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Plagiarism Detector v. 2867 - Originality Report 5/22/2025 1:30:04 PM


Analyzed document: PE-3.pdf Licensed to: Pitamber Dutt Pant
Comparison Preset: Rewrite Detected language: Hi
Check type: Internet Check
TEE and encoding: PdfPig

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Top sources of plagiarism: 61
Processed resources details: 162 - Ok / 4 - Failed
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Wikipedia:
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BED II- PE 3 ज्ञान एव पाठयचयाा ् ं Knowledge and Curriculum शिक्षक शिक्षा शवभाग, शिक्षािास्त्र शवद्यािाखा उत्तराखण्ड मक्त शवश्वशवद्यालय, हल्द्वानी ु ISBN: 13-978-93-85740-69-5 BED II- PE 3 (BAR CODE) BED II- PE 3 !ान एव पाठयचया, ् ं Knowledge and Curriculum िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ
id: 1
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"राख&ड म* िव-िव.ालय, ह"
#ानी ु अ
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"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ"
य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफे सर एच० पी० श#ल (अ
id: 3
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"य$- पदने ), िनदशे क, िश(ाशा* ु ु उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर मह$मद िमयाँ (बा# िवशषे )- सद#य), पव$ अिध(ाता, िश#ा सकाय, !ोफे सर सी० बी० शमा$ (बा# िवशषे )- सद#य), अ&य', रा*+ीय ु ू ं जािमया िमि&लया इ)लािमया व पव- कलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद 0 म# िव&ालयी िश,ा स/थान, नोएडा ू ु ु ं ू िव#िव$ालय, हदै राबाद !ोफे सर पवन कमार शमा/ (बा# िवशषे )- सद#य), अिध(ाता, ु !ोफे सर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशषे )- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा सकाय व सामािजक िव,ान सकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी ं ं एम० जे० पी० !हले ख&ड िव*िव+ालय, बरेली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफे सर के ० बी० बधोरी (बा# िवशषे )- सद#य), पव( अिध,ाता, िश0ा सकाय, !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) ु ू ं ं एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु !ोफे सर जे० के ० जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश#ाशा% ं ं उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु !ोफे सर र'भा जोशी (िवशषे आम)ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ं म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० िदनेश कमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु म# िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव/िव#ालय ु ु डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स!ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 ु ु उ"राख&ड म* िव-िव.ालय िव#ाशाखा एव सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु ु ं िव#िव$ालय स#ी ममता कमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एव सह- ु ु ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव2ालय ु ं ं ु िश#ाशा% िव'ाशाखा एव सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख!ड ं डॉ० !वीण कमार ितवारी (सद#य एव सयोजक), सहायक -ोफे सर, िश3ाशा4 ु ं ं म# िव&िव'ालय ु िव#ाशाखा एव सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. िव1िव!ालय ु ं िदशाबोध: (ोफे सर जे० के ० जोशी, पव$ िनदशे क, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 िव8िव.ालय, ह =ानी ू ु काय$%म सम(वयक: काय$%म सह-सम#वयक: पाठय&म सम)वयक: पाठय&म सह सम*वयक: ् ् डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड िश#ाशा% िव'ाशाखा, िश#ाशा% िव'ाशाखा, उ*राख,ड उ
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"राख&ड म* िव#िव$ालय, म# िव&िव'ालय, ह,-ानी, नैनीताल, उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, म# िव&िव'ालय, ह
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"#ानी, नैनीताल, ु ु ु ु ह"
#ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ
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"राख&ड ह"
#ानी, नैनीताल, उ+राख.ड उ
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"राख&ड !धान स&पादक उप स$पादक डॉ० !वीण कमार ितवारी स#ी ममता कमारी ु ु ु सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, सह-सम#वयक, िश)क िश)ा िवभाग, िश)ाशा- िव.ाशाखा, उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ
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"राख&ड उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय, ह23ानी, नैनीताल, उ"राख&ड ु ु िवषयव%त स)पादक भाषा स%पादक !ा#प स&पादक !फ़ सशोधक ु ू ं स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी स#ी ममता कमारी ु ु ु ु ु ु ु ु सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. सहायक &ोफे सर, िश-ाशा. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म# िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु ु ु ु िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय िव#िव$ालय साम$ी िनमा(ण !ोफे सर एच० पी० श#ल !ोफे सर आर० सी० िम# ु िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय िनदशे क, एम० पी० डी० डी०, उ"राख&ड म* िव-िव.ालय ु ु © उ
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"राख&ड म# िव&िव'ालय, 2017 ु ISBN-13-978-93-85740-69-5 !थम स&करण: 2017 (पाठय&म का नाम: !ान एव पाठयचया, , पाठय&म कोड- BED II- PE 3) ् ् ् ं ं सवा$िधकार सरि%त। इस प%तक के िकसी भी अश को !ान के िकसी भी मा+यम म - .योग करने से पव5 उ7राख9ड म# िव&िव'ालय से िलिखत अनमित लेना आव2यक ह।ै इकाई ु ु ं ू ु ु लेखन से सबिधत िकसी भी िववाद के िलए पण65 पेण लेखक िज8मदे ार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ"
राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म 2 होगा। ं ं ू िनदशे क, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 िव5िव+ालय #ारा िनदशे क, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ िव2िव3ालय के िलए मि6त व 8कािशत। ु ु ु !काशक: उ
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"राख&ड म* िव-िव.ालय; म#क: उ"
राख&ड म* िव-िव.ालय। ु ु ु काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठय&म का नाम: !ान एव पाठयचया, , पाठय&म कोड- BED II- PE 3 ् ् ् ं ख"ड इकाई स#या स#या इकाई लेखक ं ं 1 1 व 2 डॉ० नपे%& वीर िसह ृ ं सहायक &ोफे सर सह सहायक िनदशे क, िश#ा पीठ, दि#ण िबहार के +,ीय िव0िव1ालय, गया, िबहार 3 1 1 3 !ी शिच' आय* ं के #$ीय िश)ा स-थान, िद#ली िव'िव(ालय, नई िद#ली ं 2 2, 3 व डॉ० सरेश च'( पचौरी ु 4 सह !ोफे सर, िश#ा िवभाग, !ी ग% राम राय *नातको/र महािव3ालय, दहे रादन, उ/राख:ड ु ू 3 2 डॉ० सरे%& कमार शमा+ ु ु सहायक &ोफे सर, आई० सी० डी० ई० ओ० एल०, िहमाचल 'दशे िव,िव-ालय, िहमाचल 'दशे 3 3 डॉ० िववेक नाथ ि(पाठी सहायक &ोफे सर, िश-ा सकाय, िहमाचल &दशे िव4िव5ालय, िहमाचल &दशे ं 3 4 डॉ० िवशाल सद ू सहायक &ोफे सर, आई० सी० डी० ई० ओ० एल०, िहमाचल 'दशे िव,िव-ालय, िहमाचल 'दशे BED II- PE 3 !ान एव पाठ यचया, ् ं Knowledge and Curriculum ख"ड 1 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 2-15 1 !ानमीमासा : अथ*, काय$ एव मह*व, +ान और कौशल म 2 अ4तर, िश7ण तथा :िश7ण म 2 ं ं अ"तर, %ान और सचना म - अ"तर तथा तक0 एव िव#ास म ' अतर ू ं ं 16-32 2 गाँधी जी, रवी$नाथ टैगोर, जॉन डीवी, !लेटो, मािट%न बबेर, पाउलो &े रे के सदभ. म0 ु ं गितिविध या ि(या बाल-क" ि$त िश'ा क) एक +मख अवधारणा ु 33-49 3 बाल के ि'(त िश+ा के के '(ीय िवचार के 1प म 4
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‘खोज’
4 इकाई: चार - ख"ड 2 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं - 1 इकाई: एक 51-67 2 औ"ोिगक'करण, लोकत& तथा वैयि-क .वाय/ता एव तक1 सबधी िवचार8 9ारा ं ं ं ं !थािपत ऐितहािसक प+रवत.न0 से उ3प4न िश6ा के सामािजक आधार म ; आए बदलाव 68-82 3 आधिनक म)य+ यथा जैसे िन#प%ता एव समानता, वैयि/क अवसर , सामािजक 4याय ु ू ं एव स%मान के स+दभ . म / िश2ा अवसर (बाबा सािहब अ%बेडकर) के िवशषे स+दभ . म / ं 83-90 4 टैगोर तथा क+णमित0 के िवशषे स6दभ 0 म 9 रा#$वाद, सावभ( ौिमकतावाद तथा पथिनरपे(ता ृ ू ं के स%&यय( क" िववेचना तथा इन स()यय+ का िश#ा के साथ अतस,बध ं ं ं ं ख
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"ड 3 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 92-113 1 ‘पाठयचया' (या ह?ै तथा पाठयचया' के िनमा'ण म . कौन और 2य3 सल7न रहते ह?: ’ के उ$र ् ् ं समझने यो(य बनाना 114-126 2 छा#ा$यापक( को पाठयचया) के िनमा)ण म / ‘रा#य क& भिमका +या ह ै तथा +या िनिमत1 ् ू पाठयचया' को क*ा-क"
िश"ण हते अ+यापक/ को िदया सही ह ै के उ6र समझने यो;य ् ु बनाना 127-146 3 पाठयचया' तथा पाठय*म म , स.ब0ध, उदाहरण7 सिहत पाठय*म को पाठयप तक7 म , ् ् ् ् ु अनिदत करने क* +ि,या तथा तकनीक क* समझ पाठय-िववरण को पाठय-प#तक म ' ् ् ु ु ह"तात&रत करने क+ ,ि.या क+ समझ ं 147-159 4 िश#ा के वैयि*क- सा$कितक तथा आिथ+क म.य0 एव भारत के सिवधान म 8 9िति:त ृ ू ं ं ं िवभीन म(य* क, -ाि/ हते पाठयचया8 एक साधन के #प म & ् ू ु ख"ड 4 इकाई स० इकाई का नाम प# स० ृ ं ं 1 इकाई: एक - 2 इकाई: दो - 3 इकाई: तीन - 4 इकाई: चार - ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 1 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 1- ज्ञानमीमाांसा : अर् , कार्थ एवां महत्व, ज्ञान और थ कौशल में अन्तर, शशक्षण तर्ा प्रशशक्षण में अन्तर, ज्ञान और सूचना में अन्तर तर्ा तकथ एवां शवश्वास में अतां र 1.1 प्रस्त ाि ा 1.2 उद्दश्े य 1.3 ज्ञा मीमासा का अर्थ ां 1.3.1 ज्ञा क्या ह?ै 1.3.2 दर्थ और ज्ञा मीमासा ां 1.3.3 सामान्य ज्ञा 1.4 ज्ञा मीमासा के कायथ ां 1.5 ज्ञा मीमासा का महत्ि ां 1.6 ज्ञा और कौर्ल में अन्तर 1.7 वर्क्षण और प्रवर्क्षण में अन्तर 1.8 ज्ञा और सच ा में अन्तर ू 1.9 तकथ और विश्वास में अन्तर 1.10 सारार् ां 1.11 र्ब्द ािली 1.12 अभ् यास प्रश् ों के उत् तर 1.13 सदर्थ ग्रर् सची ू ां ां 1.14 व बधात् मक प्रश् ां 1.1 प्रस्त‍ ावना ा‍ दर् थ र्ास्त्र के क्षेत्र म ें सबसे महत्िपण थ और कवि समस्या ज्ञा से सम्बवधत ह।ै दर् थ र्ास्त्र की ू ां ज्ञा मीमासीय विधा के अतर्तथ ज्ञा के स्िरुप, सरच ा, उद्भि, विकास और ज्ञा की कसौवियों अर्िा ां ां ां प्रवतमा ों का वििचे , विश्लेषण एि मलयाक वकया जाता ह।ै ज्ञा मीमासीय समस्याए ँ अ र्ि और ू ु ां ां ां बवि के स्िरुप पर अ र्ील कर े से उत्पन् होती ह ै वजसके फलस्िरूप हमारे समक्ष ज्ञा से सम्बवधत ु ु ां कई प्रश्न उिते ह-ै जसै े तम कै से जा ते हो? अर्ाथत ज्ञा कै से सर्ि ह?ै मा ि ज्ञा का स्िरुप क्या ह?ै क्या ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 2 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं जा े के वलए या ज्ञा प्राप्त कर े के वलए मा ि मवस्तष्क सक्षम ह?ै क्या हम कोई ऐसा ज्ञा रखते ह,ै वजस पर हम व र्रथ करें, या के िल लोकमत या अन्दाजों से ही सतष्ट रह ा चावहए? क्या हम े तथ्यपणथ ु ू ां अ र्ि तक सीवमत रह ा चावहए या हम इस योग्य र्ी ह ैं वक इवन्ियाँ जो कछ र्ी प्रकि करती ह,ैं उसके ु ु परे र्ी जा सकते ह?ैं अर्ाथत क्या हम इवन्िय जर्त से परे वकसी जर्त का र्ी ज्ञा प्राप्त कर सकते ह?ैं आवद। इ प्रश्नों का उत्तर दर् थ र्ास्त्र की वजस र्ाखा म ें प्राप्त कर े का प्रयास वकया जाता ह ैं उसको ज्ञा मीमासा की सज्ञा दी जाती ह।ै ां ां 1.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय के पश्चात आप- 1. ज्ञा मीमासा का अर्थ बता सकें र् े एि पररर्ावषत कर सकें र्।े ां ां 2. दर् थ और ज्ञा मीमासा के सम्बन्ध को स्पष्ट कर सकें र्।े ां 3. ज्ञा मीमासा के कायों का िणथ कर सकें र्।े ां 4. ज्ञा मीमासा के महत्ि की व्याख्या कर सकें र्।े ां 5. ज्ञा और कौर्ल को म ें अतर कर सकें र्।े ां 6. वर्क्षण और प्रवर्क्षण को पररर्ावषत कर सकें र् े एि इ म ें विर्दे कर सकें र्।े ां 7. ज्ञा और सच ा म ें अन्तर स्पष्ट कर सकें र्।े ू 8. तकथ और विश्वास को पररर्ावषत कर सकें र् े एि इ म ें विर्दे स्पष्ट कर सकें र्।े ां 9. ज्ञा और कौर्ल को पररर्ावषत कर सकें र्े। 1.3 ज्ञा मीमाांसा‍का‍अर्थ‍(Meaning of Epistemology) ज्ञा मीमासा के वलए एक विर्ेष अग्रेज़ी का पद ‘एवपवस्िमोलाजी’ प्रयोर् म ें लाया जाता ह ै जो ग्रीक र्ब्द ां ां एवपवस्िम(े Episteme) और लोर्ोस (Logos) से ब ा ह।ै एवपवस्िम(े Episteme) का अर्थ होता ह ै ज्ञा (Knowledge) तर्ा लोर्ोस (Logos) का अर्थ विज्ञा (Science) से होता ह ै अतः ‘एवपवस्िमोलाजी’ का अर्थ हआ ज्ञा का विज्ञा या ज्ञा का वसदात। इसम ें ज्ञा की वििचे ा या ज्ञा की मीमासा की जाती ु ां ां ह।ै ज्ञा मीमासा म ें ती प्रमख प्रश्न समावहत रहते ह-ै पहला प्रश्न ज्ञा के स्रोत क्या ह?ैं िास्तविक ज्ञा ु ां कहाँ से आता ह ै अर्िा हम उसे कै से जा ते ह?ै यह प्रश्न ज्ञा की उत्पवत्त से सम्बवधत ह।ै दसरा प्रश्न ह ै ां ू ज्ञा का स्िरुप क्या ह?ै क्या म (Mind) के बाहर कोई िास्तविक ससार ह,ै और यवद ऐसा ह ै तो क्या ां हम उसे जा सकते ह?ै यह प्रश्न आर्ास (Appearance) ब ाम सत (Reality) का ह।ै तीसरा प्रश्न ह ै ् क्या हमारा ज्ञा िधै या प्रमावणक ह?ै वकस प्रकार हम सत्य और भ्रम म ें र्दे करते ह?ैं यह प्रश्न सत्य की परीक्षा या सत्य की कसौिी का ह ै या सत्य की सत्यप ीयता से सम्बवधत प्रश्न ह।ै सवक्षप्त में यह कहा जा ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 3 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं सकता ह ै वक ज्ञा मीमासा के अतर्तथ ती समस्याओ का अध्यय वकया जाता ह ै – ज्ञा की उत्पवत, ज्ञा ां ां ां का स्िरुप और ज्ञा की सत्यता की कसौिी या ज्ञा की प्रमावणकता। दर् थ का तीसरा मलर्त प्रश्न ज्ञा से सम्बवन्धत होता ह ै और ज्ञा की वििचे ा ज्ञा मीमासा के अतर्तथ ु ू ां ां की जाती ह ै एि ज्ञा मीमासा िस्ततः तत्िमीमासा से सम्बवधत होती ह।ै उदहारण के वलए यवद जर्त के ु ां ां ां ां सबध म ें हमारा वचत र्ौवतकिादी ह ै तो ज्ञा प्रावप्त के साध र्ी प्रत्यक्ष इवन्िय-ज्ञा से जड़े हए होंर् े ज्ञा ु ु ां ां ां प्रावप्त की विवधयाँ िज्ञै ाव क विवध के रूप म ें स्िीकायथ होंर्ी तर्ा के िल प्रत्यक्ष ज्ञा ही मा ा जाएर्ा, दसरी ू तरफ यवद जर्त को आवत्मक रूप म ें स्िीकार वकया जाएर्ा तो ज्ञा प्रावप्त की विवधयाँ तक ाथपरक तर्ा सहज ज्ञा से सम्बवधत होंर्ी। यहाँ प्रश्न उि ा स्िार्ाविक की ज्ञा क्या ह?ै ां ज्ञा मीमासा का ध्येय ज्ञा , ज्ञाता और ज्ञेय के सबध की व्याख्या कर ा ह।ै विवर्न् दार्वथ कों े अप े- ां ां ां अप े दार्वथ क विचारों के आधार पर वचत वकया जसै े दके ातथ े अप े अ र्ि के विश्लेषण से वचत ु ां ां आरर् वकया, परत इ का मा ा र्ा वक म ष्य सामावजक प्राणी ह।ै अत: उसका अ र्ि र्न्य म ें हीं ु ु ु ू ां ां विकवसत होता ह।ै इसी प्रकार प्रवसि दार्वथ क प्लेिो े अप ा मत इस सदर् थ म ें सिादों म ें व्यक्त वकया। ां ां इन्हो ें सिाद म ें एक स े अवधक चेत ाओ का अवस्तत्ि स्िीकार वकया। इसी वलए विवर्न् दार्वथ क ां ां वििचे ाओ म ें ज्ञा मीमासा सदवर्तथ वििचे ाए ँ कोई सिमथ ान्य अिधारणा विकवसत हीं कर सकी। इस ां ां ां कारण सर्ी दार्वथ क ज्ञा का अप ा अवस्तत्ि तो स्िीकार करते ह ै ि असवदग्ध मा ते ह ै परत इसम ें ु ां ां व म् वलवखत स्िीकवतयाँ र्ी व वहत मा ते ह-ै ृ  ज्ञा से ज्ञाता अज्ञये हो सकता ह,ै वकन्त ज्ञा का अवस्तत्ि ह।ै ु  ज्ञा एक से अवधक ज्ञाताओ के ससर् थ का फल ह।ै ां ां  ज्ञा का विषय ज्ञा से वर्न् ह।ै प्रत्येक धारणा अप े मत को सत्य एि प्रमावणक स्िीकार करती ह।ै परत ज्ञा मीमासा इस दाि े को उवचत ु ां ां ां जाँच एि प्रमाणों के वब ा स्िीकार हीं करती ह।ै ज्ञा की अिधारणा पर वचत कर े से पहले ज्ञा के ां स्िरूप पर वचत कर ा आिश्यक ह।ै ां ज्ञा मीमासा के दार्वथ क वििेच म ें कछ यक्ष प्रश्न सदिै व वहत रहते ह ैं जसै े- ु ां  ज्ञा
क्या ह?ै  ज्ञा प्राप्त वकया जा सकता ह ै या हीं?  ज्ञा प्राप्त कै से मा ि को प्राप्त होता ह?ै  मा ि ज्ञा की सीमाए ँ क्या हैं? ज्ञान का स्वरूप मा ि म ें यह सामान्य
पररपािी विधमा होती ह ै वक िह सम्मवत, विश्वास और ज्ञा से सम्बवधत या वकसी ां सिाद या विचार या धारणा का श्रिण करता ह ैं या उस पर अप ा वचत करता ह ैं तो उस सदर् थ में मा ि ां ां ां िवत्त सामान्यत: इस प्रकार प्रकि होती ह ै ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 4 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  सिाद या विचार या धारणा को सत्य स्िीकार करें या उसे असत्य समझकर अस्िीकार करें। ां  सत्य और असत्य या विश्वास या अविश्वास की वस्र्वत म ें ज्ञा की िवत्त सदहे ात्मक प्रतीत हो ा। ृ ां  प्रमाण या विश्वास के आधार हो े पर र्ी कालपव क या अ र्िात्मक रूप म ें सत्य मा ले ा। ु सिाद या विचार या धारणा पर आधररत ज्ञा के स्िरुप को व वश्चत कर पा ा सर्ि हीं प्रतीत होता ह।ै ां ां इ कों लेकर वजत े र्ी वचत हए सर्ी े अप े-अप े तरीके से वििचे ा प्रस्तत की ह ै वकसको सत्य ि ु ु ां प्रमावणक स्िीकार वकया जाए इसके कोई व धाथररत ि सिमथ ान्य मा दड हीं प्रार्ा र्त होते ह।ै । सबसे ु ु ां व चले स्तर पर सामवयक स्िीकवत रखा जाता ह,ै इसे सम्मवत र्ी कहते ह।ैं यह स्िीकवत वकन्ही व वश्चत ृ ृ प्रमाणों पर आधाररत हीं होती ह।ै सम्मवत पर आधाररत धारणा स्िय म ें धावमकथ ता एि ियै वक्तक विश्वासों ां ां को समावहत रखती ह।ै ज्ञा सबके वलये एक सा यर्ार्थ धरातल हीं प्रदा कर पाता ह।ै 1.3.1 ज्ञान क्या है? ज्ञा से आर्य िास्तविकता के वकसी पक्ष के प्रवत जार्रूकता तर्ा समझ से ह ै जोवक सत्य विश्वास पर आधाररत हो। यह स्पष्ट ि सबोध सच ा या तथ्य ह ै जोवक तावकथ क प्रविया के अ प्रयोर् के द्वारा ु ू ु िास्तविकता से प्राप्त वकया जाता ह।ै पारम्पररक दार्वथ क उपार्म के अतर्तथ ज्ञा के वलए ती र्तों का ां हो ा आिश्यक एि पयाथप्त मा ा र्या ह।ै इ के अ सार ज्ञा को पररर्ावषत वकया जा सकता ह ै वक ज्ञा ु ां साक्ष्य पर आधाररत सत्य विश्वास ह।ै ये ती र्तें व म् ह-ै  सत्य  विश्वास  प्रमावणकता या तकथ सर्तता ां अमख ती ों र्तें प्रवतज्ञवप्त सम्बन्धी ज्ञा के सदर् थ म ें अवधक तकथ सर्त मा ी जाती ह।ै ु ां ां पहली र्तथ के अ सार वकसी प्रवतज्ञवप्त के वलए प्रार्वमक ह ै वक िह सत्य हो। वकसी प्रवतज्ञवप्त को जा े ु के अर् के रूप म ें उस प्रवतज्ञवप्त का सत्य हो ा र्ी समावहत रहता ह।ै इसके विरुि वकसी प्रवतज्ञवप्त म ें ां विश्वास हो ा और उस प्रवतज्ञवप्त का असत्य हो ा सर्ि ह।ै विश्वास के सामान्यत: दो र्ण मा े जाते ह ै ु ां पहला सत्यता और दसरा असत्यता। कछ दार्वथ कों का मत ह ै वक सत्यता एि असत्यता विश्वास का ु ां ू र्ण होकर प्रवतज्ञवप्तयों के र्ण ह।ै इ का मा ा ह ै वक विश्वास र्ी एक प्रवतज्ञवप्त सम्बन्धी दृष्टीकोण ह।ै ु ु वकसी प्रवतज्ञवप्त का सत्य हो ा ही ज्ञा के वलए पयाथप्त हीं मा ा जा सकता है। प्रवतज्ञवप्त को सत्य हो े के सार्-सार् उसे विश्वस ीय हो ा र्ी आिश्यक ह।ै यह उललेख ीय ह ै वक वकसी प्रवतज्ञवप्त में विश्वास कर ा उस प्रवतज्ञवप्त के सत्य हो े की पाररर्ावषक विर्षे ता हीं ह ै वकन्त एक आिश्यक एि महत्िपण थ र्तथ ह।ै ु ू ां ज्ञा की तीसरी र्तथ साक्ष्य से सम्बवधत ह।ै ज्ञाता के पास ज्ञये प्रवतज्ञवप्त म ें विश्वास कर े के वलए पयाथप्त ां साक्ष्य हो े चावहए। वकसी प्रवतज्ञवप्त म ें विश्वास कर े के वलए साक्ष्य की मात्राए ँ वर्न् -वर्न् हो सकती ह।ै कछ साक्ष्यों की प्रकवत इस प्रकार की होती ह ै वक िह वकसी प्रवतज्ञवप्त के प्रमाणीकरण की र्ारिी तो दते े ह ै ृ ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 5 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वकन्त उसकी सत्यता की र्ारिी हीं दते े ह।ै इन्ह ें तावकथ क हते (Logical Reason) की सज्ञा दी जाती ह।ै ु ु ां ां ज्ञा के वलए वसफथ तावकथ क हते ही पयाथप्त हीं मा े जा सकते ह।ै इसके वलए व णथयात्मक साक्ष्य की र्ी ु आिश्यकता होती ह ै जो प्रवतज्ञवप्त की सत्यता को सव वश्चत कर सके । अब यहाँ एक समस्या और प्रकि ु होती ह ै वक सर्ी व णाथयक साक्ष्य व रपेक्ष हीं हो सकते ह।ै प्रत्येक साक्ष्य वकसी दर्े -काल के सापेक्ष ही व णाथयक हो सकता ह।ै इस आधार पर वकसी प्रवतज्ञवप्त को र्त-प्रवतर्त सत्य हो े का दािा हीं वकया जा सकता ह।ै समकाली दार्वथ कों े र्ी इस समस्या पर र्र्ीर अ र्ील वकया ह।ै इस सम्बन्ध म ें र्वे ियर ामक ु ां दार्वथ क का उललेख ीय ह ै और इन्ही के ाम से र्ेवियर समस्या अत्यत प्रवसि ह।ै ज्ञा की परम्परार्त ां पररर्ाषा के विरुि र्वे ियर की आपवत्त महत्िपण थ ह।ै इ के अ सार कोई व्यवक्त अ मा की प्रविया के ू ु ु माध्यम से एक प्रमावणत तर्ा असत्य विश्वास रख सकता ह,ै वजसके आधार पर िह एक ऐसी प्रवतज्ञवप्त में विश्वास करता ह ै जो सयोर्िर् सत्य हो सकता ह।ै इस आधार पर एक न्यायोवचत और सत्य विश्वास को ां तकथ सर्त हो े का दािा वकया जाता ह,ै जो ज्ञात हीं ह।ै इसको र्वे ियर े कई उदाहरणों द्वारा प्रमावणत ां वकया वकन्त इ के या अन्य दार्वथ कों द्वारा उिाई र्ई अपेक्षाओ का कोई व रपेक्ष समाधा र्ी हीं प्रस्तत ु ु ां वकया जा सका। उपयथक्त वििचे ा से स्पष्ट ह ै वक ज्ञा की कोई सिमथ ान्य एि समवचत व्याख्या प्रवतपावदत हीं की जा ु ु ां सकी। अवधकार् दावर् थ कों े ज्ञा को पररर्ावषत कर े के वलए विश्वास, सत्य, प्रमाण तर्ा कछ अन्य ु ां र्तों का सहारा वलया ह।ै य े समस्त घिक (विश्वास, सत्य, प्रमाण तर्ा अन्य र्तथ) सयक्त रूप से ज्ञा को ु ां प्रवतपन् करते ह।ै िास्ति म ें इ के द्वारा ज्ञा की कछ र्तों और पररवस्तवर्यों म ें व्याख्या अिश्य की जा ु सकती ह ै वकन्त ये ज्ञा को व दोष एि व रपेक्ष रूप से पररर्ावषत कर े म े असमर्थ ह।ैं ु ां र्वै क्षक क्षेत्र म ें विद्यालय के पाियिम का चय ि व धाथरण प्रत्यक्ष एि परोक्ष रूप स े ज्ञा मीमासा से ् ां ां प्रर्ावित रहता ह।ै पाियिम म ें पािय विषयों के चय ि व धाथरण हते , विषयों म ें पाियिस्त के सकल ् ् ् ु ु ां हते एि पाियपस्तकों के व माथण हते आवद विवर्ष्ट दार्वथ क वििचे ा से प्रर्ावित होती ह।ै विद्यावर्थयों ् ु ु ु ां को वकस प्रकार का िधै ज्ञा प्रदा वकया जाए, कौ सी पािय सामग्री श्रेयस्कर होंर्ी, वक वर्क्षण ् विवधयों का प्रयक्त वकया जाए आवद प्रश्न ज्ञा मीमासीय वििेच ा पर आधाररत होते ह।ै ु ां 1.3.2 दर्ान और ज्ञानमीमासा (Philosophy and Epistemology) ं दर् थ म ें ज्ञा मीमासा का क्या महत्ि ह ै और ज्ञा मीमासा का क्या स्िरुप ह?ै इ प्रश्नों पर विचार कर े से ां ां दर् थ और ज्ञा मीमासा का सबध, ज्ञा मीमासा का महत्त्ि और स्िरुप र्ी स्पष्ट हो जाएर्ा। ां ां ां ां जीि, जर्त और मा ि-अवस्तत्ि को समझ े के वलए दर् थ िह प्रयास ह,ै जो बवि और वचत के बल पर ु ां सर्ी समस्याओ का हल ढढ़ता ह।ै ज्ञा मीमासा को दर् थ के विषयों को समझ े और इ का बोध प्राप्त ू ां ां कर े का साध कहा जा सकता ह।ै दर् थ ज्ञा मीमासा पर व र्रथ करता ह,ै क्योंवक दर् थ म ें वकसी र्ी ां प्रकार की वििचे ा के वलए तर्ा उसका सही अर्थ बोध करा े के वलए ज्ञा के साध , ज्ञा की प्रमावणकता की आिश्यकता पड़ती ह।ै इसके आर्ाि म ें दार्वथ क ज्ञा , दार्वथ क हीं अवपत सामान्य ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 6 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं श्रेणी का ज्ञा मा ा जाएर्ा और इसका बौविक मीमासा एि प्रमावणकता से कोई सबध हीं रह जाएर्ा। ां ां ां ां ज्ञा मीमासा का िास्तविक सबध दार्वथ क प्रश्नों स े ही ह।ै लौवकक जीि के साधारण विषयों को ां ां ां ज्ञा मीमासा का विषय हीं मा ा जाता ह।ै ज्ञा मीमासा स्ितः ज्ञा के विषय म ें ही प्रश्न उिाता ह-ै जसै े ां ां ज्ञा क्या ह?ै ज्ञा की उत्पवत्त कै से होती ह?ै ज्ञा के साध कौ -कौ से ह?ै सत्य ज्ञा के क्या प्रमाण ह?ै अर्िा इसका व धाथरण कै से होर्ा? ज्ञा और भ्रम म ें क्या अतर ह?ै आवद। ज्ञा मीमासा का कायथ, ज्ञा के ां ां अवतररक्त सत्ता या तत्ि के विषय म ें मीमासा कर ा ह।ै दर्थ का सीधा सबध तत्िमीमासा से ह।ै व्यापक ां ां ां ां अर्ों म ें इसे ही दर् थ र्ास्त्र र्ी कहा जाता ह ै और तत्ि र्ास्त्र का सही व रूपण ज्ञा मीमासा के आर्ाि म ें ां सर्ि हीं ह।ै सत्ता या तत्त्ि को जा े के वलए ज्ञा मीमासा को साध के रूप म ें प्रयक्त वकया जाता ह।ै ु ां ां सत्ता के स्िरुप का व णयथ होते ही ज्ञा की सत्यता ि असत्यता का प्रश्न उि खड़ा होता ह ै और वफर इसके वलए ज्ञा मीमासा की आिश्यकता हो जाती ह।ै इस प्रकार दर् थ र्ास्त्र म ें ज्ञा मीमासा का र्ी अध्यय ां ां वकया जाता ह ै और ज्ञा मीमासा द्वारा दर् थ र्ास्त्र के विषयों की सत्यता- असत्यता का व धाथरण र्ी वकया ां जाता ह।ै दर् थ यवद विश्व के अवन्तम सत्य को
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‘जा ा’
चाहता ह ै तो इसके वलए यह आिश्यक हो जाता ह ै वक इस जा े के वलए जो साध हो, िह प्रमावणक एि विश्वस ीय हों। दर् थ के िल तो सामान्य ां विचार या ज्ञा पर व र्रथ करता ह ै और ही के िल कछ धारणाओ, विचारों ि परम्पराओ पर व र्रथ करता ु ां ां ह।ै इसम ें ज्ञा की पण थ सतवष्ट की आिश्यकता होती ह ै जोवक प्रमावणक ज्ञा पर व र्रथ होती ह।ै अतः यही ू ु ां प्रामावणक और सत्य ज्ञा ही दर् थ का अवर्न् अर् ब जाता ह।ै आधव क दर् थ तो िैज्ञाव क आलोक ु ां म ें पला बढ़ा ह,ै विर्षे रूप स े पाश्चात्य आधव क दर् थ म ें ज्ञा मीमासा की आिश्यकता और र्ी बढ़ र्ई ु ां ह।ै 1.3.3
सामान्य ज्ञान (Common Sense) ज्ञा मीमासा के स्िरुप को समझ े के वलए आिश्यक ह ै वक इसका सामान्य ज्ञा या प्रचवलत ज्ञा से ां अन्तर स्पष्ट हो। अ ेकों विश्वास. धारणाए आवद वज कों प्रारम्र् म ें सत्य मा वलया र्या र्ा इन्ह ें सामान्य
ां ां ज्ञा मा ा जाता र्ा वकन्त यह आर् े चलकर असत्य वसि हई। जसै े- पथ्िी समतल ह ै या रोर् वकसी र्त- ु ृ ु ू प्रेत के कारण होते ह ै या स्िप् म ें आत्मा दर्े -काल में भ्रमण करती ह ै आवद। इन्ह ें आधव क वििचे ा में ु असत्यता की श्रेणी म ें रखा जाता ह।ै सामान्य ज्ञा के व माथण के स्रोत अप े आप म ें प्रमावणक तर्ा िधै हीं होते ह ै वजसके कारण अवधकार्त: इ पर आधाररत ज्ञा र्ी विश्वस ीय हीं होता ह।ै सामान्य ज्ञा ां व माथण के स्रोत व म् स्िीकार वकए जाते ह-ै  सामवजक समह ू  समाज की प्रचवलत विचारधारा, विश्वास, अ र्वत, आदत आवद। ु ू  समाज के व्यािहाररक सत्र, लोकोवक्तया , अस्पष्ट विश्वास आवद। ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 7 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.4 ज्ञा मीमाांसा‍का‍कायथ‍(Functions of Epistemology) ज्ञा मीमासा से सम्बवधत कायों को ीचे उललवखत वबन्दओ के रूप म ें व्यक्त करके र्लीर्ावत समझा जा ां ां ां ां ु सकता ह-ै  ज्ञा मीमासा में ज्ञाता, ज्ञा और ज्ञये के सबधों की विस्तत व्याख्या की जाती ह।ै वजस
प्रकार ृ ां ां ां ज्ञाता को वकसी विषय (ज्ञये ) का ज्ञा होता ह ै उसी प्रकार ज्ञा का सबध विषय और ज्ञाता दो ों ां ां से होता ह।ै दार्वथ क वचत की विवर्ष्टता के आधार पर ज
्ञाता, ज्ञा और ज्ञये की वत्रपिी की ु ां व्याख्या ज्ञा मीमासा के अतर्थत की जाती ह।ै ां ां  ज्ञा मीमासा का प्रमख उद्दश्े य और क्षेत्र ज्ञा के स्रोतों से सम्बवधत प्रश्नों एि वििादों का समाधा ु ां ां ां ढढ़ ा ह।ै दर् थ म ें ज्ञा के प्रमख चार स्रोत मा े र्ए ह-ैं आप्तिाक्य या र्ब्द प्रमाण, ज्ञा ेवन्ियों ू ु द्वारा ज्ञा की प्रावप्त, वचत -स्रोत
के रूप म(ें तकथ बवि का उपयोर्) और आन्तररक सझ (अत: ु ू ां ां प्रज्ञा का उपयोर्)। ज्ञा मीमासा के माध्यम से ज्ञा इ सर्ी स्रोतों की वििचे ा की जाती ह।ै ां  ज
्ञा मीमासा म ें ज्ञा की िधै ता तर्ा ज्ञा की सत्यता ि असत्यता की मीमासा वकन्हीं व वश्चत ां ां कसौवियों के आधार पर की जाती ह।ै अ ेक दार्वथ क मतों े अप े-अप े वसिात के अ रूप ु ां सत्य की कसौविया व धाथररत की ह ै जसै े- प्रत्ययिादी ससर्वत वसिात , िस्तिावदयों े सिाद ु ु ां ां ां ां वसिात एि फलिावदयों े सतोषज क पररणाम के वसिात आवद का प्रवतपाद वकया ह।ै ां ां ां ां ज्ञा मीमासा के द्वारा ही सत्य की कसौिी तर्ा ज्ञा की िधै ता का व धाथरण वकया जाता ह।ै ां  ज्ञा मीमासा म ें ज्ञा के स्िरुप को स्पष्टीकत कर े हते उसका अन्य ज्ञा मीमासीय सप्रत्ययों जसै े- ृ ु ां ां ां वचत , स्मवत, विश्वास, अज्ञा , सत्य इत्यावद से सबधों की वििचे ा होती ह।ै ये सब ज्ञा की ृ ां ां ां व्याख्या कर े के वलए साध ह।ैं ज्ञा ही ज्ञा मीमासा का के न्ि वबन्द और साध्य ह।ै ां ु सवक्षप्त म ें ज्ञा मीमासा के प्रमख कायथ ह-ै ज्ञा , मा ि बवि, ज्ञा के स्िरुप, ज्ञा की सीमा, ज्ञा ु ु ां ां की िधै ता, अिधै ता ि प्रमावणकता, ज्ञा प्रावप्त के स्रोत, ज्ञा प्राप्त कर े के साध ि विवधयाँ, सत्य-असत्य प्रमाण और भ्रम आवद की व्याख्या ि तावकथ क वििचे ा कर ा ही इसकी विषयिस्त ह।ै ु 1.5 ज्ञा मीमाांसा‍का‍महत्वना‍(Significance of Epistemology) ज्ञा मीमासा का महत्ि इस बात से र्ी समझा जा सकता ह ै वक दर् थ र्ास्त्र, ज्ञा मीमासा के अर्ाि में ां ां कर्ी पणतथ ा को प्राप्त हीं कर सकता ह।ै ज्ञा मीमासा दर्थ र्ास्त्र का िह अवर्न् अर् ह ै जो ज्ञा की ू ां ां उत्पवत्त, आकार-प्रकार, सीमा, सत्यता और उसकी कसौवियों की वििचे ा करता ह।ै ज्ञा की क्या प्रकवत ृ ह,ै ज्ञा कै से उत्पन् होता ह,ै उसके क्या आधार ह,ै व्यवक्त जो ज्ञा प्राप्त करता ह,ै िह कै से प्राप्त करता ह,ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 8 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इ सर्ी प्रश्नों का समाधा ज्ञा मीमासा म ें वकया जाता ह।ै प्राची काल म ें प्लेिो े और आधव क यर् म ें ु ु ां तावकथ क प्रत्यक्षिावदयों े ज्ञा मीमासा को अत्यवधक महत्ि प्रदा वकया। ां ज्ञा मीमासा अत्यत महत्िपणथ एि सर्ी प्रकार के पािय-विषयी अवधर्म म ें समावहत ह।ै इसम ें ् ू ां ां ां ज्ञा का अध्यय वकया जाता ह।ै ज्ञा मीमासा लोर्ों को एक बव यादी साध -तत्र प्रदा करती ह ै वजसके ु ां ां माध्यम से िह मल आधारर्त प्रश्नों जसै े-ज्ञा क्या ह ै और इसकी क्या सीमाए ह?ै कै से ज्ञा न्यायसर्त ह?ै ू ू ां ां कै से ज्ञा का सबध अन्य मतों से ह?ै जसै े-सत्य, विश्वास, और तकथ सर्तता? आवद का अध्यय , वििचे ा ां ां ां एि विश्लेषण वकया जाता ह।ै ज्ञा मीमासा म े सदिै यह प्रश्न व वहत रहता ह ै वक आप कै से जा ते हो ि ां ां क्या जा ते हो? साक्ष्यों के आकल , विश्वस ीयता का व धाथरण एि वििके ी सत्य आवद के वलए आपके ां ां क्या आधार ह?ै ज्ञा मीमासा एक सप्रत्यय के सार्-सार् आधारर्त एि अमतथ ह।ै
प्रत्येक व्यवक्त की ू ू ां ां ां अप ी ज्ञा मीमासा ह ै यवद आप आलोच ात्मक वचत इसके सदर् थ म ें करते ह ै या स्िय की िचै ाररकता के ां ां ां ां आधार पर व णयथ लेते ह।ै आप की ज्ञा मीमासा व धाथररत करती ह ै वक कै से आप सत्य और असत्य म ें ां र्दे करें। व्यवक्त ज्ञा मीमासीय विश्लेषण के आधार पर
ही प्रमावणक पररकलप ाओ का एक ससर्त ु ां ां ां ैवतक तत्र विकवसत करता ह ै वजसके आधार पर अप ा जीि व िाथह कर े का प्रयत् करता है। ां र्वै क्षक पररिश्य म ें इसका अत्यत महत्ि ह ै क्योवक इस क्षेत्र म ें ज्ञा मीमासीय वििचे ा के आधार ां ां ां पर ही पाियिम का व धाथरण, पािय-विषयों का चय , वर्क्षण विवधयों का विधा और व योज , पािय- ् ् ् वियाओ तर्ा पािय-सहर्ामी वियाकलापों आवद का व धाथरण वकया जाता ह।ै ् ां अभ्यास प्रश्न 1. ज्ञा मीमासा र्ब्द की उत्पवत्त ग्रीक र्ाषा के वक दो र्ब्दों से हई ह?ै ? ु ां 2. ज्ञाता, ज्ञा और ज्ञये का सम्बन्ध वकससे
होता ह?ै 3. विद्यालय के पाियिम एि वर्क्षण विवधयों का चय दर्थ के वकस र्ार् के आधार पर वकया ् ां जाता ह?ै 4. सामान्य ज्ञा के व माथण के स्रोत कौ -कौ से होते ह?ै 5.
सत्य विश्वास पर आधाररत तकथ सर्त प्रवतज्ञवप्त को क्या कहते ह?ै ां 1.6 ज्ञा ‍तर्ा‍ कौशल‍म‍अन्तर‍(Distinction between Knowledge and ें Skill) र्ारतीय और पाश्चात्य िवष्ट से ज्ञा की विवर्न् अिधारणाए ँ वमलती ह।ै सामान्य रुप से र्ारतीय विचारधारा के अ सार
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‘ज्ञा ’
का अर्थ (र्ब्द कोष के अ सार)इस प्रकार वदया र्या ह-ै ज्ञा (ज्ञा + ु ु लयि)- जा ा, बोध, जा कारी, सम्यक बोध, पदार्थ को ग्रहण कर े िाली म वक िवत, र्ास्त्रा र्ील ृ ् ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 9 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं आवद से आत्म तत्ि का अिर्म, आत्म-साक्षात्कार, बवििवत आवद। र्ारतीय वचत म ें ज्ञा को प्रमा ृ ु ां र्ी कहा र्या ह।ै मीमासा दर्थ म ें कहा र्या ह-ै प्रमा अज्ञात तर्ा सत्य पदार्थ का ज्ञा है। र्ब्दकोष के ां अ सार प्रमा से आर्य र्ि बोध, यर्ार्थ ज्ञा , जो जसै ा ह ै उसको उस रूप म ें जा ा ह।ै ु ु ज्ञा को अग्रेजी म ें ॉलेज (Knowledge) कहते ह।ै ॉलेज र्ब्द के व म् वलवखत अर्थ बताए र्ए ह-ै ां वकसी तथ्य, या सत्य का या अवस्तत्ििा िस्त का व वश्चत प्रत्यक्षीकरण, असवदग्ध ज्ञा , पहचा , ु ां सीख ा, पावडत्य, ससच ा, वकसी चीज म ें कर्ल हो ा तर्ा वकसी तथ्य या व्यवक्त से पररचय आवद। ू ु ां ां ऑक्सफ़ोडथ र्ब्दकोष े पररर्ावषत वकया वक ज्ञा वर्क्षा या अ
र्ि के माध्यम से अवजतथ सच ा या ु ू जार्रूकता ह।ै ज्ञा अवजथत कर े के अ ेकों माध्यम ह ै जसै े- पस्तकें पढके , समाचार-पत्र के जररए, ु इन्िर ेि के माध्यम से, विवर्न् विषयों के अध्यय के माध्यम से आवद। ज्ञा म ें सैिावतक सच ा के ू ां विवर्न् आयाम समावहत रहते ह ै जोवक एक विषय म ें अध्यय वकए जाते है। ज्ञा ज्ञा ेवन्िय माध्यमों स
े सचा ों का अज थ ह ै जसै े- पढ ा, दखे ा, स ा, स्पर् थ आवद। ज्ञा के प्रत्यय से आर्य तथ्यात्मक सच ा ू ु ू और सैिावतक प्रत्ययों के सार् अतरर्ता से ह।ै ज्ञा एक व्यवक्त से दसरे व्यवक्त को हस्तातररत वकया जा ां ां ां ां ू सकता ह ै और इसे अिलोक एि अध्यय के माध्यम से अज थ वकया जा सकता ह।ै ां कौर्ल से तात्पयथ ह ै वक वकन्हीं विर्षे पररवस्र्वतयों म ें ज्ञा को अ प्रयोर् म ें ला े की योग्यता से ह।ै ु कौर्ल िह योग्यताए जो अच्छे प्रदर् थ म ें सहायक होती ह।ै वकसी र्ी कौर्ल
का विकास कर ा ि उसम े ां उत्कष्ट ला ा अत्यत कवि कायथ ह ै वजसके वलए अत्यवधक अभ्यास की आिश्यकता होती ह।ै कौर्लों ृ ां का विकास अभ्यास के माध्यम एि ज्ञा ेवन्ियों के प्रर्ािी सयोज से होता ह।ै जसै े- सामावजक कौर्ल ां ां का विकास लोर्ों से अत:विया करके , उ से बातचीत करके , उ कों स कर और उ कों दखे कर आवद ु ां माध्यमों स
े वकया जाता ह।ै वकसी र्ी कौर्ल म ें प्रिीणता प्राप्त कर े हते प्रयत् एि त्रिी का व यम सबसे ु ु ां उपयक्त ह ै वकन्त कछ व्यवक्तयों म ें कछ जन्मजात कौर्ल होते ह ै वजन्ह ें आसा ी से पररष्कत वकया जा ृ ु ु ु ु सकता ह।ै विवर्न् क्षेत्रों म ें विवर्न् कौर्लों म ें प्रिीणता हो ा आिश्यक ह ै जसै े- वर्क्षण कौर्ल, सर्ि ां कौर्ल, प्रदर् थ कौर्ल, तक ीकी कौर्ल आवद। सवक्षप्त म ें ज्ञा वर्क्षा
या अ र्ि के द्वारा सच ा या जार्रूकता का अज थ ह ै जबवक वकसी पररवस्तवर् म े ु ू ां कौर्ल के अ प्रयोर् की योग्यता ह।ै ज्ञा वर्क्षा या अ र्ि के माध्यम से प्राप्त होता ह ै जबवक कौर्ल ु ु अभ्यास के माध्यम से होता ह।ै ज
्ञा सैिावतकता को समावहत रखता ह ै जबवक कौर्ल व्यिहाररक ां योग्यताओ को। ज्ञा का अज थ वकया जाता ह ै यह जन्मजात हीं होता ह ै जबवक कछ कौर्ल जन्मजात ु ां हो सकते ह।ै ज्ञा और कौर्ल के अन्तर को सक्षेप म ें ीचे प्रदवर्तथ तावलक वचत्र के माध्यम से र्ी ां समझा जा सकता ह-ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 10 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.7 शशक्षण‍तर्ा‍प्रशशक्षण‍म‍अन्तर‍(Distinction between Teaching and ें Training) वर्क्षण एक प्रविया ह ै वजसम ें वर्क्षक अर्ाथत वसखा े िाला वर्क्षवर्थयो अर्ाथत सीख े िालों के विवर्न् उपार्मों, विवधयों, प्रविवधयों, यवक्तयों एि साध ों के माध्यम से अवधर्म पररवस्र्वतयों का सज करते ह ै ृ ु ां और सीख े िाले अर्ाथत अवधर्मकताथ स्ि: र्वत से सीखते है। वर्क्षण की प्रासवर्कता तर्ी मा ी जाती ां ह ै जब अवधर्मकताथ के व्यिहार म ें िावछत पररितथ हो जाए। वर्क्षण म ें सामान्यत: सैिावतक पक्षों का ां ां अध्यय व वहत रहता ह।ै इसम ें वर्क्षक की र्वमका अवधर्म म ें सहायता पहचँ ा े िाले या मार्दथ र्कथ के ु ू रूप म,ें जोवक विवर्न् व दवे र्त चचाथओ, स्ित्रत प्रश्न ि कायथ कर े के अिसर प्रदा करके , ां ां अवधर्मकताथओ के सविय प्रवतर्ावर्ता म ें समर्थ ब ा े और वचत के सार् कायथ कर े आवद, होती ह।ै ां ां प्रवर्क्षण को सामान्यत: वकन्हीं कौर्लों के विकास की प्रविया के रूप म ें वलया जाता है। इसी कारण प्रवर्क्षण को वियापरक मा ा जाता ह।ै प्रवर्क्षण हते क्षेत्र विर्षे के कौर्लों म ें दक्षता ि प्रिीणता प्राप्त ु कर े के वलए सैिावतक पक्षों का ज्ञा आिश्यक ह।ै प्रवर्क्षण का अर्थ ह ै अवधर्मकताथ को वकसी कला, ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 11 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं कौर्ल, व्यिसाय आवद म ें अभ्यास द्वारा दक्षता ि प्रिीणता ला े से ह।ै प्रवर्क्षण एक प्रकार तक ीकी ह ै वजसके द्वारा वकसी क्षेत्र विर्षे के स्िीकत मा कों के अ रूप एक व्यवक्त म ें ज्ञा , कौर्ल और म ोिवत ृ ृ ु को विकवसत वकया जाता ह।ै सवक्षप्त म ें वर्क्षण का वकसी िस्त के सैिावतक ज्ञा या सप्रत्ययों या पक्षों से सम्बवधत होता ह ै जबवक ु ां ां ां ां प्रवर्क्षण ज्ञा का सम्बन्ध अवधर्वमत ज्ञा के व्यिहाररक अ प्रयोर्, व्यिहार पररितथ एि दक्षता ु ां विकास से ह।ै प्रवर्क्षण वर्क्षण की अपेक्षा अवधक विवर्ष्ट, र्ह ि कें िीयकत होता ह।ै वर्क्षण का ृ उद्दश्े य होता ह ैं लोर्ों की वजज्ञासाओ की सतवष्ट कर ा तर्ा व्यिहारों म ें अपेवक्षत पररितथ , पररमाज थ तर्ा ु ां ां पररष्करण कर ा ह।ै जबवक प्रवर्क्षण का उद्दश्े य िावछत पररितथ लाकर कौर्लों एि प्रदर् थ दक्षता ां ां विकवसत कर े से ह।ै वर्क्षण सामान्यत: र्वै क्षक जर्त से ही सदवर्तथ होता ह ै जबवक प्रवर्क्षण र्वै क्षक ां एि व्यिसावयक जर्त दो ों से सम्बवधत होता ह।ै वर्क्षण म ें वर्क्षक अप े वर्क्षावर्थयों को प्रवतपवष्ट दते े ह ैं ु ां ां जबवक प्रवर्क्षण म ें प्रवर्क्षणकताथ प्रवर्क्षओ से प्रवतपवष्ट प्राप्त करते ह।ै वर्क्षण सदिै प्रवर्क्षण के वलए ु ां ु सर्क्त आधार तैयार कर े म ें सहायता दते ा ह।ै जबवक प्रवर्क्षण इसी आधार पर कौर्ल तर्ा दक्षता का विकास करता ह।ै 1.8 ज्ञा ‍ तर्ा‍ सच ा‍म‍अन्तर‍(Distinction between Knowledge and ू ें Information) ज्ञा के विषय म ें पि थ म ें चचा थ की जा चकी ह।ै एक सामान्य धारणा के अ सार वकसी र्ी विषय के सन्दर् थ ू ु ु म ें , क्या ?,क्यों ?,कै से ?,कहाँ ?,कौ ? कब ? आवद प्रश्नों के ऐसे उत्तर को ज्ञा कहते ह ैं वजस उत्तर म ें स े वफर कर्ी वकसी प्रश्न का जन्म हो। इवन्िओ द्वारा अवजथत िस्त सबधी या वकसी सदर् थ विर्ेष की ु ां ां ां जा कारी को सच ा कहते ह।ैं सच ा र्ब्द का िण थ सदर् थ विर्षे से सम्बवधत सरच ात्मक, सर्वित एि ू ू ां ां ां ां ां ससावधत आकड़ो के रूप म े होता ह ै जोवक प्रासवर्क एि उपयोर्ी होते ह ै उसके वलए जो व्यवक्त इन्ह ें ां ां ां जा ा चाहता ह।ै सच ा म ें व वहत प्रदत्त एि तथ्य एक अपररपक्ि रूप म ें अिलोक द्वारा सग्रवहत वकए ू ां ां जाते ह।ै सच ा का प्रस्ततीकरण या प्रदर् थ अक, र्ब्द, वचत्र एि ध्िव के माध्यम से होता ह।ै इसे लोर्ों ू ु ां ां के मध्य बहत आसा ी से बोधपण थ रूप म ें पहचँ ाया जा सकता ह।ै प्रदत्त एि तथ्य के रूप म ें सयोवजत ु ु ू ां ां सच ा की प्रकवत स्ितत्र एि मक्त होती ह।ै ृ ू ु ां ां सवक्षप्त म ें ज्ञा से तात्पयथ अ र्ि द्वारा अवजतथ प्रासवर्क एि उद्दश्े यपण थ सच ाओ से ह ै जबवक सच ा का ु ू ू ू ां ां ां ां सबध सदर् थ विर्ेष म ें व वहत तथ्यों के व्यिवस्र्त िम से ह।ै ज्ञा म ें उपयोर्ी ि प्रासवर्क सच ाए व वहत ू ां ां ां ां ां होती ह ै जबवक सच ा म ें के िल सर्ोवधत तथ्य होते ह।ै ज्ञा को सच ा, अ र्ि और अत:प्रज्ञा का ू ू ु ां ां सयोज मा ा जाता ह ै जबवक सच ा को तथ्यों एि सदर् थ का सयोज । ज्ञा से वकसी विषय की ू ां ां ां ां सारर्वर्तथ ा को बढ जाती ह ै जबवक सच ा तथ्यों की प्रवतव वधत्िता को बढाता ह।ै ज्ञा के हस्तातरण के ू ां वलए अवधर्म का हो ा आिश्यक ह ै जबवक सचा ों के हस्तातरण का आसा ी से वब ा अवधर्म के र्ी ू ां वकया जा सकता ह।ै वकसी
क्षेत्र या विषय के अपेवक्षत ज्ञा के आधार पर सर्ाव्य पि थ कर् वकया जा ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 12 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं सकता ह ै जबवक सच ा के आधार पर ऐसा सर्ि हीं ह।ै सर्ी ज्ञा एक प्रकार की सच ाए ह ै जबवक ू ू ां ां सर्ी प्रकार क
ी सच ाए ज्ञा हो यह आिश्यक हीं ह।ै ज्ञा प्राप्त कर े के वलए कछ सज्ञा ात्मक एि ू ु ां ां ां विश्लेषणात्मक योग्यताओ का हो ा आिश्यक ह ै जबवक सच ा प्राप्त के वलए सज्ञा ात्मक योग्यताओ का ू ां ां ां हो ा आिश्यक हीं ह।ै 1.9 तकथ ‍ तर्ा‍ शवनाश्वास‍ म‍ अन्तर (Distinction between Reason and ें Belief) दर् थ र्ास्त्र म ें तकथ कर् ों की ऐसी श्रखला होती ह ै वजसके द्वारा वकसी व्यवक्त या समदाय को वकसी बात ु ां की प्रमावणकता एि िधै ता प्रस्तत की जाती ह ै या उन्ह ें सत्य के प्रमाण हते कारण प्रदवर्थत वकए जाते ह।ैं ु ु ां आम तौर तकथ को वचत का सिोच्च स्तर मा ा जाता ह।ै तकथ एक जविल मा वसक प्रविया ह ै वजसमें ां प्राय: औपचाररक व यमों का अ सरण वकया जाता ह।ै जब वकसी उद्दश्े य विर्षे को के न्ि म ें रखते हए ु ु सर्वित तर्ा व्यिवस्र्त स्िरुप म ें वचत प्रविया की जाती ह ै एि इसम ें कायथ-कारण सबधों को स्र्ावपत ां ां ां ां ां कर े का प्रयत् वकया जाता ह ै तो उसे तकथ कहते ह।ै तकथ िास्ति म ें कायथ-कारण सबध स्र्ावपत कर े की एक ऐसी उच्च स्तरीय सज्ञा ात्मक प्रविया ह ै वजसम े ां ां ां ज्ञा तर्ा अ र्ि पर आधाररत बौविक कसौवियों के द्वारा कछ सर्वित तर्ा व्यिवस्र्त सोपा ों का ु ु ां अ सरण करते हए वकसी समस्या का सिोत्तम समाधा व काल े का प्रयास वकया जाता ह।ै तकथ में ु ु सके तों, प्रतीकों, र्ाषा, प्रत्ययों आवद का प्रयोर् वकया जाता ह।ै तकों को मख्यतः दो प्रकारों म ें विर्ावजत ु ां वकया जाता ह-ै पहला व र्म तकथ और दसरा आर्म तकथ । ू सामान्यत: विश्वास वकसी व्यवक्त, िस्त या पररवस्र्वत आवद के प्रवत मा ि की म ोवस्र्वत का ु अवर्व्यवक्तकरण ह।ै विश्वास मा ि के व्यवक्तत्ि का एक स्र्ायी एि अवर्व्यक्त रूप ह ै जोवक उसके ां विचारों ि विया-कलापों के प्रदर् थ म ें वदखता ह।ै विश्वास एक मा वसक र्वक्त ह।ै इसम ें व्यवक्त अ र्ाविक सक्ष्यों के आधार पर वकसी विषय म ें तथ्यात्मक व श्चय के सार् कर् या कायथ करता ह।ै एक ु व्यवक्त जो कछ जा कारी रखता ह ै उसे िह एक सकरात्मक या कारात्मक कर् म ें व्यक्त करता ह ै ु क्योवक इस पर उसका विश्वास होता ह।ै विश्वास की सत्यता ि असत्यता विषय एि व्यवक्त की ज्ञा की ां सीमा पर व र्रथ करता ह।ै वकसी व्यवक्त को ज्ञा के िल अव िायथ सत्यों का जसै े र्वणत, विज्ञा , तकथ र्ास्त्र आवद का ही हो सकता ह,ै र्षे सर्ी विषय विश्वास की सीमा पररवध के अतर्तथ हीं आते ह ैं जहाँ प्रत्येक ां अ र्ाविक विषय के प्रमाण उपलब्ध हो ा सर्ि हीं ह।ै ज्ञा को एक सत्य विश्वास र्ी मा ा र्या ह ै ु ां जोवक वकसी अिकल या अदाज़ पर व र्रथ हो। ां सवक्षप्त म ें तकथ द्वारा प्राप्त ज्ञा सदिै प्रमावणक ि िधै मा ा जाता ह ैं जबवक विश्वास पर आधाररत ज्ञा ां प्रमावणक या अप्रामावणक तर्ा िधै या अिधै वकसी र्ी श्रणे ी का हो सकता है। तकथ के वलए एक उच्च स्तरीय मा वसक वचत प्रविया आिश्यकता होती ह ै जबवक विश्वास एक सामान्य म ोवस्र्वत होती ह।ै ां तकथ कायथ-कारण व यमों पर आधाररत होते ह ै जबवक विश्वास के सार् ऐसा हो र्ी सकता ह ै और हीं र्ी। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 13 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं तकथ प्रार् र्ाविक एि इवन्िया र्विक प्रकर् ों पर आधाररत होते ह ै जबवक विश्वास के िल ु ु ां इवन्िया र्विक प्रकर् पर आधाररत होते ह।ै ु अभ्यास प्रश्न 6. प्रवतज्ञावप्त ज्ञा के वलए परम्परार्त वचत म ें वकत ी आिश्यक र्तथ मा ी र्ई ह?ै ां 7. वकसे सामान्यत: एक जविल मा वसक प्रविया मा ा र्या ह ै वजसम ें प्राय: औपचाररक व यमों का अ सरण वकया जाता ह?ै ु 8. वकसी व्यवक्त, िस्त या पररवस्र्वत आवद के प्रवत मा ि की म ोवस्र्वत का अवर्व्यवक्तकरण ह,ै ु को क्या मा ा जाता ह?ै 9. वर्क्षण को कब पण थ मा ा जाता ह?ै ू 10. वकसी कला, कौर्ल, व्यिसाय आवद म ें अभ्यास द्वारा दक्षता ि प्रिीणता ला े की प्रविया को क्या कहा जाता ह?ै 11. वकसे सच ा, अ र्ि और अत:प्रज्ञा का सयोज मा ा जाता ह?ै ू ु ां ां 1.10 साराांश‍ प्रस्तत इकाई म ें ज्ञा मीमासा की उत्पवत्त, ज्ञा मीमासा के अर्थ, सामान्य ज्ञा , ज्ञा की र्तों, ज्ञा मीमासा ु ां ां ां के कायथ तर्ा इसके महत्ि की व्याख्या की र्ई है। इसम ें ज्ञा मीमासा की पररवध म ें प्रयक्त वकए जा े िाले ु ां विवर्न् प्रत्ययों तर्ा उ के अन्तरों जसै े- ज्ञा और कौर्ल, ज्ञा और सच ा, वर्क्षण और प्रवर्क्षण, तकथ ू और विश्वास आवद का िण थ वकया र्या ह।ै 1.11‍शब्दावनाली 1. ज्ञानमीमासा- दर् थ र्ास्त्र का िह अर् वजसम ें ज्ञा , ज्ञा की उत्त्पवत्त, स्रोत्त, प्रमावणकता- ं ां अप्रमावणकता, िधै ता-अिधै ता तर्ा सत्यता- असत्यता की व्याख्या की जाती ह।ै । 2. सामान्य ज्ञान- ऐसा ज्ञा जो सामावजक विश्वासों, लोकोवक्तयों, विचारों, व्यिहारों, आदतों तर्ा अ र्वतयों आवद पर आधाररत ह।ै ु ू 3. ज्ञान- परम्परार्त रूप म ें ज्ञा को साक्ष्यों पर आधाररत एक सत्य विश्वास मा ा र्या है। 4. तका - कायथ-कारण सबध पर आधाररत ऐसे उच्च स्तरीय सज्ञा ात्मक न्याय िाक्य जो सर्वित ि ां ां ां ां व्यिवस्र्त सोपा ों के द्वारा समस्या समाधा पर के वन्ित होते ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 14 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.12‍अभ्यास‍प्रश्नों‍के ‍उत्तर‍ 1. एवपवस्िम े (Episteme) और लोर्ोस (Logos) 2. ज्ञा मीमासा ां 3. ज्ञा मीमासा ां 4. सामावजक समह, समाज के विश्वास, अ र्वत, विचार आदत एि लोकोवक्तया, ू ु ू ां ां व्यािहाररक सत्र, अस्पष्ट विश्वास आवद ू 5. ज्ञा 6. ती र्तें 7. तकथ 8. विश्वास 9. जब अवधर्मकताथ के व्यिहार म ें िावछत पररितथ हो जाए ां 10. प्रवर्क्षण 11. ज्ञा 1.13 सहायक‍उपयोगी‍ग्रांर् 1. वतिारी, के दार ार् (2009) तत्त्िमीमासा एि ज्ञा मीमासा, मोतीलाल ब ारसीदास, ई वदलली ां ां ां 2. व र्म, र्ोर्ा (2007) पाश्चात्य दर् थ के सम्प्रदाय, मोतीलाल ब ारसीदास, ई वदलली 3. वमश्रा, व त्या द (2007) समकाली पाश्चात्य दर् थ , मोतीलाल ब ारसीदास, ई वदलली ां 4. Rescher, N. (2003) Epistemology: An Introduction to the Theory of Knowledge, State University of New York Press, Albany, New York 1.14 श बधात्मक‍प्रश्न ां 1. ज्ञा मीमासा को पररर्ावषत करते हए इसके कायों का िण थ कीवजए? ु ां 2. ज्ञा मीमासा को स्पष्ट कीवजए एि इसके महत्ि की वििचे ा कीवजए? ां ां 3. ज्ञा एक तकथ सर्त सत्य विश्वास ह?ै इसकी वििचे ा कीवजए? ां 4. सामान्य ज्ञा को स्पष्ट करते हए ज्ञा और सच ा के अन्तर को स्पष्ट कीवजए? ु ू 5. ज्ञा मीमासा के महत्ि को वििेवचत करते हए तकथ और विश्वास म ें अन्तर स्पष्ट कीवजए? ु ां 6. ज्ञा मीमासा के र्वै क्षक आधार को स्पष्ट करते हए वर्क्षण और प्रवर्क्षण म ें अन्तर स्पष्ट ु ां कीवजए? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 15 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 2- गाधाँ ी जी, रवीद्रनार् टैगोर, जॉन डीवी, प्लेटो / मार्टटन बुबेर / पाउलो फ्रे रे के सांदर् में गशतशवशध र्ा शिर्ा थ बाल-कें शद्रत शशक्षा की एक प्रमुख अवधारणा Activity’, as a salient concept of child-centered education with reference to Gandhi, Tagore, Dewey, Plato / Buber / Freire 2.1 प्रस्ताि ा 2.2 उद्दश्े य 2.3 र्वतविवध अर्िा विया की अिधारणा 2.4 बाल के वन्ित वर्क्षा 2.4.1 बाल के वन्ित वर्क्षा के आधार 2.4.2 बाल कें वदत वर्क्षा के उद्दश्े य 2.4.3 बाल के वन्ित वर्क्षा के अतर्थत पाियिम का स्िरुप ् ां 2.5 र्ाँधी के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा 2.6 रिींि ार् िैर्ोर के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा 2.7 प्लेिो के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा 2.8 जॉ डीिी के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा 2.9 माविथ बबेर के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा ु 2.10 पािलो फ्रे रे के विचार में विया या र्वतविवध आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा 2.11 सारार् ां 2.12 र्ब्दािली 2.13 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.14 सदर्थ ग्रर् सची ू ां ां 2.15 व बधात्मक प्रश्न ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 16 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.1 प्रस्तावना ा मा ि को जन्म से ही एक बविमा एि वििके र्ील प्राणी के रूप म ें जा ा जाता ह।ै मा ि े अप े ु ां वििके र्ील प्रयासों एि बवधमत्तापण थ विया-कलापों से सभ्यता का विकास अप े उच्चतम वर्खर पर ु ू ां पहचँ ा वदया ह।ै मा ि अप ी चेत ा म ें प्रस्फवित हो े िाले अमतथ विचारों को अप े विवर्न् प्रयासों, ु ु ू र्वतविवधयों एि विया-प्रवियाओ के माध्यम से साकार रूप प्रदा कर े का प्रयास करता ह।ै मा ि ां ां स्िर्ािता अप े आप को चेत ा म ें विवर्न् प्रकार की र्वतविवधयों एि विया-कलापों म ें र्ारीररक, ां र्ािात्मक एि वियात्मक रूप से वियार्ील रखता ह।ै उसकी वियार्ीलता के कारण ही अ ेकों िी ां उत्पादों का सज होता ह।ै वियार्ीलता का र्ण या र्वतविवधयों म ें र्ार् ले े ि विया कर े आवद का ृ ु र्ण के िल मा ि म ें ही हीं अवपत पर्-पक्षी म ें र्ी समा रूप से पाया जाता ह।ै इ म ें विवर्न् ता वसफथ ु ु ु प्रयोज र्ीलता एि उद्दश्े यपणथता को लेकर रहती ह।ै मा ि सदिै अप े प्रयोज के अ कल बवि और ू ु ू ु ां वििके का प्रयोर् करता हआ कोई कायथ करता ह ै जबवक पर्ओ और पवक्षयों म ें ऐसी प्रिवत्त हीं पायी ु ृ ु ां जाती ह।ै मा ि े अप े प्रयासों द्वारा सभ्यता एि सस्कवत का अपेवक्षत विकास वकया। मा ि े विकास ृ ां ां की धारा को अविरल ब ाए रख े के वलए अ ेकों त अिधारणाओ को अर्ीकत वकया उ म ें से वर्क्षा ृ ू ां ां सबसे प्रमख स्र्ा रखती ह ै क्योवक यही एकमात्र िह माध्यम मा ा जाता ह ै वजसके माध्यम असर्ि को ु ां र्ी सर्ि ब ाया जा सकता ह।ै वर्क्षा का स्िरुप यधवप मा ि समाज म ें सदैि विद्यमा रहा ह ै वकन्त ु ां प्रारवर्क समय म ें यह अ ौपचाररक माध्यमों के रूप चलायमा र्ी। विकास के िम म ें मा ि े धीरे -धीरे ां औपचाररक माध्यमों को स्र्ावपत करते हए वर्क्षा का प्रसार ज मा स म ें कर े लर्।े ितथमा म ें अ वर् त ु सस्र्ा वर्क्षा की सिसथ लर्ता के उद्दश्े य को प्राप्त कर े म ें लर् े हए ह।ै ु ु ां वर्क्षा की अिधारणा अप े आप म ें अत्यत व्यापक ह ै जो ितथमा पररिश्य म ें कक्षा की चार ां दीिारों को पार करते हए के िल इस मख्य ध्येय म ें स्ि-के वन्ित ह ै वक एक बच्चे का सिाांर्ीण कै से वकया ु ु जाए। यहाँ पर बच्चे के सिांर्ीण विकास से आर्य बच्चे के र्ौवतक, र्ारीररक, ैवतक, सामावजक, चाररवत्रक, मा वसक एि अध्यावत्मक आवद पक्षों के विकास से ह।ै विकास के यह अपेवक्षत मा दड के िल ां ां वर्क्षा के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रर्ािों के माध्यम से ही प्राप्त वकए जा सकते है। इसी कारण प्रत्येक राष्र अप े ार्ररकों के सिोत्तम एि सिोत्कष्ट विकास के वलए एक बेहतर वर्क्षा प्रणाली का व योज करता ृ ां ह।ै वर्क्षा की परम्परार्त अिधारणा म ें वर्क्षा को पणतथ या वर्क्षक या र्रु के वन्ित स्िरुप र्ा जहाँ पर यह ू ु अिधारणा र्ी वक योग्य वर्क्षक या र्रु के ससर् थ म ें कोई र्ी बच्चा अप े विकास के सिोत्तम वर्खर को ु ां प्राप्त कर सकता ह ै एि वर्क्षक द्वारा प्रदा वकए र्ए ज्ञा को ग्रहण एि स्मरण कर े पर अवधक प्रमखता दी ु ां ां जाती र्ी वकन्त धीरे -धीरे इस अिधारणा को म ोिैज्ञाव क वसिातों, व यमों ि अ प्रयोर्ों े पणतथ या ु ु ू ां पररिवतथत कर वदया एि वर्क्षा के स्िरुप को बाल-के वन्ित ब ा वदया जहाँ बच्चे की आिश्यकताओ के ां ां अ रूप ही वर्क्षा का पण थ व योज वकया जाता ह।ै बाल-के वन्ित अिधारणा म ें के िल बच्चे की ु ू आिश्यकता के अ रूप वर्क्षा प्रदा कर े का प्रयास वकया जाता ह ै अवपत बच्चों को विवर्न् प्रकार की ु ु र्वतविवधयों या विया-विवधयों म ें प्रवतर्ार् करते हए वसखा े का प्रयास वकया जाता ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 17 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं मा ि का बाल रूप स्िर्ािता अत्यत चचल मा ा जाता ह।ै बाल म सदैि अप े चारोंओर की विद्यमा ां ां र्वतविवधयों पर के वन्ित रहता ह ै िह वकसी विर्षे पररवस्र्वत पर के वन्ित होकर सर्ी
प्रकार की र्वतविवधयों पर क्षवणक-२ रूप म ें ध्या द े े का प्रयास करता ह।ै इसी कारण सैिावतक वर्क्षण मात्र के ां माध्यम से बच्चों को अवधर्म कर पा े की सर्ाि ा बहत कम होती ह ै क
्योवक िह अप े अिधा को ु ां वकसी विषय मात्र पर अवधक समय तक के वन्ित रख पाता ह।ै बच्चों के स्िार्ाि म ें यह विवर्ष्टता दखे े को वमलती ह ै िह स्ि-सहर्वर्ता लेते हए विवर्न् वियाओ एि र्वतविवधयों के माध्यम से कछ सीख े ि ु ु ां ां आ द प्राप्त कर े का प्रयास करता ह।ै एक बच्चा असहाय जीि से सहाय जीिधारी ब े की प्रविया म ें ां विवर्न् प्रकार की वियाओ एि र्वतविवधयों म ें र्ार् लेता हआ अवधर्म करता ह।ै वियाओ एि ु ां ां ां ां र्वतविवधयों म ें सर्ी बच्चों की स्िर्ािता अवधक रूवच होती ह ै एि उ का अवर्ज्ञा ि ध्या इ पर ां अवधक के वन्ित रहता ह।ै इसी कारण ितथमा वर्क्षा प्रणाली में विवर्न् वियाओ या र्वतविवधयों के ां माध्यम से बच्चों को वर्क्षा प्रदा कर े पर अवधक बल वदया जा रहा है। इ के माध्यम से वर्क्षा प्रदा कर े का अवधक प्रयास इस वलए र्ी वकया जाता ह ै क्योवक वकसी र्ी विया या र्वतविवध म ें प्रवतर्ार् कर े पर बच्चे की एक से अवधक ज्ञा ेवन्िया एक सार् सविय रहती ह ै वजस कारण अवधर्म ग्रहणर्ीलता ां की सीमा उच्च हो जाती ह ै एि अवधर्वमत तथ्य,विषय या ज्ञा वचर स्र्ायी रूप से स्मरण हो जाते ह।ै ां 2.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप इस योग्य हो जाएर् े वक: ां 1. र्वतविवध या विया की अिधारणा को पररर्ावषत कर सकें र्े। 2. बाल के वन्ित वर्क्षा की आिश्यकता की व्याख्या कर सकें र्।े 3. बाल के वन्ित वर्क्षा के महत्ि को स्पस्ि कर सकें र्।े 4. बाल के वन्ित वर्क्षा के आधारों का िण थ कर सकें र्।े 5. बाल के वन्ित वर्क्षा के उद्दश्े यों का िण थ कर सकें र्।े 6. बाल के वन्ित वर्क्षा के सदर् थ में र्ाँधी जी के र्वै क्षक विचारों का िण थ कर सकें र्।ें ां 7. रिीन्ि ार् िैर्ोर के र्वै क्षक वचत की व्याख्या कर सकें र्।े ां 8. जॉ डीिी की र्वै क्षक विचारधारा को स्पस्ि कर सकें र्।े 9. प्लेिो के र्वै क्षक वचत की उपादये ता को स्पस्ि कर सकें र्।े ां 10. माविथ बबेर के बाल के वन्ित र्वै क्षक वचन्त की वििचे ा कर सकें र्।े ु 11. बाल के वन्ित वर्क्षा के सदर् थ में पाउलो फ्रे रे के र्वै क्षक विचारों का िण थ कर सकें र्।े ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 18 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.3 गशतशवनाशध‍अर्वनाा‍शिया‍की‍अवनाधारणा‍ सामान्य रूप म ें विया या र्वतविवध से तात्पयथ एक ऐसी प्रविया से ह ैं जो िास्तविक एि सहर्ार्ी अ र्िों ु ां के माध्यम से सीख े को प्रोत्सावहत करती ह।ै यह एक ऐसी प्रविया ह ै जो एक व्यवक्त या समह के द्वारा ू िास्तविक पररवस्र्वतयों म ें प्रवतर्ार् करते हए सपन् की जाती ह।ै यह अप े आप म ें स्ि-व दवे र्त या ु ां समह व दवे र्त हो सकती ह ै एि र्वै क्षक पररप्रेक्ष्य म ें यह एक सामावजक रच ात्मक दृवष्टकोण पररपण थ एक ू ू ां प्रविया ह ै वजसके अप े व वहत र्वै क्षक प्रयोज होते है। र्वतविवध या विया एक प्रकार की िह प्रविया ह ै वजसम ें वकसी चेत ा पण थ प्रयास के माध्यम से र्ारीररक ि मा वसक रूप से वकसी कायथ या प्रविया में ू र्ावमल होते हए कोई व्यवक्त सख एि आ द को प्राप्त करता हआ विर्ेष ज्ञा या अ र्ि का अज थ ु ु ु ु ां ां करता ह।ै र्वतविवध वकसी कायथ को कर े या आ द प्रावप्त हते विवर्ष्ट पिवतयों से पणतथ ा प्राप्त कर े की ु ू ां एक सर्ि ात्मक इकाई ह ै वजसम ें वकसी विर्षे पररवस्र्वत म ें कई कायथ या चीज ें एक सार् वियावन्ित हो ां रही होती ह।ै वकसी र्वतविवध की प्रकवत व्यवक्तर्त या सामवहक वकसी र्ी प्रकार की हो सकती ह।ै ृ ू र्वतविवध का प्रत्यय और र्वतविवध की अिधारणा को स्िर्ािता अतविषथ यक रूप म ें ग्रहण वकया जाता ां ह।ै वकसी र्ी र्वतविवध का स्िरुप दार्वथ क, सामावजक, सास्कवतक, म ोिज्ञै ाव क, िज्ञै ाव क, और ृ ां र्ारीररक पहलओ आवद से सम्बवधत हो सकता ह।ै ू ां ां इस धरातल पर मा ि की सबसे पहली र्तविवध जन्म के समय उसका रो ा मा ा जाता ह ै और िह अप े प्रारवर्क काल म ें अप ी सर्ी प्रकार की आिश्यकताओ की अवर्व्यवक्त रो े की र्वतविवध के ां ां माध्यम से करता ह।ै विकास की विवर्न् समयकालों से र्जरता हआ िी अ र्िों के अज थ ि ु ु ु अवधर्म के फलस्िरूप िह अप ी र्वतविवधओ को र्ी पररिवतथत एि पररमावजतथ करता रहता ह।ै उसका ां ां अप ी विया-विवधयों या र्वतविवधयों म ें पररितथ एि पररमाज थ की प्रविया सदिै चलती रहती ह।ै ां प्रारवर्क समयकाल म ें मा ि के िल अिलोक के आधार पर प्राप्त अ र्िों को स्मवत म ें सवचत करता ह ै ृ ु ां ां वफर धीरे -धीरे सख एि आ द प्रदा कर े िाले अ र्िों को अ कल कर े के सार्-सार् उ का ु ु ु ू ां ां अ करण र्ी कर े लर्ता ह।ै मा ि विकास के िम म ें पहले व्यवक्तर्त रूप से वकसी विया या र्वतविवध ु का सपाद करता ह ै वकन्त जसै े-२ पररपक्िता का विकास होता जाता ह ै िह दसरों के सार् वमलकर ि ु ां ू सहयोर् करते हए वियाओ ि र्वतविवधयों का सपाद करता हआ िी अ र्िों का अज थ ि अवधर्म ु ु ु ां ां करता ह।ै बालक के म ोविज्ञा को समझते हए ि उसकी आिश्यकता के अ रूप वर्क्षा एि वर्क्षण की ु ु ां व्यिस्र्ा का व योज कर ा तर्ा उसके अवधर्म म ें आ े िाली कवि ाइयों को दर कर ा बाल के वन्ित ू वर्क्षा का मख्य ध्येय होता ह।ै बाल के वन्ित वर्क्षा के अतर्तथ बच्चों की रुवचयों, प्रिवत्तयों, योग्यताओ ृ ु ां ां तर्ा क्षमताओ को ध्या म ें रखकर वर्क्षा का विधा वकया जाता है। बाल के वन्ित वर्क्षा म ें कक्षा वर्क्षण ां म ें र्ी व्यवक्तर्त वर्क्षण प्रदा कर े को महत्त्ि वदया जाता है। इसम ें बच्चे का व्यवक्तर्त अिलोक ि व रीक्षण कर उसकी दवै क कवि ाइयों को व िारण कर े का प्रयास वकया जाता है। बाल के वन्ित वर्क्षा म ें बच्चे की र्ारीररक और मा वसक योग्यताओ के विकास के स्तर एि पररपक्िता के आधार पर वर्क्षण ां ां का व योज वकया जाता ह ै तर्ा बच्चे के व्यिहार और व्यवक्तत्ि म ें असामान्यता के लक्षण हो े पर जसै े- उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 19 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं बौविक दबथलता, समस्याग्रस्त बच्चे, रोर्ी बालक, अपराधी बालक इत्यावद का र्ी व दा कर े का ु प्रयास इसके माध्यम से वकया जाता ह।ै बाल के वन्ित वर्क्षा के आर्ाि म ें बच्चों म ें व्याप्त दोषों एि ां समस्याओ का व िारण कर पा ा आसा हीं होता। ां 2.4 बाल‍के न्द्न्ित‍शशक्षा‍ आधव क यर् म ें यह एक महत्िपण थ िावतकारी पररितथ ह ै जब विषय-के वन्ित वर्क्षा का स्र्ा पर बाल- ु ु ू ां के वन्ित वर्क्षा े वलया। इस स्िरुप म ें सम्पण थ र्वै क्षक विषयों एि वियाओ ि र्वतविवधयों का व योज ू ां ां बच्चे को के न्ि में रख कर वकया जा े लर्ा। यह पररितथ प्रयोर्िादी विचारधारा पर आधाररत ह ै वजसका अवर्मत र्ा वक
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‘ अ र्ि वकसी व्यवक्त के िातािरण की र्ावत वस्र्र हीं ह ै इस कारण पाियिम म ें पिथ ् ु ू ां व धाथररत पाियिस्त को आधार ब ाकर बच्चों की रुवचयों एि आिश्यकताओ को के न्ि म ें रखा जाए। ् ु ां ां बाल के वन्ित र्वै क्षक व्यिस्र्ा म ें बच्चे की पररिवतथत आिश्यकताओ, अवर्प्रायों, सिेंर्ो आवद को ां आधार ब ाया जाता ह।ै ’
बाल के वन्ित वर्क्षा म ें बच्चों की मल प्रिवत्तयों, प्रेरणाओ और सिर्े ों पर आधाररत र्वै क्षक योज ा का ृ ू ां ां स्िरुप व धाथररत वकया जाता ह ै सार् ही सार् इसम ें वर्क्षा के उस त ि िी व्यहरच ाओ को समवे लत ू ू ु ां कर े का प्रयास वकया जाता ह ै ज
ो बच्चों की आिश्कताओ की प्रवतपवतथ म ें सहायक हो और उ के ू ां र्ारीररक, मा वसक, सामावजक, सिर्े ात्मक ि आध्यावत्मक पक्षों का सन्तवलत ि समवचत विकास वकया ु ु ां जा सके । 2.4.1 बाल के न्द्न्ित न्द्र्क्षा के आधार बच्चों को वियार्ील रखकर वर्क्षा प्रदा कर ा ही बाल के वन्ित वर्क्षा का मख्य प्रयोज ह।ै इस वर्क्षा ु का ध्येय ह ै वक बच्चों को विया या र्वतविवध के माध्यम से सज्ञा ात्मक, र्ािात्मक और वियात्मक स्तर ां पर वियार्ील करते हए वर्क्षा प्रदा कर ा। इस व्यिस्र्ा का अवर्मत ह ै वक बच्चों के ज्ञा या अ र्ि ु ु का व माणथ उ के द्वारा विवर्न् वियाओ या र्वतविवधयों म ें प्रवतर्ार् का पररणाम होता ह।ै ां इसके अतर्तथ बच्चों को महापरुषों, िज्ञै ाव कों, ीवत-व माथताओ, ायकों के अ करणीय व्यिहार, ैवतक ु ु ां ां कहाव यों, ि ािकों आवद का उदहारण प्रस्तत कर अवर्प्रेररत वकया जाता ह ै सार् ही सार् विवर्न् ् ु प्रकार की र्वतविवधयों ि वियाओ म ें प्रवतर्ार् करते हए व वश्चत तथ्यों या विषयों का र्ी ज्ञा ि अ र्ि ु ु ां प्रदा वकए जा े का प्रयास वकया जाता ह।ै बच्चों के जीि से जड़े हए ज्ञा एि अ र्िों को वियाओ ु ु ु ां ां एि र्वतविवधयों के माध्यम से उद्दश्े यपरक रूप म ें प्रस्तत वकया जाता ह।ै ु ां 2.4.2 बाल कें न्द्दत न्द्र्क्षा के उद्देश्य बाल कें वदत वर्क्षा का मख्य उद्दश्े य ह ै वक- ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 20 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  बच्चे को उ की योग्यता, क्षमता और रूवच के अ रूप अवधर्म ग्रहण कर े के अिसर उपलब्ध ु करा ा।  बच्चो को अवधक से अवधक रच ात्मक कायथ कर े ि उसम ें प्रवतर्ार् कर े के अिसर द े ा एि ां विवर्न् प्रकार के वियात्मक ि र्वतविवध आधाररत र्वै क्षक कायथिमों को उपलब्ध करा ा।  बच्चों के विषयी विषयों को उ के विद्यालीय जीि , घर, आस-पड़ोस के जीि से जोड़ते हए ु अध्यय के अिसर उपलब्ध करा ा चावहए। बच्चों को स्कल म ें अप े िाह्य अ र्िों को अवर्व्यक्त ू ु कर े के अिसर वदया जा ा। उन्ह ें अप ी बातों को अवर्व्यक्त कर े का अवधक से अिसर प्रदा कर ा।  बच्चों को र्वै क्षक िातािरण म ें आत्म-विया के अवधक से अवधक अिसर प्रदा कर ा । उन्ह ें स्िय ां से कायथ या विया कर े, खोज े, अन्िषे ण कर े व यम जा े ि ब ा े आवद के अिसर प्रदा कर ा।  बच्चों के समक्ष र्वै क्षक िातािरण का प्रारूप आदर् थ या प्रवतमा के रूप म ें इस प्रकार से प्रस्तत ु कर ा वक िह अप े आचारण म ें ैवतक एि मलयपरक वर्क्षा को आत्मसात कर सके । इसके वलए ू ां विद्यालय का िातािरण ि दवै क विया-कलापों का स्िरुप आदर्िथ ादी रूप म ें प्रस्तत कर ा। ु  बच्चों के ियै वक्तक अतर के महत्ि को स्िीकार कर ा एि प्रत्येक बच्चे को उसकी क्षमताओ और ां ां ां कौर्लों को व्यक्त कर े के समवचत अिसर प्रदा कर ा। जैसे उन्ह ें सर्ीत, कला, ािय, वचत्रकला, ् ु ां सावहत्य, त्य, खले -कद एि प्रकवत के प्रवत अ रार् इत्यावद के अिसरों के माध्यम से अवधर्म के ृ ृ ू ु ां अिसर उपलब्ध करा ा। 2.4.3 बाल के न्द्न्ित न्द्र्क्षा के अतर्ात पाठयक्रम का स्वरुप ् ं बाल के वन्ित वर्क्षा के पाियिम म ें बच्चे को वर्क्षा प्रविया के कें िवबद म ें रखा र्या ह।ै बच्चों की ् ां ु रुवचयों, आिश्यकताओ एि योग्यताओ ि क्षमताओ के आधार पर पाियिम तैयार वकया जाता ह।ै इस ् ां ां ां ां प्रकार की वर्क्षा के अतर्तथ पाियिम का स्िरुप व धाथरण की प्रविया म ें व म् वलवखत पहलओ म ें ध्या ् ू ां ां वदया जा ा चावहए:-  पाियिम जीि ोपयोर्ी हो ा चावहए। ्  पाियिम बच्चों के पिज्ञथ ा एि उ के पास-पड़ोस के िातािरण पर आधाररत हो ा चावहए। ् ू ां  पाियिम बच्चों की रूवच, योग्यता एि क्षमता के अ रूप हो ा चावहए। ् ु ां  पाियिम म्य ि लचीला हो ा चावहए। ्  पाियिम बच्चों के चारों तरफ व्याप्त िातािरण के अ रूप हो ा चावहए। ् ु  पाियिम को राष्रीय र्ाि ाओ को विकवसत कर े िाला हो ा चावहए। ् ां  पाियिम समाज एि राज्य की आिश्यकताओ के अ रूप व योवजत हो ा चावहए। ् ु ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 21 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  पाियिम बच्चों के मा वसक स्तर एि पररपक्िता के अ कलर हो ा चावहए। ् ु ू ां  पाियिम म ें व्यवक्तर्त वर्न् ता को समवचत स्र्ा वदया जा ा चावहए। ् ु  र्वतविवध या विया आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा पर विवर्न् वर्क्षार्ावस्त्रयों का अवर्मतों को प्रार्वमकता द े ी चावहए। र्वतविवध या विया आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा पर विया-िज्ञै ाव कों, म ोिज्ञै ाव कों, वर्क्षार्ावस्त्रयों आवद े इस पर बहत अध्यय वकया ह ै और इस वबन्द पर अप े-अप े विचारों को र्ी व्यक्त वकया ह।ै ु ु र्वतविवध या विया आधाररत बाल के वन्ित वर्क्षा पर इ के विचारों म ें अ ेकों विवर्न् ताए ह।ै यहाँ पर ां कछ वर्क्षार्ावस्त्रयों के विचारों पर चचा थ की जा रही ह।ै ु अभ्यास प्रश्न 1. आधव क यर् म ें विषय के वन्ित वर्क्षा का स्र्ा वकस प्रकार की वर्क्षा े वलया? ु ु 2. बाल के वन्ित वर्क्षा के के न्ि वबन्द म ें वकसे रखकर वर्क्षा का व योज वकया जाता ? ु 3. इस धरातल पर मा ि की सबसे पहली र्तविवध वकसे मा ा जाता ह?ै 4. वकसी चेत ा पण थ प्रयास के माध्यम से र्ारीररक ि मा वसक रूप से वकसी कायथ या प्रविया में ू र्ावमल होते हए कोई व्यवक्त सख एि आ द को प्राप्त करता हआ विर्ेष ज्ञा या अ र्ि का ु ु ु ु ां ां अज थ करता ह।ै इस प्रविया को क्या कहते ह ैं ? 5. बाल के वन्ित वर्क्षा के विधा म ें बच्चे वक पहलओ को अवधक ध्या वदया जाता ह?ै ू ां 2.5 गाधाँ ी‍के ‍शवनाचार‍म‍शिया‍या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍के न्द्न्ित‍शशक्षा ें र्ाँधी जी एक महा राज ीवतज्ञ, दार्वथ क एि वर्क्षार्ास्त्री र्े। र्ाँधी जी के र्वै क्षक वचत की अवर्व्यवक्त ां ां वहन्द स्िराज ामक पस्तक ि हररज ामक पत्र एि बेवसक वर्क्षा योज ा म ें अवर्व्यक्त होती ह।ै इ की ु ां बेवसक वर्क्षा योज ा र्ारत की राष्रीय सस्कवत और सभ्यता पर आधाररत एक अदर्त र्वै क्षक योज ा ृ ु ां ह।ै इस वर्क्षा योज ा का उद्देश्य बच्चे को ज्ञा एि कौर्ल के अज थ के सार्-सार् उन्ह ें व्यािहाररक ां जीि म ें इ के उपयोर् कर े के वलए सक्षम एि आत्मव र्थर ब ा े से ह।ै बेवसक वर्क्षा योज ा वर्क्षा ां बच्चे की बव यादी आिश्यकताओ एि रुवचयों मध्य एक ऐसे सामजस्य को स्र्ावपत कर े का प्रयास ु ां ां ां करती ह ै वजसका के न्ि वबन्द सदिै बच्चे हो। ु वर्क्षा को लेकर र्ाँधी जी का वचत व वश्चत रूप से व्यवक्तर्त और राष्रीय स्ितन्त्रता के विचार से ां ओतप्रोत ह।ै 1937 म ें र्ाँधी जी द्वारा बव यादी राष्रीय वर्क्षा के रूप म ें प्रस्तावित ई तालीम या ई ु वर्क्षा के के न्ि म ें एक स्ितन्त्र बच्चे की पररकलप ा व वहत र्ी, इसके सार्-सार् यह आत्मव र्रथ ता तर्ा समाज के वहत से र्ी सम्बवधत र्ा। र्ाँधी जी स्ितन्त्र र्ारत म ें एक न्यायसर्त, र्ावन्तपणथ, र्रै -लार्कारी ू ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 22 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं सामावजक व्यिस्र्ा की स्र्ाप ा कर ा चाहते र्े। वजस पररकलप ा की अवर्व्यवक्त ई तालीम की योज ा म ें व वहत र्ी। र्ाँधी जी का मा ा र्ा वक वर्क्षा म ें प्रवतस्पिाथ के स्र्ा पर सहयोर् की व्यिस्र्ा ला े का र्रपर प्रयास ू वकया जा ा चावहए। प्रवतस्पिा थ अर्ाथत बच्चों को
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‘प्रर्म’
और
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‘अवन्तम’
के रूप म ें आकवलत कर ा ही ां ईष्याथ और बेईमा ी को जन्म दते ा ह।ै बच्चे को उसके वदलचस्पी के विषयों पर काम कर े के अवधक अिसर प्रदा कर े का प्रयास वकया जा ा चावहए इससे उ के वलए उन्ह ें वकसी ब ाििी या कवतम ृ उत्प्रेरक की आिश्यकता हीं पड़ेर्ी। बच्चों म ें सहयोर् की एक स्िार्ाविक प्रिवत्त होती ह।ै इसके वलए ृ प्रत्येक कक्षा म ें कछ समय बच्चों द्वारा इकट्ठे काम कर े के वलए अलर् से रखा जा सकता ह ै – जसै े, ु र्वणत की कछ समस्याओ के वलए या कला के वकसी प्रोजक्े ि के वलए आवद। इस तरीके की अ ेकों ु ां वियाओ एि र्वतविवधयों का वर्क्षा म ें व योवजत कर े का सझाि र्ाँधी जी के द्वारा वदया र्या। उदाहरण ु ां ां के रूप म ें जसै े चचा,थ इसको कक्षा की एक र्वतविवध ब ा े से उन्ह ें अ ेकों सावर्यों के सार् कायथ कर े का अिसर वमलता ह ै जो बच्चों म ें सहयोर् के सार् कायथ या प्रवतर्ार् कर े और दसरों के सार् सम्पकथ म ें ू आ े का अिसर प्रदा करता ह।ै सहयोर् की यह र्ाि ा धीरे -धीरे बच्चों म ें साझपे और र्ावन्तपणथ ू तरीके से वमलकर काम कर े की प्रिवत का विकास करती ह।ै ृ र्ाँधी जी े ई तालीम म ें बव यादी वर्क्षा की योज ा म ें वसफथ साति ें से चौदहि ें साल तक के आय िय ु ु के वलए प्रस्तावित ह।ै वजसका मख्य ध्येय इवन्ियों का विकास और उ का समन्िय ह।ैं इ का मा ा र्ा ु वक वर्क्षण का माध्यम प्रारवम्र्क स्तर पर मात-र्ाषा ही हो चावहए। र्ाँधी े व्यवक्तर्त प्रयोर्ों एि ृ ां अ र्िों के आधार पर एक ऐसी र्वै क्षक प्रारूप से सर्ी अिर्त करिाया वजसकी पष्ठर्वम की ृ ु ू आधारवर्ला र्ी र्ारतीयता पर अिलवम्बत ह।ै वर्क्षा की िवै श्वकता म ें खासतौर पर बच्चों का सम्मा कर े के सदर् थ म ें उ का विश्वास र्ा। आज र्ी ां वर्क्षा का सबसे महत्िपण थ उद्दश्े य छात्रों का चहमँ खी विकास कर ा ह।ै र्ाधी जी बच्चे की ैसवर्कथ ु ू ु ां अच्छाई म ें यकी रखते र्े, चीज़ों को करके सीख े पर ज़ोर दते े र्े, सार् ही ब ाििीप और आडबर के ां प्रखर विरोधी र्े। उन्हों े वर्क्षा को चारदीिारी से मक्त करा े का प्रयास वकया और कहा वक बच्चे को ु प्राकवतक पररिर्े म ें वर्क्षा दी जा ी चावहए। िह मा ते र्े वक बच्चों को वर्क्षा स्ितत्रता के िातािरण में ृ ां वदया जा ा चावहए। सक्षेप म ें कहा जा सकता ह ै वक आज की आधव क, बाल-कें वित और मा ितािादी ु ां वर्क्षण के सरोकार र्ी यही ह।ैं 2.6 रवनाींि ार्‍टगोर‍के ‍शवनाचार‍म‍शिया‍या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍के न्द्न्ित‍ ै ें शशक्षा विश्व विख्यात कवि, सावहत्यकार, दार्वथ क एि वर्क्षार्ास्त्री रिींि ार् िैर्ोर वर्क्षा को
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‘जीि के अपिथ ू ां अ र्ि के स्र्ाई रूप’
के बतौर अप े अ र्ि अवर्व्यक्त करते ह।ै उ का मा ा र्ा वक
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“वर्क्षा बच्चों ु ु की सज्ञा ात्मक अ वर्ज्ञता के रोर् का उपचार कर े िाले तकलीफ़दहे अस्पताल की तरह हीं ह,ै बवलक ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 23 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं यह उ के स्िास्थ्य एि जीि की एक स्िार्ाविक प्रविया ह ै सार् ही सार् उ के मवस्तष्क के चेत ा की ां एक सहज अवर्व्यवक्त ह।ै ”
उन्हों े अप े विचारों म ें यह अवर्व्यक्त वकया ह ै वक लोर्ो की सामान्य अिधारणा ह ै वक िह अवधकतर बच्चों को इर्ारों एि व दर्े ों पर ाच े िाली किपतवलया के रूप म ें समझते ह ैं और वर्क्षा के एक ऐस े ु ां ां अप्राकवतक स्िरुप म ें विश्वास करते ह ै जो बच्चों को बचप से महरूम कर दते ा ह।ै बच्चों को अप े ृ अध्यय के वलए के िल स्कल की आिश्यकता हीं ह,ै बवलक उ को एक ऐसा िातािरण प्रदा कर ा ू चावहए वजससे उ की मार्दथ र्थक चेत ा व्यवक्तर्त प्रेम के रूप म ें अवर्व्यक्त हो। िैर्ोर जी का मा ा र्ा वक
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‘प्रेम और कमथ’
के माध्यम से ज्ञा प्राप्त वकया जा सकता ह।ै िैर्ोर े अप े वर्क्षा दर् थ म ें सीख े के वलए ती वसिातों को अवधक महत्िपण थ मा ा ह-ैं ू ां 1. स्ितत्रता ां 2. सज ात्मक स्ि-अवर्व्यवक्त ृ 3. प्रकवत और इसा ों के सार् सविय सहर्ावर्ता ृ ां उ का कह ा र्ा वक स्ितत्रता की वस्र्वत म ें ही बच्चे िास्तविक एि सही मया ों म ें वर्क्षा के अर्थ और ां ां औवचत्य के अ रूप अ र्िों को ग्रहण कर पाएर्।े उन्हों े तत्काली र्वै क्षक पररिर्े म ें स्र्ावपत ु ु ां विद्यालयों को
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‘वर्क्षा की फ़ै क्री, कवतम, रर्ही , दव या के सही सन्दर्ों से विलर् और सफे द दीिालों के ृ ां ु बीच से झाकती मतक के आँखों की पतली’
आवद अवर्व्यज ाओ से विर्वषत वकया ह।ै बच्चों के सदर्थ ृ ु ू ां ां ां ां म ें िह स्ितत्र, मक्त र्वतविवध और उ के स्िास्थ्य ि र्ारीररक विकास के वलए खले के अवधक वहमायती ु ां र्े। उन्हों े कहा वक, “अर्र बच्चे कछ हीं सीखते ह ैं या कछ हीं सीख ा चाहते ह ै तो र्ी उ को खले े ु ु का पयाथप्त एि समवचत समय वदया जा ा चावहए। बच्चों के खले े का
प्रारूप कछ र्ी हो सकता ह ै जसै े- ु ु ां पेड़ों पर चढ़ ा, तालाब म ें तैर ा, फल तोड़ ा और वछल ा, प्रकवत के सार् हज़ारों प्रकार की र्रारत ें ृ ू कर ा आवद। बच्चे इस प्रकार की वियाओ एि र्वतविवधयों के माध्यम से अप े र्रीर क
ो पोषण, म को ां ां खर्ी और बचप की ैसवर्कथ प्रेरणाओ को सतवष्ट प्रदा कर े का प्रयास करते ह।ै इन्हो ें इस ु ु ां ां िास्तविकता अत्यत दःख प्रकि वकया वक तात्कावलक वर्क्षा व्यिस्र्ा वकताबों को अवधक प्रार्वमकता ां ु प्रदा कर इ की र्लामी को प्रोत्साह दते ी र्ी। र्ारत और दव या के तमाम विकवसत एि विकार्ील ु ां ु दर्े ों म ें यह वस्र्वत आज र्ी व्याप्त ह।ै िैर्ोर जी े अप े र्वै क्षक विमर् थ म ें एक त वसिात को प्रवतपावदत वकया वजसे र्वतविवध के वसिात के ू ां ां रूप म ें जा ा जाता ह।ै यह र्क्षै वणक विवधयों के क्षेत्र म ें एक महत्िपण थ वसिात ह।ै यह इस दार्वथ क ू ां अिधारणा पर आधाररत ह ै वक र्रीर और म को विर्ावजत हीं वकया जा सकता। उन्हों े यह स्पस्ि रूप म ें व्यक्त वकया वक र्ारीररक र्वतविवध से के िल र्रीर को ही स्फवतथ हीं वमलती अवपत इससे म र्ी ू ु ऊजाथिा एि स्पवतथमय हो जाता ह।ै इसी वसिात के कारण ही उन्हों े चलते-वफरते या सचल विद्यालयों ू ां ां की स्र्ाप ा पर बल वदया और इन्ह ें एक आदर् थ विद्यालय की सज्ञा प्रदा की। र्रुदिे अप े विद्यालय को ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 24 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं प्रकवत की र्ोद म ें स्र्ावपत कर ा एि वर्क्षण-अवधर्म के समय पणतथ या प्राकवतक पररिर्े का हो ा ृ ृ ू ां आिश्यक मा ते ह।ै इ का विचार र्ा वक प्राकवतक िातािरण म ें अध्यय कर े से स्र्ाई एि प्रत्यक्ष ज्ञा ृ ां प्राप्त होता ह ै और म की व्यावधयों का र्ी अत सरम्य एि म ोरम िातािरण हो जाता ह।ै ु ां ां उ का मा ा र्ा वक चलते-चलते पढ़ा ा अर्िा सीख ा वर्क्षा प्रदा कर े का सबसे अच्छा तरीका ह।ै ऐसा इसवलए क्योंवक चलते समय हमारा मा वसक सकाय ज़्यादा जाग्रत एि सजर् रहता ह ै ां ां और वकन्हीं र्ी चीज़ों को ग्रहण कर े िाली वस्र्वत म ें होता है। वजस कारण इस समय सीखा या ग्रहण वकया र्या ज्ञा या सच ा अिधारणा म ें अवधक समय तक स्र्ायी रहता ह।ै िैर्ोर जी र्ावत व के त म ें ू ां इस प्रकार के र्वै क्षक िातािरण प्रदा वकया जो बच्चों के व यत्रण में हो यहाँ पर बच्चे अप ी वियाओ ि ां ां र्वतविवधयों म ें स्िय ही व यत्रण करते र्े एि अ वचत कायथ कर े पर उ के ही द्वारा स्ि दण्ड का विधा ु ां ां ां र्ा। िैर्ोर जी के अ सार सविय रूप से सीख े की उपयोवर्ता- इ का मा ा र्ा वक सविय रूप से सीख ा ु वकसी र्ी जीवित इसा के वलए प्रत्येक दृवष्टकोण से उपयोर्ी होता ह ै क्योवक कक्षा के वस्र्र िातािरण में ां जो वर्क्षा प्रदा की जाती ह ै उससे वर्क्षा और बच्चों की अप ी पहल के बीच एक अलर्ाि की र्ाि ा को जन्म दते ी ह।ै इन्हो ें अप े इस वसिात को
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‘र्ावत व के त ’
म ें अप ाया । जहाँ पर इन्हो ें र्क्षै वणक ां ां व्यिस्र्ा का व योज अप ी विचार ि वचत के आधार पर र्वतविवध वसिात के अ रूप वकया। ु ां ां 2.7 प्लेटो‍के ‍शवनाचार‍म‍शिया‍या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍के न्द्न्ित‍शशक्षा ें प्लेिो एक महा र्वै क्षक दार्वथ क र्े इ के र्वै क्षक वचत की अवर्व्यवक्त इ के प्रवसि ग्रर्
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‘ररपवब्लक’
ां ां एि
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‘लाज’
म ें दखे े को वमलती ह।ै प्लेिो के र्वै क्षक वचत का ध्येय बराइयों की समावप्त एि सद्गणों का ु ां ां ां ु विकास, सत्य ि वर्ि की प्रावप्त, राज्य की सदृढता, ार्ररकता की वर्क्षा, सन्तवलत व्यवक्तत्ि का विकास ु ु आवद ह।ै प्लेिो अप े र्वै क्षक उद्दश्े यों के अ रूप ही पाियिम का विधा करते ह ै वजसम ें बच्चों के वलए ् ु कविता, र्वणत, खले कद, कसरत, सैव क-प्रवर्क्षण, वर्ष्टाचार तर्ा धमर्थ ास्त्र की वर्क्षा वदए जा े ू आिश्यकता को व्यक्त करते है। यह बच्चों के वलए खले -कद को अत्यत आिश्यक मा ते ह ै वकन्त इसका ू ु ां ध्येय प्रवतयोवर्ता को जीत ा होकर स्िस्र् र्रीर तर्ा म ोरज की प्रावप्त के रूप म ें स्िीकार करते ह।ै ां इ का मा ा र्ा वक स्िस्र् र्रीर म ें ही स्िस्र् मवस्तष्क एि आत्मा का व िास सर्ि ह।ै यह अप ी ां ां वर्क्षा व्यिस्र्ा म ें कसरत (वजम ावस्िक) एि त्य को अवधक प्रार्वमकता दते े ह ै और इसके समन्िय का ृ ां आग्रह करते ह।ै इ का मा ा र्ा वक
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‘ कसरत विही सर्ीतज्ञ कायर होता ह ै और सर्ीत विही कसरती ां ां पहलिा आिामक पर् के समा होता ह’
ै । इसी कारण यह इ दो ों को यिकाल एि र्ावतकाल दो ों ु ु ां ां ही पररवस्र्वतयों म ें अत्यत उपयोर्ी मा ते ह।ै ां प्लेिो का यह मा ा र्ा वक बच्चों को र्ारीररक प्रवर्क्षण एि कसरत (व्यायाम) के विषय म ें उ के ां बचप से ही वसखाया जा ा चावहए। इ का मा ा र्ा वक र्ारीररक वर्क्षा की र्ावत बच्चों का ां सास्कवतक प्रवर्क्षण र्ी छोिी अिस्र्ा से ही आरर् कर द े ा चावहए। अवर्र्ािक कहा ी के माध्यम से ृ ां ां बच्चों को अप ी सभ्यता एि सस्कवत के विषय म ें पररवचत करा सकते ह।ैं लेवक इसके यह ध्या रख ा ृ ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 25 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं चावहए वक उन्ह ें िही कहाव या स ाई जा ी चावहए जो उ की उम्र एि मा वसक पररपक्िता स्तर के वलए ु ां ां उपयक्त हों। कहाव यों के अवतररक्त खले को र्ी प्लेिो बच्चों के चररत्र विकास म ें सहायक मा ते ु ह।ैं इसवलए उ का मा ा र्ा वक एक पण थ विकवसत मा ि के रूप म ें जो र्ी वर्क्षा या ज्ञा आिश्यक ू ह,ै उसकी वर्क्षा उसको बचप से ही खले ों, वियाओ ि र्वतविवधयों के माध्यम से प्रदा वकया जा ा ां चावहए। यह खले ों या वियाओ या र्वतविवधयों का व योज इस प्रकार से कर े का सझाि दते े ह ै वक ु ां बच्चे को उसकी रूवच, योग्यता ि क्षमता के अ कल विकास कर े में सहायक हो। जसै े वक यवद वकसी ु ू बच्चे म ें अच्छा र्ि व माथता ब े का र्ण ह,ै तो उसके खेलों की रूपरेखा इस प्रकार व धाथररत की जा ी ु चावहए वजससे उसको र्ि –व माथण की बारीवकयों की जा कारी खले –खले म ें वमलती रह े । इसी प्रकार यवद कोई व्यवक्त काष्ठकला में रुवच रखता ह ै तो उसको उस उद्यम के बारे म ें बताया जा ा चावहए. इससे बच्चों की रुवच म ें स्िार्ाविक व खार आएर्ा एि बच्चे आर् े चलकर अप े कायथ म ें परी तरह दक्ष वसि ू ां होंर्।े प्लेिो विचार र्ा वक ती से छह िष थ तक के बच्चों को माता–वपता अप ी दखे रेख म ें खले े का समवचत ु अिसर द।ें इस कायथ के वलए िह र्हवणयों को अवधक उपयक्त मा ते ह ै क्योवक प्रारवर्क लाल -पाल ृ ु ां का कायथ र्वहवणया अवधक कर्लतापिकथ कर सकती ह।ैं बच्चे को छह िष थ का होते ही उसे स्कल या ृ ु ू ू ां विद्यालय म ें प्रिेर् वदया जा ा चावहए। िहाँ उन्ह ें प्रारर् म ें पढ़ ा, वलख ा और वर् ती कर ा वसखाया ां जा ा चावहए। छह िष थ के बाद लड़के और लड़की को अलर्–अलर्, उ के कायथ और रुवच के अ सार ु वर्क्षा द े े की अ र्सा प्लेिो े की ह ै लेवक उ का यह विधा वकसी र्ी प्रकार के लैंवर्क र्दे र्ाि से ु ां परे ह।ै प्लेिो के अ सार दस िष थ का होते ही बालक की विवधित वर्क्षा या एक प्रकार से पण थ ु ू औपचाररक वर्क्षा आरर् कर वदया जा ा चावहए। इस अिस्र्ा से लेकर अर्ले ती िष थ तक उन्ह ें अक्षर– ां ज्ञा वदया जा ा चावहए। तेरह िष थ की अिस्र्ा से बच्चों को सर्ीत की वर्क्षा दी जा ी चावहए इस ां अिस्र्ा म ें बच्चे सर्ीत की ध ों को समझ े योग्य हो जाते ह।ै इसके पश्चात परे ती िष थ तक इससे कम ु ू ां और इससे अवधक बच्चे को सर्ीत आवद कलाओ के विवधित अध्यय के समवचत अिसर वदया ु ां ां जा ा चावहए। प्लेिो एर्ेंस की समकाली वर्क्षा प्रणाली से असतष्ट र्े उ का मा ा र्ा वक ितथमा ु ां वर्क्षा–पिवत अकर्वणत तर्ा ज्योवतष के अध्याप के प्रवत उदासी ह ै जबवक प्राची य ा म ें ये दो ों ू ां ही विषय अत्यत लोकवप्रय र्े। इसवलए िह बच्चों को र्वणत और ज्योवतष पढ़ाए जा े के पक्ष म ें र्े। इ के ां अ सार त्य, सर्ीत, व्यायाम तर्ा र्वणत जसै े विषय वर्क्षा का अव िायथ अर् हो े चावहए और वब ा ृ ु ां ां वकसी लैंवर्क र्दे र्ाि के यह वर्क्षा सर्ी को अव िायथ रूप से दी जा ा चावहए। सर्ीत, र्वणत तर्ा ां व्यायाम की पढ़ाई के अलािा बच्चों को सर्ी प्रकार के खले र्ी वसखा ा जरूरी ह,ै तावक ि े र्ारीररक और मा वसक रूप से स्िस्र् रह।ें प्लेिो का मा ा र्ा वक व्यवक्त की सपण थ वर्क्षा अव िायथ व दर्े ों के दबाि से मक्त रह ी चावहए। वकसी ू ु ां र्ी मक्त आत्मा अर्ाथत बच्चे को पराधी तापण थ वस्र्वतयों म ें अध्यय हीं कर ा चावहए और ही ु ू उसे जोर–जबरदस्ती से सीख े का प्रयास वकया जा ा चावहए क्योवक इस प्रकार की वसखाया हआ ज्ञा ु मवस्तष्क म ें अवधक समय तक वस्र्र हीं रह सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 26 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं प्लेिो े वर्क्षा के सर्ी स्तरों पर अप े र्वै क्षक विमर् थ की व्याख्या की। इसका विर्द िणथ उ के महा ग्रर्ों म ें पररलवक्षत होता ह ै और इन्हो ें अप े र्वै क्षक विमर्थ को साकार रूप प्रदा कर े के वलए ां अकादमी की स्र्ाप ा की। 2.8 जॉ ‍ डीवनाी‍ ‍ के ‍शवनाचार‍म‍शिया‍या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍केन्द्न्ित‍ ें शशक्षा जॉ डीिी अ र्ि को वर्क्षा का के न्ि वबन्द मा ते ह।ै इ के अ सार बच्चों को अ र्ि द्वारा ज्ञा प्राप्त ु ु ु ु कर े के अवधक से अवधक अिसर प्रदा वकए जा े चावहए वकन्त अिसरों की उपलब्धतता बच्चों के ु आयिय ि मा वसक स्तर के अ कल वकया जा ा चावहए। डीिी वर्क्षा का उद्दश्े य इस रूप म ें व धाथररत ु ु ू कर े का प्रयास करते ह ै वक वजससे बच्चों का सिांर्ीण विकास हो सके ि उ का र्ािी जीि जीि सखमय हो सके सार् ही सार् िह एक समि एि र्वक्तर्ाली राष्र के व माथण म ें अप ा सिोत्तम योर्दा ृ ु ां द े सके । डीिी बच्चों को करके सीख े एि प्रयोर् द्वारा वर्क्षा प्रदा कर े के पक्षधर र्े। इ का मा ा र्ा वक इस ां पिवत से बच्चों म ें सहयोर्, आत्मविश्वास, आत्मव र्रथ ता आवद र्ािों का विकास होता ह ै तर्ा मौवलकता, सज र्ीलता आवद के र्णों का उत्तरोत्तर विकास होता ह।ै वर्क्षा प्रदा करते समय बच्चों के ृ ु समक्ष ऐसी पररवस्र्वतया तैयार या उत्पन् की जा ी चावहए जो उ म ें र्ौवतक एि सामावजक िातािरण से ां सम्बवधत समस्याओ का समाधा कर े का कौर्ल का विकास कर सके । ां ां डीिी जी का अवर्मत र्ा वक बच्चे को उसकी वर्क्षा के वलए खले एि स्ितन्त्र िातािरण को प्रदा ु ां वकया जा ा चावहए एि उसके ऊपर वकसी र्ी प्रकार के अ ािश्यक दबाि ि अकर् या र्य को ु ां ां आरोवपत हीं वकया जा ा चावहए और ही बच्चों को वकसी र्ी प्रकार के ैवतक या अ ैवतक कत्यों या ृ कायों को कर े के वलए बाध्य वकया जा ा चावहए क्योवक इससे उ की स्ितत्रता, मल प्रिवत एि ृ ू ां ां ां र्ाि ाओ का विकास पररसीवमत हो सकता ह।ै बच्चों को ऐसा िातािरण उपलब्ध कराया जा ा चावहए ां जो उ के ज्ञा ज थ के वलए सिर्थ ा उपयक्त हो सार् ही सार् बच्चों को वियार्ील, वजज्ञास ि सीख े के ु ु वलए तत्पर रख े म ें सहायक हो। बच्चों को स्िविया, र्वतविवधयों म ें प्रवतर्ार् कर े एि प्रयोर् कर े के ां समवचत अिसर वदए जा े चावहए। डीिी जी े अप े र्वै क्षक विचारों को अप े
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‘ प्रयोर्र्ाला विद्यालय’
ु म ें साकार रूप म ें वदया जहाँ पर बच्चों को स्िय करके सीख े की वर्क्षा एि प्रेरणा दी जाती र्ी एि उन्ह ें ां ां ां अप ा कायथ च े, उसकों परा कर े, अप े आदर्ों एि मलयों के व माथण वलए स्ितत्रता प्रदा की जाती ु ू ू ां ां र्ी। इ का विचार र्ा वक यवद बच्चों को स्ितत्रता पिकथ उसकी अप ी योग्यता, क्षमता, रूवच, र्वत एि ू ां ां सामथ्यथ के अ सार सीख े वदया जाए तो िह अप े रूवच के क्षेत्र म ें सदिै सफल रहर्े ें। ु जॉ डीिी े बाल के वन्ित पिवत र्वै क्षक व्यिस्र्ा का रूप प्रस्तत वजसम ें उन्हों े बच्चे की रूवच के ु अ सार वर्क्षा प्रदा वकए जा े का सझाि वदया। डीिी जी का मा ा र्ा वक बच्चे की रूवच एि प्रयास ु ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 27 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं को वर्क्षा म ें सिोच्च स्र्ा वदया जा ा चावहए। वर्क्षकों को बच्चों की रूवच वियाकलापों की योज ा ब ा े के पि,थ अिश्यता एि महत्ि को समझ ा चावहए। अर्र बच्चों को स्िय कायथिम ब ा े का ू ां ां अिसर वदया जाय तो िह रूवच के अ सार ही कायथिमों को ब ायेंर्।े सबसे अच्छा साध यह होर्ा वक ु बच्चों को वब ा र्य या दबाि के कायथ कर े के अिसर वदए जाए जहाँ िह िह स्ितत्रता पिकथ अप े ू ां कायथिम ब ा सके । इ का मा ा र्ा वक एक बच्चा के िल विद्यालय
मात्र का ही सदस्य हीं होता अवपत िह पररिार एि ु ां समाज का र्ी सदस्य होता ह।ै बच्चे के समक्ष अ ेकों प्रकार की र्वै क्षक, पाररिाररक एि सामावजक ां समस्याए उपवस्र्त होती ह
ै वज का समाधा ितथमा र्वै क्षक प्रणाली से हो पा ा असर्ि ह ै क्योंवक ां ां ितथमा वर्क्षा प्रणाली मात्र पस्तकों पर आधाररत एि अम ोिज्ञै ाव क ह।ै वर्क्षक का यह परम दावयत्ि ह ै ु ां वक िह सबसे पहले बच्च े को समझ े का प्रयास करे इसके उपरान्त उसकी समझ, योग्यता, इच्छा, दृष्टीकोण एि क्षमता के अ कल उसके समक्ष पररवस्र्वतयों का व वमतथ वकया जा ा चावहए एि उसे स्ि से ु ू ां ां समस्या म ें विचार कर े ि उसका समाधा व काल े के वलए प्रेररत वकया जा ा चावहए। 2.9 मार्टट ‍ बुबर‍ के ‍शवनाचार‍म‍शिया‍या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍केन्द्न्ित‍ े ें शशक्षा माविथ बबेर विय ा म ें जन्म े एक महा वर्क्षार्ास्त्री र्े। माविथ बबेर, सिादात्मक अवस्तत्ि के अप े ु ु ां विश्लेषणात्मक मीमासा के वलए प्रवसि ह,ैं जसै ा वक उन्हों े अप ी प्रवसि पस्तक
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‘ म ैं और तम’
म ें िवणतथ ु ु ां वकया ह।ै यद्यवप उन्हों े कई क्षेत्रो ँ म ें कायथ वकया एि अप े विचारों को प्रस्तत वकया वकन्त धावमकथ चेत ा, ु ु ां आधव कता, बराई की अिधारणा, ैवतकता, वर्क्षा और बाइवबल सम्बन्धी विचार अत्यत प्रवसि ह।ै ु ु ां इन्हो ें सीख े या अवधर्म को अप ी तरह से पररर्ावषत वकया। इ का मा ा र्ा वक बच्चा सबसे पहले सबधपरक दव या का सश्लेषण और पररिवतथत हो रही दव या का अ र्ि करके परपराओ और मलयों को ु ू ां ां ां ां ां ु ु वफर से खोज े का प्रयास करता ह।ै इ के अ सार सीख ा या अवधर्म िास्ति म ें "अर्थ के वलए खोज" ु या कहा जा सकता ह ै वक
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"एक व्यवक्त द्वारा प्रर्ािी दव या का चय "
अर्िा
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"सव वश्चत मलय-व णयथ ु ू ु प्राप्त कर ा"
आवद प्रविया के रूप म ें स्िीकार वकया जा सकता ह।ै इ का मा ा र्ा वक बच्चे अप े विकासिम म ें अवधर्म को अर्थपण थ ब ाते हए अप ी दव या के सार् ु ू ु समार्म करते ह ै और अप ी िास्तविकता के सार् प्रर्ािी रूप से सामजस्य स्र्ावपत कर े का प्रयास ां करते ह।ै बच्चे अप ी इस प्रविया म ें चय के काय थ के माध्यम से अप ी िास्तविकता के सदर् थ म ें दव या ां ु से हए समार्म या आम ा-साम ा के प्रवतफलस्िरुप प्रत्येक पररवस्र्वत म ें अर्थपण थ या महत्िपण थ सार को ु ू ू ग्रहण करते ह।ै बबेर महोदय का मा ा र्ा वक बच्चे अप ी प्रर्ािी दव या का व माथण स्िय करते ह।ै ु ां ु इसीकारण उन्हों े कहा र्ा वर्क्षण-अवधर्म की प्रविया म ें वर्क्षक की प्रर्ािर्ाली र्वमका तो हो ी ू चावहए वकन्त बच्चों के
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"प्रर्ािी दव या के चय "
म ें उन्ह ें पण थ स्ितत्रता प्रदा की जा ी चावहए। ु ू ां ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 28 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इ का मा ा र्ा वक सीख ा के िल एक महत्िपण थ पररणाम की प्रावप्त और व्यवक्तर्त चय की प्रविया ही ू हीं ह ै अवपत सीख ा या अवधर्म बच्चे के वि यर्ील अन्िषे ण और समझ की प्रवियाओ के माध्यम ु ां से आत्म-जार्रूकता और आत्म-चेत ा को के वन्ित ि मजबत ब ाते हए उसके दव या के सार् ु ू ु सिादबिता से सबवधत कायथ के पररणाम को व रूवपत करती ह।ै एक बच्चा अप ी खोजपण थ प्रिवत के ृ ू ां ां ां अ रूप सबसे पहले स्िय के विषय म ें जार्रुक हो ा सीखता ह ै वफर िह अप े अवस्तत्ि की उपवस्र्वत ु ां का पररमापीकरण वकन्ही िाह्य सन्दर्ों के आधार पर करता है। बबेर जी का मा ा र्ा वक के िल ु प्रारवम्र्क अ र्िों के माध्यम से ही सीख ा पण थ हीं होता ह ै और वर्क्षा के वलए सचेत एि इच्छार्वक्त ु ू ां पण थ प्रयास का र्ी हो ा आिश्यक। एक बच्चा जब कोई ज्ञा या कौर्ल ग्रहण या अवजथत करता ह ै तो ू उसके पीछे व वश्चत रूप से सिाद की व्यिस्र्ा या माध्यम व वहत रहते ह।ै इन्हो ें सिाद को ही वर्क्षा का ां ां ह्रदय मा ा ह।ै सिाद के माध्यम से अप ी वजज्ञासा का उत्तर एि दसरों की वजज्ञासाओ की तवप्त एि समाज ृ ां ां ां ां ू के विवर्न् आयामों के सार् स्ि का सामजस्य स्र्ावपत कर े का प्रयास वकया जाता ह।ै ां 2.10 पावनालो‍ फ्रे रे ‍ के ‍शवनाचार‍ म‍शिया‍ या‍गशतशवनाशध‍आधाशरत‍बाल‍केन्द्न्ित‍ ें शशक्षा ब्राजीवलय र्वै क्षक विचारक एि वचन्तक पािलो फ्रे रे के वर्वक्षक वचत एि दर् थ की अवर्व्यवक्त उ के ां ां ां द्वारा रवचत प्रमख पस्तकों जसै े- पेडार्ाजी ऑफ़ अप्रेस्ड, पेडार्ाजी ऑफ़ होप, प्रौढ़ साक्षरता, एजके र् ु ु ु ऐज वद प्रैवक्िस ऑफ़ फ्रीडम, वद पॉवलविक्स ऑफ एजके र् आवद म ें हई। ि े अप े दर्े म ें चले साक्षरता ु ु अवर्या से घव ष्ठ रूप से जड़े हए र्े। इस दौरा उन्हों े अप े दर्े के विवर्न् र्ार्ों का भ्रमण वकया एि ु ु ां अप े काम के दौरा हो े िाले र्ोषण को र्हराई से दखे ा, समझा और उसका विश्लेषण वकया। इसके बाद इस व ष्कष थ पर पहचे वक वर्क्षा र्ी राज ीवत ह।ै वजस तरह राज ीवत िर्ीय होती ह,ै उसी तरह वर्क्षा ु ां र्ी िर्ीय होती ह।ै इन्हो ें अप े र्वै क्षक विचारों को अत्यत समझपण थ तरीके एि स्पष्टता से व्यक्त वकया। ू ां ां पािलो फ्रे रे के अ सार वर्क्षा का मख्य आधार मा ि का विश्वास ह।ै वर्क्षा तो एक प्रकार का प्रेम कम थ ह ै ु ु एि प्रेम म ें साहस को हो ा व तात आिश्यक ह।ै वर्क्षा अप े आप म ें यर्ार्थ का विश्लेषण ह ै और सत्य ां ां को प्रकि कर े का एक माध्यम ह ै एि सार् ही सार् सज ात्मक सिाद को जन्म द े े की प्रविया ह।ै उ का ृ ां ां विचार र्ा वक व्यस्क वर्क्षा का उद्दश्े य वलख ा पढ़ ा सीख े के सार् सार् समाज का आलोच ात्मक सज्ञाकरण ह ै वजसम ें र्रीब ि र्ोवषत व्यवक्तयों को अप े समाजों, पररिर्े ों, पररवस्र्वतयों और उ के ां कारणों को समझ े एि जा े की र्वक्त वमले तावक ि े अप े वपछड़ेप और र्रीबी के कारण समझ सके ां और उ कारणों से लड़ े के वलए सर्क्त हों अर्िा उ का व राकरण का सके । इसके वलए उन्हों े सझाि ु वदया वक वकसी र्ी समदाय में पढ़ा े से पहल े वर्क्षक का यह कतथव्य ह ै वक िह िहाँ अ र्ोध करे और ु ु यह समझ े का प्रयास करे वक िहाँ के लोर् सामान्य िाताथलार् म ें वक र्ब्दों का प्रयोर् बहतायत म ें करते ु ह,ैं उ की क्या वचताए ह,ैं ि े क्या सोचते ह,ैं उ की क्या आकाक्षाए ह ै आवद। वफ़र वर्क्षक को यह प्रयास ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 29 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं कर ा चावहए वक उसकी वर्क्षा उन्हीं र्ब्दों, वचताँओ, वचत एि आकाक्षाओ आवद को समावहत करते ां ां ां ां ां हए वर्क्षा का विधा कर ा चावहए। ु पाउलो फ्रे रे े अप े र्वै क्षक वचत को सरल से सरलतम रूप रूप म ें प्रस्तत कर े का प्रयास ु ां वकया। इ की वर्क्षा पिवत को सरल रूप म ें एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता हैं। जसै े- िणमथ ाला का
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"क, ख, र्"
पढ़ाते समय
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"स"
से
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"सेब"
हीं बवलक
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"सरकार"
या
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"साहकार"
या
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"समाज"
ू र्ी हो सकता ह.ै इस तरह स े
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"स"
से ब े र्ब्द को समझा े के वलए वर्क्षक इस विषय से जड़ी विवर्न् ु बातों पर िाताथलाप ि बहस प्रारम्र् करता ह ै वजसम ें पढ़ े िालों को िणथमाला सीख े के सार् सार्, अप ी सामावजक पररवस्र्वत को समझ े म ें र्ी मदद वमलती है। जसै े - सरकार कै से ब ती ह,ै कौ च ाि ु म ें खड़ा होता ह,ै क्यों हम िोि दते े ह,ैं सरकार वकस तरह से कायथ करती है, इत्यावद या वफ़र, क्यों साहकार ू के पास जा ा पड़ता ह,ै वकस तरह की ज़रूरते ह ैं हमारे जीि में, वकस तरह के ऋण की सविधा हो ी ु चावहये, इत्यावद। इस तरह िणथमाला का हर िणथ, पढ़ े िालों के वलए ये र्ब्द सीख े के सार् सार्, वलख ा पढ़ ा सीख े के सार् सार्, उ को अप ी पररवस्र्वत समझ े का अिसर र्ी प्रदा करते ह।ै फ्रे रे मा ते र्े वक व्यस्क र्रीबों का पढ़ ा वलख ा व्यवक्तर्त कायथ हीं सामदावयक कायथ ह,ै वजससे िह जलदी सीखते ह ैं ु और सार् सार् उ की आलोच क सज्ञा का विकास होता ह,ै तावक ि े अप े अवधकारों के वलए लड़ ां सकें । पाउलो फ्रे रे के र्वै क्षक विचारधारा के आधार पर प्रार्वमक विद्यालय र्ी स्र्ावपत वकए र्ए। जहाँ पर बच्चों को इ के विचारों पर आधाररत वर्क्षा दी जाती है। इस र्वै क्षक पररिेर् का सबसे महत्िपण थ ू विर्ेषता यह र्ी वक बच्चों को हर बात को प्रश्न पछ कर अप े आप समझ े का अिसर वदया जाता र्ा। ू इस विद्यालय की कक्षाओ म ें ऐसी व्यिस्र्ा की र्ई र्ी वक यहाँ बच्चों को कछ र्ी रि े की आिश्यकता ु ां हीं र्ी, बवलक सर्ी विषय प्रश्न-उत्तर के माध्यम से बच्चे स्िय पढ़ें ि समझ े के अिसर वदए जाते ह।ै ां बच्चा कछ र्ी सोचे और कह,े उसे बहत र्म्र्ीरता से वलया जाता ह।ै बच्चे के िल स्कल की कक्षा म ें हीं ु ु ू पढ़ते बवलक उन्ह ें प्रकवत के माध्यम से र्ी पढ़ े सीख े का अिसर वदया जाता र्ा। स्कल की कक्षाओ म ें ृ ू ां एक वर्क्षक के सार् बच्चों का अ पात बहत कम रखा जाता र्ा। सामान्यतया एक वर्क्षक के अ पात में ु ु ु के िल आि या दस बच्चों को रखा जाता र्ा, तावक वर्क्षक प्रत्येक बच्चे पर व्यवक्तर्त रूप से ध्या द े सके । अभ्यास प्रश्न 6. र्ाँधी जी े वकस वर्क्षा योज ा म ें अप े विचारों को साकार रूप वदया? 7. रिीन्ि ार् िैर्ोर े अप े र्वै क्षक दर् थ म ें सीख े के वक ती वसिान्तों को महत्िपण थ मा ा ह?ै ू 8. प्लेिो के वक दो प्रवसि ग्रर्ो म ें अप े र्वै क्षक विचारों को अवर्व्यक्त वकया ह?ै ां 9. वकस े अप े र्वै क्षक विचारों म ें
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‘ प्रयोर्र्ाला विद्यालय’
स्र्ाप ा पर जोर वदया? 10. वकस े सीख ा या अवधर्म को िास्ति म ें
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"अर्थ के वलए खोज"
के रूप पररर्ावषत वकया? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 30 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.11 साराांश‍ प्रस्तत इकाई के अतर्थत विया या र्वतविवध आधाररत वर्क्षा की अिधारणा, इसकी आिश्यकता एि ु ां ां उपादये ता, बाल के वन्ित वर्क्षा की अिधारणा, इसके आधार, पाियिम स्िरुप आवद व्याख्या की र्ई ह ै ् सार् ही सार् बाल के वन्ित वर्क्षा के सदर् थ म ें र्ाँधी जी, रविन्ि ार् िैर्ोर, प्लेिो, जॉ डीिी, माविथ बबेर ु ां एि पाउलो फ्रे रे आवद के र्वै क्षक वचत का िण थ वकया र्या ह।ै ां ां 2.12‍शब्दावनाली 1. विया या र्वतविवध : र्वतविवध या विया एक प्रकार की िह प्रविया ह ै वजसम ें वकसी चेत ा पण थ ू प्रयास के माध्यम स े र्ारीररक ि मा वसक रूप स े वकसी कायथ या प्रविया म ें र्ावमल होते हए कोई ु व्यवक्त सख एि आ द को प्राप्त करता हआ विर्ेष ज्ञा या अ र्ि का अज थ करता ह।ै ु ु ु ां ां 2. बाल के वन्ित वर्क्षा: बाल के वन्ित वर्क्षा से आर्य बच्चों की मल प्रिवत्तयों, प्रेरणाओ, ृ ू ां आिश्यकताओ, रुवचयों, योग्यताओ, क्षमताओ और सिेर्ों आवद के आधार पर सम्पण थ र्वै क्षक ू ां ां ां ां कायथिम का व योज कर े से ह।ै 3. करके सीख े एि प्रयोर् आधाररत सीख ा : इससे आर्य उस वर्क्षा पिवत से ह ै जो बच्चों म ें ां सहयोर्, आत्मविश्वास, आत्मव र्रथ ता आवद र्ािों का विकास करते हए एि मौवलकता, ु ां सज र्ीलता आवद के र्णों का उत्तरोत्तर विकास सहायक हो तर्ा उन्ह ें विया ि प्रयोर् के अिसर ृ ु प्रदा करे। 2.13‍अभ्यास‍प्रश्नों‍का‍उत्तर‍ 1. बाल के वन्ित वर्क्षा 2. बच्चे/बालक/वर्क्षार्ी 3. जन्म के समय उसका रो ा 4. विया या र्वतविवध 5. बच्चों की रुवचयों, प्रिवत्तयों, योग्यताओ तर्ा क्षमताओ का ृ ां ां 6. बेवसक वर्क्षा योज ा 7. स्ितत्रता, सज ात्मक स्ि-अवर्व्यवक्त, प्रकवत और इसा ों के सार् सविय सहर्ावर्ता ृ ृ ां ां 8. ररपवब्लक एि लाज ां 9. जॉ डीिी 10. माविथ बबेर ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 31 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.14‍सांदर्‍थ ग्रांर्‍सची ू 1. म रो, पाँल (१९४७) ए ब्रीफ कोसथ इ दी वहस्री ऑफ एजके र् , दी मकै वमल , न्ययाकथ ु ु ू 2. र्माथ, जीo आर० (२००२) िेस्ि थ वफलासफी ऑफ एजके र् , अिलाविक पवब्लससथ, न्ययाकथ ु ु ू ां 3. दबे, अवखलेर् प्रसाद, (2003) र्ाधी दर् थ की रूपरेखा, अ ावमका पवब्लर्सथ एड वडस्रीब्यिसथ ू ां ां ु (प्रा.) वलवमिेड, ई वदलली 4. राष्रीय पाियचयाथ की रुपरेखा (2005) सामावजक विज्ञा का वर्क्षण, राष्रीय र्वै क्षक ् अ सधा एि प्रवर्क्षण पररषद, ई वदलली ु ां ां 5. कौल बिी ार्. (२००७) प्लेिो सिाद, वहन्दी पाके ि बक्स प्राo वलo, ई वदलली ु ां 6. रस्क, आर० आर० (२०००) दी डोकिराइन्स ऑफ ग्रेि एडके िसथ, कव ष्क पवब्लससथ, ई ु वदलली 7. रस्क, आर० आर० (१९९०) वर्क्षा के दार्वथ क आधार, राजस्र्ा वहन्दी ग्रर् अकादमी, ां जयपर (अ िादक- एल. के . ओड़) ु ु 2.15 श बधात्मक‍प्रश्न‍‍ ‍‍ ां 1. बाल के वन्ित वर्क्षा को पररर्ावषत करते हए बाल के वन्ित वर्क्षा के महत्ि का िणथ कीवजए? ु 2. बाल के वन्ित वर्क्षा की ितथमा पररप्रेक्ष्य म ें आिश्यकता की प्रासवर्कता की व्याख्या कीवजए? ां 3. बाल के वन्ित वर्क्षा की अिधारणा, आधारों एि उद्दश्े यों की वििचे ा कीवजए? ां 4. बाल के वन्ित वर्क्षा से आप क्या समझते ह?ै आप के दृष्टीकोण से इसकी उपादये ता की वििचे ा कीवजए? 5. बाल के वन्ित वर्क्षा के सदर्थ म ें र्ाँधी जी के र्वै क्षक विचारों एि अिधारणाओ को स्पस्ि ां ां ां कीवजए? 6. जॉ डीिी के सदर् थ म ें बाल के वन्ित वर्क्षा के स्िरुप की वििेच ा कीवजए? ां 7. प्लेिो वकस प्रकार के र्वै क्षक व योज के माध्यम से वर्क्षा के सिोत्तम उद्दश्े य को प्राप्त कर ा चाहते र्े, वििचे ा कीवजए? 8. माविथ बबेर के बाल के वन्ित र्वै क्षक विचारों की अिधारणा का िण थ कीवजए? ु 9. पाउलो फ्रे रे वकस प्रकार के र्वै क्षक व योज के माध्यम से अप े ऊद्दश्े यों की प्रावप्त कर ा चाहते र्े, वििचे ा कीवजए? उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 32 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 3- बाल के न्द्न्द्रत शशक्षा के के न्द्रीर् शवचार के रूप में
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‘खोज’
3.1 प्रस्त ाि ा 3.2 उद्दश्े य 3.3 प्लेिो (428-347 ई. प.) ू 3.3.1 वर्क्षा सबधी विचार ां 3.3.2 समाज का िर्ीकरण 3.3.3
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‘खोज’
की सर्ाि ाए ां ां 3.4 जॉ डीिी (1859 ई.-1952 ई.) 3.4.1 वर्क्षा और लोकतत्र ां 3.4.2 र्वतविवध और खोज 3.4.3 वर्क्षा की विषयिस्त ु 3.5 रिीन्ि ार् िैर्ोर (1859 ई.-1941 ई.) 3.5.1 बचप और विद्यालय 3.5.2 पेड़ पर कक्षा 3.6 महात्मा र्ाँधी (1869 ई.-1948 ई.) 3.6.1 वर्क्षा के सार् प्रयोर् 3.6.2 यी तालीम और आमलचल पररितथ ू ू 3.6.3 वर्क्षा का माध्यम: मातर्ाषा ृ 3.7 माविथ बिर (1878 ई. -1965 ई.) ू 3.7.1 वर्क्षा की पररकलप ा 3.7.2 सिाद ां 3.8 पाओलो फ्रे रे (1921 ई. -1997 ई.) 3.8.1 वर्क्षा की बैंकीय अिधारणा 3.8.2 सिाद ां 3.8.3 सारार् ां 3.9 र्ब्द ािली उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 33 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.10 सदर्थ ग्रर् सची /सहायक ग्रर् सची ू ू ां ां ां 3.11 व बधात् मक प्रश्न ां 3.1 प्रस्त‍ ावना ा जसै ा वक आप सब जा ते ह ैं बाल के वन्ित वर्क्षा, वर्क्षा के दर् थ का िह विचार ह,ै वजसके आ े के बाद तमाम र्वै क्षक प्रवियाओ का कें ि अध्यापक होकर छात्र हो र्ए. इसके कारण पाियचयाथ, पाियपस्तकें , ् ् ु ां कक्षा की र्वतकी म ें र्णात्मक पररितथ दखे े को वमलते ह.ैं यह छात्र के वन्ित विचार ह.ै इस इकाई के ु अतर्तथ हम बाल के वन्ित वर्क्षा के पररप्रक्ष्े य म ें
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‘खोज’
को जा े और समझ े का प्रयास करेंर्।े हम इस ां इकाई म ें यह देखर्ें े वक प्लेिो, जॉ डीिी, महात्मा र्ाँधी, रिीन्ि ार् िैर्ोर, माविथ बबर और पाओलो फ्रे रे ू े अप े वर्क्षा सम्बन्धी विचारों म ें
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‘खोज’
को वकस तरह स्र्ा वदया ह।ै िह सीधे-सीधे इस
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‘खोज’
की बात करते ह ैं या उ के विचारों म ें इसकी व्यावप्त वकस तरह दृवष्टर्ोचर होती ह।ै ऐसा इसवलए क्योंवक वर्क्षा के दर् थ और इवतहास म ें
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‘बाल के वन्ित वर्क्षा’
अप े आप म ें एक आधव क विचार ह।ै जसै ा वक आप ु यहाँ दखे रह े ह,ैं इ विचारकों का कालखड य ा के महा विचारक प्लेिो (428-347 ई. प.) से लेकर ू ू ां बीसिीं र्ताब्दी के यहदी दार्थव क माविथ बबर तक फै ला हआ ह।ै ू ु ू इत े लम्बे सफ़र म ें यह विचार वकस तरह खलता ह,ै यह अप े आप म ें एक ऐवतहावसक यात्रा स े ु कम हीं होर्ा। हम ें प्रत्येक दार्वथ क, वचन्तक, विचारक को उसके दर्े और काल के सापेक्ष समझ े का प्रयास कर ा ह।ै अध्यय की इस कड़ी म ें हम ें यह र्ी ध्या रख ा है, हम आज इक्कीसिीं र्ताब्दी में
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‘खोज’
को रेखावकत कर े जा रह े ह।ैं उपरोक्त दार्वथ कों, विचारकों, वचतकों के समक्ष ऐसा कोई पैमा ा ां ां हीं र्ा। प्रत्येक वचन्तक के वर्क्षा सम्बन्धी विचार अतीत के अप े-अप े कालखण्ड विर्ेष म ें तत्काली पररवस्र्वतयों के मध्य जन्म लेते ह।ैं उ के यह विचार िास्ति म ें उ के द्वारा अप े समय के वलए दखे े र्ये कछ स्िप् र्े। इस बात का विर्षे रूप से ध्या रखते हए ही हम उ के विचारों को बेहतर ढर् स े जा ु ु ां पायेंर्।े सार् ही, हम उ के विचारों म ें
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‘खोज’
र्ब्द के वब ा र्ी यह समझ पायेंर्,े िह हमारे इस विवर्ष्ट सन्दर् थ म ें क्या कह रह े ह।ैं इस इकाई के उपरान्त आप बाल कें वित वर्क्षा के अव िायथ तत्ि
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‘खोज’
से पररवचत होंर्.े लेवक इससे पहले वक हम आर् े बढ़ें, यह जा लीवजये
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‘खोज’
का अर्थ ह,ै ढँढ ा. जो उद्घावित हीं ह,ै ू उसका उद्घाि . छात्र के समक्ष
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‘ज्ञा ’
का उद्घाि कोई और हीं, िह स्िय करेर्ा. चवलए दखे ते ह,ैं ां उसकी यह
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‘खोज’
वक प्रवियाओ से र्ज़रकर आर् े बढ़ेर्ी. ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 34 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.2 उद्दश्े य‍ ‍ इस इकाई के अध्यय के उपरात आप- ां 1. बाल के वन्ित वर्क्षा के अतर्तथ खोज क्या ह ै तर्ा इसकी महत्ता से पररवचत होंर्।े ां 2. क्यों प्लेिो के विचारों की ध्िव आज र्ी हम ें वर्क्षा के विचारों म ें स्पष्ट वदखाई दते ी ह।ै 3. यह स्पष्ट कर पायेंर् े वक िैर्ोर और महात्मा र्ाँधी का विश्वास औपव िवे र्क वर्क्षा पर क्यों हीं र्ा। 4. सिाद की विर्षे ताओ को जा े के सार्-सार् वर्क्षा में उसकी र्वमका को रेखावकत कर ू ां ां ां सकें र्।े 5. समझ सकें र् े वक खोज के सन्दर् थ म ें अध्यापक की र्वमका वकत ी जविल होती ह।ै ू 6. र्विष्य म ें कक्षा के र्ीतर छात्रों के वलए वकस तरह के माहौल की आिश्यकता होती ह,ै इससे आप र्ली र्ावत पररवचत हो सकें र्।े ां 3.2 प्लटे ो‍(428-347‍ई.‍पू.) प्लेिो य ा के प्रवसि दार्वथ क ह,ैं वजन्ह ें 'अफ़लात ' के ाम से र्ी जा ा जाता ह।ै प्लेिो का जन्म(428 ू ू ई. प.) एर्ेंस के समीपिती ईवज ा ामक द्वीप म ें हआ। िह सकरात के वर्ष्य तर्ा अरस्त के र्रु र्े। प्लेिो ु ू ु ु ु होमर के समकाली र्े। सकरात की मत्य के बाद उन्हों े मर्े ोरा, वमस्र, इिली और वससली आवद दर्े ों ृ ु ु की यात्रा की तर्ा एर्ेन्स(य ा ) लौि कर
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‘अकादमी’
(387 ई.प.) की स्र्ाप ा की। ू ू मख्यतः उन्ह ें राज ीवतक वचन्तक मा ा जाता ह।ै लेवक उसी अ पात म ें िह पाश्चात्य दर् थ म ें महत्िपणथ ु ु ू स्र्ा रखते ह।ैं प्लेिो की कवतयों म ें
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‘द ररपवब्लक’,
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‘द स्िैिसम ै ’,
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‘द लॉज़’,
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‘इयो ’,
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‘वसम्पोवजयम’
ृ ् आवद प्रमख ह।ैं ु 3.3.1 न्द्र्क्षा सबधी न्द्वचार ं प्लेिो के वर्क्षा सम्बन्धी विचार उ की दो पस्तकों
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‘ररपवब्लक’
और
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‘लॉज़’
(The Laws) म ें दखे े को ु वमलते ह।ैं वर्क्षा ऐसा विषय रहा, वजसे उन्हों े सिाथवधक महत्त्ि वदया,
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‘ररपवब्लक’
म ें प्लेिो े
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‘वर्क्षा’
को यि की कोवि म ें रखा ह।ै इसकी पष्ठर्वम म ें य ा के स्पािाथ के सार् चल रह े दीघकथ ाली यि को हीं ृ ु ू ू ु र्ल ा चावहए। उन्ह ें यह वर्क्षा ही उस यि को जीत े का साध प्रतीत होती ह।ै िह वर्क्षा को इस ससार ू ु ां की र्व्यतम और सन्दरतम विषय मा ते ह।ैं जहाँ 'ररपवब्कल' म ें उ के आदर् थ की रुपरेखा और सीमाक ु ां स्पष्ट वदखता ह,ै िहीं
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‘लॉज़’
म ें यह अपेक्षाकत धधला जाता ह।ै ृ ुां प् लिे ो के समय म ें कवि को समाज म ें आदरणीय स् र्ा प्राप्त र्ा। उन्ह ें उपदर्े क, मार्दथ र्थक तर्ा सस्कवत का रक्षक मा ा जाता र्ा। वकन्त उ का मत इसके वबलकल विपरीत र्ा। उ के अ सार ृ ु ु ु ां
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‘कविता जर्त की अ कवत ह,ै जर्त स्िय अ कवत ह;ै अतः कविता सत्य से दोर् ी दर वस्र्त ह।ै िह ृ ृ ु ु ु ां ू र्ािों को उद्ववे लत कर व्यवक्त को पर्भ्रष्ट ब ाती ह।ै अत: कविता अ पयोर्ी ह’
ै । प्लेिो काव्य के महत्ि ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 35 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं को उसी सीमा तक स्िीकार करते ह,ैं जहाँ तक िह राज्य के ार्ररकों म ें सत्य, सदाचार की र्ाि ा को प्रवतवष्ठत कर े म ें सहायक हो। प्लेिो के वलए कला और सावहत्य की कसौिी
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‘आ द एि सौंदयथ’
होकर ां ां उपयोवर्तािाद र्ी। उ के काव्यर्ास्त्र सम्बन्धी इन्हीं विचारों की छाया उ के वर्क्षा सम्बन्धी विचारों म ें र्ी देख े को वमलती ह।ै प्लेिो का मा ा र्ा वक वकसी समाज म ें सत्य, न्याय और सदाचार की प्रवतष्ठा तर्ी सर्ि ह,ै जब उस ां राज्य के व िासी िास ाओ और र्ाि ाओ पर व यत्रण रखते हए वििके एि ीवत के अ सार आचरण ि ु ु ां ां ां ां व्यिहार करते हए जीि व्यतीत करें। र्ािकता, सिदे ा, इच्छा आवद के वलए उ के आदर् थ राज्य म ें कोई ु ु ां स्र्ा र्ा। प्लेिो े वर्क्षा को एक आदर् थ राज्य के सज का साध मा ा र्ा। इसके वलए उन्हों े वर्क्षा की ऐसी ृ रूपरेखा ब ायीं, जो उ के वदए आदर् थ राज्य की स्र्ाप ा म ें सहायक हो। अर्र हम इस प्रस्र्ा वबद स े ां ु र्रू करते ह,ैं तब आज ितथमा म ें वर्क्षा के अर्ों म ें और तब की समझ म ें हम ें र्णात्मक अतर स्पष्ट रूप ु ु ां से वदखर्े ा। उ के वलए वर्क्षा का अर्थ, कोई र्ी अ र्ि हीं र्ा। िह वर्क्षा को
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‘अ र्ि’
का पयाथय हीं मा ते ह।ैं ु ु िह इस िहद पररर्ाषा से र्ोड़ी सकीण थ पररर्ाषा की तरफ़ झक जाते ह,ैं जहाँ अ र्ि वसखाते अिश्य ह ैं ृ ु ां ् ु पर यह अ र्ि वर्क्षार्ी को एक विर्ेष पररिेर् म ें वकसी अन्य की सहायता से प्राप्त होते ह।ैं इस अर्थ में ु हम बाल के वन्ित वर्क्षा म ें
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‘खोज’
की वकसी र्ी सर्ाि ा को हीं दखे पाते। लेवक ऐसा हीं ह,ै िह इस ां (खोज) का पणतथ ः व षधे करते हों। ू 3.3.2 समाज का वर्ीकरण िह
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‘ररपवब्लक’
के अप े सिादों म ें जब समाज का िर्ीकरण करते हए उसे ती िर्ों (औद्योवर्क, ु ां सैव क और र्ासक) म ें बाँिते ह,ैं तब हम इस
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‘खोज’
की सर्ाि ाओ को ििोल सकते ह।ैं इसके वलए हमें ां ां दखे ा होर्ा, िह इस िर्ीकरण का आधार वकसे मा रह े हैं? तर्ा, यह ती िर् थ अर्र राज्य ब ा रह े हैं, तो वर्क्षा कै से व्यवक्तयों को ती िर्ों म ें बाँिती ह?ै उ के अ सार िह समाज म ें कछ को र्ासक की तरह ु ु दखे ते ह,ैं वज म ें र्ास कर े की क्षमता ह।ै यह समाज म ें सबसे उच्च स्तर पर वस्र्त ह।ैं िह कहते ह,ैं
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‘इस प्रकार के लोर्ों का सघि करते हए ईश्वर े उ के व माथण सामग्री म ें सो ा वमलाया ह ै और इसी कारण ु ां उन्ह ें सबसे अवधक सम्मा वमलता ह’
ै । िह िमर्ः बताते ह,ैं अन्य लोर् सहायक की श्रणे ी म ें आते ह ैं और उन्ह ें चाँदी स े व वमतथ वकया र्या ह।ै कछ ऐसे र्ी व्यवक्त ह,ैं जो खवे तहर और वर्वलपयों की श्रेवणयों म ें ु आते ह,ैं इन्ह ें ईश्वर े पीतल और लोह े से ब ाया ह।ै प्लेिो व्यवक्तओ म ें आरम्र् से ही असमा ता की कलप ा करते ह ैं तर्ा कहते ह,ैं समा धावमथयों से ां राज्य का व माथण हीं होता। हालाँवक इसके सार् िह यह र्ी कहते ह,ैं सर्ी लोर्ों के व माथण म ें एक ही प्रकार की मल सामग्री का प्रयोर् हआ ह,ै वफ़र र्ी यह सर्ि ह,ै वक सो े के माता-वपता से चाँदी जसै ा पत्र ु ू ु ां उत्पन् हो या चाँदी जसै े माता वपता से सो े के सामा पत्र पदै ा हो। िह इस बात पर बहत जोर दते े ह ैं वक ु ु व्यवक्त की सामवजक हवै सयत जन्म, सपवत्त या परपरार्त ररिाजों पर आधाररत होकर इस बात स े ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 36 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं व धाथररत हो ा चावहए वक वर्क्षा की प्रविया म ें उसका मल स्िर्ाि वकस तरह प्रकि होता ह।ै वर्क्षा ही ू मलतः सामावजक विर्ाज का आधार ह।ै ू 3.3.3
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‘खोज’
की सभावनाए ं ं इसी वबद पर हम खोज की सर्ाि ाओ की देख सकते ह।ैं प्लेिो के आदर् थ राज्य म ें
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‘वर्क्षा’
व्यवक्तयों को ां ां ां ु सामावजक हवै सयत प्राप्त कर े का एक अिसर प्रदा करती ह।ै वर्क्षा समाज को िर्ीकत कर े का साध ृ ह।ै उ के आदर् थ राज्य म ें कोई जन्म से कोई र्ी स्तर प्राप्त कर सकता है। वर्क्षा के द्वारा इस बात का पता लर्ाया जा सकता ह ै वक कौ सा व्यवक्त वकस काम के वलए उपयक्त ह।ै िह मा ते र्े, वर्क्षा का प्रार्वमक ु कायथ व्यवक्त के स्िार्ाविक र्णों से पररचय करा ा ह,ै तत्पश्चात व्यवक्त को िही कायथ वदया जा ा चावहए ु जो उसकी प्रकवत के अ कल हो। इस स्ितत्रता को हम
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‘खोज’
के सन्दर्ों म ें रेखावकत कर सकते ह।ैं ृ ु ू ां ां सैिावतक स्तर पर यह आदर् थ राज्य की स्र्ाप ा के वलए एक साचा महयै ा प्रदा कराता वदखता ु ां ां ह।ै वकन्त यह उत ा ही अलोकतावत्रक ह।ै जहाँ प्लेिो े सैव क और र्ासक िर् थ के वलए विस्तार से िण थ ु ां वकया ह,ै िहीं इत े म ोयोर् से औद्योवर्क या वर्वलपयों या खवे तहरों की वर्क्षा का कोई िण थ तक हीं वकया ह।ै वर्क्षा अर्र इस तरह के िर् थ का उत्पाद कर रही ह,ै तो राज्य को वकस तरह उन्ह ें वर्वक्षत करे , इस पर प्लेिो का मौ , उ के आदर् थ राज्य का दोष ही मा ा जाएर्ा। िह वस्त्रयों के सन्दर् थ म ें र्ी कछ स्पष्ट ु हीं कहते। परन्त िह अन्यत्र चचाथ का विषय ह।ै ु
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‘ररपवब्लक’
पस्तक के अलािा अप ी प्रौढ़ािस्र्ा की पस्तक
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‘लॉज़’
ामक पस्तक म ें िह ु ु ु िीडा को महत्त्ि दते े ह।ैं एक अर्थ म ें वर्क्षा प्रविया के दौरा सर्ी व्यवक्तयों की सािधा ीपिकथ दखे र्ाल ू की जा ी चावहए और अ ेक विवधयों से उ की जाँच और परीक्षण होते रह ा चावहए। वकन्त आज के पररप्रेक्ष्य म ें जहाँ ज्ञा के क्षेत्र म ें हो े िाली प्रर्वत दखे रह े ह,ैं िहाँ इस तरह का ु िर्ीकरण वकसी काम हीं आ े िाला। लेवक विचार के स्तर पर हम ें उ विचारों को िहीं वस्र्त करके दखे ा समझ ा होर्ा। एक तरफ़ वर्क्षा का समाजर्ास्त्र श्रम विर्ाज के जविल होते जा े की व्याख्या करता ह।ै िहीं श्रवमक और वस्त्रयों के विषय म ें कछ सके त करके प्लेिो कछ अ त्तररत प्रश्न छोड़ जाते ह।ैं ु ु ु ां 3.4 जॉ ‍डीवनाी‍(1859‍ई.-1952‍ई.) जॉ डीिी का जन्म 1859 ई. म ें अमरे रका के बवलांर्ि , िरमोंि म ें हआ। िरमोंि विश्वविद्यालय से ु स् ातक कर े के बाद ि े बवलांर्ि के व कि एक छोिे से ग्रामीण विद्यालय म ें एकमात्र वर्क्षक के रूप म ें अध्याप कर े लर्।े डीिी े स 1884 ई. म ें वमवर्र् विश्वविद्यालय म ें दर् थ और म ोविज्ञा के वर्क्षक ् के रूप म ें अध्याप प्रारम्र् कर वदया। उन्हों े वर्कार्ो विश्वविद्यालय म ें र्ी अध्याप वकया और िहाँ स े इस्तीफा दके र स 1939 तक ि े कोलवबया विश्वविद्यालय म ें दर् थ का वर्क्षण करते रह।े उन्ह ें अमरे रका में ् ां को
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‘व्यिहारिाद’
का प्रमख पैरोकार मा ा जाता ह।ै कोलवबया विश्वविद्यालय म ें ही डॉ. र्ीमराि ु ां अम्बेडकर उ के छात्रों म ें से एक छात्र रह।े उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 37 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं उ की प्रमख पस्तकों म ें
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‘विद्यालय और समाज’
(1899),
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‘द चाइलड एड द कररकलम’
(1902),
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‘हाउ ु ु ु ां िी वर्क’
(1910),
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‘वर्क्षा और लोकतत्र’
(1916), द पवब्लक एड इिस प्रॉब्लम(1927) आवद र्ावमल ् ां ां ां ह।ैं 3.4.1 न्द्र्क्षा और लोकतत्र ं अमरे रका उन् ीसिी सदी के उत्तराधथ म ें औद्योर्ीकरण के फलस्िरूप तेज़ी से सरल खवे तहर समाज से औद्योवर्क र्हरी राष्र के रूप म ें उर्र रहा र्ा। डीिी अप े वर्क्षा दर् थ द्वारा जीि पयांत वचत करते रह,े ां कै से इ सामवजक और आवर्थक पररितथ ों के बीच वकसी लोकतावन्त्रक समाज को बचाया जा सकता ह?ै उ के अ सार, िास्तविक लोकतत्र महज़ सरकारी तत्र और रस्मों तक सीवमत हीं रहता, अवपत िह ऐसी ु ु ां ां र्त्यात्मक प्रविया ह,ै वजसम ें वसफ़थ राज ीवतक, आवर्थक और सास्कवतक तत्र ही हीं बवलक जीि के हर ृ ां ां क्षेत्र म ें सविय और बराबर की र्ार्ीदारी अपेवक्षत ह।ै डीिी यह मा ते र्े, विद्यालय को समाज के छोिे रूप म ें हो ा चावहए, जो लोकतत्र के विकास म ें सहयोर्ी ां हो। उ की दृवष्ट म ें स्कल र्विष्य म ें वस्र्त जीि की तय्यारी मात्र हीं बवलक अप े आप में जीि ही ह।ै ू बच्चों को लोकतावन्त्रक जीि म ें सिीय र्ार्ीदारी के अिसर वमलें इसवलए विद्यालय म ें बच्चों को लोकतत्र की सबसे बेहतर तय्यारी के अिसर उपलब्ध कराये जा े चावहए। िही र्विष्य म ें दर्े के ां ार्ररकों के रूप म ें अप ी विविध र्वमकाओ को व र्ायेंर्।े उ का विद्यालयी जीि लोकतावन्त्रक ू ां आस्र्ाओ का पिाथभ्यास हो ा चावहए. ू ां 3.4.2 र्न्द्तन्द्वन्द्ध और खोज डीिी उ सािथजव क विद्यालयों के र्र्ीर आलोचक र्े, जो छात्रों की रुवचयों पर मौ रहते ह ैं या उ की ां तरफ़ कर्ी दृवष्ट र्ी हीं डालते। उ की दृवष्ट म ें छात्र वकसी विद्यालय म ें व वष्िय प्राणी की तरह हीं आता। यह जररया विद्यालयों को कारखा ों के सामा मा े िाली व्यिस्र्ा से उपजा विचार ह,ै जहाँ छात्र और छात्राए कच्चे माल की तरह ह,ैं वजन्ह ें कक्षा के र्ीतर वर्क्षक अप ी मज़ी से आकार दते े ह।ैं ां डीिी की दृवष्ट म ें यह आकार द े े की बात उ के विचारों से एकदम मले हीं खाती। बच्चे स्िय तय करेंर्,े ां उन्ह ें कै सा वदख ा ह।ै अध्यापक उसके एिज़ म ें कोई व णयथ हीं करेंर्।े उन्हों े अप ी पस्तकों (
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‘विद्यालय और समाज’
) तर्ा अ ेकों लेखों (
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‘मरे ी वर्क्षार्ास्त्रीय आस्र्ा’
आवद) ु म ें कई दफे इस बात को स्पष्ट वकया ह ै वक बच्चों के व रतर बौविक विकास और विषयों के प्रवत रूवच ां ब ाये रख े के बाद ही हम उ के र्वै क्षक अ र्िों को र्णात्मक रूप से पररिवतथत कर सकते ह।ैं इसम ें िह ु ु वर्क्षकों की र्वमका को रेखावकत करते हए कहते ह,ैं बच्चों की कक्षा म ें व रुद्दश्े य स्ितत्रता का कोई अर्थ ु ू ां ां हीं ह।ै वर्क्षक ही िह व्यवक्त होर्ा, जो वर्क्षा के अ र्िों को प र्वथ ित कर सक े की क्षमता रखता ह।ै ु ु िह व दर्े हीं दर्े ा। िह बस बच्चों म ें उ अ र्िों को व दवे र्त कर े के कौर्ल का विकास कर सकता ु ह।ै िह उसके सीख े का सार्ी ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 38 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं लेवक िह यहीं सबसे ज़्यादा सचेत हो े की आिश्यकता पर र्ी लर्ातार बल दते े ह।ैं उ के अ सार िह ु यवक्तयाँ, उदाहरण, कौर्ल जो उ के वर्क्षक के पास ह,ैं िह उ बच्चों की यवक्तयाँ, कौर्ल आवद हीं हो ु ु सकते। वज उपायों से वर्क्षक वकसी समस्या का हल व कालता ह,ै िह उसका कौर्ल ह।ै बच्चे जब तक अप े आप से उ समस्याओ के हल व काल े के वलए प्रेररत हीं वकये जायेंर् े और िह स्िय उ ां ां प्रवियाओ म ें लर्ातार असफल होते हए र्ी वहम्मत के सार् उन्ह ें सलझा े म ें लर् े रहर्ें ,े तब एक क्षण ऐसा ु ु ां आएर्ा, जब उ के द्वारा खोजा र्या हल के िल उ का अप ा होर्ा। उसे सलझा े का अ र्ि जब तक िे ु ु स्िय हीं करेंर्,े तब तक यह सीख ा परा हीं होर्ा। ू ां 3.4.3 न्द्र्क्षा की न्द्वषयवस्त ु अब चँवक हम ें पता ह,ै डीिी के यहाँ सीख ा वकसे कहते ह।ैं उ की दृवष्ट म ें र्वतविवध में वर्क्षक की ू र्वमका क्या हो ी चावहए, इसका र्ी एक क्र्ा हमारे पास ह,ै तब हमारे वलए यह समझ पा ा इत ा ू कवि हीं हो ा चावहए वक डीिी की ज़र म ें वर्क्षा की विषयिस्त क्या हो ी चावहए। ु चवलए एक उदाहरण से स्पष्ट करते ह।ैं एक छोिा सा सिाल कक्षा म ें पछा र्या,
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‘हमारे घरों म ें रोिी वकससे ू ब ती ह’
ै ? बच्चों की पाियपस्तक के पास एक उत्तर ह,ै र्हे ।ँ पर डीिी इससे सतष्ट हीं हो े िाले। िह ू ् ु ु ां कहर्ें ,े इस प्रश्न को बच्चे के सामवजक जीि से जोड़ ा ज़रूरी ह।ै उ की ज़र म ें र्र्ोल, विज्ञा , इवतहास ू अप े आप म ें विषयिस्त हीं ह ैं इस विषयों के मध्य का सह-सम्बन्ध ही वर्क्षा का िास्तविक कें ि हो ु सकता ह।ै उ के अ सार विद्यालय और कक्षा के चारों तरफ़ वछतरी हई सामवजक र्वतविवधयाँ ही इस ु ु ज्ञा का कें ि हो सकती ह।ैं आपको समझ े म ें यवद समस्या आ रही हो, तब हम प्रश्न पर िापस लौि सकत े ह।ैं सिाल र्ा, रोिी वकसकी ब ती ह?ै डीिी के वलए बच्चों का वसफ़थ जिाब के रूप म ें
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‘र्हे ’
ँ को जा ले ा ू वर्क्षा या ज्ञा का पयाथय हीं ह।ै उ की दृवष्ट म ें र्हे ँ के बीज से लेकर खते म ें छह मही े का इतज़ार, वफ़र ू ां उसे पीस े पर आिा ब े और उसके घर म ें रोिी ब े तक की प्रविया को जा ले ा
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‘वर्क्षा की विषिस्त’
ह।ै ु 3.5 रवनाीन्ि ार्‍टगोर‍(1859-1941) ै रिीन्ि ार् िैर्ोर विश्वविख्यात कवि, कहा ीकार, र्ीतकार, सर्ीतकार, ािककार, व बधकार, वचत्रकार ां ां और दार्वथ क र्े। रिीन्ि ार् िाकर का जन्म 7 मई स 1861 ई. को कोलकाता म ें हआ। उ के वपता ु ् ु दिे न्े ि ार् िाकर और माता र्ारदा दिे ी र्ीं। िह अप े माँ-बाप की तेरह जीवित सता ों म ें सबसे छोिे र्े। ु ां उ के वपता उन्ह ें बैररस्िर ब ा ा चाहते र्े, लेवक िह अप ी पढ़ाई परी कर सके । िह पढ़ाई बीच म ें ही ू छोड़कर र्ारत िापस लौि आते ह.ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 39 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं औपचाररक वर्क्षा को लेकर उ के अ र्ि बचप से ही वकत े कष्टप्रद र्े, यह हम िमर्ः ीचे जा ेंर्।े ु 14 िम्बर 1913 को रिीन्ि ार् िैर्ोर को सावहत्य का ोबेल परस्कार वमला। ि े अके ले ऐसे र्ारतीय ु सावहत्यकार ह,ैं वजन्ह ें ोबेल परस्कार वमला ह।ै िह ोबेल परस्कार पा े िाले प्रर्म एवर्याई और ु ु सावहत्य म ें ोबेल पा े िाले पहले र्रै यरोपीय र्ी र्े। स्िीवडर् अकादमी े
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‘र्ीताजवल’
के आधार पर ू ां उन्ह ें ये परस्कार द े े का व णयथ वलया र्ा। वब्रविर् हकमत े उन्ह ें िष थ 1915 म ें
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‘ ाइिहड’
की उपावध ु ु ु ू प्रदा की, वजसे रिीन्ि ार् े 1919 के जवलयािाला बाग़ हत्याकाड के बाद उन्ह ें लौिा वदया। िह दव या ां ु के अके ले ऐसे कवि ह,ैं वज की रच ाए दो दर्े ों का राष्रर्ा ह ैं – र्ारत का राष्रर्ा
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‘ज र्ण म ’
और ां बाँग्लादर्े का राष्रीय र्ा
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‘आमार सो ार बाँग्ला’
। स 1921 म ें उन्हों े कवष अर्थर्ास्त्री वलयो ाडथ एमहस्िथ के सार् वमलकर उन्हों े अप े आश्रम के पास ही ृ
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‘ग्रामीण प व थमाथण सस्र्ा ’
की स्र्ाप ा की। बाद म ें इसका ाम बदलकर
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‘श्रीव के त ’
कर वदया र्या। ु ां 3.5.1 बचपन और न्द्वद्यालय यह बचप ही ह,ै वजसके वलए िह अप े विद्यालय की स्र्ाप ा करते ह।ैं उन्ह ें
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‘प्रकवतिादी’
र्ी कहा ृ जाता ह.ै अर्ाथत िह जो वब ा वकसी बध के बच्चों को उ की स्िार्ाविकता के सार् सीख े के वलए ् ां प्रोत्सावहत करे। िह अप े पररिर्े से अप ी मज़ी से वकसी र्ी तरह का सम्बन्ध ब ा सकते ह ैं और यह ज्ञा सज म ें अव िायथ तत्ि ह।ै ृ िैर्ोर अमरे रका म ें वदए र्ए एक व्याख्या (1917) म ें कहते ह,ैं जब उन्हों े बर्ाल म ें अप ा विद्यालय ां (र्ावतव के त ) खोला, तब उ की आय लर्र्र् चालीस िष थ र्ी। इसकी प्रेरणा बचप के वद ों म ें ु ां विद्यालय म ें प्राप्त हए उ के अप े व जी अ र्ि र्े। िास्ति म ें इसके पीछे वर्क्षा का कोई या वसिात ु ु ां काम हीं कर रहा र्ा, बवलक यह उ अतीत के वद ों की स्मवतयाँ र्ीं। उ की दृवष्ट म ें पारम्पररक विद्यालय ृ एक वकस्म के कारखा े या िकसाल ब कर रह र्ए र्े। िह कहते ह,ैं
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‘दरअसल विद्यालय की व्यिस्र्ा म ें जीि को तर्ी सफल मा ा जाता ह,ै जब उसे काि-छाि कर एक व वश्चत साँचे म ें ढाल वदया जाता ह।ै मरे े ां विद्यालयी जीि की पीड़ा का यही कारण र्ा’
। िह अप े बचप को याद करते हए वलखते ह,ैं ‘पहले ही वद मझ े स्कल से फरत हो र्यी। प्रकवत और ु ृ ु ू खले आकार् से दर एक कमरे म ें बद होकर पढ़ ा मझ े खराब लर्ता र्ा। म ैं स्कल से छट्टी के उपाय ु ु ू ु ां ू सोचता। जो मर्ीजी मरे े र्ाईयों को अरबी फ़ारसी पढ़ाते र्े, उ से छट्टी ले े के वलए क्लास िीचर को ु ु ां अजी वलखिा े की वि ती करता। स्कल म ें दावखला लेते ही मरे े आस पास की दव या र्ायब हो े लर्ी। ू ु उसकी जर्ह लकड़ी की कवसथया और स ी सपाि ज़रों से घरती दीिारों े मझ े घरे वलया’। उ के ु ू ू ु ां विद्यालय म ें यह दीिारे ही हीं र्ी। कवसथया र्ी हीं र्ी। ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 40 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.5.2 पेड़ पर कक्षा रिीन्ि ार् की एक प्रवसि कहा ी ह,ै
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‘तोते की वर्क्षा’
। उसकी र्रुिाती पवक्तयाँ कछ इस प्रकार ह:ैं ु ु ां
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‘वकसी समय कहीं एक वचवड़या रहती र्ी। िह अज्ञा ी र्ी। िह र्ाती बहत अच्छा र्ी लेवक र्ास्त्रों का ु पाि हीं कर पाती र्ी। िह फदकती बहत र्ी, लेवक उसे तमीज़ हीं र्ी’
। राजा उस वचवड़या को दखे कर ु ु बहत वचवन्तत हो र्या। उस े सर्ा बलाई और इस वचवड़या की समवचत र्र्ीर वर्क्षा की व्यिस्र्ा कर े ु ु ु ां का हक्म वदया। हक्म की तरत तावमल हई। एक सो े का वपजरे म ें उस वचवड़या को रखा र्या। पवडत- ु ु ु ु ां ां ां मौलिी सब आते, उसे पढ़ाते। लेवक अर्ी र्ी प्रवर्क्षण प्रकवत पर र्ारी पड़ जाता। िह कर्ी-कर्ी ृ असभ्यातापिकथ पख फड़फड़ाती। सलाखों पर अप ी कमज़ोर चोंच से प्रहार करती। लोहार से ज़जीर ू ां ां र्ढ़िायी र्यी, उसके पैरों म ें बाँध दी र्यी। उसका कि पोवर्यों के पन् ों से अिा पड़ा र्ा। िह चीख ां ां सकती र्ी, फसफसा सकती र्ी। फदकती र्ी, उड़ सकती र्ी। एक वद वचवड़या मर र्यी। ु ु ु यह वचवड़या हम सब ह।ैं िह कर्ी हमारे अन्दर फदकती वचवड़या को मर े हीं द े ा चाहते र्े। ु िह अमरे रका के उसी व्याख्या म ें कहते ह,ैं सम्पन् ता सख और ऐश्वयथ के वलए तो िीक हो सकती ह ै ु वकन्त वर्क्षा के सन्दर् थ म ें िह एक बाधा के सामा ह।ै तर्ी उ के विद्यालय के प्रार्ण म ें बच्चे बस्ते लेकर ु ां पेड़ पर चढ़कर डाल पर पढ़ सकते र्े। उ की दृवष्ट म ें जीि में बचप ही ऐसा पड़ाि ह,ै जब िह तय कर सकते ह,ैं उन्ह ें कसी-मज़े पर पढ़ ा ह ै या पेड़ की डाल पर। उसे हम व्यस्क हो े के ात े इसवलए म ा कर द ें ु क्योंवक हम े कर्ी ऐसा हीं वकया ह?ै यह न्यायोवचत तो हीं होर्ा। असल म ें अ र्िों का यह वसलवसले से ही बच्चे के अन्दर की मल प्रिवत का विकास सर्ि ह।ै ृ ु ू ां यह प्रकवत की अप ी विवर्ष्ट वर्क्षा पिवत ह।ै उन्ह ें यह अ र्ि से ही ज्ञात होर्ा वकस पेड़ की िह ी पर ृ ु बैिा जा सकता ह,ै वकस पर अप ा सारा िज डाला जा सकता ह।ै िह यह र्ी जा जायेंर् े वकस पेड़ पर उछलकद मचाई जा सकती ह।ै यहाँ कोई अध्यापक ह ै ही हीं। कोई व्यस्क हो े के ाते यह बताये, क्या ू सही ह ै क्या र्लत ह,ै यहाँ ऐसी सर्ि ा हीं ह।ै ां 3.6 महात्मा‍गाधाँ ी‍(1869-1948) महात् मा र्ाधी का परा ाम मोह दास करमचद र्ाधी र्ा। महात्मा र्ाँधी का जन्म 2 अक्िबर, 1869, ू ू ां ां ां पोरबदर, कावियािाड़, र्जरात म ें हआ। र्ाधीजी के वपता करमचद र्ाधी राजकोि के दीिा र्े। आपकी ु ु ां ां ां ां माता का ाम पतलीबाई र्ा। र्ाधीजी े िकालत की वर्क्षा इग् लैंड म ें प्राप्त की र्ी। दर्े की स्ितत्रता में ु ां ां ां महात्मा र्ाँधी की विर्ेष र्वमका रही ह।ै इन्हो े स्ितत्रता के वलए सदिै सत् य और अवहसा का मार्थ च ा ू ु ां ां और कई सारे आदोल वकए। ां सर्ाष चन्ि बोस े िष थ 1944 म ें रर् रेवडयो से महात्मा र्ान्धी के ाम जारी प्रसारण म ें उन्ह ें
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‘राष्रवपता’
ु ू ां कहकर सम्बोवधत वकया र्ा। 30 ज िरी, 1948 की र्ाम प्रार्थ ा सर्ा म ें जाते हए र्ाधीजी की ार्राम ु ू ां वि ायक र्ोडसे े र्ोली मारकर हत्य ा कर दी। महात्म ा र्ाधी की समावध वदलली म ें (राजघाि) ह।ै ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 41 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.6.1 न्द्र्क्षा के साथ प्रयोर् रिीन्ि ार् िैर्ोर की तरह उ के समकाली महात्मा र्ाँधी र्ी वब्रविर् औपव िवे र्क वर्क्षा प्रणाली के कि आलोचकों म ें से एक र्े। उन्हों े के िल उस वर्क्षा पविवत की कवमयों को उजार्र वकया अवपत ु ु र्ारतीय समाज के सामवजक सास्कवतक ढ़ाचे के वलए उपयक्त वर्क्षा प्रणाली रच े का प्रयास र्ी वकया। ृ ु ां ां उन्हों े अप े द्वारा दवक्षण अफ्रीका म ें
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‘वफव क्स’
और
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‘िॉलस्िॉय फाम’
थ स्र्ावपत कर े के अ र्िों का ु प्रयोर् अग्रेज़ी वर्क्षा के प्रवतकार म ें वकया। ां िह उ चव न्दा विचारकों म ें र्ावमल र्े, वजन्हों े पाश्चात्य सभ्यता म ें व वहत बराइयों को बहत जलद पकड़ ु ु ु वलया र्ा। उ की 1909 म ें र्जराती म ें वलखी रच ा
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‘वहन्द स्िराज्य’
इसे बलपिकथ हमारे साम े उपवस्र्त ु ू करती ह।ै उन्ह ें लर्ता र्ा, जब तक हम औपव िवे र्क वर्क्षा प्राप्त करते रहर्ें ,े तब तक हमारे र्ीतर र्ारतीयों के वलए हये र्ाि ब ा रहर्े ा। िह उस वर्क्षा पिवत के वबलकल वखलाफ़ र्े, जो हम ें हमारे ु पररिर्े से कािकर एक कवत्रम िातािरण का अभ्यस्त ब ा द।े उ के द्वारा यी तालीम(1937) का ृ प्रस्ताि इसी का प्रवतरोध र्ा। यी तालीम की िधाथ स्कीम
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‘बव यादी वर्क्षा’
के ाम से र्ी लोकवप्रय ह।ै इस वर्क्षा पिवत को र्ाँधी ु एक जीि र्ैली की तरह दखे ते र्े। उ की दृवष्ट म ें
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‘उत्पादक कायों’
से वर्क्षा ले े का विचार र्ारतीय समाज म ें िावतकारी पररितथ ों का उत्प्रेरक वसि हो सकता ह।ै महात्मा र्ाँधी जातीय, धावमकथ , िर्ीय ां ढाँचों की जविल सरच ाओ म ें जकड़े हए हमारे समाज की जकड़ को तोड़ े के वलए इस
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‘ यी तालीम’
ु ां ां का प्रस्ताि करते ह।ैं 3.6.2 नयी तालीम और आमलचल पररवतान ू ू िधाथ, महाराष्र म ें र्ाँधी जी की प्रेरणा से ऐसा वर्क्षा का ऐसा मॉडल र्रू वकया र्या, वजसम ें बच्चे ु
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‘उत्पादक कायों’
के माध्यम से वर्क्षा ग्रहण कर े की प्रविया को सपन् करते र्े। िह वकसी र्ी जावत, ां धम,थ सम्प्रदाय के हों, उन्ह ें वकसी र्ी कायथ को कर े से पीछे हीं हि ा र्ा। चाह े िह खेती हो, चरखा कात ा हो, धार्ों को रर् ा हो, पाकर्ाला म ें अप ी र्वमकाओ को व र्ा ा हो, साफ़ सफाई का कोई ू ां ां काम हो, चमड़े से सम्बन्धी कोई कायथ हो, उ सर्ी के द्वारा वमलजलकर िह सर्ी कायथ सपन् वकये ु ां जाते। जब समाज के सर्ी लोर् हर तरह के कायथ व पणता से कर े लर्र्ें ,े तब समाज म ें कोई छोिा-बड़ा, ु कोई अस्पश्य हीं रह जाएर्ा। सर्ी एक-दसरे से एक सा बरत े लर्र्ें ।े ृ ू उदाहरण के वलए, जब बच्चे खते म ें एक फसल उर्ा े को लेकर मत्रणा कर आपसी समझदारी से ां काम का बििारा करते। तब कोई खते जोतता, कोई व राई, र्ड़ाई दखे ता, कोई वसचाई की वजम्मदे ारी ु ां ां अप े ऊपर लेता, कोई फसल की रखिाली का काम दखे ता। वकत ा पा ी द े ा ह,ै कब द े ा ह,ै कब हीं द े ा ह।ै फसल जब पक जाती, तब एक समह उसे कािता। यह वसफ़थ कवष विज्ञा हीं र्र्ोल से लेकर ृ ू ू विविध विषयों का ज्ञा उ म ें घर ब ता। उ म ें सहृदयता, धैयथ, प्रेम र्णों का विकास होता। समाज म ें जब ु यह बड़े होते, तब आपस म ें कोई बैर कै से विकता। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 42 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं लेवक हम देखते ह,ैं तत्काली इवतहास म ें यह यी तालीम योज ा सफल हीं हो पाती। वजस स्िप् के सार् यह र्रू हई र्ी, उससे सामावजक ता े-बा े के वछन् -वर्न् हो े का र्य सता े लर्ा। िह िण थ ु ु आप वर्क्षा के इवतहास की वकसी वकताब या माजोरी साइक्स की
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‘ यी तालीम की कहा ी’
से जा ही जायेंर्,े लेवक इस े
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‘SUPW’
या सामवजक उपयोर्ी कायथ र्ी समझ े की र्ल मत कीवजए र्ा। यह कक्षा ू के र्ीतर एक व धाथररत घिी के मध्य करिाई जा े िाली र्वतविवध हीं ह।ै सच कह,ें यह उसका अिर्ेष ां र्ी हीं ह।ै 3.6.3 खोज का माध्यम महात्मा र्ाँधी
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‘वहन्द स्िराज’
(1909) म ें कहते ह ैं वक
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‘मझ े लर्ता ह,ै अग्रेज़ी र्ाषा में वर्क्षा ग्रहण कर े ु ां म ें हमारी अवधक मा वसक ऊजाथ लर्ती ह ै और िह हम ें मात्र ‘इवमिेिर’ ( कलची) ब ती ह।ै अप ी दर्े ी र्ाषाओ का माध्यम के रूप में र्ावमल कर ा, उ का हिाया जा ा इस औपव िवे र्क र्ास का सबसे ां दखद अध्याय ह’
ै । िह
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‘यर् इवण्डया’
(1921) म ें इस बात को आर् े बढ़ाते हए कहते ह,ैं कोई र्ी दर्े ु ां ु कलवचयों को पैदा करके एक सर्क्त राष्र हीं ब सकता। िह बार-बार मातर्ाषा सीख ें पर ज़ोर दते े ृ ह।ैं वहन्द स्िराज म ें िह वलखते ह,ैं ‘हम ें पहल े अप ी मातर्ाषा सीख ी चावहए और वहन्दस्ता की दसरी ृ ु ू र्ाषा सीख ी चावहए। बालक को जब पख्ता उम्र का हो जाये, तब र्ले ही अग्रेजी वर्क्षा पाए, और िह ु ां र्ी उसे वमिा े के इराद े से, वक उसके ज़ररये पैसे कमा े के इराद े से। ऐसा करते हए हमें यह र्ी सोच ा ु होर्ा वक अग्रेज़ी म ें क्या सीख ा चावहए और क्या हीं सीख ा चावहए। हम ें अप ी सर्ी र्ाषाओ ँ को ां उज्ज्िल र्ा दार ब ा ा चावहए। हम ें अप ी र्ाषा म ें ही वर्क्षा ले ी चावहए’। महात्मा र्ाँधी अग्रेज़ी र्ाषा का विरोध के िल इस वलए हीं करते ह ैं क्योंवक िह औपव िवे र्क ां र्ासक की र्ाषा ह।ै हीं। उ र्ासकों की कोई र्ी र्ाषा होती, िह उसका विरोध करते। िह र्ाषा के चररत्र को लेकर बहत सजर् ह ैं और कहते ह,ैं मातर्ाषा ही मवक्त का माध्यम ह।ै उ का कह ा ह,ै
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‘यह क्या ु ृ ु कम जलम की बात ह ै वक अप े दर्े म ें अर्र मझ े इन्साफ पा ा हो, तो मझ े अग्रेज़ी र्ाषा का उपयोर् ु ु ु ां कर ा होर्ा?’
आपको समझ ा चावहए वक अग्रेज़ी वर्क्षा लेकर हम ें अप े राष्र को र्लाम ब ाया ह।ै ’ ु ां यह र्लामी वर्क्षा को कै से जकड़ लेती ह,ै ितथमा इसका प्रमाण ह।ै ु 3.7 मार्टट ‍बूबर (1878-1965) अवस्तत्ििादी विचारक माविथ बबर का जन्म 1878 म ें विए ा म ें हआ। ती साल की उम्र म ें माता-वपता ु ू के अलर्ाि के बाद बबर का लाल पोषण उ के दादा दादी े र्वै लवसया म ें वकया। यिािस्र्ा(लर्र्र् ू ु 26 िष थ की आय म)ें बबर हावसदिाद की तरफ़ आकवषतथ हए। यह यहदी प जाथर्रण का िह आन्दोल ु ू ु ू ु र्ा, वजस े पिी योरप म ें अट्ठारिीं र्ताब्दी म ें यहदी समाज को प जीवित वकया र्ा। िह अप े व रतर ू ू ु ां लेख और अप े अध्याप के काम के द्वारा महत्िपण थ सिाल उिाते रहते र्े। बबर िष थ 1923 म ें फ्रैं कफिथ ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 43 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं विश्वविद्यालय म ें धम थ एि दर्थ के प्राध्यापक व यक्त हए। िह 1933 तक इस पड़ पर ब े रह।े उन्हों े ु ु ां वर्क्षा हो े के ाते अध्याप र्ी वकया और वद्वतीय विश्वयि की तरफ़ बढ़ रही दव या को रोक े की ु ु कोवर्र् र्ी की। माविथ बबर इस्राइल सरकार की आिामक एि उग्र राष्रिादी ीवतयों के कि आलोचक र्े। उन्हों े अप े ू ु ां लेख से अरब देर्ों और इस्राइल के बीच समस्या को सलझा े की कोवर्र् र्ी की। िह हमर्े ा वर्क्षा के ु सािर्थ ौवमक सत्य और सत्ता के कि र्ब्दों म ें आलोच ा करते ह।ैं उ की दृवष्ट म ें कछ र्ी ऐसा हीं ह,ै ु ु वजसके मात्र हस्तातरण हो े से िह ज्ञा को स्र्ावपत कर द।े स 1965 ई. म ें जरुे वर्लम म ें बबर का व ध ् ू ां हो र्या। बबर की रच ाओ म ें
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‘आई एड दाओ’
(1923),
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‘ऑ एजके र् ’
(1925),
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‘हवसवदसम’
(1948), ू ु ां ां
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‘वबििी म े एड म े ’
(1948),
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‘एवक्लप्स ऑफ़ र्ॉड’
(1952) आवद प्रमख ह।ैं ् ु ां 3.7.1 न्द्र्क्षा की पररकल्पना माविथ बबर के अ सार प्रत्येक बालक म ें सज ात्मकता होती ह।ै अतः िह ऐसी वर्क्षा की पररकलप ा ृ ू ु करते ह,ैं जहाँ वर्क्षा का स्िार्ाविक उद्दश्े य विद्यार्ी म ें सोयी हई इस सज र्ीलता के प्रस्फि हो। िह ु ृ ु इसकी हते या कारक ब े। बच्चों म ें इस स्िर्ाविक प्रिवत को ही ि े
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‘ऑररज ल इवस्िक्ि’
कहते ह।ैं िह ृ ु ां ां इस तत्ि को इत ा महत्िपण थ मा ते हए र्ी इसे अप े वर्क्षा दर् थ का के न्िीय आधार हीं ब ाते। ु ू हम दखे रह े ह,ैं
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‘लोकतत्र’
और
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‘व्यवक्तिाद’
की अिधारणाए ँ जसै े-जसै े लोकवप्रय हई ह,ैं उसके सार्-सार् ु ां वर्क्षा के पररप्रेक्ष्य म ें
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‘स्ितत्रता’
की धारणा र्ी उत ी प्रर्ािी होती र्यी ह।ै बबर के यहाँ
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‘मक्त प्रिाह’
ही ू ु ां
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‘स्ितत्रता’
कहलाती ह।ै िह यह तो मा ते ह ैं वक स्ितत्रता के वब ा छात्र म ें वकसी तरह का विकास सर्ि ां ां ां हीं ह ै लेवक इसे बाध्यता के रूप म ें स्िीकार हीं करते। उ की ज़र म ें
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‘स्ितत्रता’
मा िीय जीि की ां व वमतथ ी के वलए र्वम का तो काम करती ह ै लेवक िह ींि का काम हीं कर सकती। उ के अ सार ू ु प्रकवत, समाज या व यवत से मवक्त जसै ी कोई चीज़ हीं हो सकती, क्योंवक कोई र्ी म ष्य पररिर्े के ृ ु ु वब ा हीं रह सकता। 3.7.2 सवाद ं अवस्तत्ििादी विचार दर् थ में अके लाप मा ि जावत की यत्रणा का मल स्रोत ह।ै लेवक बबर जसै े ू ू ां धावमकथ अवस्तत्ििादी इस एकात को अ लन्घ ीय हीं मा ते। यह िीक ह,ै व्यवक्त अके ला ह ै लेवक ु ां
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‘सहर्ावर्ता’
के क्षणों म ें उसकी एकावतकता को सम्पन् ता वमलती ह।ै यही
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‘सिादात्मकता’
ह।ै यही ां ां
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‘आई’
और
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‘दाओ’
(I-Thou) का क्षण ह।ै इसे ही बबर
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‘सहर्ावर्ता’
या
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‘कम्यव य ’
के क्षण मा ते ह।ैं ू ु यह
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‘सिाद’
का प्रारम्र् ह।ै ां बबर े ज्ञा मीमासीय अिधारणा का हिाला वदए बर्रै वर्क्षक और विद्यार्ी के मध्य
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‘सिाद’
हते सबधों ू ु ां ां ां ां को व्याख्यावयत करते हए कहा,
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‘जो कछ र्ी परस्पर खोजा जाता ह,ै िह विर्ि रूप से पारस्पररक सिाद ु ु ु ां होता ह,ै वजसम ें दो ों की सामा र्ार्ीदारी होती ह’
ै । उ के मतावबक वर्क्षक को वकसी र्ी तरह का ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 44 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं आिरण हीं ओढ़ ा चावहए। िह जसै ा ह,ै उसे उसी रूप म ें अप े छात्रों के साम े आ ा चावहए। िह वर्क्षा को पररपक्िता की प्रविया कहते ह।ैं यह पररपक्िता एक-दसरे को जा े समझ े के प्रयास से आती ू ह।ै यह वर्क्षक और विद्यार्ी दो ों के वलए सामा रूप से आिश्यक ह।ै िे स्ितत्रता, र्रोसे और ां वजम्मदे ारी को सिाद की पि थ र्तें मा ते ह।ैं यह सिाद वर्क्षक और विद्यार्ी के मध्य एक आत्मीय ररश्ते ू ां ां के रूप म ें उर्रता ह।ै 3.8 पाओलो‍फ्रे रे ‍(1921-1997) पाओलो फ्रे रे का जन्म 19 वसतम्बर 1921 को ब्राज़ील म ें हआ। उन्हों े 1959 म ें रेवसफे विश्वविद्यालय से ु डॉक्िरेि की उपावध प्राप्त की तर्ा इसी विश्वविद्यालय म ें वर्क्षा के इवतहास और दर् थ के प्रोफ़े सर व यक्त ु हए। िह ब्राजील के साक्षरता अवर्या से घव ष्ठ रूप से जड़े रह।े व म् िर्ीय पररिार म ें जन्म ले े और ु ु अप े दर्े म ें चारों र्रीबी, विषमता, उत्पीड़ के विवर्न् रूपों को बहत र्हराई से दखे ा और विश्लेवषत ु वकया। िह इस बात को बहत ही बलपिकथ कहते र्े वक वजस प्रकार राज ीवत िर्ीय होती ह,ै उसी तरह ु ू वर्क्षा र्ी िर्ीय होती ह।ै उ के वर्क्षा दर् थ को उ के समाज विज्ञा से अलर् करके देख ा एकदम व्यर्थ ह।ै उ के वलए वर्क्षा ए राज्य, लोकतत्र और विकास के वलए अवत आिश्यक र्वमका व र्ाती ह।ै इसमें अध्यापक की र्वमका ू ू ां अपररहायथ ह।ै अध्यापक पर आलोच ात्मक वर्क्षा द े े का दावयत्ि ह।ै क्योंवक जब सामवजक ढ़ाचे म ें दो ां िर्,थ व धथ और ध ाढय िर्,थ हों तब व धथ ों म ें चेत ा के विकास हो े के बाद उन्ह ें पता चलता ह,ै ् ध ाढय िर् थ उन्ह ें हये दृवष्ट से दखे ता ह।ै ् उ की कछ प्रमख पस्तकें इस प्रकार ह-ैं ु ु ु
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‘उत्पीवड़तों का वर्क्षार्ास्त्र’
(1970),
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‘कलचरल एक्र् फ़ॉर फ्रीडम’
(1970),
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‘एजके र् फ़ॉर विविकल ु कॉ र्स ेस’
(1973),
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‘एजके र् : द प्रैवक्िस ऑफ़ फ्रीडम’
(1976), द पॉवलविक्स ऑफ़ ु एजके र् ’(1985)
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‘उम्मीदों का वर्क्षार्ास्त्र’
(1994) । ु 3.8.1 न्द्र्क्षा की बैंकीय अवधारणा अर्र हम पाओलो फ्रे रे के वर्क्षा सम्बन्धी विचार को र्हराई से जा ा चाहते ह,ैं तब सिप्रथ र्म हम ें उ की वर्क्षा की बैंकीय अिधारणा को वजत ी जलदी हो सके समझ ले ा चावहए। उ के अ सार र्वै क्षक ढाचें में ु ां यह छात्र का उत्पीड़ कर े का एक सर्क्त औज़ार ह,ै जहाँ हम वर्क्षक के रूप म ें यह मा कर चलते ह,ैं वक सारी िधै ज्ञा रावर् हमारे मवस्तष्क म ें सवचत ह।ै इसकी जर्ह हम पाियपस्तक या ऐसी ही कोई अन्य ् ु ां व्यिस्र्ा को रख सकत े ह,ैं जो अप ी श्रष्ठे ता या िचथस्ि को स्र्ावपत करती हो। अब चँवक हम
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‘ज्ञाता’
की ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 45 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं र्वमका म ें ह ैं और हमारे साम े जो विद्यार्ी या छात्र ह,ै हम उसे
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‘अलपज्ञ’
या
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‘ज्ञा र्न्य’
मा कर अप े ू ू ज्ञा को उसके मवस्तष्क म ें र्र रह े ह।ैं यह उत्पीड़ ह.ै इस परी प्रविया म ें वर्क्षक और छात्र के सम्बन्ध को विश्लेवषत वकया जाये, तब हम पाते ह,ैं इसम ें वर्क्षा ू बैंक म ें पैसा जमा कर े की तरह ही छात्रों म ें ज्ञा रावर् जमा कर े का एक काम ब कर रह जाती ह।ै यहाँ वर्क्षक
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‘जमाकताथ’
होता ह ै और विद्यार्ी
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‘जमादार’
होते ह।ैं इसम ें वर्क्षक सम्प्रेषण कर े के बजाये विज्ञवप्तयाँ जारी करता ह।ै िह वज चीज़ों को
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‘जमा’
करते ह,ैं छात्र उन्ह ें धैयथपिकथ ग्रहण करते और रिते ह ै ू तर्ा परीक्षा में या कर्ी पछे जा े पर उ का प रुत्पाद करते ह।ैं इसम ें छात्रों की सवियता के वलए वसफ़थ ू ु ु इत ी र्जाइर् होती ह ै वक ि े हम उसके मवस्तष्क म ें अप े र्ब्दों द्वारा ज्ञा को अप े अन्दर जमा करता ुां चले। दसरे को अज्ञा ी बता ा उत्पीड़ की विर्षे ता ह।ै इसके कारण छात्रों म ें आलोच ात्मक चेत ा का ू विकास हीं हो पाता क्योंवक वर्क्षक सबकछ जा ता ह ै और छात्र कछ र्ी हीं जा ते। वर्क्षक सोचता ह ै ु ु और िही छात्रों के बारे म ें सोचता ह।ै वर्क्षक कम थ करता ह ै और छात्र को कम थ कर े का भ्रम होता ह।ै 3.8.2 सवाद ं क्या वर्क्षा की इस उत्पीड़ कारी जकड़ से कर्ी हीं व कला जा सकता? इससे बाहर आ े का, आलोच ात्मक चेत ा के विकास का कोई तो मार् थ होर्ा? जी, आप वबलकल सही समझ रह े ह।ैं ु
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‘सिाद’
ही िह मवक्तदायक प्रविया ह,ै वजसके ज़ररये हम वर्क्षा की बैंकीय अिधारणा से बाहर ही हीं ु ां आ सकते बवलक उत्पीड़ की वकसी र्ी सम्र्ाि ा को खत्म र्ी कर सकते ह।ैं यहीं आप
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‘खोज’
जसै े बाल के वन्ित प्रत्यय की आहि को र्ी स सकत े ह।ैं यह खोज आपस म ें वमलकर एक सार् की जायेर्ी। ु कोई अध्यापक हीं ह,ै कोई छात्र हीं ह।ै इस सिाद की पहली र्तथ ह,ै सिाद उन्हीं के मध्य सर्ि ह,ै वज के बीच वकसी र्ी तरह का ां ां ां पदा िवमक सम्बन्ध हो। मतलब सिाद िहीं हो सकता ह,ै जहाँ हम एक-दसरे को सामा स्तर पर ु ां ू लाकर आपस म ें बात कर पा े की क्षमता ह।ैं कक्षा के र्ीतर यह कै से सर्ि ह?ै िहाँ तो पारपररक रूप से ां ां एक वर्क्षक ह ै और बाकी सब छात्र ह।ैं पाओलो फ्रे रे अप ी पस्तक
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‘उत्पीवड़तों का वर्क्षार्ास्त्र’
म ें इस ु स्तरीकत सम्बन्ध को ही खाररज़ कर दते े ह।ैं उ की दृवष्ट में वकसी र्ी तरह का पदा िम उत्पीड़ का ृ ु कारक होता ह।ै जब कक्षा के र्ीतर कोई वसखा े िाला होर्ा, कोई सीख े िाला होर्ा, तब उ के बीच बातचीत से जो समझ ब ेर्ी, िह उ दो ों की साझा पारस्पररकता से उत्पन् हआ ज्ञा होर्ा। सिाद के ु ां वलए वजत ी आिश्यकता वि म्रता की ह,ै उत ी ही ज़रूरत म ष्य म,ें और उसकी व माथण और प व थमाथण ु ु की र्वक्त म ें विश्वास की र्ी ह।ै प्रेम, वि म्रता और विश्वास पर आधाररत सिाद समस्तरीय ब जाता ह।ै ां पाओलो फ्रे रे के वलए अध्यापक सास्कवतक मवक्त का िाहक होर्ा। िही ह,ैं जो उत्पीड़ के चि ृ ु ां को समाप्त कर े म ें उत्पीवड़त की मदद करेर्ा। वर्क्षा इस अर्थ म ें सास्कवतक कम थ ह।ै िही उत्पीड़ के ृ ां औज़ार के रूप म ें सिाद विरोध और मवक्त के औज़ार के रूप म ें सिाद को स्र्ावपत करेर्ा। सिाद ही ह ै ु ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 46 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वजसके र्रू हो े के बाद सहयोर्, एकता, सर्ि और सास्कवतक सश्लेषण की प्रवियाए ँ समाज को ृ ु ां ां ां सिमण से मवक्त की तरफ़ ले जाएर्ँ ी। ु ां 3.9 साराशां इस इकाई म ें यह पाते ह ैं वक सर्ी विचारक
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‘खोज’
पदबध का प्रयोर् वकये वब ा र्ी बाल के वन्ित वर्क्षा ां की बात कर रह े ह।ैं एक तरफ़ प्लेिो ह,ैं जो समाज म ें जन्माधाररत िर्ीकरण को खाररज करते ह।ैं िह बताते ह,ैं विद्यार्ी वकसी र्ी तरह के कौर्ल से सपन् हो सकता ह,ै यह उसकी रूवच, अवर्िवत पर व र्रथ ृ ां करता ह।ै जॉ डीिी के मता सार र्वतविवधयाँ इस प्रकार व योवजत हों, जो समाज से व कलकर आयें, ु तर्ा वजसम ें छात्र अप े आप लवक्षत उद्दश्े य को प्राप्त हों। िह वकस तरह आर् े बढ़ रह े ह,ैं यह चय उ का होर्ा। िह सही ह ैं या र्लत ह,ैं इसका फै सला र्ी िह स्िय करेंर्।े अध्यापक के उत्तर छात्रों के उत्तर कर्ी ां हीं हो सकते। उ के व णयथ के उत्तरदायी एकमात्र िह होंर्े। रिीन्ि ार् िाकर और महात्मा र्ाँधी अप े ु विचारों से तत्काली अग्रेज़ी औपव िवे र्क वर्क्षा प्रणाली की खावमयों की तरफ़ इर्ारा र्र हीं करते ां बवलक उसका विकलप र्ी प्रस्तत करते ह।ैं जहाँ एक तरह
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‘र्ावन्तव के त ’
ह ै तो दसरी तरफ़ िधाथ की ु ू
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‘ यी तालीम योज ा’
। दो ों ही जर्ह अध्यापक अप ी न्य तम र्वमकाओ के सार् उपवस्र्त ह।ैं दो ों ू ू ां अध्यापक की कोई ज़रूरत ही महसस हीं करते ह।ैं बच्चे अप े व णयथ ले े के वलए स्ितत्र ह।ैं ऐसा ू ां लर्ता ह ै जसै े माविथ बबर और पाओलो फ्रे रे एक ही आधारर्वम पर
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‘सिाद’
को स्र्ावपत करते ह।ैं हम ू ू ां सिाद वकससे और कहाँ कर सकते ह?ैं जहाँ प्रेम, सद्भाि ा, और कोई पदा िम हो। िह औपचाररक ु ां कक्षा म ें वकसी को अध्यापक और छात्र की र्वमका म ें हीं दखे ते। िह कहते ह,ैं यह आपसी सिाद ही ू ां
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‘ज्ञा ’
का सज करेर्ा । ृ 3.10 ‍शब्द‍ ावनाली 1. उपयोन्द्र्तावाद (Utilitarianism)- एक आचार सवहता वजसकी मान्यता ह ै वक आचरण तर्ी ां ैवतक ह,ै जब िह अवधकतम व्यवक्तयों के अवधकतम सख की अवर्िवि करता ह ै । ृ ु 2. व्यवहारवाद(Pragmatism) - इसके अ सार म ोविज्ञा म ें अध्यय का आधार व्यवक्त की ु मासपेर्ीय और ग्रवर्मलक अ कवियाए ँ होती ह ैं । ू ु ां ां 3. प्रकन्द्तवाद(Naturalism) - पाश्चात्य दार्वथ क वचन्त की िह विचारधारा ह ै जो प्रकवत को मल ृ ृ ू तत्त्ि मा ती ह।ै छात्र के सन्दर् थ म ें यह उसकी सहज स्िार्ाविकता ह।ै 4. अन्द्स्तत्ववाद(Existentialism) - िह विचारधारा, वजसम ें व्यवक्त के अवस्तत्ि को सबसे महत्िपण थ मा ा जाता ह।ै यह म ष्य की पररर्ाषा हीं करता, के िल उसकी वस्र्वत का विश्लेषण ू ु करता ह।ै इसके प्रितथक सात्रथ और काम आवद मा े जाते ह।ैं ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 47 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 5. उपन्द्नवेर्- एक राज्य की अप ी र्ौर्ोवलक सीमा के बाहर अन्य स्र्ा पर बसी बस्ती उपव िर्े कहलाती ह.ै हमारा दर्े 15 अर्स्त, 1947 से पहले वब्रिे का उपव िर्े र्ा। 6. उत्पादक काया- मख्यतः िह कायथ जो चारों िणों (ब्राह्मण, क्षवत्रय, िश्ै य और र्ि) में सबसे व म् ु ू िण(थ र्ि) द्वारा वकये जाते ह।ैं महात्मा र्ाँधी इन्ह ें हार् से वकये जा े िाले कायथ कहते ह।ैं ू 7. न्द्र्क्षा की बैंकीय अवधारणा (Banking concept of Education) - इस प्रविया में अध्यापक जमाकताथ और छात्र जमादार के रूप म ें अप ी र्वमकाए व र्ाते ह ैं । ू ां 8. आलोचनात्मक चेतना- बवि का ऐसा विकास, वजससे व्यवक्त को वसफ़थ अप ी िास्तविक वस्र्वत ु का पता चलता ह ै बवलक िह उस व्यिस्र्ा को बदल े के वलए प्रयासरत र्ी हो जाता ह.ै 3.11 सदां र् थ ग्रांर्‍सची‍/‍सहायक‍ग्रांर्‍सची ू ू 1. अडीर कोह (1983),
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‘एजके शनल फिलॉसिी ऑफ़ माफटिन बबर’,
एसोवर्एविड यव िवसथिी ु ू ू प्रेस, लन्द । 2. आर. सी. लॉज (1947),
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‘प्लेटो’
स थ्योरी ऑफ़ एजके शन’, के र् पॉल, लन्द । ु 3. जॉ डीिी (2009),
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‘फशक्षा और लोकतत्र’,
ग्रन्र् वर्लपी, वदलली । ं 4. जॉ डीिी (2009),
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‘स्कल और समाज’,
आकार प्रकार् , वदलली । ू 5. डी. मफी (1988),
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‘माफटिन बबर’
स फिलॉसिी ऑफ़ एजके शन’, आयररर् अके डवमक प्रेस, ू ु डवब्ल । 6. दवकर्ोर आचायथ (1998),
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‘आधफनक फिचार’,
िाग्दिे ी, बीका ेर । ु ां 7. पाओलो फ्रे रे (1996),
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‘उत्पीफितों का फशक्षाशास्त्र’,
ग्रन्र् वर्लपी, यी वदलली । 8. पाओलो फ्रे रे (1997),
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‘प्रौढ़ साक्षरता’,
ग्रन्र् वर्लपी, यी वदलली । 9. प्लेिो (2010),
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‘ररपफललक’
(वहदी अ िाद: डॉ. आलोक कमार), मपे ल प्रेस, ोयडा । ु ु ां 10. महात्मा र्ाँधी (1942),
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‘हमारी फशक्षा का आदश’
ि , श्री र्ाँधी ग्रर्कार, ब ारस । ां 11. महात्मा र्ाँधी (1958),
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‘नयी तालीम की ओर’,
िजीि रस्ि, अहमदाबाद । 12. महात्मा र्ाँधी (2008),
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‘फहन्द स्िराज’,
िजीि रस्ि, अहमदाबाद । 13. रिीन्ि ार् िाकर (1997),
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‘रिीन्रनाथ का फशक्षा दशनि ’,
ग्रन्र् वर्लपी, वदलली । ु 14. सजीि िाकर(सपा।) (2013),
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‘बिों का बचपन’,
एकलव्य, र्ोपाल । ु ां ां 3.12 श बधात्म‍ क‍प्रश्न‍ ां 1. प्लेिो के
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‘आदर् थ राज्य’
म ें वर्क्षा के द्वारा समाज का विर्ाज वकया र्या ह,ै क्या यह आज के समय म ें र्ी सर्ि ह?ै अप े पक्ष म ें तकथ सवहत उत्तर दीवजये । ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 48 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2. रिीन्ि ार् िैर्ोर और महात्मा र्ाँधी के वर्क्षा के विचारों म ें आपको कौ -कौ सी समा ताए ँ वदखाई दते ी ह?ैं उन्ह ें विस्तार से व्यक्त कीवजए । 3. क्या आपको माविथ बबर और पाओलो फ्रे रे के सिादों (डायलॉर्) म ें ऐवतहावसक िमबिता वदखती ू ां ह?ै स्पष्ट कीवजए । 4. पाओलो फ्रे रे की वर्क्षा की
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‘बैंवकर् अिधारणा’
बाल के वन्ित क्यों हीं ह?ै स्पष्ट करें । ां 5. महात्मा र्ाँधी के वर्क्षा सम्बन्धी विचारों म ें
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‘उत्पादक काय’
थ का क्या अर्थ ह?ै अप ी समझ से उ कायों की एक विस्तत सची ब ाईये । ृ ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 49 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं खण्ड 2 Block 2 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 50 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 2 -औद्योशगकीकरण , लोकतांत्र तर्ा वैर्शिक स्वार्त्तता एवां तकथ सांबांधी शवचारों द्वारा स्र्ाशपत ऐशतहाशसक पशरवतथनों से उत्पन्न शशक्षा के सामाशजक आधार में आए बदलाव 2.1 प्रस्ताि ा 2.2 उद्दश्े य 2.3 समाज का अर्थ 2.3.1 समाज की पररर्ाषाए ां 2.4 सामावजक पररितथ का स्िरूप 2.5 औद्योर्ीकरण का अर्थ 2.6 औद्योर्ीकरण की पररर्ाषा 2.7 र्ारत में औद्योर्ीकरण तर्ा इसके कारण 2.8 र्ारत में औद्योर्ीकरण की आिश्यकता 2.9 लोकतावत्रक वर्क्षा का अर्थ ां 2.10 लोकतावत्रक वर्क्षा का महत्ि ि आिश्यकता ां 2.11 सदर्थ ग्रर् सची ू ां ां 2.12 व बधात्मक प्रश्न ां 2.1‍प्रस्तावना ा िजात वर्र् असहाय तर्ा असामावजक होते ह।ै िह बाल ा जा ता ह,ै चल ा-वफर ा। उसका ु कोई वमत्र होता ह ै और र्त्र। यही हीं, उसे समात के रीवत-ररिाजों तर्ा परम्पराओ का ज्ञा र्ी हीं ु ां होता और ही उसम ें वकसी आदर् थ तर्ा मलय को प्राप्त कर े की वजज्ञासा पाई जाती ह।ैं परन्त जसै े-जसै े ू ु िह बड़ा होता जाता ह,ै िसै े-िसै े उस पर वर्क्षा के औपचाररक तर्ा अ ौपचाररक साध ों का प्रर्ाि पड़ता जाता ह।ै इस प्रर्ाि के कारण उसका जहॉ एक ओर र्ारीररक, मा वसक एि सिर्े ात्मक विकास ां ां होता जाता ह।ै िहाँ दसरी ओर उसम ें सामावजक र्ाि ा र्ी विकवसत होती जाती ह।ै पररणामस्िरूप िह ू र् ैः-र् ैः प्रौढ़ व्यवक्तयों के उत्तरदावयत्िों को सफलतापिकथ व र्ा े के योग्य ब जाता ह।ै इस प्रकार हम ू दखे ते ह ै वक बालक के व्यिहार म ें िाछ ीय पररितथ के वलए व्यिवस्र्त वर्क्षा की परम आिश्यकता ह।ै ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 51 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं सच तो यह ह ै वक वर्क्षा से इत े लार् ह ै वक उ का िण थ कर ा कवि ह।ै इस सन्दर् थ में यहाँ के िल इत ा कह द े ा ही पयाथप्त होर्ा वक वर्क्षा माता के समा पाल -पोषण करती ह।ै मा ि समाज अप े आदर्ों, र्ािों तर्ा मान्यताओ तर्ा वियाओ को र्ािी सन्तवत को प्रदा करता ां ां हआ स्िय को जीवित रखता ह।ै जसै े-जसै े िह अ र्ि करता ह ै वक उसकी कछ परम्पराए, विचारधाराए, ु ु ु ां ां ां मलय आवद परात होते जा रह े ह ैं और ि े उसे लार्प्रद वसि हीं हो रह े ह,ैं िसै े-िसै े िह उ को त्यार्ता ू ु चलता ह ै और िी मान्यताओ, परम्पराओ, विचारधाराओ आवद को अप ाता जाता ह।ै समाज इस ां ां ां कायथ को वर्क्षा के माध्यम से करता ह।ै समाज वर्क्षा को प्रदा कर े के वलये विवर्न् र्वै क्षक साध ों- औपचाररक, अ ौपचाररक तर्ा र्रै औपचाररक -को प्रयोर् म ें लाता ह।ै समाज औपचाररक साध ों के रूप म ें वर्क्षा सस्र्ाओ की स्र्ाप ा करता ह।ै वजसके द्वारा समाज के विचारों, र्िों आदर्ों मलयों, वियाओ, ू ां ां ां मा दण्डों, परम्पराओ आवद को आ े िाली सन्तवत हो हस्तान्तररत एि सरवक्षत वकया जाता ह।ै इस ां ां ां सम्बन्ध म ें फ्रें कवल () का मत ह-ै “समाज वर्क्षा सस्र्ाओ को अप े सदस्यों म ें ऐसे ज्ञा , कौर्लों, आदर्ों तर्ा आदतों का प्रसार कर े ां ां एि सरवक्षत रख े के वलये स्र्ावपत करता ह ै जो वक उसके स्िय के स्र्ावयत्ि तर्ा व रन्तर विकास के ु ां ां वलये अव िायथ ह”ै । लोकतन्त्रीय दृवष्ट से वर्क्षा एक सामावजक प्रविया ह ै वजससे व्यवक्त के व्यवक्तत्ि का विकास वकया जाता ह ै और उसका समाजीकरण वकया जाता ह,ै इससे व्यवक्त और समाज दो ों का ही लार् होता ह।ै डयिी े लोकतन्त्र म ें वर्क्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हए कहा ह ै वक, “लोकतन्त्र म ें ऐसी वर्क्षा हो ी ु ् ू चावहये जा सामावजक कायों तर्ा सम्बन्धों म ें व्यवक्तर्त रुवच उत्पन् कर सके और उ में ऐसी मा वसक आदतों का व माथण कर सके जो वब ा कोई अव्यिस्र्ा उत्पन् वकये सामावजक पररितथ कर सकें ”। लोकतन्त्र म ें व्यवक्त और समाज दो ों को सम्मा की दवष्ट से दखे ा जाता ह।ै व्यवक्त समाज का ू व माथण करता ह ै और समाज व्यवक्त के वहत के वलये कायथ करता ह ै और यह कायथ वर्क्षा के द्वारा ही वकया जाता ह।ै इस सम्बन्ध म ें हमायँ कबीर े कहा ह ै वक,
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“लोकतन्त्र सामावजक सयोर् और सामावजक प्रर्वत ु ू ां के वलए पार्विक र्वक्त को अ य में बदल े का प्रयास करता ह।ै र्वक्त की अपेक्षा वििके को समाज ु का पर्-प्रदर् थ कर े िाला वसिान्त बता े का अर्थ यह ह ै वक वर्क्षा व्यवक्तयों को समाज म ें रच ात्मक सदस्यों के रूप म ें तैयार करें ”
। बदलते पररिर्े े र्ारतीय सस्कवत एि सभ्यता को आधव कता की चादर े ढक वदया । वजसका ृ ु ां ां सीधा प्रर्ाि परम्परार्त वर्क्षण-पद्ववतयों के सरूवचपण थ तरीके से प्रयोर् कर े पर पडा। और यही से ु ू परम्परार्त वर्क्षण-पद्ववतयों के र्िकाि र्रू हो र्या। वजससे आधव क यर् म े दखे ें तो विद्यावर्थयों म ें ु ु ु ैवतकता का पणथ अर्ाि ह।ै ऐसे विद्यार्ी राष्र का तो क्या िे स्िय का र्ी विकास ही कर सकते ह।ै इ म ें ू ां तो कोई मलय ह ै और ही कोई चररत्र। विद्यालयों के व यमों को तोड़ ा, सािजथ व क सम्पवत्त को हाव ू पहचँ ा ा , मादक पदार्थ का प्रयोर् कर ा, इ की जीि र्ैली का एक महत्िपण थ अर् ब र्या ह।ै इ को ु ू ां इस र्िर जाल से व काल ा अत्यािश्यक ह।ै वजस के वलये अ ेक मा दण्ड स्र्ावपत कर े होर् ें , तर्ा ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 52 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं मार् थ से विचवलत विद्यावर्थयों को विकास की मख्य धारा म ें ला े हते इ के पाियिम म ें ैवतकता ि ् ु ू सदाचार से पररपण थ रच ाओ को स्र्ा द े ा होर्ा, तर्ा इ विद्यावर्थयों के वलए परम्परार्त वर्क्षण- ू ां पद्ववतयों का सरूवचपण थ तरीके से प्रयोर् करके प्राची वर्क्षा के उद्दश्े य प्राप्त करा ा होर्ा तर्ी समाज एि ु ू ां दर्े का वहत होर्ा। परम्परार्त वर्क्षण-पिवतयाँ ही हमारी वर्क्षा का आधार ह।ै और इन्हीं से हम अप े राष्र को विश्व र्रू के र्ौरि तक पहचाकर उसे सिश्रथ ेष्ठ ब ा सकते ह।ैं ु ु ां वर्क्षा मा ि जीि की एक महत्िपण थ व वध ह ै वजसके द्वारा िह, अप े जन्म के प्रारवम्र्क काल ू से अप े िजद को र्ढ़ता आ रहा ह।ै व्यवक्त जहाँ एक और अप े र्ारीररक पक्ष के दखे र्ाल के वलए ू र्ोज पर व र्रथ करता ह।ै िही दसरी ओर िह अप ी तरह के दसरे व्यवक्तयों के सार् र्वतर्ील सबधों की ां ां ू ू एक प्रणाली विकवसत करता ह।ै यह उसके समावजक तर्ा सास्कवतक विकास के रूप में पहचा ी जाती ृ ां ह।ै िास्ति म ें मा ि की समावजक एि सास्कवतक विकास वर्क्षा द्वारा सर्ि हो पाता ह।ै वर्क्षा के द्वारा ही ृ ां ां ां ए विचार, ज्ञा , अ र्िों तर्ा जीि के विवर्न् ए रूपों का अदा -प्रदा होता ह।ै वर्क्षा के द्वारा ु ज्ञा , अ र्ि एि कौर्ल का प थ व माण थ तर्ा फलस्िरूप व्यवक्तर्त एि समावजक जीि का प थव माथण ु ु ु ां ां होता ह।ै इस तरह वर्क्षा जीि की मख्य विया ह।ै समावजक जीि म े इसके वब ा तो समान्य एि हीं ु ां उिरथ जीि की रूपरेखा को ब ा सर्ि ह।ै ु ां ितथमा आधव क समाज म ें वर्क्षा को जीि सरक्षण तर्ा उन् वत का आधार मा ा जा रहा ह।ै कल लोर् ु ु ां तो वर्क्षा को ही जीि मा ते ह।ै इसे समता, न्याय, आवर्थक विकास, समावजक-सास्कवतक समािेर् ृ ां तर्ा समावजक पररितथ की प्रविया या अवर्कताथ के रूप म ें रेखावकत वकया जा रहा ह।ै आम ज , पेर्िे र समह, विज्ञा , राज ीवतक समह, र्रै सरकारी सस्र्ा न्यायपावलका, विवध व माथता एि ीवत व माथता ू ू ां ां सर्ी वकसी वकसी रूप म ें वर्क्षा से सारोकार रखते ह।ै परन्त ये सर्ी वर्क्षा की व्याख्या अलर्-अलर् ु अर्ो म ें करते ह ै वजससे कई बार वर्क्षा के उद्दश्े य एि प्रकवत के बारे म ें िकराि तर्ा भ्रम उत्पन् हो जाता ृ ां ह।ै 2.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप- 1. समाज का अर्थ समझ सकें र्।े 2. समाज को पररर्ावषत कर सकें र्।े 3. सामावजक पररितथ का अर्थ समझ सकें र्े। 4. सामावजक पररितथ को पररर्ावषत कर सकें र्।े 5. औद्योर्ीकरण का अर्थ समझ सकें र्।े 6. लोकतावत्रक वर्क्षा का महत्ि ि आिश्यकता से पररवचत हो सकें र्।े ां 7. यह
सामान्यीकरण कर सकें र् े वक औद्योर्ीकरण: सामावजक पररितथ का रूप ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 53 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.3‍समाज‍का‍अर् थ सामान्य रूप स
े व्यवक्तयों के समह को समाज कहते ह।ैं व्यवक्तयों के इ समह विर्षे ों का अध्यय सर्ी ू ू सामावजक विज्ञा ों म ें वकया जाता ह।ै मा िर्ास्त्र म ें म ष्यों के वकसी र्ी समह को समाज की सज्ञा दी ु ू ां जाती ह,ै यहा तक वक आवदम समदाय को र्ी समाज कहा जाता ह।ै र्र्ोल म ें क्षेत्र विर्षे के समा ु ू ां सभ्यता िाले लोर्ों के समदाय को समाज कहते ह।ैं जसै े-र्ारतीय समाज, यरोपीय समाज। धमर्थ ास़्त्त्र म ें ु ू धम थ विर्षे के मा े िालों के समदाय को समाज कहते ह,ैं जसै े- वहन्द समाज, ईसाई समाज और ु ू मसलमा समाज। राज ीवतर्ास्त्र म ें राज्य विर्षे के लोर्ों के समह को समाज कहते ह,ैं जसै े-र्ारतीय ु ू समाज, वब्रविर् समाज और अमरे ीकी समाज। परन्त समाजर्ास्त्र म ें समाज का अर्थ इ सबसे वर्न् रूप म ें ु वलया जाता ह।ै स्माजर्ास्त्रीय अर्थ म ें व्यवक्तयों के समह को समाज हीं कहते अवपत समह के व्यवक्तयों म ें पाए जा े िाले ू ू सामावजक सम्बन्ध क्या ह ैं जब दो या दो से अवधक व्यवक्त एक-दसरे के प्रवत सोचते होते ह ैं और एक-दसरे ू ू के प्रवत कछ व्यिहार करते ह ैं तो हम कहते ह ैं वक उ के बीच समावजक सम्बन्ध स्र्ावपत हो र्ए ह।ै यह ु आिश्यक हीं वक ये सम्बन्ध मधर और सहयोर्ात्मक ही हों, ये कछ और सघषाथत्मक र्ी हो सकतें ह ै ु ु ां समाजर्ास़्त्त्र म ें इ दो ों प्रकार के सम्बन्धों का अध्यय वकया जाता ह।ै इस प्रकार समाज का सिप्रथ र्म मल तत्ि दो या दो से अवधक व्यवक्तयों की पारस्पररक जार्रूकता ह।ै दो या दो से अवधक व्यवक्तयों के ू एक-दसरे के प्रवत सचेत हो े के वलए यह आिश्यक ह ै वक उ के उद्दश्े य अर्िा विचारों म ें या तो समा ता ू हो या वर्न् ता । इस प्रकार समा ता अर्िा वर्न् ता समाज का दसरा मल तत्ि होता ह।ै यह पारस्पररक ू ू जार्रूकता दो ही रूपों म ें पाररवणत हो सकती ह-ै सहयोर् म ें अर्िा सघष थ म।ें इसवलए सहयोर् अर्िा ां सघष थ को समाज का तीसरा मल तत्ि मा ा जाता ह।ै िास्तवस्र्वत यह ह ै वक म ष्य अप ी आिश्यकताओ ू ु ु ां ां की पवतथ हते एक-दसरे के प्रवत सोचते ह।ैं और ि े तब तक इ सम्बन्धों से हीं बधते जब तक उ की एक- ू ु ां ू दसरे से अप ी आिश्यकताओ की पवतथ हीं होती। इसे समाजर्ास्त्री अन्योन्यावश्रतता कहते ह।ैं यह ू ां ू समाज का चौर् मल तत्ि होता ह।ै समाज के बारे म ें दो तथ्य और ह,ैं एक तो यह वक समाज अमतथ होता ू ू ह।ै और दसरा यह वक यह के िल म ष्य जावत म ें ही हीं अवपत पर्-पवक्षयों और कीड़ों-मकोडों म ें र्ी ु ु ु ू पाया जाता ह।ै यह बात दसरी ह ै वक समाजर्ास़्त्त्र म ें के िल मा ि समाज का ही अध्यय वकया जाता ह।ै ू 2.3.1 समाज की पररभाषा सर्ी समाजर्ास्त्री समाज की अमतथ मा ते ह ैं परन्त उसकी पररर्ाषा उन्हों े वर्न् -वर्न् रूप म ें दी ह ै कछ ू ु ु मख्य पररर्ाषाए व म् प्रकार से ह।ै ु ां टाकटॉट पासान्स के र्ब्दों में- समाज को उ मा िीय सम्बन्धों की पण थ जविलता के रूप म ें पररर्ावषत ू वकया जा सकता ह ै जो साध तर्ा साध्य के सम्बन्ध द्वारा विया कर े से उत्पन् हए ह,ैं ि े चाह े िास्तविक ु हो अर्िा प्रतीकात्मक। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 54 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं मैकाइवर और पेज े समाज को र्ोड़ा अवधक स्पष्ट रूप म ें पररर्ावषत वकया ह।ै उ के अ सार-समाज ु रीवतयों तर्ा कायथ प्रणावलयों की अवधकार तर्ा पारस्पररक सहयोर् की, अ ेक समहों और विर्ार्ों की, ू मा ि व्यिहार के व यन्त्रणों और स्ितन्त्रताओ की एक व्यिस्र्ा ह।ै इस सतत पररितथ र्ील व्यिस्र्ा को ् ां हम समाज कहते ह।ैं इसी बात को उन्हों े आर् े सवक्षवप्त रूप म ें इस प्रकार कहा ह-ै ां यह (समाज) सामावजक सम्बन्धों का एक जाल ह ै जो सदिै बदलता रहता ह।ै लान्द्पयर महोदय द्वारा प्रस्तत पररर्ाषा अप े म ें सवक्षप्त र्ी ह ै और स्पष्ट र्ी। उ के र्ब्द म ें
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“समाज से ु ां तात्पयथ व्यवक्तयों के समह से हीं अवपत समह के व्यवक्तयों के बीच हो े िाली अन्तवियाओ की जविल ू ु ू ां व्यिस्र्ा से ह”
ै । 2.4‍सामाशजक‍पशरवनातथ ‍का‍स्वनारूप आजादी के एक लबें अतराल के बाद र्ी र्ारत विकवसत दर्े की श्रेणी म ें र्ी तक हीं आ सका ह,ै ां ां जबवक हमारे बाद स्ितत्र हए कई दर्े सफलता की अवग्रम पवक्त म ें ह।ैं ऐसा हीं ह ै वक प्रयास हीं हए। ु ु ां ां प्रयास हए,तर्ी तो आज हम मर्लया का अवर्या परा कर पाए, लेवक इस सच को सर्ी स्िीकारेंर्े ु ू ां वक विकास की र्वत काफी धीमी ह।ै एक सौ बीस करोड़ की आबादी िाला दर्े अर्र चाह े तो क्या हीं कर सकता,खासकर जब इ म े यिाओ की सख्या सिाथवधक हो। तो वफर क्या कारण ह ै हमारे विकास की ु ां ां र्वत धीमी रही क्या अिसर की कमी रही या अर्थ की या वफर सामावजक पररवस्र्वतया विकास के ां अ कल हीं र्ीं या वफर लाल फीतार्ाही रही वजम्मदे ार, धमथ, जावत, िर्थ, क्षेत्र, र्ाषा, सम्प्रदाय आवद में ु ू बिे दर्े से हम उम्मीद र्ी वकत ा का सकते ह ै समस्या एक हो तो उसकी चचाथ की जा सकती ह,ै लेवक ां यहा तो समस्याए अ त ह।ै िैश्वीकरण के इस दौर म ें हम े सबसे अवधक वकसी चीज को अर्ीकार वकया ां ां ां ां ह ै तो िह ह,ै उपर्ोक्तािादी सस्कवत। सार् ही हम े िश्वै ीकरण म ें आधव कता के ाम पर पाश्चात्य सस्कवत ृ ृ ु ां ां का अन्धा करण वकया। हम िैश्वीकरण की सही र्ाि ा को र्ायद समझ सके । ु कोई र्ी समस्या ऐसी हीं ह ै वजसका समाधा हो। आिश्यकता ह ै सापेक्ष सोच की, एक ऐसे प्रयास की,वजसम ें सच्चाई हो और सामावजक पररितथ की चाह हो। सदी के विकास लक्ष्यों के हम जदीक र्ी हीं पहच पाए और समय बीत र्या। विकास की र्वत को अके ले सरकार या वफर व्यवक्त या वफर सस्र्ा ु ां ां तेज हीं कर सकती। इसके वलए एक समग्र एि सामवहक प्रयास की आिश्यकता ह।ै इसके वलए जहा ु ां ां एक ओर सरकार की राज ीवतक इच्छा र्वक्त चावहए, िहीं कॉरपोरेि,स्ियसेिी सस्र्ा तर्ा अन्य ां ां सस्र् ों की सहर्ावर्ता र्ी। ां पररितथ समाज का व यम ह।ै समाज म ें हमेर्ा पररितथ होते रहते ह।ैं सम्र्ितः कोई र्ी समाज ऐसा हीं ह ै वजस म ें पररितथ हए हों। हा, इत ा आिश्यक ह ै वकसी समाज म ें यह पररितथ तेजी के सार् होता ह ै ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 55 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं और समाज र्ीघ्र ही पररितथ की लपेि म ें आकर एकदम से बदल जाता है, वकसी समाज म ें यह पररति थ धीरे-धीरे होता ह ै और वकसी समाज म ें सामान्य र्वत से। अतः समाज पररितथ र्ील ह।ै जब से समाज की उत्पवत्त हई ह ै तब से समाज के रह -सह और खा -पा की विवधया पाररिाररक और ििै ावहक ु ां व्यिस्र्ाए रीवतया और ररिाज, मलय और मान्यताए बदलती रही ह।ैं दसरे र्ब्दों म ें हम य कह सकते ह ैं ू ू ां ां ां ां ू वक प्रत्येक समाज की सभ्यता और सस्कवत म ें पररितथ होता रहता ह।ै ृ ां औद्योर्ीकरण को र्ारत म ें सामावजक पररितथ का प्रमख स्त्रोत मा ा जाता ह।ै यह र्रीकरण का कारण ु और पररणाम दो ों ह,ै अतः अक्सर औद्योर्ीकरण तर्ा र्रीकरण की वििचे ा एक सयक्त प्रविया के ु ां रूप म ें की जाती ह।ै यरोप म ें अिारहिीं र्ताब्दी के आरम्र् से ही अ ेक ऐसे अविष्कार हो ा र्रू हो र्ये ू ु वज की सहायता से हार् की जर्ह मर्ी ों के द्वारा अ ेक िस्तओ का उत्पाद कर ा सम्र्ि हो र्या। ु ां इसके फलस्िरूप उन् ीसिीं र्ताब्दी म ें इग्लैण्ड और यरोप के अ ेक दसरे दर्े ों म ें औद्योर्ीकरण अर्िा ू ां ू मर्ी ों द्वारा बड़ी मात्रा म ें उत्पाद का इस कारण तेजी से विस्तार हो े वजससे यह दर्े अप े उपव िेर्ों म ें अवधक से अवधक िस्तए बेचकर र्ारी लार् प्राप्त कर सकें । उन् ीसिीं र्ताब्दी के अवन्तम समय से ही ु ां वब्रविर् सरकार द्वारा र्ारत म ें सती कपड़ो, ची ी और जि के कछ बड़े-बड़े कारखा ों की स्र्ाप ा की ू ू ु र्यी। इसका उद्दश्े य र्ारत म ें उपलब्ध कच्चे माल तर्ा यहाँ प्राप्त हो े िाले सस्त े श्रम का अवधकतम उपयोर् करके दसरे दर्े ों के सार् हो े िाली प्रवतस्पिा थ म ें सफलता प्रराप्त कर ा र्ा मर्ी ों द्वारा बड़ी ् ू मात्रा म ें वकया जा े िाला उत्पाद जब लार्प्रद वसि हो े लर्ा तो बीसिीं र्ताब्दी क आरम्र् से अ ेक दसरे क्षेत्रों म ें र्ी बडेे़-बड़े कारखा ों की स्र्ाप ा हा े लर्ी। मर्ी ों से ब े िाली िस्तए सस्ती हो े के ु ां ू कारण ग्रामीण उद्योर् धन्धे उ से प्रवतस्पिाथ ही कर सके । र्ाि के लाखों कारीर्र बेरोजर्ार होकर इ ां कारखा ों म ें श्रवमकों के रूप में काम कर े के वलए वििर् हो र्ये। यही िह दर्ा ह ै वजस े एक प्रविया के रूप म ें हमारी सम्पणथ आवर्थक एि सामावजक सरच ा को बदल ा आरम्र् कर वदया। इस दर्ा में यह ू ां ां आिश्यक ह ै वक औद्योर्ीकरण के अर्थ तर्ा र्ारत म ें औद्योर्ीकरण की ितथमा वस्र्वत को समझकर सामावजक-आवर्थक जीि म ें इसके द्वारा उत्पन् हो े िाले प्रमख पररितथ ों पर विचार वकया जाए । ु 2.5‍औद्योगीकरण‍का‍अर् थ उद्योर्ों का विकास प्रत्येक समाज की एक अव िायथ विर्ेषता ह।ै इसके बाद र्ी उद्योर्ों का सम्बन्ध एक विर्ेष प्रकार की प्रविवध से होता ह।ै र्ारत म ें आज से हजारों िष थ पहले से यहाँ के अ ेक उद्योर् दव या ु र्र म ें प्रवसि र्े। उस समय की प्रविवध अर्िा प्रौद्योवर्की हस्तवर्लप पर आधाररत र्ी। धीरे -धीरे हमारा प्रौद्योवर्क ज्ञा जब इस अिस्र्ा म ें पहच र्या वक हार् से ब ी हई िस्तओ का स्र्ा मर्ी ों द्वारा ब ायी ु ु ु ां ां र्यी िस्तओ द्वारा वलया जा े लर्ा, तब इस प्रविया को औद्योर्ीकरण के ाम से सम्बोवधत वकया र्या। ु ां साधारणतया यह समझा जाता ह ै वक औद्योर्ीकरण का तात्पयथ उ र्ौवतक िस्तओ के उत्पाद से ह ै ु ां वज के द्वारा हम दवै क जीि की सख-सविधाओ को प्राप्त करते ह।ैं इस दृवष्ट को प्राप्त करते ह।ैं इस ु ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 56 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं दृवष्टकोण से घरेल उपकरणों, वबजली के सामा , मर्ी ों, यातायात के साध ों, िेलीफो और िेलीविज ू जसै ी िस्तओ के उत्पाद म ें िवि हो ा ही औद्योर्ीकरण ह।ै िास्ति में, यह औद्योर्ीकरण का बहत ु ृ ु ां सकवचत अर्थ ह।ै व्यापक अर्थ म ें औद्योर्ीकरण िह प्रविया ह ै वजसके अन्तर्तथ मर्ी ों द्वारा िस्तओ और ु ु ां ां सेिाओ का बड़ी मात्रा म ें उत्पाद करके दर्े म ें उपलब्ध प्राकवतक साध ों का अवधक से अवधक उपयोर् ृ ां कर े का प्रयत् वकया जाता ह।ै स्पष्ट ह ै वक जब हम खव ज पदार्ो, पा ी, ऊजाथ तर्ा व्यापाररक फसलों, जसै े- वतलह , पिस और कपास आवद के आवर्थक लार् प्राप्त कर े के वलए बड़ी मात्रा के उत्पाद में उ का उपयोर् करते ह,ैं तब इस प्रविया को औद्योर्ीकरण कहा जाता ह।ै इस दृवष्टकोण स े औद्योर्ीकरण उत्पाद का एक विर्ेष विवध ह।ै 2.6‍औद्योगीकरण‍की‍पशरर्ाषा विलबिथ मरे े औद्योर्ीकरण की प्रकवत को स्पष्ट करते हए वलखा ह,ै “ औद्योर्ीकरण िह र्ब्द ह ै ु ृ ू वजसका उपयोर् आवर्थक िस्तओ और सेिाओ के उत्पाद म ें र्वक्त के व जीि स्त्रोतों का व्यापक रूप से ु ां ां उपयोर् की प्रविया को ही औद्योर्ीकरण हीं कहा जा सकता। औद्योर्ीकरण एक ऐसी प्रविया ह ै वजसके द्वारा प्राकवतक स्त्रोतों का मर्ी ों की सहायता से इस तरह उपयोर् वकया जाता ह ै वजससे आवर्थक रूप से ृ उपयोर्ी िस्तओ का अवधक से अवधक उत्पाद कर े के सार् ही लोर्ों की सेिाओ और कर्लताओ ु ु ां ां ां का सिोत्तम उपयोर् वकया जा सके । क्लाकथ के र के र्ब्दों में, “औद्योर्ीकरण का अवर्प्राय एक ऐसी दर्ा से ह ै वजसम ें पहले का कषक अर्िा ृ व्यापाररक समाज एक औद्योवर्क समाज की वदर्ा की ओर पररिवतथत हो े लर्ता ह”ै । औद्योवर्क समाज की प्रमख विर्ेषता व्यवक्तर्त लार् के वलए उत्पाद कर ा ह।ै इस प्रकार जब कवर् तर्ा व्यापार का ृ ु उद्दश्े य बड़ी मात्रा के उत्पाद द्वारा व्यवक्तर्त लार् प्राप्त कर ा हो जाता ह ै तब इसे हम औद्योर्ीकरण कहते ह।ैं सयक्त राष्र सघ द्वारा दी र्यी एक ररपोिथ म ें कहा र्या ह ै “औद्योर्ीकरण आवर्थक विकास की प्रविया का ु ां ां एक विर्षे अर् ह ै वजसका उद्देष्य उत्पाद के साध ों की क्षमता को बढ़ाकर ज -जीि के स्तर को ऊचा ां ां उिा ा होता ह”ै । इ विवर्न् पररर्ाषाओ के आधार पर औद्योर्ीकरण की प्रकवत को इसकी कछ प्रमख विर्ेषताओ की ृ ु ु ां ां सहायता से इस प्रकार समझा जा सकता ह:ै i. औद्योर्ीकरण आवर्थक विकास की एक विर्ेष प्रविया ह ै वजसम ें उत्पाद का कायथ हार् की जर्ह मर्ी ों द्वारा वकया जाता ह।ै ii. इस प्रविया का उद्दश्े य दर्े के प्राकवतक और मा िीय साध ों का अवधकतम उपयोर् कर ा ह।ै ृ iii. औद्योर्ीकरण िह प्रविया ह ै जो श्रम-विर्ाज और विर्षे ीकरण पर आधाररत होती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 57 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं iv. इस प्रविया म ें उत्पाद का उद्दश्े य यी प्रविवधयों के उपयोर् द्वारा अवधक से अवधक लार् प्राप्त कर ा होता ह।ै v. पजी का सचय औद्योर्ीकरण का एक आिश्यक तत्ि ह ै क्योंवक बड़ी पजी के वब ा बड़ी मात्रा में ू ू ां ां ां उत्पाद हीं वकया जा सकता। vi. औद्योर्ीकरण का सम्बन्ध के िल िस्तओ के उत्पाद से ही हीं ह ै बवलक इसके द्वारा लोर्ों के ु ां श्रम और सेिाओ की उपयोवर्ता को बढ़ा े का र्ी प्रयत् वकया जाता ह।ै ां vii. एक प्रविया के रूप म ें यह सामावजक तर्ा आवर्थक पररितथ का प्रमख स्त्रोत ह।ै ु 2.7‍र्ारत‍म‍औद्योगीकरण‍तर्ा‍इसके ‍कारण‍ ें र्ारत में औद्योर्ीकरण का आरम्र् उन् ीसिीं र्ताब्दी के दसरे दर्क से ही हो चका र्ा लेवक ु ू औद्योर्ीकरण का िास्तविक विकास इस र्ताब्दी के मध्य से हआ। इस समय र्ारतीय पजी से यहा ु ूां ां अ ेक सती कपड़ों, पिस और लोह े के कारखा ों की स्र्ाप ा हई। इसके बाद र्ी वब्रविर् सरकार र्ारत ु ू म ें उद्योर्ों को अवधक विकवसत कर े के पक्ष म ें ही र्ी क्योंवक इससे इग्लैण्ड के आवर्थक वहतों पर ां प्रवतकल प्रर्ाि पड़ सकता र्ा। फलस्िरूप कछ प्रमख उद्योर्ों की स्र्ाप ा हो े के बाद र्ी सामान्य ू ु ु र्ारतिासी अप ी छोिी से छोिी आिश्यकता को परा कर े के वलए र्ी इग्लैण्ड और जापा म ें ब ी ू ां िस्तओ पर ही व र्रथ रहते र्े। ु ां र्ारत म ें स्ितत्रता के बाद जब व योवजत आवर्थक विकास की ीवत अप ायी र्यी, तब औद्योवर्क ां विकास को सिोच्च प्रार्वमकता दी जा े लर्ी। सरकार े यह लक्ष्य व धाथररत वकया वक दर्े म ें उपलब्ध कच्चे माल और प्राकवतक ससाध ों का अवधक से अवधक उपयोर् कर े उत्पाद म ें िवि की जाए तर्ा ृ ृ ां रोजर्ार के अिसरों को बढ़ाकर ज सामान्य के आवर्थक स्तर को ऊचा उिाया जाए । यी औद्योवर्क ां ीवत के द्वारा एक ओर व जी क्षेत्र म ें स्र्ावपत वकये जा े िाले कारखा ों को विर्षे सविधाए दी र्यी तो ु ां दसरी ओर सरकार े स्िय सािजथ व क क्षेत्र म ें बड़े-बड़े उद्योर् स्र्ावपत कर ा आरम्र् वकया। फलस्िरूप ां ू र्ारत म ें विवर्न् उद्योर्ों का तेजी से विकास हो े लर्ा। आज र्ारत म ें औद्योर्ीकरण की प्रविया को इसी तथ्य से समझा जा सकता ह ै वक इस समय हमारे दर्े म ें 1475 कपड़े की वमलों, 107 जि वमलों, 527 ू ची ी की वमलों, 55 कार्ज का उत्पाद कर े िाली बड़ी वमलाेे, बड़ी मात्रा म ें सीमन्े ि का उत्पाद ां कर े िाले 124 कारखा ों, 67 खाद ब ा े के कारखा ों तर्ा मर्ी ों का व माथण कर े िाले छोिे-बडेे़ 127 सयन्त्रों की स्र्ाप ा की जा चकी ह।ै लोह े और इस्पात का उत्पाद कर े िाले इत े बड़े-बड़े ु ां कारखा ों की स्र्ाप ा हई वक वज स्र्ा ों पर यह कारखा े लर्े, िहा वर्लाई, दर्ाथपर, जमर्दे पर, ु ु ु ां ु बोकरो, राउरके ला तर्ा बहार पर जसै े बड़े-बड़े औद्योवर्क र्र विकवसत हो र्ये। इसके अवतररक्त रबर ु ु उद्योर्, चमड़ा उद्योर्, पैरोवलयम, ि स्पवत तेलों, रासायव क उद्योर्ो, जहाजरा ी, खा उद्योर्, रेलिे, दिाओ के उत्पाद , वबजली के र्ारी सयत्रों, रक्षा-उपकरणों तर्ा जीि की विवर्न् आिश्यकताओ से ां ां ां सम्बवन्धत दसरे उद्योर्ों का र्ी तेजी से विस्तार हआ। ऐसे आधार उद्योर्ों के विकास पर र्ी विर्षे जो ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 58 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वदया र्या वज की सहायता से दसरे सैकड़ों उद्योर् विकवसत हो सकें । इ उद्योर्ों म ें श्रवमकों की बढ़ती हई ु ू सख्या से र्ी र्ारत में औद्योर्ीकरण के विकास का अ मा लर्ाया जा सकता ह।ै आज के िल सर्वित ु ां ां उद्योर्ों म ें ही लर्र्र् 2.90 करोड़ श्रवमक कायथ कर रह ें ह,ै जबवक दसरे उद्योर्ों म ें काम कर े िाले श्रवमकों ू की सख्या इससे अवधक ह।ै औद्योर्ीकरण का ही पररणाम ह ै वक र्ारत म ें के िल र्रों की सख्या में ां ां िवि होती जा रही ह ै बवलक व्यवक्तयों के जीि स्तर म ें र्ी काफी सधार हआ ह।ै ु ृ ु एक लम्बे समय से कवष-प्रधा दषे रह े के बाद र्ी र्ारत म ें औद्योर्ीकरण का वजस तेजी से विस्तार ृ हआ, िह अ ेक दर्ओ का पररणाम ह।ै अ ेक विद्वा यह मा ते ह ैं वक औद्योर्ीकरण का आविश्कारों ु ां तर्ा प्राकवतक ससाध ों से एक घव ष्ट सम्बन्ध ह ै लेवक ऐवतहावसक प्रणामों से स्पष्ट होता ह ै वक वकसी ृ ां र्ी दषे म ें औद्योर्ीकरण का तब तक विकास ही हो सका जब तक उस दर्े को राज ीवतक स्ितन्त्रता के सार् व योवजत पररितथ के अिसर प्राप्त हए हों। इसका तात्पयथ ह ै वक र्ारत म ें र्ी राज ीवतक ु स्ितन्त्रता तर्ा पचिषीय योज ाए औद्योर्ीकरण का सिप्रथ मख आधार ह।ै इसके बाद र्ी कछ अन्य ु ु ां ां सहायक दर्ाओ की प्रकवत का व म् ावकत रूप से समझा जा सकता ह।ै ृ ां ां i. प्राकन्द्तक ससाधनो की प्रचरता - औद्योर्ीकरण के वलए आिश्यक ह ै वक दर्े म ें ऐसे ृ ु ं प्राकवतक ससाध उपलब्ध हो जो उद्योर्ों की विवर्न् मार्ो का परा कर सके । र्ारत म ें लोह,े ृ ू ां ां कोयले, अभ्रक और मर्ै ीज जसै ी खव ज सम्पवत्तयों के विर्ाल र्ण्डार ह।ै पेरोवलयम
की मात्रा र्ी सतोषप्रद ह।ै जल-र्वक्त के क्षेत्र में र्ारत ससार के सबसे ध ी दर्े ों म ें से एक ह।ै यहा ऐसी ां ां ां ि स्पवतया उपलब्ध ह ै वज की सहायता से विवर्न् प्रकार क
ी औषवधया ब ायी जा सकती ह।ै ां ां स्ितन्त्रता के बाद जब इ ससाध ों के अवतररक्त कवष-उपज से प्राप्त विवर्न् पदार्ो का ृ ां व्यापाररक उपयोर् वकया जा े लर्ा ता औद्योर्ीरण म ें िवि हो ा स्िार्ाविक र्ा। ृ ii. नयी प्रौद्योन्द्र्की का न्द्वकास - औद्योर्ीकरण के वलये यी प्रौद्योवर्र्की पर आधाररत उन् त ज्ञा आिश्यक ह।ै यह सच ह ै वक र्ारत म ें औद्योर्ीकरण से सम्बवन्धत उ अविष्कारों का र्ी लार् उिाया र्या जो पवश्चमी समाजों के विकवसत हए र्े लेवक यहा की आिश्यकताआ के ु ां ां अ सार जब स्िदर्े ी प्रौद्योवर्की का तेजी से विकास हो े लर्ा, तब विदर्े ों पर हमारी व र्रथ ता ु समाप्त हो र्यी। आज र्ारत म ें ऐसी सर्ी मर् ों और उपकरणो का व माथण हो रहा ह ै जो औद्योर्ीकरण के वलए आिश्यक ह।ै iii. श्रम-र्न्द्ि की प्रचरता - विकवसत दर्े ों की तल ा म ें हमारे दर्े म ें श्रम-र्वक्त कहीं अवधक ह।ै ु ु र्ािों म ें वज लाखो-करोड़ों लोर्ों को कवष र्वम प्राप्त ही ह ै अर्िा जो िष थ म ें अवधकार् समय ृ ू ां ां तक बेरोजर्ार रहते ह,ै ि े कम मजदरी पर उद्योर्ों म ें श्रवमकों के रूप म ें काम कर े के वलये तैयार ू हो जाते ह ै इ के द्वारा वकये जा े िाले औद्योवर्क उत्पाद की लार्त र्ी कम होती । यह एक ऐसी दर्ा ह ै वजसके फलस्िरूप यहा औद्योवर्क विकास सरलता से सम्र्ि हो सका। ां iv. पररवहन की सन्द्वधाए - औद्योवर्क विकास के वलए पररिह की सविधाए एक आधारर्त ु ु ू ं ां दर्ा ह।ै इस समय र्ारत म ें एक लाख वकलोमीिर से अवधक लम्बी रेल लाई ह।ै दव या म ें ु सड़को का सबसे बड़ा जाल र्ारत म ें ह ै तर्ा सर्ी और ज जातीय समदाय के लोर्ों को एक ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 59 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं स्र्ा से दसरे स्र्ा पर जा े की सविधा उपलब्ध ह।ै दर्े के वकसी र्ी र्ार् म ें जब एक ए ु ू उद्योर् की स्र्ाप ा होती ह ै अर्िा वकसी उद्योर् का विस्तार होता ह ै तो पररिह की सविधायो ु के फलस्िरूप ही श्रवमकों की आपवतथ हो े म ें कोई कवि ाई ही होती। इस दर्ा म ें र्ी ू औद्योर्ीकरण के विकास म ें योर्दा वकया। v. अन्तरााष्ट्रीय प्रन्द्तस्पर्द्ाा - र्ारत म ें औद्योर्ीकरण के विकास का एक अन्य कारण अन्तराथष्रीय प्रवतस्पिाथ म ें र्रत द्वारा वहस्सा ले ा ह।ै ितथमा यर् म ें कोई र्ी दर्े अप ी आवर्थक वस्र्वत को ु के िल तर्ी मजबत ब ा सकता ह ै जब िह दसरे देर्ों से िस्तओ का आयात कर े के सार् ही ू ु ां ू स्िय र्ी विवर्न् िस्तओ का बड़ी मात्रा के उत्पाद करके उ का दसरे दर्े ों को व याथत कर ु ां ू सके । आयात और व याथत के सन्तल से ही हमारी अर्थव्यिस्र्ा मजबत ब ती ह।ै स्ितन्त्रता के ु ू बाद र्ारत े आवर्थक क्षेत्र म ें जसै े-जसै े अन्तराथष्रीय प्रवतस्पिाथ म ें वहस्सा ले ा र्रू वकया, यहा ु ां औद्योर्ीकरण म ें िवि होती र्यी। ृ vi. जीवन-स्तर में सधार - र्ारत म ें स्ितन्त्रता के बाद सर्ी िर्ों और क्षेत्रों के लोर्ों के जीि -स्तर ु म ें उललेख ीय सधार हआ। जीि -स्तर म ें सधा हो े से पहले उपर्ोर् की सामान्य ु ु ु आिश्यकताओ से सम्बवन्धत िस्तओ की मार् बढ़ी और बाद म े उ िस्तओ की मार् बढ़ े ु ु ां ां ां ां ां लर्ी वज का सम्बन्ध लोर्ों की कायथ-कर्लता को बढ़ा े से होता ह।ै इ बढ़ी हई मार्ों को परा ु ु ू ां करने के न्द्लए नए -नए उद्योर् स्थान्द्पत होने लर्े। vii. आन्द्थाक नीन्द्तया - हमारे दर्े म ें औद्योर्ीकरण का एक प्रमख कारण सरकार की आवर्थक और ु ं औद्योर्ीकरण ीवतया ह।ै र्ारत म ें स्ितन्त्रता के समय से ही एक वमवश्रत अर्थव्यिस्र्ा को ां प्रोत्साह वदया र्या। इसम ें आधारर्त उद्योर्ों को सािजथ व क क्षेत्र म ें विकवसत वकया र्या, ू जबवक अन्य उद्योर्ों का विकास व जी क्षेत्र के वलए छोड़ वदया र्या। श्रम-कलयाण तर्ा श्रम- सरक्षा के वलए ऐसे बहत से का ब ाये र्ये वजससे श्रवमकों के र्ोषण को रोका जा सके तर्ा ु ु ू उ की कायथ-कर्लता को बढ़ाया जा सके । यह दर्ा र्ी औद्योर्ीकरण के विकास म ें सहायक ु वसि हई। ु उपयथक्त दर्ाओ के अवतररक्त वर्क्षा सस्र्ाओ द्वारा वदया जा े िाला प्रौद्योर्ीक ज्ञा , ए आविष्कार, ु ां ां ां र्रीकरण की प्रविया तर्ा बैंवकर् सविधाओ का विस्तार आवद ि े सहायक दर्ाए ह ै वजन्हों े ु ां ां औद्योर्ीकरण के विकास म ें महत्िपण थ योर्दा वकया। ू 2.8‍र्ारत‍म‍औद्योगीकरण‍की‍आवनाश्यकता ें ितथमा विश्व म ें कोई दर्े चाह े विकवसत हो अर्िा विकासर्ील, औद्योर्ीकरण सर्ी देर्ों की एक प्रमख ु आिश्यकता ह।ै सच तो यह ह ै वक आज विवर्न् दर्े ो की षवक्त का मलयाक उ के औद्योर्ीक विकास ू ां के आधार पर ही वकया जाता ह।ै अ के विद्वा यह मा ते ह ै वक ससार म ें के िल उन्हीं सभ्यताओ का एक ां ां लम्बा इवतहास रहा ह ै वज की अर्थव्यिस्र्ा कवर् प्रधा होती ह।ै लेवक यरोप और खाड़ी के अ ेक दर्े ों ृ ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 60 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता ह ै वक वज दर्े ों के पास खते ी के वलए पयाथप्त र्वम र्ी उपलब्ध हीं ह,ै ू उन्हो े औद्योवर्क विकास के द्वारा अप े व िावसयों के जीि -स्तर को काफी ऊचा ब ा वलया। इस ां सन्दर् थ म ें औद्योर्ीकरण की क्या आिश्यकता ह ै ? वब्रविर् र्ास के बाद र्ारत जब स्ितन्त्र हआ, तब ु हमारे साम े ऐसी अ ेक र्म्र्ीर समस्याए र्ी वज का समाधा औद्योर्ीकरण के द्वी द्वारा वकया जा सकता ां र्ा। इस सन्दर् थ म ें यहा औद्योर्ीकरण की आिश्यकता को व म् ावकत क्षेत्रो म ें स्पष्ट वकया जा सकता ह ै - ां ां i. सिप्रथ र्म, दर्े के आवर्थक ससाध ों का समवचत उपयोर् कर े के वलए औद्योर्ीकरण आिश्यक ु ां ह।ै कोई र्ी दर्े अप े खव ज पदार्ों और प्राकवतक षवक्तयों का तब तक पण थ उपयोर् हीं कर ृ ू सकता जब तक िहा विवर्न् प्रकार के उद्योर्ों का विकास हो। यहा तक वक खते ी में ां ां व्यापाररक फसलों को र्ी प्रोत्साह तर्ी वमल पाता ह ै जब औद्योवर्क विकास के द्वारा उ का समवचत उपयोर् वकया जाए । ु ii. दर्े के सन्तवलत आवर्थक विकास के वलए र्ी औद्योर्ीकरण आिश्यक ह।ै र्ारत म ें आज र्ी ु यहा की ती -चौर्ाई ज सख्या कवष पर आधाररत हो े के कारण बहत व धथ ह।ै औद्योर्ीकरण ु ृ ां ां के द्वारा एक ओर कवष-र्वम पर ज सख्या का दबाि कम वकया जा सकता ह ै तो दसरी ओर ृ ू ां ू र्वमही वकसा ों को उद्योर्ों म ें रोजर्ार के अवतररक्त अिसर प्राप्त हो सकत ह।ैं औद्योर्ीकरण के ू सार् सर्ी िर्ों के लोर्ों को व्यापार और िावणज्य की अवतररक्त सविधाए वमल े से उ की ु ां आवर्थक वस्र्ती म ें सधार होता ह।ै ु iii. र्ारत जसै े विकासर्ील दर्े म ें विवर्न्
क्षेत्रों की आवर्कथ असमा ताेाओ को दर कर ा ां ू औद्योर्ीकरण के द्वारा ही सम्र्ि ह।ै उदाहरण के वलये, पितथ ीय क्षेत्रों म ें छोिे उद्योर्ों को स्र्ावपत करके तर्ा खव ज पदार्ो िाले क्षेत्रों के व
कि बड़े उद्योर् स्र्ावपत करके लोर्ों को आजीविका के अवधक अिसर वमल सकते ह।ै iv. कवष के वििके पण थ सर्ि के वलए र्ी औद्योर्ीकरण आिश्यक ह।ै औद्योर्ीकरण के वब ा तो ृ ू ां वकसा ों को रासायव क खाद,ें उन् कवष उपकरण तर्ा वसचाई के साध
प्राप्त हो सकते ह ै और ृ ां ही उन्ह ें अप ी कवष उपज का समवचत मलय प्राप्त हो सकता ह।ै इसका तात्पयथ ह ै वक र्ारत जसै े ृ ु ू कवष-प्रधा दर्े म ें औद्योर्ीकरण के द्वारा ही कवष उत्पाद म ें िवि करके कषकों की दर्ा म ें ृ ृ ृ ृ सधार वकया जा सकता ह।ै ु v. बेरोजर्ारी की समस्या का प्रर्ािपण थ समाधा औद्योर्ीकरण के द्वार
ा ही सम्र्ि ह।ै ू औद्योर्ीकरण से लोर्ों को के िल कारखा ों म ें काम कर े के ही अिसर प्राप्त हीं होत बवलक ऐसे बहत से ए व्यिसाय र्ी स्र्ावपत हो े लर्ते ह ै वज से एक बड़ी सख्या म ें लोर्ों को ु ां आजीविका उपवजतथ कर े के अिसर वमल जाते ह।ैं व्यापार और िावणज्य म ें िवि हो े से र्ी ृ बेरोजर्ारी की समस्या अवधक र्म्र्ीर हीं रह जाती। vi. औद्योर्ीकरण का ज साधारण के जीि -स्तर म ें सधार ला े म ें एक प्रत्यक्ष योर्दा होता ह।ै ु उत्पाद म ें िवि हो े से प्रवत व्यवक्त आय बढ़ती ह ै तर्ा इसके सार् ही लोर्ों की कायथ-कर्लता ृ ु र्ी बढ़ े लर्ती ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 61 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं vii. आज सर्ी व्यवक्त औद्योर्ीकरण को इसवलए आिश्यक मा ते ह ै वक यह सामावजक पररितथ एक प्रमख स्त्रोत ह।ै औद्योवर्क विकास के फलस्िरूप व्यवक्तयों के जीि -स्तर म ें ही सधार हीं ु ु होता बवलक उ की म ोिवत्त्यों और विचारों म ें र्ी पररितथ हो े लर्ता ह।ै औद्योवर्क विकास के सार् वर्क्षा को एक ऐसा स्िरूप वमल े लर्ता ह ै जो तकथ और वििके पर आधाररत होता ह।ै इससे अन्धविश्वासों, कप्रर्ाओ और र्ाग्यिावदता म ें कमी हो े लर्ती ह।ै महे त, कायथ-कर्लता ृ ु ां और समय का अवधकतम उपयोर् औद्योर्ीकरण से उत्पन् हो े िाली कछ प्रमख दर्ाए ह।ै ु ु ां viii. राष्रीय र्वक्त के विकास के दृवष्टकोण से र्ी र्ारत के वलए औद्योर्ीकरण आिश्यक ह।ै आज वकसी राष्र का मलयाक उसकी सैव क र्वक्त के आधार पर हीं वकया जाता बवलक औद्योवर्क ू ां अर्िा आवर्थक र्वक्त के आधार पर वकया जात ह।ै ितथमा दर्ाओ म ें औद्योर्ीकरण के द्वारा ही ां हमारे दर्े को ि े साध प्राप्त हो सकते ह ै जो दर्े को आवर्थक रूप से सर्क्त ब ा े के वलए आिश्यक ह।ै आजादी के एक लबें अतराल के बाद र्ी र्ारत विकवसत दर्े की श्रेणी म ें अर्ी तक हीं आ सका ह,ै ां ां जबवक हमारे बाद स्ितत्र हए कई दर्े सफलता की अवग्रम पवक्त म ें ह।ैं ऐसा हीं ह ै वक प्रयास हीं हए। ु ु ां ां प्रयास हए, तर्ी तो आज हम मर्लया का अवर्या परा कर पाए, लेवक इस सच को सर्ी स्िीकारेंर्े ु ू ां वक विकास की र्वत काफी धीमी ह।ै एक सौ बीस करोड़ की आबादी िाला देर् अर्र चाह े तो क्या हीं कर सकता,खासकर जब इ मे यिाओ की सख्या सिाथवधक हो। तो वफर क्या कारण ह ै हमारे विकास की ु ां ां र्वत धीमी रही क्या अिसर की कमी रही या अर्थ की या वफर सामावजक पररवस्र्वतया विकास के ां अ कल हीं र्ीं या वफर लाल फीतार्ाही रही वजम्मदे ार, धमथ, जावत, िर्थ, क्षेत्र, र्ाषा, सम्प्रदाय आवद में ु ू बिे दर्े से हम उम्मीद र्ी वकत ा का सकते ह ै समस्या एक हो तो उसकी चचाथ की जा सकती ह,ै लेवक ां यहा तो समस्याए अ त ह।ै िैश्वीकरण के इस दौर म ें हम े सबसे अवधक वकसी चीज को अर्ीकार वकया ां ां ां ां ह ै तो िह ह,ै उपर्ोक्तािादी सस्कवत। सार् ही हम े िश्वै ीकरण म ें आधव कता के ाम पर पाश्चात्य ृ ु ां सस्कवत का अन्धा करण वकया। हम िश्वै ीकरण की सही र्ाि ा को र्ायद समझ सके । ृ ु ां कोई र्ी समस्या ऐसी हीं ह ै वजसका समाधा हो। आिश्यकता ह ै सापेक्ष सोच की, एक ऐसे प्रयास की, वजसम ें सच्चाई हो और सामावजक पररितथ की चाह हो। सदी के विकास लक्ष्यों के हम जदीक र्ी हीं पहच पाए और समय बीत र्या। विकास की र्वत को अके ले सरकार या वफर व्यवक्त या वफर सस्र्ा ु ां ां तेज हीं कर सकती। इसके वलए एक समग्र एि सामवहक प्रयास की आिश्यकता ह।ै इसके वलए जहा ु ां ां एक ओर सरकार की राज ीवतक इच्छा र्वक्त चावहए, िहीं कॉरपोरेि, स्ियसेिी सस्र्ा तर्ा अन्य ां ां सस्र्ा ों की सहर्ावर्ता र्ी। ां विद्यालय समाज का लघ रूप ह।ै इसका एक अर्थ यह र्ी ह ै वक िह समाज की बदलती हई ु ु आिश्यकताओ को प्रवतवबम्बत करता ह।ै अस्त उसे समाज की आिश्यकताओ के पररितथ के सार्- ु ां ां सार् बदलते रह ा चावहये। आधव क काल म ें समाज के ज तन्त्रीय मलयों को सबसे ऊचा स्र्ा वदया ु ू ां जाता ह।ै दसरे र्ब्दों मे, स्ितत्रता, सामा ता और भ्रातत्ि आज समाज की मार्ें ह ैं ऐसी वस्र्वत में ृ ां ां ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 62 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं विद्यालय म ें ऐसे कायथिमों का आयोज वकया जा ा चावहये, वज से विद्यावर्थयों म ें ज तन्त्रीय र्णों का ु विकास हो। विद्यालय म ें विवर्न् सस्र्ाए स्िय विद्यावर्थयों के द्वारा चलायी जा ी चावहये और इ के ां ां ां सविधा जन्तन्त्रात्मक हो े चावहये । इससे इ सस्र्ाओ म ें र्ार् लेकर विद्यार्ी ज तन्त्रीय जीि का ां ां ां प्रवर्क्षण प्राप्त कर सकें र्े। विद्यालयों के द्वारा ही समाज से योग्य र्ासकों और ेताओ का व माथण होता ह।ै ां आज के विद्यार्ी ही कल के समाज म ें विवर्न् क्षेत्रों म ें ेतत्ि करेंर्।े इस बात को ध्या म ें रखते हये ु ृ विद्यालय म ें अ र्ास , वर्क्षा पिवत, पाियिम आवद वर्क्षा के विवर्न् अर्ों म ें ऐसे वसिान्त अप ाये ् ु ां जा े चावहयें वज से बालाकों के ज तन्त्रीय ेतत्ि का विकास हो। ृ एक लघ समदाय के रूप म ें विद्यालय के डीिी द्वारा खीचें र्ये वचत्र को अ ेक आधव क विद्यालयों में ु ु ु सजीि रूप द े े का प्रयास वकया र्या ह ै उसके विचारों से स्कल म ें स्िर्ास और स्ियिस्र्ा के वसिान्त ू मा े जा े लर्े। आधव क काल म ें एक्िीवििी स्कल और योज ा-प्रणाली के रूप म ें विद्यालय-सर्ि ु ू ां वर्क्षा-पिवत पर डीिी का प्रर्ाि वदखाई पड़ता ह।ै समाज वर्क्षा-सस्र्ाओ की स्र्ाप ा करके उ से इस बात की अपेक्षा करता ह ै वक ि े बालकों म ें उ र्णों ु ां ां को विकवसत करें , वजन्ह ें प्राप्त कर ि े समाज की विर्न् वियाओ म ें कर्लतापिकथ र्ार् ले सकें । समाज ु ू ां अप ी ओर से प्रत्येक व्यवक्त के विकास एि उसके वहतों की रक्षा के वलए प्रयत् र्ील रहता ह ै और उससे ां अपेक्षा करता ह।ै वक ि े सामावजक जीि को स्र्ावयत्ि प्रदा करें। इससे स्पष्ट ह ै वक विद्यालय का सबसे महत्िपण थ उत्तरदावयत्ि यह ह ै वक बालक तर्ा बावलकाओ को समाज के आदर्ों , विचारधाराओ एि ू ां ां ां परम्पराओ आवद से अिर्त कराये तर्ा उ म ें समाज को समि ब ा े के वलये उत्कण्िा उत्पन् करें। ृ ां उपरोक्त वििचे के आधार पर कहा जा सकता ह ै वक समाज वर्क्षा की समवचत व्यिस्र्ा वकये वब ा ु जीवित हीं रह सकता और ही र्वै क्षक सस्र्ाऐ समाज की मार्ों को पण थ वकये वब ा वस्र्र रह सकती ू ां ां ां ह।ै वजस समाज म ें विद्यालय वस्र्त होता ह,ै उसका विद्यालय पर सामावजक, राज ैवतक एि सास्कवतक ृ ां ां प्रर्ाि अिश्य पड़ता ह।ै जो ार्ररक विद्यालय का व्यय-र्ार उिाते ह ैं ि े उसकी वर्क्षा की मात्रा तर्ा प्रकार पर व यन्त्रण रखते ह।ैं विद्यालय अप ा आदर् थ प्रस्तत करके तर्ा समाज की अप्रत्यक्ष रूप से ु आलोच ा करके उसके दवषत िातािरण को र्ि ब ा े का प्रयत् करता ह।ै सार् ही िह ऐसे ार्ररकों ु ू को तैयार करता ह ै जो र्ािी समाज का व माथण करते ह ैं अतः इ दो ों म ें पारस्पररक व र्रथ ता पायी जाती ह।ै 2.9‍लोकताशां िक‍शशक्षा‍का‍अर्थ‍ लोकतन्त्रीय वर्क्षा का अर्थ ह-ै वर्क्षा से लोकतन्त्र की विचारधारा का प्रर्ाि। वर्क्षा के क्षेत्र म ें लोकतन्त्र के वसिान्तों तर्ा मलयों का समािर्े अर्ी कछ िष थ पि थ से ही हआ ह।ै इस महत्िपण थ पररितथ का श्रेय ु ू ु ू ू अमरीका के प्रवसि वर्क्षार्ास्त्री जॉ डीिी को ह।ै उस े बताया ह ै वक ‘एक लोकतन्त्रीय समाज म ें ऐसी वर्क्षा की व्यिस्र्ा कर ी चावहये वजससे प्रत्येक व्यवक्त सामावजक कायों तर्ा सम्बन्धों म ें व जी रूप से उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 63 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं रुवच ले सके । इस वर्क्षा को म ष्य म ें प्रत्येक सामावजक पररितथ ों को दृढ़तापिकथ स्िीकार कर े की ु ू सामथ्यथ उत्पन् कर ी चावहये।‘ डीिी के इस कर् से लोकतन्त्र के वसिान्तों तर्ा मलयों का प्रयोर् वर्क्षा ू के क्षेत्र म ें वकया जा जा े लर्ा। पररणामस्िरूप अब वद -प्रवतवद ज साधारण की वर्क्षा का आन्दोल चारों ओर जोर पकड़ता जा रहा ह।ै िीक र्ी ह ै वर्वक्षत हो े पर ही व्यवक्त अप े अवधकारों के सम्बन्ध म ें जार्रूक हो सकता ह ै तर्ा अप े कतथव्यों को ज वहत के वलए व र्ा े म ें तत्पर हो सकता ह।ै अवर्वक्षत एक ऐसा िर् थ ब जाता ह ै जो दसरे व्यवक्तयों के ऊपर अप ी इच्छाओ को र्ोप े लर्ता ह।ै इससे ां ू लोकतन्त्र का मख्य लक्ष्य श्ि हो जाता ह।ै चँवक लोकतन्त्रीय व्यिस्र्ा म ें दर्े के सर्ी ार्रीक र्ास में ु ू र्ार् लेते ह,ैं इसीवलए उ सब म ें वर्क्षा के द्वारा इत ी योग्यता अिश्य उत्पन् की जा ी चावहये वक ि े मतदा के महत्ि को समझते हए अप े कतथव्यों कत्तव्थ यों एि उत्तरदावयत्िों को सफलतापिकथ व र्ा सकें । ु ू ां इसी दृवष्ट से अब लोकतन्त्र की रक्षा के वलए प्रत्येक लोकतन्त्रीय दर्े म ें सिसथ ाधारण की अव िायथ तर्ा व ःर्लक वर्क्षा की व्यिस्र्ा की जा रही ह।ै ु 2.10 ‍शशक्षा‍म‍लोकतन्िीय‍शवनाचारधारा‍का‍प्रर्ावना‍श म् शलशित‍बातों‍पर‍ ें पड़ा‍ह-ै i. समान अवसर प्रदान करना तथा व्यन्द्िर्त न्द्वन्द्भन्नता का आदर करना - लोकतन्त्र में प्रत्येक बालक समाज की एक पवित्र एि अमलय व वध होता ह।ै अतः प्रत्येक बालक को उसकी ू ां समस्त र्वक्तयों के विकास हते समाज म ें अिसर प्रदा वकये जा रह े ह।ें समा अिसरों के प्रदा ु कर े का अर्थ सब बालकों को एक जसै े अिसर प्रदा कर ा हीं ह।ै कारण यह ह ै वक वज अिसरों से मद बवि िाले बालकों को लार् हो सकता है, उ से सामान्य बवि िाले बालकों को ु ु ां र्ी पयाथप्त लार् हो ा आिश्यक हीं ह।ै ऐसे ही, प्रखर बवि िाले बालकों के सार् एक जैसे ही ु अिसर प्रदा वकये जायें। अतः अब वर्क्षा प्रदा करते समय व्यवक्तर्त विवर्न् ता के वसिा त को दृवष्ट म ें रखते हए प्रत्येक बालक की रुवचयों, योग्यताओ तर्ा क्षमताओ को ध्या म ें रखा ु ां ां जाता ह।ै ii. सावाभौन्द्मक तथा अन्द्नवाया न्द्र्क्षा - लोकतन्त्र म ें सरकार की बार्डोर ज ता के हार् म ें होती ह।ै इसीवलए प्रत्येक व्यवक्त को जहाँ एक ओर अप े अवधकारों तर्ा कतथव्यों का ज्ञा हो ा चावहये िहाँ दसरी ओर उसे पक्षपात तर्ा अज्ञा के अन्धकार से र्ी दर रह ा परम आिश्यक ह।ै ू ू अतः अब प्रत्येक बालक को वब ा वकसी र्दे -र्ाि के एक व वश्चत स्तर तक अव िायथ रूप से वर्क्षा प्राप्त कर े की व्यिस्र्ा की जा रही ह ै वजससे िह अप े दर्े की उवचत सरकार का व माथण कर सके । iii. न्द्निःर्ल्क न्द्र्क्षा - लोकतन्त्र सािर्थ ौवमक तर्ा अव िायथ एि समा अिसरों के प्रदा कर े म ें ु ां विश्वास रखता ह।ै इसका अर्थ यह हआ वक वर्क्षा म ें िर्थ-र्दे अर्ाथत व धथ एि ध िा के ु ् ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 64 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं अन्तर का कोई स्र्ा हीं ह।ै इसवलए अब वर्क्षा सािर्थ ौवमक तर्ा अव िायथ ही हीं अवपत ु व ःर्लक र्ी होती जा रही ह।ै चँवक ज तन्त्र म ें वर्क्षा प्रत्येक व्यवक्त का जन्म-वसि अवधकार ह,ै ु ू इसवलए अमरीका, रूस, िकी तर्ा फ्रास एि जाप आवद सर्ी लोकतन्त्रीय दर्े ों े प्रत्येक ां ां बालक के वलए एक व वश्चत स्तर तक की व ःर्लक वर्क्षा अव िायथ कर दी ह।ै सार् ही उक्त ु सर्ी राज्य अन्धें, बह े, र्र्ँ े, लर्डेे़, मन्द-बवि तर्ा कर्ाग्र बवि एि मा वसक न्यिता ग्रस्त ू ु ु ु ू ां ां सर्ी प्रकार के बालकों की वर्क्षा का उवचत प्रबन्ध कर रह े ह।ैं iv. प्रौढ़ न्द्र्क्षा की व्यवस्था - लोकतन्त्रीय विचारधारा को दृवष्ट म ें रखते हए विवर्न् देर्ों में प्रौढ़ ु वर्क्षा, स्त्री वर्क्षा तर्ा विकलार् व्यवक्तयों की वर्क्षा पर बल वदया जा रहा ह।ै इस सम्बन्ध म ें ां विवर् राज्यों म ें रात्री स्कलों, सन्िे-कोवसथज तर्ा प्रौढ़-सावहत्य की व्यिस्र्ा की जा रही ह।ै ू v. बाल-के न्द्न्ित न्द्र्क्षा - लोकतन्त्रीय विचारधारा के प्रर्ाि से अब बालक के व्यवक्तत्ि की प्रधा ता दी जा रही ह।ै अतः अब ऐसे िातािरण का व माथण वकया जाता ह ै वजसम ें रहते हए ु बालक के व्यवक्तत्ि का सिाांर्ीण, विकास हो जाए । दसरे र्ब्दों में, अब वर्क्षा बाल-के वन्ित ू होती जा रही ह।ै vi. न्द्र्क्षण पर्द्न्द्तयााँ - अब बालकों की रुवचयों एि र्वक्तयों का दम कर े िाली रूवढ़र्त, ां सामवहक वर्क्षण प्रणाली समाप्त होती जा रही ह।ै पररणामस्िरूप अब बालकों के मवस्तष्क म ें ू ज्ञा को बलपिकथ िँस े पर बल हीं वदया जाता अवपत लोकतन्त्रीय विवधयों का प्रयोर् करत े ू ू ु हए ऐसे िातािरण का व माथण वकया जाता ह ै वजसम ें रहते हए प्रत्येक बालक ज्ञा की खोज स्िय ु ु ां कर सके । vii. व्यन्द्िर्त अध्ययन का महत्व - लोकतन्त्रीय विचारधारा से प्रर्ावित होते हए अब वर्क्षक ु बालकों के व्यवक्तर्त अध्यय के महत्ि को दृवष्ट म ें रखते हए उ की पाररिाररक-पररवस्र्वतयों, ु म ोिज्ञै ाव क विर्ेषताओ, सास्कवतक पष्ठर्वम तर्ा अवर्िवत्तयों को समझ े का प्रयास कर रह े ृ ृ ृ ू ां ां ह।ैं viii. सामान्द्जक न्द्क्रयायें - अब स्कल म ें के िल पस्तकीय ज्ञा पर बल दते े हए सामावजक- ु ू ु वियाओ तर्ा सामावजक-तत्िों को मख्य स्र्ा वदया जाता ह ै वजससे प्रत्येक बालक सामावजक ु ां अ र्ि प्राप्त कर सके । ु ix. छात्र-पररषद - लोकतन्त्रीय र्ाि ा से प्रेररत होते हए अब स्कलों म ें छात्र-सघ अर्िा छात्र- ु ू ां ् पररषद आवद को प्रोत्साह वदया जाता ह।ै ् x. न्द्र्क्षक के व्यन्द्ित्व का सम्मान - लोकतन्त्रीय व्यिस्र्ा म ें वर्क्षक के व्यवक्तत्ि को सम्मा की दृवष्ट स े दखे ा जाता ह।ै अतः लोकतन्त्रीय र्ाि ा से प्रेररत होते हए अब वर्क्षक से जहाँ एक ु ओर पाियिम के व माथण म ें सहयोर् प्राप्त वकया जा रहा ह,ै िहाँ दसरी ओर उसे वर्क्षण कायथ के ् ू वलए र्ी आिश्यकता सार वर्क्षण-विवधयों म ें पररितथ कर े की स्ितन्त्रता प्रदा की जा रही ह।ै ु यही हीं, अब वर्क्षक को अप ी व्यािसावयक कर्लता को बढ़ा े के वलए र्ी अ ेक सविधाएँ ु ु दी जा रही ह।ैं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 65 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं xi. स्कल-प्रर्ासन - लोकतन्त्रीय र्ाि ा के प्रर्ाि से अब स्कल के सर्ि एि प्रर्ास कायों में ू ू ां ां बालकों को र्ार् ले े के अिसर वदये जा रह े ह ैं वजसम ें उ में स्िर्ास की र्ाि ा विकवसत हो जाए । xii. बन्द्र्द् परीक्षाए - अब बालकों की मा वसक योग्यता का मलयाक कर े के वलए बवि ु ू ु ं ां परीक्षाओ का प्रयोर् वकया जा रहा ह।ै ां xiii. बालक का र्ारीररक स्वास््य - बालक को र्ारीररक दृवष्ट से स्िस्र् रख े के वलए अब स्कल ू म ें जहाँ एक ओर ा ा प्रकार के खले ों का प्रबन्ध वकया जा रहा है, िहाँ दसरी ओर स्कल के ू ू अस्पताल का डॉक्िर प्रत्येक बालक के र्ारीररक स्िास्थ्य की परीक्षा करके उसे पण थ स्िस्र् ू ब ा े के वलए अप ा व जी परामर् थ र्ी दते ा ह।ै xiv. स्कल - लोकतन्त्रीय र्ाि ा के प्रर्ाि से अब स्कल को ऐसा स्र्ा समझा जाता ह ै जहाँ पर ू ू प्रत्येक बालक ार्ररकता की वर्क्षा के सार्-सार् विश्व-बन्धत्ि की वर्क्षा प्राप्त करते हए ु ु मा िता के आदर्ों को विकवसत कर सकता ह।ै दसरे र्ब्दों में, अब स्कल को समाज का लघ ू ु ू रूप मा ा जा े लर्ा ह।ै xv. न्द्र्क्षा के समस्त साधनों में सहयोर् - लोकतन्त्रीय समाज म ें वर्क्षा के समस्त साध ों में परस्पर सहयोर् होता ह।ै अतः अब ज तन्त्र के प्रर्ाि से पररिार, स्कल, समदाय तर्ा धम थ एि ू ु ां राज्य आवद वर्क्षा के समस्त साध ों म ें सहयोर् स्र्ावपत कर े के वलए कदम उिाये जा रह े ह।ैं 2.11‍सदां र्‍थ ग्रांर्‍सची‍ ू 1. ए .आर.स्िरूप सक्से ा,वर्खा चतिदे ी (2008) उदीयमा र्ारतीय समाज म ें वर्क्षक , मरे ि, ु आर.लाल बक वडपो। ु 2. पािक एि त्यार्ी, वर्क्षा के वसद्वान्त, आर्रा, वि ोद पस्तक मवन्दर। ु ां ां 3. रम वबहारी लाल (2007) वर्क्षा के दार्वथ क एि समाजर्ास्त्रीय आधार, मरे ि ,रस्तोर्ी ां पवब्लके र् । 4. डा वर्रीर् पचौरी (2007) वर्क्षा और समाज मरे ि, इण्िर ेर् ल पवब्लवर्र् हाउस। ां ां 5. डा रामर्कल पाण्डेय (2008) उदीयमा र्ारतीय समाज म ें वर्क्षक, आर्रा,अग्रिाल ां पवब्लवर्र् हाउस। ां 6. ए .आर.स्िरूप सक्से ा,डॉ० के .पी. पाण्डेय, (1993-94) वर्क्षा वसद्वान्त, मरे ि, आर.लाल. बक वडपो। ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 66 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.12‍श बधात्मक‍प्रश्न‍ ां 1. समाज से आप क्या समझते ह ैं ? 2. सामावजक पररितथ की अिधारणा को समझाइये। 3. लोकतावत्रक वर्क्षा की विस्तत रूप से व्याख्या कीवजए। ृ ां 4. औद्योर्ीकरण की व्याख्या कीवजए। 5. औद्योर्ीकरण तर्ा इसके कारणो की व्याख्या अप े र्ब्दों में वलख।े 6. लोकतावत्रक वर्क्षा का अर्थ एि पररर्ाषा को वलखों। ां ां 7. र्ारत म ें औद्योर्ीकरण की आिश्यकता एि महत्ि को स्पष्ट कीवजए। ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 67 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 3- आधशनक मूल्र्ों र्र्ा जैसे शनष्पक्षता एवां ु समानता, वैर्शिक अवसर , सामाशजक न्र्ार् एवां सम्मान के सन्दर् में शशक्षा अवसर (बाबा साशहब अम्बेडकर) के थ शवशेष सन्दर् में थ Education in Relation to Modern Values like Equity and Equality, Individual Opportunity and Social Justice and Dignity, with Special Reference to Baba Saheb Ambedkar 3.1 प्रस्ताि ा 3.2 उद्दश्े य 3.3 मलयों की आिश्यकता एि महत्ि ू ां 3.4 पाियिम में ैवतक मलयों का स्र्ा ् ू 3.5 समाज में ैवतक मलयों का स्र्ा ू 3.6 मलय का अर्थ एि पररर्ाषाए ू ां 3.7 मलय-वर्क्षा ऐवतहावसक पररप्रेक्ष्य में ू 3.8 विवर्न् वर्क्षा आयोर्ों के पररप्रेक्ष्य में मलय-वर्क्षा ू 3.9 डॉ0 अम्बेडकर का वचन्त और व्यापक विचार 3.10 सारार् ां 3.11 व बधात्मक प्रश्न ां 3.12 सन्दर्थ ग्रर् सची ू ां 3.1‍प्रस्तावना ा वर्क्षा के द्वारा व्यवक्त का सिाथर्ीण विकास होता ह ै उत्तम वर्क्षा ग्रहण करके ही व्यवक्त समाज का उत्तम ार्ररक ि उत्तरदायी घिक ब ता ह।ै वर्क्षा से ही व्यवक्त सही रूप म ें वचत कर ा सीखता ह।ै वर्क्षा ां समाज का दपथण ह।ै बच्चों के विकास म ें वर्क्षा की बहत महत्िपण थ र्वमका होती ह।ै अतः प्रत्येक समाज ु ू ू का यह उत्तरदावयत्ि होता ह ै वक िह अप े बच्चें के वलए अच्छी प्रारवमक वर्क्षा की व्यिस्र्ा करें। वर्क्षा उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 68 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं के द्वारा ही हमारी कीवतथ
का प्रकार् चारों और फै लता ह।ै वजस प्रकार सयथ का प्रकार् पाकर कमल का ू फल वखल उिता ह,ै तर्ा सयथ अस्त हो े पर कम्हला जाता ह,ै िीक उसी प्रकार वर्क्षा के प्रकार् क
ो ू ू ु पाकर प्रत्येक व्यवक्त कमल के फल की र्ाँे वत वखल उिता ह ै तर्ा अवर्वक्षत रह े पर दररिता र्ोक एि ू ां कष्ट के अन्धकार म ें डबा रहता ह।ै ू वर्क्षा के द्वारा समाज र्ािी पीढ़ी के बालकों को उच्च आदर्ों आर्ाओ आकाक्षाओ आवद को इस ां ां ां प्रकार से हस्तान्तररत करता है, वक उ के हृदय म ें दर्े प्रेम तर्ा त्यार् की र्ाि ा प्रज्िवलत हो जाती ह।ै वर्क्षा विकास के वलए परम आिश्यक ह।ै वर्क्षा का मा ि जीि म ें बहत महत्ि होता ह ै के िल वर्क्षा हम ें आत्मव र्रथ ब ाती ह ै बवलक अप े ु चारों ओर के सामावजक आवर्थक ि राज ैवतक पयाथिरण को समझ े की र्वक्त र्ी प्रदा करती ह।ै वर्क्षा व्यवक्त समाज एि राष्र की प्रर्वत के सार्-सार् सभ्यता एि सस्कवत के विकास के वलए र्ी आिश्यक ह।ै ृ ां ां ां विश्व के सर्ी दार्वथ कों और विद्वा ों े समय-समय पर वर्क्षा के महत्ि को इवर्त वकया ह ै जसै े- ां  र्ााँधी जी का मानना था न्द्क - बच्चों को व ःर्लक ि अव िायथ वर्क्षा वमल ी चावहए और ु ऐसी वर्क्षा जो उ का र्ारीररक, मा वसक और आध्यावत्मक विकास कर सके ऐसे ही विचार स्िामी वििके ा न्द े र्ी व्यक्त वकए र्े।  फ्राबेल के र्ब्दों में - ‘‘वर्क्षा िह प्रविया ह ै वजसके द्वारा बालक की जन्मजात र्वक्तयाँ बाहर प्रकि होती ह।ैं ’’  रन्द्वन्िनाथ टैर्ोर के अनसार -
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‘‘वर्क्षा का तात्पयथ ह ै - मवस्तष्क को इस योग्य ब ा ा वक िह ु व रन्तर सत्य को पहचा सके , उसके सार् एकरूप हो सके और उसे अवर्व्यक्त कर सके ।’’
 प्लेटो के अनसार -
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‘‘वर्क्षा से मरे ा तात्पयथ उस प्रवर्क्षण से ह ै जो बालकों को सदर्ण की मल ु ु ू प्रिवत्तयों के वलए उपयक्त आदतों के व माथण िारा प्रदा वकया जाता ह।ै ’’
ृ ु  पेस्टालाजी के अनसार -
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‘‘म ष्य की आतररक र्वक्तयों का स्िार्विक, सामजस्यपणथ एि ु ु ू ां ां ां प्रर्वतर्ील विकास ही वर्क्षा ह।ै ’’
 टी0 रेमन्ट के अनसार - ‘‘वर्क्षा विकास का िह िम ह ै वजसम ें व्यवक्त अप े को धीरे -धीरे ु विवर्न् प्रकार से र्ौवतक, सामावजक और आध्यावत्मक िातािरण के अ कल ब ा सके । ु ु ितथमा म ें सच ा एि सचार के क्षेे़त्र म ें अर्तपि थ उन् वत हई ह।ै यही कारण ह ै वक अब विश्व का विस्तार ु ू ू ू ां ां सकवचत हो र्या ह।ै इसे य र्ी कह सकते ह ैं वक विश्व आपकी मठ्ठी म ें वसमि र्या ह।ै कम्प्यिर, इण्िर ेि, ु ू ु ू ां ां मोबाइल आवद े दररया एकदम घिा दीं। तीजत बाजार तत्र खब परिा चढ़ा ह।ै बाजारू मा वसकता ू ां ां ू बढ़ी ह ै और उपर्ोक्ता सस्कवत म ें आश्चयथज क ढर् से िवि हई ह।ै दररया वमिा े िाली सच ा और सचार ु ृ ृ ू ां ां ां ां ू की इस िावन्त े कछ ऐसी दररया बढ़ाई र्ी ह,ैं जो हम ें र्िकाि की तरफ ले जा रही ह।ैं हम, खासकर ु ां ू हमारा यिा िर् थ इस र्िकाि का सबसे ज्यादा वर्कार हआ ह।ै हमारा यिा िर् थ वर्क्षा के उ मलयों स े ु ु ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 69 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं बहत दर चला र्या ह,ै जो हमारी धरोहर जसै े र्े और वजन्ह ें हम मलय वर्क्षा या ैवतक वर्क्षा कहा करते ु ू ू र्े। ये ैवतक मलय दम तोड़ चके ह।ैं िज थ ाए िि चकी ह,ैं फलतः अमयाथवदत आचरण बढ़ा ह।ै बहत से ु ू ु ू ु ां लोर् कहते ह ैं वक ैवतकता एक मलय ह।ै स े म ें बड़ा अच्छा लर्ता ह,ै पर इस ैवतकता का स्रोत क्या ह ै ू ु ? ऐसी वस्र्वत म ें यवद हम यह मा लें वक ैवतकता का स्रोत समाज ह ै तो वफर समाज की व रतरता क्या ां एक सी रहती ह ै ? यवद हीं तो ैवतकता क्या एक सी रह सकती ह ै ? जब ैवतक मा दड बदल सकते ह ैं ां तो मलय र्ी बदल सकते ह ैं और इ मलयों को बदल े िाला समाज के िल एक कपोल कवलपत सत्य ह।ै ू ू अर्र हम उपयथक्त बात पर विचार करें तो यह पाते ह ैं वक विद्यावर्थयों म ें ैवतक मलयों का विकास वकसी ु ू प्रकार वकया जाए। और इ सर्ी समस्यों का एक मात्र समाधा ह ै बच्चों को वर्क्षा के वलए प्रेररत कर ा क्योंवक वर्क्षा का प्रमख उद्दश्े य बालक का सिाांर्ीण विकास कर ा ह।ै बहत छोिे बालकों में वर्क्षा प्रदा ु ु कर े (र्ारीररक, सामावजक, र्ाि ात्मक इत्यावद) के वलए ैवतक वर्क्षा और चाररवत्रक वर्क्षा का सहारा वलया जाता ह।ै चररत्र-व माथण वर्क्षा की रीढ़ ह।ै इसके अर्ाि म ें वर्क्षा ग्रहण कर ा व्यर्थ ह।ै मलय वर्क्षा ू के अन्तर्तथ बालकों के चररत्र-व माथण से सम्बवन्धत वर्क्षा र्ी आती ह।ै ैवतक मलयों से तात्पयथ ‘ ीवत-आधाररत’ मलयों से ह।ैं ऐसे मलय जो हम ें जीि -जी े की प्रेरणा प्रदा ू ू ू करते ह,ैं सच्ची राह वदखाते ह ैं और मा िता को एक उवचत वदर्ा प्रदा करते ह।ैं मलयों को मा िीय ू आदर्ों, उद्दश्े यों और सोच े के तौर-तरीकों तर्ा व यमों के तौर पर पररर्ावषत वकया जाता ह ै जो वक हमारे व्यिहार को व यवत्रत करते ह ैं तर्ा सम्बन्धों को एक िी वदर्ा प्रदा करते ह।ैं प्राची काल से ही ां र्ारतीय समाज म ें ीवत आधाररत मलयों को प्रमख स्र्ा प्रदा वकया र्या ह।ै र्ारतीय सस्कवत एि ृ ू ु ां ां सभ्यता हमेर्ा मा िीय मलयों की धरती रही ह।ै यहाँ पर दयालता, मा िता, अवहसा, वमत्रता, ईमा दारी, ू ु ां ेतत्ि-क्षमता, न्याय, साहस एि उत्साह इत्यावद ैवतक मलय व्यापक रूप म ें पाए जाते ह।ैं इसके सार् ही ृ ू ां सार् विद्यालयों म ें र्ी बालकों को इसका ज्ञा प्रदा वकया जाता ह।ै आधव क समय म ें ैवतक मलयों के ु ू स्तर म ें वर्रािि आ रही ह ै क्योंवक हमारा समाज र्ौवतकतािाद एि सासाररक िास ाओ की दलदल में ां ां ां फसा हआ ह।ै ऐसे समय म ें समाज म ें ैवतक मलयों की महती आिश्यकता ह।ै जसै ा वक आप सर्ी को ु ू ां ज्ञात ह ै वक बच्चे दर्े के र्विष्य ह।ै ि े दर्े के र्ािी कणधथ ार ह।ैं उन्हीं के ऊपर समाज, दर्े एि राष्र का ां उत्तरदावयत्ि ह ै तो ऐसी वस्र्वत म ें बच्चों म ें ैवतक मलयों, उवचत सस्कारों और अ र्ास के द्वारा उसम ें ू ु ां सधार लाया जा सकता ह।ै ैवतक मलयों के विकास से ही दर्े प्रर्वत के पर् पर आर् े बढ़ सकता ह।ै ु ू 3.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप- 1. वर्क्षा का अर्थ समझ सकें र्।े 2. मलय का अर्थ समझ सकें र्।े ू 3. मलय-वर्क्षा का अर्थ समझ सकें र्।े ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 70 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4. विवर्न् वर्क्षा आयोर्ों के पररप्रेक्ष्य म ें मलय-वर्क्षा के सम्बन्ध को स्पष्ट कर सकें र्।े ू 5. डॉ0 अम्बेडकर का वचन्त और व्यापक र्वै क्षक विचारों को स्पष्ट कर सकें र्।े 6. चार प्रमख तत्िों आदर्ो को स्पष्ट कर सकें र्।े ु 3.3‍मूल्यों‍की‍आवनाश्यकता‍एवनाां‍महत्वना र्ारतीय समाज हमेर्ा से ही ऋवषयों, मव यों एि तपवस्ियों का धम थ एि कम थ स्र्ल रहा ह।ै यहा पर सदिै ु ां ां ां धम थ एि आध्यात्म की बातें, ईश्वरीय ज्ञा का बोलबाला रहा ह।ै प्राची समय म ें िदे ों, उपव षदों से लेकर ां रामायण, महार्ारत आवद प्राची धमग्रथ न्र्ों म ें इ सब ैवतक मलयों को प्रमखता दी र्ई र्ी। उस समय के ू ु समाजों म ें ैवतक मलयों का विकास चरम सीमा पर र्ा। लोर् एक-दसरे की र्लाई के वलए अप ा सिस्थ ि ू ू न्यौछािर कर दते े र्े। उदाहरण के रूप म ें हम ‘महवष थ दधीवच’ का प्रसर् ले सकते ह।ैं मान्यताओ के ां ां अ सार उन्हों े दिे ताओ की राक्षसों से रक्षा कर े के वलए अप े सम्पण थ र्रीर की अवस्र्यों को ही दा में ु ू ां द े वदया र्ा। सम्पण थ र्ारतीय प्राची समय म ें समाज ैवतकता एि वि म्रता का द्योतक र्ा। हमारे परात ू ु ां ग्रन्र्ों के अ सार यहा पर ईश्वर े विवर्न् रूपों जसै े वक श्रीराम, श्रीकष्ण रूप म ें अितार लेकर चाररवत्रक ृ ु ां वर्क्षा को बढ़ािा वदया। कछ समय पहले तक विवर्न् वर्क्षाविदों जसै े वक महात्मा-र्ाधी, रिीन्ि ार् ु ां िैर्ोर, रामकष्ण परमहस, वि ोबा र्ाि े एि राधाकष्ण इत्यावद े र्ी ैवतक मलयों के विकास पर बल ृ ृ ् ू ां ां वदया। वकन्त जसै े-जसै े समाज प्रर्वत की ओर अग्रसर हो रहा ह,ै िसै े-िसै े उसम ें कवमयाँ आती जा रही ह।ैं ु आज र्ारतीय सस्कवत पवश्चमी सस्कवतयों का अन्धाधन्ध तरीके से पाल कर रही ह।ैं ऐसा प्रतीत होता ह ै ृ ृ ु ां ां वक जसै े र् ैः र् ैः िह आप ी आत्मा को खो सी रही ह।ै आधव कीकरण के इस दौर में हम े र्ारतीय ु मलयों का पणथरूपेण पररत्यार् सा कर वदया ह ै जो वक र्यकर वि ार् का द्योतक ह।ै इसवलए आधव क ू ू ु ां र्ारतीय समाज म ें इ ैवतक मलयों की आिश्यकता धीरे -धीरे बढ़ती जा रही ह।ै ू 3.4‍पाठ्यिम‍म‍ ैशतक‍मूल्यों‍का‍स्र्ा ें र्ारतीय विद्यालयों म ें प्रारम्र् से ही ैवतक मलयों की आिश्यकता पर जोर वदया र्या ह।ै यहाँ पाियिम म ें ् ू प्रारम्र् से ही ऐसे विषयों के अध्यय को महत्ि वदया र्या ह ै वजसम ें ैवतक वर्क्षा, र्वक्त, आध्यात्मक, योर् के ज्ञा को विर्वषत वकया र्या ह।ै िवै दक काल स े लेकर पि थ आधव क काल तक ैवतक मलयों के ू ू ु ू प्रचार-प्रसार पर अवधक बल वदया र्या। र्ारतीय पाियिम म ें मख्य रूप से िवै दक काल म ें र्रूओ द्वारा ् ु ु ां दवै क जीि म ें प्रयक्त हो े िाली जा काररया प्रदा की जाती र्ीं। इसम ें अध्यापकर्ण बालकों को माता- ु ां वपता का सम्मा कर ा, बड़ों की आज्ञा-पाल , छोिे को स् हे तर्ा माता-वपता की सेिा, स्िय म ें मा िता ां की र्ाि ा का विकास, सदिै दसरों की सहायता कर ा’’ मख्य रूप से वसखाते र्े। इ सबका कोई ु ू व वश्चत पाियिम हीं र्ा। उस समय िदे ों, उपव षदों तर्ा अ ेक धम थ ग्रन्र्ों में र्ी ैवतक मलयों का ् ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 71 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं बाहलय र्ा। इसी प्रकार से सम्पण थ िवै दक काल म ें वर्क्षा का प्रमख उद्दश्े य ज्ञा , र्वक्त एि कमयथ ोर् र्ा। ु ू ु ां मध्यकाल म ें र्ारत म ें मर्लों के आिमण के पश्चात इ विचारधाराओ म ें पररितथ आ ा प्रारम्र् हो र्या। ् ु ां इस समय म ें र्ी र्ारतीय समाज म ें कबीरदास, र्रू ा क, रामदास, मीराबाई, रैदास, सरदास, रहीम, ु ू वबहारी इत्यावद प्रवसि महापरुषों े र्ी ैवतक मलयों की उपयोवर्ता को महत्ि वदया। मीराबाई द्वारा रवचत ु ू दोह,े वबहारी द्वारा प्रवतपावदत तर्ा सरदास द्वारा रवचत दोह े इन्हीं ैवतक मलयों की ओर इर्ारा करते ह।ैं ये ू ू दो ों काल ैवतक मलयों के विकास के वलए
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‘स्िवणमथ -यर्’
कह े जाते ह।ैं ू ु 3.5‍समाज‍म‍ ैशतक‍मूल्यों‍का‍स्र्ा ें जसै े-जसै े अग्रेजों े र्ारत पर अप ा आवधपत्य कर ा स्र्ावपत वकया, र्ारतीय समाज पवश्चमीकरण की ां र्तथ म ें वर्रता चला र्या। आधव क काल की र्रुआत में पवश्चमीकरण एि आधव कीकरण की यह ु ु ु ां र्या कता हमारे समाज म ें इत ी हािी हीं र्ी। इस समय तक र्ारतीय समाज म ें महात्मा र्ाधी, जिाहर ां लाल ेहरू, र्र्त वसह, चन्िर्खे र आजाद, सर्ाष चन्ि बोस आवद महापरुषों े र्ी ैवतक मलयों के ु ु ू ां महत्ि पर जोर वदया। वकन्त आजादी के पश्चात र्ारतीय समाज की वस्र्वत ओर र्ी वबर्ड़ र्ई। र्ारतीय ् ु समाज पणथरूपेण आधव कीकरण एि पवश्चमीकरण की चपेि म ें आ चका ह।ै वकसी को वकसी से कोई ू ु ु ां मतलबल हीं ह।ै सब अप े-अप े स्िार्थ की पवतथ म ें लर् े हए ह।ैं सम्पण थ समाज स्िार्थपरता की चपेि म ें ु ू ू आ चका ह।ै आज मा ि इत ा स्िार्ी हो चका ह ै वक यवद उसके साम े सड़क पर कोई इसा जीि की ु ु ां र्ीख मार् रहा हो तो िो उसको िहीं पर तड़पता हआ दखे ते रहर्ें े वकन्त उसकी कोई मदद हीं करेंर्े। ु ु ां सम्पण थ समाज स्िार्थ अन्धता के अन्धे कए में वर्रता जा रहा ह।ै इसका कारण समाज में बढ़ती बेरोजर्ारी, ू ु ां भ्रष्टाचार, ध लोलपता, आतकिाद, जावतिाद तर्ा लोर्ों म ें मा िता की कमी ह।ै लोर् अप े पिथ ु ू ां र्ारतीय सस्कारों को परी तरह से र्लते जा रह े ह।ैं इ सबके पीछे मख्य कारण लोर्ों म ें ैवतक मलयों का ू ू ु ू ां हृास ह।ै आधव क र्ारतीय विद्यालयों र्ी इ मलयों का कोई महत्ि हीं रह र्या ह।ै पि थ ु ू ू पाियिमों म ें जहा अवधकार् समय ज्ञा , र्वक्त एि योर् पर र्ा, िहीं आज इ ैवतक सस्कारों के वलए ् ां ां ां ां वकसी के पास एक सेके ण्ड का र्ी समय हीं ह।ै पाियिमों म ें (Moral-education) के वलए कोई ् स्र्ा हीं ह।ै इसीवलए अध्यापकों का यह उत्तरदावयत्ि ह ै वक ि े बालकों म ें ैवतक मलयों को विकवसत ू करें तर्ा र्ास को र्ी विद्यालयों म ें सचावलत पाियिमों म ें इ सर्ी को स्र्ा द े ा चावहए। तर्ी हमारा ् ां समाज पहले की तरह ब पायेर्ा। बच्चों म ें ैवतक मलयों का विकास अत्यन्त आिश्यक ह।ै ि े ही दर्े का ू र्विष्य ह।ैं बालकों म ें ैवतक-मलयों का विकास उत ा ही आिश्यक ह ै वजत ा वक समाज के वलए। ू आधव क समय म ें र्ारतीय समाज वजस अधकार से र्जर रहा ह,ै उसम ें एक अध्यापक ही मदद कर ु ु ां सकता ह।ै ैवतक मलय जीि को व दवे र्त करते ह।ैं ि े जीि जी े की वदर्ा प्रदा करते ह।ैं विद्यालयों म ें ू सास्कवतक कायथिमों, राष्रीय पिों के बारे म ें जा कारी प्रदा कर ा, सामदावयक कायथिमों को बढ़ािा ृ ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 72 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं द े ा, ार्ररकता की र्ाि ा का विकास कर ा, आधव क तक ीवकयों के माध्यम से इ ैवतक मलयों का ु ू विकास बालकों म ें वकया जा सकता ह।ै
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‘‘कह े का तात्पयथ यह ह ै वक हम चाह ें वजत ी र्ी तरक्की कर लें, वकत ा र्ी विज्ञा एि प्रौद्योवर्की के ां क्षेत्र म ें आर् े बढ़ जाए वकन्त यवद हमारे पास ैवतक मलय हीं ह?ै तो हमारा यह जीि व्यर्थ ह।ै ’’
ु ू म ष्य के आचरण म ें आ रही वर्रािि े सर्ी प्रबि विचारकों को वचवन्तत कर वदया ह।ै विष्ि के प्रायः ु ु सर्ी राज ीवतक, सावहवत्यक और र्वै क्षक मचों से जीि मलयों की प ः प्रवतष्ठा की मार् की जा रही ह।ै ू ु ां ां इसके प्रवतष्ठाप के वलए मलय-वर्क्षा की अपररहायथता को महसस वकया र्या। इसी कारण ई वर्क्षा ू ू ीवत (1986) म ें मलयों के वर्रते स्तर पर वचन्ता व्यक्त करते हए मलय-वर्क्षा पर बल वदया र्या। ु ू ू िज्ञै ाव क दृवष्टकोण, लोकतावत्रक, चाररवत्रक एि आध्यावत्मक मलयों का छात्रों म ें रोपण ई वर्क्षा ीवत ू ां ां के लक्ष्यों म ें अत्यन्त महत्त्िपणथ ह।ै ू मलयों के अर्ाि म ें मा िीय सम्बन्धों म ें सहजता समाप्त हो र्यी ह ै और सित्रथ कवत्रमता का आिरण छा ृ ू र्या ह।ै िैज्ञाव कता े जहा हमारी बौविक र्वक्त बढ़ाई ह ै िहीं उस े हमारी आध्यावत्मक एि ैवतक र्वक्त ां ां को छी वलया ह।ै सहज जीि समाप्त हो र्या और हम ब ाििी मखौिों के सहारे जी े को वििष हो र्ए ु ह।ैं हमारा जीि तात्कावलकता म ें बि र्या ह ै और इसम ें कोई प्रिाह हीं रहा। आज म ष्यता खत्म हो े ु ां के कर्ार पर ह ै और म ष्य जावत के अवस्तत्ि पर साम्प्रदावयकता, उग्र राष्रिाद, पयाथिरण असतल , ु ु ां क्षेत्रीयतािाद, आणविक र्स्त्रीकरण जसै े सकिों े प्रष् वचह्न लर्ा वदया ह।ै इ र्ीषण सकिों का ां ां समाधा मलय आधाररत वर्क्षा म ें ही विद्यमा ह,ै वक अन्यत्र। ू 3.6‍मूल्य‍का‍अर्‍थ एवनाां‍पशरर्ाषाए ां
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“Value”
र्ब्द की उत्पवत्त लैवि र्ाषा के
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“Valere”
र्ब्द से मा ी जाती ह ै जो वकसी िस्त की कीमत ु या उपयोवर्ता को व्यक्त करता ह।ै र्ािात्मक दृवष्ट से मा ि के र्ण को र्ी व्यक्त करता ह।ै वहन्दी में ु
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‘मलय’
र्ब्द के पयाथय के रूप म ें
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‘आदर् थ ’,
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‘र्ील ’,
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‘र्ण’
आवद र्ब्दों का प्रयोर् र्ी कहीं-कहीं पाया ू ु जाता ह।ै िस म म्क बजपिद के दो अर्थ हो सकते ह-ैं ां ां i. मलयों की वर्क्षा (Education of Values) ू ii. मलयपरक वर्क्षा (Value Oriented Education) ू मलय वर्क्षा के अन्तर्थत हम ैवतक, सामावजक, सास्कवतक एि आध्यावत्मक मलयों की वर्क्षा एक ृ ू ू ां ां स्ितत्र विषय के रूप म ें द े ा चाहते ह ैं जबवक मलयपरक वर्क्षा म ें सर्ी विषयों म ें म ोिज्ञै ाव क ढर् से ू ां ां मलय समावहत करके मलयों के विकास पर बल दते े ह।ैं ू ू मलय को विवर्न् रूपों म ें पररर्ावषत वकया र्या ह ै - ू i. सी.सी. र्ड के अ सार
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‘‘मलय िह चाररवत्रक विषेषता ह ै जो म ोिज्ञै ाव क, सामावजक एि ु ु ू ां सौन्दयथबोध की दृवष्ट से महत्त्िपण थ मा ी जाती ह।ै ’’
ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 73 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ii. ऑलपोिथ के अ सार
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‘‘मलय एक मा ि विष्िास ह ै वजसके आधार पर म ष्य िरीयता प्रदा ु ू ु करते हए कायथ करता ह।ै ’’
ु iii. वपस्क के अ सार
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‘‘हम िास्ति म ें वजसे सम्मा दते े हैं, चाहते ह ैं या महत्त्िपण थ समझते ह,ैं िही ु ू मलय ह।ै ’’
ू iv. अरब के अ सार
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‘‘मलय िह ह ै जो मा ि इच्छाओ की तवष्ट करे।’’
ु ू ु ां v. का े के अ सार,
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‘‘मलय ि े आदर् थ , विष्िास या प्रवतमा ह ै वजसको एक समाज या समाज के ु ू अवधकाष लोर्ों े ग्रहण वकया ह।ै ’’
ां 3.7‍मूल्य-शशक्षा‍ऐशतहाशसक‍पशरप्रेक्ष्य य‍म ें मलय-वर्क्षा व्यवक्त के सिाांर्ीण विकास, सामावजक और राष्रीय प्रर्वत तर्ा सभ्यता और सस्कवत के ृ ू ां उत्र्ा के वलए अव िायथ ह।ै र्ारत के प्राची ऋवषयों े मलयों के इस र्ह महत्त्ि को बहत पहले समझ ु ू वलया र्ा। इसी के फलस्िरूप र्ारत के स्िवणमथ अतीत म ें मलय-वर्क्षा की सन्दर व्यिस्र्ा की र्ई र्ी। ू ु र्ारत की प्राची वर्क्षा प्रणाली े विषाल िवै दक सावहत्य को सरवक्षत रखा और ज्ञा के विवर्न् क्षेत्रों ु के मौवलक विचारकों एि विद्वा ों को जन्म वदया वज से इस दर्े का मस्तक आज र्ी यष और र्ौरि से ां उन् त ह।ै
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‘‘ऐसा कोई र्ी दर्े हीं ह ै जहा ज्ञा के प्रवत प्रमे इत े प्राची समय म ें प्रारम्र् हआ हो या ु ां वजस े इत ा स्र्ायी या र्वक्तषाली प्रर्ाि उत्पन् वकया हो।’’
िवै दक यर् म ें ज्ञा प्रावप्त के प्रवत लालसा मलयों म ें अर्ाध आस्र्ा और आचरण म ें मलयों की प्रधा ता े ु ू ू ही विष्ि म ें र्ारतीय सस्कवत को इत ा प्रर्ािषाली ब ाया र्ा वजन्ह ें आज र्ी ससार अवत आदर से याद ृ ां ां करता ह।ै मलय आधाररत यह वर्क्षा के िल िवै दक यर् तक ही सीवमत रही बवलक िवै दक यर् से बौि- ू ु ु विहार, मौयथकाल, र्प्तकाल एि राजपतकाली र्ारत तक अ िरत र्ी। यहा तक वक मर्ल काल म ें र्ी ु ू ु ां ां वर्क्षा का आधार वकसी वकसी रूप म ें मलय आधाररत ही र्ा। कह े का तात्पयथ यह ह ै वक अग्रेजों के ू ां आर्म से पि थ र्ारतीय वर्क्षा मलतः मलय आधाररत र्ी। इसी कारण अलर् से मलयों की वर्क्षा द े े ू ू ू ू की कोई आिष्यकता हीं र्ी। अग्रेजों े अप ी आिष्यकता सार र्ारतीयों के वलए िी वर्क्षा पिवत ु ां को इजाद वकया। इसके माध्यम से उन्हों े र्ारतीयों को र्रीर से तो र्ारतीय ब ाए रखा परन्त उ को म , ु मवस्तष्क और व्यिहार से अग्रेज ब ा वदया। इस पररवस्र्वत े र्ारतीयों म ें पाष्चात्य सभ्यता के ां अन्धा करण का र्त सिार कर वदया। सार् ही उ में पावर्थि मलयों के प्रवत अप्रत्यावषत मोह, ु ू ू अ ीष्िरिाद, र्ौवतकिाद आवद को जन्म वदया। इ तथ्यों े मा िीय मलयों के ह्रास के वलए पष्ठर्वम ृ ू ू तैयार कर दी वजसके फलस्िरूप मलय वर्क्षा की आिष्यकता महसस की जा े लर्ी। ू ू 1970 म ें राष्रीय र्वै क्षक अ सधा एि प्रवषक्षण पररषद (NCERT) े एक सर्ोष्ठी का आयोज वकया ु ां ां ां ् वजसम ें मलयों की आिष्यकता अ र्ि की र्ई एि उ के विकास पर बल वदया र्या। 1982 म ें वर्मला म ें ू ु ां ैवतक वर्क्षा पर उच्च स्तरीय पररचचाथ हई वजसम ें मलय वर्क्षा सम्बन्धी कई महत्त्िपण थ वसफाररषों की र्ई। ु ू ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 74 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.8‍शवनाशर्न्न‍शशक्षा‍आयोगों‍के ‍पशरप्रेक्ष्य य‍म‍मूल्य-शशक्षा‍ ें 15 अर्स्त 1947 को स्ितत्रता वमल े के बाद दर्े के र्ास की बार्डोर ज ता के प्रवतव वधयों के हार्ों ां म ें आई। दर्े का चतमथखी विकास कर े की च ौती उत्पन् हई। दर्े के विकास म ें वर्क्षा का अवत ु ु ु ु महत्त्ि र्ा। अतः स्ितत्र र्ारत की सरकार का ध्या वर्क्षा की ओर र्या। उस समय उच्च वर्क्षा की ां वस्र्वत अत्यन्त दय ीय र्ी। वर्क्षा का स्तर बहत वर्र र्या र्ा सार् ही ज ता का वै तक स्तर र्ी ु सोच ीय र्ा। हर तरफ वहसा, मारकाि, साम्प्रदावयक विद्वषे की लहर र्ी। वकस प्रकार ज ता के मा स में ां पारस्पररक सद्भाि, राष्रीय एकता, सह अवस्तत्ि की र्ाि ा विकवसत हो, इस हते अ ेक प्रयास हए। राष्र ु ु के वर्क्षा षावस्त्रयों े वचन्त वकया वक क्यों हीं ये उदात्त मलय हमारी वर्क्षा प्रणाली के अर् ब े वजससे ू ां राष्र की ींि को सदृढ़ता वमले। इस हते वर्क्षा प्रणाली म ें सधार की आिष्यकता प्रतीत हई और समय- ु ु ु ु समय पर विवर्न् वर्क्षा आयोर् र्वित हए। ु 4 िम्बर, 1948 को डॉ. राधाकष्ण की अध्यक्षता म ें विष्िविद्यालय वर्क्षा आयोर् (राधाकष्ण ृ ृ कमीर् ) की व यवक्त हई। यद्यवप आयोर् े
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‘‘मलय-वर्क्षा ’’
र्ब्द का प्रयोर् हीं वकया तर्ावप उ के ु ु ू सर्ी मख्य सझाि
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‘र्ारतीय आदर् थ ’
ाम से मलयों को ही अवर्व्यक्त कर रह े र्े। र्ारतीय सविधा म ें ु ु ू ां न्याय, समता, स्ितत्रता और बन्धता की प्रावप्त से लोकतत्र स्र्ावपत कर े के आदर्ों को ध्या म ें रखकर ु ां ां ही उन्हों े विश्वविद्यालयी वर्क्षा के उद्दश्े य व वष्चत वकए। राधाकष्ण कमीर् े विश्वविद्यालयी वर्क्षा ृ के ि े उद्दश्े य व वष्चत कर े के सझाि वदए वज से छात्रों े सामावजक सौहाद,थ राष्रीय कत्तव्थ य और ु आध्यावत्मकता की र्ाि ा अकररत हो। ु ां र्ारत सरका े 23 वसतम्बर, 1952 को माध्यवमक वर्क्षा आयोर्
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‘मदावलयर कमीर् ’
की व यवक्त ु ु की। मदावलयर कमीर् े चाररवत्रक वर्क्षा के ाम से मलय-वर्क्षा पर जोर वदया। चररत्र प्रत्येक व्यवक्त ु ू की सबसे मलयिा व वध ह।ै अच्छा चररत्र उसे ऊपर उिाता ह ै और बरा चररत्र उसे ीचे वर्राता ह।ै उत्तम ू ु चररत्र के व्यवक्त दर्े और राष्र की उन् वत के आधार ह।ैं चाररवत्रक रूप से उन् त व्यवक्त अप ी मातर्वम ृ ू का उत्र्ा करते ह,ैं उसे प्रर्वत के वषखर पर पहचाते ह।ैं अतः आयोर् े बच्चों म ें चाररवत्रक विकास हते ु ु ां ईमा दारी, अ षास , सहयोर्, र्ाईचारा जसै े मलयों पर बल वदया। आचरण सवहता, सहषवै क्षक ु ू ां र्वतविवधया, ए .सी.सी. आवद के माध्यम से चररत्र व माथण हो वजससे अच्छे ार्ररक ब े, वज पर उ का ां दर्े र्ि थ कर सकें । र्ारत सरकार े 14 जलाई, 1964 को वर्क्षा आयोर्
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‘कोिारी कमीर् ’
की व यवक्त की। इस आयोर् े ु ु छात्रों के चाररवत्रक उत्र्ा हते उ म ें सामावजक, ैवतक और आध्यावत्मक मलयों के विकास की जोरदार ु ू वहमायत की। आयोर् का यह सझाि अवत श्रेष्ठ र्ा वक मलय-वर्क्षा से ही छात्रों को चररत्रिा ब ाया जा ु ू सकता ह।ै उस े छात्रों के अप े मार् थ से विचवलत होकर भ्रष्ट हो े का कारण मलयही वर्क्षा पिवत को ू बताया। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 75 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.9‍डॉ0‍अम्बडकर‍का‍शचन्त ‍और‍व्यापक‍शवनाचार‍ े डॉ0 अम्बेडकर े ’वडपेस्ड क्लास एजके र् सोसाइिी’ की स 1928 म ें स्र्ाप ा की। उन्हो े दवलतों में ् ु वर्क्षा के प्रसार के वलए ’पीपलस एजके र् सोसाइिी’ ामक सस्र्ा ब ायी, वजसके तत्िािधा म ें उन्हों े ु ु ां बम्बई म ें वसिार्थ कॉलेज (25 ज , 1946) तर्ा औरर्ाबाद म ें वमवलद कॉलेज (01 वसतम्बर 1951) की ू ां ां स्र्ाप ा की। आर् े चलकर इस सस्र्ा े विर्षे रूप से महाराष्र के दवलतों म ें वर्क्षा के प्रसार के प्रसार के ां क्षेत्र म ें उललेख ीय कायथ वकया। स 1946 म ें डॉ0 अम्बेडकर े सविधा सर्ा को एक विस्तत ज्ञाप ृ ् ां प्रस्तत वकया। डॉ0 अम्बेडकर की अवधकार् मार् े स्िीकत कर ली र्यी और उन्ह ें िधै ाव क स्िरूप म ें ृ ु ां ां र्ारतीय सविधा के अन्दर स्र्ा प्रदा कर वदया र्या। ां 15 अर्स्त 1947 को स्ितन्त्रता प्राप्त कर े के बाद प्राप्त कर े के बाद र्ारतीय सविधा का व माथण ां कर े के वलए सविधा व माथत्री सर्ा का र्ि वकया र्या। र्म्र्ीर वचन्त और व्यापक विचार-विमर्थ के ां पश्चात ब ाये र्ये सविधा को 26 ज िरी 1950 को दर्े म ें लार् वकया र्या। सविधा की प्रस्ताि ा ् ू ां ां सविधा का एक महत्िपण थ अर् ह।ै इसम ें सविधा के मल उद्दश्े यों, लक्ष्यों और आदर्े ों को स्पष वकया ् ू ू ां ां ां र्या ह।ै सविधा की प्रस्ताि ा म ें कहा र्या ह ै - ां “हम र्ारत के लोर्, र्ारत को एक सम्पण थ प्रमख-सम्पन् , समाजिादी, धम थ व रपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक ू ु र्णराज्य ब ा े और इसके सर्ी ार्ररकों को सामावजक, धावमकथ और राज ीवतक न्याय, विचार- अवर्व्यवक्त, विश्वास, धम थ और उपास ा की स्ितत्रता, प्रवतष्ठा ि अिसर की समा ता प्राप्त कर े के वलए ां इ सबम ें सकलप होकर अप ी इस सविधा सर्ा म ें आज वद ाक 26 ज िरी 1949 ई0 को इस ां ां ां सविधा को अर्ीकत अवधव यवमत और आत्मसमवपथत करते ह”ैं । ृ ां ां सविधा की प्रस्ताि ा के अ सार र्ारत म ें प्रजातत्र की स्र्ाप ा की र्यी ह,ै ऐसा प्रजातत्र वजसम ें र्ास ु ां ां ां की सम्पण थ र्वक्त ज ता म ें व वहत होर्ी, अर्ाथत ज ता ही सम्प्रर् होर्ी और दर्े का राष्राध्यक्ष अर्ाथत ् ू ु राष्रपवत िर्ा र्त होकर ज ता के द्वारा ही व िाथवचत होर्ा। सविधा म ें र्ारत को एक धम थ व रपेक्ष ु ां ां और समाजिादी राज्य घोवषत वकया र्या ह ै तर्ा दर्े के ार्ररकों को स्ितत्रता, समा ता एि न्याय प्रदा ां ां कर े और भ्रातव्य के र्ाि पैदा कर राष्रीय एकता और अखण्डता को ब ाये रख े पर बल वदया र्या ह ै ृ प्रस्तत अध्याय म ें सविधा के व म् वलवखत चार प्रमख तत्िों आदर्ो या लक्ष्यों या मलयों का वििचे ु ु ू ां वकया र्या ह।ै  स्ितत्रता ां  समा ता  न्याय  भ्रातव्य ृ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 76 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं स्वतत्रता- बरेण्ड रसैल के अ सार स्ितत्रता की इच्छा व्यवक्त की एक स्िार्ाविक प्रकवत ह ै और इसी के ृ ु ं ां आधार पर सामावजक जीि का व माथण सम्र्ि ह।ै व्यवक्त का सम्पण थ र्ौवतक, मा वसक, ैवतक, ू सामावजक और राज ैवतक विकास स्ितत्रता के िातािरण में ही सम्र्ि ह।ै स्ितत्रता का अर्जे ी रूपान्तर ां ां ां वलबिी लैवि र्ाषा के वलबर र्ब्द से वलकला ह ै वजसका अर्थ ह ै -’ बन्ध ों के अर्ाि वकन्त तो ु स्िछन्दता ह।ै स्िच्छन्दता के कारण तो के िल अराजकता फै लाती है, अव्यिस्र्ा पैदा होती ह।ै व्यवक्त को स्ितत्रता का उपयोर् इस प्रकार से कर ा चावहए वक प्रत्येक व्यवक्त अप ा विकास कर े म ें समर्थ हो सके । ां स्ितत्रता एक अवधकार ही ही िर एक कत्तव्थ य र्ी ह।ै लास्की े स्ितत्रता को व्यवक्त के विकास के वलए ां ां अवत आिश्यक र्तथ मा ते हए उसकी पररर्ाषा इ र्ब्दों म ें की ह ै - ’’स्ितत्रता उस िातािरण को ब ाए ु ां रख ा ह,ै वजसम ें व्यवक्त को अप े जीि का सिोत्तम विकास कर े की सविधा प्राप्त हो।’’ स्ितत्रता के ु ां व म् वलवखत दो तत्ि बताये र्ये ह ैं - i. स्ितत्रता का पहला तत्ि यह ह ै वक व्यवक्त के जीि पर राज्य और समाज के दसरे तत्िों की ां ू ओर न्य तम प्रवतबन्ध हो े चावहए वजससे व्यवक्त अप े विचार और कायथ व्यिहार म ें अवधक से ू अवधक स्ितत्रता का उपर्ोर् कर सके । ां ii. स्ितत्रता का दसरा तत्ि यह ह ै वक राज्य और समाज के द्वारा व्यवक्त को उसके व्यवक्त्ति के ां ू विकास के वलए अवधक से अवधक सविधायें प्रदा की जा ी चावहए। ु र्ारतीय सविधा का उद्दश्े य विचार, अवर्व्यवक्त, विश्वास, धम,थ उपास ा और व्यिसाय आवद की ां स्िाधी ता सव वश्चत कर ा ह,ै अतः सविधा के द्वारा ार्ररकों को विविध स्ितत्रतायें प्रदा की र्यी ह।ैं ु ां ां इस सबध म ें सविधा का 19िा अ च्छेद बहत महत्िपण थ ह।ै इसके द्वारा ार्ररकों को व म् वलवखत ु ु ू ां ां ां ां स्ितत्रतायें प्रदा की र्यी ह ै - ां i. न्द्वचार और अन्द्भव्यन्द्ि की स्वतत्रता - र्ारत के सर्ी ार्ररकों को विचार कर े व्याख्या ं द े े और अप े तर्ा अन्य व्यवक्तयों के प्रचार और प्रसार की स्ितत्रता प्राप्त ह।ै विचारों के प्रचार ां और प्रसार की स्ितत्रता का बहत महत्ि ह ै क्योवक इससे िास्तविक ज मत का व माथण होता ह।ै ु ां ii. र्ान्द्न्तपवाक न्द्बना हन्द्थयार के सभा करने की स्वतत्रता - इसके द्वारा सर्ी ार्ररकों को ू ं र्ावन्तपिकथ ढर् से वब ा हवर्यार वलये सर्ा या सम्मले कर े तर्ा जलस या प्रदर् थ या ू ु ू ां आयोज कर े का अवधकार प्राप्त ह।ै iii. सस्था, सघ या समदाय बनाने की स्वतत्रता - इसके द्वारा सर्ी ार्ररकों को यह अवधकार ु ं ं ं प्राप्त ह ै वक ि े अप ी आिश्यकताओ की पवतथ के वलए वकसी सस्र्ा या सघ या समदाय या ू ु ां ां ां सर्ि का व माथण कर सकें । ां iv. भारती
य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतत्रता - इसके द्वारा सर्ी ार्ररकों को यह अवधकार ं प्राप्त ह ै वक ि े अप ी इच्छा सार दर्े के वकसी र्ी क्षेत्र में स्र्ायी रूप से या अस्र्ायी रूप से ु व िास कर सकें । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 77 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं v. भारतीय क्षेत्र में अबाध न्द्नवास की स्वतत्रता - इसके द्वारा सर्ी ार्ररकों को यह अवधकार ं प्राप्त ह ै वक ि े अप ी इच्छा सार दर्े के वकसी र्ी क्षेत्र में स्र्ायी रूप से या अस्र्ायी रूप से ु व िास कर सकें । vi. भारतीय क्षेत्र
में व्यावसाय या व्यापार करने की स्वतत्रता - इसके द्वारा सर्ी ार्ररकों को ं यह अवधकार प्राप्त ह ै वक ि े अप ी इच्छा सार देर् के वकसी र्ी प्रदर्े म ें वकसी र्ी प्रकार का ु व्यिसाय या व्यापार कर सकें और अप ा जीविकोपाजथ कर े म ें सफल हो सकें । र्ारतीय ार्ररकों को प्राप्त ये स्ितत्रतायें असीवमत ही ह,ै अबाध ही ह,ै सािजथ व क सरक्षा और ु ां सामान्य ज ता के वहत म ें सरकार द्वारा इ पर प्रवतबन्ध लर्ाया जा सकता ह।ै vii. अपराध की दोष न्द्सन्द्र्द् न्द्वषयक सरक्षण की स्वतत्रता - सविधा के अ च्छेद 20 म ें कहा ु ं ं ां र्या ह ै वक वकसी व्यवक्त को उस समय तक अपराधी हीं िहराया जा सकता जब तक वक उस े अपराध के समय म ें लार् वकसी धारा का उललघ वकया हो। उसके सार् ही एक अपराध के ू ां वलए व्यवक्त को एक ही बार दण्ड वदया जा सकता ह ै और वकसी अपराध म ें व्यवक्त को अप े ही विरूि र्िाही द े े के वलए बाध्य हीं वकया जा सकता। viii. प्राण तथा र्ारीररक स्वतत्रता के सरक्षण की स्वतत्रता - सविधा के अ च्छेद 21 के ु ं ं ं ां अ सार वकसी व्यवक्त को उसके प्राणों ि र्ारीररक स्ितत्रता से विवध द्वारा स्र्ावपत प्रविया के ु ां अवतररक्त अन्य वकसी प्रकार से िवचत ही वकया जा सकता। ां ix. बन्दीकरण और न्द्वरोध से सरक्षण की स्वतत्रता - सविधा के अ च्छेद 22 के अ सार ु ु ं ं ां वकसी र्ी व्यवक्त को उस समय तक बन्दी ही ब ाया जा सकता जब तक बन्दीकरण के कारण ें से अिर्त कराया जाये। प्रत्येक व्यवक्त को बन्दीकरण के 24 घन्िों के अन्तर्तथ वकसी मवजस्रेि के साम े अिश्य प्रस्तत वकया जायेर्ा। उसको अप ी इच्छा सार िकील कर े तर्ा उससे ु ु सलाह ले े और अप ी पैरिी कर े का अवधकार प्राप्त होर्ा। यह उपबन्ध उ व्यवक्तयों पर लार् ू हीं होर्ा जो बन्दीकरण के समय विदर्े ी र्त्र ह ैं या व िारक अवधव यम के कारण जरबन्द ु वकये र्ये ह।ै x. धान्द्माक स्वतत्रता - सविधा के अ च्छेद के अ सार सर्ी व्यवक्तयो को अप ी इच्छा सार ु ु ु ं ां धावमकथ आचरण और धम के प्रचार की पण थ स्ितत्रता प्रदा की र्यी ह।ै अ च्छेद 26 के द्वारा ू ु ां व्यवक्तयों को धावमकथ सस्र्ायें स्र्ावपत कर े और उ का प्रबन्ध कर े की स्ितत्रता दी र्यी ह।ै ां ां अ च्छेद 26 के द्वारा व्यवक्तयों को धावमकथ सस्र्ायें स्र्ावपत कर े और उ का प्रबन्ध कर े की ु ां स्ितत्रता दी र्यी ह।ै अ च्छेद 27 के द्वारा इ के द्वारा ऐसी समस्त आय को कर मक्त कर वदया ु ु ां र्या ह ै वजस धावमकथ या परोपकारी कायों म ें खचथ वकया र्या हो। अ च्छेद 28 के अ सार ु ु राजकीय ध से सचावलत अर्िा सहायता प्राप्त वकसी र्ी वर्क्षण सस्र्ा को धावमकथ वर्क्षा द े े ां ां के वलए बाध्य हीं वकया जायर्े ा। अन्य स्ितन्त्रताओ की तरह यह स्ितत्रता र्ी प्रवतबन्ध रवहत ां ां हीं ह।ै राज्य सािथजव क व्यिस्र्ा, ैवतकता या स्िास्थ्य आवद के वहत म ें इसके प्रयोर् का प्रवतबन्ध लर्ा सकता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 78 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं xi. सस्कन्द्त तथा न्द्र्क्षा सबधी स्वतत्रता - र्ारतीय सविधा के द्वारा र्ारत के सर्ी ार्ररकों ृ ं ं ं ं ां को सस्कवत और वर्क्षा सबधी स्ितत्रता का अवधकार र्ी प्रदा वकया र्या ह।ै अ च्छेद 21 के ृ ु ां ां ां ां अ सार ार्ररकों को प्रत्येक िर् थ को अप ी र्ाषा, वलवप या सस्कवत को सरवक्षत रख े का ृ ु ु ां अवधकार प्राप्त ह।ै राजकीय ध से सचावलत वर्क्षण सस्र्ा म ें प्रिर्े के सम्बन्ध में मलिर्, ू ां ां ां जावत, धम थ और र्ाषा या इ म ें से वकसी एक के आधार पर र्दे र्ाि हीं वकया जायेर्ा। अ च्छेद 30 के अ सार धम थ या र्ाषा पर आधाररत सर्ी अलपसख्यक िर्ों को अप ी रूवच ु ु ां की वर्क्षण सस्र्ाओ की स्र्ाप ा और उ के प्रर्ास का अवधकार होर्ा। राज्य की ओर से ां ां उ को र्ी उसी प्रकार की सहायता प्रदा की जायेर्ी, वजस प्रकार की सहायता अन्य वर्क्षण सस्र्ाओ को प्राप्त ह।ै ां ां समानता - समाज म ें दो प्रकार की असमा ता दृवष्टर्ोचर होती है, एक प्राकवतक असाम ता और दसरी ृ ू सामावजक िषै म्य द्वारा उत्पन् समा ता। मा ि समाज म ें मोिे, पतले, लम्बे, ािे, काले र्ोरे , कर्ाग्र ु बवि, मन्द बवि के जो विवर्
न् प्रकार के व्यवक्त वमलते ह,ैं ि े प्राकवतक असमा ता के उदाहरण ह।ैं इस ृ ु ु प्रकार की असमा ता को वमिाया जा ा सम्र्ि हीं ह।ै समाज म ें विद्यमा दसरे प्रकार क
ी असमा ता िह ू ह ै वजसका मल समाज द्वारा उत्पन् की र्यी विषमतायें ह।ैं अ ेक बार बवि, प्रवतर्ा और बल की दृवष्ट से ू ु श्रेष्ठ हो े पर र्ी र्रीब व्यवक्तयों के बालक अप े व्यवक्ति का िसै ा विकास ही कर पाते, जसै ा विकास उ से व म् तर बवि, प्रवतर्ा और बल के धव क और साध उत्पन् पररवस्र्वतयों का िह िषै म्य होता ह ै ु वजसके कारण िैषम्य को समाप्त कर समाज के सर्ी व्यवक्त्यों को व्यवक्ति के विकास के समा अिसर प्रदा कर ा ह।ै लास्की े समा ता को पररर्ावषत करते हये कहा र्या ह ै - ’’समा ता मल रूप में ु ू समा ीकरण की एक प्रविया ह।ै इसवलए प्रर्मतः समा ता का आर्य विर्ेषावधकार के अर्ाि से ह।ै वद्वतीय रूप म ें इसका आर्य यह ह ै वक सर्ी व्यवक्तयों को विकास के वलए पयाथप्त अिसर उपलब्ध हो े चावहए।’’ स्ितत्रता प्रावप्त के बाद र्ारत म े वजस प्रजातावत्रक व्यिस्र्ा की स्र्ाप ा की र्यी, उसके मलयों में ू ां ां समा ता मख्य ह।ै र्ारत की समाजिादी व्यिस्र्ा को सफल ब ा े के वलए, राष्रीय विकास के वलए और ु राष्रीय एकता ि अखडता को ब ाये रख े के वलए समा ता की व्यिस्र्ा की र्यी ह।ै र्ारतीय सविधा ां ां के चौहदि,ें पन्िि,ें सोलहिें, सत्रहि ें और अिारहि ें अ च्छेदों म ें समा ता की व्याख्या की र्यी ह ै - ु i. न्द्वन्द्ध के समक्ष समानता - सविधा के अ च्छेद 14 के अ सार र्ारत के राजय क्षेत्र में राज्य ु ु ां वकसी र्ी व्यवक्त को का के समक्ष समा ता या का के समा सरक्षण से िवचत हीं करेर्ा। ू ू ां ां इसका अर्थ यह ह ै वक राज्य सर्ी व्यवक्तयों के वलए एक-सा का ब ायेर्ा और उसे एक समा ू लार् करेर्ा तर्ा अप े अवधकारों की रक्षा के वलए प्रत्येक व्यवक्त समा रूप से न्यायालय की ू र्रण ले सके र्ा। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 79 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ii. धमा, मलवर्, जान्द्त, न्द्लर् या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का अन्त - सविधा के ू ं ं ां अ च्छेद 15 के अ सार राज्य के द्वारा धम,थ मलिर्, जावत, वलर्, जन्मस्र्ा आवद के आधार ु ु ू ां ां पर ार्ररकों के सार् उ के जीि के वकसी र्ी क्षेत्र म ें कोई र्दे र्ाि ही वकया जायेर्ा। कोई र्ी ार्ररक सािजथ व क स्र्ा ों जसै े कआेे, तालाबों, स् ा घरों, होिलों, वस ेमाघराेे आवद का ु ां ां प्रयोर् कर े से िावछत हीं हो सके र्ा। ां iii. राज्यधी सेिाओ के समा अिसर - सिवधा के अ च्छेद 16 के अ सार के िल धमथ, जावत, ु ु ां ां िण थ या मलिर् के आधार पर राज्यधी वकसी रोजर्ार, व यवक्त ि वकसी उच्च पद पर उन् वत ू ु ां प्राप्त कर े के सबध म ें वकसी ार्ररक के सार् विर्दे पण थ ीवत का प्रयोर् ही वकया जायेर्ा। इस ू ां ां प्रकार र्ारत के समस्त ार्ररक उच्च से उच्च पदों पर आसी हो सकते ह।ै स्त्री और परूष म ें र्ी ु वकसी प्रकार र्दे हीं वकया जायेर्ा। iv. अस्पश्यता का न्द्नषेध - सविधा के अ च्छेद 17
के द्वारा अस्पश्यता का सदा के वलए अन्त ृ ृ ु ां कर वदया र्या ह।ै अस्पश्ता से उत्पन् वकसी योग्यता को लार् कर ा एक दण्ड ीय अपराध मा ा ृ ् ू र्या ह।ै इसके द्वारा स
ामावजक समा ता की स्र्ाप ा कर े की व्यिसर्ा की र्यी ह ै और र्ान्धी जी के स्िप् को परा वकया र्या ह।ै ू v. उपान्द्धयों का न्द्नषेध - वब्रविर् र्ास काल म ें सम्पवत्त आवद के आधार पर उपावधया प्रदा की ां जाती र्ीं, जो सामाजक जीि म ें र्दे र्ाि पैदा करती र्ीं। सविधा के 18ि ें अ च्छेद म ें यह ु ां व्यिस्र्ा की र्यी ह ै वक से ा अर्िा विद्या सम्बन्धी उपावधयों के अलािा अन्य कोई ार्ररक वब ा राष्रपवत की आज्ञा के विदर्े ी राज्य से काई उपावध स्िीकार हीं कर सकता। न्याय वकसी र्ी समाज का अवस्तत्ि, वब ा न्याय की स्र्ाप ा के सम्र्ि हीं हो सकता, इसवलए र्ारतीय सविधा े न्याय को अत्यवधक महत्िपण थ तत्ि या आदर् थ या मलय या वसिान्त या लक्ष्य मा ा ह।ै ू ू ां सविधा म े न्याय के व म् वलवखत ती रूपों पर बल वदया र्या ह ै - ां i. सामान्द्जक न्याय - इसका अर्थ ह ै वक समाज म ें सर्ी को बराबरी का स्
र्ा प्राप्त हो। जावत, िण,थ वलर्, जन्मस्र्ा , और धम थ आवद के आधार पर वकसी के सार् अन्याय वकया जाए। यह आदर्थ, ां समाज म ें समा स्र्ा और समा स्तर प्राप्त
कर े के वलए जो र्ी कवि ाईयाँ या समस्याए ँ आती है, उ को दर कर े की प्रेरण दते ा ह।ै इसके अन्तर्तथ सविधा में कहा र्या ह ै वक पर्, जावत, िणथ, वलर् ां ां ां ू आवद के आधार पर ार्ररकों के प्रवत व्यिहार म े कोई र्दे र्ाि हीं वकया जाएर्ा, जीि के सर्ी क्षेत्रों म ें ऊच- ीच की र्ाि ा को समाप्त वकया जाएर्ा, का की दृवष्ट से समाज के सर्ी व्यवक्तयों ू ां को समा समझा जाएर्ा और समाज के कमजोर िर्ों-वस्त्रयों, अ सवचत जावतयों और ज -जावतयों ु ू के लोर्ों के विकास के वलए विर्षे व्यिस्र्ा कर े के प्रयास वकये जाएर्।े इसी के अ सार अ सवचत ु ु ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 80 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं जावतयों, अ सवचत ज जावतयों और वपछडी जावतयों को सामावजक रूप से दसरी जावतयों के स्तर ु ू ू तक उिा ा आिश्यक समझा र्या और इसी कारण आरक्षण के वसिान्त को मान्यता प्रदा की र्यी। ii. आन्द्थाक न्याय - इसका अर्थ ह ै वक आवर्थक आधार पर वकसी के सार् अन्याय वकया जाए। आवर्थक न्याय के वलए सिधै ाव क प्रािधा वकये र्ये ह।ैं सविधा म ें कहा र्या ह ै वक सर्ी व्यवक्त्यों ां ां को जीविका
प्राप्त कर ,े समा कायथ के वलए समा कायथ िते प्राप्त कर े, श्रवमकों को उवचत िते ि सर्ी सविधाए प्राप्त कर े, बेकारी, ििािस्र्ा, बीमारी ि अक्षमता की वस्र्ती म ें सहायता प्राप्त
कर े ृ ु ां के अिसर प्रदा वकये जा े चावहए। ध एि उत्पाद के साध ों को के न्िीयकरण हीं हो ा चावहए, ां समाज की प्राकवतक एि र्ौवतक सम्पवत्त का स्िावमत्ि एि व यत्रण व्यवक्तयों के स्र्ा पर समाज के ृ ां ां ां अधी हो ी चावहए, बेर्ारी, दास प्रर्ा, दास एि वस्त्रयों की खरोद-फरोख्त समाप्त हो ी चावहए, चौदह ां िष थ से कम आय के बालकों से काम ही कराया जा ा चावहए, समाज के सर्ी लोर्ों को पर्, जावत, ु ां िर् िण,थ वलर् के र्दे र्ाि के वब ा कोई कायथ कर े, कोई व्यिसाय कर े और लोक सेिाओ म ें परी ू ां ां ां स्ितत्रता हो ी चावहए। इसका अर्थ ह ै वक राज्य वकसी र्ी व्यवक्त को कोई कायथ कर े, वकसी र्ी ां व्यिसाय को कर े और वकसी र्ी ौकरी को कर े के वलए बाध्य हीं करेर्ा। सविधा म ें यह र्ी ां कहा र्या ह ै वक समाज के वपछडे, अ सवचत जावत और अ सवचत ज जावत तर्ा वस्त्रयो आवद के ु ू ु ू आवर्थक विकास के वलए राज्य प्रयास करेर्ा। इ प्रािधा ों स े ार्ररकों को व वश्चत ही आवर्थक न्याय की प्रावप्त होर्ी। iii. राजनैन्द्तक न्याय - इसका अर्थ ह ै - राज ैवतक आधार पर सबको समा अवधकार प्राप्त हो ा। इस आधार पर र्ारतीय सविधा 18 िष थ से अवधक आय िाले अप े सर्ी ार्ररकों को मतदा का ु ां अवधकार प्रदा करता ह।ै राज ीवतक न्याय के अन्तर्तथ देर् के प्रत्येक ार्ररक को, चाह े िह वकसी र्ी पर्, जावत, िर्, िण थ या वलर्ा का हो, स्ितत्रतापिकथ अप े विचार व्यक्त कर ,े सघ, सर्ा, ू ां ां ां ां ां सवमवत या सस्र्ा का व माथण कर े, सर्ाओ का आयोज कर े और व धाथररत योग्यता सार लोक ु ां ां सर्ा, राज्य सर्ा, विधा सर्ा, विधा पररषद और अन्य सस्र्ाओ ि पदों पर च ाि लड़ े का ु ां ां अवधकार प्राप्त ह।ै इ प्रािधा ों से र्ारतीय सविधा े दर्े के ार्ररकों को राज ैवतक न्याय ां उपलब्ध कराया ह।ै भ्रातत्व- भ्रातत्ि का अर्थ ह ै र्ाईचारे की र्ाि ा, सबको र्ाई समझ ा, वमल-जलकर प्रेम के सार् प्रेम के ृ ृ ु सार्, सहयोर् के सार्, सद्भाि ा के सार्, एक दसरे की सहायता करते हए रह ा, एक-दसरे की ु ू ू सिदे ाओ को समझ ा, अप े अन्दर त्यार् और समपथण की र्ाि ा पैदा कर ा। र्ारतीय सविधा का ां ां ां यह एक महत्िपण थ आदर् थ या मलय या वसिान्त या अर् का तत्ि ह।ै र्ारतीय सविधा म ें समा ता का ू ू ां ां अवधकार तर्ा ीवत व दर्े क तत्त भ्रातव्य की स्र्ाप ा के वलए ही ह।ैं र्ारतीय सविधा म ें समा ता का ृ ां अवधकार तर्ा ीवत व दर्े क तत्ि भ्रात्ि की स्र्ाप ा के वलए ही ह।ै जब सर्ी व्यवक्त समा ह,ैं उ म ें धमथ, जावत, िणथ, िर्, रर्, वलर् आवद के आधार पर कोई र्दे र्ाि ही वकया जाता, तो भ्रातत्ि की स्र्ाप ा ृ ां ां ां होती ह।ै भ्रातत्ि का आदर् थ व्यवक्त की र्ररमा और राष्र की एकता को मान्यता दते ा ह।ै र्ारत के सविधा ृ ां म ें व्यवक्त की र्ररमा और राष्र की एकता दो ों पर ही बल वदया र्या ह ै और इसके वलए यह आिश्यक ह ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 81 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वक व्यवक्त की स्ितत्रता पर कछ सीमा तक अकर् हो, वजससे एक व्यवक्त की स्ितत्रता दसरे व्यवक्त की ु ु ां ां ां ू स्ितत्रता के बीच म ें बाधा पदै ा करे। इसवलए कछ सीमाए इ स्ितत्रताओ पर लोर्ों के वहत म ें लर्ाई ु ां ां ां ां र्यी ह।ैं िस्ततः भ्रातत्ि की र्ाि ा स्ितत्रता, समा ता और न्याय के मध्य सामजस्य स्र्ावपत करती ह।ै ृ ु ां ां चारों का लक्ष्य एक ही ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 82 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ृ इकाई 4 – टैगोर तर्ा कष्णमूर्टत के शवशेष सन्दर् में थ राष्रवाद, सावथर्ौशमकतावाद तर्ा पांर्शनरपेक्षता के सांप्रत्र्र्ों का शववेचना तर्ा इन सांप्रत्र्र्ों का शशक्षा के सार् अतां सथांबांध Deliberations on the Concepts of Nationalism , Universalism and Secularism and their Interrelationship with Education with Special Reference to Tagore and Krishnamurti 4.1 प्रस्ताि ा 4.2 उद्दश्े य 4.3 राष्रिाद का अर्थ 4.4 सािथर्ौवमकिाद का अर्थ 4.5 धमथव रपेक्षिाद का अर्थ 4.6 राष्रिाद, सािथर्ौवमकिाद तर्ा धमथव रपेक्षिाद का वर्क्षा से सम्बन्ध 4.7 राष्रिाद, सािथर्ौवमकिाद तर्ा धमथव रपेक्षिाद के सन्दर्थ में िैर्ोर के र्ैवक्षक विचार 4.8 राष्रिाद, सािथर्ौवमकिाद तर्ा धमथव रपेक्षिाद के सन्दर्थ में कष्णमवतथ के र्वै क्षक ृ ू विचार 4.9 व बधात्मक प्रश्न ां 4.1‍प्रस्तावना ा र्ारत म ें धमथ-व रपेक्षीकरण की प्रविया का सत्रपात पवश्चमी के प्रर्ाि के कारण ही हआ परन्त इस प्रविया ु ू ु को अवधक विकवसत कर े का श्रेय स्ितत्र र्ारतीय स्पष्ट को जसै े ही स्ितत्र हआ, र्ारतीय सविधा े ु ां ां ां सर्ी ार्ररकों को समा ता का पाि पढ़ाया। प्रजातावत्रक राज्य म ें दर्े के सर्ी बावलर्ों को मतावधकार ां साध ों के स्र्ा पर िधै ाव क सवहताओ को महत्ता प्रदा की र्ई, वजसके फलस्िरूप परम्परार्त समाज ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 83 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं आधव करण की ओर उन्मख हआ। इस आधव कीकरण के अन्तर्तथ पवित्रता और अपवित्रता सम्बधी ु ु ु ु ां विचारों, उच्च िर्ों और विषेर्कर ब्राह्राणों की सामावजक वस्र्वत, ग्रामीण समदाय के जीि और वहन्द ु ू धम थ की परम्परार्त मान्यताओ म ें धम-थ व रपेक्षीय के प्रर्ाि से व्यापक दृेृवष्टकोण का विकास हो रहा ह।ै ां आज र्ारत म ें तीर्थ-स्र्ा म ोरज यात्राओ का रूप ले रह े ह,ैं सस्कारों का सवक्षपतीकरण हो रहा ह।ै ां ां ां ां वििाह म ें सविदा के तत्ि स्पष्ट हो े लर् े ह,ैं पवश्चमी ढर् के त्यौहारों और प्रर्ाओ म ें िवि हो रही ह ै र्ाड़े ृ ां ां ां पर ब्राह्राणों स े पजा और धावमकथ कायों को सम्पन् करिा े के रीवत-ररिाज बढ़ रह े ह,ैं वर्क्षा को जीि ू का अव िायथ अर् समझा जा रहा ह ै वस्त्रयों द्वारा ौकरी कर ा बरा हीं समझा जाता ह।ै व्यापाररक ु ां एजवे न्सयों द्वारा तीर्थ-यात्राओ जसै े धावमकथ उद्दश्े यों की पवतथ की जा े लर्ी ह,ै धावमकथ मिों के प्रवत ू ां उदासी ता बढ़ रही ह।ै धम थ को राज ीवत से उलझा द े े के कारण
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‘साम्प्रदावयकता’
का विकास हआ ह ै ु और ग्रामीण जीि के व्यिसायीकरण को प्रोत्साह वमला ह।ै िस्ततः सरकार र्ी िी सामावजक ु अवधव यमों के द्वारा धम थ व रपेक्षीकरण की इस प्रविया को व रतर प्रोत्साह द े रही ह।ै ां धमवथ रपेक्षिाद एक जीि -र्लै ी ह,ै जबवक धमथ-व रपेक्षीकरण पररितथ की एक प्रविया ह।ै विवर्न् समाजों म ें धमथ-व रपेक्षता के विवर्न् अर्थ ह।ै ऑक्सफोडथ वडक्र् री के अ सार,
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‘धम-थ व रपेक्षता िह ु वसिान्त ह,ै वजसम ें ईश्वर म ें विश्वास से सम्बवधत सर्ी विचारों को पर्क, करके ैवतकता, ितथमा जीि ृ ां म ें म ष्य के कलयाण से पणरूथ पेण सम्बवधत हो ी चावहए।’
चैम्बसथ वडक्र् री के अ सार ‘‘धम थ व रपेक्षता ु ू ु ां एक ऐसा विश्वास ह ै वजसम ें राज्य, ैवतकताए, वर्क्षा इत्यावद धम थ से स्ितत्र हो े चावहए।’ अमरे रक ां ां समाज म ें यह एक ऐसा विचार ह,ै वजसम ें एक ही मा ि समाज के अन्तर्तथ धम थ और राज्य वब ा एक-दसरे ू से िकराए हए सह-अवस्तत्ि की र्ाि ा से रह।े र्ारतीय समाज में यह एक ऐसी जीि -र्लै ी ह,ै वजसमें ु विवर्न् धमों के लोर् समा ता, सह-अवस्तत्ि एि सवहष्णता की र्ाि ा के आधार पर वब ा एक-दसरे के ु ां ू परम्परा विश्वासों म ें विध् उत्पन् वकए, एक ऐसे कलयाणकारी राज्य की स्र्ाप ा करें वजसम े ेांउस राज्य का कोई र्ी व वश्चत धम थ हो और उसके वलए सर्ी धम थ समा हों, वकन्त यहा यह बात ध्या रख े योग्य ु ां ह ै वक र्ारतीय धमथ-व रपेक्षता का प्रत्यय अमरे रक समाज के धमथ-व रपेक्षता के प्रत्यय से वर्न् ह।ै अमरे रक समाज म ें धावमकथ , र्क्षै वणक सस्र्ाओ को राज्य वकसी प्रकार की आवर्थक सहायता प्रदा हीं ां ां करता ह,ै जबवक र्ारत म ें राज्य विवर्न् धावमकथ समदायों द्वारा चलाई र्ई र्वै क्षक सस्र्ाओ को आवर्थक ु ां ां अ दा दते ा ह।ै इसके अवतररक्त र्ारतीय सविधा े राज्य को यह र्ी अवधकार वदया ह ै वक िह विवर्न् ु ां धावमकथ समदायों के वहतों की रक्षा र्ावतपण थ सह-अवस्तत्ि एि सास्कवतक विकास को ध्या म ें रखते हए ु ृ ु ू ां ां ां उ के धावमकथ जीि म ें विध् र्ी डाल सकता ह ै िस्ततः राज्य विवर्न् धावमकथ समह के जीि म ें विषय ु ू इस को लेकर डालता वक र्ारत का पवित्र समाज र् ैः-र् ैः धम-थ व रपेक्ष समाज म ें पररिवतथत हो। 4.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप- 1. राष्रिा
द का अर्थ समझ सकें र्े। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 84 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2. धमवथ रपेक्षिाद का अर्थ समझ सकें र्।े 3. सािर्थ ौवमकिाद का अर्थ
समझ सकें र्।े 4. राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद का वर्क्षा से सम्बन्ध को स्पष्ट कर सकें र्।े 5. राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें िैर्ोर के र्वै क्षक विचारों को 6. स्पष्ट कर सकें र्।े 7. राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें कष्णमवतथ के र्वै क्षक विचारों ृ ू 8. को स्पष्ट कर सकें र्।े 4.3‍राष्ट्रवनााद‍का‍अर्‍थ राष्रिाद का अर्थ ह ै अप े राष्र (दर्े ) के प्रवत प्रेम, िफादारी, आदर एि र्वक्त की र्ाि ा रख ा। जब ां कोई व्यवक्त अप े दर्े की र्ाषा, उसके इवतहास, र्र्ोल, प्राची पवित्र ग्रन्र्ों, पिजथ ों, मलयों, परम्पराओ ू ू ू ां तर्ा आदर्ों से प्रेम करता ह ै और उ आदर्ों को अप े व्यिहार म ें अप ाता ह ै तो उसे राष्रिादी कहा जाता ह।ै अप े राष्र से लर्ाि, उसके प्रवत आत्मीयता की र्ाि ा, उससे प्रेम-ये सब राष्रिाद के सचक ह।ैं ू राष्रिाद ऐसी र्वक्त ह ै जो देर् के ार्ररकों को एकता के सत्र म ें बाधती ह।ै यह व्यवक्त को अप े व्यवक्तर्त ू ां वहतों को राष्रीय वहतों पर बवलदा कर े की प्रेरणा दते ा ह।ै i. ब्रबेकर का विचार- ‘राष्रिाद े प जाथर्रण और विर्षे कर फ्रास की िावत से महत्ि प्राप्त ू ू ां ां वकया। साधारण रूप से इसका अर्थ ह ै दर्े के प्रवत दर्े -र्वक्त से र्ी अवधक िफादारी रख ा। स्र्ा की एकता के अवतररक्त राष्रिाद म ें जातीय-एकता, र्ाषायी-एकता, ऐवतहावसक-एकता, सास्कवतक-एकता, पारस्पररक-एकता का र्ी महत्ि ह।ै ‘ ृ ां ii. हमाय कबीर के विचार- ‘राष्रिाद राष्र के प्रवत अप त्ि की र्ाि ा पर आधाररत होता ह।ै ‘ ूां iii. पवडत जिाहर लाल ेहरू का विचार- ‘राष्रिाद एक विवचत्र तत्ि ह ै जो एक ओर जीि , ां विकास, र्वक्त एि एकता का सचार करता ह ै तो दसरी ओर यह सकीणतथ ा र्ी उत्पन् करता ह ै ां ां ां ू क्योंवक इसी के कारण व्यवक्त अप े दर्े को ससार के दसरे दर्े ों से अलर् समझ े लर्ता ह’ै । ां ू देर् भन्द्ि और राष्ट्रवाद- प्रायः दर्े र्वक्त को राष्रिाद का पयाथयिाची मा वलया जाता ह।ै परन्त यह ु ऐसा हीं ह।ै दर्े र्वक्त एक प्राची धारणा ह ै जबवक राष्रिाद आधव क धारणा ह ै वजस का जन्म ‘फ्रास ु ां की महा िावन्त‘ के दौरा हआ। ब्रबेकर के कर् ा सार, ‘साधारणतयः राष्रिाद दर्े र्वक्त की अपेक्षा ु ् ू ु दर्े के प्रवत िफादारी के व्यापक क्षेत्र की ओर इवर्त करता ह।ै ‘ दर्े र्वक्त उस दर्े के प्रवत प्रेम तक ां सीवमत ह ै जहा व्यवक्त का जन्म और पाल -पोषण हआ। दर्े र्क्त व्यवक्त राष्र-वहत के वलये अप े वहतों ु ां की बवल चढ़ा दते ा ह।ै परन्त राष्रिाद एक र्वतर्ील सामावजक सर्ि ह ै जो एकता के सत्रों म ें बन्धा होता ु ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 85 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ह ै और राष्रीय सरकार के आदर्ों एि ीवतयों का प्रचार एि प्रसार करता ह।ै राष्रिाद के िल अप ी ां ां जन्मर्वम के प्रेम तक सीवमत हीं ह।ै इसम ें राष्र के इवतहास, सस्कवत, धमथ, र्ाषा तर्ा परम्पराओ से प्रेम ृ ू ां ां र्ी सवम्मवलत ह।ै सक्षेप म ें कहा जा सकता ह ै वक राष्रिाद राष्र के प्रवत पण थ कत्तव्थ य व ष्ठता तर्ा उसकी ू ां ितथमा समवि एि र्ािी र्व्यता म ें पण थ आस्र्ा का ाम ह।ै ृ ू ां 4.4‍सावनाथर्ौशमकवनााद‍का‍अर् थ यह एक मा िीय र्णिन्ता का दािा ह।ै यह र्रै -सािर्थ ौवमकिाद के विपरीत वकया जाता ह।ै मख्यतः ु ु सािर्थ ौवमकिाद के ती मल रूप ह-ै ज्ञा , प्रेम और कत्तव्थ य ससार म ें मा ि इ ती र्ब्दों के घरे े म ें पणथ ू ू ां जीि को व्यवतत कर ा ह ै और सखः दख का अ र्ि करता ह।ै सािर्थ ौवमकिाद का मा ा ह ै वक व्यवक्त ु ु ु को दखः और सख-र्ारीररक, र्ािात्मक, मा वसक, वित्तीय या आध्यावत्मक हो सकता ह।ै इसका मा ा ु ु ह ै वक मा ि जीि म ें कष्टों (दःखों) के ती मख्य कारक ह ै जो व म् प्रकार ह।ै ु ु i. पीवडत(दःखी) के वलए सबसे पहले बव यादी कारण ज्ञा का अर्ाि ह।ै दःख तर्ी होता ह ै जब ु ु ु पयाथप्त जा कारी और ज्ञा का अर्ाि हो यवद मा ि सही समय एि पररवस्र्वतयों के अ सार ु ां सही व णयथ ले े की क्षमता रखता ह ै िही ज्ञा ी ह ै और दःख कही र्ी हीं । परन्त मा ि लालच, ु ु स्िार्थ, ईष्याथ और र्य आवद हम ें तकथ पणथ ढ़र् से सोच े के वलए और बविमा ी से कायथ कर े की ू ु अ मवत के बराबर ही दते े ह।ै ु ii. सािर्थ ौवमकता के अ सार, हमारे अतीत मा ि जीि के दखी हो े का दसरा मल कारण हमारा ु ू ु ू कत्तव्थ य पण थ कर ा ह।ै मा ि जीि म ें हम विवर्न् तरह की र्वमका जसै े- बेिे, बेिी, माता- ू ू वपता, पवत-पत् ी, कमचथ ारी, व योक्ता, सहयोर्ी, पड़ोसी, सामान्य ार्ररक, दोस्त आवद के रूप म ें कई र्वमका व र्ातें ह।ै हम अप ी र्वमका के रूप म ें अप ा सही कत्तव्थ य समझ कर अप ी ू ू र्वमका के रूप म ें अप ा सही कत्तव्थ य समझ कर पण थ कर द ें तो दःखी कहीं जर ही आयेर्ा। ू ू ु iii. सािर्थ ौवमकिाद के अ सार, हमारे दःखी हो े का तीसरा लेवक सबसे महत्ि पण थ बव यादी ु ू ु ु कारण प्यार की कमी ह।ै इसका कारण- लालच, ईष्या,थ स्िार्थ और डर ह।ै आज के पररप्रक्ष्े य म ें मा ि जीि म ें वब ा र्तथ के कहीं र्ी प्यार दखे ा हीं जा सकता। प्यार मा ि जीि म ें जीि म ें जी े की एक विर्ेष कला को जन्म दते ा ह ै जो वब ा घषथण के जीि को आर् े बढाता ह ै और े़ दःख का अ र्ि हीं हो े दते ा। ु ु 4.5‍धम‍श रपेक्षवनााद‍का‍अर् थ थ िास्ति में, लौवककीरण तर्ा धमवथ रपेक्षिाद दो ऐसे र्ब्द ह ें वज की मल र्ाि ा बहत कछ समा होते ु ू ु हए र्ी, उ का िास्तविक अवर्प्राय एक-दसरे से बहत वर्न् ह।ै धमवथ रपेक्षिाद एक ऐसी प्रविया तर्ा ु ू ीवत ह ै वजसके अन्तर्तथ राज्य और सविधा की दृवष्ट म ें विवर्न् धमों को मा े िाले समहों के बीच ू ां वकसी प्रकार का विर्दे हीं वकया जाता। सार् ही यह एक ऐसी प्रविया ह ै वजसके अन्तर्थत एक समाज के का , ैवतकता तर्ा वर्क्षा आवद धम थ से स्ितत्र रहते ह।ैं इसका उद्दश्े य एक ओर विवर्न् धमों के लोर्ों ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 86 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं म ें समा ता एि सह-अवस्तत्ि को ब ाये रख ा ह ै तो दसरी ओर, उ म ें सवहष्णता की र्ाि ा को विकवसत ु ां ू करके राज्य को अवधक सर्वित ब ा ा होता ह।ै दसरी ओर, लौवककीकरण के रूप म ें इस प्रविया के अर्थ ां ू को स्पष्ट करते हए प्रोफे सर श्रीव िास े वलखा ह,ै ‘‘लौवककीकरण र्ब्द म ें यह बात व वहत ह ै वक वजसे ु पहले धावमकथ मा ा जाता र्ा, उसे अब िसै ा हीं मा ा जाता।’’ डॉक्िर श्रीव िास े यह र्ी वलखा ह ै वक
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‘‘लौवककीकरण का दसरा आिश्यक तत्ि बवििाद ह ै वजसम ें अन्य बातों के अवतररक्त, परम्परार्त ु ू विश्वासों और धारणाओ के स्र्ा पर आधव क ज्ञा की स्र्ाप ा व वहत होती ह।ै ’’
ु ां िास्ति में, अग्रेजी के र्ब्द का वहन्दी रूपान्तर
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‘लौवककीकरण’
के रूप म ें हो ा इस प्रविया के दो अर्ों ां पर प्रकार् डालता ह-ै पहला अर्थ सामान्य ह,ै जबवक दसरा िावन्तकारी। सामान्य अर्थ के अ सार ु ां ू धमवथ रपेक्षिाद एक ऐसी वस्र्वत को स्पष्ट करता ह ै वजसम ें हमारे प्रवतवद के जीि म ें धावमकथ व यत्रण कम ां हो जाता ह,ै धावमकथ वसिान्तों के प्रवत ई म ोिवत्तया विकवसत हो े लर्ती ह ैं तर्ा कमकथ ाण्डीय व्यिहारों ृ ां के स्र्ा पर तकथ को अवधक महत्ि वमल े लर्ता ह।ै िावन्तकारी अर्थ म ें लौवककीरण एक ऐसी वस्र्वत ह ै वजसम ें परम्परार्त धावमकथ विश्वासों को बहत सवियता के सार् स्िीकार वकया जा े लर्ता ह।ै जहा तक ु ां र्ारतीय समाज का प्रश्न ह,ै हमारे समाज में लौवककीरण का कोई िावन्तकारी स्िरूप विद्यमा हीं ह ै ां बवलक एक स्िार्ाविक प्रिसया के रूप में ही लौवककीरण का प्रर्ाि व रन्तर बढ़ता जा रहा ह।ै यह स्पष्ट ् हो चका ह ै वक राज्य द्वारा सर्ी धमों को समा महत्ि द े े के कारण हम इस प्रविया को
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‘धमवथ रपेक्षिाद ’
ु र्ी कहते ह ैं लेवक श्रीव िास द्वारा िवणतथ प्रविया म ें धावमथक विश्वासों के स्र्ा पर सासाररक अर्िा ां लौवकक तत्िों का महत्ि कहीं अवधक हो े के कारण इसे
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‘लौवककीकरण की प्रविया’
कह ा ही अवधक उपयक्त ह।ै ु 4.6‍राष्ट्रवनााद, सावनाथर्ौशमकवनााद‍तर्ा‍धमश रपेक्षवनााद‍का‍शशक्षा‍स‍े सम्बन्ध‍ थ राष्रिाद, सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के सार् वर्क्षा के सम्बन्ध की बात करे तो वर्क्षा इ ती ों को एक सार् एक सत्र म ें वपरायें रखती ह ैं िास्ति म ें वर्क्षा ही एक मात्र साध ह ैं जो इ के िास्तविक ू स्िरूप से पररवचत करती ह।ैं राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद ब ायें रख े म ें वर्क्षा का महत्ि पण थ स्र्ा ह।ै राष्र की ू विघि ात्मक कर्वक्तयों के विरुि लड े के वलए यह महत्ि पण थ साध ह।ै डा0 राधाकष्ण े वकत ा ृ ु ू सन्दर कहा ह,ै ‘राष्रीय एकता ईिों और पलस्तर से हीं ब ाई जा सकती, ही छै ी या हर्ौड़े से इसका ु ां व माथण वकया जा सकता ह।ै इसे चपचाप लोर्ों के म ों और वदलों म ें पैदा हो ा होर्ा। इसकी एकमात्र ु प्रविया वर्क्षा प्रविया ह।ै ‘ इसी प्रकार सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के विकास के वलए वर्क्षा आिश्यक ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 87 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4.7‍राष्ट्रवनााद, सवनाथर्ौशमकवनााद‍ तर्ा‍ धमश रपेक्षवनााद‍ के ‍ सन्दर्‍थ म‍ टगोर‍ के ‍ थ ें ै शैशक्षक‍शवनाचार बहमखी प्रवतर्ा के ध ी, लेखक, कवि, व बधकार, ािककार, सर्ीतकार, र्ायक, दार्वथ क, समाज ु ु ां ां सधारक, वचतक और महा वर्क्षाविद के रूप म ें रिीन्ि ार् िैर्ोर े वर्क्षा को एक बहउद्दश्े यीय प्रविया ु ु ां ् के रूप म ें स्िीकार वकया उ के अ सार िास्तविक वर्क्षा िह ह ै जो उपयोर्ी िस्तओ की िास्तविक ु ु ां प्रकवत को जा े और उ के उपयोर् कर े और उससे िास्तविक जीि म ें रक्षा कर े म ें सहायता करती ह।ै ृ र्ौवतक और आध्यावत्मक विकास वर्क्षा के मख्य उद्दश्े य ह।ै र्ाषा, सावहत्य, इवतहास, र्र्ोल, विज्ञा , ु ू कला, प्रकवत अध्यय और सर्ीत को पाियचयाथ म ें स्र्ा वदया ह।ै उन्हों े मातर्ाषा के माध्यम से ृ ृ ् ां वर्क्षण कायथ कर े पर बल वदया। ि े सीख े म ें बच्चों की स्ितत्रता के पक्षधर र्े। ि े आत्मा र्ास पर ु ां बल दते े र्े। वर्क्षकों को ज्ञा ी, सयमी और वर्क्षावर्थयों के प्रवत समवपथत हो ा चावहए। िह वर्क्षा के अन्य ां पक्ष ज वर्क्षा, स्त्री वर्क्षा, व्यािसावयक वर्क्षा, धावमकथ वर्क्षा और राष्रीय वर्क्षा के पक्षधर र्े। िह प्रकवतिादी, प्रयोज िादी, मा ितािादी वर्क्षाविद र्े। र्ावत व के त उ की वर्क्षा की प्रयोर्र्ाला र्ी। ृ ां ् िह श्रम, सर्ीत और स्िाध्याय के सार् सस्कारिा वर्क्षा के प्रबल समर्थक र्े। उ का र्वै क्षक वचत ां ां ां और विचार आज र्ी र्ारतीय वर्क्षा म ें जीिन्त ह।ै स्ितत्रता के विचार के समा , िैर्ोर को परे विश्व म ें सच्ची स्ितत्रता की प्रावप्त के वलए लोर्ों के प्रयास ू ां ां समा रूप से कद्म र्रे तर्ा विपरीत पररणाम द े े िाले लर्े। बीसिीं र्ताब्दी के प्रर्म अधाांर् म ें यरोप के ू कछ दर्े ों की लड़ाक और आिामक राष्रिादी आकाक्षाओ की पष्ठर्वम म ें राष्रिाद का विश्लेषण करते ृ ु ू ू ां ां हए, िैर्ोर े राष्रिाद के विचार के जन्म को महाद्वीप म ें आधव क विज्ञा और तक ीकी विकास की ु ु उपज के रूप म ें व्याख्यावयत वकया। उन्हों े तकथ वदया वक र्ारत, जहाँ अप े व्यवक्तत्ि के स्िार्ाविक सास्कवतक दृवष्टकोण के कारण लोर्ों के सर्ि सामावजक ि ैवतक लक्ष्यों को वलए होते ह,ैं से वर्न् , ृ ां ां यरोप म,ें कहा ी वबलकल अलर् वदखती ह।ै विज्ञा और तक ीक के क्षेत्र में त्िररत विकस के कारण हए ु ू ु औद्योवर्क विकास े लोर्ों को आविष्कारों से अवधक से अवधक लार् उिा े के वलए हार् वमला ले े के वलए प्रेररत वकया। लेवक उन्हों े जोर वदया वक वब ा ैवतक अर्िा सामावजक लक्ष्य के लोर्ों की ऐसी यावत्रक सहयोवर्ता उ म ें अमा िीय प्रिवत्तयों को जन्म दते ी ह,ै वजसके पररणामस्िरूप उ का राष्रिाद ृ ां अप ी प्रकवत म ें धमका े िाला तर्ा आिामक हो र्या। इसके अवतररक्त, िैर्ोर े कहा वक यरोप म ें ृ ू राज ीवतक तर्ा आवर्थक उद्दश्े य के वलए राष्रिाद के विकास की प्रविया म ें ैवतक रूप से अस्िीकार कर े योग्य, राज ीवतक रूप से आिामक तर्ा आवर्थक रूप से राष्रिाद के असतोषज क रूप हो े के ां र्ण अन्तव थवहत ह ैं जो मा िता के व्यापक वहतों के वलए हाव कारक ह।ैं ु िैर्ोर े यरोप म ें घरेल और अन्तराथष्रीय दो ों ही क्षेत्रों में आिामक राष्रिाद के विकास के ू ू अ ेक कारात्मक पररणाम बताए। दर्े के र्ीतर, उन्हों े आर् े कहा, राष्रिाद लोर्ों म ें सत्ता तर्ा ध के वलए प्रचण्ड ि अन्तही लालच को प्रोत्सावहत करता ह ै वजसके पररणामस्िरूप मा ि श्रम का अवधक स े अवधक अिमलय होता ह ै तर्ा अवधक ध कमा े के वलए यावत्रक र्वक्त पर र्रोसा बढ़ता जाता ह।ै ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 88 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं धीरे-धीरे सामावजक अन्तःविया म ें लोर् ैवतक और मा िीय तत्िों से िवचत हो े लर्ते ह ैं तर्ा उ की ां र्वतविवधयों दष्टतापण थ हो े के बािजद उ की राज ीवतक-आवर्थक र्वक्त से सामावजक स्र्ा व धाथररत ू ू ु होता ह।ै अवन्तम विश्लेषण में, जब सत्ता और ध का लालच अत्य त बढ़ जाता है, तो यह उन्ह ें लोर्ों के ऐसे अस्िार्ाविक सर्ि ब ा े के वलए प्रररत करता जो अप े स्र्ा म ें बाहर के क्षेत्र के र्ौवतक ां ससाध ों को खोज े तर्ा उसके र्ोषण कर े के वलए धािा बोलते ह।ैं इस प्रकार राष्रिाद उपव िर्े िाद ां को बढ़ािा दते ा ह ै तर्ा लार्दायक उपव िेर्ों में दृढ़ स्र्ा प्राप्त कर े के वलए दो या दो से अवधक दर्े ों में र्ीषण यि होता ह।ै उपव िर्े ों की र्वतविवधयों से राष्रिाद का यर्ार्थ चररत्र उजार्र हो उिता ह।ै वब्रविर् ु साम्राज्यिाद से उदाहरण लेते हए, िैर्ार े र्ारत म ें उपव िेर् के अ कल पररितथ हो ा ह।ै उन्हों े दख ु ु ू ु प्रकि वकया,
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“ ैवतक भ्रष्टाचार का यह चि लर्ातार चलता रहर्े ा, लोह े से जोड़ ा तर्ा मर्ी को मर्ी से, वजसके तले व्यवक्त के सहज विश्वास तर्ा आदर् थ जीि के सन्दर फल कचल जाएर्”
े । ु ू ु ां सिर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें िैर्ोर के अप े र्वै क्षक विचारों म ें कछ विर्षे ही ु कहा। िैर्ोर के अ सार, सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद वकसी र्ी राष्र के विकास तत्ि से ह ै लेवक ु उत्साह की र्ाि ाओ के मलय और र्ण का कमजोर हो जा ा तर्ा राष्र की आसरी प्रिवत्तयों का बढ़ते ृ ू ु ु ां जा ा, वजसके कारण यरापीय सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद द्वारा र्षे विश्व को उपव िर्े ब ा ू वलया र्या, र्लत हआ। ु 4.8‍राष्ट्रवनााद, सावनाथर्ौशमकवनााद‍तर्ा‍धमश रपेक्षवनााद‍के ‍सन्दर्‍थ म‍कृ ष्ट्णमूर्टत‍ थ ें के ‍शैशक्षक‍शवनाचार‍ ज.े कष्णमवतथ र्त र्ताब्दी के महा वचतकों म ें अग्रण्य ह।ैं उन्हों े वर्क्षा के क्षेत्र म ें र्ी विचार वकया ह।ै ृ ् ू ां उ के दर् थ पर आधाररत कई वर्क्षण-सस्र्ाए दर्े -विदर्े म ें सफलतापिकथ कायथ कर रही ह।ै इस लेख में ू ां ां कष्णमवतथ के वर्क्षा-दर् थ के विविध आयामों की व्यिवस्र्त वििचे ा कर े का प्रयास वकया र्या ह।ै सार् ृ ू ही इस आधार पर इस बहमलय दर् थ की प्रासवर्कता को र्ी आलेवकत वकया र्या ह।ै ु ू ां बीसिीं र्ताब्दी के सख्यात दार्वथ क ज,े कष्णमवतथ (1895-1986) े अप े मौवलक वचत से वर्क्षा ृ ु ू ां दर् थ को र्ी समि वकया ह।ै उन्हों े विश्व के विवर्न् र्ार्ों की व रतर यात्राए की तर्ा सत्य के प्रेमी एि ृ ां ां ां अन्िषे ी के रूप म ें अप े विचारों से जर्त को आदोवलत वकया। अप े र्वै क्षक विचारों को जीित रूप द े े ् ां ां हते उन्हों े विवर्ष्ट प्रकार के विद्यालयों की स्र्ाप ा की प्रेरणा दी। ु कष्णमवतथ के अ सार, वर्क्षा के िल पस्तकों से सीख ा, वकन्हीं तथ्यों को कण्िस्र् कर ा तर्ा समाज के ृ ू ु ु प्रिाह म ें बह ा हीं ह।ै यह के िल म को प्रवर्वक्षत कर ा र्ी हीं ह।ै प्रवर्क्षण कायथकर्लता तो उत्पन् ु करता ह।ै वकन्त िी का आविष्कार हीं करता। िस्ततः वर्क्षा समग्र म के विकास म ें म ष्यों की ु ु ु सहायता कर े का एक महत्िपण,थ रच ात्मक और सच्चा मार् थ ह,ै जो व्यवक्त को स्पष्ट अिलोक कर े म ें ू समक्ष ब ाती ह।ै यह मा ि-जीि म ें विद्यमा विवर्न् प्रकार के सबधों की समझ प्रदा करती ह।ै ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 89 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं राष्रिाद, सिर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें ज.े कष्णमवतथ के अप े र्ैवक्षक विचारों म ें कछ ृ ू ु विर्ेष ही कहा। ज.े कष्णमवतथ के अ सार, राष्रिाद, सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धमवथ रपेक्षिाद के अन्तर्तथ ृ ू ु वकसी र्ी व्यवक्त को यर्ावस्र्वत समझकर समस्याओ को सलझा े को तत्परता हो ा चावहए। इसके वलए ु ां घि ाओ का स्िय एि अन्य सर्ी के सदर् थ म ें वब ा अिरोध और पिाथग्रह के व रीक्षण कर समस्याओ को ू ां ां ां ां ां सलझा ा तर्ा स्िय को पररवस्र्वत की अवधक र्हरी समझ प्राप्त कर ा। व्यवक्त को जीि के सख और ु ु ां दःख, क्षिता और व्यापकता सबको समझ े की आिश्यकता ह।ै ु ु उ का विद्यावर्थयों के वलए कह ा र्ा- ‘‘तारों, स्िच्छ आकार् पवक्षयों तर्ा पत्तों के आकार को दखे ो। छाया को दखे ो। आकार् म ें विचरते हए पक्षी को देखो। िक्ष के ीचे मौ बैिकर स्िय के सार् तम अप े ु ृ ु ां म की र्वतविवधयों को समझ ा आरम्र् करते हो और यह कक्षा म ें जा े के बराबर ही महत्िपण थ ह।ै ’’ ू र्य से मवक्त अ र्ास से हीं अवपत र्ात म द्वार सर्ि ह।ै र्ात म ही स्िय की समझ प्रदा करता ह,ै ु ु ु ां ां ां ां जो स्ितत्रता और र्ावत का आरम्र् ह।ै विद्यालय िह स्र्ा हो ा चावहए, जहा विद्यार्ी विचार-विमर्थ ां ां ां एि मौ द्वारा स्िय को एि अप ी िास्तविक रूवच को पहचा सकें । िहा तल ा और प्रवतस्पिाथ के स्र्ा ु ां ां ां ां पर सहयोर् और प्रेम को बढ़ािा वमल ा चावहए। 4.9‍श बधात्मक‍प्रश्न‍ ां 1. राष्रिाद से आप क्या समझते ह ैं ? 2. धम थ व रपेक्षिाद का अर्थ को समझाइये। 3. सािर्थ ौवमकिाद का अर्थ को समझाइये। 4. राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धम थ व रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें िैर्ोर के र्वै क्षक विचारों की व्याख्या कीवजए। 5. राष्रिाद,सािर्थ ौवमकिाद तर्ा धम थ व रपेक्षिाद के सन्दर् थ म ें कष्णमवतथ के र्वै क्षक विचारों को ृ ू स्पष्ट कीवजए। उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 90 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं खण्ड 3 Block 3 उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 91 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 1- पाठ्यचर्ा क्र्ा है तर्ा पाठ्यचर्ा के शनमाण में कौन और क्र्ों सांलग्न रहते हैं के उत्तर समझने र्ोग्र् बनाना Enabling Student Teachers to Comprehend What is Curriculum and Who Participiate in Preparing the Curriculum Why? 1.1 प्रस्ताि ा 1.2 उद्दश्े य 1.3 पाियचयाथ का अर्थ ् 1.3.1 पाियचयाथ तर्ा पाियिस्त म ें अन्तर ् ् ु 1.3.2 पाियचयाथ के आधार ् 1.4 पाियचयाथ वि
कास की प्रविया एि इसके सोपा ् ां 1.5. पाियचयाथ के मख्य उपार्म ् ु 1.6 र्ारत म ें पाियचयाथ विकास का प्रारूप ् 1.7 पाियचयाथ की आिश्यकता ् 1.8 पाियचयाथ विकास की प
्रविया म ें प्रवतर्ावर्ता ् 1.9 सारार् ां 1.10 र्ब्दािली 1.11 अभ्यास प्रश्नों का उत्तर 1.12 सदर् थ ग्रर् सची ू ां ां 1.13 व बधात्मक प्रश्न ां 1.1 प्रस्तावना ा वर्क्षा को एक उद्दश्े यपण थ प्रविया मा ा जाता ह।ै वर्क्षा के विविध स्िरूप अप ी उद्देश्यपरकता के ू अ कल वर्क्षा का व योज करते ह।ै वर्क्षा का व योवजत स्िरुप स्िय म ें उ सन्दर्ों और विया- ु ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 92 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं प्रवियाओ को समावहत कर े का प्रयास करता ह ै वजन्ह ें कोई बौविक समाज या राज्य, वर्क्षाविद, ां ् विर्ेषज्ञ आवद र्ािी पीढ़ी म ें अपेवक्षत समझता ह।ै आज के इस सच ा प्रधा समाज म ें सन्दर्ों ि विया- ू प्रवियाओ की सख्या अ वर् त हो र्ई और वकसी के र्ी महत्ि ि प्रयोज र्ीलता को कम हीं आकँ ा ां ां जा सकता ह।ै यह र्ी अप े आप म ें एक यर्ार्थ सत्य ह ै वक सर्ी को तो समावहत वकया जा सकता ह ै और ही व योज सर्ि हो पाएर्ा। वफर यह समस्या उत्त्पन् हो जाएर्ी वक आवखर वकस विषय-िस्त या ु ां विषय सामग्री को र्ावमल वकया जाए और वकसे र्ावमल वकया जाए और इसका सिोत्कष्ट समाधा ृ क्या होर्ा? अर्र िास्ति म ें दखे ा जाए तो इस सदर् थ म ें यही पररपािी प्रचवलत ह ै वक विद्वा , विर्षे ज्ञ, ां म ोिज्ञै ाव क, अवधकारी एि राज्य या सरकार व्यवक्त या समाज के पररप्रेक्ष्य म ें वज विषयों ि सामवग्रयों ां को महत्ि देते ह ै या आिश्यक समझते ह ै उन्ह ें पाियचयाथ म ें र्ावमल कर वलया जाता ह।ै पाियचयाथ की ् ् अिधारणा म ें यह सदिै व वहत रहता ह ै वक हम बच्चों को वकस वदर्ा म ें ले जा ा चाहते है, उ से क्या सीखा ा अपेवक्षत रखते ह?ै और उन्ह ें क्या पढ़ाते ह ै आवद। इसम ें राष्रीय वर्क्षा ीवत और पाियचया थ ् अहम र्वमका का व िहथ करते ह।ै इसवलए यह आिश्यक
समझा जाता ह ै वक वर्क्षा ीवत और ू पाियचयाथ बच्चों के सिालात और उ की उत्सकता पर व र्रथ हो । सामावजक औवचत्य सर्वत के ् ु ां पररप्रेक्ष्य म ें यह आिश्यक समझा जाता ह
ै वक पाियचयाथ इस प्रकार से व योवजत एि व वमतथ हो वक ् ां विद्यार्ी अप ी राष्रीय परपरा म ें र्ौरिावन्ित हो सकें तर्ा दर्े की सामवहकता और विविधता के प्रवत ू ां प्रवतबि हो सकें । पाियचयाथ विद्यावर्थयों को उ के व कििती सामावजक िातािरण को जा े ि समझ े ् म,ें उसम ें र्रीक हो े तर्ा उसका सरोकार रख े को प्रेररत करे और सैिावतक ज्ञा प्रिाहों को जीि की ां िास्तविक पररवस्र्वतयों से जोड़ े का अिसर प्रदा कर े िाला हो ा चावहए। राष्रीय पाियचया थ रुपरेखा-2005 म ें िास्तविक वर्क्षा उसे मा ा र्या जो बच्चों के अ र्ि-क्षेत्र और ् ु उ की समझ को विकवसत एि विस्तत करे क्योंवक इसम ें यह मा ा र्या वक वर्क्षा सच ा द े ा हीं ह।ै यह ृ ू ां िास्तविक सन्दर्ों म ें तर्ी सार्थक ह ै जब िह बच्चे के व्यवक्तत्त्ि और उसके पररिेर् के सार् एकाकार कर े के अिसर प्रदा करें और वजसमें ज्ञा का व माथण ि े स्िय करें एि अप े पररिर्े को सार् में ां ां एकाकार कर सकें । ितथमा सदर् थ म ें वर्क्षा और उसके स्िरुप म ें प्रर्वतर्ील विकास के मा दडों के ां ां फलस्िरूप त सरोकारों को समावहत वकया जा ा आिश्यक समझा जाता ह।ै राष्रीय पाियचया थ ् ू रुपरेखा-2005 म ें पाियचयाथ से सम्बवधत विवर्न् सरोकारों के सदर् थ म ें कछ मार्दथ र्कथ वसिातों की चचा थ ् ु ां ां ां की र्ई ह ै जोवक ितथमा पररदृश्य म ें र्वै क्षक व्यिस्र्ा आिश्यक तत्ि मा े र्ए है। ये व म् ह-ै  विद्यालय म ें प्रदा की जा े िाले ज्ञा को जीि से जोड़ ा,  अध्यय या पढ़ाई परपरार्त रित प्रणाली से मक्त हो, यह सव वश्चत कर ा, ु ु ां ां  पाियचयाथ का सिधथ इस प्रकार वकया जाए वक िह के िल विद्यावर्थयों को पािय-पस्तक ् ् ु ां के वन्ित ब ा कर रख ें अवपत उ कों बहमखी विकास के समवचत अिसर प्रदा कर े िाला ह ा ु ु ु ु चावहए।, उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 93 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  परीक्षाओ को अपेक्षाकत अवधक लचीला ि सरल ब ा ा और कक्षा की र्वतविवधयों से ृ ां जोड़ ा, और  एक ऐसी अवधर्ािी पहचा का विकास वजसम ें प्रजातावत्रक राज्य-व्यिस्र्ा के अतर्तथ राष्रीय ां ां वचताए समावहत हो। ां 1.2 उद्दश्े य‍ इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप - 1. पाियचयाथ के प्रत्यय को स्पस्ि कर सकें र्।े ् 2. पाियचयाथ की विवर्न् पररर्ाषाओ के आधार पर सामान्य अिधारणा को ् ां स्पस्ि कर सकें र्।े 3. पाियचयाथ एि पाियिस्त म ें अन्तर स्पस्ि कर सकें र्।े ् ् ु ां 4. पाियचयाथ के विवर्न् आधारों का िण थ कर सकें र्े। ् 5. पाियचयाथ के विवर्न् आधारों को कारण सवहत स्पस्ि कर सकें र्े। ् 6. पाियचयाथ विकास प्रविया के विवर्न् सोपा ों का िण थ कर सकें र्े। ् 7. पाियचयाथ विकास प्रविया के विवर्न् सोपा ों का उदाहरण सवहत व्याख्या ् कर सके र्।े ां 8. पाियचयाथ विकास के विवर्न् प्रवतमा ों का िण थ कर सकें र्े। ् 9. पाियचयाथ विकास के सामान्य प्रवतमा को स्पस्ि कर सकें र्े। ् 10. पाियचयाथ विकास म ें र्ावमल हो े िाले प्रवतर्ावर्यों को उललवखत कर ् सकें र्।े 11. पाियचयाथ की आिश्यकता को वििवे चत कर सकें र्े। ् 12. र्ारत म ें प्रचवलत पाियचयाथ विकास के प्रारूप को स्पस्ि कर सकें र्े। ् 1.3 पाठ्यचया‍ ‍का‍अर्‍थ वकसी र्ी वर्क्षा सर्ि म ें वकसी स्तर पर विषयों का व धाथरण उक्त स्तर पर व वश्चत वकए र्ए वर्क्षा के ां उद्दश्े यों पर व र्थर करता ह।ै वर्क्षा का इ व वश्चत वकए र्ए आधारों की प्रावप्त हते पाियचयाथ एि विषय- ् ु ां सामग्री का आयोज ि व योज वकया जाता ह।ै सामान्य अर्थ म ें वर्क्षा के व धाथररत उद्दश्े यों की प्रावप्त हते ु वज विषयों एि वियाओ का व योज वकया जाता ह ै उन्ह ें पाियचयाथ कहा जाता ह।ै पाियचयाथ अग्रेजी ् ् ां ां ां र्ाषा के Curriculum का वहदी रूपातर ह।ै Curriculum र्ब्द की उत्त्पवत लैवि र्ाषा के Currere ां ां र्ब्द से मा ी जाती ह,ै वजसका आर्य है- A Race Course अर्ाथत दौड़ का मदै ा । इस प्रकार र्वै क्षक उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 94 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं पररदृश्य म ें पाियचयाथ से आर्य उस दौड़ के मैदा से ह ैं वजसम ें दौड़ते हए विद्यार्ी वर्क्षा के व वश्चत ु ् उद्दश्े यों को प्राप्त कर े का प्रयास करते ह ै वजस प्रकार दौड़ के मदै ा म ें कोई धािक दौड़ कर अप े लक्ष्य तक पहच े के वलए प्रयासरत रहता ह।ै एक सामान्य प्रचवलत पररपािी म ें पाियचयाथ की अिधारणा में ु ् ां के िल इसे पािय-पस्तकों तक ही सीवमत हीं मा ा र्या ह ै अवपत इसम ें वर्क्षक व्यिहार, विद्यालय का ् ु ु र्ि , प्रार्ण, दीिारों म ें लर्े वचत्र एि वलख े आदर् थ िाक्य आवद विया-कलाप र्ी समावहत रहते ह।ै ां ां पाियचयाथ के अर्थ एि सस्पस्िता के वलए कछ पररर्ाषाओ को जा ा ि समझ ा आिश्यक ह।ै ये ् ु ु ां ां पररर्ाषाए व म् ह-ै ां कन्द्नघम के अनसार-
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“पाियचयाथ कलाकार (वर्क्षक) के हार् म ें एक साध (यन्त्र) ह ै वजसके द्वारा िह ् ु ं अप ी िस्त या सामग्री(विद्यार्ी) को अप े कलार्ह (विद्यालय) म ें अप े आदर् थ (उद्दश्े य) के अ सार ृ ु ु िावछत रूप दते ा ह।ै ”
ां माध्यान्द्मक न्द्र्क्षा आयोर् के अनसार-
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“ पाियचयाथ से आर्य के िल परम्परर्त रूप से पढ़ाए जा े ् ु िाले सैंिावतक विषयों तक ही सीवमत हीं ह ै अवपत इसम ें अ र्िों की िह सम्पणतथ ा व वहत ह ै जो एक ु ु ू ां बच्चा वकसी विद्यालय म ें ग्रहण करता ह।ै ”
मनरों के अनसार –
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“पाियचयाथ म ें ि े समस्त अ र्ि व वहत होते ह ै वज कों विद्यालय द्वारा वर्क्षा के ् ु ु ु उद्दश्े यों की प्रावप्त के वलए उपयोर् म ें वलया जाता है।”
न्द्कलपैन्द्रक के अनसार-
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“पाियचयाथ विद्यावर्थयों का उस सीमा तक सम्पण थ जीि ह ै वजस सीमा तक ् ु ू विद्यालय उसे अच्छा या बरा ब ा े का उत्तरदावयत्ि स्िीकार करता ह।ै ”
ु जॉन डीवी के अनसार-
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“पाियचयाथ की योज ा म ें ितथमा सामदावयक जीि की आिश्यकताओ की ् ु ु ां अ कलता का ध्या रख ा चावहए, इसका चय इस प्रकार का हो वक हमारे सामान्य सामवहक जीि में ु ू ू सधार हो तावक हमारा र्विष्य हमारे अतीत से अच्छा हो।”
ु रडयाडा एव हेनरी के अनसार-
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“विस्तत अर्थ म ें पाियचयाथ के अतर्तथ समस्त विद्यालयीय िातािरण ृ ् ु ं ां आता ह ै वजसम ें विद्यालय म ें प्राप्त सर्ी प्रकार के सपकथ , अत:वियाए, पि , विया-कलाप एि विषय ां ां ां ां आवद सवम्मवलत ह।ै ”
कै सवेल के अनसार-
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“बच्चों को एि उ के माता-वपता तर्ा वर्क्षकों के जीि म ें आ े िाली समस्त ु ां वियाओ को पाियचयाथ कहा जाता ह।ै विद्यार्ी के कम कर े के समय म ें जो कछ र्ी कायथ होता ह ै उ ् ु ां सर्ी से पाियचयाथ का व माथण होता ह।ै िस्ततः पाियचयाथ को र्वतयक्त िातािरण कहा र्या ह।ै ”
् ् ु ु जॉन फ्रें कन्द्लन बौन्द्बट का मत है न्द्क पाियचयाथ ऐसे कायों एि अ र्िों का िवणतथ रूप ह ै वजसमें ् ु ां बच्चों के अपेवक्षत ियस्क के रूप म ें विकवसत हो े का ध्येय व वहत रहता ह ै इसके अवतररक्त इसम ें के िल विद्यालीय अ र्ि ही हीं अवपत विद्यालय के बाहर के कायथ एि अ र्ि अप ी सम्पणतथ ा के सार् ु ु ु ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 95 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं समावहत रहते ह।ै इसम ें ि े अ र्ि, जो अव योवजत और अव विष्टथ रह े ह ै और ि े वजन्ह ें एक समाज अप े ु सदस्य के रूप म ें वकसी ियस्क म ें अपेवक्षत या िावछत समझता ह,ै व वहत रहते ह।ै ां उपरोक्त पररर्ाषाओ के आधार पर यह कहा जा सकता ह ै वक औपचाररक वर्क्षा के उद्दश्े यों की प्रावप्त के ां वलए जो र्ी पािय विषय पढ़ाए जाते ह ै तर्ा पािय विषय सम्बन्धी ि सहपियचारी र्वतविवधयों का ् ् ् ां आयोज वकया जाता ह ै और विद्यालय की पररवध के र्ीतर ि बाहर प्राप्त सर्ी अ र्ि पाियचयाथ के ् ु अतर्तथ समावहत मा े जाते ह।ै पाियचयाथ से आर्य उ साध ों एि सामवग्रयों से ह ै वज के सार् विद्यार्ी ् ां ां इस प्रयोज से अतविया करते ह ै वक सस्पस्ि र्वै क्षक पररणामों की प्रावप्त की जा सके । ु ां 1.3.1 पाठयचयाा तथा पाठयवस्त में अन्तर (Difference between Curriculum and ् ् ु Syllabus) सामान्यत: कई बार व्यिहार म ें इ प्रत्ययों को एक समा अर्थ म ें अ प्रयोर् वकया जाता ह ै परन्त सक्ष्मता ु ु ू से दखे ा जाए तो इ र्ब्दों म ें अन्तर पररलवक्षत होता ह।ै पाठयचयाा (Curriculum) - पाियचयाथ र्ब्द का प्रयोर् व्यापक एि विस्तत अर्थ म े वकया जाता ह।ै ृ ् ् ां इसके अतर्थत िह सर्ी अ र्ि समावहत रहते ह ै जो विद्यार्ी विवर्न् विषयों के वर्क्षण, सम्पकथ या ु ां अत:विया तर्ा विद्यालय के अन्दर या बाहर आयोवजत हो े िाली पािय एि पाियेत्तर वियाए ् ् ां ां ां सवम्मवलत होती ह।ै पाठयवस्त (Syllabus) -पाियिस्त एक र्क्षै वणक सत्र म ें विवर्न् विषयों म ें वर्क्षकों द्वारा विद्यावर्थयों ् ् ु ु को प्रदा वकए जा े िाले वर्क्षण एि विया-कलापों के विषय म ें व वश्चत रुपरेखा प्रस्तत करता ह।ै मख्य ु ु ां तौर पर विषयों पर के वन्ित होता ह,ै कक्षा सार सीख े के लक्ष्य, उ के िम ि अ पात (या ी वकत ा ु ु पढ़ा ा ह)ै का स्पस्ि वििरण रहता ह।ै यह र्ी उललवखत रहता ह ै वक मलयाक म ें वक वबन्दओ पर ू ां ां ु वकत ा जोर होर्ा। सामान्य रूप म ें यह कहा जा सकता ह ै वक पाियिस्त म ें पािय विषयों एि उ से ् ् ु ां सम्बवधत कायों एि वियाओ का वििरण रहता ह।ै इसमें वकसी स्तर विर्ेष के वलए सैिावतक विषयों की ां ां ां ां ज्ञा की सीमा व वहत मा ी जाती ह।ै तलना के आधार पाठयवस्त (Syllabus) पाठयचयाा (Curriculum) ् ् ु ु अर्थ के सदर्थ में पाियिस्त एक दस्तािेज़ ह ै वजसमें एक विषय पाियचयाथ िह समग्र विषयिस्त ि अ र्ि ् ् ु ु ु ां में र्ावमल अिधारणाओ के सर्ी तत्ि ह ै जो एक विद्यार्ी वकसी र्ैवक्षक व्यिस्र्ा ां व वहत रहते ह।ै में ग्रहण करता ह।ै उत्त्पवत के सदर्थ में वसलेबस की उत्त्पवत ग्रीक र्ब्द से मा ी जाती कररकलम र्ब्द की उत्त्पवत्त लैवि र्ब्द से ु ां ह।ै हई ह।ै ु प्रकवत के सदर् थ म ें िण थ ात्मक व दर्े ात्मक ृ ां क्षेत्र के सदर् थ म ें सकवचत व्यापक एि विस्तत ृ ु ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 96 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं व धाथरण के सदर्थ में विवर्न् बोडों के द्वारा सरकार या विद्यालय, विश्वविद्यालय या ां सस्र्ा के प्रर्ास द्वारा ां अिवध के सदर् थ म ें एक व वश्चत अिवध, सामान्यत: एक िषथ कोसथ के अत हो े तक ां ां एकरूपता के सदर् थ म ें एक से दसरे वर्क्षक म ें इसके पक्षों को लेकर सर्ी वर्क्षकों के वलए एक समा होता है। ां ू समा ता हीं 1.3.2 पाठयचयाा के आधार (Bases of Curriculum) ् सर्ी सभ्य समाजों े वर्क्षा को एक चौर्ी आिश्यकता के रूप म ें स्िीकार वकया ह ै और इसके वलए एक उमम्दा एि बेहतरी पाियचयाथ को अप े-अप े समाजों म ें व योवजत वकया ह।ै पाियचयाथ का स्िरुप ् ् ां सर्ी समाजों म ें एक सा हीं ह।ै इसका कारण विवर्न् ता एि विविधता ह ै वकन्त पाियचयाथ व माथण के ् ु ां आधार लर्र्र् सर्ी समाजों म ें एक से है। पाियचयाथ के आधार िह प्रर्ाि ह ै जो वकसी समाज की ् वर्क्षा के स्िरुप एि वदर्ा का व धाथरण करते ह।ै पाियचयाथ के प्रमख आधार व म् मा े जाते ह-ै ् ु ां i. दार्ान्द्नक आधार - वकसी र्ी दर्े की वर्क्षा के उद्दश्े य उस दर्े के आदर्,थ आस्र्ा, विश्वास एि ां जीि दर् थ से प्रर्ावित होते ह।ैं इसी कारण पाियचया थ के स्िरुप म ें र्ी इ का प्रर्ाि स्पस्ि रूप स े ् पररलवक्षत होता ह।ै पाियचया थ का उपयोर् विद्यावर्थयों के व्यिहार म ें िावछत पररमाज थ ला े के वलए ् ां वकया जाता ह ै और दर् थ विद्यार्ी के व्यिहार म ें िावछत पररमाज थ हते ए तरीकों ि आधारों को ु ां खोज े की प्रविया म ें वर्क्षकों एि पाियचयाथ योज ाकारों या ीवतकारों की सहायता करता ह।ै ् ां दर् थ वर्क्षण के वलए ई विवधयों को खोज े और कक्षार्त पररवस्र्वतयों म ें वर्क्षण-अवधर्म प्रविया से बेहतर उपलवब्ध प्राप्त कर े म ें सहायता करता ह।ै दर् थ पाियचयाथ के मलयाक एि विद्यावर्थयों ् ू ां ां की उपलवब्ध के आकल हते ए तरीकों एि विवधयों को र्ी प्रदा करता ह।ै ु ां ां वर्क्षा का दर् थ एि विचारधारा उ वसिातों तर्ा व यमों को प्रदा करता ह ै वज के आलोक के ां ां प्रर्ाि म ें ही र्वै क्षक कायथ-प्रणावलयों एि ीवतओ के सरोकारों के व योज के व णथय वलए जाते ह।ै ां ां यह वकसी विषय के व माथण म ें विद्यालय की र्विष्यिती आिश्यकताओ एि मार्ों को ध्या म ें रखते ां ां ां हए पाियचयाथ योज ाकारों को दार्वथ क एि िचै ाररक विश्वासों के आधारों पर मार्दथ वर्तथ करती ह ै ु ् ां और विद्यावर्थयों के व्यिहार में सामावजक पररितथ के द्वारा मा ि जीि की उपादये ता के मलय को ू प्रोत्सावहत करती ह।ै वजस समाज का जसै ा दार्वथ क विश्वास होर्ा उस समाज की िसै ी वर्क्षा स्िरूवपत होंर्ी। दर् थ पाियचयाथ का एक प्रमख आधार ह।ै ् ु ii. मनोवैज्ञान्द्नक आधार - म ोविज्ञा की ीि व्यवक्तर्त विवर्न् ताओ पर आधाररत होती ह।ै प्रत्येक ां विद्यार्ी का अप ा अ िा व्यवक्तत्ि होता ह ै और ि े अप े अवधर्म एि कौर्ल म ें विवर्न् ताए रखते ू ां ां ह।ै विद्यार्ी की प्रकवत म ें विवर्न् ताए होती ह ै इसवलए इ कों वर्क्षण-अवधर्म प्रविया म ें पण थ समा ृ ू ां हीं समझा जा सकता ह ै क्योवक कछ विद्यावर्थयों म ें अवधर्म तेज कर े की प्रिवत, तो कछ म ें धीमें ृ ु ु और और कछ म ें औसत र्वत से कर े की होती ह।ै इसी कारण पाियचयाथ को इ म ोिज्ञै ाव क ् ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 97 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं तथ्यों पर आधाररत हो ा चावहए और इसे विद्यावर्थयों की क्षमताओ और बीजार्त योग्यताओ का ू ां ां सिधथ कर े म ें सहायता प्रदा कर े िाला हो ा चावहए। ां म ोविज्ञा म ें बच्चों के र्ारीररक, मा वसक, सामावजक, ैवतक, सिर्े ात्मक एि आध्यावत्मक आवद ां ां
विकास का अध्यय वकया जाता ह ै और इसी के आधार पर वकसी स्तर विर्षे के बच्चों के वलए व वश्चत पाियचयाथ का व योज वकया जाता ह।ै म ोविज्ञा से ही यह जा कारी प्राप्त होती ह
ै वकसी ् स्तर विर्षे के बच्चों म ें क्या योग्यताए, रुवचया, रुझा और क्षमताए होती ह ै तर्ा उ में अवधर्म ां ां ां कर े की क्षमताओ का र्ारीररक एि मा वसक पर वकत ा विकास हआ ह ै वज के आधार पर ही ु ां ां वकन्हीं विषयों एि वियाओ का व योज वकया जाता ह।ै ां ां म ोविज्ञा की वर्क्षण-अवधर्म प्रविया म ें महत्िपण थ र्वमका होती ह,ै यह सर्ी प्रकार के र्वै क्षक ू ू कायथकमों को आधार प्रदा करता ह।ै वर्क्षण की विवधयों, विषय की विषयिस्त के चय , अवधर्म ु की विवधयों एि वसिातों, विद्यावर्थयों के सिाांर्ीण विकास और उ म ें समाज के मा दडों को ां ां ां विकवसत कर े म ें म ोविज्ञा की र्वमका अत्यत महत्िपण थ होती ह।ै म ोविज्ञा पाियचयाथ विकास ् ू ू ां की सर्ी प्रवियाओ म ें सहायता एि मार्दथ र् थ प्रदा करता ह।ै ां ां iii. सामान्द्जक-सास्कन्द्तक आधार - पाियचयाथ योज ाकारों एि व माथताओ का उद्दश्े य पाियचयाथ म ें ृ ् ् ं ां ां विषय-िस्त, सीख े की प्रविया और पाियचयाथ के तत्िों के मलयाक में परम्परार्त मा दडों, ् ु ू ां ां दर् थ , ैवतकता, ज्ञा और व्यिहार को समािेवर्त कर े से ह।ै सामावजक कारकों का पाियचयाथ की ् विषयिस्त म ें सबसे अवधक प्रर्ाि होता ह ै और यही कारण ह ै वक पाियचयाथ योज ाकारों एि ् ु ां व माथताओ द्वारा पाियचयाथ म ें अप े सामावजक और सास्कवतक प्रर्ािों को प्रवतवबवबत और ृ ् ां ां ां रूपान्तररत कर े का प्रयास वकया जाता ह।ै समाज और सस्कवत के प्रवतवबम्ब के वब ा पाियचयाथ ृ ् ां की सकलप ा साकार हीं हो सकती ह।ै पाियचयाथ योज ाकारों को सामावजक और सास्कवतक ृ ् ां ां प्रेरणाए ँ चेत एि अचेत रूप से प्रर्ावित करती ह ै वजसका स्पस्ि एि र्हरा प्रर्ाि पाियचयाथ म ें ् ां ां सदिै पररलवक्षत होता ह ै क्योवक पाियचयाथ योज ाकार वकसी वकसी समाज का सदस्य होते ह ै ् इसवलए ि े प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज और सस्कवत द्वारा प्रर्ावित होते ह।ै ृ ां समाज की सस्कवत वर्क्षा का मल आधार होती ह।ै प्रत्येक समाज अप ी सस्कवत की रक्षा के वलए ृ ृ ू ां ां वर्क्षा का सहारा लेता ह ै और वर्क्षा के पाियचयाथ म ें अप ी सास्कवतक उपलवब्धयों का समािर्े ृ ् ां करता ह।ै मरे न्द्प्रट का कर् इस सदर् थ म ें महत्िपण थ ह ै वक
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“समाज और सस्कवत पाियचयाथ की ृ ् ू ं ां ां सरच ा म ें र्ारी र्वक्तयों का का प्रयोर् करती ह ै इसका पीछे व वहत कारण यह ह ै वक समाज वजस े ां अप ी सस्कवतक विरासत के अवस्तत्ि को अक्षण्ण ब ाए रख े एि प्रजावतयों के अवस्तत्ि को ृ ां ां ु सरवक्षत रख े के वलए विद्यालय ब ा वदया।”
ु iv. ऐन्द्तहान्द्सक आधार- पाियचयाथ का इवतहास दर्े के विकास म ें महत्िपण थ र्वमका व र्ाता ह।ै एक ् ू ू अच्छे पाियचयाथ की सरच ा म ें दीघ थ अिवध का समय लर्ता ह ै जोवक अप े म ें समाज की ् ां आिश्यकताओ एि अतीत के अ र्िों की झलक का प्रवतवबम्ब होता ह।ै पाियचयाथ का इवतहास ् ु ां ां योज ाकारों एि व यताओ को वदर्ा वदखता ह ै वक कै से पाियचयाथ को विकवसत, सर्ोवधत एि ् ां ां ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 98 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं पररमावजतथ वकया जाए, विद्यावर्थयों को क्या पढ़ाया जाए एि विषयों म ें क्या विषयिस्त मख्य रूप से ु ु ां रखी जाए तर्ा पाियचयाथ के माध्यम से कै से व धाथररत उद्दश्े यों को प्राप्त वकया जाए आवद। इवतहास ् उन्ह ें यह र्ी स्पस्ि करता ह ै वक वर्क्षकों को कै से वर्वक्षत एि कौर्ल सपन् ब ाया जा ा और ां ां वर्क्षकों को पाियचयाथ के वर्क्षण म ें क्या बेहतर व्यिहार अप ा े ह ै अर्िा वक का पररत्यार् कर ा ् ह।ै इवतहास विवर्न् कालों म ें पाियचयाथ एि वर्क्षक म ोविज्ञा म ें हए विकास तर्ा वर्क्षण र्ैवलयों में ु ् ां हए सधार ि पररमाज थ की व्याख्या करता ह।ै इवतहास विवर्न् कालों के अवधर्मकताथओ के ु ु ां व्यिहारों के विषय म ें िहद जा कारी प्रदा करता ह ै सार् ही सार् अवधर्मकताथओ के म ोविज्ञा के ृ ां ् विषय म ें र्ी जा कारी प्रदा करता ह।ै आज विकवसत दर्े ों म ें अवधकार् दर्े ि े ह ै वज का स्ितत्रता ां ां एि उपयक्त वर्क्षा प्रणाली का दीघ थ इवतहास रहा ह।ै इ दर्े ों े वर्क्षा एि समया कल पाियचयाथ के ् ु ु ू ां ां वियान्िय के माध्यम से सफलता को प्राप्त वकया। उन्हों े समय की आिश्यकता के अ रूप अप े ु पाियचयाथ का सर्ोध एि पररमाज थ वकया। ् ां ां v. आन्द्थाक आधार- पाियचयाथ का आवर्थक आधार पाियचयाथ के व्यािसावयक पहल को अवधक ् ् ू महत्ि दते ा ह।ै वकसी र्ी दर्े या समाज की आवर्थक वस्र्वत दर्े के पाियचयाथ को वदर्ा-व दवे र्त ् करती ह ै क्योवक वर्क्षा के वहतधारक एक ऐसे पाियचयाथ को अ प्रयोर् म ें ला ा चाहते ह ै वजससे ् ु अर्थव्यिस्र्ा के विकास म ें सहायता वमले और लोर्ो को विद्यालीय वर्क्षा के पश्चात अच्छा रोजर्ार प्राप्त हो सके । इस प्रकार की पररवस्र्वतयों म ें पाियचयाथ रोजर्ार एि बाजार की आिश्यकता पर ् ां अवधक के वन्ित हो जाते ह ै और पाियचयाथ योज ाकारों द्वारा समय की मार् के अ रूप ज्ञा एि ् ु ां ां कौर्ल पर अवधक अवर्ग्रहण वकया जाता ह।ै विकासर्ील एि वपछड़े दर्े ों के पाियचयाथ म ें ऐसे ् ां ज्ञा एि दक्षता ि कौर्ल को अवधक महत्ि वदया जाता ह ै वजससे ऐसे कायथबल को तैयार वकया जा ां सके वजसकी अन्य दर्े ों म ें आिश्यकता अवधक हो। वकसी र्ी दर्े की आवर्थक ीवतयाँ र्ी िहाँ की वर्क्षा एि पाियचयाथ को प्रर्ावित करती ह।ै ् ां vi. राजनैन्द्तक आधार- ितथमा समय म ें लर्र्र् सर्ी देर्ों में वर्क्षा की व्यिस्र्ा कर ा उस राज्य या दर्े का एक महत्िपण थ उत्तरदावयत्ि समझा जाता ह।ै वर्क्षा के उद्दश्े य, पाियचयाथ एि कायथिम उस ् ू ां दर्े के राज ैवतक दर् थ , वस्र्वत एि विचारधारा से प्रर्ावित होते ह।ै जसै े साम्यािादी एि प्रजातावत्रक ां ां ां दर्े ों की वर्क्षा व्यिस्र्ा एि पाियचयाथ म ें अन्तर दखे े को वमलता ह।ै राज ैवतक वस्र्वत से ् ां सम्बवधत उदाहरण सबसे उपयक्त इजरायल का वलया जा सकता ह ै वजस े अप ी सरक्षा ु ु ां आिश्यकताओ को ध्या म ें रखते हए पाियचयाथ म ें सैव क वर्क्षा सर्ी के वलए अव िायथ कर वदया ु ् ां ह।ै vii. वैज्ञान्द्नक आधार - विज्ञा के क्षेत्र म ें हए विकास े मा ि जीि के सर्ी पक्षों को प्रर्ावित वकया ु ह।ै आज वकसी र्ी देर् की प्रर्वत की वस्र्वत का आकल उसके िैज्ञाव क एि तक ीकी ज्ञा से ां ां वकया जाता ह।ै विज्ञा के विकास े व रीक्षण, परीक्षण एि प्रयोर् की त विवधयों, प्रविवधयों एि ू ां ां पैमा ों को विकवसत वकया ह ै वज के आधार पर ही सत्य का व धाथरण वकया जाता ह।ै विज्ञा उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 99 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं के िल िी खोजों एि तक ीवकयों के विकास तक ही सीवमत ह ै अवपत इसके माध्यम से कम श्रम ु ां के प्रयोर् स े अवधक उपाज थ प्राप्त वकया जा सकता ह ै एि र्ौवतक सख सविधाओ का अवधक ु ु ां ां विकास वकया जा सकता ह ै जो मा ि जीि सखमय एि सविधा सपन् ब ाते ह।ै आज विश्व के ु ु ां ां लर्र्र् सर्ी दर्े ों के पाियिमों म ें विज्ञा विषयों को अवधक महत्ि वदया जाता ह।ै ् अभ्यास प्रश्न 1. पाियचयाथ र्ब्द की उत्त्पवत्त लैवि र्ाषा के वकस र्ब्द से हई ह?ै ु ् 2. यह वकस े कहा ह ै वक पाियचयाथ म ें ि े समस्त अ र्ि व वहत होते ह ै वज कों विद्यालय द्वारा ् ु वर्क्षा के उद्दश्े यों की प्रावप्त के वलए उपयोर् म ें वलया जाता ह?ै 3. पाियचयाथ म ें मख्यतः वकत े प्रकार की वियाए व वहत मा ी जाती ह ै उ के ाम वलवखए ? ् ु ां 4. पाियचयाथ तर्ा पाियिस्त म ें प्रकवत के सदर् थ म ें क्या अन्तर होता ह?ै ृ ् ् ु ां 5. पाियचयाथ के वकन्हीं ती आधारों का ाम वलवखए? ् 1.4 पाठ्यचया‍ ‍शवनाकास‍की‍प्रशिया‍एवनाां‍इसके ‍सोपा ‍ पाियचयाथ विकास की प्रविया को व्यिवस्र्त रूप से सर्वित वकया जाता ह ै वजसम ें अवधर्मकताथ की ् ां अिस्र्ा ि पररपक्िता के अ कल विषय, विषयिस्त, अवधर्म अ र्िों, सामग्री, व्यहरच ा आवद को ु ू ु ु ू प्रर्ािी रूप म ें आयोवजत एि व योवजत वकया जाता ह।ै पाियचयाथ विकास पाियचयाथ सधार, सर्ोध ् ् ु ां ां एि पररमाज थ की एक प्रविया ह।ै इस प्रविया म ें विवर्न् उपार्मों के अ प्रयोर्ों के माध्यम से इसका ु ां विकास वकया जाता ह।ै इस प्रविया को सवक्षप्त म ें ीचे प्रदवर्तथ वचत्र द्वारा र्ली-र्ावत समझा जा सकता ां ां ह-ै \ उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 100 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं • अर्ीष्ट पररणाम • स्पस्ि उद्दश्े य/ अवर्ज्ञात अवर्व्यक्त कर ा आिश्यकता/ मदद े ु • विषयिस्त का चय • पाियिम विकास दल का ु ् र्ि • अ र्ाविक विवधयों का ु अवर्कलप • आिश्यकता का आकल एि विश्लेषण ां ां न्द्वषयवस्त ु योज ा एव न्द्वन्द्ध ं न्द्क्रयान्वयन मलयाक ू ां • मलयाक रण ीवतयों का ू ां • पािय सामग्री का व माथण ् प्रारूप ब ा ा • पाियिम की जाँच एि ् ां • प्रवतिेद एि ससाध को ां ां सर्ोध ां सरवक्षत रख ा ु • अ दर्े कों की र्ती एि ु ां प्रवर्क्षण • पाियिम का वियान्िय ् पाियचयाथ विकास की प्रविया ि इसके सोपा ् पाियचयाथ विकास प्रविया के चार मख्य सोपा मा े जाते ह ै जोवक व म् ह-ै ् ु 1. योजना: इस चरण या सोपा म ें पाियचयाथ से सम्बवधत विवर्न् विकास चरणों का चय एि ् ां ां व धाथरण वकया जाता ह।ै इस चरण म ें र्ावमल ह-ै (i) अन्द्भज्ञात न्द्वषय/ समस्या/ आवश्यकता: पाियचयाथ विकास की आिश्यकता सामान्यत: ् एक मख्य विषय या समस्या या आिश्यकता के रूप म ें व वश्चत उद्दश्े यों को लेकर उर्रती ह।ै ु इस सोपा म ें कछ ऐसे प्रश्नों के समाधा खोज े का प्रयास वकया जाता ह ै जोवक पाियचया थ ् ु विकास दल के सदस्यों को मार्दथ वर्तथ करते ह ै जसै े- आिश्यकता/ विषय को स्पस्ि रूप से उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 101 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं पररर्ावषत कर ा तर्ा उसकों एक व श्चयात्मक कर् के रूप अवर्व्यक्त कर ा आवद। इसमें मदद/े आिश्यकता/ विषय को िहद रूप म ें अवर्ज्ञात वकया जाता ह ै तर्ा उसके क्षेत्र का ृ ु ् व धाथरण वकया जाता ह ै वक पाियचयाथ म ें क्या-क्या र्ावमल वकया जाएर्ा। ् (ii) पाठयचयाा न्द्वकास दल का र्ठन: अवर्ज्ञात विषय/ समस्या/ आिश्यकता के मद्दों की ् ु प्रकवत एि क्षेत्र के व धाथरण के पश्चात पाियचयाथ विकास दल का र्ि एि उसके सदस्यों का ृ ् ां ां चय वकया जाता ह।ै इस सोप म ें व म् कायथ समावहत रहते ह ै १- दल के सदस्यों की र्वमकाए एि कायथ २- पाियचयाथ विकास दल के सदस्यों के चय की प्रविया और ३- ् ू ां ां सहयोर् एि सामवहक कायथ के वसिात। इस चरण म ें यह अपक्षे ाए सन् वहत रहती ह ै वक दल के ू ां ां ां सदस्य पाियचयाथ से सम्बवधत विवर्न् क्षेत्रों एि पािय सामग्री के विषय म ें विर्ेषज्ञता को ् ् ां ां हावसल करें तर्ा एक प्रर्ािी दल के रूप म ें कायथ करे। (iii) आवश्कता आकलन एव न्द्वश्ले षण : आिश्यकता आकल प्रविया के दो चरण मा े जाते ं ं ह।ै प्रर्म चरण म ें आिश्यकता आकल के सचाल स े सम्बवधत प्रवियाए आती ह।ै इस ां ां ां ां प्रविया म ें उद्दश्े यों, लक्ष्यों एि आिश्यकता के पररप्रेक्ष्य म ें अवर्ज्ञात मद्दों या विषयों स े ु ां सम्बवधत विवर्न् तक ीवकयों जोवक अवधर्म के सापेक्ष हो, का व धाथरण वकया जाता ह।ै इस ां तक ीवकयों के माध्यम से ज्ञा , अवर्िवत या दृष्टीकोण, अभ्यास सिक्षे ण, के वन्ित समह और ृ ू िातािरणीय पहलओ के िमिीक्षण आवद से सम्बवधत सचा ों को सकवलत वकया जाता ह।ै ु ू ां ां ां आिश्यकता आकल के दसरे चरण अर्ाथत विश्लेषण प्रविया के अतर्तथ विवर्न् तक ीवकयों ां ां ू से प्राप्त प्रदत्त एि सच ा के रूप एकवत्रत पररणामों को िवणतथ वकया जाता ह।ै इस प्रविया में ू ां ज्ञा और अभ्यास बीच के अन्तर को स्पस्ि कर े िाले तरीकों, प्रदत्तों से उर्र े िाली प्रिवतयों, आिश्यकताओ को िरीयता द े े की प्रविया एि के वन्ित समह के विर्षे ताओ की ृ ू ां ां ां पहचा आवद वियाए व वहत रहती ह।ै ां 2. न्द्वषयवस्त एव न्द्वन्द्धयााँ : इस सोपा के अतर्तथ अर्ीष्ट पररणामों को व धाथररत वकया जाता ह ै ु ं ां जसै े पाियचयाथ की र्वतविवधयों म ें र्ार् ले े पर क्या वसखाया जाएर्ा, क्या सीखा जा सकें र्ा ् एि कै से वसखाया जाएर्ा। इस सोपा म ें व म् चरण उपयोर् म ें लाए जाते है- ां (i) अभीष्ट पररणाम अन्द्भव्यि करना: इस सोपा म ें यवद आिश्यक समझा जाता ह ै तो विषय/ मदद े को पररष्कत एि प थस्र्ावपत वकया जाता ह ै और अर्ीष्ट पररणामों या र्वै क्षक उद्दश्े यों का ृ ु ु ां विकास वकया जाता ह।ै एक अर्ीष्ट पररणाम यह स्पस्ि करता ह ै वक विद्यार्ी पाियचयाथ की ् विवर्न् र्वतविवधयों म ें र्ार् ले े के पररणामस्िरूप ज्ञा और कौर्ल की वक विधाओ म ें ां कर्ल एि सक्षम होर्ा। इस चरण के अतर्तथ अर्ीष्ट पररणामों को पररर्ावषत वकया जाता ह,ै ु ां ां अर्ीष्ट पररणामों के घिकों का व धाथरण वकया जाता ह,ै अर्ीष्ट पररणामों के उदाहरणों को उललवखत वकया जाता ह ै और सीख े के व्यिहारों का वििरण प्रस्तत वकया जाता ह,ै आवद ु वियाए सम्पन् की जाती ह।ै ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 102 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं (ii) न्द्वषयवस्त चयन: इस चरण म ें पाियचयाथ से सम्बवधत विषयिस्त का चय वकया जाता ह।ै ् ु ु ां विषयिस्त के चय की प्रविया ती स्तरों पर की जाती ह।ै प्रर्म स्तर का सबध विषयिस्त के ु ु ां ां क्षेत्र से सम्बवधत सकलप ाओ के चय तर्ा स्पस्तीकरण से ह।ै दसरे स्तर पर उ आधारर्त ू ां ां ां ू तथ्यों तर्ा सकलप ाओ का चय वकया जाता ह ै जो विषय विर्ेष म ें अन्य तथ्यों तर्ा ां ां सकलप ाओ के सहयोर् से विषय ज्ञा का प्रारूप व वमतथ करती ह।ै तीसरे स्तर पर विषयिस्त ु ां ां एकार् को सम्बवधत आधारर्त तथ्य या सकलप ा के सार् ही पाियचयाथ के उद्दश्े यों से र्ी ् ू ां ां ां समायोवजत वकया जाता ह।ै (iii) अनभान्द्वक न्द्वन्द्धयों का अन्द्भकल्प: विषयिस्त के चय के पश्चात अ र्ाविक विवधयों ु ु ु का अवर्कलप तैयार वकया जाता ह।ै इस चरण म ें अवधर्म हते समवचत उद्दश्े य प्राप्त कर े म ें ु ु सहयोर् द े े िाली र्वतविवधयों को अवर्कवलपत वकया जाता ह।ै एक अ र्िात्मक प्रवतमा ु एि उसके घिकों (अ र्ि, अ र्वत, प्रविया, सामान्यीकरण एि अ प्रयोर् आवद) की चचा थ ु ु ू ु ां ां इस चरण म ें की जाती ह।ै 3. न्द्क्रयान्वयन: इस सोपा के अतर्तथ चार चरणों व वहत मा े जाते ह ै जोवक व म् ह-ै ां (i) पाठयचयाा सामग्री का न्द्नमााण: पाियचयाथ व माथण की प्रविया म ें जब एक बार विषयिस्त ् ् ु और अ र्ाविक विवधयों से सम्बवधत आपसी स्िीकवत हो जाती ह ै तब िास्तविक रूप में ृ ु ां पाियचयाथ तैयार या ब ा े का कायथ र्रू होता ह।ै इस चरण के अतर्तथ उपलब्ध ् ु ां विषयिस्तओ में से मख्य सामग्री खोज े एि मलयाक के सझाि, मलयाक कसौवियों को ु ु ू ु ू ां ां ां ां व वश्चत कर े एि पाियचयाथ सामग्री तैयार या ब ा े के वलए सझाि या व देर् आवद से ् ु ां सम्बवन्धत वियाए सपन् की जाती ह।ै ां ां (ii) पाठयचयाा की जााँच एव सर्ोधन: इस चरण म ें पाियचयाथ से सम्बवधत विषयिस्त के ् ् ु ं ं ां परीक्षण ि जाँच की प्रविया सार् ही सार् सरच ात्मक मलयाक की प्रविया के माध्यम से ू ां ां तैयार हो रह े पाियचया थ की कवमयों को दर वकया जाता ह।ै पाियचयाथ के आकल ि ् ् ां ू मलयाक हते एक मलयाक प्रारूप को र्ी प्रयोर् म ें लाया जाता ह।ै ू ु ू ां ां (iii) अनदेर्कों का चयन एव प्रन्द्र्क्षण: इस चरण के अतर्तथ पाियचया थ को वियावन्ित कर े ् ु ं ां के वलए समवचत एि योग्य अ दर्े कों को चयव त वकया जाता ह।ै इसके पश्चात पाियचयाथ स े ् ु ु ां सम्बवधत आिश्यक वदर्ा-व दर्े ि अपेवक्षत प्रवर्क्षण की व्यिस्र्ा की जाती ह।ै प्रवर्क्षण का ां उद्दश्े य वियान्िय को सरल, सर्म एि प्रर्ािी ब ा ा होता ह।ै ु ां (iv) पाठयचयाा का कायाान्वयन: इस चरण म ें एक ए विकवसत पाियचयाथ के प्रर्ािी ् ् वियान्िय के वलए योज ाओ को अवन्तम स्िरुप वदया जाता ह।ै इसके वलए रण ीवतयों एि ां ां पाियचयाथ के उपयोर् से सबवधत पक्षों की चचाथ की जाती ह ै एि इ का वियान्िय वकया ् ां ां जाता ह।ै 4. मल्याकन ू ं उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 103 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं (i) मल्याकन रणनीन्द्तयों का प्रारूप बनाना: मलयाक पाियचयाथ विकास प्रवतमा के चरण ् ू ू ं ां म ें एक विर्षे सोपा ह।ै पाियचयाथ विकास की अिवध म ें मलयाक हते सामान्यत: ् ू ु ां सरच ात्मक एि योर्ात्मक मलयाक प्रविया अ प्रयोर् म ें लायी जाती ह।ै पाियचयाथ विकास ् ू ु ां ां ां की प्रविया अिवध के समय सरच ात्मक मलयाक वकया जाता ह ै वजसके द्वारा पाियचयाथ का ् ू ां ां आिश्यकता आधाररत आकल एि पण थ हो े स े पि थ जाँच एि परीक्षण की प्रविया अप ायी ू ू ां ां ां जाती ह।ै योर्ात्मक मलयाक की र्वमका पाियचयाथ पररणामों को प्रवतिवे दत कर े एि माप ् ू ू ां ां पैमा े पर अ प्रयक्तता दखे े म ें ह ै अर्ाथत व वश्चत की र्ई कसौवियों के आधार पर पाियचयाथ ् ु ु की िाछ ीयता का व धाथरण वकया जाता ह।ै इस प्रविया के अतर्थत पाियचयाथ के सर्ी ् ां ां आयामों से सम्बवधत िधै एि विश्वस ीय जा कारी या सच ा प्राप्त करके सामान्य रण ीवतयों ू ां ां से प थमलयाक कर पाियचयाथ की उपादये ता को दखे ते है। योर्ात्मक मलयाक हते प्रश्नों की ् ु ू ू ु ां ां श्रखला का प्रारूप, आिश्यक वदर्ा-व दर्े ों ि विर्ेषज्ञ सझािों आवद की सहायता ली जाती ृ ु ह।ै (ii) प्रन्द्तवेदन एव ससाधन को सरन्द्क्षत रखना: यह चरण पाियचयाथ विकास का अवन्तम पद ह ै ् ु ं ं जहाँ पर पाियचया थ को पण थ रूप से तैयार करके उ लोर्ों के पास तक प्रेवषत कर ा जो इसको ् ू अ प्रयोर् म ें लाएर्।ें इस चरण म ें पाियचयाथ के मख्य र्ये रधारकों को क्या और कै से ् ु ु प्रवतिवे दत कर ा ह,ै का सझाि एि विर्षे रूप से वित्तपोषण ि ीवत व धाथरक व यताओ के ु ां ां ां वलए सझाि रख े जाते ह ै और अवतररक्त प्रोग्रावमर् के वलए ससाध ों को सरवक्षत कर े सम्बन्धी ु ु ां ां वििरणों की र्ी चचाथ व वहत रहती ह।ै 1.5. पाठ्यचया‍ ‍के ‍मुख्य‍उपागम उपार्म अवधर्म की प्रकवत के सदर् थ म ें वसिातों, विश्वासों या विचारों का एक समह ह ै वजसके प्रबि ृ ू ु ां ां दृवष्टकोण
के आधार पर पाियचयाथ विकास की अिधारणा रखी जाती ह।ै पाियचयाथ विकास करते समय ् ् मा ि और उसके जीि से सम्बवधत विविध पक्षों एि अपेवक्षत आिश्यकताओ के आधारों पर
ही एक ां ां ां योज ा का व माथण वकया वकया जाता ह।ै इ विविध पक्षों की र्वमका पाियचयाथ विकास में एक समा ् ू होकर आिश्कताओ और अपेक्षाओ पर आधाररत होती ह।ै इ पक्षों के अतर्तथ व म् पक्ष रख े जाते ह ै ां ां ां जसै े- विद्यार्ी, सामावजक एि राज ैवतक दर् थ , वस्र्वत ि आिश्यकताए, आवर्थक वस्र्वत एि अपेक्षाए, ां ां ां ां अवधर्म के वसिात, विषय-िस्त का स्िरुप, व यामक सस्र्ा ि विद्यालय सर्ि एि व माथण की ु ां ां ां ां कसौवियों एि मा दड आवद। ां ां उपरोक्त पक्षों के अवतररक्त अन्य पक्ष र्ी ह ै जोवक अप े आप म ें उत े ही महत्िपण थ ह ै वजत े की अन्य। ू राज्य ि समाज की आिश्यकता के अ रूप व वश्चत ि व धाथररत कसौवियों एि मा दडों के आधार पर ु ां ां पाियचयाथ का व माथण वकया जाता ह।ै पाियचयाथ विकास के कई उपार्म ह ै वज म ें से के िल ती ् ् उपार्मों की चचाथ यहाँ की जा रही ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 104 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं i. सरचना उपार्म - यह उपार्म इस आधारर्त मान्यता म ें विश्वास करता ह ै वक प्रत्येक विषय की ू ं अप ी एक विवर्ष्ट सरच ा होती ह।ै यह सरच ा वकसी विषय की विषय सामग्री के व्यिवस्र्त ां ां एि सर्वित स्िरुप और इस विषयिस्त के विवर्न् आयामों या घिकों के मध्य स्पस्ि रु से ु ां ां पररलवक्षत होती ह।ै जब तक विद्यार्ी वकसी विषय की सरच ा को र्लीर्ावत हीं समझ लेता ह ै ां ां तब तक वकसी र्ी विषय के विवर्न् पक्षों ि अन्तव थवहत घिकों को सस्पस्ि रूप से हीं समझ ु पता ह।ै विद्यावर्थयों म ें सज ात्मक र्वक्तयों
का विकास कर े एि सझ ि समझ को विकवसत ृ ू ां कर े के वलए यह उपार्म अत्यत सहायक मा ा जाता ह ै तर्ा विद्यावर्थयों म ें स्ितन्त्र कायथ कर े ां ि अवर्व्यक्त योग्यताओ की विकास म ें सहायता करता ह।ै ां पाियचयाथ वर्क्षा का के न्िीय स्र्ल ह,ै वजसके माध्यम स
े वर्क्षक और विद्यार्ी के मध्य ् अवधर्म अ र्िों को साझा करते ह।ै सरच ात्मक पाियचयाथ म ें इ वबन्दओ का िण थ रहता ह ै ् ु ां ां ु वक पाियचयाथ कै से विकवसत वकया जाए, इसम ें क्या रखा जाए, कै से वर्क्षकों को प्रवर्वक्षत ् वकया जाए एि कै से विद्यावर्थयों का मलयाक वकया जाए आवद। सरच ा उपार्म के अतर्तथ ती ू ां ां ां ां प्रमख चरण अप ाए जाते ह-ै विषयिस्त विश्लेषण, वडज़ाइ एि मलयाक का विकास। यह ु ु ू ां ां उपार्म न्य तम आिश्यकताओ की ओर सके त करता ह।ै इस उपार्म के माध्यम से विषयिस्त ू ु ां ां का व योज ि सयोज पर आधाररत सामग्री की सरच ा तकथ एि बौविक कसौवियों
के आधार ां ां ां पर व धाथररत वकया जाता ह।ै ii. मानवतावादी उपार्म - मा ितािादी उपार्म वकसी विषय क्षेत्र म ें अवधर्वमत या अवजथत की र्ई सरच ा, विषयिस्त, सकलप ाओ एि वसिातों का व्यिह
ारात्मक पररवस्र्वतयों म ें अ प्रयोर् ु ु ां ां ां ां ां कर े से सम्बवधत ह।ै इस उपार्म की आधारर्त मान्यता ह ै वक अवधर्म एि वर्क्षण का मख्य ू ु ां ां ध्येय ह ै वक विद्यावर्थयों के द्वारा विवर्न् र्वै क्षक र्वतविवधयों
के माध्यम से अवधर्वमत या अवजतथ ज्ञा ि कौर्ल का िी पररवस्र्वतयों म ें अ प्रयोर् कर े की योग्यताओ का विकास कर ा ह।ै ु ां इस उपार्म म ें विद्यार्ी को ज्ञात सन्दर्ों के माध्यम स
े अज्ञात सन्दर्ों की ओर ले जाया जाता है। इस उपार्म म ें अवर्प्रेरणा के माध्यम से विद्यावर्थयों के द्वारा िावछत ध्येय प्राप्त वकए जा े का ां प्रयत् वकया जाता ह।ै इसम ें वर्क्षण प्रविया को आ ददायक ब ा े का प्रयास वकया
जाता ह।ै ां इस उपार्म म ें मा िीय पक्षों पर अवधक बल वदया जाता ह ै इस कारण इसे मा ितािादी उपार्म कहा जाता ह।ै iii. प्रन्द्क्रया उपार्म- इस उपार्म म ें सरच ार्त प्रवियाओ पर अवधक प्रदा की जाती ह ै ज
ो ां ां विद्यावर्थयों के वलए वकसी विषय या विषयिस्त की सरच ार्त विर्षे ताओ या विवर्ष्टताओ को ु ां ां ां जा े या खोज े या समझ े म ें अवत सहायक होता ह।ै वकसी र्ी विषय क्षेत्र से सम्बवधत ां विषयिस्त का व योज ि सयोज के फलस्िरूप विकवसत ि व्यिवस्र्त सर्ि एक व वश्चत ु ां ां विचारधारा पर तकथ पण थ ढर् से तैयार वकया जाता ह।ै इसम ें यह अपेक्षाए व वहत रहती ह ै वक यवद ू ां ां विद्यार्ी विषय या विषयिस्त से सम्बवधत वकसी ज्ञा सामग्री की खोज या अन्िषे ण कर ा चाहता ु ां ह ै तो िह इस उपार्म के माध्यम से इत ा सक्षम ब जाता ह ै वक िह ऐसा कर सकता ह।ै इस उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 105 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं उपार्म म ें व वहत सर्ी प्रवियाओ म ें से प्रत्येक का अप ा साध मलय होता ह।ै प्रवियाए ज्ञा के ू ां ां साध मलय के सार्-सार् पाियचयाथ के अवतम उद्दश्े य को स्िय म ें समावहत रखती ह।ै इस उपार्म ् ू ां ां के अतर्तथ विषयिस्त की सहायता से मा िीय र्णों को विकवसत कर े का प्रयास वकया जाता ह।ै ु ु ां इस उपार्म म ें वर्क्षक की र्वमका महत्िपण थ होती ह।ै ू ू iv. पाठयचयाा न्द्वकास का सामान्य प्रन्द्तमान - वर्क्षा के विवर्न् आधारों पर जसै े- उद्दश्े यों, ् विषयिस्त, प्रवियाओ एि पररवस्र्वतयों के आधार पर, अ ेकों प्रवतमा ों का विकास वकया र्या ह ै ु ां ां और पाियचयाथ विकास का प्रत्येक प्रवतमा अप ा महत्ि ि विवर्ष्टतारखता ह।ै विवर्न् ् प्रवतमा ों म ें व्याप्त अन्तर को समाविष्ट करके वर्क्षकों ि अन्य पक्षों के सहयोर् से आिश्यकता अ रूप एक
सामान्य आधार पर पाियचया थ विकास का प्रयास वकया र्या। इसे ही पाियचयाथ का ् ् ु सामान्य प्रवतमा कहा जाता ह।ै यह वकसी विवर्ष्ट वसिात पर आधाररत होकर एक सामान्य
ां अिधारणा पर आधाररत ह।ै इसकी सामान्य विवर्ष्टताए व म् ह-ै ां  वर्क्षकों एि पाियचयाथ व वमथत कर े िाले दल के द्वारा पाियचयाथ के विवर्न् के पक्षों एि क्षेत्रों ् ् ां ां का सिक्षे ण तर्ा उपलब्ध साध ों ि ससाध ों का आकल कर ा। ां ां  र्वै क्षक उद्दश्े यों का स्पस्ि पररर्ावषकरण एि व धाथरण कर ा। ां  उद्दश्े यों के सापेक्ष पािय विषयों, पाियिस्त का चय एि व माथण कर ा। ् ् ु ां  पाियचयाथ के वियान्िय से पि थ वर्क्षकों, वर्क्षाविदों एि पाियचयाथ व माथण कायथदल द्वारा ् ् ू ां विचारर्ोवष्ठयों एि कायथर्ोवष्ठयों का आयोज कर ा। ां  पाियचयाथ की पाियिस्त का व रीक्षण एि परीक्षण हते विद्यालय स्तर पर पि थ परीक्षण। ् ् ु ु ू ां  पाियिस्त के व रीक्षण एि परीक्षण के आधार पर पािय िस्त ि सामग्री का मलयाक एि ् ् ु ु ू ां ां ां आिश्यक सर्ोध ि पररमाजथ कर ा। ां  अपेवक्षत हो े पर पाियचयाथ का व्यापक स्तर पर परीक्षण, मलयाक एि आिश्यक सर्ोध ि ् ू ां ां ां पररमाज थ वकया जा ा चावहए।  विकवसत पाियचयाथ सामग्री का प्रकार् तर्ा प्रसार एि इसके समवचत उपयोर् के वलए वर्क्षकों ् ु ां का उन्मखीकरण या सेिारत प्रवर्क्षण का आयोज कर ा। ु  पाियचयाथ की सामग्री ि विद्यार्ी अवधर्म पररणामों की जाँच ि परख हते माप , मलयाक एि ् ु ू ां ां आकल की तकथ सर्त कसौवियों का व धाथरण कर ा। आवद ां ां इसके अवतररक्त अन्य र्ी पाियचयाथ के प्रवतमा ह ै जो अप ी-अप ी विवर्ष्टताओ के कारण अत्यन्त ् ां प्रवसि ह ै जसै -े उद्दश्े य प्रवतमा , िाइलर प्रवतमा , व्हीलर प्रवतमा , के रर प्रवतमा , िाबा प्रवतमा आवद। प्रत्येक प्रवतमा े अप ी वििचे ा एि विवर्ष्टता के आधार पर पाियचया थ विकास का दृवष्टकोण ् ां अप ाया ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 106 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.6 र्ारत‍म‍पाठ्यचया‍ ‍शवनाकास‍का‍प्रारूप ें र्ारत म ें पाियचयाथ विकास का कोई एक व वश्चत ि सामान्य प्रारूप अर्ी तक विकवसत हीं हो पाया ह ै ् वकन्त पाियचयाथ विकास की प्रविया म ें व वश्चत आधारों एि सोपा ों का अ पाल वकया जाता ह।ै ् ु ु ां वर्क्षा को समिती सची म ें रख े जा े के कारण इससे सम्बवधत उत्तरदावयत्िों का अ पाल के न्ि ि राज्य ू ु ां द्वारा अप े-अप े पररप्रेक्ष्यों एि आिश्यकताओ के आधार पर वकया जाता ह।ै इसीकारण के न्ि ि राज्य ां ां तर्ा विवर्न् राज्यों के एक स्तर के पाियचयाथ म ें बहत विवर्न् ता दखे े को वमलती ह।ै र्ारत म ें प्रचवलत ु ् पाियचयाथ विकास के प्रवतरूप ि प्रारूप को ीचे प्रदवर्थत रेखीय वचत्र से र्ली-र्ावत समझा जा सकता ् ां ह-ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 107 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं के न्िीय सरकार एम.एच.आर.डी. राज्य सरकार व यामक सस्र्ाए ां ां (य.जी.सी.,ए.आई.सी.िी.ई.,आई.सी. ू स्िेि बोडथ ऑफ़ एजके र् , ु ए.आर., ए .सी.ई.आर.िी. आवद) एस.सी.ई.आर.िी., सी.बी.एस.ई., ए .सी.ई.आर.िी. आवद कोसथ व यामक सस्र्ाए ां ां जैसे-एम.सी.आई., बी.सी.आई., ए .सी.िी.ई., ए.आई.एम.ए., विद्यालीय वर्क्षा सी.बी.एस.ई. आवद उच्च वर्क्षा की सस्र्ाए ां ां पाियिम ् के न्िीय विश्वविद्यालय राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय आवडथ ेंस, विश्वविद्यालय व दर्े क वसिात, ां बोडथ ऑफ़ स्िडीज एि ां अकादवमक पररषद उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 108 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.7 पाठ्यचया‍ ‍की‍आवनाश्यकता पाियचयाथ वकसी र्ी वर्क्षण सस्र्ा एि वर्क्षण-अवधर्म प्रविया का ह्रदय ह ै क्योंवक इसके आर्ाि म ें ् ां ां विद्यालय अर्िा विश्वविद्यालय का कोई औवचत्य हीं रह जाएर्ा। औपचाररक वर्क्षा म ें इसका अत्यत ां महत्ि हो े के सार्-२ र्ौवतक और अर्ौवतक पररदृश्य म ें हो े िाले पररितथ ों को साक्षात करा े म ें ् पाियचयाथ एक र्त्यात्मक प्रविया के रूप म ें कायथ करता ह।ै पाियचयाथ विस्तत आर्य म ें के िल ृ ् ् विद्यालय म ें ही हीं बवलक समाज म ें व्यवक्तयों के कल सीख े के अ र्िों को सदवर्तथ करता ह।ै ु ु ां वर्क्षा एि र्ैक्षवणक व्यिस्र्ा म ें सकारात्मक पररितथ , सधार ि पररमाज थ ला े हते पाियचयाथ एक ् ु ु ां उद्दश्े यपण,थ प्रर्वतर्ील एि व्यिवस्र्त माध्यम ह।ै पाियचयाथ समाज एि राज्य की आिश्यकताओ को ् ू ां ां ां पवत थ कर े एि व्यवक्तयों को व वश्चत वदर्ा की ओर प्रित कर े का सर्क्त तरीका ह ै वजसके माध्यम से कोई ृ ू ां दर्े या राज्य या समाज विश्व म ें हो रह े बदलाि ि विकास की अविरलता को व्यवक्तयों तक पहचा े ि ु ां जार्रूक ब ा े के सार्-सार् उन्ह ें समय के पररप्रेक्ष्य म ें उपयक्त ब ा े का प्रयास करता ह।ै ु प्रश्न यह ह ै वक पाियचयाथ क्यों ब ाया जाए या व वमतथ वकया जाए? इस प्रश्न का उत्तर यह ह ै वक वब ा ् पाियचयाथ के वर्क्षा के लक्ष्यों को सचारू एि व्यिवस्र्त रूप से प्राप्त कर पा ा असर्ि ह ै एि विद्यार्ी ि ् ु ां ां ां वर्क्षक इस असमजस म ें पड़ सकते ह ै वक कै स े वर्क्षा के व धाथररत उद्दश्े यों को प्राप्त वकया जाए और वक ां विषयों ि वियाओ का आयोज ि व योज वकया जाए। पाियचयाथ के माध्यम से वकसी स्तर विर्ेष के ् ां वलए व धाथररत उद्दश्े यों के अ कल विवर्न् विषयों, ज्ञा ि वियाओ का िमबि ि व्यिवस्र्त रूप म ें ु ू ां व योज वकया जाता ह।ै वकसी र्ी राष्र का पाियचया थ उस राष्र के महत्िपण थ व णयथ ों म ें से एक ह ै वजस े ् ू राष्र पाियचयाथ के माध्यम से विद्यालय या विश्वविद्यालय तक के विद्यावर्थयों में पहचँ ा े का प्रयास करता ु ् ह।ै पाियचयाथ म ें उ विषयों, कौर्ल और क्षमताओ को समावहत वकया जाता ह ै जोवक र्ािी पीढ़ी या ् ां बच्चों को ियस्क ब े पर उ के वलए अपेवक्षत होता है।एक प्रर्ािी पाियचयाथ वर्क्षक, वर्क्षार्ी, ् प्रर्ासक और सामदावयक वहतधारकों को र्णित्तापण थ वर्क्षा प्रदा कर े के वलए एक सामान्य योज ा ु ु ू और सरच ा प्रदा करता ह।ै पाियचयाथ अवधर्म के पररणामों, व वश्चत मा दडों ि मा कों और मल ् ू ां ां दक्षताओ को व धाथररत करता ह ै जो विद्यार्ी को अप े अकादवमक विकासिम म ें एक स्तर से दसरे स्तर ां ू पर जा े से पहले प्रदवर्तथ कर ा होता ह।ै यवद हम प्राची काल के समय पर विचार करे तो यह तथ्य उर्र कर आता ह ै वक उस समय के लोर् र्ी अप ी ई पीढ़ी को आिश्यक ज्ञा एि कौर्ल प्रदा करते र्े वजसम ें िह अप े अवस्तत्ि को ब ाए ां रख े का ह र सीखते र्े जसै -े मछली पकड़ ा, जा िरों का वर्कार कर ा आवद। इस समय तो वकसी ु औपचाररक वर्क्षा का विधा र्ा और ही कोई व वश्चत पाियचयाथ र्ा वफरर्ी ई पीढ़ी े अप े ् अवस्तत्ि को ब ाए रख े के वलए आिश्यक ज्ञा एि कौर्ल को अज थ वकया और परा ीं पीढ़ी के लोर्ों ु ां े उ के सीख े म ें अपेवक्षत सहायता करते र्े। अ ौपचाररक रूप में यह मा ा जा सकता ह ै वक उस समय र्ी लोर्ो के बीच एक पाियचयाथ प्रचल म ें र्ा वजसका मख्य ध्येय स्िय को जीवित ब ाए रख े के ् ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 109 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वलए के अपेवक्षत ज्ञा ि कौर्ल म ें दक्ष ब ा े से र्ा और यही उस समय की वर्क्षा का उद्दश्े य रहा होर्ा। हालावक विकासिम की अविरल धारा म ें मा िीय खोजों और आविष्कारों के फलस्िरूप प्राची काल ां के लोर्ो की जीि र्लै ी धीरे -धीरे बेहतर ि विकवसत होती र्ई और तीज वर्क्षा आर् े चलकर औपचाररक ब र्ई तर्ा एक व वश्चत पाियचया थ का स्िरुप र्ी विकवसत हआ जोवक धीरे -धीरे ु ् व्यिवस्र्त, योज ाबि, उद्दश्े यपण थ और प्रर्वतर्ील होता र्या। ू पाियचयाथ के विकास का क्षेत्र अत्यत व्यापक ह ै क्योंवक इसम ें के िल विद्यालय, वर्क्षार्ी और वर्क्षक ् ां के विषय अवपत सामान्य रूप से समाज के विकास के विषय र्ी समावहत रहते ह।ै ितथमा म ें ु अर्थव्यिस्र्ाए ज्ञा आधाररत हो र्ई ह ै और वकसी र्ी दर्े की अर्थव्यिस्र्ा में सधार ला े म ें वर्क्षा का ु ां पाियचयाथ एक महत्िपण थ र्वमका को व र्ाता ह।ै यह तत्कावलक विश्व की िस्तवस्र्वत तर्ा समस्याओ ् ू ू ु ां का सर्ावित जिाब या समाधा प्रदा कर े का प्रयास करता ह ै जसै ेवक पयाथिरण की वस्र्वत, राज ीवत, ां सामावजक-आवर्थक पररप्रेक्ष्यों, र्रीबी, र्खमरी, जलिाय पररितथ ि विकाऊ विकास आवद जसै े अ ेकों ु ु मदद।े ु 1.8 पाठ्यचया‍ ‍शवनाकास‍की‍प्रशिया‍म‍प्रशतर्ाशगता‍ ें पाियचयाथ विकास की प्रविया म ें सवम्मवलत प्रवतर्ावर्यों की प्रवतर्ावर्ता का कोई एक सामान्य प्रारूप ् हीं ह ै और ही अर्धाररता का कोई व श्चयात्मक व यम ह ै वफरर्ी विवर्न् व यामक सस्र्ाओ द्वारा ां ां ां अप े-अप े क्षेत्र म ें पाियचया थ विकास का एक व धाथररत प्रारूप अप ा े का प्रयास वकया जाता है। ् विद्यालीय वर्क्षा के अतर्थत विवर्न् व यामक सस्र्ाओ के वदर्ा-व दर्े ों का अ पाल करते हए ु ु ां ां ां पाियचयाथ वि
कास का प्रयास वकया जाता ह।ै विश्वविद्यालय स्तर पर विश्वविद्यालय अप े व धाथररत ् वदर्ा-व दर्े ों एि के न्ि या राज्य के मा दडो के अ रूप पाियचयाथ विकास की प्रविया को अप ात े ् ु ां ां जाता ह।ै पाियचयाथ विकास की प
्रविया म ें सामान्य रूप व म् व्यवक्तयों की सहर्ावर्ता ि प्रवतर्ावर्ता ् रहती ह-ै  पाियचयाथ सवमवत के अध्यक्ष, सदस्य एि प्रारूपकार ् ां  विषय विर्षे ज्ञ  पाियचयाथ विर्षे ज्ञ एि सलाहकार ् ां  सामान्य प्रर्ासक  र्वै क्षक प्रर्ासक  वर्क्षक  अ सधा कताथओ ु ां ां  समदाय ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 110 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  माता-वपता  वर्क्षार्ी अभ्यास प्रश्न 6. पाियचयाथ विकास प्रविया को वकत े सोपा ों म ें विर्ावजत वकया जाता ह?ै ् 7. वकस उपार्म की यह आधारर्त मान्यता ह ै वक प्रत्येक विषय की अप ी एक विवर्ष्ट सरच ा ू ां होती ह?ै 8. पाियचयाथ के वकस उपार्म म ें विद्या
र्ी को ज्ञात सन्दर्ों के माध्यम से अज्ञात सन्दर्ों की ओर ् ले जाया जाता ह?ै 9. वकसी र्ी वर्क्षण सस्र्ा एि वर्क्षण-अवधर्म प्रविया का ह्रदय वकसे कहा जाता ह?ै ां ां 10. पाियचयाथ विकास की प्रविया म ें विद्यालय स्तर पर वक दो वहतधारकों की मख्य र्वमका होती ् ु ू ह?ै 1.
9 साराांश‍ प्रस्तत इकाई के अतर्थत पाियचयाथ की सामान्य अिधारणा, उसके अर्थ, पाियचयाथ तर्ा पाियिस्त के ् ् ् ु ु ां अन्तर की व्याख्या की र्ई ह।ै इसम ें पाियचयाथ के विवर्न् आधारों तर्ा पाियचयाथ विकास की प्रविया ् ् म ें अप ाए जा े िाले सोपा ों की चचा थ की र्ई है। इस इकाई म ें पाियचयाथ कछ प्रमख उपार्मों का िण थ ् ु ु वकया र्या ह ै और र्ारत म ें सामान्य रूप से पाियचया थ विकास की प्रविया तर्ा उसम ें प्रवतर्ार् कर े ् िाले वहतधारकों का िण थ वकया र्या ह ै एि पाियचयाथ ब ाए जा े की आिश्यकता को वििवे चत वकया ् ां र्या ह।ै 1.10‍शब्दावनाली 1. पाठयचयाा : पाियचया थ स े आर्य उ साध ों एि सामवग्रयों से ह ै वज के सार् विद्यार्ी इस ् ् ां प्रयोज से अतविया करते ह ै वक सस्पस्ि र्वै क्षक पररणामों की प्रावप्त की जा सके । ु ां 2. उपार्म: इससे तात्पयथ वर्क्षण की सम्पण थ अ दर्े ा ात्मक प्रविया से ह ै जोवक वकसी व वश्चत ू ु विचारधारा या दर् थ पर आधाररत होता ह।ै 3. पाठयवस्त: इससे आर्य वकसी एक र्क्षै वणक सत्र म ें विवर्न् विषयों म ें वर्क्षकों द्वारा ् ु विद्यावर्थयों को प्रदा वकए जा े िाले वर्क्षण एि विया-कलापों के विषय म ें व वश्चत रुपरेखा ां प्रस्तत कर े से ह।ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 111 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4. पाठयचयाा के आधार: इससे आर्य उ प्रर्ािों से ह ै जो वकसी समाज की वर्क्षा के स्िरुप ् एि वदर्ा का व धाथरण करते ह।ै ां 1.11‍अभ्यास‍प्रश्नों‍का‍उत्तर‍ 1. Currere 2. म रों ु 3. दो, पािय एि पाियेत्तर वियाए ् ् ां ां 4. पाियचयाथ व दर्े ात्मक होता ह ै जबवक पाियिस्त िण थ ात्मक होती ह ै ् ् ु 5. म ोिज्ञै ाव क आधार, दार्वथ क आधार एि िज्ञै ाव क आधार ां 6. चार सोपा ों म ें 7. सरच ा उपार्म ां 8. मा ितािादी उपार्म 9. पाियचयाथ को ् 10. वर्क्षक एि वर्क्षार्ी की ां 1.12‍सांदर्‍थ ग्रांर्‍सची ू 1. Stenhouse, L. (1975) An Introduction to Curriculum Research and Development, Heinemann, Landon 2. Wheeler, D. K. (1988) Curriculum Process, University of London Press, London 3.
Hussain, A., Dogar, A. H., Azeem, M. & Shakoor A. (2011) Evaluation of Curriculum Development Process, International Journal of Humanities and Social Science,
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"पाियिम"
के विषय म ें आदर्िथ ादी ् ां समझ र्ब्द के ितथमा प्रवतबवधत उपयोर्ों से अलर् ह,ै पाियिम लेखक और र्ोधकताथ आम तौर पर ् ां इसे पाियिम की एक समा तथ्यात्मक समझ के रूप म ें दखे ते ह।ैं विज्ञा के वर्क्षण म ें इस तरह की ् तब्दीली की जव चावहए की यह हर बच्चे को अप े रोज के अ र्िों को जाच े और उ का विश्लेषण ु ां कर े म ें सक्षम ब ाए। पररिर्े सम्बन्धी सरोकारों और वचताओ पर हर विषय में जोर वदए जा े की जरूरत ां ां ां ह ैं और यह ढेरों र्वतविवधयों और बाहरी दव या पर की र्ई पररयोज ाओ के द्वारा हो ा चावहए। इस प्रकार ां ु की पररयोज ाओ के माध्यम से व कल े िाली सच ाओ और समझ के आधार पर र्ारतीय पयाथिरण को ू ां लेकर एक सिसथ लर् और पारदर्ी आकड़ा –सग्रह तैयार हो जाता ह ै जो अत्यत उपयोर्ी ससाध सावबत ु ां ां ां होर्ा । यवद विद्यावर्थयों की पररयोज ाये सव योवजत हों तो उ से ज्ञा सवजत होर्ा। बाल विज्ञा काग्रेस ृ ु ां की तज थ पर एक सामावजक आन्दोल की कालप ा की जा सकती ह ै वजससे परे दर्े म ें अन्िर्े ण की ु वर्क्षा को प्रोत्साह वमलेर्ा जो बाद म ें परे दवक्षण एवर्या म ें फै ल सकता ह ै । ु 2.2 उद्दश्े य इस इकाई क अध्यय कर े के पश्चात आप- 1. पाियिम व माथण म ें राज्यों की र्वमका को समझ े म ें सक्षम होंर्।े ् ू 2. स्कली वर्क्षा, वर्क्षक और पाियचयाथ जसै े विषयों को जा पाएर्।े ् ू ां 3. पाियचयाथ अध्यापकों के वलए अव िायथ ह ै इसके िारे म ें जा पाएर् े । ् ां 2.3 पाठ्यिम‍श माण‍म‍राज्यों‍की‍र्ूशमका ें सरकार बदलते ही वर्क्षा ीवत म ें पररितथ की आिाज उिती है। सास्कवतक मलयों म ें और अवधक ह्रास ृ ू ां होता ह,ै सामावजक समता के स्र्ा पर िर् थ र्दे बढ़ता है। धावमकथ सवहष्णता के स्ताह पर धावमकथ उन्माद ु बढ़ता ह,ै और र्वै क्षक अिसरों की समा ता के स्ताह पर र्वै क्षक अिसरों में समा ता बढती ह ै । वर्क्षा रावष्रय महत्ि का विषय है-वर्क्षा ीवतयों में वर्क्षा को रावष्रय महत्ि का विषय मा ा हआ ह ै और यह ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 115 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं स्िीकार वकया र्या ह ै वक वर्क्षा द्वारा ही लोकतत्र को सदृढ़ वकया जा सकता ह,ै रावष्रय एकता को सदृढ़ ु ु ां वकया जा सकता ह,ै उत्पाद म ें िवि राष्र का आवर्थक विकास वकया जा सकता ह,ै उत्पाद म ैं िवि और ृ ृ राष्र का आवर्थक विकास वकया जा सकता ह ै और राष्र की सास्कवतक पष्ठर्वम म ें इसका आधव कीकरण ृ ृ ू ु ां वकया जा सकता ह।ै वर्क्षा की व्यिस्र्ा कें ि एि राज्
य सरकारों का सयक्त उत्तरदावयत्ि ह।ै र्ारत एक ु ां ां र्णतत्र राज्य ह।ै इसम ें कछ विर्षे के िल कें ि के अधी और कछ विषय के िल राज्य सरकारों के अधी ु ु ां ह।ैं इया वर्क्षा ीवत म ें वर्क्षा की व्यिस्र्ा कर ा कें ि और राज्य सरकारों क
ा सयक्त उतरदावयत्ि घोवषत ु ां वकया र्या ह।ै कें ि के र्वै क्षक उतरदावयत्ि हैं- रावष्रय वर्क्षा ीवत का व माथण कर ा, के न्िीय विश्वविधालयों और रावष्रय महत्ि की वर्क्षा सस्र्ाओ का प्रिध कर ा ,उच्च स्तर की विज्ञा एि ां ां ां ां तकव की वर्क्षा और अ सन्धा का स्तर मा व वश्चत कर ा, विदर्े ों म ें र्वै क्षक एि सास्कवतक समझोते ृ ु ां ां कर ा, राज्यों को र्वै क्षक ेवत्रत्ि प्रदा कर ा और उ के र्वै क्षक कायथिमों के सम्पाद हते आवर्थक ु सहायता द े ा। प्रान्तीय सरकारों के र्वै क्षक उतरदावयत्ि हैं-के न्िीय वर्क्षा ीवत के अ सार राज्य स्तर पर ु वर्क्षा को,व योवजत कर ा , उसके वलए वित्त व्यिस्र्ा कर ा ,वर्वक्षक प्रर्ासव क ढाचे पर व यन्त्रण ां रख ा और वर्क्षा के विवर्न् स्तरों की र्णित्ता ि ाये रख ा। ु वर्क्षा पर के न्िीय बजि का ६% व्यय वकया जायेर्ा- इस ीवत म ें वर्क्षा को रावष्रय महत्ि का विषय मा ा र्या ह।ै इसवलए के न्िीय बजि म ें ६% वर्क्षा पर व्यय कर े का प्रस्ताि रखा र्या ह।ै दृष्टव्य ह ै वक उस समय वर्क्षा पर के न्िीय बजि का के िल २.९% ही व्यय वकया जा रहा र्ा। पाियकरम व माथण के ् सहर्ावर्ओ के अवतररक्त राज्य वर्क्षा विर्ार्, विवर्न् अव सध सर्ि एि विर्षे रूप सी स्र्ावपत ां ां ां ां पाियिम कें ि र्ी पाियिम विकार् के अवर्करण ह।ैं वर्क्षा मख्य रूप से राज्य का विषय ह।ै तर्ा सर्ी ् ् ु राज्यों की अप ी कछ स्र्ा ीय आिश्यकताए एि आकाक्षाए होती ह।ैं इसवलय रावष्रय वर्क्षा के समा ु ां ां ां ां कोर पाियिम म ें र्ी स्र्ा ीय मद्दों को समाविष्ट कर े का प्रािधा रखा र्या ह।ै प्रार्वमक एि माध्यवमक ् ु ां स्तर पर पाियिम व माथण प्रविया म ें राज्य वर्क्षा विर्ार् की महत्िपण थ र्वमका होती ह।ै िसै े र्ी ् ू ू पाियिम के वियान्िय हते ावर्थक प्रिध का र्ार राज्य सरकारों पर ही होता ह।ै अत; राज्य वर्क्षा ् ु ां विर्ार् के सहयोर् के वि ा पाियिम व माथण सर्ि ही हो पाता ह।ै ् ां विवर्न् अ सन्धा सर्ि ों द्वारा ही र्वै क्षक कायथिमों का सिक्षे ण एि मलयाक वकया जाता रहता ह ै । ु ू ां ां ये सर्ि िाचारों के प्रयोर् की समीक्षा र्ी करते ह।ैं इसके सार् ही विवर्न् र्ोधों के व ष्कषों से ां व्यवक्क्तयों एि समाज की आिश्यकताओ एि आकाक्षाओ का र्ी ज्ञा होता ह।ै जो पाियिम व माथण ् ां ां ां ां के वलए आत्यािाश्यक होते हैं। इस प्रकार अ सन्धा सर्ि पाियिम व माथण के अवर्करण के रूप में ् ु ां र्ी कायथ करते ह।ैं ितथमा समय म ें वर्क्लषा के व माथण पर विर्ेष ध्या वदया जा रहा ह ै । र्ारत में रावष्रय वर्क्षा ीवत, १९८६ म ें खले र्व्दों म ें स्िीकार वकया र्या ह ै वक वर्क्षा पर वकया र्या व्यय ितथमा तर्ा र्विष्य के ु वलए विव योर् ह।ै अत: र्ारत म ें र्ी पाियिम सधर पर विर्षे बल वदया जा रहा ह।ै इसके वलए विवर्न् ् ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 116 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं स्तरों पर पाियिम के न्िों की स्र्ाप ा की र्ई ह।ै इ के न्िों का कायथ प्रचवलत पाियिमों का अध्यय ् ् करके उ म ें आिश्यक पररितथ कर ा तर्ा समया कल िी पाियिमों का व माथण कर ा ह ै NCERT ् ु ू म ें इसी उद्दश्े य से अलर् से ‘पाियिम विकास विर्ार्’ की स्र्ाप ा की र्ई ह ै । यह विर्ार् अप े ् दावयत्िों की पती के वलया प्रयासरत र्ी ह ै तर्ा इसके अच्छे पररणाम र्ी दखे े को वमले ह।ैं अत; ू पाियिम कें ि पाियिम व माथण –प्रविया म ें र्त सहायक वसि हो रह े ह।ैं ् ् ु अभ्यास प्रश्न 1. वर्क्षा की व्यिस्र्ा कें ि एि राज्य सरकारों का सयक्त _______ह।ै ु ां ां 2.4 पाठ्यिम औपचाररक वर्क्षा के क्षेत्र में पाियचया थ या पाियिम (कररकलम( विद्यालय या विश्वविद्यालय म ें प्रदा ् ् ु वकये जा े िाले पाियिमों और उ की सामग्री को कहते ह।ैं पाियिम व दर्े ात्मक होता ह ै एि अवधक ् ् ां सामान्य वसलेबस पर आधाररत होता ह ै जो के िल यह व वदष्टथ करता ह ै वक एक विवर्ष्ट ग्रडे या मा क प्राप्त कर े के वलए वक विषयों को वकस स्तर तक समझ ा आिश्यक ह।ै । 9। 8 म ें इस विषय पर प्रकावर्त प्रर्म पस्तक द कररकलम में जॉ फ्रें कवल बौवबि े कहा वक एक विचा
र के रूप म ें पाियिम की ् ु ु जड़ें रेस-कोसि के वलए लैवि र्ब्द म ें ह ै और पाियिम का िण थ ऐसे कायों एि अ र्िों के रूप म ें वकया ् ु ां ह ै वज के माध्यम से बच्चे अपेवक्षत ियस्क के रूप म ें विकवसत होते ह ैं त
ावक ियस्क समाज म ें सिलता प्राप्त की जा सके . इसके अलािा, पाियिम म ें के िल विद्यालय म ें हो े िाले अ र्ि ही हीं बवलक ् ु विद्यालय एि उसके बाहर हो े िाले र्ि कायथ एि अ र्ि अप ी सपणतथ ा म ें समावहत होते ह;ैं ि े ु ू ां ां ां अ र्ि जो अव योवजत और अव वदष्टथ रह े ह ैं और ि े अ र्ि र्ी वजन्ह ें समाज के ियस्क सदस्यों के ु ु उद्दश्े यपण थ र्ि की वदर्ा म ें जा बझकर कर प्रदा वकया र्या ह।ै ू ू बौवबि के वलए पाियिम एक सामावजक इजीव यररर् का क्षेत्र ह।ै उ के सास्कवतक अ मा एि ृ ् ु ां ां ां ां सामावजक पररर्ाषाओ के अ सार उ के पाियिम व माथण के दो उललेख ीय लक्षण ह:ैं ् ु ां 1. िज्ञै ाव क विर्षे ज्ञ अप े इस विर्षे ज्ञा के आधार पर वक समाज के ियस्क सदस्यों म ें क्या गण ु होने चाफहए एि कौ से अ र्ि ऐसे गण उत्पन्न करेंग,े ि े पाियिमों का व माथण कर े हते योग्य ् ु ु ु ां होंर् े तर्ा यही न्यायसर्त र्ी होर्ा और ां 2. पाियिम को ऐसे कायथ-अ र्िों के रूप म ें पररर्ावषत ह ै जो छात्र को अपेवक्षत ियस्क ब े के ् ु वलए उसके पास हो े चावहए. उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 117 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इसवलए, उन्हों े पाियिम को लोर्ों के चररत्र का व माथण कर े िाले कायों एि अ र्िों की ् ु ां िोस िास्तविकता के स्र्ा पर एक आदर् थ के रूप म ें पररर्ावषत वकया ह।ै बी पाियिम सबवधत ् ां ां समकाली विचार बौवबि के इ तत्िों को अस्िीकार करते हैं, परत इस आधार को यर्ाित रखते ह ैं वक ु ां पाियिम अ र्िों का दौर ह ै जो मा ि को व्यवक्त ब ाता ह।ै पाियिमों
के माध्यम से ियै वक्तक र्ि का ् ् ु व्यवक्तर्त और सामवहक स्तर (अर्ाथत सास्कवतक एि सामावजक स्तर पर) पर अध्यय वकया जाता ह;ै ृ ू ां ां उदाहरण के वलए पेर्िे र र्ि , ऐवतहावसक अ र्ि के माध्यम स
े र्वै क्षक अ र्ास ). एक समह का ु ु ू र्ि उसके व्यवक्तर्त प्रवतर्ावर्यों के र्ि के सार् ही होता ह।ै यद्यवप औपचाररक रूप से यह बौवबि की पररर्ाषा म ें वदखाई वदया है, रच ात्मक अ र्ि के रूप म ें पाियिम की चचाथ को जॉ डेिी के कायथ म ें ् ु र्ी दखे ा जा सकता ह ै (जो महत्िपण थ मामलों पर बौवबि से असहमत र्े). हालावक बौवबि और डेिी की ू ां
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"पाियिम"
के विषय म ें आदर्िथ ादी समझ र्ब्द के ितथमा प्रवतबवधत उपयोर्ों से अलर् ह,ै पाियिम ् ् ां लेखक और र्ोधकताथ आम तौर पर इसे पाियिम की एक समा तथ्यात्मक समझ के रूप म ें दखे ते ह।ैं ् अभ्यास प्रश्न 2. पाियिम को ऐसे काय-थ अ र्िों के रूप म
ें पररर्ावषत ह ै जो छात्र को _________ब े के ् ु वलए उसके पास हो े चावहए। 2.5पाठ्यचया‍अध्यापकों‍के ‍शलए‍अश वनाायथ यह तथ्य वक बच्चा ज्ञा का सज करता ह ै ,इसका व वहतार्थ ह ै वक पाियचयाथ ,पाियिम एि ृ ् ् ां पाियपस्तक वर्क्षक को इस बात के वलये सक्षम ब ाये वक ि े बच्चो की प्रकवत और िातािरण के ृ ् ु अ रूप कक्षायी अ र्ि आयोवजत करे ,तावक सारे बच्चो को अिसर वमल पाये । वर्क्षण का उद्दश्े य ु ु बच्चे के वसख े की सहज इच्छा और यवक्तयो को समध्द कर ा हो ा चवहये । ज्ञा को सच ा स े अलर् ृ ु ू कर े की जरुरत ह ै और वर्क्षण को एक पेर्िे र र्वतविवध के रूप म े पहचा े की जरुरत ह ै वक तथ्यो के रि े और प्रसार के प्रवर्क्षण के रूप म ें । सविय र्वतविवध के जररये ही बच्चा अप े आसपास की दव या ु को समझ े की कोवर्र् करता ह ै । इसवलये प्रत्येक साध का उपयोर् इस तरह वकया जा ा चावहये वक बच्चो को खद को अवर्व्यक्त कर े म ें ,िस्तयो का इस्तेमाल कर े म ें ,अप े प्रकवतक और सामावजक ृ ु ु पररिर्े की खोजबी कर े में और स्िस्र् रूप से विकवसत हो े म ें मदद वमले । अर्र बच्चो,के कक्षा के अ र्िो को इस तरह आयोवजत कर ा हो वजससे उन्ह े ज्ञा सवजत कर े का अिसर वमले तो इसके ृ ु वलये स्कल के विषयो और पाियचयाथ के
क्षेत्रों की वफर से सकलप ा की आिश्यकता होर्ी । ् ू ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 118 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं स्कली पाियचयाथ के चार सपररवचत क्षेत्र
ों –र्ाषा ,र्वणत ,और समाज विज्ञा में –महत्िपणथ पररितथ ों का ् ू ु ू सझाि वदया र्या ह ै । इस दृष्टी से वक वर्क्षा आज की और र्विष्य की जरूरतों के वलए ज्यादा प्रासवर्क ु ां ब सके और बच्चो को उस दबाि से मक्त वकया जा सके जो ि े आज झले रह े ह ै । यह राष्रीय पाियचया थ ् ु दस्तािजे इस बात की वसफाररर् करता ह ै वक विषयों के बीच की दीिारें ीची ि दी जाये तावक बच्चों को ज्ञा का समग्र आ द वमल सके और वकसी चीज को समझ े से वमल े िाली खर्ी हावसल हो सके । ु ां इसके सार् यह र्ी सझाया र्या ह ै वक पाियपस्तक और दसरी सामग्री की बहलता ही ,वज से स्र्ा ीय ु ् ु ु ू ज्ञा और पारम्पररक कौर्ल र्ावमल हो सकते ह ैं और बच्चों के घर और समदावयक पररिर्े से जीित ु ां सबध ब ा े म े िाले स्फवतथदायक स्कली माहौल को सव वश्चत वकया जा सके । र्ाषा म ें वत्रर्ाषा फामथले ू ू ु ू ां ां को लार् कर े म ें वफर से
प्रयास का सझाि वदया र्या ह ै वजसम ें आवदिासी र्ाषाओ ँ सवहत बच्चो की ु ु मातर्वम को वर्क्षा के माध्यम के रूप म ें स्िीकवत द े े पर जोर वदया ह।ै प्रत्येक बच्चे म ें बहर्ावषक ु ृ ृ ू प्रिीणता विकवसत कर े के वलए र्ारतीय समाज के बहर्ावषक चररत्र को एक ससाध के रूप म
ें दखे ा ु ां चावहए वजसम े अग्रेजी म ें प्रिीणता र्ी हावसल ह ै यह तर्ी ममवक ह ै जब र्ाषा की पख्ता वर्क्षार्ास्त्र ु ु मातर्ाषा के उपयोर् पर आधाररत हो। पढ ा ,वलख ा और स ा –ये वियाये पाियचयाथ के सर्ी क्षेत्रो में ृ ् ु बच्चों की प्रर्वत म ें र्वमका व र्ाती ह ैं और इन्ह ें पाियचयाथ की योज ा का आधार हो ा चावहए। ् ू आरवम्र्क कक्षाओ के परे दौर म ें पढ े पर जोर द े ा जरुरी ह ै वजससे हर बच्चे को स्कली वर्क्षा का िोस ु ू ां आधार वमल सके । र्वणत की वर्क्षा ऐसी हो ी चावहये वजससे बच्चों के ि े ससाध समि हों वचत और तकथ म,ें अमतथ ो ृ ु ां ां की सकलप ा कर े और उ का व्यिहार कर े म ें ,समस्याओ को सत्रबि कर े ओर सलझा े म ें उ की ू ु ां ां सहायता करें। उद्दश्े यों का यह व्यापक फलक उस प्रासवर्क और अर्थपण थ र्वणत को पढ़ाकर तय वकया जा ू ां सकता ह ै जो बच्चों के अ र्िों म ें र्र्ीं हई ही। र्वणत म ें सफलता को हर बच्चे के अवधकार की तरह ु ु ुां दखे ा जा ा चावहए । इसके वलए र्वणत के दायरे और विस्तत कर े की जरूरत ह ै इस दसरे विषयों से ृ ु जोड़ े की जरुरत ह ै । हर स्कल को कप्यिर ,हाडथिये र ,सोफ्ििये र और क ेवक्िवििी महयै ा करा े जसै ी ू ू ु ां ढाचार्त च ोवतयों का साम ा कर े की जरुरत ह ै । ु ां विज्ञा के वर्क्षण म ें इस तरह की तब्दीली की जव चावहए की यह हर बच्चे को अप े रोज के अ र्िों को जाच े और उ का विश्लेषण कर े म ें सक्षम ब ाए। पररिर्े सम्बन्धी सरोकारों और वचताओ ु ां ां ां ां पर हर विषय म ें जोर वदए जा े की जरूरत ह ैं और यह ढेरों र्वतविवधयों और बाहरी दव या पर की र्ई ु पररयोज ाओ के द्वारा हो ा चावहए। इस प्रकार की पररयोज ाओ के माध्यम से व कल े िाली सच ाओ ू ां ां और समझ के आधार पर र्ारतीय पयाथिरण को लेकर एक सिसथ लर् और पारदर्ी आकड़ा –सग्रह तैयार ु ां हो जाता ह ै जो अत्यत उपयोर्ी ससाध सावबत होर्ा । यवद विद्यावर्थयों की पररयोज ाये सव योवजत हों ु ां ां तो उ से ज्ञा सवजत होर्ा। बाल विज्ञा काग्रेस की तज थ पर एक सामावजक आन्दोल की कालप ा की ृ ां जा सकती ह ै वजससे परे दर्े म ें अन्िर्े ण की वर्क्षा को प्रोत्साह वमलेर्ा जो बाद म ें परे दवक्षण एवर्या म ें ु ु फै ल सकता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 119 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं सामावजक विज्ञा म ें पाियचयाथ के इस दस्तािजे द्वारा प्रस्तावित उपार्म ज्ञा के क्षेत्रो की ् विवर्ष्ट सीमाओ को पहचा ता ह ै और सार् ही पा ी जसै े महत्िपण थ मद्दों के वलए समाकल पर जोर दते ा ू ु ां ह।ै हावर्ए पर ढके ल वदए र्ए समहों की दृष्टी से समाज विज्ञा के अध्यय का प्रस्ताि करते हए जररये ु ू म ें एक परी तब्दीली की वसफाररर् की र्ई ह।ै सामावजक विज्ञा के सारे पहलओ म ें जेंडर के सन्दर् थ म ें ू ु न्याय और अ सवचत जावत तर्ा ज जावत के मसलों को लेकर जार्रूकता तर्ा अलपसख्यक ु ू ां सिदे ार्ीलता के प्रवत सजकता हो ी चावहए। ार्ररकर्ास्त्र को राज ीवत विज्ञा के रूप म ें ढाल ा ां चावहये और बच्चो के अतीत और ार्ररकता अवस्मता की अिधारणा पर इवतहास के प्रर्ाि के महत्ि को पहचा ा चावहए । पाियचयाथ का यह दस्तािजे क्षेत्रो की तरफ ध्या आकवषथत करता ह ै जो इस प्रकार ह:ै काम,कला और ् पारम्पररक दस्तकाररयो ,स्िास्थ्य तर्ा र्ारीररक वर्क्षा,एि र्ावन्त । काम के सम्बन्ध म ें आरवर्क स्तर से ां ां र्रू करते हए काम को अवधर्म से जोड़ े के वलए कछ बव यादी कदम सझाये र्ये ह ै । उ के पीछे ु ु ु ु ु आधार यह ह ै वक ज्ञा काम को अ र्ि म ें रूपातररत कर दते ा ह ै और सहयोर् ,सज ात्मकता और आत्म ृ ु ां व र्रथ ता जसै े मलयों की उत्पवत्त करता ह ै । यह ज्ञा रच ात्मकता के ए रूपों की प्रेरणा र्ी दते ा ह ै । ू िररष्ठ कक्षाओ म ें स्कल के बाहर के ससाध को औपचाररक मान्यता द े े की वसफाररर् ह ै तावक उ ू ां ां बच्चो को लार् पहचँ सके जो आजीविका से सीधे जडी हई वर्क्षा का च ाि करत े ह ै । स्कल के बाहर ु ु ु ु ू की आजीविका सस्र्ायो को औपचाररक मान्यता की जरुरत ह ै वजससे ि े बच्चो को ऐसा स्र्ा उपलब्ध ां करिाये जहाँ बच्चे औजारों और दसरे साध ों से काम करे। दस्तकाररयो के मा वचत्रीकरण की वसफाररर् ू की र्ई ह ै वजससे उ इलाको की पहचा की जा सके जहाँ बच्चो को स्र्ा ीय कारीर्रों के सहारे दस्तकाररयो म ें प्रवर्क्षण वदया जा सकता ह।ै हर स्तर पर विषय के रूप म ें कला को जर्ह वदए जा े की वसफाररर् की र्ई वजसम ें र्ाय ,व त्य,दृश्य कलाए और ािक चारो पहल र्ावमल ह ैं । पर यहा ँ र्ी जोर परसपर –वियात्मक ू पिवतयों पर हो ा चावहए वक प्रवर्क्षण पर। क्योवक कला वर्क्षण का उद्दश्े य सौन्दयाथत्मक और ियै वक्तक चेत ा को प्रोत्सावहत कर ा ह ै और विविध रूपों खद को व्यक्त कर े की क्षमता को बढ़ािा द े ा ह ै । ु ार्ररक पारपररक दस्तकाररया आवर्थक और सौन्दयथपरक मलयों के अर्थ म ें स्कली वर्क्षा के वलए ू ू ां ां प्रासवर्क और महत्िपण थ ह ैं यह तथ्य पहचा ा जा ा चावहए । ू ां स्कलों म ें बच्चो की कामयाबी पोषण और सव योवजत र्ारीररक र्वतविवधयों के कायथिमों पर ू ु व र्रथ होती ह।ै इसीवलए जरूरी ससाध और स्कल के समय को मध्याह र्ोज कायथिम को सदृढ़ ू ु ां ां ब ा े म ें लर्ा ा चावहए। यह सव वश्चत कर े के वलए विर्षे प्रयासों की जरुरत होर्ी वक स्िास्थ्य और ु र्ारीररक वर्क्षा के कायथिमों म ें र्ाला पि थ अिस्र्ा से लेकर आर् े तक लडको की तरह ही लडवकयों की ू ओर र्ी उत ा ही ध्या वदया जाये। परी दव या म ें बढ़ती असवहष्णता और मतर्दे ों को सलझा े के तरीके के रूप म ें वहसा की ओर ू ु ु ां ु बढ़ते रुझा को दखे ते हए इस बात की वसफाररर् की र्ई ह ै वक र्ावन्त को राष्रीय व माथण की पि थ र्तथ ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 120 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं और एक सामावजक सस्कार के रूप म ें समग्र मलय सरच ा के तौर पर स्िीकार वकया जाये वजसकी आज ू ां ां अत्यवधक प्रासवर्कता वहयो एक लोकतावन्त्रक और न्यायपण थ सस्कवत म ें बच्चो के समाजीकरण के वलये ृ ू ां ां वर्क्षा की सम्र्ाि ाओ को विवर्न् र्वतविवधयों के द्वारा हर स्तर पर ,और हर विषय म ें विषयों के ां वििके पण थ च ाि के जररये साकार वकया जा सकता ह ै र्ावत के वलए वर्क्षक प्रवर्क्षण पाियचयाथ म ें ् ू ु ां र्ावमल कर े की वसफाररर् की र्ई ह ै स्कल के माहौल को पाियचयाथ के एक पहल की तरह दखे ा र्या ह ै क्योवक यह बच्चों को वर्क्षा ् ू ू के उद्दश्े यों और सीख े की उ यवक्तयो के वलए तैयार करती ह ै जो स्कल म ें सफलता के वलए जरुरी ह ै । ु ू एक ससाध के रूप म ें स्कल के समय को लचीले ढर् से व योवजत वकये जा े की जरूरत ह।ै स्र्ा ीय ू ां ां स्तर पर व योवजत लचीले स्कली कलेंडर और समय सारणी की वसफाररर् की र्ई ह ै तावक पररयोंज ा ू और प्राकवतक और पारम्पररक धरोहर िाले स्र्लों के वलए भ्रमण जसै ी विविध प्रकार की र्वतविवधयों के ृ वलए मौका वमल सके । इस बात की कोवर्र् कर ी होर्ी वकबच्चों के वलए वसख े के ि अवधक ससाध ां तैयार वकया जाए ँ ,खासकर स्कल और वर्क्षक के वलए सदर् थ पस्तकालय हते स्र्ा ीय र्ाषाओ म ें ू ु ु ां वकताबे और सदर् थ सामवग्रया उपलब्ध हों और बच्चो की अत:वियात्मक तक ीक तक पहच हो वक ु ां ां ां प्रसाररत तक ीक तक। यह दतािजे माध्यवमक स्तर पर विकलपों म ें बहलता और लचीलेप के महत्ि पर ु जोर दते ा ह ै और बच्चों को बद खाचों म ें डाल द े े की स्र्ावपत प्रविवत्त को हतोत्सावहत करता ह ै क्योवक ां ां इससे बच्चों के ,खास कर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के अिसर सीवमत हो जाते है अभ्यास प्रश्न 3. स्कली पाियचयाथ के चार सपररवचत क्षेत्रों –र्ाषा ,र्वणत ,और समाज विज्ञा में महत्िपण थ ् ू ु ू _______का सझाि वदया र्या ह ै । ु 2.6 राष्ट्रीय‍पाठ्यचया‍की‍रूपरेिा-2005 1. यह विद्यालयी वर्क्षा का अब तक का िी तम राष्रीय दस्तािजे ह ै । 2. इसे अन्तराथष्रीय स्तर के के वर्क्षाविदों,िज्ञै ाव कों,विषय विर्षे ज्ञों ि अध्यापकों े वमलकर तैयार वकया ह ै । 3. मा ि विकास ससाध मत्रालय की पहल पर प्रो0 यर्पाल की अध्यक्षता म ें देर् के च े हए 23 ु ु ां ां विद्वा ों े वर्क्षा को ई राष्रीय च ौवतयों के रूप म ें दखे ा । ु मार्दथ र्ी वसिान्त 1. ज्ञा को स्कल के बाहरी जीि से जोडा जाय । ू 2. पढाई को रिन्त प्रणाली से मक्त वकया जाय । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 121 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3. पाियचयाथ पाियपस्तक के वन्ित रह जाय । ् ् ु 4. कक्षाकक्ष को र्वतविवधयों से जोडा जाय । 5. राष्रीय मलयों के प्रवत आस्र्ािा विद्यार्ी तैयार हो । ू प्रमख सझाि ु ु 1. वर्क्षण सत्रों जसै े-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मतथ से अमतथ की ओर,आवद का अवधकतम प्रयोर् ू ू ू हो। 2. सच ा को ज्ञा मा े से बचा जाय । ू 3. विर्ाल पाियिम ि मोिी वकताबें वर्क्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक ह ै । ् 4. मलयों को उपदर्े दके र हीं िातािरण दके र स्र्ावपत वकया जाय। ू 5. अच्छे विद्यार्ी की धारणा म ें बदलाि आिश्यक ह ै अर्ाथत अच्छा विद्यार्ी िह ह ै जो तकथ पणथ ् ू बहस के द्वारा अप े मौवलक विचार वर्क्षक के साम े प्रस्तत करता ह ै । ु 6. अवर्र्ािकों को सख्त सन्दर्े वदया जाय वक बच्चों को छोिी उम्र म ें व पण ब ा े की आकाक्षा ु ां रख ा र्लत ह ै । 7. बच्चों को स्कल से बाहरी जीि म ें त ािमक्त िातािरण प्रदा कर ा । ू ु 8.
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“कक्षा म ें र्ावन्त”
का व यम बार-बार िीक हीं अर्ाथत जीिन्त कक्षार्त िातािरण को ् प्रोत्सावहत वकया जा ा चावहए । 9. सहर्वै क्षक र्वतविवधयों म ें बच्चों के अवर्र्ािकों को र्ी जोडा जाय । 10. समदाय को मा िीय ससाध के रूप म ें प्रयक्त हो े का अिसर द ें । ु ु ां 11. खले आ न्द ि सामवहकता की र्ाि ा के वलए ह,ै ररकाडथ ब ा े ि तोड े की र्ाि ा को प्रश्रय ू द े । 12. बच्चों की अवर्व्यवक्त म ें मात र्ाषा महत्िपण थ स्र्ा रखती ह ै । वर्क्षक अवधर्म पररवस्र्वतयों में ृ ू इसका उपयोर् करें । 13. पस्तकालय म ें बच्चों को स्िय पस्तक च े का अिसर द े । ु ु ु ां 14. ि े पाियपस्तकें महत्िपण थ होती ह ै जो अन्तःविया का मौका दे । ् ु ू 15. कलप ा ि मौवलक लेख के अवधकावधक अिसर प्रदा कराि ें । 16. सजा ि परस्कार की र्ाि ा को सीवमत रूप म ें प्रयोर् कर ा चावहए । ु 17. बच्चों के अ र्ि और स्िर को प्रार्वमकता दते े हए बाल के वन्ित वर्क्षा प्रदा की जाय । ु ु 18. सास्कवतक कायथिमों म ें म ोरज के स्र्ा पर सौन्दयथबोध को प्रश्रय द े । ृ ां ां 19. वर्क्षक प्रवर्क्षण ि विद्यावर्थयों के मलयाक को सतत प्रविया के रूप म ें अप ाया जाय । ू ां 20. वर्क्षकों को अकादवमक ससाध ि िाचार आवद समय पर पहचाये जाये । ु ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 122 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2.7‍स्कूली‍शशक्षा, शशक्षक‍और‍पाठ्यचया प्रो. यर्पाल के अ सार: हम बच्चों को क्या पिाते ह,ै क्या सीखा ा चाहते ह ै और उन्ह ें वकस वदर्ा में ले ु जा ा चाहते ह,ै इसम ें स्कली वर्क्षा ीवत और पाियिम अहम र्वमका व र्ाते ह.ै इसवलए जरुरी ह ै वक ् ू ू वर्क्षा ीवत और पाियिम बच्चों के सिालात और उ की उत्सकता पर व र्रथ हो. NCF-2005 म ें हम े ् ु असली वर्क्षा उसे मा ा जो के िल ऊपर से लेप कर िाली होकर बच्चों के अ र्ि-क्षेत्र और उसकी ु समझ को विस्तत करे क्योंवक वर्क्षा सच ा द े ा हीं ह.ै िह तर्ी सार्थक ह ै जब िह बच्चे के व्यवक्तत्त्ि ृ ू और उसके पररिर्े के सार् एकाकार हो जाए और वजसम ें ज्ञा का व माथण ि े स्िय करें, अप े पररिर्े को ां सार् लेकर. बच्चे काली स्लेि हीं ह ै वजसपर आप कछ र्ी वलख द!ें यहाँ हमें 'करीकलम (पाियचयाथ)' ् ु ु और 'सेलेबस (पाियिम)' म ें अतर कर ा बहत जरुरी ह.ै 'करीकलम' याव 'क्या' पढ़ा ा ह ै और 'सेलेबस' ु ् ु याव 'कै से' पढ़ा ा ह.ै 'सेलबे स' अलर्-अलर् पररिेर् म ें अलर्-अलर् उदाहरणों पर आधाररत हो सकता ह.ै इसपर वजस र्हराई स े हमारे NCF-2005 म ें काम वकया र्या ह ै ऐसा दव या के बहत कम मलकों म ें ु ु ु हआ ह.ै जरुरी ह ै वक पस्तकों की जबा और उसके उदाहरण ऐसे हो वजसम ें बच्चें ज्ञा का व माथण अप े ु ु अ र्ि-क्षेत्र (पररिर्े ) के माध्यम से विकवसत कर सकें . कवि र्ब्दों और घमावफराकर कह े की कोई ु ु जरूरत हीं ह.ै पाियिम ऐसा हो जो वर्क्षा-वसिातों और बच्चों के अ र्िों के बीच ररश्ता ब ाए. उम्दा चीज ् ु ां 'वप्रसीपल' ह ै जो समझ सें आ े चावहए और यह तर्ी सर्ि ह ै जब पाियिम म ें बच्चों की वजदर्ी से जड़ी ् ु ां ां ां चीज ें हो. हमारे यहाँ 'कॉम -स्कल-वसस्िम' लार् हो ा चावहए. सर्ी स्कल कम-से-कम कें िीय-विद्यालय- ू ू ू स्तर के तो हो ही, लेवक विडब ा दवे खए वक ऐसा हो हीं रहा ह.ै दरअसल वपछले 50-60 सालों में ां हमारे दर्े म ें हआ यह वक अमीरों की सख्या अवधक हई ह ै और उन्ह ें अप े बच्चों को सरकारी स्कलों म ें ु ु ू ां पढ़ा े म ें र्म थ आती ह.ै हमारा मध्यिर् थ अवधक आत्मकें िीत हआ ह.ै अवधकार् कें िीय सस्र्ा ों, ु ां ां विश्वविद्यालयों के सदस्यों और वर्क्षकों को र्ी िहाँ के पररसरों म ें स्र्ावपत कें िीय-विद्यालयों म ें अप े बच्चों को पढ़ा े म ें र्म थ आती ह.ै ऐसा जएे य म ें र्ी हआ ह.ै जबवक इ सस्र्ा ों के सदस्य और वर्क्षक ु ू ां लर्ातार सिाद से वस्र्वतयों को बेहतर ब ा सकते ह.ै ां 'सच ा' और 'ज्ञा ' म ें अतर कर ा बहत जरूरी ह.ै के िल सच ा प्रौद्योवर्की या कम्प्यिर का ु ू ू ु ां इस्तेमाल ही 'ज्ञा ' ही ह.ै 'सच ा' म ें जोर 'रि े' पर होता ह ै जबवक 'ज्ञा ' म ें 'समझ' पर. अतः सच ा ू ू प्रौद्योवर्की या कम्प्यिर का सही इस्तेमाल जरूरी ह.ै खर्हाल र्ारत के वलए विज्ञा वर्क्षा अव िायथ ह.ै ु ु विज्ञा घर की रसोई म ें है, साईवकल, दी-तालाब, पेड़ों और पवक्षयों म ें ह.ै जरूरत बच्चों को यह समझा े की ह ै वक विज्ञा हर कहीं ह.ै तावक बच्चे उसे समझ े ही हीं बवलक ई चीजों का, ए ज्ञा का व माथण र्ी करे. यह सही ह ै वक र्ाँिों म ें इसके वलए पयाथप्त सविधाए ँ हीं ह ै लेवक वजत ी बड़ी और प्रकवत-प्रदत्त ृ ु प्रयोर्र्ालाए ँ उ के पास ह ै ओर वकसी के पास हीं. के िल प्रयोर्र्ालाए ँ ही हो, िह जीि से र्ी जड़े ु और इवम्तहा इत े कवि हो वक रि े के वलए प्रेररत करे. रि े की प्रिवत बच्चे की मौवलकता और ृ रच ात्मकता की अद्भत क्षमता को हमर्े ा के वलए खत्म कर दते ी ह.ै ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 123 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं अर्र आप 'विएिीवििी' चाहते ह ै तो आपको 'कोवचर् क्लासेज' पर प्रवतबध लर्ा द े ा चावहए ां ां क्योंवक िह बच्चों की सज ात्मकता को खत्म कर उन्ह ें एक ही साँचे म ें ढाल े का काम करती ह.ै उसके ृ व्यवक्तत्त्ि का ार् करती ह.ै मध्यिर् थ की महत्त्िाकाँक्षी मा वसकता वक 'मरे ा बच्चा ही िॉप करे ' े इसे इत ा बढ़ािा वदया ह ै वक आज िह एक 'सामावजक बराई' की र्क्ल अवख्तयार कर चका ह.ै दरअसल ु ु हमारा मध्यिर् थ इत ा आत्मकें वित हो चका ह ै वक अब िह सबकछ अप े वहसाब का ही चाहता ह.ै इससे ु ु बच े के वलए 'ग्रेवडर् वसस्िम' को अप ाया जा रहा ह ै और 'वमवडलक्लास' िाले अब र्ी वचलला रह े ह ै ां वक 'ग्रेवडर् वसस्िम' क्यों? जहाँ तक वर्क्षा ीवत और पाियिम म ें बदलाि का सिाल ह ै तो बदलाि की ् ां प्रविया व रतर चलती रहती ह ै और यह एक अतही प्रविया ह.ै ां ां अर्र आपका मल-उद्दश्े य 'समझ' पैदा कर ा ह ै तो बदलाि की प्रविया र्ी उसी से व कलेर्ी. ू लोर् र्लत चीजों पर 'प्रश्न' करेंर् े और इससे पाियिम के 'र्र्िाकरण' जसै ी समस्याओ से र्ी मवक्त ् ु ां वमलेर्ी. 'वर्क्षा का अवधकार' के िल प्रर्ासव क ढाँचे से ही लार् हीं होर्ा. इसके वलए हम सबको ू लर् ा पड़ेर्ा. अवधकतर रूवढ़िादी बदल ा ही हीं चाहते क्योंवक उ के वलए वर्क्षा का अर्थ है-
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"जसै ा हम े पढ़ा."
इससे दर जा े का जरूरत ह.ै अ र्ि जरूरी चीज ह.ै एक 'करीकलम' एक 'इवम्तहा ' स े ु ु ू बच ा जरूरी ह.ै सबको एकजसै ा, एकसमा ब ा ा सही हीं ह.ै र्वणत में 100 में 100 आ सकते ह ै लेवक हम ें 'सर्ी को' सार् वमलाकर चल ा ह.ै फस्िथ आ े िाले के िल बाब ब सकते ह,ै अच्छे ु इसा / ार्ररक हीं. अर्र आप 'करीकलम', ' पाियिम', 'इवम्तहा ' या वकसी र्ी प्रणाली म ें आजादी ् ु ां हीं रखर्ें े तो िह यावत्रक हो जाएर्ी. इसम ें वर्क्षकों की र्वमका महत्त्िपण थ हो जाती ह.ै उसे यह हीं ू ू ां बता ा चावहए वक हम ें सबकछ आता ह ै बवलक उसे बच्चों के 'िडर' और 'कयररओवसिी' का सकारात्मक ु ु ां इस्तेमाल कर ा आ ा चावहए. त्री-स्तरीय-र्ाषा-फामलथ े को विकत कर ा और मातर्ाषा को सही से लार् ृ ृ ू ू कर पा ा समािर्े ी-समाज-व माथण और लोकतत्र के विरूि ह.ै बहरहाल वजत ा हआ उसम ें र्ी 60 ु ां साल लर् े ह.ै । हमारे समय की बदवकस्मती यह र्ी ह ै वक मीवडया के असर से अच्छी चीज अभ्यास प्रश्न 4. मा ि विकास ससाध मत्रालय की पहल पर प्रो0 यर्पाल की अध्यक्षता म ें दर्े के च े हए 23 ु ु ां ां विद्वा ों े वर्क्षा को ई राष्रीय _________ के रूप म ें दखे ा। 2.8 साराांश पाियिम ऐसा हो जो वर्क्षा वसिातों और बच्चों के अ र्िों के बीच-ररश्ता ब ाए उम्दा चीज . ् ु ां 'वप्रसीपल' ह ै जो समझ सें आ े चावहए और यह तर्ी सर्ि ह ै जब पाियिम म ें बच्चों की वजदर्ी से जड़ी ् ु ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 124 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं चीज ें हो हमारे यहाँ .'कॉम वसस्िम-स्कल-' लार् हो ा चावहए-विद्यालय-कम कें िीय-स-े सर्ी स्कल कम . ू ू ू स्तर के तो हो ही, लेवक विडब ा दवे खए वक ऐसा हो हीं रहा ह.ै ां स्कल के माहौल को पाियचयाथ के एक पहल की तरह दखे ा र्या ह ै क्योवक यह बच्चों को वर्क्षा के ् ू ू उद्दश्े यों और सीख े की उ यवक्तयो के वलए तैयार करती ह ै जो स्कल म ें सफलता के वलए जरुरी ह ै । एक ु ू ससाध के रूप म ें स्कल के समय को लचीले ढर् से व योवजत वकये जा े की जरूरत ह।ै स्कली ू ू ां ां पाियचयाथ के चार सपररवचत क्षेत्रों –र्ाषा ,र्वणत ,और समाज विज्ञा में –महत्िपण थ पररितथ ों का सझाि ् ु ू ु वदया र्या ह ै । इस दृष्टी स े वक वर्क्षा आज की और र्विष्य की जरूरतों के वलए ज्यादा प्रासवर्क ब सके ां और बच्चो को उस दबाि से मक्त वकया जा सके जो ि े आज झले रह े ह ै । वर्क्षा पर के न्िीय बजि का ु ६% व्यय वकया जायेर्ा- इस ीवत म ें वर्क्षा को रावष्रय महत्ि का विषय मा ा र्या ह।ै इसवलए के न्िीय बजि म ें ६% वर्क्षा पर व्यय कर े का प्रस्ताि रखा र्या है। दृष्टव्य ह ै वक उस समय वर्क्षा पर के न्िीय बजि का के िल २.९% ही व्यय वकया जा रहा र्ा। पाियकरम व माथण के सहर्ावर्ओ के अवतररक्त राज्य ् ां वर्क्षा विर्ार्, विवर्न् अव सध सर्ि एि विर्षे रूप सी स्र्ावपत पाियिम कें ि र्ी पाियिम ् ् ां ां ां विकार् के अवर्करण ह।ैं वर्क्षा मख्य रूप से राज्य का विषय ह।ै तर्ा सर्ी राज्यों की अप ी कछ ु ु स्र्ा ीय आिश्यकताए एि आकाक्षाए होती ह।ैं इसवलय रावष्रय वर्क्षा के समा कोर पाियिम म ें र्ी ् ां ां ां ां स्र्ा ीय मद्दों को समाविष्ट कर े का प्रािधा रखा र्या ह।ै प्रार्वमक एि माध्यवमक स्तर पर पाियिम ् ु ां व माथण प्रविया म ें राज्य वर्क्षा विर्ार् की महत्िपण थ र्वमका होती ह।ै िसै े र्ी पाियिम के वियान्िय ् ू ू हते ावर्थक प्रिध का र्ार राज्य सरकारों पर ही होता ह।ै अत; राज्य वर्क्षा विर्ार् के सहयोर् के वि ा ु ां पाियिम व माथण सर्ि ही हो पाता ह।ै ् ां 2.9 ‍शब्दाबली 1. महत्िपण थ - अव िायथ ू 2. आिश्यकताए -जरूरतें ां 3. अलपसख्यक- कम मात्रा म ें ां 4. पष्ठर्वम- मल स्र्ा ृ ू ू ‍2.10 ‍अभ्यास‍प्रश्नों‍के ‍उत्तर 1. उत्तरदावयत्ि 2. अपेवक्षत ियस्क 3. पररितथ ों उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 125 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4. च ौवतयों ु 2.11 सांदर्‍थ ग्रांर्‍सची ू 1. दास ,आर० सी० (१९८४),कररकलम एड इिलै यएर् ,ए ० सी० ई० आए० िी० . यी वदलली ु ू ां 2. ओड० लक्ष्मीलाल.के (१९८८), वर्क्षा के त आयाम , राजस्र्ा वहदी ग्रन्र् अकादमी ू ां ,जयपर । ु 3. िमाथ ,आर०. ऐ० (१९८७), वर्क्षा तकव की , इिर ेर् ल पवब्लवर्र् हाउस, मरे ि । ां ां 4. कलश्रेष्ठ .एस० पी० (२००७) र्वै क्षक तकव की के मल आधार, वि ोद पष्तक मवदर ,आर्रा । ु ू ु ां 5. www.n c e rt.nic.in 2.12 श बधात्मक‍प्रश्न ां 1. पाियिम के सप्रत्य से आप क्या समझते ह?ैं ् ां 2. पाियिम व माथण म ें विवर्न् सामावजक समहों की सहर्ावर्ता तर्ा असहर्ावर्ता बारे म ें विस्तत ृ ् ू रूप से िण थ कीवजए । 3. पाियिम व माथण प्रविया की विस्तत रूप से व्याख्या कीवजए । ृ ् 4. पाियिम का अर्थ एि दो पररर्ाषाए दते े हए पाियिम व माथण म ें राज्य की र्वमका का ु ् ् ू ां ां आधव क वर्क्षा पर क्या प्रर्ाि पड़ता ह?ै व्यख्या कीवजए । ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 126 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इकाई 3 - पाठ्यचर्ा तर्ा पाठ्यिम में सम्बन्ध, उदाहरणों सशहत पाठ्यिम को पाठ्यपुस्तकों में अनशु दत करने की प्रशिर्ा तर्ा तकनीक की समझ पाठ्य-शववरण को पाठ्य- पुस्तक में हस्तातां शरत करने की प्रशिर्ा की समझ Relationship between the Curriculum and Syllabus, Understanding the Process and Mechanism of Translating Syllabus in to Textbooks through Examples 3.1 प्रस्ताि ा 3.2 उद्दश्े य 3.3 पाियिम का अर्थ ् 3.4 पाियिम की पररर्ाषाए ् 3.5 पाियिम धारणा की विर्ेषताए ् ां 3.6 पाियिम का महत्त्ि ् 3.7 पाियिम के प्रकार ् 3.8 पाियिम के उद्दश्े य ् 3.9 पाियिम एि पाियचयाथ में समबन्ध और अतर ् ् ां ां 3.10 पाियिम व माथण के वसिात ् ां 3.11 पाियिम का विकास ् 3.12 पाियिम के विवर्न् उपार्म एि पाियिम का सर्ि ् ् ां ां 3.13 पािय वििरण को पािय पस्तक में रूपातररत कर े की प्रविया ् ् ु ां 3.14 सारार् ां 3.15 व बधात्मक प्रश्न ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 127 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.1 प्रस्तावना ा
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“The curriculum is the sum total of the Experience of the pupil that he recevies through the manfold activites that go in the school, in the classroom , in the laboratory , in the workshop, in the plyground and in the numerous informed contacts between the teacher and pupil”
वर्क्षा वकसी र्ी समाज के सामावजक एि आवर्थक विकास की कजी ह ै यह मा िीय जीि के ु ां ां प्रत्येक पक्ष को घरे ती ह।ै सावहत्य का स्तर मा ि विकास के स्तर पर र्हरा प्रर्ाि रखता ह।ै व्यवक्त के र्ौवतक तर्ा सास्कवतक आिश्कताओ को ध्या म ें रखते हए वर्क्षार्ात्री दर्े और काल की ु ृ ां ां सामावजक, आवर्थक, राजव वतक, और सास्कवतक पष्ठर्वम म ें वर्क्षा के लक्ष्य व रधाररत करते ह ै । ृ ृ ू ां वर्क्षक , वर्क्षार्ास्त्री द्वारा व रधाररत लक्ष्यों को पाियचया थ के माद्यम से मतथ रूप दते ा ह ै । ह े री ज्यो ् ू ओिो के र्ब्दों म ें “पाियचया थ िह साध ह ै वजसके द्वारा हम बच्चों को वर्क्षा के लक्ष्यो को प्राप्त कर े ् के योग्य ब ा े की आसा करते ह ै “ इस प्रकार पाियचया थ अध्यापक और वर्क्षार्lत्री के बीच एक ् कड़ी ह ै वर्क्षा के वहत म ें इस कड़ी का ब ा रह ा अव िायथ ह ै । 3.2‍उदश्य‍ े इस इकाई का अध्यय कर े के पश्चात आप - ् 1. पाियिम का अर्थ बता सकें र्े। ् 2. पाियिम की विर्ेषताए बता सकें र् े । ् ां 3. पाियिम के विवर्न् वसधान्तों से अिर्त हो सकें र् े । ् 4. पाियिम एि पािय वििरण में क्या अतर ह ै यह जा सकें र् े । ् ् ां ां 5. पािय-पस्तक के अर्थ एि पररर्ाषा से अिर्त हो सकें र् े । ् ु ां 6. पािय वििरण से पािय पस्तक म ें विषय िस्त हस्तातररत कर े की प्रविया को समझ सकें र् े । ् ् ु ु ां 7. पाियिम के वबवर्न् प्रकारों से परवचत हो सकें र् े । ् 3.3‍पाठ्यिम‍का‍अर्‍थ र्वै क्षक लक्ष्यों की प्रावप्त के साध के रूप म ें पाियिम का प्रयोर् वकया जाता ह ै –सामान्य र्ब्दों म ें ् वर्क्षा के उदश्े यों की प्रावप्त के वलए सव योवजत ब्यिस्र्ा की आिश्यकता होती ह ै । यह व्यिवस्र्त ु या सव योवजत व्यिस्र्ा ही पाियिम कहलाती ह ै । ् ु पाियिम का र्ावब्दक अर्थ -: पाियिम अग्रेजी र्ब्द करीकलम का वहदी रूपान्तर ह ै । करीकलम ् ् ू ु ां ां र्ब्द की उतपवत्त लेवि र्ाषा के र्ब्द कएरेर ( currere) से हई ह,ै वजसका अर् थ ह ै – दौड़ का मदै ा ( ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 128 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं race coure) । इस प्रकार पाियिम म ें स्पधाथ यिो लक्ष्य वसवध का र्ाि व वहत रहता ह ै । इस प्रकार ् ां हम कह सकते ह ै की पाियिम िह दौड़ का मदै ा ह ै वजस पर बालक लक्ष्य को प्राप्त कर े के वलए ् दौड़ता ह ै । पाियिम का और अवधक अर्थ स्पस्ि कर े के वलए हम ें पाियिम की पररर्ाषा का ् ् विश्लेषण कर ा आिश्यक ह।ै 3.4‍पाठ्यिम‍की‍पशरर्ाषाए ां क्रो व क्रो के अनसार- पाियचयाथ म ें वसख े िाले या बालक के ि े सर्ी अ र्ि व वहत होते ह ै , ् ु ु वजन्ह ें िह विद्यालय या उसके बहार प्राप्त करता ह ै । ये समस्त अ र्ि एक कायथिम म ें व वहत वकये ु जाते ह ै , जो उसके मा वसक , र्ारररक, सिेर्ात्मक, सामावजक , अध्यावत्मक एि ैवतक रूप से ां विकवसत हो े म ें सहायता देता ह ै । न्द्र्क्षा आयोर् “ विद्यालय के पयथिक्षे ण म ें उसके अन्दर तर्ा बहार अ ेक प्रकार के कायथ कलापों स े छात्रों को विवर्न् अध्यय – अ र्ि प्राप्त होते ह,ै हम विद्यालय पाियचयाथ की इ अध्यय – ् ु अ र्िों की सवमष्टी समझते ह”ै ु कन्द्नघम -“पाियचयाथ कलाकार (वर्क्षक) के हार् म ें एक यत्र ह,ै वजससे िह अप ी समग्री (वर्ष्य) को ् ां अप े आदर् थ (लक्ष्य) के अ सार अप े कलार्ह (विद्यालय) म ें मोड़ता ह।ैं ” ृ ु सी वी र्ड द्वारा सम्पावदत वर्क्षा कोष म ें पाियचयाथ की व म् वलवखत पररर्ाषाए दी र्यी ह–ै ् ु 1. अध्यय के वकसी प्रमख क्षेत्रों म ें उपावध प्राप्त कर े के वलए व धाथररत वकये र्ये िमबि विषयों ु अर्िा विषय समह को पाियचयाथ के ाम से अवर्वहत वकया जाता ह,ै उदारणार्थ – र्ारीररक ् ू वर्क्षा की पाियचयाथ, सामावजक अध्यय की पाियचयाथ । ् ् 2. वकसी परीक्षा को उतीण थ कर े अर्िा वकसी व्यािसावयक क्षेत्र म ें प्रिेर् के वलए वकसी विद्यालय द्वारा छात्रों के वलए प्रस्तत पाियिस्त की समग्र योज ा को पाियचयाथ कहते ह ैं । ् ् ु ु 3. व्यवक्त को समाज म ें समायोवजत कर े के उद्दश्े य से विद्यालय के व दर्े म ें व रधाररत र्वै क्षक अ र्िों का समह पाियचयाथ कहलाती ह।ै ् ु ू विवर् पररर्ाषा एि विचार पाियिम के उद्दश्े य एिम महत्त्ि को बताते ह ै । व म् वबन्दओ के माध्यम से ् ां ां ु पाियिम को और अवधक स्पष्ट वकया जा सकता ह-ै ्  पाियिम वर्क्षक एि विद्यार्ी के वलए एक साध के रूप म ें होता ह ै वजसका प्रयोर् कर ि े ् ां वर्क्षा के विवर्न् लक्ष्यों एिम उदश्े यों की प्रावप्त करते ह ैं । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 129 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  पाियिम के अतर्थत उ समस्त अ र्िों को र्ावमल वकया
जाता ह ै जो एक विद्यार्ी ् ु ां अवधर्म उदश्े यों के रूप म ें पाता ह ै पाियिम को के िल कक्षा वर्क्षण म ें सम्पावदत की जा े ् िाली कछ अवधर्म इकाईयों, विषयों तक वसवमत ही वकया जा सकता । ु सारार् के रूप म ें कहा जा सकता ह ै
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“ि े सर्ी प्रकार के अवधर्म अ र्ि चाह े िो पाियवियाए हों ् ु ां अर्िा पािय-सहर्ामी वियाए ँ विद्यालय द्वारा सचावलत की जाती हों वज का उद्दश्े य विद्यालय के पिथ ू ां व रधाररत उदश्े यों की प्रावप्त हो पाियिम कहलाता ह ै । ”
् एडर्र ब्रस िस्े ली १९५० े पाियिम को और अवधक स्पष्ट करते हए कहा वक – ु ् ु “The curriclum consist or the content and activities which are employed for the attainment of the objectives of particular school subject it consist of rocognised simplyfied and purposefully selected portion of information and experience. 3.5‍पाठ्यिम‍धारणा‍की‍शवनाशेषताएां वर्क्षण अवधर्म प्रविया म ें पाियिम का बहत ही महत्िपण थ स्र्ा ह ै । इसकी मख्य विर्ेषताए ु ् ू ु ां व म् वलवखत प्रकार से ह ै – i. पाियिम प्रधा आधार ह ै , जो सम्पण थ ज्ञा का कें ि वबद ह ै । ् ू ां ु ii. पाियिम म ें प्रयोर्, अभ्यास, वियाए, व्यािसावयक परीक्षण,ज्ञा की प्रावप्त र्ावमल ह ै । ् ां iii. यह सर्ी िस्तओ का व माथण ह ै जो अप ी कायथर्लै ी म ें सर्ी विद्यावर्थयों के चारों तरफ घमता ु ू ां ह ै । iv. पाियिम विषय िस्त का िमबि रूप ह ै जो विद्यावर्थयों की जरूरतों को परा करता ह ै । ् ु ू v. पाियिम अध्यापक के हार् म ें एक ऐसा ओजा
र होता ह ै वजससे अवधर्म उदश्े यों की पती की ् ू जाती ह।ै vi. इसम ें स्कल की सर्ी अर्थपणथ वियाए र्ावमल ह ैं जो वक योज ाबि, सर्वित और उपयोर्ी ू ू ां ां होती ह।ै vii. पाियिम म ें सम्पण थ अ र्ि र्ावमल होता ह ै ज
ो वर्क्षा के उदश्े यों की प्रावप्त हते स्कल द्वारा ् ू ु ु ू प्रयोर् वकया जाता ह।ै उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 130 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 1.6‍पाठ्यिम‍का‍महत्त्वना स्र्ा एि दर्े काल पररवस्तवर् के अ सार र्वै क्षक उदश्े यों म ें पररितथ होता रहता ह ै उ पररिवतथत र्वै क्षक ु ां उदश्े यों की प्रावप्त पाियिम से ही सर्ि ह ै । यह िाक्य ही अप े आप म ें पाियिम के महत्त्ि को दर्ाथता ह ै ् ् ां इस प्रकार पाियिम का महत्ि और बढ़ जाता ह ै । व म् वबन्दओ के पररप्रेक्ष्य म ें पाियिम का महत्त्ि ् ् ां ु दखे ा जा सकता ह-ै i. ज्ञान प्राप्ती हेत पाठयक्रम का महत्व - पाियिम विविध विषयों के ज्ञा की प्रावप्त के सार्- ् ् ु सार् वर्क्षा के विवर्न् क्षेत्रों में ज्ञा प्राप्त कर े के वलए विद्यावर्थयों की सहायता करता ह ै । ii. योजनाबर्द् अन्द्धर्म प्रदान करने हेत -पाियिम विद्यावर्थयों को व्यवक्तर्त अर्िा सामवहक ् ु ू रूप से योज ाबि तरीके से अवधर्म कर े हते विषयिस्त का प्रस्तवतकरण करता ह ै । ु ु ु iii. न्द्र्क्षा के उदेश्यों की प्रान्द्प्त के न्द्लए सहायक - पाियिम छात्रों एि वर्क्षक के द्वारा वर्क्षा ् ां के उदश्े यों की प्रावप्त कर े म ें सहायता प्रदा करता ह ै । iv. लोकतान्द्न्त्रक भावना का न्द्वकास - पाियिम के द्वारा विद्यावर्थयों म ें समा ता, सम्मा ् आवद लोकतावन्त्रक मलयों का विकास वकया जा सकता ह ै । ू v. न्द्र्क्षा में नये अनभवों को र्ान्द्मल करना- वर्क्षा व रतर चल े िाली एक प्रविया ह ै ु ां ।पाियिम वर्क्षा के स्िर्ाि का प्रवतवबम्ब ह ै । बदलते पररदृश्य म ें पाियिम वर्क्षा को ् ् र्त्यात्मकता प्रदा करता ह ै । 3.7‍पाठ्यिम‍के ‍प्रकार बदलते पररदृश्य म ें पाियिम को विवर्न् प्रकारों म ें िर्ीकत वकया जा सकता ह ै – ृ ् i. विषय के वन्ित पाियिम ् ii. बाल के वन्ित पाियिम ् iii. विया िवन्ित पाियिम ् iv. अ र्ि के वन्ित पाियिम ् ु v. उद्दश्े य के वन्ित पाियिम ् vi. एकीकत पाियिम ृ ् 3.8‍पाठ्यिम‍के ‍उद्दश्े य एक अच्छे
पाियिम म ें व म् वलवखत उद्दश्े य व वहत हो े चावहए – ् i. पाियिम का मख्य उदश्े य छात्रों का चहमखी विकास कर ा होता ह ै । ु ् ु ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 131 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ii. पाियिम का उद्दश्े य छात्रो की रूवच, योग्यताओ तर्ा क्षमताओ आवद का विकास कर ा होता ह ै । ् ां ां iii. पाियिम के द्वारा छात्रों म ें धमथ-व रपेक्षता एि प्रजातत्र की र्ाि ा को विकवसत कर े का लक्ष्य ् ां ां परा वकया जाता ह ै । ू iv. पाियिम क
ा उद्दश्े य छात्रो म ें सामावजक र्णों एि इमा दारी, सत्यता, सद्भाि का कर ा होता ह ै । ् ु ां v. पाियिम हमेर्ा ऐसा हो ा चावहए, वजससे छात्र अप े जीि के मलयों का व माथण कर ा स्िय ् ू ां सीख जाये । vi. पाियचयाथ के द्वारा छात्रों म ें अतव थवहत र्वक्तयों का पण थ विकास हो ा चावहए । ् ू ां vii. पाियचयाथ का मख्या उद्दश्े य अच्छे ार्ररकों का व माथण कर ा हो ा चावहए । ् ु 3.9‍पाठ्यिम‍एवनाां‍पाठ्यचया‍म‍सम्बन्ध‍और‍अांतर‍ ें िास्तविक पररवस्र्वतयों म ें कर्ी कर्ी पाियिम एि पाियचयाथ( syllabus) र्ब्दों का प्रयोर् भ्रम पैदा ् ् ां कर दते ा ह ै परन्त इ दो ों र्ब्दों म ें व्यापक अतर र्ी ह ै और सम्बन्ध र्ी ह,ै जहाँ तक दो ों र्ब्दों के बीच ु ां सम्बन्ध का विषय ह ै तो पाियिम का व माथण पाियचयाथ से पि थ हो जाता ह ै । पाियचयाथ पाियिम को ् ् ् ् ू उसके व माथण के उदश्े यों की प्रावप्त म ें एक साध के रूप म ें दखे ा जा सकता ह,ै दो ों ही र्ब्दों का महत्िपण थ कायथ वर्क्षा के उदश्े यों की प्रावप्त कर ा ह।ै वब ा पाियिम के पाियचयाथ का व माथण सर्ि हीं ् ् ू ां ह ै । इस प्रकार बारीकी से विश्लेषण कर े पर पाियचयाथ एि पाियिम म ें सम्बन्ध स्पष्ट होता ह ै । ् ् ां पाियिम एि पाियचयाथ म ें अतर इ दो ों र्ब्दों म ें व्यापक अतर र्ी ह।ै यह अतर विवर्न् वबन्दओ जसै े ् ् ां ां ां ां ां ु पाियिम के अर्थ, क्षेत्र, उदश्े यों के आधार पर हो सकता ह ै । व म् वलवखत वबन्दओ के माध्यम से अतर ् ां ां ु को स्पष्ट वकया जा रहा ह ै – अतर का आधार पाियिम पाियचयाथ या पािय-वििरण ् ् ् ां मल पाियिम एक लैवि र्ब्द ह।ै वसलेबस एक ग्रीक र्ब्द ह।ै ् ू अर्थ पाियिम एक दस्तािेज ह ै वक एक विषय पाियचयाथ समग्र सामग्री, एक वर्क्षा ् ् में र्ावमल अिधारणाओ के सर्ी वहस्स े प्रणाली या एक कोसथ म ें पढ़ाया जाता ह।ै ां र्ावमल ह।ै प्रत्यय यह अत्यत व्यापक एि िहद ह ै । यह पाियिम की तल ा म ें सकवचत ृ ् ु ु ां ां ां ् एि विवर्ष्ट ह।ै ां क्षेत्र पाियिम का क्षेत्र पािय एि सह पािय जबवक पािय वििरण का सम्बन्ध ् ् ् ् ां सामग्री दो ों स े सम्बवधत ह ै । विवर्न् इकाई ,उप इकाई एि वकसी ां ां विवर्ष्ट कक्षा के वकसी विवर्ष्ट विषय से होता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 132 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं अर् पाियिम के अतर्तथ पािय वििरण पािय वििरण पाियिम का एक अर् ् ् ् ् ां ां ां समावहत होता ह।ै (र्ार्) होता ह।ै उद्दश्े य इसका प्रमख उदश्े य र्ैवक्षक उदश्े यों की जबवक पािय वििरण इ उदश्े यों की ् ु प्रावप्त के वलए ियिस्र्ा, साध प्रदा पवतथ के वलए सहायता प्रदा करता ह।ै ू कर ा ह।ै द्वारा व धाथररत परीक्षा बोडथ सरकार या स्कल, कॉलेज या सस्र्ा के ू ां प्रर्ास । इसके अवतररक्त पाियिम और पाियचयाथ म ें और र्ी अतर व म् ह ै – ् ् ां पाियिम की अिधारणा पािय वििरण की तल ा म ें अवधक व्यापक ह ै । इसम ें विद्यार्ी हर प्रकार का ् ् ु अ र्ि प्राप्त करते ह ै । पाियिम के अतर्थत क्षेत्र एि प्रयोर् वबलकल स्पष्ट होता ह ै वजसके द्वारा मा ि ् ु ु ां ां ियिहार के विवर्न् आयामों का विकास वर्क्षण अवधर्म प्रविया के द्वारा वकया जाता ह ै जबवक स्पष्ट रूप से पािय वििरण का क्षेत्र, उदश्े य पाियिम की तल ा म ें सवक्षप्त होता ह ै । ् ् ु ां बौविक विषयों की समग्री को पािय िस्त या अतिस्थ त कहा जाता ह ै । कक्षा के वर्क्षण की सविधा के ् ु ु ु ां वलए जब हम इस विषय िस्त या पाियचयाथ को व्यिवस्र्त कर वलया जाता ह ै तो उसे हम पािय वििरण ् ् ु कह सकते ह ैं । रोबिथ दोत्तणे थ े पाियचयाथ तर्ा पािय वििरण के अतर को इस प्रकार स्पष्ट वकया ह-ै ् ् ां “वसलेबस विद्यालय िष थ के दोरा विवर्न् विषयों म ें वर्क्षक द्वारा छात्रों को वदए जा े िाले ज्ञा की मात्रा के विषय म ें व वश्चत जा कारी प्रस्तत करता ह,ै जबवक कररक्यलम यह प्रदवर्तथ करता ह ै वक वर्क्षक वकस ु ु प्रकार की र्ौवतक वियायों द्वारा वसलेबस की आिश्यकताओ की पवतथ करेर्ा । दसरे र्ब्दों म,ें वसलेबस ू ां ु वर्क्षण की पािय-िस्त का व धाथरण करता ह ै और कररक्यलम उसे द े े के वलए प्रयक्त विवध का ।” ् ु ु ु पाियिम और पाियचयाथ म ें जो मल अतर ह ै िह यह ह ै वक पाियचयाथ म ें वर्क्षा के उद्दश्े य, वकस प्रकार के ् ् ् ू ां विषय पढ़ाए जाए,ँ सामग्री च ाि कर े के क्या वसिान्त काम म ें लें, वर्क्षण विवध के कौ -से वसिान्त ु काम म ें लें, मलयाक के वलए कौ -से वसिान्त काम म ें लें और वकस प्रकार की सामग्री काम म ें लें ; ू ां इसके ऊपर कछ वदर्ा-व दर्े वलख े होते ह।ैं इन्ह ें आर् े कै से विस्ताररत करेंर्े, इसके कछ उदाहरण हो ु ु सकते ह।ैं इस दस्तािजे को पाियचयाथ कहते ह।ैं इसके आधार पर जब ज्यादा विस्तत दस्तािजे ब ाएर्ँ े ृ ् िह पाियिम होर्ा। मा लीवजए, आप े एक विषय वलया र्वणत। अब आप यह तय करते ह ैं वक र्वणत ् की पढ़ाई पाँच साल के बच्चे के वलए कहाँ से र्रू हो, पहले क्या पढ़ाए ँ और उसके बाद क्या पढ़ाए,ँ वफर ु आर् े क्या पढ़ाए।ँ पहली कक्षा म ें वर् ती कहाँ तक वसखाए ँ और दसरी म ें कहाँ तक पढ़ाए;ँ यह जो विस्तार ू और िम तर्ा सामग्री का काम ह;ै इसे पाियिम कहते ह।ैं यह मा ा जाता ह ै वक इसका विस्तार कर े का ् काम राज्यों या स्कलों का ह।ै ू र्ारत म ें जो वस्र्वत ह,ै िास्ति में, उसम ें ती र्ब्द काम म ें लेते ह।ैं पाियचयाथ की रूपरेखा जो सारे राष्र के ् वलए मल वसिान्तों का एक दस्तािजे ह ै और वजसम ें राज ैवतक और सामावजक सरोकार, वर्क्षा के ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 133 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं उद्दश्े य, लोकतत्र का वर्क्षा से ररश्ता आवद मोिी-मोिी बातें होती ह।ैं वफर हर राज्य को एक पाियचयाथ ् ां ब ा ी होती ह ै वक इस पाियचयाथ की रूपरेखा के आधार पर अब राजस्र्ा की क्या पाियचयाथ हो ी ् ् चावहए क्योंवक उ की कछ खास पररवस्र्वतयाँ हो सकती ह।ैं अर्ाथत पहले पाियचयाथ की रूपरेखा, वफर ् ् ु पाियचयाथ दस्तािजे और इसके बाद पाियचयाथ दस्तािजे के आधार पर पाियिम ब ाते ह।ैं वफर ् ् ् पाियचयाथ और पाियिम के आधार पर पाियपस्तक ब ाते ह ैं और वर्क्षक प्रवर्क्षण करते ह।ैं तब जाकर ् ् ् ु कक्षा म ें विवधित काम र्रू हो सकता ह।ै ु यह अलर् बात ह ै वक हम इस प्रविया को वकत ी छोिी कर दते े ह।ैं आजकल क्या कर रह े हैं, यह र्ी वर्न् बात ह।ै इस दृवष्ट से दखे ें तो ये ती ों अिधारणाए ँ बहत महत्िपण थ ह ैं और इ पर अच्छी चचाथ हो ी ु ू चावहए, वर्क्षकों को पता र्ी हो ा चावहए और अप ी योज ा म ें इसे काम म ें र्ी ले ा चावहए। 3.10‍पाठ्यिम‍श माण‍के ‍शसद्ातां ‍ पाियिम व माथण का प्रमख उद्दश्े य होता ह ै वक वर्क्षण अवधर्म के की उदश्े यों प्रावप्त पाियिम की ् ् ु सहायता से की जा सके । अत: उदश्े यों की प्रावप्त के पररप्रेक्ष्य म ें पाियिम व माथण के वसधान्तो पर विर्ेष ् ध्या द े े की आिश्यकता ह ै ।पाियिम व माथण के कछ महत्िपण थ वसिात इस प्रकार से ह ै – ् ु ू ां i. वियाओ पर आधाररत वसिात – ां ां ii. बाल के वन्ित वसिात ां iii. विया आधाररत वसिात ां iv. प्रेरणा का वसिात ां v. मा िीय सबधो के समझ का वसिात ां ां ां vi. सह-सम्बन्ध का वसिात ां vii. रुवच का वसिात ां viii. उपयोवर्ता का वसिात ां ix. आिश्यकता का वसिात ां x. व्यवक्तर्त विवर्न् ता का वसिात ां xi. समय एि अन्य ससाध ों की उपलब्धता का वसिात ां ां ां xii. लोच का वसिात ां xiii. अवधर्म क्षमता का वसिात ां xiv. सामदावयक सहर्ावर्ता का वसिात ु ां इ वसिातो का विस्तत वििरण व चे वदया जा रहा ह ै जो वक इस प्रकार से ह ै - ृ ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 134 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं i. बाल के न्द्न्ित न्द्सर्द्ात - पाियिम बाल के वन्ित हो ा चावहए जो बालक का सम्पण थ विकास कर ् ू ं सकें तर्ा वजसका व माथण बालक की आय, योग्यता, रूवच, क्षमता, मा वसक विकास एि पि थ ु ू ां अ र्िों को ध्या म ें रखकर वकया र्या हो। ु ii. न्द्क्रयाओ पर आधाररत – बच्चे प्राकवतक रूप स े सविय होते ह,ै िो हमर्े ा उ अवधर्म ृ ं व्यिहारों पर अवधक रुवच रखते ह ै जो वियाओ
के माध्यम से वकया जाता ह,ै कर के सीख ा इ के ां वलए आसा होता ह ै । इस प्रकार पाियिम के माध्यम से ऐसी विषय िस्त, प्रकरण रख े जाये जो ् ु छात्रों को अवधक से अवधक अिसर प्रदा कर सके । अत: पाियिम का व माथण वियाओ को ् ां ध्या म ें रख कर वकया जा ा चावहए । iii. प्रेरणा का न्द्सर्द्ात – वकसी पाियिम क
ा व माथण बाल म ोविज्ञा के विवर्न् वसिात, व यमो ् ं ां जसै े रुवच, क्षमता, अवर्प्रेरणा, योग्यता का ध्या रखकर हो ा चावहए । पाियिम ऐसा हो जो छात्रों ् को अवर्प्रेररत कर सकें । यवद पाियिम छात्रों को अवर्प्रेररत कर े म ें असफल होता ह ै तो िह ् अप े मल उदश्े यों को प्राप्त कर े म ें र्ी असफल हो जायेर्ा । ू iv. मानवीय सबधों की समझ का न्द्सर्द्ात – वर्क्षा का एक प्रमख उद्दश्े य मा िीय सबधों को ु ं ं ं ां ां ब ाये रख े से सम्बवधत कौर्लों एि दृवष्टकोण का विकास कर ा ह ै । अत: यह आिश्यक ह ै वक ां ां पाियिम म ें व्यिसावयक वियायों के सफलतापण थ सचाल के वलए मा िीय सबधों का ज्ञा हो ा ् ू ां ां ां आिश्यक ह ै । v. समन्वय का न्द्सर्द्ात – यह व तात आिश्यक ह ै वक पाियिम व माथण म ें समन्िय के वसिात का ् ं ां ां प्रयोर् वकया जाये ।पाियिम के सफलता पिकथ वर्क्षण के वलए यह आिश्यक ह ै वक इसमें विवर्न् ् ू विषयों जैसे अर्थर्ाश्त्र, र्वणत, सामावजक विज्ञा म ें सबधों को ध्या म ें रखकर पाियिम का ् ां ां ां विकास वकया जाये जो छात्रों के विकास म ें सहायक हो ।इस प्रकार एक विषय का सीधा सपकथ ां दसरे विषय से कर े की चेष्टा पाियिम म ें हो ी चावहए । ् ु vi. रुन्द्च का न्द्सर्द्ात – रुवच को सफलता की कजी कहा जा सकता ह ै या यँ कह ें की रूवच के द्वारा ु ू ं ां ध्या और अवर्प्रेरणा दो ों को बढाया जा सकता ह ै जो वकसी र्ी वर्क्षण अवधर्म प्रविया की सफलता का महत्िपण थ कारक हो सकता ह ै और यह स्िर्ाविक र्ी ह ै वक वजस र्ी विषय िस्त से ू ु छात्रों म ें रुवच उत्पन् हो छात्र उस पर विर्ेष ध्या दते े ह ैं अतः पाियिम म ें ऐसे विषय िस्त का ् ु अवधर्म अ र्ि, प्रकरण सम्मवलत कर ा चावहए जो छात्रों म ें रुवच के स्तर को बढ़ा सके । ु vii. उपयोन्द्र्ता का न्द्सर्द्ात – पाियिम के इस वसिात के अ सार के िल उ विषय िस्तओ, ् ु ु ं ां ां प्रकरण एि अवधर्म अ र्िों को र्ावमल वकया जा ा चावहए जो छात्रों के वलए उपयोर्ी हो । जसै े ु ां – दवै क वियाओ म ें उपयोर्ी , आवर्थक वियाओ के प्रयोर् से सम्बवधत कोश्लों के विकास से ां ां ां सम्बवधत तथ्यों को र्ी र्ावमल वकया जाये । उपयोवर्ता के वसिात के सम्बन्ध म ें कर् यह ह ै की ां ां साधारण म ष्य यह चाहता ह ै वक उसके बच्चे के िल ज्ञा के प्रदर् थ के वलए कछ व्यर्थ की बातें ु ु सीख ें ,बवलक समग्र रूप म ें िह यह चाहता ह ै वक उ को ि े बातें वसखाई जाए ँ , जो र्ािी जीि म ें उ के वलए उपयोर्ी हों । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 135 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं viii. आवश्यकता का न्द्सर्द्ात – ितथमा बदलते पररदृश्य म ें पाियिम का महत्त्ि और र्ी अवधक बढ़ ् ं र्या ह ै इसवलए पाियिम व माथण म ें बालक की ितथमा और र्विष्य दो ों आिश्यकताओ को ् ां ध्या म ें रखकर पाियिम का व माथण कर ा चावहए । वजसम े बालक की रुवच एक सफल उपर्ोक्ता, ् तावकथ क वचत को बढ़ा े िाले विषय िस्त और अवधर्म व्यिहार को सम्मवलत कर ा चावहए जो ु ां छात्रों की विवर्न् आिश्यकताओ की पवतथ कर सके । ू ां ix. व्यन्द्िर्त न्द्वन्द्भन्नता का न्द्सर्द्ात – जसै ा वक हम जा ते ह ैं और म ोिाज्ञाव क वसिात र्ी इस ं ां बात की पवष्ट करते ह ै वक स्िर्ाविक रूप से प्रत्येक बालक हर एक दसरे से योग्यता, क्षमता, रुवच, ु ु दृवष्टकोण, अवधर्म क्षमता एि अन्य विवर्न् सम्प्रत्यों पर एक दसरे से वर्न् होते ह ैं । अतः ां ु पाियिम व माथण करते समय हम े इ विवर्न् ताओ का र्ी ध्या रख ा चावहए । ् ां x. समय एव अन्य ससाधनों की उपलब्धता का न्द्सर्द्ात – पाियिम का व माथण करते समय इस ् ं ं ं बात पर विर्ेष ध्या द े ा चावहए वक वजस िर् थ या कक्षा के वलए पाियिम का व माथण वकया जा ् रहा ह ै और जहाँ पर इसका सचाल वकया जा रहा ह ै िहा पर उ के पास उवचत समय सारणी और ां ां अन्य ससाध ह ैं र्ी या हीं । इस बात का र्ी विर्षे ध्या रखा जा ा चावहए । ां xi. लोचर्ीलता का न्द्सर्द्ात – पाियिम विकास म ें लचीलेप के वसिात पर विर्षे ध्या द े ा ् ं ां चावहए, पाियिम ऐसा हो वजसम े ससाध ों एि समय के अ सार पररितथ वकया जा सके । िस्े ले ् ु ां ां एि रान्सकी (१९७३) वलखते ह ैं वक ां “curriculum may be regarded as a process and also as an ever changing product, it can be made and remade. It is of course a changing evolving procedure including contents and activities. The latter must inevitably differ from class to class and from students to students.” इसवलए पाियिम के व माथण एि सर्ि म ें लोचर्ीलता का पण थ ध्या रख ा चावहए वजससे समय ् ू ां ां समय पर पाियिम म ें यर्ा सर्ि पररमाज थ एि पररितथ वकया जा सके । ् ां ां xii. सामदान्द्यक जीवन से सम्बन्ध का न्द्सर्द्ात – यह वबलकल सत्य ह ै वक बालकों के विकास म ें ु ु ं समदाय की अत्यत र्वमका होती ह ै और बालक समदाय म ें उपलब्ध विवर्न् ससाध ों से अ ेक ु ू ु ां ां प्रकार के अवधर्म अ र्िों को सीखते ह ै तर्ा दसरी तरफ बालकों की र्वै क्षक वस्र्वत एि अवधर्म ु ां ू अ र्ि र्ी समदाय को प्रर्ावित करते ह ै ।अतः इसवलए पाियिम म ें सामदावयक जीि से ् ु ु ु सम्बवधत सबधों पर विर्षे ध्या द े ा चावहए । ां ां ां xiii. न्द्वकास की सतत प्रन्द्क्रया का न्द्सर्द्ात – िो ि िो के र्ब्दों म ें िज्ञै ाव क प्रर्वत, वि ं व्यािसावयक अिसर राष्रों के अवधक विस्तत अतसांबध, प्रर्वतर्ील आदर् थ और आकाक्षाए यह ृ ां ां ां ां मार् प्रस्तत करती ह ै वक वर्क्षा के वसिात और ियिहार का ज्ञा , कर्लता और दृवष्टकोण पर वदए ु ु ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 136 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं जा े िाले विवर्न् प्रकार के बलों के अ कल बताया जाये । इस कर् के अ सार पाियिम का ् ु ू ु यह स्िरूप विकासोन्मखी हो ा चावहए। ु उपरोक्त िवणथत वसिातो के अवतररक्त र्ी अन्य वसिात विवर्न् विद्वा ों द्वारा प्रवतपावदत वकये र्ये ां ां ह,ैं वजसम े आिश्यकता एि समय की मार् के अ रूप पररमावजतथ कर े के र्ी सझाि र्ी वदए र्ये ु ु ां ां ह।ैं 3.11‍पाठ्यिम‍का‍शवनाकास वकसी र्ी विषय म ें पाियिम के व माथण के वलए महत्िपण थ चरणों, सािधाव यों एि सोपा ो को ध्या में ् ू ां रख ा पड़ता ह ै । रालफ िाइलर (१९६९) े पाियिम व माथण के वलए मख्य रूप से चार सोपा बताये ह-ै ् ु i. उदश्े य को पररर्ावषत कर ा ii. उदश्े यों से सम्बवन्धत र्वै क्षक अ र्ि ु iii. इ अ र्िों को सकवलत तर्ा सर्वित कर ा ु ां ां iv. उदश्े यों का मलयाक कर ा ू ां 1. न्द्र्क्षण के उदेश्यों का न्द्नधाारण - पाियिम के विकास म ें सबसे महत्िपण थ कायथ होता ह ै वक ् ू सिप्रथ र्म यह व वश्चत कर वलया जाये वक वकसी विवर्ष्ट कक्षा स्तर के वलए वकस प्रकार के र्वै क्षक उदश्े यों को रख ा ह ै । इ उदेश्यों से छात्रों में वकस प्रकार के व्यिहाररक पररितथ आयेंर् े । क्या इससे बालक के समस्त र्णों, पक्षों जसै े वक ज्ञा ात्मक, र्ािात्मक एि वियात्मक पक्षों को ध्या म ें रखा र्या ु ां ह ै । इस प्रकार से पाियिम के विकास के वलए इ बातों का ध्या रख ा चावहए तावक एक अच्छे एि ् ां व योवजत पाियिम का व माथण वकया जा सके । ् 2. उदेश्यों के अनरूप न्द्वषय वस्त का चयन – इस स्तर पर पि थ व रधाररत उदश्े यों के अ रूप यह प्रयास ु ु ू ु हो ा चावहए वक ऐसे प्रकरण, विषय िस्त एि अवधर्म अ र्ि का चय वकया जाये वजससे इ उदश्े यों ु ु ां की प्रावप्त म ें सहायता वमल सके । 3. न्द्वन्द्भन्न न्द्वषय वस्तओ का सर्ठन – विषय िस्त, प्रकरण एि अवधर्म अ र्िों के व धाथरण के ु ु ु ं ं ां बाद सबसे महत्िपण थ कदम इ का सर्ि वजसम े इस बात का विर्षे ध्या वदया जाता ह ै वक छात्रों के ू ां स्तर, विषय कस्त का स्तर, िम, इकाई आवद का आयोज म ोिज्ञै ाव क वसधातोके अ रूप हो सकें । ू ु ां 4. पाठयक्रम को लार् करने हेत उन्द्चत न्द्दर्ा-न्द्नदेर् – पाियिम विकास का कायथ यही समाप्त ही हो ् ् ु ु जाता, पाियिम म ें िवणथत विवर्न् विषय िस्त की प्रकवत के अ सार सरलता पिकथ अवधर्म कायथ ृ ् ु ु ू कर े के वलए वर्क्षण विवधयों एि प्रविवधयों से सम्बवधत एि मार्दथ र् थ आिश्यक होता ह ै । ां ां ां 5. मल्याकन की न्द्वन्द्भन्न न्द्वन्द्धयााँ एव तकनीकें – एक अच्छे पाियिम की यह विर्षे ता हो ी चावहए ् ू ं ं वक पाियिम म ें िवणतथ विवर्न् विषय िस्त एि पि थ व रधाररत उदश्े यों के मलयाक हते उपयक्त ् ु ू ु ु ु ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 137 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं मलयाक प्रविवधयों का सझाि वदया जाये, वजसम े विषय का मलयाक वकस प्रकार कर ा ह ै ? कै से ु ु ू ां परीक्षणों का प्रयोर् वकया जाये इत्यावद बातें सम्मवलत हों । 3.12‍पाठ्यिम‍श माण‍के ‍शवनाशर्न्न‍उपागम‍एवनाां‍पाठ्यिम‍का‍सगां ठ प्रस्ताि ा – पाियिम के विकास म ें चयव त प्रकरण, विषय िस्त, अवधर्म अ र्ि का आयोज उवचत ् ु ु रूप से वकया जाये तो अवधर्म अ र्ि प्रदा कर े म ें सरलता होर्ी िस्े ली (१९९५) े इस सम्बन्ध म ें ु वलखा ह ै वक-
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“A good organization is one that faithfully include the material which have been selected as socially desirable and so arrange as to facilitate learning.”
पाियिम के सर्ि म ें कछ महत्िपण थ उपार्मो का प्रयोर् वकया जा सकता ह ै – ् ु ू ां 1. सामान्द्यक उपार्म (Topical Approach) - िसै े इस उपार्म का कई अर्ों म ें प्रयोर् वकया जाता ह ै । वजसम े विवर्न् ऐसे प्रकरण रख े जाये जो सामवयक हों तर्ा यवद एक बार वकसी विषय िस्त का च ाि वकसी कक्षा या श्रेणी के वलए हो जाये तो प ः यह प्रयास कर ा ु ु ु चावहए वक उपयथक्त विषय िस्त उच्चतम एि व म् तम स्तर की कक्षा या श्रेणी म ें हो । ु ु ां उदहारण के वलए अर्र हम िावणज्य विषय म ें कक्षा ११ के अतर्तथ व्यवक्तर्त खाता को विषय ां िस्त के रूप म ें रखते ह ैं तो हम े प्रयास कर ा चावहए वक कक्षा के स्तर के अ रूप उस विषय ु ु िस्त से सम्बवधत कोई र्ी विषय सामग्री की प रािवत हो । िसै े तो प्रत्येक उपार्म का ृ ु ु ां पाियिम के विकास एि सर्ि म ें महत्िपण थ योर्दा होता ह ै ।परन्त सामावयक उपार्म से ् ू ु ां ां अध्यापक और विद्यावर्थयों को व म् प्रकार से लार् प्राप्त होता ह ै –  अध्यापक विषय िस्त के कवि ाई स्तर के अ सार उच्चतम श्रेणी एि न्य तम श्रेणी में ु ु ू ां अवधर्म अ र्ि करा सकता ह ै । ु  के िल ितथमा पाियिम म ें सवम्मवलत विषय की चचा थ कर र्षे को उच्चतम श्रेणी की ् कक्षा म ें चचाथ के वलए रखा जा सकता ह ै । इसके अवतररक्त जब हम इस उपार्म का व्यािहाररक रूप से प्रयोर् करते ह ै तो इसकी कछ ु सीमाए एि दोष र्ी वदखाई पड़ते ह ैं जो इस प्रकार से ह ैं – ां ां  यह वबलकल सत्य ह ै वक कछ प्रकरण अन्य प्रकरणों से सरल एि कछ कवि होते ह ै । ु ु ु ां अतः कक्षा के स्तर के अ सार हम े इ का च ाि कर ा चावहए । ु ु  इस उपार्म के प्रयोर् से यह कवि ह ै वक हम छात्रों के िातािरण एि व्यािहाररक ां जीि के अ सार पाियिम कर सकें । ् ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 138 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 2. Concentric or Spiral Approach- कासवन्त्रक उपार्म िोवपकल उपार्म के प्रवतकल चलती ह ै । ू ां इस उपार्म म ें हम प्रकरण को सम्पण थ रूप से र्ावमल ही कर सकते ह ै बवलक इसम ें इस बात का विर्षे ू ध्या वदया जाता ह ै वक छोिे स्तर की कक्षाओ म ें सरल विषय िस्त रखी जाये एि उच्च स्तर की ु ां ां कक्षाओ म ें कवि । इसम ें पाियिम व माथण एि सर्ि करते समय छात्रों की र्वै क्षक एि मा वसक ् ां ां ां ां वस्र्वत को ध्या म ें रखा जाता ह ै , इस उपार्म को स्पाइरल अर्ाथत सवपथलाकार उपार्म के ाम से र्ी जा ा जाता ह ै । उपरोक्त तथ्यों से कोन्सवन्त्रक उपार्म की प्रकवत का स्पष्ट पता चलता ह ै वजससे वकसी विवर्ष्ट कक्षा या ृ श्रेणी म ें विषय िस्त की र्रुआत अत्यत न्य तम स्तर से की जा ी चावहए । तदोपरात कवि ाई स्तर एि ु ु ू ां ां ां उच्चतम स्तर तक इस उपार्म म ें प्रत्येक प्रकरण या इकाई को अत्यत छोिे स े छोिे तर्ा अ ेक उप ां इकाइयों म ें विर्ावजत वकया जा सकता ह ै और इ उप इकाइयों को कवि ाई स्तर के अ सार विर्ावजत ु वकया जा सकता ह ै 3. इकाई उपार्म (Unit Approach) - पाियिम के सर्ि के वलए इकाई उपार्म का प्रयोर् र्ी ् ां वकया जा सकता ह ै । इकाई को पररर्ावषत करते हए Quillen and Hanng (1961) े वलखा ह,ै ु
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“ A unit refers to material organized around a common principle, process, culture or area of living and directed toward the achievement of significant outcome thus giving unity to learning experiences.”
इस प्रकार पाियिम म ें वकसी विवर्ष्ट कक्षा के वलए चयव त सामग्री का इस प्रकार सर्ि कर ा ् ां चावहए वजसम े प्रत्येक इकाई का एक दसरे से सम्बन्ध हो तर्ा उस इकाई के सर्ि म ें छात्रों की र्वै क्षक ां ु वस्र्वत, रुवच एि मा वसक स्तर का ध्या रखा र्या हो । इस प्रकार हम पाियिम के सर्ि म ें इकाई ् ां ां उपार्म का प्रयोर् कर सकते ह ैं । वकसी विवर्ष्ट कक्षा या िर् थ के वलए पाियिम के विकास में विवर्न् विषय िस्तओ, अवधर्म सामग्री ् ु ां एि अवधर्म अ र्िों के सर्ि का कायथ बहत कछ पाियिम विकास के समय उपलब्ध पररवस्र्वतयों ु ् ु ु ां ां का सही विश्लेष्ण तर्ा
पाियिम के विवर्न् उपार्मो का कोर्ल के सार् पाियिम के सर्ि म ें ् ् ां प्रयोर् वकया जा ा चावहए । इ उपार्मो को पाियिम की आिश्यकता के अ सार उपार्मो के र्ण एि ् ु ु ां दोषों का विश्लेषण कर इसका प्रयोर् कर ा चावहए । इस प्रकार एक अच्छे पाियिम क
ा व माथण इ ् उपार्मो की सहायता से वकया जा सकता ह ै । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 139 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 3.13‍ पाठ्य‍शवनावनारण‍ को‍ पाठ्य‍ पुस्तक‍ म‍ रूपाांतशरत‍ कर े‍ की‍ प्रशिया‍ ‍‍ ें Understanding‍the‍Process and Mechanism of Translating‍syllabus‍ in‍to‍Textbook‍ ‍through‍Example‍ अब तक हम े पाियिम, पािय वििरण के अर्थ, उदश्े य, महत्त्ि, वसिात, अतर एि सम्बन्ध के बारे म ें ् ् ां ां ां अध्यय वकया । सक्षेप म ें पाियिम व माथण के विवर्न् वसधान्तो का प्रयोर् कर के ही पािय वििरण को ् ् ां पाियपस्तक म ें रूपातररत वकया जाता ह ै । इस अध्याय म ें हम पािय वििरण को पािय पस्तक म ें विवर्न् ् ् ् ु ु ां र्क्षै वणक वबन्दओ,अवधर्म अ र्िों, वर्क्षण विवधयों, पािय पस्तक का अर्थ, उसका विकास, पािय ् ् ु ु ां ु पस्तक का मलयाक , पािय पस्तक म ें सम्मवलत की जा े िाली विषय िस्त को र्ावमल कर े हते अर्िा ् ु ु ु ु ु ां पािय वििरण से पाियपस्तक म ें रूपातररत की जा े िाली विषय िस्त को वक वक वसधान्तों एि ् ् ु ु ां ां आयामों का ध्या रख ा चावहए इसका अध्यय करेंर् े -
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“A good textbook written by a quqlified and competent specialist in the subject and produced with due regard to quality of priting, illustration and general get-up, stimulates the pupil’s interest and helps the teacher concidrably in his work.”
i. पािय पस्तक का अर्थ - पािय पस्तक र्ब्द ऐसे मवित अवधर्म सामग्री को प्रस्तत करता ह ै वजसको ् ् ु ु ु ु एक प्रमख वर्क्षण अवधर्म सामग्री के रूप म ें र्ावमल वकया जाता ह।ै जो वकसी वर्क्षा बोडथ द्वारा ु वकसी विवर्ष्ट कक्षा के वलए तयार की जाती ह ै । पािय पस्तक वर्क्षक तर्ा छात्र दो ों की ही वर्क्षण ् ु प्रविया म ें मदद करती ह ै । बेक े पािय पस्तक का अर् थ स्पष्ट करते हए कहा वक पािय पस्तक ु ् ् ु ु कक्षा कक्ष के वलए व रधाररत की र्यी मवित विषय सामग्री ह ै वजसको पस्तक का ाम वदया जाता ह।ै ु ु पाठय पस्तक की पररभाषाए ् ु ं  लेंर् के अ सार,
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“पािय-पस्तक वकसी अध्यय की प्रमख र्ाखा के वलए एक मा क पस्तक ् ु ु ु ु ह”
ै ।  हाल कयस्त्त के अ सार,
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“पािय-पस्तक अ दर्े ीय अवर्प्रायों के वलए व्यिवस्र्त वकया र्या ् ु ु ु ु एक प्रजातीय वचत का अवर्लेख ह ै ।”
ां  Encyclopadia of Education Research के अ सार,
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“आधव क तर्ा प्रचवलत अर्थ म ें ु ु पािय पस्तक वसख े िाला साध ह,ै वजसका प्रयोर् विद्यालयों तर्ा कालेजों म ें अ दर्े ् ु ु कायथिम को पररपररत कर े के वलए वकया जाता ह ै । सामान्य अर्थ म ें पािय पस्तक मवित होती ् ू ु ु ह,ै इसकी वजलद मजबत होती ह,ै यह अ दर्े अवर्प्राय से प्रयक्त की जाती ह ै और इसको ू ु ु वसख े िालों के हार्ों म ें सोंपा जाता ह ै ।”
उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 140 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  American Text-book Publishers Institute के अ सार
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“पािय पस्तक विद्यालय या ् ु ु कक्षा हते छात्र तर्ा वर्क्षक के प्रयोर् के वलए विर्ेष रूप से तैयार की जाती ह,ै वजसम े एकाकी ु विषय या घव र्त रूप से सम्बवधत विषयों की पािय िस्त को प्रस्तत वकया जाता ह ै ।”
् ु ु ां पाठय पस्तक की आवश्यकता एव महत्त्व ् ु ं ितथमा समय म ें पािय पस्तक का महत्त्ि वकसी र्ी कक्षा के वलए एक महत्िपण थ अवधर्म समग्री के रूप ् ु ू म ें होता ह।ै विवर्ष्ट कक्षा म ें क्या पढ़ाया जायेर्ा िो सब कछ उस पािय पस्तक म ें मवित होता ह ै । वर्क्षक ् ु ु ु अप ी पाि योज ा, प्रयोर्ात्मक कायथ, र्ह काय थ पस्तक से ही तैयार करता ह ै । वर्क्षण अवधर्म प्रविया ृ ु के समस्त पक्ष चाह े िो वर्क्षक, वर्क्षार्ी अर्िा मलयाक की प्रविया हो, समस्त एक अच्छी पािय ् ू ां पस्तक के आर्ाि म ें बेकार हो जाती ह ै । प्रोफे सर वकवत्तर् े पािय पस्तक के महत्त्ि का िण थ करते हए ु ् ु ु ां वलखा ह,ै
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“पािय पस्तक वर्क्षण समग्री का आधा अर् ह ै ।”
पस्तक वर्क्षक का महत्त्ि पण थ साध ह ै ् ु ु ू ां वजसके द्वारा िो छात्रों को ज्ञा अज थ कराता ह ै । इकाई की पण थ तयारी के वलए पािय पस्तक अत्यत ् ू ु ां आिश्यक ह ै । हले आर डर्लस े पािय पस्तक के महत्त्ि को इस प्रकार प्रदवर्तथ वकया ह,ै
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“वर्क्षको के ् ु बहमत े अवतम विश्लेषण के आधार पर पािय पस्तकों को ि े ‘क्या और वकस प्रकार पढ़ाएर् े ’ की ु ् ु ां ां आधारवर्ला बताया ह ै ।”
प्रोफे सर Bart तर्ा Burton े पािय पस्तक के विषय म ें कहा ह ै वक,
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“सयकत राज्य अमरे रका म ें पािय ् ् ु ुां पस्तक एक महत्िपण थ र्ैवक्षक साध ह ै ।”
ु ू इसके अवतररक्त पािय पस्तक के महत्त्ि को व म् वबन्दओ के रूप म ें र्ी दखे ा जा सकता ह ै – ् ु ां ु i. वर्क्षक एि
छात्रों को अप े कायथ के प्रवत जार्रूक कर े के वलए । ां ii. विषय की सीमा एि विस्तार से अिर्त कर े के वलए । ां iii. वर्क्षण प्रविया म ें सधार ला े के वलए । ु iv. छात्रों को स्िास्थ्य के वलए प्रेररत कर े के वलए । v. प्राप्त
ज्ञा को स्र्ाई ब ा े के वलए । vi. र्ह कायथ को सर्मता पण थ कर े म ें सहायता द े े के वलए । ृ ु ू vii. कक्षा वर्क्षण के वलए आधार । viii. सम्पण थ पािय-सामग्री को इकाईओ म ें बाँि े के वलए । ् ू ां ix. अध्यापकों एि छात्रों के मार्दथ र् थ के वलए । ां x. वर्क्षा म ें जार्रूकता ले के वलए । xi. सवचत ज्ञा एि अ र्िों को ई पीढ़ी को हस्तातररत कर े के वलए । ु ां ां ां xii. छात्रों की मोवलक वचत र्वक्त एि रच ात्मक र्वक्तयों को पष्ठर्वम प्रदा कर े के वलए । ृ ू ां ां xiii. हर समय उपलब्ध हो े से अध्यय के वलए प्रेरणा । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 141 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं xiv. कम मलय पर समस्त अध्यय सामग्री एक ही स्र्ा पर और िह र्ी िमबि रूप म ें उपलब्ध ू कर े के वलए । पाठय पस्तक के काया ् ु i. पािय पस्तक मवित सामग्री के रूप म ें वर्क्षक की सहायता करती ह ै । ् ु ु ii. पािय पस्तक विषय िस्त को एक सरवचत रूप प्रदा करती ह ै । ् ु ु ां iii. पािय पस्तक अ दर्े ात्मक उदश्े यों के वलए अ परक का कायथ करती ह ै । ् ु ु ु ू iv. पािय पस्तक वर्क्षक के वलए एक महत्त्िपण थ उपकरण ह ै । ् ु ू v. पािय पस्तक एक स्ि अवधर्म सामग्री के रूप म ें कायथ करती ह ै । ् ु vi. पािय पस्तक एक तावकथ क एि विस्तत वििरण प्रस्तत करती ह ै । ृ ् ु ु ां vii. पािय पस्तक एक प्रोयोर्र्ाला के रूप म ें कायथ करती ह ै । ् ु viii. पािय पस्तक र्वै क्षक अन्तः विया को बढ़ाती ह ै । ् ु पाठय न्द्ववरण को पाठय पस्तक में रूपातररत करने की प्रन्द्क्रया ् ् ु ं एक अच्छी पािय पस्तक के विकास के वलए पाियिम व माथण के विवर्न् वसधान्तो, उपार्मो,आयामों ् ् ु एि अच्छी पािय पस्तक की विर्षे ताओ को ध्या म ें रखा जाता ह,ै तावक एक अच्छी पािय पस्तक का ् ् ु ु ां ां विकास या व माथण वकया जा सके । उदहारण के रूप म ें यवद सामावजक-विज्ञा विषय की पािय पस्तक ् ु का विकास कर ा हो तो हम े सामावजक-विज्ञा विषय के विवर्न् महत्िपण थ वबन्दओ, सहायक सामग्री, ू ां ु छात्रों की रुवच एि उ की व्यवकतर्त विवर्न् ता, सामावजक-विज्ञा विषय का उदश्े य आवद बातों का ां ध्या रखकर पािय वििरण को पािय पस्तक म ें रूपातररत या हस्तातररत कर ा चावहए । एक पािय ् ् ् ु ां ां पस्तक म ें मख्य रूप से दो तरह की विर्षे ताए होती ह ै । वजसम े पहली होती ह ै अकादवमक (academic) ु ु ां और र्ौवतक (physical) । अकादवमक के अतर्तथ विषय िस्त का चय , विषय िस्त का सर्ि , विषय ु ु ां ां िस्त का प्रस्तवतकरण, र्ाषा-सप्रेषण, अभ्यास कायथ आवद को सम्मवलत वकया जाता ह ै और समय, ु ु ां मलय,स्र्ा आवद विर्षे ताए पािय पस्तक की र्ौवतक विर्षे ताओ के अतर्तथ आती ह ै । उदहारण के ् ू ु ां ां ां रूप म ें आइये पािय चयाथ से पाियपस्तक ब ा े की प्रविया एि पाियिम तर्ा पािय चयाथ म ें अतर को ् ् ् ् ु ां ां व्यािहाररक रूप से समझते ह ैं – पाियिम और पाियचयाथ म ें जो मल अतर ह ै िह यह ह ै वक पाियचयाथ म ें वर्क्षा के उद्दश्े य, वकस प्रकार के ् ् ् ू ां विषय पढ़ाए जाए,ँ सामग्री च ाि कर े के क्या वसिान्त काम म ें लें, वर्क्षण विवध के कौ -से वसिान्त ु काम म ें लें, मलयाक के वलए कौ -से वसिान्त काम म ें लें और वकस प्रकार की सामग्री काम म ें लें ; ू ां इसके ऊपर कछ वदर्ा-व दर्े वलख े होते ह।ैं इन्ह ें आर् े कै से विस्ताररत करेंर्े, इसके कछ उदाहरण हो ु ु सकते ह।ैं इस दस्तािजे को पाियचयाथ कहते ह।ैं इसके आधार पर जब ज्यादा विस्तत दस्तािजे ब ाएर्ँ े ृ ् िह पाियिम होर्ा। मा लीवजए, आप े एक विषय वलया र्वणत। अब आप यह तय करते ह ैं वक र्वणत ् उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 142 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं की पढ़ाई पाँच साल के बच्चे के वलए कहाँ से र्रू हो, पहले क्या पढ़ाए ँ और उसके बाद क्या पढ़ाए,ँ वफर ु आर् े क्या पढ़ाए।ँ पहली कक्षा म ें वर् ती कहाँ तक वसखाए ँ और दसरी म ें कहाँ तक पढ़ाए;ँ यह जो विस्तार ू और िम तर्ा सामग्री का काम ह;ै इसे पाियिम कहते ह।ैं यह मा ा जाता ह ै वक इसका विस्तार कर े का ् काम राज्यों या स्कलों का ह।ै ू र्ारत म ें जो वस्र्वत ह,ै िास्ति में, उसम ें ती र्ब्द काम म ें लेते ह।ैं पाियचयाथ की रूपरेखा जो सारे राष्र के ् वलए मल वसिान्तों का एक दस्तािजे ह ै और वजसम ें राज ैवतक और सामावजक सरोकार, वर्क्षा के ू उद्दश्े य, लोकतत्र का वर्क्षा से ररश्ता आवद मोिी-मोिी बातें होती ह।ैं वफर हर राज्य को एक पाियचयाथ ् ां ब ा ी होती ह ै वक इस पाियचयाथ की रूपरेखा के आधार पर अब राजस्र्ा की क्या पाियचयाथ हो ी ् ् चावहए क्योंवक उ की कछ खास पररवस्र्वतयाँ हो सकती ह।ैं अर्ाथत पहले पाियचयाथ की रूपरेखा, वफर ् ् ु पाियचयाथ दस्तािजे और इसके बाद पाियचयाथ दस्तािजे के आधार पर पाियिम ब ाते ह।ैं वफर ् ् ् पाियचयाथ और पाियिम के आधार पर पाियपस्तक ब ाते ह ैं और वर्क्षक प्रवर्क्षण करते ह।ैं तब जाकर ् ् ् ु कक्षा म ें विवधित काम र्रू हो सकता ह।ै ु यह अलर् बात ह ै वक हम इस प्रविया को वकत ी छोिी कर दते े ह।ैं आजकल कर क्या कर रह े हैं, यह र्ी वर्न् बात ह।ै इस दृवष्ट से दखे ें तो ये ती ों अिधारणाए ँ बहत महत्िपण थ ह ैं और इ पर अच्छी चचाथ ु ू हो ी चावहए, वर्क्षकों को पता र्ी हो ा चावहए और अप ी योज ा म ें इसे काम म ें र्ी ले ा चावहए। पाठय पस्तक का न्द्वकास एक पाठय पस्तक के न्द्वकास के न्द्लए उपयाि वन्द्णात न्द्वन्द्भन्न ् ् ु ु ु न्द्वर्ेषताओ को ध्यान में रखकर करना चान्द्हए- ं i. पाठय पस्तक न्द्वकास के न्द्लए लेखक कताा का चयन- वकसी र्ी विषय पर पािय पस्तक के ् ् ु ु विकास के वलए ऐसे लेखक का चय कर ा चावहए जो उस विषय म ें अ र्िी तर्ा दक्ष हो । ु वजसके पास उस विषय से सम्बवधत तात्कावलक हए अ सधा ों, विकवसत ये सम्प्रत्यो, वर्क्षण ु ु ां ां विवधयों का ज्ञा हो । इसके अवतररक्त र्ाषा, सम्प्रेषण एि लेख कौर्ल की योग्यता हो । ां ii. पवा न्द्नधााररत पाठयक्रम पर आधाररत- पािय पस्तक व वश्चत रूप से पि थ व रधाररत वर्क्षा बोडथ ् ् ू ु ू द्वारा पािय वििरण के आधार पर विकवसत हो ी चावहए । ् iii. न्द्वषय सामग्री का उन्द्चत समावेर्न एव चयन - पािय वििरण से पािय पस्तक म ें विषय िस्त ् ् ु ु ं के समािेर् पर इस बात का ध्या द े ा चावहए वक िह विषय िस्त सार्थक हो, पाियिम को पणथ ् ु ू कर रही हो, पयाथप्त हो, समवे कत हो तर्ा विषय िस्त दवै क जीि से सम्बवधत हो । क्यकी विषय ु ु ां िस्त वकसी र्ी पस्तक की आत्मा एि जीि रेखा के रूप म ें होती ह ै । इसके अवतररक्त एक लेखक ु ु ां को पािय वििरण से पािय पस्तक म ें पािय वििरण के अ सार विषय िस्त का चय करते समय ् ् ् ु ु ु व म् वबन्दओ को र्ी ध्या म ें रख ा चावहए – ां ु  विषय िस्त ऐसी हो ी चावहए जो कक्षा के विद्यावर्थओ की योग्यता, क्षमता के अ सार ु ु ां अ कल हो । ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 143 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  विषय िस्त म ें इस बात का पयाथप्त प्रािधा हो वक छात्र अप ी योग्यता एि क्षमता के ु ां अ सार वसख सकें । ु  विषय िस्त म ें अत्त्याधव क वर्क्षण विवधयाँ, िाचार आवद का उवचत समािेर् हो । ु ु  पािय पस्तक म ें उवचत उदहारण, वचत्रमय प्रदर् थ , मपै , daigram के सार्–सार् श्रव्य-दृश्य ् ु सामवग्रयों के प्रयोर् हते सझाि हो ा चावहए । ु ु  पािय पस्तक म ें आिश्यक सझाि एि व देर् हो ा चावहए वक प्रयोर्र्ालाओ का प्रयोर् ् ु ु ां ां कै से और कब कर ा ह?ै  पािय पस्तक म ें प्रत्येक अध्याय के अत म ें उस विषय से सम्बवधत अभ्यास प्रश्न एि ् ु ां ां ां मलयाक के प्रश्न हो े वचवहए । ू ां न्द्वषय सामग्री का सर्ठन एव एकीकरण - पािय पस्तक लेखक कताथ को इस बात का ध्या रख ा ् ु ं ं चावहए वक िह विषय िस्त को उवचत इकाइयों एि अध्यायों म ें िर्ीकत करें, सार् ही सार् विषय िस्त को ृ ु ु ां विवर्न् पैराग्राफ म ें र्ी िर्ीकत करें । ृ  पस्तक लेखक को विषय सामग्री का िर्ीकरण करते समय म ोिज्ञै ाव क उपार्मो का प्रयोर् कर ा ु वचवहए , सार् ही सार् इस बात का ध्या रख ा चावहए वक अध्याय, इकाई और विषय िस्त के ु बीच उवचत सह सम्बन्ध एि एकीकरण हों । ां  विषय िस्त के प्रकरण इस प्रकार व योवजत वकये जाए ँ वजसम े वर्क्षण सत्रों जसै े – सरल से कवि , ु ू मतथ से अमतथ आवद का समािेर् वकया जा सके । ू ू  विषय िस्त के सर्ि म ें लेखक को इस बात का ध्या रख ा चावहए वक िह विषय िस्त के ु ु ां आयोज म ें पाियिम व माथण के विवर्न् उपार्मो का प्रयोर् कर रहा ह ै । ् न्द्वषय वस्त का प्रस्तन्द्तकरण -लेखक कताथ को पािय चयाथ के अ सार पस्तक का विकास करते समय ् ु ु ु ु विषय का प्रस्तवतकरण करते समय इस प्रकार प्रस्तवतकरण कर ा चावहए वक विषय िस्त विद्यावर्थयों को ु ु ु आकवषतथ , अवर्प्रेररत कर सके , सार् ही सार् लेखक कताथ को इस बात का ध्या रख ा चावहए वक विषय िस्त का प्रस्तवतकरण इस प्रकार वकया जाये वजससे विद्यावर्थयों म ें रुवच अत तक ब ी रह े । ु ु ां र्ान्द्ब्दक सम्प्रेषण और भाषा- एक अच्छी पस्तक हमर्े ा से ही एक अच्छे सम्प्रेषण कताथ के रूप में ु जा ी जाती ह ै । इसवलए लेखक कताथ को चावहए वक िो उवचत र्ब्दािली एि र्ाषा का प्रयोर् ां विद्यावर्थयों की रुवच एि उ के मा वसक स्तर को ध्या म ें रखकर के करे । इसके अवतररक्त लेखक कताथ ां को सवक्षप्त एि साधारण िाकया, मात्रात्मक त्रिी एि व्याकरण सम्बन्धी दोषों पस्तक म ें हो, इस बात पर ु ु ां ां ां विर्ेष ध्या द े ा चावहए । उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 144 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं  पस्तक की र्ाषा सरल हो ी चावहए तावक विद्यार्ी इसको समझ सकें । ु अन्द्धर्म के अनसार अभ्यास एव प्रोजेक्ट काया – लेखक कताथ को पस्तक म ें िवणतथ विषय सामग्री के ु ु ं अ सार पयाथप्त मात्रा म ें अभ्यास एि प्रोजक्े ि कायथ का समािर्े कर ा चावहए । इसके अवतररक्त लेखक ु ां कताथ को र्ौवतक विर्ेषताओ के अतर्तथ पस्तक का आकर, मलय, सन्दर्,थ पेपर आवद पर र्ी ध्या द े ा ु ू ां ां चावहए । 3.14‍साराांश वर्क्षा मा ि विकास का मल साध ह ै । वर्क्षा का प्रमख उदश्े य बालक का सम्पण थ विकास कर ा होता ू ु ू ह ै । प्राची काल स े ही वर्क्षा र्ास्त्री बालक के सम्पण थ विकास हते पाियिम एि र्वै क्षक उदश्े यों का ् ू ु ां व धाथरण करते आ रह े ह ैं । र्वै क्षक उदश्े यों के सम्बन्ध में एक बात स्पष्ट ह ै वक उद्दश्े य स्र्ा , पररवस्र्वत और समय के अ सार बदलते रहते ह ै । बदलते र्वै क्षक उदश्े यों को प्राप्त कर े हते
पाियिम का व माथण ् ु ु आिश्यक होता ह ै । उपरोक्त इकाई म ें हम े पाियिम को र्वै क्षक उदश्े यों की प्रावप्त के साध के रूप म ें ् अध्यय वकया । सार् ही सार् हम यह र्ी जा चके ह ैं वक पाियिम क्य
ा ह ै ? पाियिम एि पािय ् ् ् ु ां वििरण म ें क्या अतर ह ै ? पािय वििरण से पािय पस्तक का विकास कै से वकया जाता ह,ै पाियिम ् ् ् ु ां विकास के प्रमख वसिात जसै े – बाल के वन्ित, रुवच के वन्ित, लोचर्ील, म ोिज्ञै ाव क, समन्िय का ु ां वसिात इत्यावद कछ प्रमख वसधान्तों का अध्यय वकया । वर्क्षण अवधर्म प्रविया म ें पाियिम का ् ु ु ां मत्िपण थ स्र्ा ह ै । पाि
यिम एक साध के रूप म ें होता ह ै वजसका प्रयोर् करके विद्यार्ी अप े लक्ष्य ् ू तर्ा वर्क्षक अप े कायों का सम्पाद करते ह ै । सामान्य रूप से उदश्े यों की प्र
ावप्त के वलए दो र्ब्दों का प्रयोर् वकया जाता ह ै पहला पाियिम और दसरा पािय वििरण परन्त दो ों म ें अतर ह ै पाियिम को हम ् ् ् ु ां ू व्यापक तर्ा पािय वििरण को सवक्षप्त रूप म ें दखे ते ह ै । पािय वििरण से पािय पस्तक का विकास एक ् ् ् ु ां दरह कायथ ह ै पाियपस्तक का विकास करते समय हम े पाियिम व माथण के विवर्न् वसधान्तों एि अच्छी ् ् ु ां ु पाियपस्तक की विर्षे ताओ जसै े – पस्तक की र्ाषा सरल हो, पस्तक वचत्रात्मक र्लै ी में विकवसत की ् ु ु ु ां र्ई हो, पस्तक वलख े म ें म ोिज्ञै ाव क वसधातों का प्रयोर् वकया र्या हो, छात्रों की रुवच, उ की ु ां योग्यता, व्यवक्तर्त विवर्न् ताओ आवद बातों का ध्या रखा र्या हो । का ध्या रख ा पड़ता ह ै । ां 3.15 सन्दर्‍थ ग्रांर्‍सची ू 1. िायलर, आरडब्लय (1949) पाठयक्रम और फशक्षा के बफनयादी फसद्ातों , वर्कार्ो: वर्कार्ो ् ू ु ं विश्वविद्यालय 2. िाबा, एच (1962) पाठयक्रम फिकास: फसद्ात और व्यिहार , न्य यॉकथ : हरकत ब्रेस और दव या। ् ू ं ु 3. ए सीईआरिी (1975), दस साल स्कल के वलए पाियिम - एक फ्रे मिकथ , ई वदलली। ् ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 145 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4. सरकार। र्ारत (1977), "पर दस साल के वलए पाियिम की समीक्षा सवमवत की ररपोिथ के स्कल ् ू '( ईश्वर र्ाई पिेल सवमवत), वर्क्षा और समाज कलयाण, ई वदलली। 5. लॉि , डी एि अल (1978), वसिात और पाियिम अध्यय का अभ्यास। Rutledge और ् ां के र् पॉल लड । ां 6. के ली, ए िी (1983) पाठयचयाि। फसद्ात और व्यिहार लद : पॉल चैपम ै । ् ं ां 7. ए सीईआरिी (1986), राष्रीय एकता के वदर्ा व दर्े ों के दृवष्टकोण से पािय पस्तकों का ् ु मलयाक । र्वै क्षक अ सधा और प्रवर्क्षण, ई वदलली की राष्रीय पररषद। ू ु ां ां 8. सरकार। र्ारत (1986) की, राष्रीय ीवत वर्क्षा-1986 और -1986 के कायथिम पर, मा ि ससाध विकास, ई वदलली का प्रवतिदे । ां 9. ए सीईआरिी (1988), प्रार्वमक और माध्यवमक वर्क्षा के वलए राष्रीय पाियचयाथ - एक ् फ्रे मिकथ , ई वदलली। 10. कररकलम, वसललेबस एड िेक्स्ि बक । पोजीर् पेपर ेर् ल फोकस ग्रप, ए सी इ आर िी, ई ु ु ु ां दले ही । 11. ए सीईआरिी (1988) प्रार्वमक और माध्यवमक वर्क्षा के वलए राष्रीय पाियचयाथ: एक फ्रे मिकथ ् (सर्ोवधत सस्करण) "ए सीईआरिी
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"। ां ां 12. रामपाल, अ ीता (2000) र्णित्ता की वर्क्षा के वलए पाियिम पररितथ : डीपीईपी म ें स्कलों की ् ु ू एक स्िडी और के रल "
यव सेफ" म ें र्रै -डीपीईपी वजलों। का विर्षे अद्यय ू 13. ए सीईआरिी (2000), स्कल वर्क्षा, ई वदलली के वलए राष्रीय पाियचयाथ की रूपरेखा। ् ू 14. डेविड स्कॉि (2003), पाियिम अध्यय : वर्क्षा के क्षेत्र म ें प्रमख विषयों, रुतलेर्, लद , ् ु ां 2003। 15. व िवे दता & प्रिी (2008) पाियिम तर्ा विद्यालय प्रबध । विजय पवब्लके र् , लवधया ा। ् ु ां 16. अग्रिाल ज े सी (2010) िीवचर् ऑफ़ कॉमसथ । विकास पवब्लके र् हाउस, ई वदलली । ां 17. मर्ल एस के (2011) िीवचर् ऑफ़ सोर्ल स्िडीज । पी एच आई लव ांर्, प्राइििे वलवमिेड, न्य ू ां ां दले ही। 3.16‍श बधात्मक‍प्रश्न ां 1. पाियिम एि पािय चयाथ म ें अतर स्पष्ट करें ? ् ् ां ां 2. पाियिम क्या ह ै ? पाियिम विकास के विवर्न् वसधान्तों का उदाहरण की सहायता से ् ् व्याख्या कीवजए। 3. पाियपस्तक वकसे कहते ह ै ? एक अच्छी पाियपस्तक की प्रमख विर्ेषताए बताइये । ् ् ु ु ु ां 4. पािय चयाथ से पाियपस्तक का विकास कर े की प्रविया का िण थ करें । ् ् ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 146 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं ृ इकाई 4 - शशक्षा के वैर्शिक- साांस्कशतक तर्ा आर्टर्क मूल्र्ों एवां र्ारत के सांशवधान में प्रशतन्द्ष्ित शवर्ीन मूल्र्ों की प्रान्द्प्त हेत ु पाठ्यचर्ा एक साधन के रूप में Curriculum as a Tool for the Attainment of Individual Aims, Socio- Cultural and Economic Aims of Education and the Various Aims Enshrined in the Constitution of India 4.1 प्रस्ताि ा 4.2 उद्दश्े य 4.3 पाियचयाथ - अर्थ, उद्दश्े य एि तत्ि ् ां 4.4 वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की अिधारणा 4.4.1 पाियिस्त एि वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्य ् ु ां 4.4.2 वर्क्षण विवधया/प्रविवधया एि वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्य ां ां ां 4.4.3 र्ैक्षवणक एि सह-र्ैक्षवणक र्वतविवधया तर्ा वर्क्षा के व्यवक्तर्त ां ां लक्ष्य 4.5 वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों की अिधारणा ृ ां ां 4.5.1 पाियिस्त एि वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक तर्ा आवर्थक लक्ष्य ृ ् ु ां ां 4.5.2 वर्क्षण विवधया/प्रविवधया तर्ा वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक एि ृ ां ां ां ां आवर्थक लक्ष्य 4.5.3 र्ैक्षवणक एि सह-र्ैक्षवणक र्वतविवधया तर्ा वर्क्षा के सामावजक, ां ां सास्कवतक और आवर्थक लक्ष्य ृ ां 4.6 र्ारतीय सविधा में पररलवक्षत विवर्न् लक्ष्य ां 4.6.1 पाियचयाथ एि सविधा में पररलवक्षत लक्ष्य एि आदर्थ ् ां ां ां 4.7 सारार् ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 147 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4.8 व बधात्मक प्रश्न ां 4.9 सदर्थ ग्रर् सची एि स्रोत ू ां ां ां 4.1 प्रस्तावना ा आप वपछली इकाई यों म ें पाियचयाथ के अर्,थ इसकी व माथण प्रविया एि पाियचयाथ तर्ा विषयिस्त के ् ् ु ां मध्य सबध के बारे म ें विस्तत रूप से समझ चके ह।ैं इसके अवतररक्त हम ें यह र्ी ज्ञात हो चका ह ै वक ृ ु ु ां ां पाियचयाथ को विकवसत कर े म ें राज्य की क्या र्वमका होती ह ै तर्ा वकस प्रकार से पाियचयाथ म ें ् ् ू सवम्मवलत विषयिस्त को पाियपस्तकों के रूप म ें प्रस्तत वकया जाता ह।ै पाियचयाथ एक ऐसी सरच ा ह ै ् ् ु ु ु ां वजसका विद्यालय म ें र्वै क्षक अ र्िों को च े, व योवजत कर े तर्ा कायाथवन्ित कर े में प्रयोर् वकया ु ु जाता ह।ै पाियचयाथ एक ऐसा माध्यम ह ै वजसके द्वारा हम बच्चों म ें अवधर्म को बढ़ािा दते े ह ैं तावक ् विवर्न् र्वै क्षक लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सके । प्रस्तत इकाई म ें हम यह सीख े एि जा े का प्रयास ु ां करेंर् े वक वकस प्रकार स े पाियचयाथ की सहायता स े वर्क्षा के विवर्न् ियै वक्तक, सामावजक, सास्कवतक, ृ ् ां आवर्थक एि सिधै ाव क लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै ां ां 4.2 उद्दश्े य इस इकाई को पढ़ े के उपरात आप व म् वलवखत उद्दश्े यों को प्राप्त कर े म ें सक्षम होंर्ःे ां 1. पाियचयाथ के उद्दश्े यों एि तत्िों को समझर्ें ।े ् ां 2. वर्क्षा के व्यवक्तर्त, सामावजक, सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों की अिधारणा स्पष्ट करेंर्।े ृ ां ां 3. वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की प्रावप्त के वलए पाियचयाथ की र्वमका का वििचे करेंर्े। ् ू 4. वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें पाियचया थ की र्वमका ृ ् ू ां ां की व्याख्या करेंर्।े 5. र्ारतीय सविधा म ें व वहत आदर्ों एि लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें पाियचयाथ की र्वमका की ् ू ां ां वििचे ा करेंर्।े 6. उ वर्क्षण विवधयों, र्क्षै वणक तर्ा सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों को सचीबि करेंर् े वज के ू माध्यम से वर्क्षा के विवर्न् लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै 4.3 पाठ्यचया‍:‍अर्,थ उद्दश्े य‍एवनाां‍तत्वना जसै ा वक वपछले अध्यायों म ें आप जा चके ह ैं वक पाियचयाथ का अर्थ
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‘छात्रों के कायथक्षेत्र अर्िा दौड़ के ् ु मदै ा ’
ह।ै
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‘मदै ा ’
का अवर्प्राय पाियचयाथ से और
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‘दौड़’
का अर्थ छात्रों द्वारा अ र्ि एि उ की ् ु ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 148 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वियाओ से ह।ै वर्क्षक पाियचयाथ की सहायता से अप ी वर्क्षण वियाओ का सपाद करता ह ै वजसमें ् ां ां ां छात्र, अ र्ि तर्ा वियाए करके अप ा विकास करता ह ै और अप े र्न्तव्य स्र्ा तक पहच जाता ह।ै ु ु ां ां वर्क्षक की दृवष्ट से पाियचयाथ एक वदर्ा एि साध ह ै वजसका अ सरण करके वर्क्षा के विवर्न् लक्ष्यों ् ु ां को प्राप्त कर े का प्रयास वकया जाता ह।ै पाियचयाथ से अवर्प्राय उ सर्ी वियाओ एि पररवस्र्वतयों से ् ां ां ह ैं वज का व योज एि सम्पाद विद्यालय द्वारा बालकों के विकास के वलए वकया जाता ह।ै ां वर्क्षण प्रविया में, पाियचयाथ के माध्यम से ही वर्क्षक तर्ा छात्र के मध्य अतःविया होती ह।ै ् ां पाियचयाथ द्वारा ही वर्क्षण की वियाओ को वदर्ा प्रदा की जाती ह।ै वर्क्षक, छात्र तर्ा पाियचयाथ की ् ् ां पारस्पररक अतःवियाओ द्वारा ही बालकों का विकास होता ह।ै पाियचया थ का मख्य उद्दश्े य विवर्न् ् ु ां ां र्वै क्षक लक्ष्यों की प्रावप्त कर ा ह।ै वकसी र्ी पाियचयाथ के चार मल तत्ि होते ह-ैं उद्दश्े य, पाियिस्त, वर्क्षण विवधया एि र्वै क्षणक ि सह- ् ् ू ु ां ां र्क्षै वणक र्वतविवधया तर्ा मलयाक । इ चार तत्िों म ें र्ह सबध होता ह।ै वफवलप एच. िेलर के ू ां ां ां ां अ सार, ‘‘पाियचयाथ के अतर्तथ , पाियिस्त, वर्क्षण विवधया तर्ा उद्दश्े यों को सवम्मवलत वकया जाता ् ् ु ु ां ां ह।ै इ ती ों पक्षों की अतः प्रविया को पाियचयाथ कहा जाता ह।ै वर्क्षण वियाओ, र्क्षै वणक एि सह- ् ां ां ां र्क्षै वणक र्वतविवधयों द्वारा अवधर्म पररवस्र्वतया उत्पन् की जाती ह ैं वज से छात्रों म ें अपवे क्षत व्यिहार ां पररितथ लाया जाता ह।ै वर्क्षण वियाओ, र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों का सपाद ां ां ां पाियिस्त के आधार पर वकया जाता ह,ै वजसका स्िरूप पाियचयाथ व धाथररत करता ह।ै अतः सक्षेप में ् ् ु ां हम यह कह सकते ह ैं वक पाियचयाथ के माध्यम से पाियिस्त, र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों ् ् ु ां का सपाद वकया जाता ह ै तावक वर्क्षा के विवर्न् लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सके । वर्क्षा के लक्ष्यों को ां हम मख्यतः व म् वलवखत ढर् से िर्ीकत कर सकते ह।ैं ृ ु ां i. वर्क्षा के ियै वक्तक/व्यवक्तर्त लक्ष्य ii. वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक लक्ष्य ृ ां iii. वर्क्षा के आवर्थक लक्ष्य iv. वर्क्षा के सिधै ाव क एि राष्रीय लक्ष्य ां ां अब हम वर्क्षा के उपरोक्त लक्ष्यों के बारे म ें जा ेंर्।े इसके सार् हम विस्तत रूप म ें यह समझ े का प्रयास ृ करेंर् े वक पाियचयाथ के माध्यम से वकस प्रकार वर्क्षा के विवर्न् लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै ् 4.4 शशक्षा‍के ‍व्यशिगत‍लक्ष्य यों‍की‍अवनाधारणा यह समझ े के वलए पाियचयाथ वकस प्रकार से वर्क्षा के ियै वक्तक या व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े का ् एक सदृढ़ माध्यम ह,ै हम ें वर्क्षा के ियै वक्तक लक्ष्यों का ज्ञा हो ा अत्यत आिश्यक ह।ै ु ां वर्क्षा के िैयवक्तक लक्ष्यों से अवर्प्राय ऐसे लक्ष्यों से ह ैं वजसम ें वर्क्षा द्वारा व्यवक्त की व्यवक्तर्त रूवचयों, क्षमताओ तर्ा विर्ेषताओ के विकास को प्रार्वमकता दी जाती ह।ै वर्क्षा ऐसी हो ी चावहए जो व्यवक्त ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 149 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं को आत्मा र्वत करिा सके । वर्क्षार्ास्त्री काि के अ सार, ‘‘वर्क्षा व्यवक्त की उस पणतथ ा का विकास ह,ै ु ू ु ू ां वजसम ें उसकी क्षमता ह।ै ’’ प्लैिो के अ सार,
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‘‘वर्क्षा बालक के र्रीर और आत्मा म ें पणतथ ा को ु ू विकवसत करती ह ै वजसके िह योग्य ह।ै ’’
वर्क्षा के विवर्न् ियै वक्तक या व्यवक्तर्त लक्ष्यों को व म् वलवखत रूप म ें सचीबि वकया जा सकता ह।ै ू i. सपण थ व्यवक्तत्ि का विकास कर ा ू ां ii. व्यवक्त का र्ारीररक विकास कर ा iii. व्यवक्त का मा वसक विकास कर ा iv. तकथ र्वक्त एि व णथय र्वक्त का विकास कर ा ां v. व्यवक्त का सिर्े ात्मक विकास कर ा ां vi. व्यवक्त का चररत्र व माथण कर ा vii. व्यवक्त के अदर छपी हई प्रवतर्ाओ का विकास कर ा ु ु ां ां viii. व्यवक्त का आध्यावत्मक विकास कर ा उपरोक्त सर्ी लक्ष्य व्यवक्त के चहमखी या सिाांर्ीण विकास पर बल दते े ह।ैं इ सर्ी लक्ष्यों के अ सार ु ु ु ियै वक्तकता को जीि का आदर् थ मा ा जाता ह।ै वर्क्षाविद के अ सार, वर्क्षा की वकसी र्ी योज ा ् ु ् का महत्ि उसकी उच्चतम ियै वक्तक श्रेष्ठता का विकास कर े की सफलता से आका जा ा चावहए। व्यवक्त ां के महत्ि पर बल दते े हए का कर् ह ै वक, मा ि जर्त म ें प्रत्येक अच्छाई, व्यवक्तर्त परुषों और ु ् ु वस्त्रयों के स्ितत्र कायों द्वारा आती ह।ै इसवलए वर्क्षा पिवत को इस सत्य के अ रूप ब ा ा चावहए। इसी ु ां सदर् थ म ें रूसो े कहा ह ै वक प्रत्येक व्यवक्त एक विवर्ष्ट स्िर्ाि को लेकर जन्म लेता ह।ै हम वब ा सोच े ां समझ े विवर्न् -विवर्न् रूवचयों िाले बालकों को एक ही प्रकार के कायों म ें जिा दते े ह।ैं ऐसी वर्क्षा ु उ की विर्षे ताओ को ष्ट करके एक व जीि समा ता की छाप लर्ा दते ी ह।ै हम ें वर्क्षा के माध्यम से ां ऐसी दर्ाए उत्पन् कर ी चावहए वजससे ियै वक्तकता का पण थ विकास हो सके तर्ा व्यवक्त मा ि जीि ू ां ां को अप ा मौवलक योर्दा द े सके । वर्क्षण सस्र्ा ों म ें ऐसी पररवस्र्वतया या दर्ाए उत्पन् कर े के वलए ां ां ां सबसे महत्िपण थ र्वमका पाियचयाथ द्वारा व र्ाई जाती ह।ै यह के िल पाियचयाथ एि उसके वियान्िय ् ् ू ू ां द्वारा ही सर्ि ह ै वक हम बालकों के व्यवक्तत्ि का सपण थ विकास करिा सकें तर्ा उ के अदर वछपी हई ु ू ां ां ां प्रवतर्ाओ एि क्षमताओ को उजार्र कर सकें । वर्क्षा के विवर्न् व्यवक्तर्त या ियै वक्तक लक्ष्यों की प्रावप्त ां ां ां के वलए एक उवचत पाियचयाथ एि उसका सही वियान्िय वकया जा ा अत्यत आिश्यक ह।ै इसवलए ् ां ां हम ें पाियचयाथ और उसके विवर्न् अियिों के बारे म ें समझ हो ी चावहए। इ सब वबदेुओ पर आप ् ां ां वपछले अध्यायों म ें विस्तत रूप से जा चके ह।ैं अब हम यह समझ े का प्रयास करेंर् े वक पाियचया थ ृ ् ु वकस प्रकार स े वर्क्षा के व्यवक्तर्त या ियै वक्तक लक्ष्यों की प्रावप्त का एक माध्यम होता ह।ै जसै ा वक आप यह जा चके ह ैं वक पाियचयाथ म ें र्वै क्षक लक्ष्यों को ध्या म ें रखते हए, पाियिस्त, वर्क्षण विवधयों, ु ् ् ु ु र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों का व धाथरण वकया जाता ह।ै विवर्न् र्क्षै वणक र्वतविवधयों तर्ा ां वियाओ, पािय सहर्ामी वियाओ का व योज तर्ा वियान्िय , पाियचयाथ के आधार पर ही वकया ् ् ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 150 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं जाता ह।ै अब हम इसी को ध्या म ें रखते हए पाियचयाथ द्वारा वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की प्रावप्त के ु ् सबध म ें जा े का प्रयास करेंर्।े ां ां 4.4.1 पाठयवस्त एव न्द्र्क्षा के व्यन्द्िर्त लक्ष्य ् ु ं पाियिस्त पाियचयाथ का एक महत्िपण थ तत्ि ह।ै पाियिस्त से तात्पयथ वर्क्षण विषय की रूपरेखा एि ् ् ् ु ू ु ां उसम ें सवम्मवलत उपविषयों से ह।ै पाियिस्त का सबध बालक के सपणथ विकास से होता ह ै वजसम ें ् ु ू ां ां ां व्यवक्तर्त विकास र्ी व वहत ह।ै विद्यालय म ें विवर्न् वर्क्षण वियाओ तर्ा पािय-सहर्ामी वियाओ का ् ां ां बालक के ज्ञा ात्मक विकास से र्हरा सबध होता ह।ै पाियिस्त के वर्क्षण के दौरा विवर्न् वियाओ ् ु ां ां ां तर्ा र्वतविवधयों का आयोज वकया जाता ह ै तावक व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े की वदर्ा म ें आर् े बढ़ा जा सके । अतः यह बहत आिश्यक ह ै वक विवर्न् विषयों की पाियिस्त म ें ऐसे उपविषयों तर्ा ु ् ु प्रकरणों को र्ावमल वकया जाए वजसके
माध्यम से वर्क्षा के ियै वक्तक लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें मदद वमल सके । उदाहरण के वलए, र्वणत की पाियिस्त के वर्क्षण के माध्यम से हम छात्रों म ें तकथ र्वक्त का विकास
कर ा ् ु चाहते ह।ैं विज्ञा विषय म ें सवम्मवलत विवर्न् उपविषयों द्वारा हम छात्रों के मध्य िज्ञै ाव क दृवष्टकोण, व णयथ र्वक्त, िज्ञै ाव क अवर्रूवच, आलोच ात्मक सोच इत्यावद विकवसत कर ा चाहते ह।ैं यह सर्ी उद्दश्े य वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों जसै े मा वसक विकास एि बालकों की छपी हई प्रवतर्ाओ को ु ु ां ां विकवसत कर े से सबवधत एि आधाररत ह।ै इसवलए पाियिस्त म ें ऐसे उपविषयों एि प्रकरणों को ् ु ां ां ां ां र्ावमल वकया जा ा चावहए वज के वर्क्षण के माध्यम से बालकों के ज्ञा , समझ, दृवष्टकोण, तकथ र्वक्त, व णयथ र्वक्त इत्यावद को विकवसत वकया जा सके । इसी प्रकार, वर्क्षक द्वारा पाियिस्त के सपाद एि सही ् ु ां ां वियान्िय के वलए, विवर्न् र्वै क्षक वियाओ तर्ा र्क्षै वणक र्वतविवधयों का र्ी आयोज वकया जाता ां ह।ै इ वियाओ तर्ा र्वतविवधयों म ें र्ार् ले े से बालकों की व्यवक्तर्त विर्ेषताओ का विकास होता ह।ै ां ां इसी के सार्-सार् उ म ें सिर्े ात्मक विकास तर्ा ैवतक मलयों का र्ी विकास होता ह।ै यह उ के सपण थ ू ू ां ां व्यवक्तत्ि विकास की वदर्ा में महत्िपण थ योर्दा दते ा ह।ै विवर्न् पािय-सहर्ामी वियाओ तर्ा सह- ् ू ां र्क्षै वणक र्वतविवधयों के माध्यम से छात्रों के र्ारीररक एि मा वसक विकास म ें सहायता प्राप्त होती ह।ै ां अतः हम यह कह सकते ह ैं वक पाियिस्त म ें सवम्मवलत विवर्न् उपविषयों एि उ के सपाद एि सचारू ् ु ु ां ां ां वियान्िय के वलए आयोवजत की जा े िाली विवर्न् र्वै क्षक वियाओ तर्ा र्क्षै वणक एि सह- ां ां र्क्षै वणक र्वतविवधयों के माध्यम से वर्क्षा के ियै वक्तक या व्यवक्तर्त लक्ष्यों को सही अर्ों म ें प्राप्त वकया जा सकता ह।ै यवद वर्क्षा के विवर्न् स्तरों पर, अलर्-अलर् विषयों के वलए पाियिस्त का व धाथरण, ् ु व योज एि कायाथन्िय सही ढर् से हीं होर्ा तो वर्क्षा के ियै वक्तक लक्ष्यों को प्राप्त हीं वकया जा ां ां सकता ह।ै वर्क्षा के विवर्न् स्तरों पर पाियिस्त का व धाथरण, बालकों की विकास अिस्र्ाओ, ् ु ां आिश्यकताओ, अवर्रूवचयों, अवर्प्रेरणा स्तर इत्यावद के आधार पर वकया जा ा चावहए। पाियिस्त ् ु ां ऐसी हो ी चावहए वजससे बालक अवधर्म की प्रविया म ें रूवच लें। पाियिस्त का सपाद , वर्क्षक द्वारा ् ु ां ऐसी वर्क्षण विवधयों को अप ाकर वकया जा ा चावहए वजसम ें छात्र आ वदत एि अवर्प्रेररत महसस करें। ू ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 151 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इ सब के माध्यम से हम
छात्रों के सपण थ व्यवक्तत्ि विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकत े ह।ैं सारार् म ें हम ू ां ां यह कह सकते ह ैं वक पाियिस्त एि उसका सपाद वर्क्षा के ियै वक्तक लक्ष्यों को प्राप्त कर
े का एक ् ु ां ां प्रमख माध्यम ह।ै ु 4.4.2 न्द्र्क्षण न्द्वन्द्धया/प्रन्द्वन्द्धया एव न्द्र्क्षा के व्यन्द्िर्त लक्ष्य ं ं ं वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की प्रावप्त के वलए पाियिस्त का सपाद कर े हते वर्क्षक को विवर्न् वर्क्षण ् ु ु ां विवधयों एि प्रविवधयों का उपयोर् कर ा पड़ता ह।ै यह वर्क्षण विवधया/प्रविवधया, अवधर्म-पररवस्र्वतयों ां ां ां को उत्पन् करती ह ैं वजससे छात्रों म ें अपेवक्षत व्यिहार पररितथ वकए जाते ह।ैं छात्रों म ें अपेवक्षत व्यिहार पररितथ , वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की प्रावप्त की वदर्ा म ें अप ा योर्दा दते े ह।ैं अतः यह अवतआिश्यक ह ै वक वर्क्षक द्वारा वर्क्षण विवधयों/प्रविवधयों का चय इस प्रकार से वकया जाए तावक व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सके । वर्क्षण विवधयों एि प्रविवधयों का चय , विषय एि पाियिस्त ् ु ां ां की प्रकवत के आधार पर कर ा चावहए। छात्रों म ें अपेवक्षत व्यिहार पररितथ ला े के वलए वर्क्षक को ृ वकन्हीं उपविषयों म ें र्ाषण विवध का प्रयोर् कर ा चावहए तो कछ उपविषयों म ें उ की प्रकवत के आधार ृ ु पर चचा थ विवध, प्रश्नोत्तर विवध, या कायथकलाप-कें वित वर्क्षण विवध का प्रयोर् कर ा चावहए। उदाहरण के वलए, इवतहास विषय म ें र्ाषण विवध या कहा ी के द्वारा वर्क्षण उद्दश्े यों को
प्राप्त वकया जा सकता ह।ै जबवक विज्ञा जसै े विषय म ें कायथकलापों के माध्यम से वर्क्षण उद्दश्े यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै इ वर्क्षण उद्दश्े यों की प्रावप्त स,े व्यवक्तर्त वर्क्षा के लक्ष्य जसै े छात्र के म
ा वसक विकास को हावसल कर े में सहायता वमलती ह।ै 4.4.3 र्ैक्षन्द्णक एव सह-र्ैक्षन्द्णक र्न्द्तन्द्वन्द्धया तथा न्द्र्क्षा के व्यन्द्िर्त लक्ष्य ं ं वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों की प्रावप्त की वदर्ा म ें र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधया महत्िपणथ ू ां ां र्वमका व र्ाती ह।ैं विवर्न् र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधया, पाियचयाथ का एक अवर्न् अर् ् ू ां ां ां ह।ैं वज के माध्यम से वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें सहायता प्राप्त होती ह।ै एक वर्क्षक अप े विषय को पढ़ा े के दौरा या उसके उपरात विवर्न् र्क्षै वणक र्वतविवधया जसै े िाद-वििाद, ां ां प्रश्नोत्तरी र्क्षै वणक भ्रमण इत्यावद आयोवजत कर सकता ह।ै इ र्वतविवधयों के माध्यम से वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों जसै े तकथ र्वक्त ि व णयथ र्वक्त का विकास कर ा, छपी हई प्रवतर्ाओ को विकवसत ु ु ां कर ा इत्यावद को प्राप्त कर े म ें सहायता प्राप्त होती ह।ै इसी प्रकार से सह-र्क्षै वणक र्वतविवधया र्ी वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें ां सहायक होती ह।ैं विवर्न् खेल-कद र्वतविवधयों के द्वारा के िल छात्रों का र्ारीररक विकास होता ह ै ू अवपत इ से छात्रों के सिर्े ात्मक विकास म ें र्ी सहायता वमलती ह।ै विवर्न् सास्कवतक र्वतविवधयों जसै े ृ ु ां ां त्य, ािक, लध ाविकाए, समहर्ा इत्यावद द्वारा छात्रो म ें छपी हई प्रवतर्ाओ को विकवसत वकया जा ु ृ ु ू ु ां ां सकता ह।ै इसके अवतररक्त इ र्वतविवधयों द्वारा छात्रों म ें मा िीय मलयों का र्ी विकास होता ह ै वजससे ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 152 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं उ के चररत्र व माथण म ें सहायता होती ह ै तर्ा व्यवक्तत्ि म ें व खार आता ह।ै अतः हम यह कह सकते ह ैं वक विवर्न् र्क्षै वणक एि सह-र्ैक्षवणक र्वतविवधया वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े का एक सदृढ़ ु ां ां माध्यम ह।ै 4.5‍शशक्षा‍के ‍सामाशजक-साांस्कृ शतक‍एवनाां‍आर्टर्क‍लक्ष्य यों‍की‍अवनाधारणा आप यह र्ली-र्ावत जा ते ह ैं वक वर्क्षा और समाज म ें अिि सबध ह।ै वर्क्षा, हमारे समाज एि सस्कवत ृ ू ां ां ां ां ां की रीढ़ की हडडी ह।ै यवद हम परा े समय पर ज़र डालें तो हम दखे र्ें े वक जब र्ी वकसी समाज े वर्क्षा ् ु की व्यिस्र्ा की ह,ै उस े सबसे पहले अप ी आिश्यकताओ एि आदर्ों को साम े रखा ह।ै इसका अर्थ ां ां ह ै वक वजस समाज म ें जसै े आदर् थ होंर्े, िहा की वर्क्षा र्ी उन्हीं आदर्ों के अ रूप होर्ी। यही कारण ह ै ु ां वक जब वकसी समाज के आदर् थ या सास्कवतक मलय बदल जाते ह,ैं तो िहा की वर्क्षा र्ी बदले हए ु ृ ू ां ां आदर्ों के अ सर बदल जाती ह।ै दसरे र्ब्दो में, वर्क्षा के सामावजक एि सास्कवतक लक्ष्य बदलते ृ ु ां ां ू सामावजक पररिेर् के सार् पररिवतथत होते ह।ैं अर्ाथत वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक लक्ष्य, समाज द्वारा ृ ् ां ही व धाथररत वकए जाते ह।ैं वर्क्षा के विवर्न् सामावजक-सास्कवतक लक्ष्य व म् वलवखत ह-ैं ृ ां i. सामावजक मलयों एि आदर्ों का विकास ू ां ii. राष्रीयता का विकास कर ा iii. सामावजक एि सास्कवतक धरोहर का सरक्षण एि विकास ृ ां ां ां ां iv. छात्रों म ें ार्ररकता के र्ण विकवसत कर ा ु v. छात्रों को सामावजक विकास में सकारात्मक र्वमका का व िथह कर े के योग्य ब ा ा। ू वर्क्षा के इ सामावजक-सास्कवतक लक्ष्यों का सार यह ह ै वक वर्क्षा की व्यिस्र्ा ऐसी हो ी चावहए ृ ां वजसके द्वारा म ष्य समाज का सच्चा सामावजक घिक ब सके । म ष्य का जन्म, विकास और पोषण ु ु समाज म ें ही होता ह।ै अतः उसे समाज म ें रह े योग्य ब े के वलए वर्क्षा की आिश्यकता होती ह।ै समाज म ें रहकर व्यवक्त, अन्य व्यवक्तयों के सपकथ म ें आता ह ै वजसके फलस्िरूप उसकी विवर्न् र्वक्तयों ां का विकास होता ह।ै उपरोक्त सामावजक-सास्कवतक र्वै क्षक लक्ष्यों के अवतररक्त, वर्क्षा के आवर्थक लक्ष्य र्ी ह।ैं वर्क्षा के यह ृ ां आवर्थक लक्ष्य, हालावक सामावजक लक्ष्यों का ही अर् ह,ैं परत ितथमा िवै श्वक पररप्रेक्ष्य म ें इन्ह ें अलर् से ु ां ां ां समझ ा अत्यत आिश्यक ह।ै विश्व म ें औद्योवर्क िावत के बाद जहा धीरे-धीरे समाजिाद की जड़ें ां ां ां कमज़ोर हई, िहीं आवर्थक विकास की होड़ र्रू हई। इस आवर्थक विकास की होड़ के कारण वर्क्षा का ु ु ु ां महत्ि बढ़ा और आवर्थक विकास म ें वर्क्षा की र्वमका को एक महत्िपण थ लक्ष्य का दजाथ वदया र्या। ू ू ितथमा समय म ें र्ी यवद दखे ा जाए तो वर्क्षा द्वारा कौर्ल विकास पर बहत अवधक बल वदया जा रहा ह।ै ु वर्क्षा को म ष्य की आवर्थक कर्लता तर्ा उन् वत के मख्य माध्यम के रूप मा ा जा रहा ह।ै अतः वर्क्षा ु ु ु के आवर्थक लक्ष्यों को अलर् से समझ ा तर्ा उ की प्रावप्त के वलए प्रयास कर ा बहत महत्िपण थ ह।ै ु ू वर्क्षा के आवर्थक लक्ष्यों को मख्यतः व म् वलवखत रूप म ें सचीबि वकया जा सकता हःै ु ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 153 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं i. राष्र के आवर्थक विकास म ें योर्दा द े ा। ii. छात्रों को व्यिसाय के वलए तैयार कर ा। iii. उत्पाद एि सकल घरेल उत्पाद म ें िवि। ृ ू ां iv. लोर्ों की आधारर्त आिश्यकताओ की पवतथ कर ा। ू ू ां v. छात्रों म ें कायथकर्लता विकवसत कर ा। ु vi. राष्र की आवर्थक समस्याओ को समाधा प्रदा कर ा। ां vii. सहयोर् एि सहकाररता की र्ाि ा जार्त कर ा। ृ ां वर्क्षा के उपरोक्त आवर्थक लक्ष्यों का उवचत अध्यय कर े एि समझ े के उपरात आप यह जा जाएर् े ां ां ां वक यह लक्ष्य, सही माय े म ें वर्क्षा के सामावजक लक्ष्यों का ही अर् ह।ैं हम अप े बच्चों को इस प्रकार ां की वर्क्षा प्रदा कर ा चाहते ह ैं जो उ म ें सामावजक, सास्कवतक एि ैवतक मलयों के अवतररक्त उ में ृ ू ां ां कायथकर्लता, सहकाररता की र्ाि ा तर्ा देर् के आवर्थक विकास के प्रवत सकारात्मक र्ाि ा विकवसत ु कर सके । वर्क्षा का स्िरूप ऐसा हो ा चावहए वज से राष्र की सामावजक एि आवर्थक समस्याओ का ां ां समाधा , छात्रों म ें ार्ररकता का विकास एि दर्े के आवर्थक विकास के लक्ष्य के वलए सहयोर् की ां र्ाि ा जार्त हो सके । इसके वलए पाियचयाथ म ें यर्ोवचत विषय, उपविषय, र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक ृ ् ां र्वतविवधया तर्ा पािय-सहर्ामी वियाओ को सम्मवलत कर ा चावहए। एक उपयक्त पाियचयाथ द्वारा ही ् ् ु ां ां वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को
प्राप्त वकया जा सकता ह।ै अब हम यह समझ े ृ ां ां का प्रयास करेंर् े वक वकस प्रकार से पाियचयाथ , वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को ृ ् ां ां प्राप्त
कर े का एक सर्क्त एि सदृढ़ माध्यम ह।ै ु ां 4.5.1 पाठयवस्त एव न्द्र्क्षा के सामान्द्जक, सास्कन्द्तक तथा आन्द्थाक लक्ष्य ् ृ ु ं ं विवर्न् विषयों की पाियिस्त के माध्यम से वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को ृ ् ु ां ां प्राप्त वकया जा सकता ह।ै विद्यालयों म ें पढ़ाए जा े िाले सामावजक विज्ञा (सामावजक अध्यय ) विषय में ऐसे विवर्न् उपविषय र्ावमल होते ह ैं वज के वर्क्षण-अवधर्म द्वारा वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक ृ ां लक्ष्यों को हावसल कर े का प्रययास वकया जाता ह।ै इ उपविषयों म ें इवतहास के उपविषय जसै े प्राची वकलों का ज्ञा , स्ितत्रता सग्राम, र्ारतीय स्ितत्रता म ें विवर्न् समाज सधारकों तर्ा ेताओ का योर्दा ु ां ां ां ां इत्यावद को र्ावमल वकया जाता ह।ै इसी प्रकार स े वर्क्षा के लक्ष्य जसै े ार्ररकता का विकास कर ा, राष्रीयता का विकास कर ा इत्यावद को प्राप्त कर े के वलए हम छात्रों को ार्ररक र्ास्त्र विषय में लोकतत्र, हमारे राष्रीय प्रतीक, सरकार का र्ि , अवधकार एि कतथव्य इत्यावद के बारे म ें वसखाते ह।ैं ां ां वर्क्षा के आवर्थक लक्ष्यों जैसे व्यिसाय के वलए तैयार कर ा, राष्र के आवर्थक विकास म ें योर्दा द े ा इत्यावद को प्राप्त कर े के वलए विद्यालय के विवर्न् विषयों की पाियिस्त म ें ऐसे उपविषय ् ु एि कायथकलाप सवम्मवलत वकए जाते ह ैं वजससे छात्रों को र्विष्य के वलए विवर्न् रोजर्ारों हते तैयार ु ां वकया जा सके । पाियपस्तक में ऐसे उपविषय तर्ा कौर्ल ज्ञा र्ावमल वकया जा ा चावहए वजससे आज ् ु का छात्र कल का उपयोर्ी ार्ररक ब सके । पाियिस्त के माध्यम से छात्रों म ें कायथकर्लता का विकास ् ु ु उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 154 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं वकया जा ा आिश्यक ह।ै इससे के िल र्विष्य म ें उत्पाद एि सकल घरेल उत्पाद म ें िवि होर्ी अवपत ृ ू ु ां राष्र की आवर्थक समस्याओ को र्ी सलझा े म ें सहायता प्राप्त होर्ी। व ष्कष थ म ें हम यह कह सकते ह ैं वक ु ां पाियिस्त के माध्यम से वर्क्षा के सामावजक, सास्कवतक एि आवर्कथ लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ृ ् ु ां ां ह।ै अब हम यह जा े का प्रयास करेंर् े वक विवर्न् वर्क्षण विवधयों/प्रविवधयों द्वारा वकस प्रकार से वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै ृ ां ां 4.5.2 न्द्र्क्षण न्द्वन्द्धया/प्रन्द्वन्द्धया तथा न्द्र्क्षा के सामान्द्जक-सास्कन्द्तक एव आन्द्थाक लक्ष्य ृ ं ं ं ं वर्क्षक द्वारा अप ाई जा े िाली विवर्न् वर्क्षण विवधयों तर्ा प्रविवधयों के माध्यम से र्ी वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त कर े में सहायता प्राप्त होती ह।ै छात्रों म ें सामावजक ृ ां ां मलयों एि आदर्ों का विकास कर े के वलए वर्क्षक, वर्क्षण विवधयों जसै े चचाथ विवध, पररयोज ा विवध, ू ां अवर् य विवध इत्यावद का प्रयोर् कर सकता ह।ै इ विवधयों से छात्रों म ें सहयोर् की र्ाि ा, एक दसरे ू के विचारों को सम्मा प्रदा कर ा, कवि पररश्रम कर ा इत्यावद सामावजक मलयों को विकवसत वकया ू जा सकता ह।ै ड्रामा, लघ एकाकी, अवर् य जसै ी वर्क्षण प्रविवधयों को अप ाकर छात्रों म ें सास्कवतक ृ ु ां ां मलयों, राष्रीयता के र्णों को विकवसत वकया जा सकता ह।ै वर्क्षक को कक्षा वर्क्षण के दौरा सैिावतक ू ु ां विषयक ज्ञा के अवतवक्त कायथकलाप आधाररत ज्ञा र्ी प्रदा कर ा चावहए तावक छात्रों म ें कायथकर्लता ु को विकवसत वकया जा सके । इसके द्वारा ऐसे ार्ररकों का व माथण हो सके र्ा वजससे राष्र के उत्पाद में िवि होर्ी तर्ा राष्र की विवर्न् सामावजक एि आवर्थक समस्याओ का समाधा हो सके र्ा। इससे छात्रों ृ ां ां म ें सहयोर् की र्ाि ा को विकवसत र्ी वकया जा सकता ह।ै अतः सारार् म ें यह कहा जा सकता ह ै वक ां वर्क्षक द्वारा अप ाई जा े िाली विवधया/प्रविवधया, वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक तर्ा आवर्थक ृ ां ां ां लक्ष्यों को प्राप्त कर े का सर्क्त माध्यम ह।ैं अब हम वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक एि आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त कर े के वलए, विद्यालय ृ ां ां म ें आयोवजत की जा े िाली विवर्न् र्क्षै वणक एि सह-र्ैक्षवणक र्वतविवधयों की र्वमका के बारे म ें ू ां जा े का प्रयास करेंर्।े 4.5.3 र्ैक्षन्द्णक एव सह-र्ैक्षन्द्णक र्न्द्तन्द्वन्द्धया तथा न्द्र्क्षा के सामान्द्जक-सास्कन्द्तक और ृ ं ं ं आन्द्थाक लक्ष्य विद्यालय म ें आयोवजत की जा े िाली विवर्न् सह-र्क्षै वणक र्वतविवधया जसै े िाद-वििाद ां प्रवतयोवर्ताए, सास्कवतक कायथिम, प्रार्थ ा सर्ा, खले कद प्रवतयोवर्ताओ के माध्यम से छात्रों म े ृ ू ां ां ां सामावजक एि सास्कवतक मलयों को विकवसत वकया जा सकता ह।ै इ र्वतविवधयों द्वारा छात्रों में ृ ू ां ां ार्ररकता के र्णों को विकवसत कर े के अलािा उ म ें सामावजक एि आवर्थक विकास के प्रवत ु ां सकारात्मक र्वमका का व िहथ कर े की योग्यता को र्ी विकवसत वकया जा सकता ह।ै अतः यह कहा ू उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 155 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं जा सकता ह ै वक र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों के माध्यम से वर्क्षा के सामावजक-सास्कवतक ृ ां ां एि आवर्कथ लक्ष्यों को प्राप्त कर े की वदर्ा म ें सहायता प्राप्त होती ह।ै ां अब हम र्ारतीय सविधा म ें व वहत विवर्न् लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें पाियचया थ की र्वमका ् ू ां की वििचे ा करेंर्े। परन्त इससे पहले हमें र्ारतीय सविधा म ें पररलवक्षत विवर्न् लक्ष्यों को जा ा ु ां अत्यत आिश्यक ह।ै ां 4.6‍र्ारतीय‍सांशवनाधा ‍म‍पशरलशक्षत‍शवनाशर्न्न‍लक्ष्य य ें ितथमा र्ारतीय वर्क्षा के उद्दश्े यों को जा े के वलए यह आिश्यक ह ै वक स्ितत्रता प्रावप्त के पश्चात ् ां र्ारतीय समाज का जो ढाचा र्ारतीय सविधा द्वारा दर्ाथया र्या, उसे र्ली-र्ावत समझा जाए। वकसी र्ी ां ां ां राष्र का सविधा एक ऐसा दपथण होता ह ै वजसम ें उस राष्र की विर्ेषताए प्रवतवबवबत होती ह।ैं हमारे देर् ां ां ां के सविधा की प्रस्ताि ा में र्ारतीय समाज का रूप प्रदवर्तथ वकया र्या ह।ै र्ारतीय सविधा की ां ां प्रस्ताि ा के आधार पर हम यह कह सकते ह ैं वक हमारे दर्े के विकास के वलए सविधा म ें व म् वलवखत ां लक्ष्यों को पररलवक्षत वकया र्या ह:ै i. प्रजातावत्रक व्यिस्र्ा को मजबत कर ा। ू ां ii. पर् व रपेक्षता का बढ़ािा द े ा। ां iii. समा ता को बढ़ािा द े ा। iv. समाजिाद को बढ़ािा द े ा। v. सर्ी ार्ररकों को सामावजक, आवर्थक और राज ीवतक न्याय उपलब्ध करिा ा। र्ारतीय सविधा की प्रस्ताि ा म ें पररलवक्षत इ लक्ष्यों की प्रावप्त को सव वश्चत कर े के वलए, ार्ररकों ु ां को सविधा म ें विवर्न् मौवलक अवधकार प्रदा वकए र्ए ह।ैं इसी के सार्-सार् ार्ररकों के मल ू ां कतथव्यों का र्ी स्पष्ट वििरण र्ारतीय सविधा म ें वकया र्या ह।ै सविधा म ें व वहत ीवत-व दर्े क ां ां वसिात, हमारी प्रजातावत्रक प्रणाली का एक मख्य अर् ह ै जो के न्ि एि राज्य सरकारों को ीवत, व यम ु ां ां ां ां एि का ब ा े के वलए वदर्ा-व दर्े कों के रूप म ें कायथ करते ह।ैं सारार् म ें यवद हम कह ें तो यह कहा ू ां ां जा सकता ह ै वक र्ारतीय सविधा म ें व वहत प्रमख मलय, समा ता, र्ाईचारा, सर्ी के वलए सामावजक ु ू ां न्याय, पर्व रपेक्षता एि समाजिाद ह।ैं इ सिधै ाव क मलयों एि लक्ष्यों को प्राप्त कर े के वलए सविधा ू ां ां ां ां ां म ें अलर्-अलर् अ सवचयों एि धाराओ म ें विवर्न् प्रािधा वकए र्ए ह।ैं इ सिधै ाव क प्रािधा ों म ें ु ू ां ां ां अ ेक प्रािधा ऐसे ह ैं जो वर्क्षा एि ार्ररकों को र्वै क्षक अिसरों की उपलब्धता सव वश्चत कर े से ु ां सबवधत ह।ैं र्ारतीय सविधा म ें यह र्ी वजि वकया र्या ह ै वक विवर्न् सिधै ाव क लक्ष्यों एि मलयों को ू ां ां ां ां ां प्राप्त कर े म ें वर्क्षा की महत्िपण थ र्वमका ह।ै ू ू इस सदर् थ म ें हम अब यह समझ े का प्रयास करेंर् े वक वकस प्रकार स े वर्क्षा एि पाियचयाथ के माध्यम स े ् ां ां र्ारतीय सविधा म ें पररलवक्षत लक्ष्यों एि आदर्ों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 156 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 4.6.1 पाठयक्रम एव सन्द्वधान में पररलन्द्क्षत लक्ष्य एव आदर्ा ं ं ं विद्यालय, वर्क्षक एि पाियचयाथ का सविधा म ें व वहत लक्ष्यों एि आदर्ों को सफलतापिकथ प्राप्त ् ू ां ां ां कर े म ें महत्िपण थ स्र्ा ह।ै विद्यालय एक सामावजक सस्र्ा ह ै जो विवर्न् सामावजक आदर्ों तर्ा ू ां सिधै ाव क लक्ष्यों को प्राप्त कर े का सर्क्त माध्यम ह।ै लोकतत्र म ें विद्यालय से यह आर्ा की जाती ह ै ां ां वक यह अप े इस उत्तरदावयत्ि को सही ढर् से व र्ाए। इस सदर् थ म े विद्यालय द्वारा छात्रों को प्रिर्े के ां ां वलए समा अिसर, योग्यता क आधार पर अध्यापकों की व यवक्त, अध्यापकों को विचार प्रकि कर े की ु स्ितत्रता इत्यावद सिधै ाव क मलयों को बढ़ािा वदया जा ा चावहए। ू ां ां इसी प्रकार से वर्क्षक र्ी छात्रों म ें सिधै ाव क मलयों एि आदर्ों की प्रावप्त का एक सर्क्त ू ां ां माध्यम ह।ै वर्क्षक अप ी वर्क्षण-अवधर्म विवधयों/प्रविवधयों, विवर्न् र्क्षै वणक/सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों तर्ा अप े दवै क व्यिहार के माध्यम से छात्रों म ें विवर्न् सिधै ाव क मलयों एि आदर्ों का ू ां ां विकास करिा सकता ह।ै इसके वलए यह आिश्यक ह ै वक वर्क्षक छात्रों के सार् पक्षपातरवहत बताथि करे तर्ा सर्ी छात्रों को विचारों की अवर्व्यवक्त के समा अिसर उपलब्ध करिाए। विद्यालय एि वर्क्षकों ां को चावहए वक विवर्न् र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों म ें छात्रों को र्ार् ले े के समा अिसर ां वदए जाए। छात्रों म ें लोकतावत्रक मलयों को विकवसत कर े के वलए विद्यालय म ें सद ों का र्ि , कक्षाओ ू ां ां ां के मॉव िर च े इत्यावद कायों म ें लोकतावत्रक प्रणाली का उपयोर् वकया जा ा चावहए। विद्यालय में ु ां ससद, विधा सर्ा इत्यावद की च ाि प्रविया का व्यिहाररक ज्ञा प्रदा कर े के वलए सबवधत ु ां ां ां र्वतविवधया आयोवजत करिाई जा ी चावहए। पाियचयाथ म ें मख्यतः सामावजक विज्ञा विषय में इसीवलए ् ु ां ां ऐसे उपविषयों को अवधक महत्िपण थ स्र्ा प्रदा वकया र्या ह।ैं जो लोकतत्र, मौवलक अवधकार, कतथव्यों, ू ां च ाि प्रविया इत्यावद पर आधाररत होते ह ैं इसके अवतररक्त समाजिाद, पर्व रपेक्षता तर्ा सामावजक ु ां न्याय से सबवधत उपविषयों को र्ी विद्यालय के पाियचयाथ म ें र्ावमल वकया र्या ह।ै पाियचयाथ म ें ् ् ां ां सवम्मवलत इ उपविषयों का अवधक महत्ि वदया जा ा, छात्रों म ें सिधै ाव क मलयों एि आदर्ों को ू ां ां विकवसत कर े का एक प्रमख माध्यम ह।ै इस सदर् थ म ें यह आिश्यक हो जाता ह ै वक पाियचया थ म ें ् ु ां र्ावमल इस पाियिस्त के वर्क्षण के दौरा वर्क्षक सही वर्क्षण-अवधर्म विवधयों का उपयोर् करे। इसके ् ु सार्-सार् विद्यालय म ें तर्ा कक्षा-वर्क्षण के दौरा यर्ोवचत र्क्षै वणक तर्ा सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों का र्ी आयोज वकया जाए। उपयक्त वर्क्षण विवधयों तर्ा र्वतविवधयों के माध्यम से ही छात्रों में ु सिधै ाव क मलयों एि आदर्ों को विकवसत वकया जा सकता ह।ै अतः व ष्कष थ म ें यह कह सकते ह ैं वक ू ां ां विद्यालय एि विद्यालय म ें वर्क्षकों द्वारा पढ़ाया जा े िाला पाियचयाथ , र्ारतीय सविधा के लक्ष्यों को ् ां ां प्राप्त कर े का एक बहत सदृढ़ एि सर्क्त माध्यम ह।ै ु ु ां 4.7 साराांश प्रस्तत इकाई म ें हम े यह समझ े का प्रयास वकया वक वकस प्रकार स े पाियचया थ के माध्यम से वर्क्षा के ् ु व्यवक्तर्त, सामावजक, सास्कवतक, आवर्थक एि सिधै ाव क लक्ष्यों को प्राप्त वकया जा सकता ह।ै आप ृ ां ां ां उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 157 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं इस इकाई को पढ़ े के पश्चात यह जा चके ह ैं वक पाियचयाथ म ें व वहत पाियिस्त, वर्क्षण ् ् ् ु ु विवधयों/प्रविवधयों तर्ा र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों
के माध्यम से हम छात्रों के सपण थ ू ां ां व्यवक्तत्ि का विकास, सामावजक एि सास्कवतक मलयों का विकास तर्ा सिधै ाव क आदर्ों का विकास ृ ू ां ां ां करिा सकते ह
।ैं इसके अवतररक्त पाियचयाथ विवर्न् राष्रीय लक्ष्यों तर्ा दर्े के सिधै ाव क, सामावजक ् ां एि आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त कर े म ें महत्िपण थ र्वमका व र्ाता ह।ै अतः यह आिश्यक ह ै वक पाियचया थ ् ू ू ां की सरच ा एि उसका व ष्पाद उवचत ढर् से वकया जाए। ां ां ां 4.8 श बधात्मक‍प्रश्न ां 1. पाियचयाथ के प्रमख उद्दश्े य एि तत्ि कौ -कौ से ह?ैं ् ु ां 2. वर्क्षा के व्यवक्तर्त लक्ष्यों को प्राप्त कर े के वलए, पाियिस्त म ें वक उपविषयों को र्ावेमल ् ु वकया जा ा चावहए? 3. वर्क्षा के विवर्न् सामावजक एि आवर्थक लक्ष्यों पर प्रकार् डावलए। ां 4.
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‘‘ितथमा विद्यालयी पाियचयाथ , छात्रों म ें सास्कवतक मलयों एि आदर्ों को विकवसत कर े म ें ृ ् ू ां ां असफल वसि हआ ह।ैं ’’
क्या आप इस कर् से सहमत ह?ैं तकथ दीवजए। ु 5. उ र्क्षै वणक एि सह-र्क्षै वणक र्वतविवधयों का सवक्षप्त वििरण दीवजए जो आप एक अध्यापक ां ां के रूप म ें वर्क्षा के आवर्थक लक्ष्यों को प्राप्त कर े के वलए अप े विद्यालय म ें आयोवजत करिा ा चाहर्ें ।े 6. पाियचयाथ के माध्यम से, हमारे सविधा म ें व वहत समाजिाद एि सामावजक न्याय के लक्ष्यों ् ां ां को वकस प्रकार से
प्राप्त वकया जा सकता ह?ै व्याख्या करें। 7. उ वर्क्षण विवधयो एि प्रविवधयों का िण थ करें वज के माध्यम से वर्क्षा के सामावजक लक्ष्यों ां को ितथमा पररदृश्य म ें प्राप्त
वकया जा सकता ह।ै 4.9 सदां र्‍थ ग्रांर्‍सची‍ ‍एवनाां‍स्रोत ू 1. र्प्ता, एस॰ तर्ा अग्रिाल, ज॰े सी॰ (2008). उदीयमा र्ारतीय समाज म ें वर्क्षा. ई वदलली: ु वर्प्रा प्रकार् . 2. पािक, पी॰ डी॰ (2005). र्ारतीय वर्क्षा और उसकी समस्याए. आर्रा: वि ोद पस्तक मवदर. ु ां ां 3. र्माथ, आर॰ ए॰ (2007). सामावजक विज्ञा वर्क्षण. मरे ि: आर॰ लाल बक वडपो. ु 4. Pa ndey. R.S. (2002). Te a che r in De veloping India n Society. Agra : Vin od Pustak Ma ndir उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 158 ु ज्ञान एव पाठयचयाा PE-3 ् ं 5. Safaya , R.N. & Shaida , B.D. (2005). Mode r n The o ry a nd Prin ciple s of Edu c atio n. Ne w Delhi: Dha npat Rai Publishing Co mpa ny. 6. Sriv a sta va , H.S. (2006). Cu rric ulum a nd Methods of Te a ching. Ne w Delhi: Shipra Public atio n s . 7. Ga rim a a nd Sriva sta va , Sa njay (2001). Co n stitutio n of India . Ne w Delhi: Ra m e sh Publishing Ho us e . उत्तराखण्ड मक्त विश्वविद्यालय 159 ु

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