BED I- CPS 1 पाठयचयाा में व्याप्त भाषा ् Language across the Curriculum शिक्षक शिक्षा शिभाग, शिक्षािास्त्र शिद्यािाखा उत्तराखण्ड मक्त शिश्वशिद्यालय, हल्द्वानी ु ISBN: 13-978-93-85740-66-4 BED I- CPS 1 (BAR CODE) BED I- CPS 1 पाठयचया' म) !या$ भाषा ् Language across the Curriculum िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ #ानी ु अ
"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ"
य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ
"य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* ु ु उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर मह$मद िमयाँ (बा# िवशषे )- सद#य), पव$ अिध(ाता, िश#ा सकाय, !ोफे सर सी० बी० शमा$ (बा# िवशषे )- सद#य), अ&य', रा*+ीय ु ू ं जािमया िमि&लया इ)लािमया व पव- कलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद 0 म# िव&ालयी िश,ा स/थान, नोएडा ू ु ु ं ू िव#िव$ालय, हदै राबाद !ोफे सर पवन कमार शमा/ (बा# िवशषे )- सद#य), अिध(ाता, ु !ोफे सर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशषे )- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा सकाय व सामािजक िव,ान सकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी ं ं एम० जे० पी० !हले ख&ड िव*िव+ालय, बरेली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफे सर के ० बी० बधोरी (बा# िवशषे )- सद#य), पव( अिध,ाता, िश0ा सकाय, !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ु ू ं ं एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश#ाशा% ं ं उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ं म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स!ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ु उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा एव सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु ु ं िव#िव$ालय स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एव सह- ु ु ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं ं ु िश#ाशा% िव'ाशाखा एव सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख!ड ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, िश3ाशा4 ु ं ं म# िव&िव'ालय ु िव#ाशाखा एव सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव!ालय ु ं िदशाबोध: (ोफे सर जे० के ० जोशी, पव$ िनदशे क, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 िव8िव.ालय, ह =ानी ू ु काय$%म सम(वयक: काय$%म सह-सम#वयक: पाठय&म सम)वयक: पाठय&म सह सम*वयक: ् ् डॉ० पतजिल िम( ं डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सहायक !ोफे सर, िश#ा िव&ापीठ, िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड वधम# ान महावीर खला िव.िव/ालय, ु उ
"राख&ड म* िव#िव$ालय, म# िव&िव'ालय, ह,-ानी, नैनीताल, म# िव&िव'ालय, ह,-ानी, नैनीताल, ु ु ु कोटा, राज'थान ह"
#ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ राख&ड !धान स&पादक उप स$पादक डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, उ
"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ"
राख&ड उ
"राख&ड म* िव-िव#ालय, ह()ानी, नैनीताल, उ/राख2ड ु ु िवषयव%त स)पादक भाषा स%पादक !ा#प स&पादक !फ़ सशोधक ु ू ं स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु ु ु सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ"
राख&ड म* िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु ु ु ु िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय साम$ी िनमा(ण !ोफे सर एच० पी० श#ल !ोफे सर आर० सी० िम# ु िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय िनदशे क, एम० पी० डी० डी०, उ
"राख&ड म* िव-िव.ालय ु ु © उ"
राख&ड म# िव&िव'ालय, 2017 ु ISBN-13-978-93-85740-66-4 !थम स&करण: 2017 (पाठय&म का नाम: पाठयचया' म) *य, भाषा, पाठय&म कोड- BED I- CPS 1) ् ् ् ु ं सवा$िधकार सरि%त। इस प%तक के िकसी भी अश को !ान के िकसी भी मा+यम म - .योग करने से पव5 उ7राख9ड म िव=िव ालय से िलिखत अनमित लेना आवCयक ह।ै इकाई ु ु ं ू ु ु लेखन से सबिधत िकसी भी िववाद के िलए पण*) पेण लेखक िज-मदे ार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ
"राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म 2 होगा। ं ं ू िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय 8ारा िनदशे क, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ िव2िव3ालय के िलए मि"
त व %कािशत। ु ु ु !काशक: उ"राख&ड म* िव-िव.ालय; म#क: उ"राख&ड म* िव-िव.ालय। ु ु ु काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठय&म का नाम: पाठयचया' म) !या$ भाषा, पाठय&म कोड- BED I- CPS 1 ् ् ् ख"ड इकाई स#या स#या इकाई लेखक ं ं 1 1, 2, 3 डॉ ० क#णका&त ि)पाठी ृ व 6 सहायक &ोफे सर, िश-ा िव/ापीठ, िमजोरम िव5िव/ालय, आइजोल, िमजोरम 1 4 व 5 डॉ० पतजिल िम# ं 2 1, 2, 3 सहायक &ोफे सर, िश#ा िव&ापीठ, वधम# ान महावीर खला िव.िव/ालय, कोटा, राज5थान ु व 4 BED I- CPS 1 पाठ !या$ भाषा यचया' म) ् Language across the Curriculum ख"ड 1: िव#ािथ&य( क* भाषायी प0भिम ृ ू इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 2-22 1 भाषा का िवकास: बोली और िलिप 23-36 2 भाषा और िश(ा 37-54 3 बहभािषकता # 55-65 4 िव#ालय क( भाषा बनाम घर क( भाषा या बोली 66-77 5 मानक भाषा के (प म * िव-ालयी भाषा क" शि# क% गितक% बनाम घर क% भाषा या बोली क" शि# क% गितक
", #यनता या कमी का िस-ात, िनरतरता या गैर िनरतरता का ू ं ं ं िस#ात ं 78-94 6 अनदशे न क( भाषा ु ख"
ड 2: क प$रचचा( तथा पठन-बोध क% &कित ृ इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 96-108 1 क"ा म % सवाद :अथ#, !काय%, िवशषे ता एव अ/यास, स"बि%धत िवषय %े' म ) अिधगम ं ं वि$ के िलए मौिखक भाषा /योग करने क5 रणनीित ृ 109-117 2 सीखने के उपकरण के +प म - प"रचचा&, क(ा- क" म $ %&' का )व+प, %&' के %कार एव ं िश#क क% भिमका ू 118-134 3 िवषय %े' म ) पठन काय': सामािजक िव(ान, िव(ान, गिणत एव िविवध सािह)य+ क- भाषा ं म," अथ# $काशक एव िववरणा(मक िवषय व-त, सि12ीकरण िवषय व-त, ह"तातरण ु ु ं ं ं िवषय व%त व िचतनपरक िवषयव%त क. /कित, %क.मा िस4ात ृ ु ु ं ं 135-145 4 िवशषे स'दभ* म , लेखन : सामािजक िव3ान, िव3ान, गिणत एव िविवध सािह;य= क ं भाषा म % िलखने क, -ि.या,पढ़ने एव िलखने के बीच स0ब1ध 3थािपत करना ,ब8च9 के ं स#$यय को समझने के िलए उनके लेखन का िव+ेषण करना: सीखने एव समझने के िलए ं ं तरीके एव मा+यम के -प म / उ12े यपरक लेखन ं पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 1 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ईकाई 1 - भाषा का विकास: बोली और वलवि 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 विविन्न मानि समहों द्वारा सम्प्प्रेषण हते बोली का प्रयोग: ऐवतहावसक पररप्रेक्ष्य ू ु 1.4 िाषा उत्पवत्त से सम्प्बवित श्रोत ि आिार ं 1.5 वलवप का विकास और विविन्न िाषाओ की वलवप ं 1.5.1 वलवप 1.5.2 वलवप और बोली में अतर ं 1.5.3 वलवप और बोली में सम्प्बि ं 1.6 वलवप के विकास का इवतहास 1.7 विविन्न िाषाओ की वलवपयााँ ं 1.7.1 िारतीय वलवपयााँ 1.7.2 विदशे ी वलवपयााँ 1.8 साराश ं 1.9 शब्दािली 1.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 1.11 सदिभ ग्रथ सची ि उपयोगी पाठयसामग्री ् ू ं ं 1.12 वनबिात्मक प्रश्न ं 1.1 प्रस्तावना िाषा का प्रयोग वितना ही नैसवगकभ , सरल और उपयोगी है, इसको पररिावषत करना उतना ही कवठन ह।ै िाषा मानि की नैसवगकभ िैिीय क्षमता के साथ ही एक सास्कवतक विशेषता िी ह।ै िो विविन्न िाषाओ ृ ं ं के मध्य अतर का आिार ह।ै िाषा वकसी समाि कें अन्दर अनेकानेक िविल व्यिस्थाओ के मध्य एक ं ं िविल व्यिस्था (System) ह।ै विसम ें कई उप-व्यिस्थाए होती ह।ै मानि िाषा का विकास कब और ं कै से हआ इसपर कोई एक मत वनराकरण नही हो सका ह।ै विषय की िविलता और अनिििन्य साक्ष्यों ु ु के अिाि के कारण (Linguistic Society of Paris, 1871) ने इस विषय पर तत्कालीन और िविष्य म ें वकसी िी पररचचाभ पर रोक लगा दी थी(Larson, Dprez & Yamakido, 2010)। यह प्रवतबन्ि पविमी दशे ों म ें बीसिीं शदी के अत तक प्रिािकारी बना रहा ह ै तथावप चोमस्की, ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 2 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् हउसर, विच (Chomsky, Hauser, Fitch) आवद विद्वानों के इस वदशा म ें सतत कायभशील रहने से इस विषय पर लगा प्रवतबि प्रतीकात्मक रूप से खत्म हो िाता ह ै और अथभहीन हो िाता ह।ै िाषा की उत्पवत्त ं के विषय म ें उपलब्ि अनेकानेक वसद्ात ि श्रोत प्रचवलत रह ें ह,ै उनमें से कछ पर चचाभ हम आगे के पष्ठो ृ ु ं म ें करेंग।े 1.2 उद्दश्े य इस इकाई को पढ़ने के उपरात आप म ें वनम्प्नवलवखत क्षमताए ाँ अपेवक्षत ह;ै ं 1. िाषा के दो तत्िों बोली और वलवप के सम्प्प्रत्यय को समझ सकें ग।े 2. बोली और वलवप के अतर को स्पष्ट कर सकें ग।े ं 3. िाषा (बोली) के विकास की ऐवतहावसक वििचे ना कर सकें ग।े 4. िाषा की उत्पवत्त से सम्प्बवित विविन्न श्रोतों, आिारों ि वसद्तों का मलयाकन कर सकें गे। ू ं ं ं 5. वलवप के इवतहास को िानते समझते हए बताने म ें सक्षम होंग।े ु 6. वलवप के विविन्न प्रकारों का िगीकरण कर सकें ग।े 7. विविन्न वलवपयों के वलखने के तरीकों म ें अतर स्पष्ट कर सकें गे। ं 8. विविन्न िारतीय और विदशे ी िाषाओ की वलवपयों को बता सकें ग।े ं 1.3 ववविन्न मानव समूहों द्वारा सम्प्प्रेषण हते ु बोली
का प्रयोग: ऐवतहावसक पवरप्रेक्ष्य (Use Of Spoken Languages For Communication By The Various Segments Of Human Groups: A Historical Perspective) इकाई के इस खड म ें हम मानि द्वारा िाषा के प्रयोग क
े इवतहास पर चचा भ करेंग।े िब किी िी िाषा के ं इवतहास की बात आती ह ै तब हमारा ध्यान सिप्रभ थम बोलचाल की िाषा पर ही िाता ह।ै इसम ें कोई सदहे नही ह ै वक सिप्रभ थम बोली(Spoken Language) का विकास हआ था। इस तथ्य को हम मनष्य में ु ु ं िाषा के विकास के अिलोकन से िी वसद् कर सकते ह।ै आपने दखे ा होगा वक बच्च े बोलना पहल े सीखते ह ै और अपनी आिश्यकताओ की पवतभ के वलए आिाि करते ह ै विन ध्िवनयों पर उनकों ू ं सकारात्मक प्रवतविया वमलती ह ै उन ध्िवनयों को ि े दोहरात े रहते ह ै (इस तथ्य के आिार पर िी िाषा की उत्पवत्त का एक वसद्ात प्रवतपावदत वकया गया ह)ै । ये दखे ा गया ह ै वक मानकीकत िाषा के विकास के ृ ं उपरात िी कछ बच्चे स्िय के बनाए हए शब्दो का प्रयोग सदि भ विशषे म ें िारी रखते ह।ै यह वसिभ एक ु ु ं ं ं शब्द का वकसी एक बच्चे के वलए अथभपण भ बनने का सदि भ ह ै । समस्त मानि प्रिावत के विविन्न ू ं िगो/समहों/प्रखडों की सामान्य िाषा और विविन्न िाषाओ के विकास का इवतहास हिारों िष भ पहले ू ं ं प्रारम्प्ि हआ था, िो आि िी िारी ह ै । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 3 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषा की उत्पवत्त के सदि भ म ें सामान्य प्रश्न िो आपके मवस्तष्क म ें आते ह ै और इस विषय पर पि भ की चचा भ ू ं के आिार पर आप यह तो मान सकते ह ै वक िाषा एक िविल और विलक्षण सकलपना ह।ै इसको ं पररिावषत करना और इसकी उत्पवत्त के विषय म ें सही सही कछ कहना असम्प्िि नही पर दरूह कायभ ु ु अिश्य ह।ै िाषा की उत्पवत्त के सही समय के विषय म ें सिीक अनमान लगाना सिि नहीं ह।ै हम यह ु ं नहीं िानते ह ैं वक िाषा का विकास कै से हआ, क्योवक िीिन की उत्पवत्त के प्रारवम्प्िक पदवचन्हों की िााँवत ु िाषा की उत्पवत्त के सदि भ म ें ऐवतहावसक प्रमाण ि साक्ष्य प्रा्त नही हए ह।ै विद्वानों का अनमान ह ै वक यही ु ु ं कछ लगिग एक लाख से पचास हिार िषो के बीच बोलचाल की िाषा का विकास हआ होगा और ु ु वलवखत िाषा का विकास लगिग पााँच हिार िषों पिभ हआ होगा। िसै ा वक िाषा सिी विषयों की ु ू आिार ह ै और एक अतविषभ यक अनशासन िी हएै क अि ययन सामग्री की रूप म ें िाषा अनेकानेक ् ु ं विषय क्षेत्रों के अनतगतभ आती ह ै विन्ह ें हम िाषा कें आिार कह सकते ह।ै इन विविन्न दृवष्टकोणों से हम िाषा की उतपवत्त का इवतहास पता करने का प्रयत्न करते ह।ै 1.4 िाषा उत्पवि से सम्प्बवित श्रोत व आिार ं िाषा की उत्पवत्त से सम्प्बवित सैकड़ो वसद्ात प्रवतपावदत वकए गये ह ै विन्ह ें हम श्रोत ि आिार िी कहते ं ं ह ै । सिी वसद्ातों की चचा भ करना यहााँ सम्प्िि और आिश्यक नही ह ै । अतः हम कछ प्रमख वसद्ातों ि ु ु ं ं विचारिाराओ की चचाभ करेंग।े ं 1. धार्माक श्रोत: हम िानते ह ै वक विश्व के सिी िमों म ें िो प्रमख तत्ि ह ै िह मानि और ईश्वर का ु अवस्तत्ि, विशषे ताए और दोनो तत्िों का आपस म ें सम्प्बि की वििचे ना करते ह।ै िाषा िी एक ं ं मनष्य से िड़ी विशेषता ह।ै अतः विश्व के प्रमख िमों म ें िाषा की उत्पवत्त के सदि भ म ें िी वििचे ना ु ु ु ं वमलती ह।ै वहद िम भ के अनसार िाषा का िन्म दिे ी सरस्िती से हआ। यहदी और ईसाई िम भ के ु ू ु ं ू अनयावययों का मानना ह ै वक ईश्वर ने सिप्रभ थम आदम को उत्पन्न वकया। आदम ने ससार के अन्य ु ं प्रावणयों के विषय म ें िो िी कछ कहा ि े शब्द ही उनके नाम हो गए। ससार के आवद परुष और ु ु ं स्त्री(आदम और हौिा) विस िाषा में बात वकया करते थे उसी से ससार की समस्त िाषाओ का िन्म ं ं हआ। इस बात को वसद् करन,े िााँचने और खडन करने हते 25000 िषों से 500 िषों के पि भ तक ु ु ू ं शोि ि परीक्षण वकए िाते रह(े यले, 2006)। आि के समय म ें िाषा की उत्पवत्त के इस आिार पर ु चचाभ करना अनािश्यक माना िाता ह(ै शमाभ, 2010)। 2. प्राकर्तक ध्वर्ि श्रोत: इस विचारिारा के अनसार प्रारवम्प्िक शब्दों की उत्पवत्त मनष्य द्वारा ृ ु ु प्राकवतक ध्िवनयों के सनने और उनवक आिवत्त करने से हई। इस विचारिारा के अनसार कााँि कााँि ु ृ ृ ु ु की ध्िवन से कौआ शब्द बना। इसी वसद्ात की एक कड़ी के रूप म ें यह विचार आता ह ै वक मानि के ं हष भ और विषाद के अनििों के बाद की स्ििाविक ध्िवनयों िसै े वक ु आवद से िाषा का विकास हआ होगा। यह बात सत्य ह ै वक िाषा म ें कछ शब्द ऐसे िी ह ैं िो िीिों ु ु के नाम और उनके व्यिहार से सम्प्बि रखते ह ै परत सम्प्पण भ मानि िाषा की उत्पवत्त की व्याख्या इस ु ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 4 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् आिार पर नही की िा सकती। शब्द विज्ञान(Morphology), िो वक आि एक पण भ विकवसत ू विषय माना िाता ह,ै िह वकसी िी िाषा
के शब्दों की उत्पवत्त के वसिभ यही श्रोत तो नही बताता ह।ै तथावप इस श्रोत का हम पणभरूप से खडन नही कर सकते ह।ै हो सकता ह ै वक मानि घोषयत्र का ू ं ं प्रयोग इन्ही शब्दों के प्रयोग
स े प्रारम्प्ि हआ हो। ु 3. मातभाषा र्िद्ात: प्राकवतक श्रोत के ही समान मातिाषा वसद्त के मानने िाले सोचते ह।ै इस मत ृ ृ ृ ां ं के अनसार िाषा की उत्पवत्त सिप्रभ थम माता और उसके वशश के बीच सम्प्िाद से हई िो बाद म ें आगे ु ु ु ं चलकर अन्य वनकि सबवियों म ें सम्प्िाद का माध्यम बनते हए समदाय विशेष की िाषा का रूप ले ु ु ं ं लेती ह।ै 4. जैर्वक िरचिा/ शारीररक अिकलि श्रोत: कछ विद्वानों का मानना ह ै वक मनष्य म ें िाषा का ु ू ु ु ां विकास इसवलए हआ वक उसकी िवै िक सरचना अन्य िीिों की तलना म ें अविक अनकल थी। इस ु ु ु ू ं विचार िम म ें सिप्रभ थम हम मनष्य के पणतभ ः वद्वपदीयचर(दो पैरों पर चलने िाला) होने पर ध्यान दते े ु ू ह।ै इस कारण से मनष्य के मवस्तष्क तथा घोषयत्र का समवचत विकास हो सका। अब आप मनष्य के ु ु ु ं दातो पर ध्यान दगें े िो सीिी खड़ी वस्थवत म ें होते ह।ै मासाहारी िीिों की िााँवत मानि-दत िोिन को ं ं ं चीरने म ें बहत उपयोगी तो नही कह े िा सकते ह,ै पर दताक्षरों (िणों: त, थ, द, ि) के उच्चाराण म ें ु ं अनठी िवमका अदा करते ह।ै मानि ओष्ठ की सरचना शब्द उच्चारण की दृवष्ट से अविक अनकल ू ू ु ू ं होती ह ै विससे ओष्ठय िणों ( प, ि, ब, ि ) का उच्चारण सम्प्िि हो पाता ह।ै इसी प्रकार से ििै िाषाविज्ञावनयों ने हमारे मख, ताल, विव्हा, आवद की विवशष्ट सरचना को िाषा के आिार का ु ु ं कारण माना ह।ै मनष्य म ें घोषयत्र का स्थान िी अन्य स्तनपायी (बदर, बनमानष आवद) िीिों की ु ु ं ं तलना म ें कछ नीचे होता िो गलकोश को बड़ा करते हए ध्िवन-गिन की सिािना उत्पन्न करता ह।ै ु ु ु ुं ं घोषयत्र की यह वस्थवत मानि के वद्वपदचारी होने के कारण मानी िाती ह ै । ं नीगस के अनसार मनष्य का शाकाहारी होना िी िाषा के विकास का कारण बना। मासाहारी िीिों म ें ु ु ं कपोलों और मख का ठीक स े विकास नही हो पाता ह ै क्योंवक ि े िोिन को ठीक से चबाते नही ह ैं । ु इसके विपरीत मनष्य मख ि कपोलों का अविक विकास कर सका इसवलए ध्िवन-िदे म ें िह अन्य ु ु पशओ से अविक समथभ हो सका (Negus, 1946) । मखवििर के सकचन और प्रसर से मनष्य ु ु ु ु ं ं बोलने और गाने म ें सहायता लेता ह।ै गाने की क्षमता को िी िाषा के विकास का एक उच्च कोवि का पायदान माना िा सकता ह,ै विसमें गायक को िाषा म ें प्रयोग होने िाले विविन्न अगों का ं कशलता से प्रयोग करना होता ह।ै ु 5. अिवार्शक श्रोत: इस विचारिारा के लोग िाषा को एक अनिावशक लक्षण मानते ह।ै आप ने दखे ा ु ु ां ं होगा वक कछ बच्चे िो िन्म से बहरे होते ह,ै पररणामतः ि े वहदी, अग्रेिी, गढ़िाली आवद सामन्यरूप ु ं ं सें प्रचवलत मानक िाषाए ाँ नही सीख पाते ह।ै तथावप समयातराल ि अिसर प्रा्त होने पर ि े िी सके त ं ं िाषा म ें सम्प्प्रेषण करने म ें सक्षम हो िाते ह।ै उनमें से कछ बच्चे तो समाि म ें प्रचवलत मानक िाषा ु िी सीखने लगते विसे दखे कर आम िन ईश्वर का चमत्कार कहते ह।ै इससे एक बात तो वसद् होती ह ै वक मानि वशश िाषा सम्प्बवित एक विशेष क्षमता के साथ ही िन्म लेते ह।ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 5 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषा की उत्पवत्त के अनेकानेक श्रोत, वसद्ात, ि तकभ प्रस्तत वकए िा चके ह ै तथावप इसकी उत्पवत्त ु ु ं का प्रारि और कारण एक रहस्य ही बना ह।ै अनिावशकी एक ऐसा विषय ह ै िो तवत्रका विज्ञान, ु ं ं ं आणविक िीि विज्ञान, विकासिादी िीिविज्ञान की मदद से शायद इस पहले ी का हल वनकालने में ु सक्षम हो। िाषा की उत्पवत्त से सम्प्बवित यह खोि अब उस विशषे (Language- ं gene) की खोि की ओर अविमख होता वदखाई दते ा ह,ै िो मनष्य को अन्य प्रावणयों से अलग ु ु करता ह।ै प्रवसद् िाषाविद यले महोदय िी िाषा की इस पहले ी का हल मानि अनिावशकी म ें ही ू ु ं मानते ह।ै उनका मानना ह ै वक हम िाषा के कछ गणों ि विशषे ताओ का िणनभ तो कर सकते ह ै परत ु ु ु ं ं एक िस्तवनष्ठ सिमभ ान्य पररिाषा प्रस्तत करना आि िी सिि नही ह(ै Yule, 2006, p.16). ु ु ं लेवकन एक तथ्य तो सिभमान्यरूप से वसद् हो चका ह ै वक मानि म ें कछ िवै िक क्षमताए ाँ तो होती ह ै ु ु िो वकसी िाषा के प्रत्यक्ष अनदशे न के वबना िी मानि को उस िाषा विशेष को प्रयोग करने की ु दक्षता प्रदान करती ह ै (Larson, Dprez & Yamakido, 2010)। रामविलास शमाभ िी के शब्दों म ें इस पररचचाभ को एक अत वदया िा सकता ह।ै शमाभिी कहते ह ै वक िाषा रचना का कारण मानि का ं पररिशे , उसके वििन की अिश्यकताए ाँ तथा उसका विशेष शारीररक गठन ह ै (Sharma, 2010)। अभ्याि प्रश्न 1. वलवखत िाषा की उत्पवत्त वकतने िषों पि भ से मानी िाती ह?ै ू 2. बोलचाल की िाषा की उत्पवत्त को वकतने िषों पि भ से माना िाता ह?ै ू 3. िाषा रचना के कौन-कौन से कारण माने िाते ह?ै 1.5 वलवप का ववकास और ववविन्न िाषाओ ं की वलवप (Development of the Alphabets and Scripts of Various Languages) 1.5.1 र्लर्प क्या आप िानते ह ै वक वलवखत िाषा या वलवप का प्रयोग सिप्रभ थम कहााँ हआ था? वलवप और बोली म ें ु क्या अतर ह?ै और विविन्न िाषाओ की वलवपयों
का विकास कै से हआ? क्या वकसी िाषा की वलवप में ु ं ं किी आवशक या पण भ पररितभन हआ ह?ै इन्ही रोचक प्रश्नों के उत्तर िनने के वलए हम आग े बढ़ते ह।ै ु ू ं वलवप या वलवखत-िाषा को पररिावषत करना और इसके विकास क
ी ऐवतहावसक वििचे ना करना, िाषा (बोली) की तलना म ें बहत कवठन कायभ नही ह।ै क्योंवक यह एक मतभ तत्ि ह।ै डेवनयल (Daniels, ु ु ू 2003) वलवप को इस प्रकार से पररिावषत करते हैं;
“ लिलि न्यनालिक स्थाई लिन्हों की प्रणािी या िद्धलि होिी ह ै जो ू लकसी बोिी या कथन लिशषे को इस प्रकार से प्रस्िि करने के लिए ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 6 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् प्रयक्त होिी ह ै लक िक्ता की हस्िक्षेि के लबना िगभग िसै ा ही िनः ु ु प्राप्त लकया जा सके ”
। अथाभत िो विचार य सदशे िक्ता ने सप्रेवषत वकए ह,ैं श्रोता िी लगिग िसै ा ही प्रा्त करें या िही अथभ ं ं वनकालें। इस पररिाषा म ें वलवप को एक वचन्हों की प्रणाली बताया गया ह।ै वलवप का उद्दश्े य दरिती ू सम्प्िाद को िस्तवनष्ठ तरीके से स्थावपत करना ह।ै वशक्षा तकनीकी, िनसचार तकनीकी, सचना-सम्प्प्रेषण ु ू ं तकनीकी के क्षेत्र म ें एक बड़ी उपलवब्ि म ें वगना िाता ह।ै विश्व म ें वकतनी िाषाए बोली िाती ह?ै इसका एक अदािा ही लगाया िा सकता ह।ै प्रत्येक बार की ं ं निातीय गणना म ें इनकी सख्या बदलती रहती ह।ै आप विविन्न पस्तकों म ें अलग अलग सस्थाओ द्वारा ृ ु ं ं ं वदए तथ्यों म ें अतर पायेंग।े इससे हम ें भ्रवमत होने की आिश्यकता नही ह ै क्योंवक हम िानते ह ै की िाषा ं एक गवतशील ि पररितभनशील तत्ि ह।ै अिी तक यही कोई 5000 से 7000 के बीच िाषाए बताई िाती ं ह।ै विश्व के लगिग 200 दशे ों म ें (196) 6000 से अविक (6909) िाषाओ का प्रयोग वकया िाता ह।ै ं िबवक इन सिी िाषाओ के प्रयोग करने िाले कल लगिग दो दिनभ वलवपयों क प्रयोग करते ह।ै िाषाओ ु ं ं की तरह वलवपयों की सख्या िी अवििावदत रूप से वनवित नही की िा सकती ह।ै यहााँ वलवपयों की सख्या ं ं की चचाभ करने का उद्दश्े य यह ह ै वक आप िाषाओ और वलवपयों की सख्या म ें अतर दखे कर स्िय समझ ं ं ं ं िायेंग े वक िाषा और वलवप दो अलग अलग तत्ि ह।ै वलवप का विकास िाषा के उदविकास के बहत बाद ु म ें हआ ह ै तथावप वलवप का इवतहास िी हिारों िष भ पराना हो चका ह।ै बोले िाने िाले अमतभ शब्दों ि ु ु ु ू िािों को मतभ स्थायी रूप दने े के बहत से और बहत तरीकों से प्रयास वकए गये (विनकी चचा भ हम इस ु ु ू खण्ड म ें आग े करेंग)े । इन अनेकनेक प्रयासों के लम्प्बे इवतहास म ें बहत सी वलवपयों ने िन्म वलया। इनम ें से ु कछ आि िी प्रयोग म ें ह ै और कछ विल्त हो गई। इसके अलािा कछ वलवपयों म ें समय और सवििा के ु ु ु ु ु वहसाब से मलित पररितभन हए। कछ वलवपयों ने नई वलवपयों को िन्म वदया य अन्य वलवपयों का पोषण ु ू ू ु वकया और उनका प्रयोग खत्म हो गया। कछ श्रोतों के अनसार शद् वलवपयााँ और िणमभ ालाए ाँ 20 ही ह ै ु ु ु (worldstandards.eu, & sixtyvocab.com). सिी प्रकार की वलवपयों और िणभमालाओ को िोड़ने ं पर िी इनकी सख्या 40 से अविक नही हो पाती ह।ै अद्यतन िानकारी के अनसार विश्व की 7099 िीवित ु ं िाषाओ(Ethnologue, 2017) म ें से वसिभ 300 िाषाए वलवखत रूप म ें प्रयोग की िाती ह ै ं ं (DayTrnaslation, n. d.)। अथाभत िाषा वलवखत रूप म ें ही हो, यह वकसी िी िाषा के अवस्तत्ि की अवनिायभ शतभ नहीं ह।ै सिी िाषाए एक वलवप म ें और एक िाषा सिी वलवपयों म ें वलखी िा सकती ह।ै ं आइये हम िाषा और वलवप के अतर को वबदिार तरीके से समझने की कोवशश करते ह;ै ं ं ु 1.5.2 र्लर्प और बोली में अतर ां वलवप या लेखन िाषा की तरह कोई िवै िक यह अनिावशक कारण नहीं होता ह।ै कोई िी मानि ु ं वशश अपने िातािरण म ें बोली िाने िाली िाषा को सीख ें वबना नहीं रह सकता ह।ै परत वलवप इसके ु ु ं विपरीत कोई नैसवगकभ विया नहीं ह ै वबना अनदशे न (वशक्षण) के कोई बच्चा वलखने और पढ़न े की ु विया प्रारि नहीं कर सकता ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 7 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् बोली की अपेक्षा लेखन एक सचेतन विया ह।ै इसके वलए मानि मवस्तष्क का कोई विशेष वहस्सा वनिाभररत नहीं होता ह,ै और न ही इसके वलए कोई विशेष मानि िीन(Gene) आिार ह।ै वलवप प्रकवलपत(Devised) तत्ि ह,ै विसकी रचना सचेतन रूप से की गई ह।ै िबवक िाषा एक उदविकवसत (evolved) मानि छमता ह।ै विसकी उत्पवत्त मानि के लाखों िषों के उवद्वकास के इवतहास म ें वछपी हई ह।ै ु आि सचना तकनीवक के समय म ें आपके वलए यह समझना कवठन नहीं ह ै वक वकसी िी िाषा की ू वलवप म ें पररितभन वकया िा सकता ह।ै आप मोबाइल सदशे ििे ते ही होंग।े मोबाइल सदशे की ं ं िाषा वहदी, गढ़िाली, कमाऊनी कछ िी रखते हए रोमन वलवप(अग्रेिी िाषा की वलवप) का प्रयोग ु ु ु ं ं तो कर ही लेते होंगे। अथिा आपने बहत से अग्रेिी के शब्द दिे नागरी वहदी िणभमाला वलवप म ें वलखे ु ं ं होंग।े विसम ें आपका अपना नाम सिाभविक वलखा िाने िाला शब्द होगा। कहने का तात्पयभ यह ह ै की वलवप और िाषा अलग-अलग तत्ि ह।ै एक िाषा को सिी वलवपयों म ें वलखा िा सकता ह।ै दशे की िाषा या िाषाए कोई िी हो पर समझने की सवििा की दृवष्ट से हम वलवप विशषे के प्रयोग को ु ं कानन द्वारा अवनिायभ िी कर सकते ह।ैं िसै ा वक हमारे दशे के सिी सरकारी कामकाि को दिे नागरी ू और रोमन वलवप म ें ही प्रकावशत वकया िाता ह।ै उत्तराखण्ड की प्रशासवनक िाषाए वहदी और ं ं सस्कत दोनो ही दिे नागरी वलवप म ें वलखी िाती ह।ै ृ ं आप बहत सी वहदी िाषा की कहावनयों को अग्रेिी(रोमन) वलवप म ें कई इिरनेि साइिों पर पढ़ सकत े ु ं ं ं ह।ै दो िाषाओ के सयक्त
प्रयोग के कारण कछ ब्लोग (Blog/ िबे साइि पर लेख ि वनबि) लेखकों ु ु ं ं ं ने तो रोमनागरी (Romanagari) श्बद का प्रयोग करना शरू कर वदया ह।ै रोमनागारी एक सयक्त ु ु ं शब्द (portmanteau word) ह ै िो वहदी(दिे नागरी) लेखों को अग्रेिी( रोमन) वलवप म ें वलख े िाने ं ं पर प्रयोग होता ह ै विसम ें शब्द दिे नागरी के और अक्षर(िण)भ रोमन वलवप के होते ह।ै इस प्रयोग स
े आप िाषा और वलवप के स्ितत्र अवस्तत्ि को समझ सकते ह।ै ं अपनी गवतशील ि प्रिाहमय लक्षण के कारण बोली(िाषा) िीरे-िीरे विकवसत होती ह ै और विल्त ु िी हो सकती ह।ै उत्तराखड की 15 बोवलयों म ें से दो (गढ़िाली और कमायनी) ही प्रमखता से बोली ु ु ु ं िाती ह ैं और बाकी म ें से कछ तो अदृश्य होने की कगार पर ह।ैं अथाभत विन्ह ें उत्तराखण्ड के लोग िी ु ं नही िानते वक यह बोवलयााँ उनकी ही सस्कवत का अग रही ह।ै ऐसी विल्त प्राय बोवलयााँ ग्रामीण ृ ु ं ं इलाकों म ें वसिभ वबना पढ़ें वलख े या बिग भ लोगो द्वारा प्रयोग म ें लाई िाती ह।ै ऐसे ही बहत सी िाषाए ु ु ु ं मर चकी ह ैं या मतप्राय ह ैं क्योंवक उनको बोलने िाले लोग या तो नहीं रह े या तो िाषा पररितभन कर ृ ु चके ह।ैं परत उन िाषाओ का सावहत्य वचरिीिी होता ह।ै वसि सभ्यता के अिशेषों से िो वलवप ु ु ु ं ं ं वमली ह ै हम उसका अथभ वनकालने म ें असमथभ ह ै क्योंवक िह िाषा अब ल्त हो चकी ह ै परत आप ु ु ु ं दखे रह े ह ैं की वलवप आि िी आपके सामने अवस्तत्ि म ें ह।ै हम कह सकते ह ैं कोई िी वलवप तलनात्मक रुप से िाषा की अपेक्षा अविक लबी उम्र की होती ह।ै यह िाषा और वलवप के अतर के ु ं ं साथ साथ सम्प्बि का िी कारण कहा िा सकता ह।ै वकसी िाषा को वचरिीिी बना दने े के वलए ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 8 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् उसका वलवखत िाषा के रूप म ें होना िरूरी होता ह।ै वलवप के वलखने और प्रयोग के तरीकों म ें िी पररितभन होते ह ैं पर ऐसे पररितभन वकसी बोली की तलना म ें नगण्य कह े िा सकते ह।ैं ु नेशनल विओग्रविक मावसक पवत्रका के अनसार हर दो स्त ाह (14 वदन) म ें एक िाषा ल्त हो िाती ु ु ह ै और इस गवत के वहसाब से अगली शताब्दी तक विश्व में प्रचवलत लगिग 7000 िाषाओ म ें स े ं आिी ही रह िायेंगी(Rymer, 2012)। िाषा
विज्ञान को िब हम मनोविज्ञान के साथ िोड़कर समझते ह ैं तब वलवप िाषाविज्ञान के पाले को छोड़कर सके तशास्त्र य लक्षणविज्ञान (Semiotics) की तरि खड़ी वदखाई दते ी ह।ै क्योंवक ं मनोविज्ञान के अनसार िाषा एक सज्ञानात्मक अमतभ विया हो िाती ह।ै िबवक वलवप मतभ ि स्थल ु ू ू ू ं प्रकवत की होती ह
।ै ृ ज्ञानेंविय प्रयोग के आिार पर िाषा और वलवप म ें अतर हो िाता ह।ै छोिी सी बात ह ै वक िो हम ं सनते ह ै िह िाषा य बोली ह ै और िो दखे ते ह ै िह वलवप य लेखन प्रणाली ह।ै यह बात वसिभ समझने ु के वलए ह ै िसै े मनष्य एक ज्ञानेंिी को रोककर दसरे का प्रयोग नही करता ह।ै पाठन के उदाहरण से हम ु ू दोनो के एक साथ प्रयोग को समझ सकते ह।ै उपरोक्त िाषा और वलवप के अतर का िणनभ का एक मात्र उद्दश्े य यह वसद् करना रहा ह ै वक हम िाषा ं और वलवप के स्ितन्त्र अवस्तत्ि को समझ सके । एक आम अदमी िाषा और वलवप म ें अतर नही कर ं पाता ह।ै परत वशक्षकों को यह अतर समझना आिश्यक होता ह।ै िाषा और वलवप म ें अतर के साथ ु ं ं ं साथ घवनष्ठ सम्प्बि होता ह,ै यही कारण ह ै वक हम दोनो को अलग अलग करके नही समझ पाते। अब ं हम अतर की तरह दोनो म ें सम्प्बि िी सचीबद् कर लें। ू ं ं 1.5.3 र्लर्प और बोली में िम्बध ां िाषा (बोली) और वलवप दोनो ही समाि विशेष की सस्कवत का प्रतीक होती ह।ै पररणामतः पहचान ृ ं और स्िाविमान का कारण िी बनती ह।ै हम विदशे में अपनी मातिाषा को बोलने का अिसर वमलने ृ पर सखद अनिि करते ह।ै यवद आप अपनी िाषा को बोलने िाले व्यवक्त को उत्तराखड से बाहर पाते ु ु ं ह ै तो उसे तरत ही पहचान लेते ह।ै साथ ही समय उपलब्ि रहने पर पररचय बढ़ाकर अपनी िाषा में ु ं िाताभलाप िी करने का अिसर प्रा्त कर लेते होंग।े अतर म ें हमने समझा वक िाषा को समाि म ें रहते हए हम सीख ही लेते ह,ै िबवक वलवप सीखने के ु ं वलए वशक्षण की आिश्यकता होती ह।ै लेवकन यह नैसवगकभ अविगम की प्रविया मात-िाषा म ें ही ृ होती ह।ै अन्य िाषाओ के सीखने के वलए हम ें वशक्षण य अनदशे न की आिश्यकता पड़ती ह ै ु ं अन्यथा िब तक वक हम उस िाषा विशषे के लोगों के मध्य रहने न लग।े अतः दोनो म ें ही वशक्षण की आिश्यकता होती ह।ै िाषा सक्ष्म ि अस्थायी तत्ि होती ह।ै इस को स्थल ि वचरस्थायी बनाने के वलए वलवप अपना सम्प्बि ू ू ं वनिाती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 9 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् दोनो ही अविव्यवक्त का माध्यम होती ह।ै भ्रमरवहत ि बािारवहत सम्प्प्रेषण म ें दोनों एक दसरे की पवतभ ू ू करती ह।ै आप वशक्षक के रूप म ें कोई विषय बच्चों को समझाने का प्रयास करते ह।ै बच्चों की समझ को सदृढ़ करने और समझ की गारण्िी प्रदान करने के वलए आप अपने व्याख्यान के साथ साथ ु श्यामपट्ट पर मख्य वबद वलखने की कोवशश िरूर करते होंग े या करेग।ें अतः अविव्यवक्त के माध्यम ु ं ु के रूप म ें दोनो अन्योन्यावश्रत होती ह।ै अभ्याि प्रश्न 4. विश्व म ें लगिग वकतनी िाषाएाँ बोली िाती है? 5. विश्व म ें लगिग वकतनी वलवपयााँ प्रचवलत ह?ै 6. नेशनल विओग्रविक मावसक पवत्रका के अनसार वकतनों वदनों म ें एक िाषा ल्त हो िाती ह?ै ु ु 7. बोली और वलवप म ें कोई दो अतर बताइये ं 1.6 वलवप के ववकास का इवतहास वलवप के विकास क इवतहास िी बहत रोचक और लम्प्बा ह।ै मानि ने अपनी अविव्यवक्त को स्थायी बनाने ु के वलए कई तरह के प्रयोग वकए ह।ै विन्ह ें हम गिाओ म ें प्रा्त वचत्रों से शरू करते हए, वशलालेखों, ु ु ू ं ताम्रपत्रों, िोिपत्रों, पस्तकों, िबे साइिों आवद आवद पर एक निर डालकर समझ सकते ह।ै बोली या ु बोलचाल की िाषा का प्रयोग करते हए आप अपने सामने िाले व्यवक्त को अपना सदशे य विचार ु ं सप्रेवषत कर सकते ह ै और एक समय विशषे का प्रयोग ही कर सकते ह।ै बोलचाल की िाषा की सीमा को ं पार करते हए एक वलवप (यहााँ वलवखत िाषा कहना अविक उवचत होगा) समय और स्थान के परे ु सम्प्प्रेषण का कायभ करती ह।ै शायद मनष्य की यही आिश्यकता उसे वलवप के सिनभ के वलए बाध्य करती ु ह।ै मानि ने हिारों प्रयोग वकए होंग े विनसे सप्रेषण के अनेकानेक माध्यमों का िन्म हआ। वलवप विकास ु ं वकसी िी मानि सस्कवत के वलए िावतकारी घिना रही होगी। िसै ा की विश्व की सिी प्राचीन सभ्यताओ ृ ं ं ं म ें वकसी न वकसी तरह मतभ सप्रेषण/अविव्यवक्त के वचन्ह वमल िाते ह।ैं इससे हम ें एक बात तो समझ लेनी ू ं चवहए वक वलवप वकसी िी विकवसत सभ्यता का अवनिायभ तत्ि होती ह।ै िरा कलपना कीविए वक िाषा (बोली) के िन्म से मानि को समह बनाकर रहने का अिसर वमला होगा। आपसी सहमवत बनी होगी। ू आपसी व्यिहार के वनयम बने होग।ें सामवहक िीिन सखद, सरवक्षत और सामिस्यपणभ हो गया होगा। ू ु ु ू ं आप बोलचाल की िाषा के सहारे वसिभ सामवहक िीिन की तो कलपना कर सकते ह ै पर ितभमान में ू विद्यमान देशों और राष्रों की कलपना नही कर सकते। अथाभत िहद समदाय के सदस्यों को सामवहक ृ ु ू वनयमों का पालन करिाने के वलए वलवखत कनन, सरकार, प्रशासन आवद की िरूरत होती ह।ै प्रशासन के ू वलए वलवप अवनिायभ शतभ होती ह।ै यही कारण ह ै की स्ितत्रता प्राव्त के उपरात हम राष्रिाषा सवनवित तो ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 10 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् नही कर सके पर प्रशासवनक िाषा और वलवप हमने सवनवित की या करनी पड़ी। शायद इन सब बातों स े ु आपके मवस्तष्क म ें वलवप की अवनिायभता और इसके विकास की आिश्यकता तो स्पष्ट हो चकी होगी। ु अब हम वलवप के विकास पर एक ऐवतहावसक निर डालते ह।ै विश्व की सभ्यताओ के इवतहास म ें हम दखे ते ह ैं वक सिप्रभ थम लगिग पााँच हिार िष भ पिभ ू ं मसें ोपोिावमया की सभ्यता के शहर समरें (ितभमान ईरान इराक िाला क्षेत्र) म ें कीलक्षर/कीलाकार वलवप ु का विकास हआ था। यह वलवप वमट्टी के िलकों पर उत्कीण भ की िाती थी(वचत्र 1)। इस वलवप में ु वचत्रात्मक ि रेखात्मक दोनो ही प्रकार के वचन्हों का प्रयोग वकया िाता था। र्चत्र 1: मेंिोपोटार्मया की कीलाक्षर र्लर्प (र्चत्र श्रोत: ां https://www.haikudeck.com/mesopotamia-inventions-education-presentation- 2xuiSNCZba#slide3) ितभमान वलवप से स्पष्टरूप से सबवित प्रतीत होती हई प्राचीन वलवप 3000 िष भ पि भ वशलालेखों म ें वदखाई ु ू ं ं दते ी ह।ै इन हिारों िषों के सिर म ें हिारों पड़ाि वमलते ह।ै गिाओ म ें प्रा्त वचत्रकारी को अविकतर ु ं िाषाविद वलवप का वहस्सा नहीं मानते ह।ैं लेवकन अविव्यवक्त को स्थायी करने के वलए वचत्र पद्वत न े महत्िपण भ िवमका अदा की ह।ै यह वचत्रकारी वचत्रकला की विशाल परपरा का एक वहस्सा ही मानी िाती ू ू ं रही ह।ै िब कोई वचत्र/प्रवतकवत (image) सतत रूप से वकसी पदाथभ, उत्पाद या पररणाम को िवणतभ करने ृ लगती ह ै तब इस तरह के िणभन को वचत्रवलवप (Pictogram) की सज्ञा दी िाती ह।ै हमारी प्राचीनतम ं सैंिि सभ्यता के अिशषे ों से पता चलता ह ै वक यहााँ िी वचत्रवलवप का प्रयोग वकया िाता था(वचत्र 2)। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 11 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् र्चत्र 2: हणप्पा िभ्यता की र्चत्र र्लर्प ( र्चत्र श्रोत: https://www.harappa.com/script/parpola8.html) िो चचाभ हम ें बाद में करनी चावहए थी िह अिी करना िरूरी हो रहा ह।ै बात यह ह ै वक वचत्र के माध्यम से सप्रेषण वलवप के विकास की शरुआत तो ह ै पर शद् वलवप के विकास के बाद िी हमने वचत्र पद्वत क ु ु ं प्रयोग बद नही वकया ह।ै आि िी राष्रीय रािमागों पर साििभ वनक स्थलों िसै े वक रेलि े स्िेशन, ं विमानपत्तन पर वचत्र के माध्यम से सप्रेषण वकया िाता ह(ै वचत्र 3)। इसका कारण ह ै वक वचत्रों के माध्यम ं से सम्प्प्रेषण म ें भ्रम की सम्प्िािना कम से कम होती ह।ै र्चत्र 3: आधर्िक र्चत्र िप्रेषण र्चन्ह(र्चत्र श्रोत: ु ां https://www.pinterest.com/tris112397/pictograms/) वचत्रवलवप म ें िब अमतभ विचारों को सम्प्प्रेवषत करने की क्षमता आ िाती ह ै तब हम इसे विचारवलवप य ू िािवलवप (Ideogram) कहते ह।ै वचत्रवलवप और िाि वलवप म ें वसिभ तत्ि के प्रवतवनवित्ि का अतर ह।ै ं एक म ें मतभ पदाथों का िण भ करते ह ैं और दसरे म ें अमतभ विचारों का िणनभ करते ह।ैं िब इस वसतारे ू ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 12 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् के वचत्र के माध्यम से हम आकाश के तारों का िणनभ करें तो इसे हम वचत्रवलवप का एक उदाहरण कह सकते ह।ै शब्द वलखने के अलािा हम इस वचत्र को बनाकर अपनी बात कह सकते ह।ै परत िब ु ं तारे के वचत्र के माध्यम से हम रावत्र, शावत, शीतलता आवद िािों को प्रदवशभत करने लगते ह ै तब इसे हम ं िािवलवप की सज्ञा दते े ह।ै प्राचीन वचत्र पद्वत के कई वचत्र आि की िणमभ ाला के
अक्षर के रूप म ें ं पररिवतभत हो गए ह।ैं वचत्रवलवप से िणवभ चन्ह की ओर िाना मानि मवस्तष्क की बड़ती हई अमतभ वचतन की क्षमता ु ू ं का द्योतक ह।ै िब प्रतीक वचन्ह शब्दों क
ा प्रवतवनवित्ि करने लगते ह ैं तब प्रतीकवलवप (Logograms) का विकास होता ह।ै
इसका प्रयोग आि िी होता ह।ै बहत सी कपवनयों के वचन्ह ही उनके नाम का ु ं प्रवतवनवित्ि करते ह।ै आप बैंक ऑि इवडया को वलखने के वलए आप वसतारे के वचन्ह का प्रयोग कर ं सकते ह।ै यनीलीिर कम्प्पनी के वलए (U) क वचन्ह प्रयोग कर सकते ह।ै समरे की कीलाक्षर वलवप िी एक ू ु प्रकार की प्रतीकवलवप ही थी। ितभमान म ें चीन की िाषा म ें प्रतीक वचन्हों का प्रयोग
दखे ा िा सकता ह।ै चीनी िणमभ ाला के कई िण भ एक ध्िवन मात्र को नहीं बवलक सम्प्पण भ शब्द (या शब्द के अथभ) को िवणतभ ू करते ह ैं या शब्द के एक िाग को िवणतभ करते ह।ैं इस परपरा से अलग दसरी प्रणाली ह ै िहा िणभ-वचन्ह (य वचत्र) िाषा के शब्द को नहीं ध्िवन को ं ं ू िवणतभ करते ह।ैं इसे किलेखन(Rebus Writing) नाम वदया गया ह।ै िब किी िी उस ध्िवन का प्रयोग ू शब्दों म ें होता ह ै तो उस ध्िवनवचन्ह(किवचन्ह) को उस शब्द म ें िोड़ वदया िाता ह।ै ध्िवनकि हम ें ू ू ितभमान िणभमाला की ओर अविक पास ले आते ह।ै आि िी हम अपनी अविव्यवक्त के कि तैयार करत े ू रहते ह।ै किध्िवन के अिवनक उदाहरण से समझ सकते ह ै वक एक ध्िवन कै से एक शब्द को य शब्द के ू ु िाग को प्रदवशतभ करती होगी। उदाहरण के वलए same too you की िगह same 2 you, Night को ध्िवन कि म ें Ni8 िी तो वलख दते े ह ै और Today को 2Day। ू िब कोई प्रवतकवत (Image) िाषा के स्िर या व्यिन िण भ का प्रवतवनवित्ि न करके ृ ं शब्दाश/स्िराश (Syllable का प्रवतवनवित्ि करती ह ै तब हम उसे स्िराश वलवप (Syllabary) कहते ह।ैं ं ं ं िापान की िाषा म ें इस शब्दाश लेखन प्रणाली का प्रयोग वकया िाता ह।ै प्राचीन वमस्र और समरें की ु ं वलवपयों म ें िी शब्दाश लेखन का प्रयोग वमलता ह।ै शब्दाश वलवप हम ें ितभमान िणभमाला के सबसे ं ं वनकितम पायदान तक पहचाँ ा दते ी ह।ै िहा एक िणभ-वचन्ह वसिभ एक ध्िवन को प्रवतवनवित्ि करता ह।ै ु ं अरबी और यहदी िसै ी समी(Semetic) िाषाओ की वलवप प्रणाली म ें वसिभ व्यिनों (क ख ग च आवद) ू ं ं की सहायता से ही शब्द वलखे िाते थे। स्िर(अ इ उ आवद ) का वचन्ह पाठक को स्िय अपने वििके से ं समझना होता था। यही व्यिक िणमभ ाला ितभमान िाषाओ की िणमभ ाला का सत्रपात करती ह।ै यहााँ तक ू ं ं हम एक वचन्ह एक स्िर तक पहच चके होते ह।ै परत शद् स्िर अक्षर (Vowel) के वचन्ह को तैयार नही ु ु ु ु ं कर सके थे। इवतहास म ें सिप्रभ थम यनावनयों ने स्िर अक्षरों की पवतभ करके शद् ि पण भ िणमभ ाला को िन्म ू ू ु ू वदया। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 13 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 1.7 ववविन्न िाषाओ ं की वलवपया ाँ विविन्न िाषाओ की वलवपयों के अध्ययनके वलए हम ितभमान से ितकाल की ओर बढ़गें े अथाभत विन ू ं वलवपयों का हम प्रयोग करते ह ैं उनकी उत्पवत्त ि प्रकवत के अध्ययन करते हए प्राचीन वलवपयों के बारे म ें ु ृ सवक्ष्त चचाभ करेंग।े ं हमारे प्रदशे उत्तराखड म ें मख्य रुप से तीन िाषाए वहदी, सस्कत, और अग्रेिी प्रयोग की िाती ह।ै ृ ु ं ं ं ं ं अतः हम इन्ही िाषाओ की वलवपयों पर मख्य रूप से ध्यान दगें े ह।ैं अप यह तो सन े ही होंग े वक वहदी म ें ु ु ं ं प्रयक्त वलवप का नाम दिे नागरी वलवप ह।ै आइये इसके बारे म ें िानते है, ु 1.7.1भारतीय र्लर्पयााँ क. देविागरी र्लर्प: वहदी और सस्कत िाषाए ितभमान समय म ें दिे नागरी वलवप म ें ही वलखी िाती ह।ै ृ ं ं ं वहदी और दिे नागरी वलवप तो एक-दसरे के पयाभय बन गए ह।ैं पररणाम स्िरूप दिे नागरी को वहदी ं ं ू वलवप िी कहते ह ैं इसका एक नाम नागरी वलवप िी ह।ै इसके नामकरण के कारण को िी स्पष्ट रूप से पहचाना नहीं िा सका ह।ै अलग-अलग विद्वान अपनी अपनी कलपना के आिार पर (क्योंवक साक्ष्य का अिाि ह)ै इसकी व्याख्या करते ह।ैं i. प्रथम मत के अनसार यह वलवप नगरीय (शहरों की) सभ्यता म ें िन्मी और प्रचवलत रही। ु ii. वद्वतीय मतानसार गिरात के नागर ब्राह्मणों द्वारा प्रयोग की िाती रही। ु ु iii. ततीय मतानसार यह वलवप दिे नगर स्थान म ें उत्पन्न हई। ु ृ ु iv. एकमत के अनसार यह वलवप काशी और आसपास के क्षेत्र म ें विकवसत हई। काशी को ु ु दिे नगर िी कहते ह।ैं इसवलए इसका नाम दिे नागरी हो गया। दवक्षण िारत म ें इसका नाम वलवप िी ह,ै िो इसका सबि काशी वशि और प्राचीनतम नगर िाराणसी से ं ं ं िोड़ता ह।ै इस वलवप का विकास 1000 से 1200 ईo के लगिग प्राचीन नागरी वलवप से माना िाता ह।ै प्राचीन नागरी वलवप के अविलेख आठिीं शदी से 16 शदी तक दवक्षण िारत म ें वमलते ह।ैं दिे नागरी वलवप म ें सामान्यरूप से 52 अक्षर बताये िाते ह।ै विनम ें से 49 अक्षर ित्माभन समय म ें अविक प्रचलन म ें है, और 3 का वहदी म ें प्रयोग नगण्य हो गया ह।ै सस्कत िाषा म ें ज़रुर सिी 52 अक्षरों का प्रयोग वकया िाता ह।ै ृ ं ं सस्कत म ें प्रयक्त अक्षरों के आिार पर दिे नागरी वलवप म ें अक्षरों की सख्या 56/57 तक पहचाँ िाती ह।ै ु ृ ु ं ं प्राचीन समय म ें सस्कत िाषा
ब्राम्प्ही वलवप म ें वलखी िाती रही ह।ै अतः उन अक्षरों को ब्राम्प्ही वलवप का ृ ं वहस्सा मानकर छोड़ वदया िाता ह।ै लेवकन हम ें याद रखना चावहए की दिे नागरी वलवप का िन्म िी ब्राम्प
्ही वलवप से ही हआ ह।ै ु ख. ब्राह्मी र्लर्प: ब्राह्मी वलवप को कई वलवपयों की लबी श्रखला की िननी कहा िा सकता ह।ै एक ं ं सिक्षे ण के अनसार 198 वलवपयााँ इस वलवप से वनकली ह।ै लगिग सिी िारतीय िाषाओ (उद भ िसै ी ु ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 14 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् एकाि को छोड़कर) की वलवपयों के अलािा नेपाल, बाग्लादशे आवद कई ऐवशयायी दशे ों की ं िाषाअओ की वलवपयााँ इसी से िन्मी ह।ै यह एक प्राचीन िारतीय वलवप ह ै िो 350 ईo पo स े 300 ू ं ईo तक िारत के अविकतम िाग पर प्रचलन म ें रही। प्रो0 ब्यलर के अनसार इस वलवप म ें 41 अक्षर ू ु थे विनम ें 9 स्िर और 32 व्यिन थे(Buhler, 1898)। इस वलवप के नामकरण के पीछे कई मत ह ैं िो ं आपस म ें सबवित िी ह।ै आइये हम इन मतो को िानें। ं ं i. प्रथम मत के अनसार िगिान ब्रह्मा ने इस वलवप को बनाया था इसवलए इसे ब्राम्प्ही कहते ह।ै ु ii. वद्वतीय मत के अनसार ब्रह्मज्ञान यानी िदे ज्ञान के सरक्षण (स्थावयत्ि) हते इस वलवप की रचना ु ु ं हई थी। ु iii. ततीय मत के अनसार ब्राह्मणों ने इसको बनाया और इसका प्रयोग वकया इसवलए इसका नाम ृ ु ब्राह्मी वलवप हो गया। कई पािात्य विद्वान भ्रम, अहम आवद विकारों के कारण इसकी उत्पवत्त चीनी य सामी वलवप से मानते ह।ैं ऐसी कलपना करना िी अकलपनीय बात ह।ै सामी से एकाविक समानता ब्राह्मी वलवप म ें तो है, परत दोनों ु ं म ें एक से अविक मलित अतर ह।ै िसै े वक यह वलवप बाए से दाए वलखी िाती ह ै िबवक सामी वलवप ू ू ं ं ं दाई से बाई ओर वलखी िाती ह।ै सामी म ें के िल 22 अक्षर ह ैं िबवक ब्राह्मी म ें 41 अक्षर होते ह।ैं ं ं सिाभविक महत्िपण भ तथ्य यह ह ै वक ब्राह्मी म ें िणों की आकवत ित्तात्मक िी हिै बवक अन्य विदशे ी ृ ृ ू वलवपयों म ें इस तरह की अक्षर रचना नहीं दखे ी िाती ह।ै अत: यह एक िारतीय ििाग पर उत्पन्न वलवप ू ही ह।ै इस वलवप की दो उत्तरी और दवक्षणी शवै लया मानी िाती ह।ैं उत्तरी शलै ी से वनम्प्नवलवखत वलवपयों ं का विकास हआ ह;ै ु i. गप्त र्लप: यह वलवप ग्त िश के रािाओ के अविलेखों, िसै े वक प्रयाग प्रशवस्त आवद ु ु ं ं अविलेख, म ें वमलती ह।ै ii. कर्टल र्लर्प: यह ग्त वलवप से ही िन्मी एक वलवप ह।ै इसम ें स्िरों की मात्राए कविल या िेढ़ी ु ु ु ं हो िाती ह।ैं इसवलए इसको कविल वलवप कहते ह।ैं इससे नागरी और शारदा वलवपयों का ु विकास हआ ह।ै ु iii. प्राचीि िागरी र्लर्प: इस वलवप की पिी शाखा से बगला वलवप और पविमी शाखा से ू ं रािस्थानी, गिराती, महाराष्री आवद वलवपया विकवसत हई ह।ै ु ु ं iv. शारदा र्लर्प: इस वलवप का विकास प्राचीन समय म ें कश्मीर और पिाब म ें हआ। 10िीं ु ं शताब्दी के लगिग इस वलवप का प्रयोग होता था। कश्मीरी, गरूमखी, डोगरी आवद वलवपया ु ु ं इसी से वनकली ह।ै v. बागला र्लर्प: यह वलवप बगला उवड़या आवद िाषाओ म ें प्रयोग की िाती ह।ै इस वलवप स े ां ं ं असमी, मवणपरी िाषाओ की वलवपयों का िन्म हआ ह।ै ु ु ं ब्राह्मी की दवक्षणी शलै ी से वनम्प्नवलवखत वलवपया उत्पन्न हई। ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 15 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् i. पर्िमी र्लर्प: यह वलवप पाचिी सदी के लगिग
प्रयोग म ें थी। गिरात, नावसक, कोंकण ु ं आवद क्षेत्रों से वमले लेखों म ें इस वलवप के प्रयोग वमलते ह।ैं ii. मध्य प्रदेशी र्लर्प: यह वलवप चौथी से आठिीं शदी के लगिग प्रयोग म
ें रही। मध्य प्रदशे , बदले खड, हदै राबाद आवद के लेखों म ें इस वलवप का प्रयोग होता था। ुं ं iii. तेलग-कन्िड़: यह वलवप तेलग और कन्नड़ िाषाओ की वलवप ह।ै ु ु ु ु ं iv. कर्लग र्लर्प: यह वलवप सातिीं से ग्यारहिीं शदी के मध्य कवलग के क्षेत्र म ें यह वलवप प्रचलन ां ं म ें थी। v. ग्रथ र्लर्प: मलयालम और तेलग वलवपया ब्राह्मी की इसी शाखा से वनकली मानी िाती ह।ैं ु ु ां ं इसम ें सस्कत ग्रथों की रचना हई इसवलए इसका नाम ग्रथ वलवप हो गया। ु ृ ं ं ं vi. तर्मल र्लर्प: सातिीं शताब्दी से आि तक यह तवमल िाषा की वलवप ह।ै उपरोक्त वििचे न से हम कह सकते ह ैं वक ब्राह्मी वलवप सिी िारतीय िाषाओ की वलवपयों की िननी ह।ै ं ब्राह्मी वलवप को खरोष्ठी वलवप से िी सम्प्बवित माना िाता ह।ै ं ग. खरोष्ठी र्लर्प: प्राचीन िारतीय वलवपयों म ें से एक खरोष्ठी वलवप िी ह ै यह वलवप 350 ईo पo स े ू 200 ईo तक प्रचलन म ें मानी िाती ह।ै इस वलवप का प्रयोग प्रचीन गािार (ितभमान अिगावनस्तान) ं के क्षेत्र म ें वकया िाता था। उस क्षेत्र म ें इस वलवप ने गािारी-प्राकत और सस्कत िाषाओ की सेिा की। ृ ृ ं ं ं सम्राि अशोक के शाहबािगढ़ी और मानसेरा (दोनो ही स्थान पिाब म ें ह)ै के अविलेखो म ें इस ं वलवप का प्रयोग वमलता ह।ैं अशोक के अलािा शक और कषाणों के अविलेख िी खरोष्ठी म ें ही ह।ै ु कछ विद्वान इसे एक िारतीय वलवप मानते ह ैं और कछ इसे आमइे क वलवप मानते ह।ैं इसमें 37 िण भ ह ैं ु ु विनम ें 5 स्िर और 32 व्यिन होते ह।ैं अक्सर यह वलवप दाए से बाए वलखी िाती ह।ै ं िभी वतामाि भारतीय र्लर्पयों में एक िमािता देखी जा िकती है। वह इि प्रकार है; लगिग सिी वलवपयााँ ब्राह्मी वलवप से िन्मी ह।ैं सिी ध्िन्यात्मक हैं, एि किग,भ चिग भ आवद म ें बिे ह।ैं ं ं सिी के वलखने में मात्रा का प्रयोग होता ह।ै सबम ें सयक्ताक्षरों का प्रयोग होता ह।ै ु ं सबके िण भ रूप म ें कािी वमलते ह।ैं स्िर, व्यिन, मात्रा तीनों का अलग प्राििान ह।ै ं 1.7.2 र्वदेशी र्लर्पयााँ िारतीय वलवपयों के वििरण के बाद हम कछ विदशे ी वलवपयों से एक सवक्ष्त पररचय करते ह।ैं ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 16 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् i. लैर्टि या रोमि र्लर्प: इस वलवप का िन्म विदेशी िरती पर िरूर हआ पर आि हम इसे ु विदशे ी वलवप नही कह सकते ह।ै आि यह वलवप हमारी वद्वतीय प्रशासवनक िाषा की वलवप ह ै और िारत के सवििान द्वारा अविवनयवमत िी ह।ै अग्रेिी िाषा म ें प्रयक्त वलवप (ABCD) को ु ं ं रोमन वलवप कहते ह।ैं ितभमान म ें यह सिाभविक प्रयक्त वलवप ह ै इसम ें 26 िण भ होते ह,ैं विनम ें 5 ु स्िर और 21 व्यिन ह।ै इन 26 िणों की 45 ध्िवनया होती ह।ै यह विश्व की अनेक िाषाओ की ं ं ं वलवप ह।ै क्या आप िानते ह ै वक लैविन, फ्ासीसी, अग्रेिी िैसी मख्य िाषाओ के साथ साथ एक ु ं ं ं िारतीय िाषा िी इस वलवप का प्रयोग करती ह।ै यह िाषा िारत के पिोत्तरी राज्य वमिोरम की ू मख्य िाषा ह,ै विसे वमिो या लसाई(Mizo/ Lusahai िाषा कहते ह।ैं िसै ा वक यरोप की ु ु ू अविकाश वलवपया यनानी वलवप से ही उत्पन्न हई ह ै अतः यह वलवप िी यनानी वलवप से ही ु ू ू ं ं िन्मी मानी िाती ह।ै ii. यिािी र्लर्प: यह विश्व की प्राचीनतम वलवप म ें से एक ह।ै इसम ें 24 अक्षर होते ह।ैं इसके ही ू प्रथम दो अक्षर अलिा(α) और बीिा(β) के आिार पर ही अग्रेिी म ें िणमभ ाला को अलिाबेि ं कहते ह।ैं इसे हम यरोपी वलवपयों की िननी कह सकते ह ैं इसकी उत्पवत्त उत्तरी सामी वलवप से ू मानी िाती ह।ै iii. िामी र्लर्प: सामी वलवप िी प्राचीनतम वलवप म ें प्राचीनतम कही िा सकती ह।ै इसम ें 22 िणभ होते ह।ैं इस वलवप
का प्रयोग 1000 स े 800 ईसापि भ के आसपास वकया िाता रहा। इसकी उत्तरी ू शाखा से अमइे क और िोनेशी वलवपयों का िन्म होता ह।ै इसकी दवक्षणी शाखा से अरबी वलवप का विकास
हआ ह।ै ु iv. अरबी र्लर्प: ितभमान म ें प्रचवलत वलवपयों म ें से यह एक प्रमख वलवप ह।ै मलतः इसमें 28 ु ू अक्षर होते ह।ै यह दाए स े बाए वलखी िाती ह।ै यह अरब, अिगावनस्तान, िारस आवद
स्थानों ं ं पर प्रचवलत ह।ै िारसी िाषा म ें चार अक्षर और अविक िोड़कर 32 अक्षरों के साथ इस वलवप का प्रयोग वकया िाता ह।ै िारतीय िाषा उद भ म ें िारसी म ें प्रयक्त अक्षरों के अलािा पाच अक्षर ु ं ू और अविक िोड़कर 37 अक्षरों का प्रयोग
वकया िाता ह।ै v. चीिी र्लर्प: यरोपीय और िारतीय वलवपयों से अलग चीनी वलवप िी एक प्राचीनतम वलवप ह।ै ू इसका विकास 3200 स े 2700 ईसा पि भ के लगिग हआ था। यह चीन की िाषाओ की प्रमख ु ू ु ं वलवप ह ै िसै े मडाररन ही चीन वक मख्य वलवखत िाषा ह।ै यह विवचत्र वचत्रात्मक वलवप ह ै (汉 ु ं 字 漢 字) विसे विश्व की एक मात्र सनातन वलवप की सज्ञा दी िा सकती ह ै । क्योवक यह ं वलवप प्रचीन काल स े आि तक प्रचलन म ें ह।ै इसम ें वहदी य अग्रेिी की तरह अक्षर ध्िवनया नही ं ं ं होती ह।ै इसम ें हिारों स्िराश (logograms) प्रयोग वकए िाते ह।ै चीनी िाषा म ें साक्षर होने के ं वलए तीन से चार हिार स्िराशो/अक्षरों/ वचत्रों आवद को सीखने की आिश्यकता होती ह।ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 17 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अभ्याि प्रश्न 8. सिप्रभ थम वलवप का विकास कहााँ हआ? ु 9. वचत्रवलवप और िाि वलवप म ें क्या अतर ह?ै ं 10. दिे नागरी वलवप म ें कल वकतने अक्षर होते ह?ै ु 11. िारतीय वलवपयों कोई दो विशेषताए ाँ वलवखए। 12. ब्राम्प्ही वलवप की दवक्षणी शाखा से उत्पन्न दो वलवपयों के नाम वलवखए। 13. कौन सी िारतीय िाषा रोमन वलवप म ें वलखी िाती है? 1.8 सारांश हमने दखे ा वक िो िाषाए ाँ हम लोग इतनी आसानी से प्रयोग करते ह ै ि े हिारों िषों के मानि उवद्वकास और प्रयास का पररणाम ह।ै समान्य मानि िाषा के िन्म को पवहचाना एक कवठन कायभ है, पर िो िाषाए ाँ आिकल प्रचलन म ें ह ै उनकी िड़ो को िरूर पवहचाना िा सकता ह।ै िाषा के बारे म ें अध्ययन करना एक बहत बड़ा और िविल क्षेत्र ह।ै यहााँ िविल को कवठन नही समझना चावहए। िब िाषा के उद्भि और ु विकास के तार हम ें एक वनवित स्थान पर नही ले िाते हो; हम वकसी एक दृवष्टकोण से िाषा की समग्रता को नही दखे सकते हो; िब इसके अध्ययन म ें विषयों की परत दर परत खलती िाती हो, तब इसे िविल ु कहना ही उवचत होगा । हम दखे सकते ह ै वक एक शताब्दी म ें ही आिवनक िाषाशस्त्र ने दिनभ ों विषयों को ु िन्म द े वदया ह।ै उदाहरण के वलए िाषा
शास्त्र(Linguistics) से िन्म े कछ विषयों के नाम हम दखे सकते ु ह:ै ऐवतहावसक-िाषाशास्त्र, प्रायोवगक-िाषाशास्त्र, सामाविक-िाषाशास्त्र, मनो-िाषाशास्त्र, तलानात्मक- ु िाषाशास्त्र, शवै क्षक-िाषाशास्त्र, वनदानात्मक-िाषाशास्त्र
इत्यावद। िाषा के विषय म ें अध्ययन करते हए ु हम नये-नये विषयों से रुबरू होते िा रह े ह।ै िैसे यह एक रोचक विषय ह ै और हम वशक्षकों को इसकी िानकारी होनी चवहए। वकसी िाषा के इवतहास और िड़ो को िानने से उस िाषा म ें हमारी रुवच िी बढ़ती ह ै और हम ें सीखने म ें आसा
नी िी होती ह।ै आि के बहिावषक समाि में, विशषे रूप से िारतीय समाि में ु एक से अविक िाषाओ को सीखना िरूरी हो िाता ह।ै िसै े िब हम ें मालम हो वक एक से अविक ू ं िाषाओ को िानना सज्ञानात्मक प्रिमण को गवत प्रदान करता ह
ै तब हम स्िय ही एक से अविक ं ं ं िाषाओ को सीखने और विद्यावथभयों को वसखाने के वलए स्िप्रेररत होंग।े ं 1.9 शब्दावली 1. बहभार्षर्कता (Multilingualism) - दो य दो से अविक िाषाओ का अतसभम्प्बि और ु ं ं ं अतविभ ं 2. बहभाषी (Polyglot or Multiglot) - एक से अविक िाषाओ का प्रोयोग करने िाला ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 18 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3. िप्रेषण (Communication) - सचना, सदशे या तथ्यों का आदान प्रदान ू ां ं 4. शैर्क्षक-भाषार्वज्ञाि (Educational Linguistics) - िाषा की वशक्षा म ै ाँ िवमका का ू अध्ययन करने िाले 5. र्िपदीयचर (Bipedal) - दो पैरो पर चलने िाला िीि 6. घोषयत्र (larynx) - गले का एक अग िो स्िर उत्पन्न करता ह ै ां ं 7. गलकोश (Pharynx) - मख के पीछे का वहस्सा (स्िर के पररितभन और गिन के वलए) ु ुं 8. धवर्ि-ग़जि (Resonance) - मनष्य म ें स्िरों को अतर से उतपन्न करने की शवक्त ु ु ां ं 9. अिकलि (Adaptation) - समायोिन पररवस्थवत विशेष म ें ढाल लेना ु ू 10. स्तिपायी (Mammal) - अपने बच्चों को दि वपलाने िाला िानिर ू 11. प्रकर्पपत (Devised) -व्यिवस्थवत और योिनाबद् तरीके से उत्पन्न 12. तर्त्रका र्वज्ञाि (Neurology) - एक विषय विसे अग्रेिी म ें Neurology कहते ह।ै ां ं 13. अिवार्शकी (Genetics) - एक विषय विसे अग्रेिी म ें Genetics कहते ह।ै ु ां ं 1.10 अभ्यास प्रश्नों के उिर 1. लगिग 5000 िष भ पि भ ू 2. एक लाख से पचास हिार िष भ पि भ ू 3. िाषा रचना के कारण: a. मानि का पररिशे , b. उसके वििन की अिश्यकताएाँ तथा c. उसका विशेष शारीररक गठन ह ै 4. विश्व म ें लगिग छह हिार से अविक िाषाए ाँ बोली िाती है? 5. विश्व म ें लगिग लगिग दो दिभन वलवपयााँ प्रचवलत ह?ै 6. 14 वदनों म ें (दो स्त ाह) वदनों म ें एक िाषा ल्त हो िाती ह?ै ु 7. बोली और वलवप म ें कोई दो अतर: ं a. वलवप या लेखन िाषा की तरह कोई िवै िक यह अनिावशक कारण नहीं होता ह।ै ु ं b. िो हम सनते ह ै िह िाषा य बोली ह ै और िो दखे ते ह ै िह वलवप य लेखन प्रणाली ह।ै ु 8. सिप्रभ थम वलवप का विकास मेंसोपोिावमयााँ म ें हआ? ु 9. वचत्रवलवप और िाि वलवप म ें वसिभ तत्ि के प्रवतवनवित्ि का अतर ह।ै ं 10. दिे नागरी वलवप म ें कल
52 अक्षर होते ह?ै ु 11. िारतीय वलवपयों कोई दो विशेषताएाँ: a. सिी के वलखने में मात्रा का प्रयोग होता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 19 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् b. सबम ें सयक्ताक्षरों का प्रयोग होता ह
।ै ु ं 12. ब्राम्प्ही वलवप की दवक्षणी शाखा से उत्पन्न दो वलवपयााँ a. मध्य प्रदशे ी वलवप b. तेलग-कन्नड़ ु ु 13. वमिो िाषा (वमज़ोरम राज्य की िाषा) रोमन वलवप म ें वलखी िाती है? 1.11 सदं ि भ ग्रंथ सची व उपयोगी पाठ्यसामग्री ू 1. Akkinaso, f. N. (1992). Schooling, language and Knowledge in literate and non-literate societies. Comparative Studies in Society and History, 34, 1, 68-109. 2. Borodotsky, L. (2001). Does Language Shape Thought? Mandarin and English Speakers’ Conceptions of Time. Cognitive Psychology 43, 1–22 3. Brown, R. (1973). A first language. Cambridge, MA: Harvard University Press. 4. Buhler, J. G. (1898). On the origin of the Indian brahma alphabet. Strassburg: K. J. Trübner. 5. Daniels, P. T. (2003) Writing system. In M. Aronoff & J. Rees-Miller (Eds.) The handbook of Linguistics (pp. 43-80). Oxford: Blackwell. 6. DayTrnaslation (n. d.). World languages. https://www.daytranslations.com/world-languages 7. Dua, H. R. (2008). Ecology of multilingualism: language, culture and society. Mysore: yashoda publication. 8. Dwivedi, K. D. (2010) Bhasha-Vigyan evam Bhasha-Shastra (12th ed. Hindi). Varanasi: Vishwavidyalay Prakashan. 9. Ethnologue (2017). Language of the world. Available on https://www.ethnologue.com/browse/names 10. Fillmore, L. W. and Snow, C. E. (2000). What teacher need to know about language. Washington DC: Centre for Applied Linguistics. 11. Garcia, O. (2009). Bilingual education in 21st century: global perspective. West Sussex (UK): Wiley-Blackwell. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 20 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 12.
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‘वशक्षण िाषा मक्त िातािरण में सिि नही ह’
ै के सामान्य अििारणा की साथभकता ु ं 2.4 िाषा प्रिीणता/ सिी वशक्षकों के वलए िाषा प्रिीणता की अवनिायभता 2.4.1 िाषा प्रिीणता 2.4.2 वशक्षक के वलए िाषा प्रिीण/ वनपण होना क्यों आिश्यक ह?ै ु 2.5 िाषा वशक्षा के माध्यम के रूप में 2.6 शब्दािली 2.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.8 सदि भ ग्रथ सची ि उपयोगी पाठयसामग्री ् ू ं ं 2.9 वनबिात्मक प्रश्न ं 2.1 प्रस्तावना िाषा मानि के वलऐ एक विलक्षण शवक्त, क्षमता और पवहचान ह।ै आप गहनता से विचार करेंग े तो दखे सकते ह ै वक िाषा का मानि प्रिावत से एक विवशष्ट सम्प्बि ह।ै रेयमण्ड विवललअम्प्स (Williams, ं 1977) महोदय ने तो यहााँ तक कह वदया वक िाषा की कोई िी पररिाषा प्रत्यक्ष य अप्रत्यक्ष रूप से मानिमात्र की पररिाषा ह।ै िाषा कों पररिावषत करना अत्यत दरूह ि अनन्त की खोि करने िसै ा ह।ै ं ु इसकी अनन्त तरीके से अनत पररिाषाए दी िा सकती ह।ै इसकी अमतभ प्रकवत के कारण फ्ासीसी ृ ू ं ं मनोिाषा
विज्ञानी(Psycholinguist) िवलया विस्तेिा(1989) ने कहा वक िाषा आि िी अज्ञात तत्ि ू ह।ै िाषा को समझना और इसकी उत्पवत्त ि प्रिाि के बारे में शोि करना वकसी एक विषय क्षेत्र की बात नही ह।ै दशनभ से लेकर तवत्रकाविज्ञान
िसै े निीनतम विषयों म ें मानििाषा के विषय म ें अध्ययन वकया ं िाता ह।ै ितभमान िाषाविज्ञावनयों का मानना ह ै वक िाषा की क्षमता को समझने के वलए ठोस अतविभषयी ं सहयोग की आिश्यकता ह।ै इन विषयों म ें विकासिादी-िीिविज्ञान, नशास्त्र, मनोविज्ञान और तवत्रका- ृ ं विज्ञान आवद प्रमख ह।ै ु िाषा का वशक्षा की विषय और क्षेत्र म ें महत्िपण भ िवमका ह ै क्योवक िाषा वसिभ सम्प्प्रेषण का ू ू माध्यम ही नही िरन व्यवक्त के विचारों का आिार होती ह।ै यह तथ्यात्मकरूप से वसद् वकया िा चका ह ै ु वक िाषा या शब्दों का मानि मवस्तष्क पर िहद असर होता ह ै (Borodotsky, 2001)। उदाहरण हते ृ ु आप मानि के िावमकभ व्यिहार को लें सकते ह ै और आप दखे सकते ह ै वक विविन्न िमो के अनआवययों ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 23 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् के मध्य िो मतिदे और सघषभ होता ह ै िह मख्यतः िाषा का ही सघष भ ह।ै कछ िावमकभ शब्द िो वकसी ु ु ं ं िम भ के माननें िालों के वलए उिाभ का श्रोत तथा पवित्रता का आिा
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र होते ह ै और उस िम भ विशेष के मानने िाले व्यवक्तयों म ें अनशासन ि सयम का सचार करते ह,ै उन्ही शब्दों का प्रिाि अन्य िम भ के ु ं ं व्यवक्तयों के वलए शन्य होता ह,ै और क
िी किी घणा, विद्वषे आवद नकारात्मक िािनाओ के साथ साथ ृ ू ं उिाभ का क्षय िी करते ह।ै कहने का अथ भ यह ह ै वक वकसी विशषे िाषासमह का सदस्य होन े और सस्कवत ृ ू ं विशेष का अनयायी होने के आिार पर हमारे वचतन की क्षमता और वदशा दोनो ही प्रिावित होती ह।ै ु ं िाषा के अिाि म ें सम्प्प्रेषण और वचतन दोनो ही सम्प्िि नही ह।ै इस प्रकार हम दखे सकते ह ै वक िाषा के ं अिाि म ें वशक्षा की व्यिस्था का अवस्तत्ि कलपनातीत लगने लगता ह।ै िाषा और वशक्षा अन्योन्यावश्रत सास्कवतक तत्ि ह।ै ृ ं 2.2 उद्दश्े य इस इकाई को को पढ़ने के उपरात आप: ं 1. िाषा और वशक्षा के सम्प्बि की वििचे ना कर सकें ग;े ं 2. वशक्षण म ें िाषा की िवमका का मलयाकन कर सकें गे; ू ू ं 3. िाषा प्रिीणता के सम्प्प्रत्यय को स्पष्ट कर सकें गे; 4. वशक्षकों के वलए िाषा-प्रिीण होने की आिश्यकता की समालोचना कर सकें गे; 5. िाषा का वशक्षण माध्यम के रूप म ें िणनभ कर सकें ग।े 2.3
‘वशक्षण िाषा मुक्त वातावरण म संिव नही ह’
ै के सामान्य अविारणा ें की साथभकता (Significance Of The General Notion That Teaching Cannot Take Place In A Language-Free Environment.) वपछली इकाई म ें आप िाषा और वलवप के उद्भि और विकास का अध्ययन कर चके ह।ै िाषा को यवद ु हम पररिावषत करें तो शायद मानि िीिन से अलग करके पररिावषत नहीं कर सकते ह।ैं आप कह सकते ह ैं वक मानि ने िाषा की रचना नहीं की, आप इसे दिै ीय शवक्त द्वारा उत्पन्न मान सकते ह।ै इसे नैसवगकभ क्षमता य अनिावशक क्षमता िी मान िी सकते ह।ैं परत आप इस बात से इकार नहीं कर सकते की वलवप ु ु ं ं ं की रचना मानि न े की ह।ै वलवप दशे और काल की सीमा से परे एक स्थाई तत्ि ह।ै िब वलवप सीखने की बात आती ह ै तब अविगम, वशक्षण, वशक्षालय आवद सप्रत्यय अकस्मात ही सामने आ िाते ह।ैं दसरी ं ू ओर यवद हम वशक्षालय की आिश्यकता और उत्पवत्त पर विचार करें तो हम समझ सकते ह ैं वक वकसी िी सभ्यता और काल म े वशक्षालय की स्थापना वकसी समदाय विशषे ने अपनी सस्कवत ि ज्ञान की रक्षा और ृ ु ं इनके स्थावयत्ि और हस्तातरण के वलए की होगी। एक विशषे सदि भ म ें कहा िा सकता ह ै वक आि िी ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 24 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् विद्यालय य वशक्षण सस्थाओ का यही काय भ ह।ै िाषा (बोली और वलवप) की उत्पवत्त और विकास का ं ं इवतहास िी मानि सस्कवत की रक्षा, स्थावयत्ि तथा हस्तातरण से िड़ा हआ ह।ै अतः िाषा और ु ृ ु ं ं विद्यालय दोनो की उत्पवत्त का उद्दश्े य एक ही लगता ह।ै इस प्रकार ये दोनो एक दसरे के परक या ू ू अन्योन्यावश्रत कह े िा सकते ह।ै विद्यालय म ें चलने िाली प्रविया विसे वशक्षण अविगम कहते ह,ैं के अवस्तत्ि म ें आने के दो आिारित और अविव्यावपत (Overlapping) कारण हो सकते ह।ैं प्रथम कारण ू यह वक समाि/सभ्यता विशेष की िाषा और वलवप हो सकती ह ै विसे अगली पीढ़ी द्वारा सीखने की आिश्यकता ने वशक्षण और वशक्षालयों को िन्म वदया होगा। वद्वतीय स्िय वलवप और िाषा की ं उपलब्िता। िाषा उपलब्ि होने से हम अगली पीढ़ी को सास्कवतक उपलवब्िया हस्तातररत कर सकते ह।ै ृ ं ं ं यवद िाषा नहीं होती तो मानि म ें शायद पशओ से अविक सप्रेषण नहीं होता। िब सप्रेषण का माध्यम ु ं ं ं नहीं तो ज्ञान और अनिि के हस्तातरण की कलपना नहीं की िा सकती थी। अतः वशक्षण, विद्यालय ु ं आवद आवद की आिश्यकता ही नहीं पड़ती। इस प्रकार िाषा वशक्षण का उद्दश्े य और माध्यम दोनों ही बन िाती ह।ै िाषा वशक्षण की प्रविया और पररणाम दोनों म ें इस तरह से वमवश्रत ह ै वक हम अतर नहीं कर ं सकते ह ैं यवद हम वशक्षण से िाषा तत्ि को वनकाल दें, तो यह शद् दि म ें स े दि और पानी अलग अलग ु ू ू वनकालने िसै ा होगा अथाभत अनािश्यक विघिन कह सकते ह।ैं हम एक दसरे पहल से िी िाषा के वशक्षण से सबि का अध्ययन करते ह।ैं एक प्रश्न पर ध्यान ू ं ं ू दीविए और अपने उत्तर को नीचे वदए हए ररक्त स्थान पर वलवखए। ु वशक्षण क्यों? अथिा वशक्षण की आिश्यकता क्यों? विविन्न शब्दों म ें आपके पास इस प्रश्न के वितने िी उत्तर होंग े उनको हम सार रूप म ें एक उत्तर म ें समिे सकते ह।ैं िह यह ह ै वक वशक्षण बच्चों को अविगम कराने य वसखाने के वलए वकया िाता ह।ै अब अविगम क्या ह?ै यहााँ आपके मवस्तष्क पर दबाि डाले वबना बताना चाहगाँ ा वक िब बच्चा अपने पयाभिरण से अतविभ या ू ं करते हए अपने अनििों का अथभ समझ लेता ह ै या एक विशषे अथभ को गढ़ लेता ह ै तब हम उसे सीखना ु ु कह सकते ह।ैं सािारण अथभ म ें सीखना एक अथभ वनरूपण की प्रविया (Meaning Making Process) ह,ै िो वक िाषा की प्रविया से अलग नहीं ह ै (Halliday, 1993)। हले ीडे के अनसार िो िाषा की ु सारोत्पवत्त(Ontogenesis) की प्रविया ह ै िही समान प्रविया सीखने की िी ह।ै िब कोई बच्चा िाषा सीखता ह ै तो सीखने की िड़ या बवनयाद को सीखता ह(ै Learning to Learn)। विद्यालय म ें वशक्षक ु और विद्यावथभयों के मध्य सिाद के माध्यम से वशक्षा की प्रविया िाषा के आदान प्रदान(वशक्षण) की ं प्रविया हो िाती ह ै ह।ै िाषा का प्रयोग एक ऐसी प्रविया ह ै विससे हमारे अनिि ज्ञान में पररिवतभत होते ु ह।ैं अतः हम िाषा और अविगम को अलग-अलग करते हए नहीं समझ सकते ह।ैं दसरी ओर हम िानते ु ू ह ै वक अविगम और वशक्षण दोनो एक प्रविया के दो पहल ह।ै अतः अविगम और वशक्षण; वशक्षण और ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 25 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषा एक दसरे से सम्प्बवित
हो िाते ह।ैं विद्यालयी सदि भ म ें अविगम का आिार वशक्षण होता ह ै और ं ं ू वशक्षण का आिार िाषा। िब हम वकसी िी विषय को पढ़ाते ह ैं तब हम उसमें क्या पढ़ाते हैं? उदाहरण
हते विज्ञान म ें बल, ु ऊिाभ आवद और िावणज्य में करािान, लेखा आवद। ये बल, ऊिाभ, करािान, लेखा, आवद सिी शब्द विशेष ही ह।ैं िब कोई बच्चा वकसी विषय के सदि भ विशेष म ें प्रयक्त तकनीकी शब्दों का अथभ समझने ु ं लगता ह,ै तब िह उस विषय को समझने लगता ह।ै हमशे ा से अमतभ सप्रत्ययों (Concepts) और विशेष ू ं अििारणाओ को व्यत्पवत्तशास्त्रीय (Etymological) आिार पर विश्लेवषत और स्पष्ट करने की परपरा ु ं ं रही ह,ै िोवक िाषा शास्त्र का एक अग ही ह।ै िब िी कोई वशक्षक िाषाशास्त्रीय तकनीकों का प्रयोग ं करते हए वशक्षण करता ह ै तब उसका वशक्षण अविक साथभक और प्रिािी होता ह।ै हम अक्सर सनते ह ै ु ु वक अमख वशक्षक/विद्याथी में सम्प्प्रत्ययी समझ (Conceptual Understanding) अच्छी ह ै या इसका ु अिाि ह।ै इस समझ का आिार सम्प्प्रत्ययों का व्यत्पवत्तशास्त्रीय विश्लेषण करने का गण होता ह।ै हम दखे ु ु सकते ह ैं वक िाषा इस प्रकार एक वशक्षण की तकनीक िी बन कर उिरती ह।ै वशक्षण की प्रविया को िो पररणाम ह,ै विसे हम ज्ञान कहते ह,ैं िह कोई िी सचना/ज्ञान नहीं ू होता ह ै बवलक समाि विशषे द्वारा स्िीकत ििै ता प्रा्त ज्ञान ही विद्यालयों म ें हस्तातररत वकया िाता ह।ै ृ ं और इसका माध्यम वसिभ और वसिभ िाषा (वलवप) ही हो सकती ह।ै िाषा द्वारा प्रा्त ज्ञान की पहचान की िा सकता ह ै और उसका पनः परीक्षण वकया िा सकता ह(ै Akinanaso, 1992)। अत म ें एक बात और ु ं ध्यान दने े िाली ह ै वक वशक्षण अविगम प्रविया प्रमख रूप से एक सज्ञानात्मक(Cognitive) प्रविया ह।ै ु ं बच्चा सीखता तिी ह ै िब िह सज्ञानात्मक रुप से सविय अविगमकताभ होता ह;ै अथाभत िब िह ं वचतन(Thinking) करता ह।ै हम िानते ह ैं वक िाषा वचतन प्रविया का आिार ही नहीं बवलक उसका ं ं वहस्सा िी होती ह।ै अतः िाषा के अिाि म ें वचतन और वचतन के अिाि म ें वशक्षण-अविगम प्रविया की ं ं कलपना करना िी कलपना स े परे ह।ैं अतः हम कह सकते ह ैं वक िाषा-मक्त िातािरण म ें या िाषा विहीन ु िातािरण म ें वशक्षण की सिािना नहीं ह।ै िाषा वशक्षण-अविगम की आिश्यक शतभ ह।ै इस वलए वशक्षण ं िवत्त (Teaching Profession) को अपनाने िाले व्यवक्त िाषा प्रिीण होने िरूरी ह।ै िाषा-प्रिीणता के ृ सम्प्प्रत्यय की चचाभ हम इसी इकाई म ें आग े करेंगे। अभ्याि प्रश्न 1. अविगम से क्या तात्पयभ ह?ै 2. िाषा और अविगम वकस प्रकार सम्प्बवित ह?ै ं 3. सम्प्प्रत्ययी समझ (Conceptual Understanding) का क्या आिार ह?ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 26 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 2.4 िाषा प्रवीणता और सिी वशक्षकों के वलए िाषा प्रवीणता की अवनवायभता (Proficiency in A Language/Languages as An Imperative for all Teachers) 2.4.1 भाषा प्रवीणता अिी तक आप िाषा के सप्रत्य को अच्छी तरह स े समझ ही चके होंग।े यवद आप प्रिीणता शब्द के अथभ ु ं को िानते ह ैं तो आसानी से िाषा प्रिीणता के सप्रत्यय और महत्ि को समझ सकते ह।ैं ं प्रिीणता से तात्पयभ वकसी कायभ को कशलता पिकभ करन े की क्षमता से
ह।ै इस प्रकार हम िाषा ु ू प्रिीणता को वकसी व्यवक्त के अन्दर वकसी िाषा को कशलता पिकभ प्रयोग करने की क्षमता कह सकते ह।ैं ु ू अब बात यह आती ह ै वक िाषा को तो हम सिी प्रयोग करते ह,ैं िो पढ़े वलख े नहीं ह ैं ि े लोग िी सामाविक अतविभ या के वलए िाषा का प्रयोग करतें ही ह।ैं विर यह कशलतापिभक िाषा प्रयोग से क्या ु ू ं तात्पयभ ह?ै इस प्रश्न का एक वनवहताथभ यह ह ै वक िाषा के प्रयोग म
ें कछ कौशल (Skill) तो वनवहत िरूर ु ह,ै िो व्यवक्त को सीखने पड़ते होंग।े यवद आप विविन्न रािनीवतज्ञों, िकीलों, िावमकभ उपदशे को के िाषणों ि प्रिचनों पर ध्यान द ें तो आप कशलतापिकभ और अकशलतापिकभ िाषा प्रयोग के अतर को ु ू ु ू ं समझ सकते ह।ैं वशक्षण-िवत्त (Teaching Profession) िी एक ऐसा कायभ ह ै विसम ें िाषा के कौशलों ृ को सीखना और अभ्यास करना अवनिायभ शतभ होती ह।ै ि े कौन से िाषा कौशल ह ै िो एक वशक्षक को अभ्यास के साथ सीखने चावहए? आप यवद िाषा के अियिों पर ध्यान दगें े तो आसानी से उत्तर प्रा्त कर सक्ते ह ै वकसी िी िाषा म ें चार मलित कौशल होते ह ैं विन्ह ें िाषा के प्रयोगकताभ को सीखना होता ह।ै यह ू ू चारों कौशल अतसभम्प्बवित और अविव्यावपत िी ह।ै वसिभ अध्ययन सवििा के वलए हम अतर करके ु ं ं ं समझने की कोवशश कर रह े ह।ै i. सनना अथिा श्रिण (Listening) ु ii. बोलना (Speaking) iii. पढ़ना (Reading) iv. वलखना (Writing) िाषा के सीखने म ें हम इन्ही चार मलित कौशलों को अवितभ करते ह।ैं अिनभ की विवियााँ ि प्रविवियााँ ू ू इस इकाई के विषय क्षेत्र म ें नही आती ह,ै अतः िाषा अिनभ कै से करते ह ै इसकी चचाभ नही करेंग।े इन चार प्रमख तथा मलित कौशलों के अलािा सवहवत्यक-सस्कवतक कौशल िी होते ह।ै आग े बात यह आती ह ै ृ ु ू ू ं वक कोई िी सामान्य व्यवक्त िाषा को सनना और बोलना िानता ही ह ै और यवद िह साक्षर िी ह ै तो ु पढ़ना और वलखना िी िानता ह,ै तो क्या हम उसे िाषा प्रिीण नहीं कह सकते हैं? इस प्रश्न के उत्तर के पहले हम िान लें वक प्रिीणता के सप्रत्यय म ें दो तत्ि अवनिायभ रूप से होते ह:ैं ं i. शद्ता (Clarity) और ु ii. प्रिाह (Fluency) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 27 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अतः िो व्यवक्त वकसी िाषा का शद्ता के साथ प्रिाहमय तरीके से प्रयोग करता है, तो उसे हम िाषा- ु प्रिीण कहते ह।ैं िाषा प्रिीणता को हम िाषा प्रयोग के विविन्न आयामों या चारो कौशलों के आिार पर परख सकते ह।ैं यह चार िाषा कौशल प्रथमदृष्टया तो सामान्य सी बात लगते ह ैं परत इनम ें कशलता प्रा्त ु ु ं करना एक लबी सािना का कायभ ह।ै एक िाषा
प्रिीण व्यवक्त के वलए िाषा को विविन्न पक्षों का ज्ञान ं होना प्रथम शतभ होती ह ै और िाषा के ये पक्ष िाषा के विविन्न कौशलों और उनके विकास से अविन्न रूप से िड़े हए ह।ै इन्ह े िाषाशस्त्र के उपविषयों के रूप म
ें िाते ह ै िो वक इस प्रकार ह;ैं ु ु ं i. ध्िवन विज्ञान (Phonology) ii. शब्द विज्ञान (Morphology) iii. व्याकरण/सरचना (Syntax) ं iv. अथभविज्ञान (Semantics) िाषा के इन पक्षों को सीखना ही िाषा सीखना होता ह।ै अब िाषा के इन पक्षों
का ज्ञान हमारे िाषा प्रयोग को कै से प्रिावित करता है? इसको िी समझ लेते ह।ै इन पक्षों का ज्ञान वकसी िाषा की ध्िवन को भ्रवमत हए वबना सनने, शद् ि स्पष्ट उच्चारण करन
े/बोलने, वलख े हए शब्दों को पढ़ने और उनका अथभ समझने ु ु ु ु तथा स्पष्टता ि शद्तापिकभ वलखने की कशलता प्रदान करता ह।ैं अथाभत सिी कौशलों का विकास ु ू ु करता ह।ै साथ ही िाषा के चारों कौशलों पर प्रिाहमयता का सप्रत्यय िी लाग होता ह।ै प्रिाहमय ू ं बोलना, पढ़ना, और वलखना तो हम आसानी स े समझते ह ैं परत प्रिािपण भ सनना थोड़ा अनोखा लगगे ा। ु ू ु ं आपने अनिि वकया होगा वक हम(सिी सामान्य व्यवक्त) वकसी िी िक्तव्य को सवियता के साथ ु ध्यानपिकभ अथभ समझते हए लबे समय तक नहीं सन सकते ह।ैं बशते वक हमारी उस विषय म ें विशेष रुवच ु ू ु ं हो या हम विवशष्ट ि कशल श्रोता हो। कशल श्रोता िह होता ह ै िो अपने सज्ञानात्मक प्रवियाओ पर ु ु ं ं वनयत्रण स्थावपत कर लेता ह।ै अथाभत कशल श्रोता उच्च-सज्ञानात्मक(Metacognitive) रणनीवतयों साथ ु ं ं सनता ह।ै यह कौशल सनने के अभ्यास से विकवसत हो पाता ह।ै प्रथम िाषा ज्ञान तो अचेतन अिस्था म ें ु ु िी होता रहता ह ै लेवकन यवद आप वद्वतीय िाषा को उदाहरण के रूप म ें लेते ह ैं तो आप समझ सकते ह ैं वक वद्वतीय िाषा अग्रेिी(उदाहरणाथभ) के िाषणों, व्याख्यानों, गीतों को समझने के वलए हम ें सनने म ें िी ु ं कशलता प्रा्त करनी होती ह।ै समझते हए या अथभसवहत शब्दों को सनने के वलए िाषा के श्रिण कौशल ु ु ु म ें िी शद्ता और प्रिाह की आिश्यकता होती ह।ै ु 2.4.2 र्शक्षक के र्लए भाषा प्रवीण/र्िपण होिा क्यों आवश्यक है? ु िाषा सचना, तथ्यों और सामान अथों म ें ज्ञान की िाहक होती ह।ै यवद आप वशक्षक-िवत्त से सबवित ृ ू ं ं कायों पर थोड़ा सा िी ध्यान दगें े तो आप स्िय ही समझ िाएग े वक िाषा-वनपणता एक वशक्षक होने के ु ं ं वलए अवनिायभ शतभ ह।ै हम इस विषय पर वबदिार चचाभ करेंग।े ं ु 1. िो ज्ञान एक वशक्षक प्रा्त करता ह ै िह िाषा के माध्यम से ही प्रा्त करता ह ै और िाषा के माध्यम से ही अपने विद्यावथभयों को सौप दते ा ह।ै यवद आप ज्ञान को सामान्य अथभ से अलग उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 28 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् रचनात्मकतािादी(Constructivist) सदि भ म ें ही समझना चाहते ह ैं तब िी िाषा के वबना ज्ञान ं सिि नहीं ह।ै क्योंवक िाषा हमारी वचतन प्रविया की वहस्सा होती ह।ै हम एक िाषाई समदाय ु ं ं के सदस्य होने के नाते एक विशषे प्रकार से सोच रखने लगते ह(ैं Borodotsky, 2001 )। अतः यह कहना प्रत्येक तरह से ििै ही होगा वक एक वशक्षक वशक्षण से पि भ िो ज्ञान और कौशल ू अवितभ करता ह ै िह िाषा के माध्यम से ही करता ह ै और िो ज्ञान िह अगली पीढ़ी म ें सप्रेवषत ं करता ह ै िह िी िाषा के माध्यम से ही करता ह।ै 2. यवद आप कक्षाकक्ष सप्रेषण के सप्रत्य को समझ रह े ह ैं तो आपको यह समझने म ें कवठनाई नहीं ं ं होगी वक िाषा ही सप्रेषण का मख्य माध्यम होती ह।ै िाषा के वबना सप्रेषण पानी के वबना नाि ु ं ं चलाने िसै ा ही होगा। सप्रेषण (Communication) की प्रविया म ें िाषा एक अवनिायभ तत्ि ह।ै ं यहााँ साके वतक िाषा को िी शावमल करते हए कह सकते ह ैं वक िाषा नहीं सप्रेषण नहीं (No ु ं ं language, No Communication)। सप्रषे ण की सामान्य प्रविया म ें कछ बािक तत्ि होते िी ह।ैं इन बािक तत्िों म ें एक बड़ा िगभ ु ं िाषायी बािक तत्िों का होता ह।ै कक्षाकक्ष म ें प्रिािी और पक्के (insured) सप्रेषण के वलए ं वशक्षकों म ें शवै क्षक-िाषाविज्ञान का ज्ञान होना परम आिश्यक हो िाता ह।ै विषय कोई िी हो पर िाषा के वबना सिाद स्थावपत करना और उसको वनयवत्रत और वनदवे शत करना सिि नहीं ह।ै ं ं ं अतः सिी वशक्षकों को अवनिायभरूप से िाषा वनपण होना चावहए ह।ै ु 3. िाषा की प्रकवत की अच्छी समझ होने से वशक्षक अपने िक्तव्यों और व्याख्यानों को ृ कशलतापिकभ सरवचत कर सकते ह।ैं िह अपने प्रश्नों को इस प्रकार से सरवचत कर सकते ह ैं वक ु ू ं ं विद्यावथभयों का मवस्तष्क-उद्वले न (Brain-Storming) सम्प्िि हो सके । 4. िाषा वनपण वशक्षक िाषा विषय नहीं िी पढ़ाते हो तब िी अपने सामान्य व्यिहार से विद्यावथभयों ु म ें िाषा ज्ञान का सचार करत े रहते ह।ैं अथाभत िाषा का वियात्मक ज्ञान िवमका-प्रवतमान (Role ू ं Modelling) पद्वत से चलता रहता ह।ै 5. िाषा वनपण वशक्षक बच्चों के उत्तरों के पण भ न होन े पर िी उनको समझ लेते ह,ैं बच्चों के उत्तरों ु ू की पवतभ करके उन्ह ें प्रोत्सावहत कर सकत े ह।ैं इस पवतभ करन े के उदाहरण से आप सहमत नहीं िी ू ू हो सकते ह।ैं लेवकन यवद आप स्मरण कर सके तो आपके बोलने और वलखने म ें आपकी माता, प्रथम वशवक्षका/वशक्षक और घर म ें बड़े लोगों द्वारा शब्द/ध्िवन/ अक्षर पवतभ और सशोिन का ू ं विशेष योगदान रहा ह।ै वशक्षकों कों िीं बच्चों के अपण भ िाक्यों को स्िीकार करते हए पण भ करना ु ू ू होता ह।ै 6. िाषा वनपण वशक्षक बच्चों की बातों की अच्छी समझ रखते ह।ैं विससे उन्ह ें बच्चों की समझ ु और पि-भ ज्ञान का पणभ-ज्ञान होता ह।ै वशक्षक बच्चों के मध्य होने िाले सिाद के प्रारूप को ू ू ं िलीिावत समझते ह।ै और इन सब बातों के विश्लेषण से ि े वशक्षण की वदशा पहचानन े और ं वनिाभररत करने म ें वनपण हो िाते ह।ैं इस प्रकार िाषा-वनपणता वशक्षण-वनपणता की आिार ही ु ु ु नही अवपत आिश्यक शतभ हो िाती ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 29 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 7. िाषा वनपण वशक्षक बच्चों म ें िाषा-विकास के चरणों को अच्छे से समझते ह ैं और तदनरूप ु ु विकास की प्रविया को पोवषत और सिविभत करते ह।ैं िे बच्चों की िाषायी गलवतयों को ं अिसरनकल सिालते, वनयवत्रत करते और सिारते ह।ै िाषा वनपण वशक्षक बच्चों के िीिन म ें ु ू ु ु ं ं प्रथम-िाषा और उनकी घर की िाषा के महत्ि को समझते हए उसको खत्म नहीं करते ह,ैं बवलक ु उसका बच्चों म ें ज्ञान के सििभन हते प्रयोग करत े ह।ैं ि े अपनी िाषा या विद्यालयी िाषा बच्चों ु ं पर थोपते नहीं ह।ै अथाभत स्कल की िाषा(अकादवमक िाषा) को गह िाषा की कीमत पर नहीं ृ ू वसखाते ह।ैं िलतः शवै क्षक िाषाशास्त्र का ज्ञानी वशक्षक सिी िग भ और सस्कवतयों के बच्चों का ृ ं विकास करने म ें सक्षम होता ह।ै ऐसे वशक्षक बहिाषायी कक्षा म ें िाषायी अलपसख्यक बच्चों ु ं का उवचत ध्यान रख पाते ह।ैं 8. विद्यालय पि भ बच्चों म ें अलग-अलग िाषाओ का विविन्न स्तर पर विकास होता ह।ै हो सकता ू ं ह ै वक अपनी मातिाषा में बच्चा बहत उत्कष्ट प्रगवत वकया हो पर दखे ा गया ह ै वक िाषाशास्त्र ु ृ ृ और िाषा-विकास के उवचत ज्ञान के अिाि म ें वशक्षक उस िाषा विकास को नकार दते े ह।ैं दखे ा गया ह ै वक अग्रेंिी माध्यम विद्यालयों म ें बच्चे द्वारा वहदी या अपनी मातिाषा के प्रयोग पर ृ ं अथभदण्ड िी वलया िाता ह।ै शवै क्षक िाषाविज्ञान का सत्य ज्ञानी वशक्षक इस तरह के दण्ड वनिाभरण तो दर बवलक अपनी उपवस्थवत म ें इस तरह कई वनयम स्िीकार नही कर सकता ह।ै ू 9. प्रौढ़ स्तर के व्यवक्तयों के वलए तय मानकों का प्रयोग करते हए बच्चों की िाषा प्रगवत का ु मलयाकन खतरनाक हो सकता ह।ै यह मानक बच्चे के अदर हीन िािना उत्पन्न करते हए बच्चे ु ू ं ं को हमशे ा हमशे ा के वलए कक्षा म ें चप रहन े िाला बना सकता ह।ै एक िाषा वनपण ु ु वशवक्षका/वशक्षक एक अच्छे मलयाकनकताभ िी सावबत होते ह,ैं क्योंवक उन्ह े िाषा की प्रकवत ृ ू ं और विकास के चरणों का सही ज्ञान होता ह।ै वकसी िी विषय का वशक्षक हो उसको अपने विषय के वशक्षण और मलयाकन हते िाषा के ू ु ं मलित कौशलों का प्रयोग करना और छात्रों से करिाना पड़ता ह।ै वशक्षक बच्चों द्वारा वलखे ू ू उत्तरों का िाषाशास्त्रीय विश्लेषण करते हए उसके सही होने या सही के वनकि होन े का वनणयभ कर ु सकने म ें सक्षम होते ह।ैं 10. वशक्षकों को समाि के वशवक्षत सदस्य होन े के नात े उस समाि की िाषा की प्रकवत, व्याकरण, ृ शब्द सरचना आवद की िानकारी होना अवनिायभ होता ह।ै ि े अपने समदाय की िाषा को ु ं सिविभत करते रहते ह।ै िाषा का कायभ क्या ह?ै और यह अपना कायभ कै से करती ह?ै इसकी ं िानकारी होने से ि े सामाविक अतविभ या को एक उवचत वदशा प्रदान कर सकते ह।ै साथ ही ं वशक्षक स्िय अच्छे पाठक और लेखक िी हो सकते ह।ैं ं 11. आप िानते ही ह ै वक िाषा एक सस्कवतक तत्ि और समािीकरण की प्रविया की प्रमख आिार ृ ु ं और घिक होती ह।ै िब बच्चा 5 स े 6 िष भ की आय म ें
विद्यालय आता ह ै तब उसकी मातिाषा ृ ु के माध्यम से सामािीकरण की प्रविया कािी हद तक हो चकी होती ह।ै यवद इस समय हम गह- ृ ु िाषा को विद्यालय पररसर म ें प्रवतबवित कर दते े ह ैं और विद्यालयी िाषा को अवनिायभ कर दते े ह ैं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 30 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् (िसै ा वक तथाकवथत अग्रेिी माध्यम की विद्यालय
ों म ें हो रहा ह)ै , तो हम अबतक हए ु ं सामािीकरण के प्रवतिल को बबाभद कर दते े ह।ैं िाषा के सामाविक सदि भ को समझने िाला ं िाषा वनपण वशक्षक समािीकरण की प्रविया के महत्ि को समझता ह।ै िह प्रत्येक बच्चे की ु मातिाषा तो नहीं सीख सकता ह ै पर कक्षाकक्ष म ें एक उदारता पण भ माहौल बनाकर बच्चों की ृ ू विद्यालयी िाषा सीखने तक उनकी पि भ अवितभ क्षमताओ को क्षय होने स े बचा सकता ह।ै ू ं विद्यालय और घर की िाषा अलग अलग होने पर िी विद्यालय को सामाविक विकास की दृवष्ट से हावनकारक नहीं होना चावहए। यह तिी सिि ह ै िब वशक्षक िाषा और सस्कवत के सम्प्बन्ि ृ ं ं की समझ रखता हो और बालक के विकास म ें इसके प्रिाि को अदािा लगाने म ें सक्षम हो। ं उपरोक्त विश्लेषण और चचाभ से यह नहीं समझना चावहए वक सिी वशक्षक िाषा-वशक्षक का प्रवशक्षण प्रा्त करें, या सिी वशक्षक िाषा वशक्षण का कायभ ही करें। बवलक इसका तात्पयभ यह ह ै वक वशक्षक िाषा प्रयोग के प्रवत सिदे नशील हो तथा िाषा की सरचना और काय भ की समझ रखते हो। वकसी व्यवक्त के िीिन म,ें ं ं वकसी पररिार में, वकसी समाि म ें िाषा/मातिाषा/सामदावयक िाषा का क्या महत्ि होता ह ै इसकी समझ ृ ु रखते हो। वशक्षक को शवै क्षक-िाषाविज्ञान की िानकारी होना आिश्यक ह ै क्योंवक िह एक सप्रेषक ह,ै ं वशक्षक ह,ै मलयाकन करता ह,ै क्योंवक िह समाि का एक वशवक्षत व्यवक्त है, क्योंवक िह समािीकरण ू ं की प्रविया का प्रवतवनवि ह ै (Fillmore and snow, 2000). 2.5 िाषा वशक्षा के माध्यम के रूप म (Language as a Medium of ें Teaching) िसै ा वक पि भ म ें िी चचाभ की िा चकी ह ै वक िाषा का क्षेत्र अत्यविक िहद ह।ै इसका क्षेत्र विस्तार व्यवक्त ृ ू ु के समस्त कायभ-व्यापार और विषयों तक ह।ै यही कारण ह ै की िाषा के विषय में विज्ञान, मानविकी, सामाविक विषयों, तकनीकी विषयों आवद सिी क्षेत्रों म ें वकसी न वकसी रूप म ें अध्ययन वकया िाता ह।ै प्रवसद् समाि-िाषाशास्त्री(Socio-Linguist) हलै ीडे महोदय ने िाषा की तीन पररप्रेक्ष्य बताए ह।ैं ं 1. िाषा सीखना (एक विषय के रूप में): वहन्दी, अग्रेिी, सस्कत, तवमल आवद िाषाओ का ृ ं ं ं अध्ययन करना। 2. िाषा द्वारा सीखना (माध्यम के रूप म)ें : वहदी माध्यम से विज्ञान, गवणत, इवतहास विषयों का ं अध्ययन करना। 3. ततीय िाषा के विषय म ें सीखना (वकसी िाषा के विषय म ें िाषाशास्त्रीय वििचे ना): अग्रेिी ृ ं िाषा की प्रकवत, ध्िवनशास्त्र, शब्दशास्त्र, सरचना आवद की वििचे नात्मक और विश्लेषणात्मक ृ ं अध्ययन करना। यहा हम वद्वतीय सदि भ
‘िाषा वशक्षा के माध्यम के रूप म’
ें का अध्ययन करेंग।े िब हम िाषा एक ं ं माध्यम की चचा भ करते ह ैं तो इसका सीिा सबि उस िाषा से होता ह ै िो विद्यालय म ें पाठयचया भ के ् ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 31 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वनष्पादन हते प्रयोग की िाती ह।ै िाषा का यह कायभ अपने आप म ें गहन वनवहताथभ रखता ह।ैं िाषा का ु सम्प्प्रेषण के माध्यम के रूप म ें कायभ करना एक ऐसी विशषे ता ह ै िो हम ें मानि सभ्यता की िड़ की ओर सोचने के वलए बाध्य करती ह।ै हम ें लगता ह ै वक िाषा म ें व्यवक्त के विचार, सचना, ज्ञान आवद को दसरे ू ू व्यवक्त तक पहचाँ ाने की क्षमता ने ही समाि की पष्ठिवम रखी होगी। क्योंवक कोई िी समाि स्थायी वनयमों ु ृ ू और परपराओ से सगवठत होता ह,ै िो वक एक स्पष्ट सम्प्प्रषे ण के माध्यम के अिाि म ें सम्प्िि नही हो ं ं ं सकता ह।ै विद्यालय की सकलपना िी यहीं से उद्भत होती हई प्रतीत होती ह।ै िब एक पीढ़ी अपनी सवचत ु ं ं ू ज्ञान ि उपलवब्िया दसरी पीढ़ी को हस्तातररत करने का प्रयास करती ह ै और िाषा िसै े उपकरण के द्वारा ं ं ू हस्तातररत करने म ें सक्षम िी होती ह,ै तब विद्यालय िैसी सस्था का उदय होता ह।ै प्रवसद् रूसी ं ं मनोिज्ञै ावनक िायगोत्स्की (Vygotsky, 1962) ने िी इसी सदि भ म ें िाषा के दो कायभ बताये ह।ैं प्रथम ं िाषा एक मनोिैज्ञावनक उपकरण ह ै िो हमारी वचतन और तकभ की प्रविया में सहायता करती ह ै और ं दसरा िाषा एक सास्कवतक उपकरण के रूप म ें काय भ करती ह।ै िायगोत्स्की के दोनो ही सदि भ िाषा को ृ ं ं ू वशक्षण की प्रविया से िोड़ते ह।ै प्रथम ज्ञान रचना प्रविया (वचतन) और दसरा सरवचत ज्ञान(सस्कवत) की ृ ं ं ं ू ओर इसारा करता ह।ै उन्होंने सामवहक ज्ञान को ही सस्कवत कहा ह।ै अतः सामवहक ज्ञान या सस्कवत के ृ ृ ू ू ं ं आदान-प्रदान-प्रसार हते िाषा एक प्रमख माध्यम ह।ै इस सास्कवतक प्रसार की प्रविया के वलए िो एक ृ ु ु ं स्थान वनवित हो िाता ह ै उसे हम विद्यालय कहते ह।ै िब इन्ही सस्कवतक उपलवब्ियों को वलवखत िाषा ृ ं के माध्यम से स्थावयत्ि और िद्यै ता प्रदान करके एक सरवचत रूप प्रदान कर वदया िाता ह ै तब हम इसे ं पाठयचयाभ कह सकते ह ैं और इस पाठयचयाभ के वनष्पादन को वशक्षण कहा िाता ह ै िो वकसी न वकसी ् ् िाषा के माध्यम से ही सिि ह।ै यहााँ हम दखे सकते ह ै की वशक्षण ही नही अवपत सम्प्पण भ वशक्षा व्यिस्था ु ू ं के उद्भि और सचालन म ें िाषा की मख्य िवमका ह।ै ु ू ं िब हम िाषा एक वशक्षण माध्यम की बात करते ह ै तब वकसी एक िाषा विशषे की बात नहीं कह सकते ह।ै वशक्षण का माध्यम एकिाषी, वद्विाषी और बहिाषी िी हो सकता ह।ै यह कोई मानकीकत ु ृ िाषा िसै े वक वहदी अग्रेिी आवद हो सकती ह ै और कोई उप-िाषा या बोली िी हो सकती ह ै िसै े वक ं ं गढ़िाली, कमाऊनी आवद। ु प्रायः सिी विद्यालयों म ें वशक्षण के एक प्रमख िाषा होती ह ै िो वक एक विद्यालय प्रबि सवमवत या ु ं सरकार द्वारा वनिाभररत की िाती ह।ै शासकीय प्राििानों के अलािा वशक्षक और बच्चों की िाषा िी वशक्षण अविगम के वनिाभरण का कायभ करती ह।ै उदाहरण के वलए सरकार ने वहदी िाषा को वशक्षण ं माध्यम के रूप म ें स्िीकार वकया ह ै और वशक्षक ि छात्र कछ विद्यालयों म ें गढ़िाली य कमाऊनी ु ु उपिाषाओ म ें सिाद करतें ह।ै इस उदाहरण कों नकारात्मक रूप से नही लेना चावहए। वशक्षण-अविगम ं ं की सगमता हते वशक्षण के माध्यम म ें पररितभन वकया िा सकता ह।ै इसका कारण आप िानते ही ह ै वक ु ु वशक्षण का लक्ष्य बच्चों के व्यिहार पररितभन(अविगम) करना और उनम ें सझ विकवसत करना होता ह।ै ू साथ ही आप यह िी िानते ही ह ै वक कोई िी व्यवक्त अपनी प्रथम िाषा म ें शीघ्रता से समझता ह।ै अतएि प्रिािशाली और िाषा प्रिीण वशक्षक वकसी एक िाषा पर आवश्रत नहीं रहता ह।ैं आि का समय उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 32 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् बहआयामी, बहिाषायी ि बहतकनीकी सलि ह।ै हम ें िाषा एक विषय से अलग िाषा एक माध्यम के ु ु ु ु सप्रत्यय को िी अच्छे से समझना होगा। हम िान रह े ह ैं वक िाषा सिी विषयों की आिारवशला ह ै और ं कहीं ना कहीं वकसी न वकसी प्रत्येक विषय का वशक्षण िाषा वशक्षण ही होता ह।ै अतः िाषा एक माध्यम के रूप म ें प्रत्येक विषय के ज्ञान म ें कें िीय िवमका अदा करती ह।ै बच्चे विस िाषा को समझते हो, समझने ू के साथ उस म ें वचतन करने की क्षमता रखते हो, िही िाषा एक उवचत वशक्षण माध्यम हो सकती ह।ै ं वशक्षण का माध्यम होना िाषा के बहआयामी कायों का एक पक्ष मात्र ह।ै िाषा वसिभ सप्रेषण का ु ं माध्यम नहीं ह ै लेवकन सप्रेषण िाषा का एक प्रमख कायभ ह।ै हम स्पष्ट, प्रत्यक्ष ि मतभ कायभ कह सकते ह।ैं ु ू ं इसके अलािा िाषा का वचतन प्रविया का वहस्सा होना, सस्कवत का वहस्सा होना, समािीकरण की ृ ं ं प्रविया का माध्यम होना आवद सिी अमतभ ि अप्रत्यक्ष कायभ कह े िा सकते ह।ैं आप िब अपनी कक्षा ू (Classroom) म ें बच्चों के सामने हो तब बच्चों से एक प्रश्न कर सकते ह ै वक आप कहााँ है? उत्तर होगा वक कक्षा म/ें क्लास म।ें तब आप बच्चों से पवछए वक क्लास कहााँ ह?ै यहााँ उपवस्थवत और दृवष्टगोचर ू िस्तओ म ें आप वकसे कक्षा कहते ह?ै अनेक उत्तर बच्चों की तरि से आपको प्रा्त हो सकत े ह।ै िसै े कोई ु ं कमरे को कक्षा कहगे ा, कमरे म ें मिे , कसी, श्यामपि आवद की उपवस्थवत को कक्षा कहगे ा। लेवकन यह ु सब िस्तए वकसी अन्य कक्ष म ें िी हो सकती ह ै िो वकसी िाताभ या वकसी सम्प्मले न या पररचचाभ के वलए ु ं प्रयोग वकया िाता हो। कक्षा-कक्ष(Classroom) के सप्रत्यय को वनिाभररत करने िाला कारक वशक्षक ं और विद्यावथभयों के बीच म ें अतविभ या और सिाद होता ह।ै इस सिाद का आिार िाषा ही होती ह।ै इस ं ं ं प्रकार हम कह सकते ह ैं िाषा वसिभ वशक्षण का माध्यम नहीं ह ै बवलक वशक्षण का पयाभय ि सारतत्ि ह ै िो कक्षा-कक्ष के सप्रत्य को सही रुप से पररिावषत करती ह।ै िाषा के वबना वशक्षण की प्रविया की कलपना ं नहीं की िा सकती ह।ै आप िरा सोवचए वक आप एक वशक्षक ह ैं और आप िाषा का प्रयोग वकए वबना वशक्षण कायभ कर रह े ह,ैं शायद कलपनातीत होगा।अत म ें यही कह सकते ह ै वक वशक्षक द्वारा िाषा का ं प्रयोग ही वशक्षण ह।ै अभ्याि प्रश्न 4. िाषा प्रिीणता म ें कौन से दो तत्ि शावमल है? 5. िाषा के वकन्ही दो पक्षों के नाम वलवखए। 6. वशक्षक को शवै क्षक-िाषाविज्ञान की िानकारी क्यों होनी चावहए? 7. हलै ीडे महोदय ने िाषा के वकतने पररप्रेक्ष्य बतायें है? 2.6 शब्दावली 1. अतिाम्बर्धत (Interrelated )- एक दसरे से सम्प्बवित या िड़ा हआ होना ु ु ां ां ं ु 2. अर्धव्यार्पत (Overlapping) - एक दसरे पर अच्छावदत होना। ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 33 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3. बहभार्षर्कता (Multilingualism ) -दो य दो से अविक िाषाओ का अतसभम्प्बि और ु ं ं ं अतविभ या ं 4. बहभाषी (Polyglot or Multiglot ) - एक से अविक िाषाओ का प्रोयोग करने िाला ु ं 5. िप्रेषण (Communication) - सचना, सदशे या तथ्यों का आदान प्रदान ू ां ं 6. शैर्क्षक-भाषार्वज्ञाि (Educational Linguistics ) - िाषा की वशक्षा म ें िवमका का ू अध्ययन करने िाले विषय 7. व्यत्पर्िशास्त्रीय (Etymological) - शब्दों की उत्पवत्त और अथभ वनष्पवत्त से सम्प्बवित ु ं विषय 8. िज्ञािात्मक (Cognitive) - ज्ञान और समझ प्रा्त करने की मानवसक प्रविया से सम्प्बवित ां ं 9. मर्स्तष्क-उिेलि (Brain-Storming) - एक वशक्षण प्रविवि विससे बच्चों म ें समस्या समािान की क्षमता विकवसत होती ह।ै 10. भर्मका-प्रर्तमाि (Role Modelling) - एक वशक्षण अविगम की विवि विसम ें बच्चे ू अनकरण से सीखते ह।ै ु 11. घटक (Factor) - एक िहद तत्ि या व्यिस्था का वहस्सा होना ृ 2.7 अभ्यास प्रश्नों के उिर 1. अविगम/सीखना एक अथभ वनरूपण की प्रविया 2. िो िाषा की सारोत्पवत्त )Ontogenesis) की प्रविया ह ै िही समान प्रविया सीखने की िी होती ह।ै 3. सम्प्प्रत्ययी समझ का आिार सम्प्प्रत्ययों का व्यत्पवत्तशास्त्रीय विश्लेषण करने का गण होता ह।ै ु ु 4. िाषा प्रिीणता के दो तत्ि: a. शद्ता ु b. प्रिाह 5. िाषा के पक्ष: a. ध्िवन विज्ञान (Phonology) b. शब्द विज्ञान (Morphology) 6. वशक्षक को शवै क्षक-िाषाविज्ञान की िानकारी होनी चावहए क्योंवक िह एक सप्रेषक ह,ै वशक्षक ं ह,ै मलयाकन करता ह,ै क्योंवक िह समाि का एक वशवक्षत व्यवक्त ह,ै क्योंवक िह समािीकरण ू ं की प्रविया का प्रवतवनवि ह।ै 7. हलै ीडे महोदय ने िाषा के तीन पररप्रेक्ष्य बतायें ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 34 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 2.8 सदं ि भ ग्रंथ सची व उपयोगी पाठ्यसामग्री ू 1. Akkinaso, f. N. (1992). Schooling, language and Knowledge in literate and non-literate societies. Comparative Studies in Society and History , 34, 1, 68-109. 2. Borodotsky, L. (2001). Does Language Shape Thought?: Mandarin and English Speakers’ Conceptions of Time. Cognitive Psychology 43, 1–22 3. Brown, R. (1973). A first language. Cambridge, MA: Harvard University Press. 4. Dua, H. R. (2008). Ecology of multilingualism: language, culture and society. Mysore: yashoda publication. 5. Dwivedi, K. D. (2010) Bhasha-Vigyan evam Bhasha-Shastra (12th ed. Hindi). Varanasi: Vishwavidyalay Prakashan. 6. Fillmore, L. W. and Snow, C. E. (2000). What teacher need to know about language. Washington DC: Centre for Applied Linguistics. st 7.
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0.3%
Garcia, O. (2009). Bilingual education in 21 century: global perspective. West Sussex(UK): Wiley-Blackwell. 8. Halliday, M. A. K.(1975). Halliday’s Functions of Language. Retrieved from www.communityinclusion.org/elm/Professionals/.../Halliday- handout.d 9. Halliday, M.A. K. (1993). Towards a Language-Based Theory of Learning. Linguistics and Education 5, 93- 116. Retrieved from lchc.ucsd.edu/mca/Paper/JuneJuly05/HallidayLang Based.pdf. 10. Halliday, M.A.K. (2004). Three Aspects of Children's Language Development: Learning Language, Learning through Language, Learning about Language. In J.J. Webster (ed.), The Language of Early Childhood: M.A.K. Halliday, pp 308-326,
Ch. 14. New York: Continuum. 11. Kristeva, J. (1989). Language the Unknown: An initiation into linguistics. New York: Columbia University Press. 12. Kumaravadivelu, B. (2006). Understanding language teaching: from method to post method. New York: Routledge. 13. Larson, R. K., Deprez, V., Yamakido, H. (2010). The evolution of human language: Biolinguistic perspective. Delhi: Cambridge University press. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 35 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 14. Linguistics Society of America (n.d.). http://www.linguisticsociety.org/content/how-many-languages-are-there- world. 15. NCERT (2005). National Curriculum Framework, 2005. 16. Richards, J. C., & Renandya, W. A. (2002). Methodology in language teaching: anthropology of current practice. New Delhi: Cambridge University Press. th 17. Sharma, R. (2010). Bhasha aur samaaj(7 ed. Hindi). New Delhi: Rajkamal Publication. 18. Williams, R. (1977). Marxism and Literature. Oxford: Oxford University Press. rd 19. Yule, G. (2006). The study of language (3 ed.). New Delhi: Cambridge University Press. 2.9 वनबिात्मक प्रश्न ं 1. िाषा और वशक्षा के सम्प्बि पर सवक्ष्त विप्पणी वलवखए। ं ं 2. वशक्षण म ें िाषा की िवमका कीं वििचे ना वकविए। ू 3. िाषा प्रिीणता से आप क्या समझते ह ै और वशक्षकों के वलए िाषा प्रिीण होना क्यों आिश्यक ह?ै 4. (No language, No Communication)। इस िक्तव्य पर अपनी ं सहमवत या असहमवत तकभ सवहत प्रस्तत करें। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 36 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 3 - बहभावषकता ु Multilingualism 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 बहिावषकता ु 3.4 कक्षा- कक्ष में िाषायी विविन्नता 3.5 िाषाई पाररवस्थवतकी 3.6 बहिावषकता एक ससािन के रूप में ु ं 3.7 विद्यावथभयों की िाषाई पष्ठिवम ृ ू 3.8 साराश ं 3.9 शब्दािली 3.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 3.11 सदि भ ग्रथ सची ि उपयोगी पाठयसामग्री ् ू ं ं 3.12 वनबिात्मक प्रश्न ं 3.1 प्रस्तावना वपछली इकाइयों के अध्ययन से आप यह समझ सकते ह ै वक िाषा की अििारणा सरल के साथ-साथ अत्यविक िविल िी ह।ै क्योंवक िाषा के सदि भ म ें पणरूभ पेण से कहना अत्यत ही कवठन कायभ ह।ै अलग- ू ं ं अलग विषयों के दृवष्टकोण से िाषा को कई तरह से पररिावषत वकया िा सकता ह।ै वपछली इकाई में हमने िाषा को मख्य रूप से एक मौवखक और वलवखत प्रतीकों की व्यिस्था के रूप म ें समझा था। यह ु िाषा की एक दृश्य ि स्थल अििारणा ह।ै यवद हम थोड़ा अदर की परतों की ओर झाकने का प्रयास करते ू ं ं ह ैं तो और िी तथ्य समझ म ें आने लगते ह।ै समाि-िावषक(Sociolinguistic) दृवष्टकोण से िाषा वसिभ प्रतीक वचन्हों की व्यिस्था मात्र नहीं होती ह ै िरन िाषा वकसी समाि के विचारों, मान्यताओ, विश्वासों, ं प्रतीकों, सिाद ि सामाविक रीवत ररिािों की िाहक िी मानी िाती ह।ै वकसी िाषा के शब्दों और ं व्याकरण के वनयमों को सीख लेने मात्र से हम उस िाषा म ें कशलता प्रा्त नहीं कर सकते ह,ैं बवलक हम ें ु उस िाषा के प्रयोग के सस्कवतक वनयमों को िी सीखना पड़ता ह।ै इसे िाषा का प्रयोगशास्त्र ृ ं (pragmatics) कहते ह।ै यहा चचाभ का विषय pragmatics नहीं बवलक िाषा की अििारणा में ं समावहत िविल सदि भ य अदर कीं परते ह,ैं विनका ज्ञान होना एक वशक्षक होने के नाते िरूरी हो िाता ह।ै ं ं िाषा के विषय म ें यवद यह कहा िाए वक वितने चश्म े उतने रूप, तो यह अवतशयोवक्त नहीं कहा िा उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 37 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् सकता ह।ै िाषा के विषय म ें तलसीदास िी की एक पवक्त सिीक लगती ह ै
“जाकी रही भािना ु ं जसै ी.......”
। िस्तवस्थवत के विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता ह ै वक िाषा-नीवत और िाषा-वशक्षण के विषय ु म ें सरकारों, वशक्षक-वशक्षा सस्थानों, वशक्षकों, वशक्षण सस्थाओ आवद की िािना ठीक नहीं रही ह।ै िारत ं ं ं ही नहीं िरन विश्व के अनेक बहिाषायी दशे ों की वस्थवत समान ही ह।ै हमारी रािनीवतक व्यिस्था का ु एकिाषी होना या वद्विाषी होना एक मिबरी य कमिोरी कही िा सकती ह।ै विससे वक एक या दो ू िाषाओ को ही प्रशासकीय िाषा का दिाभ प्रा्त हो सकता ह।ै िबवक समाि म ें तो बहत सी िाषाए ु ं ं प्रचवलत होती ह।ैं हमने वपछली इकाई म ें पढ़ा ही ह ै वक सपण भ विश्व म ें लगिग 7000 िाषाए बोली िाती ू ं ं ह।ैं हमारे दशे म ें ही लगिग 1000 मातिाषाए और बोवलया प्रयोग की िाती ह।ै अतः बहिावषकता इस ु ृ ं ं िरा की एक सामान्य विशेषता ह।ै हमारा दशे तो बहिाषी दशे ों का एक विवशष्ट मानक उदाहरण ह,ै िहााँ ु प्रत्येक वशवक्षत व्यवक्त (प्राथवमक स्तर पर िी) वद्विाषी य वत्रिाषी होता ह।ै लेवकन इस सदि भ म ें वशवक्षत ं होना कोई शतभ नहीं ह ै व्यिसावयक ि रोिगार सम्प्बिी कारणों से िी लोग बहिाषी हो िाते ह।ै आप ु ं ध्यान दगें े तो पायेंग े वक बहिावषकता के कारण अनेक ह।ै ु वद्विावषकता या बहिावषकता कोई वशक्षा के द्वारा पोवषत तत्ि ही नहीं ह ै । यह एक नैसवगकभ ु सामाविक लक्षण ह।ै कक (Cook, 2002) महोदय के अनसार
“दो भाषाओ का होना या प्रयोग ु ु ं उतना ही सामान्य तथ्य है जितना जक दो फे फड़ों का होना”
। उनके अनसार तो वसिभ एक िाषा का ु प्रयोग एक दलभि घिना ह।ै विर िी हमारी अज्ञानता ने इस नैसवगभक व्यिस्था को कािी नकसान पहचाया ु ु ु ह।ै यद्यवप रािनीवतक, प्रशासवनक, शवै क्षक नीवतयों के कारण बहत सी िाषाए विल्त होने की कगार पर ह ैं ु ु ं तथावप बहिावषकता समाि म ें विद्यमान ह ै और ऐसा प्रतीत होता ह ै वक िविष्य म ें िी रहगे ी । बड़े-बड़े ु शहरों म ें कई िाषाओ के बोलने िाले विविन्न िाषा क्षेत्रों से लोग आते ह,ैं और एक बड़े शहर का वनमाभण ं करते ह।ैं अतः बड़े शहरों की वशक्षा व्यिस्था वकसी एक िाषा पर वनिरभ नहीं कर सकती ह।ैं हम वशक्षकों को विद्यावथभयों की प्रथम िाषा के प्रवत थोड़ा सिदे नशील होने की आिश्यकता होती ह ै विससे वक िो ं प्रथम िाषा म ें उनका ज्ञान ह ै उसको हम सही तरीके से वशक्षा म ें प्रयक्त कर सकें । िब हम िानते ह ै वक ु समझ(Understanding) का सबसे उत्तम माध्यम प्रथम िाषा ही होती ह ै तब विद्यालय पर बहिावषकता ु के साथ अनकलन की अपेक्षा और अविक बढ़ िाती ह।ै बहिावषकता वसिभ कई िाषा के बोलने िालों ु ु ू के समह का लक्षण नहीं ह ै बवलक एक व्यवक्त िी बहिाषी होता ह।ै यह कोई आि का तथ्य नहीं बवलक ु ू एक ऐवतहावसक सत्य ह।ै हम बहत सी िाषाए पण भ रुप स े और आवशक रूप से
प्रयोग करते ह।ैं िसै ा वक ु ू ं ं उदाहरण के वलए (1) हम घर की बोलचाल म ें और िािनाओ को व्यक्त करने म ें अपनी मातिाषा का ृ ं प्रयोग करते ह ैं िोवक कमाऊनी, गढिाली, नेपाली, िोिपरी, बदले खडी आवद विविन्न सदिों म ें अलग- ु ु ुं ं ं अलग हो सकती ह।ैं (2) िबवक प्रशासवनक और िावणवज्यक वियाकलापों म ें हम अपनी दसरी िाषा का ू प्रयोग करते ह ैं िह अलग अलग राज्यों के लोगों के वलए अलग अलग होती है:– वहदी िी हो सकती ह,ै ं बगाली िी हो सकती ह।ै (3) हमारा िो व्यिहार क्षेत्र ह ै िह वसिभ दो िाषाओ के आिार पर ही पण भ नहीं ू ं ं हो रहा ह ै इसके अलािा िी हम अतराभष्रीय व्यिहारों के वलए, वशक्षा के वलए, शोि के क्षेत्र म ें अग्रेिी ं ं का, िापानी का, चीनी िाषा का, फ्ासीसी या िमनभ ी िाषा का प्रयोग
िी करते ह।ैं यह तो रही तीन ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 38 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषाओ की आिश्यकता का एक उदाहरण लेवकन ये तीन िाषाए ाँ हमारे िीिन म ें िाषा की आिश्यकता ं को पण भ नहीं कर पा रही ह।ैं (4) हम विश्व के सिी िमों म ें दखे सकते ह ैं वक िावमकभ सावहत्य और ू सस्कवतक सावहत्य प्राचीन शास्त्रीय िाषाओ म ें ही प्रा्त ह।ै बौद् िम भ के मानने िालों के वलए पाली और ृ ं ं प्राकत िाषाओ के ज्ञान की िरूरत होती ह;ै इसाई लोग हब्रे , ग्रीक, लेविन िाषाओ पर आि िी वनिरभ ृ ू ं ं करते ह;ैं और वहद लोग अपने िवमकभ और सास्कवतक वियाकलापों के वलए सस्कत िाषा, तवमल िाषा ृ ृ ं ं ं ू आवद पर वनिरभ करते ह।ैं इस प्रकार हम दखे सकते ह ैं वक हम वकसी न वकसी तरह से वद्विाषी ही नहीं अवपत बहिाषी ही ह ैं । ु ु 3.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पिात आप- 1. बहिावषकता के सम्प्प्रत्यय को समझ सकें गे; ु 2. बहिावषकता के विस्तार ि प्रकवत का वचत्रण कर सकें ग;े ु ृ 3. बहिावषकता की एक ससािन के रूप म ें व्याख्या कर सकें गे; ु ं 4. कक्षा ि विद्यालय म ें िाषाई विविन्नता की वस्थवत को समझ सकें गे; 5. िाषाई पाररवस्थवतकी के सम्प्प्रत्यय को समझते हए अपने आस-पास उसका सरक्षण कर सकें ग;े ु ं 6. विद्यावथभयों की िाषाई पष्ठिवम को समझ सके गें; ृ ू 7. विद्यावथभयों की िाषाई पष्ठिवम को ध्यान म ें रखते हए अपने वशक्षण की योिना बना सके ग।ें ु ृ ू 3.3 बहिावषकता की अविारणा (Concept of Multilingualism) ु इकाई के प्रारि म ें ही हमने िाषा के िविल स्िरूप की चचाभ की ह।ै क्योंवक एक िविलतम सम्प्प्रत्यय ं बहिावषकता को समझने के वलए िाषा के इस िविल पक्ष की ओर ध्यान आकवषतभ करना िरूरी था। ु यहााँ िविल का अथभ कवठन य दरूह ही वसिभ नहीं समझना ह।ै सािारण अथों म ें आप उलझा हआ िी ु ु समझ सकते ह ै पर यह याद रह े वक उलझा हआ हमशे ा बेतरतीब ही नहीं होता ह।ै बहिावषकता के ताने- ु ु बाने की तलना एक बहरगी ि बहततनमा (multicolored & multi- fabric) िस्त्र से की िा सकती ह।ै ु ु ु ु ु ं ं एक वमवश्रत रगों ि वमवश्रत ततओ की बारीक बनािि िसै े िविल िह उलझी हई सी होती ह ै िसै े ही ु ु ं ं ं बहिावषकता का पररदृश्य ह।ै बहिावषकता हमारे दशे का एक प्राचीनतम यथाथभ ह।ै एक कहाित िी ु ु आपने सनी ही होगी
“कोि कोि पर बदले पािी और चार कोि पर बािी”
कहने का िाि यह ह ै ु वक हमारे दशे म ें प्रत्येक 1 कोस (लगिग 3 वकमी) पर पानी बदल िाता ह ै और प्रत्येक चार कोस पर बानी या बोली बदल िाती ह ै । बचपन म ें मनैं े यह कहाित िब सनी थी तब मरे ा बाल-मन इस कहाित ु का मन ही मन विरोि कर बैठा था। इसका कारण सीिा सा था वक मरे े गाि से मात्र एक वकलोमीिर की ं दरी पर छोिे से गाि म ें बोली िाने िाली बोली और मरे े गाि की बोली म ें कािी अतर था। वशक्षा ं ं ं ू व्यिस्था द्वारा मानक खड़ीबोली-वहदी को बढ़ािा दने े के बाििद आि लगिग दो दशकों के बाद िी ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 39 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् दोनों गाि की बोली म ें अतर दखे ा िा सकता ह।ै इस उदाहरण का वनवहताथभ परानी कहाित को अस्िीकार ु ं ं करना नहीं ह ै अवपत बहिावषकता की व्यापकता को सामने लाने की एक कोवशश मात्र ह।ै हम वशक्षकों ु ु को ऐसे बहिाषी समदाय की सेिा करनी होती ह ै और िब हम विद्यालय द्वारा वनिाभररत िाषा का ही ु ु प्रयोग करते ह ैं तो कहीं ना कहीं िाषाई अलपसख्यक लोगों के प्रवत अन्याय हो ही िाता ह।ैं यह दोनों ं गािों, विनका उदाहरण यहााँ वदया गया ह,ै के वलए आि िी एक ही विद्यालय ह ै और उस समय िी इसी ं विद्यालय म ें सिी बच्चे पढ़ने िाते थे। िब किी िह बच्चे अपने गाि की बोली म ें ििाब दते े थे तो ं वशक्षक उनको डािते िी थे और अन्य छात्र उनके विशेष तरीके से बात करने पर हसते िी थे िबवक ं ं शब्दों का अतर नहीं था वसिभ शब्द-स्िरूप, और लहि े (Tone) का अतर था। एक लम्प्बे समय तक उस ं ं गााँि की वशक्षा का स्तर सतोषिनक नहीं रहा ह।ै विसके अनेक कारणों म ें से िाषा-िदे , और िाषा के ं आिार पर िदे -िाि ि पिाभग्रह रह े ह।ै लेवकन आि हम सिी िाषाओ और बोवलयों के प्रवत सवहष्ण होने ू ु ं लग े ह।ै उत्तराखड और उत्तर प्रदशे को खासतौर पर वहदी िाषी राज्य माना िाता ह।ै वहदी िाषी राज्यों म ें ं ं ं िी विशद् वहदी िाषी कहा िाता ह।ै यह सत्य अन्य राज्यों, विशेष रूप से दवक्षण िारतीय ि उत्तर पिी ु ू ं राज्यों के लोगों, का सत्य कहा िा सकता ह।ै बाहर से ऐसा ही वदखाई दते ा ह।ै हम िी तो वमज़ो, नागा, वत्रपरी, मवणपरी आवद व्यवक्तयों म ें ही अतर नहीं कर पाते ह,ै तो िाषा तो बहत दर की बात ह।ै लेवकन ु ु ु ं ू उत्तराखड के िासी होने के नाते आप यहााँ की िाषा तथा िाषाई पाररवस्थवतकी (Language Ecology) ं को अच्छे से समझ सकते ह।ैं मोिे तौर पर कहा िा सकता ह ै वक गढ़िाली और कमाऊनी को वमलाकर ु ं उत्तराखड म ें लगिग 15 िाषाए (Dialects) प्रयोग की िाती ह ै (Dialects of Uttarakhand, n.d.)। ं ं िबवक प्रशासकीय िाषा का दिाभ वहदी ि सस्कत को प्रा्त ह।ै यही वस्थवत उत्तर प्रदेश की िी ह।ै ृ ं ं प्रशासकीय िाषा (official Language) का दिाभ उद भ ि वहदी को प्रा्त ह ै िबवक बहत बड़े पिी िाग पर ु ू ं ू िोिपरी का बोलबाला ह।ै िो िारत म ें वहदी का वहस्सा मानी िाती ह ै परत वसिभ मानक वहदी को सनने ु ु ु ं ं ं की आदत िाले कानों के वलए लगिग समझ के बाहर की बात ह।ै िोिपरी, बदले खडी, अििी, ब्रि, ु ुं ं सिी को वहदी की उपिाषाओ के रूप म ें मान्यता प्रा्त ह।ै यवद िाषाओ के आिार पर
राज्यों के गठन की ं ं ं स्थापना िारी रही तो िविष्य म ें ये िाषायी क्षेत्र अलग राज्य िी हो सकते ह।ै सीतापर, कानपर, लखनऊ, ु ु कन्नौि आवद अनेक विलों की िाषा क
े आिार पर कोई अलग पहचान नहीं ह ै विर बहिावषकता के ु लक्षण विद्यमान ह।ै एक उदाहरण से हम समझने की कोवशश करते ह ै िो वक एक सत्य घिना पर आिाररत ह।ै सन 2015 म ें कानपर विले के रहन े िाले एक वशक्षक सीतापर विले के प्राथवमक विद्यालय ् ु ु म ें वनयवक्त प्रा्त करत े ह।ैं एक वदन वशक्षक ने विद्याथी से पछा वक तम्प्हारी पस्तक कहा ाँ ह?ै विद्याथी ने उत्तर ु ू ु ु वदया । वशक्षक ने आियभचवकत होकर पछा वक क्या तम्प्हारे गाि म ें बाररश के समय पर बाढ़ ू ु ं आई थी? वशक्षक ने यह प्रश्न बड़ा उत्सक होकर वकया और उस पर कछ बच्च े हसने िी लग े क्योंवक उस ु ु ं गाि म ें बाढ़ की कोई सिािना नहीं थी। बात इतनी सी ह ै वक उस क्षेत्र म ें का अथभ से होता ं ं ह।ै बच्चे का ििाब था वक पस्तक खो गई ह।ै िो वक थोड़ी दरी पर बैठे स्थानीय वशक्षक ने सिाद को ु ं ू बीच म ें रोकते हए बताया था। कहने का तात्पयभ ह ै वक एक ही िाषा क्षेत्र म ें वसिभ बोलने की शलै ी ि लहि े ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 40 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् का ही अतर नहीं ह ै बवलक शब्दों के अथभ िी अलग-अलग ह।ैं इसे अतःिाषाई(intra-lingual) ं ं विविन्नता कहते ह।ैं अतः हम दखे सकते ह ैं की अतर-िाषाई (Inter-lingual) विविन्नता के साथ-साथ ं अतःिाषाई विविन्नता िी व्या्त ह।ै यह एक सक्ष्मतर स्तर का अतर ह,ै िो वक वशक्षक से सिदे नशीलता ू ं ं ं की माग करता ह।ै यहााँ वशक्षकों से विद्यावथभयों की सिी विविन्न िाषाओ को सीखने की अपेक्षा नहीं ं ं रखी िा रही ह ै पर वशक्षक सिी िाषाओ को उवचत महत्त्ि दते े हए बहिावषकता के वलए एक सही ु ु ं माहौल बना ही सकते ह।ै विद्यालय म ें शवै क्षक अतविभ या के वलए हम वसिभ एक िाषा के ऊपर वनिरभ नहीं ं रह सकते ह।ै निीनतम विचारिारा के अनसार वशक्षकों के प्रश्न की िाषा और विद्यावथभयों के उत्तर की ु िाषा म ें िी अन्तर हो सकता ह।ै इस िाषा पररितभन के उपागम य पद्वत को परािावषक-वशक्षणशास्त्र (Translanguaging Pedagogy) की उपावि दी गई ह।ै यह एक नया तरीका ह ै विसमें वशक्षक विद्याथी को िह िाषा प्रयोग करने दते ा ह ै विसे िह सबसे अविक और अच्छे से िानता ह।ै कोई एकिाषी वशक्षक िी परािावषक प्रणाली का अनगमन कर सकता ह ै ( Grosjean, 2016). यह विचािारा कक्षा वशक्षण में ु िाषा उदारता और वकसी एक माध्यम-िाषा पर वनिरभ ता से मवक्त म ें विश्वास करती ह।ै ु हम वशक्षक सास्कवतक सरक्षण की बात तो करते ह ै पर िाषाई सरक्षण पर तवनक िी ध्यान नहीं ृ ं ं ं रखते। इसके विपरीत दखे ने को वमलता ह ै वक कछ तथाकवथत अग्रेिी माध्यम के विद्यालयों म ें विद्यावथभयों ु ं द्वारा मातिाषा के प्रयोग वकए िाने पर अथभदण्ड िी वदया िाता ह।ै कही न कही यह बच्चों के प्रवत, उनकी ृ मातिाषाओ के प्रवत समाि के प्रवत एक अपराि ही कहा िायेगा। यवद कोई वशक्षक थोड़ा िी वचतनशील ृ ं ं प्राणी ह ै तो िह िान सकता ह ै वक सास्कवतक सरक्षण िाषायी सरक्षण से ही प्रारम्प्ि होता ह।ै िब हमारा ृ ं ं ं दशे बहसास्कवतक दशे ह ै तब िाषाई विविन्नता तो होगी ही। वकसी एक के होने से दसरा स्िािाविक ह।ै ु ृ ं ू वद्विावषकता और बहिावषकता अपने आप म ें बहसास्कवतकता को आवल्त करती ह ै अथाभत बहिाषािाद ु ु ु ृ ं म ें बहसस्कवतिाद वनवहत ह।ै पनः आप यह बात चिीय सम्प्बि द्वारा समझ सकते ह ैं (वचत्र 1) वक एक ु ृ ु ं ं सस्कवत वकसी िाषा को िन्म दते ी ह,ै पललवित करती ह ै और प्रवतिल स्िरूप िही िाषा सस्कवत को ृ ृ ं ं पहचान दते ी ह,ै सििभन और उसका ििभन करती है़।ै अतः िाषा और सस्कवत एक दसरे पर अन्योन्यावश्रत ृ ं ं ू ह।ै और यह चि सततरूप से गवतशील रहता ह।ै िाषा सस्कवत ृ ं र्चत्र 4: भाषा और िस्कर्त की अन्योन्यार्श्रता ृ ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 41 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इस प्रकार यवद हम बहिाषािाद की बात करते ह ैं तो बहसस्कवतिाद से हम अलग नहीं हो सकते ह।ैं ु ु ृ ं वकसी िी सस्कवत को समझने के वलए उस सस्कवत विशेष की िाषा को समझना ही पड़ेगा क्योंवक िाषा ृ ृ ं ं वकसी िी सस्कवत का एक विशषे और अवनिायभ अग ह।ै बच्चे बहत सी अलग अलग तरह की िाषाओ ु ृ ं ं ं के साथ विद्यालय में आते ह ैं और उनकी इन िाषाओ से िड़ी अलग-अलग सस्कवतया िी होती ह।ै और ृ ु ं ं ं हम यह िी िानते ह ै वक बच्चा (व्यवक्त) अपनी सस्कवत विशषे का ही उत्पाद होता ह।ै उसको समझने के ृ ं वलए उसकी सस्कवत को समझना अवनिायभ ह ै और सस्कवत समझने की प्रथम शतभ िाषा को समझना ह।ै ृ ृ ं ं इसको समझने की विवियों की चचाभ हम इस इकाई के अवतम िाग म ें करेंग।े अिी हम िाषाई विविन्नता ं की मौिदगी पर चचाभ करते ह।ै ू 3.4 कक्षा-कक्ष म िाषायी ववविन्नता (Language Diversity in the ें Classroom) िाषायी और सास्कवतक विविन्नता हमारे दशे की विवशष्ट पवहचान और शवक्त ह।ै वकसी समाि म ें ृ ं िाषायी विविन्नता होने पर ही उस समाि को बहिावषक समाि कहा िाता ह।ै अतः बहिावषकता और ु ु िाषाई विविन्नता दोनो सम्प्प्रत्यय एक ही िस्तवस्थवत को वचवत्रत करते ह।ै िसै ा की आप िानते ह ै वक ु विद्यालय समाि का ही लघरूप होता ह ै अतेि बहिावषक समाि म ें विद्यालयों म ें आने िाले बच्चों की ु ु िाषाए ाँ िी विविन्न ही होंगी। यह वसिभ बड़े-बड़े शहरों की वस्थवत ही नहीं ह ै अवपत छोिे-छोिे से गािों म ें ु ं विविन्न पष्ठिवम के बच्चे स्कल म ें पहचते ह ैं लेवकन आियभिनक और दःखद वस्थवत ह ै वक वशक्षक ु ृ ू ू ं ु िाषाई विवििता के वलए एकदम तैयार नहीं होते ह ैं (Edward, 2010)। िबवक एडिडभ के अनसार सिी ु गणित्तापण भ वशक्षा िो गणात्मक वशक्षा य अच्छी वशक्षा कहलाने के योग्य ह ै िह बह-सास्कवतक ही होती ु ृ ु ू ु ं ह।ै इस बात को समझने के वलए आप अपने पि-भ अनििों का प्रयोग कर सकते ह।ै आप अपने समदाय ू ु ु विशेष (गााँि/शहर) की िाषा को समाि के अदर रहते हए आत्मसात कर ही लेते ह।ैं यह एक स्िािाविक ु ं प्रविया ह ै विद्यालय म ें िाने की क्या आिश्यकता है? ऐसा सोचने और ऐसा करने से आपकी गवतविवियों का क्षेत्र कािी सीवमत हो िाता ह।ै हम एक स्थान पर रहकर िीिन पार करने िाले और उसी िातिरण के अनिि रखने िाले लोगों को नकारात्मक शब्दों म ें िी कहते रह े ह।ै अथाभत अतर-सास्कवतक ृ ु ू ू ं ं ं समझ कहीं ना कहीं ज्ञान का प्रतीक ह ै ि ज्ञान से सबवित ह।ै आि से एक य दो दशक पीछे के समाि पर ं ं अगर ध्यान द ें तो िनसचार के माध्यम का इस स्तर तक विकास नहीं हआ था। समाि में विशषे रूप से ु ं ग्रामीण समाि म ें िो दो चार तरह के लोग ज्ञानी होते थे या माने िाते थे उनमें से हम कह सकते ह ैं वक वशक्षक हआ करते थे। वशक्षकों के अलािा सािसत, व्यापारी और रोिगार के वलए दसरे प्रदशे ों म ें काम ु ु ं ू करने िाले श्रवमक हआ करत े थे। यह सिी व्यवक्त गवतशील थे और अतसाांस्कवतक ि अतदशे ीय समझ ु ृ ं ं रखते थे। हमारे दशे की सबसे अविक िाग म ें बोली और समझी िाने िाली आिवनक वहदी िा
षा के ु ं विकास म ें सािसतों और व्यापाररयों का विशषे योगदान रहा ह।ै अग्रेिी के विकास म ें िी व्यापाररयों ि ु ं ं ईसाई वमशनररयों का ऐवतहावसक योगदान ह।ै अतः साराश यह ह ै वक िाषा के विकास
में, सास्कवतक- ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 42 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् आवथभक समवद् म ें और रािनैवतक समझ म ें अतर-िाषाई और अतर-सास्कवतक अनििों का विशेष ृ ृ ु ं ं ं योगदान ह।ै इस समझ का विकास करना वशक्षा का एक उद्दश्े य िी ह।ै ज्ञान(वशक्षा) का एक रूप अतसाांस्कवतक समझ ह।ै शायद इस तथ्य को िानने पर हमने ज्ञान की सिोच्च पीठ को विश्वविद्यालय ृ ं कहा होगा। िहााँ समस्त विश्व का ज्ञान (सस्कवत, िाषा, विज्ञान) अध्ययन के वलए उपलब्ि हो। सस्कवतक ृ ृ ं ं (िाषाई सवहत) विविन्नता एक प्रकार से वशक्षा का आिार और पाठयिस्त िी ह।ै अतः हम वशक्षकों का ् ु दवष्टकोण समेवकत होना चवहए। वकसी एक िाषा और सस्कवत के प्रवत विवशष्ट लगाि और वकसी दसरे के ृ ं ु ॄ प्रवत पिाभग्रह य दराि कही न कही वशक्षा की मल अििारणा के विरुद् ही प्रतीत होता ह।ै ू ू ु उपरोक्त चचाभ से अिी तक दो बातें स्पष्ट हो चकी ह ैं वक िाषाई विविन्नता एक साििभ ौवमक सत्य ु ह ै और एक से अविक िाषाओ का ज्ञान रखना एक शवक्त ि योग्यता के अतगतभ आता ह।ै कछ विद्वानों ु ं ं का मत ह ै वक िो वशक्षक अपने विद्यावथभयों के द्वारा विविन्न िाषाओ के प्रयोग के विषय म ें उदार, खले ु ं वदमाग के और पिाभग्रह से रवहत होते ह ैं ि े विद्याथीयों म ें िाषाई रुवच और विकास के सििभन म ें अविक ू ं सिलता प्रा्त करते ह ैं (Lars and Trudgill, 1990)। अथाभत िाषाई विविन्नता के प्रवत सिदे नशील ं वशक्षक अपने विषयों म ें सामान्य रुप से सिी क्षमताओ को विकवसत करने म ें सिल होने की अविक ं सिािना रखते ह।ैं वशक्षकों में इस तरह की अवििवत्त का विकास तिी होता ह ै िब ि े अपने विद्यालय ृ ं क्षेत्र की भाषाई पररर्स्थर्तकी से िलीिााँवत पररवचत हो। अब िाषाई पररवस्थवतकी से क्या तात्पयभ ह?ै आइये इस अििारणा पर िी चचाभ कर लेते ह।ै 3.5 िाषाई पावरस्स्थवतकी (Language Ecology) िाषाई पररवस्थवतकी एक ऐसा विषय ह ै िो िाषाओ, लोगों, और पयाभिरण(विश्व) के आपसी सबिों का ं ं ं अध्ययन करता ह ै (Dua, 2008)। एक पाररवस्थवतक तत्र म ें शावमल िाषाए सह-अवस्तत्ि रखती ह।ैं कई ं ं िाषाए साथ-साथ उद्भत और विकवसत होती ह,ैं एक दसरे को प्रिावित िी करते ह।ैं िाषाओ का आपसी ं ं ू ू सबि शवक्त, दबाि, आकषणभ , प्रित्ि ि आदान-प्रदान आवद लक्षणों द्वारा वचवन्हत होता ह।ै सह अवस्तत्ि ु ं ं और सह-उद्भि का सबसे अच्छा उदाहरण वहदी खड़ी बोली और उद भ िाषा के विकास का ह।ै दोनों के ं ू विकास के इवतहास पर यवद आप निर डालेंग े तो आप समझ सकते ह ैं वक िाषा की पररवस्थवतकी तत्र में ं रािनीवतक तत्र की बहत बड़ी िवमका होती ह।ै आप यह िी समझ सकते ह ै वक रािनीवतक और ु ू ं सामाविक तत्र म ें वकसी िी प्रकार के बदलाि से िाषाई पररवस्थवतकी म ें िाषाओ का स्थान वकस प्रकार ं ं अदल-बदल होता रहता ह।ै आप िारत म ें अग्रेिी के आगमन, प्रसार ि िचभस्ि के सक्ष्म अिलोकन से ू ं िान सकते ह ैं वक बािार (आवथभक ताकतों) का तथा रािनीवतक सत्ता का िाषा-नीवत और प्रयोग पर क्या प्रिाि पड़ता ह।ै वहदी के विकास म ें िी िारतीय व्यापाररयों का विशेष योगदान माना िाता ह।ै िाषा की ं वस्थवत के सदि भ म ें हम रािनीवतक, सामाविक और आवथभक कारकों की अक्सर बात करते ह।ैं लेवकन एक ं और सशक्त कारक ि क्षेत्र ह ै विसे िम भ कहते ह।ैं िाने-अनिाने, चाह-े अनचाह े िम भ और िाषा का िी अनबिन हो ही िाता ह।ै सबसे बड़ा उदाहरण िम भ के आिार पर बना मवस्लम दशे पावकस्तान ह ै िो ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 43 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अपनी िौगोवलक क्षेत्र म ें व्या्त िाषाओ को छोड़ते हए िारतीय ििाग पर िन्मी और विकवसत हई उद भ ु ु ू ं ू िाषा को अपनी राष्रीय िाषा के रूप म ें स्िीकार करता ह।ै िहााँ वसिभ 8% आबादी उद भ िाषा का प्रयोग ू करती ह ै (BBC, 2015); लेवकन उद भ का सम्प्बि स्लाम से िड़ने से िह पवकस्तान की एकलौती ु ं ू प्रशासवनक िाषा का दिाभ प्रा्त कर लेती ह।ै िारत म ें ईसाई बहल क्षेत्रों म ें कछ हद तक अग्रेिी का स्तर ु ु ं तलनात्मक रूप से बेहतर दखे ा िा सकता ह,ै क्योंवक अग्रेिी और इसाईयत अनौपचाररक रूप से िड़ ु ु ं चके ह।ै यद्यवप अग्रेिी की िारत म ें रािनीवतक और शवै क्षक पहचान अविक ह।ै सस्कत िाषा का िी ृ ु ं ं सनातन िम भ (वहद िम)भ से अिि सबि रहा ह।ै इस प्रकार हम दखे सकते ह ैं वक िाषा समाि में ू ं ं ं ू सास्कवतक, आवथभक, रािनैवतक ि िावमकभ व्यिस्थाओ से िविल रूप से आबद् रहती ह।ै वकसी एक ृ ं ं व्यिस्था म ें पररितभन सामाविक पररवस्थवतकी म ें िाषा/िाषाओ की वस्थवत को प्रिावित करती ह;ै और ं िाषाई पररवस्थवतकी म ें पररितभन लाती ह।ै पररणामतः िाषाई स्िरूप, वलवप, प्रतीक, वचन्ह, सरचना आवद ं म ें पररितभन का कारण बनती ह।ै रािनीवतक सगठन और राज्य की कायभप्रणाली िाषाई पररवस्थवतकी के ं स्िरूप, पररितभन, सरक्षण, और विकास म ें अग्रणी िवमका अदा करती ह।ै राज्य द्वारा िाषानीवत, िाषा- ू ं वशक्षा, साक्षरता, वशक्षाण-माध्यम आवद का चयन विविन्न िाषाओ के आपसी सबिों का वनिाभरण करता ं ं ं ह ै साथ ही िाषा तत्र म ें िाषा के स्थान को प्रिावित ि सवनवित करता ह।ै स्थानीय पररवस्थवतकी म ें हम ु ं वशक्षकों की महत्िपण भ िवमका रहती ह।ै इसकी सक्ष्म समझ से हम अपनी िवमका सकारात्मक रूप से ू ू ू ू अदा कर सकते ह।ै विससे की िाषाओ का सरक्षण ही नहीं िरन िाषाई विविन्नता(बहिावषकता) से हम ु ं ं ससािन के रूप म ें लाि प्रा्त कर सकें । ं अभ्याि प्रश्न 1. समािावषक दृवष्टकोण से िाषा की अििारणा क्या है? 2. िारत म ें लगिग वकतनी िाषाए ाँ य बोवलया प्रयोग की िाती ह?ै ं 3. समझ का सबसे अच्छा माध्यम कौन सी िाषा होती ह?ै 4. उत्तर प्रदशे की प्राशासवनक िाषाए ाँ कौन सी ह?ै 5. परािावषक-वशक्षणशास्त्र (Trans-languaging Pedagogy) वकसे कहते ह?ै 3.6 बहिावषकता एक संसािन के रूप म (Multilingualism as a ें ु Resource) बहिावषकता एक शाश्वत सत्य ह।ै वशक्षकों को बहिावषकता के प्रवत सिदे नशील होना चावहए। यह ु ु ं लगिग प्रत्येक दशे ि समाि का सामान्य सत्य ह।ै परत इस प्राकवतक-सामाविक विशेषता को ृ ु ं अज्ञानतािश हमशे ा से दबाने या नष्ट करने की कोवशश की िाती रही ह।ै इसका सबसे बड़ा उदाहरण सन ् 1971 से पहले पावकस्तान द्वारा बगलादशे (तत्कालीन पिी-पवकस्तान) म ें बगाली िाषा पर प्रहार ह,ै और ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 44 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् दसरा उदाहरण तलसीदास िी द्वारा रामचररत मानस को लोकिाषा अििी म ें वलखने पर तत्कालीन ु ू काशी के पवण्डतों का विरोि, विससे वक उनको काशी छोड़कर अन्यत्र िाना पड़ा था। कई प्रकार की शवक्तयााँ इस नशसता म ें शावमल रही ह।ै आि हमारे दशे म ें बहिावषकता को सििै ावनक रूप से स्िीकार ु ृ ं ं वकया गया ह,ै विर िी यथाथभ के िरातल पर इसके पष्पन के वलए उपयक्त िातािरण नहीं बन पाया ह।ै ु ु कहीं ना कहीं एक िाषा विशेष से हमारा लगाि होना इसका प्रमख कारण रहा ह।ै स्ितत्रता के बाद िी ु ं हम कहीं वहदी का और कहीं अग्रेिी का विरोि दखे सकते ह।ैं मातिाषा य राष्रिाषा के प्रवत प्रेम होना ृ ं ं उसके प्रवत सम्प्मान होना कोई गलत बात नहीं ह।ै बवलक यह कई मायनों म ें लािकारी लक्षण ह।ै मातिाषा ृ य राष्रिाषा से प्रेम वकसी दसरी िाषा य विदशे ी िाषा के प्रवत घणा का कारण नहीं होना चावहए। िाषाएाँ ृ ू नवदयों के समान ह ै िो आसपास की िमीन को आदतभ ा प्रदान करती ह,ैं और हररयाली लाती ह।ैं यह िह िमीन ह ै िहााँ हम विचारों की खते ी करते ह।ैं आि िाषा-विज्ञावनयों, रािनीवत-वसद्ातशावस्त्रयों, समा- ं िाषाशावस्त्रयों, िाषा-नीवत वनमाभताओ आवद सिी ने बहिावषकता को ससािन माना माना ह।ै अब हम ु ं ं वबदिार ढाँग से बहिावषकता के लािों पर चचाभ करते ह।ै ु ं ु यह आप वपछली इकाई म ें िी पढ़ चके ह ै वक कोई िाषा वचतन की प्रविया म ें बािक नहीं बवलक ु ं उसकी िाहक होती ह।ै वितनी अविक िाषाओ का ज्ञान आपको होता ह ै आप उतने अविक ं तरीके से वकसी वबद, विषय, घिना के बारे म ें सोच सकते ह ैं और अविक ज्ञान प्रा्त कर सकते ं ु ह(ै NCERT, 2005)। सामाविक दृवष्ट से िी बहिवषकता विकास के वलए सकारात्मक आिार उपलब्ि कराती ह।ै हम ु पहले िी चचाभ कर चके ह ै वक बहिावषकता सतही स्तर पर सरल और आतररक िविलता वलए ु ु ं हए एक विशेष सास्कवतक वस्थवत होती ह।ैं यह एक ऐसी िविल वस्थवत ह ै िहााँ दो या दो स े ु ृ ं अविक िाषाओ की अतविभ या िाषाई, सावहवत्यक, सास्कवतक विकास और ज्ञान की रचना को ृ ं ं ं प्रिावित और पष्ट करती ह।ैं ु बहिावषकता की वस्थवत िाषा के विकास, सामाविक-सास्कवतक िवद्, सामाविक-रािनीवतक ु ृ ृ ं गवतशीलता म ें महत्िपण भ िवमका अदा करती ह।ै इसका अलपसख्यक िाषाओ के सरक्षण और ू ू ं ं ं प्रयोग पर विशषे ध्यान रहता ह ै विससे वक सामाविक िाषाई ससािनों को बनाए रखा िा सके ं और उनका दोहन वकया िा सके । बहिावषक-िचै ाररकी एक तरह से सामाविक-सास्कवतक सरक्षक का काय भ करती ह।ै इस ु ृ ं ं विचािारा से समाि म ें कई िाषाए ाँ साथ साथ विद्यमान रहती ह।ै इस तथ्य का विशद समा- िावषक महत्ि ह।ै यह िाषाओ को विल्त होने से बचाता ह।ै कोई िाषा का विल्त होना एक ु ु ं सािारण नकसान नहीं होता ह।ै िाषा
के साथ साथ सस्कवत का नकसान होता ह।ै ल्त प्राय िाषा ृ ु ु ु ं के बोलने िाले लोग (िाषायी अलपसख्यक) एक नई िाषा सीख सकते ह,ै िो वक अक्सर ं बहसख्यक िाषा होती ह।ै ल
ेवकन कछ बातों की िरपाई किी नहीं हो सकती। िसै े हर िाषा में ु ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 45 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् कछ शब्द होते ह ै िो स्थानीय िस्तओ, ररश्तों, प्राकवतक-िीि- ितओ-घिनाओ का बोि कराते ृ ु ु ु ं ं ं ं ह ै उन सबका नकसान होता ह।ै आप विचार कर सकते ह ै वक अग्रेिी िाषा, विसे आि की ु ं वस्थवत म ें विदशे ी िाषा नहीं कहा िा सकता ह,ै म ें बआ, मौसी, मामी, चाची आदी ररश्तों के ु वलए अलग अलग शब्द नहीं ह ै िलस्िरूप अग्रेिी सस्कवत म ें इन ररश्तों का विशेष महत्त्ि िी ृ ं ं नहीं । हमने वपछली इकाई म ें पढ़ा था वक हम एक िाषाई समदाय के सदस्य होने के नाते एक विशेष ु प्रकार से सोच रखने लगते ह(ैं Borodotsky, 2001)। बोरोदोत्स्की के शोिों से पता चला ह ै एक िाषा विशेष हमारे सज्ञानात्मक प्रविया का वहस्सा होती ह ै और हम े विशेष क्षमताए ाँ प्रदान करती ं ह।ै उन्होने प्रयोग द्वारा वसद् वकया वक अग्रेिी िाषा म ें गहरे नीले और हलके नीले रगो को डाकभ ं ं ब्ल और लाइि ब्ल (Dark Blue & Light Blue) कहकर काम चलाया िाता ह ै िबकी रूसी ू ू िाषा म ें इसके वलए अलग अलग शब्द होते ह।ै रूसी लोग गहरे नीले रग को (Siniy) ं कहते ह ै और हलके नीले रग को गोलबाय (Goluboy) कहते ह।ै इस सािारण सें शब्दों के ू ं अतर का बहत बड़ा अतर उनके प्रत्यक्षण और समझ पर पड़ता ह।ै उन्होंने ने पाया वक विविन्न ु ं ं प्रकार के नीले रगो को वदखाने से रूसी लोग िलदी से अतर कर पाते ह।ै ऐसे ही एक शोि म ें ं ं पाया गया वक उत्तरी आस्रेवलया की एक िनिातीय(Kuuk Thaayorre) के लोगो म ें हम लोगो से अच्छा वदशा बोि होता ह।ै क्योवक उनकी िाषा में दााँया- बााँया शब्द नहीं होता ह ै ि े हमशे ा मख्य-वदशाओ के सदि भ म ें ही बात करते ह ै िसै े(उदाहरणाथभ) यवद उनको बताना होगा ु ं ं वक आपके दवहने हाथ वक बिन( Cuff-Button) खली ह ै तो ि े उस समय आपकी खड़े होने की ु वस्थवत को समझ कर बोलेगें वक आपके उत्तरी-पि भ हाथ की बिन खली ह(ै Borodotsky, ू ु 2009)। कहने का तत्पयभ विविन्न िाषाओ से के साथ विविन्न सज्ञानात्मक और सकवतक ृ ं ं ं उपलवब्ियााँ िड़ी हई ह।ै वकसी िाषा को बोलने िाले िब उस िाषा का प्रयोग करना छोड़ दते े ह ै ु ु या ख़त्म हो िाते ह(ै िाषा पररितभन आवद कारणों से) तो िह िाषा मत-िाषा की कोवि म ें आती ृ ह।ै वकसी िी िाषा के मत होने से उस िाषा से िड़ा विशषे ज्ञान िी नष्ट हो िाता ह।ै एक िगरूक ृ ु ज्ञान समाि म ें वशक्षक की िवमका यही ह ै वक िह सिी िाषाओ ि बोवलयों के प्रवत उदार रह े ू ं विससे वक िाषाई पररवस्थवतकी म ें सतलन बना रह े और बच्चों को मातिाषा म ें सीखने के ृ ु ं अिसर िी वमलते रह।े िाषा एक उन्नत ि िविल सज्ञानात्मक व्यिस्था िी ह,ै िो (व्यवक्त की क्षमता के आिार पर) ं सज्ञान के वलए सशक्त उत्प्रेरक और पराितभक मानी िाती ह ै (Bowerman & Levinson, ं 2001)। बहिावषकता हमारे मवस्तष्क को एक विशषे प्रकार के लोचनीयता प्रदान करती ह।ै ु शोि योिना कोई िी रही हो पर सिी तरह के शोिों से यह वसद् हो चका ह ै वक विशषे ु सामाविक-िाषायी पररवस्थवतयों म ें वद्विावषकता का सज्ञानात्मक प्रिाि सकारात्मक होता ह।ै ं यवद िनात्मक वद्विावषकत ह ै तो बच्चे वनवित रूप से सज्ञानात्मक लाि प्रा्त करते ह ै ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 46 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ( Cummins,1981) । वद्विाषी बच्चे कई सज्ञानात्मक क्षमताओ के आिार पर लाि की वस्थवत ं ं म ें होते ह।ैं उदाहरणाथभ प्याि े के सरक्षण-कायभ (Piagetian conservation task), सप्रत्यय ं ं वनमाभण, सिनात्मकता, सादृश्य तकभ ना, िगीकरण कौशल, तावकभ क क्षमता, उच्च-सज्ञानात्मक ृ ं क्षमताए आवद म ें वद्विाषी बच्चे अविक सक्षम होते ह।ैं ं िाषा अिभन म ें िी वद्विावषक या बहिावषक िागरूकता आनषवगक होती ह।ै दो िाषाओ का ु ु ं ं ज्ञान रखने िाला तीसरी िाषा को तलनात्मक रूप से िलदी सीखने के साथ साथ उसमें ु कायाभत्मक दक्षता हावसल कर सकता ह।ै बहिाषी बच्चों म ें एक पररष्कत िाषा िागरूकता होती ह ै और ि े अपने िाषा व्यिहार पर ु ृ विशेष वनयत्रण रखते ह।ैं िो बदले म ें उनको न के िल वद्वतीय िाषा म ें वनपणता हावसल करने म ें ु ं सहायक होता ह ै बवलक उनके सज्ञानात्मक ि मानवसक विकास म ें एक महत्िपण भ वियात्मक ू ं िवमका अदा करता ह।ै ू िायगोत्स्की ने िी अपने िाषा विकास वसद्ान्त म ें बहिावषक क्षमताओ पर विशषे िोर वदया ु ं िायगोत्स्की के अनसार व्यवक्तगत िाषा म ें िाषा के
प्रयोग के द्वारा समझने की प्रविया को ु विवनयवमत करने और विचार के उपकरण के रूप म ें िाषा पर कायभकारी वनयत्रण बढ़ना बच्चों ं की बवद् के विकास के वलए लािकारी होता ह।ै और बहिावषकता की वस्थवत िाषा- ु ु प्रािमण(Language Processing) और िाषा वनयत्रण को गवत प्रदान करती ह
।ै ं Bialystock (1991) के अनसार िाषा वनपणता उम्र, अनिि और अनदशे न से बढ़ती ह।ै ु ु ु ु उन्होंने िाषा प्रयोग के तीन ज्ञानक्षेत्र बताये ह ै −िाषा का मौवखक प्रयोग, साक्षरता ि बहिावषक ु कायभ (Spoken, Literacy/Written & Multilingual Tasks)। उनके अनसार िाषा- ु प्रसस्करण (Language Processing) के दो तत्ि ह ैं − विश्लेषण और वनयत्रण। िाषा ं ं प्रसस्करण के विकास का िो िम होता ह ै िह वद्व/बहिाषी बच्चों म ें अवनिायभ रूप से एकिाषी ु ं बच्चों से अलग होता ह।ै दो िाषाओ म ें वनपणता का विकास इन्ही लिश्लेषण और लनयत्रण ु ं ं क्षमताओ के उच्चतर वशखरों की ओर बढ़ना होता ह।ै वद्विाषी बच्चों के पास दोनों प्रवियाओ ं ं म ें तेिी से वनपणता हावसल करने का अिसर रहता ह।ै यही दोनों प्रवियाए ाँ विविन्न
क्षेत्रों ( ु मौवखक, साक्षरता, और बहिावषकता) म ें िाषा प्रयोग के आिार के रूप म ें होती ह।ैं वशक्षकों को ु बच्चों म ें िाषा-प्रिमण के इन तत्िों के विकास के वचन्हों ि लक्षणों को पवहचानना होता ह।ै क
्योंवक इन्ही के आिार पर वशक्षण-विवि और सप्रेषण रणनीवत का वनणयभ वकया िा सकता ह।ै ं वद्विाषी बच्चे शब्दािली पर वनयत्रण म ें आतररक सवििा का लाि प्रा्त करते ह।ैं ु ं ं अनिाद या अनकवत एक बहिावषक कौशल ह।ै बहिाषी बच्चे प्रारविक अिस्था से ही ु ु ृ ु ु ं स्िािाविक अनकवत म ें वनपणता प्रा्त कर लेते ह।ैं ृ ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 47 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषा और सज्ञान दोनों ही बड़ी पेचीदगी से सास्कवतक व्यिस्था के अविन्न अग ह।ै इनकी समझ ृ ं ं ं ही वशक्षकों म ें एक विशषे वशक्षण-शास्त्रीय (Pedagogical) समझ विकवसत करती ह।ै वशक्षकों म ें बहिावषकता का लक्षण य बहिावषक सिदे नशीलता उनके वशक्षण शलै ी और सप्रेषण ु ु ं ं कौशल को गवतशीलता प्रदान करती ह।ै बहिावषकता शब्दों के लाक्षवणक और व्यिनात्मक अथो को व्यक्त करने के कौशल म ें िवद् ु ृ ं करती ह।ै दो य दो अविक िाषाए ाँ सामाविक ियैवक्तक स्तर पर एक दसरे के परक के रूप म ें काय भ करती ह।ै ू ू वद्विाषी बच्चे सामाविक अतःविया म ें िाषा कि पररितभन (Code Switching) के माध्यम से ू ं अविक सिलता प्रा्त करते ह।ै हम अतर और समानता खोि कर िी सीखते ह।ै वद्विाषी बच्चे दो िाषाओ के शब्दों के अतर ं ं ं और विश्लेषण के द्वारा वकसी िस्त य सम्प्प्रत्यय कों स्थायी रूप से आत्मसात कर लेते ह।ै ु 3.7 ववद्यार्थथयों की िाषाई पृष्ठिूवम (Language Backgrounds of the Students) अिी तक की चचाभ से हमने यह िाना की बहिावषकता एक सामान्य सत्य ह।ै यह कोई समस्या नहीं िसै ा ु की कई वशक्षक सोचते ह ै बवलक यह एक ससािन ह।ै आप िनते ह ै वक वशक्षक का कायभ नैसवगकभ िाषाई- ं पररवस्थवतकी को सरवक्षत करना ह ै ि पोवषत करना ह ै ना वक उसको नष्ट करना। इस हते वशक्षकों को ु ं विविन्न िाषाओ के प्रवत सम, सिदे नशील ि ग्रहणशील होना चावहए। पनः हम ध्यान द े वक हमारे ु ं ं विद्यालय म ें विविन्न िाषायी और सास्कवतक पष्ठिवम से विद्याथी आते ह।ैं और िसै ा वक हम िानते ह ैं ृ ृ ू ं वक बच्चों की िाषा और सस्कवत को समझ े वबना हम उनके वलए उवचत वशक्षा की व्यिस्था नहीं कर ृ ं सकते ह ै क्योवक उनकी पररवस्थवत म ें िह वशक्षा प्रासवगक नहीं हो सकती ह।ै कई कारणों म ें वशक्षा की ं अप्रासवगकता िी एक कारण ह ै वक प्रारवम्प्िक वशक्षा का मफ्त ि अवनिायभ होते हए िी कई अवििािक ु ु ं अपने बच्चों को
विद्यालय नहीं ििे ते। िसै ा वक हम वशक्षक िमीनी स्तर पर कायभ करते ह ै यह हमारी विम्प्मदे ारी बनती ह ै वक हम विद्यालय द्वारा प्रदत्त वशक्षा की साथभकता बनाये रख।े और यह तिी सम्प्िि ह ै िब हम अपने विद्य
ावथभयों की िाषायी और सस्कवतक पष्ठिवम से अच्छी तरह से िावकि हो। हम ृ ृ ू ं वपछ्ली इकाइयों म ें चचाभ कर चके ह ै वक िाषा वशक्षा का माध्यम ि वशक्षा का अग ह;ै और बच्चों की ु ं प्रथम िाषा उनकी समझ के वलए सबसे उत्तम माध्यम ह ै तो कहीं न कहीं यह बात तावकभ क ह ै वक वशक्षकों को बच्चों के िाषाई पष्ठिवम य प्रथम िाषा को समझना िरूरी ह।ै दसरी एक बात और महत्िपण भ ह ै वक ृ ू ू ू वसिभ हम उदारता और दया िाि से बच्चों की मातिाषा म े कक्षाकक्ष-अतविभ या को बढ़ािा द े तो ऐसा ृ ं सोचना मात्र ही गलत ह।ै यवद आप वशक्षा म ें समता की बात करते ह।ैं यवद आप एक समवे कत वशक्षा व्यिस्था म ें विश्वास करते हैं तो सबको समान वशक्षा के अिसर प्रदान करने के वलए हमको उनकी िाषाई उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 48 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अविकारों का ध्यान रखना ही पड़ेगा। कक्षा म ें िाषाई विविन्नता को ध्यान रखने िायदा वसिभ विद्यावथभयों को ही नहीं होता ह ै बवलक हम वशक्षकों को िी होता ह।ै वशक्षक अपने बच्चों के पष्ठिवम के बारे म ें वितना ृ ू अविक िानते ह ैं उतना उनका काम आसान हो िाता ह।ै कई दशकों से होते आ रह े शवै क्षक शोिों से यह बात स्िय वसद् सी हो चकी ह ै वक बच्चों की शवै क्षक उपलवब्ि पर उनकी िाषाई, सास्कवतक, पाररिाररक ृ ु ं ं पष्ठिवम का असर पढ़ता ह।ै तब हम बच्चों की पष्ठिवम के विषय म ें गम्प्िीरता से अध्ययन क्यों नहीं ृ ृ ू ू करते? आपने वशक्षा-सावहत्य म ें पढ़ा होगा वक उत्तम वशक्षक िह होता ह ै िो बच्चों को अविप्रेररत करता ह।ै आपने अविप्रेणा और अविगम के अन्योन्यावश्रतता का िी अध्ययन वकया ही होगा। िब हम िानते ह ैं वक अविप्रेरणा के वबना अविगम सिि नहीं ह ै तो वशक्षक का मख्य कायभ विद्यावथभयों को प्रेररत करना हो ु ं िाता ह।ै अपने विद्यावथभयों को पढ़ाने के वलए और अपने विषय को रूवचपण भ ढग से प्रस्तत करने के वलए ू ु ं आपको पता होना चावहए वक ि े कौन सी बातें ह ै िो विद्यावथभयों को प्रेररत करती है?
इस प्रश्न के उत्तर के वलए आपको इसके आिार प्रश्न का उत्तर िी खोिना होगा। िह यह वक विद्यावथभयों के विद्यालय म ें आने को क्या और कौन सी बात प्रेररत करती ह?ै इस प्रश्न के उत्तर से न के िल वशक्षकों का वशक्षण रुवचपण भ ू होता ह ै अवपत विद्यालय द्वारा प्रदान की िाने िाली वशक्षा प्रासवगक िी होती ह।ै ऐसा इसवलए क्योंवक ु ं बच्चों के विद्यालय आने की अविप्रेरणा म ें अवििािकों द्वारा विद्यालय
ििे ने की अविप्रेरणा ि उनकी अपेक्षाए िी सवल्त रहती ह।ै इनका ज्ञान वशक्षकों को होना अवनिायभ ह।ै आप सोच रह े होंग े वक वशक्षक ं ं अवििािकों की अपेक्षाओ की िानने के कायभ को कै से कर सकते ह?ैं इसके वलए सिाद सबसे उवचत ं ं माध्यम ह।ै अवििािकों से सिाद स्थावपत करके आप न के िल उनकी अपेक्षाओ को िानने लगते ह ैं ं ं बवलक आप
अपने विद्यावथभयों के िाषाई पष्ठिवम िी समझ िाते ह;ैं िो कक्षाकक्ष अतविभ या को प्रिािी ृ ू ं बनाने के वलए िरूरी ह।ै हमारे आसपास अप्रवशवक्षत वशक्षकों की कमी नहीं ह ै कई विद्यालय
ों म ें प्रथम वडग्री (B.A./B.Sc ) प्रा्त लोग पढ़ा रह े ह।ैं विन्होंने वशक्षा म ें कोई उपावि (िसै े B.Ed.) प्रा्त नहीं की ह।ै इस तत्ि से एक बात सामने आती ह ै वक कोई िी व्यवक्त वकसी िी कक्षा म ें कोई िी विषय पढ़ा सकता ह।ै परन्त वशक्षा का ु उद्दश्े य परा होने की गारिी तब होती ह ै िब आप बच्चों के सिाांगीण विकास को प्रोत्सावहत करते ह।ैं यह ू ं तिी सिि ह ै िब आप बच्चों की पष्ठिवम को समझते हो। विद्यावथभयों के पाररिाररक, सामाविक- ृ ू ं सास्कवतक मानवसक आवद पररप्रेक्ष्यों को समझने की पहली शतभ विद्यावथभयों की िाषाई पष्ठिवम को ृ ृ ू ं ं समझना ह।ै विद्यावथभयों की पष्ठिवम की समझ ही आपको सपण(भ Complete) वशक्षक बनाती ह।ै बच्चों ृ ू ू ं की िाषाई ि अन्य प्रकार पष्ठिवमयों को समझने के वलए कौन-कौन सी विविया, प्रविविया और ृ ू ं ं रणनीवतया अपनाई िा सकती ह ै अब हम इसकी चचाभ करते ह।ै ं प्रथम रणनीवत ह ै सिाद। बच्चों के साथ अनौपचाररक सिाद स्थावपत करके वशक्षक बच्चों के ं ं िाषाई पष्ठिवम को समझ सकते ह।ैं साथ ही साथ उनम ें िाषा के विकास के स्तर को िी समझ ृ ू सकते ह।ैं तदनरूप ि े अपनी कक्षाकक्ष अतविभ या की योिना तैयार कर सकते ह।ैं ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 49 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वद्वतीय पद्वत अिलोकन य वनरीक्षण ह।ै अिलोकन और परीक्षण के द्वारा वशक्षक बच्चों के ना के िल िाषाई पष्ठिवम को समझ सकते ह ैं बवलक उनके सामाविक सबि, समह गवतशीलता ृ ू ू ं ं आवद का िी पता लगा सकते ह।ैं आपने दखे ा होगा वक कछ बच्चे अतमखभ ी
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प्रकार के होते ह ैं और कछ बवहमखभ ी प्रकार के होते ह।ैं ु ु ु ु ं अतमभखी प्रकार के बच्चे हमेशा शात रहना पसद करते ह।ैं ऐसे म ें सिाद स्थावपत करने की ु ं ं ं ं समस्या उतपन्न हो िाती ह ै और िाषाई पष्ठिवम के समझना कवठन हो िाता ह।ै वशक्षक को ृ ू सिाद पर िमी हई बिभ की परत को तोड़ना होता ह।ै इसक
े वलए एक रणनीवत अपनाई िा सकती ु ं ह ै वक हम खेलों का आयोिन करें। विशेष रूप से हम स्थानीय खले ों का आयोिन करें और उन खले ों म ें बच्चों की समह अतरविया का अिलोकन करें। क्योंवक स्थानीय खले ों म ें बच्चे बड़ा ू ं ही सहि और प्राकवतक रूप से व्यिहार करते ह।ैं अगर हम कछ मानक खले ों का आयोिन ृ ु करते ह,ैं िो वक विला य राज्य के स्तर पर खेले िाते ह ैं तो अच्छा होगा वक वशक्षक िी उन खले ों म ें सहिागी बने; और इस प्रकार सहिागी अिलोकन करने से वशक्षक बच्चों की िाषाई पष्ठिवम के बारे म ें अविक िानकारी प्रा्त कर सकते ह।ैं ृ ू िाषा परीक्षण एक ऐसी विवि ह ै विससे बच्चों की िाषाई पष्ठिवम को विस्िसनीय तरीके से ृ ू समझा िा सकता ह।ै यवद बच्चों की प्रथम िाषा विद्यालय िाषा से अलग ह ै और बच्चों की प्रथम िाषा वलवखत िाषा िी ह ै तो वशक्षक मानक परीक्षणों
का िी प्रयोग कर सकते ह।ैं दोनों (प्रथम और विद्यालयी) िाषाओ के वलए इन परीक्षणों का प्रयोग वकया िा सकता ह।ै ं आपके विद्यालय म ें कक्षा 6, 9 ि 11 कई स्तरों पर कछ विद्याथी सीिे नामाकन प्रा्त करते होंग।े ु ं इस प्रकार
ि े पि भ की कक्षाए कहीं दसरी िगह से उत्तीण भ करके आये होंग।े ऐसे म ें विद्यावथभयों की ू ं ू िाषा ि शवै क्षक पष्ठिवम िानने के वलए आप बच्चों के विद्यालयी दस्ताििे ों का विश्लेषण कर ृ ू सकते ह।ैं इसके अलािा उनाके पि भ के विद्यालय की साख और प्रोिाइल के आिार पर िी आप ू कछ अदािा लगा सकते ह।ैं ु ं बच्चों की रुवचयों को िानने के वलए हम एक सिक्षे ण िी कर सकते ह ैं विसम ें बच्चे कछ प्रश्नों ु के वलवखत ििाब द।ें िसै े वक
‘मझ े विके ि खले ना पसद ह’
ै । यह परीक्षण ु ं आविष्कारणी(Inventory) के प्रकार का हो सकता ह,ै िो वशक्षक सदि भ विशेष को ध्यान म ें ं रखते हए स्िय तैयार कर सकते ह।ैं इससे मनोिावषक पष्ठिवम के अलािा अन्य व्यवक्तत्ि से ु ृ ू ं सबवित िानकाररया िी प्रा्त की िा सकती ह।ैं ं ं ं अभ्याि प्रश्न 6. बहिावषकता के कोई दो सज्ञानात्मक लाि बताइए। ु ं 7. उद भ िाषा का िन्म वकस देश में हआ? ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 50 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 8. िाषा प्रिमण म ें कौन कौन से दो तत्ि ह?ै 9. अनिाद वकस तरह का कौशल माना िाता ह?ै ु 10. विद्यावथभयों की पष्ठिवम की समझ क्यों आिश्यक ह?ै ृ ू 3.8 सारांश आि हमारे सामने दो परस्पर विरोिी वस्थवतयााँ उत्पन्न हो चकी ह।ै एक तो बढ़ते वशक्षा के स्तर, ु व्यापाररक गवतविवियों, शहरीकरण आवद कारणों से समाि म ें बहिावषकता म ें बढ़ोत्तरी हई ह,ै िही दसरी ु ु ू ओर अलपसख्यक िाषा-िाषी लोग शवै क्षक, सामाविक आवथभक आवद कारणों से मानक िाषाओ को ं ं सीख रह े ह ै और आवथभक शैवक्षक महत्ि की प्रित्िशाली िाषाओ से आकष्ट होकर िाषा पररितभन तेिी ृ ु ं से कर रह े ह।ै आग े चलकर उनकी नई पीढ़ी अपनी मलिाषा (Native Language) का प्रयोग पणरूभ प से ू ू बद कर द े रही ह।ै इससे विरोिािास यह हो रहा ह ै वक बहिाषी लोगो म ें िवद् हई ह ै और िाषाए ाँ कम हो ु ु ृ ं रही ह।ै एक अनमान के वहसाब से प्रत्येक चौदह वदनों म ें एक िाषा मर िाती ह।ै यवद यह िम िारी रहता ु ह ै तो अगली शताब्दी तक विश्व म ें उपलब्ि लगिग 7000 िाषाओ म े से वसिभ आिी ही रह िायेंगी ं (Rymer, 2012) । हम िानते ह ै वक िाषा की हावन ििै विविविता की हावन से कम घातक नहीं ह ै (Muhlhausler, 1996)। अतः िाषाई पाररवस्थवतकी म ें सतलन बना रह े इस हते वशक्षकों को विशषे रूप ु ु ं से बहिावषकता की समझ होनी चावहए और विद्यालय म ें विद्यावथभयों द्वारा वकसी िी िाषा के प्रयोग के ु प्रवत उदार होना चवहए। वशक्षकों म ें यह िागरूकता होना अवत अवनिायभ ह ै वक वद्विावषकता य बहिावषकता हावनकारक नहीं , बवलक वशक्षा म ें तो यह एक ससािन ह।ै लेवकन दसरी िाषा का ज्ञान ु ं ू प्रथम िाषा की कीमत पर नहीं होना चवहए। वशक्षकों ि विद्यालयों को िनात्मक वद्विावषकता को प्रोत्सावहत करना चावहए न वक ऋणात्मक वद्विावषकता को। िनात्मक वद्विावषकता से तात्पयभ यह ह ै वक विद्याथी दसरी िाषा को सीखते हए अपनी प्रथम िाषा को बनाये रखते ह ै य उसम ें िी विकास करते ह ै ु ू (Lambert, 1975). 3.9 शब्दावली 1. भाषाई पररर्स्थर्तकी (Language Ecology)- एक विषय िो विविन्न िाषाओ की उनके ं पयाभिरण म ें उनकी वस्थवत का अध्ययन करता ह।ै 2. िमा-भार्षक (Sociolinguistic)- िाषा के सामाविक पक्ष से सम्प्बवित। ं 3. प्रशािकीय भाषा (official Language)- िो िाषा प्रशासन के काम काि की िाषा हो। 4. बह-िास्कर्तक ( Multicultural)- कई सस्कवतयों की विशषे ताओ को समावहत वकए हए। ु ृ ृ ु ां ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 51 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 5. अर्भवर्ि (Attitude)- वकसी िस्त और व्यवक्त के विषय में सोचने और विश्वास कारेन क ृ ु दृवष्टकोण। 6. पष्पि: अनकल मौसम पाकर विकवसत होना ु ु ू 7. मलभाषा (Native Language)- िौ िाषा व्यवक्त वकसी स्थान विशषे का िासी होने के कारण ू बच्पन से प्रयोग कताभ ह।ै 8. धिात्मक र्िभार्षकता (Additive Bilingualism)-दसरी िाषा म ें ज्ञानािनभ प्रथम िाषा को िी ू बनाये रख।े 9. प्रयोगशास्त्र (Pragmatics)-िाषाशास्त्र की एक शाखा िो िाषा का वकसी सदि भ विशेष म ें प्रयोग ं के तरीकों का अध्ययन करती ह।ै 3.10 अभ्यास प्रश्नों के उिर 1. समा-िावषक (Sociolinguistic) दृवष्टकोण से िाषा वकसी समाि के विचारों, मान्यताओ, ं विश्वासों, प्रतीकों, सिाद ि सामाविक रीवत ररिािों की िाहक मानी िाती ह।ै ं 2. िारत म ें लगिग 1000 िाषाएाँ ि बोवलया प्रयोग की िाती ह?ै ं 3. प्रथम िाषा य मातिाषा ही समझ का सबसे अच्छा माध्यम होती ह?ै ृ 4. वहदी ि उद भ उत्तर प्रदशे की प्राशासवनक िाषाए ाँ ह?ै ं ू 5. परािावषक-वशक्षणशास्त्र (Translanguaging Pedagogy) उस वस्थवत को कहगें े िब वशक्षक विद्याथी को िह िाषा प्रयोग करने द े विसे विद्याथी सबसे अविक और अच्छे से िानता ह।ै यह विचािारा कक्षा वशक्षण म ें िाषा उदारता और वकसी एक माध्यम िाषा पर वनिरभ ता से मवक्त म ें ु विश्वास करती ह।ै 6. बहिावषकता के दो सज्ञानात्मक लाि: ु ं a. तावकभ क क्षमता का विकास b. उच्च-सज्ञानात्मक क्षमताए म ें बढोत्तरी। ं ं 7. उद भ िाषा का िन्म िारत दशे म ें हआ? ु ू 8. िाषा प्रिमण म ें विश्लेषण और वनयत्रण। से दो तत्ि ह?ै ं 9. अनिाद या अनकवत एक बहिावषक कौशल ह।ै ु ृ ु ु 10. विद्यावथभयों की पष्ठिवम की समझ ही आपको सपण(भ Complete) वशक्षक बनाती ह।ै ृ ू ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 52 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3.11 सदं ि भ ग्रंथ सची व उपयोगी पाठ्यसामग्री ू 1. BBC (2015). Uncommon tongue: Pakistan's confusing move to Urdu. Dated 12 September 2015, available on http://www.bbc.com/news/world- asia-34215293. 2. Bialystock, E. (1991). Language processing in bilingual children. Cambridge: Cambridge University Press. 3. Borodotsky, L. (2001). Does Language Shape Thought?: Mandarin and English Speakers’ Conceptions of Time. Cognitive Psychology 43, 1–22 4. Borodotsky, L. (2009). How does our language shape the way we think? (Conversation dated 06/11/2009) available on https://www.edge.org/conversation/lera_boroditsky-how-does-our- language-shape-the-way-we-think 5. Bowerman, M. & Levinson, S. C. (2001). Introduction. In M. Bowerman and S. C. Levinson (Eds.). Language acquisition and conceptual
development. Cambridge: Cambridge University press. 6. Cook, V. J. (2002). Portraits of the L2 User. Clevedon: Multilingual Matters. 7. Cummins, J. (1981). The role of primary language development in promoting educational success for language minority students. In California State Department of Education (Ed.), Schooling and language minority students: A theoretical framework (pp. 3-49). Los Angeles: Evaluation, Dissemination and Assessment Center, California State University.
8. Dialects of Uttarakhand. Retrieved from http://www.uttaranchal.org.uk/dialects.php 9. Dua, H. R. (2008). Ecology of multilingualism: language, culture and society. Mysore: yashoda publication. 10. Edward,
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J. (2010). Language diversity in the classroom. Bristol (UK): Multilingual Matters. st 11. Garcia, O. (2009). Bilingual education in 21 century: global perspective. West Sussex(UK): Wiley-Blackwell. 12. Garcia, O., and Wei, L. (2014). Translanguaging: Language, Bilingualism and Education. New York: Palgrave Macmillan.
उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 53 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 13. Grosjean, F. (2016). What is translanguaging?: An interview with Ofelia García (March, 02 2016). Psychology Today. Retrieved from https://www.psychologytoday.com/blog/life-bilingual/201603/what-is- translanguaging 14. Lambert, W. E. (1975). Culture and language as factors in learning and education. In A. Wolfgang (Ed.). Education of Immigrant Students Toronto: O.I.S.E 15. Lars, A. and Trudgill, P. (1990). Bad Language. Oxford: Blackwell. 16. Muhlhausler, P. (1996). Linguistic ecology: language change and linguistic imperialism in the pacific region. London: Routledge. 17. NCERT (2005). National Curriculum Framework, 2005. New Delhi: NCERT. 18. Rymer, R. (2012). Vanishing Voices, National Geographic (July). Available on http://ngm.nationalgeographic.com/2012/07/vanishing- languages/rymer-text 3.12 वनबिात्मक प्रश्न ं 1. बहिावषकता क्या ह?ै और यह वकस प्रकार से एक ससािन हो सकती ह?ै ु ं 2. कक्षा म ें िाषाई विविन्नता का िणनभ करते हए, बच्चों की िाषाई पष्ठिवम को समझने की ु ृ ू विवियों की वििचे ना वकविए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 54 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 4 - विद्यालय की भाषा बनाम घर की भाषा या बोली School Language vs Home Language or 4.1 प्रस्तािना 4.2 घर की िाषा 4.3 घर की िाषा (मातिाषा) का महत्ि ृ 4.4 घर की िाषा बनाम विद्यालय की िाषा 4.5 वश क्षा के माध्यम के रूप में मातिाषा का महत्ि ृ 4.6 साराश ं 4.7 सदिभ ग्रथ सची ू ं ं 4.8 वनबिात्मक प्रश्न ं 4.1 प्रस्तावना वपछले इकाई म ें आपने बहिावषकता (Multilingualism) और कक्षा-कक्ष म ें बहिावषक पररवस्थवतयााँ ु ु होने के बाििद
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कै से विद्यावथभयों को वशवक्षत वकया िाय के बारे म ें अध्ययन वकया । इस अध्याय म ें आप ू घर की िाषा या मातिाषा और विद्यालय म ें इस्तेमाल की िाने िाली िाषा के बारे म ें अध्ययन करेंग।े ृ वश क्षा और वश क्षण प्रवि या वब ना सचनाओ (Information) तथा वि चारों (Thoughts) के ू ं आदान प्रदान के सिि नहीं ह।ै वश क्षक या वि द्याथी होने के नात
े आप अपने प्रिानाचाय भ से अथिा छात्रों ं से कछ न कछ कहते ह ैं या विद्याथी आपसे कछ पछते ह ैं या प्रिानाचाय भ बलाकर आपको आदशे दते े ह,ैं ु ु ु ू ु प्रशसा या आलोचना करते ह,ैं उपरोक् त सिी वि याओ म ें वक सी न वकसी माध् यम की आिश्य कता होती ं ं ह।ै िसै े - वल खकर, सके त द्वारा, बोलकर या अन्य वकसी माध्यम द्वारा। इन सब के वल ए आप वक सी न ं वकसी िाषा का प्रयोग आिश् यक रूप से करेंग।े वि चारों के आदान प्रदान के वल ए वक सी िाषा का ज्ञान अत्यन्त आिश्यक ह।ै सामान्यतः यह दखे ने म ें आया ह ै वक एक छोिा बच्चा अपन े घर म ें विस तरह की िाषा म ें समिाद स्थावपत करने का अभ्यस्त होता ह ै उस तरह की िाषा
का प्रयोग विद्यालयों म ें एि ं कशाओ म ें होता ही नहीं ह ै । िब िह इस तरह की पररवस्थवत से दो- चार होता ह ै तो उसका आत्मविश्वास ं डगमगा िाता ह ै और िह विद्यालय
ी वियाकलापों से कन्नी कािने लगता ह ै । यवद वशक्षक विद्याथी के इस तरह की समस्या को ध्यान म ें रख े तो कािी हद तक समस्या का समािान वकया िा सकता ह।ै वकन्त ु दिाभग्य से हमारे यहााँ के वशक्षा व्यिस्था म ें इस पर ध्यान न दने े की परम्प्परा ही विकवसत हो गई ह।ै कई ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 55 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् मामलों म ें तो मातिाषा या घर की िाषा म ें सिाद करने की वस्थवत म ेंविद्यावथभयों को दवण्डत करने के ृ ं मामले िी प्रकाश म ें आयें ह ै । प्रस तत इकाई म ें आप घर की िाषा (मातिाषा) का अथभ, महत् ि और वि द्यालय की िाषा का ृ ् ु अविप्राय तथा विद्यालय िाषा बनाम घर की िाषा का वि स् तार से अध् ययन करेंग े । 4.2 घर की िाषा (The language of Home) घर की िाषा से तात्पयभ उस िाषा से ह ै िो बच्चा अपने घर पर बोलता ह ै । यवद दसरी िाषा म ें कहा िाय ू तो यह वक बच्चा विस िाषा म ें अपने िाई , बहन और माता –वपता के साथ सिाद स्थावपत करता ह।ै ं मातिाषा बच् चा अपनी मा से सीखता ह ै । पर मा की िाषा को मातिाषा नहीं कहते ह।ै बच् चा िन् म के ृ ृ ं ं बाद अपने पररिशे से िो िाषा सीखता ह,ै उसे मातिाषा कहते ह।ै मातिाषा बच् चे को उपहार स् िरूप ृ ृ वम लती ह।ै माता, वप ता, िाई, बहन या घर के अन् य बड़े लोग बच्च े को िाषा का सस् कार दते े ह।ै ं िाषाविज्ञावनयों के अनसार बच्चों को ऐसी िाषा म ें पढ़ाने के विचार का समथभन करते ह ैं िो ु बच्चे आसानी से समझते हों। ि े मानते ह ैं वक बच्चा िब विद्यालय म ें आता ह ै तो अपने सामाविक- सास्कवतक पररिशे से कािी कछ सीखकर आता ह।ै इस सीखने म ें उसके घर की िाषा िी शावमल होती ृ ु ं ह।ै इसवलए बच्चों को शरुआती कक्षाओ म ें उनकी िाषा में ही पढ़ाना चावहए। इससे बच्चों का वशक्षण ु ं एक ऐसी िाषा म ें होना सवनवित वकया िा सके गा विसके साथ ि े सहि होंग।े यावन सनकर समझने िाले ु ु स्तर तक उनका पररचय इस िाषा से होगा। घर की िाषा के साथ खास बात यह होती ह ै वक बच्चा इस िाषा को सहज़ता (Effortlessly) के साथ आस पास के माहौल (Environment) से सीखता ह।ै दसरे ू शब्दों म ें यवद कहा िाय तो बच्चा घर की िाषा को इस तरह से सीखता ह ै वक इसम ें सीखने िसै ी कोई बात ही नहीं रह िाती ह ै । इस बात म ें कहीं दो राय नहीं ह ै वक छात्र अपना अविकाश समय घर और ं समदाय म ें अनौपचाररक (Informal) रूप से सीखने में लगाते ह।ैं हालावक, पाठयपस्तक को ही वनदशे ों ् ु ु ं का मख्य मानने की प्रिवत्त का अथभ यह ह ै वक छात्र विस कौशल, ज्ञान और अनििों के साथ कक्षा म ें ृ ु ु आते ह,ैं वशक्षक उन्ह ें अनदखे ा कर सकते ह।ैं बच्चे िब पहली बार
विद्यालय आते हैं, तो विन अपररवचत लोगों, वदनचयाभ और िाषा से उनका सामना होता है, उससे ि े अचवित हो िाते ह ैं । विद्यालय के वशक्षक ं विद्यावथभयों के ज्ञात सास्कवतक अभ्यासों और िाषाओ की विविित
ा को महत्ि दके र, उन्ह ें इस नए ृ ं ं माहौल म ें ज्यादा सरवक्षत महसस करा सकते ह।ैं बच्चों को हर वदन घर-आिाररत वशक्षा और विद्यालय- ु ू आिाररत वशक्षा के बीच एक पल पार करना पड़ता ह।ै ु अभ् याि प्रश्न 1. घर की िाषा से आप क्या समझते ह ैं ? 2. आप अपने विद्याथी के उसके घर के िाषा एि मानक िाषा म ें सामिस्य कै से स्थावपत करेंग े ? ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 56 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 4.3 घर की िाषा (मातृिाषा) का महत्त्व( Importance of home language (Mother tongue) िाषा समाि की सस् कवत का आिश् यक तत्ि ह।ै िास् ति म ें िाषा सामावि क सगठन (Social ृ ं ं Organisation) की सिी वि याओ(activities) का आिार ह।ै व् यवक् त की प्रत्य ेक वि या पर िाषा का ं प्रिाि पड़ता ह ै और िह िो िी वि या करता ह,ै उसम ें महत् िपण भ िवम का वन िाती ह।ै यहा एक तथ्य पर ू ू ं ध्यान दने ा िरूरी ह ै वक बच्चा अपने लबे िीिनकाल म ें अन्य िाषाओ और सस्कवतयों (Cultures) के ृ ं ं ं सपकभ म ें िी आयेगा। इसवलए हम ें उसे अन्य िाषाओ को सीखने के वलए तैयार करना िरूरी ह।ै विसकी ं ं िरूरत उन्ह ें िविष्य म ें होगी। उदाहरण के तौर पर वहदी, अग्रेिी इत्यावद। इसके अिाि में बच्चों को कई ं ं तरह की समस्याओ का सामना करना होता ह ै वक क्योंवक उनके वशक्षक बच्चों को
क्षेत्रीय िाषाओ म ें ं ं समझाते ह ैं और उनकी वकताबें वहदी या अग्रेिी म ें होती ह।ैं अग्रेिी पढ़ाने िाली वस्थवत तो और िी ं ं ं ख़तरनाक होती ह ै बच्चे को हर शब्द का वहदी म ें अनिाद करके पढ़ना होता ह।ै मनै गो मतलब आम, ु ं िािर मतलब पानी । ऐसी वस्थवत म ें एक बच्चे को कई तरह की चनौती (Challenges) का सामना करना ु होता ह ै और िह
उस िाषा म ें अपनी रुवच खो दते ा ह।ै बच्चों को सही तरीके से पढ़ना वसखाना िी िरूरी ह।ै पढ़ने को समझ के साथ िोड़कर देखने के वलए प्रोत्सावहत करने की िरूरत ह।ै उनको उदाहरणों के माध्यम से िाषा का इस्तेमाल करने की कला स े अिगत कराना चावहए। मसलन समझ का पढ़ने के साथ िसे ा ही ररश्ता ह ै िसै ा सनने और समझने का ह।ै ु यानी दोनों साथ-साथ चलने िाली प्रवियाए ह।ैं वनम्प्न वबन्दओ के आिार पर मातिाषा वश क्षा के महत्त्ि ृ ं ं ु को समझा िा सकता ह।ै 1. र्
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श क्षा का आधार (Base of Education) – बालक की मातिाषा वश क्षा का आिार होती ृ ह।ै उसे एक स् ितत्र वि षय के रूप म ें अध् यापन के साथ-साथ वश क्षा के माघ्य म के रूप म
ें िी ं स् िीकार करना चावह ए । बालक को वल खना और पढ़ना वस खाने के वल ए िाषा वश क्षण की आिश् यकता होती ह।ै िाषा वश क्षा म ें मातिाषा को ही स् िीकार करना अवि क उवच त होता ह।ै ृ 2. अर्भ व् यर्क् त में स्व ाभार्व कता (Naturality in Expression)– एक बालक के वल ए अपने वि चार अवि व् यक् त करने हते मातिाषा सबसे उपयक् त िाषा होती ह।ै बालक अपने वि चारों ृ ु ु और िािनाओ को सरल और स् पष् ि रूप से मातिाषा म ें प्रकि कर सकता ह।ै ऐसा िह अन् य ृ ं वक सी िाषा म ें नहीं कर सकता ह।ै इसवल ए मातिाषा से वि चार अवि व् यवक् त म ें स् िािावि कता ृ आती ह।ै 3. मातभाषा प्रभावोत प ादक (Effectivenes of Mothertongue) – बालक की मातिाषा ृ ृ ् पर अच् छी पकड़ होती ह।ै मातिाषा म ें बोलने के वल ए बालक को वि चार नहीं करना पडता। ृ इससे अवि व् यवक् त म ें स् ििावि कता आती ह।ै िो दसरों पर प्रिाि डालने म ें महत् िपण भ िवम का ू ू ू वन िाती ह।ै इसवल ए मातिाषा प्रिािोत्प ादक होती ह।ै ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 57 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 4. िरिता एव पणाता की अिभर्त(The notion of simplicity and completeness) - ू ु ू ां व् यवक् त िन् म के बाद से ही मातिाषा का प्रयोग करने लगता ह।ै व् यवक् त चाह े वक तनी ही िाषाए ृ ं सीख िाए लेवक न उसे उसम ें सरसता और पणतभ ा की अनिवत नहीं होती ह।ै बालक को मातिाषा ृ ू ु ू के ज्ञान से ही सरसता एि पणभता की अनिवत होती ह।ै ू ु ू ं 5. िजिात् मकता का र्व काि (Development of Creativity) – बालक की सिनात् मक ृ ृ शवक्त का वि कास मातिाषा म ें ही अवि क होता ह।ै व् यवक् त चाह े वक तनी ही िाषाओ का ज्ञान ृ ं प्राप् त कर ले, लेवक न उनम ें सावह त्य कायभ करना बहत कवठ न कायभ होता ह ै । मातिाषा म ें सावह त्य ु ृ कायभकरना सरल होता ह ै क् योंवक िह बचपन से ही उसके साहचयभ म ें होता ह।ै 6. व् यर्क् त के र्व काि में िहायक (Helpful in personality development) – परर िार और समाि व् यवक् त की प्रथम पाठशाला होती ह।ै परर िार और समाि से ही िह अच् छे सस् कार ं गहण करता ह।ै यह कायभ मातिाषा म ें ही वक या िाता ह।ै माता-वप ता और परर िार िाले मातिाषा ृ ृ ृ म ें ही बालक को अच् छे बरे म ें अन् तर करना वस खाते ह।ै यह उनके व् यवक् त त्ि के वि कास म ें ु सहायक होता ह।ै 7. मातिाषा हमारी सस् कवत का अवि न् न होती ह।ै वक सी िी मानि सस् कवत को समझने और ृ ृ ृ ं ं आत् मसात करने के वल ए िास् कर्त क एकता में िहायक (Helpful in Cultural Unity) ृ ां आिश् यक ह ै वक हम ें पहले उनकी िाषा को समझे। मातिाषा द्वारा ही मनष् य एक दसरे को ृ ु ू समझते ह ै और एक दसरे से अपने वि चारों ि िािनाओ का आदान प्रदान करत े ह।ै मातिाषा ृ ं ू द्वारा ही हम अपने रीवत रर िािों को एक पीढी से दसरी पीढी तक पहचाते ह।ै मातिाषा द्वारा ही ु ृ ं ू व् यवक् त एक दसरे से सम्प्प कभ करते ह।ै मातिाषा ही मानि सभ् यता और सस् कवत का आिार ह।ै ृ ृ ं ू मातिाषा के वब ना मानि सस् कवत की कलप ना िी नहीं की िा सकती ह।ै ृ ृ ं 8. िामार्ज क कशलता (Social Expertise)– सामावि क िीिनयापन के वल ए व् यवक् त की ु मातिाषा का ज्ञान आिश् यक ह ै । मातिा
षा द्वारा ही व् यवक् त का मानवस क और िािनात् मक ृ ृ वि कास होता ह।ै इसके द्वारा ही व् यवक् त के व् यवक् त त्ि का गठन होता ह।ै मातिाषा द्वारा ही व् यवक् त ृ का नैवत क वि कास होता ह
।ै समाि म ें मातिाषा ही व् यवक् त के वि चारों के आदान प्रदान का ृ माध् यम होती ह।ै इससे सामावि क कशलता आती ह।ै ु 9. भावार्भ व् यर्क् त का िाधि (Instrument of self expression) – व् यवक् त के वल ए िािावि व् यवक् त का सिोतम सािन मातिाषा ह।ै व् यवक् त मातिाषा से अपने वि चारों और ृ ृ िािनाओ को सरल और स् पष् ि तरीके से व् यक् त कर सकता ह।ै मातिाषा म ें बोलने के वल ए उसे ृ ं वि चार करने की आिश् यकता नहीं होती ह।ै िह सहि िाि से वि चार अवि व् यक् त कर सकता ह।ै व् यवक् त के शारीरर क और मानवस क वि कास के साथ-साथ मातिाषा ही व् यवक् त का वि चारों और ृ िािावि व् यवक् त के स् िािावि क सािन के रूप म ें वि कवस त होती रहती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 58 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अभ्याि प्रश्न 3. घर की िाषा के महत्ि पर प्रकाश डालें ? 4.
“िाषा समाि की सस् कवत का आिश् यक तत् ि ह”
ै । इस कथन के सदि भ म ें अपने विचार व्यक्त ृ ं ं करें । 4.4 घर की िाषा बनाम ववद्यालय की िाषा (Home Language Vs School Language) इसम ें कोई सदहे नहीं वक प्राथवमक विद्यालय म ें पढ़ने िाले अविकतम बच्चे अपने घर-पररिार, समदाय म ें ु ं बोली िाने िाली िाषा ही बोलते ह।ैं यह िाषा वहन्दी के स्िीकत मानक खड़ी बोली से इतर होती ह।ै ृ हमारे प्रदशे म ें बोली िाने िाली ऐसी िाषाओ म ें अििी, ब्रि, िोिपरी, बन्दले ी, कमाऊाँ नी, गढ़िाली ु ु ु ं आवद प्रमख ह।ैं स्कलों म ें शरुआत से ही बच्चों को मानक िाषा सीखाने पर िोर वदया िाने लगता ह ै ु ू ु विससे बच्चे िाषा सीखने से कतराने लगते ह।ैं बच्चे घर पर बोली िाने िाली िाषा के असर के कारण मानक िाषा के प्रयोग म ें "अशवद्यााँ " करते ह ैं - "उसने कही", "हम लोगों ने िाना ह"ै आवद। इस पर ु उन्ह ें डाि पड़ती ह,ै िबवक शरु म ें ही शद्ता पर िोर दने े से िाषा सीखने म ें एक बड़ी रुकािि खड़ी हो ु ु ं िाती ह।ै इसका एक दष्पररणाम यह िी होता ह ै वक अध्यापक विद्यावथभयों को बार –बार िोकने लगते ह ैं । ु वशक्षकों की बार-बार िोका-िाकी और चप कराने से बच्चों म ें घर की िाषा के प्रवत हीनिािना िी पैदा ु हो िाती ह ै और ि े आत्मविश्वास के साथ खलकर अपनी बात नहीं कह पाते। कक्षा म ें साथभक / अथभपणभ ु ू बातचीत के पयाभ्त अिसर नहीं उपलब्ि ह।ैं इस तरह का दबाि या अनशासन रहता ह ै वक बच्चे चपचाप ु ु कायभ करें। िाषा सीखाने में मौवखक पक्ष की अक्सर उपेक्षा की िाती ह।ै इससे बच्चे आग े की कक्षाओ म ें ं अपनी बात कहने म ें वहचकते ह।ैं इससे मौवखक अविव्यवक्त ( oral expression) िसै े सशक्त माध्यम का प्रयोग और विकास नहीं हो पाता। िबवक यह िाषा वशक्षण का िरूरी पहल ह।ै ू बच्चे अपने घर-पररिशे और समदाय (Community) म ें हो रही बातों को ध्यान से सनते रहते ु ु ह ैं तथा उनके साथ हो रह े हाि-िािों को दखे ते-समझते ह।ैं हाि िाि के साथ प्रयोग होने िाले सके तों के ं साथ अथभ समझते और वनकालते ह।ैं शरु म ें बच्चे सके तों के आिार पर बात को पकड़न े का प्रयास करते ु ं ह।ैं स्िय िी ि े हाि-िािों एि सके तों का माध्यम के रूप में प्रयोग करते ह।ैं िीरे -िीरे ि े कहने की कोवशशों ं ं ं और उनके पररणामों को िानन े लगते ह।ैं विर ि े अपने आस-पास प्रचवलत शब्दों को पकड़ना शरु कर दते े ु ह।ैं शब्द गिते समय ि े उस दौरान आस-पास हो रह े व्यिहारों को िी दखे ते ह।ैं एक दौर ऐसा आता ह ै िब ूं ि े सनना-समझना तेि कर दते े ह।ैं इस प्रकार ि े सनकर, समझने की ओर बढ़ते ह।ैं िब उन्ह ें यह समझ ु ु आती ह ै वक ि े शब्दों को बोलकर कछ हावसल कर सकते ह ैं तो ि े उनका उपयोग करने लगते ह।ैं िमश: ु उनका काम चलाऊ शब्दिडार बढ़ता िाता ह।ै बच्चे अपने कथनों और उनके प्रिाि से अपनी स्िय की ं ं एक अलग तरह िाषा विकवसत करते ह।ैं विद्यालय आने से पहले बच्चे कािी कछ बोल सकते ह।ैं ध्यान ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 59 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् दने े िाली बात यह ह ै वक बच्चा िाषा ऐसे समय सन्दि भ से सीखता ह,ै िहा उसका ध्यान िाषा कें वित नहीं ं ह।ै िाषा सीखने म ें सनने बोलने, पढ़न-े वलखने का िम तो ह,ै लेवकन दरअसल हमेशा ऐसा ही नहीं होता ु ह।ै क्या िब होता ह ै तो रुका रहता ह ै या के समय स्थवगत रहता ह ै ? ु ु यह सब साथ-साथ िी चलता रहता ह ै - सनना, बोलना, पढ़ना इत्यावद। ु क्या विद्यालय म ें बच्चों को शरु म ें सनने-बोलने (Listening-speaking) के पयाभ्त अिसर वदये ु ु िाते ह?ैं बच्चा िब विद्यालय म ें पहली बार आता ह ै तो परम्प्परागत वशक्षण (Conventional teaching) में वशक्षक उससे सीिे वलखने-पढ़ने का कायभ कराने लगते ह।ैं िह समझ ही नहीं पाता वक क्यों कछ आकवतया िबरन उसे वदखाई पढ़ाई और वलखाई िा रही ह।ैं कहने की आिश्यकता नहीं ह ै वक यही ृ ु ं मल समस्या ह ै । िास्ति म ें िह घर िसै ा िातािरण चाहता ह।ै विद्यालय नामक इस िगह पर उसके अपने ू अनििों को सनने िाला कोई नहीं ह,ै उसकी के वलये कोई िगह नहीं होती। अध्यापक के ु ु वलये िरूरी ह ै वक पहले िह बच्चे की िाषा को स्िीकार करे, तब उसे अपनी विद्यालय की िाषा (मानक िाषा) की ओर ले िाये। विद्यालय म ें बच्चों को विद्यालय की िाषा (मानक िाषा) सनने, समझने, ु बोलने के अविक मौके दने ा चावहये। लेवकन इसका मतलब यह नहीं वक बच्चों की घरेल िाषा (Home ू language) को छोिा माना िाय या उपेवक्षत वकया िाय। र्शक्षक की भर्मका (The Role of the Teacher) ू वशक्षकों द्वारा यह िम अपनाने से बच्चों को शायद अविक मिा आयेगा और िाषा सीखने की गवत तीव्र होगी। कक्षा म ें ऐसे िास्तविक और रोचक सन्दि भ बनाये िाय ें विनमें तरह-तरह से िाषा का उपयोग करना हो। बच्चों के अनिि सनना, उनम ें आपस में करिाना, उन्ह ें कहावनया-कविताए सनाना, ु ु ु ं ं कहावनया-कविताए कहलिाना ऐसी ही गवतविविया ह।ै इनके िररये उन्ह ें मौवखक अविव्यवक्त के वलये ं ं ं प्रेररत वकया िा सकता ह।ै मौवखक अविव्यवक्त के साथ उन्ह ें अविनय या अग - सचालन के मौके दने ा िी ं ं िरूरी ह।ै बच्चों के पसद के विषयों पर छोिे-छोिे िाषण दने े के मौके िी वमलने चावहये। िब उन्ह ें लगेगा ं वक विद्यालय िी घर िैसा ह,ै यहााँ बहत मिदे ार बातें वसखाई / कराई िाती ह,ैं तो हमारा विश्वास ह ै वक िे ु स्िािाविक रूप से बोलेंग।े बच्चों को विद्यालय ि कक्षा म ें बातचीत के पयाभ्त मौके वदये िायें। यह कायभ उनकी िाषा के विकास म ें मददगार होगा। बातचीत िाषा वसखाने का िादई माध्यम ह।ै मौवखक ु अविव्यवक्त के पयाभ्त अभ्यास के बाद ही वलवखत कायभ की ओर कदम बढ़ाना ठीक रहगे ा। िाषा-ज्ञान के सन्दि भ म ें वगििाई द्वारा 1932 म ें ही कही गई एक और बात आि िी प्रासवगक ह ै – ु ं “इिर बालकों को िलदी से िलदी अक्षरज्ञान और अकज्ञान वदलाने का मोह बढ़ता िा रहा ह,ै हम ें उस ं मोह को तोड़ना ह।ै हर कोई शाला म ें और बाहर एक ही प्रश्न पछता ह:ै
‘इस शाला का अभ्यासिम क्या ू ह?ै इस शाला म ें बालक क्या पढ़ते ह?ैं वकतना सीख े ह?ैं ’
लेवकन कहीं िी इस बात को लेकर पछताछ ू नहीं की िाती वक बालकों का वकतना विकास हआ ह।ै हमें इस बात पर ध्यान दने ा ह ै वक बालकों का ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 60 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् सम्प्मान कै सा ह,ै वकस उम्र म ें ि े अक्षरज्ञान और अकज्ञान ले सकते ह।ैं बालक की स्िािाविक प्रिवत्त और ृ ं शवक्त को िान कर ही और उसके अनकल रह कर ही हम उसे ज्ञान प्रदान कर सकते ह।ैं ...... बालक को ु ू अक्षरज्ञान कराते समय आखाँ और स्पश भ का एक साथ उपयोग होना चावहए...... उन्ह ें अक्षरों की पहचान का अिसर वदया िाना चावहए।” {
‘प्राथवमक शाला म ें वशक्षक, वगििाई-ग्रथमाला-10’,
प्रकाशक: ु ं मािेसरी-बाल-वशक्षण-सवमवत, रािलदसे र (चरू) प. 62, 69} ृ ु ं यवद वगििाई के इस कथन को ध्यान म ें रखते हए बात की िाय तो यह बात स्पष्ट रूप स े कही ु ु िा सकती ह ै वक बच्चा िब विद्यालय म ें आना प्रारम्प्ि करता ह ै तो उस के पास अपनी स्िय की िाषा ं पहले से होती ह,ै विसका प्रयोग िह अपनी समझ के मतावबक़ करता ह ै । उसके पास अपनी शब्दािली ु या शब्दकोष होता ह ै । विस का प्रयोग िह प्रमख तौर पर बोलचाल म ें करता ह ै (कहते चलें वक अगर हम ु इस बात से सहमत ह ैं तो हम ें यह िी मानना होगा वक बच्चे का वदमाग उस समय एक कोरी स्लेि नहीं होता ह ै – उस पर िाषा-ज्ञान के सन्दि भ म ें बहत कछ अवकत हो चका होता ह ै )। िाषा की कक्षा में यवद ु ु ु ं हम इस बात का ध्यान रखते हए चलें तो बच्चे के साथ आदान-प्रदान सहि होने की अविक सम्प्िािना ु रहगे ी। बच्चे के पास पहले से मौिद शब्दािली को हम आिार बनाते ह ैं तो उसकी रुवच और ध्यान तो ू हम खींच ही सकते ह,ैं उसका विश्वास िी िीत सकते ह ैं – और उसका आत्मविश्वास बढ़ा सकते ह।ैं अब असली समस्या यह ह ै वक घर की िाषा और विद्यालय िाषा म ें सामिस्य कै से स्थावपत वकया िाय। ं इसके वलए खले , कहावनयााँ और पहवे लयों के माध्यम ह ै विसके रास्ते हम बच्चों की प्रिवत्त के अनकल ृ ु ू कायभ करते हए उनके िाषा-ज्ञान म ें सामिस्य और समवद् ला सकते ह।ैं िाने-माने वशक्षाविद प्रो.कष्ण ु ृ ृ ं कमार अपने लेख म ें हमारा ध्यान इस ओर वदलाते ह ैं वक ु “बच्चों को कहानी सनाने (Story- telling) की एक लम्प्बी परम्प्परा िारत म ें रही ह.ै ... कहानी ु परम्प्परागत रूप म ें विन पररवस्थवतयों म ें सनाई िाती थी, ि े आि के पाररिाररक और सामाविक िीिन में ु उपलब्ि नहीं ह.ैं .....लेवकन पररिार और समाि की नई पररवस्थवतयों म ें बच्चों को कहानी सनाने की ु उतनी ही ज़रूरत ह ै वितनी पहले थी........[क्योंवक] लोक कथाओ और परीकथाओ की सरचना छोिे ं ं ं बच्चों की सोचने की शैली से मले खाती है, और यही इन कहावनयों के प्रवत छोिे बच्चों के आकषभण का ख़ास आिार ह.ै ..... इन कहावनयों को सनते हए छोिे बच्चे अपनी मातिाषा की बवनयादी लयों के ु ृ ु ु सम्प्पकभ म ें आते ह।ैं शब्द और िाक्य रचना का एक परा िण्डार उनके हाथ लगता ह।ै इस िण्डार से िवचत ू ं रह िाने िाले बच्चे कछ बड़े होकर िब पढ़ना और वलखना सीखते ह,ैं तब उनके वलए िाषा एक यावत्रक ु ं चनौती बन िाती ह।ै िह सहि ज़रूरत या इच्छा नहीं बन पाती। बाद म ें िे ध्यानपिकभ सनन,े सयत ढग से ु ू ु ं ं बोलने या सिाद म ें वहस्सा लेने िसै ी क्षमताओ का विकास नहीं कर पाते।” (
‘दीिार का इस्तेमाल और ं ं अन्य लेख’,
एकलव्य का प्रकाशन, पष्ठ 18-19). ृ प्रो. कष्ण कमार द्वारा कही गई बात म ें कछ अविक िोड़ने की आिश्यकता नहीं ह ै – ि े िो कह रह े ह,ैं ृ ु ु उसम ें िाषा-वशक्षण के वलए कहानी का महत्ि स्पष्ट ह।ै कहानी सनाना िी एक कला ह ै और इस कला का ु प्रयोग यवद एक वशक्षक कक्षा म ें कर पाता ह ै तो उस िाषा के अलग-अलग पहल िह बच्चों के वलए ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 61 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् उिागर कर रहा होगा – विशेष तौर से उच्चारण, बोलने में उतार-चढ़ाि तथा िाषा का िाक्य-विन्यास इत्यावद । वशक्षक की ओर से थोड़ी सी महे नत की िाए और इस ओर ध्यान दने े की प्रिवत्त हो तो यकीनन ृ इस प्रविया से बच्चे बहत कछ हावसल कर सकते ह।ैं महत्िपणभ यह िी ह ै वक इसके चलते वशक्षक और ु ु ू बच्चों म ें आत्मीयता का सम्प्बन्ि बनेगा। िह चाह े खले -खले म ें िाषा-प्रयोग की बात हो या विर कहावनयों-पहवे लयों के माध्यम से बच्चे की िाषा को समद् करने की बात, ये प्रवियाए ाँ इस बात का ृ उदाहरण ह ैं वक बच्चे की िाषा को वकस प्रकार विद्यालय के औपचाररकता िरे िातािरण म ें िी स्थान वदया िा सकता ह।ै साथ ही इस बात की ओर िी इशारा करती ह ैं वक वकस प्रकार उनकी िाषा के को पररपक्िता की ओर ले िाया िा सकता ह।ै िाषा-ज्ञान के सन्दि भ म ें दो बातें समझना बेहद ज़रूरी होने के साथ- साथ महत्िपण भ िी ह।ैं पहली बात यह ू वक , वितना अविक हम बच्चे को िाषा के सम्प्पकभ म ें आने के मौके दगें े (िाषा सनने-वलखेने-बोलने-पढ़न े ु के मौके ) उतना ही अविक समद् उसकी शब्दािली (Vocabulary) होगी और उतनी ही िाषा के ृ इस्तेमाल की गहरी समझ विकवसत होगी। दसरा, यह सही ह ै वक एक वशक्षक पर पाठयिम परा करने का ् ू ू दबाि लगातार रहता ह ै मगर इस दबाि म ें आए वबना, हो सके तो पाठयिम (Curriculum) म ें ही ् गिाइश वनकालते हए, नहीं तो उसके बाहर िाते हए िी, कछ िाषा सम्प्बन्िी काम हम बच्चों के साथ ु ु ु ु ं करें तो यकीनन उनकी िाषा सम्प्बन्िी दक्षताए ाँ (Language related competetncies) बेहतर होंगी। आम तौर पर विद्यालय म ें िाषा-ज्ञान की औपचाररक शरुआत िणमभ ाला से की िाती ह।ै इसके कारण हम ु बच्चों के पास पहले से उपलब्ि िाषा-ज्ञान िो वक िह अपने माहौल म ें सीखता ह ै और शब्द-िण्डार की ओर ध्यान नहीं द े पाते। पढ़ाने के अपने तरीकों म ें हम ें इस बात का ध्यान रखने की कोवशश की ओर बढ़ना चावहए तावक बच्चे के पास पहले से उपलब्ि खिाने का लाि िाषा-वशक्षण के वलए वमल पाए। अभ्याि प्रश्न 5. िाषा के सन्दि भ म ें गीि िाई के विचारों के महत्ि को प्रवतपावदत करें । ? ू 6. “घर की िाषा बनाम विद्यालय की िाषा सम्प्बवित विविन्न आयामों को आप वकस तरह से ं दखे ते ह ैं ? स्पष्ट करें । 7. िाषा ज्ञान के सदि भ म ें वशक्षक की िवमका कै सी होनी चावहए ? ू ं 4.5 वश क्षा के माध्य म के रूप म मातृिाषा का महत्व (The Importance of ें Mother Tongue as the Medium of Education) मातिाषा में अन् य वि षयों की तरह एक वि षय ही नहीं ह ै बवल क यह समस् त वि षयों के अध् ययन का ृ माध् यम िी ह।ै व् यवक् त म ें िाषा से सबवि त ज्ञान वि तना अवि क गहरा और व् यापक होता ह,ै उतनी ही ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 62 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् तीव्रता और सरलता से अन् य वि षयों का ज्ञानािनभ करता ह।ै यवद व् यवक् त को मातिाषा के अवत रर क्त वक सी ृ अन् य िाषा म ें वश क्षण कायभ करिाया िाता ह,ै तो िह उतना स् िािावि क और बोिगम्प् य नहीं होता ह ै वि तना मातिाषा में। अत: मातिाषा म ें वश क्षण न के िल व् यवक् त के िाषायी और सावह वत्य क ज्ञान म ें िवद् ृ ृ ृ करता ह ै बवल क उसके अन् य वि षयों के ज्ञान का माग भ िी प्रशस् त करता ह।ै बालक बचपन से ही मातिाषा ृ के साहचयभ (association) म ें रहता ह,ै इसवल ए उसका िाषायी ज्ञान सम्प् पन् न और समद् होता ह ै और ृ उसकी अवि व् यवक् त िी कर पाता ह।ै िसै े-िसै े व् यवक् त मातिाषा के माध् यम से वश क्षा ग्रहण करता िाता ृ ह–ै िसै े िसै े उसकी िाषा और िी समथभ और सम्प् पन् न होती िाती ह।ै मातिाषा और वश क्षण की िाषा एक ृ होने से वश क्षण म े सबि स् थावप त हो िाता ह।ै व् यवक् त को िो कछ िी पढाया िाता ह ै िह सहि ही ग्रहण ु ं ं कर लेता ह ै और यह ज्ञान स् थायी होता ह।ै गािी िी न े मातिाषा को व् यवक् त के वल ए बहत ही आिश् यक ु ृ ं माना ह ै उन् होंने कहा ह ै वक “मनष् य के मानवस क वि कास के वल ए मातिाषा उतनी ही आिश् यक ह ै वि तना ृ ु वक बच् चे के शारीरर क वि कास के वल ए मातिाषा माता का दि” । गािीिी मातिाषा को वश
क्षा का ृ ृ ं ू माध् यम बनाने के पक्ष म ें थे। उच् च वश क्षा का माध् यम मातिाषा न होने से द:खी होकर गािीिी कहा वक ृ ं ु “यवद म ैं कछ वद नों के वल ए तानाशाह हो िाउ तो मातिाषाओ को तत् काल ही उच् च वश क्षा का माध् यम
ृ ु ं ं बना द। इसके वल ए िले ही उन प्रोिे सरों को हिाना पडे िो अपने को मातिाषा म ें पढाने मे असमथभ कहने ृ ं ू म ें गि भ समझते ह ै । ” अनेक प्रयासों के बाद माध् यवम क स् तर तक मातिाषाओ को वश क्षा का माध् यम ृ ं बनाया गया ह।ै लेवक न आि म ें िी उच् च वश क्षा और वि श्ि वि द्यालय वश क्षा का माध् यम अग्रेिी ही ह।ै ं इसकी ििह से िारत म ें मातिाषाओ की वस् थ वत दयनीय ह।ै िारत ज्ञान-वि ज्ञान की दृवष् ि से आि िी ृ ं वपछड़ा हआ ह।ै िब तक मातिा
षा को उच् च वश क्षा का माध् यम नहीं बना वद या िाता, तब तक न तो ु ृ मातिाषा का वि कास हो सकता ह ै ना ही दशे की उन् नवत हो सकती ह।ै मातिाषा को उच् च वश क्षा का ृ ृ माध् यम न बनाया िाने के पीछे यह तकभ वद या िाता ह ै वक िारत म ें उच् च स् तर की पाठय पस् तकों का ् ु अिाि ह।ै मातिाषा को उच् च वश क्षा का माध् यम
बनाया िाने के बाद ही मातिाषा म ें पस्त कें वल खी िा ृ ृ ु सकती ह।ै िैगोर ने इस सबि म ें वल खा ह ै वक “मातिाषा िाषा माध् यम होने पर उसम ें पाठय पस् तकें अपन े ृ ् ु ं ं आप वल खी िाएगी। िब िह माध् यम नहीं ह ै तो इसम ें पाठय पस् तकें क् यों वल खी िाएगी । पाठय पस् तकों ् ् ु ु के अिाि म ें मातिाषाओ को माध् यम न बनाना िसै ी ही बात ह ै िसै े िक्ष उस समय तक न बढे िब तक ृ ृ ं पते पहले न वन कल आये या सरर ता अपना प्रिाह रोक द ें िब तक उसके तिों का वनमाभण नहीं हो िाये’’ अत: मातिाषा को उच्च वशक्षा का माध्यम बनाकर उसे अविक सम्प्पन्न और समद्शाली बना सकते ह ैं । ृ ृ अभ्याि प्रश्न 8. वशक्षा के माध्यम के रूप म ें मातिाषा के महत्ि को प्रवतपावदत करें । ? ृ 9. गािी िी के मातिाषा के सदिभ म ें विचारों को स्पष्ट करें । ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 63 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 4.6 सारांश हमारे वशक्षा व्यिस्था के साथ गड़बड़ी यह ह ै वक हम पाठयपस्तक, कक्षाए और परीक्षा व्यिस्था की ् ु ं वतकड़ी के दबाि के चलते हमारी विद्यालयी वशक्षा म ें बहत कछ ह ै विससे बच्चे िवचत रह िाते ह।ैं ु ु ं विद्यालय म ें िाषा से सम्प्बद् बिे-बिाए पाठयिम के चलते बच्चा अपनी स्िािाविक, िीिन्त िाषा से ् ं ं दर होता चला िाता ह।ै वशक्षक होने के नाते यह िी हमारे वलए विचारणीय मद्दा ह ै वक विद्यालयी वशक्षा ु ू के तहत इस्तेमाल होने िाली िाषा की औपचाररकता का सम्प्बन्ि बच्चे की अनौपचाररक िाषा की िीिन्तता के साथ कै से स्थावपत वकया िाए । 4.7 सदं ि भ ग्रंथ सची ू 1. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पिना: रािकमल। ु ू ं 2. कमार, प्रो. कष्ण , दीिार का इस्तेमाल और अन्य लेख, एकलव्य का प्रकाशन, पष्ठ 18-19 ृ ृ ु 3. चॉम्प्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑि वस्कनसभ िबभल वबहवे ियर. लैंग्ििे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्प्स्की, एन. 1996, पॉिसभ एड प्रोस्पेक्िस: ररिलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल ् ं ं ं ू आडभर, वदलली: माध्यम बक्स। ु 5. चॉम्प्स्की, एन. 1965, आस्पेक्िस ऑप़ि द थ्योरी ऑि वसनिेक्स, कैं वब्रि: एम. आइ.भ िी. ् प्रेस। 6. चॉम्प्स्की, एन. 1986, नॉलेि ऑि लैंग्ििे , न्ययाकभ : प्रागर। ू 7. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेि प्लावनग इन इवडया, वदलली: हरनाम पवब्लशसभ। ं ं ु 8. हबै रमास, ि.े 1998, ऑन द प्रागमवै िक्स ऑि कम्प्यवनििे शन, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. ु प्रेस। 9. हबै रमास, ि.े 1998, दी विलॉवस्िकल वडसकोसभ ऑि मॉडवनभिी, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. प्रेस। 10. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, िारत सरकार 1966 ं 11. नेशनल पॉवलसी ऑन एिके शन, 1986, मानि ससािन विकास मत्रालय, वशक्षा वििाग, नयी ु ं ं वदलली। 12. पिनायक, डी. पी. 1981, मलिीवलगएवलज्म एड मदर-िग एिििे शन, ऑक्सपिोडभ ु ु ं ं ं यवनिवसभिी प्रेस। ू 13. पिनायक, डी. पी. 1986, स्िडी ऑि लैंग्ििे ेि, ए ररपोिभ, नयी वदलली: एन.सी.इ.भ आर.िी। 14. ररचड्रस, ि.े सी. 1990, दी लैंग्ििे िीवचग मवै रक्स, कै वब्रि :कै वब्रि यवनिवसभिी प्रेस। ू ं ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 64 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 15. सायर, डी. 1924, दी इपैिक्ि ऑप़ि बैवलगअवलज्म ऑन इिेवलिसें , वब्रविश िनभल ऑप़ि ु ं ं साइकोलॉिी 14:25-38 16. श्रीिर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदलल ी, मनोहर। ु ं ं ं 17. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगणद), िारतीय िाषा विज्ञान ु ं ं ् की िवमका, वदलली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 18. वसह, वनरिन कमार (2008 ).माध्यलमक लिद्याियों म ें लहदी लशक्षण.ियपर: रािस्थान वहदी ु ु ं ं ं ं ग्रथ अकादमी ं 19. यनेस्को, 2003, एिििे शन इन ए मलिीवलगएल िलडभ, यनेस्को एिके शन पोविशन पेपर, ू ु ु ू ु ं पेररस। 20. व्योगोत्सकी, एल. एस. 1978, माइड इन सोसायिी: दी डेिलपमिें ऑप़ि हायर ं साइकोलॉविकल प्रोसेस, ििैं वब्रि, मॉस: हािडभ यवनिवसभिी प्रेस। ू 21.
‘प्राथवमक शाला म ें वशक्षक, वगििाई-ग्रथमाला-10’,
प्रकाशक: मािेसरी-बाल-वशक्षण- ु ं ं सवमवत, रािलदसे र (चरू) ु 22. इस िबे साइि को िरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 23. Kenner, C. (2000) Home Pages: Literacy Links for Bilingual Children. Stoke-on-Trent: Trentham Books. 24. Dubey, Pramila (2006). Teaching of English. Jaipur: Shiksha prakashan 25. Mukharjee, H.D. (2013). Education for fullness. Uk: Routledge 4.8 वनबिात्मक प्रश्न ं 1. मातिाषा के महत्त्ि का उललेख कीविए । ृ 2. मातिाषा वशक्षण के उद्दश्े यों का िणनभ करो । ृ 3. “वशक्षा का माध्यम मातिाषा होनी चावहए । ” इस कथन पर अपने विचार का उललेख करो। ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 65 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 5 - मानक भाषा के रूि में विद्यालयी भाषा की िवि की गवतकी बनाम घर की भाषा या बोली के िवि की गवतकी, न्यूनता या कमी का वसद्ाांत , वनरांतरता या गैर वनरांतरता का वसद्ाांत (Power dynamics of the 'Standard' Language as the School Language vs. Home Language or 'Dialects'; (Deficit Theory; Discontinuity Theory) 5.1 प्रस्त ािना 5.2 उद्दश्े य 5.3 मानक िाषा के रूप में विद्यालयी िाषा की शवक्त-गवतकी बनाम घर की िाषा 5.4 मानक िाषा एि घर के िाषा के मध्य द्वन्द को कम करने में वशक्षक की िवमका ू ं 5.5 वनरतरता एि गैर वनरतरता का वसद्ात ं ं ं ं 5.6 न्यनता या कमी का वसद्ात ू ं 5.7 साराश ं 5.8 शब्द ािली 5.9 सदिभ ग्रथ सची ू ं ं 5.10 वनबिात् मक प्रश्न ं 5.1 प्रस्त ावना िाषा एक सािन ह ै विसके द्वारा मनष्य अपने िािों या विचारों को अविव्यक्त करता ह ै । िाषा िन्मिात ु नहीं होती ह ै , इसका प्रयोग कहने , वलखने या सके त के उद्दश्े य से वकया िाता ह ै । यह सतत विकास के ं िम द्वारा प्रा्त वकया गया होता ह ै । दसरे शब्दों में यह कहा िा सकता ह ै वक िाषा मानि की सामाविकता ू एि बौवद्कता के गि भ से उत्पन्न होता ह ै । इसके द्वारा मानि आि आवथभक, िैज्ञावनक , राष्रीय सामाविक ं एि अन्तराष्रीय सिी क्षेत्रों म ें अपने विचार के आदान- प्रदान म ें समथभ ह ैं । िाषा मनष्य के वलए एक ध्िवन ु ं सके त की तरह ह ै । इसका विचारों के वलये िी प्रयोग वकया िाता ह,ै इसी कारण मनष्य सबको परख पाता ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 66 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ह ै । अब यहा एक बहत महत्िपण भ प्रश्न उठता ह ै वक क्या वनरथभक शब्द सके त िी िाषा ही ह ै । इस प्रश्न के ु ू ं ं उत्तर म ें यह कहा िा सकता ह ै वक िाषा का प्रयोग सापेक्ष स्तर म ें वलया िाता है । िाषा समाि सापेक्ष होती ह ै एि मानि सापेक्ष िी । समाि एि मानि से वििक्त होकर इसका न कोई महत्ि ह ै और न ही कोई ं ं अवस्तत्ि ही। िाषा मानि द्वारा अवितभ एक अनठी उपलवब्ि ह ै । यह अवितभ उपलवब्ि पीढ़ी दर पीढ़ी ू सप्रेवषत सम्प्िविभत और पररष्कत होती रहती ह ै । िाषा के सन्दि भ म ें एक उललेखनीय बात यह ह ै वक इसके ृ ं विकास के विविन्न वसद्ात एि आयाम ह ैं , प्रस्तत इकाई म ें हम गवतशील मानक िाषा की शवक्त के ु ं ं साथ- साथ िाषा विकास के दो महत्िपण भ वसद्ात न्यनता या कमी का वसद्ात , वनरतरता या गरै ू ू ं ं ं वनरतरता का वसद्ात का अध्ययन करेंग े । ं ं 5.2 उद्दश्े य इस इकाई का अध्ययन के पिात आप- 1. वनरतरता एि गरै वनरतरता वसद्ात के महत्ि को समझ सकें ग े । ं ं ं ं 2. वनरतरता के वसद्ात को समझ सकें ग े । ं ं 3. न्यनता या कमी का वसद्ात के महत्ि को समझ सकें ग े । ू ं 4. िाषा के शवक्त - गवतकी को समझ पायेंग े । 5. मानक िाषा एि घर की िाषा सम्प्बवित द्वन्द को समझ सकें ग े । ं ं 5.3 मानक िाषा
के रूप म स्कूल के िाषा की शवक्त- गवतकी बनाम घर की ें िाषा (Power Dynamics of Standard Languageas the School Language Vs Home Language) आइये, अब िाषा का मानक रूप
वकसे कहते ह ैं इस पर विचार विमश भ वकया िाय। वकसी िा
षा क्षेत्र के पढ़े वलख े और वशष्ट लोग विचार- विवनमय, कायभ व्यापार , वशक्षा, सावहत्य, िम भ , रािनीवत आवद म ें विस िाषा का प्रयोग करते ह ैं िह उस क्षेत्र की मानक (standard) या आदश भ िाषा मानी िाती ह।ै यह िाषा व्याकरण सम्प्मत होती ह ै तथा इसम ें एकरूपता िी पायी िाती ह।ै यही िाषा वशक्षा का माध्यम
होती ह।ै सामान्यतः इसी म ें पात्र पवत्रकाए िी प्रकावशत होती ह।ै इसका क्षेत्र विकवसत होता ह।ै उस सम्प्बवन्ित ं िाषा क्षेत्र के अन्य िाषा बोलने िाले लोग िी इसी िाषा को बोलने और वलखने का प्रयत्न करते हैं। मानक िाषा का वलवखत रूप उसके मौवखक रूप की अपेक्षा अविक पररष्कत होता ह,ै परन्त उसका ृ ु वलवखत रूप रूप उसके मौवखक रूप की अपेक्षा अविक स्िािाविक होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 67 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िब बालक अपने विद्यालय के प्रारवम्प्िक िषो म ें दो या दो से अविक िाषाओ को समझने की योग्यता ं विकवसत करता ह ै तो िह िाषा को वकसी न वकसी प्रकार से प्रयोग करने की गहन समझ विकवसत कर लेता ह ै । िह िाषा को वनखारने के वलए और अविक अभ्यास करता ह,ै विसके वलए पररवस्थवतयााँ उसके वशक्षक द्वारा तैयार करके दी िाती ह ैं । िह अपनी मातिाषा और अन्य िाषा म ें तलना करता ह ै । शोि ृ ु से पता चला ह ै वक दो िाषाओ को िानने िाले व्यवक्त म ें विचारने की क्षमता अविक होती ह ै । इसके ं पररमाण स्िरूप िह सचनाओ के विविन्न पहलओ पर विचार कर सकता ह ै । ू ु ं ं प्राथवमक वशक्षा का सबसे अविक महत्त्िपण भ पहल ह ै बच्चे का िाषा सीख पाना। यह तो सिी ू ू मानते ह ैं । यह सबसे अविक महत्त्िपण भ पहल क्यों ह?ै इसके ििाब म ें बहत सारी बडी सची बनाई िा ु ू ू ू ै़ सकती ह।ै िाषा ही बच्चे के वलए स्रोत का काम करती ह ै और िह अविव्यवक्त का िी औज़ार ह।ै इसी से होकर वशक्षा के अन्य पहलओ तक बालक की पहचाँ हो पाती ह ै विज्ञान (Science), गवणत (Maths), ु ु ं सामाविक अध्ययन (Social Studies) आवद िाषा म ें ख़ासतौर पर औपचाररक ि पस्तक की िाषा पर ु पयाभ्त क्षमता हावसल वकए वबना समझ पाना सिि ही नहीं ह।ै िाषा के माध्यम से ही बालक विचार का ं ताना-बाना बन पाता ह,ै वनणभय के वलए तकभ गढ़ पाता ह।ै यह िवमका मात्र माध्यम के रूप म ें नहीं ह।ै ु ू अक्सर इस पर विचार करते समय िाषा की िवमका को समझने म ें एक ख़ास तरह का एकागीपन िी आ ू ं िाता ह।ै िसै े यह समझा िा सकता ह ै वक िाषा एक सािन ह ै िो इन सब उद्दश्े यों के वलए आिश्यक ह ै ऐसा सािन िो हथौड़े की तरह या विर दीिार पर चढ़ने के वलए उसके साथ खड़ी एक सीढी की तरह। ै़ विस प्रकार उद्दश्े य छत पर चढ़ना ह ै ि सीढ़ी सािन उसी प्रकार िाषा िी एक सािन है, सप्रेषण ं (Communication) का, विचार कर पाने का, विज्ञान, गवणत आवद सीखने, वनणयभ ले पाना, आवद का एक सािन ह ै िो हमसे इतर ह ै आरै सबके वलए एक सा ही ह।ै यह बात एक तरह से ठीक ह ै पर अिरी ह ै ू असल म ें वितनी ठीक ह ै उतनी ग़लत िी ह।ै िाषा सािन होने के साथ-साथ बहत कछ और िी ह ै यह ु ु हमारे व्यवक्तत्ि ि अहम का आिार ह,ै हमारी सस्कवत ि समझ का िडार िी ह।ै ृ ं ं इसान अपने आस-पास की दवनया को के िल महसस ही नहीं करता; िह उसे अपने वलए अथभ ू ं ु िी दते ा ह।ै मझ े आसमान म ें बादल वदखता ह ै इस दखे ने स े म ैं िो महसस करता ह,ाँ मरे े मवस्तष्क पर िो ू ु ू प्रिाि पड़ता ह,ै मरे े काम पर िो प्रिाि पडता ह,ै िह आसमान म ें अलग-अलग आकार ि रगिाली ं आकवत मात्र दखे ने का प्रिाि नहीं ह ै िह मरे े और के बीच और उस समय की मरे ी वस्थवत के ृ बीच अतःविया का प्रिाि ह।ै िमडलीकरण के दौर म ें आि एक िाषा का ज्ञान पयाभ्त नहीं ह ै । बच्चे की ू ं ं मातिाषा दसरी िाषा के विकास म ें महत्त्िपण भ िवमका वनिाती ह ै । िो बालक अपनी मातिाषा की ृ ृ ू ू मिबत नींि के साथ विद्यालय िाता ह,ै उसम ें विद्यालयी िाषा की उच्च योग्यता विकवसत होती ह ै । ू िारत म ें आि िी उच्च वशक्षा मातिाषा म ें प्रदान नहीं की िाती ह ै । इससे मातिाषा अग्रेिी की तलना में ृ ृ ु ं वपछड़ती िा रही ह ै । लेवकन अग्रेिी के महत्त्ि को नाकारा नहीं िा सकता ह ै । विश्व के दसरे दशे ों के ं ू व्यवक्तयों से सपकभ करने के वलए अग्रेिी की आिश्यकता होती ह ै । अग्रेिी के वबना दसरे लोगों की ं ं ं ू िािनाओ, विचारों और अविव्यवक्त को समझा नहीं िा सकता ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 68 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् एक और महत्त्िपण भ मसला ह ै िाषा ि बोली का विसे हम मानक िाषा बनाम घर की िाषा का द्वन्द का ू कह सकते ह।ैं विस िी मच पर िाषा वशक्षण या िाषा के महत्ि की बात होती ह ै यह मसला िरूर उठता ं ह।ै प्रारम्प्ि म ें िब बच्चा अपने घर से विद्यालय आता ह ै उस समय िह के िल घर की िाषा ही बोल पान े म ें सक्षम होता ह ै उस घर की िाषा को बोली का दज़ाभ िी प्रदान वकया गया ह ै । बच्चा तब हीन िािना से ग्रस्
त हो िाता ह ै िब उसे यह बात समझ म ें आती ह ै वक उसकी बोली को दसरे दि े की िाषा समझा िा ू रहा ह ै । ऐसी पररवस्थवतयों म ें िह बच्चा बोलना ही बद कर दते ा ह ै और कठा का वशकार हो िाता ह ै । ु ं ं इसके साथ ही साथ यह माना िाता ह ै वक िाषा तो िह होती ह ै विसका अपना सावहत्य ि व्याकरण होता ह,ै उसक
ी वलवप होती ह,ै िह मानकीकत ि शद् होती ह।ै बच्चा िो िाषा अपने घर से आता ह ै िह िाषा ृ ु नहीं ह ै क्योंवक िह तो एक क्षेत्र विशेष के लोगों द्वारा बोली िाती ह ै ,उसका न सावहत्य ह,ै न व्याकरण और न वलवप । अतः स्कल के पहले वदन से ही बच्चों को मानकीकत और शद् िाषा वसखाने का प्रयास ृ ू ु वकया िाता ह ै और यवद बच्चे अपनी घरेल िाषा का प्रयोग विद्यालय म ें करता ह ै तो उन्ह ें डााँि वदया िाता ू ह।ै बच्चे यह समझ नही पाते वक उन्ह ें डााँिा क्यों िा रहा है? घर म ें आस-पास पररिशे म ें हर तरि िही िाषा बोली िाती ह ै पर स्कल म ें अध्यापक के सामने िब िह बोलता ह ै तो उसे गलत कहा िाता ह ै । ू बात यहीं समा्त नहीं होती ह ै , िसै ा वक हम यह िानते ह ैं वक िाषा व्यवक्त की सस्कवत ि पहचान होती ृ ं ह।ै बच्चे को अपनी घरेल िाषा का उपयोग न करन े दने ा उसकी पहचान ि सस्कवत पर सीिा प्रहार ृ ू ं हातेा ह।ै बार-बार डााँि खाने के कारण िो बच्चे इतनी बातचीत करते ह ैं , िो िीरे - िीरे बात करना ही बन्द कर दते े ह ैं । यवद िाषा
विज्ञान की दृवष्ट से दखे ा िाए तो िी िाषा ि बोली म ें कोई िक़भ नहीं होता । िाषा का िी व्याकरण होता ह ै और बोली का िी। यह बात िरूै़र ह ै वक बोली का व्याकरण
वलवखत रूप में उपलब्ि नहीं होता, वकन्त इसका तात्पयभ यह नहीं ह ै वक व्याकरण हातेा ही नहीं । यही बात सावहत्य पर ु िी लाग होती ह ै । हो सकता ह ै वक कई ’’बोवलयों (िाषाओ)‘‘ म ें वलवखत सावहत्य न हो लवे कन मौवखक ू ं सावहत्य िरूै़र होता ह।ै िोिपरी, अििी , मवै थली-गढ़िाली , कमायनी विन्ह ें हम बोवलयााँ कहते ह ैं उनम ें ु ु ूं तो बहत सावहत्य उपलब्ि ह।ै इसी तरह यह कहा िाता ह ै वक िाषा का क्षेत्र विस्तत होता ह ै और बोली ु ृ एक सीवमत क्षेत्र म ें बोली िाती ह।ै अभ् याि प्रश्न 1. िाषा के मानक रूप से आप क्या समझते ह ैं ? 2. बोली एि िाषा के व्याकरण में क्या अतर ह ै ? स्पष्ट करें । ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 69 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 5.4 मानक िाषा एवं घर के िाषा के मध्य द्वन्द को कम करने म वशक्षक की ें िूवमका: (The Role of Teacher in Reducing the Conflict between Standard Language and Home Language) अब हम यह समझगें े वक स्कल की िाषा एि घर की िाषा म ें सामिस्य कैसे स्थावपत करेंग े और इसम ें ू ं ं वशक्षक की क्या िवमका ह ै – ू 1. बच्चे के पवा अर्जात
ज्ञाि का स्वागतः(Acknowledge the previous knowledge of ू the child) - बच्चा विस क्षेत्र और िाषा से सबि रखता ह ै उससे सबवित िानकारी िी अपने साथ ं ं ं ं लाता ह।ै विद्यालय में आने पर वशक्षक के द्वारा कछ िी पछे िाने पर िह अपने पि भ अवितभ ज्ञान के ु ू ू आिार पर उत्तर बहत हास्यास्पद और किी-किी कछ सोचने और समझने के वलए बाध्य करने ु ु िाला होता ह।ै ऐसे म ें वशक्षक को उसके पि भ अवितभ ज्ञान क
ा स्िागत करने हए ध्यानपिकभ सनते और ु ू ू ु समझते हए स्नेह एि दलार के साथ उसे सीखने का अिसर दने ा होगा। ऐसा करने बच्चे आपस म ें ु ं ु एक-दसरे की िाषा, सस्कार, विचार और मान्यताओ से अनिाने म ें ही पररवचत हो िाते ह।ै इस तरह ं ं ू सरलता से िह बहत सी बातें कब सीख िाते ह ैं और िाषा की िो दीिार ज्ञान अिनभ म ें अडचन बनी ु हई थी कब वगर िाती ह,ै पता ही नहीं चलता और िाषा सीखने की क्षमता विकवसत होती िाती ह।ै ु 2. बच्चे के घर और र्वद्यालय में बोली जािे वाली भाषा के बीच में जडाव:( The link ु between home language and the school language of the child) -बच्चा विद्यालय अपनी एक विशेष िाषा (क्षेत्रीय विशेषता) के साथ आता ह।ै ऐसे म ें वशक्षक को उसकी िाषा और विद्यायलय की िाषा (मानक िाषा) के बीच म ें िड़ाि करते हए उसे िीरे -िीरे सहिता से लेते हए ु ु ु बोिगम्प्यता और मानकता की ओर ले िाना होता ह।ै बच्चे िो िाषा पहले बोलना शरू करत ह ैं ु (मातिाषा या प्रातीय िाषा) उसी म ें उनकी समझ बनती ह ै और उसी म ें ि े अथभ वनकलते ह।ैं ये अथभ ृ ं बच्चों के वलए क्या मायने रखते ह ैं इस को समझना होगा। इसके वलए वशक्षक को कछ अवतररक्त ु महे नत और नयी तैयारी करनी पड़ सकती ह ै लेवकन बच्चों को िाषा वसखाने के वलए यह एक साथभक कदम हो सकता ह।ै इससे वशक्षक को बच्चों को उनकी घर की बोली म ें स्िीकत करते हए उनको नयी ु ृ चीिों को साथभक तरीके स े समझाने म ें मदद वमलेगी। किी-किी ऐसी वस्थवत िी आती ह ै वक घर की और वशक्षण की िाषा एक ही होती ह ै परत िाषा एर क्षेत्रीय प्रिाि अत्यविक होता ह।ै ऐसे म ें पाठ के ु ं सदि भ म ें व्यिहार और अभ्यास के वनयमों का आिारित ज्ञान कराकर अभ्यास से मानकता तक ू पहचाँ ा िा सकता ह।ै ु 3. बच्चे की मातभाषा को प्रोत्िाहि (Encourage the mother tongue of the child) : - ृ मातिाषा को महत्ि दने े से एक विशषे लाि यह होता ह ै वक बच्चे आपस म ें एक-दसरे के
क्षेत्र ृ ू विशेष से पररवचत होते ह ैं और खले -ही-खले म ें सैकडों शब्द सीख िाते ह ै क्योंवक विद्यालय िह स्थान ह ै िहााँ सिी क्षेत्रों के बच्चे आते ह।ैं िारत के सवििान की आठिीं अनसची म ें िवणतभ 22 ु ू ं िाषाए ाँ ह।ैं विद्यालय
आने िाला प्रत्येक बच्चा इन 22 िाषाओ म ें से वकसी-न-वकसी एक िाषा को ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 70 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् समझने िाला होता ह।ै अब यवद दवै नक िरूरत की िस्तओ के नामों का ही अभ्यास कराया िाए ु ं (उदाहरण के वलए-खाना,पहनािा ,त्यौहार) तो इन िाषाओ के वकतने ही शब्द बच्चे सीख िाएगाँ े िो ं अध्ययन म ें सरलता का आिार तो बनेगा ही साथ ही इससे अप्रत्यक्ष रूप से अन्य िारतीय िाषाओ ं का विकास िी होगा। ऐसा िज्ञै ावनक तौर पर माना िी िाता ह ै वक बच्चे के पण भ ज्ञान, िावषक क्षमता ू और मानवसक विकास का सही प्रयोग सामान्यतः मात िाषा म ें ही सिि होता ह ै और बच्चा ज्यादा ृ ं अच्छी तरह समझ पाता ह।ै इससे िावषक और सास्कवतक दरी को पािने म ें िी मदद वमलेगी। िसै े िी ृ ं ू अगर आप वकसी से कह ें वक आप दो-तीन िाषाए ाँ सीख लीविए, तो सरलता से यह वबलकल सिि ु ं नहीं होगा। परन्त उपरोक्त विवि प्रयोग का आिार बनाया िाए तो यह शायद उतना कवठन नहीं होगा ु वितना प्रथम स्तर पर होगा। हम ें यह नहीं िलना चावहय े वक कोई िी िाषा अपनी सहयोगी िाषाओ ू ं के साथ ही विकवसत होती ह।ै बच्चे वक मातिाषा को प्रोत्साहन वमलने पर उसे अपने म ें प्रस्तत करने ृ ु का मौका वमलेगा। हो सकता ह ै शरू म ें िह गलत उच्चारण करे, उसको आप िीरे-िीरे सही करें। ु उसको सिन शवक्त का विकास हो सके , िह अपने को सदि भ से कें वित कर सके और अपनी ृ ं सिनात्मकता को विकवसत कर सके । ृ 4. बच्चे की िहज अर्भव्यर्ि और शैली कों महत्व (The importance of simple expression and style ofthe child) – कई बार वशक्षक अविव्यवक्त की बिाय सही उच्चारण पर अविक बल दते ा ह,ै विससे बच्चा बहत ियिीत हो िाता ह ै और िीिन िर के वलए उस ु अविव्यवक्त क्षमता को खो देता ह ै , िो उसकी अपनी थी साथ ही सहयोग के वबना अवितभ की गयी अविव्यवक्त करने म ें कामयाब िी नहीं हो पाता ह ै । यह बच्चे के वलए गिीर वस्थवत होती ह ै । ऐसे में ं गिीर वस्थवत होती ह ै । ऐसे में वशक्षक को िीरे -िीरे एक-एक करके सशोिन करना होगा, अभ्यास ं ं कराना होगा । िहााँ बच्चा अविव्यवक्त ना कर पाए िहााँ उसे शब्दों का सहारा दके र उसकी अविव्यवक्त क्षमता को विकवसत करना होगा । िसै े ( ष,स,क्ष,श्र ) कछ शब्दों का उच्चारण िो क्षेत्रीय ु प्रिाि के कारण िकभ होता ह ै । 5. व्यवहार और अभ्याि के र्ियमों का ज्ञािः(To make aware withtherules of behaviour and exercise)- बच्चे को व्याकरण के वनयमों के आिार पर िाषा को सही तरीके से वसखाने के प्रयास म ें वशक्षक को चावहए वक ि े बच्चे को व्याकरण की अििारणा को विविि प्रकार के पाठों के सदि भ म ें पहचानना और उसका उवचत प्रयोग करना वसखाए।ाँ ं 6. यत्रवत भाषा िे बचावः(To save him from mechanical language) - िाषा को िणों ् ां और कछ हद तक अथभ के आिार पर तो सीखा िा सकता ह ै परत गहनता और पणतभ ा से नहीं सीखा ु ु ू ं िा सकता क्योवक यत्रित तरीके से कई शब्दों को उस अथभ म ें सप्रेवषत नहीं वकया िा सकता विस ् ं ं अथभ म ें उन्ह ें सप्रेवषत करना होता ह।ै यवद वनयम याद कराने को िाक्य का आिार बनाएगाँ े तो सीखने ं म ें अत्यविक कवठनाई होगी विसम ें िाषा को सहिता से नहीं सीखा िा सके गा। यहााँ अवनिायभ रूप से याद रखना होगा वक व्यिहार और अभ्यास के आिारित वनयमों के अभ्यास के वबना िाषा सीखना ू सिि नही हो पाएगा। ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 71 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इस तरह िाषा वसखाने की प्रविया म ें वशक्षक द्वारा सहिता को आिार बनाकर बच्चे को िीरे -िीरे बेहतर दवनया और ज्ञान से िोड़ने के वलए प्रारि से ही विचरण कराना होगा। यह काम उसके आत्मगौरि और ं ु आत्मविश्वास को ठेस पहचाँ ाए वबना आवहस्ता-आवहस्ता करना होगा। इससे एक लाि यह िी होगा वक ु अपनी िड़ों से वबना िडें रहने के कारण मन म ें अपनी िाषा के प्रवत वकसी प्रकार की हीन िािना महसस ु ू नहीं होगी और ऐसे बच्चे का प्रातीय िाषा, मातिाषा और वशक्षण की िाषा पर पयाभ्त अविकार होगा। ृ ं अभ् याि प्रश्न 3. मातिाषा के प्रोत्साहन के विविन्न तरीके कौन कौन से हो सकते ह ैं ?प्रकाश डालें । ृ 4. बच्चे के घर की िाषा एि विद्यालय के िाषा म ें िडाि कै से स्थावपत कर सकते ह ैं ? ु ं 5. मानक िाषा एि स्कल की िाषा म ें सामिस्य स्थावपत करने म ें वशक्षक की क्या िवमका ह?ै स्पष्ट ू ू ं ं करें । 5.5 वनरंतरता एवं गैर वनरंतरता का वसद्ातं : (Theory of Continuity and Discontinuity) मानि प्रिावत म ें िाषा की उत्पवत्त कई सवदयों के वलए विद्वानों के विचार विमश भ का विषय रहा ह।ै इस के बाििद, मानि िाषा का परम मल या उम्र पर कोई आम सहमवत नहीं बन पायी ह।ै प्रत्यक्ष साक्ष्य के ू ू अिाि म ें इस समस्या का अध्ययन एक कवठन विषय बन गया ह ै । पररणामस्िरूप , िाषा का मल ू अध्ययन करने के इच्छक विद्वानों ऐसे िीिाश्म ररकॉडभ, परातावत्िक साक्ष्य , समकालीन िाषा विवििता, ु ु मानि िाषा और अन्य िानिरों के बीच मौिदा सचार की प्रणावलयों के बीच िाषा के अविग्रहण का ू ं अध्ययन, और तलना के रूप म ें सबत के द्वारा अन्य प्रकार से अनमान लगाने की कोवशश करनी चावहए। ु ू ु कई महानिािों का तकभ ह ै वक िाषा का उद्भि शायद आिवनक मानि व्यिहार से सबवित ह,ैं लेवकन ु ु ं ं इस सबि के वनवहताथभ और वदशात्मकता के बारे म ें थोड़ा सदेह िी ह।ै ं ं ं अनिििन्य सबत के इस कमी के कारण बहत से विद्वानों न े इसे गिीर शोि का विषय नहीं ु ु ू ं माना ह ै । 1866 म ें पेररस के िाषाई सोसायिी (Linguistic Society) इस विषय पर वकसी िी मौिदा ू या िविष्य की बहस पर प्रवतबि लगा वदया। यह प्रवतबन्ि बीसिीं सदी की आवखर तक पविमी दवनया ं ु के बहत से दशे ों म ें प्रिािशाली बना रहा ह ै । आि के इस यग िाषा का प्रादिाभि कै से हआ होगा की ु ु ु ु बहत सी पररकलपनाए ह ैं ।इस के बाििद, चालसभ डाविनभ के वसद्ात द्वारा एक सौ साल पहले, प्राकवतक ु ृ ू ं ं चयन द्वारा िाषा के विकास के विषय पर कसी अिकलों का िी दौर चला। इसके बाद से 1990 के दशक ु में, िाषाविदों (Linguists), परातत्िविदों (Archeologists), मनोिज्ञै ावनक (Psychologists), ु मानिविज्ञावनयों ने नए तरीकों के साथ समािान करने का प्रयास वकया ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 72 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् मानिीय िाषा की उत्पवत्त (Orgin of human language) एि बात व्यिहार के माध्यम के ं रूप म ें इसे लेंबग भ द्वारा दो िागों म ें वििावित वकया गया । पहले िाग के वसद्ात को वनरतरता का वसद्ात ं ं ं कहा गया िो वक मलतः डाविनभ के वसद्ात से प्रिावित वसद्ात ह ै । दसरे िाग को गरै वनरतरता का ू ं ं ं ू वसद्ात कहा गया िो इस बात का समथभन करता था वक मानिीय िाषा को दसरे िीि ितओ की िाषा से ु ं ं ं ू तलना नहीं की िा सकती तथा इसे समझने के वलए मानिीय िाषा का ही अध्ययन करना पडेगा । गरै ु वनरतरता के वसद्ात को समझने के वलये के िल िाषा की उत्पवत को समझना ही पयाभ्त नहीं ह ै । हालावक ं ं ं इस बात पर अिी चचाभ एि वििाद दोनों ह ै वक िाषा ग्रहण करने की क्षमता अन्तवनभवहत ह ै या िातािरण ं कें वित। कछ विद्वानों का यह तकभ ह ै वक इस तरह की क्षमता अन्तवनभवहत ह ै क्योंवक वचम्प्पान्िीयों को ु मानिीय पररिशे म ें रख े िाने के बाद िी उनम ें िाषा की योग्यता पैदा नहीं हो पाती िबवक एक गग े एि ूं ं बहरे बच्चे को िब हम मानिीय पररिशे में रखते े ह ै तो िी िह बोलने एि सनने की एक िविल सरचना ु ं ं बना लेता ह ै । िाषा की उत्पवत्त को वनम्प्न मान्यताओ के आिार पर समझा िा सकता ह ै - ं 1. " वनरतरता वसद्ात " ऐसे मान्यताओ पर बने हए ह ै विसम ें इस बात पर सहमवत ह ै वक िाषा ु ं ं ं एकाएक अवस्तत्ि म ें नहीं आयी होगी क्योंवक िाषा की सरचना बहत ही िविल होती ह ै । ु ं वनरतरता वसद्ात इस बात पर बल दते ा ह ै वक िाषा का प्रादिाभि अिश्य ही हमारे पिभिों के ू ं ं ु पहले प्री- िाषाई वसस्िम से विकवसत हआ होगा । ु 2. गरै वनरतरता वसद्ात इसके विपरीत होकर अपनी बात कहता ह ै । इस वसद्ात की मान्यता ह ै वक ं ं ं िाषा िैसी अनठी विशषे ता को हम गरै - मनष्यों के साथ तलना नहीं कर सकते । यह वसद्ात इस ू ु ु ं बात पर िी बल दते ा ह ै वक अिश्य ही इस तरह की योग्यता का विकास मानि विकास के िम म ें ही हआ होगा । ु अभ् याि प्रश्न 6. वनरतरता के वसद्ात से आप क्या समझते ह ैं ? ं ं 7. गरै - वनरतरता के वसद्ात से आप क्या समझते ह ैं ? ं ं 8. वनरतरता एि गरै - वनरतरता के वसद्ात म ें अतर स्पष्ट करें । ं ं ं ं ं 5.6 न्यूनता या कमी का वसद्ांत (Deficit Theory) न्यनता या कमी का वसद्ात इस बात पर बल दते ा ह ै वक कोई िी िाषा का एक मानक स्िरुप (Standard ू ं Form) होता ह।ै इस मानक स्िरूप के वहसाब से ही वकसी लेख या िावषक िकड़े की गणित्ता को िाचा ु ु ं या परखा िाता ह ै । िसै ा वक िाषा का स्ििाि होता ह ै वक उसका प्रिाह सिदभ ा कवठनता से सरलता के उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 73 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् तरि होता ह ै । इसी प्रिाह के कारण िाषा का स्िरुप मानक स्िरूप से दर हो िाता ह ै । विस िाषा म ें इस ू प्रिाह का आिाि होता ह ै िह िाषा मतप्राय हो िाती ह ै । कई विद्वानों ने अपने - अपने तरि से इस ृ न्यनता को पररिावषत करने की कोवशश की ह ै । ू इसे यवद हम िडें र और िाषा के द्वन्द के रूप म ें दखें ें तो बात ज़्यादा स्पष्ट होगी। िसै ा वक नाम से ही यह दृवष्टगोचर ह ै वक न्यनता या ह्रास का वसद्ात म ें परुषों की िाषा मवहलाओ की िाषा से इत्र दखे ने की ू ु ं ं सकलपना वनवहत ह।ै यह वसद्ात इस मान्यता पर आिाररत ह ै वक िाषा की सरचना परूष के वन्ित ु ं ं ं (Male- Centred) ह ै और इसम ें मवहलाओ के वलए अवत न्यन स्थान प्रदान वकया गया ह ै । यह मान्यता ू ं इस बात पर बल दते ी ह ै वक परुषों की िाषा मवहलाओ की िाषा से हर प्रकार से बेहतर एि श्रेष्ठ ह ै ु ं ं ।साइमन दी बआ की पस्तक द सेके ण्ड सेक्स (The Second Sex ,1949) न्यनता/ ह्रास के वसद्ात का ु ु ू ं सावहत्य के क्षेत्र म ें एक श्रेष्ठ नमना कहा िा सकता ह ै । ू आिवनक िाषा विज्ञान के क्षेत्र म ें न्यनता या ह्रास के वसद्ात का प्रथम नमना डेनमाकभ के ियै ाकरण ु ू ू ं िस्े पसभन (1922) के कायभ में स्पष्टतः वदखाई दते ा ह ै । िेस्पसभन महोदय के अनसार मवहलाओ की ु ं बातचीत का पैिनभ मवहलाओ के बातचीत के पैिनभ से वबलकल इतर होता ह।ै अपने अवतमहत्िपण भ पस्तक ु ू ु ं “द ग्रामर ऑि इवग्लश” (The grammar of English, 1922) के चौथे अध्याय विसका शीषकभ ं ह ै म ें उसने चार महत्िपण भ िावषक विविन्नता रेखावकत की। ये चारों वनम्प्नवलवखत ह ैं ू ं 1. The Verbal Taboo 2. Competing language 3. Conversastional Language 4. Conservative Language अपनी इसी पस्तक म ें आग े चलकर िस्े पसभन ने बताया वक परुष िा
षा के प्रयोग म ें मवहलाओ से बेहतर ु ु ं होते ह।ैं उसने कहा वक मवहलायें बहत ही सीवमत शब्दों (Limited Vocabulary)का प्रयोग करती ह।ैं ु उनकी बातचीत के दौरान Pretty, Nice, Just, Very and Sweet िसै े विया विशेषणों (Adverb) का प्रयोग आविक्य म ें होता ह
।ै इसके विपरीत िह यह िी बात कहता ह ै वक मवहलायें नए शब्दों का आविष्कार िी करती ह ैं । आग े चल कर अपनी इसी पस्तक म ें उसने यह िी प्रवतपावदत िी वकया वक ु मवहलायें अपने शब्द प्रयोग में परुषों की अपेक्षा अविक रूवढ़िादी (Conservative) होती ह।ैं अन्त में ् ु िस्े पसभन ने मवहलाओ के िावषक दृवष्ट से िावषक तीव्रता के स्थान पर िावषक मद होन े की मान्यता की ं ं पवष्ट की । ु उदाहरण के वलए – परूष की िाषा को मानक िाषा एि मवहला की िाषा को गरै - मानक िाषा ु ं समझा िाता ह ै । िस्े पसभन के बाद एक अन्य िाषाविज्ञानी विसका नाम रावबन लैकाि (Robin Lakoff) था ने 1975 म ें Language and Woman's Place नामक पस्तक म ें अपनी इस बात को प्रवतपावदत ु वकया ह।ै अिनी बात रखते हए लैकाि महोदया ने यह बात प्रवतपावदत वकया ह ै वक चाँवक समाि में ु ू मवहलाओ का स्थान परुषों की अपेक्षा वनम्प्नतर आकााँ गया ह ै इसवलए िाषा पर िी यही बात लाग होती ु ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 74 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ह ै । िाषा का स्ििाि िी वनरपेक्ष न हो कर परूष के वन्ित हो िाता ह।ै उसने उसी पवशमी िारणा को बल ु प्रदान वकया विसकी शरुआत िस्े पसभन ने वकया था । रावबन लैकाि िो वक एक अमरे रकी िाषाविद था ु ने एक अवतमहत्िपण भ दस्तािज़े सन 1973 म ें Language and Woman's Place शीषकभ लेख ू प्रकावशत हआ िो वक कालातर म ें सन 1975 म ें एक पस्तक के रूप म ें िी प्रकावशत हआ। इस पस्तक के ु ु ु ु ं प्रकाशन को िाषा एि िेंडर के अध्ययन म ें एक मील का पत्थर तथा एक नयी सदी का प्रारम्प्ि माना िाता ं ह ै । इस पस्तक का महत्ि इसवलए िी ज़्यादा ह ै क्योंवक िस्े पसभन के कायभ से इतर यह िे वमवनज्म की दसरी ु ू िारा से प्रिावित थी इसवलए यह िे वमवनस्ि वलग्िीस्ि का बेहतरीन नमना िी माना िाता ह ै । िास्तविकता ् ू ं म ें मवहला मवक्त की िावन्त का आह्वान अमरे रका म ें सन 1970 म ें हो चका था। इसम ें इसवलए िी लैकाि ु ु के विचारों का महत्ि बढ़ िाता ह ै क्योंवक प क्योंवक पहले चल रह े आदोलन के विचारों को और अविक ं बेहतर बनाए िाने म ें उपयोगी वसद् हआ। लैकाि के अनसार चवक मवहलायें समाि म ें हावशए पर रहीं ह ै ु ु ूं इसवलए िावषक रूप से उतनी मिबत नहीं हो पायी वितनी की परूष ह ैं । ू ु लैकाि के पस्तक तीन मख्य उद्दश्े य थे ु ु i. िाषा क्या बता सकती ह ै , लैंवगक असमानता के बारे म ें िो वक िाषा म ें मौिद ह ै । ू ii. क्या िाषाविद सामाविक असमानता को िाषा म ें सिार करके ठीक कर सकते ह।ैं ु iii. िाषा और िेंडर पर शोि कायभ को बढ़ािा दने ा । अभ् याि प्रश्न 9. न्यनता या कमी के वसद्ात से आप क्या समझते ह ैं ? ू ं 10. न्यनता वसद्ात को लेकर के लैकाि महोदय के विचारों को स्पष्ट करें । ू ं 5.7 सारांश िाषा, मानि की सामाविकता एि बौविकता के गि भ से उत्पन्न होता ह ै । इसके द्वारा मानि आि ं आवथभक, िज्ञै ावनक , राष्रीय, सामाविक एि अतराभष्रीय सिी क्षेत्रों म ें अपने विचार के आदान- प्रदान म ें ं ं समथभ ह ैं । िाषा मनष्य के वलए एक ध्िवन सके त की तरह ह ै । इसका विचारों के वलये िी प्रयोग वकया ु ं िाता ह ै इसी कारण मनष्य सबको परख पाता ह ै । वनरतरता वसद्ात ऐसे मान्यताओ पर बने हए ह ै विसमें ु ु ं ं ं इस बात पर सहमवत ह ै वक िाषा एका- एक अवस्तत्ि म ें नहीं आयी होगी क्योंवक िाषा की सरचना बहत ु ं ही िविल होती ह ै । वनरतरता वसद्ात इस बात पर बल दते ा ह ै वक िाषा का प्रादिाभि अिश्य ही हमारे ं ं ु पििभ ों के पहले प्री- िाषाई वसस्िम से विकवसत हआ होगा । गरै वनरतरता वसद्ात इसके विपरीत होकर ु ू ं ं अपनी बात कहता ह ै । इस वसद्ात की मान्यता ह ै वक िाषा िसै ी अनठी विशेषता को हम गरै - मनष्यों के ू ु ं साथ तलना नहीं कर सकते । यह वसद्ात इस बात पर िी बल दते ा ह ै वक अिश्य ही इस तरह की योग्यता ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 75 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् का विकास मानि विकास के िम म ें ही हआ होगा । न्यनता या कमी का वसद्ात इस बात पर बल दते ा ह ै ु ू ं वक कोई िी िाषा का एक मानक स्िरुप
होता ह ै । इस मानक स्िरूप के वहसाब स े ही वकसी लेख या िावषक िकड़े की गणित्ता को िाचा या परखा िाता ह ै । िसै ा वक िाषा का स्ििाि होता ह ै वक उसका ु ु ं प्रिाह सिदभ ा कवठनता स े सरलता के तरि होता ह ै । इस
ी प्रिाह के कारण िाषा का स्िरुप मानक स्िरूप से दर हो िाता ह ै । ू 5.8 शब्द ावली 1. र्िरतरता र्िद्ात : वनरतरता वसद्ात ऐसे मान्यताओ पर बने हए ह ै विसम ें इस बात पर सहमवत ह ै ु ां ां ं ं ं वक िाषा एकाएक अवस्तत्ि में नहीं आयी होगी क्योंवक िाषा की सरचना बहत ही िविल होती ह ै । ु ं वनरतरता वसद्ात इस बात पर बल दते ा ह ै वक िाषा का प्रादिाभि अिश्य ही हमारे पिभिों के पहले ू ं ं ु प्री- िाषाई वसस्िम से विकवसत हआ होगा । ु 2. गैर र्िरतरता र्िद्ात : गरै वनरतरता वसद्ात इसके विपरीत होकर अपनी बात कहता ह।ै इस वसद्ात ां ां ं ं ं की मान्यता ह ै वक िाषा िसै ी अनठी विशेषता को हम गरै - मनष्यों के साथ तलना नहीं कर सकते । ू ु ु यह वसद्ात इस बात पर िी बल दते ा ह ै वक अिश्य ही इस तरह की योग्यता का विकास मानि ं विकास के िम म ें ही हआ होगा । ु 5.9 संदि भ ग्रंथ सची ू 1. अग्रिाल, पी. और सिय कमार 2000 (सपावदत), वहदी दशे काल में ु ं ं ं 2. चॉम्प्स्की, एन. 1957, वसनिेवक्िक स्रक्चस,भ दी हगे : मौिेन क.। ं 3. चॉम्प्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑि वस्कनसभ िबभल वबहवे ियर. लैंग्ििे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्प्स्की, एन. 1972, लैंग्ििे एड माइड, न्ययाकभ : हारकोिभ ब्रास िोिानोविच। ू ं ं 5. चॉम्प्स्की, एन. 1996, पॉिसभ एड प्रोस्पेक्िस: ररिलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल ् ं ं ं ू आडभर, वदलली: माध्यम बक्स। ु 6. चॉम्प्स्की, एन. 1965, आस्पेक्िस ऑप़ि द थ्योरी ऑि वसनिेक्स, कैं वब्रि : एम. आइ.भ िी. ् प्रेस। 7. चॉम्प्स्की, एन. 1986, नॉलेि ऑि लैंग्ििे , न्ययाकभ : प्रागर। ू 8. चॉम्प्स्की, एन. 1988, लैंग्ििे एड प्रॉब्लम्प्स ऑप़ि नॉलेि, ििैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी.। ं 9. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेि प्लावनग इन इवडया, वदलली: हरनाम पवब्लशसभ। ं ं ु 10. हबै रमास, ि.े 1998, ऑन द प्रागमवै िक्स ऑि कम्प्यवनििे शन, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. ु प्रेस। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 76 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 11. हबै रमास, ि.े 1998, दी विलॉवस्िकल वडसकोसभ ऑि मॉडवनभिी, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. प्रेस। 12. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पिना: रािकमल। ु ू ं 13. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, िारत सरकार 1966 ं 14. नेशनल पॉवलसी ऑन एिके शन, 1986, मानि ससािन विकास मत्रालय, वशक्षा वििाग, नयी ु ं ं वदलली। 15. पिनायक, डी. पी. 1981, मलिीवलगएवलज्म एड मदर-िग एिििे शन, ऑक्सपिोडभ ु ु ं ं ं यवनिवसभिी प्रेस। ू 16. पिनायक, डी. पी. 1986, स्िडी ऑि लैंग्ििे ेि, ए ररपोिभ, नयी वदलली: एन.सी.इ.भ आर.िी। 17. ररचड्रस, ि.े सी. 1990, दी लैंग्ििे िीवचग मवै रक्स, कै वब्रि :कै वब्रि यवनिवसभिी प्रेस। ू ं ् 18. सायर, डी. 1924, दी इपैिक्ि ऑप़ि बैवलगअवलज्म ऑन इिेवलिसें , वब्रविश िनभल ऑप़ि ु ं ं साइकोलॉिी 14:25-38 19. श्रीिर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदलल ी, मनोहर। ु ं ं ं 20. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगणद), िारतीय िाषा विज्ञान ु ं ं ् की िवमका, वदलली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 21. यनेस्को, 2003, एिििे शन इन ए मलिीवलगएल िलडभ, यनेस्को एिके शन पोविशन पेपर, ू ु ु ू ु ं पेररस। 22. िायगोत्सकी, एल. एस. 1978, माइड इन सोसायिी: दी डेिलपमिें ऑप़ि हायर ं साइकोलॉविकल प्रोसेस, ििैं वब्रि, मॉस: हािडभ यवनिवसभिी प्रेस। ू 23. िमील, िी. 1985, रेस्पोंवडग ि स्िडेंि राइविग, िी. इ.भ एस. ओ. एल. त्रौमावसक, 19.1 ू ू ं ं 24. इस िबे साइि को िरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 5.10 वनबिात्म क प्रश्न ं 1. मानक िाषा एि घर के िाषा के द्वन्द को कै से कम वकया िा सकता ह?ै स्पष्ट कीविए । ं 2. वनरतरता वसद्ात एि गरै - वनरतरता वसद्ात म ें क्या अतर ह ै स्पष्ट कीविए । ं ं ं ं ं ं 3. गरै - वनरतरता वसद्ात के सप्रत्यय को स्पष्ट कीविए । ं ं ं 4. कमी या न्यनता के वसद्ात से आप क्या समझते ह ैं ? स्पष्ट कीविए । ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 77 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 6 - अनदु िे न की भाषा 6.1 प्रस्तािना 6.2 उद्दश्े य 6.3 अनदशे न की िाषा ु 6.4 गहिाषा ृ 6.5 विद्यालय-िाषा 6.6 अनदशे न की माध्यम िाषा का चयन ु 6.6.1 कारण 6.6.2 समस्याएाँ 6.6.3 समािान 6.7 वद्वतीय िाषा पाठ को समझने में विद्यावथभयों की कवठनाइयों को सलझाना ु 6.8 शब्दािली 6.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 6.10 सदिभग्रथ सची ि उपयोगी पाठयसामग्री ् ू ं ं 6.11 वनबिात्मक प्रश्न ं 6.1 प्रस्तावना वपछली इकाई में हमने पढ़ा ह ैं वक िाषा एक विषय ही नही बवलक वशक्षण का माध्यम िी होती ह।ै िाषा विहीन िातािरण म ें वशक्षा की प्रविया की कलपना नही की िा सकती ह।ै िाषा वशक्षा के माध्यम के साथ साथ वशक्षा का कारण िी ह।ै हम िानते ह ै वक वशक्षा वचतन की प्रविया का अग ह ै और माध्यम िी ं ं ह।ै इस प्रकार वशक्षा और वचतन अन्योन्यावश्रत ह।ै उिर वशक्षा और िाषा दोनो सस्कवत के अविन्न अग ह ै ृ ं ं ं िो वक विद्यालय और पाठयिम की उत्पवत्त को आिार प्रदान करती ह।ै िसै ा वक सस्कवतक सरक्षण, ृ ् ं ं विकास ि हस्तातरण वशक्षा की प्रविया के मलित लक्ष्य ह।ैं वशक्षा की आिश्यकता य उत्पवत्त का कारण ू ू ं िाषा के उद्भि की प्रविया म ें समावहत ह।ै यवद िाषा नही होती तो शायद आि वशक्षा की आिश्यकता िी नही पड़ी होती। वशक्षा के उद्दश्े य, पाठयिम, माध्यम आवद तत्िों की अििारणा म ें िाषा की ् आिारित िवमका ह।ै विनकी चचाभ हम इससे पि भ की इकाइयों म ें कर चके ह।ै ू ू ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 78 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् लेवकन इस इकाई म ें हम िाषा के एक प्रमख पहल िो वक वशक्षा य अनदशे न के माध्यम के रूप म ें िाषा ु ू ु का अध्ययन करेंग।े अनदशे न के माध्यम के चनाि के क्या कारण ह?ै कौन सी िाषा अनदशे न के वलए ु ु ु उवचत िाषा हो सकती ह?ै कौन कौन सी शवक्तया विद्यालयी िाषा के चयन म ें वनणाभयक होती ह?ै आवद ं प्रश्नों के उत्तर हम इस इकाई म ें खोिने की कोवशश करेंगे। इसके आलािा हम उन विवियों ि प्रविवियों की चचाभ करेंग े विनके द्वारा आप अपने विद्यावथभयों को उन पाठों को समझने म ें आने िाली कवठनाइयों का समिान कर सकें ग े िो पाठ उनकी गहिाषा य स्थानीय िाषा म ें नही होते ह।ै गह िाषा ि स्थानीय िाषा ृ ृ को वशक्षा सावहत्य म ें सामान्यतः प्रथम िाषा कहा िाता ह।ै प्रथम िाषा से इतर िो िी िाषा ह ै उसे वद्वतीय िाषा कहा िाता ह।ै िसै े बहिाषाई विद्यालय ि समाि म ें ततीय ि चतथभ िाषा का िी अवस्तत्ि ह ै परत ु ृ ु ु ं वकसी िी प्रकार की भ्रावत से बचने के वलए हम यहााँ प्रथम िाषा से इतर पाठ (पाठयिस्त) को वद्वतीय ् ु ं िाषा य गरै स्थानीय िाषा पाठ से ही सबोवित करेंग।े ं 6.2 उद्दश्े य इस इकाई को को पढ़ने के उपरात आप; ं अनदशे न की िाषा की अििारणा को समझ सकें गे; ु गहिाषा की अििारणा को स्पष्ट कर सकें ग;े ृ विद्यालयी िाषा की अििारणा को स्पष्ट कर सकें गे; सदि भ विशेष म ें गहिाषा और विद्यालयी िाषा म ें अतर स्पष्ट कर सकें ग;े ृ ं ं विद्यालय म ें माध्यम िाषा के चनाि म ें कौन-कौन सी शवक्तया अपनी िवमका अदा करती इसको ु ू ं समझ सकें ग े और स्मालोचना कर सके गें; अध्यापन के समय समवचत माध्यम िाषा का चयन कर सकें ग;े ु वद्वतीय िाषा पाठ को समझने म ें विद्यावथभयों की कवठनाइयों का समािान कर सकें गे। 6.3 अनुदशन की िाषा े अिी तक हमनें वशक्षा म ें िाषा की िवमका और वशक्षण की माध्यम के रूप म ें िाषा का अध्ययन वकया ू ह।ै अनदशे न शब्द इस इकाई म ें नया शब्द ह।ै हो सकता ह ै वक आपने इस शब्द को वकसी अन्य खड में ु ं पढा हो, नही तो पढ़ेंग।े यद्यवप इस इकाई की विषय िस्त से अलग ह ै तथावप हम समझ के प्रिाह को ु बनाये रखने के वलए अनदेशन के सम्प्प्रत्यय को पहले समझ लेते ह।ै सािारण शब्दों म ें अनदशे न ु ु वशक्षण(Teaching) की िहद प्रविया का एक अग य प्रकार कहा िा सकता ह।ै सज्ञान रह े वक ृ ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 79 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अनदशे न(Instruction) के अलािा अनबिन(Conditioning), प्रवशक्षण (Training), और ु ु ं मतवशक्षण (Indoctrination) वशक्षण के प्रारूप य प्रकार कह े िाते ह(ै Mangal & Mangal, 2010)। अनदशे न का ध्येय विद्यावथभयों म ें ज्ञान सचार करना और उनकी समझ को बढ़ाना होता ह।ै यवद आप ु ं कक्षाकक्ष प्रविया पर थोड़ा ध्यान दगें े तो समझ िायेंग े वक कक्षा वशक्षण का िो प्रारूप है िह मख्यरूप से ु अनदशे न ही ह।ै अतः अनदशे न वशक्षण का वनकितम अग ह।ै वशक्षा सावहत्य म ें िी वशक्षण और अनदशे न ु ु ु ं शब्दों को एक दसरे के स्थान पर प्रयोग कर वलया िाता ह,ै िबतक वक इन शब्दों के अतर का बोि करान े ं ू की आिश्यकता िसै ा कोई विवशष्ट सदि भ न हो। यहााँ इस इकाई म ें िी हमारा ध्येय विद्यालय म ें माध्यम ं िाषा पर चचाभ करना ह।ै अतः हम िी वशक्षण और अनदशे न शब्दो म ें से वकसी िी शब्द को प्रयोग करते ु हए अपनी चचाभ को आग े बढ़ाएगाँ ।े िसै ा वक हमने इससे पि भ पढ़ा ह ै वक िाषा विहीन िातािरण म ें वशक्षण ु ू सम्प्िि नही ह ै तो हम समझ सकते ह ै वक अनदशे न वक प्रविया िाषा विशषे पर वनिरभ करती ह।ै ु अिी तक विविन्न सदिों में हई चचाभओ म ें हमने िाना ह ै वक अनदशे न का एक मात उद्दश्े य ु ृ ु ं ं विद्यावथभयों म ें समझ का विकास करना होता ह।ै अथाभत बच्चे सीख े इस वलए हम वशक्षक अनदशे न/वशक्षण की विविन्न तकनीवकयों का प्रवशक्षण प्रा्त करते ह।ै वसिभ वशक्षण-अविगम की विवियों, ु प्रविवियों, सत्रों की समझ रखने मात्र से हम सिल वशक्षक नही बन सकते ह।ै य े सिी उपकरण हमारे ू वशक्षण की नौका के शवक्तशाली पतिार हो सकत े ह ै पर क्या पानी के बहाि की समझ के वबना क्या हम अच्छे नाविक बन सकते ह?ै िाषा उस िलरावश के समान ह ै विसपर वशक्षण की, अविगम की, और वचतन की नाि चलती ह।ै अतः िाषा तो वशक्षा का आिारित तत्ि ह।ै इसवलए एक वशक्षक को और ू ं विद्यालय व्यिस्था को अनदशे न की िाषा के चयन म ें पयाभ्त सिदे नशील, वििके शील और न्यायसगत ु ं ं होना चावहए। वशक्षण-अविगम की प्रविया में वकसी एक िाषा का प्रयोग होना तो तय ही है, पर सबसे िविल प्रश्न अब यह उठता ह ै वक यह कौन सी िाषा हो सकती है? इस प्रश्न के उत्तर के साथ कई विकलप ह ै िसै े वक गह-िाषा, स्थनीय िाषा, विद्यालयी िाषा, प्रशासवनक िाषा, विद्यावथभयों की िाषा, वशक्षक ृ की िाषा, बािार (व्यिसाय) की िाषा इत्यावद। इन सिी िाषा विकलपों को दो प्रमख िागो म ें िगीकत ृ ु वकया िा सकता ह।ै ये दो रूप ह ै गह-िाषा और विद्यालय-िाषा। हम इन दो िाषा रूपों म ें अपनी चचाभ को ृ कें वित करके रखगे ।े िसै े एक बात पि भ म ें ही समझ ले वक ये कोई िाषा के प्रकार नही ह ै सदि भ विशषे म ें ये ू ं दो अलग अलग िाषाए ाँ हो सकती ह ै य एक ही िाषा हो सकती ह ै , य अनेक िाषाएाँ िी हो सकती ह(ै बहिाषाई पररप्रेक्ष्य में)। अब हम इन दोनो गहिाषा और विद्यालय-िाषा की अििारणाओ को समझ ु ृ ं लेते ह।ै 6.4 गृहिाषा गहिाषा शब्द अपने आप म ें आत्म-व्याख्यात्मक शब्द ह।ै आप समझ सकते ह ैं वक यह िह िाषा ह ै िो ृ विद्याथी के घर म ें प्रयोग की िाती ह।ै वशक्षा सावहत्य म ें इसे गह-िाषा, मातिाषा, प्रथम-िाषा, स्थानीय ृ ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 80 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िाषा, आस-पड़ोस आवद कई नामों से सबोवित वकया िाता ह।ै वशक्षक होने के नात े हम ें मातिाषा की ृ ं विशेषताओ को िानना िरूरी होता ह।ै यह िह िाषा ह ैं विसम ें हम (हमारे विद्याथी िी) सबसे अविक ं अतविभ या करते ह,ैं य सबसे अविक प्रयोग करते ह।ैं हम इस िाषा म ें वसिभ अविक प्रिािशाली और ं त्रविरवहत िक्ता ही नहीं होते ह ैं बवलक यह िाषा हमारी पहचा
न िी होती ह।ै आप अनिि कर सकते ह ैं वक ु ु िब किी आप उत्तराखड के बाहर वक यात्रा पर होते ह ैं उदाहरणाथभ बस म ें होते ह,ैं रेन म ें होते ह,ैं य बािार ं म ें होते ह ैं और यात्रा के दौरान आप वकसी ऐसे व्यवक्त से वमलते ह ैं िो आपकी गढ़िाली या कमाऊनी ु िाषा का प्रयोग
करता ह,ै तब आप उसकी तरि एक सहि वखचाि महसस करते ह।ैं उसे िानने की ू ं कोवशश करते ह।ैं यवद आप को समय वमलता ह ै तो आप उससे बातचीत िी करना चाहते ह।ैं अथाभत आप सहि ही वकसी को िाषा प्रयोग से ही पवहचान लेते ह।ै आप अपनी मात-िाषा म ें बात करते समय किी ृ थकान महसस नहीं करते ह,ै िबतक वक थकान का कोई अन्य कारण न हो। गह-िाषा का सबि वकसी ृ ू ं ं बहसख्यक या अलपसख्यक िाषा से नहीं ह।ै यह वसिभ कछ लोगों द्वारा बोली िाने िाली िाषा हो सकती ु ु ं ं ह ै और यह हिारों करोड़ों लोगों द्वारा बोली िाने िाली िाषा िी हो सकती है। गह िाषा का सबि स्थान ृ ं ं विशेष से िी नहीं होता ह ै उत्तराखड के वकसी स्थान पर बोली िाने िाली िाषा उत्तराखड के उन लोगों के ं ं वलए िी मात-िाषा/गह-िाषा ही कहलाएगी िो उत्तराखड से बाहर वकसी अन्य राज्य य अन्य दशे म ें रहन े ृ ृ ं लग े ह।ै अतः वकसी क्षेत्र विशेष म ें वशक्षण करने से आपको यह नही मान लेना चावहए वक वसिभ स्थानीय िाषा-िाषी पररिारों के बच्चे ही आपकी कक्षा म ें आयेंगे। आत्मव्याख्यात्मक होते हए िी गहिाषा की ु ृ अििारणा सदि भ विशेष म ें िविल
हो िाती ह।ै किी किी विद्यावथभयों की गहिाषा को पवहचानना बहत ु ृ ं ही कवठन कायभ हो िाता ह।ै यहााँ हम गह-िाषा की कछ विशेषताओ को रेखावकत करते ह;ैं ृ ु ं ं िाषा बच्चों के घर म ें प्रयोग की िाने िाली िाषा ह;ै यह िह िाषा ह ै िो व्यवक्त की सामाविक-सास्कवतक पवहचान बन िाती ह;ै ृ ं इस िाषा म ें हमारे स्िरयत्र (िाषा के प्रयोग म
ें आने िाले यत्र) बड़ी सहिता से कायभ करते ह;ैं ं ं यह अनौपचाररक िाषा होती ह ै विसके व्याकरण की वचता प्रयोग के समय हमें नहीं करनी होती ं ह;ै प्रशासवनक िाषा की तलना म ें गह-िाषा बहत ही सहि बोलचाल की और दवै नक िाताभलाप ु ृ ु की प्रकवत िाली िाषा होती ह;ै ृ यह िह िाषा ह ै विसे बच्चा सिाभविक िानता है; इस िाषा म ें विद्याथी के सीखने की सिाभविक सिािनाए ाँ होती ह;ै ं यह समझ का उत्तम माध्यम कही िाती ह;ै इसे प्रथम-िाषा य मातिाषा कहा िाता ह।ै क्योंवक हमारा प्रथम पररचय इस िाषा से अपनी मााँ ृ के साथ (प्रथम सबवियों के साथ िी) प्रथम िावषक-वियाकलापों म/ें के द्वारा होता ह।ै ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 81 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् िब बच्चा हमारे सामने कक्षा म ें आता ह ै तब िह सामाविक िाताभलाप के मलित कौशलों म ें सक्षम होता ू ू ह।ैं हम वशक्षकों को नहीं िलना चावहए वक विद्यालय पयाभिरण से बाहर िी समािीकरण
के माध्यम से ू बच्चों का बौवद्क-सामाविक विकास होता ह।ै बच्चे म ें प्रथम िाषा के माध्यम से सामाविक िाताभलाप की क्षमताए विकवसत होती ह।ैं सामाविक अन्तरविया से िाषा का और िाषा के माध्यम से सामाविक, ं सिगे ात्मक, सज्ञानात्मक आवद पक्षों के विकास का माग भ प्रशस्त होता ह।ै बच्चों म ें इस िाषाई विकास क
ा ं ं उनकी आग े की वशक्षा म ें बड़ा महत्िपण भ उपयोग हो सकता ह।ै हम वशक्षक बच्चों की गह-िाषा का प्रयोग ृ ू बच्चों को समझने म ें तथा उनको समझाने में, दोनों ही प्रकार से कर सकते ह।ै यवद बच्चों की गह-िाषा ृ हमारी िाषा य विद्यालय की िाषा से अलग होती ह ै तब िी हम ें इसके प्रवत उपेक्षा का व्यिहार नहीं करना चावहए। हम िानते ह ैं वक िाषा मानवसक, सिगे ात्मक, ि सामाविक विकास की आिारवशला होती ं ह।ै
विद्यालय पि भ और विद्यालय प्रिशे के उपरात िी बच्चे का कछ विकास इन सिी क्षेत्रों म ें सामाविक ू ु ं िातािरण म ें रहते हए हो रहा होता ह।ै यवद हम बच्चे पर विद्यालय क
ी िाषा आरोवपत करते ह ैं और ु उसकी गह-िाषा के प्रयोग को अिरुद् कर दते े ह ैं तो यह उसी प्रकार होगा वक हम अपने पास के सैकड़ो ृ वसक्कों को िें ककर वकसी एक वसक्के की खोि म ें वनकल पड़े। 6.5 ववद्यालय-िाषा
विद्यालय िाषा का मख्य प्रयोग विद्यालय के पररसर में वशक्षकों और बच्चों के बीच िाताभलाप, ु विद्यावथभयों के मध्य आपसी िाताभलाप और विद्याथी समहों म ें िाताभलाप के माध्यम के रूप म ें होता ह।ै ू विद्यालय
िाषा वकसी िी वशक्षा व्यिस्था की रीड होती है, क्योंवक सपण भ शवै क्षक िातािरण
विद्यालय ू ं िाषा पर वनिरभ करता ह।ै यह विद्यालय िाषा विद्या-ििन में िातायन की तरह कायभ करती ह।ै इससे पि भ ू की इकाई म ें आप पढ़ चके ह ै वक िाषा विहीन िातािरण म ें वशक्षण-अविगम प्रविया सिि नहीं ह।ै ु ं विद्यालय क
ा सचलन िाषा पर उसी प्रकार वनिरभ करता ह ै िसै े वक हमारा िीिन हमारी िमवनयों म े रक्त ं के प्रिाह पर वनिरभ करता ह।ै अतः इस बात से आप समझ सकते ह ै वक एक शद्, समथभ और सपन्न िाषा ु ं विद्यालय के वलए अविक उपयोगी होती ह।ै विद्यालय िह स्थान ह ै िहा विविन्न पररिारों, समदायों और सस्कवतयों के बच्चे ज्ञान की प्राव्त ृ ु ं ं के वलए आते हैं, और ये बच्चे अपनी विविन्न िाषाओ के साथ आते ह ैं इन बच्चों की िाषाए स्कल की ू ं ं िाषा से साम्प्य िी रख सकती ह ैं और विन्न िी हो सकती हैं। ितभमान के बहिावषक/बहसास्कवतक ु ु ृ ं िातािरण म ें सिी बच्चों की िाषाए
विद्यालय की िाषा से साम्प्य रख ें ऐसा सिि नहीं ह।ै कोई िी ं ं विद्यालय व्यिस्था एक य दो िाषाओ को ही अपनी माध्यम िाषा के रूप म ें चन सकती ह।ै िाषा वसिभ ु ं व्यवक्त की ही पहचान नहीं होती ह ै यह विद्यालय की िी पहचान होती है। कोई िी विद्यालय हो वकसी िी प्रकार का हो उसकी एक प्रमख माध्यम िाषा तो होती ही ह ै विसे हम विद्यालय-िाषा कहते ह।ैं आप देख ु सकते ह ैं वक विद्यालयों का मलयाकन उनकी माध्यम-िाषा के आिार पर हो रहा ह।ै कछ विद्यालय वसिभ ू ु ं अग्रेिी माध्यम के नाम पर ही अविक वशक्षण-शलक प्रा्त करते ह।ैं सरकारी विद्यालय
ों म ें माध्यम के रूप ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 82 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् म ें प्रायः राज्य की प्रशासवनक िाषा ही होती ह।ै
विद्यालय-िाषा पाठयपस्तकों म,ें विद्यालय सचनाओ म ें ् ु ू ं (सचनापट्ट पर), परीक्षाओ म,ें कक्षा-कक्ष अतविभ या में, वशक्षकों के वनदशे न इत्यावद विद्यालयी व्यिहारों ू ं ं म ें प्रयोग होती ह।ै इसे हम अकादवमक िाषा िी कहते ह।ैं विद्यालय िाषा कािी औपचाररक िाषा होती ह।ै इसका िाक्य-विन्यास शब्द प्रयोग दवै नक बोलचाल की िाषा से अलग होता ह।ै वहदी गह-िाषा के ृ ं रूप म ें और वहदी विद्यालय िाषा के रूप म ें थोड़ा अतर हो िाता ह।ै विद्यालय म ें प्रयोग की िाने िाली ं ं वहदी एक मानक वहदी होती ह।ै एक ही विद्यालय क
े विविन्न वशक्षकों म ें आप अनदेशन की िाषा का ु ं ं अतर दखे सकते ह।ै किी-किी तो दखे ा गया ह ै वक वशक्षकों द्वारा प्रयक्त वहदी मानक से इतर और इतनी ु ं ं अविक दरूह हो िाती ह ै वक बच्चे वशक्षकों की बातों को समझने के वलए मानवसक सघष भ करते रह िाते ं ु ह।ैं हम वशक्षकों को ज्ञान रहना चावहए वक यवद बच्चे हमारी िाषा ही नहीं समझ पा रह े ह ैं तो हमारे कक्षा म ें सिी वियाकलाप व्यथभ ही सावबत होंगे। अतः कक्षा म ें प्रयक्त अनदशे न की िाषा का चयन बहत ही ु ु ु साििानी से बच्चों के सज्ञानात्मक स्तर के अनरूप करना चावहए। ु ं 6.6 अनुदशन की माध्यम िाषा का चयन े विद्यालय म ें अनदशे न की िाषा का चयन करना अत्यविक िविल प्रविया ह।ै क्योंवक अनदशे न की िाषा ु ु के चयन के विन्न-विन्न आिार हो सकते ह ै विनम ें से मानिीय अविकार, सििै ावनक अविकार, ं सामाविक-सास्कवतक पररप्रेक्ष्य, आवथभक पररप्रेक्ष्य आवद प्रमख ह।ै इसके आलािा िाषाई समानता का ृ ु ं मद्दा िी सामने आता ह ै िो वक अत्यविक िविल ह ै विसकी चचाभ इस इकाई की विषयिस्त के क्षेत्र से ु ु बाहर की बात ह।ै वशक्षक होन े के नाते हम े इतना याद रखना िरूरी ह ै की विश्व की विविन्न िाषाओ में ं असमानता तो ह ै पर यह असमानता िाषा की सरचना और प्रणाली के स्तर पर ही ह;ै कायाभत्मक स्तर पर ं सिी िाषाए ाँ समान ह।ै अथाभत कोई िी िाषा अपने पररिशे विशषे म ें माध्यम िाषा का कायभ करन े म ें सक्षम होती ह।ै िाषाविज्ञान में हए शोिों से यह वसद् हो चका ह ै वक सिी िाषाए ाँ विस वकसी सस्कवत ु ृ ु ं विशेष म ें ि े प्रयोग की िाती ह ै उस सस्कवत म ें सप्रेषण के वलए सक्षम और अविक व्यिहाररक माध्यम ृ ं ं होती ह।ै कछ मायनों म ें स्थानीय िाषाएाँ अविक सक्षम िी कही िा सकती ह।ै उदाहरण के वलए आप कोई ु ऐसी िनस्पवत को ले िो वसिभ आपके उत्तराखड म ें पाई िाती हो, उस िनस्पवत का नाम तथा उसके गणों ु ं का िणनभ करने की क्षमता वितनी आपकी स्थानीय िाषा म ें होगी उतनी विश्व की अन्य िाषाओ म ें नही ं होगी। िसै े वकसी िी िाषा को आतररक रूप से कम य अविक सम्प्पन्न/उिरभ नही कहा िा सकता ह ै ं (Coulmas, 1991)। िब यह बात वसद् ह ै वक विश्व की सिी िाषाए ाँ वकसी पदाथभ, और विचार को व्यक्त करने म ें सक्षम ह ै तब हम वशक्षकों का और वशक्षण सस्थाओ का वकसी एक िाषा पर विशषे आग्रह क्यों ं ं होता ह?ै इसका क्या कारण ह ै वक अवििािक और विद्याथी के द्वारा वकसी एक िाषा (उदाहरणाथभ अग्रेिी) माध्यम की मााँग क्यों रहती ह?ै ये प्रश्न हमको विद्यालय-िाषा चयन के कारणों की समीक्षा के ं वलए प्रेररत करते ह।ै आइये अब हम िाषा चयन के कारणों पर चचाभ करते ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 83 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् क. कारण: वकसी विशेष िाषा के प्रवत अविक लगाि होना य उसको शवैक्षक सस्थाओ में विशषे ं ं महत्ि वदया िाना एक िविल पहल ह।ै हम इसका एक रेखीय कायभ-कारण सम्प्बि वसद् नही कर ू ं सकते ह।ै िाषा असमानता के पीछे विविन्न रािनैवतक, सामाविक, आवथभक, शवै क्षक आवद शवक्तया सविय होती ह,ै विनकी चचाभ अग्रवलवखत वबन्दओ म ें की गई ह:ै − ं ं ु आपने वपछली इकाई म ें पढ़ा ही ह ै वक आवथभक गवतविवियों का य बािार का िाषा के विकास पर प्रिाि पड़ता ह।ै गााँि-गााँि म ें अग्रेिी माध्यम के विद्यालयों का बढ़ता हआ ु ं प्रचलन आवथभक िगत की िाषाई मााँग का द्योतक ह।ै अग्राँ ेिी के उदाहरण के अलािा िी िाषा प्रयोग म ें बािार के प्रिाि का एक व्यिहाररक उदाहरण अतराभष्रीय कम्प्पवनयों द्वारा ं ं क्षेत्रीय िाषाओ म ें सेिा कें िों को खोलने का ह।ै िारत म ें अग्रेिों के समय से ही अग्रेिी ं ं ं व्यािसावयक और प्रशासवनक िाषा का दिाभ हवसल कर चकी थी। स्ितत्रता के उपरात िी ु ं ं अग्रेिी का अतरराष्रीय बािार पर प्रिाि होने के कारण इसको पणतभ या छोड़ा नही िा ू ं ं सकता। पनः उदारीकरण और िश्वै ीकरण के दौर म ें अग्रेिी िाषा म ें वनपण कवमकभ ों की मााँग ु ु ं बड़ गई ह।ै सिी व्यिसावयक (Professional) पाठयिमों म ें और कछ सस्थानों म ें गैर ् ु ं व्यिसावयक पाठयिमों म ें िी सम्प्प्रेषणात्मक अग्रेिी की कक्षाओ का आयोिन वकया िान े ् ं ं लगा ह।ै आि हमारे दशे के लगिग सिी राज्यों के व्यािसावयक वशक्षा सस्थानों म ें माध्यम ं िाषा के रूप म ें अग्राँ ेिी को ही अपनाया िाता ह।ै िाषा पर रािनीवतक वनणयभ ों का िी असर पढ़ता ह।ै आपको याद होगा की 90 के दशक म ें अवििावित उत्तप्रदशे (उत्तराखड को वमलाकर) के मख्यमत्री मलयम वसह िी का वहदी के ु ु ं ं ं ं प्रवत विशेष रािनैवतक लगाि था विसके कारण िे अग्रेिी को विद्यालयों में, लोक सेिा ं आयोग की परीक्षाओ म ें िैकवलपक विषय का स्थान ही वदए थे। िबवक कालातर म ें कें ि ं ं सरकार द्वारा गवठत राष्रीय ज्ञान आयोग अग्रेिी के अध्ययन को कक्षा एक (प्रथम) से प्रारम्प्ि ं करने की सस्तवत कताभ ह ै (NKC, 2009)। हमारे सवििान वनमाभताओ ने िी सवििान के ु ं ं ं ं अनच्छेद 343 के द्वारा अग्रेिी को वसिभ पिह िष भ के वलए प्राशासवनक िाषा का दिाभ वदया ु ं ं था। आशा थी वक तबतक वहदी पण भ रूप से इस कायभ के वलए सक्षम हो िायेगी। लेवकन ू ं प्रशासवनक िाषा अविवनयम, 1963 के द्वारा अग्रेिी को कें ि स्तर पर सह-प्रशासवनक िाषा ं के रूप म ें स्थायी स्थान द े वदया गया। इस प्रकार अग्रेिी के साथ अब दो शवक्तया रािनैवतक ं ं और आवथभक िड़ गई विसका असर वशक्षण सस्थानों म ें अग्रेिी के प्रयोग और पठन-पाठन ु ं ं पर सकारात्मक रूप से पड़ा ह।ै रािनीवतक इच्छाशवक्त का यह असर होता ह ै वक परे िारत में ू वसिभ तवमलनाड ही एक ऐसा राज्य ह ै िहा एक िी निोदय विद्यालय नही ह।ै क्योंवक इन ू ं विद्यालयों म ें अवनिायभ रूप से वत्रिाषा-सत्र का अनगमन वकया िाता ह,ै और तवमलनाड इस ू ु ू सत्र को नही मानता ह।ै इस सत्र को ना मानने का एक कारण तवमल िाषा से लगाि के साथ ू ू साथ वहन्दी िाषा के विरोि की रािनीवत िी ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 84 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वकसी िाषा के मानविकी, सामविक, तकनीकी, िज्ञै ावनक सावहत्य की सम्प्पन्नता िी उस िाषा के शवै क्षक ि सामाविक स्थान का वनिाभरण करती ह।ै सन 1835 म ें मकै ाले ने िी इसी आिार पर अग्रेिी माध्यम
विद्यालयों को वित्तीय सहायता देने की सस्तवत की थी। यद्यवप यह ु ं ं आि वसद् हो चका ह ै वक सिी िाषाएाँ सम्प्प्रेषण के वलए समान रूप से सक्षम होती ह ै तथावप ु विद्यालय
ी और प्रशासवनक िाषा के चयन म ें यह एक प्रमख तकभ ह ै वक अग्रेिी िाषा अविक ु ं सम्प्पन्न िाषा ह।ै इसके वलए स्थानीय िाषा के समथभकों, वशक्षकों और लेखकों की विम्प्मदे ारी बनती ह ै वक ि े अपनी िाषा को अतराभष्रीय स्तर की िाषाओ के समान सम्प्पन्न बनाये विससे ं ं वक बच्चों को मातिाषा
माध्यम से वशक्षा शलि हो सके । ृ ु वकसी िाषा के माध्यम िाषा के रूप म ें प्रयोग के कछ ििै ावनक कारण िी होते ह।ै हमारे ु सवििान में अनच्छेद 350A के माध्यम से प्राििान ह ै वक िाषाई अलपसख्यकों के बच्चों ु ं ं की प्राथवमक स्तर तक की वशक्षा के वलए अनदेशन का माध्यम
बच्चों की मातिाषा ही ृ ु हो(Govt. of India, 2007 )। पनः वशक्षा के अविकार अविवनयम, 2009 की िारा ु 29(2f) म ें प्राििान वकया गया ह ै वक िहा तक व्यिहार म ें सम्प्िि हो अनदेशन की िाषा ु ं बच्चों की मात-िाषा ही हो(Govt. of India, 2009)। इससे पि भ िी राष्रीय पाठयचयाभ की ृ ् ू रूपरेखा 2005 म ें िी मात-िाषा म ें अनदशे न पर िोर वदया गया ह ै (NCERT, 2005, p. ृ ु 37)। ख. िमस्याए:ाँ अनदशे न की िाषा के वनिाभरण म ें अनेकानेक समस्याए ाँ आती ह।ै यह हम िानते ह ै ु वक कोई िी
विद्यालय, प्रशासन इकाई य सरकार कछ वनवित िाषाओ म ें सगमता से वनयवमत ु ु ं कायभ सम्प्पादन कर सकती ह।ै वद्विाषी विद्यालय तो वमल िाते ह ै पर बहिाषी विद्यालय की ु कलपना ही की िा सकती ह।ै सिी बच्चों को उनकी मातिाषा म ें वशक्षा उपलब्ि कराना वकसी ृ एक विद्यालय क
े अदर ही सवनवित करना सम्प्िि नही ह।ै पररणामत: बच्चों की मात-िाषा म ें ृ ु ं वशक्षा के अिसर उप्लब्ि न होने से य तो बच्चे स्कल छोड़ दते े ह ै य असिल हो िाते ह।ै आि ू िी विश्व म ें पाच से सात करोण के बीच ऐसे बच्चे ह ै िो विद्यालय से िवचत ह ै (Ball, 2014)। ं ं बोलना बच्चों की स्िािाविक विया ह ै पर विद्यालय का िाषाई िातिरण अलग होने से बच्च े अक्सर शात रहने लगते ह।ै इस दघिभ ना म ें हम वशक्षकों का िी बड़ा योगदान रहता ह।ै दखे ा गया ं ु ह ै वक िब किी बच्चे आपनी मातिा
षा का प्रयोग कक्षा म ें करते ह ै तो वशक्षकों का अग्रह ृ रहता ह ै वक ि े विद्यालयी िाषा का प्रयोग ही करें। कछ गरै -शासकीय अग्रेिी माध्यम ु ं विद्यालयों म ें तो अथभदण्ड िी वलया िाता ह।ै िबवक सरकारी विद्यालयों म ें राज्य की प्रशासवनक िाषा ही विद्यालय की माध्यम िाषा होती ह।ै सरकार की यह एक पररसीमा िी कही िा सकती ह ै और िरूरत िी। कोई राज्य अपने क्षेत्र
विशेष म ें बोली िाने िाली सिी िाषाओ म ें वशक्षा उपलब्ि नहीं करा सकता ह।ै इनम ें से अविकतर तो उपिाषाए ाँ ही
होती ह ै ं िसै े गढ़िाली, िोिपरी, बदले खडी आवद। इन उपिाषों म ें पयाभ्त शवब्दक और शलै ीगत अतर ु ुं ं ं होता ह ै िसै े उत्तर प्रदशे के िोिपरी क्षेत्र के ग्रामीण बच्चों को विशषे प्रयत्न के द्वार
ा विद्यालय ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 85 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् म ें प्रयोग की िाने िाली वहदी िाषा सीखनी पड़ती ह ै क्योंवक अिी तक िोिपरी िाषा को एक ु ं अलग पण भ मानक िाषा का दिाभ नही वमला ह।ै कछ ऐसी वस्थवत गढिाल और कमाऊ क्षेत्र के ू ु ु ं बच्चों के साथ िी होती ह।ै हमने पढा िी ह ै वक सबसें बेहतर अविगम मातिाषा के माध्यम से ही होता ह।ै आि ृ विविन्न शोिों से वसद् हो चका ह ै वक विशषे रूप से प्राथवमक स्तर पर प्रथम िाषा साक्षरता और ु अविगम के वलए सबसे बेहतर विकलप होती ह ै (UNESCO, 2008)। अतः िब हम प्रथम िाषा/गहिाषा को विद्यालय म ें रोक दते े ह ै तो हम सीखने के अिसरों कम कर दते े ह।ै बच्चों के ृ सीखने म ें कवठनाइयों को बढ़ाते ह ै न वक उनका समािान करते ह।ै इस प्रकार हम वशक्षक अपनी मल विम्प्मदे ारी िो वक बच्चो वक अविगम समस्याओ
का समािान ह ै उससे ििक िाते ह।ै उिर ू ं दसरी ओर हम बच्चों म ें हीन िािना का विकास करते ह।ै आप सोच रह े होंग े कै से? हमने पढ़ा ह ै ू वक िाषा व्यवक्त की पवहचान होती ह।ै यह गहिाषा ही होती ह ै विसम ें हमरी अवस्मता, सस्मरण, ृ ं सस्कार आवद, अथाभत सम्प्पणभ सस्कवत वनवहत होती ह।ै िब
हम बच्चे की गहिाषा को वमिान े ृ ृ ू ं ं की कोवशश करते ह ै तब हम उसकी पवहचान य आत्म-सम्प्प्रत्यय (Self-concept) के िाि म ें हस्तकक्षेप करते ह ै (NCERT, 2005, p. 36)। ग. िमाधाि: अिी तक की चचाभ से कछ बातें सामने आती ह ै वक ििै ावनक वनयम ह ै वक बच्चों ु की वशक्षा मातिाषा म ें ही होनी चावहए पर प्रशासन की यह सीमा ह ै वक सिी बच्चों विविन्न ृ मातिाषाओ म ें
विद्यालय नही चलाये िा सकते ह।ै इसका समािान क्या हो सकता ह ै आइये ृ ं इसपर चचाभ करते ह।ै आि बढ़ते बहिावषक/बहसास्कवतक िातिरण म ें एक ही विद्यालय म ें विविन्न िाषाई ु ु ृ ं पष्ठिवमयों से बच्चे आते ह।ै ऐसे म ें उन्ह े उनकी मातिाषा म ें अनदवे शत करना एक िविल ृ ृ ू ु समस्या ह।ै लेवकन यह विद्यालय
प्रशासन के स्तर की समस्या ह।ै यवद हम वशक्षक बच्चों की मातिाषा का ज्ञान रखते ह ै और उनकी समझ के खावतर उसका प्रयोग करते ह ै तो यह ृ एक सकारात्मक हस्तकक्षेप होगी। हम अनदशे न की वनवित िाषा से परेय िाकर अपना वशक्षण कायभ को समपन्न कर ु सकते ह।ै यवद हम बच्चों की िाषा को नही िी िानते ह ै तब िी हम ें उनकी िाषा का आदर करना चावहए। इसके गम्प्िीर मनो-सामाविक सकारात्मक प्रिाि होते ह।ै हम कक्षाकक्ष के अदर सत्र के प्रारि म ें य किी किी विशेष िािों को व्यक्त करने म ें बच्चों ं ं को उनकी अपनी िाषा म ें बोलने का अिसर द े सकते ह।ै ऐसी वस्थवत म ें वशक्षक उनकी िाषा को समझने की कोवशश कर सकते ह;ै य वकसी वद्विाषी बच्चे से उस बच्चे के शब्दों का िािाथभ पछ सकते ह।ै क्योवक हमारा उद्दश्े य बच्चों को समझना िी ह ै और उनको ू वबना समझ े हम उनको पढ़ा तो नही सकते। इस तरह की उदार प्रिवत्त का वशक्षा की ृ गणित्ता पर साथभक असर पड़ता ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 86 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अक्सर दखे ा गया ह ै वक वशक्षक पस्तकों म ें िवणतभ वशक्षणशास्त्र का अनगमन करते ह।ै ु ु िबवक यह विषय स्िय म ें अत्यविक गत्यात्मक (Dynamic) ह।ै वशक्षकों को चावहए वक ं ि े अपने पररिेश के अनरूप अपनी वशक्षण पद्वत का विकास करें। इसके वलए वशक्षकों ु का शोि-उन्मख और निाचारी होना िरूरी होना चावहए। आप इस कायभिम (B. Ed.) ु की पाठयचयाभ के अन्य खडों म ें शवै क्षक निाचार और वियात्मक अनसिान को पढे ग ें ही। ् ु ं ं अतः यहााँ वसिभ इनके प्रयोग के वलए स्मरण कराया िा रहा ह।ै परािावषक-वशक्षणशास्त्र(Translanguaging-Pedagogy) की विचारिारा बहिावषक ु विद्यालयों म ें िाषा प्रयोग से सम्प्बवन्ित हमारे सदहे ों का समािान कर सकती ह।ै यह ं विचािारा कक्षा वशक्षण म ें िाषा उदारता और वकसी एक माध्यम-िाषा पर वनिरभ ता से मवक्त म ें विश्वास करती ह।ै हम वशक्षकों को अपने वशक्षण में पारा-िावषक होना चावहए ु विससे वक बच्चे अपनी अमतभ वचतन क्षमताओ को कक्षा म ें व्यक्त कारने म ें सक्षम हो ू ं ं सके । इस विचारिार के अनसार एक उदाहरण: आप सामविक विषय य विज्ञान के ु वशक्षक ह ै और आप वहन्दी य अग्राँ ेिी िाषा म ें विद्यावथभयों से प्रश्न करते ह,ै बच्चे अपके प्रश्न को समझ िाते ह,ै ि े उसका सही उत्तर िी सोच लेते ह ै पर उसको व्यक्त करने के वलए उनके पास पयाभ्त शब्द वहदी य अग्रेिी िाषा म ें नही ह।ै यहााँ हमारा उद्दश्े य तो बच्चों ं ं को विषय ज्ञान कराना ह,ै िो वक परा हो रहा ह,ै तो क्यों न हम बच्चो को उनकी अपनी ू मातिाषा- गढ़िाली, कमाउनी आवद म ें उत्तर दने े की स्ितन्त्रता द।ें ृ ु अभ्याि प्रश्न 1. वशक्षण के प्रकार कौन से ह?ै 2. सन 1835 म ें वकसने अग्रेिी िाषा माध्यम वशक्षा को प्रश्रय वदया? ं 3. अनदशे न के वलए सबसे उत्तम माध्यम कौन सी िाषा होती ह?ै ु 4. िारतीय सवििान के वकस अनच्छेद म ें मातिाषा के माध्यम से वशक्षा की बात कही गई ह?ै ृ ु ं 5. परािावषक-वशक्षणशास्त्र क्या ह?ै 6. मातिाषा के माध्यम से वशक्षा ना होने पर कौन सी समस्याए ाँ आ सकती ह?ै ृ 6.7 वद्वतीय िाषा पाठ को समझने म ववद्यार्थथयों की कवठनाइयों को ें सलझाना ु पठन (Reading) एक महत्िपण भ कौशल ह ै िो वशक्षा के प्रथम तल (साक्षरता स्तर) से वशखर तक ू (विश्वविद्यालय वशक्षा) तक विद्याथी और वशक्षक दोनों की गणित्ता का वनिाभरण करता ह।ै शायद इसी ु कारण से 16िी शदी के प्रवसद् वनबिकार बेकन ने अपने अग्रेिी िाषा के वनबि ‘ऑि स्िडीि’(Of ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 87 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् Studies) म ें वलखा ह ै वक अध्ययन एक व्यवक्त को पण भ बनाता ह ै (
"Reading maketh a full ू man......"
)। पाठक विविन्न अलग-अलग उद्दश्े यों के वलए वद्वतीय िाषा य विदशे ी िाषा की पाठयिस्त ् ु को पढ़ते ह,ैं िसै े वक सचना प्रा्त करन,े िीिकोपािनभ , आनन्द, अध्ययन (उपावि/वडग्री प्रा्त करने) के ू वलए, सिाद के वलए इत्यावद। वकसी िी विद्यालय म ें वकसी गरै -स्थानीय य विदशे ी िाषा का वशक्षण के ं वलए चयन उस िाषा से िड़े विविन्न सामाविक, आवथभक, रािनीवतक, िाषाई लािों को देखते हए वकया ु ु िाता ह।ै अतः कई बार वद्वतीय-िाषा िो वक हमारी गहिाषा नही होती ह ै की विषयिस्त को समझना एक ृ ु आिश्यकता बन िाती ह।ै साथ ही यह हम िलीिावत िानते ह ै वक वद्वतीय िाषा के पाठ को समझना तलनात्मकरूप से कवठन होता ह।ै अतेि हम वशक्षकों की विम्प्मदे ारी बनती ह ै वक हम इस तथ्य को समझे ु और अपने विद्यावथभयों की गरै -स्थानीय िाषा पाठ को समझने म ें कवठनाइयों का वनराकरण करें। इस इकाई म ें अिी तक हमने ‘अनदशे न की िाषा’ पर चचाभ की ह,ै अब इस िाग म ें हम
‘िाषा(पठन/Reading) के ु वलए अनदशे न की चचाभ करेंग’
े । एक प्रश्न आपके सामने रखता ह;ाँ ू ु िब हम जिक्षक भाषा का जिक्षण करते हैं तो हम क्या जसखाते हैं? उत्तर बहत ही सरल ह।ै िाषा के चार आिारित तत्ि या कौशल वसखाते ह,ैं विन्ह ें सनना, बोलना, ु ू ु पढ़ना, और वलखना (Listening, Speaking, Reading & Writing) कहते ह।ैं इन चारों िाषा कौशलों को अलग- अलग नहीं वकया िा सकता ह।ै एक का वशक्षण और विकास दसरे के विकास को ू सकारात्मक रूप से प्रिावित करता ह।ै पठन (Reading) कौशल को वद्वतीय िाषा, विशेष रुप से अग्रेिी ं सीखने में विशेषरूप से लािकारी पाया गया ह।ै एक वशक्षा अविकारी ि वशक्षक-प्रवशक्षक डॉ० िस्े ि (Dr. West) विन्होंने अग्रेिी शासनकाल म ें पिी िारत (बागलादशे , असम आवद क्षेत्रों को वमलाकर) म ें ू ं ं सिक्षे ण वकए थे, ने माना ह ै वक िारतीय विद्याथी पठन कौशल म ें िलदी वनपणता प्रा्त करते ह।ैं यह पठन ु म ें वनपणता आग े चलकर लेखन और बोलने के कौशलों म ें आसानी से रूपातररत हो िाती ह।ै उनके ु ं अनसार पठन सीखने की आरविक अिस्था ह ै (Dr. West, 1960)। अतः पठन कौशल के वलए ु ं अनदशे न िाषा-विकास और सिी विषयों म ें विद्याथोयों की समझ को बढ़ाने के वलए अवनिायभ शतभ ह।ै ु पढ़ने के कई प्रकार हो सकते ह ै िसै े वक गहन (Intensive), व्यापक(Extensive), िमिीक्षण (Scanning), िगे िीक्षण(Skimming), सविय(Active), वनवष्िय(Passive) पठन आवद। गहन व्यापक, िमिीक्षण, िगे िीक्षण आवद पठन के प्रकार के साथ साथ पठन की रणनीवतया िी कहीं िा ं सकती ह।ैं विनका प्रयोग करके हम एक अच्छे सविय पाठक हो सकते हैं। हम ें एक बात और याद रखनी ह ै वक वद्वतीय िाषा की विषयिस्त के पठन य अध्ययन का पररप्रेक्ष्य प्रथम िाषा से अलग होता ह।ै यह ु आप स्िय के अनििों को याद करके समझ सकते ह।ैं अपनी स्थानीय िाषा से अलग िाषा के मल-पाठ ु ू ं (Text) को पढ़ने म ें विद्यावथभयों को विविन्न
प्रकार की कवठनाइया होती ह ैं और साथ ही इसके अध्ययन ं के वलए पथक पठन रणनीवतया िी होती ह।ैं हम वशक्षकों को विद्यावथभयों की कवठनाइयों का वनराकरण ृ ं करना होता ह ै व
िसके वलए हम ें स्िय इन कवठनाइयों की िानकारी, कारणों, वनराकरणों के साथ साथ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 88 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वद्वतीय िाषा पाठ की समझ के सदिों आवद की िानकारी िी होनी चावहए। आइये हम इन सब वबन्दओ ं ं ु पर वबन्दिार ढग से चचाभ कराते ह:ै − ं ु 1. यहााँ बात एक ऐसी िाषा के पाठ को समझने की ह ै िो विद्यावथभयों की सस्कवत और िातािरण से ृ ं अलग ह।ै उस िाषा के सदि भ बच्चों के समझ के बाहर हो सकते ह।ैं अतः वशक्षकों को विद्यावथभयों के ं स्तर के वहसाब से पाठयिस्त पढ़ने के वलए दने ी चावहए और पठन कौशल के मलयाकन के वलए ् ु ू ं विविन्नीकत मलयाकन प्रविवियों का प्रयोग करना चावहए। इससे हम वद्वतीय िाषा के पाठ को ृ ु ं समझने की कठनाइयों और गलवतयों के होने की सिािना ही कम कर दते े ह।ै ं 2. वद्वतीय िाषा की पाठयिस्त को समझने म ें बच्चों को सवििा हो इसवलए हम वशक्षकों को चावहए वक ् ु ु बच्चों के प्रथम िाषा ज्ञान का सदपयोग करें। प्रथम िाषा की पाठयिस्त स े हम सदृश और विषम ् ु ु पाठयिस्त को उदाहरण के रूप म ें प्रस्तत कर सकते ह।ै ् ु ु 3. वशक्षकों को अविगम वसद्ातों म ें सामाविक और सज्ञानात्मक अविगम वसद्ातों; तथा चौमस्की ं ं ं (Chomsky) िाइगोत्सकी (Vygotsky), हले ीडे (Halliday) के िाषा वसद्ातों को ध्यान में ं रखना चावहए और विद्यावथभयों की वद्वतीय िाषा पाठ को समझने की कवठनाइयों का वनिारण करना चावहए। िबतक हम े यह पता नहीं होगा की िाषा अविगम और अिनभ कै से होता है, और प्रथम िाषा और वद्वतीय िाषा अिनभ म ें कौन कौन से कारक सविय होते ह ै तब तक हम न तो उनकी कवठनाइयों का वनदान कर पाएग े और न ही समािान। ं 4. अनवलवप और िािवलवप (Translation & Paraphrasing) िी बच्चों को गरै स्थानीय िाषा पाठ ु को समझने म ें मदद कर सकती ह।ै यह एक वशक्षण विवि िी ह ै और सज्ञानात्मक विकास का मानक ं िी। अतः हम वशक्षक अनवलवप (अनिाद) को माध्यम के रूप म ें प्रयोग करके बच्चों म ें पाठ की ु ु समझ का विकास कर सकते है। इसके आलािा हम बच्चों में अनवलवप की क्षमता का विकास करके ु उन्ह े गरै -स्थानीय िाषा पाठ को समझने म ें आत्मवनिरभ िी बना सकते है। 5. िो विद्याथी वकसी िाषा की पाठ-सरचना (Text-Structure) को समझते ह ैं ि े उस िाषा की ं पाठयिस्त के अथभ को िी आसानी से समझ िाते ह।ैं पाठ सरचना की समझ की िाषा को सीखने ि ् ु ं समझने म े महत्िपण भ िवमका होती ह।ै अतः हम वशक्षक बच्चों को पाठ की सरचना का विश्लेषण ू ू ं करके बच्चों म ें सरचनात्मक िागरूकता का विकास कर सकते ह ैं और इस प्रकार उनकी कठनाइयों ं का स्थायी समािान कर सकते ह।ै 6. वद्वतीय िाषा की शब्दािली म ें बच्चों को सपन्न बनाकर पाठ को समझने की कवठनाइयों का वनिारण ं वकया िा सकता ह।ै इसके वलए शब्द-खले , शब्दाक्षरी (अत्याक्षरी की तरह) आवद का सयोिन कर ं ं सकते ह।ै इसके अलािा शब्द-वशक्षण की मनोरिक विविया (िसै े वक कहानी विवि
का प्रयोग ं ं करके ) बच्चों की वद्वतीय िाषा के शब्द-ज्ञान का विस्तार वकया िा सकता ह।ै पररणामतः बच्चे उस िाषा के पाठ को समझ सकें गे। पठन के दौरान पाठ म ें आए नए शब्दों का शब्दकोश के माध्यम स
े ज्ञान कराया िा सकता ह ै उसके बाद बच्चों को पाठ को पनः पढ़ने के वलए वनदवे शत वकया िा सकता ु ह।ै अब दोबारा पढ़ते समय बच्चे उस पाठ को अविक समझ सकें गे। इस प्रकरण म ें शब्द-वशक्षण के उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 89 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वलए कहानी विवि के प्रयोग का उदाहरण वकसी को असगत लग सकता ह।ै इसकी विस्तत चचाभ करन े ृ ं का अिसर यहााँ नही ह ै अतः म ै वसिभ उदाहरणाथभ कछ म ें से एक पस्तक िो वक विलफ्े ड िक महोदय ु ु ं द्वारा वलखी ह ै का सझाि दके र आग े बढता ह ाँ (सदि-भ सची दखे -े Funk, 2011)। ू ु ू ं 7. इसके पयाभ्त साक्ष्य ह ैं वक पढ़ना सीखने के वलए व्यापक-पठन (Extensive Reading) अत्यविक सहायक होता ह।ै अतः वशक्षकों को पढ़ने के वलए ससािन और िातािरण तैयार करना चावहए। ं पाठयचयाभ के साथ-साथ अनपरक बाल सावहत्य साििानी से चयवनत वकया िा सकता ह।ै कक्षा- ् ु ू कक्ष पस्तकालयों की िी व्यिस्था की िा सकती ह।ै बच्चों को हम पढ़ने के वलए प्रेररत कर सकते ह।ैं ु विद्यावथभयों को व्यापक पठन के वलए प्रेररत करने के वलए सबसे अच्छा उदाहरण ह ै वक वशक्षक स्िय ं आदश भ पाठक बने और विद्यावथभयों के समक्ष एक प्रवतमान प्रस्तत करें। नए-नए सावहत्य को पढ़ने के ु बाद बच्चों के साथ हम चचा भ करें इससे बच्चे उन पस्तकों को पढ़न े के वलए प्रेररत होंग।े पररणामतः ु पढ़ने से पढ़ने की क्षमता का विकास होगा( learning to read by reading) 8. िो बच्चे प्रथम पीढ़ी के पढ़न े िाले ह ैं उनके घर म ें पयाभ्त सहयोग और िातािरण उपलब्ि नहीं होता ह।ै इन्ह ें वशक्षा सावहत्य म ें ‘प्रथम पीढ़ी अविगमकताभ First Generation Learner) कहा िाता ह।ै विनके माता-वपता वशवक्षत होते ह ैं ि े बच्चे कछ शब्द ज्ञान (प्रथम िाषा और वद्वतीय िाषा) के साथ ु विद्यालय आते ह।ैं एक आदश भ मध्यिगीय वशवक्षत पररिार के बच्चे को विद्यालय पिभ औसतन ू 1000 घिे का गह अनदशे न(Tuition) वमल चका होता ह ै (Adams, 1990)। यद्यवप एडम ृ ु ु ं महोदाय का सिेक्षण िारत से बाहर का ह ै पर हमारे यहााँ की वस्थवत कमोबेस ऐसी ही होती है। वशवक्षत और अवशवक्षत माता-वपता का यह अतर सम्प्पण भ विद्यालयी वशक्षा के दौरान बना ही रहता ह।ै ू ं हम वशक्षकों को इस अतर को समझते हए बच्चों को पाठयिस्त पढ़ने के वलए दने ी चावहए। यवद ु ् ु ं ससािनों की कमी ना हो तो प्रथम पीढ़ी पाठको के वलए उपचारात्मक अनदशे न (Remedial ु ं Teaching) की व्यिस्था िी करनी चावहए। 9. उवचत पठन-रणनीवतयों (Reading Strategies) का वशक्षण िी आिश्यक ह।ै पाठयिस्त को पढ़ने ् ु म ें कछ सज्ञानात्मक/परा- सज्ञानात्मक रणनीवतया बच्चे अपना सकते ह ैं िसै े वक अपने आपसे प्रश्न ु ं ं ं करना वक इस पाठ को पढ़ने से हम क्या सीख सकते है? पाठ को पढ़ने से पहले, पढ़ने के दौरान और पढ़ने के बाद म ें ‘क्या’, ‘कै से’, की कसौिी पर पाठ को कसना चावहए। हम वशक्षक बच्चों को ऐसा करके वदखा सकते ह।ैं एक कोई प्रकरण लेकर हम क्लास म ें पढ़े और विर उस पर हम प्रवतविया(Reflection) द।ें सस्िर पठन और सस्िर वचतन (loud reading and loud ं thinking/reflection) के द्वारा बच्चों को पठन-रणनीवतयों का प्रवशक्षण वदया िा सकता ह।ै 10. पाठय सामग्री आिाररत अनदशे न(Content Based Instruction) वद्वतीय िाषा अनदेशन के सदि भ ् ु ु ं म ें अत्यविक प्रिािशाली माना गया ह ै (Mohan, 1990)। इस अनदशे न विवि के माध्यम से ु वशक्षण करने के दौरान पाया गया ह ै वक बच्चे पढ़ने के वलए अविक प्रेररत होते हैं, उनमें पढ़ने की रणनीवतयों
का विकास होता ह,ै व्यापक पठन के अिसर बढ़ते ह ैं और विद्यावथभयों की शब्दािली का विस्तार िी होता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 90 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 11. बच्चो के स
्तर के वहसाब से हम अक्षर, शब्द, य िाक्य वशक्षण की विवियों का प्रयोग कर सकते ह।ै सस्िर िाचन (Loud Reading) से हम बच्चों की शब्द-ध्िवन की समझ का आकलन िी कर सकते ह।ै िसै ा की हम िानते ह ै वक चारो िाषा कौशल एक दसरे से िड़े हए ह ै अतेि सही ध्िवन ु ु ू सही अथभ को समझने म ें सहायक होती ह।ै इस वलए हम बच्चों वक पठन क्षमताओ को ध्िवनशास्त्रीय ं वशक्षण विवियों के प्रयोग द्वारा िी सिविभत कर सकते ह।ै ं वनष्कष भ रूप से हम कहा सकते ह ै वक गरै -स्थानीय य विदशे ी िाषा के पाठ को समझने वक क्षमता का विकास एक दीघकभ ावलक प्रविया ह।ै विद्यावथभयों म ें इसके विकास हते हम वशक्षकों को सततरूप से ु िैयभपिकभ विविन्न वशक्षण विवियों ि रणनीवतयों का प्रयोग करना होता ह।ै इन विवियों को हम िाषा ू वशक्षण और िाषा विकास से सबवन्ित पस्तको म ें पढ़ सकते ह।ै ु ं अभ्याि प्रश्न 7. बेकन ने वकस वनबन्ि म ें पठन का लाि बताया है? 8. िाषा वशक्षण म ें वकन कौशलों का विकास वकया िाता ह?ै 9. डॉ िस्े ि के पठन के विषय मने क्या विचार है? 10. पठन के दो प्रकार वलवखए। 11. गरै स्थानीय िाषा के पाठ को समझने म ें बच्चों की कवठनाइयों का वनिारण कै से करेंगे? 6.8 शब्दावली 1. आत्म-व्याख्यात्मक ( Self-explanatory): विसकी व्याख्या करने की आिश्यकता ना हो। 2. वाक्य-र्वन्याि (Sentence Structure): व्याकरण का अग विससे हम विविन्न प्रकार के ं िाक्यों म ें शब्दों का स्थान वनिाभररत कराते ह।ै 3. भाषा की िरचिा और प्रणाली: िाषाए ाँ एक िज्ञै ावनक व्यिस्था होती ह ै विसकी एक सरचना ां ं (वलवखत ि मौवखक) के कछ वनयम होते ह।ै ु 4. िम्प्रेषणात्मक अग्रेजी: अग्रेिी िाषा के अध्ययन का एक विषय विसम े सिाद क्षमता के ां ं ं विकास पर बल वदया िाता ह।ै 5. मल-पाठ(Text): पाठ, विषयिस्त य वलवखत सामाग्री। ू ु 6.9 अभ्यास प्रश्नों के उिर 1. वशक्षण के प्रकार: क. अनदशे न(Instruction) ु ख. अनबिन(Conditioning), ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 91 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ग. प्रवशक्षण (Training), और घ. मतवशक्षण (Indoctrination)। 2. सन 1835 म ें मकै ाले ने अग्रेिी िाषा माध्यम वशक्षा को प्रश्रय वदया? ं 3. अनदशे न के वलए सबसे उत्तम माध्यम मातिाषा होती ह?ै ृ ु िारतीय सवििान के अनच्छेद अनच्छेद 350A म ें मातिाषा के माध्यम से वशक्षा की बात कही ृ ु ु ं गई ह?ै 4. परािावषक-वशक्षणशास्त्र की विचािारा कक्षा वशक्षण म ें िाषा उदारता और वकसी एक माध्यम-िाषा पर वनिरभ ता से मवक्त म ें विश्वास करती ह।ै ु 5. मातिाषा के माध्यम से वशक्षा ना होने पर वनम्प्नवलवखत समस्याए ाँ आ सकती ह:ै ृ क. विद्यवथभयों विषय वक समझ कम हो सकती ह।ै ख. विद्याथी असिल हो सकते ह।ै ग. बच्चे विद्यालय छोड़ सकते ह।ै घ. बच्चों के अदर िाषा को लेकर हीन िािना का विकास हो सकता ह।ै ं ङ. बच्चों के आत्म-सम्प्प्रत्यय को ठेस लग सकती ह।ै 6. बेकन ने (Of Studies) वनबन्ि म ें पठन का लाि बताया है? 7. सनना, बोलना, पढ़ना, और वलखना (Listening, Speaking, Reading & Writing) ु 8. डॉ िस्े ि के अनसार पठन सीखने की आरविक अिस्था ह ै ु ं 9. पठन के दो प्रकार : − गहन (Intensive), व्यापक(Extensive) पठन। 10. गरै स्थानीय िाषा के पाठ को समझने म ें बच्चों की कवठनाइयों का वनिारण वनम्प्नवलवखत तरह से कर सकते ह?ै क. बच्चों की वद्वतीय िाषा शब्दािली का विस्तार करके । ख. अनवलवप विवि से। ु ग. विविन्नीकत पाठयिस्त वनिाभररत करके । ृ ् ु घ. उपचारात्मक वशक्षण की व्यिस्था करके । 6.10 सदं ि भ ग्रंथ सची व उपयोगी पाठ्यसामग्री ू 1. Adams, M. (1990). Beginning to read: Thinking and learning about print. Baltimore MD: Brookes Publishing Co. 2. Ball, J. (2014). Children Learn Better in Their Mother Tongue: Advancing research on mother tongue-based multilingual education (February 21, 2014). Available on http://www.globalpartnership.org/blog/children-learn- better-their-mother-tongue उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 92 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3. Bialystock, E. (1991). Language processing in bilingual children. Cambridge: Cambridge University Press. 4. Coulmas, F. (1991). The language trade in the Asia Pacific. Journal of Asia Pacific Communication, 2(1), 1-27. 5. Dua, H. R. (2008). Ecology of multilingualism: language, culture and society. Mysore: yashoda publication. 6. Edward,
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London: Longman। 6.12 वनबिात्मक प्रश्न ं 1. गहिाषा और विद्यालय िाषा म ें क्या अतर ह?ै दोनों अििारणाओ की विस्तत वििेचना ृ ृ ं वकविए। 2. विद्यालयी िाषा के वनिाभरण के कारणों की समीक्षा कीविए। 3. गरै -स्थानीय िाषा पाठ को समझने म ें विद्यावथभयों की सहायता करने की आपकी क्या योिना है? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 94 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् खण्ड 2 Block 2 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 95 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 1- कक्षा में सांिाद :अर् , प्रकायथ, वििेषता एिां अभ्यास, थ सम्बांवित विषय क्षत्र मे में अविगम ि्वद् के वलए मौविक भाषा प्रयोग करने की रणनीवत The discourse in classroom: Meaning, functions, characteristics and practices; Development of strategies for using oral language in the classroom for promoting learning in the subject area. 1.1 प्रस्त ािना 1.2 उद्दश्े य 1.3 कक्षा में सिाद की प्रकवत ृ ं 1.4 मौवखक िाषा की विशेषताए ं 1.5 मौवखक िाषा के तत्ि 1.6 विषय सम्प्बवित क्षेत्र में अविगम िवद् के वलए मौवखक िाषा प्रयोग करने की रणनीवत ृ ं 1.7 साराश ं 1.8 शब्द ािली 1.9 सदिभ ग्रथ सची ू ं ं 1.10 वनबिात् मक प्रश्न ं 1.1 प्रस्त ावना िाषा मानि समाि का सिाभविक महत्िपण भ आविष्कार ह ै । ध्िवन के विविि स्िरों और प्रस्ततीकरण के ू ु अन्यान्य रूपों के माध्यम से सवष्ट के समस्त प्राणी परस्पर सचनाओ एि िािनाओ का सम्प्प्रेषण करते ह ैं । ृ ू ं ं ं हमारे आि के आिवनक वशक्षा व्यिस्था म ें हम ज्यादातर िाषा के वलवखत एि मौवखक स्िरुप पर वनिरभ ु ं रहते ह ैं । मौवखक िाषा की सहायता से ही विद्याथी एि वशक्षक कक्षा म ें सिाद स्थावपत कर पाने म ें सिल ं ं होते ह ैं िो वक उनके ज्ञानािनभ का मल आिार होता ह ै । विज्ञान हो या कला िावणज्य हो या सगीत सिी ू ं तरह के विषयों का मल ज्ञान सिाद एि मौवखक िाषा से ही प्रा्त वकया िाता ह ै । अतः विविन्न विषयों ू ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 96 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् के अविगम म ें िी मौवखक िाषा सिाद स्थावपत करन े के वलए एि ज्ञानािनभ के वलए अवत महत्िपणभ ू ं ं िवमका अदा करती ह ै। ू 1.2 उद्दश्े य इस इकाई को पढ़ने के बाद आप- 1. कक्षा म ें सिाद की प्रकवत को समझ सकें गे। ृ ं 2. मौवखक िाषा के महत्ि को समझा सकें ग े । 3. मौवखक िाषा के उद्दश्े य ों को बता सकें ग।े 4. मौवखक िाषा म ें दक्ष होने की रणनीवतयों को समझा सकें ग े । 5. मौवखक िाषा की आिश्यकता को बता सकें ग े । 1.3 कक्षा म संवाद की प्रकृ वत (Nature of Discourse in Classroom) ें कक्षा कक्ष म ें सिाद का अपना ही महत्ि ह ै क्योंवक कक्षा म ें सिाद के द्वारा ही अविकााँश अविगम सपन्न ं ं ं होता ह।ै इसके अिाि म ें अविगम की कलपना ही सिि नहीं ह ै । बेहतर अविगम के वलए बेहतर सिाद ं ं िी आिश्यक ह ै । बेहतर सिाद से तात्पयभ स्िस्थ सिाद से ह ै विसम ें वक विद्याथी एि वशक्षक दोनों की ं ं ं िरपर सहिावगता हो । एकागी बातचीत (One way talk) का कक्षा म ें कोई विशेष महत्ि नहीं होता ह ै ू ं क्योंवक यह कक्षा कक्ष को वशक्षक कें वित बना दता ह ै । यवद कक्षा म ें सिाद दोनों ही तरि से (विद्याथी ं एि वशक्षक) के तरि से आिश्यकतानसार ठीक ढग से हो रहा ह ै तो इस तरह का अविगम सदिै बेहतर ु ं ं होता ह ै । कक्षा म ें सिाद की प्रकवत को वनम्प्न तरीके से समझा िा सकता ह ै । ृ ं 1. लोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत (Democratic Discourse Situation) ं ं 2. अलोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत (Non- Democratic Discourse Situation) ं ं लोकतार्त्रक िवाद पररर्स्थर्त (Democratic Discourse Situation): लोकतावत्रक सिाद ां ां ं ं पररवस्थवतयााँ िो पररवस्थवतयााँ होतीं ह ैं विनम ें विद्याथी एि वशक्षक को सामान अविकार प्रा्त होते ह ैं । इस ं तरह के सिाद म ें विद्याथी अपनी सिी समस्याओ का वनदान वबना वकसी डर एि वहचक के कर लेता ह ै । ं ं ं आिवनक विद्याथी कें वित वशक्षा प्रणाली इसी सिाद पररवस्थवत पर कें वित होती ह ै । इस तरह के सिाद ु ं ं पररवस्थवत म ें अविगम प्रविया बहत तेि एि स्पष्ट होती ह।ै यह सिाद पररवस्थवत अविगम प्रविया को ु ं ं बेहतर बनाने के साथ साथ नयी चीज़ों को सीखने के वलए िी एक बेहतर माहौल उपलब्ि कराता ह ै । अलोकतार्त्रक िवाद पररर्स्थर्त (Non- Democratic Discourse Situation):अलोकतावत्रक ां ां ं सिाद प्रकवत विद्याथी कें वित न होकर वशक्षक कें वित होती ह ै । इसम ें विद्यावथभयों के स्थान पर वशक्षक की ृ ं प्रिानता होती ह ै । इस तरह के सिाद म ें विद्याथी के पास अविगम होने की सिािना बहत कम होती ह ै । ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 97 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इस विवि म ें सामन्यतः वशक्षक िाषण विवि (lecture method) से पढाता ह ै विससे विद्याथी को प्रश्न पछने की सिािना घि िाती ह ै एि िह अपने समस्याओ का समािान नहीं कर पाता ह ै । उपरोक्त दोनों ू ं ं ं विवियों म ें लोकतावत्रक सिाद विवि ज़्यादा प्रिािशाली एि लोकवप्रय मानी िाती ह।ै मनोिज्ञै ावनकों ने ं ं ं िी लोकतावत्रक सिाद विवि को ही महत्िपण भ एि उपयोगी माना ह ै । ू ं ं ं अभ् याि प्रश् ि 1. कक्षा म ें सिाद की प्रकवत पर एक विप्पणी वलवखए ? ृ ं 2. लोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत से आप क्या समझते ह ैं ? ं ं 3. अलोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत से आप क्या समझते ह ैं ? ं ं 4. लोकतावत्रक एि अलोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत म ें अतर स्पष्ट करें ? ं ं ं ं ं 1.5 मौविक िाषा की ववशेषताए ं (Characteristics of Oral Language) सामान्यतया बालक अनकरण (Imitation) द्वारा मौवखक िाषा का प्रयोग स्ितः ही करने लगता ह ै परन्त ु ु विद्यालय म ें औपचाररक रूप से इस कौशल को विकवसत करने का प्रयास वकया िाता ह ै । विशषे कर िाषा के अध्यापक को इस बात का ज्ञान अिश्य होना चावहए वक िह मौवखक िाषा- कौशल को विकवसत करने की दृवष्ट से छात्रों को वकस तरह से बोलना वसखाये और उनके मौवखक अविव्यवक्त कौशल को क्या वदशा प्रदान करे । इसके वलए उसे मौवखक िाषा के वनम्प्न गणों की िानकारी होना ु आिश्यक ह।ै 1. अविर के अिकल (According to Occasion) : अिसर के अनसार ही िाषा का प्रयोग ु ू ु होना चावहए। िीिन के विविन्न अिसरों पर हषभ, उललास, शोक, दःख, दया, सहानिवत ु ू ु एि प्यार आवद िािों को व्यक्त करना पड़ता ह ै । इन िािों के अनकल ही उवचत हाि- िाि के ु ू ं साथ मौवखक अविव्यवक्त करनी चावहए । 2. र्शष्टता (Humbleness) : वकसी िी व्यवक्त के साथ िाताभलाप करते समय वशष्टाचार का ध्यान रखना चावहए । अवशष्ट मौवखक अविव्यवक्त सामाविक सबिों को वबगाड़ दते ी ह ै । ं ं 3. श्रोताओ के अिकल भाषा (Language as per the standard of the listener): ु ू ां विस स्तर के व्यवक्तयों से बात की िाए उसी प्रकार की िाषा का प्रयोग करना चावहए । 4. स्वाभार्वकता (Naturality) :बोलने म ें स्िािाविकता होनी चावहए । बनाििी बोली का प्रयोग हास्यास्पद हो िाता ह।ै अस्िािाविक िाषा िक्ता को अविश्वसनीय बना दते ी है। स्िािाविक िाषा एि अविव्यवक्त विश्वसनीय होती ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 98 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 5. मधरता (Sweetness): मौवखक अविव्यवक्त म ें मिर िाणी का प्रयोग करना चावहए । िाणी ु ु की मिरता ही व्यवक्त को वमत्र बना लेती ह ै और कठोरता शत्र बना दते ी ह ै । मीठी िाणी का ु ु प्रयोग का वकसी व्यवक्त से सहिता से काम वनकाला िा सकता ह ै । 6. प्रवार्हकता (Fluency): मौवखक अविव्यवक्त म ें उवचत प्रिाह होना चावहए । विराम वचन्हों के उवचत पालन से अविव्यवक्त म ें सम्प्यक गवत ि प्रिाह आ िाता ह ै । कान्हा कम रूकना ह,ै कहााँ पण भ विराम दने ा ह,ै कहााँ प्रश्नसचक गवत दने ी ह,ै कहााँ विस्मयिनक, इन बातों के उवचत ू ू पालन से अविव्यवक्त बहत प्रिािशा
ली बन िाती ह ै । ु 7. िवामान्य भाषा (Universal Language) : मौवखक अविव्यवक्त म ें सिमभ ान्य िाषा का प्रयोग करना चावहए । अप्रचवलत शब्दों के प्रयोग से िाताभलाप नीरस बन िाता ह ै । 8. िरलता (Simplicity): िो िी बात कही िाए उसके वलए सरल ि सबोि िाषा का प्रयोग ु करना चावहए । अविव्यवक्त का लाि तिी ह ै िब िह श्रोता को समझ म ें आ िाए । 9. शद्ता (Correctness) : बोलते समय शद् िाषा का प्रयोग करना चावहए । उच्चारण िी ु ु शद् होना चाइये । अशद् उच्चारण ि अशद् िाषा के िक्तव्य प्रिािहीन हो िाता ह
ै । ु ु ु 10. स्पष्टता (Clarity) : बोलने म ें स्पष्टता होनी चावहए । िो िी बात कही िाए स्पष्ट एि साफ़ ं होनी चावहए । बात को घमा – विराकर नहीं बवलक सीिे शब्दों म ें साफ़- साफ़ कहना चावहए । ु अभ् याि प्रश् ि 5. मौवखक िाषा के कौन से गण इसको अन्य माध्यमों से अलग बनाते ह ैं ? ु 6. मौवखक िाषा के विशषे ताओ पर प्रकाश डालें । ं 7. मौवखक िाषा के प्रिावहकता पर एक विप्पणी वलख ें । 1.6 मौविक िाषा के तत्व (Elements of Oral Language) मौवखक िाषा िन सामान्य के व्यिहार की िस्त ह ै और इसका उद्भि सामाविक िीिन के विविि ु व्यिहारों के सचालन के वलये ही हआ । समाि समय, पररवस्थवतयों और आिश्यकताओ के अनसार ु ु ं ं बदलता रहता ह ै और िाषा उसी की अनगामी बनी रहती ह ै । वकन्त िाषा का त्िररत पररितभन वकसी िी ु ु प्रकार आिश्यक और उपयोगी नहीं ह ै । इसवलए िाषा के स्िरुप को स्थावयत्ि वदए िाने की ज़रूरत ह ै । इस आिश्यकता की पवतभ के वलए िाषा के तत्िों का अध्ययन और उसके सरक्षण का प्रयास वकया िाता ू ं ह ै । इसी के साथ िाषा के स्िरूप को समझने और सही िाषा प्रयोग के वलये िाषा का व्यािहाररक विश्लेषण वकया िाना चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 99 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् i. वाक्य शब्द और अक्षर : मौवखक िाषा िाक्यों
5%
4%
1%
0.8%
0.3%
0.3%
0.1%
के माध्यम से अविव्यक्त होती ह ै । िाक्य मौवखक िाषा के मौवलक इकाई ह ै । मौवखक िाषा म ें यवद किी शब्द या क्षर का एक इकाई के रूप म ें प्रयोग होता ह ै तो िह िी िाक्य का स्थानपन्न होता ह ै । उदाहरण क
े वलए यवद “क्या तम ु बाज़ार गए थे ? इस प्रश्न के उत्तर म ें हााँ कहा िाता ह ै वत इसका तात्पयभ ह ै वक हााँ म ें बाज़ार गया था। इस प्रकार िाक्य मौवखक िाषा की मौवलक इकाई ह ै । बालक िब पररिार की िाषा के अनकरण ु से मातिाषा ग्रहण करता ह ै तो िाक्य रूपी शब्दों से ही िाि सम्प्प्रेषण करता ह ै । यवद िह पानी ृ कहता ह ै तो तात्पयभ होता ह ै वक प्यास लगी ह ै । इस प्रकार से िाषा सीखने और प्रयोग करने का स्िािाविक िम िाक्यों से आरम्प्ि होता ह ै । ii. र्वषयािकल भाषा शैली : समाि म ें व्यिहार के वलए विविन्न अिसरों पर, विविन्न विषयों के ु ू बारे म ें और विविन्न लोगों से बातचीत का तरीका सीखना आिश्यक ह ै । वशवक्षत और अवशवक्षत, ग्रामीण ि शहरी लोगों की िाषा म ें अतर होता ह ै । इसी िम म ें औपचाररक और ं ् अनौपचाररक, कायाभलयी और व्यापाररक िाषा रूपों म ें अतर होता ह ै । ं iii. उर्चत स्वर गर्त, बालाघात और र्वराम : समाि म ें िाषा – प्रयोग एक सिदे नशील मद्दा ह ै । ु ं इसके वलए अनेक प्रकार के की कशलताओ और साििावनयों की अपेक्षा होती ह।ै इसम ें स्िर ु ं और गवत शावमल ह ैं । स्िर का तात्पयभ ह ै बोलते हए आिाज़ की उच्चता या मदता और गवत का ु ं तात्पयभ ह ै बोलते हए ज़लदी-ज़लदी या िीरे -िीरे बोलना । सदा ऊाँ ची या नीची आिाज़ म ें बात ु करना सिल िाकशैली नहीं कही िा सकती । iv. र्वषय / भावािकल शब्दचयि : िाषा म ें एक प्रकार के िािों और वस्थवतयों को प्रकि करने के ु ू वलए एक सामान प्रतीत होने िाले शब्द पाए िाते ह ैं । इन शब्दों के िाि और अथभ में वकवचत ं अतर होता ह ै िो कथन को अविक प्रिािी बनाने म ें उपयोगी होता ह ै । िनसािारण इन शब्दों म ें ं ् स्पष्टतः िदे नहीं कर पाते इसवलए िो शब्द सामने पड़ता ह ै उसी का प्रयोग कर डालते हैं। v. हाव भाव एव अग िचालि : िाषा समाि की िीिन्तता और गवतशीलता की किी ह।ै बात ु ां ां ां ं करते हए मनष्य तो क्या पश िी अग सचालन अिश्य करते ह ैं । इससे कथ्य िीित और अविक ु ु ु ं ं ं अथभपण भ हो िाता ह।ै हाि- िाि का तात्पयभ ह ै बात करते हए माथे की वसकडन तथा शरीर के न े ु ू ु वहस्सों के हरकतों से कथ्य कपो अविक स्पष्ट और िािपण भ बनाने का प्रयास करना। इसी प्रकार ू का प्रयास िब हाथों की अगवलया, मट्ठी, बाि और कन्िों की सहायता से होता ह ै तो अग- ु ु ू ं ं ं सचालन कहलाता ह।ै िास्ति म ें िसै े िाि अपनी अविव्यवक्त के वलए शब्दों का आश्रय लेते ह ैं ं िसै े ही हाि-िाि एि अग-सचालन िी अविव्यवक्त को अविक अथभपण भ बनाने का उपिम करते ू ं ं ं ह।ैं vi. मौर्लकता, स्वाभार्वकता तथा िहजता: िाषा वकसी व्यवक्त की वनिी ि स्िानित िािनाओ, ु ू ं आिश्यकताओ और विचारों के सम्प्प्रेषण का माध्यम ह ै ।हम समाि के सावनध्य एि अनकरण से ु ं ं िाषा सीखते अिश्य ह ैं लेवकन उसका प्रयोग हमारे आिश्यकताओ के अनरूप होता ह ै न वक ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 100 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अन्यों की नक़ल या उत्प्रेरण से । िाषा के शब्द उसके सिी प्रयोक्ताओ के व्यवक्तगत अतिाभिों के ं ं प्रकाशन के माध्यम होते ह ैं । अभ् याि प्रश् ि 8. उवचत स्िर गवत, बालाघात और विराम से आप क्या समझते ह ैं ? 9. मौवलकता, स्िािाविकता तथा सहिता को पररिावषत कीविये । 10. िाक्य शब्द और अक्षर का मौवखक िाषा म ें क्या महत्ि ह ै ? 11. मौवखक िाषा के तत्ि पर प्रकाश डालें । 1.7 ववषय सम्प्बवित क्षत्रे म अविगम ववद् के वलए मौविक िाषा प्रयोग ं ें ृ करने की रणनीवत (Strategies For Using Oral Language in the Classroom to Promote Learning in the Subject Area) मनष्य एक सामाविक प्राणी ह ै िह अपने सोच एि विचार को एक दसरे तक लेन- दने करना चाहता ह ै । ु ं ू इस काम के वलए िह िाषा के दोनों रूपों
का प्रयोग करता ह ै । िाणी (Speech) ि वलवखत रूप (Written form)– िब व्यवक्त, ध्िवनयों के माध्यम से, मख के अियिों के मदद से, उच्चररत िाषा ु का प्रयोग करत
े हए अपने विचारों को प्रकि करता ह ै तब उसे मौवखक अविव्यवक्त कहा िाता ह ै । इस ु तरह से मख से अविव्यक्त होने िाली िाषा मौवखक िाषा (Oral Language ) ह ै और मख के अियिों ु ु के द्वारा िािों एि विचारों की अविव्यवक्त मौवखक अविव्यवक्त ह ै । मौवखक अविव्यवक्त िाषायी चार ं कौशलों म ें से एक कौशल है। सािारण िाषा म ें इसे बोलचाल कहा िाता ह ै । समाि म ें हम अपने अविकााँश कायभ व्यिहार बोलचाल द्वारा ही सम्प्पन्न करते ह ैं । यह विचारों के आदान प्रदान का सरलतम माध्यम ह ै । वलवप के आविष्कार से पि भ समस्त ज्ञान बोल कर ही वदया िाता था और यह िम कई ू पीवढ़यों तक चलता रहता था। आि िी िीिन के सिी क्षेत्रों म ें सिलता प्रा्त करने के वलए मौवखक अविव्यवक्त म ें कशलता ह।ै ु मौर्खक भाषा का महत्व (Importance of Oral Language): मानि िीिन की वितनी िी मलित िरूरतें ह,ै उनम ें िािों एि विचारों की अविव्यवक्त िी एक अवनिायभता ह ै । िीिन के हर क्षेत्र म ें ू ू ं मौवखक िाषा का अपना ही महत्ि ह ै । इसके महत्ि को वनम्प्नवलवखत दृवष्ट से दखे ा िा सकता ह ै – i. मौवखक िाषा के प्रयोग से कशल व्यवक्त अपनी िाणी से िाद िगा सकता ह ै । िारत के ु ू पररप्रेक्ष्य म ें हम अिल वबहारी बािपेयी के शास्त्रीय िाषणों (Classical speeches)का उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 101 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् उदाहरण ले सकते ह ैं वक वकस प्रकार से उन्होंने अपन े िाषणों के दम पर दशे म ें ही नहीं बवलक अन्तरराष्रीय िगत म ें िी अपनी अनठी पहचान बनायी । ू ii. बालक के अदर विज्ञासा िन्म लेती ह ै िह तरह के प्रश्न पछ कर अपनी इस विज्ञासा को शात ू ं ं करता ह ै और प्रसन्नता का अनिि करता ह ै । इससे उसके स्िािाविक विकास म ें सहायता ु वमलती ह ै । उसके आत्म विश्वास म ें िवद् होती ह ै और व्यवक्तत्ि म ें वनखार आता ह।ै ृ iii. िाषा वशक्षण का एक स्िािाविक िम ह ै – बोलना, सनना, पढ़ाना और वलखना । बालक को ु मौवखक िाषा का प्रयोग सनाने और बोलने म ें दक्ष बनाता ह ै । यह बोल- चाल ह े पढ़ने – ु वलखने के कौशल को विकवसत करने का आिार बनता ह ै । iv. मौवखक िाषा ही अविव्यवक्त का सहि एि सरलतम माध्यम ह ै । मौवखक िाषा म ें ही मनष्य ु ं अपने िािों को स्िािाविक रूप म ें दसरे के सामने व्यक्त कर पाता ह ै । ू v. दवै नक िीिन म ें सिी कायभ- कलापों म ें मौवखक िाषा ही
प्रयोग होती ह ै । अपन े समाि म,ें पररिार म ें अन्य सदस्यों के साथ विचारों का आदान – प्रदान करने के वलए तथा अपनी बात उनसे कहने ि उनकीं बात समझने के वलए िाषा के इसी रूप का प्रयोग
करना होता ह ै । vi. मौवखक िाषा के द्वारा विचारो को नए ढग से आदान- प्रदान म ें बढोत्तरी की िाती ह ै । ं अवशवक्षत व्यवक्त बोलचाल के द्वारा ही ज्ञान अवितभ कर लेता ह ै । vii. िाताभलाप, बोलचाल या प्रश्नोत्तर द्वारा सीखी गयी विस््िास्त अपना स्थायी प्रिाि छोडती ह ै । ु इस प्रकार विद्यालय म ें वशक्षण – पद्वत को रोचक ि प्रिािशाली बनाने म ें िी मौवखक िाषा का अत्यविक महत्ि ह ै । viii. सामाविक िीिन म ें सामिस्य स्थावपत करने एि सामाविक सबिों को सदृढ़ बनाने म ें िी ु ं ं ं ं मौवखक िाषा की प्रमख िवमका होती ह ै । ु ू ix. रािनीवतक िीिन म ें आिवनक यग म ें तथा सिलता की दृवष्ट से िी मौवखक िाषा का अपना ु ु महत्ि ह ै । एक नेता अपनी िासन- कला के द्वारा ही िन- समदाय को अपना बना लेता ह ै और ु अपनी बातचीत के द्वारा अपने सपक म ें आने िाले व्यवक्तयों को प्रिावित कर लेता ह ै । ं x. विद्यालयी पाठयिम म ें सिी विषयों की वशक्षा म ें मौवखक िाषा ही प्रमख माध्यम होता ह ै । ् ु मौवखक िाषा ही सिी विषयों का ज्ञानािनभ करने का मल आिार ह ै । मौवखक िाषा के वबना सीखना ू और वसखाना दोनों ही कवठन ह ै । अतः प्रारविक स्तर पर से ही मौवखक िाषा की वशक्षा प्रदान की िानी ं आिश्यक ह ै तावक उच्च कक्षा तक पहचाँ ते- पहचाते उनकी अविव्यवक्त म ें शद्, स्पष्टता, सबोिता, ु ु ु ु ं मिरता, प्रिावहकता, स्िािाविकता एि प्रिािोत्पादकता परी तरह से विकवसत हो िाए । इसके वलए ु ू ं अध्यापक वनम्प्नवलवखत वशक्षण विवियों एि सािनों का प्रयोग कर सकता ह ै – ं i. वाताालाप - पाठय – पढ़ाते समय या वकसी अन्य अिसर पर ि वशक्षक को चावहए की ् बातचीत करे । हर छात्र को िाताभलाप म ें िाग लेने के वलए प्रेररत करना चावहए । िाताभलाप का विषय बच्चों के ज्ञान ि अनिि की पररवि के अदर का होना चावहए । यवद कोई बच्चा ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 102 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् उत्सकता प्रश्न पछे तो उसके प्रश्न का उत्तर द े कर उसकी उत्सकता को सतष्ट करना चावहए । ु ू ु ु ं िाताभलाप म ें छात्रों
से िी प्रश्न पछकर उनके मख से उत्तर वनकलिाने का प्रयास करना चावहए । ू ु ii. प्रश्नोिर – मौवखक वशक्षा दने े के वलए प्रश्नोत्तर एक अच्छी विवि ह ै । सामान्य विषयों पर या पाठयपस्तक से सम्प्बवित पाठों पर छात्रों से प्रश्न
पछने चावहए । छात्रों से पण भ रूप स े उत्तर ् ु ू ू ं स्िीकार करना चावहए । यवद उत्तर अपण भ या अशद् हो तो उसे साहनिवत पिकभ पण भ या शद् ू ु ु ू ू ू ु करिाया िाये । iii. र्चत्र- वणाि : वचत्र देखने में छोिे बच्चे रुवच लेते
ह ैं । इस प्रकार वकसी वचत्र को वदखाकर उस पर प्रश्न पछ कर बच्चों से वचत्र िणनभ कराना चावहए । िसै े गाय का वचत्र वदखाकर गाय के बारे ू म ें अनेक बातें बता सकता ह ै । इसी प्रकार
वचत्र के द्वारा कहानी कही िा सकती ह ै । मौवखक अविव्यवक्त के वलए वचत्र- िणनभ एक रोचक प्रणाली ह ै । iv. स्वतत्र आत्मप्रकाशि का अविर : बच्चों को समय – समय पर अलग- अलग तरह के ां अनिि होते ह।ैं अलग – अलग घिनाओ, दृश्यों या व्यवक्तगत िीिन से सम्प्बवित इन ु ं ं अनििों को सनाने के वलए अिसर दके र अध्यापक मोवखक िाषा का अभ्यास करा सकता ह ै । ु ु v. अिच्छेद – िार या पाठ का िार : पाठय – पस्तक या अन्य वकसी पवत्रका का कोई पाठ या ् ु ु रचना पढकर उसका सार तत्ि बताने के वलए कहा िाता ह ै । छात्र रचना की प्रमख बातें सक्षेप ु ं म ें व्यक्त करते ह ैं । इसी प्रकार वकसी पाठ का कोई अनच्छेद पढकर उसका सार बताने के वलए ु कहा िाता ह ै vi. वाद- र्ववाद : पि भ – वनिारभ रत विषय पर इसम ें बालक विचारों का आदान प्रदान करते ह ैं । ू कछ बालक विषय के पक्ष म ें और कछ विपक्ष म ें अपने विचार प्रस्तत करते ह ैं । ु ु ु vii. भाषण: पि भ वनिाभररत कोई रूवचकर विषय दके र, अध्यापक
छात्रों को िाषण दने े का अिसर ू प्रदान कर सकता ह ै । िाषण मौवखक अविव्यवक्त का एक आसान सािन ह ै । िाषा का विषय छात्रों के मानवसक स्तर के अनसार होना चावहए । ज़रूरत के अनसार छात्रों उवचत मागभदशनभ ु ु िी करना चावहए । समय- समय विविन्न िाषण प्रवतयोवगताओ का आयोिन करके छात्रों क
ो ं िाषण म ें िाग लेने के वलए प्रोत्साहन करने का प्रयास िी करना चावहए । viii. िाटक- कला: नािक मौवखक अविव्यवक्त के सिी गणों को विकवसत करने के वलए एक ु उपयोगी सािन ह।ै इसम ें िाग लेने िाले विद्याथी को पात्र के चररत्र के अनसार सही हाि- िाि, ु उतार चढाि के साथ एि प्रिाह के साथ सिाद प्रस्तत करने होते ह ैं । इस प्रकार उवचत नािक ु ं ं का चनाि कर, अध्यापक को छात्रों क नािक मचन म ें पण भ सहयोग दने ा चावहए । इससे छात्र ु ू ू ं परी लगन के साथ मौवखक अवबव्यवक्त की विविि शवै लयों को सीखते तथा उसका अभ्यास ू करते ह ैं । ix. कर्वता पाठ : छोिे बच्चे गीत सनाने ि सनाने दोनों म ें ही कािी रुवच लेते ह।ैं अतः कवितायें ु ु याद कराके उन्ह ें कविता पाठ के वलए प्रेररत करना चावहए । उवचत हाि – िाि ि अग सचालन ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 103 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् के साथ कविता पाठ करने म ें उन्ह ें बहत आनद का अनिि होता ह ै । इसवलए कविता पाठ ु ु ं मौवखक अविव्यवक्त की वशक्षा दने े का एक उपयोगी सािन ह ै । x. अन्त्याक्षरी प्रर्तयोर्गता : इस सावहवत्यक विया म ें बालक कविताओ को कठस्थ करते ह ैं ं ं और प्रवतयोवगता के समय पहले दल के द्वारा कही गयी कविता विस िण भ पर समा्त होती है, उसी िण भ से शरू होने िाली कविता सनाते ह ैं । इससे बच्चों म ें कविता के प्रवत रुवच उत्पन्न ु ु होती ह ै और मौवखक अविव्यवक्त का अभ्यास िी होता ह ै । xi. िस्वर वाचि : पाठय – पस्तक का पाठ शरू करते समय वशक्षक को चावहए वक िह स्िय ् ु ु ं अनच्छेद का िाचन करे । विर विद्यावथभयों से िाचन कराए विससे वक मौवखक अविव्यवक्त का ु ं सकोच दर हो िाए । ं ू xii. कहािी के माध्यम िे पाठ को रोचक बिािा : बच्चे कहावनयों को बहत पसद करते ह ैं । ु ं अतः अध्यापक को चावहए वक िह पहले स्िय ही कहानी सनाये और विर बच्चों को उसी ु ं कहानी को सनान े के वलए कह े । इससे श्रिण कौशल एि मौवखक अविव्यवक्त कौशल दोनों को ु ं विकवसत करने म ें सहायता वमलती ह ै । मौर्खक अर्भव्यर्ि दोष कारण ,र्िदाि तथा उपचार बोलते समय तथा सस्िर पठन करते समय ततलाना , हकलाना, शब्दों का चबाना आवद मौवखक ु अविव्यवक्त दोष कहलाते ह ैं । मौवखक अविव्यवक्त दोष के मख्तः तीन कारण होते ह:ैं १. शारीररक ु विकार २. िय और आतक का िातािरण और ३. मानवसक अिरुद्ता। ं i. शारीररक विकार : मौवखक अविव्यवक्त का सीिा सबि िागवे न्ियों अथिा उच्चारण अियिों – ं विह्वा , कठ , दात ,
नाक, ताल आवद से ह ै । इनमें वकसी प्रकार विकार उत्पन्न होने से उच्चारण ू ं ं स्पष्ट नहीं हो पाता । मौवखक अविव्यवक्त के अविकााँश दोष उच्चारण सम्प्बवन्ित होते ह
ैं , िसै े ततलाना, िारी आिाज़ होना, अवतररक्त अननावसकता, शब्दों को चबाना आवद। श्रिणवे न्िया ाँ ु ु (कान) म ें दोष िी मौवखक अविव्यवक्त म ें आड़े आता ह ै , विसके कारण उच्चारण दोष आ िाता ह।ै िो बच्चे ठीक से सन नहीं पाते उन्ह ें बोलने म ें िी कवठनाई होती ह।ै ु ii. िय और आतक का िातािरण : चाह े घर हो या विद्यालय, िय और आतक का िातािरण ं ं बच्चे का सािवे गक सतलन वबगाड़ दते ा ह।ै िोिी माता- वपता के बच्चे हकलाने लगते ह ैं । ु ं ं अध्यापक की लगातार दाि ििकार से बच्चे म ें आत्मविश्वास की कमी हो िाती ह,ै िो उसकी ं मौवखक अविव्यवक्त को दोषपण भ बना दते ी ह ै । ू iii. मानवसक अिरुद्ता : बालक की मानवसक अिरुद्ता उसकी मौवखक अविव्यवक्त म ें बािक होती ह।ै ऐसे बालक की बवद्लवब्ि का स्तर सामान्य बच्चों की तलना म ें दो िष भ पीछे होता ह ै ु ु और िो अपेक्षाकत दरे से बोलना सीखते ह।ैं ृ िागन्े िीय य दोष िाले बच्चों को वनम्प्न लक्षणों से पहचाना िा सकता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 104 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् i. ऐसे बच्चे सामान ध्िवन िाले िणों म ें अन्तर नहीं कर पात े और एक ही सामान उसका उच्चारण करके पढते ह ैं , िसै े श ि स । ि े अलपप्राण ि महाप्राण िाले ध्िवनयों म ें िी ठीक से वििदे नहीं कर पाते। िसै े- क, ख, ि, ठ आवद । ii. ऐसे बच्चे बोलते या पढते समय हकलाते ह ैं , किी एकिण भ पर और किी एक शब्द पर ही उनकी िाणी रुक िाती ह ै । विससे अगला शब्द या िण भ देर से मखररत होता ह ै । इस कारण ु उनकी मौवखक अविव्यवक्त म ें प्रिाह नहीं रह पाता ह।ै iii. ऐसे बच्चे बोलते समय ततलाते ह ैं विससे श्रोता को उसका कथन समझने म ें कवठनाई होती ह।ै ु िलतः उनम े हीनता की िािना घर कर िाती ह ै तथा िो दसरे से बातचीत करने म ें घबराने लग ू िाते ह ैं । उपचारात्मक सहायता हते मागदभ शकभ वनदशे : अविव्यवक्त सम्प्बवन्ित दोषों तथा उनके कारणों का पता ु लगा लेने के बाद अध्यापक उन्ह ें सिारने के वलए वनम्प्न वलवखत उपचारात्मक सहायता कर सकते ह ैं । ु i. ततलाने िाले बच्चों को वनरतर बोलने का अभ्यास करिाए । यवद वनरतर अभ्यास से िी उनमें ु ं ं ं कोई सिार नहीं होता ह ै तो वकसी अच्छे डाक्िर से परामश भ का सझाि दिें ें । ु ु ii. ततलाने ि हकलाने िाले बच्चे को बोलने के अवतररक्त अिसर अिश्य प्रदान करें । उनका ु मनोबल ऊाँ चा करने के वलए उन्ह ें अवतररक्त अिसर अिश्य प्रदान करें । उनके साथ प्रेम एि ं सहानिवतपण भ रियै ा अपनाए।ाँ इस बात का विशेष ध्यान रखा िाना चावहए वक इन बच्चों के ु ू ू उच्चारण का कक्षा के अन्य बच्चे मिाक न उडाए । ं iii. इन बच्चों के सावथयों को प्रोत्सावहत करें वक ि े इनके साथ घल वमल िाए और उनका उच्चारण ु ं ठेक करने म ें उनकी हर प्रकार से सहायता करें । iv. कवठन ध्िवनयों का शद् उच्चारण करने के वलए और सीखाने के वलए िेप ररकाडभर , अन्य दृश्य ु श्रव्य सािनों तथा विविन्न सॉफ्ििये र का इस्तेमाल वकया िाना चावहए । अभ् याि प्रश् ि 12. मौवखक िाषा के महत्ि पर प्रकाश डावलए । 13. मौवखक िाषा से आप क्या समझते ह ैं ? 14. िाषा वशक्षण का स्िािाविक िम क्या ह ै ? 15. मौवखक िाषा के पाच महत्ि को उदाहरण सवहत समझाए । ं ं 16. नािय कला एि कविता पाठ वकस तरह से मौवखक िाषा के पररमािनभ म ें सहायक ह?ै ् ं 17. प्रश्नोत्तर एि िाताभलाप के अतर को स्पष्ट करें । ं ं 18. स्ितत्र आत्मप्रकाशन का अिसर से आप क्या समझते ह ैं ? ं 19. मौवखक िाषा के पररमािनभ वलए अध्यापक वकस तरह के वशक्षण विवियों एि सािनों का ं प्रयोग कर सकता ह ै ? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 105 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 20. विषय सम्प्बवित क्षेत्र म ें अविगम िवद् के वलए मौवखक िाषा प्रयोग करने की रणनीवत पर ृ ं प्रकाश डालें । 1.8 सारांश िाषा मानि समाि का सिाभविक महत्िपण भ आविष्कार ह ै । ध्िवन के विविि स्िरों और प्रस्ततीकरण के ू ु अन्यान्य रूपों के माध्यम से सवष्ट के समस्त प्राणी परस्पर सचनाओ एि िािनाओ का सम्प्प्रेषण करते ह ैं । ृ ू ं ं ं कक्षा कक्ष म ें सिाद का अपना ही महत्ि ह ै क्योंवक कक्षा म ें सिाद के द्वारा ही अविकााँश अविगम सपन्न ं ं ं होता ह।ै इसके अिाि म ें अविगम की कलपना ही सिि नहीं ह ै । । यवद कक्षा म ें सिाद दोनों ही तरि ं ं से ( विद्याथी एि वशक्षक ) के तरि से आिश्यकतानसार ठीक ढग से हो रहा ह ै तो इस तरह का अविगम ु ं ं सदिै बेहतर होता ह ै । कक्षा म ें सिाद की प्राकवत को वनम्प्न तरीके से समझा िा सकता ह ै । ृ ं 1. लोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत ं ं 2. अलोकतावत्रक सिाद पररवस्थवत ं ं मनष्य एक सामाविक प्राणी ह ै िह अपने सोच एि विचार को एक दसरे तक लेन- दने करना चाहता ह ै । ु ं ू इस काम के वलए िह िाषा के दोनों रूपों
का प्रयोग करता ह ै । िाणी (Speech) ि वलवखत रूप (Written form)– िब व्यवक्त, ध्िवनयों के माध्यम से, मख के अियिों के मदद से, उच्चररत िाषा ु का प्रयोग करते हए अपने विचारों को प्रकि करता ह ै तब उसे मौवखक अविव्यवक्त कहा िाता ह ै । ऐस े ु तो बालक अनकरण द्वारा मौवखक िाषा का प्रयोग
स्ितः ही करने लगता ह ै परन्त विद्यालय में ु ु औपचाररक रूप से इस कौशल को विकवसत करने का प्रयास वकया िाता ह ै । विशेषकर िाषा के अद्यापक को इस बात का ज्ञान अिश्य होना चावहए वक िह मौवखक िाषा- कौशल को विकवसत करने की दृवष्ट से छात्रों को वकस तरह से बोलना वसखाये और उनके मौवखक अविव्यवक्त कौशल को क्या वदशा प्रदान करे 1.9 शब्द ावली 1. लोकतार्त्रक िवाद पररर्स्थर्त (Democratic Discourse Situation): लोकतावत्रक ां ां ं सिाद पररवस्थवतयााँ िो पररवस्थवतयााँ होतीं ह ैं विनमें विद्याथी एि वशक्षक को सामान अविकार ं ं प्रा्
त होते ह ैं । 2. अलोकतार्त्रक िवाद पररर्स्थर्त (Non-Democratic Discourse Situation) : ां ां अलोकतावत्रक सिाद प्रकवत विद्याथी कें वित न होकर वशक्षक कें वित होती ह
।ै इसम ें विद्यावथभयों ृ ं ं के स्थान पर वशक्षक की प्रिानता होती ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 106 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3. वाक्य शब्द और अक्षर (Sentence, word and letter) : मौवखक िाषा िाक्यों के माध्यम से अविव्यक्त होती ह ै । िाक्य मौवखक िाषा के मौवलक इकाई ह ै । मौवखक िाषा म ें यवद किी शब्द या क्षर का एक इकाई के रूप म ें प्रयोग होता ह ै तो िह िी िाक्य का स्थानपन्न होता ह ै 4. वाद- र्ववाद (Debate) : पि भ – वनिाभररत विषय पर इसमें बालक विचारों का आदान प्रदान ू करते ह ैं । कछ बालक विषय के पक्ष म ें और कछ विपक्ष म ें अपने विचार प्रस्तत करते ह ैं । ु ु ु 5. हाव भाव एव अग िचालि : हाि- िाि का तात्पयभ ह ै बात करते हए माथे की वसकडन तथा ु ु ां ां ां शरीर के ने वहस्सों के हरकतों से कथ्य कपो अविक स्पष्ट और िािपणभ बनाने का प्रयास करना । ू इसी प्रकार का प्रयास िब हाथों की अगवलया, मट्ठी, बाि और कन्िों की सहायता से होता ह ै ु ु ू ं ं तो अग- सचालन कहलाता ह ै । ं ं 1.10 संदि भ ग्रंथ सची ू 1. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पिना: रािकमल। ु ू ं 2. चॉम्प्स्की, एन. 1957, वसनिेवक्िक स्रक्चस,भ दी हगे : मौिेन क.। ं 3. चॉम्प्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑि वस्कनसभ िबभल वबहवे ियर. लैंग्ििे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्प्स्की, एन. 1972, लैंग्ििे एड माइड, न्ययाकभ : हारकोिभ ब्रास िोिानोविच। ू ं ं 5. चॉम्प्स्की, एन. 1996, पॉिसभ एड प्रोस्पेक्िस: ररिलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल आडभर, ् ं ं ं ू वदलली: माध्यम बक्स। ु 6. चॉम्प्स्की, एन. 1965, आस्पेक्िस ऑप़ि द थ्योरी ऑि वसनिेक्स, कैं वब्रि: एम. आइ.भ िी. प्रेस। ् 7. चॉम्प्स्की, एन. 1986, नॉलेि ऑि लैंग्ििे , न्ययाकभ : प्रागर। ू 8. चॉम्प्स्की, एन. 1988, लैंग्ििे एड प्रॉब्लम्प्स ऑप़ि नॉलेि, ििैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी.। ं 9. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेि प्लावनग इन इवडया, वदलली: हरनाम पवब्लशसभ। ं ं ु 10. हबै रमास, ि.े 1998, ऑन द प्रागमवै िक्स ऑि कम्प्यवनिेिशन, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. ु प्रेस। 11. हबै रमास, ि.े 1998, दी विलॉसविकल वडसकोसभ ऑप़ि मॉडवनभिी, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. प्रेस। 12. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, िारत सरकार 1966 ं 13. नेशनल पॉवलसी ऑन एिके शन, 1986, मानि ससािन विकास मत्रालय, वशक्षा वििाग, नयी ु ं ं वदलली। 14. पिनायक, डी. पी. 1981, मलिीवलगएवलज्म एड मदर-िग एिििे शन, ऑक्सपिोडभ यवनिवसभिी ु ु ू ं ं ं प्रेस। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 107 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 15. पिनायक, डी. पी. 1986, स्िडी ऑि लैंग्ििे ेि, ए ररपोिभ, नयी वदलली: एन.सी.इ.भ आर.िी। 16. ररचड्रस, ि.े सी. 1990, दी लैंग्ििे िीवचग मवै रक्स, कै वब्रि :कै वब्रि यवनिवसभिी प्रेस। ू ं ् 17. सायर, डी. 1924, दी इपैिक्ि ऑप़ि बाइवलगवलज्मम ऑन इिेवलिसें , वब्रविश िनभल ऑप़ि ु ं ं साइकोलॉिी 14:25-38 18. श्रीिर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदलल ी, मनोहर। ु ं ं ं 19. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगण), िारतीय िाषा विज्ञान की ु ं ं िवमका, वदलली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 20. यनेस्को, 2003, एिके सन इन ए मलिीवलगएल िलडभ, यनेस्को एिके शन पोविशन पेपर, पेररस। ू ु ु ू ु ं 21. व्योगोत्सकी, एल. एस. 1978, माइड इन सोसायिी: दी डेिलपमिें ऑप़ि हायर ं साइकोलॉविकल प्रोसेस, ििैं वब्रि, मॉस: हािडभ यवनिवसभिी प्रेस। ू 22. िमील, िी. 1985, रेस्पोंवडग ि स्िडेंि राइविग, िी. इ.भ एस. ओ. एल. त्रैमावसक, 19.1 ू ू ं ं 23. इस िबे साइि को िरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 1.11 वनबिात्म क प्रश्न ं 1. मौवखक िाषा के पररमािनभ वलए अध्यापक वकस तरह के वशक्षण विवियों एि सािनों का प्रयोग ं कर सकता ह ै ? 2. मौवखक िाषा का मानि िीिन म ें क्या महत्ि ह ै ? प्रकाश डावलए । 3. मौवखक िाषा के तत्ि कौन –कौन से ह ैं ? स्पष्ट करें । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 108 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 2 - सीिने के उिकरण के रूि में िवरचचा, कक्षा- कक्ष में प्रश्नों का स्िरुि, प्रश्नों के प्रकार एिां विक्षक की भूवमका Discussion as Tool for Learning, the Nature of Questioning in the Classroom, Types of Questions and Teachers Role 2.1 प्रस्त ािना 2.2 उद्दश्े य 2.3 सीखने के उपकरण के रूप में पररचचाभ 2.4 कक्षा- कक्ष में प्रश्नों का स्िरुप 2.5 प्रश्नों के प्रकार 2.6 वशक्षक का वनयत्रण ं 2.7 साराश ं 2.8 शब्द ािली 2.9 वनबिात् मक प्रश्न ं 2.10 सदिभ ग्रथ सची ू ं ं 2.1 प्रस्त ावना व्यवक्त बहत सी ज्ञान की बातें एक दसरे सन कर िान पाता ह ै और इस तरह का प्रा्त ज्ञान तलनात्मक दृवष्ट ु ु ु ू से स्थायी िी होता ह ै । वकसी िी िाषा का ज्ञान , बोि एि उपयोग के िल कक्षागत पररवस्थवतयों म ें ं पाठयिस्त के घिकों और िाषा तत्िों के ज्ञान और अभ्यास से पररपण भ नहीं होता । िाषा सिीि और ् ु ू सिदे नशील परम्प्परा ह।ै िह िक्त समाि और पररवस्थवतयों के साथ िीती ह ै और उन्ह ें गवत प्रदान करती है। ं इसवलए िाषा का पण भ व्यािहाररक ज्ञान के िल पाठयपस्तकों के अध्ययन से , और परीक्षाए प्रा्त कर के ् ू ु ं नहीं पाया िा सकता । वकसी िी विषय को सीखने के वलए विविन्न प्रकार के उपागमों का प्रयोग करना चावहए । इन उपागमों म ें पररचचाभ एक अवत महत्िपण भ उपागम ह ै । प्रस्तत इकाई म ें हम लोग पररचचाभ के ू ु महत्ि एि कक्षा –कक्ष म ें विविन्न प्रकार के प्रश्नों के प्रयोग पर प्रकाश डाला गया ह ै । ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 109 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 2.2 उद्दश्े य इस इकाई के अध्ययन के पिात आप- 1. सीखने के उपकरण के रूप म ें पररचचाभ के महत्ि को समझ सकें ग े । 2. कक्षा-कक्ष म ें प्रश्नों के विविन्न स्िरुप को िान पाएग े ं 3. प्रश्नों के विविन्न प्रकारों के उपयोग के बारे म ें समझ पाएग े । ं 4. कक्षा- कक्ष म ें वशक्षक का वनयत्रण कै सा होना चावहए िान पाएग े । ं ं 2.3 सीिने के उपकरण के रूप म पवरचचा (Discussion as a tool for ें learning) पररचचाभ का अथभ ह ै – वकसी विषय के सिी पहलओ पर विचार- विमश भ । पररचचाभ के वलए विषय सम- ु ं सामवयक घिनाओ और चचाभ म ें आये सन्दिों से चना िा सकता ह ै । इस प्रकार की गवतविवि के वलए ु ं अलग से समय वनकालने या तैयारी की आिश्यकता नहीं होती । वकसी वदन कक्षा म ें पहचाँ ाने पर आप ु यवद पायें वक विद्याथी वकसी विषय विशेष पर चचाभ के वलए उत्सक ह ैं तो पररचचाभ के शरुआत की िा ु ु सकती ह ै । यह विषय खले , रािनीवत , कोई विशषे घिना या वनणयभ िी हो सकता है। पररचचाभ ले वलए ज़्यादा समय िी खचभ करने की आिश्यकता िी नहीं होती । वशक्षक चने हए विषयों पर विद्यावथभयों को ु ु अपने –अपने विचार प्रस्तत करने के अिसर द ें और अत म ें अपने विचारों का समािेश करते हए चचाभ का ु ु ं सार प्रस्तत कर द ें । ऐसी चचाभ अनेक बार कोई पाठ या प्रकरण पढते हए िी सामने आ सकती ह ै । ु ु आिश्यकता इस बात को समझने की ह ै की ऐसी चचाभए या विचार विमश भ किी िी व्यथभ या समय की ं बबादभ ी नहीं होते , अवपत विद्यावथभयों को विषय और िाषा ज्ञान के साथ साथ प्रस्ततीकरण का अिसर िी ु ु प्रदान करते ह ैं । पररचचा भ के दौरान कछ बातों का ध्यान रखा िाए तो इसे ज़्यादा उपयोगी बनाया िा ु सकता ह ै । सबसे पहली बात यह की पररचचाभ का विषय वकसी न वकसी प्रकार से विद्यावथभयों से सबद् ं होना चावहए और उनके वलए उपयोगी िी । दसरी बात की विद्यावथभयों को चचाभ के विषय से ििकने न दने े ू के वलए वशक्षक को पणतभ ः सचेत रहना चावहए । यवद विद्याथी अपने विचार प्रस्तत करते हए विषय से ु ू ु ििक रह ें हों तो वशक्षक को हस्तक्षेप करना चावहए और चचाभ को पनः विषय पर कें वित करना चावहए । ु तीसरी बात वक सिी विद्यावथभयों की अपनी विचार रखन े की स्ितन्त्रता और पयाभ्त अिसर वमलना चावहए। िो पक्ष म ें िो कछ कहना चाह ें िह पक्ष म ें अपनी बात रख े , वकन्त विपवक्षयों को िी हतोत्सावहत ु ु नहीं वकया िाना चावहए । अवतम बात प्रश्नोत्तर , विचार विवनमय और स्पस्िीकरण िसै ी पररचचाभ के सिी ं गवतविवियों के दौरान प्रवतिावगयों की िाषा सिी हयी , आिशे एि प्रवतशोि से मक्त और सयत होनी ु ु ं ं चावहए , तावक चचाभ वकसी पररणाम तक पहचे और सिी पक्षों के प्रवतिावगयों को सत्य का पररचय वमल ु ं सके । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 110 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अभ् याि प्रश् ि 1. पररचचाभ से आप क्या समझते ह ैं ? 2. पररचचाभ के वलए आिश्यक तत्िों का उललेख करें । 3. पररचचाभ के दौरान वकन बातों का ध्यान रखना चावहए । 2.4 कक्षा – कक्ष म प्रश्नों की प्रकृवत (The nature of questions in ें classroom) प्रश्न पछने का कौशल कक्षा – कक्ष की पररवस्थवतयों हते एक बहत ही महत्िपण भ कौशल ह ै । इस कौशल ु ू ु ू के द्वारा अध्यापक कक्षा म ें रुवच बनाए रखने के साथ- साथ विद्यावथभयों के ज्ञान एि वनष्पवत्त का िस्तवनष्ठ ु ं मलयाकन िी करता ह।ै हमारे वशक्षा व्यिस्था म ें विद्यावथभयों की वनष्पवत को िानने और समझने के वलए ू ं अध्यापक यवद के िल औपचाररक माध्यम (सत्रात परीक्षा) पर वनिरभ रहगे ा तो िह उसके व्यवक्तत्ि के ं अन्य पहलओ का वनरपेक्ष मलयाकन कर पाने म ें शायद ही सक्षम हो पाए । इसवलए अध्यापकों को कक्षा- ु ू ं ं कक्ष पररवस्थवतयों म ें ि े विन्न विन्न तरह के प्रश्न पछ कर उनके आत्मविश्वास म ें िवद् के साथ- साथ ृ ू आत्म प्रकाशन के सहि अिसर िी प्रदान करने चावहए । हम यह बात ठीक तरीके से िानते ह ैं वक आिवनक समय म ें व्यवक्त अपने मनोिािों का प्रकिीकरण िाषाके माध्यम से दो रूप म ें ि सकता ह ै । ु ं १. मौवखक िाषा २. वलवखत िाषा मानि प्रिानतः अपनी अनिवतयों तथा मनोिािों की अविव्यवक्त सहिता से मौवखक िाषा म ें ही करना ु ू पसद करता ह ै । वलवखत िाषा, गौण तथा उसकी प्रवतवनवि मात्र ह,ै क्योंवक िािों की अविव्यवक्त का ं सािन सािारणतः सिप्रभ थम उच्चाररत िाषा ही होती है। इसवलए िी विद्यावथभयों से प्रश्न पछते रहना ू चावहये विससे वक उनके मनोिािों का प्रकाशन होते रह े । विद्यालयों म ें वहन्दी, सस्कत, अग्रेज़ी, आवद ृ ं ं विविन्न िाषाए ाँ पढ़ाई िाती ह ैं । इसके अवतररक्त िी विविन्न विषय यथा िगोल, इवतहास , विज्ञान पढाये ू िाते ह।ैं इन सिी विषयों को पढ़ाने के वलए अध्यापक पस्तक पढिा कर अपन े कतभव्यों की इवतश्री समझ ु लेते ह ैं । छात्र यवद कछ िी बातचीत करता ह ै तो सामान्यतया उसे डाि वदया िाता ह।ै मनोिज्ञै ावनकों और ु ं िाषाशावस्त्रयों ने अपने प्रयोगों के आिार पर यह मत व्यक्त वकया ह ै वक बोलचाल के द्वारा ही विद्याथी ज़लदी सीखता ह ै । प्रश्नोत्तर विवि की सबसे बड़ी विशषे ता यही ह ै वक इसके
द्वारा विद्यावथभयों को बोलन े का अिसर वमलता ह ै । कक्षा- कक्ष में प्रश्न पछिे का उद्देश्य (Objective of questioning in classroom): ऐसे तो ू िीिन के हर एक क्षेत्र म ें वकसी िी कायभ को करने के बाद इस बात की िाच की िाती ह ै वक उस कायभ म ें ं कत्ताभ को वकतनी सिलता वमली ह ै , परन्त वशक्षा के क्षेत्र म
ें यह और िी ज़रूरी हो िाता ह ै वक वशक्षण ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 111 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् प्रविया को विस उद्दश्े य की प्राव्त के वलए परा वकया गया ह ै उन उद्दश्े यों की पवतभ में वकतनी सिलता ू ू वमली ह ैएि उन उद्दश्े यों की प्राव्त वकस स्तर तक हयी ह ै। वकसी िी विषय म ें वनिाभररत ज्ञान , कौशल तथा ु ं योग्यताओ को तरत पता लगाने के वलए कक्षा म ें प्रश्न पचना आिश्यक होता ह ै । िाषा- वशक्षण म ें कक्षा ु ू ं ं म ें प्रश्न पछने की आिश्यकता वनम्प्न रूप म ें स्पष्ट कर सकते ह ैं ू १. छात्रों की कमजोररयों को दर करिे एव उिकी प्रगर्त में िहायता के र्लये ( To ां ू eliminate the weakness of student and for their development): कक्षा म ें अध्यापक िब प्रश्न पछता ह ै तो विद्याथी एि अध्यापक दोनों को वकस वबद पर और अविक ू ं ं ु पररश्रम करने की आिश्यकता ह ै का नमान चल िाता ह ै एि अध्यापक के मागदभ शनभ म ें विद्याथी ु ं विवशष्ट अभ्यास कर अपनी कमिोररयों को दर कर िाषा सम्प्बवित विशेष योग्यताओ को ं ं ू विकवसत करने के वलए प्रयासशील होते ह ै । २. छात्रों को अध्ययि के र्लए प्रेररत करिा(To motivate the students for study) : प्रश्न पछन े से विद्यावथभयों को पढ़ाई करने की िी प्रेरणा वमलती ह ै । िो विद्याथी वनयवमत रूप स े ू अध्ययन कायभ नहीं करत े अध्यापक को उन्ह ें विशषे रूप से प्रश्न पचना चावहए विससे उनके अदर ू ं अध्ययन की आकाक्षा बनी रह े । ं ३. र्शक्षण र्वर्धयों के उर्चत चिाव एव प्रयोग में िहायक : वशक्षण प्रविया एक वत्रध्रिीय ु ु ां प्रविया ह।ै वशक्षण उद्दश्े य के वनिाभरण के पिात उनकी प्राव्त के वलए अध्यापक वशक्षण कायभ को वियावन्ित कताभ ह ै । वशक्षण विया को कशलता पिकभ सपन्न करने के वलए अध्यापक विविन्न ु ू ं प्रकार के वशक्षण विवियों का प्रयोग करता ह।ै कक्षा म ें विविन्न तरह के प्रश्न पछने से विद्यावथभयों ू के वनष्पवत्त का अनमान वशक्षक हो िाता ह।ै ु ४. शैर्क्षक एव व्याविार्यक मागादशाि में िहायक : कक्षा म ें प्रश्न पछने के दौरान वशक्षक को ू ां विद्याथी के अविरूवच के क्षेत्र का पता चल िाता ह ै । विससे वक िह आसानी से शवै क्षक एि ं व्यािसावयक मागदभ शनभ प्रदान कर सकता ह ै । अभ् याि प्रश् ि 4. कक्षा- कक्ष म ें प्रश्न पछने के उद्दश्े यों पर प्रकाश डालें ? ू 5. कक्षा- कक्ष म ें प्रश्नों की प्रकवत वकस प्रकार की होनी चावहए ? प्रकाश डालें । ृ 6. कक्षा कक्ष म ें प्रश्न पछना वकस प्रकार से छात्रों की कमिोररयों को दर करने एि उनकी प्रगवत म ें ू ं ू सहायक वसद् हो सकता ह ै ? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 112 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 2.5 प्रश्नों के प्रकार एवं वशक्षक का वनयंत्रण (Types of Questions and Teachers control) वशक्षा का उद्दश्े य विद्यावथभयों के व्यिहार में सकारात्मक पररितभन लाना ह ै तावक ि े अपनी अन्तवनभवहत शवक्तयों का अविकाविक विकास कर सकें । वशक्षण इस उद्दश्े य की सािना की प्रविया ह ै । वशक्षण प्रविया अपने लक्ष्य एि उद्दश्े य म ें वकतनी सिलता प्रा्त वकया ह ै इसका सिी
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क ज्ञान होना अवत ं आिश्यक ह ै । विद्यावथभयों को ठीक प्रकार का ज्ञान हआ ह ै या नहीं इसका पता लगाने के वलए सबसे सरल ु एि सीिा माध्यम कक्षा म ें पछा िाने िाला प्रश्न ह ै । इन प्रश्नों की सहायता से वशक्षक कक्षा म ें अपना ू ं वनयत्रण िी स्थावपत करता ह ै । प्रश्नों की सहायता से वशक्षक कक्षा म ें अनशासन के साथ ज्ञान ििभन का ु ं कायभ िी करता ह ै । कक्षा म ें मलतः वनम्प्न तीन के प्रश्न पछे िाने चावहए । ू ू i. र्वचारात्मक प्रश्न : विचारात्मक प्रश्न मलतः वनबिात्मक प्रश्न होते ह ैं । इन प्रश्नों का कोई एक ू ं उत्तर नहीं होता ह।ै अपने विचार प्रस्तत करने की इस प्रकार के प्रश्नों म पण भ स्ितत्रता होती ह ै । ु ू ं ं ii. र्वस्तत उिर वाले र्िबधात्मक प्रश्न : ऐसे प्रश्नों म ें स्ितत्र अविव्यवक्त वक वलए स्ितत्रा होने के ृ ां ं ं साथ साथ प्रश्नों के उद्दश्े य िी स्पष्ट होते ह ैं और उत्तर की सीमा िी बहत हद तक वनिाभररत रहती ु ह ै । iii. भाषा परीक्षा एव वस्तर्िस्ठ प्रश्न: के िल वनबिात्मक एि लघ उत्तरात्मक प्रश्न
ों से ही िाषा ु ु ां ं ं एि सावहत्य की परीक्षा नहीं की िा सकती ह ै । िस्त वनष्ठ प्रश्नों के ऊतर म ें स्ितत्र िाि या विचार ु ं ं प्रकाशन की छि नहीं रहती ह ै । ू प्रश्नोिर र्वर्ध के लाभ (Advantages ofquestion answer method): प्रश्नोत्तर विवि का सबस े महत्िपण भ लाि यह ह ै वक इससे विद्यावथभयों म ें आत्मविश्वास की िवद् के साथ-साथ उनके मौवखक ृ ू अविव्यवक्त का कौशल िी बेहतर होता ह ै । इसवलए विद्यावथभयों से उनकी रुवच, अनिि तथा योग्यता के ु आिार पर ही प्रश्न पछे िाने चावहए । प्रश्न िाताभलाप के रूप म ें िी पछे िा सकते ह।ै प्रश्न की िाषा सरल ू ू स्पष्ट तथा विचारोदबोिक होनी चावहए । प्रश्नोत्तर विवि के वनम्प्न लाि ह ैं 1. विद्याथी म ें अपने अनिि , िाि तथा विचारों को को शद् , स्िािाविक, स्पष्ट तथा प्रिािपण भ ु ु ू शब्दों म ें बोलकर व्यक्त करने की योग्यता उत्पन्न करता ह ै । 2. सकोच एि वझझक को दर कर दसरे के सम्प्मख यवक्तपण भ ढग से अपना मत व्यक्त ि सकने की ु ु ू ं ं ं ू ु कशलता पैदा करता ह ै । ु 3. उत्तर दते े समय अपनी बात तावकभ कता एि मिरता से के साथ रखने के हनर का विकास होता ह ै । ु ु ं 4. इससे बोलचाल के सामन्य दोष का वनिारण िी होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 113 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् कक्षा में र्शक्षक की भर्मका (The role of teacher in classroom ): बच्चों को समवचत वशक्षा ू ु तथा सिल अध्यापन म ें वशक्षक की िवमका कािी महत्िपण भ होती ह ै । अतः यहा हम वशक्षक की ू ू ं ं िवमका वनम्प्न स्तिों म ें देखने का प्रयास करेंग े । ू ं i. कक्षा के अतगभत वशक्षक की िवमका सिप्रभ थम एक मनोिैज्ञावनक (Psychologist) के रूप म ें ू ं होती ह ै । वशक्षक के वलए यह आिश्यक ह ै वक िह कक्षा में उपवस्थत बच्चों की आिश्यकताओ ं (Necessities) , प्रेरणाओ (Motivations) एि मनोिवतयों (Attitude) की िानकारी रख े । ृ ं ं वशक्षक बच्चों को समझने में विस सीमा तक सिल होते ह ैं उसी सीमा तक कक्षा म ें उनका वनयत्रण एि अध्यापन प्रिािी होता ह ै तथा बचे वशक्षण से लािावन्ित िी हो पाते ह ैं । ं ं ii. वशक्षक की िवमका एक सलाहकार (Counsellor) की िावत िी ह ै । ऐसे बच्चे िी होते ह ैं िो ू ं अपने आप को उपेवक्षत तथा वतरस्कत महसस करते ह ैं । इन्ह ें हम पथक बालक (Isolated ृ ृ ू Children) कहते ह ैं । अतः एक सिल वशक्षक ऐसे बच्चे की सहायता करता ह ै तथा उसके समायोिन समस्या (Adjustment Problem )के समािान का प्रयास करता ह ै । इसी तरह पढ़ाई छोडना (Drop Out), गहै ाविर होना (Absenteeism)आवद के कारणों को िानने तथा इनके वनराकरण के वलए सिल वशक्षक प्रयास करता ह ै । iii. कक्षा के अतगतभ वशक्षक सबसे महत्िपण भ िवमका नेता
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की होती ह ै । वशक्षक अपने िग भ का नेता ू ू ं होता ह ै । नेतत्ि के कई प्रकार होते ह ैं विनम ें सत्तािारी नेतत्ि , प्रिातावत्रक नेतत्ि एि न अड़चन ृ ृ ृ ं ं डालने िाला नेतत्ि मख्य ह ै । वशक्षक वकस प्रकार के नेतत्ि की िवमका अदा करता ह,ै इस बात ृ ृ ु ू पर उसके अध्यापन की प्रिािशीलता वनिरभ करती ह ै । इस सम्प्बन्ि पर अनेक प्रयोगात्मक अध्ययन वकये गए ह ैं और यह दखे ने का प्रयास वकया गया ह ै वक वकस प्रकार क
ा नेतत्ि बच्चों को ृ सही वशक्षा के वलए उपयोगी ह ै । सत्तािारी नेतत्ि का अथभ ऐसे नेतत्ि से ह,ै विसम ें वशक्षक सब कछ होता ह ै । वशक्षक ही ृ ृ ु विद्यावथभयों को आदशे दते ा ह ै और विद्याथी उसके आदशे ों का पालन करते ह ैं । इस तरह के नेतत्ि ृ म ें वशक्षक सविय होता ह ै और वशक्षाथी वनवष्िय , दसरी ओर प्रिातावत्रक नेतत्ि के अतगभत ृ ं ं ू अविकारों का विके न्िीकरण (Decentralisation)पाया िाता ह ै । वशक्षक तथा वशक्षावथभयों के बीच मत्रै ीपण भ सम्प्बन्ि , सहयोग एकता का िाि आवद विशषे ताए दखे ी िाती ह ै । न अड़चन ू ं डालने िाला नेतत्ि का तात्पयभ ऐस े नेतत्ि से ह ै विसके अतगतभ वशक्षक नेता के रूप म ें के िल नाम ृ ृ ं का रहता ह ै िह बच्चों को परी स्ितत्रता द े दते ा ह ै और उनके व्यिहारों म ें वकसी तरह की बािा ू ं अपनी ओर से नहीं डालता ह ै । iv. विन्न – विन्न प्रकार के नेतत्ि के पररणामों को दखे ने के वलए कई सारे प्रयोगात्मक अध्ययन ृ (Experimental Studies) वकये गए । खास कर प्रािातावन्त्रक नेतत्ि (Democratic ृ Leadership) तथा सत्तािार नेति (Authoritarian leadership) के प्रिािों को दखे ने के वलए ृ लेविन , वलवपि तथा ह्वाईि(Levin, Lipit and White, 1939) तथा वलवपि एि ह्वाईि (Lipit ं and White, 1943) ने बच्चों पर अध्ययन वकया , उन्होंने दखे ा वक सत्तािारी नेतत्ि के अतगतभ ृ ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 114 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् बच्चों के व्यिहार प्रिातावत्रक नेतत्ि से विन्न हए । वशक्षा को ध्यान म ें रखते हए प्रिा तावत्रक ु ु ृ ं ं नेतत्ि पर बल वदया गया ह ै । शीन (Schein, 1979) के अनसार बड़े सगठन के वलए प्रिातावत्रक ृ ु ं ं नेतत्ि तथा छोिे सगठन के वलए सत्तािारी नेतत्ि अविक सिल ह ै । न अड़चन डालने िाला ृ ृ ं नेतत्ि (Laisseiz faire leadership) वकसी ि े सगठन के वलए उपयक्त नहीं ह ै । यह बात िग भ या ृ ु ं क्ष पररवस्तती म ें िी वशक्षक की िवमका पर िी लाग हो सकती ह ै । ू ू v. कक्षा म ें वशक्षक एक विशषे ज्ञ (Expert ) की िवमका म ें होता ह ै । अतः वशक्षक को अपने ू अध्यापन विषय की पयाभ्त िानकारी होनी चावहए तावक छात्रों को अध्यापन से अविक से अविक लाि वमल सके । वशक्षक को वशक्षा के उद्दश्े य से अिगत होना चावहए वक वशक्षा ितभमान समय में बाल कें वित (Child Centred) हो चली ह ै ।और इसका उद्दश्े य ह ै वक बालक का सिाांगीण विकास (All-round Development) हो अथाभत मानवसक विकास (Mental Development) , शारीररक विकास (Physical Development) , हस्तकौशल विकास (Hand skill development) तथा हृदय विकास का समवचत रूप से हो सके । ु vi. वशक्षक का एक आिश्यक गण ह ै स्नेह, सहानिवत , प्यार, क्षमाशीलता (Forgiveness) तथा ु ु ू त्याग (Sacrifice) । ये सिी गण िास्ति म ें एक माता के गण कहलाते ह ैं । इसी अथभ में कहा ु ु िाता ह ै वक कक्षा म ें वशक्षक को अपने छात्रों के साथ ऐसा सद्भाि रखना चावहए िसै ा माताए ं अपने बच्चों के प्रवत रखती ह ै । लेवकन माता की िवमका म ें वशक्षक को सिगे ों (Emotions) पर ू ं वनयत्रण िी रखना चावहए। ं अभ् याि प्रश् ि 7. कक्षा म ें वशक्षक की िवमका (The role of teacher in classroom ) पर प्रकाश डालें । ू 8. कक्षा म ें विविन्न
3%
0.9%
0.6%
0.3%
0.2%
0.2%
0.2%
प्रकार के नेतत्ि पर प्रकाश डालें ? ृ 9. वशक्षक की िवमका एक सलाहकार (Counsellor)की िावत होती ह ै । इस कथन की व्याख्या ू ं करें 10. कक्षा म ें मलतः वकतने प्रकार के प्रश्न पछे िाने चावहए ? उदाहरण सवहत समझाए । ू ू ं 2.6 िाराश ां वकसी िी िाषा का ज्ञान , बोि एि उपयोग के िल कक्षागत पररवस्थवतयों म ें पाठयिस्त के घिकों और ् ु ं िाषा तत्िों के ज्ञान
और अभ्यास से पररपण भ नहीं होता । िाषा सिीि और सिदे नशील परम्प्परा ह।ै िह ू ं िक्त समाि और पररवस्थवतयों के साथ िीती ह ै और उन्ह ें गवत प्रदान करती ह ै । इसवलए िाषा का पण भ ू व्यािहाररक ज्ञान के िल पाठयपस्तकों के अध्ययन से , व्याकरण के अभ्यास से और परीक्षाए प्रा्त कर के ् ु ं नहीं पाया िा सकता । िाषा सीखने के वलए विविन्न प्रकार के उपागमों का प्रयोग करना चावहए । इन उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 115 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् उपागमों म ें पररचचाभ एक अवत महत्िपण भ उपागम ह ै । विद्यावथभयों को ठी
क प्रकार का ज्ञान हआ ह ै या नहीं ु ू इसका पता लगाने के वलए सबसे सरल एि सीिा माध्यम कक्षा म ें पछा िाने िाला प्रश्न ह ै । इन प्रश्नों की ू ं सहायता से वशक्षक कक्षा म ें अपना वनयत्रण िी स्थावपत करता ह ै । प्रश्नों क
ी सहायता से वशक्षक कक्षा म ें ं अनशासन के साथ ज्ञान ििभन का कायभ िी करता ह ै । ु 2.7 शब्द ावली 1. पररचचाा : वकसी विषय के सिी पहलओ पर विचार- विमशभ करना ु ं 2. ििाधारी िेतत्व : सत्तािारी नेतत्ि का अथभ ऐसे नेतत्ि से ह,ै विसम ें वशक्षक सब कछ होता ह ै । ृ ृ ृ ु वशक्षक ही विद्यावथभयों को आदशे दते ा ह ै और विद्याथी उसके आदशे ों का पालन करते ह ैं । इस तरह के नेतत्ि म ें वशक्षक सविय होता ह ै और वशक्षाथी वनवष्िय। ृ 3. प्रजातार्त्रक िेतत्व : प्रिातावत्रक नेतत्ि के अतगतभ अविकारों का विके न्िीकरण ृ ृ ां ं ं (Decentralization) पाया िाता ह ै । वशक्षक तथा वशक्षावथभयों के बीच मत्रै ीपण भ सम्प्बन्ि , सहयोग ू एकता का िाि आवद विशषे ताए दखे ी िाती ह ै । ं 4. अड़चि डालिे वाला िेतत्व (Laisseiz faire leadership) : न अड़चन डालने िाला नेतत्ि ृ ृ का तात्पयभ ऐसे नेतत्ि से ह ै विसके अतगतभ वशक्षक नेता के रूप म ें के िल नाम का रहता ह ै िह ृ ं बच्चों को परी स्ितत्रता द े दते ा ह ै और उनके व्यिहारों म ें वकसी तरह की बािा अपनी ओर से नहीं ू ं डालता ह ै । 2.8 संदि भ ग्रंथ सची ू 1. अग्रिाल, पी. और सिय कमार 2000 (सपादक), वहदी दशे काल में ु ं ं ं 2. चॉम्प्स्की, एन. 1957, वसनिेवक्िक स्रक्चस,भ दी हगे : मौिेन क.। ं 3. चॉम्प्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑि वस्कनसभ िबभल वबहवे ियर. लैंग्ििे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्प्स्की, एन. 1972, लैंग्ििे एड माइड, न्ययाकभ : हारकोिभ ब्रास िोिानोविच। ू ं ं 5. चॉम्प्स्की, एन. 1996, पॉिसभ एड प्रोस्पेक्िस: ररिलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल ् ं ं ं ू आडभर, वदलली: माध्यम बक्स। ु 6. चॉम्प्स्की, एन. 1965, आस्पेक्िस ऑप़ि द थ्योरी ऑि वसनिेक्स, कैं वब्रि : एम. आइ.भ िी. ् प्रेस। 7. चॉम्प्स्की, एन. 1986, नॉलेि ऑि लैंग्ििे , न्ययाकभ : प्रागर। ू 8. चॉम्प्स्की, एन. 1988, लैंग्ििे एड प्रॉब्लम्प्स ऑप़ि नॉलेि, ििैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी.। ं 9. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेि प्लावनग इन इवडया, वदलली: हरनाम पवब्लशसभ। ं ं ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 116 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 10. हबै रमास, ि.े 1998, ऑन द प्रागमवै िक्स ऑि कम्प्यवनििे शन, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. ु प्रेस। 11. हबै रमास, ि.े 1998, दी विलॉवस्िकल वडसकोसभ ऑप़ि मॉडवनभिी, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. प्रेस। 12. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पिना: रािकमल। ु ू ं 13. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, िारत सरकार 1966 ं 14. नेशनल पॉवलसी ऑन एिके शन, 1986, मानि ससािन विकास मत्रालय, वशक्षा वििाग, नयी ु ं ं वदलली। 15. पिनायक, डी. पी. 1981, मलिीवलगएवलज्म एड मदर-िग एिििे शन, ऑक्सपिोडभ ु ु ं ं ं यवनिवसभिी प्रेस। ू 16. पिनायक, डी. पी. 1986, स्िडी ऑि लैंग्ििे ेि, ए ररपोिभ, नयी वदलली: एन.सी.इ.भ आर.िी। 17. ररचड्रस, ि.े सी. 1990, दी लैंग्ििे िीवचग मवै रक्स, कै वब्रि :कै वब्रि यवनिवसभिी प्रेस। ू ं ् 18. सायर, डी. 1924, दी इपैिक्ि ऑप़ि बाइवलगवलज्मम ऑन इिेवलिसें , वब्रविश िनभल ऑप़ि ु ं ं साइकोलॉिी 14:25-38 19. श्रीिर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदलल ी, मनोहर। ु ं ं ं 20. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगणद), िारतीय िाषा विज्ञान ु ं ं ् की िवमका, वदलली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 21. यनेस्को, 2003, एिििे शन इन ए मलिीवलगएल िलडभ, यनेस्को एिके शन पोविशन पेपर, ू ु ु ू ु ं पेररस। 22. िायगोत्सकी , एल. एस. 1978, माइड इन सोसायिी: दी डेिलपमिें ऑप़ि हायर ं साइकोलॉविकल प्रोससे , ििैं वब्रि, मॉस: हािडभ यवनिवसभिी प्रेस। ू 23. िमील, िी. 1985, रेस्पोंवडग ि स्िडेंि राइविग, िी. इ.भ एस. ओ. एल. त्रौमावसक, 19.1 ू ू ं ं 24. इस िबे साइि को िरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 2.9 वनबिात्म क प्रश्न ं 1. सीखन े के उपकरण के रूप म ें पररचचा भ से आप क्या समझते ह ैं ? 2. कक्षा- कक्ष म ें प्रश्नों का स्िरुप पर प्रकाश डालें । 3. प्रश्नों के प्रकार एि वशक्षक का वनयत्रण से आपका क्या अविप्राय ह ै ? स्पष्ट करें । ं ं 4. कक्षा म ें वशक्षक की िवमका (The role of teacher in classroom) पर प्रकाश डालें । ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 117 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 3- विषय क्षत्र मे में िठन कायथ : सामाविक विज्ञान, विज्ञान, गवणत एिां विविि सावहत्यों की भाषा में , अर् थ प्रकािक एिां वििरणात्मक विषय िस्त,ु सांवक्षप्तीकरण विषय िस्त,ु हस्तातां रण विषय िस्त ु ि चचतनिरक विषयिस्त ु ् की प्रकवत, स्कीमा वसद्ाांत Reading in the content areas: Social Science, Science, Science, Mathematics and Literature of relevant languages, nature of Expository texts vs. Narrative texts, Transactional texts vs. Reflexive texts, schema theory, Text structures; examining content area textbooks; reading strategies for children- note making, summarizing 3.1 प्रस्तािना 3.2 उद्दश्े य 3.3 पठन कौशल की अििारणा 3.4 पठन प्रविया का अविप्राय 3.5 विषय क्षेत्र में पठन कायभ : सामाविक विज्ञान, विज्ञान, गवणत एि विविि सावहत्यों की ं िाषा में 3.6 अथभ प्रकाश विषय िस्त बनाम वििरणात्मक विषय िस्त ु ु 3.7 हस्तान्तरण विषय िस्त बनाम वचतन परक विषय िस्त (Reflective Text) ु ु ं 3.8 साराश ं 3.9 अभ्यास प्रश्न 3.10 सदिभ ग्रन्थ सची ू ं 3.11 वनबिात्मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 118 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3.1 प्रस्तावना िाषा के मल चार कौशलों ( सनना, बोलना, पढ़ना, वलखना ) म ें से पढ़ना (पठन) एक महत्िपण भ विया ू ु ू ह।ै इस कौशल म ें बालक वलवखत या मवित पाठयाश िणों, शब्दों, िाक्यों या अनच्छेदों को िोर-िोर से ् ु ु ं बोलकर या मन में पढ़कर उनका िाि ग्रहण करता ह ै । यवद वदए गये अनच्छेद को पढ़ने के बाद उसम े से ु प्रश्न पछे िाए और बालक अनकल उत्तर नहीं द े पाता ह ै तो यह इस बात को स्पष्ट करता ह ै वक बालक न े ू ु ू अनच्छेद का िाचन ही वकया ह,ै पठन नही । पठन-सामग्री के अन्तः िाि को समझकर दसरों को समझा ु ू सकने म े सिल होना ही पठन का मख्य उद्दश्े य ह ै । अथाभत वकसी वलवखत या मवित पाठय िस्त, िाषा या ् ु ु ु वचत्र को दखे कर उसके िाि या आशय को समझना या उसका अथभ ग्रहण करना ही पठन (Reading) कहलाता ह ै । 3.2 उद्दश्े य 1. विद्याथी पढ़ने के अथभ को समझ सकें ग े । 2. विविन्न विषयों के सन्दि भ म ें पढ़ने के महत्ि को िान सकें ग े । 3. विविन्न विषयक्षेत्र म ें पढ़ने की अििारणा को समझ सकें गे। 4. पठन प्रविया को समझ सकें ग।े 3.3 पठन कौशल की अविारणा (सप्रं त्यय) (Concept of Reading ) पठन कौशल को समझने हते इसके मख्य अियिों को समझना अवतआिश्यक ह ै । यह अियि ह-ैं शब्दों ु ु को पहचानना तथा समझ कर पढना। समझकर पढना तिी सिि हो पायेगा िब हम शब्दों के अथभ ं समझते हों । यह एक स्थावपत तथ्य ह ै वक पढना सीखने पर वलखना और सरल हो िाता ह ै । अतःपढ़ने के समवचत कौशल ही विद्यावथभयों की प्रगवत के वनिाभरक ह ैं । हम अक्सर यह दखे ते ह ैं वक कक्षा पाचिीं तक ु के बच्चे िी ठीक से पढ़ नहीं पाते ह ैं । यह बात के िल हमारे दशे पर लाग नहीं होती िरन , अमरे रका एि ् ू ं कई अन्य विकवसत दशे िी बच्चों की पढ़ने की अक्षमता कों लेकर वचवतत ह ै । यवद हम अमरे रका के बारे ं म ें िानें तो यह बात सामने उिर कर आती ह ै वक िहा पठन कौशल म ें सिार हते “नो चाईलड लैफ्ि ु ु ं वबहाइड (No child left behind) ” 2002 के समथभन मे रीवडग पहले कायभिम लाया गया था, विसमें ं ं िहााँ पर राज्यों को प्राथवमक कक्षाओ के पठन कौशल विकास पर िज्ञै ावनक तरीकों को अपनाने हते ु ं सहायता दी िाती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 119 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3.4 पठन प्रविया का अविप्राय (The process of reading process) िो लोग पढ़ नही सकते उनके वलए पढ़ना एक रहस्य या आियभिनक होता ह ै । कई साल पहले विशेषज्ञों को िी यह मालम नही था वक िब बच्चा पढ़ना सीखता ह,ै तो दरअसल करता क्या ह ै ? अपने अनिि ू ु और परम्प्परा के आिार पर वशक्षकों ने कछ विवियों की खोि की िसै े िणभमाला विवि, उच्चारण विवि, ु शब्द विवि इत्यावद । पढ़ने की प्रविया म ें महत्िपण भ ह ै अवकत सचना को ग्रहण करना । हमारी आख े िब ू ू ं ं अक्षरों, विराम वचन्हों, शब्दों और शब्दों के बीच छोड़ी गयी िगहों का मआयना करती ह,ै तो हमारा ु मवस्तष्क इस ग्राविक (हाथ से वलवख गई या छपी हई ) सामग्री की सम्प्पण भ मात्रा पर ध्यान नही दते ा । यवद ु ू ऐसा होता तो छोिी-छोिी सचनाओ पर गौर करने से मवस्तष्क की क्षमता पर अत्यविक बोझ पड़ता और ू ं अविकाश लोग विस रफ्तार से पड़ते ह,ै िह असम्प्िि हो िाता ह ै । पारम्प्पररक विवियों से पढ़ना सीखने ं िाले कई बच्चो के साथ यही होता ह ै । ि े हर शब्द को अक्षरों की छोिी इकाईयों म ें तोड़ता ह ै और इस तरह शब्दों का अथभ ग्रहण करने हते मवस्तष्क की क्षमता पर बहत ज्यादा बोझ डाल दते ी ह ै । एक प्रिीण ु ु पाठक की आख ें ऐसा बोझ पड़ने नही दते ी, क्योंवक ि े पेपर पर अवकत ग्राविक सचनाओ के सीवमत, चने ू ु ं ं हए अश से िझती ह ै । प्रिीण पाठक शब्द के परे अक्षरों ि िाक्यों के सारे शब्दों पर ध्यान नही दते ा । ु ू ू ं पढ़त े समय पाठक की आख ें सामग्री के एक छोिे से अश पर गौर करती ह,ै शषे िह अनमान के िररय े ु ं ं ग्रहण करता ह,ै िो समझ से पण भ होता ह ै । इस अनमान का आिार होता ह ै -अक्षरों की आकवतयााँ, शब्द, ृ ू ु उनके साथ सयोिन और सामान्य दवनया से पाठक का पहले से मौिद पररचय । पढ़ना एक एकाकी ू ं ु प्रविया नही ह,ै उसम े कई प्रवियाए शावमल ह ै । पढ़ते समय िाषा के उपयोग से िड़े तीन तरह के सके त ु ं ं हमारे ध्यान म ें आते ह ै – i. अक्षरों की आकवतयााँ और उनसे िडी ध्िवनयााँ । ृ ु ii. शब्दों के अथभ । iii. िाक्य विन्यास । पढ़ने की परी प्रविया म ें अक्षर पहचान महत्िपण भ ह ै । इसके पीछे मान्यता यह िी ह ै वक वलवखत िाषा ू ू अक्षरों का समह ह,ै विसम े प्रत्येक अक्षर एक ध्िवन का प्रवतवनवित्ि करता ह ै । अक्षर को दखे कर उससे ू िडी ध्िवन का उच्चारण कर दने ा पढ़ना नही माना िाता ह ै । िास्ति म ें पढ़न े का सिोत्तम तरीका पढ़ना ु ह ै पढ़कर ही पढ़ना वसखा िा सकता ह ै । िसै े – साईवकल ि उसे चलाने के बारे म ें बारीक़ िानकारी होन े का यह अथभ नही वक व्यवक्त के द्वारा साईवकल चला ली िाएगी । साईवकल चलाने के वलए तो उस पर बैठकर ि चला कर ही वसखा िा सकता ह ै । ठीक िसै े तैरना सीखने के वलए पानी म ें उतरना ही पड़ता ह।ै वनष्कषतभ ः पहले वदन से ही पढ़ाने की साथभक सामग्री होना आिश्यक ह ै । यह साथभकता उस विद्याथी के सदि भ म ें आकी िानी चावहए, िो उस सामग्री का पाठक ह ै । इस सन्दि भ म ें यह तथ्य महत्िपण भ ह ै वक पढ़न े ू ं ं के वलए दी िाने िाली सामग्री वकस िाषा म ें ह ै । विस िाषा म ें सामग्री उपलब्ि कराई िा रही ह,ै उस िाषा से बालक पररवचत ह ै । िाषा का समग्र रूप तो बालक के इस्तेमाल म ें उिरता ह,ै चाह े िह वलखने म ें हो, बोलने म ें हो या पढ़ने म ें । अतः बच्चे को िाषा के अविकाविक प्रयोग के मौके वमलने चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 120 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अभ् याि प्रश् ि 1. िाषा के मख्य कौशल कौन-कौन से ह ै ? ु 2. पढ़ने की प्रविया से आपका क्या अविप्राय ह ै ? स्पष्ट करें। 3. छोिे बालकों के पठन अिबोि के समय वशक्षक कोवकस प्रकार की चनौवतयों का सामना करना ु पड़ता ह ै ? 3.5 ववषय क्षत्रे म पठन कायभ : सामाविक ववज्ञान, ववज्ञान, गवणत एवं ें ववववि सावहत्यों की िाषा म ें कहने की िरूरत नहीं ह ै वक पढ़ने के कौशल का सीिा सबि बच्चों की सप्राव्त स े होता ह।ै बच्चा िब ं ं ं पढना नहीं िानता ह ै तो उसमें वलवखत सामग्री के प्रवत अरूवच पैदा होती ह।ै यह अरूवच पढ़ने के कौशल म ें और कमी करती ह।ै पररणाम पढाई म ें वपछड़ना, हीनता से ग्रवसत होना और अत म ें विद्यालय छोड़ दने ा ं ह।ै यह एक अघोवषत तथ्य समझा िा सकता ह ै वक यवद विद्याथी म ें पढ़ने के समवचत कौशल नहीं ह ै तो ु िह कै से कोई गद्याश पढ और वलख सकता ह ै ? कै से िह विज्ञान म ें सघनन या िाष्पीकरण िसै ी प्रविया ं ं स्पष्ट कर सकता ह ै ? कै से िह िगोल के पाठों को समझ सकता ह ै ? और कै से िह गवणत के इबारती प्रश्न ू हल कर सकता ह ै ? कै से िह इवतहास की घिनाओ का अपने शब्दों म ें िणनभ कर पायेगा । कई बार बच्चे ं िोड़-घिाने, िा
ग की वियाएाँ तो कर सकते ह ैं एक कारण समझकर पढना न आना होता ह ै यह तथ्य गवणत के साथ ही नहीं िरन सिी विषयों के साथ लाग होता ह।ै ् ू सामान्यतः मान वलया िाता ह ै वक प्राथवमक स्तर कक्षा पाचाँ उत्तीण भ करते ही बच्चों म ें पठन कौशल म ें िवद् की आिश्यकता नहीं ह ै क्योंवक यह समवचत स्तर की होती ह।ै यह वमथक ह ै क्योंवक विद्यालयों में ृ ु इस कौशल के मापन के समवचत उपकरण अपनाए ही नहीं िाते ह,ै विसके कारण बच्चों को सिार के ु ु अिसर प्रा्त नहीं होते ह।ैं साथ ही यह िी वचतनीय ह ै वक हमारे दशे म ें अध्यापक पठन कौशल के ं मलयाकन के वलए प्रवशवक्षत नहीं होते ह
।ैं यह तथ्य राष्रीय पाठयचयाभ की रूपरेखा-2005 म ें िी ् ू ं उवललवखत ह।ै सामान्यतः विद्यालयों म ें अध्यापकों को बच्चे पस्तक की कोई गद्याश या पद्याश पढकर सनाते ु ु ं ं ह,ै विससे अध्यापक पठन कौशल का वनणयभ कर दते े ह।ैं यह बहत ही सतही प्रविया ह ै ि भ्रामक एि ु ं अनपयोगी ह।ै पठन कौशल के सिार कायभिम हते विद्यालयों म ें स्थान ही नहीं वदया िाता ह।ै इसे ु ु ु अविलेवखत करना िी आिश्यक ह ै क्योवक बच्चों के वलवखत परीक्षाओ म ें वदए गए उत्तर इस बात के ं पयाभ्त सके तक होते ह ै वक उन्ह ें सीखा हआ वलखने म ें परेशावनयााँ ह ैं िो वक पढ़ने के समवचत कौशल होने ु ु ं के कारण उत्पन्न हई होती ह।ैं ु यह मान्यता वक कथा-उपन्यास पढना समय नष्ट करना ह ै पठन को हतोत्सावहत करने का बडा कारण ह।ै पढ़ने के कौशल वलए रोचक ि विवििापण भ िाहलयता म ें उपलब्ि सामग्री की आिश्यकता ह।ै ु ू पढ़ने के कौशल के विकास को तीन चरणों म ें दखे ा िा सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 121 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् प्रथम चरण म ें उसकी बातचीत की िाषा के कौशल सनने ि बोलने के कौशलों को सिविभत करना ु ं आिश्यक ह।ै कक्षाओ म ें बातचीत, कहानी कहना, सनना-सनाना, सनकर वनष्कष भ प्रस्तत करना, वचत्रों स े ु ु ु ु ं कहानी कहना, कविता सनना, लयात्मक कविता बनाना िैसे कायभिम होने चावहए। इन प्रवियाओ से ु ं बच्चों की शब्दािली विस्ताररत होती ह।ै शब्दों पर चचाभ करना िसै े- आम पर, शहर पर, नदी पर, इत्यावद-इत्यावद। ध्िवनयों का समझकर पढ़ने की क्षमता से गहरा सबि ह।ै ं ं वद्वतीय चरण म ें शब्द पहचान ि अक्षर ज्ञान के बाद, िाक्य िाचन हो सकता ह।ै इसम ें लय ि ध्िवन का खास ध्यान रखा िाना चावहए। इस चरण म ें िी प्रथम चरण की गवतविवियााँ िारी रखी िानी चावहए। िाक्य एि दृष्टात ऐसे होने चावहए, िो दवै नक िीिन से हों। ऐसे होने चावहए, िो दैवनक िीिन से ं ं हों। ऐसे िाक्य अपनेपन ि िडाि का अहसास दते े ह।ैं मानक िाषा और मानक शब्दों पर शरूआती चरण ु ु म ें अत्यविक िोर दने ा पठन दक्षता के विकास म ें बािक ह,ैं तथावप बच्चे के शब्द िडार के विकास पर ं ध्यान कें वित वकया िाना चावहए। लेवकन यह शब्द िडार वलखाकर, रिाकर नहीं िरन दवै नकचयाभ का ् ं वहस्सा होना चावहए। पढते समय कोई िी पाठक यवद प्रचवलत शब्दािली पाता ह ै तो पढ़ने और समझने की गवत बढ िाती ह ै िो उसे वलवखत सामग्री से िोड़कर रखती ह।ै पस्तकों का चयन एक विवशष्ट क्षेत्र ह ै विस पर ध्यान वदए िाने की आिश्यकता ह।ै साथ ही पठन ु दक्षता सििभन हते िाषा के पाठयिम की पस्तकों से इतर कहानी, वचत्रकथा, वचत्रकहानी की पस्तकें ली ् ु ु ु ं िाए। कहावनयााँ लबी नहीं होनी चावहए। इन कहावनयों के पात्रों पर चचा भ की िाए बच्चों को अपनी ं ं ं कहानी या वकस्सा वलखने और कहने हते अिसर वदए िाए। ु ं विविन्न विषयों की पस्तकें चनते समय उनम ें िाषा की सरलता, सहिता पर खास ध्यान वदया ु ु िाए। यवद पस्तक म ें सामग्री की िाषा कवठन ह ै तो उसे अध्यापक िकै वलपक रूप से सरल िाषा म ें ु वलखिाए ाँ या ऐसे पाठों को चाह े विषय कोई िी हो को छोड़ने या वकसी अन्य पस्तक से वलया िाए, ु अभ्यास हते पस्तक के स्थान पर एक पष्ठ की कहानी या कोई घिना दी िा सकती ह।ै यह छि अध्ययपकों ृ ु ु ू को दी िानी आिश्यक ह।ै के िल िाषा ही नहीं, अन्य विषयों के माध्यम से िी पठन कौशल के विकास पर ध्यान वदया िाना चावहए। विश्लेषण करने, गद्याशों का साराश वलखने, उन पर चचा भ करने िसै ी गवतविविया की िानी ं ं ं चावहए। इवतहास म ें के िल िह वतवथयााँ दी िाए, िो अवत महत्िपण भ हों िरना इवतहास में घिनाए ाँ कम ि ू ं वतवथयााँ अविक होने से प्रारविक कक्षा के बच्चों म ें पढ़ने म ें अरूवच पैदा हो सकती ह।ै वलयो नाडो डा ं विन्सी ने कहा था- वबना इच्छा के अध्ययन करना याददाश्त खराब करता ह ै और कछ िी ग्रहण नहीं होता ु ह।ै यह कथन मागदभ शकभ ह।ै इस प्रकार सिी विषय की पस्तकों की िाषा एि सामग्री का प्रस्ततीकरण अत्यत महत्ि रखता ह ै ु ु ं ं क्योंवक यह एक भ्रावत ह ै वक पठन कौशल का विकास के िल िाषा की पस्तकों से या िाषा के अध्यापकों ु ं के द्वारा ही वकया िाता ह।ै ततीय चरण म ें कक्षा पााँचिी से आठिीं म ें पठन कौशल के विकास हते िज्ञै ावनक आलेख लबी ृ ु ं कहानी, छोिे रोचक बाल उपन्यास रख े िा सकत े ह।ैं छात्र सेवमनार, तीव्र गवत पठन, सामग्री पर चचाभ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 122 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इत्यावद कायभिम कराए िा सकते ह।ैं िेलीवििन से समाचार सकलन, वद्विाषी विलम विसम ें िह विलम ं बच्चे को ज्ञात िाषा से अलग िाषा के उपशीषकभ प्रस्तत करती विलम इत्यावद कायभिम वकये िा सकते ु ह।ै पठन कौशल के कायभिमों ि परीक्षण का उद्दश्े य उतीण भ या अनतीण भ करना नहीं िरन बच्चों की पठन ् ु दक्षता के स्तर की पहचान ि सिद्भन होना चावहए। विद्याथी को पढ़ने की सामग्री चनने की छि दी िानी ु ू ं चावहए। इस प्रकार प्रत्येक विद्यालय म ें पठन कौशल विकास का कायभिम रखा िाना चावहए। यवद बच्चों म ें उनके स्तर के अनकल पठन कौशल विकवसत हो िाते ह,ै तो उनकी विविन्न ु ू विषयों को समझने, तथ्यों को विश्लेषण करने, सार ग्रहण करने, साराश वलखने, सश्लेषण ि विश्लेषण करने ं ं की क्षमताए ाँ िी उवचत स्तर की होती ह ैं िो उनकी उपलवब्ि को बढाती ह।ैं विविन्न दशे ों म ें वकए गए शोि अध्ययन इस तथ्य की पवष्ट करते ह।ैं पाठयिम समाव्त के स्थान पर लक्ष्य दक्षता प्राव्त होना आिश्यक ह ै ् ु और पठन कौशल िी सम्प्प्राव्त के मलयाकन का िाग होना चावहए, यह अविलेखन िी होने चावहए। ू ं अतः विद्यालयी प्रवियाओ में पढ़ने के कौशल को समवचत स्थान वदए िाने की आिश्यकता ु ं ह।ै इसके वलए समवचत कायभिम बनाये िाने की आिश्यकता ह।ै विसकी शरूआत होती ह ै पढ़ने की ु ु सामग्री रोचक बनाने एि पाठयिम म ें पठन कौशल को समवचत स्थान वदए िाने से। विद्याथी को उनकी ् ु ं पढ़ने के कौशल म ें उत्तरोत्तर िवद् के वलए उनको प्रोत्सावहत वकए िाने की आिश्यकता होती ह।ै पढ़न े ृ के कौशल को एक विस्ताररत प्रारूप म ें दखे ने की आिश्यकता ह।ै यह के िल प्राथवमक स्तर (कक्षा पहली से पााँचिी) का ही विषय नहीं ह,ै िरन इसे प्रारविक वशक्षा (कक्षा पहली से आठिीं) म ें समग्रता के साथ ् ं परे चि म ें दखे े िाने की आिश्यकता ह ै और लगातार ध्यान वदए िाने की आिश्कयता ह ै । ू विद्यालयों म ें पढ़ने के कौशल विकास को एक आदोलन के रूप में वलए िाने की आिश्यकता ह।ै साथ ं ही इसे सेिापि भ ि सेिारत प्रवशक्षण का अग बनाया िाना चावहए। इस हते प्रवशक्षण सामग्री को समग्रता ू ु ं से विकवसत करने की िी आिश्यकता ह।ै अभ् याि प्रश् ि 1. विद्यालयी प्रवियाओ म ें पढ़ने के कौशल को समवचत स्थान वकस प्रकार से वदया िा सकता ह?ै ु ं 2. पठन कौशल की अवििवद् के वलए कौन से तीन चरण होते ह ैं ? व्याख्या करें। ृ 3.6 अथभ प्रकाशक ववषयवस्तु (Expository Text) Vs वववरणात्मक ववषयवस्तु (Narrative Text) वशक्षण का उद्दश्े य बालको को विषय के प्रवत ज्ञान प्रा्त हो िाना नहीं ह ै बवलक इसका मख्य उद्दश्े य ु बालको म ें पढ़ने के प्रवत रूवच िाग्रत करना ह ै । इस हते बालकों को पाठय पस्तक के अलािा अन्य ् ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 123 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् पस्तकें या मगै िीन आवद के अध्ययन करने के वलए प्रेररत करे विससे उनमे पठन करने रूवच बढ़े । पठन ु अिबोि के वनम्प्न प्रकार ह ै – 1. अथा प्रकाशक र्वषयवस्त (Expository Text): अथभप्रकाशक विषयिस्त का अथभ ह ै ु ु विषयिस्त से सम्प्बवित तथ्यों को सरल ि स्पष्ट रूप म ें प्रस्तत या उिागर करना ह ै अथाभत ु ु ं विषयिस्त की िास्तविकता एि सत्यता से अिगत करता ह ै । इस प्रकार की विषय िस्त लेखन ु ु ं का उद्दश्े य पाठक को सचना प्रदान करना
होता ह ै । इस िेक्सि के द्वारा प्रदान सचनाए ाँ ि तथ्य ू ू उद्दश्े यपण भ ि विश्वनीय श्रोतों से प्रा्त होते ह ै । यह सत्य ि सहि रूप से वशक्षण के वन्ित विषय ू िस्त को पाठक तक पहचाँ ाने का कायभ करता ह ै । इन िेक्सि का लेखन स्पष्ट, आत्मकें वित ि ु ु सगवठत होता ह ै । इसक
े माध्यम से कें ि वबद पर िलदी ि प्रिािी ढग से पहचा िा सकता ह ै । ु ं ं ं ं ु क्योंवक ये िेक्सि सचना आिाररत होती ह ै तथा इन सचनाओ को वनम्प्न के द्वारा प्रा्त वकया िा ू ू ं सकता ह ै । उदाहरणत : पाठयपस्तक, समाचार अविलेख, अनदशे न, मानक पात्र, िाषायी ् ु ु पस्तकें , स्ि-सहायक पस्तकें , दशे आवद । ु ु अथाप्रकाशक र्वषयवस्त को क्यों िीखे ? ु सोच या विचार को विकवसत करने म ें अथभप्रकाशक विषयिस्त हमारी मदद करता ह ै । ु अथभप्रकाशक विषयिस्त लेखकों के द्वारा सरचनात्मक तत्िों का उपयोग कर विषय िस्त को ु ु ं अपने विचारों के साथ िोड़ते हए व्यिवस्थत करते ह ै । िो बालक विषय िस्त की सरचनात्मक ु ु ं तत्िों के विचारों को समझ लेता ह ै िो आसानी से इस प्रकार की विषय िस्त का विश्लेषण करना ु सीख िाता ह ै । विषय िस्त की विशषे ताए ाँ पढ़ाने िाले को सचनाओ को सगवठत करने ि ु ू ं ं पहचान बताने का कायभ करती ह।ै िसै े कोई हवै डग (मख्य वबद या प्रकरण) से बालकों को ु ं ं ु उनकी सहायता से अिगत करना । वकसी विषय िस्त की हवै डग से पररवचत होने पर विद्याथी ु ं उससे सम्प्बवित कछ विवशष्ट सचनाए ाँ वमल िाती ह ै विनके आिार पर पि भ म ें प्रा्त ज्ञान से बालक ु ू ू ं उससे िोड़ लेता ह ै और विषयिस्त को लम्प्बे समय तक अपनी स्मवत म ें सग्रवहत कर लेता ह ै । ृ ु ं अथाभत वबना हवै डग के वकसी िी प्रकार सचना का विस्तार करना अिाँ ेरे म ें तीर चले के समान ह।ै ु ं 2. र्ववरणात्मक र्वषयवस्त (Narrative Text) - िब हम कालपवनक उपन्यास, नािक, ु कहानी या घिना की बात करते ह,ै तो िास्ति म ें हम वििरणात्मक विषय िस्त के सम्प्बन्ि म ें ु बात कर रह े होते ह ै । वििरणात्मक विषय िस्त का मख्य उद्देश्य मनोरिन करना तथा पाठक का ु ु ं ध्यान आकवषतभ करना ह ै । इनका लेखन सचना दने े, वशक्षा दके र अवििवत को बदलने या ृ ू सामाविक विचारों या मतों के प्रवत अवििवत प्रस्तत करने से ह ै । इसके अतगतभ चाररवत्रक ृ ु ं विशेषताए ाँ समय ि िगह के अनसार बदलते रहते ह ै तथा कहवनयों म ें एक या एक से अविक ु घिना/ समस्याए ाँ इस तरह िमबद् होती ह ै वक उनका समािान एक के बाद एक कड़ी स े सलझता चला िाता ह ै । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 124 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् र्ववरणात्मक र्वषय वस्त के प्रकार ु वििरणात्मक विषय िस्त कई प्रकार की होती ह ै विनम े कालपवनक ि तथ्यात्मक दोनों का ु सहयोग होता ह ै । वनम्प्न लेख सवक्ष्त ीकरण के अतगतभ ह-ै पररयों की कहनी, रोमाचक कहावनयााँ, ं ं ं डरािनी कहावनयााँ, झठ आिाररत कालपवनक कहावनयााँ, ऐवतहावसक सवक्ष्त ीकरण, लोक ं ू कथाए,ाँ अनिि आिाररत घिनाए,ाँ व्यवक्तगत अनिि आिाररत कथाएाँ, िाससी या रहस्यमयी ु ु ू पहवे लयााँ । र्ववरणात्मक र्वषयवस्त की र्वशेषताए ाँ ु i. बोले िाने िाले सिादों का काल पररितभनशील होता ह ै । िसै े – ितभमान काल से िविष्य ं काल तक । ii. पात्रों की विशषे ताओ को उनके व्यवक्तत्ि एि अविनय के रूप म ें पररिावषत वकया िाता ह ै । ं ं िसै े राम या रािण का अविनय करने िाला पात्र का प्रस्ततीकरण इनके गणों के अनसार ही ु ु ु होगा । iii. िणाभत्मक िाषा का प्रयोग वकया िाता ह ै विससे पाठक के वदमाग म ें सिनभ ात्मक / कालपवनक वचत्र की छवि बने और िह कहनी या सवक्ष्त ीकरण के बे म ें पिाभनमान लगा सके विससे ू ु ं उसका कहनी पढ़ने या दके ने म ें रूवच बनी रह े । र्ववरणात्मक र्वषयवस्त की िरचिा ु ां परम्प्परागत वििरणात्मक की विषय िस्त की सरचन के वलए वनम्प्न वियाओ को कें ि म ें रखना होता ह-ै ु ं ं i. अविनिन (orientation) ii. समस्या या िविलता (problem or complication) iii. समािान (resolution) वििरणात्मक लेखन वनम्प्न पदों म ें पण भ होता ह ै – ू i. Plot– कहानी म ें क्या होने िाला ह?ै ii. Setting – कहानी कब, कहााँ और कै से शरू होगी । ु iii. चाररवत्रकरण (Characterisation) – कौन मख्य पात्र होगा और िह कै सा लगगे ा । ु iv. सरचना (Structure)–कहानी की सरचना कै सी होगी, कहानी कहााँ से शरू होगी, समस्या क्या ु ं ं होगी ि समािान क्या होगा । v. थीम (Theme)– कहानी की मख्य थीम या कें ि क्या होगा, इस कहानी के माध्यम से लेखक ु क्या सन्दशे या सीख दने ा चाहता ह ै । अत: वििरणात्मक विषय िस्त िह कालपवनक उपन्यास या कहवनयााँ होती ह ै िो िािनाओ ि सिगे ो से ु ं ं पररपण भ होती ह ै िो मनोरिन कराने के उद्दश्े य से वलख े िाते ह ै । िही दसरी तरि एक्स्पोवसरी िेक्सि िह ू ं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 125 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् ह ै िो तथ्यों को शौक्षवणक ि उद्दश्े पण भ तरीके से प्रस्तत करते ह ै । यह िेक्सि सचना प्रदान करने का काय भ ू ु ु करते ह ै । अभ् याि प्रश् ि 1. अथभप्रकाशक विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु 2. वििरणात्मक विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु 3.7 हस्तांतरण ववषय वस्तु (Transactional Text)Vs चचतनपरक ववषय वस्तु (Reflexive Text) 1. हस्तातरण र्वषय वस्त (Transactional Text)–हस्तातरण विषय िस्त िह ह ै विसम ें प्रश्न ु ु ां ं पछना और उन प्रश्नों का ििाब दने ा समावहत हो अथाभत वकसी विया के प्रवत प्रवतविया उत्पन्न ू करना या आचार विचार ि िािों का सम्प्प्रेषण के माध्यम से विवनमय करना ही ‘हस्तातरण ं विषयिस्त’ कहलाता ह ै । िसै े एक वमत्र के आये हए पत्र के ििाब म ें दसरा वमत्र उसे प्रशसनीय ु ु ं ू पत्र वलखता ह ै । शब्दों के आिार पर हस्तातरण विषय िस्त को दो िागों म ें वििावित वकया िाता ु ं ह ै – a. वहद हस्तातरण र्वषयवस्त (Long Transactional Text)-िह िेक्सि िो 80 या उससे ृ ु ां अविक ि 200 से 250 से कम शब्दों के होते ह ै उन्ह ें लॉन्ग हस्तातरण विषयिस्त कहते ह ै । ु ं लॉन्ग हस्तातरण विषयिस्त के अतगतभ वनम्प्न िेक्सि आते ह-ै ु ं ं ऑविवसयल या िॉमलभ लेिर (Official or Formal Letter) फ्ें डली लेिर (Friendly Letter) आन्तररक ज्ञापन (Internal Memorandum) एिडें ा एड वमनिस ऑफ़ मीविग (Agenda and minutes of the meeting) ् ं ं सवक्ष्त लेख वलखना (Writing a short article) ं डायलोग (Dialogue) साक्षात्कार (Interview) ररव्य (Review) ु समाचार पत्र अविलेख (Newspaper Article) उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 126 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् मगै ज़ीन अविलेख (Magzine Article) न्यज़ पेपर कॉलम (Newspaper Column) ू व्यवक्तगत ित (Curriculum Vitae or CV) ृ शोक सन्दशे (Obituary) ब्राउशर (Broucher) एवडिोररयल (Editorial) b. िर्क्षप्त हस्तातरण र्वषयवस्त (Shorter Transactional Text)- िह िेक्सि िो 80- ु ां ां 100 शब्दों से कम में वलखे िाते ह ै सवक्ष्त हस्तातरण विषयिस्त कहलाते ह ै । सवक्ष्त ु ं ं ं हस्तातरण विषयिस्त के अतगतभ वनम्प्न िेक्सि आते ह-ै ु ं ं आमत्रण पत्र (Invitation) ं डायरी (Dairy) पोस्िकाडभ (Postcard) वनदशे पवस्तका (Direction) ु अनदशे न (Instruction) ु विज्ञापन (Advertisment) विज्ञापन पवस्तका (Flyer) ु पोस्िर (Poster) प्रपत्र िरना ( Filling in a Form) ई-मले वलखना (Writing Email) िै क्स ििे ना (Sending Fax) c. र्चतिपरक र्वषय वस्त (Reflexive Text)- लेखक अपने लेखन कायभ के माध्यम से ु ां अपने स्िय के विचारों, सिगे ात्मक वियाओ एि िािों को इस रचनात्मक ढग से प्रस्तत करता ु ं ं ं ं ं ह ै वक पाठक िी उन्ह ें पढ़कर स्िय को उन्हीं िािो म ें डबा हआ महसस करता ह ै विसका उसके ु ू ू ं िीिन पर बहत गहरा प्रिाि पड़ता ह ै । लेखक के गहन विचार एि सिगे ात्मक िाि ही सम्प्पण भ ु ू ं ं ससार के पाठकों के विचारों एि िािों को प्रिावित करते ह।ै िसै े की लेखक के स्िय के सपने ं ं ं ि आकाक्षाओ पर लेख वलखता ह।ै उदाहरण - ‘अपने िीिन काल के पसदीदा िीचर के बारे ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 127 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् म ें बताना’ ।
‘िीिन के बारे म ें स्िय के विचार तथा िीिन कै से विया िाए ’
। िसै े विषयों ं पर अपने विचारों म ें लेख वलखना । वचतनपरक विषय िस्त को वलखने के वलए वकन-वकन बातों का ध्यान रखना चावहए – ु ं i. विषय िस्त सैद्वावन्तक होती ह ै । ु ii. िाि ि सिगे मख्य िवमका वनिाते ह ै । ु ू ं iii. लेखन का कछ िाग कछ अविक विस्तत हो सकता ह ै विसके अतगतभ लेखक उन बातों ृ ु ु ं को विस्तार से बताता ह ै विसके द्वारा पाठक विविि ि उद्दश्े पण भ घिनाओ के माध्यम से ू ं िािनाओ को पन: प्रकि करता ह।ै ु ं iv. उन विचारो ि िािनाओ को प्रदवशतभ करना िो अवत सिदे नशील ि व्यवक्तगत ं ं िागीदारी के रूप म ें लेखक के द्वारा महसस वकये िा चके हो । ू ु अत: हस्तातरण विषय िस्त िह ह ै विसम ें विचार ि िािों को सम्प्प्रेषण के माध्यम से विवनमय ु ं या वकसी विया के प्रवत प्रवतविया के रूप म ें वदया िाता ह ै िही दसरी तरि वचतनपरक विषय ं ू िस्त ह ै विसम ें लेखक स्िम के विचार, सपनों ि आकाक्षाओ को कथा या कहानी के रूप म ें ् ु ं ं प्रस्तत करता ह ै । ु अभ् याि प्रश् ि 3. हस्तातरण विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु ं 4. वचतनपरक विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु ं 3.8 स्कीमा क्या ह?ै (What is Schema?) स्कीमा - स्कीमा (Schema) से तात्पयभ ऐसी मानवसक सरचना से ह ै िो व्यवक्त विशषे के मवस्तक म ें ं सचनाओ को सगवठत तथा व्याख्यावयत करने हते विद्यमान होती ह।ै यह स्कीमा दो प्रकार का होता ह।ै ू ु ं ं पहला 1. िाधारण स्कीमा (General Schema) 2 . जर्टल स्कीमा (Complex Schema) सिारण स्कीमा से तात्पयभ ‘ स्कीमा मोिरकार वखलौने के स्कीमा से तात्पयभ समझा िा सकता ह।ै इसी प्रकार अतररक्ष का वनमाभण कै से हआ का स्कीमा िविल स्कीमा का उदाहरण ह।ै ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 128 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् स्कीमा वसद्ान्त इस बात को प्रवतपावदत करता ह ै वक पाठय अश से सीखने एि समझने के वलए हमें ् ं ं इसे अपने पिज्ञभ ान से िोड़ना ही पड़ेगा। (रूमेल हािभ, 1980), िास्ति म ें स्कीमा शब्द का पहली बार ू प्रयोग बारलेि द्वारा सन 1932 म ें वकया गया विसम ें उसने स्कीमा की पि भ प्रवतवियाओ एि अनििों ् ू ु ं ं का सविय सगठन कह कर प्रवतपावदत वकया। ं िाषा के सदि भ म ें स्कीमा वसद्ान्तों को स्पष्ट करते हए िो सबसे महत्िपण भ बात कही िाती ह ै िह यह ु ू ं ह ै वक वलखा हआ कोइ भ िी िाक्य या िाक्यों के समह अपने आप म े कोइ भ विशेष अथभ नहीं रखता ह।ै ु ू बवलक िह तो के िल एक वदशा की तरि इवगत करता ह ै विससे वक पाठक स्िय उसके अथभ का ं ं वनमाभण कर सके । पाठक अपने पिज्ञभ ान के आिार पर उस िाक्याश का अथभ ग्रहण करता ह।ै यह ू ं प्रारविक पाठक का पि भ ज्ञान एि ज्ञान सरचना स्कीमिे ा के मान से िाना िाता ह।ै वकसी िी पाठक ू ं ं ं का स्कीमिे ा एक ऊपर से नीचे के िम म ें व्यिवस्थत रहता ह।ै विसम ें वक सािारण ज्ञान ऊपर के िम तथा विशेष ज्ञान नीचे के िम म ें व्यिवस्थत रहता ह।ै स्कीमा वसद्ान्त के अनसार वकसी िी िाक्याश ु ं को समझने हते पाठक का पिभ ज्ञान एि िाक्याश के बीच समन्िय स्थावपत करना आिश्यक होता ु ू ं ं ह।ै ठीक तरीके से समझने हते पिज्ञभ ान एि ितभमान पठन के बीच समन्िय स्थावपत होना ही चावहए - ु ू ं स्कीमेटा के प्रकार ( Types of Schemata) i. औपचाररक स्कीमिे ा (Formal Schemata) ii. विषयिस्त सबिी स्कीमिे ा (Content Schemata) ु ं ं iii. सास्कवतक स्कीमिे ा (Cultural Schemata) ृ ं iv. िाषाइ भ स्कीमिे ा (Linguistic Schemata) 1. औपचाररक स्कीमेटा (Formal Schemata) - औपचाररक स्कीमिे ा से तात्पयभ विविन्न
3%
0.9%
0.6%
0.3%
0.2%
0.2%
प्रकार के आलाकाररक सरचनात्मक िाक्याशों के सदि भ का पि भ ज्ञान से ह।ै यवद दसरे शब्दों म ें ू ं ं ं ू कहा िाय तो औपचाररक का स्कीमों से तात्पयभ विविन्न प्रकार के सप्रत्ययों के प्रस्ततीकरण से ु ं ह।ै विविन्न प्रकार क
े पाठ िसै े कहावनया, पत्र, िाषण, कविताए, गद्याश आवद की पहचान एक ं ं ं दसरे से विन्नता के आिार पर ही
होता ह। इनके आिार म ें वनवहत सरचना ह ै उसे औपचाररक ं ू स्कीमिे ा कहा िाता ह।ै उदाहरण के वलए बहत सी कहावनयों के आिार म ें िो स्कीमिे ा होता ह।ै ु िह वनम्प्न प्रकार का होता ह।ै कहािी = व्यवस्था (र्स्थर्त + र्स्थर्त) + प्रकरण + घटिाक्रम + प्रर्तर्क्रया Story = Setting State + state + episode + event + reaction कहावनयााँ इस तरह की पष्ठिवम म ें होती ह ैं व
िससे वक समय, स्थान एि चररत्र की पहचान हो ृ ू ं सके तथा साथ ही साथ विविन्न प्रकरण विविन्न प्रवतवियाओ को िन्म दते ा ह।ै विविन्न प्रकार ं की वििाए म ें विविन्न प्रकार सरचनाए होती ह।ै ं ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 129 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 2. र्वषयवस्त िबधी स्कीमेटा (Content Schemata) - विषयिस्त सबिी स्कीमिे ा स े ु ु ां ां ं ं मलत: िाक्याश (पाठ) के विषय िस्त सबिी पष्ठिवम ज्ञान से सबवित ह।ै (कै रेली एण्ड एस्िर ृ ू ु ू ं ं ं ं ं होलड, 1983), इसका िड़ाि वकसी शीषकभ विशषे के सप्रत्ययात्मक ज्ञान एि सचना ह ै िो वक ु ू ं ं एक व्यिवस्थत तरीके से िड़ा हआ होता ह।ै विषय िस्त सबिी स्कीमिे ा विशेष घिनाओ एि ु ु ु ं ं ं ं िस्तओ का एक खला सेि होता ह।ै उदाहरण के वलए यवद हम वकसी रेस्तरााँ म ें उपलब्ि सविसभ , ु ु ं मीन, विविन्न प्रकार के िोिन का ऑडभर दने ा, वबल अदा करना, विप दने ा आवद की सचना से ू ू होगा। विषय-िस्त सबिी स्कीमिे ा ज्यादातर सस्कवत बाध्य ( Cultural- bound) होता ह।ै ृ ु ं ं ं इसवलए सास्कवतक स्कीमा को सामान्यतया विषय िस्त स्कीमा म ें िगीकत वकया िाता ह।ै ृ ृ ु ं 3. िास्कर्तक स्कीमेटा (Cultural Schemata) -- िॉनसन (1981) एि कै रेली (1981) के ृ ां ं अध्ययनो ने इस बात को पष्ट वकया ह ै वक वकसी पाठ (िाक्याश) म ें वनवहत सास्कवतक ज्ञान ृ ु ं ं पाठक के स्िय के सास्कवतक पष्ठिवम से द्वन्द्व करता ह।ै स्िय के सास्कवतक पष्ठिवम से सबवित ृ ृ ृ ृ ू ू ं ं ं ं ं ं पाठ या िाक्याशों को दसरे सास्कवतक पष्ठिवम से पाठ या िाक्याश के मकाबले समझना सहि ृ ृ ू ु ं ं ं ू एि आसान होता ह।ै विविन्न सास्कवतक समह उसी पाछ या िाक्याश को अलग अलग ृ ू ं ं ं समझते ह ै और उसकी व्याख्या करते ह।ैं वकसी पाठ के पण भ रूप से समझने के वलए उसकी ू सास्कवतक पष्ठिवम ( Cultural Background) की समझ अवत-आिश्यक ह।ै ृ ृ ू ं 4. भाषाइा स्कीमेटा (Linguistic Schemata) - िाषाइ भ स्कीमा का सबि व्याकरण एि शब्दों ं ं ं के ज्ञान से ह।ै यह वकसी िी पाठ को समझने म ें अवत महत्िपण भ िवमका अदा करता ह।ै इस्की ू ू (1988) के अनसार अच्छे पाठक वकसी पाठ-विशेष को अच्छी तरह व्याख्यावयत करने के ु साथ साथ उसे अच्छी तरह से वडकोड (Decode) िी करते ह।ैं वबना अच्छी वडकोवडांग दक्षता (Decoding skill) के कोइ भ िी अच्छा पाठक बन ही नहीं सकता ह।ै स्कीमेटा की प्रकर्त (The Nature of Schemata): स्कीमा वसद्ात की मल िारणा यह ह ै वक ृ ू ं मानि स्मवत मलतः शब्दाथभ की तरह व्यिवस्थत ह ै न वक िणमभ ाला िमों के अनसार और न ही ृ ू ु ध्िन्यात्मकता के अनसार । इसके अलािा स्मवत एक थेसारस की तरह व्यिवस्थत ह ै न वक एक शब्दकोष ृ ु की तरह । कोइ िी व्यवक्त विशषे प्रत्येक तरह की िस्त की तरह स्कीमिे ा रखता ह ै चाह ें िो िस्त वदखने ु ु म ें सािारण हो या वक्लष्ट हो । िसै े व्यवक्त कलम, ििबाल या चश्मा का स्कीमिे ा रखता ह ै िसै ा ही िह ू प्यार (Love), िोि (Anger) या विर िलन िसै े सम्प्प्रत्ययों का स्कीमिे ा िी रखता ह ै । िह विन्न - विन्न वियाओ का िी स्कीमिे ा रखता ह ै िसै े वकसी िस्त को खरीदना , ििबाल खले ना या विर ु ु ं सेमीनार म ें उपवस्थत होना इत्यावद । एक कसी की स्कीमा उसी तरह की हो सकती ह ै िसै ा वक वचत्र सख्या ु ं – १ म ें वदखाया गया ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 130 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् A Partial Semantic Network of “CHAIR” यह कई अलग स्कीमिे ा का एक समह िी हो सकता ह ै । वकसी िी िस्त को कसी कह े िाने के वलए ू ु ु कोई वनवित गण या विशषे ताए होता ह ै । िसै े की एक कसी म ें एक सीि, दो हडैं ल एि, बैक, काउच, ु ु ं ं होना अवनिायभ ह ै तिी उसको कसी कह सकते ह ैं । इसी तरह से घर की कसी, आविस की कसी, दवै नग ु ु ु कमरे की कवसभयों के अलग- अलग गण होंग े । ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 131 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् Fig. A partial representation of what might exist in a person’s schema. अमतभ सत्ताओ (Abstract Entities) िसै े – प्रमे (Love), िोि (Anger), िलन (Envy) इत्यावद िैसे ू ं के वलए स्कीमिे ा एक सप्रत्यय (Concept) की ही तरह होता ह ै । वकन्त विविन्न वियाओ एि घिनाओ ु ं ं ं ं के वलए स्कीमिे ा सप्रत्ययों की तरह न होकर विमाओ की तरह होती ह ै । वचत्र सख्या २ प्रासवगक एि ं ं ं ं ं िमबद् विमाओ की िावत वकसी िस्त को खरीदने की स्कीमिे ा का उदाहरण प्रस्तत कर रह े ह ैं । ु ु ं ं अभ् याि प्रश् ि 5. स्कीमा क्या होता ह ै ? स्पष्ट करें । 6. सािारण स्कीमा एि िविल स्कीमा म ें अतर स्पष्ट करें । ं ं 7. स्कीमिे ा के विविन्न प्रकारों का िणनभ करें । 8. स्कीमिे ा की प्रकवत से आपका क्या तात्पयभ ह ै ? ृ 9. वकसी व्यवक्त के वकसी िस्त के खरीदने का स्कीमा का वनमाभण या प्रारूप कै सा हो सकता ह ै ? ु वनरूपण करें । 3.9 सारांश प्रस्तत इकाई म ें पठन अिबोि को समझाते हए यह बताया गया ह ै वक पठन कौशल अन्य तीनों कौशलों ु ु से अविक महत्िपण भ ह ै । पठन का अथभ िोर से पढ़ना या मौन िाचन करना ह ै विससे वलवखत या मवित ू ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 132 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् सामग्री का अथभ िाि समझ में आ िाए । वबना अथभ िाि समझ े पढ़ना के िल शब्दों पर वनगाह घमाना ु ह ै । 3.10 संदि भग्रन्थ सची ू 1. डॉ. वसह, वनरिन कमार (2008),
“माध्यवमक विद्यालयों में वहदी वशक्षण, रािस्थान वहदी ग्रन्थ ु ं ं ं ं अकादमी,ियपर । ु 2. डॉ. मगल, उमा (2006),“वहदी वशक्षण” आयभबक वडपो, करोल बाग, नई वदलली । ु ं ं 3. डॉ. शमाभ, खमे राि & ब्रिराि (2012),“वहदी वशक्षण”
अग्रिाल पवब्लके शन्स, आगरा । ं 4. डॉ. पाण्डेय, वनत्यानद & डॉ. गगाराम शमाभ (2005), एच.पी.िागिभ बक ु ं ं ं हाउस, आगरा । 5. िाई योगन्े ि िीत (2006), विनोद पस्तक मवदर, आगरा । ु ं ं 6. डॉ. चतिदे ी वशखा,
“िाषा एि वहदी सावहत्य वशक्षण”
आर लाल बक वडपो, आगरा। ु ु ं ं 7. डॉ. डबास रामकरण, पाररक वशिराि,
“वहदी िाषा वशक्षण एि प्रिीणता”
(SIERT उदयपर), ु ं ं रािस्थान राज्य पाठयपस्तक मडल, ियपर । ् ु ु ं 8. NCF पाठयचयाभ (2005), ् 9. डॉ. पाठक पी. डी. (2009), आर लाल बक वडपो, आगरा । ु 10. डॉ. गााँिी, िारत कमार, बी एल नावपत (2014),
“िाषा, सज्ञान और समाि पाठयचयाभ के सदि भ ् ु ं ं म”
ें (SIERT उदयपर), रािस्थान राज्य पाठय पस्तक मडल, ियपर । ् ु ु ु ं 11. अवग्नहोत्री, रमाकात (2011),
“बहिावषकता , साक्षरता, िाषा वशक्षण एि बौवद्क विकास ु ं ं छत्तीसगढ़ पाठयपस्तक वनगम, रायपर । ् ु ु 12. िारतीय िाषाओ वशक्षण (2009),“आिार पत्र NCERTनई वदलली” ं 13. वसह सरििान (2008),“वहदी िाषा सदि भ और सरचना,सावहत्य सहकार,नई वदलली । ू ं ं ं ं 14. िािपेयी वकशोरीदास, “शब्दकोश अनशासन, िाणीप्रकाशक,नई वदलली ु 15. प्रसाद िासदिे नदन (2013),“आिवनक वहदी व्याकरण एि रचना”,
िारती ििन प्रकाशक, ु ु ं ं ं पिना । 16. डॉ. त्यागी ओकारवसह& एम. पी. वसह,
“शवै क्षक प्रोद्योवगकी एि कक्षा-कक्ष प्रबि”
अररहत ् ं ं ं ं ं ं वशक्षा प्रकाशन, ियपर । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 133 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 3.11 वनबिात्मक प्रश्न ं 1. वकसी व्यवक्त के वकसी िस्त के खरीदने का स्कीमा का वनमाभण या प्रारूप कैसा हो सकता ह ै ? ु वनरूपण करें । 2. अथभप्रकाशक विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु 3. वििरणात्मक विषयिस्त से आप क्या समझते ह ैं ? ु 4. हस्तातरण विषय िस्त के प्रकारों को उदाहरण सवहत बताइए ? ु ं 5. वचतनपरक विषय िस्त को वलखने के वलए वकन-वकन बातों का ध्यान रखना चावहए ? ु ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 134 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इकाई 4 - वििेष सन्दभों में लेिन : सामाविक विज्ञान, विज्ञान, गवणत एिां विविि सावहत्यों की भाषा में वलिने की प्रविया,िढ़ने एिां वलिने के बीच सम्बन्ि स्र्ावित करना , बच्चों के सांप्रत्यय को समझने के वलए उनके लेिन का विश्लेषण करना : सीिने एिां समझने के वलए तरीके एिां माध्यम के रूि में उद्दश्यिरक लेिन े Writing in the specific content areas: Social Sciences, Science, Mathematics, and Literature of Relevant Languages, Making Reading-Writing Connections, Process of Writing, Process of Analyzing Children’s Writing to Understand their Conceptions: Ways and Means of Writing with a Sense of Purpose Writing to Learn and Understand 4.1 प्रस्त ािना 4.2 उद्दश्े य 4.3 लेखन कौशल का अविप्राय 4.4 वलखने की प्रविया 4.5 वलखने एि पढ़ने के मध्य सम्प्बन्ि ं 4.6 विशेष सन्दिों में लेखन : सामाविक विज्ञान, विज्ञान, गवणत एि विविि ं सावहत्यों की िाषा में वलखने की प्रविया 4.7 बच्चों के सप्रत्यय को समझने के वलए उनके लेखन का विश्लेषण करना : सीखने ं एि समझने के वलए तरीके एि माध्यम के रूप में उद्दश्े यपरक लेखन ं ं 4.8 साराश ं 4.9 सदिभ ग्रथ सची ू ं ं 4.10 वनबिात् मक प्रश्न ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 135 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 4.1 प्रस् तावना विद्याथी ने िो कछ पढ़ा, या उसे िो िी ज्ञान वदया गया, उस ज्ञान का िली- िावत आत्मीकरण करने के ु ं वलए, उसका कशलतापिकभ उपयोग करने की क्षमता
का विकास करने, उसकी िाच करने अथिा प्रा्त ु ू ं ज्ञान के विषय म ें उसकी अविव्यवक्त का विकास करने, उसके विकास का मलयाकन करन,े उसम ें ू ं मौवलकता की शवक्त का विकास
करने अथिा मौवलकता की योग्यता की गवत ि वदशा का ज्ञान ि मलयाकन करने हते िो कायभ विद्याथी को वदया िाता ह ै उसे ही वलवखत कायभ कहा िाता ह ै ।हमारे दशे में ू ु ं आकादवमक उपलवब्ि (Academic Achievement) की सिलता मलतः वलखने की योग्यता पर ही ू वनिरभ ह ै चाँवक िो बेहतर तरीके से वलख सकता ह ै िही अपने आप को ठीक ढग से परीक्षा म ें प्रस्तत कर ू ु ं सकता ह ै । वलखना एक तरीके से बात करने के सामान ह ै । िसै े ही हम वलखते ह ैं हम वकसी से बात करते ह ैं हालावक अविकतर विससे से हम बात कर रह े होते ह ै िह हमारे सामने उपवस्थत नहीं होता ह ै । हम ं ितभमान की पररवस्थवतयों या घिनाओ की याद ताज़ा रखने के वलए िी वलखते ह ैं । एक अध्यापक को ं वलखने की वशक्षा ठीक उसी प्रकार दने ी चावहए िसै े की िह बात करने की वशक्षा पा रहा हो । चाँवक िब ू तक बच्चा स्कल आता ह ै तब तक िह नए नए िाक्य बनाना सीख चका होता ह ै हालावक अिी िह उन ू ु ं िाक्यों का िमबद् प्रयोग करने म ें मावहर नहीं होता ह ै । 4.2 उद्दश्े य इस इकाई क अध्ययन करने के पिात आप- 1. लेखन कौशल का अविप्राय स्पष्ट कर सकें ग े । 2. वलवप की वशक्षा की आिश्यकता को समझ सकें ग े । 3. वलखने एि पढ़ने के मध्य िो अतसांबि ह ै उसे समझ सकें ग े । ं ं ं 4. वलखने की प्रविया का अथभ बता सकें ग े एि पररिावषत कर सकें ग।े ं 4.3 लिे न कौशल का अविप्राय (Meaning of Writing Skill) िाषा एक कौशल ह ै । इस कौशल पर पण भ अविकार पाने के वलए विद्यावथभयों म ें सनने, बोलन,े पढ़न े एि ू ु ं वलखने के कौशल का विकास करना ज़रूरी ह ै क्योंवक िाषा का इस्तेमाल दो तरीकों से ही होता ह ै – मौवखक एि वलवखत । मौवखक रूप पर अविकार करने के वलए सनना और बोलना तथा वलवखत रूप पर ु ं अविकार करने के वलए पढ़ना और वलखना । इन चारों कौशलों को विकवसत करना ही मख्य उद्दश्े य ह ै । ु व्यवक्त विन ध्िवनयों का प्रयोग विचारों की अविव्यवक्त के वलए करता ह ै उसे मौवखक िाषा कहते ह ैं । इन्हीं ध्िवनयों को विन विवशष्ट वचन्हों के माध्यम से वलकवहत रूप म ें व्यक्त वकया िाता ह,ैं उन्ह ें वलवप कहते ह ैं । प्रत्येक िाषा की अपनी एक वलवप होती ह ै । दिे नागरी वहन्दी िाषा की वलवप ह ै एि रोमन ं अग्रेज़ी िाषा की वलवप ह ै । सामान्य रूप से वलखकरविचारों की अविव्यक्त करना लेखन कौशल या ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 136 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् वलवखत अविव्यवक्त कहा िाता ह ै । वलवप का ज्ञान प्रा्त करने के पिात िाषा के वलवखत रूप म ें प्रयोग कर व्यवक्त अपने िािों एि विचारों को लेखन कौशल के द्वारा स्थावयत्ि प्रदान करता ह ै । ं र्लर्प की र्शक्षा की आवश्यकता (Requirement of Script Writing ): बच्चों म ें लेखन कौशल का विकास करने के वलए वलवप की वशक्षा अत्यत आिश्यक ह ै । विस तरह ध्िवनयों के पण भ
ज्ञान ू ं के वबना उच्चारण शद् नहीं हो सकता एि मवखक अविव्यवक्त म ें पणतभ ा नहीं आ सकती, उसी प्रकार ु ु ू ं वलवप के ज्ञान के वबना विद्याथी न तो शद् ितभनी का प्रयोग कर सकता ह ै और न ही विचारों को वलवखत ु रूप म ें अविव्यक्त कर सकता ह
ै । िब तक विद्याथी को वलखना पढ़ना नहीं आता तब तक िाषा पर उसका पण भ अविकार नहीं हो सकता । अतः िाषा पर पण भ अविकार कराने एि अविव्यवक्त कौशल को ू ू ं परी तरह से विकवसत करने के वलए बच्चे को वलवप का पण भ ज्ञान दने ा अवत आिश्यक ह ै । लेखन कौशल ू ू या वलवखत अविव्यवक्त के महत्ि को हम वनम्प्न रूप से स्पष्ट कर सकते ह ैं । 1. वलवखत िाषा विद्याथी के हाथ और मवस्तस्क म ें सतलन बना कर रखती ह ै । ु ं 2. वलवखत िाषा ही सावहत्य के िण्डार म ें िवद् करती ह ै । यवद वलवप न होती तो आि सावहत्य ृ कान्हा से आता ? यवद लेखन कौशल न होता तो नई- नई रचनाए कान्हा से आती ? ं ं ं 3. आिवनक वशक्षा प्रणाली की प्रमख विशेषता परीक्षा ह ै । इसके वबना वशक्षा प्रणाली की कलपना ु ु िी नहीं की िा सकती । लेखन- कौशल के द्वारा ही विद्याथी की योग्यता का मलयाकन वकया ू ं िाता ह ै । 4. दशे - विदशे म ें हो रह े ज्ञान- विज्ञान आवद से पररवचत कराने का मख्य सािन वलवखत िाषा ही ह।ै ु 5. व्यािसावयक एि औद्योवगक प्रगवत का आिार िी वलवखत िाषा ही ह।ै मौवखक रूप से कायभ- ं व्यिसाय म ें सिलता प्रा्त नहीं की िा सकती ह ै । हर व्यिसाय म ें तरह –तरह के ररकाडभ आवद वलखकर रखने पड़ते ह ैं । 6. आि तो लेखन एक स्ितत्र व्यिसाय के रूप म ें िी मानि िावत का कलयाण कर रहा ह ै अनेक ं व्यवक्त अपनी लेखनी की कला से ही अपनी रोिी –रोिी की व्यिस्था कर रह े ह ैं । 7. अपने विचारों को सरवक्षत रखने के वलए वलवखत अविव्यवक्त की आिश्यकता ह ै । वलखाकर हम ु अपने विचारों को िषों के वलए स्थावयत्ि प्रदान कर सकते ह ैं । 8. िीिन के अनेक ऐसे क्षेत्र ह ैं िन्हााँ के िल मौवखक अविव्यवक्त से काम नहीं चल सकता ह ै । दर ू रहने िाले वमत्र या सबिी को अपना सन्दशे दने ,े एक दसरे के साथ कोई कायभ करन े या अन्य ं ं ू कोई समाचार पहचाने के वलए वलवखत िाषा की आिश्यकता होती ह ै । ु ं 9. दवै नक िीिन का वििरण रखने, घर पर दवनक वहसाब वकताब रखने आवद व्यािहाररक कायों वलवखत िाषा का प्रयोग करना पड़ता ह ै । 10. वशक्षा ग्रहण करते समय पवठत सामग्री को सगवठत करने प्रश्नों का उत्तर तैयार करने, पाठ का ं सार तैयार करने, गहकायभ करने आवद म ें वलखाण – कौशल इत्यावद की आिश्यकता पड़ती ह ै । ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 137 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 11. हमारे पििभ ों की सभ्यता और सस्कवत को वलवखत िाषा ने ही हम तक पहचाया ह ै । इसी प्रकार ु ृ ू ं ं हमारी सस्कवत आग े आने िाली पीढ़ी तक िी वलवखत िाषा के ही माध्यम से ही हस्तातररत ृ ं ं होती रहगे ी । अभ् याि प्रश् ि 1. लेखन कौशल से आप क्या समझते ह ैं ? 2. वलवप की वशक्षा की आिश्यकता पर प्रकाश डालें । 3. लेखन कौशल या वलवखत अविव्यवक्त के महत्ि को स्पष्ट करें । 4.4 वलिने की प्रविया (Process of Writing) िाषा सीखने का एक स्िािाविक िम ह ै – सनना, बोलना और वलखना । िाषा की वशक्षा दने े के वलए ु प्राथवमक स्तर से ही बच्चों म ें इन चारों कौशलों को विकवसत करने का प्रयास वकया िाता ह ै । पहली अवस्था (First Stage) बच्चों को पहले मौवखक िाषा के वशक्षा दी िाती ह,ै उसके पिात पढ़ना सीखाया िाता ह ै और उसके तरत पिात लेखन- कौशल का वशक्षण आरम्प्ि वकया िाता ह ै । िसै े ही बच्चे अक्षरों का उच्चारण कर ु ं उनके वलवपबध्ह रूप को पहचानने लगते ह,ैं िसै े ही इन अक्षरों के वलवपबद् रूपों को वलखना सीखना िी शरू कर वदया िाता ह ै । यह कायभ तिी शरू वकया िाना चावहए िब बच्चों की उगवलया कलम पकड़ने ु ु ं ं की अभ्यस्त हो िाए । ं लेखन कौशल को विकवसत करने के वलए सिप्रभ थम बच्चों को मानवसक रूप से तैयार करना चावहए, क्योंवक वलखना शरू करने से पहले से यह िानना आिश्यक होता ह ै वक बच्चा वलखने के लए तैयार ह ै ु या नहीं । यह बात सिवभ िवदत ह ै वक वलखना सीखना मौवखक या िाचन- कौशल से कवठन होता ह।ै बच्चे को वलखना सीखाने के लए अध्यापक को वनम्प्न प्रयास करना चावहए । i. पेवन्सल से कागज़ पर या चाक से श्यामपट्ट पर तरह- तरह की रेखाए खींचने का अभ्यास कराना ं चावहए । ii. अध्यापक बालक को कोई बोडभ पर बड़े अक्षर वलख कर उनके चारों तरि अगली घमाने का बच्चों ु ु ं से अभ्यास कराये तावक उनके अदर का डर दर हो । ं ू iii. तरह – तरह के बीि, दान,े मोती आवद की सहायता से िी खेल –खले म ें िणों की आकवतयााँ ृ बनाने का अभ्यास कराया िा सकता ह ै । iv. कक्षा का आकषाक वातावरण (The attractive environment of Classroom)– कक्षा के कमरे म ें आकषकभ रग – वबरग े वचत्र एि चािभ िागने चावहए । चािभ म ें वचत्र, शब्द ि िण भ बने होन े ं ं ं ं चावहए । कक्षा की दीिारों पर िश भ से २ िि उन्ह ें श्यामपि बने होने चावहए । रग- वबरगी चाक राखी ु ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 138 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् होनी चावहए । इन चािों ि वचत्रों से िणों की आकवतयााँ बच्चे के मास- पिल पर अवकत हो िाती ृ ं ं ह ैं और चाक से िह मनचाही रेखाए खींचता ह ै तथा चाक पकड़ने का अभ्यास करता ह ै । ं इस प्रकार के विविन्न सािनों ि वियाओ के माध्यम से बच्चों की उाँगवलयों की मासपेवशयों को ं ं कलम पकडने तथा विविन्न वदशाओ म ें घमने का अभ्यास कराने के पिात ही िणों की रचना ु ं वसखानी चावहए । इससे पहले बच्चों के वलखना नहीं सीखाना चावहए । दिरी अवस्था (Second Stage) ू वणों की रचिा िीखिा (Learning the shape of the letters ) : लेखन कौशल की वशक्षा के यह दसरी अिस्था ह ै । िब बच्चा वलखना सीखने को तैयार हो िाए तो उसे विविित रूप से िणमभ ाला के ू सिी िणों को वलखना सीखाना चावहए । िणों को वलखना सीखाने के कई विविया ह।ैं अध्यापक इनम ें से ं कोई सी िी विवि को अपना सकता ह ै । i. र्चत्र र्वर्ध (Pictorial Method): िास्ति म ें वलवप का विकास ही वचत्रों के द्वारा हआ ह ै । िसै े ु िी बछ्हा वचत्र बनाने म ें ज़्यादा रुवच रखता ह ै । अतः इस विवि म ें बच्चों को खले खले म ें ही वलखना सीखा वदया िाता ह ै । ii. माटेिरी र्वर्ध ( Montessori Method) : श्रीमती मािेसरी ३ िष भ की आय के पिात बच्च े को ु ां ं िणभ-रचना सीखाने का सम्रथन करती ह ैं । इस विवि म ें बच्चे को सिप्रभ थम लकड़ी या गत्त े के बने अक्षर वदए िाते ह ैं और उन पर उगली िे रने को कहा िाता ह,ै विर उनके बीच पेवन्सल चलाने को ं कहा िाता ह।ै िब उनकी उगली साि िाती ह ै तब स्ितत्र रूप से िण भ वलखने को कहा िाता ह।ै ं ं iii. अििरण र्वर्ध(Imitation Method) : इस विवि म ें अध्यापक बच्चे को स्लेि या तख्ती पर ु पेवन्सल से िण भ वलख दते ा ह ै । अब्छे उस वलख े हए िण भ के ऊपर स्याही के साथ कलम चलाते ह ैं । ु iv. रेखा र्वर्ध (Line Method): इस विवि में बच्चे को िविन्न प्रकार की रेखाए खीचने का ं अभ्यास कराया िाता ह ै । । िैसे- खड़ी रेखा, पडी रेखा, वतरछी रेखा, अद्भ ित्त, पण भ ित्त आवद । ृ ृ ू विर रेखाओ को वमला कर िण भ रचना सीखाई िाती ह ै । ं v. पेस्टालाजी की रचिात्मक र्वर्ध (Constructivist approach of Pestalozzi): इस विवि म ें अक्षरों को िकड़े म ें वििक्त करके एक –एक िकड़े की आकवत बनाने का अभ्यास कराया ृ ु ु िाता ह ै और विर सिी िकड़ों को वमलाकर परा अक्षर बनाना सीखाया िाता ह ै । िो अक्षर सरल ु ू होते ह ैं उन्ह ें पहले बनाना सीखाया िाता ह ै । तीिरी अवस्था (Third Stage) शब्दों तथा वाक्यों की रचिा की र्शक्षा िणों की रचना सीख लेने के पिात बच्चे िण भ वमलाकर शब्द बनाना और उसके पिात िाक्य वलखना सीखते ह ैं । लेखन वशक्षण की इस अिस्था म ें बच्चों पर ज़्यादा ध्यान दने े की आिश्यकता ह।ै इस समय बच्चे म ें वलखने से सम्प्बवित िसै ी आदतें विकवसत हो िाती ह,ैं ि े आग े िी चलती रहतीं ह ैं । अतः इस ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 139 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् अमय बच्चे को सन्दर, सडौल ि स्पष्ट रूप स े वलखने का अभ्यास कराना चावहए । इसके वलए वनम्प्न ु ु विवियों का प्रयोग वकया िा सकता ह ै । i. िलेख र्लखिे का अभ्याि करािा : इस अिस्था म ें सलेख वलखने का भ्यास कराना बच्चों ु ु के वलए लािकारी वसद् हो सकता ह ै । ii. अिर्लर्प : अनवलवप का तात्पयभ िसै ा वलखा ह ै िसै ा ही वलखना ह ै । ु ु iii. प्रर्तर्लर्प : प्रवतवलवप वकसी िी छपी हई पस्तक म ें से दखे - दखे कर गद्याश या पद्याश वलखा ु ु ं ं िाता ह ै । इसके वलए अध्यापक को यह ध्यान रखना चावहए वक प्रवतवलवप की सामग्री बच्चे के मानवसक स्तर एि रुवच के अनसार हो । ु ं iv. श्रतर्लर्प : प्रवतवलवप म ें बच्चे दखे कर वलखते ह,ैं वकन्त श्रत वलवप म ें वबना दखे ,े वसिभ सनकर ु ु ु ु वलखते ह ैं । इसम ें अध्यापक बोलते िाता ह ै और छात्र सन-सन कर वलखते िाते ह ैं । इससे ु ु विद्यावथभयों का सन कर वलखने का अभ्यास होता रहता ह ै । ु चौथी अवस्था – (Forth Stage) लेखि अभ्याि करिा (Practices of Writing ) : लेखन कौशल का यह चतथभ एि आवख़री चरण ु ं ह।ै अब तक बच्चों को दखे कर ि सनकर सन्दर लेख के ज़ररए सहबद एि िाक्य वलखने का भ्या
स हो ु ु ं िाता ह ै । अब बच्चों को दखे कर एि सनकर सन्दर लेख के ज़ररए िाक्य वलखने का अभ्यास हो िाता ह ै । ु ु ं अब बच्चों को अपने िािों ि विचारों को तावकभ क िम में, व्याकरण के अनसार िाषा का प्रयत्न करते ु हए वलखने का अभ्यास करना होता ह,ै व
िससे उनम ें लेखन कौशल परी तरह विकवसत हो सके । इसके ु ू वलए कक्षा म ें समय- समय पर वलवखत कायभ कराते रहने की कोवशश की िानी चावहए । अभ् याि प्रश् ि 4. वलखने की दसरी अिस्था – िणों की रचना का विस्तार से िणनभ करें । ू 5. वलखने के वलए तैयार करने की अिस्था का विस्तार से िणनभ करें ? 6. वलखने की मािेसरी विवि से आप क्या समझते ह ैं ? ं 7. वचत्र -विवि की व्याख्या करें ? 4.5 वलिने और पढ़ने का संबि (Connection between Reading and ं Writing) हम ें यह बात समझनी होगी वक पढ़ना लेखन को प्रिावित करता ह ै और वलखना पढ़न े को प्रिावित करता ह ै ।विविन्न शोिों म ें यह पाया गया ह ै वक यवद कोई व्यवक्त बहत ज़्यादा पढ़ने का कायभ करता ह ै िह ु उतना ही बवढ़या लेखक िी होता ह ै ।यवद हम विद्यावथभयों को विविन्न प्रकार के सावहत्य यथा कहानी, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 140 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् कविता,उपन्यास या वनबि पढ़ने के वलए प्रेररत करते ह ैं तो उनकी िाषा और बेहतर वनखर करके हमारे ं सामने आती ह ै ।बहत िषों तक विद्यावथभयों को पढना और वलखना अलग अलग वसखाया िाता था , ु वकन्त विगत दस िषों के शोि ने यह प्रमावणत एि स्पष्ट कर वदया ह ै वक वलखना एि पढना एक ही वसक्के ु ं ं के दो पहल ह ैं ।शोि म ें यह बात िी वनकल कर सामने आयी वक िावषक विकास वलखने एि पढ़ने के ू ं अतसांबि परवनिरभ करता ह।ै ं ं हम अपने विद्यालयों म ें विद्यावथभयों को दो तरह से वसखाते ह।ैं पहला अध्यापक कछ ज्ञान की ु बात उदाहरण दके र सीखाता ह ै एि दसरा विद्याथी अपने पाठयिम म ें वनिाभररत पस्तक को पढ़ कर ् ् ु ं ू सीखता ह।ै हम सब यह बात ठीक तरह से िानते ह ैं वक लेखन की प्रविया का मख्य उद्दश्े य ज्ञान को ु वलवखत रूप म ें स्थानातररत करता ह ै िहीं दसरी तरि हम यह आसानी से समझ सकते ह ैं वक िो कछ िी ु ं ू वलखा िाता ह ै िह पहले से ही हमारे वदमाग म ें होता ह ै , इसवलए हम यह कह सकते ह ैं वक पढना , वलखने म ें महत्िपण भ िवमका अदा करता ह।ै छोिे बच्चों को यवद वलखने का ठीक से अभ्यास करिाया िाय तो ू ू उनका पढ़ने के हनर का िी विकास होता क्योंवक वलखने बार बार अभ्यास करने से अक्षर पहचानना ु आसान हो िाता ह ै और पढ़ने म ें िी सहायता वमलती ह ै । 4.6 ववशेष सन्दिों म लेिन: सामाविक ववज्ञान, ववज्ञान, गवणत एवं ववववि ें सावहत्यों की िाषा म वलिने की प्रविया (Writing in the Specific ें Content Areas: Social Sciences, Science, Mathematics, and Literature of Relevant Languages) इस बात म ें कोई िी सदहे नहीं ह ै वक वलखना एक हनर ह ैं विसम ें हम अपने विचारों को अविव्यवक्त प्रदान ु ं करते ह।ैं विषय कोई िी हो चाह े सामाविक विज्ञान हो, चाह ें विज्ञान हो या गवणत या सावहत्य या विर िाषा हर विषय म ें वलखने का विशेष महत्ि ह ै । हमारी आि की वशक्षा व्यिस्था म ें वकसी िी विद्याथी की सिलता वलखने पर ही वनिरभ ह ै इसवलए वलखने का महत्ि और िी बढ़ िाता ह ै ।सामन्यतया वलखने की योग्यता का विकास करने का ठेका आि कल िाषा वशक्षक के विम्प्म े ही होता ह ै , वकन्त यह ठीक नहीं ह ै ु ।अलग अलग विषयों म ें लेखन कायभ सपावदत करने की अलग अलग हनर होता ह।ै विस हनर की ु ु ं आिश्यकता सावहत्य या सामाविक विज्ञान के विषय म ें वलखने म ें होगी िह वनवित रूप से विज्ञान या गवणत िसै े विषयों से अवनिायभतः विन्न होगी।अतः लेखन कौशल विकवसत करने का कायभ के िल िाषा के अध्यापक का ह ै ऐसा नहीं ह ै ।वलखने की योग्यता का विकास करने हते विविन्न विषयों के ज्ञान के ु साथ साथ उन विषयों म ें वकस तरह से लेखन कायभ सपावदत होगा िी अवत महत्िपण भ ह ै । ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 141 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 4.7 बच्चों के सप्रं त्यय को समझने के वलए उनके लिे न का ववश्लषे ण करना : सीिने एवं समझने के वलए तरीके एवं माध्यम के रूप म उद्दश्े यपरक लेिन ें (Process of analyzing children’s writing to understand their conceptions : ways and means of writing with a sense of purpose writing to learn and understand) िब किी हम िाषा वशक्षण के उद्दश्े यों की चचाभ करते ह ैं तब हम विद्यावथभयों म ें बोलने, सनने, पढ़ने, और ु वलखने के कौशल का विकास करने की बात करते ह ैं । इसके साथ- साथ बच्चों म ें अपने विचारों को प्रिािशाली ढग से रखने एि अविव्यक्त करने की योग्यता का विकास करने को प्राथवमकता दते े ह ैं । ं ं विद्याथी के अदर िब तक अपने विचारों को प्रिािशाली ढग से रखने या अविव्यक्त करने की क्षमता ं ं विकवसत नहीं होती ह ै तब तक उसका िाषा पर परा अविकार नहीं हो पाता । इसवलए रचना वशक्षण विसे ू उद्दश्े य परक रचना वशक्षण ( Purpose Writing) िी कहते ह,ैं की आिश्यकता पड़ती ह ै । सामान्यतया मनष्य अपने विचारों की अविव्यवक्त दो तरह से करता ह-ै बोलकर ( मौवखक रूप म ें ) एि दसरा वलखकर ु ं ू ( वलवखत रूप म ें ) । उद्दश्े य परक लेखन के मख्य उद्दश्े य वनम्प्नवलवखत होते ह ैं – ु १. उद्देश्य परक लेखि का ज्ञाि २. र्लख कर अर्भव्यि कर िकिे की क्षमता ३. रचिा काया में मौर्लकता लािा उपयभक्त तीनों उद्दश्े यों की पवतभ उद्दश्े यपरक लेखन के अतगतभ की िानी चावहए । यवद आप इन उद्दश्े यों को ु ू ं िली-िावत दखे ेंग े तो यह पता चलता ह ै वक पहले उद्दश्े य म ें हमारा ध्येय रचना कायभ के विविन्न रूपों की ं िानकारी कराना होगा । यह ध्यातव्य ह ै वक पिभ प्राथवमक स्तर पर इनकी िानकारी स्तारानकल ही सिि ू ु ू ं हो सके गी । वद्वतीय उद्दश्े य के अतगतभ हमने वलख कर अविव्यक्त करने की योग्यता प्रात करने की योग्यता को स्थान ं वदया ह ै । इसम ें पत्र, प्राथभना पत्र, िणनभ , वििरण वनबि, कहानी या अवत लघसिाद वदए गए ह ैं । इनकी ु ं ं िी अपनी- अपनी सीमाए ह।ैं हमारी परीक्षा प्रणाली मलतः वलख कर अविव्यक्त कर सकने की क्षमता पर ू ं वनिरभ ह ै । विसकी लेखन शैली वितनी अच्छी ह ै िो अपने आप को उतना ही योग्य वसद् कर पाता ह ै । उपन्यास, कहावनया,ाँ सस्मरण, डायरी, लेख, वनबि आवद विविन्न तरह के उद्दश्े यपरक लेखन वलख ं ं कर अविव्यक्त कर पाने की क्षमता पर ही वनिरभ ह ैं । मौवलकता लाने के सम्प्बन्ि तीसरा उद्दश्े य, उद्दश्े यपरक लेखन के क्षेत्र म ें अत्यविक महत्िपण भ ह ै । इससे ू पि भ हम वनबिादी के अतगतभ प्रायः रिी – रिाई बातें ही दखे ा या िाचा करते थे, परन्त आि के यग म ें यह ू ु ु ं ं ं आिश्यक हो गया ह ै वक छात्र इस विषय म ें मौवलकता का पररचय द े । िब हम मौवलकता की बात करते ह ैं तो इसका अथभ आप को यह नहीं लेना चावहए वक इस स्तर पर छात्र को एक लेखक ही बना द ें । यहा ं ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 142 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् इसका अविप्राय उसम ें मौवलकता की उद्भािना करना होगा । िो कछ िह वलखे उसम ें उसके अपने ु अनिि की बात उसके अपने ढग से आनी चावहए । उसकी िाषा अपनी हो उसके िाि अपने हों । इस ु ं विषय म ें एक बात महत्िपण भ और िी ह ै विसका िणनभ करना यहा उवचत होगा । मौवलकता का अथभ ू ं ं असबद्, अप्रासवगक या िमरवहत लेखन से कदावप नहीं ह ै । इसका अथभ विचारों, अनििों या शलै ी की ु ं ं मौवलकता ह,ै वकन्त विषयातर कदावप नहीं । इतना होते हए िी आप बहली- िावत िानते ह ै वक प्रारम्प्ि ु ु ं ं म ें विद्याथी अप्रासवगक, िमहीन बातें तो वलखगे ा ही, अतः इस पररवस्थवत म ें प्रया्त िैयभ, स्नेह ि ं सहानिवतपिकभ सहयोग की िवत्त ही अपनानी होगी । ृ ु ू ू बच्चों के िप्रत्यय को िमझिे के र्लए उिके लेखि का र्वश्ले षण करिा (Process of ां analyzing children’s writing to understand their conceptions ): सामन्यतया बच्चों के लेखन शलै ी को विकवसत करने के वलए कछ वनिाभररत विषयों पर ही वलखने के वलए वदया िाता था ु वकन्त अब स्ितत्र लेखन को प्रिानता दी िाती ह ै । िब बच्चा स्िय से कछ वलखने के वलए चनता ह ै तो ु ु ु ं ं िह उस विषय के साथ न्याय कर पाने म ें सिल हो पा
ता ह ै । बच्चे के लेखन से बच्चों के सप्रत्यय के बारे ं म ें िी आसानी के साथ पता लगाया िा सकता ह ै । लेखन उनके सम्प्प्रत्यय वनमाभण म ें अवत महत्िपण भ ू िवमका वनिाता ह ै ।बच्च
े अपने आस -पास बहत सी बातें दखे ते ह ैं और उन्हीं के आिार पर ि े उन विशेष ु ू चीज़ों के बारे िारणा का वनमाभण करते ह ैं । अभ् याि प्रश् ि 8. उद्दश्े यपरक लेखन से आप क्या समझते ह ैं ? 9. उद्दश्े यपरक लेखन के उद्दश्े यों को स्पष्ट करें। 10. रचना कायभ म ें मौवलकता लाना से आप क्या समझते ह ैं ? 11. वलख कर अविव्यक्त करने योग्यता से आप क्या समझते ह ैं ? 4.8 सारांश हमारे दशे म ें आकादवमक उपलवब्ि की सिलता मलतः वलखने की योग्यता पर ही वनिरभ ह ै चाँवक िो ू ू बेहतर तरीके से वलख सकता ह ै िही अपने आप को ठीक ढग से परीक्षा म ें प्रस्तत कर सकता ह ै । वलखना ु ं एक तरीके से बात करने के सामान ह ै । िसै े ही हम वलखते ह ैं हम वकसी से बात करते ह ैं हालावक ं अविकतर विससे से हम बात कर रह े होते ह ै िह हमारे सामने उपवस्थत नहीं होता ह ै । हम ितभमान की पररवस्थतयों या घिनाओ की याद ताज़ा रखने के वलए िी वलखते ह ैं । एक अध्यापक को वलखने की ं वशक्षा ठीक उसी प्रकार दने ी चावहए िसै े की िह बात करने की वशक्षा पा रहा हो कहने का तात्पयभ ह ै वक वलखना वसखाने की प्रविया वबलकल स्िािाविक होनी चावहए । चाँवक िब तक बच्चा स्कल आता ह ै ु ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 143 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् तब तक िह नए नए िाक्य बनाना सीख चका होता ह ै हालावक अिी िह उन िाक्यों का िमबद् प्रयोग ु ं करने म ें मावहर नहीं होता ह ै ।िाषा सीखने का एक स्िािाविक िम ह ै – सनना, बोलना और वलखना । ु िाषा की वशक्षा दने े के वलए प्राथवमक स्तर से ही बच्चों म ें इन चारों कौशलों को विकवसत करने का प्रयास वकया िाता ह ै । बच्चों को पहले मौवखक िाषा के वशक्षा दी िाती ह,ै उसके पिात पढ़ना सीखाया िाता ह ै और उसके तरत पिात लेखन- कौशल का वशक्षण आरम्प्ि वकया िाता ह ै । िसै े ही बच्चे अक्षरों ु ं का उच्चारण कर उनके वलवपबद् रूप को पहचानने लगते ह,ैं िसै े ही इन अक्षरों के वलवपबद् रूपों को वलखना सीखना िी शरू कर वदया िाता ह ै । यह कायभ तिी शरू वकया िाना चावहए िब बच्चों की ु ु उगवलया कलम पकड़ने की अभ्यस्त हो िाए । ं ं ं 4.9 संदि भ ग्रंथ सची ू 1. अग्रिाल, पी. और सिय ििमार 2000 (सपादक), वहदी दशे काल में ु ं ं ं 2. चॉम्प्स्की, एन. 1957, वसनिेवक्िक स्रक्चस,भ दी हगे : मौिेन क.। ं 3. चॉम्प्स्की, एन. 1959, ररव्य ऑि वस्कनसभ िबभल वबहवे ियर. लैंग्ििे से 35.1.26-58 ू 4. चॉम्प्स्की, एन. 1972, लैंग्ििे एड माइड, न्ययाकभ : हारकोिभ ब्रास िोिानोविच। ू ं ं 5. चॉम्प्स्की, एन. 1996, पॉिसभ एड प्रोस्पेक्िस: ररिलेक्शस ऑन ह्यमन नेचर एड द सोशल ् ं ं ं ू आडभर, वदलली: माध्यम बक्स। ु 6. चॉम्प्स्की, एन. 1965, आस्पेक्िस ऑप़ि द थ्योरी ऑि वसनिेक्स, कैं वब्रि : एम. आइ.भ िी. ् प्रेस। 7. चॉम्प्स्की, एन. 1986, नॉलेि ऑि लैंग्ििे , न्ययाकभ : प्रागर। ू 8. चॉम्प्स्की, एन. 1988, लैंग्ििे एड प्रॉब्लम्प्स ऑप़ि नॉलेि, ििैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी.। ं 9. दआ, एच. आर. 1985, लैंग्िेि प्लावनग इन इवडया, वदलली: हरनाम पवब्लशसभ। ं ं ु 10. हबै रमास, ि.े 1998, ऑन द प्रागमवै िक्स ऑि कम्प्यवनििे शन, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. ु प्रेस। 11. हबै रमास, ि.े 1998, दी विलॉवस्िकल वडसकोसभ ऑप़ि मॉडवनभिी, कैं वब्रि, मास: एम. आइ.भ िी. प्रेस। 12. कमार, के . 2001, स् कल की वहदी, पिना: रािकमल। ु ू ं 13. वशक्षा मत्रालय, वशक्षा आयोग कोठारी कमीशन 1964 -1966, वशक्षा एि राष् रीय विकास, ं ं वशक्षा मत्रालय, िारत सरकार 1966 ं 14. नेशनल पॉवलसी ऑन एिके शन, 1986, मानि ससािन विकास मत्रालय, वशक्षा वििाग, नयी ु ं ं वदलली। 15. पिनायक, डी. पी. 1981, मलिीवलगएवलज्म एड मदर-िग एिििे शन, ऑक्सपिोडभ ु ु ं ं ं यवनिवसभिी प्रेस। ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 144 ु पाठयचयाा में व्याप्त भाषा CPS -1 ् 16. पिनायक, डी. पी. 1986, स्िडी ऑि लैंग्ििे ेि, ए ररपोिभ, नयी वदलली: एन.सी.इ.भ आर.िी। 17. ररचड्रस, ि.े सी. 1990, दी लैंग्ििे िीवचग मवै रक्स, कै वब्रि :कै वब्रि यवनिवसभिी प्रेस। ू ं ् 18. सायर, डी. 1924, दी इपैिक्ि ऑप़ि बाइवलगवलज्मम ऑन इिेवलिसें , वब्रविश िनभल ऑप़ि ु ं ं साइकोलॉिी 14:25-38 19. श्रीिर, के .के . 1989, इवग्लश इन इवडयन बाइवलगवलज् म,नयी वदलल ी, मनोहर। ु ं ं ं 20. वतिारी, बी. एन., चतिदे ी, एम. और वसह, बी. 1972 (सपादकगणद), िारतीय िाषा विज्ञान ु ं ं ् की िवमका, वदलली : नेशनल पवब्लवशग हाउस। ू ं 21. यनेस्को, 2003, एिििे शन इन ए मलिीवलगएल िलडभ, यनेस्को एिके शन पोविशन पेपर, ू ु ु ू ु ं पेररस। 22. व्योगोत्सकी, एल. एस. 1978, माइड इन सोसायिी: दी डेिलपमिें ऑप़ि हायर ं साइकोलॉविकल प्रोसेस, ििैं वब्रि, मॉस: हािडभ यवनिवसभिी प्रेस। ू 23. िमील, िी. 1985, रेस्पोंवडग ि स्िडेंि राइविग, िी. इ.भ एस. ओ. एल. त्रौमावसक, 19.1 ू ू ं ं 24. इस िबे साइि को िरूर दखे ें : http//www.languageindia.com 4.10 वनबिात्म क प्रश्न ं 1. वलवप की वशक्षण की आिश्यकता एि लेखन कौशल के महत्ि पर प्रकाश डालें । ं 2. उद्दश्े य परक लेखन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट करें । 3. लेखन कौशल या वलवखत अविव्यवक्त के महत्ि को स्पष्ट करें । 4. पढ़ने एि वलखने के मध्य के अतसांबि को स्पष्ट करें । ं ं ं 5. विशेष सन्दिों म ें लेखन िसै े सामाविक विज्ञान, विज्ञान, गवणत एि विविि सावहत्यों की िाषा ं म ें वलखने की प्रविया से आपका क्या अविप्राय ह ै ? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 145 ु