्यावर्थभयों की रैंवकग एि उनके सप्रावप्त के मात्रात्मक आकलन ं ं ं को बढ़ािा वदया। पररणामतः िीरे िीरे योगात्मक आकलन की महत्ता बढती चली गयी। आकलन का उद्दश्े य विद्यावर्थभयों के कवर्थत अविगम स्तर म ें विर्दे करना एि तदनसार उन्ह ें विर्ीन्न श्रेवणयों म ें रखना ु ं मात्र हो गया। इस कारण विद्यावर्थभयों पर विवर्न्न प्रकार के प्रत्यास्मरण पर आिाररत परीिणों का बोझ बढ़ता चला गया और उनकी रचनात्मकता की उपेिा होती गयी। ियिहार िावदयों द्वारा सझाये गए ु आकलन एि आकलन के उपकरण मख्यतः विद्यार्थी के वन्ित न होकर पाठयिस्त के वन्ित र्थे। सार्थ ही ् ु ु ं व्यिहार िावदयों ने अविगम के सज्ञानात्मक, सामाविक एि सास्कवतक पिों की र्ी उपेिा की और ृ ं ं ं सस्कवत मक्त (Culture Free or Culture Fair) परीिणों के विकास पर ध्यान कें वित रखा .लतः ृ ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 23 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अविगम का उद्दश्े य पाठयिम की समावप्त पर म ें उच्च अक प्राप्त करना मात्र रह ् ं ं गया। 3.5 अरधगम के रलए आकलन (Assessment for Learning) रचनात्मक आकिन अर्वा अधिगम के धिए आकिन (Assessment for Learning/Constructive Assessment) अविगम के वलए आकलन िस्तत: आकलन का निीन उपागम ह ै िो वििण एि अविगम प्रविया के ु ं सार्थ समवे कत ह ै िो विद्यावर्थभयों के अविगम उन्नवत के वलए प्रवतपवि प्रदान करता ह।ै िस्तत: अविगम के ु ु वलए आकलन 1990 के दिक से िीरे िीरे लोकवप्रय होने लगा िब यह दखे ा गया वक आकलन के नाम पर विद्यार्थी िीरे िीरे अवत आकलन एि बहत सारे परीिण की समस्या से विर गए ह ै तावक उन्ह ें िमिार ु ं ं रैंक म ें रखा िा सके और विद्यावर्थभयों की आपस म ें तलना की िा सके । प्राप्ताकों के वनमाभण एि सवचत ु ू ं करने की प्रविया िो विद्यावर्थभयों के अविगम का वनणयभ करती र्थी उसे अविगम का आकलन की सज्ञा दी ं गयी ह।ै रचनािादी विचार िारा के प्रितभक के रूप म ें सप्रवसद् मनोिैज्ञावनक िीन वपयाि े (Jean Piaget) ु को माना िाता ह ै । वपयािे ने माना वक बालक के अविगम म ें िातािरण के सार्थ सार्थ उसकी सज्ञानात्मक प्रविया का योगदान र्ी ह ै और िातािरण एि मानवसक सरचना की पारस्पररक अन्तः ं ं ं ं ं विया बालक के अविगम म ें महिपण भ र्वमका वनर्ाती ह ै बाद म ें रचनािादी दृविकोण दो अलग ू ू विचारिारा म ें बट गया: पहला ज्ञान रचनािाद (Cognitive Constructivism) विसके प्रवसद् ं ं विद्वान िीन वपयाि े (Jean Piajet) , ब्रनर (Jerome Bruner), गनै े (Gagne) आवद रह े और दसरा ू ू सामाविक सस्कवतिाद (Socio-Culturist Perspective) विसके प्रितभक एि प्रबल समर्थभक ृ ं ं िाईगोत्सकी (Lev Vygotsky) रह े । रचनािावदयों के अनसार वििा का तात्पयभ बालक का सिाांगीण ु विकास (बौवद्क, िारीररक, सामाविक-र्ािनात्मक आवद) ह,ै अतः आकलन का र्ी उद्दश्े य सिाांगींण विकास को आकलन करने िाला होना चावहए। सज्ञानात्मक रचनािाद के अनसार आकलन का उद्दश्े य ु ं िष भ के अत म ें विद्यार्थी ने अन्य विद्यार्थी की तलना म ें वकतना सीखा की बिाये विद्यार्थी की अविगम ु ं समस्या को िानना एि तदनसार नैदावनक वििण प्रदान करना ह।ै सामाविक सस्कवतिाद समस्त ृ ु ं ं ं अविगम को सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ता ह ै अतः आकलन को र्ी विद्यार्थी के ृ ं ं सामाविक एि सास्कवतक पररप्रेक्ष्य म ें दखे ा िाना चावहए। अविगम के वलए आकलन का आिार ृ ं ं अविगम की रचनािादी दृविकोण ह ै विसकी मान्यता ह ै वक वकसी र्ी विषय के अविगम के वलए िो मावसक प्रवतमान का प्रयोग करते ह ैं िह अत्यत िवटल पि भ अनर्िों एि सामाविक व्यवक्तक से अत: ू ु ं ं ं विया पर आिाररत होती ह।ै इन िवटल प्रविया को विद्यार्थी एि वििक दोनों के वलए समझने की ं ं ं ं अिस्र्था उन अविगम सामवग्रयों की प्रकवत समझने म ें मददगार ह।ै इसकी यह र्ी मान्यता ह ै वक वििक ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 24 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 एि अविगम को उसकी गहराइ भ के मध्य के सिाद एि प्रवतपवि की गणित्ता वििण अविगम की प्रविया ु ु ं ं ं म ें अत्यन्त महत्िपण भ ह।ै रचनािावदयों के अनसार वििा का तात्पयभ बालक का सिाांगीण विकास ू ु (बौवद्क, िारीररक, सामाविक-र्ािनात्मक आवद) ह,ै अतः आकलन का र्ी उद्दश्े य सिाांगींण विकास को आकलन करने िाला होना चावहए। रचनािाद के अनसार आकलन के मख्य उद्दश्े य ह ै विद्यार्थी के ु ु ं अविगम को प्रेररत करना एि उनकी िवै िक सप्रावप्त को उन्नत करना। अत: अविगम से पि भ विद्यावर्थभयों के ू ं ं वलए यह िानना आिश्यक ह ै वक अविगम
का लक्ष्य क्या ह?ै उन्ह ें यह क्यों सीखना चावहए? अविगम लक्ष्यों की प्रावप्त म ें ि े कहा ह?ै ं अविगम लक्ष्यों की प्रावप्त कै से की िा सकती ह?ै िस्ततः अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों के अविगम से सबवित सचना प्राप्त करके एि उनका ु ू ं ं ं विस्तत विश्लेषण करने की प्रविया ह ै विसके द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी एि वििक दोनों यह िानने का प्रयत्न ृ ं ं करते ह ैं विद्यार्थी अविगम उद्देश्यों की प्र
ावप्त म ें कहााँ ह ैं एि उन्ह ें अपेवित स्तर तक ले िाने का सिोत्तम ं तरीका क्या ह।ै अविगम के वलए आकलन, अविगम के सार्थ सार्थ चलने िाली प्रविया ह ै अत: इसके द्वारा विद्यार्थी यह िान पाते ह ै वक उन्ह ें क्या सीखना ह,ै उनसे क्या अपेवित ह,ै और वििक आकलन
के ं द्वारा उसके आिार पर उन्ह ें प्रवतपवि एि सलाह प्रदान करता ह ै वक ि े अपने अविगम को और उन्नत ु ं कै से बना सकते ह।ै अविगम के वलए आकलन म ें वििक के द्वार
ा यह िानने का प्रयास वकया िाता ह ै वक उनके विद्यार्थी क्या िानते ह,ैं क्या कर सकते ह ैं एि उनकी अविगम कवठनाइयों क्या क्या ह।ैं ं ं अधिगम के धिए आकिन की मख्य धविेषताए: ु ं िसै ा वक हमने िाना िस्ततः रचनािादी दृविकोण पर आिाररत ह ै विसकी ु प्रमख वििेषताए वनम्नावकत ह:ैं ु ं ं रचनात्मक आकलन नैदावनक और उपचारात्मक होता ह।ै रचनात्मक आकलन विद्यावर्थभयों वििा-प्रावप्त म ें सविय र्ागीदार बनाता ह ै रचनात्मक आकलन अध्यापक को प्रर्ािी अध्यापन म ें सहायता करता ह ै रचनात्मक आकलन विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा और आत्म-सम्मान को उन्नत बनाता ह ै रचनात्मक आकलन विद्यावर्थभयों म ें स्ि-मल्याकन की प्रिवत को प्रोत्सावहत करता ह ै ृ ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 25 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रचनात्मक आकलन क्या और कै से पढ़ाया िाए, इसका वनणयभ करने म ें वििक को सहयोग करता ह ै रचनात्मक आकलन विद्यावर्थभयों को उन मानदडों को समझने के वलए प्रोत्सावहत करता ह,ै ं विनका उपयोग उनके उनकी िवै िक सप्रावप्त का आकलन वकया िानेिाला ह ै ं रचनात्मक आकलन विद्यावर्थभयों को रचनात्मक .ीडबैक प्रदान करके उन्ह ें सिार करने का ु अिसर प्रदान करता ह।ै अधिगम के धिए आकिन के िाि अविगम के वलए आकलन विद्यार्थी को उसके अविगम लक्ष्यों के अविवर्न्न अियिों को ं समझने म ें सहायता करता है, उन्ह ें उनके अविगम के प्रवत विम्मिे ार बनाता है एि आग े के ं अविगम को योिनाबद् करने म ें सहायक ह।ै अविगम के वलए आकलन अविगम एि आकलन के बीच एक मिबत कडी का वनमाभण करता ू ं ह।ै अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों के अविगम के वलए प्रवतपवि प्रदान करता ह ै िो अविगम ु को प्रर्ािी बनाता ह ै और उनकी सम प्रावप्त पर सकारात्मक प्रर्ाि डालता ह।ै अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों को उनके अविगम के प्रवत रचनात्मक प्रवतपवि प्रदान कर ु उनका आत्मविश्वास, अन्िषे ण िमता एि रचनात्मकता म ें िवद् करता ह ै ृ ं अविगम के वलए आकलन विद्यार्थी कै से सीखते ह ैं पर के वन्ित ह।ै ं अविगम के वलए आकलन सिदे निील एि रचनािादी ह।ै ं ं अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा म ें िवद् करने म ें सहायक ह ै ृ अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों म ें लक्ष्य एि मानदड की समझ विकवसत करता ह।ै ं ं अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों की सिगां ीण उन्नवत में सहायक ह।ै अविगम के वलए आकलन विद्यावर्थभयों म ें स्ि अविगम की योग्यता विकवसत करता ह।ै अविगम के वलए आकलन विद्यार्थी सप्रावप्त का विवर्न्न िेत्रों म ें व्यापक आकलन करता ह।ै ं ं 3.6 अरधगम का आकलन एवं अरधगम के रलए आकलन म अंतर ें उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 26 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 तिना के आिार अधिगम का आकिन अधिगम के धिए आकिन ु आिार मख्यतः व्यिहारिादी सज्ञान िादी एि रचनािादी ु ं ं आकिन का वनिाभररत अविगम की समावप्त पर सतत, सम्पण भ अविगम के दौरान ू समय िवातनमान क्षमता ू ु पश्च-दिी (वििक विद्यावर्थभयों के अविगम अग्रदिी ( सम्पण भ अविगम के दौरान विद्यार्थी ू का आकलन और तदनसार उनको का सतत आकलन एि तदनसार उसके ु ु ं विर्ीन्न श्रेवणयों में रखना अविगम की अविगम की उन्नवत हते वनयवमत प्रवतपवि) ु ु समावप्त के उपरात) ं समय आिविक (अविगम का आकलन एक सतत एि चिीय (वििक और विद्यार्थी ं वनवश्चत समय के उपरात तावक विद्यावर्थभयों लगातार प्रगवत का आकलन करते रहते ह ैं ं को उनकी िैविक सप्रावप्त के अनसार और आकलन की प्रवतपवि के अनसार ु ु ु ं विवर्न्न श्रेवणयों में रखा िा सके ) नैदावनक वििण) धवधविता एव ं व्यवक्तगत वर्न्नता की उपेिा, व्यवक्तगत वर्न्नता पर आिाररत,आकलन ं ं व्यधक्तगत आकलन की प्रविया सर्ी विद्यावर्थभयों के की प्रविया में समावहत कायभ कलापों में धिन्नता वलए समान मख्यतः वलवखत परीिा विवििता यर्था असैन्मेंट,सहपाठी ु ं पर आिाररत मल्याङकन, सतत मल्याङकन आवद ् ् ू ू वििरणात्मक आकिन की मख्यतः वनणयभ ात्मक ु प्रकधत ृ नैिाधनक/ गैर उपचारात्मक (क्योंवक आकलन का उपचारात्मक (आकलन का उद्दश्े य मख्यतः ु िचारात्मक उद्दश्े य िैविक सप्रावप्त का श्रेणीकरण) सतत प्रवतपवि के आिार पर
विद्यार्थी के ु ं प्रकधत ृ अविगम को प्रर्ािी बनाना) गणात्मकता ु मलतः पररमाणात्मक क्योंवक इसका मलतः गणित्तापरक क्योंवक इसमें वििक ि ू ू ु सम्बन्ि अकों ि ग्रडे ों से ह ै विद्यार्थी वनरतर अविगम की गणित्ता का ु ं ं वनणयभ साझा करते ह ै िैविक उपलवब्ि की गणित्ता के स्तर को बढ़ाने की वदिा में काम ु करते ह ैं कें द्र मख्यतः वििक उन्मख वििक एि विद्यार्थी उन्मख आकलन की ु ु ु ं प्रविया में वििक एि विद्यार्थ
ी की सविय ं सहर्ावगता उत्तराखण्ड मक्त
3%
1%
0.8%
0.6%
0.4%
0.3%
0.3%
विश्वविद्यालय 27 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3.7 सारांश आकलन का तात्पयभ वकसी व्यवक्त या समह के बारे म ें सचना सग्रहण, विश्लेषण एि उनका अर्थभ ू ू ं ं वनकालने की प्रविया से ह ै विस से वकसी व्यवक्त के बारे म
ें अनदिे नात्मक, वनदिे नात्मक अर्थिा ु प्रिासवनक वनणयभ वलये िा सकें । आकलन वििा प्रविया का एक महत्िपण भ अग ह।ैं आकलन एक ू ं वििक को अपने वििण के उद्दश्े य एि एि उनके सन्दर् भ म ें विद्यावर्थभयों की सप्रावप्त को िानने म,ें अविगम ं ं ं म ें विद्यार्थी को हो रही कवठनाई और उसके कारणों का विश्लेषण करने म ें एि तदनसार नैदावनक वििण ु ं की योिना बनाने म ें मदद करता ह।ै आकलन के पारपररक व्यिहारिादी दृविकोण विसे की सज्ञा र्ी दी िाती ह ै का मख्य उद्दश्े य ह ै िो सामान्यतः वकसी कायभ या कायभ ु ं की, इकाइ भ की समावप्त पर वकया िाता ह।ै विद्यार्थी की सप्रावप्त के प्रमाण उसके ं ं माता वपता, वििक, विद्यार्थी स्िय अर्थिा अन्य व्यवक्तयों के वलए प्रस्तत करता ह ै । अपनी विवर्न्न ु ं ं मान्यता के आिार पर व्यिहारिावदयों ने िो आकलन के उपकरण सझाये ि े प्रत्यास्मरण पर आिाररत ु ं र्थे विनम े वलवखत परीिा अर्थिा पेपर पेंवसल टेस्ट प्रमख र्थे। सार्थ ही व्यिहारिावदयों ने आकलन के ु आिार पर विद्यावर्थभयों की रैंवकग एि उनके सप्रावप्त के मात्रात्मक आकलन को बढ़ािा वदया। व्यिहार ं ं ं िावदयों ने अविगम के सज्ञानात्मक, सामाविक एि सास्कवतक पिों की र्ी उपेिा की । रचनािाद के ृ ं ं ं अनसार अविगम एक सविय प्रविया ह ै िो प्रत्येक अविगमकताभ के वलए विविि होती ह ै विसम ें ु अविगमकताभ अपने पि भ अनर्िों ि ज्ञान के आिार पर प्रत्ययों म ें सबि स्र्थावपत करे उनके अर्थों की ू ु ं ं रचना करता ह।ै अविगम के वलए आकलन िस्तत: आकलन का निीन उपागम ह ै िो वििण एि ु ं अविगम प्रविया के सार्थ समवे कत ह ै िो विद्यावर्थभयों के अविगम उन्नवत के वलए प्रवतपवि प्रदान करता ह।ै ु अविगम के वलए आकलन विद्यार्थी कै से सीखते ह ैं पर के वन्ित ह।ै अविगम के वलए आकलन सिदे निील ं ं एि रचनािादी ह ै िो विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा म ें िवद् करने म ें सहायक ह,ै स्ि अविगम की योग्यता ृ ं विकवसत करता ह,ै विद्यावर्थभयों म ें लक्ष्य एि मानदड की समझ विकवसत करता ह,ै विद्यार्थी सप्रावप्त का ं ं ं ं विवर्न्न िेत्रों म ें व्यापक आकलन करता ह ै एि विद्यावर्थभयों की सिगां ीण उन्नवत म ें सहायक ह।ै ं 3.8 सन्दर् भ ग्रन्थ / अन्य अध्ययन 1. CBSE (2014)
“रचनात्मक मल्याकन हते वििक सदविकभ ा”
C.B.S.E. ू ु ं ं 2. CIE(2016) Assessment for Learning: Cambridge International Examination 3. Gardner, J., (2016) Assessment for Learning: A practicalGuide, The northern Ireland Curriculum, retrieved from http://ccea.org.uk/sites/default/files/docs/curriculum/assessment/assessment_for _learning/afl_practical_guide.pdf उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 28 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. NCA (2016) Assessment for Learning Leaflet, Retrieved from http://www.ncca.ie/ga/Foilseach%C3%A1n/Foilseach%C3%A1in_Eile/Assess ment_for_Learning.pdf 5. NCERT (2005) National Curriculum Framework, 2005, NCERT. 6. NCTE (2009) National Curriculum Framework for Teacher Education, N.C.F. 2005 की ररपोटभ. 7. http://www.hkeaa.edu.hk/DocLibrary/SBA/HKDSE/Eng_DVD/doc/Afl_princip les.pdf 8. https://arc.duke.edu/documents/The%20difference%20between%20assessment %20and%20evaluation.pdf 3.9 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. आकलन को पररर्ावषत करें एि इसकी आिश्यकता एि महत्ि पर प्रकाि डालें ं ं 2. आकलन एि मल्याकन म ें क्या अतर ह?ै ू ं ं ं 3. अविगम के आकलन का सप्रत्यय स्पि करें। ं 4. अविगम के वलए आकलन उसकी वििेषता एि उसके लार् का िणनभ करें। ं ं 5. अविगम का आकलन एि अविगम के वलए आकलन म ें अतर स्पि करें। ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 29 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 4 - शैतिक मूलयांकन एिं अतिगम 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 मल्याकन: एक सामान्य पररचय ू ं 4.3.1 िैविक मल्याकन की पररर्ाषा ू ं 4.3.2 िैविक मल्याकन की प्रकवत ृ ू ं 4.3.3 िैविक मल्याकन के र्ागीदार ू ं 4.3.4 िैविक मल्याकन का समय ू ं 4.4 मल्याकन के प्रकार ू ं 4.4.1 िैविक मल्याकन के कायभकाररता के अनसार ू ु ं 4.4.2 िैविक मल्याकन के प्रकवत के अनसार ृ ू ु ं 4.4.3 िैविक मल्याकन के प्रिासक के अनसार ू ु ं 4.4.4 अन्य सामान्य प्रकार 4.5 मल्याकन के प्रवतमान ू ं 4.5.1 वकल्पैवरक प्रवतमान 4.5.2 CIPP प्रवतमान 4.5.3 प्रणाली उपागम प्रवतमान 4.6 िैविक मल्याकन का दािभवनक आिार ू ं 4.7 बालकों के तादात्म्य, अविगम एि अवर्प्रेरणा पर मल्याकण का प्रर्ाि ु ं ं 4.8 साराि ं 4.9 िब्दािली 4.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 4.11 सन्दर्भ ग्रन्र्थ सची ू 4.12 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 30 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.1 प्रस्तावना पििभ ती इकाइयों म ें आप िवै िक मल्याकन के सप्रत्यय के बारे म ें िानकारी प्राप्त कर चके ह।ै इसके ू ू ु ं ं अलािा ितभमान म ें प्रयोग वकए िाने िाले मापन एि मल्याकन विविया, परीिण एि परीिा के बारे म ें र्ी ू ं ं ं ं आप लोगों ने पढ़ा ह ै । मल्याकन के विवर्न्न प्रकार के दािवभ नक सप्रत्ययों िसै े व्यिहारिादी मल्याकन, ू ू ं ं ं रचनात्मक मल्याकन एि सामाविक सास्कवतक मल्याकन के बारे म ें र्ी आलोचनाए की िा चकी ह ै । ृ ू ू ु ं ं ं ं ं ितभमान इकाई म ें हम लोग मल्याकन को एक सप्रत्यय के रूप म ें समझने की कोविि करेंगे एि मल्याकन ू ू ं ं ं ं के विवर्न्न प्रवतमान एि दािवभ नक आिार क्या ह ै यह र्ी समझने का प्रयास करेंग े । ं 4.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - 1. िवै िक मल्याकन को पररर्ावषत कर सकें ग े । ू ं 2. िवै िक मल्याकन को उसके प्रकारों के अनसार िगीकत कर सकें ग े । ृ ू ु ं 3. मल्याकन के विवर्न्न प्रवतमानों को समझा सकें ग।े ू ं 4. मल्याकन के दािवभ नक आिार को समझा सकें ग े । ू ं 5. हम के प्रर्ाि को विवर्न्न िटकों के पररप्रेि म ें िणनभ कर सकें ग े । 4.3 शैरिक मूलयाकं न: एक सामान्य पररचय हमलोग अपने दवै नक िीिन म ें मल्याकन नामक प्रविया का बहतायत म ें प्रयोग करते ह,ैं कर्ी िानबझ ु ू ू ं कर तो कर्ी अनिाने म ें । आप लोग कर्ी न कर्ी तो बािार म ें सवब्िया लेने गए ही होंग े । एक बार ं बािार म ें आप द्वारा वकये गए कायों को याद कीविए , िहााँ आप क्या क्या करते ह ै ? – i. सबसे पहले परे बािार को िमके दखे ते होंग े की कौन कौन सी सब्िी वकस वकस के पास ु ू उपलब्ि ह ै । ii. व.र आप अपने तावलका (िो आप िर से बनाकर ले गए र्थे) से वमलाते ह ै की कौन कौन सी सवब्िया लेनी ह ै । ं iii. उसके बाद आप अपने पसद की सवब्ियों को परखते ह ै की िो ताज़ े ह ै की नहीं, साफ़-सर्थरे ह ै ु ं की नहीं । इस प्रकार आप सवब्ियों का िगीकरण कर लेते ह ै की कौन सी सब्िी अच्छी ह ै और कौन सी नहीं । iv. व.र आप अपने बिट के वहसाब से (और अपने मानक के वहसाब से ) मोलर्ाि करते ह ै और उपयक्त दाम पर अच्छी सवब्िया खरीद लेते ह ै । ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 31 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 यह परी िटनािम एक मल्याकन प्रविया को दिाभती ह ै । ऐसे और र्ी बहत सारे उदाहरण हमारे दवै नक ु ू ू ं िीिन म ें दखे ने को वमलते ह ै । इसवलए मल्याकन की प्रविया से कमोबेि हम सब पररवचत ह ै ही । ू ं िवै िक मल्याकन र्ी इससे अलग नहीं ह ै । .कभ वस.भ इतना ह ै की िवै िक मल्याकन म ें परी प्रविया ू ू ू ं ं िवै िक उद्दश्े यों, किा-कि वििण, विषय-िस्त, वििक, वििार्थी, अविगम एि तत्सबिी चरों के ु ं ं ं सहचयभ से िवटत होती ह ै । 4.3.1 िैधक्षक मलयाकन की िररिाषा ू ं िवै िक मल्याकन के बहत सारी पररर्ाषाए पाए िाते ह ै िो समय समय पर विवर्न्न विद्वानों द्वारा वदए गए ु ू ं ं ह ै । इनमे से कछ महत्िपण भ पररर्ाषाए वनम्नित ह-ैं ु ू ं टेंधरक व किर (2003) के अनसार-
‘ िवै िक मल्याकन सचना के व्यिवस्र्थत अन्िेषण, ् ू ु ू ू ं ं प्रेिण एि व्याख्या की प्रविया ह’
ै । ं
“Educational evaluation is the systematic investigation, observation and interpretation of information.”
एिोरा व तोरान्िोस (2009) के अनसार -
‘िवै िक मल्याकन एक ऐसी प्रविया ह ै िो यह ् ु ू ं प्रमावणत करता ह ै की ििै वणक प्रविया के माध्यम से ििै वणक उद्दश्े यों की िास्तविक प्रावप्त हई ु ह’
ै ।
“Educational evaluation is a method (procedure) and to prove if the expectations and aim of an evaluation process reflect reality (results of the process).”
िाफ्रसेस्को (2001) के अनसार-
‘िवै िक मल्याकन सचना प्रदान करन े िाली एक ऐसी ु ू ू ं ं प्रविया ह ै िो वकसी वनणयभ लेने एि वनरकष भ पर पहचाँ ने म ें सहायक होती ह ै । ’
ु ं
“Educational evaluation is the process of obtaining information and using it to come to some conclusions which will be used to take decisions.”
रेडफीलड तर्ा मोरडोक के अनसार-
‘मल्याकन वकसी सामाविक, सास्कवतक अर्थिा ृ ु ू ं ं िज्ञै ावनक मानदड के सदर् भ म ें वकसी िटना को प्रतीक आिवटत करना ह ै विससे उस िटना का ं ं ं महत्ि अर्थिा मल्य ज्ञात वकया िा सके । ’
ू एन. एम. िाडेकर के िब्िों में-
‘मल्याकन को छात्रों के द्वारा िवै िक उद्दश्े यों को प्राप्त करने की ू ं ं सीमा ज्ञात करने की िमबद् प्रविया के रूप म ें पररर्ावषत वकया िा सकता ह ै । ’
हन्ना के अनसार -
‘िवै िक सदर् भ म ें मल्याकन, समस्त छात्रों के व्यिहार म ें विद्यालय म ें प्रगवत ु ू ं ं करते समय प्रदवितभ पररितभन के बारे म ें प्रमाण एकवत्रत करने तर्था उनकी व्याख्या करने की प्रविया ह ै । ’
उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 32 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3
“Evaluation is the process of gathering and interpreting evidence on changes in the behaviour of all students as they progress through School.”
इस प्रकार मल्याकन को वनम्न सत्र के द्वारा प्रदवितभ वकया िा सकता ह ै – ू ू ं मल्यकन = व््वहयरगत पररवततन के मयत्रयत्मक वववरण + गणयत्मक वववरण + औवित्् ्य ू ु ां उप्क्ततय के सदर्त में मल् वनर्यतरण करनय ु ू ां राररीय िवै िक अनसिान एि प्रवििण पररषद (NCERT) ने मल्याकन के प्रत्यय को स्पि करते हए ु ु ू ं ं ं कहा ह ै वक यह एक ऐसी सतत ि व्यिवस्र्थत प्रविया ह ै िो दखे ती ह ै वक (i) वनिाभररत िवै िक उद्दश्े यो ाँ ं की प्रावप्त वकस सीमा तक हो रही ह,ै (ii) किा म ें वदए गए अविगम अनर्ि वकतने प्रर्ाििाली रह े ह,ैं ु तर्था (iii) वििा के उद्दश्े य अच्छे ढग से पण भ हो रह े ह ैं । ू ं 4.3.2 िैधक्षक मलयाकन की प्रकधत ृ ू ं अनर्ाग 4. .1 पर वदए गए वर्न्न प्रकार के पररर्ाषा के विश्लेषण करने पर हमलोगों ु ं को िवै िक मल्याकन की कछ विवििताए ाँ प्राप्त होती ह,ै िह इस प्रकार ह ै – ू ु ं a. िवै िक मल्याकन एक व्यिवस्र्थत गवतिील प्रविया ह ै । ू ं b. यह प्रविया अन्िेषण आिाररत ह ै एि यह विवर्न्न स्रोतों से अविगम प्रविया, विषय-िस्त, ु ं वििण-विवि, ििै वणक पररणामों के बारे म ें सचनाए एकत्र करना ह ै । ू ं c. यह प्राप्त सचना का व्यिस्र्थापन एि विश्लेषण करता ह ै । ू ं ं d. यह मल्याकन के वलए कछ मानकों को स्र्थावपत करता ह ै । ू ु ं e. विश्लेवषत सचना को स्र्थावपत मानकों के आिार पर, िवै िक उद्दश्े यों को ध्यान म ें रखते हए ु ू ं वनणयभ वलया िाता ह ै । f. वलए गए वनणयभ ों के आलोक म ें वनरकष भ वनकाला िाता ह ै िो आने िाले समय म ें िवै िक गवतविवियों के सिार एि अवर्विन्यास म ें सहायक वसद् होता ह ै । ु ं ऊपर वदए गए िवै िक मल्याकन के प्रकवत के आिार पर हम िवै िक मल्याकन के वियािील उद्दश्े यों को ृ ू ू ं ं समझ सकते ह ै (सामान्य उद्दश्े यों के अवतररक्त), िो इस प्रकार ह ै – i. िवै िक मल्याकन के बेहतर समझ मल्याकन योिना को बेहतर बनाता ह,ै विससे वकसी र्ी ू ू ं ं प्रकार का नकारात्मक पररणाम को रोका िा सके एि सर्ावित िवत की िवतपवतभ की िा सके । ू ं ं ii. वकसी र्ी िवै िक विया के उपलवब्ि को मान्यता प्रदान करना तावक इसका र्विरय म ें ं सर्ावित एि समवचत प्रयोग वकया िा सके । ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 33 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 iii. मल्याकन प्रविया के अत म ें प्राप्त अलग-अलग नतीिों को िोढ़कर और सस्पि बनाना, विससे ू ु ं ं इसका उपयोग अन्यत्र वकसी दसरे मल्याकन प्रविया म ें सहायक वसद् हो सके । ू ं ु iv. मल्याकन प्रविया म ें सहयोवग के सार्थ सहर्ावगता मिबत करना । यह उद्दश्े य उन अिस्र्था ू ू ं ं म ें कायभकारी होता ह ै िहा मल्याकन प्रविया वकसी मल्याकन दल द्वारा वकया िाता ह ै । यह ू ू ं ं ं उद्दश्े य मलरूप से एक रचनात्मक एि सहर्ागी मल्याकन प्रविया को मिबती प्रदान करता ह ै । ू ू ू ं ं 4.3.3 मलयाकन के िागीिार ू ं वपछले अनर्ागो म ें हम यह दखे चके ह ै की िवै िक मल्याकन एक प्रविया ह ै । इस प्रविया को वनवश्चत ही ु ु ू ं वकसी एक व्यवक्त या व्यवक्त समह द्वारा वकया िाता होगा । यह र्ी वनवश्चत ह ै की यह प्रविया वकसी व्यवक्त ू वििेष या समह या व.र उनको ध्यान म ें रखकर वकया िाता ह ै । और यह र्ी वनवश्चत ह ै की इस प्रविया से ू कोई व्यवक्त या व्यवक्त समह प्रर्ावित होता होगा । ू बहत ही सरल िब्दों म ें कहा िाए तो यह की कोई र्ी िवै िक मल्याकन प्रविया दो प्रमख प्रश्नों के आस- ु ू ु ं पास ही आिवतभत होती ह,ै यर्था – a. िवै िक मल्याकन वकसके द्वारा ? ू ं b. िवै िक मल्याकन वकसके वलए ? ू ं यह दोनों ही प्रश्न, िवै िक मल्याकन प्रविया म े वहस्सेदारी करने िाले व्यवक्त या व्यवक्त समह की र ू ू ं इवगत करता ह ै । अत: इस अनर्ाग म े हम लोग यह समझने की कोविि करेंग े वक वकसी र्ी िवै िक ु ं मल्याकन प्रविया म ें र्ाग लेने िाले व्यवक्त या समह कौन-कौन ह ै । ू ू ं i. प्रधतिागी: यह वकसी िवै िक मल्याकन प्रविया म े र्ाग लेने िाले व्यवक्त या व्यवक्त का िह ू ं ं समह ह ै िो सीिे तौर पर (िास्तविक िरातल पर) इस प्रविया से प्रर्ावि
त होते ह ै एि परी ू ू ं प्रविया इन्ही को ध्यान म े रखकर योिनाबद् की िाती है, मख्यत: वििावर्थभयों को ही प्रवतर्ागी ु के रूप म े िाना िाता ह ै । ii. प्रबन्िक(प्रिाव मे िाने वािा): यह व्यवक्त ि व्यवक्तयों का िह समह ह ै िो मल्याकन योिना ू ू ं को एक सरलीकत रूप म े प्रवतर्ावगयों पर प्रिासीत करता ह ै । वििक या वििकों का समह या ृ ू विषय-वििेषज्ञों का समह प्रबन्िक के रूप म
े इस प्रविया की स.लता को सवनवश्चत करते ह ै । ू ु iii. आयोिक/सगठक: यह िह समह ह ै िो प्रबन्िको को मल्याकन प्रविया आयोवित करने के ू ू ं ं वलए प्रेररत करता ह ै । वकसी र्ी िवै िक सस्र्थान का प्रबि तत्र या कोई सरकारी/गरै -सरकारी ं ं ं सगठन (सरकारी आदिे ानसार) इस प्रविया के आयोिक के रूप म े कायभ करता ह ै । ु ं iv. धनधिकरण सस्र्ा: यह दो प्रकार का हो सकता ह ै - आतररक एि बाह्य। आतररक वनविकरण ं ं ं ं वकसी र्ी ििै वणक सस्र्था म े िवै िक मल्याकन के वलए उनके अपने द्वारा वकया िाने िाली ू ं ं प्रविया ह,ै िसै े - वकसी वििालय म े िावषकभ परीिा को सम्पन्न करने के वलए विद्यायीय प्रबन्िन द्वारा आपवतभ वकया िाने िाला वनवि । बाह्य वनविकरण सस्र्थाए ाँ िह सस्र्था ह ै िो िहद सामाविक ृ ू ं ं या राररीयहीत के वलए िवै िक गवतविवियों का मल्याकन करती ह ै एि इस परे प्रविया को ू ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 34 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सचावलत करने के हते वनवि प्रदान करती ह ै । िसै े- मानि विकास ससािन मत्रालय द्वारा समय- ु ं ं ं समय पर चलाये िाने िाले िवै िक गवतविवियों के मल्याकन हते कायभिम। अिीम प्रेमिी ू ु ं .ाउडेिन (गरै -सरकमी सगठन) द्वारा चलाये िाने िाले सर्ी कायभिम । ं ं v. नीधत-धनिातरक: यह िवै िक मल्याकन प्रविया से सम्बद् िह समह ह ै िो सीिे रूप से इस ू ू ं प्रविया से िडे नहीं होते, परन्त इस प्रविया से प्राप्त वनरकष भ के आिार पर र्ािी िैविक ु ु गवतविवियों के योिना से िडे विवर्न्न नीवतयों को वनिाभरण करते ह ै । यह विद्यालय स्तरीय या ु रारर-स्तरीय हो सकता ह ै । 4.3.4 मलयाकन का समय ू ं वकसी मल्याकन प्रविया म ें उसम े वहस्सा लेने िाले िीतने महत्िपण भ होते ह,ै उतना ही महत्िपण भ मल्याकन ू ू ू ू ं ं का समय र्ी होता ह ै । एक उदाहरण से हम इसे समझने की कोविि करते ह ै । आप र्ोिन पकाने की प्रविया को याद कीविए। सबसे पहले आप र्ोिन बनाने के वलए िरूरी हर एक सामान को अपने आस-पास रख लेते ह ै । र्ोिन पकाने से पहले आप वनवश्चत ही उन सब सामानों को एक बार वमला लेते होंगे, तावक कोई चीि छट न िाए। उसके बाद आप उसे पकाते ह ैं तो बीच-बीच में ू पकिान की महक और स्िाद(नमक, वमचभ, मीठा आवद दखे ने के वलए) परीिण करते होंगे, ऐसा इसवलए करते होंग े की खाना पयाभप्त पके और स्िाद सही हो । र्ोिन परोसते समय ऐसा हो ही नहीं सकता की आप यह न पछे की र्ोिन कै सा बना ह ै ? ु इस उदाहरण से यह सा. ह ै वक कब कौन सा काम करना ह ै । आप खाना चल्ह े पर चढ़ाकर सामान ू खरीदने नहीं िाते होंग े । खाना परोसते समय स्िाद नहीं चखते होंग े या अवतवर्थ को परोसन े से पहले नहीं पछते होंग े वक खाना कै सा बना ह।ै ू ठीक इसी प्रकार, वकसी ििै वणक गवतविवि म ें उसका कब और क्यों मल्याकन वकया िाना ह,ै यह तय ू ं होता ह।ै प्रत्येक मल्याकन प्रविया वकसी उदद्यश्े यों की प्रावप्त के वलए वकया िाता ह ै और उद्दश्े य ही तय ू ं ् करते ह ैं वक ििै वणक गवतविवि के वकस समय मल्याकन वकया िाना ह।ै ू ं मल्याकन के समय के अनसार मल्याकन प्रविया को
तीन प्रकारों म ें विर्ावित वकया िाता ह।ै यर्था- ू ु ू ं ं a. प्रारधम्िक मलयाकन- यह मल्याकन वकसी र्ी ििै वणक विया के प्रारम्र् म ें ही वकया िाता ह।ै ू ू ं ं इस प्रकार के मल्याकन का मख्य उद्दश्े य होता ह ै - ू ु ं i. यह दखे ना वक क्या ििै वणक उद्दश्े य लक्ष्य की प्रावप्त म ें सहायक ह ै ? ii. ििै वणक लक्ष्य की प्र
ावप्त के वलए चयवनत विवियााँ क्या पयाभप्त ह ै ? iii. क्या िवै िक कायभिम िास्तविकता पर आिाररत ह ै ? iv. क्या इस िैविक कायभिम से िडे सबवन्ित व्यवक्तयों के पास उपयक्त योग्यता ह ै विससे ु ु ं यह कायभिम स.ल हो सके ? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 35 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 b. मध्याविी मलयाकन-
इस प्रकार का मल्याकन िवै िक कायभिम के बीच म े ही वकया िाता ह ै । ू ू ं ं इस प्रकार के मल्याकन से िैविक कायभिम को और बेहतर बनाने म ें सहायता वमलती ह ै । इस ू ं प्रकार का मल्याकन यह दखे ता ह ै वक क्या कायभिम अपने योिनानसार चल रहा ह ै । क्या ू ु ं कायभिम समयानसार ह ै ? क्या कायभिम को वकसी प्रकार के बदलाि की िरूरत ह ै ? यही हााँ तो ु क्या-क्या आवद । हमारे विद्यालय म ें आमतौर पर वलए िाने िाले कि परीिा, इकाई परीिा एि ं अिभिावषकभ परीिा आवद इस प्रकार के मल्याकन के उदाहरण ह ैं । ू ं c. अधतम/ सत्रात मलयाकन- इस प्रकार का मल्याकन समपण भ िवै िक कायभिम के समापन के ू ू ू ं ं ं ं बाद वकया िाता ह ै इसके माध्यम स
े सम्पण भ िवै िक कायभिम का मल्याकन वनिाभररत वकया ू ू ं िाता ह ै । िवै िक कायभिम के पररणाम के आिार पर, उद्दश्े यों की प्रावप्त के आिार पर, िवै िक वनरपादन के आिार पर एि सामाविक सदर्ों के आिार पर िवै िक कायभिमों का मल्याकन ू ं ं ं वकया िाता ह ै । अभ्यास प्रश्न 1. आप अपने किा का मल्याकन करना चाहते ह।ैं ऐसे 5 प्रश्न वलवखए िो आपके किा के ू ं प्रारवम्र्क मल्याकन के वलए सहायक वसद् हो सके । ू ं 2. वकसी र्ी मल्याकन प्रविया के र्ागीदार कौन कौन होते ह ै ? ू ं 4.4 मूलयाकं न
के प्रकार हमने वपछले अनर्ागो म े दखे ा की िवै िक मल्याकन अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोगो द्वारा ु ू ं विवर्न्न प्रकार के उद्दश्े यों की प्रावप्त के वलए वकया िाता ह ै । इससे एक बात बहत ही दृढ़ता के सार्थ ु ं कहा िा सकता ह ै वक िवै िक मल्याकन वनवश्चत ही कई प्रकार के होंग े । प्रस्तत अनर्ाग में हम लोग यह ू ु ु ं समझने का प्रयास करेंग े की मल्याकन वकतने प्रकार के होते ह ै । हम लोग आि तक वर्न्न प्रकार के ू ं िवै िक गवतविवियों म ें वकतने ही प्रकार के िवै िक मल्याकन प्रविया का प्रयोग करते आये ह,ैं विनको ू ं ं हम कछ िगों म ें बााँट सकते ह ै उनकी वििेषता के अनसार । िसै े – ु ु 4.4.1. िैधक्षक मलयाकन के कायतकाररता के अनसार ू ु ं सबवन्ित मल्याकन प्रविया का प्रयोग कब वकया िा रहा ह ै या क्यों वकया िा रहा ह ै ?- मख्यतः इस ू ु ं ं प्रकार के प्रश्नों का सम्बन्ि मल्याकन के कायभकाररता से होता ह ै । ू ं मल्याकन कब वकया िा रहा ह ै या क्यों – इसका ििाब इस प्रकार
हो सकता है, िो सारणी 1 म ें वदया ू ं गया ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 36 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सारणी 1 मलयाकन प्रकार 1 प्रकार 2 ू ं प्रधक्रया कब िवै िक गवतविवि के दौरान िवै िक गवतविवि के अत म ें ं क्यों प्रविया म ें सिार हते प्रविया की प्रर्ाििीलता दखे ने के वलए । ु ु सारणी 1 म ें वदये गये प्रकार-1 को रचनात्मक मल्याकन कहा िाता ह ै । सािारण रूप स े इस प्रकार के ू ं मल्याकन का प्रयोग वििक द्वारा अपने वििण की कायभकाररता, वििावर्थभयों के अविगम स्तर, विविि ू ं उद्दश्े यों की प्रावप्त
के बारे म ें िानकारी हावसल करने के वलए वकया िाता ह ै । ितभमान म ें प्रत्येक विद्यालय में वलया िाने िाला किा-परीिा (class-exam), इकाई-परीिा (unit-exam), त्रैमावसक-परीिा एि ं अिभिावषकभ परीिा इस प्रकार क
े मल्याकन को दिाभते ह ैं । ू ं सारणी 1 म े वदये गए प्रकार-2 को योगात्मक मल्याकन कहा िाता ह ै । विद्यालयों द्वारा आयोवित िावषकभ ू ं परीिा हो या बोडभ द्वारा आयोवित हाईस्कल या इटर की परीिा- यह सर्ी योगात्मक मल्याकन के आदि भ ू ू ं ं उदाहरण ह ै । इस प्रकार के मल्याकन द्वारा िहा एक और वकसी एक मानक के सापेि वििार्थी की ू ं ं अविगम िमता का मल्याकन वकया िाता ह,ै िही दसरी र समचे िवै िक गवतविवि (कायभिम) की ू ू ं ू प्रर्ाििीलता का आकलन र्ी वकया िाता ह ै । 4.4.2 िैधक्षक मलयाकन की प्रकधत के अनसार ृ ू ु ं मलत: िवै िक मल्याकन का प्रयोग िवै िक गवतविवियों के माध्यम से होन े िाले िवै िक उद्दश्े यों के ू ू ं वनरपादन को दखे ने के वलए वकया िाता ह ै । परत यहााँ पर दो आिारर्त प्रश्न ह ै यर्था- ु ू ं a. वकतना वनरपादन ?- यह प्रश्न वनरपादन की बारम्बारता एि .ै लाि दोनों को या वकसी एक की ं र इवगत करता ह ै । ं b. कै सा वनरपादन ?- यह प्रश्न वनरपादन की गणित्ता की र इिारा करता ह ै । ु – मलत: एक सख्या ह ै िो यह बताता ह ै वक वकतने िवै िक उद्दश्े यों की प्रावप्त हो गई ू ं ह ै या कोई एक िाछनीय व्यिहार वििार्थी वकतनी बार कर रहा ह ै । उदाहरण स्िरूप-वििावर्थभयों ने किा ं के वलए तय वकए गए 50 उद्देश्यों म े से वकतने प्राप्त वकये ? (सरल िब्दो म े वििावर्थभयों को वकतना अक ं वमला ह ै ) या वकसी एक वसखाये गए सप्रत्यय को वििार्थी वकतनी बार अपने दवै नक िीिन म े प्रयोग कर ं रहा ह ै ? आवद । ऊपर के दोनों उद्दश्े यो का ििाब कोई सख्या ही होगी । इस प्रकार के मल्याकन िहााँ ू ं ं मल्याकन का वनरकष भ कोई सख्या या मात्रा हो,उसे मात्रात्मक या सख्यात्मक मल्याकन कहा िाता ह ै । ू ू ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 37 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 यह वकसी वनरपादन की गणित्ता िानने के वलए वकया िाने िाला मल्याकन ह।ै ु ू ं उदाहरण स्िरूप- वििक अपनी किा मे कै सा वििण कर रह े ह,ैं यह िानने के वलए अगर कोई मल्याकन ू ं वकया िाय तो िह कोई सख्या/मात्रा अपने पररणाम स्िरूप नही दगे ा। बवल्क यह बताएगा वक वििण ं अच्छा या बरा ह ै । िब कोई मल्याकन प्रविया वकसी िवै िक गवतविवि के दोष, गण या अन्य वकसी ु ू ु ं विवििता सबवन्ित पररणाम प्रदान करे उसे गणात्मक मल्याकन कहा िाता ह ै । ु ू ं ं 4.4.3 िैधक्षक मलयाकन के प्रिासक के अनसार ू ु ं अनर्ाग . से हम लोग यह िान चके ह ै की मल्याकन की प्रविया वकसी एक व्यवक्त द्वारा या व्यवक्त के ु ु ू ं समह द्वारा प्रिावसत वकया िाता ह ै । अत: यह स्िार्ाविक ह ै वक वकतने व्यवक्त मल्याकन कर रह े ह,ै यह ू ू ं र्ी प्रकार र्दे का एक कारण होगा । a. व्यधक्तक मलयाकन - मान लीविये वकसी िवै िक मल्याकन प्रविया म ें एक से ज्यादा प्रिासक ू ू ं ं (प्रबन्िक) ह ै एि ि े सर्ी वकसी एक गवतविवियों का ही मल्याकन कर रह े ह ै । अब तक अगर ि े ू ं ं सब उस गवतविवि के बारे म ें अपनी अपनी िारणा के अनसार अलग अलग वनरकसभ प्रदान करे, ु तो इस प्रकार के मल्याकन को व्यवक्तक मल्याकन कहा िाता ह ै । िसै े- वकसी एक किा म ें ू ू ं मौिद बालकों के व्यिहार का अलग-अलग विषय वििक द्वारा मल्याकन । ू ू ं b. िारस्िररक मलयाकन - पन: व्यवक्तक का मल्याकन का उदाहरण लेते ह ै । अगर एक ही ू ू ू ं ं िवै िक गवतविवियों को अलग-अलग प्रबन्िक मल्याकन कर रह े ह ैं और िह लोग अलग- ू ं अलग िारणा के अनसार वनरकष भ न दते े हए आपस म ें ही अपने-अपने वनरकषों का आदान प्रदान ु ु कर लें, तो इस प्रकार के मल्याकन को पारस्पररक मल्याकन कहा िाता ह ै । आपसी वनरकषों के ू ू ं ं आिार पर वकसी आम सहमती पर पहचना इस मल्याकन का उद्दश्े य नहीं होता ह,ै परन्त प्राय: ु ू ु ं ं यह एक आम सहमवत पर ही समाप्त होता ह ै । इस प्रविया
के दौरान कर्ी-कर्ी वकसी प्रबन्िक द्वारा अपना वनरकष भ बदल र्ी वलया िाता ह ै । िसै े- वकसी विषय पर वििावर्थभयों का समह ू पररचचाभ या वकसी एक किा म ें मौिद बालकों के व्यिहार का अलग-अलग विषय वििक द्वार
ा ू मल्याकन और .लस्िरूप बालकों को मागदभ िनभ करने के वलए उनका आपसी सहयोग । ू ं 4.4.4 अन्
य सामान्य प्रकार अनर्ाग 4.1 स े 4.3 तक वदए गए प्रकारों के अलािा सामान्यतः चार और अन्य प्रकार की मल्याकन ु ू ं व्यिस्र्थाए विद्यमान ह,ै यर्था - ं a. धनयोिनात्मक मलयाकन: यह िह मल्याकन होता ह ै व
िसम ें िवै िक वनयोिन के वलए ू ू ं ं अविगम कताभ के प्रारवर्क व्यिहार तर्था व्यवक्तत्ि सबिी वििषे ता को आकवलत करने ं ं ं ं ं के वलए प्रयास वकया िाता ह ै । वनयोवित अनदिे न हते िावछत पिज्ञभ ान एि अनदिे नात्मक ु ु ू ु ं ं उद्दश्े यों की प्रावप्त के सदर्भ म ें प्रारवर्क ज्ञानात्मक, र्ािात्मक एि वियात्मक व्यिहारगत ं ं ं प्रवस्र्थवत को ही अविगम कताभ के प्रारवर्क व्यिहार कहा िाता ह ै । यह िह व्यिहार ह ै विस ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 38 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 का प्रदिनभ छात्र अनदिे न के पि भ या प्रारर् म ें सबवित ित्रे म ें स्िय करन े म ें सिम होते ह ैं । ु ू ं ं ं ं व्यवक्तत्ि सबिी वििेषता के अतगतभ अविगम कताभ की रुवच, प्रिवत्त, कायाभनर्ि तर्था ृ ु ं ं ं ं ं आदत, अविगम तत्परता आवद को सवम्मवलत वकया िाता ह ै विनके बारे म ें िानकारी के अर्ाि म ें उपयक्त अनदिे नात्मक प्रविया का वनयोिन कर पाना कवठन हो िाता ह ै सार्थ ही अवर्िवत्त, ृ ु ु अवर्िमता आवद को र्ी िानने के वलए प्रयास वकया िाता ह ै तावक अविगम सातत्य में वकस ं वबद पर छात्रों को स्र्थावपत वकया िाना उवचत हो सकता ह,ै यह ठीक से ज्ञात हो सके । यही ं ु कारण ह ै वक इसे स्र्थापनात्मक मल्याकन र्ी कहा िाता ह ै । इसम ें स्र्थान एि योग्यता सबिी पि भ ू ू ं ं ं ं स्तर के आिार पर ही अनदिे नात्मक पद्वत, प्रविवि एि माध्यम अविकार चयन वकया िाता ु ं ह।ै b. धनमातणात्मक मलयाकन: अविगम विकास या अनर्ि की वनमाभण अिस्र्था म ें इस मल्याकन ू ु ू ं ं का अविक प्रयोग वकया िाता ह ै । अविगम प्रविया को व्यिवस्र्थत एि अग्रसाररत करने के वलए ं अनदिे न अिवि म ें इसे प्रयोग म ें लाया िाता ह ै तावक अविगम अनर्िों का वनमाभण अपेवित ु ु ढग से अविगम काल म ें सर्ि हो सके । अविगम वकस सीमा तक स.ल ह ै अर्थिा अविगम ं ं कवठनाइयााँ वकन वबद म ें वनवहत ह,ै यह िानकारी वनमाभणात्मक मल्याकन ही प्रदान करते हए ु ू ं ं ं ु प्रवतपवि और पनबभलन प्रदान करता ह ै । प्रत्येक अविगम उद्दश्े य के सदर् भ म ें दिता परीिण का ु ु ं वनमाभण और प्रयोग करते हए उनकी उपलवब्ि स्तर के बारे म ें यर्थार्थभ वस्र्थवत का आकलन वकया ु िाता ह ै । अविगम कावठन्य वनिारण के वलए सिारात्मक अनदिे न या वििण के प्रबिन हते ु ु ु ं वनरतर प्रयास वकया िाता ह ै तावक पहचानी गई त्रवटयों को उपयक्त समय पर वनराकत करना ृ ु ु ं सर्ि हो सके । अतः कहा िा सकता ह ै वक वनमाभणात्मक मल्याकन िह मल्याकन ह ै विसका ू ू ं ं ं प्रयोग अविगम एि अनदिे न दोनों के विकास काल म ें सिार हते प्रयत्नों के वलए वकया िाता ह ै ु ु ु ं तावक अविगम सबिी दिता की प्रावप्त प्रत्यके अविगमकताभ के वलए सर्ि हो सके । ं ं ं c. धनिानात्मक मलयाकन: विस प्रकार सामान्य अस्िस्र्थता के अिसर पर वििषे वनदान वकए ू ं वबना ही सामान्य दिा के प्रयोग से अस्िस्र्थता को ठीक करना तो सर्ि हो पाता ह ै लेवकन ं ं िवटल रोग उपचार हते पण भ वचवकत्सकीय परीिणों को करिाने की आिश्यकता होती है, उसी ु ू प्रकार सामान्य अविगम कावठन्य का वनराकरण अनदेिन काल म ें ही वनमाभणात्मक मल्याकन के ु ू ं माध्यम से कर पाना सर्ि हो सकता ह ै । लेवकन विविि अविगम सबवित त्रवट या कवठनाई को ु ं ं ं दर करने के वलए विस मल्याकन प्रारूप को प्रयोग म ें लाया िाता ह ै उसे वनदानात्मक मल्याकन ू ू ं ं ू कहा िाता ह ै । यह िह मल्याकन प्रवतमान ह ै विसम ें बारबार होने िाली अविगम त्रवटयों को दर ू ु ं ं ू करने के वलए समस्या के समािान के वलए तर्था उनके कारणों को िानने के वलए प्रयास ं वकया िाता ह ै िब सामान्य सिारात्मक वनदिे ों एि सहायता के द्वारा वनमाभणात्मक मल्याकन ु ू ं ं अिवि म ें उन्ह ें दर कर पाना सर्ि नहीं हो पाता ह ै । अतः सािारण अविगम त्रवट एि समस्या ु ं ं ं ू को दर करने के वलए वनमाभणात्मक मल्याकन का उपयोग वकया िाता ह ै िबवक वििषे ू ं ू कवठनाइयों को दर करने के वलए वनदानात्मक मल्याकन का प्रयोग वकया िाता ह ै । इस ू ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 39 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 मल्याकन के अिसर पर अविगम के विविि िेत्रों म ें वनवमतभ वनदानात्मक परीिण के सार्थ ही ू ं वनरीिण तकनीक, उपचारात्मक सेिा , मनोिज्ञै ावनक एि वचवकत्सकीय परीिण आवद का ं ं उपयोग वकया िाता ह ै तावक अविगम समस्या या कवठनाई के कारण के बारे में र्ी िानकारी प्राप्त करना सर्ि हो सके । ं d. सकिनात्मक मलयाकन: यह िह मल्याकन ह ै विसके माध्यम से अनदिे नात्मक प्रविया की ू ू ु ं ं ं समावप्त के बाद ही या पाठयिम के अत म ें अततः अविगमकताभ के द्वारा वनिाभररत अविगम ् ं ं ं सबिी उद्दश्े यों की प्रावप्त वकस सीमा तक हो पाई यह िानने के वलए प्रयास वकया िाता
ह ै । इस ं ं प्रकार के मल्याकन का उपयोग अविगम कताभ का अविगम प्रवत.ल एि उपलवब्ि के सदर् भ ू ं ं ं ं में श्रेणीकरण या प्रमाणन के वलए वकया िाता ह ै । इस प्रकार क
े मल्याकन के वलए प्राय: ू ं अध्यापक वनवमतभ परीिण के सार्थ ही वनिाभरण मापनी, अवर्मत सग्रह सची आवद का उपयोग ू ं वकया िाता ह ै । समस्त अविगम अनर्िों को प्रदान करने के बाद सकवलत रूप म ें मल्याकन ु ू ं ं कायभ वकए िाने के कारण ही इसे सकलनात्मक मल्याकन कहा िाता ह ै । ू ं ं अभ्यास प्रश्न 3. प्रिासक के अनसार िवै िक मल्याकन वकतने प्रकार के होते ह ै ? ु ू ं 4. रचनात्मक मल्याकन क्यों वकया िाता ह ै ? ू ं 4.5 मूलयाकं न के प्ररतमान आपको कै से पता वक िो वििण कायभिम आप प्रयोग कर रह े ह ै िह आपके वििावर्थभयों और सगठन ं दोनों के वलए एकसार्थ लार्कारी होगा? िब आप वकसी विषय से सम्बवित एक सम्मेलन सत्र म ें र्ाग ं लेते ह ै या निीनतम ब्लॉग पडते ह ै उसी विषय पर, आपको कै से पता चलता ह ै उस विषय को िाने के वलए यह ही एकमात्र उपयोगी ह ै ? मक्याकन ही एकमात्र रास्ता ह ै िो इस सन्दर् भ में आपको सहायता ु ं प्रादान कर सकता ह ै । इसके वलए बहत सारे प्रवतमान उपलब्ि ह ै । ऐसे ही तीन प्रवतमानो के बारे म ें हम ु वनचे चचाभ करेंग े । 4.5.1 धकििैधिक प्रधतमान िायद अविगम की प्रविया को पहचानन े के वलए सबसे अच्छी ज्ञात मल्याकन पद्वत डोनाल्ड ू ं वकलपैवरक के चार स्तर मल्याकन मॉडल ह ै िो वक सबसे पहले अमरे रकन सोसायटी के िनभल म ें 1959 ू ं खला म ें प्रकावित वकया गया र्था म ें लेख की एक श्र । ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 40 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 हालावक िब तक यह 1994 म ें वकताब के रूप म ें प्रकावित नहीं वकया गया र्था तबतक प्रवििण ं कायभिमों का यह मल्याकन लोकवप्रय बन नहीं र्था। आिकल, उसकी चार स्तर अविगम का एक आिार ू ं बने हए ह।ैं ु अविकाि लोग अवििम के मल्याकन के चारों चरण को के रूप से पररर्ावषत करते ह ै िबवक ू ं ं Kirkpatrick ने कर्ी र्ी उस पद का इस्तेमाल नहीं वकया और उन्ह ें 'कदम' (िे ग, 1996) कहा । इसके अलािा, उन्होंने इसे एक मॉडल न कहकर ' मल्यकर करने की तकनीक’ कहा । ु ं मल्याकन के वलए चार चरणों चरण इस प्रकार ह ै – ू ं a. प्रधतधक्रया- विद्यार्थी अविगम प्रविया को वकतना पसद करते ह ै ? ं b. अविगम- विद्यावर्थभ ने क्या सीखा ? (वकस हद तक वििावर्थभयों के ज्ञान और कौिल हावसल ं वकए) । c. व्यिहार- अविगम के कारण कायभ िमता म ें कौन कौन से पररितभन आयें । क्या काम के प्रदिनभ म ें पररितभन सीखने की प्रविया से हई ? ु d. पररणाम- कम लागत, बेहतर गणित्ता, उत्पादन म ें िवद्, दिता आवद के सदर् भ म ें सीखने की ृ ु ं प्रविया का ठोस पररणाम क्या ह?ैं मॉडल को 19व5 और 1994 म ें म ें अद्यतन वकया गया र्था, िब िह अपने सबसे प्रवसद् कायभ 'प्रवििण कायभिमों का मल्याकन’ म ें प्रकावित हआ । ु ू ं 4.5.2 CIPP प्रधतमान CIPP मल्याकन मॉडल एक कायभिम मल्याकन मॉडल ह ै िो 1960 के दिक म ें Daniel ू ू ं ं Stufflebeam और उनके सहयोवगयों द्वारा विकवसत वकया गया र्था। CIPP म ें C ह ै प्रसग (context), I ं अदा (input), P ह ै प्रविया (Process) और P ह ै उत्पाद (Product) । CIPP एक मल्याकन मॉडल ह ै ू ं िो वनणयभ वनिाभरण प्रविया म ें सहायक वसद् होता ह ै । CIPP मलयाकन के चार िहि:- ू ू ं यह पहल प्रसग, अदा, प्रविया, और उत्पाद ह ैं । CIPP मॉडल मल्याकन के इन चार पहल पर चार ू ू ु ं ं ं बवनयादी सिालों के ििाब देने के वलए एक वनणयभ वनमाभता की सहायता करते ह ै । ु हम ें क्या करना चावहए? यह लक्ष्य, उद्दश्े य एि प्रार्थवमकता तय करने के वलए आकडो को इकट्ठा करने एि उनका विश्लेषण करने ं ं से सम्बवित ह ै । उदाहरण के वलए, एक सािरता कायभिम के सदर् भ म ें प्रसग का मल्याकन उस कायभिम ू ं ं ं ं के मौिदा उद्दश्े यों का विश्लेषण िावमल हो सकता ह ै । ू हम यह कै से करना चावहए? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 41 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 यह कदम नए लक्ष्यों और उद्देश्यों को परा करने के वलए और ससािनों को िटानेम ें सहायता ू ु ं करता ह ै । यह सम्बवित स.ल बाहरी कायभिमों और सामग्रीयो ाँ की अच्छी तरह से पहचान कर ं उनसे िानकारी िटाने की प्रविया को र्ी दिाभता ह ै । ु क्या हम योिनानसार कायभ कर रह े ह ै ? ु यह वनणयभ वनमाभता को कै से अच्छी तरह से कायभिम लाग वकया िा रहा ह ै के बारे म ें ू ं िानकारी प्रदान करता ह।ै लगातार कायभिम की वनगरानी करके , वनणयभ वनमाभता यह समझ पाते ह ै की वकतनी अच्छी तरह यह (अविगम प्रविया) योिना और वदिा-वनदिे ों का अनपालन कर ु रहा ह ै । अविगम प्रविया ने कै सा काम वकया? िास्तविक पररणामों को प्रत्यावित पररणामों से की गई तलना द्वारा वनणयभ वनमाभता बेहतर ु ं तरीके से समझ पाते ह ै की कायभिम को आग े िारी रखा िाना चावहए या सिोवित वकया िाना ं चावहए या परी तरह समाप्त कर दने ा चावहए । ू 4.5.3 प्रणािी उिागम प्रधतमान मल्याकन के इस प्रवतमान का प्रवतपादन David S. Bushnell ने वकया ह ै । इस प्रवतमान का मख्य ू ु ं आिार ह ै अदा (Input), प्रविया (Process), प्रदा (Output) एि पररणाम (Outcome) । यह प्रवतमान ं IPO Model के नाम से र्ी िाना िाता ह ै । इस प्रवतमान के तीनो मख्य आिार इस प्रकार ह-ै ु i. अदा: प्राणाली के प्रदिनभ के मख्य सके तकों के मल्याकन का कायभ करता ह,ै िसै े प्रविि की ु ू ं ं ं ु योग्यता, सामग्री की उपलब्िता, प्रवििण के औवचत्य आवद। ं ii. प्रविया: योिना, प्रारूप, विकास और प्रवििण कायभिमों के वितरण इसका िेत्र ह ै । iii. प्रदा: प्रवििण के .लस्िरूप प्राप्त आकडो का एकीकरण । iv. पररणाम: लबी अिवि के पररणामों का सगठन की आिारविला (िसै े लार्प्रदता, प्रवतस्पिाभ, ं ं आवद) के सार्थ िडाि तावक सगठन म ें आिश्यक सिार वकया िा सकें । ु ु ं अभ्यास प्रश्न 5. वकलपैवरक प्रवतमान के चारों चरण क्या ह?ै 6. CIPP प्रवतमान का मख्य कायभ क्या ह?ै ु 7. प्राणाली उपागम प्रवतमान का प्रवतपादन वकसने वकया? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 42 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.6 मूलयाकं न का दाशभरनक आधार मल्याकन प्रविया को समझने का सबसे आसान तरीका यह ह ै की मल्याकन के सर्ी प्रवतमानों का एक ू ू ं ं तलनात्मक अध्ययन वकया िाए, परत यह तलना मल्याकन प्रविया की एक सतही वचत्र सामने लाने म ें ु ु ु ू ं ं सिम ह ै । इसवलए अच्छा यह होता ह ै की अगर मल्याकन प्रविया को समझना हो तो मल्याकन प्रविया ू ू ं ं के अतवनभवहत सैद्ावतक पररकल्पना को समझना ज्यादा िरूरी ह ै । इन अतवनभवहत सैद्ावतक ं ं ं ं ं पररकल्पना को हम मल्याकन प्रविया का दिनभ र्ी कह सकते ह ै । ू ं ं आिवनक समय में हम वितने मल्याकन प्रविया का उपयोग करते ह ैं ि े सर्ी वकसी न वकसी रूप मे ु ू ं ं उदारिादी विचारिारा से सबवन्ित ह,ै इसवलए हम कह सकते ह ैं की मल्याकन प्रविया का दािवभ नक ू ं ं ं र्ाि उदारिादी विचारिारा म ें वछपा हआ ह ै । िसै े तो उदारिादी विचारिारा के अतगतभ बहत
प्रकार के ु ु ं ं मल्याकन प्रवतमान आते ह।ैं (परन्त िवै िक दृविकोण से के िल मात्र तीन प्रकार के मल्याकन उपयक्त ह।ै ) ू ु ू ु ं ं वचत्र 1 म ें आप दखे गें े उदारिादी विचारिारा के अनसार वकतने प्रकार क
े मल्याकन प्रवियाए ाँ पाये िाते ह ैं ु ू ं । ( िसै े-स्टेक, 19व6; पो.म, 19व5; सेण्डसभ;19व के अनसार) । ु धचत्र 1: उिारवािी मलयाकन प्रधतमान (आधिक) (सौिन्य: AERA) ू ं ं Systems analysis e y v t i i t Managerial Behavioral objectives v a i t t i t c n e j a b u o Q Utilitarian Decision making Subjectivist ethics Consumers Intuitionist pluralist Liberalism Objectivist ethics उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 43 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िह इस प्रकार ह,ैं यर्था- a. प्रणाली विश्लेषण(system analysis) b. व्यिहारिादी उद्दश्े य c. वनणयभ वनिाभरण प्रणाली विश्लेषण प्रविया मख्यत: एकीकत सख्यात्मक पररणामो पर वनर्रभ करता ह ै एि इन्ही सख्यात्मक ृ ु ं ं पररणामो के आिार पर वकसी कायभ का मल्याकन वकया िाता ह ै । िसै े तो इस प्रविया म ें सख्यात्मक ू ं ं पररणाम मलरूप से सििे ण विवि से प्राप्त होता ह ै । इन पररणामो को बाद म ें िरूरत के अनसार सहसबि ू ु ं ं या वनरकष भ वनिाभरण म े प्रयोग वकया वकया िाता ह ै । परन्त ितभमान समय म ें प्रयोवगक अवर्कल्पना का ु प्रयोग र्ी इस प्रविया के तहत वकया िा रहा ह ै । यह प्रविया मख्यतः स्िास्र्थ, वििा एि समाि कल्याण ु ं विर्ागों के काम/कायभिमों के मल्याकन के वलये ज्यादा उपयोगी वसद् हो रह े ह ैं (हाउस, 1977) । वपछल े ू ं अनर्ाग म ें चवचभत प्रणाली उपागत प्रवतमान इसी दािवभ नक पररकल्पना पर आिाररत ह ै । ु व्यिहारिादी उद्दश्े य प्रवतमान के अतवनभवहत पररकल्पना यह ह ै वक मल्याकन वििावर्थभयों के विविि ू ं ं प्रदिनभ के आिार पर वकया िाना चावहए। वििावर्थभयों के विविि प्रदिनभ को विषय के विविि उद्दश्े यों के रूप म ें परखा िाता ह ै । इन उद्दश्े यों को अलग-अलग प्रकार के परीिणों िसै े- वनकष सदवर्तभ या मानक ं सदवर्तभ परीिा के माध्यम स े मापन वकया िाता ह ै । Ralph Tyler को इस उपागम का िनक माना िाता ं ह ै । वपछले अनर्ाग म ें िवणतभ वकलपैवरक प्रवतमान इसी पर आिाररत ह ै । ु वनणयभ वनिाभरण प्रवतमान की अतवनभवहत पररकल्पना वनणयभ लेने के तरीके को बताता ह ै । यह उपागम ं मलरूप से प्रबन्िकों, प्रिासकों के वलये वकसी कायभिम को मल्याकन करने का आिार प्रदान करता ह ै । ू ू ं यह प्रवतमान सािात्कार एि प्रश्नािली विवि के माध्यम से प्रबन्िकों तक सचना को पहचाँ ाता ह,ै ु ू ं ं विसके आिार पर सवनयोवित वनणयभ वलया िाता ह ै । CIPP प्रवतमान इसी प्रवतमान पर आिाररत ह ै । ु वचत्र सख्या 1 से यह हम लोगों को यह पहले से ही स्पि ह ै वक उपयभक्त तीनों प्रकार के प्रवतमान उदारिादी ु ं दिनभ से सबवन्ित प्रवतयोवगतािादी वसद्ातों पर आिाररत ह ै । इसी वलये मल्याकन के इन प्रवतमानों या ू ं ं ं िवै िक मल्याकन के आिार को समझने के वलये उदारिादी दिनभ एि इसके ज्ञानवममासा की कछ ू ु ं ं ं वििेषता को समझना पडेगा । ं सबसे पहले तो यह िान लें वक उदारिादी दिनभ का उदय समाि की बािारी करण को न्याय सगत/तकभ सगत वसद् करने एि उसके पनगठभ न के प्रयास स्िरूप हआ (मकै .े रसन,1966) । यह परा ु ु ू ं ं ं दिनभ विकल्पों की स्ितन्त्रता के वसद्ान्त पर आिाररत ह ै । यह वसद्ान्त ही मल्याकन प्रवतमानों के ू ं विकास की मख्य ििह ह ै ।
‘विकल्पों की स्ितन्त्रता’
उदारिादी समाि म ें उपर्ोक्ता के वलए उपलब्ि ु ं होता ह,ै परन्त उपर्ोक्ता की पररर्ाषा स्र्थान वििेष पर बदलता रहता ह ै । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 44 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 उदारिादी विचारिारा की एक विवििता यह र्ी ह ै की इस विचारिारा की अवर्विन्यास अनर्ििादी ह ै । ु इसवलए उदारिादी मौवलक रूप से अनर्ििादी होते ह ै । यही अनर्ििादी वििेषता इन्ही मल्याकन ु ु ू ं प्रवतमानों और उपगमों म ें र्ी पाया िाता ह ै । िहााँ तक उदारिादी उपयोगिावदता का प्रश्न ह,ै इनके वलए उपयोवगता का अर्थभ ह ै समाि में प्रसन्नता का विस्तरीकरण । िसै े- वकसी िवै िक वनरपादन को औसत के रूप म े दखे ना, इससे सबम े बराबरी का र्ाि आता ह ै या य कह ें सब म ें प्रसन्नता उत्पन्न होती ह ै । ूं िवै िक मल्याकन से सबवन्ित तीनों प्रवतमान मौवलकरूप से सकवलत आकडों एि सचना को ू ू ं ं ं ं ं ं प्रबिकों/प्रिासकों तक पहचता ह ै । अर्थाभत इन सर्ी म े उदारिादी विचारिारा एि उपयोगिादी ु ं ं ं विचारिारा की सर्ी वििषे ताए ाँ पायी िाती ह ै । सर्ी उपागम एि प्रवतमानों की प्रविवि िस्तवनष्ठ ह ै । मल्याकन के वलए उपलब्ि सचनाए ाँ िैज्ञावनक रूप से ु ू ू ं ं िस्तवनष्ठ माने िाते ह ैं । इसके वलए सचना प्रदान करन े िाली सर्ी उपकरणों को िस्तवनष्ठ बनाया िाता ह।ै ु ू ु सर्ी सचना को सख्यात्मक विवियों द्वारा विश्लेषण वकया िाता ह,ै िो अपने आप म ें िस्तवनष्ठ होते ह ै ू ु ं ं । नीचे सारणी 2 म ें तीनों प्रवतमान का साराि वदया गया ह ै विससे आप इनकी तलना कर सकते ह ै । ु ं उिागम प्रस्तावक िधक्षत समह कधलित सवतसम्मधत प्रधवधि िररणाम ू प्रणाली Rivlin प्रिन्िक/ ज्ञात लि । सख्यात्मक PPBS दिता ं विश्लेषण अर्थभनीवतविद चर व्यिहारिादी Tyler, प्रिन्िक, पिभ वनिाभररत उद्दश्े य । व्यिहारिादी उत्पादकता, ू उद्दश्े य Popham मनोिैज्ञावनक पररणामात्मक चर उद्दश्े यपरक ििाबदहे ी वनरपादन पररिण वनणयभ Stufflebeam प्रिािक, मानकीकत सामान्य लि सिेिण, प्रर्ािकाररता, ृ वनिाभरण , Alkin वनणयभ वनिाभरक प्रश्नािली, गणित्ता वनयत्रण ु ं सािात्कार, प्राकवतक वर्न्नता ृ सारणी 2: मलयाकन प्रधतमानों का तिनात्मक वणतन ू ु ं अभ्यास प्रश्न 8. िवै िक मल्याकन का दािवभ नक आिार वकस दिनभ पर आवश्रत ह ै ? ू ं 9. व्यिहारिादी उद्दश्े य प्रवतमान का उदाहरण दीविये । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 45 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.7 बालकों की तादात्म, अरधगम एवं अरर्प्रेरणा पर मूलयाकं न का प्रर्ाव अलग-अलग तरह के िोि के अनसार वििार्थी का तादात्म मख्य रूप से चार वबद पर वनर्रभ ् ु ु ं ं ु करता ह,ै यर्था - वििार्थी का सज्ञानात्मक पि, र्ािात्मक पि, व्यिहार िादी पि एि सामाविक ं ं सास्कवतक पि । वििार्थी के तादात्म का इस प्रकार विर्ािीकरण मल रूप से वििार्थी के ृ ् ू ं सिादात्मक व्यवक्तत्ि पर वनर्भर करता ह ै । सिादात्मक व्यवक्तत्ि वििार्थी के सचेतन, र्ािात्मक चेतन ं ं एि इन दोनों का सामाविक िातािरण में अत:विया पर वनर्भर करता ह ै । ं ं वििार्थी का सज्ञानात्मक पि उसके अविगम िमता द्वारा वनिाभररत होता ह ै । िबवक र्ािात्मक पि ं वििार्थी के अवर्प्रेरणा स्तर द्वारा वनिाभररत होता है; अर्थाभत सकारात्मक या नकारात्मक अवर्प्रेरणा वकसी र्ी वििार्थी के र्ािनात्मक पि को नकारात्मक या सकारात्मक रुप से प्रर्ावित करने की िमता रखती ह ै । यह कहा िा सकता ह ै की वििार्थी का तादात्म उसके अविगम िमता एि अवर्प्रेरणा स्तर ं द्वारा वनयवत्रत होती ह ै एि सामाविक िातािरण इन दोनों को प्रर्ावित करती ह ै । ं ं ब्राउन, रस्ट एि वगब्ब्स (1994) एि वगब्ब्स (2006) के अनसार कोई र्ी मल्याकन प्रविया बालकों ु ू ं ं ं के वििा से सबवित प्रत्येक पहल को प्रर्ावित करता ह ै । इसवलए मल्याकन प्रविया म ें कोई र्ी पररितभन ू ू ं ं ं अविगम को प्रर्ावित कर सकता ह ै । परत यह दखे ा गया ह ै वक मल्याकन की सख्या म ें िवद् या समय म ें ृ ु ू ं ं ं िवद् बालक के अविगम स्तर या अविगम प्रविया म ें सहर्ावगता म ें वकसी प्रकार की िवद् नहीं करता ह ै ृ ृ और न ही इसमें वकसी प्रकार की कमी करता ह ै । Black एि William (1998) 250 िोि कायभ ं को विश्लेषण करने के उपरात यह पाया की रचनात्मक मल्याकन वििावर्थभयों के अविगम को सकारात्मक ू ं ं रूप से प्रर्ावित करता ह ै । साम्बेल एि सार्थी (1997) ने अपने िोि कायभ विसम ें उन्होंने पारपररक एि िकै वल्पक मल्याकन ू ं ं ं ं विवियों का अविगम पर प्रर्ाि दखे ने की कोविि की, उन्होंने पाया की िकै वल्पक मल्याकन विविया ू ं ं िसै े खली पस्तक परीिा, प्रोिक्े ट, सहपाठी मल्याकन एि समह कें िीत मल्याकन आवद का प्रर्ाि ु ु ू ू ू ं ं ं दरगामी होता ह ै । िबवक पारपररक मल्याकन विविया िसै े दीि भ उत्तरीय परीिा, बह िकै वल्पक परीिा ु ू ं ं ं ू आवद का प्रर्ाि वििावर्थभयों के स्मरण िमता, िवै िक गणित्ता एि गहन अविगम म ें तलनात्मक रुप स े ु ु ं कम होता ह ै । स्लेटर (1996) के अनसार विद्यार्थी पोटभ.ोवलयो मल्याकन विवि को ज्यादा पसद करते ह।ैं िह ु ू ं ं पोटभ.ोवलयो बनाना एि उससे सबवित िानकाररया िटाने म ें ज्यादा उत्सक रहते ह ैं । यह मल्याकन विवि ु ु ू ं ं ं ं ं उनके स्मरण िमता को विकवसत करने म ें ज्यादा सहायक वसद् होती ह ै । इसके अलािा इस विवि के माध्यम से विद्यावर्थभयों म ें वचतन िमता, सिनात्मकता का विकास होता ह ै । ृ ं हीगइनस एि सार्थी (2001) के अनसार कोई विद्यार्थी वकसी र्ी मल्याकन प्रविया म ें र्ािनात्मक रूप ु ू ं ं से िडा होता ह ै एि इसके बदले िह कछ प्रत्यत्तर ( पास या .े ल
के रूप म)ें चाहता ह ै ।इस प्रकार हम यह ु ु ु ं कह सकते ह ैं की मल्याकन का प्रर्ाि विद्यार्थी के र्ािना पर होता ह ै । मल्याकन प्रविया के अविगम ू ू ं ं ं पर दो प्रमख नकारात्मक प्रर्ाि इस प्रकार ह ैं - ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 46 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 a. िररणामात्मक प्रिाव (Backwash): इस प्रकार क
े प्रर्ाि म ें बालक परे पाठयिम को ् ू मल्याकन के दृविकोण से देखता ह ै (Ramsden, 1992) । इसके .ल स्िरुप बालक परे ू ू ं पाठयिम से उन्हीं विषयों या विषय िस्त का अध्ययन करता ह,ै विसे िह स्िय मल्याकन की ् ु ू ं ं दृवि से महत्िपण भ मानता ह ै । Elton (1981) ने इसी अिस्र्था को बैक िास (Back Wash) ू कहा ह ै । इस अिस्र्था को अविकाि वििाविदों द्वारा नकारात्मक माना गया ह ै (Frederiksen ं ं & Collins, 1989) । नकारात्मक पररमाणात्मक प्रर्ाि उस अिस्र्था म ें ज्यादा पाया िाता ह ै िहा परीिा व्यिस्र्था परे िवै िक िातािरण म ें िचभस्ि रखता ह ै । अर्थाभत
इस प्रकार की व्यिस्र्था ू ं म ें वििण परीिा को ध्यान म ें रखते हए वकया िाता ह ै । ु b. गि िाठयक्रम (Hidden Curriculum): Synder (1971) ने इस प्रकार के प्रर्ाि को ् ु दिाभया ह ै । यह औपचाररक पाठयिम के सार्थ सार्थ चलने िाला पाठयिम ह ै । इस प्रकार क
ा ् ् पाठयिम विद्यावर्थभयों का औपचाररक पाठयिम की समझ एि मल्याकन प्रविया की अतवनभवहत ् ् ू ं ं ं अर्थों के प्रवत सोच का नतीिा ह ै । एक बार
विद्यार्थी अपना गप्त पाठयिम का वनमाभण कर ले, ् ु उसके बाद विद्यार्थी अपने अविगम को और समयबद् एि यवक्त पिकभ तरीके से सलझा ु ू ु ं सकता ह ै । इसका पररणाम यह होता ह ै वक विद्यार्थी क
ो यह पता होता ह ै की परीिा पास करने के वलए क्या पढ़ना ह ै और क्या नहीं । इससे उनका कोई मतलब नहीं रहता की विषय िस्त को कै से ु समझा िा सकता ह ै । सामान्य िब्दों म ें कह ें तो गप्त पाठयिम औपचाररक पाठयिमों से वलए ् ् ु गए ख़ास वहस्सों से बनता ह ै एि वििार्थी वस.भ उन्हीं वहस्सों को पडता ह ै विससे िह परीिा पास ं कर सके । इस प्रकार के पाठयिम से वििावर्थभयों म ें विषय िस्त के प्रवत समझ नहीं विकवसत हो ् ु पाती ह ै । वििण अविगम प्रविया म ें मल्याकन प्रविया एक बहत ही महत्िपण भ सके तक की र्वमका ु ू ू ू ं ं वनर्ाता ह ै । मल्याकन प्रविया के द्वारा ही हम यह समझ पाते ह ैं वक वकसी वििषे सदर् भ के ू ं ं पररप्रेि म ें विद्यावर्थभयों का विकास वकस र ह ै । अर्थाभत यह हम ें विद्यावर्थभयों के विकास का एक िस्तवनष्ठ प्रवतवबब वदखाता ह ै तावक हम आग े की कायभ योिना को विकवसत कर सके । इसके ु ं अलािा मल्याकन प्रविया बालकों के सिनात्मकता, निोन्मषे को अवर्प्रेररत करता ह।ै वगब्ब्स ृ ू ं (2003) के अनसार मल्याकन म ें वकसी र्ी प्रकार का पररितभन बालकों के अवर्प्रेरणा स्तर म ें ु ू ं पररितभन करता ह ै । प्राकवतक रूप से मल्याकन प्रविया बालकों म ें अनेकयग्मी विकास म ें सहायक होता ह।ै सबवित सावहत्य ृ ू ु ं ं ं के अध्ययन से पता चलता ह ै वक मल्याकन के िणनभ ात्मक, नैदावनक एि र्विरय सचक कायभ के अलािा ू ू ं ं अवर्प्रेरणात्मक प्रर्ाि र्ी ह ै (Manolescu, 2005) । मल्याकन का अवर्प्रेरणात्मक प्रर्ाि मख्यतः दो महत्िपण भ वबद पर वनर्रभ करता ह,ै यर्था- बालक ू ु ू ं ं ं ु का व्यवक्तत्ि एि मल्याकन ि स्िमल्याकन का आपसी सबि । परत बालकों की अवर्प्रेरणा एि ू ू ु ं ं ं ं ं ं ं मल्याकन का सबि सटीक रूप से वनिाभरण कर पाना मवश्कल होता ह ै क्योंवक यह सपण भ रूप से बालक ू ु ू ं ं ं ं के व्यवक्तत्ि द्वारा वनिाभररत होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 47 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 स्ि मल्याकन, व्यवक्तत्ि एि मल्याकन प्रविया- इन तीनों के सवम्मवलत प्रर्ाि से बालकों के अवर्प्रेरणा ू ू ं ं ं के तीन स्तर प्राप्त होते ह,ैं यर्था-आदिभ स्तर, वनम्न अवर्प्रेररत स्तर एि उच्च अवर्प्रेररत स्तर। ं अवर्प्रेरणा के नकारात्मक एि सकारात्मक प्रर्ाि मख्यत: मल्याकन प्रविया के स्िरूप एि बालकों के ु ू ं ं ं वििेषता पर वनर्रभ करता ह ै । ं िोि वनरकष भ से पता चलता ह ै की आिवनक मल्याकन प्रवियाए यर्था - प्रोिक्े ट, गह कायभ, पोटभ.ोवलयो ृ ु ु ं ं आवद का बालकों पर सकारात्मक अवर्प्रेरणात्मक प्रर्ाि होता ह।ै िबवक पारपररक विविया िसै े - ं ं मौवखक परीिाए एि वलवखत परीिा आवद का अवर्प्रेरणा पर नकरात्मक प्रर्ाि पडता ह।ै ं ं Paris (1988) एि Maehr (1976) के अनसार आतररक अवर्प्रेरणा एक प्रकार का िवै िक ु ं ं वनरकष भ ह ै एि यह सज्ञानात्मक वनरकष भ के अनरूप ही महत्िपण भ र्ी ह ै । Coutts एि सार्थी (2011) के ु ू ं ं ं अनसार मल्याकन प्राकवतक रूप से विद्यावर्थभयों म ें िटन एि तनाि को प्रेररत करता ह ै । अर्थाभत यह दोनों ृ ु ू ु ं ं गण वकसी र्ी मल्याकन प्रविया म ें प्राकवतक रूप से अतवनभवहत होते ह ैं । इन्होंने आतररक अवर्प्रेरणा ृ ु ू ं ं ं सची एि Brunel Mood स्के ल का प्रयोग कर यह प्रमाण प्रमावणत वकया की मल्याकन का ू ू ं ं विद्यावर्थभयों के अवर्प्रेरणा एि र्ािना पर गहरा प्रर्ाि पडता ह।ै उनके अनसार िरूरत से ज्यादा मल्याकन ु ू ं ं प्रविया का प्रयोग विद्यावर्थभयों म ें नकारात्मक र्ािना िसै े तनाि, अिसाद, िोि, र्थकान एि भ्रम को ं ं बढ़ाता ह,ै सार्थ ही सार्थ सकारात्मक र्ािना िसै े िोि, आतररक अवर्प्रेरणा , रुवच एि योग्यता को ं ं ं काम करता ह।ै इनके िोि कायभ को Drew (2001) ने अपने िोि कायभ के माध्यम से समर्थभन प्रदान वकया ह।ै 4.8 सारांश प्रस्तत इकाई म ें हमने दखे ा वक िवै िक मल्याकन एक व्यिवस्र्थत गवतिील प्रविया ह ै िो अविगम ु ू ं प्रविया, विषय िस्त, वििण विवि एि ििै वणक पररणामो के बारे म ें सचना एकत्र करती ह ै । िवै िक ु ू ं मल्याकन के वलए प्रवतर्ागी, प्रबिक, सगठन, वनविकरण सस्र्था एि नीवत वनिाभरकों की िरूरत होती ू ं ं ं ं ं ह।ै िवै िक मल्याकन को प्रायः वकसी ििै वणक पररदृश्य म ें या तो प्रारर् म ें ही या िवै िक प्रविया के मध्य ू ं ं या सत्रात में प्रयोग वकया िाता ह।ै अपने कायभकाररता के अनसार िवै िक मल्याकन रचनात्मक, ु ू ं ं योगात्मक, व्यवक्तक, पारस्पररक, वनयोिनात्मक, वनमाभणात्मक, वनदानात्मक एि सकलनात्मक होता ं ं ह।ै िवै िक मल्याकन के विवर्न्न प्रवतमान मल रुप से उदारिादी दिनभ से सबि रखते ह ैं । अविकाि ू ू ं ं ं ं मल्याकन प्रवतमान अनर्िादी उदारिाद द्वारा प्रेररत ह ै ।mमल्याकन प्रविया का बालकों के तादात्म्य, ू ु ू ं ं अविगम एि अवर्प्रेरणा पर प्रर्ाि वदखता ह ै । इनम ें से 2 वििषे प्रकार के नकारात्मक प्रर्ाि ह ै ं बैकिाि एि गप्त पाठयिम । ् ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 48 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.9 शब्दावली 1. धनधिकरण सस्र्ा - वकसी मल्याकन प्रविया के वलए आवर्थभक/ वित्तीय सहायता प्रादान करने ू ं ं िाली सस्र्था ं 2. नीधत धनिातरक - मल्याकन सम्बन्िी नीवतयों को चयन एि वनयोिन करने िाला ू ं ं 3. प्रारधिक मलयाकन - वकसी िवै िक प्रविया के प्रारम्र् म ें िवै िक िातािरण का मल्याकन ू ू ं ं ं 4. रचनात्मक मलयाकन - िवै िक प्राविया के कवमयों को दर करने के वलए प्रविया के दौरान ू ं ू वकया िाने िाला मल्याकन प्राविया ु ं 5. योगात्मक मलयाकन - िवै िक प्रविया के अत म ें उस प्रविया के गणित्ता को परखने के वलए ू ु ं ं वकया िाने िाला मल्याकन ू ं 6. मध्याविी मलयाकन - एक प्रकार का रचनात्मक मल्याकन ू ू ं ं 7. सत्रात मलयाकन - एक प्रकार का योगात्मक मल्याकन ू ू ं ं ं 8. धनमातणात्मक मलयाकन - अविगम प्रविया को व्यिवस्र्थत एि अग्रसाररत करने के वलए ू ं ं अनदिे न अिवि म ें इसे प्रयोग म ें लाया िाने िाला मल्याकन ु ू ं 9. धनयोिनात्मक मलयाकन - यह िह मल्याकन होता ह ै विसम ें िवै िक वनयोिन के वलए ू ू ं ं अविगम कताभ के प्रारवर्क व्यिहार तर्था व्यवक्तत्ि सबिी वििषे ता को आकवलत करने ं ं ं ं ं के वलए प्रयास वकया िाता ह ै । 10. धनिानात्मक मलयाकन - सामान्य अविगम कावठन्य का वनराकरण अनदिे न काल म ें ही करन े ू ु ं के वलए इस मल्याकन का प्रयोग वकया िता ह ै ू ं 11. सकिनात्मक मलयाकन - यह िह मल्याकन ह ै विसके माध्यम से अनदिे नात्मक प्रविया की ू ू ु ं ं ं समावप्त के बाद ही या पाठयिम के अत म ें अततः अविगमकताभ के द्वारा वनिाभररत अविगम ् ं ं ं सबिी उद्दश्े यों की प्रावप्त वकस सीमा तक हो पाई यह िानने के वलए प्रयास वकया िाता ह ै ं ं 12. धनकष सिधितत मलयाकन - इसके माध्यम से वकसी समह म ें बालकों का स्र्थान वनिाभरण वकया ू ू ं ं िाता ह ै 13. मानक सिधितत मलयाकन - वकसी पि भ वनिाभररत मानक के पररप्रेि म ें बालकों के िवै िक ू ू ं ं वनरपादन का मल्याकन ू ं 14. उिारवाि - एक रािनैवतक दिनभ ह ै विसका आिार स्ितन्त्रता एि समता ह ै ं 15. उियोग वाि - एक प्रकार का वसद्ात विसम े वस.भ उन्ही विया को सही माना िाता ह ै िो ं ं उपयोगी हो या बहमत के वलए .ायदमे द हो ु ं 4.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. प्रश्न सख्या 1 का उत्तर विद्यार्थी स्िय वलखगें े ं ं 2. प्रवतर्ागी, प्रबिक, सगठक, वनविकरण सस्र्था एि नीवत वनिाभरक ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 49 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3. व्यवक्तक मल्याकन एि पारस्पररक मल्याकन ू ू ं ं ं 4. िवै िक गवतविवि के दौरान प्रविया म ें सिार हते ु ु 5. प्रवतविया, अविगम, व्यिहार एि पररणाम ं 6. वनणयभ वनिाभरण करना 7. David S. Bushnell ने 8. उदारिादी दिनभ 9. वकलपैवरक प्रवतमान 4.11 सन्दर् भ ग्रंथ सची ू 1. BOZON, Alina Carmen (2013). The evaluation – a way of motivating the students. International conference of scientific Paper AFASES 20B. 2. Crooks, Terence J. (1988). Impact of classroom evaluation on students. Review of Educational Research, 58(4), 438-481 3. Ernest, R.H.(19व8). Assumptions underlying evaluation models. Educational Researcher, व(4), 4-12. 4. Guba, Egon G & lincoln, Yvonna S. (2001). Guidelines and checklist for constructivist (a.k.a. fourth generation) evaluation. Evaluation Checklist Project retrieved from www.wmich.edu/evalctr/checklists 5. Surgenor, Paul (2010). Teaching Toolkit: effect of assessment on learning. UCD teaching and Learning Resource retrieved from www.ucd.ie/teaching 6. Taber, Keith S. (2002). The constructivist view of learning: How can it inform assessment?. Invited paper to University of Cambridge Local Examinations syndicate (UCLES), Cambridge. 7. Tran, Nhan (2014). The impact of assessment on the learners’ identities: A literature review. ARECLS, 11, 90-106 8. Vedung, Evert (2000). Public Policy and Program Evaluation. New Brunswick, NJ: Transaction Publishers 9. Vrasidas, C. (2000). Constructivism versus objectivism: Implications for interaction, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 50 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 course design, and evaluation in distance education. International Journal of Educational Telecommunications, 6(4), 339-362. 4.12 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. िवै िक मल्याकन के प्रवतमानों के दािवभ नक आिार का िणनभ कीविए । ू ं 2. िवै िक मल्याकन के विवर्न्न प्रकारों का विस्तारपिकभ िणनभ कीविए । ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 51 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 5- रचनात्मक प्रतिमान में आकलन और मूलयांकन 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 सिाांगीण विकास तर्था िैविक उद्दश्े य 5.4 रचनात्मक प्रवतमान, अविगम और आकलन ं 5.4.1 अतःविया: रचनात्मकता का आिार ं 5.5 रचनात्मक आकलन का उद्दश्े य ं 5.6 रचनात्मक किा की वििेषताएाँ तर्था इसमें वििक की र्वमका ू 5.7 समेवकत रूप से अविगम िवद् के वलए िैविक अनर्िों की रूपरेखा ृ ु 5.8 साराि ं 5.9 सन्दर्भ ग्रन्र्थ सची ू 5.10 वनबिात्मक प्रश्न ं 5.1 प्रस्तावना सार रूप म ें यवद वििा का उद्दश्े य पछा िाये तो कहा िा सकता ह ै वक
‘छात्र का सिाांगीण विकास’
ही ू वििा का उद्दश्े य ह ै तर्था छात्र के सिाांगीण
विकास को वििा के िेत्र म ें सज्ञानात्मक, र्ािात्मक तर्था ं वियात्मक पिों के सतवलत विकास से समझा िा सकता ह।ै छात्र का सतवलत विकास ही उसके ु ु ं ं सिाांगीण विकास को दिाभता ह।ै दर्ाभग्यपण भ तर्था दवश्चता का विषय, यहााँ पर सिाांगीण विकास क
े सन्दर् भ ू ं ु ु म ें यह ह ै वक, आकलन और मल्याकन िब्द र्ारतीय वििा प्रणाली म ें छात्र के मानवसक तनाि और ू ं वनरािा से अविक िड गया ह।ै इकीसिीं सदी का पहला दिक पणतभ या इसी विमि भ और वनयोिन म ें बीत ु ू गया वक इस व्याप्त हो चकी नकारात्मकता, कठा, अिसाद तर्था तनाि से छात्रों को मवक्त कै से वदलाई ु ु ु ं िाये तर्था इस प्रविया म ें किा आठ से उत्तीण भ तर्था अनत्तीण भ िसै ी सकल्पना को ही पणभतया हटा वदया ु ू ं गया। यह .ै सला वकतना सही या गलता र्था, यह तो चचाभ और िोि का विषय ह ै लेवकन यह .ै सला वकसी र्ी प्रकार के िोि आिाररत आकडों पर तो आिाररत नहीं ही र्था। उपरोक्त .ै सले से होने िाल े ं दरपररणाम बहत ही अल्प समय म ें वर्न्न-वर्न्न िोि पत्रों के माध्यम से सामने आ रह े ह ैं ‘पाठयचयाभ की ु ् ु पररर्ाषा और निीनीकरण के सर्ी प्रयास वि.ल हो िाते हैं, यवद ि े स्कली वििा प्रणाली म ें िडें िमाये ू मल्याकन और परीिा तत्र के अिरोि से नहीं िझ सकते। हम ें परीिा के उन दरप्रर्ािों की वचता ह ै िो ू ू ं ं ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 52 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सीखने, वसखाने की प्रविया को सार्थभक बनाने और बच्चों के वलए आनन्ददायी बनाने के प्रयासों पर पडत े ह।ैं ितभमान म ें बोडभ की परीिाए ाँ स्कली िषों म ें होने िाले हर आकलन और हर तरह के परीिण को ू नकारात्मक रूप से ही प्रर्ावित करती ह’ै (रा.पा.रू.-2005)। अतः यह ितभमान इकाई आकलन और मल्याकन को एक रचनात्मक प्रवतमान के सन्दर् भ म ें समझने का प्रयास करेंग।े ू ं 5.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - ् 1. छात्र सिाांगीण विकास हते िवै िक उद्दश्े य की र्वमका, प्रकार तर्था वनयोिन कर सकें ग।े ु ू 2. छात्र रचनात्मक प्रवतमान, अविगम और आकलन के सम्प्रत्ययों के अतसभम्बन्ि को समझ सकें ग।े ं 3. छात्र रचनात्मक आकलन के उद्दश्े य की व्याख्या कर सकें गे। 4. छात्र रचनात्मक किा की वििेषताए ाँ तर्था इसम ें वििक की र्वमका को समझ सकें ग।े ू 5. छात्र समवे कत रूप से अविगम म ें िवद् के वलए िवै िक अनर्िों की रूपरेखा का वनमाभण कर सकें ग।े ृ ु 5.3 सवांगीण रवकास तथा शैरिक उद्दश्े य प्रत्येक अर्थभपण भ कायभ सोद्दश्े य होता ह।ै वििा प्रदान करने के पश्चात विद्यावर्थभयों के व्यिहार म ें क्या पररितभन ् ू होंग?े यह हम ें िवै िक उद्दश्े यों से ज्ञात हो सकता ह।ै वकसी र्ी िवै िक योिना के वनिाभरण एि कायाभन्ियन ं के वलए हम ें िवै िक उद्दश्े य का वनमाभण करना होता ह।ै इन उद्दश्े यों के द्वारा व्यवक्तयों को अपनी वदिा प्राप्त होती ह।ै विससे ि े अपने िावछत लक्ष्य पर पहचाँ पाते ह।ैं हम चाह े विस अध्यापन विवि का उपयोग करें। ु ं हम ें उससे पि भ उद्दश्े यों का वनिाभरण कर लेना चावहए। उद्दश्े यों के आिार पर अध्यापन विवि अर्थिा ू विवियों का सही चयन वकया िा सकता ह।ै िवै िक अवर्प्रायों एि लक्ष्यों के सन्दर्भ म ें उद्दश्े यों का ं प्रवतपादन इसवलए आिश्यक होता ह ै क्योंवक उद्दश्े यों के द्वारा पाठयचयाभ के पररणाम प्रदवितभ होते ह।ैं ् लक्ष्यों एि अवर्प्रायों के उद्दश्े यों का भ्रम पैदा होता ह।ै अवर्प्रायों को लक्ष्यों म ें तोडा िाता ह ैं एि लक्ष्यों ं ं से उद्दश्े य प्राप्त होते ह।ैं सामान्य उद्दश्े यों को लक्ष्यों का पयाभय माना िा सकता ह।ै उद्दश्े य विद्यावर्थभयों के व्यिहार म ें होने िाले पररितभनों के सचक ह।ैं बी.एस.ब्लम तर्था उसके सावर्थयों ने िवै िक उद्दश्े यों का ू ू िगीकरण प्रस्तत वकया। उनके अनसार विद्यावर्थभयों के व्यिहार म ें होने िाले पररतिनभ तीन िेत्रों म ें होते ह ैं - ु ु 1. ज्ञानात्मक 2. र्ािात्मक 3. मनोगात्मक इन तीनों का िणनभ िमिः यहााँ वकया गया ह:ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 53 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ज्ञानात्मक क्षेत्र के उद्देश्यों का वगीकरण ज्ञानात्मक िेत्र म ें ि े उद्दश्े य िावमल वकए िाते ह ैं िो व्यवक्त के वचतन, ज्ञान तर्था समस्या समािान स े ं सम्बवन्ि
त होते ह।ैं ब्लम (1956) के अनसार ज्ञानात्मक िेत्र म ें ि े उद्दश्े य होते ह ैं िो ज्ञान के पनः स्मरण या ू ु ु पहचान तर्था बौवद्क योग्यता ि कौिलों के विकास से सम्बवन्ित होते ह।ैं ं ताधिका 1: ज्ञानात्मक क्षेत्र के उद्देश्यों का वगीकरण ज्ञान विवििों का ज्ञान िब्दािली का ज्ञान विविि तथ्यों का ज्ञान धवधििों का सामना करने की धवधि एव प्रधवधियों का ज्ञान ं परम्परा का ज्ञान ं प्रिवत्तयों एि िमों का ज्ञान ृ ं िगीकरण एि िगों का ज्ञान ं वनकय का ज्ञान प्रविवियों का ज्ञान धकसी क्षेत्र में सावतिौमों एव अमततताओ का ज्ञान ू ं ं वनयमों एि सामानईकरण का ज्ञान ् ं वसद्ातों एि सरचना का ज्ञान
ं ं ं ं बोि अनिाद ु विवििों का अनिाद करना ु विवििों का वनिचभ न करना बवहििे न करना अनप्रयोग ु ज्ञान एि बोि का वनवश्चत एि मतभ वस्र्थवतयों म ें उपयोग करना ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 54 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 धवश्ले षण तत्िों का विश्लेषण करना सम्बन्िों का विश्लेषण करना सगठनात्मक वसद्ातों का विश्लेषण करना ं ं सश्ले षण ं मौवलक सप्रेषण का उत्पादन ं मौवलक योिना का उत्पादन अमतभ सम्बन्िों का प्रवतपादन ू मलयाकन ू ं आतररक साक्ष्यों के सन्दर् भ म ें वनणयभ लेना ं िाह्य वनकय के सन्दर् भ म ें वनणभय लेना उद्दश्े यों को व्यािहाररक िब्दािली अर्थिा व्यिहार पररितभन के रूप म ें कायभ विया की सहायता से ं वलख िाता ह।ै तावलका 2 म ें ज्ञानात्मक उद्दश्े यों के िग भ एि सम्बद् कायभ विया को दिाभया गया ह।ै ं ं ताधिका 2 ब्िम: उद्देश्य वगीकरण के मख्य वगत एव सम्बद्ध कायत धक्रयाए ँ ू ु ं वगत सम्बद्ध कायत धक्रयाए ँ ज्ञान उत्िािन के रूि में 1. िणनभ करना, प्रत्यिकरण करना, ज्ञान म ें प्रार्थवमक पठन-पाठन कौिल अर्थिा विविि पररर्ावषत करना, पहचानना, नाम सचना या अनर्िों का पनः स्मरण िावमल होता ह।ै बताना, सचना बनाना, पनभरूत्पादन ू ु ु ू ु ं ज्ञान के उच्च स्तर म ें सचना के सार्थ व्यिहार करने करना, मापना, नामावकत करना, ू ं ं के तरीके एि माध्यम को िानना िावमल ह।ै इसमें वलखना, अवितभ करना। ं पररतिनभ के सार्थ ही सार्थ प्रिवत्त और िम, िगीकरण, ृ वनकय एि रीवत वििान सर्ी के उच्च स्तर म ें ं सािर्भ ौवतकता एि अमतभता का ज्ञान िावमल ह ैं ू ं ं ं इसके अतगतभ वनयमों एि सामान्यीकरण तर्था सार्थ ही ं ं सार्थ वसद्ातों एि सरचना के ज्ञान आते ह।ैं ं ं ं ं बोि 2. र्विरयिाणी करना, वनिचभ न करना, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 55 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इसम ें प्रत्यि िावमल ह।ै बोि सचना की प्रविया को सोदाहरण समझना, अनिाद करना, ू ु ं बाध्य करता ह।ै िो सचना को वििार्थी के वलए वचत्र बनाना, अतििे न करना, बवहििे न ू ं ं अविक अर्थभपण भ बनाती ह।ै करना। ू अनप्रयोग ु 3. अनपयक्त करना, वदखाना, प्रदवितभ ु ु अनप्रयोग के अन्तगभत वकसी िस्त का विविि प्रकार से करना, उपयोग करना, सम्बन्ि बताना, ु ु उपयोग करना आता ह।ै विकास करना, स्र्थानान्तरण करना, वनमाभण करना, व्याख्या करना। धवश्ले षण 4. विश्लेषण करना, अलग करना, र्दे विश्लेषण के अतगतभ विर्ावित करना अर्थिा पण भ कर करना, िगीकत करना, र्ग करना, पता ृ ू ं ं इसके िटक र्ागों म ें अलग करना आता ह।ै यह एक लगाना, र्दे वदखलाना। तकभ अर्थिा वचतन की प्रविया ह ै सरलतम रूप म ें ं विश्लेषण के अन्तगतभ इसके तत्िों की सची बनाना ू आता ह।ै सश्ले षण ं 5. िोडना, सविप्त करना, सामान्यीकरण ं सश्लेषण म ें अनेक तत्िों को आपस म ें िोडकर पणभ प्राप्त करना, वनरकष भ वनकालना, सगवठत ू ं ं वकया िाता ह।ै इस प्रविया म ें तावकभ क पररणाम वनकाला करना, स्पि करना, वनमाभण करना, िाता ह।ै इस अर्थभ म ें यह वचतन एि सिनात्मकता से प्रस्तावित करना, पररणाम वनकालना। ृ ं ं सम्बवन्ित ह।ै सश्लेषण म ें तत्िों को मौवलक रूप से ं िोडा िाता ह।ै बौधद्धक प्रधक्रया 6. मल्याकन करना, वनश्चय करना, चनना, ू ु ं मल्याकन: यह िगीकरण का उच्च्तम स्तर ह।ै इसमें वनणयभ करना, आलोचना करना, चयन ू ं वपछले पााँच िगों का योग होता ह।ै मल्याकन का करना, समर्थभन दने ा, आिमण करना, ू ं सम्बन्ि मल्यों के बारे म ें वनणयभ लेने से होता ह।ै तलना करना, बचाि करना, िषै म्य ू ु मल्याकन मात्रात्मक एि गणित्तात्मक, प्रत्यि अर्थिा वदखलाना। ू ु ं ं परोि, विषयवनष्ठ अर्थिा िस्तवनष्ठ हो सकता ह।ै प्रायः ु वनणयभ आतररक साक्ष्यों के आिार पर वलए िाते ह।ैं ं िाह्य वनकष के आिार पर वनणयभ लेना मल्याकन ू ं गवतविवि का उच्चतम स्तर माना गया ह।ै िावात्मक क्षेत्र के उद्देश्य का वगीकरण िर्थिाल, ब्लम तर्था मसीआ (1964) ने बताया वक र्ािात्मक िेत्र म ें ि े उद्दश्े य िावमल ह ैं विनका ू सम्बन्ि रूवचयों, अवर्िवत्तयों तर्था मल्यों म ें पररितभन से एि प्रिसा तर्था समायोिन के विकास से ह।ै ृ ू ं ं इसके िगीकरण के मख्य िग भ तावलका 3 म ें दिाभए गए ह:ैं ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 56 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ताधिक 3 िावात्मक क्षेत्र के उद्देश्यों का वगीकरण प्राि करना उद्दीपक के प्रवत िागरूकता उद्दीपक को प्राप्त करने की चाह उद्दीपक के प्रवतवनयोवित अर्थिा चयवनत आकषभण अनधक्रया करना ु प्रवतविया के प्रवत मौन सम्मवत अनविया की इच्छा ु अनविया म ें सतवि ु ु ं मलय धनिातररत करना ू मल्य की स्िीकवत ृ ू मल्य को िरीयता दने ा ू मल्य िचनबद्ता ू सगठन ं मल्य सकल्पनीयकरण ू ं मल्य पद्वत का सगठन ू ं चाररधत्रकरण सामानीकत वस्र्थवत ृ चाररवत्रकरण र्ाित्मक िेत्र के उद्दश्े य को व्यािहाररक िब्दािली म ें वलखने के वलए तावलका 4 म ें र्ािात्मक पि के मख्य िगों एि सबद् कायभ विया को दिाभया गया ह।ै ु ं ं ं ताधिका 4 क्रर्वाि: िावात्मक िक्ष वगीकरण के मख्य वगत एव सम्बद्ध कायत धक्रयाओ को ु ं ं ििातया गया है। मख्य वगत सम्बद्ध कायत धक्रयाए ँ ु प्राि करना 1. सनना, प्राप्त करना, वनयवत्रत करना, चयन करना, ु ं इस िगीकरण का यह वनम्नतम िगभ ह।ै इससे तात्पयभ ह ै वक िागरूक होना, प्रत्यिण करना, पि लेना, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 57 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 केिल सम्प्रेषण सना िािेगा। प्रविया में िावमल व्यवक्त स्िीकार करना, सग्रह करना। ु ं सदिे अर्थिा उद्दीपक के प्रवत सिग ह।ै ं अनधक्रया करना ु 2. उत्तर दने ा, पण भ करना, चयन करना, अवकत करना, ू ं वकसी प्रकार का उत्तर प्राप्त होता ह ै इससे तात्पयभ ह ै वक रूवच सची बनाना, विकवसत करना, अनसरण करना, ू ु एि अवर्प्रेरण के स्तर स्रोत के रूप में कायभ करते ह।ैं समपभण अवर्नन्दन करना, िाह-िाह करना। ं का स्तर वनम्न ह ै वकन्त विज्ञासा का अि अर्थिा उत्तेिना ु ं िवटत हई अनविया में तत्परता एि खिी िावमल ह।ै ु ु ु ं मलय धनिातररत करना ू 3. स्िीकार करना, पहचानना, र्ाग लेना, बढ़ाना, इसमें सम्बवन्ित व्यवक्त की योग्यता अर्थिा आतररक विकवसत करना, प्राप्त करना, वनश्चय करना, ं योग्यता को ध्यान में रखकर अवर्िवत्त बनती ह ैं मल्य प्रर्ावित करना, समर्थभन दने ा, तकभ करना, प्रिसा ृ ू ं वनिाभरण का यह उद्दश्े य पनः मल्य स्िीकवत, मल्य िरीयता करना। ृ ु ू ू तर्था वकसी दृविकोण के प्रवत समपभण में विर्ावित वकया िा सकता ह।ै सगठन ं 4. वििेचन करना, सगवठत करना, वनणयभ करना, ं िब ऐसी वस्र्थवत का सामना करना पडे, िहााँ एक से अविक सम्बन्ि बताना, सह सम्बन्ि बताना, सतलन ु ं अवर्िवत्त एि मल्य हों तब सगठन का उपयोग वकया िाता करना, पररर्ाषा दने ा। ृ ू ं ं ह,ै अन्यर्था व्यिहार असगत हो िाता ह।ै मल्य पद्वत का ू ं प्रारम्र् सगठन में वनवहत होता ह।ै दोनो ही वस्र्थवतयों में मल्य ू ं को िब्दों में व्यक्त करने के वलए योग्यता से अविक वकसी चीि की आिश्यकता होती ह ै तर्था वकसी प्रकार की योग्यता अपने मल्यों के बचाि के वलए वनवहत होती ह।ै ू मल्य का सकल्पन एि मल्य पद्वत का सगठन ये दो उपिग भ ू ू ं ं ं सगठन में िवमल ह।ै ं मलय अर्वा मलय सकि से चाररधत्रकरण ू ू ु ं बदलना, सामना करना, स्िीकार करना, विकवसत मल्य सकल का सम्बन्ि व्यवक्त के चररत्र एि उसके एक- करना, वनणयभ करना, अस्िीकार करना, मागना। ू ु ं ं ं एक व्यवक्त के रूप में अनोखोपन से होता ह।ै विश्वास, विचार एि अवर्िवत्त आपस में वमलकर िीिन को सम्पणभ ृ ू ं दृवि प्रदान करते ह।ैं चररत्र वचत्रण एि सामानईकरण इसके ् ं दो उपिगभ ह।ै मनोगात्मक क्षेत्र के उद्देश्य का वगीकरण मनोगात्मक िेत्र का सम्बन्ि मासपेवियों के विकास तर्था प्रयोग एि िारीररक विया के समन्िय की ं ं ं योग्यता से होता ह।ै हरे ा (1972) के मनोगात्मक िेत्र के िग भ एि सम्बद् कायभ वियाएाँ तावलका 5 म ें ं दिाभयी गयी ह ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 58 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ताधिका 5 - मनोगात्मक क्षेत्र के वगत एव सम्बद्ध कायत धक्रयाए ँ ं हेरो: वगीकरण के मख्य वगत सम्बद्ध कायत धक्रयाए ँ ु सहि गधतयाँ 1. मोडना, तानना, खींचना, िवक्त प्रदान करना, .ै लाना, रोकना, लम्बा करना, छाटना करना, ं इन्ह ें उद्दीपकों के प्रवत गामक अनविया के रूप म ें पररर्ावषत ु ं सख्त करना, कसाना, विवर्थल करना वकया गया ह।ै य े वकसी र्ी प्रकार की गवत िाले व्यिहार के आिार पर होते ह।ैं इनमें एक या अविक सषम्ना खड िावमल ु ु ं होते ह।ैं बधनयािी मिित गधतया ँ ु ू ू 2. रेंगना, व.सलना, चलना, दौडना, कदना, ू सरकना, ग्रहण करना, पहचाँ ना, सहारा लेना, ु िे िन्मिात िारीररक गवतयों के तरीके िो वक सहि गवतयों को चलाना, सही करना। बवनयाद से बनते ह;ै बवनयादी मलर्त गवतयााँ कहलाती ह।ैं य े ु ु ू ू प्रायः िीिन के पहले िष भ म ें स्ितः आती ह।ै इस िगभ की गवतयााँ सर्ी सामान्य मानि दवै नक गवतविवियों की मल आिार होती ह ैं ू तर्था इनकी न्यनता बहत गर्ीर होती ह।ै ु ू ं प्रत्यक्षात्मक योग्यताए ँ 3. झेलना, खाना, वलखना, सतलना करना, ु ं झकाना, स्मवत स े प्राप्त करना, स्पिभ से र्ेद ृ ु इन्ह ें गामक योग्यता से अलग करना मवश्कल ह।ै ये योग्यताए ाँ ु ं करना, उछालना, खोिबीन करना वििार्थी को उद्दीपकों के वनिचभ न में सहायता करती हैं, विससे िह पयाभिरण के सार्थ समायोिन कर सकता ह।ै श्रेष्ठ गामक गवतविवियााँ प्रत्यिण के विकास पर वनर्भर होती हैं य े सिेदना ं र्ेद, दृरयक र्ेद, श्रिेण र्ेद इसके अतगतभ आते ह ैं तर्था य े ं आाँख, हार्थ तर्था परै की योग्यता में समन्िय करती ह।ैं ं िारीररक योग्यताए ँ 4. सख्त विया को सहना, लम्ब े समय तक ं सहन करना, सिार करना, बढ़ाना, प्रारम्र् ु गामक विया के वलए िारीररक योग्यताए ाँ अवनिाय भ होती ह।ैं ं करना एि रोकना, सस्पि िमना, पैर की ु ू ं िे व्यवक्त की ताकत स े सम्बवन्ित होती ह ैं विनके द्वारा व्यवक्त उगवलयााँ छना। ू ं अपनी पयाभिरणीय मागों की पवतभ करता ह।ै कौिलयक्त गवतयों ू ु ं के विकास के वलए िारीररक योग्यताए ाँ आिश्यक बवनयादी ु होती ह।ैं िारीररक योग्यता म ें मख्य ह:ै गवत। ु ं कौिियक्त गधतया ँ ु 5. कलाबािी करना, नाचना, दखे ना, टाइप करना, वपयानों बिाना, तार (बाढ़) लगाना, स.लतापिभक वकये गए वकसी िवटल कायभ की गवत को ू बदलना, समतल करना, आग लगाना, .ाइल कौिलयक्त गवत कहते ह।ैं ये सगमता स े वनरपावदत वकये िाते ह।ैं ु ु करना, नाि खैना, बािीगरी करना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 59 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अिाधब्िक सम्प्रेषण 6. सके तन करना, खडा होना, बैठना, किलता ु ं से नत्य करना, किलता से वनरपादन करना, ृ ु िे व्यिहार िो गवत सम्प्रेषण में िावमल होते ह।ैं इनकी सीमा चेहरे से व्यक्त करना, िानबझकर मस्कराना। ू ु चेहरे की अवर्व्यवक्त से लगाकर उच्च परररकत नत्य के िगों ृ ृ िैसे बैले तक होती ह।ै इसम ें सके तन, आसन तर्था वनिभचनात्मक ं गवतयााँ ह ैं िो या तो सौन्दयाभत्मक अर्थिा सिनात्मक रूप म ें हों। ृ अभ्यास प्रश्न 1. छात्र के विकास के तीनों पिों सज्ञानात्मक, र्ािात्मक तर्था मनोगात्मक पिों के प्रवतमानों का ं उल्लेख कीविए तर्था उन पर आिाररत िवै िक उद्दश्े य बनाइये। 2. ज्ञानात्मक पि के उद्दश्े यों का िगीकरण विस्तार से कीविए। 5.4 रचनात्मक प्ररतमान, अरधगम और आकं लन रचनात्मक पररप्रेक्ष्य म,ें सीखना ज्ञान के वनमाभण की एक प्रविया ह।ै विद्यार्थी सविय रूप से पि भ प्रचवलत ू विचारों म ें उपलब्ि गवतविवियों के आिार पर अपने वलए ज्ञान की रचना करत े ह,ैं उदाहरण के वलए, यातायात व्यिस्र्था को पाट या वचत्र या दृश्य सामग्री का उपयोग करते हए पढ़ाने तर्था उस पर विद्यावर्थभयों ु म ें चचा भ कराने म ें उनम ें यातायात व्यिस्र्था सम्बन्िी ज्ञान के वनमाभण म ें मदद की िा सकती ह।ै आरवम्र्क वनवमतभ (मानवसक वचत्रण) सडक यातायात के विचार पर आिाररत हो सकती ह ै और ग्रामीण इलाके के कोई विद्यार्थी बैलगाडी के इदभ-वगद भ अपने विचार गढ़ सकता ह।ै विद्यार्थी दी गई गवतविवियों के माध्यम से िाह्य यर्थार्थभ की मानवसक छवि गढ़ सकते ह।ै विचारों की रचना एि पनरभचना उनके विकास के आिश्यक ु ं लिण ह।ै उदाहरण के वलए, यातायात व्यिस्र्था पर आरवर्क विचार सडक यातायात पर वनर्रभ होगा और ं बाद म ें यह दसरे प्रकार के यातायात िसै े समि और िाय यातायात को समावहत करने के वलए विवर्न्न का ु ु ू उपयोग करते हए पनरभवचत होगा। विद्यावर्थभयों को बाद म ें उपयक्त गवतविवियों के माध्यम से यातायात ु ु ु व्यिस्र्था और मानि िीिन/अर्थभव्यिस्र्था के बीच सम्बन्िों के बारे म ें बताया िा सकता ह।ै हालावक इस ं ज्ञान-वनमाभण की प्रविया का एक सामाविक पहल यह र्ी ह ै वक िवटल कायभ के वलए आिश्यक ज्ञान ू समह पररवस्र्थवतयों म ें वनवहत होता ह।ै इस सन्दर् भ में, सहयोगी वििण के वलए अर्थभ की बहलता और िाह्य ु ू यर्थार्थभ के अदरूनी प्रवतवनवित्ि को पयाभप्त िगह वदए िाने की िरूरत ह।ै वनवमवभ त यह सके त दते ी ह ै वक ं ं हर विद्यार्थी व्यवक्तगत और सामाविक तौर पर अर्थभ का वनमाभण करता ह।ै अर्थभ वनमाभण सीखना ह ैं रचनात्मक पररप्रेक्ष्य ऐसी रणनीवतयााँ उपलब्ि करिाता ह ै िो सबसे द्वारा सीखना को प्रोत्सावहत करता ह।ै बच्चों के सज्ञान म ें अध्यापकों की र्वमका र्ी बढ़ सकती ह ै यवद ि े ज्ञान वनमाभण की उस प्रविया ू ं म ें ज्यादा सविय रूप से िावमल हो िायें विसम ें बच्चे व्यस्त ह।ै सीखने की प्रविया म ें व्यस्त एक बालक या बावलका अपने ज्ञान का सिन खद करता/ती ह।ै बच्चों को ऐसे प्रश्न पछने की अनमवत दने ा विनसे ि े ृ ु ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 60 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 स्कल म ें वसखाई िाने िाली चीिों का सम्बन्ि बाहरी दवनया से स्र्थावपत कर सकें , उन्ह ें एक ही तरीके स े ू ु उत्तर रटने और दने े की बिाये अपने िब्दों म ें ििाब दने े र अपने अनर्ि बताने के वलए प्रोत्सावहत ु करना - ये सर्ी बच्चों की समझ विकवसत करने म ें छोटे वकन्त बेहद महत्िपण भ कदम ह।ै ु ू ु ु को एक कारगर वििा िास्त्रीय सािन के रूप म ें प्रोत्सावहत वकया िाना चावहए। पछताछ, अन्िषे ण, प्रश्न पछना, िाद-वििाद, व्यािहाररक प्रयोग ि ऐसा वचतन विससे वसद्ात ू ू ं ं बन सकें और विचार/वस्र्थवतयों की रचना हो सके ये सर्ी बच्चों की सविय व्यिस्तता को सवनवश्चत करते ु ह।ैं स्कलों द्वारा ऐस े अिसर प्रदान वकये िाने चावहए तावक बच्चे प्रश्न पछ कर और चचाभ एि वचतन कर ू ू ं ं अििारणा को आत्मसात करें या नये विचार रचें। इस प्रविया के िररए विवर्न्न अििारणा एि ं ं ं कौिल सीखने के वलए ि वस्र्थवतयों तक पहचाँ ने के वलए बच्चों की सविय र्वमका म ें चनौती का तत्ि ु ू ु वनणाभयक ह।ै प्रायः होने के नाम पर अध्यापक लचीलेपन और रचनात्मकता की बवल द े दते ा ह।ै प्रायः ु वनिी ि सरकारी दोनों स्कलों के अध्यापक इस बात पर िोर दते े ह ैं वक सर्ी बच्चों को प्रश्नों के एक ू समान उत्तर दने े चावहए। अन्य उत्तरों को स्िीकार न करने के वलए यह तकभ वदया िाता ह ै वक
‘ि े ऐसा उत्तर नहीं द े सकते िो पाठयपस्तक म ें नहीं ह’
ै या
‘हमने अध्यापक कि म ें इसकी चचाभ की और वनश्चय वकया ् ु वक हम के िल ही उत्तर को सही मानेंगे’
या व.र इस प्रकार तो बहत सी वकस्म के ििाब होंग,े क्या हम ें ु सर्ी तरह के ििाबों को सही मानना चावहए? ऐसे तकभ पढ़ाई के अर्थभ का उपहास बना दते े ह ैं और बच्चों ि माता-वपता को और र्ी आश्वस्त कर दते े ह ैं वक स्कल अतावकभ क रूप से सख्त ह।ै हम ें िाकई इस बात ू पर सोचना चावहए वक हम हमिे ा बच्चों से सिाल के ििाब दने े के वलए ही क्यों कहते ह।ै वदए गए उत्तरों के वलए प्रश्नों की एक सची बनाना र्ी सीखने का ििै परीिण हो सकता ह।ै ू 5.4.1 अतःधक्रया: रचनात्मकता का आिार ं सीखने की प्रविया का अवर्न्न अग ह ै आस-पास के िातािरण, प्रकवत, चीिों ि लोगों के कायभ ि र्ाषा ृ ं दोनों के माध्यम से अतःविया करना। इिर-उिर िमना, खोिना, अके ले काम करना या अपने दोस्तों या ू ं ियस्कों के सार्थ काम करना, र्ाषा को पढ़ना, अवर्व्यक्त करना, पछने और सनन े के वलए प्रयोग करना, ू ु ये कछ ऐसी महत्िपण भ वियाए ाँ ह ै विनसे सीखना सर्ि होता ह।ै इसवलए विस सन्दर् भ म ें यह अविगम ु ू ं होता ह ै उसकी प्रत्यितः सज्ञानात्मक महत्ता ह।ै स्कल के अनर्ि तर्था बच्चे के बाहर की दवनया के ू ु ं ु अनर्ि को कल्पनापण भ ढग से िोडकर हम स्कली िातािरण के अिनबीपन को कछ कम कर, ु ू ू ु ं रचनात्कता के वलए व्यापक आिार वनवमतभ कर सकते ह।ै वनवश्चत रूप से विद्यालय के पास छात्र को दने े िाले अनर्ि बहत ज्यादा होंग,े लेवकन व.र र्ी छात्रों के अनर्िों की उपेिा हो, ऐसा विद्यालय से न होन े ु ु ु पाये। यवद कोई बच्चा प्रकवत के अतविभ या करते हए बडा हआ ह ै तो विद्यालय ऐसे अनर्िों को और ु ु ृ ु ं अविक िवनष्ठ बनाते हए ज्ञान के सिन हते बच्चे की सहायता कर सकते ह।ैं वििक, विद्यालय और ु ृ ु सम्पण भ वििण प्रविया को रचनात्मक खोि करने िाले ससािनों पर वनर्रभ होना चावहए। ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 61 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रचनात्मक अधिगम की िररधस्र्धत (रा.पा.रू.-2005) प्रधक्रया धवज्ञान िाषा पररवस्र्थवत पररवस्र्थवत विद्यार्थी स्तनपायी पर एक लेख पढ़कर अलग- वििार्थी कहानी पढ़ते ह।ैं ु अलग स्र्थानों पर उनके िीिन को लेकर दृश्यािली बाद म,ें उनको उसकी पष्ठर्वम से िडे ृ ू ु र्ी दखे सकते ह।ै इस प्रकार की िटना या कछ रेखावचत्र और कहानी के कछ दृश्य ु ु ं ड में चलने या िल म ें गवतविवियों में उनको झ सविप्त िणनभ के सार्थ वदए िायें। एकाि ं ं ु वदखाया िा सकता ह ैं उनको चरते हए विकार पर
विद्यार्थी उसके कछ दृश्यों के रेखावचत्र ु ु हमला करते हए, िन्म दते े हए र खतरे के समय र्ी बना सकते ह।ैं ु ु एक होते हए या इससे िडी गवतविवियााँ वदखाई िा ु ु सकती ह।ैं अिलोकन विद्यार्थी स्तनपावययों के प्रमख व्यिहारों या प्रमख विद्यार्थ
ी उन दृश्यों को िवटत होते हए ु ु ु िटना के आिार पर एक वटप्पणी तैयार कर दखे ते ह।ैं ं सकते ह।ैं सन्दर्ीकरण िे अपने विश्लेषण को पाठ से वमलाते ह।ैं िे कहानी के पाठ की उसके रेखावचत्र स े सम्बद्ता वबठा कर दखे ें। सज्ञानात्मक वििक िह बताते ह ैं वक ि े वकसी प्रकार एक वदखाय े गए एक दृश्य को आिार ं वििार्थभन स्तनपायी का उदाहरण लेकर इस प्रकार की बनाकर वििक बताता ह ै वक वकस प्रकार िानकारी की व्याख्या और विश्लेषण कर सकते ह।ैं कहानी के िाचन और आर्ार सामग्री को समेवकत करके पढ़ा िाये। सहयो
ग विद्यार्थी समह बनाकर किाभ्यास करते ह,ैं िबवक विद्यार्थी समह म ें व्याख्या तैयार करते ह।ैं ू ू वििक उनकी इसमें मदद करते ह।ैं वििक इसमें उनका मागभदिभन करते ह।ैं वनिभचन सिन विद्यार्थी विश्लेषण करे और पानी में और िरती पर िे विश्लेषण करे और कहानी का अपना ृ रहन े िाले स्तनिारी िीिों के बारे म
ें बनायी अपनी वनिभचन उत्पन्न करें। प्राक्कल्पना करे प्रमावणत करन े के वलए प्रमाण उत्पन्न या प्रस्तत करें। ु बहविि िे व्याख्या प्रस्तत करते ह ैं और अपने विश्लेषण और व्याख्या की समह के अन्दर और बाहर ु ु ू व्याख्या पाठ की मदद से समह के अन्दर और बाहर तकभ की तलना कर िे यह समझ विकवसत करते ह ैं ू ु रिा करते ह।ैं साक्ष्य और बहसों द्वारा ये कई तरह स े वक कै से कहानी पर ु अपनी व्याख्या तक पहचाँ ने के उत्तर पाते ह।ै अलग-अलग प्रवतवियाएाँ हो सकती ह।ैं ु बहविि इस प्रविया में आग-े पीछे िाते हए और हर सन्दर् भ पाठ, उससे िडे रेखावचत्रों और अन्य ु ु ु अवर्व्यवक्तयााँ की स्तनपावययों के विवर्न्न व्यिहारों और िटना प्रर्ािों के आिार पर विद्यार्थी यह दखे ते ं से िोडने के िम में विद्यार्थी यह दखे ते ह ैं वक इसम ें ह ैं वक एक ही प्रकार के विषय और सामान्य वसद्ात यह ह ै वक ि े िो र्ी कर रह े ह ैं िह चररत्रों को विविि ढग से वदखाया िा ं ं व्यक्त हो रहा ह।ै सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 62 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 धिक्षक की िधमका ू इस सन्दर् भ म ें वििक एक उत्प्रेरक ह ै िो विद्यावर्थभयों को अवर्व्यवक्त के वलए और ज्ञान सिन के िम में ृ व्याख्या और विश्लेषण के वलए प्रोत्सावहत करता ह।ै 5.5 रचनात्मक आकं लन का उद्दश्े य वििा का सरोकार एक सार्थभक ि उत्पादक िीिन की तैयारी से होता ह ै और मल्याकन आलोचनात्मक ू ं प्रवतपवि दने े का तरीका होना चावहए। यह प्रवतपवि इस बात की होती ह ै वक हम ऐसी वििा लाग करने में ु ु ू वकस हद तक स.लता प्राप्त कर पाये। इस पररप्रेक्ष्य से दखे ें तो ितभमान म ें चल रही मल्याकन की प्रवियाएाँ ू ं िो के िल कछ ही योग्यता को मापती और आकवलत करती ह ै वबल्कल ही अपयाभप्त ह ै और वििा के ु ु ं उद्दश्े यों की र प्रगवत की सम्पण भ तस्िीर नहीं खींचती ह।ै लेवकन मल्याकन का यह सीवमत प्रायोिन र्ी, ू ू ं अकादवमक और िैविक विकास पर प्रवतपवि दने े िाला, तर्ी बन सकता ह ै िब वििक पढ़ने से पहले ही ु न के िल आकलन के तरीकों की तैयारी करें बवल्क मल्याकन के मानकों और उसके वलए प्रयक्त होने ू ु ं िाले औिारों की र्ी तैयारी करें। विद्यावर्थभयों की उपलवब्ि की गणित्ता की िााँच के अलािा एक ु अध्यापक को विवर्न्न विषयों म ें उनकी उपलवब्ि की िानकारी इकट्ठा कर, उसका विश्लेषण कर और उसकी व्याख्या करनी होगी। तर्ी अध्यापक विवर्न्न िेत्रों म ें विद्यावर्थभयों के अविगम की सीमा की एक समझ बना पायेंग।े आकलन का प्रायोिन वनश्चय ही सीखने-वसखाने की प्रविया एि सामग्री का सिार ु ं ं करना ह ै और उन लक्ष्यों पर पनविचभ ार करना ह ै िो स्कल के विवर्न्न चरणों के वलए तय वकये गए ह।ैं यह ु ू पनविचभ ार और सिार इस आिार पर वकया िा सकता ह ै वक वििावर्थभयों की िमता वकस हद तक ु ु विकवसत हई। यह कहने की िरूरत नहीं होनी चावहए वक यहााँ इस आकलन का मतलब विद्यावर्थभयों का ु वनयवमत परीिण कतई नहीं ह ै बवल्क, दवै नक गवतविवियााँ और अभ्यास के उपयोग से अविगम का बहत ु ही अच्छा आकलन हो सकता ह।ै हम ें एक ऐसी पाठयचयाभ की आिश्यकता ह ै विसम ें सिनात्मक, ृ ् निप्रितभकता और बालक का सम्पण भ विकास हो। ू पाठयचयाभ के सर्ी विषय परीिा द्वारा नहीं िााँचे िा सकत,े बवल्क ऐसा करना तो पाठयचयाभ के ् ् उन िेत्रों के सीखने की प्रकवत के विपरीत होगा। इनम ें काम, स्िास्थ्य, योग, िारीररक वििा, सगीत एि ृ ं ं कला िावमल ह।ै यद्यवप िारीररक वििा और योग के कौिल आिाररत पिों का परीिण वकया िा सकता ह ै परन्त स्िास्थ्य से िडे पिों को सतत और गणात्मक आकलन की िरूरत होती ह।ै ितभमान में ु ु ु इन्ह ें पाठयचयाभ म ें कम महत्ि दने े का चलन ह।ै इन िेत्रों के वलए न ही पयाभप्त सामग्री उपलब्ि करिाई ् िाती ह,ै और न ही पाठयचयाभ के वलए ढग स े योिना बनायी िाती ह ै और बढ़े तो इन विषयों को वदए ् ं गए समय को वििषे पढ़ाई के वलए हमिे ा बवलदान कर वदया िाता ह।ै पाठयचयाभ के इन र्ागों के सार्थ ् यह बहत ही बडा समझौता ह,ै िबवक इन र्ागों की गहरी िवै िक महत्ता और सर्ािनाए ाँ होती ह।ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 63 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.6 रचनात्मक किा की रवशेषताए ँ तथा इसम रशिक की र्ूरमका ें अविगम के वसद्ात के रूप म ें रचनात्मकतािाद यह मानता ह ै वक प्रत्येक व्यवक्त म ें यह िमता होती ह ै वक ं िह अपने अनर्ि ि वचतन के आिार पर अपने ज्ञान का वनमाभण कर सके । इस प्रविया म ें िब कर्ी छात्र ु ं नये अनर्िों से सामना करता ह ैं तब िह आसानी से नये अनर्ि को उपवस्र्थत ज्ञान से िोड लेता ह ै या ु ु उपवस्र्थत ज्ञान म ें सामिस्य बैठाकर नये अनर्िों को उनम ें समावहत कर लेता ह।ै अतः रचनात्मक ु ं किा का सबसे पहला कतभव्य यह ह ै वक छात्र के नये अनर्िों को उसके अपने सज्ञानात्मक, ु ं ं र्ािात्मक तर्था मनोगात्मक पण भ अनर्िों से िोडने तर्था समायोवित करने का अिसर प्रदान करे। इस ू ु तरह का अिसर प्रदान करने के वलए आपको मनोिज्ञै ावनक एल.एस. िाईगॉटस्की के द्वारा बताई गयी सकल्पना को र्लीर्ााँवत अध्ययन कर लेना चावहए। विसको सार रूप म ें वनम्नवलवखत प्रकार से समझा िा ं सकता ह,ै वकसी प्रकार की पररणती वनम्नवलवखत पिों पर आिाररत होती ह-ै क. सर्ी छात्र ियै वक्तक रूप से वबना वकसी िाह्य सहायता के कायभ को सम्पावदत तर्था सम्पण भ कर ू सकते ह।ैं ख. कछ छात्र ियै वक्तक रूप से वबना वकसी िाह्य सहायता के सम्पावदत तर्था सम्पण भ कर सकते ु ू िबवक कछ छात्र ऐसा नहीं कर सकते। ु ग. सर्ी छात्र को कायभ वनरपादन हते िाह्य सहायता
की आिश्यकता ह।ै ु उपरोक्त िवणभत तीनों िग भ किा म ें देख े िा सकते ह ैं और बाइगॉस्टकी इनको वनम्नवलवखत प्रकार से ं िवगतभ करते ह-ैं (क-प्रकार) िास्तविक विकास के िेत्र (ख-प्रकार) वनकटता विकास के िेत्र (ग-प्रकार) िमता विकास क
े िेत्र एक विम्मदे ार अध्यापक के रूप म ें आपकी विम्मदे ारी किा म ें ऐसा िातािरण तैयार करने ही ह ै िहााँ छात्र गम्र्ीर होकर अपना योगदान कर सके तर्था
ज्ञान का वनमाभण कर सके । इस वनवमभत ज्ञान का मल्याकन ू ं उवचत, पिाभग्रह रवहत तर्था सन्दर् भ वििेष म ें करने का दावयत्ि वििक का ह,ै क्योंवक िब तक परीिाएाँ ू बच्चों की पाठयपस्तकीय ज्ञान क
ो याद करन े की िमता का परीिण करती रहगें ी, तब तक पाठयचया भ ् ् ु ं को अविगम की तर. मोडने के सर्ी प्रयास वि.ल होते रहगें ।े उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 64 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.7 समरकत रूप से अरधगम वरि के रलए शैरिक अनुर्वों की रूपरेखा े ृ वििण तर्था िवै िक कायभ की गणित्ता, उससे सीख पाने की योग्यता और विद्यावर्थभयों के वलए उसके ु महत्ि को प्रर्ावित करती ह।ै वििण प्रविया म ें यावत्रकीकरण तर्था स्मवतकरण के कारण छात्र अपने ृ ं विचारों एि वििके को महत्ि दने ा नहीं सीखते और तत्पश्चात ि े एक ऐसी िारणा का वनमाभण कर लेते ह ैं ् ं विससे ि े यह समझते ह ैं वक ज्ञान दसरों के द्वारा बनाया िाता ह ै और उन्ह ें वस.भ ग्रहण करना ह।ै अतः ू वििक का यह दावयत्ि बनता ह ै वक ऐसे बच्चों को प्रोत्सावहत करें , उन्ह ें िातािरण प्रदान करें तर्था उन मौवलक अनर्िों से बाहर वनकलकर स्िय ही ज्ञान के वनमाभण तर्था अिनभ पर अग्रसर हों। छात्र परीिा म ें ु ं उत्तीण भ होने के वलए यावत्रक रटण्तविद्या से बाहर वनकलें तर्था स्ितत्र विचार प्रविया और समािान खोिने ं ं के विविि तरीकों तर्था रचनात्मकता और आत्मानिासन पर आग े बढ़े। इस सन्दर् भ म ें वििक की र्वमका ु ू अत्यत महत्िपण भ हो िाती ह ै तर्था उनका कायभ बच्चों को पाठयपवस्तका अनर्िों के बाहर ले िाकर ् ू ु ु ं अन्य स्रोतों के अनर्िों से वमलाना तर्था उन्ह ें यह विश्वास वदलाता वक बच्चे खद ही खोि करके एि ु ु ं प्रमाण िटा कर सीखते ह ैं एि ज्ञान का सिन करते ह ैं और अध्यापक या पाठयपस्तक का ज्ञान पर प्रर्त्ि ृ ् ु ु ु ं नहीं होता ह।ै अभ्यास प्रश्न 3. रचनात्मक आकलन तर्था मल्याकन के उद्दश्े यों की व्याख्या कीविए। ू ं 4. समवे कत रूप से अविगम म ें िवद् के वलए अनर्िों की रूपरेखा का वनमाभण कीविए। ृ ु 5.8 सारांश वपछले लगर्ग दो दिकों से पाठयचयाभ, आकलन तर्था मल्याकन पर विवर्न्न स्तरों पर गम्र्ीर विमि भ के ् ू ं पश्चात कई प्रकार महत्िपण भ वबन्द चचा,भ िोि तर्था कायाभन्ियन हते लाये गए विनम ें से समाििे ी किा ् ू ु ु तर्था रचनात्मक मल्याकन के प्रवतमान वििेष रूप से उल्लेखनीय ह।ैं खोिपणभ, सहर्ावगतापण भ तर्था ू ू ू ं अनर्ि आिाररत अविगम और अध्यापन को किा म ें वनवश्चत िगह वमलनी चावहए विसके ु पररणामस्िरूप समवे कत रूप म ें रचनात्मक आकलन तर्था मल्याकन बच्चे की सिाांगीण विकास के वलए ू ं तीनों पिों िसै े सज्ञानात्मक र्ािात्मक तर्था मनोिगे ात्मक को समवे कत रूप म ें दखे पायेगा। अध्ययन और ं अध्यापन के सम्बन्ि म ें वििक की समझ का पनः उन्मखीकरण अवनिायभ ह ै तावक ि े विद्यावर्थभयों के ु ु विकास एि अविगम के सम्बन्ि म ें सिाांगीण दृविकोण उत्पन्न कर सके । इसके सार्थ ही किा म ें सर्ी ं विद्यावर्थभयों के वलए समािेिी िातािरण तैयार करते हए ज्ञान के वनमाभण म ें विद्यावर्थभयों की सहर्ावगता और ु रचनात्मकता को बढ़ािा वदया िाये। इस कायभ को पण भ करन े हते पाठयचया भ की प्रविया म ें बच्चों की ् ू ु ं सोच, विज्ञासा और प्रश्नों के वहत पयाभप्त स्र्थान दने े के सार्थ-सार्थ विद्यावर्थभयों की सहर्ावगता के िेत्र िसै े- अिलोकन, अन्िषे ण, विश्लेषणात्मक विमि भ इत्यावद को उवचत प्रकार से प्रिेवपत वकया िाये। वििा में उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 65 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सतत तर्था व्यापक आकलन को रचनात्मक आकलन हते प्रयक्त करते हए बच्चे के तीनों पिों का उवचत ु ् ु ु ि समवे कत मल्याकन हो, तावक अविगम म ें सकारात्मक िवद् हो सके । ृ ू ं 5.9 सन्दर् भ ग्रन्थ सची ू 1. Bloom, B.S. (1977). Human Characteristics and School Learning. New York: McGraw-Hill. 2. Brown, S. & McIntyre, D. (1993). Making Sense of Teaching. Buckingham: Open University Press. 3. Srivastava, H.S. (1999). Challenges in Educational Evaluation . New Delhi: Vikas Publishing House. 4. NCERT (2005). National Curriculum Framework for School Education. 5. Schon, D.A. (1983). The Reflective Practitioner. London: Temple Smith. 5.10 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. छात्र के सिाांगीण विकास हते िवै िक उद्दश्े यों की र्वमका का उल्लेख करते हए कछ उद्दश्े यों का ु ु ू ु वनमाभण कररए। 2. अविगम और आकलन के अतसभम्बन्ि की रचनात्मक प्रवममान के सन्दर् भ म ें व्याख्या कीविए। ं 3. रचनात्मक किा की वििेषताए ाँ तर्था इसम ें वििक की र्वमका का उल्लेख कीविए। ू 4. िाइगॉतस्की के की व्याख्या कीविए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 66 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 खण्ड 2 Block 2 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 67 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 2- िाषाई बतु ि, संगीि बतु ि और िार्ककक बतु ि के संदि में सीखने के पतरणामों का आकलन भ 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 सीखने के पररणाम का आकलन 2.3.1 आकलन क्या ह?ै 2.3.2 सीखने के पररणाम का मतलब 2.4 र्ाषाई बवद् के सदर्भ में सीखने के पररणामों का आकलन ु ं 2.4.1 बवद् क्या ह?ै ु 2.4.2 र्ाषाई बवद् क्या ह?ै ु 2.4.3 र्ाषाई बवद् और सीखने के पररणाम ु 2.5 सगीत बवद् के सदर्भ में सीखने के पररणामों का आकलन ु ं ं 2.5.1 सगीत बवद् क्या ह?ै ु ं 2.5.2 सगीत बवद् और सीखने के पररणाम ु ं 2.6 तावकभ क बवद् के सदर्भ में सीखने के पररणामों का आकलन ु ं 2.6.1 तावकभ क बवद् क्या ह?ै ु 2.6.2 तावकभ क बवद् और सीखने के पररणाम ु 2.7 साराि ं 2.8 िब्दािली 2.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.10 सदर्भ ग्रर्थ सची ू ं ं 2.11 वनबिात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना तकभ ह ै वक
"कारण, बवद्, तकभ िास्त्र, ज्ञान समानार्थभक नहीं ह ै ...,"
हॉिडभ गाडभनर (1983) ने स्कल के ु ू पाठयिम में तेिी से िावमल वकए िान े िाले बवद् के एक नए दृविकोण का प्रस्ताि रखा ह।ै बहबवद् के ु ् ु ु अपने वसद्ात म,ें गाडभनर ने बवद् की अििारणा को विस्ताररत करने के वलए गवणतीय और र्ाषाई िमता ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 68 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 के अलािा सगीत, वििाल सबिों और पारस्पररक ज्ञान िसै े िेत्रों को िावमल वकया। गाडभनर का कहना ं ं ं ह ै वक कई बवद्िीिी के वलए िवै िक और सास्कवतक आिार दोनों ही ह।ैं न्यरोबायोलोविकल अनसिानों ृ ु ु ु ं ं से पता चलता ह ै वक सीखना कोविका के बीच वसनेवप्टक (synaptic) कनेक्िन में सिोिन का एक ं ं पररणाम ह।ै विवर्न्न प्रकार के सीखने के प्रार्थवमक तत्ि मवस्तरक के उन वििेष िेत्रों म ें पाए िात े ह,ैं िहा ं सगत रूपान्तरण हए ह।ैं इस प्रकार, मवस्तरक के विवर्न्न िेत्रों में इन्ही वसनेवप्टक सबिों में पररणामस्िरूप ु ं ं ं विवर्न्न प्रकार का अविगम होता ह।ै । उदाहरण के वलए, मवस्तरक के ब्रोका िेत्र म ें होने िाली चोट के पररणामस्िरूप, उवचत वसटैक्स का इस्तेमाल करके मौवखक रूप से सिाद करने की िमता म ें कमी आ ं ं िाती ह।ै व.र र्ी, यह चोट रोगी की सही व्याकरण और िब्द उपयोग की समझ को दर नहीं कर पाती ह।ै ू िीिविज्ञान के अलािा, गाडभनर (1983) का तकभ ह ै वक सस्कवत र्ी बवद् के विकास में बडी र्वमका ृ ु ू ं वनर्ाती ह।ै सर्ी लोग बवद् के विवर्न्न प्रकार मानते ह ैं सास्कवतक मल्य िो कछ कायभ करने की िमता ृ ु ू ु ं पर रखा गया ह,ै उन िेत्रों में किल बनने की प्रेरणा प्रदान करता ह।ै इस प्रकार, एक वििषे सस्कवत के कई ृ ु ं लोगों में वििेष बवद् विकवसत हो सकती ह,ै वकसी दसरी सस्कवत म ें िह बवद् विकवसत नहीं हो सकती ृ ु ु ं ू ह।ै गाडभनर ने बवद् को
"समस्या को हल करने की िमता या एक या अविक सास्कवतक सेवटग म ें ृ ु ं ं ं मल्यिान .ै िन उत्पादों"
के रूप म ें पररर्ावषत वकया (गाडभनर एड हचै , 1989)। िवै िक और सास्कवतक ृ ू ं ं अनसिान का उपयोग करते हए, उन्होंने बवद् के आठ प्रकारों की सची तैयार की। गाडभनभर पररर्ावषत ु ु ु ू ं आठ बवद् ह-ैं ु ताधकत क-गधणतीय बधद्ध (Logical-Mathematical Intelligence)- पैटनभ का पता लगाने, ु वनगमनात्मक रूप से तकभ करने एि सोचने की िमता ह।ै यह बवद् अक्सर िज्ञै ावनक और गवणतीय ु ं सोच के सार्थ िडा हआ ह।ै ु ु िाषाई बधद्ध- इसमें र्ाषा की महारत रखने िाल े िावमल ह।ै इस बवद् म ें र्ाषा को प्रर्ािी ढग स े ु ु ं हरे .े र करन े की िमता िाल े ि े लोग िावमल ह,ैं िो अवर्व्यवक्त म ें वनपण ह ैं या कवितात्मक रूप से ु अवर्व्यक्त करते ह।ैं यह व्यवक्त को सचना को याद रखने के सािन के रूप म ें र्ाषा का उपयोग करने ू की अनमवत दते ा ह।ै ु स्र्ाधनक बधद्ध- इस प्रकार की बवद् समस्या को हल करने के वलए व्यवक्त को मानवसक वचत्र म ें ु ु ं पररचालन करने की िमता दते ा ह।ै दृविमय ससार को सही ढग से प्रत्यिीकरण करने की योग्यता एि ं ं ं अपने प्रत्यिीकरण के आिार पर ससार के पिों का पनवनभमाभण करना पररिवतभत करना अर्थिा ु ं रूपातररत करना। उदाहरण मवतभकार, िहाि चालक। ू ं सगीत बधद्ध- इसमे सगीत की वपचों, स्िर और लय को पहचानने और वलखने की िमता िावमल ह।ै ु ं ं (वपच और टोन के सबि में इस बवद् को विकवसत करने के वलए वकसी व्यवक्त के वलए श्रव्य कायों ु ं ं की आिश्यकता होती ह,ै लेवकन ताल के ज्ञान के वलए इसकी आिश्यकता नहीं ह।ै ) (उदाहरण- िायवलन िादक, गायक) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 69 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िारीररक-गधतमानी बधद्ध- अपनी िारीररक गवतयों के समन्िय के वलए अपनी मानवसक िमता ु ं का उपयोग करने की िमता ह।ै इस बवद् ने लोकवप्रय िारणा को चनौती दी ह ै वक मानवसक और ु ु िारीररक गवतविवियों असबवित ह।ैं (उदाहरण- नतभक, वखलाडी) ं ं अन्तर व्यधक्तगत बधद्ध (Interpersonal Intelligence)- दसरों की अनर्वत तर्था विर्दे करने ु ु ू ू सबिी योग्यता। दसरे व्यवक्तयों की मिा, प्रेरणा तर्था इच्छा में िानने की योग्यता। (उदाहरण- ं ं ं ू वचवकत्सक, वििे ता) अन्तः व्यधक्तगत बधद्ध (Intrapersonal Intelligence)- अपनी र्ािना और प्रेरणा को ु ं ं समझने की िमता। अपने र्ािों को मॉवनटर करने,विर्दे करने तर्था स्िय के व्यिहार को वनदवे ित ं करने की िमता समावहत होती ह ै प्राकधतक बधद्ध (Naturalistic Intelligence)- िीवित चीिों (पौिे, िानिरों) के सार्थ-सार्थ ृ ु प्राकवतक दवनया (बादलों, रॉक विन्यास) की अन्य वििेषता के प्रवत सिदे निीलता वदखाने के ृ ं ं ु वलए मानिीय िमता को बताती ह।ै यह र्ौवतक ससार में समानता और विवर्न्नता को पहचान ं ं ं करने की योग्यता ह ै । प्रकवत के पौिों, िानिरों एि अन्य िस्त को पहचानन े एि श्रेणीबद् करने ृ ु ं ं ं की योग्यता ह।ै यद्यवप बवद् एक दसरे से अलग कर रह े ह,ैं गाडभनर का दािा ह ै वक आठ बवद् बहत कम ही स्ितत्र रूप से ु ु ु ं ू सचावलत इसके बिाय, बवद् को समान रूप से उपयोग वकया िाता ह ै और आमतौर पर एक दसरे के ु ं ू परक होते ह ैं क्योंवक व्यवक्तयों को कौिल विकवसत करना या समस्याए हल करना। उदाहरण के वलए, एक ू ं नत्यागना उसकी कला में के िल तर्ी कर सकती ह ै िब िह हो ृ ं 1. सगीत की ताल और विवििता को समझने के वलए मिबत सगीत बवद्, ू ु ं ं ं 2. पारस्पररक बौवद्कता यह समझने के वलए वक कै से िह प्रेरणा या र्ािनात्मक रूप से अपने आदोलनों के माध्यम से अपने दिकभ ों को स्र्थानातररत कर सकत े ह,ैं सार्थ ही सार्थ ं ं 3. िारीररक-गवतमान बवद्, उन्ह ें आदोलन को स.लतापिकभ परा करने के वलए चपलता और ु ू ू ं समन्िय प्रदान करने के वलए। पारपररक रूप से र्ाषाई बवद् और तावकभ क-गवणतीय बवद् की पहचान की गई ह ै और वििा और सीखन े ु ु ं के िातािरण म ें अत्यविक मल्यिान ह।ै ये दो बवद्िीिन अकादवमक परीिण और IQ के माप को ू ु सचावलत करते ह।ैं ं किा में एकाविक कौिल का उपयोग करना गाडभनर के बहबवद् के वसद्ात को स्िीकार करते हए किा वनदिे ों के मामले म ें वििकों के वलए कई ु ु ु ं वनवहतार्थभ ह।ैं वसद्ात बताता ह ै वक समाि में उत्पादकता के वलए सर्ी प्रिर की बवद् आिश्यक ह।ैं ु ं वििकों को इसवलए, सर्ी बवद् प्रकारों के बारे में सोचना चावहए । यह परपरागत वििा प्रणावलयों के ु ं विपरीत ह ै िो आम तौर पर मौवखक और गवणतीय बवद् के विकास और उपयोग पर िोर दते े ह।ैं इस ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 70 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 प्रकार, बहबवद् के वसद्ात का अर्थभ ह ै वक वििकों को प्रवतर्ा और कौिल की व्यापक श्रेणी को ु ु ं ं पहचानना और वसखाना चावहए। एक अन्य वनवहतार्थभ यह ह ै वक वििकों को एक ऐसी िलै ी में सामग्री की प्रस्तवत करना चावहए ु िो सबसे अविक या सर्ी बवद्मानता को िावमल करता ह।ै उदाहरण के वलए, िावतकारी यद् के बारे ु ु ं ं में वििा दने े के दौरान, एक वििक छात्र को यद् के नक्ि े वदखा सकता ह,ै िावतकारी यद् गीतों को ु ु ं वदखा सकता ह,ै स्ितत्रता की िोषणा पर हस्तािर करने की एक र्वमका वनर्ान े का आयोिन करता ह,ै ू ं इस प्रकार की प्रस्तवत न के िल छात्रों को सीखने के वलए उत्तवे ित करती ह,ै बवल्क यह एक वििक को ु एक ही सामग्री को विवर्न्न तरीकों से मिबत करने की अनमवत दते ा ह।ै बवद् के विस्तत िगीकरण को ृ ू ु ु सविय करके , इस तरीके से वििण विषय सामग्री की गहरी समझ की सवििा प्रदान कर सकता ह।ै हर ु कोई सात बवद् रखन े के वलए पैदा होता ह।ै व.र र्ी, सर्ी छात्र विकवसत कौिल के विवर्न्न सेटों के सार्थ ु किा में आएग।े इसका अर्थभ यह ह ै वक प्रत्येक बच्चे के पास अपनी बौवद्क िवक्तयों और कमिोररयों का ं अनठा सटे होगा। ये सटे वनिाभररत करते ह ैं वक छात्र वकसी वििषे तरीके से प्रस्तत करने के दौरान वकतना ू ु आसान (या मवश्कल) िानकारी प्राप्त करता ह।ै इस इकाई म ें आप र्ाषा विज्ञान की बवद्, सगीत की बवद् ु ु ु ं और तावकभ क बवद् के सार्थ सीखने के पररणामों के आकलन को स्पि समझ पाएग।े ु ं 2.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के उपरात आप - ं 1. बवद् के सप्रत्यय को स्पि कर सकें ग।े ु ं 2. आकलन एि मल्याकन के अर्थभ को स्पि कर सकें ग।े ू ं ं ं 3. र्ाषाई बवद् के सदर्भ में अविगम पररणामों के आकलन सबिी व्याख्या कर सकें ग।े ु ं ं ं ं 4. सगीत बवद् के सदर्भ म ें अविगम पररणामों के आकलन सबिी व्याख्या कर सकें ग।े ु ं ं ं ं ं 5. तावकभ क बवद् के सदर्भ में अविगम पररणामों के आकलन सबिी व्याख्या कर सकें ग।े ु ं ं ं ं 2.3 सीखने के पररणाम का आकलन 2.3.1 आकिन क्या है? िब्द 'आकलन' लैवटन िब्द 'assidere' से आता ह ै विसका अर्थभ ह ै 'सार्थ बैठना'। मल्याकन में वििक ू ं को वििार्थी के सार्थ बैठना पडता ह।ै इसका मतलब यह ह ै वक हम विद्यावर्थभयों 'के सार्थ' और विद्यावर्थभयों 'के वलए' करते ह ैं । वििा म ें आकलन एक ििै वणक कायभ के बारे म ें विद्यावर्थभयों की प्रवतविया के बारे ं में िानकारी एकत्र करने, व्याख्या, ररकॉडभ करने और उपयोग करने की प्रविया ह।ै मल्याकन िवै िक ू ं अनर्ि के पररणामस्िरूप, छात्र क्या िानते ह?ैं , समझते ह,ैं और उनके ज्ञान के सार्थ क्या कर सकते ह?ैं , ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 71 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इसकी गहरी समझ विकवसत करने के उद्दश्े य से छात्र सीखने और अनर्ि से सबवित डेटा पर एकत्र करने, ु ं ं व्याख्या और कायभ करने की एक व्यिवस्र्थत प्रविया ह;ै इस प्रविया की समावप्त तब होती ह ै िब मल्याकन पररणामों का उपयोग बाद के वििा में सिार के वलए वकया िाता ह।ै ू ु ं कई िषों तक िब्द मख्य रूप से अनिवमक गवतविवियों के पण भ होने के उपरात अनिम की ु ु ू ु ं प्रर्ाििीलता का मल्याकन करने की प्रविया का िणनभ करने के वलए उपयोग वकया गया र्था। अनिम के ू ु ं अत से पहले सीखने की प्रविया को वनदवे ित करने िाले कायों को आम तौर पर आकलन के प्रकार ं ं के रूप म ें नहीं माना िाता र्था। फ्ासीसी र्ाषा सावहत्य में, इन्ह ें आम तौर पर सीखने की प्रविया के ं ं वनयमों और अग्रेिी र्ाषा सावहत्य में इस बात पर चचा भ की गई र्थी वक यह वस.भ अच्छे वििण का एक ं पहल ह।ै हाल ही म,ें वििषे रूप से अग्रेिी बोलने िाल े अनसिान समदाय म,ें हालावक, उन लक्ष्यों को ू ु ु ं ं ं समझने की इच्छा रखने िाली गवतविवियों को समझने के वलए एक बढ़ती प्रिवत्त ह,ै िो लवित लक्ष्य की ृ वदिा में सीखने का उद्दश्े य ह,ै और िो सीखने की प्रविया के दौरान होती ह ै । अविक विश्वसनीय आकलन के वलए आगे बढ़ना चवक वििा प्रणाली ने गवणतीय और र्ाषाई बवद् विकवसत करने के महत्ि पर िोर वदया ह।ै ू ु ं बहबवद् के गाडभनर के वसद्ात के समर्थभकों का मानना ह ै वक यह िोर अनवचत ह।ै ऐसे बच्चों की, विनकी ु ु ु ं सगीत बवद् अत्यविक विकवसत ह,ै वगफ़्टेड कायभिमों के वलए अनदखे ी की िा सकती ह ै या उन्ह ें एक ु ं वििेष वििा िग भ म ें रखा िा सकता ह ै क्योंवक उनके पास आिश्यक गवणत या र्ाषा स्कोर नहीं ह।ै वििकों को उन तरीकों से अपने छात्रों के सीखने का आकलन करना होगा िो उनकी ताकत और कमिोररयों का एक सटीक वििरण दगे ा। इसवलए, यह महत्िपण भ ह ै वक एक वििक प्रत्येक छात्र के वलए ू एक "बवद् प्रो.ाइल" बनाए। बालक वकस प्रकार सीखता ह?ै यह िानकारी एक वििक को उन ु बालक की प्रगवत का आकलन उवचत तरीके से करने में सहायक वसद् होगी (लाज़र, 1992)। यह व्यवक्तगत मल्याकन अभ्यास एक वििक को क्या वसखाना ह ै और कै से िानकारी प्रस्तत करने के बारे में ू ु ं अविक अिगत वनणयभ करने की अनमवत दगे ा। पारपररक परीिण (उदाहरण के वलए, एकाविक विकल्प, ु ं सविप्त उत्तर, वनबि ...)
छात्रों के ज्ञान को पिवभ निाभररत तरीके से िााँचने की कोविि करते ह।ैं गाडभनर के ू ं ं वसद्ात के समर्थभकों का दािा ह ै वक मल्याकन के वलए एक बेहतर दृविकोण छात्रों क
ो अलग-अलग बवद् ू ु ं ं के उपयोग से सामग्री को अपने तरीके से समझाने की अनमवत दने ा ह।ै पसदीदा मल्याकन पद्वतयों में ु ू ं ं छात्र पोटभ.ोवलयो, स्ितत्र पररयोिनाए, छात्र पवत्रका और रचनात्मक कायभ सौंपना िावमल ह।ैं ं ं ं 2.3.2 सीखने के िररणाम का मतिब कछ विद्वानों की महत्िपणभ पररर्ाषा वनम्नवलवखत ह-ैं ु ू धमन्स्की, 1985 -
“हमारे मन में उपयोगी बदलाि करना ही अविगम ह”
ै मैककार्ी, 1968
“िो अनर्ि वकया िा रहा ह,ै उसी का वनमाभण एि सिोवित प्रवतवनवित्ि ही ु ं ं अविगम ह”
ै । धमिेि, 1997
“अनर्ि के सार्थ स्ितः सिार ही अविगम ह”
ै । ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 72 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अविगम की आकलन से तात्पयभ ऐसी रणनीवतयों से ह ै िो विद्यार्थी क्या िानता ह?ै क्या प्रदवितभ करता ह?ै क्या विद्यावर्थभयों ने पाठयिम के पररणामों की प्रावप्त कर ली ह?ै , क्या उन्होंने ियै वक्तक कायभिम के ् लक्ष्यों की प्रावप्त कर ली ह?ै इत्यावद विषयों की पवि हते वनवमतभ करता ह।ै सीखन े के पररणाम परीिा म ें ु ु प्राप्त अक / ग्रेड
के रूपों म ें छात्रों के मल्याकन का पररणाम ह।ै ू ं ं अविगम का आकलन क्या ह?ै ं इस प्रकार के आकलन का उद्दश्े य आम तौर पर योगात्मक (Summative) होता ह ै और
ज्यादातर कायभ की समावप्त म ें वकया िाता ह।ै "यह माता-वपता, अन्य वििकों, स्िय छात्रों और कर्ी- ं कर्ी बाहर के समहों (उदाहरण के वलए, वनयोक्ता, अन्य िवै िक सस्र्थान) को उपलवब्ि का साक्ष्य/प्रमाण ू ं प्रदान करने के वलए वडज़ाइन वकया गया ह।ै अविगम का आकलन एक आकलन ह ै िो साििभ वनक हो
ता ह ै और विद्यार्थी वकतनी अच्छी तरह सीख रह े ह?ैं से सबवन्ित कर्थनों एि प्रतीकों के माध्यम से प्रदवितभ ं ं होता ह।ै यह अक्सर वनणाभयक वनणयभ ों में योगदान दते ा ह ै िो छात्र के र्विरय को प्रर्ावित करते ह।ैं यह
महत्िपणभ ह ै वक अतवनभवहत तकभ और सीखने के आकलन के माप विश्वसनीय और सरवित ह।ैं ू ं ं सीखने का आकलन तब होता ह ै िब वििक लक्ष्यों एि मानकों के सापेि विद्यावर्थभयों की ं उपलवब्ि पर वनणयभ लेने के वलए अविगम के पररणामों का उपयोग करता ह।ै यह आम तौर पर औपचाररक होता ह,ै अक्सर कायभ की इकाइयों के अत में होने पर, एक वििेष वबद पर छात्र उपलवब्ि का ं ं ु योग करता ह।ै यह अक्सर विषयों या प्रमख पररयोिना के आसपास आयोवित वकया िाता ह ै और ु ं वनणयभ बह डोमने मल्याकन कायों पर एि छात्र प्रदिनभ पर आिाररत हो सकते ह।ैं यह एक ऐसा योगात्मक ु ू ं ं (Summative) उपयोग ह,ै िो यह वदखाता ह ै वक छात्र मानक के सापेि वकस प्रकार प्रगवत कर रह े ह?ैं और लबी अिवि की योिना को सवचत करने के साक्ष्य प्रदान करने के वलए एक सरचनात्मक उपयोग र्ी ू ं ं ह ै । अभ्यास प्रश्न 1. आकलन से क्या तात्पयभ ह?ै 2. अविगम के पररणामों का आकलन वकस प्रकार वकया िाता ह?ै 2.4 र्ाषाई बुरि के संदर् भ म सीखने के पररणामों का आकलन ें 2.4.1 बधद्ध क्या है? ु बवद् को कई अलग-अलग तरीकों म ें पररर्ावषत वकया गया ह ै विसमें तकभ , समझ, आत्म-िागरूकता, ु सीखने, र्ािनात्मक ज्ञान, वनयोिन, रचनात्मकता और समस्या हल करने की िमता ह।ै बवद् को सामान्य ु सज्ञानात्मक समस्या-सलझाने के कौिल के रूप में पररर्ावषत वकया गया ह।ै तकभ में िावमल एक ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 73 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 मानवसक िमता, सबिों और अनरूपता को समझना, गणना करना, िल्दी से सीखना आवद। पहले ु ं ं ं यह माना िाता र्था वक बवद् आिार (िी-कारक) पर एक अतवनभवहत सामान्य कारक र्था, लेवकन बाद म ें ु ं मनोिज्ञै ावनकों ने इसे अविक िवटल बना वदया और कहा वक इस तरह की एक सरल विवि द्वारा वनिाभररत नहीं वकया िा सकता ह।ै कछ मनोिैज्ञावनको मैं बद्ी को कछ श्रेवणयों में विर्ावित वकया । उदाहरण के ु ु ु वलए हॉिडभ गाडभनर ने कहा वक इसमें सात िटक िावमल ह:ैं सगीत, िारीररक-गवतकी, तकभ सगत- ं ं गवणतीय, र्ाषायी, स्र्थावनक, अतर ियै वक्तक और अतराियै वक्तक । ं ं अन्य पररर्ाषाए ह:ैं "बवद् यह ह ै वक तब आप क्या करते ह?ैं िब आपको नहीं पता वक क्या करना ह।ै " ु ं
"बवद् एक काल्पवनक विचार ह ै विस े हमने वनवश्चत प्रकार के व्यिहार से पररलवित वकया ह।ै "
ु 2.4.2 िाषाई बधद्ध क्या है? ु यद्यवप हॉिडभ गाडभनर के बहबवद् (एमआई) का वसद्ात एक दिक पराना हो चके ह,ैं व.र र्ी वििक इन ु ु ु ु ं िवै लयों को सीखने और विवर्न्न ििै वणक िवक्तयों के सार्थ छात्रों के आकलन के वलए इस वसद्ात का ं उपयोग करने का सबसे अच्छा तरीका ढढन े की कोविि कर रह े ह।ैं बह-बवद् विस तरह से छात्र समझते ु ू ु ं ह,ैं प्रविया और सचना का उपयोग करते ह ैं को आकार दते ी ह।ै ू गाडभन में विद्यावर्थभयों की समस्या /िमता को आठ व्यापक श्रेवणयों में समह बद् वकया र्था ू ं ं (प्रत्येक छात्र की अनठी अविगम िलै ी इन बवद् के विवर्न्न प्रकारों का सयोिन ह)ै । ू ु ं र्ाषाई बवद् एक व्यवक्त की आिाज़, लय और िब्दों के अर्थों की सिदे निीलता को दिाभती ह;ै ु ं और र्ाषा के विवर्न्न कायों के प्रवत सिदे निीलता प्रत्येक व्यवक्त को कछ स्तर पर इस बवद् रखन े का ु ु ं विचार ह।ै कवि, लेखकों, िक्ता, स्पीकर और िकील मिबत र्ाषाई बवद् का प्रदिनभ करते ह।ैं र्ाषाई ू ु बवद् हािडभ गाडभनर के बह बवद् वसद्ात का एक वहस्सा ह ै िो व्यवक्तयों की बोलने और वलवखत र्ाषा को ु ु ु ं समझने की िमता के सार्थ-सार्थ खद को बोलने और वलखने की िमता के सार्थ काम करता ह।ै ु व्यािहाररक रूप से, र्ाषाई बवद् िह हद ह ै विसके वलए एक व्यवक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के वलए र्ाषा, ु वलवखत और मौवखक दोनों का उपयोग कर सकता ह।ै इसके अवतररक्त, उच्च र्ाषाई बवद् को बेहतर ु समस्या सलझाने के सार्थ-सार्थ तकभ िवक्त बढ़ाने से र्ी िोडा गया ह।ै कई मामलों में, के िल मौवखक ु पहल को ध्यान में रखा िाता ह।ै इसे आमतौर पर मौवखक बवद् या मौवखक प्रिाह के रूप म ें िाना ु ु ं िाता ह,ै और आमतौर पर एक व्यवक्त की समग्र र्ाषाई बवद् का प्रवतवबब होता ह।ै र्ाषाई बवद् को ु ु ं समझने के वलए, उस तत्र को समझना महत्िपण भ ह ै िो र्ाषण और र्ाषा को वनयवत्रत करते ह।ैं ये तत्र चार ू ं ं ं प्रमख समहों में विर्ावित हो सकते ह:ैं र्ाषण वनमाभण (बोलन)े , र्ाषण की समझ (सनना), लेखन पीढ़ी ु ू ु (लेखन), और लेखन समझ (पढ़ना)। र्ाषाई बवद् आठ बवद् प्रकारों में से एक ह,ै िो 1983 में हािडभ गाडभनर, एक विकासात्मक ु ु मनोवचवकत्सक द्वारा पेि वकया गया र्था। इस वबद से पहले, बवद् एक एकल गण के रूप में माना गया र्था। ु ु ं ु गाडभनर ने प्रस्तावित वकया वक आठ अलग-अलग प्रकार की बवद्मानताए ह ैं और ये वक प्रत्येक एक दसरे ु ं ू से स्ितत्र ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 74 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 उदाहरण के वलए माया एिले ौ, विवलयम िक्े सवपयर, और परा विन्फ्े प्रवसद् व्यवक्त ह ैं विनके पास ं उच्च र्ाषाई बवद् ह/ै र्थी। दसरे िब्दों में, उन्ह ें र्ाषा के वनयमों और कायों की गहरी समझ र्थी। र्ाषाई बवद् ु ु ू िाले लोग किल लेखक और िक्ता ह।ैं िे र्ाषाए और दसरों के िब्दों को आसानी से समझ सकत े ह,ैं ु ं ू और औसत र्ाषा की तलना में विदिे ी र्ाषा को बहत अविक सीख सकत े ह।ैं ु ु ं ि े खद को स्पि रूप से और सटीक रूप से व्यक्त करने के वलए िब्दािली का उपयोग करने म ें ु सिम होते ह।ैं िे अपने िब्दों में अर्थभ और र्ािना को व्यक्त कर सकते ह।ैं िे अपने िब्दों का उपयोग ं करके दसरों में र्ािनात्मक प्रवतविया को कल्पना और प्रवतकया म ें अच्छे ह।ैं ि े िणनभ ात्मक र्ाषा म ें ृ ं ू र्ी अच्छे होते ह ैं और उत्कि कर्थालेखन करते ह।ैं ृ 2.4.3 िाषाई बधद्ध और सीखने के िररणाम ु मौवखक-र्ाषाई बवद् (कर्ी-कर्ी कहा िाता ह)ै एक ऐसी बवद् ह ै विसमें र्ाषा का ज्ञान ु ु िावमल ह;ै पढ़न,े वलखने और बोलने के माध्यम से इसमें र्ाषण और लेखन दोनों में िब्दों के अर्थभ और अर्थभ को समझने और र्ाषा को ठीक से उपयोग करने का तरीका िावमल ह।ै इसमें एक र्ाषा की सामाविक-सास्कवतक बारीवकयों को समझना र्ी िावमल ह,ै विनमें महािरों, िब्दों पर नाटकों, और ृ ु ं र्ाषा-आिाररत हास्य िावमल ह।ै िब र्ी हम बोलते ह,ैं पढ़त े ह,ैं वलखते ह ैं या सनते ह,ैं तब र्ी हम काम ु करने के वलए हमारी र्ाषाई कौिल का प्रयोग करते ह ैं । िो लोग इस िेत्र म ें मिबत नहीं ह,ैं उन्ह ें ू स्कलिकभ में कवठनाई होती ह।ै डा॰ गाडभनर का कहना ह ै वक हमारे स्कल और सस्कवत ने र्ाषाई और ृ ू ू ं तावकभ क-गवणतीय बवद् पर अपना सबसे अविक ध्यान कें वित वकया ह।ै ु एक र्ाषाई वििार्थी िह ह,ै विसने पढ़न,े बोलने और वलखने और िब्दों में सोचन े के वलए बहत ु अविक कौिल विकवसत वकए ह।ैं ि े स्िय को व्यक्त करने में विविि ह ैं और िब दसरे ऐसा नहीं करते तो ं ू ि े वचढ़ सकत े ह।ैं ि े नए िब्दों को सीखना पसद करते ह ैं और सामान्यतः वलवखत कायभ के सार्थ अच्छी ं तरह से करते ह।ैं लेखक, कवि, िकील एि िक्ता म ें हािडभ भ गाडभनर सबसे अविक र्ाषाई बवद् मानत े ु ं ं ह।ैं एक र्ाषाई वििार्थी कई अलग-अलग माध्यमों के सार्थ अच्छी प्रवतविया दगे ा िो वनम्नवलवखत ह ैं - मौवखक प्रस्तवत ु बडे-छोटे समह चचा भ ू •पस्तकें ु कायभपत्रक लेखन वियाएाँ िब्दो का खले अनसिान ु ं छात्र ररपोटभ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 75 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 कहानी समाचार पत्र प्रकावित करना कप्यटर का इस्तेमाल करना ू ं पवत्रका लेखन कोरल रीवडग ं िाद-वििाद बवद् वििण गवतविवि वििण सामग्री वनदिे ात्मक रणनीवत ु व्याख्यान, चचाभ, वकताबें, टेप ररकॉडभर, इसके बारे म ें पवढ़ए, र्ाषाई बवद् ु िब्द का खेल, कप्यटर, वटकट सटे , इसके बारे म ें वलखें, ू ं कहानी कहने, पवत्रका टेप पर वकताबें इसके बारे म ें बात करें , इसे सन ें ु लेखन विद्यावर्थभयों के अविगम पररणाम उपलवब्ि परीिण , सािात्कार, वनबिलेखन, िाद-वििाद प्रवतयोवगता, ं अिलोकन इत्यावद के द्वारा ज्ञात वकए िा सकते ह ैं तर्था विद्यावर्थभयों की उत्तर-पवस्तका एि मौवखक ु ं ं प्रवतविया का विश्लेषण कर पररणामों का आकलन र्ाषाई बवद् के सदर् भ म ें वकया सकता ह।ै ु ं ं ं अभ्यास प्रश्न 3. बवद् को पररर्ावषत कीविए ु 4. र्ाषाई बवद् वकन लोगों म ें मख्यत उच्च पायी िाती ह?ै ु ु 2.5 सगं ीत बुरि के संदर् भ म सीखने के पररणामों का आकलन ें 2.5.1 सगीत बधद्ध क्या है? ु ं सगीत बवद् सगीत और ध्िवन पैटन,भ लय आवद के बीच र्ेद करने की िमता िावमल ह।ै सगीत बवद् ु ु ं ं ं िमता वपच, लय और टोन को समझने की िमता ह।ै सगीतकारों, वनमाभता , सगीतकारों, गायक और ं ं ं सिदे निील श्रोता द्वारा वदखाए गए अनसार, यह बवद् हमें सगीत को पहचानने, बनाने, पनरुत्पादन ु ु ु ं ं ं और प्रवतवबवबत करने में सिम बनाता ह।ै सगीत बवद् म ें उच्च व्यवक्त सगीत से प्रेम करते ह,ैं िे लय और ु ं ं ं रचना की सराहना करते ह।ैं उनमें वलखने, गाना गाने और / या उपकरण बिान े की िमता ईश्वर प्रदत्त उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 76 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 होती ह।ै उनमें ध्िवनयों, स्िरों और ताल की पहचान करने में िमता होती ह।ै सगीत के वलए उनके पास ं ह।ै ि े व्याख्यान के माध्यम से सिोत्तम सीखते ह ैं और अक्सर चीिों को याद रखने के वलए ताल और सगीत का उपयोग करते ह।ैं ं आम विवििताए- ं i. उनकी लय अच्छी होती ह।ै ii. आसानी से गाने याद कर सकते ह।ैं iii. विवर्न्न ध्िवनयों को पहचान कर आनद लेत े ह।ैं ं iv. अक्सर गनगनाते रहते ह।ैं ु ु v. एक उपकरण के बिाने म ें या गायन में मावहर होते ह।ैं vi. अक्सर उनके मन में एक गाना चल रहा होता ह।ै vii. उनके अदर सगीत के वलए एक अतलनीय िनन होता ह।ै ु ु ू ं ं हॉिडभ गाडभनर द्वारा विकवसत बह-बवद् के वसद्ात ने वपछल े कछ दिकों में वििा को का.ी प्रर्ावित ु ु ु ं वकया ह।ै गाडभनर ने बवद् को अपने आप को िानने, समझने और अपने आस-पास की दवनया को समझने ु ु के तरीके के रूप में सदवर्तभ /पररर्ावषत वकया ह।ै इस विषय पर अपनी पहली लोकवप्रय पस्तक, के पररचयात्मक खड में गाडभनर ने बवद् को पररर्ावषत वकया ह ै "समस्या को हल करने ु ं ं ं या उन उत्पादों को बनाने की िमता िो एक या अविक सास्कवतक पष्ठर्वम के र्ीतर मल्यिान ह"ैं ृ ृ ू ू ं (1983 ) सगीत विषय से िडे ऐसे कई अध्ययन हए ह ैं विनमें यह दखे ा गया ह ै अर्थिा अनर्ि वकया गया ु ु ु ं ह ै वक सगीत से िडे यत्र बिाने पर आस- पास के िातािरण म ें अिावब्दक ध्िवन आसानी से अनर्ि की ु ु ं ं िा सकती ह,ै ध्िवन की सहायता से हम आसानी से गा सकत े ह ैं अर्थिा सगीत से िडे यत्र को बिा सकत े ु ं ं ह।ैं यह अिावब्दक ध्िवन हमें सगीत सीखने म ें मदद करती ह ै । कई सालों तक यह स्िीकार वकया गया ह ै ं वक हमारे मवस्तरक के दोनों वहस्से ("बाए" और " दायें") हमारे व्यिहार के विवर्न्न पहल को ु ं ं वनयवत्रत करते ह।ैं िबवक हमारे वदमाग का बाया र्ाग अविक तावकभ क तर्था दाया र्ाग अविक ं सिनात्मक होता ह ै । मवस्तरक का बाया र्ाग र्ाषाई योग्यता, गवणत तर्था वकसी र्ी िस्त को व्यिवस्र्थत ृ ु रूप दने े हते अविक सविय तर्था सबवित होता ह ै दसरी तर. हमारे मवस्तरक का दावहना वहस्सा स्र्थावनक ु ं ं ू िागरूकता, सिनात्मकता तर्था सिगे ों से सबवित होता ह ै । ृ ं ं ं बहबवद् के अपने वसद्ात के इस र्ाग म,ें हॉिडभ गाडभनर ने दािा वकया वक सगीत बवद् एक ु ु ु ं ं अलग बौवद्क योग्यता ह ै विसका कायभ मवस्तरक के वकसी वििषे िेत्र म ें वस्र्थत हो सकता ह।ै िबवक दावहने हार्थ से कायभ करने िाल े व्यवक्तयों में िावब्दक िमता उनके मवस्तरक के बाए ाँ गोलाद्भ में वस्र्थत होता ह ै िबवक बहत से सामान्य व्यवक्तयों में सगीत से िडी बहतायत योग्यताए मवस्तरक के दावहने ु ु ु ं ं गोलाद्भ में वस्र्थत होती ह।ै (हॉिडभ गाडभनर "फ़्रे म ऑफ़ माइड") ं गाडभनर ने सझाि वदया वक नििात विि सगीत के कछ पहल के प्रवत सिदे निील होते ह ैं (िसै े वक ु ु ु ु ं ं ं वपच, राग और ताल) और यही सिदे निीलता उनमें सरल गीत की रचना की अवर्व्यवक्त करते हए दखे ी ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 77 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 गई ह ै । िीिन के प्रर्थम िषभ म ें बच्चे पररवचत िनों के बीटस की वििेषता को सीखने के वलए सिषभ ् ु ं ं करते ह ैं तर्था बार-बार पनरािवत्त करने से बच्चे इन िनों को याद कर लेत े ह।ैं ऐसे िन िो बालकों के ृ ु ु ु प्रर्ािी तर्था प्रमख सास्कवतक पिर्वम से िडे होते ह ैं उन्ह ें िह आसानी से हावसल कर लेत े ह ैं यही कारण ृ ृ ु ू ु ं ह ै वक बच्चे विनकी उम्र 5 या 6 िषभ होती ह ै , वकसी गीत को वकस प्रकार से वनवमतभ वकया िाए इस सप्रत्यय की समझ उनमे हो िाती ह।ै यह बच्चे वकसी गीत से सबवित पररवचत िनों को िद् तर्था सही ु ु ं ं ं तरीके से पनः उत्पन्न कर सकत े ह।ैं प्राकवतक 'सगीत बवद्' को पररवस्र्थवतयों के अनसार बढ़ाया या रोका ृ ु ु ु ं िा सकता ह ै िसै े वनयमों तर्था अिसरों के अर्ाि में, पररिार तर्था समहों के सकारात्मक या नकारात्मक ू सहयोग तर्था र्वमका द्वारा, व्यवक्त का अपनी िमता का प्रत्यिीकरण उसके द्वद्वात्मक रुवचयों त्तर्था ू ं प्रारवर्क स.लता तर्था अस.लता पर वनर्रभ करता ह ै । ं 2.5.2 सगीत बधद्ध और सीखने के िररणाम ु ं िो लोग वकसी व्यवक्त के "सगीत बवद्" की िाच करना चाहते ह,ैं उन्ह ें साििान रहना चावहए वक सगीत ु ं ं ं के उम्मीदिार के
ज्ञान के आिार पर वनणयभ लेने से बचें। इसमें सगीत के वसद्ात और प्राप्त ज्ञान कोि ं ं (सगीतकारों और सगीतकारों के विवर्न्न प्रकारों और सगीत की िलै ी, आवद से सबवित) दोनों िावमल ं ं ं ं ं ह।ैं ऐसे ज्ञान क
ोि को वकसी व्यवक्त द्वारा वनवमतभ (या र्ी प्रिसा) सगीत के वलए र्थोडा प्राकवतक स्िर्ाि ृ ं ं के सार्थ ग्रहण वकया िा सकता ह।ै सगीत की िमता एक सहि िमता ह,ै िो वरगर होने पर, बच्चे के िीिन म ें स.लता का आिार बन ं सकती ह ै और अपने आत्मसम्मान के विकास के वलए उत्प्रेरक र्ी हो सकती ह।ै सगीत बच्चों का ं आत्मसम्मान बढ़ाने और सीखने म ें उनकी रुवच को उत्तवे ित करने का एक सािन ह।ै विस्कॉवन्सन (Wisconsin) में िल्े स एलीमटें री स्कल में एक वदलचस्प प्रयोग में, विन ू विद्यावर्थभयों ने मफ्त सगीत सीखा, उनकी समस्या को सलझान े की िमता म ें उल्लेखनीय सिार हआ। दो - ु ु ु ु ं सप्ताह वपयानो सीखने िाल े छात्र दसरे बच्चों की तलना में 50% अविक अक अवितभ करते ह।ैं ु ं ू विस्कॉवन्सन(Wisconsin) यवनिवसभटी म ें मनोविज्ञान के प्रो.े सर फ्ावसस रौिर (Frances ू ं Rauscher) के अनसार,
"बच्चे उन सर्ी न्यरॉन्स के सार्थ पैदा हए ह ैं िो कर्ी उनके पास होंग,े लेवकन ु ु ू न्यरॉन्स के बीच सबि िन्म के बाद बनत े ह,ैं और यही ि े कनेक्िन ह ैं िो उनकी बवद् वनिाभररत करते ह।ैं "
ू ु ं ं (टाइम्स िवै िक अनपरक 18 वदसबर 1998) ु ू ं सगीत बवद् पहचानना ु ं िब एक बच्चे म ें बढ़ी हई सगीत बवद् पहचानन े की कोविि की िाती ह,ै तो प्रार्थवमक सके तक ु ु ं ं सगीत म ें बच्चे की रुवच की अवर्व्यवक्त और सगीत बनाने के सािन के रूप म ें प्रकट होगी। यह आनद के ं ं ं र्ौवतक और आकवतक लिणों की तलना म ें र्थोडा अविक हो सकती ह ै या यह विवर्न्न तरीकों से प्रकट ृ ु हो सकती ह ै िसै े वक गीतों के सार्थ गायन (चाह े र्ाषाई सटीकता के बाििद) या नत्य और सगीत के ृ ू ं सार्थ समय वबताना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 78 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 कछ बच्चे गाने या िनों को सिारते ह ैं क्योंवक िे खले ते ह ैं या सहि तालबद् ताली, टेवपग (tapping) ु ु ु ं या बैंवगग (Banging) का उत्पादन कर सकते ह।ैं इस वििेष िमता को औपचाररक रूप से बालक के ं तालबद् पैटन भ को पन: उत्पन्न करने की िमता का परीिण करके मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ु ू ं चीनी विश्वविद्यालय हागकाग में एक हावलया अध्ययन से पता चलता ह ै वक िो बच्चे सगीत िाद्ययत्र ं ं ं ं बिाना सीखते ह,ैं न बिाने िाल े की तलना म ें उनमें बाद के िीिन म ें याददास्त अच्छी रहने की अविक ु सर्ािना ह।ै ं प्रो.े सर एग्नेस चान (Agnes Chan) और उनके सहयोवगयों ने 12 िषभ से कम उम्र के 30 विद्यावर्थभयों के दो समहों की तलना की विसमें एक समह ने सगीत की वििा
प्राप्त की र्थी और दसरे समह ने सगीत की ू ु ू ू ं ं ू वििा कर्ी प्राप्त नहीं की र्थी। विद्यावर्थभयों को मौवखक रूप से प्रस्तत िब्दों की सची को याद रखन े के ु ू वलए कहा गया। उन विद्यावर्थभयों ने विन्होंने सगीत की वििा प्राप्त की र्थी, सगीत की वििा प्राप्त न करने ं ं िाले विद्य
ावर्थभयों की तलना म ें मौवखक रूप से प्रस्तत की गई सचना पर अपनी याद करने की िमता के ु ु ू आिार पर बेहतर स्मवत कौिल प्रदवितभ वकया। दृश्य रूप म ें प्रदवितभ सचना म ें सार्थभक सिार नहीं ृ ू ु ं हआ। सिार के कारण स्पि नहीं र्थे। उनके अनसार यह बढ़ी हई न्यरोनल पार्थि े िमता के कारण सर्ि हो ु ु ु ु ू ं सकता ह।ै िबवक सगीत िमता को सही मवस्तरक कायभप्रणाली के रूप में स्िीकार वकया िाता ह,ै ं डसेलडो.भ (Dusseldorf) के हने ररक-हने (Heinrich-Heine) विश्वविद्यालय म ें मवस्तरक स्कै वनग ं तकनीक का उपयोग करते हए अनसिान से पता चलता ह ै वक सगीतकारों के पास एक अच्छी तरह स े ु ु ं ं विकवसत बााँया गोलाद्भ ह,ै वििषे कर यही िेत्र िो िावब्दक स्मवत म ें िावमल ह।ै इसका कारण यह ह ै वक ृ सगीत सीखने म ें आमतौर पर बाए और दाए मवस्तरक गवतविवियों के िवटल सयोिन म ें छात्रों को िावमल ं ं ं ं वकया िाता ह।ै यवद छात्र प्रारवम्र्क िीिन म ें पयाभप्त रूप से एक उपकरण खले ना सीखते ह,ैं तो यह सोचने के पैटनभ को विकवसत करने म ें सहायता कर सकता ह ै िो वक बाद में ममे वनक एसोवसएिन(Mnemonic Association) बनाने म ें उपयोगी सावबत हो सकता ह।ै िकै वल्पक रूप से, यह हो सकता ह ै वक सगीत म ें छात्रों की योग्यता वििावर्थभयों के रूप म ें ं आत्मविश्वास का वनमाभण करने के वलए कायभ करती ह,ै िो उन्ह ें सीखने की एक विस्तत रणनीवत विकवसत ृ करने म ें सिम बनाती ह ै । िो र्ी स्पिीकरण सच्चाई के करीब ह,ै प्रो.े सर चान के वनरकषभ प्रत्येक बच्चे के वलए पाठयिम में सगीत को िावमल करने के महत्िपण भ िोर दते े ह,ैं क्योंवक उनकी सीख िमता को ् ू ं विकवसत करन े के सािन ह।ैं विद्यावर्थभयों को ऐसे अिसर र्ी प्रदान करना ह ै विनके माध्यम से उनके अदर वछपी सगीत से ं ं सबवित प्रवतर्ा को प्रदवितभ होने का मौका वमले। ऐसे कायभिम एि प्रवतयोवगताए आयोवित हों विनमें ं ं ं ं िाद्य यत्रों को बिाने का अभ्यास, गायन एि नत्य का अभ्यास करने का मौका विद्यावर्थभयों को प्राप्त हो। ृ ं ं अिसर दने े के पश्चात विद्यावर्थभयों के प्रदिनभ को आकलन का आिार बनाया िा सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 79 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अभ्यास प्रश्न 5. सगीत बवद् को वकन वििेषता के द्वारा पहचाना िा सकता ह?ै ु ं ं 6. प्रो.े सर चान के अध्यययन के मख्य वनरकष भ क्या ह?ैं ु 2.6 तार्ककक बुरि के सदं र् भ म सीखने के पररणामों का आकलन ें 2.6.1 ताधकत क बधद्ध क्या है? ु बवद् को एक ऐसी पररवस्र्थवत में आसानी से समझा िा सकता ह ै िब पररवस्र्थवत समस्या समािान या नई ु चनौती से सबवित हो। यह बवद् िज्ञै ावनक वचतन से सबवित होती ह।ै यह व्यवक्त को गणना करने, अकन ु ु ं ं ं ं ं ं करने, पररकल्पना वनवमतभ करने म ैं सिम बनाती ह।ै इस बवद् का प्रयोग हम तब करते ह ैं िब हमारे समि ु अमतभ पैटन भ उपवस्र्थत होते ह।ैं यह हमारे दवै नक िीिन म ें सोचने िाले विवर्न्न तरीकों के वलए विम्मदे ार ह,ै ू िसै े सवचया बनाने, एक कायभिम तैयार करना, प्रार्थवमकताए वनिाभररत करना और र्विरय के वलए कछ ू ु ं ं योिना बनाना। तावकभ क-गवणतीय बवद् के अतगभत पैटनभ की पहचान करने की िमता, वनगमनात्मक ु ं वचतन और तावकभ क रूप से सोचने की िमता िावमल रहती ह।ै यह बवद् अक्सर िज्ञै ावनक और गवणतीय ु ं वचतन के सार्थ िडी हई ह।ै तकभ सगत-गवणतीय बवद् मल रूप से नबर स्माटभ - सख्या को प्रर्ािी ढग से ु ु ु ू ं ं ं ं ं ं इस्तेमाल करने और अच्छी तरह से तकभ करने की िमता को दिाभता ह ै । इसमें तकभ सगत पैटनभ और ं सबिों, बयानों और प्रस्तािों (statements and propositionns), कायभ और अन्य सबवित ं ं ं ं अििेषों की सिदे निीलता िावमल ह।ै ं गवणतीय रूप से बवद्मान विद्यार्थी के लिण: िह प्रश्न पछता ह ै वक वकस प्रकार चीि ें तेिी से ु ू काम करती ह?ैं उसे गवणतीय गवतविवियों/विया में आनद वमलता ह।ै िह रणनीवत खले का आनद ं ं ं लेता ह।ै तावकभ क पहवे लयों म ें रुवच होती ह।ै 2.6.2 ताधकत क बधद्ध और सीखने के िररणाम ु ऐसे पाठ विनमें उच्च स्तरीय वचतन कौिलौं की आिश्यकता वििेषता सचार की स्पिता 'अस्पिता एि ं ं ं भ्रम' को कम करने और विद्यावर्थभयों की वचतन कायभ के प्रवत अवर्िवत्त को सिारने हते होती ह।ै पाठ ृ ु ु ं योिना में वचतन कौिलों की मॉडवलग, अनप्रयोग वचतन के उदाहरण और विद्यावर्थभयों की विविि ु ं ं ं ं आिश्यकता को समायोवित करना चावहए। मचान (छात्रों को पाठ के िरुआत में समर्थभन दने ा और ु ं िीरे -िीरे छात्रों को स्ितत्र रूप से सचावलत करने की आिश्यकता होती ह)ै छात्रों को उच्चतर वििा ं ं कौिल विकवसत करने में मदद करता ह।ै हालावक, बहत ज्यादा या बहत कम समर्थभन विकास म ें बािा ु ु ं डाल सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 80 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 उच्चतर वचतन कौिल के ििै आकलन के वलए यह आिश्यक ह ै की छात्रों से ऐसे सिालों या
कायों को ं परा करने हते वदया िाना चावहए विनसे िह परी तरह अपररवचत हो सार्थ ही सार्थ उनके पास पयाभप्त पि भ ू ु ू ू ज्ञान हो तावक िे प्रश्नों के उत्तर दने े या कायों को पर
ा करने म ें अपने उच्च वचतन कौिल का उपयोग कर ू ं सकें । मनोिज्ञै ावनक िोि से पता चलता ह ै वक एक डोमने में वसखाया िाने िाले कौिल का दसरे के वलए ू सामान्यीकरण वकया िा सकता ह।ै लबी अिवि के दौरान, व्यवक्तयों में उच्च स्तर के कौिल (बौवद्क ं िमता ) विकवसत होते ह ैं िो िवटल समस्या के व्यापक स्पेक्रम के समािान पर लाग होती ह।ैं ू ं ं उच्चस्तरीय कौिल को मापने में तीन िस्त / कायभ स्िरूप उपयोगी होते ह:ैं (ए) चयन, विसमें बह-ु ु विकल्प, वमलान और रैंक-ऑडभर आइटम िावमल ह;ैं (बी) उत्पादन, विसमें लि उत्तर, वनबि, और ु ं प्रदिनभ आइटम या कायभ िावमल ह;ैं और (सी) स्पिीकरण/व्याख्या, विसमें चयन या उत्पादन प्रवतविया के कारणों को िावमल करना िावमल ह।ै किा वििक उच्च स्तरीय कौिल विकवसत करन े ं के महत्ि को पहचानते ह,ैं व.र र्ी अक्सर अपने छात्रों की प्रगवत का आकलन नहीं करते ह।ैं इन कौिल के वििण और उनका मल्याकन करने में सहायता के वलए कई प्रदिनभ -आिाररत मॉडल उपलब्ि ह।ैं ू ं उच्च आदिे कौिल का व्यापक स्तर पर मल्याकन सर्ि ह,ै लेवकन महगा होगा। ू ं ं ं विद्यावर्थभयों को ऐसे अिसर र्ी प्रदान करना ह ै विनके माध्यम से उनके अदर वछपी सगीत से ं ं सबवित प्रवतर्ा को प्रदवितभ होने का मौका वमले. ऐसे कायभिम एि प्रवतयोवगताए आयोवित हों विनमें ं ं ं ं िाद्य यत्रों को बिाने का अभ्यास, गायन एि नत्य का अभ्यास करने का मौका विद्यावर्थभयों को प्राप्त हो। ृ ं ं अिसर दने े के पश्चात विद्यावर्थभयों के प्रदिनभ को आकलन का आिार बनाया िा सकता ह।ै गवणतीय/तावकभ क बवद् अक्सर या 'वनगमन तकभ ' के सार्थ िडी होती ह।ैं सामान्य पैटन भ ु ु के र्ाग के रूप म ें वििरणों को दखे और समझने की िमता। दसरी तर., आगमन योग्यता (Inductive ू Reasoning) िस्तवनष्ठ प्रेिण करने एि अिलोवकत आकडों से वनरकषभ वनकालने, वनणयभ लेन े एि ु ं ं ं पररकल्पना को वनवमतभ करने की योग्यता ह।ै गवणतीय / तावकभ क बवद् प्रर्ािी ढग से सख्या का ु ं ं ं ं उपयोग करन े और अच्छी तरह से तकभ करने, तावकभ क पैटनभ का उपयोग करने की समस्या को पहचानने ं और हल करन,े िगीकत करने, अनमान लगाने, सामान्यीकरण करने और परीिा की िाच करने की ृ ु ं ं िमता ह।ै इसमें पैटनों को पहचानने की िमता तर्था सख्या , ज्यावमतीय आकवतयों िसै े अमतभ प्रतीकों ृ ू ं ं के सार्थ अच्छी तरह से काम करने के वलए और ररश्तों को र्दे करने के वलए या सचना के अलग- ू ं अलग और अलग-अलग टकडों के बीच ररश्तों / कनेक्िनों को दखे ने की योग्यता िावमल ह ै । दसरे ु ू िब्दों में, इन छात्रों को अक्सर कहा िाता ह।ै ं मल्याकन उपकरण ू ं तावकभ क विश्लेषण विवटक्स (Critiques) मानवसक मॉडल वबवल्डग ं तकभ व्यायाम (Logic Exercise) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 81 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 के स स्टडी गणना प्रवियाए ं अविगम िमता- अमतभ पैटनभ मान्यता (Abstract Pattern Recognition) ू आगमनात्मक तकभ वनगमनात्मक तकभ ररश्त े और सबिों को समझना ं ं िवटल गणना करना िज्ञै ावनक तकभ बधनयािी कौिि स्तर िधटि कौिि स्तर सबद्धता स्तर ु ं (इसमें सरल मतभ िस्त पररचालन (इसमें विविि समस्या - (इसमें उन्नत गवणतीय प्रविया कौिल ू ु समािान प्रविया , प्रर्ािी और सचालन के विकास के सार्थ-सार्थ ं ं कौिल का विकास कौिलों का विकास, मतभ पैटन भ की पवहचान और एकीकत, अनप्रयोग उन्मख वचतन र्ी ृ ू ु ु ं सोच पैटन भ और मानक गवणतीय िावमल ह,ै विसमें सीखने के हस्तातरण ं सरल अमतभ वचतन की योग्यता गणना कौिल और सचालन को ू ं ं िावमल ह)ै सीखना िावमल ह ै ) र्ी िावमल ह)ैं विविि मानदडों पर आिाररत मतभ मानक गवणतीय सचालन और िवटल समस्या को हल करने के वलए ू ं ं िस्त पररचालन प्रदिभन करने की गणना की एक श्र को विवर्न्न गवणतीय पररचालनों को खला ृ ु ं िमता चलाने की िमता िोडने की िमता समस्या-सलझाने के कौिल समस्या-सलझाने की वस्र्थवत में ु ु वगनती करने की योग्यता और अज्ञात
मात्रा को कै स े प्राप्त करें , ं वनरपावदत करने की योग्यता और और सर्ावित तरीकों की समझ ं मलर्त अनिवमक कायभ (उदाहरण ू ू ु विविि प्रकार के सोच पैटन भ का इसका ज्ञान के वलए, एक िम में चीिों को विकास करना और उनका सज्ञानात्मक प्रविया और व्यिहारों ं ं डालने) इस्तेमाल करना सीखना की विवर्न्न प्रकार क
ो समझना और सख्या की पहचान और ठोस िैचाररक िानकारी के आिार उनका उपयोग करना ं ं िस्त के वलए सख्या प्रतीकों को पर अमत भ सोच में सलग्न होने तावकभ क सोच और मानक गवणत के ु ू ं ं ं सबोवित करने में सिम ह।ै की िमता प्रमाणों का प्रदिभन ं मतभ िस्त को िावमल करने िाली विवर्न्न गवणतीय प्रविया दोनों प्रेरक और उत्प्रेरक तकभ ू ु ं ं सरल अमतभता में सलग्न होने की और तकभ पैटन भ की समझ प्रविया में सलग्न होने की िमता ू ं ं ं िमता। सरल, ठोस कारण-और-प्रर्ाि सबिों ं ं की पहचान उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 82 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वनम्नवलवखत अनिवसत दृविकोण ह ैं विनका उपयोग विवर्न्न पाठयिम िेत्रों म ें वकया िा सकता ह:ै ु ं गणना कारण और प्रर्ाि को पहचानना ग्राव.क रगानाइिसभ का उपयोग करना मानवचत्रण पैटनभ खले और तकभ पहले ी का उपयोग करना सहकमी वििण और र्विरयिाचक इन िटना का सपादन। ं ं कहानी वग्रड का उपयोग करते हए समय रेखा बनाना ु मवै रक्स से सगीत का वनमाभण ं अभ्यास प्रश्न 7. गवणतीय तावकभ क बवद् सबिी कौन से कौिल ह?ैं ु ं ं 8. गवणतीय तावकभ क के मल्याकन उपकरण क्या ह?ैं ू ं 2.7 सारांश स्कलों ने अक्सर विद्यावर्थभयों को वसवद् और आत्मविश्वास की र्ािना विकवसत करने में मदद करने के ू वलए अक्सर माग की ह।ै गाडभनर के बहबवद् का वसद्ात विवर्न्न िमता और विद्यावर्थभयों की ु ु ं ं ं प्रवतर्ा को पहचानने के वलए सैद्ावतक आिार प्रदान करता ह।ै यह वसद्ात स्िीकार करता ह ै वक सर्ी ं ं ं छात्रों को मौवखक या गवणतीय ढग से र्टें नहीं वकया िा सकता ह,ै बच्चों को सगीत, स्र्थावनक सबि, या ं ं ं ं पारस्पररक ज्ञान िसै े अन्य िेत्रों में वििेषज्ञता हो सकती ह।ै इस तरीके से सीखने और मल्याकन करने से ू ं छात्रों की एक व्यापक श्रेणी की किा म ें सीखने म ें स.लतापिकभ र्ाग लेने की अनमवत वमलती ह।ै ू ु यह दृढ़ता से अनिसा की िाती ह ै वक वििकों को वििावर्थभयों के अलग-अलग बवद् के सार्थ ही उनकी ु ु ं विवर्न्न ताकत के बारे में पता होना चावहए। वििकों को बह-बवद् के वसद्ात को समझना चावहए क्योंवक ु ु ं इससे उन्ह ें समझने म ें सहायता वमलेगी वक क्यों वििार्थी अलग ह ैं और ि े प्रत्येक वििार्थी की बवद् ु विकवसत करन े म ें सिम होंग।े वििकों को वििा, सीखने और मल्याकन तरीकों को र्ी वडिाइन करना ू ं चावहए िो वक वििावर्थभयों के कई बवद् प्रकारों को सबोवित करते ह।ैं उच्च िवै िक उपलवब्ियों, सीखने ु ं की स.लता और आिीिन वििा को बढ़ािा दने े के तरीकों के बारे में वकसी र्ी चचाभ म ें सीखने की प्रविया के वलए कौिल का सबि एक महत्िपणभ वबद होना चावहए। वििण और सीखन े के वलए एक ू ं ं ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 83 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ढाचा के रूप में एमआई वसद्ात का उपयोग करना, रचनात्मक सोच और अतवनभवहत वसद्ात की एक ं ं ं ं अच्छी समझ की आिश्यकता ह।ै प्रस्तत इकाई म ें आपने र्ाषाई बवद्, सगीत बवद् एि तावकभ क बवद् के सप्रत्यय को समझा एि ु ु ु ु ं ं ं ं उसकी पहचान करन े के वलए आिश्यक कौिलों , िमता एि लिणों को र्ी स्पि रूप से समझा। ं ं इन्ही बवद् प्रकारों की वििेषता को आिार बनाकर विद्यावर्थभयों के अविगम पररणामों का आकलन ु ं ं करने के तरीकों की र्ी चचाभ की गई। 2.8 शब्दावली 1. िाषाई बधद्ध- र्ाषा का प्रर्ािी ढग से प्रयोग करने की िमता ह।ै ु ं 2. सगीत बधद्ध- इसमे सगीत की वपचों, स्िर और लय को पहचानने और वलखने की िमता ु ं ं िावमल ह।ै 3. गधणतीय ताधकत क बधद्ध- पैटनभ का पता लगान,े वनगमनात्मक रूप से तकभ करने एि सोचने की ु ं िमता ह।ै 4. आकिन- वििा में आकलन एक ििै वणक कायभ
3%
1%
0.8%
0.6%
0.6%
0.4%
0.3%
0.2%
के बारे म ें विद्यावर्थभयों की प्रवतविया के ं बारे म ें िानकारी एकत्र करने, व्याख्या, ररकॉडभ करने और उपयोग करने की प्रविया ह।ै 2.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. आकलन से तात्पयभ वििा में आकलन एक ििै वणक कायभ के बारे म ें विद्यावर्थभयों की प्रवतविया के बारे म
ें िानकारी एकत्र करने, व्याख्या, ररकॉडभ करने और उपयोग करने की ं प्रविया ह।ै 2. सीखने का आकलन तब होता ह ै िब वििक लक्ष्यों एि मानकों के सापेि विद्यावर्थभयों की ं उपलवब्ि पर वनणयभ लेने के वलए अविगम के पररणामों का उपयोग करता ह।ै 3. गाडभनर ने बवद् को
"समस्या को हल करने की िमता या एक या अविक सास्कवतक सेवटग ृ ु ं ं ं में मल्यिान .ै िन उत्पादों"
के रूप म ें पररर्ावषत वकया। ू 4. लेखक, कवि, िकील एि िक्ता में हािडभ भ गाडभनर सबसे अविक र्ाषाई बवद् मानत े ह।ैं ु ं ं 5. कछ बच्चे गाने या िनों को सिारत े ह ैं क्योंवक ि े खले ते ह ैं या सहि तालबद् ताली, टेवपग ु ु ु ं (tapping) या बैंवगग (Banging) का उत्पादन कर सकते ह।ैं इस वििषे िमता को ं औपचाररक रूप से बालक के तालबद् पैटन भ को पन: उत्पन्न करने की िमता का परीिण करके ु मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 84 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 6. प्रो.े सर चान के अनसार उन विद्यावर्थभयों ने विन्होंने सगीत की वििा प्राप्त की र्थी, सगीत की ु ं ं वििा प्राप्त न करने िाले विद्यावर्थभयों की तलना म ें मौवखक रूप से प्रस्तत की गई सचना पर ु ु ू अपनी याद करने की िमता के आिार पर बेहतर स्मवत कौिल प्रदवितभ वकया। ृ 7. तकभ सगत-गवणतीय बवद् मल रूप से नबर स्माटभ - सख्या को प्रर्ािी ढग से इस्तेमाल करने ु ू ं ं ं ं ं और अच्छी तरह से तकभ करने की िमता को दिाभता ह ै । इसमें तकभ सगत पैटन भ और सबिों, ं ं ं बयानों और प्रस्तािों (statements and propositionns), कायभ और अन्य सबवित ं ं अििेषों की सिदे निीलता िावमल ह।ै ं 8. मल्याकन उपकरण- तावकभ क विश्लेषण, विवटक्स (Critiques), मानवसक मॉडल वबवल्डग, तकभ ू ं ं व्यायाम (Logic Exercise), के स स्टडी, गणना प्रवियाए ह।ैं ं 2.10 सदं र् भ ग्रंथ सची ू 1. Gardner,H. (1983). Frames of Mind. NewYork: Basic BooksInc 2. Gardner,H. (1991) The unschooled mind: how children think and how schools should teach. NewYork: Basic BooksInc 3. Lazear, David. (1999). Eightn ways of teaching: The artistry of teaching with multiple Intelligence. Palatine, IL: IRI Skylight Publishing Inc. (highly recommended) [Amazon] 4. Blythe, T., & Gardner H. (1990). A school for all Intelligence. Educational Leadership. 47(7), 33-37. 5. Fogarty, R., & Stoehr, J. (1995). Integrating curricula with multiple Intelligence. Teams, themes, and threads. K-college. Palatine, IL: IRI Skylight Publishing Inc. (ED383 435) 6. Gardner,H., & Hatch, T. (1989). Multiple Intelligence go to school: Educational implications of the theory of multiple Intelligence. Educational Researcher, 18(8), 4-9. 7. Kornhaber, M., & Gardner,H. (1993, March). Varieties of excellence: identifying and assessing children'stalents. A series on authentic assessment and accountability. NewYork: Columbia University, Teachers College, National Center for Restructuring Education, Schools, and Teaching. (ED363 396) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 85 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 8. Lazear, David (1992). Teaching for Multiple Intelligence . Fastback 342 Bloomington, IN: Phi Delta Kappan Educational Foundation. (ED356 227) (highly recommended) [abstract] 9. Martin, W.C. (1995, March). Assessing multiple Intelligence. Paper presented at the meeting of the International Conference on Educational Assessment, Ponce, PR. (ED385 368) 2.11 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. वखलौना किा म ें तावकभ क बवद् को कै से बढ़ािा दगे ा? चचा भ कीविए। ु 2. बच्चों के बीच र्ावषक बवद् का आकलन करने के तरीकों को समझा ? ु 3. बच्चों के बीच सगीत की बवद् का आकलन करने के तरीके की व्याख्या करें? ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 86 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाइ भ3 - स्थातनक िथा दैतिक-गतिसंिेदी बतु ि आिातरि अतिगम का आकलन Assessment of Learning Outcomes Associated with Spatial and Bodily-Kinesthetic Intelligence 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 स्र्थावनक बवद्:- अर्थभ ु 3.4 स्र्थावनक बवद्सबिी अविगम ु ं ं 3.5 स्र्थावनक बवद् आिाररत अविगमका आकलन ु 3.6 दवै हक-गवतसिेदी बवद्:- अर्थभ ु ं 3.7 दवै हक-गवतसिेदी बवद् सबिी अविगम ु ं ं ं 3.8 दवै हक-गवतसिेदी बवद् आिाररत अविगम का आकलन ु ं 3.9 साराि ं 3.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 3.11 सदर्भ ग्रन्र्थ सची ि कछ उपयोगी पस्तकें ू ु ु ं 3.12 वनबिात्मक प्रश्न ं 3.1 प्रस्तावना समय के सार्थ-सार्थ की अििारणा म ें का.ी बदलाि आया ह।ै की अििारणा में ये ु ु बदलाि समाि की आिश्यकता के अनरूप आए ह।ैं प्रागवै तहावसक काल में, र्ोिन के वलए विकार ु ं करने या प्राकवतक िटना की र्विरयिाणी करने की िमता के अनरूप व्यवक्त को बवद्मान समझा ृ ु ु ं िाता होगा।िहीं पर समकालीन समाि म ें वििाविद और मनोिज्ञै ावनक बवद् की पररर्ाषा तर्था िारणा ु ं परनतनविचाररख रह े ह।ैं ितभमान म ें िश्वै ीकरण और प्रौद्योवगकी सेहमारेिीिन िैली विस तरह बदलाि आ ू रह े ह।ैं वपछले िताब्दी म ें कछमनोिज्ञै ावनकोंने इस बात को सत्यावपत वकया वक बवद् का सबि ु ु ं ं सज्ञानात्मक िमता से िडा होताहऔै रिहइससे िडे वििेषता का प्रवतवनवित्ि करता ह।ै िबवक,कछ ु ु ु ं ं अन्य के अनसार बवद् लोगों को िातािरण सके तों को सचावलत करने,उससे समझ बनाने और अपनी ु ु ं ं वस्र्थवतयों के अनकल सटीकप्रवतविया दने े म ें सिम बनाता ह।ै ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 87 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 हािडभ भ के प्रो.े सर हािडभ गाडभनर ने
प्रत्येक व्यवक्त म ें आठ वर्न्न प्रकार की बौवद्क योग्यता िारण के िमता की पहचान की । उनके द्वारा प्रवतपावदत बह-बवद् वसद्ात के अनसार व्यवक्त म ें आठ वनम्न प्रकार ु ु ु ं के बौवद्क सर्ािनाए व्याप्त होती ह:
ैं ं ं 1. दृश्य / स्र्थावनक बवद् (Spatial intelligence) ु 2. मौवखक / र्ाषाई बवद् (Linguistic intelligence) ु 3. तावकभ क / गवणतीय बवद् (Logical-mathematical intelligence) ु 4. िारीररक / गवतसिवे दकबवद् (Bodily-Kinesthetic intelligence) ु ं 5. सगीत बवद् (Musical intelligence) ु ं 6. अतर-व्यैवक्तक बवद् (Interpersonal intelligence) ु ं 7. अतः-व्यैवक्तक बवद् (Intrapersonal intelligence) ु ं 8. प्रकवतिादी बवद्( Naturalist intelligence) ृ ु बह-बवद् का वसद्ात एक महत्िपण भ वसद्ात ह,ै क्योंवक यह वििकों द्वारा छात्रों म ें अलग-अलग िवक्तयों ु ु ू ं ं और चनौवतयों की पहचान करने हते अवर्प्रेररत करता ह।ै सार्थ ही, यह आई.क्य. (I.Q.) द्वारा बवद् के ु ु ू ु मापन को चनौतीर्ी दते ा ह।ै आपकई ऐसे कई गायक, सगीतकार, नतक, यावखलाडी को अपने स्मरण म ें ृ ु ं ला सकते ह ैं िोबवद् मापनपरीिण म ें िायद ही बहतअच्छा प्रदिनभ कर पाएग।े तो क्या िे बवद्मान नहीं ु ु ु ं ह?ैं या, व.र बवद् मापनी इतना व्यापक नहीं ह ै वक उनके प्रवतर्ा को आकाँ सके । यवद उपलब्ि कई ु आई.क्य. मापनी के इस वि.लता या सीमा को देख,ें तो हम यह पाते ह ैं वक हािडभ गाडभनर काबह-बवद् ु ू ु वसद्ात एक बहत अच्छा विकल्प प्रदान करता ह।ै यह व्यवक्त को अलग-अलग रूप से समर्थभिान पता ह,ै ु ं िसै े:- दृश्य स्माटत िब्ि स्माटत ताधकत क स्माटत िैधहक स्माटत सगीत स्माटत ं व्यधक्त स्माटत स्वय स्माटत ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 88 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 प्रस्तत इकाई म ें हम स्र्थावनक बवद् तर्था दवै हक-गवतसिवे दक बवद् द्वारा अविगम को समझगें ।े हम यह ु ु ु ं समझाने का प्रयास करेंग े वक वकस प्रकार प्रत्येक बच्चे म ें स्र्थावनक बवद् तर्था दवै हक-गवतसिदे ी बवद् ु ु ं वकस प्रकार अविगम को समवर्थभत करती ह ैं और अविक अर्थभपण भ बनती ह।ैं सार्थ ही, हम इस प्रकार के ू बौवद्क िमता द्वारा अविगम को वनिाभररत या आकलन करने हते विवर्न्न पहल काअध्ययन र्ी ु ु ं ं करेंग े । 3.2 उद्दश्े य प्रस्तत इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप- ु 1. स्र्थावनक बौवद्क िमता क्या ह ै यह िान पाएग े । ं 2. स्र्थावनक बवद् द्वारा बच्चों के अविगम को वकस प्रकार समवर्थभत वकया िा सकता ह ै यह समझ ु सकें ग े । 3. दवै हक-गवतसिदे ी बौवद्क िमता क्या ह ै तर्था यह वकस प्रकार महत्िपण भ ह ै इसका िणभन कर ू ं सकें ग े । 4. दवै हक-गवतसिदे ी बवद् को बच्चे के अविगम से वकस प्रकार िोडा िा सकता ह ै इसकी व्याख्या ु ं कर सकें ग े । 5. स्र्थावनक तर्था गवतसिदे ी बौवद्क सबिी अविगम का आकलन तर्था मल्याकन वकस प्रकार ू ं ं ं ं ं वकया िा सकता ह ै यह िान पाएग े । ं 3.3 स्थारनक बुरि : अथ भ स्र्थावनक बवद् (spatial Intelligence) का सबि स्र्थावनक वचत्र को मानवसक रूप म ें रूपातररत करनेकी ु ं ं ं िमता तर्था स्र्थावनक कल्पना िवक्त (spatial visualisation) कर पाने की दिता स े ह।ै स्र्थावनक बवद् ु के िावब्दक अर्थभ िानने के सबि म ें सिप्रभ र्थम spatial िब्द के अर्थभ को समझना महत्िपण भ ह।ै स्र्थावनक ू ं ं या spatial िब्द की व्यत्पवत्त latin word से हई ह।ै spatium िब्द का अर्थभ होता ह ै स्र्थान ु ु या स्पेस (Space)। िब्द बहत विस्तत एि महतिपणभ ह।ै इस िब्द का अर्थभ सतत विस्तार होता ह।ै ु ृ ू ं यावन विसका न तो आवद ह ै और अत न ही अत। यह लम्बाई, चौडाई तर्था गहराई द्वारा वमलकर बने वत्र- ं ं आयामी सरचना से सबवित ह।ै अर्थाभत स्र्थावनक बवद् वत्र-आयामी स्र्थान या स्पेस म ें वकसी िस्त को ् ु ु ं ं ं स्र्थावपत कर सोच पाने की योग्यता से सबवित ह।ै ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 89 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आपने एक वहदी महािरा िरुर पढ़ा होगा विसका अर्थभ ह,ै । ु ं स्र्थावनक बवद् कछ इसी प्रकार वक योग्यता से िडी ु ु ु हयी ह।ै इस बवद् आिाररत अविगम म ें बच्चे ु ु कल्पनािील हो कर िस्त के मतभ या आमतभ प्रत्यय को ु ू ू वचतन कर मानवसक रूप से वर्न्न-वर्न्न रूप म ें ं स्र्थावपत कर पाने म ें सिम होते ह।ैं आपने वमश्र के वपरावमड, तािमहल, एव.ल टािर, स्टेच ऑफ़ वलबटी ू आवद के बारे म ें सना या देखा होगा, ये कछ ऐसी ु ु कल्पना के उदहारण ह ैं । ं ये मतभ रूप म ें आने से पि भ वकसी कलाकार या ू ू इविवनयर के स्र्थावनक बवद् का वहस्सा रहा होगा। िो अब िास्तविकता के िरातल पर विद्यमान ह ै और ु ं ससार के आश्चयो म ें सवम्मवलत हो गई ह।ैं स्र्थावनक बवद् ही मानवसक योग्यता के आयाम का िह ु ं ं वहस्सा ह,ै विसने इन मतभ रूप व्याप्त कलाकवत्तयों को कल्पना म ें िीित रूप वदया। ृ ू ं ं याँ तो इस प्रकार की बवद्मत्ता सर्ी व्यवक्तयों म ें होती ह,ै वकन्त अलग-अलग लोगों म ें इसके प्रयोग से ू ु ु कल्पनािीलता की योग्यता वर्न्न-वर्न्न रूपों म ें उपवस्र्थत होती ह।ै वकसी मवतभकार, पायलट, एस्रोनॉट या ू कलाकार म ें इस िमता के ज्यादा पाए िाने की सर्ािना होती ह।ै एक सावहत्यकार, कवि या अवििक्ता ं की विचार–प्रविया का आिार िब्द होते ह।ैं एक गवणतज्ञ की विचार-प्रविया का अिलम्ब अक ि ं सख्याए ाँ होती ह,ैं िबवक एक सगीतज्ञ अपने विचारों ि र्ािों को सरों के माध्यम से व्यक्त करता ह।ै ठीक ् ु ं ं उसी प्रकार एक िास्तकार, वचत्रकार, िज्ञै ावनक, पायलट, एस्रोनॉट, इविवनयर, आवकभ टेक्ट ि ु ं रसायनिास्त्री की विचार-प्रविया का मल तत्ि कछ आकार, आकवतयााँ या तस्िीरें हो सकती ह।ैं ृ ू ु इस प्रकार मोटे–मोटे तौर पर यह कहा िा सकता ह,ै वक विस विचार-प्रविया का आिार (स्पेस) के अियि, विवर्न्न आकर ि आकवतयााँ, रग, नक़्ि,े ि तस्िीरें होती ह,ैं िह स्र्थावनक–बवद्मत्ता ृ ु ं कहलाती ह।ै सार्थ ही सार्थ, इस विचार–प्रविया को कायभ के प्रर्थम चरण के रूप म ें लाये िाने िाले व्यवक्त को कहा िाता ह।ै हम यह कह सकते ह ैं वक इस तरह के स्र्थावनक बवद्मान व्यवक्त ु ु वकसी र्ी प्रत्यय को आत्मसात करने हते या अविगम हते इन्ही बवद् का प्रयोग करते ह।ैं इस प्रकार हम ु ु ु दखे ते ह ैं वक कछ व्यवक्त िसै े वक िास्तकार, िो ससार को अद्भत इमारतें द े रह े ह।ैं वचत्रकार, विनके वचत्र ु ु ं ु विवर्न्न रगों ि आकवतयों से उनकी सोच के स्तर को प्रकट करते ह।ैं िज्ञै ावनक, रसायनिास्त्री िो विवर्न्न ृ ं आकार ि वचत्रों, ि ग्रा.ों के माध्यम से प्रकवत के र्ौवतक ि रासायवनक गणों ि रहस्यों को उिागर कर ृ ् ु दते े ह।ैं ये सर्ी स्र्थावनक–बवद्मत्ता आिाररत अविगम के सािात उदहारण प्रस्तत करते ह।ैं ु ु प्रवसद् िज्ञै ावनक आइस्टीन ने र्ी बताया र्था वक उनके वलए र्ाषा या िब्द, विस रूप म ें ि े वलखे ं या बोले िाते र्थे, िह उस स्िरुप म ें उनके विचार-िवक्त या, ध्यान की यन्त्र-सरचना म ें कोई र्वमका नहीं ू ं वनर्ाते।विचार-िवक्त की यन्त्र-सरचना का मख्य आिार (Physical Entities) ह,ैं िो वक ु ं वस्र्थर / वनवश्चत वचन्ह या आविक / पण भ स्पि वचत्र होते ह।ैं िो वक स्ितत्र रूप से पर्थक हो कर पनः ृ ू ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 90 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 यर्थारूप या नए रूप म ें उत्पन्न हो िाते ह,ैं या व.र से वमल िाते ह।ैं सासाररक िब्द बडे प्रयत्न ि पररश्रम ं से खोिने के बाद वद्वतीय स्तर पर आते ह।ैं िबवक उपयभक्त समागम ि वियािीलता पयाभप्त या तल्य रूप स े ु ु महत्िपण भ र्वमका वनर्ाते ह ैं तर्था इच्छा–अनसार उनमें .े र- बदल वकया िा सकता ह।ै यवद दवै नक–िीिन ू ू ु की बात र्ी करें, तो वदनचयाभ म ें प्रयक्त होने िाली प्रत्येक िस्त एक विविि आकवत ि आकार की होती ृ ु ु ह,ै विसके आिार पर उनका प्रयोग वकया िाता ह।ै दृश्यात्मक प्रतीकों के विवर्न्न स्िरुप िब विचार- प्रविया के मल तत्ि हो िाते ह,ैं तो उसे स्र्थावनक–बवद्मत्ता कह सकतेह ैं । ू ु िेखें और समझें एक वकसी मवतभकार के पास िाए और देख,ें िह औिारों की सहायता से वकस प्रकार अनािश्यक पत्र्थर ू ं को तोड कर हटा दते ा ह,ै और मवतभ उर्र आती ह।ै मवतभ बनाई िाती ह ै वकन्त मवतभ के वचत्र तो मवतभकार के ू ू ु ू ू पास पहले से विद्यमान होता ह।ै यह र्ी कह सकते ह ैं वकमवतभ का िन्म तो उसके मानस–पटल पर पहले ही ू हो चका होता ह।ै ु अभ्यास प्रश्न 1. स्र्थावनक बवद् का सबि ह ै : ु ं ं a.सकारात्मक सोच से b. नाकारात्मक सोच से c. िारीररक रूप से गवतकी विया कर पाने से d. दृश्यात्मक प्रतीकों से सोच पाने से 2. वनम्न म ें से वकसका सीिा सबि स्र्थावनक बवद् से नहीं ह?ै ु ं ं a.काबभन के टेरा-हड्रे ल सरचना की b.पररकल्पना सगीत का स्मरण ं ं c.डीएनए की सरचना का स्मरण d. वकसी पेंवटग से पि भ उसका मानवसक आरेखन ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 91 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3.4 स्थारनक बुरि संबधी अरधगम ं कहा िाता ह ै वक
“ एक ही बात को कहने के हिार तरीके होते ह”
ैं । सिाल उठता ह,ै क्यों ?तो इसका उत्तर ह ै वक एक ही बात को समझने के हिार तरीके होते ह।ैं रचनािादी वसद्ात र्ी यह मानता ह ै वक बच्च े ज्ञान ं का विकास स्िय अपने अनसार िातािरण से सविया कर करते ह।ैं ु ं ं हम मनरय, प्रकवत की हर एक िस्त को उसके यर्थार्थभ और मौवलक गणों के सार्थ स्िीकार करते ृ ु ु ु ह।ैं हम यह र्ी कहते ह ैं वक प्रत्येक िस्त की अपनी विवििताए एि महत्ि होती ह।ै उन विवििता को ु ं ं ं हम उनकी सापेि वर्न्नता के सार्थ स्िीकत करते ह।ैं इन समानता और वर्न्नता के सार्थ समझ के ृ ं ं ं विकास म ें अलग-अलग प्रकार से मानि-बवद् को प्रयोग म ें लाते ह।ैं अर्थाभत, हम एक ही लाठी से सबको ु हाक नहीं सकते ह।ैं ं कछ बच्चों म ें स्र्थावनक या मानवसक वचत्रों द्वारा समझ बनाने की प्रिवत्त अविक हो सकती ह।ै ि े मौवखक ृ ु वनदिे ों या अनदिे न से नहीं सीख पाते ह।ैं कई बार माता-वपता समाि या यहााँ तक वक कई विद्यालय र्ी ु बच्चे के बवद् की विवििता और वर्न्नता को िाने वबना ही मौवलक रूप से सगीतकार को गवणतज्ञ, ु ं गवणतज्ञ को वखलाडी, वखलाडी को वचवकत्सक, वचवकत्सक को अर्थभिास्त्री, अर्थभिास्त्री को कवि और न िाने क्या-क्या बनाने म ें िट िाते ह।ैं ु समय बीतने के सार्थ आि मनरय तर्था वििा िगत इस बात के वलए सिदे निील और वचवतत ु ं ं हो रहा ह ै वक प्रत्येक व्यवक्त को उसकी विवििता और वर्न्नता के आिार पर विवर्न्न विषयों की पाठय– ् सामग्री को पढ़ने दने ा चावहए।
‘मनरय एक सामाविक प्राणी ह’
ै - समाि म ें इस प्रचवलत बात से व्यवक्त की ु वनिता ि विवििता को सम्मान वमलना लगर्ग समाप्त सा हो गया र्था। परन्त यह अनर्ि वकया गया ु ु वक प्रत्येक मानि को यवद उसकी समग्र विवििता के सार्थ विकवसत वकया िाए तो िह समाि की प्रगवत म ें बेहतर योगदान द े पाने म ें सिम होगा। उपरोक्त बातों को सज्ञान म ें लेते हए िाले बालकों के अविगम हते मलर्त ु ु ु ू ू ं आिश्यकता के बारे म ें हम विचार करते ह।ैं -किा आिाररत वििण-प्रणाली का एक महत्िपण भ िब्द ू ं ह ै । दखे ने म ें रूवच रखने िाले बालक को िब्द के सार्थ तारतम्य स्र्थावपत करने म ें कवठनाई ु ु हो सकती ह।ै िसै ा वक स्र्थावनक बवद्मत्ता िाले बालक विवर्न्न बातों को, विचारों को आकवत, ृ ु आकारों, वचत्रों, मानवचत्रों के माध्यम से सोचेते ह।ैं उनकी विवििता होती ह,ै या मानवसक वचत्रण।ऐसे बालकों को विवर्न्न विषय पढ़ाए ि समझाये िाने के वलए उपयक्त वनदिे होगा वक । ु ितभमान म ें बालकों की पस्तकों म ें वचत्रों का समाििे करना, इस वदिा म ें पहला कदम ह।ै ु िब्द सनकर मन म ें आकवत उर्रती ह ै स.े द या पीले या गलाबी रग से पती इमारत ि कमरे, ृ ु ु ु ं उनम ें लगा ब्लैक-बोडभ और उस पर स.े द चाक (chalk) से वलख े अिर।इस बात का र्ी ध्यान रह े वकइस तरह के बच्चे श्यामपट्ट पर वलख े िब्दों को दखे ने म ें उत्सक नहीं होते ह।ैं स्र्थावनक बवद्मत्ता िाले बच्चे ु ु रगों के प्रवत उत्सक ि सिदे निील होते ह।ैं ि े विवर्न्न विचारों को तस्िीरों, वचत्रों, कलाकवतयों, रगों, ृ ् ु ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 92 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ज्यावमतीय आकारों के रूप म ें समझना पसद करते ह।ैं विद्यालय को इन्ििनषी रगों से सिोवर्त कर, इस ु ु ं ं प्रकार के बालकों म ें विद्यालय के प्रवत रूवच उत्पन्न कर सकते बालकों को कल्पना करने की स्ितत्रता द े कर, हम उनकी अविगम िमता म ें िवद् कर सकते ह।ैं ृ ं उन्ह ें िब्दों के स्र्थान पर वचत्रों के माध्यम से उत्तर दने े के वलए प्रोत्सावहत कर के हम विवर्न्न विषयों से उनका सबि िोड सकते ह।ैं वकसी उपन्यास या कहानी को पढ़ते समय हर वकिोर या व्यवक्त के मानस– ं ं पटल पर उसके चररत्रों के आकार स्िरुप लेने लगते ह।ैं लेवकन स्र्थावनक बवद् िाले छात्र के मन म ें ि े ु वचत्र (याद रह े िब्द नहीं) उस कहानी को स्पि कर रह े होत े ह।ैं ि े वकसी िस्त को पर्थक करके उसकी ृ ु िास्तविक सरचना को समझने का प्रयत्न करते ह ैं तर्था उसे पनः यर्थारूप िोडकर उसके तथ्य से पररवचत ु ं होते ह।ैं अभ्यास प्रश्न 3. स्र्थावनक बवद् के प्रवत चेतना विकवसत करने हते बच्चों को सबोवित करना चावहए: ु ु ं a. आ सनों b. आ दखे ो c. आ करो d. आ िानें ु 4. स्र्थावनक बवद् के प्रवत रुझान से सीखने िाले बच्चे तथ्यों को समझते ह:ैं ु a. वचत्रों से b. िब्दों से c. िाणी से d. स्पि भ से 3.5 स्थारनक बुरि आधाररत अरधगम का आकलन बच्चों म ें स्र्थावनक बवद् आिाररत अविगम का आकलन आिश्यक ह ै तावक हम इस प्रकार की दिता ु को बहत पहले ही पहचान सकें । इस विविि अविगम की प्रिवत्त के आकलन को हम वनम्न रूप म ें से कर ु ृ सकते ह:ैं उन्ह ें वर्न्न-वर्न्न िस्त ि ज्यावमतीय आकारों के मॉडल्स द े कर हम उनकी अविगम– िमता ु ं को िान सकते ह।ैं सार्थ ही उसके रुवच को समझ सकते ह।ैं कागज़, वमट्टी, लकडी के टकडे, िाग,े रगीन पेंवसल या स्के च उनकी अध्ययन-प्रविया म ें वकतना ु ं महतिपण भ स्र्थान रखते ह ैं इसको र्ी समझा िा सकता ह।ै स्र्थावनक अविगम के तर. रुझान रखने ू िाले बच्चों के वलए ये सामग्री महत्िपण भ र्वमका वनर्ाते ह।ैं ू ू नई-नई िस्त के सपकभ म ें ला कर, उन्ह ें वदखाकर हम बच्चों म ें सीखने की प्रिवत्त को समझ ृ ु ं ं सकते ह।ैं कछ बच्चोंम ें हम प्रगाढ़ र्ाि िागत कर सकते ह।ैं ृ ु िातािरण म ें उपवस्र्थत परन्त न वदखने िाली िस्त के विषय म ें पछकर उन्ह ें कल्पना करने के ु ु ू ं वलए प्रेररत वकया िा सकता ह।ै विससे उनकी स्र्थावनक बवद् सबिी अविगम का आकलन कर ु ं ं सकते ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 93 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 उनके उत्तर िब्दों के स्र्थान पर वचत्रों के रूप म ें प्रस्तत वकये िा सकते ह,ैं परन्त उसम ें वचत्रकला ु ु की किलता के स्र्थान पर कल्पना ि विचार की स्पिता को मख्य वबन्द माना िाना चावहए। ु ु ु यिा म ें स्र्थावनक बवद् सबिी अविगम प्रिवत्त की पहचान पहले ी या चेस बोडभ, मिे बॉक्स ृ ु ु ं ं ं आवद के प्रवत आकषणभ या वदिास्िप्न या खाली समय म ें वचत्रकारी/स्के च विया म ें समय व्यतीत करने से र्ी हो सकता ह।ै स्र्थावनक बवद् त्री-आयामीपटल म ें सोचने की िमता ह।ै इसके कोर िमता म ें मानवसक कल्पना, ु ं स्र्थावनक तकभ िवक्त, मानवसक वचत्र, ग्राव.क्स, मानवसक कलात्मक कौिलऔर सविय कल्पना िावमल ह।ैं नाविकों, पायलटों, मवतभकारों, वचत्रकारोंऔर िास्तकारों म ें स्र्थावनक बवद् सबिी अविगम का सबत ू ु ु ु ं ं आप खद पा सकते ह।ैं ु स्र्थावनक बवद् सबिी व्यिहार महत्िपण भ माना गया ह ै ।लेवकन समकालीन वििा तर्था वििषे कर पि भ के ु ू ू ं वििा म ें इसकी उपेिा की गई ह।ै वकन्त निीन वििा सबिी अवर्करणों तर्था राररीय पाठयचयाभ की ् ु ं ं रुपरेखा, 2005 के प्रयासों से इस प्रकार के अविगम आयोिनों को बल वमला ह।ै कई श्रेणी के विकलागता ं से प्रर्ावित बच्चों म ें र्ी स्र्थावनक बवद् सबिी अविगम के प्रवत अत्यविक झकाि पाया गया ह।ै ु ं ं ु अभ्यास प्रश्न 5. स्र्थावनक बवद् सबिी अविगम का आकलन हते वकस विया को समावहत नहीं वकया िाना ु ु ं ं चावहए : a.ज्यावमतीय आकारों के प्रवत लगाि b.िाद-वििाद प्रवतयोवगता म ें र्ागीदारी c.ग्राव.क्स म ें रूवच d.मानवसक कलात्मक कौिल 6. वनम्न म ें से वकसम ें स्र्थावनक बवद् अविगम अविक मायने नहीं रखती? ु a.नाविकों म ें b.पायलटों म ें c.सगीतज्ञों में d. वचत्रकारों म ें ं 3.6 दरहक-गरतसवं ेरदक बुरि : अथ भ ै क्या आपने कर्ी सकभ स का आनद उठाया ह?ै आपने टेलीविज़न पर डास कम्पटीिन तो िरुर दखे ा होगा? ं ं अक्सर इन्ह ें दखे ते समय हमारे अदर से आिाि आती ह,ै या, व.र
‘अरे ये उसने ं कै से कर वलया?’
। हम ें कई ऐसे दवै हक करतब दखे ने को वमलते ह ैं िो हम ें आश्चयभचवकत कर दते े ह।ैं हमने यह र्ी दखे ा होगा वकएक व्यवक्त बहत ऊचाई पर बिी रस्सी पर एक छोर से दसरे छोर तक पैदल चल ु ं ं ू लेता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 94 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विके ट के मदै ान आपने यह तो दखे ा होगा वक एक विके टर वखलाडी बडी चपलता से डाईि लगाकर एक कै च लपक लेता ह।ै सार्थ ही, एक वखलाडी हिा म ें तीन-चार कलाबाविया वदखा कर पनः सतवलत अपने ु ु ं ं पैरों पर खडा हो िाता ह।ै एक .टबॉलर अद्भत .ती से कद कर गदें को गोल के अन्दर िके ल दते ा ह ैं या ु ु ू ु गोलकीपर लपक कर गदें को रोक लेता ह।ैं एक िािक बडी किलता से बािा दौड म ें बािायों को कद ु ू कर पर करता हआ वनकल िाता ह ै या एक नतभक/नतभकी अपने िरीर के वकसी वििेष अग को वनयवत्रत ु ं ं करते हए नत्य करता ह।ै एक मवतभकार बडे सयम से अपने हार्थों से औिारों का प्रयोग कर एक सन्दर ु ृ ू ु ं कलाकवत्त उर्ार लेता ह।ै एक िल्य–वचवकत्सक बडी साििानीपिकभ िरीर के कोमल अगो की िल्य ृ ू ं वचवकत्सा किलता से कर लेता ह।ै ु उपरोक्त सर्ी उदाहरण को सज्ञान म ें रख कर एक बात स्पि हो िाती ह ैं वक मनरय अपने मवस्तरक की ु ं सहायता से अपने िरीर के विवर्न्न अगो की विया को एक विविि प्रकार स े सयोवित कर सकता ह ै । ं ं ं आपने सदिनभ पटनायक का नाम सना होगा? िह आसानी से समि वकनारे वक रेत पर अद्भत आकवत ृ ु ु ु ु उर्ारने म ें सिम ह।ै आइए हम दवै हक-गवतसिदे ी बवद् को और समझाने का प्रयास करते ह।ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 95 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 गवतसिदे ी (kinesthitic) िब्द मलतः एक अन्य तकनीकी िब्द से वनवमतभ ू ं ह।ै kinesthesiaिब्द का अर्थभ होता ह,ै ।इस प्रकार वकसी व्यवक्त की अपनी मानवसक िमता का अपने िरीर की या िरीर के अगो की गवत से समन्ियन स्र्थावपत करने की ं ं योग्यता को दवै हक-गवतसिदे ी बवद्मत्ता कहा िाता ह।ै इसके िररए हम अपने िरीर तर्था उसके अगो की ु ं ं पण भ सतवलत गवत को समझ पाने म ें सिम होते ह।ैं वकसी व्यवक्त की मानवसक िमता तर्था उसके िरीर ू ु ं ं या िरीर के अगो की गवत के मध्य पण भ एि सतवलत सयोिन या समन्िय द्वारा सीखने को दवै हक- ू ु ं ं ं ं गवतसिदे ी अविगम कहते ह।ै दवै हक-गवतसिदे ी अविगम की महत्ता को इस बात से समझा िा सकता ह ैं ं ं वक यह उस प्राचीन िारणा को चनौती दते ा ह।ै पि भ म ें यह माना िाता र्थावकिारीररक एि मानवसक वियाएाँ ु ू ं एक-दसरें से वर्न्न होती ह।ैं ू अभ्यास प्रश्न 7. आपके अनसार वनम्न म ें से कौन दवै हक-गवतसिदे ी बवद्मत्ता का प्रयोग सबसे कम करता ह:ै ु ु ं a.वखलाडी b. िल्य-वचवकत्सक c.सगीतकार d.नतक ृ ं 8. गवतसिदे ी (kinesthitic) िब्द मलतः बना ह:ै ू ं a. kitosthesia स े b. Hiptosthesia से c. Xerothesia स े d. kinesthesia से 3.7 दरहक-गरत संवेरदक बुरि संबधी अरधगम ै ं कछ बच्चों म ें दवै हक विया द्वारा समझ बनाने वक प्रिवत्त अविक हो सकती ह।ै ि े कई प्रयोगों द्वारा यह ृ ु ं वसद् वकया िा चका ह ैं की मानि ऐवक्छक पेवियों के अवतररक्त अनैवच्छक पेवियों की गवत को र्ी अपने ु वनयत्रण म ें कर सकता ह ैं इसके तीन सिाभविक महत्िपण भ सत्र वनम्न ह ैं :- ू ू ं 1. मानि की िारररक गवतयों पर िरीर के अन्दर से अदृश्य वनयत्रण होता ह।ै उदहारण के वलए हर ं कोई व्यवक्त ऊचाई से कदने म ें सिम नहीं होता ह।ै िायट व्हील या रोलर कोस्टर म ें बैठन े म ें हर ू ं ं व्यवक्त सहि महसस नहीं कर पाता ह ै । ू 2. इस प्रकार की बवद्मत्ता से यक्त व्यवक्त िस्त या औिारों का प्रयोग सामान्य व्यवक्त की तलना ु ु ु ु ं म ें दिता से कर सकता ह ै ।र्ारतिष भ म ें वस्र्थत अनेक मवदरों एि ग.ा की दीिारों पर उतारे गए ु ं ं ं वचत्र, आकवत्त मवतभकला या लकडी के दरिािों पर की गई नक्कािी आवद इस प्रकार के ृ ू अविगम का प्रमाण दते े ह ैं । कई कलाकार तो अडे के बाहरी खोल यहााँ तक की चािल के दाने ं पर र्ी नक्कािी करने म ें सिम होते ह ैं । िरीर के कोमल अगों की िल्य-विया करता िल्य- ं वचवकत्सक र्ी इसका एक प्रवतक ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 96 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3. इस बवद्मत्ता म ें पारगत व्यवक्त अपने सम्पण भ िरीर के विविि अगो का किलतापिकभ सयोिन ु ू ु ू ं ं ं कर के एक मनचाही गवत को कर पता ह।ै र्ारतीय या पाश्चात्य की विविि नत्य-िवै लयों म ें पारगत ृ ं नतभक याअवर्नय म ें वनपण अवर्नेता या योगाभ्यास म ें वनपण व्यवक्त इस तथ्य वक पवि करते ह।ैं ु ु ु माइकल िक्ै सन, चाली चैपवलन, ससार के मिहर विमनास्ट, मािलभ आटभ वनपण व्यवक्त (ब्रस- ू ु ू ं ली) इत्यावद इसके प्रतीक ह।ैं स्र्थावनक बवद् के सन्दर् भ म ें आपने िाना र्था वक ि े बच्चे के स्र्थान पर के रूप म ें वनदिे को ु ु ज्यादा पसद करते ह ैं । ठीक उसी प्रकार दवै हक-गवतसिदे ी अविगम की प्रिवत्त िाले बच्चे सनने या दखे ने ृ ु ं ं की अपेिा करना अविक पसद करते ह ैं । अर्थाभत इस प्रकार के बच्च े या के स्र्थान पर ु ं के रूप म ें वनदिे को ज्यादा पसद करते ह ैं । ं विकलागता से प्रर्ावित बच्चों म ें दवै हक-गवतसिदे ी अविगम र्ी बहत प्रर्ािकारी होता ह।ै सिदे ी ु ं ं ं विकलागता से अविगम विकलागता से प्रर्ावित बच्चों म ें बहतेक प्रत्ययों को इसके द्वारा समवर्थभत वकया ु ं िा सकता ह।ै यही नहीं अविगम विकलागता से प्रर्ावित बच्चे अक्सर दवै हक-गवतसिदे ी अविगमकताभ ं ं के रूप म ें पाए िाते ह।ैं अभ्यास प्रश्न 9. दवै हक-गवतसिदे ी अविगम वक प्रिवत्त िाले बच्चे अपेिाकत पसद करते ह ैं :: ृ ृ ं ं a.सनना b.बोलना c.करना d.दखे ना ु 10. वनम्न म ें से वकसम ें दवै हक-गवतसिदे ी अविगम प्रर्ािी नहीं ह:ै ं a.सवचन तेंदलकर b.वबरि महाराि c.िसपाल राणा d.सोन वनगम ू ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 97 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3.8 दरहक-गरत सवं ेरदक बुरि आधाररत अरधगमका आकलन ै बच्चों म ें दवै हक बवद् आिाररत अविगम का आकलन अवतिीघ्र वकया िाना चावहए। इससे हम इस ु प्रकार की दिता रखने िाले बच्चों की पहचान िल्दी कर सकते ह।ैं विन बच्चों म ें दवै हक-गवतसिदे ी ं बवद्मत्ता उपवस्र्थत होती हिै े बॉडी-स्माटभ (bod-smart) होते ह ैं तर्था इस विविि अविगम की प्रिवत्त के ृ ु आकलन हते हम वनम्नलिणों के प्रदिनभ के आिार पर कर सकते ह:ैं ु इस प्रकार के बच्चे अविक िारीररक हाि–र्ाि एि चेहरे पर अविक र्ाि- र्वगमा को ं ं ं प्रदवितभ करते ह ैं । ि े िस्त या मिीनों के कल–पिों को प्रर्थक कर के पनः स्र्थावपत करने का कायभ अविक ु ु ु ं वनपणता से कर सकते ह ैं । ु ि े हार्थों के वियािील रहने े िाली विया म ें अविक रूवच वदखलाते ह ैं । ं ि े अवर्नय तर्थ विवर्न्न चररत्रों को वनर्ाना पसद करते ह।ैं ं ि े क्ले (clay) की सहायता से आसानी से एक मवतभ का वनमाभण कर सकते ह।ैं ू ि े नत्य विया म ें आनद प्राप्त करते ह ैं । ृ ं ऐसे व्यवक्त एर्थेलेवटक्स, खले या ऐसे ही कायों म ें पारगत होते ह,ैं विनम ें िारीररक गवत और ं सतलन महत्िपण भ र्वमका वनर्ाता ह ैं । ु ू ू ं ऐसे बच्चे या व्यवक्त का िारीररक सयोिन या (eye-hand co–ordination) सामान्य व्यवक्त ं की अपेिा बहत अविक विकवसत होता ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 98 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ऐसे बच्चे याव्यवक्त कायों को सनने या दखे ने की अपेिा करना अविक पसद करते ह ैं । ु ं अपने लक्ष्य की प्रावप्त हते मानवसक एि िारीररक िमता के पण भ प्रयोग के वलया तत्पर रहत े ु ू ं ं ह।ैं ऐसेबच्चे याव्यवक्त का अपनी गवत-नेत्र सयोिनपर अपेिाकत अविक वनयत्रण होता ह।ै ृ ं ं ऐसे बच्चे याव्यवक्त अपने हार्थों से िस्त का तर्था तरीकों या सलीकों का वनमाभण करने हते ु ु ं तत्पर होते ह ैं । ऐसे बच्चे याव्यवक्तयों का िारीररक गठन मिबत होता ह ैं तर्था िरीर म ें िवक्त तर्था ऊिाभ की ू मात्रा अविक होती ह।ै अभ्यास प्रश्न 11. दवै हक-गवतसिदे ी बवद्मत्ता सबिी अविगम का आकलन हते वकस विया को महत्त्ि नहीं वदया ु ु ं ं ं िाना चावहए : a. ज्यावमतीय विया b.नत्य विया c.अवर्नय d.एर्थेलेवटक्स ृ 12. वनम्न म ें से वकसम ें स्र्थावनक बवद् अविगम अविक मायने नहीं रखती? ु a. नाविकों में b. पायलटों में c. सगीतज्ञों में d. वचत्रकारों म ें ं 3.9 सारांश स्र्थावनक बवद् का सबि स्र्थावनक वचत्र को मानवसक रूप म ें रूपातररत करनेकी िमता तर्था स्र्थावनक ु ं ं ं कल्पना िवक्त कर पाने की दिता से ह।ै अर्थाभत स्र्थावनक बवद् वत्र-आयामी स्र्थान या स्पेस म ें वकसी िस्त ् ु ु को स्र्थावपत कर सोच पाने की योग्यता से सबवित ह।ै इस विचार–प्रविया को कायभ के प्रर्थम चरण के रूप ं ं म ें लाये िाने िाले व्यवक्त को कहा िाता ह।ै िसै े वक िास्तकार, िो ससार को अद्भत ु ु ं ु इमारतें द े रह े ह।ैं िज्ञै ावनक, रसायनिास्त्री िो विवर्न्न आकार ि वचत्रों, ि ग्रा.ों के माध्यम से प्रकवत के ृ ् र्ौवतक ि रासायवनक गणों ि रहस्यों को उिागर कर दते े ह।ैं कछ बच्चों म ें स्र्थावनक या मानवसक वचत्रों ु ु द्वारा समझ बनाने की प्रिवत्त अविक हो सकती ह।ै ि े मौवखक वनदिे ों या अनदिे न से नहीं सीख पाते ह।ैं ृ ु बालकों को कल्पना करने की स्ितत्रता द े कर, हम उनकी अविगम िमता म ें िवद् कर सकते ह।ैं ृ ं वकसी व्यवक्त की अपनी मानवसक िमता का अपने िरीर की या िरीर के अगो की गवत से ं ं समन्ियन स्र्थावपत करने की योग्यता को दवै हक-गवतसिदे ी बवद्मत्ता कहा िाता ह।ै इसके िररए हम अपने ु ं िरीर तर्था उसके अगो की पण भ सतवलत गवत को समझ पाने म ें सिम होते ह।ैं कछ बच्चों म ें दवै हक ू ु ु ं ं विया द्वारा समझ बनाने वक प्रिवत्त अविक हो सकती ह।ै इस प्रकार की बवद्मत्ता से यक्त व्यवक्त ृ ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 99 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िस्त या औिारों का प्रयोग सामान्य व्यवक्त की तलना म ें दिता से कर सकता ह ै ।इस बवद्मत्ता में ु ु ु ं पारगत व्यवक्त अपने सम्पण भ िरीर के विविि अगो का किलतापिकभ सयोिन कर के एक मनचाही गवत ू ु ू ं ं ं को कर पाता ह ै ।सवचन तेंदलकर, माइकल िक्ै सन, चाली चैपवलन, ससार के मिहर विमनास्ट, मािलभ ू ं ु आटभ वनपण व्यवक्त (ब्रस-ली) इत्यावद इसके प्रतीक ह।ैं बच्चों म ें दवै हक बवद् आिाररत अविगम का ु ू ु आकलन अवतिीघ्र वकया िाना चावहए। इससे हम इस प्रकार की दिता रखने िाले बच्चों की पहचान िल्दी कर सकते ह।ैं विन बच्चों म ें दवै हक-गवतसिदे ी बवद्मत्ता उपवस्र्थत होती हिै े बॉडी-स्माटभ होते ह।ैं ु ं 3.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. (d) 2. (b) 3. (b) 4. (a) 5. (b) 6. (c) 7. (c) 8. (d) 9. (c) 10. (d) 11. (a) 12. (c) 3.11 संदर् भ ग्रन्थ सची ू 1. Anthony-Lengel, T. L. & Kuczala, M. S. (Editors) (2010). The Kinesthetic Classroom: Teaching and Learning Through Movement 1st Edition, Corwin Press, Sage Group 2. Gardner, H. (199 ). Frames of Mind: The Theory of Multiple Intelligences, Basic books, New York 3. Golon, A. S. (2008). Visual-Spatial Learners: Differentiation Strategies for Creating a Successful Classroom, Prufrock Press. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 100 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. Hoerr, T.R. (2000). Becoming a Multiple Intelligences School, Association for Supervision and Curriculum Development, Alexandria, VA 5. NCERT (2005). National Curriculum Framework, National Council Of Educational Research And Training, New Delhi 6. Schnarr, K. (2016). Differentiated Learning and Bodily-Kinesthetic Intelligence: Connecting Theory and Instruction to Encourage Movement in the Elementary Classroom. Ontario Institute for Studies in Education of the University of Toronto. 3.12 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. स्र्थावनक बवद् से आप क्या समझते ह?ैं इस बवद् सबिी अविगम का आकलन आप कै से करेंग?े ु ु ं ं 2. दवै हक-गवतसिदे ी बवद् क्या ह?ै इस बवद् सबिी अविगम को समझाए । ु ु ं ं ं ं 3. वकसी किा म ें बच्चों के दवै हक-गवतसिदे ी बवद् आिाररत अविगम का आकलन आप कै से ु ं करेंग?े विस्तार से समझाए। ं 4. स्र्थावनक बवद् तर्था दवै हक-गवतसिदे ी बवद् आिाररत अविगम म ें अतर स्पि करें। ु ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 101 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 4- अतिगम के पतरणाम का मूलयांकन अंिःिैयतिक, ृ अिं िैयतिक एिं प्रकतििादी बतु ि के संदि में भ 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 अतःिैयवक्तक बवद् की पररर्ाषा ु ं 4.3.1 अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों की वििेषताएाँ ु ु ं 4.3.2 अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम वियाएाँ ु ं ं ं 4.3.3 अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम-पररणाम के सके तक ु ं ं ं ं 4.3.4 अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम का मल्याकन ु ू ं ं ं ं 4.4 अतिैयवक्तक बवद् की पररर्ाषा ु ं 4.4.1 अतिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त की वििेषताएाँ ु ु ं 4.4.2 अतिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम वियाएाँ ु ं ं ं 4.4.3 अतिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक ु ं ं ं ं 4.4.4 अतिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम का मल्याकन ु ू ं ं ं ं 4.5 प्रकवतिादी बवद् की पररर्ाषा ृ ु 4.5.1 प्रकवतिादी बवद् की वििेषताएाँ ृ ु 4.5.2 प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम वियाएाँ ृ ु ं ं 4.5.3 प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक ृ ु ं ं ं 4.5.4 प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम का मल्याकन ृ ु ू ं ं ं 4.6 साराि ं 4.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 4.8 सदर्भ ग्रर्थ सची एि सहयोगी ग्रर्थ ू ं ं ं ं 4.9 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 102 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.1 प्रस्तावना मल्याकन वििण-अविगम प्रविया का एक महत्िपणभ अग ह|ै इसका अवस्तत्ि विविि स्िरुप म ें वििा के ू ू ं ं प्रारर् से ही दखे ने को वमलता ह।ै कर्ी यह मौवखक स्िरुप का होता र्था तो कर्ी वलवखत। इसके ं व्यािहाररक स्िरुप के होने के र्ी साक्ष्य पाए िाते ह।ैं कर्ी यह िोवषत होता र्था तो कर्ी अिोवषत। महार्ारत म ें िोणाचायभ द्वारा अपने विद्यावर्थभयों का अचानक मल्याकन करने का एक उदाहरण वमलता ह।ै ू ं यह व्यािहाररक मल्याकन र्था विसमें िोणाचायभ ने यह मल्यावकत वकया र्था वक अचानक से यवद कोई ू ू ं ं सकट आ िाता ह ै तो उनके विरय वकस प्रकार उसका सामना करेंग।े ितभमान पररदृश्य म ें मल्याकन का ू ं ं स्िरुप बहत पररिवतभत हो गया ह।ै अब यह प्रायः िोवषत
होता ह ै और इसका स्िरुप वमवश्रत होता ह।ै ु अर्थाभत यह वलवखत एि मौवखक दोनों प्रकार का होता ह।ै कछ विषयों म ें तो यह वलवखत, मौवखक एि ु ं ं व्यािहाररक तीनों प्रकार का होता ह
।ै ितभमान पररदृश्य में वस.भ इसके स्िरुप में ही पररितभन नहीं हआ ह ै ु बवल्क इसके कें ि म ें रखी िान े िाली विषयिस्त म ें र्ी पररितभन आया ह।ै वििा प्रणाली के वििक या ु पाठयिम कें वित होने के कारण पहले िहााँ वििण के मल्याकन की बात की िाती र्थी िहीं अब अविगम ् ू ं के मल्याकन की बात की िाने लगी ह।ै पहले िहााँ मल्याकन वििण उद्दश्े यों के आिार पर होता र्था िहीं ू ू ं ं अब अविगम-पररणाम के सके तक के आिार पर होने लगा ह।ै पहले अविगम-पररणाम एि उसके सके त ं ं ं तय वकए िात े ह।ैं इसके बाद इन्हीं सके तकों को आिार बनाकर मल्याकन प्रविया को सपन्न वकया िाता ू ं ं ं ह।ै मल्याकन करते समय पहले िहााँ विद्यार्थी के बवद् को समग्र रुप म ें मल्यावकत कर उसके बवद्मान या ू ु ू ु ं ं मखभ होने की िोषणा कर दी िाती र्थी िहीं अब मल्याकन में बह-बवद् वसद्ात को स्र्थान वदया िाने लगा ु ू ू ु ं ं ह।ै यह मान वलया गया ह ै वक बवद् विवर्न्
न प्रकार के योग्यता का समह ह ै और यह आिश्यक नहीं ह ै ु ू ं वक यवद वकसी व्यवक्त म ें एक प्रकार की योग्यता नहीं ह ै तो अन्य प्रकार की र्ी नहीं होगी। इस प्रकार, बवद् ु के विवर्न्न आयामों के मल्याकन की बात होने लगी। गाडभनर ने अपने बहबवद् वसद्ात में आठ प्रकार के ु ू ु ं ं बवद् की बात की। प्रत्येक प्रकार की बवद् के वलए अविगम-पररणाम के अलग-अलग सके तक तय वकए ु ु ं िाए लग।े उन सके तकों के आिार पर बवद् के विविि प्रकारों क
ा मल्याकन वकया िान े लगा। वपछली ु ू ं ं इकाई में आपने र्ाषा विज्ञान सबिी बवद् (वलवग्िवस्टक इटेलीिेंस), सगीतात्मक बवद् (म्यविकल ु ु ू ं ं ं ं ं इटेवलिसें ) तर्था तावकभ क बवद् (लॉविकल इटेवलिसें ) से सबवित अविगम पररणामों के मल्याकन को ु ू ं ं ं ं ं पढ़ा। प्रस्तत इकाई में हम अतःियै वक्तक बवद् (इन्रापसभनल इटेवलिसें ), अतियै वक्तक बवद् (इटरपसभनल ु ु ु ं ं ं ं इटेलीिसें ) एि प्रकवतिादी बवद् (नेचरलवस्टक इटेवलिसें ) से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन की ृ ु ु ू ं ं ं ं ं ं चचा भ करेंग।े 4.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के के पश्चात आप - 1. अतःिैयवक्तक बवद् को पररर्ावषत कर सकें ग।े ु ं 2. अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम विया का िणनभ कर सकें ग।े ु ं ं ं ं 3. अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख कर सकें ग।े ु ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 103 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन की प्रविया का िणनभ कर सकें ग े ु ू ं ं ं ं 5. अतियै वक्तक बवद् को पररर्ावषत कर सकें ग।े ु ं 6. अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम विया का िणनभ कर सकें ग।े ु ं ं ं ं 7. अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख कर सकें ग।े ु ं ं ं ं 8. अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन की प्रविया का िणनभ कर सकें ग।े ु ू ं ं ं ं 9. प्रकवतिादी बवद् को पररर्ावषत कर सकें ग।े ृ ु 10. प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम विया का िणनभ कर सकें ग।े ृ ु ं ं ं 11. प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख कर सकें ग।े ृ ु ं ं ं 12. प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन की प्रविया का िणनभ कर सकें ग।े ृ ु ू ं ं ं 4.3 अंतःवैयरिक बुरि की पररर्ाषा अमरे रका के मनोिज्ञै ावनक होबाटभ गाडभनर ने सन 1983 म ें बहबवद् का वसद्ात प्रवतपावदत वकया और ु ु ं बवद् के 7 प्रकार बताए।ाँ 1999 में उन्होंने अपने इस वसद्ात म ें र्थोडा सिोिन वकया और इसमें बवद् के ु ु ं ं एक और प्रकार को िावमल वकया। इस प्रकार, उन्होंने बवद् के कल 8 प्रकार बताएाँ िो वनम्नवलवखत ह:ैं ु ु 1. तावकभ क बवद् ु 2. सगीतात्मक बवद् ु ं 3. र्ाषा विज्ञान सबिी बवद् ु ं ं 4. दृश्य-स्र्थावनक बवद् ु 5. िारीररक गवत सबिी बवद् ु ं ं 6. अतियै वक्तक िवद् ृ ं 7. अतःिैयवक्तक बवद् ु ं 8. प्रकवतिादी बवद् ृ ु इकाई के इस खड म ें हम अतःियै वक्तक बवद् एि उसके विविि पिों की चचाभ करेंग।े अतःिैयवक्तक ु ं ं ं ं िब्द का िावब्दक अर्थभ ह ै । इस प्रकार अतःियै वक्तक बवद् का आिय स्िय को ु ं ं ं समझने, अपनी र्ािना एि अवर्प्रेरणा की प्रिसा करने की योग्यता को ियै वक्तक बवद् कहते ह।ैं दसरे ु ं ं ं ू िब्दों म,ें स्िय
के ज्ञान के आिार पर कायभ करने की योग्यता को अतियै वक्तक बवद् कहत े ह।ैं स्िय के ु ं ं ं ज्ञान से यहााँ आिय उद्दश्े यों, िमता , सीमा , मानवसक दिा , दवश्चता , इच्छा , एि ं ं ं ं ं ं ं ु अवर्प्रेरणा के सस्पि ज्ञान स
े ह।ै अतःियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त के उदाहरण के रुप में सकरात, महात्मा ु ु ु ु ं गााँिी, मदर टेरेसा, िॉन ऑ. आकभ , एडमड वहलेरी आवद को वलया िा सकता ह।ै व्यवक्त के अपने ं आतररक ससार को समझने की योग्यता को अतःियै वक्तक बवद् कहते ह।ैं ु ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 104 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.3.1 अतःवैयधक्तक बधद्ध से यक्त व्यधक्तयों की धविेषताए ँ ु ु ं अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों म ें वनम्नवलवखत वििेषताए ाँ पाई िाती ह:ैं ु ु ं i. ि े स्िय की िमता एि सीमा को र्ली-र्ााँवत समझता ह;ै ं ं ं ं ii. उनमें अतदृवभ ि होती ह;ै ं iii. ि े आत्म-वनरीिण करना पसद करते ह;ैं ं iv. उनका व्यवक्तत्ि अतमभखी होता ह;ै ु ं v. ि े स्ितत्र रुप से सीखना पसद करते ह ैं क्योंवक उन्ह ें सहिता का अनर्ि होता ह;ै ु ं ं vi. ि े सअवर्प्रेररत एि दृढ़-प्रवतज्ञ होते ह;ैं ु ं vii. अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त कवि, िज्ञै ावनक, सावहत्यकार, मनोिैज्ञावनक आवद व्यिसाय ु ु ं को पसद करते ह ैं । ं 4.3.2 अतःवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम धक्रयाए ँ ु ं ं ं बवद् मनरय के अपने कायों को सपावदत करने की योग्यता ह।ै बहबवद् वसद्ात के अनसार बवद् के 8 ु ु ु ु ु ु ं ं प्रकार ह।ै अब यवद बवद् समग्र रुप से मनरय के िीिन की विर्न्न विया से सबवित ह ैं तो इसके ु ु ं ं ं विविि प्रकार र्ी मानि िीिन के विविि विया से सबवित होंग।े वििण-एि अविगम का मानि ं ं ं ं िीिन की विवर्न्न विया म ें महत्िपण भ स्र्थान ह।ै सीख े िानेिाली विषयित, विया-कलाप एि कायभ- ू ु ं ं अनर्ि बवद् के अलग-अलग प्रकार से सबवित होते ह।ैं अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित विया का ु ु ु ं ं ं ं ं ं नीचे उल्लेख वकया गया ह:ै 1. िेखन कौिि – अतःियै वक्तक बवद् स े यक्त बवद् के लेखन कौिल को विकवसत करने के ु ु ु ं वलए वनम्नवलवखत विया को स्र्थान वदया िा सकता ह:ै ं a. एक पवत्रका की िरुआत कर उसम ें अपने विचारों को वलवखत रुप म ें स्र्थान प्रदान ु करना। b. अपने र्ािना को कें ि म ें रखते हए डायरी वलखना, कविता वलखना, कहानी वलखना ु ं आवद । c. सावहवत्यक रचना की वलवखत व्याख्या करना । ं 2. वाधचक कौिि- िावचक कौिल के विकास के वलए वनम्नवलवखत विया को स्र्थान वदया ं िा सकता ह:ै a. स्िय एि स्िय की र्ािना के प्रवत बातचीत करना। ं ं ं ं b. कछ खोने या वकसी व्यवक्त के होने का बहाना करना एि उससे सबवित अपने अनर्िों ु ु ं ं का िणनभ करना। c. अपने दवै नक िीिन के कत्यों से िो सीखा उनके विषय म ें अपने विचार एि अनर्ि ृ ु ं बताना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 105 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 d. आत्म वनरीिण करना एि अपने द्वारा की गई विया के प्रर्ाि का िणनभ करना। ं ं 3. अन्तसंबद्धन में िक्षता- अतसांबद्न से आिय अविगवमत वकए िने िाले विवर्न्न ं ं विषयिस्त , विया-कलपों एि कायभ-अनर्िों को एक-दसरे से सबवित करने तर्था िास्तविक ु ु ं ं ं ं ू िीिन से सबवित करने से ह।ै इसके वलए वनम्नवलवखत विया को स्र्थान वदया िाता ह:ै ं ं ं विवर्न्न विषयिस्त के मध्य के सहसबि को पहचानना एि उन पर वलवखत एि मौवखक ु ं ं ं ं ं चचाभ करना िो कछ र्ी सीखते ह ै उन्ह ें िास्तविक िीिन से सबवित करने के वलए योिना बनाना ु ं ं 4. समस्या समािान करने की योग्यता- समस्या समािान सबिी योग्यता अवितभ होती ह।ै इसे ं ं व्यवक्त अपने िीिन काल म ें वनरतर सीखता ह।ै विद्यावर्थभयों म ें इस िमता के विकास के वलए ं वनम्नवलवखत विया को िावमल वकया िा सकता ह:ै ं उन चीिों या व्यवक्तयों िो वक आप को तनाि में ला सकते ह ैं का पता करना एि उनके ं प्रर्ाि को कम करने के वलए विन रणनीवतयों का उपयोग कर सकते ह ैं उन पर विचार करना। विद्यर्थी इनको वलवखत रुप र्ी द े सकते ह।ैं प्रत्येक विषय के िेत्र म ें स्िय की वििषे ता एि सीमा का उल्लेख करना। उनके ं ं ं ं आिार पर अपनी सीमा को सबोवित करते हए तर्था िमता को पनबभवलत करते हए ु ु ु ं ं ं एक अविगम योिना बनाना। िह त्िररत लक्ष्य विसे िह प्राप्त करना चाहता ह ै को ध्यान में रखकर अपने स्िय की ं अध्ययन योिना बनाना। 5. िक्ष्य धनिातरण एव सिनात्मक कायत- इसके वलए वनम्नवलवखत विया को िावमल वकया ृ ं ं िाता ह:ै अपने दवै नक िीिन के लक्ष्यों को वनिाभररत करना। अपने वकयाकलाप को ह .ोटो एल्बम स्िै पबक िरनल आवद के रुप में अवर्लेवखत करना। ू ु ं 4.3.3 अतःवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम-िररणाम के सके तक ु ं ं ं ं अविगम पररणाम से आिय ह ै इस बात का पता लगना वक विद्यार्थी ने क्या सीखा? ितभमान पररदृश्य म ें वििण से पहले ही अविगम-पररणाम तय कर वलए िाते ह।ैं वकसी र्ी पाठयिम के प्रारर् म ें िवणतभ ् ं िवै िक उद्दश्े य िस्ततः अविगम-पररणाम ही होते ह।ैं इस इकाई के प्रारर् म ें र्ी िो उद्दश्े य वलख े गए ह ैं उन्ह ें ु ं र्ी अविगम-पररणाम कहा िा सकता ह।ै उद्दश्े य वलखने के िो िलै ी होते ह ै उससे यह स्पि होता ह ै वक िवै िक उद्दश्े य या अविगम पररणाम एक ही िस्त के दो अलग-अलग नाम ह।ैं उदाहराणर्थभ, इस इकाई के ु प्रारर् म ें वलख ें एक िवै िक उद्देश्य को दखे ते ह-ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 106 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3
“इस इकाई के अध्ययन के उपरात आप इस योग्य हो िाएाँग े वक अतःियै वक्तक बवद् को पररर्ावषत कर ु ं ं सकें ग”
े । इससे स्पि ह ै वक विद्यार्थी द्वारा इस इकाई के अविगम का पररणाम यह वमलेगा वक विद्यार्थी अतःिैयवक्तक ं बवद् को पररर्ावषत कर सके गा। अतः, इसे अविगम-पररणाम र्ी कहा िा सकता ह।ै ु अविगम-पररणाम के सके तक से आिय उन तथ्यों से ह,ै विनका वनरीिण यह इवगत कर द े वक अविगम ं ं के वलए तय वकए गए पररणाम प्राप्त हए या नहीं। उपरोक्त अविगम पररणाम के वलए विद्यर्थी द्वारा ु अतःिैयवक्तक बवद् की पररर्ाषा का वलखा िाना अविगम सके तक होगा। ु ं ं अविगम पररणाम के सके तक विकवसत करने का उद्दश्े य अविगम-पररणाम का मल्याकन करना होता ह।ै ू ं ं अगर विद्यार्थी में ि े सके तक वदखाई पडते ह ैं तो िावछत अविगम-पररणाम की प्रावप्त हई मानी िाती ह।ै ु ं ं अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के वलए वनम्नवलवखत अविगम-पररणाम के सके तक ु ं ं ं ं विकवसत वकए िा सकते ह:ैं पत्र-पवत्रका का आरर् करने के वलए मानवसक रुप से तत्पर होना; ं डायरी लेखन के प्रवत वििषे आकषभण; कविता या कहानी वलखने का प्रयास; अपने अनर्िों एि र्ािना के प्रवत बातचीत करने की ललक; ु ं ं दनै वन्दनी का वज़ि; ं चीिों को सहसबवित करने का प्रयास; ं ं अपनी िमता एि सीमा का िणनभ ; तर्था ं ं ं अपनी अध्ययन योिना बनाने की तत्परता 4.3.4 अतःवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम िररणाम का मलयाकन ु ू ं ं ं ं वििण-अविगम प्रविया का एक महत्िपण भ अग ह।ै िब विविि प्रकार की बवद् द्वारा अविगवमत की ू ु ं िानेिाली विषयिस्त अलग-अलग होती तो उनके मल्याकन की प्रविया एि तकनीक ह े एक िसै े नहीं ु ू ं ं हो सकते ह।ैं कहने का तात्पयभ यह ह ै वक प्रत्येक प्रकार की बवद् से सबवित अविगम-पररणाम के ु ं ं मल्याकन एक ही तकनीक का उपयोग करके नहीं वकया िा सकता ह।ै अतः, विविि प्रकार की बवद् से ू ु ं सबवित अविगम-पररणाम के वलए विविि मल्याकन तकनीकों को अपनाना चावहए। अतःियै वक्तक बवद् ू ु ं ं ं ं से सबवित अविगम-पररणाम के मल्याकन के वलए प्रयक्त वकए िा सकने िाले तकनीकों का नीचे ू ु ं ं ं उल्लेख वकया गया ह:ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 107 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 1. धवद्यािय िधत्रका के प्रकािन सबिी कायों में योगिान का उत्तरिाधयतव – विद्यार्थी को ं ं विद्यालय पवत्रका के प्रकािन के कायभ म ें सवम्मवलत कर पवत्रका के आरर् के प्रवत उनकी ं मानवसक तत्परता का मल्याकन वकया िा सकता ह ै । ू ं 2. डायरी िेखन सबिी प्रधतयोधगता- इस
प्रकार के विद्यावर्थयभ ों म ें लेखन कौिल के विकास का ं ं मल्याकन करने के वलए डायरी लेखन प्रवतयोवगता का अयोिन वकया िा सकता ह।ै प्रवतयोवगता ू ं म ें सहर्ाग करने की तत्परता एि प्रवतयोवगता के पररणाम के आिार पर उनके लेखन कौिल
का ं मल्याकन वकया िाता ह।ै ू ं 3. काव्य रचना- काव्य रचना के माध्यम से र्ी इन विद्यावर्थभतों के लेखन अकौिल का मल्याकन ू ं वकया िा सकता ह।ै सावहवत्यक विषयों के ज्ञान के मल्याकन के वलए यह तकनीक बहत उपयोगी ु ू ं होती ह।ै 4. धनबि िेखन प्रधतयोधगता एव धनबिात्मक िरीक्षण- लेखन कौिल के विकास के वलए ं ं ं वनबि लेखन प्रवतयोवगता का आयोिन वकया िा सकता ह।ै विविि विषयों से सबवित वनबि ं ं ं ं लेखन का अयोिन कर विद्यार्थी के विषय सबिी ज्ञान का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै वनबि ू ं ं ं ं लेखन के स्र्थान पर वनबिात्मक परीिण का र्ी प्रयोग वकया िा सकता ह।ै ं 5. िधमका धनवातह- समह कायों म ें मख्य र्वमका यर्था- अध््यि, सवचि आवद का वनिाभह ू ू ु ू ं अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों के
आत्मविश्वास एि िाक्पटता का मल्याकन कर सकता ु ु ु ू ं ं ं ह।ै 6. धििगी के धवधिन्न िावों िर आिाररत िररचचात का आयोिन- अविगम के पररणामों का ं विद्यार्थी के र्ाि पि पर वकतना प्रर्ाि पडता ह ै इसके मल्याकन के वलए इस तकनीक का प्रयोग ू ं वकया िा सकता ह।ै 7. अिने िीवन-िक्ष्यों का वणतन – इस तकनीक का प्रयोग कर विद्यार्थ
ी का िीिन के प्रवत िास्तविक समझ एि वनणयभ न िमता का मल्याकन वकया िाता ह।ै ू ं ं 8. िनिेखन- विद्यावर्थभयों को कोई सत्रीय कायभ द ें तर्था उनसे उस सत्रीय कायभ के वकसी प्रश्न या ु कर्थन को व.र से अपन े िब्दों म ें वलखने को कह ें विससे को िो सत्रीय काय भ को और बेहतर तरीके से समझ सकें । अभ्यास प्रश्न 1. होिाडभ गाडभनर द्वारा प्रवतपावदत बवद् के बहबवद् वसद्ात म ें बताए गए बवद् के आठों प्रकारों को ु ु ु ु ं सचीबद् कीविए । ू 2. अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों की वििषे ता का उल्लेख कीविए । ु ु ं ं 3. अविगम पररणाम के सके तक से आप क्या समझते ह ैं ? ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 108 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन के मख्य तकनीकों उल्लेख ु ू ु ं ं ं ं कीविए । 5. अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त अतमभखी होते ह ैं (सत्य/असत्य) ु ु ु ं ं 6. डायरी लेखन अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम विया नहीं ह ै । (सत्य/असत्य) ु ं ं 7. अतःिैयवक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त दवै नक लक्ष्यों को वनिाभररत नहीं कर पाते ह ैं । (सत्य/असत्य) ु ु ं 8. अपनी अध्ययन योिना स्िय बनाने के वलए तत्पर रहते ह ैं । (सत्य/असत्य) ं 4.4 अंतवैयरिक बुरि की पररर्ाषा िब्द का अर्थभ ह ै
‘दो या अविक व्यवक्तयों के मध्य का’
। इस प्रकार यह कहा िा सकता ह ै ं वक दो या अविक व्यवक्तयों के मध्य वकसी र्ी प्रकार के सबिों का वनिाभह करने की योग्यता अतियै वक्तक ं ं ं बवद् ह।ै दसरे िब्दों म ें कहा िा सकता ह ै वक अपने आसपास के व्यवक्तयों या समाि के अन्य सदस्यों के ु ू सार्थ सगमतापिकभ प्रर्ािी अतविभ या करने की योग्यता, उनके सिगे एि र्ािना को पहचानने तर्था ु ू ं ं ं ं उन्ह ें यर्थोवचत सम्मान दने े की योग्यता को अतियै वक्तक बवद् कहा िाता ह।ै उपरोक्त व्याख्या से यह स्पि ु ं ह ै वक अपने आसपास के व्यवक्त विनम ें की परस्पर अतविभ या होती ह ै के र्ािना , इच्छा , सिगे ों ं ं ं ं आवद को समझकर उनके सार्थ सबिों का वनिाभह करना ही अतियै वक्तक बवद् ह।ै इस प्रकार, ु ं ं ं अतियै भवक्तक बवद् के सप्रत्य का विस्तार करते हए यह र्ी कहा िा सकता ह ै वक मानिीय सबिों को ु ु ं ं ं ं स्र्थावपत करन े तर्था उसे बनाए रखने की योग्यता विनम ें वक मनरय की मानवसक दिा , वििेषता , ु ं ं इच्छा , मनोिवत्तयों, अवर्प्रेरणा, अन्य व्यवक्त से सीखने की र्ािना, तर्था उनके व्यवक्तत्ि के विकास में ृ ं योगदान दने े की र्ािना िावमल होती ह,ै का प्रत्यिीकरण करने तर्था उसके अनकल अनविया करने की ु ू ु योग्यता ही अतियै वक्तक बवद् ह।ै अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त के उदाहरण
के रुप में अरस्त, ु ु ु ु ं ं विवलयम मािभल पवकभ नसन आवद को वलया िा सकता ह।ै 4.4.1 अतवैयधक्तक बधद्ध से यक्त व्यधक्त की धविेषताए ँ ु ु ं इस प्रकार के बवद् से यक्त व्यवक्त की वनम्नवलवखत वििेषताए ाँ होती ह:ैं ु ु ं 1. ये बवहमखभ ी व्यवक्तत्ि के स्िामी होते ह।ैं ु 2.
इन्ह ें सामाविकता का आनद उठाना बहत अच्छा लगता ह।ै ु ं 3. ऐसे लोग समह में रहना अविक पसद करते ह।ैं ू ं 4. अन्य व्यवक्तयों को पढ़ान े में उनकी रुवच होती ह।ै 5. वमत्र बनाना इनक िक होता ह ै और इनके वमत्रों की सख्या अविक होती ह।ै ु ं 6. इन्ह ें दसरों को परामिभ दने ा पसद होता ह।ै ं ू 7. नए लोगों से वमलना-िलना, उनसे वमत्रता करना र्ी इनके वलए एक रुवचकर कायभ ह।ै ु 8. ये अन्य व्यवक्तयों के मानवसक अिस्र्था के प्रवत सिदे निील होते ह।ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 109 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 9. कम िमता िाले व्यवक्त की सहायता उसके वकसी र्ी कायभ को सपन्न करने म ें करते ह।ैं ं 10. ऐसे ब्यवक्त स्िर्ाितः सस्पि होते ह।ैं ु 11. ये किल नेता होते ह।ैं ु 12. ये वकसी र्ी प्रकार के वििादों का प्रर्ाि पण भ समािान करने में सिम होते ह।ैं ू 13. ऐसे व्यवक्त अविकाितः रािनीवतज्ञ, कटनीवतज्ञ, प्रबिक, समािसेिी, परामिकभ , वििक, ू ं ं प्रवििक, नेता आवद बनना पसद करते ह।ैं ं 14. इन व्यवक्तयों को बडी समह पररयोिना म ें कायभ करना पसद होता ह।ै ू ं ं 15. ये अपने से छोटी उम्र के लडकों के सार्थ कायभ करना पसद करते ह।ैं ं 16. अनेक लोगों से वमलना-िलना एि
अनेक प्रकार की सचनाए ाँ एकत्र करना इनका ु ू ं िौक ह।ै 4.4.2 अतवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम धक्रयाए ँ ु ं ं ं अतियै वक्तक बवद् मनरय का बाहरी ससार के सार्थ सबि वनिाभह ह ै । इस प्रकार क
े बवद् से सबवित ु ु ु ं ं ं ं ं ं अविगम वियाए ाँ वनम्नवलवखत ह:ैं a. श्रवण कौिि- ऐसे विद्यावर्थभयों को अपने श्रिण कौिल का विकास एि उनका अभ्यास करना ं चावहए। इसके वलए उन्ह ें किाकि के विद्यावर्थभयों की बातें एि वििक की बात को ध्यान से सनना ु ं चावहए। सगोष्ठी, सर्ा, र्ाषण आवद म ें सविय सहर्ाग करना चावहए तर्था वनवरिय श्रोता बनकर ं सनना चावहए। ु b. कायत-धविािन- ऐसे व्यवक्त अविकाितः रािनीवत, समाि सेिा, प्रबिन, परामािनभ , वििण, ं ं प्रवििण आवद व्यिसाय म ें िाना पसद करते ह।ैं इन व्यिसायों म ें उन्ह ें व्यवक्तयों को एक समह के ू ं सार्थ कायभ करना पडता ह।ै समह म ें प्रत्येक व्यवक्त को उसकी योग्यता के अनसार, कायभ प्रदान करना ू ु पडता ह ै तावक िो अपन े उत्तरदावयत्ि का प्रर्ािी ढग से वनिाभह कर सके । इसके वलए कायभ-विर्ािन ं की योग्यता अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों म ें होना चावहए। इसके वलए विद्यार्थी को सर्ा म ें ु ु ं प्रवतर्ावगयों की र्वमका का विश्लेषण करना चावहए तर्था इस ज्ञान का प्रयोग अन्य सर्ा म ें ू ं आयोिकों एि प्रवतर्ावगयों म ें कायभ का विर्ािन करने के वलए करना चावहए। किा म ें वििण- ं अविगम प्रविया के बेहतर सचालन के वलए विवर्न्न विद्यावर्थभयों के बीच कायभ का विर्ािन करके ं र्ी विद्यार्थी इस कौिल का विकास कर सकते ह।ैं c. अविोकन – अतियै वक्तक बवद् से यक्त यवक्त विन व्यिसायों को अपनाते ह ैं िो सामान्यतः ु ु ं सामवहक स्िरुप का होता ह ै विनम ें अन्य व्यवक्तयों की र्वमका र्ी बहत महत्िपण भ होती ह।ै इसके ु ू ू ू वलए अन्य व्यवक्तयों की मनोदिा का अिलोकन करना आिश्यक होता ह।ै अतः, विद्यावर्थभयों को हमिे ा अन्य व्यवक्तयों का अिलोक करते रहना चावहए तर्था िहााँ सर्ि हो अपने अिलोकन का ं परीिण करना चावहए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 110 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 d. िररयोिना कायत – अन्य विद्यावर्थभयों के सार्थ वमलकर पररयोिना कायभ करना चावहए। इस प्रकार िो अन्य व्यवक्तयों से वमलता ह ै एि अतविभ या करता ह।ै पररणाम्स्िरुप विवर्न्न व्यवक्तयों के सार्थ सबिों ं ं ं ं का वनिाभह करने की योग्यता बढ़ती ह।ै e. िधमका धनवातह – अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों के र्ािी व्यिसाय म ें र्वमका वनिाभह की ू ु ु ू ं बहत र्वमका होती ह।ै अतः, र्वमका वनिाभह करने का उन्ह ें प्रचर अिसर वमलना चवहए। ु ू ू ु उदाहरणस्िरुप, विज्ञान पढ़ाते समय आप विद्यावर्थभयों को विवर्न्न अतररि यावत्रयों की र्वमका का ू ं वनिाभह करने के वलए कहना चावहए। f. क्षेत्र भ्रमण – ऐसे विद्यावर्थभयों को आसपास के वकसी स्र्थानीय कारखाने म ें भ्रमण के वलए ले िाए एि उन्ह ें विवर्न्न इिेवनयरों से वमलकर बातचीत करने का अिसर प्रदान करना चावहए। बातचीत का ं ं उद्दश्े य इिीवनयरों के द्वारा उत्पावदत की िनेिाली विवर्ना िस्त की िानकारी लेनी होना चावहए। ु ं ं इस प्रकार की यात्रा वचवडयािर एि पाकभ म ें र्ी की िा सकती ह।ै ं g. मौधखक एव ग्रधफक प्रस्ततीकरण – विद्यावर्थभयों को विश्व के वकसी अन्य देि के विषय में ु ं िानकारी एकत्र कर उनका मौवखक एि ग्राव.क प्रस्ततीकरण करेने का अिसर दने ा चावहए। ु ं h. वेबसधफं ग – अपने विद्यावर्थभयों के सार्थ वमलकर इटरनेट पर गगल अर्थभ स.भ करें तर्था उनम ें से कछ ु ु ं स्र्थलाकवत यर्था महाद्वीप, टाप आवद की चचाभ कीविए । ये कायभ िलाकवत के सार्थ र्ी वकया िा ृ ृ ू सकता ह।ै i. बह अधिगम िैिी – बह अविगम िलै ी का आिय होता ह ै वक किा के विवर्न्न विद्यावर्थभयों द्वारा ु ु विवर्न्न पाठ को सीखा िाना। अपने विद्यावर्थभयों को छोटे-छोटे समह म ें विर्ावित कर उन्ह ें अलग- ू अलग पाठ पढ़ने के वलए कह ें तर्था किा म ें उस पर चचाभ करिाए।ाँ j. िष्ठिोषण – पष्ठपोषण लेने एि दने े दोनों का पयाभप्त अिसर इन्ह ें प्रदान करना चवहए। विद्यावर्थभयों को ृ ृ ं अन्य विद्यावर्थभयों के प्रस्ततीकरण पर पष्ठपोषण दने े के वलए प्रोत्सावहत करना चावहए। ृ ु k. वातातिाि – अतियै वक्तक बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों को अपने विषय, अपने कायभ तर्था िो विषय िो ु ु ं पढ़ रह े ह ैं के सदर् भ म ें अन्य व्यवक्तयों से बातचीत करने का पयाभप्त अिसर दने ा चावहए। ं 4.4.3 अतवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम-िररणाम के सके तक ु ं ं ं ं अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के वलए वनम्नवलवखत अविगम-पररणाम सके तक ु ं ं ं ं विकवसत वकए िा सकते ह:ैं विवर्न्न पररयोिना कायों म ें सहर्ाग करने के वलए मानवसक तत्परता; र्ाषण, पररचचाभ आवद म ें सविय सहर्ाग करना; दसरों का स्िवै च्छक रुप से सहयोग करना; ू अपने एि अपने कायभ के विषय म ें अन्य व्यवक्तयों के सार्थ लबी बातचीत; ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 111 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विद्यालय के विवर्न्न पाठयसहगामी विया के आयोिन में सविय र्वमका वनर्ाना; ् ू ं विवर्न्न क्लबों की सदस्यता लेना एि उनम ें सविय रहना; तर्था ं अन्य व्यवक्तयों को पढ़ाने के वलए उत्सक रहना। ु 4.4.4 अतवैयधक्तक बधद्ध से सबधित अधिगम िररणाम का मलयाकन ु ू ं ं ं ं यह बात तो स्प्षट हो चकी ह ै वक बवद् के वर्न्न-वर्न्न प्रकार वर्न्न-वर्न्न विषयिस्त के अविगम में ु ु ु सहयक होते ह ैं और इनका मल्याकन एक समान विवि से नहीं हो सकता ह।ै इनके वलए वर्न्न-वर्न्न ू ं प्रकार के तकनीक का प्रयोग करना पडता ह।ै अतियै वक्तक बवद् स े सबवित अविगम-पररणाम के ु ं ं ं मल्याकन के वलए प्रयक्त वकए िा सकने िाले कछ प्रमख तकनीकों का उल्लेख वनम्नवलवखत ह:ैं ू ु ु ु ं i. िधमका धनवातह – इस तकनीक को अतिौयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के ू ु ं ं ं मल्याकन के वलए र्ी वकया िा सकता ह।ै समह कायों में मख्य र्वमका यर्था- अध््यि, ू ू ु ू ं ं सवचि आवद का वनिाभह अतःियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों के आत्मविश्वास एि सहयोग की ु ु ं ं र्ािना का मल्याकन करने के वलए वकया िा सकता ह।ै ू ं ii. क्िब गठन – विद्यलय में विद्यावर्थभयों के एक क्लब के गठन का उत्तदाभवयत्ि देकर र्ी अतियै वक्तक बवद् मल्याकन वकया िा सकता ह।ै इस तकनीक के द्वारा विद्यर्थी के कायभ ु ू ं ं विर्ािन की िमता, अपने विचारों को अन्य विद्यावर्थभयों के सार्थ प्रर्ािपण भ ढग से साझा करन े ू ं की योग्यता का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं iii. िाषण, वाि-धववाि, िररचचात आधि – अतियै वक्तक बवद् िले विद्यार्थी र्ाषण, िाद-वििाद, ु ं पररचचा भ आवद म ें बहत रुवच प्रदवितभ करते ह।ैं उनके पाठयिम से सबवित विवर्न्न ु ् ं ं विषयिस्त पर पररचचा,भ िाद-वििाद र्ाषण आवद का आयोिन कर विद्यावर्थभयों के विषय ु ं सबिी ज्ञान तर्था उनके िक्तत्ि कला का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ृ ू ं ं ं iv. िाठय सहगामी धक्रयाओ का आयोिन- इस प्रकार के बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों म ें नेतत्ि का ृ ् ु ु ं गण होता ह।ै ि े विवर्न्न कायों के आयोिन म ें सविय र्वमका वनर्ाता ह।ै ऐसे विद्यावर्थभयों को ु ू पाठय सहगामी विया के आयोिन का उत्तरदावयत्ि देकर इनके नेतत्ि सबिी गणों का ृ ् ु ं ं ं मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं v. िररयोिना कायत – अतियै वक्तक बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों म ें पररयोिना कायभ के सचालन एि ु ु ं ं ं सपादन की महती योग्यता होती ह।ै विद्यावर्थभयों के पठयिम से सबवित विवर्न्न विषयिस्त ् ु ं ं ं ं पर आिाररत पररयोिना कायभ के सपादन की र्वमका उन्ह ें प्रदान कर विषयिस्त से सबवित ू ु ं ं ं उनके ज्ञान, समह म ें कायभ करने की उनकी दिता एि स्िवै च्छक रुप से सहयोग करने की उनकी ू ं योग्यता का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 112 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 vi. धिक्षण कायत - इस प्रकार के बवद् से यक्त विद्यार्थी अन्य विद्यावर्थभयों को पढ़ाने के वलए बहत ु ु ु उत्सक रहते ह।ैं ऐसे विद्यावर्थभयों को उनसे कवनष्ठ विद्यावर्थभयों को पढ़ान े का अिसर दके र विषय ु सबिी उनके ज्ञान एि वििण सबिी गण का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ु ू ं ं ं ं ं ं vii. धनबि िेखन प्रधतयोधगता एव धनबिात्मक िरीक्षण- इस तकनीक
का प्रयोग अतिैयवक्तक ं ं ं ं बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों के वलए र्ी वकया िा सकता ह।ै ु ु viii. स्वय का धवज्ञािन – इस प्रकार के बवद् स े यक्त विद्यार्थी स्िय के विज्ञापन को बहत पसद करते ु ु ु ं ं ं ह ैं । ऐसे मौवखक या वलवखत परीिण का विकास कर विनमबें विद्यावर्थभयों को स्िय का विज्ञापन ं करने का पयाभप्त अिसर वमले उनकी इस िमता का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै इस प्रकार क
े ू ं परीिण म ें स्िय के विषय म ें वलखने, स्िय के कायभ के विषय म ें वलखने या परी किा म ें चचा भ ू ं ं करने िसै े कायभ-कलाप िावमल हो सकते ह।ैं अभ्यास प्रश्न 9. अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्तयों के उदाहरण द।ें ु ु ं 10. अतियै वक्तक बवद् से व्यवक्त विन व्यिसायों म ें िाना पसद करते ह,ैं उन्ह ें सचीबद् कीविए । ु ू ं ं 11. अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त के वलए िाताभलाप का प्रयोग अविगम विया के रुप म ें कै से ु ु ं वकया िा सकता ह?ै 12. अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन के वलए पररयोिना कायभ कै से ु ू ं ं ं ं सहायक ह?ै 13. स्िय का विज्ञापन___________ बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन की एक ु ू ं ं ं ं तकनीक ह।ै 14. अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त दसरों का स्िवै च्छक रुप से ___________ करते ह।ैं ु ु ं ू 15. ___________ बवद् मनरय का बाहरी ससार के सार्थ वनिाभह करने की योग्यता ह।ै ु ु ं 16. अतियै वक्तक बवद् से यक्त व्यवक्त दसरों के मानवसक अिस्र्था के प्रवत ___________ होते ह।ैं ु ु ं ू 4.5 प्रकृरतवादी बुरि की पररर्ाषा प्रकवतिादी िब्द प्रकवत से सबवित होने का अर्थभ दते ा ह।ै अतः, प्राकवतक बवद् से आिय व्यवक्त की उस ृ ृ ृ ु ं ं योग्यता से ह ै िो उसे सिीि िस्त , ग्रह, अपने र्ौवतक िातािरण, आवद के सबि में िानने तर्था ु ं ं ं समझने की िमता
प्रदान करता ह।ै इस प्रकार, की बवद् िन्मिात नहीं होती ह।ै इसे अवितभ करना पडता ु ह।ै प्रकवतिादी बवद् से यक्त लोगों म ें प्रकवत के प्रवत सिदे निीलता एि स्िीकवत के र्ाि विकास क
ी ृ ृ ृ ु ु ं ं उच्च अिस्र्था म ें होते ह।ैं ऐसे व्यवक्त म ें प्रकवत को समझने ि स्िय का प्रकवत म ें स्र्थान वनिाभररत करने की ृ ृ ं योग्यता होती ह।ै ऐसे व्यवक्त विविि प्राकवतक प्रारुपों में आसानी से विर्दे कर लेते ह।ैं बवद् के गाडभन द्वारा ृ ु प्रवतपावदत बहबवद् वसद्ात म ें बताए गए बवद् के आठ
प्रकारों में से प्राकवतक बवद् को बवद् का सबसे ु ृ ु ु ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 113 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 निीन प्रकार माना िाता ह।ै गाडभनर द्वारा प्रवतपावदत बवद् के इस प्रकार क
ी आलोचना र्ी की िाती ह ै । ु आलोचकों का यह मानना ह ै वक यह बवद् के बिाय रुवच ह।ै उपयभक्त वििचे न के आिार पर यह कहा िा ु ु सकता ह ै वक व्यवक्त की, स्िय को प्रकवत से सबवित करने, प्रकवत में अपना स्र्थान वनिाभररत करने एि ृ ृ ं ं ं ं प्रकवत के प्रवत सपणभ ज्ञान एि समझ विकवसत करने की योग्यता, विसे अवितभ करना पडता ह,ै को ृ ू ं ं प्राकवतक बवद् कहते ह।ैं प्रकवतिादी बवद् से यक्त व्यवक्त के उदाहरण के रुप म ें चाल्सभ डाविनभ को वलया ृ ृ ु ु ु िा सकता ह।ै 4.5.1 प्रकधतवािी बधद्ध से यक्त व्यधक्त की धविेषताए ँ ृ ु ु प्रकवतिादी बवद् से यक्त व्यवक्तयों की वनम्नवलवखत वििषे ताए ाँ होती ह:ैं ृ ु ु 1. इस प्रकार के बवद् से यक्त व्यवक्त सव्यिवस्र्थत होते ह।ैं ु ु ु 2. इनम ें प्रकवत के प्रवत वििेष सिदे निीलता पाई िाती ह।ै ृ ं 3. ये प्रदषण के प्रवत वचवतत वदखाई पडते ह।ैं ं ू 4. इन्ह ें पालत पि से अत्यविक प्रेम होता ह।ै ु ु ं 5. इनको प्रकवत के विषय म ें िानकारी एकत्र करने की प्रवत बहत उत्सकता होती ह।ै ु ृ ु 6. बागिानी म ें इनका वििेष रुझान होता ह।ै 7. प्राकवतक स्र्थानों के भ्रमण के वलए ये हमिे ा उत्सक रहते ह।ैं ृ ु 8. मौसम म ें हो रह े वनरतर पररितभन के विश्लेषण के प्रवत ये आकवषतभ रहते ह।ैं ं 9. एक समान वदखने िाल े िस्त में सक्ष्म अतर स्र्थावपत करने की इनम ें वििषे योग्यता होती ह।ै ु ू ं ं 10. यह विवर्न्न प्रिावत के पवियों, पि एि िनस्पवतयों को िगीकत करने में सिम होते ह।ैं ृ ु ं ं इस प्रकार के बवद् से यक्त व्यवक्त सामान्यतः बागिानी वििेषज्ञ, वकसान, पि-प्रवििक, िनस्पवत ु ु ु विज्ञानी, समि िीि विज्ञान, पि-वचवकत्सक आवद व्यिसायों को अपनाना चाहते ह।ैं ु ु 4.5.2 प्रकधतवािी बधद्ध से सबधित अधिगम धक्रयाए ँ ृ ु ं ं बवद् के अन्य प्रकर की र्ााँवत इस प्रकार के बवद् से र्ी सबवित कछ अविगम वियाए ाँ आयोवित की िा ु ु ु ं ं सकती ह।ै इन विय के माध्यम से प्रकवतिादी बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों विवर्न्न विषयों का ज्ञान प्रदान ृ ु ु ं वकया िा सकता ह।ै इस प्रकार के बवद् स े सबवित कछ महत्िपण भ अविगम वियाए ाँ का उल्लेख वनम्नित ु ु ू ं ं ह:ै i. क्षेत्र अर्वा िैधक्षक भ्रमण – भ्रमण आरर् से ही अविगम की एक विवि रही ह।ै बहत सारे ु ं विदिे ी विद्वानों ने यर्था ह्वेंसाग, .ाह्यान आवद ने र्ारत भ्रमण करके यहााँ की सस्कवत एि सभ्यता ृ ं ं ं के विषय म ें बहत कछ सीखा। इसके तहत वकसी िहर के सीमात प्रदिे ों का भ्रमण करना, वकसी ु ु ं उद्यान का भ्रमण करना, वकसी वचवडयािर का भ्रमण करना आवद वियाए ाँ िावमल की िाती ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 114 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इन विया का उद्दश्े य
सीमात प्रदिे ों की र्ौगोवलक वस्र्थवत की िानकारी प्राप्त करना, विवर्न्न ं ं प्रकार के परपों, पौिों आवद का ज्ञान प्राप्त करना, वचवडयािर म ें रहनेिाले विवर्न्न प्रकार के ु पि एि उनके प्रिावतयों के सबि म ें िानकारी प्राप्त करन
ा होता ह।ै ु ं ं ं ii. अविोकन – प्राकवतक बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों के वलए अिलोकन एक महत्िपण भ अविगम ृ ु ु ू सबिी विया हो सकती ह।ै ि े मौसम म ें हो रह े पररितभन का वनरतर अिलोकन कर उनका ं ं ं अवर्लेख रख सकते ह।ैं इसके सार्थ ही विद्यार्थी िातािरण सबिी अन्य तथ्यों का र्ी अिलोकन ं ं कर सकता ह।ै iii. िेखन – लेखन कायभ की सहायता से विद्यार्थी सीख े गए ज्ञान का औअर विस्तार करता ह।ै िो मौसम एि िातािरण के सबि म ें अिलोवकत वकए गए तथ्यों को वलख सकता ह।ै उद्यान में दखे े ं ं ं गए परपों एि पौिों को िर्ग़ीकत कर सकता ह।ै वचवडयािर के पि को उनके प्रिावत के ृ ु ु ं ं आिार पर िगीकत कर सक्ता ह।ै प्रकवत के विषय म ें अपने विचार वलख सकता
ह।ै इस प्रकार ृ ृ लेखन कायभ के द्वार िो प्रकवत के सबि म ें अपने ज्ञान का विकास कर सकता ह।ै ृ ं ं iv. िररयोिना कायत – यह एक ऐसी अविगम सबिी विया ह ै िो वक वकसी र्ी प्रकार के बवद् से ु ं ं सबवित हो सकती ह।ै प्राकवतक बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों के वलए पररयोिना कायभ के रुप म
ें ृ ु ु ं ं प्राकवतक िस्त यर्था पवियों के पख पवत्तया एि .लों को एकवत्रत करना का कायभ वदया िा ृ ु ू ं ं ं ं सकता ह।ै विवर्न्न िैज्ञावनक यत्रों, यर्था – टेलीस्कोप, सक्ष्मदिी, आवद का प्रयोग कर उनके ू ं प्रयोग विवि पर एक प्रवतिदे न तैयार करना र्ी एक पररयोिना कायभ हो सकता ह।ै 4.5.3 प्रकधतवािी बधद्ध से सबधित अधिगम िररणाम के सके तक ृ ु ं ं ं अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के वलए वनम्नवलवखत अविगम-पररणाम सके तक ु ं ं ं ं विकवसत वकए िा सकते ह:ैं विवर्न्न पररयोिना कायों म ें सहर्ाग करने के वलए मानवसक तत्परता; र्ाषण, पररचचाभ आवद म ें सविय सहर्ाग करना; दसरों का स्िवै च्छक रुप से सहयोग करना; ू अपने एि अपने कायभ के विषय म ें अन्य व्यवक्तयों के सार्थ लबी बातचीत; ं ं विद्यालय के विवर्न्न पाठयसहगामी विया के आयोिन में सविय र्वमका वनर्ाना; ् ू ं विवर्न्न क्लबों की सदस्यता लेना एि उनम ें सविय रहना; तर्था ं अन्य व्यवक्तयों को पढ़ाने के वलए उत्सक रहना। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 115 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.5.4 प्रकधतवािी बधद्ध से सबधित अधिगम िररणाम का मलयाकन ृ ु ू ं ं ं प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन के वलए वनम्नवलवखत तकनीकों
का प्रयोग ृ ु ू ं ं ं वकया िा सकता ह।ै i. िररयोिना कायत – विद्यावर्थभयों प्रकवत से सबवित विवर्न्न प्रकार के पररयोिना काय भ यर्था – ृ ं ं मौसमी .सलों के वचत्र एकत्र करना, .सलों पर विवर्न्न प्रकार के िलिाय के प्रर्ाि का वचत्रीय ु प्रदिनभ , प्रदषण के विवर्न्न सािनों का नमना एकत्र करना, आवद का सपादन करने के वलए ू ं ू वदया िा सकता ह।ै इस प्रकार
प्रकवत सबिी उसके ज्ञान एि पररयोिना कायभ म ें सहर्ाग करने ृ ं ं ं की तत्परता दोनों का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं ii. िररचचात, सगोष्ठी आधि – पयाभिरण प्रदषण, िलिाय पररितभन एि प्रकवत से सबवित विवर्न्न ृ ु ं ं ं ं ू तथ्यों यर्था – विवर्न्न प्रकार के िलिाय म ें कवष, आवद विषयों पर पररचचाभ या सगोष्ठी का ृ ु ं आयोिन कर विद्यावर्थभयों का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ू ं iii. धिक्षण कायत द्वारा – प्राकवतक बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों के मल्याकन के वलए उनसे कवनष्ठ ृ ु ु ू ं छात्रों का अध्यापन करिाया िा सकता ह।ै चाँवक इस प्रकार के बवद् से यक्त विद्यावर्थभयों को ू ु ु अध्यापन कायभ बहत पसद होता ह।ै अतः, ये बहत मनोयोग के सार्थ अध्यापन कायभ करते ह।ैं ु ु ं इससे विषयिस्त पर उसके स्िावमत्ि का पता चलता ह।ै ु iv. िाठय सहगामी धक्रया का आयोिन – इस प्रकार के बवद् से यक्त विद्यार्थी पाठयसहगाम े ् ् ु ु विया के आयोिन के वलए बहत तत्पर रहते ह।ैं प्रत्येक विद्यार्थी को अपन े पाठयिम म ें ु ् ं िवमल प्रकवत से सबवित विषयिस्त के आिार पर एक पाठयसहगामी विया का विकास करन े ृ ् ु ं ं के वलए कह ें तर्था अपने विद्यालय म ें उसका आयोिन करने के वलए कह।ें v. धनबिात्मक िरीक्षण – प्रकवत से सबवित विवर्न्न विषयिस्त पर आिाररत वनबिात्मक ृ ु ं ं ं ं परीिण का विकास कर विद्यावर्थभयों के प्राकवतक बवद् का मल्याकन वकया िा सकता ह।ै ृ ु ू ं अभ्यास प्रश्न 17. प्राकवतक बवद् को अपने िब्दों म ें पररर्ावषत कीविए । ृ ु 18. प्राकवतक बवद् से सबवित अविगम विया के रुप म ें अिलोकन की र्वमका स्पि कीविए । ृ ु ू ं ं 19. वििण कायभ द्वारा प्राकवतक बवद् से सबवित अविगम पररणाम का मल्याकन कै से वकया िा ृ ु ू ं ं ं सकता ह?ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 116 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.6 सारांश प्रस्तत इकाई म ें होिाडभ गाडभनर द्वारा प्रवतपावदत बहबवद् के वसद्ात म ें िवणतभ आठ प्रकार के बवद् म ें से ु ु ु ु ं अतःिैयवक्तक, अतियै वक्तक एि प्राकवतक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के मल्याकन के वलए ृ ु ू ं ं ं ं ं ं प्रयक्त वकए िानेिाले विवर्न्न तकनीकों का िणनभ वकया गया ह।ै सप्रत्यय की गहन समझ विकवसत करने ु ं के वलए इकाई के प्रारर् म ें इन तीनों प्रकार की बवद् की पररर्ाषा का र्ी िणनभ वकया गया ह।ै विवर्न्न ु ं ं प्रकार की बवद् से यक्त व्यवक्तयों की वििषे ता का र्ी िणनभ वकय गया ह।ै इस प्रकार यह वििण- ु ु ं अविगम म ें िावमल व्यवक्तयों के वलए बहत उपयोगी ह।ै ु 4.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4. दखे ।ें ं 2. इस इकाई के प्रश्न के वलए इस इकाई का खड इकाई 4.4 दखे ें। ं 3. अविगम-पररणाम के सके तक से आिय उन तथ्यों से ह,ै विनका वनरीिण यह इवगत कर द े वक ं ं अविगम के वलए तय वकए गए पररणाम प्राप्त हए या नहीं। ु 4. इस इकाई
के प्रश्न के वलए इस इकाई का खड इकाई 4.व दखे ें। ं 5. सत्य 6. असत्य 7. असत्य 8. सत्य 9. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.8 दखे ें ं 10. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.9 दखे ें ं 11. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.11 देखें ं 12. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.12 देख ें ं 13. अतियै वक्तक ं 14. सहयोग 15. अतियै वक्तक ं 16. सिदे निील ं 17. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.1 देखें ं 18. इस प्रश्न के उत्तर के वलए इस इकाई का खड 4.15 देख ें ं 19. इस प्रश्न के उत्तर
के वलए इस इकाई का खड 4.1व देखें ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 117 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.8 सदं र् भग्रंथ सची एवं सहयोगी पुस्तकें ू 1. वगलमनै , वलन (2012). द थ्योरी ऑ. मवल्टपल इटेवलिेंस. इवडयाना यवनिवसभटी. ु ं ं 2. स्लाविन, रॉबटभ (2009). एिके िनल साइकोलॉिी. ु 3. वसह, अरुन कमार . उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान. मोतीलाल बनारसीदास, िाराणसी. ु ं 4.9 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. अतःिैयवक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख करते हए मल्याकन के ु ु ू ं ं ं ं ं वलए प्रयक्त वकए िानेिाले विवर्न्न तकनीकों का िणनभ कीविए । ु 2. अतियै वक्तक बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख करते हए मल्याकन के वलए ु ु ू ं ं ं ं ं प्रयक्त वकए िानेिाले विवर्न्न तकनीकों का िणनभ कीविए । ु 3. प्रकवतिादी बवद् से सबवित अविगम पररणाम के सके तक का उल्लेख करते हए मल्याकन के वलए ु ृ ु ू ं ं ं ं प्रयक्त वकए िानेिाले विवर्न्न तकनीकों का िणनभ कीविए । ु 4. अतःिैयवक्तक बवद् का प्रदिनभ करते हए एक पाठयसहगामी विया का आयोिन कीविए । ु ् ु ं 5. अतियै वक्तक बवद् का प्रदिनभ का करते हए एक पाठयसहगामी विया क आयोिन कीविए । ु ् ु ं 6. प्रकवतिादी बवद् का प्रदिनभ का आयोिन करते हए एक पाठयसहगामी विया का आयोिन कीविए। ु ृ ् ु 7. एक ऐसे पररयोिना कायभ का विकास कीविए विसकी सहायता से विद्यार्थी के अतःियै वक्तक, ं अतियै वक्तक तर्था प्रकवतिादी बवद् का मल्याकन हो सके । ृ ु ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 118 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 5- आकलन के तितिन्न उपकरण (कायों के तितिन्न प्रकार: असाइनमेंि, प्रोजेक्ि, परीिण एिं उसके तितिन्न प्रकार, स्ि मूलयाकं न, सिपाठी मूलयांकन, पोिभफोतलयो) 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 असाइनमेंट एक सतत मल्याकन उपकरण ू ं 5.3.1 असाइनमेंट की वििेषताए ं 5.3.2 असाइनमेंट के विवर्न्न प्रकार 5.3.3 असाइनमेंट वनमाभण के विवर्न्न चरण 5.4 पररयोिना 5.4.1 पररयोिना के चरण 5.4.2 पररयोिना / प्रोिेक्ट के गण ु 5.5 उपलवब्ि परीिण एि उसकी वििेषताए एि विवर्न्न प्रकार ं ं ं 5.6 स्ि-आकलन 5.7 सहपाठी आकलन एक सतत मल्याकन उपकरण ू ं 5.7.1 सहपाठी आकलन की वििेषताए ं 5.8 पोटभ.ोवलयो 5.8.1 पोटभ.ोवलयो एि उसके प्रकार ं 5.8.2 पोटभ.ोवलयो के कायभ 5.8.3 पोटभ.ोवलयो के लार् 5.9 साराि ं 5.10 अभ्यास प्रश्न 5.11 सन्दर्भ ग्रर्थ सची एि अन्य अध्ययन ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 119 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.1 प्रस्तावना िसै ा की आप िानते ह ैं सचना विस्.ोट के ितभमान समय में विद्यार्थी न तो ज्ञान का एक वनवरिय ग्रहण ू कताभ रह गया ह ै और न ही वििक ज्ञान प्रावप्त एक मात्र सािन । ितभमान समय म ें वििण अविगम की प्रविया म ें वििक एि
विद्यार्थी दोनों की िषों से चली आ रही र्वमका समयानकल पररितभन चाह रही ू ु ू ं ह।ै वििण अविगम की प्रविया म ें आ रह े पररितभनों से विद्यावर्थभयों के िवै िक सप्रावप्त के आकलन की ं प्रविया र्ी अछती नहीं ह ै । र्ारत म ें राररीय पाठयचचाभ की रूपरेखा (N.C.F.) 2005 ने विद्यार्थी के ् ू आकलन एि ितभमान परीिा व्यिस्र्था म ें व्यापक बदलाि की आिश्यकता पर बल वदया ह ै । वििण- ं अविगम एि तदनसार आकलन का उदश्े य र्ी एक सिनात्मक विद्यार्थ
ी िो अपने समाि एि सास्कवतक ृ ृ ु ं ं ं मल्यों के प्रवत सिदे निील हो, तैयार करना हो गया ह।ै राररीय पाठयचचाभ की रूपरेखा 2005 ने िो ् ू ं अपेवित पररितभन सझाये ह:ैं उनम े ज्ञान को स्कल के बाहर के िीिन, विद्यार्थी के समाि एि सस्कवत स े ृ ु ू ं ं िोडना, तोतारटत ज्ञान प्रदान करने एि पाठयचचाभ के पाठयपस्तक पर के वन्ित रहने की बिाए विद्यावर्थभयों ् ् ु ं ं के समग्र विकास की र उन्मख बनाना, परीिा को व्यापक एि अविक लचीला बनाना आवद प्रमख ु ु ं ं ह ैं । आकलन की प्रविया को विद्यार्थी के सम्पण भ आकलन योग्य बनाने के वलए विवर्न्न प्रकार के ू पारपररक एि निीन आकलन उपकरणों की आिश्यकता होगी। इस इकाई म ें आप विवर्न्न प्रकार के ं ं आकलन उपकरणों के बारे म ें िानेंग े िो विद्यार्थी के समग्र आकलन के वलए उपयक्त हो सकते ह।ैं ु 5.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- 1. आकलन के विवर्न्न उपकरणों का िणनभ कर सकें ग े 2. परीिण एि एि इसके विवर्न्
न प्रकारों की चचाभ कर सकें ग े ं ं 3. िवै िक आकलन म ें प्रयक्त विवर्न्न अन्य कायों यर्था प्रोिक्े ट, असाइनमटें आवद की व्याख्या कर ु सकें ग े 4. पोटभ.ोवलयो एि उसके प्रकारों क
ो बता सकें ग े ं 5. स्ि मल्याकन एि इसके महत्ि का िणनभ कर सकें ग े ू ं ं 6. सहपाठी मल्याकन एि उसके महत्ि की चचाभ कर सकें ग े ू ं ं 5.3 असाइनमि एक सतत मूलयांकन उपकरण ें वििा एि मल्याकन म ें असाइनमटें का स्र्थान अत्यत महत्िपण भ ह।ै असाइनमटें का सामान्य अर्थभ उस ू ू ं ं ं गहकायभ से ह ै विसे विद्यार्थी को सतत अध्ययन के दौरान परा करना होता ह।ै िस्ततः असाइनमटें सतत ृ ू ु एि व्यापक मल्याकन अर्थिा सरचनात्मक मल्याकन का एक अवर्न्न अग ह।ै असाइनमेंट के मल्याकन ू ू ू ं ं ं ं ं ं से वििक को
विद्यार्थी के विवर्न्न मिबत एि कमिोर पिों की िानकारी हो िाती ह ै और तदनसार ू ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 120 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वििक विद्यार्थी को उसके अविगम म ें सिार के वलए प्रवतपवि असाइनमटें पर उपयक्त कमटें के द्वारा ु ु ु प्रदान करता ह ै िो विद्यार्थी को उसके अविगम एि प्रस्ततीकरण कौिलों म ें सिर करने म ें मदद करता ह।ै ु ु ं टेक्सास विश्वविद्यालय के अनसार
‘असाइनमटें का तात्पयभ उन कायों से ह ै विनम े विद्यार्थी की सलग्नता ु ं आिश्यक ह ै एि विसके पररणाम वििक को मल्याकन में यह िानने म ें सहायता करता ह ै वक विद्यार्थी ू ं ं क्या िानता ह ै या क्या नहीं िानता ह’
ै । (Assignments are tasks requiring student engagement and a final tangible product that enables you to assess what your students know and don’t know. They represent the most common ways to assess learning). 5.3.1 असाइनमेंट की धविेषताए (Characteristics of Assignment) ं असाइनमटें के विवर्न्न कायभ वनम्नावकत ह:ै ं धवद्यार्ी को उससे अिेधक्षत व्यवहार की समझ असाइनमटें
के द्वारा विद्यार्थी के सामने यह स्पि हो िाता ह ै वक उनसे वकस प्रकार के अविगम अनर्ि अपेवित ह।ैं ु कायत को कै से धकया िाय इसकी समझ असाइनमटें के द्वार
ा विद्यावर्थभयों को यह समझाने का प्रयास र्ी वकया िाता ह ै वक वदए गए कायभ को कै से वकया िाना ह ै तावक विद्यार्थी उसके अनसार ु अपना सिोत्तम प्रदिनभ कर सकें । असाइनमेंट धवद्यार्ी को धवषय को सम्िणतता में समझने में सहायता प्रिान करता है: ू असाइनमटें विषय वििेष के मल्याकन से सम्बवन्ित विवर्न्न पिों एि मल्याकन हटे ी प्रयक्त ू ू ु ं ं ं विवर्न्न प्रविया को वदए गए अविर्ारों की िानकारी र्ी हो िाती ह ै । ं असाइनमेंट धवद्याधर्तयों की व्यधक्त धिन्नता के अनसार उनके आकिन में सहायक है: ु असाइनमटें एक विद्यार्थी के अविगम, उसके लेखन एि उसकी िलै ी की िानकारी वििक को ं प्रदान करने म ें सहायक ह ै तावक वििक उनकी व्यवक्तगत िवै िक आिश्यकता को यर्था ं सर्ि परा करने का प्रयास कर सके । ू ं िचीिािन: असाइनमटें मल्याकन की प्रविया को लचीला बना दते ा ह ै क्यों वक असाइनमटें ू ं परा करने के वलए विद्यार्थी आपनी गवत, आपने समय, एि अपने तरीके से परा करने के वलए ू ू ं स्ितत्र होता ह ै । ं असाइनमेंट धवद्यार्ी में प्रिावी अध्ययन आितों एव ज्ञान के उियोग की आित को ं बढ़ावा िेता है सार्थ ही सामवहक असाइनमटें विद्यार्थी म ें समह र्ािना का र्ी विकास करता ह।ै ू ू योगात्मक आकिन का िरक (Complementary to Summative Assessment): ू िस्ततः असाइनमटें सतत एि व्यापक मल्याकन के िम म ें योगात्मक आकलन का परक ह ै िो ु ू ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 121 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विद्यार्थी के सम्पण भ आकलन म ें सहायता करता ह ै िसै ा वक रूर्थ माइके ल ने वलखा ह ै विद्यार्थी ू वदए गए असाइनमटें से बेहतर कछ र्ी नहीं कर सकता ह ै । ु असाइनमेंट की सीमायें: अवतररक्त ससािन की आिश्यकता । ं किा समय बढ़ाने की आिश्यकता । असाइनमटें वििण के आरवर्क स्तर पर ज्यादा उपयोगी नहीं ह ै । ं 5.3.2 असाइनमेंट के धवधिन्न प्रकार (Types of Assignment) असाइनमटें के विर्ीन प्रकारों म ें सामान्य िस्तवनि प्रश्नों से लेकर प्रायोवगक कायभ तक ि े सर्ी वियाए ु ं िावमल ह ै विनके द्वारा विद्यार्थी का मल्याकन वकया िा सकता ह ै । सवििा की दृिी स े असाइनमटें को ु ु ं वनम्नावकत श्रेवणयों म ें िगीकत वकया िा सकता ह:ै ृ ं सामन्य प्रश्न िाले असाइनमटें आलेख अनसन्िान पत्र / िोि पत्र ु मौवखक प्रस्ततीकरण ु विवर्न्न प्रकार की पररयोिनाए ं के स अध्ययन प्रयोगिाला से सम्बवित असाइनमटें ं असाइनमेंट को उपयक्त ग्रेड प्रदान करना ु 5.3.3 असाइनमेंट धनमातण के धवधिन्न चरण धनम्नाधकत हैं: ं असाइनमेंट का मल्याकन ू ं विद्यार्थी की आिविक प्रगवत की समीिा अकन के मानदडों का वनिाभरण ं ं असाइनमेंट का वनमाभण करें असाइनमेंट का उपयक्त प्रकार तय करें ु अविगम उद्देश्यों की पहचान उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 122 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.4 पररयोिना (Project) एक सतत मूलयाकं न उपकरण धिक्षण एव अधिगम के क्षेत्र में िररयोिना धवधि के िनक के रूि में धकििेधिक (W.H. ं Kilpatrik) को िाना िाता ह।ै पररयोिना विवि वििण की एक सिक्त विवि के रूप म ें उर्री ह ै विसका आिार सरचनात्मक विचारिारा ह।ै यवद प्रर्ािी ढग से प्रयोग वकया िाये तो पररयोिना विवि ं ं विद्यार्थी के समग्र आकलन का एक उपयक्त उपकरण ह ै िो विद्यार्थी की रचनात्मकता, मौवलकता एि ु ं प्रस्ततीकरण के आकलन म ें सहायक ह।ै वकलपैवक्रक (Kilpatrick, 1921) के अनसार
“प्रोिक्े ट िह ु ु उद्दश्े यपण भ कायभ ह ै विसे लगन के सार्थ सामाविक िातािरण म ें वकया िाता ह”
ै । इसम ें छात्र अपनी रुवच ि ू इच्छा के अनसार कायभ करता ह।ै ु 5.4.1 िररयोिना के चरण 1. समस्या का चयन उपयक्त पररवस्र्थवत उत्पन्न करना / ु 2. पररयोिना का चनाि और उसके उद्दश्े य के बारे म ें स्पि ु ज्ञान 3. पररयोिना का व्यिवस्र्थत कायभिम बनाना 4. योिनानसार कायभ करना ु 5. कायभ का मल्याकन करना ू ं 6. सम्पण भ कायभ का आलेखन प्रविया म ें परामि भ दने ा ू िररयोिना धवधि के चरण चावहए। 5.4.2 िररयोिना / प्रोिेक्ट के गण (Merits of Project) ु पररयोिना विवि मनोिैज्ञावनक वसद्ातों पर आिाररत ह ै ं यह एक विद्यार्थी के वन्ित विवि ह ै विसम े विद्यावर्थभयों की स्िार्ाविक रूवचयों, मनोिवत्तयों और ृ चेिा का परा परा ध्यान रखा िाता ह।ै ू ू ं पररयोिना विवि विद्यावर्थभयों को कायभ करन े की स्ितत्रता दके र उनकी विज्ञासा, रचनात्मकता एि ं ं खोि प्रिवत्त को बढ़ािा दते ा ह ै । ृ पररयोिना विवि से
विद्यार्थी अपने िास्तविक िीिन की समस्या को सलझाने का प्रवििण लेते ह ैं ु ं तर्था प्राप्त ज्ञान को िीिन म ें उपयोग करना सीखते ह।ैं पररयोिना विवि म ें समह म ें काम करते हए विद्यार्थ
ी गवणत तो सीखते ही ह ैं सार्थ ही यह उनम े ु ू िनतावत्रक र्ािना एि उत्तरदावयत्ि की र्ािना, सवहरणता, िैयभ, कतभव्यवनष्ठता, पारस्पररक प्रेम ु ं ं ं एि सहयोग की र्ािना आवद सामाविक गणों का विकास
र्ी होता ह।ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 123 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इस विवि म ें विद्यार्थी की सविय र्ागीदारी एि प्रत्यि अनर्िों एि विया द्वारा ज्ञान प्राप्त करते के ु ं ं ं कारण स्पि एि स्र्थायी ज्ञान प्राप्त होता ह
।ै ं पररयोिना विवि विद्यावर्थभयों की अन्िषे ण प्रिती का विकास करता ह।ै ृ िररयोिना धवधि के िोष एव सीमाए (Limitations of Project) ं ं पररयोिना विवि से प्रायः िमबद् ज्ञान दने ा सम्र्ि नहीं हो पाता। पररयोिना विवि से वििण हते समय, िन एि श्रम बहत अविक लगता ह।ै ु ु ं वनवश्चत पाठयिम इस नीवत से परा करना कवठन ह।ै ् ू वििक को अविक पररश्रम करना पडता ह।ै 5.5 उपलष्ब्ध परीिण एवं उसकी रवशेषताए ं एवं रवरर्न्न प्रकार परीिण का सामान्य अर्थभ उन पररवस्र्थवतयों के उत्पन्न वकये िाने से ह ै विनम े व्यवक्त / विद्यार्थी ने क्या सीखा यह िाना िा सके । औपचाररक रूप स े परीिण विवर्न्न आइटम का िह समह ह ै िो व्यवक्त/ ू विद्यार्थी द्वारा उसपर की गयी अनविया के द्वारा उसके आकलन म ें सहायक ह।ै विवर्न्न मानदडों के ु ं आिार पर परीिणों विवर्न्न प्रकार हो सकते ह ैं िसै े बवद् परीिण, अवर्िवत परीिण आवद िो परीिण ृ ु के उद्दश्े यों पर आिाररत ह,ै मानक एि वििक वनवमतभ परीिण िो मानकीकरण के मानदडों पर आिाररत ं ं ह,ै िसवनस्ठ एि आत्मवनष्ठ परीिण िो वक प्रश्नों की प्रवत पर आिाररत ह ै आवद। यहााँ पर आप ृ ु ं मानकीकत और अमनाकीकत परीिण एि िस्तवनष्ठ एि वनबिात्मक परीिण के बारे म ें मख्य रूप से ृ ृ ु ु ं ं ं िानेंग े िो प्रायः विद्यार्थी के सप्रावप्त के परीिण म ें प्रयोग वकये िाते ह।ैं ं उििधब्ि िरीक्षणों के उद्देश्य (Aims of Achievement Test) उपलवब्ि परीिणों के प्रमख उद्दश्े य वनम्नवलवखत ह:ैं ु इन परीिणों के आिार पर वििण विवियों की उपयोवगता एि कवमयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता ं ह।ै वििा के उद्दश्े यों की प्रावप्त वकस सीमा तक हई ह ै यह उपलवब्द् परीिणों के द्वारा िाना िा ु सकता ह ै । इन परीिणों द्वारा िवै िक, व्यािसावयक एि व्यवक्तगत वनदिे न म ें सहायता ली िाती ह।ै ं वकसी किा के विवर्न्न विद्यावर्थभयों ने िष भ र्र म ें विवर्न्न विषयों म ें वकतनी योग्यता प्राप्त की ह ै इसका ज्ञान उपलवब्ि परीिण से होता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 124 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वििकों का अध्यापन वकस सीमा तक स.ल हो रहा ह ै इसको उपलवब्ि परीिण द्वारा ही िाना िा सकता ह।ै इन परीिणों के पररणामों को िानकर छात्रों को अध्ययन स े सम्बवित परामि भ प्रदान वकया िा ं सकता ह।ै इन परीिणों द्वारा छात्रों के विषय वििेष पर सप्रावप्त का स्तर का अनमान लगाया िा सकता ह।ै ु ं इन परीिणों द्वारा प्राप्त सचना के आिार पर पाठयिम म ें आिश्यक पररितभन वकया िा ् ू ं सकता ह।ै िरीक्षणों के प्रकार (Types of Tests) प्रिासन के आिार िर वगीकरण व्यधक्तगत िरीक्षण (Individual Test) - व्यवक्तगत परीिणों से तात्पयभ उन परीिणों से ह ै विनका प्रिासन एक समय म ें एक ही छात्र पर वकया िा सकता ह।ै मौवखक परीिण प्रायः व्यवक्तगत रूप से ही प्रिवसत वकए िाते ह।ैं कछ बवद् परीिणों का प्रिासन र्ी व्यवक्तगत रूप से वकया िाता ह।ै इन परीिणों ु ु का सबसे बडा गण यह होता ह ै वक मापनकताभ का सम्पण भ ध्यान विद्यार्थी वििषे पर ही रहता ह ै परन्त ु ू ु इनम ें समय, िवक्त और िन अविक लगता ह।ै अतः इनका प्रयोग कछ अपररहायभ पररवस्र्थवतयों म ें ही वकया ु िाता ह।ै समधहक िरीक्षण (Group Test) - इस िग भ म ें ि े परीिण आते ह ैं विनका प्रिासन एक समय और ू एक सार्थ छात्रों के बडे से बडे समह पर वकया िाता ह।ै वलवखत परीिण प्रायः सामवहक रूप से ही ू ू प्रिावसत वकए िाते ह।ैं इन परीिणों का बडा गण यह ह ै वक इनके द्वारा एक समय म ें एक सार्थ छात्रों के ु बडे से बडे समह की योग्यता का मापन वकया िा सकता ह ै विससे समय िवक्त और िन की बचत होती ू ह।ै परन्त इनके द्वारा विद्यार्थी वििषे की विषय को समझने म ें कवठनाई नहीं समझी िा सकती, उसके वलए ु व्यवक्तगत परीिणों का प्रयोग करना होता ह।ै मानकीकरण के आिार िर वगीकरण धिक्षक धनधमतत िरीक्षण (Teacher Made Tests) - इस िग भ म ें ि े परीिणों आते ह ैं विनका वनमाभण सामान्यतः वििक करते ह ैं इसवलए इन्ह ें वििक वनवमतभ परीिण र्ी कहते ह।ैं वििा के िेत्र म ें विद्यार्थी की सप्रावप्त के मापन के वलए सिाभविक प्रयोग वििक वनवमभत परीिणों का वकया िाता ह।ै विद्यावर्थभयों की ं सत्रात परीिा से लेकर अन्य परीिा यर्था मावसक, त्रैमावसक, अद्भ िावषकभ और िावषकभ परीिा , ं ं ं सर्ी म ें प्रायः वििक वनवमभत परीिण ही प्रयोग वकये िाते ह।ैं मानकीकत िरीक्षण (Standardized Tests) - इस िग भ म ें ि े परीिण आते ह ैं विन का वनमाभण प्रश्न ृ वनमाभण वििेषज्ञ मानकीकरण की सम्पण भ प्रविया का पालन करते हए करत े ह।ैं िसै वकआप अन्यत्र पढ़ ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 125 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 चके ह ैं आइटम विश्लेषण की परी प्रविया
का प्रयोग इसम ें वकया िाता ह ै और इस प्रकार उन्ह ें ििै , ु ू विश्वसनीय और िस्तवनष्ठ बनाया िाता ह।ै मनोिज्ञै ावनक गणों के मापन के वलए विवर्न्न प्रकार क
े ु ु मानकीकत परीिण उपलब्ि ह ैं परन्त िहााँ तक सप्रावप्त परीिणों का सिाल ह ै उसके वलए वििक वनवमतभ ृ ु ं वनकष सदवर्तभ परीिण ही प्रायः प्रयोग वकये िाते ह।ैं ं िछे गए
प्रश्नों की प्रकधत के आिार िर िरीक्षणों का वगीकरण ृ ू 1. धनबिात्मक िरीक्षण (Subjective Tests)- ि े परीिण विनम ें वनबिात्मक प्रश्न पछे िाते ह ैं ू ं ं अर्थाभत विनम े पछे गए प्रश्नों क
े उत्तर कई िब्दों
म ें अनेक प्रकार से वदए िा सकते ह ैं अर्थाभत ू विनका उत्तर विस्तत एि वनबिात्मक रूप म ें दने ा होता ह,ै उन्ह ें वनबिात्मक परीिण कहते ह।ैं ृ ं ं ं इस प्रकार क
े परीिण परपरागत रूप से का.ी समय से विद्यार्थी के सप्रावप्त के मापन के वलए ं ं वकये िाते रह े ह।ैं ये प्रश्न मख्यतः व्यवक्तवनष्ठ परीिण होते ह ैं क्योवक इनका उत्तर अलग अलग ु विद्यार्थी अलग प्रकार से वलख सकते ह ैं सार्थ ही विवर्न्न मल्याकन कताभ उनपर अपनी समझ के ू ं अनसार अलग अलग अक प्रदान करते ह।ैं सार्थ ही इस प्रकार के परीिणों के उत्तर विद्यार्थी की ु ं र्ाषाई दिता एि विषय ज्ञान दोनों पर वनर्रभ करते ह ैं वस.भ विषय ज्ञान पर नहीं। ं वनबिात्मक प्रश्नों के उदाहरण वनम्नावकत ह:ैं ं ं मापन एि मल्याकन के विवर्न्न उपकरणों का िणनभ कीविए। ू ं ं र्ारतीय सस्कवत मल्य प्रिान सस्कवत ह ै कै से? ृ ृ ू ं ं सप्रावप्त परीिण एि उसके विवर्न्न प्रकारों का िणनभ कीविये। ं ं धनबिात्मक िरीक्षणों के गण ु ं वनबिात्मक परीिण आि की िस्तवनष्ठता की र उन्मख दवनया म ें बडी आलोचना के विकार ह ैं परन्त ु ु ु ं ु उनकी वििेषता ने उन्ह ें सप्रावप्त परीिणों म ें एक महत्िपण भ स्र्थान प्रदान कर रखा ह ै । वििा के िेत्र में ू ं ं विद्यार्थी सप्रावप्त के मापन के वलए आि र्ी इनका प्रयोग बहतायत से वकया िाता ह ै । इनकी मख्य ु ु ं वििेषताए वनम्नवलवखत ह ै : ं i. ज्ञान, रूधच एव अधिवधत्त आधि के बहआयामी मािन में सक्षम- वनबिात्मक प्रश्नों के उत्तर ृ ु ं ं छात्रों को विस्तार से दने े होते ह ैं इसवलए इनके द्वारा उनके ज्ञान का मापन वकया िा सकता ह।ै इनके उत्तर दने े म ें छात्रों को प्रायः अपने विचार प्रकट करन े की स्ितत्रता रहती ह ै इसवलए इनके ं द्वारा उनकी रूवच एि अवर्िवत्तयों का पता लगाया िा सकता ह।ै ृ ं ii.
ज्ञान के अनप्रयोग, िाषा-कौिि और अधिव्यधक्त िधक्त का मािन- इन परीिणों म ें ज्ञान ु सबिी प्रश्नों के सार्थ सार्थ ज्ञान के अनप्रयोग सबिी प्रश्न र्ी पछे िाते ह,ै विनके द्वारा छात्रों के ु ू ं ं ं ं ज्ञान क
े अनप्रयोग सबिी िमता का मापन वकया िाता ह।ै र्ाषा िलै ी और अवर्व्यवक्त िवक्त ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 126 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 का मापन तो के िल वनबिात्मक प्रश्नों द्वारा ही वकया िा सकता ह।ै र्ाषा की परीिा के वलए तो ं इनका प्रयोग अपररहायभ होता ह।ै iii. उच्च मानधसक िधक्तयों का मािन- वनबिात्मक प्रश्नों के उत्तर दने े म ें विद्यावर्थभयों को विवर्न्
न ं प्रकार के मानवसक िवक्तयों यर्था स्मवत, वचतन आवद का प्रयोग करना होता ह।ै व्याख्यात्मक, ृ ं वििचे नात्मक, आलोचनात्मक और तलनात्मक प्रश्नों के उत्तर दने े म ें तो विद्यावर्थभयों को अपनी ु वििके िवक्त का प्रयोग करना ह
ोता ह।ै तब इन परीिणों द्वारा इन मानवसक िवक्तयों का मापन वकया ही िा सकता ह ै और वकया र्ी िाता ह।ै ये परीिण छात्रों को अपनी मानवसक िवक्तयों का विकास के वलए प्रोत्सावहत करते ह।ैं iv. धवस्तत अध्ययन एव धचन्तन को प्रोत्साहन- वनबिात्मक प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दने े होते ह ै ृ ं ं िो तर्ी सर्ि ह ै िब विद्यार्थी ने विस्तार एि गहराई से अध्ययन वकया हो। ं ं v. धनमातण में िागत एव समय कम िगना- वनबिात्मक परीिणों के वनमाभण मकाम लगत एि ं ं ं कम समय लगता ह ै एि इनके प्रिासन म ें कोई वििषे कवठनाई नहीं होती। वनबिात्मक परीिणों ं ं के दोष अर्थिा कवमया ं वनबिात्मक परीिण बहतायत से प्रयोग वकये िाने के बाििद बडी आलोचना का विकार ह ैं क्योंवक इनमे ु ू ं दोष र्ी कम नहीं। एक अच्छे परीिण म ें िो गण ििै ता, विश्वसनीयता, िस्तवनष्ठता और ु ु प्रायोवगकता आवद होने चावहए उन्ह ें तय कर पाना कवठन ह।ै िस्तवनष्ठता का अर्ाि ु विश्वसनीयता का अर्ाि विर्दे न िमता का अर्ाि विद्यार्थी का अक विवर्न्न परीिकों के अनसार पररिवतभत होता ह ै ु ं वनबिात्मक परीिण का मल्याकन अत्यत समय एि श्रम साध्य ू ं ं ं ं 2. वस्तधनष्ठ िरीक्षण (Objective type test) -एक िस्तवनष्ठ परीिण का सामान्य अर्थभ ह ै िह ु ु परीिण विसका मल्याकन कोई र्ी करे हमिे ा सामान अक प्राप्त हों अर्थाभत िह परीिण िो ु ं ं परीिक के विचारों एि पिाभग्रह से मक्त हो। ू ु ं िस्तवनश्ठ प्रश्नों
के प्रकार (Kinds of objective type question) ु िस्तवनष्ठ परीिण मख्यतः वनम्नवलवखत दो प्रकार के होते ह:ैं ु ु मानकीकत िरीक्षण (Standardized Test): ि े िस्तवनष्ठ परीिण विनका वनमाभण ृ ु मानकीकरण की सम्पण भ प्रविया से हआ हो तर्था विन्ह ें प्रयोग करन
े से पहले एक समह पर ु ू ू प्रिावषत करके उनका पण भ आइटम विश्लेषण वकया गया हो मानकीकत परीिण कहलाते ह।ैं इन ृ ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 127 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3
प्रश्नों का वनमाभण िज्ञै ावनक ढग से वकया िाता ह ै और इनके मानक र्ी ज्ञात होते ह।ैं इस प्रकार के ं परीिणों म ें िावमल प्रश्नों को सिप्रभ र्थम एक प्रवतवनवि समह पर प्रिावसत करके उत्तर पवस्तका ू ु ं के अकन के बाद प्रत्येक प्रश्न का आइटम विश्लेषण करके उनकी विश्वसनीयता, ििै ता, कवठनाई ं स्तर, वििदे क सचकाक आवद ज्ञात वकया िाता ह ै व.र आिियक सिोिनों के पश्चात पन: एक ू ु ं ं बडे समह को िही सिोवित परीिा दी िाती ह ै और आपेवित उत्तर प्राप्त
वकए िाते ह ैं और ू ं उसके विवर्न्न मानकों यर्था आय मानक, किा मानक आवद वनिाभररत वकये िाते ह।ैं ु अध्यािक धनधमतत प्रश्न (Teacher Made Test) ि े िस्तवनष्ठ परीिण विनका वनमाभण ु वििक द्वारा वकया गया हो और उन्ह ें मानकीकत न वकया गया हो, अध्यापक वनवमभत परीिण ृ कहलाते ह।ैं ये परीिण प्रायः अध्यापक द्वारा विद्यावर्थभयों के सरचनात्मक मल्याकन के दौरान ू ं ं प्रयोग वकये िाते ह।ैं इन
प्रश्नों का वनमाणभ अध्यापक अनौपचाररक ढग से करता ह।ै उपयभक्त दोनों ु ं प्रकार के प्रश्नों का स्िरूप एि विषय िस्त में कोइ भ अन्तर नहीं होता। दोनों प्रकार के प्रश्न सामान ु ं विषय िस्त पर आिाररत होते ह ैं वकन्त दोनों के वनमाभण की प्रविया म ें पयाभप्त अन्तर पाया िाता ु ु ह।ै वस्तधनष्ठ प्रश्नों के प्रकार ु मोटे रूप म ें िस्तवनष्ठ परीिा के प्रश्नों के वनम्नवलवखत दो रूप होते ह ैं - ु 1. िन: स्मरणात्मक प्रश्न (Recall type questions) - ये प्रश्न ि े प्रश्न ह ै विनका उत्तर पन: ु ु स्मरण करके वदया िाता ह।ै इन प्रश्नों म
ें वनम्नवलवखत दो रूप होते ह ैं - सरल पन: स्मरणात्मक प्रश्न(Simple recall type question) ु उदहारण: मानकीकरण की प्रविया के द्वारा वनवमतभ परीिणों को क्या कहते ह?ैं ररक्त स्र्थान परक प्रश्न (Completion type question) ू मानकीकरण की प्रविया के द्वारा वनवमतभ परीिणों को .......... कहते ह।ैं 2. िन: िहचानात्मक प्रश्न (Recognition type questions) - इन प्रश्नों के अनेक उत्तर वदए ु होते ह ैं विनमें से िद् उत्तर पररिावर्थभयों को पहचानना पडता ह।ै ये प्रश्न वनम्नवलवखत प्रकार के ु होते ह:ैं एकान्तर प्रत्यत्तर रूपी प्रश्न (Alternative Response type questions) ु उदहारण: मानकीकरण की प्रविया
के द्वारा वनवमतभ परीिणों को मानकीकत परीिण ृ कहते ह।ैं सही / गलत बहवनिाभचन रूपी प्रश्न (Multiple choice type questions) ु उदहारण: मानकीकरण की प्रविया के द्वार
ा वनवमतभ परीिणों को कहते ह:ैं a. मानकीकत परीिण ृ b. अमानकीकत परीिण ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 128 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 c. सामान्य परीिण d. इनम े से कोई नहीं समरूप रूपी प्रश्न (Matching type questions) उदहारण: वमलान करें 1. वििक वनवमतभ a. मानकीकरण की प्रविया के द्वारा वनवमतभ परीिण परीिण 2. मानकीकत b. विद्यार्थी की सप्रावप्त के वलए वनवमतभ ृ ं परीिण 3. सप्रावप्त परीिण c. बवद् के मापन के वलए वनवमतभ ु ं 4. बवद् परीिण d. वबना मानकीकरण की प्रविया के द्वारा वनवमतभ ु परीिण
इसी प्रकार िस्तवनष्ठ प्रश्नों के और र्ी कई प्रकार ह ैं इस इकाई म ें वस.भ बहतायत से प्रयक्त प्रकारों को वलया ु ु ु गया ह।ै वस्तधनष्ठ िरीक्षणों के िोष ु अपने सर्ी गणों के बाििद िस्तवनष्ठ प्रश्नों क
ी कवमया बहत ह ैं वज्सकी ििह से िवै िक आकलन म ें ु ु ू ु ं इसका प्रयोग कम वकया िाता ह ै िो वनम्नावकत ह:ैं ं िस्तवनष्ठ परीिणों का वनमाभण एक कवठन एक खचीला कायभ ु विद्यार्थी के समग्र मल्याकन के वलए उपयक्त नहीं ू ु ं अनमान के आिार पर उत्तर वलख े लगाये िाने की सम्र्ािना ु विद्यार्थी के रचनात्मक पिों एि उसके मिबत पिों की िानकारी नहीं ू ं वनमाभण म ें वििेषज्ञता आिश्यक धनबिात्मक एव वस्तधनष्ठ िरीक्षाओ में अन्तर (Difference between Essay and Objective ु ं ं ं Type Tests) िसै ा वक आपने दखे ा वनबिात्मक परीिाण एि िस्तवनष्ठ परीिाण दोनों एक दसरे से विपररत प्रकवत की ृ ु ं ं ू होती ह ै एि एक के गण दसरे के दोष तर्था एक के दोष दसरे के गण ह।ैं दोनों प्रकार के परीिणों का उद्दश्े य ु ु ं ू ू यद्यवप छात्रों की िवै िक वनरपवतयों का मापन ह ै वकन्त समान उद्दश्े य होने पर र्ी दोनों म ें महत्िपणभ अन्तर ु ू पाए िात े ह ैं िो वनम्नावकत ह:ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 129 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 मानदड वनबिात्मक परीिा िस्तवनष्ठ परीिा ु ं ं (Criteria) (Essay Type tests) (Objective type tests) विषय िस्त इसमें सीवमत विषय-िस्त का मल्याकन होता इसमें सम्पण भ विषय िस्त का ु ु ू ू ु ं ह।ै मल्याकन सर्ि ह।ै ू ं ं ज्ञान तर्था बोि का ज्ञान एि बोि दोनों की परीिा हो सकती ह ै यद्यवप इसमें र्ी दोनो की परीिा ं मापन वकन्त यह बोि की परीिा के वलए अविक सर्ि ह ै वकन्त बोि की तलना म ें यह ु ु ु ं उपयक्त ह।ै ज्ञान की परीिा के वलए अविक ु उपयक्त ह।ै ु प्रश्नों का वनमाभण यह बहत सरल होता ह।ै यह तलनात्मक रूप में कवठन कायभ ह।ै ु ु अनमान की सर्ािना अनमान से उत्तर दने े की सर्ािना नहीं होती अनमान की सर्ािना बहत अविक ु ु ु ु ं ं ं ह।ै होती ह।ै उत्तरों का अकन अकन कवठन एि आत्मवनष्ठ तर्था समय अकन सरल, िस्तवनष्ठ एि और ु ं ं ं ं ं साध्य िीघ्रता से सम्पन्न होती
ह।ै इस प्रकार यवद दखे ा िाये तो दोनों प्रकार के प्रश्नों के अपने गण एि दोष ह ैं और िस्ततः वनबिात्मक एि ु ु ं ं ं िस्तवनष्ठ परीिण एक दसरे के परक ह ैं अतः एक स.ल अध्यापक समग्र आकलन के वलए दोनों प्रकार के ु ू ू परीिणों का एकीकत प्रयोग करता ह ै तावक विद्यार्थी के अविगम को अविकतम वकया िा सके । ृ 5.6 स्व आकलन स्व आकिन या स्व मलयाकन : बौद 1995 के अनसार सर्ी प्रकार क
े आकलन विनम े स्ि आकलन ू ु ं र्ी िावमल ह ै उनम े दो मख्य अियि ह:ैं अपेवित मानकों के अनसार वनणयभ करना एि इन मानकों के ु ु ं अनसार गणित्ता का वनणयभ करना िब र्ी स्ि मल्याकन वकया िाता ह ै तब अपने आदि भ रूप म ें यह ु ु ू ं विद्यावर्थभयों को इन दोनों प्रविया म ें िावमल करता ह।ै अन्िडे एि ड (200व) के अनसार स्ि मल्याकन ू ु ू ं ं ं सरचनात्मक आकलन की एक प्रविया ह ै विसम े विद्यार्थी अपने कायों की गणित्त एि आपने अविगम ु ं ं का आकलन करते ह ैं एि यह वनणयभ करते ह ैं वक अविगम उद्देश्यों एि अपेवित मानदडों की प्रावप्त का स्तर ं ं ं क्या ह ै सार्थ ही ि े अपने द्वारा वकया गए कायों के मिबत एि कमिोर पिों की र्ी पहचान करते ह ैं तावक ू ं उसम े आग े िावछत पररितभन वकया िा सके (Self-assessment is a process of formative ं assessment during which students reflect on and evaluate the quality of their work and their learning, judge the degree to which they reflect explicitly stated goals or उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 130 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 criteria, identify strengths and weaknesses in their work, and revise accordingly (Andred & Du 2007) स्व आकिन की धविेषताए (Features of Self-Assessment) ं स्ि आकलन व्यवक्त के मल्याकन का एक प्राकवतक तरीका ह:ै स्ि आकलन व्यवक्त के मल्याकन ृ ू ू ं ं अर्थिा आकलन का एक प्राकवतक तरीका ह ै क्यों वक वकसी व्यवक्त ने क्या सीखा अतिा क्या ृ नहीं सीखा अर्थिा सीखने म ें उसे क्या कवठनाईय ह ैं इसका उत्तर विद्यार्थी से उपयक्त कोई नहीं ु िानता यवद विद्यार्थी ईमानदारी से वबना वकसी पिाभग्रह के अपना मल्याकन स्िय करे तो उस स े ू ू ं ं बेहतर पररणाम कोई मल्याकन नहीं द े सकता ह ै ू ं स्ि आकलन व्यवक्त के अविगम को उन्नत करता ह ै यवद वकसी अध्ययनकताभ को उसके अविगम का िास्तविक स्तर एि अपेवित स्तर पता हो तो यह व्यवक्त के अविगम को उन्नत करने म ें ं सहायक ह ै क्योंवक व्यवक्त को यह पता ह ै वक उसके कमिोर पि कौन कौन से ह ै और उसे कहााँ पर अविक महे नत करने की िरूरत ह ै और इसप्रकार उसके पास अिसर होता ह ै वक िह अपने आग े के अविगम की उपयक्त योिना बनाये ु स्िमल्याकन आग े के अविगम के वलए प्रेरक ह ै स्ि मल्याकन के दौरान अपने मिबत पिों की ू ू ू ं ं िानकारी विद्यार्थी को आग े के अविगम के वलए अवर्प्रेररत करती ह ै स्ि मल्याकन अविगम को प्रवतविवम्बत करने का एक माध्यम ह ै स्ि मल्याकन अविगम को ू ू ं ं प्रवतविवम्बत करने का एक सिक्त माध्यम ह ै स्ि मल्याकन करते समय व्यवक्त स्ि मल्याकन ू ू ं ं ररपोटभ बहत सोच समझ कर वलखता ह ै और नकारात्मक बातें र्ी सकारात्मक तरीके से प्रस्तत ु ु करने का प्रयास करता ह ै स्ि आकलन विद्यावर्थभयों की स्िायत्तता एि विम्मदारी की समझ को बढ़ािा दते ा ह ै ं स्ि आकलन विद्यार्थी का आत्म विश्वास बढ़ने म ें सहायक ह ै स्ि आकलन अपने आदि भ वस्र्थवत म ें अविगम का सटीक आकलन प्रस्तत करता ह ै ु स्ि आकलन व्यवक्तगत वर्न्नता को ध्यान म ें रखता ह ै ं स्ि मल्याकन आकलन की प्रविया म ें विद्यार्थी को र्ागीदार बनाकर विद्यार्थी म ें आकलन की ू ं समझ को व्यापक बनता ह ै नैदावनक वििण के वलए उपयक्त ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 131 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.7 सहपाठी आकलन (Peer Assessment) एक सतत मूलयाकं न उपकरण सामान्य अर्थभ म ें सहपाठी आकलन का तात्पयभ विद्यावर्थभयों द्वारा अपने सहपावठयों को उनके कायभ की गणित्ता के वलए वदया िान े िाला .ीड बैक ह ै .ै विकोि (2007) के अनसार सहपाठी आकलन का ु ु तात्पयभ विद्यावर्थभयों द्वारा अपने सहपावठयों को उनके वनरपादन या उनके उत्पाद पर वदए गए ग्रेड एि ं प्रवतपवि से ह ै िो उस उत्पाद अर्थिा कायभ के सिोत्तम होने के मानदड पर आिाररत होता ह ै विसम े ु ं विद्यार्थी िावमल होते ह।ैं Peer assessment requires students to provide either feedback or grades (or both) to their peers on a product or a performance, based on the criteria of excellence for that product or event which students may have been involved in determining” (Falchikov, 2007, p.132). 5.7.1 सहिाठी आकिन की धविेषताए ं यवद उपयक्त तरीके से प्रयोग वकया िाये तो सहपाठी आकलन प्रर्ािी आकलन उपकरण वसद् हो सकता ु ह।ै सहपाठी आकलन की वििेषताए वनम्नावकत ह:ैं ं ं सहपाठी आकलन सामवहक अविगम को बढ़ािा दते ा ह।ै ू सहपाठी आकलन अविगम प्रविया को उन्नत बनता ह ै । सहपाठी आकलन विद्यावर्थभयों के लेखन कौिल म ें सिार लाता ह ै । ु सहपाठी आकलन के दौरान आकलन कताभ रचनात्मक आलोचना के कौिल सीखता ह ै । अपने सहपावठयों का आकलन
विद्यार्थी म ें आकलन की गहरी समझ बढाता ह ै । सहपाठी आकलन विद्यार्थी के स्ि आकलन कौिल को विकवसत करता ह ै । सहपाठी आकलन विद्यावर्थभयों के बीच िचै ाररक आदान प्रदान को उन्नत बनता ह ै । सहपाठी आकलन विद्यार्थ
ी एि वििक के मध्य िवक्त असतलन को काम करता ह ै । ु ं ं सहपाठी आकलन विद्यावर्थभयों की सवियता बढाता ह ै । यह विद्यावर्थभयों म ें सामाविक गणों का विकास करता ह ै । ु सहपाठी अविगम विद्यावर्थभयों म ें आिीिन अविगम को प्रेररत करता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 132 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.8 पोिफोरलयो एवं उसके प्रकार भ पोटभ.ोवलयो िब्द की उत्पवत्त इटावलयन िब्द Portafoglio से मानी िाती ह ै । porta का तात्पयभ ह ै ल े िाना To Carry और .ोगवलयो का अर्थभ ह ै leaf/ sheet । कछ विद्वान इसकी उत्पवत्त लैवटन र्ाषा के ु िब्द Folium से मानते ह ैं विसका अर्थभ ह ै कायाभलयी दस्ताििे इसप्रकार सामान्य अर्थों म ें पोटभ.ोवलयो का अर्थभ ह ै विवर्न्न दस्ताििे ों को ले िानेिाला / रखने िाला सटके स । पोटभ.ोवलयो हालााँवक आि के ू समय म ें विद्यावर्थभयों के सप्रावप्त के आकलन के वलए प्रयोग वकये िा रह े ह ैं परन्त इनका प्रयोग अत्यत ु ं ं प्राचीन काल से वचत्रकारों, आवकभ टेक्ट, कलाकारों आवद के द्वारा अपन े कायभ के प्रदिनभ के वलए वकया िाता रहा ह ै । सामान्य अर्थों में पोटभ.ोवलयो, विद्यार्थी के महत्िपण भ चवनन्दा कायों का उद्दश्े य पण भ सग्रह ह ै ू ु ू ं विसके सार्थ प्रदिनभ मानदडों का र्ी स्पि उल्लेख होता ह ै । ं पालसन, पालसन एि मये र पोटभ.ोवलयो को पररर्ावषत करते हए कहते ह ैं वक
“पोटभ.ोवलयो विद्यार्थी के ु ं महत्िपण भ चवनन्दा कायों का उद्दश्े य पण भ सग्रह ह ै िो एक या एक से अविक िेत्रों म ें विद्यार्थी के प्रयासों, ू ु ू ं उसकी प्रगवत एि उसकी सप्रावप्त का वििरण प्रदान करता ह ै । इस सकलन म ें सामग्री सकलन म ें विद्यार्थी ं ं ं ं की सहर्ावगता, चयन के मानदड, योग्यता वनिाभरण के मानदड एि विद्यार्थी के आत्म वचतन के साक्ष्य ं ं ं ं अिश्य समावहत होने चावहए”
। Portfolio is a purposeful collection of student’s work that exhibits the student’s efforts, progress and achievement in one or more areas. The collection must include student participation in selecting contents, the criteria for selection, the criteria for judging merit and evidence of student self-reflection (Paulson, Paulson and Mayer,1991). 5.8.1 िोटतफोधियो के प्रकार (Types of Portfolio) धिनेर एव रे (Zeichner & Ray, 2001) के अनसार पोटभ.ोवलयो के तीन प्रकार ह:ैं ु ं अधिगम िोटतफोधियो (Learning Portfolio) अविगम पोटभ.ोवलयो का तात्पयभ उस पोटभ.ोवलयो से ह ै विसम े
विद्यार्थी के अविगम का समयबद् ररकॉडभ रखा िाता ह।ै प्रमाण िोटतफोधियो (Credential Portfolio) प्रमाण पोटभ.ोवलयो का तात्पयभ उस पोटभ.ोवलयो से ह ै विसम ें विद्यार्थी की सप्रावप्त से सम्बवित विवर्न्न प्रमाण पत्र रख े िाते ह।ैं ं ं प्रिितन िोटतफोधियो (Showcase Portfolio) प्रदिनभ पोटभ.ोवलयो म ें विद्यार्थ
ी के सवित्तभ म सम्प्रवप्तयों एि कायों का विस्तत ररकॉडभ होता ह।ै ृ ं धस्मर् एव धतिेमा (Smith & Tillema, 2003) के अनसार ई पोटभ.ोवलयो को वनम्नावकत तीन िगों ु ं ं म ें बाटा िा सकता ह:ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 133 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 डोधियर िोटतफोधियो (Dossier Portfolio): डोवियर पोटभ.ोवलयो (Dossier Portfolio) से तात्पयभ उस पोटभ.ोवलयो से ह ै िो वकसी नौकरी या व्यिसाय चयन अर्थिा प्रोन्नवत हते प्रयोग वकया िाता ह ै एि विसम े पि भ वनिाभररत सचनाए ाँ मागी िाती ह।ैं ु ू ू ं ं प्रधिक्षण िोटतफोधियो (Training Portfolio): प्रवििण पोटभ.ोवलयो (Training Portfolio) म ें प्रायः प्रवििण एि अविगम हते पिवभ निाभररत सचनाए ाँ प्राप्त की िाती ह।ैं ु ू ू ं वैचाररक / िरावततक िोटतफोधियो (Reflective Portfolio): िचै ाररक / पराितभक पोटभ.ोवलयो (Reflective Portfolio) से तात्पयभ उस पोटभ.ोवलयो से ह ै िो वकसी नौकरी या व्यिसाय चयन अर्थिा प्रोन्नवत हते प्रयोग वकया िाता ह ै परन्त विसम े पिवभ निाभररत सचनाए ाँ नहीं ु ु ू ू मागी िाती अवपत इसम ें सचना के चयन के वलए वनमाभण कताभ स्ितत्
र होता ह।ै ु ू ं ं ं 5.8.2 िोटतफोधियो के कायत (Functions of Portfolio) विद्यार्थी के पि भ ज्ञान की सचना ू ू विद्यार्थी की सप्रावप्त का सतत सचयी अवर्लेख ं ं विद्यार्थी के स्ि मल्याकन म ें सहायक ू ं विद्यार्थी के सम्प्रेषण कौिल का विकास विद्यार्थी के सप्रावप्त की िानकारी ं विद्यावर्थभयों के अविगम एि उनके मािबत पिों का साक्ष्य ू ं त्िररत प्रवतपवि ु विद्यार्थ
ी की वचन्तनिीलता का प्रदिनभ 5.8.3 िोटतफोधियो के िाि (Benefits of Portfolio) विवर्न्न मनोिैज्ञावनक लार् यर्था अपनी सम्प्रवप्तयों पर गिाभनर्वत, आवत्िश्वास का विकास ु ू विद्यावर्थभयों के सिाांगीण आकलन म ें सहायक सित्रभ उपलब्िता सगम्यता, सगम स्र्थानातरण एि आदान प्रदान ु ु ं ं अपेिाकत िहत श्रोता को उपलब्ि ृ ृ ं आसन रखरखाि एि अपडेट करना आसान ं कम लागत, एि गोपनीयता ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 134 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इन्टरनेट के माध्यम से आसन सचभ अविक व्यापक एि विस्तत ृ ं ती्र प्रवतपवि सर्ि तकनीकी कौिल का प्रदिनभ ु ं िोटतफोधियो के धनमातण में समस्याए (Problems in creating a good portfolio) ं पोटभ.ोवलयो वनमाभण के वलए वकसी वनवश्चत वनयम अर्थिा वदिा वनदिे का अर्ाि पोटभ.ोवलयो वनमाभण के वलए उपयक्त मागदभ िनभ का अर्ाि ु विद्यार्थी एि उसके पयभििे क के लक्ष्यों म ें वर्न्नता ं मल्याकन की आत्मवनष्ठता ू ं सफि िोटतफोधियो के धनमातण हेत कछ महत्विणत बातें ु ु ू पोटभ.ोवलयो बनाने से पहले तय करें वक इसे बनाने के उद्दश्े य क्या ह?ैं इस पोटभ.ोवलयो का श्रोता / मल्याकनकताभ कौन ह?ै ू ं यह तय करें वक इस ई पोटभ.ोवलयो म ें क्या सचनाए ाँ दने ीं ह?ैं ू वकस
प्रकार की रचनात्मकता / प्रमाण पत्रों/ कला का उल्लेख करें यह सवनवश्चत करें। ु ं वकस प्रकार के साक्ष्यों का सकलन करें िो स्िीकायभ हो ं वकस प्रकार इस पोटभ.ोवलयो का आकलन वकया िाना ह?ै इस प
ोटभ.ोवलयो का उपयोग वकस प्रकार वकया िाएगा? 5.3 सारांश आकलन की प्रविया को विद्यार्थी के सम्पण भ आकलन योग्य बनाने के वलए विवर्न्न प्रकार के पारपररक ू ं एि निीन आकलन उपकरणों की आिश्यकता ह।ै आकलन के विवर्न्न उपकरणों म ें असाइनमटें , ं पररयोिना, परीिण, स्ि मल्याकन, सपर्थी मल्याकन और पोटभ.ोवलयो आवद ह।ैं असाइनमेंट का सामान्य ू ू ं ं अर्थभ उस गहकायभ से ह ै विसे विद्यार्थी को सतत अध्ययन के दौरान परा करना होता ह।ै िस्ततः असाइनमटें ृ ू ु सतत एि व्यापक मल्याकन अर्थिा सरचनात्मक मल्याकन का एक अवर्न्न अग ह।ै असाइनमटें के कायों ू ू ं ं ं ं ं म ें विद्यार्थी को उससे अपेवित व्यिहार की समझ विकवसत करना, कायभ को कै से वकया िाय इसकी समझ विकवसत करना, विषय को सम्पणतभ ा म ें समझने म ें सहायता प्रदान करना, व्यवक्तगत वर्न्नता के अनसार ू ु उनके आकलन म ें सहायता दने ा, लचीलापन, योगात्मक आकलन का परक, एि
विद्यार्थी म ें प्रर्ािी ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 135 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अध्ययन आदतों एि ज्ञान के उपयोग की आदत को बढ़ािा दने ा ह।ै पररयोिना विवि विद्यार्थी के समग्र ं आकलन का एक उपयक्त उपकरण ह ै िो विद्यार्थ
ी की रचनात्मकता, मौवलकता एि प्रस्ततीकरण के ु ु ं आकलन म ें सहायक ह।ै पररयोिना के प्रमख चरणों म ें पररयोिना का चय,उसकी रूपरेखा तैयार करना, ु वियान्ियन एि मल्याकन ह।ैं परीिण एक पारपररक प्रर्ािी आकलन उपकरण ह ै विसम े वनबिात्मक ू ं ं ं ं अतिा िस्तवनष्ठ प्रश्नों को िावमल वकया िाता ह।ै दोनों प्रकार के प्रश्नों की अपनी अपनी वििषे ताए एि ु ं ं कवमया ह।ैं स्ि मल्याकन सरचनात्मक आकलन की एक प्रविया ह ै विसम े विद्यार्थी अपने कायों की ू ं ं ं गणित्त एि आपने अविगम का आकलन करते ह ैं एि यह वनणयभ करते ह ैं वक अविगम उद्दश्े यों एि ु ं ं ं अपेवित मानदडों की प्रावप्त का स्तर क्या ह ै सार्थ ही ि े अपने द्वारा वकया गए कायों के मिबत एि ू ं ं कमिोर पिों की र्ी पहचान करते ह ैं तावक उसम े आगे िावछत पररितभन वकया िा सके ।स्ि आकलन की ं वििेषता म ें प्रमख ह ै इसका व्यवक्त के मल्याकन का एक प्राकवतक तरीका होना, व्यवक्त के अविगम ृ ु ू ं ं को उन्नत बनाना, अविगम को प्रवतविवम्बत करने का एक माध्यम, विद्यावर्थभयों की स्िायत्तता एि ं विम्मदारी की समझ को बढ़ािा दने ा, विद्यार्थी का आत्म विश्वास बढ़ने म ें सहायक ह,ै अविगम का सटीक आकलन आवद ह।ै सहपाठी आकलन का तात्पयभ विद्यावर्थभयों द्वारा अपन े सहपावठयों को उनके वनरपादन या उनके उत्पाद पर वदए गए ग्रेड एि प्रवतपवि से ह ै िो उस उत्पाद अर्थिा कायभ के सिोत्तम होने के ु ं मानदड पर आिाररत होता ह ै विसम े
विद्यार्थी िावमल होते ह।ैं सहपाठी आकलन की वििषे ता में ं ं सामवहक अविगम को बढ़ािा, अविगम प्रविया को उन्नत बनाना, विद्यावर्थभयों के बीच िचै ाररक आदान ू प्रदान बढ़ाना, विद्यावर्थभयों की सवियता बढ़ाना, विद्यार्थी एि वििक के मध्य िवक्त असतलन को कम ु ं ं करना एि आिीिन अविगम को प्रेररत करना आवद ह।ै पोटभ.ोवलयो विद्यार्थी के महत्िपणभ चवनन्दा कायों ू ु ं का उद्दश्े य पण भ सग्रह ह ै िो एक या एक से अविक िेत्रों म ें विद्यार्थी के प्रयासों, उसकी प्रगवत एि उसकी ू ं ं सप्रावप्त का वििरण प्रदान करता ह ै । इस सकलन म ें सामग्री सकलन म ें विद्यार्थी की सहर्ावगता, चयन के ं ं ं मानदड, योग्यता वनिाभरण के मानदड एि विद्यार्थ
ी के आत्म वचतन के साक्ष्य अिश्य समावहत होने ं ं ं ं चावहए। 5.10 सन्दर् भ ग्रन्थ सची / अन्य अध्ययन ू 1. Gardner, J., (2016) Assessment for Learning: A practicalGuide, The northern Ireland Curriculum, retrieved from http://ccea.org.uk/sites/default/files/docs/curriculum/assessment/assessment _for_learning/afl_practical_guide.pdf 2. NCA (2016) Assessment for Learning Leaflet, Retrieved from http://www.ncca.ie/ga/Foilseach%C3%A1n/Foilseach%C3%A1in_Eile/Asse ssment_for_Learning.pdf 3. NCERT (2005) National Curriculum Framework, 2005, NCERT. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 136 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. NCTE (2009) National Curriculum Framework for Teacher Education, N.C.F. .की ररपोटभ 2005 5. http://www.hkeaa.edu.hk/DocLibrary/SBA/HKDSE/Eng_DVD/doc/Afl_pri nciples.pdf 6. https://facultyinnovate.utexas.edu/teaching/check- learning/methods/assignments 5.11 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. आकलन के विवर्न्न उपकरणों का िणनभ करें। 2. उपलवब्ि परीिण एि एि इसके विवर्न्न
प्रकारों की चचाभ करें। ं ं 3. िवै िक आकलन के एक उपकरण के रूप म ें प्रोिेक्ट का िणभन करें। 4. िवै िक आकलन के एक उपकरण के रूप म ें असाइनमटें की व्याख्या करें। 5. पोटभ.ोवलयो, उसके प्रकार एि कायों क
ा िणनभ करें। ं 6. स्ि मल्याकन एि इसकी वििेषता का िणनभ करें। ू ं ं ं 7. सहपाठी मल्याकन एि इसकी वििेषता का िणनभ करें। ू ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 137 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 खण्ड 3 Block 3 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 138 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाइ भ 2 - मूलयाकं न के पतरणाम िथा आत्म-सम्मान तिकास 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 आत्म सम्मान सीखना 2.3.1 िनात्मक आत्म सम्मान 2.3.2 ऋणात्मक आत्म सम्मान 2.3.3 बच्चों के आत्म-सम्मान का विकास 2.4 आत्म सम्मान तर्था मल्याकन के पररणाम में सबि ू ं ं ं 2.5 पहचान का वनमाभण 2.6 आकलन के पररणाम तर्था पहचान का वनमाभण का सबि ं ं 2.7 साराि ं 2.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.9 सदर्भ ग्रन्र्थ सची ि कछ उपयोगी पस्तकें ू ु ु ं 2.10 वनबिात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना आत्म-सम्मान एक स.ल सखी िीिन का आिारर्त तत्ि ह।ै आत्म-सम्मान के अर्ाि म ें िीिन एक ु ू गर्ीर अपणतभ ा ि ररक्तता से र्रा रहता ह।ै आत्मविश्वास व्यवक्त का अपनी निरों म ें अपना मल्याकन ह।ै ू ू ं ं आत्मविश्वास स्िय की सहि स्िीकवत, स्ि-प्रेम और स्ि-सम्मान की व्यवक्तगत अनर्वत ह।ै बच्चों म ें ृ ु ू ं आत्म-सम्मान की प्रविया, बाहरी उपलवब्ियों और स.लता से र्ी प्रर्ावित हो सकती ह।ै ं विद्यालय म ें मल्याकन या आकलन को मोटे तौर पर परीिा म ें स.लता या वि.लता के सार्थ ू ं ं सबद् वकया िाता ह।ै परीिा म ें स.लता महत्िपण भ ह ै और इसे व्यािसावयक िीिन म ें स.लता से िोडा ू ं िाता ह।ै आत्म-सम्मान सीखने की विया का प्रोत्साहन करने के वलए, वििकों को सीखने की गवतविवियों को सिोवित करके और प्रवतविया प्रदान करके अपने छात्रों/छात्रा का मल्याकन या ू ं ं ं आकलन और वनगरानी करनी चावहए। इस तरह से आकलन का उपयोग सर्ी बच्चों के आत्म-सम्मान म ें सिार करेगा। परीिाए, या मल्याकन विविया को बच्चों के वलए सार्थभक और आनदमय बनाने की ु ू ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 139 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आिश्यकता ह।ै आकलन के पररणाम को आत्म-सम्मान के वनमाभण म ें एक अिसर के रूप म ें दखे ा िाना चावहए। प्रस्तत इकाई, छात्रों के मल्याकन पररणाम तर्था उसके आत्म-सम्मान विकास के सबि पर प्रकाि ु ू ं ं ं डालती ह।ै 2.2 उद्दश्े य प्रस्तत इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- ु 1. आत्म सम्मान विकास को समझ सकें ग।े 2. िनात्मक, तटस्र्थ तर्था ऋणात्मक आत्म सम्मान म ें अतर स्पि कर सकें ग।े ं 3. बच्चों म ें पहचान वनमाभण की प्रविया को समझ पाएगे। ं 4. आत्म सम्मान विकास की प्रविया तर्था मल्याकन के पररणाम के मध्य सबि स्र्थावपत कर सकें ग।े ू ं ं ं 5. पहचान विकास की प्रविया तर्था मल्याकन के पररणाम के मध्य सबि स्र्थावपत कर सकें ग।े ू ं ं ं 2.3 आत्म-सम्मान सीखना आत्म-सम्मान एक स.ल सखी िीिन का आिारर्त तत्ि ह।ै व्यवक्त आत्म-सम्मान के अर्ाि म ें स.ल ु ू तो हो सकता ह,ै वकत िह अदर से र्ी सखी, सति और सतप्त होगा, यह सर्ि नहीं ह।ै आत्म-सम्मान के ृ ु ु ु ं ं ं ं ं अर्ाि म ें िीिन एक गर्ीर अपणतभ ा ि ररक्तता स े र्रा रहता ह।ै यह ररक्तता एक गहरी कमी का अहसास ू ं दते ी ह ै और िीिन एक अनिानी- ररक्तता, एक अज्ञात पीडा, असरिा और अिावत से बेचैन रहता
ह।ै ु ं आत्मविश्वास स्िय की सहि स्िीकवत, स्ि-प्रेम और स्ि-सम्मान की व्यवक्तगत अनर्वत ह,ै िो दसरों की ृ ु ू ं ू प्रिसा, वनदा और मल्याकन आवद से स्ितत्र ह।ै िस्तत: आत्मविश्वास
व्यवक्त का अपनी निरों म ें अपना ू ु ं ं ं ं मल्याकन ह ै और अपनी मौवलक अवद्वतीयता की आतररक समझ और इसकी गौरिपण भ अनर्वत ह।ै ू ू ु ू ं ं 2.3.1 सकारात्मक आत्म-सम्मान सकारात्मक या उच्च आत्म-सम्मान के सार्थ व्यवक्त अपनी ताकत को स्िीकार करते ह ैं और उन्ह ें अपन े दवै नक िीिन म ें र्रपर उपयोग करते ह।ैं दसरे िब्दों म,ें उच्च आत्म सम्मान के सार्थ लोगों को खद को ू ु ू अच्छी तरह से िानते ह।ैं ि े अपनी कमिोररयों के बारे में र्ी सकारात्मक दृविकोण के सार्थ पता करत े ह।ैं एक सकारात्मक आत्मसम्मान के सार्थ िाले बच्चे वनम्न गणों को प्रदवितभ कर सकते ह:ैं ु वकसी अन्य की राय या व्यिहार को सकारात्मक तरीके से प्रर्ावित करने म ें सिम होते ह।ैं विवर्न्न वस्र्थवतयों म ें र्ािना और सिगे ों के सार्थ सम्प्रेषण करने म ें सिम होते ह।ैं ं ं नई वस्र्थवतयों से ि े सकारात्मक और विश्वासपिकभ तरीके से पररवचत होने की चेिा करते ह।ैं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 140 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वकसी प्रकार के कठा की वस्र्थवत म ें एक उच्च स्तर की सवहरणता को प्रदवितभ करते ह।ैं ु ु ं हष भ पिकभ िवै िक तर्था अन्य विद्यालय सबिी विम्मदे ारी स्िीकार करते ह।ैं ू ं ं उवचत पररप्रेक्ष्य म ें वस्र्थवतयों को रख कर परखते ह।ैं स्िय के बारे म ें सकारात्मक र्ािना का सचार करते ह।ैं ं ं ं एक आतररक वनयत्रण के र्ाि को र्ी प्रदवितभ करते ह।ैं ं ं समस्या को सलझाने की प्रिवत दिाभते ह।ैं ृ ु एक दोस्ताना और सहयोगी स्िर्ाि होता ह।ै अपनी नाकामी के वलए दसरों पर कोई दोष नहीं दते े ह।ैं ू र्रोसेमद होने के सार्थ-सार्थ दसरों पर र्ी र्रोसा करते ह।ैं ं ू अपने िीिन की वदिा को वनयवत्रत करते हों ं िमता म ें कहने के वलए कछ करने के वलए 'नहीं' ि े पसद नहीं ु ं करते ताकत और सिार के िेत्रों
के बारे म ें िागरूकता ु समझना िब दसरों की गलवतयों को स्िीकार करते ह ैं और ू व्यवक्तगत सीमा को िानने और दसरे लोगों के सम्मान ं ू एक गलती को स्िीकार करते ह
ैं और कै से उन्ह ें नहीं दोहराने के वलए सीखने 2.3.2
नकारात्मक आत्म-सम्मान नकारात्मक या वनम्न आत्म-सम्मान के सार्थ व्यवक्त अपनी कमिोरी को बहलता म ें स्िीकार करते ह ैं और ु िह उनके दवै नक िीिन म ें पररलवित र्ी होता \ ह।ै दसरे िब्दों में, नकारात्मक आत्म सम्मान के सार्थ ू लोगों को खद को अच्छी तरह से नहीं िान पाते ह।ैं ि े अपनी अच्छाइयों के बारे म ें र्ी नकारात्मक ु दृविकोण रखते ह।ैं एक नकारात्मक
आत्मसम्मान के सार्थ िाले बच्चे वनम्न गणों को प्रदवितभ कर सकत े ु ह:ैं लगातार आत्म-अपमानिनक बयानों का सिाद करना। ं असहाय बनने की प्रिवत का विकास ृ वकसी र्ी स्ियसेिा या समाि सेिा कायों म ें वलप्त नहीं होना ं दसरों पर वनर्रभ होने की प्रिवत ृ ू अविकाविक वनर्रभ रह ें उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 141 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 स्िीकवत के वलए अत्यविक आिश्यकता का प्रदिनभ ृ वनणयभ लेने म ें कवठनाई महसस करे ू कठा के प्रवत वनम्न सवहरणता प्रदवितभ करे ु ु ं आसानी से रिात्मक बने अपने .ै सले म ें र्ी विश्वास की कमी हो अक्सर उपहास के पत्र होने का डर प्रदवितभ करें वि.लता वलए दसरों को दोषदने ा का ू कायभ करें 2.3.3 बच्चों के आत्म-सम्मान का धवकास वनम्नवलवखत कछ ऐसे सरल अभ्यास या वनदिे िवणतभ ह,ैं विसके द्वारा बच्चे अपने अदर सकारात्मक ु ं आत्म-सम्मान का वनमाभण कर सकते ह:ैं नये लोगों से वमलें। लोगों के सार्थ बातचीत करने के वलए सकारात्मक और दोस्ताना माहौल बनाए। ं स्िस्र्थ र्ोिन खाए तर्था एक उवचत आहार बनाए रख।ें ं आनन्ददायक गवतविवियों म ें वलप्त रह।ें कोविि करें वक वकसी र्ी कायभ को लबे समय के वलए ना टालें उसे िल्द ही कर समाप्त करें। ं अपने िरूरत की कौिल गवतविवियों म ें र्ाग लें। मखर िाक्यों का प्रयोग करें , िैसे ाँ । ू ु ऐसे माहौल का वनमाभण करें विसम े दसरे बच्चे आपके सार्थ कम करना पसद करें और आनद की ं ं ु अनर्त करें। ु ु ु विद्यालय के पाठय सहगामी विया म ें र्ागीदारी सवनवश्चत करें। ् ु ं अभ्यास प्रश्न 1. सकारात्मक आत्म-सम्मान की वििषे ता ह:ै a . वन णभ य ले ने में कवठ नाई म ह स स क रे ू b . क ठा के प्रवत वन म्न सवह रण ता प्र दविभ त क रें ु ु ं c . एक दोस्ता ना और स ह योगी स्ि र्ा ि प्र दविभ त क रे उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 142 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 d . आ सा नी से र िा त्म क ब ने 2. नकारात्मक आत्म-सम्मान की वििषे ता ह:ै a . वन णभ य ले ने में कवठ नाई म ह स स क रे ू b . क ठा के प्रवत उ च्च सवह रण ता प्र दविभ त क रें ु ु ं c . ए क दोस्ता ना और स ह योगी स्ि र्ा ि प्र दविभ त क रे d . अ प ने िीि न की वद िा को वन यवत्र त क र ते हों ं 2.4 आत्म सम्मान तथा मूलयांकन के पररणाम म संबध ें ं व्यवक्तत्ि के वनिाभरकों म ें पररिार के बाद विद्यालय को वििषे स्र्थान वदया िाता ह।ै बच्चा िब विद्यालयीय पररिेि म ें प्रविि होता ह ै तो उसका सामाविक पररििे और र्ी विस्तत हो िाता ह।ै ृ विद्यालयी पररिेि िडने के बाद आत्म-सम्मान के विकास म ें र्ी विद्यालय सबिी गवतविवियााँ खासी ु ं ं अहवमयत रखती ह।ै विवर्न्न िटकों या कारकों म ें मल्याकन के प्रर्ाि एक प्रमख कारक ह,ै िो बच्चे के ू ु ं आत्म-सम्मान को गर्ीर रूप से प्रर्ावित करता ह।ै अर्थाभत, विद्यालय म ें िह िवै िक स.लता ि ं अस.लता का अनर्ि प्राप्त करता ह,ै िह उनके आत्म-सम्मान को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से ु प्रर्ावित कर सकता ह।ै विद्यालय के अनर्िों तर्था बच्चों के स्िय के प्रवत प्रत्यिीकरण म ें िोिकताभ ने िवनष्ठ सम्बन्ि ु ं ं पाया ह।ै अध्ययन म ें यह र्ी पाया गया ह ै वक िो बच्चे स्िय को िवै िक दृवि से अच्छा समझते ह,ैं उन ं बच्चों का व्यिहार अविक उपयक्त होता ह।ै बच्चे के आत्म-सम्मान विकास पर विद्यालय के सार्थी समह ु ू का महत्िपण भ योगदान होता ह।ै ू वदन-प्रवतवदन के वियाकलापों म ें बच्चे को स.लता एि अस.लता का अनर्ि होता रहता ह।ै इसका ु ं सीिा प्रर्ाि उसके आत्म-सम्मान के विकास पर पडता ह।ै कर्ी-कर्ी बच्चे को समाि तो स.ल मानता ह,ै लेवकन बच्चा स्िय को स.ल नहीं ं मानता ह।ै अतः िह अपनी स.लता और अस.लता के प्रवत द्वन्द की वस्र्थवत म ें रहता ह।ै बालक अपनी स.लता तर्था अस.लता के प्रवत कै सी प्रवतविया करता ह ै यह र्ी उसके आत्म-सम्मान के उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 143 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विकास को प्रर्ावित करता ह ै तर्था इससे व्यवक्तगत एि सामाविक समायोिन र्ी प्रर्ावित होता ह।ै ं यद्यवप बच्चे स.लता और अस.लता के प्रवत वर्न्न-वर्न्न तरह से प्रवतविया करते ह।ैं तर्थावप, इन प्रवतविया का कछ रूप सर्ी बच्चों म ें समान रूप से पाया िाता ह।ै ु ं अस.लता न के िल को प्रर्ावित करती ह ै बवल्क व्यवक्तगत एि सामाविक ं समायोिन पर र्ी इसका प्रर्ाि हावनकारक होता ह।ै इसके विपरीत स.लता का प्रर्ाि या आत्म-सम्मान के विकास पर अनकल पडता ह।ै ऐसे बच्चे व्यवक्तगत एि सामाविक िीिन में ु ू ं अत्यविक समायोवित होते ह।ैं िहााँ पर बच्चों और वििकों के पारस्पररक सम्बन्ि मत्रै ीपण भ होते ह।ैं ू मनोरिन ि खले -कद के सािन उपलब्ि ह ैं तर्था पाठयिम म ें बालक रूवच लेता ह ै तो उन विद्यालयों के ् ू ं बच्चों म ें प्रायः अच्छे गणों का विकास होता ह।ै ु बच्चों की कामयाबी म ें आत्म-सम्मान की अहम र्वमका होती ह।ै विसम ें हम ें खिहाली, सतवि ू ु ु ं और मकसदों से र्री विदगी वमलती ह।ै आत्म सम्मान से सीिा मकसद ह।ै खद का सम्मान, यानी अपनी ु ं दृवि म ें अपना मल्य, स्िय के बारे म ें अपना निररया वक हम वकतने उपयोगी ह।ै ि े स्िय को वितना ू ं ं उपयोगी समझगें े, उनके आत्मविश्वास म ें उतना ही इिा.ा होगा। उनका स्िावर्मान बढ़ेगा। हम अक्सर अपने बारे म ें िो महसस करते ह,ैं िहीं दसरों के व्यिहार म ें हमारे प्रवत झलकता ह।ै आत्म-सम्मान स े ू ू नैवतक मल्यों की रिा होती ह।ै आत्म-सम्मान िाले बच्चे वि.लता से वनरूत्सावहत नहीं होता ह।ै ू अभ्यास प्रश्न 3. मल्याकन म ें स.लता का प्रर्ाि आत्म-सम्मान के विकास पर: ू ं a. अनकल पडता ह ै ु ू b. प्रवतकल पडता ह ै ू c. तटस्र्थ रहता ह ै d. उपरोक्त सर्ी 2.5 पहचान का रनमाण पहचान (identity) एक व्यापक िब्द ह।ै व्यवक्त के सन्दर् भ म ें यह उसके व्यवक्तगत गणों से सबवित ह।ै ु ं ं विस्तत अर्थभ म ें एक व्यस्क द्वारा वकया गया वनणयभ वक ैं क्या बनाँगा? अर्थाभत समाि म ें की, की,
‘मरे े मान्यता ि मरे ी िारणा ’
की क्या र्वमका होगी? अपने द्वारा वकय े ू ं ं गए कायभ के कारण, अपने कायभ का पण भ उत्तरदावयत्ि ग्रहण करना तर्था उनकी तावकभ क व्याख्या कर पाना, ू ये सर्ी अियि वमलकर पहचान (identity) नामक तत्ि की रचना करत े ह।ैं ैं , विसके उच्चारण मात्र द्वारा एक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 144 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 व्यस्क या मानि, दसरे व्यवक्त या समाि को अपने सम्पण भ अवस्तत्ि का आर्ास कराता ह।ै इस सम्पण भ ू ू ू अवस्तत्ि म ें व्यवक्त के िारीररक, बौवद्क र्ािात्मक एि आध्यावत्मक पि सवम्मवलत होते ह।ैं ं सर्ी सस्कवतयों म ें वकिोरािस्र्था को िीिन के महत्िपण भ वनणाभयक वबद के रूप म ें स्िीकार ृ ू ं ं ु वकया िाता ह।ै यह िह अिस्र्था होती ह ै िब मानि ऊिाभ का अर्थाह श्रोत होता ह,ै परन्त ऊिाभ का प्रयोग ु वकस दिा और वदिा म ें करना ह,ै इसका वनणयभ लेने की पयाभप्त समझ विकवसत हो रही होती ह।ै इसको अपनी र्ािन तर्था उन कारको को निदीक से दखे न े की अिस्र्था माना िाता ह,ै विसके प्रर्ाि-िि ं व्यवक्त सामान्यतः एक वििषे प्रकार स े व्यिहार करता ह ै । तर्था इस आय म ें विवर्न्न विचारों, सगती ि ु ं वसद्ातों के मध्य सामिस्य स्र्थावपत करने के गण को र्ी विकवसत कर रहा होता ह।ै दसरे िब्दों म,ें ि े ु ं ं ू आत्म-पहचान या आत्म-प्रत्यय को स्र्थावपत करने को कोविि कर रह े होते हैं। ि े अपने अनन्य गणों या ु वििेषता को समझने की कोविि करते ह।ैं िह इस बात की पडताल कर रह े होते ह ैं वक कौन सी चीि ं उनके वलए िास्ति म ें वििेष महत्त्ि रखती ह?ै पहचान वनमाभण की चचा भ में एररक्सन के वसद्ात को र्ी ं समझना महत्िपण भ ह ै । एररक एररक्सन (Erik Erikson) ने व्यवक्त के ू विकास िम को अलग-अलग द्वन्द के रूप पहचाना ह ै उन्होंने वकिोरों तर्था वकिोररयों (िो वक मख्य रूप से विद्यालय िीिन को िीते ह)ैं ु द्वारा अनर्ि की िाने िाली इस अिस्र्था के वलए पहचान द्वन्द तर्था सिष भ ु ं (identity crisis) िब्द को सटीक माना। एररक्सन वकिोरािस्र्था को का सकट अिस्र्था मानते ह।ैं उन्होंने दखे ा वक वकिोरािस्र्था म ें बहत से पररितभन ु ू ं सतत ि वनवश्चत स्तरों म ें न हो कर स्ितः ि अचानक ही हो िाते ह।ैं विस कारण से उनके स्ि (self) म ें एक भ्रामक ि अवस्र्थरता की वस्र्थवत उत्पन्न हो िाती ह।ै वकिोरों को यह समझने में कवठनाई होने लगती ह ै वक उन्ह ें वकस विचारिारा को िीिन में अपनाना उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 145 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 चावहए, उन्
ह ें क्या कायभ करना चावहए तर्था उनके अपने यौन-इच्छा को कै से परा करना चावहए। ू ं एररक्सन के अनसार व्यवक्त म ें विवर्न्न आय अिवि म ें वनम्न द्वन्द हािी होते ह:ैं ु ु क
्र. स. वषत क्रम / अवधि समस्याए ँ या द्वि ं ं 1. 0 से 0.5 िषभ विश्वास बनाम अविश्वास 2. 0.5 से 3 िषभ स्िायत्ता बनाम िम भ एि सदहे ं ं 3. 3 से 6 िषभ उपिम बनाम ग्लावन 4. 6 से 12 उद्यम बनाम हीनता 5. वकिोरािस्र्था पहचान बनाम र्वमका की अस्पिता ू 6. प्रारवम्र्क प्रौढािस्र्था अतरगता बनाम अलगाि ं ं 7. मध्य प्रौढािस्र्था उत्पादकता बनाम गवतरोि 8. उत्तर प्रौढािस्र्था समग्रता बनाम वनराि पहचान के सकट को सलझा लेना एक महत्िण भ पहल ह।ै वकिोरािस्र्था के दौरान होने िाले विकास के ु ू ू ं वलए इस सकट का समािान िल्द होना चावहए। इससे वकिोरों को अपने व्यस्क िीिन की योिना बनान े ं म ें मदद वमलती ह ै और अततः एक व्यवक्तगत ख़िी प्राप्त होती ह।ै कर्ी-कर्ी बदलते समय, िरना ि ु ं सास्कवतक मल्यों के कारण वकिोरों म ें यह ृ ू ं कवठनाई अविक दखे ने को वमलती ह।ै विस कारण उनम ें उलझन ि तनाि की वस्र्थवत दृविगोचर होती ह।ै नि े की लत, बराई ि ु आपराविक कायों की र कदम र्ी बढ़ सकते ह।ैं आत्मिात की र्ी सिाभविक ििटनाए ाँ इसी अिस्र्था म ें दखे ने को वमलती ह।ैं अभ्यास प्रश्न 4. एररक्सन ने वकिोरािस्र्था म ें वकस प्रकार के सकट की बात कही ह:ै ं a. प्रत्यिीकरण बनाम सिदे ीकरण भ्रम ं b. प्रयोग बनाम अन्िषे ण भ्रम c. पहचान बनाम र्वमका भ्रम ू d. सति बनाम असतोष भ्रम ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 146 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 2.6 आकलन के पररणाम तथा पहचान का रनमाण का संबध ं व्यवक्त अगर िान ले वक िह क्या ह ै तो िह िीध्र िान लेगा वक उसे क्या होना चावहए। िो स्िय स े ं पररवचत नहीं ह ै उसे दसरों के वदए पहचान के सहारे काम चलाना पडता ह।ै यह पहचान हम ें अपने स्िय में ं ू तलाि करना होगा ि िास्तविक योग्यता को पहचानकर उसे स्िीकार करना होगा। स्िय में अध्ययन की ं अच्छी आदतें विकवसत करना बहत महत्िपण भ ह।ै तावक लक्ष्य प्राप्त करने म ें स.लता वमल सके । ु ू िन्म से लेकर व्यस्क तक पहचान विकास की विया चलती रहती ह।ै समाि के द्वारा बालक की आय के वर्न्न-वर्न्न स्तरों पर वर्न्न-वर्न्न प्रर्ाि पडते ह।ैं विद्यालय म ें होने िाले नाना प्रकार के ु वियाकलाप, उनके पि–विपि म ें वदए िाने िाले तकभ , वमत्र-मडलीतर्था अन्य उनके विषय म ें िानकारी ं एकत्र करने के स्तरों, मन की सरचना या पहचान बनाने वक विया को प्रर्ावित करते ह।ैं -5 साल की ं आय िाले बालक कपोल-कवल्पत िारणा , पररयो की कहावनयों िसै ी बातों म ें विििास करते ह।ैं कई ु ं बार यह विस्िाि व-8 साल तक की आय म ें र्ी दखे ा िाता ह।ै परन्त 8-10 साल तक की आय होने पर ु ु ु बच्चे दखे ते तर्था सनते तो सब कछ ह,ै परन्त कछ बातों को िह स्िीकवत द े कर मन म ें प्रबिे दते े ह,ैं तर्था ृ ु ु ु ु कछ बातों को तथ्य या तकभ की कसौटी पर परख कर अस्िीकत कर दते े ह।ैं यह प्रविया िीिन-पयांत ृ ु चलती रहती ह।ै अत म ें कहा िा सकता ह ै की व्यस्क होते-होते बालक इन सर्ी कारकों के सपकभ म ें आ ं ं कर कछ विचारों, मान्यता ि अनर्िों का व्यिवस्र्थत सग्रह का चका होता ह।ै अर्थाभत, िह एक पहचान ् ु ु ू ं ं बना लेता ह।ै विसम ें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पि सवम्मवलत होते ह।ैं पहचान विकास सबिी ं ं कायभ मल्याकन तर्था आकलन द्वारा प्रर्ाििाली रूप से प्रर्ावित होती ह।ै िसै े, िष भ की अिस्र्था तक ू ं पहचाँ ते-पहचाँ ते बच्चा अपनी बातों ि कायों के माद्यम से अन्य लोगों का ध्यान अपनी र आकि करने ु ु ृ का प्रयत्न करने लगता ह।ै ये कछ उदाहरण ह:ैं ु
“मम्मी ! ये दखे ो, मनैं े क्या बनाया ?”
“पापा ! दखे ों मरे ी नहीं टेडी दोस्त!”
“दीदी ! म ैं आपको एक कहानी सनाती ह।ाँ “ ू ु आय बढ़ने के सार्थ ु “म ैं बहतअच्छा डास कर सकता ह”ाँ ; ु ू ं मरे ी राइवटग बहत अच्छी ह“ै ; ु ं “म ैं मथ्ै स म ें बहत तेि ह”
ाँ ; ु ू
“म ैं ड्राइग बहत अच्छी बनाती ह”
ाँ ु ू ं इन सर्ी बातों पर माता-वपता या वििकों द्वारा आकलन तर्था सदवर्तभ पररणाम या प्रवतवियाए का.ी ं ं अहम होती ह।ैं विद्यालय म ें प्रििे के बाद बच्चे का विवर्न्न कायों, िेतों ि विषयों म ें आकलन दसरे ् ु व्यवक्तयों द्वारा वनिाभररत कछ मानकों के तहत वकया िाता ह।ै बालक को इसी समाय पर सामविक तलना ु ु का सज्ञान होता ह।ै बालक अपनी िमता ि सामाविक अपेिा को और उनके मध्य अतर को प्रर्थम ं ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 147 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 बार अपनी बवद् ि बालमन से समझने का प्रयत्न करता ह।ै विद्यालय म ें अलग-अलग विषयों म ें बच्चों के ु पररणामों का प्रर्ाि दपहचान विकास की विया पड पडता ह।ै ू अपने द्वारा वकये गए कायों की स.लता या अस.लता का मल्याकन दो प्रकार से वकया िाता ू ं ह,ै प्रर्थम वििक द्वारा तर्था दसरा बालक का अपनी िमता के आिार पर स्िय द्वारा, प्रर्ाि डालने ं ं ू िाले मख्या कारक ह।ैं ु कछ कायभ बालक अपनी ु प्राकवतक योग्यता द्वारा ृ तर्था कछ कायभ श्रम स े ु अवितभ योग्यता द्वारा करता ह।ै इन्हीं के आिार पर बालक ि े रियै ा विकवसत करते ह,ैं विनके द्वारा व्यस्क वकसी कायभ की कवठनता के समि अपनी कछ कायभ ु श्रम से अवितभ योग्यता द्वारा करता ह ै । इन्हीं के आिार पर बालक ि े रियै ा विकवसत करते हैं, विनके द्वारा व्यक्स वकसी कायभ की कवठनता के समि अपना मल्याकन करते ह ैं । ू ं विवर्न वििािावस्त्रयों ने पहचान के विवर्न्न पहल पर मल्याकन के प्रर्ाि के बारे म ें अलग- ु ू ं ं अलग िानकारी दी ह।ै पहचान पर मल्याकन के पररणाम के प्रर्ाि को चार प्रमख िेत्रों म ें बााँट कर समझ ू ु ं सकते ह:ैं a. अनर्वत (वििा, उपलवब्ि और प्रवतिारण); ु ू b. स्नेह (तनाि, परीिण, प्रेरणा, और सिक्तीकरण); c. व्यिहार (सविय या वनवरिय वििा, र्ागीदारी, िोखािडी); और d. सामाविक-सास्कवतक पहल (चयन, सामाविक वस्र्थवत, समाििे , वििा समाि)। ृ ू ं उवचत आकलन प्रेरणा, सिक्तीकरण, और सकारात्मक पहचान विकास की गारटी द े सकता ह।ै उदाहरण ं के वलए, मल्याकन सिादों का सझाि ह ै वक छात्रों को 'खले के वनयमों' को स्पि करने म ें मदद वमलेगी, ू ु ं ं व्याख्याता के वलए िाने िाली िारणाए, लेवकन छात्रों के वलए कम पारदिी। एक अमीर दो तरह स े ं ं मल्याकन िाताभ वििण कमचभ ाररयों और छात्रों की अपेिा के बीच अतराल को दर करने म ें मदद कर ू ं ं ं ू सकता ह,ै इस प्रकार छात्रों की प्रवतविया को समायोवित करने और व्याख्याता और वििावर्थभयों ं ं दोनों पर मल्याकन के बोझ को कम करने म ें मदद करता ह।ै ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 148 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अभ्यास प्रश्न 5. पहचान विकास म-ें a. सकारात्मक पि सवम्मवलत होते ह ैं b. नकारात्मक पि सवम्मवलत होते ह ैं c. कोई पि सवम्मवलत नहीं होते ह ैं d. सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पि सवम्मवलत होते हैं 2.7 साराशं आत्म-सम्मान एक स.ल सखी िीिन का आिारर्त तत्ि ह।ै यह व्यवक्त का अपनी निरों म ें अपना ु ू मल्याकन ह ै और अपनी मौवलक अवद्वतीयता की आतररक समझ और इसकी गौरिपण भ अनर्वत ह।ै ू ू ु ू ं ं सकारात्मक या उच्च आत्म-सम्मान के सार्थ व्यवक्त अपनी ताकत को स्िीकार करते ह ैं और उन्ह ें अपन े दवै नक िीिन म ें र्रपर उपयोग करते ह।ैं दसरे िब्दों म,ें उच्च आत्म सम्मान के सार्थ लोगों को खद को ू ु ू अच्छी तरह से िानते ह।ैं ि े अपनी कमिोररयों के बारे म ें र्ी सकारात्मक दृविकोण के सार्थ पता करत े ह।ैं नकारात्मक या वनम्न आत्म-सम्मान के सार्थ व्यवक्त अपनी कमिोरी को बहलता म ें स्िीकार करते ह ैं ु और िह उनके दवै नक िीिन म ें पररलवित
र्ी होता \ ह।ै दसरे िब्दों म,ें नकारात्मक आत्म सम्मान के ू सार्थ लोगों को खद को अच्छी तरह से नहीं िान पाते ह।ैं ि े अपनी अच्छाइयों के बारे म ें र्ी नकारात्मक ु दृविकोण रखते ह।ैं वदन-प्रवतवदन के वियाकलापों म ें बच्चे क
ो स.लता एि अस.लता का अनर्ि होता रहता ह।ै इसका ु ं सीिा प्रर्ाि उसके आत्म-सम्मान के विकास पर पडता ह।ै कर्ी-कर्ी बच्चे को समाि तो स.ल मानता ह,ै लेवकन बच्चा स्िय को स.ल नहीं मानता ह।ै अतः िह अपनी स.लता और अस.लता के प्रवत द्वन्द ं की वस्र्थवत में रहता ह।ै बालक अपनी स.लता तर्था अस.लता के प्रवत कै सी प्रवतविया करता ह ै यह र्ी उसके आत्म-सम्मान के विकास को प्रर्ावित करता ह ै तर्था इससे व्यवक्तगत एि सामाविक समायोिन र्ी ं प्रर्ावित होता ह।ै यद्यवप बच्चे स.लता और अस.लता के प्रवत वर्न्न-वर्न्न तरह से प्रवतविया करते ह।ैं तर्थावप, इन प्रवतविया का कछ रूप सर्ी बच्चों म ें समान रूप से पाया िाता ह।ै ु ं पहचान (identity) एक व्यापक िब्द ह।ै व्यवक्त के सन्दर् भ म ें यह उसके व्यवक्तगत गणों से ु सबवित ह।ै विस्तत अर्थभ म ें एक व्यस्क द्वारा वकया गया वनणयभ वक ैं क्या बनाँगा? अर्थाभत समाि म ें ृ ू ं ं की, की,
‘मरे े मान्यता ि मरे ी िारणा ’
की क्या र्वमका होगी? ू ं ं अपने द्वारा वकये गए कायभ के कारण, अपने कायभ का पण भ उत्तरदावयत्ि ग्रहण करना तर्था उनकी तावकभ क ू व्याख्या कर पाना, ये सर्ी अियि वमलकर पहचान (identity) नामक तत्ि की रचना करते ह।ैं ैं , विसके उच्चारण मात्र द्वारा एक व्यस्क या मानि, दसरे व्यवक्त या समाि को अपने सम्पण भ अवस्तत्ि का ू ू आर्ास कराता ह।ै इस सम्पणभ अवस्तत्ि म ें व्यवक्त के िारीररक, बौवद्क र्ािात्मक एि आध्यावत्मक पि ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 149 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सवम्मवलत होते ह।ैं व्यवक्त अगर िान ले वक िह क्या ह ै तो िह िीध्र िान लेगा वक उसे क्या होना चावहए। िो स्िय से पररवचत नहीं ह ै उसे दसरों के वदए पहचान के सहारे काम चलाना पडता ह।ै यह पहचान हम ें ं ू अपने स्िय म ें तलाि करना होगा ि िास्तविक योग्यता को पहचानकर उसे स्िीकार करना होगा। स्िय म ें ं ं अध्ययन की अच्छी आदतें विकवसत करना बहत महत्िपण भ ह।ै तावक लक्ष्य प्राप्त करने म ें स.लता वमल ु ू सके । 2.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. - (c) 2. - (a) 3. –(a) 4. –(c) 5. –(d) 2.9 सदं र् भ ग्रन्थ सची व कु छ उपयोगी पुस्तकें ू 1. पन यवनिवसभटी (2010). सीखने-वसखाने की प्रविया का पररितभन: आपके विद्यालय म ें मल्याकन ू ू ं का नेतत्ि करना. Retrieved from ृ http://www.open.edu/openlearncreate/mod/oucontent/view.php?id=80252&print able=1 2. Tran, N. (2014). The Impact of Assessment on the Learners’ Identities: A Literature Review. Arecls. Vol.11, 2014, 90 -106. Retrieved from https://research.ncl.ac.uk/ARECLS/volume_11/The%20Impact%20of%20Asses sment%20on%20the%20Learners%20Identities%20A%20Literature%20Revie w.pdf 3. Surgenor, P. (2010). Teaching Toolkit: Effect of Assessment on Learning Teaching Toolkit. Dublin: UCD. Retrieved from https://www.ucd.ie/t4cms/UCDTLT00 1.pdf 4. ज़वे ियर समाि सेिा सस्र्थान (n. d.). मानि विकास का मनोविज्ञान. Retrieved from ं http://hi.vikaspedia.in/health/child-health/ 5. दवै नक िागरण (2016).कामयाबी म ें आत्मसम्मान की र्वमका अहम. Publish Date: Fri, 21 ू Oct 2016 03:02 AM (IST). Retrieved from उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 150 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 http://www.jagran.com/bihar/samastipur-snskarshala-success-in-the-important- role-of-selfesteem-14904332.html 2.10 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. आत्म-सम्मान से आप क्या समझते ह?ैं नकारात्मक तर्था सकारात्मक आत्म-सम्मान की विवििता के सार्थ व्याख्या करें। ं 2. आत्म-सम्मान तर्था मल्याकन के पररणाम वकस प्रकार एक दसरे से प्रर्ावित होते ह?ैं ू ं ू 3. व्यवक्त म ें पहचान विकास की प्रविया की वििचे ना करें। 4. विद्यालय म ें मल्याकन वकस प्रकार से बच्चे की पहचान विकास की प्रविया को प्रर्ावित करता ह?ै ू ं समझाए। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 151 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 3- अतिगम में अतिप्रेरणा का मित्ि िथा आकलन के पतरणामों के प्रिाि का इससे सम्ब न्ि Importance of Motivation in Learning and Its Relationship with the Effect of the Results of Assessment 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 अवर्प्रेरणा का अर्थभ एि पररर्ाषा ं 3.4 अवर्प्रेरणा और सीखना 3.5 आकलन के पररणामों के प्रर्ाि का अवर्प्रेरणा से सम् बन् ि 3.6 विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा म ें िवद् करना ृ 3.7 अविगम के वलए अवर्प्रेरणा 3.8 साराि ं 3.9 सन्दर् भ ग्रर्थ सची ू ं 3.10 वनबिात्मक प्रश्न ं 3.1 प्रस्तावना अवर्प्रेरणा वििा का एक अत्यन्त महत्िपण भ सम्प्रत्यय ह,ै िो प्राणी के व्यिहार को वनयत्रण करता ह ै तर्था ू ं उसे उवचत वदिा म ें अग्रसाररत करता ह।ै अवर्प्रेरणा किल अविगम की आिारविला ह।ै अवर्प्रेरणा के ु अर्ाि म ें हम उत्तम अविगम की कल्पना नहीं कर सकते। अवर्प्रेरणा के िावब्दक अर्थभ म ें हमें वकसी अनविया को करने का बोि होता ह।ै प्राणी की प्रत्येक ु अनविया म ें कोई न कोई उद्दीपन वकसी न वकसी रूप में अिश्य विद्यमान होता ह।ै अवभ्रपेरणा के ु मनोिज्ञै ावनक अर्थभ म ें के िल आन्तररक उद्दीपनों को ही सवम्मवलत वकया िाता ह,ै बाह्य उद्दीपनों को कोई महत्ि नहीं वदया िाता। अतः मनोिैज्ञावनक अर्थभ म ें अवर्प्रेरणा एक आन्तररक िवक्त है, िो प्राणी को अनविया करने के वलए प्रेररत करती ह।ै ु Motivation अग्रेिी र्ाषा का िब्द ह,ै विसकी व्यत्पवत लैवटन र्ाषा की motum िात से हई ह।ै ु ु ु ं motum का अर्थभ ह-ै move, motor तर्था motion. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 152 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3.2 उद्दश्े य 1. अवर्प्रेरणा का अर्थभ एि पररर्ाषा िान पाएग े । ं ं 2. अवर्प्रेरणा और सीखने म ें क्या सम्बन्ि ह ै यह स्पि कर पाएग े । ं 3. आकलन के पररणामों के प्रर्ाि का अवर्प्रेरणा से क्या सम्ब न् ि सम्बन्ि ह ै इसकी व्याख्या कर पाएग े । ं 4. विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा म ें िवद् करने के विषय म ें िान पाएग े । ृ ं 5. अविगम के वलए अवर्प्रेरणा का क्या महत्ि ह ै यह स्पि कर पाएग े । ं 3.3 अरर्प्रेरणा का अथ भ एवं पररर्ाषा व् यिहार का अवर्प्रेरणा से सीिा सम् बन् ि ह ै । अवर्प्रेरणा व् यिहार को प्रारम् र् करती ह,ै उसे िारी रखती ह,ै तर्था लक्ष् य की प्रावप्त तक बनाए रखती ह ै । मानि व् यिहार कछ अवर्प्रेरकों द्वारा सचावलत, वनयवत्रत तर्था ु ं ं पररिवतभत होता ह ै । अवर्प्रेरणा को प्रत्य ि रूप से नहीं दखे ा िा सकता ह ै । व् यिहार को दखे कर ही अवर्प्रेरणाके सम् बन् ि म ें अनमान लगाया िा सकता ह ै । ु अवर्प्रेरणा की पररर्ाषा 1. Motivation is usually defined as an internal state that arouses, directs, and maintains behavior. अवर्प्रेरणा सामान् य रूप से एक आन् तररक वस्र्थवत के रूप म ें पररर्ावषत की िाती ह ै िो व् यिहार को उत्प न् न करती ह,ै वनदवे ित करती ह ै तर्था बनाए रखती ह ै । 2. Motivation is an energy change within the person characterized by affective around and anticipatory goal relations. McDonald अवर्प्रेरणा व् यवक्त के अन् दर होने िाला ऊिाभ पररितभन ह ै िो र्ािात्म क िागरण तर्था पिाभनमावनत लक्ष् य ु ु सम् बन् िों से अवर्रवित होता ह ै । अवर्प्रेरणा व् यवक्त के अन् दर ऊिाभ पररितभन से प्रारम् र् होती ह ै । इसकी वििेषता के अन् तभगत ं र्ािात् मक िागरण तर्था पिाभनमावनत लक्ष् य सम् बन् ि समावहत रहते ह ैं । ु ु अवर्प्रेरणा म ें पररितभन मानि के स् नायविक-िारीररक तन् त्र (Nervous-Physiology system) ु म ें ऊिाभ पररितभन के कारण होता ह ै । बहत से अवर्प्रेरकों के सन् दर् भ म ें यह एकदम स् पर ट नहीं हो ु पाता ह ै वक ऊिाभ पररितभन कै सा होता ह,ै वकन् त र्ख की प्रेरणा इत् यावद व् यवक्त म ें िारीररक ु ू पररितभन के कारण ही उत् पन् न होती ह।ै अवर्प्रेरणा र्ािात् मक िागरण से अवर्रवित होती ह ै । तात्प यभ यह ह ै वक यह र्ािात्म क िागवत ृ से िवणतभ होती ह ै । िोि, िणा या व.र प् यार-स् नेह विविर ट प्रकार के व् यिहार को उत्प न् न करते ह।ैं ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 153 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अवर्प्रेरणा लक्ष् य प्राप् त कराने िाली प्रवतविया की र व् यवक्त को उन् मख करती ह ै । ऊिाभ ु ं पररितभन के कारण िो तनाि उत्प न् न होता ह ै िह इन प्रवतविया द्वारा कम हो िाता ह ै तर्था ं लक्ष् य के प्राप् त होन पर यह तनाि दर हो िाता ह ै । ू उियतक् त धववरण को सरि वाक् यों में धनम् नवत प्रस तत धकया िा रहा है - ् ् ु ु वकसी कायभ को करने के वलए प्रोत्स ावहत होना या तत्प र होना उस कायभ को करने के वलए अवर्प्रेररत (Motivated) होना ह ै । इस अर्थभम ें अवर्प्रेरणा एक प्रविया (Process) के रूप म ें ह ै । सार्थ ही अवर्प्रेरणा प्रविया के पररणाम/उत्प ादन (Product) के रूप म ें र्ी व् यक् त होती ह ै । प्रविया के रूप म ें यह एक मनोिारीररक विया ह ै िो व् यवक्त म ें कायभ वििेष को करने के प्रोत्स ावहतहोने के वलए ऊिाभ को उत्प न् न करती ह ै । इस प्रविया म ें र्ािात्म क (Emotional) तर्था वियात् मक(conative) दोनों आयाम सवन्नवहत रहते ह ैं । पहले व् यवक्त र्ािात्म क रूप से उत् सक होता ु ह,ै व.र यह उत् सकता ऊिाभ का रूप िारण कर उसम ें उत्स ाह एि उमग र्रती ह ै और अन् त म ें उस े ु ं ं कायभ वििषे को करने के वलए प्रेररत करती ह ै । काय भ का वनर पादन प्रविया के पररणाम के रूप म ें सामने आता ह ै । अवर्प्रेरणा की कछ अन् य पररर्ाषाए वनम् नित ह ैं – ् ु ं अवर्प्रेरणा िह प्रविया ह ै विसम ें सीखने िाले की आन् तररक ऊिाभए अर्थिा आिश् यकताए ं ं उसके पयाभिरण म ें उपवस्र्थत विवर्न् न लक्ष् य िस् त की र वनदवे ित रहती ह ैं । ु ं Motivation is a process in which the learner’s internal energies or needs are directed towards various goal objects in his environment. अवर्प्रेरणा को और अविक औपचाररक रूप म ें एक ऐसी मनोिज्ञै ावनक अर्थिा आन् तररक प्रविया के रूप म ें पररर्ावषत वकया िा सकता ह ै िो वकसी आिश् यकता के वलए प्रारम् र् होती ह ै तर्था िो ऐसी वकसी विया को उत्प न् न करती ह ै विससे उस आिश् यकता की सतवि ु ं हाे गी । Motivation may be defined more formally as a psychological or internal process initiated for some need which leads to any activity which will satisfy that need. Lawell अधिप्रेरक (Motives) कायभ वििषे को करने के वलए अवर्प्रेरणा उत्प न् न करने िाले कारकों को अवर्प्रेरक कहते ह ैं । अवर्प्रेरक वनम् नवलवखत दो प्रकार के होते ह ैं – उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 154 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आन् तररक अवर्प्रेरक (Internal Motives) -इसके अन् तभगत िारीररक अर्थिा िैविक अवर्प्रेरक (Physical or Biological Motives) आते ह ैं – िसै े र्ख (Hunger) , काम ू (Sex), आत् मरिा (Self-protection) आवद । बाह्य अवर्प्रेरक (External Motives) - इसके अन् तभगत पयाभिरणीय अर्थिा मनोसामाविक अवर्प्रेरक आते ह ैं – िसै े आत् म सम् मान (Self-respect), सामाविक स् तर (Social Status) तर्था वििषे उपलवब्ि (special achievement) प्राप् त करने की इच् छा। 3.4 अरर्प्रेरणा और सीखना (Motivation and Learning) सीखने की प्रविया तर्था सीखने के पररणाम दोनों ही अवर्प्रेरणा से प्रर्ावित होते ह ैं । उपयक् त ढग से ु ं अवर्प्रेररत विद्यार्थी सीखने की प्रविया म ें सविय रूप से र्ाग लेते ह,ैं उनकी सीखने की गवत ती्र होती ह ै तर्था उनका सीखना र्ी अपेिाकत अविक स् र्थायी होता ह ै । कछ कर्थनों पर ध् यान दीविए – ृ ु सीखने की प्रविया सिोत्त ढग से आग े बढ़ेगी यवद िह अवर्प्रेररत होगी । ं Learning will proceed lost, if motivated. Anderson अवर्प्रेरणा सीखने का रािपर्थ ह ै । Motivation is the super highway to learning. Skinner अवर्प्रेरणा सीखने की एक आिश्य क ितभ ह ै । Motivation is an essential condition of learning. Melton व् यािहाररक दृविकोण से सीखने का उच् चतम लक्ष् य अविकतम वनर पवत की प्रावप्त ह ै । अविकतम वनर पवत तब ही सम् र्ि ह ै िब सीखने योग्य ता के सार्थ अवर्प्रेरणा र्ी हो । ं वनर पवत = योग्य ता + अवर्प्रेरणा Achievement = Ability + Motivation Woodworth सीखने के मनोिैज्ञावनक आिार का िम वनम् नित ह ै – ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 155 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 Motivation अवर्प्रेरणा Interest रूवच Attention ध्य ान (अििान) सीखना कब सम्
र्ि होता ह ै ॽ िब विद्यार्थी पाठयिस् त/वििण पर ध् यान के वन्ित करे । ् ु विद्यार्थी पाठयिस् त /वििण पर ध् यान क् यों करता ह ै ॽ ् ु िब उसम ें विद्यार्थी की रूवच होती ह ै । विद्यार्थ
ी की पाठयिस् त /वििण पर रूवच कै से िाग्रत होती ह ै ॽ ् ु िब िह उसके वलए अवर्प्रेररत होता ह ै । इसे याद रखने के वलए AIM को िब् द के रूप म ें स् मवत म ें रखा िा सकता ह ै । ृ कौन सीखगे ा ॽिो ध् यान दगे ा । A ध् यान कौन दगे ा ॽ विसकी उसम ें रूवच होगी I रूवच क् यों होगी ॽ क् योंवक िह अवर्प्रेररत ह ै M सीखने और अवर्प्रेरणा के सम् बन् ि को समझने हते वनम् नवलवखत को ध् यान से पवढ़ ए - ु 1. अवर्प्रेरणा
विद्यार्थी म ें सीखने के वलए उत् सकता उत् पन् न करती ह ै । ु 2. अवर्प्रेरणा विद्यार्थी म ें ऐसी ऊिाभ उत् पन् न करती ह ै विससे िह वनिाभररत उद्दश्े य सम् बन् िी लक्ष् य को प्राप् त करने के वलए अग्रसर होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 156 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3. अवर्प्रेरणा इस लक्ष् य की प्रावप्त हते विद्यार्थीको आिश् यक कायभ करने के वलए प्रेररत करती ह ै । ु 4. अवर्प्रेरणा विद्यार्थी को सीखने के कलए वनरन् तर वियािील रखती ह ै । 5. अवर्प्रेरणा के कारण ही विद्यार्थी अपनी मानवसक योग्य ता से कहीं अविक उपलवब्ि प्राप् त ं कर लेते ह ैं । 6. अवर्प्रेरणा का सम् यक उपयोग कर विद्यावर्थभयों को विषयों के ज्ञान क
े सार्थ-सार्थ कौिलों का प्रवििण र्ी सरलता से वदया िा सकता ह ै । 7. अवर्प्रेरणा अच् छी आदतों के वनमाभण तर्था स् िानिासन की स् र्थापना म ें महत िपण भ र्वमका का ् ु ू ू वनिहभ नकरती ह।ै 8. उवचत अवर्प्रेरकों यर्था परस् कार तर्था प्रिसा का उपयक् त प्रयोग कर विद्यावर्थभयों को िावछत ु ु ं ं व् यिहार करना वसखाया िा सकता ह ै । यह चररत्र वनमाभण म ें सहायक वसद् होता ह ै । 9. लब् ि प्रवतर ठ समाि सेिकों तर्था महान दिे र्क् तों की िीिवनयों को के रूप म ें उपयोग कर विद्या वर्थभयों को समाि सेिा तर्था रार र वहत के कायों को करने के वलए उन् मख वकया ु िा सकता ह ै । 3.5 आकलन के पररणामों के प्रर्ाव का अरर्प्रेरणा स े सम् बन्ध (Relationship of Motivation with the Effect of the Results of Assessment) यह एक सिभमान् य अििारणा ह ै वक विद्यालय म ें वकए िाने िाले वििण कायभ से विद्यार्थी ह ैं । वििण विद्यावर्थभयों की सीखने की प्रविया को प्रारम् र् करता ह,ै सीखने की प्रविया को सरल-सहि सगम ु बनाता ह ै तर्था सीखने की प्रविया को ती्र करता ह ै । (Learning outputs) को अपने वििण कायभ की प्रर्ाििीलता (Effectiveness) का पता चलता ह ै । इस िानकारी से विद्यावर्थभयों को के वलए वकए गए अपने प्रयासों, श्रम महे नत के प्रर्ािों का पता चलता ह ै । के पररणामों’ की िानकारी के वलए वििक विद्यावर्थभयों की िवै िक उपलवब्ि का आकलन (Assessment)करते ह ैं । आकलन से
प्राप् त सचना के यर्थोवचत उपयोगसे वििकों सवहत विद्यार्थी र्ी ू ं लार्ावन्ित होते ह ैं । ये सचनाए अकों (Scores),श्रेवणयों (Grades) या गणात् मक वििरण/वनर कषों ू ु ं ं (Qualitative description/ inferences) के रूप म ें हो सकती ह ै । इन सचना को प्राप् त
करने म ें वििकों को अविकतम साििावनयों का प्रयोग करना होता ह ै । ू ं यह सचनाए यर्थासम् र्ि िस् तवनर ठ, ििै तर्था विश्ि स नीय होनी चावहए । इस सन् दर् भ म ें बरतीगई र्थोडी सी ू ु ं लापरिाही के िातक और दरगामी पररणाम होने की आिका बनी रहती ह ै । पण भ रूपेण वनर पि –सर्ी ू ं ू पिाभग्रहों से मक् त रहकर आकलन का कायभ सम् पावदत वकया िाना चावहए । प्रदत्तों के सग्रह तर्था सचना ू ु ू ं ं को एकत्र करने के वलए वििके पण भ ढग से उपयक् त उपकरणों का सम् यक उपयोग वकया िाना चावहए । ू ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 157 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 के पररणामों
से विद्यावर्थभयों को उनकी उपलवब्ि के आिार पर वनम् न प्रकार से विर्ावित वकया िाता ह ै – अवत उच् च उपलवब्ि िाले विद्यार्थी उच् च उपलवब्ि िाले विद्यार्थी सामान् य उपलवब्ि िाले विद्यार्थी वनम् न उपलवब्ि िाले विद्यार्थी अवत वनम् न उपलवब्ि िाले विद्यार्थी गणात् मक वििरण के आिार पर वनम् न श्रेवणयों म ें विद्यावर्थभयों को रखा िा सकता ह ै – ु अत् यविक महे नती विद्यार्थी महे नती विद्यार्थी कम महे नती विद्यार्थी अत् यविक कम महे नती विद्यार्थ
ी इसी प्रकार की श्रवे णया किा म ें उपवस्र्थवत, ग हकाय भ को समय पर पण भ करना, समह म ें काय भ करन े सम्ब न्ि ी ृ ू ू ं वििरण, पाठय सहगामी विया म ें र्ागीदारी, अनिावसत रहने इत् यावद के सन् दर् भ म ें र्ी वनवमतभ की िा ् ु ं सकती ह ै । उपयभक् त सचनाए विद्यावर्थभयों को कब प्रदान की िानी चावहएॽसमात म ें वकए गए ु ू ं ं की कवमयों/सीमा को दृविगत रखते हए ही CCA- Continuous and comprehensive ु ं Assessment अििारणा विकवसत की गई ह ै । मनोिज्ञै ावनक वस्कनर ने अपनेद्वारा वकए गए प्रयोगों के पररणामों के आिार पर बताया वक यवद सीखने िाले को उसकी स.लता का ज्ञान तरन् त करा वदया िाए तो यह उसके वलए अवर्प्रेरकका कायभ करेगा । ु त्ि ररत प्रवतपवि (Immediate Feedback) का प्रत्य य इसी कारण से अत् यविक महत् िपण भ ह ै । स.लता ु ू के त् िररत ज्ञान से विद्यार्थी उससे आग े के कायभ को और अविक उत् साह से करता ह ै । यहा पर कछ बातों पर वििषे ध् यान दने ा होगा । विद्यावर्थभयों को ऐसे अिसर अविक वदए िान े ु ं चावहए िहा ि े अविक कायों को स.लतापिकभ कर सकें । आकलन का उद्दश्े य विद्यावर्थभयों को अस.ल, ू ं कमिोर, वनम् न उपलवब्ि िाला िोवषत करना नहीं होना चावहए ।
‘विद्यार्थी कया नहीं िानता’
के स् र्थान पर
‘विद्यार्थीक् या िानता ह’
ै को अविक महत् ि, प्रमखता तर्था िरीयता दने ी होगी । (नोट: इस सन् दर् भ म ें ु विस् तत वििरण ............ म ें दखे ें । ) आकलन की प्रविया इस प्रकार सम् पावदत की िानी चावहए वक ृ उससे पररणामों का अवर्प्रेरणा पर सकारात्म क प्रर्ाि दृविगोचर हो । यह िनश्रवत
‘Success breeds success’-
वनश् चय ही ध् यान म ें रखने योग् य ह ै । सर्ी विद्यार्थी एक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 158 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वनिाभररत सीमा तक अिश् य स.ल हो – इस वस्र्थवत को प्राप् त करने के सार्थभक प्रयास विद्यालयों को करनेही होंग े । अस.ल विद्यार्थीनहीं होता ह ै – निीन अििारणा को स् िीकार करना ही होगा । इससे ही आकलन के पररणामों का अवर्प्रेरणा पर सकारात्म क प्रर्ाि पडेगा । 3.6 रवद्यार्कथयों की अरर्प्रेरणा म वरि करना (Enhancing Learner’s ें ृ Motivation) इस सन् दर् भ म ें वििरण प्रस् तत करने से पि भ एक बात पर वििषे रूप से विचार करना समीचीन रहगे ा । ु ू Talent without Motivation is a waste. अवर्प्रेरणा के अर्ाि म ें योग् यता/िमता व् यर्थभ ह ै । Motivation without Talent is a big disturbance. योग्य ता /िमता के अर्ाि म ें अवर्प्रेरणा एक बडा उपिि ह ै । उपयभक् त दो कर्थन िास् तविकता के िरातल पर विचार करने के वलए वििि करते ह ैं । ु प्रर्थम कर्थन के सन् दर् भ म ें विचार करें । किा म ें कछ विद्यार्थी अन् य की तलना म ें अविक मेिािी होत े ह,ैं ु ु अविकतर सामान् य बवद् के होते ह ैं तर्था कछ औसत से कम बवद् के र्ी हो सकते ह ैं । बहसख् यक ु ु ु ु ं वििक,
‘सामान् य बवद् िाले अविकतर विद्यावर्थभयों’
को ध् यान म ें रखकर ही वििण कायभ करते ह ैं ु ।सामान् य िीिन म ें र्ी ऐसा ही होता ह ै िहा मध् यमाग भ (Golden Mean) ही अपनाया िाता ह ै । इस ं तरीके को अपनाऐ िानेसे उपेवित से
से हो िाते ह ैं । किा वििण उनके आकािा स् तर ं (Level of Aspiration) से वनम् न स् तर का होता ह ै । इसका सीिा सम् बन् ि ऐसे विद्यावर्थभयों की अवर्प्रेरणा से होता ह ै । स
ामान् य बवद् के बहसख् यक विद्यावर्थभयों को ध् यान म ें रखकर वकए िाने िाले ु ु ं वििण कायभ से मिे ािी विद्यार्थी से ि वच त हो िाते ह ैं । दसरी र औसत बवद् से कम ु ं ू बवद्िाले ऐसी ही वस्र्थवत बनती ह ै ।ि े र्ी इस प्रकार के वििण कायभ से अवर्प्रेररत नहीं होते ह ै । ु दो वस् र्थवतयों पर विचार करें- प्रर्थम वस्र्थवत
विद्यार्थी म ें योग्य ता/िमता ह ै परन् त विद्यालय का िातािरण उसके वलए चनौतीपण भ नहीं ह ै । ऐस े ु ु ू विद्यार्थी को अवर्प्रेररत होने के वलए आिश् यक तत् ि विद्यालय म ें विद्यमान
नहींहोते ह ैं । ऐसे में योग्य ता/िमता के व् यर्थभ हो िाने की आिका बनी रहती ह ै । ं दसरी वस्र्थवत ू विद्यार्थी औसत से वनम् न बवद् का ह ै । पाररिाररक िातािारण म ें ऐसे कारक विद्यमान ह ैं िो उसे उच् च ु उपलवब्ि हते , तत् पश्च ात उच् च िते न, उच् च सामाविक प्रवतर ठा यक् त पद प्राप् त करने तर्था स.ल ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 159 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सखी ििै ावहक िीिन के वलए अनिरत रूप अवर्प्रेररत करते ह ैं । यह एक बडी विषम वस्र्थवत ह ै । ु योग्य त/िमता के अर्ाि म ें उच् च आकािा स् तर को वनवमतभ करने के वलए अवर्िाप र्ी ं बन सकती ह ै । यह लगातार को झले ने के वलए विद्यार्थी को मिबर कर सकती ह ै । ऐस े ू ं विद्यार्थी के िीिन म ें यह एक बडा उपिि ह ै । उपयभक् त दोनोंवस्र्थवतयों की से बचनाही होगा । अवर्र्ािकों तर्था वििकों द्वारा इस सन् दर् भ म ें वििेष ु रूप से विचार कर तद्नसार उपयक् त कायभ करने होंग े । ु ु 3.7 अरधगम के रलए अरर्प्रेरणा - कु छ रवशेष तरीके 1. िढ़ाई िाने वािी िाठयवस् त तर्ा अधितत धकए िाने वािे कौिि की उियोधगता ् ु (Utility of the learning material to be taught and acquisition of the skill) - उपयोवगता सिाभविक प्रर्ािी अवर्प्रेरक ह ै । विद्यावर्थभयों को िब यह पता चल िाता ह ै वक िो पाठयिस् त उन् ह ें पढ़ाई िा रही ह ै तर्था िो कौिल उन् हवें सखाया िा रहा ह,ै िह उनके र्ािी िीिन ् ु के वलए अत् यविक उपयोगी ह ै तो ि े उसे सीखने (ज्ञान) तर्था अवितभ करने (कौिल) के उतने ही अविक अवर्प्रेररत होंग े । उच् च िते नयक् त प्रवतवष्ठत पद प्रापत करने की िास् तविक सम् र्ािनाए ु ं विद्यावर्थभयों को अवर्प्रेररत करने म ें सिम होती ह ैं । 2. िढ़ाई िाने वािी िाठयवस् त तर्ा अधितत धकए िाने वािे कौिि के प्रधिक्षण के स्ि ष् ट ् ु उद्देश् य (Clear Aims of the training for the learning material to be taught and acquisition of the skill) - उपयोवगता के सार्थ वििण-प्रवििण के उद्दश् यों तर्था लक्ष् यों का स् परट होना र्ी आिश् यक ह।ै यह स् पर टता उन्ह ें लक्ष् य की प्रावप्त हते प्रयत् न प्रारम् र् ु करनेतर्था लक्ष् य तक पहचने के वलए उन् ह ें सविय रखती ह ै । पाठयिस् त को सीखने तर्था कौिल ु ् ु ं को अवितभ करने की विया म ें अनिरत रूप से सलगन रहना इसी से सम् र्ि हो पाता ं ं ह ै । 3. धवद्या धर्तयों की आवश् यकताए (Needs of the Students) - उपयोवगता यक् त तर्था स् पर ट ु ं उद्दश्े य ों के सार्थ-सार्थ पढ़ाई िाने िाली पाठयिस् त तर्था अवितभ वकए िाने िाले कौिल से ् विद्यावर्थभयों की आिश्य कता की यर्थासम् र्ि पवतभ र्ी होनी चावहए। विद्यावर्थभयों की ू ं आिश् यकता की सतवि अत् यन् त महत् िपण भ कारक ह ै । ऐसा न होन की वस्र्थवत म ें उपयोवगता ु ू ं ं तर्था स् पर टता अवर्प्रेरणा को वनवमतभ करने/उत्प न् न करने के वलए िरूरी होते हए र्ी पयाभप् त नहीं ु ह।ै अत: ज्ञानएि कौिल को विद्यावर्थभयों की तत् कालीन तर्था र्विर य की आिश् यकता के ं ं सार्थ सम् बवन्ित वकया िाना अवर्प्रेररत करने की एक अच् छी विवि मानी िा सकती ह ै । 4. धवद्याधर्तयों का आकाक्षा स्त र (Level of Aspiration of the Students ) - एक की ं किा के विद्यावर्थभयों म ें कई समानताए तर्था अनके अन् तर होते ह ैं । उदाहरण के वलए विज्ञान िग भ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 160 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 के किा 11 के विद्यावर्थभयों के सम् बन् ि म ें विचार करें िो वकसी एक रािकीय बावलका इन् टरमीवडएट म ें अध् ययनरत ह ैं । उनम ें वनम् नवलवखत समानाताए ह ैं – ं i. ि े सर्ी बावलकाए ह ैं । ं ii. ि े सर्ी विज्ञान विषयों का अध् ययन कर रही ह ैं । iii. ि े सर्ी हाईस् कल परीिा उत्तीण भ ह ैं । ू iv. ि े सर्ी अवििावहत ह ैं । उनम ें वनम् नवलवखत अन् तर ह ैं - i. ि े विवर्न् न िमों/िावतयों की ह ैं । ii. उनके हाईस् कल की परीिा म ें प्राप् ताकों म ें अन् तर ह ैं । ू iii. उनम ें पररिार की मावसक आय म ें अन् तर ह ै । iv. उनके अवर्र्ािकों के िवै िक स् तर म ें अन् तर ह ै । v. उनके िन् म िम म ें अन् तर ह ै । अन् य अनेक मनो-सामाविक चरों (Variables) के सन् दर् भ म ें र्ी उनम ें परस पर अन् तर हो सकते ् ह।ैं ऐसा ही एक चर ह ै । ं कछ छात्राए के िल उत्तीण भ हो
ना चाहती ह ैं । कछ प्रर्थम श्रेणी म ें उत्तीण भ होना चाहती ह ैं । कछ ु ु ु ं इन् टरमीवडएट की परीिा उत्तीण भ करने के बाद इन् िीवनयररग की पढ़ाई करना चाहती ह ैं ,कछ ु ं वचवकत्स ा विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती ह ैं , कछ विज्ञान
विषय म ें स् नातक उपावि प्राप् त करना ु चाहती ह ैं ।कछ का उद्दश्े य कला या िावणज् य विषयों म ें स् नातक उपावि प्राप् त करना हो सकता ह।ै ु छात्रा म ें यह अन् तर उनके आकािा स् तर म ें अन् तरों को प्रदवितभ करते ह ैं । ं ं आकािा स् तर म ें वर्न् नता तर्था उसका अवत उच् च, सामान् य या वनम् न स् तर के होन े से इन ं बावलका की अवर्प्रेरणा म ें अन् तर होता ह ै । यवद आकािास् तर उच् च होगा तो ि े उसकी प्रावप्त ं ं हते अविक अवर्प्रररत होंगी। अत: विद्यावर्थभयों के आकािा स् तर को उठाकर वििक उनकी ु ं अवर्प्रेरणा म ें िवद्कर सकते ह ैं । यहा पर इस बात की साििानी बरती िाए वक ऐसा विद्यावर्थभयों ृ ं की योग्य ता/िमता तर्था अन् य कारकों यर्था पररिार की आवर्थभक वस्र्थवत इत्य ावद को ध् यान में रखकर वकया िाए । 5. धवद्यािय/कक्षा का वातावरण (School/Classroom Environment) - इसम ें कोई सन् दहे नहीं ह ै वक विद्यालय/किा का िातािरण विद्यावर्थभयों को अवर्प्रेररत करने म ें एक अवर्प्रेरक के रूप म ें कायभ करता ह ै । विद्यालय का आकषकभ र्िन, बडा पररसर, सन् दर कि, ु िद् िाय, पयाभप् त प्राकवतक/कवत्रम प्रकाि, िान् त मनोहारी दृश्य यक् त पररसर, वििक- ृ ृ ु ु ु विद्यावर्थभयों के बीच मिर सम्ब न् ि, विद्यावर्थभयों के परस् पर सहयोगात्म क एि सकारात् मक मत्रै ी ु ं सम् बन् ि आवद
विद्यालय/किा म ें एक अच् छे िातािरण का सिन करने म ें अहम र्वमका का ृ ू वनिाभह करते ह ैं । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 161 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 विस विद्यालय/किा का िातािरण सीखने के वलए वितना अच् छा होगा िहा के विद्या र्थ
ी सीखने ं के वलए उतने ही अविक अवर्प्रेररत होंग े । 6. प्रिावी धिक्षण धवधियों का उियोग (Use of effective methods of Teaching) - किा म ें र्य रवहत िातािरण का सिन कर विद्यावर्थभयों की योग् यता/िमता के अनरूप उनकी ृ ु रूवचयों को ध् यान म ें रखकर सर्ी प्रकार की श्रव् य-दृश्य सामग्री का यर्थोवचत प्रयोग करके वििण को प्रर्ािी बनाया िा सकता ह ै । इससे विद्यावर्थभयों की सीखने की प्रविया सहि, सरल तर्था सगम हो िाती ह ै । ि े म ें स.लता
प्राप् त कर लेत े ह ैं । इस स.ला से उन् ह ें पनबभ लन ु ु (Reinforcement) वमलता ह ै । उससे विद्यार्थी अवर्प्रेररत होते ह ैं । और इससे सीखने की विया को अविक गवत प्राप् त होती ह
ै । 7. प्रिसा एव िरस् कार (Precise and Reward) - वििक विद्यावर्थभयों की प्रिसा करके तर्था ु ं ं ं उन् ह ें यर्थोवचत ढग से परस् कत करके उन् ह ें उद्दश्े य ों की प्रावप्त हते अवर्प्रेररत कर सकतेह।ैं यह स् मरण ृ ु ु ं रखना होगा वक वनन् दा तर्था दण् ड का अवर्प्रेकरकों के रूप म ें उपयोग करना न उवचत ह ै और न ही िाछनीयह ै । इनका उपयोग काननन िवितभ ह ै । इसवलए यह त् याज् य ह ै । ू ं िोि कायभ के पररणाम बतातेह ैं वक प्रिवसत तर्था परस् कत प्रवतविया के पन: प्रदिभन की ृ ु ु ं ं आिवत्त म ें वनस् सन् दहे िवद् होती ह ै िबवक वनवन्दत तर्था दवण्डत प्रवतविया के पन: प्रदिनभ की ृ ृ ु ं आिवत्त म ें कमी होना आिश् यक नहीं ह ै । ृ Responses which are followed by satisfying state of affairs are likely to be definitely repeated. The frequency of giving such responses gets strengthened whereas responses which are followed by annoying state of affairs are not likely to be abandoned. It is not necessary that frequency of giving such responses gets weakened. The impacts of reward and punishment are not equal and opposite. 8. प्रधतस्ि िात एव सहयोग (Competition and Cooperation) - इस सन् दर् भ में पि भ म ें ू ं प्रचवलतअििारणा म ें आमल-चल पररितभन हो गया ह ै । प्रवतस् पिाभ का किा/विद्यालय तर्था ू ू ं पाररिाररक सामाविक िीिन म ें कोई स् र्थान नहीं ह ै । विद्यालयों म ें आयोवित की िाने िाली म ें से को हटाना होगा । प्रवतयोवगता को पारस् पररक स हयोग में ं ं िवद् करने िाली विया के रूप म ें विकवसत करना होगा । प्रवतयोवगता को के ृ ं ं रूप म ें नहीं िरन म ें िवद् करने के वलए आयोवित वकया िाना होगा । प्रवतस् पिाभ ृ ् अब िवितभ तर्था तयाज् य ह ै । ियै वक्तक, पाररिाररक, िवै िक तर्था सामाविक िीिन म ें प्रवतस पिाभ ् का कोई स् र्थना या महत् ि नहीं ह ै । यह नकारात्म क ह ै तर्था इससे ऊिाभ का िरण/ह्रास होता ह ै । िाली र्ारतीय सस् कवत सवदयों से मानती आई ह ै वक – ृ ् ु ु ु ं अ् वनज: परोवेवि गणनयम लघ िेतसयम । ् ् ु ां उदयर िररतयम त वसर्ैव कटम् बकम ।। ् ् ु ु ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 162 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सम् पण भ विश् ि एक पररिार के सदृि ह े । यह उ्ोषणा र्ारतीय मनीषा सवदयों पि भ कर चकी ह ै । ू ू ु यनेस् को द्वारा िष भ 1996 म ें प्रकावित पस् तक
‘Learning: The Treasure Within’
ू ु (विसे’डेलोसभररपोटभ’ के रूप में र्ी िाना िाता ह ै ) म ें वििा के र्िन को विन चार स् तम् र्ों (Pillars) पर खडा करने/वनवमतभ करने की सस् तवत इस प्रवतिदे न म ें की गई ह,ै ि े वनम् नित ह ै – ् ु ं i. Learning to know ज्ञान योग ii. Learning to do कम भ योग iii. Learning to live together सहयोग iv. Learning to be आत् मसािात्क ार र्मण् डीलीकरण / िश्ै ि ीकरण (Globalization) के इस यग म ें िेत्र, प्रान् त रार र की सीमा से ऊपर ू ु ं उठकर सम् पण भ विश्ि /सम् पण भ मानिता के कल्य ाण के दृविकोण से विचार करना तर्था तदनसार कायभ करना ू ू ु िवै श्वक वहत म ें ह ै । C C Competition Co-operation प्रवतस् पिाभ सहयोग प्रवतस् पिाभ के स् र्थान पर सहयोग की आिश् यकता ह ै । अब सम् पण भ विश्ि म ें वकए िा रह े / वकए िाने िाले ू प्रवतस् पिा भ से नहीं हो रह े ह ैं / नहीं हो सकते ह ैं । पयाभिरण का सरिण, सम् पण भ विश्ि से गरीबी, ू ं र्ख, वबमाररयों का उन् मलन, सबके वलए वििा, स् िास् थ्य , िद् पेयिल, िद् िाय, प्रदषण रवहत ू ू ु ु ु ू िातािरण उपलब् ि कराना ये ह ैं । ये प्रवतस् पिाभ से नहीं िरन सहयोग से ही होंग े । ् इस निीन अििारणा से विद्यावर्थभयों को अिगत कराना तर्था इसके वलए उन् हें अवर्प्रेररत करना विद्यालयों का ही दावयत्ि ह ै । विद्यालयों के विवर्न् न विया कलापों यर्था िवै िक उपलवब्ि म ें उन् नयन, पाठयसहगामी विया - खेल-कद, िाद-वििाद प्रवतयोवगता , वनबन् ि लेखन,सामवहक भ्रमण, ् ू ू ं ं सास् कवतक कायभिम, समाि-सेिा, स् िच् छता अवर्यान, िल-मदा सरिण, प्रदषण रवहत िातािरणका ृ ृ ं ं ू सिन इत् यावद म ें प्रवतस् पिाभ के स् र्थान पर सहयोग का स.ल उपयोग वकया िा सकता ह ै । िवै िक कायों ृ को सम् पावदत करने म ें वनम् नवलवखत तरीके से र्ी विचार वकया िा सकता ह ै विससे एक व् यिहार परक िास् तविक िरातल पर सम् र्ि योिना पद्वत विकवसत की िा सके । Competitive, Co-operation and Co-operative Competition प्रवतस् पिाभत् मक सहयोग तर्था सहयोगात्म क प्रवतस् पिाभ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 163 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इस प्रकार के सवम्मश्रण से कालान् तर म ें प्रवतस् पिाभ को मानिीय वियाकलापों के सम् पादन से िास् ति म ें दर ू वकया िा सकता ह ै तर्था उसके स् र्थान पर प्रवतयोवगता को प्रवतवष्ठत वकया िा सकता ह ै । विद्यावर्थभयों को यह िानकारी दने ी होगी वक िश्ै ि ीकरण के इस दौर म ें विज्ञान और तकनीकी से सवज्ित मानिता का र्विर य प्रवतस् पिाभ नहीं िरन सहयोग से सरवित रहगे ा । यह िानकारी उन् ह ें इस र अवर्प्रेररत करने म ें ् ु सिम वसद् हो सकती ह ै । 3.9 सारांश व् यिहार का अवर्प्रेरणा से सीिा सम् बन् ि ह ै । अवर्प्रेरणा व् यिहार को प्रारम् र् करती ह,ै उसे िारी रखती ह,ै तर्था लक्ष् य की प्रावप्त तक बनाए रखती ह ै । अवर्प्रेरणा व् यवक्त के अन् दर होने िाला ऊिाभ पररितभन ह ै िो र्ािात् मक िागरण तर्था पिाभनमावनत लक्ष् य सम् बन् िों से अवर्रवित होता ह ै । ु ु कायभ वििषे को करने के वलए अवर्प्रेरणा उत्प न् न करने िाले कारकों को अवर्प्रेरक कहते ह ैं । अवर्प्रेरक वनम् नवलवखत दो प्रकार के होते ह ैं – आन् तररक अवर्प्रेरक -इसके अन् तभगत िारीररक अर्थिा िवै िक अवर्प्रेरक आते ह ैं – िसै े र्ख, काम ू आत् मरिा (आवद। बाह्य अवर्प्रेरक - इसके अन् तभगत पयाभिरणीय अर्थिा मनोसामाविक अवर्प्रेरक आते ह ैं – िसै े आत् म सम् मान, सामाविक स् तर) तर्था वििेष उपलवब्ि प्राप् त करने की इच् छा । सीखने की प्रविया तर्था सीखने के पररणाम दोनों ही अवर्प्रेरणा से प्रर्ावित होते ह ैं । उपयक् त ढग से ु ं अवर्प्रेररत विद्यार्थी सीखने की प्रविया म ें सविय रूप से र्ाग लेते ह,ैं उनकी सीखने की गवत ती्र होती ह ै तर्था उनका सीखना र्ी अपेिाकत अविक स् र्थायी होता ह ै । ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 164 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 4 - योग्यिा और उपलष्धि का आकलन : तफक्सड माइडं सेि उपागम बनाम ग्रोथ माइडं सेि उपागम, एिं तिकलांगिा और असफलिा के संप्रत्ययों को योग्यिा और उपलष्धि के संप्रत्ययों के दसरे पिलू के रूप में देखने की प्रिृति ू Assessment of Ability and Achievement Through a fixed mind-set approach vs. through a growth mind-set approach & Significance of discontinuing the practice of seeing the constructs of and as the other face of notions of and as rituallly promoted by school 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 योग्यता एि उपलवब्ि का अर्थभ ं 4.4 योग्यता एि उपलवब्ि के आकलन का सप्रत्यय ं ं 4.5 आकलन प्रविया में माइडसेट उपागम ं 4.6 माइडसेट का अर्थभ ं 4.7 व.क्स्ड माइडसेट उपागम से आकलन की प्रविया ं 4.8 ग्रोर्थ माइडसेट उपागम से आकलन की प्रविया ं 4.9 व.क्स्ड माइडसेट और ग्रोर्थ माइडसेट उपागमो के मध्य अतर ं ं ं 4.10 विकलागता और अस.लता के सप्रत्ययों को योग्यता और उपलवब्ि के सप्रत्ययों के ं ं ं दसरे पहल के रूप में दखे ने की प्रिवत को अवनरन्तररत करने के अभ्यासों की ृ ू ू सार्थभकता 4.11 साराि ं 4.12 िब्दािली 4.13 सन्दर्भ ग्रन्र्थ सची ू 4.14 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 165 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.1 प्रस्तावना हम सर्ी िानते ह ै वक आकलन प्रेररत अविगम को व्यिहार म ें लाने की विया ह ै । प्रर्ािी आकलन में अविगम पररणामों म ें विद्यार्थी की दिता का आकलन वकया िाता ह ै । अब तक हमारी िैविक व्यिस्र्था म ें किीय आकलन के अनेक प्रकारों (िसै े- सरचनात्मक, सकलनात्मक एि वनदानात्मक इत्यावद) का ं ं ं प्रयोग वकया िाता रहा ह ै । वकन्त मनोिज्ञै ावनक उन्नवत के इस यग म ें डॉ कै रोल डिके द्वारा माइडसेट पर ् ु ु ं वकये गये अनसन्िान कायभ न े िज्ञै ावनक आकलन की प्रविया को एक नई वदिा प्रदान की ह ै । यह ु माइडसेट वसद्ात विद्यार्थी के विकासमान आकलन हते अध्यापकों को एक नई वदिा प्रदान करता ह ै । ु ं ं एक अविगमकताभ एि अध्यापक होने की ििह से हम सर्ी के वलए यह आिश्यक हो िाता ह ै वक ं आकलन की प्रविया अविक से अविक प्रर्ाििाली बनाने का प्रयास करें तावक अध्ययनरत ितभमान एि ं आने िाली पीढ़ी की विकासमान सर्ािना को वदिा द े वमल सकें । अत: प्रस्तत इकाई के अतगतभ ु ं ं आप योग्यता और उपलवब्ि के आकलन के सन्दर् भ म ें माइडसेट उपागम का प्रयोग एि महत्त्ि का ं ं अध्ययन करेंग े । 4.2 उद्दश्े य इकाई के अध्ययनोपरात आप- ं 1. योग्यता और उपलवब्ि के मध्य अतर को समझ सकें ग े । ं 2. माइडसेट उपागम और उसके प्रकारों के विषय म ें अध्ययन कर सकें ग े । ं 3. व.क्स्ड माइडसेट और ग्रोर्थ माइडसेट को विकवसत करने के सोपानो को समझ सकें ग े । ं ं 4. व.क्स्ड माइडसेट और ग्रोर्थ माइडसेट उपागमो के मध्य अतर स्पि कर सके ग े । ं ं ं ं 5. आकलन की प्रविया म ें माइडसेट उपागमो का प्रयोग स्पि कर सकें ग े ं 6. विद्यार्थीयों की िवै िक योग्यता एि स.लता पर वििक के माइडसेट के पडने िाले प्रर्ाि को ं ं समझ सकें ग े । 4.3 योग्यता एवं उपलष्ब्ध का अथ भ (Meaning of Ability and achievement) योग्यता (Ability) वकसी व्यवक्त म ें िन्मिात अन्तवनभवहत सामथ्यभ ह,ै यह व्यवक्त वििषे की कछ करने म ें ु समर्थभ होने की पिवभ नवमतभ वििषे ता होती ह ै । प्रकवत की सहायता से इसम ें ब्रवद् अर्थिा ह्रास वकया िा ृ ू सकता ह ै । अर्थाभत एक व्यवक्त यवद कछ करने का प्रयास करे तब िह क्या कर सकता ह ै यही उसकी ु योयता का पररमाण होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 166 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िबवक उपलवब्ि (Achievement) मलतः वकसी वििेष विषय िेत्र में वकसी व्यवक्त की सामथ्यभ का ू प्रेवित (Observed) पररणाम होता ह,ै इसका सम्बन्ि ज्ञान-िेत्र की योग्यता से होता ह ै । िो र्ी हम ब्यवक्त के िावछत व्यिहार को प्रेवित करके प्राप्त करते ह,ै उसकी उपलवब्ि कहलाती ह ै । अर्थाभत व्यवक्त ं की ि े अनवियायें विनसे यह ज्ञात होता ह ै वक उसने अब तक क्या सीखा ह ै ? उपलवब्ि कहलाती ह ै । ु अत: हम कह सकते ह ैं वक उपलवब्ि अविगम प्रविया का उत्पाद होता ह ै । उिहारण - दकसी कक्षा म ें कछ दिद्यादथियों को दिक्षक गदणत पढाता ह ै और ि े सभी गभीरतापिकि ु ू ां समझने का प्रयास करते ह ै । लेदकन यदि हम ध्यान ि े तो पाएग े दक कक्षा म ें कछ दिद्याथी ऐसे होंग े जो ु ां गदणत दिषय के अध्ययन म ें अदिक रूदच रखते होंग,े जबदक कछ ऐस े भी होंग े जो दबलकल भी रूदच ु ु नहीं रखते होंग े । इसके साथ-साथ अदिकतर दिद्याथी औसत स्तर के होंग े । जो दिद्याथी गदणत के अध्ययन म ें रूदच ले रहा ह ै और उसको सीखने का प्रयास कर रहा ह ै तो कहा जा सकता ह ै दक उसम े गदणतीय योग्यता मौजि ह ै और यदि उस पर उदचत ध्यान दिया जाये तो दनदित ही अपनी उस योग्यता को ू और अदिक दिकदसत कर लेगा इसके दिपरीत दजसके अन्िर गदणतीय योग्यता नहीं होगी िह स्िाभादिक रूप से उसको सीखने म ें रूदच नहीं लेगा और यदि लेगा भी तो सीखने म ें बहत ही कदिनाई ु महसस करेगा । जबदक यदि कक्षा म ें दिक्षक दकसी अध्याय को पढाने के बाि यह जानना चाहता ह ै दक ू उन्होंने दकतना सीखा ह ै तो इसके दलए िह दिद्यादथियों का परीक्षण लेता ह ै दजसम े िह अपने द्वारा पढायी गयी दिषय सामग्री से सम्बदित प्रश्न ही पछता ह ै । इस प्रकार उस टेस्ट से प्राप्त अक उस दिक्षण की ू ां ां ां समयािदि म ें सीख े गए ज्ञान की उपलदधि होगी । 4.4 योग्यता एवं उपलष्ब्ध के आकलन का सप्रं त्यय प्राय: स्कल मनोिज्ञै ावनको ने विद्यावर्थभयों के विषय म ें उनके अध्यापको और अवर्र्ािकों की सहायता हते ू ु सिप्रभ र्थम आकलन प्रविया (वसद्ातत: विसम े परीिण, सािात्कार और कई प्रकार की सचना का ू ं सग्रह वकया िाता ह)ै पर ध्यान वदया । वििण प्रविया के दौरान वििक द्वारा आकलन प्रविया का प्रयोग ं यह सवनवश्चत करने के वलए वकया िाता ह ै वक विद्यावर्थभयों का अविगम हो रहा ह ै या नहीं, िह प्रवतर्ािान ु ह ै या उसे अवतररक्त वनदिे न की आिश्यकता ह ै । आकलन मल्याकन प्रविया का प्रार्थवमक सोपान ह,ै विसम े विद्यावर्थभयों की प्रगवत से सम्बवन्ित सर्ी ू ं महत्िपण भ और पररिद् (accurate) सचना का सग्रह वकया िाता ह ै । इसम ें विद्यावर्थभयों के हर पि पर ू ु ू ं ं ध्यान दते े हए उनके सज्ञानात्मक िमता म ें सिार वकया िाता ह,ै विससे उनके स्िावर्मान म ें ब्रवद् की िा ु ु ं सके । आकलन की प्रविया द्वारा एक अध्यापक विद्यावर्थभयों के बारे म ें वनम्नवलवखत तथ्य िानने का प्रयास करता ह ै – 1. विद्यार्थी क्या सीख रह े ह ैं ? 2. विद्यार्थी ने अपनी किा के अन्य विद्यावर्थभयों की तलना म ें वकतनी उन्नवत की ह ै ? ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 167 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 3. विद्यावर्थभयों के बेहतर विकास के वलए वििक वकन अन्य तकनीवकयों का प्रयोग करे ? आकलन िवै िक प्रविया की प्रगवत िानने का महत्िपण भ सािन ह ै । किा म ें इसके दौरान अविगम ू प्रविया अध्यापकों की वनगरानी म ें वनरतर चलती ह,ै िो स्पस्ट करता ह ै वक इसम ें विद्यार्थी और अध्यापक ं दोनों की उपवस्र्थवत रहती ह ै । यह प्रविया वििक को उसकी वििण प्रर्ाििीलता एि विद्यावर्थभयों को ं अविगमकताभ के रूप म ें उनके विकास की िानकारी प्रदान करती है । विद्यावर्थभयों की अविगम गणित्ता ु प्रत्यित: अध्यापक की िैिवणक किलता पर वनर्रभ करती ह,ै अत: िह अपनी अविगम उपलवब्ि और ु योग्यता म ें विकास हते किीय िातािरण पर वनर्रभ करता ह ै । ु आिवनक वििा प्रविया म ें सर्ी व्यिस्र्थायें िवै िक उपलवब्ि के आकलन के वलए व्यिवस्र्थत परीिा ु पद्वतयों का अनसरण करती ह ैं । विद्यावर्थभयों द्वारा प्राप्त वकये गए प्राप्ताकों के अनसार ही वििक और ु ु ं अवर्र्ािक उनकी िवै िक िमता और कमिोररयों का अनमान लगा पाते ह ैं । प्रत्येक समाि अपनी ु िवै िक प्रणाली की गणित्ता िानने के वलए अपने बच्चों के परीिा प्राप्ताको पर वनर्रभ होता ह ै । राज्य या ु ं सि सरकारें र्ी साििभ ावनक िैविक सस्र्थानों हते वनयम बनाने के वलए इसी प्रकार के पैमाने को सवनवश्चत ु ु ं ं कर प्रयोग म ें लातीं ह ै । परीिण िवै िक आकलन के मल वसद्ात को एक वनवश्चत रूप प्रदान करता ह ै एि ू ं ं उच्च िवै िक मानकों और विद्यालयी िबाबदहे ी (उत्तरदावयत्ि) के सकल्प को प्रस्तत करता ह ै । आि ु ं वकसी र्ी िवै िक विषय म ें योग्यता सवनवश्चत करने की सबसे सामान्य विवि समयबाध्य पररिाऐ ह ैं । ये ु परीिायें एक वनवश्चत समय-अन्तराल विद्यावर्थभयों के अवितभ ज्ञान का मल्याङकन करती ह ै । ् ू उदयहरण- यदि दहिी की कक्षा म ें कक्षा दिक्षण के बाि दिक्षक दिद्यादथियों का आकलन करना चाहता ह।ै ां तब इसके दलए िह पढाने के बाि सभी दिद्यादथियों की दलदखत या मौदखक परीक्षा सम्पादित करता ह ै । स्िाभादिक ह ै दक परीक्षा के प्राप्ताक उन सभी दिद्यादथियों के द्वारा सीख े गये ज्ञान का पररणाम होंग े । इन ां पररणामो का दिश्लेषण करने पर हम िखे सकते ह ै दक दिद्यादथियों ने उनको दसखाये गए ज्ञान की तलना म ें ु दकतना सीखा ह,ै दिक्षक की दिक्षण पद्यदत दकतनी सफल हई ह ै अथिा कोई दिद्याथी सीखने म ें कहा ु त्रदट कर रहा ह ै । ु 4.5 आकलन हते ु माइडं सेि उपागम (Mindset Approach for Assessment) यह हमारा माइडसेट ही ह ै िो हम ें आिािादी या वनरािािादी बनाता ह ै । यही हमारे व्यिहार को एक ं सवनवश्चत आकार दते ा ह ै और हमारी स.लता अर्थिा अस.लता का मलर्त कारक ह ै । डॉ. कै रोल के ु ू ू अनसार हमारा माइडसेट स्िर्ाित: या तो व.क्स्ड होता ह ै (विसके अनसार हमारे गण और योग्यताए ाँ ु ु ु ं सहि रूप से स्र्थायी और अपररितभनिील होती ह)ै या ग्रोर्थ होता ह ै (िो सके त करता ह ै वक हम अपनी ं प्रवतर्ा और योग्यता म ें सिार और विकास कर सकते ह)ैं । िवै िक प्रविया म ें अर्ी तक हम सर्ी ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 168 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आकलन और मल्याकन के विवर्न्न प्रकारो का अध्ययन करते रह े ह ैं विनम े सरचनात्मक, सकल्नात्मक, ू ं ं ं उपचारात्मक एि वनदानात्मक आवद प्रमख ह ै । वकन्त आग े अब हम सर्ी आकलन प्रविया को एक ु ु ं सवनवश्चत आकार प्रदान करने िाले माइडसेट उपागम का अध्ययन करेंग े । आकलन की प्रविया म ें इस ु ं उपागम को हम वनम्नवलवखत उदहारण के द्वारा समझ सकें गे- यवद किा म ें काच के एक वगलाि को पानी से आिा र्रकर समस्त विद्यावर्थभयों से उसके बारे म ें ं अपना विचार प्रकट करने को कहा िाये । इस प्रकार प्राप्त वकये गए पररणामो म ें स्िार्ाविकरूप से दो प्रकार के विचार सामने आएगाँ ,े एक तो ये वक ै और दसरा ै । यहा ाँ वगलाि और पानी की वस्र्थवत सर्ी के वलए समान ह ै लेवकन उसके बारे म ें विद्यावर्थभयों की सोच अलग-अलग ह।ै आिे र्रे वगलास के सन्दर् भ म ें वस.भ विद्यार्थी ही नहीं वििक र्ी ऐसे ही विचार रखते ह ै । वकसी विद्यार्थी या व्यवक्त का वकसी िस्त या विचार के बारे म ें सोचने का डग उनके मवरतस्क की वचतन व्यिस्र्था ु ं ं पर वनर्रभ करता ह ै । वचतन की यही व्यिस्र्था माइडसेट कहलाती ह ै । वििा व्यिस्र्था म ें आकलन की ं ं प्रविया म ें वििक अर्थिा विद्यार्थी के माइडसेट की र्वमका ही प्रमख होती ह ै । आगे हम सब िवै िक ू ु ं योग्यता और उपलवब्ि के आकलन म ें माइडसेट उपागम के प्रकार, प्रयोग और महत्त्ि का सविप्त तावकभ क ं ं वििचे न करने का प्रयास करेंग े । 4.6 माइडं सिे का अथ भ (Mindset) माइडसेट विचारों (Ideas) और प्रिवतयों (Tendencies) का एक ऐसा समच्चय ह ै विससे कोई अपने ृ ु ं और अपने ससार के बारे म ें वचतन की वदिा वनवमतभ करता ह।ै व्यवक्त का अपना व्यव्हार, िीिन के प्रवत ं ं िविकोण और आस-पास उपवस्र्थत िस्त के प्रवत प्रिवतया उसके अपने माइडसेट द्वारा ही वनिाभररत ृ ु ं ं होती ह ै । अर्थाभत
“धकसी माइडसेट से तात्ियत धकसी व्यधक्त की उन सामान्य योग्यताओ के सगठन ं ं ं से है िो उसे धकसी वस्त के बारे में ताधकत क धचतन के धिए आवश्यक है । ”
ु ं वनणयभ ात्मक वसद्ातो और सामान्य पद्वत के वनयमों के अनसार एक माइडसेट वकसी व्यवक्त या ु ं ं व्यवक्तयों के समह की पण भ सवनवश्चत मान्यता , विवियों और स्िीकवतयों का एक सगठन ह ै िो वकसी ृ ू ू ु ं ं को उसके पि भ व्यिहारों अर्थिा पसदों को िारण और स्िीकार करने की एक आिारर्त प्रेरणा प्रदान ू ू ं करता ह ै । एक माइड-सेट को धकसी व्यधक्त के िीवन िितन की प्रासधगकता के रूि में िी िेखा ं ं िा सकता है । अब तक वकये िा चके अनसन्िान कायभ यह वसद् कर चके ह ैं वक बवद् की प्रकवत के ृ ु ु ु ु बारे म ें हमारे अन्दर वनवहत विस्िास हमारी उपलवब्ि पर गहरा प्रर्ाि डालते ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 169 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 पररणाम (िो हम प्राप्त करते ह)ैं वियाए (व्यव्हार) ं (िो हम करते & कहते हैं ) Mindset (िो हम सोचते & अनिव करते हैं) ु हमारे आिित, हमारे विस्िास, हमारे मल्य, ू हमारे डर, िवत अनिव ू ु माइडसेट और व्यवहार अतरण के सोिान ं ं स्टैनफोडत धवश्वधवद्यािय की मनोिज्ञै ावनक डॉ. कै रोि डवेक के 20 िषों के वनरतर अनसन्िान कायों न े ् ु ं यह वसद् कर वदया ह ै वक लोंगो म ें माइडसेट से सम्बवन्ित दो प्रकार के िविकोण पाए िाते ह,ैं विनमे से ं एक और दसरा । इनका िणनभ उन्होंने अपने वसद्ात ं ं ं ू
“MINDSET: THE NEW PSYCHOLOGY OF SUCCESS”
म ें विस्ततरूप से वकया ह।ै ृ अपने अनसन्िान कायभ के द्वारा डॉ कै रोल ने चेतन और अचेतन के सन्दर् भ म ें व्यवक्त के विस्िासों की ु िवक्त की प्रेच्छा (Inquiry) और इनके आपस म ें बदलने से कै से हमारी विन्दगी के प्रत्येक पि पर गहरा प्रर्ाि पडता ह,ै का गहनतम अध्ययन कर दवनया के सामने रखा । ु आग े आपके अध्ययन हते माइडसेट उपागम के प्रकारों एि इनके द्वारा योग्यता एि उपलवब्ि के ु ं ं ं आकलन की प्रविया के बारे म ें समझाने का प्रयास वकया िा रहा ह ै । मनोिैज्ञावनको ने माइडसेट वसद्ात ं ं को विन दो प्रकारों म ें िगीकत वकया ह,ै वनम्नवलवखत ह ैं – ृ 1. व.क्स्ड माइडसेट उपागम ं 2. ग्रोर्थ माइडसेट उपागम । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 170 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.7 रफक्सस्ड माइडं सेि उपागम म आकलन की प्ररिया ें डॉ कै रोि के अनसार,
“व.क्स्ड माइडसेट से तात्पयभ मदस्तष्क की उस व्यिस्था से ह ै दजसके कारण लोग ु ं यह दिश्वास करते ह ैं दक उनका चररत्र, बदि एि स्रजनात्मक योग्यताए ँ पिदि नदमित एि अन्तदनिदहत होती ह ैं ु ू ां ां और दजनमे दकसी भी अथिपण ि तरीके से कोई ब्रदि नहीं की जा सकती ह ै एि सफलता इस जन्मजात ू ां अन्तदनिदहत प्रदतभा का पररणाम होती ह ै । ”
व.क्स्ड माइडसेट के बारे म ें डी. िाधकं सन का कर्थन बहत ही महत्त्िपण भ ह।ै उनके अनसार,
“िो ु ू ु ं जो तम्हारे पास ह ै और जो तमने प्राप्त दकया ह ै िही सब कछ ह,ै अब तम उससे अदिक कछ भी प्राप्त नहीं ु ु ु ु ु कर सकते हो । ”
इनका मानना र्था वक व्यवक्त अपने विकास की सारी योग्यताएाँ िन्म से लेकर आता ह,ै अपने िीिन म ें वस.भ उन्ही से प्राप्त की िा सकने योग्य उपलवब्ियों को ही हावसल कर पाता ह ै । इस उपागम िाले लोगों का मानना ह ै वक वकसी व्यवक्त द्वारा िीिन म ें प्राप्त
की िा सकने योग्य पण भ सामथ्यभ ू म ें उनम े अन्तवनभवहत वििेषता की अपेिा प्रयास वस.भ एक कमिोरी या असामथ्यभ का प्रतीक होता ह ै । ं अिश्य ही लक्ष्य प्रावप्त म ें कठोर पररश्रम, प्रयास और िडता महत्त्िपण भ होते ह ैं लेवकन ये इतने र्ी महत्त्िपण भ ू ू नहीं होते वितना वक यह आिारर्त विश्वास ह ै वक
1%
0.6%
0.5%
0.5%
0.4%
0.1%
प्रत्येक व्यवक्त अपने स्िय के र्ाग्य के वनयत्रण म ें होता ू ं ं ह ै । इस उपागम को रखने िाले लोग वनम्नवलवखत तथ्यों पर विश्वास करते ह-ै 1. प्रत्येक व्यवक्त म ें अविगम की सम्र्ािना और योग्यता वस्र्थर होती ह ै और
इसका मापन वकया िा सकता ह ै । 2. इनका लक्ष्य उपलवब्ि का अवतम सपादन या प्रदिनभ करना होता ह ै । ं ं 3. योग्यता ही चनौवतयों और अिरोिों को तोडने का एकमात्र माध्यम ह ै नावक प्रयास । ु िवै िक सस्
र्थानों म ें विद्यावर्थभयों की योग्यता का आकलन दो प्रकार के उद्दश्े यों को ध्यान म ें रखते हए वकया ु ं िाता ह,ै प्रथम वििण सस्र्थानों म ें प्रििे वदलाने हते और दद्वतीय वििण सस्र्थानों म
ें अध्ययनरत ु ं ं विद्यावर्थभयों की स.लता और अस.लता का पता लगाने हते । सामान्यत: इस कायभ के वलए सज्ञानात्मक ु ं परीिा को प्रयोग म ें लाया िाता ह ै । प्रििे परीिा म ें िावमल होने िाले विद्यावर्थभयों की योग्यता
के ं विकास म ें उस समय तक तो परीिा लेने िाले सस्र्थान की कोई र्वमका नहीं होती ह ै लेवकन वििण प्राप्त ू ं कर रह े विद्यावर्थभयों के र्विरय की विम्मदे ारी तो उसी सस्र्थान की होती ह,ै अत: उनके सीख े गए ज्ञान क
े ं स्तर का पता लगाने के वलए कछ वनवश्चत समयािवि पर परीिाए सपन्न करायी िाती ह ैं । इन्ही परीिा ु ं ं के पररणाम स्िरुप विद्यावर्थभयों के र्विरय का वनिाभरण सर्ि हो पाता ह ै । ं अध्ययन के दौरान किीय िातािरण म ें अध्यापक के माइडसेट का सीिा प्रर्ाि विद्यार्थी की ं मन:वस्र्थवत पर पडता ह ै । यवद वकसी विषय के अध्यापक की वििण प्रिवत रुि ह ै तो देखा गया ह ै की ृ उस विषय के प्रवत विद्यावर्थभयों की अवर्रुवच कम हो िाती ह ै एि यवद विषय कवठन र्ी होता ह ै और ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 171 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वििक की अध्यापन िैली सरल ह ै तो विद्यार्थी उस किा में रूवच लेने लगते ह ैं । इस तथ्य को हम वनम्न उदहारण के आिार पर समझ सकते ह,ैं उिहारण - पाठ के समाप्त होने पर विद्यावर्थभयों के आकलन हते एक वििक किा म ें एक प्रश्न करता ह ै । ु कछ विद्यार्थी सही और कछ गलत उत्तर दते े ह ै । अब यवद अध्यापक सही उत्तर बताने िाले विद्यार्थी को ु ु कहकर बैठा देता ह ै और गलत उत्तर बताने िाले को प्रोत्सावहत करने की िगह या ू कोई और हतोत्सावहत करने िाला िब्द बोलकर डाटता ह ै । तब पररणाम क्या होगा ? क्योंवक किा के ं सर्ी विद्यावर्थभयों की अविगम अवर््र वत एक समान नहीं होती ह,ै अत: स्िार्ाविक ह ै वक दोनों प्रकार (उत्तर दने े म ें स.ल और अस.ल) के विद्यावर्थभयों की सीखने की गवत र्ी वर्न्न होगी । पररणामस्िरूप वििक के वििण का ये नकारात्मक व्यव्हार किा म ें वनरािा को िन्म दते ा ह ै और किा के िो विद्यार्थी गलत उत्तर दते े ह ै या अस.ल होते ह,ै उन्ह ें अपनी योग्यता पर सदहे र्ी उत्पन्न हो सकता ह ै । ं Blackwell, Trzesniewski और Dweck की 2007 म ें प्रस्तत अनसन्िान ररपोटभ वसद् करती ह ै वक ु ु व.क्स्ड माइडसेट विद्यार्थी के बौवद्क श्रेिता के प्रदिनभ पर बल दते ा ह ै और स्िीकार करता ह ै वक इस ं प्रदिनभ को मापना सहि ह ै । अर्थाभत वस.भ परीिा म ें
प्राप्त वकये गए अको का प्रदिनभ ही विद्यार्थी की किा ं म ें यर्थावस्तवर्थ और उसकी विषयगत वनपणता को दिाभता ह ै । इस उपागम के अनसार वकसी विद्यार्थी की ु ु योग्यता की ििै ता को िाचने हते सार्थ िाले विद्यावर्थभयों के प्राप्त
ाकों से तलना की िाती ह ै । आकलन के ु ु ं ं इस प्रिम म ें विषयगत वनपणता िानने हते कछ मानक वनवश्चत कर वदए िाते ह,ै िसै े- श्रेणी या ग्रेड । ु ु ु उदाहरण- किा 10 की िावषभक परीिा म ें कल व5 विद्यावर्थभयों म ें 18 प्रर्थम श्रेणी, 2 वद्वतीय श्रेणी और ु 25 ततीय श्रेणी म ें उत्तीण भ होते ह ै । यवद यहााँ परम्परागत परीिा के अनरूप पररणामों को कल तीन ृ ु ु ं श्रेवणयों ( %-45%
प्राप्ताक तक ततीय श्रेणी, 45%-60% प्राप्ताक तक द्वतीय श्रेणी और 60% से ृ ं ं अविक तक प्रर्थम श्रेणी) म ें िगीकत वकया िाता ह ै एि विद्यावर्थभयों को उनके प्राप्ताको के अनरूप श्रेणी ृ ु ं ं प्रदान की िाती ह ै । अब अपने परीिा पररणामों के आिार पर विद्यार्थी
और
परीिा में िमि: 45%, 59% और 60% अक प्राप्त करते ह ैं । तब यहााँ क और ख के प्राप्ताको के बीच म ें इतना ं ं अविक अतराल होने के बाबिद र्ी दोनो को एक ही श्रेणी के अतगतभ रखा िाता ह,ै िबवक विद्यार्थी ू ं ं
और
के मध्य इतना कम अतर होते हए र्ी दोनों को वर्न्न-वर्न्न श्रेवणया म ें । इस प्रकार की ु ं ं आकलन पद्यवत म ें विद्यार्थी की योग्यता उसके द्वारा प्राप्त वकये गए अको से वनिाभररत न होकर अन्य ं विद्यावर्थभयों के प्राप्ताको से तलना करके आकवलत की िाती ह ै । अत: यवद हम क, ख और ग का ु ं तलनात्मक विश्लेषण करें तो देखगें े वक 59% अक प्राप्त करने िाले विद्यार्थी ख का मल्याकन उससे बहत ु ु ू ं ं कम अक 45% पाने िाले विद्यार्थी क से वकया िा रहा ह ै िबवक ख से वस.भ 1% अविक अक पाने िाले ं ं ग (60%) का मल्याकन उच्च श्रेणी म ें । विद्यार्थ
ी ख की इस प्रकार की अस.लता उसम ें अपनी योग्यता ू ं के प्रवत कठा को िन्म दते ी ह ै । इस प्रकार विद्यावर्थभयों के आकलन एि मल्याकन की पद्यवत उनम ें अपनी ु ू ं ं ं सामथ्यभ के प्रवत सदहे और र्विरय के प्रवत वनरािा को िन्म दते ी ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 172 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.8 ग्रोथ माइडं सेि उपागम म आकलन की प्ररिया ें एक ग्रोर्थ माइडसेट समझ की िह प्रविया ह ै िो हम ें हमारी योग्यता और बवद् के विकास हते प्रेररत ु ु ं ं करती ह ै । यह त्रवटयों से सीखने म ें सीखने के सगवठत प्रयासों और इच्छा को वनदवे ित करती ह ै । डॉ. ु ं ं कै रोि के अनसार ह,ै
“ग्रोथ माइडसेट िाले लोग दिस्िास करते ह ै दक ि े अपनी ब्रेन, योग्यता और ु ां प्रदतभा म ें कदिन पररश्रम के द्वारा समय के साथ-साथ ब्रदि कर अपने कायि म ें दनपणता प्राप्त कर सकते ह ै । ु ऐसे लोगो म ें सीखने की दिया और पररितिनिीलता समादिष्ट होती ह ै । यह उपागम दिक्षक और दिक्षाथी िोनों म ें अध्ययन के प्रदत प्रेम और नमनीयता को जन्म िते ी ह,ै जोदक अच्छी अदिगम पणति ा के ू दलए महत्त्िपण ि ह ै । ”
आपका मानना ह ै दक ऐसे दिद्यादथियों चनौदतयों और असफलताओ को अपने ू ु ां दिकास हते एक नए अिसर के रूप म ें िखे ते ह ै एि अपने दिस्िास के बल पर िीघ्रतापिकि सामान्य स े ु ू ां अदिक सीखने का प्रयास करते ह ैं । उदहारणस्िरूप ग्रोर्थ माइडसेट िविकोण िाले विद्यार्थी समय के सार्थ-सार्थ अपने बौवद्क स्तर म ें ब्रवद् ं करते हए वदखाई दते े ह ै । वकसी व्यवक्त के वलए ग्रोर्थ माइडसेट (िो इस विस्िास को दिाभता ह ै वक आप ु ं अपनी सामथ्यभ म ें वनपण ह ै और कछ र्ी सीख और सिार सकते ह)ै , का होना स.लता की किी ह ै । ु ु ु ुं सामान्यता हम सर्ी लोंगों को यह कहते हए सनते ह ैं वक वकसी को अपने बच्चों की योग्यता की प्रिसा ु ु ं कर्ी नहीं करनी चावहए बवल्क इसके ििाय उनके द्वारा वकय े िाने िाले विया-कलापों की सराहना करनी चावहए, िसै े-वक उन्होंने वकतना सीखा ह ै और अपनी योग्यता को वकतना विकवसत वकया ह ै । अर्थाभत ् किी मत कहो धक बहत अच्छे ! तम वास्तव में गधणत में बहत अच्छे हो । ु ु ु बधलक कहो यह अच्छा है, तमने अच्छा प्रयास धकया और ध्यान िो धक धकतना अच्छा कर ु सकते हो । अर्थाभत प्रविया की प्रिसा महत्िपण भ होती ह ै न वक प्रवतर्ा अर्थिा योग्यता की । ू ं आप नहीं िान सकते ह ैं वक कहााँ िा रह े ह ैं िब तक वक आप यह न िान लें वक आप कहााँ ह?ै लेवकन िब मानकीकत परीिणों के वनमाभण म ें अर्थभ और र्ािना की र्वमका पणतभ ा असगत रही हो तो वनवश्चत ृ ू ू ं ं ही सराहनीय लक्ष्य र्ी विनि हो िाते ह ै । यवद परीिण सकीण भ होते ह ैं और मानकों के अनरूप वनवमतभ ु ं नहीं वकये गए होते ह ैं तो ि े विस्िसनीय और वििद् पररणाम नहीं दते े ह,ैं .लत: वििकों के वििावर्थभयों ु के अविगम और वििण से सबवित उद्दश्े यों के सिारों के प्रयास अस.ल हो िाते ह ैं । ु ं ं ग्रोर्थ माइडसेट वसद्ात विद्यावर्थभयों म ें अवर्प्रेरणा और उपलवब्ि म ें सिार हते मनोसामाविक ु ु ं ं पररप्रेक्ष्य पर बल दते ा ह ै । वििकों के विस्िास और उनसे सम्बवित वसद्ात वििण व्यिहार को प्रर्ावित ं ं करते ह ै िो वबद्यावर्थभयों के िवै िक व्यिहार को प्रर्ावित करते है । ये उपागम सीिे विद्यावर्थभयों की अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हते सकारात्मक वदिा प्रदान करता ह ै । ग्रोर्थ माइडसेट िाले वििक वििण के ु ं दौरान विद्यावर्थभयों को िवै िक विया-कलापों म ें सवलप्त रखने के वलए सहायक सकारात्मक मनोसामाविक ं कौसलों का प्रयोग करते ह,ै तावक सकारात्मक विद्यालयी पररणामों को प्राप्त वकया िा सके । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 173 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िैधक्षक आकिन प्रधक्रया में ग्रोर् माइडसेट के िाि- इस माइडसेट िाले विद्यावर्थभयों के विकास की ं ं सर्ािनाए असीवमत होती ह ै । यहााँ विद्यावर्थभयों पर पडने िाले इसके सकारात्मक प्रर्ािों का उल्लेख ं ं वकया िा रहा ह–ै ग्रोर्थ माइडसेट का प्रवििण विद्यार्थी द्वारा अवितभ वकये िाने िाले परीिण प्राप्ताको की ब्रवद् में ं ं सहायक होता ह,ै ग्रोर्थ माइड प्रिवत विद्यावर्थभयों म ें अपने आरवर्क ख़राब ग्रेड म ें सिार करने हते अविगम की ृ ु ु ं ं अविक गर्ीर रणनीवत प्रयोग करने को प्रेररत करती ह,ै ं ग्रोर्थ माइडसेट वनवमभत करने िाली वियाये विद्यार्थी के सामने एक ऐसा अिकाि पैदा करती ह ै ं विससे वक आग े के अध्ययन हते िह पणतभ ा अपने को नये िातािरण म ें अनर्ब करे, ु ू ु विद्यावर्थभयों म ें ग्रोर्थ माइडसेट का विकास उनके द्वारा पि भ म ें अवितभ वकये गये उपलवब्ि अन्तराल ू ं को कम करने म ें सहायता करता ह ै । ग्रोर् माइडसेट धवकधसत करने हेत कछ सझाव- अर्ी तक हमारी कि म ें ग्रोर्थ माइडसेट को ु ु ु ं ं ं विकवसत करने के प्रर्ािी तरीके विकवसत नहीं वकये िा सके ह ैं । व.र र्ी यवद हम कछ महत्िपण भ ु ू वबन्द पर ध्यान द ें तो पररणामो म ें सार्थभक पररितभन प्राप्त कर सकते ह ैं । ं ु अध्यापकों की सहायता से विद्यावर्थभयों के अपने माइडसेट को ग्रोर्थ माइडसेट म ें पररिवतभत करने के वलए ं ं उनके स्िय के द्वारा वनम्नवलवखत सोपानों का अनसरण करना होगा- ु ं 1. प्रयास और अविगम को प्रोत्साहन । 2. ब्रेन को आिश्यक ऊिाभ – खाना, सोना, अभ्यास और चनौती उपलब्िता । ु 3. कछ अन्य तकनीको के प्रयोग बल, विनम ें ु a. स्िमल्याकन और पररचचाभ के द्वारा ग्रोर्थ माइडसेट और व.क्स्ड माइडसेट से पररवचत ू ं ं ं कराना। b. और िसै े िब्द िो बवद् को एक वनवश्चत योग्यता के रूप म ें पररर्ावषत करते ु ह,ै के प्रयोग से बचना । c. प्रयासों, नीवतयों और उन्नवत को प्रोत्सावहत करना नावक बवद् एि योग्यता को । ु ं d. यर्थ के सामने चनौतीपण भ अिसरों को प्रस्तत करना क्योंवक कवठन कायो को करने म ें इनको ू ु ू ु आनद आता ह ै और उसम ें होने िाली गलवतयों से उन्ह ें कछ नया सीखने तर्था सिार करन े म ें ु ु ं सहायता वमलती ह ै । Maggie Wray
“अधििावकों और अध्यािको के धिए”
उनके बच्चो में ग्रोर् माइडसेट को ं धवकधसत करने के चार धबन्िओ िर बि िेती है – ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 174 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 1. बच्चों की उनके प्रयासों के वलए प्रिसा करो न वक उनकी उपलवब्ि की । ं 2. उन पररणामों की सराहना से दर रहो िो न्यनतम प्रयासों या वबना प्रयासों के सर्ि हए ह।ैं ु ू ं ू 3. उन वबन्द पर बल दने ा विससे ि े र्विरय म ें पहले से अच्छा प्राप्त करने हते अपने िविकोण में ु ं ु बदलाि कर सकते ह ैं । 4. िवै िक सगठन अपने कायभिमों म ें बच्चों की मदद हते डॉ. कै रोल के माइडसेट वसद्ात के ु ं ं ं प्रत्ययों का प्रयोग करना । आकिन में ग्रोर् माइडसेट का महत्त्व- यह आिश्यक ह ै वक वििा के उद्दश्े यों की प्रावप्त हते इसके ु ं उद्दश्े यों के वनिाभरण के सार्थ-सार्थ उन्ह ें प्राप्त करन े के सािनों का चयन र्ी उपयक्त हो । ग्रोर्थ माइडसेट की ु ं स्िीकवत सकारात्मक प्रत्यािा का प्रवतवनवित्ि करती ह ै । यह उन विद्यावर्थभयों म ें र्ी िो चनौवतयों से ृ ु ं डरते ह,ैं सीखने के प्रवत उच्च आकािा को विकवसत करने का माध्यम ह ै । ग्रोर्थ माइडसेट के अतगभत ं ं ं ं अस.लता (failure) एक समय-अतराल की नहीं बवल्क एक अपयाभप्त अविगम उन्नवत की र सके त ं ं करती ह ै । अत: यह प्रिवत विद्यावर्थभयों में उनके अविगम म ें साल दर साल होने िाले पररितभन के प्रवत ृ वचतन को एक सकारात्मक वदिा दते ी ह ै । क्योंवक िवै िक आकलन की प्रविया म ें विद्यावर्थभयों द्वारा
प्राप्त ं पररणामों को ग्रोर्थ माइडसेट उपागम विद्यावर्थभयों के अवतम प्रदिनभ के रूप म ें न दखे कर उनकी अवग्रम ं ं अविगम सर्ािना के सहायक के रूप म ें दखे ता ह ै अत: विद्यावर्थभयों के आकलन की प्रविया म ें इस ं ं िव
िकोण के पररणाम वििेष प्रर्ाििाली होंग े । 4.9 रफक्सस्ड माइडं सेि उपागम और ग्रोथ माइडं सेि उपागम म अंतर ें दोनों उपागम के मध्य अतर को विद्यावर्थभयों म ें पायी िाने िाली वनम्नवलवखत वििेषता के अतगतभ ं ं ं समझा िा सकता ह-ै धविेषताए धफक्स्ड माइडसेट ग्रोर् माइडसेट ं ं ं विस्िास योग्यता मख्यत: िन्मिात प्रवतर्ा के रूप में योग्यता में प्रयास और प्रर्ािी अविगम ु ं आती ह ै विसे सहिता से नहीं बदला िा सकता यवक्तयों की सहायता से ब्रवद् की िा सकती ह ै । ु ह ै । प्रिवतया - वितना सर्ि हो सके योग्य वदखने का प्रयास - वितना सर्ि हो सके गलवतयों का लार् ृ ं ं ं करना, उठाना, - अपनी कवमयों और दोषों को वछपाना, - अपनी कवमयों का सामना करना, - समस्या से पलायन करना, - अत्यविक सीखने और बेहतर बनने का प्रयास - दसरों पर दोष मडना, करना । ू - अपने को अन्य लोगों से श्रेि होने िैसा व्यव्हार करना । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 175 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 चनौवतया वितना हो सके चनौवतयों से बचने का प्रयास चनौवतयों को आत्मसात करने का प्रयास, ु ु ु ं क्योंवक अस.लता प्रवतर्ा की कमी को दिाभती क्योंवक उनसे कछ और अविक सीखा िा ु ह ै । सकता ह ै एि ये ब्रवद् की र अग्रसर करती ह ै । ं प्रयास प्रवतर्ा के अर्ाि का सचक ह ै । विकास के वलए आिश्यक ह ै । ू पररश्रम की सीखने की प्रविया नैसवगभक होनी चावहए । सीखने और कायभ करने की प्रविया में अपने समझ
“िब हमें वकसी विषय पर कवठन पररश्रम करना सर्ी प्रयास करना ही लक्ष्य प्राप्त करने का मल ू पडता ह,ै तब िास्ति में हमें बहत ख़िी अनर्ि ह ै । ु ु ु नहीं होती ह”
ै ।
“हमें वकसी कायभ को करने के वलए वितना अविक कवठन पररश्रम करना पडता ह ै एि ं वितने ही अविक प्रयास हम करते ह ै उस कायभ को करने में हम उतने ही किल होते िाते ह”
ै । ु अस.लता / अस.लता प्रवतर्ा की कमी की सचक ह ै िो ऐसे अस.लता दिाभती ह ै वक अर्ी कछ अविक ू ु कवठनाई की कायों (िहााँ अस.लता की सर्ािना हो) को और बेहतर यवक्तयो की आिश्यकता ह ै । ु ं प्रवतविया तरत छोड दने े को वनदवे ित करती ह ै । ु ं आलोचना / आत्म हता रिात्मक प्रिवत : स्िय की गलवतयों विज्ञास और सम्बद् : सीखने में उत्सक एि ृ ु ु ं ं ं समीिा पर को स्िीकार न करना । .ीडबैक और सझािों को िानने का प्रयास । ु प्रवतविया सावर्थयों की इसको एक र्य या आिका के रूप में दखे ना वक एक प्रेरणा के रूप में लेना क्योंवक आगे अविगम ं स.लता के ये सर्ी अविक प्रवतर्ािान हो सकते ह ै । के वलए इनसे कछ सीखा िा सकता ह ै । ु प्रवत िविकोण स्िय के
“सामथ्यभ िो स्िय में वनवहत ह ै िह ही प्रयक्त की “सामथ्यभ को विकवसत वकया िाता ह”ै , एक ु ं ं विकास पर िा सकती ह”
ै , ऐसा विचार व्यवक्त के व.क्स्ड सकारात्मक विचार िो व्यवक्त के ग्रोर्थ माइडसेट ं प्रर्ाि माइडसेट की पवि करता ह ै । की पवि करती ह ै । ु ु ं सावर्थयों पर यह िविकोण आपसी सहयोग, प्रस्ट-पोषण और यह आपसी सहयोग, प्रस्टपोषण और सचना ू ं प्रर्ाि ब्रवद् को अिरुद् कर दते ा ह ै । का हस्तातरण और ब्रवद् को प्रेररत करती ह ै । ं उदाहरण अब मै इस विषय पर कम से कम समय दगा । मै अब किा में पहले से अविक मेहनत करूाँ गा । ंू मै अब आगे से कर्ी ऐसे विषय को स्पिभ करने मै परीिा हते अध्ययन पर पहले से अविक ु का प्रयास नहीं करूाँ गा । समय दगा । ंू मै अगले टेस्ट में सामग्री को कहीं से कापी करने का प्रयास करूाँ गा । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 176 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.10 रवकलांगता और असफलता के सप्रं त्ययों को योग्यता और उपलष्ब्ध के संप्रत्ययों के दसू रे पहलू के रूप म दखने की प्रवरत को अरनरन्तररत करने के ें े ृ अभ्यासों की साथभकता योग्यता अर्थिा वपछली किा के प्रदिनभ के स्तर म ें समान होने के बाबिद क्यों कछ वबद्यार्थी ही अच्छा ू ु प्रदिनभ करते ह ैं । वपछले दिकों म ें वकये गए मनोिज्ञै ावनक अनसन्िान कायभ यह वसद् कर चके ह ै वक कै स े ु ु समान िवै िक योग्यता के दो विद्यार्थी वनरािा की अलग-अलग ढग से प्रवतविया दते े ह,ैं विसम ें एक ं ं उसम ें सीखने के अिसर को खोि लेता ह ै िबवक दसरा हतोत्सावहत होकर छोड दते ा ह ै । समाि या रारर ू के वलए वििा ही एक ऐसा सािन ह ै िो उसे उन्नवत के िीष भ पर ले िा सकता ह ै । कोई र्ी िवै िक व्यिस्र्था र्विरय की आिा पर ही खडी की िाती ह ै । अत: आिश्यक ह ै वक िवै िक प्रविया और ं उससे सम्बद् प्रत्येक इकाई समय की आिश्यकता को ध्यान म ें रखते हए पररितभनीय हो । आप तब ु ं तक यह नहीं िान सकते वक कहााँ िा रह े ह ै िब तक वक आप यह न िान लें वक आप ह ैं कहााँ । इसी प्रकार िब मानकीकत परीिणों के वनमाभण म ें अर्थभ और र्ािना की र्वमका पणतभ ा असगत रही हो तो ृ ू ू ं ं वनवश्चत ही सराहनीय लक्ष्य र्ी विनि हो िाते ह ैं । यवद परीिण सकीण भ होते ह ैं और मानकों के अनरूप ु ं वनवमतभ नहीं वकये गए होते ह ैं तो ि े विस्िसनीय और वििद् पररणाम नहीं दते े ह,ैं .लत: वििकों के ु वििावर्थभयों के अविगम और वििण से सबवित उद्दश्े यों म ें सिारो के प्रयास र्ी अस.ल हो िाते ह ैं । ु ं ं वििा व्यिस्र्था म ें सरचनात्मक सकल्पना के विकवसत हो िाने के बाद र्ी विद्यावर्थभयों के ं ं मल्याकन की प्रविया के दौरान प्राप्त पररणामों म ें सर्ािना को तलािने के स्र्थान पर उसकी कवमयों पर ू ं ं ही वस.भ ध्यान के वन्ित करने का प्रयास वकये िाने की परपरा वनरतर बनी हई ह ै । िसै े कोई विद्यार्थी ु ं ं अपनी िावषकभ परीिा म ें दो विषयों म ें अस.ल हो िाता ह ै और इस पररणाम के आने के बाद यवद उसके अवर्र्ािक विद्यालय िाते ह,ैं तब सामान्यत: विद्यालय प्रिासन द्वारा यह कहते हए सना िा सकता ह ै ु ु वक आपका बच्चा दो विषयों म ें अस.ल हो गया । िायद ही कोई अवर्र्ािक ऐसे सकारात्मक कर्थन की प्रत्यािा करता हो वक विद्यालय प्रिासन कह े वक आपका बच्चा इन दो विषयों को छोडकर अन्य विषयों म ें बहत अच्छा रहा ह ै एि हमारे वििक बच्चे के इन दोनों विषयों म ें र्ी आगे सिार हते कछ और ु ु ु ु ं अवि
क प्रयास कर रह े ह ैं या व.र कह े वक ि े आग े से उस पर पहले से अविक ध्यान दने े का प्रयास करेंग े तावक िह इनम ें र्ी अच्छा प्रदिनभ कर सके । वकसी विद्यार्थी के इस प्रकार
के आकलन से उसके अवर्र्ािक के मन म ें ख्याल आता ह ै वक अब तो उसका बच्चा अस.ल हो गया ह ै । बच्चे पर की गयी विद्यालयी वटप्पणी कर्ी-कर्ी उनके मन में यह विस्िास बैठा दते ी ह ै वक अब िह आग े कछ कर ही नहीं ु सकता ह ै । अवर्र्ािक के ही समान एक विद्यार्थी र्ी यही सोचने लगता ह ै वक मैं तो अस.ल हो गया ह ाँू अत: आग े अब म ैं कछ कर ही नहीं सकता ह ाँ । क्योंवक म ैं तो दवनया म ें नाकारा िोवषत हो चका ह ाँ ू ू ु ू ु इसवलए अब मरे े इस दवनया म ें रहने का कोई मतलब ही नहीं ह ै । िवै िक पररणामों की इस प्रकार की ु व्याख्या बच्चों म ें तनाि एि वनरािा िसै ी बराइयााँ को िन्म दते ी ह ै और उनके अवर्र्ािकों म ें उनके प्रवत ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 177 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 एक अविश्वास पैदा करती ह ै । ग्रामीण हो या िहरी अर्ी तक लगर्ग सर्ी विद्यालयों द्वारा विद्यावर्थभयों की अस.लता एि योग्यता को लेकर अवर्र्ािकों के अन्दर एक आतक उत्पन्न वकया गया ह ै । ं ं आि वितने र्ी विद्यालय चल रह े ह ै यवद उनम े ऐसे विद्यालयों को छोडकर विनम े ससािनों का ं अर्ाि ह ै और िेष बचे हए पर ही ध्यान द ें तो दखे गें े वक विद्यालय विद्यावर्थभयों को प्रििे दने े म ें चयन के ु दो तरीके अपनाते ह,ैं प्रथम- अविकतर विद्यालय अपने आगामी पररणामों को अच्छा करने के उद्दश्े य से विद्यावर्थभयों के चयन म ें सिप्रभ र्थम एक कवठनतम प्रिेि परीिा का आयोिन करते ह ै विससे ि े योग्यता में उच्च स्तर के विद्यावर्थभयों को वनम्न स्तर के विद्यावर्थभयों से अलग कर सकें । इस व्यिस्र्था म ें परीिा म ें विद्यावर्थभयों द्वारा
प्राप्त वकये गए अको का एक न्यनतम स्तर वनिाभररत कर के िल उससे ऊपर के अक प्राप्त ू ं ं करने िालों को ही प्रििे लेने का अिसर वदया िाता ह ै । द्वतीय मानक- के अनसार िवै िक सस्र्थान ु ं वपछली किा म ें विद्यावर्थभयों द्वारा प्राप्त वकये गए अको को ही प्रििे का आिार बनाकर उनका एक वनवश्चत ं स्तर वनिाभररत कर दते े ह,ैं विसम ें अविक अक प्राप्त करने िाले विद्य
ावर्थभयों को प्रििे का अिसर प्रदान कर ं वदया िाता ह ै । यहााँ वसद् होता ह ै वक कम योग्य विद्यावर्थभयों की इस प्रकार की छटनी करने की प्रविया से ं तात्पयभ ह ै वक आप (िवै िक सस्र्थान) विनको हटा रह े ह ै उनके बारे म ें कोई विचार ही नहीं कर रह े ह ैं । ं आप सीिे के िल Faliaure या ररिक्े िन पावलसी पर काम कर रह े ह ैं । यह वकतना उवचत ह ै वक आपन े के िल सज्ञानात्मक पि के आिार पर अपना टेस्ट तैयार वकया और उसी के आिार पर बच्चों को ं चयवनत कर वलया । क्या बच्चे का सम्पण भ व्यवक्तत्ि वस.भ सज्ञानात्मक विकास पर ही वनर्रभ करता ह ै । ू ं इस प्रकार की चयन नीवतयों म ें बच्चे का क्या सिगे ात्मक स्तर ह,ै िह वकतना स्रिनिील ह ै आवद ं वबन्द पर कोई ध्यान ही नहीं वदया िाता ह ै । इस िम म ें ऐसे अनेक सस्र्थानों म ें विद्यावर्थभयों के विकास ं ं ु के पहले कदम पर ही यावन वक दावखला लेने की प्रविया के दौरान ही उनकी अयोग्यता (Disability) स े पररवचत करिाने का प्रयास वकया िा रहा ह ै । पररणामता इस विद्यालयी व्यिस्र्था ने विद्यार्थी के पाविवटि पि के स्र्थान पर नेगवे टि पि को अपने उद्दश्े य का कें ि बना वलया ह ै । वििा सस्र्थानों के सन्दर् भ म ें लोगों ं का सिमभ ान्य विचार ह ै वक यहााँ बच्चो म ें अन्तवनभवहत योग्यता को विकवसत करने का प्रयास वकया िाता ह,ै वकन्त इसके विपरीत यहााँ तो
विद्यार्थी के अन्दर िो ह ै ही नहीं उसको प्रदवितभ कराने का प्रयास ु वकया िा रहा ह ै और िो उसके अन्दर ह ै उसको दबा द े रह े ह ैं । िबवक िवै िक िबाबदहे ी तो ये ह ै वक विद्यार्थ
ी म ें िो अन्तवनभवहत योग्यतायें ह ैं उनको विकास की वदिा प्रदान करने हते उन पर िोर वदया िाये ु नावक उन पर िो ह ैं ही नहीं । क्योंवक िो उसके अन्दर ह ै ही नहीं उसे तो िह ला ही नहीं सकता ह ै । अत: इन तथ्यों को ध्यान म ें रखते हए आिश्यकता तो इस बात की ह ै वक विद्यार्थी म ें िो योग्यतायें ह ैं उन्ह ें ु पहचानकर विकवसत होने का अिसर प्रदान वकया िाये । अस.लता और अयोग्यता पर के वन्ित अर्ी तक चली आ रही इस परम्परा को इसके स्र्थान पर योग्यता और उपलवब्ि से यक्त करने के वलए समय-समय पर कई सार्थभक प्रयास वकये गये ह ैं । विनम ें ु किा म ें CCE (Continuous & Comprehensive Evaluation) और RTE Act 2009 का ं सम्पण भ दिे म ें लाग वकया िाना ितभमान म ें अत्यविक प्रासवगक ह ैं । इस प्रकार के सिारों के लाग हो िान े ू ू ु ू ं के बाद आिश्यक हो िाता ह ै वक इनके सचालन (अनश्रिण) पर र्ी ध्यान वदया िाये । अब हम े दखे ना ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 178 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ये ह ै वक क्या इन सिारों का हमारी व्यिस्र्था म ें अर्ी तक सही से सचालन हआ ह ै या व्यिस्र्था पर वस.भ ु ु ं एक नया र्ार डाल वदया गया ह ै । CCE के वियान्ियन स े वििा व्यिस्र्था म ें परपरागत रूप से चली आ ं रही विद्यार्थी के मल्याकन की दीिकभ ावलक पद्यवत (अिभिावषकभ एि िावषकभ परीिा ) का स्र्थान ू ं ं ं आकलन की एक वनरन्तर चलने िाली प्रविया ने तो ले वलया ह ै । वकन्त सोचने का विषय ह ै वक ु विद्यावर्थभयों की अत्यविक सिनता िाली र्ारतीय किा म ें वििकों पर इसका क्या प्रर्ाि पडा ह ै ? ं कहीं िह बच्चों के प्रदिनभ में सिार लाने के स्र्थान पर यवनट टेस्ट, सेमस्े टर एग्िाम एि प्रवक्टकल िकभ ु ू ं आवद मकै े वनकल िकभ म ें ही व्यस्त तो नहीं हो गया ह ै । किा म ें वििक का कायभ वििण विया सपन्न ं कराना होता ह ै लेवकन CCE के आने के बाद से वििक ज्यादातर समय मकै े वनकल कायों म ें व्यस्त पाए िाते ह ैं । अत: इस प्रकार वनवमतभ आिवनक बोवझल िवै िक व्यिस्र्था म ें वििक विद्यावर्थभयों के स्र्थान पर ु वस.भ व्यिस्र्था की ब्रवद् को दखे पा रहा ह ै । 1 अप्रैल 2010 को वििा का अविकार अविवनयम को वियावन्ित करते समय पि भ प्रिानमत्री डॉ. मनमोहन वसह ने स्पस्ट वकया र्था,
“वक हम लैंवगक और ू ं ं सामाविक िातीय विवर्न्नता से असम्बद् होकर सर्ी बच्चों की वििा तक पहचाँ सवनवश्चत करने हते ु ु ु ं िचनबद् ह,ैं क्योंवक वििा ही िह माध्यम ह ै िो उन्ह ें र्ारत का एक विम्मदे ार और सविय नागररक बनने हते अवनिायभ कौिलों, ज्ञान, मल्य और व्यिहार को विकवसत करने योग्य बनाती ह ै । ”
यह अविवनयम ु ू 6-14 िष भ तक के सर्ी बच्चों को अवनिायभ एि वनिल्क आरवर्क वििा प्राप्त करने का अविकार प्रदान ु ं ं करने के सार्थ ही यह प्राििान र्ी करता ह ै वक प्रारवर्क वििा की पणतभ : तक कोई र्ी बच्चा न तो किा ू ं म ें रोका िायेगा, न ही वनरकावसत वकया िायेगा और न ही उसे वकसी र्ी बोडभ परीिा को पास करने की ही आिश्यकता होगी । यह एक गर्ीर वचतन का विषय ह ै वक विस स्तर के विद्यार्थी म ें स्िय के विषय म ें वनणयभ लेने की ं ं ं पररपक्िता र्ी विकवसत न हो पायी हो, उनम ें परीिा म ें अस.लता का डर न होने पर बौवद्क विकास ं को प्रेरणा वमलेगी या समस्या और र्ी अविक र्यािह रूप म ें सामने आएगी । आरवर्क किा से ं ं लेकर माध्यवमक स्तर का विद्यार्थी इतना पररपक्ि नहीं होता ह ै वक िह अपने र्विरय के विषय में तावकभ क वचतन कर सके । विसका मलर्त कारण उसकी
विकास की मनोिज्ञै ावनक अिस्र्थाए होती ह ैं । इन ू ू ं ं अिस्र्था म ें िहााँ कोई र्ी वििार्थी स्ितत्रता को बहत अविक तरिीह दते ा हो, उससे एक व्यिवस्र्थत ु ं ं विकास क
ी वकतनी आिा की िा सकती ह ै । ितभमान नीवतगत व्यिस्र्था म ें RTE Act कहता ह ै वक किा 1 से 8 तक के वकसी
विद्यार्थी को .े ल नहीं करना ह ै । आि यह वसद्ात लगर्ग सम्पण भ र्ारतीय ू ं िवै िक सस्र्थानों म ें आत्मसात वकया िा चका ह,ै विसके .लस्िरूप विद्यार्थी को किा 1 म ें प्रििे लेने ू ं के बाद वबना .े ल हए ही विश्वविद्यालय तक पहचाँ ने का आसान रास्ता प्राप्त हो िा रहा ह ै । इसका एक ु ु बडा ही गर्ीर पररणाम आि हमारे सामने ह ै वक हमारे विश्वविद्यालय
ों म ें र्ारी र्ीड िमा हो गयी ह ै । ं प्राइमरी से सेकें डरी और सेकें डरी से उच्च िवै िक सस्र्थानों म ें िक्का लगाकर पहचाई गयी ये वनवरिय ु ं ं ऊिाभ सम्पण भ दिे को विकलाग बना रही ह ै । िहीं RTE Act का एक दसरा पहल ये र्ी सामने आया ह ै ू ू ं ू वक वििक सामान्यत: कहते ह ैं वक इस अविवनयम ने हमारे हार्थ बाि वदए ह,ैं क्योंवक अब हम विद्यावर्थभयों ं को न तो दवण्डत कर सकते ह ैं और न ही .े ल कर सकते ह ैं । वििकों की यह प्रिवत व.क्स्ड माइडसेट ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 179 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 को दिाभती ह ै विसके अनसार वििक अपने प्रयासों सकारात्मक पररितभन की र िाने के स्र्थान पर ु स्र्थायी प्रदिनभ पर ही के वन्ित रहने का ही प्रयास करते ह ैं । िबवक इस प्रकार के नीवतगत बदलािों को करने के पहले आिश्यकता इन नीवतयों के िाहकों (Stakeholdars) को इनकी यर्थार्थभता से पररवचत करा दने े की ह ै । इस अविवनयम की िास्तविकता तो ये ह ै की इसम ें ऐसा कोई प्राििान ही नहीं ह ै िो वििको को वनदिे दते ा हो वक आप लोग किा म ें वििण कायभ न करें । यह अविवनयम तो वििा को आम विद्यार्थी की सहि पहचाँ हते पाररत वकया गया ह ै । लेवकन वििकों एि विद्यालयों ने बच्चों को पढ़ाने के ु ु ं स्र्थान पर उनको आग े की किा म ें प्रोन्नत करन े का तरीका अपना वलया और आि हमारे पास ऐसे विद्यावर्थभयों की वबलकल र्ी कमी नहीं ह ै िो बडी किा म ें पहचाँ ने के बाद र्ी अपने से नीचे की ु ु ं किा की अध्ययन सामग्री की सामान्य िानकारी र्ी नहीं रखते ह ैं । अत: यहााँ वस.भ CCE या RTE ं Act िसै े नीवतयों को वियावन्ित कर दने ा ही नहीं अवपत इनके वियान्ियन का वनरतर आकलन वकये ु ं िाने की आिश्यकता ह,ै विसके वलए अलग से प्रिासवनक या अनसन्िान इकाइया होनी चावहए िो ु ं समय-समय पर ऐसी योिना की स.लता और अस.लता की विस्तत ररपोटभ प्रस्तत कर सकें और ृ ु ं आिश्यक बदलाि सवनवश्चत हो सकें । ु अब यवद िसै े एक बात सीबीएसई करता ह ै वक हम बोडभ एग्िाम नहीं लेंग,े क्योंवक बोडभ परीिाए ं लेते ह ैं तो बच्चा ख़राब पररणाम दखे कर आत्महत्या कर लेता ह ै । अब सोचने िाली बात ह ै वक आत्महत्या करने िाला बच्चा तो कर्ी र्ी आत्महत्या करेगा । अस.ल होने पर आप रोक लेंग े तो िब नौकरी नहीं वमलेगी तब िाकर करेगा । यवद परीिा के ख़राब पररणाम ही आत्महत्या की प्रेरणा दते े ह ै ं तो IIT या MEDICAL के विद्यावर्थभयों को तो आत्महत्या नहीं करनी चावहए क्योंवक िो तो र्ारत की कवठनतम परीिा को पास करके िहा पहच े होते ह ैं । िास्ति म ें आत्महत्या करना तो एक प्रिवत ह ै यह ु ृ ं ं ं विसके अन्दर र्ी होगी िही इसका विकार बनेगा । बच्चे तो पहले र्ी आत्महत्या करते र्थे िब वििा इतनी उन्नत र्ी न र्थी । आि मीवडया (बच्चो म ें तनाि बढ़ रहा ह,ै वनरािा बढ़ रही ह ै इत्यावद) इसको हाइप करके एक लाइलाि बीमारी म ें पररिवतभत करने म ें लगा ह ै । िीिन म ें तनािों का उत्पन्न होना तो स्िार्ाविक ह,ै यही तो विकास हते प्रेरणा प्रदान करते ह ैं वकन्त इसकी नकारात्मक व्याख्या विद्यार्थी में ु ु सीखने के प्रवत एक डर को िन्म दते ी ह ै । वियात्मकता कई प्रकार की सामाविक और सिगे ात्मक ं वचन्ता को िन्म दते ी ह,ै यह समस्या वस.भ उनके सार्थ ही नहीं िो वकसी िवै िक व्यव्हार म ें अस.ल होते ह ै बवल्क उनके अन्दर र्ी वदखाई दते ी ह,ै िो स.ल होते ह ैं । अत: हमारे विद्यालयों की वनरतररत ं कायभप्रणाली को स.लता और योग्यता पर कें वन्ित करने हते विद्यावर्थभयों के ही नहीं अध्यापकों के र्ी ु माइडसेट को व.क्स्ड से ग्रोर्थ की र प्रित करने की आिश्यकता ह ै । ृ ं 4.11 सारांश विविि रूप से विद्यार्थी प्रत्येक नये विद्यालय िष भ की िरुआत इस प्रकार के पिाभनमान और वचता के सार्थ ु ू ु ं करते ह,ैं वक क्या आग े की अध्ययन अिवि म ें ि े स.लता प्राप्त करेंग े या नहीं , उनके वििक सहयोगी उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 180 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 होंग े या कठोर,? यवद उनके सामने कवठनाईया आती ह ैं तो ि े साििभ वनक रूप से सामना करने म ें र्य ं महसस करते ह ैं । हमारी िैविक परम्परा म ें वििक की र्वमका सिाभविक महत्त्िपण भ होती ह ै । िसै ा वक ू ू ू हमारे सावहत्यों म ें िणनभ वमलता ह ै वक प्राचीन र्ारतीय वििा पद्यवत म ें विद्यावर्थभयों के मल्याकन के वलए ू ं मौवखक परीिा का प्रयोग वकया िाता र्था, वििक (गरु) छात्र द्वारा अध्ययन वकये गए ज्ञान का स्तर ु ं िानने के वलए अध्यापन विया के बाद ही मौवखक रूप स े या उसके द्वारा दवै नक रूप स े की िाने िाली व्यिहाररक विया को अिलोवकत करके करता र्था । वकन्त आिवनक औपचाररक परीिा के समय ु ु ं ं म ें विद्यावर्थभयों का िवै िक मल्याकन करने के वलए हमारे वििण सस्र्थानों म ें सािभिवनक किा में ू ं ं ं वििको की देखरेख म ें व्यिवस्र्थत परीिाए सम्पन्न करायी िाती ह,ैं िहााँ के वनयम सर्ी विद्यावर्थभयों के ं वलए समान होते ह ैं । वकन्त क्या इस पद्यवत से सर्ी विद्यावर्थभयों का सही आकलन हो पाता ह ै ? ु अतियै वक्तक विवर्न्नताएाँ ये वसद् करती ह ैं वक प्रत्येक व्यवक्त की सीखने की गवत वर्न्न होती ह ै । क्योंवक ं परीिा कि म ें सर्ी विद्यावर्थभयों के समझने, स्मरण करने और वलखने की गवत समान नहीं हो सकती, अत: पररणामों की यर्थार्थभता के विषय म ें कहना तकभ सगत कै से हो सकता ह ै । दवनया के श्रेष्ठ िज्ञै ावनकों म ें ं ु से एक AIbert Einstein का र्ी मानना ह ै वक, “प्रत्यके व्यवक्त स्िय म ें प्रवतर्ािान होता ह ै वकन्त यवद ु ं आप वकसी मछली की सामथ्यभ को उसकी एक पेड पर चडने की योग्यता के आिार पर िाचना चाहते ह ैं ं तब यवद िह अपने को इस सामथ्यभ के प्रवत पणतभ : विश्वास वदलाने म ें अपना परा िीिन र्ी लगा द े तो र्ी ू ू अत म ें स्िय को असमर्थभ ही पायेगी (“Everybody is a genius. But if you judge a fish by its ं ं ability to climb a tree, it will live its whole life believing that it is stupid.”) । अत: सोचने का विषय ह ै वक िवै िक आकलन की प्रविया म ें र्ी व्यवक्तगत अविगम की योग्यता और स्तर पर ध्यान वदए वबना वकसी र्ी विद्यार्थी के विषय म ें कछ र्ी वनरकष भ वनकलना वकतना यर्थार्थभ होगा ? ु 4.12 शब्दावली 1. योग्यता- योग्यता व्यवक्त की िह सामथ्यभ ह ै िो उसे वकसी कायभ को करने के योग्य बनाती है । प्रकवत की सहायता से इसम ें ब्रवद् अर्थिा ह्रास वकया िा सकता ह ै । िसै े वकसी विद्यार्थी म ें ृ गवणत विषय के कौिल सीखने की प्रिवत का होना । ृ 2. उििधब्ि- उपलवब्ि मलतः वकसी वििेष विषय िेत्र म ें वकसी व्यवक्त की सामथ्यभ का प्रेवित ू पररणाम होता ह,ै इसका सम्बन्ि ज्ञान-िेत्र की योग्यता से होता ह ै । िो र्ी हम ब्यवक्त के िावछत ं व्यिहार को प्रेवित करके प्राप्त करते ह,ै उसकी उपलवब्ि कहलाती ह ै । 3. आकिन- आकलन एक सिादात्मक तर्था रचनात्मक िवै िक प्रविया ह,ै विसम ें वििक ं वििार्थी के अविगम विकास की यर्थावस्र्थवत को िानने का प्रयास करता ह ै । िवै िक सदर् भ म ें ं आकलन का उददश्े य वििण-अविगम कायभिम म ें सिार करना, छात्रों ि अध्यापक को ु पष्ठपोषण प्रदान करना तर्था छात्रों की अविगम सबिी कवठनाइयों को ज्ञात करना होता ह।ै ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 181 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. धफक्स्ड माइडसेट- ऐसी मवरतस्कीय व्यिस्र्था विस कारण से लोग यह विस्िास करते ह ैं वक ं उनकी बवद् अर्थिा प्रवतर्ा िसै ी मौवलक वििेषताए स्िर्ाित: वस्र्थर िीलगण होती ह ैं । ि े ु ु ं अपना अविकतर समय इन योग्यता को विकवसत करने के स्र्थान पर इनके प्रदिनभ म ें व्यय ं करते ह ैं । ि े यह र्ी विस्िास करते ह ैं वक प्रवतर्ा वबना प्रयासों के ही स.लता प्रदान कराती है । 5. ग्रोर् माइडसेट- िह मवस्तरकीय व्यिस्र्था विस कारण लोग विस्िास करते ह ै वक ि े अपनी ं अविकतर आिारर्त योग्यताए समपभण और कवठन पररश्रम से विकवसत कर सकते ह ैं । यह ू ं िविकोण अविगम के प्रवत प्रेम और लोच उत्पन्न करता ह ै िो वक पणभत: के वलए अवत ू आिश्यक ह ैं । लगर्ग सर्ी श्रेि लोग इन वििेषता से यक्त होते ह ैं । ु ं 4.13 सन्दर् भ ग्रंथ सची ू th 1. Hymer, B. (16 June 2016). Mindset: A never-ending journey? Inspiring leadership conference 2016 ICC. 2. Casazza, M. E. (February 22, 2016). Mindset: its powerful impact on achievement. UNC student success conference 3. Carol S. Dweck, G. M. (2014). Mindsets and Skills that Promote Long-Term Learning in Academic Tanacity Bill & Melinda Gates Foundation. 4. Jason Snipes, C. F. (August 2012). STUDENT ACADMIC MINDSET INTERVENTIONS: A Review of the Current Landscape. Stupski Foundation. 5. Visser, C. (2011). Fixed vs Growth (from developing a growth mindset).Http;//solutionfocusedchange.blogspot.com. th 6. Loughborough University London (29 January 2010), Longitudinal 5- year study of 40 girls aged 11-18 with eating disorders, reported in TES. 4.14 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. योग्यता और उपलवब्ि के मध्य अतर स्पस्ट कीविए । ं 2. माइडसेट उपागम और उसके प्रकारों का िणनभ कीविए । ं 3. माइडसेट उपागमो के मध्य अतर स्पि कीविए । ं ं 4. विद्यार्थीयों की िवै िक योग्यता एि स.लता पर वििक के माइडसेट के पडने िाले प्रर्ाि को ं ं समझ सकें ग े । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 182 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 5 - शैतिक आकलन की उन प्रणातलयों का अिैिानीकरण करना जो परंपरागि आकलन के माध्यम से प्रतियोगी-चयन पर आिातरि िैं, जो समाज में सत्ता-िचभस्ि के समीकरण को बनाये रखने की तदशा में काम करिी िैं । एिं ऐसे दशे ों के अनिु िों का ससिािलोकन तजन्िोंने सिी बच्चों की अतिगम गुणित्ता को बढ़ाया िथा परीिा में प्रतियोतगिा को ग्रेड प्रणाली से प्रतिस्थातपि करके समाप्ि तकया । 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 आकलन का अर्थभ एि उदश्े य ं 5.4 परपरागत आकलन पद्वत अर्थिा प्रवतयोगी आकलन की वििेषताएाँ ं 5.5 परपरागत आकलन पद्वत अर्थिा प्रवतयोगी आकलन की सीमाएाँ ं 5.6 अविगम का आकलन 5.7 निीन आकलन पद्वत अर्थिा श्रेणी (ग्रेवडग)
प्रणाली का अर्थभ ं 5.7.1 ग्रेवडग प्रणाली के लार् ं 5.8 सतत एिम व्यापक आकलन ् 5.9 र्ारत में िैविक आकलन 5.10 कछ पाश्चात्य अर्थिा विकवसत दिे ों की आकलन प्रणाली के िास
्तविक अनर्ि ु ु 5.11 परपरागत तर्था प्रवतयोगी आकलन की पहचान ं 5.12 परपरागत प्रवतयोगी आकलन के अिैिानीकारण करने की आिश्यकता ं 5.13 साराि ं 5.14 सन्दर्भ ग्रन्र्थ सची ू 5.15 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 183 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.1 प्रस्तावना आकलन प्रणाली वकसी र्ी िैविक व्यिस्र्था म ें महत्िपण भ स्र्थान रखती ह।ै इसके द्वारा वकसी र्ी विद्यार्थी ू के ज्ञान तर्था अविगम आवद पिों का वनिाभरण वकया िाता ह ै तर्था वकसी सेिा म ें चयन के वलए योग्य व्यवक्त को र्ती र्ी वकया िाता ह।ै वििा तर्था रोिगार वकसी र्ी समाि की वदिा तर्था दिा दोनों को तय करने म ें महत्त्िपण भ र्वमका अदा करता ह।ै इस प्रकार वकसी दिे की मल्याकन अर्थिा आकलन प्रणाली ू ू ू ं उसके नागररकों के विकास म ें महत्त्िपण भ स्र्थान रखती ह।ै मल्याकन प्राणाली समाि की सरचना िासन तत्र ू ू ं ं ं और अर्थभव्यस्र्था को व्यापक रूप से प्रर्ावित करती ह।ै 5.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन करने के उपरात आप वनम्न वबन्द को सीख सकें गे- ं ं ु 1. आकलन का अर्थभ क्या ह ै और इसकी पररर्ाषाए क्या ह-ैं ं 2. परम्परागत आकलन क्या ह-ै 3. परपरागत आकलन की वििेषताए क्या ह-ै ं ं 4. परपरागत आकलन की सीमायें क्या ह-ै ं 5. अविगम का आकलन क्या ह-ै 6. निीन आकलन पद्वत क्या ह-ै 7. ग्रेवडग आिाररत आकलन प्राणाली क्या ह-ै ं 8. ग्रेवडग प्रणाली की वििषे ताए क्या ह-ै ं ं 9. ग्रेवडग प्रणाली अविगम की गणित्ता को बढाने म ें वकस प्रकार सहायक ह-ै ु ं 10. अविगम के वलए आकलन क्या ह-ै 11. सतत एि व्यापक मल्याकन क्या ह-ै ू ं ं 12. र्ारत म ें प्रचवलत आकलन प्रणाली कै सी है- 13. अविगम की गणित्ता की िवद् करने म ें पाश्चात्य अर्थिा विकवसत दिे ों की आकलन प्रणाली ृ ु क्या अनर्ि रह े ह-ैं ु 14. आकलन प्रणाली से उत्पन्न प्रवतस्पिाभत्मक तर्था सहयोगात्मक अविगम व्यव्हार 5.3 आकलन का अथभ एवं उद्दश्े य आकलन िब्द की व्यत्पवत्त लैवटन र्ाषा के िब्द “ASSIDARE “ से हयी ह ै विसका िावब्दक अर्थभ ह ै ु ु “साथ म ें बैिना” आकलन करने से तात्पयभ अविगमकताभ के सार्थ बैठना। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 184 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 आकलन का समानार्थी िब्द कतना ह,ै विससे वकसी ऐसी विया का बोि होता िो वकसी विषय की ू िस्तवस्र्थवत का अदाज़ा लगाने से ह ै विसम े आके गए विषय की लगर्ग सर्ी वििेषताए सम्मवलत हों ु ं ं ं तर्था उस अदाि े अर्थिा कते गए विषय के वलए कोई वनणयभ वलया िा सके । ू ं वकन्त वििा के िेत्र म ें आकलन िह आिार प्रदत्त Data ह ै विसे प्रायः वििकों तर्था छात्रों अर्थिा वकसी ु चयन अवर्करण द्वारा सकवलत वकया िाता ह,ै विसका प्रमख उद्दश्े य वििण –अविगम की प्रविया को ु ं उन्नत करना अर्थिा वकसी कायभ के वलए उपयक्त व्यवक्त का चयन करना, इस प्रकार वििक छात्रों की ु अविगम वस्र्थवत का आकलन करते ह ैं एि अपनी वििण की प्रर्ािकाररता का पता लगाते ह,ैं विससे ं वििण अविगम के स्तर को ऊाँ चा उठाया िा सके । आकलन का प्रयोग बहतायत रूप म ें पाठयिमों म ें ु ् प्रििे लेने, विवर्न्न पदों पर वनयवक्त के वलए व्यापक रूप से प्रयक्त वकया िाता ह।ै ु ु .ें टन (1996) के अनसार: ”आकलन से आिय उपयक्त तथा दिश्वसनीय सचनाओ के ग्रहण से ह ै दजनके ु ु ू ां आिार पर दनणयि दलया जा सके ”। इरविग (1991) के अनसार
“दिद्याथी के दिकास ि सीखने के सम्बन्ि म ें राय को दनिािररत करने का ु ं आिार ही आकलन ह ै यह सचनाओ के पररभाषीकरण, चयन, सकलन, दिश्लेषण दििचे न की प्रदिया ह ै ू ां ां दजससे की दिद्यादथियों के सीखने तथा दिकास प्रदिया म ें िदि हो सके ”
। ृ आकिन के उद्देश्य पाठयिमों में प्रििे लेने िाले अभ्यवर्थभयों की योग्यता का मापन, रूवच, अवर्िवत्त, अवर्िमता ृ ् आवद का पता लगाना तर्था इनके आिार पर प्रििे दने ा। प्रििे के आिार पर उनकी बवद् एि व्यवक्तत्ि का आकलन करने तर्था उनकी वििषे ता के ु ं ं अनसार िगीकत करना। ृ ु समय-समय पर छात्रों की िवै िक उप्लवब्ियों अर्थिा व्यिहार पररितभन का पता लगाना और उसके आिार पर छात्रों का मागदभ िनभ करना। समय-समय पर छात्रों की िवै िक व्यिहार का आकलन करना और उन्ह ें प्रवतपवि प्रदान करना। ु छात्रों की िवै िक प्रगवत म ें बािक तत्िों की िानकारी प्राप्त करना तर्था उनका उपचार करना। छात्रों की बवद्, रूवच, रुझान और सिनात्मक योग्यता का पता लगाना और उसके आिार पर ृ ु उन्ह ें िवै िक एि व्यािसावयक वनदिे न दने ा। ं समय-समय पर वििा-प्रिासकों एि अन्य विवर्न्न वहतिारकों िसै े वििक, कमचभ ारी, ं अवर्र्ािक तर्था सामाविक सस्र्था को िवै िक गवतविवियों से सविय रूप म ें अिगत कराना ं ं तर्था सिार हते सझाि प्राप्त करना। ु ु ु िवै िक उद्दश्े यों की प्रावप्त म ें पाठयपस्तकों की उपयोवगता का पता लगाना उसम ें सिोिन हते ् ु ु ं सझाि दने ा तर्था िोि के वलए सझाि दने ा। ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 185 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िवै िक उद्दश्े यों की प्रावप्त म ें सहपाठयचारी विया की प्रर्ािकाररता का आकलन करना तर्था ् ं उन्ह ें सही ढग से प्रयोग के वलए सझाि दने ा। ु ं वििण म ें विवर्न्न िवै िक सािनों के प्रयोग से होन े िाले प्रर्ाि का अध्ययन करना तर्था उन सािनों का प्रयोग वकस रूप म ें उपयक्त होगा? का अध्ययन करना तर्था सझाि दने ा। ु ु वििा की तत्कालीन समस्या को समझाना तर्था उनके समािान के उपाय खोिना। ं 5.4 परंपरागत आकलन पिरत अथवा प्ररतयोगी आकलन की रवशेषताएँ हमारे दिे म ें विवर्न्न स्तरों पर तर्था विवर्न्न उद्दश्े यों के आिार पर प्रचवलत आकलन की वििषे ताए कछ ु ं इस प्रकार से ह ैं – यहााँ पर प्रत्येक स्तर चाह े प्रार्थवमक हो, माध्यवमक हो या व.र महाविद्यालयी अर्थिा विश्वविद्यालयी हो परीिा का वििषे महत्ि होता ह ै ये परीिाए िवै िक सत्र की समावप्त पर होतीं ं ह।ै परीिा का प्रकवत प्रायः बाह्य होती ह ै अर्थाभत परीिाए राज्य /कें ि के बोडभ या व.र ृ ं ं विश्वविद्यालयों द्वारा सचावलत होती ह।ैं ं बाह्य परीिाए आकलन के उद्दश्े यों को र्ली प्रकार पररर्ावषत करती ह ै अर्थाभत इनसे प्राप्त ं पररणामो का समान आिय वनकाला िाता ह ै विसे प्रायः मानक कहा िाता ह ै विस कारण इसे का.ी प्रवतष्ठा प्राप्त ह।ै परीिा के प्रश्न-पत्रों का वनमाभण बाह्य वनमाभता द्वारा वकया िाता ह ै तर्था उसका मापन दसरें ं ं ू वििकों द्वारा वकया िाता ह ै विससे परीिा पररणामों म ें पिाभग्रहों की कमी पाई िाती ह।ै ू बाह्य मल्याकन की समाि म ें बडी प्रवतष्ठा ह ै अतः आतररक मल्याकन को उपयक्त दृवि से नही ू ू ु ं ं ं दखे ा िा रहा ह।ै ये परीिाए छात्रों को उपावियााँ अर्थिा प्रमाणपत्र प्राप्त करने का सािन ह।ै ं वकसी पाठयिम म ें प्रििे अर्थिा वकसी रोिकर या सेिा म ें चयन का आिार बाह्य बोडभ या ् विश्वविद्यालयी आकलन का महत्ि सिाभविक ह।ै परीिा म ें वलवखत परीिा का योगदान अवि
क होता ह।ै मौवखक तर्था प्रायोवगक परीिा ं ं ं का सञ्चालन कछ सस्र्था को छोडकर महज़ औपचाररकता मात्र होती ह।ै ु ं ं परीिा म ें पाँछें गए प्रश्नों की प्रकवत वनबिात्मक प्रकार की होती ह ै व
िसका विस्तत रूप से ृ ृ ू ं ं उत्तर प्राप्त वकया िाता ह।ै इस प्रणाली म ें मल रूप से छात्रों की ज्ञानात्मक िमता का मापन वकया िाता ह।ै ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 186 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.5 परंपरागत आकलन पिरत अथवा प्ररतयोगी आकलन की सीमाए ँ वनबिात्मक प्रश्नों की र्लता के कारण छात्रों को डींग ें हाकनें का अिसर प्राप्त हो िाता ह ै और ू ं अनापेवित तत्िों को र्ी िावमल कर दते े ह ै विनकी िस्तवनष्ठता वनवश्चत नहीं होती ह।ै ु यह प्रणाली पणरूभ पणे परीिा के वन्ित हो गयी ह ै बिाए ज्ञान के वन्ित होने के । ू अब आतररक तर्था सतत एि व्यापक आकलन को िीरे -िीरे लाग वकया िा रहा ह ै परन्त ऐसी ू ु ं ं सस्र्थाए बहत कम ह।ै ु ं ं विन सस्र्था म ें सतत एि व्यापक आकलन की अििारणा को लाग वकया गया ह ै िहा र्ी ये ू ं ं ं ं अपने उद्दश्े यों म ें अपेिाकत खरी नहीं उतरी ह ै क्योंवक परीिा का स्िरुप आतररक होने की ृ ं ं ििह से पिपातपण भ पररणाम र्ी प्राप्त होतें ह ैं ू सम्पण भ पाठयिम के बिाए छात्र गसे पेपर के आिार पर बारबारता से पछे िाने िाले वबन्द ् ू ू ं ु को रट लेतें ह।ै प्रश्न पत्रों म ें पाठयिम का उवचत प्रवतवनवित्ि नहीं हो पाता ह ै अर्थाभत प्रश्न व्यापक िेत्र से नहीं ् पछे िाते ह।ैं ू परीिा म ें िणनभ ात्मक/व्याख्यात्मक प्रकार के प्रश्न पछे िाते ह ैं न वक अनप्रयोगात्मक, ू ु ं विश्लेषण, सश्लेषण तर्था कौिल आिाररत प्रश्न पछे िाते ह।ैं ू ं 5.6 अरधगम का आकलन अविगम के आकलन से अवर्प्राय प्रायः योगात्मक आकलन से होता ह ै विसम े छात्रों की वििा की वकसी इकाई को पण भ मानकर उसकी उपलवब्ि का आकलन वकया िाता ह।ैं इसम ें सामान्यतः यह पता ू करने का प्रयत्न वकया िाता ह ै की छात्रों ने पाठयिम को वकतना सीखा ह ै इसकी प्रकवत प्रायः साििभ वनक ृ ् होती ह ै विसकी िानकारी अवर्र्ािक, प्रिासक तर्था वनयोक्ता को वमलती ह।ै विवर्न्न बोडों तर्था ं विश्वविद्यालयों की परीिायें ऐसी ही परीिा के माध्यम से वडग्री अर्थिा प्रमाण-पत्र िारी करती ह।ै यह ं सबसे प्रचवलत तर्था प्राचीन आकलन पद्वत ह।ै 5.7 नवीन आकलन पिरत अथवा श्रेणी (ग्रेडडग) प्रणाली का अथभ वििा म ें ग्रेवडग प्रणाली वकसी पाठयिम म ें उपलवब्ि के विवर्न्न स्तरों के मानकीकत मापन को लाग ृ ् ू ं करने की प्रविया ह।ै ये (ए., बी., सी., डी., ई., ए.) आवद अिरों म ें व्यक्त की िाती ह ै विसे सात वबद या ं ु नौ वबद आवद आिारों पर व्यक्त वकया िाता ह।ै कछ देिों म ें किा के सर्ी विषयों के ग्रेड अकन के ु ं ं ं ु वलए ग्रेड वबद औसत (िी.पी.ए.) वनकलते ह।ै माध्यवमक तर्था उच्च वििा म ें इसका प्रयोग र्ारी मात्रा में ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 187 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वकया िाता ह।ै स्नातक, परास्नातक तर्था अन्य बहिषीय पाठयिमों म ें सी.िी.पी ए. की गणना सर्ी िषो ु ् या सेमस्े टरों के योग औसत के रूप म ें व्यक्त वकया िाता है। िवै िक आकलन की प्राचीन दिमलि पद्वत को अविक प्रवतस्पिी होने कारण वििाविदों द्वारा निीन आकलन की पद्वत को अपनाया गया ह।ै अर्थाभत सामान्य रूप से र्ारत म ें प्रचवलत प्रवतित से कम अनतीण,भ से 45 प्रवतित तक ततीय श्रेणी, 45 से 60 प्रवतित से कम तक वद्वतीय श्रेणी, 60 प्रवतित ृ ु तर्था उसके उपर प्रर्थम श्रेणी एि व5 प्रवतित से अविक वििषे योग्यता माना िाता ह,ै विसम े इन श्रेवणयों ं से वकसी श्रेणी के वलए एक र्ी अक कम रह िाते र्थे तो उस छात्र को सापेविक रूप से वनम्न उपलवब्ि ं का माना िाता ह ै । विसका विद्यार्थी के आत्मविश्वास पर बहत ही बरा प्रर्ाि पडता र्था, अतः इन सीवमत ु ु श्रेणीयों को समाप्त करके अविक श्रेवणयों म ें परीिा पररणामों को व्यक्त वकया गया िो अपेिाकत ृ नकारात्मक प्रवतस्पिाभ का उन्मलन करती ह।ै ू इस प्राणाली द्वारा अकों के आिार पर छात्रों के दोषपण भ िगीकरण को समाप्त करना। ू ं इसके द्वारा उच्च अक प्राप्त करने के वलए छात्रों म ें पाई िाने िाली नकारात्मक प्रवतस्पिाभ को कम करना। ं सीखने के बेहतर िातािरण का वनमाभण करना विससे तनाि मक्त अविगम हो सके ।यह अविगमकताभ ु ं को उदार व्यिस्र्था प्रदान करता ह ै विससे उनका सामाविक दबाि कम हो सके । छात्रों के पररणाम अविक वनरपि होते ह ैं ग्रेवडग प्रणाली के सार्थ आतररक मल्याकन र्ी िवनष्ठ रूप से िडा रहता ह,ै विससे ू ु ं ं ं आतररक मल्याकन के द्वारा उदार मल्याकन को बढ़ािा वमलता ह ै और किा म ें विद्यार्थी सकारात्मक ू ू ं ं ं रूवच के सार्थ अध्ययन कर पाता ह।ै परीिा पररणामों को अकों की अपेिा ग्रेड म ें व्यक्त करने म ें अतर परीिक होने िाली मापन त्रटी को कम ु ं ं करता ह।ै अर्थाभत अलग- अलग मल्याकनकताभ का परीिा पररणामो पर बहत ही कम प्रर्ाि पडता ु ू ं ं ह।ै िोिों में यह पाया गया ह ै वक आकलन के उपकरणों के दोष को ग्रेड
प्रणाली का.ी हद तक कम करता ह।ै यवद कोई विद्यार्थी अच्छे अक अवितभ करने म ें स.ल नहीं हो पाता ह ै तो िह आसानी से ग्रेवडग प्रणाली ं ं की हीनर्ािना से बच िाता ह।ै 5.7.1 ग्रेधडग प्राणािी के िाि ं i. प्रवतित प्रणाली क
ी अपेिा ग्रेवडग प्राणाली म ें अविक सख्या म ें छात्र उत्तीण भ होते ह।ैं ं ं ii. आतररक मल्याकन के कारण विद्यालय तर्था छात्र के मध्य सम्बन्ि सकारात्मक होते ह।ैं ू ं ं iii. यह विद्यावर्थभयों के िवै िक वनरपादन के विषय म ें सटीक िानकारी प्रदान करता ह।ै iv. यह परीिा पररणामों के प्रवत समाि के लोगों तर्था अवर्र्ािकों की समझ को आसान बनाता ह।ै v. छात्रों म ें समह कायभ होने कारण सामवहकता की र्ािना िागत होती ह।ै ृ ू ू इस प्रणाली म ें छात्र अच्छे ढग से इस वलए पररश्रम करता ह ै की उदाहरणार्थभ उसे 80 से लेकर 89 तक ं अक लाकर बी ग्रेड प्राप्त कर सकता ह ै इसम ें एक र्ी अक प्राप्त करने के र्य से छात्र अविक पररश्रम करते ं ं ह,ैं और दसरी र 80 अक आ गए तो छात्रों म ें अपने ग्रेड के प्रवत हीन र्ािना र्ी नहीं आती ह ै िे वडट ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 188 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 प्रणाली लाग होने से छात्र मनपसद िे वडट का चनाि करते ह ै छात्रों म ें आत्मविश्वास का स्तर बढ़ता ह ै ू ु ं तर्था व्यवक्तत्ि का सकारात्मक विकास होता ह।ै उच्च िैधक्षक मानक को स्र्ाधित करने के धिए - वििा के िावछत स्तर को प्राप्त करने के वलए ं वििाविदों द्वारा प्रचवलत आकलन पद्वत की अस.लता से प्रेररत होकर नई ग्रेवडग आकलन पद्वत ं ं को स्िीकार वकया ह,ै इस पद्वत म ें सापेविक रूप से सहयोगी तर्था सस्र्थात्मक र्ागीदारी को महत्त्ि वदया ं गया ह ै विसके कारण कछ हद तक वििा व्यिस्र्था म ें सिार हो रहा ह।ै ु ु ज्ञान के धिए छात्रों को प्रेररत करना- प्राचीन आकलन प्रवतमान छात्रों को िष भ पयभन्त होने िाली परीिा को वकसी तरह उत्तीण भ करने के वलए प्रेररत करती है। छात्र र्ी परे िष भ वनवश्चत रहते ह,ै विस कारण
विद्यार्थी ू ं द्वारा िावषकभ परीिा के समय का.ी तनाि हो िाता ह ै तर्था सम्पण भ पाठयिम को कछ ही वदन म ें तैयार ् ू ु करना कवठन हो िाता ह।ै अतः इन कारणों से बहत ही कम मात्रा म ें विद्यार्थ
ी िषभ- पयांत सतत अध्ययन ु करते ह।ै परे िष भ अध्ययन- अध्यापन की खाना पती होती ह,ै विससे वििा व्यिस्र्था पर प्रश्न वचन्ह लग ू ू िाता ह।ै निीन ग्रेवडग प्राणाली म ें विद्यार्थी के परीिा.ल म ें प्रवतित अकों को व्यक्त नहीं वकया िाता ह ै ं ं विस कारण विद्यावर्थभयों की हीन र्ािना समाप्त होती है। प्राचीन आकलन प्रणाली में के िल प्रर्थम, वद्वतीय, ततीय तीन ही श्रेवणयों म ें विर्ावित वकया िाता र्था विसम े अपने से लवित श्रेणी से नीचे वकसी र्ी श्रेणी ृ को प्राप्त करने म ें समाि म ें विद्यार्थी की छवि खराब हो िाती र्थी, विससे विद्यावर्थभयों के आत्मविश्वास में र्ारी कमी आ िाती र्थी। अतः इस प्राणाली द्वारा अविक श्रेवणयों म ें विर्ावित होने से उपलवब्ि के स्तरीकरण पर कम प्रर्ाि पडता ह ै और छात्रों का आत्मविश्वास बना रहता ह ै और िह और अविक लगनपिकभ पररश्रम करने को तत्पर हो सकता ह।ै ू 5.8 सतत एवं व्यापक मूलयाकं न हमारे दिे म ें अर्ी तक बहतायत से प्रचवलत िवै िक आकलन की प्रकवत के िल पाठयिम के विषयों ु ृ ् तक सीवमत र्थी तर्था िषर्भ र में एक िावषभक परीिा होती र्थी विससे वििावर्थभयों का िास्तविक आकलन नहीं हो पाता र्था। दवषत आकलन व्यिस्र्था वििा व्यिस्र्था को र्ी दवषत कर दते ी ह।ै अतः इसी कारण ू ू हमारे दिे म ें वििा अपने मल लक्ष्य से र्टक गयी ह ै और आि वििा का अवर्प्राय के िल वडग्री र्र ू प्राप्त करना रह गया ह,ै वडग्री र्ी र्ारी र्रकम प्रवतित के वबना वकसी कौिल तर्था ज्ञान को सीख े वबना अर्थाभत आि वडग्री सािन की िगह साध्य बन गयी है। गली-गली वििा सस्र्थान खल गए ह,ैं िो वबना ु ं बहत कछ वसखाए वडवग्रयों को बााँट रह ें ह।ै सस्र्थानों म ें मल्याकन के पिों म ें के िल िवै िक पिों पर ही ु ु ू ं ं विचार वकया िाता ह ै और इनका वकसी साििभ ावनक परीिा द्वारा मल्याकन वकया िाता ह ै विसकी अनेक ू ं कवमया ह।ै इन समस्या को ध्यान म ें रखते हए वििाविदों ने सतत तर्था व्यापक मल्याकन की िारणा ु ू ं ं ं का प्रवतपादन वकया ह ै । वििा एक सतत प्रविया ह ै अतः िब वििा का आकलन वकया िाए तो आकलन अिविक आिार के सार्थ सार्थ सतत होना चावहए। वकसी एक लम्बी अिवि के पश्चात सीख े गए ज्ञान का मल्याकन सटीक ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 189 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िानकारी नहीं द े पाता ह ै इसवलए अविगम का मल्याकन सतत होना चावहए। सतत आकलन से आिय ू ं वनयवमत रूप से सरचनात्मक आकलन के प्रयोग को बढ़ािा दने े से र्ी ह।ै पाठयिम के सर्ी आयामों का ् ं समय समय पर या वसखाते समय ही आकलन कर लेने से है। व्यापक आकलन से आिय पाठयचयाभ के ् सर्ी आयामों से ह ै न वक के िल पाठयिम को सम्मवलत करना ह,ै इसम ें िवै िक तर्था सहिवै िक ् गवतविवियों का र्ी आकलन वकया िाता ह।ै 5.9 र्ारत म शैरिक आकलन ें िश्वै ीकरण के कारण तेिी से बदलते र्ारत में वििा प्रणाली वदनों-वदन खद को नये रूप म ें गढ़ने म ें लगी ु हयी ह।ै पाठयिम पररितभन तर्था आकलन प्रणाली वििा प्राणाली का बहत ही सिदे निील मद्दा ह ै । ु ु ् ु ं र्ारतीय वििा अपनी गणित्ता को बनाये रखने तर्था िनता का अपने ऊपर विश्वास बनाये रखने के वलए ु र्ारतीय वििा सस्र्थानों का अतराभररीय तर्था प्रवतवष्ठत विदेिी वििा तर्था मल्याकन सस्र्थानों से सम्पकभ ू ं ं ं ं स्र्थावपत वकये हए ह।ै मानि ससािन विकास मत्रालय अपने अिीन वििण प्रणाली म ें विवर्न्न राज्यों ु ं ं तर्था कें ििावसत प्रदिे ों के िवै िक बोडों तर्था विश्वविद्यालयों म ें प्रयोग वकये िाने िाले मानको तर्था मानदडो के सार्थ समानता बनाये रखने के वलए अपनी रणनीवतयों को लाग कर रह ें ह ैं । व.र र्ी आकलन ू ं की प्रणाली लम्बे समय से वििाद का मद्दा ह।ै समस्या इस बात की ह ै की कै से र्ारतीय वििा तर्था ु उपावियों को िश्वै ीकारण के दौर म ें विश्व स्तर की बनायीं िाए। कै से उनके व्यािहाररक तर्था सैद्ावतक ं पिों का समन्ियन वकया िाए। र्ारत को विवििता िाला दिे कहा िाता ह ै िो विवििता र्ी हमारी वििा पद्वत म ें झलकती ह।ै हमारे यहााँ परपरागत आकलन प्रणाली म ें योगात्मक आकलन को महत्ि ं वदया िाता ह।ै के िल िवै िक पिों के आकलन को ही व्यवक्तत्ि विकास का पैमाना माना िाता ह ै विसमे िास्तविक िमता , समस्या-समािान तर्था रचनात्मक सोच को बढ़ािा नहीं वमल पाता है। इन्ही मद्दों ु ं को ध्यान म ें रखकर नीवतकारों ने िीरे-िीरे प्रार्थवमक , माध्यवमक तर्था उच्च वििा म ें ग्रेवडग प्रणाली तर्था ं सतत एि व्यापक आकलन का सत्रपात्र वकया ह।ै विसम े सी.बी.एस.ई बोडभ आई.सी.एस.सी. बोडभ तर्था ू ं अग्रणी विश्वविद्यालयों द्वारा बहत हद तक इन सिारों को अपनाया गया ह ै वकन्त आि र्ी र्ारत के ु ु ु अनेक बोडों तर्था विश्वविद्यालयों द्वारा परानी आकलन पद्वत को ही अपनाया िा रहा ह।ै ु 5.10 कु छ पाश्चात्य अथवा रवकरसत दशों की आकलन
प्रणाली के वास्तरवक े अनुर्व सयक्त राज्य अमरे रका म ें उन्नीसिीं िताब्दी के अवतम दौर म ें ग्रेड प्रणाली को प्रारर् वकया गया। िहा पर ु ं ं ं ं यह हाईस्कल ि कालेि स्तर पर िीरे िीरे अन्य आकलन प्रणाली के प्रारूपों को प्रवतस्र्थावपत करता गया ू िबवक अमरे रका म ें ग्रेवडग प्रणाली का.ी मानकीकत र्थी व.र र्ी इस प्रणाली पर का.ी बहस हयी और ु ृ ं ग्रेवडग प्रणाली क
ो बढ़ािा वमला। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 190 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वकसी र्ी दिे की वििा पद्वत उस दिे के विकवसत तर्था अल्पविकवसत होने का र्ी पररचायक होता ह।ै यह बात स्ियवसद् ह ै की पाश्चात्य अर्थिा यरोपीय विकवसत दिे ों की वििा प्रणाली का.ी विकवसत ह।ै ू ं विस दिे की सामाविक, आवर्थभक,रािनीवतक, तकनीकी दिायें अच्छी ह ैं िहा पर वििा और उसकी ं आकलन प्रणाली म ें र्ी सरचनात्मक पररितभन हए ह।ैं ु ं ं स्िेन- की आकलन प्रणाली म ें ग्रेड ररटेंिन एक िवै िक अभ्यास ह ै विसम े पाया गया की १६ िष भ की आय तक एक वतहाई विद्यार्थी िरूर वकसी न वकसी किा को दोहराते अर्थाभत .े ल होत े ह।ैं कछ अध्ययनों ु ु से यह सामने आया ह ै की इस प्रयास के कछ सकारात्मक आयाम इनकी नकारात्मक आयामों के तले दब ु गया ह।ै यरोधियन यधनयन- लगर्ग सर्ी दिे ों म ें आतररक तर्था बाह्य परीिा प्रणाली ह ै विसम े से कई दिे ों द्वारा ू ू ं प्रायः बाह्य परीिा को महत्ि वदया िाता ह ै और उसके प्रदिनभ को साििभ वनक वकया िाता है। िवै िक आकलन का विस्तार और िेत्र म ें एक दिे से दसरे दिे ों में अतर होता ह ै लेवकन परे यरोप र्र म ें बाह्य ू ू ं ू परीिा के वियान्ियन म ें का.ी समानता ह ै विसम े तीन चरणों म ें आकलन प्रविया को अिाम वदया िाता ं ह।ै प्रर्थम तौर पर प्रारवम्र्क विश्लेषण, वद्वतीय तौर पर स्र्थान पर पहचाँ और अत म ें ररपोवटांग की िाती ह।ै ु ं इसम ें इग्लैंड, डेनमाकभ , हालैंड, स्िीडन, आयरलैंड आवद प्रमख ह।ैं सािभिावनक बाह्य परीिा.ल के ु ं आिार पर उपचाररक वियाए की िाती ह।ैं 2व देिों म ें आतररक मल्याकन को अवनिायभ बनाया गया ह ै ू ं ं ं िो उनको स्िय के वििण सस्र्थानों को आकवलत करने के वलए प्रदान वकये िाते ह।ैं बहत से दिे ु ं ं आतररक मल्याकन का प्रयोग बाह्य मल्याकन को प्रयोग करने के वलए वदया िाता ह।ै ू ू ं ं ं 5.11 परंपरागत तथा प्ररतयोगी आकलन की पहचान परपरागत आकलन पद्वत्त से आिय ितभमान म ें अविकाि बोडभ तर्था विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाये गए ं ं सत्रात परीिा अर्थाभत योगात्मक summative आकलन से ह,ै विसम े परे सत्र के अध्ययन-अध्यापन के ू ं बाद परीिा ली िाती ह,ै विससे एक परीिा का दबाि छात्रों, वििकों, अवर्र्ािकों पर सम्पण भ िष भ रहता ू ह।ै सामान्यतया वकसी र्ी विषय या प्रश्न पत्र को िष भ र्र पढ़ने के बाद तीन िटे की अिवि म ें वनबिात्मक ं ं तर्था अन्य बहविकल्पीय प्रकवत के प्रश्न पछे िाते ह ैं विसके आिार पर बाह्य मल्याकनकताभ द्वारा अक ु ृ ू ू ं ं ं ं प्रदान वकय े िाते ह।ै इस मल्याकन पद्वत द्वारा वकसी अविगमकताभ का मल्याकन इन्ही परीिा म ें प्राप्त ू ू ं ं अकों के आिार पर होता ह,ै िबवक इस मल्याकन प्रणाली के गर्ीर दोष ह।ै इसम ें दो तरह की व्यिस्र्थाए ू ं ं ं ं दखे ी िाती ह।ै इसम ें सबसे बडी बात यह ह ै छात्र िष भ र्र न पढ़ कर परीिा के कछ वदन पि भ प्रश्नों के उत्तरों ु ू को रट लेते ह ै विससे वििा अपने मल उद्दश्े य से र्टक िाती ह।ै कछ बािारू परीिा सामग्री, क्लासनोट, ू ु सीररि , विवर्न्न विश्वविद्यालयों तर्था बोडों के वलए पतली-पतली सी गाइडे प्रकावित होती ह,ै िो परीिवर्थभयों को के िल एक या दो वदन ही पढ़के परीिा दते ें ह ै और परीिा र्ी उत्तीण भ कर लेतें ह,ैं िहीं दसरी और िो लोग होते ह ै िो िष भ र्र खब महे नत से अध्ययन करके परीिा दते े ह,ै और प्रवतयोवगतात्मक ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 191 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 माहौल पैदा करते ह।ै इस प्रणाली म ें प्िाईट बेस्ड अर्थाभत दिमलि के वबद के आिार पर छात्रों को परखा ं ु ं िाता ह ै यवद वकसी छात्र को 66.2 प्रवतित अक प्राप्त हए ह ै और वकसी छात्र को 66.1 प्रवतित अक प्राप्त ु ं ं हए ह ै तो इस आिार एक छात्र से दसरे को श्रेष्ठ अर्थिा वनम्न कै से कहा िा सकता ह?ै हो सकता ह ै की ु ं ू यह मापन की त्रवट हो। अतः यह छात्रों की मानवसकता पर प्रवतकल प्रर्ाि डालती ह ै और छात्र अविक से ु ू अविक अक अवितभ करने के वलए (साम, दाम, दड, र्दे ) की नीवत र्ी अपना लेते ह ै विससे स्िस्र्थ ं ं प्रवतयोवगता का नहीं बवल्क नकारात्मक प्रवतयोवगता का वनमाभण
होता ह,ै विसका प्रर्ाि समाि के विवर्न्न िेत्रों म ें पडता ह।ै इस प्रकार की आकलन प्रणाली म ें कछ पि भ वनवश्चत परम्परागत मानकों के ु ू आिार पर छात्रों का चयन वकसी पाठयिम म ें वकया िाता ह।ै यवद उन मानकों म ें से वकसी एक र्ी प्रकार ् क
ी योग्यता नहीं पाई गयी तो छात्र का चयन उस पाठयिम अर्थिा सेिा म ें नहीं वकया िाता ह।ै इसका ् सबसे बडा उदाहरण उत्तर र्ारतीय वहदी र्ाषी राज्यों के अभ्यवर्थभयों का दिे की प्रवतवष्ठत पाठयिमों तर्था ् ं सेिा यर्था IIT,PMT, UPSC, CAT,CLAT, आवद परीिा म ें अग्रेिी र्ाषा की वनयोग्यता के ं ं ं कारण अयोग्य िोवषत कर वदए िातें ह।ै इस तरह ग्रामीण तर्था गरीब छात्रों का प्रचवलत आकलन प्रणाली के कारण चयन म ें का.ी कवठनाई होती ह।ै प्रायः समाि के उन्ही िगों का चयन होता ह ै िो उस वसस्टम का वहस्सा ह ै अर्थाभत विनके पररिार के लोग सरकारी सेिा म ें होते ह ै या वकसी पद या प्रवतष्ठाम ें होते ह ै विस करण उनके लोगो को वििा प्रणाली की का.ी निदीक से समझ होती ह,ै उन्ही के पररिार के सदस्यों को सरकारी सेिा तर्था उच्च वििा प्राप्त करन े का अिसर प्राप्त होता ह,ै विस कारण समाि म ें असमानता .ै लती ह ै और िगभ सिष भ का उदय होता ह।ै ं आि हमारे देि म ें प्रचवलत वििा व्यिस्र्था प्रमख रूप से अग्रेिों द्वारा स्र्थावपत प्रवतरूप पर आिाररत ह ै ु ं िो अनेक प्रयोगों की सािी बनी ह ै वकन्त आि र्ी मल रूप से परानी वििा से बहत हद तक वमलती ह ै ु ु ू ु विसका उद्दश्े य र्ारत म ें बाब का िग भ बनाना र्था। उच्च स्तर की वििा के वलए र्ारतीय लोग यरोपीय ू ू ं दिे ों को िाते र्थे विससे र्ारत की वििा को उवचत स्तर तर्था प्रवतष्ठा प्राप्त नहीं हो पाई। यहााँ पर बौवद्क स्तर का मापन की परपरा विकवसत हई। दिे की स्ितत्रता के बाद नीवत वनिारभ कों न े वििा प्रणाली पर ु ं ं व्यापक वचतन वकया और समय-समय पर वििा म ें व्यापक पररितभन र्ी वकये वकन्त आि र्ी दिे में ु ं अवििा, गरीबी, बेरोिगारी िागरूकता की कमी के कारण आि र्ी वििा प्राप्त करने का उद्दश्े य के िल रोिगार प्राप्त करने तक सीवमत हो गया ह ै क्योंवक अविकाि पाठयिमों म ें प्रििे तर्था सिे ा म ें चयन ् ं ं का आिार ये अक अर्थिा प्रवतित होते ह।ै अतः रोिगार की चाह में समाि का एक िग भ ऐसा र्ी ह ै िो ं वकसी र्ी तरह उच्च अक अवितभ करके नौकरी प्राप्त करना चाहता ह ै इस प्रकार आि वििा ज्ञान ं आिाररत न होकर परीिा आिाररत हो गयी ह।ै टाइम्स ऑफ़ इवडया के १४ अप्रैल २०११ म ें प्रकावित ं हडे लाइन र्थी
‘India has exam system, not education system’
विसमे तत्कालीन प्रिानमत्री श्री ं मनमोहन वसह के िज्ञै ावनक सलाहकार र्ारतरत्न वचतामवण नागश्वे र राि ने बताया की र्ारत म ें एक परीिा ं ं का स्िरुप तो ह ै परन्त एक वििा का स्िरुप नहीं ह।ै छात्रों को विविि प्रकार की परीिा के तनाि स े ु ं गज़रना पडता ह।ै विसम े फ़ाइनल परीिा ,प्रििे परीिा , योग्यता परीिा , चयन परीिा विससे छात्रों पर ु अनािश्यक बोझ पडता ह ै और प्रवतर्ाए र्टकती रहती ह ै परीिा का स्िरुप ि प्रकवत कछ पि भ ृ ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 192 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 वनिाभररत योग्यता के आिार पर आकलन वकया िाता ह ै विससे वकसी विविि योग्यता को परा न करने ू ं के कारण चयन नहीं वकया िाता ह।ै अतः आकलन की िो ितभमान प्रणाली ह ै उसम े योग्यता के आिार पर चयन करने के बिाए वकसी वनयोग्यता पर चयन नहीं करती ह ै अर्थाभत वकसी सेिा, वििा म ें चयन का आिार उस पद के अनरूप कायभ िमता, अवर्रुवच, अवर्िवत्त, कौिल आवद के आिार पर न करके ृ ु सामान्यतः उनके द्वारा प्राप्त िवै िक लवब्ियों, अकों, मरे रट आवद के आिार पर चयन वकया िाता ह।ै ं परपरागत आकलन से आिय प्रवतित प्रणाली से ह ै विसम े बाह्य परीिायें होती ह ै अर्थाभत परीिाये वकसी ं सम्बवित बोडभ या अन्य स्कलों अर्थिा विश्वविद्यालयों के वििको द्वारा , परीिाए समवे टि अर्थाभत ू ं ं योगात्मक होती ह।ै विसम े के िल वनबिात्मक स्िरुप के प्रश्नों की र्रमार होती ह।ै के िल पस्तकीय ज्ञान ु ं या सचना की परीिा ली िाती ह,ै इसे ही प्रायः परपरागत परीिा प्रणाली कहते ह।ैं ू ं 5.13 परंपरागत प्ररतयोगी आकलन के अवैधानीकारण करने की आवश्यकता परपरागत आकलन पद्वत के िल िवै िक पिों के सीवमत आयामों का ही मापन करता ह,ै प्रायः उसी को ं आकलन मान र्ी वलया िाता ह।ै िो िास्ति म ें व्यवक्त के व्यवक्तत्ि को समग्रता से नहीं दखे पता है। अनर्ि यह बताते ह ै की र्ारतीय पररििे म ें वकसी र्ी नौकरी के वलए वकसी अभ्यर्थी का चयन हो या ु वकसी उच्च वििा के पाठयिम के वलए विद्यावर्थभयों का चयन। के िल िवै िक मरे रट के आिार पर ् बहतायत वकये िाने की परपरा ह।ै दिे की प्रवतवष्ठत र्ारतीय प्रिासवनक सेिा IAS की र्ी परीिा आयोग ु ं द्वारा सचावलत की गयी परीिा के अकों के आिार पर चयन करती ह ै यवद वकसी परीिार्थी के अको की ं ं ं कट ऑफ़ मेररट से एक अक या एक से र्ी कम अक प्राप्त करने पर उसका चयन नहीं वकया िाता यह ं ं एक बडा प्रश्न ह ै की सयोगिि यवद वकसी अभ्यर्थी को एक अक कम वमलता ह ै तो क्या िह अभ्यर्थी ं ं अयोग्य ह,ै िास्ति म ें र्ारत म ें यही चयन का यही आिार ह।ै इसम ें से कछ विविि विषयों या माध्यम का ु बोलबाला ह ै प्रायः प्रवतवष्ठत राररीय स्तर पर होने िाली परीिा म ें अग्रेिी र्ाषा का ज्ञान तर्था माध्यम ं ं बडा मद्दा ह ै आये वदन अभ्यर्थी िरना प्रदिनभ करते निर आते ह।ै एक मद्दा और ह ै िो की र्ारत एक ु ु समाििादी व्यिस्र्था िाला रारर ह।ै इसकी अविकाि आबादी ग्रामीण ह ै और विसम े गााँिों म ें वििा की ं गणित्ता बहत ही दयनीय रही ह।ै खास करके नगरीकरण का मख्य कारण वििा की गणित्ता रही ह।ै इस ु ु ु ु समाि म ें िो र्ी सत्तानसीन या उच्च पदों पर आसीन ह ै उनकी िर के बच्चों की वििा का अच्छा बदोबस्त रहता ह ै िो प्रायः िहरी कान्िटें या अच्छे के न्िीय विद्यालयों म ें पढ़ते ह ै विनकी गणित्ता ु ं ग्रामीण या समान्तर वििा से लाखों गना बेहतर होती ह।ै अतः इस वििा व्यिस्र्था के द्वतै के कारण ु ग्रामीण अर्थिा सामाविक-आवर्थभक रूप से वपछडे िवचत िगों के लोग िासन सत्ता या रारर की प्रवतवष्ठत ं सेिा में सहर्ागी नहीं बन पाते ह ै और यह प्रर्ाि सचयी प्रिवत का होता ह।ै इस कारण समाि म ें सत्ता ृ ं ं के के न्िीयकरण िावत और र्ाषायी माध्यम के कारण बढ़ता ह ै अर्थाभत िो लोग िनी, विवित, िहरी तर्था उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 193 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अग्रेिी र्ाषा के िानकार ह ै िो का.ी आसानी से ऊाँ चे पदों पर आसीन हो िाते ह।ै विससे समाि में ं विषमता बढती ह ै गरीब और गरीब तर्था अमीर और अमीर होता चला िाता ह।ै 5.14 सारांश आकलन प्रणाली वकसी र्ी िैविक व्यिस्र्था म ें महत्िपण भ स्र्थान रखती ह।ै इसके द्वारा वकसी र्ी विद्यार्थी ू के ज्ञान तर्था अविगम आवद पिों का वनिाभरण वकया िाता ह ै तर्था वकसी सेिा म ें चयन के वलए योग्य व्यवक्त को र्ती र्ी वकया िाता ह।ै आकलन िब्द की व्यत्पवत्त लैवटन र्ाषा के िब्द “ASSIDARE “ से हयी ह ै विसका िावब्दक ु ु अर्थभ ह ै “साथ म ें बैिना” आकलन करने से तात्पयभ अविगमकताभ के सार्थ बैठना। आकलन का समानार्थी िब्द कतना ह,ै विससे वकसी ऐसी विया का बोि होता िो वकसी विषय की ू िस्तवस्र्थवत का अदाज़ा लगाने से ह ै विसम े आके गए विषय की लगर्ग सर्ी वििेषताए सम्मवलत हों ु ं ं ं तर्था उस अदाि े अर्थिा कते गए विषय के वलए कोई वनणयभ वलया िा सके । ू ं वकन्त वििा के िेत्र म ें आकलन िह आिार प्रदत्त Data ह ै विसे प्रायः वििकों तर्था छात्रों अर्थिा वकसी ु चयन अवर्करण द्वारा सकवलत वकया िाता ह,ै विसका प्रमख उद्दश्े य वििण –अविगम की प्रविया को ु ं उन्नत करना अर्थिा वकसी कायभ के वलए उपयक्त व्यवक्त का चयन करना, इस प्रकार वििक छात्रों की ु अविगम वस्र्थवत का आकलन करते ह ैं एि अपनी वििण की प्रर्ािकाररता का पता लगाते ह,ैं विससे ं वििण अविगम के स्तर को ऊाँ चा उठाया िा सके । आकलन का प्रयोग बहतायत रूप म ें पाठयिमों म ें ु ् प्रििे लेने, विवर्न्न पदों पर वनयवक्त के वलए व्यापक रूप से प्रयक्त वकया िाता ह।ै ु ु अविगम के आकलन से अवर्प्राय प्रायः योगात्मक आकलन से होता ह ै विसम े छात्रों की वििा की वकसी इकाई को पण भ मानकर उसकी उपलवब्ि का आकलन वकया िाता ह।ैं इसम ें सामान्यतः यह पता ू करने का प्रयत्न वकया िाता ह ै की छात्रों ने पाठयिम को वकतना सीखा ह ै इसकी प्रकवत प्रायः साििभ वनक ृ ् होती ह ै विसकी िानकारी अवर्र्ािक, प्रिासक तर्था वनयोक्ता को वमलती ह।ै विवर्न्न बोडों तर्था ं विश्वविद्यालयों की परीिायें ऐसी ही परीिा के माध्यम से वडग्री अर्थिा प्रमाण-पत्र िारी करती ह।ै यह ं सबसे प्रचवलत तर्था प्राचीन आकलन पद्वत ह।ै वििा म ें ग्रेवडग प्रणाली वकसी पाठयिम म ें उपलवब्ि के विवर्न्न स्तरों के मानकीकत मापन को लाग ृ ् ू ं करने की प्रविया ह।ै ये (ए., बी., सी., डी., ई., ए.) आवद अिरों म ें व्यक्त की िाती ह ै विसे सात वबद या ं ु नौ वबद आवद आिारों पर व्यक्त वकया िाता ह।ै कछ देिों म ें किा के सर्ी विषयों के ग्रेड अकन के ु ं ं ं ु वलए ग्रेड वबद औसत (िी.पी.ए.) वनकलते ह।ै ं ु सयक्त राज्य अमरे रका म ें उन्नीसिीं िताब्दी के अवतम दौर म ें ग्रेड
प्रणाली को प्रारर् वकया गया। िहा पर ु ं ं ं ं यह हाईस्कल ि कालेि स्तर पर िीरे िीरे अन्य आकलन प्रणाली के प्रारूपों को प्रवतस्र्थावपत करता गया ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 194 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 िबवक अमरे रका म ें ग्रेवडग प्रणाली का.ी मानकीकत र्थी व.र र्ी इस प्रणाली पर का.ी बहस हयी और ु ृ ं ग्रेवडग प्रणाली क
ो बढ़ािा वमला। ं आि हमारे देि म ें प्रचवलत वििा व्यिस्र्था प्रमख रूप से अग्रेिों द्वारा स्र्थावपत प्रवतरूप पर आिाररत ह ै ु ं िो अनेक प्रयोगों की सािी बनी ह ै वकन्त आि र्ी मल रूप से परानी वििा से बहत हद तक वमलती ह ै ु ु ू ु विसका उद्दश्े य र्ारत म ें बाब का िग भ बनाना र्था। उच्च स्तर की वििा के वलए र्ारतीय लोग यरोपीय ू ू ं दिे ों को िाते र्थे विससे र्ारत की वििा को उवचत स्तर तर्था प्रवतष्ठा प्राप्त नहीं हो पाई। यहााँ पर बौवद्क स्तर का मापन की परपरा विकवसत हई। दिे की स्ितत्रता के बाद नीवत वनिारभ कों न े वििा प्रणाली पर ु ं ं व्यापक वचतन वकया और समय-समय पर वििा म ें व्यापक पररितभन र्ी वकये वकन्त आि र्ी दिे में ु ं अवििा, गरीबी, बेरोिगारी िागरूकता की कमी के कारण आि र्ी वििा प्राप्त करने का उद्दश्े य के िल रोिगार प्राप्त करने तक सीवमत हो गया ह ै क्योंवक अविकाि पाठयिमों म ें प्रििे तर्था सिे ा म ें चयन ् ं ं का आिार ये अक अर्थिा प्रवतित होते ह।ै ं परपरागत आकलन पद्वत के िल िवै िक पिों के सीवमत आयामों का ही मापन करता ह,ै प्रायः ं उसी को आकलन मान र्ी वलया िाता ह।ै 5.15 सन्दर् भ ग्रन्थ सची ू 1. Choi, Á., Gil, M., & Mediavilla, M. a. (2014). Who and why: The determinants of grade retention in Spain. Barcelona, Spain: Universitat de Barcelona. 2. Eurydice Network. (2015). Assuring Quality in Education: Policies and Approches to School Evaluation in Europe. Brussels: European Commission. 3. How grading system benefit students. (2016, february 29). Times of India. 4. Pellegrino, J. W. (2004). THE EVOLUTION OF EDUCATIONAL ASSESSMENT: CONSIDERING THE PAST AND IMAGINING THE FUTURE. Princeton, NewJersy 08541-0001: Educational Testing Service Policy Evaluation and Research Center. 5. आस्र्थाना, िी.(2016.) अदिगम के दलए आकलन आगरा: अग्रिाल पवब्लके िन 6. http://www.classroom.synonym.com/history-grading-system-5103640.html 7. http://www.icbse.com/grading-system/advantages उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 195 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 खण्ड 4 Block 4 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 196 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 4 - तशिकों की उच्च स्िायत्तिा के आलोक में सििागी आकलन एिं सामुदातयक तनगरानी से संबष्न्िि के स अध्ययनों का ससिािलोकन 4.1 प्रस्तािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 सहर्ागी आकलन और के स अध्ययन 4.3.1 सहर्ागी आकलन 4.3.2 के स अध्ययन 4.4 सहर्ागी आकलन और सामदावयक वनगरानी ु 4.4.1 सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की अििारणा ु 4.4.2 आदि भ सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की वििेषताएाँ ु 4.4.3 वििकों को उच्च स्िायत्तता के सार्थ सहर्ागी आकलन में सामदावयक ु वनगरानी 4.5 साराि ं 4.6 िब्दािली 4.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 4.8 सदर्भ ं 4.9 वनबिात्मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्तावना आकलन िवै िक प्रविया का महत्िपणभ र्ाग ह।ै आकलन वििा में एक महत्िपणभ प्रविया ह।ै यह वििा ू ू की स.लता की िाच करने की विवि ह|ै यह न के िल यह वनिाभररत करता ह ै वक विद्यावर्थभयों ने समय पर ं एक वििषे वबद तक वकतना सीखा ह?ै बवल्क यह र्ी वक ि े चल रह े वििण और सीखन े की प्रविया में ं ु वकतना सीख रह े ह?ैं सीखन े के वलए आकलन एक ऐसी प्रविया
ह ै िो विद्यालयों में सबसे महत्िपणभ होती ू ह ै । विद्यालयों म ें दृश्यमान आकलन, योगात्मक आकलन ह।ै योगात्मक आकलन द्वारा इकाई के अत में ं विद्यार्थी ने क्या सीखा? इसका आकलन करते ह ैं तर्था इसके द्वारा विद्यावर्थभयों को प्रोत्सावहत करते ह।ैं योगात्मक आकलन द्वारा यह वनवश्चत वकया िाता ह ै वक विद्यार्थी वकसी विषय में सवटभव.के ट प्राप्त करन
े उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 197 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 हते आिश्यक मानक को परा कर रहा ह ै अर्थिा नहीं। इसकी सहायता से विद्यार्थी वकसी वनवश्चत ु ू व्यिसायों में प्रििे प्राप्त करते ह।ैं आकलन द्वारा विद्यावर्थभयों का चयन कर आगे की वििा प्राप्त करने हते ु वकया िाता ह।ैं वििा मत्रालय तर्था विर्ाग योगात्मक आकलन द्वारा वित्तपोवषत स्कलों द्वारा दी िान े ू ं िाली गणित्तापणभ वििा की िाच करता ह ै तर्था गणित्तापण भ वििा दने े हते मानक र्ी तय करता ह।ै ु ू ु ू ु ं अतः यह स्कल गणित्तापणभ वििा दने े हते उत्तरदायी होता ह ै । इसी िम म ें आगे बढ़ते हए अतराभररीय ु ू ु ू ु ं योगात्मक आकलन िसै े वक ॰ई॰सी॰डी ॰द्वारा सचावलत अतराभररीय विद्यार्थी आकलन ं ं कायभिम(PISA) द्वारा विश्वर्र के कई दिे ों के विद्यावर्थभयों की अलग-अलग विषयों िसै े र्ाषा, गवणत, विज्ञान आवद के विषय म ें विद्यावर्थभयों की ज्ञान, समझ तर्था सझ बझ का मल्याकन कर सकते
ह।ैं इस प्रकार ू ु ू ं हमें अलग-अलग दिे ों की वििा व्यिस्र्था का तलनात्मक अध्ययन करने का अिसर प्राप्त होता ह।ैं ु आकलन एक प्रकार का रचनात्मक कायभ ह ै ,किागत पररवस्र्थवतयों म ें प्रारवर्क आकलन विद्यार्थी की ं प्रगवत तर्था उसके सीखन े की आिश्यकता के विषय से अिगत कराता ह,ै विसके द्वारा वििक वििण विवि म ें समायोिन करके विद्यार्थ
ी की सीखन े की आिश्यकता को परा कर सकता ह ै । वििक ू रचनात्मक आकलन विवि तर्था तकनीकों द्वारा विद्यावर्थभयों की विवर्न्न आिश्यकता परा करने का ू ं प्रयास करता ह ै । वििक, वििण म ें विर्दे ीकरण एि अनकलन द्वारा विद्यावर्थभयों की उपलवब्ि का स्तर ु ू ं ऊचा कर सकता ह ै तर्था विद्यार्थी पररणामों की एक बडी साम्यिस्र्था प्राप्त कर सकता ह।ै वकत इस काय भ ु ं ं में बहत सी बािाए ाँ आती ह ै िसै े किागत रचनात्मक मल्याकन एि उच्च दृश्य विद्यालय आिाररत ु ू ं ं योगात्मक मल्याकन के मध्य तनाि की वस्र्थवत िो वक विद्यार्थी की उपलवब्ि हते उत्तरदायी होता ह ै तर्था ू ु ं किागत एि विद्यालय पररवस्र्थवतयों म ें र्ी व्यिवस्र्थत आकलन एि मल्याकन प्रणाली के मध्य सबिों की ू ं ं ं ं ं कमी र्ी इसी का एक उदाहरण ह ै । सिार के वलए िेत्रों की पहचान करने और वििा प्रणाली में मल्याकन ु ू ं के प्रर्ािी और रचनात्मक सस्कवतयों को बढ़ािा दने े के वलए, स्कल और नीवत स्तरों पर प्रारवम्र्क ृ ू ं मल्याकन के वसद्ातों को लाग वकया िा सकता ह।ै वििा प्रणावलयों में प्रारवम्र्क मल्याकन का अविक ू ू ू ं ं ं ससगत उपयोग वहतिारकों द्वारा किा में अपने व्यापक अभ्यास के वलए बहत से बािा को ु ु ं ं ं सबोवित कर सकता ह।ै यह वसहािलोकन दिाभता ह ै वक कै से रचनात्मक मल्याकन िीिनर्र सीखने के ू ं ं ं लक्ष्यों को बढ़ािा दते ा ह,ै विसमें छात्र उपलवब्ि के उच्च स्तर, छात्र पररणामों की साम्यता और कौिल सीखने के वलए बेहतर तरीकों से पररवचत कराता ह।ै इस अध्याय में प्रारवर्क मल्याकन के व्यापक ू ं ं अभ्यास म ें बािा और तरीकों के विषय म ें चचा भ की गयी ह ै विसमें उन सर्ी बािा के विषय म ें ं ं सबोवित वकया िा रहा ह,ै और अध्ययन के िेत्र और कायभप्रणाली की रूपरेखा के विषय में प्रकाि डाला ं िा रहा ह ै । 4.2 उद्दश्े य इस इकाई म ें आपको वििकों को उच्च स्िायत्तता के सार्थ सहर्ावगता मल्याकन और सामदावयक ू ु ं वनगरानी के आिार पर वकए गए विषय में अध्ययन का एक अिलोकन प्रस्तत वकया गया ह।ै यहा ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 198 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सहर्ावगता मल्याकन की बवनयादी अििारणा , वििकों और उसके विवर्न्न पहल को उच्च ू ु ु ं ं ं स्िायत्तता के सार्थ समदाय की वनगरानी के बारे म ें चचा भ करने का प्रयास वकया गया ह।ै ु इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप वनम्न म ें सिम हो सकें ग े - 1. सहर्ागी आकलन के विषय में बता सकें गे । 2. के स अध्ययन तर्था इसके सोपानों की वििचे ना कर सकें ग े । 3. सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की अििारणा को स्पि कर सकें ग े । ु 4. आदिभ सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की वििषे ता को बता सकें गे । ु ं 5. सहर्ागी आकलन में सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की महत्ता की वििचे ना कर सकें गे । ु 6. वििकों को उच्च स्िायत्तता के सार्थ सहर्ावगता मल्याकन और समदाय की वनगरानी के महत्ि ू ु ं की वििचे ना कर सकें ग े । 4.3 सहर्ागी आकलन और के स अध्ययन 1960 के दिक के बाद से, विवर्न्न प्रकार के नीवतगत स्र्थानों और िेत्रों में उपयोग के वलए कई सहर्ावगता मल्याकन उपकरण और विविया विकवसत की गई ह।ैं सहर्ागी उपकरण के विषय में कई मत ू ं ं ह ैं िसै ा वक समझाया गया ह ै वक, ये र्ागीदारी के लक्ष्यों के विषय में चल रह े द्वद के वलए बडे वहस्से से ं सबवित ह।ैं इसवलए, सहर्ागी उपकरणों की कोई साझा आविकाररक पररर्ाषा नहीं ह।ै व्यािहाररक रूप ं ं से, यह सहर्ागी विवि
3%
3%
1%
1%
0.8%
0.6%
0.5%
0.4%
0.3%
0.1%
0.1%
0.1%
यों िो की वियाविवि से सबवन्ित होता ह ै तर्था सहर्ागी उपकरण िो की इन ं वियाविवि के सोपनो से सबवन्ित होता ह,ै के मध्य म ें अतर करता ह ै । ं ं एक के स स्टडी एक व्यवक्त, समह या पररवस्र्थवत के बारे में एक ररपोटभ ह ै विसका अध्ययन वकया गया ह।ै ू उदाहरण के वलए यवद के स स्टडी, एक समह के बारे में ह,ै तो यह समह के व्यिहार को परी तरह बताता ू ू ू ह,ै समह में प्रत्येक
व्यवक्त का व्यिहार नहीं। ू यहााँ हम सहर्ागी आकलन पर आिाररत के स स्टडी के विषय म ें पढ़ेंग े । 4.3.1 सहिागी आकिन सहर्ागी आकलन के विषय में िानने से पि भ यह आिश्यक ह ै वक हम सहर्ागी अविगम के विषय में ू िाने, इसके अतगभत वििार्थी समदाय द्वारा सचना तर्था सप्रत्यय का अन्िषे ण करना सवम्मवलत ह ै । ु ू ं ं ं सहर्ागी अविगम का िातािरण वििार्थी को किागत या गरै किागत दोनों स्र्थानों पर वमल सकता ह ै तर्था यह वििार्थी को सामाविक समदाय का एक वहस्सा बनने का अिसर प्रदान करता ह ै िहा िह अपने ु ं अमतभ सप्रत्ययों का सकारात्मक सामाविक सदर् भ म ें अन्िषे ण कर उसे वनिी प्रासवगकता रखन े िाल े ू ं ं ं वस्र्थवतयों में आसानी से लाग कर सकें । ू सहर्ागी आकलन वसद्ान्त समान्यतः चार प्रकार के आकलन वसद्ातों के रूपरेखा पर आिाररत ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 199 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 1. सन्दर्ों को अििारणा और कौिल को समझने द:ें अर्थाभत सास्कवतक प्रिचन मल्य वनिाभरण ृ ू ं ं अििारणा और कौिल के बारे में विचार करके इस ज्ञान का अर्थभ वकस सदर्भ म ें उपयोग ं ं वकया िाता ह ै इसे और परररकत रूप में तेिी से बढ़ािा दने ा चावहए। ृ 2. कलाकवतयों के बिाय वचतन का आकलन करना: अर्थाभत विद्यावर्थभयों का मल्याकन सीिे उनके ृ ू ं ं पररयोिना में बनाए गए कलाकवतयों के आिार पर न कर के उनकी सहर्ावगता को सरवित ृ ु करना ह ै अर्थाभत उनके वचतन की गहनता को समझना ह।ै ं 3. डाउनप्ले क्लासरूम आकलन : अर्थाभत सर्ी विद्यावर्थभयों की प्रवतर्ावगता सवनवश्चत करना ह ै यह ु औपचाररक (अर्थाभत, माग पर) आकलन प्रार्थवमक रूप से पाठयिम के मल्याकन और सिार ् ् ू ु ं ं (छात्रों के ज्ञान के बिाय) के वलए प्रयक्त होता ह ै । ु 4. उपलवब्ि परीिणों को अलग करें अर्थाभत िाह्य परीिणों का उपयोग कर पाठयिम को सरिा ् ु प्रदान करना विससे मख्य रूप से पारपररक आकादवमक ज्ञान पर पाठयिम आकलन ् ु ं पररवस्र्थवतकी का क्या प्रर्ाि पडता ह ै इसका आकलन करते ह ै । 4.3.2 के स अध्ययन सामाविक िोि म ें के स अध्ययन विवि का उपयोग सबसे पहले फ्े वडक ली प्ल े द्वारा 1840 में पाररिाररक बिट के अध्ययन में वकया गया। के स अध्ययन विवि एक ऐसी विवि ह ै विसमें वकसी सामाविक इकाई के रूप म ें वकसी एक व्यवक्त, एक पररिार, एक सस्र्था, एक समदाय, िटना, नीवत, ु ं सगठन आवद को वलया िा सकता ह ै । अर्थाभत के स अध्ययन विवि म ें िो के स होता ह ै उससे तात्पयभ ऐसी ं प्रविया से होता ह ै विसका एक आबद् सदर्भ होता ह ै अर्थाभत इसके अतगतभ आने िाली िटना या इकाई ं ं की अपनी वनवश्चत सीमा होती ह ै । पी॰ िी ॰ यग के अनसार के स अध्ययन एक ऐसी विवि ह ै विसके द्वारा सामाविक इकाई की िीिनी का ु ं अन्िषे ण तर्था विश्लेषण वकया िा सकता ह।ै गडे तर्था हाट के अनसार यह एक ऐसी विवि ह ै विसके सहारे वकसी र्ी सामाविक इकाई का अध्ययन ु ु पणरूभ पेण वकया िा सकता ह।ै ू के स अध्ययन विवि के स्िरूप के विषय म ें महत्िपणभ तथ्य वनम्नवलवखत ह:ैं ू 1. अध्ययन विवि म ें वकसी सामाविक इकाई के विकासात्मक िटना का अध्ययन वकया िाता ह ै ं अर्थाभत उसके विकास के ऐवतहावसक पष्ठर्वम म ें अध्ययन वकया िाता ह।ै ृ ू 2. सामाविक इकाई के रूप म ें एक व्यवक्त वििेष अध्ययन वकया िा सकता ह ै या अन्य सामाविक समह िसै े पररिार या सची सस्कवत का र्ी अध्ययन वकया िा सकता ह।ै ृ ू ू ं 3. के स अध्ययन विवि की एक महत्िपणभ वििषे ता यह ह ै वक इसमें सामाविक इकाई के एकात्मक ू स्िरूप को बनाए रखा िाता ह ै अर्थाभत अध्ययन वकए िाने िाल े सामाविक इकाई को सपण भ रूप ू ं से अध्ययन करने की कोविि की िाती ह।ै उदाहरण-यवद वकसी पररिार को एक सामाविक इकाई के रुप म ें अध्ययन करने का वनश्चय वकया गया ह ै तो उस पररिार की ऐवतहावसक पष्ठर्वम ृ ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 200 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ब्यौरा तैयार करके पररिार को विवर्न्न उप इकाइयों म ें न बााँट कर उसका सपणभ रुप से अध्ययन ू ं करन े की कोविि की िाएगी। 4. के स अध्ययन विवि म ें अध्ययन के वलए चने गए सामाविक इकाई का क्या? तर्था क्यों? दोनों ु पिों का अध्ययन वकया िाता ह।ै अर्थाभत इस विवि में िोिकताभ सामाविक इकाई के िवटल व्यिहारपरक पैटनभ की व्याख्या तो करता ही ह ै सार्थ ही सार्थ उन कारकों का र्ी पता लगाता ह ै विनसे इस तरह के िवटल व्यिहारपरक पैटनभ की उत्पवत्त हई होती ह।ै सिेप म ें सामाविक इकाई ु ं का िणनभ तर्था व्याख्या दोनों ही होता ह।ै के स अध्ययन की प्रमख वििेषताए ाँ ु 1. के स अध्ययन विवि की सीमा वनवश्चत होती ह।ै 2. के स अध्ययन म ें के स की सपणतभ ा, एकता तर्था अखडता को बचा कर रखन े का प्रयास वकया ू ं ं िाता ह।ै 3. के स अध्ययन में आकडों के बहत सारे स्रोतों को तर्था बहत सारे आकडे सग्रहण विवि का ु ु ं ं ं उपयोग वकया िाता ह।ै 4. के स अध्ययन विवि द्वारा अध्ययन के वलए चयन वकये गय े के स का गहन रूप से अध्ययन सर्ि ं ह ै क्योंवक इसमें एक समय में वकसी एक के स का ही अध्ययन वकया िा सकता ह।ै व्यािहाररक रूप से के स अध्ययन के विषय म ें िानकारी प्राप्त करने हते ितभमान म ें वििा ु व्यिस्र्था से सबवन्ित समस्या के हल ढाँढन े के प्रयास में इसकी छवि दखे ी िा सकती ह।ै िसै े ू ं ं वििािास्त्र पढ़ाये िाने िाल े कई कालेिों म ें िोि के स
अध्ययन कराया िा रहा ह ै । यह अध्ययन एक स्नातक पररयोिना, र्थीवसस या वनबि के रूप म ें होती ह,ै िोिकताभ प्रकािन के वलए इन अध्ययनों को ं प्रस्तत करते ह।ैं हालावक, कछ कालेि इन अध्ययनों का उपयोग वियात्मक अनसिान के रूप म
ें करते ह ै ु ु ु ं ं िो की स्नातक स्तर के कायभिम के वििकों को किागत पररवस्र्थवत में अत्यविक वचतनिील तर्था ं समस्या समािान करने के वलए प्रोत्सावहत करता ह ै । वियात्मक अनसिान िह अनसिान ह ै िो वक ु ु ं ं वििक के विद्यालय या किा में प्रिावसत करते ह।ै इस प्रकार का िोि िाह्य कारको से प्रर्ािी न होकर (विश्वविद्यालयी िोिकताभ आवद) वििक के व्यवक्तगत आिश्यकता पर अविक आिाररत होता ह ै । वििािास्त्री और वििकों के वलए, यह बहत मल्यिान तर्था कई कारणों के वलए सिक्त बना हआ ह।ै ु ु ू (नार्थ, वसक्का, और कोहने , 2005) के स अध्ययन का वििा म ें उपयोग 1. प्रौद्योवगकी और दरस्र्थ वििा किा का एक वहस्सा बनने के रूप में, यह लगर्ग तय ह ै वक ं ू इटरैवक्टि के स स्टडी का इस्तेमाल बढ़ेगा । ं 2. प्रार्थवमक, माध्यवमक, तर्था हाईस्कल किा में उपयोग करने िाले वििकों के वलए कछ ू ु ं विषयों का अध्ययन मौिद ह ै । यह एक ऐसा िेत्र ह ै िो विद्यालय के छात्रों को सीखन े के वलए ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 201 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रोमाचक अिसर प्रदान करने से रवहत ह।ै इसके द्वारा विद्यालयी उम्र के बच्चों के वलए कई विषय ं विकवसत वकए िा सकते ह।ैं 3. वििा में अध्ययन करने िाले लोग हमिे ा उन पररवस्र्थवतयों में सीखन े की आिश्यकता करते ह ैं िो चचा भ करने और प्रवतवबवबत करने के वलए एक सरवित िातािरण प्रदान करते ह-ैं के स ु ं अध्ययन ऐसे प्रस्तािों को प्रस्तत करता ह।ै ु 4. िो लोग वििा म ें िोि करते ह,ैं उन्ह ें के िल सख्या की तलना में ही नही बवल्क बहद स्तर ृ ु ं ं पर अध्ययन करने की आिश्यकता होगी- यह वििरण रािनीवतक, सामाविक,मल्यों तर्था नैवतक ू मद्दों के सार्थ िावमल ह।ै इन्हीं कारणों से, वििक वििा में के स स्टडी और के स-आिाररत ु अध्यापन का उपयोग सिीि रखने के सार्थ-सार्थ और कई िषों के वलए अच्छी तरह से होने दने ा चावहए और सर्ी स्तरों पर प्रोत्सावहत वकया िाना चावहए। के स उिाहरण : प्रर्म एक सदस्य अपने वटवन्नटस को तलािना चाहता र्था िो बहत गर्ीर र्था और हल्के अिसाद का कारण ु ं र्था। प्रवतर्ागी ध्िवन का िणभन करने में सिम र्था (िो वक वकसी न वकसी समि के और चट्टानों पर ु दिटभ ना की लहरों का र्था) वक ि े अपने र्ीतर के कान में सनाए और समह म ें उनके वलए उपलब्ि ु ू ं ु ध्िवनयों का अनिाद करते ह।ैं इसके बाद र्ागीदार ने ध्िवन के सार्थ एक दृश्य सहयोग वकया (हमें उनके ु सार्थ छवि रखने के वलए कहा) और ध्िवन िो ि े सन रह े र्थे, उनके बाहरी अभ्यािदे न पर वनयत्रण रखने के ु ं वलए आग े बढ़े- हमन े प्रवतवनवि समि के विवर्न्न रूपों और दिटभ नाग्रस्त ध्िवनयों को गाया िसै ा वक, ु ु सहर्ागी द्वारा वनदवे ित विवर्न्न गवतिीलता पर स स ह, क क के और स स स स पहली बार प्रवतर्ागी ध्िवन की ध्िवन को वनयवत्रत करने में सिम र्था, िो वक उन्होंने बनाई गई विज़अलाइज्ड छवि का ु ं इस्तेमाल करते हए सोवनक हरे .े र की इस प्रविया को आतररक रूप दने े के तरीकों को खोिने में सिम र्थे। ु ं इस ध्िवन के हरे .े र और दृश्य के रूप म ें इस समह के सदस्य को िास्तविक वस्र्थवत से कछ वनयत्रण ू ु ं हावसल करने में मदद वमली, विससे उन्ह ें उनके र्ीतर के कान म ें सन रह े ध्िवनयों को बाहर करने म ें मदद ु करने से उन्ह ें सामना करना पडा। के स अध्ययन : धद्वतीय एक प्रवतर्ागी को सत्र से पहले सप्ताह के दौरान हतािा और हल्के िबराहट की र्ािना का सामना ं करना पड रहा र्था और िह उससे बेहतर तरीके से मकाबला करने का तत्र ढढना चाहता र्था। सार्थी के ु ू ं ं नेतत्ि में समह ने आदिे और अरािकता के ढाच े और दोनों के बीच सबि (सिमण) का पता लगान े का ृ ू ं ं ं ं .ै सला वकया। हमारी आिाज़ें और बाद म ें ड्रम का इस्तेमाल, टक्कर टक्कर और ररकाडभर, हम सहानर्वत ु ू द्वारा वनदवे ित हतािा और वचता की बाहरी प्रस्तवतया तैयार करने में सिम र्थे। एक बार िब हमने इन ु ं ं बाहरी अभ्यािदे नों का वनमाभण वकया र्था, तो हम उन्ह ें रचनात्मक रूप से ध्िवन सरचना का वनमाभण ं ं करने म ें सिम र्थे। प्रवतर्ागी द्वारा दखे ी गई छवि 6 अन्यर्था ररक्त कमरे म ें एक कसी के बगल म ें एक मिे ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 202 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 पर एक बिती टेली.ोन र्थी तर्था कमरे में एक वखडकी र्थी। प्रवतर्ावगयों ने वखडकी के बाहर हिा की पिाभर्ास ध्िवन र्थी। एक विस्ताररत तात्कावलक सत्र के माध्यम से, विसे समय-समय पर िवटल सतह ू बनािट के सार्थ एक मिबत नब्ि के रूप में वदखाया गया र्था, प्रवतर्ावगयों ने समह सरचना को वखडकी ू ू ं तर्था वखडकी के बाहर हिा पर ध्यान कें वित करने म ें नेतत्ि वकया तर्था पाया वक अगर िे वखडकी खोली ृ और हिा म ें 'सिार' हो गए, तो कर्ी-बि रह े टेली.ोन के कारण उनकी वचता की र्ािना कम हो िाएगी। ं प्रवतर्ावगयों द्वारा वनदवे ित वनदिे ों के अनसार, यह बहत िात बनािट और तावलका के सयोिन में ु ु ं ं ं प्रवतवनवित्ि वकया गया र्था। िास्तविक प्रविया विसमें एक अरािक सरचना का आदिे वदया गया और ं इसके विपरीत प्रवतर्ागी के वलए बहत महत्िपण भ हो गया, क्योंवक इससे उन्ह ें अपने कणव्भ यिस्र्था का परा ु ू ू वनयत्रण प्राप्त करने म ें मदद वमली, विससे उनके अन्तःिेत्र अविक िागरूक और वनयवत्रत हो गया । ं ं प्रारधिक आकिन के तत्व: के स अध्ययन धनष्कषत ं मख्य अध्ययनों से िडे प्रमख तत्ि और सबवित िोि वनम्न ह-ैं ु ु ु ं ं 1. किागत सस्कवत की नींि रखना िो वक सम्प्रेषण और मल्याकन उपकरणों के उपयोग को ृ ू ं ं प्रोत्सावहत करती ह।ै 2. सीखने के लक्ष्यों की नींि रखना, और उन लक्ष्यों की र व्यवक्तगत छात्र प्रगवत की र निर रखना। 3. विविि छात्र आिश्यकता को परा करने के वलए विवर्न्न वनदिे विवियों का उपयोग ू ं 4. छात्र समझ का आकलन करने के वलए विवर्न्न दृविकोणों का उपयोग। 5. पहचान की आिश्यकता को परा करने के वलए छात्र के प्रदिनभ और वििा के अनकलन पर ू ु ू ं प्रवतविया। 6. सीखने की प्रविया म ें छात्रों की सविय र्ागीदारी। के स अध्ययनों के वनरकषों के विषय म ें सबसे अविक आश्चयभिनक बात यह ह ै वक सर्ी विषयों में, वििकों न े प्रत्येक छह तत्िों को वनयवमत अभ्यास म ें सवम्मवलत कर वलया। िबवक वििकों ने विवर्न्न तत्िों पर अलग-अलग बल वदया ह(ै उदाहरण के वलए, कछ वििकों ने विद्यावर्थभयों को प्रवतविया दने े पर ु अविक दबाि डाला, अन्य वििकों ने छात्रों को विवर्न्न अविगम अिसरों को प्रदान करने पर अविक ध्यान वदया), उन्होंने इन सर्ी तत्िों को आकवत प्रदान करने के वलए वििण और मल्याकन का प्रयोग ृ ू ं वकया। इस प्रकार वििक ने रचनात्मक मल्याकन के तत्िों का उपयोग करके एक ढाचा, र्ाषा और ू ं ं उपकरण बनाया, िो उनके वििण और सीखन े के दृविकोण को आकवत प्रदान करता ह।ै ृ अभ्यास प्रश्न 1. सहर्ागी आकलन से क्या तात्पयभ ह?ै 2. के स स्टडी से क्या तात्पयभ ह?ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 203 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4.4 सहर्ागी आकलन म सामुदारयक रनगरानी ें 4.4.1 सामिाधयक धनगरानी व्यवस्र्ा की अविारणा ु आप अपने पडोस के विद्यालय के प्रबिन और प्रिासवनक व्यिस्र्था के बारे म ें अनमान लगाइए। क्या ु ं स्र्थानीय पररििे के लोगों का विद्यालय से वकसी प्रकार का सबि ह?ै क्या विद्यालय के सचालन और ं ं ं ससािनों की व्यिस्र्था करने में स्र्थानीय लोगों की कोई र्वमका ह?ै क्या सरकार द्वारा स्र्थानीय लोगों को ू ं विद्यालय को सर्ालने की कोई औपचाररक वज़म्मदे ारी दी गई ह?ै क्या विद्यालयों म ें बच्चों के ं अवर्र्ािकों को प्रििे वदलाने के अलािा र्ी िाना पडता है? इन प्रश्नों के उत्तरों पर विचार करते हए ु आप सामदावयक वनगरानी की अििारणा के व्यािहाररक स्िरूप को समझ पाएग।े समाि द्वारा
विद्यालयों ु ं की स्र्थापना का मख्य लक्ष्य नई पीढ़ी को आिश्यक ज्ञान, कौिल और मल्यों से अवर्वसवचत करना िो ु ू ं वक उसे आदि भ नागररक बनाने म ें सहायक ह।ै विद्यालय सामाविक पररितभन के महत्िपण भ कारक ह।ैं ू आकलन के सदर् भ म ें सामदावयक वनगरानी से तात्पयभ विद्यालय की व्यिस्र्था, विद्यावर्थभयों की ु ं उपलवब्ि एि प्रगवत म ें स्र्थानीय समदाय की र्वमका से ह।ै वििा के अविकार अविवनयम के अतगतभ ु ू ं ं विद्यालयों के वलए विद्यालय प्रबि सवमवत के गठन का प्रावििान ह।ै इस सवमवत म ें विद्यालय म ें पढ़ने ं िाले बच्चों के अवर्र्ािकों को अध्यि ि सदस्य बनाया िाता ह।ै यह सवमवत विद्यालय के कायों के प्रबिन म ें महत्िपण भ र्वमका अदा करती ह।ै यह सवमवत विद्यालय के प्रबिन के सार्थ-सार्थ विद्यालय के ू ू ं ं वियाकलापों की प्रत्यि या अपरोि रूप से वनगरानी र्ी करती ह।ै सवमवत मागदभ िकभ एि प्रबन्िक की ं तरह कायभ करती ह ै । विद्यालय की आिश्यकता का आकलन कर तदनरूप ससािनों की व्यिस्र्था ं सवनवश्चत करने हते कायभिाही करती ह।ै ु ु विद्यालयों म ें अवर्र्ािक-वििक सगठन के होने से वििक विद्यार्थी क
ी पष्ठर्वम, कवमयों, ृ ू ं रुवचयों ि योग्यता का सही आकलन करने म ें समर्थभ हो पाते ह।ैं अवर्र्ािक वििकों को अपने पाल्यों ं द्वारा िर पर प्रदवितभ अिाछनीय व्यिहार से अिगत करा पाते ह।ैं वििकों की अवर्र्ािकों के सार्थ होन े ं िाली बैठकों म ें विद्यावर्थभयों की ििै वणक प्रगवत के बारे म ें अवर्र्ािकों को .ीडबैक वदया िाता ह ै और अवर्र्ािकों से बच्चों की अध्ययन आदतों का पता लगता ह।ै 4.4.2 आिित सामिाधयक धनगरानी व्यवस्र्ा की धविेषताए ँ ु आदिभ सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था की वििषे ताएाँ वनम्नवलवखत ह ै :- ु 1. यह बच्चों और वकिोरों की परी िनसख्या के वलए उतम तरीके से रहने का अनमान समदाय को ु ु ु ं प्रदान करता ह।ै 2. यह प्रणाली के वडज़ाइन, रखरखाि और उपयोग में समदाय के सदस्यों की व्यापक र्ागीदारी को ु प्रोत्सावहत करता ह।ै 3. यह वहत से सबवन्ित र्विरयिावणयों की पहचान करता ह ै तर्था मल्याकन करता ह ै वक िोि ू ं ं महत्िपण भ ह।ैं इसमें यिा के कायभ और विकास को प्रर्ावित करने िाले कारकों के उपायों को र्ी ू ु ं िावमल वकया गया ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 204 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 4. सििे ण और अवर्लेखीय सवहत सर्ी उपलब्ि आकडों का उपयोग करता ह।ै 5. यह नीवत वनमाभता और समदाय के सदस्यों के वलए िानकारी उत्पन्न करता ह ै िो वक आसानी से ु समझा िा सके तर्था विविि प्रश्नों के उत्तर दने े म ें आसानी से इसका उपयोग वकया िा सके । 6. इसके द्वारा र्ली-र्ावत तर्था िोवखम एि सरिात्मक कारकों में रुझानों के विषय म ें समय पर आकडा ु ं ं ं प्रदान करता ह ै िो वक यिा से सबवन्ित पररणामों की र्विरयिाणी करता ह।ैं ु ं ं 7. इसके द्वारा यिा के वहत को और बेहतर बनाने के वलए कायभिमों, नीवतयों और प्रर्था के चयन ु ं ं के विषय म ें प्रार्थवमकता का वनिाभरण और मत की मागदभ विकभ ा प्रदान करता ह ै । 4.4.3 धिक्षकों को उच्च स्वायत्तता के सार् सहिागी आकिन में सामिाधयक धनगरानी ु बच्चों के आकलन की मख्य वज़म्मदे ारी वििक की होती ह।ै योिनाबद् तरीके से वििण अविगम ु प्रविया को आयोवित करता ह ै और आकलन के विवर्न्न उपागमों का प्रयोग करता ह।ै ितभमान समय म ें आकलन को वििण-अविगम प्रविया का ही वहस्सा माने िाने की िकालत की िा रही ह।ै वििक औपचाररक एि अनौपचाररक तरीकों से बच्चों की उपलवब्ियों एि प्रगवत का आकलन करता ह।ै ं ं वििक की अवर्र्ािकों के सार्थ होने िाली अन्तःविया बच्चों की वििषे ता एि कमिोर पि को ं ं िानने एि समझने म ें बेहतर तरीके से सिम हो पाता ह।ै अवर्र्ािकों द्वारा मात्र अपने बच्चों के सदर् भ में ं ं वििकों को सचना प्रदान की िाती ह।ै वििकों द्वारा अपनायी िाने िाली वििण योिना म ें अवर्र्ािकों ू का प्रत्यि दखल नहीं होता ह।ै यह एक वििषे प्रकार की स्िायत्तता वििकों को प्राप्त ह।ै वििण अविगम प्रविया के वनयोिन, वियान्ियन ि आकलन म ें वििक द्वारा वनणयभ लेना स्िायत्तता का पररचायक ह।ै अभ्यास प्रश्न 3. सामदावयक वनगरानी की अििारणा को स्पि कीविए। ु 4. सहर्ागी आकलन और सामदावयक वनगरानी वकस प्रकार सबवन्ित ह?ैं ु ं 4.5 सारांश प्रस्तत इकाई के प्रारम्र् म ें आपने सहर्ागी आकलन के सप्रत्यय को स्पि रूप से समझा। आकलन के ु ं बदलते स्िरूप को र्ी आपने समझा। आकलन का स्िरूप
‘अविगम का आकलन (Assessment of Learning)’
एि
‘अविगम के वलए आकलन (Assessment for Learning)’
से होते हए अविगम के ु ं रूप म ें आकलन (Assessment as Learning) की र प्रित्त ह।ै के स स्टडी क्या ह?ै के स स्टडी के ृ सोपान कौन-कौन से ह?ैं उसकी मख्य वििेषताए ाँ क्या ह?ैं वििा म ें उसका क्या उपयोग ह?ै इन प्रश्नों के ु उत्तर के रूप म ें आपने के स स्टडी का सप्रत्यय स्पि रूप से समझा। इकाई के अगले चरण म ें सामदावयक ु ं वनगरानी की अििारणा एि उसकी मख्य वििेषता को र्ी आपने पढ़ा। सहर्ागी आकलन में ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 205 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सामदावयक वनगरानी की अििारणा को विद्यालय के वििेष सदर् भ म ें स्पि वकया गया। विद्यालयों की ु ं विद्यालय प्रबि सवमवत एि अवर्र्ािक-वििक बैठकों के द्वारा समदाय द्वारा वििा व्यिस्र्था की प्रत्यि ु ं ं वनगरानी की िाती ह।ै विद्यालय प्रबि सवमवत विद्यालय के प्रबिन म ें महत्िपण भ योगदान दते ी ह।ै ू ं ं अवर्र्ािक-वििक बैठकों म ें होने िाली अतविया वििकों के वलए न के िल आिश्यक ह ै बवल्क ं महत्िपण भ र्ी ह।ै अपने यह र्ी समझा इन बैठकों से प्राप्त सचना से वििकों की स्िायत्ता वकस तरह ू ू ं सबवन्ित ह।ै ं 4.6 शब्दावली सहर्ागी आकलन: सहर्ागी आकलन से तात्पयभ विद्यावर्थभयों की िवै िक प्रगवत/उपलवब्ि को सवनवश्चत ु करने एि िानने म ें वििा व्यिस्र्था से प्रत्यि एि अप्रत्यि रूप से िडे व्यवक्तयों का आकलन की प्रविया ु ं ं म ें सहर्ावगता करना । सामदावयक वनगरानी: विद्यालय अर्थिा वििा सस्र्था की व्यिस्र्था को बेहतर बनाने के वलए समदाय ु ु ं ं का ऐसा सकारात्मक हस्तिेप विससे विद्यालय अपने उद्दश्े यों को आसानी से प्राप्त कर सके । 4.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. सहर्ागी आकलन से तात्पयभ विद्यावर्थभयों की िवै िक प्रगवत/उपलवब्ि को सवनवश्चत करने एि ु ं िानने म ें वििा व्यिस्र्था से प्रत्यि एि अप्रत्यि रूप से िडे व्यवक्तयों का आकलन की प्रविया ु ं म ें सहर्ावगता करना । 2. के स अध्ययन एक ऐसी विवि ह ै विसके द्वारा सामाविक इकाई की िीिनी का अन्िषे ण तर्था विश्लेषण वकया िा सकता ह ै 3. आकलन के सदर् भ म ें सामदावयक वनगरानी से तात्पयभ विद्यालय की व्यिस्र्था, विद्यावर्थभयों की ु ं उपलवब्ि एि प्रगवत म ें स्र्थानीय समदाय की र्वमका से ह।ै ु ू ं 4. सहर्ागी आकलन म ें स्र्थानीय समदाय महत्िपण भ र्वमका अदा करता ह।ै गााँि अर्थिा स्र्थानीय ु ू ू पररििे विद्यालय प्रबि सवमवत, वििक-अवर्र्ािक सगठन इत्यावद औपचाररक माध्यमों से ं ं सामदावयक वनगरानी की र्वमका का वनिाभह करता ह।ै ु ू 4.8 सदं र् भ ग्रंथ सची ू 1. Angelo, T.A. and Cross, K.P. (1993), “Classroom Assessment Technique”, A Handbook for College teachers, Second Edition. Retrieved on December उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 206 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 16, 2016, from http://www.ncicdp.org/documents/Assessment%20Strategies.pdf 2. Crockett, L. W. (2016),
“ 5 Great Formative Assessment Strategies for Teachers”.
Retrieved on December 18, 2016 from https://globaldigitalcitizen.org/5-great-formative-assessment-strategies 3. Goodrich, K (2012),
“Dylan Wiliam & The 5 Formative Assessment Strategies to Improve Student Learning”.
Retrieved on December 18, 2016 from https://www.nwea.org/blog/2012/dylanwiliamthe5formativeassessmentstrate giestoimprovestudentlearning/ ● Lambert, K (2012),
“Formative Assessment Strategies”.
Retrieved on December 16, 2016 from http://www.levy.k12.fl.us/instruction/Instructional_Tools/60formativeassess ment.pdf ● Regier, N. (2012),
“Book Two: 60 Formative Assessment Strategies”,
Focus On Student Learning - Instructional Strategies Series. Retrieved on December 16, 2016, from http://www.stma.k12.mn.us/documents/DW/Q_Comp/FormativeAssessStrat egies.pdf ● Singh, A.K. (2014),
“Assessment: Current Status and Challenges”.
Retrieved on December 22, 2016 from http://www.slideshare.net/aksingh1959/issuesinassessment 4.9 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. एक वििक के समि सहर्ागी आकलन के दौरान क्या-क्या चनौवतयााँ आती ह?ैं व्याख्या ु कीविए। 2. सामदावयक वनगरानी व्यिस्र्था वकस प्रकार वििक की स्िायत्तता को प्रर्ावित करती ह ै चचा भ ु कीविए। 3. वकसी एक विद्यालय का उदाहरण दते े हए सहर्ागी आकलन और सामदावयक वनगरानी के ु ु सप्रत्यय को स्पि कीविए। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 207 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकाई 5 - आकलन: चुनौतियों एिं मुद्दों की आलोचनात्मक समझ; िास्ितिक, व्यापक, गतिशील आकलन प्रतिया की समझ एिं इसको किा में लागू करने िेि ु उपयुि रणनीतिया;ाँ िािी तशिकों की िैयारी िेि ु तनतििाथ भ 5.1 प्रस्तािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 सीखने के वलए आकलन का महत्ि 5.4 रचनात्मक आकलन के वलए रणनीवतयााँ 5.4.1 छात्रों के कायों का विश्लेषण 5.4.2 प्रश्नोत्तर 5.4.3 बनाना 5.4.4 विचार-िोडी-साझा 5.4.5 वनकास वटकट 5.4.6 एक वमनट के पेपर 5.5 यह वनिाभररत कै से करे वक वकस प्रकार की प्रारवम्र्क रणनीवत का उपयोग करना ह?ै 5.6 मद्द े और आकलन की चनौवतयााँ ु ु 5.6.1 आकलन में मद्द े ु 5.6.2 आकलन की चनौवतया ु ं 5.7 किा में आकलन रणनीवत के स.ल कायाभन्ियन के वलए रणनीवत 5.8 साराि ं 5.9 िब्दािली 5.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 5.11 सदर्भ ग्रर्थ सची ू ं ं 5.12 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 208 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.1 प्रस्तावना आकलन वििा म ें एक महत्िपण भ प्रविया ह।ै यह वििा की स.लता की िाच करने की विवि ह।ै यह न ू ं के िल यह वनिाभररत करता ह ै वक विद्यावर्थभयों ने समय पर एक वििेष वबद तक वकतना सीखा ह ै बवल्क यह ं ु र्ी वक िे चल रह े वििण और सीखने की प्रविया में वकतना सीख रह े ह?ैं सीखन े के वलए आकलन एक ऐसी प्रविया ह ै िो वििकों और छात्रों द्वारा अनदिे न के एक र्ाग के रूप में उपयोग वकया िाता ह,ै िो ु मख्य सामग्री म ें छात्रों की उपलवब्ि में सिार करने के वलए वििण और सीखने की प्रविया को ु ु समायोवित और सिोवित करने के वलए उद्दश्े यपणभ और सार्थभक प्रवतविया
प्रदान करता ह।ै सीखने के ू ं वलए आकलन छात्रों को क्या पता ह?ै और क्या कर सकते ह?ैं के बारे में अतदृवभ ि प्रदान करता ह।ै यह ं छात्रों को सीखने का समर्थभन करने िाले उद्दश्े य और सार्थभक प्रवतविया प्रदान करता ह
।ै यह विद्यावर्थभयों की उपलवब्ियों के स्तर को बढ़ाने के वलए तर्था वििण को सिोवित करके छात्रों की विवर्न्न ं आिश्यकता को परा करने के वलए वििक को बेहतर तैयार करने में मदद करता ह।ै लेवकन समय की ू ं कमी तर्था आकलन के वलए प्रणालीगत, विद्यालय और किा के बीच सबिों में कमी, व्यापक ं ं ं प्रर्था म ें बडी बािाए ह।ैं ं ं हालावक वििकों को इन बािा और चनौवतयों पर काब पाने और सीखने के मल्याकन की ु ू ू ं ं ं तलना म ें सीखने के वलए मल्याकन के बारे में अविक ध्यान दने ा चावहए क्योंवक यह सीखने की प्रविया के ु ू ं दौरान सीखने म ें सिार करने में सहायता करता ह।ै यह इकाई सीखने के वलए मल्याकन के व्यापक ु ू ं अभ्यास म ें चनौवतयों और उनके समािान के तरीकों और बािा के बारे म ें चचा भ करता ह।ै ु ं 5.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप- 1. सीखने के वलए मल्याकन की प्रमख प्रविया का िणनभ कर सकें ग।े ू ु ं ं 2. मल्याकन में प्रमख मद्दों पर चचाभ कर सकें ग।े ू ु ु ं 3. आकलन की चनौवतयों का िणनभ कर सकें ग।े ु 4. किा म ें स.लतापिकभ आकलन प्रविया को वनयोवित करने के वलए रणनीवतयों का िणनभ ू ं कर सकें ग।े 5.3 सीखने के रलए आकलन का महत्व सीखने के वलए आकलन का मतलब आकलन िो सीखने में मदद करता ह।ै यह एक ऐसी प्रविया ह ै िो छात्र के अविगम की िानकारी इकट्ठा करने के वलए अनौपचाररक तरीके से मल्याकन रणनीवतयों का ू ं उपयोग करती ह।ै वििक वनिाभररत करते ह ैं वक छात्रों ने क्या समझा ह?ै और उन्ह ें लक्ष्य या पररणाम हावसल करन े के वलए अर्ी र्ी क्या सीखने की आिश्यकता ह?ै सीखने के वलए आकलन की िानकारी उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 209 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 इकट्ठा करने िाली रणनीवतया किा वनदिे के दौरान स.ल होती ह ैं क्योंवक वििण और सीखने के वलए ं आकलन िडा हआ ह।ै यह दो तरीकों से महत्िपणभ ह:ै ु ु ू 1. छात्रों के वलए महत्िपणभ ू i. विद्यार्थी यह वनिाभररत करने के वलए आकलन का उपयोग कर सकते ह ैं वक िे इकाई के लक्ष्यों या पररणामों को प्राप्त करने से वकतने दर ह।ैं ू ii. छात्रों को पाठयिम म ें महारत हावसल के वलए अपने अविगम म ें सिार या सिोवित करने ् ु ं की आिश्यकता हो सकती ह।ै iii. यवद छात्र अपेवित दर से उपलवब्ि प्राप्त नहीं कर पा रह,े तो ि े सीखने के वलए उपयोग की िाने िाली रणनीवत पर नज़र रख सकते ह ैं और तय कर सकत े ह ैं वक उन्ह ें अपनी मौिदा ू वििण रणनीवतयों को सिोवित करने या सीखने के नए तरीके लेन े की आिश्यकता ह ै या ं नहीं। iv. प्रारवम्र्क आकलन रणनीवतयों द्वारा प्रदान की िान े िाली िानकारी छात्रों को यह दिाभती ह ै वक ि े ितभमान के सीखने के लक्ष्यों के सार्थ िाएग े या नए लक्ष्य वनिाभररत करेंग।े ं 2. वििकों के वलए महत्िपणभ ू i. प्रारवर्क मल्याकन िानकारी की सहायता से एक वििक वनम्न प्रश्नों के उत्तर म ें अपने छात्रों ू ं ं की सहायता कर सकता ह:ै मैं कहा ाँ िा रहा ह?ाँ ू मैं अब कहा ह? ू ं ं सीखने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के वलए मैं दोनों के बीच के अतर को कै से कम कर ं सकता ह? ू ं ii. वििकों को अपनी स्िय की वििण रणनीवतयों का आकलन करने के वलए प्रारवम्र्क ं मल्याकन सबिी िानकारी का उपयोग कर सकत े ह।ैं इससे उन्ह ें यह िानने म ें मदद वमलती ू ं ं ं ह ै वक छात्रों पर उनकी वििण रणनीवत कै से काम कर रही ह?ै यवद छात्र प्रगवत कर रह े ह ैं तो सही और उवचत ह,ै लेवकन अगर छात्र सिषभ कर रह े ह ैं तो वििकों को अलग-अलग तरीके ं से एक छात्र के सार्थ काम करने की िरूरत हो सकती ह,ै िानकारी अन्य तरीकों से प्रस्तत ु कर सकत े ह,ै या अपनी ितभमान वििण रणनीवत को समायोवित कर सकत े ह।ैं यह वििक ही ह ै िो यह वनणयभ लेता ह ै वक छात्रों ने सीखने के लक्ष्यों में महारत हावसल की ह ै या नहीं और िो छात्र प्रारवम्र्क आकलन म ें सीखन े के लक्ष्यों म ें महारत हावसल करते प्रतीत होते ह ैं उनको पनः आकलन की आिश्यकता ह ै अर्थिा उनको उनके समझ के स्तर को चनौती दने े ु ु िाले वििण योिना की ज़रूरत ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 210 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 iii. यह वििण अभ्यास को बेहतर बनाने और छात्र के अविगम म ें सिार करने म ें मदद करता ु ह।ै iv. प्रारवम्र्क आकलन में सलग्न वििक छात्रों को लगातार और स्पि प्रवतविया दते े ह।ैं ं 5.4 रचनात्मक आकलन के रलए रणनीरतया ँ रचनात्मक आकलन रणनीवतयााँ वििकों और छात्रों के वलए बहमल्य िानकारी प्रदान करता ह ै वक िे ु ू वकतना िानत े ह?ैं िे क्या नहीं िानते? और ि े क्या कर सकत े ह?ैं यह वििक को उनके वििण की प्रर्ाििीलता िानने म ें र्ी मदद करता ह।ै इस तरह के आकलन से उन्ह ें अपने वििण को अपग्रेड करने म ें सहायता वमलती ह।ै यह आकलन छात्रों को अपने प्रदिनभ को बढ़ाने के वलए मागदभ वितभ करता ह ै और वििक को यह वनिाभररत करने में मदद करता ह ै वक आगे के वनदिे आिश्यक ह ैं या नहीं। अगर रचनात्मक आकलन लगातार और प्रर्ािी ढग से आयोवित वकए िाए, तो न तो वििक और न
3%
3%
1%
0.8%
0.6%
0.5%
0.5%
0.2%
0.2%
0.1%
ही छात्र ं अवतम ग्रेड से हरै ान होंग।े वििक इस आकलन का उपयोग करते ह ैं क्योंवक यह त्िररत और अनौपचाररक ं प्रकवत का ह ै और छात्रों के सार्थ-सार्थ वििकों को उनकी प्रगवत के बारे में तत्काल प्रवतविया प्रदान ृ करती ह।ै वनम्नवलवखत प्रमख रचनात्मक आकलन रणनीवतयााँ ह:ैं ु 5.4.1 छात्रों के कायों का धवश्ले षण (Analysis of Students Work) छात्रों के कायों िसै े होमिकभ , परीिा, इत्यावद के विश्लेषण द्वारा बहत अविक िानकारी प्राप्त की िा ु सकती ह।ै विद्यावर्थभयों के कायभ का विश्लेषण करके वििक छात्रों की ताकत, कमिोररयों और सीखने की िलै ी के बारे म ें िानकारी प्राप्त कर सकत े ह ैं और उनके ज्ञान के सिार म ें सहायता कर सकत े ह।ैं ु वनम्नवलवखत तरीके ह ैं विसमें वििक विद्यार्थ
ी के कायभ का विश्लेषण कर सकत े ह-ैं i. असाइनमेंट / होमवकत ( Assignment/Homework) - वििक विचार-उत्तिे क होमिकभ / असाइनमटें द्वारा अपने छात्र का आकलन कर सकता ह।ै छात्र अपने स्िय के उत्तर वलखते ह ैं ं और वििक उनके उत्तर को मौवलकता के आिार पर आकलन करते ह।ैं ii. िरीक्षण (Tests) - यह छात्रों के कायों का विश्लेषण करने के सिोत्तम तरीकों में से एक ह।ै परीिण में छात्रों को नई वस्र्थवतयों म ें सोचने की आिश्यकता होती ह,ै विन्ह ें किा म ें चचा भ नहीं हई हो। यह उन्ह ें सविय रूप से सोचने म ें मदद करता ह।ै लि प्रश्न या एक िब्द का उत्तर छात्रों ु ु की समझ को िााँचने के वलए कहा िा सकता ह।ै वििक विस्तत उत्तर िाल े प्रश्न (open ended ृ question) पछ सकते ह।ैं ये छात्रों के समझ और सार्थ ही वििण की प्रर्ाििीलता का िीघ्र ू मल्याकन कर सकत े ह।ैं ू ं iii. अविोकन(Observation) - छात्रों का अिलोकन, ि े कै से प्रगवत कर रह े ह?ैं इसके बारे में महत्िपण भ िानकारी प्रदान कर सकत े ह।ैं वििक वकसी र्ी गवतविवि म ें अपने छात्रों को सलग्न ू ं कर सकते ह ैं और किा के चारों र चलकर उन्ह ें उत्सकता से दखे सकते ह।ैं यह एक विविि ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 211 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 कौिल ह ै विसे सबोवित वकया िा सकता ह ै और वििक अनौपचाररक वटप्पणी रेकॉडभ करके ं छात्रों के ग्रेड पष्ठों पर स्र्थानातररत करते ह ैं तावक अनदिे न को आगे बढ़ाया िा सके । इसम े ृ ु ं िावमल ह:ै िास्तविक ररकॉडभस (Anecdotal Records) ् सम्मले नों (Conferences) चेकवलस्ट (Checklists) iv. साराि (Summaries) - अध्यापक अध्यायों के साराि को सिेप में पछ सकत े ह।ैं यह एक ू ं ं ं िब्द या एक िाक्य हो सकता ह ै िो पढ़ े अध्याय को सिोत्तम िणनभ करता हो। यह वकसी अन्य तरीके से र्ी वकया िा सकता ह;ै िसै े किा में प्रत्येक छात्र को िणभमाला का एक अलग अिर वदया िाता ह ै और उन्ह ें उस अिर के सार्थ िरू होने िाल े िब्द का चयन करना चावहए, ु विसका अध्ययन वकया िा रहा विषय से सबवित ह।ै ं ं v. प्रस्तधतयाँ (Presentation) - प्रस्तवतया छात्रों के कायों को विश्लेषण करने की एक विवि ह।ै ु ु ं यह न के िल वििक को छात्रों का आकलन करने म ें मदद करता ह ै बवल्क छात्रों को अपने आत्मविश्वास स्तर और उनके बोलने िाले कौिल को बढ़ाने म ें र्ी मदद करता ह।ै छात्र सहकमी प्रवतविया (peer feedback) के सार्थ एक प्रस्तवत मॉडल का अभ्यास करते ह।ैं ि े मौवखक ु कायभ पर सार्थ ही प्रस्तवत कौिल पर काम करते ह ैं और विषय पर ज्ञान प्रदवितभ करते ह।ैं ु vi. स्वय और सहकमी आकिन (Self and Peer Assessment) - यह एक ऐसी प्रविया ह ै ं विसमें छात्र अपने स्िय के सीखने के बारे में िानकारी इकट्ठा करते ह,ैं इवच्छत वििण लक्ष्य की ं र प्रगवत को विश्लेवषत करते ह ैं और सीखन े के अगले चरण की योिना बना
ते ह ैं । छात्र स्िय ं के अविगम पर विचार करते ह,ैं और िााँच करते ह ैं वक ि े सीमा में कहा ह?ैं छात्रों को एक ं समकि मल्याकनकताभ र्ी इस्तेमाल वकया िा सकता ह।ै सहकमी आकलन छात्रों की समझ के ू ं बारे म ें िानकारी एकत्र करने में मदद करता ह।ै इसका इस्तेमाल विवर्न्न विषय िेत्रों म ें वकया िा सकता ह।ै 5.4.2 प्रश्नोत्तर (Questioning) छात्र क
ी समझ की गहराई का वनिाभरण करने के वलए प्रश्न पछना एक महान प्रारवम्र्क मल्याकन रणनीवत ू ू ं ह।ै वििक विद्यावर्थभयों से ऐसे प्रश्न पछ सकत े ह,ैं िो वकसी एक प्रसग (topic) के बारे म ें तथ्यों और ू ं सामान्य िानकारी पर ध्यान कें वित करते ह।ैं वचतनिील सोच को उत्तेवित करने िाले प्रश्नों को र्ी पछा ू ं िा सकता ह।ै यह अलग रूप में हो सकता ह ै िसै े: i. समस्या को सिझाना (Problem Solving) - एक वििक छात्रों के वलए समस्या पैदा कर ु सकता ह ै और उन्ह ें मौवखक या वलवखत रूप में हल करने के वलए कह सकता ह।ै छात्रों द्वारा वदए गए उत्तर वििक को छात्र के समझ की स्तर और अपने वििण की प्रर्ाििीलता को िानने में सिम बनात े ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 212 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 ii. मौधखक प्रश्न (Oral Questioning) - छात्रों के आकलन के वलए मौवखक प्रश्न पछा िा ू सकता ह।ै यह वििक को छात्रों का िीघ्र आकलन करने में मदद करता ह।ै iii. चचातए ँ ( Discussions) - यह एक महत्िपण भ रणनीवत ह ै िो समय बचाता ह।ै वििक लवित ू प्रश्न पछता ह ै और छात्र की अनौपचाररक प्रवतविया का ररकॉडभ करता ह।ै यह परे समह ू ू ू ं अर्थिा छोटे समह म ें वकया िा सकता ह।ै बाद में इस िानकारी को छात्र के ग्रेड पष्ठों पर ृ ू स्र्थानातररत वकया िा सकता ह।ै ं iv. सम्मेिन (Conferences) - विद्यार्थी की समझ का प्रारवम्र्क आकलन वकया िा सकता ह,ै या तो किा के प्रत्येक छात्र के सार्थ एक-पर-एक सम्मले न का उपयोग करके अर्थिा कछ छात्रों ु को या चयवनत करके विनका आकलन वििक करना चाहता ह।ै एक विविि लवित कौिल प्रदान करने के वलए छात्रों के सार्थ वििक वमलते ह।ैं वििक छात्र की प्रगवत को ररकॉडभ कर सकते ह ैं और वनणयभ ले सकते ह ैं वक उनके वलए अगला कदम क्या ह।ै v. प्रश्नोत्तरी (Quiz) - प्रश्नोत्तरी छात्रों की तथ्यात्मक िानकारी, अििारणा और असतत ं कौिल का मल्याकन करते ह।ैं आमतौर पर एक सबसे अच्छा उत्तर होता ह।ै यह महत्िपण भ ह ै वक ू ू ं प्रश्नोत्तरी म ें प्रश्नों म ें उच्च िम िाल े सोच (higher order thinking skills) के सार्थ ही कम िम िाल े सोच (lower order thinking skills) कौिल िावमल हो। प्रश्नोत्तरी के कछ ु उदाहरण ह:ैं बह विकल्प (Multiple choice) ु सही गलत (True/ False) सविप्त ििाब (Short answer) ं कागज़ और कलम (Paper and Pencil) मले वमलाना (Matching) विस्ताररत प्रवतविया (Extended Response) 5.4.3 बनाना (Creating) िब कोई स्पि रूप से कछ समझता ह ै तो िह आसानी से कछ ऐसा बना सकता ह ै िो उसके ज्ञान को ु ु दिाभता हो। एक वििक छात्र/ छात्रा के सिन द्वारा उसके ज्ञान की गहराई की िाच कर सकता ह।ै यह ृ ं ं सिन कछ विद्यावर्थभयों का प्रवतवनवित्ि करने के वलए दृश्य के रूप म ें िल्दी हो सकता ह,ै या क्लास म ें ृ ु चचा भ की गई एक महत्िपण भ अििारणा को सविप्त करने के वलए (tweet) हो सकता ह।ै वनम्न ू ं विवि बनाने के अतगतभ आती ह:ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 213 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 i. िररयोिनाए (Projects) - यह समह या एकल हो सकता ह।ै छात्र अध्याय या इकाई की ू ं समझ के आिार पर एक पररयोिना तैयार करते ह।ैं यह कछ 3D मॉडल की तरह दृश्यमान हो ु सकता ह।ै ii. फ़्िैि काडत (Flash Cards) - एक व्याख्यान या अििारणा प्रस्तवत के 10 वमनट के बाद, ु छात्र एक फ्लैि काडभ बनात े ह ैं विसमें महत्िपणभ अििारणा या विचार िावमल होता ह।ै किा के ू अत म,ें छात्र विचारों का आदान-प्रदान करने और सामग्री की समीिा करने के वलए िोडे में ं काम करते ह।ैं iii. धचत्रकारी (Drawing) - कछ छात्रों को अपनी समझ को प्रदवितभ करने के वलए ड्राइग द्वारा ि े ु ं िो कछ िानत े ह ैं िह वदखा सकते ह।ैं ऐसे छात्रों को अपनी सोच को साझा करने के वलए ु प्रोत्सावहत वकया िाना चावहए वक िे क्या बना रह े ह,ैं विसस े इस बारे में अतदृवभ ि प्राप्त कर सके ं की ि े क्या सीख चके ह।ैं ु 5.4.4 धवचार- िोड़ी- साझा (Think Pair Share) छात्रों की समझ के स्तर के बारे में िानकारी इकट्ठा करने का विचार-िोडी-साझा रणनीवत एक िानदार तरीका ह।ै यह वििकों के उपयोग के वलए एक त्िररत, सरल और आसान रणनीवत ह ै विसका इस्तेमाल अध्ययन की एक इकाई के दौरान कई बार वकया िा सकता ह।ै वििक छात्रों के सामने एक प्रश्न प्रस्तत ु करता ह।ै छात्रों के पास आत्म- वचतन के वलए कछ वमनट होते ह।ैं व.र, छात्रों को उनके विचारों पर चचा भ ु ं करने के वलए अपने र्ागीदारों के सार्थ िोडी बनाई िाती ह।ै अत म ें ि े अपने विचार परे िग भ के सार्थ ू ं साझा करते ह।ैं इस प्रविया के माध्यम में, छात्र अपने ििाबों को साझा करने से पहले अपनी सोच को मिबत ू करने और परररकत करने में सिम हो िाते ह।ैं िब व्यवक्तगत विचार परी किा में साझा करने के वलए ृ ू पररचावलत हो िाता ह ै तब िह वििक को वकसी वसद्ात के बारे म ें छात्र के समझ की गहराई के ं आकलन में सहायता प्रदान करता ह।ै इसके अलािा अनसिान ने यह सके त वदया ह ै वक िब छात्र अपने ु ं ं स्िय के सीखने के वलए विम्मदे ार ह,ैं तो उनके प्रदिनभ को बढ़ िाता ह।ै ं 5.4.5 धनकास धटधकट (Exit Tickets) एक सरल लेवकन प्रर्ािी रचनात्मक आकलन वनकास वटवकट ह।ै यह वनयवमत आिार पर इस्तेमाल वकया िा सकता ह ै यह िानने के वलए वक अध्ययन के एक मौिदा इकाई के दौरान छात्रों क्या िाने, ू समझें और सीखें ह?ैं वनकास वटवकट छोटे कागि के टकडे ह,ैं या सचकाक काडभ ह,ैं िो की छात्र िब ु ू ं क्लासरूम छोडते ह ैं तो िमा करते ह।ैं छात्र उस वदन वसखाए गए अध्याय के मख्य विचार की सही ु व्याख्या वलखते ह,ैं और व.र प्रसग
3%
3%
3%
1%
1%
0.8%
0.6%
0.4%
0.3%
0.2%
0.2%
के बारे में अविक विस्तत िानकारी प्रदान करते ह।ैं वििक ृ ं प्रवतविया की समीिा करते ह ैं और अतदृवभ ि प्राप्त करते ह,ैं विनके कौन से छात्र ने अििारणा के बारे म ें ं ं सीखा ह?ै और कौन अर्ी र्ी सिषभ कर रह े ह?ैं प्राप्त
िानकारी को / अििारणा को व.र से वसखाने के ं वलए एक परे समह या आविक-समह पाठ की योिना बनाने के वलए वििक द्वारा उपयोग वकया िाता ह।ै ू ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 214 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 प्रििे वटकट का इस्तेमाल किा के िरुआत में वकया िा सकता ह।ै छात्र होमिकभ के बारे में प्रश्नों का, या ु इससे पहले वदन को पढ़ाए गए बारे म ें ििाब द े सकते ह।ैं 5.4.6 एक धमनट के िेिर (One Minute Paper) एक वमनट के पेपर आमतौर पर वदन के अत म ें वकया िाता ह।ै समहों (या व्यवक्तगत रूप से) म ें
छात्रों को ू ं वलवखत म ें एक सविप्त प्रश्न का उत्तर दने े के वलए कहा िाता ह।ै उसका ििाब वलखने के वलए उन्ह ें दो स े ं तीन वमनट वदया िाता ह।ैं छात्रों की समझ के बारे म
ें िागरूकता प्राप्त करने के वलए प्रवििक द्वारा पेपर एकत्र करके और विश्लेषण वकया िाता ह।ै एक वमनट के पेपर अविक प्रर्ािी पाया िाता ह ैं िब यह बार बार वकया िाता ह।ै वििकों द्वारा उठाए गए सामान्य प्रश्न इस प्रकार ह:ैं मख्य मद्दा ु ु सबसे आश्चयभिनक अििारणा अनत्तररत प्रश्न ु विषय का सबसे भ्रामक िेत्र अगले परीिा म ें विषय से क्या सिाल हो सकता ह?ै ये प्रारवर्क आकलन की कछ महत्िपणभ रणनीवतयााँ ह ैं िो वििक और छात्र दोनों की मदद करता ह ै यवद ु ू ं प्रर्ािी ढग से उपयोग वकया िाए। यह तय करना की कौन सी रणनीवत का प्रयोग वकया िाए , परी तरह ू ं से वििक पर वनर्रभ करता ह।ै वििकों को यह वनिाभररत करने की आिश्यकता ह ै वक छात्र के अविगम की कौन सी वििषे ता सीखना ि े मापना चाहते ह।ैं चवक आि की किाए समािेिी किाए ह,ैं वििकों ूं ं ं को अपने छात्रों की समझ के स्तर का आकलन करने के वलए रणनीवत का चयन चतराई से करना होगा। ु इसके बाद उन्ह ें अपने छात्रों के सीखने की प्रार्थवमकता पर विचार करने की आिश्यकता होती ह।ै ं प्रारवर्क आकलन रणनीवतयों
3%
3%
3%
2%
1%
0.6%
0.5%
0.2%
का इस्तेमाल छात्रों पर व्यवक्तगत रूप से , छोटे समह म,ें या किा के रूप ू ं में वकया िा सकता ह।ै प्रारवम्र्क आकलन के वलए इस्तेमाल वकए िाने िाल े समह का प्रकार, रणनीवत ू की चनाि को र्ी प्रर्ावित करेगा। वििकों को एक प्रकार की आकलन रणनीवत पर र्रोसा नहीं करना ु चावहए। विवर्न्न प्रकार के व्यवक्तगत और समह प्रारवम्र्क रचनात्मक आकलन का इस्तेमाल वकया िाना ू चावहए। व्यवक्तगत रणनीवतयों की सहायता से वििकों को प्रत्येक
3%
1%
0.8%
0.6%
0.6%
0.6%
0.4%
0.3%
छात्र के वकसी र्ी अििारणा और कौिल के समझने के स्तर की स्पि तस्िीर वमलती ह।ै समह की रणनीवतयााँ वििक को उनकी वििण ू रणनीवतयों की वस्र्थवत के बारे में िानने म ें मदद करते ह।ैं छात्र अपने स्िय के सीखने के बारे में िानने के ं वलए प्रारवम्र्क आकलन की िानकारी र्ी उपयोग कर सकत े ह।ैं यह वििक को स्िय के अनदिे न में, ु ं छात्रों क
ी आिश्यकता, रुवच और समझ के आिार पर सिोवित
करने म ें मदद करता ह।ै कल वमलकर ु ं रचनात्मक आकलन रणनीवत सम्पण भ वििण और सीखने की प्रविया में सिार लान े म ें मदद करती ह ै ू ु और उपलवब्ि के स्तर को बढ़ाने म ें मदद करती ह
।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 215 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.5 यह रनधाररत करना रक रकस प्रकार की प्रारष्म्र्क रणनीरत का उपयोग करना ह?ै वकस प्रकार के रचनात्मक आकलन रणनीवत का उपयोग करना ह ै यह तय करना कई कारकों पर वनर्रभ करता ह ै । i. वििकों को यह वनिाभररत करने की आिश्यकता ह ै वक ि े विद्यार्थी के अविगम के कौन से पहल ू को मापना चाहते ह।ैं ii. रचनात्मक आकलन रणनीवत चनन े से पहले, वििकों को उनके छात्रों की सीखने की ु प्रार्थवमकता पर विचार करना होगा। ं iii. प्रारवर्क रचनात्मक आकलन को छात्रों को व्यवक्तगत रूप से, छोटे समह में, या
किा के रूप म ें ू ं वदया िा सकता ह ै । प्रारवम्र्क आकलन के वलए इस्तेमाल वकए िाने िाले समह का प्रकार ू रणनीवत के चनाि को र्ी प्रर्ावित करेगा। ु iv. वििकों को एक प्रकार की रचनात्मक आकलन पर र्रोसा नहीं करना चावहए क्योंवक किा समाििे ी ह।ै विवर्न्न प्रकार के व्यवक्तगत और समह रचनात्मक आकलन रणनीवतयों का ू इस्तेमाल वकया िाना चावहए। व्यवक्तगत रणनीवतयों की सहायता से वििकों को प्रत्येक
छा
त्र की स्पि तस्िीर वमलती ह ै और उनकी अििारणा या कौिल के समझ को मापा िा रहा ह।ै समह ू की रणनीवत वििकों को परी किा के सीखने के बारे म ें सामान्य िानकारी प्रदान करती ह
ै विसे ू वनदिे की योिना के वलए इस्तेमाल वकया िा सकता ह।ै अभ्यास प्रश्न 1. वििकों के वलए सीखने का मल्याकन वकतना महत्िपणभ ह?ै ू ू ं 2. विचार िोडी साझा क्या ह?ै 3. वनकास वटकट का एक उदाहरण द।ें 5.6 आकलन: मुद्द े और चुनौरतया ँ आकलन का अर्थभ ह ै वक बच्चे के बारे म ें महत्िपणभ वनणयभ लेने के वलए िानकारी एकत्र करना। बच्चे की ू वटप्पवणया, पछताछ, चेकवलस्ट और रेवटग स्के ल, परीिण, वनमाभण, चचा,भ प्रश्नोत्तरी और मानकीकत ृ ू ं ं औपचाररक परीिण सवहत आकलन की िानकारी इकट्ठा करने के कई तरीकों का उपयोग वकया िाता ह।ै आकलन सबिी िानकारी वििषे ज़रूरत िाल े बच्चे की पहचान, योिना वनदिे न और प्रगवत मापने के ं ं वलए उपयोगी ह।ै लेवकन व्यापक अभ्यास म ें प्रमख मद्द े और चनौवतया ाँ ह ैं विसमे किा आिाररत ु ु ु रचनात्मक आकलन और साराि आकलन िो छात्र उपलवब्ि के वलए स्कल को ििाबदहे बनाता ह,ै के ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 216 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 बीच स्पि तनाि और आकलन और आकलन के वलए स्कल और किा के दृविकोण बीच सबिों की ू ं ं कमी ह।ै हालावक वििकों को इन बािा और चनौवतयों पर काब पाने और सीखने के आकलन की ु ू ं ं तलना में सीखने के वलए आकलन के बारे में अविक ध्यान दने ा चावहए क्योंवक यह सीखने की प्रविया के ु दौरान सीखन े और सिार करने म ें सहायता करता ह।ै ु 5.6.1 आकिन के मद्दे ु िटना के अध्ययनों (Case Study) से उर्रे आकलन के व्यापक अभ्यास में (के िल एकमात्र नहीं ) कई मद्दे िावमल ह:ैं ु i. किा-आिाररत छात्रों के अविगम का प्रारवम्र्क आकलन और उच्च दृश्यता योगात्मक परीिण के बीच का तनाि । प्रायः, विद्यालयों में योगात्मक परीिण को प्रारवम्र्क आकलन, िो वक किा में क्या हो रहा ह ै इसकी स्पि झलक दते ा ह,ै के बदले छात्रों वक उपलवब्ि ड्राइि ं (drive) के वलए उत्तरदायी माना िाता ह।ै बहत अविक योगात्मक आकलन सवचत पररणामों म ें ु ं 'पेडों के वलए लकडी को दखे ने' की अिमता को दिाभता ह।ै ii. आकलन और मल्याकन के वलए स्कल और किा के दृविकोण के बीच सबिों की कमी। प्रायः, ू ू ं ं ं स्कल आिाररत मल्याकन म ें एकवत्रत िानकारी को अप्रासवगक या वििण के वलए व्यर्थभ कायभ ू ू ं ं के रूप म ें दखे ा िाता ह,ै इसवलए आकलन और मल्याकन के बीच सबि होना चावहए। ू ं ं ं iii. आकलन म ें गणित्ता के मद्द ें : - मल्याकन की गणित्ता एक मख्य मद्दा ह,ैं एक सस्र्था के र्ीतर ु ु ू ु ु ु ं ं कछ खास तरह की समस्याए होती ह ैं िसै े वक ु ं आकलन के वलए उपयोग वकए िान े िाले प्रश्नों की गणित्ता ु मल्याकन में वनयवमतता ू ं नकल की सर्ािना ं सावहवत्यक चोरी की सर्ािना ं वििक की तर. से पारदवितभ ा का अर्ाि त्िररत और विस्तत प्रवतविया की कमी ृ परीिा की गणित्ता ु समय पर पररणामों की िोषणा विद्यावर्थभयों को यह िानने का कोई अविकार नहीं ह ै वक उनका मल्याकन और ग्रेवडग कै से की िाती ह?ै ू ं ं छात्रों को अपने सीखने में सिार करने के वलए पयाभप्त प्रवतविया नहीं प्राप्त होती ह,ै अर्थातभ मल्याकन वकए ु ू ं गए कायभ पर त्िररत, वनयवमत और िीघ्र प्रवतविया की अनपलब्िता ह।ै पररणामस्िरूप, सीखने म ें सिार ु ु पर कम ध्यान वदया िाता ह।ै परानी प्रणावलयों के वलए नया दिनभ अपनाया िा रहा ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 217 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 प्रारवर्क आकलन पर कम बल (यानी सीखने के वलए मल्याकन), अनौपचाररक और िकै वल्पक ू ं ं मल्याकन का कम उपयोग होता ह।ै सीखने के मल्याकन पर अविक बल वदया िाता ह।ै ू ू ं ं छात्र और वििक सीखने के स्र्थान पर अक पर ज्यादा ध्यान कें वित करते ह।ैं ं विश्वसनीय और ििै मल्याकन का बहत कम उपयोग होता ह।ै ु ू ं किा मल्याकन तकनीक दलभर् ह।ैं ू ं ु आकलन प्रवियाए, सक्ष्म स्तर पर कें वित ह,ै विसका आकलन करना आसान ह।ै ि े िवटल, ू ं उच्च िम िाले अविगम को एकीकत करने और आकने में वि.ल रहते ह ैं । ृ मानकीकरण पर कें वित सस्र्थागत वनयमों का अविक प्रयोग िो प्रगवतिील और एकीकत ृ ं मल्याकन के निीनतम विकास म ें बािक होता ह ै । ू ं 5.6.2 आकिन की चनौधतया ँ ु अविगम के आकलन की स.लता म ें कई चनौवतया ह,ैं विनको सबोवित करने की आिश्यकता ह।ै यवद ु ं ं छात्र के सीखने के पररणामों का आकलन करने के वलए िावछत लक्ष्यों को परी तरह से प्राप्त करना ह ै तो ू ं हमें आकलन की चनौवतयों का सामना करना पडेगा। सावहत्य की समीिा पर आिाररत सीखने के ु आकलन म ें प्रमख चनौवतयों वनम्नवलवखत ह:ै ु ु मानकीकत परीिणों का अर्ाि: सबसे बडी चनौती वििकों और छात्रों दोनों के द्वारा उवचत, वनरपि ृ ु और आसानी से समझने िाल े उपकरण को बनाना और प्रयोग करना ह।ै ििै , विश्वसनीय और उवचत वििण मल्याकन विवियों और उपकरणों की कमी ह।ै प्रत्येक पाठयिम के वलए स्पि और प्रासवगक ् ू ं ं सीखने के उद्दश्े यों के सार्थ सीखने के आकलन तरीकों का रचनात्मक सरेखण (Alignment) होना ं चावहए। ऐसी वस्र्थवत हर बार नहीं होती ह।ै पाठयिम की रूपरेखा में उद्दश्े यों की एक सची और उन उद्दश्े यों ् ू को मापने के तरीकों को िावमल करना चावहए। प्रर्ािी रूप से और किलता से रचनात्मक आकलन का उपयोग करने के वलए मागदभ िभन का अर्ाि: ु आकलन प्रविया , उपकरणों और मॉडल के बारे म ें ज्ञान की कमी ह।ै आकलन के वलए सिाल, ं उपकरण और विवियों का विकास करना; और उन पररणामों का आकलन करने के वलए एक योिना विकवसत करना और कायाभवन्ित करना िो प्रबिनीय, अर्थभपण भ और वटकाऊ ह,ै एक कला ह ै विसके वलए ू ं उवचत प्रवििण की आिश्यकता ह।ै इस िेत्र में गणिततापण भ सावहत्य की कमी ह।ै या तो वििक सीखने ु ू के वलए आकलन में सिश्रभ ेष्ठ प्रणावलयों से अनिान ह ैं या ि े अवनवश्चत ह ैं वक कै से सही प्रणावलयों को लाग ू वकया िाए? रचनात्मक आकलन म ें बहत अविक वििरण (data) िावमल होती ह:ै अविकाि रचनात्मक आकलन ु ं तकनीक छात्रों के बारे म ें अविक मात्र म ें वििरण एकत्र करते ह।ैं िानकारी का विश्लेषण करना और पररणामों को सारावित करके वनणयभ लेन े के वलए उपयोगी िानकारी एकवत्रत करना एक चनौती ह।ै ु ं इसवलए प्रासवगक वििरण एकत्र करना महत्िपणभ ह।ै ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 218 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 रचनात्मक आकलन बहत समय लेता ह:ै यह सबसे बडी चनौवतयों में से एक ह ै िो वििक और छात्र ु ु सामना करते ह।ैं चवक हमारी किा एक समािेिी किा ह,ै अलग-अलग वििण विवि
यों का उपयोग ूं करके छात्रों को पढ़ान े में बहत अविक समय का नकसान होता ह।ै व.र छात्रों का आकलन करने के वलए ु ु विवर्न्न प्रकार की आकलन तकनीकों का उपयोग करक
े बहत समय लगता ह।ै इसवलए समय और ु ससािनों की कमी ह।ै ं व्यवक्तगत िरूरतों से बचाि : एक किा में हर छात्र एक दसरे से अलग ह।ै उनके पास विवर्न्न ू आिश्यकता , रुवच, स्तर और िमता ह।ैं वििक कर्ी र्ी यह सवनवश्चत नहीं कर सकत े ह ैं वक उनके ु ं छात्र समान स्तर की समझ के होंग।े यह महत्िपणभ ह ै वक वििकों को अपने वनदिे और सार्थ ही इस तरह ू से आकलन करना चावहए वक िह व्यवक्तगत आिश्यकता और रुवचयों को परा करे। कर्ी-कर्ी ू ं वििक सर्ी विद्यावर्थभयों के वलए एक ही आकलन विवि का उपयोग करते ह ैं िो अच्छा नहीं ह।ै यह आिश्यक ह ै वक वििकों को अविगम के आकलन के ऐसे तरीकों को बनाए और अपनाना चावहए िो सविय और अनर्िात्मक अविगम का समर्थभन करते ह ैं और छात्रों की अलग-अलग ििै वणक िलै ी के ु वलए उपयक्त ह।ैं िसै े अविगम के आकलन के तरीकों के सार्थ उनके उद्दश्े यों का गठबिन ह,ै िसै े ही , ु ं वििण और सीखने के तरीकों का र्ी गठबिन ह।ैं कछ मामलों म,ें एक अििारणा या कौिल को ु ं वसखाने के वलए इस्तेमाल वकया िाने िाला तरीका ही आकलन के वलए र्ी उपयोग वकया िा सकता ह,ै उदाहरण के वलए, अििारणा प्रश्न या प्रदिनभ मल्याकन। विवर्न्न वििण, सीखन े और आकलन विवियों ू ं का उपयोग करना छात्रों के बीच व्यापक िवै लयों की विवििता को समायोवित करना सर्ि बनाता ह।ै ं ऐसी आकलन विवियों को बनाना और स्िीकारना िो अििारणा की गहरी समझ का समर्थभन करते ह:ैं ं व्यािहाररक वस्र्थवतयों म ें ज्ञान और कौिल को लाग करने के वलए अििारणा की गहरी ू ं समझ, पि भ अपेवित ह।ै प्रारवम्र्क मल्याकन विवियााँ, उदाहरण के वलए, अििारणा प्रश्नों का उपयोग, ू ू ं वििकों और छात्रों के समझ का विकास की िााँच करने और भ्रम को दर करने के वलए अिसर प्रदान ू करते ह ैं । साराविक आकलन विवियााँ, उदाहरण के वलए, मौवखक या वलवखत परीिाए, समस्या को ं ं सलझाने के अनप्रयोगों के अलािा गहरी, िचै ाररक समझ को लवित करने के वलए आिश्यक होती ह।ै ु ु अभ्यास प्रश्न 4. आकलन म ें प्रमख मद्दे कौन से ह?ैं ु ु 5. व्यवक्तगत िरूरतों से बचाि का क्या मतलब ह?ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 219 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.7 किा म उपयुि आकलन रणनीरत के सफल कायान्वयन के रलए ें रणनीरत- एक किा में हर व्यवक्त अलग और अवद्वतीय ह।ै कछ औसत ह,ैं कछ मिे ािी, कछ िीमी गवत िाल े ु ु ु वििार्थी, कछ वपछडे, कछ सामाविक रूप से िवचत ह ैं और कछ वििषे आिश्यकता िाले बच्चे ह।ैं ु ु ु ं दसरे िब्दों म ें आि की किा समािेिी किा ह ै िहा विवर्न्न प्रकार के छात्र/ छात्राए अध्ययन करते ह।ैं ं ू चवक छात्र अलग-अलग प्रकार के ह ैं सर्ी छात्रों के वलए समान तरह का आकलन कै से कायभ कर सकता ूं ह?ै समान प्रकार की आकलन तकनीक सर्ी छात्रों िो वक िरूरतों, रुवच और प्रेरणा स्तर में वर्न्न ह,ैं के वलए लाग नहीं की िा सकती ह ै । बहत सारे आकलन तकनीक उपलब्ि ह।ैं कौन सी तकनीक का चयन ु ू करना चावहए िो वक छात्रों के वलए उपयक्त हो, एक चनौतीपण भ काम ह।ै इन चनौवतयों का सामना कै से ु ु ू ु करना ह?ै ये चनौतीपणभ ह।ै लेवकन वििण-सीखने की प्रविया में प्रमख र्वमका वनर्ाने िाल े वििक इन ु ू ु ू चनौवतयों का सामना कर सकत े ह।ैं एक वििक से बेहतर अपने छात्र को कौन िान सकता ह?ै िह ु वििक ही ह ै िो एक ऐसा िातािरण बना सकता ह ै िहा छात्रों को लग े वक िे वििण सीखने की प्रविया ं में र्ागीदार ह।ैं वनम्नवलवखत कछ रणनीवतया ह ैं िो आकलन प्रविया के स.ल कायाभन्ियन में वििक ु ं ं की सहायता कर सकती ह:ैं i. सीखने के िररणामों और सफिता को स्िि करना, साझा करना और समझना- छात्रों को िास्ति म ें समझना चावहए वक उनके किा का अनर्ि क्या होगा? और उनकी स.लता को ु कै से मापा िाएगा, यह वििण-सीखने की प्रविया का एक अवनिायभ वहस्सा ह।ै वििकों को स्पि रूप से स.लता के मानदड को पररर्ावषत करने के वलए सरनामा (rubrics) बनाना चावहए और ं इसमें महारत हावसल करने के वलए समवर्थभत छात्र के कायभ का उदाहरण िावमल करना चावहए। सरनामा को कायभ (assignment) से आसानी से िोडा िाना चावहए। मॉडल काम (model work) के उदाहरणों को समझ म ें आसानी के वलए कायभ (assignment) के र्ीतर रखा िा सकता ह।ै विद्यावर्थभयों को अपने स्िय के अविगम से सबवन्ित परीिण, उत्तर सवहत, बनाने की ं ं अनमवत दी िानी चावहए। इससे वििक को उनके मल्याकन प्रविया में मदद वमल सकती ह।ै ु ू ं इसके अलािा िे अपने छात्रों के सीखने के स्तर को िान सकें ग।े ii. प्रिावी कक्षा की चचात, गधतधवधियों और सीखने के कायत िो सीखने के प्रमाण प्रिान करे, का योिनीकरण- वििकों को अक्सर छात्रों की समझ की िाच करनी चावहए विसस े वक ं वििण को तदनसार अनकवलत वकया िा सके । वकसी अििारणा को पढ़ान े के बाद छात्रों को ु ु ू उनके बारे म ें िो उन्होंने सीखा ह ै या िो वक ि े पहले से ही िानते ह,ैं की सार्थभक चचा भ के वलए वििक को प्रश्न पछना चावहए । उन्ह ें छात्रों के अिलोकन के सार्थ-सार्थ चचाभ में र्ी र्ाग ू ं लेना चावहए। छात्र की प्रवतविया के आिार पर, वििक छात्र की िरूरतों (आगे की समझ के ं वलए सहकमी चचा भ में आगे बढ़ने), रुवच और समझ के स्तर के अनरूप वििण को अनकवलत ु ु ू कर सकता ह।ै यह महत्िपणभ ह ै वक वििकों को अपने छात्रों को ऐसे कायों में िावमल करना ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 220 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 चावहए िो इस बात का प्रमाण प्रदान करता हो वक छात्र सीखने के लवित पररणामों की वदिा में कै से प्रगवत कर रह े ह?ैं इन प्रमाणों को वििकों द्वारा एकत्र वकया िाना चावहए और छात्रों को र्ी सवचत वकया िाए तावक ि े अपनी ताकत और कमिोररयों को िान सकें । इसके अलािा ू वििकों को र्ी पता चल सकता ह ै वक कै से वििा के दौरान छात्र सीखने की प्रविया में प्रगवत कर रह े ह?ै तावक विद्यावर्थभयों की ितभमान समझ और िावछत लक्ष्यों के बीच की खाई को दर ं ू करन े के वलए आिश्यक वििण समायोिन वकया िा सके । iii. अधिगम को आगे बढाने वािी प्रधतधक्रया प्रिान करना - एक अिर का ग्रेड दने े के बिाय, वििकों को छात्रों के वलए के िल प्रवतविया प्रदान करना चावहए।
"विचार यह ह ै वक वििक, वििार्थी को ऐसा कछ करने के वलए प्रवतविया दते ा ह ै तावक वििार्थी की तत्काल प्रवतविया ु यह हो सके वक िे सोचें"
(विलीम, 2006)। आकलन का सार के िल छात्रों को ग्रेड प्रदान करने और अगली किा में उन्ह ें प्रोन्नवत दने े के वलए ही नहीं बवल्
3%
1%
0.8%
0.6%
0.5%
0.5%
0.4%
0.3%
0.1%
क विद्यावर्थभयों की उपलवब्ियों को बढ़ाने में र्ी मदद करना ह।ै यह के िल तर्ी सर्ि ह ै िब ि े अपनी प्रगवत के बारे म ें तात्कावलक ं प्रवतविया प्राप्त हो। इसवलए यह महत्िपणभ ह ै वक वििकों को छात्रों को तत्काल प्रवतविया प्रदान ू करनी चावहए तावक ि े अपनी ताकत और कमिोररयों के बारे में िान सकें । विद्यावर्थभयों को साक्ष्य आिाररत प्रवतविया प्रदान
की िानी चावहए िो उद्दश्े य से सबवित वनदिे ात्मक पररणामों और ं ं स.लता के वलए मानदड से िडा हआ ह।ै प्रवतविया, छात्र के सीखने के वििषे गण और छात्र ु ु ु ं अपने में सिार लान े हते क्या कर सकता ह ै के बारे में चचाभ या सझाि के सार्थ होना चावहए। ु ु ु प्रवतविया वििार्थी विविि होना चावहए। वििक अलग-अलग तरीकों का पता लगा सकत े ह ै विसमें ि े और उनके छात्र (सहकमी आकलन के वलए) अपने वििण मच का उपयोग ं प्रवतविया, या तो वलवखत, या ऑवडयो या िीवडयो के माध्यम द े सकत े ह।ैं छात्रों को वदए गए कायभ के वलए ि े वलवखत या ऑवडयो प्रवतविया प्रदान कर सकते ह।ैं iv. एक िसरे के धिए धिक्षण ससािनों के रूि में धिक्षाधर्तयों को सधक्रय करना - किा में ं ू िब छात्र एक-दसरे के सार्थ बातचीत करते ह ैं तो ि े एक-दसरे से बहत सी बात ें सीखते ह।ैं ि े ु ू ू िवटल अििारणा को स्पि करते ह,ैं िब ि े एक-दसरे के सार्थ बातचीत करते ह।ैं इसवलए ं ू वििक को सहयोगपणभ सीखने (collaborative learning) िसै े समह पररयोिना और ू ू ं चचाभ को प्रोत्सावहत करना चावहए और छात्रों को एक-दसरे से सीखने का अिसर प्रदान ं ू करना चावहए । लेवकन यह आिश्यक ह ै वक वििक एक ऐसा िातािरण बनाए िहा छात्रों को ं लगे ह ै वक ि े सीखने की प्रविया में र्ागीदार ह।ैं वििक को विश्वास और आपसी सम्मानिनक िातािरण स्र्थावपत करना चावहए िहा सर्ी छात्र रचनात्मक प्रवतवि
या प्रदान करने के वलए ं सरवित महसस करते ह।ैं छात्रों को अपने सीखन े के बारे में मटे ा कौवग्नवटि वचतन ु ू ं (metacognitive thinking) का अिसर प्रदान करने के वलए स्िय और सहकमी आकलन, ं दोनों महत्िपणभ ह।ैं वििकों को अपने छात्रों के सीखने के मटे ा कौवग्नवटि वचतन के विकास में ू ं सहायता करनी चावहए। यह छात्रों को स
ीखने की प्रविया में अपने सीखने और अपनी प्रगवत का उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 221 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 मल्याकन के वलए विम्मदे ारी लेन े में सिम बनाता ह।ै वििकों को अिसर और वििा प्रदान ू ं करनी चावहए, िो दिाभती हो वक कै से छात्रों को सार्थभक और रचनात्मक प्रवतविया के वलए इस वचतनिील प्रविया में र्ाग ले सकत े ह।ैं इस तरह से छात्रों को समहों म ें काम करने के वलए ू ं अनकल और स्ितत्र िातािरण प्रदान करने से छात्रों को अपने सीखने म ें सिार लान े में मदद ु ू ु ं वमल सकती ह।ै v. अिने स्वय के सीखने के माधिकों के रूि में धिक्षाधर्तयों को सधक्रय करना - छात्रों को ं आत्म-आकलन के वलए अिसर दके र, एक वििक छात्रों को अपने स्िय के सीखने की ं वज़म्मदे ारी और स्िावमत्ि लेने की अनमवत दते ा ह,ै विससे अविगम अविक सार्थभक बन िाता ह ै ु और इस प्रकार, िचनबद्ता बढ़ िाती ह।ै क्योंवक सीखने का स्ि विवनयमन प्रदिनभ म ें सिार ु लाता ह,ै वििक को प्रत्येक
3%
1%
0.8%
0.6%
0.6%
0.4%
0.3%
छात्र को अपने अध्ययन की इकाई से सबवित स्ि-मल्याकन का ू ं ं ं अिसर प्रदान करना चावहए। स्ि मल्याकन छात्रों को उनके सीखने के बारे में पछने का एक ू ू ं तरीका ह ै और िानकारी का उपयोग र्विरय के वनदिे ों की सहायता के वलए वकया िा सकता ह।ै इसमें इकाई के लक्ष्यों या पररणामों के सबि में छात्र अपनी खद की सीखने के बारे म ें अपनी ु ं ं वचता दिाभते ह।ै चेकवलस्ट या विस्तत उत्तर िाले प्रश्न
छात्रों की सहायता के वलए उपयोग वकए ृ ं िा सकते ह।ैं इसमें वििक को ऐसे सिाल िावमल करने चावहए, विसमें छात्रों को विषय के बारे में समझ और उन िेत्रों की पहचान करनी चावहए, विन्ह ें अविक िानकारी या अविक अभ्यास की आिश्यकता होती ह।ै छात्र अक्सर अपने सीखने की िरूरतों को स्पि करने म ें सिम होते ह।ैं वििकों को सही सिाल पछने की िरूरत ह।ै आत्म मल्याकन को सम्मावलत करने के वलए ू ू ं वििक को कई तरीकों को खोिने में सिम होना चावहए। अभ्यास प्रश्न 6. आकलन के बाद प्रवतविया दने े के महत्ि को सिेप म ें बताए। ं 7. एक छात्र अपने अविगम म ें वकस प्रकार मदद कर सकता/सकती ह?ै उदाहरण द।े 5.8 सारांश इस इकाई म ें हमने चचाभ की ह ै वक उपलवब्ि के मानकों ने बालविहार (Kindergarten) से किा 10 तक
1%
0.6%
0.5%
0.5%
0.1%
0.1%
प्रत्येक िषभ के स्तर पर छात्रों से अपेवित सीख की गणित्ता (समझ की गहराई, ज्ञान की मात्रा और कौिल ु की पवतभ) का िणनभ वकया ह।ै प्रत्येक उपलवब्ि मानक छात्रों के सीखने की गणित्ता, िो आिश्यक ह ै और ू ु उनके अगले स्तर तक प्रगवत करने की िमता को स्पि करता ह।ै आकलन िह प्रविया ह ै िो यह सवनवश्चत ु करता ह ै वक प्रत्येक
छात्र के पास कई कायभ ह,ैं िो प्रमाण ह ै वक छात्र ने क्या हावसल वकया ह ै ? आकलन उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 222 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 सीखने का एक महत्िपणभ िटक ह ै क्योंवक यह छात्रों को सीखने म ें सिार करने म ें सहायता करता ह।ै िब ू ु छात्र यह दखे पाएग े वक ि े एक किा म ें कै सा प्रदिनभ कर रह े ह?ैं तो िे यह वनिाभररत करने म ें समर्थभ होंगे ं वक ि े पाठयिम सामग्री को समझते ह ैं या नहीं और उनकी ताकत और कमिोररयों क्या ह?ैं आकलन यह ् वनिाभररत करता ह ै वक सीखन े के उद्दश्े यों को परा वकया गया ह ै या नहीं। आकलन छात्रों को प्रेररत करने में ू र्ी मदद कर सकता ह।ै यवद छात्रों को पता ह ै वक ि े खराब कर रह े ह,ैं तो िे कठोर पररश्रम करना िरू कर ु सकते ह।ैं लेवकन यह तब ही हो सकता ह ै िब आकलन और वििण सार्थ सार्थ में हो और सीखने के वलए आकलन िह प्रविया ह ै िो विद्यावर्थभयों के सार्थ-सार्थ वििकों को वििण और सीखन े की प्रविया की स.लता के बारे म ें िानने का अिसर प्रदान करती ह।ै सीखने के वलए आकलन (प्रारवर्क रचनात्मक आकलन) वििकों और छात्रों द्वारा वनदिे के वहस्से के ं रूप में उपयोग की िान े िाली एक प्रविया ह ै िो सतत वििण को समायोवित करने और मख्य सामग्री म ें ु छात्रों की उपलवब्ि में सिार करने के वलए प्रवतविया प्रदान करता ह।ै सीखन े के वलए आकलन के रूप में, ु प्रारवम्र्क रचनात्मक आकलन प्रर्थाए छात्रों को सीखने के स्पि लक्ष्य, उदाहरणों और मिबत और ू ं कमिोर काम के मॉडल, वनयवमत िणनभ ात्मक प्रवतविया, और आत्म मल्याकन करने की िमता, सीखन े ू ं को रैक (track) करने और लक्ष्य वनिाभरण प्रदान करते ह ैं (Adapted from Council of Chief State School Officers, FAST SCASS) हमने यह र्ी चचा भ की ह ै वक परीिा , कायभ की प्रस्नोतरी, वमनट कागि, वनकास वटकट, ं विचार िोडी साझा, सम्मले न, चचा,भ मौवखक प्रश्न, एक वमनट का पेपर आवद बहत सारे सीखने के वलए ु आकलन वक रणनीवतयााँ ह।ैं यह वििकों की िमता और योग्यता पर वनर्रभ करता ह ै वक कौन सी रणनीवत का चनाि उसके छात्रों के वलए .ायदमे द ह?ै ु ं लेवकन आकलन प्रविया में कछ समस्याए और चनौवतया ह,ैं विस े वििक को सामना करना ु ु ं ं पडता ह।ै गणित्ता के मद्द े ह ैं िसै े प्रश्नों की गणित्ता इतनी अच्छी नहीं ह।ै पारदवितभ ा का मद्दा ह।ै प्रारवर्क ु ु ु ु ं मल्याकन का कम उपयोग होता ह।ै ििै , विश्वसनीय और उवचत वििण विवियों और उपकरणों की कमी ू ं िसै ी कछ चनौवतया ह।ैं मल्याकन के उपकरणों की कमी ह ै िो उवचत, वनरपि और आसानी से दोनों ु ु ू ं ं वििकों और छात्रों द्वारा समझा िा सकता ह।ै इसके अलािा वनयवमत, त्िररत और विस्तत प्रवतविया की ृ कमी ह,ै िो छात्रों के सिार के वलए आिश्यक ह।ै ु आि की किा समािेिी ह ै और एक ही आकलन रणनीवत सर्ी छात्रों के वलए काम नहीं करेगी। इसके अलािा कोई आक्लन पद्वत िास्ति में 100% सही नहीं ह।ै एक किा म ें विचार करने के वलए बहत कछ ह,ै और इतने सारे अलग-अलग छात्र ह।ैं इसे सही करने के वलए विविि कायों को विकवसत ु ु करना िावमल ह।ै इसका अर्थभ ह ै मापदड को बदलना तावक छात्र इसे समझ सकें । समय का एक बडा ं वनििे र्ी ह।ै इस मामले म ें आकलन एक चनौती ह।ै लेवकन चनौवतयों का सामना करना औरआगे बढ़ना ु ु अपने आप म ें एक चनौती ह ै । इसवलए उस पद्वत का चयन करना िो छात्रों के वलए उपयक्त ह,ै वििक ु ु की योग्यता पर वनर्रभ करता ह ै । हालावक वििक इन चनौवतयों पर काब पा सकता ह ै यवद िह कछ ु ू ु ं रणनीवतयों को ग्रहण कर लेते ह ै और िे आकलन के तरीके और उपकरणों को अपना सकते ह ैं िो वक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 223 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 अििारणात्मक समझ और अनर्िात्मक सीखना, वििेषकर पररयोिना आिाररत पाठयिमों, सचार ् ु ं कौिल और सहकमी आकलन को आकता हो । प्रवतविया आकलन का एक महत्िपणभ वहस्सा ह।ै वबना ू ं वकसी प्रवतविया के आकलन अर्थभहीन ह।ै इसवलए छात्रों का आकलन करने के तरत बाद छात्रों को ु ं वलवखत या मौवखक रूप से प्रवतविया दने ा वििक का महत्िपण भ और सिोपरर कतभव्य ह,ै तावक ि े सिार ू ु कर सकें । यह उन्ह ें अपनी िवक्तयों और कमिोररयों के बारे में िानने में सिम बनाता ह।ै इसवलए आकलन के सार्थ-सार्थ प्रवतविया प्रदान वकया िाना चावहए अन्यर्था आकलन व्यर्थभ होगा क्योंवक यह उपलवब्ि में योगदान नहीं दगे ा । प्रस्तत इकाई म ें आपने आकलन से सबवन्ित मद्द े एि चनौवतयों का अध्ययन वकया तर्था आकलन के ु ु ु ं ं िास्तविक, व्यापक, गवतिील एि सास्कवतक स्िरूप को समझा तर्था उसे किा में लाग करने के वलए ृ ू ं ं उपयोग में लायी िान े िाली उपयक्त रणनीवतयों को र्ी स्पि रूप से समझा। विनके माध्यम से आप ु र्विरय म ें एक ऐसे वििक बन सकें ग े िो उपयक्त आकलन प्रविया को अविक समर्थभ बनाने का प्रयास ु ं करेंग े तर्था आपकी किा का अविगम स्तर बेहतर हो सके गा ि विद्यावर्थभयों में आत्मविश्वास ि सिनिीलता को बढ़ािा वमलेगा। ृ 5.9 शब्दावली 1. सीखने के धिए आकिन- सीखने के वलए आकलन (प्रारवर्क आकलन) वििकों और छात्रों ं द्वारा अनदिे के वहस्से के रूप में उपयोग की िाने िाली एक प्रविया ह ै िो सतत वििण को ु समायोवित करने के वलए और मख्य सामग्री म ें छात्रों की उपलवब्ि म ें सिार करने के वलए ु ु प्रवतविया प्रदान करता ह ै । 2. धनकास धटधकट- वनकास वटवकट पढ़ाए गए महत्िपणभ अििारणा पर वििक द्वारा उठाए गए ू प्रश्न पर छात्र द्वारा दी गई वलवखत प्रवतविया ह ै िो वकसी गवतविवि के अत में या एक वदन के ं अत में की िाती ह।ै ं 3. धवचार िोड़ी साझा- छात्र व्यवक्तगत रूप से वििक द्वारा उठाए गए प्रश्न पर सोचते ह,ैं व.र िोडी म ें (पाटभनर के सार्थ चचाभ करते ह)ैं , अत में परी किा के सार्थ साझा करते ह।ै ू ं 4. एक धमनट का कागज़- आमतौर पर वदन के अत में एक वमनट के कागि का इस्तेमाल होता ह ै ं ।समहों (या व्यवक्तगत रूप से) में
छात्रों को वलवखत में एक सविप्त प्रश्न का उत्तर दने े के वलए कहा ू ं िाता ह।ै उसका ििाब वलखने के वलए उन्ह ें दो से तीन वमनट वमलते ह।ैं छात्रों को समझ के बारे म
ें िागरूकता हावसल करने के वलए प्रवििक द्वारा कागि एकत्र और विश्लेषण वकया िाता ह।ै 5. सीखने का िररणाम (Learning Outcomes)- ज्ञान, समझ, कौिल, दृविकोण, मल्य, ू आवद, िो वििार्थी कछ सीखने के दौरान प्राप्त अनर्ि के पररणामस्िरूप प्राप्त होते ह,ैं उन्ह ें ु ु सीखने का पररणाम कहा िाता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 224 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 5.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1. यह एक वििक को यह दखे ने में मदद करता ह ै वक मौिदा वििण रणनीवतयााँ कै से काम कर रही ू ह?ैं यह वििण प्रर्था को सिारने और बदले म ें छात्र के अविगम म ें मदद करता ह।ै ु 2. वििक एक सिाल पछता ह ै विस पर छात्र अलग-अलग सोचते ह,ैं अपनी सोच को वलखते ह,ैं ू िोडी म ें र्ागीदारों के सार्थ चचाभ करते ह,ैं व.र किा के सार्थ साझा करते ह।ैं 3. आप गवणत के वकसी र्ी समस्या को हल करने के वलए द े सकते ह।ैं 4. प्रमख मद्द े ह:ैं विद्यावर्थभयों की उपलवब्ि के वलए साराि परीिण ििाबदहे । गणित्ता से िडे मद्द े ु ु ु ु ु ं िसै े छात्रों को आकने के वलए इस्तेमाल वकए िान े िाल े प्रश्नों की गणित्ता अच्छी नहीं ह।ै और ु ं प्रारवम्र्क/रचनात्मक आकलन का कम प्रयोग वकया िाता ह ै । 5. एक किा म ें विवर्न्न िरूरतों, रुवच और प्रेरणा स्तर के छात्र ह।ैं अगर इनको वििकों द्वारा अनदखे ी की िाती ह ै तो ि े प्रगवत नहीं कर सकत।े 6. प्रगवत के वलए प्रवतविया महत्िपणभ ह।ै यह छात्रों को अपनी प्रगवत की वस्र्थवत के बारे में िानने म ें ू मदद करता ह।ै 7. खद से बेहतर वकसी व्यवक्त की ताकत और कमिोररयों को कौन िानता/ िानती ह?ै इसवलए ु आत्म मल्याकन िह मच ह ै िो व्यवक्त को खद का न्याय करने के वलए मच प्रदान करता ह।ै स्ि ू ु ं ं ं मल्याकन की प्रविया के द्वारा एक छात्र अपने स्िय के सीखन े म ें मदद कर सकता ह।ै ू ं ं 5.11 सदं र् भ ग्रंथ सची ू 4. Angelo, T.A. and Cross, K.P. (1993),
“Classroom Assessment Technique”,
A Handbook for College teachers, Second Edition. Retrieved on December 16, 2016, from http://www.ncicdp.org/documents/Assessment%20Strategies.pdf 5. Crockett, L. W. (2016),
“5 Great Formative Assessment Strategies for Teachers”.
Retrieved on December 18, 2016 from https://globaldigitalcitizen.org/5-great-formative-assessment-strategies 6. Goodrich, K (2012),
“Dylan Wiliam & The 5 Formative Assessment Strategies to Improve 7. Student Learning”.
Retrieved on December 18, 2016 from https://www.nwea.org/blog/2012/dylanwiliamthe5formativeassessmentstrategie stoimprovestudentlearning/ 8. Lambert, K (2012),
“Formative Assessment Strategies”.
Retrieved on December 16, 2016 from उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 225 ु अधिगम के धिए आकँ िन CPS 3 http://www.levy.k12.fl.us/instruction/Instructional_Tools/60formativeassessme nt.pdf 9. Regier, N. (2012),
“Book Two: 60 Formative Assessment Strategies”,
Focus On Student Learning - Instructional Strategies Series. Retrieved on December 16, 2016, from http://www.stma.k12.mn.us/documents/DW/Q_Comp/FormativeAssessStrategi es.pdf 10. Singh, A.K. (2014),
“Assessment: Current Status and Challenges”.
Retrieved on December 22, 2016 from http://www.slideshare.net/aksingh1959/issuesinassessment 5.12 रनबधात्मक प्रश्न ं 1. इस इकाई म ें वकए गए चचाभ के आिार पर अपनी पसद का कोई र्ी विषय लें और उवचत आकलन ं रणनीवत चनें। इकाई के वलए लक्ष्य समह (वििावर्थभयों) का चयन करें, वििार्थी का ख़ाका (profile) ु ू ढढ,ें वनदिे नात्मक उद्दश्े यों का वनमाभण करें, सामग्री (content) का चयन करें और व्यिवस्र्थत करें ूं और उपयोग वकए िान े िाले सािन (media) के बारे में र्ी वनणयभ लें। 2. आपके द्वारा दखे ी गई स्कल में उपयोग की िाने िालीआकलन रणनीवतयों पर एक ररपोटभ तैयार करें। ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 226 ु